राजपथ - जनपथ
दोनों तरफ से जुर्म
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार ब्रम्हानंद नेताम को एक नाबालिग से बलात्कार और उसे देह के कारोबार में धकेलने के मामले में गिरफ्तार करने आई हुई झारखंड की पुलिस से कांग्रेस और भाजपा में पहले से खिंची हुई तलवारों में नई धार हो गई है। अब इन दोनों ही पार्टियों के लोग नए उत्साह से हमलों में जुट गए हैं। भाजपा जो कल तक अपने उम्मीदवार की गिरफ्तारी की आशंका जाहिर कर रही थी, अब वह कांग्रेस पार्टी को चुनौती दे रही है कि वह झारखंड पुलिस से भाजपा उम्मीदवार को गिरफ्तार ही करवा दे। चुनाव संचालक बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि उनका उम्मीदवार जेल में रहकर और अधिक वोटों से जीतेगा। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इसे फर्जी मामला करार दिया है। एक नाबालिग लडक़ी द्वारा बलात्कार की शिकायत को फर्जी करार देने का काम डॉ. रमन सिंह एक बार पहले भी कर चुके हैं। जब बापू कहा जाने वाला आसाराम एक नाबालिग छात्रा के साथ बलात्कार में गिरफ्तार हुआ था, तो अपने राष्ट्रीय संगठन के निर्देश पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तुरंत ही सार्वजनिक रूप से इस गिरफ्तारी को राजनीतिक साजिश करार दिया था। यह एक और बात थी कि मामला इतना पुख्ता साबित हुआ कि मोदी के प्रधानमंत्री रहते सात बरस हो गए, लेकिन इस मामले में आसाराम की जमानत तक नहीं हो पाई। लोगों को याद होगा कि ऐसे ही एक मामले में नाबालिग लडक़ी की बलात्कार की शिकायत को राजनीतिक साजिश कहने वाले यूपी के बड़े समाजवादी नेता आजम खां को सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी थी, वरना उनके जेल जाने का खतरा था। अब झारखंड के इस बलात्कार के मामले में कांग्रेस और भाजपा दोनों छत्तीसगढ़ में बढ़-चढक़र गलतियां कर रहे हैं। और जब कानून को जानने वाले बड़े-बड़े नेता गलतियां करें, तो वे गलतियां नहीं होतीं, वे गलत काम होते हैं। कांग्रेस भी इस मामले के सारे दस्तावेज प्रेस को जारी करके इस नाबालिग बच्ची की पहचान उजागर करने की मुजरिम हो चुकी है, और भाजपा के नेता इसे राजनीतिक साजिश कहकर एक दूसरे किस्म का जुर्म कर चुके हैं। अभी तो चुनाव की गर्मी है इसलिए कानून अपना काम तेजी से नहीं कर पा रहा है, लेकिन मतदान के बाद कानूनी शिकायतें जोर पकड़ेंगी।
कोलाहल को लेकर जज की चिंता
ध्वनि विस्तार यंत्रों के प्रयोग में नियमों का उल्लंघन हो तो रोकने का काम पुलिस-प्रशासन का है। पर कार्रवाई नागरिकों, समाजसेवियों की ओर से दबाव पड़े तभी की जाती है। राजधानी रायपुर में बीते मई माह में अनेक लोगों पर कार्रवाई सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव पर ही हो पाई थी। इधर बीते 22-23 नवंबर की रात रायपुर के बीचों-बीच सिविल लाइन और गोलबाजार इलाके में तेज आवाज में डीजे बजता रहा। कोई कार्रवाई नहीं हुई। कानून के छात्रों ने कहीं और नहीं सीधे डिस्ट्रिक्ट जज संतोष शर्मा से इसकी शिकायत कर दी। आम तौर पर अदालतें ऐसी शिकायतें लेती नहीं, न ही लोग उनसे शिकायत करने पहुंचते हैं, क्योंकि कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी तो कलेक्टर, एसपी पर है। जिला जज ने मामले की गंभीरता को समझते हुए शिकायत ली। उन्होंने कलेक्टर, एसपी और संबंधित लोगों को पत्र लिखा है। साथ ही जानकारी मंगाई है कि कोलाहल के मामलों में वह क्या कार्रवाई कर रही है। उन्होंने लोगों से कहा है कि आगे भी कोलाहल नियंत्रण अधिनियम का उल्लंघन हो तो वे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में शिकायत करें। मुमकिन है जिला जज के सीधे दखल के बाद कार्रवाई होते दिखाई देगी।
नामों पर एक सवाल तो बनता है
छत्तीसगढ़ में कुछ नए जिलों के नाम इतने लंबे हो गए हैं कि सरकारी कामकाज के अलावा आम लोग भी उनके संक्षिप्त नामों का ही इस्तेमाल करने लगे हैं। पहले ऐसा एक जिला था, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिसे जीपीएम कहा जाने लगा था. अब उस किस्म के कुछ और जिले भी हो गए हैं. ऐसा ही एक जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई है जिसे कि केसीजी कहा जा रहा है. एक जिला सरगुजा में मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर हो गया है जिसे एमसीबी कहा जा रहा है। राजनांदगांव से अलग करके बनाया गया मोहला-मानपुर-चौकी भी तीन नामों वाला एक जिला है, एमएमसी। ऐसे तीन-तीन जगहों के नाम वाले ये 4 जिले तो हो ही गए हैं, इनके अलावा सारंगढ़-बिलाईगढ़ भी एक जिला है, और जांजगीर-चांपा दूसरा जिला है जो कि दो-दो जगहों के नाम वाले हैं। अब अगले चुनाव तक हो सकता है कि दो-तीन नामों वाला कोई और जिला भी बन जाए. फिलहाल तो सामान्य ज्ञान की परीक्षा में छत्तीसगढ़ के तीन-तीन जगहों वाले जिलों के संक्षिप्त अक्षरों से उनके पूरे नाम पूछने का एक सवाल तो बनता ही है।
एटीआर और उदंती में बाघिन
वन्य जीव प्रेमियों के लिए दो खबरें एक साथ आईं। उदंती-सीतानदी अभयारण्य के ट्रैप कैमरे में एक बाघिन कैद हुई है। इसके पहले यहां 2019 में बाघिन देखी गई थी। इसका डील-डौल उससे अलग है। दूसरी ओर अचानकमार अभयारण्य में एक बाघिन के पगमार्क दिखे। पंजों के निशान से पहचाना गया कि वह मादा है। उदंती में 4 से 6 बाघ होने की जानकारी वन विभाग देता है। यह ओडिशा के सोनाबेड़ा अभयारण्य से जुड़ा हुआ है। बाघ दोनों ही जंगलों में विचरण करते रहते हैं। अचानकमार अभयारण्य में कितने बाघ हैं इस पर अलग-अलग दावे किए जाते हैं। वन विभाग कभी 17 तो कभी 12 बाघ बताता है। इन दावों पर पर्यटक विश्वास नहीं करते। किसी खुशकिस्मत सैलानी को कभी एकाध बाघ दिख जाए तो अलग बात है। संरक्षण को लेकर पड़ोसी मध्यप्रदेश की तरह यहां चिंता नहीं दिखाई देती। फिर भी एक ही समय छत्तीसगढ़ के दो अलग-अलग छोर में बाघिन या उसका पगमार्क दिखना वन्य जीवन में रुचि लेने वालों को खुश कर गया है। ([email protected])
आये भी वो, निकल भी गये...
गैर भाजपा शासित राज्यों में केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां काफी सक्रिय हैं। हालांकि कई बार कार्रवाई की पूर्व सूचना भी हो जाती है। दो दिन पहले आईटी की एक बड़ी टीम रायपुर में रूकी, तो कई कारोबारियों को भनक लग गई। उन्होंने तुरंत अपने शुभचिंतकों, और साथी कारोबारियों को इसकी जानकारी देने में देर नहीं लगाई। छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर विधानसभा का उपचुनाव चल रहा है। यहां भाजपा के लोग सत्ताधारी दल पर चुनाव जीतने के लिए करोड़ों खर्च करने का आरोप लगा रहे हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा था कि टीम संभवत: इसी लिए आई है। मगर आईटी की टीम अगले दिन तडक़े ओडिशा निकल गई, और फिर वहां पदमपुर इलाके में जाकर तीन बड़े कारोबारियों के यहां छापेमारी भी की। ओडिशा में बीजेडी की सरकार है। यह भी संयोग है कि पदमपुर में विधानसभा के उपचुनाव चल रहे हैं। पदमपुर में छापेमारी की खबर पाकर भानुप्रतापपुर में सक्रिय रहने वालों ने राहत की सांस ली।
भोजराम की बेवक्त बिदाई
बीएसएफ से राज्य पुलिस में आए अफसर धर्मेंद्र सिंह छवाई महासमुंद एसपी बनाए गए। धर्मेंद्र के राज्य पुलिस सेवा में संविलियन को लेकर काफी विवाद हुआ था। बावजूद पिछली सरकार ने उनका संविलियन कर दिया, और आईपीएस अवार्ड होने के बाद उन्हें महासमुंद जैसे राजनीतिक व प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिले की कमान सौंपी गई है। धर्मेंद्र का एसपी के रूप में पहला जिला है। धर्मेंद्र से पहले भोजराम पटेल ने महासमुंंद में अच्छा काम किया था। उन्होंने जिले के सभी थाना परिसर में व्यक्तिगत रूचि लेकर कृष्णकुंज की तर्ज पर धार्मिक महत्व के पेड़ लगवाने के पहल की थी। इसकी खूब सराहना भी हुई। पटेल के कुछ महीने के भीतर हटने के पीछे भले ही कई तरह की चर्चा है, लेकिन उनकी काबिलियत पर सवाल नहीं उठे हैं।
संपन्न और साइकिल वाले देश
छत्तीसगढ़ से जर्मनी के एक अंतरराष्ट्रीय बॉडीबिल्डिंग मुकाबले में जज बनकर गए संजय शर्मा ने एक जर्मन शहर की एक सार्वजनिक जगह की यह फोटो भेजी है जो कि साइकिलों से पटी हुई है। हिन्दुस्तान में शहरों के अलावा अब तो कस्बों में भी लोग पेट्रोल, डीजल, और बैटरी से चलने वाली गाडिय़ां दौड़ाते दिखते हैं, वैसे में साइकिलों वाला देश कुछ अटपटा लगता है, खासकर जब जर्मनी की प्रति व्यक्ति आय हिन्दुस्तान से 25 गुना अधिक है। जितने विकसित और संपन्न देश हैं, वहां पर साइकिलों का इस्तेमाल उतना ही अधिक होता है, योरप के कई देशों में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति साइकिलों पर चलते दिखते हैं। हिन्दुस्तान में साइकिल गरीबों में भी सबसे ही गरीब मजदूरों की होकर रह गई है। जैसा कि इस तस्वीर से देखा जा सकता है साइकिलों को रखने के लिए जगह भी तय है, जहां उन्हें ताला लगाकर हिफाजत से रखा जा सकता है। हिन्दुस्तान में अधिकतर जगहों पर न तो ट्रैफिक साइकिलों के लायक रह गया है, और न ही उन्हें खड़े रखने की जगह बनाई जाती है। किसी सरकारी दफ्तर में भी साइकिल को ताला लगाकर रखने की कोई जगह नहीं रहती।
जिला नहीं बनाने की मांग
चुनाव के पहले खैरागढ़ उप-चुनाव की तरह भानुप्रतापपुर को जिला बनाने का वादा कांग्रेस नहीं कर रही है। इसकी वजह यह नहीं है कि भाजपा उम्मीदवार ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ एफआईआर को अचूक हथियार मान रही है, बल्कि कुछ दूसरे कारण भी हैं। अंतागढ़ के लोगों को इस बात की चिंता सता रही है कि भानुप्रतापपुर को चुनाव का फायदा न मिल जाए। वे भी वर्षों से जिला बनाने की मांग करते आ रहे हैं। अंतागढ़ की दावेदारी तब ठंडे बस्ते में चली जाएगी यदि भानुप्रतापपुर को जिला बना दिया जाएगा। इसलिये जब से चुनाव प्रचार अभियान शुरू हुआ है अंतागढ़ से अलग-अलग संगठन कांकेर कलेक्ट्रेट पहुंच रहे हैं। वे अफसरों को मुख्यमंत्री के नाम पर ज्ञापन सौंप रहे हैं। इनमें भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की किसी भी तैयारी को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी जा रही है। अंतागढ़वासियों का कहना है कि भानुप्रतापपुर का तहसील रहते हुए भी काफी विकास हो चुका है। अंतागढ़ इलाका उसके मुकाबले काफी पिछड़ा है। दावेदारी अंतागढ़ की ही उचित है। अब ऐसी स्थिति में जब अगले साल आम चुनाव होने वाला हो, भानुप्रतापुर के पक्ष में कोई निर्णय ले लिया गया तो अंतागढ़ की नाराजगी से कैसे निपटा जाएगा?
वैसे दिलचस्प यह है कि कांकेर जिले के ही पखांजूर को जिला बनाने की मांग और उसके विरोध में यहां के लोग बंट गए हैं। पिछले साल एक बड़ा आंदोलन जिला बनाने की मांग को लेकर हुआ, लोग सडक़ पर धरने पर बैठ गए थे। तब इसका अनेक आदिवासी नेताओं ने विरोध किया। उनका कहना है कि जिला बनने के बाद यहां के खनिज साधनों का तेजी से दोहन होने लगेगा। यहां के परलकोट को पर्यटन स्थल बनाने का विरोध भी हो रहा है। कहना है कि ग्राम सभा के प्रस्ताव के बिना इस पर फैसला नहीं लिया जा सकता।
और, जश्न मना रहे रेलवे अफसर
रेल मंडल बिलासपुर के अधिकारियों ने बीते दिनों केक काटा और उसे मीडिया, सोशल मीडिया में वायरल भी किया। वजह थी इस वित्तीय वर्ष में 100 मिलियन टन माल ढुलाई कर लेना। लदान पिछले साल भी तेज रही, पिछले साल के मुकाबले 100 मिलियन टन तक पहुंचने में चार दिन कम लगे। रेलवे के अधिकारी खुद ही ढिंढोरा पीट रहे हैं कि सवारी गाडिय़ां देर से क्यों चल रही है। आए दिन दो चार ट्रेनों को रैक नहीं पहुंचने के कारण रद्द किया जा रहा है। ट्रेन इतनी देर से चलती है कि रैक वापस आ ही नहीं पाती और अगले दिन का शेड्यूल बिगड़ जाता है। लगातार विरोध और आंदोलन के दबाव में बंद ट्रेनों को रेलवे ने शुरू तो किया, पर बोगियां घिसट-घिसट कर चल रही है। यात्रियों का हाल-बेहाल है। यह स्थिति तब है जब कई छोटे स्टेशनों में स्टापेज खत्म कर दिया गया है। कोई दिन और कोई रूट नहीं जिसमें ट्रेन देर नहीं हो रही हैं। आज ही की सूची देख लें कोई तीन घंटे तो कोई पांच घंटे लेट चल रही है। हमसफर एक्सप्रेस तो 10.30 घंटे विलंब से है। केक काटने पर अचरज नहीं होना चाहिए। रिकॉर्ड लदान करने पर रेलवे टीम को अनेक रिवार्ड मिलते हैं। यदि लदान में आगे है तो फिर यात्री ट्रेनों को 10 मिनट लेट करें या 10 घंटे कोई जांच नहीं होनी है।
सिंहदेव का इशारा किसकी ओर?
बीजेपी पार्षदों की शिकायत पर अंबिकापुर में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और उनके परिजनों के खिलाफ जमीन मामले में जांच का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल गया है। फर्जी तरीके से 80 एकड़ सरकारी जमीन बेचने के आरोप की जांच के लिए तहसीलदार ने कलेक्टर के आदेश पर जांच टीम बनाई है। सिंहदेव ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कई बार जांच हो चुकी, भाजपा सरकार ने भी कराई थी। कहीं गड़बड़ी नहीं मिली। अब और क्या जांच हो रही है? सब जानते हैं कि जांच का कहां से आदेश आ रहा है, क्यों जांच हो रही है। जाहिर है सिंहदेव ने इसे कांग्रेस के भीतर चल रहे खींचतान से इसे जोड़ दिया है। शिकायत जरूर भाजपा नेता ने की है, अगर उनके पीछे सत्ता से जुड़ा कोई न कोई व्यक्ति खड़ा होगा। ([email protected])
सुन्दरराज बाहर जाएँगे ?
भानुप्रतापपुर चुनाव निपटने के बाद बस्तर आईजी पी सुंदरराज केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। चर्चा है कि उनकी पोस्टिंग हैदराबाद स्थित नेशनल पुलिस अकादमी में हो सकती है। सुंदरराज से पहले छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस राजीव माथुर अकादमी में रहे हैं, और वहां वो डायरेक्टर पद से रिटायर हुए।
आईपीएस के 2003 बैच के अफसर सुंदरराज लंबे समय से बस्तर में हैं। उन्हें काबिल अफसर माना जाता है, और उनके कार्यकाल में नक्सल हिंसा में भारी कमी आई है। कहा जा रहा है कि यदि सुंदरराज प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं, तो रतनलाल डांगी उनकी जगह ले सकते हैं। डांगी फिलहाल चंदखुरी पुलिस अकादमी में पदस्थ हैं।
छत्तीसगढ़ कैडर के करीब आधा दर्जन से अधिक अफसर केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इनमें रवि सिन्हा रॉ में स्पेशल डायरेक्टर हैं। इसके अलावा अमित कुमार सीबीआई, जयदीप सिंह आईबी, अमरेश मिश्रा एनआईए, अभिषेक पाठक, ध्रुव गुप्ता, और नेहा चंपावत व नीथू कमल अलग-अलग संस्थानों में कार्यरत हैं।
एक जिम्मेदार के खिलाफ शिकायतें
प्रदेश संगठन में बदलाव के बाद से कई चीजें सुधर नहीं पा रही है। कामकाज पहले से ज्यादा अव्यवस्थित दिख रहा है। नई जिम्मेदारी संभालने वाले कुछ पदाधिकारियों के कामकाज पर उंगलियां उठ रही हैं। इन्हीं में से एक नरेश गुप्ता भी हैं, जिन्हें प्रदेश कार्यालय मंत्री का दायित्व सौंपा गया है। गुप्ता से पहले सुभाष राव कार्यालय संभालते थे। दो दशक तक कार्यालय मंत्री रहने के बाद भी कभी उनके काम को लेकर शिकवा शिकायतें नहीं हुई, लेकिन उनके बाद थोड़े दिनों में ही नरेश गुप्ता के खिलाफ अलग-अलग स्तरों पर शिकायतें हो चुकी है। इनमें कुछ शिकायतें तो काफी हल्की है, जो कि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
नरेश गुप्ता मुंगेली के रहने वाले हैं, और अरुण साव से पुराना परिचय रहा है। अरुण साव की पसंद पर नरेश गुप्ता को कार्यालय का प्रभारी बनाया गया है। कुशाभाऊ ठाकरे परिसर किसी फाइव स्टार होटल से बड़ा है। यहां रोजमर्रा का कामकाज आसान नहीं है। बताते हैं कि नरेश गुप्ता की अनुभवहीनता कहीं न कहीं कार्यालय के बेहतर संचालन में आड़े आ रही है। एक शिकायत यह हुई है कि केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के रायपुर प्रवास की जानकारी जिले के प्रमुख पदाधिकारियों तक को नहीं दी, और वो प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव के साथ तोमर के स्वागत के लिए पहुंच गए। सांसद सुनील सोनी रायपुर में ही थे, लेकिन उन्हें भी किसी ने सूचना नहीं दी। जबकि सूचना देने की जिम्मेदारी प्रदेश कार्यालय की होती है।
नरेश के खिलाफ एक और शिकायत की चर्चा खूब हो रही है। हुआ यूं कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के भोजन के समय खुद ही खाना परोसने में लगे रहे. जबकि वहां और कार्यकर्ता भी थे। पूरे समय माथुर के आगे-पीछे होते रहे। जबकि भानुप्रतापपुर चुनाव के चलते स्थानीय कार्यकर्ता कार्यालय से मार्गदर्शन का इंतजार करते रहे। इन सबके बावजूद नरेश गुप्ता को काफी जुझारू माना जाता है। हर चुनाव में वो आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों को लेकर काफी मुखर रहे हैं, और उनकी कई शिकायतों पर आयोग ने कार्रवाई भी की है। इन सबको देखते हुए नरेश के योगदान को देखते हुए शिकायतों पर ज्यादा गौर नहीं किया जा रहा है। फिर भी अब चुनाव नजदीक है। ऐसे में पार्टी नेताओं को छोटी-छोटी शिकायतों को दूर कर कामकाज को बेहतर करने की अपेक्षा भी है। देखना है नरेश गुप्ता कितना कुछ सुधार पाते हैं।
भूपेश की चेतावनी, एक नए टकराव का आसार
छत्तीसगढ़ केन्द्र और राज्य के बीच टकराव का एक बड़ा मैदान बन गया है। गैरभाजपा सरकारों वाले बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्य पिछले बरसों में लगातार ऐसा टकराव देख चुके हैं जब केन्द्रीय जांच एजेंसियां राज्य-सत्ता के इर्द-गिर्द के लोगों को घेरते दिखती हैं। ममता बैनर्जी से लेकर उद्धव ठाकरे तक अपने-अपने वक्त केन्द्र के खिलाफ बहुत खुलकर बोल चुके हैं, और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ रह चुकी शिवसेना के एक बड़े नेता संजय राउत को ईडी जिस तरह गिरफ्तार किया, और सौ से अधिक दिन जेल में रखा, उससे देश के सभी गैरभाजपाई राज्य हक्का-बक्का हैं। अदालत ने संजय राउत को जमानत देते हुए यह कहा कि ईडी ने जिस तरह से संजय राउत को गिरफ्तार किया, वह पहली नजर में गैरकानूनी कार्रवाई थी।
अब छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल पहली बार इतने साफ शब्दों में ईडी की चल रही कार्रवाई के खिलाफ कहा है। उन्होंने आधा दर्जन ट्वीट करके जिस तरह चेतावनी दी है, उससे यह साफ है कि राज्य सरकार के पास कुछ लोगों की ठोस शिकायतें पहुंची हैं, और ऐसा लगता है कि राज्य की पुलिस उन पर कोई कार्रवाई करे, इसके पहले मुख्यमंत्री केन्द्रीय एजेंसियों को चेतावनी देने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने जिस तरह ईडी की पूछताछ के दौरान रॉड से पीटना, किसी का पैर टूटना, किसी को सुनाई देना बंद होना लिखा है, उससे लगता है कि सरकार के पास पुख्ता शिकायत है, जिस पर किसी भी पल कार्रवाई हो सकती है। यह राज्य और केन्द्र के बीच, उनकी एजेंसियों के बीच एक नया टकराव हो सकता है।
बड़ा कारोबार, प्यादे गिरफ्तार
मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के जिले दुर्ग में जिस तरह महादेव ऐप नाम का ऑनलाईन सट्टेबाजी का कारोबार चल रहा था, वह चलते हुए भी हक्का-बक्का करता था, और अब जब पुलिस इस कारोबार के छोटे-छोटे प्यादो को पकड़ रही है, तो इतने छोटे लोगों की धरपकड़ भी हक्का-बक्का करती है कि क्या इनसे बड़े कोई मुजरिम पुलिस को हासिल नहीं हैं? यह कारोबार इतने बड़े-बड़े नामों की चर्चा वाला है कि इसमें महज प्यादों की गिरफ्तारी जांच और कार्रवाई के नाम पर दिखावा दिख रही है। खबरों में जो जानकारी आ रही है, वह बहुत फिल्मी है, और संगठित सट्टे के कारोबार फिल्मी अंदाज के रहते भी हैं। महादेव ऐप से पूरे देश और दुनिया से दांव लगाए जा रहे थे, और चर्चा यही है कि केन्द्र सरकार की कुछ एजेंसियां इस मामले की जांच में भी लगी हुई हैं।
झपकी लेते ही गाड़ी बंद
सडक़ दुर्घटनाओं की एक वजह ड्राइवर को गाड़ी चलाते हुए झपकी आ जाना भी है। बस्तर के सुदूर डोडरेपाल स्कूल के एक छात्र भुवनेश्वर बैद्य ने ऐसी दुर्घटनाओं का हल निकालने की कोशिश की है। यहां चल रही विज्ञान प्रदर्शनी में वह एक चश्मा दिखाया गया है। दावा है कि इस चश्मे को पहनने पर ड्राइवर को झपकी लगते ही गाड़ी रुक जाएगी और इंजन भी बंद हो जाएगा। यह चश्मा गाड़ी के इंजन और एक्सीलेटर से कनेक्ट रहेगा। आंख बंद होने पर दोनों को कमांड मिलेगा और गाड़ी रुक जाएगी। तीन जिलों के 288 मॉडलों में इसे प्रथम पुरस्कार मिल गया है। अब राज्य स्तर के मेले में इसे प्रदर्शित किया जाएग। पर यह देखा गया है कि स्कूलों के विज्ञान मेले में प्रदर्शित किए जाने वाले अविष्कार आम लोगों के बीच इस्तेमाल के लिए आ नहीं पाते। इसके लिए कई चरणों की परीक्षण प्रक्रिया और निवेश की जरूरत पड़ती है। फिर भी एक दूरस्थ इलाके के स्कूली छात्र की इस कोशिश की तारीफ बनती है।
शराबबंदी लागू कराना किसका काम?
