राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक तीर से दो निशाना
27-Nov-2021 5:55 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक तीर से दो निशाना

एक तीर से दो निशाना

नगरीय निकाय चुनाव में एक बार फिर सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल आमने-सामने हैं। सीएम के विधानसभा क्षेत्र पाटन के भिलाई-चरौदा निगम में भी चुनाव हो रहे हैं। और यहां भाजपा ने अपने प्रत्याशियों को जिताने का जिम्मा बृजमोहन अग्रवाल पर छोड़ दिया है। बृजमोहन को भिलाई-चरौदा का प्रभारी बनाया गया है।

रमन सरकार में भिलाई-चरौदा निगम अस्तित्व में आया था। तब पार्टी ने वहां चुनाव में सरोज पाण्डेय, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, विजय बघेल जैसे बड़े नेताओं के बजाए बृजमोहन अग्रवाल को चुनाव प्रभारी बनाया था। उस समय भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। बृजमोहन के बेहतर चुनाव प्रबंधन के चलते विपरीत माहौल में भाजपा ने भिलाई-चरौदा में फतह हासिल की। मगर इस बार हालात बदल गए हैं। भूपेश बघेल सीएम हैं, और भाजपा विपक्ष में हैं।

भाजपा के चुनाव प्रभारियों की नियुक्तियों को कुछ लोग पार्टी में अंदरूनी खींचतान से जोडक़र भी देख रहे हैं। पार्टी के बृजमोहन विरोधी खेमा मानता है कि बृजमोहन के सीएम भूपेश बघेल से बेहतर तालमेल है। ऐसे में संगठन के हावी खेमे ने बृजमोहन को बीरगांव के बजाए भिलाई-चरौदा में उलझाकर एक तीर से दो निशाना साधा है। चाहे कुछ भी हो, बृजमोहन के भिलाई-चरौदा की कमान संभालने से वहां का चुनाव दिलचस्प हो गया है। 

बारदानों की जमाखोरी...

धान खरीदी के लिए इस बार फिर बारदानों का संकट सामने आ गया है। सरकार ने किसानों से उनका पुराना बारदाना पिछली बार से 3 रुपये अधिक में खरीदने का निर्णय लिया है। इस बार 15 रुपये की जगह 18 रुपये मिलेंगे। पर बाजार के हाल कुछ अलग है। जगह-जगह से खबर आ रही है की कुछ चतुर व्यापारियों ने पहले से बारदाने खरीद कर अपने पास जमा कर लिए हैं और इसे किसानों को 30-35 और 40 रुपये में बेच रहे हैं। सरकार ने ऐसी राशन दुकानों को निलंबित करने का निर्णय लिया है जिन्होंने अपने खाली बारदाने जमा नहीं किये, लेकिन उन व्यापारियों का क्या, जिन्होंने बोरों की जमाखोरी कर ली है। अभी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। किसानों को धान बेचना है इसलिए मजबूरी में उन्हें यह नुकसान भी झेलना ही है।

सीएम-पीएम मुलाकात की यादें

छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल पूरे मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करने की तैयारी में है। राज्य के मुख्य सचिव ने पीएमओ से समय के लिए पत्राचार भी किया है। मुख्यमंत्री बघेल उसना चावल और राइस मिलर्स की समस्याओं से प्रधानमंत्री को अवगत कराना चाहते हैं। हालांकि राज्य और केन्द्र सरकार के मुखिया के बीच कामकाज के सिलसिले में मेल-मुलाकात होती रहती है, लेकिन इस मुलाकात को लेकर सियासत गर्म है और इसे राज्य तथा केन्द्र सरकार के बीच टकराव से जोडक़र देखा जा रहा है। इसके पहले छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व अजीत जोगी और तब के प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी बाजपेयी के बीच मुलाकात को लेकर भी खूब सियासत हुई थी। स्व जोगी भी पूरे लाव-लश्कर के साथ दिल्ली गए थे। बाद में जोगी इस मुलाकात के किस्से भी सुनाय़ा करते थे। वे बताते थे कि दिल्ली पहुंचने पर स्व वाजपेयी ने समोसा-जलेबी खिलाकर सब का स्वागत किया था और काफी सौहार्दपूर्ण माहौल में मामले का पटाक्षेप हो गया था। यह मामला इसलिए भी य़ाद किया जा रहा है कि राज्य के मुखिया भी प्रधानमंत्री से मुलाकात करने जा रहे हैं। ऐसे में लोगों की दिलचस्पी यह है कि जोगी-वाजपेयी की तरह इस बार भी समोसा-जलेबी का स्वाद चखने मिलेगा या फिर कुछ और। क्योंकि राज्य और केन्द्र के मौजूदा मुखियाओं के तेवर बिल्कुल अलग हैं। सियासी बयानबाजियों में तो दोनों के बीच तल्खियां किसी से छिपी नहीं है।

