राजपथ - जनपथ
छोटी सी पार्टी की जमकर चर्चा
छत्तीसगढ़ में राजनीतिक गहमा-गहमी के बीच पूर्व मंत्री विधान मिश्रा की डिनर पार्टी की राजनीतिक गलियारों में जमकर चर्चा है। हालांकि विधान ने पार्टी अपनी इकलौती पोती की जन्मदिन के उपलक्ष्य में दी थी। पार्टी में चुनिंदा लोगों को ही आमंत्रित किया था। इसमें दिग्गज नेताओं ने भरपूर समय दिया। पार्टी में टीएस सिंहदेव के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, धनेन्द्र साहू, देवेन्द्र बहादुर सिंह, जोगी पार्टी के नेता धर्मजीत सिंह के अलावा बिलासपुर के अशोक अग्रवाल, और अरूण सिंघानिया पूरे समय साथ रहे।
दिग्गज साथ में थे, तो आपस में राजनीतिक चर्चा होनी ही थी। पार्टी में कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे नहीं आए। जबकि चौबे, विधान के सगे समधी हैं। ऐसे में उनकी गैर मौजूदगी चर्चा में रही। हालांकि उनके परिवार के लोगों का कहना था कि चौबेजी की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए वो नहीं आ पा रहे हैं। चौबेजी की अनुपस्थिति पर महंत ने चुटकी भी ली।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में रविन्द्र चौबे, सीएम भूपेश बघेल के खुलकर साथ हैं। नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच अगस्त के आखिरी में 50 से अधिक कांग्रेस विधायक भूपेश के समर्थन में एक साथ दिल्ली पहुंचे, तो रायपुर से लेकर दिल्ली तक खलबली मच गई थी। कुछ लोग मानते हैं कि यह सब रविन्द्र चौबे की ही रणनीति थी। इस घटनाक्रम के बाद टीएस सिंहदेव, और रविन्द्र चौबे के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा है कि सिंहदेव से आमना-सामना होने से बचने के लिए चौबेजी, विधान की पार्टी में नहीं गए। भले ही यह सच न हो, लेकिन विधान की छोटी सी पार्टी की जमकर चर्चा है।
फेसबुक में अब भी लोचा
फेसबुक, वाट्सअप और इंस्टाग्राम कई घंटे बंद रहा तो लगा लोगों की सांसें ही अटक गई थीं। पर अब भी सब ठीक नहीं चल रहा है। कई लोग खास तौर से फेसबुक पर इसकी शिकायत कर रहे हैं। उन्होंने पोस्ट तो एक ही बार डाली, पर वह बार-बार रिपीट हो रही है। कुछ लोग कह रहे हैं कि उनका पोस्ट गायब हो रही है। लोग शुद्ध देसी हिसाब से फेसबुक को दुरुस्त करने के नुस्खे बता रहे हैं। कोई कह रहा है अफगानिस्तान की अफीम का असर है..। जुकरबर्ग बौरा गया है। ओझा को दिखाना पड़ेगा..साढ़े साती चल रह रही है किसी अच्छे ज्योतिषी से परामर्श लेना पड़ेगा। कई लोगों को लगता है कि उनका सारा सिस्टम हैक हो गया था, पर फेसबुक बता नहीं रहा है।
आखिर विधायकों को वापस मिली निधि
कोरोना संकट के दौरान विधायक निधि का आवंटन स्थगित कर दिया गया था। कोरोना महामारी पर काफी हद तक काबू पा लेने के बाद हिसाब लगाया गया कि विधायक निधि के 180 करोड़ रुपये रोके गये थे लेकिन उसमें से सिर्फ 40 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाये। 140 करोड़ रुपये बच गये हैं, जिसकी निकट भविष्य में आवश्यकता नहीं है। इसके बाद तय किया गया कि बाकी रकम लौटा दी जाये। विधायक निधि रोकने के फैसले की विपक्ष ने काफी आलोचना की थी। उनका तर्क था कि विधायकों को भी कोरोना संकट के कारण इस निधि की आवश्यकता है। वे क्षेत्रीय जरूरतों के हिसाब से खर्च करेंगे। तकलीफ तो कांग्रेस के विधायकों को भी थी मगर वे अनुशासन की वजह से विरोध नहीं कर पा रहे थे। विधायकों के लिये इस निधि की आवश्यकता क्षेत्र के विकास से कहीं अधिक कार्यकर्ताओं को उपकृत करने और अपना जनसमर्थन बनाये रखने के लिये होती है। बची राशि विधायक निधि में एक दो दिन के भीतर जमा हो जायेगी। अच्छा है त्योहार के दिनों में कार्यकर्ताओं का भला किया जा सकेगा।