राजपथ - जनपथ
वकीलों की शिकायत पर मुहर लगी
मस्तूरी के नायब तहसीलदार का पक्षकार से प्रीमियम ब्रांड की शराब मांगने का वीडियो वायरल होने पर कलेक्टर ने उनको जिला कार्यालय में अटैच कर दिया और कमिश्नर से निलंबन की सिफारिश की है। वीडियो में दिख रहा है कि नायब तहसीलदार रमेश कमार ने ब्लैंडर प्राइड की कीमत पूछी। रकम किसी व्यक्ति देकर शराब लाने के लिए कहा। नायब तहसीलदार ने थोड़ा शिष्टाचार निभाया। चार लोगों को मिल जुलकर खाना ही नहीं, पीना भी वे ठीक समझते होंगे। डिमांड पर खर्च होने वाली रकम भी बहुत कम थी। इतने में तो बाबू को भी मनाना मुश्किल हो जाता है। कई राजस्व अधिकारी तो दफ्तर में संत बने रहते हैं और सारा लेन-देन खामोशी से होटल, घर या कार में ही बैठे-बैठे कर लेते हैं। लोगों को इसका अंदाजा तब लग पाता है जब वह जमीन जायजाद, गाडिय़ों को छिपा नहीं पाते या रेड हो जाती है।
रायगढ़ में राजस्व अधिकारियों और वकीलों के बीच का मारपीट से शुरू हुआ विवाद भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की मांग तक पहुंची। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने रायपुर में भी प्रदर्शन किया। विरोध और नाराजगी के बीच वकील धीरे-धीरे काम पर लौट गए। पर सरकार ने राजस्व अधिकारियों पर हाथ डालने का मन नहीं बनाया। लगता है शासन को ऐसे दिनों का इंतजार था। अधिकारियों की डिमांड इस हद तक पहुंच जाये कि वे अपने कारनामों से खुद ही बेनकाब होते जाएं और देर-सबेर नाराज वकील संतुष्ट हो जाएं।
कभी रिक्शा चलाते थे कमार साहब
मस्तूरी से हटाए गए नायब तहसीलदार रमेश कुमार कमार का अतीत संघर्षों से भरा हुआ है। कमार जनजाति छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजाति है। सरकार इनके उत्थान के लिए बहुत सी योजनाएं चला रही है। इसी कमार जनजाति से रमेश कुमार निकले। जीवन-यापन के लिए रिक्शा चलाया। विपरीत हालत में मेट्रिक की परीक्षा पास की, फिर राजस्व विभाग में बाबू बन गए। विभागीय परीक्षा दिलाई तो नायब तहसीलदार पर पर तरक्की मिली। विशेष पिछड़ी जनजातियों का प्रशासन में हस्तक्षेप, उनकी उपस्थिति बहुत कम है। कमार ने जिस तरह से अभाव और संघर्ष के रास्ते से यह स्थान हासिल किया वे समुदाय के लिए प्रेरणा बन सकते थे, लेकिन वे काम के एवज में शराब की मांग करते हुए वीडियो में कैद हो गए, उदाहरण बनने से चूक गए।
प्री वेडिंग फोटोशूट का कल्चर
बीते चार पांच सालों से एक नया कल्चर देखने में आ रहा है। शादी से पहले जोड़े की किसी डेस्टिनेशन पर होटल, हेरिटेज, समुद्र, झरने में वीडियो शूट। लडक़ा-लडक़ी दोनों पक्षों की मौजूदगी में होने वाले रिसेप्शन में यह वीडियो एक बड़े स्क्रीन पर चलता रहता है। अभी तो बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना बाकी है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अखिल भारतीय अग्रवाल समाज ने प्रदूषित गतिविधि मानते हुए इस पर रोक लगाने के लिए कहा है। पर यह किसी एक समाज में नहीं, दूसरों में है। खासकर उन शादियों में जिनमें धन-वैभव का बड़ा प्रदर्शन होता है।
विवाह के दौरान निभाई जाने वाली पीछे की कई परंपराओं को छोडऩे की बातें होती रही हैं। जैसे मेहमान सीमित हों, दहेज नहीं दिया जाना चाहिए, सामूहिक विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। कर्ज लेकर भी भव्यता का प्रदर्शन करना, दहेज देना, महंगे आभूषण और वस्त्र खरीदकर उनका प्रदर्शन करना, पीढ़ी दर पीढ़ी चलन में आता गया। यह प्री वेडिंग कल्चर नया है। बुजुर्गों से नहीं आया, युवाओं ने खुद ग्रहण किया है, जो सीधे-सीधे बाजार से जुड़ा है। वैभव प्रदर्शन का यह भी एक तरीका है। इसे पश्चिमी देशों से प्रेरित भी मान सकते हैं। पर, बुजुर्गों की राय अलग हो सकती है, और विवाह के आतुर जोड़े की अलग। हो सकता है उन्हें प्री वेडिंग शूट में कोई बुराई नजर नहीं आए। इसे वे शादी से पहले एक दूसरे से परिचय प्राप्त करने और अच्छी तरह समझ लेने का माध्यम मानें। पर इससे भी बड़ा सवाल है कि क्या समाज के निर्देशों को शादियों में अमल में प्राय: लाया जाता है। दहेज लेने-देने, आभूषण, वस्त्र और सैकड़ों लोगों का भव्य रिसेप्शन करने के मामले में आखिर कितनी कामयाबी मिल पाई है?
