राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एयरपोर्ट पर तस्वीर और राजनीति
09-Aug-2021 6:16 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एयरपोर्ट पर तस्वीर और राजनीति

एयरपोर्ट पर तस्वीर और राजनीति

माना एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज के एक कमरे की मरम्मत, और साज सज्जा के बाद दोबारा खोला गया, तो काफी कुछ बदल गया। हुआ यूं कि दो महीना पहले मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान यहां आए थे। और वापसी में एयरपोर्ट के इसी कमरे में पार्टी के लोगों के साथ बैठे थे। उनकी नजर दीवार पर लगी तस्वीरों की तरफ गई। एक तरफ राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके की तस्वीर थी, तो दूसरी तरफ सीएम भूपेश बघेल की तस्वीर लगी थी।

शिवराज सिंह यह कह गए कि वो देश के अन्य एयरपोर्ट में गए हैं, लेकिन वहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर जरूर होती है। मगर यहां नहीं लगी है। शिवराज सिंह की बात एयरपोर्ट के अफसरों तक पहुंची। एक-दो दिन बाद मरम्मत, और साज सज्जा के नाम पर कमरे को बंद कर दिया गया। कुछ दिन पहले ही फिर से वीआईपी अतिथियों के बैठने के लिए कमरा खोला गया, तो कुछ बदलाव नजर आया।

कमरे में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर लग गई है। इन दोनों के अलावा सीएम भूपेश बघेल की भी तस्वीर लगी है, लेकिन राज्यपाल की तस्वीर गायब है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि एयरपोर्ट अफसरों और कांग्रेसियों के बीच अंदर प्रवेश को लेकर तनातनी चलती रहती है। ऐसे में एयरपोर्ट अफसर, सीएम के तस्वीर को हटाकर कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहते थे। लिहाजा, सीएम की तस्वीर को यथावत रहने दिया गया।

इस प्रदेश में बस जनता ही बेईमान है

पिछली सरकार ने जिन दो अफसरों एसएसडी बडगैय्या, और राजेश चंदेले को जबरिया रिटायरमेंट देने का फैसला किया था, वे अब प्रमोट होने वाले हैं। हुआ यूं कि केन्द्र सरकार ने दोनों को रिटायरमेंट देने के प्रस्ताव के कुछ बिन्दुओं पर आपत्ति की थी। बाद में जिन प्रकरणों की वजह से दोनों को रिटायरमेंट देने की अनुशंसा की गई थी वो निराकृत हो चुके हैं।

बडगैय्या के खिलाफ चारा घोटाले, और आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण था। चारा घोटाले में क्लीन चिट पहले ही मिल चुकी है, और अब आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण को ईओडब्ल्यू ने खात्मा के लिए भेज दिया है। दूसरी तरफ, राजेश चंदेले के खिलाफ डीएफओ पद पर रहते सरकारी बंगले में सरकारी खर्च पर स्वीमिंग पूल बनवाने का प्रकरण था।

विभाग की जांच समिति ने यह पाया कि डीएफओ बंगले में स्वीमिंग पूल जरूर बना है, लेकिन इसके लिए विभागीय राशि खर्च नहीं की गई। स्वीमिंग पूल के लिए डीएमएफ से राशि खर्च की गई थी। डीएमएफ की राशि स्वीकृति कलेक्टर देते हैं। इसमें चंदेले के खिलाफ कोई प्रकरण नहीं बनता है। सीएस की कमेटी ने अनुशंसा कर दी है कि जिन प्रकरणों की वजह से दोनों के रिटायरमेंट की अनुशंसा की गई थी वह खत्म हो चुका है। ऐसे में उन्हें पदोन्नति दी जा सकती है। अगले कुछ दिनों में बडगैय्या  एपीसीसीएफ, और चंदेले सीसीएफ के पद पर प्रमोट हो सकते हैं।

मीराबाई चानू की संवेदनशीलता...

ओलम्पिक 2021 में भारत के लिये पहला मेडल जीतने वाली असम की मीराबाई चानू अपने गांव जब लौटीं तो सबसे पहले वह ट्रक ड्राइवरों का आभार जताने पहुंची। दरअसल, ये रेत परिवहन करने वाले ट्रक ड्राइवर मीराबाई को लिफ्ट देते थे। उससे कोई किराया नहीं लिया जाता था, ताकि वह 25 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग लेने की जगह पर पहुंच सके।

