राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बहू और कलेक्टर का डबल रोल
15-Jan-2022 5:23 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बहू और कलेक्टर का डबल रोल

बहू और कलेक्टर का डबल रोल

2013 बैच की आईएएस नम्रता गांधी का गरियाबंद तबादला उनकी निजी वजहों से खास बन गया है। मूलत: मुंबई की रहने वाली नम्रता गांधी अब उस जिले की कलेक्टरी करेंगी जहां के राजिम के एक परिवार में वह ब्याही गई हैं। नम्रता गांधी अपनी नई पोस्टिंग के बाद बहू और कलेक्टर के रूप में दोहरी भूमिका में नजर आएंगी।  भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद  नम्रता ने राजनांदगांव जिले से शुरूआत की थी। प्रशिक्षु आईएएस के तौर पर उन्होंने छह माह तक अच्छा काम किया। नम्रता का प्रशासनिक सफर में गरियाबंद दूसरा जिला है। वैसे राज्य में उनके बैच के ज्यादातर अफसर जिलों में कलेक्टरी कर रहे हैं। हालांकि इस बैच के जगदीश सोनकर अपनी पहली कलेक्टरी का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। इस बैच में सात अफसर सीधे आईएएस और दो प्रमोशन से बने आईएएस है, जिनमें पीएस धु्रव और आनंद मसीह हैं। यह दोनों अफसर जिलों में जाने के लिए जोर  लगा रहे हैं।

बस्तर की मुर्गा लड़ाई...

बस्तर के हर जिले में प्रशासन की तरफ से सख्त निर्देश है कि मुर्गा लड़ाई बंद की जाये। यह लड़ाई तब तक चलती है जब तक दो में किसी एक मुर्गे की मौत न हो जाये। दूसरी बात, इसमें दांव लगते हैं जो कुछ रुपये से लेकर हजारों रुपये तक के हो सकते हैं। क्रूरता और जुए का इस तरह से सार्वजनिक प्रदर्शन गलत मानकर इस पर पाबंदी लगाई गई है, पर रुकी नहीं। हाट-बाजारों का यह अहम् हिस्सा है।

हाथियों ने अपना एरिया रिजर्व कर लिया

हसदेव अरण्य के इलाके लेमरू को हाथी रिजर्व एरिया बनाने के लिए राज्य सरकार ने बीते साल अक्टूबर महीने में अधिसूचना जारी की थी। इसमें कोरबा, सरगुजा, धरमजयगढ़, और कटघोरा वन मंडल के क्षेत्र शामिल हैं जो करीब 1950 वर्ग किलोमीटर है। इनमें से 450 वर्ग किलोमीटर के लिए केंद्र की सहमति मिल चुकी है। शेष 1500 वर्ग किलोमीटर के लिए बाकी है।

यही इलाके उनके लिए भविष्य में रिजर्व होने वाले हैं, यह क्या हाथियों को पता है? ऐसा लगता तो है। प्रस्तावित एलीफेंट रिजर्व के पसान वन परिक्षेत्र में 50 से अधिक हाथियों के दल ने बीते 7-8 माह से डेरा डाल रखा है। इनमें कुछ हिस्सा केंदई जंगल का भी है। यहां के ग्रामीणों ने इनके साथ जीना भी सीख लिया है। हाथी कभी-कभी उनकी बाडिय़ों में आकर कटहल, पपीते खा कर चले जाते हैं। ग्रामीण इस नुकसान की भरपाई का दावा वन विभाग से नहीं करते। उनको पता है कि हाथी रिजर्व बनने के बाद उनको लाभ यह है कि वे यहां से बेदखल नहीं किये जायेंगे, और बाद में भी इन्हीं हाथियों के साथ ही उन्हें यहां रहना होगा, दोस्ती तो हो ही जायेगी, दुश्मनी क्यों करें?  दरअसल एक व्यस्क हाथी को प्रत्येक दिन 100 लीटर पानी और 200 लीटर चारे की जरूरत पड़ती है और वे दोनों इस इलाके में मिल जाते हैं। घना जंगल तो है ही और हसदेव नदी में भरपूर पानी है। बस कोई अदानी का मजबूत पैरोकार ना आए, जो इन्हें खदानों के लिये यहां से खदेडऩे के लिए मजबूर कर दे।

रेलवे पर रिफंड का बोझ...

कोविड की इस नई लहर में नये संक्रमितों का रोजाना आंकड़ा दूसरी लहर से बिल्कुल कम नहीं है। अलग हटकर जो बात है वह यह कि मजदूरों का बड़े शहरों से गांवों की ओर वापसी नहीं हो रही है। रेलवे ने पिछली बार ऐसे प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाकर वाहवाही भी बटोरी और आलोचना भी झेली। इस बार देश के किसी भी शहर में लॉकडाउन नहीं किया जा रहा है। यह समझ बन चुकी है कि सतर्कता बरतते हुए बाजार, दफ्तर, फैक्ट्रियों में काम चलते रहने देने में ही सबका हित है। पर, अब रेलवे को बहाना फिर मिल गया है। वह फिर से अनावश्यक यात्रा रोकने के लिये पिछली बार की तरह प्लेटफॉर्म टिकट के दाम और यात्री भाड़े में बढ़ोतरी न कर दे। बंद किये गये स्टापेज को शुरू तो करने का सवाल ही नहीं, कुछ ट्रेनों को फिर से बंद किया जा सकता है। एक अधिकारी का कहना है कि इसके लिये एक मजबूत तर्क उनके पास है कि लोग बड़ी संख्या में टिकट कैंसिल करा रहे हैं। इसके अलावा स्टेशनों में इतनी बड़ी संख्या में लोग उमड़ रहे हैं कि कोविड टेस्ट करना मुश्किल होता जा रहा है। इधर रिफंड के क्लेम बढ़ रहे हैं, जिससे रेलवे को घाटा हो रहा है।

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