राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ में भाजपा का हाल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले आधे बरस से रात-दिन जिस तरह हर विधानसभा क्षेत्र में जाने, और वहां की तैयारी में लगे हुए हैं, वह अच्छे-खासे मेहनती लोगों को भी शर्मिंदा करने वाली ताकत है। जिस वक्त केन्द्र सरकार छत्तीसगढ़ सरकार के बुरी तरह पीछे लगी हुई हो, भूपेश बघेल के करीबी लोग ईडी के घेरे में हों, तब भी वे लगातार जिस तरह चुनाव की तैयारी में लगे हैं, वह एक असंभव किस्म की सक्रियता है। फिर जब इसे प्रदेश में भाजपा नेताओं की सक्रियता के साथ जोड़क़र देखें, तो लगता है कि भूपेश बघेल विपक्षी नेता की तरह सक्रिय हैं, और भाजपा नेता सत्तारूढ़ होकर महज भाषण दे रहे हैं। पिछले काफी समय में अकेले राजेश मूणत अपने पिछले चुनाव क्षेत्र में एक धारदार आंदोलन करते दिखे, बाकी प्रदेश मानो मोदी की शोहरत के भरोसे बैठा हुआ है। इसलिए दिल्ली में अभी जब छत्तीसगढ़ के तमाम भाजपा नेता इक_ा हुए तो प्रधानमंत्री से लेकर दूसरे नेताओं ने भी छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को नर्म शब्दों में कड़ी चेतावनी दी कि पिछले चुनाव सरीखे आत्मसंतुष्ट होकर न बैठ जाएं, वरना 15 सीटें भी नहीं मिलेंगी।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में छत्तीसगढ़ पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी की खूब चर्चा रही। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी ने भी छत्तीसगढ़, और राजस्थान के कार्यकर्ताओं को नसीहत दी थी, और कार्यकर्ताओं को अति आत्मविश्वास से बचने की सलाह दी, लेकिन राजनाथ ने तो विशेषकर छत्तीसगढ़ के नेताओं को आगाह किया कि यह सोचने से काम नहीं चलेगा कि मोदी आएंगे, और हम जीत जाएंगे। राजनाथ सिंह छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं, और यहां छोटे-बड़े नेताओं से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं। यहां की गुटबाजी से वो पूरी तरह वाकिफ हैं। ऐसे में उनकी टिप्पणी से छत्तीसगढ़ के नेता असहज हो गए थे।
छत्तीसगढ़ के जानकार बताते हैं कि अगर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में अगला चुनाव होगा, तो उसमें भाजपा की उम्मीद अधिक नहीं रहेगी। लेकिन भाजपा के साथ केन्द्र सरकार की एक बड़ी ताकत है, और राज्य के भाजपा नेता शायद उसी के भरोसे बिना पतवार छुए नाव में बैठे हैं। राज्य सरकार के खिलाफ कई जलते-सुलगते मुद्दे हो सकते हैं, लेकिन भाजपा नेता गांधी के तीन बंदरों की तरह आंख, कान, और मुंह बंद किए बैठे हैं, बस कुछ बयानों पर दस्तखत कर देते हैं।
कौन सी गाडिय़ां किसके पास?
पन्द्रह बरस मुख्यमंत्री रहकर रमन सिंह हटे, तो सुरक्षा के उनके दर्जे के चलते उनके पास उनके वक्त की ही गाडिय़ां रह गईं, क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दूसरी कंपनी की गाडिय़ां तैयार करवा ली थीं। अब एक तीसरी कंपनी की गाडिय़ां तैयार होने की खबर है, और लोग यह सोच रहे हैं कि अगले चुनाव के बाद कौन सी कंपनी की गाडिय़ां किसके पास रहेंगी?
रिकॉर्ड कहीं नहीं जाते
छत्तीसगढ़ में आईटी और ईडी की जांच के चलते बहुत से बड़े-बड़े अफसरों के जमीन-जायदाद के कागज सामने आए हैं, और उन्हें देखकर लोग हक्का-बक्का हैं। एक जमीन दलाल ने पूछताछ में यह मंजूर किया कि एक आईएएस अफसर और उसकी बीवी को पूछताछ से घिरी कई जमीनें उसने बेची थीं, जिनमें करोड़ों का नगदी लेन-देन हुआ था। लेकिन ईडी की जांच एक खास तारीख के बाद की खरीद-फरोख्त तक सीमित है, जबकि जमीन दलालों के पास जानकारी पिछले दस बरस की है। ईडी उतनी पुरानी जांच में नहीं जा रही, लेकिन जो कागज जब्त हुए हैं, वे तो जांच से भी पहले के दौर के भी हैं। अब आगे जाकर ऐसी जानकारियों की जांच कौन सी एजेंसी करेगी, इस फिक्र में बहुत से अफसर बैठे हैं। दिक्कत बस यही है कि जमीन की रजिस्ट्री एक बार हो जाने के बाद उसके रिकॉर्ड कहीं नहीं जाते।
मैच का सवाल ही पैदा नहीं होता
रायपुर में भारत-न्यूजीलंैड क्रिकेट मैच को लेकर काफी उत्सुकता है। पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच हो रहा है। इसलिए टिकटें भी हाथों-हाथ बिक गई है। इन सबके बीच आयोजकों ने एक हजार टिकटें विधायक, सांसद, और अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के लिए रखा है। भाजपा के विधायक, और उनके परिवार के सदस्य व कई नेता मैच देखने का प्लान तैयार कर रहे थे कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने झटका दिया है।
माथुर के निर्देश पर ही 21 तारीख को अंबिकापुर में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक रखी गई है। इसमें सभी विधायक, और कार्यसमिति के सदस्यों का रहना जरूरी हो गया है। अब अंबिकापुर में रहेंगे, तो मैच देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता। दबे जुबान में कई लोग माथुर को कोस रहे हैं।
आगे पाठ, पीछे सपाट
राज्य सरकार की शिक्षा नीति नई क्रांति लेकर आई है। शिक्षा को प्राथमिकता में रख बच्चों और युवाओं के उज्जवल भविष्य की कोशिश हो रही है। नक्सल क्षेत्रों में रमन सरकार के दौरान बंद 200 से अधिक स्कूलों को खोला गया। 247 आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम और 32 हिंदी माध्यम स्कूल खुल चुके हैं। उत्कृष्ट कॉलेज भी खोले जाएंगे। यह कांग्रेस प्रवक्ता की ओर से शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की उपलब्धियों पर दिया गया बयान है।
दूसरी तरफ शिक्षा की वार्षिक स्थिति पर असर (स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) 2021 हमारे सामने है। रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआती स्तर की कक्षाओं में वर्णमाला के अक्षरों को भी पहचान पाने में असमर्थ छात्रों का प्रतिशत 2018 की तुलना में अब 2 गुना हो गया है। बुनियादी पढ़ाई और अंकगणित जानने के स्तर में भी बड़ी गिरावट आई है। ऐसे दर्जनों पैमाने हैं जिन्हें दर्शाकर राज्य की स्कूली शिक्षा में आई गिरावट का उल्लेख है। असर की रिपोर्ट पूरे देश में विश्वसनीय मानी जाती है। राज्य के 28 जिलों के 33 हजार 432 घरों में 3 से 16 साल तक के 45 हजार 992 बच्चों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर ताजा रिपोर्ट आधारित है। राज्य के शिक्षा विभाग के अनुरोध पर ही यह सर्वेक्षण किया गया था। रिपोर्ट में यह जरूर कहा गया है कि कोविड-19 महामारी और उसके बाद के प्रतिबंधों के कारण बच्चों में सीखने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई।
मगर, देखने की बात यह भी है कि स्कूलों को खुले काफी दिन हो चुके। कहीं दूसरा तो कहीं तीसरा सत्र होगा, जब ऑफलाइन परीक्षा ली जाएगी। यदि बच्चों में कोविड के समय से खोया हुआ आत्मविश्वास नहीं लौट पाया है, तो इसके लिए वे नहीं बल्कि शिक्षक और विभाग के अफसर जिम्मेदार हैं। जितनी तेजी से स्कूल खुल रहे हैं, उस अनुपात में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने की कोशिश नहीं हो रही है।
डिलीवरी बॉय की सहूलियत के लिए
सामान ऑनलाइन मंगाएं और डिलीवरी ब्वॉय बहाना करे, तब। कभी घर नहीं मिलने की बात कर सकता है, या फिर बार-बार फोन करके लोकेशन पूछ सकता है। उनके लिए कुछ लोगों ने नया तरीका निकाल लिया है। इसे देखें, इसमें पते की जगह पर क्या लिखा है- शरीफ कॉलोनी स्वीट हार्ट किराना स्टोर से 10 कदम आगे, एक गेट के सामने बुड्ढा बैठा रहता है, उसके एकदम ऊपर वाला घर, पटना बिहार। दूसरे में लिखा है- नाम भीखाराम। हरिसिंह नगर से एक किलोमीटर पहले राइट साइड में अपने खेत का गेट है। गेट के पास में एक छोटी फाटक है और वहां से फोन कर देना में सामने आ जाऊंगा, जोधपुर।
शिक्षाविदों का अर्थशास्त्र
उच्चशिक्षा पर भी थोड़ी बात हो जाए। नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रीडिटेशन काउंसिल, नैक से अच्छा ग्रेड हासिल करना विश्वविद्यालय और कॉलेजों का एक बड़ा लक्ष्य होता है। ग्रेडेशन जितना अच्छा होगा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से संसाधनों, शोध, सेमिनार और नियुक्ति के लिए उतना ही अधिक अनुदान मिलता है। शिक्षा संस्थानों की प्रतिष्ठा भी बढ़ती है, जिसके कारण प्रवेश लेने के लिए होड़ भी बढ़ती है। राज्य और केंद्र सरकार की ओर से स्थापित छत्तीसगढ़ के किसी भी विश्वविद्यालय को ए प्लस या डबल प्लस जैसी अच्छी ग्रेडिंग अभी हासिल नहीं हो पाई है। कुछ निजी विश्वविद्यालयों के पास जरूर ए या ए प्लस ग्रेडिंग है। सर्वेक्षण चलता रहता है, ग्रेडेशन में भी उतार-चढ़ाव होता रहता है।
इधर अच्छा मूल्यांकन परिणाम हासिल करने के फेर में बस्तर विश्वविद्यालय ने अनाप-शनाप खर्च कर दिए। करीब एक करोड़ तो संरचना में लगाए गए। दीक्षांत समारोह के लिए बजट 20 लाख रुपए था, मगर खर्च 70 लाख रुपए किए गए। सन् 2022-23 के लिए 9 करोड़ रुपए का बजट था, खर्च 13 करोड़ किया गया। स्थिति यह बन गई कि शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन के लिए पैसे नहीं बचे। 17 साल में पहली बार एफडी तोडऩी पड़ी। बजट से ज्यादा खर्च इसलिए किया गया, ताकि नैक टीम के दौरे के बाद नतीजा अच्छा मिले। मगर ग्रेडेशन मिला कमजोर श्रेणी का- सी।
हालत यह है कि नया बजट आने में तीन-चार महीने का समय है। आगे का खर्च चलाने के लिए या तो एफडी फिर से तोडऩी पड़ेगी या फीस बढ़ाकर छात्रों पर बोझ डाला जाएगा।
सरकार में ऐसी बदअमनी!
छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े अफसरों से बात की जाए तो उनकी यह हैरानी सामने आती है कि बहुत से नए आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अफसरों को काम करने की पता नहीं कैसी छूट मिली हुई है कि वे दिन में कई घंटे नशा किए पड़े रहते हैं। मातहत महिलाओं से संबंधों के किस्से वाले अफसरों के भी नाम बढ़ते चल रहे हैं, और उनके किस्से अधिक दुस्साहसी होते चल रहे हैं। कई बड़े अफसर ऐसे हैं जो मंत्रालय या डायरेक्ट्रेट के अपने दफ्तरों में महीने में दो-चार दिन ही जाते हैं, और घर पर ही वही फाइलें बुलवाते हैं, जिन्हें करने में उनकी दिलचस्पी है। पुलिस महकमे का भी यही हाल है, और पुलिस मुख्यालय एक गैरपुलिस ऐसी युवती की चर्चा से घिरा हुआ है जो कि वहां बहुत से सबसे बड़े अफसरों के पास बैठकर जब चाहे, जो चाहे करवा सकती है। लेकिन दफ्तर के कामकाज से परे ये तमाम हरकतें प्रदेश की अफसरशाही में सदमे के लायक गिरावट ला चुकी हैं, और यह ढर्रा राजधानी से बाहर जिलों तक भी फैल रहा है जहां कई अफसर दफ्तर के वक्त, दफ्तर में, या दफ्तर के बाहर नशा किए पड़े रहते हैं। ऐसी गिरावट न रातों-रात आती है, न रातों-रात हटाई जा सकती है। यह राज्य लंबे समय तक सरकारी अमले में ऐसी बदअमनी के दाम चुकाएगा।
कांग्रेस नेता पाखंडी बाबा के खिलाफ!
सोशल मीडिया बड़ी दिलचस्प जगह है। एक भयानक विवादास्पद और पाखंडी बाबा मुस्लिमों के खिलाफ तरह-तरह की नफरत भी फैलाता है, अंधविश्वास भी फैलाता है, चमत्कारी दावे भी करता है, और अंधविश्वासियों के इलाके में उसका खूब डंका-मंका रहता है। ऐसे एक बाबा को इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राजधानी के विधायक और पुलिस विभाग के संसदीय सचिव विकास उपाध्याय लेकर आए हैं, और उनके चमत्कार दिखला रहे हैं। अब ऐसे में एक पत्रकार के एक ट्विटर पोस्ट पर इस बाबा के आतंकी और पाखंडी बयान का एक वीडियो पोस्ट हुआ, तो उसे पसंद करने वालों में सबसे ऊपर जो दो नाम दिखे उनमें एक छत्तीसगढ़ कांग्रेस के एक प्रमुख नेता आर.पी. सिंह का है। जिस पल यह नाम ऊपर दिखा, उसी पल लिया गया यह स्क्रीनशॉट कांग्रेस के भीतर अब तक साम्प्रदायिकता से बचे हुए लोगों में से एक का नाम है।
रोका-छेका मतलब...
यह प्रश्न और उसका उत्तर, बीजापुर के एक स्कूल में हुई परीक्षा का है। उत्तर से ही स्पष्ट है कि प्रदेश में बेरोजगारी या नौकरी की भर्ती प्रक्रिया पर लगी अघोषित रोक से बच्चा-बच्चा परेशान हैं। उसे अपने भविष्य की चिंता अभी से सता रही है या फिर अपने भाई-बहन की बेरोजगारी को देखकर कोफ्त हो रही है। इस बच्चे ने खेत में गौवंश के खातू के लिए सरकार की घोषित रोका-छेका अभियान का अपने और वर्तमान में प्रासंगिक, आंकलन कर यह उत्तर लिख दिया। बच्चे का यह उत्तर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।
आरक्षण पर असमंजस बरकरार
58 फीसदी आरक्षण रद्द करने संबंधी फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार को निराशा हाथ लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश पर फिलहाल राहत देने से इनकार कर दिया है। उन युवाओं को भी निराश होना पड़ा है जो विभिन्न प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में आरक्षण के किसी एक व्यवस्था के लागू होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कोई नई परिस्थिति नहीं बनी है, न ही संकेत मिला है कि विधानसभा में पारित 76 प्रतिशत आरक्षण के विधेयक पर राज्यपाल हस्ताक्षर करने वाली हैं। हाईकोर्ट नेअवश्य हाल की संविदा भर्ती में अपने यहां सन् 2012 से पहले की व्यवस्था दी है। पर राज्य सरकार इसका अनुसरण करेगी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। ऐसा किया गया तो इस चुनावी साल में राजनीतिक परिणाम क्या होंगे, शायद इस पर विचार हो रहा है। इसे विधानसभा में पारित प्रस्ताव से पीछे हटना भी न मान लिया जाए। अभी तो अजा, जजा वर्ग में असंतोष दिख रहा है, ओबीसी भी नाराज हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण पर अंतिम सुनवाई मार्च के तीसरे सप्ताह में रखी है। उसके बाद ही तय हो पाएगा कि इस जटिल मसले का क्या हल निकलेगा।
विकास का स्वागत और विरोध
छत्तीसगढ़ के उत्तर और दक्षिणी हिस्से से दो अलग-अलग खबरें है। भैरमगढ़ इलाके में इंद्रावती नदी पर जिला मुख्यालय बीजापुर से 40 किलोमीटर दूर ताडबाकरी गांव के पास एक पुल बनाने का भारी विरोध हो रहा है। सैकड़ों आदिवासी 11 ग्राम पंचायतों से जमा होकर अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं। पहले भी पुल बनाने के खिलाफ आंदोलन किया गया था। आरोप है कि इस दौरान कुछ को जेल में भी डाल दिया गया, पर विरोध रुका नहीं है। दूसरी खबर राज्य के उत्तरी छोर पर स्थित बलरामपुर जिले के पुंदाग गांव की है जहां पहाड़ी कोरवा जनजाति इस बात का जश्न मना रहे हैं कि जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए आजादी के बाद पहली बार पक्की सडक़ बना दी गई है। यहां के ज्यादातर लोगों ने जिला मुख्यालय को आज तक नहीं देखा है। उन्हें झारखंड के सीमावर्ती गांवों को पार करके बलरामपुर पहुंचना पड़ता था।
बीजापुर नक्सल समस्याग्रस्त जिला है। बलरामपुर में यह लगभग समाप्त है। बीजापुर के आंदोलनकारियों का कहना है कि पेसा कानून को लगातार कमजोर किया जा रहा है। पुल बनाने से पहले ग्राम सभा से मंजूरी क्यों नहीं ली गई? बलरामपुर भी आदिवासी बाहुल्य जिला है। विकास की पहचान सडक़ के बनने पर ऐसी आपत्ति वहां के लोगों ने नहीं उठाई। फिर दोनों में अंतर क्या है? एक जगह विकास को लेकर खुशी, दूसरी जगह विरोध में आंदोलन!
अनेक कारण हो सकते हैं विरोध के। पर एक अनुमान लगाया जा सकता है कि बीजापुर के इन आदिवासी गांवों के लोगों को लगता होगा कि पुल, सडक़ और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण ग्रामीणों के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए किया जा रहा है जो शहरों से आसानी से उन तक पहुंच जाएंगे और उनका शोषण करेंगे। यहां के खनिज और वन संसाधनों का दोहन करेंगे और इसकी परिणाम उनका विस्थापन भी हो सकता है।
पापा का आंचल...
जैकेट के भीतर घुसे होने के कारण तस्वीर से यह तो पता नहीं चल रहा है कि आप पापा की परी हैं, या उनके राजकुमार। पर पापा को थैंक्यू जरूर कहना, क्योंकि वे अपने होने की जिम्मेदारी शिद्दत से उठा रहे हैं।
11 मुल्कों की पुलिस लग गई
भेंट मुलाकात में जनता से मुख्यमंत्री सीधे संवाद करते हैं। हर कोई प्रदेश के मुखिया से बात करने इस मौके का लाभ लेना चाहते हैं। पर सबको मौका नहीं मिल पाता क्योंकि हर कोई डिटेल रखना चाहता है। प्राय: शिकायत राजस्व और पुलिस विभाग से अधिक आ रही है। कोरबा जिले में एक युवक के हाथ में माइक आया तो उसने पहले एक समस्या बताई, फिर दूसरी। वह जब नहीं रुका तो सीएम में कहा कि तुम जांजगीर के रहने वाले हो जब मैं वहां गया था तभी समस्या तुमको बतानी थी। युवक के जवाब से मुख्यमंत्री और सभा में मौजूद दूसरे लोग ठहाका लगाने से खुद को नहीं रोक पाए, जब उसने कहा कि मुझे जांजगीर की सभा में पहुंचने से रोकने के लिए 11 मुल्कों की पुलिस लगा दी गई थी। छत से कूद-फांद कर पहुंचने की कोशिश की फिर भी नहीं पहुंच पाया। मुझे यहां कोरबा में आकर अपनी बात कहनी पड़ रही है। वैसे, अभी तक किसी सिरे से यह खबर नहीं आई है कि मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से किसी विशेष तरह की समस्या बताने वाले को सभा में पहुंचने और बोलने से रोकने का निर्देश हो। पर ऐसा लगता है कि अधिकारी पहले से पता करते रहते हैं कि कौन सीएम की सभा में क्या बोल सकता है, और वे अपने बचाव का इंतजाम पहले से करने की कोशिश में होते हैं। ([email protected])
न्यौते का मौका
प्रदेश भाजपा के बड़े नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही है। इसमें रमन सिंह, विष्णुदेव साय, रेणुका सिंह, नारायण चंदेल, अजय चंद्राकर, अजय जामवाल, और पवन साय हिस्सा ले रहे हैं। इससे परे धरमलाल कौशिक, बृजमोहन अग्रवाल, और प्रेमप्रकाश पाण्डेय भी दिल्ली में डटे हैं। ये निजी काम से आए हैं।
बताते हैं कि कौशिक के बेटे की शादी 30 तारीख को बिलासपुर में है। वो पार्टी नेताओं को निमंत्रण पत्र बांटने आए हैं। बृजमोहन भी प्रेमप्रकाश पाण्डेय के साथ निमंत्रण पत्र बांट रहे हैं। बृजमोहन की बेटी की शादी भी 5 और 6 फरवरी को रायपुर में है। चूंकि भाजपा के सारे बड़े नेता दिल्ली में ही हैं। ऐसे में निमंत्रण पत्र बांटने के लिए उचित अवसर भी है। इन विवाह समारोहों में शिरकत करने पार्टी के कई राष्ट्रीय नेता आ सकते हैं।
जब सैंया भये कोतवाल...