हरे सोने पर हड़ताल का संकट
छत्तीसगढ़ सरकार को लघु वनोपज संग्रह में बीते वर्ष अनेक अवार्ड मिले। इनमें तेंदूपत्ता संग्रहण के लिए दिया गया अवार्ड भी शामिल था। हर साल अप्रैल महीने में तेंदूपत्ता का संग्रहण शुरू हो जाता है और सोसाइटियों में फड़ बनाने का काम शुरू हो जाता था। पर इस बार अप्रैल के एक पखवाड़े से अधिक दिन बीत जाने के बावजूद संग्रहण का काम ठप पड़ा है। तेंदूपत्ता तोडऩे के लायक हो चुके हैं, पर तोडक़र इक_ा नहीं किये जा रहे हैं। बस्तर संभाग में हर साल 100 करोड़ रुपये की तेंदूपत्ता खरीदी कर ली जाती है। वहां भी अब तक संग्रहण शुरू नहीं हो पाया है। वजह है, लघु वनोपज सहकारी समितियों के प्रबंधकों की हड़ताल। कांग्रेस ने सन् 2018 के जन घोषणा पत्र में इन्हें तृतीय वर्ग कर्मचारी का दर्जा देने का वादा किया था। पर अब जब तीन साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है, उनकी मांग पूरी नहीं हो पाई है। तेंदूपत्ता तोडऩे का काम यदि समय पर नहीं हुआ तो आंधी बारिश में वे खराब हो जाएंगे। यह आदिवासियों की आमदनी का प्रमुख स्त्रोत है, पर हड़ताल की वजह से जो परिस्थितियां बनी हैं, उससे वे मायूस दिखाई दे रहे हैं।
तगड़ी घेराबंदी में रहे विक्रांत
खैरागढ़ उपचुनाव में भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार रहे विक्रांत सिंह अपनी ही पार्टी की घेरेबंदी में रहे। विक्रांत की नाराजगी को भांपते हुए अप्रत्यक्ष रूप से घेरने के लिहाज से सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक भाजपा की उन पर नजर रही। प्रचार के दौरान भाजपा को विक्रांत को टिकट नहीं दिए जाने से नुकसान का अंदेशा था। पार्टी ने विक्रांत के इर्द-गिर्द कुछ नेताओं को तैनात कर दिया था।
सुनते हैं कि अकलतरा विधायक सौरभ सिंह रोज नाश्ते की टेबल पर विक्रांत के साथ होते थे। नाश्ता खत्म होने के कुछ घंटों में संगठन महामंत्री पवन साय विक्रांत को अपने साथ लेकर प्रचार के लिए निकलते थे। दिन में प्रचार खत्म होने के बाद देर शाम तक विक्रांत को बृजमोहन अपने साथ रखते थे। शाम को चुनावी प्रचार करने के बीच विक्रांत को क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठक और रणनीति तैयार करने साथ रखा जाता था। इसके बाद देर रात यानी 10-11 बजे के बीच रोजाना प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी विक्रांत से वीडिय़ो क्रान्फ्रेस पर चुनावी गतिविधियों का रिपोर्ट लेती थीं।
चर्चा है कि पार्टी को आभास था कि टिकट की अनदेखी से विक्रांत के समर्थक और कार्यकर्ता चुनाव प्रचार से दूर हो सकते हैं। सुनते हैं कि विक्रांत की राजनीतिक स्थिति कोमल जंघेल के मुकाबले मजबूत रही। सिर्फ जातिवाद का कार्ड खेलने के लिए कोमल पांचवीं बार टिकट पाने में कामयाब रहे। सियासी हल्के में चर्चा रही कि कांग्रेस सरकार के कुछ रणनीतिकारों ने भी विक्रांत से संपर्क किया था। यह भी खबर थी कि प्रचार के शुरूआती दिनों में पूर्व सीएम रमन सिंह ने भी विक्रांत के साथ बैठक की थी। विक्रांत को घेरे रखने के लिए भाजपा की इस सियासी चाल से जुड़ी बातें अब सामने आने लगी हैं।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
प्रदेश के एक बड़े निगम में अभूतपूर्व शांति है। पेयजल, सफाई, और सरकारी योजनाओं में खुले तौर पर भ्रष्टाचार हो रहा है। मगर विरोधी दल के पार्षदों ने खामोशी ओढ़ ली है। पार्टी के निर्देश पर, अथवा सामान्य सभा में थोड़ा बहुत दिखावे के लिए हो हल्ला हो जाता है, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हो रहा है।
