राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कौन झुलसेगा आप की ताप में...
19-Apr-2022 5:45 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कौन झुलसेगा आप की ताप में...

कौन झुलसेगा आप की ताप में...

जब से आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से पंजाब को छीनकर एकतरफा जीत हासिल की है उनके कार्यकर्ताओं का जोश देखते ही बन रहा है। दिल्ली से लगातार नेता दौरे कर रहे हैं। रैली और रोड शो से माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। ऐसे में एक सहज सवाल सब तरफ तैर रहा है कि छत्तीसगढ़ में आप की दखल का नुकसान कांग्रेस को अधिक होगा या बीजेपी को? इसके लिए अतीत पर थोड़ी नजर डाल लेनी चाहिए। सन् 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया। उसने एक प्रतिशत ही वोट हासिल किए पर सत्ता से बेदखली की बड़ी वजह इसकी मौजूदगी को माना गया। सन् 2008 और 2013 के चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ। किसी तीसरे दल ने चुनाव के नतीजे पर असर नहीं डाला। बसपा की अपनी जमीन अपने वोट लगभग स्थिर रहे। सन् 2018 में भाजपा की सरकार को 15 साल हो चुके थे और कांग्रेस से अलग होकर अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने कई जगह त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना दी। 2003 के उलट 2018 में भाजपा को इससे नुकसान हुआ। हालांकि एक बड़ा कारण एंटीइंकमबेसी को भी माना गया।

कांग्रेस की सरकार को अभी पांच साल पूरे नहीं हुए हैं, इसलिये एंटीइंकमबेसी का असर सन् 2023 के चुनाव में बहुत ज्यादा आसार नहीं है, पर कांग्रेस सरकार का काम, भाजपा के 15 साल के मुकाबले में कैसा रहा, इसकी तुलना जरूर होगी। खैरागढ़ के नतीजे ने बता दिया कि जकांछ, स्व. जोगी के जाने के बाद तीसरे दल के रूप में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रही। आम आदमी पार्टी इसी तरह मेहनत करती रहेगी तो वह ऐसी परिस्थिति पैदा कर सकती है।

छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति, जातिगत समीकरण, लोगों का रहन-सहन बताता है कि यहां आप को पंजाब की तरह चमत्कारिक सफलता नहीं मिल पाएगी। पर वह कांग्रेस भाजपा का खेल काफी हद तक बिगाड़ सकती है। बहुत से लोग अच्छे विकल्प की तलाश में हैं। सन् 2003 और 2018 के चुनाव में तीसरे दल की मौजूदगी ने सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा का ही बारी-बारी नुकसान किया। इस बार आप कितना और किसे नुकसान पहुंचाएगी, यह सवाल बहुत उलझन भरा नहीं है। भाजपा के पास सीटें इतनी कम है कि वह अगले चुनाव में आप के मैदान में नहीं होने पर भी ज्यादा हासिल करने की उम्मीद कर सकती है। विश्लेषक कह रहे हैं जहां जिसकी सत्ता है उसे ही आप से नुकसान पहुंच रहा है। इसलिये अधिक सतर्क कांग्रेस को ही रहना होगा। 

पर्व पर पर्यावरण पूजा

रामनवमी और हनुमान जयंती पर देश के कई जगहों पर माहौल खराब हुआ। दिल्ली सहित सात राज्यों में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी। इन पर्वों में पहली बार तमंचा, तलवार लिए लोग उकसाने वाले नारे लगा रहे थे। अपना छत्तीसगढ़ शांत रहा। भोग-भंडारे का लोगों ने आनंद उठाया। पर कुछ जुनूनी लोग अलग हटकर काम करते हैं, जिसकी तरफ ध्यान न खिंचे ऐसा नहीं हो सकता। बिलासपुर के नजदीक मोपका के रहने वाले दूजराम भेंडपाल पर्यावरण और हरियाली बचाने के लिए काम करते हैं। कोई त्यौहार आता है तो वह इसी तरफ ज्यादा उत्साह से आगे बढ़ते हैं। हनुमान जयंती पर कोलाहल, भंडारा जुलूस, शोभायात्रा से वह दूर रहे। उन्होंने 51 पौधे लगाए और पहले से लगाए गए सैकड़ों पौधों को दिनभर पानी देते रहे। उसका मानना है कि त्यौहार खुशी के लिए होता है और उसे त्यौहारों के दिन पेड़-पौधों के बीच ज्यादा समय बिताने पर उसे लगता है कि वह ईश्वर उसके ज्यादा करीब होता है।