शराबबंदी पर फैसला मंत्रिमंडल को लेना है और लागू करना है। विधायक सत्यनारायण शर्मा तो मंत्री ही नहीं हैं, पर शराबबंदी पर बनाई गई उस समिति के प्रमुख हैं जिसकी सिफारिश महीनों से नहीं आई है और कब आएगी इसका पता भी नहीं। सरकार समिति की सिफारिश मानेगी या नहीं, किसी को पक्का पता नहीं। पर शराबंदी समिति के प्रमुख होने के हिसाब से कोई बजाय छत्तीसगढ़ सरकार के सीधे सत्यनारायण शर्मा के खिलाफ बैनर लेकर उतरा हो तो हर्ज ही क्या है? खासकर तब जब प्रदर्शन उनके निर्वाचन क्षेत्र के बिरगांव में हो रहा हो। बस इतनी ही बात जमी नहीं कि बैनर में संगठन का नाम तो छत्तीसगढ़ महतारी अधिकार मंच लिखा है, पर तस्वीर में एक भी महतारी नहीं दिख रही है।
उलझन के बीच पीएससी परीक्षा
छत्तीसगढ़ में आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद मेडिकल, तकनीकी कॉलेजों में दाखिला, वन, पुलिस और अन्य कई विभागों में भर्ती की प्रक्रिया रुक गई है। सीजीपीएससी में नियुक्तियों की सूची निकलने के ठीक पहले रोक देनी पड़ी। विधानसभा सत्र में प्रस्ताव पारित होने के बाद भी आगे की संवैधानिक और कानूनी प्रकिया स्पष्ट नहीं है। ऐसे में संविधान दिवस पर पीएससी ने परीक्षा कार्यक्रम जारी करने की परंपरा को बनाए रखा। आयोग का यह तर्क है कि प्रारंभिक परीक्षा का आरक्षण से कोई संबंध नहीं है। पिछले साल प्रारंभिक परीक्षा में एक लाख से अधिक अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इस बार आयोग के इस फैसले से हजारों अभ्यर्थियों की तैयारी बेकार हो जाने से बच गई। पर एक और बड़ी संख्या रह जाएगी जो मुख्य परीक्षा के लिए उत्तीर्ण होंगे। पिछले साल 2548 अभ्यर्थी सफल हुए थे। इस बार भी इसी के आसपास संख्या हो सकती है। दोनों वर्षों के सफल उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र और ज्वाइनिंग कब मिलेगी, यह तब तक स्पष्ट नहीं होगा जब तक विधानसभा में आने वाले प्रस्ताव और उसके बाद स्थिति साफ नहीं हो जाती। वैसे जिस तरह से 26 नवंबर को विज्ञापन जारी करने की परंपरा है, उसी तरह से नतीजे और नियुक्तियों के लिए भी समय-सीमा तय कर दी जाती तो दाखिले और नियुक्तियों की फंसी हुई सूची छोटी दिखाई पड़ती। जैसे सब इंस्पेक्टर के चयन की प्रक्रिया तो चार से चल रही है। कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया में भी विलंब हुआ है।
भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार
भानुप्रतापपुर में भाजपा प्रत्याशी पर रेप केस के चलते पार्टी बुरी तरह फंस गई है। कांग्रेस ने अब पूर्व सीएम रमन सिंह को निशाने पर लिया है। कांग्रेस नेता, रमन सिंह के पूर्व पीए ओपी गुप्ता के खिलाफ रेप केस को भी सोशल मीडिया में उछालकर भाजपा पर हमला बोल रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेताओं का हाल यह है कि वो प्रचार की औपचारिकता निभा रहे हैं।
सुनते हैं कि पार्टी के फायर ब्रांड एक पूर्व मंत्री को सब कुछ छोडकऱ गुजरात से प्रचार के लिए यहां बुलाया गया। पूर्व मंत्री भानुप्रतापपुर गए भी लेकिन बाद में वो एक दवा सप्लायर के यहां पारिवारिक कार्यक्रम में शिरकत करने दुर्ग निकल गए। बाकी नेता भी बीच-बीच में शादी व अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने निकल जाते हैं। कुल मिलाकर प्रचार की कमान स्थानीय नेता ही संभाल रहे हैं। अभी तक की स्थिति में तो भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार सर्वआदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम का चल रहा है। अभी प्रचार में 6 दिन बाकी है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
बसपा के जनाधार में सेंध?
राहुल गांधी की पदयात्रा के बाद दूसरे दलों के नेता भी इसी रास्ते पर चल निकले हैं। स्व. अजीत जोगी ने कभी अविभाजित मध्यप्रदेश में लंबी पदयात्रा की थी। अब उनके पुत्र छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) के अध्यक्ष अमित जोगी ने 26 नवंबर से पदयात्रा शुरू की है। बहुत से राजनीतिक पंडित यह मानकर चल रहे हैं कि छजकां का अधिकतम प्रभाव सन् 2018 के चुनाव में दिख गया, अब वो बात नहीं रही। तब मुख्यमंत्री स्व अजीत जोगी की उपस्थिति भी थी। उसके बाद से छजकां टूटती ही गई है। संस्थापक रहे उनके बेहद करीबी भी अब पार्टी छोडक़र जा चुके हैं। दो सीटें उप-चुनाव में छिन गई, एक विधायक धर्मजीत सिंह को बाहर कर दिया गया। पर कल धार्मिक नगरी मल्हार से शुरू हुई पदयात्रा के लिए रखी गई जनसभा में जिस तरह भीड़ उमड़ी, उसने लोगों को जोगी के कार्यक्रमों की याद दिला दी। यह भी तय कर दिया कि जोगी के गुजर जाने के बाद भी उनके समर्थक पार्टी के साथ अभी भी हैं।
सन् 2018 के चुनाव में जिस बसपा ने छजकां से गठबंधन किया था, वह सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग हो गई। गौर करने की बात यह है कि अमित जोगी तीन चरणों में जनवरी तक चलने वाली पदयात्रा में जिन 6 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेंगे वे सभी बसपा के जनाधार वाली हैं। प्रदेश में बसपा की दोनों सीटें इन्हीं में से है। एक जैजैपुर को छोडक़र बाकी पांच सीटों में बहुजन समाज पार्टी या तो जीती या फिर उसने जीतने वाले उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी। मस्तूरी में 2013 के विधायक दिलीप लहरिया को बसपा उम्मीदवार जयेंद्र सिंह पात्रे ने तीसरे स्थान पर खिसका दिया। यहां से भाजपा के डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी जीत गए। पात्रे को जोगी का ही प्रत्याशी बताया गया था। बिलाईगढ़ से कांग्रेस के चंद्रदेव राय को भी बसपा के श्याम कुमार टंडन ने टक्कर दी। अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी अकलतरा में भाजपा प्रत्याशी सौरभ सिंह केवल दो हजार वोट से हारीं। पामगढ़ में कांग्रेस को बसपा की इंदु बंजारे ने हराया। चंद्रपुर में भी कांग्रेस के रामकुमार यादव जीते पर सिर्फ 4400 मतों से। यहां बसपा प्रत्याशी गीतांजलि पटेल ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। जैजैपुर में तो बसपा का जबरदस्त असर देखा गया जहां केशव चंद्रा ने भाजपा के कैलाश साहू को 21 हजार वोटों से हराया। कांग्रेस यहां भी तीसरे स्थान पर खिसक गई थी।
अमित जोगी और ऋचा जोगी इस समय अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र रद्द हो जाने के संकट से जूझ रहे हैं। छानबीन समिति और राज्य सरकार के आदेशों को उन्होंने कोर्ट में चुनौती जरूर दी है, पर इनका फैसला कब आएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। अभी जिन 6 सीटों में अमित जोगी और उनकी पार्टी पहुंच रही है, उनमें से तीन सामान्य सीटें हैं, जहां लडऩे के लिए जाति संबंधी दस्तावेज नहीं चाहिए। पर इन सभी में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बड़ी संख्या है। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने अपनी चुनावी राजनीति यहीं के जांजगीर लोकसभा सीट से शुरू की थी। अनुसूचित जाति वर्ग में निर्विवाद रूप से स्व. अजीत जोगी की अच्छी पैठ रही है। इस इलाके में भी। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए समझा जा सकता है कि अमित जोगी ने अपनी यात्रा इन्हीं सीटों पर केंद्रित क्यों रखा है।
अब लड़ाई जीत के लिए ही...
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के अलावा सर्व आदिवासी समाज की साख भी दांव पर लग गई है। समाज के सदस्य किस दल से जुड़े हैं पहले यह गौण था, लेकिन अब वह राजनीतिक भूमिका में है। जब सभी पंचायतों से एक-एक उम्मीदवार मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया तब संगठन ने स्पष्ट किया था कि चुनाव जीतना उनका उद्देश्य नहीं है, वे सिर्फ यह देखना चाहते हैं कि मतदाता आदिवासी आरक्षण के सवाल पर दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की भूमिका के खिलाफ हैं या नहीं। अब उनका कुल एक ही उम्मीदवार लड़ रहा है। अब यह नहीं कहा जा सकता कि जीत के लिए नहीं लड़ रहे हैं। चुनाव प्रचार में लगभग एक सप्ताह का समय है। इस अवधि में यदि वह त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाने में भी कायमाब हो गए तो यह उनकी सफलता के रूप में देखा जाएगा। [email protected]
दो जन्मदिनों की कहानी
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष अरूण साव का जन्मदिन राजधानी रायपुर के एकात्म परिसर में जिस धूमधाम से मनाया गया, उसने लोगों को चौंका दिया। अरूण साव का रायपुर में कभी काम नहीं रहा, और वे बिलासपुर से ही लोकसभा सदस्य हैं। ऐसे में रायपुर में कार्यक्रम इतना बड़ा हो जाएगा, इसका अंदाज लोगों को नहीं था। नतीजा यह हुआ कि एकात्म परिसर के आसपास, दूर-दूर तक पार्किंग की कोई जगह नहीं बची, ट्रैफिक जाम रहा, और लोगों की आवाजाही अंतहीन रही। रात तक लाउडस्पीकर पर यह घोषणा भी होती रही कि जो लोग आए हैं उनके खाने का इंतजाम है, और लोग खाना खाकर ही जाएं। ऐसा अंदाज है कि जिन लोगों को इस बार विधानसभा टिकट पाने की हसरत है, उन लोगों ने बड़े उत्साह के साथ नए प्रदेश अध्यक्ष का यह जन्मदिन मनाया।
कुछ हफ्ते पहले ही पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का जन्मदिन भी पार्टी दफ्तर से परे मनाया गया था। एयरपोर्ट के सामने शहर के सबसे बड़े जलसाघर, जैनम में वह समारोह रमन सिंह के सबसे करीबी मंत्री रहे राजेश मूणत ने किया था, और वह भी बहुत बड़े पैमाने पर था, लेकिन वह पार्टी का कार्यक्रम नहीं था। पन्द्रह बरस रमन सिंह मुख्यमंत्री रहे, और उनका जन्मदिन सरकारी बंगले में ही मनाया जाता रहा, सत्ता से हटने के बाद इस बरस सबसे धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाया गया, और उसने भी लोगों को चौंका दिया था। मूणत तो अपने हिसाब से अगला चुनाव लडऩे वाले हैं ही, और उन्होंने रायपुर पश्चिम में घर बनाकर वहां रहना भी शुरू कर दिया है, और मौलश्री विहार का घर बेच भी दिया है। लेकिन उन्होंने रमन सिंह का कार्यक्रम जिस भवन में करवाया वह उनके पसंदीदा विधानसभा क्षेत्र से खासा दूर था। हो सकता है कि उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों को रमन सिंह के जन्मदिन पर अधिक बुलाया हो।
पैसों से लाल, सत्ता के दलाल
शहर की दो सबसे बड़ी और सबसे महंगी कॉलोनियों को लेकर सत्ता के साथ गठजोड़ की एक लड़ाई चल रही है। इन तक पहुंचने का रास्ता अभी खराब है, और इन दोनों की चाहत उस एक्सप्रेस हाईवे से अपना रास्ता पाने की है जिस पर से किसी को दाखिला न देना पिछली सरकार के समय से तय है ताकि कोई हादसे न हों, और तेज रफ्तार ट्रैफिक एक्सप्रेस हाईवे पर गुढिय़ारी से लेकर एयरपोर्ट और अभनपुर रोड तक पहुंच सके। अब पैसों में बहुत ताकत होती है, और पैसे वालों की कॉलोनी अपना समर्थन करने के लिए सत्ता के दलाल भी जुटा लेती है, इसलिए अब म्युनिसिपल और दूसरे सरकारी दफ्तरों के मझले दर्जे के अफसरों का धर्मसंकट का वक्त आ गया है कि वे पैसों से लाल, और सत्ता के दलाल लोगों के दबाव को कैसे झेलें। इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग इसके पूरा होने के पहले से लगे हुए हैं, सूचना के अधिकार में हर कागज निकाला हुआ है, और अदालत तक की तैयारी भी हो चुकी है। अब पैसों और सत्ता के मिलेजुले दबाव से दुर्घटनाओं का रास्ता खुलता है या नहीं, इसी पर सबकी निगाहें हैं।
छत्तीसगढ़ को चूसकर...
वन विभाग के मुखिया संजय शुक्ला ने कल मृत्यंजय शर्मा नाम के एक रेंजर को सस्पेंड किया है जिस पर साढ़े चार करोड़ के काम में सवा करोड़ से अधिक के भ्रष्टाचार के सुबूत मिले हैं। अब हर भ्रष्टाचार का सुबूत तो रहता नहीं है, वरना साढ़े चार करोड़ में काम ही कुल सवा करोड़ का हुआ हो तो बहुत है। जंगल विभाग प्रदेश का बड़ा ही अनोखा विभाग है जहां सुप्रीम कोर्ट के रास्ते मिलने वाले हजारों करोड़ के कैम्पा फंड में भ्रष्टाचार की कहानियां बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं, लेकिन वनविभाग हांकने वाले लोग ही इससे अनजान हैं। अब पता लगा है कि कैम्पा में संगठित और योजनाबद्ध भ्रष्टाचार चलाने वाले अफसर ने सरकार को अपनी ऐसी शानदार सेवाओं के कुछ दूसरे विभागों में विस्तार का एक प्रस्ताव दिया है, देखें कि भ्रष्टाचार को काबिलीयत मानने वाले इस विभाग के एक और अफसर का बाहर किस तरह का विस्तार होता है। जब एक-एक रेंजर का करोड़ों का भ्रष्टाचार है, तो इसमें हैरानी की क्या बात है कि तबादलों के सीजन में तबादलों का ठेका लेने वाले अफसर का बड़ा वजन माना जाता है। छत्तीसगढ़ को चूसकर पड़ोस के आन्ध्र में दौलत किस तरह इक_ी हो रही है, यह भी देखने लायक है। विभाग का मुखिया कोई भी अफसर रहे, यह सिलसिला जारी है।
सीएम संग खाने सिर फुटव्वल
भेंट-मुलाकात में राजनांदगांव विधानसभा में रात ठहरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संग खाने में शरीक होने के लिए कांग्रेस नेताओं में सिर-फुटव्वल की हालत की पार्टी में जमकर चर्चा है। नांदगांव में मुख्यमंत्री के साथ रात्रि भोजन के लिए प्रशासन की निगरानी में बनी सूची में कई नाम हैरान करने वाले थे। कांग्रेस के मेहनतकश नेताओं को उस वक्त फजीहत का सामना करना पड़ा, जब भोजन के मेज पर जाने से पहले ही सुरक्षादस्ते ने रोक लगा दी।
बताते हैं कि सीएम के साथ भोजन करने बैठे कुछ चेहरे ऐसे थे जिनका भाजपा सरकार में अंदरूनी प्रभाव रहा। कांग्रेसी नेताओं और पदाधिकारियों के साथ आपसी संवाद बढ़ाने के लिए सीएम की तरफ से दावत की व्यवस्था की गई थी। सुनते हैं कि खाने पर बैठने के लिए सीएम सचिवालय और प्रशासन की देखरेख में एक लिस्ट बनाई गई। कुछ नेताओं को इस बात की भनक नहीं लगी कि उनके विरोधी गुट ने लिस्ट से उनका नाम हटवा दिया है। चर्चा है कि प्रभावशाली नेताओं ने प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव ड़ालकर विरोधी नेताओं को मेज से दूर रखा। वैसे भी राजनांदगांव की सियासत में कांग्रेस की गुटीय लड़ाई से निचले कार्यकर्ता बेहाल हो गए हैं। मुख्यमंत्री की मौजूदगी में गुटीय वर्चस्व पूरी तरह से हावी रहा।
बताते हैं कि भाजपा से नजदीकी रिश्ता बनाए हुए कांग्रेसी नेताओं को तरजीह मिलने से निष्ठावान कांग्रेसी बुदबुदाते हुए लौट गए। वहीं चेहरा लाल देखकर कुछ कांग्रेसी नेताओं को सर्किट हाऊस में जाने का अफसोस भी रहा। नांदगांव के अलावा सभी विधानसभा में नाम जोडऩे-कांटने को खेल रहा। सीएम के खाने से अलग-थलग करने की कवायद में मौजूदा विधायकों ने कोई-कसर नहीं छोड़ी। उनके इस हल्केपन को लेकर विरोधी गुट ने माथा पकड़ लिया।
क्या हाथी उन्मूलन का अभियान है?
छत्तीसगढ़ में जिस तरह हाथियों की बेमौत मारे जाने की घटनाएं सामने आ रही है, वह संवेदनहीनता की सीमा पार करती जा रही है। कुछ दिन पहले धरमजयगढ़ वन मंडल के जामघाट की पहाड़ी में दो पेड़ों के बीच एक हाथी का जीर्ष-शीर्ष शव मिला। इसे एक माह पहले का बताया जाता है। किस तरह से इसकी मौत हुई, यह भी पता लगाना मुश्किल है। पिछले हफ्ते रायगढ़ वन मंडल के घरघोड़ा रेंज में एक हाथी का शव मिला। पता चला कि करंट से मौत हो हुई है। छाल रेंज में अक्टूबर माह में एक हाथी का चार-पांच दिन पुराना शव मिला। इस साल फरवरी में भी लैलूंगा परिक्षेत्र में हाथी मृत मिला। हाल के दिनों में ही रायगढ़, सरगुजा रेंज में 6-7 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इधर इसी महीने बलौदाबाजार के देवपुर परिक्षेत्र में हाथी को करंट लगाकर मार डाला गया। एक ग्रामीण की गिरफ्तारी की गई। पिछले महीने कटघोरा वन परिक्षेत्र में 12 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया। इनमें एक पंचायत पदाधिकारी भी है। इन्होंने एक शावक हाथी को मारकर उसका शव जमीन पर गाड़ दिया था।
हाथी प्रभावित महासमुंद, पिथौरा, जशपुर, कोरबा, बलरामपुर आदि वन क्षेत्रों में लगातार हाथियों की मौत की खबरें आ रही हैं। भारतीय प्रजाति के एक हाथी की औसत आयु 48 वर्ष होती है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में जिन हाथियों का शव मिल रहा है उनमें कोई 15 बरस का है तो कोई 20 का। दो तीन साल के शावक भी मिल रहे हैं। सूरजपुर में हाथी-हथिनी के बीच हुए संघर्ष की एक घटना को छोड़ दें तो किसी में भी उनके बीच मुठभेड़ की बात सामने नहीं आई है। अनुकूल ठिकाने और भोजन, पानी की तलाश में भटक रहे हाथियों की असामयिक मौतें हो रही हैं। हाथियों को करंट लगाकर मारने की घटनाओं के पीछे केवल फसल, झोपड़ी बचाना ही एक कारण नहीं है, बल्कि इसके अंगों की तस्करी भी एक बड़ी वजह है। जब खदानों को क्लीयरेंस देना होता है तो हाथियों की मौजूदगी ही स्वीकार नहीं की जाती। कैंपा मद में करोड़ों रुपये वन्यजीवों के सुरक्षित रहवास के लिए आवंटित किए जाते हैं, खर्च क्या होता है, जांच का विषय है। एलिफेंट कॉरिडोर की बात जब-तब उठाई जाती है, पर वह भी धरातल पर नहीं है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी जंगलों से गुजरने वाले हाईटेंशन तारों में लेयर लगाने और उसे ऊंचा करने का काम वन और बिजली विभाग के बीच इस झगड़े में फंसा है कि खर्च कौन उठाए।
जिले की घोषणा अभी नहीं
भानुप्रतापपुर में चुनावी माहौल गरमा रहा है। इन सबके बीच कांग्रेस के स्थानीय बड़े नेता सरकार से कोई बड़ी घोषणा चाह रहे हैं ताकि जीत सुनिश्चित हो सके। प्रचार में जुटे कांग्रेस के कुछ नेताओं का अंदाजा है कि भाजपा प्रत्याशी पर रेप के आरोप के बाद भी मुकाबला आसान नहीं रह गया है।
सुनते हैं कि पिछले दिनों जिले के एक विधायक ने दाऊजी से भानुप्रतापपुर सीट को लेकर लंबी चर्चा की थी। विधायक ने सुझाव दिया था कि भानुप्रतापपुर को खैरागढ़ की तरह जिला बनाने की घोषणा कर देनी चाहिए, इससे चुनाव की राह आसान हो जाएगी। मगर दाऊजी इसके लिए सहमत नहीं हुए।
दाऊजी और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का मानना है कि जिले की घोषणा से एक नया विवाद खड़ा हो सकता है। क्योंकि भानुप्रतापपुर से सटे अंतागढ़ को भी जिला बनाने की मांग हो रही है। ऐसे में भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की घोषणा से तुरंत थोड़ा बहुत फायदा हो जाएगा, लेकिन बाद में अंतागढ़ के लोग खिलाफ हो सकते हैं। दाऊजी की नजर अगले साल आम चुनाव पर है। इन सबको देखते हुए ऐसी कोई घोषणा से बचना चाह रहे हैं, जिससे देर सवेर पार्टी का नुकसान हो।
चुनाव माथुर के लिए लड़ रहे
भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम पर रेप के आरोप के बाद भी पार्टी कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के निर्देश के बाद पार्टी के तमाम दिग्गज भानुप्रतापपुर में नजर आ रहे हैं। इन सबके बाद भी पार्टी संसाधनों के मामले में पिछड़ती दिख रही है।
सुनते हैं कि हफ्तेभर से प्रचार में लगे कार्यकर्ताओं के लिए जब पैसे की डिमांड आई, तो बड़े नेता आज-कल कहकर टरका रहे हैं। इससे कार्यकर्ताओं का गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। प्रचार में जुटे कुछ नेताओं ने संकेत दे दिए हैं कि यदि जल्द ही आर्थिक समस्या दूर नहीं हुई, तो कार्यकर्ता घर बैठ सकते हैं। फिलहाल तो मान मनौव्वल ही चल रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
महिलाओं का एक नया दौर
महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर लिखना कुछ नाजुक काम होता है। दरअसल हिन्दुस्तान जैसे देश में महिलाओं के खिलाफ इतने किस्म के पूर्वाग्रह काम करते हैं कि महिलाओं के पक्ष में लिखी गई कौन सी बात लिखने वाले के खिलाफ चली जाए, इसका भी ठिकाना नहीं रहता। यह जानते हुए भी हम राजस्थान की इस ताजा वारदात पर लिख रहे हैं जिसमें एक शादीशुदा महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की, और ससुराल के लोगों को किसी शक से दूर रखने के लिए उसने छह महीने तक मंगलसूत्र पहना, सिंदूर लगाया, और करवाचौथ का व्रत भी रखा। बाद में ससुर ने जब उसे एक बार प्रेमी के साथ देख लिया, तब जाकर कोई शक उपजा, और पुलिस रिपोर्ट के बाद पूछताछ में इस महिला और प्रेमी ने जुर्म कुबूल किया।
इस वारदात पर लिखने का मतलब यह है कि जिसे अबला समझकर जिसकी बेबसी पर तमाम कविताएं लिखी जाती थीं, और आंसू बहाए जाते थे, वह महिला अब अंतरिक्ष में भी जा रही हैं, फाइटर प्लेन भी उड़ा रही हैं, और जीवनसाथी के साथ उन तमाम किस्म के जुर्म भी करने की ताकत रखती है जो कि अब तक मर्दों का ही एकाधिकार होता था। अब अबला के सबला होने की यह बहुत अच्छी मिसाल नहीं है, लेकिन यह बहुत अनोखी मिसाल भी नहीं रह गई है। महिलाओं से जुल्म करने वाले लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि अब बहुत सी महिलाएं जुल्म की जिंदगी तोडक़र बाहर निकलने की ताकत भी रखती हैं, और कई किस्म के जुर्म करने की भी। या तो उसकी ताकत मानकर उसे बराबरी का दर्जा दिया जाए, या फिर उसकी कई किस्म की और ताकत को झेलने के लिए तैयार भी रहा जाए। जुल्मी का किरदार निभाने का एकाधिकार अब अकेले मर्द का नहीं रह गया है।
सम्हलकर चल रहे हैं...
भानुप्रतापपुर चुनाव में प्रचार कर रहे कांग्रेस के लोगों से सोच-समझकर एक ऐसा गलत काम हो गया है जो उन्हें दूर तक कानूनी दिक्कतों का शिकार बना सकता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रेस कांफ्रेंस में झारखंड की बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लडक़ी की पहचान उजागर करने वाले कानूनी दस्तावेज बांटे। यह एक बड़ा जुर्म है, लेकिन भाजपा इसे बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बना रही है। इस उपचुनाव में प्रचार में लगे हुए कांग्रेस और भाजपा के कई लोगों से बात करने से यह साफ हुआ कि आमने-सामने डटे रहने के बावजूद कई किस्म के समझौते हमेशा ही काम करते हैं। इस बात को जरूरत से ज्यादा उठाया जाएगा, तो फिर चुनाव में लगे हुए भाजपा के कुछ नेताओं के खिलाफ भी कुछ कागजात निकाले जाएंगे। अब पता नहीं ऐसी आशंका ही लोगों को शांत कर देती है, या किसी के मार्फत खबर भिजवानी होती है, जो भी हो, दोनों तरफ के लोग सम्हलकर चल रहे हैं।
समझबूझ से परे की बात
छत्तीसगढ़ के एक छोटे अफसर के बारे में यह खबर आई है कि उसने किसी के मार्फत देश के सबसे बड़े अफसर, कैबिनेट सेक्रेटरी से मिलने की कोशिश की है। अब जानकारों का कहना है कि सामान्य समझबूझ तो यही कहती है कि ऐसी कोई मुलाकात हो नहीं सकती, लेकिन दुनिया में कई बातें सामान्य समझबूझ से परे भी होती है, और देखना है कि ऐसी कोई मुलाकात हो पाती है या नहीं।
डीएमएफ पारदर्शी भी तो हो..
जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) पर राज्य की कैबिनेट ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब 20 प्रतिशत सामान्य क्षेत्र में और 40 प्रतिशत अधिसूचित क्षेत्र में खर्च करने की बाध्यता हटा दी गई है। अब सामान्य क्षेत्रों में अधिक राशि खर्च की जा सकेगी। ज्यादातर जिलों में फंड का उपयोग अधिसूचित क्षेत्रों में ही करने की सीमा तय होने के कारण जिले के दूसरे हिस्सों में विकास के लिए राशि आवंटित करने में दिक्कत होती थी। देश के डीएमएफ फंड का 75 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड को मिलता है। डीएमएफ फंड में कोयले की रायल्टी का प्रतिशत सबसे ज्यादा 42 है। छत्तीसगढ़ में इस राशि से बहुत बदलाव दिखाई दे सकता है। इसका अच्छा इस्तेमाल भी हो सकता है। जैसे, राज्य सरकार ने तय किया कि स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों में डीएमएफ से राशि खर्च की जाए। पर, कई जिलों में कलेक्टर फंड की प्राथमिकता खुद ही तय कर लेते हैं, जिसका खनन प्रभावित लोगों का जीवन-स्तर ऊपर उठाने से कोई संबंध नहीं होता। जीपीएम जिले में साहित्य का सम्मेलन करा दिया गया। देश के अलग-अलग हिस्सों से आए अतिथियों का खर्च उठाया गया। बिलासपुर में कुछ साल पहले एयरपोर्ट की बाउंड्रीवाल इसी मद से बना दी गई। कोरबा में कोविड काल के दौरान स्कूलों के लिए लाखों रुपयों की खेल सामग्री खरीद ली गई, जबकि स्कूल बंद थे। यहां बड़े-बड़े पार्क और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर डीएमएफ से बनाए जा रहे हैं, जो इस निधि का दुरुपयोग है।
सरकार के नए फैसले ज्यादा बड़ी आबादी को लाभ मिल सकेगा, इसकी उम्मीद है। खर्च किसी भी ब्लॉक, तहसील में हो- ठीक से करें तो विकास ही होगा। पर, असल सवाल खर्च में पारदर्शिता का ही है। फंड का सही मद में उपयोग करना है, इसकी परवाह नहीं की जाती, जन प्रतिनिधियों को भरोसे में लेना, उनको जानकारी देना भी नहीं होता। कोरबा जिले में मंत्री और पूर्व कलेक्टर के बीच हुआ विवाद सभी को पता है। हालांकि छत्तीसगढ़ देश में अकेला ऐसा राज्य है जहां प्रभावित गांवों के पंचायत प्रतिनिधियों को भी ट्रस्ट का सदस्य बनाया गया है, पर बैठकों में वे बड़े अफसरों और मंत्री विधायकों के बीच इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि खर्च का विस्तार से ब्यौरा मांग लें। कोरबा में मंत्री को भी नहीं मिला था। इसी कोरबा में कुछ संगठनों ने सितंबर माह में एक बैठक की थी, जिसमें प्रदेशभर के डीएमएफ की ऑडिट नहीं होने को भ्रष्टाचार का कारण बताया गया था। इन संगठनों ने यह भी कहा कि वे फंड के दुरुपयोग के सारे साक्ष्य एकत्र कर महालेखाकार से शिकायत करेंगे। कल की केबिनेट की बैठक में लगे हाथ डीएमएफ के खर्च को ज्यादा पारदर्शी रखने पर भी फैसला लिया जा सकता था, जो ज्यादा जरूरी था।
सावधान! एक झटके में खाता हो जाएगा खाली
कोविड काल के बाद से साइगर ठगी तेजी से बढ़ रही है। ठग तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर आपके बैंक खातों से रुपये उड़ाने में लगे हैं। जब-जब केबीसी टीवी पर दिखाया जाता है, इसी के नाम पर ठगी शुरू हो जाती है। इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केबीसी के होस्ट अमिताभ बच्चन और उद्योगपति मुकेश अंबानी की फोटो के साथ कई ऑडियो वाट्सएप पर वायरल हो रहे हैं। इनमें कहा जा रहा है कि केबीसी की ओर से लकी ड्रा निकाला गया है जिसमें आपको 25 लाख रुपये इनाम में मिले हैं। इसमें एक कोड नंबर और वाट्सएप नंबर दिया गया है। पर यह सब फ्रॉड करने का हथकंडा है। इसके बताए गए नंबर पर आप कॉल करें तो आपको एक ऐप डाउनलोड करने कहा जाएगा। ऐप डाउनलोड होते ही आपके मोबाइल फोन की कमांड वह कोड पूछकर अपने हाथ में ले लेगा। फिर आपके बैंक एकाउंट तक जाकर पैसे साफ कर लेगा। वाट्सएप कॉल ही करने कहा गया है ताकि आप उसकी बातचीत रिकॉर्ड न कर सकें। हैरानी यह है कि इनका जाल पूरे देशभर में फैला है। दिल्ली, यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश से ढेरों लोग इस ठगी का शिकार हो चुके हैं। और यह नया भी नहीं है। दो साल से बीच-बीच में वायरल हो जाता है। नए-नए नंबर और लोकेशन से। फिर भी पुलिस या दूसरी जांच एजेंसियां इनको पकड़ नहीं पाई हैं।
ब्याज मिलेगा मनरेगा का?
मनरेगा मजदूरी का भुगतान सात महीने से नहीं होने को लेकर डोंगरगढ़ हाईवे में चक्काजाम कर दिया गया। इनकी दीपावली भी बिना मजदूरी के निकली। सडक़ से हटने की अपील करने आए तहसीलदार से आंदोलन करने वालों ने सवाल किया कि यदि 7 माह बिना वेतन काम लिया जाए तो आपको कैसा लगेगा, क्या आपको परिवार नहीं चलाना पड़ता, आंदोलन पर आप नहीं उतरेंगे?
बीते सालों में मनरेगा के भुगतान के लिए केंद्र से फंड आने में बड़ी दिक्कत रही है। कोविड के समय एक-एक साल का भुगतान नहीं हुआ। कई जगह तो वन, जल संसाधन आदि विभागों ने काम करा लिए और दो तीन साल बीतने के बाद भी भुगतान नहीं किया है। डोंगरगढ़ में न केवल मजदूरी का बल्कि उसका ब्याज भी देने की मांग हो रही है। मनरेगा एक्ट में भुगतान अधिकतम 15 दिन में करने का प्रावधान है। एक्ट में यह भी है कि इससे अधिक देर होने पर ब्याज दिया जाएगा।
राजनांदगांव जिले में चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 में अब तक कुल 67 करोड़ 66 लाख का भुगतान किया गया है। 8 दिन के भीतर 14 करोड़ 90 लाख रुपये तथा 15 दिन के भीतर 12.37 करोड़ का भुगतान किया गया। यानि 27 करोड़ 27 लाख रुपये के बाद जो भी भुगतान हुए हैं, उन पर मजदूरों को ब्याज मिलना चाहिए। हिसाब लगाएं तो बची हुई रकम 39 करोड़ से अधिक है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पोर्टल पर अब तक कितना भुगतान रुका हुआ है, इस बारे में कोई डेटा नहीं है। वेबसाइट से यह जरूर पता चलता है कि विलंब होने के कारण छत्तीसगढ़ में किसी को भी कोई ब्याज नहीं दिया गया है। इसके कॉलम में शून्य दर्ज है। डोंगरगढ़ जनपद की राशि केंद्र या राज्य के स्तर पर नहीं रुकी है बल्कि जनपद की गड़बड़ी से अमाउंट खाते में नहीं आए हैं। यहां जो 83 लाख रुपये की मजदूरी रुकी है उसी के साथ ब्याज की मांग की जा रही है। यह मजदूरों का अपने अधिकार को लेकर सचेत होने का सबूत है। अफसर वादे के मुताबिक तीन दिन में भुगतान करेंगे या ज्यादा वक्त लेंगे यह देखने की बात होगी। यदि मांग के अनुसार मजदूरी के साथ ब्याज भी दिया गया, फिर तो एक मिसाल भी होगी।
बच्चियों ने संभाली पुलिस अफसरों की कुर्सी
दोस्ताना बर्ताव के जरिये पुलिस आम लोगों से जुडऩे की समय-समय पर कोशिश करती है। बच्चों के साथ भी उनका फासला कम होना चाहिए ताकि वे अपने आसपास होने वाले अपराधों को लेकर सचेत रहें और पुलिस की मदद लें। ऐसा प्रयास अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस के मौके पर मुंगेली में किया गया। पुलिस अधीक्षक चंद्रमोहन सिंह ने आठवीं कक्षा की वंदना मरावी को एक दिन के लिए अपनी कुर्सी सौंपी। एक अन्य छात्रा कनिष्का सिंह को सिटी कोतवाली का थानेदार बनाया गया। वंदना वनांचल के सरगढ़ी स्कूल में आठवीं की छात्रा है। बच्चों से कुछ सवाल किए गए थे, जिसके बाद वंदना का चयन हुआ। वंदना ने एसपी की कुर्सी संभाली, मीडिया को साक्षात्कार दिया, ऑफिस का निरीक्षण किया, शहर में यातायात की व्यवस्था को देखा। कनिष्का शहर के आत्मानंद स्कूल में आठवीं पढ़ती है। दोनों बड़ी होकर पुलिस अफसर बनना चाहती हैं। इनमें से वंदना एक मजदूर की बेटी है। एसपी ने उनसे कहा कि सपना पूरा जरूर होगा, लेकिन इसके लिए खूब पढ़ाई करनी होगी।
13 जिलों का एक कमिश्नर..
सरगुजा कमिश्नर पद से 4 अगस्त को गोविंदराम चुरेंद्र को हटाये जाने के बाद अब तक वहां प्रभार से काम चल रहा है। बिलासपुर के संभागायुक्त डॉ. संजय अलंग को इसका अतिरिक्त प्रभार मिला हुआ है। करीब 100 दिन बीत जाने के बाद भी विस्तृत भौगौलिक क्षेत्रफल वाले सरगुजा में पूर्णकालिक कमिश्नर की नियुक्ति नहीं हुई है। हाल के दिनों में इन दोनों संभागों में तीन नए जिले भी बना दिए गए। अब डॉ. अलंग के पास 13 जिलों का प्रभार है। जिलों के नियमित प्रशासनिक कामकाज में कमिश्नरों की भले ही बहुत ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती हो लेकिन स्थानीय स्तर की नियुक्तियों और राजस्व अदालतों में इस कुर्सी का बड़ा महत्व है। सरगुजा में तो अपर आयुक्त का पद भी अभी खाली है। स्थिति यह है कि कमिश्नर का कोर्ट महीने में सिर्फ दो दिन के लिए सरगुजा में लगता है। वे शेष समय बिलासपुर संभाग को देते हैं। एक अनुमान है कि यहां पर लंबित प्रकरणों की संख्या बढक़र 7 हजार से ज्यादा पहुंच चुकी है।
एक साथ कई टोपियां
इन दिनों एक-एक लोग एक साथ कई किस्म की टोपियां पहनकर घूमते हैं। गाडिय़ों के पीछे या सामने जो स्टिकर लगे रहते हैं, वे राजनीतिक दलों के भी हो सकते हैं, किसी साम्प्रदायिक संगठन के भी हो सकते हैं, और साथ-साथ प्रेस का स्टिकर भी दिख सकता है। अब प्रेस के साम्प्रदायिक होने पर कोई रोक तो है नहीं। कुछ गाडिय़ों पर तो इन सबके साथ-साथ पुलिस का भी स्टिकर लगे रहता है, और समझ नहीं आता कि वे पुलिस की प्रेस गाड़ी हैं, या प्रेस की पुलिस गाड़ी।
अभी धरनास्थल पर इस अखबार के फोटोग्राफर को एक मोटरसाइकिल ऐसी दिखी जिसके हर हिस्से पर मूल निवासी के स्टिकर लगे थे, और सामने प्रेस का भी स्टिकर लगा था, सुरक्षागार्ड मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष का भी स्टिकर लगा था, और ‘जाग मूल निवासी, भाग विदेशी’ का स्टिकर भी लगा था।
बटालियन भर्ती के अधूरे नतीजे..
सुरक्षा बलों के साथ काम करने के लिए राज्य पुलिस ने जब बस्तर फाइटर्स की भर्ती शुरू की गई तो नक्सल संगठनों ने इसका काफी विरोध किया। इस भर्ती के विरोध में उन्होंने सडक़ काटकर बैनर-पोस्टर लगाए थे। बेरोजगारी से जूझ रहे बस्तर के युवाओं ने धमकियों के बाद भी बड़ी संख्या में आवेदन लगाए। इनमें युवतियां भी शामिल हुईं। 2800 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया चलने के दौरान ही सीआरपीएफ ने भी दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर से 400 युवाओं को बस्तर बटालियन में नौकरी देने की घोषणा की। पर इसकी पहली ही सूची विवादों में घिर गई। दंतेवाड़ा में 144 युवाओं की मेडिकल के लिए सूची निकाली गई, पर इसमें नाम नहीं केवल रोल नंबर है। आवेदन करने वाले युवाओं ने कल इसके खिलाफ प्रदर्शन किया। रोल नंबर से पता नहीं चल रहा है कि किनका चयन किया गया। स्थानीय युवाओं को मौका देने की बात कही गई थी, पर उन्हें आशंका है कि बाहरी लोग भर लिए गए। नाम इसीलिए छिपाये गए। सीआरपीएफ का कहना है कि नाम उजागर करना ठीक नहीं होगा। वे नक्सलियों के निगाह में आ जाएंगे। युवाओं का कहना है कि जब वे पुलिस में शामिल होने के लिए तैयार हो ही गए हैं तो कैसा डर? तरीका इतना गोपनीय भी नहीं रहा है। इसके लिए बकायदा विज्ञापन दिए गए हैं। सीआरपीएफ के कैंप में युवा आवेदन देने और शारीरिक परीक्षण के लिए भी पहुंचे हैं। चयन सूची सार्वजनिक भले ही न की जाए, लेकिन भर्ती में भाग लेने वालों को सूची तो दिखा देनी चाहिए, ताकि वे संतुष्ट हो सकें कि जिनको शार्ट-लिस्ट में रखा गया है वे सबसे काबिल हैं और स्थानीय हैं। किसका चयन हुआ, क्यों हुआ, क्यों नहीं हुआ- यह जानना तो उनका हक है। यह भर्ती अभियान फोर्स और स्थानीय युवाओं के बीच भरोसा बढ़ाने की अच्छी कोशिश है। पर भर्ती में पारदर्शिता को लेकर उठ रही शंका का समाधान अधिकारियों को दिक्कत क्यों होनी चाहिए?
विधायक रस्साकशी में उलझे..
प्रदेश के दूसरे जिलों की तरह बिलासपुर में भी कांग्रेस नेताओं के बीच रस्साकशी चल रही है। सार्वजनिक मंचों पर विधायक शैलेष पांडेय को उनको पार्टी के लोग किनारे करने की भरसक कोशिश करते आ रहै हैं। खासकर वे लोग जो सत्ता के करीब हैं। पर इसकी वजह से वे खाली नहीं बैठ जाते हैं। वे इन दिनों बाजार, दुकान, वार्ड और घरों में मतदाताओं से सीधा संपर्क कर रहे हैं। कुछ दिन पहले वे चाकू तेज करने वाली एक दुकान में चले गए। वहां चाकू की धार तेज करने के लिए बैठ गए। फिर, आलू बेच रहे ठेले वाले से तराजू लेकर खुद ही आलू बेचने लगे। एक जगह छत्तीसगढ़ी ओलंपिक मैच देखने गए तो वहां रस्साकशी का खेल चल रहा था। एक टीम की मदद के लिए विधायक पहुंच गए और खुद रस्सी खींचने में लग गए। विधायक ने कहा कि उन्होंने खिलाडिय़ों का हौसला बढ़ाने के लिए ऐसा किया। लोगों ने कहा- रस्साकशी के बीच काम कर रहे हैं, इस खेल में शामिल होना उनको अच्छा लगा होगा।
कानून अपने हाथ में..
एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसे नारायणपुर बस्तर का बताया गया है। कुछ लोग दो युवकों को लाठियों से मारकर भगा रहे हैं। वहां 20-25 लोगों की भीड़ भी है। कुछ लाठियों के साथ, तो कुछ दर्शक हैं। शायद वे पहले से मौजूद हैं। हिंदुत्ववादी संगठनों का कहना है कि जिन्हें पीटा जा रहा है वे पास्टर हैं। गांव के कुछ लोग इन्हें पीट रहे हैं। सवाल है कि यदि दबाव या लालच से धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है तो पुलिस के पास किसी ने शिकायत की या नहीं? जिन लोगों ने मार खाई क्या वे पिटने के बाद पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंचे? क्या पुलिस इस घटना से अनजान है, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो जाने के बाद भी! [email protected]
ब्रह्मानंद की वजह से भाजपा बैकफुट पर
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम पर रेप केस के चलते पार्टी फंस गई है। इस केस से निपटने पार्टी के रणनीतिकार विधिक सलाह ले रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन के तौर तरीकों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह सवाल उठाया जा रहा है कि नेताम पर गंभीर केस होने के बावजूद प्रत्याशी क्यों बनाया गया?
अंदर की खबर है कि नेताम के खिलाफ केस होने की जानकारी कुछ स्थानीय नेताओं को ही थी। ये नेता ब्रम्हानंद नेताम के बजाए गौतम उइके को प्रत्याशी बनाने के पक्ष में थे। गौतम उइके के लिए पार्टी के दो बड़े नेता रामविचार नेताम, और केदार कश्यप ने भी लॉबिंग की थी। चर्चा है कि स्थानीय नेताओं ने प्रदेश के बड़े नेताओं को आगाह भी किया था कि ब्रह्मानंद नेताम को प्रत्याशी बनाने से मुश्किलें पैदा हो सकती है। मगर ब्रह्मानंद की छवि सीधे-सरल नेता की है इसलिए किसी ने स्थानीय नेताओं की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया।
हल्ला तो यह भी है कि जिन स्थानीय बड़े नेताओं की सिफारिश पर ब्रम्हानंद नेताम को प्रत्याशी बनाया गया, उन्हीं में से कुछ ने नेताम के खिलाफ एफआईआर के कागज कांग्रेस तक भिजवाए, और फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने मीडिया के जरिए धमाका कर दिया। ब्रम्हानंद केस की वजह से कोर ग्रुप और चुनाव समिति भी घेरे में आ गई है। पार्टी हाईकमान इसको लेकर काफी सख्त है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि चुनाव निपटने के बाद प्रत्याशी चयन को लेकर जिम्मेदारी भी तय की जाएगी, और ऐसे नेताओं को किनारे लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर ब्रह्मानंद केस की वजह से पूरी भाजपा बैकफुट पर आ गई है।
बैचमेट में गर्ग किस्मत के धनी
सूबे में आईजी स्तर के अफसरों के तबादले में 2007 बैच के आईपीएस रामगोपाल गर्ग पोस्टिंग के मामलेे में किस्मत के धनी रहे। सीबीआई से करीब 7 साल बाद प्रतिनियुक्ति से लौटे गर्ग को तकरीबन चार माह पूर्व राजनांदगांव रेंज में बतौर डीआईजी भेजा गया था। सरकार ने उनकी तकनीकी कार्यशैली और अच्छी साख के चलते उन्हें सीधे राजनीतिक उथल-पुथल वाले सरगुजा रेंज में आईजी का प्रभार सौंप दिया। गर्ग की तैनाती को लेकर खासियत यह है कि उनके बैच के दो अफसर दीपक झा और जितेन्द्र मीणा क्रमश: बलौदाबाजार व बस्तर में एसपी बने हुए हैं। जबकि गर्ग प्रभारी आईजी की हैसियत से रेंज के छह जिलों की जिम्मेदारी सम्हालेंगे।
गर्ग के बैचमेट में छत्तीसगढ़ कैडर में कुल चार अफसर हैं। जिसमें एक अफसर अभिषेक शांडिल्य अपने गृह राज्य बिहार में सीबीआई के हेड हैं। गर्ग एक सुलझे हुए अफसर हैं। राजनांदगांव रेंज में उन्होंने सभी चार जिलों में पुलिसिंग को लेकर कड़े कदम उठाए थे। सुनते हैं कि सरगुजा रेंज के कोरिया जिले में उनके काम करने के पुराने अनुभव को केंद्रित कर सरकार ने पदस्थ किया है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में कोरिया एसपी रहते गर्ग ने विधायक रहे भैयालाल रजवाड़े के जुआरियों को ढ़ील देने की पेशकश को सिरे से नकार दिया था। उससे नाराज रजवाड़े ने रमन सिंह से शिकायत कर हटाने के लिए ताकत झोंक दी। गर्ग ने जुआरियों और अवैध कारोबार को छूट देने सरकार के दबाव में आने से बेहतर एसपी बने रहने से इंकार कर दिया।
चर्चा हैै कि सरगुजा रेंज के राजनीतिक-सामाजिक माहौल से गर्ग अच्छी तरह वाकिफ हैं। सरकार ने उनकी यही समझ के चलते सरगुजा की जिम्मेदारी दी है। वैसे गर्ग के साथ एक अच्छा संयोग यह भी रहा है कि राजनांदगांव रेंज डीआईजी रहते ही आरएल डांगी को सरगुजा में प्रभारी आईजी बनाया गया था। यानी गर्ग को साथ भी यह संयोग भी बना रहा।
इस बार अधिक सीधा संघर्ष..
छत्तीसगढ़ के भाजपा प्रभारी ओम माथुर का राज्य का यह पहला दौरा है। उन्हें लगता है कि यहां कांग्रेस कोई चुनौती नहीं है। कहा कि गुजरात और यूपी को लेकर भी ऐसा ही कहा जाता था। अब, जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है सन् 2018 में भाजपा की बड़ी हार हुई। पर, ऐसी बात नहीं है कि उसके समर्थक और कैडर के लोग स्थायी रूप से कांग्रेस या दूसरे दलों की ओर शिफ्ट हो गए हों। हाल ही में रायपुर में आंदोलन हुआ और बिलासपुर में हुंकार रैली थी। दोनों को विफल कहा नहीं जा सकता। मगर, दूसरी तरफ भाजपा संगठन में बड़े पैमाने पर फेरबदल विपक्ष के रूप में अब तक की पार्टी की भूमिका का संतोषजनक नहीं होना पाया जाना ही था। सन् 2018 में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का चुनाव अभियान के दौरान जो माहौल दिखाई दे रहा था, उसने तो त्रिशंकु सरकार की अटकलों को जन्म दे दिया था। भाजपा नेता बार-बार यह दावा कर रहे थे कि कई सीटों पर छजकां त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना रही है। इसका मकसद यही था कि प्रतिद्वंद्वी वोटों का विभाजन हो और भाजपा को चौथी बार बहुमत मिल जाए। छजकां की ताकत 2018 के चुनाव के डेढ़-दो साल पहले से महसूस की जा रही थी। पर उसके बाद के उप-चुनावों में न केवल विफलता हाथ आई है बल्कि विधायक भी टूटे। संगठन के अनेक संस्थापक कांग्रेस में जा चुके या पार्टी छोड़ चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने हाल के दो उप-चुनावों में प्रत्याशी नहीं उतारे। वे अभी भी संगठनात्मक ढांचा मजबूत करने की बात कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सन् 2023 में कांग्रेस भाजपा के बीच 2018 के मुकाबले कहीं ज्यादा सीधा मुकाबला होने के आसार हैं। इसके बावजूद यदि दोनों में से कोई भी दल एक दूसरे को चुनौती मानने से मना करें, तो यह सिर्फ रणनीति है, जमीनी हकीकत नहीं।
और ये प्रधान पाठक ही शराबी
स्कूलों में शराब पीकर पहुंचने वाले शिक्षकों का क्या बिगड़ता है? कुछ दिन के लिए सस्पेंड, जांच- फिर बहाली, ज्यादा हुआ तो तबादला। किसी दूसरे स्कूल के बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने भेज दिया जाता है। हालांकि अब शिक्षकों से फॉर्म भी भरवाया जा रहा है कि वे दफ्तर या स्कूल शराब पीकर नहीं आएंगे। पर इसका असर कितना होगा? एक खबर गंडई-पंडरिया के दुल्लापुर शासकीय स्कूल से है। यहां के तो प्रधान पाठक लक्ष्मीनारायण साहू एक तो स्कूल आते नहीं, आठ दस दिन में जब आते हैं शराब पीकर। घूमते-टहलते हैं निकल जाते हैं। अधीनस्थ शिक्षक मना करते हैं, नहीं मानते। बेशर्मी की हद यह है कि पंचायत ने बैठक बुलाई। उन्हें शराब पीकर स्कूल नहीं की हिदायत दी लेकिन फर्क नहीं पड़ा। सरपंच इसकी शिकायत शिक्षा अधिकारियों से कर चुके हैं, पर कार्रवाई नहीं हुई। बिलासपुर जिले के मस्तूरी में स्कूल के बाहर शराब पीकर लुढक़े शिक्षक को लेकर कई शिकायत सरपंच और छात्र-छात्रा कर चुके थे, पर उन्हें ब्लॉक शिक्षा अधिकारी बचा रहे थे। कार्रवाई तब हुई जब वीडियो वायरल हुआ और मीडिया ने दबाव बनाया। दुल्लापुर के इस प्रधान-पाठक पर भी अधिकारी कार्रवाई करने बच रहे हैं। इनका काम स्कूलों का नियमित निरीक्षण करना भी है। पर शिकायत छात्रों और पंच-सरपंचों की शिकायत भी काम नहीं आ रही है। पूरे प्रदेश में जिस तरह शिक्षकों में शराबखोरी कर स्कूल आने की शिकायतें बढ़ रही है, उसके लिए इन अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराने की चेतावनी जारी क्यों नहीं की जानी चाहिए?
