राजपथ - जनपथ
आदिवासी रीति-रिवाज, विवाद
आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग अपने आपको हिंदुओं से अलग समझता है। इनका मानना है कि वे अलग रीति-रिवाज का पालन करते हैं, जो हिंदू देवी देवताओं से जुड़े नहीं है। इसी मान्यता के चलते सुकमा जिले में एक विवाद खड़ा हो गया।
पूरे राज्य में छत्तीसगढ़ सरकार रामायण पाठ प्रतियोगिता करा रही है। रामायण मंडलियों के बीच पंचायतों के बीच होने वाली इन स्पर्धाओं में भाग लेने वाली टीमों को पुरस्कृत भी किया जाना है। राज्य सरकार का सर्कुलर सभी जिलों के लिए एक समान था। सुकमा जिले में भी जनपद पंचायतों की तरफ से रामायण प्रतियोगिताओं के लिए परिपत्र निकाल दिया गया। छिंदगढ़ ब्लॉक में 29 और 30 मार्च से यह शुरू होने वाली थी, सर्व आदिवासी समाज के विरोध के कारण स्थगित करनी पड़ गई। समाज के लोगों ने सीधे राज्यपाल से शिकायत की थी। उनका कहना है कि संविधान की धारा 244 (1) के तहत पांचवी अनुसूची में आदिवासी रीति-रिवाजों के उल्लंघन को रोकने और मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने का हवाला दिया गया है। ऐसे में यदि क्षेत्र में कोई धार्मिक कार्यक्रम रखा जाता है तो वह यहां की सामाजिक मान्यताओं के अनुसार होनी चाहिए।
फिलहाल छिंदगढ़ में तो प्रतियोगिता स्थगित कर दी गई है। पर एक सवाल उठता है कि सीधे-सीधे ऐसी प्रतियोगिताओं के आयोजन में सरकारी महकमे को व्यस्त करने की जगह ज्यादा अच्छा यह ना होगा कि धार्मिक सांस्कृतिक समितियां आयोजन करें। भले ही सरकार उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप आर्थिक या दूसरी सहायता पहुंचाए।
175 किलोमीटर की साइकिल यात्रा
केशकाल के 12 छात्र राज्यपाल से मिलने के लिए राजधानी रायपुर की 175 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करने निकले तो रास्ते में उन्हें कई जगह पुलिस और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने रोका। कांकेर में धूप और गर्मी का हवाला देकर छात्रों को लौट जाने और उनकी मांग सरकार तक पहुंचाने का आश्वासन दिया गया। मगर छात्र नहीं माने और आखिरकार रायपुर पहुंच ही गए। राज्यपाल से मिलने का वक्त उन्होंने पहले लिया नहीं था। शायद उन्हें प्रक्रिया मालूम नहीं थी। राज्यपाल को पता चला तो उन्होंने भीतर बुला लिया और आश्वासन दिया।
इन छात्रों की मांग है केशकाल में 1962 से संचालित बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को बंद नहीं किया जाए। अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूल से उन्हें कोई आपत्ति नहीं पर उसके लिए कोई दूसरी जगह तय की जाए।
उत्कृष्ट शिक्षा के एक अभिनव प्रयोग स्वामी आत्मानंद स्कूल योजना को लेकर प्रदेश के कई जिलों से इस तरह के विरोध की खबरें आ रही है। बच्चों को आश्वस्त नहीं किया जा रहा है कि वे जिस माध्यम से और जिस स्कूल में पढ़ते आ रहे हैं उसमें कोई व्यवधान डाला नहीं जाएगा। सरकार यह दावा कर रही है पर छात्रों को भरोसा हो इसके लिए जरूरी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
जशपुर की नई पहचान
जशपुर की जलवायु छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों से कुछ अलग है। कई दशकों से टाऊ, आलू और टमाटर के लिए यह प्रसिद्ध है। पर 10-12 सालों में काजू की खेती ने भी लोगों को आकर्षित किया है। वन विभाग ने 90 के दशक में प्रयोग के तौर पर काजू की खेती शुरू की थी। बाद में उद्यानिकी विभाग ने भी किसानों को प्रोत्साहित करना शुरू किया। झिझकते हुए किसानों ने फसल लेनी शुरू की। और अभी स्थिति यह है कि करीब 8000 परिवार काजू की खेती करने लगे हैं। पहले 30 से 40 रुपये किलो में काजू के फल किसान बेचा करते थे लेकिन अब कई प्रोसेसिंग प्लांट लग गए हैं। प्रोसेस किए हुए काजू 80 से 120 रुपए किलो हाथों हाथ बिक रहे हैं। इस आमदनी में सरकारी एजेंसियों की भूमिका उन्हें खेती के लिए मार्गदर्शन करने की है। मेहनत का बीड़ा और जोखिम किसानों ने ही उठा रखा है।