राजपथ - जनपथ
एक भीतर, एक बाहर
बिलासपुर सांसद अरुण साव की प्रदेश भाजपा कोर ग्रुप में बैकडोर एंट्री हो गई। साव ने दो दिन पहले कोर ग्रुप की बैठक में हिस्सा भी लिया। बताते हैं कि साव पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। इसलिए उन्हें कोर ग्रुप में जगह मिली है। मगर राष्ट्रीय कार्यकारिणी के स्थायी आमंत्रित सदस्य अजय चंद्राकर को कोर ग्रुप में नहीं लिया गया।
चर्चा है कि अरुण साव को कोर ग्रुप में लेने के लिए सभी नेता एकमत थे। प्रदेश की अनुशंसा पर हाईकमान ने साव के नाम पर मुहर लगा दी, लेकिन मीडिया में जारी नहीं किया गया। सिर्फ कोर ग्रुप सदस्यों को सूचना दी गई। इससे परे अजय को कोर ग्रुप में लेने का कोर ग्रुप के एक सदस्य ने कड़ा विरोध किया था। इस वजह से अजय कोर ग्रुप का हिस्सा बनने से रह गए।
दोनों पार्टियों में तनातनी
कांग्रेस में टीएस सिंहदेव, जयसिंह अग्रवाल के तेवर से हलचल मची हुई है, लेकिन भाजपा का हाल और भी बुरा है। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई को लेकर ट्वीट क्या किया, उन्हीं के पार्टी के कई नेता उनसे असहमत दिख रहे हैं।
प्रदेश भाजपा आईटी सेल के सदस्य रहे, और एबीवीपी के पूर्व संयोजक देवेन्द्र गुप्ता ने तो ट्विटर पर रमन सिंह को जमकर खरी खोटी सुनाई। उन्होंने रमन सिंह को टैग करते हुए ट्वीट किया कि डॉ. रमन सिंह साहब बिल्कुल सही कहा आपने, वाकई प्रदेश में सरकार नहीं, सर्कस चल रहा है। वैसे उनकी छोडि़ए, वो तो आपस में निपट लेंगे। पहले आप अपने गिरेबान में झांकिए। मेरी तरह लाखों लोग आपको इस सर्कस का हिस्सा मानते हैं। मेरी नजरों में आप उन सर्कस के सिंह, और भूपेश बघेल रिंग मास्टर हैं। और हमें पता है कि आपको रिंग मास्टर भूपेश बघेल के हंटर से डर लगता है। मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि तीन साल में 52 हजार करोड़ कर्ज लेकर घी पीती हुई भ्रष्टतम सरकार के खिलाफ जमीनी लड़ाई लडऩे में आप और आपकी फौज घबराती है। थरथर कांपती है। जनता समझ रही है साहब। आपके अधीन थके हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय और धरमलाल कौशिक, विपक्षी धर्म का पालन भी नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा को वोट देने वाले तो अब माथा पकडक़र बैठ गए हैं। वो भी सोच रहे होंगे कि किन कायरों पर भरोसा जता बैठे हैं।
सीसीएफ को मंत्री की नसीहत
हाल ही में दुर्ग सीसीएफ नियुक्त हुए बीपी सिंह को अपने व्यवहार में सुधार करने की विभागीय मंत्री से मिली नसीहत राज्य के वन अमले में चर्चा का विषय बन गई है। सीसीएफ पद पर पदोन्नत होकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृहक्षेत्र का जिम्मा सम्हालने के बाद वनमंत्री मोहम्मद अकबर से सौजन्य भेंट के लिए गुलदस्ता लिए सरकारी बंगले में पहुंचे, सिंह को इस बात का गुमान नहीं था कि उन्हें पहली सौजन्य भेंट में मंत्री से बर्ताव सुधारने की नसीहत मिलेगी। सुनते हैं कि दुर्ग सीसीएफ के तौर पर पदस्थ हुए बीपी सिंह के पूर्व प्रशासनिक कार्यकाल को देख चुके अफसरों ने विभागीय मंत्री से आपसी संवाद और आचरण के तौर-तरीके को लेकर शिकायत की।
बताते हैं कि सिंह की पदस्थापना के दौरान वन मंत्री राज्य से बाहर थे। उनकी वापसी के बाद सामान्य मुलाकात के लिए सिंह पिछले दिनों मंत्री से मिले। विभागीय मंत्री से भेंट करने के दौरान परिचय सुनकर सिंह को आदत-व्यवहार को दुरूस्त करने सीख मिली। विभागीय मंत्री के शब्दों को सुनकर वे पूरी तरह से झेंप गए। यह भी चर्चा है कि दुर्ग के कुछ डीएफओ उनकी पोस्टिंग को लेकर हैरान भी हैं। व्यवहार सुधारने की नसीहत सुनकर सीसीएफ सिंह को पहली भेंट में समझ में जरूर आ गया होगा कि मंत्री को अपने अधीनस्थ अफसरों की पूरी खबर है।
पुराने महल पर भगवा झंडा..
सारंगढ़ छत्तीसगढ़ का यह पुराना महल है, जो मध्यप्रदेश के एकमात्र आदिवासी मुख्यमंत्री का निवास था। कुछ दिनों से इस परिसर में कुछ शरारती तत्वों को भीतर घुसते देखा गया। आज महल के शीर्ष पर भगवा रंग का झंडा लहराने लगा है। उनका पुराना झंडा गायब हो गया है। यह एक सदी से अधिक समय तक विधानसभा और संसद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाला सम्मानित परिवार रहा है। नरेश सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भी काम किया। इस पर परिवार की कुलिशा मिश्रा इस समय अखिल भारतीय युवक कांग्रेस में सचिव पद पर सक्रिय हैं। परिवार का कहना है कि हमने स्थानीय प्रशासन और पुलिस को इसकी शिकायत की, पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
सुनकर सीएम मुस्कुरा दिए...
तपती धूप में प्रदेश दौरे पर निकले सीएम भूपेश बघेल सूरजपुर जिले के दुर्गम पहाडिय़ों के पीछे बसे छोटे से कस्बे के आदिवासी किसान की जागरूकता देख उस वक्त चकित रह गए, जब उन्होंने किसान की समस्या पूछी। किसान ने बताया कि उन्हें राशन लेने के लिए 16 किमी पहाड़ चढकऱ कुदरगढ़ आना पड़ता है। यदि रास्ता खराब हो, तो 35 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। किसान का कहना है कि यदि आश्रित गांव घुड़ई में उनका नाम जोड़ दिया जाए, तो राशन लेने में सहूलियत होगी।
आदिवासी किसान की समस्या सुनकर सीएम भी पसीज गए। उन्होंने कहा, आप लोगों को राशन लेने के लिए इतनी तकलीफ उठानी पड़ती है। आपने विधायक को समस्या क्यों नहीं बताई? इस पर आदिवासी किसान ने कहा कि विधायक को हम चुनते हैं। उन्हें हमारी समस्या की जानकारी लेनी चाहिए? यह सुनकर सीएम मुस्कुरा दिए, और कहा-आप एकदम ठीक बोल रहे हैं। आप लोगों ने मुझे भी चुना है। इसके बाद सीएम ने किसान का संबंधित गांव में नाम जुड़वा कर तुरंत राशन कार्ड बनाने के निर्देश दिए।
गौठान में लापरवाही पर सीएम खिन्न
सीएम अपने दौरे में लापरवाह अफसरों पर तुरंत कार्रवाई कर रहे हैं। घंटेभर के भीतर जिम्मेदार अफसर-कर्मियों का निलंबन ऑर्डर निकल जा रहा है। इतनी तेजी से कार्रवाई पहले कभी नहीं हुई। वन क्षेत्रों में गौठान योजना में लापरवाही पर सीएम काफी खिन्न नजर आए।
उन्होंने गौठान के निरीक्षण के दौरान हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी से फोन पर बात की, और उनसे कहा कि प्रदेश के सभी डीएफओ को गौठानों का निरीक्षण करने भेजें, और इसका फोटो भी मंगवाए। सीएम के तेवर देखकर कलेक्टर भी हड़बड़ाए हुए थे।
एक कलेक्टर ने तो चालाकी से शिकायत-आवेदन खुद एकत्र कर लिए थे। ताकि सीएम तक पहुंच न पाए। फिर भी सीएम लोगों तक पहुंच गए, और उनसे चर्चा कर शिकायतों का तुरंत निराकरण भी किया।
मंत्री के सामने मोर्चे पर विधायक!
प्रदेश के एक ताकतवर मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने अपने जिले कोरबा की कलेक्टर के खिलाफ एक अभूतपूर्व मोर्चा खोला है और इस राज्य में किसी अफसर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए ऐसा सार्वजनिक हमला किसी मंत्री द्वारा पहली बार किया गया है। लेकिन कलेक्टर की कुर्सी कम ताकत की नहीं होती, और फिर कोरबा का कलेक्टर का दफ्तर प्रदेश में किसी भी कलेक्टर दफ्तर से अधिक ताकत रखता है। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि कोरबा जिले के कुछ कांग्रेस विधायक अब कलेक्टर के पक्ष में मुख्यमंत्री को चि_ी लिखने जा रहे हैं कि कलेक्टर बहुत अच्छा काम कर रही हैं, और उन्हें न हटाया जाए। झगड़ा कांग्रेस पार्टी के भीतर मंत्री और विधायकों के बीच खड़ा किया जा रहा है. आखिर प्रशासन चलाने वाले अफसर कम चतुर तो रहते नहीं। कोरबा की कलेक्टर रानू साहू की चतुराई के किस्से बहुत से हैं, बालोद जिले से लेकर कोरबा तक।
खलनायकों पर भी पुलिस मेहरबान!
लोगों के बीच नियमों को लेकर किस तरह का दुस्साहस है यह देखना हो तो छत्तीसगढ़ में गाडिय़ों की नंबर प्लेट देखनी चाहिए। राजधानी रायपुर में रात-दिन ऐसी गाडिय़ां दौड़ती हैं जिन पर कोई नंबर प्लेट नहीं लगी है, और उनकी अंधाधुंध और लापरवाह रफ्तार के शिकार लोग उनके खिलाफ रिपोर्ट भी नहीं लिखा सकते। ऐसा भी नहीं कि ये गाडिय़ां चौराहों से दूर रहती हैं, लेकिन ऐसी गाडिय़ों पर तीन-चार लोग भी सवार रहें, और इनका साइलेंसर भी फोड़ा हुआ रहे, तब भी पुलिस के चेहरे पर शिकन नहीं दौड़ती। अभी एक महंगी मोटर साइकिल ऐसी देखने मिली जिसकी नंबर प्लेट की जगह विलन लिखा हुआ था। अंग्रेजी के हिज्जे गलत थे, लेकिन हरकत और मतलब दोनों ही खलनायक की तरह के थे। अब नंबर प्लेट की जगह विलन लिखा हुआ हो, और पीछे की तरफ से देखें तो यह दिखे कि नंबर प्लेट को उल्टा लगा लिया गया है, फिर भी ऐसे खलनायक सडक़ों पर घूम रहे हैं, और कार्रवाई करने को कोई नहीं हैं। ऐसा ही दुस्साहस आगे चलकर कई किस्म की गुंडागर्दी और जुर्म में तब्दील होता है।
मोदी के चेहरे पर छत्तीसगढ़ में चुनाव?
सन् 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने किसी एक चेहरे को सामने नहीं किया था। कांग्रेस में आई दरार और तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कामकाज को आधार बनाकर उसने चुनाव लड़ा। उस समय पार्टी में रमेश बैस, नंदकुमार साय, दिलीप सिंह जूदेव और डॉ. रमन सिंह के बीच फैसला होना था। दिल्ली से शीर्ष नेताओं का फैसला आया और डॉ. रमन सिंह सर्वसम्मति से नेता चुने गए। 2008 के चुनाव में डॉ. सिंह का नाम स्वमेव मुख्यमंत्री के लिए तय कर लिया गया। 2013 और 2018 में भी यही हुआ। 2018 तक केंद्र में सरकार बदल चुकी थी और नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता बन चुके थे। पर छत्तीसगढ़ में चेहरा डॉ. रमन सिंह ही रहे। जिस बुरी तरह से कांग्रेस ने 2018 में भाजपा को शिकस्त दी, उसने भाजपा को अब तक सोच में डाल रखा है। प्रदेश भाजपा प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी ने कल फिर एक बार मुख्यमंत्री के चेहरे पर किए गए सवाल का जवाब दिया। उन्होंने दुर्ग में कहा कि केंद्रीय नेतृत्व करेगा कौन चेहरा होगा। इसके पहले जगदलपुर में वे कह चुकी हैं कि किसी एक चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा जाएगा। इधर बिहार के मंत्री जो प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी हैं, उन्होंने बिलासपुर में कहा कि छत्तीसगढ़ का चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। लगता है कि प्रभारी की जगह, सह प्रभारी की बात ही सच्चाई के ज्यादा निकट है। भाजपा में नए चेहरे को घोषित करना ठीक उसी तरह कठिन है जिस तरह 2018 में कांग्रेस के लिए था।
ट्विटर पर हसदेव का ट्रेंड
बीते एक सप्ताह से ट्विटर पर हसदेव ट्रेंड कर रहा है। एक दर्जन से अधिक हिंदी, अंग्रेजी हैश टैग देश विदेशों से हैं, जिनमें हसदेव को कोयला खनन से बचाने के लिए अपील और पोस्टर हैं। इनमें कल्पनाशीलता भी खूब है, जो ध्यान खींच रही हैं।
बलरामपुर में रामपुराण
तपती धूप में प्रदेश के दौरे पर निकले सीएम भूपेश बघेल सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही पर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रहे हैं। और जब सीएम ने सूरजपुर डीएफओ मनीष कश्यप को निलंबित किया, तो हडक़ंप मच गया। पहली बार मंच से किसी ऑल इंडिया सर्विस के अफसर के खिलाफ कार्रवाई हुई है।
कश्यप के खिलाफ ज्यादा कुछ तो नहीं था। लेकिन गोठान योजना में गड़बड़ी के लिए उन्हें भी जिम्मेदार माना गया। सरकार ने गोठान बनाने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि गोठान पांच हेक्टेयर से कम जमीन पर नहीं बनना चाहिए। मगर सूरजपुर में एक हेक्टेयर में ही गोठान बनाए गए। इसमें भी अनियमितता पाई गई। हालांकि यह निर्माण डीएफओ कश्यप के आने के पहले हुआ था। लेकिन उनकी गलती सिर्फ इतनी ही थी कि योजना की समीक्षा नहीं कर पाए थे, और सीएम के सवालों का ठीक-ठीक जवाब नहीं दे पाए। ऐसे में कार्रवाई तो होनी ही थी।
इसी तरह बलरामपुर-रामानुजगंज में ईई उमाशंकर राम को मौके पर ही सस्पेंड किया गया, तो हर कोई चौंक गए। राम, तेज तर्रार विधायक बृहस्पत सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है कि राम के खिलाफ भ्रष्टाचार के सारे मामलों को एकत्र कर दिया जाए, तो ‘राम पुराण’ बन जाएगा। बृहस्पत सिंह के प्रभाव के चलते सिंचाई मंत्री रविन्द्र चौबे भी कार्रवाई से परहेज कर रहे थे, लेकिन सीएम ने गड़बड़ी पकड़ी, तो उन्होंने मंच से ही ईई राम सस्पेंड कर दिया। खास बात यह रही कि सस्पेंशन की घोषणा के दौरान बृहस्पत सिंह मंच पर ही मौजूद थे, और वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सके।
गेहूं के साथ घुन पिसा...
डीएफओ मनीष कश्यप को सूरजपुर आए दो माह ही हुए थे। इससे पहले वो भानुप्रतापपुर डीएफओ थे। चर्चा है कि मनीष कश्यप ने सूरजपुर पोस्टिंग के लिए सारे राजनीतिक प्रपंचों का इस्तेमाल किया था। सूरजपुर वनमंडल का बजट अच्छा खासा है। ऐसे में यहां की मलाईदार पोस्टिंग के लिए डीएफओ लालायित रहते हैं।
सुनते हैं कि सूरजपुर के लिए सरकार के दो मंत्रियों ने कोई और नाम दिए थे, लेकिन कश्यप सब पर भारी पड़े। अब जब कार्रवाई हुई है, तो वहां पोस्टिंग पाने से वंचित रहने वाले अफसर सुकून महसूस कर रहे हैं। इससे परे इसी योजना में लापरवाही के लिए जिस एसडीओ को सस्पेंड किया गया है, वो भी सरकार के एक ताकतवर मंत्री के करीबी माने जाते हैं। एसडीओ ने तो छह महीने तक किसी डीएफओ की पोस्टिंग नहीं होने दी थी, और खुद डीएफओ के प्रभार पर थे। अब जब गड़बड़ी निकली, तो पद से हटने के बावजूद भी बच नहीं बन पाए।
माओवादियों से बातचीत की बात चली..