सांप का खेल नहीं शिकार...
कोरबा जिले के करतला ब्लॉक का वीडियो कल से खूब वायरल हो रहा है। एक खेत के पानी में अहिराज सांप छोटे आकार के दूसरे सांप को खाते हुए दिख रहा है। छोटा सांप खुद को छुड़ाने की कोशिश में है, जबकि बड़ा सांप उसे निगलने की। इस प्रयास में एक दूसरे से लिपटे दोनों सांप चकरी की तरह काफी देर तक घूमते रहे। दृश्य किसी खेल का लगा पर, छोटे सांप को अपनी जान गंवानी पड़ी और अहिराज को आहार मिल गया।
स्कूलों में बदहाली का हाल ऐसा
छत्तीसगढ़ में जगह-जगह स्कूल शिक्षक शराब पीकर स्कूल आ रहे हैं, और कुछ मामलों में तो स्कूल में बैठकर भी शराब पी रहे हैं। दोनों ही किस्म की तस्वीरें दिल दहला रही हैं कि बेरोजगारी वाले इस देश-प्रदेश में जिन्हें नौकरी मिली है वे इसके महत्व से किस हद तक बेपरवाह हैं। दूसरी तरफ फिक्र की बात यह भी है कि जिनका बच्चों से सीधा वास्ता पड़ता है, वे भी इस तरह दारू पीकर आ रहे हैं, या बच्चों के सामने स्कूल में दारू पी रहे हैं। ऐसे कई फोटो और वीडियो खबरों में आने के बाद भी राज्य सरकार का स्कूल शिक्षा विभाग नहीं जागा है। लेकिन एक जिले, आदिवासी इलाके जशपुर के जिला शिक्षा अधिकारी ने सभी कर्मचारियों-अधिकारियों को एक नोटिस जारी किया है कि वे सरकारी कर्मचारियों के आचरण नियम 1965 के तहत एक घोषणा पत्र पर दस्तखत करके जमा करें। इस नोटिस में लिखा गया है कि प्राय: यह देखा जा रहा है कि ड्यूटी के दौरान ही शासकीय सेवक दारू पीकर दफ्तर या स्कूल में आ रहे हैं जिससे वातावरण खराब हो रहा है, और छात्र-छात्राओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए यह घोषणा भरकर जमा करें कि वे ड्यूटी के दौरान या सार्वजनिक रूप से शराब नहीं पिएंगे।
तब तो बस एक मुद्दा काम करेगा...
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ सनसनीखेज दस्तावेज सामने लाकर कांग्रेस ने चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर ला दिया है। उन पर झारखंड में पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध दर्ज होने का दावा किया गया है। चूंकि आरोप प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की ओर से सीधे लगाया गया है इसलिए इसकी सत्यता की ठीक तरह से जांच जरूर की गई होगी। भाजपा प्रत्याशी ने आरोपों को बेबुनियाद बताया है। पार्टी अपने उम्मीदवार के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है। संभवत: भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से ही इसका जवाब आएगा। पर, आरोप लगाने का जो दिन कांग्रेस ने तय किया वह भी खास है। यह दिन है स्क्रूटनी हो जाने और नामांकन वापस लेने के पहले का। नामांकन पत्रों की जांच के दौरान आपत्ति नहीं की गई, हो सकता है तब तक दस्तावेज कांग्रेस के हाथ नहीं आ पाए हों। कांग्रेस ने जानकारी छिपाने की वजह से नेताम का नामांकन रद्द करने की मांग की है, पर जानकार बताते हैं कि चूंकि जांच की प्रक्रिया के दौरान आपत्ति नहीं की, इसलिए चुनाव आयोग शायद ही इस मांग को माने। भाजपा के पास अब प्रत्याशी बदलने का भी वक्त नहीं है। भाजपा यदि इस हमले का ठीक तरह से जवाब नहीं दे पाएगी तो बाकी मुद्दे गौण हो जाएंगे और पूरा प्रचार अभियान नेताम के खिलाफ लगे आरोपों और उसकी सफाई के इर्द-गिर्द तक ही सीमित रह जाएगा।
सांसदों के आदर्श गांव किस हाल में हैं?
केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना सांसद आदर्श ग्राम योजना भी है। सन् 2014 में जब मोदी सरकार का पहला कार्यकाल शुरू हुआ था तो सांसदों को एक-एक ग्राम गोद लेने के लिए कहा गया था। यह निर्देश अक्टूबर 2015 में जारी हुआ। उसके बाद सन् 2016 में फिर एक और उसके बाद 2017 में फिर एक ग्राम। इस तरह से उस कार्यकाल में तीन ग्रामों को गोद लिया जाना था। इसी तरह दूसरे कार्यकाल में सांसदों को एक-एक गांव को गोद लेना था। सरकारी वेबसाइट में जो नवीनतम रिपोर्ट दिखाई गई है, उसके अनुसार छत्तीसगढ़ के 23 गांवों की रैंकिंग में शामिल किया गया है। जुलाई माह की एक रिपोर्ट दिखाई दे रही है जिसमें अधिकांश सांसदों ने कहा है कि कोरोना के दौरान सांसद निधि के आवंटन में अवरोध आ जाने के कारण गोद गांवों के विकास नहीं हो सके। सांसदों ने यह भी बताया है कि किस तरह वहां उन्होंने पेयजल, सामुदायिक भवन, सडक़ आदि के लिए राशि आवंटित किए हैं। हर तीन माह में इन गांवों की समीक्षा होनी चाहिए पर ज्यादातर सांसद ऐसी बैठकें नहीं ले रहे हैं।
दूसरी तरफ इसके लक्ष्य सडक़, पेयजल, भवन तक सीमित नहीं है। यह तो दूसरे मदों से भी होता रहता है। सरकार ने आदर्श ग्राम के लक्ष्य इस तरह बताए हैं- समाज के सभी वर्ग की भागीदारी से ग्राम की समस्याओं का समाधान किया जाए। अंत्योदय का पालन हो- यानि सबसे गरीब या कमजोर का सबसे पहले विकास हो, महिलाओं के लिए सम्मान हो, लैंगिक समानता हो, श्रम की गरिमा हो, सफाई की संस्कृति हो, लोग प्रकृति के सहचर बनें, विरासत को सहेजें, सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता, जवाबदेही, ईमानदारी हो, शांति सद्भाव को बढ़ावा दिया जाए, संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकार और कर्तव्य का पालन हो..आदि, आदि। अब आप चाहें तो सांसद के किसी गोद लिए गांव को ढूंढें और पता करें कि वहां क्या स्थिति है। [email protected]
सुविधाओं के हक़ की लड़ाई
सरकार ने निगम-मंडलों में थोक में नियुक्तियां कर दी है। अब नवनियुक्त पदाधिकारी साधन-सुविधाओं के लिए मशक्कत कर रहे हैं। ऐसे ही एक संस्थान में चेयरमैन, और बाकी पदाधिकारियों के बीच तनातनी चल रही है।
सुनते हैं कि चेयरमैन नहीं चाहते कि बाकी पदाधिकारियों को गाड़ी, अन्य सुविधाएं मिले। उन्होंने नियमों का हवाला देकर पदाधिकारियों को टरकाने की कोशिश की, लेकिन पदाधिकारी अड़ गए। उन्होंने संस्थान में साधन-सुविधाओं के मद का सारा ब्यौरा चेयरमैन के पास रख दिया, लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
नवनियुक्त पदाधिकारियों ने इशारों-इशारों में संकेत दे दिए हैं कि यदि वाहन, और अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई, तो चेयरमैन का काला चिट्ठा खोल देंगे। 25 तारीख को संस्थान के बोर्ड की बैठक है। इसमें सुविधाओं पर बात होगी। अगर पदाधिकारियों की इच्छानुसार फैसला नहीं हुआ, तो चेयरमैन के खिलाफ मोर्चा खुल सकता है। ऐसे में संस्थान के दबे छिपे राज भी बाहर निकल सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चुनाव पर खराब सडक़ों का साया
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में कांटे की टक्कर के संकेत है। चर्चा है कि इलाके की खराब सडक़ें कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। भानुप्रतापपुर इलाके में आयरन ओर की माइंस के चलते रोजाना सैकड़ों ट्रकों की आवाजाही रहती है। इसकी वजह से इलाके के सडक़ों की हालत खराब है। ज्यादातर जगहों पर नई सडक़ों का निर्माण नहीं हुआ है। इससे ग्रामीण परेशान हैं। ऐसे में कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं को डर है कि खराब सडक़ों का गुस्सा मतदाता मतदान में न निकाल दे। फिलहाल इससे निपटने के तमाम उपायों पर चर्चा चल रही है।
मजदूर स्कूली बच्चे
स्कूलों में पानी भरवाने झाड़ू लगवाने और प्लेट धोने का काम बच्चों से लेने कि कई मामले पहले सामने आते रहे हैं पर ईंट ढोने जैसा भारी भरकम काम पर लगाने में भी अब शिक्षक नहीं झिझक रहे हैं। यह तस्वीर अंबागढ़ चौकी तहसील की छाछनपहरी हायर सेकेंडरी स्कूल की है। छात्रों को एक मालवाहक में लदे ईंटों को उतारकर रखने के काम में लगाया गया है। बच्चों का कहना है कि आए दिन उनको प्रधान पाठक इसी तरह का काम कराते हैं और नहीं करने पर फेल कर देने की धमकी देते हैं।
क्रिप्टो करंसी गिरने की दहशत
दुनिया भर में क्रिप्टो करेंसी के धराशायी होने का असर छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है। पिछले केंद्रीय बजट में इस वर्चुअल करेंसी को खरीदने वालों की पहचान उजागर करने की बाध्यता तय की गई थी। साथ ही इसके मुनाफे पर 30 प्रतिशत टैक्स लगाया गया। इसके बावजूद इसमें लोगों ने निवेश करना नहीं छोड़ा। अभी जो एफटीएक्स डिजिटल करेंसी कंपनी दिवालिया हुई है, उसमें पैसे लगाने वाले छत्तीसगढ से कम लोग हैं। यहां से ज्यादा रकम बिटकॉइन में गई है। पर एफटीएक्स के हश्र को देखकर इनमें घबराहट दिखाई दे रही है। अब भविष्य के मुनाफे की चिंता को छोड़ अपनी लगाई हुई रकम को लोग बाहर कर रहे हैं। कोरबा जिले के एक शख्स ने इसमें कुछ करोड़ रुपए डाले। दी तीन साल तक वे इस रकम को हाथ नहीं लगाना चाहते थे। पर इस समय सारी रकम निकालने में लगे हुए हैं। ([email protected])
कांग्रेस में एक नया दर्जा
राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा में उनके साथ चलने की हसरत रखने वालों की राह आसान नहीं है। कड़ी हिफाजत के चलते बहुत ही सीमित लोगों को साथ चलने की इजाजत मिलती है। पार्टी के लोग एक-एक नाम का वजन और उसकी जरूरत तौलते हैं, और सुरक्षा अधिकारी तय करते हैं कि किस जगह कितने लोगों को साथ चलने की इजाजत दी जा सकती है। अब राहुल गांधी छत्तीसगढ़ से तो गुजर नहीं रहे, लेकिन विभाजन के पहले के मध्यप्रदेश वाले हिस्से से जरूर गुजर रहे हैं। इतिहास पर थोड़ा सा हक जताते हुए छत्तीसगढ़ के कई कांग्रेस नेता मध्यप्रदेश में राहुल के साथ चलना चाहते हैं, लेकिन वहां अपना नाम फिट करवाने का कोई जुगाड़ लोगों को दिख नहीं रहा है। छत्तीसगढ़ के लोगों को एक छोटी सी सहूलियत यह है कि राहुल की पदयात्रा में दिग्विजय सिंह का खासा दखल है, और छत्तीसगढ़ के हर बड़े कांग्रेसी का दिग्विजय से परिचय भी है। लेकिन अभी-अभी इंदौर में राहुल गांधी को बम से उड़ा देने की जो धमकी सामने आई है, उसे गंभीरता से लेते हुए पुलिस और राहुल के निजी सुरक्षा अधिकारी अधिक चौकन्ने हो गए हैं, और साथ चलने की इजाजत मिलना नामुमकिन नहीं तो बहुत मुश्किल तो हो ही गया है। अब देखें की पार्टी के भीतर यह नई सामाजिक प्रतिष्ठा, यह नया वीवीआईपी दर्जा किन और कितने लोगों को मिल पाता है, और कितने लोग राहुल के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पाते हैं, और घर-दफ्तर में टांग पाते हैं।
कांग्रेस के एक जानकार ने बताया कि राहुल गांधी सुबह 6 बजे से चलना शुरू कर देते हैं, और हर दिन 25 किलोमीटर तक चलते हैं, उतना चलना भी नेताओं के लिए आसान नहीं है। फिर भी अगर इस बहाने नेता पैदल चलने का अभ्यास करते हैं, तो पार्टी के भीतर प्रतिष्ठा में सुधार हो न हो, सेहत में सुधार तो हो ही जाएगा। मध्यप्रदेश में राहुल के साथ चलने के लिए वहीं के कांग्रेस नेताओं में कड़ा मुकाबला है, और ऐसे में छत्तीसगढ़ के नेताओं में से जाने कितनों की बारी आ पाएगी।
फिलहाल तो कल महाराष्ट्र से राहुल की सभा की जो तस्वीरें निकलकर सामने आई हैं, वे हक्का-बक्का कर रही हैं। महाराष्ट्र की सभा की ठीक पहले राहुल ने सावरकर पर बयान देकर भाजपा-शिवसेना में एक नया बवाल खड़ा कर दिया है, लेकिन इसके बाद भी महाराष्ट्र की उनकी सभा में जो भीड़ दिख रही है, वह अविश्वसनीय है। वे किसी भी पैमाने पर बहुत अच्छे और असरदार वक्ता नहीं हैं, लेकिन सभा में अगर लाख या लाखों लोग पहुंचे हैं, तो यह किसी की भी उम्मीद से अधिक है। बहुत से लोगों ने तो यह भविष्यवाणी की थी कि जैसे-जैसे राहुल उत्तर की तरफ बढ़ेंगे, यात्रा का स्वागत करने वाले लोग घटते जाएंगे। लेकिन हो तो ठीक इसका उलटा रहा है।
यह व्यवस्था कुछ नई है!
आईपीएस अफसरों की ट्रांसफर की छोटी सी लिस्ट आई तो वह सबको हैरान करने वाली थी। डीजीपी की कुर्सी से हटाकर कौशल्या माता मंदिर के बगल में चंदखुरी पुलिस अकादमी भेजे गए डी.एम. अवस्थी को ईओडब्ल्यू और एसीबी के नाजुक दफ्तर वापिस लाया गया है। वे कई महीनों से हाशिए पर थे, और अब इस सरकार के लिए सबसे अहमियत रखने वाले एक दफ्तर में स्थापित किए गए हैं। दिलचस्प यह है कि भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनते ही डी.एम. अवस्थी को ही ईओडब्ल्यू-एसीबी का चार्ज दिया था, और उसके बाद इस दफ्तर में कई अफसर आए-गए। अब इस कुर्सी को डीजी के स्तर का बनाकर एक बार फिर डी.एम.अवस्थी को यहां लाया गया है। डी.एम.अवस्थी अगले छह महीने में रिटायर होने वाले हैं, और नौकरी के इस दौर में बहुत से लोग रिटायरमेंट के बाद की किसी आयोग वगैरह की तैनाती की तैयारी भी कर लेते हैं।
इसी आदेश में यह भी पहली बार हुआ है कि किसी आईजी को राजधानी रायपुर की रेंज में केवल रायपुर जिले का प्रभारी बनाया गया है। अजय यादव को सरगुजा से लाकर आईजी इंटेलीजेंस बनाया गया है, और राजधानी-जिले का रेंज आईजी भी। शेख आरिफ हुसैन को रायपुर रेंज का प्रभारी आईजी तो बनाया गया है, लेकिन राजधानी रायपुर का जिला उनके दायरे से बाहर रखा गया है। यह फैसला कुछ अलग किस्म का है, और रायपुर की राजनीतिक गतिविधियों के इस चुनावी बरस को ध्यान में रखते हुए किया गया दिखता है कि आईजी इंटेलीजेंस को रायपुर जिले का रेंज-प्रभार भी दिया गया। अजय यादव कुछ समय पहले तक रायपुर के एसएसपी थे, और अब ठीक उसी जिले के, उतने जिले के ही आईजी भी हैं।
लोगों ने याद किया कि जब पिछली सरकार में मुकेश गुप्ता को इंटेलीजेंस प्रमुख के साथ-साथ रायपुर रेंज में रायपुर जिले का भी आईजी का प्रभार दिया गया था, उस वक्त भी रायपुर रेंज के बाकी जिलों का आईजी प्रभार आर.के.विज को अतिरिक्त प्रभार के रूप में दिया गया था जो कि उस वक्त दुर्ग रेंज के आईजी भी थे।
विस्फोट की अंतर्राष्ट्रीय गूंज
कुसमुंडा खदान में कोयला निकालने के लिए किए गए विस्फोट की गूंज दूर तक पहुंच गई है। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्यकर्ता 12 वर्षीय लिसिप्रिया कंगुजम ने इस ब्लास्ट पर चिंता जताते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है कि एक तरफ भारत न केवल कोयला बल्कि सभी जीवाश्म इंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आह्वान कर रहा है वहीं दूसरी तरफ कल ही कुसमुंडा खदान में भारी ब्लास्ट की गई है। हाल ही में हसदेव अरण्य में नई खदानों की मंजूरी के खिलाफ चल रहे स्थानीय आदिवासियों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए लिसिप्रिया सरगुजा और बिलासपुर भी आई थीं।
निर्दलीय बने कांग्रेस की चिंता
भानुप्रतापपुर उप चुनाव में सर्व आदिवासी समाज की यह योजना पूरी नहीं हुई कि कांग्रेस भाजपा के आरक्षण पर रवैये के विरोध में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से एक उम्मीदवार खड़ा किया जाए। योजना 450 नामांकन दाखिल करने की थी लेकिन 50 तक भी नहीं पहुंच सका। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फॉर्म भरने वाले इन 33 लोगों में से 16 के ही फॉर्म सही मिले। ज्यादातर नामांकन दस्तावेजों के अभाव में या फिर नामांकन ठीक तरह से नहीं भरे जाने के कारण रद्द हुए। कांग्रेस सरकार के बचे हुए एक साल के कार्यकाल में होने वाला यह संभवत: अंतिम उप-चुनाव है। बीते चार सालों के चार उप-चुनावों में मिलती आई जीत का सिलसिला वह बरकरार भी रखना चाहेगी। पर अभी जो निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में नजर आ रहे हैं, वे उनको नुकसान पहुंचा सकते हैं। मालूम यह हुआ है कि सर्व आदिवासी समाज के जिन 16 प्रत्याशियों का नामांकन सही पाया गया है उनमें से 12 कांग्रेस से ही जुड़े रहे हैं। सिर्फ दो भाजपा से आए हैं और शेष दो किसी दल से नहीं जुड़े थे। अभी नामांकन वापसी का समय बचा हुआ है। भाजपा तो चाहेगी कि निर्दलीय मैदान में डटे रहें। इससे कांग्रेस वोट कटेंगे। इधर कांग्रेस की कोशिश जारी है कि 16 में से कम से 12 को तो नाम वापस लेने के लिए मना लिया जाए।
चूहा, बिल्ली, शेर के किस्से
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भानुप्रतापपुर में भाजपा के नामांकन के दौरान एक किस्सा सुनाया था कि एक चूहे ने बार-बार वरदान मांगा तो साधु ने उसे शेर बना दिया। शेर बन जाने के बाद चूहा साधु को ही खाने पर उतारू हो गया। साधु ने गंगाजल छिडक़ा और उसको फिर से चूहा बना दिया। डॉ. सिंह ने जनता से अपील की कि चूहे को फिर चूहा बना दें, मौका आ गया है। उनका इशारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ओर था। मुख्यमंत्री ने इस पर प्रतिक्रिया भी दी कि छत्तीसगढिय़ा मुख्यमंत्री डॉ. सिंह को पच नहीं रहे हैं इसलिए कभी कुत्ता, कभी बिल्ली कभी चूहे का नाम ले रहे हैं। इसके बाद ही खाद्य मंत्री अमरजीत भगत की प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने मोटापे को भ्रष्ट होने की पहचान बताया और कहा कि डॉ. सिंह 15 साल में चूहे से शेर बन गए हैं।
चुनाव आने के पहले बेतुके, अजीबोगरीब, विवादित बयान बढ़ जाते हैं। अभी तो भानुप्रतापपुर में सिर्फ नामांकन दाखिले की प्रक्रिया पूरी हुई है। अभी पूरा चुनाव प्रचार बाकी है। स्टार प्रचारक भी पहुंचेंगे। हम-आप आगे और सुनते, बर्दाश्त करते रहने के लिए तैयार रहें, जरूरी और गंभीर चर्चा की उम्मीद न रखें।
एक और अफसर को गृह राज्य में पद
छत्तीसगढ़ में काम कर चुके पश्चिम बंगाल कैडर के आईएएस पी रमेश कुमार आंध्रप्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर काबिज हो गए हैं। रमेश कुमार आईएएस के 86 बैच के अफसर हैं, और पश्चिम बंगाल में एसीएस के पद से रिटायर हुए। रमेश कुमार छत्तीसगढ़ में प्रतिनियुक्ति पर 5 साल काम कर चुके हैं। यहां वो उद्योग, महिला बाल विकास, और उच्च शिक्षा सचिव रहे हैं।
बताते हैं कि रमेश कुमार आंध्रप्रदेश के कड़प्पा जिले के रहने वाले हैं, और यह सीएम जगनमोहन रेड्डी का गृह जिला है। कई प्रमुख दावेदारों को नजर अंदाज रमेश कुमार की नियुक्ति की गई। छत्तीसगढ़ कैडर के एक और अफसर राबर्ट हरंगडोला भी अपने गृह राज्य नागालैंड के मुख्य सूचना आयुक्त रहे हैं। राबर्ट हरंगडोला जोगी सरकार में गृह, और श्रम विभाग के प्रमुख सचिव के पद पर रहे। सालभर पहले ही हरंगडोला निधन हो गया।
और छत्तीसगढ़ सूचना आयोग
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में सूचना आयोग में एक कुर्सी खाली हो चुकी है, और दूसरी इसी महीने खाली होने जा रही है। इन दो कुर्सियों के लिए कई रिटायर्ड आईएएस और पत्रकार कतार में हैं, लेकिन इसकी बैठक में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष भी मौजूद रहते हैं, अभी तक इसके लिए सरकार के पास समय नहीं निकल पाया है। सूचना आयोग में कर्मचारियों की इतनी कमी है कि आदेश भी टाइप नहीं हो पाते। नये अध्यक्ष और सदस्य आ भी जाएंगे तो भी कतार में लगे हजारों केस तो नहीं निपट जाएंगे।
ऑनलाइन सट्टा प्रचार छत्तीसगढ़ी में
एक तरफ तो पुलिस संसाधन को होटल, दुकान, जंगल में छापा मारकर 10-20 हजार रुपये का जुआ पकड़ कर 8-10 लोगों को गिरफ्तार करने में लगाया जा रहा है, दूसरी तरफ ऑनलाइन सट्टा छत्तीसगढ़ के लोगों को कई गुना ज्यादा बर्बाद कर रहा है। इसमें हजारों लोग शामिल हैं और लाखों रुपये रोज गंवा रहे हैं, पर पुलिस सरगना तक पहुंच नहीं पाती है। महादेव और अन्ना रेड्डी सट्टा खिलाने वाले अरबों रुपये हड़प रहे और इंटरनेशनल लेवल पर रैकेट चला रहे हैं। यहां के पढ़े-लिखे बेरोजगार कुछ रुपयों की लालच में जुड़ गए वे धरे जा रहे हैं। इनसे प्रेरणा लेकर छोटे-छोटे स्थानीय उस्ताद भी पैदा हो गए हैं। वे वाट्सएप के जरिये सट्टा खिला रहे हैं। आईपीएल और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में करोड़ों रुपये का कारोबार होता है, पर दो चार ही पुलिस की पकड़ आते हैं।
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में एक सख्त गाइडलाइन टीवी चैनलों, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल मीडिया और न्यूज वेबसाइट्स के लिए जारी की थी कि ऑनलाइन विदेशी सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म का छद्म प्रचार हो रहा है। इस पर रोक नहीं लगी तो मंत्रालय कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करेगा। पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। किसी पोर्टल को खोलें तो बैनर में यही विज्ञापन दिखता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे लेकर पिछले महीने ही चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि अभी सख्त कानून नहीं होने के कारण अपराधियों को खौफ नहीं है, जल्दी ही जमानत पर छूट जाते हैं। केंद्र यदि सख्त आईटी कानून बनाता है, तो हम साथ हैं। अक्टूबर में जारी केंद्र की गाइडलाइन विफल दिखाई ही नहीं पड़ रही है बल्कि सट्टेबाज अब हमारे और पास आ रहे हैं। गांव-गांव तक पहुंचने के लिए वाट्सएप और सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफॉर्म पर छत्तीसगढ़ी बोली का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी आकर्षक बातें कि मजदूर, रिक्शा चालक, गृहणियां भी ललचा जाएं। लोगों को लगता है कि जब अपने आसपास का व्यक्ति हमारी अपनी बोली में हजारों रुपये जीतने की बात कर रहा है तो क्यों नहीं आजमाया जाए।
