राजपथ - जनपथ
डायरेक्टर की मेज से बोली!
छत्तीसगढ़ में अभी चल रहे ईडी के छापे मोटेतौर पर माइनिंग के एक-दो से लेकर दस नंबर तक के धंधों पर हैं। ऐसे में एक जानकार ने डायरेक्टर माइनिंग के टेबिल पर हुई एक दिलचस्प आंखों देखी घटना सुनाई। अभी छापों के घेरे में इस कुर्सी पर रहे दो डायरेक्टर हैं, इनमें से एक के वक्त प्रदेश की एक आयरन ओर खदान की नीलामी हुई थी। नीलामी ऑनलाईन होनी थी, और डायरेक्टर अपने कम्प्यूटर पर आ रही बोलियां देख रहे थे, उन्हें लगाने वाले लोगों के नाम भी देख रहे थे। बोली लगाने वाला एक व्यक्ति उनके साथ बैठा हुआ था, जो उस खदान के लिए खुद भी बोली लगा रहा था, और इस बात से भी परेशान था कि बोली बढ़ती जा रही थी। वहीं से वह बोली लगाने वाले दूसरे लोगों को टेलीफोन पर धमकाते भी जा रहा था, उन्हें रोकने के रास्ते भी निकालते चल रहा था, और डायरेक्टर भी बोली आगे बढऩे से रोक रहे थे। अब ऑनलाईन बोली को सीधे-सीधे तो नहीं रोका जा सकता था, लेकिन जो लोग रेट बढ़ा रहे थे, उन्हें तरह-तरह से ‘समझाईश’ दी जा रही थी, ताकि डायरेक्टर के पसंदीदा, और बगलगीर को वह खदान महंगी न पड़े। प्रदेश में कुछ अफसरों का यह भी मानना है कि अपने स्तर पर भ्रष्टाचार के ऐसे तरीके निकालने वाले लोगों की गंदगी कुछ छंट जाए, तो भी प्रदेश का भला होगा।
रेत से तेल निकालता जोड़ा
आईएएस जोड़ा बड़ा खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसा एक जोड़ा एक वक्त इस प्रदेश में दो जिलों में काबिज था। एक जिले में कुछ लाख रूपये लेकर रेत की खदान का अनुबंध कलेक्टर ने कर दिया था। इसके कुछ महीने बाद दूसरे जिले में इस जोड़े की दूसरी कलेक्टर ने रेत से तेल निकालते हुए दुगुनी वसूली करके अनुबंध किया। जाहिर है कि घर पर रात में या दो-चार दिनों में हिसाब-किताब की बात हुई होगी, और जब बीवी ने बताया होगा कि उसने तो एक खदान की इतनी वसूली की है, तो उसकी धिक्कार पाकर अगले दिन अपने दफ्तर में कलेक्टर ने रेत खदान चलाने वाले को बुलाया, और कहा कि उस दूसरे जिले में उसने अनुबंध के लिए इतना भुगतान किया है, और यहां पर कम दिया है? इसके बाद बीवी के जिले जितने रेट की बकाया वसूली की गई, और उसके बाद ही रेत की अगली गाड़ी निकल सकी।
अफसरों को सजा से, लोगों को मजा
छत्तीसगढ़ में आईएएस और दूसरे अफसरों पर जैसा बड़ा खतरा अभी मंडरा रहा है, वैसा किसी ने कभी देखा-सुना नहीं था। आज तो जिसे जो अफसर नापसंद है, उसके बारे में आसानी से वे कह सकते हैं कि फलां अफसर की भी गिरफ्तारी होने वाली है। राज्य के इतिहास में कई चीजें पहली बार हो रही हैं। एक आईएएस जोड़ा पूरे का पूरा भ्रष्टाचार की जांच के घेरे में हैं, दोनों के दोनों निशाने पर हैं, एक डायरेक्टर माइनिंग रह चुका है, और दूसरे को देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादक जिले की कलेक्टरी मिल चुकी है। माइनिंग के प्रदेश दफ्तर और सबसे बड़े खनिज जिले, दोनों का काम जब एक ही जोड़े को मिल जाए, तो क्या-क्या नहीं हो सकता है? इससे प्रदेश के कुछेक ईमानदार अफसरों के बीच निराशा है कि आईएएस सर्विस की ऐसी बदनामी कभी नहीं हुई थी। हालांकि किसी भी सर्विस के अफसरों ने ऊंचे दर्जे के संगठित भ्रष्टाचार की यह कोई अनोखी और अभूतपूर्व बात नहीं है, पहले भी ऐसा होते आया है, लेकिन पहली बार जांच इस हद तक पहुंची है।
एक आईएएस अफसर और उसकी गैरअफसर बीवी के मिलेजुले वसूली-तंत्र की खबरें भी अधिकतर लोगों को हक्का-बक्का कर रही हैं कि अफसर ने किस तरह घर में ही रिकवरी एजेंट बना रखा था, और अब सारे टेलीफोन मैसेज के साथ ईडी के हाथ सुबूत लगे हैं। यह मौका मीडिया या मीडिया नाम से काम करने वाले लोगों के लिए भी मत चूको चौहान किस्म का है, और वे भी अपनी सारी नीयत खबर की शक्ल में लिख रहे हैं, और लोग मजे लेकर पढ़ रहे हैं। जिस तरह इन साहबों के निजी काम करने वाले करीबी सरकारी कर्मचारी भी मजे लेकर इसकी चर्चा कर रहे हैं, उससे जाहिर है कि अफसरों की बेलगाम बददिमागी से वे हर किसी की सहानुभूति खो चुके हैं, और आज उनकी गिरफ्तारियों पर भी लोगों को मजा छोड़ कुछ नहीं आ रहा।
कौन झुलसेगा आदिवासियों की नाराजगी से?
आदिवासी आरक्षण का मुद्दा ठीक ऐसे वक्त में सुलगना शुरू हुआ है जब दोनों प्रमुख दल कांग्रेस, भाजपा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर चुके हैं। एक को अपना पिछला नतीजा दोहराने की तो दूसरे को खोई हुई सीटें वापस हासिल करने की चुनौती है। हाईकोर्ट के फैसले से होने वाले चुनावी असर का नतीजा है कि सुप्रीम कोर्ट में बड़े वकीलों की टीम इसे कांग्रेस की ओर से चुनौती देने जा रही है, विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की बात भी हो रही है। भाजपा ने आंदोलन की लंबी रूपरेखा बना रही है। दोनों दलों के नेता कोर्ट में हार के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार बता रहे हैं।
आबादी के अनुपात में आरक्षण बढ़ाने की मांग पर सन् 2011 में आंदोलन हुआ। उसके बाद 2012 में इस पर कानून लाया गया। भाजपा के पास 6 साल और कांग्रेस के पास 4 साल का वक्त था कि इस प्रावधान को कानून और संविधान की कसौटी पर मजबूत कर ले। अनुसूचित जिलों में केवल स्थानीय बेरोजगारों की भर्ती का प्रावधान भी कोर्ट ने रद्द किया है। यह फैसला सरकार ने इन जिलों में पांचवी अनुसूची लागू होने का हवाला देते हुए लिया था। अब हाईकोर्ट के फैसले को भाजपा अवसर के रूप में देख रही है। उसने चरणबद्ध आंदोलन शुरू कर दिया है। यह कहा जा रहा है कि जब तक वापस 32 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिलेगा, वह संघर्ष करेगी।
वैसे हाल के कुछ ऐसे फैसले केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने लिए हैं, जिन्हें लेकर आदिवासी वर्ग नाराज चल रहा है। पांचवी अनुसूची क्षेत्र की ग्राम सभाओं में पेसा कानून के तहत भूमि के आवंटन का अधिकार ग्राम सभा को अब तक रहा है, जिसमें अब संशोधन कर उनकी भूमिका परामर्शदाता तक सीमित कर दी गई है। केंद्र सरकार ने वन संरक्षण कानून 2022 के जरिये वन क्षेत्रों में गतिविधियां शुरू करने के लिए स्थानीय लोगों की अनुमति लेने की बाध्यता खत्म कर दी है।
मतदाता चाहे कांग्रेस, भाजपा दोनों से नाराज हों पर उनके पास तीसरा विकल्प तो है नहीं। मगर एक खास तथ्य यह है कि बस्तर का कोंडागांव ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां सन् 2018 में सर्वाधिक करीब 10 हजार वोट पड़े। इसके सहित बस्तर की तीन सीटें ऐसी थीं, जिसमें नोटा में पड़े वोटों की वजह से बाजी पलट गई। इनमें तत्कालीन मंत्री केदार कश्यप की सीट भी शामिल थी। यह भी उल्लेखनीय है कि बीते दो विधानसभा चुनावों में सर्वाधिक नोटा वोट छत्तीसगढ़ में डाले गए। सन् 2013 में तीन प्रतिशत और 2018 में दो प्रतिशत। पर नोटा में वोट डालने के बाद भी जीत कांग्रेस या भाजपा के ही किसी उम्मीदवार की होगी।
कार्रवाई तो हो रही है...
खराब सडक़ों को लेकर सीएम की लगातार फटकार का असर जमीन पर दिखाई देना लगा है। यह नहीं कि सडक़ तेजी से बनने लगे, बल्कि यह हुआ कि विपक्ष ने इसे हाथों हाथ लिया है और अफसर अपने से नीचे के अधिकारियों पर एक्शन ले रहे हैं। रायगढ़ की खराब सडक़ों को लेकर भाजपा नेता और पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी पदयात्रा पर निकल गए हैं। तत्काल इसका नतीजा निकला, कलेक्टर रानू साह ने पीडब्ल्यूडी के ईई को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। सीएम की नाराजगी और बीजेपी के सडक़ पर आने के बाद ही पता चला कि रायगढ़-धरमजयगढ़ सडक़ के लिए साल भर पहले टेंडर हो चुका है, कुछ अन्य जर्जर सडक़ों की मरम्मत के लिए वर्क आर्डर निकल चुके हैं पर काम अब तक पूरा नहीं हुआ है। नोटिस वगैरह जारी करते रहना चाहिए, ऊपर पूछा जाए तो जवाब देते बनता है।
पहली महिला बाइक मैकेनिक
कुछ कामों में सिर्फ पुरुषों का वर्चस्व होना चाहिए, इस धारणा को बस्तर की हेमवती नाग ने तोड़ा है। इन्हें जिले की पहली महिला मैकेनिक के रूप में जाना जा रहा है। वह दूसरे मैकेनिकों की तरह दोपहिया गाडिय़ों की मरम्मत कर लेती हैं, पंचर बना लेती हैं। उनके पति भी मैकेनिक हैं। उन्होंने ही गाडिय़ां को सुधारना सिखाया। दोनों के दो बच्चे हैं। सिर्फ आठवीं पास हेमवती कहती हैं कि शुरू में आर्थिक तंगी की वजह से यह काम उसे सीखना पड़ा, तब यह काम अजीब और कठिन लगता था, पर अब आनंद आता है।
धान बेचने की जल्दी नहीं...
मॉनसून के लौट जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में हो रही बारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। इस बार अच्छी बारिश के चलते धान की बंपर पैदावार होने का अनुमान लगाया है। समर्थन मूल्य पर खरीदी का लक्ष्य भी बढ़ाकर 110 लाख टन कर दिया गया है। पर बारिश के चलते फसल सूख नहीं पा रही है। धान खरीदी शुरू 1 नवंबर से शुरू होती है। किसानों को पिछले वर्षों में शिकायत रहती थी खरीदी देर से शुरू की जा रही है, पर इस बार स्थिति दूसरी है। कटाई शुरू कर भी दी जाए तो नमी का रोड़ा बना रहेगा। धान सूखने पर ही सोसाइटी में बेचने के लिए ले जाया जा सकेगा। अब यदि बारिश नहीं रुकी तो धान को नुकसान भी होने लगेगा। अगस्त के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक हुई बारिश ने सब्जियों को, खासकर टमाटर जैसे नाजुक फसलों को काफी क्षति पहुंच ही चुका है। धान खरीदी के काम में लगे अधिकारियों को इस बार तैयारी के लिए ज्यादा वक्त मिल गया है।
श्री से पहले जवाहर का हाल देख लें...
सन् 2016 में छत्तीसगढ़ के तब बन चुके नए जिलों में 11 जवाहर नवोदय विद्यालय खोलने का निर्णय लिया गया। नवोदय विद्यालय प्रतिभावान छात्रों को उत्कृष्ट शिक्षा देने का माध्यम है, जो महंगी फीस वाले स्कूलों में दाखिला नहीं पाते। छठवीं से 12वीं तक की मुफ्त शिक्षा, आवास के साथ दी जाती है। सन् 2016 में छत्तीसगढ़ के नए जिलों में 11 नवोदय विद्यालय खोलने का निर्णय लिया गया था। 6 साल होने को हैं, ये स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से जूझ रहे हैं। गरियाबंद जिले के पांडुका के नवोदय स्कूल को लेकर जो निर्णय लिया गया है वह हास्यास्पद है। यहां छठवीं कक्षा में दाखिले के लिए 80 छात्रों की सूची जारी की गई, लेकिन टॉप 40 को ही एडमिशन दिया गया, 40 छोड़ दिए गए। इससे भी बड़ा और अजीबोगरीब निर्णय यह लिया गया कि सुविधाएं नहीं होने का हवाला देते हुए 11वीं के छात्रों को करीब 250 किलोमीटर दूर नारायणपुर में शिफ्ट कर दिया गया। वे किसी तरह इतनी दूर जाकर पढऩे के लिए तैयार भी हो गए तो वहां भी समस्या जस की तस है। नारायणपुर में भी विद्यालय का अपना भवन नहीं, किराये की बिल्डिंग में चल रहा है। जगह की कमी है, जमीन पर सोना पड़ रहा है। भोजन ठीक नहीं मिल रहा है। पांडुका के छात्र-छात्राओं ने सडक़ पर उतरकर प्रदर्शन करना पड़ रहा है।
गौरतलब यह है कि हाल ही में पीएम श्री योजना के तहत इसी तरह के 14 हजार 500 स्कूल खोलने की प्रधानमंत्री ने घोषणा की है, जिसके लिए 27 हजार करोड़ से अधिक बजट रखने की बात की गई है। छत्तीसगढ़ में 146 स्कूलों को इस योजना से अपग्रेड करने का निर्णय लिया गया है। बच्चों की शिक्षा को लेकर सरकार चिंतित है तो पहले नवोदय विद्यालयों (जवाहर शब्द वेबसाइट और पत्राचार में आजकल नहीं दिखाई दे रहे) को सुधारने के लिए फंड क्यों नहीं देती? शायद तब हेडलाइन के लायक खबर नहीं बनती।
अब ईडी का सामना किस तरह...
राज्य के ताकतवर आईएएस अफसरों, और कोयला कारोबारियों के यहां ईडी जांच के लिए पहुंची, तो ज्यादातर लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ। सीएम तो खुले तौर पर कह चुके थे कि आईटी के बाद ईडी भी जांच के लिए आ सकती है। और जब ईडी की टीम सोमवार को रायपुर पहुंची, तो प्रकरण से जुड़े सभी लोगों को खबर भी हो गई। ईडी आगे क्या कार्रवाई करती है, इस पर निगाहें टिकी हुई हैं।
हल्ला है कि जिन अफसरों के खिलाफ जांच चल रही है उनमें से एक के यहां जांच-पड़ताल, और कार्रवाई करवाने में सरकार के ही एक-दो लोगों का अहम योगदान है। चर्चा है कि ऊंचे ओहदे पर बैठे एक नेता ने अफसर के खिलाफ काफी कुछ दस्तावेज जांच एजेंसियों तक भिजवाए थे। इस तरह एजेंसियों के पास काफी कुछ हाथ लग गया था। अब अफसर ईडी का सामना किस तरह करते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
कमजोर को नहीं सताना चाहिए
ईडी के जांच के घेरे में आई महिला अफसर से मातहत काफी परेशान रहे हैं। महिला अफसर जिस बोर्ड में थी वहां एक साथ 43 लोगों की नौकरी से निकाल दिया था। प्लेसमेंट एजेंसी के ये बर्खास्त कर्मचारी दर-दर की ठोकरें खाते रहे। हालांकि बाद में कुछ लोगों को वापस भी ले लिया गया, लेकिन ज्यादातर अभी भी बाहर ही हैं। ये सभी आज भी महिला अफसर को कोसते मिल जाते हैं।
इसी बोर्ड में पिछली सरकार में प्रताडि़त रहे एक निलंबित अफसर की बहाली के लिए हाईकोर्ट ने भी आदेश दिए थे। कोर्ट-कचहरी के चक्कर में अपना बहुत कुछ गंवा चुके इस अफसर ने अपनी बहाली के लिए काफी गुहार भी लगाई। मगर महिला आईएएस ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद निलंबित अफसर कोर्ट के आदेश की अवमानना को लेकर अपील भी कर रहे थे कि कोरोना की चपेट में आ गए, और कुछ दिन बाद मृत्यु भी हो गई। अब ईडी की कार्रवाई चल रही है, तो महिला आईएएस से प्रताडि़त लोग नया-नया किस्सा साझा कर रहे हैं।
कहावत भी है कि गरीब की हाय, सरबस खाय। यानी कमजोर को नहीं सताना चाहिए, उस की हाय व्यक्ति को बर्बाद कर देती है।
टमाटर से लाल जशपुर
जशपुर जिले के पत्थलगांव, फरसाबहार, कांसाबेल, दुलदुला आदि ब्लॉक में इस बार टमाटर की भरपूर खेती हुई है। अक्टूबर की शुरूआत से यह बाजार में आ चुका है जो दिसंबर बाद तक जारी रहेगा। अनुमान लगाया गया है कि अभी जिले से हर दिन करीब एक करोड़ रुपये का टमाटर व्यापारी लेकर दूसरे राज्यों, शहरों में बेच रहे हैं। दिसंबर तक यह बिक्री रोजाना दो करोड़ तक पहुंच जाएगी, जैसा पिछले साल हुआ था। इसे ओडिशा, झारखंड, बिहार, यूपी और महाराष्ट्र के व्यापारी खरीदने के लिए पहुंच रहे हैं। पर कई बार फसल पक जाती है और मांग घट जाती है। राज्य के ही धमधा जैसे जिलों से भी भरपूर आपूर्ति होने लगती है। ऐसी स्थिति में किसान लागत नहीं निकाल पाते। सन् 2015 और 2016 में किसानों को एनएच पर टमाटर फेंकना पड़ा था क्योंकि कोई एक रुपये में भी इसे खरीदने के लिए तैयार नहीं था। लुड़ेग में फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई थी, पर कुछ समय चलने के बाद वह बंद हो चुकी है।
लिसिप्रिया के हसदेव से जुडऩे की चिंता
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लड़ाई लड़ रहीं लिसिप्रिया हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़ गई हैं। एक तबका इससे परेशान है। शायद उन्हें लगता है कि इस मुद्दे पर अब देश और देश से बाहर लोग ज्यादा बात करने, विरोध के स्वर उठाने लगेंगे। 15 अक्टूबर को लिसिप्रिया बिलासपुर में एक प्रदर्शन रैली में शामिल होने जा रही हैं। पिछले साल की एक खबर को शेयर किया जा रहा है कि लुसिप्रिया के पिता अवैध उगाही के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे। लिसिप्रिया फेक एक्टिविस्ट हैं उन्हें बिलासपुर नहीं आना चाहिए। लिसिप्रिया 11 साल की बच्ची है, शायद उनके खिलाफ बताने के लिए कुछ नहीं मिला।
अफसर बदले पर चोरी नहीं रुकी
कोरबा के हसदेव नदी से जब रेत की अवैध निकासी की शिकायतें बढ़ी तो खनिज विभाग के ऊपर से नीचे तक के सारे अधिकारी बदल दिए गए। यह संदेश दिया गया कि अब खनन पर रोक लग जाएगी। पर अधिकारियों के आने-जाने से सिस्टम तो बदल जाता नहीं। जब सीएम ने कहा था कि कलेक्टर-एसपी अवैध रेत खनन के लिए सीधे जिम्मेदार होंगे, तब कुछ दिनों तक रेत गाडिय़ों की जब्ती की मुहिम चली। पर अब फिर से गाडिय़ों की बेरोकटोक आवाजाही होने लगी है। इतना हुआ है कि दिन में कम लोडेड गाडिय़ां दिन में कम, रात में ज्यादा दिखाई देती है। पानी होने के कारण अभी रेत घाटों को बंद कर दिया गया है पर उत्खनन रोकने के लिए जो नाके लगाए गए हैं वे इतने कमजोर हैं कि कोई भी-कभी भी उठाकर गाडिय़ों को पार कर ले जाता है। इतना सब है फिर भी रेत के दाम गिर नहीं रहे हैं। खनन में लगे लोगों का कहना है कि अवैध निकासी ज्यादा ऊपरी खर्चा रहा है।
लोगों में इन दिनों क्लोज सर्किट कैमरे को लेकर जागरूकता बहुत अधिक हो गयी है। अब अगर मूत्रालय के भीतर भी लोग कैमरे की नजरों में रहेंगे, तो फारिग कैसे होंगे? एक पत्रकार पुष्य मित्र ने इस तस्वीर को पोस्ट किया है।
किस राज्य में कौन सा चुनाव चिन्ह?