बस्तर में माओवादी हिंसा खत्म करने के लिए कई बार केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से प्रस्ताव रखा गया है। और हर बार इसका उत्तर भी दूसरी ओर से आया। इस बार भी मुख्यमंत्री ने मीडिया से चर्चा के दौरान जब कहा कि सरकार बात करने के लिए राजी है, तो भी एक जवाब जारी हो गया। उनके प्रवक्ता ने कहा कि माओवादी पार्टी, पीएलजीए और अन्य संगठनों पर लगाये गए प्रतिबंध हटाएं। हवाई हमले बंद करें, बस्तर से कैंप और फोर्स को वापस भेजें, जेलों में बंद उनके नेताओं को रिहा करें। जाहिर है, सरकार इन मांगों को ऐसे ही स्वीकार नहीं करेगी। ज्यादा मुमकिन है एक बार फिर बातचीत की पेशकश सिर्फ खबरों तक सीमित रह जाए।
अब तक वैसे अपहरण के मामलों में तो मध्यस्थता होती रही है। स्वामी अग्निवेश नक्सलियों से बातचीत के बड़े पक्षधर थे। तालमेटड़ा मामले की न्यायिक जांच के दौरान उन्होंने बताया था कि यूपीए सरकार में तब के गृह मंत्री पी. चिदंबरम् नक्सलियों से बातचीत करने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे थे और वे उनको मध्यस्थ बनाना चाहते थे। स्वामी अग्निवेश सरकार के प्रयासों को पर्याप्त नहीं मानते थे। वे बस्तर की स्वायत्तता के पक्षधर थे। अब स्वामी अग्निवेश हमारे बीच नहीं हैं। आध्यात्मिक गुरु श्रीरविशंकर ने एक बार कहा था कि सरकार चाहे तो वे नक्सलियों को शांति के लिए तैयार करने उनके बीच जा सकते हैं। सुकमा में तब के कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के लिए वहां के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम और कुछ शांति के पक्षधर सामाजिक कार्यकर्ताओं से मदद ली गई थी, जिनके नाम पर माओवादी सहमत हुए थे।
देश के कई हिस्सों में उग्रवाद की समस्या रही है। पूर्वोत्तर में यह समस्या काफी हद तक हल भी हुई। पंजाब के अलगाववादियों, पूर्व के नगा और मिजो की हलचलों के दौरान शांति वार्ताओं में सीधे सरकार की भूमिका कम रही। या तो ब्यूरोक्रेट्स की व्यक्तिगत पहल काम आई या सामाजिक कार्यकर्ताओं की कोशिश। दस्यु गिरोहों से जयप्रकाश नारायण ने हथियार डलवाए थे। इन सबको शांति का रास्ता निकालने में काफी वक्त लगा।
बस्तर के माओवादी हिंसा को भी 40 साल से अधिक हो गए हैं। पर बातचीत की गंभीर कोशिश अब तक नहीं हुई है। ताजा मामले में लगता है कि उन्होंने बातचीत के लिए मिले प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देने की औपचारिकता पूरी की है। सरकार की ओर से भी जरूरी है कि जो गैर राजनीतिक लोग जिनमें पूर्व नौकरशाह, सामाजिक कार्यकर्ता, मीडिया के लोग या स्थानीय प्रभाव रखने वाले लोग हों उनके माध्यम से वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश करके देख ले।
अब अडानी के समर्थन में पोस्टर
सोशल मीडिया पर हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक का आवंटन निरस्त करने और पेड़ों की कटाई के लिए देशभर में हो रहे आंदोलनों के बीच सोशल मीडिया पर आई यह तस्वीर भी आपका ध्यान खींच सकती है। दो लोग पोस्टर लेकर खड़े हैं और कोल ब्लॉक को खोलने तथा बाहरी लोगों को भगाने की मांग कर रहे हैं। वे किन बाहरी लोगों को भगाने की बात कर रहे हैं, यह जरा भ्रामक है। शायद उनका आशय अडानी की कंपनी से नहीं है, क्योंकि वहां के कुछ हिस्सों पर उनका कोयला खनन पहले से जारी है। अडानी को सरगुजिहा और छत्तीसगढिय़ा मान रहे होंगे।
महंगाई भत्ता बढऩे की खुशी-नाखुशी
राज्य के वित्त विभाग ने हाल में एक निर्देश जारी कर अधिकारी, कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 5 प्रतिशत बढ़ा दिया। अधिकारी-कर्मचारी संगठनों ने इसे कम मानते हुए भी आम तौर पर खुशी जाहिर की। पर जब आदेश की बारीकी पर लोगों ने ध्यान दिया कि भत्ते की कौन सी किश्त दी जाएगी, किस तिथि से दी जाएगी। वर्ष 2020 से वे इसकी प्रतीक्षा में थे। अब तक जो नहीं मिल सका, क्या वह मिलेगा? पहले जो आदेश जारी होते थे, आम तौर पर उनमें लिखा होता था कि घोषित भत्ते की राशि कब से लागू मानी जाएगी और एरियर की राशि का किस तरह से भुगतान किया जाएगा। फिर भी प्रदेश के चार लाख कर्मचारियों के लिए यह घोषणा थोड़ी राहत देने वाली तो है। हो सकता है अगले आदेश में लागू करने और एरियर के बारे में भी बता दिया।
पुलिस गौर करेगी शिकायत पर?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पब में नजर आते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। कई भाजपा नेताओं ने इसे अपने ट्विटर हैंडल पर भी डालते हुए कमेंट किए हैं। बताया जाता है कि ये तस्वीर नेपाल की है, पर आरोप के मुताबिक इसके दिल्ली के कपिल मिश्रा और कुछ अन्य ने चीन का बताते हुए टिप्पणियां की हैं। एक ट्वीट यह भी है कि राहुल गांधी चीन के एजेंटों के साथ हैं क्या? क्या उनके दबाव में ही वे सेना के खिलाफ टिप्पणी करते हैं।
छत्तीसगढ़ में यह मामला ज्यादा चर्चा में इसलिए आ गया है, क्योंकि मंत्री टी एस सिंहदेव ने जगदलपुर में इस मुद्दे को लेकर कोतवाली में लिखित शिकायत दी है। ऐसा कम ही होता है कि मंत्री को कोई शिकायत करने खुद थाना जाना पड़े। और ऐसा भी नहीं होता कि मंत्री थाने में कोई शिकायत करे और पुलिस उसे पकड़ कर बैठ जाए। पहले ऐसे मामलों में कांग्रेस पदाधिकारियों तक की शिकायत पुलिस ने बिना देर लगाए दर्ज की है। थानेदार की राजनीतिक समझ को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। उनको यह भी तो दिखा होगा कि दंतेवाड़ा और जगदलपुर में मंत्री के दौरे पर कलेक्टर, एसपी नदारत रहे।
हड़ताल लम्बी खिंच रही
महात्मा गांधी नरेगा के मजदूरों का हिसाब रखने वाले रोजगार सहायकों की हड़ताल को एक माह पूरे हो गए हैं। दूर दूर से पैदल चलकर इस वे राजधानी पहुंचे थे। उनको उम्मीद थी कि बात सुन ली जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ। इस गर्मी में जब गांव के लोगों के पास काम नहीं होता, मनरेगा बड़ा सहारा होता है। पर इस हड़ताल के कारण यह व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई है। इन रोजगार सहायकों का वेतन फिक्स है। 6000 रुपए। इनमें से कई तो 10-15 सालों से काम कर रहे हैं। बहुत लोगों ने समय पर तनख्वाह नहीं मिलने के कारण नौकरी ही छोड़ दी है। केंद्र ने प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि राज्य सरकार का अंशदान नहीं मिलने के कारण पहले से वापस ले लिया है। कुल मिलाकर ग्रामीण रोजगार से जुड़ी दोनों महत्व की योजनाओं का बुरा हाल है।
विरोध की लपट दूर तक
हसदेव अरण्य को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ से बाहर देश के महानगरों में और विदेशों में विरोध प्रदर्शन की खबरें तो आई हैं, पर यह दृश्य यूपी के एक छोटे शहर सीतापुर का है, जहां लोगों ने कोल ब्लॉक मंजूरी को लेकर कलेक्ट्रेट के सामने विरोध जताया और राष्ट्रपति के नाम पर ज्ञापन सौंपा।
सिंहदेव के अलग दौरे का संदेश
सीएम भूपेश बघेल के साथ ही स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी जिलों का दौरा शुरू किया है। वैसे आज से चार मंत्री निकले हैं। स्वास्थ्य संभवत: शिक्षा विभाग के बाद सबसे बड़ा महकमा है। खासकर बस्तर जैसे जिलों में तो सुलभ स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना चुनौती है, जहां नक्सल समस्या भी है। यूपीए सरकार ने एक नीति बनाई थी कि सभी जिला मुख्यालयों में एक मेडिकल कॉलेज होना चाहिए। एनडीए सरकार ने भी इसको आगे बढ़ाया। पर बस्तर में स्थिति बेहतर नहीं है। दंतेवाड़ा में मेडिकल कॉलेज खोलने की जरूरत है, पर अब तक उस पर काम आगे बढ़ नहीं पाया है। सबसे बड़ी दिक्कत बस्तर जैसी जगह पर काम करने के लिए डॉक्टरों को तैयार करना है। किरंदुल, भोपालपत्तनम, बीजापुर जैसी जगहों पर कई डॉक्टरों ने जगदलपुर, रायपुर में अटैचमेंट करा रखा है। डॉक्टरों की संख्या कम होने के कारण उन पर ज्यादा सख्ती बरती भी नहीं जाती।
ये तो हुई स्वास्थ्य समस्या की बात, पर सिंहदेव का अलग दौरा करने के कुछ राजनीतिक मायने हैं। जिनमे एक है अपने समर्थकों को जोड़े रखना। यह अलग बात है कि नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा अब थम चुकी है पर बकौल सिंहदेव ही कहें तो संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती, परिवर्तन संसार का नियम है।
एक और टास्क दिया सीएम ने
एक मई को बोरे बासी खाने आह्वान सबने इतना पसंद किया कि सोशल मीडिया पर अधिकारियों नेताओं में इसे खाते हुए फोटो डालने की होड़ मच गई। यकीनन उनमें से कुछ लोगों का मन इसे दैनिक आहार में शामिल करने का होगा। इधर कुसमी प्रवास के दौरान सीएम से स्वामी आत्मानंद इंग्लिश स्कूल की एक छात्रा ने उनकी फिटनेस का राज पूछ लिया। सीएम ने बताया किसानी, तैराकी और योग।
अफसर जो बासी बोरे खाते दिखे वे योगा करते तो दिख जायेंगे, मान लिया स्विमिंग भी करते दिख जायेंगे पर किसानी करते कैसे शो कर पाएंगे।
आखेट पर निकला मछुआरा, चार बांस की लकडिय़ों को ट्यूब पर रखकर बैठेगा, और फिर मछलियों का करेगा शिकार। बैकुंठपुर कोरिया जिले की एक तस्वीर।
असर होगा इन आंदोलनों का?
हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक की मंजूरी ने पूरे प्रदेश में पर्यावरण प्रेमियों को विचलित कर दिया है। क्या बस्तर, क्या सरगुजा, रायगढ़ हर जगह पर्यावरण प्रेमी आंदोलन कर रहे हैं। चारामा में छात्रों ने पोस्टर अभियान चला रखा है। दिलचस्प यह है कि हाईकोर्ट ने रातों-रात पेड़ कटाई को गलत मानते हुए सफाई मांगी है। पर्यावरण से जुड़ी केंद्र की एजेंसियों ने भी सरकार को जवाब दाखिल करने कहा है। सरगुजा और कोरबा के सांसदों ने इस मंजूरी के खिलाफ आवाज उठाई है। इन सब पर भारी पड़ रही है अदानी की कंपनी जिसने न केवल राजस्थान सरकार बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार को अपने हक में फैसला करने के लिए मजबूर कर दिया है।
बेखौफ गांजा तस्करी क्यों?
पिछले दिनों गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में 3 करोड़ रुपये का गांजा पकड़ा गया। अभी जशपुर से 11 लाख रुपये का गांजा पुलिस ने जब्त किया। सीमावर्ती जिलों से विशेषकर ओडिशा से वाहनों में भारी मात्रा में रोजाना गांजे की तस्करी की जा रही है। सब छत्तीसगढ़ में नहीं खपाया जाता। छत्तीसगढ़ के रास्ते से इन्हें यूपी, बिहार और दिल्ली तक भेजा जाता है। पुलिस रोजाना कार्रवाई कर रही है पर यह तस्करी रुकती क्यों नहीं है? एक आला अफसर का कहना है कि 1985 की एनडीपीएस की धारा में वैसे तो सजा मामले की गंभीरता के हिसाब से 20 साल तक भी है पर ज्यादातर मामले एक साल या ज्यादा से ज्यादा 3 साल की सजा वाले ही बन पाते हैं। एकाध हफ्ते में आरोपियों को जमानत भी मिल जाती है। जमानत से पहले ही जेल में रहना एक सजा है बाकी तो फैसला आते तक गवाह मुकर जाते हैं, सबूत नष्ट हो जाते हैं। तो..पुलिस गांजा तस्करी में हाल-फिलहाल तो उलझी रहेगी और जल्दी इस पर रोक लगने की कोई उम्मीद नहीं दिखती।
बोरे-बासी फेस्टिवल...
छत्तीसगढ़ में तमाम तरह के व्यंजन हैं, जिन्हें तलना, भूनना और छौंक लगाना पड़ता है। पर बोरे-बासी में ऐसा कुछ नहीं है। शाम का बचा चावल पानी में भिगो दें और सुबह उसका पानी निकालकर नए पानी में चुटकी भर नमक डालकर खा लें। कुछ ज्यादा रसीला बनाना है तो प्याज और अचार के टुकड़े भी डाल सकते हैं। यह पीढिय़ों से हर छत्तीगढिय़ा के घर में होता आया है पर सीएम ने मजदूर दिवस पर आह्वान कर इसे फेस्टिवल बना दिया। क्या कलेक्टर, क्या एसपी- सब के सब बोरे-बासी के साथ फोटू खैंच कर सोशल मीडिया पर डाल रहे थे। मलाई खाने वालों ने भी कम से कम इस एक दिन तो बासी खाया।
आलोचक चाहे जो कहें किंतु सीएम भूपेश बघेल ने जिस तरह से छत्तीसगढ़ के आम-आदमी, खासकर मैदानी इलाकों की जरूरतों पर खुद को फोकस किया है, उसका हाल-फिलहाल भाजपा के पास जवाब नहीं है। सीएम ने लगभग उन सभी उत्पादों को समर्थन मूल्य के दायरे में ला दिया है जिन्हें आदिवासी, दूसरे किसान उगाते या इक_ा करते हैं। धान की खरीदी पर उनका वादा कायम है। राम वन-गमन पथ को संवारने का उनका काम ऐसा है जिसे 15 साल की सरकार में भाजपा भी कर सकती थी क्योंकि राम उनकी राजनीति में शामिल है।
अब यूपी में गोबर खरीदी...
गोबर खरीदने की छत्तीसगढ़ सरकार की योजना का पहले बड़ा मजाक बना था। भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया थी कि पढ़े-लिखे नौजवानों को गोबर बीनने के काम में लगा दिया गया है। पर गोबर का उत्सर्जन फालतू नहीं है। इसे ईंधन के तौर पर बरसों-बरस से गांवों में लोग इस्तेमाल करते आ रहे थे। जब से इसे खऱीदने की योजना लाई गई लोगों ने इसे अच्छी तरह सहेजना शुरू कर दिया। दूसरे राज्यों की बात करें तो भाजपा शासित मध्यप्रदेश में गोबर खरीदने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल से पास हो चुका है। अब यूपी में इस बारे में फैसला लिया गया है। वहां के पशुधन मंत्री ने घोषणा की है कि गोबर खरीदी की जाएगी। यूपी के लिए यह छत्तीसगढ़ से ज्यादा जरूरी था। गोबर के लिए अब आवारा घूमते पशुओं को बांधकर रखा जाएगा। आवारा पशुओं का विचरण वहां इतनी बड़ी समस्या रही है कि चुनाव के नतीजों पर भी असर पडऩे का अंदेशा था। पीएम नरेंद्र मोदी को भी इस बारे में अपनी चुनावी सभाओं में आश्वासन देना पड़ा था। यूपी मं डेढ़ रूपये किलो दर तय किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार को देखना होगा कि कहीं गोबर की तस्करी न हो, क्योंकि यहां 50 पैसे ज्यादा यानि 2 रुपये किलो दाम तय किया गया है।
विरोधी रायता फैला चुके हैं...
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल शंकर नगर स्थित सरकारी बंगले को छोडकऱ बिना शोर-शराबे के मौलश्री विहार के पीछे अपने निजी बंगले में शिफ्ट हो गए हैं। शंकर नगर का बंगला अब उनके कार्यालय के रूप में उपयोग में आ रहा है।
शंकर नगर का सरकारी बंगला उन्हें पहली बार मंत्री बनने के बाद आबंटित किया गया था। तब से वो वहां रह रहे थे। सरकार बदली, तो भी उनसे मंत्री बंगला वापस नहीं लिया गया। बृजमोहन के सरकारी बंगला नहीं छोडऩे पर पार्टी में दबे स्वर में काफी कुछ कहा गया, और पार्टी के भीतर विरोधी उनकी सरकार के साथ सांठगांठ के तौर पर प्रचारित करते रहे। बताते हैं कि बृजमोहन की पत्नी को आंखों की समस्या है, और इस वजह से ही सरकार से बंगला न खाली कराने का आग्रह किया था। सरकार ने उनकी सीनियरटी और पारिवारिक वजह के चलते बंगला नहीं कराया। अब उसी डिजाइन का खुद का बंगला तैयार हो गया, तो वो उसमें चले गए हैं। मगर पार्टी के भीतर विरोधी काफी कुछ रायता फैला चुके हैं। देखना है कि बृजमोहन आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं।
इस सबसे पुराने विश्वविद्यालय में...
रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में मुआवजा केस के चलते कुलपति, कुलसचिव की गाडिय़ां कुर्क हुई, तो यह मीडिया में खासी सुर्खियां बनी। छत्तीसगढ़ के इस सबसे पुराने विश्वविद्यालय में अराजकता दिख रही है।
हल्ला है कि मुआवजा केस में कुछ बिल्डरों की भी दिलचस्पी रही है, और उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावितों का सहयोग किया। विश्वविद्यालय के कुछ लोगों का भी उन्हें साथ मिला है। बात यही खत्म नहीं होती। यह मामला सरकार के ध्यान में काफी देर से लाया गया। तब तक काफी कुछ हाथ से निकल गया।
चर्चा तो यह भी है कि मुआवजा केस को गंभीरता से लड़ा ही नहीं गया। और जब हाईकोर्ट से विश्वविद्यालय के खिलाफ में फैसला आया, तो एजी ऑफिस ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में केस की लिस्टिंग तक नहीं हो पाई। फिर क्या था संपत्ति कुर्क करने के आदेश जारी हो गए। आने वाले दिनों में और संपत्तियां कुर्क होंगी। देखना है कि अब सरकार इस मामले पर क्या कुछ करती है।
कुछ तो अदालत पर भी भारी...
