राजपथ - जनपथ
पार्षदों के बगावती तेवर
मुंगेली के बाद पत्थलगांव में भी भाजपा के पार्षदों ने अपने आलाकमान की नहीं सुनी और अपनी पसंद से वोट डाला। पत्थलगांव में भाजपा का बहुमत है। भाजपा की अध्यक्ष सुचिता के खिलाफ कांग्रेस पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया, पर उन्हें भाजपा पार्षदों की भी मदद मिली। भाजपा के 9 में से सिर्फ 3 वोट अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में पड़े, जिनमें एक वोट खुद अध्यक्ष का था। इस घटनाक्रम से विधायक रामपुकार सिंह का वजन बढ़ गया। जो बड़े नेता कई दिनों से भाजपा पार्षदों को बगावत नहीं करने के लिये मना रहे थे, उन्हें निराशा हाथ लगी। कुछ दिन पहले मुंगेली में भी यही हुआ था, जब कई भाजपा पार्षदों की क्रास वोटिंग के चलते वहां कांग्रेस के नगर पंचायत अध्यक्ष चुन लिये गये, जबकि बहुमत कांग्रेस का नहीं था। सांसद अरुण साव व कद्दावर भाजपा नेता विधायक व पूर्व मंत्री मोहले की बात अनसुनी कर दी गई। पत्थलगांव में भाजपा पार्षदों ने विकास ठप होने और भ्रष्टाचार को कारण बताया है। पर, अब अगला अध्यक्ष कौन होगा, क्या कांग्रेस से? पर उसका बहुमत अभी भी नहीं है। हो सकता है कि किसी नये नाम पर भाजपा के पार्षद राजी हो जायें। शायद, इसीलिये अभी इन पर अनुशासन की कार्रवाई पर विचार नहीं किया जा रहा है।
वैसे, पार्षदों की ऐसी बगावत का संकट सिर्फ भाजपा को ही नहीं झेलना पड़ रहा है। खरौद नगर पंचायत के मामले में क्या होता है देखना होगा। यहां नगर पंचायत अध्यक्ष कांग्रेस के हैं। कुल 15 पार्षद हैं, जिनमें से 14 ने कलेक्टर जांजगीर-चांपा को अविश्वास प्रस्ताव की बैठक रखने के लिये पत्र लिखा है।
कोरोना काल में इनकी काउंसलिंग क्यों नहीं?
कोरोना महामारी की चपेट में वे लोग भी आये हैं जिन्होंने अपने परिजनों को नहीं खोया या जो बीमार भी नहीं पड़े। बहुतों को अपनी नौकरी और रोजगार से हाथ धोना पड़ा। श्रमिक, बीपीएल को छोड़ दें तो, सरकार की ओर से छोटी-मोटी नौकरियों को गंवा चुके लोगों को सीधे तौर पर कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। जो इन विषम परिस्थितियों में धीरज खो चुके उन्हें सांत्वना देने के लिये भी लोग बहुत कम आये। धमतरी जिले का एक आंकड़ा आज ही एक अख़बार में है तीन साल में 8 सौ से अधिक लोगों ने आत्महत्या कर ली। बहुत सी मौतें महामारी से संबंधित हो सकती हैं। भिलाई-3 की खबर दहलाने वाली है। एक युवा दंपती ने एक ही फंदे पर लटककर जान देने का रास्ता चुन लिया। वजह, कोरोना काल में नौकरी छूट जाने से उपजी बेरोजगारी थी। इस मामले में खास बात यह है कि युवक के पिता रेलवे से रिटायर्ड हैं, जिन्हें पेंशन मिलती है और बड़ा भाई फौज में नौकरी करता है। सुसाइड नोट में इन दोनों का नाम भी लिख दिया गया है। गहराई में जाने पर पता चल सकता है कि ऐसा क्या हुआ कि इस दंपती के दुबारा खड़ा होने तक जीवन-यापन की न्यूनतम जरूरतें उनके परिवार वाले पूरी नहीं कर सके। यकीनन, बहुत से युवा, जो विवाहित भी हैं, नौकरी व व्यवसाय छूटने की वजह से चौराहे पर आ गये, पर उन्हें उनके अपनों ने संबल दिया। भिलाई-3 की घटना बताती है कि परिवार और समाज की कडिय़ां कितनी कमजोर होती जा रही हैं।
कानपुर में डीएम अपने कोरिया की
चुनाव आयोग आचार संहिता लागू होने के बाद उन अधिकारियों को इधर-उधर कर देता है जिनको लेकर थोड़ी सी भी शंका होती है कि वह सत्तारूढ़ दल के प्रभाव में आकर प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित करेंगे। यूपी में, हाल ही में कानपुर के जिलाधिकारी विशाख जी. अय्यर को चुनाव आयोग ने हटा दिया। उनकी जगह पर जिम्मेदारी दी गई है 2010 बैच की आईएएस नेहा शर्मा को। नेहा बैकुंठपुर, छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं। वे शर्मा हॉस्पिटल के संचालक डॉक्टर दंपती की बेटी हैं। यकीनन, उनकी छवि एक निष्पक्ष और काबिल अफसर के रूप में होगी, तभी चुनाव आयोग ने किसी कलेक्टर को हटाने के बाद उन्हें मौका दिया।