सीएसआर और अस्पताल
अकलतरा के विधायक सौरभ सिंह ने अभी प्रदेश के एक सबसे बड़े उद्योग बालको का एक कागज जुटाया है जिसमें उसके पिछले बरस के सीएसआर के खर्च का करीब 90 फीसदी सिर्फ बालको मेडिकल सेंटर पर खर्च हुआ है। 47.41 करोड़ का कुल सीएसआर खर्च हुआ जिसमें से 44.05 करोड़ बालको मेडिकल सेंटर को दिया गया। अब बिलासपुर में एयरपोर्ट के लिए आंदोलन कर रहे लोगों ने इसके खिलाफ नाराजगी जताई है कि सारा पैसा बालको ने अपने ही अस्पताल पर खर्च कर दिया। कुछ ने यह भी लिखा कि कार्पोरेट सोशल रिस्पॉंसिबिलिटी के नाम पर बालको ने अपने ही अस्पताल को दान दिया।
लोगों की भावनाएं भडक़ने में देर नहीं लगती। कोरबा में चल रहे इस उद्योग के सीएसआर की छोटी सी रकम कोरबा में खर्च हुई है, इसलिए वहां के लोगों को भी निराशा हो सकती है। लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि बालको का रायपुर का अस्पताल चैरिटेबल अस्पताल है, और कैंसर का छत्तीसगढ़ का एक सबसे बड़ा अस्पताल है। छत्तीसगढ़ में कैंसर मरीजों के लिए यह एक बड़ी सहूलियत है, और ऐसे अस्पताल को चलाने का काम सस्ता नहीं होता है, उसमें बड़ी रकम लगती है, और अगर कोई उद्योग अपने सीएसआर को कई जिलों में छोटे-छोटे कामों में बांटने के बजाय उससे प्रदेश स्तर का एक बड़ा अस्पताल चला रहा है, तो उसके महत्व को भी समझने की जरूरत है। ऐसा बड़ा विशेषज्ञ सहूलियतों वाला अस्पताल छोटी लागत से न बन सकता, न वह छोटे खर्च से चल सकता। इस अस्पताल में साल भर में 8 हजार से अधिक कैंसर मरीजों का इलाज हो रहा है, जिसमें से बालको के कर्मचारी कुल 8 या 10 हैं। अब कैंसर के मरीज और उनके परिवार जानते हैं कि ऐसे अस्पताल की कितनी जरूरत है।
एक नए कारोबार की संभावना
अभी महाराष्ट्र के एक किसी कारोबारी प्रदर्शनी की एक तस्वीर सामने आई है जिसमें एक कंपनी के स्टॉल के सामने एक अर्थी रखी हुई है। अब यह नजारा देखने में अटपटा लग रहा है, लेकिन कंपनी का नाम, सुखांत फ्यूनरल मैनेजमेंट प्रा.लि., बताता है कि यह अंतिम संस्कार का इंतजाम करने वाली कंपनी है। अब पश्चिम के देशों में तो अंतिम संस्कारों के लिए पेशेवर लोग रहते हैं जो कि शव को ताबूत में सजाने का काम भी करते हैं, और शव वाहन से लेकर दफन तक का पूरा इंतजाम करते हैं। यह अब हिन्दुस्तान के हिन्दू धर्म के अंतिम संस्कार में भी पहुंच गया पेशा दिखता है। शहरीकरण के साथ-साथ लोगों की जिंदगी में इतना समय भी नहीं रहता कि अंतिम संस्कार की सारी दौड़-भाग पूरी कर सकें, ऐसे में अगर कोई पेशेवर कंपनी सारा इंतजाम अच्छे से कर सके, तो यह एक नया कारोबार हो सकता है। कुछ बेरोजगार लोग इससे नसीहत ले सकते हैं। [email protected]
दूध से जले रणनीतिकार
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा ने पूर्व विधायक ब्रह्मानंद नेताम को प्रत्याशी बनाकर तगड़े मुकाबले के संकेत दिए हैं। ब्रह्मानंद सीधे-सरल, और मिलनसार हैं। उनकी आम मतदाताओं के बीच साख अच्छी है। इससे परे पार्टी के अंदरखाने में उन नेताओं पर पैनी नजर रखने की रणनीति बन रही है, जो भीतरघात कर सकते हैं। इनमें दो प्रभावशाली ट्रांसपोर्टर भी हैं, जो कि पार्टी में ऊंचे ओहदे पर रहे हैं। एक ट्रांसपोर्टर तो पिछली सरकार में इतने पॉवरफुल रहे हैं कि भानुप्रतापपुर इलाके के खदानों में गाडिय़ां किसकी लगेगी ये भी वो ही तय करते थे।
सुनते हैं कि भाजपा के रणनीतिकार खैरागढ़ उपचुनाव की तरह कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। खैरागढ़ में जिस बड़े नेता को चुनाव संचालक बनाया गया था उनके ही साले ने खुलकर भीतरघात किया था। चुनाव निपटने के बाद सारे तथ्य सामने आए, और साले को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। कुछ ऐसी ही स्थिति भानुप्रतापपुर में बन सकती है। क्योंकि दोनों ट्रांसपोर्टरों के व्यावसायिक हित भी हैं। ऐसे में दूध से जले रणनीतिकार अब छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीने को मजबूर हैं।
आदिवासी सीट पर ओबीसी वोटर
भानुप्रतापपुर वैसे तो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है, लेकिन यहां पिछड़े वर्ग के साहू, और कलार मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष खुद साहू समाज से आते हैं। ऐसे में उनकी साहू वोटरों को भाजपा के पाले में लाने की कोशिश होगी।
कांग्रेस ने भी सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर उन समाज के प्रभावशाली नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारने की रणनीति बना रही है। आदिवासी आरक्षण कटौती के मसले पर राजनीति पहले ही गरमाई हुई है। ऐसे में उपचुनाव के नतीजे समाज के नेताओं की जमीनी ताकत को भी साबित करेंगे।
छत्तीसगढ़ सुगबुगाहट का शिकार
हिन्दुस्तान में सभी किस्म की संस्थाओं की साख इतनी कम हो गई है कि अदालतों की चर्चा होने पर लोग यह सोचने लगते हैं कि कौन से जज किसकी तरफ फैसले देंगे। लोग यह चर्चा भी बहुत आसानी से करने लगते हैं कि कौन से जज किनसे सेट थे। अब यह तो भारतीय लोकतंत्र में सभी संवैधानिक संस्थाओं की गिरती हुई साख का नतीजा है कि सरकारों का भ्रष्ट रहना तय माना जाता है, सांसद सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेते पकड़ाते हैं, और जज अदालत के बाहर का अपना पहला पांव संसद या राजभवन के भीतर धरना चाहते हैं। ऐसी चाहत और साख साथ-साथ तो चल नहीं सकते। अभी जब छत्तीसगढ़ के कुछ बड़े-बड़े मामले देश की सबसे बड़ी अदालत में खड़े हुए हैं, तो लोगों की अटकलें सिर चढक़र बोल रही हैं। लोगों को इन मामलों से जुड़े हुए लोगों की ताकतों पर अधिक बड़ा भरोसा दिखता है, जजों की साख पर कम। यह नौबत शर्मनाक इसलिए भी है कि जज सांसदों या विधायकों की तरह बिकते हुए अभी तक नहीं मिले हैं, और थोड़े-बहुत इंसाफ की उम्मीद कुछ लोगों को अभी भी बाकी है। लेकिन यह सिलसिला लोकतंत्र की साख के लिए बड़ा ही खतरनाक है, और छत्तीसगढ़ ऐसी सुगबुगाहट का शिकार है।
अब तैनाती चुनाव तक
छत्तीसगढ़ में जिलों और अलग-अलग इलाकों में तैनात बड़े-बड़े अफसरों में एक फेरबदल की चर्चा है। इस फेरबदल का एक बड़ा पैमाना यह भी रहेगा कि चुनाव आचार संहिता लगने के दिन किन अफसरों को उनकी कुर्सी पर तीन बरस हो जाएंगे। वैसे में चुनाव आयोग ही उन्हें हटा देगा, और नए अफसर आयोग की मर्जी से तैनात होंगे। इसलिए यह सत्तारूढ़ पार्टी के हित में रहता है कि वह ऐसा दिन आने के पहले मर्जी के लोगों को तैनात कर दे। और मर्जी के लोगों के साथ-साथ यह बात भी रहती है कि चुनाव तक ऐसे अफसर अपने जिले, संभाग या पुलिस की रेंज को सम्हाल भी सकें। इसलिए एक साल से कम समय के लिए यह तैनाती ठीक चुनाव को ध्यान में रखकर की जाएगी। चुनाव का माहौल ऐसा रहता है कि राजनीतिक दलों को अफसरों की कई किस्म की मेहरबानी की जरूरत रहती है।
गुरुवार, शुक्रवार और मास्टर प्लान
राजधानी के मास्टर प्लान को लेकर आवास पर्यावरण मंत्रालय और नगर निवेश डायरेक्टोरेट के मध्य जबरदस्त खींचतान चल रही है। सूत्रों की मानें तो मास्टर प्लान जारी करने के 24 घंटे पहले तक इसमें बदलाव किए जाते रहे हैं। जो प्लान शुक्रवार को घोषित किया गया है उसमें, और जो गुरुवार तक बनाया गया था उसमें जमीन से आसमान जैसा फर्क है। पूर्व में प्रकाशित मास्टर प्लान की पुस्तिकाएं दफ्तर में पड़ी हुई है और घोषित प्लान में पन्ने जोड़-जोडक़र तैयार किया गया है। इसे लेकर मंत्रालय, सचिवालय तक के आला पदाधिकारी नाराज ही नहीं आक्रोशित हैं। इसकी जानकारी अब तक ‘दाऊजी’ को भी नहीं दी गई है और विपक्ष भी अब तक सुध नहीं पाया है। 30 तारीख तक दावा-आपत्तियों के बाद और क्या गुल खिलेगा देखने वाली बात होगी।
हाथों-हाथ बिक जाने वाली फसल...
अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से पर्यटकों को सहज आकर्षित करने वाले मैनपाट पठार की भुरभुरी मिट्टी में इन दिनों टाउ की फसल लहलहा रही है और चारों ओर मादक खुशबू बिखर रही है। यह एक विदेशी फसल है, जिसे यहां के शरणार्थी तिब्बती करीब 60 साल पहले यहां लेकर आए थे। अब न केवल जशपुर बल्कि सरगुजा जिले के कुछ हिस्सों में भी करीब 3000 हेक्टेयर में यह खेती हो रही है। टाउ की फसल में कीड़े कम लगते हैं, गाय-बकरियां भी इसे खाती नहीं, अधिक पानी की जरूरत भी नहीं। ज्यादा देखभाल के बिना तीन माह में तैयार हो जाती है। देश के अलग-अलग हिस्सों से व्यापारी फसल पकते ही पहुंचते हैं और हाथों-हाथ खरीदकर ले जाते हैं। पर, वे जो मुनाफा कमाते हैं उसका काफी कम हिस्सा किसानों को मिलता है। जैसे- थोक में 4000 रुपये क्विंटल के आसपास होती है, जबकि इसका आटा दिल्ली में 150 रुपये किलो तक बिकता है। विदेशों में इसे निर्यात किया जाता है। वहां इसे बक व्हीट कहते हैं। इसमें प्रोटीन, एमिनो एसिड्स, विटामिन्स, मिनरल्स, फाइबर और एंटी आक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा होती है। ह्रदयरोग, डायबिटीज, कैंसर, लिवर में भी कारगर माना जाता है। इनके छिलकों का भी उपयोग गद्दे, तकिये बनाने में कर लिया जाता है। अक्टूबर में राज्य सरकार ने कई दलहनी-तिलहनी फसलों को समर्थन मूल्य पर खरीदने की घोषणा की, पर टाउ इनमें शामिल नहीं था। जून में मुख्यमंत्री ने जशपुर प्रवास के दौरान टाउ के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की घोषणा की थी। जशपुर में काजू, चाय के प्रोसेसिंग प्लांट पहले से काम कर रहे हैं। प्रोसेस्ड टाउ किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है। जशपुर में रामतिल, आलू, टमाटर, काजू सहित कई दूसरी फसलें बोई जाती हैं। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों की तरह यहां धान उत्पादन की बाध्यता और सरकारी खरीद पर निर्भरता नहीं है। मध्य छत्तीसगढ़ में धान की जगह दूसरी फसल लेने से किसान की हिचकिचाहट के पीछे एक स्थायी कारण है कि उनके सामने कैश में भुगतान करने के लिए व्यापारी खड़े नहीं होते। सरकारी खरीद के लिए इन फसलों के उपार्जन केंद्र भी धान की तरह हर जगह नहीं, गिने-चुने हैं।
भानुप्रतापपुर पर आप की खामोशी
छत्तीसगढ़ में चार साल के भीतर पांचवा उप-चुनाव भानुप्रतापपुर में होने जा रहा है। अब जब नामांकन दाखिले का सिलसिला शुरू हो गया है, आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजीव झा भानुप्रतापपुर के दौरे पर यह बताने के लिए पहुंचे थे कि उनका दल यहां से चुनाव नहीं लडऩे जा रहा है। बीते चुनाव में बिल्हा सीट के अलावा भानुप्रतापपुर ही ऐसी सीट थी जिनमें आप 10 हजार के करीब का आंकड़ा छूने में सफल थी। पूरे प्रदेश में उसे 1.25 लाख के आसपास वोट मिल पाए थे, जबकि जमानत कहीं भी नहीं बची थी। पर अब स्थितियां बदल चुकी हैं। दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बन चुकी है। गुजरात में अच्छे प्रदर्शन की संभावना दिख रही है। मुंगेली के संदीप पाठक को राज्यसभा में भेजकर पार्टी ने छत्तीसगढ़ पर फोकस करने की अपनी मंशा दिखाई है। पर, खैरागढ़ के बाद यह दूसरा विधानसभा चुनाव है, जहां उसे मैदान में उतरने का मौका और खुद को तौलने का मौका था। पर, यदि लडऩे के बाद फिर पिछले चुनाव जैसी कमजोर स्थिति रह गई तो वह वर्ग जो तीसरे विकल्प को लेकर आम आदमी पार्टी से उम्मीद लगाकर बैठा है, उनका भरोसा डगमगा जाएगा। इसलिए अभी परदा उठाना ठीक नहीं है।
एफआईआर में इतनी देरी?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रमुख पूर्व विधायक अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी का गोंड जाति का प्रमाण-पत्र अवैधानिक है, यह निर्णय साल भर पहले आ चुका है। मगर, एफआईआर अब जाकर दर्ज की गई है। हाल ही में अमित जोगी ने यह बयान जरूर दिया है कि स्वर्गीय मनोज मंडावी से पारिवारिक संबंध होने की वजह से उनका दल वहां चुनाव नहीं लडऩे वाला है, पर कांग्रेस का रुख यही है कि इस फैसले से उन्हें कोई मतलब नहीं। जीपीएम जिले के प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल का तो कहना है कि जोगी की पार्टी ने मरवाही में भाजपा को समर्थन दिया, नतीजा यह निकला कि कांग्रेस 38 हजार वोटों से जीत गई।
दूसरी तरफ सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने सभी 90 सीटों से चुनाव लडऩे की मंशा घोषित कर दी है। जोगी ने कहा है कि कांग्रेस या भाजपा से गठबंधन नहीं किया जाएगा। इधर अपने गृह ग्राम जोगीसार में हर साल होने वाले नवाखाई कार्यक्रम की भी तैयारी भी वे कर रहे हैं। अभी यह आकलन करना मुश्किल है कि स्व. अजीत जोगी के जाने के बाद लगातार कमजोर हुई उनकी पार्टी को 2023 में कैसा समर्थन मिलेगा, पर लोग तो इस एफआईआर को अमित जोगी की अचानक आई सक्रियता से जोड़ रहे हैं।
एक अलग तरह का संयोग
भानुप्रतापपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री मंडावी चुनाव जीत जाती हैं, तो जिले की तीनों सीट को लेकर एक अलग तरह का संयोग बन सकता है। सावित्री पेशे से सरकारी शिक्षिका हैं, और वो नौकरी छोडकऱ चुनाव मैदान मेें उतरी हैं। जिले के दो अन्य सीट पर भी रिटायर्ड अफ़सर विधायक बने हैं। कांकेर सीट से रिटायर्ड आईएएस शिशुपाल सोरी विधायक हैं, तो अंतागढ़ सीट का प्रतिनिधित्व थानेदारी छोडकऱ सक्रिय राजनीति में आने वाले अनूप नाग कर रहे हैं।
ट्रेन क्या उडक़र आने वाली है?
जैसा कि रेलवे ने ऐलान किया है इन दिनों 22 गाडिय़ां रद्द चल रही हैं। 9 ट्रेनों को दूसरे रूट से भी चलाया जा रहा है। इनमें से 12810 हावड़ा-मुंबई मेल भी है। सुबह यह ट्रेन झारसुगुड़ा से अलग रास्ते से मुंबई की ओर मुड़ी। रेलवे की ऑनलाइन इंक्वारी सिस्टम ने चेक करने पर सुबह 9. 30 मिनट पर बताया कि यह दुर्ग में सही समय 9.40 तक पहुंच जाएगी। मगर यही ऐप यह भी बता रहा है कि ट्रेन 3.35 घंटे लेट करीब 7.30 बजे झारसुगुड़ा से छूटी है। यानि करीब दो घंटे में झारसुगुड़ा से दुर्ग पहुंच जाएगी, जिसकी दूरी करीब 350 किलोमीटर है। रेलवे ने अभी बिलासपुर डिवीजन में कुछ ट्रेनों को अधिकतम 130 किलोमीटर की रफ्तार से चलाने का ट्रायल किया है, सिर्फ ट्रायल। दुर्ग में यदि सचमुच ट्रेन सही समय पर पहुंच जाती तो उसे 175 किलोमीटर की रफ्तार से चलना होता। इसी तरह से 15 नवंबर को जो जानकारी रेलवे ने दी है उसके मुताबिक सुबह यह रेंगाली स्टेशन पर सुबह 8.10 बजे पर पहुंची थी और 8.40 को निर्धारित समय पर, बिना देर किए रायपुर पहुंच जाएगी। रेंगाली से रायपुर की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। यानि करीब 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार! एक यात्री ने रेलवे को ट्वीट कर पूछा है कि क्या ट्रेन उडक़र आने वाली है? पहले रेल मंत्री तक खुद ऐसे ट्वीट पढ लिया कर लेते थे, पर, लगता है अब ऐसी बाढ़ आ गई है कि जवाब मनुष्य नहीं, तकनीक से दिया जा रहा है। रेलवे ने ट्वीट के जवाब में लिखा है- आप अपना पीएनआर नंबर भेजिये, शिकायत की जांच कराएंगे।
गर्व की बात तो तब होगी जब..
छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे आदिवासियों की बहुलता वाले राज्यों में आदिवासी समुदाय ने कल जनजातीय गौरव दिवस मनाया। इस मौके पर पारंपरिक नृत्यों का भी शानदार प्रदर्शन किया। छत्तीसगढ़ में तो हाल ही में आदिवासी नृत्य महोत्सव भी हुआ। सरकारी आयोजनों में आदिवासी युवाओं के नृत्यों का अलग ही आकर्षण होता है। गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय समारोह उनकी भागीदारी के बिना अधूरा लगता है। पर, इसी समुदाय से आने वाले एक युवा की प्रतिक्रिया यह है- मेरे लिए आदिवासी गौरव दिवस वह दिन होगा, जब रांची, रायपुर, भोपाल जैसे एयरपोर्ट से 20 से 25 प्रतिशत ट्रैवलर्स आदिवासी होंगे। देश की समृद्धि में आज उनको कितना हिस्सा मिला है? आदिवासी बिजनेसमैन कितने हैं? आदिवासी सिर्फ नाचने के लिए नहीं हैं।
सतरंगी नकल
मोदी सरकार ने सात रंगों के नोट जारी किए हैं। लीक से हटकर ये ऐसे रंग हैं कि अभी लगातार इनके नकली नोट बने हुए मिल रहे हैं। दो हजार रूपये के नोट की नकल वाले आठ करोड़ के नोट अभी मुम्बई में पकड़ाए। और बच्चों के खेल के लिए भी तरह-तरह की नकल बाजार में है जिसमें से कई नोटों को लोग असली समझकर ले भी रहे हैं, और दे भी रहे हैं। ऐसा ही एक नोट दो सौ रूपये का मिला है जो हूबहू असली सरीखा है, ध्यान से देखने पर उसमें लिखी हुई बातें असली से अलग हैं। ऐसा नोट छापना जुर्म भी है, लेकिन यह धड़ल्ले से जारी भी है। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ हफ्ते पहले ही गुजरात की एक एम्बुलेंस से 25-50 करोड़ रूपये के दो हजार वाले नोट मिले थे जिनमें बारीक अक्षरों में फिल्म की शूटिंग के लिए छापना बताया गया था। वह भी जुर्म था। कम दाम वाले नकली नोट शाम के फुटपाथी बाजार में कम रौशनी में आसानी से खप सकते हैं, और जिन्हें देखने में थोड़ी सी दिक्कत है वे लोग धोखा खा सकते हैं।
कुछ तो बात है...
छत्तीसगढ़ की एक कलेक्टर जांच में घिरी हुई है, और ईडी की बहुत बड़ी तोहमत खनिज घोटाले की है। अब ऐसे में जब यह कलेक्टर बैठक लेकर अवैध खनिज परिवहन पर रोक लगाने का हुक्म देती है, तो वह समाचार कम कार्टून अधिक लगता है। कुछ तो बात ऐसे लोगों के हौसले में रहती है जो कि वे इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी मातहत लोगों से ईमानदारी की उम्मीद का हौसला रखते हैं।
भागवत का दौरा, भाजपा में सरगर्मी
दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा के अनावरण के लिए आरएसएस मुखिया मोहन भागवत जशपुर पहुंचे, तो उन्होंने जूदेव की पत्नी माधवी सिंह, और परिवार के अन्य सदस्यों से अलग से चर्चा की। सुनते हैं कि महीनेभर पहले जूदेव परिवार के सदस्यों से पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं ने बात की थी, और उनसे कहा कि वो पार्टी के एकजुट होकर काम करें, उनके मान-सम्मान का पूरा ख्याल रखा जाएगा।
दूसरी तरफ, जूदेव की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम में शिरकत करने पूर्व सीएम रमन सिंह, धरमलाल कौशिक, भूपेंद्र सवन्नी, नारायण चंदेल, और अमर अग्रवाल चार्टर प्लेन से रायपुर से जशपुर गए थे, और कार्यक्रम निपटने के बाद रायपुर लौट आए। एक अन्य ताकतवर पूर्व मंत्री जशपुर पहुंचे थे, और कार्यक्रम खत्म होने के बाद मोहन भागवत से अलग से मुलाकात की कोशिश की, लेकिन उन्हें उल्टे पांव यह कहकर लौटा दिया गया कि भागवत जी मिलने के इच्छुक नहीं है। कुल मिलाकर भागवत के दौरे के चलते भाजपा में काफी सरगर्मी देखने को मिली।
केशकाल एमएलए की गाड़ी राजधानी में
बस्तर में कई गांवों के लिए जिला ही नहीं, तहसील-जनपद और विधानसभा का मुख्यालय भी बहुत दूर पड़ता है। किसी काम के लिए अफसरों, दफ्तरों तक पहुंचना हो तो ग्रामीणों का कई बार पूरा दिन खप जाता है। अधिकारी- कर्मचारी इन गांवों में अपनी ड्यूटी नहीं करते। अस्पताल, स्कूल के दरवाजों में ताला लगा मिलता है। पक्की नौकरी वालों के खिलाफ शिकायत होगी तो ज्यादा से ज्यादा वे सस्पेंड हो जाएंगे, पर चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ तो ऐसा नहीं है। पांच साल बाद उन्हें जनता का सामना फिर से करना होता है। जनता चाहे दूर-दराज के गांवों में हों, वोट-समर्थन तो लेना होगा। अचानक चुनाव के समय चेहरा दिखाएंगे तो वे नाराज हो जाएंगे। केशकाल के विधायक संतराम नेताम इस बात को जानते हैं। उन्होंने ऐसी व्यवस्था की है कि ग्रामीणों को उनसे मिलने के लिए भटकना न पड़े। एक गाड़ी उन्होंने तैयार की है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अक्टूबर महीने में इसका लोकार्पण किया था। इस चलित वैन में वे गांवों का दौरा करते हैं, लोगों की समस्याओं को सुनते और यथासंभव वहीं सुलझाते भी हैं। गाड़ी के अंदर एक दो स्टाफ और छोटा सा दफ्तर भी है। मगर पिछले चार पांच दिनों से उनकी यह गाड़ी राजधानी रायपुर की एक सडक़ पर खड़ी है। मालूम हुआ कि एक महीने में ही गाड़ी इतनी चल गई कि उसे सर्विसिंग के लिए लाना पड़ा। पर सर्विसिंग का नंबर अभी नहीं लग पाया है। शायद, एक दो दिन बाद यह गाड़ी फिर केशकाल में दौड़े। सरकारी मोबाइल क्लीनिक इसी तरह दौड़ते हैं। समय-समय पर किसी खास सरकारी अभियान के लिए ‘रथ’ चलाई जाती है। क्यों नहीं दूसरे विभागों की भी इसी तरह की स्थायी मोबाइल गाडिय़ां गांवों में दौरे के लिए लगा देनी चाहिए।
हुंकार रैली कामयाब रही?