ऐसा नहीं है कि लेन देन का वीडियो, ऑडियो वायरल हो तो सचमुच सजा ही दी जाती हो, अच्छे मौके भी मिल सकते हैं। फूड जैसा कमाई वाला महकमा हो तो फिर बात ही क्या है। दूरदराज के जिलों में यह और भी आसान है, क्योंकि राजधानी तक उनकी खबरें जल्दी मिल नहीं पातीं। बगीचा, जशपुर की फूड इंस्पेक्टर के खिलाफ उचित मूल्य दुकानदारों के संघ ने रिश्वत मांगने की शिकायत की। केवल शिकायत थी, लिया गया ऐसा कोई सबूत नहीं था। सच जो भी हो, शिकायत को गंभीरता से लेते हुए इस फूड इंस्पेक्टर चंपाकली दिवाकर को जशपुर जिला कार्यालय में अटैच कर दिया गया। दूसरी तरफ कांसाबेल की फूड इंस्पेक्टर रेणु जांगड़े का एक ऑडियो सामने आया जिसमें लेन देन की बात हो रही थी। कार्रवाई जरूरी थी। उनको चंपाकली की जगह पर बगीचा भेज दिया गया। राशन दुकान वाले खुश, क्योंकि चंपाकली से वे त्रस्त थे। उसने बगीचा के सभी 65 राशन दुकानों की जांच की थी और कई के स्टॉक में गड़बड़ी मिलने की रिपोर्ट बनाकर ऊपर एसडीएम को भेज दी थी। चंपाकली दिवाकर ने अपने अटैचमेंट के खिलाफ हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर लिया और दुबारा फील्ड में भेजने का आवेदन विभाग में लगाया। मगर ऐसा हुआ नहीं। राशन दुकान वालों से बयान लिया गया, चंपाकली दिवाकर के खिलाफ मामला बना और दुबारा बगीचा नहीं आ सकी। जो रिपोर्ट राशन दुकानों के स्टॉक में गड़बड़ी की है वह अब तक धूल खा रही है। बताते हैं इस मामले में दुकानदारों से करीब 40 लाख रुपए रिकवरी करने की अनुशंसा है।
प्रभारी सचिव करते क्या हैं?
हाल में जब छत्तीसगढ़ सरकार का आदेश निकला कि सभी 28 जिलों में नए प्रभारी सचिव बना दिए गए हैं, तब लोगों को पता चला यह भी कोई ओहदा होता है। हालत यह है की प्रभारी मंत्री भी महीनों तक जिलों में नहीं जाते और पहुंच भी गए तो जैसे खानापूर्ति करते हैं। सरकार जब चुनाव नजदीक आ रहा है तब सचिव की नए सिरे से नियुक्ति कर रही है। जब प्रभारी मंत्री कोई रुचि अपने जिलों में नहीं लेते हैं तो प्रभारी सचिव कितनी बार दौरा करेंगे और क्या-क्या बदल डालेंगे, विचार करने की बात है।
मजदूर दिवस पर बोरे बासी
क्या कलेक्टर, क्या एसपी- सबने कल मजदूर दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री के फरमान का एक मई को पालन किया। सब बासी खाते हुए खुश दिखे और फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर वायरल करते रहे। सीएम ने कल एक ही दिन के लिए कहा था, पर जिन मजदूरों के नाम पर यह बासी बोरे समर्पित किया गया उनके खान-पान तो यह रोजाना का हिस्सा है। चाहे कुछ भी हो बोरे बासी ने देश-विदेश में सुर्खियां बटोरी हैं।
इस तोड़ का तोड़ क्या है?
वन विभाग के अफसरों को समझना चाहिए कि उनका इंसानों से नहीं जानवरों से पाला पडऩा है। मुंगेली जिले के अचानकमार अभ्यारण में जगह-जगह अनावश्यक आवाजाही पर रोक लगाने के लिए बोर्ड लगाए गए हैं। समझदार मनुष्य तो इन नियमों का पालन कर लेता है, पर जानवरों का क्या। हाथियों ने ऐसे कई बोर्ड और बैरियर तोडक़र तहस-नहस कर दिए हैं। अब यह जंगल अफसर जो शहरों में बैठे रहते हैं क्या करें। जो जंगल में घुसना चाहते हैं उनके लिए हाथियों ने रास्ता खोल दिया है।
जनता की अदालत में मुकदमा
कल दंतेवाड़ा की एक महिला पटवारी का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक व्यक्ति मनुहार करते हुए रिश्वत की रकम कितना दिया जाए, पूछता है। महिला कहती है जो ठीक लगे दे दो। उसे रुपए मिलते हैं। उसे पहले अपनी टेबल पर छिपाती है और फिर बैग में रख लेती है। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद उसे सस्पेंड कर दिया गया है। कुछ दिन पहले मस्तूरी के नायब तहसीलदार को घूस के बतौर शराब की बोतल मांगते वीडियो सामने आने पर सस्पेंड किया गया। बिल्हा में एक हवलदार का वीडियो शूट कर सोशल मीडिया पर डाला गया, वह भी नप गया।
तीनों मामलों में एक बात समान दिखी कि रिश्वत देने वाले और पाने वाले के बीच बातचीत बड़ी विनम्रता से हो रही है। यानि सरकारी दफ्तरों में रिश्वत की मांग होती है तो कोई हंगामा नहीं करता, इसे सामान्य आचरण, या कहें शिष्टाचार माना जाता है। पर कोई भी व्यक्ति अपनी खुशी या मर्जी से अपने किसी जायज काम के लिए घूस नहीं देता। कुछ ज्यादा पीडि़त लोग एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत करते हैं और लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद घूसखोर को रंगे हाथ पकड़ा दिया जाता है।
लेकिन गोपनीयता के साथ रिश्वत देते समय का वीडियो बना लेना और फिर उसे वायरल कर देना अब तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। रिश्वत लेने का वीडियो एक पल में सोशल मीडिया के जरिए हजारों लोगों के बीच चला जाता है और अपनी नाक बचाने के लिए ऊपर के अफसरों को कार्रवाई करनी पड़ती है। ये एक ऐसा मुकदमा है जिसके तथ्यों, सबूतों के लिए वकील की जरूरत नहीं पड़ती, न ही लंबे कानूनी दांवपेंच की।
हो यह रहा है कि जो कर्मचारी पकड़ा जाता है, बस उसी के खिलाफ छड़ी घुमाई जा रही है। मलाई वाले विभागों में तो ऊपर तक हिस्सा पहुंचाए बिना कोई टिक नहीं सकता। क्यों न जिस विभाग के अदने कर्मचारी पकड़े जाते हैं उनके विभाग प्रमुख से भी जवाब लिया जाए कि किसकी शह पर ये सब गोरखधंधा चलता है।
हावड़ा ब्रिज पर गुटखे का वार..
कोलकाता पोर्ट अथॉरिटी की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि गुटखा खाकर थूकने की वजह से हावड़ा ब्रिज की मजबूती को खतरा हो गया है। लोगों को समझाने के लिए बोर्ड लगाए गए हैं, पर उसका कोई असर नहीं हो रहा है। अपने यहां सार्वजनिक भवनों को इस हमले से बचाने के लिए दीवारों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बना दी जाती है। कुछ हद तक इस प्रयोग से कामयाबी भी मिलती है। हावड़ा ब्रिज की देखभाल करने वाले इंजीनियरों को शोध करना चाहिए कि यह तरीका इस पिलर में भी अपनाया जा सकता है।
दो पाटों के बीच पिसते ग्रामीण
बीते सप्ताह अबूझमाड़ से ग्रामीणों का एक समूह नारायणपुर निकला, चिलचिलाती धूप में पैदल-पैदल। जिला मुख्यालय पहुंचकर कलेक्टर एसपी को ये ग्रामीण बताना चाहते थे कि नक्सलियों ने उनका जीना दूभर कर दिया है। वे गांव पहुंचते हैं, बंदूक दिखाकर चावल मांगते हैं। विकास कार्य और फोर्स का विरोध करने के लिए दबाव बनाते हैं। मगर, इन ग्रामीणों को बीच रास्ते में पुलिस ने रोक लिया और चार लोगों को हिरासत में ले लिया। कलेक्टर, एसपी से मुलाकात के लिए निकले ग्रामीणों को अपने साथियों को छुड़ाने के लिए थाने में डेरा डालना पड़ा। यह बड़ी अजीब स्थिति है कि बस्तर से ग्रामीण अगर समूह में कहीं भी निकले तो पुलिस को उनसे खतरा दिखने लगता है। ये ग्रामीण नक्सलियों से नाराजगी मोल कर उनकी शिकायत करने के लिए निकले थे, पर उन पर माओवादी होने का संदेह किया गया। अक्सर नक्सली उन्हें पुलिस का मुखबिर समझ कर प्रताडि़त करते हैं और पुलिस उन्हें माओवादियों का समर्थक मान लेती है। अविश्वास इस माहौल में नक्सल समस्या का अंत कैसे हो?
बीजेपी नेता बरसाती मेंढक?
आलोचनाओं की परवाह किए बिना प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा की बयानबाजी रुकती नहीं है। कुछ दिन पहले ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा था कि वे बस्तर की जमीन को खराब करके चले गए और यहां दिया कुछ नहीं। बीजेपी प्रभारी डी पुरंदेश्वरी को लेकर भी उनका बयान विवादों में आ गया था।
इस समय प्रदेश के मंत्री विभिन्न जिलों में सीएम के पहुंचने से पहले सरकारी योजनाओं का जायजा ले रहे हैं। लखमा भी दंतेवाड़ा के दौरे पर हैं। बीजेपी में आई सक्रियता को लेकर किए गए सवाल को लेकर उन्होंने कह दिया कि ये बरसाती मेंढक चुनाव आने पर टर्र टर्र कर रहे हैं। वैसे चुनाव के वक्त सक्रिय तो सभी दल हो जाते हैं। पर लखमा के बयान पर बीजेपी की प्रतिक्रिया आना बाकी है।
भाजपा 2023 के लिये तैयार...
कांग्रेस भाजपा दोनों खैरागढ़ विधानसभा उप-चुनाव को सेमी फाइनल मानकर चल रहे थे। तीन उपचुनावों में पराजय के बाद बीजेपी को यहां से काफी उम्मीद थी। केंद्रीय मंत्रियों और दूसरे राज्यों से मुख्यमंत्रियों को प्रचार में बुलाया गया, लेकिन नतीजे उलट आए। हार-जीत का अंतर भी कम नहीं था। खैरागढ़ के नतीजे ने बता दिया कि 2023 के लिए भाजपा की अब तक की तैयारी काफी नहीं है। किसानों और पिछड़े वर्ग के बीच यह सरकार मजबूत जगह बनाती दिख रही है, जिसका विकल्प भाजपा को ढूंढना है। सरकार के खिलाफ मुद्दे तो हमेशा रहते हैं, पर विपक्ष सडक़ पर दिखाई नहीं दे रहा है। विधानसभा और सोशल मीडिया में सक्रियता से मतदाताओं को रिझा पाना मुश्किल ही है। समय-समय पर खुलकर बोलने वाले नंद कुमार साय ने कुछ दिन पहले इसी तरह की बात कही भी थी।
15 साल तक प्रदेश में लगातार सरकार चलाने के बाद भाजपा प्रतिपक्ष के रूप में छाप छोडऩे में कुछ कमजोर पड़ रही है। संगठन के बुलावे पर डॉ रमन सिंह, विष्णुदेव साय, धरमलाल कौशिक आदि दिल्ली पहुंचे, बैठकें की। रमन सिंह ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से भी मुलाकात की।
इसके बाद सियासी गलियारे में यह चर्चा चलने लगी कि प्रदेश में बड़े पैमाने पर पार्टी के भीतर बदलाव किया जाएगा। हालांकि दिल्ली से लौटने के बाद प्रदेश के नेता इस बात से इंकार कर रहे हैं। नेतृत्व बदले ना बदले, ? फिलहाल रणनीति बदलना तो भाजपा जरूरी दिखाई देता ही है। दिल्ली में क्या सीख, समझाइश मिली इसका आकलन आगे के दिनों में किया जा सकेगा।
एक किलोमीटर लंबा तिरंगा?
मनरेगा में काम करने वाले रोजगार सहायक पिछले कई दिनों से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। अलग-अलग जिलों से उन्होंने पैदल मार्च किया और राजधानी पहुंचे। इसे उन्होंने दांडी मार्च का नाम दिया है। खास यह है कि वे अपने साथ जो तिरंगा लेकर चल रहे हैं उसे बताया जा रहा है कि उसकी लंबाई एक किलोमीटर है। लंबाई के इस दावे के पड़ताल की जरूरत हो सकती है, पर है यह काफी बड़ा।
अब अपने गृहप्रदेश से क्या...
आईपीएस के वर्ष-2013 बैच के अफसर जितेंद्र शुक्ला को अपने गृह राज्य उत्तरप्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए राज्य सरकार ने सहमति दे दी है। केंद्र की अनुमति के बाद जितेंद्र शुक्ला को रिलीव किया जा सकता है। शुक्ला वर्तमान में नारायणपुर बटालियन में पदस्थ हैं।
जितेंद्र शुक्ला सुकमा, महासमुंद, और नारायणपुर एसपी रहे हैं। जितेंद्र ने थोड़े समय में ही इन जिलों में अपनी विशिष्ट कार्यशैली से अलग पहचान बनाई। सुकमा में तो एसपी रहते जितेंद्र शुक्ला की मंत्री कवासी लखमा से एक टीआई की पोस्टिंग को लेकर कहा सुनी हो गई थी। इसके बाद उन्हें हटाकर पीएचक्यू पदस्थ किया गया।
हालांकि कुछ समय बाद महासमुंद, और फिर राजनांदगांव में पोस्टिंग मिली, लेकिन वो सरकार के रणनीतिकारों का भरोसा हासिल करने में कामयाब नहीं रहे। इसके बाद से उन्हें एक तरह से लूप लाइन में भेज दिया गया। अब अपने गृह प्रदेश से क्या कुछ कर दिखाते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
पीए की उम्मीदवारी
खबर है कि केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह से अंबिकापुर के भाजपा के बड़े नेता खफा हैं। कहा जा रहा है कि रेणुका सिंह, अपने पीए गोपाल सिन्हा को अंबिकापुर विधानसभा सीट के लिए प्रमोट कर रही हैं। वो गोपाल सिन्हा को प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी से भी मिला चुकी हैं। और तो और गोपाल को सह प्रभारी नितिन नबीन से मिलाने पटना भी गई थी। गोपाल पेशे से ठेकेदार हैं, और वो रेणुका सिंह से जुड़े रहे। इसके बाद रेणुका सिंह ने मंत्री बनने के बाद उन्हें अपना पीए बना लिया। गोपाल पार्टी कार्यक्रमों में जाते हैं, तो टिकट के बाकी दावेदारों की भौहें टेढ़ी हो जाती है।
इस गाड़ी की भी नम्बर प्लेट !!
हरियाणा-पंजाब तरफ लोग तरह-तरह के इंजन लगाकर गाडिय़ां बना लेते हैं और उस पर सवारियां ढोने का काम भी करते हैं। क्योंकि ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ जैसे महकमे इसके लिए जिम्मेदार हैं, तो वे कभी-कभी कमाई न होने पर इनका चालान भी कर देते हैं। छत्तीसगढ़ में अभी लगातार एक नए तरह की गाडिय़ां दिख रही है जिनमें किसी मोटरसाइकिल के सामने के हिस्से और इंजन के पीछे एक ठेला जोडक़र उसे सामान ढोने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, और लोहे के बड़े बड़े पाइप, बड़े लंबे सामान इन पर लादकर बड़ी रफ्तार से इन्हें सडक़ों पर दौड़ाया जाता है। अब दिलचस्प बात यह है कि ऐसी गाड़ी पर रजिस्ट्रेशन प्लेट भी लगी दिख रही है जबकि ऐसी किसी गाड़ी का कोई रजिस्ट्रेशन हो नहीं सकता। लगता है कि जिस मोटरसाइकिल का इंजन इस्तेमाल करके यह गाड़ी दौड़ाई जा रही है उसी मोटरसाइकिल की रजिस्ट्रेशन प्लेट को ऐसे टांग दिया गया है। शहर के बीच, राजधानी रायपुर में ऐसी गाडिय़ां सैकड़ों घूम रही हैं, लेकिन पुलिस को नहीं दिख रहीं। किसी दिन इनसे बड़ा हादसा होगा तो उस दिन आनन-फानन पुलिस ऐसी तमाम गाडिय़ों पर कार्रवाई करेगी।
संदीप को आइफा अवार्ड मिलना
वैसे छत्तीसगढ़ की अनेक प्रतिभाएं रंगमंच और फिल्मों की दुनिया में अपनी उपलब्धियों से प्रदेश का नाम रोशन करते रहे हैं, पर जब प्रतिष्ठित संस्थान उसे मान्यता दे तो बात दूसरी हो जाती है। छत्तीसगढ़ के संदीप श्रीवास्तव को आइफा अवार्ड मिलना इसी का एक उदाहरण है। ओटीटी पर बेहद हिट रही फिल्म शेरशाह की स्क्रिप्ट राइटिंग के लिए उन्हें आइफा अवार्ड दिया गया है। इसके पहले उनको काबुल एक्सप्रैस में संवाद और गीतों के लिए भी वी शांताराम अवार्ड मिल चुका है। अजीब बात यह है कि जिन लोगों ने बॉलीवुड और प्रदेश के बाहर जाकर अपनी महारत का सबूत दिया है, छत्तीसगढ़ी फिल्मों में उनको कोई निर्माता लेने के बारे में नहीं सोचता, जबकि ऐसा करने से छत्तीसगढ़ी फिल्मों का दर्जा और ऊपर उठ सकता है।
बटकी में रखे बासी के फायदे..
