राजपथ - जनपथ
आरआर और प्रमोटी में तुलना
साल 2011 में नक्सलियों से भिडऩे के लिए आरक्षकों को वन टाइम प्रमोशन नीति से सीधे सब इंस्पेक्टर पदोन्नत हुए राज्य के 112 अफसरों में ज्यादातर निरीक्षक होकर नक्सल और मैदानी इलाकों में डटे हुए हैं। सेवा शर्तों में 10 साल के लिए माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में तैनाती की चुनौती को स्वीकार कर इनमें कुछ ने नक्सलियों को ढेर किया। नक्सल समस्या के घटते दायरे के लिए वन टाईम प्रमोशन के उपनिरीक्षकों को नक्सल शव हाथ लगने पर बहादुरी के लिए वीरता पदक के साथ आउट ऑफ प्रमोशन (ओटी) से पदोन्नत होकर निरीक्षक का ओहदा दिया गया। अब महकमे के भीतर इन अफसरों की काबिलियत को परखने के बजाए सीधी भर्ती से उपनिरीक्षक और प्रमोशन से निरीक्षक बने अफसर आरआर और प्रमोटी जैसे शब्दों का उपयोग कर रहे हैं। वन टाईम के अफसर को लेकर पुलिस विभाग में कानाफूसी और टीका-टिप्पणी आम बात हो गई है। 2011 में सरकार ने विशेष परीक्षा के जरिए 112 आरक्षकों के कंधे पर दो स्टार लगाकर ट्रेनिंग दी। इनमें कुछ आरक्षकों ने कठिन ट्रेनिंग होने और दीगर सेवा में जाने प्रशिक्षण छोड़ दिया। इस तरह प्रशिक्षण के बाद 95 को बस्तर में नक्सलियों से लडऩे के लिए भेजा गया। तैनाती के दौरान वन टाईम प्रमोशन के उपनिरीक्षक निलेश पांडे और पुष्पराज चंद्रवंशी को शहादत मिली। वहीं तीन ने अलग-अलग वजहों से दुनिया छोड़ दी। बताते हैं कि मौजूदा समय में 90 अफसरों में ज्यादातर निरीक्षक बन गए हैं। प्रमोशन से निरीक्षक बने अफसरों के लिए सीधी भर्ती के निरीक्षकों की ब्यूरोक्रेट्स की तर्ज पर आरआर और प्रमोटी या वन टाईम के आधार पर तुलना हो रही है। यह भी सच है कि वन टाईम के अफसरों को अब तक बैच भी अलॉट नहीं किया गया है। उपनिरीक्षक-निरीक्षक के मध्य बढ़ता तुलनात्मक नजरिया ऐसे अफसरों में मायूसी बढ़ा रहा है।
गांधीजी का चश्मा...
चश्मा बार-बार राजनीतिक मुद्दा बन जाता है। केंद्र की मोदी सरकार ने जब स्वच्छता अभियान शुरू किया तब प्रतीक के रूप में गांधी जी के चश्मे का इस्तेमाल शुरू किया गया। तब लोगों ने सवाल उठाया कि मोदी जी को बापू का सिर्फ चश्मा उनका केवल एक संदेश स्वच्छता का ही ध्यान आया, उनकी बाकी बातों से प्रेरणा क्यों नहीं ली जाती?
