राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : धर्म की लाँड्री की सहूलियत
24-Mar-2022 6:27 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : धर्म की लाँड्री की सहूलियत

धर्म की लाँड्री की सहूलियत

धर्म की बातें बड़ी दिलचस्प रहती हैं। कल ही किसी एक जानकार से सुनने मिला कि इराक में जब गृहयुद्ध चल रहा था, तो वहां कुर्द लड़ाकों में महिलाएं भी शामिल थीं। और उनके खिलाफ खड़े हुए आतंकी संगठनों के लोग इस मोर्चे से बचना चाहते थे क्योंकि उनकी धार्मिक सोच यह कहती थी कि किसी महिला के हाथों मारे जाने पर जन्नत नहीं मिलेगी। दूसरी तरफ तमाम किस्म के जुर्म करके ऊपर जाने वाले लोगों को जन्नत में 72 हूरों की उम्मीद रहती है, और शायद उनके कुंवारी होने की मान्यता भी है।

ईसाई धर्म में चर्च में कन्फेशन चेंबर का इंतजाम रहता है जिसमें चेहरा दिखाए बिना एक हिस्से में बैठे लोग, दूसरे हिस्से में बैठे पादरी से अपने पाप गिना सकते हैं, और यह माना जाता है कि ऐसे प्रायश्चित के बाद वे पापमुक्त हो जाते हैं। कुल मिलाकर धर्म लोगों की आत्मा को गंदगी के दाग छुड़वाने के लिए एक लॉंड्री मुहैया कराता है, जिससे लोग नए उत्साह से अगले पाप करने में जुट जाएं।

दूसरी तरफ आज हिन्दुस्तान में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है, और उसे मनाया जा रहा है। इस एकादशी के बारे में हिन्दू धर्मालुओं में यह मान्यता है कि इसका व्रत रखने पर लोग सारे पापों से, ब्रम्हहत्या जैसे पाप से भी मुक्त हो जाते हैं। इसलिए साल में एक दिन आज व्रत रखकर बाकी पूरे साल पाप करने की आजादी मिल जाती है क्योंकि एक बरस बाद फिर ऐसी सहूलियत वाली एकादशी आएगी ही आएगी। हिन्दू धर्म कहता है कि हर वर्ष 24 एकादशी होती हैं, और जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढक़र 26 हो जाती है। धार्मिक मान्यता कहती है कि ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है, अगर पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाए। इस व्रत के तहत साल भर के पाप से मुक्त होने के लिए कुल इतना करना है कि एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें, इसके बाद विष्णु की पूजा करें, फिर भगवान की कथा पढ़ें या सुनें, अगले दिन विष्णु की पूजा करें, और ब्राम्हणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित बिदा करें।

अब इस व्रत में ईश्वर को जो हासिल होता है वह तो पता नहीं, व्रत करने वाले को पापों से मुक्ति मिलने की गारंटी बताई गई है, और जिसे इस व्रत से कुछ ठोस हासिल होता है, वह भोजन और दक्षिणा पाने वाले ब्राम्हण हैं। आगे आप खुद समझदार हैं...

जनता कांग्रेस की खैरागढ़ में तैयारी

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) से विधायक प्रमोद शर्मा और स्व. देवव्रत सिंह ने मरवाही विधानसभा उप-चुनाव में पार्टी लाइन के बाहर जाकर काम किया था। वे जेसीसी (जे) के उस फैसले के खिलाफ थे, जिसमें कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा को समर्थन दिया गया था। दोनों ने कह दिया कि हम परंपरागत कांग्रेसी हैं, भाजपा के साथ कभी नहीं जा सकते। दोनों विधायकों की कांग्रेस में आने की लगभग तैयारी थी किंतु कुछ तकनीकी अड़चन आ रही थी। अब वह अध्याय लगता है बंद हो गया। शर्मा के मामले में यह भी हुआ कि बीते साल सितंबर महीने में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई थी। इधर कांग्रेस का आरोप था कि स्थानीय चुनावों में शर्मा का साथ नहीं मिला। फिलहाल, विधायक प्रमोद शर्मा लंबे समय के बाद अपनी पार्टी की बैठक में शामिल हुए और उन्होंने खैरागढ़ चुनाव में जेसीसी (जे) की तैयारी के बारे में पत्रकारों को बताया। कांग्रेस में लौटने की संभावना हो सकता है आगे बनी रहे पर खैरागढ़ उप-चुनाव के लिये तो उन्होंने ऐलान कर दिया है कि वे जेसीसी (जे) को जिताने के लिये पूरी ताकत लगा देंगे।

बदलाव, फिर चुनावी नारा...

सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस का नारा ‘वक्त है बदलाव का’ एक बड़ी वजह थी कि भाजपा सरकार को लोगों ने बदलने की ठान ली। इस नारे का असर छत्तीसगढ़ में पैर जमाने की कोशिश कर रही, आम आदमी पार्टी पर देखने को मिला, जब उसने ‘बदलबो छत्तीसगढ़’ नारा दिया। यह उनके रायपुर दफ्तर और बाकी कार्यालयों के पोस्टरों में दिखने लगा है। प्रभारी गोपाल राय के मुताबिक पंजाब विधानसभा के नतीजों के बाद सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में लोग ‘आप’ से जुडऩे की इच्छा जता रहे हैं। छत्तीसगढ़ में ‘जब वक्त है बदलाव का’ नारा चला तब भाजपा को सत्ता में आए 15 साल हो चुके थे। 2018 चुनाव में ‘आप’ ने 5 को छोडक़र सारी सीटों पर चुनाव लड़ा, तब दिल्ली में सरकार थी। उस वक्त छत्तीसगढ़ में उसे नोटा से भी कम वोट मिल पाये थे। अब देखना होगा कि पंजाब के नतीजों के संदर्भ में क्या केवल एक कार्यकाल वाली कांग्रेस को उसी के मिलते-जुलते नारे से हटाया जा सकेगा।

तेंदूपत्ता की घटती मांग, नई समस्या

तेंदूपत्ता पर समर्थन मूल्य बढ़ाकर 2500 रुपये से 4000 रुपये करने का फैसला आदिवासियों के हाथ में नगदी पहुंचाने के लिहाज से तो अच्छा है पर देशभर में इसकी मांग में गिरावट आ रही है, और सरकार के खाते पर एक बोझ और पडऩे जा रहा है। 

उदाहरण के लिये यूपी में लॉकडाउन के दौरान जब रोजगार की कमी हो गई तो पर्वतीय वन क्षेत्रों में तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य ने काफी राहत दी थी। हालांकि सरकार ने घाटे पर व्यापारियों को बेचना न पड़े, इसलिये दर काफी कम रखी। राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में कई पर्वतीय गांव हैं, जहां तेंदूपत्ता की तोड़ाई की जाती है। फसल ठीक नहीं होने के कारण वहां पेड़ों पर सूख रहे हैं। ठेकेदार इसकी खरीदी में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। मध्यप्रदेश में लगभग 9 लाख आदिवासी श्रमिक तेंदूपत्ता संग्रहित करते हैं। पर साल दर साल आ रही बिक्री में गिरावट के कारण उनकी भी आमदनी घट रही है। पिछले सालों का लाखों मानक बोरा तेंदूपत्ता अब तक नहीं निकला है। इसे बेचने लिए कई बार लघु वनोपज संघ ने निविदा भी निकाली। यहां तो अब लघु वनोपज संघ यह सर्वे करा रहा है कि तेंदूपत्ता के साथ इस्तेमाल किए जाने वाले तंबाकू को भी क्या उत्पादन से जोड़ देना ठीक रहेगा? व्यापारी तेंदूपत्ता के साथ-साथ तंबाकू भी खरीदने के लिए आगे आएंगे। केवल बीड़ी और सिगरेट में नहीं बल्कि गुटखा में भी खपत हो जायेगी।

इधर, छत्तीसगढ़ में दूसरी व्यवस्था है। बिक्री घटने का छत्तीसगढ़ में संग्राहक आदिवासियों को कोई नुकसान नहीं है। बल्कि समर्थन मूल्य बढ़ाने का फायदा ही है। यहां वनोपज संघ से उन्हें गड्डियों, मानक बोरा की कीमत मिल जाती है, जिसे 4000 रुपये तक कर दिया गया है। फिर संघ के जिम्मे है कि वह इसकी बिक्री कहां किस तरह से करती है। बस्तर की बात करें तो यहां आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव व रायपुर से व्यापारी आकर खरीदारी करते हैं। इन व्यापारियों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों से बीड़ी पीने वालों की संख्या घट रही है, जिसे तैयार करने में तेंदूपत्ता काम आता है। नई पीढ़ी सिगरेट और गुटखा की तरफ जा रही है। बस्तर सर्किल की बात करें तो बीजापुर के तेंदूपत्ता की तो अग्रिम बुकिंग हो चुकी, पर बाकी डिवीजन और रेंज में आधा उठाने के लिये भी करार नहीं हुआ है। सत्र बीतने के बाद पता चलेगा कि कितना तेंदूपत्ता नहीं बिक पाया और गोदामों में रह गया। कहीं धान की तरह तेंदूपत्ता की स्थिति भी न हो जाये।

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