इंग्लैंड के बेलफास्ट स्थित क्वींस यूनिवर्सिटी का एक शोध बीते दिनों छपा था कि चावल को रात भर भिगो देने के बाद खाने से कौन से फायदे हैं। इसमें निष्कर्ष निकला कि इसे खाने से हृदयरोग, मधुमेह और कैंसर से लडऩे के लिए शरीर में प्रतिरोधक क्षमता 80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यही नहीं चावल को पकाने से पहले भी रात भर भिगोकर रख देना चाहिए। इससे उसमें मौजूद आर्सेनिक का स्तर काफी कम हो जाता है, यानी विषाक्तता घट जाती है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी इसके फायदे पर शोध किए हैं। उन्होंने तो इसका वैज्ञानिक नाम भी रखा- व्होल नाइट वाटर सोकिंग राइस। इनके शोध में पाया गया कि यह हाईपर टेंशन से बचाता है, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखता है।
छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहा जाता है। यहां पीढिय़ों से बोरे और बासी खाया जाता है। इसे लेने के बाद घंटों शरीर के भीतर ठंडक बनी रहती है, काम पर निकलने वालों को लू से बचाता है और भूख भी नहीं सताती। गर्मी के दिनों में तो मठा या अचार के साथ इसे घर घर में लेने का चलन रहा है। नमक मिलाना तो जरूरी है ही। यह अलग बात है कि नई पीढ़ी इसके नाम से नाक भौं सिकोड़ती है।
इन मुद्दे पर जिक्र इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल लोगों से अपील की, कि मजदूर दिवस के दिन बोरे बासी खाकर अपनी मिट्टी के खान पान की खूबियों का एहसास करें। वैसे इसे किसी एक दिन नहीं बल्कि रोज खाया जा सकता है। गर्मियों के लिए यह अद्भुत आहार है। इसे दुबारा चलन में लाने के लिए छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्टाल में रखा भी जाना चाहिए।
जमीन पर गिरे महुआ नहीं खरीदेंगे
महुआ का सबसे प्रचलित इस्तेमाल कच्ची शराब बनाने के नाम पर जाना जाता है। पर पिछले एक दो वर्षों से विदेशी कंपनियों ने इसकी खरीदी में दिलचस्पी दिखाई है। कटघोरा क्षेत्र में संग्रहित महुए की खरीदी लघु वनोपज समितियों के माध्यम से कुछ अमेरिकी कंपनियां खरीदने लगी हैं। इस कंपनी की शर्त यह है कि वे जमीन पर गिरे हुए महुए नहीं खरीदेंगे और संग्रहित महुए को तुरंत प्रोसेसिंग के लिए लेंगे ताकि अमेरिका की फैक्ट्रियों में पहुंचने तक खराब न हों। ग्रामीणों ने एक रास्ता निकाला और महुए के पेड़ के नीचे जाल बिछाकर रखना शुरू कर दिया। दूसरे दिन सैकड़ों महुए जाल के ऊपर गिरे मिलते हैं। इसे एक साथ बटोर लिया जाता है। घंटों महुए को बीनने से छुटकारा मिला है और कंपनी को उनकी मांग के अनुसार साफ-सुथरा फल भी मिलने लगा है। अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में महुए से चाक, बिस्कुट और सुंगधित दूसरे खाद्य पदार्थ बनाये जा रहे हैं, जिनकी खासी मांग है। जटगा, लेमरू, बड़मार आदि गावों में महुआ संग्रहण की यह तकनीक चलन में आ गई है। आदिवासियों के बीच महुए को किस तरह से एकत्र किया जाए, यह तकनीक अमेरिका की कंपनी से बताई जिससे उसकी गुणवत्ता और शुद्धता बढ़े। हमारे कृषि और वन विभाग के अधिकारियों के ध्यान में यह बात कभी आई नहीं।
रेलवे के फैसले संतुष्ट हैं?
रेलवे ने 26 अप्रैल से करीब एक माह के लिए रद्द की 22 में से 6 ट्रेनों का परिचालन यथावत रखने का फैसला लेकर बताने की कोशिश की है कि वह पूरी तरह असंवेदनशील नहीं हैं। इस फैसले की सबसे ज्यादा खुशी भाजपा सांसद महसूस कर रहे हैं, क्योंकि वे मजबूरी और अनुशासन के चलते रेलवे का विरोध नहीं कर पा रहे थे। दूसरी ओर कांग्रेस के मंत्री, विधायकों को भी सुकून है कि उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दी, जो काम कर गया। आम आदमी पार्टी ने खुद को श्रेय दिया है कि हमने तीन दिन का अल्टीमेटम दिया और उसके पहले रेलवे बैकफुट पर आ गई। पर देखा जाए तो इसमें संतुष्ट होने जैसी कोई बात नहीं है। रेलवे ने केवल एक पैसेंजर को बहाल करने की घोषणा की है, बिलासपुर-कोरबा। वह भी इसलिए क्योंकि अमृतसर से आने के बाद बिलासपुर से छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस को कोरबा तक खाली न दौडऩा पड़े। अभी भी रेलवे ने रद्द किसी पैसेंजर को बहाल नहीं किया है। रायपुर डीआरएम ऑफिस के सामने कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में किए गए प्रदर्शन और मंत्री जयसिंह अग्रवाल की आंदोलन करने की वजह अभी भी बनी हुई है। देखना है कि वे रेलवे की ओर से दी गई इस राहत से कांग्रेस संतुष्ट हैं या उनकी चेतावनी अब भी कायम है।
बामडा जैसी कामयाबी क्यों नहीं?
देश के कुछ राज्यों में बिजली संकट और उसके कारण कोयले की आपूर्ति के लिए ट्रेनों को रद्द करने के मामले ने इतना उलझा दिया है कि लोग रेलवे से मिली स्थायी होती जा रही तकलीफ की चर्चा ही नहीं छेड़ रहे हैं। कोरोना के नाम पर छोटे स्टेशनों को वीरान कर दिया गया है। इनमें छत्तीसगढ़ की दर्जनों स्टेशन भी शामिल हैं। कटनी रूट का एक महत्वपूर्ण स्टेशन करगीरोड भी इसी झटके से अब तक नहीं उबर पाया है। इसके कारण सैकड़ों लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है। जो लोग प्लेटफार्म पर आश्रित थे, उन पर और जो लोग काम धंधे नौकरी के लिए सफर करते थे उन पर भी। पिछले माह यहां के नागरिकों ने स्टेशन के भीतर घुसकर प्रदर्शन किया। उस वक्त रेलवे के अधिकारियों ने शीघ्र ट्रेनों का स्टॉपेज शुरू करने का आश्वासन दिया और प्रदर्शन खत्म कराया। अब तक मांग मानी नहीं गई है और वे धरने पर हैं। इस बीच रेलवे ने यह जरूर किया कि दो दर्जन लोगों के नाम पर नोटिस जारी कर दी, लाखों रुपयों की वसूली का। रेलवे का कहना है कि आंदोलन के दौरान उसकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। अब आंदोलन कर रहे लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि उन्होंने किस संपत्ति को हाथ लगाया। आंदोलन के दौरान कोई तोडफ़ोड़ तो की ही नहीं गई। उनका कहना है कि ये नोटिस दबाव है, आंदोलन से पीछे हटने के लिए। पर कहीं कहीं दबाव काम आ जाता है। मनेंद्रगढ़ में स्टॉपेज शुरू करने के लिए दो बार मालगाड़ी रोकी जा चुकी है। रेलवे पर इसका भी असर नहीं हुआ।
दूसरी तरफ, ओडिशा में पिछले महीने बामड़ा स्टेशन पर स्टॉपेज फिर शुरू करने की मांग पर लोगों ने बाजार बंद कर दिए। सब सडक़ों और पटरी पर उतर गए। इसके बाद रेलवे ने यहां स्टॉपेज देना शुरू कर दिया। फर्क यह था कि वहां वहां नागरिक एकजुट थे। अपने यहां कांग्रेस, भाजपा एक दूसरे की पहल को सवालों में घेर देते हैं। सर्वदलीय मंच भी बन जाए तो देखते हैं कि इसके पीछे कौन सा दल है।
ज्यादा सुख-सुविधाओं की उम्मीद नहीं
प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी चाहते हैं कि राजीव भवन का कायाकल्प भाजपा दफ्तर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर की तर्ज पर किया जाए। कुशाभाऊ ठाकरे परिसर तो फाइव स्टार होटल की तरह नजर आता है। पिछले दिनों कुछ कांग्रेस पदाधिकारियों ने दाऊजी के सामने अपने दिल की बात कह दी।
कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र शर्मा ने भूमिका बांधते हुए अलग ही अंदाज में अपनी बातें रखी। उन्होंने कहा कि दोपहर में टीवी चैनल संग लाइव जुड़े रहेव, मोर पसीना चुचवात रहीस। दाऊजी ने पूछा, का होगे। तभी मीडिया चेयरमैन सुशील आनंद शुक्ला बीच में बोल पड़े कि काफी गर्मी पड़ रही है। भईया, मीडिया विभाग के कक्ष में दो एसी लगवा देते तो अच्छा रहता।
खैरागढ़ के नतीजे से दाऊजी खुश थे। इस उम्मीद से कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह, और एक-दो अन्य ने भी राजीव भवन में सुविधाएं बढ़ाने के लिए बातें रखी, लेकिन दाऊजी गंभीर हो गए। उन्होंने कहा कि सरकार, नहीं रहीई तब कैसे होही। बिजली बिल कोन पटाही। इसके बाद सभी खामोश हो गए। दाऊजी की मंशा है कि कांग्रेस गांधीवादी विचारधारा को मानने वाली पार्टी है। इसलिए कार्यकर्ताओं को ज्यादा सुख-सुविधाओं की उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।
टीका-टिप्पणी की कोई गुंजाइश नहीं
यूपी चुनाव के बाद पार्टी संगठन में बड़े बदलाव की उम्मीद पालने वाले भाजपा नेता अब निराश दिख रहे हैं। हाल यह है कि खैरागढ़ में बुरी हार की भी समीक्षा नहीं हो पाई है। दर्जनभर से अधिक केंद्रीय मंत्री यहां आ चुके हैं, लेकिन राज्य सरकार के खिलाफ सीधी कोई टिप्पणी से बच रहे हैं।
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय रायपुर आए, उनका नारायणपुर जाने का प्रोग्राम था। यहां आने के बाद सडक़ मार्ग से नारायणपुर जाने के बजाए हेलीकॉप्टर से वहां जाने की इच्छा जताई। राज्य सरकार ने हेलीकॉप्टर मांगा, तो सरकार ने तुरंत उन्हें हेलिकॉप्टर उपलब्ध करा दिया। इतना सब होने के बाद अब राज्य सरकार के खिलाफ टीका-टिप्पणी की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है।
सब कुछ समय पर ही होगा
अरण्य भवन में बड़ा फेरबदल होते-होते रह गया। लघु वनोपज संघ के एमडी संजय शुक्ला को राकेश चतुर्वेदी की जगह पीसीसीएफ (प्रशासन) बनाने की तैयारी थी। सब कुछ तय हो चुका था। चतुर्वेदी के रिटायरमेंट में चार माह बाकी हैं, इसलिए उन्हें भी परहेज नहीं था। उन्हें कुछ न कुछ दायित्व मिल ही जाता। मगर बात मीडिया में लीक हो गई, और इसके चलते फेरबदल की फाइल ही नहीं बन पाई।
भूपेश सरकार में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल इतनी तेजी से होता आया है कि इससे प्रभावित अफसरों को ऑर्डर निकलने के बाद पता चलता है। मसलन, अजय सिंह की जगह सुनील कुजूर के सीएस, और फिर एएन उपाध्याय की जगह डीएम अवस्थी के डीजीपी बनाने का ऑर्डर इतनी तेजी से निकला कि किसी को कानो-कान खबर नहीं हो पाई। और तो और जीपी सिंह को ईओडब्ल्यू-एसीबी से हटाया गया तो इसकी जानकारी जीपी सिंह को तब हुई, जब आरिफ शेख ईओडब्ल्यू-एसीबी का चार्ज लेने वहां पहुंचे। अब लगता है अरण्य भवन में फेरबदल तो तय है, लेकिन सब कुछ समय पर ही होगा।
कटहल के पेड़ की नियति
एकबारगी इस तस्वीर को देखने से यह लगता है कि किसी ने इस पेड़ की डालियों को निर्ममता से काट दिया। पेड़ सूख गया लेकिन उसने अपने फल देने की प्रकृति को नहीं छोड़ा। झारखंड के एक प्रशासनिक अधिकारी ने सोशल मीडिया पर यह तस्वीर शेयर की तो दिलचस्प प्रतिक्रियाएं मिलीं। एक ने कहा कि सर, यदि किसी को पेड़ काटना ही होता तो जड़ से काटता। हो सकता है कि किसी बीमारी को फैलने से रोकने के लिए डालियों को काटा गया हो। या फिर तूफान में सिर्फ तना बच गया हो। दूसरे ने लिखा है- जिस तरह से पेड़ उजाड़ हुआ है वह टूटा ही दिखाई देता है, काटा हुआ नहीं। कटहल के पेड़ कई बार तने में भी लग जाते हैं।
एक और यूजर ने ज्यादा ध्यान खींचने वाली बात लिखी है- यदि पेड़ों के प्रति इतनी ही हमदर्दी है तो हसदेव अरण्य क्षेत्र में हजारों पेड़ काटे जाने का सिलसिला शुरू हो गया है, उसका भी विरोध करिये।
चौथी लहर के बीच लापता बूस्टर डोज
देश के कई राज्यों में कोविड के नए वेरियंट एक्स-ई की आहट हो गई है। छत्तीसगढ़ अभी 0.2 प्रतिशत पॉजिटिविटी रेट पर है, पर आने वाले दिनों में इसके बढऩे की आशंका है। राज्य सरकार ने कल ही मास्क, सोशल डिस्टेंस और अन्य प्रोटोकॉल लागू कर दिए गए हैं। कोरोना टेस्ट बढ़ाने और कांटेक्ट ट्रेसिंग फिर से शुरू करने कहा गया है। कुछ कोविड अस्पतालों में खाली बिस्तरों पर सामान्य मरीजों की भर्ती की तैयारी हो ही रही थी पर अब इन्हें पूर्ववत कोविड मरीजों के लिए ही आरक्षित रखने कहा गया है।
अभी पिछले कुछ दिनों से उन लोगों के पास मोबाइल फोन पर मेसैज आ रहे हैं, जिन्होंने दोनों डोज पहले-दूसरे चरण के अभियान में ही लगवा लिए थे। इन्हें बूस्टर डोज लगवाने के लिए निजी अस्पतालों में जाने कहा जा रहा है। रायपुर में 19, बिलासपुर, दुर्ग में 8-8 अस्पतालों को बूस्टर डोज के लिए अधिकृत किया गया है। इसी तरह से प्रदेश के प्रत्येक जिले में बूस्टर डोज के लिए निजी अस्पताल निर्धारित कर दिए गए हैं। पर न तो लोग इस डोज के लिए उत्सुक दिख रहे हैं, न अस्पताल और ना ही स्वास्थ्य विभाग। जिन गिने-चुने निजी अस्पतालों में यह सुविधा शुरू की गई है, वहां दो बार जाना पड़ेगा। पहली बार रजिस्ट्रेशन के लिए, दूसरी बार टीका लगवाने के लिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार में कम से कम 10 लोगों को डोज लगाना जरूरी है वरना बचे हुए इंजेक्शन चार घंटे के भीतर खराब हो जाएंगे। एक खेप के लिए दस लोगों का रजिस्ट्रेशन हुए बिना निजी अस्पताल लोगों को बुलाएंगे नहीं। सर्विस चार्ज मिलाकर इसका शुल्क भी करीब 400 रुपये बनता है। निजी अस्पताल वायल के रख-रखाव में होने वाला खर्च नहीं मिलने के चलते भी उदासीन हैं। इसके विपरीत यदि बूस्टर डोज के लिए पहले की तरह अभियान चलाया जाए तो टीका केंद्रों एक साथ 10 लोगों का पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं। पर ऐसे किसी अभियान का तो अब तक पता ही नहीं है। यह ध्यान रखने वाली बात है कि कोविड का प्रकोप छत्तीसगढ़ में दिल्ली और महाराष्ट्र के बाद ही बढ़ता रहा है।
बूस्टर डोज भी मुफ्त मिलेगी?
