राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बड़े अफसरों को एक सिपाही की चेतावनी!
04-Jan-2022 5:34 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बड़े अफसरों को एक सिपाही की चेतावनी!

बड़े अफसरों को एक सिपाही की चेतावनी!

छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय में कई तरह की सेक्स चर्चाएं चल रही हैं। अब सीआईडी में महिला आरक्षक को प्रताडि़त करने के खिलाफ एक सिपाही ने अपने व्हाट्सएप पर पर प्रोफाइल फोटो की जगह यह चेतावनी खुलकर लगा रखी है। नंबर भी उसका खुद का ही है। हम तो यहां पर उसके नाम और नंबर को हटाकर सिर्फ प्रोफाइल फोटो दे रहे हैं। इससे सावधान होकर जिन्हें सुधरना हो सुधर जाएं, वरना सेक्स स्कैंडल छत्तीसगढ़ के पुलिस विभाग में कोई बहुत नई बात भी नहीं है। आगे आगे देखो होता है क्या...

खैरागढ़ और मुंगेली में क्या होगा?

कल यानि पांच जनवरी को कुछ नगरीय निकायों में अध्यक्ष पद का चुनाव होना है। मुकाबला खैरागढ़ और मुंगेली में दिलचस्प है। मुंगेली में चुनाव दो साल पहले हुए थे। तब 22 पार्षदों में 11 भाजपा के 9 कांग्रेस के और एक-एक पार्षद छजकां और निर्दलीय से थे। कांग्रेस को मौका नहीं मिला और भाजपा के संतूलाल सोनकर अध्यक्ष बन गये। भ्रष्टाचार के आरोप में अब वे बर्खास्त किये जा चुके हैं। उन्हें कोर्ट ने जेल भी भेजा। कांग्रेस भाजपा के बीच अब स्थिति 9 और 10 की बन रही है। कांग्रेस से अभी कार्यकारी अध्यक्ष यहां बैठे हैं हेमेंद्र गोस्वामी। फैसला निर्दलियों के रुख से होना है। खैरागढ़ नगरपालिका में हाल ही में चुनाव हुआ। कांग्रेस और भाजपा से 10-10 पार्षद चुने गये हैं। यदि पार्टी निष्ठा से सबने वोट दिये तो फैसला सिक्का उछालकर करना पड़ सकता है। मगर, बाजी पलट सकती है, यदि एक-दो पार्षद इधर से उधर हो जायेंगे। बैकुंठपुर और चरचा-कालरी में कांग्रेस को भितरघात का सामना करना पड़ा। ऐसे में खैरागढ़ और मुंगेली की किलेबंदी कैसी है, इस पर सबकी नजर है। खासकर यदि मुंगेली में बहुमत न होते हुए भी कांग्रेस को अध्यक्ष सीट मिली तो इसे कोरिया का हिसाब चुकता कहा जायेगा।

इंद्रावती के किनारे यह पौधारोपण...

पौधारोपण की योजनाएं कई बार या कहें अधिकतर फोटो खिंचवाने और छपवाने तक सीमित रह जाती हैं। ऐसा ही बस्तर जिले के गांव में इंद्रावती नदी के किनारे लगाए गए पौधों का है। कलेक्टर सहित तमाम बड़े अफसरों की मौजूदगी में इंद्रावती बचाव दल ने इन पौधों को इसलिए लगाया था कि नदी का संरक्षण हो और अवैध रेत उत्खनन बंद हो। इस पर लाखों रुपए खर्च किए गए। नदी से लगे हुए गांवों और स्व सहायता समूहों को भी फंड देकर पौधों के संरक्षण की जिम्मेदारी दी गई। मगर अब यह हालत है कि इन्हीं पौधों को रौंदते हुए रेत से भरे ट्रक गुजर रहे हैं और जो पौधे बच गए हैं उनको मवेशी चर रहे हैं।

मड़वा उपद्रव के लिये जिम्मेदार कौन?

छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के मड़वा में स्थित अटल बिहारी वाजपेयी पावर प्लांट में बीते 2 जनवरी को हुई हिंसक घटना पर पुलिस-प्रशासन ने खूब सख्ती दिखाई। करीब 400 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और कुछ लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के खिलाफ जुर्म दर्ज होने का मतलब है कि आंदोलनकारियों के बीच शरारती लोग नहीं घुसे थे बल्कि जो लोग धरने पर थे, वे भी शामिल थे। प्रदेश में संयंत्रों, खदानों के चलते विस्थापित हुए लोगों के दर्जनों मामले और सैकड़ों आवेदन धूल खा रहे हैं। ये निजी संयंत्रों के ही नहीं, राज्य और केंद्र सरकारों के उपक्रमों के भी हैं। मड़वा से भू-विस्थापितों को नौकरी देने, जिन्हें संविदा पर दी गई उनको नियमित करने की मांग पर धरना एक माह से चल रहा था। उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि नये साल से आंदोलन तेज करेंगे। विद्युत मंडल के अधिकारियों ने बात करने का प्रस्ताव तब दिया जब उन्होंने प्लांट के गेट पर ही जाम लगा दिया। स्थिति बिगड़ी और बात तोडफ़ोड़, पथराव व आगजनी तक पहुंची। अब धरना देने वाले पुलिस और कचहरी के चक्कर लगायेंगे। उपद्रव, जाहिर है जायज नहीं पर, जिन अधिकारियों ने मांगें एक माह तक नहीं सुनी, उनको कुछ जवाबदेही है भी या नहीं? आंदोलनकारियों की मूल मांगों का जल्दी कोई हल निकलने से तो अब रहा।

नया रायपुर में सिंघु बार्डर जैसी तैयारी

दिल्ली के सिंघु बार्डर में किसानों का आंदोलन पूरे एक साल चला। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा और कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर घर-द्वार छोडक़र परिवार के साथ डटे किसानों की जीत हुई। यह इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाले आंदोलन के रूप में दर्ज हो गया है। पूरे देश में इसकी चर्चा है और इसे नजीर माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि अपनी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से पूरा करवाने के लिए यहां किसानों की रणनीति कारगर साबित हुई है। छत्तीसगढ़ में भी इस आंदोलन को अच्छा समर्थन मिला था। यहां से किसान और उनके समर्थक आंदोलन में शामिल भी हुए थे। छत्तीसगढ़ की सत्ताधारी दल ने भी किसानों के आंदोलन का भरपूर समर्थन किया था। स्वाभाविक है इस आंदोलन की सफलता के बाद यहां के लोग इसे आदर्श मान रहे हैं, तभी तो नई राजधानी में भी किसानों का आंदोलन हुबहू सिंघु बार्डर की तर्ज सोमवार से शुरू हुआ। पहले दिन यहां के किसानों ने नया रायपुर विकास प्राधिकरण कार्यालय के घेराव का कार्यक्रम रखा था। उसके बाद कार्यालय़ के बाहर ही किसान बोरिया-बिस्तर के साथ माइक के साथ डट गए हैं। किसान मुआवजा जैसे कुछ अन्य मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। यहां भी पहले दिन ही तय हुआ कि किसान दिल्ली की तरह मांगें पूरी होने तक पूरे समय यहीं रहेंगे। उनके खाने-पीने से लेकर सोने नहाने तक इंतजाम किए गए हैं। मतलब किसान पूरा राशन पानी लेकर आंदोलन पर बैठ गए हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं और बुजुर्ग भी मौजूद हैं। जिस तरह भाषणों में सिंघु बार्डर का उदाहरण दिया जा रहा है, उससे तो लगता है कि किसान मांगें पूरी हुई बिना हटने वाले नहीं है। ऐसे में देखना यह है कि किसान अपनी मांगें पूरी करवा पाते हैं या लंबे समय तक आंदोलन करने का रिकॉर्ड बना पाते हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार की छवि किसान हितैषी है। ऐसे में किसानों का आंदोलन लंबे समय तक खींचता है, तो निश्चित तौर छवि पर असर पड़ेगा।

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