महाराष्ट्र में शिवसेना के दो धड़ों के बीच चल रही लड़ाई में चुनाव आयोग ने यह तय किया है कि मुंबई के एक विधानसभा उपचुनाव में दोनों ही पार्टियां शिवसेना के धनुष बाण के चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगी। आयोग ने ठाकरे और शिंदे दोनों से ही दूसरे चुनाव चिन्हों में से कुछ छांटने के लिए कहा है। अब उद्वव ठाकरे की ओर से चुनाव आयोग से जो चिन्ह मांगे गए हैं, उनमें से त्रिशूल भी एक है। अपनी हिंदूवादी पहचान के चलते शिवसेना को त्रिशूल निशान माकुल भी बैठता है, लेकिन चुनाव आयोग के मुक्त चुनाव चिन्हों की लिस्ट में त्रिशूल दिख नहीं रहा है। ऐसा लगता है कि एक धर्म से जुड़े हुए इस हथियार को चुनाव चिन्हों की लिस्ट से इसी वजह से हटाया गया होगा। लेकिन इस कॉलम में चुनाव चिन्हों की चर्चा करने का एक मकसद यह है कि शिवसेना के विवाद से परे यह लिस्ट बड़ी दिलचस्प है। इसमें सेब को भी चुनाव चिन्ह रखा गया है, लेकिन अरूणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, पुडुचेरी, तमिलनाडु, केरल, और कर्नाटक को छोडक़र बाकी राज्यों के लिए। अब पता नहीं इन राज्यों में सेब को निशान क्यों नहीं रखा गया है। हो सकता है कि कुछ जगहों पर किसी क्षेत्रीय पार्टी ने राज्य स्तर पर इसे अपना निशान बनाया हो। ऐसे ही अलग-अलग बहुत से निशान कुछ-कुछ प्रदेशों के लिए नहीं हैं। जैसे ऑटोरिक्शा को आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में नहीं मांगा जा सकता। फलों की टोकरी को तमिलनाडु में नहीं मांगा जा सकता। चारपाई को केरल में नहीं मांगा जा सकता है, दरवाजे के हैंडल को उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में नहीं मांगा जा सकता। कान की बालियों को तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, और कर्नाटक में नहीं मांगा जा सकता। फुटबॉल को किसी भी उत्तर-पूर्वी राज्य में नहीं मांगा जा सकता। ऐसे और भी कई प्रतिबंध अलग-अलग चिन्हों को लेकर अलग-अलग प्रदेशों में हैं। जिन्हें राजनीति में दिलचस्पी हो वे चुनाव आयोग की वेबसाईट पर निशानों की लिस्ट देख सकते हैं। पहली नजर में छत्तीसगढ़ की हालत बेहतर लगती है जहां किसी भी निशान को मांगने पर रोक नहीं दिख रही है।
नाराजगी का असर होगा?
पटवारियों के मुख्यालय से गायब रहने, और नामांतरण-बटांकन के प्रकरणों में लेन-देन की शिकायतों से सीएम खफा हैं। उन्होंने कलेक्टर कॉन्फ्रेंस में अपनी नाराजगी का इजहार भी किया, और आदेश दिया कि एक ही जगह पर तीन साल से जमे पटवारियों का तबादला किया जाए।
तबादलों पर यह जानकारी सामने आ रही है कि प्रदेश में तीन साल से एक ही जगह पर पदस्थ पटवारी एक भी नहीं हंै। कई पटवारी तो सालभर में एक से अधिक हल्के घूम चुके हैं। ये अलग बात है कि सीएम की नाराजगी को देखकर पटवारियों की एक-दो तबादला सूची जारी हो सकती है।
पटवारियों को लेकर शिकायतें पहले भी आती रही हैं। पिछले सरकार में अमर अग्रवाल, और बृजमोहन अग्रवाल व प्रेम प्रकाश पांडेय ने राजस्व मंत्री रहते पटवारी तबादलों को लेकर कड़े दिशा-निर्देश जारी किए थे। बाद में मंत्रियों के समर्थक ही पटवारियों के समर्थन में आ गए, और फिर वही ढर्रा शुरू हो गया। ऐसे में इतिहास देखकर लगता नहीं है कि सीएम की नाराजगी का ज्यादा कुछ असर पड़ेगा।
सीएम बिना बना था दौरा? रद्द
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया के बस्तर दौरा रद्द होने की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है। सुनते हैं कि पुनिया के चार दिन के बस्तर दौरे को लेकर सीएम को विश्वास में नहीं लिया गया था, और उनकी जानकारी के बिना कार्यक्रम तय कर लिया गया था। सीएम का भेंट-मुलाकात का कार्यक्रम चल रहा है। ऐसे में पुनिया का कार्यक्रम तय होने से उलझन थी। यह जानकारी पार्टी हाईकमान तक पहुंची, और फिर पुनिया का आना टल गया।
मुखिया का रुख अलग-अलग
सालभर पहले पुरानी बस्ती थाने में कुछ लोगों ने हुड़दंग मचाया, और पुलिस बल की मौजूदगी में एक पादरी की पिटाई कर दी। डीजीपी ने इस घटना को काफी गंभीरता से लिया। पहले टीआई को सस्पेंड कर दिया गया, और फिर रातों-रात एसएसपी अजय यादव को हटा दिया गया। यह भी संयोग है कि इस तरह की घटना हफ्तेभर पहले उसी पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र में हुई। इस बार कुछ असामाजिक तत्वों ने टीआई को ही पीट दिया। थाने में हुड़दंग जैसी घटनाएं एक-दो और जगहों पर हुई है। मगर इस बार डीजीपी अशोक जुनेजा ने रायपुर में बेहतर पुलिसिंग के लिए तारीफों के पुल बांध दिए। एक ही तरह की घटनाओं को लेकर पुलिस के शीर्ष अफसर के अलग-अलग रूख की जमकर चर्चा हो रही है।
हुंकार घोषणा पत्र में दर्ज होगी?
शराबबंदी को लेकर कांग्रेस की वायदाखिलाफी के खिलाफ भाजपा की महिला मोर्चा ने हुंकार रैली निकालने का ऐलान किया है। यह एक ऐसा संवेदनशील विषय है जिस पर भाजपा को अपनी सरकार के रहते विपक्षी आलोचनाओं और महिला समूहों से हुए आंदोलनों का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया था। भाजपा कहती है कि कांग्रेस ने गंगाजल लेकर इसकी शपथ ली थी, कांग्रेस इससे इंकार करती है। पर यह तो मानती है कि शराबबंदी उनके चुनावी वादे में शामिल था। अब जिस तरह से मंत्री और इस पर सिफारिश देने वाली समितियों के सदस्य बयान दे रहे हैं, उससे साफ है कि इस वादे के पूरा होने पर बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं। पर, भाजपा खुद सरकार में आएगी तो क्या वह शराबबंदी करेगी? लोग तो पूछेंगे, इसलिए आंदोलन के दौरान इस बारे में भी अपना रुख बता देना चाहिए। ([email protected])
बड़ी शादी में बड़े-बड़े छोटे...
छत्तीसगढ़ सरकार के एक सबसे ताकतवर अफसर, अनिल टुटेजा की बेटी की शादी थी, तो जाहिर था कि सभी लोग इक_े होंगे। कलेक्टर और एसपी की कांफ्रेंस भी इसी दिन मुख्यमंत्री ने रायपुर में रखी थी, और नतीजा यह था कि हर जिले के कलेक्टर-एसपी, और हर इलाके के कमिश्नर-आईजी इसमें आए हुए थे। विपक्ष के नेताओं की भी भारी भीड़ इस शादी में थी। मुख्यमंत्री और राज्यपाल के साथ-साथ राज्य के हर ताकतवर की वहां मौजूदगी से बड़े-बड़े लोगों का कद छोटा हो गया था। समारोह के गेट पर ही डीजीपी अशोक जुनेजा का ड्राइवर उनकी कार खड़ी रखना चाहता था, लेकिन पार्किंग का इंतजाम करने वाली निजी एजेंसी के कर्मचारी ने वहां से कार हटाने को कहा। पुलिस का ड्राइवर कहते रह गया कि कार डीजीपी साहब की है, लेकिन एजेंसी के कर्मचारी ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की, और कार वहां से हटवाकर ही दम लिया। उसका भी तर्क सही था कि जब राज्यपाल आने वाली हैं, तो वह डीजीपी की गाड़ी किस तरह गेट पर रूकने दे सकता है। दरअसल बड़े लोगों को अपनी गाड़ी पोर्च में लगवाने की आदत रहती है जो कि सिर्फ गाड़ी रूकने के लिए बनी हुई जगह रहती है, बाद में तो पार्किंग की जगह पर ही गाड़ी लगनी चाहिए। लेकिन सरकारी इमारतों में इमारत के सबसे बड़े नेता या अफसर की गाड़ी पोर्च में ही रास्ता रोकते हुए लगाई जाती है। वह आदत शादी-ब्याह के मौकों पर भी बड़े लोगों के ड्राइवरों में बनी रहती है।
मुंह खुला का खुला रह गया
दिल्ली के पूरे इलाके को एनसीआर कहा जाता है, नेशनल कैपिटल रीजन, यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र। खुद एनसीआर के इलाके में लोग इसके अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं, बाकी देश के लिए ये सारे शहर दिल्ली ही कहलाते हैं। कल रात अफसरों के एक जमावड़े में यह बहस चल निकली कि छत्तीसगढ़ के किस-किस अफसर ने दिल्ली में बड़े-बड़े मकान खरीदे हुए हैं? किसी ने एक अफसर का नाम कहा तो दूसरे ने कहा कि दिल्ली में उस अफसर का कोई मकान नहीं है। बताने वाले ने भी सही कहा, और बचाने वाले ने भी, क्योंकि मकान एनसीआर में तो है, लेकिन दिल्ली में नहीं है। दोस्त और शुभचिंतक हों तो ऐसे, जो कि किसी भी विवाद में अपने लोगों को बचाने की कोशिश करें। अब इसी बहस में लोगों ने एक रिटायर्ड जज के एनसीआर में उतने ही करोड़ के मकान की जानकारी दी, जितने करोड़ का मकान एक अफसर का वहां पर बताया जा रहा था। अब इतने बड़े-बड़े आंकड़ों को सुनकर कुछ लोगों का मुंह खुला का खुला रह गया।
आजकल क्या रेट है, नक्शा-सीमांकन का?
नैतिकता और ईमानदारी पर यकीन रखने वाले बिलासपुर के एक व्यवसायी ने राजस्व विभाग से जुड़ा अपना बुरा अनुभव फेसबुक पर शेयर किया। इसमें उन्होंने बताया कि उनकी जमीन नाप से कम दिखाई दे रही थी तो सुधार के लिए पटवारी, तहसीलदार के दफ्तर में भारी परेशानी हुई। आखिर जमीन का सौदा कराने के लिए उतावले एक दलाल ने अपनी ओर से पटवारी को रिश्वत देकर काम कराया। इसके बाद उनकी पोस्ट पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। हर किसी का मानना है कि रेवन्यू में कोई काम बिना लेन-देन नहीं होता। लोगों ने लिखा-रेट लिस्ट बना हुआ है, आपका काम सस्ते में हो गया। किसी सरकार में यह नहीं रुका है, कलेक्टर भी इनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते, आदि..आदि। इसी में दुर्ग के एक शख्स ने लिखा हैं कि सन् 2005 में वहां की मेयर के बाबू को उन्होंने नक्शा पास कराने के लिए 17 हजार रुपये दिए, इसके बावजूद कि उसके पारिवारिक संबंध थे। 22 साल पुरानी इस घटना को लेकर लोगों ने लिखा- आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी, जो इतनी छोटी रकम के लेन-देन के बारे में इतने दिन बाद दुनिया को बता देंगे। आज नक्शा पास कराके देखिए, क्या रेट है पता चल जाएगा। वह बाबू कितना अच्छा था, जिसने इतना कम लिया। [email protected]
सीएम की कांफ्रेंस और मोबाइल
विधानसभा चुनाव के ठीक साल भर पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टर और एसपी कांफ्रेंस बुलाई तो अफसर तनाव के बीच वहां पहुंचे हुए थे क्योंकि किस जिले में कामकाज कमजोर साबित हो जाएगा, इसका कोई ठिकाना तो था नहीं। पुलिस अफसर दो किस्म के थे, कुछ ने बैठक शुरू हो जाने के बाद अपनी कैप उतार दी थी, लेकिन कई बड़े-बड़े अफसर कैप लगाए हुए बैठे थे। कलेक्टरों के साथ वर्दी की कोई दिक्कत नहीं रहती है, इसलिए वे अधिक बेफिक्र थे। लेकिन बैठक की जो तस्वीरें निकलकर सामने आईं, उनमें करीब आधा दर्जन कलेक्टर-एसपी ऐसे थे जो मुख्यमंत्री के मंच पर रहते हुए भी अपने मोबाइल पर जुटे हुए थे। अब हो सकता है कि जिले की जानकारी मोबाइल पर आ रही हो, और वे ऐसी जानकारी देख रहे हों, लेकिन फिर भी तस्वीर में तो वे मोबाइल से उलझे हुए ही दिख रहे हैं। ये तस्वीरें बाहर आईं तो लोगों ने मोबाइल पर व्यस्त अफसरों पर घेरा बनाकर उन तस्वीरों को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। अब अगर घेरेवाली ये तस्वीरें सीएम तक पहुंचीं, तो हो सकता है कि आज की कांफ्रेंस खत्म होने तक उनकी कोई प्रतिक्रिया भी सामने आ जाए।
सट्टे के सिर्फ प्यादे पकड़ में आए...
महादेव और अन्ना रेड्डी में पुलिस जहां हाथ डाल रही है, लाखों रुपये निकल रहे हैं, करोड़ों का हिसाब हजारों फोन नंबर और दर्जनों बैंक खाते मिल रहे हैं। इनके बीसियों वेबसाइट्स और दसियों मोबाइल एप्लिकेशंस हैं। बिलासपुर पुलिस ने तो सटोरियों के पास से 22 हजार फोन नंबर की लिस्ट हासिल की, सब आपस में वाट्सएप ग्रुप्स से जुड़े थे। सुराग मिला है कि इसके सरगना दुबई में बैठे हैं। रैकेट का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कारोबार फैला है। राजधानी रायपुर, दुर्ग-भिलाई सहित बिलासपुर में इस धंधे में लिप्त स्थानीय लोगों को पकड़ा गया है। कुछ लोग तो वेतनभोगी कर्मचारी हैं। इनमें कुछ इंजीनियरिंग करके भी बेरोजगार थे। क्या पुलिस के पास इतने संसाधन हैं कि इस धंधे को जड़ तक जाकर बंद कराया जा सके। इंटरनेट की उपलब्धता ने अपराध को आसान बना दिया है। ऑनलाइन ठगी के जितने मामले पुलिस पकड़ती है, नए नाम, फोन नंबर और नए आइडिया के साथ वही गिरोह फिर धंधे में उतर जाता है। सट्टे के मामले में सहूलियत यह भी है कि कोई अलग गंभीर धारा नहीं से जोड़ी गई हो तो आरोपी को आसानी से जमानत मिल जाती है। कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में भी मुख्यमंत्री ने इस सुराख पर चिंता जताई है तथा कड़ी सजा के प्रावधान पर जोर दिया है। सजा कड़ी होने पर अपराधियों में खौफ जरूर बढ़ेगा, पर क्या दूसरे राज्यों और देशों से संचालित हो रहे व्यापक दायरे में फैले इस अवैध कारोबार को बंद कराना मुमकिन है? आशंका यही है कि सट्टा खत्म तो नहीं होगा, बल्कि उस पर नियंत्रण रखने के लिए पुलिस को तकनीकी रूप में ज्यादा दक्ष होना पड़ेगा।
और कैब पर लग गया बैन...
ओला और रैपिडो की टैक्सी सेवाएं बड़ी पापुलर रही हैं। रैपिडो तो केवल बाइक उपलब्ध कराती हैं पर ओला ने भी कार के अलावा मिनी कार, टैक्सी और बाइक सेवा शुरू की है। राजधानी रायपुर में भी यह सेवा एक क्लिक में मनचाही जगह पर पहुंचाने के लिए वाजिब दाम में मिलने वाली सेवा की वजह से लोकप्रिय थी, पर अब सडक़ों पर ये कम दिखाई दे रही हैं। इन दिनों उपभोक्ताओं को पहले जैसी त्वरित सेवा भी नहीं मिल रही है। यह बताया जाता है कि आपके लिए टैक्सी तीन-चार मिनट में पहुंच जाएगी, पर 10-15 मिनट तक नहीं पहुंचती। कई बार रात होने, आउटर होने का बहाना कर एक्सट्रा किराये की मांग की जाती है या फिर जाने से ही मना कर दिया जाता है। ऐसे में आप बुकिंग कैंसिल करते हैं तो अगली बार एक निश्चित चार्ज बिल में और जुड़ जाएगा। पेट्रोल-डीजल के दाम बढऩे के बाद इसके किराये में भारी बढ़ोतरी कर दी गई। अब बेंगलूरू में राज्य सरकार ने ऐसी ही शिकायतों के चलते कैब कंपनियों को तीन दिन के भीतर अपना कारोबार समेट लेने की चेतावनी दे दी है। बेंगलूरु वही जगह है जहां सबसे पहले कैब सेवा शुरू की गई थी। सरकार के फरमान के बाद वहां की टैक्सी यूनियंस ने अपना खुद का कैब एप्लिकेशन शुरू करना ऐलान कर दिया है। रायपुर में भी टैक्सी, आटो रिक्शा का किराया मनमाना है। पोस्टपैड सेवा स्टेशन या बस-स्टैंड में ठप है। यहां के लोग भी बेंगलूरु की तरह किसी विकल्प के सामने आने का इंतजार कर रहे हैं। [email protected]
कुछ की भावना, बाकी को खतरा
देश भर में गौभक्तों की अतिसक्रियता के चलते बूढ़े और कमजोर हो चुके अनुत्पादक गाय, बैल, और सांड का कई राज्यों के कसाईघरों तक जाना बंद सरीखा हो गया है। नतीजा यह है कि गांव-गांव में ऐसे जानवरों की भीड़ खेतों को चर रही है, और बारिश के पूरे मौसम में गीली मिट्टी से बचने के लिए पक्की सडक़ पर डेरा डालकर बैठी है। कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें रात के अंधेरे में या बारिश के वक्त कोई बड़ी गाड़ी ऐसे दर्जन भर जानवरों को कुचल चुकी है, और खुद भी हादसे का शिकार हुई है। देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था ऐसे जानवरों की जिंदगी अनुपयोगी हो जाने पर उनसे छुटकारा पाने पर टिकी हुई थी, लेकिन अब किसान बूढ़े जानवरों को बेच नहीं सकते, उन्हें खिला-पिला नहीं सकते, और नए जानवर खरीद नहीं सकते। नतीजा यह है कि गौवंश से मोहब्बत करने वाले लोग अपनी भावनाओं से परे और कुछ नहीं देते, बस लोगों के लिए दिक्कत खड़ी करते हैं।
दूसरी तरफ शहरों की संपन्न बस्तियों में सवर्ण और संपन्न लोग अपनी धार्मिक भावनाओं के चलते हुए गायों और सांडों को रोटी खिलाते हैं, और इन रोटियों के चक्कर में बिना मालिक वाले ऐसे जानवर रिहायशी इलाकों में डेरा डाले रहते हैं। गंदगी भी फैलाते हैं, और पार्किंग की जगह भी घेरकर रखते हैं, लेकिन इन्हें खिलाने वाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए इलाके के पार्षद और म्युनिसिपल अफसर भी कुछ नहीं कर पाते। हर शहर में ऐसे सांडों के हमलों से कभी मौतें हुई हैं, तो कभी लोग जख्मी हुए हैं, लेकिन लोगों की भक्तिभावना दूसरों के लिए खतरा पैदा करते हुए जारी ही है।
स्वास्थ्य विभाग को जगाए कौन?