महामारी से बचाव के लिए देशभर में जब भी टीकाकरण का महाभियान चला, सबको डोज मुफ्त ही मिली। कोविड के दौरान भी यही हुआ, पर ना-नुकुर के बाद। पहले राज्यों से कहा गया कि वे खर्च का कुछ हिस्सा अपने ऊपर ले लें, फिर कई राज्यों ने स्वयं से मुफ्त लगाने की घोषणा कर दी। केंद्र ने इसे देखते हुए देशभर में मुफ्त टीकाकरण का अभियान चलाया। टीकाकरण केंद्रों ही नहीं, अनेक सरकारी संस्थान जहां टीके नहीं भी लग रहे थे, धन्यवाद मोदी जी.., दिखाई दे रहा था। पर, बूस्टर डोज पर भी जेब से खर्च करने के लिए कहा जा रहा है। राज्यों ने भी यह खर्च उठाने की घोषणा नहीं की है, पर लोगों की उम्मीद हरियाणा की पहल के बाद से बनी हुई है। वहां सीएम ने घोषणा कर दी है कि बूस्टर डोज मुफ्त लगाएंगे। इसके लिए 300 करोड़ रुपये का बजट भी आवंटित कर दिया गया है।
दरी पर दफ्तर
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के अधीन एक शोध पीठ कबीर विकास संचार केंद्र संचालित हैं। रायपुर के कुणाल शुक्ला को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अनुशंसा पर अध्यक्ष बनाया गया था। हाल ही में उन्होंने अपने कक्ष से टेबल कुर्सियां हटाकर दरी पर आसन बना लिया है। उनका दर्द छलका है कि आरएसएस के कुलपति उनकी नियुक्ति को पचा नहीं पा रहे हैं...कबीर के हर सार्थक काम में अडंगा डाल रहे हैं। पांच माह से टूटी टेबल, कुर्सी, पंखा बदलने की याचना कर रहे थे। अब उन टूटे सामानों को हटाकर जमीन में दरी बिछाकर बैठना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा है कि आप जब इस जगह पर मिलने पहुंचें, तो ‘सत्य के प्रति मेरे प्रयोग’ पर बात होगी।
इस नाम पर शायद ही आपत्ति हो...
वैसे तो छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में जाने के लिए कांग्रेस के कई बड़े नेता जोर आजमाईश कर रहे हैं। मगर एक-दो नामों को पार्टी हल्कों में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। इन्हीं में से एक पूर्व आईएएस के राजू भी हैं, जो कि राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य हैं।
आंध्रप्रदेश कैडर के पूर्व आईएएस एससी कम्यूनिटी से आते हैं। वो पार्टी के एससी सेल के चेयरमैन भी हैं। राजू यूपीए सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सचिव थे। जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी थी। गांधी परिवार की पहल पर राजू ने वीआरएस ले लिया, और सक्रिय राजनीति में आ गए। राजू कई बार छत्तीसगढ़ आ चुके हैं।
राजू, रेरा चेयरमैन विवेक ढांड के बैचमेट भी हैं। दोनों के बीच अच्छी मित्रता भी है। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि हाईकमान राज्यसभा के लिए राजू का नाम बढ़ाता है, तो सीएम भूपेश बघेल को शायद ही कोई आपत्ति हो। छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की दो सीट खाली हो रही हैं, और दोनों ही सीट कांग्रेस को मिलना तय है। अब हाईकमान किसका नाम बढ़ाता है, यह देखने वाली बात होगी।
साय के सवाल ने बिखेरी मुस्कुराहट
विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल बाकी रह गए हैं, लेकिन पार्टी के पक्ष में कोई माहौल नहीं बनने से भाजपा के कई दिग्गज नेता फ्रिकमंद हैं। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे भाजपा नेताओं के बीच आपस में काफी कुछ चर्चा हुई।
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय सभी नेताओं को एक किनारे ले गए, और उनसे कहा कि सरकार ऐसे नहीं बनती है। साय ने कहा कि जोगी सरकार में लाठीचार्ज के बाद उनका पांव टूट गया था। तब भी मंैने आराम नहीं किया, और प्लास्टर लगने के बाद गांव-गांव तक गए। लोगों को समझाया कि जोगी सरकार आतताई है, और इसे उखाड़ फेंकना होगा। टूटे पैर को देखकर लोगों में सहानुभूति जगी, और जोगी सरकार के खिलाफ माहौल बना। हम अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रहे, और तब कहीं जाकर भाजपा को बहुमत मिल पाया।
साय ने पूछ लिया कि आप ने साढ़े तीन साल में कौन सा आंदोलन कर लिया है कि जनता आपको वोट करे। एक पूर्व मंत्री ने चुटकी ली कि हमने भी साढ़े तीन साल में एक बार जेल भरो आंदोलन किया हैै। मूणत जी के साथ पुलिस ने दुव्र्यवहार किया था, तब प्रदेशभर के थानों का घेराव किया था। इससे जनता में भाजपा के पक्ष में माहौल बना है, और पार्टी की सरकार बनना तय है। पूर्व मंत्री की इस टिप्पणी पर साय और अन्य नेता मुस्कुराए बिना नहीं रह सके।
भाजपा नेता की ट्वीट पर रियेक्शन...
सरगुजा के भाजपा नेता अनुराग सिंहदेव की ट्विटर पर एक लाइन में की गई पोस्ट पर मिल रही प्रतिक्रिया शायद उन्हें भारी पड़ गई है। उन्होंने भोंपू की तस्वीर के साथ लिखा- छत्तीसगढ़ में लाउडस्पीकर की आवाज कब कम होगी?
यूपी और महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर के मुद्दे पर एक खास वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है। बहुत से लोगों ने अनुराग सिंहदेव के इस कमेंट को धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने के रूप में देखा है। उनके इस ट्वीट के जवाब में की गई बहुत सी टिप्पणियों को अशोभनीय कह सकते हैं, पर कुछ प्रतिक्रियाओं का जिक्र किया जा सकता है। एक ने लिखा है कि अभी 2024 के चुनाव नहीं है। थोड़ा रुक जाओ। अन्य जगहों की तरह छत्तीसगढ़ में हिंदू-मुसलमान कराना मुश्किल है।
एक और प्रतिक्रिया है कि जिस दिन आप गणेश, नवरात्रि और रामायण आदि उत्सवों में बजाना बंद करेंगे तब कोई भी प्रयोग नहीं करेगा। एक और प्रतिक्रिया है कि रमन सिंह की सरकार 15 वर्ष थी, तब क्या कम आवाज में लाउडस्पीकर बजता था? एक यूजर ने लिखा है कि कुल मिलाकर किसी ना किसी बहाने मुसलमानों को टारगेट करते रहना है। एक और प्रतिक्रिया है अच्छा नहीं लग रहा है क्या, छत्तीसगढ़ में अमन का माहौल? कुछ प्रतिक्रियाएं उनके ट्वीट के पक्ष में भी है जैसे एक ने लिखा है- जब आप केबिनेट मिनिस्टर या सीएम बन जाएंगे तब लाउड स्पीकर की आवाज कम होगी।
फॉलोअर्स बनने की खुशी मगर...
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं के लिए पुलिस की पाठशाला नाम से नि:शुल्क लाइब्रेरी शुरू करने और उनको अन्य रचनात्मक गतिविधियों से जोडऩे की वजह से चर्चा में आए आईपीएस सूरज सिंह परिहार ने एक ट्वीट में अपनी खुशी और दर्द दोनों का बयान कर दिया है। लिखा है कि वे सन् 2005 से लगातार जॉब में हैं, लेकिन अभी तनख्वाह की फिगर सिक्स डिजिट में पहुंचना बाकी है। पर दूसरी ओर आईपीएस काबरा सर की प्रेरणा से हाल में मेरे ट्विटर अकाउंट का कुनबा सिक्स डिजिट पहुंच गया है।
ज्ञात हो कि जीपीएस जिले में एसपी रहने के बाद अब राजभवन में परिहार सेवाएं दे रहे हैं।
आईएएस आईपीएस अधिकारियों के बारे में बहुत लोगों की राय रहती है कि इनके पास इधर-उधर से बिना मांगे इतना धन बरस जाता है कि सैलरी जमा हो रही है या नहीं, यह भी देखना जरूरी नहीं समझते हैं। पर परिहार जैसे कई अधिकारी हैं जिन्होंने अपनी साख पर आंच नहीं आने दी है।
आदिवासियों पर हवाई बमबारी!
सुकमा जिले के आदिवासियों ने 2 दिन पहले सैकड़ों की संख्या में एकत्र होकर कथित ड्रोन हमले के विरोध में प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि 14 और 15 अप्रैल को आधा दर्जन से ज्यादा गांवों में रात के वक्त ड्रोन से बमबारी की गई। हालांकि इससे कोई जनहानि नहीं हुई लेकिन मीडिया के पहुंचने पर उन्होंने जगह-जगह बने गड्ढों को दिखाया और बताया यह गिराए गए बम के निशान हैं। माओवादियों की दंडकारण्य जोनल कमेटी भी इसमें सामने आ गई है। उसने तस्वीर जारी कर बताया है कि इस हमले में वे भी बाल-बाल बचे। बस्तर में आदिवासियों के लिए कानूनी लड़ाई लडऩे वाली अधिवक्ता बेला भाटिया ने भी हमले के विरोध में बयान जारी कर कहा कि यह यदि सरकार का नक्सलियों के विरुद्ध युद्ध हो, तब भी जिनेवा कन्वेंशन के मापदंडों का पालन नहीं किया जा रहा है। बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने आरोपों को झूठा बताते हुए कहा कि नक्सली ग्रामीणों को बरगला रहे हैं। वे जनाधार खो रहे हैं इसलिए अफवाह फैलाई जा रही है।
यदि पुलिस की बात पर यकीन करें तब भी कुछ सवाल तो खड़े होते ही हैं। हजारों की संख्या में विरोध के लिए ग्रामीण निकले तो क्या नक्सलियों का प्रभाव उन पर पुलिस से कहीं ज्यादा है? विकास, विश्वास और सुरक्षा के लिए किए जा रहे पुलिस और प्रशासन के काम का उन पर असर क्यों नहीं हो रहा है? यह साफ तो हो कि बम न गिराये गए हों तो तस्वीरों के जरिए जो सबूत पेश किए जा रहे हैं, आखिर उनकी असलियत क्या है?
अबूझमाड़ की नई पहचान
नारायणपुर, बस्तर का अबूझमाड़ इलाका अपने पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है, जहां विकास की रोशनी नहीं पहुंची है। पर इस बार 11 साल के राकेश कुमार वरदा और 13 साल के राजेश कोर्राम ने मलखंभ मैं राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना कर इस क्षेत्र के बारे में धारणा बदली है। मजदूर माता-पिता के इन दोनों बच्चों ने मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की मलखंब प्रतियोगिता में अपना हुनर दिखाया। राकेश ने 30 सेकंड और राजेश ने 47 सेकंड हाथों के सहारे खड़े होकर अलग-अलग श्रेणी के रिकॉर्ड तोड़े। उनका मुकाबला 1000 खिलाडिय़ों के साथ था।
सांसदों की चुप्पी क्यों?
केंद्र से संबंधित गिने-चुने काम ही होते हैं जो आम आदमी के रोजमर्रा के कामकाज पर असर डालते हैं। रेलवे जिस तरह से ट्रेनों के परिचालन पर एक के बाद एक बाधा खड़ी कर रही है उससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं। पहले जब भी यात्री ट्रेनों को रद्द किया जाता था, रेलवे की ओर से एक सफाई दी जाती थी कि कुछ उन्नयन के काम किए जा रहे हैं। पर इस बार 22 ट्रेनों को 5 मई तक रद्द करने की घोषणा के साथ ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।
पहले से ही करीब एक दर्जन ट्रेनों का परिचालन बंद है, जिनको मुख्यमंत्री की नाराजगी और शासन की चि_ी के बावजूद शुरू नहीं किया गया। अकेले छत्तीसगढ़ की बात नहीं है, यूपी, राजस्थान, पंजाब और दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी लोकल पैसेंजर ही नहीं बल्कि एक्सप्रेस ट्रेनों को भी बड़ी संख्या में रेलवे ने बंद कर दिया है। यह सिलसिला जनवरी से चला आ रहा है।
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से 9 भाजपा के पास है। आम लोगों की तकलीफ से वाकिफ होने के बावजूद सांसदों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। कभी-कभी तो जन सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं पर केंद्र के साथ बात करने की नौबत आती है पर ट्रेनों को बंद करने के मुद्दे पर भी इन्होंने खामोशी ओढ़ रखी है। एक ही रायपुर के सांसद सुनील सोनी का बयान सामने आया कि ट्रेनों को शुरू करने के लिए रेल मंत्री से उनकी बात हुई है, वे शुरू करने वाले हैं। उसी दिन रेलवे ने 22 और ट्रेनों को रद्द करने की घोषणा की। या तो रेल मंत्री सांसद को झूठा आश्वासन दे रहे हैं या फिर वे खुद ही लोगों को भ्रम में रख रहे होंगे।
किसानों के स्कूल की देश-दुनिया में चर्चा
जांजगीर-चांपा जिले के एक छोटे से गांव बहेराडीह का हाल में केरल के किसानों ने भ्रमण किया। इसके पहले कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, जर्मनी आदि देशों के किसान भी इस गांव तक पहुंच चुके हैं। वजह यह है कि यहां देश का पहला किसान स्कूल चालू किया गया है। जिला प्रशासन और एक स्वयंसेवी संस्था से इस स्कूल को खोलने में मदद तो ली गई, मगर प्रमुख भूमिका यहां के प्रगतिशील किसान दीनदयाल यादव और उनके किसान मित्रों की है। दिलचस्प है इस स्कूल को खोलने के लिए राशि भी केंचुए की खेती से हुई आमदनी से जुटाई गई है।
यहां खाद्य प्रसंस्करण, देसी बीजों का संरक्षण, छत पर बागवानी, रेन हार्वेस्टिंग, कृषि उत्पादन से बनाए जाने वाले अचार-पापड़ तैयार करने का तरीका, केंचुआ पालन, सेप्टिक टैंक से चूल्हा, बायोगैस, उत्पादों के लिए बाजार और तमाम ऐसे विषयों का प्रशिक्षण दिया जाता है जो किसानों की आमदनी को बढ़ा सकता है।
प्रदेश में अब 17 से अधिक कृषि महाविद्यालय खुल चुके हैं। इनमें से पढक़र निकलने वाले अधिकांश छात्रों का लक्ष्य नौकरी हासिल करना होता है। बहुत कम ऐसे विद्यार्थी होते हैं जो कृषि पर दक्षता बढ़ाने के लिए इसमें प्रवेश लें। पर किसान स्कूल का कंसेप्ट बिल्कुल नया है। दावा किया जा रहा है कि यह देश का पहला किसान स्कूल है, जो अंगूठा छाप से लेकर पढ़े-लिखे सभी के लिए खुला है। कृषि विभाग ने भी कुछ इसी तरह से स्कूल खोलने की योजना दो-तीन साल पहले बनाई थी, मगर वह जमीन पर नहीं उतर पाई है। अब जब छत्तीसगढ़ में किसानों की सरकार होने का दावा किया जाता है तब बहेराडीह के मॉडल को दूसरे जिलों में अपनाने की कोशिश की जा सकती है।
महामारी खत्म, छुट्टियां जारी
छुट्टियां किसे अच्छी नहीं लगती। वह भी तब जब वह सरकारी हो, क्योंकि इसमें वेतन कटने की भी चिंता नहीं होती। स्कूल शिक्षा विभाग ने कोविड-19 के चलते पढ़ाई को हुए नुकसान की भरपाई के लिए गर्मी की छुट्टी में 15 दिन की कटौती कर दी थी। इसे 1 मई के बजाय 15 मई से लागू किया जाना था। मगर बढ़ते तापमान के कारण छुट्टियां दे दी गई। अगले ही दिन शिक्षकों का भी अवकाश घोषित हो गया। सभी स्कूल 24 जून से खुलेंगे। नि:संदेह सेहत को ध्यान में रखते हुए बच्चों को स्कूल भेजना ठीक नहीं है, लेकिन शायद स्कूल शिक्षा विभाग या भूल गया कोविड-19 के दौरान ही ऑनलाइन परीक्षाओं का लंबा चौड़ा सेटअप बनाया जा चुका है। शिक्षक और छात्र दोनों काफी हद तक इसके जानकार भी हो चुके हैं। इसे केवल महामारी आने पर ही इस्तेमाल किया जाए, यह जरूरी भी नहीं है। एक लंबी गर्मी की छुट्टी का सदुपयोग किया जा सकता था कि बच्चों को ऑनलाइन माध्यम ही सही कापी-किताबों के संपर्क में रखा जाए। जिस नुकसान के लिए स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां कम की गई थी, उसकी कुछ भरपाई ऑनलाइन पढ़ाई से हो सकती है इस पर किसी ने ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी।
सडक़ पर पार्किंग
सरकारी गाडिय़ों में लाल बत्ती हटने से साहबों के तेवर नहीं बदले। अब वे गाडिय़ों में नंबर प्लेट की जगह पर लगाई गई लाल पट्टियों से रौब दिखा सकते हैं। गर्वमेंट गाड़ी सडक़ पर भी पार्क की जा सकती है।
एक सुरक्षित सीट की तलाश
चुनाव में डेढ़ साल बाकी है। कई रिटायर्ड अफसरों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोरे मार रही है। भाजपा में नवप्रवेशी आर्थिक रूप से ताकतवर रिटायर्ड आईएएस अफसर ने तो चुनाव लडऩे के लिए उपयुक्त विधानसभा क्षेत्र ढूंढना शुरू भी कर दिया है। वो शुभचिंतकों से सलाह मशविरा भी कर रहे हैं।
अफसर जहां भी जाते हैं, वहां के स्थापित नेता मायूस हो जाते हैं। उन्हें अपनी टिकट को लेकर खतरे का अहसास होने लगता है। एक शुभचिंतक ने अफसर को सलाह दे दी कि उन्हें जगदलपुर से चुनाव लडऩा चाहिए। जहां लोग साफ छवि के रूप में पहचानते हैं। वहां मैदान में उतरना ठीक रहेगा। वैसे तो अफसर रायपुर में भी पदस्थ रहे हैं, लेकिन यहां एक संस्था को जमीन आबंटन के केस में इतने बदनाम हुए कि उन्हें तुरंत हटाना पड़ गया। अफसर की अपनी महत्वकांक्षा है, लेकिन पार्टी क्या सोचती है यह देखने वाली बात होगी।
खाने के समय काम की बात नहीं
खैरागढ़ में जीत के बाद कांग्रेस में खुशी का माहौल है। सरकार के मंत्रियों में श्रेय लेने की होड़ मच गई है। जिन्होंने वाकई मेहनत किया, वो खामोश हैं। एक मंत्री के उत्साही समर्थकों ने उन्हें लड्डुओं से तौल दिया। ये अलग बात है कि मंत्रीजी चुनाव प्रचार के दौरान बीमार रहे। एक अन्य मंत्रीजी के ठहरने के लिए तो खैरागढ़ इलाके में किराए से बंगला लिया गया था। मंत्रीजी पूरे तामझाम से वहां गए भी थे। एक बैठक भी ली, फिर टिफिन खाया। एक-दो दिन इधर-उधर घूमे भी। इसके बाद वो चुनावी परिदृश्य में नजर नहीं आए। इससे परे दाऊजी ने बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को अपनी तरफ से पार्टी दी। मीडिया विभाग के लोगों को भी अपने घर बुलाकर डिनर लिया। खुशनुमा माहौल में एक पदाधिकारी ने फाइल में दस्तख्त कराने के लिए दाऊजी के आगे बढ़ाया, तो उन्हें बुरी तरह डांट सहना पड़ गया। ठीक भी है खाने-पीने के समय काम की बातें नहीं करनी चाहिए।
बच्चों के हिस्से में बस चार आने..
