राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : 10 जनवरी को कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा
13-Dec-2021 5:17 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : 10 जनवरी को कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा

10 जनवरी को कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा

छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इस महीने की 17 तारीख को अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है। स्वाभाविक है कि जश्न तो होगा, लिहाजा जोर-शोर से तैयारी भी चल रही है, लेकिन जश्न के साथ-साथ विरोधियों को झटका देने की भी तैयारी चल रही है। दरअसल, जुलाई-अगस्त के महीने से छत्तीसगढ़ में पावर शेयरिंग फार्मूले को लागू करने का जबरदस्त हल्ला मचा रहा। दोनों तरफ से खूब दिल्ली दौड़ भी हुई। जोर-आजमाइश से लेकर शक्ति प्रदर्शन तक हुआ। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सब कुछ शांत दिखाई पड़ रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि अब पावर शेयरिंग की संभावना नहीं है। इससे दूसरे खेमे में चिंता तो जरूर होगी। इसके अलावा 10 जनवरी के आसपास मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाओं ने विधायकों-मंत्रियों में बेचैनी बढ़ा दी है।

कहा जा रहा है कि खराब प्रदर्शन वाले मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। इस आधार पर कैबिनेट में जगह पाने और कुर्सी बचाने के लिए विधायकों-मंत्रियों की चुपचाप दिल्ली दौड़ भी शुरू हो गई है। अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के विधायक पुत्र की पार्टी प्रमुख से मुलाकात और बिलासपुर संभाग के एक मंत्री की हाईकमान के समक्ष हाजिरी को लेकर काफी कानाफूसी हो रही है। संभव है कि इस जोड़-तोड़ में और भी विधायक-मंत्री शामिल होंगे। क्योंकि इस दौरान तो कैबिनेट में बदलाव की केवल अटकलें लगाई जा रही थी अब तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वयं कह दिया है कि मंत्रिमंडल में बदलाव का समय आ गया है। तब तो अटकलों पर भरोसा करना ही पड़ेगा।

इसके बाद किसका पत्ता कटेगा और किसका नंबर लगेगा, इसके लिए तो फिलहाल इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन सीएम के इस बयान के बाद विधायक-मंत्रियों की धुकधुकी तो जरूर बढ़ गई होगी। उधर, सत्ता के करीबी इस बात से खुश हैं कि इसी बहाने तीन साल के उत्सव के शक्ति प्रदर्शन में भागीदारी बढ़ेगी और नगरीय निकाय से लेकर यूपी के चुनाव में विधायक-मंत्रियों की सक्रियता भी बढ़ेगी। खैर, यह तो सियासत की मांग है जिसमें दांवपेंच तो चलते हैं और चलते रहेंगे।

महंत की सियासी प्लानिंग

छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की दो सीटों का कार्यकाल जून 2022 में समाप्त हो रहा है। चुनाव के करीब 6 महीने पहले से ही राज्यसभा जाने के इच्छुक नेताओं की दिल की बात जुबां पर आने लगी है। इसमें सबसे पहला नाम विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत का आता है। वे पिछले कुछ दिनों से लगातार मीडिया में अपनी इस इच्छा को जाहिर कर रहे हैं कि अब उनका लक्ष्य राज्यसभा जाना है। वे कहते हैं कि राजनीतिक जीवन में अब तक 10 चुनाव लड़ चुके हैं। पत्नी ज्योत्सना महंत के चुनाव को मिलाकर 11 चुनाव हो जाते हैं। अब वे राज्यसभा के जरिए देश की बात करना चाहते हैं। हालांकि तीन साल पहले साल 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के ठीक बाद महंत मुख्यमंत्री की रेस में भी थे। वे खुद कह चुके हैं कि सेमीफायनल खेल चुके हैं। किसी भी खेल में सेमीफायनल तक पहुंचना भी बड़ी बात होती है, भले ही वो सियासत का खेल क्यों ना हो ?

कुल मिलाकर महंत मान चुके हैं कि अब वे रेस में शामिल नहीं होंगे। कारण कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन खिलाड़ी की तरह सियासतदारों के रिटायरमेंट प्लानिंग की समीक्षा तो होती है। यहां भी समीक्षा शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि महंत अपने बेटे सूरज महंत को सियासी मैदान में उतारना चाह रहे हैं। पिछले कुछ समय से वे अपने पिता के साथ सक्रिय भी रहते हैं। माता-पिता के संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में वे शामिल होते हैं। बेटे की सक्रियता को देखकर लोग यही अनुमान लगा रहे हैं कि महंत की चुनावी विरासत को वे ही संभालेंगे। वैसे विधानसभा अध्यक्ष के पद की अपनी मर्यादाएं हैं, जिसमें राजनीतिक सक्रियता कम हो जाती है। लोगों से सीधा जुड़ाव नहीं होता। महंत भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में संभव है कि वे अपनी राजनीतिक सक्रियता को बरकरार रखने के लिए यह उपाय कर रहे होंगे।

दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद चुनावी राजनीति में असफलता का भी मिथक है। प्रेमप्रकाश पांडे, धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। हो सकता है कि महंत ने इस तथ्य पर गौर किया होगा, क्योंकि वे ज्योतिष और मिथकों पर भरोसा करने वाले माने जाते हैं।

