राजपथ - जनपथ
पहुंच से दूर भी नहीं टेलिप्रॉम्टर
टेलीप्रॉम्पटर इतना दुर्लभ उपकरण भी नहीं है। कुछ कंप्यूटर मास्टर तो कहते हैं कि आपका अपना लैपटॉप या नोटपैड भी थोड़े बदलाव के बाद टेलिप्रॉम्टर की तरह काम कर सकता है। टेलिप्रॉम्टर उन लोगों के लिये वाकई मददगार है जो यू-ट्यूब के लिये वीडियो बनाते हैं, ब्लॉग पोस्ट करते हैं या किसी मंच, कार्यशाला में प्रेजेंटेशन देते हैं। गूगल पर जाने से पता चलता है कि यह बहुत महंगी भी नहीं। ऑनलाइन यह 8 हजार रुपये से शुरू हो रहा है। 12 हजार रुपये में अमेजान पर भी है। हालांकि एक बेहतरीन टेलीप्रॉम्पटर की कीमत 2.70 लाख से लेकर 17 लाख रुपये तक हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के दौरान टेलीप्रॉम्पटर धोखा दे गया। सोशल मीडिया पर लोग टूट पड़े और उन पर तमाम तरह के जोक्स बनने लगे। यकीनन धोखा देने वाला टेलीप्रॉम्पर 12 हजार रुपये के रेंज का तो होगा नहीं, महंगा ही होगा। इसलिये देखा-देखी में खरीदी जरूरी नहीं। हां, कुछ कस्टमर यह जरूर बता रहे हैं कि टेलीप्रॉम्पटर की कीमत में मोदी के उस दिन के भाषण के बाद गिरावट आई है।
सरपंच चुनाव में मंत्री की साख?
हाल ही में निपटे त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव वैसे तो गैर दलीय आधार पर लड़े गये लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस का दावा है कि ज्यादातर स्थानों पर उनके समर्थित उम्मीदवारों को जीत मिली। मगर सर्वाधिक मंत्रियों वाले दुर्ग जिले के ग्राम पंचायत खोपली में जो हुआ, उसे लेकर भाजपा अपनी पीठ थपथपा रही है। वहां चुनाव इसलिये कराया गया क्योंकि सरपंच फत्तेलाल को बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने उप-चुनाव में फिर नामांकन दाखिल किया, लेकिन निरस्त कर दिया गया। पर नामांकन उनकी पत्नी मंजू वर्मा का भी दाखिल कराया गया था। उनका नामांकन ओके हो गया। मैदान में चार उम्मीदवार और थे। नतीजा मंजू वर्मा के पक्ष में आया। उन्होंने भारी अंतर से जीत हासिल कर ली। यानि फत्तेलाल दुबारा सरपंच न बन पाये हों, पर सरपंच पति तो हो ही गये। सरपंच पति मंडल भाजपा के अध्यक्ष भी हैं। भाजपा का कहना है कि गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के इशारे पर ही उनको बर्खास्त किया गया था। इस नतीजे से मंत्री जी की किरकिरी हुई है।
बूट, बुलेट काफी नहीं...
एक तो खाकी वर्दी, फिर बूट और बुलेट। इतना रौब जताने के लिये क्या काफी नहीं था, जो नेम प्लेट के साथ ठाकुर लिखा लिया?