जंगल में इन दिनों खट्टे-मीठे फल चार का सीजन चल रहा है, जिसकी गुठली तोड़ो तो चिरौंजी निकलती है। दो वन्य प्रेमी भैंसाझार होते हुए कार से करगीरोड, कोटा की तरफ जा रहे थे। रास्ते में अरपा नदी के पुल पर बच्चे पन्नी में भर-भर कर चार बेचते दिखे। तपती धूप में खड़े मासूम चेहरों से मोलभाव करना गुनाह लगा। सैलानियों ने उसे खरीद लिया और पूरे रास्ते खाते हुए गए। बीजों को सडक़ के किनारे बिखेरते भी गए।
जंगलों में अकूत संपदा भरी हुई है, पर इसका दोहन ये आदिवासी बच्चे या उनका परिवार नहीं करता। फायदा उठाते हैं वे जो एक झटके में हजारों पेड़ों की बलि देने और नदियों-पहाड़ों पर कब्जा करने की मंजूरी सरकार से हासिल कर लेते हैं।
अब मजे से फोन पर डील करिये...
11 मई के बाद गूगल ने एंड्राइड फोन पर कॉल रिकार्डिंग सुविधा बंद करने की घोषणा की है। आईफोन में यह सुविधा पहले ही नहीं दी गई थी। लोग गोपनीय बातें करने के लिए वाट्सएप कॉल का इस्तेमाल करते रहे हैं, जिसमें होने वाली बातचीत सामान्यत: रिकॉर्ड नहीं हो पाती।
गूगल के प्ले स्टोर्स से अब वे ऐप हटा दिये जाएंगे जो ऑटोमैटिक कॉल रिकॉर्डिंग की सुविधा देती है। ट्रू कालर में भी नहीं मिलेगी।
ऑडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा को निजता पर हस्तक्षेप मानते हुए यह नीति बनाई गई है। हालांकि ऐसे फोन जिनमें इन बिल्ट यह सुविधा दी गई है वे काम करेंगे, क्योंकि इसके लिए गूगल प्लेटफॉर्म से किसी ऐप को डाउनलोड नहीं किया जाना है। अब रिकॉर्डिंग हो सके इसके लिए लोगों को अपना मोबाइल फोन सेट अपडेट करना होगा। यह पहले जैसा आसान तो नहीं रह गया है कि हर किसी के फोन पर मौजूद हो।
ऑडियो रिकॉर्डिग कई बार लोगों की करतूतों का पर्दाफाश करने के काम आती है। मुंगेली कोतवाली के थानेदार पिछले महीने ही एक रेप पीडि़ता को सुलह करने के लिए दबाव डालते पकड़े गए थे। इसके पहले एक और थानेदार रिश्वत के रूप में एक महिला को नहा-धोकर अपने घर अकेले आने का न्यौता देते पकड़े गए। दोनों मामलों में उन्हें सस्पेंड किया गया।
चर्चित अंतागढ़ उप चुनाव खरीद फरोख्त के मामले में ऑडियो रिकॉर्डिंग ने पूरे प्रदेश में तूफान मचाया था, जिसकी नींव में आगे चलकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का गठन हो गया। अब 11 मई के बाद देखना होगा कि रिकॉर्डिंग के लिए कौन सा तरीका काम आएगा। वैसे अब तो कुछ ऐप ऐसे भी आ चुके हैं जो वाट्सएप की बातचीत को रिकॉर्ड करने का दावा करते हैं।
हसदेव के पेड़ों को रो कर विदाई
कोल ब्लॉक के लिए हसदेव अरण्य पर आश्रित आदिवासियों का विरोध व्यर्थ गया और नेताओं का आश्वासन झूठा निकला। यह तस्वीर उन लाखों में से एक पेड़ के साथ चिपकी महिलाओं की है जो इस मिट्टी के गर्भ में दबे कोयले को निकालने के लिए काट दी जाने वाली है। पृथ्वी दिवस पर यह महिलाएं पेड़ों से रोते हुए क्षमा मांग रही है कि तुमने हमें पाला पोसा और हम तुम्हें नहीं बचा पा रहे हैं।
सियासतदारों की सेहत पर चर्चा
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ दिनों से केन्द्रीय मंत्रियों के दौरे से सियासत गरमाई हुई है। अपनी पार्टी के के नेताओं के दौरे से प्रदेश भाजपा में उत्साह है, तो राज्य में सत्ताधारी दल कांग्रेस के नेता केन्द्रीय मंत्रियों के प्रवास को राजनीतिक चश्मे से देख रहे हैं। हालांकि सियासत में यह एक स्वाभाविक सोच है, लेकिन सियासत के इस दांव-पेंच में रोचक बातें भी होती हैं, जब दिल की बात जुबां पर आ जाती है। ऐसा ही वाकया पिछले दिनों उस वक्त हुआ जब एक केन्द्रीय मंत्री बीजेपी दफ्तर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे। यहां लाइब्रेरी के निरीक्षण के दौरान प्रदेश संगठन के लक्ष्मी पुत्र पदाधिकारी ने शहर के पदाधिकारी से कहा कि पूरा शहर ड्यूटी पर है, तो स्वाभाविक नेताजी ने उनकी हां में हां मिलाई, लेकिन बात इतने में खत्म नहीं हुई। एक दूसरे पदाधिकारी ने उनके तरफ इशारा करते हुए कहा कि भाई साहब ये केवल ड्यूटी नहीं बजा रहे हैं, बल्कि वजन कम करने के लिए खूब पसीना बहा रहे हैं। इसका असर भी हुआ है, 7-8 किलो वजन कम हो गया है। फिर लक्ष्मी पुत्र माने जाने वाले नेता ने हिसाब-किताब वाले अंदाज में देखा और कहा कि और कम करने की जरूरत है। यानि अकाउंट अभी भी ओवर ड्यू है। इतने में एक तीसरी टिप्पणी आई कि सही कर रहे हैं, विपक्ष में रहते हुए कम ही ठीक है, वरना सत्ता में आने के बाद वजन बढ़ा तो संदेश अच्छा नहीं जाता। उनके कहने का आशय शायद यही था सत्ताधारी दल के नेताओं की चर्बी को जनता खूब तौलती है, लेकिन उनको कौन बताए कि सियासत में यह भी मान्यता है कि मोटी चर्बी वाले ही टिकते हैं।
बड़े और अविभाजित जिले की कलेक्टरी
छत्तीसगढ़ में तेजी से नए जिलों के गठन से आईएएस अफसरों के लिए कलेक्टरी के अवसर बढ़ रहे हैं। नए अफसर खुश भी हो रहे हैं, क्योंकि प्रतियोगिता कम होगी, तो नंबर भी आएगा, लेकिन बड़े जिलों की कलेक्टरी कर चुके अफसर जरूर थोड़े मायूस हैं। उनको लगता है कि बड़े से छोटे जिले में जाना पड़ा तो प्रतिष्ठा के साथ रूतबे पर भी असर पड़ेगा। अब राजनांदगांव को ही लीजिए। आठ महीने में टूटकर तीन हिस्सों में बंट गया। राजनांदगांव छत्तीसगढ़ का सबसे शांतिप्रिय और बड़ा जिला माना जाता है। यहां कलेक्टरी के लिए तगड़ा जुगाड़ लगता है। राजनांदगांव से टूटकर पहले मोहला-मानपुर-चौकी को जिला बनाने की घोषणा हुई और अभी हाल ही में खैरागढ़-छुईखदान-गंडई नया जिला के रूप में अस्तित्व में आने वाला है। इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है। तीन भागों में टूटने के बाद भी राजनांदगांव क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज से छत्तीसगढ़ के बड़े जिलों में से एक है, लेकिन अविभाजित राजनांदगांव में कलेक्टरी अब पुराने दिनों की बात हो जाएगी। मौजूदा कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा वे आखिरी अफसर होंगे, जिन्हें इतने बड़े जिले की कलेक्टरी का अनुभव मिला। उनकी कलेक्टरी के रूप में पहली पोस्टिंग है। आमतौर पर कलेक्टरी की शुरूआत छोटे जिले से होती है। इस तरह उनका नाम पहली बार में ही बड़े जिले के साथ अविभाजित जिले की कलेक्टरी करने के लिए लिया जाएगा।
कोई राजनीति नहीं
नितिन गडकरी अकेले ऐसे केंद्रीय मंत्री हैं, जिनके स्वागत के लिए विरोधी दल के नेता भी तैयार रहते हैं। गडकरी सरकारी दौरों में सिर्फ विकास की बातें करते हैं, और बिना भेदभाव के योजनाओं को मंजूरी देते हैं। गडकरी रायपुर आए, तो सीएम भूपेश बघेल ने भी उनका अभिनंदन किया।
बताते हैं कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक चाहते थे कि कार्यक्रम में स्वागत भाषण उनका हो। और जब गडकरी यहां पहुंचे, तो उनके सामने अपनी बात रखी। गडकरी ने उन्हें समझाईश दी कि सरकारी कार्यक्रम में गैर जरूरी भाषणबाजी से बचना चाहिए। फिर भी उनका मान रखते हुए कौशिक का नाम स्वागत भाषण के लिए जुड़वा दिया। चर्चा है कि पूर्व सीएम के यहां गए, तो कारोबारी लोग लंबित मुआवजा को लेकर अपनी बात उन तक पहुंचाने की कोशिश में थे, लेकिन गडकरी पूर्व सीएम के निवास में ज्यादा देर नहीं रूके, और थोड़ी देर अनौपचारिक चर्चा कर निकल गए।
ताकतवर एमएलए
बीजापुर जिले में कांग्रेस विधायक विक्रम शाह मंडावी के खिलाफ उन्हीं की पार्टी के नेता राज्य युवा आयोग के सदस्य अजय सिंह ने मोर्चा खोल दिया है। दस्तावेजों के साथ उन्होंने पानी टैंकर की खरीदी मैं 25 से 30 लाख रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। एक स्वास्थ्य केंद्र के निर्माण कार्य में 20 लाख के गबन का आरोप है। छात्रावासों में 50 लाख रुपये की खेल सामग्री की आपूर्ति में भारी गड़बड़ी का आरोप है और भी निविदाओं में चहेतों को लाभ पहुंचाने का आरोप है।
विधायक की ओर से अपनी ही पार्टी के नेता की ओर से लगाए गए इन गंभीर आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया अभी नहीं आई है। दूसरी ओर इस विवाद को बीजेपी ने हाथों-हाथ लिया है। पूर्व मंत्री महेश गागड़ा ने अजय सिंह को भाजपा में शामिल होने का ऑफर दिया है, ताकि वे विधायक के खिलाफ ठीक से लड़ाई लड़ सकें। गागड़ा ने पिछले महीने एक प्रेस कांफ्रेंस करके अजय सिंह से भी ज्यादा गंभीर आरोप यह लगाया था कि भोले-भाले आदिवासियों की जमीन वे औने पौने दाम पर खरीद रहे हैं। कुछ जमीन पर दूसरों के नाम से लिए फिर अपने नाम करा लिए हैं।
कांग्रेस संगठन और पार्टी के मुखिया इन आरोपों को गंभीरता से लेते हैं या नहीं यह तो पता नहीं पर इस वाकये से एक बात स्पष्ट हो गई। वह कि प्रशासन में मंडावी की पूछ-परख है। वरना जगह-जगह कलेक्टर और एसपी से सत्तारूढ़ दल के विधायक (मंत्री भी) नाराज चल रहे हैं। कलेक्टरों को लेकर उनकी शिकायत है कि वे उनका काम नहीं करते। इधर मौका पाते ही उनके अपने लोगों और समर्थकों के खिलाफ पुलिस एफ आई आर कर देती है। ऐसे परेशान विधायकों के सामने विक्रम मंडावी को अपना नुस्खा शेयर करना चाहिए।
पुलिस तो पुलिस, बाउंसरों का भी रौब..
अब तक देखा गया है कि पर्यावरण जनसुनवाई के नाम पर खानापूर्ति ही की जाती है। प्रशासन ने यदि ठान लिया है तो फैक्ट्री तमाम विरोधों के बाद भी लगेगी। तखतपुर तहसील के घुटकू में ग्रामीण पहले से ही कोल वाशरी का विरोध कर रहे हैं। कलेक्ट्रेट में सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शन किया पर उनकी बात सुनने अधिकारी चैम्बर से नहीं निकले। अगले दिन नई कोलवाशरी और पॉवर प्लांट के लिए जन सुनवाई रख दी गई। ग्रामीणों ने अधिकारियों को रोकना चाहा तो पुलिस ने लाठियां भांजीं। जैसा कि अक्सर होता है विरोध करने वाले खदेड़ दिये गए, जिन जनप्रतिनिधियों को प्रलोभन देकर तैयार किया जा चुका था, उनको सामने लाकर सुनवाई की रस्म पूरी कर ली गई।
पूरे घटनाक्रम के दौरान ग्रामीणों को जिनसे डर लग रहा था वह पुलिस और उनकी लाठियां नहीं थीं। वे थे काली शर्ट में पहुंचे दर्जनभर से ज्यादा हट्टे-कट्टे तमतमाए चेहरे वाले जवान। किसी सरकारी कार्यक्रम में उन्होंने इनको पहले कभी नहीं देखा था। जैसे ही कोई ग्रामीण विरोध करता उसके सामने वे जाकर खड़े हो जाते। बाद में पता चला कि ये बाउंसर खासतौर पर फैक्ट्री मालिक की तरफ से बुलाए गये थे, ताकि पुलिस कहीं कमजोर पड़ जाए तो उनके भरोसेमंद लड़ाकू काम आएं। पुलिस-प्रशासन ने जिस तरह से इनकी मौजूदगी और गुंडागर्दी को बर्दाश्त किया, कोई ताज्जुब नहीं आने वाले दिनों में सरकार अपनी फोर्स न भेजकर जनसुनवाई कराने का ठेका इनको ही देने लगे।
फाइनेंस पर नींबू
नींबू के दाम भले ही 300 रुपये किलो पार कर गए हों, लेकिन जरूरत तो इस भीषण गर्मी में ही ज्यादा पड़ रही है। जिन्हें अभी चाहिए वे दाम गिरने तक इंतजार तो कर नहीं सकते। अब इसका समाधान निकाला है पेटीएम स्माल फाइनेंस ने। पेमेंट वालेट पेटीएम ने पांच साल पूरा होने के बाद आरबीआई से नान बैंकिंग फाइनेंसिंग का लाइसेंस ले लिया है और उसने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी डाली है। उसने अपनी पहली प्रचार सामग्री में नींबू के लिए उधार लेने का सुझाव दिया है।
सक्षम लोगों का बूस्टर डोज
कोविड महामारी से काफी हद तक राहत मिल जाने के बावजूद चीन सहित दुनिया के कई देशों में अचानक केस बढ़ रहे हैं। देश में भी मंगलवार को एक ही दिन में 2000 से अधिक केस काफी अंतराल के बाद मिले। इस समय देशभर में फिर केस बढक़र 12 हजार से अधिक हो गए हैं। इधर, जिन लोगों ने दोनों डोज लगवाए हैं, उनके पास 10 अप्रैल से मोबाइल पर बूस्टर डोज लेने का संदेश आना शुरू हो गया है। हालांकि प्रि कॉशन डोज लेने की सलाह पहले ही दी जा चुकी है। यह पहले की दो खुराकों की तरह मुफ्त नहीं है। इस पर करीब 350 रुपये खर्च करने होंगे। यह वैक्सीन निजी अस्पतालों, क्लीनिक में लगाई जाएगी। लोग सवाल कर रहे हैं कि कोविड से बचाव के लिए यदि बूस्टर डोज जरूरी है तो सभी को यह पहली और दूसरी डोज की तरह मुफ्त में क्यों नहीं और यदि जरूरी नहीं है तो सक्षम-अक्षम सबके लिए क्यों नहीं? बीमारी से बचाव में भेदभाव क्यों? बूस्टर डोज लगवाने में जो लोग खर्च करने की स्थिति में नहीं है, क्या उन्हें आगे चलकर कोविड नहीं हो सकता? यदि होगा तो क्या उनके इलाज का बोझ सरकार नहीं उठायेगी? बूस्टर डोज स्टेटस सिंबल बनाया जा रहा है ताकि इसे लेने के बाद लोग बता सकें कि हम तो खर्च की परवाह नहीं करते, कोरोना से बचने के लिए इसे लेना जरूरी लगा। पर, जो लोग पैसे के अभाव में डोज नहीं ले पाएंगे उनका क्या होगा? वे कोरोना से घिरे तो किसकी जिम्मेदारी?