सुनते हैं कि पार्टी के एक बड़े नेता ने पार्षदों की खामोशी का राज जानने की कोशिश की, तो खुलासा हुआ कि निगम के मुखिया ने योजनाओं में कमीशन का ऐसा सिस्टम बना दिया है, जिससे पार्षदों को अतिरिक्त कमाई के लिए हाथ-पांव मारने की जरूरत नहीं है। किसी भी वार्ड में कोई भी निर्माण कार्य होगा, उसका दो फीसदी कमीशन बिना मांगे संबंधित वार्ड पार्षद तक पहुंच जाएगा। सफाई ठेकेदारों को भी इसी तरह के निर्देश जा चुके हैं। अब निगम के मुखिया पार्षदों के हितों का इतना कुछ ध्यान रख रखते हैं, तो विरोध करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।
लोगों के दिमाग में इन दिनों धर्म, कर्म और ज्योतिष कुछ अधिक ही भरा हुआ है। उसका एक नमूना सोशल मीडिया में देखने को मिला।
रायपुर ग्रामीण में हलचल
आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजीव झा रायपुर पहुंचे, तो कांग्रेस-भाजपा के कई नेताओं के साथ-साथ कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनसे संपर्क किया। कई नेता आप से जुडकऱ विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। संजीव झा से मिलने वालों में एक कॉलेज शिक्षक भी थे।
सुनते हैं कि कॉलेज शिक्षक की संजीव झा के साथ गंभीर चर्चा हुई है। संजीव झा कॉलेज शिक्षक के साथ आकाशवाणी के समीप काली मंदिर गए, और वहां हवन-पूजन भी किया। चर्चा है कि शिक्षक, रायपुर ग्रामीण सीट से पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा के खिलाफ चुनाव लडऩा चाहते हैं। वो किसी बात को लेकर सत्यनारायण शर्मा से नाराज हैं, और चुनाव में उन्हें हराने की मंशा रखते हैं।
संजीव झा ने उन्हें अभी से टिकट को लेकर आश्वासन तो नहीं दिया है, लेकिन उन्हें रायपुर ग्रामीण में सक्रियता बढ़ाने के लिए कह दिया है। शिक्षक की दिग्गज नेता को हराने की इच्छा पूरी हो पाएगी या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन शिक्षक की सक्रियता से रायपुर ग्रामीण के कांग्रेसजनों में हलचल है।
हफ्तेभर के भीतर सूची
आईपीएस अफसरों की जल्द ही एक तबादला सूची जारी होने वाली है। इसमें दुर्ग एसएसपी बद्री प्रसाद मीणा को बदला जा सकता है। मीणा प्रमोट होकर आईजी हो चुके हैं। ऐसे में उन्हें हटना ही है। दुर्ग सीएम का गृह जिला है। ऐसे में यहां के लिए दीपक झा, भोजराज पटेल, और संतोष सिंह जैसे अनुभवी नामों की चर्चा है। न सिर्फ दुर्ग बल्कि कुछ और जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं। चुनाव की वजह से सूची जारी होने में विलंब हुआ है। लेकिन अब चर्चा है कि हफ्तेभर के भीतर सूची जारी हो सकती है।
रेरा के लिए भागदौड़
रेरा के सदस्य एनके असवाल का कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है। रेरा सदस्य की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एसीएस (हाउसिंग एंड इनवायरमेंट) को चि_ी जा चुकी है। रेरा सदस्य के लिए कई रिटायर्ड आईएएस, आईएफएस अफसरों के नाम की चर्चा है। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स रह चुके एक रिटायर्ड अफसर तो इसके लिए लॉबिंग भी कर रहे हैं। हल्ला है कि इस बार किसी रिटायर्ड जज को मौका मिल सकता है। वैसे कई दूसरे रिटायर्ड अफसर भी इसके लिए भागदौड़ कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के नींबू के भी दिन फिरे