दशहरा के ठीक पहले स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हालत पर आंखें नम करने वाली दो खबरें आईं। कोरबा में एक पांच साल के बच्चे को पास के खरमोरा से इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया था। उसकी जान नहीं बचाई जा सकी। अगली सुबह पोस्टमार्टम कर बच्चे का शव पिता को सौंप दिया गया। अब उसे घर ले जाने के लिए सरकारी शव वाहन की जरूरत थी। घंटों कोशिश के बाद प्रबंध नहीं हुआ। पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह प्राइवेट वाहन कर सकता। अंत में एक परिचित को दया आई। उसकी बाइक पर शव को लादकर वह घर लेकर गया।
इधर बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर में रविवार को देखा गया कि मजदूर अशोक पासवान का मासूम भांजा उसे एक हाथ ठेले पर लिटाकर अस्पताल ले जा रहा है। पुलिस ने देखा तो रोका और एक वाहन की व्यवस्था की और अस्पताल पहुंचाया। मगर इलाज में देरी की वजह से मजदूर की मौत हो गई।
एक घटना कोरबा की है, जो प्रदेश का सबसे अमीर जिला है। नैसर्गिक संसाधन, कोयला खदान, ऊर्जा, सीएसआर, डीएमएफ, राजस्व सभी मामलों में अव्वल है। दूसरी घटना सरगुजा संभाग की है, जहां से स्वास्थ्य मंत्री आते हैं। फिर भी सरगुजा से आए दिन लचर स्वास्थ्य सेवाओं की खबर आ रही हैं और सुधार कुछ नहीं दिख रहा।
केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने मुफ्त इलाज के लिए बीमा योजनाएं लागू कर रखी हैं, पर जिन्हें स्वास्थ्य की आधारभूत सेवा ही नहीं मिल रही हों वे उनके लिए इलाज महंगा हो या मुफ्त, क्या फर्क पड़ता है।
विधायक कुंभकरण के रोल में
अपने विधायकों की नृत्य, गान, अभिनय प्रतिभा समय-समय पर सार्वजनिक समारोहों में सामने आती रहती हैं। इस दशहरा में केशकाल के विधायक संतराम नेताम भी एक नए रोल में दिखे। बड़े डोंगर में रामलीला मंचन के दौरान उन्होंने कुंभकरण की भूमिका निभाई। वैसे नेताम का कहना है कि उनका यह रोल नया नहीं है। पिछले साल भी रामलीला में वे कुंभकरण बने थे। बचपन में जब गांव में लीला होती थी, तब भी वे इसी भूमिका में मंच पर आते थे। कुंभकरण की भूमिका में ही क्यों? विधायक का कहना है कि कुंभकरण के बारे में कहा जाता है कि वे 6 माह सोते हैं, कैरेक्टर की यही खासियत उन्हें पसंद आती है।
मुमकिन है कि विधायक क्षेत्र की जनता की चिंता में दिन-रात लगे रहते हों, सोने का मौका नहीं मिलता हो। इसी बहाने वे अपनी नींद पूरी कर लेते होंगे।
रोजगारशुदा गरीब..
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी (सीएमआईई) की ताजा रिपोर्ट ने सरकार को फिर एक बार अपनी पीठ थपथपाने का मौका दिया है। राज्य की बेरोजगारी दर देश में सबसे कम 0.1 प्रतिशत पर आ गई है। यानि 99.9 प्रतिशत लोगों के पास कोई न कोई व्यवसाय है। एक हजार में सिर्फ एक के पास काम नहीं है। सीएमआईई ने पहले भी जो आंकड़े जारी किए थे, उसमें छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी बहुत कम दर्शाई गई थी।
दूसरी तरफ जुलाई में संसद में दिया गया एक जवाब भी हम सामने रख सकते हैं। इसके मुताबिक सबसे ज्यादा गरीब करीब 40 प्रतिशत आबादी छत्तीसगढ़ की है। हम झारखंड, ओडिशा, बिहार जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्यों से भी ज्यादा बुरी स्थिति में हैं। दोनों आंकड़ों में तालमेल नहीं बैठता। ऐसा क्यों है कि लोगों के पास रोजगार तो है, पर वे गरीब भी हैं। क्या उनको नाम-मात्र भुगतान हो रहा है? न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही?
छत्तीसगढ़ के श्रम आयुक्त ने पिछले सप्ताह कृषि मजदूरों के लिए नई न्यूनतम मजदूरी 273 रुपये तय की है। पर यह भुगतान शायद ही कभी किसी को होता हो।
सरकारी परिभाषा के मुताबिक कोई ग्रामीण 816 रुपये और शहरी 1000 रुपये से अधिक एक माह के भीतर खर्च करने की स्थिति में है तो वह गरीबी रेखा में नहीं आएगा। फिर इन श्रमिकों को कितने दिन काम मिल रहा है और किस दर से भुगतान हो रहा है? जब 40 फीसदी लोग हजार रुपये महीने खर्च करने की स्थिति में नहीं हों तो फिर रोजगार के इस सुनहरे आंकड़े का क्या किया जाए?
पुलिस जवानों का वर्चुअल आंदोलन
पुलिस जवानों को सुविधाएं देने की मांग पुरानी है। भाजपा शासनकाल में अनुशासन में बंधे होने के कारण वे खुद सामने नहीं आए, पर उनके परिवार के सदस्यों ने आंदोलन किया था। पुलिस जवानों ने अवकाश की अर्जी लगाई थी, आंदोलन सुलगने के कगार पर था। तब तत्कालीन गृह मंत्री ननकीराम कंवर ने उनकी मांगों को जायज बताते हुए यह भी कहा था कि उन्होंने सरकार को कुछ मांगों को पूरा करने का सुझाव दिया था, पर विचार नहीं किया गया। कांग्रेस ने तब इस आंदोलन को समर्थन दिया और मांगों को पूरा करने की बात अपने घोषणा पत्र में की।
इनमें से साप्ताहिक अवकाश पर निर्णय ले लिया गया है। जो अन्य वादे किए गए थे उनमें पुलिस कर्मचारियों के आवास व बच्चों की शिक्षा के लिए कल्याण कोष को शासकीय अनुदान, नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा, सभी रैंक में नियमित पदोन्नति और वेतन वृद्धि, साइकिल भत्ता की जगह पेट्रोल भत्ता और इसकी राशि में वृद्धि, तृतीय वर्ग के पुलिस कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की जाएगी, शामिल थे। यह भी कहा गया कि उनसे सुरक्षा का काम ही लिया जाएगा, बंगले आदि में अन्य कार्य नहीं लिए जाएंगे।
अब जब मौजूदा सरकार को चार साल पूरा होने जा रहा है, पुलिस कर्मचारी अपनी मांग पूरी होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उन्हें आंदोलन करने का अधिकार नहीं है, पर उनके पक्ष में सोशल मीडिया पर कई पेज तैयार हैं, जिसके जरिये वे अपनी बेचैनी सरकार तक पहुंचा रहे हैं।
देखें अब कैसे ‘प्रतिष्ठित’ आएंगे
छत्तीसगढ़ के सूचना आयोग में अध्यक्ष और एक सदस्य के पद खाली होने जा रहे हैं, और लोगों के बीच इसे लेकर बड़ी उत्सुकता है। रिटायर्ड अफसरों के मन में तो भारी सहूलियतों, मोटी तनख्वाह, और भारी सरकारी महत्व वाली इस कुर्सी के लिए चाहत है ही, समाज के दूसरे तबकों के लोग भी तीन बरस का यह मौका चाह रहे हैं। अफसरों में कुछ ऐसे लोगों का नाम भी चर्चा में है जो कि सबसे अधिक बदनाम हैं, लेकिन बदनामी सूचना आयोग में आड़े नहीं आती, यह तो मौजूदा नामों से भी पता चलता है, इसलिए आने वाले लोग भी उसी दर्जे के बदनाम रहेंगे, तो भी किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। हालांकि यह आयोग अपने इश्तहार में प्रतिष्ठित होने की मांग करता है, लेकिन आज के ही कुछ लोगों को ही देख लें, तो यह दिख जाता है कि प्रतिष्ठा कैसी-कैसी हो सकती है। अब देखें आने वाले दिनों में ये दो कुर्सियां किन लोगों को नसीब होती हैं।
रावण का अपशकुन!
दशहरा पर रावण दहन अधूरा रहता है, तो अपशगुन माना जाता है। इस बार भी प्रदेश में सैकड़ों जगहों पर रावण दहन हुआ, लेकिन कई जगहों पर दहन से पहले बारिश हो गई। इस वजह से तमाम कोशिशों के बावजूद रावण दहन अधूरा रह गया।
प्रदेश के सबसे बड़े दशहरा उत्सव डब्ल्यूआरएस मैदान में आतिशबाजी तो खूब हुई, लेकिन रावण के सिर जल नहीं पाए। यही हाल, सप्रे शाला मैदान के दशहरा उत्सव का भी रहा। धमतरी में तो पूरी तरह रावण दहन नहीं होने पर निगम प्रशासन ने पुतला तैयार करने वाले को भुगतान करने से इंकार कर दिया है।
कुछ इसी तरह का वाक्या डब्ल्यूआरएस में दो दशक पहले हुआ था। तब भी रावण दहन अधूरा रह गया था। उस वक्त कार्यक्रम के कर्ताधर्ता तत्कालीन मंत्री तरूण चटर्जी थे, और फिर बाद में वो विधानसभा का चुनाव हार गए। इसी तरह राजेश मूणत के आयोजन प्रमुख रहते हुए भी इसी तरह का मौका आया, और वो भी अगला चुनाव नहीं जीत पाए। उस वक्त श्रीचंद सुंदरानी भी आयोजन समिति में थे। उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।
डब्ल्यूआरएस में कुलदीप जुनेजा, और मेयर एजाज ढेबर आयोजन समिति के प्रमुख थे। इसी तरह सप्रे शाला मैदान के दशहरा उत्सव कार्यक्रम के मुखिया सन्नी अग्रवाल थे। ये सभी विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। अब इनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अभी से कानाफुसी हो रही है। देखना है आगे क्या होता है।
आज के सीआईडी अफसर
सरकार के कामकाज को जानने वाले लोग यह अच्छी तरह जानते हैं कि पुलिस में सीआईडी का काम क्या होता है। कुछ लोगों को टीवी सीरियल से धोखा हो सकता है कि सीआईडी बड़ी नाजुक जांच करती है, और बड़े-बड़े मुजरिमों को पकड़ लेती है, लेकिन सच तो यह है कि सरकार में जिन मामलों को जांच के किसी किनारे तक नहीं पहुंचाना रहता, उन्हें सीआईडी को दे दिया जाता है, और सीआईडी के अफसर गोदाम के इंचार्ज की तरह सरकार की मर्जी आने तक उन फाइलों को दबाकर बैठे रहते हैं। बाहर से बहुत ही महत्वपूर्ण दिखने वाला यह विभाग ऐसे मामले ही पाता है जिनकी कोई जांच नहीं होनी रहती।
अब छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक सबसे वरिष्ठ सत्तारूढ़ कांग्रेसी विधायक सत्यनारायण शर्मा की हालत सीआईडी अफसर जैसी हो गई है। सरकार ने नशाबंदी लागू करने के लिए एक कमेटी बनाई, और उसकी अध्यक्षता सत्यनारायण शर्मा को दे दी। जब छत्तीसगढ़ नया राज्य बना तब शर्माजी अविभाजित मध्यप्रदेश में आबकारी मंत्री थे, सरकार में उनका तजुर्बा शराब बेचने का था। अब न तो सरकार को शराबबंदी करनी थी, और न ही सत्यनारायण शर्मा का तजुर्बा शराबबंदी का था। इसलिए वे सीआईडी अफसर की तरह इस कमेटी पर बैठे हुए हैं। उन्हें एक और कमेटी में सरकार ने अध्यक्ष बनाया है, राजधानी रायपुर में रमन सरकार के समय बने स्काईवॉक की जांच के लिए। इस कमेटी को यह रिपोर्ट देनी थी कि अब तक बने स्काईवॉक को तोड़ देना बेहतर होगा, या उसे पूरा करना। सरकार के चार बरस पूरे होने को हैं, और अब तक यह कमेटी सरकार के सीआईडी विभाग की तरह यही तय नहीं कर पाई है कि इसे रखा जाए, या तोड़ दिया जाए। राजधानी रायपुर का यह एक सबसे चर्चित और खर्चीला प्रोजेक्ट था, और चार बरस में भी भूपेश बघेल सरकार इसका नफा-नुकसान तय नहीं कर पाई है। इसे बनाने वाले पिछली सरकार के एक सबसे ताकतवर मंत्री, रायपुर के विधायक राजेश मूणत ने अभी चार दिन पहले थक-हारकर यह बयान जारी किया है कि सरकार किसी जज से इस मामले की जांच करा ले, या फिर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना बंद करे। देखना है कि आज की सरकार के सबसे बड़े सीआईडी अफसर इस पर क्या करते हैं?
बाजार में चीनी माल घट गया...
इस त्यौहारी सीजन में प्रदेश के बाजारों में चाइनीज माल की क्या स्थिति है? व्यापारियों के अनुसार इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पहले 80 फीसदी चीन के माल भरे रहते थे, उसकी जगह भारतीय उत्पादों ने ले ली है। टीवी, कंप्यूटर आदि के कुछ पार्ट्स चीन से आते हैं, जो रायपुर और देश के बाकी शहरों तक पहुंचने के बाद भारतीय माल की तरह एसेंबल करके खपाये जा रहे हैं। पटाखों को लेकर तो विरोध पिछले कुछ वर्षों से हो ही रहा है। उसकी गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर निगरानी रखने वाली सरकारी एजेंसियों की चिंता थी, जिसके कारण कड़े प्रावधान तय किए गए। ये भारतीय पटाखों के अनुपात में बहुत सस्ते भी नहीं थे। पटाखा कारोबारी बता रहे हैं कि इस बार बाजार में देश के ही बने पटाखे ज्यादा दिखेंगे। झालर का विकल्प कोई नहीं आ पाया है। इस बार भी बाजार चाइनीज झालरों से सज रहे हैं। देश में इसका सस्ता उत्पादन नहीं हो पा रहा है।
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल ट्रेडर्स ने जुलाई महीने में देश के महानगरों सहित 20 बड़े कारोबारी शहरों में सर्वेक्षण कराया था। इनमें रायपुर को भी शामिल किया गया था। यह बात सामने आई थी कि इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक उपकरणों और पटाखों के चीन को ऑर्डर बहुत कम गए हैं।
चाइनीज माल के बहिष्कार के लिए जैसा आह्वान पहले किया जाता था, अब कम दिखाई देता है। इन आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि घरेलू जरूरतों को पूरी करने के लिए लोग देसी उत्पाद की तरफ मुड़ रहे हैं। इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि चाइनीज उत्पादों में गारंटी का नहीं होना। झालर भी खरीदते समय दुकानदार साफ तौर पर बता देता है कि इसे वे न तो वापस लेंगे, न एक्सचेंज करेंगे।
पर दूसरा पहलू भी देखिये, दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कोई कमी नहीं आई है। सितंबर माह की ही खबर है कि सैन्य और कूटनीतिक तनाव के बावजूद चीन से आयात बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही कम हो रहा है भारत का निर्यात। और, हमारा सबसे ज्यादा व्यापार दुनिया में चीन के साथ है। आम उपभोक्ता इस बात पर संतोष जता सकता है कि वह सीधे चीन मार्का का माल नहीं खरीद रहा है, या फिर कम खरीद रहा है।
मीडिया और अफसर
छत्तीसगढ़ में पुलिस और दूसरे सरकारी विभाग बड़े दिलचस्प तरीकों से काम कर रहे हैं। राज्य के एक विभाग के अफसरों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए खबरें किसी न्यूजपोर्टल ने पोस्ट कीं, तो उस विभाग ने उस पोर्टल के संपादक-प्रकाशक को नोटिस भेजकर बुलवाया, और उससे आरोपों के सुबूत मांगे। बाद में पुलिस और जनसंपर्क विभाग के अफसरों की एक कमेटी ने इस न्यूजपोर्टल की खबरों को फेक घोषित कर दिया। मजे की बात यह भी है कि इस कमेटी में दो पत्रकार भी रखे गए हैं, लेकिन उनके रहते भी भ्रष्टाचार के आरोपों की खबरों को फेक घोषित किया गया, जबकि यह कमेटी सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के लिए बनी थी। इसके बाद दो पत्रकारों में से एक पत्रकार के इस्तीफा दे देने की भी खबर है।
अब बस्तर से एक नई खबर निकलकर आई है कि वहां पर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में पुलिस ने चार पत्रकारों को नोटिस देकर बयान देने के लिए बुलाया है, और कहा है कि पशु चिकित्सा विभाग के एक अफसर ने इन पत्रकारों के खिलाफ शिकायत की है कि वे अनर्गल बयान और तथ्यहीन मुद्दे प्रकाशित करके शासन की छवि धूमिल कर रहे हैं, और मानसिक रूप से प्रताडि़त कर रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि किसी सरकारी विभाग के भ्रष्टाचार की खबरें छापने या पोस्ट करने, या कहीं दिखाने से अगर किसी अफसर को मानसिक प्रताडऩा हो रही है, तो क्या यह पुलिस की दखल का मामला बनता है? राज्य स्तर की फेक न्यूज कमेटी से लेकर दंतेवाड़ा एसपी ऑफिस तक जगह-जगह सरकारी लोग अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर गलतफहमी या खुशफहमी के शिकार दिख रहे हैं। अगर अच्छे या बुरे, कैसे भी मीडिया से जूझने के लिए विभाग खुद नोटिस भेजकर जांच के लिए बुलाते हैं, या पुलिस बुलाती है, तो फिर मानहानि के कानून की जरूरत कहां रह जाती है? किसी अदालत में ऐसी दखल दो पेशी भी खड़ी नहीं रह पाएगी।
धर्म और राजनीति
विधानसभा चुनाव में सालभर बाकी रह गए हैं। ऐसे में त्यौहार, और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में राजनीतिक चर्चाएं हो जाती हैं। पिछले दिनों सीएम भूपेश बघेल पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर दर्शन के लिए पहुंचे, तो मंदिर के ट्रस्टी, और पुराने कर्मचारी नेता को देखकर रूक गए। उनसे हल्के-फुल्के अंदाज में कहा बताते हैं कि आम आदमी पार्टी काबर जाइन कर लेस, इहां आम आदमी पार्टी के कोई भविष्य नहीं हे। कर्मचारी नेता ने धीरे से उनसे कुछ कहा, तो सीएम यह कहकर आगे बढ़ गए कि ले ना दशहरा के बाद बैठबो...। उसके बाद पहुंचे रायपुर दक्षिण के विधायक बृजमोहन अग्रवाल की मंदिर प्रांगण में कर्मचारी नेता से दुआ-सलाम हुई। उन्होंने हास परिहास के बीच कर्मचारी नेता को नसीहत दे डाली कि वो सक्रिय राजनीति से अलग हो, और प्रवचन करें। उन्हें हर संभव सहयोग करेंगे।
बघेल का एमपी के मंत्री पर ऐतराज...
इंदौर के लिए बिलासपुर से शुरू हुई हवाई सेवा के उद्घाटन समारोह में वर्चुअल शामिल हुए मध्यप्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने यह कहकर चौंका दिया कि हमारे यहां इंदौर में तो भूपेश बघेल और सिंधिया दोनों की फोटो मंच पर लगी है, लेकिन बिलासपुर में ऐसा नहीं किया गया है। सिर्फ सीएम की फोटो है। बिलासपुर एयरपोर्ट में मंच के पीछे लगे स्क्रीन पर कैमरे दो ही जगह ज्यादा फोकस हो रहे थे। एक तो सिंधिया पर दूसरे बघेल पर। दर्शकों ने सिलावट की बात पर ध्यान दिया, ऐसा लगा कि वे कह तो सही रहे हैं। पर यह बात सही नहीं थी। दरअसल, तुलसी सिलावट इंदौर से कार्यक्रम में जुड़े थे जहां सिंधिया और बघेल दोनों की फोटो थी। इधर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने कार्यालय से वीडियो कांफ्रेंस में शामिल हुए। सिलावट के मंच के पीछे की तस्वीर में सिंधिया और बघेल दोनों की तस्वीरें स्क्रीन पर दिखाई दे रही थी, पर सीएम के पीछे ऐसा नहीं था। लोगों को लगा यह क्या राजनीति हो गई?