जगह-जगह करिश्मे के दावे करके विवादों में घिरे हुए, और अभी नागपुर में अंधविश्वास निर्मूलन समिति की चुनौती की वजह से पूर्व घोषित कार्यक्रम छोडक़र भागे हुए मध्यप्रदेश के एक स्वघोषित चमत्कारी, बागेश्वरधाम सरकार का रायपुर आना हुआ है, और इस बार यहां पर उनके कार्यक्रम का बीड़ा शहर विधायक विकास उपाध्याय ने उठाया है। कल शहर की सडक़ों पर सैकड़ों लोगों के साथ विकास उपाध्याय संगीत पर नाचते दिखे जो कि बागेश्वरधाम सरकार की कलश यात्रा बताई गई। इसके बाद आज विकास उपाध्याय इस चर्चित और विवादास्पद ‘सरकार’ का स्वागत करते दिखे। अब चुनाव सामने हैं इसलिए लडऩे की तैयारी में लोग शंकर से लेकर राम तक की कथा करवा रहे हैं। विकास उपाध्याय लगातार एक के बाद दूसरा ऐसा कार्यक्रम करवा रहे हैं। अब वे पुलिस विभाग से जुड़े हुए संसदीय सचिव भी हैं, और ऐसे में इस विवादास्पद बागेश्वरधाम सरकार के खिलाफ चमत्कार के दावों की शिकायतों पर पुलिस भला क्या कर लेगी! अभी तो पुलिस का हाल यह है कि किसी भी धर्मस्थल पर बजते लाउडस्पीकरों की शिकायत करने पर, पुलिस वहां जाकर शोर करते पोंगे का मुंह दूसरी तरफ करवा देती है ताकि लगातार शिकायत करने वाले लोगों की तरफ शोर सीधा न जाए। ऐसे में विकास उपाध्याय जैसा जजमान हो तो कोई भी चमत्कारी कानून तोड़ते हुए भी हिफाजत से लौट सकता है।
लडक़ी के लडऩे का सही मौका
प्रियंका गांधी उत्तरप्रदेश और हिमाचल चुनाव के चलते छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, और उनके राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा के बहुत करीब रही हैं। और इसे दिल्ली में भूपेश बघेल की बड़ी ताकत कहा जाता है। अब प्रियंका ने उत्तरप्रदेश में 40 फीसदी सीटें लड़कियों और महिलाओं को देने की बात कही थी, यह सही मौका है कि छत्तीसगढ़ में भी 40 फीसदी सीटें इस तबके को दी जाएं। यहां गांव-गांव तक हर जाति और आरक्षित वर्ग की महिलाएं पंच और सरपंच बनते आई हैं, शहरों में वे पार्षद और महापौर तक बन रही हैं। इसलिए यह तर्क बिल्कुल फिजूल का रहेगा कि पर्याप्त महिला उम्मीदवार नहीं मिलेंगीं। इन्हीं 90 विधानसभा सीटों पर जब हजारों निर्वाचित महिला पंच-सरपंच, और पार्षद हैं, तो फिर 35-40 महिला विधानसभा चुनाव उम्मीदवार क्यों नहीं मिल सकतीं? और अब तो कांग्रेस पार्टी की तरफ से छत्तीसगढ़ की प्रभारी भी एक महिला, कुमारी शैलजा है, इसलिए छत्तीसगढ़ के लोगों को यह मांग उठानी चाहिए।
आसमान से फायरिंग मानने में दिक्कत
छत्तीसगढ़ के बस्तर में हेलीकाप्टर से हुए, जवाबी कहे जा रहे, गोलियों के हमले से नक्सलियों के मारे जाने की खबर है, लेकिन तीन दिन पहले जब यह घटना हुई तो उसके बाद देर तक कोई भी अफसर कुछ भी कहने को तैयार नहीं थे, बाद में अगले दिन सीआरपीएफ ने एक बयान जारी किया क्योंकि हेलीकाप्टर में सीआरपीएफ के जवान ही थे, और जमीन से नक्सलियों की चलाई गई गोलियों के जवाब में गोली चलाने की खबरें चारों तरफ आ चुकी थीं। लेकिन सीआरपीएफ का यह बयान बहुत ही चतुराई के साथ लिखा गया था, और इसमें इतना तो लिखा गया कि हेलीकाप्टर से उतरते वक्त कोबरा बटालियन और नक्सलियों के बीच फायरिंग हुई, लेकिन एक शब्द भी ऐसा नहीं लिखा गया जिससे कि यह स्थापित हो कि हेलीकाप्टर सवार जवानों ने फायरिंग की थी। सरकार नक्सलियों पर जवाबी हमले के रूप में भी हेलीकाप्टर से फायरिंग की बात को मंजूर नहीं कर रही है, जबकि सीआरपीएफ के भीतरी रिकॉर्डों में इसे हवा से जमीन पर गोलीबारी बताया गया।
मीठा बुलवाने का तरीका
सुप्रीम कोर्ट इस बात को लेकर बहुत खफा है कि टीवी चैनलों के एंकर अपने मैनेजमेंट के उकसावे से हवा में साम्प्रदायिक जहर घोलने में लगे हुए हैं। उसने सरकार से बड़े कड़े सवाल भी किए हैं। अभी मकरसंक्रांति पर तिल-गुड़ के लड्डुओं के बीच किसी ने यह सलाह दी कि ऐसे तमाम एंकरों को कटघरे में खड़ा करके सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि उनके मुंह ऐसे लड्डुओं से भरकर कुछ दिन रखने की सजा उन्हें सुनाई जाए, ताकि बाद में उनके मुंह से कुछ मीठा-मीठा भी निकल सके। देश के सबसे जहरीले टीवी एंकरों की आज की व्यवस्था में भारी इज्जत है, और जब तक सुप्रीम कोर्ट कुछ को सजा न सुनाए, वे अपने आकाओं के सामने अब शहीद की तरह खड़े हो जाएंगे कि सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी झेलकर भी वे नफरत फैलाने में लगे हुए हैं।
यह है भूतिया तीखी मिर्च
नागालैंड भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और नागा सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री तेमजे इमना अलोंग कई दिलचस्प पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं, जो हमें पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और सामाजिक गतिविधियों से रूबरू कराती है। हाल में उन्होंने भूतिया मिर्च के बारे में जानकारी दी। असम, मणिपुर, नागालैंड के अलावा भूटान मैं भी इसकी खेती होती है। सन् 2007 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने प्रमाणित किया कि यह दुनिया की सबसे तीखी मिर्ची है। तीखापन नापने का एक पैमाना है स्कोविल हीट यूनिट (एसएचयू)। इसमें 10 लाख यूनिट मौजूद होता है। दिलचस्प यह है कि इसको तीखेपन के कारण भूतिया नहीं कहा जाता बल्कि भूटान का अपभ्रंश भूतानी या भूत हो गया। असम में इसे तेजपुर मिर्ची कहते हैं। कहीं-कहीं इसे किंग कोबरा चिली के नाम से भी जाना जाता है। सबसे तीखी मिर्च उगाने की होड़ में सन् 2011 में त्रिनिदाद ने एक स्कॉर्पियन बुच की नाम की मिर्ची उगाई । आगे बढ़ गई पर बाद में फिर भूतिया मिर्ची से पिछड़ गई। सन् 2012 में कैरोलिना रिपर नाम की मिर्ची ने गिनीज बुक में जगह बना ली थी। फिर से भूतिया मिर्च ने उसे पीछे कर दिया।
छत्तीसगढ़ के पारंपरिक भोजन में तीखी मिर्च का होना जरूरी है। नए चावल का चीला हरी मिर्च की चटनी के साथ, इस मौसम में खूब प्रचलित है। बीज विक्रेता बताते हैं कि भूतिया मिर्ची यहां भी उगाई जाती है लेकिन व्यावसायिक तौर पर नहीं। मिर्च के थोक व्यापारी भी इसे मंगाते हैं। यानि छत्तीसगढ़ में इसकी खपत है। विदेशों में इसकी काफी मांग है। अमेरिका में कुछ लोकप्रिय ब्रांड के सॉस इसी से बनाए जाते हैं। वाड्रफनगर में जईया नाम की मिर्च उगाई जाती है जो काफी तीखी होती है। यह कोलेस्ट्राल और मधुमेह के लिए भी उपयोगी है। बस्तर में कई जगह बड़े पैमाने पर मिर्च की फसल ली जाती है, जिसका दूसरे राज्यों में निर्यात भी होता है।
सरकारी दवाएं मिल रही कूड़ेदान में
रतनपुर नगर की स्वच्छता दीदियां कचरा गाडिय़ों में सरकारी दवाएं कूड़ेदान तक पहुंचा रही थीं। लोगों ने देखा तो उसे निकालकर बस-स्टैंड के पास बाजार में सजा दिया। बताया गया है कि यह तो कूड़ेदान में फेंकी गई दवाओं का एक थोड़ा सा हिस्सा है। पूरा माल कचरे के ढेर से निकाला जा सकेगा।
आईएएस की दबंगई
छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों एक आयोग से आउट होने वाले एक आईएएस अपनी हरकतों के कारण सुर्खियों में थे। कहा जा रहा था कि आयोग से हटने के लिए उन्होंने उटपटांग हरकत का सहारा लिया था, क्योंकि आयोग की पोस्टिंग लूप लाइन मानी जाती है। ऐसा कहकर उनकी बेहूदगी पर परदा डालने की कोशिश करने वालों को पता होना चाहिए कि साहब आदतन बेहूदगीपसंद हैं और जहां भी रहे अपनी हरकतों के कारण चर्चा में रहे। उनके किस्सों की परत धीरे-धीरे खुल रही है।
बताया जा रहा है कि हालिया घटना के आसपास उन्होंने शहर के एक पुराने महाविद्यालय में भी जमकर हंगामा किया। वे यहां से वकालत की परीक्षा दिला रहे हैं। परीक्षा दिलाने पहुंचे आईएएस साहब ने पहले तो स्टॉफ और प्रोफेसर्स पर रौब दिखाना शुरू किया। शिक्षकों को निर्देशित करते हुए परीक्षा देने के लिए अपने लिए अलग कक्ष की व्यवस्था के लिए दबाव बनाया। समझाने-बुझाने पर जब वे नहीं माने तो उन्हें एचओडी के कक्ष में पर्चा लिखने के लिए बिठाया गया। हद तो तब हो गई जब वे महिला एचओडी के सामने किताब खोलकर उत्तर लिखने लगे और वे लगातार सभी को आईएएस हैं, कुछ भी कर सकते हैं, कहकर धमकाते रहे। बताया जा रहा है कि कुछ देर बाद जब इसकी भनक परीक्षा सहप्रभारी को लगी तो उन्होंने उनसे किताब छीनकर उत्तर लिखने को कहा तो वे एकदम से तमतमा गए और धमकाने के अंदाज में कहा कि जानते नहीं हो मैं कौन हूं ? तबादला करवाने की धमकी देते हुए उन्होंने नकल पकडऩे वाले अधिकारी के साथ जमकर बदतमीजी की। हालांकि कुछ देर बाद वे परीक्षा बीच में छोडक़र उत्तर पुस्तिका जमा करके चले तो गए, लेकिन परीक्षा खत्म होने के बाद फिर कॉलेज धमक गए और प्राचार्य से उलझ गए। पिछले कुछ समय से राजधानी के इस महाविद्यालय में हर साल आईएएस-आईपीएस वकालत की पढ़ाई के लिए दाखिला लेते हैं। उनमें कई बड़े नाम भी हैं, कुछ टॉपर भी रहे हैं। कॉलेज भी ऐसे होनहार को एडमिशन देकर गर्व महसूस करता था, लेकिन इस आईएएस की हरकत ने शिक्षा के मंदिर को भी शर्मसार कर दिया है।
ईडी का डर
छत्तीसगढ़ के अफसरों को ईडी का डर जमकर सता रहा है, क्योंकि ईडी आईएएस अफसरों को लगातार निशाना बना रही है। राज्य के चार आईएएस ईडी के शिकंजे में फंस चुके हैं। पहली बार किसी जिले के कलेक्टर के सरकारी आवास तक में कार्रवाई की गई। कहा जा रहा है कि कुछ और अधिकारी निशाने पर हैं। ऐसे में अधिकारियों का चितिंत होना स्वाभाविक है। मजाकिया अंदाज में लोग कहने लगे हैं कि हिन्दी सिनेमा के अमिताभ बच्चन की तरह ईडी के अधिकारी छत्तीसगढ़ में यहां-वहां घूम रहे हैं। खैर, जो भी हो, आईएएस लॉबी सकते में तो है। जैसे-तैसे उनके दिन कट रहे हैं और सब अपने-अपने तरीके से बचने की कोशिश भी कर रहे हैं। चर्चा है कि एक आईएएस अधिकारी ने तो स्वयं के खर्चे पर सुरक्षा कर्मी रख लिए हैं। अब ये ईडी के डर से है या फिर कुछ और कारण से। इस बारे में तो ठीक-ठीक कुछ पता नहीं, लेकिन हालिया छापे के बाद उनके साथ सुरक्षा कर्मी देखकर तो यही काना-फूसी हो रही है कि उनको भी ईडी का डर सता रहा है।
खड़ी कोच में रेस्टॉरेंट
यात्री किराये के अलावा दूसरे साधनों से आमदनी बढ़ाने की रेलवे की नीति के तहत देशभर के कई स्टेशनों में रेल कोच रेस्टॉरेंट चालू किए गए हैं। भोपाल व जबलपुर रेल मंडल मुख्यालय में ये रेस्टॉरेंट पिछले साल से शुरू हो गए हैं। अब छत्तीसगढ़ के दोनों रेलमंडल बिलासपुर व रायपुर के अलावा नागपुर में भी इसकी शुरूआत की जा रही है। ऐसे रेल कोच जो पुराना हो जाने के कारण दौड़ाए नहीं जा सकते, उन्हें प्राय: कबाडिय़ों को बेच दिया जाता है। इनमें कुछ अच्छी हालत के कोच अतिरिक्त साज-सज्जा के बाद रेस्टॉरेंट के रूप में बदल दिए जाएंगे। सीटिंग व्यवस्था में भी थोड़ा बदलाव किया जाएगा। बिलासपुर में स्टेशन के बाहर सिटी बस स्टैंड के पास इसे सबसे पहले चालू करने की योजना पर काम हो रहा है। कोच के भीतर बैठकर चाय-नाश्ते की सुविधा मिलने से यात्रियों को ट्रेन में सफर करने का एहसास होगा।
पंख नहीं लग पाए उड़ान योजना को
मोदी सरकार ने सन् 2017 में उड़ान योजना शुरू की थी, जिसमें छोटे शहरों को सस्ते किराये में हवाई सुविधा का लाभ दिलाने की बात थी। उड़ान का पूरा नाम ही है- उड़े देश का आम नागरिक। मगर यह योजना देशभर में धीमी रफ्तार से चल रही है। पांच सालों में करीब 47 प्रतिशत उड़ानें शुरू हो पाई हैं। बिलासपुर में हाईकोर्ट का दबाव पडऩे के बाद किसी तरह चालू हुआ। दो साल से ज्यादा वक्त बीत चुका। अब तक महानगरों के लिए एक भी सीधी उड़ान शुरू नहीं हुई है। दिल्ली के लिए उपलब्ध फ्लाइट व्हाया जबलपुर, इंदौर और प्रयागराज है। मुंबई, कोलकाता आदि शहरों के लिए तो हैं ही नहीं। इसी तरह जगदलपुर में भी उड़ानों की संख्या बढ़ाने की लगातार मांग हो रही है। यहां एलायंस एयर की केवल एक फ्लाइट चल रही है। दोनों ही जगह रनवे की लंबाई बढ़ाने की मांग है। पर बिलासपुर में अतिरिक्त जमीन सेना के कब्जे में है तो जगदलपुर में डीआरडीओ के। दोनों ही जगह नए टर्मिनल का काम भी प्रस्तावित है। बिलासपुर में तो इसके लिए फंड का आवंटन भी हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह बयान लोग याद करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि हवाई चप्पल वाले भी हवाई जहाज में सफर कर सकेंगे। पर बिलासपुर का ही उदाहरण लें तो ऐसा नहीं है। दिल्ली के लिए रायपुर से लगभग दो गुना किराया बिलासपुर से उडऩे पर लग जाता है। इन दोनों शहरों के अलावा अंबिकापुर और कोरबा में उड़ान लागू करने की योजना थी। दो साल पहले जब 196 नये रूट तय किए गए तो सिर्फ बिलासपुर ही छत्तीसगढ़ के हिस्से में आया था। अंबिकापुर से पटना, वाराणसी, रांची आदि शहरों के लिए फ्लाइट की मांग है। यहां का हवाईअड्डा व्यावसायिक उड़ानों के लिए लगभग तैयार हो चुका है। पर फ्लाइट शुरू होने का कोई संकेत नहीं है।
अधर में स्मार्ट सिटी योजना
केंद्र की मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में घोषित की गई 100 स्मार्ट सिटी परियोजनाएं अब अंतिम सांसें गिन रही हैं। जो प्रोजेक्ट जारी हैं केवल उन्हें पूरा करने कहा गया है। नया टेंडर निकालने से मना किया गया है। छत्तीसगढ़ में रायपुर, बिलासपुर और नया रायपुर में यह परियोजना लाई गई थी। अधिकारियों के वर्चस्व, जनप्रतिनिधियों की शून्य भूमिका वाली इस योजना की वैधानिक स्थिति पर सवाल करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की जा चुकी है। रायपुर के नगर निगम आयुक्त ने संकेत भी दे दिया है कि केंद्र ने जून 2023 तक सारा काम समेट लिया जाएगा। एक तरफ नगर-निगम आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, दूसरी तरफ तीनों ही शहरों में स्मार्ट सिटी के नाम पर अनाप-शनाप खर्च किए गए। शहर विकास में असंतुलन साफ दिखाई देता है। अनेक निर्माण कार्य पूरा होने के बाद खंडहर में बदल चुके हैं। विज्ञापनों और इंवेंट्स पर बेतहाशा और बिना मापदंड के खर्च किए गए। खर्च की गई रकम की अब तक ऑडिट भी नहीं कराई गई है। हाईकोर्ट में इस पर भी सवाल उठा तब स्मार्ट सिटी कंपनी लिमिटेड की तरफ से बताया गया है कि महालेखाकार को खर्च की जांच करने के लिए कहा गया है। लोग कह रहे हैं कि यह एक अव्यावहारिक योजना थी, जिसे खत्म का करने का फैसला ठीक ही है। अच्छा हो, इसकी बजाय केंद्र सीधे नगर-निगम से प्रोजेक्ट मंगाकर राशि आवंटित करे।
आरक्षण, सब धुँधला
आरक्षण विवाद के चलते सरकार के विभागों में नियुक्ति-पदस्थापना के लिए अलग-अलग मापदंड अपनाए जा रहे हैं। फूड इंस्पेक्टरों की चयन सूची जारी हो गई थी। इसी बीच हाईकोर्ट के आरक्षण पर फैसले के बाद आदेश जारी नहीं हो पाए थे, लेकिन बाद में विधि विभाग के परामर्श के बाद पदस्थापना आदेश जारी हो गए, लेकिन एक निर्माण विभाग में पदस्थापना आदेश को विभागीय सचिव ने यह कहकर रोक दिया कि आरक्षण पर स्थिति साफ होने के बाद ही जारी करना उचित होगा। हाल यह है कि करीब 5 सौ से अधिक इंजीनियरों की पोस्टिंग पिछले 8 महीने से रुकी पड़ी है।
मैच का श्रेय जय या राजीव को ?
श्रेय कोई भी ले या जिस किसी को भी दिया जाए वो बाद में तय कर लें। फिलहाल तो सबके प्रयास से रायपुर, क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय नक्शे में शामिल हो जाएगा 21 तारीख को। बात यही खत्म नहीं हो रही है। मैच के आयोजक मंडल में श्रेय का हार पहनाने, पहनाने की होड़ देखी सुनी जा रही है। भाजपा की विचारधारा के सदस्य पदाधिकारी रायपुर को मैच देने का श्रेय बीसीसीआई के अध्यक्ष जय शाह को दे रहे हैं तो कांग्रेस विचारधारा वाले उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला को। राजीव, हाल में छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद, चुने गए हैं, सो वो छत्तीसगढ़ का कर्ज उतार रहे हैं। अध्यक्ष जय शाह, ने पापा के प्लान पर काम करते हुए वेन्यू तय किया हो। जय, महीनों पहले से इस पर काम कर रहे थे, वे स्टेडियम भी देख गए थे जब रायपुर होकर कान्हा किसली अभ्यारण्य गए। श्रेय कोई भी ले छत्तीसगढ़ वासियों को अपने स्टार क्रिकेटर को लाइव देखने का अवसर मिल रहा है।
जुर्माना मंजूर पर गांव जाना नहीं
छत्तीसगढ़ से पास आउट होने वाले करीब दो दर्जन एमबीबीएस डिग्रीधारियों ने ग्रामीण क्षेत्रों में 2 साल तक सेवा देने की जिम्मेदारी से बचने के लिए जुर्माना देने का विकल्प चुना है। यह संख्या 1 माह पहले करीब 80 थी। मगर धीरे-धीरे कई डिग्रीधारी वापस लौट आए। अब यह प्रावधान कर दिया गया है कि अगर बांड या जुर्माना नहीं भरेंगे तो उन्हें डिग्री नहीं सौंपी जाएगी। उनको प्रोविजनल डिग्री दी जाती है जिसके आधार पर उन्हें प्रैक्टिस की अनुमति नहीं मिलती। सन् 2000 तक जुर्माना करीब 5 लाख होता था पर इसे अब बढ़ाकर 50 लाख कर दिया गया है। यह देखने में आया है कि जिन डॉक्टरों ने ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने का विकल्प भी चुना है वह ऊंचे स्तर पर सिफारिश लगाते हैं और शहर से लगे हुए गांवों को प्राथमिकता देते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां एक बड़ी आबादी दूरस्थ आदिवासी इलाकों में रहती है और वहां सुविधाओं का अभाव है डॉक्टर 2 साल का भी संघर्ष वाला समय बिताने के लिए राजी नहीं होते हैं। सीनियर तो छोड़ें, नयों की भी यह मानसिकता बन जाती है।
एक और दिल्ली की ओर
प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक आईपीएस अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। एक और अफसर डी श्रवण भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए सरकार से अनुमति मांगी है। आईपीएस के वर्ष-2008 बैच के अफसर श्रवण नांदगांव, कोरबा में एसपी रह चुके हैं। डीआईजी स्तर के अफसर श्रवण की साख भी अच्छी है। कहा जा रहा है कि वो आईबी में पोस्टिंग के इच्छुक हैं। देखना है सरकार श्रवण के आवेदन पर क्या कुछ करती है।
कर्नाटक का स्पष्ट फैसला
कर्नाटक हाईकोर्ट ने वहां की राज्य सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदाय को आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था। इससे पहले भाजपा शासित मध्यप्रदेश, और उत्तर प्रदेश में भी आरक्षण बढ़ाने के फैसले पर वहां के उच्च न्यायालय रोक लगा चुके हैं। ये स्थानीय व नगरीय निकाय चुनावों से संबंधित थे। झारखंड में आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव लगभग छत्तीसगढ़ के साथ-साथ ही विधानसभा में लाया गया था। वहां भी राज्यपाल ने दस्तखत नहीं किया। ठीक उसी तरह जैसे छत्तीसगढ़ में नहीं किया गया।
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले में खास बात यह कि वहां कोर्ट ने आरक्षण की पुरानी व्यवस्था जारी रखने का आदेश साथ में जोड़ भी दिया है। छत्तीसगढ़ में यह स्थिति नहीं है। यहां हाईकोर्ट ने यह नहीं बताया है कि 58 प्रतिशत अवैध तो वैध कौन सा माना जाए। इसके चलते यह कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में कोई भी आरक्षण लागू नहीं है। हालांकि हाल ही में हाईकोर्ट ने अपने यहां हो रही संविदा भर्ती पर 2012 के पूर्व की स्थिति के आधार पर आरक्षण दिया है। सरकार इसे आधार मानकर कोई निर्णय लेने वाली है ऐसा कोई संकेत अब तक नहीं मिला है। इसके चलते विभिन्न तकनीकी महाविद्यालयों और प्रतियोगी परीक्षाओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
मेले के पहले राजिम
राजिम के त्रिवेणी संगम का प्रयाग से कम महत्व नहीं है। छत्तीसगढ़ में बहुत से लोग अस्थियां विसर्जन के लिए यहां आते हैं। 15 साल की भाजपा सरकार और अब कांग्रेस सरकार ने इसका वैभव और सौंदर्य बढ़ाने के लिए कई योजनाओं की घोषणाएं की। आज जब यहां मकर संक्राति पर्व मनाया जा रहा है और अगले महीने पुन्नी मेला आयोजित होने वाला है। अभी हाल कैसा है? यहां से लौटकर लोग बता रहे हैं कि अस्थि विसर्जन के लिए भी जगह ढूंढनी पड़ रही है, जहां पानी हो। 12 महीने पानी मिले इसके लिए तीन एनिकट 500 मीटर की दूरी पर बना दिए गए- लेकिन सब सूखे। नवीन मेला मैदान चार सालों से बन रहा है तो बन ही रहा है। अब तक अधूरा। यात्री प्रतीक्षालय, सडक़, नाली की हालत भी अच्छी नहीं। फरवरी में मेले के दौरान अफसर कुछ अस्थायी कार्य कर इन कमियों को ढंक जरूर लेंगे पर आस्था और पर्यटन के हिसाब से सालभर पहुंचने वाले यात्री मायूस होकर लौटते हैं।
रौशन रहे विरासत
ऐसा जुगाड़ अपने इंडिया में ही हो सकता है। दादा-दादी के जमाने के लालेटन का इस्तेमाल करने का मन है, पर बाती और तेल का इंतजाम नहीं होता। आइडिया आया, तेल की जगह बिजली का करंट और बाती की जगह सीएफएल। ([email protected])
ईडी और सुगबुगाहट
छत्तीसगढ़ में ईडी के ताजा छापों के बाद सरकार, राजनीति, और सरकार से जुड़े कारोबार में खलबली मची हुई है। मसूरी में ट्रेनिंग पूरी करके राज्य के डेढ़ दर्जन आईएएस घरवापिसी की ओर हैं, और अफसरों से ईडी की पूछताछ अभी चल ही रही है। राज्य के बीज निगम के अध्यक्ष अग्नि चंद्राकर पर ईडी का छापा दामाद सूर्यकांत तिवारी की वजह से पड़ा है, या बीज निगम के कुख्यात घपलों की वजह से, यह बात तो आगे जाकर साफ होगी, लेकिन लोगों का मानना है कि दसियों हजार महिलाओं का काम छीनकर जिस तरह बीज निगम के रास्ते पोषण आहार बनवाया जा रहा था, उन महिलाओं की आह का कुछ तो असर होना ही था।
फिलहाल इस बात की बड़ी सुगबुगाहट है कि ईडी को बयान देने वाले प्रदेश के कुछ कारोबारी, और दूसरे लोग अपने बयान से पलटने वाले हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बार-बार सार्वजनिक रूप से यह बात कहते आए हैं कि ईडी के जांच अफसर लोगों को मारपीट रहे हैं, प्रताडि़त कर रहे हैं। अभी ऐसी सुगबुगाहट है कि ऐसी प्रताडऩा का आरोप लगाते हुए कुछ लोग अपने दस्तखत किए बयानों से पलट सकते हैं।
सॉफ्ट कॉर्नर की चर्चा
साइंस कॉलेज के समीप निर्माणाधीन यूथ हब के विरोध में पूर्व मंत्री राजेश मूणत की अगुवाई में भले ही भाजपा नेता रायपुर-दिल्ली एक कर रहे हैं, मगर तीन साल पहले टेंडर हुआ था, तब सबने चुप्पी साध ली थी। कांग्रेस के लोग उस ताकतवर ठेकेदार को कोस रहे हैं, जिसने विलंब से काम शुरू किया, और इसकी वजह से भाजपा को मौका मिल गया। अब तक तो यूथ हब बनकर तैयार हो गया होता। खैर, चुनावी साल है, इसलिए कुछ न कुछ चलेगा। लेकिन विरोध-प्रदर्शन के बीच मूणत ने एक तरह से मेयर एजाज ढेबर को क्लीन चिट देकर सबको चौंका दिया है।
मूणत ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्मार्ट सिटी में घपले-घोटालों पर मेयर का आज-कल में स्पष्टीकरण आ जाएगा कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है। अब कौन-कौन अफसर आ रहे हैं, हमें इस पर ध्यान देना होगा। मूणत का मेयर के लिए सॉफ्ट कॉर्नर देखकर कार्यकर्ताओं में कानाफूसी होती रही। यही नहीं, मूणत के साथ पार्षद स्मार्ट सिटी में घपले-घोटाले की जांच के लिए केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से मिले, तो उन्होंने कहा बताते हैं कि सांसद सुनील सोनी जी पहले ही यह सब दे चुके हैं, और इसकी जांच कराएंगे। यानी दिल्ली दौरे का कोई नया प्रभाव नहीं पड़ा।
सॉफ्ट कॉर्नर का राज
पूर्व मंत्री राजेश मूणत के मेयर एजाज ढेबर के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर की राजनीतिक गलियारों में जमकर चर्चा है, और इसको कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से जोडक़र देखा जा रहा है। यूथ हब का निर्माण रायपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में हो रहा है, और इसके विधायक विकास उपाध्याय हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि विकास का मेयर एजाज ढेबर से छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों के बीच बोलचाल तक नहीं है।
और तो और ढेबर ने पिछले दिनों यूथ हब के समर्थन में राजीव भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस ली थी, तो विकास उपस्थित नहीं थे। यूथ हब पर विकास एक तरह से खामोश हैं। चर्चा है कि मूणत ने ढेबर के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर दिखाकर भविष्य में अपने लिए सहयोग का पुल तैयार किया है। चुनाव में उन्हें, या भाजपा को इसका कितना फायदा मिलता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
निजी प्रैक्टिस का क्या होगा?
सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ओपीडी का समय बदलने का फरमान निकाला गया है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने गुरुवार को बैठक ली थी, जिसमें नया समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक तय किया गया। रजिस्ट्रेशन भी आधा घंटे पहले शुरू किया जाएगा जो दोपहर 2 बजे तक जारी रहेगा। पहले ओपीडी दोपहर 2-3 बजे तक ही खुलता था। खुलने का समय सुबह 8 बजे रखा गया था। अनेक डॉक्टर इस समय का पालन करते आ रहे हैं। मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के कई विभागों में बड़ी भीड़ रहती है। मगर, बहुत से डॉक्टर ऐसे भी हैं जो एक दो घंटे या उससे अधिक देर से पहुंचते हैं। सब चल रहा था। सुविधाजनक था ओपीडी बंद होने का समय। आराम कर लेने के बाद भी खासा समय बच जाता था कि शाम के समय निजी प्रैक्टिस कर लें। लगातार आठ घंटे, 5 बजे तक ड्यूटी मेडिकल कॉलेज में ही करनी पड़ी, तो समय कहां बचेगा? डॉक्टरों के बीच इस नए समय को लेकर नाराजगी है, जो अभी फूटी नहीं है। कुछ निश्चिंत भी हैं, पहले भी अपने हिसाब से आते-जाते थे, अब भी वैसा ही करेंगे। वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव ही नहीं इसके पहले के मंत्री भी बार-बार ध्यान दिलाते रहे हैं कि प्रदेश में डॉक्टरों की कमी है, उन पर कड़ा एक्शन लिया नहीं जा सकता।
शाह के दौरे के बाद का हमला
नक्सलियों ने एक बार फिर सुरक्षा बलों पर हवाई हमला करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सन् 2021 से 2023 के बीच तीन बार ऐसा हुआ है। सब-जोनल ब्यूरो की समता की ओर से जारी पर्चे के मुताबिक दक्षिण बस्तर के सरहदी 15 गांवों में जंगल, पहाड़ों को निशाना बनाकर ड्रोन और हेलीकॉप्टर से बम गिराये गए। उन्होंने कुछ तस्वीरें जारी कर दावा किया कि ये हमलों के अवशेष हैं। एक महिला नक्सली पोटाम हूंगी के शव की तस्वीर भी इनमें है। दावा है कि इसी हवाई हमले से उसकी मौत हुई। नक्सली दावे के मुताबिक हमले में तेलंगाना पुलिस भी शामिल थी। उन्होंने अपने एक कमांडर हिड़मा की मौत के सुरक्षा बल दावे का खंडन भी किया है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक हिड़मा झीरम घाटी सहित हमले की 27 घटनाओं में शामिल रहा है। दूसरी ओर सीआरपीएफ और बस्तर के आईजी सुंदरराज पी. ने हवाई हमले के आरोप को बेबुनियाद बताया है। उनका कहना है कि नक्सली संगठन में बिखराव हो रहा है। वे कमजोर पड़ रहे हैं, यह आरोप बौखलाहट का नतीजा है।
सन् 2021 में सुरक्षा बलों ने 23 कैंप खोले, जो अब तक का एक रिकॉर्ड है। प्राय: ये कैंप बफर जोन में खुलते थे, पर इस बार ज्यादातर अंदरूनी इलाकों में खोले गए हैं। बस्तर संभाग के सभी सात जिलों में तीन सालों के भीतर कुल 54 कैंप खोले जा चुके हैं, जिनमें सर्वाधिक 13 कैंप सुकमा जिले में हैं। दावा है कि इनके खुल जाने के कारण आंगनबाड़ी, स्कूल भवनों, मड़ई, बाजारों में चहल-पहल बढ़ी। सडक़, पुल-पुलिया, अस्पताल आदि बनाने के काम में तेजी आई।
पर यह ध्यान रखना होगा कि कैंप खोलने का कई जगह विरोध हुआ, गोलियां चली, लोग मारे भी गए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 7 जनवरी को अपने छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान मंशा जताई थी कि सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले नक्सल समस्या का अंत कर दिया जाएगा। यह संयोग ही है कि नक्सली जिसे हवाई हमला बता रहे हैं, वह शाह के दौरे के तीन दिन बाद ही हुआ। हालांकि दिसंबर के अंतिम सप्ताह में ही सन् 2023 का एक्शन प्लान बनाने के लिए डीजीपी ने एक बैठक जगदलपुर में रखी थी, जिसमें इस वर्ष एंटी नक्सल ऑपरेशन तेज करने और संभाग के सभी गांवों को नक्सलमुक्त का संकल्प लिया गया था।
इस साल की शुरूआत में मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुशी जताई थी कि बस्तर का माहौल बदल रहा है। नक्सली वारदातों में कमी आने और अंदरूनी इलाकों तक सुरक्षा बलों की पहुंच बनाने का उन्होंने खास तौर पर उल्लेख किया था। उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीणों में सुरक्षा बलों के प्रति समझ में बदलाव आया है। पहले गांवों में इनके प्रवेश करने पर धारणा बनती थी कि फोर्स हमें मारने, गिरफ्तार करने आई है, पर अब दोनों ओर से मित्रवत् व्यवहार हो रहा है।
निश्चित ही, सुरक्षा बल ही नहीं, प्रशासन के दूसरे विभागों के तैनात अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों पर बस्तर के लोग जिस दिन पूरा भरोसा करने लगेंगे, हिंसा के पैर उखड़ेंगे और नई सुबह आ जाएगी। तब फिर कैंपों की संख्या बढ़ेगी नहीं, घटेगी। हवाई या जमीनी दोनों तरह के हमले की जरूरत नहीं रह जाएगी।
इस बार के ईडी छापों का राज
कई दिनों के बाद ईडी ने आज सुबह फिर छत्तीसगढ़ में कई जगह छापेमारी की है, और एक आईएएस दम्पत्ति के घर पर भी अभी जांच और तलाशी चल रही है। अंबलगन पी. अभी जल संसाधन, संस्कृति एवं पर्यटन सचिव हैं, और उनकी पत्नी अलरमेलमंगई डी. नगरीय प्रशासन सचिव हैं, और वित्त विभाग में भी सचिव हैं। अभी की जानकारी के अनुसार यह छापा अंबलगन पी. पर पड़ा है, और उनके भिलाई के 32 बंगले कॉलोनी के मकान पर जांच चल रही है। यह समझ पड़ता है कि वे खनिज सचिव भी थे, और उस दौरान कोयले की उगाही या लौह अयस्क की खदानों के मामलों को लेकर वे ईडी की जांच के घेरे में थे, और कुछ हफ्ते पहले अदालत में ईडी द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट में उनका भी जिक्र था। वह चार्जशीट वैसे तो कांग्रेस नेता सूर्यकांत तिवारी और आईएएस समीर बिश्नोई के खिलाफ थी, लेकिन उसमें कुछ जगहों पर अंबलगन पी. का नाम भी था, और उन्हें कांफ्रेंस कॉल पर लेकर बात करने की घुडक़ी भी सूर्यकांत तिवारी दे रहा था।
बीएसपी के बंगलों पर करोड़ों खर्च
भिलाई में राज्य सरकार के आईएएस और आईपीएस अफसरों की महिमा अपरंपार है। अपने बच्चों को भिलाई की बेहतर स्कूलों में पढ़वाने के लिए राज्य के ये अफसर बीएसपी से बंगला अलॉट करवा लेते हैं, और फिर पूरी जिंदगी ऐसे बंगले रखे रहते हैं। इन बंगलों में या तो बीएसपी की मेहरबानी से, या राज्य सरकार के कुछ विभागों के अघोषित खर्चों से, या ठेकेदारों और कारोबारियों को धमकाकर करोड़ों का काम करवाया जाता है। ये बंगले पहचान में नहीं आते, और ऐसा खर्च करवाने वाले अफसर इसे नाजायज इसलिए नहीं मानते कि यह उनकी निजी सम्पत्ति तो है नहीं, और वे तो यह सब किया-कराया यहीं छोड़ जाएंगे। यह एक अलग बात है कि अफसर आमतौर पर इन बंगलों को रखे ही रहते हैं।
आज अंबलगन पी. के जिस बंगले पर यह जांच चल रही है, उसके बारे में एक दूसरी जांच एजेंसी के अफसर ने कहा कि इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि बीएसपी के ढांचे जैसे मकान को बंगला बनवाने का खर्च कहां से आया? अब ऐसी जांच भिलाई में बीएसपी के बंगलों से परे राजधानी रायपुर में राज्य सरकार के बंगलों की हो जाए तो भी अफसरों के लिए यह सफाई देना मुश्किल हो जाएगा कि बंगलों का हुलिया बदलने की लागत कहां से आई। एक केन्द्रीय जांच एजेंसी यह देखकर भी हैरान है कि राज्य के एक अफसर ने बीएसपी के पूरे बंगले तो तोड़वाकर उस जमीन पर पूरा बंगला ही तनवा दिया है।
लोहे की खदान लोहे से भारी पड़ी
फिलहाल ऐसा माना जा रहा है कि खनिज और खदानों से जुड़े हुए कुछ कारोबारियों पर भी ईडी की कार्रवाई हो सकती है। आज का यह छापा भी लौह अयस्क की उन खदानों की नीलामी से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है जिनमें एक कारोबारी ने खनिज विभाग के भीतर बैठकर नीलामी में बोली लगाते कारोबारियों के नाम कम्प्यूटर पर देखकर उन पर राज्य सरकार के अफसरों के मार्फत दबाव डलवाया था, और एक खदान बहुत कम रेट पर हासिल की थी। प्रदेश के दूसरे सभी बड़े उद्योगपतियों को यह बात मालूम है, और अफसरों में भी आधा दर्जन का इस्तेमाल इसके लिए किया गया था। अब यह खुलासा होना बाकी है कि उस कुख्यात नीलामी और खदानों की दूसरी गड़बड़ी की जानकारी ईडी को अफसरों के बयानों में मिली है, कारोबारियों के बयान में मिली है, या फिर ईडी के छापों में जब्त लोगों के मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड की गई किसी कॉल से मिली है, या आपसी वॉट्सऐप संदेशों से मिली है। राज्य के कम से कम एक आईएएस अफसर ने खनिज विभाग के आईएएस अफसर के कहने के बाद भी कारोबारियों को फोन करके बोली न लगाने का निर्देश नहीं दिया था। अब हो सकता है कि ऐसे अफसरों के साथ ईडी कुछ नरमी भी बरते।
छत्तीसगढ़ की झांकी पर रोक
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में होने वाले मुख्य समारोह में छत्तीसगढ़ की झांकी को मौका नहीं मिल रहा है। इसके पीछे कुछ तकनीकी कारण बताए गए हैं। पूरे देश के राज्यों को रक्षा विभाग ने 7 जोन में बांटा और हर जोन से 2-2 राज्यों को इंट्री दी। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड को बुलाया गया, जबकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ छूट गए। चयन इस आधार पर किया गया कि जिन राज्यों को कम मौका मिला है, उन्हें रखा जाए।
इस बार छत्तीसगढ़ ने मिलेट मिशन का मॉडल बनाना तय किया था। प्रदेश के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने झांकी की अनुमति नहीं दिए जाने को नाइंसाफी और पक्षपात बताया है। दूसरी ओर भाजपा सांसद सुनील सोनी ने झांकी की थीम पर सवाल उठाया और कहा कि मिलेट तो देशभर में उगाया जाता है, कुछ नया करना था तब मौका मिलता- राम वन गमन पथ की झांकी ही बना लेते।
मिलेट मिशन प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। कहीं अफसरों ने यह तो नहीं सोच लिया कि इसका श्रेय कांग्रेस की किसी राज्य सरकार को क्यों मिलना चाहिए? मगर इससे जुदा बात भी हो सकती है। हो सकता है, मोदी इस झांकी को देखकर खुशी जाहिर करते। उन्होंने इस मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक रूप से तारीफ भी की थी। उन्होंने मिलेट कैफे शुरू करने का सुझाव भी दिया। और अभी-अभी यह खबर भी सामने आई है कि रायगढ़ में तो पिछले साल जुलाई महीने से मिलेट कैंटीन चल रहा है। एक महिला स्व-सहायता समूह इसे संचालित कर रहा है। महीने का टर्नओवर 3 लाख रुपये का है। कैंटीन में संडे के दिन टेबल खाली होने का इंतजार भी करना पड़ता है।
हाथी फिर बेमौत मारा गया
धरमजयगढ़ में शिकारियों के बिछाए करंट से चिपककर एक हाथी की जान चली गई। शिकारी पकड़ लिए गए हैं। उनका कहना है कि जंगली सुअर मारने के लिए उन्होंने तार बिछाई थी, पर हाथी उसकी चपेट में आ गया। आए दिन कभी दलदल में फंसकर तो कभी ग्रामीणों के खदेड़े जाने से हाथी मारे जा रहे हैं। कटघोरा में तो एक शावक हाथी को मारकर शव ही दफना दिया गया था। वन विभाग की रिपोर्ट में ही बताया गया है कि सन् 2020 से लेकर अब तक जिन 42 हाथियों की मौत का पता चल सका है उनमें से 13 की मौत करंट लगने के कारण हुई। ये तो शिकारियों की करतूत थी लेकिन रायगढ़, जशपुर जिले में हाईटेंशन लाइन पर कवर नहीं होने के चलते भी कई बार हाथियों ने जान गंवाई है। वन विभाग के अफसर वन संपदा और बजट का ध्यान तो रखते हैं पर वन्यजीवों के साथ हो रही क्रूरता पर नहीं। कोई घटना होती है तब वे जागते हैं। वे बीट गार्ड और फारेस्टर को चौकसी के लिए कैसे कहें, जब खुद ही जंगल नहीं जाते। शिकारी सक्रिय हैं और पता तब चल रहा है जब किसी वन्यजीव की मौत हो जाती है। बादलखोल में आंशिक रूप से काम हुआ है पर बाकी जगह एलिफेंट कॉरिडोर बनाने की योजना बीते दो दशकों से कागजों पर ही चल रही है।
प्रधान पुजारी की प्रतिष्ठा
नये साल की शुरूआत से ही बस्तर में जगह-जगह मड़ई मेला लगना शुरू हो जाता है। इन मेलों में देवी की पूजा की एक खास रस्म होती है। गांव के लोग प्रधान पुजारी को अपने कंधे पर उठाकर देवी की गुड़ी तक पहुंचाते हैं। यह दरभा ब्लॉक के नेतानार की तस्वीर है जहां नेतानारिन देवी के मंदिर तक पुजारी को कंधे पर लेकर गांव के लोग चल रहे हैं।
उबाल दिख नहीं रहा लेकिन...
छत्तीसगढ़ में कोयला-उगाही का मुकदमा चला रही ईडी के ताजा रूख को लेकर सरकार में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच सुगबुगाहट चलती ही रहती है। बहुत से लोग यह मानते हैं कि अब मामला ठंडा पड़ गया है, कई लोगों का मानना रहता है कि मामले के उबलने के कई दौर आते हैं, और दो उबाल के बीच का दौर यह धोखा देता है कि सब ठंडा पड़ गया है। इस बीच जानकार लोगों ने कम से कम तीन आईपीएस के पुख्ता नाम बताए हैं जिनसे ईडी ने लंबे बयान लिए हैं। कई और आईएएस, और आईपीएस के नाम लिए जा रहे हैं कि उनसे भी बयान या तो लिए जा चुके हैं, या लेने के लिए उन्हें नोटिस दिया जा चुका है। फिलहाल जब तक अदालत में ईडी को अगली चार्जशीट नहीं देनी है, तब तक जांच की उसकी रफ्तार कुछ धीमी भी दिखाई दे सकती है। बिना प्रेसनोट काम करने वाली इस एजेंसी को लेकर अफवाहों का बाजार हमेशा गर्म रहता है, और लोग अपनी-अपनी भावनाओं को खबर बनाकर पेश करते रहते हैं। फिलहाल जिन अफसरों के बयान हुए हैं, उन्होंने जांच एजेंसी को क्या कहा है इसे लेकर उन्हीं के सहयोगी दूसरे अफसरों के बीच सुगबुगाहट चल रही है।
कितने विधायकों की टिकट खतरे में?
खराब परफॉर्मेंस वाले विधायकों की टिकट काटने को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान काफी पहले आ चुका है पर लोगों का ध्यान अब इसलिए गया क्योंकि चुनाव नजदीक है। बीते साल उन्होंने विधानसभा क्षेत्रों का बारी-बारी दौरा शुरू किया था। 4 मई 2022 को इसकी शुरुआत सरगुजा जिले से हुई थी। उस समय उन्होंने सीधे-सीधे यह नहीं कहा था कि मौजूदा विधायकों में से किसी की टिकट कटेगी। यह जरूर कहा था कि अभी डेढ़ साल का समय है। ऐसे में बेहतर कार्यप्रणाली से वे अपनी स्थिति में सुधार ला सकते हैं। बुधवार तक सीएम 58 विधानसभा सीटों का दौरा पूरा कर चुके। आम लोगों से सीधे संवाद के दौरान उनके सामने इस तरह की कई शिकायतें आ रही हैं जो विधायकों के स्तर पर जिला प्रशासन से संपर्क करके ही निपटाए जा सकते थे। मसलन पेंशन नहीं मिलना, जाति प्रमाण पत्र का नहीं बनना, स्कूलों में शिक्षकों का नहीं पहुंचना आदि।
चर्चा है कि आंतरिक सर्वेक्षण में 30 विधायकों का परफॉर्मेंस खराब पाया गया है। इसका पैमाना उनका अपने क्षेत्र में सक्रिय होना, कार्यकर्ताओं से मुलाकात करते रहना, गांवों का दौरा करना, विधायक निधि का पूरा और ठीक तरह से इस्तेमाल करना, सत्ता और संगठन में तालमेल बिठाकर चलना आदि रखा गया। सरगुजा और बिलासपुर जैसे कुछ संभाग ऐसे हैं जहां संगठन और विधायकों के बीच भारी आंतरिक कलह दिखाई दे रही है। दूसरे अन्य जिलों में भी कांग्रेस के कई गुट हैं, मंत्रियों ने भी गुट बना लिए हैं। सत्ता में होने की वजह से बहुत से कार्यकर्ता ठेके और सप्लाई के काम में हिस्सेदारी भी चाहते हैं। उनके साथ भी पक्षपात हो रहा है। ऐसी ही सीटों की पहचान की जा रही है जहां यह टकराव कांग्रेस की जीत की संभावना धूमिल कर सकती है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़
केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार के पास अब करीब 15 माह का कार्यकाल रह गया है। इसके बाद उसे चुनाव मैदान में उतरना है। वैसे तो सन 2023 में 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, पर छत्तीसगढ़ राजस्थान और मध्य प्रदेश पर सीटों की संख्या के कारण भाजपा का फोकस ज्यादा है। इस बात की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है कि छत्तीसगढ़ को मंत्रिमंडल में एक और जगह मिल सकती है। इस समय रेणुका सिंह बतौर राज्यमंत्री मंत्रिमंडल में शामिल हैं। आदिवासी समुदाय के इस प्रतिनिधि के अलावा ओबीसी वर्ग प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष जैसी महत्वपूर्ण जगह पर है। ऐसे में अटकल लगाई जा रही है मंत्रिमंडल में सामान्य वर्ग को प्रतिनिधित्व मिल सकता है। आगामी बजट सत्र से पहले इस विस्तार की संभावना है। यदि छत्तीसगढ़ को जगह मिलती है तो 2023 के चुनाव में भाजपा को अधिक मजबूती से कांग्रेस से मुकाबला करने में सुविधा होगी।
विदेशी मेहमानों का आगमन
बीते तीन-चार दिनों से जगदलपुर के दलपत सागर में विदेशी पक्षियों का झुंड पहुंच चुका है। सैलानी और स्थानीय निवासी इन्हें देख कर प्रफुल्लित हो रहे हैं।
देखना है आगे क्या होता है
राजस्व अफसरों ने प्रमोशन के लिए जो तरीका अपनाया था, उसका अनुसरण एक-दो निगम-मंडल के कर्मी भी करने लगे हैं। राजस्व अफसरों ने एकजुट होकर समय से पहले पदोन्नति के लिए ऐसा चक्कर चलाया कि फाइलें तेजी से दौडऩे लगी। पीएससी के लोग तो मानो प्रमोशन दिलाने के लिए तैयार ही बैठे थे। एक दिन में सारी कार्रवाई पूरी कर फाइल लौटा दी गई, और सौ से अधिक राजस्व अफसर प्रमोट हो गए। अब यही फार्मूला सरकार के एक निगम के अफसर-कर्मियों ने अपनाया है।
बताते हैं कि निगम के मुखिया कुछ दिन में रिटायर होने वाले हैं। जाने से पहले उन्होंने करीब ढाई सौ अफसर कर्मियों को डेढ़ साल पहले प्रमोट करने के लिए विभाग से अनुमति मांगी है। चर्चा है कि यदि अफसर-कर्मी प्रमोट हो जाते हैं, तो मुखिया को इतना कुछ दे जाएंगे कि वो रिटायरमेंट के साथ मिलने वाली ग्रेच्युटी और पीएफ से ज्यादा होगी। मगर इसमें पेंच भी है। प्रमोशन के प्रस्ताव से निगम के कई अफसर-कर्मी खफा भी हैं। उन्होंने इसके खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। कुल मिलाकर प्रमोशन को लेकर निगम में बवाल मचने की प्रबल संभावना दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
रिसर्च जर्नल में गर्ग का निबंध
सरगुजा आईजी रामगोपाल गर्ग की 23 सौ साल पूर्व चाणक्य लिखित ‘अर्थशास्त्र’ में पुलिस जाँच के तरीकों पर निबंध को पंजाब यूनिवर्सिटी ने रिसर्च जर्नल में जगह दी है। चाणक्य जमाने में भी अपराध विवेचना की शैली मौजूदा पुलिस की तरीकों से लगभग मेल खाती है। कड़ी मेहनत कर चाणक्य के दौर में हत्या, चोरी और नकब जैसी घटनाओं की भी विवेचना के बाद खुलासा होता था। यानी आज और सदियों पुराने दौर में भी पुलिस की कार्यशैली में कुछ ही बदलाव आए हैं। गर्ग ने विश्लेषण कर पाया कि विवेचना के साइंटीफिक तरीके सदियों से पुलिस के अभिन्न अंग रहे हैं, जिसका आज भी महत्व है। गर्ग एकेडमिक और रिसर्च में गहरी रूचि रखते हैं। 2007 बैच के गर्ग ने सीबीआई में तकनीकी पुलिसिंग पर लगभग 7 साल गुजारे। उनका साइबर अपराधों और अन्य क्राईम को सुलझाने के लिए तकनीकी पुलिसिंग पर शुरू से ही जोर रहा है।
लंपी वायरस के बीच बाजार
बस्तर में 2 दिनों के भीतर 17 मवेशियों में लंपी वायरस की पुष्टि हुई है। इसके अलावा करीब 80 पशुओं में इसके लक्षण मिले हैं। छत्तीसगढ़ के किसी अन्य जिले से इतनी बड़ी संख्या में एक साथ इतने मामले नहीं मिले हैं। जिन 3 गांवों में यह प्रकोप फैला है वहां सभी मवेशियों को आइसोलेट किया गया है। संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए कुछ गाइडलाइन भी तय किए गए हैं। इनमें से एक है मवेशियों का परिवहन रोकना और मवेशी बाजार पर प्रतिबंध लगाना। पर इधर सुकमा से खबर आ रही है कि प्रतिबंध के बावजूद यहां के गांव मुसुरपुटा मैं मवेशी बाजार लगा है। जाहिर है कि दूसरी जगह से मवेशियों का परिवहन भी किया गया। हैरानी की बात यह भी है यहां बाजार लग भी गया तो पशुओं की जांच करने के लिए पशु चिकित्सा विभाग का कोई डॉक्टर भी नहीं पहुंचा।
राज्य सरकार ने 15 राज्यों में फैल चुके इस वायरस से छत्तीसगढ़ को बचाए रखने के लिए अलग से बजट तय कर दिया है और टीकाकरण अभियान भी तेजी से चलाया जा रहा है। मगर जिला प्रशासन का निर्देश सिर्फ कागज में हो और बाजार लगने तथा परिवहन पर रोक नहीं लगे तो यह मुहिम विफल हो सकती है।
चुनाव है या युद्ध?
