राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक दर्जन नेताओं पर क्या गुजरी होगी
10-Jan-2022 5:49 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक दर्जन नेताओं पर क्या गुजरी होगी

एक दर्जन नेताओं पर क्या गुजरी होगी

भाजपा से जुड़े हुए छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख व्यक्ति रमेश गांधी सोशल मीडिया पर पूरे समय भाजपा की विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं। ऐसे में उन्होंने अभी कुछ देर पहले यह पोस्ट किया है- भावी मुख्यमंत्री को हिंदी दिवस पर बधाई, और इसके साथ उन्होंने रायपुर के कलेक्टर रहे ओ पी चौधरी को टैग किया है जो कि भाजपा की राजनीति में सक्रिय  नौजवान नेता हैं और विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। अब उन्हें भावी मुख्यमंत्री बतलाने पर इस कतार में खड़े, ओपी चौधरी से वरिष्ठ एक दर्जन नेताओं पर क्या गुजरी होगी यह तो लोगों को अंदाजा खुद ही लगाना चाहिए।

सोने के अण्डे वाली मुर्गी

कुछ लोग अपने हाथ लग जाने वाले ग्राहकों को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह इस्तेमाल करने लगते हैं। उनका पेट काटकर एक ही बार में सारे अंडे निकालने की कोशिश, उन्हीं का नुकसान करती है। अब बहुत से लेखक और प्रकाशक आपस में मिलकर चाहे जिस किस्म की कारोबारी साझेदारी करके किताबें छापें, वे इन किताबों को अंधाधुंध दाम रखकर बेचने की कोशिश करते हैं। ऐसे दामों पर सिर्फ सरकारी लाइब्रेरी में बिक्री हो पाती है आम पाठक तो सस्ती किताबें भी खरीदना, कम से कम हिंदी में, तकरीबन बंद कर चुके हैं, और इसलिए भारी महंगे दामों पर किताबों को छापने का एक ही मतलब निकलता है कि उनकी कुछ सौ कॉपियां छापकर मामला खत्म कर दिया जाए और गरीब पाठकों के लिए उन्हें निकाला ही न जाए। गिने-चुने लोग किताबें खरीद देते हैं, और बाकी लोग उसकी चर्चा करके संतुष्ट हो जाते हैं। खुद लेखक और प्रकाशक मामूली सरकारी खरीदी से ही सब-कुछ निचोड़ लेना चाहते हैं और नतीजा यह होता है कि हिंदी के पाठकों को जायज दामों पर किताबें मिलती नहीं, और धीरे-धीरे किताबें खरीदने का उनका मिजाज ही खत्म हो चुका रहता है। किताबें अगर बिना मोटी और महंगी जिल्द के, साधारण अखबारी कागज पर छपें, तो जिल्द वाली किताब के दसवें हिस्से में मिल सकती हैं। लेकिन आम पाठकों और खरीदारों को लेकर जरा सी मेहनत करने और जरा सा खतरा उठाने की हसरत भी किसी की नहीं रहती।

और यह बात सिर्फ किताबों पर लागू होती हो ऐसा भी नहीं है। इंटरनेट पर ऑनलाइन योग क्लास चलाने वाले छत्तीसगढ़ के कुछ लोग एक-एक से पांच हजार रुपये महीने तक ले रहे हैं। दूसरी तरफ आईआईटी से निकला हुआ एक नौजवान जो कि आर्ट ऑफ लिविंग का प्रशिक्षित योग प्रशिक्षक है, और भारत सरकार से प्रशिक्षित प्रामाणिक योग शिक्षक है, वह भी इंटरनेट पर ऑनलाइन क्लास चला रहा है जो कि बहुत ही लोकप्रिय भी हैं और जो करीब चार सौ रुपये महीने में हासिल है। अब चार सौ रुपये महीने की यह एक क्लास 700 लोगों को आकर्षित कर रही है। दूसरी तरफ पांच हजार रुपये महीने की क्लास में 10-20 लोग ही दिखाई पड़ रहे हैं। कम दाम रखकर अधिक लोगों को जोडऩा समझदारी की एक बात होती, लेकिन वह बहुत से लोग नहीं दिखा पा रहे हैं। न लेखक और न योग शिक्षक। किसी एक को कोसा जाये. आज जब कम दाम पर बहुत कुछ कामयाबी दिख रही है, तब भी लोग हाथ में लगी हुई मुर्गी का पेट काटने में लगे हुए हैं ताकि सोने के सारे अंडे एक बार में, एक ही मुर्गी से निकल जाएं। कम मार्जिन वाले अधिक ग्राहक दुनिया का सबसे कामयाब फार्मूला है, लेकिन लोग अब तक उससे अनजान चल रहे हैं।