पर भाषण के अंत में सीएम बघेल ने शालीनता से सिलावट की खिंचाई की, आपको ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। सीएम ने कहा कि मैं अपने दफ्तर से बात कर रहा हूं। यहां मेरे पीछे सिंधिया जी की तस्वीर क्यों होगी। कार्यक्रम बिलासपुर में हो रहा है, जहां सिंधिया जी की तस्वीर लगी हुई है। चूंकि बघेल अंतिम वक्ता थे अतएव सिलावट को सफाई देने का कोई मौका नहीं मिला। वैसे बात साफ हो गई थी, सफाई देने जैसा कुछ था भी नहीं। बघेल ने ऐन मौके पर सिलावट की बात का खंडन कर दिया। वरना सोशल मीडिया में एक्टिव लोग अब तक इस मुद्दे पर हजारों ट्वीट कर चुके होते।
गरियाबंद और काम्बले का नाता
2009 बैच के आईपीएस अमित तुकाराम काम्बले को सरकार ने दोबारा गरियाबंद की कप्तानी सौंपी है। काम्बले का गरियाबंद जिले से कुछ खास नाता रहा है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में गरियाबंद जिले की कमान सौंपने से खफा होकर अमित ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का रास्ता चुना था। उन्होंने एसपीजी में लंबे समय तक काम किया। नारायणपुर में तैनात रहते अमित ने नक्सल मोर्चे में अच्छी सफलताएं पुलिस के खाते में दर्ज कराई थी। उन्हें उम्मीद थी कि नक्सल क्षेत्र से बाहर आने के दौरान सरकार किसी बड़े जिले में पोस्ट करेगी, लेकिन उनकी चाहत के विपरीत सरकार ने उस वक्त नए नवेले जिले गरियाबंद में भेज दिया। उन्हें यह बात इतनी खली कि कुछ महीनों के भीतर ही उन्होंने स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप में काम करने का आवेदन कर दिया। भाजपा सरकार ने उन्हें रिलीव करने में जरा भी देरी नहीं की। डेपुटेशन से लौटे काम्बले को सरकार ने कुछ दिन बाद सरगुजा एसपी पदस्थ कर दिया, लेकिन 11 महीने की छोटी पोस्टिंग के बाद अचानक माना बटालियन कमांडेंट पद पर भेज दिया।
गरियाबंद में उनकी दूसरी बार पोस्टिंग होने से आईपीएस बिरादरी हैरानी में है। अफसर यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि अमित को गरियाबंद भेजने के पीछे सरकार का असल मकसद क्या है। सुनते हैं कि अमित महत्व की मुख्यधारा में लौटने के लिए जोर लगा रहे थे, पर गरियाबंद पोस्टिंग की उन्हें उम्मीद नहीं थी। जिस तरह दूसरे उनकी पोस्टिंग से अचरज में हैं, वही हाल अमित का भी है। अगले साल जनवरी में डीआईजी पदोन्नति की राह पर बढ़ रहे अमित काम्बले की अच्छे अफसरों में गिनती होती है। वह 2009 बैच के आईपीएस अफसरों में छत्तीसगढ़ में इकलौते हैं। उनका एसपी के तौर पर कामकाज पिछली सरकार में अच्छा रहा, लेकिन पोस्टिंग के मामले में उनकी पूर्ववर्ती सरकार से उन्हें खास तरजीह नहीं मिली। गरियाबंद भेजे गए अमित को वहां के हालात समझने में कोई खास दिक्कतें नहीं होंगी। बताते हैं कि अमित का नाम बड़े जिलों के लिए चल रहा था। काम्बले को कमांडेंटशिप से हटाकर सरकार ने मुख्य तंत्र में जोड़ा है। उनकी तैनाती पर कयासों की झड़ी लग गई है।
छोटी सी जीत से आप की शुरूआत
सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ की 90 में से 85 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन किसी भी सीट पर जमानत बचा पाने लायक वोट भी नहीं मिले। पर इस बीच दिल्ली से बाहर वह पंजाब में जिस तरह सरकार बनाने में वह कामयाब हुई, उसका असर देश के दूसरे राज्यों पर पड़ा। छत्तीसगढ़ में 2018 के नतीजों को भूलकर पार्टी नए सिरे से संगठन मजबूत करने में लगी है। छत्तीसगढ़ के संदीप पाठक को पंजाब से राज्यसभा में भेजने के चलते भी यहां के कार्यकर्ताओं में उत्साह है। इसलिए यह खबर अधिक चौंकाने वाली नहीं है कि बालोद जिले की प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समिति में आप ने 6 पदों पर जीत हासिल की है। पार्टी इस समिति में अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाने में भी कामयाब हो गई है। छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी क्या पैर जमा पाएगी, यह सवाल लोगों के मन में तैर रहा है। यह छोटी सी जीत विश्लेषण का विषय हो सकता है। गुजरात में भी आप के सांसद विधायक नहीं है, पर सूरत महानगरपालिका की 120 सीटों में से 21 में जीत दर्ज कर उसने अपनी मौजूदगी दिखा दी। यह बात अलग है कि उनकी पार्टी से जीते कई पार्षद बाद में भाजपा में शामिल हो गए। पर इसी जीत को पकडक़र जो तैयारी आप ने की है उसने उसे चर्चा में ला दिया है। बीजेपी के लोग मानते हैं कि बीते तीन चुनावों में गुजरात में पार्टी की सीटों की संख्या में लगातार गिरावट आई, इसके बावजूद उसे सत्ता से इस बार भी हटाना मुश्किल होगा। कांग्रेस की स्थिति 2017 के चुनाव से काफी भिन्न है। हार्दिक पटेल उनका साथ छोडकर जा चुके हैं। जिग्नेश मेवानी, कल्पेश ठाकोर की तिकड़ी कांग्रेस के सपोर्ट में नहीं है। छत्तीसगढ़ की एक लघु वनोपज समिति में मिली जीत को आप कितना आगे लेकर जा पाएगी, यह बहुत कुछ गुजरात के नतीजे से समझा जा सकेगा। आदिवासी बाहुल्य इलाके से मिली यह जीत छोटी सही लेकिन खास है। यह भी देखना जरूरी है कि बस्तर की हिंसा और हसदेव अरण्य की खनन योजना से प्रभावित आदिवासियों को कांग्रेस, भाजपा दोनों के रुख से इस समय नाराजगी है।
लोक सेवा पर भारी पड़ रहे मितान
सरकारी सेवाओं को आम लोगों तक समयबद्ध और आसान तरीके से पहुंचाने के लिए राज्य भर में लोक सेवा केंद्र हैं। पहला लोक सेवा केंद्र रायपुर में 27 फरवरी 2015 को कलेक्टोरेट में शुरू किया गया था। इससे लोगों को काफी सुविधा होने लगी। 15 दिन में मांगे गए किसी दस्तावेज के नहीं मिलने पर उच्चाधिकारियों से शिकायत की जा सकती है। इसका इतना विस्तार हो चुका है कि जुलाई 2022 तक 1 करोड़ 83 लाख नागरिक सेवाओं का लाभ इसके माध्यम से दिया जा चुका था। मगर इसके लिए जरूरतमंद को लोक सेवा केंद्र तक चलकर आना पड़ता था। मौजूदा सरकार ने इस साल मई महीने से मितान सेवा शुरू कर दी है। इसमें अब कहीं जाने की जरूरत नहीं। एक कॉल 14545 पर करें, आपके घर आवश्यक दस्तावेज लेने मितान पहुंच जाएगा और प्रमाण-पत्र भी छोड़ेगा। इससे बुजुर्गों, महिलाओं, नि:शक्तों और निरक्षरों को काफी सुविधा मिल रही है।
अब इसके दूसरे पक्ष की ओर देखें। मितान योजना के तहत सेवा पहुंचाने का काम एक निजी कंपनी को दिया गया है। उसने कर्मचारी रखे हैं, जिनको 15 हजार रुपये मानदेय, वाहन खर्च और कमीशन अलग से दिया जा रहा है। दूसरी तरफ लोक सेवा केंद्र में काम करने वाले लोग कंप्यूटर ऑपरेटर हैं, जिन्हें अलग से कोई वेतन नहीं है, सिर्फ कमीशन पर हैं। मितान सेवा शुरू होने से पहले इनकी कमाई 12 से 15 हजार रुपए हर माह थी लेकिन अब उनका कमीशन घटता जा रहा है। जब घर बैठे एक फोन कॉल पर सेवा मिल रही हो तो लोग किसी सेवा केंद्र के चक्कर क्यों लगाएंगे? कई ऑपरेटरों का कहना है कि उनकी आमदनी आधी से भी कम रह गई है। आने वाले दिनों में सब ओर मितान ही दिखाई देंगे। लोक सेवा केंद्र चलाने वालों को आमदनी का दूसरा जरिया देखना पड़ेगा।
किसी सजा के हकदार हैं क्या?
मुंगेली जिले के रामगढ़ में एक सब्जी बेचने वाले की छेड़छाड़ से त्रस्त दूसरी सब्जी वाली महिला ने उस पर हॅंसिये से हमला कर दिया, और उस पर पेट्रोल छिडक़कर आग लगा दी। जब वह भागने लगा तो वह महिला उसके पीछे भी दौड़ी। पुलिस ने किसी तरह उस आदमी को बचाया और महिला को गिरफ्तार किया। यह मामला दिखने में ही अटपटा है, और बताता है कि वह महिला कितनी परेशान रही होगी, यह आदमी उसके फोन पर अश्लील मैसेज भेजता था, और फोन लगाकर अश्लील बातें करता था। थककर इस महिला ने यह जानलेवा हमला किया।
देश भर में यह जगह-जगह देखने मिलता है कि अश्लील हरकतों की शिकार लड़कियां और महिलाएं आमतौर पर अपनी जान दे देती हैं, ऐसा कम ही होता है कि थक-हारकर महिला जान लेने पर उतारू हो जाए। अभी नवरात्रि चल रही है, और थकी हुई देवी ने अपना रौद्ररूप दिखाया है। अब कानून लागू करने वाली पुलिस की जांच होनी चाहिए कि इतनी बुरी नौबत क्यों आई है? क्यों कोई महिला इस हद तक प्रताडि़त हुई है कि वह मरने-मारने पर उतारू हो जाए? इस महिला पर तो कार्रवाई हो गई है, लेकिन आसपास के समाज और इलाके की पुलिस का भी पता लगाना चाहिए कि वे भी किसी सजा के हकदार हैं क्या?
इतना लंबा जश्न!
2 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक हाईकोर्ट के दशहरा-अवकाश पर किसी ने लिखकर भेजा है- रावण पर विजय का इतना लंबा जश्न तो भगवान श्रीराम ने भी नहीं मनाया था।
2005 बैच...
छत्तीसगढ़ में पिछली रमन सरकार के दौरान सत्ता के सबसे पसंदीदा अफसर 2005 बैच के आईएएस थे। उनमें से एक, पिछले जनसंपर्क संचालक राजेश टोप्पो एक स्टिंग ऑपरेशन में फंसकर, और आर्थिक अपराधों के दर्ज मामलों से घिरकर हाशिए पर हैं। उसी बैच के ओपी चौधरी नौकरी छोडक़र राजनीति में आ गए हैं, और अब विपक्ष में उनके चार बरस हो रहे हैं। इसी बैच के दो अफसर मुकेश बंसल, और रजत कुमार केन्द्र सरकार में चले गए थे, और अब मुकेश बंसल को वित्तीय सेवाओं के विभाग में संयुक्त सचिव बनाया गया है, और रजत कुमार को अफसरों से जुड़े हुए विभाग डीओपीटी में संयुक्त सचिव बनाया गया है। इसी बैच की एक और आईएएस अफसर आर.शंगीता न पिछली सरकार में ताकतवर थीं, और न इस सरकार में किसी चर्चा में हैं।
इधर एक बरगद को बचाने के लिए..
जगदलपुर में 120 साल पुराने बरगद के एक विशाल पेड़ को बचाने के लिए कांग्रेस और भाजपा नेताओं के बीच टकराव सामने आया। पुराने बस स्टैड के पास बने शॉपिंग कॉम्पलेक्स के ठीक सामने वृक्ष की शाखाएं जब कट गईं तो भाजपा नेता अगले दिन मौन धरने पर बैठे। महिला कार्यकर्ताओं ने रक्षा सूत्र बांधा। नगर-निगम प्रशासन की ओर से सफाई आई कि पेड़ नहीं काटा जा रहा है। शाखाएं बिजली तारों से टकरा रही थीं, इसलिए छंटाई चल रही है। हालांकि जिस तरह से विशाल बरगद ठूंठ में बदल चुका है उससे इस दावे को सही नहीं ठहराया जा सकता। विरोध के बाद यह तय हो गया है कि फिलहाल पेड़ जड़ से नहीं काटा जाएगा। अब प्रशासन ने पेड़ की सुरक्षा के लिए चबूतरा बनाने की बात भी कही है। अब लोग कह रहे हैं कि पेड़ एक भी हो तो उसे बचाया जा सकता है बशर्ते उसे बचाने से किसी कॉर्पोरेट का नुकसान न हो। वरना, चाहे जितना लंबा और व्यापक विरोध हो- हश्र हसदेव अरण्य की तरह हो सकता है, जहां आनन-फानन में 20 हजार पेड़ कट चुके हैं और विरोध करने वाले कई लोग गिरफ्तार कर लिए गए।
रेत खदानों पर अब कौन सी पॉलिसी?
रेत का कारोबार कुछ दिनों बाद फिर चर्चा में आने वाला है। सन् 2019 में नीति बनाई गई कि रेत खदानों की नीलामी की जाएगी। उद्देश्य यह बताया गया था कि खनिज अधिकारियों की शह पर होने वाली अवैध निकासी पर रोक लगेगी, पर छिपी हुई वजह यह भी थी कि पार्टी कार्यकर्ताओं को कुछ व्यवसाय मिल सके। राज्य के ज्यादातर रेत खदानों का ठेका इस अक्टूबर से लेकर जनवरी माह तक समाप्त हो जाएगा। टेंडर दो वर्ष के लिए था पर उसके बाद एक साल के लिए एक्सटेंशन दिया गया था। जिन रेत खदानों में दो साल बाद दोबारा नीलामी हुई, वहां भी अब नए पेसा कानून को ध्यान में रखते हुए नए कलस्टर बनाने होंगे और अधिसूचित क्षेत्रों की अनेक खदानों को पंचायतों को सौंपना पड़ेगा।
नई पॉलिसी से कई उद्देश्य पूरे नहीं हुए। सत्ता से जुड़े नेताओं, ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच विवाद लगातार होते रहे। अवैध निकासी और भंडारण पर रोक नहीं लगी न ही दाम कम हुए। तय समय और मात्रा से ज्यादा खुदाई की जाती रही। खुदाई के लिए भारी वाहनों को नदी में नहीं उतारने, रात में खनन नहीं करने जैसे निर्देशों की धज्जियां उड़ी। बारिश के चार महीनों मे दोगुने तीन गुने दाम पर रेत बेची गई, जबकि रॉयल्टी घट गई। खनिज अफसरों के पॉवर में कोई कमी नहीं आई।
रेत खदानों को दो साल के टेंडर के बाद एक साल का ही एक्सटेंशन देना था। नई नीलामी के लिए उन खदानों को अलग करना है जो अधिसूचित क्षेत्रों में हैं। पर अब तक कोई पॉलिसी सरकार ने घोषित नहीं की है। नतीजा यह है कि रेत के दाम गिर नहीं रहे हैं और उसका अवैध भंडारण भी बढ़ रहा है।
वाट्सएप पर चैटिंग
वाट्सएप वैसे तो चैट करने और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए है। पर कई बार इसका इस्तेमाल याददाश्त के लिए भी होता है। इस आदत से कई बार अजीब हालत पैदा हो जाती है, जैसा इस चैट में दिखाई दे रहा है।
उद्योग की जेब में पर्यावरण
पर्यावरण से जुड़ी छत्तीसगढ़ सरकार की एक कमेटी के हाथ में अंधाधुंध ताकत है, और कमेटी का अगुआ बनाकर जिस रिटायर्ड आईएएस अफसर को बैठाया गया है, वह वहां अपनी मनमानी चलाने के लिए कुख्यात है। अभी सरकार के बड़े लोगों के बीच यह बहस चली कि इस रिटायर्ड अफसर को इस कुर्सी पर कौन लेकर आया? इस पर वन विभाग के एक सबसे बड़े अफसर ने उसी जगह मौजूद एक आदमी की तरफ इशारा करके कहा कि यह आदमी कमेटी में उसे छांटकर लेकर आया है। दिलचस्प बात यह है कि जिस आदमी की तरफ उसने इशारा किया, वह छत्तीसगढ़ के एक सबसे बड़े उद्योग की तरफ से सरकार में काम करवाने के लिए रखा गया आदमी है। अब उद्योगपति पर्यावरण की कमेटियों के मुखिया अपने लोग रखने लगे ! [email protected]
अदालतों में घिरी सरकार
कल फिर सुप्रीम कोर्ट में एक निजी मुकदमे में छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तात्कालिक रूप से ही सही, घिरती हुई नजर आई है। कानून के जानकार कई लोग हैरान हैं कि क्या किसी राज्य के अफसर सचमुच ही इतनी लापरवाही से काम कर सकते हैं, और सरकार के खिलाफ ही सुबूत चारों तरफ छोड़ सकते हैं कि मुकदमों में माहिर लोग सरकार को कटघरे में ले जाएं? अदालती कामकाज के जानकार कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ सरकार का चौकन्नापन नहीं दिख रहा है, और किसी न किसी स्तर पर वकीलों और अफसरों में लापरवाही दिख रही है। मुकदमेबाजी से जुड़े तबकों की साख इतनी कमजोर हो गई है कि मामूली लोग भी घर बैठे बात करने लगते हैं कि किस तरफ का वकील किससे मिला हुआ है, और किस तरह अफसर ऐसे कमजोर मामले बना रहे हैं कि जिनसे अदालतों में जाकर दूसरे पक्ष को फायदा मिल सके। इन सब बातों से ऊपर अलग-अलग समय पर अलग-अलग जजों के पूर्वाग्रहों की भी चर्चा हो जाती है। मतलब यह कि अदालत से कोई हुक्म या कोई फैसला आए, उसके पहले ही लोग अपनी राय बना चुके रहते हैं। फिलहाल ताजा आम राय यही दिख रही है कि अदालत में सरकार कमजोर पड़ रही है, और इसके पीछे की वजहें अलग-अलग लोग अपनी-अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब से अलग-अलग गिना देते हैं। सरकार और अदालत में कामकाज के जानकार कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सरकार को ऐसे वकील नहीं रखना चाहिए जो कि बिना बात के पांव पड़ते रहें, बल्कि ऐसे वकील रखना चाहिए जो कि कोई मामूली गलत बात होने पर भी सरकार के हाथ पकडक़र उसे रोक सकें।
छोटे माफिया पर डोजर...
पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुए कई किस्म के गलत काम आज सरकारी निशाने पर हैं, या अदालतों तक ले जाए गए हैं। लेकिन दूसरी तरफ आज जिन पर सरकार मेहरबान है, वे लोग उसी दर्जे के गलत काम कर रहे हैं, और अगली किसी सरकार के वक्त वे भी निशाना बन सकते हैं। लेकिन सरकारी मेहरबानी से होने वाले गलत कामों का मुनाफा इतना बड़ा होता है कि लोग अपना लालच रोक नहीं पाते। ऐसे में राजनीति में कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो कि एक ही परिवार के दो लोगों को दो अलग-अलग पार्टियों में भेज देते हैं, और अधिक हद तक हिफाजत पा लेते हैं। कुछ लोग ऐसे भी रहते हैं जो विरोधी पार्टी के किसी नेता को रिश्तेदार बना लेते हैं, और उसका फायदा मिलते रहता है, और विपक्षी सरकार आने पर भी खतरा नहीं रहता। ऐसे मामले में जमीनों के इतने बड़े-बड़े कारोबार आज चर्चा में हैं कि लोगों का यह मानना है कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर ही यह भूमाफिया टूट पाएगा। फिलहाल तो ऐसे बड़े भूमाफिया के मुकाबले जो छोटे-छोटे भूमाफिया सिर उठाते हैं, सरकारी बुलडोजर उन्हीं छोटे सिरों को तोड़ता है, बड़े-बड़े सिर तो सरकार चलाते हैं।
रियायती वैक्सीन का दौर खत्म?