किसान नेताओं का फार्मूला

छत्तीसगढ़ में किसान का मसला हमेशा सुर्खियों में रहता है। दिसंबर से धान खरीदी शुरू होने वाली है। स्वाभाविक है कि बारदाना, सोसायटियों में अव्यवस्था सहित तमाम मुद्दे छाए रहेंगे। पक्ष-विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप के लिए यह हॉट टॉपिक रहने वाला है। खास बात यह है कि आरोप-प्रत्यारोप लगाने वाले अधिकांश सियासतदार लाभार्थी भी होते हैं। हालांकि उनके लाभार्थी होने से कोई परहेज नहीं है। दिक्कत तब होती है, जब विपक्षी दल के नेता अव्यवस्था के खिलाफ कोई मुद्दा उठाते हैं, वैसे ही सत्ता पक्ष की ओर से धान खरीदी बिक्री का बही खाता बाहर आ जाता है। ऐसे में सियासी कारणों से ही सही मुद्दा उठाने वाले शांत हो जाते हैं। वैसे भी सिय़ासत के साथ खेती-किसानी करना भी मजबूरी है। आखिर आईटी रिटर्न में आय का स्त्रोत भी तो दिखाना पड़ता है। उधर, खेती-किसानी से आमदनी कमाने वाले विपक्ष के नेताओं ने सत्तापक्ष के बही-खाता उजागर करने के हथियार को भोथरा करने का तरीका निकाल लिया है। ऐसे नेता अब सामान्य धान के बजाए सुगंधित और महंगे धान की खेती कर रहे हैं, जिसे वे खुले बाजार में अच्छे दाम में बेच भी सकते हैं और सरकार को खेती की आमदनी की जानकारी भी नहीं मिलेगी। जिससे वे सरकार पर हमलावर भी हो सकते हैं। 

प्लेटफॉर्म टिकट फिर दस रुपये..

प्लेटफॉर्म टिकट को 50 रुपये करने का, कोरोना काल में ट्रेन किराये में बढ़ोतरी का फायदा जनता को समझा नहीं सके। अब चुनावों के लिये उलटी गिनती चल रही है। इसलिये ट्रेन का किराया भी घटाकर पहले जैसा कर दिया गया, प्लेटफॉर्म टिकट का दाम भी। इस बीच जो अतिरिक्त वसूली की गई, रेलवे ने यात्री सुविधायें बढ़ाने के लिये कितना खर्च किया, कुछ पता नहीं चला। तपस्या अधूरी रह गई।

कोरिया बचाओ मंच का आंदोलन

जिला पुनर्गठन के बाद कोरिया जिले में विरोध का सिलसिला टूट नहीं रहा है। अब सभी प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस, भाजपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने जिले के दोनों नगरीय निकाय क्षेत्र में होने वाले स्थानीय चुनावों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। बहिष्कार के इस फैसले में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी साथ देने का मन बनाया है। नागरिकों ने कोरिया बचाओ मंच का गठन भी कर लिया है। यह विरोध कितना कारगर होगा, सरकार तक इनकी बात कैसे पहुंचेगी, यह आज से शुरू हो रहे नामांकन पत्रों की बिक्री से मालूम हो पाएगा। वैसे निर्दलीय शायद ही मानें। लेकिन शासन को चाहिए कि वह इस विरोध को नजरअंदाज ना करे।

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