बोलचाल की भाषा में चुनावी लड़ाई, चुनावी जंग जैसे शब्दों का प्रयोग आम है। कोरबा में हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जनसभा के साथ ही संगठनात्मक स्तर पर भाजपा की गतिविधियां और तेज हो गई हैं। राजनांदगांव, बिलासपुर और रायपुर की बैठकों में प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने कार्यकर्ताओं का हरावल दस्ता तैयार करने के लिए कहा है।
यह सेना की टुकड़ी होती है, जो युद्ध के मैदान पर सबसे आगे पैदल चलती है। एक भाजपा नेता ने स्पष्ट किया कि यह कोई और दस्ता नहीं बल्कि बूथ लेवल कार्यकर्ता ही हैं जो सीधे मतदाताओं के संपर्क में रहते हैं। हरावल दस्ता कह देने से उनमें अलग तरह का जोश आ जाएगा। वैसे किसी भी युद्ध में सबसे पहले जान की बाजी हरावल दस्ते की ही लगी रहती है और जीत का श्रेय सेनापति को मिलता है।
बाकी जिंदगी मलाल के साथ
हिन्दुस्तान के सबसे बड़े अभिनेता अमिताभ बच्चन ट्विटर और फेसबुक पर लगातार सक्रिय रहते हैं, और ट्विटर पर उन्हें देखकर लगता है कि वे सठिया गए हैं। हालांकि 80 बरस के हो चुके अमिताभ को सठियाये भी 20 बरस हो गए हैं, लेकिन अभी की उनकी हरकतें मजेदार हैं। ट्विटर पर वे अपनी हर ट्वीट पर एक नंबर डालते हैं, इससे यह भी पता लगता है कि वे आज तक कितनी ट्वीट कर चुके हैं। अभी उन्होंने लिखा कि उनसे भयानक गलती हो गई है, उनकी ट्वीट टी-4514 के बाद की सारी ट्वीट के नंबर गलत हो गए हैं। उन्होंने संख्याएं लिखकर बताया कि टी-5424, 5425, 5426 सभी गलत नंबरों वाली हो गई हैं और इनके नंबर टी-4515, 4516, 4517 होने चाहिए थे। उन्होंने लोगों से इस गलती के लिए माफी मांगी है। अपनी ट्वीट को नंबर देने वाले वे शायद अकेले ही व्यक्ति हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन नंबरों की जरूरत ही क्या है? और इनके सही और गलत होने से फर्क क्या पड़ रहा है? लेकिन अमिताभ के बारे में यह तो कहा नहीं जा सकता कि बुढ़ऊ खाली बैठे हुए सनकी की तरह काम कर रहे हैं, क्योंकि अमिताभ आज भी न सिर्फ अपने परिवार के जवान लोगों के मुकाबले अधिक काम करते हैं, बल्कि देश के किसी भी दूसरे नौजवान को काम और मेहनत के मामले में टक्कर दे सकते हैं। खैर, अब अमिताभ को अपनी बाकी जिंदगी इसी प्रायश्चित के साथ गुजारनी होगी क्योंकि ट्विटर ने अब तक एडिट-बटन बनाया नहीं है।
रागी कोदो कुटकी का इधर भी जश्न
रागी कोदो कुटकी जैसे विलुप्त होती फसलों को चलन में फिर से लाने के लिए मिलेट मिशन चलाया जा रहा है। केंद्र सरकार की इस योजना के छत्तीसगढ़ में सफल होने की भरपूर संभावना है क्योंकि पहले से ही इसकी खेती यहां बड़े पैमाने पर होती रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और उन्हें मिलेट मिशन पर प्रदेश में हो रहे काम की जानकारी दी। मोदी ने उन्हें मिलेट कैफे खोलने का सुझाव भी दिया। सीएम इस योजना को लेकर बड़े आशान्वित और उत्साहित भले ही हैं लेकिन अफसर किस तरह से पानी फेर सकते हैं इसका रुझान बलरामपुर जिले से सामने आया है। एक आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी निकाली है यहां के कृषि विभाग के अफसरों ने मिलेट मिशन के लिए मिले एक करोड़ 8 लाख रुपये को कागजों में खर्च कर दिया है। सबूतों के साथ एसपी से शिकायत की गई क्योंकि निकाले गए कई दस्तावेज कूट रचित मिले हैं। पर एसपी ने शिकायत को कलेक्टर के पास भेज दिया। कलेक्टर ने एक जांच समिति बनाई है। मतलब यह कि अभी जिम्मेदार और अधिकारी कर्मचारी बचे हुए हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि जांच टीम समय पर ईमानदारी के साथ जांच पूरी करेगी और दोषियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी होगी। शिकायतें सूरजपुर और कोरिया जिले से भी आ रही हैं।
भगवा ही क्यों, भाजपा का सवाल?
सरकार की चूक उसके विरोधियों को मामला उठाने का मौका दे देती है। स्कूली किताबें देश के हर प्रदेश में तरह-तरह के विवादों से घिरती ही हैं। अब छत्तीसगढ़ में पांचवीं की एक सरकारी किताब में ठगों का जिक्र करते हुए यह सुझाया गया है बनावटी साधू जगह-जगह ठगी करते हुए पकड़ाते हैं, और क्लास में इनके बारे में चर्चा होनी चाहिए। इस पाठ में पुलिस एक भगवाधारी साधू को पकडक़र ले जाते दिख रही है, और भाजपा की तरफ से इस बात पर भी आपत्ति की गई है। अब कांग्रेस पार्टी भी हिन्दुत्व को लेकर जितनी चौकन्ना चल रही है, हो सकता है कि इस पाठ को बदलने का आदेश जल्द ही हो जाए। वैसे भी रंगों को लेकर इन दिनों भारतीय लोकतंत्र बड़ा संवेदनशील हो गया है।
अमित शाह से बात का मौका
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के प्रदेश दौरे पर प्रेक्षकों की निगाहें टिकी थीं मगर शाह कोरबा में सिर्फ एक सभा ही ले पाए। विलंब की वजह से जिले की कोर कमेटी की बैठक में शामिल नहीं हुए। प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेताओं को उनसे अकेले में चर्चा करने की हसरत थी। लेकिन व्यस्तता की वजह से ऐसा कुछ नहीं हो पाया। वापसी के समय अमित शाह के पास 15-20 मिनट स्थानीय नेताओं के साथ चर्चा का मौका भी था।
सीएम भूपेश बघेल भी उसी समय उनसे भेंट-मुलाकात के लिए पहुंच गए। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल सहित कई अन्य नेता भी वीआईपी लाउंज में मौजूद थे। तभी अमित शाह के पास किसी का फोन आया, और फिर उन्होंने सभी को बाहर जाने के लिए कह दिया। इसके बाद शाह अकेले में किसी फोन पर बतियाते रहे, फिर बाहर निकले, और सबसे औपचारिक रूप से मिलकर चले गए।
ऑनलाइन फूड डिलीवरी में बबीता
रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के कई शहरों में रेस्तरां, होटल, पेट्रोल पंप में लड़कियां कुशलता से अपना काम करते हुए दिखती हैं। अब ये फूड डिलीवरी करते भी नजर आने लगी हैं। यह रायपुर की बबिता हैं, जो जोमेटो के लिए ऑर्डर डिलीवर करती हैं। बबिता शायद पहली लडक़ी हो, क्योंकि उसका भी कहना है कि मैंने किसी दूसरी लडक़ी को इस काम में नहीं देखा। महानगरों में शायद यह होता हो। लड़कियां अपनी आर्थिक स्थिति को दुरुस्त करने के लिए अब चुनौती भरे किसी भी काम से संकोच नहीं कर रही हैं। रायपुर, बिलासपुर सहित कई शहरों में तो बड़ी संख्या में महिलाएं ई रिक्शा चला ही रही हैं।
फिर खाद पर हेल्थ सिस्टम
बिजली, पानी, स्वास्थ्य और सडक़ जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित विशेष संरक्षित वर्ग के आदिवासियों की दयनीय दशा यह बताती है कि इनके लिए आने वाले फंड का किस तरह दुरुपयोग होता है। पर यह एक घटना ऐसी है जिसमें जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों ने विपरीत हालात में मानवीय संवेदना की मिसाल दी। पोड़ी-उपरोड़ा ब्लॉक के कई गांवों में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा रहते हैं। बीहड़, पथरीले और पगडंडी वाले रास्ते के बीच बसे गांव खुर्रीभौना का का एक बुजुर्ग सुंदर सिंह बीमार पड़ गया। संजीवनी कंट्रोल रूम रायपुर से टास्क मिलने पर एंबुलेंस टीम वहां के लिए रवाना तो हो गई पर 3 किलोमीटर दूर उन्हें रुकना पड़ा। एंबुलेंस वहां तक जा ही नहीं सकती थी। ऐसे संजीवनी में तैनात स्टाफ धरम सिंह और प्रेम शंकर दोनों पैदल ही पहाड़ी चढक़र गांव तक पहुंचे। मरीज की हालत ऐसी थी कि उसे पैदल एंबुलेंस तक नहीं लाया जा सकता था। उसे खाट में लिटाया गया, ग्रामीणों की मदद से 3 किमी दूर खड़ी एंबुलेंस में बिठाकर अस्पताल में ले जाकर भर्ती कराया गया। यह पहली घटना नहीं है। बस्तर और सरगुजा संभाग से प्राय: ऐसी खबरें आती रहती हैं। स्वास्थ्य विभाग के अफसर और जनप्रतिनिधि इन कर्मचारियों की पीठ थपथपा सकते हैं, पर अब तक वहां के लिए सडक़ क्यों नहीं बनी इस पर सवाल उनसे किया जा सकता है। सरकार लोगों के दरवाजे तक इलाज पहुंचाने की योजना चला रही है, जब सडक़ ही नहीं तो मरीज तक इलाज वाली गाड़ी पहुंचेगी कैसे?
एससी एसटी एक्ट पर सुलगता ट्विटर
बीते 4 दिनों से ट्विटर पर एससी-एसटी एक्ट हटाओ टॉप ट्रेंड पर है। अखिलेश यादव की बयान बाजी और जोशीमठ के अस्तित्व पर आए संकट का मुद्दा भी इससे पीछे है। पिछले महीने भोपाल में एक निजी कॉलेज के सहायक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उसके खिलाफ दो युवकों ने मामूली विवाद पर इस एक्ट के तहत अपराध दर्ज कराया था। इसके बाद से मामला सुलगता गया और भोपाल में एक भारी प्रदर्शन भी जंबूरी मैदान पर कल हुआ। सम्मेलन की जो तस्वीरें आई हैं, उससे पता चलता है कि इसमें हजारों की संख्या में लोग इसमें शामिल हुए।
एससी एसटी एक्ट को अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोगों को सामाजिक न्याय देने के दी गई कानूनी सुरक्षा है, लेकिन अनेक बार इस कानून का दुरुपयोग आपसी विवाद का बदला लेने या रकम ऐंठने के लिए किया जाता है। सितंबर महीने में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ एससी एसटी एक्ट में दी गई सजा को संशोधित किया था। कोर्ट ने कहा था कि केवल इस आधार पर कि आरोपी को पीडि़त की जाति मालूम है, यह धारा नहीं जोड़ी जा सकती। यह सिद्ध होना चाहिए आपराधिक कार्य जातिगत पूर्वाग्रह के कारण किया गया है। करीब 2 साल पहले स्पेशल कोर्ट के आदेश पर मंत्री जयसिंह अग्रवाल और कांग्रेसी नेता सुरेंद्र जायसवाल के खिलाफ दर्ज एसटी एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को भी हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
सन् 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में हुए आंदोलन के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने एक संशोधन पारित किया था जिसके तहत इस एक्ट में नामजद आरोपी की गिरफ्तारी के लिए किसी अधिकारी की मंजूरी की जरूरत नहीं और एफआईआर दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच की भी नहीं। अधिनियम के अंतर्गत आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं दी जा सकती। हालांकि इसके बाद अदालतों ने अग्रिम जमानत दिए हैं। सन 2022 के अप्रैल महीने में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस एक्ट के तहत दर्ज एफ आई आर में एक उप-सरपंच को अग्रिम जमानत दी। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कानून का दुरुपयोग प्रतीत हो तो कोर्ट के पास अग्रिम जमानत देने की शक्ति है।
मगर इसके कुछ दूसरे पहलू भी हैं। सन् 2020 से 2021 के बीच अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग पर अत्याचार 9 प्रतिशत बढ़ गए। मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार ऐसे राज्य हैं जहां अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधों की दर बहुत अधिक है। छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति के दर्ज अपराधों की संख्या पर बात करें तो स्थान पांचवां है।
ट्विटर टॉप ट्रेंड होने से यह निष्कर्ष निकाल लेना ठीक नहीं होगा कि यह इस वक्त का सबसे बड़ा मुद्दा है, पर यह ऐसा विषय जरूर है जिसके मकसद और नतीजों पर विमर्श हो।
प्लास्टिक की खपत हुई कम
शहर की स्वच्छता पर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके अंबिकापुर नगर निगम का एक नया आंकड़ा सामने आया है। इसके मुताबिक सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के बाद लोगों के बीच की इसकी खपत में 40 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है। यह हिसाब इसलिए लगाया जा सका क्योंकि एकत्र किए गए प्लास्टिक का वजन किया जाता है और फिर प्रोसेस के जरिए प्लास्टिक दाना, ईंधन या कोई दूसरा उपयोगी सामान बनाया जाता है। पहले प्रतिदिन डेढ़ टन तक प्लास्टिक कचरा इक_ा कर लिया जाता था लेकिन अब सिर्फ 1 टन मिल रहा है। प्रोसेसिंग के जरिए करीब एक करोड़ रुपये की कमाई भी इस साल हुई है। छत्तीसगढ़ के बाकी नगर-निगमों में भी ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए?
प्रतिमाओं पर पर्देदारी..
बीते 7 जनवरी को कोरबा के इंदिरा स्टेडियम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जनसभा हुई तो वहां लगाई गई पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की प्रतिमाओं को कपड़े से ढक दिया गया था। एक कांग्रेस नेता का कहना था कि प्रतिमाएं यूं ही लगी रहती तो शायद इस ओर लोगों का ध्यान नहीं जाता लेकिन छिपा देने से उन्हें भी इंदिरा और राजीव के बारे में जानने का मौका मिल गया, जो उनके बारे में बहुत कम जानते थे।
गलत नंबर प्लेट की इस गाड़ी पर कोई कार्रवाई करने से पुलिस के ऊपर भगवान महादेव का श्राप बिजली की तरह टूट कर गिर सकता है। पुलिस सावधान रहे। तस्वीर/ छत्तीसगढ़
कांग्रेस विधायकों की चिट्ठी
कांग्रेस में अक्सर कहा जाता है कि उसे विरोधियों की जरूरत नहीं पड़ती। वे आपस में ही एक दूसरे को निपटाने में लगे रहते हैं। सरगुजा में टीएस सिंहदेव के खिलाफ विधायक बृहस्पत सिंह तो स्थायी रूप से मोर्चा खोलकर ही बैठे हुए हैं, कुछ ऐसा ही कोरबा में मंत्री जयसिंह अग्रवाल के साथ हो रहा है। न्यू ट्रांसपोर्टनगर के लिए बरबसपुर की जगह किसी दूसरी जगह जमीन तलाशने की कोशिश होने पर उन्होंने मौके पर जाकर अधिकारियों को फटकारा। कलेक्टर को भी नहीं बख्शा। इस पर भाजपा के दो विधायक पुरुषोत्तम कंवर और मोहित राम केरकेट्टा ने सीएम को पत्र लिखकर मंत्री पर सीधे-सीधे आरोप लगा दिया कि वे अपने रिश्तेदारों, करीबियों को फायदा पहुंचाने के लिए अफसरों पर दबाव डाल रहे हैं। भाजपा तो यह आरोप पहले से ही लगा रही थी। कल अमित शाह की सभा में उनके आने से पहले सरोज पांडेय ने भी कह दिया कि जहां खाली जमीन है, सब पर मंत्री की निगाह है। कुछ माह पहले मंत्री ने रानू साहू को प्रदेश का सबसे भ्रष्ट कलेक्टर बताया था। उन्होंने डीएमएफ की रकम को खर्च करने में मनमानी करने का आरोप लगाया था। उस समय भी इन दोनों विधायकों ने कलेक्टर का साथ दिया और मंत्री पर ही निशाना साधा। भाजपा विधायक, पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर का भी यही रुख था। रानू साहू के तबादले के बाद अब ये विधायक फिर कलेक्टर की तरफ हैं, जो न्यू ट्रांसपोर्ट नगर नई जगह पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। सिंहदेव जैसी स्थिति कुछ-कुछ जयसिंह की भी है, पर ऐसा नहीं लगता कि वे कह देंगे- इस बार चुनाव लडऩे का मन नहीं।
हे धरती तू फट जा..
इस बार छत्तीसगढ़ के रायपुर, दुर्ग-भिलाई में आईटी छापे पड़े, तो यह सनसनी फैली कि इसका कोई न कोई राजनीतिक कनेक्शन है। बाद में विभाग के अफसरों ने अनौपचारिक चर्चा में बताया कि जमीन कारोबारी सुनील साहू पर ही यह छापा केन्द्रित है, और उनसे जिन बड़े कारोबारियों का संदिग्ध लेन-देन था, वे भी घेरे में लाए गए हैं। ऐसे में आज सुबह एक घर में अचानक ही पैकिंग में कुछ महीने पहले का यह अखबार निकला जिसके दो पन्नों पर सुनील साहू के श्री स्वास्तिक ग्रुप की महिमा का धार्मिक भावना से बखान है। संयोग छोटा नहीं है, खासा बड़ा है, अभी छापा पूरा नहीं हुआ और पैकिंग में यह अखबार निकलकर सामने आ गया। अब पता नहीं इसमें लिखे हुए कई किलो विशेषणों को पढक़र ही इंकम टैक्स यहां तक पहुंचा था या किसी और जानकारी के आधार पर।
फिलहाल छत्तीसगढ़ में माहौल यह बना हुआ है कि अफसरों पर छापे पड़ें तो जमीन कारोबारी फंसेंगे, और जमीन कारोबारियों पर छापे पड़े, तो अफसरों के सुबूत निकलेंगे। आयकर विभाग के जानकार लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़ का कुल कारोबार जितना है, उससे तो देश के कई शहरों का कारोबार अधिक है, लेकिन इतना ब्लैकमनी और कहीं नहीं है। खैर, अभी ईडी और आईटी जांच और मुकदमेबाजी का नतीजा आना बाकी है, और इंसानों के धंधे में जमीन नाहक बदनाम हो रही है। आज जमीनों का बस चलता तो उनके मुंह से निकलता- हे धरती तू फट जा..।
अभयारण्य का निष्क्रिय टावर
प्रदेश के अन्य अभयारण्यों से बाघों को लाकर छत्तीसगढ़ में संख्या बढ़ाने का हाल ही में मंत्रिमंडल की बैठक में निर्णय लिया गया। पहले अचानकमार में फिर अनुकूल माहौल होने पर बार नवापारा में इन्हें छोड़ा जाएगा। यह भी कहा गया है कि जंगलों की गतिविधियों की त्वरित सूचना के लिए अभयारण्यों में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाया जाए और टावर लगाए जाएं। मोबाइल कनेक्टिविटी मिलने से अवैध कटाई, शिकार रोकने, आपात स्थिति में मदद पहुंचाने, वनों में रहने वाले ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में मदद मिलेगी। यह योजना तो बेशक अच्छी है, पर पहले की योजनाओं की स्थिति क्या है, यह भी देखना चाहिए। यह तस्वीर बार नवापारा में तन कर खड़े मोबाइल टावर की है। साल भर से अधिक हो गया, इसने काम करना शुरू ही नहीं किया है। पर्यटक, ग्रामीणों और वन विभाग को इससे कोई लाभ नहीं मिल रहा है।
गोमूत्र 4 रुपये, टमाटर के 50 पैसे भी नहीं
दुर्ग से लेकर जशपुर तक टमाटर उत्पादक किसानों को भरपूर पैदावार की कीमत नहीं मिलने की इन दिनों सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी चल रही है। वह यह कि हमारे यहां गोमूत्र 4 रुपये लीटर, गोबर दो रुपये किलो में बिक रहा है, पर टमाटर को 50 पैसे या एक रुपये में खरीदने वाला भी कोई नहीं मिल रहा।
यह सवाल जायज तो है। बात वही है, प्रोसेसिंग प्लांट की। गोबर को खाद व गो मूत्र को जैविक रसायन बना कर रखने का काम बहुत छोटे-छोटे स्तर पर गौठानों में हो रहा है। उसकी प्रोसेसिंग हो गई और उसे तब तक स्टोर करके रखा जा सकता है, जब तक बिके नहीं। टमाटर और दूसरी फसल उगाने वाले किसान अपने लिए भी यही मांग तो वर्षों से कर रहे हैं।
कोरबा में गिरिराज के बाद शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल कोरबा जिले के प्रवास पर पहुंच रहे हैं। उनका यहां कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं है। माता सर्वमंगला देवी का दर्शन कर आम सभा को संबोधित करेंगे और कोर ग्रुप की बैठक के बाद करीब 2 घंटे रहकर शाह वापस लौट जाएंगे। बस्तर के अलावा कोरबा भी एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। संयोग से लोकसभा में प्रदेश की दोनों सीट ही कांग्रेस के पास है। दोनों इलाकों में कुछ को छोडक़र विधानसभा की भी लगभग सारी सीटें कांग्रेस को ही मिली है। बस्तर में दिल्ली से नियुक्त किए गए भाजपा के प्रभारी नेताओं ने हाल के दिनों में खूब दौरा किया है। कोरबा में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह का चर्चित दौरा रहा जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री आवास रोके जाने के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। इन दोनों ही बेल्ट में यदि भाजपा अपनी खोई हुई पकड़ फिर से बना लेती है तो सन 2023 के चुनाव में मजबूत स्थिति में पहुंच सकती है, ऐसा उनकी पार्टी के लोगों का मानना है। लोगों की निगाह इस बात पर टिकी हुई है कि अमित शाह जनसभा में क्या बोलते हैं और कोर ग्रुप की बैठक में पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं के बीच कौन सा मंत्र फूंक कर जाएंगे। ऐसा लगता नहीं कि 2018 की तरह इस बार वे अब की बार 65 पार दोहराने वाले हैं।
अफसर बेदाग, फिर भी सस्पेंड
सरकारी अफसरों का भ्रष्ट आचरण सामने आने के बाद शुरुआती कार्रवाई जोर-शोर शुरू होने के बाद अंजाम किस मुकाम तक जाता है, इसका पता नहीं चलता। कुछ दिनों, हफ्तों की सुर्खियों के बाद लोग भूल भी जाते हैं और संकरी गली से अफसर वापस कुर्सी पर आ बैठ जाते हैं। सन् 2020-21 में हाईकोर्ट में रायपुर के एक नागरिक ने हाईकोर्ट को पत्र लिखा था जिसमें बताया गया था कि एसीबी ने 90 से अधिक अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की पर चार्जशीट पेश नहीं किया, वे सब मलाईदार पदों पर बैठे हैं। हाईकोर्ट के जवाब तलब के बाद कुछ दिनों तक एसीबी ने सक्रियता दिखाई और कुछ मामले कोर्ट में पेश किए। इसके बाद फिर वही चाल। कल ही जल जीवन मिशन जांजगीर-चांपा के एक कार्यपालन यंत्री एसके चंद्रा को टेंडर में गड़बड़ी के कारण निलंबित किया गया था। पता चला कि उसके घर 2016 में एसीबी ने इस अधिकारी पर छापा मारा था और 8 करोड़ की अवैध संपत्ति बरामद की थी। यानि इस बीच वह मलाई वाले पद पर बहाल कर दिया गया था। साल भर में कितने ही बाबू, पटवारी, रिश्वत लेते धरे जाते हैं पर इनमें से किसको सजा हुई या नहीं, पता ही नहीं चलता। एसीबी रेड की खबरों को जितना जोर-जोर प्रचारित करती है, रुके मामलों को उतना ही छिपाती है। भ्रष्टाचार रोकना किसी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं। इसे व्यवस्था का जरूरी हिस्सा मान लिया गया है।
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले में बाकी राइस मिल मालिकों ने मिलिंग के लिए धान नहीं मिलने और एक ही पार्टी को ऑर्डर देने शिकायत प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल से नहीं की होती तो शायद करोड़ों की फर्जी बैंक गारंटी का खुलासा ही नहीं हुआ होता। कलेक्टर ने इस मामले में इन चार राइस मिलों के तीन मालिकों पर ही नहीं बल्कि स्टेट बैंक के मैनेजर के खिलाफ भी चारसौबीसी का अपराध दर्ज कराया। बच गए जिला विपणन अधिकारी लोकेश देवांगन। सबसे पहले जिस अधिकारी को जिम्मेदार मानकर सस्पेंड किया गया, एफआईआर से उसी का नाम गायब ! यदि यह अधिकारी बेदाग है तो सस्पेंड भी करने की जरूरत क्या थी और यदि फर्जीवाड़े में हाथ दिखाई दे रहा है तो अब एफआईआर से बचाने वाला कौन है?
