राजपथ - जनपथ
अफसर की मौलिक पहल का नतीजा
गांवों में सरकारी योजनाओं के लिए कई बार जमीन की समस्या आड़े आ जाती है। मगर पिछले वर्षों में सरकारी जमीन को सुरक्षित रखने के लिए कुछ जगहों पर बेहतर काम भी हुआ था, जिसकी वजह से वृक्षारोपण, और गौठानों के लिए सरकारी जमीन ढूंढने ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। सीएम के विशेष सचिव एस भारतीदासन ने तो जांजगीर-चांपा कलेक्टर रहते लाल झंडा अभियान चलाया था, और करीब 10 हजार एकड़ सरकारी जमीन को चिन्हित कर कब्जा मुक्त कराने में सफल रहे।
लो-प्रोफाइल में रहने वाले भारतीदासन ने गांव वालों के सहयोग से पामगढ़ के दरदरी गांव में करीब 120 हेक्टेयर सरकारी जमीन दबंगों से छुड़ाया, और जमीन वृक्षारोपण के लिए वन विभाग के सुपुर्द कर दिया। उस समय सतोविशा समजदार डीएफओ थीं। सतोविशा की गिनती भी मेहनती अफसरों में होती है। उन्होंने जिला प्रशासन के सहयोग से वहां सघन वृक्षारोपण कराया। और आज हाल यह है कि दरदरी गांव का यह इलाका जंगल के रूप में तब्दील हो गया है। जिस जमीन पर कब्जे को लेकर गांव में हमेशा तनाव का माहौल रहता था, वहां हरे भरे वृक्ष लहलहा रहे हैं। गांव वाले जिला प्रशासन के प्रयासों की सराहना करते नहीं थकते हैं।
पत्रकार सुरक्षा कानून...
सब कुछ ठीक ठाक रहा, तो छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विधेयक शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है। भूपेश बघेल ने सीएम पद की शपथ लेने के बाद पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी, और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आफताब आलम की अध्यक्षता में इसका प्रारूप तैयार करने के लिए कमेटी बना दी थी। जस्टिस आलम की साख बहुत अच्छी रही है।
जस्टिस आफताब आलम ने बस्तर से लेकर सरगुजा तक पत्रकार-संगठनों से चर्चा कर प्रारूप तैयार कर लिया है, और विधि विभाग से सहमति मिलने के बाद सीनियर सचिवों की कमेटी में विधेयक के प्रारूप पर मंथन होगा, और इस बात की पूरी संभावना है कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद पत्रकार सुरक्षा कानून विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश हो जाएगा।
पत्रकार सुरक्षा कानून जस्टिस आफताब आलम ने अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी। उन्होंने इसके लिए मानदेय लेने से भी मना कर दिया। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब भी रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में कोई कमेटी या आयोग का गठन होता है, तो सरकार को उनके सुख सुविधाओं के लिए काफी कुछ वहन करना होता है। मगर जस्टिस आलम अपवाद रहे हैं, और उनकी मेहनत कानून के प्रारूप में झलकती भी है। अब इस बात की संभावना है कि अगले साल पत्रकारों को सुरक्षा देने वाला कानून अस्तित्व में आ जाएगा।
हाईकोर्ट में वूमेन पावर
छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के साथ-साथ हाई कोर्ट का भी गठन 2 दिन के अंतराल पर हो गया था। पर यहां महिला जज की पहली नियुक्ति मार्च 2018 में हो सकी। अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में तब की रायपुर फैमिली कोर्ट की जज विमला सिंह कपूर और रजिस्ट्रार विजिलेंस रजनी दुबे की एक साथ पदस्थापना हुई।
18 साल के बाद एक साथ दो महिला जज हाई कोर्ट को मिले। अब एक्टिंग चीफ जस्टिस ने उन्हें एक साथ जो नई जिम्मेदारी दी है, वह भी चर्चा में है। हाई कोर्ट में रोस्टर बदलने के बाद दो डबल बेंच बनाई गई हैं। दोनों में एक-एक प्रतिनिधित्व इन दोनों महिला न्यायाधीशों का है।
प्रसंगवश, समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है कि न्यायपालिका में महिला प्रतिनिधित्व कम है। हाईकोर्ट के 661 जजों में सिर्फ 70 महिलाएं हैं। इस कमी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लगाई जा चुकी है। एटर्नी जनरल के जी वेणुगोपाल ने पिछले दिनों कहा था कि महिलाओं का प्रतिशत बढऩे से न्यायपालिका का दृष्टिकोण अधिक संतुलित और सशक्त होगा।
काजू, बादाम वाले दुबई में टाऊ की मांग
ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि ड्राई फ्रूट्स सेहत के लिए जरूरी तो है लेकिन आम आदमी की पहुंच से बाहर है। इसके विकल्प हमारे आसपास मौजूद है। छत्तीसगढ़ की विविधतापूर्ण पैदावार में प्रोटीन, विटामिन और शरीर के लिए जरूरी वे मिनरल्स, आयरन आदि प्राप्त किये जा सकते हैं जो बाजार में काफी महंगे मिलते हैं। गनियारी के चिकित्सक डॉ. योगेश जैन ने तो छत्तीसगढ़ में उपलब्ध पोष्टिक, गुणकारी साग-भाजी और पत्तियों पर एक पूरी किताब भी लिखी है। अब ड्राई फ्रूट्स के लिए मशहूर अरब देशों के सबसे नामी शहर दुबई से मैनपाट के टाऊ आटे की मांग आई है। शुरुआत अच्छी हुई है, भले ही ऑर्डर अभी 120 किलो का ही है। यहां महिलाओं की एक स्व-रोजगार संस्था ने बकायदा प्रोडक्शन कंपनी बनाई है और मार्केटिंग के लिए एमओयू भी किया है। इसी के जरिए दुबई से उन्हें टाऊ के आटे की आपूर्ति का ऑर्डर मिला है। टाऊ में हार्ट, शुगर और कैंसर के रोगियों के लिए फायदेमंद जिंक, मैगजीन और कॉपर मिनरल्स मिलता है। शोध में मालूम हुआ है कि इसमें फेगोपायरीटोल नाम का एक खास कार्बोहाइड्रेट होता है जो कोलेस्ट्रोल कम कर आंत का कैंसर दूर रखता है। इसमें ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित रखने के गुण हैं। मैनपाट में काजू, मशरूम, हल्दी, चाय जैसे अनेक विविधता पूर्ण उत्पादों का रकबा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है। आलू तो मशहूर ही है। इन सबकी राज्य और राज्य के बाहर सप्लाई होती है।
छत्तीसगढ़ के ज्यादातर इलाकों में खेती साथ प्रयोग करने में झिझक दिखाई देती है। धान की बंपर पैदावार अब एक समस्या भी बनती जा रही है। जिस दिन शासन ने हाथ खड़े कर प्रोत्साहन राशि देना बंद कर दिया, धान का बाजार मिलना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में जशपुर की इस खबर पर गौर करना चाहिये।
स्कूल में मजदूर की समस्या दूर
2 अगस्त को पहले दिन जगह-जगह स्कूल खुलने पर उत्सव मनाया गया। चॉकलेट और मिठाइयां भी बांटी गई। पर यह सिर्फ तस्वीरों में और बड़े शहरों कस्बों की बात है। दूरस्थ गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के कंचनडीह ग्राम पंचायत के प्राथमिक शाला की एक अलग तस्वीर के सामने आई है। यहां स्कूल ड्रेस में बच्चे बर्तन मांगते हुए दिखे। तीसरी कक्षा के बच्चों को लगा होगा, पहले दिन हो सकता है इसी काम में लगाया जाता होगा। या फिर शिक्षक को लगा होगा कि डेढ़ साल से स्कूल से दूर बच्चे पढऩा लिखना तो भूल ही गए होंगे और उन्हें बर्तन मांजने के काम में लगा देना ही ठीक रहेगा। नौ 10 साल की बच्चों ने बताया क्यों नहीं प्रधान पाठक में बर्तन साफ करने के लिए कहा है। और हम उनकी आज्ञा का पालन कर रहे हैं। गांवों में मातायें छोटे बच्चों को डराती हैं, स्कूल नहीं जोओगे तो बर्तन मांजने के काम में लगा दूंगी। पर बच्चों को तो स्कूल में भी वही करना पड़ रहा है।
बसपन के प्यार में बिजी
सोशल मीडिया पल भर में सुर्खियां बटोरने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनता जा रहा है। स्थिति ये है कि कम पढ़े-लिखे या दूरस्थ इलाके के लोग भी इसके जरिए देश-दुनिया में पॉपुलर हो रहे हैं। समाज के आदर्श और सेलिब्रेटी भी ऐसे लोगों को खूब प्रमोट कर रहे हैं। कई बार जरूरतमंद और प्रतिभावान लोगों को सोशल मीडिया मुकाम तक पहुंचाने में मददगार साबित हो रहा है, लेकिन अधिकांश बार यह देखने में भी आता है कि हंसी-ठिठौली में ऐसे लोग भी प्रसिद्धि पा रहे हैं, जिससे उन पर अपेक्षाओं का बोझ बढ़ रहा है। अब छत्तीसगढ़ के दूरस्थ नक्सल इलाके के सहदेव को ही लीजिए, जिसका करीब दो साल पुराना वीडियो इस कदर वायरल हुआ कि तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उसी की चर्चा शुरू हो गई और राजनेताओं से लेकर फिल्मी सितारों के साथ उनका वीडियो आना शुरू हो गया। जैसा सोशल मीडिया का स्वभाव है कि जितनी जल्दी प्रसिद्धि मिलती है, उससे भी तेजी से आलोचना भी शुरू हो जाती है। इससे उस मासूम की कोई गलती नहीं है, फिर भी परिणाम उसको और पूरे समाज को भोगना पड़ेगा। बसपन का प्यार गाना गाकर पॉपुलर होने वाले सहदेव के बाल मस्तिष्क में यह बात तो जरूर आई होगी कि वह अब बड़ा स्टार बन गया है, जबकि पढऩे-लिखने और खेलने-कूदने के इस उम्र में सोशल मीडिया ने से उसे ऐसे काम के लिए हीरो बना दिया, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी। आज जब दूसरे देशों के 10-12 साल के बच्चे ओलंपिक में जाकर पदक जीत रहे हैं और हमारा पूरा देश बसपन के प्यार में बिजी है। इसकी लोकप्रियता को देखकर दूसरे बच्चे भी मोबाइल लेकर बसपन का प्यार गा रहे हैं। इतना ही नहीं, कई माता-पिता खुद बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं और वे सेलिब्रटीज से अपेक्षा कर रहे हैं कि उनके बच्चे के साथ भी सहदेव की तरह अपना वीडियो शेयर करें।