राजपथ - जनपथ
बलरामपुर में रामपुराण
तपती धूप में प्रदेश के दौरे पर निकले सीएम भूपेश बघेल सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही पर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रहे हैं। और जब सीएम ने सूरजपुर डीएफओ मनीष कश्यप को निलंबित किया, तो हडक़ंप मच गया। पहली बार मंच से किसी ऑल इंडिया सर्विस के अफसर के खिलाफ कार्रवाई हुई है।
कश्यप के खिलाफ ज्यादा कुछ तो नहीं था। लेकिन गोठान योजना में गड़बड़ी के लिए उन्हें भी जिम्मेदार माना गया। सरकार ने गोठान बनाने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि गोठान पांच हेक्टेयर से कम जमीन पर नहीं बनना चाहिए। मगर सूरजपुर में एक हेक्टेयर में ही गोठान बनाए गए। इसमें भी अनियमितता पाई गई। हालांकि यह निर्माण डीएफओ कश्यप के आने के पहले हुआ था। लेकिन उनकी गलती सिर्फ इतनी ही थी कि योजना की समीक्षा नहीं कर पाए थे, और सीएम के सवालों का ठीक-ठीक जवाब नहीं दे पाए। ऐसे में कार्रवाई तो होनी ही थी।
इसी तरह बलरामपुर-रामानुजगंज में ईई उमाशंकर राम को मौके पर ही सस्पेंड किया गया, तो हर कोई चौंक गए। राम, तेज तर्रार विधायक बृहस्पत सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है कि राम के खिलाफ भ्रष्टाचार के सारे मामलों को एकत्र कर दिया जाए, तो ‘राम पुराण’ बन जाएगा। बृहस्पत सिंह के प्रभाव के चलते सिंचाई मंत्री रविन्द्र चौबे भी कार्रवाई से परहेज कर रहे थे, लेकिन सीएम ने गड़बड़ी पकड़ी, तो उन्होंने मंच से ही ईई राम सस्पेंड कर दिया। खास बात यह रही कि सस्पेंशन की घोषणा के दौरान बृहस्पत सिंह मंच पर ही मौजूद थे, और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सके।
गेहूं के साथ घुन पिसा...
डीएफओ मनीष कश्यप को सूरजपुर आए दो माह ही हुए थे। इससे पहले वो भानुप्रतापपुर डीएफओ थे। चर्चा है कि मनीष कश्यप ने सूरजपुर पोस्टिंग के लिए सारे राजनीतिक प्रपंचों का इस्तेमाल किया था। सूरजपुर वनमंडल का बजट अच्छा खासा है। ऐसे में यहां की मलाईदार पोस्टिंग के लिए डीएफओ लालायित रहते हैं।
सुनते हैं कि सूरजपुर के लिए सरकार के दो मंत्रियों ने कोई और नाम दिए थे, लेकिन कश्यप सब पर भारी पड़े। अब जब कार्रवाई हुई है, तो वहां पोस्टिंग पाने से वंचित रहने वाले अफसर सुकून महसूस कर रहे हैं। इससे परे इसी योजना में लापरवाही के लिए जिस एसडीओ को सस्पेंड किया गया है, वो भी सरकार के एक ताकतवर मंत्री के करीबी माने जाते हैं। एसडीओ ने तो छह महीने तक किसी डीएफओ की पोस्टिंग नहीं होने दी थी, और खुद डीएफओ के प्रभार पर थे। अब जब गड़बड़ी निकली, तो पद से हटने के बावजूद भी बच नहीं बन पाए।
माओवादियों से बातचीत की बात चली..
