राजपथ - जनपथ
ठेकेदार की शाही शादी
बस्तर के एक जिले के ठेकेदार की शाही शादी की खूब चर्चा हो रही है। ठेकेदार ने अपनी प्रेमिका से ब्याह रचाने के लिए चापर तक किराये पर ले लिया। कुछ लोग तो इसे बस्तर की सबसे महंगी शादी बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि ठेकेदार को कुछ दिन पहले ही सडक़ निर्माण के एवज में 17 करोड़ का चेक मिला था। और जब पैसा भरपूर हो तो शौकीन लोग खर्च करने में गुरेज नहीं करते हैं।
सुनते हैं कि ठेकेदार कुछ साल पहले तक एक पुलिस अफसर का खानसामा था। और फिर धीरे से नक्सलगढ़ में सडक़ निर्माण के काम में उतर आया और देखते ही देखते इतना कुछ हासिल कर लिया, जिसकी चर्चा बस्तर के बाहर भी होने लगी है। चाहे कुछ भी हो ठेकेदार की दिलेरी की दाद देनी पड़ेगी।
खैरागढ़ के नतीजे
खैरागढ़ में भाजपा के बराबर सीट मिलने से कांग्रेस के नेता खुश हैं। चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले तक तो खैरागढ़ में खाता खुलने की स्थिति नहीं थी। दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह के करीबी असमंजस में थे। ऐसे में पापुनि के चेयरमैन शैलेष नितिन त्रिवेदी को कांग्रेस ने चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी।
शैलेष के बाद गिरीश देवांगन भी वहां गए। आदिवासी वोटरों को कांग्रेस के पाले में करने के लिए विधायक इंदरसिंह मंडावी को भी प्रचार में झोंका गया। मंत्री रूद्रकुमार गुरु, विधायक कुंवर सिंह निषाद ने भी वहां प्रचार किया। और आखिरी में सीएम ने सभा लेकर खैरागढ़ को जिला बनाने का वादा किया। यह मास्टर स्टोक साबित हुआ, और फिर माहौल बदल गया। कांग्रेस को 10 वार्ड में सफलता मिली, जो कि भाजपा के बराबर है, और अब जिला बनाने की घोषणा से स्थानीय लोग खुश हैं। इससे प्रेरित होकर भाजपा के कुछ पार्षद अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस का साथ दे दें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
भाजपा की रणनीति फ्लॉप
निकाय चुनाव में भाजपा की रणनीति बुरी तरह पिट गई। चार बड़े नेता धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल और संतोष पांडेय को एक-एक निगम का प्रभारी बनाया गया था। चारों जगह भाजपा को बहुमत नहीं मिल पाया। अलबत्ता, बृजमोहन अग्रवाल की अगुवाई में भाजपा ने भिलाई-चरौदा में पिछले चुनाव से बेहतर प्रदर्शन किया है।
बृजमोहन भिलाई-चरौदा के चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी गई थी। पिछले चुनाव में सरकार रहते भाजपा को यहां 13 वार्डों में जीत मिली थी। इस बार परिस्थिति अनुकूल न होने के बावजूद पार्टी ने पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन किया है। अर्थात 15 वार्डों में भाजपा को जीत मिली है। बृजमोहन सीएम के इलाके में कांगे्रस को बहुमत मिलने से रोकने में सफल रहे हैं। अब बृजमोहन और भाजपा की कोशिश है कि निर्दलियों का साथ लेकर मेयर नहीं तो कम से कम सभापति बन जाए। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
गौरेया चहचहा रही आंगनों में
एकादशी और उसके बाद अगहन, फिर कार्तिक पूर्णिमा। छत्तीसगढ़ में जितने पर्व आते हैं धान की बालियों को आकर्षक स्वरूप देने की परंपरा साथ-साथ चलती है। ये तोरण घरों में, आंगन में महीनों लटके रहते हैं। चिडिय़ा उडक़र आती है। धान चोंच में दबाती और फुर्र हो जाती है। छत्तीसगढ़ में अन्य पक्षियों की तरह गौरेया की भी चहचहाहट कम सुनने को मिल रही है। पर इन दिनों वे घरों-आंगनों में धान की बालियों का रस लेने मंडराती दिख जाती हैं।
टाइगर हैं भी और नहीं भी..
वन अफसरों के लिये किसी अभयारण्य को टाइगर का मूवमेंट का बताया जाना उतना ही जरूरी है जितना कहीं-कहीं पुलिस के लिये अपने इलाके को नक्सल प्रभावित या अशांत बताया जाना। इस बार आजादी के अमृत महोत्सव के सिलसिले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग ने वन विभाग को टास्क दे रखा है। देश के सभी 51 टाइगर रिजर्व से वन कर्मचारियों का जत्था निकलेगा और ये उन 9 टाइगर रिजर्व इलाकों में पहुंचेंगे, जिसका निर्माण सन् 1973 में सबसे पहले हुआ था। इनमें उदंती सीतानदी अभयारण्य भी शामिल है। पत्रकारों को इस बात कार्यक्रम की जानकारी देते हुए सीसीएफ राजेश पांडेय ने यह भी स्वीकार कर लिया कि उदंती में एक भी टाइगर नहीं है, लेकिन तुरंत ही बात यह कहते हुए संभाली कि 4-5 टाइगर आसपास के दूसरे अभयारण्यों से आवाजाही करते हैं। इस तरह से टाइगर का नहीं होना मानते हुए भी मान लिया कि टाइगर हैं। दहशत बनी रहे, जंगल बचा रहे, बजट मिलता रहे, खर्च होता रहे।
दस दिन पहले कमिश्नर को हटाना
सरगुजा की संभागायुक्त जिनेविवा किंडो को रिटायरमेंट के दस दिन पहले हटा दिया गया। वैसे तो रिटायरमेंट दो साल बचा हो तब भी अधिकारियों-कर्मचारियों का तबादला या तो नहीं होता या फिर उनकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। किंडो का स्थानांतरण प्रशासनिक था। लोग अटकल लगा रहे हैं कि आखिर ऐसी कौन सी बात थी कि उनसे अचानक चार्ज लिया गया। मालूम हुआ है कि संभागायुक्त का ज्यादातर समय संभागीय मुख्यालय अंबिकापुर की जगह जशपुर में बीतता था। जशपुर वैसे भी धर्मांतरण को लेकर संवेदनशील जगह रही है। यहां जूदेव परिवार का घर वापसी अभियान हाल के दिनों में फिर शुरू हुआ है। सरकार नहीं चाहती थीं कि किंडो जशपुर में ज्यादा वक्त बितायें और लोग धर्मांतरण को लेकर उन्हें निशाने में लें।