राजपथ - जनपथ
अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया
पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग में एक छोटी सी सर्जरी हुई, जिसमें कुछ अस्पताल अधीक्षकों को इधर से उधर किया गया। प्रभावितों में प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल के अधीक्षक भी थे। सुनते हैं कि डॉक्टर साब को अस्पताल अधीक्षक बनवाने में सजातीय बड़े ठेकेदार की भूमिका थी, जिसका अस्पताल में काफी कुछ काम चल रहा है।
तब सरकार भी नई-नई बनी थी उस समय ज्यादा किसी ने ध्यान नहीं दिया, और फिर तत्कालीन डीएमई की मदद से डॉक्टर साब को अधीक्षक की पोस्टिंग मिल गई थी। अधीक्षक बनने के बाद डॉक्टर साब की कार्यप्रणाली से कर्मचारी नाखुश थे।
कई बार लिखित में शिकायतें हुई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। विभाग प्रमुख कोरोना काल में अधीक्षक बदलने का जोखिम नहीं ले पा रहे थे। शिकायतों को लेकर पूछे जाने पर डॉक्टर साब सीनियर अफसरों को कह देते थे कि उन्हें अधीक्षक पद से हटा दिया जाए।
दरअसल, डॉक्टर साब को भरोसा हो चला था कि महामारी के बीच में उन्हें बदलना आसान नहीं है। मगर एक दिन सचमुच उन्हें फोन कर बताया गया कि आपकी इच्छानुसार अधीक्षक पद से मुक्त कर दिया गया है। डॉक्टर साब सन्न रह गए। डॉक्टर साब को अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया। पद से हटने के बाद भी यदा-कदा डॉक्टर साब अधीक्षक के रूम में बैठे नजर आते हैं। पद का मोह छोडऩा आसान नहीं है।
खुद भी मास्क नहीं लगाते थे
आईएएस अमृत विकास टोपनो ने सीएस को अपना इस्तीफा भेजा तो प्रशासनिक हल्कों में हडक़ंप मच गया। इस्तीफे के लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है, इसलिए स्वीकृत नहीं किया गया है। इस्तीफा क्यों दिया इसको लेकर सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। उनकी अजीबो गरीब कार्यप्रणाली चर्चा में रही है।
एक विभाग में अपनी पदस्थापना के दौरान मातहत कर्मचारियों को कोरोना से न डरने की सलाह देते थे। टोपनो का मानना था कि यह विदेशी बीमारी है, और इसको लेकर जानबूझकर दहशत पैदा किया जा रहा है। वो खुद भी मास्क नहीं लगाते थे। इसका हश्र यह हुआ कि न सिर्फ वो खुद बल्कि आधा दर्जन मातहत कर्मचारी कोरोना की चपेट में आ गए थे। एक-दो कर्मचारियों की हालत काफी गंभीर हो गई थी। अब जब उनके इस्तीफे की खबर बाहर आई है, तो उनको लेकर कई तरह की बातें सुनने को मिल रही है।
तो फिर नये वेरियेंट ने दस्तक कैसे दी?
कोरोना के नये वेरियंट ओमिक्रोन के देश में दो दर्जन से ज्यादा मामले सामने आ चुके। लोगों में दूसरी लहर के दौरान हुई मौतों की दहशत अभी तक कम नहीं हुई है। इसलिये एक भी केस किसी भी राज्य के कोने से निकलता है तो वह अलर्ट कर देता है। सोशल मीडिया पर इसे लेकर एक अजीब सा सवाल पूछा जा रहा है। वह ये कि जब एक देश से दूसरे देश की यात्रा की मंजूरी उन्हें ही मिल रही है जिन्होंने दोनों डोज लगवा लिये हैं, फिर नया वेरियेंट फैल कैसे रहा है। क्या वैक्सीन लगवाना निरर्थक है?
कोरोना की पहली और दूसरी लहर में भी सोशल मीडिया पर खासकर वाट्सएप पर ऐसी पोस्ट रोजाना देखने को मिल रही थी।
दरअसल, दोनों टीके लगवाने का मतलब कोविड-19 से अजेय होने की गारंटी तो है नहीं। इतना ही कहा गया है कि यदि कोरोना ने जकड़ लिया तो आपके भीतर इम्युनिटी सिस्टम इतना मजबूत हो जायेगा कि आप उससे लड़ सकें और जान बचा सकें। महामारी को लेकर अफवाहें फैेलाना अपराध भी घोषित किया जा चुका है पर इतनी निगरानी रखने की फुर्सत किसके पास है?
अमल साय को मदद...
कोंडागांव जिले के उमरगांव की दो बेटियों हेमवती और लखमी ने हल संभाली और बैलों की जगह खुद खेत जोतने लगीं। उन्होंने ऐसा अपने पिता को खेत बेचने से रोकने के लिये किया। यह सुखद है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक यह बात खबरों के जरिये पहुंची और उन्होंने पिता अमल साय को 4 लाख रुपये की सहायता पहुंचाई है। अब उन्होंने खेत बेचने का इरादा त्याग दिया है।
वैक्सीनेशन के लिये नदी पार
स्वास्थ्य विभाग की यह टीम बस्तर की है जो नदी पार कर चपका गांव जा रही है। वहां कुछ लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लग चुका है और अब दूसरी खुराक भी देनी है। कुछ लोगों को पहली डोज भी दी जायेगी। छत्तीसगढ़ में कल ही दोनों डोज लेने वालों की संख्या 1 करोड़ पहुंच गई। ऐसी कोशिश हो तो लक्ष्य के और करीब पहुंचा जा सकेगा।