राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अनुसूइया उइके उम्मीदवार ?
11-Aug-2021 5:25 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अनुसूइया उइके उम्मीदवार ?

अनुसूइया उइके उम्मीदवार ?

छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसूइया उइके ने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान उपराष्ट्रपति वैकेंया नायडू से मुलाकात की। इसके कुछ दिनों पहले उनकी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से भी मुलाकात हुई थी। स्वाभाविक है कि देश के प्रमुख लोगों से राज्यपाल की मेल-मुलाकात की तस्वीरें मीडिया के लिए जारी की गई। सौजन्य मुलाकात की ऐसे तस्वीरें आती रहती है, लेकिन छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री उइके की इन मेल-मुलाकातों को दूसरे नजरिए से भी देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवार हो सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो वे संभवत: देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति होंगीं।

चर्चा में कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री सहित तमाम बड़े लोगों के साथ जिस निरंतरता के साथ उनकी मुलाकात हो रही है, उससे उनकी उम्मीदवारी को बल मिल रहा है। मौजूदा राष्ट्रपति का कार्यकाल जुलाई 2022 में खत्म हो रहा है। उसके पहले मार्च-अप्रैल में राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम तय होने की संभावना है। हालांकि इसके पहले उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में विधानसभा के चुनाव हैं। उसके बाद ही राष्ट्रपति के चुनाव पर चर्चा शुरू होगी। हालांकि चर्चाओं में उपराष्ट्रपति वैकेंया नायडू का नाम भी राष्टपति पद के लिए लिया जा रहा है, लेकिन लोगों की दलील है कि नायडू अगले साल जुलाई तक 74 साल के हो जाएंगे। बीजेपी में 75 साल या उसके आसपास की उम्र के नेताओं को पद देने का चलन नहीं है। 74-75 साल की उम्र में पांच साल के लिए नियुक्ति होने से रिटायरमेंट आते तक आयु 80 तक पहुंच जाती है। इसलिए नायडू के नाम पर आम राय़ की संभावना कम दिखाई दे रही है। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे कई नेताओं के उदाहरण हमारे सामने हैं।

ऐसे में अनुसूइया उइके के नाम को लेकर चर्चाओं में गंभीरता की संभावना जताई जा रही है। उम्र, अनुभव और सामाजिक संतुलन की दृष्टि से भी उनकी उम्मीदवारी की संभावना प्रबल दिखाई दे रही हैं। वे 63-64 साल की हैं और पांच साल यानी रिटायरमेंट के समय तक भी वे 70 के अंदर ही रहेंगी। देश में अभी तक किसी आदिवासी महिला को राष्ट्रपति नहीं बनाया गया है। पिछली बार द्रौपदी मुर्मू का नाम जरूर चर्चा में आया था, लेकिन ऐनवक्त पर रामनाथ कोविंद के नाम ने सभी को चौंका दिया था। राजनीतिक समीकरण में जाति का काफी महत्व दिया जाता है। यही वजह है कि अनुसूइया उइके का नाम चर्चा में है, मध्यप्रदेश की रहने वाली हैं और छत्तीसगढ़ में राज्यपाल के रूप उनका कार्यकाल विवादों से दूर रहा है। मध्यप्रदेश सरकार में काम करने का अनुभव है। छत्तीसगढ़ के सियासी समीकरण में आदिवासियों की भूमिका के कारण भी यहां उनकी उम्मीदवारी को लेकर चर्चा ज्यादा हो रही है। छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल राज्य माना जाता है और अगर वे राष्ट्रपति भवन तक पहुंचती हैं, तो छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित दूसरे राज्यों में भी इसका सियासी संदेश जाएगा।

छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल कांग्रेस स्वयं साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासी कार्ड खेलने की तैयारी में है। राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए जो फैसले लिए हैं, उनको प्रदेश और बाहर भी खूब प्रचारित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लिए आरक्षित 29 सीटें हैं और फिलहाल सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस की कोशिश है कि उसका यह कब्जा बरकरार रहे। वहीं बीजेपी इन 29 आदिवासी सीटों पर सेंधमारी की कोशिश में है। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है। आदिवासियों को रिझाने और सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी चिंतन शिविर का आयोजन बस्तर में करने जा रही है। ऐसे में राष्ट्रपति पद पर आदिवासी की नियुक्ति के पीछे सियासी गुणा-भाग भी खूब हो रहे हैं।

सियासत के केन्द्र में आदिवासी

कहा जाता रहा है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी बस्तर से निकलती है, लेकिन साल 2013 के चुनाव में यह मिथक टूट गया था। साल 2013 के चुनाव में कांग्रेस को यहां की 12 में से 8 सीटों पर जीत मिली थी, फिर भी सत्ता बीजेपी को मिली। साल 2018 के चुनाव में तो कांग्रेस को बस्तर सहित पूरे प्रदेश में एकतरफा जीत मिली। ऐसे में केवल बस्तर से जीतकर सरकार बनाने को प्रमाणिक नहीं माना जा सकता। साल 2013 से पहले के दोनों चुनाव में जरूर यह बात सच साबित हुई थी, क्योंकि बीजेपी साल 2003 और साल 2008 में बस्तर के भरोसे ही सत्ता में आ पाई थी। इस मिथक के टूटने के बाद भी सियासतदार बस्तर को ही सत्ता की कुंजी मानकर चल रहे हैं। वजह जो भी हो, लेकिन साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से बस्तर को केन्द्र में रखा जा रहा है। बात चाहे सत्ताधारी दल कांग्रेस की हो या फिर बीजेपी की। दोनों आदिवासियों को रिझाने में लग गए हैं। सरकार बस्तर में विकास और शांति के भरोसे माओवाद से निपटने की कोशिश कर रही है। जबकि बीजेपी का आरोप है कि राज्य में नक्सलवाद पैर पसार रहा है और राज्य के मैदानी इलाकों में प्रवेश कर चुका है। ऐसे में सत्ता की चाबी के लिए आदिवासी एक बार फिर सियासत के केन्द्र में रहने वाला है।

