राजपथ - जनपथ
जल्दी घर लौटने के दिन
छत्तीसगढ़ में इन दिनों जिस तरह कड़ाके की ठंड पड़ रही है, बाइक और साइकिल पर चलने वाले लोग शाम के वक्त घर जल्दी पहुंचना चाहते हैं। अब इसकी एक बड़ी वजह और सामने आ रही है। वह है कई शहरों में स्ट्रीट लाइट का गुल हो जाना।
एक मोटे आंकड़े के मुताबिक विद्युत वितरण कंपनी को प्रदेश के विभिन्न नगरीय निकायों से 350 करोड़ रुपए बिजली बिल का बकाया वसूल करना है। अकेले बिलासपुर नगर निगम के खाते में 57 करोड़ रुपए की उधारी दर्ज है। यहां बार-बार स्ट्रीट लाइट बंद की जा रही है और कभी कलेक्टर, तो कभी नगर निगम के आयुक्त अनुनय विनय कर जन सुविधाओं का हवाला देते हुए बिजली आपूर्ति शुरू करा रहे हैं। सडक़ों पर अंधेरा होने के कारण लोगों को जल्दी घर लौटने में ही भलाई दिख रही है। हालांकि जिन्हें रात की ड्यूटी करनी है, यात्रा करनी है, उन्हें निकलना पड़ रहा है।
नगरीय निकायों का बकाया बिल केवल स्ट्रीट लाइट का नहीं है बल्कि जलापूर्ति और दफ्तरों की बिजली पर चलने वाले मीटर से भी बढ़ता जा रहा है। अभी बात वहां सप्लाई बंद करने तक नहीं पहुंची है क्योंकि वे निहायत जरूरी सेवाओं में शामिल हैं।
वैसे नगरीय निकायों की माली हालत तो कर वसूली में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के कारण बार-बार खराब होती रहती है पर दूसरे सरकारी विभागों का बिल भी लंबा चौड़ा बाकी है। इनमें पुलिस विभाग भी शामिल है। अभी बिजली विभाग के अफसरों ने इधर हाथ डालने के बारे में नहीं सोचा है। कोई वजह होगी।
पीएससी की तैयारी और गांजा
जांजगीर-चांपा इलाके के दो ऐसे युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है जो खास तौर पर पीएससी कोचिंग के लिए बिलासपुर में रहते हैं।
इन लोगों से गांजा बरामद किया गया है। पूछताछ में इन युवकों ने बताया कि जेब खर्च निकालने के लिए उनको ऐसा करना पड़ रहा है। प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने की मंशा रखने वाले युवकों का अपराध की दुनिया में लिप्त होना यह बताता है कि युवा पीढ़ी कठिन दौर से गुजर रही है।
जांजगीर-चांपा इलाके के दो ऐसे युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है जो खास तौर पर पीएससी कोचिंग के लिए बिलासपुर में रहते हैं।
इन लोगों से गांजा बरामद किया गया है। पूछताछ में इन युवकों ने बताया कि जेब खर्च निकालने के लिए उनको ऐसा करना पड़ रहा है। प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने की मंशा रखने वाले युवकों का अपराध की दुनिया में लिप्त होना यह बताता है कि युवा पीढ़ी कठिन दौर से गुजर रही है।
एक और पदयात्रा राजधानी की ओर
बीते 3 महीनों के भीतर यह तीसरी पदयात्रा है जो राजधानी पहुंचने वाली है। कड़ाके की ठंड के बीच लंबी पदयात्रा कर अपनी मांगों को सरकार के सामने रखने का संघर्ष आसान नहीं है। यह गांधीवादी रास्ता है। इस बार बस्तर से स्कूली सफाई कर्मचारियों का पैदल मार्च शुरू हुआ है। उनका सफर 8 दिन पूरा कर चुका हूं है और अब वे बालोद जिले से आगे बढ़ गए हैं। उनकी मांग सेवाओं को नियमित करने की है। मौजूदा सरकार के अनेक चुनावी वायदों में से एक यह भी रहा है। राजधानी पहुंचने के बाद क्या वे अपने उद्देश्य को पूरा करा पाएंगे?
चंदा के कारण गए काम से
स्व पवन दीवान अपनी बेबाकी और साफगोई के लिए खासे जाने जाते रहे हैं। कविताओं और कथाओं में उनके व्यंग्य न केवल लोगों को गुदगुदाते थे, बल्कि समाज की बुराइयों के खिलाफ सोचने के लिए विवश भी करते थे। एक थी लडक़ी मेरे गांव में चंदा उसका नाम था... कविता के जरिए उन्होंने छत्तीसगढ़ी महतारी का वर्णन किया, हालांकि लोगों ने कविता के मर्म को नहीं समझा और इसे अलग रूप दे दिया। चुनाव के दौरान इस कविता की पात्र चंदा को बड़ा मुद्दा बनाया गया, जिसकी वजह से वे चुनाव हार भी गए। पवन दीवान की बेबाकी का इसका बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि उन्होंने अपनी हार पर ही कविता लिख डाली और स्वीकार किया कि इस बार के चुनाव में हम गए काम से, बदनाम कर दिया चंदा के नाम से। खैर, ये तो बात हुई पवन दीवान की सरलता की, लेकिन आजकल के नेता क्या इतनी साफगोई से बातों को स्वीकार कर पाते हैं ? छत्तीसगढ़ में हाल ही में नगरीय निकाय के चुनाव हुए हैं, जिसमें खुलकर चंदा-चकारी हुई है। कुछ जगहों पर चंदे के कारण विवाद की भी नौबत आ गई थी, तो कई जगहों पर चुनावी मुद्दा भी बना। बीरगांव के चुनाव में तो कुछ प्रत्याशियों ने अपने करीबियों के बीच हार का ठीकरा चंदे पर फोड़ा है। ऐसे में उन्हें भी पवन दीवान की तरह चंदे की बदनामी का रहस्य सार्वजनिक जगहों पर खोलना चाहिए।
मलाईदार में मलाई नहीं
कलेक्टरी के बाद आईएएस अफसरों की पहली पसंद मलाईदार विभाग होती है। ऐसे अफसर कम ही होते हैं, जिन्हें आसानी से मनपसंद मलाईदार विभाग में पोस्टिंग मिले। सभी जानते हैं कि इसके लिए खूब पापड़ बेलने पड़ते हैं, लेकिन एक बार पोस्टिंग मिल गई तो मत पूछिए। चारो तरफ से मलाई ही मलाई मिलती है, पर मलाईदार विभाग में पोस्टिंग पाकर भी एक आईएएस को मलाई तो दूर रूखा-सूखा भी नसीब नहीं हो रहा है। दरअसल, साहब को पोस्टिंग पारिवारिक संबंधों के कारण मिली, लेकिन मलाई से दूर रखा गया। बात तो सही है कि मलाई के कारण पारिवारिक संबंधों में खटास आ सकती है। इसलिए मलाई निकालने का जिम्मा दूसरे अफसर को दिया गया, ताकि दूध का दूध और मलाई का मलाई हो सके।