बस्तर में माओवादी हिंसा खत्म करने के लिए कई बार केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से प्रस्ताव रखा गया है। और हर बार इसका उत्तर भी दूसरी ओर से आया। इस बार भी मुख्यमंत्री ने मीडिया से चर्चा के दौरान जब कहा कि सरकार बात करने के लिए राजी है, तो भी एक जवाब जारी हो गया। उनके प्रवक्ता ने कहा कि माओवादी पार्टी, पीएलजीए और अन्य संगठनों पर लगाये गए प्रतिबंध हटाएं। हवाई हमले बंद करें, बस्तर से कैंप और फोर्स को वापस भेजें, जेलों में बंद उनके नेताओं को रिहा करें। जाहिर है, सरकार इन मांगों को ऐसे ही स्वीकार नहीं करेगी। ज्यादा मुमकिन है एक बार फिर बातचीत की पेशकश सिर्फ खबरों तक सीमित रह जाए।
अब तक वैसे अपहरण के मामलों में तो मध्यस्थता होती रही है। स्वामी अग्निवेश नक्सलियों से बातचीत के बड़े पक्षधर थे। तालमेटड़ा मामले की न्यायिक जांच के दौरान उन्होंने बताया था कि यूपीए सरकार में तब के गृह मंत्री पी. चिदंबरम् नक्सलियों से बातचीत करने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे थे और वे उनको मध्यस्थ बनाना चाहते थे। स्वामी अग्निवेश सरकार के प्रयासों को पर्याप्त नहीं मानते थे। वे बस्तर की स्वायत्तता के पक्षधर थे। अब स्वामी अग्निवेश हमारे बीच नहीं हैं। आध्यात्मिक गुरु श्रीरविशंकर ने एक बार कहा था कि सरकार चाहे तो वे नक्सलियों को शांति के लिए तैयार करने उनके बीच जा सकते हैं। सुकमा में तब के कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के लिए वहां के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम और कुछ शांति के पक्षधर सामाजिक कार्यकर्ताओं से मदद ली गई थी, जिनके नाम पर माओवादी सहमत हुए थे।
देश के कई हिस्सों में उग्रवाद की समस्या रही है। पूर्वोत्तर में यह समस्या काफी हद तक हल भी हुई। पंजाब के अलगाववादियों, पूर्व के नगा और मिजो की हलचलों के दौरान शांति वार्ताओं में सीधे सरकार की भूमिका कम रही। या तो ब्यूरोक्रेट्स की व्यक्तिगत पहल काम आई या सामाजिक कार्यकर्ताओं की कोशिश। दस्यु गिरोहों से जयप्रकाश नारायण ने हथियार डलवाए थे। इन सबको शांति का रास्ता निकालने में काफी वक्त लगा।
बस्तर के माओवादी हिंसा को भी 40 साल से अधिक हो गए हैं। पर बातचीत की गंभीर कोशिश अब तक नहीं हुई है। ताजा मामले में लगता है कि उन्होंने बातचीत के लिए मिले प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देने की औपचारिकता पूरी की है। सरकार की ओर से भी जरूरी है कि जो गैर राजनीतिक लोग जिनमें पूर्व नौकरशाह, सामाजिक कार्यकर्ता, मीडिया के लोग या स्थानीय प्रभाव रखने वाले लोग हों उनके माध्यम से वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश करके देख ले।
अब अडानी के समर्थन में पोस्टर
सोशल मीडिया पर हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक का आवंटन निरस्त करने और पेड़ों की कटाई के लिए देशभर में हो रहे आंदोलनों के बीच सोशल मीडिया पर आई यह तस्वीर भी आपका ध्यान खींच सकती है। दो लोग पोस्टर लेकर खड़े हैं और कोल ब्लॉक को खोलने तथा बाहरी लोगों को भगाने की मांग कर रहे हैं। वे किन बाहरी लोगों को भगाने की बात कर रहे हैं, यह जरा भ्रामक है। शायद उनका आशय अडानी की कंपनी से नहीं है, क्योंकि वहां के कुछ हिस्सों पर उनका कोयला खनन पहले से जारी है। अडानी को सरगुजिहा और छत्तीसगढिय़ा मान रहे होंगे।
महंगाई भत्ता बढऩे की खुशी-नाखुशी
राज्य के वित्त विभाग ने हाल में एक निर्देश जारी कर अधिकारी, कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 5 प्रतिशत बढ़ा दिया। अधिकारी-कर्मचारी संगठनों ने इसे कम मानते हुए भी आम तौर पर खुशी जाहिर की। पर जब आदेश की बारीकी पर लोगों ने ध्यान दिया कि भत्ते की कौन सी किश्त दी जाएगी, किस तिथि से दी जाएगी। वर्ष 2020 से वे इसकी प्रतीक्षा में थे। अब तक जो नहीं मिल सका, क्या वह मिलेगा? पहले जो आदेश जारी होते थे, आम तौर पर उनमें लिखा होता था कि घोषित भत्ते की राशि कब से लागू मानी जाएगी और एरियर की राशि का किस तरह से भुगतान किया जाएगा। फिर भी प्रदेश के चार लाख कर्मचारियों के लिए यह घोषणा थोड़ी राहत देने वाली तो है। हो सकता है अगले आदेश में लागू करने और एरियर के बारे में भी बता दिया।