एक अक्टूबर से देशभर में कोविड वैक्सीन के बूस्टर डोज पर रियायत खत्म कर दी गई है। आज से यह करीब 400 रुपये खर्च कर निजी अस्पतालों में लगवाना होगा। कोविड वैक्सीन के दोनों डोज 6 से 9 महीने पहले ले चुके लोगों के लिए इसे ऐहतियातन, जरूरी बताया गया था। शुरू में ही इसे कीमत चुकाकर लगाने की बात की गई थी और निजी अस्पतालों को जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन बाद में यह मुफ्त किया गया। इसकी दो वजह बताई जा रही थी, एक तो निजी अस्पतालों ने रुचि नहीं दिखाई, दूसरी तरफ खरीदे जा चुके वैक्सीन लाखों की संख्या में खराब होने लगे। इसके बाद आजादी के अमृत महोत्सव का तोहफा बताते हुए 75 दिनों तक इसे मुफ्त लगाने का ऐलान किया गया। मगर, कुछ शुरुआती उत्साह के बाद लोगों ने इसमें रुचि लेनी बंद कर दी। छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में अनेक टीकाकरण केंद्र खोले गए लेकिन संख्या लोगों के नहीं पहुंचने के कारण घटानी पड़ी। जिन लोगों ने मुफ्त टीका लगवाने में दिलचस्पी नहीं ली, वे इसकी कीमत चुकाकर डोज अब लेंगे, इसकी उम्मीद कम ही है। सरकारी निर्देश के चलते निजी अस्पताल बूस्टर डोज लगाने से मना नहीं कर पा रहे हैं, पर प्रबंधकों का कहना है कि वैक्सीन के रखरखाव पर खर्च और बहुत जल्दी एक्सपायर हो जाने के चलते वे शुल्क लेकर भी इस अभियान का हिस्सा बनने के इच्छुक नहीं हैं। राज्य में सिर्फ 31 प्रतिशत लोगों ने ये डोज ली। 69 प्रतिशत लोगों का बूस्टर डोज को लेकर निश्चिंत हो जाना बताता है कि वे मानने लगे हैं कि कोविड अब महामारी के रूप में नहीं आएगा, आए भी बर्दाश्त कर लेंगे। यह अलग बात है कि मौतें अब भी हो रही हैं, कुछ राज्यों में अचानक केस बढ़ भी रहे हैं, साथ ही विशेषज्ञ सतर्क रहने की चेतावनी पर भी कायम हैं।
आईपीएस अब मिशन की ओर
हाल ही में छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा से व्यक्तिगत कारणों से वीआरएस लेकर नौकरी से अलग हुए आईपीएस धमेन्द्र गर्ग सामाजिक सेवा की ओर जाने का मन बना रहे है। गर्ग ने पिछले दिनों डीआईजी रहते पुलिस सेवा से त्यागपत्र दिया है। उनके इस कदम से राज्य कैडर के पुलिस अफसर अचरज में पड़ गए। लेकिन गर्ग को समझने और जानने वालों अफसरों में इस्तीफे को तयशुदा माना जा रहा है। प्रशासनिक हल्के में चर्चा है कि गर्ग के दो बेटे आईआईटी पासआऊट होने के बाद बैंगलोर में नौकरी कर रहे हैं। वही पुलिस सेवा में आने से पहले उनका परिवार आर्थिक रूप से सक्षम रहा है। हालांकि पुलिस सेवा में रहते एसपी के तौर पर उन्हें अच्छी पोस्टिंग नहीं मिलने का हमेशा मलाल रहा है। उन्हें एकमात्र बेमेतरा जिले में ही एसपी बनाया गया। सुनते है कि वह जल्द ही किसी मिशन सेे जुडक़र शिक्षा की मुहिम शुरू कर सकते है। बताते है कि वह नारायणपुर के रामकृष्ण मिशन जैसे कुछ अन्य मिशन में अपना वक्त देने का इरादा बना चुके है। बेटो के हाथ अच्छी नौकरी और मोटी पेंशन होने से उनका मिशन से जुडऩे का हौसला बढ़ा है। समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए गर्ग मिशन के जरिए उत्थान में कितने कामयाब होंगे यह अलग मसला है लेकिन उनके नए रूप को देखने आईपीएस बिरादरी भी उत्साहित है।
मंदिर में गंदे नोट क्यों घुसने दिए जाएं?
अभी एक चतुर लेखक ने सोशल मीडिया पर लिखा कि हिन्दुस्तानी नोट कसाईखाने से लेकर शराबखाने तक कई किस्म की जगहों पर जाते हैं, और धार्मिक हिसाब से अशुद्ध हो चुके रहते हैं, इसलिए मंदिरों में नोट चढ़ाने पर रोक लगानी चाहिए ताकि देवी-देवताओं को अपवित्र होने से बचाया जा सके। इस सलाह पर धर्म को मानने वाले लोग बड़ी रफ्तार से विचलित हो गए, और यह डर लगने लगा कि बिना दान के नोटों के भला मंदिर चलेंगे कैसे? फिर कुछ लोगों ने तेजी से मंदिरों में डिजिटल भुगतान वाले निशान लगा दिए कि लोग अपने मोबाइल फोन से ही भुगतान कर सकें, और नोटों की बात ही न आए। लेकिन इसके साथ भी दिक्कत थी, क्योंकि भक्त तो पढ़े-अनपढ़ सभी तरह के रहते हैं, और बहुत से लोग मोबाइल फोन से भुगतान नहीं जानते हैं। ऐसे में देवी-देवता और उनके पुजारी-एजेंटों का तो बड़ा नुकसान हो जाएगा। तिरुपति जैसे मंदिर में तो हर दिन करोड़ों रूपये नगद आते हैं, वहां के दानदाता अगर सोशल मीडिया पढक़र भडक़ जाएंगे, तब तो धर्म का बड़ा ही नुकसान हो जाएगा। फिलहाल यह भी सोचने की बात है कि लोग थूक लगाकर नोट गिनते हैं, बीमार-भिखारियों के हाथों में ऐसे नोट जाते हैं, कई लोग नोट को मोडक़र उससे दांत भी साफ कर लेते हैं, कई लोग नोट को लपेटकर उससे कान साफ कर लेते हैं, और ऐसे सारे नोट मंदिरों और दूसरे धर्मस्थानों पर पहुंचते हैं। अब ऐसी गंदगी को तो चढऩे से रोकना ही चाहिए, और ईश्वर की अपनी तो कोई जरूरत होती नहीं है, इसलिए सभी धर्मस्थानों पर नोटों का दाखिला बंद किया जाना चाहिए। बस्तर के एक पत्रकार रानू तिवारी ने एक मंदिर की यह फोटो पोस्ट की है।
70 वर्ष की आयु 50 वर्ष की नौकरी
है न आश्चर्य किंतु सत्य। यह छत्तीसगढ़ में ही संभव है। ऐसा नहीं है इन साहब की योग्यता अनुभव में कमी हो। इसी प्लस प्वाइंट की वजह से सरकार है कि इन्हें सेवा निवृत्ति नहीं करना चाहिए। इसीलिए तो संविदा नियुक्ति का नया रास्ता इस्तेमाल किया जाता है। मंत्रालय शाखा का हिसाब-किताब रखने वाले विभाग के साहब हैं ये। 43 साल की अधिकारिक सेवा के बाद बीते 20 वर्षों से लगातार संविदा पर कार्य कर रहे हैं। यानी नौकरी का आधा समय संविदा में काट चुके हैं। अब जाकर साहब रियल में सेवानिवृत्त होना चाह रहे हैं। तो विभाग के पास कोई सब्सिट्यूट नहीं है। यानी तय है फिर पांच वर्ष संविदा के। ऐसा नहीं है कि संविदा में ये अकेले हैं, ऐसे कई और साहेबान हैं। नारडा में भी जय-वीरू की एक और जोड़ी है। इन्हें भी 10 वर्ष हो गए है, संविदा में दोस्ती निभाते-निभाते।
चमक एक दिन रही
दो दिन पहले जब दिग्विजय सिंह के कांग्रेसाध्यक्ष का चुनाव लडऩे की बात सामने आ रही थी, तो छत्तीसगढ़ के बहुत से नेता बहुत खुश थे। कांग्रेस के प्रदेश कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल इसलिए खुश थे कि ऐसे अध्यक्ष आ सकते हैं जिनसे उनका पहले से कोष का कामकाज चलते रहा हो। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी जाहिर तौर पर खुश रहे होंगे क्योंकि उन्होंने दिग्विजय सिंह के साथ काम किया हुआ है। और चरणदास महंत भी खुश हुए होंगे क्योंकि महंत और भूपेश दोनों को पहली बार मंत्री दिग्विजय ने ही बनाया था। यह एक अलग बात है कि दिग्विजय का नाम एक धूमकेतु की तरह आया, और एक दिन के भीतर खत्म हो गया। अभी यह भी राज उजागर नहीं हुआ है कि वे गंभीर उम्मीदवार थे, या किसी रणनीति के तहत उनका नाम उछाला गया था। लेकिन उनका नाम सामने आने से ही छत्तीसगढ़ में बहुत से चेहरे चमक गए थे।
आस्था को मौका मिलने वाला है
हिंदुस्तान के सबसे लोकप्रिय टीवी सीरियल रामायण में राम की भूमिका करने वाले अभिनेता अरुण गोविल को जगह-जगह ऐसी असुविधा झेलनी पड़ती है। जब उम्र में उनसे बड़े लोग भी एयरपोर्ट या दूसरी सार्वजनिक जगहों पर उनके पैरों पर गिर पड़ते हैं, और उन्हें भगवान राम की तरह निहारने लगते हैं, तो वे समझ नहीं पाते कि वे क्या करें। वे लोगों को रोकते रह जाते हैं लेकिन लोग हैं कि पाँव पड़े रहते हैं। यह वीडियो अभी पोस्ट किया गया है और एक एयरपोर्ट का है। अब अरुण गोविल सीरियल में धर्मपत्नी माता सीता (दीपिका चिखलिया) के साथ दशहरे पर रायपुर पहुंचने वाले हैं और उस दिन लोग अपनी आस्था और अधिक पूरी कर सकते हैं।
मैनकाइंड का गरबा संदेश
छत्तीसगढ़ में नवरात्रि पर दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना का कल्चर पश्चिम बंगाल से आया। पहले मुंबई हावड़ा रूट पर पडऩे वाले शहरों में प्रतिमाएं रखने की शुरुआत हुई। इस मार्ग के तमाम शहरों में, रायगढ़ से लेकर राजनांदगांव तक बंगाली समुदाय पारंपरिक रूप से देवी की प्रतिमा 9 दिन के लिए ही स्थापित करता है। पर स्थानीय लोगों ने इसे अपनाया तो धीरे-धीरे दिन घटे और सजावट बढ़ गई। पंचमी के दिन प्रतिमा स्थापित होती है जिसे दशहरा के बाद विसर्जित किया जाता है। इसके बाद गुजरात से गरबा आया। छत्तीसगढ़ में गरबा लोकप्रिय हुआ तो गुजराती समाज से बाहर भी स्थानीय संस्थाओं के आयोजन होने लगे। डांडिया का अभ्यास करना, बॉलीवुड सिलेब्रिटीज़ के साथ देर रात तक नृत्य करना अब स्टेटस सिंबल है। आपके पास डांडिया पास है, मतलब आप विशिष्ट हैं। कार्यक्रम आध्यात्मिक कम, इवेंट ज्यादा हो गए हैं। यह होर्डिंग संभवत: गुजरात की है, जहां मैनकाइंड ने गरबा की शुभकामनाएं दी हैं।
एक कॉल, और सब कुछ खत्म
छत्तीसगढ़ में अभी सतह के ठीक नीचे एक भूचाल से आया हुआ है। एक बदनाम धंधे से जुड़े हुए कई कारोबारी टेलीफोन कॉल की रिकॉर्डिंग जिस तरह सामने आई है, उसने सत्ता से जुड़े बहुत से लोगों को बेचैन, बेदखल, और बेसाख कर दिया है। शायद ऐसे ही वक्त के लिए बड़े-बूढ़े कहते हैं सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं...!
ऐसी टेलीफोन कॉल रिकॉर्डिंग से यह तो साबित हुआ ही है कि फोन पर कोई भी बातचीत अब सुरक्षित नहीं है, खासकर किसी को धमकाना तो बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है, और बड़े-बड़े दावे करना भी। जिन्हें धमकाया जाता है, और चुनौती दी जाती है कि इन बातों को रिकॉर्ड करना है तो कर लें, तो फिर धमकी पाने वाले लोगों का तो यह नैतिक और मौलिक अधिकार हो जाता है कि वे इस सलाह को पूरा करके दिखाएं। नतीजा यह हुआ है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता के इर्द-गिर्द के समीकरण पिछले दस दिनों में बड़े चरमरा गए हैं, और कई दूसरे लोगों ने इससे नसीहत भी पा ली है। सयाने लोगों का यह कहना रहता ही है कि समझदार वे हैं जो दूसरों को लगी ठोकर से समझ लें। अब छत्तीसगढ़ में कम से कम कुछ ऐसे लोगों का बड़बोलापन तो कम होगा जो सोते-जागते कहते थे कि उनके कहे हुए को सीएम का कहा माना जाए। अब ऐसे लोगों की जुबान को भी लकवा मार गया है। इसके साथ-साथ लोगों को टेलीफोन कॉल रिकॉर्डिंग की अहमियत भी समझ आ गई है कि वह जानलेवा साबित हो सकती है, एक बार फिर सिमकार्ड के बजाय वॉट्सऐप पर बात करना बेहतर समझा जाने लगा है कि उसकी बातचीत रिकॉर्ड नहीं होती है, हालांकि यह अपने आपमें एक किस्म का धोखा है, और एक दूसरे फोन की मदद से वॉट्सऐप कॉल की ऐसी रिकॉर्डिंग तो की ही जा सकती है जिससे राजनीति और सरकार के स्तर पर कुछ साबित किया जा सके, फिर चाहे यह अदालती सुबूत के दर्जे की भले ही न हो।
पोस्टर बताते हैं कि निशाना कहाँ
विधानसभा चुनाव में सालभर बाकी रह गए हैं। अगर आपको पता नहीं है कि विशेषकर रायपुर दक्षिण सीट से कांग्रेस से कौन-कौन दावेदार हैं, तो दुर्गा पंडालों के आसपास के बैनर-पोस्टर, और होर्डिंग्स पर नजर डाल लीजिए, इससे कुछ अंदाजा तो लग ही जाएगा।
रायपुर की चार सीटों में से दक्षिण की सीट को काफी प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। यहां से विधायक बृजमोहन अग्रवाल को अब तक कोई नहीं हरा पाया है। बृजमोहन के लिए सुविधाजनक स्थिति यह रही है कि हर बार कांग्रेस ने उनके खिलाफ नया कैंडिटेड उतारा है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने कन्हैया अग्रवाल को टिकट दी थी, जो कि कांग्रेस की तूफानी लहर में भी नहीं जीत पाए। बृजमोहन तो कन्हैया के नाम की घोषणा के बाद ज्यादातर समय दूसरी सीटों के प्रचार में लगे रहे। खैर, इस बार भी कांग्रेस से नया प्रत्याशी आने की प्रबल संभावना दिख रही है।
दुर्गा पंडालों से अंदाज लग रहा है कि मेयर एजाज ढेबर, प्रमोद दुबे भी दक्षिण से दावेदार हो सकते हैं। इनसे परे भवन, अन्य सन्निर्माण कर्मकार मंडल के चेयरमैन सन्नी अग्रवाल की सक्रियता की खूब चर्चा है। सन्नी के दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा पोस्टर लगे हैं। सुनते हैं कि सन्नी ने दक्षिण विधानसभा के पांचों ब्लॉक प्रमुखों की प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया से मुलाकात करा चुके हैं।
सन्नी अग्रवाल, रायपुर दक्षिण के विधानसभा क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा मजदूर कार्ड, और अन्य योजनाओं के जरिए श्रमिक वर्ग को कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए माहौल बना रहे हैं। कुछ समय पहले सन्नी पार्टी से निलंबित भी हुए थे, लेकिन उनकी वापसी भी हो गई। अब जिस अंदाज में उनका प्रचार चल रहा है, उससे बाकी दावेदारों में बेचैनी है।
मुट्ठी में ताकत दुनिया भर की
मोबाइल फोन से की गई मामूली रिकॉर्डिंग भी कितनी खतरनाक हो सकती है इसकी एक मिसाल बिहार से सामने आई जहां पर सीनियर आईएएस अफसर हरजोत कौर अपने एक लापरवाह बयान की वजह से सरकारी जांच में घिर गई हैं। वे राजधानी पटना में छात्राओं की बुनियादी जरूरतों के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मंच पर थीं, और मामूली आर्थिक हैसियत की दिख रही छात्राओं ने उनसे यह पूछा कि क्या सरकार उन्हें 20-30 रूपये के सेनेटरी पैड नहीं दे सकती? यह पूरा कार्यक्रम ही लड़कियों के सशक्तिकरण पर था, और यह महिला अफसर महिला एवं बाल विकास विभाग ही देख रही थी। इस सवाल पर भडक़ते हुए इसने लड़कियों को फटकारते हुए कहा कि आज सेनेटरी पैड मुफ्त मांगे जा रहे हैं, और बाद में परिवार नियोजन की बात आएगी तो कंडोम भी मुफ्त देना पड़ेगा। इस महिला आईएएस ने और भी अधिक गैरजिम्मेदारी से लड़कियों को फटकारा, और जब इसकी रिकॉर्डिंग सामने आई, तो अब वह खुद कटघरे में है, और मुख्यमंत्री ने अपनी निगरानी में जांच और कार्रवाई की बात कही है।
इस अखबार में पहले भी कई बार यह वकालत की गई है कि लोगों को सार्वजनिक जगहों पर गलत कामों की, या गलत बातों की रिकॉर्डिंग जरूर करनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में अभी ऐसी ही टेलीफोन कॉल रिकॉर्डिंग से एक हंगामा मचा हुआ है, और बिहार का यह मामला उसके बाद सामने आया है। लोगों को अपनी मु_ी में ताकत के बारे में अहसास रहना चाहिए।
अपने-अपने रावण..
राम तो सबके हैं, पर रावण दहन की जगह सिर्फ मेरी है, यह बताने का काम राजनीति में ही मुमकिन है। बीते साल बीटीआई ग्राउंड रायपुर में दशहरा मनाने लिए कांग्रेस, भाजपा दोनों अड़े रहे तो अजीब स्थिति बन गई थी। दो-दो रावण आधे-आधे घंटे के अंतराल में जलाए गए। दोनों ही दलों के समर्थकों ने भीड़ जुटाई और स्थिति यह बन गई कि घंटों सडक़ जाम में लोग फंस गए। इस बार ऐसी स्थिति न बने इसके लिए प्रशासन को चतुराई दिखाने की जररूत है। भाजपा नेताओं की सांस्कृतिक समिति ने तो 10 दिन पहले चक्काजाम कर दिया था। दावा था कि वे 74 साल से यहां रावण जलाते आ रहे हैं। पिछले साल डॉ. रमन सिंह ने यहां रावण दहन किया था। दूसरे खेमे का कहना है कि यह धोतरे परिवार का आयोजन है। पिछले 22 सालों से हो रहा है। कुछ लोग चंदे के लिए इस आयोजन पर कब्जा करना चाहते हैं। पिछले साल अमितेश शुक्ल ने भी यहां रावण जलाया। दशहरा जनता और कार्यकर्ताओं में अपनी पकड़ मजबूत करने का एक बड़ा जरिया है, इसलिए इस मौके को कोई भी गंवाना नहीं चाहता। वैसे रावण दहन की लड़ाई अगले साल की ज्यादा तीखी और दिलचस्प हो सकती है, क्योंकि इसकी तारीख विधानसभा चुनाव से करीब दो माह पहले पड़ेगी।
पेपर लीक और एनएएस रिपोर्ट
स्कूली शिक्षा के मामले में छत्तीसगढ़ की गिरावट पर पिछले मई माह में तब चर्चा हुई थी, जब नेशनल एचीवमेंट सर्वे 2021 की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में कक्षावार और विषयवार स्थिति को भी दर्शाया गया है। ऐसे भी कई विषय हैं जिनमें हमारा प्रदेश राष्ट्रीय औसत से भी काफी नीचे है। जैसे तीसरी कक्षा में राष्ट्रीय औसत 62 प्रतिशत अचीवमेंट का है, छत्तीसगढ़ में यह 51 प्रतिशत ही है। आठवीं कक्षा में तो चार विषय हिंदी, गणित, सामाजिक अध्ययन और विज्ञान सभी में उपलब्धि राष्ट्रीय औसत से नीचे है। इन विषयों का क्रमवार राष्ट्रीय औसत 53, 36, 39 तथा 39 प्रतिशत है। प्रदेश में यह इसी क्रम में 50, 30, 36 और 36 है। दसवीं कक्षा में अंग्रेजी का राष्ट्रीय औसत 43 प्रतिशत है जबकि यह छत्तीसगढ़ में 36 ही है। विचारणीय यह भी है कि इसके पहले सन् 2020 की एनएएस रिपोर्ट थी, उसके अनुसार हमारा प्रदेश 18वें स्थान पर था। इस बार उतरकर 30वें नंबर पर पहुंच चुका है।
क्या इस रिपोर्ट के बाद कोई शिक्षण और पाठ्यक्रम और आकलन के स्तर पर कुछ सुधार दिखाई दे रहा है? इस संदर्भ में एक ताजा उदाहरण दिया जा सकता है। तिमाही के केंद्रीकृत प्रश्न पत्र सोशल मीडिया पर लीक हो गए और अब शिक्षक उन्हें ब्लैक बोर्ड पर प्रश्न लिखकर देंगे। [email protected]
अपनी फोटो से समझें!
