राजपथ - जनपथ
राज्यसभा में कौन?
भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश रायपुर आए, तो देर रात सीएम, और अन्य नेताओं के साथ बैठ कर राज्यसभा चुनाव पर भी चर्चा की। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का कार्यकाल खत्म हो रहा है, और इसके लिए 15 फरवरी से नामांकन दाखिले के प्रक्रिया शुरू हो रही है।
विधानसभा सदस्यों की संख्या बल को देखते हुए यह सीट भाजपा की झोली में जाना तय है। कांग्रेस, चुनाव लड़ेगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है। इससे परे भाजपा में सरोज को फिर से प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजती है, तो लोकसभा चुनाव मैदान में उतार सकती है। ऐसे में राज्यसभा में सरोज की जगह किसी और महिला नेत्री को भेजा जा सकता है। एक चर्चा यह है कि ओबीसी या एससी वर्ग की महिला को राज्यसभा में भेजा जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
जेल के मुखिया
आईपीएस संजय पिल्ले की संविदा नियुक्ति खत्म कर डीजी (जेल) के प्रभार से मुक्त कर दिया गया है। आईपीएस के 88 बैच के अफसर संजय पिल्ले पहले डीजीपी बनने से वंचित रह गए थे। उनकी जगह एक साल जूनियर अशोक जुनेजा डीजीपी की कुर्सी पा गए। संजय पिल्ले रिटायर होने के बाद मात्र पांच महीने ही संविदा पर रहे हैं।
दरअसल, राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा रही कि प्रभावशाली कैदियों को जेल के भीतर वीआईपी सुविधाएं मिल रही हैं। इस पर सोशल मीडिया में काफी कुछ लिखा जा रहा था। चर्चा है कि संजय पिल्ले की संविदा अवधि खत्म करने के पीछे यही एक वजह है, जबकि वे पुलिस महकमे में सबसे अच्छी साख वाले माने जाते हैं। पिल्ले की जगह संविदा पर नियुक्त ओएसडी राजेश मिश्रा को डीजी (जेल) का प्रभार दिया गया है। मिश्रा जेल में क्या कुछ सुधार करते हैं यह
देखना है।
पीआरओ का रुतबा
पत्रकारिता की पढ़ाई करने वालों के लिये करियर के दो विकल्प होते हैं। पहला वह पत्रकार बन जैसे और दूसरा जनसंपर्क अधिकारी का काम करे। पत्रकारों को रूतबे वाला माना जाता है। कुछ पत्रकार ऐसा आभा मण्डल भी खींचकर रहते हैं। टीवी पर दिखने वाले पत्रकारों की टसन को पूछो ही मत।
लेकिन जो लोग जनसंपर्क अधिकारी बनते हैं, उन्होंने अत्यंत विनम्रता पूर्ण व्यवहार रखना पड़ता है। रूतबा तो होता ही नहीं, उल्टे अधिकारियों के आगे पीछे घूमते रहो, पर अधिकारी पीआरओ को तवज्जो नहीं देते। ऐसे में यह सरकारी गाड़ी अपने आप में कुछ कहती है जिसमें सरकारी नौकरी की सुरक्षा और सुविधा मिल रही है इसके साथ ही लाल रंग की पट्टी में बड़ा-बड़ा पीआरओ लिखा हुआ है, यानी रूतबा पत्रकारों जैसा। इस बच्चे को भी भ्रम हो रहा होगा कि मेरे पापा बड़े अधिक हैं।
गृह मंत्री का एकाएक सिलगेर दौरा
बस्तर में बीजापुर-सुकमा की सीमा पर नए-नए खोले गए सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला हुआ, जिसमें तीन जवान शहीद हुए और 15 घायल हो गए। नई सरकार बनने के बाद यह पहली बड़ी नक्सल वारदात थी। हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में एक बैठक लेकर बस्तर से नक्सलियों के सफाये के लिए 730 दिन का लक्ष्य दिया। ऑपरेशन हंटर चलाने का निर्णय लिया गया। इसी सिलसिले में सीआरपीएफ की 40 और कंपनियां यहां तैनात की जाएंगीं। इसके अलावा बीएसएफ और आईटीबीपी की बटालियन भी तैनात होंगीं। उन सभी क्षेत्रों को कव्हर किया जा रहा है, जिन्हें नक्सलियों का गढ़ समझा जाता है। सीआरपीएफ कैंप पर नक्सल हमला ऐसे वक्त में हुआ है, अब जब ऐसे अनेक नए कैंप खोलने की तैयारी हो रही है। अब जवानों को अधिक सावधान रहना तथा उनका मनोबल बढ़ाना होगा। ऐसी परिस्थिति में गृह मंत्री विजय शर्मा अचानक सिलगेर पहुंचे। उनका कार्यक्रम शायद सुरक्षा कारणों से पहले से घोषित नहीं किया गया था। फोर्स का हौसला तो उन्होंने बढ़ाया ही, बच्चों से भी बात की। ग्रामीणों के साथ मिट्टी के चबूतरे पर बैठकर स्टील के गिलास में दी गई चाय पी। यह आत्मीय तस्वीर इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पहले के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू शायद ही कभी किसी नक्सल हमले के बाद बस्तर में दिखे हों। हालांकि हमलों की भर्त्सना हर बार उन्होंने भी की है। इधर, शर्मा ने कहा है कि कैंप के जरिये बस्तर के विकास का रास्ता खुलेगा। इन कैंपों का ग्रामीण भी विरोध कर रहे हैं। कैंपों और सुरक्षा बलों के प्रति ग्रामीण जब तक भरोसा नहीं करेंगे, विकास कैसे होगा? मुमकिन है, इसका हल भी निकले।
डहरिया को हटाने की मांग
कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार रहते तक खामोश थे लेकिन अब मौका मिल रहा है उनको अपनी भड़ास निकालने का। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के सिलसिले में रखी गई बैठक में कांग्रेस पदाधिकारियों ने अचानक नारा लगाना शुरू कर दिया- डहरिया हटाओ, कांग्रेस बचाओ। इस समय वहां प्रदेश कांग्रेस प्रभारी, महासचिव सचिन पायलट, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत सहित कई मौजूद थे।
डहरिया के खिलाफ नाराजगी और नारेबाजी का कारण यह बताया गया कि उन्होंने पांच साल तक नगर निगम को राशि देने में भेदभाव किया, जिससे शहर का विकास रुक गया। अंतत: इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ और पराजय का सामना करना पड़ा।
सत्ता होती तो शायद पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री के खिलाफ कार्यकर्ता इस तरह विरोध नहीं कर पाते और करते भी तो उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई हो जाती। मगर, आगे राहुल की यात्रा अच्छे से निपटाना है, फिर लोकसभा चुनाव की तैयारी भी चल रही है। कार्यकर्ताओं को समझा-बुझाकर जैसे-तैसे शांत किया गया।
गोबर खाद की पूछ ही घट गई..
समर्थन मूल्य पर सोसाइटियों में धान बेचने की मियाद आज पूरी हो रही है। किसानों को इस बार एक राहत रही। उन पर वर्मी कम्पोस्ट खरीदने का दबाव नहीं था। यह तत्कालीन कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षा योजना का उत्पाद है। गौठानों में खरीदे जाने वाले गोबर से खाद बनाया जाता था और उसे किसानों में बेचा जाता था। ज्यादातर किसानों को इसकी गुणवत्ता को लेकर शिकायत रहती थी। मगर, धान बेचने और रासायनिक खाद खरीदने के दौरान उन्हें गौठानों में बना खाद थमा दिया जाता था। ऐसा करके प्रशासन कम्पोस्ट की बिक्री का आंकड़ा बढ़ा लेता था और योजना सफल दिखाई देती थी। पर सरकार बदलने के बाद यह मजबूरी नहीं रही।
शासन की ओर से अधिकारिक रूप से कोई आदेश जारी हुआ हो या नहीं, पर अधिकांश जगहों पर कम्पोस्ट खाद किसानों को जबरन थमाना बंद कर दिया गया है। पर, इस स्थिति का नुकसान भी हुआ है। ये खाद गौठानों में कार्यरत महिला स्व-सहायता समूहों ने बनाए हैं। खाद की बिक्री बंद होने के बाद उनकी आमदनी भी रुक गई है। भाजपा सरकार ने कहा कि कांग्रेस की प्रत्येक योजना बंद नहीं की जाएगी, बल्कि उसकी खामियों को दूर कर सही तरीके से लागू किया जाएगा। गौठानों को आत्मनिर्भर बनाने की बात भी कही जा चुकी है। अब यह देखना है कि गोबर खाद निर्माण से जुड़ी महिला समूहों को मेहनत का भुगतान और आगे काम मिलेगा या नहीं?
छापों के बाद
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के करीबियों के ठिकानों पर आईटी की जांच चल रही है। जांच पड़ताल में आयकर अफसरों को कई चौकाने वाली जानकारी मिल रही है। भगत के करीबी एसआई रूपेश नारंग के यहां पड़ताल में कुछ नहीं मिला, लेकिन बाद में आईटी अफसरों को सूचना मिली कि जिस सरकारी मकान में वो रहते हैं, उसके ऊपर माले के फ्लैट की चाबी भी नारंग के पास है।
बताते हैं कि यह फ्लैट एक महिला पुलिसकर्मी को आवंटित है, जो कि पीएचक्यू में पोस्टेड है। इसके बाद आईटी की टीम फ्लैट का ताला खुलवा कर अंदर प्रवेश किया, तो वहां जमीन के काफी डाक्यूमेंट मिल गए। रूपेश नारंग के खिलाफ कई गंभीर शिकायतें रही हैं, लेकिन भगत के करीबी होने की वजह से उनका बाल बांका नहीं हुआ। वो अब बेनामी संपत्ति अर्जित करने के मामले में घिरते नजर आ रहे हैं। आईटी से परे राज्य सरकार भी नारंग के खिलाफ एक्शन ले सकती है। फिलहाल आईटी की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
जमीनों का फंदा
मैनपाट के जनपद उपाध्यक्ष अटल यादव के यहां पिछले दो दिनों से आईटी की टीम जांच कर रही है। अटल भी भगत के बेहद करीबी माने जाते हैं। मैनपाट के नर्मदापुर इलाके में स्थित अटल यादव के मकान के आसपास ग्रामीणों की भीड़ देखी जा सकती है।
मैनपाट इलाके में सरकारी जमीनों के बंदरबांट बड़े पैमाने पर हुई थी। बताते हैं कि होटल-रेस्टोरेंट आदि के लिए प्रभावशाली लोगों ने सरकारी संरक्षण में अपने करीबियों के नाम पर सैकड़ों एकड़ जमीन आबंटित करवा ली थी। बाद में इसका भंडाफोड़ होने के बाद अमरजीत भगत के करीबियों के खिलाफ भी प्रकरण दर्ज हुआ था। और अब जब अटल के यहां जांच पड़ताल हो रही है, तो जमीन के मामले भी खुल रहे हैं।
निगम-मण्डल चुनाव बाद?
सरकार के निगम-मंडलों में नियुक्ति फिलहाल टाल दी गई है। ये नियुक्तियां अब लोकसभा चुनाव के बाद होंगी। बताते हैं कि आरएसएस, और भाजपा संगठन ने करीब 1 दर्जन निगम-मंडलों के लिए नाम तय कर लिए थे। सूची पार्टी हाईकमान को भेजी गई। हाईकमान ने नियुक्तियां आम चुनाव के बाद करने के लिए कह दिया है।
निगम-मंडल में पदाधिकारियों के साथ-साथ दर्जनभर संसदीय सचिव नियुक्त करने का भी फैसला लिया गया था। चूंकि कई मंत्री नए हैं, और सदन में सहयोग के लिए सीनियर विधायकों को संसदीय सचिव बनाने पर सहमत बन गई थी। मगर यह भी अब रोक दिया गया है। चुनाव के बाद ही अब सारी नियुक्तियां होंगी।
राजीव के नाम की योजना बंद
कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई राजीव युवा मितान क्लब योजना बंद कर दी गई है। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 18 सितंबर 2021 को इस योजना को शुरू किया था। युवा शक्ति को संगठित करने और उनको रचनात्मक कार्यों से जोडऩे का उद्देश्य इसका बताया गया था। प्रदेश के 13 हजार 269 ग्राम पंचायत और नगरीय निकायों में से अधिकांश में इसका गठन हुआ। प्रत्येक क्लब को तीन माह में 25-25 हजार रुपए यानी साल में एक लाख रुपए आवंटित किए जा रहे थे। इसके लिए करीब 133 करोड़ रुपए का बजट भी तय किया गया था। राजस्थान की भजन लाल शर्मा सरकार ने भी बीते जनवरी माह से राजीव गांधी युवा मित्र इंटर्नशिप योजना बंद कर दी है। यह योजना छत्तीसगढ़ से कुछ अलग थी। इसमें युवाओं को 2 साल तक रोजगार प्रशिक्षण और 10 हजार रुपए मदद दी जाती थी।
दोनों ही राज्यों में भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए आरोप लगाया था कि यह कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उपकृत करने के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
दोनों योजनाओं में समानता यह थी कि इन्हें स्वर्गीय राजीव गांधी के नाम पर शुरू किया गया था।
डेटिंग, रिलेशनशिप पर पढ़ाई
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की किताब का एक पन्ना वायरल हुआ है जिसमें अध्याय है- डेटिंग और रिलेशनशिप। लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में इसकी सराहना की और इसे बोर्ड का प्रगतिशील दृष्टिकोण बताया। कुछ लोगों ने स्माइली के साथ टिप्पणी की कि, अगला अध्याय होगा- ब्रेकअप से कैसे निपटें।
इन दिनों सीबीएसई पाठ्यक्रम में कई बदलाव हुए हैं। इसलिए लोगों को लगा होगा कि यह भी एक क्रांतिकारी बदलाव है। आखिर बहुत दिनों से इस पर बहस हो ही रही है कि किशोर उम्र के छात्र-छात्राओं को इस संवेदनशील विषय पर कुछ पढ़ाया जाए या नहीं।
मगर सीबीएसई ने साफ किया है कि यह फेक पोस्ट है। बोर्ड ने अपने पाठ्यक्रम में ऐसा कोई अध्याय शामिल नहीं किया है। किसी दूसरी किताब से काट छांट कर कॉपी पेस्ट किया गया है।
बहरहाल सीबीएसई की सफाई से कुछ लोगों ने राहत महसूस की है तो कुछ लोग मायूस भी हो गए हैं। दोनों तरह के लोग सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
गारंटी का पिटारा कब खुलेगा?
किसानों को धान का 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करने के फैसले के बाद अब महतारी वंदन योजना भी लागू करने का केबिनेट ने निर्णय ले लिया है। ये दोनों मोदी की गारंटी वाले बड़े चुनावी वादे थे। पर, अभी तक इसका जमीन पर क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। एकमुश्त भुगतान के पात्र किसानों की सूची तो वैसे भी धान की बिक्री के आधार पर निकाली जा सकती है लेकिन महतारी वंदन योजना में काफी बातें स्पष्ट होना बाकी है। हाल के दिनों में देखा गया कि इस असमंजस की स्थिति का फायदा उठाने के लिए कुछ लोगों ने रुपये ऐंठने का काम भी शुरू कर दिया। चुनाव अभियान के दौरान तो कांग्रेस ने शिकायत की थी कि महतारी वंदन योजना के फॉर्म भराकर लोगों को बरगलाया गया। पहली किश्त भी महिलाओं को दे दी गई, जिसकी चुनाव आयोग से शिकायत हुई। पर अब वह फॉर्म किसी काम का नहीं है। अब तक सरकार की ओर से कोई एजेंसी या विभाग तय नहीं किया गया है जो महतारी वंदन योजना का लाभ लेने की प्रक्रिया और पात्रता के मापदंड की अधिकारिक जानकारी दे। मोटे तौर पर यह जानकारी जरूर आई है कि 21 वर्ष से अधिक उम्र की विवाहित, विधवा, परित्यक्ता, तलाकशुदा महिलाओं को इसका लाभ मिलेगा। इस दायरे में लेने में पात्र हितग्राहियों की संख्या 20-25 लाख या उससे भी अधिक हो सकती है। सही लोगों की सूची बनाना एक बड़ा अभियान होगा। दूसरी तरफ मार्च महीने के पहले सप्ताह में आचार संहिता लागू होने की संभावना है। मंत्रिपरिषद् में निर्णय ले लिये जाने के बावजूद यह अनिश्चितता बनी हुई है कि लोकसभा चुनाव के पहले महिलाओं के खाते में राशि का पहुंचना शुरू हो पाएगा भी या नहीं।
असली ही नहीं नकली नोट भी...
नवंबर 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था तो इसके कई फायदों में एक नकली नोटों पर लगाम लगने की बात भी थी। पर नकली का कारोबार बंद नहीं हुआ। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2017 से 2021 के बीच पांच सालों में हर साल औसत 39 करोड़ रुपये के नकली नोट बरामद हुए। बरामद नकली नोट के मुकाबले कई गुना अधिक नोट बाजार में चलन में होंगे। छत्तीसगढ़ में छोटे पैमाने पर नकली नोट छापकर खपाने के मामले बहुत आते हैं। पर सरायपाली में जिस तरह 3 करोड़ 80 लाख रुपये के नकली नोट पिकअप वैन से जब्त किया गया है, उससे साफ हो गया है कि इसके पीछे बड़े अंतर्राष्ट्रीय-राज्यीय गिरोह संगठित रूप से काम कर रहे हैं। इन दिनों ईडी-आईटी की छापेमारी में जिस पैमाने पर असली नोटों का पता चल रहा है, जांच एजेंसियां नकली नोटों के बारे में भूल ही गई थी। अच्छा हुआ कि एक बड़ा मामला पुलिस के हाथ लगा।
जंगल का राजकुमार
शिकार करने में शेरों के मुकाबले कमतर नहीं होने के बावजूद तेंदुए को जंगल के राजा का दर्जा नहीं मिला है। पर इन्हें कम से कम जंगल का राजकुमार तो कहा जाना चाहिए। गरियाबंद जिले के बार नवापारा अभयारण्य की बात करें, तो यहां शेर नहीं पाये जाते। तेंदुए जरूर हैं। शेर के नहीं होने के कारण इस जंगल में उसी का राज चलता है। बार नवापारा घूमने जा रहे सैनालियों को इन दिनों ये तेंदुए अक्सर दिख रहे हैं। यह एक भारी-भरकम चट्टान पर बैठे ऐसे ही तेंदुए की पोज के साथ खिंचाई गई एक फोटो है।
छापों के इर्द-गिर्द
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, और उनके करीबियों के यहां आयकर छापे के बाद कई किस्से छनकर बाहर निकल रहे हैं। इनमें से हरपाल उर्फ राजू अरोरा, और एसआई रूपेश नारंग की खूब चर्चा हो रही है।
आईटी की टीम ने बुधवार को राजू अरोरा के रायपुर के लॉ-विस्टा कॉलोनी स्थित घर पर दबिश दी, तो वह अंबिकापुर में था। अंबिकापुर में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता के बेटे की सगाई समारोह में शामिल होने गया था। राजू को आईटी की टीम तडक़े होटल से साथ लेकर रायपुर आई, और यहां फिर लंबी पूछताछ हुई।
अमरजीत भगत के करीबी एसआई रूपेश नारंग भी अंबिकापुर में अपने सरकारी निवास पर नहीं था। आईटी की टीम घर पहुंची, तो पत्नी ने जांच का विरोध किया, और फिर आईटी अफसरों ने रूपेश से पत्नी की बात कराई। इसके बाद जांच पड़ताल शुरू हुई।
रूपेश नारंग, पूर्व मंत्री का काफी करीबी माना जाता है। वो एसआई होने के बाद भी अंबिकापुर कोतवाली का दो साल तक प्रभारी टीआई बने रहा। और जब टीएस सिंहदेव डिप्टी सीएम बने, तो उन्होंने गंभीर शिकायत के बाद रूपेश को हटवाया। इसके बाद अमरजीत भगत उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र सीतापुर ले गए, लेकिन वहां भी उनका काफी विरोध हुआ। फिर अमरजीत ने उन्हें दरिमा थाने का प्रभारी बनवा दिया।
सरकार बदली, तो सीतापुर के नए विधायक रामकुमार टोप्पो की शिकायत पर उन्हें हटाकर पुलिस लाइन में अटैच किया गया। नारंग की प्रापर्टी की जांच-पड़ताल चल रही है।
बड़े-बड़े सौदों वाले लोग
अमरजीत भगत के करीबी हरपाल उर्फ राजू अरोरा जमीन के कारोबार से जुड़ा रहा है। राजू अरोरा, उस वक्त चर्चा में आया जब रायपुर के धरमपुरा स्थित सहारा सिटी की करीब 2 सौ एकड़ जमीन नीलामी में खरीदी थी। इस जमीन पर कई बड़े बिल्डर और नामी गिरामी हस्तियों की नजर थी।
रायपुर में एक के बाद एक बड़े सौदे में राजू अरोरा का नाम चर्चा में रहा है। आयकर टीम को जमीन से जुड़े कई बड़े सौदों के कागजात मिले हैं। एक होटल भी राजू अरोरा ने कुछ समय पहले खरीदे थे। इसके अलावा रायपुर में साथियों के साथ कुछ बड़े निवेश किए हैं। चर्चा है कि आयकर के साथ-साथ ईडी भी इन सौदों की पड़ताल कर रही है। देखना है आगे जांच में क्या कुछ निकलता है।
रेलवे की मेहरबानी के पीछे
रायपुर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को छोडऩे के लिए पहुंचने वाले परिजनों को एक बड़ी राहत मिल गई है। अब कार के सात मिनट और बाइक के पांच मिनट तक रुकने पर कोई पार्किंग शुल्क नहीं लगेगा। एयरपोर्ट में ऐसी व्यवस्था पहले से है। दूसरी और रेलवे ने सबसे व्यस्त गेट के सामने प्रीमियम पार्किंग शुरू कर दी। यात्री को छोडऩे के लिए कोई गाड़ी खड़ी हुई नहीं कि उसे पार्किंग की पर्ची थमा दी जाती थी। इसके कारण गाडियां गेट से दूर कहीं पर भी खड़ी कर दी जाती थी। इससे जाम लग जाता था। बिलासपुर और रायपुर बड़े स्टेशन हैं, जहां ऐसी व्यवस्था लागू कर लोगों को ज्यादा परेशान किया जा रहा था। इस बात की ओर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ध्यान गया। रेलवे के अफसरों की पेशी हुई। उनको जवाब देते नहीं बना। पहले बिलासपुर में, फिर अब रायपुर में गेट पर से ठेकेदार का कब्जा हटा दिया गया है। दरअसल रेलवे बोर्ड ने अपनी कई चि_ियों में जोन और मंडल के अधिकारियों को लिखा कि वे टिकटों के अलावा भी आमदनी बढ़ाने का स्रोत ढूंढें। उनमें से ही यह ज्यादति से भरा एक अव्यावहारिक प्रयोग था।
छापेमारी की टाइमिंग
पिछले साल मार्च महीने में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत राशन दुकानदारों को आवंटित हितग्राहियों को वितरित नहीं करने का मामला विधानसभा में भाजपा ने जोर-शोर से उठाया था। डॉ रमन सिंह, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा ने तत्कालीन खाद्य मंत्री अमरजीत भगत पर कई सवाल दागे थे। जवाब में भगत ने स्वीकार किया कि दुकानों को आवंटित राशन का मिलान नहीं हो पाया है। अतिरिक्त आवंटित चावल का हिसाब लगाकर वसूली की जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। आरोप के मुताबिक यह करीब 600 करोड़ रुपए की अफरा-तफरी है।
आवंटित और वितरित राशन का विवरण एक सेंट्रलाइज्ड सर्वर में भी दर्ज किया जाना था। मगर यह भी नहीं हुआ। चुनावी साल में दिए गए अतिरिक्त चावल में से कुछ मात्रा की वसूली ही हो पाई थी कि चुनाव आचार संहिता लग गई और अब प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी है।
पूर्व खाद्य मंत्री भगत ने इनकम टैक्स की छापामारी को राहुल गांधी की न्याय यात्रा को विफल करने का षड्यंत्र बताया है। इधर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का कहना है कि यह कार्रवाई गरीबों के राशन को हड़पने की आह है। किसकी बात ठीक लग रही है आपको?