कोई राजनैतिक सम्मेलन चुनावी है या नहीं इसका अंदाजा लगाना तब आसान होता है जब भीड़ में शामिल लोगों से बात की जाती है। बिलासपुर की महतारी हुंकार रैली में स्मृति ईरानी के प्रवास के दौरान कांग्रेस, खासकर स्थानीय विधायक शैलेष पांडेय का अलग इन्वेस्टिगेशन चल रहा था। कुछ इलेक्ट्रॉनिक चैनल भी अलग से रिपोर्ट डाल रहे थे। इसके बाद सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए, जिनके जरिये कांग्रेस कार्यकर्ता यह बता रहे हैं कि महिलाओं को धोखा देकर लाया गया, उन्हें भूखा-प्यासा रखा गया। अपने-अपने इलाके के भाजपा नेताओं, जिनमें ज्यादातर निर्वाचित पंचायत और नगर निकायों के पदाधिकारी थे, के कहने पर वे आ गए। किस मुद्दे पर रैली है, कौन लीडर आ रहा है उसकी जानकारी उन्हें नहीं थी। प्राय: चुनावों के समय हर एक दल में ऐसी भीड़ दिखाई देती है। उन्हें रुपये भी देने के वीडियो वायरल हो जाते हैं। पर पता चला कि भाजपा की इस रैली में यह प्रावधान नहीं किया गया था। ऊपर से भी निर्देश था-अभी हिमाचल, गुजरात का चुनाव चल रहा है- अपने ही संसाधनों से भीड़ जुटाओ।
रैली में एक लाख लोगों को लाने की तैयारी थी, पर तटस्थ रिपोर्ट्स के मुताबिक संख्या भीड़ 18 से 20 हजार के बीच थी, जो कम नहीं थी। अपने लोकसभा क्षेत्र में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को शीर्ष नेताओं के सामने अपनी क्षमता साबित करनी थी, जिसमें वे एक हद तक सफल हुए। अब नेता प्रतिपक्ष की बारी है।
हर्ष को सीएम की दुलार..
इस कॉलम में कल बाल दिवस के मौके पर इस बच्चे की तस्वीर छपी थी। एम्स के बाहर मां उसे फुट पंप से ऑक्सीजन दे रही थीं। ब्लड कैंसर और ब्रेन ट्यूमर से पीडि़त इस बच्चे के बारे में कल अनेक मीडिया स्त्रोतों से खबर चली। उसके बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे को निर्देश दिया। अब जिला प्रशासन रायपुर की ओर से एक ट्वीट में बताया गया है कि बच्चे का इलाज आयुष्मान योजना से किया जा रहा है। रहने खाने व दूसरी व्यवस्था भी लोगों की मदद से की जाएगी। उम्मीद है बेटे के इलाज में अपनी गांव की जमीन बेच चुके बालकराम डहरे को अब और अधिक नहीं भटकना पड़ेगा और वह जल्द स्वस्थ होगा।
महादेव का ऐसा अपमान!
छत्तीसगढ़ में चल रहे ऑनलाईन सट्टेबाजी के महादेव ऐप का मामला खतरनाक मोड़ लेते दिख रहा है। एक केन्द्रीय एजेंसी लगातार इस मामले की जांच कर रही है, और छत्तीसगढ़ के एक बड़े सट्टेबाज पर अभी इंकम टैक्स का छापा भी पड़ा। ऐसा अंदाज है कि उसने सट्टे की कमाई के सैकड़ों करोड़ रूपये जमीन-जायदाद के धंधों में और कारखानों में लगाए हैं। लेकिन जांच इससे और आगे बढक़र कुछ बड़े अफसरों तक भी पहुंच रही है जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने पकड़ाए हुए सट्टेबाजों को छुड़वाने और उनका जब्त मोबाइल फोन वापिस करवाने का काम किया था जिसमें महादेव ऐप के बहुत सारे सुबूत थे। केन्द्रीय एजेंसियों का यह भी मानना है कि राज्य की पुलिस जिन बहुत छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ रही है, वह महज दिखावा है, क्योंकि उससे हजारों गुना अधिक रकम बैंक खातों में जमा हुई थी, जिसे महादेव के संचालकों ने हर शाम निकाल लिया था। जांच करने वालों से यह भी पता लगा है कि सट्टे पर लगाई गई रकम बैंक खातों से हर शाम निकाल ली जाती थी, और उन खातेदारों से रात में महादेव-संचालक कैश जमा कर लेते थे, उन्हें पांच फीसदी कमीशन देते थे।
अब हैरानी की बात यह है कि भगवान महादेव के नाम पर ऐसी खुली सट्टेबाजी करने वाले लोगों के खिलाफ किसी हिन्दू संगठन ने धार्मिक भावना आहत होने का जुर्म दर्ज नहीं कराया है। दूसरी तरफ अब तक जो नाम घोषित रूप से यह ऑनलाईन सट्टेबाजी चलाने में सामने आए हैं, उनकी जातियां और उनकी रिश्तेदारी भी जोडक़र देखी जा रही है कि सिरा कहां तक पहुंचता है।
असर दो दिन भी न रहा
रायपुर में हुआ एक बहुत बड़ा धार्मिक प्रवचन बड़ी भीड़ खींच रहा था। मुख्यमंत्री भी इसमें अपने मंत्री साथियों के साथ हो आए, और भाजपा के नेता तो वहां डेरा डाले हुए थे ही। दूसरी तरफ प्रवचन करने वाले अपनी धार्मिक बातों के बीच में राजनीतिक और साम्प्रदायिक बातें भी करते जा रहे थे, लेकिन मामला चूंकि भीड़ का था इसलिए उनकी इन बातों से असहमत नेता भी जाकर मत्था टेक रहे थे। धर्म और राजनीति में अब कोई विभाजन रेखा तो रह नहीं गई है इसलिए राजनीति में धर्म की बातें होती रहती हैं, धर्म में राजनीति की, और दोनों में मोटेतौर पर अधर्म की बातें होती हैं। इतने बड़े धार्मिक आयोजन के बाद होना तो यह चाहिए कि राजधानी रायपुर में जुर्म खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन इसी प्रवचन के इलाके गुढिय़ारी में एक नौजवान की ऐसे भयानक तरीके से गला काटकर और चाकू से गोदकर हत्या हुई है कि तस्वीर भी देखते न बने। भगवान के नाम का असर दो दिन भी कायम नहीं रह सका, शायद इसलिए भी कि प्रवचन के पीछे नीयत सिर्फ भगवान की भक्ति की नहीं थी, राजनीतिक भी थी।
पुरानी पेंशन योजना की राजनीति
काफी आसार दिखाई दे रहे हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम छत्तीसगढ़ के अगले चुनाव में एक अहम् मुद्दा बन जाएगा। आठ माह पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने जब इसे लागू करने की घोषणा की थी तो प्रदेश के 2.95 लाख कर्मचारियों के बीच मिठाईयां बंटी। पर अब तक यह लागू नहीं हो पाया। राज्य सरकार को पुरानी पेंशन स्कीम में करीब 140 करोड़ रुपये कम अंशदान देना पड़ेगा। इस तरह साल में करीब 1700 करोड़ रुपये की बचत होगी। 2004 से लागू नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों और सरकार के अंशदान की राशि शेयर बाजार में लगा दी जाती है और सेवानिवृत्ति के दिन उनकी जमा रकम के हिसाब से पेंशन तय कर दी जाती है। इस पर टैक्स भी देना होता है। आश्रितों का पेंशन जारी रखने का भी कोई प्रावधान नहीं है। जबकि पुरानी स्कीम में अंतिम मूल वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन और महंगाई भत्ते समय-समय पर होने वाले संशोधन के साथ मिलता है। मृत्यु के बाद आश्रित को भी 50 प्रतिशत पेंशन मिलता है। पर इसमें पेंच फंस गया है। केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के कह दिया कि कर्मचारियों के जमा पैसों पर राज्य सरकारों का अधिकार नहीं है। यह राशि नेशनल पेंशन स्कीम के तहत जमा है। जब तक यह राशि राज्य सरकार को नहीं मिलेगी, पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा पूरा नहीं किया जा सकेगा। राजस्थान, झारखंड और पंजाब में भी सरकारों की घोषणा के बावजूद यहीं पर मामला उलझ गया है। कई दूसरे राज्य भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करना चाहते हैं, पर केंद्र की असहमति आड़े आ रही है। दिलचस्प यह है कि खुद केंद्र सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का दबाव है। लोकसभा में पिछले सत्र में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड की ओर से बताया गया था कि पुरानी पेंशन योजना लागू नहीं हो रही है। केंद्र सरकार अभी केवल नि:शक्त कर्मचारियों को इस दायरे में रखने जा रहा है। उत्तरप्रदेश के बीते विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने पुरानी पेंशन स्कीम को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में भी विपक्षी दलों ने इसका वादा किया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में जब अगले साल चुनाव होने वाले हों, ओल्ड पेंशन स्कीम एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। कांग्रेस तो बच सकती है कि हमें केंद्र योजना को लागू नहीं करने दे रहा है। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को इसका जवाब ढूंढना होगा, क्योंकि कोई भी राजनैतिक दल कर्मचारियों को नाराज करना नहीं चाहता।
बाल दिवस पर सांस की दरकार...
रायपुर के एम्स के गेट नंबर एक के बाहर एक मां अपने बच्चे को पैरों से चलने वाले पंप से ऑक्सीजन पहुंचाकर जान फूंकती हुई नजर आई। उसने दो पेड़ों के सहारे अपने बच्चे के लिए पुरानी साड़ी का पालना बना रखा है। इसका पूरा परिवार फुटपाथ पर गुजर-बसर करता है। आजीविका के लिए बगल में एक ठेला लगाकर कुछ सामान बेचता है। डॉक्टरों ने बताया है कि उसे ब्रेन ट्यूमर और ब्लड कैंसर दोनों ही हैं। ( सोशल मीडिया से) [email protected]
दूल्हे की हजामत
कोयला कारोबार को लेकर अफसर, कारोबारी, और दलाल जिस तरह अदालत के कटघरे में पहुंचे हुए हैं, उन्हें सरकार, कारोबार, और राजनेता, सभी बहुत गौर से देख रहे हैं। जब यह हल्ला उड़ा कि कर्नाटक हाईकोर्ट से वहां की पुलिस में दर्ज एक एफआईआर पर आगे कार्रवाई करने पर स्टे लगा दिया गया है, तो लोगों ने यहां भी आनन-फानन मान लिया कि वह स्टे छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई पर भी अपने आप लागू हो जाएगा, और अगले दिन तमाम लोग छूट जाएंगे या जमानत पा जाएंगे। लेकिन ईडी के अधिकार क्षेत्र पर अभी कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उसे बारीकी से पढऩे वाले लोगों की ऐसी अटकलों पर हॅंस रहे थे। ईडी को नए कानून और उस पर अदालती मंजूरी से दानवाकार अधिकार मिल गए हैं, और कर्नाटक का हाईकोर्ट-स्टे ईडी की सेहत पर कोई असर नहीं डालता। दो दिनों तक चली अदालती सरगर्मी आखिर इस बात पर आकर टिक गई थी कि किस वकील ने इस एक पेशी के लिए कितनी फीस ली। एक नामी वकील के एक दिन के काम की फीस 25 लाख रूपये सुनना भी आम लोगों को अटपटा लग सकता है, लेकिन जब मामला सैकड़ों करोड़ का हो, तो फीस भी उसी अनुपात में होती है, शादी के वक्त दूल्हे की हजामत भी 501 रूपये में बनती है, कुछ वैसा ही अतिसंपन्न लोगों के मुकदमों में होता है।
ख़ुशी के बाद अब निराशा
निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की सूची जारी हुई, तो पद पाने वालों ने खूब खुशियां मनाई। मगर अब धीरे-धीरे नवनियुक्त कई पदाधिकारियों की खुशियां उस वक्त काफूर हो गई, जब उन्हें पता चला कि किसी तरह की सुविधाएं नहीं मिलेगी।
सिंधी अकादमी में दर्जनभर सदस्य बनाए गए, लेकिन सभी अवैतनिक है। एक सदस्य ने तो संस्कृति मंत्री से मिलकर कह दिया कि बिना मानदेय के तो काम करना मुश्किल है। संस्कृति मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि जल्द ही वो इसके लिए ‘ऊपर’ बात करेंगे।
दूसरी तरफ, सिंधी अकादमी के पूर्व चेयरमैन अमित जीवन मानदेय, और अन्य बकाया भुगतान के लिए सरकार को चि_ी लिखने जा रहे हैं। अमित जीवन का कहना है कि उन्हें अकादमी से 6 लाख से अधिक राशि लेनी है। यह राशि अब तक नहीं दी गई है। ज्यादातर निगम-मंडलों के पदाधिकारियों को संबंधित विभाग के अफसरों ने बजट न होने, या फिर प्रावधान न होने का कारण बताकर सुविधाएं उपलब्ध कराने से मना कर दिया है। ऐसे में पदाधिकारियों का दुखी होना स्वाभाविक है।
उम्मीदवारी में कौन जीतेगा?
भानुप्रतापपुर सीट के प्रत्याशी के नाम को लेकर पूर्व सीएम रमन सिंह के सामने कांकेर जिले के दो प्रमुख नेताओं के बीच कहा सुनी हो गई। एक नेता पूर्व विधायक ब्रह्मानंद नेताम को प्रत्याशी बनाने के पक्ष में हैं, तो दूसरा जिला उपाध्यक्ष गौतम उइके के लिए लॉबिंग कर रहे हैं।
सुनते हैं कि भाजपा के प्रमुख आदिवासी नेता रामविचार नेताम, विक्रम उसेंडी, केदार कश्यप, और कांकेर के सांसद मोहन मंडावी ने गौतम उइके का नाम आगे बढ़ाया है। कई लोगों का मानना है कि ब्रह्मानंद नेताम मजबूत कैंडिडेट हो सकते हैं।
नेताम की दो बार टिकट कट चुकी है, और सीधे सरल होने की वजह से लोकप्रिय भी हैं। पार्टी के गैर आदिवासी नेता नेताम के पक्ष में हैं। मगर दिग्गज आदिवासी नेताओं की राय के विपरीत प्रत्याशी तय करना पार्टी के रणनीतिकारों के लिए मुश्किल हो रहा है। हाईकमान ने सारे नाम बुलाए हैं। देखना है कि क्या किसके नाम पर मुहर लगती है।
महाराष्ट्र में भी मोहित गर्ग
पिछले दिनों महाराष्ट्र में आईपीएस अफसरों के थोक में हुए तबादला सूची में मोहित गर्ग का नाम देखकर छत्तीसगढ़ के अफसर हैरान रह गए। अफसरों का दंग रहना इसलिए वाजिब था, सूबे के बलरामपुर जिले के एसपी मोहित गर्ग का नाम पड़ोसी राज्य के पुलिस सूची में कैसे शामिल हो गया। बताते है कि महाराष्ट्र कैडर के मोहित गर्ग और बलरामपुर एसपी का नाम एक जैसा है। दोनों अफसरों में कुछ और समानताएं भी हैं। मराठी राज्य के मोहित गर्ग बलरामपुर कप्तान से एक बैच जूनियर हैं। बलरामपुर के गर्ग 2013 और महाराष्ट्र के गर्ग 2014 बैच के आरआर आईपीएस हैं। दोनों पुलिस अफसर उत्तर भारत से वास्ता रखते हैं। बलरामपुर एसपी दिल्ली और महारष्ट्र के गर्ग पंजाब के रहने वाले हैं। यानी दोनों का न सिर्फ नाम एक जैसा है बल्कि भौगोलिक बसावट के लिहाज से भी संबंध है। सुनते है कि मोहित गर्ग का नाम लिस्ट में देखने के बाद कुछ अफसरों ने बलरामपुर एसपी के कैडर बदलने को लेकर टोह ली। कुछ अफसरों ने छत्तीसगढ़ से महाराष्ट्र जाने की वजह जानने के लिए आईपीएस बिरादरी में खोज-खबर शुरू कर दी। छत्तीसगढ़ के मोहित गर्ग झारखंड की सीमा वाले बलरामपुर में नक्सल मामलों में बेहतर कार्य कर रहे है। वही महाराष्ट्र के मोहित गर्ग मुंबई में पुलिस हेडक्वार्टर में जमे हुए हैं। बताते है कि कांकेर एसपी शलभ सिन्हा और महाराष्ट्र के मोहित के साथ अच्छी बातचीत भी है। दोनों 2014 बैच के आईपीएस हैं।
संभावनाओं पर झाड़ू
भाजपा ने गुजरात में अपने बड़े-बड़े भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों या वर्तमान उपमुख्यमंत्री की टिकट काटी है, उससे छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े-बड़े नेता सन्नाटे में हैं। वहां पार्टी ने आम आदमी पार्टी के पहली बार लडऩे वाले उम्मीदवारों के मुकाबले अपने भी नए चेहरों को उतारना तय किया, लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसी कोई मजबूरी नहीं रहेगी। भाजपा के एक बड़े नेता ने आपसी बातचीत में कहा कि कांग्रेस के अधिकतर चेहरे वही रहेंगे, इसलिए भाजपा के सामने नए चेहरों को रखने का कोई दबाव नहीं रहेगा।
लेकिन ऐसा कहने वाले भाजपा नेता इस बात को भूल रहे हैं कि आम आदमी पार्टी का गुजरात में चाहे जो हो, वह छत्तीसगढ़ में जमकर चुनाव लड़ेगी, और यहां तीसरी पार्टी को 6-7 फीसदी वोट मिलने की परंपरा है, जिस पर इस बार आम आदमी पार्टी का दावा हो सकता है। ऐसे में उसके तमाम नए चेहरों को देखते हुए न सिर्फ कांग्रेस बल्कि भाजपा को भी अपनी लिस्ट पर गौर करना होगा। अब एक ही बात है कि तीसरी पार्टी को मिलने वाले 6-7 फीसदी वोट 6-7 सीटों में तब्दील नहीं होते, इसलिए दोनों ही पार्टी कुछ राहत महसूस कर सकती हैं, लेकिन इन दोनों में से जिसका चेहरा अधिक बदनाम या अलोकप्रिय रहेगा, जिसे अधिक भ्रष्ट जाना जाता रहेगा, उसके वोट अधिक कटेंगे, और आम आदमी पार्टी को अधिक मिलेंगे। इसलिए छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों को चौकन्ना रहना होगा, और अपने बदनाम लोगों से छुटकारा भी पाना होगा। भाजपा की सीटें इतनी कम हैं कि उसके लिए यह काम उतना बड़ा नहीं रहेगा, लेकिन उससे चार गुना से अधिक सीटों वाली कांग्रेस के लिए यह बड़ी चुनौती रहेगी, और उसके अधिक बदनाम लोगों की बदनामी की हवा आसपास की कई सीटों तक भी पहुंचेगी, और वहां संभावनाओं पर झाड़ू लगाएगी।
डंके की चोट पर दावेदारी
पत्थलगांव जनपद पंचायत के सीईओ संजय सिंह को हटाकर आखिर राजधानी में अटैच कर दिया गया है। बीते दिनों उनकी फोटो वायरल हुई थी जिसमें वे प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सांसद अरुण साव का अंबिकापुर दौरे के दौरान फूल माला लेकर स्वागत करते हुए दिख रहे थे। मालूम हुआ कि इसके पहले भी भाजपा की तिरंगा यात्रा अभियान में देखे गए थे। कुछ और बड़े भाजपा नेताओं के स्वागत में उन्हें देखा जा चुका था। पिछले महीने जनपद पंचायत अध्यक्ष और सदस्यों ने सीएम को उनकी शिकायत भेजी थी लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। यह मानी हुई बात है कि शासकीय सेवकों का भी किसी न किसी राजनीतिक दल की ओर आम मतदाताओं की तरह झुकाव हो सकता है, पर इस तरह खुलकर आना किसी मकसद से ही हो सकता है। पिछले साल जब सरगुजा की संभागायुक्त जिनेविवा किंडो को अचानक हटाकर बिना मंत्रालय रायपुर भेज दिया गया था तो पहले उनके राजनीति में सक्रिय होने की खबर उड़ी थी। मगर बाद में दूसरे कारण सामने आए। अधिकारी जब सत्ता से जुड़े दल से नजदीकी बढ़ाते हैं तो ज्यादा शोर नहीं होता, पर पत्थलगांव सीईओ ने तो काफी हिम्मत दिखाई। पता चला है कि वे भाजपा से टिकट की दावेदारी करेंगे। इधर जगह-जगह कांग्रेस नेता शिकायत करते हैं कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं। पता तो करें कि वे किस वजह से ऐसा करते हैं।
जब अदालत चेंबर से बाहर लगी
शनिवार को प्रदेशभर में आपसी समझौते से लाखों मामले सुलझे और एक अरब रुपये से अधिक के अवार्ड पारित हुए। कई मामले ऐसे थे जिनमें जजों की गहरी संवेदनशीलता देखने को मिली। सिमगा में एक दुर्घटना हुई थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। इन्हें जिस वाहन से टक्कर मारी गई थी, उसकी बीमा कंपनी से मुआवजा मिल जाए इस उम्मीद में मृतक का लकवाग्रस्त पिता भी बिलासपुर की कोर्ट में पहुंचा। वह एंबुलेंस से उतरकर अदालत में गवाही देने के लिए नहीं जा पा रहा था। जज प्रशांत शिवहरे को जब इसकी जानकारी हुई तो वे खुद एंबुलेंस तक गए। वहीं उसका बयान दर्ज कर बीमा कंपनी से समझौता कराया गया। पिता को 19 लाख रुपये मुआवजा मिला है जो मृतक की पत्नी बच्चों के काम आएंगे।
ऐसों पर भी कुछ लोग फिदा हैं!
सही और गलत की लोगों की समझ बड़ी अटपटी रहती है। कुछ लोग हिटलर की बनाई हुई पेंटिंग्स देखकर उसे एक अच्छा कलाकार मानते थे। कई लोग किसी बलात्कारी के व्यक्तित्व के किसी पहलू से प्रभावित होते हैं। राजनीति में कई ऐसे नेता रहते हैं जो लूटपाट की हद तक कमाते हैं, लेकिन चूंकि वे उसका एक हिस्सा लोगों में बांटते हैं, इसलिए बहुत से लोग ऐसे नेताओं को पसंद करते हैं कि वे लोगों की मदद तो करते हैं।
ऐसे ही लोगों में से एक ने कल रायपुर की अदालत के गलियारे में सुरक्षा घेरे में ले जाए जा रहे गिरफ्तार सूर्यकांत तिवारी के हुलिए, फैशन, और चेहरे-मोहरे को देखकर कहा- बड़ा ही हैंडसम है!
यह अकेला मामला नहीं है जिसमें किसी मुलजिम या मुजरिम को लोग आकर्षक पाएं। पुराने लोगों को याद होगा कि रायपुर का एक कुख्यात छात्र नेता बालकृष्ण अग्रवाल एक समय अपने परिचित परिवार की एक कमउम्र लडक़ी को भगा ले गया था, और बाद में गिरफ्तारी के बाद जब उस लडक़ी को भी पुलिस या अदालत के सामने पेश किया गया, तो उसने बालकृष्ण अग्रवाल के बारे में एक चौंकाने वाली बात बताई थी। एक रिपोर्टर के सवाल के जवाब में उसने कहा था- मैं बालकृष्ण अग्रवाल की डैशिंग पर्सनेलिटी से प्रभावित थी।
जिस तरह बालकृष्ण अग्रवाल ढेरों जुर्म में फंसा हुआ था, उसके बाद भी उस लडक़ी को बालकृष्ण अग्रवाल की पर्सनैलिटी इतनी डैशिंग लग रही थी कि वह उसके साथ घर छोडक़र भाग गई थी, तो वैसी सोच वाले लोग हर दौर में हर कहीं रहते ही हैं।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में ही हिटलर के नाम पर एक कपड़ा दुकान खुली है, और कुछ लोगों ने जब इसके मालिक को यह याद दिलाने की कोशिश की हिटलर दसियों लाख लोगों का हत्यारा था, तो भी वह दुकानदार उसी नाम पर अड़े रहा। दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा हत्यारा अगर एक दुकानदार का ऐसा आदर्श है, तो फिर उसके मुकाबले सूर्यकांत तिवारी तो भुनगा है, और वह भी लोगों को प्रभावित कर सकता है। और ऐसी तारीफ करने वाले लोग ऐसे ही लोगों को पाने के हकदार रहते हैं।
यहां भारत जोड़ो नहीं?
देश के कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही प्रदेश स्तर की यात्राएं उसी तर्ज पर कर रही हैं, क्योंकि राहुल गांधी की यह यात्रा तो देश के आधे राज्यों से भी नहीं गुजरने वाली है। असम में कांग्रेस 800 किलोमीटर की एक यात्रा कर रही है, ओडिशा में सौ दिनों में 2250 किलोमीटर की पदयात्रा चल रही है, और गुजरात में भी कांग्रेसी ऐसी यात्रा निकाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ में प्रदेश स्तर पर ऐसा कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है, पूछने पर एक प्रमुख कांग्रेसी ने कहा कि जिला और ब्लॉक स्तर पर कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है। अब कांग्रेस के इस राज्य में प्रदेश स्तर पर ऐसा क्यों नहीं हो रहा है, इसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बता सकते हैं, या फिर मुख्यमंत्री।
घर का भेदी...