किसी महिला का सम्मान सीखना आसान नहीं होता। आदमियों के मन में अगर महिला के प्रति बुनियादी इज्जत नहीं है, तो वह किसी सरकारी प्रशिक्षण कार्यशाला में आसानी से सिखाई भी नहीं जा सकती। अभी भिलाई इस्पात संयंत्र में उत्कृष्ट काम करने की वजह से एक महिला कर्मचारी श्रीमती सीमा कंवर को कर्मशिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बीएसपी में ऑपरेटर-टेक्नीशियन का काम करने वाली सीमा कंवर का सम्मान करने बड़े-बड़े चार अफसर मौजूद थे। जो सम्मान कर रहे हैं, और जिसका सम्मान हो रहा है, उनकी यह तस्वीर सब कुछ बयां कर देती है कि मन-वचन और कर्म में फर्क क्या है। आमतौर पर पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस में अफसर इस तरह बैठते हैं और मुजरिम को पीछे खड़ा कर दिया जाता है। मर्दों की ऐसी अफसरी सोच सम्मान के लायक महिला कर्मचारी का सम्मान कम कर रही है, अपमान अधिक कर रही है।
कुछ ऐसा ही हाल अधिकतर सरकारी और निजी कार्यक्रमों में होता है जहां महिला का इस्तेमाल दिया थमाने, माला का थाल पकडक़र लाने, या शॉल और नारियल की ट्रे लेकर आने के लिए किया जाता है, उसके बाद कोई मर्द उसमें से सामान उठाकर दूसरों का सम्मान करते हैं, या सरस्वती के सामने दिया जलाते हैं। प्रतिमा में कैद सरस्वती और जिंदा सरस्वती के बीच व्यवहार का यह फर्क असल में जिंदगी में कदम-कदम पर दिखता है, और बीएसपी के इन चार अफसरों को यह बात अपनी खुद की फोटो से समझ आनी चाहिए।
आत्माओं का असर
छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों की कटाई जिस अंदाज में मुंहअंधेरे उस इलाके के आदिवासी सरपंचों की गिरफ्तारी के बाद भारी पुलिस मौजूदगी में चल रही है, वह हक्का-बक्का करने वाली है। दो दिनों की ऐसी खबरों के बाद कल शाम सरकार के एक बेचेहरा प्रेसनोट में यह सफाई दी गई है कि कटाई किसी नई खदान के लिए नहीं हो रही, यह पुरानी खदान के लिए ही हो रही है। हैरानी इस बात की है कि हर कुछ दिनों में सरकार के कोई न कोई मंत्री, या खुद मुख्यमंत्री सरकार के फैसलों के बारे में मीडिया के सामने बयान देते हैं, जिनमें सवाल-जवाब का दौर भी अनिवार्य रूप से होता है। ऐसे में प्रदेश के इस सबसे जलते-सुलगते मुद्दे को लेकर कोई सामने आकर कुछ न कहे, और सिर्फ एक गुमनाम सा प्रेसनोट जारी हो जाए, यह बड़ी अजीब बात है। अगर इस प्रेसनोट का सरकार का दावा सही है कि यह कटाई किसी नई खदान के लिए नहीं हो रही है, तो फिर यह कटाई शुरू होने के 36 घंटे बाद क्यों कहा जा रहा है? और इतना बेचेहरा क्यों कहा जा रहा है? लेकिन हो सकता है कि सरकार क्रिकेट और शतरंज में व्यस्त हो। आदिवासियों की आस्था रहती है कि पेड़ों के बीच उनकी ईष्ट आत्माएं बसती हैं। अब पेड़ नहीं रहेंगे तो वे आत्माएं जाकर किन्हें परेशान करेंगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल तो यह दिख रहा है कि जिस राजस्थान के लिए देश के सबसे घने हसदेव जंगलों को खत्म करने की तैयारी चल रही है, उस राजस्थान के मुख्यमंत्री तक तो ये आत्माएं पहुंच ही चुकी हैं, वरना और कौन सी वजह हो सकती थी कि देश का एक सबसे पुराना कांग्रेस नेता छोकरों की तरह की ओछी हरकत करते आज नजरों से गिर चुका है। आदिवासियों की आस्था का केन्द्र जो आत्माएं रहती हैं, उनकी बेदखली का पहला असर जयपुर में दिख गया है।
बहुत कठिन है डगर पर्यटन की..
किसी ने हल्के-फुल्के मूड से एक तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की है। लिखा है कि नासा ने ताजा तस्वीरें जारी की है, जिसमें मंगल ग्रह पर जीवन होने का प्रमाण मिला है। बाद में यह साफ हुआ कि यह फेक न्यूज थी, दरअसल यह अकलतरा की सडक़ है, जो गड्ढ़ों के कारण ऐसी दिख रही है।
राज्य में पर्यटन की गतिविधियों को विस्तार देने के लिए विश्व पर्यटन दिवस पर विभाग के कई फैसलों की जानकारी दी गई है। आईआरसीटीसी के साथ एक एमओयू हुआ है। ट्राइबल टूरिज्म, मेडिकल टूरिज्म, एग्रो टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाएगा। पर्यटकों की पसंद को देखते हुए पर्यटकों के लिए शराब परोसने की व्यवस्था भी की जा रही है। प्राकृतिक वैभव, इतिहास, पुरातत्व और पौराणिक काल के अनेक धरोहर छत्तीसगढ़ में बिखरे हुए हैं। यहां की भिन्न संस्कृति, सहजता भी लोगों को आकर्षित करती है। निश्चित ही, पर्यटन के जरिये राज्य की आर्थिक गतिविधियां बढ़ाई जा सकती है जिसका फायदा युवाओं को मिलेगा, जो प्राय: ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
पर इसी दौरान पिछले एक सप्ताह से प्रदेश की सडक़ों की हालत पर चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री ने शीर्ष स्तर के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कार्रवाई भी की है। हाईकोर्ट में राज्य की खराब 40 से अधिक प्रमुख सडक़ों पर सुनवाई भी हो रही है।
प्रदेश में सम्मोहित करने वाले पर्यटन स्थल तो हर छोर पर हैं। पर वहां तक पहुंचने की डगर कमोबेश हर जिले में बहुत कठिन है। मध्यप्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सडक़ों की स्थिति ठीक रखने पर काफी काम किया गया है, जबकि वहां अनेक एयरपोर्ट भी हैं। छत्तीसगढ़ में रायपुर एयरपोर्ट ही राज्य के बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए सुविधाजनक है। बिलासपुर, जगदलपुर में हवाई सेवा अभी उन्नत नहीं हुई है। रायगढ़, सरगुजा तो पूरी तरह अछूता भी है। इसलिए पर्यटन स्थल की सडक़ों की अच्छी हालत जरूरी है।
इसके अलावा पहले भी मोटल और रिसॉर्ट लीज अथवा किराये में देने की कोशिश हो चुकी है। भाजपा शासनकाल में भी हुई। लीज लेने वाली पार्टियां करोड़ों रुपये खर्च कर तैयार की गईं मोटल-रिसॉर्ट का शर्तों के मुताबिक रख-रखाव नहीं करती और कमाई कर लेने के बाद उसकी हालत खंडहर कर देती है फिर अनुबंध तोड़ देती हैं। वापस उनकी देखभाल का जिम्मा पर्यटन मंडल पर आ जाता है। कई जगह ऐसे मोटल-होटल पर ताले लगे हैं। इसी महीने की शुरूआत में पर्यटन मंडल ने सभी मोटल-रिसॉर्ट 30 साल की लंबी लीज, जो कुछ लाख रुपये में बिक्री के जैसा ही है, देने के लिए टेंडर निकाला है। क्या पिछले अनुभवों को देखते हुए अब ऐसे प्रावधान किए जाएंगे कि पर्यटकों को यहां उम्मीद से बेहतर सेवा और सुविधा मिले जिससे वे राज्य के बारे में अच्छी राय बनाकर दुबारा आने की इच्छा लेकर लौटें? [email protected]
छींका टूटने की उम्मीद से हैं
सरकारी अफसर नेताओं के भी मुकाबले हवा का रूख भांपने में तेज रहते हैं। छत्तीसगढ़ से जुड़े हुए किसी भी बड़े और चर्चित मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का वक्त सामने आता है तो संभावित नतीजों को देखते हुए कई अफसर बंद कमरों में भरोसे के किसी के साथ भविष्य की पहेली सुलझाने में लग जाते हैं कि क्या होने से क्या होगा, और क्या नहीं होने से क्या नहीं होगा। जो लोग शतरंज खेलना जानते हैं, वे कई बाजी आगे तक की अटकल लगाने लगते हैं जो कि शतरंज खेलने के लिए एक आम खूबी मानी जाती है। लेकिन छींका टूटने से दूध-दही हाथ लगने की उम्मीद लगाए हुए कुछ अफसर बरसों से उम्मीद से हैं। इंसानी नस्ल में जब उम्मीद से होते हैं, तो 9 महीने में नतीजा सामने आ जाता है, हाथियों में 18 महीने से 22 महीने तक लग जाते हैं। छत्तीसगढ़ में कुछ चाहत रखने वाले अफसरों की उम्मीद का यह पीरियड हाथियों को भी पार कर गया है, और यहां तो 22 महीने से भी अधिक हो गए हैं, लोगों की हसरत का कुछ हो नहीं रहा है।
लेकिन सरकार से जुड़े ताकतवर लोग मीडिया के लोगों से भी बात करते हुए यह समझने की कोशिश करते हैं कि कोर्ट की अगली पेशी पर क्या होगा, किस मामले में क्या होगा। अब अगर सुप्रीम कोर्ट के जजों के दिल-दिमाग तक सचमुच ही किसी की पहुंच है, तो वे वहां की जानकारी को चना-मुर्रा की तरह बांटने से रहे। इसलिए यहां बातचीत में जो लोग जो कुछ कहते हैं, वह उनकी भावना ही भावना रहती है, उसका सच्चाई से लेना-देना नहीं रहता है। ऐसे भावनाप्रधान लोगों को पता करना चाहिए कि हाथी से भी अधिक लंबा गर्भकाल डायनासॉर का होता था क्या?
महादेव की ताकत
अभी एक-एक करके प्रदेश के कुछ जिलों में महादेव एप नाम का ऑनलाईन सट्टा पकड़ाते जा रहा है। इसकी चर्चा साल-छह महीने पहले मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के गृहजिले दुर्ग से ही शुरू हुई थी, जिन लोगों ने जोर-शोर से इस मामले को उठाया था, वे फिर रातोंरात बीयर के झाग की तरह बैठ गए थे। तब से लेकर अब तक क्रिकेट पर सट्टा लगवाने वाले इस मोबाइल एप को लेकर हर जिले के एसपी अपने जिले में अपनी मर्जी से छूट और लूट जैसे फैसले लेते रहे, जो कि आज भी जारी है। आज जब प्रदेश में कुछ जिलों में महादेव एप को पकड़ा जा रहा है, लोग गिरफ्तार हो रहे हैं, तब प्रदेश के ही कुछ जिलों में अफसरों की मेहरबानी से इसे धड़ल्ले से चलाया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने इस तरह के तमाम जुर्म पर तुरंत काबू की चेतावनी अभी दो-चार दिन पहले दी है, लेकिन महादेव का वरदान खासा बड़ा होता है, और कई अफसरों से वह छूट नहीं पा रहा है। पता नहीं सरकार की नजर अपने खुद के अमले पर कैसे नहीं पहुंचती है।
खैर, जुर्म और सरकार को लेकर अधिक सोचना नहीं चाहिए, बल्कि यह सोचना चाहिए कि महादेव के नाम पर सट्टे का मोबाइल एप चल रहा है, और प्रदेश के एक भी हिन्दू की धार्मिक भावना आहत नहीं हुई है, है न महादेव की गजब की ताकत!
स्थानीय को नजरअंदाज, निराशा
भाजपा के विशेषकर दक्षिण बस्तर के कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नारायण चंदेल से निराश हैं। नया दायित्व संभालने के के बाद बस्तर पहुंचे दोनों नेताओं से कार्यकर्ताओं को काफी उम्मीदें थी। पार्टी नेताओं ने उन्हें बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा में सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी के दस्तावेज सौंपेे। पार्टी नेताओं ने उनसे आग्रह किया था कि वो प्रेस कांफ्रेंस में यहां की अनियमितताओं पर प्रमुखता से बात करें। साव,और चंदेल मीडिया से रूबरू भी हुए, लेकिन उन्होंने स्थानीय गड़बडिय़ों को नजर अंदाज कर दिया। इससे कार्यकर्ताओं का निराश होना स्वाभाविक है।
नए जिलों पर बिग-बी का सवाल
अनेक राज्यों में लोग छत्तीसगढ़ के बारे में बहुत कम जानते हैं। बहुत लोगों के मन में तो इसकी छवि एक नक्सल समस्या ग्रस्त इलाके की ही बनी हुई है। छत्तीसगढ़ में हाल में जिस तेजी से नए जिलों का गठन हुआ है, उसकी चर्चा तो राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए, मगर नहीं हुई। पड़ोसी प्रदेश मध्यप्रदेश में तो यह सामान्य ज्ञान का विषय होना चाहिए।
मशहूर क्विज शो केबीसी में मंगलवार की शाम होस्ट अमिताभ बच्चन ने सवाल किया कि किस राज्य में मनेंद्रगढ़-भरतपुर-चिरमिरी और सक्ती नए जिले बने? प्रतिभागी रतलाम की रानी पाटीदार जो संयोग से राजस्व विभाग के अधीन पटवारी ही हैं, फिफ्टी फिफ्टी लाइफ लाइन का इस्तेमाल करने बाद भी सही जवाब नही दे सकीं। गलत जवाब के कारण 3.20 लाख की जगह उन्हें 10 हजार लेकर लौटना पड़ा। दिल्ली, तेलंगाना, एमपी, यूपी में स्कूल, सडक़, स्वास्थ्य पर होने वाले काम तो टीवी, अखबारों में खूब पढऩे-देखने मिल जाते हैं। पर पता नहीं छत्तीसगढ़ के बारे में राज्य से बाहर के लोगों की जानकारी कम क्यों है।
चैलेंज पूरा किया मरकाम ने...
भाजपा के चैलेंज को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने अपने पहले दिन की यात्रा में ही पूरा करके दिखा दिया। भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने उनके इस दावे को झूठा करार दिया था कि वे एक दिन में 50 किलोमीटर पैदल चल सकते हैं। पर, मरकाम ने यात्रा के पहले दिन कोंडागांव से बस्तर तक के 52 किलोमीटर की दूरी तय की। साव को वहां की जिला कांग्रेस कमेटी ने पदयात्रा में साथ चलने का निमंत्रण भी दे दिया था। पर भाजपा ने इस धार्मिक कहे जाने वाली यात्रा के पीछे की राजनीति को समझ लिया। भले ही इसकी शुरूआत उसने खुद की थी। हाल ही में मरकाम राहुल गांधी से पदयात्रा में जाकर मिले थे। उन्हें बताया कि वे पिछले 5 साल से पैदल ही दंतेश्वरी मां का दर्शन करने जाते हैं। मरकाम की कुल यात्रा 170 किलोमीटर की है। शेड्यूल के मुताबिक 27 सितंबर को उन्हें ग्राम बस्तर से निकलकर 50 किलोमीटर मावलीभाठा पहुंचना है। आज दोपहर में वे 22 किलोमीटर चलकर जगदलपुर पहुंच चुके थे। तीसरे दिन 45 किलोमीटर चलकर गीदम और चौथे दिन 15 किलोमीटर चलकर दंतेश्वरी मंदिर पहुंच जाएंगे। पदयात्रा के अभ्यस्त मरकाम राहुल गांधी की 3500 किलोमीटर से अधिक लंबी यात्रा के सबसे भरोसेमंद सहयात्रियों में एक हो सकते हैं। अपने पद की सुरक्षा को लेकर कोई फिक्र न हो तो उन्हें इसमें शामिल होना चाहिए। फिलहाल तो रायपुर में मरकाम के बंगले पर बवाल होने की खबर है। युवा मोर्चा के पदाधिकारी राजनांदगांव से राजधानी पैदल पहुंचकर कह रहे हैं कि उन्होंने मरकाम की चुनौती पूरी कर दी है।
फिर क्यों नौबत आ रही जंगल काटने की..
ऊर्जा की जरूरतों के नाम पर भारी विरोध के बावजूद जंगल नष्ट किए जा रहे हैं पर हाल ही में जारी नवीनकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की एक रिपोर्ट को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है। इसमें बताया गया है कि छत्तीसगढ़ बिना प्रदूषण, विस्थापन और जंगलों के दोहन के 22 हजार 178 मेगावाट बिजली पैदा कर सकता है। इसका अलग-अलग आंकड़ा भी दर्शाया गया है। इसके अनुसार सौर ऊर्जा से सर्वाधिक 18 हजार 270 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता छत्तीसगढ़ में है। इसके बाद बड़ी जल विद्युत परियोजना से 2202 मेगावाट, छोटी जल विद्युत परियोजना से 1098 मेगावाट, पवन विद्युत परियोजना से 348 मेगावाट, जैव विद्युत से 236 मेगावाट तथा अपशिष्ट ऊर्जा से 24 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। यह छत्तीसगढ़ की अधिकतम आवश्यकता 5000 मेगावाट से काफी ज्यादा है। अतिरिक्त बिजली अन्य राज्यों में बेची जा सकती है। पर इस पर बहुत धीरे काम हो रहा है। राज्य अक्षय ऊर्जा विभाग क्रेडा का आंकड़ा है कि करीब 436 मेगावट का उत्पादन गैर पारंपरिक स्त्रोतों से हो रहा है। हाल ही में सरकार ने सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए लीज पर निजी जमीन लेने और क्रेडा के माध्यम से उत्पादन करने की योजना बनाई है। सरकार शायद इस दिशा में और तेजी से काम करे तो कोयले के विशाल भंडार के कारण प्रदूषण, विस्थापन व पर्यावरण संकट से जूझ रहे छत्तीसगढ़ को बचाने में मदद मिले।
छत्तीसगढ़ का पहला बैगा इंजीनियर
कबीरधाम जिले के मन्ना बेदी गांव के युवा भारत लाल विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय से आते हैं। वे ऐसे पहले बैगा नौजवान हैं, जिन्होंने संयुक्त इंजीनियरिंग परीक्षा (जेईई) की कठिन प्रतियोगिता में सफलता हासिल की। सन् 2018 में जब चयनित हो गए तो दाखिले के लिए फीस की व्यवस्था नहीं हो पाई। कवर्धा के सुधा देवी ट्रस्ट से मदद मिली और फीस जमा हो पाई। अब भारत की पढ़ाई पूरी हो गई है। उन्हें दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) से इंजीनियरिंग स्नातक डिग्री मिल गई है। पर, अफसोस की बात है कि इस पहले बैगा सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पास कोई रोजगार नहीं है। उसकी आर्थिक स्थिति खराब है। वे गांव वापस लौट चुके हैं और इन दिनों बच्चों को मुफ्त कोचिंग दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में 27 अगस्त 2019 को छत्तीसगढ़ जनजाति सलाहकार परिषद् की बैठक हुई थी, जिसमें विशेष पिछड़ी जनजाति के सभी शिक्षित युवाओं का सर्वे कराकर पात्रता के अनुसार सरकारी सेवाओं में नियुक्ति देने का निर्णय लिया गया था। एक मोटा अनुमान भी लगा लिया गया था कि सरकार पर इस योजना से 346 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
जून के आखिरी सप्ताह में जशपुर जिले के बगीचा में मुख्यमंत्री का भेंट-मुलाकात कार्यक्रम हुआ था। इसमें मौजूद कोरवा बिरहोर जनजाति के युवाओं ने इस मुद्दे को उठाया था। मुख्यमंत्री ने इस योजना के बारे में उन्हें बताया था। अधिकारियों का कहना है कि सर्वे का काम शुरू किया जाएगा, सूची बनेगी फिर नियुक्ति होगी। ध्यान देने की बात है परिषद् के निर्णय को तीन साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है। शायद सर्वे अब तक पूरा नहीं पाया है। बैगा समुदाय से जेईई के जरिये सॉफ्टवेयर इंजीनियर तो पूरे प्रदेश में एक ही बन पाया है। इसमें किसी तरह के सर्वे की जरूरत क्यों होनी चाहिए? भारत लाल और राष्ट्रपति के बाकी पढ़े लिखे दत्तक पुत्रों तक इस योजना का लाभ पहुंचाने में इतनी देर क्यों होनी चाहिए?