राम नाम का भंडारा
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ने यूपी की नोएडा 16 के मेट्रो स्टेशन के बाहर स्थित एक होटल के मलिक को इस कदर अभिभूत किया है कि उसने राम, लक्ष्मण और सीता नाम वालों को फ्री खाना खिलाने की घोषणा कर दी है। और यह कोई एक बार नहीं बल्कि जब आएंगे तब फ्री मिलेगा, हमेशा। लोक नाहक ही कहते हैं कि नाम में क्या रखा है।
छापे वाली कालोनियाँ
रायपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित स्वर्णभूमि और लॉ-विस्टा, धनाढ्यों की कॉलोनी है। ईडी हो या फिर आईटी, यहां लगातार दबिश दे रही है। पिछले 3-4 वर्षों में यहां ईडी-आईटी अफसरों का आना-जाना लगा रहा है। अब तक दोनों कॉलोनियों में करीब 50 से अधिक कारोबारियों-उद्योगपतियों के यहां जांच-पड़ताल हो चुकी है।
दोनों कॉलोनियों को मध्य भारत की बेहतरीन कॉलोनियों में गिना जाता है। यही वजह है कि कई प्रभावशाली नेता, अफसर, उद्योगपति, और कारोबारी यहां निवास करते हैं। हाल यह है कि जिनके यहां छापे डलते हैं, तो वो स्वाभाविक तौर पर परेशान होते हैं, लेकिन उनके अड़ोस-पड़ोस के लोग भी सशंकित रहते हैं।
भगत पर छापा
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के यहां आईटी की रेड से हडक़ंप मचा हुआ है। भगत काफी पहले से जांच एजेंसियों के निशाने पर थे। अब उनका कहना है कि वे विधानसभा चुनाव हारने के बाद वो सरगुजा सीट से लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे।
दो दिन पहले ही हमारे अख़बार में कस्टम मिलिंग घोटाले पर रिपोर्ट छपी थी, भगत उस दौर में भूपेश सरकार के खाद्य मंत्री थे। उस वक़्त के भ्रष्टाचार का लोकसभा चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन राजनीति में आड़ लेना तो आम बात है।
दिलचस्प बात यह है कि पार्टी के प्रमुख नेता लोकसभा चुनाव लडऩे के अनिच्छुक हैं। सिर्फ अमरजीत भगत, और डॉ. शिवकुमार डहरिया ही ऐसे हैं, जो कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा टिकट के लिए प्रयासरत हैं। अब अमरजीत के यहां तो आईटी ने दबिश दे दी है, और चर्चा है कि आने वाले दिनों में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है। ऐसे में उनकी टिकट का क्या होगा, यह देखना है।
विधायकों के खिलाफ मोर्चा
राजनांदगांव की खुज्जी सीट से कांग्रेस विधायक भोलाराम साहू के खिलाफ पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों ने मोर्चा खोल दिया है, और अब जिले की एक और कांग्रेस विधायक डोंगरगढ़ की हर्षिता स्वामी बघेल के खिलाफ भी पार्टी के पदाधिकारी लामबंद हो गए हैं।
चर्चा है कि हर्षिता के व्यवहार को लेकर डोंगरगढ़ के कुछ पदाधिकारियों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से शिकायत की है। भोलाराम साहू के खिलाफ भी शिकायत को लेकर पदाधिकारी, दीपक बैज से मिले थे। अब लोकसभा चुनाव निकट हैं। ऐसे में पार्टी नेताओं की आपसी खटपट से चुनाव में नुकसान होने का अंदेशा जताया जा रहा है।
नक्सलियों का गुप्त ठिकाना...
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसी महीने छत्तीसगढ़ में नक्सल के खात्मे के उपायों पर बैठक ली। केंद्र के बाद राज्य में भी भाजपा की सरकार बन जाने के बाद बस्तर में हिंसा खत्म करने के लिए प्रयासों में कुछ तेजी दिखने के आसार थे। इसी बीच प्रभावित क्षेत्रों में तीन और बटालियन तैनात करने का फैसला लिया गया। मगर, बीजापुर में सर्चिंग पर निकले जवानों पर नक्सलियों ने फिर हमला कर यह बताने की कोशिश की है कि उन्हें खदेडऩा आसान नहीं है। इधर एक तस्वीर अबूझमाड़ से आई है। यहां एक बड़ी सुरंग सुरक्षा बल के जवानों ने खोज निकाली है। ऐसी सुरंगें और भी हो सकती हैं। नक्सली इनका इस्तेमाल छिपने के लिए करते हैं। कई हिस्सों में बंटी सुरंग जिस तरह से व्यवस्थित है, उससे लगता है कि इसके निर्माण में किसी विशेषज्ञ की मदद जरूर ली गई होगी। गृह मंत्रालय की कई रिपोर्ट्स हैं जिनमें बताया गया है कि नेपाल, बांग्लादेश और कुछ दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से नक्सलियों को हथियार, गोला बारूद और उपकरण मिलते हैं, और प्रशिक्षण भी। क्या इसका आइडिया भी उन्हें बाहर से मिला ? अब तक मैदान व जंगलों के बीच नक्सलियों की तलाश करने वाले सुरक्षा बलों को अब ऐसे बंकरों को भी ढूंढना होगा।
कांग्रेस में कितने नए चेहरे होंगे ?
विधानसभा के अनपेक्षित चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व प्रयास में था कि कुछ बड़े चेहरे मैदान में उतार दें, ताकि पार्टी की रीति नीतियों के अलावा उनके कद के चलते भी वोट मिले। जो लोग मंत्री रह चुके हैं, उनसे ये उम्मीद अधिक रखी जा रही है। लगता होगा कि उनके पास संसाधनों की कमी नहीं होगी। पर जैसी खबर आ रही है, कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे ज्यादातर नेताओं ने लोकसभा लडऩे के लिए दिलचस्पी नहीं दिखाई है। हाल ही में पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू ने यह जरूर कहा है कि पार्टी उन्हें जो जिम्मेदारी देगी, निभाएंगे। इसमें लोकसभा प्रत्याशी बनाया जाना भी शामिल है। वे दुर्ग से सांसद रह चुके हैं। इसी तरह से डॉ. शिव डहरिया अपनी पत्नी को जांजगीर-चांपा से उतारने के लिए खुद से ही प्रयास कर रहे हैं। कांकेर से मोहन मरकाम को भी सहमत बताया जा रहा है। दो सीटों बस्तर और कोरबा में कांग्रेस के मौजूदा सांसदों की टिकट बदले जाने की संभावना कम ही है। इसके बावजूद आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिनमें उपयुक्त प्रत्याशी को लेकर मंथन किया जाना है। बताया जा रहा है कि जो 160 आवेदन अब तक कांग्रेस को मिले हैं, उनमें पूर्व मंत्री या वरिष्ठ विधायक, पूर्व विधायकों के नाम नहीं है। आशय यही है कि वे चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं है। यह अलग बात है कि हाईकमान से निर्देश मिलने पर उन्हें अनिच्छा के बाद भी लडऩा पड़ेगा। पर इससे हटकर सोचा जाए तो, एक मौका कांग्रेस के पास है कि वह चूके हुए पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों को आगे कर दे। भाजपा ने यह जोखिम पिछले लोकसभा चुनाव में ही नहीं, बीते विधानसभा चुनाव में और मंत्रिमंडल के गठन में भी उठाया है।
हेलमेट सिर्फ एक हाईवे पर जरूरी
इस बार सडक़ सुरक्षा सप्ताह नहीं, सडक़ सुरक्षा माह मनाया जा रहा है। यानि सडक़ों पर दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ज्यादा गंभीरता से काम होना है। लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे ट्रैफिक नियमों का पालन करें। इनमें एक बड़ा जरूरी नियम है कि दोपहिया चालक हेलमेट पहनकर चलें। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और उसके पहले भाजपा की सरकार रहते हुए कई बार हेलमेट की अनिवार्यता के लिए अभियान चलाए गए लेकिन कुछ हफ्तों, महीनों के बाद कार्रवाई हर बार ढीली पड़ गई। इस बार यातायात सुरक्षा माह का उद्घाटन करते हुए बीते 14 जनवरी को जशपुर के बगीचा से एक जागरूकता रथ को खुद मुख्यमंत्री ने हरी झंडी दिखाई थी। इसे अब 15 दिन हो चुके लेकिन सडक़ों पर नजर दौड़ाएं तो ज्यादातर बाइक सवार बिना हेलमेट ही नजर आ रहे हैं। ट्रैफिक पुलिस की चालान का खौफ तो है ही नहीं, अपनी जान की फिक्र भी नहीं। मुख्यमंत्री से रथ रवाना कराने के बाद अफसर भूल गए। ऐसे में कल दुर्ग में कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों के बीच हुई बैठक में तय किया गया है कि हेलमेट को लेकर एक फरवरी से अभियान तेज किया जाएगा। खासकर रायपुर दुर्ग नेशनल हाईवे पर चेकिंग लगातार की जाएगी, कार्रवाई की जाएगी। मगर, यह पहल सिर्फ दुर्ग से क्यों हुई है? बाकी जिलों में सडक़ सुरक्षा के नाम पर गोष्ठियां, वाद-विवाद, पेंटिंग आदि की स्पर्धाएं ही हो रही हैं।
गृहमंत्री का अनंत प्रेम
राज्य सेवा के पुलिस अफसर एएसपी अनंत साहू की हालिया हुई एक सिंगल आर्डर की पोस्टिंग पुलिस महकमें में सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल अनंत को गृहमंत्री विजय शर्मा के प्रमुख सुरक्षा अधिकारी के तौर पर सरकार ने जिम्मेदारी दी है। बताते है कि एएसपी और गृहमंत्री के बीच दोस्ती है। रायपुर में कालेज की पढ़ाई के दौरान विजय शर्मा और अनंत साहू की आपस में दोस्ती हुई। एएसपी तब से लगातार गृहमंत्री के साथ मित्रता को लेकर बेहद गंभीर रहे। पुलिस सेवा में आने के बाद अनंत, शर्मा के गृहजिले में बतौर एएसपी भी रहे। चर्चा है कि दुर्ग ग्रामीण एएसपी रहते हुए अनंत की एक सीनियर अफसर से पटरी नहीं बैठ रही थी। भाजपा सरकार में दोस्त को गृहमंत्री का ओहदा मिलते ही अनंत ने ओएसडी बनने के लिए जोर लगाया, लेकिन पीएचक्यू ने तकनीकी पेंच डालकर उन्हें सुरक्षा अधिकारी का जिम्मा थमा दिया।
प्राचीन मूर्ति पर किसका हक?
इन दिनों आरंग में मिली एक दुर्लभ प्रतिमा का संरक्षण कौन करे, इस पर विवाद खड़ा हो गया है। सितंबर 2021 में एक तालाब की खुदाई के दौरान जैन तीर्थंकर की प्राचीन मूर्ति मिली। इसे रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे ने डोंगरगढ़ के जैन समाज की मांग पर उन्हें सौंपने का आदेश दे दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी इसे मंजूरी दे दी। नए कलेक्टर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं। कलेक्टर ने यह फैसला निखत निधि अधिनियम 1878 के प्रावधान का हवाला देते हुए दिया। आरंग में इसका विरोध होने लगा है। ग्रामीण और कुछ संगठन सामने आए हैं। उनका कहना है कि अधिनियम में सिर्फ पूजा पाठ की अनुमति देने का प्रावधान है, किसी व्यक्ति या संस्था को सौंपने का नहीं। इसका संरक्षण केंद्र और राज्य सरकार का काम है।
छत्तीसगढ़ पुरातात्विक वैभव से भरा-पूरा राज्य है। तालाब, कुओं और घरों की खुदाई के दौरान ऐसी कई मूर्तियां मिलीं हैं, जिनसे पता चलता है कि यहां बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव रहा है।
कहीं-कहीं इनका रखरखाव ठीक है पर ज्यादातर जगहों पर प्राचीन मूर्तियां असुरक्षित पड़ी हैं। अधिकांश पुरातत्व संग्रहालयों में मूर्तियों को सहेजने के लिए जगह और बजट दोनों की कमी है। ऐतिहासिक मंदिरों और इमारतों का भी संरक्षण नहीं हो पा रहा है। खुदाई के नए प्रोजेक्ट नहीं लिए जा रहे हैं। कई जिलों में तो संग्रहालय्यों की भी स्थापना नहीं हो पाई है। कई स्थानों पर ग्रामीणों ने खुद ही मूर्तियों के रख-रखाव की जिम्मेदारी भी उठा रखी है।
आरंग के मामले में समाधान क्या निकलेगा, यह आगे पता चलेगा। पर, राज्य के पुरातत्व धरोहरों की देखभाल हमेशा एक उपेक्षित विषय रहा है। आरंग में तो दो-दो संस्थाएं एक मूर्ति की दावेदार हैं लेकिन प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में ऐसी सैकड़ों बेशकीमती प्रतिमाएं खुले आसमान के नीचे धूल खाती पड़ी हैं।
आकार लेने लगे भाजपा के मुद्दे
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव घर-घर पहुंचने के बाद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए एक अच्छी बढ़त हासिल कर ली है, मगर इसका यह मतलब नहीं है कि वह हाथ पर हाथ धर कर बैठे। यह उसका मिजाज ही नहीं है। वह 180 डिग्री घेराबंदी करती है। उसने विधानसभा में एक हारी हुई लग रही बाजी को जीतकर इसे साबित भी कर दिया । लोकसभा चुनाव के पहले जिन चुनावी वादों को जमीन पर उतारते हुए भाजपा दिखाई दे रही है, उनमें से आवास योजना पर फैसला लिया जा चुका है। महतारी वंदन योजना बहुत जल्दी लागू होने की खबर है।
बिहार में जिस तरह से जनता दल यूनाइटेड को फिर से साथ ले लिया गया है, उसका भी एक संदेश यह है कि केवल राम मंदिर निर्माण का मुद्दा तीसरी बार की सरकार लिए काफी नहीं होगा। छत्तीसगढ़ में हाशिए पर रहने वाले राजनीतिक दलों के कई नेताओं को पार्टी में शामिल किया जा चुका है। आने वाले दिनों में कई और नाम चौंका सकते हैं। विधानसभा चुनाव की तरह धर्मांतरण को मुद्दे लोकसभा चुनाव में भी उठाए जाने की संभावना दिख रही है। घर वापसी का एक बड़ा आयोजन राजधानी में हो ही चुका। पहले केवल ईडी साथ थी, अब राज्य में ईओडब्ल्यू और एसीबी उसके नियंत्रण में है। सौ से अधिक अफसर, कारोबारी और नेताओं के खिलाफ हाल में दर्ज एफआईआर भी प्रतिद्वंदी कांग्रेस को घेरने के काम आएगी।
सोशल मीडिया पर नीतीश
मिस्टर क्लीन, सुशासन बाबू कहे जाते हैं नीतीश कुमार। नीतीश ने पहले भाजपा, फिर राजद, फिर भाजपा के पत्ते फेंटे तो समाज के हर वर्ग ने अपने-अपने तरीके की टिप्पणियों से सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म को भर दिया है। इनमें से कुछ इंटरेस्टिंग साझा कर रहे—
राजभवन का स्टाफ
कल शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार जी अपना मफलर राजभवन में भूल गये। आधे रास्ते से वापिस लौटकर लेने आए तो राज्यपाल जी चौंक गए कि इस बार तो 15 मिनट भी नहीं हुए ।
कॉरपोरेट
कॉरपोरेट में नौकरी करने वालों के लिए नीतीश कुमार बहुत बड़ा सबक है...
1. जब तक दूसरा ऑफर लेटर हाथ में न हो, पहली कंपनी से रिजाइन मत करो। 2. एक बार दूसरा ऑफर स्वीकार कर लो तो पहली कंपनी कितना भी इन्क्रीमेंट, प्रमोशन का लालच दे, रुको मत। और आप रुक गए तो, कंपनी आपका रिप्लेसमेंट ढूँढने लगती है। 3. अगर आप में स्किल्स है और आप कंपनी के लिए असेट हो तो पहली कंपनी के दरवाजे आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे। इसलिए अपने स्किल्स को तराशते रहिए, मार्केट में डिमांड बनी रहेगी! 4. कंपनी लॉयल्टी, एथिक्स, वर्क कल्चर वगैरह सब हवाई बात है। बस शिकार पर नजर रखिये और जब मौका मिले अपना हिस्सा लेकर अगले मिशन पर चल निकले। 5. नेटवर्किंग हमेशा सॉलिड बनाकर रखिये। किससे कब फिर से पाला पड़ जाए भरोसा नहीं!
शिक्षक
बिहार डिक्शनरी वाक्य
उसने मुझे धोखा दिया।
अनुवाद - ॥द्ग हृद्बह्लद्बह्यद्धद्गस्र द्वद्ग:
क्रिकेट
आईसीसी के नए कानून में...अब टॉस में गड़बड़ी रोकने के लिए आईसीसी ने फैसला किया है कि अब सिक्के की जगह नीतीश कुमार को उछाला जाएगा..क्योंकि सिक्का पलटने में काफी टाइम लेता है..!
ऐसे ही कार्यकर्ता जीतेंगे
रविवार को प्रदेश चुनाव समिति कांग्रेस लोकसभा की रणनीति को आकार देने में बैठी थी। और यह चर्चा चल रही थी कि सभी लोकसभा से बड़े नेताओं को चुनाव में उतारा जाए लेकिन बड़े नेता खर्च को लेकर एक के बाद एक ठिठक रहे थे। अंदर चर्चा चल ही रही थी कि अचानक शंकर मेहतर लाल साहू पहुंचे। असल में साहू उत्सुकतावश बैठक का दरवाजा खोल के झांक रहे थे तभी अंदर बैठे वरिष्ठ कांग्रेस नेता सतनाम शर्मा की उन पर नजर पड़ी और उन्होंने शंकर मेहतर लाल साहू को अंदर खींचकर पूरी कमेटी के सामने प्रस्तुत किया। और कहा कि ऐसे लोगों को टिकट देने से जीत तय है। उनके बताने का मकसद यह था कि अनिच्छुक बड़े नेताओं को मान मनौव्वल कर जबरदस्ती चुनाव में लडऩे के बजाय यह चुनाव प्रथम श्रेणी के ऐसे कार्यकर्ताओं को आगे करने का है। ऐसे कार्यकर्ताओं के साथ पूरा कांग्रेस जोश खरोश से लोकसभा चुनाव में जुट जाएगी ।
बैठक में चुनाव समिति के सभी सदस्य सचिन पायलट, रजनी पाटिल मौजूद थी। बड़े नेताओं को सामने देख शंकर मेहतर लाल साहू ने सभी का अभिवादन किया।और उसके बाद से शंकर मेहतर लाल साहू हर नेता को अपना बायोडाटा दे रहे हैं। शंकर मेहतर लाल साहू बलौदा बाजार से आते हैं और मेहतर लाल साहू के पुत्र हैं जो स्व. विद्याचरण शुक्ल और कई प्रमुख नेताओं के खास सिपाही के रूप में पूरे कांग्रेस में विख्यात रहे । लोकसभा चुनाव की परिस्थितियों में ऐसे कर्मठ कार्यकर्ताओं को टिकट देने की मांग अब जोर पकडऩे लगी है।
शबरी नाम पर मत जाइए...
अयोध्या से लौटकर आए एक तीर्थ यात्री को शिकायत है कि रामलला का मंदिर उद्घाटित होने के बाद वहां टैक्सी, लॉज, दुकान-बाजार हर तरफ कॉरपोरेट हावी हो गया है। आम पर्यटकों के लिए यहां का घूमना फिरना पहले जैसे बजट में मुमकिन नहीं रह गया। चाय पानी का बिल भी आपको हैरान कर सकता है। भले ही रेस्तरां का नाम उसने शबरी पर क्यों ना रख लिया हो।
उम्मीदवारों पर चर्चा
भाजपा में लोकसभा प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है, लेकिन सभी संसदीय क्षेत्रों में चुनाव कार्यालय खोलने के लिए कह दिया गया है। रायपुर संसदीय क्षेत्र में तो मुख्य चुनाव कार्यालय के लिए जगह भी पसंद कर ली गई है। सिविल लाइन स्थित डागा बिल्डिंग को चुनाव कार्यालय के लिए किराए पर लिया गया है।
चुनाव कार्यालय तो खोल दिए गए हैं, लेकिन टिकट को लेकर कई मौजूदा सांसद निश्चित नहीं हो पा रहे हैं। वजह यह है कि पिछले चुनाव में सभी सांसदों की टिकट काट दी गई थी। कम से कम पांच सीटों पर तो प्रत्याशी बदले ही जाएंगे। बस्तर, और कोरबा में तो पार्टी के सांसद नहीं है। ऐसे में यहां नया चेहरा आना ही है।
सरगुजा, बिलासपुर, और रायगढ़ के सांसद इस्तीफा देकर विधायक बन चुके हैं, लेकिन कुछ संसदीय क्षेत्र जहां विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। वहां के सांसद की टिकट खतरे में पड़ सकती है। पार्टी इसको लेकर सर्वे करा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
सबसे ज्यादा दागी
छत्तीसगढ़ में पहली बार ऐसी स्थिति बनी है, जब किसी विभाग से इतनी संख्या में अधिकारियों पर एक साथ एफआईआर दर्ज हुआ हो। वह भी पूर्व सीएम से जुड़े विभाग में। अब आबकारी विभाग में अजीब संकट की स्थिति है। नई सरकार भी असमंजस में है। जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज है, उन्हें यदि हटा दें तो आधे से ज्यादा जिलों में अफसर नहीं मिलेंगे। कुछ को हटाकर दागियों को जिलों में रखा जाएगा तो नैतिक दबाव की स्थिति रहेगी कि जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया, उन्हीं से काम ले रहे।
और चिंगारी भडक़ गई तो?
