राजपथ - जनपथ
इस नाम पर शायद ही आपत्ति हो...
वैसे तो छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में जाने के लिए कांग्रेस के कई बड़े नेता जोर आजमाईश कर रहे हैं। मगर एक-दो नामों को पार्टी हल्कों में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। इन्हीं में से एक पूर्व आईएएस के राजू भी हैं, जो कि राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य हैं।
आंध्रप्रदेश कैडर के पूर्व आईएएस एससी कम्यूनिटी से आते हैं। वो पार्टी के एससी सेल के चेयरमैन भी हैं। राजू यूपीए सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सचिव थे। जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी थी। गांधी परिवार की पहल पर राजू ने वीआरएस ले लिया, और सक्रिय राजनीति में आ गए। राजू कई बार छत्तीसगढ़ आ चुके हैं।
राजू, रेरा चेयरमैन विवेक ढांड के बैचमेट भी हैं। दोनों के बीच अच्छी मित्रता भी है। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि हाईकमान राज्यसभा के लिए राजू का नाम बढ़ाता है, तो सीएम भूपेश बघेल को शायद ही कोई आपत्ति हो। छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की दो सीट खाली हो रही हैं, और दोनों ही सीट कांग्रेस को मिलना तय है। अब हाईकमान किसका नाम बढ़ाता है, यह देखने वाली बात होगी।
साय के सवाल ने बिखेरी मुस्कुराहट
विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल बाकी रह गए हैं, लेकिन पार्टी के पक्ष में कोई माहौल नहीं बनने से भाजपा के कई दिग्गज नेता फ्रिकमंद हैं। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे भाजपा नेताओं के बीच आपस में काफी कुछ चर्चा हुई।
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय सभी नेताओं को एक किनारे ले गए, और उनसे कहा कि सरकार ऐसे नहीं बनती है। साय ने कहा कि जोगी सरकार में लाठीचार्ज के बाद उनका पांव टूट गया था। तब भी मंैने आराम नहीं किया, और प्लास्टर लगने के बाद गांव-गांव तक गए। लोगों को समझाया कि जोगी सरकार आतताई है, और इसे उखाड़ फेंकना होगा। टूटे पैर को देखकर लोगों में सहानुभूति जगी, और जोगी सरकार के खिलाफ माहौल बना। हम अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रहे, और तब कहीं जाकर भाजपा को बहुमत मिल पाया।
साय ने पूछ लिया कि आप ने साढ़े तीन साल में कौन सा आंदोलन कर लिया है कि जनता आपको वोट करे। एक पूर्व मंत्री ने चुटकी ली कि हमने भी साढ़े तीन साल में एक बार जेल भरो आंदोलन किया हैै। मूणत जी के साथ पुलिस ने दुव्र्यवहार किया था, तब प्रदेशभर के थानों का घेराव किया था। इससे जनता में भाजपा के पक्ष में माहौल बना है, और पार्टी की सरकार बनना तय है। पूर्व मंत्री की इस टिप्पणी पर साय और अन्य नेता मुस्कुराए बिना नहीं रह सके।
भाजपा नेता की ट्वीट पर रियेक्शन...
सरगुजा के भाजपा नेता अनुराग सिंहदेव की ट्विटर पर एक लाइन में की गई पोस्ट पर मिल रही प्रतिक्रिया शायद उन्हें भारी पड़ गई है। उन्होंने भोंपू की तस्वीर के साथ लिखा- छत्तीसगढ़ में लाउडस्पीकर की आवाज कब कम होगी?
