राजपथ - जनपथ
हकीकत और हसरतें
आईपीएस के 96 बैच के अफसर विवेकानंद के एडीजी पद पर प्रमोट होने के बाद पीएचक्यू में कुछ बदलाव की तैयारी है। बताते हैं कि एडीजी स्तर के एक अफसर ने अहम पद के लिए अपनी ताकत झोंक दी है। अफसर की पिछले दिनों सरकार के ताकतवर मंत्री के साथ लंबी बैठक भी हुई है। जिसमें उन्होंने ईओडब्ल्यू-एसीबी, अथवा इंटेलिजेंस में काम करने की इच्छा जताई है।
जाहिर है कि दोनों ही शाखा सीधे सीएम के अधीन होती हैं, ऐसे में इन पदों के लिए सीएम का विश्वास जरूरी है, और वहां पदस्थ अफसरों को सीएम का भरोसा हासिल है। अफसर ने मंत्रीजी को ईओडब्ल्यू-एसीबी में जीपी सिंह, मुकेश गुप्ता, और अन्य प्रभावशाली लोगों के खिलाफ चल रहे प्रकरणों को किस तरह हैंडल किया जाना चाहिए, इस पर सुझाव भी दिए हैं। ताकि इसका बेहतर नतीजा आ सके। मंत्रीजी ने अफसर की भावनाएं ऊपर तक पहुंचाने का भरोसा दिलाया है।
सिंहदेव समर्थकों को अब राहत?
रामानुजगंज के विधायक बृहस्पत सिंह ने तोप की दिशा घुमा दी है। विधानसभा में ‘खेद’ जताने के बाद भी कांग्रेस की भीतरी राजनीति, खासकर सरगुजा में सुलग ही रही थी। सिंहदेव समर्थकों के तेवर उनके खिलाफ गरम थे। ऐसे में बीच में एंट्री मार दी राज्यसभा सांसद राम विचार नेताम ने। उनके पुराने घाव हरे हो गये। छह माह पहले बृहस्पत सिंह ने उन पर अपनी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था। नेताम ने कहा कि जैसे सिंहदेव से माफी मांगी, मुझसे भी मांगें, वरना मानहानि का केस करेंगे। पर इसकी प्रतिक्रिया में बृहस्पत सिंह बैकफुट पर नहीं आये बल्कि नेताम के खिलाफ एक नहीं करीब आधा दर्जन नये पुराने गंभीर आरोप लगा दिये। नेताम को उनके मंत्रित्व काल की याद दिलाते हुए। यहां तक सुझाव दे दिया है कि दिल्ली से लौटें तो एम्स में मानसिक इलाज कराकर आयें। बृहस्पत सिंह के ताजा बयान पर अभी नेताम की प्रतिक्रिया आनी बाकी है। वे आरोपों का खंडन करते हुए आक्रामक होंगे, या शांत रह जायेंगे यह देखना होगा। पर, नेताम पर हमला बोलकर बृहस्पत सिंह ने बता दिया है कि अभी उनके एजेंडे में सिंहदेव नहीं है।
मंत्री-विधायक विवाद पर गाना
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुखिया रमन सिंह पेशे से डॉक्टर हैं, तो स्वाभाविक है कि वे दर्द और दवा के बारे में बेहतर समझते होंगे। पिछले दिनों जब छत्तीसगढ़ में मंत्री और सत्तापक्ष के विधायक के बीच विवाद का पटाक्षेप हुआ तो रमन सिंह ने डॉक्टरी अंदाज में जवाब दिया था और कहा था कि तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही दवा देना। लेकिन इस गीत की पहली लाइन कुछ ऐसी है- गरीब जानकर हमको ना मिटा देना... तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम ही दवा देना। ऐसे में सियासी हलको में इस पूरे गाने को इस घटनाक्रम से जोडक़र देखा जा रहा है और इसके मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ लोगों का यहां तक दावा है कि भले ही यह गाना दो प्रेमियों की बात हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के इस सियासी घटनाक्रम पर पूरी तरह से फिट है।