देश के कई हिस्सों में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। लोग तरह-तरह का जतन करके इसका मुकाबला कर रहे हैं लेकिन कुछ तरीके बेहद खतरनाक हैं। अक्सर ठंड के दिनों में खबर आती है कि ठंड से बचने के लिए चूल्हे के नजदीक, या फिर चारपाई के पास आग जलाकर सोने से लोग झुलस जाते हैं, जान भी चली जाती है।
हाल ही में मेरठ से प्रयागराज जा रही संगम एक्सप्रेस में सफर कर रहे किसान यूनियन के कुछ नेताओं ने ठंड भगाने का बेहद खतरनाक उपाय निकाला। एसी कोच में वे अंगीठी जलाकर हाथ तापने लगे। पर जब कोच में धुआं फैलने लगा तो लोग घबरा गए। आरपीएफ ने पहुंचकर अंगीठी बुझाई। एक बड़ा हादसा टल गया।
प्रयागराज से ही एक वीडियो इंस्टाग्राम पर वायरल हुआ है जिसमें दिख रहा है कि एक स्कूटी पर पीछे बैठी महिला जलती हुई अंगीठी पकड़ कर चल रही है। यही नहीं उसके साथ में एक बच्चा भी सवार है। वह न सिर्फ अपने परिवार को बल्कि सडक़ पर चल रहे दूसरे राहगीरों को भी खतरे में डाल रही है। एक यूजर में कमेंट किया है-आज पकड़ेगी तो सारी ठंड दूर हो जाएगी। ठंड भडक़ गई तो संभाल लेंगे, चिंगारी भडक़ गई तो बहुत महंगा पड़ेगा, आंटी जी।
रिश्ते तबाह कर रही शराब...
सरगुजा के लखनपुर इलाके में छेरछेरा लोक पर्व के दिन एक महिला ने अपने आठ माह के दुधमुंहे बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी। अपने आदतन शराबी पति को उसने आगाह किया था यदि आज वह शराब पीकर घर आएगा, तो वह बच्चे को मार डालेगी और खुद भी जान दे देगी। मगर पति फिर शराब पीकर लौटा। बच्चे की हत्या के बाद मां फरार हो गई। शराब की वजह से अपने ही रिश्तों का कत्ल करने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। इसी महीने रायपुर के इंद्रप्रस्थ कॉलोनी में एक युवक ने अपनी टीचर मां को मार डाला क्योंकि उसने बेटे को शराब के लिए पैसे नहीं दिए। इसके कुछ दिन बाद बालोद से खबर आई कि एक शराबी ने अपनी मां और बेटे की हत्या कर दी, पत्नी भी हमले में घायल है। पिछले साल तो एक घटना में त्रस्त मां-बाप और भाई ने मिलकर एक शराबी युवक की हत्या कर दी थी। अभी पिछले सप्ताह बिलासपुर में एक शराबी ने पत्नी से ताने सुनकर खुदकुशी कर ली। उसने चावल को बेचकर शराब पी ली थी। चावल उसकी गरीबी देखकर ससुर ने भेजा था।
कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब ऐसे अपराधों की खबर अखबारों में न हो। नेशनल हेल्थ सर्वे 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक आबादी के अनुपात में शराब पीने वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर है। यहां 35.6 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं। 34.7 प्रतिशत के साथ त्रिपुरा दूसरे और 34.5 प्रतिशत के साथ आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर है।
विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने पूरे 5 साल शराबबंदी का वादा निभाने के लिए कांग्रेस की सरकार को घेरा था। पर उसने आबकारी नीति में कोई बदलाव नहीं करने का निर्णय लिया है। वैसे यह नीति पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की ही है। सिर्फ इतना किया गया है कि नई दुकान नहीं खोली जाएगी। मगर शराब सरकार के लिए अनिवार्य बनी हुई है। कितना इसका उदाहरण दिया एमसीबी जिले के कलेक्टर ने। उन्होंने बीते दिनों हाईकोर्ट में हलफनामा दिया कि शराब दुकान को नहीं हटा सकते। यदि नजदीक के शेल्टर में रहने वालों को तकलीफ है, तो उसी को किसी दूसरी जगह पर शिफ्ट कर देंगे।
प्रदेश के कुछ पुलिस अधिकारी अपने स्तर पर नशे के खिलाफ अभियान चला रहे हैं लेकिन वैध तरीके से हो रही बिक्री और खपत पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। ([email protected])
सिर्फ अवार्ड से बात नहीं बन रही
छत्तीसगढ़ के चार बच्चों मास्टर अर्णव सिंह, ओम उपाध्याय, प्रेमचंद साहू और लोकेश कुमार साहू को गणतंत्र दिवस पर उनकी अदम्य वीरता के लिए सम्मानित किया गया। इनमें कृपाल नगर, भिलाई के 16 वर्षीय ओम भी शामिल है, जिन्होंने छोटे-छोटे बच्चों को खौफनाक कुत्तों के हमले से बचाया था। खास बात यह है कि ओम विशेष श्रेणी का किशोर हैं। बचपन से ही वह बोल-सुन नहीं पाता। ओम को सन् 2011 में राज्य सरकार की बाल श्रवण योजना से एक को-क्लियर इंप्लांट किया गया था, जिससे उसकी श्रवण क्षमता काफी हद तक लौट आई थी। मगर बीते चार सालों से यह मशीन खराब हो गई है। ओम खूब पढऩा चाहता है। वह बड़ा होकर सेना में भर्ती होना और देश की सेवा करना चाहता है। मगर, गरीबी रेखा के नीचे आने वाले उसके पिता सुधीर के पास नई मशीन खरीदने के पैसे नहीं है। नई मशीन इंप्लांट करने का खर्च करीब 6 लाख रुपए है। सुधीर सीएम हाउस में बीते 5 सालों के भीतर कई बार आवेदन लगा चुके हैं। उसे एक बार और मदद की जरूरत है ताकि इस वीर ओम का हौसला ना टूटे।
सिंहदेव के लिए मौका
लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के दौरान प्रस्ताव रखा गया कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव से चुनाव लड़ाया जाए। मगर उन्होंने इससे मना कर दिया और कहा कि वे प्रदेश भर में घूम-घूम कर कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करना चाहते हैं। लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव में अनुभवी और कद्दावर नेताओं को उतारने से जीत की संभावना बढ़ जाती है। विधानसभा चुनाव में सांसदों को उतार कर भाजपा ने ऐसा सफल प्रयोग किया। इसी को ध्यान में रखते हुए संभवत: मोहम्मद अकबर ने बघेल का नाम सामने किया। विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन और लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले राम मय माहौल भाजपा के पक्ष में है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस से चुनाव लडऩा भी एक बड़ी चुनौती को स्वीकार करना होगा।
राज्य की कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरा होते ही पूर्व उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने अपने आपको प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना शुरू कर दिया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि बघेल की तरह उनका भी कद बड़ा है और वे भी प्रदेश की किसी भी सीट पर चुनाव लडऩे की काबिलियत रखते हैं। मौजूदा हालत में कांग्रेस से जो भी प्रदेश स्तरीय नेता लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर लेगा, उसकी प्रदेश और केंद्रीय राजनीति में कद अपने आप बड़ा हो जाएगा। बघेल के बाद सिंहदेव ही ऐसे नेता हैं, जिनके लोकसभा लडऩे का फैसला प्रदेश के कांग्रेसियों का उत्साह बढ़ा सकता है। मगर अब तक उनका नाम किसी ने सुझाया नहीं है। देखना होगा कि क्या खुद सिंहदेव ऐसी किसी लड़ाई के लिए खुद को तैयार करेंगे?
इलेक्ट्रिक गाडिय़ों में सुरक्षा
इस समय इलेक्ट्रिक बाइक और कारों का क्रेज बढ़ रहा है। इसके बावजूद कि इसकी कीमत पेट्रोल गाडिय़ों से काफी अधिक है। इस समय दुपहिया वाहनों की इतने अधिक ब्रांड बाजार में उतर चुके हैं कि ग्राहक तय नहीं कर पाते कि किसे ले। कोई बाइक सुरक्षा के मापदंडों पर वह खरा है भी या नहीं, इसका भी पता नहीं चलता।
मगर, यह एक वोल्वो कार है जिसकी कीमत 60 लाख रुपए से अधिक है। महासमुंद जिले के बसना थाना क्षेत्र के जगदीशपुर ओवर ब्रिज के पास अचानक इसमें से धुआं उठने लगा और कुछ ही देर में पूरी की पूरी लपटों से घिरकर खाक हो गई। वजह क्या रही होगी? गाड़ी मालिक का कहना है कि वोल्वो जैसी विश्वसनीय कंपनी और उसकी इतनी महंगी गाड़ी का भी भरोसा नहीं। यह तो शुक्र है कि कार में सवार सभी लोग सुरक्षित हैं। ([email protected])
जहां श्री होगा वहां लाभ रहेगा
भाजपा की राजनीति में कई तरह के उलटफेर होते रहे हैं । कभी कोई नेता किसी के साथ तो कोई किसी के साथ । आज कल पहली बार के दो पूर्व विधायक एक साथ नजर आ रहे हैं। एक बेमेतरा जिले के एक राजधानी के । इन्हें साथ देखते ही नेता कह उठते हैं कि जहां श्री होता है वहां लाभ रहता ही है। अब दोनों की जोड़ी ऐसे ही नहीं बनी। दोनों टिकट से वंचित किए गए । तो दिल तो मिलना ही था। और जोड़ी बन गई। अब देखना है कि यह जोड़ी क्या गुल खिलाती है ।
एफआईआर और हाई-टी
चुनाव के नतीजों ने राजभवन के स्वागत समारोह ( हाई-टी) का दृश्य ही बदल दिया। अब तक दरबार हाल में होनेवाला यह समारोह इस बार लॉन में हुआ । 15 अगस्त को जहां राजभवन कांग्रेस के नेताओं से भरा हुआ था। पांच माह 11 दिन बाद 26 जनवरी को भाजपा और संघ के नेता जय श्रीराम से अभिवादन करते नजर आए। गणमान्यों की मौजूदगी में कांग्रेस का एक नेता या पदाधिकारी को लोग तलाशते रहे। राजभवन के प्रोटोकॉल विभाग ने कांग्रेस के भी सभी प्रमुखों को आमंत्रण भेजा था। लेकिन कोई भी नामचीन नहीं आया । यह बायकाट नहीं था बल्कि इसके पीछे एसीबी में दो हुई एफआईआर को कारण माना जा रहा था । यहां तक की शहर के प्रथम नागरिक कहलाने वाले महापौर भी गैरहाजिर रहे। उनको आमंत्रण यानी शहरवासियों को आमंत्रण और महापौर का रहना व्यक्तिगत नहीं होता बल्कि शहरवासियों का प्रतिनिधित्व माना जाता है ।
जितना कमाया नहीं उतना...
कोल लेवी वसूली, मनी लांड्रिंग और शराब घोटाले में फंसे लोगों की मुश्किल बढऩे वाली है। इन लोगों ने जिनके लिए काम किया उन्होंने हाथ उठा दिया है । गिरफ्तारी के बाद सीखचों के पीछे रहना होगा या फिर बाहर रहने के लिए घर का पैसा लगाना होगा। यानी अब महाधिवक्ता कोष से मदद नहीं मिलने वाली। जब सरकार रहती है तो एजी के जरिए देश के नामचीन वकील बुला लिए जाते हैं । उनकी सारी फीस विधि विभाग के बजट से दे दी जाती है। इस फंड से पुराने बंदियों को भी बीते एक महीने से मदद नहीं मिल पा रही है। पिछली सरकार ने चुनाव से पहले ही हाथ उठा दिया था। यानी अब जितना कमाया नहीं उतना गँवाना होगा, क्योंकि दोनों ही घोटालों में कई तो पैसे के कूरियर रहे हैं। और अब सब फंस गए हैं। ऐसे में यह खतरा बढ़ गया है कि ये लोग कहीं और लोगों का नाम न ले लें। इससे बचने लोग इनसे मॉल-भाव न कर लें। आने वाले दिनों जब एसीबी कार्रवाई करेगी तो ऐसे ही कई खुलासे होंगे।
फिर चुनाव फिर धान का मुद्दा..
छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का लक्ष्य 130 लाख मीट्रिक टन रखा गया था, जो अंतिम तिथि 31 जनवरी के पहले ही पूरा हो गया है। इसके बावजूद खरीदी केंद्रों में धान बेचने और टोकन लेने के लिए कतार लगी हुई है। इनमें वे किसान भी हैं, जो पहले सिर्फ 15 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान बेच पाए थे। अंतिम तिथि यदि बढ़ती है तो धान खरीदी का आंकड़ा और बहुत आगे बढ़ सकता है। मगर अब सिर्फ तीन दिन बाकी है। (छुट्टी के दिन खरीदी बंद रहती है।) कांग्रेस ने धान खरीदी एक मार्च तक बढ़ाने की मांग की है। उसने यह भी आरोप लगाया है कि घोषणा के अनुसार 3100 रुपए की दर से भुगतान शुरू नहीं किया गया है। अनुपूरक बजट में इसका प्रावधान भी नहीं किया गया है। पिछली सरकारों ने धान खरीदी की आखिरी तारीख बढ़ाई थी। बीते विधानसभा चुनाव में धान एक बड़ा मुद्दा रहा। अब फिर प्रदेश लोकसभा चुनाव के मोड में है। सरकार को अभी यह सोचना है कि धान की खरीदी की समय सीमा और बढ़ी हुई कीमत पर भुगतान को कांग्रेस लोकसभा चुनाव की वोटिंग से पहले बड़ा मुद्दा न बना ले।
दो बड़े नाम छूट गए
राष्ट्रीय पर्व, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर जिलों के मुख्य समारोहों में ध्वजारोहण के लिए मुख्य अतिथि बनाया जाना बड़े सम्मान की बात होती है। किसे कितना महत्वपूर्ण जिला दिया गया है, इसकी भी चर्चा होती है।
पहले जब जिले कम थे और मंत्रियों की संख्या पर कोई नियंत्रण नहीं था, प्रत्येक जिले में कैबिनेट या राज्य मंत्री ही मुख्य अतिथि होते थे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद लगातार जिले बढ़े, तब संसदीय सचिवों को भी मौका मिलने लगा। इस बार सरकार ने एक नया प्रयोग किया है कि भाजपा सांसदों को भी ध्वजारोहण कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बनाया गया। मंत्रियों के लिए जिले तय होने के बाद अनेक विधायकों को भी मौका दिया गया। मंत्रिमंडल में जगह पाने से जो वरिष्ठ विधायक चूक गए उनका खास ख्याल रखा गया। धरमलाल कौशिक, रेणुका सिंह, भैया लाल राजवाड़े, गोमती साय, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, लता उसेंडी आदि विभिन्न जिलों में मुख्य अतिथि थे। पर इस सूची में सातवीं बार विधायक चुने गए, मंत्री रहे और चार बार सांसद रह चुके पुन्नूलाल मोहले का नाम शामिल नहीं थे। इसके अलावा पांचवीं बार के विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर को भी मौका नहीं मिला। जब परंपरा से हटकर सांसदों को मौका दिया गया, नए-नए विधायक भी झंडा फहराने जा रहे हैं तब इन वरिष्ठ विधायकों का नाम किसी जिले के लिए क्यों नहीं रखा गया, इस पर तरह-तरह की बात हो रही है।
न्यूज़ वैल्यू वाले बाबा
बाबा बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री का एक बार फिर दिव्य दरबार रायपुर में लग गया है। आते ही उन्होंने छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण रोकने की बात की है। हिंदू राष्ट्र की पैरवी तो वे पहले से ही करते आ रहे हैं। पिछले साल भी उनका भव्य समारोह हुआ था। इस बार भी हजारों लोग पहुंच रहे हैं जिसमें छत्तीसगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश, उड़ीसा, यूपी, बिहार के अनुयायी भी हैं। समाचार चैनलों ने पहले बाबा के लिए भीड़ बढ़ा दी, फिर रिपोर्टर उनके पीछे भागते दिखाई दे रहे हैं। लोग उनके चरणों पर दिखाई देते हैं...। सोशल मीडिया पर वायरल यह एक तस्वीर है। ([email protected])
भूपेश की इस सीट पर चर्चा
हल्ला है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल राजनांदगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। भूपेश के करीबी गिरीश देवांगन ने राजनांदगांव की सभी सीटों के विधानसभा चुनाव के आंकड़े लिए हैं। इसके बाद से स्थानीय कांग्रेस नेता, भूपेश के लोकसभा चुनाव लडऩे की अटकलें लगा रहे हैं।
देवांगन राजनांदगांव विधानसभा सीट से बुरी हार के बाद भी संपर्क में हैं, और कुछ कार्यक्रमों में गए हैं। इसके बाद से भूपेश के चुनाव लडऩे को लेकर चर्चा शुरू हुई। गौर करने लायक बात यह है कि कांग्रेस हाईकमान ने विधानसभा चुनाव हार चुके मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारने पर सहमति दे दी है। भूपेश, और अन्य प्रमुख नेताओं के चुनाव मैदान में उतरेंगे या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
हटा अंगद का पाँव
माध्यमिक शिक्षा मंडल के सचिव डॉ. वीके गोयल को हटा दिया है। उनके पास ओपन स्कूल का भी प्रभार था। अभी सिर्फ माध्यमिक शिक्षा मंडल के दायित्व से मुक्त किया गया है, जो कि वो पिछले 7 साल से संभाल रहे थे।
माध्यमिक शिक्षा मंडल सचिव के पद पर आईएएस पुष्पा साहू की पदस्थापना की गई है। डॉ. गोयल प्रोफेसर के पद पर रहे हैं, और प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद भी पद पर बने हुए थे। चर्चा है कि डॉ. गोयल के खिलाफ शिक्षक संघ ने शिकायत भी की थी, और उन्हें वापस उच्च शिक्षा विभाग में भेजने के लिए सरकार से आग्रह किया था।
शिक्षकों की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि सरकार बदलते ही डॉ. गोयल ने मंडल परिसर से संघ के दफ्तर को हटाने के लिए नोटिस जारी कर दिया था। इस बात को लेकर शिक्षकों में काफी नाराजगी थी।
अमित कुमार का तजुर्बा
आईपीएस के 98 बैच के अफसर अमित कुमार को सरकार ने एडीजी (इंटेलिजेंस) की जिम्मेदारी दी है। अमित की साख, और अनुभव को देखते हुए महत्वपूर्ण दायित्व मिलने की उम्मीद जताई जा रही थी।
अमित प्रदेश के अकेले अफसर हैं, जिन्होंने सीबीआई जैसी संस्था में 12 साल गुजारे हैं। वहां भी उन्होंने बेहतर कार्यशैली का परिचय दिया था। वो चर्चित कोल घोटाले की जांच से भी जुड़े थे। अमित सीबीआई के 6 डायरेक्टरों के साथ काम कर चुके हैं। सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर रहते पॉलिसी जैसा अहम काम देख चुके हैं, वो सीधे सीबीआई डायरेक्टर को रिपोर्ट करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में काम करते हुए रायपुर, दुर्ग समेत 4 जिलों के एसपी रह चुके हैं। ([email protected])
वे दिन हवा हुए...
लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए कांग्रेस ने ‘वार रूम’ का गठन तो कर लिया है, लेकिन इसके चेयरमैन शैलेष नितिन त्रिवेदी को राजीव भवन में ‘वार रूम’ के लिए अब तक जगह नहीं मिल पाई है। बताते हैं कि शैलेश ने पहले संचार विभाग के फ्लोर में ही ‘वार रूम’ तैयार करने के लिए जगह पसंद किया था, लेकिन संचार विभाग के मुखिया सुशील आनंद शुक्ला सहमत नहीं हुए। अब जाकर राजीव भवन में कहीं उपयुक्त जगह की तलाश की जा रही है ताकि काम शुरू हो पाए।
गौर करने लायक बात यह है कि विधानसभा चुनाव में तो ‘वार रूम’ के लिए शंकर नगर में एक आलीशान फ्लैट किराए पर लिया गया था। भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा की निगरानी में ‘वार रूम’ संचालित हो रहा था। पूरा ‘वार रूम’ हाईटेक था। इस पर भारी भरकम खर्च किए गए थे। ‘वार रूम’में किस तरह की गतिविधियां चल रही थी यह तो साफ नहीं है, लेकिन चुनाव नतीजे अब तक के सबसे खराब रहे हैं।
हाल यह रहा कि चुनाव नतीजे आते-आते तक ‘वार रूम’ में ताला लग गया, और वहां कार्यरत कर्मचारी हिसाब किताब कर निकल गए। विनोद वर्मा भी चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। अब जब लोकसभा चुनाव के लिए ‘वार रूम’ तैयार करने की बारी आई, तो एक कमरे के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
जेसीसी-बीजेपी में सियासी कशमकश
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भाजपा के लोकसभा चुनाव के लिए नियुक्त क्लस्टर प्रभारियों के साथ दिल्ली में हुई बैठक के 5 दिन के भीतर ही भाजपा ने आम आदमी पार्टी में सेंध लगा दी। इसके अलावा हजार पांच सौ वोटों की पहचान रखने वाली छोटी-छोटी पार्टियों के अनेक पदाधिकारी भाजपा में ले लिए गए हैं। आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी ने इस्तीफा दिया था तब उनके ही भाजपा में जाने की चर्चा ज्यादा थी लेकिन शायद अभी शर्तें तय नहीं हो पाई हैं। या फिर उन्होंने अभी मन ही नहीं बनाया होगा। शाह की बैठक से लौटकर एक क्लस्टर प्रभारी अमर अग्रवाल ने बताया था कि उनको निर्देश मिला है कि जो लोग पार्टी में आना चाहते हैं, उनका स्वागत करें। यहां उनके निर्देश का पालन होने लगा है।
इस तोडफ़ोड़ के बाद एक बार फिर यह चर्चा गर्म हो गई है कि क्या अमित जोगी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो जाएंगे? जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के संस्थापक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद से ही पुत्र अमित जोगी ने पार्टी को फिर से खड़ा करने की बड़ी कोशिश की लेकिन विधानसभा चुनाव में आए नतीजे से यह साफ हो गया कि उसका भविष्य कैसा होगा। डॉ. रेणु जोगी पहले यह बता चुकी हैं कि कांग्रेस में पार्टी के विलय की चर्चा चली थी। बात इसलिए अटक गई क्योंकि बाकी सब के लिए सहमति तो थी लेकिन अमित को शामिल करने को लेकर कांग्रेस में एक राय नहीं थी। जेसीसी को खड़ा करने वाले ज्यादातर नेता अब पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। स्व. जोगी के जाने के बाद उनके बेहद करीबी धर्मजीत सिंह अब भाजपा विधायक हैं।
मरवाही उपचुनाव में लडऩे का मौका नहीं मिलने पर जेसीसी ने भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर गंभीर सिंह को समर्थन दे दिया था। बीते विधानसभा चुनाव में भी जेसीसी का भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का मकसद पूरा हुआ। मगर उसे खुद नोटा जितने वोट भी नहीं मिल पाए। सूत्र बता रहे हैं कि इस नतीजे से पार्टी में बेचैनी महसूस की जा रही है और भाजपा में विलय की मांग हो रही है। अमित कह चुके हैं कि क्या करना है यह वक्त आने पर तय करेंगे। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मिलकर वे उनको जीत की बधाई दे चुके हैं, पर बीते 8 जनवरी को शाह से उनकी मुलाकात के बाद चर्चा और तेज हुई है। लोग मान रहे हैं कि इन भेंट मुलाकातों का कोई न कोई मुकाम होगा।
मगर फैसला आसान नहीं है। पार्टी में जो लोग भी आज रह गए हैं उनमें से ज्यादातर कार्यकर्ता ऐसे हैं जो स्वर्गीय अजीत जोगी को जननायक और मसीहा मानते रहे और अमित जोगी से उनकी विरासत आगे बढ़ाने की उम्मीद करते हैं। जो लोग आज साथ हैं वे सब के सब भाजपा में जाना पसंद करें या जरूरी नहीं।
दूसरा पहलू बीजेपी का है। पार्टी के रणनीतिकारों को यह तय करना है कि जोगी की पार्टी का विलय ठीक रहेगा या उसका अलग अस्तित्व बनाए रखने में नफा होगा।
काम पर लग गए बुलडोजर
छत्तीसगढ़ भाजपा ने चुनाव अभियान के दौरान कई ऐसे वायदे किए जिसने रोमांच, बदन और जेहन में सुरसुरी, सनसनी पैदा की। इन्हीं में से एक वादा था आपराधिक तत्वों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई। बीते 2 दिसंबर को चुनाव परिणाम के बाद जीत के जश्न में बुलडोजर को भी शामिल किया गया था। राजधानी के जोश में भरे कार्यकर्ताओं ने बृजमोहन अग्रवाल को भी इसमें चढ़ाया था। बिलासपुर में भी जीत का जुलूस बुलडोजर के साथ निकाला गया था।
भाजपा सरकार अपने इस वादे पर खरा उतर रही है। जीत के 2 दिन बाद ही रायपुर में अवैध चौपाटी पर बुलडोजर की एंट्री हुई थी। अब पखांजूर में भाजपा नेता असीम राय की हत्या के मुख्य आरोपी विकास पॉल का होटल भी ढहा दिया गया है। पुलिस जांच में यह बात सामने आई थी कि इसी होटल को बचाने के लिए असीम राय की हत्या की गई थी, ताकि नगर पंचायत में भाजपा का कब्जा ना हो सके। मगर अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ, भाजपा आ गई। आरोपी जेल में है और उसका होटल भी टूट गया।
कांग्रेस नेताओं की समाजसेवा
जन सेवा के लिए पद की कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होती। और न ही प्रतिफल की चाह। इसी ध्येय के साथ कई बड़े बड़े समाजसेवी इतिहास में हुए हैं और उनके ही कारण समाजवाद का जन्म हुआ। कालांतर में इस समाज सेवा ने सरकारी पदों का रूप ले लिया। पांच वर्ष के एक निश्चित समयावधि के लिए हरेक को मौका मिलता रहा। लेकिन हाल के वर्षों में समय पूर्णता के बाद भी पद पर बने रहकर समाज सेवा की ललक के आगे आधुनिक समाजसेवी नेता जुटे रहते हैं। कारण प्रतिफल स्वरूप मोटा वेतन, सरकारी सुविधाएं और बेहिसाब बजट।
मानना पड़ेगा कांग्रेस के नेता लोगों को जनता के लिए काम करने की ललक है सरकार के जाने के बाद भी इतनी निष्ठा जनता के सेवा करने की। इसी समाज सेवा के लिए राज्य के तीन आयोग के अध्यक्ष, सदस्य और उनके पदाधिकारियों के साथ 40 लोग स्टे लेकर समाजसेवा कर रहे हैं । एक नेताजी ने भी स्टे लिया था, लेकिन रिकवरी के भय से अगले ही दिन इस्तीफा भेज कर अदभुत नैतिकता का परिचय दिया।
गोबर खरीदी पर सरकार का रुख
कांग्रेस सरकार ने जब गोबर खरीदी योजना शुरू की तो इसका मजाक उड़ाया गया था लेकिन बाद में भाजपा शासित राज्यों मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में इससे मिलती-जुलती योजना बनाई गई। बाद में गौठान समितियां और कृषि विभाग के अधिकारी-कर्मचारी, जिनके जरिये यह खरीदी हो रही थी गड़बड़ी करने लगे। विधानसभा में अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, सौरभ सिंह आदि ने इस मामले को कई बार उठाया। गोबर खरीदी और उसके एवज में किए गए भुगतान में भारी फर्क था। अब भाजपा सरकार ने तय किया है कि गोबर के एवज में किए गए 287 करोड़ रुपये भुगतान की जांच कराई जाएगी। भाजपा सरकार ने इस योजना को जारी रखने और भ्रष्टाचार के सुराखों को बंद करने का भी ऐलान किया है। तब गोबर खरीदी का भुगतान सरकार की दूसरी योजनाओं की राशि से किया गया था। नई सरकार ने मंशा जताई है कि वह अपने पैसे से गोबर नहीं खरीदेगी, बल्कि इसके प्रोडक्ट बेचकर समितियों को मुनाफे में लाया जाएगा। पिछली सरकार ने भी ऐसी कोशिश की थी। उसके कई बाई प्रोडक्ट बनाए गए लेकिन बाजार टिके नहीं। गोबर खाद को जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के नाम पर तैयार किया गया लेकिन उसे सोसाइटियों में पोटाश, यूरिया खरीदी के दौरान किसानों को जबरन थमाया गया। किसान इस जबरदस्ती से नाराज भी थे। वे इसका इस्तेमाल नहीं करते थे। खाद की जगह मिट्टी बेच दी जाती थी। गो काष्ठ और गोबर पेंट को भी उम्मीद के अनुरूप मार्केट नहीं मिला। सरकार को लग रहा होगा कि गरीबी खरीदी गांवों के बिल्कुल निचले तबके तक फायदा पहुंचाती है, इसलिये इसे बंद करना ठीक नहीं होगा, पर इसे मुनाफे कैसे चलाएगी, अभी साफ नहीं है।
गर्भगृह जाने वाले यहां से अकेले
अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में छत्तीसगढ़ से 140 विशिष्ट लोगों को आमंत्रित किया गया था। मगर शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल अकेले ऐसे थे जिन्हें देशभर के चुनिंदा 5 सौ विशिष्ट जनों के साथ मंदिर के गर्भगृह में जाकर दर्शन का सौभाग्य मिला।
शदाणी दरबार के प्रमुख ने योग गुरु रामदेव, और फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन सहित अन्य हस्तियों से मुलाकात भी की। वैसे तो बड़ी संख्या में यहां से लोग अयोध्या जाकर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होना चाहते थे, लेकिन सुरक्षा कारणों से बाहर से लोगों को आने की अनुमति नहीं थी। केवल वो ही जा सकते थे, जिन्हें निमंत्रण पत्र भेजा गया था।
छत्तीसगढ़ सरकार ने अब प्रदेश के लोगों को रामलला दर्शन के लिए ले जाने की योजना तैयार की है। हर साल 20 हजार लोगों को मुफ्त में दर्शन कराने के लिए यात्रा पर ले जाया जाएगा। कैबिनेट योजना को मंजूरी दे चुकी है, और 7 फरवरी को दुर्ग से पहली ट्रेन अयोध्या के लिए चलेगी।
राम लला के नाम पर ठगी
किसी दुकान की शटर हमेशा खुली रखनी हो तो हमेशा अपडेट रहना चाहिए। पूरे देश में ऑनलाइन ठगी के रोजाना हजारों मामले हो रहे हैं और लोगों की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये लुट रहे हैं। ठगबाज हर समय शोध करते हैं कि कौन सा मार्केट गरम है। उन्होंने ताजा -ताजा ट्रैक श्रीराम के नाम पर पकड़ा है। अमेजॉन और कुछ दूसरे वेबसाइट पर पिछले एक पखवाड़े से संदेश आ रहे हैं कि अयोध्या में श्रीराम को भोग लगाए गए प्रसाद की होम डिलीवरी की जाएगी। मंदिर प्रबंधन की ओर से बताया जा चुका है कि अभी तो राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा ही नहीं हुई है, उनको भोग लगाने का काम तो बाद में शुरू होगा। इसके अलावा किसी को ऑनलाइन डिलीवरी के लिए अधिकृत किया भी नहीं गया है।
अब रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद फिर प्रसाद डिलीवरी के लिंक मोबाइल फोन पर आ रहे हैं। दर्शन के लिए वीवीआईपी पास दिलाने, शुभ अवसर होने की खुशी में मोबाइल पर फ्री रिचार्ज अमाउंट डालने का झांसा दिया जा रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी यह ठगी जोरों पर हो रही है। विभिन्न जिलों की पुलिस लोगों को सतर्क कर रही है कि ऐसे मेसैजेस से सतर्क रहें, किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें, डाउनलोड नहीं करें। आप भी सतर्क रहें।
सफाई और हो जाए
रामलला की प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को सचमुच ही दीवाली की तरह मनाया गया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तो आधी रात तक फटाके दीवाली की तरह ही फूटते रहे, और जगह-जगह सडक़ किनारे आयोजन चलते रहे, लोगों ने खूब दीये जलाए, और चारों तरफ ढोल-नगाड़े भी बजते रहे। कुल मिलाकर यह कि पिछले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की दखल से जो रोक लाउडस्पीकरों पर चल रही थी, वह पूरी तरह बेअसर हो गई, और साउंड सर्विस वालों को भी फटाके वालों, और दीये बनाने वाले कुम्हारों के साथ काम मिल गया। अब चारों तरफ फटाकों और भंडारों की वजह से जो गंदगी फैली है, उसे भी साफ करने का आव्हान, मंदिरों को साफ करने की तरह दिया जाना चाहिए, क्योंकि कण-कण में भगवान माने जाते हैं, और धरती का कोई भी कण इस हिसाब से गंदा नहीं छोडऩा चाहिए।
सभी 11 का लक्ष्य
विधानसभा का बजट सत्र निपटने के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव का बिगुल बज सकता है। इसके लिए चुनाव आचार संहिता मार्च के पहले पखवाड़े में लग सकती है। भाजपा संगठन के नेताओं ने इस सिलसिले में मंत्रियों को हिदायत दे रखी है। रामलला के माहौल के बीच में पार्टी ने सभी 11 सीटों को जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर खुद कमजोर माने जाने वाली सीटों पर ध्यान केन्द्रित किए हुए हैं, और वो प्रमुख नेताओं से लगातार बैठक कर रहे हैं। तीन क्लस्टर प्रभारियों अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल व राजेश मूणत के हिस्से काफी कुछ जिम्मेदारी है। संकेत साफ है कि सत्र के बीच में प्रचार तेज किया जाएगा।
तेरहवीं के बाद ?
विधानसभा चुनाव में बुरी हार से कांग्रेस में निराशा है। कांग्रेस के नेता अब तक इससे उबर नहीं पाए हैं। लोकसभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में प्रमुख नेताओं के सक्रिय नहीं होने से माहौल नहीं बन पा रहा है। विधानसभा चुनाव में बुरी हार झेल चुके एक नेता ने तो हास परिहास के बीच अपने कुछ लोगों से कह दिया कि वो तेरहवीं के बाद ही सक्रिय होंगे। नेताजी के परिवार में किसी का निधन तो हुआ नहीं है। ऐसे में तेरहवीं का आशय लोकसभा चुनाव के संभावित नतीजों से लगा रहे हैं।
पुलिस को वीकली ऑफ कैसे?
डिप्टी सीएम ने बैठक में बोल दिया कि पुलिसकर्मियों को वीकली ऑफ दिया जाए। अब अफसर परेशान हैं कि वीकली ऑफ कैसे शुरू करें। देने की स्थिति रहती तो पिछली सरकार में ही दे देते। तब कांग्रेस की सरकार की प्राथमिकता में वीकली ऑफ देना भी था। कांग्रेस सरकार का फोकस भी ऐसी कोशिशों में था जिसमें पैसे खर्च न हों। पर जब थानों के स्टाफ को हर हफ्ते एक दिन छुट्टी देने की बात आई, तब यह संभव नहीं हुआ, क्योंकि इतने स्टाफ ही नहीं हैं कि वीकली ऑफ दिया जा सके। अब नए सिरे से मंथन शुरू हो चुका है कि किस तरह इसे पूरा किया जा सके।
दलबदल महा अभियान
लोकसभा चुनावों से पहले फिर से दलबदल महाअभियान शुरू हो रहा है। इस बार तो उस पार्टी के नेता पाला बदल रहे हैं, जो भाजपा का विरोध करके ही बनी और दो राज्यों में सरकार चला रही है। आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष समेत छह प्रमुख शीर्ष पदाधिकारी आज दोपहर मफलर छोड़ भगवा दुपट्टा पहनने जा रहे। जाने से पहले उन्होंने इस्तीफा दिया और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को भला बुरा कहा। प्रदेश अध्यक्ष की राष्ट्रीय कोर कमेटी में भी रहे हैं।
बस्तर के आंदोलनों पर नीति क्या?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर में बैठक के दौरान छत्तीसगढ़ खासकर बस्तर की माओवादी हिंसा में कमी आने को लेकर सशस्त्र बलों की सराहना की। दावा किया गया कि हिंसक घटनाओं में 80 प्रतिशत कमी आई है, और उग्रवादियों का भौगोलिक क्षेत्र भी सिमट गया है। नक्सलियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन चलाने और उनकी फंडिग का रास्ता पहचान कर उसे बंद करने का निर्देश भी दिया है।
नक्सल हिंसा में बीते पांच साल के दौरान कमी देखी गई है। सुरक्षा बल ऐसे अनेक स्थानों पर भी कैंप बनाने में सफल रहे जो कभी पूरी तरह नक्सलियों के नियंत्रण में होते थे। विधानसभा चुनाव के पहले गृह मंत्री ने अपने छत्तीसगढ़ दौरे में कई बार कहा कि सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले नक्सलियों को छत्तीसगढ़ से उखाड़ फेकेंगे। इस बार की बैठक में उन्होंने तीन साल का लक्ष्य दिया है।
शाह की बैठक की जो रिपोर्ट आई है उसके मुताबिक उन्होंने फोर्स की भूमिका पर चर्चा को केंद्रित रखा है। इससे जुड़े कई दूसरे पहलुओं पर बैठक में कोई बात हुई हो तो वह बाहर नहीं आई है। जैसे जेलों में बिना मुकदमों के वर्षों से आदिसायियों का बंद रहना। कांग्रेस सरकार के समय इसकी थोड़ी कोशिश हुई थी। बाद में आंकड़े आए तो पता चला कि जुआ, शराब, मारपीट के मामलों में ही बंद लोगों को रिहा किया गया। जिन पर माओवादी गतिविधियों में संलिप्तता का आरोप है, उनके मुकदमों की सुनवाई और रिहाई में कोई तेजी नहीं आई। दंतेवाड़ा जिला जेल अब भी प्रदेश के सर्वाधिक ओवरक्राउडेड जेलों में से एक बना हुआ है। दूसरी तरफ बस्तर में अनेक ऐसे मुठभेड़ हुए हैं, जिनको लेकर ग्रामीणों का आरोप है कि निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी। ताजा उदाहरण 6 माह की बच्ची की फायरिंग में हुई मौत है। ऐसी घटनाओं पर कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू हुए आंदोलन अभी तक खत्म नहीं हुए हैं।
नक्सल समस्या के जानकार लोगों का कहना है कि यदि यह संघर्ष माओवादियों के बहकावे में आकर भी किये जा रहे हों, जैसा सरकारें और पुलिस दावा करती है- तब भी बस्तर में शांति कायम करने के लिए उनको भरोसे में लेना जरूरी है। भाजपा सरकार बनने के बाद केंद्रीय व राज्य के गृह मंत्री दोनों ने ही नक्सलियों से वार्ता की इच्छा दिखाई थी, लेकिन इन मुद्दों पर उनका क्या रुख है, बाहर निकलकर नहीं आया।
संभावित तो प्रभारी बना दिए गए
दो दिन पहले भाजपा ने प्रदेश के सभी लोकसभा सीटों के लिए प्रभारी, सह प्रभारी, और संयोजकों की नियुक्ति की। इन नियुक्तियों की पार्टी के अंदर खाने में खूब चर्चा हो रही है। वजह यह है कि नवनियुक्त पदाधिकारी लोकसभा टिकट के मजबूत दावेदार समझे जा रहे थे, लेकिन कहा जा रहा है कि प्रभारी अथवा संयोजक बनने से टिकट की दावेदारी कमजोर हो गई है।
पूर्व सांसद कमलभान सिंह को सरगुजा लोकसभा सीट का संयोजक बनाया गया है। कमलभान खुद टिकट के दावेदार हैं। चर्चा है कि कमलभान को नई जिम्मेदारी मिलने से दावेदारी कमजोर हो गई है। इसी तरह बिलासपुर के पूर्व सांसद लखनलाल साहू को भी सरगुजा का प्रभारी बनाया गया है। लखनलाल बिलासपुर सीट से टिकट के दावेदार हैं। ऐसे में चर्चा है कि पार्टी बिलासपुर सीट से नया चेहरा आगे ला सकती है। इसी तरह सीनियर विधायक धरमलाल कौशिक को कोरबा का प्रभारी बनाया गया। जबकि उनका नाम बिलासपुर सीट से चर्चा में है।
राजनांदगांव सीट से टिकट के दावेदार नेता पूर्व सांसद अभिषेक सिंह, और डॉ. सियाराम साहू को अलग-अलग सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। यही नहीं, पूर्व नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल के विधानसभा चुनाव हारने के बाद कोरबा सीट से चुनाव लडऩे के इच्छुक बताए जाते हैं। मगर उन्हें राजनांदगांव लोकसभा का जिम्मा दे दिया गया है। कुल मिलाकर इन दिग्गजों को चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी दी गई है।
विज की नक्सल बुक
डीजी के पद से रिटायर हुए आईपीएस आरके विज इन दिनों प्रदेश की नक्सल समस्या पर आधारित एक बुक लिख रहे है। इसके लिए विज मौजूदा नक्सल परिस्थितियों को समझने के लिए प्रत्यक्ष तौर पर दौरा कर रहे है। 1988 बैच के आईपीएस विज साल 2021 मेंं लंबी सेवा के बाद पुलिस महकमे से रिटायर हुए थे। सर्विस में रहते हुए विज कई अखबारों के लिए आर्टिकल लिखते थे। बताते हैं कि वह रिटायर होने के बाद नक्सल समस्या के खात्मे के लिए सरकारी एजेंसियों को सुझाव भी देते रहते है। पिछले दिनों विज ने कवर्धा जिलें की नक्सली गतिविधियों को जानने के लिए दो दिन का दौरा किया। वैसे विज ने नक्सलियों को मुख्य धारा में लाने की कवायद अपने सेवाकाल में भी किया। बस्तर जैसे घोर नक्सल रेंज का भी उन्होंने मोर्चा सम्हाला। बतौर दुर्ग आईजी के विज ने एक नामी नक्सली को हथियार समेत राजनांदगांव-गढ़चिरौली के जंगल से मुख्यधारा में लाया था। साकेत नामक एक खूंखार नक्सली ने इंसास रायफल के साथ समर्पण किया था। यह पहला मौका था, जब किसी नक्सली ने घातक हथियार के साथ मुख्यधारा में वापसी की थी। अब वह रिटायर होकर नक्सल समस्या पर एक पुस्तक लिख रहे है। आईपीएस बिरादरी में उनकी पुस्तकक को लेकर कई तरह की चर्चाए भी है। सुनते हैं कि विज की लिखी किताब का पुलिस अधिकारियों को इंतजार है।
हसदेव पर नक्सली आह्वान
छिटपुट घटनाओं को छोडक़र बीते एक दशक से सरगुजा संभाग में कोई नक्सली वारदात नहीं हुई है। कोरिया और बलरामपुर जिले के कुछ हिस्सों में इनकी आमद रफ्त कभी कभी सुनाई देती रही है। वह भी अब कई महीनों से नहीं सुनी गई। ऐसे में नक्सलियों ने 23 जनवरी को सरगुजा संभाग बंद का आह्वान किया है। हसदेव अरण्य में कोयला खदान और जंगल कटाई के विरोध में उनका बयान पहले आ चुका है। बस्तर में ऐसा वे करते भी हैं। पर इस बार उन्होंने सरगुजा में बंद का आह्वान किया है। हसदेव के बहाने से क्या नक्सली यहां अपनी खोई हुई जमीन दोबारा हासिल करने की कोशिश में हैं? सरगुजा बंद के आह्वान से पडऩे वाले असर को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकेगा।
खेती अलग हटकर
यह किसी पूर्वोत्तर या दक्षिण के किसी राज्य की तस्वीर नहीं है, जहां बड़े स्तर पर चाय की खेती होती है। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की है। पर्वतों, जंगलों के बीच जशपुर जिले के कई गांवों में खेती के नए नए प्रयोग हो रहे हैं। जिले के मनोरा और बगीचा ब्लॉक में करीब 95 एकड़ पर चाय का बागान इसी कड़ी में विकसित करने का काम जारी है।
व्यस्त कर दिया
छत्तीसगढ़ सरकार में एक मंत्री पद खाली है। मुख्यमंत्री के अलावा जितने मंत्री रह सकते हैं, उस अधिकतम सीमा से अभी एक मंत्री कम है, और ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव तक पार्टी के विधायकों का योगदान देखकर पार्टी इस एक पद को भरेगी। इस बीच लोकसभा चुनाव की तैयारी में तीन वरिष्ठ विधायकों, जो कि भूतपूर्व मंत्री भी हैं, उन्हें भाजपा ने संसदीय क्लस्टर प्रभारी बनाया है, वे तीन-चार सीटों का काम देखेंगे, और ऐसा लगता है कि पार्टी ने इनमें से किसी एक को मंत्री बनाने के लिए उनके बीच यह मुकाबला छेड़ दिया है कि वे पार्टी की शानदार जीत तय करें, तो पार्टी उनका शानदार भविष्य तय करेगी। राजेश मूणत, अजय चंद्राकर, और अमर अग्रवाल, इन तीनों अनुभवी मंत्रियों को अभी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद हो सकता है कि इनमें से किसी की बारी आ जाए। फिलहाल तो पार्टी ने इन्हें व्यस्त कर दिया है।
अफसरों की नई रफ्तार!
बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए अफसर अब तक असमंजस में हैं कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय इन ओहदों पर नए लोगों को बिठाने का फैसला लेंगे, तो कब लेंगे? ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री न तो किसी हड़बड़ी में है, और न ही पिछली सरकार में बड़े ओहदों पर रहे लोगों से हिसाब चुकता करने के अंदाज में कोई काम कर रहे, इसलिए बहुत सी कुर्सियों पर लोग अभी जारी हैं। लेकिन जब कुर्सी पर बने रहने की गारंटी नहीं रह गई है, और सिर पर हटने की तलवार टंगी है, तो ऐसे बड़े-बड़े अफसर अपने मातहतों को साथ लेकर ऐसी-ऐसी कमेटियों की बैठक करने में लग गए हैं जिनकी बरसों से किसी ने याद भी नहीं की थी। सरकार में कई कमेटियां उपेक्षित पड़ी रह जाती हैं, लेकिन अब सभी अफसर बेहतर काम करके दिखाने की एक दौड़ में लगे हैं, पता नहीं यह रफ्तार कब तक कायम रहेगी। फिलहाल अफसरों के बीच इस बात को लेकर राहत है कि विष्णु देव साय की सरकार बदले की भावना से कोई काम करते नहीं दिख रही है, बल्कि बहुत सी कुर्सियों पर मौजूदा अफसरों में से सबसे काबिल को मौका दिया गया है।
फिर खुलने लगे जुए-शराब के अड्डे
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद पुलिसकर्मियों ने तत्काल प्रभाव से जुए-सट्टे और कबाड़ के ठीयों को बंद करवा दिया था, ताकि किसी भाजपाई के शिकायत पर हिट विकेट न होना पड़े। उस समय यह भी कयास लगाए जा रहे थे कि आईजी-एसपी बदले जाएंगे तो नया सेटअप बैठेगा। एडिशनल एसपी, डीएसपी, और टीआई लेवल पर भी बड़े पैमाने पर बदलाव होंगे। इसके विपरीत सरकार अभी तक आईपीएस के तबादले नहीं कर सकी। धीरे-धीरे सारे थानेदार भी रिलैक्स हो गए हैं। वे अब जुए-सट्टे और कबाड़ के धंधे से जुड़े लोगों को फ्री हैंड देते जा रहे हैं।
पुलिस-प्रशासन की मुश्किल
प्रदेश में प्रशासन और पुलिस के अफसरों का काम तो नहीं पर तनाव बढ़ गया है। तनाव बढऩे की वजह है हाई कोर्ट की नजर। पिछले कुछ समय से जनहित से जुड़े मुद्दों पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जिस तरह से गंभीरता दिखाई है, तब से पुलिस और प्रशासन क्या स्वास्थ्य, खनिज, समाज कल्याण सभी में सक्रियता आ गई है। काम भले पूरा न हो लेकिन सक्रियता दिखाई जा रही है, क्योंकि जनहित की खबरों पर हाई कोर्ट के संज्ञान लेने पर कोर्ट में खिंचाई होगी। वैसे, बिलासपुर के लोग हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के काफी आभारी हैं। सिम्स की रंगत बदल रही है। अवैध अहाते बंद हो गए हैं। डीजे का शोर कम हो गया है। रेलवे में पार्किंग ठेकेदारों की मनमानी बंद हुई है। अब कोर्ट ने सडक़ों को लेकर मुख्य सचिव को तलब किया है, यानी अब सडक़ें भी चिकनी हो जाएंगी। स्पष्ट है जब प्रशासन काम न करे तो जनहित याचिका लगाए और कोर्ट के जरिए पूरा कराए।
स्वागत में बाधक सडक़...
स्वागत, अभिनंदन के तौर तरीकों पर अगले कुछ दिनों तक कोई रोक-टोक नहीं। चाहें तो सडक़ खोदकर बांस डाल सकते हैं, द्वार बना सकते हैं। वैसे तो यह प्रदेश की राजधानी की एक तस्वीर है, पर यहां जगह-जगह, और दूसरे शहरों में भी ऐसा दिखाई दे रहा है। नाहक बीच में यातायात सुरक्षा सप्ताह आ गया। उसे आगे खिसका दिया जाना चाहिए।
तैयारी के साथ मंच पर भेजें...
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान भाजपा सांसद धर्मेंद्र कश्यप ने पीएम आवास के एक लाभार्थी को चाबी देते हुए पूछ लिया कि किसी ने पैसे तो नहीं लिए? सांसद ने ध्यान नहीं रखा कि इस तरह के सवाल तभी किया जाना चाहिए जब जवाब पहले से रटा दिया गया हो। महिला लाभार्थी ने मासूमियत से कह दिया कि हां, 30 हजार रुपये दिए हैं। भरी सभा में सुशासन की पोल खुल गई।
सच्चाई यह है कि यह योजना सरपंचों और ग्राम सचिवों के लिए अवैध वसूली का बहुत बड़ा जरिया है। यह न केवल यूपी में हो रहा है ना अभी शुरू हुआ है। इंदिरा आवास के जमाने से चला आ रहा है। छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार ने पीएम आवास के लिए अंशदान जारी नहीं किए पर इस बीच भी ठगी और वसूली चलती रही। पिछले साल मार्च महीने में दुर्ग जिले में एक गिरोह काम कर रहा था। प्रधानमंत्री आवास दिलाने के नाम पर उसने स्टांप पेपर पर इकरारनामा करके लाखों रूपए की वसूली की। दो साल पहले रायपुर के तेलीबांधा इलाके में भी इसी तरह की ठगी की गई थी।
भाजपा ने पीएम आवास को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। सरकार बनते ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपनी पहली कलेक्टर कांफ्रेंस में निर्देश दिया कि इस योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। पात्र हितग्राहियों के एक वर्ग के लिए 25 हजार रुपये की पहली जारी भी कर दी गई है। पर इसमें भी वसूली शुरू हो गई है। शिकायतों के मुताबिक जांजगीर-चांपा जिले में जनपद पंचायत के दलाल हितग्राहियों से घूम-घूमकर मिठाई के नाम पर पैसे मांग रहे हैं। बलौदाबाजार के सकरी गांव से भी यही शिकायत आई है। दर्जनों शिकायतें तब भी थीं, जब आवास आवंटन नहीं हो रहे थे। अब जब आवास घोषित हो गए हैं, वसूली फिर हो रही है।
हाल ही में बसना जनपद पंचायत के एक पंचायत सचिव को वहां के सीईओ ने ऐसी ही शिकायतों पर निलंबित भी किया है। इस योजना में 1.30 लाख रुपये मिलते हैं। यह गरीबों के लिए बड़ी रकम है। खुद का आवास हो जाना उनके लिए बहुत बड़े सपने का पूरा होना है। ऐसे में पात्र लोगों की सूची में नाम डालने और राशि मिलने के बाद उपयोगिता का प्रमाण पत्र देने के नाम पर दबावपूर्वक राशि ली जाती है, वरना उन्हें आवास अधूरा रह जाने की चेतावनी दी जाती है।
टिकट की उम्मीद रखें या नहीं?
धरमलाल कौशिक, अभिषेक सिंह, लखन लाल साहू, कमलभान सिंह, डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी और उनके जैसे कई भाजपा नेताओं के बारे में चर्चा चली हुई है कि वे लोकसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक है। पर इन्हें प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी और संयोजकों की सूची में शामिल कर लिया है। इनमें से किसी को भी उन जिलों में तैनात नहीं किया गया है जहां से वे लडऩे की इच्छा रखते हैं। पूर्व में क्लस्टर प्रभारियों की घोषणा हुई थी। उसमें भी कम से कम दो नाम तो ऐसे हैं, जो लोकसभा जाना चाहते हैं। पर दूसरे जिलों, संभागों में व्यस्त कर देने से उनके समर्थकों में चिंता पैदा हो गई है कि क्या उनके नाम पर विचार नहीं होगा? फिर वे यह सोचकर संतोष कर लेते हैं कि भाजपा में कुछ भी हो सकता है, जिनको टिकट मिलने की उम्मीद है, वे देखते रह जाएंगे। जिसने सोचा भी नहीं होगा, उसे मिल जाएगी।
फिर राशन कार्ड की लाइन
एक बार फिर राशन कार्ड बदले जा रहे हैं। अभियान 25 जनवरी से शुरू हो रहा है, जो फरवरी अंत तक चलेगा। प्रदेश में 74 लाख 95 हजार राशन कार्ड धारक हैं, इनमें से अत्यंत गरीब की सूची में शामिल 67 लाख 92 हजार राशन कार्ड धारकों को फ्री में राशन मिलना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच साल के लिए की गई यह घोषणा पूरे देश में लागू हो रही है।
सन् 2018 में भी कांग्रेस की सरकार आते ही राशन कार्ड बदल दिए गए थे। तब उनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की तस्वीर हटाकर नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तस्वीर लगाई गई। अब फिर भाजपा सरकार लौट गई है। अब नये कार्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की तस्वीर दिख सकती है।
राशन कार्ड की छपाई ठीक-ठाक और टिकाऊ कागज में होती है। उसे पांच साल में सरकार की तरह बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। पर जब सरकार बदलें तो उन्हें यह भी मानकर चलना चाहिए कि राशन कार्ड भी बदलेगा। पुराने कार्ड बेकार हो जाएंगे, और मतदाताओं को एक बार फिर लाइन पर खड़ा होना पड़ेगा। इस बात पर विचार मत करें कि इससे हमारे-आपके टैक्स के कितनी रकम बर्बाद हो जाती है।
लुप्त हो रही मछली की तलाश...
इंग्लैंड के डॉ. मार्क एवेरार्ड का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे एक वैज्ञानिक, लेखक, पर्यावरण प्रेमी और संगीतकार हैं। दुनियाभर में लुप्तप्राय हो रही मछलियों की तलाश और उनके संरक्षण की कोशिश भी उनका एक अहम मिशन है। इन दिनों वे कोरबा जिले के प्रवास पर हैं। हसदेव बांध के डुबान क्षेत्र में मछुआरों से बात कर वे दुर्लभ महाशीर मछली की खोज कर रहे हैं। यह मछली विलुप्त होने के कगार पर हैं। उन्हें मालूम हुआ कि बांगो बांध के डुबान क्षेत्र में यह पाई जा रही है तो यहां पहुंच गए। इस मछली का वजन 50 किलो तक होता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर ने इसे हाल ही में मछली की लुप्तप्राय प्रजाति का दर्जा दिया है। इसकी सात उप-प्रजातियां भी हैं। भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड में भी मिलती हैं। छत्तीसगढ़ में सिर्फ हसदेव के डुबान वाले क्षेत्र में इसके होने का पता चला है। इसका अर्थ यह है कि हसदेव अरण्य में दुर्लभ पेड़ पौधे, पक्षी, वन्य प्राणी, जड़ी बूटी तो हैं ही, यहां के विशाल बांध में अनेक दुर्लभ जीव-जंतु भी पाये जाते हैं। जिस हसदेव के लुप्त हो जाने की आशंका में लोग डूबे हैं, उसमें एक विलुप्त प्रजाति के मछली की तलाश हो रही है।
लोकसभा चुनाव में तीसरे दल...
इस्तीफा देने के बाद आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी किस दल में शामिल होंगे, यह अभी साफ नहीं है लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में इसके निकट भविष्य में विस्तार की संभावना क्षीण है। छत्तीसगढ़ में इस विधानसभा चुनाव में 0.93 प्रतिशत वोट ही उसे मिल पाए जबकि उसने 57 उम्मीदवार खड़े किए थे। हुपेंडी बाहर आ गए लेकिन पार्टी के अनेक कार्यकर्ताओं में बेचैनी होगी, क्योंकि उन्होंने करीब दो साल पहले तैयारी शुरू कर दी थी। आप को राजस्थान और मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ से भी कम, 0.38 और 0.54 प्रतिशत वोट मिले। राजस्थान में उसने 88 और मध्यप्रदेश में 70 उम्मीदवार खड़े किए थे। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में एक सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पास आई लेकिन बहुजन समाज पार्टी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जैसे दलों के लिए भी नतीजे निराशाजनक ही रहे। यदि इनमें कोई भी दल बेहतर प्रदर्शन कर पाता तो उसकी लोकसभा चुनाव में मौजूदगी दिखाई देती। आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी उतरें तो वे त्रिकोणीय स्थिति पैदा नहीं कर पाएंगे। विधानसभा चुनाव से यह स्पष्ट हो गया है कि लोकसभा 2024 की सभी 11 सीटों पर मुकाबला केवल कांग्रेस और भाजपा के बीच होना है।
वनवासी राम
छत्तीसगढ़ राम का ननिहाल है। पिछली सरकार ने इस बात को खूब प्रचारित किया था और माता कौशल्या के मंदिर से लेकर राम वन गमन परिपथ को संवारने का काम किया हालांकि इसका वैसा राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाया जैसी उम्मीद की जा रही थी। कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई और बीजेपी की वापसी हो गई। अब जब अयोध्या में राम लला विराजने जा रहे हैं। पूरे देश की तरह छत्तीसगढ़ में भी उत्सव का माहौल है लेकिन राज्य की बीजेपी सरकार राम के मुद्दे को लेकर काफी सावधान है क्योंकि राज्य में राम को लेकर ज्यादातर काम कांग्रेस के कार्यकाल में हुए हैं, ऐसे में बीजेपी की छोटी सी चूक से लोकसभा चुनाव में क्रेडिट कांग्रेस को मिल सकता है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी कोर हिंदुत्व और राम के मुद्दे पर भी खुलकर नहीं खेल पा रही है। बीजेपी के रणनीतिकार अब राम को वनवासी राम के रुप में प्रचारित करने की कोशिश में हैं ताकि इससे हिंदुओ और आदिवासी दोनों को साधा जा सके।
जेल का सुखद संयोग
छत्तीसगढ़ में साल 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जेल जाना पड़ा था। इसी तरह साल 2023 के विधानसभा चुनाव के चंद महीने पहले बीजेपी के महामंत्री और मौजूदा उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा भी जेल गए थे। विजय शर्मा के पास गृह और जेल मंत्रालय भी है ऐसे में जब उन्होंने मंत्री के रूप में जेल का दौरा किया तो उनकी दोनों तस्वीर खूब वायरल हो रही हैं। कहा जा रहा है कि समय का चक्र बदलता है। उनको जेल दाखिल करने वाले अधिकारी अब उनकी खातिरदारी कर रहे हैं। दोनों नेताओं के लिए यह किसी सुखद संयोग से कम नहीं है कि जेल जाने के बाद उन्हें इतना बड़ा ओहदा मिला वरना जेल जाना तो बदनामी का ही कारण बनता है।
दांतो तले उंगली दबा नहीं काट रहे हैं लोग
बीते दो दिन में हुई अफसरों के पोस्टिंग की लॉबी में काफी चर्चा है। पढ़ाई लिखाई और खेती किसानी वाले विभागों में हाल में हुई नियुक्तियां देख सुन लोग दांतों तले उंगली दबा नहीं काट रहे हैं। पहले बात अध्यापन वाले विभाग की करें। दो अधिकारियों की ऐसी पोस्टिंग हुई कि वे डीईओ भी होंगे और मंत्रालय में भी काम देखेंगे। जिले का काम करना होगा तो राजनांदगांव, धमतरी जाएंगे नहीं तो मंत्रालय में। या फिर जिले से फाइलें राजधानी मंगवा लेंगे। ऐसा नहीं कि ये पोस्टिंग को किसी सजा के तहत नहीं,बल्कि इनकी मांग या इच्छा पर ही हुई ।
अब बात करें किसानों से जुड़े बोर्ड में हुई एमडी नियुक्ति की । भाजपा महामंत्री के भाई को, आईएएस कैडर के पोस्ट पर नियुक्त किया। ये नए साहब पूर्व में काफी विवादों में भी रहे हैं। कुछ जांच का भी सामना कर चुके हैं। एक के बाद छह प्रमोशन लेकर आखिर आईएएस के समकक्ष पद पर बैठने में सफल रहे। अब देखना है कि सरकार विधानसभा में क्या सफाई देती है। वैसे राजनीति में कहा जाता है कि सरकार के चेहरे बदलते हैं, कामकाज का तरीका वही रहता है। अफसरों की नियुक्ति को लेकर पिछली सरकार को कोसने वाले अब उन्हीं पद चिन्हों पर चल पड़े हैं।
अब तबादले रूकवाने शहर बंद नहीं
चार दशक पहले रायगढ़ शहर जिला पूरा बंद रखा गया था। किसी वारदात के विरोध में नहीं। बल्कि तत्समय के कलेक्टर श्री हर्षवर्धन का तबादला रद्द करवाने को लेकर जनता ने अपनी ताकत दिखाई थी। उसके बाद से तो ऐसी घटनाएं न हुई, न सुनी। अब तो तबादलों पर दफ्तर में मिठाई बांटी जाती हैं और आतिशबाजी होती है । पिछले दिनों बीजापुर के कलेक्टर राजेश कटारा के तबादले पर जमकर आतिशबाजी हुई। कल कवर्धा में सीएमएचओ सुजॉय मुखर्जी को भी बम, पटाखों के साथ विदाई दी गई । इंडियन मिलिट्री मेडिकल कोर के पूर्व अधिकारी रहे डॉ मुखर्जी के फ़ौजी अनुशासन से परेशान मातहत अपने पुराने मनमानी के ढर्रे पर चलना चाहते थे। सो डॉ. साहब नहीं होने दे रहे थे । इलाके के नेताओं को भी नहीं भा रहे थे। सो हो गया तबादला और आतिशबाजी भी हुई ।
फिर बाहर आया महतारी वंदन फॉर्म
सरगुजा संभागीय मुख्यालय के नजदीक दरिमा स्थित एक च्वाइस सेंटर में राजस्व अधिकारियों ने छापा मारकर महतारी वंदन योजना के दर्जनों फर्जी फॉर्म जब्त किये। वहां रोज महिलाओं की लाइन लग रही थी जो इस योजना से साल में 12 हजार रुपये का लाभ लेना चाहती हैं। च्वाइस सेंटर को सील कर दिया गया और सेंटर के संचालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा रही है। इस योजना का फॉर्म चुनाव के दौरान भी भरवाया गया था। जगह-जगह भाजपा कार्यकर्ताओं ने आचार संहिता का उल्लंघन किया था, प्रशासन ने कई विधानसभा क्षेत्र से सैकड़ों फार्म जब्त किए गए थे। चुनाव आयोग ने नोटिस जारी की, कुछ गिरफ्तारियां भी कर ली गई थी, जिसके चलते भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन भी किया था। सरगुजा में ही लुंड्रा के भाजपा प्रत्याशी प्रबोध मिंज और उनकी पार्टी दो तीन नेताओं के खिलाफ भी चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन का मामला दर्ज किया था। उन्हें दी गई नोटिस चेतावनी भरी थी, जिसमें कहा गया था कि जवाब संतोषजनक नहीं मिला तो उनके खिलाफ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम ही नहीं आईपीसी के तहत भी कार्रवाई की जाएगी। अब मिंज विधायक बन चुके हैं, प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बन चुकी है। निर्वाचन विभाग की अधिकांश ऐसी नोटिस पर क्या कार्रवाई होती है, कभी पता नहीं चलता। इसमें भी क्या हुआ किसी को पता नहीं। पर यह दिलचस्प है कि भाजपा कार्यकर्ता जो फॉर्म चुनाव के समय महिलाओं से भरवा रहे थे, हू-ब-हू वैसा ही फॉर्म अभी च्वाइस सेंटर से जब्त किए गए हैं। अब ये पता नहीं कि ये फर्जी फॉर्म चुनाव के समय भरवाने से बच गए थे, या च्वाइस सेंटर संचालक ने नए छपवाये।
हसदेव क्षेत्र के धान खरीदी केंद्र
कोरबा जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर हाथियों ने धान संग्रहण केंद्र में धावा बोला। वे वहां रखे करीब 25 बोरी धान हजम कर गए और सैकड़ों बोरियों का धान बिखरा कर लौटे। हाथी प्रभावित इलाकों में जो धान खरीदी केंद्र बनाए गए हैं, उनकी फेंसिंग की गई है लेकिन हाथी इन्हें तोडक़र भीतर घुस रहे हैं। कटघोरा व कोरबा वन मंडल में इन दिनों हाथियों का झुंड मंडरा रहा है और लगातार बस्तियों में पहुंच रहा है। पहले के वर्षों में भी भीतर के गांवों के धान खरीदी केंद्रों में हाथी आते रहे हैं, पर पिछले दो साल से आमद बढ़ गई है। इस सीजन में दूसरी बार हाथी पहुंचे हैं। यह वही इलाका है जहां लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट को आकार लेना है। इसी के कुछ आगे बढऩे पर वह क्षेत्र आ जाएगा, जहां हाल ही में नई कोयला खदानों के लिए पेड़ों की कटाई की गई है।
हसरतों से बनी खबरें
छत्तीसगढ़ में पिछली भूपेश सरकार के दौरान हुए कोयला घोटाले में कुछ आईएएस और डिप्टी कलेक्टर सहित कई खनिज अफसर भी जेल में पड़े हुए हैं, और कांग्रेस पार्टी के सूर्यकांत तिवारी सरीखे रंगदार भी सैकड़ों करोड़ की रंगदारी वसूलने के हिसाब-किताब सहित पकड़ाए हुए हैं। केन्द्र सरकार की जांच एजेंसी ईडी से मीडिया का वास्ता वन-वे ट्रैफिक रहता है, और जब ईडी को कुछ कहना रहता है तो वह अपने वकील या प्रेसनोट के मार्फत जानकारी देती है, लेकिन खुद होकर उससे कुछ निकालना मुमकिन नहीं होता। ऐसी नौबत में ही बड़े-बड़े अखबारों में ईडी से जुड़ी पूरी तरह से गलत खबरें भी छप जाती हैं।
अब ऐसे में जब जेल में बंद चर्चित और बड़े अफसरों के बीच मारपीट की खबर किसी एक जगह से शुरू हो, तो वेबसाइटों के गलाकाट मुकाबले के इस दौर में किसी को खबर की सच्चाई परखने की फुर्सत नहीं रहती, और चारों तरफ यह मजेदार, चटपटी, और सनसनीखेज खबर छप रही है कि महिला जेल में आईएएस रानू साहू, और डिप्टी कलेक्टर सौम्या चौरसिया के बीच मारपीट हुई है। जिन पत्रकारों या वेबसाइटों को जिस नजरिए से इस बात को देखना हो, उस नजरिए से खबर बन जा रही है, और चारों तरफ फैल भी जा रही है। ऐसी कोई घटना हुई है या नहीं, यह बताने के लिए न तो जेल के लोग मुंह खोल रहे, और न ही ईडी के अफसर। यह बात किसी नीयत से खबर फैलाने वालों के लिए बिल्कुल सही रहती है, और बिना किसी खंडन के लोग अपनी हसरत को खबर बताकर फैला सकते हैं। लेकिन इस सबके बीच लोगों के लिए यह सबक भी निकल रहा है कि एक वक्त जिनकी पेशाब से चिराग जला करता था, आज उनकी जिंदगी ऐसी अंधेरी हो गई है कि दूर-दूर तक कोई चिराग नजर नहीं आ रहा। यह देखकर हर किसी को अपने दिमाग काबू में रखने चाहिए।
दिल्ली में अटकी डीजी की फाइल
सुनते हैं कि छत्तीसगढ़ में नए डीजीपी के नियुक्ति की फाइल दिल्ली में अटक गई है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सहमति के बाद ही इस पर मुहर लग पाएगी। बताया जा रहा है कि फिलहाल केन्द्र सरकार का फोकस केवल राम मंदिर है, लिहाजा दूसरे कामकाज पेंडिंग में है। संभावना जताई जा रही है कि 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही राज्य के नए डीजीपी के बारे में फैसला हो पाएगा। आईपीएस की एक लॉबी नियुक्ति में देरी से राहत महसूस कर रही है, डीजीपी पद के एक प्रमुख दावेदार इस महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं। देरी से उनकी दावेदारी स्वत:: खत्म हो जाएगी। हालांकि डीजीपी के लिए दिल्ली की खूब दौड़ लगाई गई है। कोशिश है कि इस महीने तक नियुक्ति पर मुहर लग जाए। अब देखना यह है कि किसकी किस्मत चमकती है।
लाल बत्ती के दावेदार सक्रिय
लालबत्ती पाने की कतार में खड़े बीजेपी के नेता भी खूब सक्रियता दिखा रहे हैं। नेताओं-मंत्रियों के चौखट देर रात तक गुलजार हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद निगम-मंडलों में नियुक्ति की जाएगी। दावेदारों का कहना है कि संगठन के प्रमुख नेताओं ने कुर्सी बांटने की कवायद शुरू कर दी है। लिस्ट करीब-करीब बन गई है। इसकी सच्चाई के बारे में तो नहीं पता, लेकिन लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए भाई साहब के पास भी भीड़ जुट रही है। दावेदारों को लगता है कि भले लिस्ट लोकसभा के बाद आए, लेकिन नाम तो जुड़ जाना चाहिए।
इनसे उम्मीद थी चुनाव जिताने की...