यूपी और महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर के मुद्दे पर एक खास वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है। बहुत से लोगों ने अनुराग सिंहदेव के इस कमेंट को धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने के रूप में देखा है। उनके इस ट्वीट के जवाब में की गई बहुत सी टिप्पणियों को अशोभनीय कह सकते हैं, पर कुछ प्रतिक्रियाओं का जिक्र किया जा सकता है। एक ने लिखा है कि अभी 2024 के चुनाव नहीं है। थोड़ा रुक जाओ। अन्य जगहों की तरह छत्तीसगढ़ में हिंदू-मुसलमान कराना मुश्किल है।
एक और प्रतिक्रिया है कि जिस दिन आप गणेश, नवरात्रि और रामायण आदि उत्सवों में बजाना बंद करेंगे तब कोई भी प्रयोग नहीं करेगा। एक और प्रतिक्रिया है कि रमन सिंह की सरकार 15 वर्ष थी, तब क्या कम आवाज में लाउडस्पीकर बजता था? एक यूजर ने लिखा है कि कुल मिलाकर किसी ना किसी बहाने मुसलमानों को टारगेट करते रहना है। एक और प्रतिक्रिया है अच्छा नहीं लग रहा है क्या, छत्तीसगढ़ में अमन का माहौल? कुछ प्रतिक्रियाएं उनके ट्वीट के पक्ष में भी है जैसे एक ने लिखा है- जब आप केबिनेट मिनिस्टर या सीएम बन जाएंगे तब लाउड स्पीकर की आवाज कम होगी।
फॉलोअर्स बनने की खुशी मगर...
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं के लिए पुलिस की पाठशाला नाम से नि:शुल्क लाइब्रेरी शुरू करने और उनको अन्य रचनात्मक गतिविधियों से जोडऩे की वजह से चर्चा में आए आईपीएस सूरज सिंह परिहार ने एक ट्वीट में अपनी खुशी और दर्द दोनों का बयान कर दिया है। लिखा है कि वे सन् 2005 से लगातार जॉब में हैं, लेकिन अभी तनख्वाह की फिगर सिक्स डिजिट में पहुंचना बाकी है। पर दूसरी ओर आईपीएस काबरा सर की प्रेरणा से हाल में मेरे ट्विटर अकाउंट का कुनबा सिक्स डिजिट पहुंच गया है।
ज्ञात हो कि जीपीएस जिले में एसपी रहने के बाद अब राजभवन में परिहार सेवाएं दे रहे हैं।
आईएएस आईपीएस अधिकारियों के बारे में बहुत लोगों की राय रहती है कि इनके पास इधर-उधर से बिना मांगे इतना धन बरस जाता है कि सैलरी जमा हो रही है या नहीं, यह भी देखना जरूरी नहीं समझते हैं। पर परिहार जैसे कई अधिकारी हैं जिन्होंने अपनी साख पर आंच नहीं आने दी है।
आदिवासियों पर हवाई बमबारी!
सुकमा जिले के आदिवासियों ने 2 दिन पहले सैकड़ों की संख्या में एकत्र होकर कथित ड्रोन हमले के विरोध में प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि 14 और 15 अप्रैल को आधा दर्जन से ज्यादा गांवों में रात के वक्त ड्रोन से बमबारी की गई। हालांकि इससे कोई जनहानि नहीं हुई लेकिन मीडिया के पहुंचने पर उन्होंने जगह-जगह बने गड्ढों को दिखाया और बताया यह गिराए गए बम के निशान हैं। माओवादियों की दंडकारण्य जोनल कमेटी भी इसमें सामने आ गई है। उसने तस्वीर जारी कर बताया है कि इस हमले में वे भी बाल-बाल बचे। बस्तर में आदिवासियों के लिए कानूनी लड़ाई लडऩे वाली अधिवक्ता बेला भाटिया ने भी हमले के विरोध में बयान जारी कर कहा कि यह यदि सरकार का नक्सलियों के विरुद्ध युद्ध हो, तब भी जिनेवा कन्वेंशन के मापदंडों का पालन नहीं किया जा रहा है। बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने आरोपों को झूठा बताते हुए कहा कि नक्सली ग्रामीणों को बरगला रहे हैं। वे जनाधार खो रहे हैं इसलिए अफवाह फैलाई जा रही है।
यदि पुलिस की बात पर यकीन करें तब भी कुछ सवाल तो खड़े होते ही हैं। हजारों की संख्या में विरोध के लिए ग्रामीण निकले तो क्या नक्सलियों का प्रभाव उन पर पुलिस से कहीं ज्यादा है? विकास, विश्वास और सुरक्षा के लिए किए जा रहे पुलिस और प्रशासन के काम का उन पर असर क्यों नहीं हो रहा है? यह साफ तो हो कि बम न गिराये गए हों तो तस्वीरों के जरिए जो सबूत पेश किए जा रहे हैं, आखिर उनकी असलियत क्या है?