राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : बृजमोहन सबपे भारी
31-Jul-2021 6:18 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम :  बृजमोहन सबपे भारी

बृजमोहन सबपे भारी

बृहस्पति सिंह-सिंहदेव प्रकरण का भले ही सुखद अंत हो गया, लेकिन विपक्ष के भाजपा सदस्यों को बृहस्पति, और सिंहदेव पर हमला बोलने का एक बड़ा मौका मिला था, और विशेषकर बृजमोहन अग्रवाल ने इस मौके को खूब भुनाया।

सिंहदेव, पिछली सरकार में जलकी प्रकरण को लेकर बृजमोहन के खिलाफ काफी मुखर थे। और अब जब बृजमोहन की बारी आई, तो सिंहदेव पर ऐसा हमला बोला कि पूरे सत्तापक्ष पर अकेले भारी पड़ गए। काफी समय बाद सदन में ऐसा मौका आया, जब एक दिन प्रश्नकाल तक नहीं चल सका।

बृजमोहन ने सिंहदेव के सदन छोडऩे को विशेषाधिकार भंग का मामला बता दिया। उन्होंने चुन-चुनकर ऐसे तीर छोड़े कि सत्तापक्ष के लोग बगलें झांकने मजबूर हो गए। सबसे पहले उन्होंने सिंहदेव के भाषण की वीडियो क्लिप वायरल होने पर जांच की मांग कर दी। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने भी इसे गंभीर माना, और उन्हें इसके लिए चेतावनी जारी करनी पड़ी।

बृजमोहन, सिंहदेव के खिलाफ इतने आक्रामक थे कि एक बार उन्होंने यह तक कह दिया कि एक बाबा(टीएस सिंहदेव) को  बचाने के लिए सरकार बाबा (डॉ. अंबेडकर) का अपमान कर रही है। यानी सरकार संविधान की धज्जियां उड़ा रही है। अलबत्ता, धर्मजीत सिंह जैसे कुछ सदस्य थे जो कि सिंहदेव के पक्ष में सहानुभूति रखते थे। रमन सिंह से भी इस प्रकरण पर कुछ बोलने की उम्मीद थी, लेकिन चर्चा के वक्त सदन से गैरहाजिर थे। उन्होंने बाद में मीडिया के माध्यम से कुछ बातें रखकर एक तरह प्रकरण से दूर ही रहे।

राजनीतिक असर काम न आया

खबर है कि सरगुजा में भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी ने टीएस सिंहदेव के करीबियों को अपनी कॉलोनी में पार्टनर बनाकर मुसीबत मोल ले ली है। शहर के बाहरी इलाके में बन रही इस कॉलोनी की जमीन में बड़ा झोल है। भाजपा नेता को उम्मीद थी कि सिंहदेव की छत्रछाया में सब कुछ निपट जाएगा। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ।

सुनते हैं कि मंत्री बंगले से भाजपा नेता को मदद के लिए कलेक्टर को कई बार फोन भी जा चुका है। भाजपा नेता, अपने भाई के साथ कलेक्टर से मिल भी आए थे। लेकिन प्रकरण का निराकरण नहीं हो पा रहा है। चर्चा यह है कि भाजपा नेताओं ने एक रिटायर्ड ईएनसी की जमीन को भी हड़पने की कोशिश की थी। बात यही बिगड़ गई।

रिटायर्ड ईएनसी ने ऐसा चक्कर चलाया कि मंत्री बंगले का भी कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद थक हारकर भाजपा नेता ने एक पूर्व सांसद को साथ लेकर संवैधानिक पद पर आसीन महिला नेत्री से भी मिले, लेकिन वहां से राहत मिलना तो दूर उलटे फटकार मिल गई। अब भाजपा नेता ने अपनी ही पार्टी के कुछ बड़े लोगों को साथ लेकर सिविल लाइन बंगले में संपर्क की कोशिश कर रहे हैं। देखना है कि नेताजी को राहत मिल पाती है अथवा नहीं।

सफेद गिद्ध की एक विरल तस्वीर..