चिटफंड कंपनियों ने सरकारी मुहर लगवाई

पिछली सरकार के कार्यकाल में लाखों रुपए लुटा चुके चिटफंड कंपनियों एजेंट और इनमें निवेश करने वालों को कब राहत मिलेगी इसका ठिकाना नहीं है। हालांकि बताया गया है कि पीडि़तों को राशि वापस करनी है, इसीलिये आवेदन ले रहे हैं।  पर जो बात सुनाई दे रही है वह यह भी है कि हाईकोर्ट में सरकार को अपना पक्ष मजबूती से रखना है इसके लिये सारी कसरत हो रही है।

एक जानकारी और निकल कर आई है कि प्रदेश के फर्जी चिटफंड कंपनियों ने एजेंटों की भर्ती के लिए सरकारी रोजगार दफ्तरों का भी इस्तेमाल किया । निजी कंपनियों से संपर्क कर रोजगार कार्यालय के अधिकारी भर्ती मेला आयोजित करते रहे हैं। पिछले 2 सालों से ये शिविर कोरोनावायरस के चलते नहीं लग रहे हैं लेकिन इसके पहले प्रदेशभर के रोजगार कार्यालय में यह मेले लगे। इन मेलों में कंपनियों के प्रतिनिधि आकर युवाओं का चयन करते थे और शिविर की सफलता पर रोजगार कार्यालय के अधिकारी अपनी पीठ थपथपाते थे। भर्ती के बाद इन्हें एजेंट बनाया गया और करीबियों तथा रिश्तेदारों से राशि वसूल करने या निवेश करने के लिए बाध्य किया गया था। निवेशकों की ओर से हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में यह बात कही भी गई है। यानि चिटफंड कम्पनियों ने सरकारी दफ्तर का इस्तेमाल अपनी फर्जी कम्पनियों को विश्वसनीय बताने के लिये किया। अब जब फिर से प्रदेश में रोजगार मेलों का सिलसिला शुरू किया गया है कम से कम उनके बारे में अधिकारियों को ठोक बजाकर तसल्ली कर लेनी चाहिये कि कहीं युवाओं के साथ धोखाधड़ी का कोई गिरोह तो इसमें नहीं घुस आया है।

सहदेव का एल्बम रिलीज हुआ...

बस्तर, छत्तीसगढ़ के नन्हें गायक सहदेव दीरदो का पॉप सिंगर बादशाह के साथ म्यूजिक एल्बम आज रिलीज हो रहा है। इसका ट्रेलर तीन दिन पहले ही बादशाह ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर अपलोड कर दिया था। इसके बाद से यूट्यूब, ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाखों लोग इसे देख चुके हैं।

कुछ लोगों को यह देखकर अफसोस हो सकता है कि सहदेव की सिर्फ वही दो लाइनें रखी गई हैं, जो पहले से वायरल उसके स्कूल के मूल वीडियो में थी। इतने कम समय में शायद उससे कुछ नया अभ्यास कराया जाना भी संभव नहीं था। शायद, एल्बम रिलीज करने में देर होती तो लोगों में सहदेव का जुनून कमजोर पड़ जाता। पर, अभी सहदेव सिर्फ दस साल का है। उसके सामने खुला आसमान है। यकीन करना चाहिए कि भविष्य में सहदेव एक तराशे गए गायक के रूप में अपनी एक बड़ी जगह बना लेंगे।

धर्मान्तरण के आंकड़े अब मिलेंगे?

सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिन मुद्दों पर कठघरे में खड़ा किया जा सकता है, भाजपा को लगता है कि धर्मान्तरण भी उनमें से एक है। खासकर, जब मौजूदा विधानसभा में उनके पास कुल दो ही आदिवासी वर्ग के विधायक हों। दबाव, प्रलोभन व स्वास्थ्य सेवा के माध्यम से धर्म परिवर्तन कराने की बात बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाकों से ही ज्यादा आ रही है, जहां से भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। सुकमा एसपी ने अपने मातहतों को इस बारे में पत्र लिखा जिससे भाजपा को बल मिला, फिर केन्द्रीय मंत्री अमित शाह को राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम ने पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग भी कर दी। रैलियां निकाली गई, तमाम नेताओं के बयान आ रहे हैं। पर, अब यह मामला एक दिलचस्प मोड़ पर है। कांग्रेस की ओर से संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि हम आंकड़े जारी करने जा रहे हैं कि भाजपा जब शासन में थी तब धर्म परिवर्तन के कितने मामले आये थे और अब कितने हैं। भाजपा की ओर से एक टीवी चैनल में विधायक डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी ने मान लिया कि पार्टी के पास धर्मान्तरित लोगों की संख्या नहीं हैं। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि लोग प्रलोभन में धर्म परिवर्तन करते हैं जिसे वे स्वेच्छा से किया हुआ कहते हैं, शिकायत करते नहीं।

निष्कर्ष यही है कि धर्मान्तरण से कोई भी दल इंकार नहीं कर रहा है। कम हो या ज्यादा, हो तो रहा है। दबाव या प्रलोभन से हो रहा है, स्वेच्छा से- सवाल यहां पर टिका है। सरकार की ओर से आई आंकड़ा जारी करने की बात ने भाजपा को भी चुनौती दे दी है कि वे भी कोई संख्या लेकर सामने आने की तैयारी करे। तब यह मुद्दा दो साल जिंदा रह सकेगा।

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