राजपथ - जनपथ
हटाने का फैसला टाल दिया
पिछले दिनों कांग्रेस संगठन में बड़ा फेरबदल हुआ। एक व्यक्ति, एक पद की नीति के चलते शैलेष नितिन त्रिवेदी, गिरीश देवांगन, अटल श्रीवास्तव, भानुप्रताप सिंह, और पदमा मनहर जैसे दिग्गजों को संगठन का पद छोडऩा पड़ा। उनकी जगह नई नियुक्तियां की गई।
शैलेष, गिरीश, और रामगोपाल अग्रवाल को संगठन की धुरी माना जाता रहा है, और चर्चा थी कि शायद ही इन्हें बदला जाएगा। मगर पार्टी हाईकमान ने नए लोगों को मौका दिया। रामगोपाल को नहीं बदला गया। जबकि वो नागरिक आपूर्ति चेयरमैन भी हैं।
चर्चा है कि पहले रामगोपाल की जगह अरुण सिंघानिया को पार्टी का कोषाध्यक्ष बनाने पर विचार चल रहा था। मगर आखिरी समय में यूपी चुनाव को देखकर रामगोपाल को हटाने का फैसला टाल दिया गया। यूपी चुनाव की कमान छत्तीसगढ़ के नेता ही संभाल रहे हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों को अंदेशा था कि पार्टी का कोष नए लोगों को सौंपने से दिक्कत आ सकती है। रामगोपाल को राजनांदगांव के दिवंगत नेता इंदरचंद जैन जितना ही कुशल समझा जाता है जो कि विपरीत परिस्थितियों में भी कोष का इंतजाम कर लेते हैं।
शिकवा शिकायत का मौका कहां
केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे शुक्रवार की रात रायपुर पहुंचे, तो स्वागत के लिए बृजमोहन अग्रवाल, और सुनील सोनी मौजूद थे। टीएस सिंहदेव तो चौबे के साथ ही रायपुर आए। एयरपोर्ट में छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने पर अनौपचारिक चर्चा हो रही थी। भाजपा नेताओं के साथ चर्चा में चौबे ने कोरोना से निपटने के छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों की तारीफ कर दी। उन्होंने कह दिया कि छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हुआ है। अब जब केन्द्रीय मंत्री ने ही तारीफ के पुल बांध दिए हैं, तो शिकवा शिकायत का मौका कहां रह जाता है।
मंत्री जी की व्यावहारिक बात
बिलासपुर के भूगोल बार में देर रात भीतर जाने की कोशिश ने न केवल संबंधित अफसरों की बल्कि प्रशासन और पुलिस की साख पर भी चोट पहुंचाई।
दो तरह के लोग बार में देर से पहुंचा करते हैं। एक तो वे जिनकी बार मालिक या काउंटर में पहचान होती है, या फिर वे जिनको बार की टाइमिंग का ठीक पता नहीं होता। शायद ये अधिकारी दूसरी श्रेणी के थे।
इसलिए अपने अनुभव के आधार पर बिलासपुर जिले के प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने बिना लाग-लपेट काम की नसीहत दी है। अग्रसेन जयंती समारोह में बिलासपुर पहुंचे मंत्री से भूगोल बार मसले पर पत्रकारों ने पूछा तो उन्होंने कहा कि अगर किसी को लाइसेंसी बार में जाना हो, पार्टी करनी हो तो इसकी छूट है। इस पर कोई पाबंदी तो है नहीं। पर अधिकारियों को ध्यान रखना चाहिये कि बार खुलने-बंद होने का समय देखकर जायें।
जिन अधिकारियों का नाम भूगोल बार मामले में सामने आया है, उन्हें प्रभारी मंत्री के बयान से राहत मिली होगी। महसूस हुआ होगा कि बार में कदम रखने से प्रशासन और पुलिस के बड़े ओहदेदारों की छवि नहीं बिगड़ती। यह तब खराब होती है कि जब बाउंसर से गेट में घुसने के लिये उलझना पड़े। तो अफसर, मंत्री की सुनें। समय पर जायें, बाउंसर को क्या पड़ी है किसी को रोके?