नींबू के दाम ने महंगे अनार, सेब जैसे फलों को भी पीछे छोड़ दिया है। छत्तीसगढ़ में खपत का केवल दस फीसदी उत्पादन होता है। ज्यादातर सप्लाई आंध्र प्रदेश से होती है। बारिश और चक्रवात के चलते हुए नुकसान ने देशभर में आपूर्ति कम कर दी। पर यह अब कुछ दिनों की बात है। आंध्र में नई फसल तैयार हो रही है, जो डेढ़ से दो माह बाद बाजार में आ जाएगी। पर तब तक गर्मी भी कम हो चुकी रहेगी। अभी तो डिमांड भरपूर है और उपलब्धता बहुत कम। छत्तीसगढ़ में महासमुंद और एक दो जिलों में नींबू की व्यवसायिक खेती की जाती है। ग्रामीण इलाकों में छोटे छोटे बगीचों से निकल रहे नींबू भी अच्छे दाम पर बिक रहे हैं। गावों से निकलने वाला नींबू भी अब नग के हिसाब बिक रहा है, जो 50 से 60 रुपए किलो में मिलता था। शहरों में बिक्री पर इन्हें 30 से 40 फीसदी मुनाफा हो रहा है। नींबू की मांग और कीमत ने एक बार फिर यह सोचे जाने की वजह है कि छत्तीसगढ़ में धान के अलावा विविध दूसरी फसलों को बढ़ावा देने की कारगर कोशिश हो।
जुर्म का फायदा किसे मिल रहा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नए साल के पहले ही दिन नेकी की एक दीवार को जलाकर राख कर दिया गया था जिसे कि गरीबों के लिए कपड़े छोडऩे की जगह की तरह बनाया गया था। यहां पर फाइबर से बनाई गई रंग-बिरंगी मूर्तियां थीं, जहां बच्चे खेलते भी थे, और लोग अपने बेकार कपड़े छोड़ जाते थे। इस जगह के पीछे दो महंगे ब्रांड के रेस्त्रां शुरू हुए थे, और फिर मानो उन्हेें सडक़ से दिखाने के लिए इस दीवार को जलाकर राख कर दिया गया था। नेकी गई भाड़ में, और किसी के जुर्म का फायदा दीवार के पीछे छुपे इस कारोबार को हो रहा था। भाजपा ने इस दीवार को फिर से बनाने के लिए आंदोलन किया तो म्युनिसिपल ने एक महीने का वायदा किया था। वह महीना कब का निकल गया, और उसके काफी अरसा बाद म्युनिसिपल का एक बैनर इस जगह पर टांग दिया गया था। अब उस बैनर को भी फाडक़र फेंक दिया गया है, और एक बार फिर पीछे दब रहे धंधों की नुमाइश शुरू हो गई है। अब इन सबका मुजरिम कौन है यह पता लगाना तो पुलिस और अफसरों का काम है लेकिन इस जुर्म का फायदा किसे मिल रहा है, यह तो सामने खड़े होकर ही देखा जा सकता है।
मछली के बच्चे
चुनाव में कई किस्म की जालसाजी और धोखाधड़ी होती है। अभी छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में विधानसभा उपचुनाव हुआ, तो एक अखबार की एक कतरन गढ़ी गई, और इस जालसाजी को लोगों के बीच फैलाया गया। इसी तरह भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल की रिकॉर्डिंग बताते हुए एक ऑडियो क्लिप चारों तरफ फैली जिसे बृजमोहन की आवाज बताया गया। अब जानकारों ने तो तुरंत इस जालसाजी को पकड़ लिया लेकिन ऐसी जालसाजी की किसने होगी? राजनीति में जरूरी नहीं है कि जो जाहिर तौर पर दिखे, वही सच हो। और चुनाव तो राजनीति का सबसे घटिया दर्जे का काम होता है। पहली नजर में जिन लोगों को नुकसान पहुंचाने के लिए कोई चीज गढ़ी हुई दिखती है, वह हो सकता है कि उनके हिमायती ही गढ़ें, और विरोधियों को बदनाम करने के लिए इसका इस्तेमाल करें। अखबारों का भी ऐसे माहौल में जमकर इस्तेमाल होता है, कुछ को धोखा देकर इस्तेमाल होता है, और कुछ इस्तेमाल होने के लिए पेश भी रहते हैं। खैरागढ़ उपचुनाव में बहुत अधिक तो नहीं हुआ, लेकिन थोड़ा-बहुत जरूर हुआ जिससे और किसी को न सही, कम से कम मीडिया को सबक लेने की जरूरत है। राजनीति के लोग तो मछली के बच्चे हैं, उन्हें तैरना कोई क्या सिखा सकते हैं।
फिर मुनाफे वाले जोन में खराब सेवा क्यों?