स्थानीय निकायों और जनपद पंचायतों में कांग्रेस की सरकार एक के बाद एक ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर रही है। आरंग जनपद पंचायत में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का हश्र देखें तो यहां के 25 सदस्यों में से 24 ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाले। अर्थात जनपद अध्यक्ष को किसी ने वोट नहीं दिया, उनको सिर्फ अपना वोट मिला। यहां कांग्रेस के 21 सदस्य हैं। किसी ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष का बचाव नहीं किया। यह मानना मुश्किल है कि केवल भाजपा की तिकड़म से हुआ होगा। शायद तमाम सदस्य अपने अध्यक्ष से भारी असंतुष्ट और उनको खिसकाने के लिए मौके की तलाश में थे। कसमसाहट के बावजूद अनुशासन के चलते जब तक अपनी सरकार रही बर्दाश्त किया और सरकार बदलते ही मोर्चा खोल दिया। अभी तक जिन नगर पंचायत और जनपदों से कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष हटाए गए हैं उनमें से अनेक इलाके कांग्रेस के कद्दावर मंत्री या विधायक रहे लोगों के हैं। यह डॉ शिव डहरिया का क्षेत्र है। आरंग के अध्यक्ष तो युवक कांग्रेस के महासचिव भी हैं।
यह अनुमान लगाया जा सकता है कि निकायों और जनपदों में कांग्रेस के जनप्रतिनिधि किस तरह काम कर रहे थे और उनकी लोकप्रियता का क्या हाल था। जिन स्थानों में कांग्रेस की सत्ता ढह रही है, वहां से पार्टी के खिलाफ वोट देने वाले सदस्यों, पार्षदों का बयान आ रहा है कि हमने सरकार के रहते इनकी शिकायत की थी लेकिन सुनी नहीं गई, उल्टे उनके ही हाथ में विधानसभा चुनाव में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पार्टी के नेता अब उनकी कुर्सी बचाने के सवाल पर असहाय दिख रहे हैं।
सरकार में ताकत का बंटवारा
छत्तीसगढ़ में पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने का निर्णय कांग्रेस की पिछली सरकार ने लिया था। यह उसके चुनाव घोषणा पत्र में शामिल भी था। तब कई जिलों में आदेश का पालन हुआ, फिर बाद में स्थगित कर दिया गया। वीआईपी ड्यूटी व क्राइम कंट्रोल के लिए बल की कमी का कारण बताया गया। अब उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा के ध्यान में यह बात लाई गई और उन्होंने कहा कि एक दिन तो घर परिवार के लिए समय देने का हक पुलिस जवानों का भी बनता है। उन्होंने रोस्टर के अनुसार इसे लागू करने का निर्देश दे दिया। निर्देश के बाद डीजीपी अशोक जुनेजा ने इस आशय का पत्र जारी कर दिया। इधर कल जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने ऐसे किसी आदेश की जानकारी नहीं होने की बात कही। यानि डिप्टी सीएम ने कोई आदेश दिया और वह मुख्यमंत्री को मालूम नहीं है। इसी तरह करीब 10 दिन पहले उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने मुंगेली के एक कार्यक्रम में घोषणा की, कि राजीव गांधी न्याय योजना की चौथी किस्त का भुगतान किसानों को किया जाएगा, इस राशि पर उनका अधिकार है। साव की घोषणा पर कोई सरकारी आदेश, निर्देश, पत्र आदि जारी नहीं हुए हैं।
इन दोनों मामलों से यह तो समझ में आता है कि पिछली सरकारों की तरह अब यह जरूरी नहीं है कि छोटा-बड़ा हर फैसला मुख्यमंत्री से पूछकर लिया जाए। उप-मुख्यमंत्रियों को पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं।
क्लास रूम में अमर...
भाजपा में जब किसी को अनायास टिकट मिल जाए या उसे मंत्री बना दिया जाए तो प्रतिक्रिया होती है कि वे साधारण से कार्यकर्ता हैं। पार्टी जो जिम्मेदारी देती वहन करते हैं। ठीक ऐसी ही प्रतिक्रिया तब भी होती है, जब टिकट न मिले या मंत्री नहीं बनाया जाए। यह भाजपा में ही मुमकिन है कि पांच बार के विधायक और 15 साल के मंत्री रहे अमर अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेता किसी क्लास जैसे कक्ष में कॉपी कलम लेकर बैठें। उन्हे दो अन्य विधायकों राजेश मूणत और अजय चंद्राकर के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए क्लस्टर प्रभारी बनाया गया है। उनकी क्लास दिल्ली में ली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संगठन से बीएल संतोष ने।
कांग्रेस में एक बार कोई विधायक बन गया तो जिंदगी भर उससे दरी नहीं बिछवाया जा सकता, पर भाजपा ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ है।
जेल में वीआईपी
जेल का मतलब हिन्दी में सुधारगृह बताया जाता है। सुधारगृह उनके लिए जो कोई अपराध किये हों। लोकतंत्र में कानून जिन्हें सजा देता है, उन्हें सुधारगृह भेजा जाता है। लेकिन जेलों में ऐसे आरोपी भी रहते हैं, जिन पर आरोप साबित नहीं हुआ रहता। खासकर राजनीतिक आरोप ऐसे भी आरोप होते हैं जो शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़े होते हैं। उपमुख्यमंत्री ने जेल का निरीक्षण किया और वहां भी गए, जहां उन्हें आरोपी बनाकर रखा गया था। तब यहां कांग्रेस की सरकार थी, लिहाजा उन्हें कोई वीआईपी सुविधा नहीं मिली होगी। पिछली सरकार में कई ऐसे अफसर हैं, जिन्हें ईडी ने गिरफ्तार किया है और वे अभी रिमांड पर चल रहे हैं। उन्हें जेल में विशेष बैरक में रखा गया है।
आम लोगों ने ऐसी अनेक चर्चा चलती है कि फलां अधिकारी बहुत कद्दावर है, उसे सारी वीआईपी सुविधाएं जेल में मिल रही हैं। पूरा कामकाज जेल से ही चल रहा है। ऐसी बातें अक्सर सुनने में आती हैं। बीते दिनों केंद्रीय जेल में बंद दो वीआईपी अफसरों के बीच विवाद की भी चर्चा है। अब उपमुख्यमंत्री ने निरीक्षण कर साफ कह दिया है कि किसी को वीआईपी सुविधा नहीं दी जाए और सामान्य क़ैदियों के भोजन का स्तर सुधारा जाए। जेल में बंद अफसर अब अपने कर्मों को कोस रहे होंगे, कि कहां फंस गए। कब निकलेंगे बाहर। ([email protected])
अफसरों के स्टेटस में भी राम
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद मंत्रियों के पूजा-पाठ के साथ कार्यालय में काम शुरू करने का दौर चल रहा है। गृहमंत्री विजय शर्मा ने तो बजरंग बली की पूजा के बाद पहली बैठक ली थी। देश में भी राम नाम का जोर चल रहा है तो अफसर क्यों पीछे हों। अपनी तस्वीरें और शेरो-शायरी का स्टेटस लगाने वाले अफसर पिछले कुछ समय से भगवान राम और हनुमान का स्टेटस लगाने लगे हैं।
मंत्रियों के पास यह देखने के लिए समय है कि नहीं यह तो नहीं जानते, लेकिन सुना है कि आरएसएस और भाजपा के पदाधिकारियों को जरूर बताने में लगे हैं कि वे भी राम भक्त हैं। एक अफसर से जब किसी ने पिछली सरकार में ऐसा स्टेटस नहीं लगाने पर चुटकी ली तो उन्होंने कह दिया कि उस समय में राम नाम की महिमा थी पर हमारे राम और उनके राम का विवाद था, इसलिए वे अपनी तस्वीरें ही लगाते थे।
किसानों को 3100 का इंतजार...
प्रदेश की भाजपा सरकार अपने चुनावी घोषणा के अनुरूप 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का फैसला चुकी है। बीते 18 दिसंबर को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस मांग को पूरा करने की घोषणा की। कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर सीएमओ के हैंडल से भी कहा गया कि धान खरीदी 3100 रुपये से करने का आदेश दे दिया गया है। भाजपा का यह भी वादा था कि कांग्रेस सरकार की तरह समर्थन मूल्य के अतिरिक्त दी जानी वाली बोनस की राशि का भुगतान टुकड़ों में नहीं, बल्कि एकमुश्त किया जाएगा। पर यह एकमुश्त रकम कब मिलेगी, किसानों को इसकी फिक्र है।
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी उन्हें समर्थन मूल्य 2183 रुपये के दर से ही भुगतान हो रहा है। यह जरूर है कि 15 क्विंटल की जगह प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदने का आदेश लागू हो चुका है। इसका असर यह हुआ है कि 15 जनवरी की स्थिति में 108.06 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा जा चुका है। यह एक रिकॉर्ड है। पिछली बार के आंकड़े 107 लाख मीट्रिक टन को यह पार कर गया है। हालांकि इस बार लक्ष्य 130 लाख मीट्रिक टन खरीदने का है। अवकाश के दिनों में धान की खरीदी बंद रहती है। इस तरह से अब केवल 10 दिन रह गए हैं। अब भी करीब 20-22 लाख मीट्रिक टन खरीदी बाकी है। टारगेट पूरा हो पाएगा या नहीं यह सरकार की चिंता हो, पर किसानों को इंतजार 3100 रुपये की दर से भुगतान का है। सोसाइटी में उनको बताया जा रहा है कि अभी तक उन्हें नए दर से भुगतान का कोई आदेश नहीं मिला है। जानकार बता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के पहले अंतर की राशि दी जाएगी, ताकि मतदाता किसान खुशी-खुशी वोट देने निकले।
राम के नाम पर कुछ भी चलेगा...
रेडियो, टीवी, अखबार आदि सारे माध्यम इन दिनों अयोध्या से जुड़ी खबरें दिन-रात दिखा रहे हैं। ऐसे में सोशल मीडिया पर भी फर्जी फोटो, वीडियो की बाढ़ आ गई है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर फर्जी फोटो और वीडियो बनाने का काम फोटो शॉप तकनीक से तो पहले भी संभव था लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आ जाने के बाद यह अधिक आसान हो गया है। कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें दावा किया जा रहा था कि भालुओं का झुंड रामलला के दर्शन के लिए अयोध्या कूच कर रहा है। बाद में पता चला कि यह शहडोल जिले का एक पुराना वीडियो है, जो एक बस्ती से गुजर रहा है। 10-12 दिन से एक और वीडियो वायरल है जिसमें बताया जा रहा है कि राम कथा के एक पात्र गिद्धों (जटायु) के झुंड ने अयोध्या में डेरा डाल रखा है। यह वीडियो भी फर्जी है, जो वास्तव में कानपुर का है और पुराना है। अब कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर 500 रुपये का नोट वायरल है। इसमें श्रीराम और अयोध्या के मंदिर की तस्वीर है। दावा किया जा रहा है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया मंदिर उद्घाटन के दिन 22 जनवरी को नई करेंसी जारी करने वाला है। अधिक विश्वसनीय लगे इसके लिए स्वच्छ भारत अभियान का स्लोगन भी इसमें लिखा गया है। आरबीआई अधिकारियों ने इसका खंडन कर दिया है। फोटोशॉप के जरिये फर्जी करेंसी तैयार की गई है। ऐसे फर्जी पोस्ट ट्विटर पर काफी ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। ऐसे सभी फर्जी फोटो वीडियो ऐसे अकाउंट से हैं, जिनके हजारों फॉलोअर हैं और वे वेरीफाई हैं। ऐसे में, सवाल उठाया जा रहा है कि क्या यह सब महज शरारत के लिए ही हो रहा है या इसके पीछे और कोई बड़ा मकसद है?
22 को नर्सिंग होम में बुकिंग बढ़ी
देश के अलग-अलग हिस्सों से खबरें आ रही थीं, अब छत्तीसगढ़ के कई शहरों से भी आने लगी हैं। वह यह है कि जिन गर्भवती महिलाओं का डिलीवरी जनवरी महीने में तय है वे चाहती हैं कि 22 जनवरी को उनकी संतान पैदा हो, वह भी दोपहर 12 बजे के आसपास, जो अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समय है। इसके लिए बकायदा नर्सिंग होम में ऑपरेशन थियेटर बुक कर लिए गए हैं। कुछ नर्सिंग होम संचालकों ने इस दिन की डिलीवरी का शुल्क भी बढ़ा दिया है। डॉक्टर सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करने के बाद ही ऑपरेशन का फैसला लेते हैं। समय के पहले या बाद में प्रसव कराने से जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा हो सकता है। यह पता लगाना जरूरी है कि खुद गर्भवती महिला ही ऐसा डिलीवरी चाह रही हैं, या उन पर भी परिजनों का कोई दबाव है। साइंस की मदद से ग्रह, नक्षत्र, मुहूर्त को नियंत्रित करने और भाग्यशाली शिशु पैदा करने की सोच कुछ अजीब ही है। इसे जुड़े जोखिम को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने कोई एडवाइजरी भी अब तक जारी नहीं की है।
चुनाव तैयारी में जुटे हारे नेता
छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इतनी बुरी तरह पराजय की उम्मीद नहीं थी। बड़े-बड़े मंत्रियों को आभास ही नहीं था कि उनके पैरों तले जमीन खिसक गई है। जब नतीजे आ तो चार दिन तक तो उन्हें सांप सूंघ गया था। वे सभी कोपभवन में चले गए थे। घर से बाहर नहीं निकल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि 70 पार इन नेताओं का राजनीतिक जीवन अब पूरा हो गया है और वे संन्यास ले लेंगे। इधर भाजपा ने अपने नए प्रयोग कर ऐसा माहौल बना दिया कि वह दूसरे क्रम के नेताओं को तैयार कर रही है। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों के चयन में ऐसे संदेश दिया गया कि नए लोगों के दिन आ गए हैं। ऐसे में कांग्रेस के द्वितीय क्रम के नेताओं को भी उम्मीद होने लगा कि अब उन्हें मौका मिलेगा। कांग्रेस के दूसरे क्रम के नेता भी लोकसभा चुनाव के लिए बायोडाटा तैयार करने में लग गए, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं वैसे-वैसे हारे हुए नेता शोक से बाहर आ रहे हैं। ऐसे कुछ मंत्री हैं, जो 70 की उम्र को पार कर गए हैं। मंत्री और कई बार विधायक बन चुके हैं। सांसदी भी कर चुके हैं, उन्होंने फिर से जनसंपर्क आरंभ कर दिया है। बताते हैं कि उन्होंने हाईकमान में संदेश भी भेज दिया है कि वे लोकसभा की तैयारी में जुट गए हैं।
पीले चावल से न्यौता
भगवान राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ को माना जाता है। अयोध्या में जब राम जन्मभूमि में मंदिर बन गया है और प्राण-प्रतिष्ठा का अवसर है, तब कई भक्त हैं जो वहां जाना चाहते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भक्त भी हैं, जो तीन दशक पहले बाबरी मस्जिद विध्वंस के गवाह रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो कार सेवा करने अयोध्या गए थे। उन्होंने भक्ति से सराबोर होकर निर्माण के लिए चंदा भी दिया था। अब वे भी नवनिर्मित मंदिर में रामलला के दर्शन करना चाहते हैं। लेकिन 22 जनवरी को अयोध्या जाने के लिए न तो ट्रेन में इंतजाम है और न ही सडक़ साधन से वहां जा सकेंगे। बहरहाल आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ता घर-घर जाकर पीला चावल जरूर बांट रहे हैं। अक्षत कलश से लेकर राम मंदिर की फोटो लोगों को बांटकर न्योता दिया जा रहा है। ऐसे में राम के ननिहाल में प्रचलित लोकोक्ति लोगों को याद आ रही है, आज हमारे घर झारा-झारा न्योता है, अपने घर खाना नहीं, हमारे घर आना नहीं।
आईजी का क्रिकेट प्रेम
क्रिकेट को लेकर दुर्ग रेंज आईजी बीएन मीणा का बड़ा लगाव है। वह हर साल अपने गृह राज्य राजस्थान के जयपुर में आयोजित एक राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट खेल प्रतियोगिता में सरकार से अवकाश लेकर शामिल होते हैं। 2004 बैच के आईपीएस मीणा की अच्छे क्रिकेटरों में गिनती होती है।
एक वाक्या ऐसा भी हुआ, जब कोरबा एसपी रहते उन्हें राजनांदगांव में आयोजित एक टूर्नामेंट में शामिल होने का न्यौता मिला, तो उस दौरान संयोगवश छत्तीसगढ़ सरकार का स्टेट प्लेन कोरबा से रायपुर लौट रहा था। वह आला अफसरों से अनुमति लेकर प्लेन से राजधानी पहुंचे और उसके बाद टूर्नामेंट में शामिल हुए।
सुनते हैं कि अभी वह 10 दिनों के अवकाश लेकर जयपुर में चल रहे टूर्नामेंट में अपने स्टेनो के साथ क्रिकेट का लुत्फ उठा रहे हैं। मीणा के लंबे अवकाश के चलते राजनांदगांव आईजी राहुल भगत को अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। मीणा के अधीनस्थ स्टेनो को भी क्रिकेट खेल में दक्ष माना जाता है। क्रिकेट के प्रति समर्पित मीणा हर साल विशेष अवकाश लेकर जयपुर के खेल मैदान में अपने खेल का लोहा मनवाते हैं। बताते हैं कि उन्होंने क्रिकेट के कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी हासिल किए हैं।
आईपीएस में भी विक्टिम कार्ड
सूबे में सत्ता परिवर्तन हुए डेढ़ माह का समय हो गया है। लंबी प्रतीक्षा के आईएएस के ट्रांसफर की लिस्ट जारी हुई। आईएएस की पोस्टिंग के बाद माना जा रहा था कि आईपीएस की लिस्ट भी जल्द आ जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। चर्चा है कि पहले पुलिस मुखिया की नियुक्ति होगी, उसके बाद ही आईपीएस का फेरबदल होगा। कई बड़े जिलों के एसपी, और आईजी थोक में बदले जाने की संभावना है। कहा जा रहा है एसपी, आईजी के अलावा खुफिया चीफ और रायपुर आईजी के लिए खूब लाबिंग चल रही है। सभी राजनीतिक और प्रशासनिक जुगत लगा रहे हैं। इस बीच चर्चा यह है कि दावेदारों को विक्टिम कार्ड में ज्यादा सहानुभूति मिल रही है। आईएएस पोस्टिंग में भी ऐसे अफसरों को महत्वपूर्ण पद मिलने का हल्ला है। लिहाजा, आईपीएस भी इसी फार्मूले को कारगर मान रहे हैं।
टायर बचाने का जुगाड़
गलत दिशा से गाड़ी चलाने वालों को सबक सिखाने के लिए रायपुर नगर-निगम और यातायात विभाग ने तेलीबांधा के पास पहला टायर किलर लगाया है। रविवार को पहले ही दिन डेढ़ दर्जन से ज्यादा ऐसी गाडिय़ों के टायर पंचर हो गए, जो उल्टी दिशा से चल रही थीं। मगर लोग इतनी जल्दी कहां सुधरने वाले हैं। लोग जुगाड़ ढूंढ ही लेते हैं। बाइक, स्कूटर और ऑटो रिक्शा चलाने वाले लोहे के कांटेदार दांतों को पैरों से दबाकर आहिस्ता से गाड़ी निकालकर टायर बचाने लग गए हैं। इस सडक़ पर टायर किलर लगाने से पहले गिनती की गई तो दिनभर में करीब 700 गाडिय़ां रॉंग साइड गुजरती हुई पाई गई थी। अब इसमें काफी हद तक कंट्रोल है।
आईपीएस तबादला सूची में देरी
कुछ दिन पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता ननकीराम कंवर ने कहा था कि राज्य की भाजपा सरकार धीमी चाल से काम कर रही है। उसे तेजी से फैसले लेने चाहिए। बीते 3 जनवरी की आधी रात को जब आईएएस अधिकारियों की लंबी तबादला सूची आई तो चुनाव परिणाम आए लगभग एक माह हो चुके थे। उम्मीद यही लगाई जा रही थी कि दो चार दिन बाद आईपीएस की सूची भी बाहर आ जाएगी। मगर अब 14 दिन बाद भी इसका अता-पता नहीं है। आईपीएस, खासकर विभिन्न जिलों में तैनात अफसर इंतजार कर रहे हैं कि लिस्ट निकले, ताकि पूरे मन से काम कर सकें। चर्चा है कि आईएएस तबादला सूची को लेकर संगठन के कुछ बड़े पदाधिकारियों में असंतोष था। केंद्रीय नेतृत्व को भी इसकी शिकायत की गई थी। इसलिए कुछ समय पर आईएएस अधिकारियों की सूची में एक बार फिर फेरबदल हो सकता है। मगर, पहले आईपीएस की सूची ही आएगी। कहा जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अगले सप्ताह होने वाले विधायकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में वे छत्तीसगढ़ पहुंचने वाले हैं, तब यह फैसला लिया जाएगा। इस बीच कांग्रेस का यह आरोप गौर करने के लायक है कि छत्तीसगढ़ सरकार के छोटे-मोटो फैसले भी केंद्र से हो रहे हैं। इसका हाल केंद्र शासित प्रदेश जैसा हो गया है।
वरिष्ठ विधायकों को जिम्मेदारी
विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भी भाजपा कांग्रेस से आगे चल रही है। छत्तीसगढ़ की लोकसभा सीटों को तीन कलस्टर में बांटकर राजेश मूणत, अमर अग्रवाल और अजय चंद्राकर को तैयारी शुरू करने की जिम्मेदारी दी गई है। वे अपने क्षेत्रों की रिपोर्ट सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौपेंगे। वे यह तो बताएंगे कि वहां पार्टी की स्थिति कैसी है, संभावित दावेदारों का नाम भी सुझाएंगे। तीनों कलस्टर संयोजक वे वरिष्ठ विधायक हैं जो इस बार मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो पाए हैं। पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बता दिया है कि उनका महत्व कम नहीं है। आखिर इस बार वह प्रदेश की सभी 11 सीटों पर जीतने के लक्ष्य से उतर रही है। इसमें नए नए मंत्री नहीं, अनुभवी नेता ही काम आएंगे।
भाजपा में अब सत्ता के नए केंद्र
राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ अब सत्ता का केंद्र भी बदलने लगा है। पुराने दिग्गजों के बजाय अब नए चेहरे उभरे हैं, जिनके इर्द गिर्द सत्ता और संगठन का संचालन होगा। कार्यकर्ता भी यह समझ गए हैं। दुर्ग संभाग में विजय शर्मा बड़े चेहरे बन गए हैं तो बिलासपुर में अरुण साव और ओपी चौधरी। बस्तर में बलीराम कश्यप के निधन के बाद केदार कश्यप ही उत्तराधिकारी होते, लेकिन संतुलन के लिए महेश गागड़ा को भी आगे किया गया। गागड़ा दो बार हार गए तो केदार ही अब सर्वमान्य माने जाएंगे। वैसे सत्ता से पहले भी विजय, ओपी और केदार को महामंत्री बनाकर संगठन ने संदेश दे दिया था कि दूसरी पंक्ति तैयार की जा रही है।
पदनाम की महिमा
सारा जीवन, स्टेटस, प्रोफाइल का होकर रह गया है। चाहे वह निजी कंपनी के कार्मिक का हो या फिर सरकारी मुलाजिम। निजी कंपनी में अपॉइंटमेंट के ही समय पदनाम तय हो जाता है तो सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के साथ ।
सबको पदनाम चाहिए। यह भी देखने में आया है कि इस नाम के लिए, सरकारी अधिकारी कर्मचारी वेतन वृद्धि भी नहीं चाहते। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि पड़ोस के झारखंड में शिक्षाविदों को अपने नाम पर आपत्ति है । कॉलेज में रिक्त हजारों सहायक प्राध्यापक के पदों को यथावत रिक्त रख सरकार ने अतिथि प्राध्यापक के रूप में डेली वेजेस पर नियुक्त किया है । इनकी सालभर के लिए नियुक्त की जाती हैं और वेतन एकमुश्त, बिना अन्य सेवा लाभ के दिया जाता है। बस ऐसे सहायक प्राध्यापकों को पदनाम का विरोध है। सही भी है। मप्र की तरह अतिथि प्राध्यापक ,छत्तीसगढ़ की तरह संविदा प्राध्यापक तक तो ठीक है , झारखंड में इन्हें आवश्यकता आधारित सहायक प्राध्यापक के पद नाम से नियुक्त और पुकारा जाता है । अब भला विरोध का विषय है ही।
छत्तीसगढ़ में भी कुछ कर्मचारी अपने आप को आफिसर,अधिकारी कहलवाना चाहते हैं, कैडर और काम भले बाबू या उससे भी निचले क्रम का हो। जैसे सरकारी अस्पताल की नर्स,वार्ड ब्वॉय स्वयं को नर्सिंग आफिसर का पदनाम चाहते हैं तो मंत्रालय में ग्रेड-1 लिपिक सहायक अनुभाग अधिकारी कहलवाने में सफल रहे।
बेदखल करने की आंधी चली..