सरकार के हर विभाग में कोई न कोई कुर्सी ऐसी रहती है जिस पर बैठे लोग विभाग के तमाम लोगों की जमीन-जायदाद के कागज देख पाते हैं। सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को जमीन-मकान खरीदी के वक्त भी सरकार को खबर करके उनसे इजाजत लेनी पड़ती है, कमाई या कर्ज का जरिया बताना पड़ता है। और हर विभाग में किसी एक अफसर के पास ऐसी फाइलें रहती हैं। ऐसे अफसर दूसरे अफसरों के बारे में अधिक आसानी से और अधिक सहूलियत से जानकारी फैला सकते हैं। और उनकी फैलाई अफवाह अधिक वजनदार इसलिए रहती है कि उसमें काफी हिस्सा सच का रहता है, और बाकी काल्पनिक आंकड़ों का छौंक तो लगाया ही जा सकता है। ऐसे अफसरों की फैलाई अफवाहों की जड़ तक पहुंचना मुश्किल इसलिए नहीं रहता है क्योंकि ये फाइलें किनके कब्जे में हैं, यह सबको पता रहता है। फिलहाल ऐसे ही एक मामले को लेकर सरकार के भीतर कुछ नाराजगी शुरू हुई है कि अपने साथी अफसरों को बदनाम करने की नीयत ठीक नहीं है।
पिल्लों को बचाने के लिए
यह तस्वीर मरवाही थाना परिसर के पीछे से ली गई वीडियो से है। एक फीमेल डॉगी ने पिल्लों को जन्म दिया है, जो छोटे हैं। एक कोबरा सांप उन बच्चों के नजदीक आ गया तो उसे भौंक-भौंक कर वह भगाने लगी। सांप फन फैलाए रुका रहा पर भौंकने-गुर्राने का असर हुआ। थोड़ी देर बाद सांप वापस बिल में जाकर घुस गया। मां ने बच्चों को सांप से बचा लिया।
जब होंगे 162 उम्मीदवार
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव दिलचस्प होने जा रहा है। सर्व आदिवासी समाज ने 162 प्रत्याशी, सभी गावों से एक-एक, चुनाव मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। वे चुनाव जीतना नहीं, आरक्षण पर कांग्रेस और भाजपा के रुख का विरोध करना चाहते हैं। यह भी तौलना चाहते हैं कि आदिवासी समाज के कितने लोगों ने सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी को वोट दिया और दोनों दलों का विरोध किया।
प्रत्याशी बनने की प्रक्रिया आसान है। अनुसूचित जनजाति सीट है तो नामांकन फॉर्म की कीमत भी 10 हजार की जगह 5 हजार ही है। यदि सैकड़ों उम्मीदवार हुए तो कितने ईवीएम लगेंगे? सबका चुनाव चिन्ह तय करना, ईवीएम ढोना, स्ट्रांग रूम में सुरक्षित रखना और वोटों को गिनना बड़ी समस्या होगी।
सर्व आदिवासी समाज का उद्देश्य है कि लोग अपने-अपने गांव के उम्मीदवार को वोट दें। मतदाता 162 प्रत्याशियों के बीच से अपने गांव के प्रत्याशी का नाम और निशान कैसे खोजेंगे?
भूपेश क्यों रहे निशाने पर?
भाजपा की बिलासपुर रैली में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने भाषण में बार-बार भूपेश बघेल पर हमला किया। जानकार कह रहे हैं कि भाजपा यह समझ रही है कि धान बोनस, किसान न्याय योजना और इसी तरह की दूसरी योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ मैदानी इलाके के मतदाता उठा रहे हैं। इन इलाकों में सीएम और कांग्रेस की पकड़ मजबूत हुई है। इस असर को तोडऩे के लिए वैकल्पिक मुद्दों को उठाना जरूरी है। रायपुर में आंदोलन के बाद अगले शक्ति प्रदर्शन के लिए बिलासपुर का तय किया जाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। ([email protected])
पूछताछ से हडक़ंप
ईडी की टीम कोयला कारोबार, और परिवहन में मनी लॉड्रिंग केस की पड़ताल कर रही है। कारोबारियों, और केस से जुड़े अफसरों से रोजाना पूछताछ हो रही है। जिन कारोबारियों से पूछताछ हुई है उनमें एक नामी कारोबारी भी हैं। कारोबारी से पूछताछ की खबर से उद्योग जगत में हडक़ंप मचा है।
सुनते हैं कि कारोबारी को सुबह-सुबह पूछताछ के लिए बुलाया गया था। फिर उन्हें बाहर बैंच में बैठने के लिए कहा गया। पूछताछ तो ज्यादा देर नहीं चली, लेकिन उन्हें डेढ़ बजे रात को घर जाने की अनुमति दी गई। कारोबारी की उद्योगपतियों, और राजनेताओं के बीच बड़ी प्रतिष्ठा है। सरकार चाहे किसी की भी रहे, उनकी पूछपरख कम नहीं हुई।
पिछली सरकार में भी सीएम हो या सीएस, कारोबारी को मुलाकात के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता था। मनी लॉड्रिंग केस में उनकी क्या भूमिका है, इसका खुुलासा तो नहीं हुआ है, लेकिन दिग्गज कारोबारी से ईडी के पूछताछ के तौर तरीकों की खूब चर्चा हो रही है।
गुजरात ने नींद उड़ा दी
गुजरात चुनाव में जिस अंदाज में भाजपा ने सिटिंग एमएलए की टिकट काटी है, उससे छत्तीसगढ़ भाजपा के भीतर खूब चर्चा हो रही है। दो विधायक बलराम थौरानी, और निर्मला वाधवानी, जो कि पिछले चुनाव में 50 हजार से अधिक वोटों से जीते थे, उनकी टिकट काट दी गई। ऐसे लोगों को छांट-छांटकर टिकट दी गई जो कि भले ही पार्टी में सक्रिय नहीं रहे, लेकिन सामाजिक क्षेत्रों में काफी प्रतिष्ठा है। ऐसे ही अहमदाबाद के एक विधानसभा सीट से डॉ. ज्योति कुलकर्णी को टिकट दी गई, जिनकी एक चिकित्सक के रूप में अच्छी साख है।
सुनते हैं कि गुजरात की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोगों की तलाश की जा रही है। संघ परिवार खुद इस काम में लगा हुआ है। कहा जा रहा है कि कई विधायकों की भी टिकट काटी जा सकती है। टिकट किसे मिलेगी, किसे नहीं, यह तो तय नहीं है, लेकिन गुजरात के टिकट वितरण ने छत्तीसगढ़ भाजपा के स्थापित नेताओं की नींद उड़ा दी है।
एक अजीब सा फोन कॉल!
टेलीफोन पर हर दिन लोगों को बहुत सी अवांछित कॉल मिलती हैं जिनमें कहीं कोई बीमा पॉलिसी बेच रहे होते हैं, तो कहीं क्रेडिट कार्ड। बहुत से फोन जमीनों की बिक्री करने वालों के आते हैं, और फाइनेंस कंपनियां भी कर्ज देने पर आमादा रहती हैं, और उनके कॉल सेंटर से लड़कियां फोन करके लोगों को कर्ज लेने के लिए उकसाती रहती हैं। ऐसे सभी टेलीफोन कॉल के नंबरों को बहुत से लोग ब्लॉक करते चलते हैं ताकि बाद में इनसे और कॉल नहीं आएं। आज सुबह इस अखबारनवीस को हिन्दुस्तान के एक नंबर 9109309916 से एक फोन आया, उठाने पर सामने से सिर्फ मधुर संगीत आते रहा। फोन को काटने के लिए हाथ खाली नहीं थे, इसलिए ब्लूटूथ पर यह संगीत 15-20 सेकेंड सुनते रहना पड़ा। इसके बाद संगीत खत्म हुआ, और एक महिला की आवाज में एक संदेश आया, थैंक यू, गुड बाय।
अब यह बात समझ से परे है कि एक संगीत सुनाकर धन्यवाद देने, और विदा लेने के पीछे किस तरह की नीयत हो सकती है? न कुछ बेचा गया, न जालसाजी की गई, और न ही कोई संदेश दिया गया!
भरोसा उठ रहा है
छत्तीसगढ़ के मंत्रियों को लेकर एक अटपटी सी चर्चा चल रही है कि उन्होंने टेलीफोन पर बात करना, खुद होकर फोन करना, फोन कॉल को उठाना, सब कुछ कम कर दिया है। अब अगर यह किसी एजेंसी की चल रही जांच की वजह से है, या फिर किसी जांच के डर से है, तो इससे मंत्रियों का लोगों से संपर्क प्रभावित हो रहा है। जांच तो आती-जाती रहेगी, लेकिन लोगों का यह भरोसा अगर कमजोर हो रहा है कि उनके नेता उनके लिए उपलब्ध रहते हैं, तो यह राजनीति में, और खासकर चुनावी राजनीति में बड़े नुकसान की बात रहेगी। मंत्रियों से परे भी सार्वजनिक और सरकारी जीवन के बहुत से महत्वपूर्ण लोग मोबाइल सिमकार्ड से लगने वाली कॉल पर बात करना कम कर चुके हैं। कुछ को वॉट्सऐप सुहाता है, कुछ को सिग्नल या टेलीग्राम जैसा मैसेंजर, और कुछ आईफोनधारियों को फेसटाईम जैसा कॉल सुहाता है जिसके बारे में ऐसी साख है कि अमरीकी खुफिया एजेंसी भी उसमें घुसपैठ नहीं कर पाई है। देश भर के कई प्रदेशों में आक्रामक जांच के इस दौर में लोगों का टेक्नालॉजी पर से भरोसा उठ रहा है, लोगों पर से भरोसा तो कब का उठ चुका है।
धारणा बदलेंगी रंजीत रंजन ?
राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन छत्तीसगढ़ के दौरे पर आई हैं। बस्तर में स्काउट गाइड के कार्यक्रम में उन्हें शामिल होना है। इसके पहले वे तीजा-पोला त्यौहार पर भी छत्तीसगढ़ आ चुकी हैं। कांग्रेस की बहुमत वाली राज्यसभा की दोनों सीटों को प्रदेश से बाहर के नेताओं को दिए जाने के कारण पार्टी की बड़ी आलोचना हुई। भाजपा ने पूछा-क्या यही छत्तीसगढिय़ावाद है। लोगों को भी शिकायत है कि दिल्ली या दूसरे राज्यों से यहां के लिए चुने गए राज्यसभा सदस्य राज्य के दौरे पर आते तो हैं ही नहीं, जरूरी मुद्दों पर बयान तक नहीं देते। संयोगवश इसी दौरान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन करने छत्तीसगढ़ आई हैं और कल ही फिर बड़ी संख्या में रेलवे ने यात्री ट्रेनों को रद्द करने की घोषणा की है। दोनों मुद्दों पर रंजीत रंजन का बयान आया है। नक्सलवाद पर दिए गए बयान पर तो भाजपा की प्रतिक्रिया भी आने लगी है। उनके बयानों को प्रमुखता से मीडिया में जगह भी मिली है। सक्रियता अच्छी दिखाई दे रही है। लोगों को प्रदेश के बाहर से राज्यसभा टिकट दिए जाने का मलाल कम होगा। इस बीच कांग्रेस के कुछ नेता यह भी टटोलने लगे हैं कि क्या दिल्ली तक पकड़ बनाने के लिए इनके नजदीक आना फायदेमंद होगा? देखना होगा कि सांसद महोदया ज्यादा दौरे कर अपना एक अलग गुट न बना लें।
करमा महोत्सव पर उठा विवाद
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग में, जहां बड़ी संख्या धर्मांतरित ईसाईयों की भी है, उत्पन्न विवाद जल्दी सुलझ जाए इसके आसार नहीं दिखते। यहां ईसाई आदिवासी महासभा ने 8 नवंबर को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए विशाल करमा उरांव नृत्य महोत्सव की तैयारी की थी। इस आयोजन का जनजातीय गौरव समाज और मूल आदिवासी हिंदू समाज ने विरोध किया। स्थिति तनावपूर्ण होने की आशंका में जिला प्रशासन ने महोत्सव की अनुमति वापस ले ली। प्रशासन का कहना है कि इसके लिए नई तिथि दी जाएगी। विरोध करने वालों का कहना है कि ईसाई धर्म को मानने वाले यदि आदिवासी नृत्य का आयोजन करेंगे तो भ्रम पैदा होगा।
ईसाई बन चुके अनेक आदिवासी अब भी शादी-ब्याह और त्यौहार पुराने तरीके से मनाते हैं। जिन्होंने धर्म नहीं बदला वे नाते रिश्तेदार भी इन आयोजनों में शामिल होते हैं। पर बड़े स्तर पर नृत्य महोत्सव के आयोजन के पीछे आदिवासी संगठनों को अलग ही कारण दिखाई दे रहा है। दरअसल, धर्म परिवर्तन के बाद आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। विश्व हिंदू परिषद्, आरएसएस आदि संगठन अनेक बार कह चुके हैं कि ऐसे लोगों को आरक्षण से अलग किया जाए। दलित ईसाईयों और दलित मुस्लिमों के मामले में केंद्र सरकार ने यही रुख अपनाया है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने अभी-अभी इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा भी दे दिया है। ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले आदिवासियों के मामले में भी अनुमान है कि केंद्र का यही रुख होगा। मूल आदिवासी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि नृत्य महोत्सव जैसा आयोजन धर्म परिवर्तन करने वालों का यह दावा मजबूत करेगा कि वे आदिवासी समुदाय को मिलने वाले आरक्षण के हकदार हैं। धर्मांतरित वर्ग का कहना है कि उनकी सिर्फ आस्था मसीही धर्म पर है, जाति अलग है और वे आदिवासी ही हैं। सरगुजा प्रशासन ने अभी नृत्य महोत्सव को सिर्फ स्थगित करने कहा है, पर आगे जब भी कोई नई तिथि तय की जाएगी, यह मुद्दा शांत हो चुका रहेगा, इसके आसार कम हैं।
डीएम का नया मतलब
हिन्दुस्तान की सरकारी व्यवस्था में अंग्रेजी का एम अक्षर हिन्दी के मनमानी शब्द के लिए बना दिखता है। देश में तीन ही कुर्सियां ताकतवर मानी जाती हैं, पीएम, सीएम, और डीएम। वैसे तो ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था में पीएम और सीएम को उनके मंत्रिमंडलों में बराबरी के लोगों में अव्वल कहा गया है, लेकिन फस्र्ट अमंग इक्वल बात अमल में नहीं आती है। पीएम और सीएम अपार ताकत के धनी ओहदे हैं। लेकिन ये दो लोग तो फिर भी चुनाव जीतकर आते हैं, और सांसदों या विधायकों के बहुमत से इन कुर्सियों तक पहुंचते हैं। दूसरी तरफ महज एक मुकाबला-इम्तिहान से आईएएस बनकर आने वाले लोग डीएम, यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उर्फ कलेक्टर बनते हैं, और उनकी ताकत भी अपने जिलों में बेमिसाल रहती है। छत्तीसगढ़ में इन दिनों जितने किस्म की जांच चल रही है, उनसे पता लगता है कि कलेक्टर की कुर्सी पर बैठकर कैसी मनमानी की जा सकती है, किसी को भी धमकाया जा सकता है कि जानते नहीं हो कि कलेक्टर अपने जिले के सबसे बड़े गुंडे होते हैं। ऐसी ही गुंडागर्दी का नतीजा आज इस राज्य के कुछ अफसर भुगत रहे हैं, और कुछ भुगतने जा रहे हैं। डीएम यानी डिस्ट्रिक्ट मनमानी!
अब चुनावी कथा
कथावाचक प्रदीप मिश्रा को सुनने के लिए जिस तरह लोगों का सैलाब उमड़ा, उससे राजनीतिक दलों के लोगों में काफी हलचल है। वैसे तो मिश्रा जी को दल विशेष से जोडक़र नहीं देखा जाता है, और उनके चाहने वाले हर दल में हैं। मगर चुनावी साल में उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाने की भी कोशिश हो रही है। सुनते हैं कि जनवरी-फरवरी में राजनांदगांव में भी कथाकार प्रदीप मिश्रा के शिव महापुराण कथा के आयोजन की रणनीति बनाई जा रही है। रायपुर में भी एक पूर्व मंत्री की अगुवाई में इसी तरह के कार्यक्रम की योजना पर काम चल रहा है। हालांकि अभी इन आयोजनों के लिए कथाकार की सहमति बाकी है। मगर चुनावी साल में धर्म का इस्तेमाल खूब होने के संकेत मिल रहे हैं।
जो खर्चा करेगा उसे ही टिकट
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा बेहतर प्रत्याशी की खोजबीन में लगी है। बुधवार को राज्यसभा के पूर्व सदस्य रामविचार नेताम की अगुवाई में पर्यवेक्षकों ने दावेदारों के नाम पर चर्चा भी की। कहा जा रहा है कि पार्टी नेता दावेदारों की आर्थिक ताकत भी आंक रहे हैं।
सुनते हैं कि चुनाव लडऩे के लिए पार्टी कोई बड़ा बजट उपलब्ध कराने की स्थिति में नहीं है। प्रत्याशी को खुद खर्च वहन करना पड़ेगा। ऐसे में उस दावेदार के नाम पर मुहर लग सकती है, जो सबसे ज्यादा खर्च करने में सक्षम होगा। वैसे इस पर अंतिम फैसला 12 तारीख को चुनाव समिति की बैठक में लिया जाएगा।
तेली जी तो अपने बीच के हैं..
असम से आने वाले केंद्रीय पेट्रोलियम राज्य मंत्री रामेश्वर तेली साइंस कॉलेज मैदान बिलासपुर में स्वदेशी मेले का उद्घाटन करने पहुंचे थे। मंच पर उन्होंने जब अपना उद्बोधन ठेठ छत्तीसगढ़ी बोली में देना शुरू किया तो कई लोग हैरान रह गए। सुनने से ही लग रहा था कि यह कोशिश करके सीखी हुई छत्तीसगढ़ी नहीं बोल रहे हैं बल्कि वे अभ्यस्त हैं। मंत्री ने खुद ही राज खोला। बताया कि उनके पूर्वज छत्तीसगढ़ के ही थे। करीब 200 साल पहले वे काम के सिलसिले में असम जाकर चाय बागानों के आसपास बस गए। पीढिय़ों से वहां हैं, पर घर में सब छत्तीसगढ़ी में ही बात करते हैं। वहां छत्तीसगढ़ से गए लोगों का पूरा इलाका है। यहां के लोक कलाकार कार्यक्रम भी देने पहुंचते रहते हैं।
ऐसे तो नशा मत उतारो...
पिछले दिनों जांजगीर-चांपा जिले के सोनसरी की भ_ी से ली गई देसी शराब की बोतल में मरा हुआ सांप दिखा। कोरबा जिले के हरदी बाजार बोतल के भीतर मरा हुआ मेंढक भी हाल ही में मिला। अब इसी जिले के कुसमुंडा इलाके की देसी शराब दुकान से खरीदी गई बोतल में गुटखे का पाउच मिला है। ऐसी लापरवाही पहले भी सामने आती रही है, जब देसी बोतलों में कीड़े-मकोड़े मिले हैं। ज्यादातर इसे खरीदने वाले लोग गरीब और मजदूर तबके के होते हैं। वे कहीं शिकायत नहीं कर पाते हैं। शराब का मामला होने की वजह से भी झिझकते हैं। पर, अफसर-नेता भी ऐसी घटनाओं को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सवाल तो यह भी है कि सांप-मेंढक नहीं भी मिले, तब भी क्या शराब की शुद्धता को लेकर पक्का कुछ कहा जा सकता है? पैकिंग जिन टैंकरों से हो रही है, उसकी क्या सफाई हो रही है? बोतलों की दुबारा इस्तेमाल करने से पहले धुलाई हो रही है? सरकार ने मजदूरों की सीमित कमाई का ध्यान रखते हुए देसी शराब की कीमत अंग्रेजी के मुकाबले कम ही बढ़ाई। पर अफसरों को उनकी सेहत का बिल्कुल भी ख्याल नहीं है।
आरक्षण मसले के बीच उप-चुनाव
आदिवासी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट के फैसले के बाद गरमाई प्रदेश की सियासत के बीच सुरक्षित आदिवासी सीट भानूप्रतापपुर में उप-चुनाव का ऐलान हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और आदिवासी समाज के एक धड़े ने इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेर रखा है। सरकार पहले सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर गई। उसके बाद तय किया कि अन्य राज्यों से, जहां आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक है, रिपोर्ट ली जाए। उसका अध्ययन करने के बाद अंतिम विकल्प के रूप में विधानसभा का सत्र रखें। 3 दिन पहले एक समिति इसके लिए बना भी दी गई। इधर भाजपा ने आदिवासी बाहुल्य सरगुजा और बस्तर के कई जिलों में चक्का जाम कर दिया। कल अंबिकापुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, धमतरी, सूरजपुर आदि में इसका असर देखा भी गया। अब विधानसभा का सत्र 1 और 2 दिसंबर को बुला लिया गया है। इसके तीन दिन बाद भानुप्रतापपुर में 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। घटनाक्रम महत्वपूर्ण है।
मुख्यधारा में आने मशक्कत
भूपेश सरकार के कार्यकाल को दस माह बाकी रह गए हैं। इन सबके बीच पुलिस और प्रशासन में फेरबदल की गुंजाइश बनी हुई है। ऐसे में लूप लाइन में तैनात कई अफसर मुख्य धारा में लौटना चाहते हैं, और इसके लिए कुछ प्रयास भी कर रहे हैं। सुनते हैं कि एक आईपीएस अफसर ने पिछले दिनों सरकार के ताकतवर मंत्री से मुलाकात की। आईपीएस अफसर को पिछली सरकार में अहम पदों पर रहे हैं। उन्हें कई विशेष प्रकरणों की जांच का भी जिम्मा दिया गया था, लेकिन सरकार बदलते ही बुरे दिन शुरू हो गए। रमन सरकार के कई करीबी अफसर, तो सरकार में एडजेस्ट हो गए, लेकिन इस आईपीएस के दिन अब तक नहीं फिर पाए। वो अभी भी नक्सल इलाकों में पदस्थ हैं। अब आईपीएस को मंत्रीजी से अपनी वापसी का भरोसा है। मंत्रीजी अफसर की कितनी मदद कर पाते हैं, यह देखना है।
चुनाव देखकर बढ़ाई सक्रियता
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही भाजपा के लोग स्मार्ट सिटी में अनियमितताओं की सुध ले रहे हैं। एक के बाद एक खुलासे कर रहे हैं। इससे पहले तक अनियमितताओं को लेकर भाजपा के नेता गंभीर नहीं रहे। बताते हैं कि वृक्षारोपण में भी भारी गड़बड़ी हुई है। वृक्षारोपण के लिए स्मार्ट सिटी मद से 2 साल से करीब 7 करोड़ से अधिक फूंक दिए गए। बड़े भाजपा नेताओं के पास इस विषय को प्रमुखता से उठाने के लिए दबाव भी बनाया गया, लेकिन आगे बात नहीं बढ़ पाई। यह पता चला कि पौधों की सप्लाई का काम जिस व्यक्ति को दिया गया था वह भाजपा से जुड़ा था। बाद में वह गुजर गया। इसके बाद प्रकरण की जांच का विषय ही ठंडे बस्ते में चला गया।
अफवाहों का बाजार गर्म
छत्तीसगढ़ ईडी की जांच की आंच से तप रहा है। अब तक तो सरकारी अफसर और सरकार के साथ लगातार काम करने वाले कारोबारियों की गिरफ्तारी और जांच चल रही थी, लेकिन अब दूसरे बड़े उद्योगपतियों को बुलाकर पूछताछ की जा रही है, उनके बयान लिए जा रहे हैं। उद्योगपतियों के घेरे में आने से राज्य के उद्योग-व्यापार में एक खलबली मची हुई है, और कारोबार के लोगों का यह कहना है कि जैसी चर्चा है, अगर पचास से अधिक उद्योगपतियों से पूछताछ होती है, तो उस खलबली में काम-धंधा ठप्प हो सकता है। अभी यह साफ नहीं है कि इन उद्योगपतियों का जांच के निशाने पर चल रहे मामलों में कैसा किरदार था, लेकिन ईडी की जांच, और उसके लिए गए बयान अदालत में दिए गए बयान सरीखे होते हैं, इसलिए भी उद्योगपतियों में हड़बड़ाहट अधिक है, वरना इतने बड़े तमाम उद्योग इंकम टैक्स के छापे तो झेले हुए रहते ही हैं, ईडी का कानून अधिक कड़ा है, उसके अधिकार बहुत बड़े हैं, और कारोबारी दहशत में हैं।
ऐसी दहशत के बीच अफवाहों का बाजार बहुत गर्म है, और बीती शाम रायपुर में यह हल्ला उड़ा कि एयरपोर्ट पर एक विशेष विमान आकर उतरा है। लोगों ने अपने-अपने पहचान के अफसरों से इस बारे में सवाल किए, और अफसरों की आपसी बातचीत में उन्हें यह पता लगा कि दर्जनों और लोग भी ऐसे ही किसी विमान के बारे में पूछ रहे हैं। बड़े पैमाने पर फैली यह अफवाह, अफवाह ही साबित हुई, और एयरपोर्ट के रिकॉर्ड में दर्ज हुए बिना कोई उड़ान न तो आ सकती है, न जा सकती है, इसलिए यह अफवाह तेजी से अफवाह साबित हो सकी। लेकिन आज सुबह से जिस तरह कुछ लोगों पर इंकम टैक्स के छापे पड़े हैं, और ईडी में जिस तरह कुछ दिनों से लगातार उद्योगपतियों की पूछताछ जारी है, उससे सनसनी फैली हुई है, जो कि कम होने का नाम नहीं ले रही।
भूपेश का बड़ा सवाल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ईडी को जो चि_ी लिखी है, उससे पिछली भाजपा सरकार के लंबे कार्यकाल को कटघरे में खड़ा किया गया है। अब छत्तीसगढ़ के कुख्यात नान घोटाले के पत्तों और फूलों की जांच की जाए, डालों तक को खंगाला जाए, तने को टटोला जाए, या फिर जड़ों को भी खोदा जाए, यह सवाल खड़ा हो गया है। भ्रष्टाचार तो हुआ है, लेकिन उसकी जांच कबसे शुरू की जाए, यह मुद्दा भूपेश बघेल ने ईडी के सामने औपचारिक रूप से रख दिया है। अब भला इस बात से कौन इंकार कर सकते हैं कि भ्रष्टाचार अगर बहुत लंबा है, तो उसकी जांच जड़ों तक जानी ही चाहिए, चाणक्य के बारे में भी कहा जाता था कि वे जिसे नष्ट करना चाहते थे, उसकी जड़ों मेें मठा डालते थे ताकि वह जड़़ से ही खत्म हो जाए। अब भूपेश बघेल ने जमीन में छेद करके कई बरस पुरानी जड़़ों तक मठा डाला है, यह देखने की बात होगी कि ईडी भ्रष्टाचार के इस विशाल वृक्ष की जांच में कितने नीचे तक पहुंचती है। कल शाम एक दिलचस्प बात यह रही कि भूपेश बघेल के आसपास के जिन लोगों की सलाह ऐसी चि_ी के पीछे मानी जा रही थी, वैसे कुछ अफसरों और दूसरे लोगों का कहना था कि उन्हें तो चि_ी तब देखने मिली जब भूपेश बघेल के ट्विटर पेज पर उसे पोस्ट किया गया। अब पता नहीं यह बात सच है, या लोग अपने आपको ऐसी चि_ी से जुड़ा हुआ साबित होने से बचने के लिए ऐसा कह रहे हैं। फिलहाल भूपेश बघेल ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, और आगे देखना है कि इस पर होता क्या है।
सती की समाधि पर मेला
सती प्रथा गुजरे जमाने की बात नहीं है। इस पर रोक लगाने के लिए 1987 से कड़ा कानून बन तो चुका है पर अब भी जगह-जगह सती स्मारक बने हुए हैं। कई स्थानों पर जब प्रशासन ने सख्ती बरती तो कई सती मंदिरों को शक्ति मंदिर नाम दे दिया गया। पर, पूजा अर्चना होती है। सालाना उत्सव होते और मेले लगते हैं। बम्हनीडीह ब्लॉक के सिलादेही ग्राम में हसदेव नदी के तट पर पिछले साल से एक मेला लगना शुरू हुआ है। यहां पर एक बाबा ने करीब 7 साल तक साधना की, फिर रायगढ़ चले गए। उनको वापस बुलाने के उद्देश्य से पिछले साल से मेले का आयोजन किया जाने लगा। यहां तक तो ठीक है, पर इसी जगह को लेकर यह भी कथा प्रचलित है कि वर्षों पहले एक महिला ने अपने पति के साथ चिता पर जलकर जान दे दी थी। यहां समाधि है और जाहिर है वहां भी पूजा हो रही है। इस साल भी यहां पूर्णिमा के दिन से सप्ताह भर का मेला शुरू हुआ है। मेले के आयोजन में प्रशासन से पूरी मदद मिली। विधायक केशव चंद्रा भी इसमें शामिल हुए, जबकि इन दोनों का काम है कि सती प्रथा का महिमामंडन रोकें।
रेल लाइन पर फिर रेड सिग्नल
रायपुर से जगदलपुर की सीधी रेल लाइन का पहला 70 साल पहले हो चुका था। लगातार मांग के बाद एक कंपनी बस्तर रेलवे प्राइवेट लिमिटेड का गठन किया गया। इसमें एनएमडीसी, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, इरकॉन इंटरनेशनल और छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम को शामिल किया गया। इस कंपनी को 140 किलोमीटर लंबी रेल लाइन रावघाट से जगदलपुर तक तैयार करनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दंतेवाड़ा प्रवास के दौरान एमओयू हुआ था। अब मालूम हो रहा है कि बीआरपीएल ने केंद्र सरकार और रेलवे मंत्रालय को पत्र लिखा है कि कंपनी यह रेल लाइन पूरी नहीं कर पाएगी। इसे रेलवे से पूरा कराया जाए। कारण सामने नहीं आया है, पर बताया जाता है कि इसमें शामिल चारों उपक्रमों के बीच भारी खींचतान चल रही है। सेल ने पहले पूरी तरह हाथ खींचना चाहा, पर केंद्रीय इस्पात मंत्री को राज्य सरकार की ओर से लिखे गए पत्र के बाद उसने भागीदारी नहीं छोड़ी पर अपना शेयर कम कर दिया। बचे हुए शेयर एनएमडीसी को दिए गए, जिसके पास पहले से ही 43 प्रतिशत शेयर था, सेल के 9 प्रतिशत शेयर भी उसे ही दे दिए गए। यह भी मालूम हुआ है कि राज्य सरकार को बीआरपीएल ने कोई जानकारी नहीं दी है कि वह रेल निर्माण से पीछे हटना चाहता है। सीधे केंद्र को पत्र लिखा गया है। अब रेलवे के ऊपर है कि बीआरपीएल के इस प्रस्ताव को वह मानता है या नहीं। मान भी ले तो कब नए सिरे से काम शुरू होगा? फिलहाल तो 70 साल का इंतजार और पांच-दस साल बढऩे की स्थिति बन रही है।
कलेक्टर के लिए पर्यायवाची शब्द
शासन-प्रशासन में उन अफसरों की पूछ परख ज्यादा होती है, जो कि आम लोगों की नब्ज को बेहतर समझते हैं। ऐसे अफसर सफल रहे हैं, और वो जिस क्षेत्र में भी रहे लोगों का भरपूर साथ मिला। अजीत जोगी जैसे नेता बतौर कलेक्टर काफी सफल रहे, और जब वो राजनीति में आए, तो लोगों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। मगर ये गुजरे जमाने की बात हो गई है। मौजूदा समय में हाल यह है कि लोगों का प्रशासन से भरोसा धीरे-धीरे उठता जा रहा है, और लोग प्रशासनिक अफसरों के मुंह पर कड़वी बातें कहने से नहीं चूकते हैं। ऐसा ही एक मामला पड़ोस के जिले में देखने को मिला है। कुछ ग्रामीण किसान आत्महत्या प्रकरण को लेकर सीएम के नाम ज्ञापन देने कलेक्टर से मिलने पहुंचे। कलेक्टर ने गरमा-गरमी में ज्ञापन लेने से मना कर दिया। इस पर ग्रामीणों ने कलेक्टर को उद्योगपति का दलाल तक कह दिया। इस पर कलेक्टर नाराज हुए, तो ग्रामीणों ने यह तक कह दिया गया कि दलाल को कोई और शब्द कहा जाता है, तो वह आपके लिए कह देते हैं...। तीखी तकरार के बाद ग्रामीण लौट आए। लेकिन प्रशासनिक अफसरों के आम लोगों से व्यवहार के तौर तरीकों की खूब आलोचना भी हो रही है।
हरियाली की कीमत पर सडक़...
