राजपथ - जनपथ
हिंदी की जगह पर अंग्रेजी स्कूलों का विरोध
स्वामी आत्मानंद स्कूलों के नामकरण और इनमें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई के फैसले को लेकर कई जगह विवाद खड़ा हो रहा है। बीते दिसंबर महीने में रायगढ़ के सबसे पुराने व बड़े कूल सेठ किरोड़ीमल नटवर हायर सेकेंडरी स्कूल के बाहर स्वामी आत्मानंद स्कूल का बोर्ड देखकर नागरिकों में रोष फैल गया। एक सर्वदलीय समिति बन गई। प्रशासन ने आखिरकार नागरिकों के दबाव में तय किया कि स्कूल का नाम वही पुराना रहेगा। बदला गया बोर्ड हटाया गया और स्कूल के पुराने नाम के नीचे लिखा गया, स्वामी आत्मानंद योजना के तहत संचालित स्कूल। इधर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में भी इसी बात को लेकर विरोध शुरू हुआ है। पेंड्रा में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दुबे के नाम पर हायर सेकेंडरी स्कूल है। इस स्कूल के सैकड़ों बच्चे 5 किलोमीटर पैदल मार्च कर छुट्टी के दिन प्रदर्शन करने कलेक्टोरेट पहुंच गये। इन्हें एक तो स्कूल का नाम बदलने पर ऐतराज था, फिर आशंका थी कि स्कूल में हो रही साज-सज्जा, लैब, फर्नीचर के बाद उनकी फीस बढ़ जायेगी जो गरीब पालक भर नहीं पायेंगे। इस मामले में भी कलेक्टर और डीईओ को सफाई देनी पड़ी कि न तो नाम बदलेगा, न ही फीस बढ़ेगी, बल्कि गणवेश, किताबें मुफ्त ही मिलेगी।
प्रदेश के कई शहरों में अंग्रेजी स्कूलों को खोलने के लिये पहले से संचालित हिंदी माध्यम स्कूल बंद किये जा रहे हैं, जिसको लेकर प्रदर्शन भी हो रहे हैं। सरगुजा के बतौली, मैनपाट इलाके में स्वामी आत्मानंद योजना के लिये चयनित स्कूलों के विरोध में तो हाईकोर्ट में ही याचिका लगा दी गई है। इसमें कहा गया है कि उत्कृष्ट विद्यालय बनने से इस आदिवासी अंचल के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को पढऩे के लिये स्कूल नहीं मिलेगा। ज्यादातर लोग विशेष सरंक्षित पडों, पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग हैं। याचिका में कहा गया है कि पहली, छठवीं और नवमीं में प्रवेश लेने से उन्हें रोका जा रहा है। घरघोड़ा, सरायपाली, जशपुर से भी हिंदी माध्यम स्कूलों को बचाने के लिये अलग-अलग याचिकायें हाईकोर्ट में लगी हुई हैं।
ज्यादातर विरोध कई शंकाओं का समाधान नहीं होने की वजह से हो रहा है। रायगढ़ और जीपीएम जिले में जो परिस्थितियां पैदा हुईं, उससे निपटने के लिये अधिकारी तब सामने आये जब नागरिक और छात्र सडक़ पर उतरे। कोर्ट में जो मामले गये हैं, शायद उनमें भी कोई कोशिश नहीं हुई। योजना नई है, इसलिये लोगों की चिंता जायज है।
सवाल विलोपित अधिनियम का..
रविवार को व्वायवसायिक परीक्षा मंडल ने फूड इंस्पेक्टर पदों के लिये परीक्षा ली थी। 200 अंकों का एक ही प्रश्न-पत्र था। कुछ ऐसे अभ्यर्थी थे जिन्होंने इसके एक सप्ताह पहले सीजीपीएससी परीक्षा भी दी थी। उसके मुकाबले यह प्रश्न-पत्र कुछ सरल था। पर, शिकायत इसमें भी थी। संयुक्त मध्यप्रदेश के समय खाद्य अधिनियम में सन् 1992 में संशोधन किया जा चुका है। खाद्य विभाग इन्हीं अधिनियमों के तहत कार्रवाई करता है लेकिन प्रश्न विलोपित किये जा चुके 1986 के खाद्य अधिनियम से संबंधित पूछे गये, जिसकी तैयारी छात्रों ने की ही नहीं थी। उन्हें लगा पुराने अधिनियमों की जानकारी रखकर वे क्या करेंगे, जो लागू है उसी को रटें। अब इस पर परीक्षार्थी अपनी आपत्ति मंडल के सामने दर्ज कराने वाले हैं।
बलांगीर के कद्दू
वैसे तो छत्तीसगढ़ में भी कद्दू की भरपूर पैदावार होती है, पर इसकी खपत भी खूब है। इस समय बलांगीर ओडिशा से खेप के खेप कद्दू राजधानी रायपुर पहुंच रहे हैं। ये जो कद्दू आये हैं उसका उत्पादन और विपणन का काम महिलाओं का समूह- महाशक्ति कर रहा है, जिसे नाबार्ड से भी मदद मिली है।
कोरबा के विस्थापितों को नौकरी नहीं..
हाल ही में एक मामला हाईकोर्ट में आया था, जिसमें प्रस्तावित प्रोजेक्ट से मिट्टी निकालने का 250 करोड़ रुपये का ठेका तो एसईसीएल ने निकाल दिया लेकिन मौके पर पूरा गांव बसा हुआ था। फैसला ठेकेदार के पक्ष में हुआ, उनको ब्लैक लिस्ट से हटाना पड़ा। कोरबा जिले के कुंसमुंडा, दीपका और गेवरा में नई परियोजनाओं को शुरू करने में एसईसीएल को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। नये प्रोजेक्ट के लिये जमीन आबंटित होने के बावजूद लोग उसे खाली नहीं कर रहे हैं। जिन लोगों ने पुरानी परियोजनाओं में जमीन दी, वे भी आये दिन आंदोलन कर रहे हैं। हालत यह है कि सन् 1990 में जमीन देने वालों को भी नौकरी नहीं मिली। इनमें से कई लोगों की मौत हो चुकी। अब उनके वारिस लड़ाई लड़ रहे हैं। एसईसीएल का कहना है कि ऐसा प्रावधान नहीं है। प्राय: जिन मुद्दों पर कोई रास्ता नहीं निकालते बनता कंपनी उसे कोल इंडिया का नीतिगत मामला कहकर टालती है। अब एसईसीएल प्रबंधन ने प्रशासन के दबाव में कोल इंडिया को इस नीति में बदलाव का प्रस्ताव भेजने के लिये सहमत हुआ है। पर, यह नहीं लगता कि कोल इंडिया से बहुत जल्दी कोई जवाब आयेगा। इसी के चलते आंदोलन चल रहा है। नई परियोजना शुरू नहीं कर पाने के कारण एसईसीएल के उत्पादन कमी आई है, जिसके चलते छोटे उद्योगों को आपूर्ति घटाई गई है। हाल ही में इसके विरोध में एसईसीएल मुख्यालय के सामने प्रदर्शन भी हुआ था।