प्रतिभाशाली भृत्य मिलेंगे...
सरकारी दफ्तरों में इस बार जो भृत्य तैनात होंगे, उन्हें एक अलग तरह से देखना होगा। रविवार को सामान्य प्रशासन विभाग के 80 तथा छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के 11 रिक्त पदों के लिए परीक्षा हुई। इसमें करीब 2 लाख 25 हजार लोगों ने आवेदन किया था। इनमें इंजीनियरिंग और पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री रखने वाले भी शामिल थे। दो लाख से अधिक प्रतिभागियों में से जिन 91 उम्मीदवारों को मौका मिलेगा वे अपने दफ्तर में साहबों से कह सकते हैं कि हम भी आप ही तरह कड़ी परीक्षा पास करके आए हैं, अदब से पेश आइये। सरकार ने पहली बार इस पद का महत्व समझा। जबकि यह सदा से बहुत खास रहा है। साहब की शान यही भृत्य होते हैं। घंटी बजे और साहब के कमरे में भृत्य हाजिर हो तो साहब, साहब हुए- वरना बाबू भी नहीं। आगंतुकों को किसी साहब से मिलने के लिए इनकी मेहरबानी पर निर्भर रहना पड़ता है। आप मुलाकात की पर्ची थमाएं और भृत्य, साहब के व्यस्त होने का हवाला देते हुए उन तक न पहुंचाए तब? करते रहिये घंटों इंतजार। फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल तक समय पर पहुंच जाए इसमें भी भृत्य से ही काम लेना पड़ता है। वैसे बहुत से बेरोजगारों ने इसलिए भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया ताकि उन्हें पीएससी की दूसरी परीक्षाओं का अभ्यास हो जाए। [email protected]
नेहरू जिंदाबाद पर बवाल
भाजपा के छोटे-बड़े नेता नेहरू-गांधी परिवार को कोसने का मौका नहीं छोड़ते हैं। किसी फोरम में तारीफ होती है, तो भाजपा नेता असहज हो जाते हैं। ऐसा ही एक वाक्या पिछले दिनों सरगुजा जिले के प्रतापपुर के गोविंदपुर गांव में हुआ। गोविंदपुर राजमोहिनी देवी की जन्मस्थली है।
आदिवासी राष्ट्रनायकों की याद में कार्यक्रम किए गए। इसके लिए केंद्र सरकार से फंड मिला था। राजमोहिनी देवी की याद में हुए इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह, और सरगुजा के तमाम छोटे-बड़े नेता मौजूद थे। कार्यक्रम में एक बाद एक महापुरूषों के नाम लेकर जिंदाबाद के नारे लगाए गए।
इसी बीच किसी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम लिया, तो मंच पर मौजूद कई नेताओं के अलावा भीड़ ने भी जोरदार स्वर में जिंदाबाद के नारे लगाए। नेहरू जिंदाबाद के नारे से कुछ नेता असहज हो गए। एक पूर्व जिलाध्यक्ष ने तो नारा लगाने वाले को फटकार दिया, और यह तक कह दिया कि नेहरू जिंदाबाद के नारे लगाने वाला भाजपाई नहीं हो सकता। थोड़ी देर आपस में वाद विवाद चलता रहा। बाद में मंच पर मौजूद बड़े नेताओं के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ।
अमर पारवानी के पोस्टरों का राज
चेंबर अध्यक्ष अमर पारवानी ने अपना जन्मदिन धूमधाम से मनाया। मगर इस बार पारवानी को जन्मदिन की बधाई के पोस्टर पूरे शहरभर में लगाए गए। पारवानी ने चेंबर अध्यक्ष का चुनाव जीतकर खुद को व्यापारियों का सबसे बड़ा नेता साबित किया है। मगर इस बार के पोस्टर में कई संदेश छिपे हुए हैं। पारवानी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। पिछली बार उनका नाम रायपुर उत्तर से भाजपा के पैनल में था। लेकिन श्रीचंद सुंदरानी दोबारा टिकट लाने में कामयाब रहे। अब विधानसभा चुनाव में सालभर बाकी रह गए हैं। ऐसे में पारवानी की सक्रियता चर्चा में है। ये अलग बात है कि भाजपा से टिकट के दूसरे दावेदारों के समर्थकों में हलचल मची हुई है।
लौटकर आए ब्लैक बोर्ड में...
तकनीक की मदद से स्कूल शिक्षा का स्तर सुधारने की एक और कोशिश पर पानी फिर गया है। 9वीं से 12वीं तक की तिमाही परीक्षा में गुणवत्ता और एकरूपता लाने के लिए माध्यमिक शिक्षा मंडल ने पर्चे तैयार कराए थे, जो ठीक परीक्षा के पहले ऑनलाइन स्कूलों में वितरित किया जाना था। शनिवार को जब कुछ लोगों ने अपने जिलों के शिक्षा अधिकारियों को जानकारी दी कि पर्चे तो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे हैं, तब उन्होंने यह कहकर बेफिक्री दिखाई कि वे असली प्रश्न-पत्र नहीं है, छात्रों को गुमराह किया जा रहा है। शाम आते-आते साफ हो गया कि पर्चे असली ही थे। शिक्षा विभाग ने मान लिया है कि पर्चे वही बांटे जाने थे, जो वायरल हो रहे हैं। यह जरूर कहा गया है कि 12वीं का प्रश्न पत्र अभी तैयार नहीं हुआ है। सोशल मीडिया पर उसका भी पर्चा दिखाई दे रहा है, जो गलत है। पर्चा लीक में एक कोचिंग संस्थान का नाम सामने आ रहा है। यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि विभाग के ही किसी बाबू या अधिकारी ने उन्हें पर्चा उपलब्ध कराया होगा। पूरी बात जांच से सामने आएगी। फिलहाल तो ऑनलाइन प्रश्न-पत्र की योजना रद्द कर दी गई है।
अब पुराने पैटर्न पर परीक्षा होगी। स्कूल वाले ही प्रश्न पत्र तैयार करेंगे।
छपाई की भी जरूरत नहीं, ब्लैक बोर्ड पर प्रश्न लिखे जाएंगे और जवाब उत्तर पुस्तिका में लिखना होगा। इस पुरानी व्यवस्था में परीक्षा की गंभीरता नहीं थी, इसीलिए तो केंद्रीकृत व्यवस्था की गई थी। शुक्र है यह तिमाही परीक्षा का मामला है, यदि वार्षिक परीक्षाओं में भी ऐसा हुआ तो रैकेट से जुड़े लोगों के नाम मेरिट लिस्ट में दिखाई देते।
इलाज इंद्रावती के पार से
बीजापुर-नारायणपुर जिले के सीमावर्ती गांवों में अज्ञात बीमारी से करीब 40 लोगों की मौत की खबर कितनी मुश्किल से राजधानी तक पहुंच पाई होगी। एक दो मौतों की तो खबर ही नहीं लगती होगी। प्रभावित गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है, इस तस्वीर से अंदाजा लगाया जा सकता है। डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ता इंद्रावती नदी को पार करने के बाद वहां पहुंच पाए। क्या आम दिनों में कभी डॉक्टर या स्वास्थ्य वर्कर उनके पास पहुंचने की तकलीफ उठाते होंगे? बस्तर के विकास पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए अतिरिक्त बजट का प्रावधान भी है। मगर अफसोस, राज्य बनने के 22 साल बाद भी प्रशासन वहां नहीं पहुंच पाया है और न ही प्रशासन तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को सुलभ रास्ता बनाकर दिया जा सका है।
आदिवासी इलाके में डॉक्टरी...
प्राय: देखा गया है कि नये पास आउट डॉक्टरों की आदिवासी बाहुल्य जिलों में नियुक्ति की जाती है पर जैसे ही साल-दो साल का समय पूरा होता है, वे सिफारिश के जरिये अपना तबादला सुविधाजनक दूसरे जिलों में स्थानांतरण करा लेते हैं। जो डॉक्टर ऐसा नहीं करा पाते वे अपने मुख्यालय वाले स्वास्थ्य केंद्रों में नहीं मिलते। कई डॉक्टर जिला मुख्यालय में प्रैक्टिस करते हुए मिल जाते हैं। इसके चलते आदिवासी जिलों में डॉक्टरों की गंभीर रूप से कमी बनी रहती है। इन जिलों में कलेक्टरों को अधिकार दिया गया है कि वे संविदा आधार पर भर्ती कर कमी पूरी कर सकते हैं। बीते मार्च में 2021 के पास आउट 66 डॉक्टरों को बस्तर संभाग के जिलों में तैनात किया गया था। इन्हें अपने तय स्वास्थ्य केंद्रों में ही निवास करने कहा गया था। ऐसा न पाए जाने पर कार्रवाई करने का अधिकार भी कलेक्टर्स को है। इसके बावजूद स्वास्थ्य केंद्रों में एमबीबीएस चिकित्सकों की, तो जिला मुख्यालय के अस्पतालों में विशेषज्ञों की भारी कमी है। स्व. बलीराम कश्यप मेडिकल कॉलेज में पहले से ही डॉक्टरों की कमी थी, उसके बाद जनवरी में एक आदेश निकालकर शिशुरोग, टीबी, प्रसूति, ईएनटी व सर्जरी के विशेषज्ञों का यहां से तबादला कर दिया गया। जशपुर के जनप्रतिनिधियों का ही आरोप है कि यहां के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र रेफर सेंटर बन गए हैं। मरीजों को सिर्फ जिला अस्पताल भेजने की सुविधा है, इलाज की नहीं। स्थिति और विकट तब हो जाती है जब जर्जर सडक़ों, नदी नालों को पार कर और एबुंलेंस के अभाव में किसी तरह आदिवासी जिला मुख्यालय में या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में आते हैं तो वहां उनका इलाज नहीं होता। हाल ही में बलरामपुर जिले की एक घटना सामने आई थी जिसमें प्रसव पीड़ा से जूझते हुए घंटों एक महिला ताला बंद अस्पताल के बाहर तड़प रही थी।
अब सरकार एक नई व्यवस्था करने जा रही है जिसमें यह तय किया गया है कि एक बार आदिवासी बाहुल्य इलाकों में डॉक्टरों की तैनाती होने पर उनका स्थानांतरण सिर्फ संभाग के भीतर होगा। राज्य सरकार नहीं बल्कि संभाग के आयुक्त इसका निर्णय करेंगे। इस फैसले के दूसरे परिणाम भी हो सकते हैं। हो सकता है डॉक्टर बस्तर और सरगुजा की पोस्टिंग लेने से ही बचना चाहें और यदि हो भी गया तो वे जिला मुख्यालय में रहना शुरू कर दें, बजाय ब्लॉक और पंचायतों में खोले गए स्वास्थ्य केंद्रों के। जरूरी तो यह है कि जिनकी पोस्टिग जिस पीएचसी, सीएचसी में है, वहां वे मौजूद रहें यह सुनिश्चित करने के लिए मॉनिटरिंग बढ़ाई जाए। साथ ही देखा जाए कि डॉक्टरों को उनकी तैनाती की जगह पर परिवार सहित रहने की जरूरी सुविधाएं मिल सके।
कांग्रेस का थाना...
धमतरी जिले के कुरुद के थाने में पुलिस के तौर-तरीकों से नाराज होकर यह पोस्टर लगा दिया। पिछले दिनों यहां की एक शराब दुकान के भीतर घुसकर कुछ लोगों ने सेल्समैन से मारपीट की थी। भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस ने पीडि़त की शिकायत नहीं लिखी, क्योंकि इसमें मारपीट करने वाले लोग कांग्रेस के कार्यकर्ता थे। पुलिस कांग्रेस के इशारे पर काम करती है इसलिए इसे थाने को कांग्रेस का थाना कहा जाना चाहिए। पुलिस को भनक नहीं लगी कि थाने की दीवार पर पोस्टर लगाकर भाजपा कार्यकर्ता सेल्फी ले रहे हैं। जैसे ही मालूम हुआ, आनन-फानन पोस्टर हटाया गया।
कांग्रेस के नए अध्यक्ष के बाद?
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में क्या बदलाव आने वाला है यह सवाल लोगों के मन में तैरने लगा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी दावेदारी पेश कर दी है। उन्हें सोनिया गांधी, राहुल गांधी खेमे का समर्थन भी बताया जा रहा है। इसी के चलते वे रेस में भी सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी ने जब एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत का हवाला दिया, तब तुरंत गहलोत ने कहा कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। इसके पहले वे कहते आ रहे थे कि दो-तीन पद एक साथ संभाले जा सकते हैं। लोग यह मानकर चल रहे हैं कि गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाने के बाद भी संगठन में गांधी परिवार का हस्तक्षेप कम नहीं होने वाला है। गांधी परिवार ही पर्दे के पीछे हाईकमान की भूमिका में बना रहेगा। पर गहलोत की जगह शशि थरूर या और कोई आता है तो वे ज्यादा आजादी से काम करते हुए दिखाई देंगे। दोनों ही परिस्थितियों में यह तय है कि सत्ता के स्तर पर कोई बदलाव अब नहीं होने वाला क्योंकि चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है। संगठन में जरूर परिवर्तन दिखाई दे सकता है। प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश कार्यकारिणी में ऐसा हो सकता है। पर, होगा क्या यह देखने के लिए नये अध्यक्ष के आसीन होने पर ही पता चलेगा। [email protected]
सीएम का चेहरा?
पूर्व केन्द्रीय मंत्री विष्णुदेव साय प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद से हटाए जाने से निराश जरूर हैं, लेकिन वो अलग-अलग जिलों का दौरा भी कर रहे हैं। साय विधानसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं। उन्होंने कुनकुरी सीट से लडऩे की तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि इस सीट से पार्टी के पूर्व विधायक भी लडऩा चाहते हैं, लेकिन कुछ नेताओं का मानना है कि जिस तरह साय को पहले लोकसभा की टिकट नहीं दी गई, और फिर अध्यक्ष पद से हटाया गया, उसके बाद पार्टी उन्हें और नाराज नहीं करेगी। साय भले ही प्रदेश अध्यक्ष न हो, लेकिन आदिवासी वर्ग से सीएम का चेहरा हो सकते हैं।
चुप्पी समझ से परे
रायपुर शहर के बड़े नेताओं में आपसी खींचतान चल रही है। हाल यह है कि सरकारी हो, या गैर सरकारी स्थानीय नेता एक मंच पर बैठने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। चर्चा है कि संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने मेयर एजाज ढेबर के कार्यक्रमों में जाना बंद कर दिया है। वो एजाज के साथ मंच भी साझा नहीं करते हैं।
प्रदेश के सबसे बड़े दशहरा उत्सव में से एक डब्ल्यूआरएस कॉलोनी के रावण दहन कार्यक्रम में भी विकास आमंत्रित नहीं हैं। यहां की सारी तैयारी एजाज, और कुलदीप जुनेजा ने संभाल रखी है। वैसे तो यह इलाका रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा के विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है, लेकिन डब्ल्यूआरएस इलाके का आधा क्षेत्र पश्चिम विधानसभा में होने के कारण पश्चिम विधायक कार्यक्रम के आयोजन में अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
राजेश मूणत तो प्रमुख आयोजनकर्ता रहे हैं। उनसे पहले तरुण चटर्जी डब्ल्यूआरएस दशहरा उत्सव के कर्ताधर्ता रहे हैं, और उनके प्रयासों से ही इस आयोजन को भव्यता मिली थी। अब जब विकास तैयारियों से अलग हैं, तो काफी बातें हो रही है। खास बात यह है कि स्थानीय बड़े नेताओं के बीच की तनातनी से पार्टी के सभी बड़े नेता वाकिफ हैं। मगर उनकी चुप्पी समझ से परे है।
कांग्रेसियों की बेतरतीब गाडिय़ां
सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की पुलिस और प्रशासन में कितनी चलती है यह एक नहीं कई बार देखा जा चुका है। विधायक और मंत्री तक अपना दर्द सार्वजनिक करते रहे हैं। इसका एक और प्रत्यक्ष नमूना जांजगीर-जिले में कल देखने को मिला। कांग्रेस के जिले भर से आए कार्यकर्ताओं की भीतर बैठक चल रही थी। बाहर पुलिस ने सडक़ किनारे पार्क की गई गाडिय़ों को जब्त कर वाहनों में भरना शुरू कर दिया। इस सम्मेलन में पीएल पुनिया, मोहन मरकाम सहित कई बड़े नेता और जिले के तमाम पदाधिकारी मौजूद थे। पुलिस ने आव देखा न ताव कार्यकर्ताओं की गाडिय़ों को जब्त करना शुरू कर दिया। इतनी भी उदारता नहीं बरती कि उन्हें समझाइश देकर गाडिय़ां ठीक तरह से पार्क करने के लिए कह दें। बहरहाल, कुछ नेताओं को पता चला तो वे बाहर निकले। उन्होंने पुलिस से कहा, एक बार चेतावनी तो दे देते। आ गए सीधे जब्ती करने। थोड़ी बहसबाजी हो गई। आखिर पुलिस ने सत्ता का लिहाज किया। गाडिय़ों को वापस डग्गे से उतार कर रख दिया। इस नसीहत के साथ कि इन्हें ठीक तरह से पार्क करें।
भूल गए पुलिस से मिली चोट...
सन् 2018 के चुनाव में भाजपा सरकार के खिलाफ प्रदेश में माहौल बनाने में जिन घटनाओं की बड़ी भूमिका थी, उनमें बिलासपुर के कांग्रेस भवन में हुई बेहरम लाठी चार्ज भी थी। इस घटना के खिलाफ प्रदेशभर में आंदोलन हुए थे। घायल कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तस्वीरों को चुनाव प्रचार में शामिल किया गया। सरकार की किरकिरी हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अंबिकापुर दौरे पर थे। स्थिति बिगडऩे से बचाने के लिए तत्काल दंडाधिकारी जांच का निर्देश वहीं से उन्होंने दिया। तीन महीने में जांच हो जानी थी। आज तक पूरी नहीं हुई है। लाठी चलाने का आदेश देने वाले किसी पुलिस अधिकारी का बाल बांका नहीं हुआ। सब तरक्की पाते गए। सत्ता मिलने के बाद जिले के कांग्रेस कार्यकर्ताओं की प्राथमिकता में यह मुद्दा ही नहीं रहा। कांग्रेसी उस दिन को अब याद करना भी जरूरी नहीं समझ रहे हैं।
अचानकमार में चीते...
इस पोस्टर को देखकर भ्रम होता है। अचानकमार अभयारण्य में इसे वन विभाग ने जगह-जगह लगाए हैं और सोशल मीडिया पर भी वायरल किया है। लोग इसे देखकर चौंक रहे हैं कि कहीं एक दो चीता यहां तो नहीं छोड़ दिए गए हैं। लोग कह रहे हैं- बेगानी शादी में...।
रेवन्यू विभाग की रेट लिस्ट
इस बार पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने जन्मदिन नहीं मनाया। उन्होंने धरना प्रदर्शन किया। कहा- शहर के लोग भ्रष्टाचार और विकास कार्य नहीं होने से दुखी है, वे कैसे खुशी मनाएं। धरना स्थल पर शराब की दुकान सजाई गई थी और ये रेट लिस्ट लटकाई गई थी। सोशल मीडिया पर लोगों ने प्रतिक्रिया दी है। हां, रेट बहुत बढ़ गया है। भाजपा की सरकार थी तो इतनी महंगाई नहीं थी, कुछ कम में काम हो जाता था। [email protected]
चुनाव में हैवी वेट को मौका !
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए सियासतदारों ने कमर कसना शुरू कर दिया है। टिकटार्थी जोड़-तोड़ में अभी से लग गए हैं। ऐसे ही एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सत्ताधारी दल के टिकटार्थी का आमना-सामना हुआ। इसमें अलग-अलग जिलों के निगम-मंडल के पदाधिकारी, मंत्री और प्रदेश पदाधिकारी शामिल थे। इनमें से एक मंडल के पदाधिकारी ने आयोग की एक महिला पदाधिकारी की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस बार केवल हैवी वेट ही उम्मीदवार बनेंगे ? दरअसल, महिला पदाधिकारी ने पिछले कुछ दिनों में अपना वजन काफी कम किया है। हैवी वेट का फार्मूला लाने वाले पदाधिकारी खुद भारी-भरकम डीलडौल वाले हैं, तो वे अपनी टिकट पक्की बता रहे थे। टिप्पणी करने वाले पदाधिकारी का कहना था कि चूंकि आपने वजन कम कर लिया है, इसलिए टिकट की दौड़ से बाहर हो गई हैं। लेकिन महिला पदाधिकारी मंत्री जी के साथ आई थीं, तो उन्होंने उनकी तरफ देखते हुए कहा कि आप चिंता न करें, हमारे पास हैवी वेट भी हैं। इतना सुनते ही मंत्री समेत सभी लोग ठहाका लगाने लगे। कुल मिलाकर महिलाएं यहां बाजी मारते दिख रही थीं। खैर, यहां तो हास-परिहास के अंदाज में टिकट का फार्मूला तय किया जा रहा था, लेकिन सियासत में तो हास-परिहास में कही गई बातों के भी मायने निकाले जाते हैं। इसका सिलसिला भी शुरू हो गया। जानकारों ने अपनी राय दी कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि चुनाव में हैवी वेट को ही मौका मिलेगा, लेकिन राजनीति में हैवी वेट का आशय काफी वृहद माना जाता है। अब यह तो समय ही बताएगा कि कौन-कौन हैवी वेट सियासी खिलाड़ी क्वालीफाई कर पाते हैं ?