चेहरा चमकाने वाले साहब की टाइमिंग

सरकार का चेहरा चमकाने वाले विभाग के अफसरों का भी चमकदार होना कितना जरूरी है, यह उस वक्त पता चला जब विभाग में नए साहब की एंट्री हुई। आते ही मैराथन मीटिंग्स के साथ पेंडिंग निपटाने पर फोकस किया। उसके बाद पिच पर जमते ही मुखिया के लिए राज्य की राजधानी से लेकर देश की राजधानी में बड़े-बड़े आयोजन कर फटाफट अंदाज में बैटिंग की। विभाग के अचानक फॉर्म में आने से सभी अचरज के साथ खुश भी हैं। हर प्लेटफार्म पर सक्रियता खूब दिखाई दे रही है। साहब के साथ बैठकों में रहने वाले बताते हैं कि वे बेक्रफास्ट और लंच टाइम में कामकाज निपटाते हैं। कई बार तो लंच-बैठक साथ-साथ चलते हैं। जाहिर है कि उनके साथ हमेशा कुक भी तैनात रहते हैं। जैसे ब्रेकफास्ट या लंच का टाइम होता है कुक बेरोक-टोक प्लेट सजाकर हाजिर हो जाता है और सीधे टेबल पर परोस दी जाती है, ताकि खाने के साथ दूसरे काम भी बिना किसी रूकावट के चलते रहे। शुरूआत में तो मातहत अधिकारियों को लगा कि लंच का समय हो गया तो वाइंडअप करना चाहिए, लेकिन जब साहब लंच के साथ काम भी निपटाने लगे तो समझ आया कि कंटिन्यू करना है। अब ये सब नार्मल हो गया है। मातहत बताते हैं कि उनका खाना भी वैरायटी वाला होता है। खाने-पीने के साथ साहब सेहतमंद रहने के लिए वर्जिश भी करते हैं। कुल मिलाकर टाइमिंग से कोई समझौता नहीं। जैसे क्रिकेट में सही टाइमिंग में बल्ला घुमाने पर रन बनते हैं, उसी तरह साहब भी सही टाइमिंग का उपयोग करते हुए खुद के साथ सरकार का चेहरा चमकाने बखूबी शाट्स लगा रहे हैं। अब देखना यह है कि वे कितनी लंबी पारी खेलते हैं। 

दुर्लभ सफेद कौवे का दर्शन

सफेद कौवा दिखना मुश्किल है, पर बस्तर में यह संभव है। यह बस्तर के धरमपुरा इलाके की तस्वीर है जहां करीब एक साल से इस सफेद कौवे को लोग देख रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञ इसे अल्बिनो भी कहते हैं। इनकी आयु काले कौवों से कम होती है। साथ ही इनमें उडऩे की क्षमता भी अधिक नहीं होती।

महिलायें इसीलिये राजनीति में नहीं...

चुनाव कोई जनसेवा के लिये नहीं लड़ता। लोग अनाप-शनाप खर्च इसलिये करते हैं क्योंकि जीतने के बाद पूरी भरपाई होने की उम्मीद होती है। खुद को मौका नहीं मिलता तो पत्नी को लड़ाते हैं। पर चुनाव हार गये तो?

जांजगीर-चांपा जिले में एक शिक्षक ने अपनी पत्नी को जिला पंचायत का चुनाव  इस उम्मीद से लड़वाया कि वह जीत जाएगी तो पॉवर और पैसा सब मिलेगा, लेकिन वह चुनाव हार गई। चुनाव के लिये शिक्षक ने कर्ज ले रखा था। हारने से दो बेटे व एक बेटी के भरे-पूरे घर की सुख-शांति छिन गई और पत्नी पर शामत आ गई। जैसी कि पुलिस रिपोर्ट है,  पति होरीराम ने कर्ज नहीं चुका पाने के कारण पत्नी की इतनी पिटाई की कि उसे जगह-जगह चोट आई। पत्नी ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करा दी है और पुलिस ने मामले को जांच में लिया है।

ध्वनि प्रदूषण कानून का खोखलापन

कुछ कानून ऐसे हैं जिनका उल्लंघन होते हुए देखने पर भी पुलिस अपनी आंख-कान बंद रखती है। जब पब्लिक सामने आती है तो उसकी पिटाई हो जाती है। पलारी के वार्ड क्रमांक 12 में  देर रात तेज आवाज में डीजे की आवाज से एक शख्स का परिवार परेशान हो गया। उसने बारात में शामिल लोगों के पास जाकर कहा-आवाज कुछ धीमा कर लें। बाराती उलझ गये और उसे पीटने लगे। पिटाई होते देख उसके पिता पहुंचे तो उनको भी पीट दिया। पलारी पुलिस ने मामूली धाराओं में अपराध दर्ज कर लिया है। गिरफ्तारी और जमानत देने की औपचारिकता पूरी कर ली जायेगी। दरअसल, एसडीएम, कलेक्टर के आवास के सामने से ये बारातें नहीं गुजरती। उनका घर सुरक्षित जोन में होता है। 

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