वैसे, है तो थोड़ी बदसूरत चिडिय़ा। अच्छे उदाहरण भी इसे लेकर नहीं। मौके की ताक में नजर गड़ाये रखने को गिद्ध दृष्टि कहते हैं। शास्त्रों में तो यह भी कहा गया कि जिस घर में गिद्ध बैठ जाये वहां नहीं रहना चाहिये। शेर, तेंदुआ, चीते, गीदड़ या जंगली कुत्ते नहीं, बल्कि जंगली जानवरों के शवों को खाने में सबसे आगे गिद्ध होते हैं। बाकी मांसाहारी जानवर तो शव के 35-40 प्रतिशत हिस्से को ही खा पाते हैं पर सड़े हुए मांस के जीवाणु, विषाणु और कीड़े गिद्धों का आहार होता है। शहरों में कुत्ते और अन्य मवेशी बड़ी संख्या में मारे जाते हैं और खुले में फेंक दिये जाते हैं। अपनी आहार की प्रवृत्ति के कारण बीमारियों की रोकथाम में गिद्धों की जंगल में भी जरूरत है और जंगल के बाहर भी। वस्तुत: ये प्रकृति के सफाई कर्मी हैं। पर, कुछ रिपोर्ट्स से यह जानकारी मिलती है कि इतने उपयोगी पक्षी का अस्तित्व अब संकट में है और कई देशों में इनकी संख्या 95 प्रतिशत तक घट चुकी है। भारत, नेपाल और पाकिस्तान में ये पहले बहुतायत में पाये जाते थे। अब अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने इसे संकटग्रस्त प्रजाति घोषित कर रखा है। इसके अस्तित्व को बचाये रखने के लिये वैज्ञानिक और वन्य जीव प्रेमी प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि इनकी मौजूदगी प्रकृति का ईको सिस्टम ठीक रखने के लिये जरूरी है।

सभी गिद्ध बदसूरत भी नहीं होते। कुछ रंग-बिरंगे और सफेद होते हैं। कम से कम तस्वीरों में तो इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है। ऐसी ही कुछ दुर्लभ तस्वीरें वरिष्ठ पत्रकार व वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर प्राण चड्ढा ने कोटा क्षेत्र के मोहनभाठा से कुछ दिन पहले खींची है। ये तस्वीरें इजिप्शन वल्चर (मिस्र का गिद्ध) की हैं।

ये ग्लैमर की दुनिया है जनाब...

स्वीडिश डायरेक्टर अरने सक्सडोर्फ ने एक फिल्म बनाई थी- ‘द फ्लूट एंड द एरो’, भारत में वह ‘द जंगल सागा’ नाम से रिलीज हुई। टेम्बू नाम के बाघ का दोस्त बस्तर का चेंदरू मंडावी स्वीडन गया, रातों-रात हॉलीवुड स्टार बन गया। कुछ बरस तक चेंदरू की चर्चा होती रही और उस पर केन्द्रित कर बनाई गई फिल्म सक्सफोर्ड की उपलब्धि में जुड़ गई। चेंदरू वापस अपने गांव लौट गया। कभी उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू से भी हाथ मिलाने का मौका मिला था, पर गांव आने के बाद सब छूट गया। उसका बाघ टेम्बू भी चल बसा। सन् 2013 में बेहद गुमनामी में उसकी मौत हुई। छत्तीसगढ़ सरकार को भी जीते-जी उसकी उपेक्षा पर बड़ा अफसोस हुआ, तब मृत्यु के बाद जंगल सफारी में उसकी एक प्रतिमा लगाई गई।

अब हमारे बस्तर के सहदेव पॉप सिंगर बादशाह से मिलकर चंडीगढ़ से लौट आये हैं। सोशल मीडिया पर बादशाह को सराहा जा रहा है कि उन्होंने एक सुदूर आदिवासी अंचल के गरीब परिवार की प्रतिभा पर गौर किया और उसे मौका देने के लिये आगे आये। उनके गाने ‘बचपन का प्यार’ के दर्जनों रिमिक्स तैयार हो गये हैं। सोशल मीडिया पर बेशुमार तारीफें मिल रही हैं। पर कई लोगों को पिछली बातें भी याद आती है। संगीतकार हिमेश रेशमिया ने मुम्बई के एक रेलवे प्लेटफॉर्म पर गाना गाकर गुजारा करने वाली रानू मंडल को पहचाना, अपने एलबम में मौका दिया। रानू मंडल को रातों-रात शोहरत मिल गई। रानू के बहाने हिमेश मीडिया पर छा गये। लोगों ने एक कलाकार में छिपे भावुक इंसान को देखा। अब बादशाह के साथ भी यही हो रहा है। उनकी भी ब्रांड वेल्यू सहदेव की वजह से बढ़ रही है। रानू मंडल आज कहीं नहीं है पर हिमेश वहीं हैं। सहदेव आज है तो क्या बिना गायन और संगीत कला में पारंगत हुए वह अपनी लोकप्रियता को बचाये रख सकेगा? क्या मीडिया की चर्चा में आये बिना बादशाह उसे आगे भी मुकाम हासिल करने में मदद करते रहेंगे? सबको अच्छा लगेगा सहदेव खूब नाम कमाये, बस्तर और छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करे।                         

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news