गर्मी के दिनों की स्थायी चिंता
रायगढ़ में तापमान कल 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। मैदानी इलाकों के अधिकांश जिलों में 40 डिग्री के आसपास तपिश रही। नगरीय निकाय क्षेत्रों में हर साल की तरह इस बार भी पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। ठीक इसी मौके पर नगरीय प्रशासन विभाग ने सभी निकायों को एक पत्र जारी कर ऐसे सरकारी भवन जिनका निर्माण 150 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्र में हुआ है, उनमें वाटर हार्वेस्टिंग यूनिट लगाने की तरफ ध्यान दिलाया है। पूर्व में भाजपा सरकार के दौरान यह निर्णय लिया गया था कि शहरी इलाकों में 1200 वर्गफीट से अधिक क्षेत्र में बनने वाले भवन का नक्शा तब तक मंजूर नहीं किया जाएगा, जब तक उनमें वाटर हार्वेस्टिंग का प्लान शामिल नहीं होगा। लोगों ने तब नक्शे में प्लान तो बना लिया पर मौके पर निर्माण नहीं कराया। इसकी निगरानी भी निकायों की ओर से नहीं हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार हर साल भू-जल स्तर छत्तीसगढ़ में 5 फीट औसत के दर से नीचे जा रहा है। उद्योगों के लिए लगातार पानी का भरपूर दोहन हो रहा है पर उससे पैदा होने वाले जल संकट के लिए कार्रवाई सिर्फ कागजों में हो रही है।
नये स्कूल भवन का जश्न
यह धुर नक्सल प्रभावित जिले सुकमा के मोरपल्ली गांव के स्कूल की तस्वीर है। पुराने स्कूल भवन को नक्सलियों ने गिरा दिया था। इसके बाद यह नया स्कूल बनाया गया है। स्कूल के दरवाजे पढ़ाई के लिए खुले तो बच्चे खुशी से झूम उठे। उन्होंने भवन को सजाया, संवारा और स्कूल यूनिफॉर्म में ही नृत्य करते हुए जश्न मनाया। छत्तीसगढ़ में हर साल स्कूल सहित पंचायत और सरकारी भवन नक्सलियों के निशाने पर होते हैं। उम्मीद है इस नए भवन का इस्तेमाल सिर्फ पढ़ाई के लिए होगा।
अब क्या एक महीने में झीरम जांच होगी?
छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते साल झीरम घाटी जांच के लिए एक नया आयोग गठित किया। रिटायर्ड जस्टिस सतीश अग्निहोत्री और जस्टिस मिन्हाजुद्दीन इसमें शामिल किए गये। आयोग का कार्यकाल 6 माह तय किया गया था। इसमें से करीब 5 माह पूरे हो चुके हैं। इसका मतलब यह है कि आयोग के पास करीब एक माह का समय ही है जांच रिपोर्ट तैयार करने के लिए।
इसके पहले भाजपा शासनकाल के दौरान सीटिंग हाईकोर्ट जज जस्टिस प्रशांत मिश्रा की एक सदस्यीय जांच आयोग का कार्यकाल 20 बार बढ़ाया गया। आयोग ने एक बार और कार्यकाल बढ़ाने के लिए सितंबर 2021 में शासन को लिखा था, लेकिन नवंबर में आयोग की ओर से रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी गई। 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए भीषण नक्सली हमले में 30 से अधिक बड़े नेताओं की मौत हो गई थी। कुछ दिनों बाद इस हमले के नौ साल पूरे हो जाएंगे। क्या इससे पहले नया आयोग जांच पूरी कर लेगा, या फिर उसका भी कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा? रिपोर्ट आ भी जाए तो उस पर एक्शन कितने दिनों में होगा? प्रदेश की कांग्रेस सरकार के लिए यह चुनौती ही है कि उनके अपने नेताओं की हत्या हुई और न्याय के लिए इतना लंबा इंतजार हो रहा है।
खुश होना लाजमी है
मुख्यमंत्री ने नगरीय निकायों के सीएमओ को राजपत्रित अधिकारी का दर्जा दे दिया है। इससे सीएमओ तो गदगद हैं, लेकिन राजपत्रित अधिकारी हैरान हैं। बताते हैं कि राज्य बनने के बाद नगर पालिकाओं, और नगर पंचायतों का गठन तेजी से हुआ। सरकार ने 5 हजार से अधिक आबादी के गांवों को नगर पंचायत बना दिया। नई नियुक्ति नहीं होने से सीएमओ की कमी पड़ गई, और इस कमी की पूर्ति के लिए नगर निगमों के छोटे कर्मचारियों को सीएमओ बनने का मौका मिल गया। इस दौरान सीएमओ बनने के लिए कर्मचारियों में होड़ मच गई। इसके लिए पिछली सरकार में खूब लेन-देन भी हुआ। अब जब राजपत्रित अधिकारी का दर्जा मिल गया है, तो सीएमओ का खुश होना लाजमी है। दुखी तो वो हैं जो कि किसी कारण से सीएमओ नहीं बन पाए, और अभी भी क्लर्क कहला रहे हैं।
कौन झुलसेगा आप की ताप में...
जब से आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से पंजाब को छीनकर एकतरफा जीत हासिल की है उनके कार्यकर्ताओं का जोश देखते ही बन रहा है। दिल्ली से लगातार नेता दौरे कर रहे हैं। रैली और रोड शो से माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। ऐसे में एक सहज सवाल सब तरफ तैर रहा है कि छत्तीसगढ़ में आप की दखल का नुकसान कांग्रेस को अधिक होगा या बीजेपी को? इसके लिए अतीत पर थोड़ी नजर डाल लेनी चाहिए। सन् 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया। उसने एक प्रतिशत ही वोट हासिल किए पर सत्ता से बेदखली की बड़ी वजह इसकी मौजूदगी को माना गया। सन् 2008 और 2013 के चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ। किसी तीसरे दल ने चुनाव के नतीजे पर असर नहीं डाला। बसपा की अपनी जमीन अपने वोट लगभग स्थिर रहे। सन् 2018 में भाजपा की सरकार को 15 साल हो चुके थे और कांग्रेस से अलग होकर अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने कई जगह त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना दी। 2003 के उलट 2018 में भाजपा को इससे नुकसान हुआ। हालांकि एक बड़ा कारण एंटीइंकमबेसी को भी माना गया।
कांग्रेस की सरकार को अभी पांच साल पूरे नहीं हुए हैं, इसलिये एंटीइंकमबेसी का असर सन् 2023 के चुनाव में बहुत ज्यादा आसार नहीं है, पर कांग्रेस सरकार का काम, भाजपा के 15 साल के मुकाबले में कैसा रहा, इसकी तुलना जरूर होगी। खैरागढ़ के नतीजे ने बता दिया कि जकांछ, स्व. जोगी के जाने के बाद तीसरे दल के रूप में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रही। आम आदमी पार्टी इसी तरह मेहनत करती रहेगी तो वह ऐसी परिस्थिति पैदा कर सकती है।
छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति, जातिगत समीकरण, लोगों का रहन-सहन बताता है कि यहां आप को पंजाब की तरह चमत्कारिक सफलता नहीं मिल पाएगी। पर वह कांग्रेस भाजपा का खेल काफी हद तक बिगाड़ सकती है। बहुत से लोग अच्छे विकल्प की तलाश में हैं। सन् 2003 और 2018 के चुनाव में तीसरे दल की मौजूदगी ने सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा का ही बारी-बारी नुकसान किया। इस बार आप कितना और किसे नुकसान पहुंचाएगी, यह सवाल बहुत उलझन भरा नहीं है। भाजपा के पास सीटें इतनी कम है कि वह अगले चुनाव में आप के मैदान में नहीं होने पर भी ज्यादा हासिल करने की उम्मीद कर सकती है। विश्लेषक कह रहे हैं जहां जिसकी सत्ता है उसे ही आप से नुकसान पहुंच रहा है। इसलिये अधिक सतर्क कांग्रेस को ही रहना होगा।
पर्व पर पर्यावरण पूजा
रामनवमी और हनुमान जयंती पर देश के कई जगहों पर माहौल खराब हुआ। दिल्ली सहित सात राज्यों में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी। इन पर्वों में पहली बार तमंचा, तलवार लिए लोग उकसाने वाले नारे लगा रहे थे। अपना छत्तीसगढ़ शांत रहा। भोग-भंडारे का लोगों ने आनंद उठाया। पर कुछ जुनूनी लोग अलग हटकर काम करते हैं, जिसकी तरफ ध्यान न खिंचे ऐसा नहीं हो सकता। बिलासपुर के नजदीक मोपका के रहने वाले दूजराम भेंडपाल पर्यावरण और हरियाली बचाने के लिए काम करते हैं। कोई त्यौहार आता है तो वह इसी तरफ ज्यादा उत्साह से आगे बढ़ते हैं। हनुमान जयंती पर कोलाहल, भंडारा जुलूस, शोभायात्रा से वह दूर रहे। उन्होंने 51 पौधे लगाए और पहले से लगाए गए सैकड़ों पौधों को दिनभर पानी देते रहे। उसका मानना है कि त्यौहार खुशी के लिए होता है और उसे त्यौहारों के दिन पेड़-पौधों के बीच ज्यादा समय बिताने पर उसे लगता है कि वह ईश्वर उसके ज्यादा करीब होता है।
पॉलिटिकल लोगों से उम्मीद न करें
आईएएस कॉन्केल्व में रिटायर्ड आईएएस अनिल स्वरूप ने अफसरों को काफी कुछ सीख दी। यूपी कैडर के अफसर अनिल स्वरूप केंद्र सरकार में कोयला, और स्कूल शिक्षा सचिव रहे हैं। उनकी साख अच्छी है। उन्होंने दो-तीन किताबें भी लिखी हैं।
गु्रप डिस्कशन में पोस्टिंग के लिए पॉलिटिकल एप्रोच पर भी चर्चा हुई। अनिल स्वरूप ने कहा कि पॉलिटिकल लोगों से किसी तरह की उम्मीद नहीं रखना चाहिए। अफसरों को चाहिए कि जो अच्छा है वही काम करें। भ्रष्टाचार पर उन्होंने कहा कि आजकल कोई बातें छिपी नहीं रहती है। किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें आने पर सीनियर अफसरों को चाहिए कि वो अपने जूनियर की काउंसलिंग करें, और उन्हें समझाइश दे। यहां के आईएएस अनिल स्वरूप की सलाह मानते हैं अथवा नहीं, यह देखना है।
कॉनक्लेव में कई आए, कई नहीं
कॉनक्लेव में आईएएस से रिटायर होने के बाद राजनीति में आए संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी भी मौजूद थे। ओपी चौधरी भी कुछ देर के लिए कॉन्केल्व में पहुुंचे थे। एनएमडीसी के चेयरमैन रहे रिटायर्ड आईएएस एन बैजेंद्र कुमार साथ जब कॉन्केल्व में पहुंचे, तो कई लोग उन्हें पहचान नहीं पाए। बैजेंद्र कुमार की दाढ़ी बढ़ी हुई थी, और मास्क लगाए हुए थे। एक अफसर अपनी पत्नी को भी लेकर आए, उन्होंने सीएम के साथ हुए ग्रुप फोटो में पत्नी को भी खड़ा किया। हालांकि पत्नी अफसर नहीं है।
कॉन्केल्व में तीन पूर्व सीएस सुयोग्य मिश्रा, पी जाय उम्मेन, और विवेक ढांड पूरे समय मौजूद रहे। हालांकि कई रिटायर्ड अफसर अलग-अलग कारणों से नहीं आ पाए। लेकिन कॉन्केल्व को काफी सफल माना जा रहा है। इसके लिए एसोसिएशन के चेयरमैन मनोज पिंगुवा, आर प्रसन्ना, और अयाज तंबोली ने काफी मेहनत की थी। उन्हें सराहा भी गया।
ईश्तहार का एक तरीका यह भी
इश्तहार के लिए अटपटी बातें बड़ी अच्छी मानी जाती हैं। देश के कई शहरों में ठग्गू के लडडू रहते हैं और उनके साथ में नारा रहता है कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं। कई शहरों में खराब चाय से लेकर खराब समोसे तक के बोर्ड दिखते हैं।
कहीं पर घर के बाहर घर जैसे भोजन का नारा रहता है, तो अभी एक नारा, ससुराल जैसे भोजन का भी देखने मिला। अब ससुराल में तो खाना सबसे अच्छा मिलता ही है। पहली नजर में दुकान का नाम या वहां की खातिरदारी की खूबी लोगों को अगर खींच ले, तो फिर उनको ग्राहक भी बना देती है।
वकीलों की शिकायत पर मुहर लगी
मस्तूरी के नायब तहसीलदार का पक्षकार से प्रीमियम ब्रांड की शराब मांगने का वीडियो वायरल होने पर कलेक्टर ने उनको जिला कार्यालय में अटैच कर दिया और कमिश्नर से निलंबन की सिफारिश की है। वीडियो में दिख रहा है कि नायब तहसीलदार रमेश कमार ने ब्लैंडर प्राइड की कीमत पूछी। रकम किसी व्यक्ति देकर शराब लाने के लिए कहा। नायब तहसीलदार ने थोड़ा शिष्टाचार निभाया। चार लोगों को मिल जुलकर खाना ही नहीं, पीना भी वे ठीक समझते होंगे। डिमांड पर खर्च होने वाली रकम भी बहुत कम थी। इतने में तो बाबू को भी मनाना मुश्किल हो जाता है। कई राजस्व अधिकारी तो दफ्तर में संत बने रहते हैं और सारा लेन-देन खामोशी से होटल, घर या कार में ही बैठे-बैठे कर लेते हैं। लोगों को इसका अंदाजा तब लग पाता है जब वह जमीन जायजाद, गाडिय़ों को छिपा नहीं पाते या रेड हो जाती है।
रायगढ़ में राजस्व अधिकारियों और वकीलों के बीच का मारपीट से शुरू हुआ विवाद भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की मांग तक पहुंची। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने रायपुर में भी प्रदर्शन किया। विरोध और नाराजगी के बीच वकील धीरे-धीरे काम पर लौट गए। पर सरकार ने राजस्व अधिकारियों पर हाथ डालने का मन नहीं बनाया। लगता है शासन को ऐसे दिनों का इंतजार था। अधिकारियों की डिमांड इस हद तक पहुंच जाये कि वे अपने कारनामों से खुद ही बेनकाब होते जाएं और देर-सबेर नाराज वकील संतुष्ट हो जाएं।
कभी रिक्शा चलाते थे कमार साहब
मस्तूरी से हटाए गए नायब तहसीलदार रमेश कुमार कमार का अतीत संघर्षों से भरा हुआ है। कमार जनजाति छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति है। सरकार इनके उत्थान के लिए बहुत सी योजनाएं चला रही है। इसी कमार जनजाति से रमेश कुमार निकले। जीवन-यापन के लिए रिक्शा चलाया। विपरीत हालत में मेट्रिक की परीक्षा पास की, फिर राजस्व विभाग में बाबू बन गए। विभागीय परीक्षा दिलाई तो नायब तहसीलदार पर पर तरक्की मिली। विशेष पिछड़ी जनजातियों का प्रशासन में हस्तक्षेप, उनकी उपस्थिति बहुत कम है। कमार ने जिस तरह से अभाव और संघर्ष के रास्ते से यह स्थान हासिल किया वे समुदाय के लिए प्रेरणा बन सकते थे, लेकिन वे काम के एवज में शराब की मांग करते हुए वीडियो में कैद हो गए, उदाहरण बनने से चूक गए।
प्री वेडिंग फोटोशूट का कल्चर
बीते चार पांच सालों से एक नया कल्चर देखने में आ रहा है। शादी से पहले जोड़े की किसी डेस्टिनेशन पर होटल, हेरिटेज, समुद्र, झरने में वीडियो शूट। लडक़ा-लडक़ी दोनों पक्षों की मौजूदगी में होने वाले रिसेप्शन में यह वीडियो एक बड़े स्क्रीन पर चलता रहता है। अभी तो बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना बाकी है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अखिल भारतीय अग्रवाल समाज ने प्रदूषित गतिविधि मानते हुए इस पर रोक लगाने के लिए कहा है। पर यह किसी एक समाज में नहीं, दूसरों में है। खासकर उन शादियों में जिनमें धन-वैभव का बड़ा प्रदर्शन होता है।
विवाह के दौरान निभाई जाने वाली पीछे की कई परंपराओं को छोडऩे की बातें होती रही हैं। जैसे मेहमान सीमित हों, दहेज नहीं दिया जाना चाहिए, सामूहिक विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। कर्ज लेकर भी भव्यता का प्रदर्शन करना, दहेज देना, महंगे आभूषण और वस्त्र खरीदकर उनका प्रदर्शन करना, पीढ़ी दर पीढ़ी चलन में आता गया। यह प्री वेडिंग कल्चर नया है। बुजुर्गों से नहीं आया, युवाओं ने खुद ग्रहण किया है, जो सीधे-सीधे बाजार से जुड़ा है। वैभव प्रदर्शन का यह भी एक तरीका है। इसे पश्चिमी देशों से प्रेरित भी मान सकते हैं। पर, बुजुर्गों की राय अलग हो सकती है, और विवाह के आतुर जोड़े की अलग। हो सकता है उन्हें प्री वेडिंग शूट में कोई बुराई नजर नहीं आए। इसे वे शादी से पहले एक दूसरे से परिचय प्राप्त करने और अच्छी तरह समझ लेने का माध्यम मानें। पर इससे भी बड़ा सवाल है कि क्या समाज के निर्देशों को शादियों में अमल में प्राय: लाया जाता है। दहेज लेने-देने, आभूषण, वस्त्र और सैकड़ों लोगों का भव्य रिसेप्शन करने के मामले में आखिर कितनी कामयाबी मिल पाई है?