शिक्षकों की क्षमता पर जंग
मंत्री, विधायकों व अधिकारियों की दिलचस्पी जब सिर्फ ट्रांसफर, पोस्टिंग में होगी तो समस्याओं पर गौर कौन करेगा। यह मामला और कहीं का नहीं, उसी सरगुजा संभाग का है जहां से स्कूल शिक्षा मंत्री आते हैं और जहां के विधायक उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं।
एक वीडियो वायरल हुआ बलरामपुर जिले के भैरोपुर ग्राम के टीचर दयानंद सारथी का, जो प्राथमिक शाला में पढ़ाते हुए जनवरी, फरवरी जैसे सामान्य शब्द अंग्रेजी ब्लैक बोर्ड पर गलत लिख रहे हैं। वीडियो फूटने पर उस शिक्षक को जिला शिक्षा अधिकारी ने सस्पेंड तो कर दिया पर क्या इस अकेले की ही काबिलियत संदिग्ध है? हायर सेकेन्डरी पास सर्टिफिकेट इन्हें कैसे मिला होगा? इंटरव्यू देकर कैसे निकल गये और शिक्षक बन गये? इनके पढ़ाये हुए बच्चों का क्या भविष्य होगा। नकल और कुंजी के दम पर पास तथा साक्षात्कार में मोटी रकम फेंककर भी बहुत लोग नौकरी पा जाते हैं। यही वजह है कि आये दिन हास्यास्पद स्थिति पैदा करने वाली घटनायें, वीडियो, तस्वीरें सामने आती हैं, जिनमें शिक्षकों की काबिलियत पर सवाल उठते हैं।
शिक्षा मंत्री से जब कुछ पत्रकारों ने पूछा कि ऐसी बदतर स्थिति है स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की। मंत्री कहते हैं कि कोरोना काल में बच्चों की तरह पढऩे-पढ़ाने के नाम पर इनको भी जंग लग गया होगा। यानि स्कूली शिक्षा के स्तर में जल्दी कोई सुधार होने की उम्मीद करना बेकार है।
पहले आप नियम तोड़ें, फिर हम तोड़ेंगे
कोरोना महामारी का दुबारा खतरनाक स्तर पर प्रसार न हो और लोगों को नवरात्रि, दशहरा, दीपावली जैसे बड़े त्यौहार को मनाने से वंचित भी नहीं होना पड़े, इसके लिये प्रशासन ने बीच का रास्ता निकाला है। कुछ बंदिशों के साथ त्यौहार मनाने की छूट दी गई है। देवी प्रतिमा की ऊंचाई, पांडाल का आकार, उपस्थिति की अधिकतम संख्या आदि तय किये गये हैं। जिन चीजों पर पाबंदी लगाई गई है उनमें देवी मंदिरों तक की जाने वाली पदयात्रा भी है। प्राय: हर जिले में प्रशासन ने पदयात्रा कर दर्शन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बस्तर संभाग में भी यही निर्देश जारी किया गया है। पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को इसकी फ्रिक्र नहीं है। उन्होंने प्रशासन की मनाही के बाद कल कोंडागांव से अपनी 167 किलोमीटर यात्रा की शुरूआत कर दी है। 12 अक्टूबर को उनका काफिला दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी माई का दर्शन करेगा। हालांकि मरकाम के समर्थक कह रहे हैं कि कोविड नियमों का पालन कर रहे हैं। पदयात्रा करना हमें गांधीजी ने सिखाया है। कुछ लोग धार्मिक सौहार्द्र बिगाडऩे का काम कर रहे हैं इसलिये वे निकले हैं।
जो भी है मरकाम ने गाइडलाइन तो तोड़ दी है। प्रशासन क्या अब दूसरे लोगों को रोक पायेगा? सब कहेंगे जब नेता को छूट दी है तो हमें क्यों नहीं।
बता रहा है या पूछ रहा है?
जगहों के नाम बड़े दिलचस्प होते हैं। अब दंतेवाड़ा से जगदलपुर
जाते हुए गौरव गिरिजा शुक्ला को यह बोर्ड दिखा जो पता नहीं जगह का नाम बता रहा है या लोगों से पूछ रहा है?