इतनी खुशी काफी नहीं
सिकंदराबाद-अगरतला के बीच सफर कर रहे एक यात्री अपने 19 माह के बच्चे के साथ सफर पर था। बच्चे का खिलौना ट्रेन में छूट गया। एक यात्री ने रेल मदद में इसकी जानकारी दी और कहा कि संभव हो तो यह खिलौना बच्चे को वापस लौटा दें। रिजर्वेशन बोगी में नाम नंबर के जरिये उतरे यात्री का पता चल गया और आरपीएफ ने खिलौना बच्चे को उसके पापा के साथ बुलाकर लौटा दिया। समय-समय पर ऐसे मानवीय पहलू आरपीएफ का दिखाई देता है, जब वह खोया सामान यात्रियों को लौटाते हुए दिखाए जाते हैं। सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ तो हो रही है पर कई यात्रियों को शिकायत है। उनका कहना है कि- यह छवि संवारने के लिए किया जा रहा पब्लिसिटी स्टंट है। लॉ एंड ऑर्डर पर फोकस करना चाहिए रेलवे को। यह अच्छी बात है कि बच्चे के खिलौने का ख्याल रखा, उसका चेहरा खिल गया, लेकिन हर रोज ट्रेनों में पॉकेटमारी, चैन-स्नैचिंग, लूट और चोरी की कितनी ही वारदातें होती हैं। शिकायतें तक लिखवाने में भारी दिक्कत होती है। ऐसे मामलों में रिकव्हरी कर आम यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रतिशत कितना, क्या है, यह आंकड़ा भी जारी किया जाना चाहिए।
आईटी छापे, पर सनसनी नहीं...
आज सुबह छत्तीसगढ़ फिर डेढ़-दो दर्जन जगहों पर इंकम टैक्स के छापे देख रहा है। लोग कारोबारियों के नाम देखकर यह अटकल लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इनमें से कौन किस नेता के करीबी होंगे, और किस मकसद से इनके यहां छापा पड़ा होगा। देश का माहौल ऐसा हो गया है कि किसी के सिर्फ आर्थिक अपराधी होने की बात अब लोगों को नहीं सूझती है, सिर्फ टैक्सचोर होने की बात नहीं सूझती है, लोग तुरंत सोचने लगते हैं कि किस राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए छापे पड़ रहे हैं।
आज सुबह कारोबारियों के नाम देखकर लोगों को थोड़ी सी निराशा हुई क्योंकि ये नाम सीधे-सीधे किसी नेता से जुड़े हुए नहीं दिख रहे थे, इसलिए आईटी कार्रवाई की चर्चा में राजनीतिक तडक़ा लगाने की गुंजाइश नहीं दिख रही थी। लेकिन ऐसे लोगों को बहुत निराश होने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि धीरे-धीरे इनमें से कुछ का कोई राजनीतिक कनेक्शन सामने आ सकता है। जिस तरह फिल्मों के साथ ड्रग्स और जुर्म का तडक़ा लग जाने से मामला अधिक सनसनीखेज हो जाता है, उसी तरह टैक्स और जांच एजेंसियों की कार्रवाई में नेताओं और अफसरों का नाम जुड़ जाने से सनसनी कुछ बढ़ जाती है। लोगों को ऐसी सनसनाती हुई ताजगी के लिए कुछ इंतजार करना पड़ेगा, इन छापों का भी ऐसा कोई कनेक्शन सामने आ सकता है।
पदयात्रा की संभावना यहां भी
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उत्तरप्रदेश में कल तीसरे दिन इस यात्रा की भीड़ के सारे रिकॉर्ड टूट गए, और शामली नाम की जगह में लोगों की अपार भीड़ के वीडियो चारों तरफ तैर रहे हैं। जिस उत्तरप्रदेश में राहुल गांधी को पिछला लोकसभा चुनाव हारना पड़ा था, और जो उसके पहले-बाद लगातार साम्प्रदायिकता में झोंका जा रहा है, वहां पर आज अगर लोग राहुल के साथ बड़ी संख्या में खड़े हो रहे हैं, तो यह व्यक्ति के बजाय उसके उठाए हुए मुद्दे का भी असर दिख रहा है कि आज भारत को जोडऩे की जरूरत है। यह कुछ हैरानी की बात भी है कि भारत में कोई नेता सवा सौ दिनों से एक पैदल सफर पर है, दर्जन भर बार प्रेस कांफ्रेंस कर चुका है, तीन हजार किलोमीटर पैदल चलते हुए लाखों लोगों से मिल चुका है, लेकिन नफरत की एक भी बात उसने नहीं कही है। अलग-अलग विचारधारा के लोगों को अलग-अलग प्रदेशों में ऐसी पदयात्रा के बारे में सोचना चाहिए। छत्तीसगढ़ में तो उत्तर में सरगुजा से लेकर दक्षिण में बस्तर तक आदिवासी मुद्दों को लेकर ऐसी एक यात्रा की जा सकती है, और राज्य छोटा होने के बावजूद करीब हजार किलोमीटर का ऐसा रास्ता निकल सकता है जिसमें दसियों लाख लोगों को आदिवासी मुद्दे बताते हुए आगे बढ़ा जा सकता है।
धर्मांतरण और नगरनार
कल 6 जनवरी को बस्तर के अधिकांश इलाकों में बंद का असर देखा गया। नारायणपुर में सर्व आदिवासी समाज नगरनार स्टील प्लांट को निजी हाथों में सौंपने और पेसा कानून को कमजोर बनाए जाने के खिलाफ जैसे मुद्दों को लेकर आंदोलनरत था। दूसरे संगठन छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने धर्मांतरण को लेकर बंद का आह्वान किया था।
प्रत्यक्ष रूप से इनमें किसी राजनीतिक दल का बैनर नहीं था लेकिन बंद के मौके पर हुई सभाओं में अलग-अलग दलों के नेताओं ने भागीदारी की।
बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस धर्मांतरण को प्रोत्साहन दे रही है क्योंकि जो ईसाई धर्म स्वीकार कर लेते हैं, वे उनके वोटर बन जाते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने आंकड़े गिनाकर दावा किया है कि धर्मांतरण की घटनाएं भाजपा के शासनकाल में ज्यादा हुई हैं। भय, लालच या प्रलोभन के जरिए किसी को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाना कानूनन जुर्म है, पर ऐसे ज्यादातर मामले अदालतों में टिक नहीं पाते। धर्म बदलने वाले लोग साफ मना कर देते हैं कि उन्होंने किसी दबाव में फैसला लिया। बस्तर के व्यापक बंद ने यह तो तय कर दिया है कि सन् 2023 में यह मुद्दा राजनीतिक दलों के काम आने वाला है। पर इस शोरगुल में 25 हजार करोड़ रुपए के नगरनार स्टील प्लांट को निजी हाथों में बेचने का विरोध धीमा पड़ गया। बिकने की प्रक्रिया इस समय बड़ी तेजी से चल रही है। सवाल है कि भविष्य के लिए कौन सा मुद्दा कितना जरूरी है?
बदल रहा नारायणपुर
सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना मना है, मगर लोग मानते नहीं है। कहीं-कहीं जागरूकता आई है और स्मोकिंग जोन बना दिए जाते हैं। अब ऐसा ठिकाना बस्तर के नारायणपुर में भी देखने को मिल रहा है।
कोरबा में गिरिराज के बाद शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल कोरबा जिले के प्रवास पर पहुंच रहे हैं। उनका यहां कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं है। माता सर्वमंगला देवी का दर्शन कर आम सभा को संबोधित करेंगे और कोर ग्रुप की बैठक के बाद करीब 2 घंटे रहकर शाह वापस लौट जाएंगे। बस्तर के अलावा कोरबा भी एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। संयोग से लोकसभा में प्रदेश की दोनों सीट ही कांग्रेस के पास है। दोनों इलाकों में कुछ को छोडक़र विधानसभा की भी लगभग सारी सीटें कांग्रेस को ही मिली है। बस्तर में दिल्ली से नियुक्त किए गए भाजपा के प्रभारी नेताओं ने हाल के दिनों में खूब दौरा किया है। कोरबा में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह का चर्चित दौरा रहा जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री आवास रोके जाने के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। इन दोनों ही बेल्ट में यदि भाजपा अपनी खोई हुई पकड़ फिर से बना लेती है तो सन 2023 के चुनाव में मजबूत स्थिति में पहुंच सकती है, ऐसा उनकी पार्टी के लोगों का मानना है। लोगों की निगाह इस बात पर टिकी हुई है कि अमित शाह जनसभा में क्या बोलते हैं और कोर ग्रुप की बैठक में पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं के बीच कौन सा मंत्र फूंक कर जाएंगे। ऐसा लगता नहीं कि 2018 की तरह इस बार वे अब की बार 65 पार दोहराने वाले हैं।
गलत नंबर प्लेट की इस गाड़ी पर कोई कार्रवाई करने से पुलिस के ऊपर भगवान महादेव का श्राप बिजली की तरह टूट कर गिर सकता है। पुलिस सावधान रहे।
यह सिलसिला खत्म हो
राज्य के सूचना आयोग में अध्यक्ष और एक सदस्य के लिए जिन लोगों ने आवेदन दिया, उनके नाम की लिस्ट आरटीआई एक्टिविस्ट लोगों ने कुछ घंटों के भीतर ही हासिल कर ली। लेकिन दूसरी तरफ राज्य में बिल्डरों और कॉलोनाइजरों, निर्माण संस्थाओं के मामलों की सुनवाई के लिए बने रेरा में किन लोगों ने अर्जियां भेजी हैं, या सरकार के तय किए हुए किन लोगों के नामों पर हाईकोर्ट जज की अगुवाई में कमेटी विचार करेगी, वह अब तक साफ नहीं है। लोग आजादी के 75 साल बाद भी किसी जानकारी को तब तक दबाए रखना चाहते हैं, जब तक उसे उजागर करना उनकी मजबूरी न हो जाए। और ऐसी मजबूरी होने पर भी लोग सूचना आयोग से 25 हजार रूपये का जुर्माना होने की भी फिक्र नहीं करते, और जानकारी देने से मना करते रहते हैं।
सच तो यह है कि सूचना पाने को अधिकार बनाने के बजाय सूचना देने को जिम्मेदारी बनाना जरूरी है। हर सरकारी कागज अगर इंटरनेट पर डाल देना उस विभाग और अफसर की जिम्मेदारी बना दिया जाएगा, तो सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार भी घटेगा, पारदर्शिता बढ़ेगी, और सरकारी उत्पादकता बढ़ सकेगी। आज तो किसी गलत काम के बाद महीनों तक विभाग आरटीआई में मांगी गई अर्जियों को तरह-तरह से रोकने में लगे रहता है। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए।
बिकने से बचेगा नगरनार?
एनएमडीसी के आधिपत्य वाले बस्तर के नगरनार स्टील प्लांट को खुली बोली लगाकर बेचने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। केंद्र सरकार के निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग ने बोलियां जमा करने की अंतिम तारीख 27 जनवरी 2023 तय की है। विघटन के बाद एनएसएल (नगरनार स्टील) के शेयर बीएसई, एनएसई और कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो जाएंगे। स्टील प्लांट के डीमर्जर के खिलाफ मजदूरों का लगातार आंदोलन चल रहा है। उनका कहना है कि प्रभावितों ने केंद्र सरकार के कारपोरेशन को प्लांट लगाने के लिए जमीन दी थी, मगर अब इसे निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। निजीकरण के बाद उनकी नौकरी पर भी खतरा मंडराएगा।
2 साल पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक शासकीय संकल्प पारित किया गया था। इसमें विपक्ष के सुझाए गए संशोधनों के बाद सरकार ने सर्वसम्मति से कहा था कि यदि निजीकरण किया गया तो राज्य सरकार इसे खुद खरीदेगा और संचालित करेगा। बस्तर के लोगों की भावनाएं भी लगभग 24 हजार करोड़ रुपए के विशाल संयंत्र से जुड़ी हुई हैं। बस्तर सांसद दीपक बैज यह मामला लोकसभा में उठा चुके हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में पेसा कानून 1996 लागू है। नियमों की अनदेखी कर नगरनार प्लांट का निजीकरण व्यवहारिक नहीं है। केंद्र के फैसले से बस्तर की जनता आंदोलित है और प्लांट में नौकरी का सपना टूटते देख नौजवान गुस्से में हैं।
इधर कल 6 जनवरी को सर्व आदिवासी समाज ने इस पर और इससे जुड़े कुछ अन्य मुद्दों पर बंद का आह्वान किया है। चेंबर ऑफ कॉमर्स सहित तमाम संगठनों का इसे समर्थन मिल रहा है।
केंद्र ने विधानसभा में पारित प्रस्ताव और लोकसभा में उठाए गए सवालों को दरकिनार करते हुए निजीकरण के फैसले में कोई बदलाव नहीं किया। इधर लिखते-लिखते यह जानकारी भी आ गई है कि जो शर्त केंद्र सरकार ने तय की है उसके अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार को टेंडर में भाग लेने का मौका ही नहीं मिल पाएगा। ऐसी बंदिश क्यों लगाई गई है यह अभी साफ नहीं है। पर इसे खरीदने की क्षमता कौन रखता है इसका अनुमान जरूर लगाया जा सकता है। अभी से क्या कहें, इसी महीने स्थिति साफ भी हो जाएगी।
खाली-खाली वंदे भारत
नई शुरू की गई 20825 बिलासपुर-नागपुर वंदे भारत एक्सप्रेस 90फीसदी खाली चल रही है। इधर रायगढ़ में मांग हो रही है कि यह ट्रेन उनके यहां से शुरू की जाए। दूसरी ओर विदर्भ में मांग है कि इसे अमरावती तक बढ़ा दिया जाए। रेलवे को एक कोशिश करके देख लेना चाहिए, क्या पता सम्मानजनक संख्या में सवारी मिल जाएं। किराया घटाने के बारे में तो शायद विचार होगा नहीं।
आबकारी रेड पर मंत्री का जवाब
प्रदेश के कई जिलों से समय-समय पर खबरें आती हैं की अवैध शराब की बिक्री रोकने के लिए छापामारी करने वाली आबकारी और पुलिस टीम पर लोग हमला कर देते हैं। कबीरधाम में तो हाल ही में ऐसी घटना हुई। जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करने वाले ऐसे कर्तव्यपरायण पुलिस जवान सहानुभूति और शाबाशी के लायक माने जाते हैं। मगर असली स्थिति कुछ दूसरी है। ज्यादातर मामलों में अवैध शराब निगरानी रखने वाले इन्हीं विभागों के संरक्षण में बिकती है, मगर दो कारणों से छापेमारी होती रहती है। एक तो अवैध शराब पकडऩे का टारगेट भी पूरा करके दिखाना होता है, दूसरा कोचिए भेंट-नजराना चढ़ाने में देरी कर देते हैं। फिर जब टीम छापा मारती है तो विवाद खड़ा हो जाता है। छापे को लीक करने वाले उन्हीं के महकमे के होते हैं और कोचिए पहले से माल गायब कर देते हैं। ऐसे में टीम को कई बार केस फर्जी बनाना पड़ता। फिर हो जाता है बवाल।
कांग्रेस विधायक छन्नी साहू के इस सवाल का आबकारी मंत्री कवासी लखमा के पास कोई जवाब नहीं था कि एक बाइक पर 3 लोग सवार होकर 10 पेटी शराब कैसे लेकर जा सकते हैं। मामला पूरी तरह फर्जी लग ही रहा था। विपक्षी भी इस मामले में लखमा को घेरने लगा तब उन्होंने कार्रवाई की बात की। हुई या नहीं, अभी मालूम नहीं।
तो अब क्या करें, चुनाव का इंतजार?
कांग्रेस ने जब 2018 में सरकार बनाई तो उस पर भारी-भरकम घोषणाओं को पूरा करने का दबाव था और आज भी यह बना हुआ है। अनियमित कर्मचारियों को रेगुलर करने का मुद्दा अब तक हल नहीं हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक 54 विभागों में करीब एक लाख 80 हजार अनियमित कर्मचारी हैं। संविदा, प्लेसमेंट एजेंसियों के कर्मचारी, ठेका कर्मी, दैनिक वेतन भोगी, को टर्मिनस, अंशकालिक कर्मी, कलेक्टर दर के कर्मी और मानदेय पाने वाले कर्मचारी इनमें शामिल हैं। सन् 2019 से इन लोगों ने नियमित करने की मांग पर आंदोलन चला रखा है और अब इनकी मांगों को पूरा करने के लिए सरकार के पास बहुत कम समय बचा है। उस वक्त इनसे कहा गया था कि कर्ज माफी के कारण 10 हजार करोड़ रुपए खर्च हो गए अब आगे कर्मचारियों की सुनी जाएगी। पर, वह मौका अब तक नहीं आया। विधानसभा में शिवरतन शर्मा के सवाल का जवाब मंत्री टीएस? सिंहदेव की ओर से आया। उसमें कुछ भी स्पष्ट नहीं था। उन्होंने कहा कि विभिन्न विभागों से अनियमित कर्मचारियों की सूची मांगी जा रही है।( 4 साल बाद यह काम हो रहा है।) आने वाले बजट में शामिल करने की कोशिश करेंगे। ऐसा नहीं हो पाया तो अनुपूरक बजट में ले आएंगे। जवाब में सिंहदेव का मास्टर स्ट्रोक यह था कि मांग पूरी नहीं कर पाएंगे तो जनता के बीच जाएंगे और वह जो करेगी उसे स्वीकार करेंगे। यानि एक तरह से मंत्री ने हाथ खड़े कर दिए। अब कर्मचारी संगठन ही जानें कि अब भी आंदोलन करेंगे या चुनाव का इंतजार।
रेप का असर इतना बड़ा
मनेंद्रगढ़ ब्लॉक के छिपछिपी के स्वास्थ्य केंद्र में करीब दो माह पहले एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई थी। यहां की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के साथ हाथ-पैर बांधकर रेप किया गया था। इसके बाद यह हुआ कि अस्पताल उस घटना के बाद से बंद है। किसी महिला स्वास्थ्य कर्मी के जल्दी यहां पर चार्ज लेने की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है लेकिन पुरुष कर्मचारी भी ड्यूटी पर नहीं आ रहे हैं, ताला लटका रहता है। दूरस्थ अंचल वैसे भी स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर प्रदेश में कमजोर हैं। इस अस्पताल के बंद होने के कारण दिक्कत ऐसी हुई है कि जरूरतमंद लोगों को 20 किलोमीटर दूर मनेंद्रगढ़ जाना पड़ रहा है। जिले के सीएमएचओ खुद ही मान रहे हैं कि डर के कारण कोई कर्मचारी वहां जाने के लिए तैयार नहीं। यह एकउदाहरण है कि काम पर घर से बाहर निकलने वाली महिला के साथ बरते जानी असभ्यता असर केवल उस पर नहीं, पूरे समाज पर पड़ता है।
नन्हीं भव्या की कुशाग्र बुद्धि
राजनांदगांव जिले के छोटे से गांव सिंघोला की 3 साल की भव्या विश्वकर्मा इन दिनों सोशल मीडिया पर छा गई है। छोटी सी है, इसलिए अभी स्कूल में उसे दाखिला भी नहीं मिला है। उसका एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह गांव के सरपंच से लेकर मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति का नाम सवालों पर तपाक से जवाब दे रही हैं। देश का राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय फल, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान जैसे करीब दो दर्जन सवालों का उसने बिल्कुल सही सही जवाब छूटते ही दे दिया। आईपीएस दीपांशु काबरा ने भी अपने सोशल मीडिया पेज पर उसका वीडियो शेयर किया है। ([email protected])
पिछले राज्यपाल, और अब...