मायका-ससुराल की दुविधा

छत्तीसगढ़ में ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी स्थानीय का महत्व समझा जा सकता है। कई कलेक्टर-एसपी को इसका फायदा भी मिला है, लेकिन इससे दुविधा भी काफी होती है। जांजगीर-चांपा जिले को ही लीजिए। यहां के कलेक्टर उसी जिले के रहने वाले हैं और संयोग से उनका ससुराल भी उसी जिले में है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति कलेक्टर भाई, चाचा-भतीजा बताता है, तो ससुराल वालों की तरफ से कोई जीजा-बहनोई या साढ़ू बताने वालों की भी कमी नहीं है। रिश्तेदारी के कारण अधिकारियों में कुछ दुविधा हो सकती है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि कामकाज में साहब मायके और ससुराल दोनों पक्षों का बराबर ध्यान रख रहे होंगे।

वैक्सीन लगवाने का असर

कोविड-19 का संक्रमण बीते 24 घंटों में 13 प्रतिशत तक चला गया। यानि टेस्ट कराने वाले हर 100 लोगों में 13 संक्रमित मिल रहे हैं। जो हरारत लगने के बावजूद टेस्ट नहीं करा रहे हैं उनका हिसाब अलग है। यह पता भी नहीं चल रहा है। मगर दूसरी बात यह भी है कि ज्यादातर लोगों को अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ रहा है। विशेषज्ञ कह रहे हैं इसकी वजह वैक्सीनेशन हो जाना है।

वैक्सीनेशन पर चाहे सरकार जो खर्च कर रही हो पर लोगों के लिए तो यह मुफ्त ही है। छत्तीसगढ़ में कुछ दिन पहले एक आंकड़ा आया था डेढ़ करोड़ टीके लग चुके हैं। मगर दोनों डोज लेने वाले केवल 30 प्रतिशत हैं। राजधानी रायपुर में कोविड-19 पर नियंत्रण का काम देख रहे डॉक्टरों का भी कहना है संक्रमित लोगों में 89  प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनको दोनों खुराक लगाई जा चुकी है। पर वे खुराक लेने की वजह से ही वह गंभीर स्थिति में नहीं पहुंच रहे हैं।

इस वक्त अस्पतालों में कोविड-19 बेड ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए काम चल रहा है। क्या या ठीक नहीं होगा उतनी ही तत्परता से वैक्सीनेशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए चलाया जाए?

फिर एक छात्र की पिटाई

सूरजपुर के तत्कालीन कलेक्टर रणबीर शर्मा ने लॉकडाउन के दौरान एक बच्चे पर हाथ उठाया था और उसका मोबाइल फोन तोड़ दिया था। उन्हें कलेक्ट्री से हाथ धोना पड़ा। मिलती-जुलती घटना कोरबा में हो गई। दीपका के तहसीलदार वीरेंद्र श्रीवास्तव ने मास्क नहीं पहनने पर एक बच्चे पर हाथ उठा दिया। लोगों की भीड़ लग गई। उन्होंने तहसीलदार की गाड़ी को जाम कर दिया।

भीड़ तहसीलदार से मौके पर ही निपटने के लिए उतावली थी, मगर तहसीलदार ने हाथ जोडक़र माफी मांगी और किसी तरह से लोगों के गुस्से को ठंडा किया।  सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनकर निकलना एक जिम्मेदारी है जिसे नहीं निभाने पर जुर्माना भी तय किया जा चुका है। पर, तहसीलदार ने अपने पद और हद से बाहर जाकर गुस्सा दिखाया। फिलहाल माफी मांगने के बावजूद उनके ऊपर कार्रवाई की तलवार तो लटक ही रही है क्योंकि पूरे मामले की जांच करने का निर्देश कलेक्टर ने दिया है।

बेजुबानों के लिए एंबुलेंस

छत्तीसगढ़ में शायद पहली बार किसी ने जानवरों के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की है। अंबिकापुर के अजय अग्रवाल ने अपनी 90 वर्षीय मां के मिले पैसों से बीमार और घायल जानवरों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की है। अजय अग्रवाल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों को मुफ्त में मास्क बांटने को लेकर भी चर्चा में आए थे।

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