राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सोशल मीडिया पोस्ट के खतरे
08-Nov-2021 7:09 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सोशल मीडिया पोस्ट के खतरे

सोशल मीडिया पोस्ट के खतरे

छत्तीसगढ़ सरकार ने अब हर जिले में सोशल मीडिया निगरानी टीम बनाने के लिये कलेक्टर्स को निर्देश दिया है। कई जिलों में यह टीम बन चुकी है।लगता है सभी जिलों में कुछ समय के बाद बन जायेगी। यह टीम देखेगी कि कोई पोस्ट भडक़ाऊ तो नहीं, समाज में अशांति फैलने का उससे खतरा तो नहीं है? छत्तीसगढ़ में कुछ लोग पहले गिरफ्तार किये जा चुके हैं जो अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए कुछ नेताओं को को टारगेट करते हुए पोस्ट डाले। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग कमेटी संभवत: कवर्धा की घटना का दोहराव न हो, इसलिये बनाई गई है। पर, यदि सोशल मीडिया पोस्ट पर त्रिपुरा जैसी कार्रवाई हो जाये तो? वहां सीधे-सीधे यूएपीए के तहत 102 लोगों पर अपराध दर्ज किया गया है, जिसमें 7 साल की सजा है और आसानी से जमानत भी नहीं। इनमें त्रिपुरा इज बर्निंग नाम से ट्विटर पर पोस्ट डालने वाले श्याम मीरा सिंह, कई एक्टिविस्ट और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के मेम्बर्स हैं। केस 68 ट्विटर पोस्ट, 32 फेसबुक पोस्ट तथा दो यू ट्यूब पोस्ट के चलते दर्ज किये गये हैं। त्रिपुरा में पहले भी दो पत्रकारों पर ये धारायें लगाई जा चुकी है। यूपी में कोरोना काल के दौरान ऑक्सीजन की कमी पर पोस्ट डालने वालों पर ये एक्ट लग गया। संयोग यह है कि यूपीएपी कानून यूपीए सरकार के समय लाया गया था और ज्यादा इस्तेमाल भाजपा की सरकारें कर रही हैं। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग कमेटी भी छत्तीसगढ़ में मौजूदा कांग्रेस सरकार लेकर आई है। मॉनिटरिंग कमेटी कब कौन सी पोस्ट, कब यूएपीए लगाने के लायक समझ लेगी कह नहीं सकते। इसलिये, क्योंकि कमेटी एक बार बन गई है, आगे भी कायम रहेगी, सरकारें तो बदलती रहेंगीं।

धर्मान्तरण मुद्दा बनकर रहेगा?

अंबिकापुर में कल एक पादरी और उनके एक सहयोगी पर प्रलोभन और झांसा देकर धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करने के आरोप में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एफआईआर दर्ज कराई। दुर्ग के रेलवे इलाके में पुलिस ने  रविवार को ही ईसाई समुदाय की शिकायत पर 20-25 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। इनका आरोप है कि प्रार्थना कक्ष में घुसकर कुछ लोगों ने मारपीट की, दान पेटी लूट ली। रायपुर में थाने के भीतर पादरी की पिटाई की घटना तो हो ही चुकी है। कवर्धा का मामला भी सबके सामने है। मान लेना चाहिये कि छत्तीसगढ़ में एक नया चुनावी मुद्दा आकार ले रहा है, जो आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में काम आ सकता है।

राजनीतिक नुकसान की चिंता

खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने सरगुजा के चिरंगा गांव में दी गई एलुमिना प्लांट की अनुमति रद्द करने की मांग करते हुए सीएम को पत्र लिखा है। शायद इसलिये कि मतदाता जान लें। अपनी जिम्मेदारी उन्होंने पूरी कर दी है, बाकी फैसला ऊपर लिया जायेगा। इस पत्र से खास बात यह निकली है कि उन्हें अपने और कांग्रेस के वोटों तथा राजनीतिक नुकसान की चिंता है। दरअसल, ग्रामीणों ने पहले ही यह स्थिति पैदा कर दी है कि प्लांट का काम आगे बढ़ नहीं पा रहा है। फैक्ट्री के लिये कोई गाड़ी गांव में घुस नहीं पा रही है। लोग घेर लेते हैं, रतजगा कर रहे है। चिरंगा में चाहे जितने वोटर हों लेकिन उनके विरोध की खबर आसपास के गांवों में भी फैल रही है। पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने आंदोलन शुरू करने की चेतावनी भी दे डाली है। मंत्रीजी का समर्थन को लेकर चिंतित होना जायज है। उनको श्रेय जाता है कि वे सत्ता में रहकर भी सरकार को उसके किसी फैसले पर आगाह कर रहे हैं। वरना, हसदेव अरण्य मामले में तो कुछ बयानों को छोड़ दें तो आम तौर पर चुप्पी ही है। किसी को अपना वोट बिगडऩे की चिंता नहीं, चाहे वह जनप्रतिनिधि पक्ष का हो या विपक्ष का।

जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा

कौन से जनप्रतिनिधि किस सरकारी कार्यक्रम में बुलाये जायेंगे, कौन नहीं, इसका फैसला अधिकारी करते हैं। ऐसे आयोजनों में सम्मानजनक तरीके से बुलावे के लिये अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों से जाकर मिलना चाहिये। पर, स्थापित परंपरा और दिशानिर्देशों की परवाह नहीं की जा रही है। कोरबा में हुई राज्य स्तरीय शालेय क्रिकेट प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह के निमंत्रण पत्र से वहां की सांसद ज्योत्सना महंत का नाम गायब था। पता चला कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया। जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम को भी बुलाना जरूरी नहीं समझा गया। विशिष्ट अतिथि के तौर पर विधायक पुरुषोत्तम कंवर और मोहित राम केरकेट्टा का नाम तो कार्ड में लिखा गया लेकिन वे नहीं पहुंचे। कार्ड में नाम डालकर बुलाना भूल गये होंगे। जिले के शीर्ष अधिकारी भी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। आम तौर पर ऐसे मामलों से प्रभावित, उपेक्षित जनप्रतिनिधि जब सत्ता में होते हैं तो चुप रहना ही ठीक समझते हैं। उन्हें लगता है कि अपनी ही सरकार को परेशानी में क्यों डालना। पर बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडे ने कुछ दिन पहले सीएम को चि_ी लिखकर कलेक्टर पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने और हटाने की मांग कर चुके हैं। राज्योत्सव के आमंत्रण पत्र से शहर का विधायक होने के बावजूद उनका नाम गायब तो था ही, बुलाया भी नहीं गया। ऐसे मामलों में यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि अफसरशाही पहले के सरकार में ज्यादा हावी थी या अब है।

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