राजपथ - जनपथ
नक्सल साथी एएसपी की खोज
गुजरे साल नवंबर के दूसरे सप्ताह में महाराष्ट्र पुलिस की नक्सल लड़ाई में माहिर सी-60 फोर्स की गोली से जान गंवाने वाले शीर्ष नक्सल नेता दीपक तिलतुमड़े और 26 साथियों की पुलिस से हुई मुठभेड़ का असल राज कानाफूसी के जरिए बाहर आ रहा है। नक्सल मोर्चे में कामयाबी के शिखर पर पहुंची गढ़चिरौली पुलिस सीसी मेंबर दीपक को मारकर वाहवाही बटोरने में लगी हुई है। घटना के करीब सवा दो माह बाद छत्तीसगढ़ पुलिस के अफसर सफलता का राज जाने के लिए जोर लगा रहे हैं। अफसरों को चौंकाने वाली सूचना में यह पता चला है कि मुठभेड़ में गढ़चिरौली पुलिस का एक एएसपी स्तर का अफसर बतौर नक्सली शामिल था। एएसपी को महाराष्ट्र पुलिस ने सुनियोजित तरीके से नक्सलियों के साथी बनाने के लिए एक बड़ा जोखिम लिया। नक्सलियों के साथ चलते इसी अफसर के जरिए दीपक के दल का लोकेशन पुलिस के हाथ लगा।
बताते हैं कि एएसपी ने नक्सलियों के राशन के थैलियों में एक ट्रैकर लगाया था। पुलिस ने इसी का फायदा उठाकर नक्सल दल की मौजूदगी के पुख्ता ठिकाने पर धावा बोल दिया। इस मुठभेड़ में गढ़चिरौली ने इतिहास रचते पहली बार किसी सीसी मेंबर को गोली से छलनी कर दिया। राजनांदगांव-गढ़चिरौली की सीमा पर ढ़ेर कर गढ़चिरौली पुलिस को शाबासी आज पर्यन्त मिल रही है। सुनते हैं कि इस सफलता का राज जानने के लिए केंद्र और राज्यों ने गढ़चिरौली पुलिस से कई बार संपर्क साधा लेकिन महाराष्ट्र के अफसरों ने गैरजरूरी सूचना देकर पूरे मुठभेड़ की असली कहानी को सामने नहीं आने दिया।
चर्चा है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के कुछ अफसरों ने महाराष्ट्र के पदस्थ अपने साथी बैचमेट से मालूम किया कि एएसपी स्तर के अफसर ने नक्सल सदस्य के तौर पर खुद को दल में शामिल किया था। हालांकि यह भी सच है कि महाराष्ट्र पुलिस ने घटना को लेकर पड़ोसी राज्यों तो दूर, केंद्र की इंटेलिजेंस को भी घास नहीं ड़ाली। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र , व तेलंगाना की खुफिया एजेंसियों ने कई बार वारदात से जुड़े मामलों पर सूचना देने की गुजारिश की। पड़ोसी राज्यों के डीजीपी व अन्य शीर्ष अफसरों को महाराष्ट्र के अधिकारियों ने समय नहीं होने का हवाला देकर भाव नहीं दिया।
राजनांदगांव के सीमा पर हुए इस घटना के तथ्यों को जानने के लिए पहुंचे छत्तीसगढ़ के मानपुर के एसडीओपी को तो मारे गए नक्सलियों की फोटो लेने और दस्तावेज को छूने से भी रोका गया। वैसे यह छत्तीसगढ़ पुलिस में दबे जुबां यह भी सुनाई देता है कि महाराष्ट्र पुलिस ने राजनांदगांव के परवीडीह में घुसकर सुस्ताते नक्सलियों पर अंधाधुंध फायरिंग की।
नहीं हुई नये जिलों की घोषणा