मध्यप्रदेश के मंडला में केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 7 नवंबर को 1261 करोड़ रुपये की लागत से 5 सडक़ों का शिलान्यास किया। इनमें एक सडक़ डिंडोरी से सागरटोला होते हुए कबीर चबूतरा के लिए प्रस्तावित है। कबीर चबूतरा छत्तीसगढ़ का हिस्सा है। इससे पांच मिनट की दूरी पर अमरकंटक है। जीपीएम, कोरबा, बिलासपुर आदि जिले के लोगों का इस सडक़ से गहरा नाता है। जबलपुर, मंडला आदि के लिए वे इसी सडक़ का इस्तेमाल करते हैं। जो कोई इस सडक़ से गुजरता है, यहां की हरियाली और जंगल की मादकता से आनंदित हो उठता है। करंजिया की ओर सडक़ से सटे हुए करंज के सैकड़ों पेड़ों की घनी लंबी कतार तो अचंभित और मंत्रमुग्ध कर देती है। अब ये पेड़ कट जाएंगे। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि मैकल की शांत पहाडिय़ों से गुजर रही इस सडक़ की स्थिति तो अच्छी है और ट्रैफिक का दबाव भी नहीं है, फिर क्यों इसे चौड़ा किया जा रहा है।
रिश्वत की छोटी रकम...
गरियाबंद में एक डिप्टी कलेक्टर को 20 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए एंटी करप्शन ब्यूरो ने रंगे हाथों पकड़ लिया। एक समकक्ष अधिकारी ने सवाल किया कि इतनी छोटी रकम लेने में पकड़ा गया, सुनकर अच्छा नहीं लगा। पटवारी की डिमांड भी इससे ज्यादा होती है। दूसरे ने कहा- सब्र करो। अभी उनको दो साल ही तो नौकरी में हुए हैं, प्रोबेशन में चल रहे हैं। धीरे-धीरे समझ में आएगा किस काम का रेट क्या होना चाहिए।
एसबीआई से त्रस्त उपभोक्ता
ऑनलाइन ठग आए दिन मोबाइल फोन पर फर्जी मेसैज भेजकर झांसा देने की कोशिश करते हैं। कई जानकार जब इसका जवाब देते हैं तो उनकी अपनी मनोदशा क्या है, इसका पता भी चल जाता है। अब इसे ही देखिये, इनको ठग ने एसबीआई अकाउंट बंद हो जाने की चेतावनी देते हुए एक लिंक पर क्लिक करने कहा है। इस पर जवाब दिया जा रहा है- जल्दी बंद कर दे। वैसे भी परेशान हो गया था...। ठगों की बात तो छोडि़ए, वे ऐसे जवाब की अनदेखी कर अगले शिकार की ओर निकल जाते होंगे, पर एसबीआई को तो जरूर सोचना चाहिए कि उसकी साख क्यों ऐसी बन रही है।
तबादले से अधिक रद्द करने का खर्च
तबादले की अवधि खत्म होने के बाद भी संशोधन, और निरस्तीकरण का खेल चल रहा है। कई रोचक प्रसंग भी सुनने को मिल रहे हैं। हुआ यूं कि निर्माण विभाग के एक सब इंजीनियर ने मलाईदार प्रोजेक्ट में काम करने के लिए जुगाड़ बनाया है, और एक नेता के माध्यम से विभाग के प्रशासन पर दबाव भी बनाया। इससे अफसर नाखुश हो गए, और सब इंजीनियर का नाम तबादला सूची में डलवा दिया।
तबादले की सूची जारी हुई, तो सब इंजीनियर के होश उड़ गए। उसकी पोस्टिंग दूरस्थ आदिवासी इलाके में कर दी गई थी। इसके बाद सब इंजीनियर ने ट्रांसफर निरस्त कराने के लिए प्रभावशाली लोगों से संपर्क किया, तो उससे इतनी बड़ी डिमांड की गई कि इसकी प्रतिपूर्ति के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। मलाईदार प्रोजेक्ट की चाह में फंसा सब इंजीनियर फिलहाल तो मोलतोल में ही लगा है।
तौल मशीन का कमीशन, परेशान सप्लायर
प्रदेश के आंगनबाड़ी केन्द्रों में तौल मशीन की सप्लाई को लेकर काफी कुछ सुनने को मिल रहा है। हल्ला यह है कि सप्लायरों से 30 फीसदी कमीशन एडवांस में देने के लिए कह दिया गया है। कई सप्लायर असमंजस में है। वजह यह है कि प्रदेश में ईडी-आईटी की धमक बढ़ी है। छोटे मोटे कार्यों पर भी पैनी नजर है। केन्द्र की एजेंसियां पहले इतनी बारीक निगाह नहीं रखती थी। यदि किसी तरह शिकवा शिकायतें हुई, तो एडवांस डुबने का भी जोखिम है। ऐसे में सप्लायर फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रहे हैं।
मंजू ममता यूनिवर्सिटी
किसी को गलत सूचना देने क्या भरपाई होती है यह कोई मंजू ममता की चौपाल में बैठने वालों से पूछे। इस चौपाल के एक व्हाइट कॉलर लाइजनर से भला और कौन जान समझ सकता है। इन्होंने अपने कुछ साथियों को यह वाकया शेयर किया। गलत सूचना पर प्रशासन और पुलिस अफसरों से जमकर अपशब्द सुने। अब यह किस्सा मंजू ममता यूनिवर्सिटी से तेजी से वायरल हो रही है। इस ग्रुप के जानकारों का कहना है कि 2-3 दिन में सारा मामला खुल जाएगा।
भानुप्रतापपुर का भी भाग्य चमकेगा?
2018 के बाद प्रदेश में हुए चारों विधानसभा उप-चुनावों में से सिर्फ चित्रकोट सीट कांग्रेस के पास पहले थी, दंतेवाड़ा सीट उसने भाजपा से तथा मरवाही और खैरागढ़ सीट जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से छीनी। अब एक साल के बचे कार्यकाल के लिए भानुप्रतापपुर में उप-चुनाव हो रहा है। विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी के आकस्मिक निधन से रिक्त हुई सीट पर प्रत्याशी ढूंढने प्रदेश कांग्रेस के नेता भानुप्रतापपुर दौरे पर जरूर हैं, पर सूचना यही है कि दिवंगत विधायक की लेक्चचर पत्नी सावित्री मंडावी को टिकट मिल रही है और अब तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया है।
2018 में मंडावी ने भाजपा उम्मीदवार देवलाल दुग्गा को 26 हजार 600 मतों के भारी अंतर से हराया था। इस बार सहानुभूति का मामला ताजा भी है। उप-चुनावों के नतीजे प्राय: सरकार के पक्ष में झुके हुए मिल जाते हैं। इसी साल हुए खैरागढ़ उप-चुनाव में तमाम मजबूत परिस्थितियों के बाद भी कांग्रेस ने इसे जिला बनाने का वादा कर दिया। इसे भाजपा और जकांछ ने सौदेबाजी जरूर करार दिया, पर उनकी जीत की संभावना खत्म हो गई। अब भानुप्रतापपुर उप-चुनाव जिसे एक बार फिर 2023 के आम चुनाव का रिहर्सल कहा जा रहा है, में उठती आई जिला बनाने की मांग का क्या होगा यह देखना होगा। स्व. मंडावी भानुप्रतापपुर को जिला बनाने के समर्थन में रहे। सीएम से उन्होंने प्रतिनिधिमंडलों की कई बार मुलाकात कराई। यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ नवगठित जिलों से ज्यादा लंबे समय से यहां जिले की मांग हो रही है। लोग बीते 12 सालों से आंदोलन पर हैं। कई बार चक्काजाम, रैली और धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं। भानुप्रतापपुर के लोगों को अब उम्मीद हो चली है कि खैरागढ़ की तरह उनको भी जिला मिल जाएगा। इस मामले में यदि कांग्रेस खामोश रही तो भाजपा कह सकती है, इस बार हमें वोट दो। सरकार आने पर हम बनाएंगे। मतदाताओं ने भाजपा की बात पर भरोसा कर लिया तो? वैसे भी भानुप्रतापपुर किसी एक दल का गढ़ नहीं रहा है। मतदाता बीते चुनावों में कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस को चुनते आए हैं।
धान फसल पंजाब पर भी भारी
छत्तीसगढ़ में भी पंजाब की तरह ही पराली का निष्पादन बड़ी समस्या बन रही है। हरियाणा-पंजाब से धान की कटाई और मिंसाई के लिए बीते कुछ साल से बड़े-बड़े हार्वेस्टर गाडिय़ां आने लगी हैं। कटाई के लिए मजदूर नहीं मिलने और जल्दी काम होने के चलते इसकी मांग बड़े-मध्यम ही नहीं. छोटे किसानों में भी बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ के किसान पहले पराली को हाथ में हंसिया लेकर जड़ के पास से काटते थे, तब यह समस्या नहीं थी। पर हार्वेस्टर करीब एक फीट ऊंचाई से बड़ी तेजी से फसल काटता है, मिसाई भी हो जाती है। भैंस-बैल की जगह ट्रैक्टर और दूसरी मशीनों से खेती हो रही है, इसलिये पराली वे भी खेतों में जला रहे हैं। एनजीटी ने पूरे देश के लिए खेतों में पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाया है, इस पर 15 हजार रुपये तक का जुर्माना भी है। बीते दो साल से छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को गौठानों के लिए पैरा दान करने की अपील कर रही है, पर कोई असर नहीं हो रहा है। पंजाब में जब तक आम आदमी पार्टी सरकार नहीं थी, दिल्ली सरकार उसे प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराती थी। अब पंजाब के सीएम ने कहा है कि हम धान उत्पादन घटाकर दूसरी फसलों को लेने का अभियान चलाएंगे, क्योंकि इसी को जलाने से प्रदूषण ज्यादा फैलता है। धान-चावल का देश में संकट भी नहीं है कि इसे ज्यादा उगाया जाए।
अब देखना होगा कि पंजाब सरकार को इस कोशिश का क्या नतीजा निकलेगा, पर छत्तीसगढ़ में तो तमाम प्रयोगों के बाद हर बार धान बोने का रकबा बढ़ता जा रहा है और खरीदने का रिकार्ड भी। पिछले कई सालों से धान की जगह दूसरी फसल लेने के लिए दिए जा रहे तमाम नगद प्रोत्साहन और उन फसलों का समर्थन मूल्य तय करने के बावजूद। हार्वेस्टर के आने के बाद तो धान खेत से सीधे सोसाइटियों में भेजने की सुविधा हो गई है, घर लाने की जरूरत भी नहीं।
धंधे में बेईमानी नहीं....
ग्राहकों का ध्यान खींचने के लिए दुकान ठेलों के आकर्षक नाम रखने का चलन है। मुखशुद्धि केंद्र नाम से पान-गुटखा की दुकानें हर शहर में मिल जाएगी। रायपुर में एक पान दुकान का नाम है- प्रेमिका पान सेंटर। इंटरनेट पर एक फोटो काफी वायरल हुई थी, लिखा था- पागल पान भंडार। मोदी टी स्टॉल नाम भी जगह-जगह देख सकते हैं। अब इस टपरी वाले को ही देखिये, नीयत कितनी नेक है- गुटखा की अपनी दुकान का नाम रखा है- द कैंसर हब। दुकानदार को पूरा भरोसा है कि ग्राहक इतना बुरा नाम रखने के बाद भी नहीं टूटेंगे।
तबादले से अधिक रद्द करने का खर्च
तबादले की अवधि खत्म होने के बाद भी संशोधन, और निरस्तीकरण का खेल चल रहा है। कई रोचक प्रसंग भी सुनने को मिल रहे हैं। हुआ यूं कि निर्माण विभाग के एक सब इंजीनियर ने मलाईदार प्रोजेक्ट में काम करने के लिए जुगाड़ बनाया है, और एक नेता के माध्यम से विभाग के प्रशासन पर दबाव भी बनाया। इससे अफसर नाखुश हो गए, और सब इंजीनियर का नाम तबादला सूची में डलवा दिया।
तबादले की सूची जारी हुई, तो सब इंजीनियर के होश उड़ गए। उसकी पोस्टिंग दूरस्थ आदिवासी इलाके में कर दी गई थी। इसके बाद सब इंजीनियर ने ट्रांसफर निरस्त कराने के लिए प्रभावशाली लोगों से संपर्क किया, तो उससे इतनी बड़ी डिमांड की गई कि इसकी प्रतिपूर्ति के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। मलाईदार प्रोजेक्ट की चाह में फंसा सब इंजीनियर फिलहाल तो मोलतोल में ही लगा है।
तौल मशीन का कमीशन, परेशान सप्लायर
प्रदेश के आंगनबाड़ी केन्द्रों में तौल मशीन की सप्लाई को लेकर काफी कुछ सुनने को मिल रहा है। हल्ला यह है कि सप्लायरों से 30 फीसदी कमीशन एडवांस में देने के लिए कह दिया गया है। कई सप्लायर असमंजस में है। वजह यह है कि प्रदेश में ईडी-आईटी की धमक बढ़ी है। छोटे मोटे कार्यों पर भी पैनी नजर है। केन्द्र की एजेंसियां पहले इतनी बारीक निगाह नहीं रखती थी। यदि किसी तरह शिकवा शिकायतें हुई, तो एडवांस डुबने का भी जोखिम है। ऐसे में सप्लायर फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रहे हैं।
भानुप्रतापपुर का भी भाग्य चमकेगा?
2018 के बाद प्रदेश में हुए चारों विधानसभा उप-चुनावों में से सिर्फ चित्रकोट सीट कांग्रेस के पास पहले थी, दंतेवाड़ा सीट उसने भाजपा से तथा मरवाही और खैरागढ़ सीट जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से छीनी। अब एक साल के बचे कार्यकाल के लिए भानुप्रतापपुर में उप-चुनाव हो रहा है। विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी के आकस्मिक निधन से रिक्त हुई सीट पर प्रत्याशी ढूंढने प्रदेश कांग्रेस के नेता भानुप्रतापपुर दौरे पर जरूर हैं, पर सूचना यही है कि दिवंगत विधायक की लेक्चचर पत्नी सावित्री मंडावी को टिकट मिल रही है और अब तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया है।
018 में मंडावी ने भाजपा उम्मीदवार देवलाल दुग्गा को 26 हजार 600 मतों के भारी अंतर से हराया था। इस बार सहानुभूति का मामला ताजा भी है। उप-चुनावों के नतीजे प्राय: सरकार के पक्ष में झुके हुए मिल जाते हैं। इसी साल हुए खैरागढ़ उप-चुनाव में तमाम मजबूत परिस्थितियों के बाद भी कांग्रेस ने इसे जिला बनाने का वादा कर दिया। इसे भाजपा और जकांछ ने सौदेबाजी जरूर करार दिया, पर उनकी जीत की संभावना खत्म हो गई। अब भानुप्रतापपुर उप-चुनाव जिसे एक बार फिर 2023 के आम चुनाव का रिहर्सल कहा जा रहा है, में उठती आई जिला बनाने की मांग का क्या होगा यह देखना होगा। स्व. मंडावी भानुप्रतापपुर को जिला बनाने के समर्थन में रहे। सीएम से उन्होंने प्रतिनिधिमंडलों की कई बार मुलाकात कराई। यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ नवगठित जिलों से ज्यादा लंबे समय से यहां जिले की मांग हो रही है। लोग बीते 12 सालों से आंदोलन पर हैं। कई बार चक्काजाम, रैली और धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं। भानुप्रतापपुर के लोगों को अब उम्मीद हो चली है कि खैरागढ़ की तरह उनको भी जिला मिल जाएगा। इस मामले में यदि कांग्रेस खामोश रही तो भाजपा कह सकती है, इस बार हमें वोट दो। सरकार आने पर हम बनाएंगे। मतदाताओं ने भाजपा की बात पर भरोसा कर लिया तो? वैसे भी भानुप्रतापपुर किसी एक दल का गढ़ नहीं रहा है। मतदाता बीते चुनावों में कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस को चुनते आए हैं।
धान फसल पंजाब पर भी भारी
छत्तीसगढ़ में भी पंजाब की तरह ही पराली का निष्पादन बड़ी समस्या बन रही है। हरियाणा-पंजाब से धान की कटाई और मिंसाई के लिए बीते कुछ साल से बड़े-बड़े हार्वेस्टर गाडिय़ां आने लगी हैं। कटाई के लिए मजदूर नहीं मिलने और जल्दी काम होने के चलते इसकी मांग बड़े-मध्यम ही नहीं. छोटे किसानों में भी बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ के किसान पहले पराली को हाथ में हंसिया लेकर जड़ के पास से काटते थे, तब यह समस्या नहीं थी। पर हार्वेस्टर करीब एक फीट ऊंचाई से बड़ी तेजी से फसल काटता है, मिसाई भी हो जाती है। भैंस-बैल की जगह ट्रैक्टर और दूसरी मशीनों से खेती हो रही है, इसलिये पराली वे भी खेतों में जला रहे हैं। एनजीटी ने पूरे देश के लिए खेतों में पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाया है, इस पर 15 हजार रुपये तक का जुर्माना भी है। बीते दो साल से छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को गौठानों के लिए पैरा दान करने की अपील कर रही है, पर कोई असर नहीं हो रहा है। पंजाब में जब तक आम आदमी पार्टी सरकार नहीं थी, दिल्ली सरकार उसे प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराती थी। अब पंजाब के सीएम ने कहा है कि हम धान उत्पादन घटाकर दूसरी फसलों को लेने का अभियान चलाएंगे, क्योंकि इसी को जलाने से प्रदूषण ज्यादा फैलता है। धान-चावल का देश में संकट भी नहीं है कि इसे ज्यादा उगाया जाए।
अब देखना होगा कि पंजाब सरकार को इस कोशिश का क्या नतीजा निकलेगा, पर छत्तीसगढ़ में तो तमाम प्रयोगों के बाद हर बार धान बोने का रकबा बढ़ता जा रहा है और खरीदने का रिकार्ड भी। पिछले कई सालों से धान की जगह दूसरी फसल लेने के लिए दिए जा रहे तमाम नगद प्रोत्साहन और उन फसलों का समर्थन मूल्य तय करने के बावजूद। हार्वेस्टर के आने के बाद तो धान खेत से सीधे सोसाइटियों में भेजने की सुविधा हो गई है, घर लाने की जरूरत भी नहीं।
धंधे में बेईमानी नहीं....
ग्राहकों का ध्यान खींचने के लिए दुकान ठेलों के आकर्षक नाम रखने का चलन है। मुखशुद्धि केंद्र नाम से पान-गुटखा की दुकानें हर शहर में मिल जाएगी। रायपुर में एक पान दुकान का नाम है- प्रेमिका पान सेंटर। इंटरनेट पर एक फोटो काफी वायरल हुई थी, लिखा था- पागल पान भंडार। मोदी टी स्टॉल नाम भी जगह-जगह देख सकते हैं। अब इस टपरी वाले को ही देखिये, नीयत कितनी नेक है- गुटखा की अपनी दुकान का नाम रखा है- द कैंसर हब। दुकानदार को पूरा भरोसा है कि ग्राहक इतना बुरा नाम रखने के बाद भी नहीं टूटेंगे।