राजपथ - जनपथ
रेत की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं
भवन निर्माण की तकनीक में लगातार सुधार होते रहे हैं। पहले ज्यादा छड़ों का प्रयोग होता था अब इंजीनियर और आर्किटेक्ट इसका कम इस्तेमाल करते हैं। लाल ईंट की जगह फ्लाई ऐश ब्रिक्स की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि यह सस्ता है। इसमें सीमेंट भी कम लगता है।
रेत की अंधाधुंध खुदाई पर रोक लगाने की कोशिशों पर ढेर सारे राजनैतिक नजरिए के बीच एक आर्किटेक्ट प्रथमेश का कहना है कि हम भवन निर्माण में जरूरत से ज्यादा रेत इस्तेमाल करते हैं। एक मकान में जितनी रेत लगती है, उसका आधा हम अंदर-बाहर भराई में डाल देते हैं, जबकि यह् काम मुरूम, मलबा या स्टोन डस्ट से किया जा सकता है। ऐसा करने से लागत भी कम आएगी। कड़ाई से रोक लगा दें, तो रेत की जरूरत आधी रह जाएगी।
रेत पर कंट्रोल सिस्टम का भी एक सुझाव है। रजिस्टर्ड इंजीनियर लिख कर दें कि किसी भवन को बनाने कितनी रेत लगेगी, उस हिसाब से ही रेत की पर्ची जारी की जाए। प्राइवेट ही नहीं, सरकारी भवन और बिल्डर्स के निर्माण कार्य में रेत की बड़ी बर्बादी होती है। इन पर रोक लगे तो डिमांड कम होगी और उत्खनन भी कम होगा। चाहे वैध हो या अवैध।
मजदूरों के वेतन की खयानत
सरकारी काम लेने वाले ठेकेदारों के लिए जरूरी होता है कि वे एक निर्धारित वेतन अपने मजदूरों और कर्मचारियों को दें। केंद्र सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को बैंक अकाउंट में वेतन डालने का निर्देश इसीलिए दिया है ताकि मजदूरों को उनके हक का पूरा पैसा मिले, ठेकेदार या मैनेजर उनका हिस्सा न खा जाएं। पर, जहां नियम हैं, वहां तोड़ भी।
बीते तीन साल से भिलाई स्टील प्लांट में एक ठेकेदार के नीचे काम कर रहे कई श्रमिकों को अचानक हटा दिया गया। मजदूरों ने वजह यह बताई कि खाते में वेतन आने के बाद ठेकेदार का आदमी उनसे दो से तीन हजार रुपए वापस करने के लिए कहता था। कभी कभी उन्होंने दो-तीन हजार दिए भी, पर मेहनत की कमाई से हर बार हिस्सा देना उनको मंजूर नहीं था। अब ये निकाले गए मजदूर बीएसपी के एक ऑफिस से दूसरे में चक्कर लगा रहे हैं। यूनियन से भी शिकायत कर चुके हैं, पर उनको वापस नहीं रखा गया है। राज्य सरकार के अधीन चलने वाले निर्माण कार्यों के मजदूरों के लिए भी इसी तरह से बैंक के जरिए भुगतान करने और उनका पीएफ अकाउंट खोलने एक नियम है, पर कुछ बड़े ठेका कंपनियों के अलावा कहीं भी इसका पालन नहीं होता है।