हरे सोने पर हड़ताल का संकट
छत्तीसगढ़ सरकार को लघु वनोपज संग्रह में बीते वर्ष अनेक अवार्ड मिले। इनमें तेंदूपत्ता संग्रहण के लिए दिया गया अवार्ड भी शामिल था। हर साल अप्रैल महीने में तेंदूपत्ता का संग्रहण शुरू हो जाता है और सोसाइटियों में फड़ बनाने का काम शुरू हो जाता था। पर इस बार अप्रैल के एक पखवाड़े से अधिक दिन बीत जाने के बावजूद संग्रहण का काम ठप पड़ा है। तेंदूपत्ता तोडऩे के लायक हो चुके हैं, पर तोडक़र इक_ा नहीं किये जा रहे हैं। बस्तर संभाग में हर साल 100 करोड़ रुपये की तेंदूपत्ता खरीदी कर ली जाती है। वहां भी अब तक संग्रहण शुरू नहीं हो पाया है। वजह है, लघु वनोपज सहकारी समितियों के प्रबंधकों की हड़ताल। कांग्रेस ने सन् 2018 के जन घोषणा पत्र में इन्हें तृतीय वर्ग कर्मचारी का दर्जा देने का वादा किया था। पर अब जब तीन साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है, उनकी मांग पूरी नहीं हो पाई है। तेंदूपत्ता तोडऩे का काम यदि समय पर नहीं हुआ तो आंधी बारिश में वे खराब हो जाएंगे। यह आदिवासियों की आमदनी का प्रमुख स्त्रोत है, पर हड़ताल की वजह से जो परिस्थितियां बनी हैं, उससे वे मायूस दिखाई दे रहे हैं।
तगड़ी घेराबंदी में रहे विक्रांत
खैरागढ़ उपचुनाव में भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार रहे विक्रांत सिंह अपनी ही पार्टी की घेरेबंदी में रहे। विक्रांत की नाराजगी को भांपते हुए अप्रत्यक्ष रूप से घेरने के लिहाज से सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक भाजपा की उन पर नजर रही। प्रचार के दौरान भाजपा को विक्रांत को टिकट नहीं दिए जाने से नुकसान का अंदेशा था। पार्टी ने विक्रांत के इर्द-गिर्द कुछ नेताओं को तैनात कर दिया था।
सुनते हैं कि अकलतरा विधायक सौरभ सिंह रोज नाश्ते की टेबल पर विक्रांत के साथ होते थे। नाश्ता खत्म होने के कुछ घंटों में संगठन महामंत्री पवन साय विक्रांत को अपने साथ लेकर प्रचार के लिए निकलते थे। दिन में प्रचार खत्म होने के बाद देर शाम तक विक्रांत को बृजमोहन अपने साथ रखते थे। शाम को चुनावी प्रचार करने के बीच विक्रांत को क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठक और रणनीति तैयार करने साथ रखा जाता था। इसके बाद देर रात यानी 10-11 बजे के बीच रोजाना प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी विक्रांत से वीडिय़ो क्रान्फ्रेस पर चुनावी गतिविधियों का रिपोर्ट लेती थीं।
चर्चा है कि पार्टी को आभास था कि टिकट की अनदेखी से विक्रांत के समर्थक और कार्यकर्ता चुनाव प्रचार से दूर हो सकते हैं। सुनते हैं कि विक्रांत की राजनीतिक स्थिति कोमल जंघेल के मुकाबले मजबूत रही। सिर्फ जातिवाद का कार्ड खेलने के लिए कोमल पांचवीं बार टिकट पाने में कामयाब रहे। सियासी हल्के में चर्चा रही कि कांग्रेस सरकार के कुछ रणनीतिकारों ने भी विक्रांत से संपर्क किया था। यह भी खबर थी कि प्रचार के शुरूआती दिनों में पूर्व सीएम रमन सिंह ने भी विक्रांत के साथ बैठक की थी। विक्रांत को घेरे रखने के लिए भाजपा की इस सियासी चाल से जुड़ी बातें अब सामने आने लगी हैं।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
प्रदेश के एक बड़े निगम में अभूतपूर्व शांति है। पेयजल, सफाई, और सरकारी योजनाओं में खुले तौर पर भ्रष्टाचार हो रहा है। मगर विरोधी दल के पार्षदों ने खामोशी ओढ़ ली है। पार्टी के निर्देश पर, अथवा सामान्य सभा में थोड़ा बहुत दिखावे के लिए हो हल्ला हो जाता है, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हो रहा है।
सुनते हैं कि पार्टी के एक बड़े नेता ने पार्षदों की खामोशी का राज जानने की कोशिश की, तो खुलासा हुआ कि निगम के मुखिया ने योजनाओं में कमीशन का ऐसा सिस्टम बना दिया है, जिससे पार्षदों को अतिरिक्त कमाई के लिए हाथ-पांव मारने की जरूरत नहीं है। किसी भी वार्ड में कोई भी निर्माण कार्य होगा, उसका दो फीसदी कमीशन बिना मांगे संबंधित वार्ड पार्षद तक पहुंच जाएगा। सफाई ठेकेदारों को भी इसी तरह के निर्देश जा चुके हैं। अब निगम के मुखिया पार्षदों के हितों का इतना कुछ ध्यान रख रखते हैं, तो विरोध करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।
लोगों के दिमाग में इन दिनों धर्म, कर्म और ज्योतिष कुछ अधिक ही भरा हुआ है। उसका एक नमूना सोशल मीडिया में देखने को मिला।
रायपुर ग्रामीण में हलचल
आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजीव झा रायपुर पहुंचे, तो कांग्रेस-भाजपा के कई नेताओं के साथ-साथ कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनसे संपर्क किया। कई नेता आप से जुडकऱ विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। संजीव झा से मिलने वालों में एक कॉलेज शिक्षक भी थे।
सुनते हैं कि कॉलेज शिक्षक की संजीव झा के साथ गंभीर चर्चा हुई है। संजीव झा कॉलेज शिक्षक के साथ आकाशवाणी के समीप काली मंदिर गए, और वहां हवन-पूजन भी किया। चर्चा है कि शिक्षक, रायपुर ग्रामीण सीट से पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा के खिलाफ चुनाव लडऩा चाहते हैं। वो किसी बात को लेकर सत्यनारायण शर्मा से नाराज हैं, और चुनाव में उन्हें हराने की मंशा रखते हैं।
संजीव झा ने उन्हें अभी से टिकट को लेकर आश्वासन तो नहीं दिया है, लेकिन उन्हें रायपुर ग्रामीण में सक्रियता बढ़ाने के लिए कह दिया है। शिक्षक की दिग्गज नेता को हराने की इच्छा पूरी हो पाएगी या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन शिक्षक की सक्रियता से रायपुर ग्रामीण के कांग्रेसजनों में हलचल है।
हफ्तेभर के भीतर सूची
आईपीएस अफसरों की जल्द ही एक तबादला सूची जारी होने वाली है। इसमें दुर्ग एसएसपी बद्री प्रसाद मीणा को बदला जा सकता है। मीणा प्रमोट होकर आईजी हो चुके हैं। ऐसे में उन्हें हटना ही है। दुर्ग सीएम का गृह जिला है। ऐसे में यहां के लिए दीपक झा, भोजराज पटेल, और संतोष सिंह जैसे अनुभवी नामों की चर्चा है। न सिर्फ दुर्ग बल्कि कुछ और जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं। चुनाव की वजह से सूची जारी होने में विलंब हुआ है। लेकिन अब चर्चा है कि हफ्तेभर के भीतर सूची जारी हो सकती है।
रेरा के लिए भागदौड़
रेरा के सदस्य एनके असवाल का कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है। रेरा सदस्य की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एसीएस (हाउसिंग एंड इनवायरमेंट) को चि_ी जा चुकी है। रेरा सदस्य के लिए कई रिटायर्ड आईएएस, आईएफएस अफसरों के नाम की चर्चा है। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स रह चुके एक रिटायर्ड अफसर तो इसके लिए लॉबिंग भी कर रहे हैं। हल्ला है कि इस बार किसी रिटायर्ड जज को मौका मिल सकता है। वैसे कई दूसरे रिटायर्ड अफसर भी इसके लिए भागदौड़ कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के नींबू के भी दिन फिरे
नींबू के दाम ने महंगे अनार, सेब जैसे फलों को भी पीछे छोड़ दिया है। छत्तीसगढ़ में खपत का केवल दस फीसदी उत्पादन होता है। ज्यादातर सप्लाई आंध्र प्रदेश से होती है। बारिश और चक्रवात के चलते हुए नुकसान ने देशभर में आपूर्ति कम कर दी। पर यह अब कुछ दिनों की बात है। आंध्र में नई फसल तैयार हो रही है, जो डेढ़ से दो माह बाद बाजार में आ जाएगी। पर तब तक गर्मी भी कम हो चुकी रहेगी। अभी तो डिमांड भरपूर है और उपलब्धता बहुत कम। छत्तीसगढ़ में महासमुंद और एक दो जिलों में नींबू की व्यवसायिक खेती की जाती है। ग्रामीण इलाकों में छोटे छोटे बगीचों से निकल रहे नींबू भी अच्छे दाम पर बिक रहे हैं। गावों से निकलने वाला नींबू भी अब नग के हिसाब बिक रहा है, जो 50 से 60 रुपए किलो में मिलता था। शहरों में बिक्री पर इन्हें 30 से 40 फीसदी मुनाफा हो रहा है। नींबू की मांग और कीमत ने एक बार फिर यह सोचे जाने की वजह है कि छत्तीसगढ़ में धान के अलावा विविध दूसरी फसलों को बढ़ावा देने की कारगर कोशिश हो।
जुर्म का फायदा किसे मिल रहा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नए साल के पहले ही दिन नेकी की एक दीवार को जलाकर राख कर दिया गया था जिसे कि गरीबों के लिए कपड़े छोडऩे की जगह की तरह बनाया गया था। यहां पर फाइबर से बनाई गई रंग-बिरंगी मूर्तियां थीं, जहां बच्चे खेलते भी थे, और लोग अपने बेकार कपड़े छोड़ जाते थे। इस जगह के पीछे दो महंगे ब्रांड के रेस्त्रां शुरू हुए थे, और फिर मानो उन्हेें सडक़ से दिखाने के लिए इस दीवार को जलाकर राख कर दिया गया था। नेकी गई भाड़ में, और किसी के जुर्म का फायदा दीवार के पीछे छुपे इस कारोबार को हो रहा था। भाजपा ने इस दीवार को फिर से बनाने के लिए आंदोलन किया तो म्युनिसिपल ने एक महीने का वायदा किया था। वह महीना कब का निकल गया, और उसके काफी अरसा बाद म्युनिसिपल का एक बैनर इस जगह पर टांग दिया गया था। अब उस बैनर को भी फाडक़र फेंक दिया गया है, और एक बार फिर पीछे दब रहे धंधों की नुमाइश शुरू हो गई है। अब इन सबका मुजरिम कौन है यह पता लगाना तो पुलिस और अफसरों का काम है लेकिन इस जुर्म का फायदा किसे मिल रहा है, यह तो सामने खड़े होकर ही देखा जा सकता है।
मछली के बच्चे
चुनाव में कई किस्म की जालसाजी और धोखाधड़ी होती है। अभी छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में विधानसभा उपचुनाव हुआ, तो एक अखबार की एक कतरन गढ़ी गई, और इस जालसाजी को लोगों के बीच फैलाया गया। इसी तरह भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल की रिकॉर्डिंग बताते हुए एक ऑडियो क्लिप चारों तरफ फैली जिसे बृजमोहन की आवाज बताया गया। अब जानकारों ने तो तुरंत इस जालसाजी को पकड़ लिया लेकिन ऐसी जालसाजी की किसने होगी? राजनीति में जरूरी नहीं है कि जो जाहिर तौर पर दिखे, वही सच हो। और चुनाव तो राजनीति का सबसे घटिया दर्जे का काम होता है। पहली नजर में जिन लोगों को नुकसान पहुंचाने के लिए कोई चीज गढ़ी हुई दिखती है, वह हो सकता है कि उनके हिमायती ही गढ़ें, और विरोधियों को बदनाम करने के लिए इसका इस्तेमाल करें। अखबारों का भी ऐसे माहौल में जमकर इस्तेमाल होता है, कुछ को धोखा देकर इस्तेमाल होता है, और कुछ इस्तेमाल होने के लिए पेश भी रहते हैं। खैरागढ़ उपचुनाव में बहुत अधिक तो नहीं हुआ, लेकिन थोड़ा-बहुत जरूर हुआ जिससे और किसी को न सही, कम से कम मीडिया को सबक लेने की जरूरत है। राजनीति के लोग तो मछली के बच्चे हैं, उन्हें तैरना कोई क्या सिखा सकते हैं।
फिर मुनाफे वाले जोन में खराब सेवा क्यों?
रेलवे ने पंजाब और हिमाचल प्रदेश के अंतर्गत फिरोजपुर मंडल के 13 रेलवे स्टेशनों को बंद करने का फैसला लिया है। इनमें से कई स्टेशन बहुत पुराने हैं। कुछ दिन पहले एक आंकड़ा सामने आया था कि कोविड-19 महामारी के नाम पर बंद किए गए स्टेशनों में करीब 1600 ऐसे हैं, जहां स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद रेलवे ने स्टापेज देना बंद कर दिया है। इनमें छत्तीसगढ़ के भी कई स्टेशन शामिल हैं। फिरोजपुर मंडल के यात्रियों में भारी नाराजगी है, जिसके जवाब में रेलवे ने तर्क दिया है कि इन स्टेशनों में बहुत कम राजस्व मिलता है।
यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है। पहली बात तो यह है कि स्टेशन-स्टेशन की अलग-अलग आमदनी का हिसाब लगाना शुरू किया जाएगा तब तो छोटे स्टेशनों के यात्रियों की सहूलियत छिनती ही चली जाएगी। रेल सेवाओं में भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा। यदि यही तर्क सही है तो बिलासपुर रेलवे जोन से गुजरने, चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों को अचानक एक माह के लिए बंद करने के पीछे रेलवे क्या सफाई देगा? यह जगजाहिर है कि बिलासपुर, रेलवे को सबसे ज्यादा आमदनी देने वाला जोन है। बीते वित्तीय वर्ष के समाप्त होने पर एक प्रेस नोट जारी कर रेलवे ने यहां से हुई 23 हजार करोड़ रुपये की आमदनी को लेकर अपनी पीठ थपथपाई थी। ऐसा है, तो फिर पैसेंजर ट्रेनों को बंद क्यों किया गया। मुख्यमंत्री की नाराजगी पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं है।
प्रदेश के 11 में से 9 भाजपा सांसद हैं। इनमें से कुछ ने औपचारिक पत्र लिखकर रेलवे से इन ट्रेनों को शुरू करने की मांग रखी है, पर सिर्फ रस्म निभाने की तरह। राज्य सरकार के अधिकारिक पत्र का भी असर नहीं हुआ है। लंबे समय से रायपुर-बिलासपुर के बीच सुपर फास्ट मेट्रो ट्रेन चलाने की मांग हो रही है, पर रेलवे ने उसे पूरा नहीं किया। जगदलपुर में रेल लाइन को रायपुर से जोडऩे के लिए तो पदयात्रा भी इसी समय चल रही है। ममता बेनर्जी के कार्यकाल में बिलासपुर के लिए रेलवे ने एक मेडिकल कॉलेज और मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल खोलने की घोषणा की थी, पर संसद में की गई यह घोषणा कब की फाइलों में दब चुकी।
रेलवे से प्रतिदिन लाखों यात्रियों को सस्ती सुलभ यात्रा सेवा मिलती है। पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों के बीच रेलवे ने अब तक पैसेंजर ट्रेनों में एमएसटी शुरू नहीं की है। नि:शक्तों को छोडक़र बाकी सब के लिए रियायती टिकट बंद है। ऊपर से पैसेंजर ट्रेनों सफर करने वाले सीमित कमाई वाले यात्रियों से भेदभाव किया जा रहा है। राज्य की लोक कल्याणकारी नीति होती है, जिसमें जरूरतमंदों पर राजस्व का हिस्सा खर्च किया जाता है। पर अब रेलवे अब शुद्ध व्यापारी की तरह बर्ताव कर रहा है। यही हाल रहा तो निजीकरण की भी जरूरत नहीं रह जाएगी।
मंडावी से समाज के युवा नाराज..
कांकेर लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद मोहन मंडावी ने 2019 से पहले कोई चुनाव नहीं लड़ा था। पिछली बार सभी सीटों पर भाजपा ने नए उम्मीदवारों को मौका दिया था। उनकी पहचान एक रामकथा वाचक और मानस गायक की रही है। आरएसएस से उनका लंबे समय से जुड़ाव है। जब टिकट मिली तब लोकसेवा आयोग के सदस्य थे। इन सब खूबियों के बीच उनके समाज का एक वर्ग उन्हें आदिवासी नहीं मान रहा है। वे कांकेर में ही आयोजित आदिवासी समाज के एक पारंपरिक पर्व मरका पंडुम में शामिल होने पहुंचे थे। पर जैसे ही गाड़ी से उतरे, उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गई। भीड़ ने उन्हें घेर लिया। किसी तरह पुलिस और अपने सुरक्षा कर्मियों की मदद से वे वापस गाड़ी में बैठे और सुरक्षित लौट पाए। जैसी की खबर है कि प्रदर्शन करने वालों में ज्यादातर आदिवासी युवा ही थे। उनका कहना था कि सांसद मंडावी असली आदिवासी नहीं है। ये युवा कुछ दिन पहले किसी सभा में मंडावी के दिए गए एक बयान को लेकर विरोध जता रहे थे। उनका कहना था कि उनका कथन सामाजिक मान्यता के खिलाफ था।
बहरहाल, दस्तावेजों में तो मंडावी के आदिवासी होने को कोई चुनौती नही दी जा रही है। उन्हें अपने समाज के बीच पैदा हुई नाराजगी को ही दूर करना होगा।