राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक टोली का बाहुबल हो तो फिर...
27-Mar-2022 6:19 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक टोली का बाहुबल हो तो फिर...

एक टोली का बाहुबल हो तो फिर...

जहां आम नागरिक अपने अधिकारों को लेकर लापरवाह रहते हैं वहां पर सार्वजनिक जगहों पर कोई भी कब्जा कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ऐतिहासिक सप्रे स्कूल मैदान को म्युनिसिपल ने काट-काटकर उसका बेजा इस्तेमाल किया, और इस शहर के लोग खामोश रहे। नतीजा यह है कि जहां खेल होता था, वहां आज आसपास के करोड़पतियों की कारें खड़े रहने की पार्किंग बन गई है।

शहर के अनुपम उद्यान में सुबह जाएं तो वहां लोगों का एक समूह बड़े-बड़े स्पीकर लगाकर माईक हाथ में लिए हुए फटी आवाज में तरह-तरह के गाने गाते दिखता है, और जब गाने वाले ही थक जाएं तो मोबाइल फोन से उसे जोडक़र मनचाहा गाना बजाया जाता है। चूंकि बगीचे में घूमने वाले लोग किसी भी समूह से उलझने से बचते हैं, इसलिए ये लोग वहां लाउडस्पीकर लगाकर मनचाही बातें बोल सकते हैं। म्युनिसिपल के लोगों को कंस्ट्रक्शन पर खर्च करने से अधिक किसी बात पर दिलचस्पी नहीं रहती, इसलिए उसके बगीचों का लोग मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस जगह कुछ लोग शांति से बैठकर योग-ध्यान करते दिखते हैं, वहां यह एक समूह लाउडस्पीकर लगाकर कर्कश आवाज में गाता बजाता रहता है। कोई पार्षद, महापौर, या अफसर जाकर कुछ देर इन्हें बर्दाश्त करके देखे।

अब हाथी हमारे और आसपास मिलेंगे

पर्यावरण, जैव विविधता, आदिवासियों के विस्थापन जैसी अनेक चिंताओं के बावजूद आखिरकार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हसदेव अरण्य में नई कोयला खदानों की अनुमति छत्तीसगढ़ सरकार से हासिल करने में सफल रहे। उन्होंने पिछले कई महीनों से केंद्र के अलावा कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के जरिये दबाव बना रखा था। राज्य सरकार के अनुमति पत्र में जिला कलेक्टर और वन मंडलाधिकारी को नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिये जरूर कहा गया है, पर माना जाये कि यह पत्र की औपचारिक भाषा ही है।

सरकार के इस फैसले का प्रभावित आदिवासी गांवों की ओर से प्रतिक्रिया आना बाकी है, पर लेमरू एलिफेंट रिजर्व की बातें होने के बावजूद इसके नहीं बनने पर हाथियों की प्रतिक्रियाएं तो लगातार दिखाई दे रही हैं। सरगुजा, धरमजयगढ़, कोरबा, कटघोरा, मरवाही, पसान से लेकर अब तो ये हाथी अब अचानकमार टाइगर रिजर्व तक आकर भटक रहे हैं। अब पैदा हुई नई परिस्थिति में लेमरू एलिफेंट रिजर्व की संभावना बेहद धूमिल हो चुकी है। देखना होगा कि हाथियों के लिये कोई नई जगह तलाशी जायेगी या फिर लेमरू में ही हाथी रिजर्व एरिया तैयार करने कोई अध्ययन होगा। वैसे भी लेमरू एलिफेंट रिजर्व की बातें 12-15 साल से हो रही हैं, लेकिन आकार नहीं ले पाया। कोई नई प्लानिंग यदि बनाई गई तो वह कितने दिनों, वर्षों में धरातल पर दिखेगा..., आज कोई कहने की स्थिति में नहीं है। आने वाले दिनों में हाथियों के भटकने का क्षेत्र और उनकी संख्या दोनों ही बढ़ी हुई दिखे तो कोई ताज्जुब नहीं।

कमीशन के लिये ही फंड निकाला?

छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या के हिसाब से 10 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक की राशि शाला विकास के नाम पर जारी की गई हैं। सरगुजा और जशपुर जिले के स्कूलों में भी आठ दस दिन के भीतर रकम पहुंची है। अकेले सरगुजा जिले के लगभग 2 हजार स्कूलों के लिये तीन करोड़ रुपये से अधिक राशि जारी की गई है।

इस राशि का इंतजार स्कूल के प्राचार्यों को सत्र के आरंभ से रहता है, ताकि वे स्कूल, स्कूल फर्नीचर की मरम्मत करा सकें, दीवारों पर रंग रोगन करा सकें, खेल सामग्री खरीद लें। लेकिन यह रकम पहुंची है अब, जब वित्तीय वर्ष के साथ-साथ पढ़ाई का सत्र भी खत्म हो चुका है और परीक्षायें शुरू हो चुकी हैं। यह राशि अगले सत्र के लिये बचाकर भी नहीं रखी जा सकती, क्योंकि 31 मार्च तक जो राशि बची रहेगी, वह लैप्स हो जायेगी।

कुछ स्कूलों में तो नियम से खर्च कर किसी तरह से थोड़े काम हो भी जा रहे हैं, पर अधिकांश में कमीशन दो बिल जमा कर लो, यही हो रहा है।

इसी महीने वित्त विभाग ने 5 मार्च के आसपास सभी विभागों को निर्देश दिया था कि बची हुई राशि को बेकार खर्च नहीं करना है, वापस लौटा दें। जिला कोषालयों को इस बारे में निर्देश दिये गये थे। पर स्कूलों में हफ्ते दस दिन के भीतर खर्च करने के लिये करोड़ों रुपये जारी करने का मकसद क्या हो सकता है, यह समग्र शिक्षा का काम देख रहे राजधानी के अफसर बता सकते हैं। पहली नजर में तो यह भ्रष्टाचार और कमीशन के लिए अनुकूल रास्ता देना ही नजर आ रहा है।

नन्हा किंतु जहरीला सांप

आमतौर पर सांपों के बारे में जानकारी नहीं होने के कारण लोग उसे भगाने की जगह मारने की कोशिश करते हैं खासकर बड़े आकार के सांपों को। इनमें किंग कोबरा, इंडियन क्रेट, इंडियन कोबरा, रसैल वाईपर आदि भारत में मिलने वाले जहरीले सांप है। पर विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकांश सांप जहरीले नहीं होते। वे यह भी कहते हैं कि सांप को मारे नहीं, न ही खुद पकडऩे की कोशिश करें, रेस्क्यू के लिये वन विभाग या एनजीओ को सूचना दें, कोई न हो तो पुलिस को ही बता दें। कटघोरा के छुरी नगर पंचायत के एक पार्षद के घर में सांप निकला। आकार में बेहद छोटा होने के कारण उन्हें नहीं लगा कि यह जहरीला हो सकता है। फिर भी उन्होंने रेस्क्यू के लिये कॉल किया। वन विभाग ने पिछले 20 सालों से सांपों का रेस्क्यू कर रहे अविनाश यादव की मदद ली और उसे सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया।

दावा यह किया जा रहा है कि यह अफई या फुरसा सांप है, जो छत्तीसगढ़ में कभी देखा नहीं गया। यादव का कहना है कि सालों से इस फील्ड में काम करते हुए कभी उन्होंने इसे नहीं देखा। जैव विविधता के लिये यह अच्छा है कि किसी नई प्रजाति का सांप कोरबा इलाके में पाया गया। इस सांप की अधिकतम लंबाई करीब 0.55 मीटर होती है। पर, बेहद जहरीला है। कुछ घंटों में ही मौत की नींद सुला सकती है।

मध्य एशिया के कई भागों में या मिलता है ।भारत के महाराष्ट्र के कोकण और रत्नागिरी इलाके में तथा इराक में भी पाया जाता है। राजस्थान के रेगिस्तान में रात के समय इसे चलते देखा गया है।

विविध प्रजातियों के सांप के लिये जशपुर जिले का फरसाबहार बहुत सालों से चर्चा में है। कुछ साल पहले कोरबा के पसान इलाके में तो 12 फीट का उडऩे वाला सांप देखने का दावा कुछ लोगों ने किया, पर इसकी पुष्टि कभी नहीं हुई।  

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