रेलवे ने पंजाब और हिमाचल प्रदेश के अंतर्गत फिरोजपुर मंडल के 13 रेलवे स्टेशनों को बंद करने का फैसला लिया है। इनमें से कई स्टेशन बहुत पुराने हैं। कुछ दिन पहले एक आंकड़ा सामने आया था कि कोविड-19 महामारी के नाम पर बंद किए गए स्टेशनों में करीब 1600 ऐसे हैं, जहां स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद रेलवे ने स्टापेज देना बंद कर दिया है। इनमें छत्तीसगढ़ के भी कई स्टेशन शामिल हैं। फिरोजपुर मंडल के यात्रियों में भारी नाराजगी है, जिसके जवाब में रेलवे ने तर्क दिया है कि इन स्टेशनों में बहुत कम राजस्व मिलता है।
यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है। पहली बात तो यह है कि स्टेशन-स्टेशन की अलग-अलग आमदनी का हिसाब लगाना शुरू किया जाएगा तब तो छोटे स्टेशनों के यात्रियों की सहूलियत छिनती ही चली जाएगी। रेल सेवाओं में भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा। यदि यही तर्क सही है तो बिलासपुर रेलवे जोन से गुजरने, चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों को अचानक एक माह के लिए बंद करने के पीछे रेलवे क्या सफाई देगा? यह जगजाहिर है कि बिलासपुर, रेलवे को सबसे ज्यादा आमदनी देने वाला जोन है। बीते वित्तीय वर्ष के समाप्त होने पर एक प्रेस नोट जारी कर रेलवे ने यहां से हुई 23 हजार करोड़ रुपये की आमदनी को लेकर अपनी पीठ थपथपाई थी। ऐसा है, तो फिर पैसेंजर ट्रेनों को बंद क्यों किया गया। मुख्यमंत्री की नाराजगी पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं है।
प्रदेश के 11 में से 9 भाजपा सांसद हैं। इनमें से कुछ ने औपचारिक पत्र लिखकर रेलवे से इन ट्रेनों को शुरू करने की मांग रखी है, पर सिर्फ रस्म निभाने की तरह। राज्य सरकार के अधिकारिक पत्र का भी असर नहीं हुआ है। लंबे समय से रायपुर-बिलासपुर के बीच सुपर फास्ट मेट्रो ट्रेन चलाने की मांग हो रही है, पर रेलवे ने उसे पूरा नहीं किया। जगदलपुर में रेल लाइन को रायपुर से जोडऩे के लिए तो पदयात्रा भी इसी समय चल रही है। ममता बेनर्जी के कार्यकाल में बिलासपुर के लिए रेलवे ने एक मेडिकल कॉलेज और मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल खोलने की घोषणा की थी, पर संसद में की गई यह घोषणा कब की फाइलों में दब चुकी।
रेलवे से प्रतिदिन लाखों यात्रियों को सस्ती सुलभ यात्रा सेवा मिलती है। पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों के बीच रेलवे ने अब तक पैसेंजर ट्रेनों में एमएसटी शुरू नहीं की है। नि:शक्तों को छोडक़र बाकी सब के लिए रियायती टिकट बंद है। ऊपर से पैसेंजर ट्रेनों सफर करने वाले सीमित कमाई वाले यात्रियों से भेदभाव किया जा रहा है। राज्य की लोक कल्याणकारी नीति होती है, जिसमें जरूरतमंदों पर राजस्व का हिस्सा खर्च किया जाता है। पर अब रेलवे अब शुद्ध व्यापारी की तरह बर्ताव कर रहा है। यही हाल रहा तो निजीकरण की भी जरूरत नहीं रह जाएगी।
मंडावी से समाज के युवा नाराज..