मतदाताओं को आईना दिखाता आंदोलन
खराब सडक़-नालियों को लेकर अक्सर निष्क्रिय, भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों पर ही लोगों का गुस्सा फूटता है, पर उन वोटरों पर नहीं जो उन्हें जिताते हैं। मतदाता कई कारणों से किसी प्रत्याशी को वोट देता है, जैसे- विचारधारा मिलने की वजह से, पिछले प्रतिनिधि से त्रस्त होने की वजह से, आश्वासनों पर भरोसा कर लेने की वजह से। पर, उन मतदाताओं को कोई नहीं कोसता, जिनका वोट बिक जाता है और जीत हार में उनके बोट का निर्णायक रोल होता है। विपक्ष भी मतदाताओं को कोस कर नाराजगी नहीं मोल लेना चाहता क्योंकि मौका सबका आने वाला होता है। पर, कोरबा में आम आदमी पार्टी ने खराब सडक़ों के लिये जिस तरह दारू, बकरे और मुर्गे में बिक जाने वालों की खबर ली है, वह इन दिनों चर्चा में है। वे गाजे-बाजे के साथ सडक़ों के गड्ढे पर नाच रहे हैं। वे तख्तियां लिये गाना गा रहे हैं- दस (लोगों) का मुर्गा खाओगे, तो मुर्गा ही बन जाओगे। दारु में बिक जाओगे तो, ऐसी ही रोड पाओगे। ...मुस्कुराइये, आपने कोरबा को बर्बाद कर दिया है। 'आप' के नेताओं का कहना है कि मतदाताओं को सचेत करने के लिये प्रदर्शन का यह तरीका अपनाया गया है। नागरिक अपने वोटों की कीमत समझें किसी प्रलोभन में नहीं बिकें, बिक गये तो फिर काम करने के लिये नेता पर दबाव कैसे डालेंगे?
मिलावटी मिठाई की जब्ती में पुलिस
आटा, चायपत्ती, हल्दी, मसाले सभी खाद्य पदार्थों में मिलावट होती है पर त्यौहारी सीजन आते ही मिलावटी मिठाईयों की बाढ़ आ जाती है। भिंड-मुरैना से आयात किये हुए कच्चे माल की तो प्रदेश में हर साल बड़ी खपत होती है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों के लिये भी यह त्यौहार ही होता है क्योंकि वे दूध, खोवा-मावा से बनी मिठाईयों का सैम्पल लेने का विशेष अभियान चलाते हैं।
सैम्पल लेने का खौफ ही काफी है। वरना सैम्पल लेने के बाद रायपुर की लैब से रिपोर्ट देने में इतनी देर होती है कि लोग भूल भी जाते हैं कि किस दुकान में छापा मारकर क्या जब्त किया गया था। बहुत दिन बाद जब रिपोर्ट आती है तो दो-चार पर जुर्माना लगता है पर अधिकांश सैम्पल पास हो जाते हैं। इसलिये दुकानदारों की पहले तो कोशिश यही होती है कि सैम्पल ही लेने से रोक लें, क्योंकि इसकी चर्चा होने पर ग्राहकी पर असर पड़ेगा। इसी के चलते वाद-विवाद की स्थिति बनती है, अधिकारियों की भाषा में- शासकीय कार्य में बाधा डालते हैं। लैब से रिपोर्ट मिलने में देर के कारण कुछ मोबाइल लैब भी विभाग ने खरीदे थे, जिसकी रिपोर्ट थोड़ी ही देर में मिल जाती है पर अधिकांश दफ्तरों में ये चलित लैब खड़े हुए हैं। पुलिस को साथ में लगाने से अब तीन विभाग छापेमारी में साथ होंगे, राजस्व, खाद्य और पुलिस। नाहक खर्च बढ़ेगा, दुकानदारों का।