अफसर का टेंशन
मुख्यमंत्री भेंट-मुलाकात के दूसरे चरण में मैदानी जिलों के विधानसभा क्षेत्रों के दौरे पर हैं। इस अभियान के कारण अधिकारी सर्वाधिक टेंशन में रहते हैं, क्योंकि कब कौन मुख्यमंत्री के सामने शिकायत कर दे और उनकी भृकुटी तन जाए, इसकी गारंटी तो रहती नहीं। पहले चरण का अनुभव भी यही रहा कि मुख्यमंत्री जनता के काम में बाधा डालने वाले अफसरों को स्पॉट में निपटा रहे थे। पहले चरण में एक बड़े अधिकारी के खिलाफ इधर शिकायत मिली और उधर उनके खिलाफ कार्रवाई का आदेश जारी हो गया। बेचारे साहब को सफाई देने तक का मौका नहीं मिला। अब चूंकि मुख्यमंत्री के निर्देश पर आदेश जारी हुआ था तो कोई संशोधन की गुंजाइश भी नहीं थी। साहब ने मन मसोसकर अटैचमेंट में कुछ महीनों का समय़ काटा और जैसे-तैसे जिले में पोस्टिंग मिल गई। नई पोस्टिंग मिलने से थोड़ी राहत की सांस ली ही थी कि उनके जिले में मुख्यमंत्री के भेंट-मुलाकात का कार्यक्रम जारी हो गया। अब साहब फिर टेंशन में कि बड़ी मुश्किल से तो पोस्टिंग मिली थी कहीं मामला न उलटा पड़ जाए। काश थोड़े दिन रूक गए होते। तरह-तरह के ख्याल मन में आ रहे थे। इस बीच मुख्यमंत्री पहुंचे तो किसी ने अधिकारी की शिकायत का पुलिंदा खोल दिया। अब साहब की हालत खराब हो गई, क्योंकि पिछली बार भी ऐसा ही कुछ हुआ था। साहब मुख्यमंत्री के जिले से उडऩे तक तनाव में थे कि कहीं आर्डर न निकल जाए। हालांकि मुख्यमंत्री शिकायत से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए कार्रवाई नहीं हुई। जबकि साहब ने तो बोरिय़ा-बिस्तर बांधने का मन बना लिया था। मुख्यमंत्री के उडऩे के घंटों बाद तक वे कभी मीडिया तो कभी अफसरों से फॉलोअप लेते रहे कि कही उनका पत्ता फिर से साफ न हो जाए। काफी देर तक कोई सूचना नहीं मिली तब उनके जान में जान आई।
काजू बाड़ी की तख्ती
अभी काजू का मौसम नहीं है। कोई अगर इस बाड़ी में घुस भी जाए तो क्या चुरा लेगा? पर चारों तरफ बाड़े के अलावा तख्तियां भी जगह-जगह लिखकर टांगी गई है। इसमें कहा गया है कि कोई भीतर प्रवेश करेगा तो उससे 500 रुपये जुर्माना देना होगा। खोजबीन करने पर पता चला कि इसे शराबखोरी का अड्डा बना लिया गया है। कुछ आपराधिक किस्म के लोगों का यहां डेरा जमा होता है। पता नहीं यह तख्ती कारगर साबित हुई या नहीं। तस्वीर घरघोड़ा- लैलूंगा मार्ग पर स्थित मस्कुरा गांव की है। गांव वाले बताते हैं कि पहले यहां इस तरह का खतरा नहीं था। पर पास में ही एक कोयला खदान खुल गई है तब से लोगों की आमदनी बढ़ गई है और शराब पीने के लिए जगह ढूंढने वालों की संख्या भी...।
आत्मा की टार्च जल गई है
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की कहानी है, टार्च बेचने वाले। कहानी का सार यह है कि बिजली का टार्च बेचने का अच्छा खासा काम छोडक़र एक व्यक्ति अध्यात्म की ओर मुड़ जाता है। इस कहानी के जरिए परसाई ने धार्मिक पाखण्ड पर प्रहार किया है।
आप सोच रहे होंगे कि कहानी का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, सरकार में भी कुछ इसी तरह का वाक्या सामने आया है। लंबे समय तक ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन, और फिर पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमैन रहे देवजी पटेल के करीबी चर्चित अफसर डॉ. अशोक चतुर्वेदी भी अध्यात्म की ओर मुड़ गए हैं।
उनके खिलाफ भ्रष्टाचार, और आय से अधिक संपत्ति के प्रकरणों की जांच चल रही है। इसी बीच चतुर्वेदी नए अवतार में नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपना नाम डॉ. अशोक हरिवंश (भैय्या जी) रख लिया है। वो रामायण के पात्रों पर प्रवचन कर रहे हैं। डॉ. अशोक ‘राम मिलेंगे’ विषय पर प्रवचन देने वाले हैं। इसका प्रसारण टीवी चैनलों में होगा। अब यह कहना गलत नहीं होगा कि चतुर्वेदी के आत्मा की टार्च जल गई है।
नियुक्ति में किसी संत की भूमिका
भाजपा के मीडिया विभाग के प्रमुख पद पर अमित चिमनानी की नियुक्ति हुई, तो पार्टी के नेता भौचक रह गए। चिमनानी कभी मीडिया में कामकाज का कोई अनुभव नहीं है। वो पेशे से सीए हैं। यद्यपि कभी कभार पार्टी की तरफ से उन्हें टीवी डिबेट में भेजा जाता था। जबकि मीडिया विभाग के मुखिया ज्यादातर पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में प्रभात झा अखबार के संपादक रहे हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद मीडिया प्रमुख रहे सुभाष राव, और फिर बाद में रसिक परमार का लंबा पत्रकारिता का अनुभव रहा है। नलिनेश ठोकने भी तत्कालीन गृहमंत्री रामविचार नेताम के मीडिया सलाहकार थे, और बाद में उन्हें प्रमुख बनाया गया।
ठोकने, सुभाष राव व रसिक परमार के साथ काम कर चुके हैं। अब जब चिमनानी की नियुक्ति आदेश जारी हुए तो कई मीडिया का काम देख रहे नेताओं में गुस्सा फट पड़ा है। आपस में एक-दूसरे को वाट्सएप मैसेज भेजकर चिमनानी के साथ काम नहीं करने की बात कह रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि चिमनानी की नियुक्ति में किसी संत की भूमिका रही है। इसमें सच्चाई कितनी है यह तो पता नहीं, लेकिन चुनावी साल में भाजपा के रणनीतिकारों को मीडिया में काफी मेहनत करनी पड़ेगी।
सिंधी भाषा अनुदान से मोटी कमाई !
रविशंकर विश्वविद्यालय में सिंधी अध्ययन केन्द्र खुल गया है। इसमें सिंधी भाषा की पढ़ाई हो रही है। केन्द्र सरकार से सिंधी भाषा के उत्थान के लिए करीब 1 करोड़ रूपए अनुदान भी रविवि को दिया गया था। मंगलवार को अध्ययन केन्द्र के कामकाज की समीक्षा के लिए आए केन्द्र सरकार के एक प्रतिनिधि यह जानकार हैरान रह गए कि तीन साल पहले एक करोड़ दिए गए थे, लेकिन इसका एक पैसा भी नहीं खर्च किया गया। इसके 22 लाख ब्याज अतिरिक्त जमा हो चुके हैं। केन्द्र के प्रतिनिधि, और सिंधी समाज के नेता ने इस पर कुलपति के सामने काफी नाराजगी जताई है। उन्होंने सिंधी पत्रकारिता कोर्स, और ट्रांसलेशन के कोर्स शुरू करने का सुझाव दिया है। देखना है कि यह अमल हो पाता है, अथवा नहीं। [email protected]
हो सकता है कि...
प्रदेश कांग्रेस के प्रतिनिधियों के लिए पहली बार एआईसीसी ने परिचय पत्र जारी किया है। मगर एक-दो लोग ऐसे भी थे जिनका परिचय पत्र तो जारी हो गया, लेकिन प्रतिनिधि नहीं बन पाए। अंतिम समय में उनका नाम कट गया।
सुनते हैं कि संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला के साथ भी ऐसा ही हुआ। एआईसीसी के उनके अपने संपर्क सूत्रों ने परिचय पत्र वाट्सएप कर भेज दिया था, लेकिन वो प्रतिनिधि नहीं बन पाए। उनका नाम कट गया।
चर्चा है कि शुक्ला की कार्यशैली से संगठन-सीएम, दोनों ही संतुष्ट नहीं हैं। यही वजह है कि उन्हें किसी ने प्रतिनिधि बनाने में रूचि नहीं ली। जबकि उनके पूर्ववर्ती शैलेष नितिन त्रिवेदी बिना किसी सिफारिश के अपने गृह जिले बलौदाबाजार-भाटापारा से प्रतिनिधि बनाए गए।
हालांकि अब कुछ प्रमुख नेताओं को को-ऑप्शन के जरिए प्रतिनिधि बनाए जाने की चर्चा चल रही है। इसमें कई विधायक, और अन्य नेता शामिल हैं। हो सकता है कि सुशील, और बाकियों को मौका मिल जाए।
टेंट लगाने का भी बड़ा काम...
आखिरकार केके पीपरी पीडब्ल्यूडी के ईएनसी बनने में कामयाब रहे। पीपरी सबसे सीनियर थे, लेकिन उनसे काफी जूनियर विजय भतप्रहरी ईएनसी पद पर काबिज थे। उन्हें खस्ताहाल सडक़ों की मरम्मत की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं करने पर ईएनसी पद से हटा दिया गया है।
पद से हटने के बाद विजय भतप्रहरी को लेकर कई रोचक जानकारी आ रही है। वो न सिर्फ ईएनसी के प्रभार पर थे बल्कि प्रभारी चीफ इंजीनियर भी थे। विजय भतप्रहरी का मुल पद एसई है। मगर अपने अपार संपर्कों की वजह से निर्माण विभाग के कर्ता धर्ता बन गए थे।
सुनते हैं कि भतप्रहरी को हटाने के पीछे सिर्फ खराब सडक़ ही वजह नहीं है। चर्चा यह भी है कि पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर भी उन्हें नापसंद करते थे, और एक से अधिक बार उन्हें हटाने की नोटशीट भी चला चुके थे। निर्माण कार्यों में गड़बड़ी की शिकायतें तो आम है, लेकिन एक और शिकायत चर्चा में है।
कहा जा रहा है कि प्रदेश के अलग-अलग जिलों में सरकारी कार्यक्रम हो रहे हैं। इसमें टेंट लगाने का भी बड़ा काम है, और यह सब पीडब्यूडी के जिम्मे रहता है। पिछली सरकार में भी टेंट कारोबारी काफी सक्रिय थे, और उनमें आपस में प्रतिस्पर्धा के चलते शिकवा शिकायतें होती रहती थी। अभी भी इसको लेकर खींचतान चल रही है। हल्ला है कि भतप्रहरी को हटाने के पीछे इन शिकायतों का भी बड़ा रोल रहा है।
पंजाब सीएम और छत्तीसगढ़
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के बारे में दारूखोरी की खबरें आना ही बंद नहीं होता। उनके वीडियो भी आते ही रहते हैं जिनमें वे हाल के दिनों में, या कुछ अरसा पहले तक लडख़ड़ाते और गिरते-पड़ते दिखते थे। अभी जर्मनी की खबरें हैं कि वे एक विमान से इसलिए उतार दिए गए कि वे नशे में धुत्त थे, और चल भी नहीं पा रहे थे। अब यह बात सच है या नहीं यह तो नहीं मालूम लेकिन वे जर्मनी में अभी पंजाब के लिए पूंजी निवेश जुटाने गए थे, और इस दौरान वे वहां पर म्युनिख में दुनिया का सबसे बड़ा पीने का कारोबारी जलसा ड्रिंकटेक-2022 भी देखने गए थे। हफ्ते भर के लिए दुनिया भर से लोग इस ट्रेडफेयर में आते हैं, और पीने की हर तरह की चीजों के कारोबार और कारखानों को देखते हैं, सीखते हैं, और कारोबारी समझौते करते हैं। अब यह कार्यक्रम तो पटियाला पैग से भी बड़ा होता है, इसलिए अगर वहां गए हुए भगवंत मान प्लेन में चढऩे की हालत में भी नहीं रह गए थे, तो इसमें हैरानी की बात नहीं है।
लेकिन भगवंत मान की चर्चा सुनकर छत्तीसगढ़ में भी राजनीति के लोग मजा ले रहे हैं कि किस पार्टी के कौन से नेता को इस ट्रेडफेयर में भेजा गया होता तो उनका क्या हाल होता। छत्तीसगढ़ में इक्का-दुक्का ही ऐसे नेता हैं जो अपने पीने की बात को खुलकर मंजूर करते हैं, और इनमें एक आदिवासी नेता भी हैं, और अपने सरल आदिवासी मिजाज के मुताबिक वे पीने की बात मंजूर भी कर लेते हैं। इसी चर्चा के दौरान कल किसी ने इस राज्य में एक मंत्री को याद किया जिनके पैर विधानसभा के भीतर भी लंच के बाद के समय लडख़ड़ाते रहते थे। शराब पीते बहुत से लोग हैं, पीने की बात मंजूर कम लोग करते हैं।
ताकत के साथ जुड़ी आशंका
लोगों के बीच केन्द्र और राज्य सरकार की खुफिया एजेंसियों, जांच एजेंसियों, और टैक्स विभागों को लेकर यह दहशत रहती है कि उनमें से पता नहीं कौन फोन टैप कर रहे हैं। और संसद ने कानून बनाकर दस एजेंसियों को फोन टैप करने की सहूलियत दी है, इसलिए एक डर बने ही रहता है। खासकर जो लोग राजनीतिक रूप से ताकतवर हैं, जो सत्ता के साथ रहते हुए जुर्म के दर्जे के कारोबार करते हैं, या जो किसी राज्य की सत्ता पलटने की ताकत रखते हैं, उन लोगों को यह डर सताते ही रहता है कि उन पर नजर रखी जा रही है।
छत्तीसगढ़ में कुछ राजनीतिक ताकत वाले बड़े लोगों के फोन पर वॉट्सऐप लगातार खराब चल रहा है। कोई वॉट्सऐप कॉल जुड़ती नहीं है, और ऐसे में उन्हें मजबूरी में सिमकार्ड से कॉल करके बात करनी पड़ती है जिसे वॉट्सऐप जितना सुरक्षित नहीं माना जाता है। ऐसी नौबत में लोगों की दहशत दूर-दूर तक जा रही है, और लोग सिग्नल, टेलीग्राम, और भी कई तरह की मैसेंजर सर्विसों पर कॉल कर रहे हैं। कुछ लोग यह पता लगाने में लगे हैं कि अगर उनके आईफोन से फेसटाईम ठीक से नहीं लग रहा है, तो क्या किसी ने यह गड़बड़ इसलिए पैदा की है कि वे फेसटाईम से परे किसी दूसरी कॉल पर बात करें, और उसे रिकॉर्ड किया जा सके? जो जितनी अधिक ताकत की जगहों पर हैं, वे उतने ही अधिक आशंकित भी हैं।
भाजपा रणनीतिकार उम्मीद से हैं
आईटी डिपार्टमेंट हाल के छापों की अंतिम अपराइजल रिपोर्ट तैयार करने में जुटा है। चर्चा है कि बेनामी ट्रांजेक्शन के पुख्ता सबुत मिलने के बाद केस ईडी को ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके बाद एक-दो कारोबारियों की गिरफ्तारी भी हो सकती है। ईडी की संभावित कार्रवाई को लेकर अभी से कयास लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि ईडी की कार्रवाई, भाजपा के लिए बूस्टर डोज साबित हो सकती है, क्योंकि आईटी छापों से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। उल्टे इस मामले पर प्रेस कांफ्रेस लेने से पार्टी सवालों से घिर गई थी। अलबत्ता, बाकी राज्यों में आईटी-ईडी कार्रवाई से भाजपा को फायदा पहुंचा है। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकार उम्मीद से हैं।
मरकाम को दाद देनी पड़ेगी
मोहन मरकाम सीधे सरल माने जाते हैं। लेकिन राजनीतिक दांवपेच में पार्टी के बाकी बड़े नेताओं से कमतर नहीं है। इसकी झलक देखनी हो, तो आप प्रदेश प्रतिनिधियों की सूची पर नजर डाल लीजिए। आप पाएंगे कि ज्यादातर प्रतिनिधि मरकाम की सिफारिश से बने हैं। बताते हैं कि कुल 310 प्रतिनिधियों में से 204 प्रतिनिधि मरकाम की सिफारिश से बने हैं। बाकी प्रतिनिधि अन्य खेमे हैं।
चर्चा है कि मरकाम विरोधी खेमे ने डीआरओ-बीआरओ को साधने के काफी कुछ किया था लेकिन वही हुआ जो मरकाम चाहते थे। सीएम के कई करीबी नेता, और विधायक भी प्रतिनिधि बनने से रह गए। ऐसे में मरकाम को दाद देनी पड़ेगी। [email protected]
पुनिया निरूत्तर
प्रदेश कांग्रेस प्रतिनिधियों की नियुक्तियों पर विवाद बरकरार है। इस विवाद को एक तरह से हवा देना प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया को भारी पड़ गया। उन्हें प्रदेश कांग्रेस के सचिव विकास बजाज ने सबके सामने खूब सुना दिया।
हुआ यूं कि बजाज भी प्रदेश प्रतिनिधि बनाए गए हैं,और वो अपनी नियुक्ति के लिए प्रदेश प्रभारी पुनिया से मिलकर आभार प्रकट कर रहे थे कि पुनियाजी बोल पड़े कि आप लोगों के कारण ही कई विधायक प्रदेश प्रतिनिधि बनने से वंचित रह गए हैं। पुनिया का इतना कहना था कि बजाज फट पड़े, और कहा कि सब कुछ विधायकों को दे दोगे तो कार्यकर्ता क्या करेंगे?
विकास यही नहीं रूके, उन्होंने कहा कि मंत्री-संसदीय सचिव तो विधायक ही होते हैं। निगम-मंडलों को पद भी विधायकों को दिए जा रहे हैं। और अब संगठन में भी उन्हें रखा जाएगा तो 25-30 साल से पार्टी का काम कर रहे कार्यकर्ता कहां जाएंगे? वहां कई और नेताओं ने विकास के सुर में सुर मिलाया। इस पर पुनिया निरूत्तर रह गए।
मुलाकात छिपाकर रखी
छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी ओम माथुर का प्रदेश दौरा लंबा टल सकता है। उनके घुटने की सर्जरी होने वाली है। इसी बीच पार्टी के कई नेता उनसे मिल भी आए हैं।
बताते हैं कि पिछले दिनों माथुर से दिल्ली में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और अमर अग्रवाल की मुलाकात भी हुई है। दोनों माथुर से अलग-अलग मिलने पहुंचे थे। अमर ने तो अपनी तरफ से कई सुझाव दिए हैं।
इधर, कुछ नेताओं ने दोनों अग्र नेताओं की ओम माथुर से मुलाकात की जानकारी रमन सिंह को दी, तो वो भी थोड़े सोच में पड़ गए। क्योंकि अमर तो दिल्ली दरबार में मेल मुलाकात की बातें उनसे शेयर करते रहे हैं, लेकिन ओम माथुर से मुलाकात की बात छिपाकर रखी।
ओम माथुर को भाजपा के भीतर अलग टाइप को नेता माना जाता है। वो शिकवा शिकायतों को पूरी गंभीरता से लेते हैं। अब तक पार्टी संगठन में रमन सिंह की सिफारिशों को खास महत्व दिया जाता रहा है। ओम माथुर के आने के बाद भी क्या उनका वही दबदबा रहेगा, यह देखना है।
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