कांकेर लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद मोहन मंडावी ने 2019 से पहले कोई चुनाव नहीं लड़ा था। पिछली बार सभी सीटों पर भाजपा ने नए उम्मीदवारों को मौका दिया था। उनकी पहचान एक रामकथा वाचक और मानस गायक की रही है। आरएसएस से उनका लंबे समय से जुड़ाव है। जब टिकट मिली तब लोकसेवा आयोग के सदस्य थे। इन सब खूबियों के बीच उनके समाज का एक वर्ग उन्हें आदिवासी नहीं मान रहा है। वे कांकेर में ही आयोजित आदिवासी समाज के एक पारंपरिक पर्व मरका पंडुम में शामिल होने पहुंचे थे। पर जैसे ही गाड़ी से उतरे, उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गई। भीड़ ने उन्हें घेर लिया। किसी तरह पुलिस और अपने सुरक्षा कर्मियों की मदद से वे वापस गाड़ी में बैठे और सुरक्षित लौट पाए। जैसी की खबर है कि प्रदर्शन करने वालों में ज्यादातर आदिवासी युवा ही थे। उनका कहना था कि सांसद मंडावी असली आदिवासी नहीं है। ये युवा कुछ दिन पहले किसी सभा में मंडावी के दिए गए एक बयान को लेकर विरोध जता रहे थे। उनका कहना था कि उनका कथन सामाजिक मान्यता के खिलाफ था।
बहरहाल, दस्तावेजों में तो मंडावी के आदिवासी होने को कोई चुनौती नही दी जा रही है। उन्हें अपने समाज के बीच पैदा हुई नाराजगी को ही दूर करना होगा।
लुका-छिपी का खेल
खैरागढ़ उपचुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए शराब, और साडिय़ां बांटने की खूब शिकायतें हुई। कई जगह साडिय़ां और अन्य सामग्री पकड़ाई है। एक जगह कथित तौर पर कांग्रेस के लोगों द्वारा साड़ी बांटने की खबर आई, तो भाजपा के महामंत्री (संगठन) पवन साय अपना आपा खो बैठे। उन्होंने तुरंत चुनाव आयोग द्वारा तैनात प्रेक्षक को फोन मिलाया, और जमकर खरी-खोटी सुनाई।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के लोगों के खिलाफ ही शिकायतें आई थी। चर्चा है कि भाजपा के लोगों ने मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। गंडई थाना क्षेत्र में नर्मदा रोड पर रैमड़वा के पास कमल छाप वाली साडिय़ों का बंडल बरामद किया है। इस पर कांग्रेस के लोगों ने जमकर हंगामा किया। हल्ला तो यह भी है कि नामांकन दाखिले के पहले ही बालाघाट जिले से शराब की 6 हजार पेटी भाजपा के लोगों के पास पहुंच गई थी। कांग्रेस के लोगों ने खोजबीन भी करवाई, लेकिन पता नहीं चला। यानी कांग्रेस, और भाजपा के बीच मतदान के पहले तक लुका-छिपी का खेल चलता रहा।
चुनाव प्रचार और मंत्री
तपती धूप में कांग्रेस, और भाजपा के लोगों ने चुनाव में खूब पसीना बहाया। लेकिन दोनों ही दलों के कई नेता ऐसे थे जो कि अपेक्षाकृत ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे। इसकी राजनीतिक हल्कों में जमकर चर्चा रही। मसलन, कांग्रेस के सभी मंत्रियों को प्रचार के लिए जाना ही था। इनमें से मुख्य संचालकों में से एक अमरजीत भगत चुनाव के बीच में बीमार पड़ गए। इसी तरह उमेश पटेल भी एक दिन प्रचार के लिए गए, और अगले दिन उनकी भी तबीयत बिगड़ गई। इसके बाद वे रायगढ़ निकल गए।
जयसिंह अग्रवाल ने मरवाही में अपनी ताकत दिखा चुके थे, लिहाजा यहां उनके लिए ज्यादा कुछ काम नहीं था। वे एक दिन सुबह खैरागढ़ गए, और शाम को वापस रायपुर आ गए। इसी तरह रूद्र कुमार गुरू ने भी एक-दो दिन घूमकर औपचारिकता पूरी की। लेकिन सरकार के तीन मंत्री कवासी लखमा, डॉ. शिवकुमार डहरिया, और अनिला भेडिय़ा ने खूब मेहनत की है। इसकी पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है। रविन्द्र चौबे, और मोहम्मद अकबर के पास चुनाव संचालन का जिम्मा था। और कहा जा रहा है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बेहतर ढंग से निभाई।
खैरागढ़ में रायपुर का पसीना