छत्तीसगढ़ में आज कांग्रेस पार्टी आरक्षण विधेयक को राज्यपाल से मंजूरी मिलने में देरी के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। राजभवन के खिलाफ इस राज्य के दो दशक के इतिहास में इतना आक्रामक रूख कभी नहीं रहा। राजभवन पर हमला करते हुए अभी दो दिन पहले राजधानी के भाजपा कार्यालय, एकात्म परिसर, की तरफ आने वाली सडक़ पर ऐसे बोर्ड लगाए गए थे जिन पर लिखा था- राजभवन का नियंत्रण केन्द्र इधर है।
अब यह मानने की तो कोई वजह नहीं है कि कांग्रेस के अलावा किसी ने ऐसे बोर्ड लगाने में खर्च किया होगा। अब इसके बाद आज इस वक्त कांग्रेस का जो प्रदर्शन शुरू हो रहा है, उसमें भी लाख लोगों के आने की बात कही गई थी, और यह दावा खुद कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती रहने वाला है। आज विधानसभा का सत्र भी चल रहा है, और कांग्रेस सडक़ों पर राज्यपाल को नींद से जगाने के लिए हल्ला बोलने जा रही है कि आरक्षण विधेयक को राज्यपाल नाजायज तरीके से रोककर न रखें। कांग्रेस-सरकार तो आक्रामक है ही, ऐसा लगता है कि राजभवन भी सद्भावना का संबंध बनाए रखने में नाकामयाब रही है। राजभवन का संबंध घटते-घटते अब सिर्फ भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों तक सीमित हो गया दिखता है, वरना इसके पहले भी 20 बरस इस राज्य में विपक्षी केन्द्र सरकार के मनोनीत राज्यपाल रहे हैं, लेकिन ऐसा टकराव कभी नहीं हुआ। मनमोहन सिंह सरकार के भेजे हुए राज्यपाल शेखर दत्त के तो तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से ऐसे आत्मीय संबंध रहे कि जब शेखर दत्त राज्य से जाने लगे, तो उन्होंने अपने फौज के दिनों के, 1971 के युद्ध के प्रतीक चिन्ह की तरह रखे गए तोप के गोलों के खोल से बनाया हुआ एक सेंटर-टेबिल डॉ. रमन सिंह को तोहफे में दिया था। लेकिन अब राजभवन भी सद्भावना से परे हो गया दिखता है। ,
तारीफ तो ठीक, मांगों का क्या?
छत्तीसगढ़ के गोधन न्याय योजना की मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित कुछ भाजपा शासित राज्य न केवल प्रशंसा कर चुके हैं बल्कि इससे मिलती-जुलती योजना भी लागू कर चुके हैं या करने जा रहे हैं। पिछले दिनों केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने छत्तीसगढ़ सरकार की उस योजना की तारीफ की थी जिसमें सरकारी भवनों का रंग-रोगन गोबर पेंट से करने का आदेश दिया गया था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर आए। छत्तीसगढ़ के मिलेट (मोटा अनाज) मिशन की प्रशंसा की। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि प्रदेश में 22 तरह के मिलेट भरपूर मात्रा में उगाए जाते हैं और उनमें से कई का समर्थन मूल्य भी सरकार ने तय किया है। मोदी ने छत्तीसगढ़ में मिलेट कैफे खोलने का भी सुझाव दिया। इस दौरान सीएम ने कुछ मांगें भी रखी। उन्होंने जीएसटी और बकाया कोयला लेवी की रकम मांगी। साथ ही हावड़ा-मुंबई रूट पर ट्रेनों को लगातार रद्द उन्हें का मुद्दा सामने रखा। बस यह पता नहीं चल रहा है कि तारीफ के अलावा मुद्दों पर मोदी का जवाब क्या आया। मोदी ने क्या मांगों वाली बातों पर गौर नहीं किया या फिर भी संबंधित मंत्रियों से इस बारे में कोई पहल करने के लिए कहने जा रहे हैं? इंतजार करना होगा।
विपक्ष को मिला पूरा मौका
विधानसभा में जल-जीवन मिशन के टेंडर में 100 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप बीजेपी ने लगाया। उनकी शिकायत थी कि कोई ऑनलाइन टेंडर केवल 6 घंटे के लिए क्यों खोला गया? बीजेपी के वरिष्ठ सदस्य धरमलाल कौशिक, बृजमोहन अग्रवाल और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल सवाल पर सवाल करते रहे। पूरे घटनाक्रम में ध्यान खींचने वाली बात थी आसंदी की तटस्थता और गरिमा। स्पीकर ने लंबी बहस के दौरान विपक्ष को जरा भी रोका-टोका नहीं और मंत्री का किसी तरह से बचाव भी नहीं किया। यह अलग बात है कि विपक्ष को वह जवाब नहीं मिला जो चाहता था और बहिर्गमन कर गया। यह बात इस संदर्भ में देखने लायक है कि राहुल गांधी जैसे कई नेता बार-बार कहते हैं कि हमें सदन में बोलने नहीं दिया जाता और कुछ बोलते हैं तो टीवी वाले दिखाते नहीं। छत्तीसगढ़, सदन में भरपूर तरीके से विपक्ष को बोलते हुए देख रहा है और टीवी पर भी उसका प्रसारण हो रहा है।
9 साल पहले सरोवर
सन 2013, 31 दिसंबर को आसमान से रायपुर शहर कुछ इस तरह दिखाई देता था। इसमें विवेकानंद सरोवर यानी बूढ़ा तालाब, इनडोर स्टेडियम और आउटडोर स्टेडियम दिखाई दे रहे हैं। अब काफी कुछ बदल चुका है। सरोवर का सौंदर्यीकरण हो चुका है और इस रास्ते पर ट्रैफिक भी काफी है।
(फोटो गोकुल सोनी की वॉल से)
विरोध प्रदर्शन को सतनामी समाज की ना
आरक्षण पर कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर जबरदस्त हमला कर रहे हैं। जाहिर है यह कसरत इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर है। 3 जनवरी को होने वाले प्रदर्शन में कांग्रेस ने विभिन्न सामाजिक संगठनों को इसमें शामिल होने का न्यौता दिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने अलग-अलग सामाजिक संगठनों से मुलाकात कर उनसे समर्थन मांगा। इनमें से सतनामी समाज के एक प्रमुख संगठन ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। वे 16 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं। राज्यपाल के पास लंबित विधेयक में उन्हें 13 प्रतिशत देने का प्रावधान रखा गया है।
सन् 2012 में मध्यप्रदेश के समय से चले आ रहे आरक्षण के प्रतिशत में तत्कालीन भाजपा सरकार ने बदलाव किया। कुल मिलाकर आरक्षण का प्रतिशत 58 किया गया, जिसमें अनुसूचित जाति के लिए प्रतिशत 16 से घटाकर 12 कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने इस प्रावधान को निरस्त किया तो सरकार नया विधेयक लेकर आई। उस वक्त आरक्षण का प्रतिशत कम करने के खिलाफ सतनामी समाज में रोष था। इसके विरोध में प्रदर्शन हुए। पर भाजपा ने इसके ठीक एक साल बाद हुए सन् 2013 के चुनाव में 10 में से 9 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज कर ली। उस वक्त सतनामी समाज के प्रभावशाली चेहरे बालदास का उन्हें परोक्ष समर्थन मिल गया था। उनके करीब 20 उम्मीदवारों ने कांग्रेस के वोट जगह-जगह काटे। सन् 2018 के चुनाव में बालदास कांग्रेस के समर्थन में थे। तब भाजपा केवल मस्तूरी और मुंगेली की अनुसूचित जाति सीट जीत सकी, एक पामगढ़ सीट बसपा को मिली और कांग्रेस को 7 सीटों पर कामयाबी मिली।
भाजपा ने अनुसूचित जाति के 16 प्रतिशत आरक्षण की मांग को समर्थन दिया है। वह ईडब्ल्यूएस के लिए भी केंद्र की तरह 4 की जगह 10 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रही है। ओबीसी और अनुसूचित जनजाति को मिले आरक्षण पर कोई आपत्ति किसी को नहीं है। विधेयक कानून के कटघरे में खरा उतरेगा या नहीं यह बाद का सवाल है, पर विधेयक रोके जाने के राज्यपाल के फैसले का जिस तरह भाजपा समर्थन कर रही है, उसे उसमें सियासी फायदा दिखाई दे रहा है। ओबीसी वोटों पर कांग्रेस की बराबरी तक पहुंचने की कोशिश में उसने दोनों महत्वपूर्ण पद नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष, दे ही रखा है। डर यही है कि विधेयक जैसा है वैसे का वैसा मंजूर कर लिया गया तो कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है।
धूप भी तो ठंडी है..
घने जंगलों के बीच बसे गांवों में इन दिनों गजब का जाड़ा है। ये स्कूली बच्चे कोरबा जिले के ऐसे ही एक गांव से हैं, जहां वे बैठे तो हैं धूप में, पर अलाव के बिना उनका काम नहीं चल रहा है।
फिर कई को नोटिस
चर्चा है कि चुनावी साल में ईडी की सक्रियता बढ़ सकती है। कई तो चपेट में आ चुके हैं। कुछ निशाने पर हैं। एक खबर यह भी है कि दो दर्जन से अधिक को नोटिस जारी हुई है। उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया है। इनमें से कई तो ऐसे भी हैं जिनसे ईडी पहले भी पूछताछ कर चुकी है। दोबारा नोटिस मिलने पर दहशत में आना स्वाभाविक है। सरकार, और कारोबार जगत के कुछ प्रभावशाली लोगों का मानना है कि ईडी के साए में ही चुनाव होगा। ऐसे में लडऩा ही एकमात्र विकल्प है। देखना है कि आगे क्या होता है।
अधिवेशन कब और कहाँ ?
वैसे तो एआईसीसी ने रायपुर में राष्ट्रीय अधिवेशन कराने का ऐलान कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस, और सीएम अधिवेशन की तैयारियों में जुट गए हैं। 15 फरवरी के बाद से शहर के तमाम बड़े होटल अभी से बुक कर लिए गए हैं। यद्यपि अभी डेट नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि फरवरी के आखिरी हफ्ते में एआईसीसी का अधिवेशन हो सकता है।
हल्ला यह भी है कि एआईसीसी अब छत्तीसगढ़ की जगह कर्नाटक अथवा दिल्ली में अधिवेशन करा सकती है। चर्चा है कि चुनाव के चलते कर्नाटक में अधिवेशन कराने पर गंभीरता से विचार हो रहा है। कर्नाटक में मार्च-अप्रैल में चुनाव हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि यदि दिल्ली में अधिवेशन कराने का निर्णय होता है, तो एक ही दिन का अधिवेशन होगा। कुछ भी हो, इस पर फैसला जल्द होने की उम्मीद है।
ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं?
विक्रमादित्य ने शकों को हराकर जिस दिन अपने राज्य की स्थापना की थी, उस दिन को विक्रम संवत् का प्रारंभ माना जाता है। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पर ब्रह्मा जी ने संसार की रचना शुरू की थी, इसे इसलिए नव-संवत्सर नाम से जाना जाता है। 1 जनवरी को नया साल मानने से इनकार करने वाले लोगों का कहना है कि चैत्र प्रतिपदा को नए साल के पहले दिन की तरह मनाया जाए और गुलामी की पहचान बने विदेशी ग्रेगोरियन कैलेंडर से हमें मुक्त होना चाहिए। मगर अपने देश-प्रदेश में सभी जगह चैत्र प्रतिपदा से नए साल की शुरुआत नहीं होती। बंगाली हिंदू, वैशाख के पहले दिन को नया साल मानते हैं, असम बिहू को साल का पहला दिन मानता है। पंजाब नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक वैशाखी के दिन को नए साल की शुरुआत मानता है, जिसे होला-मोहल्ला कहते हैं। सिंधी समाज चैत्र महीने की द्वितीय तिथि को चेटीचंड उत्सव मनाता है, जो भगवान झूलेलाल का जन्मदिन है। उनके नववर्ष की शुरुआत इसी दिन से होती है।
दक्षिण के राज्यों में गुड़ी पड़वा, विशु, ओणम, पोंगल, उगादि जैसे त्योहारों से नए साल की शुरुआत होती है। मारवाड़ी और गुजराती दीपावली से नए साल की शुरुआत करते हैं। इनमें से किसी की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से नहीं होती लेकिन मनाने वाले सब लोग हिंदू ही हैं। संस्कृत में लिखे गए अनेक प्राचीन ग्रंथों में शक संवत् का प्रयोग किया गया है, विक्रम संवत् का नहीं। शक संवत् का प्रयोग करने वाले विद्वान भी हिंदू ही हैं। दूसरे धर्मों की छोड़ भी सकते हैं जैसे-मुस्लिम मोहर्रम महीने की एक तारीख को नया साल मानते हैं। अगस्त महीने का नवरोज पर्व पारसी लोगों का नया साल होता है। पर जैन धर्म जो हिंदू धर्म के बहुत करीब है वह दीपावली के दूसरे दिन को नए साल की शुरुआत मानता है क्योंकि इस दिन महावीर स्वामी को मोक्ष मिला था।
छत्तीसगढ़, राज्य के बस्तर, झारखंड और मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में हरेली और नवाखाई वर्ष के पहले त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जो जुलाई-अगस्त महीने में आता है।
छत्तीसगढ़ में देश के सभी पर्वों को मनाते हुए देखा जा सकता है। खासकर रेलवे की वजह से झाड़सुगुड़ा से कटनी और रायगढ़ से गोंदिया तक बस चुके लोगों के बीच।
हिंदुत्ववादियों के एक व्हाट्सएप ग्रुप में एडमिन की तरफ से बार-बार चेतावनी दी जा रही है कि 1 जनवरी हमारा नववर्ष नहीं है, कृपया बधाई और शुभकामनाएं नहीं दें। पर ग्रुप से जुड़े सदस्य मानने को तैयार ही नहीं। शुभकामनाएं देने से बाज नहीं आ रहे हैं।
भीड़ जुटाने का तनाव
आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने को लेकर राज्यपाल के खिलाफ 3 जनवरी को राजधानी में होने वाली कांग्रेस की जन अधिकार महारैली के लिए हर विधायक को 10 से 12 हजार लोगों की भीड़ अपने-अपने इलाकों से लाने के लिए कहा गया है। सरपंच, पार्षद, निगम और मंडल तथा आयोग के पदाधिकारियों को भी अलग से 2 से 10 हजार लोगों को लाना है। इस हिसाब से अगर देखा जाए तो रायपुर में 8 से 10 लाख लोग पहुंच सकते हैं। एक कांग्रेस नेता का कहना है कि राज्यपाल इस रैली के बाद दबाव में आए चाहे ना आए लेकिन जिन लोगों को भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई है, वे जरूर तनाव में है। कहा गया है कि भीड़ रायपुर, बिलासपुर में पिछले महीनों में हुई भाजपा की रैलियों के मुकाबले बड़ी होनी चाहिए। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर संगठन यह भी परखने वाला है कि विधायक और मंडल निगम के पदाधिकारियों की अपने इलाके में कितनी पकड़ है। जो लोग भीड़ नहीं ला सकेंगे, उनके परफॉर्मेंस रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
पत्रकार की हैसियत
यह पहला पत्रकार होगा, जिसे अपनी प्रॉपर्टी छिपाने में कोई परहेज नहीं है। यह भी कह सकते हैं कि यह पत्रकार जरूर है पर इसके पास बताने लायक कोई संपत्ति भी है। ([email protected])
फर्जी और कारोबारी कॉल्स
रोजाना होने वाली साइबर ठगी की खबरें चारों तरफ छाई रहती हैं, और इस बीच भी कम से कम टेलीफोन कंपनियां रात-दिन लोगों का जीना हराम करती हैं, सच्चे या झूठे कॉल्स टेलीफोन और इंटरनेट की नई-नई स्कीम के लिए आते ही रहते हैं। सुबह से किसी और का फोन आए या न आए, टेलीफोन कंपनियों का फोन जरूर आ जाता है।
मोबाइल फोन पर कुछ ऐसे एप्लीकेशन भी हैं जो कि अनजाने नंबरों से आने वाले टेलीफोन पहचान कर पहले से बता देते हैं कि क्या ये कोई स्पैम कॉल है। ट्रूकॉलर जैसा एप्लीकेशन यह भी बता देता है कि पहले के लोगों ने इस नंबर की कॉल्स को ब्लॉक करते हुए इसे किस कंपनी का बताया था। यह एप्लीकेशन यह भी बता देता है कि इस नंबर से पिछले साठ दिनों में कितनी कॉल की गई है, कितने फीसदी लोगों ने इसे स्पैम बताया है, और आमतौर पर इस नंबर से कितने बजे से कितने बजे तक फोन आता है। जिन लोगों को ट्रूकॉलर जैसे एप्लीकेशन के इस्तेमाल में कोई खतरा नहीं दिखता है, उन्हें ऐसे नंबर ब्लॉक करते चलना चाहिए। ये नंबर सचमुच ही टेलीफोन कंपनियों के हों, या फिर फर्जी हों, इन्हें ब्लॉक करना चाहिए। ट्राई के नियमों के मुताबिक जब तक किसी टेलीफोन नंबर का मार्केटिंग नंबर के रूप में रजिस्ट्रेशन न हो, उसका इस्तेमाल इस काम के लिए नहीं किया जा सकता, ट्राई को ऐसे नंबरों की शिकायत करने का तरीका आसान करना चाहिए, ताकि लोगों के पास फिजूल के कारोबारी, या फर्जीवाड़े वाले लोग कॉल्स न कर सकें, या उनका नाम लिखा हुआ दिखे ताकि लोग ऐसी कॉल्स को काट सकें। फिलहाल लोग अगर ऐसे नंबरों की कॉल्स को ब्लॉक भी करते चलते हैं, और उसे स्पैम रिपोर्ट करते हैं, तो भी कम से कम और लोगों को तो इन नंबरों से राहत मिलती रहेगी। यह एक अलग बात है कि टेलीफोन कंपनियों के पास ऐसे अंतहीन नंबर रहते हैं, और वे एक नंबर के बहुत ज्यादा ब्लॉक हो जाने पर दूसरे किसी नंबर से कॉल करना शुरू कर देंगे, और आखिर में तो ट्राई की रोक ही कोई फर्क पैदा कर सकती है।
एनडीटीवी में डायरेक्टर...
छत्तीसगढ़ में पिछली सरकार में सबसे ताकतवर अफसर रहे अमन सिंह और पिछले दोनों मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके सुनील कुमार कल एनडीटीवी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में मनोनीत किए गए, तो यह उन्हें जानने वाले लोगों के बीच खुशी फैलाने वाली बात थी। अमन सिंह तो रमन सिंह सरकार के जाने के बाद दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में एक बड़े ओहदे पर काम करने लगे थे, और कुछ हफ्ते पहले वे अदानी में एक बड़े ओहदे पर अहमदाबाद चले गए थे। अब छत्तीसगढ़ से जुड़े इन दोनों भूतपूर्व अफसरों को एनडीटीवी में महत्वपूर्ण भूमिका मिलने से इस टीवी चैनल के प्रति इस राज्य के लोगों की उत्सुकता थोड़ी सी और बढ़ी रहेगी। सुनील कुमार की दोस्ती देश के दर्जनों बड़े-बड़े पत्रकारों से रही है, और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जनसंपर्क विभाग का काम देखते हुए, केन्द्र सरकार में अर्जुन सिंह और कपिल सिब्बल के साथ बरसों काम करते हुए उनके संपर्क का दायरा बहुत बड़ा है, और अब यह देखना है कि उनके तजुर्बे का एनडीटीवी कोई फायदा उठा सकती है या नहीं।
रास्ता मयखाने का..
शायद देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज है, जिसके रास्ते में यह सुविधा मुहैया कराई गई है। (सोशल मीडिया से)
प्रवासियों के वोट की कीमत
श्रम विभाग के आंकड़ों पर जाएं तो दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए जाने वाले मतदाताओं की संख्या कुछ हजार तक ही पहुंच सकेगी, पर चुनाव के वक्त राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता गांव, वार्डों में घूमकर सूची निकालते हैं तो उन्हें असली तादात मालूम हो जाती है। छत्तीसगढ़ से कुछ वर्षों के भीतर आईटी सेक्टर और दूसरे प्रोफेशन में युवाओं ने बड़ी संख्या में जॉब हासिल किया है। वे महानगर अथवा विदेशों में रहते हैं। अनेक महिलाएं विवाह के बाद ससुराल की मतदाता सूची में नाम नहीं जुड़वा पाती हैं, मायके की सूची में ही रह जाता है। पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी नये मतदाता बड़ी संख्या में बाहर जाते हैं। इन सब पर मजदूरों की संख्या भारी है। कोविड काल के समय जब देशभर में अचानक तालाबंदी की गई थी तो करीब 7 लाख मजदूर छत्तीसगढ़ वापस लाए गए थे। इसके अलावा हजारों लोग नहीं भी आए। यह संख्या किसी भी चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने की ताकत रखती है। अब चुनाव आयोग ऐसे मतदाताओं के लिए रिमोट ईवीएम सिस्टम पर काम शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है। 20 जनवरी को सभी राजनीतिक दलों के सामने इसका प्रदर्शन किया जाएगा। यदि यह लागू हो गया तो प्रवासी मजदूरों की पूछ-परख बढ़ेगी। चुनावों में राजनीतिक दल घोषणा करते हैं कि पलायन रोकेंगे, पर ऐसा कभी नहीं हो पाया। यह छत्तीसगढ़ की हकीकत है कि मजदूर अतिरिक्त कमाई के लिए प्रदेश के बाहर निकलते हैं। इनमें आदिवासियों की संख्या भी बड़ी है, अनुसूचित जाति के लोग तो अधिकतर हैं ही। बाहर जाने वाले मजदूरों को आए दिन बंधक बनाने, प्रताडि़त करने, मजदूरी नहीं देने, शोषण करने, पुनर्वास अधिनियम के तहत लाभ नहीं मिलने जैसी कितनी ही समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। यदि रिमोट वोटिंग सिस्टम लागू हो गया तो मुमकिन है इनकी समस्याओं पर कुछ गंभीर आश्वासन राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र का हिस्सा बने।
पीएम आवास पर नाम का संकट
प्रधानमंत्री आवास योजना पर पूरे चार साल हंगामे और मंत्री सिंहदेव के इसी मुद्दे पर विभाग छोडऩे के बाद अब जाकर एक हिस्सा राज्य सरकार ने जारी कर दिया है। यह रकम 1290 करोड़ बताई गई है। इस राशि से सन् 2018 से 2020 तक के अधूरे पीएम आवास पूरे किए जाएंगे। वे हजारों हितग्राही जिनका घर चार साल से अधूरा पड़ा है, जरूर इससे खुश हो रहे हैं लेकिन कुछ बदकिस्मत भी हैं। पंचायतों के अधिकारी अधूरे आवासों का भौतिक सत्यापन करने के लिए जा रहे हैं तो पता चल रहा है कि कई अधूरे घर इतने जर्जर हो चुके हैं कि पूरा नए सिरे से तैयार करना होगा। कई लोग गांव छोडक़र जा चुके हैं। वे या तो अपने किसी रिश्तेदार के पास चले गए या प्रदेश से ही बाहर चले गए। अपने घर का सपना देखते-देखते कई लोगों की मौत भी इस बीच हो गई। राज्य सरकार की ओर से जारी रकम अधूरे आवासों के लिए है। नए स्वीकृत आवासों के लिए नहीं। उसकी स्वीकृति तो केंद्र ने वापस भी ले ली है।
राज्य सरकार की मुख्य आपत्ति इस बात पर है कि जब इस योजना में राज्य का हिस्सा 40 प्रतिशत है तो योजना प्रधानमंत्री के नाम पर क्यों? राज्य सरकार की ओर से अधूरे आवासों के लिए रकम जारी कर एक पहल की गई है। छत्तीसगढ़ भाजपा पीएम आवास के ही मुद्दे पर राज्य सरकार के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन जनवरी में करने जा रही है। यह अनुरोध भी साथ-साथ किया जा सकता है कि 40 फीसदी हिस्सा देने वाले राज्य को योजना का नाम बदलने की छूट दी जाए।
दिलचस्प सुगबुगाहट
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बने चार बरस से अधिक हो गए, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अब तक मोर्चे पर डटी हुई है। पहले तो यह लगता है कि ढाई बरस के बाद तथाकथित समझौता लागू हो जाएगा, लेकिन वक्त के साथ उसकी संभावना खत्म होती चली गई, और अब सिंहदेव बिना लाग-लपेट की अपनी बातों के तहत यह भी कहने लगे हैं कि अगला चुनाव लडऩे का उनमें उतना उत्साह नहीं है। कुछ जानकार लोगों का यह कहना है कि बिना मुख्यमंत्री बने अगर पांच बरस निकल जाते हैं, तो सिंहदेव हो सकता है कि अगला विधानसभा चुनाव न लड़ें। ऐसी भी चर्चा है कि वे अपनी जगह अपने भतीजे आदित्येश्वर शरण सिंहदेव को विधानसभा चुनाव लड़वाना चाहें जो कि अभी भी जिला पंचायत की राजनीति में हैं। लेकिन एक अजीब सी राजनीतिक अटकल यह भी सामने आई है कि हो सकता है कि सरगुजा सीट से अगले चुनाव में आदित्येश्वर शरण सिंहदेव भाजपा के उम्मीदवार दिखें। राजनीति कई किस्म के दिलचस्प मोड़ लेती है, इसलिए ऐसा कुछ अगर होता है, तो वह देखना भी दिलचस्प रहेगा। फिलहाल टी.एस. सिंहदेव मीडिया के सामने आदतन चुप नहीं रहते, और आदतन मन का सच बोलने से नहीं कतराते। नतीजा यह है कि मीडिया को दिलचस्प सुगबुगाहट मिलती रहती है।
मुख्यमंत्री और बहस
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले कुछ महीनों से लगातार प्रदेश भर का दौरा कर रहे हैं, और अलग-अलग विधानसभाओं में जाकर लोगों से भेंट-मुलाकात का सिलसिला चला रहे हैं। ऐसी सरकार-आयोजित सभाओं में सैकड़ों लोग जुटते हैं, और उनमें से अलग-अलग बहुत से लोग माइक थामकर अपने मन की बात कहते हैं। यह सिलसिला सरकारी अफसरों के छांटे हुए लोगों से नहीं चलता, और बहुत से लोग अनायास ही माइक पा जाते हैं, और कई तरह की बातें कहते हैं। कल ऐसी ही एक सभा का एक वीडियो सामने आया जिसमें सवाल करने के बजाय एक नौजवान मुख्यमंत्री से राजनीतिक बहस करते दिखता है, और बातचीत नोंक-झोंक तक पहुंच जाती है। कुछ लोगों ने इसे मुख्यमंत्री का नाराजगी में फट पडऩा करार दिया है, तो कुछ लोगों ने कोई और बात लिखी है। दरअसल जब-जब बहुत लोकतांत्रिक तरीके से लोगों को कुछ कहने का हौसला बढ़ाया जाता है, तो दोनों ही तरफ से ऐसी बातें हो सकती हैं। फिलहाल यह देखना दिलचस्प है कि लोग एक ताकतवर मुख्यमंत्री से भी रूबरू कितनी तेज बहस कर सकते हैं।
पहले अफसर से शुरू सिलसिला
कुछ लोगों को यह धोखा हो सकता है कि कुछ अफसरों की जांच और गिरफ्तारी के चलते बाकी अफसर सहम गए होंगे, और जमीन-जायदाद खरीदना कुछ थमा होगा। लेकिन छत्तीसगढ़ के जमीन-दलालों को देखें तो वे अब भी अफसरों की बस्ती में सुबह से पहुंच जाते हैं, और शाम को फिर साहब-मैडम को जमीन दिखाने ले जाते दिख रहे हैं। इतना जरूर हुआ है कि जिन अफसरों की जड़ें छत्तीसगढ़ के बाहर हैं, उन्होंने अब दूसरे प्रदेशों में पूंजीनिवेश को अधिक सुरक्षित महसूस किया है। लेकिन जमीनों को लेकर नियम और आदेश जारी करने वाले बहुत से अफसर ऐसे हैं जो कि पहले किसी इलाके में जमीनों की बिक्री पर रोक लगा देते हैं, और फिर उस इलाके में सौदे हो जाने पर वहां की रोक हटा लेते हैं। यह सिलसिला मानव इतिहास के पहले अफसर से शुरू हुआ था, और आखिरी अफसर तक चलते रहेगा।
ये ट्रेन टक्कर नहीं मारेगी..