सरकार रहते हुए कांग्रेस ने प्रदेश के प्राय: सभी नगर निगमों में अपना महापौर बिठाया, अधिकांश नगर पालिका और नगर पंचायतों में भी सफल रही। इसे पार्टी के नेता सरकार की नीतियों और कांग्रेस के प्रति आम जनता में बढ़ते विश्वास का नाम दे रहे थे। मगर सरकार जाते ही एक के बाद एक नगरीय निकायों और जनपद पंचायत कांग्रेस के हाथों से फिसल रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी सफलता खाद्य मंत्री दयालदास बघेल को मिली, ऐसा दिखाई दे रहा है। उनको सिर्फ 20 दिन ही हुए हैं मंत्री बने, मगर उन्होंने कांग्रेस की बहुमत वाली दो नगर पंचायत और एक जनपद पंचायत में भाजपा का परचम लहरा दिया है। नवागढ़ नगर पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया तो मारो के नगर पंचायत अध्यक्ष ने स्थिति को भांपते हुए सभा से पहले ही इस्तीफा दे दिया। जनपद पंचायत बेमेतरा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों की कुर्सी अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने के चलते छिन गई।
इन सभी स्थानों पर बहुमत कांग्रेस का था। इसके बावजूद जमकर सभी निकायों में क्रॉस वोटिंग हुई। पहले अविश्वास प्रस्ताव की नौबत आने पर पर्यवेक्षक भेजे जाते थे और असंतुष्ट सदस्यों को समझाने बुझाने की कोशिश की जाती थी। मगर विपक्ष में आने के बाद कांग्रेस की ऐसी कोई कोशिश नहीं दिखाई दे रही है। प्रदेश की एक दर्जन से अधिक स्थानीय निकायों में या तो कांग्रेस की कुर्सी छिन चुकी है या छीनी जाने वाली है। दूसरी ओर पार्टी के भीतर अजीब सा सन्नाटा दिखाई दे रहा है।
अब किस बात की देरी?
परसा ईस्ट केते बासन एक्सटेंशन से निर्बाध कोयला खनन के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को पत्र लिखा है। ऐसा ही पत्र 2 साल पहले भी राजस्थान के मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को लिखा था। फर्क यही है कि पिछली बार दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी और अभी भाजपा की है। पत्र का मजनून भी लगभग वही है। इसमें कहा गया है कि राजस्थान सरकार अपने बिजली संयंत्रों के लिए छत्तीसगढ़ के कोयले पर निर्भर है। उत्खनन में देरी के कारण राजस्थान संकट में है।
इस कोल ब्लॉक के लिए पेड़ों की कटाई का पहला चरण हाल ही में सख्त पहरेदारी के बीच पूरा किया जा चुका है। दोनों ही जगह भाजपा की सरकारें हैं। फिर भी छत्तीसगढ़ सरकार से राजस्थान का मदद मांगना कुछ अटपटा लग सकता है। इसके दो कारण हो सकते हैं। एक तो अभी सिर्फ पेड़ों की कटाई हुई है, खनन शुरू नहीं हुआ है। खनन चालू होने पर विरोध का दूसरा दौर झेलना पड़ सकता है। दूसरी वजह छत्तीसगढ़ विधानसभा से पारित संकल्प हो सकती है, जिसमें हसदेव क्षेत्र में किसी भी नए खदान को मंजूरी नहीं देने की बात की गई है। राजस्थान के सीएम छत्तीसगढ़ के सीएम को धर्मसंकट में डालना चाहते हैं।
पहरेदार पुतले...
वैसे इसे गांव के लोग बोलचाल की भाषा में काग भगोड़ा कहते हैं लेकिन यह केवल कौव्वों के लिए नहीं बल्कि बंदर, सियार आदि जानवरों को भी खेतों से दूर रखने में मदद करता है। उपलब्ध पुराने कपड़े, मटके, लकड़ी से इस किसान खुद तैयार करते हैं और खेत की मेड़ पर खड़ा कर देते हैं। तस्वीर एक अरहर के खेत की है, जो नांदघाट से मुंगेली के बीच ली गई है। (तस्वीर-प्राण चड्ढा)
किसको कैसा नर्क
अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर देश का माहौल एकदम ही धर्मालु हो गया है। अखबारों के पन्ने और टीवी के बुलेटिन रामायण के पन्नों और अखंड रामधुन सरीखे चल रहे हैं। ऐसे में ट्विटर पर नेताओं के बीच विरोधियों को नर्क भेजने की होड़ लगी हुई है। भगवान राम का न्यौता ठुकराने के जुर्म में किसे कैसा नर्क होगा, यह लिखने वाले लोग हमारे सरीखे कम पढ़े-लिखे लोगों को अलग-अलग नरकों के बारे में पढऩे को मजबूर कर रहे हैं।
अभी सबसे अधिक लोकप्रिय नर्क रौरव नरक बना हुआ है। इसके बारे में कुछ जगहों पर पढऩे पर पता लगता है कि झूठी गवाही देने वाले लोग रौरव नरक में जाते हैं। यह परिभाषा पढक़र लगता है कि अदालतों से निकलकर लोग सीधे रौरव नरक ही जाते होंगे, हालांकि ऐसा कुछ होते नहीं दिखता है। कुछ और पॉपुलर किस्म के नर्क बताते हैं कि मदिरा पीने वाले शुकर नरक में जाते हैं, और नर की हत्या करने वाले ताल नरक में। मतलब यह है कि नारी की हत्या करना तो चल जाएगा, लेकिन नर की हत्या करने पर ताल नरक होगा। अब अयोध्या को लेकर कुछ शंकराचार्य और बहुत से दूसरे लोग इसे शास्त्रों के खिलाफ प्राण-प्रतिष्ठा बता रहे हैं। शंकराचार्यों की खिल्ली भी उड़ाई जा रही है। इस बारे में नर्क की लिस्ट बताती है- धर्म मर्यादा का उल्लंघन करने वाला विमोहक नरक में जाता है। दूषित भावना से, और शास्त्रविधि के विपरीत यज्ञ करने वाला पुरूष कृमिश नरक में जाता है। दारू पीने वाले के लिए तो ऊपर एक नरक का जिक्र हो गया है, लेकिन मुर्गा, कुत्ता, बिल्ली, और पक्षियों को जीविका के लिए पालने वाला पूयवह नरक में पड़ता है। छत्तीसगढ़ में इन दिनों हसदेव के जंगल काटने को लेकर बड़ा बवाल चल रहा है, इस सिलसिले में यह पढऩा जरूरी है कि व्यर्थ ही वृक्षों को काटने वाला मनुष्य असिपत्रवन नरक में जाता है। राजनीति में जो लोग हैं, उन्हें भी यह पढ़ लेना चाहिए कि कपटवृत्ति से जीविका चलाने वाले लोग बहिज्वाल नामक नरक में गिराए जाते हैं। यह लिस्ट बताती है कि जो लोग भगवान शिव और विष्णु को नहीं मानते, उन्हें अवीचि नरक में जाना पड़ता है। अब हिन्दुओं के बीच भी हर कोई तो शिव और विष्णु को नहीं मानते, कई लोग सिर्फ राम को मानते हैं, कई लोग सिर्फ कृष्ण को, और कई लोग हनुमान को। अब ऐसे में दूसरे देवताओं को मानने वाले लोगों का क्या होगा?
अलग-अलग नर्कों का ब्यौरा बड़ा दिलचस्प है, और जिनको इसका सबसे भयानक रूप पढऩा हो, वे लोग गरूड़ पुराण पढ़ या सुन सकते हैं।
फूल छाप कांग्रेसी, पंजा छाप भाजपाई
राज्य में सरकार बदलने के बाद अधिकारियों के भी रंग बदलने लगे हैं। जो अधिकारी पंजा छाप बने फिर रहे थे, वे अब फूल छाप हो गए हैं। दरअसल, हाल में जो नियुक्तियां हुई है, उसमें ऐसे भी अधिकारी हैं, जो कांग्रेस के कई मंत्री विधायकों के साथ अटैच थे। जैसे जैसे नियुक्ति का आदेश जारी हो रहा है, वैसे वैसे संगठन और संघ से जुड़े लोगों की नाराजगी भी सामने आ रही है। फ्रंटलाइन और लूपलाइन में रहते हुए भाजपा के भले के लिए काम करने वाले कई अधिकारियों ने संघ के जरिए अपने नाम की अनुशंसा भेजी थी। पुराने खटराल अधिकारियों पर ही भरोसा जताया। अब संघ के लोग भी उन अधिकारियों के फोन उठाने में झेंप रहे हैं, जो यह दावा कर रहे थे कि टिकट बांटने से लेकर मंत्रिमंडल गठन में संघ की चली है। इससे पहले 2018 में कांग्रेसियों के सामने भी ऐसी स्थिति बनी थी, जब भाजपा सरकार में मलाई खाने वाले उनकी सरकार में भी क्रीम पोस्टिंग पा गए थे।
न्याय यात्रा से मदद कितनी कांग्रेस को?
राहुल गांधी की आज से शुरू हुई भारत जोड़ो न्याय यात्रा करीब 35 दिन बाद जब छत्तीसगढ़ के रायगढ़ से प्रवेश कर बलरामपुर होते हुए रांची की ओर निकल जाएगी तो उनमें सिर्फ कोरबा ऐसी सीट होगी, जहां कांग्रेस को बीते लोकसभा चुनाव में जीत मिल पाई थी। रायगढ़ में 66 हजार, जांजगीर में 83 हजार और सरगुजा में 1 लाख 57 हजार का भारी फासला रहा। जांजगीर, कोरबा से गुजरने के दौरान यात्रा बिलासपुर संसदीय सीट के करीब से भी जाएगी जहां एक लाख 41 हजार वोटों से भाजपा ने कांग्रेस को पटखनी दी थी। तब और अब के लोकसभा चुनाव में कुछ फर्क हैं। तब कांग्रेस की विधानसभा में सरकार बन चुकी थी, अब फिर से वह विपक्ष में रहते हुए मैदान में उतरेगी। सन् 2019 में मोदी का जादू चला था। भाजपा के सारे प्रत्याशी नए होने के बावजूद उनके नाम पर बंपर वोट पड़े। इस बार इस जादू में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा भी जुड़ गया है। कांग्रेस के हाथ अभी एक बड़ा मुद्दा हसदेव अरण्य की कटाई का लगा है, पर उसमें भी कांग्रेस सरकार का दामन पूरी तरह पाक-साफ नहीं है। खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने मान लिया कि गलती हुई जो फर्जी ग्राम सभा की जांच नहीं करा सके। इसके अलावा वनों की कटाई की अंतिम स्वीकृति दी। हसदेव की यात्रा अभी राहुल गांधी के कार्यक्रम में अधिकारिक रूप से शामिल नहीं हुआ है। कांग्रेस के कई बड़े नेता चाह रहे हैं कि सूरजपुर-अंबिकापुर के बीच हसदेव की ओर राहुल की न्याय यात्रा को मोड़ दिया जाए। दरअसल, विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की हताशा खत्म नहीं हुई है। अब ज्यादातर कांग्रेस कार्यकर्ता यही उम्मीद कर रहे हैं कि राहुल की यात्रा और उसके पहले की तैयारी विधानसभा की हार को भुलाकर एकजुट और रिचार्ज होने के मौके के रूप में सामने आया है।
मुरिया दरबार क्या होता है?
इस बार बस्तर के मुरिया दरबार दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह का आकर्षण बनने जा रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसमें शामिल होने वाले युवाओं से उनकी दिल्ली रवानगी से पहले चर्चा की। मुरिया दरबार की बस्तर की अनोखी और विषिष्ट परंपराओं में से एक है। इसकी शुरुआत 8 मार्च, 1876 को हुई थी, जिसमें सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेक जार्ज ने मांझी- चालकियों को संबोधित किया था। बाद में लोगों की सुविधा के अनुरूप इसे बस्तर दशहरा का अभिन्न अंग बनाया गया, जो परंपरानुसार 145 साल से जारी है।
बस्तर रियासत ने अपने राज्य में परगना स्थापित कर यहां के मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) नियुक्त किए थे, जो अपने क्षेत्र की हर बात राजा तक पहुंचाया करते थे। वे राजाज्ञा से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे। मुरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित 80 परगना के मांझी उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराते हैं। मुरिया दरबार में पहले राजा और रियासत के अधिकारी कर्मचारी मांझियों की बातें सुना करते थे और तत्कालीन प्रशासन से उन्हें हल कराने की पहल होती थी। आज़ादी के बाद मुरिया दरबार का स्वरूप बदल गया। 1947 के बाद राजा के साथ जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल होने लगे। 1965 के पूर्व बस्तर महाराजा स्व. प्रवीर चंद्र भंजदेव दरबार की अध्यक्षता करते रहे। उनके निधन के बाद राज परिवार के सदस्यों ने मुरिया दरबार में आना बंद कर दिया। वर्ष 2015 से राज परिवार के कमलचंद्र भंजदेव इस दरबार में शामिल हो रहे हैं। बाद में विधायक, मंत्री भी इसमें शामिल होने लगे। मुख्यमंत्री भी इसमें शामिल होते रहे हैं।
ओ.पी.चौधरी के रायगढ़ में...
वैसे तो छत्तीसगढ़ में महादेव मोबाइल सट्टेबाजी ऐप की बदनामी के आगे सट्टे की बाकी तमाम किस्में फीकी पड़ गई हैं, लेकिन रायगढ़ में सडक़ किनारे खुलेआम सट्टा-पट्टी लिखते लोग दिखते हैं। वैसे तो वर्ली मटका के नाम से शुरू सट्टेबाजी को शायद आधी सदी हो गई होगी, और उसे शुरू करने वाले रतन खत्री की मौत को भी चौथाई सदी हो गई होगी, लेकिन गांव-गांव तक सट्टा खिलाने वाले लोगों का जाल कहीं खत्म नहीं होता। टेक्नॉलॉजी के साथ-साथ यह महादेव जैसा आधुनिक हो गया, लेकिन उसके बिना भी स्थानीय सटोरियों के माध्यम से बिना मोबाइल का सट्टा भी चलता ही है। रायगढ़ की कई ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं। दूसरी तरफ रायगढ़ में सडक़ों पर ट्रैफिक पुलिस की वसूली पिछली सरकार की तरह ही जारी है, जबकि अब स्थानीय विधायक ओ.पी.चौधरी प्रदेश के एक सबसे ताकतवर मंत्री बन चुके हैं, और वे अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए जाने जाते हैं। अब स्थानीय विधायक के रूप में वे शहर में पुलिस की मेहरबानी से चल रहे सट्टे, और पुलिस की ट्रैफिक वसूली को पता नहीं कितना रोक पाते हैं।
अब तेरा क्या होगा कोषाध्यक्ष?
ईडी ने कोल स्कैम की जांच तेज कर दिए हैं। जेल में बंद आईएएस रानू साहू, और सौम्या चौरसिया से ईडी लगातार पूछताछ कर रही है। इस बीच हल्ला है कि कोल स्कैम से जुड़े कुछ लोग सरकारी गवाह भी बन सकते हैं।
हालांकि ईडी के वकील इससे अनभिज्ञता जता रहे हैं। उनका कहना है कि स्कैम से जुड़े जो लोग भी सरकारी गवाह बनना चाहते हैं, उन्हें विधिवत कोर्ट में आवेदन देना होगा। इस पर कोर्ट, ईडी का पक्ष सुनेगी। तब कहीं जाकर कोई फैसला होगा। एक खबर यह भी है कि कोल स्कैम में फंसे कांग्रेस के प्रदेश कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल की भी सरगर्मी से तलाश हो रही है।
ईडी ने पिछले दिनों कोर्ट में रामगोपाल की गिरफ्तारी के लिए गैर जमानती वारंट जारी करने के लिए आवेदन लगाया था। कोर्ट ने साफ कर दिया कि अलग से वारंट जारी करने की जरूरत नहीं है। आरोपी की गिरफ्तारी करने में रोक नहीं है। इससे परे पखवाड़े भर से कोल स्कैम केस को लेकर ईडी जिस तरह सक्रिय है उससे अगले कुछ दिनों में बड़ी कार्रवाई का अंदेशा भी जताया जा रहा है। देखना है कि आगे क्या होता है।
मोहिले के लिए एक पद ?
विधानसभा के बजट सत्र के आसपास पूर्व मंत्री पुन्नूलाल मोहिले को अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। चर्चा है कि मोहिले को विधानसभा का उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है।
मोहिले लगातार सांसद और फिर विधायक रहे हैं। अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले पुन्नूलाल मोहिले की कैबिनेट में जगह नहीं बनी। उनकी जगह दयालदास बघेल को मंत्री बनाया गया। मोहिले जनाधार वाले नेता हैं, और पार्टी के रणनीतिकार उन्हें महत्वपूर्ण पद देने के लिए सहमत भी हैं। इस पर फैसला जल्द हो सकता है।
विधायक ईश्वर साहू पर फिल्म..
साजा विधानसभा क्षेत्र से सात बार के विधायक रविंद्र चौबे को पटखनी देने वाले ईश्वर साहू पर फिल्म बनने जा रही है। खबरों के अनुसार निर्माता ने इसके लिए साहू से मंजूरी ले ली है। भाजपा नेता गौरी शंकर श्रीवास ने भी इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर दी है। इसमें कुछ प्रतिक्रियाएं भी हैं। कुछ लोगों ने इसे सराहनीय कदम बताते हुए कहा है कि ईश्वर भैयाजी तो सुपरस्टार बन गए हैं। चौबे परिवार के अजेय गढ़ को भेद कर साहू ने इतिहास रचा। मगर अनेक टिप्पणियां अलग तरह की भी है। जैसे एक ने लिखा है कि एक मूवी हसदेव जंगल के ऊपर भी बनना चाहिए कि कैसे उसको कोयले के लिए खत्म कर किया जा रहा है और वहां रहने वाले आदिवासी परिवार तथा जानवर बेदखल हो रहे हैं। हरा भरा जंगल और खुशहाल आदिवासी परिवार जहां रहते थे, वह वीरान कैसे हो जाता है, यह बताने के लिए मूवी बननी चाहिए।
टोल टैक्स बोझ महसूस हो तो..