भाजपा में रायपुर के नेताओं ने खूब मेहनत की है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने तो अपने समर्थकों के साथ एक अप्रैल से ही एक फार्म हाऊस में डेरा डाल दिया था। इससे पहले पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने अपने प्रभार वाले खैरागढ़ ग्रामीण इलाके में जमकर पसीना बहाया। वो सुबह से देर रात तक प्रचार में जुटे रहे। उनके समर्थकों ने एक-दो जगह मतदाताओं को बांटी जा रही साडिय़ां और अन्य सामग्री भी पकड़वाई।
दूसरी तरफ, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और उनके पुत्र अभिषेक सिंह की अपेक्षाकृत कम सक्रियता पार्टी हल्कों में चर्चा का विषय रही। रमन सिंह और अभिषेक सिंह बाकी नेताओं की तरह राजनांदगांव, या फिर खैरागढ़ में रूकने के बजाए रायपुर से आना-जाना करते थे। जबकि खैरागढ़ उनका अपना क्षेत्र रहा है, और इस चुनाव को उनकी प्रतिष्ठा से जोडक़र देखा जा रहा है। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल की भी ड्यूटी लगाई गई थी, लेकिन वो प्रचार में कहीं नजर नहीं आए। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को तो बीरगांव निकाय चुनाव में उटपटांग बयानबाजी को देखते हुए इस चुनाव में उन्हें कोई जिम्मेदारी देने से परहेज किया, क्योंकि बीरगांव में पार्टी का बुरी हार का सामना करना पड़ा था। यही वजह है कि उन्हें प्रचार के लिए बुलाया तक नहीं गया। पार्टी के भीतर ऐसी चर्चा रही कि अजय के प्रचार से नुकसान उठाना पड़ सकता है।
माचिस पर बा
एक समय था जब हिन्दुस्तान में साबुन से लेकर माचिस तक बेचने के लिए देवी-देवताओं की तस्वीरों के कैलेंडर बनते थे, और गांधी से लेकर तमाम दूसरे महान लोगों की तस्वीरों का भी धड़ल्ले से इस्तेमाल होता था। ऐसे ही वक्त पर एक माचिस की डिबिया पर कस्तूरबा गांधी एक संग्राहक के कलेक्शन में है। अब प्रचार सामग्री पर महान लोगों या देवी-देवताओं की तस्वीरों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लग गए हैं, इसलिए अब यह कुछ मुश्किल हो गया है। फिर भी जिन लोगों के पास ऐसे पुराने कैलेंडर या ताश या माचिस हैं, उनकी आज खासी कीमत हो चुकी है।
80 पैसे का खौफ
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद पेट्रोलियम कंपनियों ने डीजल-पेट्रोल के दाम में जो बढ़ोतरी शुरू की, वह बीच के एक दो दिनों को छोडक़र लगातार 14 दिनों तक चली। पेट्रोल की कीमत रोज 80 पैसे बढ़ी, डीजल की बढ़ोतरी कुछ कम अधिक होती रही। ऐसे लोग जिनका काम धंधा बाइक से ट्रैवलिंग करने पर ही टिका हुआ है, हर सुबह पेट्रोल पंप पर 80 पैसे दाम बढ़ा देखकर खौफ खा रहे थे। गुस्सा भी फूटता जा रहा था। पर अब बीते एक सप्ताह से दाम नहीं के बराबर बढ़ा। रायपुर में पेट्रोल 4 अप्रैल को 109.82 पैसे दाम था तो 12 अप्रैल को 111.60 रुपये है। डीजल 4 अप्रैल को 101.18 पैसे था तो आज 102.99 पैसे है। जिस तरह इस बीच 9 पैसे, 10 पैसे दाम बढ़ाए गए हैं, उससे लगता है कि पेट्रोलियम कंपनियां ग्राहकों के एक-एक पैसे का दर्द समझती है। इसके बावजूद भी लोग नाराज हुए जा रहे थे। अब कीमत में ठीक-ठाक उछाल तभी आएगी
बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ?
गर्मी का मौसम आया तो पानी की कमी शुरू हो गई और लोगों ने सरकारी नलों से पंप जोडक़र पानी खिंचना शुरू कर दिया। अब यह काम देश भर में हर शहर में लोग करते हैं, और मध्यप्रदेश के वक्त से छत्तीसगढ़ में म्युनिसिपिल की तरफ से पे्रस नोट जारी होते आया है कि टूल्लू पंप लगाकर पानी खींचने पर लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अब टूल्लू पंप तो एक ब्रांड का पंप है, लेकिन इस ब्रांड का नाम इतना बदनाम हो गया है कि मानो पानी चोरी में महज इसी ब्रांड का इस्तेमाल होता है। कुछ ब्रांड अपने दर्जे के सामानों के लिए पूरे तबके की तरह हो जाते हैं। हिंदुस्तान में एक वक्त हर किस्म का वनस्पति घी डालडा कहलाता था। कई किस्म की मोपेड लूना कहलाती थी। यह मामला ब्रांड की अधिक कामयाबी का रहता है कि सरकारी पे्रस नोट भी पंप लिखने की बजाय टूल्लू पंप लिखते हैं। टूल्लू बदनाम तो हो रहा है लेकिन उसका नाम भी हो रहा है।