पॉलिटिकल लोगों से उम्मीद न करें

आईएएस कॉन्केल्व में रिटायर्ड आईएएस अनिल स्वरूप ने अफसरों को काफी कुछ सीख दी। यूपी कैडर के अफसर अनिल स्वरूप केंद्र सरकार में कोयला, और स्कूल शिक्षा सचिव रहे हैं। उनकी साख अच्छी है। उन्होंने दो-तीन किताबें भी लिखी हैं।

गु्रप डिस्कशन में पोस्टिंग के लिए पॉलिटिकल एप्रोच पर भी चर्चा हुई। अनिल स्वरूप ने कहा कि पॉलिटिकल लोगों से किसी तरह की उम्मीद नहीं रखना चाहिए। अफसरों को चाहिए कि जो अच्छा है वही काम करें। भ्रष्टाचार पर उन्होंने कहा कि आजकल कोई बातें छिपी नहीं रहती है। किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें आने पर सीनियर अफसरों को चाहिए कि वो अपने जूनियर की काउंसलिंग करें, और उन्हें समझाइश दे। यहां के आईएएस अनिल स्वरूप की सलाह मानते हैं अथवा नहीं, यह देखना है।

कॉनक्लेव में कई आए, कई नहीं

कॉनक्लेव में आईएएस से रिटायर होने के बाद राजनीति में आए संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी भी मौजूद थे। ओपी चौधरी भी कुछ देर के लिए कॉन्केल्व में पहुुंचे थे। एनएमडीसी के चेयरमैन रहे रिटायर्ड आईएएस एन बैजेंद्र कुमार साथ जब कॉन्केल्व में पहुंचे, तो कई लोग उन्हें पहचान नहीं पाए। बैजेंद्र कुमार की दाढ़ी बढ़ी हुई थी, और मास्क लगाए हुए थे। एक अफसर अपनी पत्नी को भी लेकर आए, उन्होंने सीएम के साथ हुए ग्रुप फोटो में पत्नी को भी खड़ा किया। हालांकि पत्नी अफसर नहीं है।

कॉन्केल्व में तीन पूर्व सीएस सुयोग्य मिश्रा, पी जाय उम्मेन, और विवेक ढांड पूरे समय मौजूद रहे। हालांकि कई रिटायर्ड अफसर अलग-अलग कारणों से नहीं आ पाए। लेकिन कॉन्केल्व को काफी सफल माना जा रहा है। इसके लिए एसोसिएशन के चेयरमैन मनोज पिंगुवा, आर प्रसन्ना, और अयाज तंबोली ने काफी मेहनत की थी। उन्हें सराहा भी गया।

ईश्तहार का एक तरीका यह भी

इश्तहार के लिए अटपटी बातें बड़ी अच्छी मानी जाती हैं। देश के कई शहरों में ठग्गू के लडडू रहते हैं और उनके साथ में नारा रहता है कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं। कई शहरों में खराब चाय से लेकर खराब समोसे तक के बोर्ड दिखते हैं।

कहीं पर घर के बाहर घर जैसे भोजन का नारा रहता है, तो अभी एक नारा, ससुराल जैसे भोजन का भी देखने मिला। अब ससुराल में तो खाना सबसे अच्छा मिलता ही है। पहली नजर में दुकान का नाम या वहां की खातिरदारी की खूबी लोगों को अगर खींच ले, तो फिर उनको ग्राहक भी बना देती है।

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