15 अगस्त, 26 जनवरी और राज्य स्थापना दिवस। ये खास ऐसे दिन होते हैं जब मुख्यमंत्री के उद्बोधन में लोग बड़ी घोषणाओं का इंतजार करते हैं। ऐसा इस बार भी हुआ, पर उन लोगों को बड़ी निराशा हुई जो नये जिलों की घोषणा होने की उम्मीद में थे। प्रदेश में अब 32 जिले बन चुके हैं। मुख्यमंत्री ने जीपीएम के बाद मनेंद्रगढ़, सारंगढ़-बिलाईगढ़ और मानपुर-मोहला को जिला बनाने की घोषणा कर चुके हैं। इसके बाद तो कई और जिलों की मांग उठने लगी। इनमें प्रतापपुर, वाड्रफनगर, पत्थलगांव, खैरागढ़, पंडरिया, सरायपाली, भानुप्रतापपुर, भाटापारा को अलग जिला बनाना, कटघोरा को कोरबा से अलग करना शामिल है। पर इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर इस पर कोई ऐलान नहीं हुआ। कटघोरा को जिला बनाने की मांग पर तभी से आंदोलन चल रहा है जब सीएम ने नये जिलों की घोषणा की थी। यहां लोग अधिवक्ता संघ के बैनर पर 160 दिन से धरना दे रहे हैं। इतना लंबा धरना प्रदर्शन कटघोरा में पहले कभी नहीं हुआ। इनका कहना है कि कटघोरा सबसे पुरानी तहसील है, उसे उसके गौरव के अनुरूप जिला बनाया जाना चाहिये। नये जिलों के बनने के बाद स्पीकर डॉ. चरणदास महंत ने भी हल्फे-फुल्के ही सही, कहा था कि प्रदेश में कम से कम चार और जिले बनने चाहिये। कटघोरा अभी कोरबा जिले में है, जहां की सभी विधानसभा सीटें इस बार कांग्रेस के पास है। कटघोरा विधानसभा सीट कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के खाते में आती रही है। इस लिहाज से भी कटघोरा के लोगों को नाराज नहीं रखा जा सकता। आने वाले दिनों में अपने हक में फैसला होने की उम्मीद यहां के लोग कर रहे हैं।
वैक्सीन कवच का दायरा बढ़ा
छत्तीसगढ़ में 70 प्रतिशत लोगों को दोनों डोज लग चुके हैं। मतलब 30 प्रतिशत लोगों को नहीं लगे हैं। कल ही स्वास्थ्य विभाग की एक ऑडिट रिपोर्ट आई जिसमें बताया गया था कि तीसरी लहर में 85 प्रतिशत मौतें ऐसे लोगों की हुई है जिन्होंने या तो वैक्सीन लगवाई नहीं, या फिर केवल एक डोज ही ली। जो 30 प्रतिशत लोग टीके से बचे रह गये हैं, उनमें केवल ग्रामीण और गरीब ही नहीं बल्कि ऐसे संपन्न परिवार के लोग भी हैं, जिन्हें सरकारी सेवाओं को लेने के लिये कतार में लगने से हिचक होती है। ऐसे लोगों को अब सुविधा मिल रही है। निजी अस्पताल अब कंपनी से सीधे वैक्सीन खरीद सकेंगे। लोग शुल्क देकर वैक्सीन लगवा सकेंगे। इन्हें कतार में नहीं लगना होगा और कोविड की सुरक्षा कवच भी मिल जायेगी। और अब तो रात में भी वैक्सीनेशन की सहूलियत दी जा रही है। दिनभर जो लोग काम की व्यवस्ता के चलते टीकाकरण कराने नहीं जा पाते, उन्हें सुविधा मिल गई है। उम्मीद करनी चाहिये कि वैक्सीनेशन से जो लोग बच गये हैं, उन्हें नई व्यवस्था रास आयेगी और प्रदेश में वैक्सीनेशन का प्रतिशत बढ़ेगा।