मीराबाई को हजारों लोगों ने सोशल मीडिया पर बधाई दी। ट्रक ड्राइवर्स के योगदान की भी सराहना की। बहुत लोगों की पोस्ट पर मीराबाई ने जवाब भी दिया है। इनमें एक है असम से ही आने वाले आईएएस सोनमणि बोरा। मीराबाई ने जवाब में उन्हें कहा है कि इस मुकाम तक पहुंचने में जिन लोगों ने किसी भी स्तर पर मेरा सहयोग किया है, उन सबको मैं सपोर्ट करती रहूंगी।

लेमरू में देरी के लिये कौन जिम्मेदार

हाल के दिनों में हाथियों ने सरगुजा संभाग में काफी उत्पात मचाया है और यह अब भी जारी है। मैनपाट में दो लोगों को हाथियों के झुंड ने पटककर मार डाला था। बीते पांच महीने के भीतर 9 लोगों की जान हाथियों ने ली है। भाजपा ने सरगुजा के नेताओं की एक टीम बनाकर प्रभावित ग्रामीणों से मिलकर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा शासनकाल में लेमरू प्रोजेक्ट का काम गति पकड़ रहा था लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उसकी गति सियासी दांवपेंच के चलते थम गई है। इसमें लेमरू पोजेक्ट को जल्दी शुरू करने की मांग की गई है। वैसे तथ्य यह भी है कि मैनपाट के इलाके के बादलखोल हाथी रिजर्व का नोटिफिकेशन भी करीब 16 साल पहले हो चुका है। सीआईआई की चि_ी के बाद दूसरे हाथी रिजर्व लेमरू के लिये तो नोटिफिकेशन ही जारी नहीं हुआ। लेमरू के प्रस्तावित इलाके में पहले से ही कई कोयला खदानों को मंजूरी दी जा चुकी है। और खदानों के लिये आवेदन आये हुए हैं। मौजूदा सरकार इन्हें भी मंजूरी दे दी थी लेकिन उनकी पार्टी के विधायकों का ही विरोध सामने आ चुका है। एक दूसरे पर आरोप लगाये जाने से लोग उलझन में पड़ जाते हैं। यह समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर किसकी नीयत साफ है, किसकी नहीं।

आपकी अपेक्षा क्या है?

फर्जी चिटफंड कम्पनियों की धोखाधड़ी में अपना सब-कुछ गंवा चुके लोगों की उम्मीद अभी टूटी नहीं है, बल्कि जो अनुमान लगाया गया था उससे कहीं ज्यादा लोग उम्मीद लगाये हुए हैं। शासन ने आवेदन लेने की तारीख 1 से 6 अगस्त तक ही पहले तय की, लेकिन जब आवेदनों का अम्बार लगा और काउन्टर छोटे पडऩे लगे तो अंतिम तिथि अब 20 अगस्त कर दी गई है। कलेक्ट्रेट में सैकड़ों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल हो गया तो अब तहसील, उप-तहसीलों में आवेदन लेने की व्यवस्था की गई है। लूट भी आखिर बहुत बड़ी है। एक अनुमान के मुताबिक प्रदेशभर में 188 चिटफंड कम्पनियां गांव-गांव में करीब 1.5 लाख एजेंटों के जरिये 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक लूट चुकी हैं। पीडि़तों की संख्या 30 लाख से अधिक है। चिटफंड कम्पनियां करीब पांच साल से फरार हैं। अपने चुनावी वादे के मुताबिक कांग्रेस सरकार ने सरकार बनने के बाद एक बार पहले भी आवेदन लिया था। जिन लोगों ने पहले आवेदन दिया उन्हें दुबारा देने की जरूरत नहीं है, यह कहा गया है फिर भी कहीं पुराने आवेदन बाबुओँ से खो न गये हों, इसलिये लोग दुबारा आवेदन देने के लिये कतार में हैं। यहां तक तो ठीक है कि आवेदन के साथ पॉलिसी की फोटो कॉपी, कम्पनी और एजेंट का विवरण और अपनी पूरी जानकारी भरकर देना है पर इस आवेदन पत्र का आखिरी प्रश्न कठिन है, जिसमें पूछा गया है कि आपकी अपेक्षा क्या है? लूट, चोरी, डकैती के शिकार आदमी की अपेक्षा आखिर क्या हो सकती है? निवेश की राशि वापस मिलेगी ऐसा आश्वासन देकर तो आवेदन मांगे ही गये हैं, वही मिल जाये बड़ी बात है। ब्याज न सही मूलधन ही मिले। अब, यदि कोई इस कॉलम में लिखकर देता है कि हमें बर्बाद करने वालों को फांसी दो, चौराहे पर लटकाओ तो इस तरह की अपेक्षा को जानकर सरकार क्या कर लेगी?

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