कांग्रेस ने बीते विधानसभा चुनाव में रमन का चश्मा नाम से एक पैरोडी गीत बनाया जिसका वीडियो भी खूब चला। इसने कांग्रेस की तरफ मतदाताओं का रुख मोडऩे में बड़ी भूमिका निभाई। अब गांधी जी के चश्मे पर छत्तीसगढ़ भाजपा का ध्यान गया है। नया रायपुर में मंत्रालय के सामने लगी प्रतिमा में गांधीजी की आंखों पर चश्मा नहीं लगा। छत्तीसगढ़ भाजपा ने इस पर ट्वीट करते हुए कहा कि भूपेश जी ने क्या इसलिए बापू का चश्मा गायब करा दिया ताकि वह छत्तीसगढ़ की बदहाली ना देखें। प्रतिक्रिया में कांग्रेस नेता आरपी सिंह ने कहा कि जहां-जहां बापू की मूर्ति ध्यान मुद्रा में है, वह बिना चश्मे की ही है। संसद भवन में भी बिना चश्मे की ही मूर्ति लगी है तो क्या इसलिए कि देश की बदहाली ही ना देख सके। उन्होंने सवाल उठाने वालों को अनपढ़ और जाहिल मित्र तक बता दिया। बरहाल, गांधीजी भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंता में है। गांधी पर सियासत पूरी है, बस अमल में कमी रह गई है।
नदी ही नहीं जमीन पर भी अंधाधुंध खुदाई..
नदियों को अवैध रेत उत्खनन से नुकसान तो हो रहा है, जगह-जगह खनिज विभाग जिस तरह से मिट्टी और मुरूम की खुदाई के लिए आंख मूंदकर मंजूरी दे रहा है उससे भी बड़ी क्षति होती है। आमतौर पर बड़ी परियोजनाओं के ठेकेदारों के आगे प्रशासन और ज्यादा खामोशी बरत लेता है। गेवरा से पेंड्रारोड रेल कॉरिडोर के निर्माण कार्य में किसानों के बीच अपनी निजी भूमि को मिट्टी और मुरूम खुदाई के लिए देने की होड़ लग गई। ठेकेदार ने राजस्व भूमि और वन भूमि पर भी खुदाई शुरू कर दी। कटघोरा के पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के कई गांवों में अंधाधुंध मुरूम और मिट्टी की खुदाई के कारण पलाश, महुआ, सेमल के बड़े-बड़े पेड़ धराशायी कर दिये गये हैं। बहतराई ग्राम में विद्युत विभाग का 11,000 किलो वाट का टावर भी खतरे में है। राजस्व विभाग का कहना है कि उनके पास पेड़ों के नुकसान और सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचने की कोई खबर नहीं है। खनिज विभाग कहता है कि इसे रोकना प्रशासन का काम है। हमने तो खनन की अनुमति दे दी है। वन विभाग का कहना है यह वनभूमि में नहीं हो रहा है। यानि अपनी जवाबदारी सब एक दूसरे पर डाल रहे हैं।
सेनानी का 108 साल पुराना कंकाल
छत्तीसगढ़ में आमतौर पर स्कूलों में विज्ञान के छात्रों के पढ़ाई के लिए कंकाल की जरूरत नहीं है। मगर कुसमी ब्लाक के राजेंद्रपुर गांव के मल्टीपर्पस स्कूल में एक कंकाल का अवशेष कौतूहल पैदा करता है। इसे बीते 108 सालों से प्रिजर्व करके रखा गया है। यह कंकाल किसी साधारण व्यक्ति की नहीं, बल्कि अंग्रेजों से लोहा लेने वाले सेनानी की है। जिनका नाम लागुड़ बिगुड नगेसिया था। नगेसिया ने सन् 1913 में झारखंड में हुए टाना भगत आंदोलन में भाग लिया था। टाना भगत जी एक सेनानी थे जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था अंग्रेजों ने उसकी हत्या कर दी। इसके विरोध में झारखंड में बड़ा आंदोलन हुआ जिसमें कहा जाता है कि अंग्रेज सैनिकों ने लागुड़ बिगुड नगेसिया और उसके एक साथी को खौलते तेल में डुबा कर मार डाला। मौत के बाद उनके कंकाल को स्कूल में सुरक्षित रखा गया। तब यह अंग्रेजों का एडवर्ड स्कूल था और इस समय मल्टीपरपज स्कूल है।
उनके परिजन अब इस कंकाल को वापस चाहते हैं। उनका कहना है कि अब इस कंकाल के कई हिस्से नष्ट हो चुके हैं। वैसे भी यहां छात्रों की पढ़ाई में इसकी जरूरत नहीं पड़ती। देखना होगा प्रशासन इस पर क्या निर्णय लेता है।