बीते कुछ सालों के भीतर छत्तीसगढ़ में अनेक सिक्स लेन, फोरलेन हाईवे तैयार हुए। पहले के दिन लद गए जब एक बार टोल टैक्स पटाने के बाद रात 12 बजे तक दूसरी रसीद कटाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। पर अब किसी भी एनएच पर निकल जाएं, जितने टोल बैरियर मिलेंगे, सब में भुगतान करना होगा। उसी दिन वापस लौट जाएं तब भी। एनएच पर सफर शुरू करने से पहले जिस तरह पेट्रोल-डीजल चेक करना जरूरी है उसी तरह फास्टैग रिचार्ज है या नहीं यह भी देखना पड़ता है। दो-चार लीटर फ्यूल का हिस्सा टोल नाके में ही कट जाता है। मगर इस वसूली से अगर आप तकलीफ महसूस करते हैं तो तसल्ली के लिए एक नया टैरिफ अपनी गाड़ी में चिपका सकते हैं। मुंबई और नवी मुंबई के बीच 21 किलोमीटर लंबा अटल सेतु बनाया गया है जिसे कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकार्पित किया। इसमें एक बार कार से गुजरने पर टैक्स 250 रुपए है। मासिक पास 12,500 रुपए में बनेगा। यानी साल भर इस रास्ते से चलेंगे तो डेढ़ लाख रुपए का पास बनवाना होगा। ट्रक बस और दूसरी भारी गाडिय़ों की बात ही छोडि़ए। उन्हें एक बार गुजरने पर 830 रुपए से लेकर 1580 रुपए का टोल टैक्स देना होगा। अंदाजा लगा लीजिए कि साल भर में कितना होता है।
क्या नाराज चल रही हैं रेणुका?
भरतपुर-सोनहत विधायक रेणुका सिंह मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल मानी जा रही थीं। मगर वे मंत्री पद की दौड़ में भी पीछे रह गईं। पता नहीं उन्हें कैसा लग रहा होगा। केंद्रीय राज्य मंत्री और सांसद पद पर रहने के बाद सिर्फ विधायक की भूमिका में हैं। सरगुजा में यह चर्चा चल पड़ी है कि वे नाराज चल रही है। और यह चर्चा बेवजह नहीं है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय पद संभालने के बाद पहली बार सरगुजा पहुंचे। अंबिकापुर में आयोजित कार्यकर्ता सम्मान सम्मेलन में सरगुजा संभाग के 12 विधायक शामिल हुए (13वे में खुद मुख्यमंत्री), लेकिन अकेले रेणुका सिंह नहीं पहुंचीं। साय का दूसरा कार्यक्रम सूरजपुर में भी था। यहां भी मंच पर रेणुका सिंह नजर नहीं आईं।
लोग इस बात को याद दिला रहे हैं कि जब विधानसभा चुनाव के बाद जीते हुए सभी सांसद दिल्ली पहुंचे तो उनमें रेणुका सिंह शामिल नहीं थी। उन्होंने अगले दिन जाकर केंद्रीय मंत्रिमंडल और सांसद पद से इस्तीफा दिया। हालांकि तब उन्होंने वजह बताई थी कि उनका उस दिन एक पारिवारिक कार्यक्रम था। सरगुजा में रेणुका सिंह जैसी तेज तर्रार महिला नेत्री इस समय कोई और नहीं है। मगर वे तो विधायक के शपथ ग्रहण समारोह के बाद से ही खामोश चल रही हैं।
भ्रष्टाचार पर पॉवर पॉइंट
नई सरकार में कामकाज का तरीका भी नया नया होने लगा है। अपनी अपनी जिम्मेदारी सम्हालने के बाद विभागों के अधिकारी मातहतों के साथ बैठक कर विभाग के पुराने और नये कार्यों की प्रगति आंक रहे हैं। इसी दौरान साहब लोग विभाग में भ्रष्टाचार न होने की हिदायत भी दे रहे। पढ़ाई, लिखाई वाले विभाग के एक साहब ने आयुक्त,संयुक्त सचिव, ओएसडी, अवर सचिव, और अनुभाग अधिकारियों की बैठक ली। साहब ने निचले क्रम के मातहतों के भ्रष्टाचार के तरीकों पर अपने लैपटॉप पर स्लाइड्स के साथ एक प्रेजेंटेशन तक दिखाकर चेता दिया। प्रेजेंटेशन देखने वाले दांतों तले उंगली दबाए देखते रहे। अब देखना यह है कि इसका कितना असर होता है।
ननकीराम की नसीहत
भाजपा नेता ननकी राम कंवर कभी चुनाव जीते, कभी हार जाते हैं। कभी उनकी पार्टी सरकार में होती है, कभी कांग्रेस की बन जाती है। पर उनका तेवर बदलता नहीं। जो कहना है साफ-साफ कहते हैं। वे लंबे समय से आदिवासी मुख्यमंत्री तथा शराब बंदी की मांग करते रहे हैं। इस बार वे अपनी परंपरागत सीट रामपुर से हार गए। सरकार भाजपा की बनी है, उनकी अपनी पार्टी की। मगर कुछ खरी खरी बातें उन्होंने कह दी है। कंवर का कहना है कि सरकार की चाल सुस्त है। मंत्रिमंडल का गठन भी देर से हुआ। हाल में हुई नक्सल हिंसा पर भी यह कहा कि जितनी देर एक्शन लेने में होगी, अपराध उतने ही बढ़ेंगे।
कंवर बीजेपी के वरिष्ठतम नेताओं में से हैं। वे पहले भी पार्टी लाइन की परवाह किए बिना बेबाकी से अपनी बात कहते रहे हैं। अब सरकार के ऊपर है की उनकी बात को गंभीरता से वह लेती है या नहीं।
इतिहास कौन सा रचेंगे पायलट?
कांग्रेस प्रभारी बनने के बाद छत्तीसगढ दौरे पर आने में सचिन पायलट ने काफी देर लगाई। स्वागत से अभिभूत होकर उन्होंने ऐलान किया कि छत्तीसगढ़ में हम इतिहास रचेंगे। लोग इसका मतलब अलग अलग अपने हिसाब से लगा रहे हैं। जैसे बीजेपी के एक नेता का कहना है कि वे सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास बची रह गई दो सीटों की बात कह रहे हैं।
तब जो नेहरू ने लिखा था ...
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हों ना हों, इस पर काफी ऊहापोह के बाद कांग्रेस ने फैसला ले लिया। कांग्रेस ने इसे आरएसएस और भाजपा का इवेंट बताते हुए शामिल होने से मना कर दिया। राम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से सोनिया गांधी ,मल्लिकार्जुन खडग़े और अधीर रंजन चौधरी को निमंत्रण दिया गया था। पार्टी की ओर से बयान पर कांग्रेस के कई नेताओं ने इस पर अफसोस और विरोध व्यक्त किया है।
इसी तरह की स्थिति सन 1951 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने भी पैदा हुई थी, जब सोमनाथ मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी। उन्होंने एक पत्र लिखा था। इसमें यह कहा गया कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का प्रमुख होने के नाते किसी धार्मिक आयोजन में उनका शामिल होना उचित नहीं होगा। साथ ही उन्होंने यह भी लिखा था कि कोई भी एक व्यक्ति के रूप में इसमें हिस्सेदारी कर सकता है। इसका मतलब कांग्रेस से जुड़े लोगों से भी था, जिनकी सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में भी भागीदारी थी। ताजा मामले में कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं को यह स्पष्टीकरण देना जरूरी नहीं समझा कि वे चाहे तो कार्यक्रम में शामिल हो जाएं। अब नेहरू के इस पत्र का हवाला देकर अयोध्या जाने के इच्छुक कांग्रेसी चाहे तो आगे आ सकते हैं।
और हमारा लक्षद्वीप खतरे में...
छत्तीसगढ़ में दूर-दूर तक समुद्र का किनारा नहीं है लेकिन इसका एहसास करना हो बुका झील जाया जा सकता है। लोग इसे अपने प्रदेश का मॉरीशस भी कहते हैं। पहले पता होता कि लक्षद्वीप ज्यादा चर्चित होने वाला है तो लोग इसे उसी नाम से पुकारते। समुद्र तट पर होने वाली हर गतिविधि यहां होती है। जैसे तेज रफ्तार बोटिंग, जल विहार, घुड़सवारी। वन विभाग और छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल ने रहने और खाने-पीने की व्यवस्था भी कर रखी है। सुविधाओं में कुछ कमी है, मगर जो भी यहां पहुंचता है, आनंद से सराबोर होकर लौटता है। कोरबा जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर कटघोरा-अंबिकापुर मार्ग पर थोड़ा भीतर जाने पर, यहां पहुंचते ही अथाह जल राशि और द्वीपों का नजारा सामने होता है। एक द्वीप को गोल्डन आइलैंड कहा जाता है। यहां 24 घंटे के लिए भी बोट बुक की जा सकती है। सी-प्लेन चलाने की संभावनाओं पर भी एक दो साल पहले विचार किया गया था।
यह सारी नैसर्गिक खूबी हसदेव नदी की बदौलत है। यह जल का विशाल भंडार चोरनई नदी पर है जो हसदेव की सहायक नदी है। मगर विडंबना है कि इसी के कुछ ऊपर लगातार जंगल काटे जा रहे हैं, कोयला खदानों के लिए। यही वह इलाका है जहां हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव है। पर्यावरण प्रेमी चेतावनी दे चुके हैं कि कोयला खदानों के कारण हसदेव का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। हसदेव में बने बांगो डेम का अस्तित्व भी इसी से जुड़ा है। जो कोरबा के उद्योगों और जीवन यापन की जरूरत पूरी करता है। जांजगीर-चांपा, बिलासपुर की न केवल खेती बल्कि भविष्य में पेयजल के लिए भी हसदेव की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के बाद वहां पर्यटन गतिविधियों का विस्तार होने जा रहा है। पर बुका झील व यहां के द्वीप कब तक हमारा साथ देंगे कह नहीं सकते।
एजी बनाना आसान नहीं
आखिरकार सीनियर एडवोकेट प्रफुल्ल भारत को एडवोकेट जनरल बनाने के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लग गई। भारत आरएसएस के पसंदीदा माने जाते हैं। उनकी काबिलियत पर किसी को संदेह नहीं रहा है। मगर कुछ बातें ऐसी थी जो उनके शीर्ष विधि अधिकारी बनने की राह पर रोड़ा बन रही थी।
मसलन, भारत शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर, और अन्य की हाईकोर्ट व जिला अदालत में पैरवी कर रहे थे। शराब घोटाला केस की ईडी जांच कर रही है। चर्चा है कि इन सबको लेकर सरकार और पार्टी में काफी मंथन भी हुआ। सरकार के कुछ मंत्री ठाकुर यशवंत सिंह को एडवोकेट जनरल बनाने के पक्ष में राय दी थी। यशवंत, प्रफुल्ल भारत से जूनियर हैं। अंतोगत्वा संघ पदाधिकारियों की राय पर भारत को एडवोकेट जनरल बनाने का फैसला लिया गया।
नियुक्ति के इंतजार में शिक्षक
चुनाव के पहले पिछली सरकार ने युवाओं के असंतोष को कम करने के लिए भर्तियों के कई विज्ञापन जारी किए। जिन विज्ञापनों में भर्ती की प्रक्रिया रुकी हुई थी, उनकी आगे की कार्रवाई में तेजी लाई गई। इसके बावजूद आचार संहिता लग जाने के कारण सभी नियुक्ति नहीं हो पाई। ऐसा ही मामला बस्तर और सरगुजा संभाग शिक्षकों की भर्ती का है। इन दोनों संभागों में 5772 पदों पर भर्ती शुरू की गई। काउंसलिंग के बाद रिक्त शालाओं में उनकी नियुक्ति का आदेश क्रम से जारी किया जाता रहा। इसी बीच आचार संहिता लग गई और 582 पदों पर काउंसलिंग रुक गई। आचार संहिता कब की समाप्त हो चुकी है। नई सरकार और मंत्रिमंडल का गठन हो चुका, बड़े-बड़े फैसले होने लगे हैं, लेकिन चयन के बावजूद परीक्षार्थियों की प्रतीक्षा खत्म नहीं हो रही है। पता चला है कि इन बचे हुए पदों पर काउंसलिंग के लिए मंत्रालय से अनुमति मांगी गई है, जो मिल नहीं रही है।
अमित जोगी और भाजपा
भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर एक जॉइनिंग कमेटी बनी है। ये कमेटी अन्य दलों से भाजपा में आने के इच्छुक नेताओं का बायोडाटा खंगालती है। कमेटी दल बदल करने के इच्छुक नेताओं के आने से भाजपा को नफा नुकसान का आकलन करती है, और फिर इसकी अनुशंसा के बाद ही नेताओं को भाजपा में शामिल करने का रास्ता साफ होता है।
कमेटी के संयोजक महाराष्ट्र के पूर्व शिक्षा मंत्री, और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े हैं। चर्चा है कि तावड़े को अमित जोगी का प्रकरण भी सौंप दिया गया है। अमित जोगी के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद उनके भाजपा प्रवेश की अटकलें लगाई जा रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी के स्थानीय नेता अमित को भाजपा में शामिल करने के खिलाफ भी हैं। चाहे कुछ भी हो, विनोद तावड़े की रिपोर्ट पर ही अमित के भाजपा में शामिल होने पर फैसला होगा। देखना है आगे क्या होता है।
भ्रष्ट के पास भी फण्ड नहीं?
सरगुजा के एक पुराने दिग्गज कांग्रेस नेता को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिली। अब नेताजी को चुनाव समिति के एक सदस्य ने लोकसभा चुनाव लडऩे का प्रस्ताव दिया गया है। मगर चर्चा है कि नेताजी ने चुनाव लडऩे में अनिच्छा जाहिर कर दी है। उन्होंने कुछ लोगों के बीच अनौपचारिक चर्चा में कहा कि उनके पास चुनाव लडऩे के लिए फंड नहीं है।
नेताजी का जवाब सुनकर चुनाव समिति के सदस्य भी हैरान रह गए, क्योंकि नेताजी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले सुर्खियों में रहे हैं। विधानसभा टिकट नहीं मिली, तो सारा फंड बच गया। अब जब वो फंड की कमी का रोना रो रहे हैं, तो बात कुछ हजम नहीं हो रही है।
‘भोली भाली’ मंत्री की चेतावनी
कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े पहली बार की विधायक हैं और उम्र में भी सभी मंत्रियों से कम हैं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि उनको अपने पद और जिम्मेदारी को समझने में कोई भूल कर रही हैं। अफसर भी शायद उन्हें हल्के में लेने की भूल कर रहे होंगे। शायद इसीलिये उन्होंने सूरजपुर के कार्यक्रम में मंच से अफसरों को चेतावनी दी। कहा-अगर आप सोचते हैं कि आपकी मंत्री भोली-भाली है तो यह गलतफहमी दूर कर लें। पांच साल हमारे कार्यकर्ताओं के साथ ज्यादती हुई है। अब ऐसा नहीं चलेगा। आपको उनकी बात सुननी पड़ेगी। यदि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की, उनकी बात नहीं सुनी तो आप लोग देख लीजिए आपका क्या होगा। मंत्री राजवाड़े खासकर पुलिस से नाराज थी। कुछ कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर पक्षपात पूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाया था। मंत्री इससे पहले सूरजपुर जिला अस्पताल के दौरे में भी वहीं के डॉक्टरों पर जमकर बरस चुकी हैं। अब तक अफसर, सीनियर विधायकों को मंत्री पद पर देखते आए हैं। उनको सहज होने में थोड़ा वक्त लग सकता है।
मिलती-जुलती राम कहानी..
कलेक्टर जैसे अति व्यस्त पद पर रहते हुए भी आईएएस अफसर अवनीश शरण सोशल मीडिया के लिए वक्त निकाल लेते हैं। उन्होंने ताज़ा पोस्ट इन दिनों की चर्चित फिल्म ट्वेल्थ फेल की क्लिपिंग के साथ डाली है। इस फिल्म में एक आईपीएस मनोज कुमार शर्मा के संघर्ष का जिक्र होता है। इसमें बताया गया है कि 12वीं फेल होने के बावजूद कैसे उसने प्रबल इच्छाशक्ति से कामयाबी हासिल की। अवनीश शरण लिखते हैं कि यह सिर्फ आपका रिजल्ट नहीं, उन तमाम लोगों के संघर्षों का प्रतीक है, जो विषम परिस्थितियों के बावजूद यूपीएससी परीक्षा में बैठने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
अवनीश शरण ने खुद की यात्रा भी इसी तरह से तैयार की। दसवीं में थर्ड डिवीजन थे, ग्रेजुएशन तक 60-65 परसेंट नंबर लाते रहे। स्टेट पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में 10 से ज्यादा बार फेल हुए। अधिक आसान प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार विफल होते रहे। मगर आखिरकार सफलता मिली।
उनके इस पोस्ट को प्रेरणास्पद बताते हुए तो अधिकतर टिप्पणियां की गई है लेकिन कुछ अलग तरह की प्रतिक्रियाएं भी है।? एक ने लिखा है कि असफलता आप इसलिए गिना पा रहे हैं, क्योंकि सफल हो गए । एक और ने लिखा है कि लोगों को अपना परिश्रम संघर्ष लगता है और दूसरों का तमाशा। एक और प्रतिक्रिया है कि आपने साबित कर दिया सर कि हमारी परीक्षा प्रणाली खराब है।एक ने फिल्म पर सवाल उठाया है, कहा है कि ये कोचिंग संस्थानों के प्रचार के लिए बनाई गई है। मतलब है कि कोई पोस्ट मोटिवेशन के लिए डाली गई हो तो जरूरी नहीं कि लोग मोटिवेट ही हों। हर किसी की राम कहानी अलग-अलग होती है।
इस्तीफे का राज
कांग्रेस शासन में सरकारी पदों पर नियुक्त पार्टी पदाधिकारियों में अचानक नैतिकता जाग रही तो कुछ कोर्ट से स्टे भी ले रहे हैं। स्टे लेने के बाद इस्तीफे भी दे रहे हैं। कारण दिलो जहन में जगी नैतिकता बताने से नहीं थक रहे। कारण की पड़ताल में मालूम चला कि सरकार तो सर्वाधिकारी है, दलगत विरोधी भी बहुतेरे हैं। वहीं बड़े बेआबरू होकर निकाले गए और? लाखों के वेतन की रिकवरी आदेश निकला तो लेने के देने पड़ जाएंगे। वैसे भी ज्यूडिशियल संस्थान में राजनीतिक नेता की नियुक्ति पहले ही गैरकानूनी है। और वे तीन चार वर्ष से सवा,से डेढ़ लाख वेतन और विवाद सुलझाने का दोनो पक्षों से उतना ही मेहनताना झोंकते रहे हैं। उनके विरोधी यह भी बताते हैं कि बिना कोर्ट गए नेताजी,फैसलों की कापी पर हस्ताक्षर करते रहे। नेताजी के खिलाफ चुनाव आयोग में भी शिकायत की जा चुकी थी।
अगला एजी कौन ?
चर्चा है कि रमन सरकार में एडिशनल एडवोकेट जनरल रहे ठाकुर यशवंत सिंह को साय सरकार एडवोकेट जनरल बना सकती है। यशवंत सिंह लोरमी के रहवासी हैं, और यही से डिप्टी सीएम अरुण साव चुनकर आए हैं। अरुण साव के पास विधि विभाग भी है।
यशवंत सिंह के पिता ठाकुर भूपेन्द्र सिंह लोरमी से विधायक रहे हैं। वो भाजपा के किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी यशवंत सिंह के पक्ष में जा रही है। वैसे सीनियर एडवोकेट राजीव श्रीवास्तव के नाम की भी चर्चा रही है, और कई प्रमुख नेताओं ने उनके नाम की सिफारिश की है। संकेत है कि अगले दो-तीन दिनों में एजी की नियुक्ति के आदेश जारी हो सकते हैं।
अमित और अमित, 11 में 11?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कांग्रेस में विलय की चर्चाओं का अध्याय विधानसभा चुनाव के पहले से ही बंद हो चुका है। परिणामों के बाद पार्टी नेता पूर्व विधायक अमित जोगी का कहना था कि कांग्रेस को हराने के चक्कर में हम वे सीट भी गवां बैठे जहां जीत मिल सकती थी। चुनाव के समय ही भाजपा के प्रति जेसीसी का झुकाव दिख रहा था, विलय की भी चर्चा होने लगी थी। अपने चिर प्रतिद्वंद्वी भूपेश बघेल को मात देने के उद्देश्य से उन्होंने पाटन से चुनाव भी लड़ा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की फोटो अमित जोगी ने सोशल मीडिया पर शेयर की है, उसके बाद से विलय की चर्चा और जोर पकडऩे लगी है। शाह से मिलना इतना आसान नहीं है। शायद इसलिए मुलाकात के दौरान अमित अति प्रसन्न दिख रहे हैं और शाह सिर्फ 2 इंच मुस्कुरा रहे हैं। सामने लोकसभा चुनाव है। भाजपा ने कहना शुरू कर दिया है कि इस बार बस्तर और कोरबा सीट भी कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ेंगे, पूरी 11 की 11 जीतेंगे।
कोरबा संसदीय सीट का एक विधानसभा क्षेत्र मरवाही है, जहां राज्य बनने के बाद से ही जोगी परिवार का असर देखा जाता है।
सन् 2009 में डॉ. चरण दास महंत ने करीब 20 हजार मतों से करुणा शुक्ला को पराजित किया था। मगर अगली बार 2014 में डॉ. बंसीलाल महतो ने करीब 4600 मतों से उनको हरा दिया। सन् 2019 में मोदी लहर के बावजूद ज्योत्सना महंत ने भाजपा के ज्योति नंद दुबे को करीब 26 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। उस चुनाव के ठीक पहले विधानसभा चुनाव भी हुआ था, जिसमें कांग्रेस से अलग होकर खुद स्व. जोगी ने मरवाही से चुनाव लड़ा था। तीनों ही लोकसभा चुनावों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की अच्छी मौजूदगी देखी गई। माना जाता है कि इसने ज्यादातर कांग्रेस के वोट विभाजित किए। हर बार गोंगपा को यहां 30 हजार से अधिक वोट मिल जाते हैं। सन् 2019 में तो यह 37000 से अधिक था।
संयोग है कि 2019 में जेसीसी का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं था इसलिए कटघोरा तानाखार के अलावा मरवाही के वोट भी गोंगपा और कांग्रेस में बंट गए। सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में जीसीसी प्रत्याशी को यहां से करीब 40 हजार वोट मिले। कांग्रेस को उसने मामूली मतों के अंतर से तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। अभी जीसीसी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मगर ऐसा लगता है कि मिशन 11 में 11 के लिए भाजपा को उनकी जरूरत पड़ेगी। मरवाही में जेसीसी को मिले वोट कांग्रेस और गोंगपा में बंटने से रोकने के लिए।