बीकानेर से बिलासपुर चलने वाली सुपर फास्ट एक्सप्रेस ट्रेन में सामने करीब 200 मीटर की दूरी पर उसी ट्रैक पर डोंगरगढ़ के पास कल दूसरी ट्रेन दिखी तो यात्री सहम गए। उन्होंने सोचा कि अच्छा हुआ ट्रेन समय पर रुक गई, वरना टक्कर ही हो जाती। पर रेलवे की नई ऑटोमैटिक सिग्नलिंग तकनीक से यह संभव हो रहा है कि एक ही ट्रैक पर दो ट्रेन बहुत पास-पास एक ही ट्रैक पर दिखें। बीकानेर-बिलासपुर एक्सप्रेस के सामने जो ट्रेन का इंजन दिखाई दे रहा था, दरअसल वह पीछे का हिस्सा है। कुछ ज्यादा लोड लेकर चलने वाली कई मालगाडिय़ों में दोनों ओर इंजन लगाए जाते हैं। नए सिग्नलिंग सिस्टम में दो ट्रेनों के बीच दूरी घटा दी गई है। इस सिस्टम में एक ट्रेन दूसरी के ज्यादा नजदीक तक जाकर पीछे चल सकती है और सामने की ट्रेन धीमी हुई तो एक निश्चित दूरी पर रुक भी सकती है। इसके अलावा नागपुर-बिलासपुर के बीच ‘कवच’ सिस्टम भी चालू हो चुका है। यदि गलती से ओवरशूट हुआ, यानि रेड सिग्नल कोई ट्रेन पार कर गया तो दूसरी ट्रेन से टकराने के पहले करीब 100 मीटर की दूर पहले ही वह रुक जाएगी। यह सब रेलवे के अधिकारियों ने बताया है। इतनी उन्नत तकनीक होने के बाद भी यात्री ट्रेनों को समय पर क्यों नहीं चलाया जा रहा है, इसका जवाब भी तो मिलना चाहिए।
सेवा में तत्पर पुलिस का डर
पुलिस राजनैतिक कार्यकर्ताओं, नेताओं यहां तक कि विधायकों पर बेखौफ कार्रवाई करती है, लेकिन शायद उनसे घबराती है- जो उन्हें सवालों के कटघरे में खड़ा करते हैं। बिलासपुर की अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला, राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी से जरूर जुड़ी हैं- पर उससे अधिक वह सामाजिक मुद्दों, विशेषकर महिलाओं, बच्चियों से जुड़े मामलों में सक्रिय रहती हैं। उनकी पहली पहचान सामाजिक कार्यकर्ता की ही है। हाल ही में बलात्कार पीडि़त एक बच्ची को बाल संरक्षण समिति के कब्जे से छुड़ाकर उसकी मां को वापस सौंपने की मांग को उन्होंने उठाया। प्रदर्शन किया, समिति से सवाल किया। अफसरों से मिलीं, उसके बाद कलेक्ट्रेट और नेहरू चौक में धरने पर बैठ गईं। परेशान पुलिस ने उसे व उनके कुछ साथियों को धारा 151 में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पुलिस इस धारा को जिसके खिलाफ इस्तेमाल करती रहती है। पर बिलासपुर पुलिस ने तो अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल में ही उसे ब्लॉक कर दिया, मानो यह पुलिस अफसरों का कोई निजी अकाउंट हो। अब प्रियंका अपनी कोई शिकायत बिलासपुर पुलिस को टैग नहीं कर सकतीं। यदि कोई अभद्र, आधारहीन बात करे तो उस पर कार्रवाई जरूर की जा सकती है पर किसी की बात सुनने से पुलिस मना कैसे कर सकती है?
ताम्रध्वज की प्रतिक्रिया का मतलब?
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के चुनाव लडऩे का मन नहीं होने की बात पर दी गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू की तीखी प्रतिक्रिया का लोग मतलब समझने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके नहीं लडऩे से फर्क नहीं पड़ेगा, 10 लोग लाइन में खड़े हैं।
सन् 2018 में बहुमत मिलने के बाद जो परिस्थितियां बनी हैं, उससे यह तय हो चुका है कि पिछड़ा वर्ग के वोटों का सन् 2023 के चुनाव में बड़ा असर होने वाला है। ओबीसी पर कांग्रेस की बढ़त को देखकर भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पदों को दांव पर लगा दिया है। साहू समाज परंपरागत रूप से भाजपा की ओर झुकाव रखता आया है। पिछले चुनाव में इसका कांग्रेस की ओर रुझान अपने समुदाय के नेताओं को शीर्ष पदों पर देखने की इच्छा की वजह से आया था। अब अरुण साव के हाथ में नेतृत्व आने के बाद साहू समाज के बड़ा तबका भाजपा की ओर वापस जा सकता है। अब तक तो यह दिखाई दे रहा है कि सन् 2023 का चुनाव कांग्रेस मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का चेहरा ही सामने रखकर लड़ेगी, पर साहू समाज के वोटों को बिखरने से बचाने के लिए ताम्रध्वज साहू को भी सामने रखना पड़ेगा। मुमकिन है, सिंहदेव की दावेदारी शून्य हो जाने के बाद एक बार फिर सीएम की कुर्सी के लिए टकराव- ओबीसी वर्सेस ओबीसी हो जाए।
तहसील ऑफिस में रिश्वत की लिमिट
यह ठीक है कि आम लोग राजस्व विभाग के छोटे-छोटे कामों में रिश्वतखोरी के चलते बेहद परेशान हैं, पर क्या यह सब इसी सरकार में हो रहा है। इससे पहले सब दुरुस्त था? नहीं था, पर हालत इतनी बुरी भी नहीं थी। मीडिया के सामने संतुलित बात करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कुछ यही इशारा किया। बेलतरा के प्रवास पर उन्होंने पत्रकारों से चर्चा के दौरान सरकार की खामियों को उजागर किया। राज्य के कर्ज में लद जाने की बात, अपराधों का ग्राफ बढऩे की बात, आदि। साथ में कहा कि भूपेश राज में तहसील में लाखों रुपये लग रहे हैं, तब कहीं जाकर आम लोगों का काम हो रहा है। हमारे कार्यकाल में तो 5-10 हजार में काम हो जाता था..। सच को साफ-साफ कह तो दिया पूर्व सीएम ने। उन्होंने भ्रष्टाचार पर नहीं, उसका रेट बढ़ जाने पर चिंता जताई। पर, लोगों के लिए सवाल बाकी रह गया है कि क्या भाजपा सरकार के दौरान में कोई हिदायत थी, कि इतना ही लोगे, इससे ज्यादा लिए तो निपटा दिया जाएगा? और यदि ऐसा है तो कांग्रेस सरकार ने कोई लिमिट क्यों तय नहीं की, अब ये क्यों बेलगाम हो गए हैं, लोग पिस रहे हैं।
ईडी के दौर में मीडिया, और प्रेस
छत्तीसगढ़ में ईडी की जांच को लेकर मीडिया के बीच एक ऐसी हड़बड़ी दिख रही है जो उसकी रही-सही इज्जत को खत्म कर रही है। आज टेक्नालॉजी की मेहरबानी से हर इंसान एक न्यूज पोर्टल शुरू करके कुछ हजार रूपये महीने के खर्च से मीडिया मालिक बन सकते हैं, अपने आपको पत्रकार कह सकते हैं। और ऐसे में लोग पत्रकारिता की लंबी परंपरा, उसके तौर-तरीकों से परे अपने अंदाज में खबरें गढक़र पोस्ट कर रहे हैं, और उन्हें देखकर उसके दबाव में पुराने पत्रकार भी अपने अखबारों में उसी तरह की हड़बड़ी दिखा रहे हैं।
अच्छे-खासे तजुर्बे वाले रिपोर्टर भी दिन में चार बार दावे के साथ किसी की गिरफ्तारी की बात करते हैं, और साबित यह होता है कि अगले चार दिन तक भी वैसी कोई कार्रवाई नहीं दिखती है। इसके पीछे कुछ तो एक-दूसरे के देखादेखी न्यूज ब्रेक करने की हड़बड़ी है, और कुछ लोगों की अपनी हसरतें हैं जिन्हें खबर की हकीकत की तरह पेश करने की उनकी नीयत है। ऐसा दौर तो आकर चला जाएगा, लेकिन जिस तरह यह दौर कई लोगों की विश्वसनीयता अदालत में गिरा रहा है, उसी तरह यह मीडिया की विश्वसनीयता भी खत्म कर रहा है। रिपोर्टरों को हमेशा से चले आ रहे पत्रकारिता के कुछ तौर-तरीकों को याद रखना चाहिए कि जब तक दो अलग-अलग, एक-दूसरे से असंबद्ध स्रोतों से कोई जानकारी पुष्ट न हो, तब तक उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। यह इम्तिहान सार्वजनिक जीवन के लोगों का भी है, और मीडिया का भी। ऐसे में फिर याद पड़ता है कि मीडिया के अखबार वाले हिस्सों को अपने आपको फिर से प्रेस कहना शुरू करना चाहिए, और अपने तौर-तरीके पुराने रखना चाहिए।
मलाई से परहेज
ईडी, और आईटी की सक्रियता देखकर अफसर अब मलाईदार पोस्टिंग से परहेज कर रहे हैं। पिछले दिनों एक आईएफएस अफसर की मलाईदार पद पर पोस्टिंग हुई, तो पोस्टिंग आदेश जारी होते ही अफसर ने विभाग प्रमुख से मिलकर पोस्टिंग आदेश निरस्त करवाने का आग्रह किया। हालांकि अभी पोस्टिंग आदेश चेंज नहीं हुआ है, लेकिन उन्होंने कार्यभार भी नहीं संभाला है। संबंधित जगह में सैकड़ों करोड़ का फंड है, लेकिन जिस रफ्तार से ईडी राज्य के अफसरों पर शिकंजा कस रही है उससे चुनावी साल में मलाईदार पद पर काम करना जोखिम भरा हो गया है। यही वजह है कि अच्छी साख वाले अफसर इससे दूर रहने का बहाना ढूंढ रहे हैं।
लंबे मुसाफिर मरकाम
सीएम भूपेश बघेल, और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम भारत जोड़ों यात्रा में राहुल गांधी के साथ कई बार कदमताल कर चुके हैं। सीएम व्यस्तताओं के बावजूद अलग-अलग राज्यों में राहुल के साथ पदयात्रा के लिए समय निकाल चुके हैं। मोहन मरकाम भी पीछे नहीं है। पिछले दिनों हरियाणा में वो जब राहुल के साथ चल रहे थे, तो प्रियंका गांधी ने उन्हें देखकर पूछ लिया कि मरकामजी आप शुरू से साथ चल रहे हैं क्या? इस पर मरकाम ने कहा कि मैडम, बीच-बीच में ही यात्रा में शामिल होते हैं। मरकाम जब भी यात्रा में साथ होते हैं, तो प्रतीकात्मक यात्रा करने के बजाए सौ-डेढ़ सौ किमी साथ चलते हैं। ऐसे में बहुतों को गलतफहमी हो जाती है कि मरकाम शुरू से ही यात्रा में साथ हैं।
प्लीज, प्लीज, प्लीज पीएम रेल दीजिए
जशपुर में रेल की मांग की मांग बस्तर की मांग से कम पुरानी नहीं है। बस्तर में कुछ ट्रेनें तो चल भी रही हैं, सांसद दीपक बैज ने पिछले दिनों लोकसभा में सवाल किया तो दुर्ग से जगदलपुर तक सीधी रेल लाइन के लिए आश्वासन भी मिला। पर जशपुर को लेकर कोई ठोस घोषणा नहीं हो रही है। सांसद गोमती साय ने भी जशपुर में रेल की 50 साल पुरानी मांग को लेकर पिछले दिनों लोकसभा में आवाज उठाई। जशपुर में रेलवे ट्रैक बिछाने का काम अगर आज शुरू हो तो इसका लाभ आने वाली पीढ़ी को मिल पाएगा। जशपुर के स्कूली बच्चों ने इस बात को समझा। करीब 300 बच्चों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पोस्टकार्ड लिखकर जशपुर में रेल सुविधा शुरू करने की मांग की है। इन्होंने पोस्टकार्ड का एक पूरा हिस्सा प्लीज, प्लीज लिखकर भर दिया है, जैसा बच्चे प्राय: किसी खिलौने के लिए जिद करते हैं।
पर, जशपुर में रेल परियोजना शुरू नहीं होने के पीछे कुछ राजनीतिक कारण भी थे। यहां के पर्यावरण को नुकसान, विशिष्ट संस्कृति और खनिज के दोहन की आशंका के चलते क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं ने रेल लाने में दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। पर अब यहां से निकलने वाली ईब नदी से बहुत पानी बह चुका है। कोरबा-लोहरदगा रेल लाइन के सर्वे को मंजूरी मिल चुकी है। अंबिकापुर-झारसुगुड़ा को लेकर सर्वे की मांग हो रही है। लोग इन दोनों परियोजनाओं पर जल्द निर्णय लेने की मांग कर रहे हैं। सिर्फ सडक़ मार्ग की सुविधा होने के कारण जशपुर पिछड़ेपन और बेरोजगारी के संकट से जूझ रहा है। लोग अब इस मांग को लेकर सडक़ पर भी उतर रहे हैं। अधिवक्ताओं ने मोर्चा बनाकर आंदोलन शुरू कर दिया है।
तो फिर बगावत किसने की?
भाजपा की ओर से भाटापारा नगरपालिका अध्यक्ष कांग्रेस की सुनीता गुप्ता के विरुद्ध कल लाया गया अविश्वास प्रस्ताव ध्वस्त हो गया। नियम के मुताबिक प्रस्ताव पारित होने के लिए 11 मतों की जरूरत थी, उन्हें 12 मिल गए। इस तरह से कुर्सी बच गई। पर कांग्रेस में हो गई थी बगावत। अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 19 वोट पड़े, जबकि भाजपा पार्षदों की संख्या कुल 15 है। यानि कांग्रेस के चार पार्षदों ने धोखा दिया। दिलचस्प यह है कि रायपुर से गए पर्यवेक्षक पंकज शर्मा और प्रमोद दुबे मतदान के पहले रात 2 बजे तक मैराथन बैठक ले रहे थे। कांग्रेस के सभी पार्षद उसमें पहुंचे। भरोसा दिलाया कि पार्टी से बाहर नहीं जाएंगे। अगले दिन वोटिंग के बाद सारे पार्षद एक साथ खड़े दिखे, सब मांग कर रहे थे कि क्रास वोटिंग जिसने भी की, उसके खिलाफ कार्रवाई हो। सबने जीत का जश्न भी मिलकर मनाया। भाजपा ने मेहनत तो खूब की लेकिन सफलता नहीं मिली। पर अपनी रणनीति को वे इस नजरिये से कामयाब मान रहे हैं कि हमने कांग्रेस को तोड़ लिया और टूटा कौन इसकी भनक नहीं लगने दी।
चुनावी साल में भगवत-भक्ति
जनवरी में नामचीन कथावाचकों का प्रदेश में जमावड़ा रहेगा। खास बात यह है कि इन धार्मिक कार्यक्रमों में राजनीतिक दल के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। दो जनवरी से बलौदाबाजार के बाहरी इलाके में पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव पुराण शुरू हो रहा है। रायपुर में तो उनके कार्यक्रम में लाखों की भीड़ जुटी थी। ऐसी ही भीड़ बलौदाबाजार में भी जुटने की संभावना जताई जा रही है।
बलौदाबाजार में विधायक प्रमोद शर्मा, और भाजपा-कांग्रेस के नेता खुद होकर व्यवस्था देख रहे हैं। कुछ इसी तरह का आयोजन कुरूद में भी हो रहा है। कुरूद में जया किशोरी का भागवत कथा हो रहा है। इस कार्यक्रम के कर्ताधर्ता पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर हैं। जया किशोरी के मुख से कथा सुनने के लिए वैसे ही हजारों की भीड़ जुट जाती है।
इसी तरह गुढिय़ारी के दहीहांडी मैदान में रामकथा का आयोजन हो रहा है। कथावाचन के लिए पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री आएंगे। उन्हें सुनने के लिए हजारों लोगों के आने की संभावना जताई जा रही है। इसी तरह बसना में भाजपा नेता संपत अग्रवाल भी भागवत कथा का आयोजन करवा रहे हैं। कथावाचक पं. हिमांशु कृष्ण भारद्वाज करेंगे। स्वाभाविक है कि उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग आएंगे। अब चुनावी साल में धार्मिक आयोजनों के बहाने राजनीतिक दल के लोग अपनी सक्रियता दिखाने का मौका मिला है।
बदल चुका मुनादी का तरीका
कोटवार गांव के पहरेदार माने जाते हैं। वह गांव मे सरकार का पहला प्रतिनिधि होता है। पहले के दिनों में जब पुलिस तक पहुंच दूर थी, गांव में कोई भी जुर्म हो कोटवार को ही सबसे पहले खबर दी जाती थी। 2008 तक जन्म-मृत्यु पंजीयन भी कोटवार ही करते थे। आज सरकार इनसे हर तरह का काम लेती है। गांव में बेजा कब्जा हो गया हो तो तहसील को खबर करना भी इनका ही काम है। चुनाव के दिनों में मतदान केंद्रों में इन्हें विशेष पुलिस अधिकारी के तौर पर तैनात किया जाता है। पुलिस, राजस्व विभागों के लिए यह सहज यस मैन है, हर वक्त हाजिर। इनके परिवार को खेती की जमीन दी जाती है, पर उस भूमि के वे स्वामी नहीं होते और मानदेय केवल 3-4 हजार रुपये मिलते हैं।
गांव वालों तक सरकारी सूचनाओं को पहुंचाने का जिम्मा भी कोटवारों पर है। पहले वे गांव की मुख्य गलियों और चौराहों में खड़े होकर तेज आवाज में मुनादी करते थे। अब उनके हाथ माइक सेट आ गया है। वक्त के साथ पहनावा बदल गया है, साइकिल मिल गई है। यह तस्वीर जांजगीर जिले के अकलतरा ब्लॉक की है, जहां एक कोटवार लोगों को बता रहे हैं कि यहां सरपंच के खाली पद पर चुनाव होना है, जो फॉर्म भरना चाहते हैं भर लें। जिनको ज्यादा जानकारी चाहिए वे पंचायत भवन में चिपकाई गई नोटिस को देख लें।
कंकाल की जांच, कब्र की नहीं
रायपुर में घड़ी चौक से मेकहारा तक सड़क घेरकर खड़ी स्काई वाक की जांच अब जाकर चुनावी साल में शुरू की गई है। इसके बावजूद कि यह सन् 2018 में चुनावी मुद्दा बना था। अब तक जांच पूरी कर शहर की सूरत बिगाडऩे और करोड़ों रुपये फूंकने के लिए जो जिम्मेदार हैं, उनको कटघरे में खड़ा किया जा सकता था। इसमें सिर्फ 35 करोड़ रुपये अब तक बर्बाद हुए हैं। सिर्फ कहा जाना इसलिये ठीक है क्योंकि राज्य के दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर में इससे आठ-दस गुना रकम करीब 300 करोड़ रुपये अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना के नाम पर दफन कर दिए गए हैं और काम अब तक अधूरा है। सन् 2008 में यह योजना 180 करोड़ से शुरू की गई थी। 24 माह के भीतर काम पूरा होना था, 14 साल हो चुके। योजना ने पूरे शहर की सड़कों को 20-25 फीट तक खोदकर गहरा कर दिया गया। 10 साल से ज्यादा वक्त तक लोगों को सड़कों पर चलने की जगह ढूंढनी पड़ती रही। इस दौरान गड्ढों में गिरकर या मलबे में धंसकर 16 मौतें हो गईं। आज भी सड़कें भीतर से पोली हैं। जगह-जगह धंस रही हैं। इसे भी कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया था। भाजपा की बिलासपुर में 20 साल बाद हुई पराजय की यह एक बड़ी वजह थी। नगरीय प्रशासन मंत्री ने सरकार बनने के बाद अपनी पहली बैठक में कहा था कि सीवरेज के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की जांच एक माह में पूरी करेंगे और दोषी गिरफ्तार किए जाएंगे। पर आज तक किसी अधिकारी, कर्मचारी का बाल बांका नहीं हुआ। परियोजना चार साल पहले जिस स्थिति में थी, उसी हालत में अधूरी पड़ी हुई है, जबकि इस दौरान काम आगे बढ़ाने के लिए फिर राशि जारी की गई। दोनों ही जनता के पैसों से बनाए गए कब्र और कंकाल हैं। यह यकीन करना मुश्किल है कि स्काई वाक की इतनी देर से जांच का आदेश दिया जाना राजनीतिक फैसला नहीं है। बिलासपुर के सीवरेज के मामले में तो यह बहुत पहले ही साफ हो चुका है कि- सब मिले हुए हैं जी।
मधुर गुड़ में मिठास नहीं
बस्तर के जिलों में कुपोषण दूर करने के लिए राशन दुकानों से चावल के अतिरिक्त चना और गुड़ का भी वितरण किया जाता है। राशन दुकानों में बिकने वाला गुड़ मधुर ब्रांड का है। पर हाल ही में कांकेर जिले से यह जानकारी निकलकर आई कि आधे से ज्यादा उपभोक्ता इस गुड़ को ले जाने से मना कर देते हैं। दुकानदार उन्हें जबरन थमा रहे हैं। वे कहते हैं कि चावल न ले जाओ कोई बात नहीं, कहीं न कहीं खप जाएगा, पर ये तो बाजार में भी बिकने लायक नहीं है, फूड विभाग भी वापस नहीं लेता। हितग्राहियों का कहना है कि गुड़ की क्वालिटी खराब होती है। बस नाम ही मधुर है वरना रंग काला है और खाने में भी मिठास नहीं, कड़ुवाहट है। कई बार उन्हें जो चना मिलता है उसमें भी घुन लगा रहता है।
राशन दुकानों में जो गुड़, चना आ रहा है उसकी क्वालिटी पर नजर रखना फूड विभाग के क्वालिटी इंस्पेक्टरों का काम है, जाहिर है सप्लायरों ने उनसे जान-पहचान बढ़ा ली होगी।
पोस्टरों की गुंडागर्दी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविशंकर विश्वविद्यालय के गेट पर लगे एक बोर्ड पर नये साल की पार्टी की टिकटें बेचने का यह पोस्टर दोनों तरफ चिपका दिया गया है। सरकारी या निजी बोर्ड लोगों को सूचना देने के लिए रहते हैं, और पोस्टर चिपकाने वाले लोग रात-रात भर घूमकर ऐसे बोर्ड बर्बाद करते हैं, कि मानो ये उन्हीं के लिए बने हैं।
कभी-कभी बरसों में एकाध बार म्युनिसिपल शासकीय सम्पत्ति विरूपण अधिनियम के तहत कोई कार्रवाई कर लेती है, लेकिन वह समंदर में से एक बूंद पानी को साफ करने जैसा रहता है। हालत यह है कि सड़क किनारे रफ्तार की सीमा के लिए, नो-पार्किंग के लिए, या किसी और तरह की जानकारी के लिए लगाए गए बोर्ड पर भी लोग अपने इश्तहार चिपकाकर चले जाते हैं। कौन सी सड़क किस तरफ जा रही है, इस पर भी पोस्टर चिपका दिए जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि म्युनिसिपल या जिला प्रशासन की तरफ से पुलिस की मौजूदगी में पोस्टर चिपकाने वाले पेशेवर लोगों को यह समझाइश दी जानी चाहिए कि वे रात-रात काम करके जितनी बर्बादी करते हैं, उस पर उन्हें सजा हो सकती है। लेकिन अफसरों की दिलचस्पी ऐसे किसी काम में नहीं दिखती, जिसमें कमाई न होती हो। इसलिए शहर के आम लोगों को यह सोचना होगा कि वे ऐसी गंदगी और बर्बादी, ऐसी बाजारू गुंडागर्दी को कैसे रोक सकते हैं। अलग-अलग इलाकों के लोग अपने इलाकों में ऐसे चिपकाने वाले लोगों का घुसना रोक सकते हैं। फिलहाल तो किसी कॉलोनी या इमारत के लोग इन लोगों को कानूनी नोटिस भेज सकते हैं जिनके पोस्टर सार्वजनिक सम्पत्ति पर चिपकाए गए हैं, या निजी बोर्ड को दबाते हुए। उसके बाद ऐसे पोस्टरों के मालिक जानें कि वे चिपकाने वालों पर क्या कार्रवाई करते हैं। कानून बना हुआ है, लेकिन वह बिना इस्तेमाल ताक पर धरा हुआ है। ([email protected])
सडक़ पर किताब बेचता लेखक
इस महीने की शुरुआत में इसी जगह पर एक लेखक सोनू कुमार बंजारे की तस्वीर लगाई गई थी। बिलासपुर के रहने वाले सोनू लॉकडाउन के दौरान मुंबई चले गए थे, मायानगरी में किस्मत आजमाने के लिए। इसका जिक्र अपने सोशल मीडिया पेज पर कलमकार असगर वजाहत ने किया था। सोनू ने एक कहानी लिखी है, जिस पर वे फिल्म बनाना चाहते हैं। वे सडक़ पर दिनभर खड़े होकर अपने लिए प्रोड्यूसर की तलाश कर रहे थे। पता नहीं, अब तक उन्हें प्रोड्यूसर मिला या नहीं, पर ऐसा ट्रेंड बढ़ रहा है। शर्मिंदगी क्यों? यदि आप अपने बुद्धिजीवी होने का लबादा उतारकर अपना लिखा हुआ पाठक तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। यह तस्वीर लेखक अरुण कुमार की है। इनकी किताब का नाम है- वीरा की शपथ। पटना की सडक़ों पर अपनी पत्नी के साथ दिनभर यूं ही खड़े रहकर वे अपनी किताब बेच रहे हैं।
इसकी तारीफ करते हुए अपने सोशल मीडिया पर फोटो लगाने वाले सुनील कुमार झा कहते हैं कि बुरे दिनों में ‘नागार्जुन’ ने भी अपनी किताब ‘विलाप’ और ‘बुढ़वर’ की कॉपी ट्रेनों में घूम-घूमकर बेची थी।
यानि ट्रेंड नया नहीं है। कम से कम इसी बहाने किताबों का दौर वापस लौटे।
रानू साहू की वापिसी, और मसूरी...
