राजपथ - जनपथ
साइकिल वाले ब्लॉगर की डोंगरगढ़ यात्रा...
जगदलपुर से 20 किलोमीटर दूर पुस्पाल के रहने वाले महज 18 साल के अस्तु नाग को विविधताओं से भरे-पूरे छत्तीसगढ़ को घूमने की ललक है। साधन नहीं होने के बावजूद रास्ता निकल आया। एक मोबाइल फोन और जरूरत का सामान लेकर अस्तु पहले चरण में पुस्पाल से डोंगरगढ़ की 340 किलोमीटर की यात्रा पर साइकिल से निकल गया है। अस्तु को निकलना तो एक सप्ताह पहले ही था लेकिन आई ने रोक लिया। आई, का बस्तर की भतरी बोली में मतलब होता है- मां। आई बोली- अभी महुआ बहुत गिर रहा है, दो चार दिन साथ दे दो, फिर निकलना। तीन दिन साथ महुआ बटोरा, फिर निकला। रास्ते में साइकिल पंचर भी हो रही है, चैन भी टूट रहा है। कल तो अस्तु को 5 किलोमीटर पैदल साइकिल को घसीटते चलना पड़ा। वे पूरी गतिविधि हर रोज यू-ट्यूब पर अपलोड कर रहे हैं। प्रकृति, नदी, नाले, सडक़ों की तस्वीरें साइकिल पर चलने की वजह से ज्यादा नजदीक से कैद हो पा रही है। इस रास्ते में कई ‘न्यूज वाले भैया’ उनको मिल रहे हैं। जो खाने, आराम करने, चाय पिलाने के लिए खुद ही आगे आ रहे हैं। उन्होंने अस्तु को एक दूसरे शहर के वाट्सअप ग्रुप से भी जोड़ लिया है ताकि रास्ते में कहीं भी कोई दिक्कत हो तो ग्रुप से जुड़े लोग मदद के लिए मौके पर पहुंच सकें। तेज धूप में मीलों का सफर साइकिल पर कर रहे 18 वर्ष के अस्तु को आत्मविश्वास और प्रसन्नता से भरा देखकर आपको भी अच्छा लग सकता है।
चुनाव से पहले और कितने जिले?
विधानसभा उप-चुनाव में यदि कांग्रेस को जीत मिली तो एक नया जिला खैरागढ़ भी आकार ले लेगा। यह 33वां और भूपेश सरकार के कार्यकाल का छठवां जिला होगा। पर इसके बाद छत्तीसगढ़ में नये जिलों की मांग और तेज होगी या कम यह सवाल खड़ा होने वाला है। कटघोरा को अलग जिला बनाने की मांग को लेकर एक दशक से ज्यादा समय से आंदोलन चल रहा है। अधिववक्ताओं के नेतृत्व में वहां के अधिवक्ता अब भी धरना दे रहे हैं। भाटापारा को अलग जिला बनाने की मांग पर तो विधानसभा में एक अशासकीय संकल्प भी लाया जा चुका है, हालांकि उसे पारित नहीं किया जा सका। प्रतापपुर-वाड्रफनगर, पत्थलगांव, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर से भी लगातार मांग उठ रही हैं। छोटे बड़े प्रदर्शन आंदोलन या तो हो चुके हैं या जारी हैं, वहां पर।
खैरागढ़ उप-चुनाव ने रास्ता बताया है कि विधानसभा चुनाव के पहले ऐसी मांगें पूरी कराई जा सकती है। जैसे ही खैरागढ़ का चुनाव निपटेगा, नये जिलों के लिए आंदोलन ज्यादा जोर पकड़ सकता है।
अब अप्रैल से भी उम्मीद नहीं
रामपुर में बालको-कोरबा मुख्य मार्ग की देशी शराब दुकान हटाने के लिए महिलाएं पिछले 10-12 दिन से आंदोलन कर रही हैं। दो दिन पहले उन्होंने शराब दुकान में ताला जडक़र चक्काजाम कर दिया था। शराब बिक्री के घोर विरोधी विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर भी कुर्सी लगाकर उनके साथ धरने पर बैठे। आबकारी विभाग ने पहले उनको आश्वासन दिया था कि 31 मार्च के बाद दुकान नई जगह शिफ्ट कर दी जाएगी। पर, नहीं किया गया तो कंवर खुद आंदोलन में उतर गए। जब शराब दुकानों को ठेके पर दिया जाता था तो 1 अप्रैल से नई दुकानें उनके इलाके में न खुलें, इसके लिए नागरिक पहले से मोर्चाबंदी कर लेते थे। पर जब से ठेका बंद और बिक्री सरकारी हुई है, 31 मार्च या 1 अप्रैल का कोई मतलब नहीं रह गया। जाहिर है, 31 मार्च तक हटा देने के बारे में आबकारी अफसरों ने बला टालने के लिए कंवर को भ्रामक आश्वासन दिया था। वैसे कोरबा में कई शराब दुकानों पर विवाद है। सिख समाज ने प्रियदर्शिनी स्टेडियम के रास्ते पर गुरुद्वारा के पास की शराब दुकान को बंद करने के लिए दो दिन का अल्टीमेटम देते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है। गुरुद्वारा समिति के लोग प्रशासन को इस बारे में कई बार ज्ञापन दे चुके हैं। दर्री में तो एक सर्वदलीय मंच बना लिया गया है, जो यहां की देशी-विदेशी शराब दुकान को बंद करने के लिए आंदोलन पर उतरा हुआ है। शराबबंदी के लिए संकल्पित सरकार, शराब दुकानों के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को लेकर पूरी तरह खामोश है। कुछ अटपटा तो नहीं लग रहा?