रायगढ़ की कलेक्टर रानू साहू करीब तीन हफ्ते की छुट्टी के बाद अब काम पर लौट गई हैं। कल सोमवार को उन्होंने काम सम्हाल लिया है। आसपास के लोगों का कहना है कि काम पर आने के पहले वे बस्तर के दंतेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना करके लौटी हैं। कोयला-उगाही मामले में चल रही ईडी की जांच के सिलसिले में उनका नाम जुड़ा हुआ है, और उनके सरकारी बंगले पर ईडी का छापा भी पड़ा था, और पूरे परिवार की संपत्तियों की जांच भी चल रही है। आने वाला वक्त राज्य के कुछ अफसरों के लिए बड़ी चुनौती का रहने वाला है, और ऐसे में छत्तीसगढ़ के 18 आईएएस अफसर ट्रेनिंग के लिए मसूरी गए हुए हैं। जाहिर है कि इस राज्य के इतने आईएएस जब एक साथ हैं, तो आपस में यह चर्चा तो हो ही रही होगी कि सरकारी नौकरी में रहते हुए क्या-क्या नहीं करना चाहिए। इन 18 लोगों में अलग-अलग वरिष्ठता के लोग हैं, सीधे आईएएस बने लोग भी हैं, और राज्य सेवा से आईएएस में चुने गए लोग भी हैं, इसलिए एक-दूसरे से सीखने का मौका भी है। एक तरफ मसूरी अकादमी का प्रशिक्षण, दूसरी तरफ आपस के तजुर्बों का प्रशिक्षण।
शैलजा का कुछ अलग अन्दाज
प्रदेश कांग्रेस का प्रभार संभालने के बाद पहली दफा यहां आई शैलजा के मिजाज कुछ अलग ही नजर आए। हरियाणा की कद्दावर नेत्री शैलजा, पीएल पुनिया की तरह दलित समाज से आती हैं। पुनिया कई दलों से होकर कांग्रेस में आए थे, लेकिन शैलजा का पूरा बैकग्राउंड ही कांग्रेस का रहा है। वो नरसिम्हा राव, और फिर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रही हैं। वो सोनिया गांधी की काफी करीबी मानी जाती हैं। ऐसे में शैलजा की हैसियत पार्टी के भीतर पुनिया के मुकाबले काफी ऊंची है।
शैलजा की ताकत को भांपकर सत्ता, और संगठन ने उनके सत्कार में कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखी। शैलजा कौन सी गाड़ी में बैठेगी, कहां रुकेगी और कहां स्वागत होगा, यह सब कुछ पहले से तय था। सीएम भूपेश बघेल और प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने मिलकर रूपरेखा तैयार कर ली थी। शैलजा को सीएम की गाड़ी में बैठना था। आगे की सीट पर सीएम बैठते, और पीछे प्रदेश अध्यक्ष मरकाम, और प्रभारी सचिव सप्तगिरि उल्का के साथ शैलजा को बैठना था।
जैसे ही स्वागत सत्कार के बाद उन्हें बताया गया कि किस गाड़ी में बैठना है, तो शैलजा ने कहा कि वो आगे की सीट पर बैठेंगी। फिर क्या था सीएम और अन्य नेताओं को पीछे की सीट पर बैठना पड़ा। यही नहीं, शैलजा के लिए न्यू सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था की गई थी। वो न्यू सर्किट हाऊस में गईं भी, और कार्यकर्ताओं से मेल मुलाकात की। लेकिन रात्रि विश्राम उन्होंने होटल मैरिएट में किया। वो पहले से ही अपने लिए होटल बुक करा रायपुर पहुंची थीं।
चर्चा है कि पीसीसी और सरकारी तंत्र ने होटल के बिल का भुगतान करने की पेशकश की, लेकिन शैलजा ने ऐसा करने से मना कर दिया, और उन्होंने खुद ही इसका भुगतान किया। जबकि उनसे पहले के प्रभारी के लिए व्यवस्थापक होते थे, जो कि गाड़ी और अन्य सुविधाएं मुहैया कराते थे। ऐसे कुछ व्यवस्थापकों ने प्रभारियों की इतनी सेवा की थी कि उन्हें सत्ता और संगठन में पद भी मिल गया, लेकिन शैलजा की कार्यशैली बाकियों के तुलना में एकदम अलग दिखी।
ब्लॉक अध्यक्ष हनुमान
खबर है कि हरियाणा में राहुल गांधी की पदयात्रा के दौरान शैलजा की पीएल पुनिया से मीटिंग भी हुई थी। शैलजा ने रायपुर आने से पहले सत्ता और संगठन के कामकाज को लेकर पुनिया से फीडबैक भी लिया था।
बताते हैं कि ब्लॉक अध्यक्षों ने सरकार में काम न होने, और अपनी उपेक्षा को लेकर शिकवा शिकायतें की, तो उन्होंने रोका-टोका नहीं और उन्हें अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया। बाद में उन्होंने ब्लॉक अध्यक्षों को अपनी ताकत का अहसास कराया। उन्होंने कहा कि वो (ब्लॉक अध्यक्ष) हनुमान की तरह हैं, जिन्हें खुद की ताकत का अहसास नहीं है। शैलजा ने कहा दबाव बनाएँ, देखते हैं कि काम कैसे नहीं होता है। शैलजा ने सरकार की तारीफ की, तो नाराज नेताओं को भी अन्याय न होने का भरोसा जगाया। कुल मिलाकर शैलजा से निचले कार्यकर्ता भी संतुष्ट नजर आए।
चुनाव लडऩे की ख्वाहिश से गई कलेक्टरी
प्रदेश के एक कलेक्टर को चुनाव लडऩे की ख्वाहिश जाहिर करना महंगा पड़ गया। पिछले दिनों धमतरी और नारायणपुर जिले के जिलाधीशों के तबादले की असल वजह में कुछ रोचक बातें सुनाई दे रही हैं।
धमतरी कलेक्टर पीएस एल्मा की चुनाव लडऩे की जुबानी ख्वाहिश की खबर सिहावा विधायक डॉ. लक्ष्मी ध्रुव के कानों तक पहुंच गई। कलेक्टर ने अपने करीबियों से डॉ. ध्रुव के विधानसभा से टिकट के लिए जोर लगाने का इरादा साझा किया। यह बात उड़ते हुए सिहावा विधायक के कानों तक पहुंच गई। हालांकि एल्मा मूलत: नारायणपुर जिले के बाशिंदे हैं, लेकिन वह धमतरी में कलेक्टरी करते हुए अपने लिए सुरक्षित सीट में सिहावा पर नजरें जमाए हुए हैं।
बताते हैं कि एल्मा के चुनाव लडऩे की बात से डॉ. ध्रुव इस कदर नाराज हुई कि उन्होंने सरकार के रणनीतिकारों से फौरन उन्हें धमतरी से हटाने का दबाव बनाया। इस दबाव का असर नारायणपुर कलेक्टर रितुराज रघुवंशी पर पड़ा। सुनते हैं कि नारायणपुर से उन्हें दंतेवाड़ा में पदस्थ किए जाने की सरकार की इच्छा थी। धमतरी में बदले परिदृश्य की वजह से रितुराज को नारायणपुर से हटाया गया। 2014 बैच के रितुराज की पोस्टिंग नारायणपुर में कुछ महीने पहले हुई थी।
नारायणपुर में एसपी और कलेक्टरों की तैनाती अस्थिर रूप लिए हुए हैं। पिछले कुछ सालों से कलेक्टर-एसपी आते-जाते दिख रहे हैं। एल्मा की दिली इच्छा में चुनाव लडऩा शामिल है। सिहावा में वह अपने शुभचिंतकों के जरिये लोगों से संपर्क में भी हैं। एल्मा से चूक यह हो गई कि उन्होंने अपनी बातें खोलकर रख दीं, जिससे उन्हें कलेक्टरी से हाथ धोना पड़ा।
नेपाल में ढाई-ढाई साल
देखिए नेपाल को, वहां किसी दल को बहुमत नहीं मिला। देउबा के साथ पिछली बार प्रचंड की पार्टी सरकार में थी, इस बार प्रचंड ने समर्थन देने से मना कर दिया। बात तब बनी जब तय हुआ कि ढाई-ढाई साल दोनों प्रधानमंत्री बनेंगे। प्रचंड ने शर्त रखी कि पहले उनको कुर्सी संभालने का मौका मिले। देउबा थोड़ी ना-नुकुर के बाद इसके लिए भी तैयार हो गए। प्रचंड ने शपथ ले ली है। ढाई साल बाद कुर्सी छोड़ देंगे, मौका देउबा को मिलेगा। यदि ढाई साल बाद प्रचंड अपने वादे से मुकरेंगे तो देउबा हाथ खींच लेंगे, उनकी सरकार गिर जाएगी। यह डील उनके राष्ट्रपति या किसी सुप्रीमो के साथ बैठक में नहीं हुई, खुलेआम ऐलान किया गया। देउबा किसी हाईकमान से बंधे भी नहीं है। उनकी अपनी पार्टी, उनकी अपनी मर्जी। वादाखिलाफी हुई तो सरकार गिराने के लिए उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं।
अस्वीकरण- इस चर्चा का मकसद किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को उकसाना नहीं है।
न्यू ईयर पर अपना एमपी..
शराब के शौकीन यदि न्यू ईयर पर गोवा वगैरह नहीं जा पा रहे हों तो छत्तीसगढ़ से सटे मध्यप्रदेश में मौका है। आबकारी विभाग ने वहां शराब लाइसेंस को लेकर बड़ा बदलाव कर दिया है। किसी ठिकाने पर किसी एक दिन 10-12 लोगों की पार्टी करनी है तो शराब पीने-पिलाने का लाइसेंस 500 रुपये में मिल जाएगा। शादी-ब्याह या दूसरे उत्सवों को लेकर भी बड़ी उदारता बरती गई है। दो हजार से लेकर 10 हजार तक अलग-अलग कैटेगरी। इधर, एक अपना राज्य है जहां शराबबंदी को लेकर भाजपा सोते-जागते सरकार को घेर रही है। उनके आंदोलन से मदिरा प्रेमियों की सांस अटक जाती है। वैसे, सांसद सरोज पांडेय ने कह दिया है कि हम तो कांग्रेस को उसके घोषणा पत्र की याद दिला रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम शराबबंदी का वादा करते हैं। ([email protected])
नुकसानदेह छुट्टी
छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने कुछ महीने पहले जब शनिवार को भी प्रदेश सरकार के दफ्तर बंद रखना तय किया था तो उसे कर्मचारियों के हित का बड़ा फैसला बताया गया था। पहले भी महीने में दो शनिवार दफ्तर बंद रहते थे, और इस फैसले के बाद बाकी के दो शनिवार भी बंद रहने लगे। कर्मचारियों को 26 दिनों की छुट्टी हर साल और मिलने लगी। बदले में सरकारी दफ्तरों को हर दिन शायद घंटे भर अतिरिक्त चलाना शुरू किया गया था, लेकिन जगह-जगह इसकी जांच की गई और पाया गया कि कोई कर्मचारी नए समय पर दफ्तर पहुंच नहीं रहे थे। अब खबर आई है कि नया रायपुर विकास प्राधिकरण में शनिवार की यह नई छुट्टी इंजीनियरिंग शाखा में रद्द कर दी गई है, और वहां के इस शाखा के प्रभारी अधिकारी ने आदेश निकाला है कि सभी लोग शनिवार को भी काम पर आएं। अब एनआरडीए की इस शाखा की चाहे जो मजबूरियां रही हों, आम जनता का यही मानना है कि काम के दिन कम करके सरकार ने ठीक नहीं किया है, सरकारी दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारियों का वही पुराना ढर्रा चल रहा है, वे महीने में 24 दिन भी समय पर नहीं आते थे, और अब वे महीने में 22 दिन समय पर नहीं आ रहे हैं। इस छुट्टी से अगर किसी का फायदा हुआ है तो वह सिर्फ कर्मचारियों का हुआ है, और जनता का सरकारी दफ्तरों से बुरा तजुर्बा जारी है। सरकार को अपने अमले की उत्पादकता बरकरार रखने के लिए शनिवार की यह छुट्टी खत्म करनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ के सांसद का सवाल और जवाब!
कुछ बरस पहले की नोटबंदी की बुरी यादें लोगों के दिमाग में अभी ताजा हैं, और सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी के न्यायसंगत और तर्कसंगत होने की जांच कर ही रहा है, अभी कुछ अदालत में सुनवाई जारी है और सरकारी फाईलें, रिजर्व बैंक की फाईलें बुलवाई जा रही हैं। इस बीच छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में भेजे गए कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला के एक सवाल के जवाब में वित्तमंत्री की तरफ से दी गई जानकारी बड़ी ही दिलचस्प है। हिन्दुस्तान में 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे से नोटबंदी लागू की गई थी। उसके पहले की तारीख अगर देखें, तो मार्च 2016 में देश में 9 लाख (लाख) से कुछ अधिक संख्या में नोट प्रचलन में थे, जिनकी कुल कीमत 16 लाख करोड़ रूपये से अधिक थी। नोटबंदी के बाद अगले बरस में मार्च 2017 में नोट बढक़र संख्या में 10 लाख (लाख) पार कर गए। मार्च 2018 में ये सवा दस लाख तक पहुंच गए, मार्च 2019 में 10 लाख 87 हजार (लाख) नोट प्रचलन में थे, और ये लगातार बढ़ते हुए मार्च 2022 में 13 लाख (लाख) संख्या तक पहुंच गए, नोटबंदी के पहले इनके दाम 16 लाख (करोड़) रूपये थी जो कि आज बढक़र 31 लाख (करोड़) हो चुकी है। मतलब यह कि नोटबंदी के बाद से अब तक नोटों की संख्या सवा गुना से अधिक बढ़ गई है, और उनके कुल दाम करीब सवा दोगुना बढ़ गए हैं। अब इन आंकड़ों से भी सुप्रीम कोर्ट के जज नोटबंदी की कामयाबी को तौल सकते हैं क्योंकि सरकार ने नगदी चलन घटाने को भी नोटबंदी का एक मकसद बताया था।
नए जमाने की बैलगाड़ी
छत्तीसगढ़ की खेती में बीते दो दशकों के भीतर बैलगाड़ी की जगह ट्रैक्टरों ने ले ली है। पर, अब भी ऐसे गांव जहां ट्रैक्टर सुलभ नहीं हैं, भैंस या बैल की जोड़ी मुंशी प्रेमचंद की हीरा-मोती की तरह दिखाई दे जाती है। अपने यहां छत्तीसगढ़ी पर्वों की ओर लौटने के दौर में बैलों की दौड़ होती है। धरना, प्रदर्शन रैलियों में भी आजकल बैलगाडिय़ां दिखने लगी हैं, खासकर मुद्दा जब पेट्रोल डीजल की कीमत का हो तो। यानि बैलगाडिय़ों का महत्व घटा है पर बिल्कुल खत्म नहीं हुआ। महाराष्ट्र के इस्लामपुर स्थित राजाराम बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के मैकनिकल इंजीनियरिंग के दो छात्रों ने एक अनोखा अविष्कार किया है। बैलगाड़ी के खूंटे पर बीचो-बीच शॉकर्ब से युक्त एक रोलर पहिया लगा दिया है। यह बैलों के कंधे का बोझ कम करता है। बैलगाड़ी पर ज्यादा वजन भी ढो सकते हैं और बैलों पर भार भी कम पड़ता है। महाराष्ट्र में इसका व्यावसायिक निर्माण भी होने लगा है। मुमकिन है छत्तीसगढ़ के खेत-खलिहानों में भी आने वाले दिनों में यह दिखाई दे, और राजनीतिक प्रदर्शनों में भी।
चुनावी वर्ष का मुफ्त चावल
समाज के सभी वर्गों पर ईंधन और खाद्यान्न की महंगाई का असर पड़ा है। गरीबों पर कुछ ज्यादा पड़ा है। ऐसे में अगर उन्हें चावल या गेहूं ही मुफ्त मिल जाए तो यह बहुत बड़ी मदद है। इसका अपना चुनावी फायदा भी है। सरकारों के पास यह ज्यादा से ज्यादा गरीबों को लुभाने का रास्ता है। छत्तीसगढ़ में नई सरकार ने आते ही पीडीएस का चावल सभी के लिए उपलब्ध करा दिया। जो निम्न आय वर्ग में नहीं हैं, वे भी 10 रुपये किलो में सरकारी दुकानों से चावल ले सकते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपना चावल नहीं उठाते। ये बचा हुआ माल राइस मिलों में वापस खप जाता है। भाजपा नेता लगातार आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार का चावल छत्तीसगढ़ सरकार बांट नहीं रही, गबन हो रहा है। इधर, केंद्रीय मंत्रिमंडल की आखिरी बैठक में फैसला लिया है गया कि दिसंबर 2023 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों को मुफ्त चावल मिलता रहेगा। साल 2020 में कोविड के चलते केंद्र ने मुफ्त चावल की यह योजना लागू की थी, जो पांच किलो हर माह मिलता है। जहां गेहूं की उपलब्धता और मांग अधिक है, वहां चावल की जगह गेहूं दिया जाता है। केंद्र सरकार इस योजना पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है, जिसका लाभ 81 करोड़ से अधिक लोगों को मिलेगा। कोविड और उसके पहले लिए गए सरकार के अनेक फैसलों जैसे, नोटबंदी, जीएसटी, पेट्रोल-डीजल पर बढ़े टैक्स और बेरोजगारी ने बड़ा असर डाला है। पर, केंद्र सरकार ने फोकस सिर्फ पांच किलो चावल पर किया है। ऐसा कार्यक्रम अधिकांश राज्य अपने बजट से गरीबों को पहले से ही पहुंचा रहे हैं। केंद्र की मुफ्त चावल के लिए तय अवधि का बड़ा महत्व है। दिसंबर 2023 योजना चलेगी। यह वही समय है, जब राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव हो रहे होंगे। उम्मीद करना चाहिए कि योजना फिर आगे चलेगी क्योंकि उसके बाद 2024 में भी चुनाव होने हैं।
कांगेर की गुफाओं में दीमक
कांगेर नेशनल पार्क में कोटमसर, कैलाश, झुमरी, शीतगुफा, देवगिरी इतनी गहराई में हैं कि इन्हें पाताल लोक भी कहा जाता है। इन दिनों यहां स्टेलेग्माइट और स्टेलेक्टाइट की चट्टानों पर दीमक की परतें दिख रही हैं। हालांकि सख्त पत्थरों पर दीमक का असर नहीं पडऩे वाला लेकिन इनकी चमक फीकी होती जा रही है। सैलानियों को भ्रमण कराने के लिए भीतर ले जाने के दौरान मशाल और पेट्रोमैक्स का इस्तेमाल करने किया जाता है। पुरातत्व विज्ञानियों का कहना है कि इनके धुएं की वजह से ही ऐसा हो रहा है। यह दृश्य कुटमसर गुफा के द्वार का है, जहां दोपहर के समय कुछ देर के लिए रोशनी पहुंचती है तो काई जमा होने के कारण हरे रंग से चमकती दिखाई देती है। ([email protected])