हड़तालों की किसी को चिंता नहीं
वैसे तो छत्तीसगढ़ में कौन-कौन सरकारी कर्मचारी संगठन हड़ताल पर हैं, इसकी सूची बनी तो वह लंबी हो जाएगी, पर जंगल और गांव की सेवाओं से जुड़े मैदानी अमले के आंदोलनों का असर कुछ ज्यादा ही हो रहा है। मनरेगा के रोजगार सहायक एक सप्ताह से भी ज़्यादा समय से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। इसके चलते गांव में मजदूर खाली बैठे हुए हैं। खेती-किसानी का काम इस समय लगभग जीरो है। गर्मी के दिनों में मनरेगा का काम गांव के मजदूरों के लिए बहुत बड़ा सहारा होता है। मनरेगा बंद होने ने उन्हें संकट में डाल दिया है। वैसे भी छत्तीसगढ़ से पलायन रुक नहीं पाया है और अब तो यह आदिवासी इलाकों में भी देखा जा रहा है। मनरेगा के रोजगार सहायक जन घोषणा पत्र के मुताबिक सरकार से अपने नियमितीकरण के वादे को पूरा करने की मांग कर रहे हैं।
इधर, करीब एक पखवाड़े से वन कर्मचारी संघ की पूरे प्रदेश में अनिश्चितकालीन हड़ताल चल रही है। सरकार की तरफ से बीच में एक बयान आया था कि इनकी 12 में से 10 मांगें पूरी की जा चुकी हैं। पर स्थिति यह है बची हुई दो मांगों के लिए भी हड़ताल अब तक चल रही है। फील्ड में काम करने वाले इन कर्मचारियों के धरने पर बैठ जाने से जंगलों में आग लगने की घटनाएं थम नहीं पा रही हैं। सैकड़ों किलोमीटर जंगल के खाक हो जाने की खबर है। प्यास के मारे जंगली जानवर आबादी वाले इलाकों में घूम रहे हैं। कहीं वे कुएं में गिर रहे हैं तो कहीं पर आवारा कुत्तों का शिकार बन रहे हैं। जगह-जगह हाथियों के हमले लोगों की जान जा रही है।
यदि इन संगठनों की मांगें औचित्यहीन है तो फिर लंबा आंदोलन चलाने को लेकर उन पर कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए या फिर इनके साथ जल्दी बातचीत कर कोई समाधान निकालना चाहिए। इस अवरोध को खत्म करने में संबंधित मंत्रियों और अधिकारियों की तरफ से कोई पहल दिख नहीं रही है, जबकि जो नुकसान हो रहा है, वह स्थायी है।
जड़ी बूटी से कुपोषण का इलाज
बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने का अभियान राज्य में नई सरकार बनने के बाद बस्तर से ही शुरू किया गया था। बाद में से प्रदेश के दूसरे जिलों में इसे फ्लैगशिप योजना के तहत लागू किया गया। मगर, बस्तर में ही कुपोषण के खिलाफ लड़ाई धीमी पड़ गई। विटामिन की प्रचलित दवाओं और पौष्टिक आहार के वितरण के बावजूद पूरे बस्तर संभाग में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि कोरोना काल के दौरान घर-घर पौष्टिक आहार पहुंचाने योजना अपेक्षा के अनुरूप संचालित नहीं की जा सकी। अब सरकार ने आयुर्वेदिक इलाज के जरिए कुपोषित बच्चों का इलाज शुरू किया है। प्रदेश में इस तरह का यह पहला प्रयोग होगा। कोंडागांव जिले के दो आयुर्वेदिक औषधालयों में फिलहाल यह योजना चालू की गई है। जड़ी-बूटी और औषधीय तेल की मालिश से बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने की कोशिश की जा रही है। आयुर्वेदिक डॉक्टरों का दावा है कि 3 महीने के इलाज के बाद बच्चे कुपोषण से बाहर आ जाएंगे। इसके बाद भी आंगनबाड़ी केंद्रों में इनकी देखभाल की जाएगी। खास बात यह है कि ये जड़ी बूटियां वहीं हैं, जो बस्तर के जंगलों में पाया जाता है। आदिवासी पीढिय़ों से इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं।
वूमेन सेफ्टी डिवाइस का जापान से बुलावा
महिला सुरक्षा के लिए धमतरी की सिद्धि पांडेय ने साधारण तौर पर उपलब्ध हो जाने वाले सामानों की मदद से जो उपकरण बनाए हैं, उनकी चर्चा जापान तक पहुंच चुकी हैं। उसने दो उपकरण बनाए हैं। एक तो उन्होंने वूमन सेफ्टी सैंडल बनाया है, जिसमें एक डिवाइस लगा है। यह यंत्र सैंडल के भीतर छिपा रहता है, दिखाई नहीं देता। छेड़छाड़ करने या हमला होने पर इस सैंडल का इस्तेमाल जिस पर किया जाएगा, उसे 1000 वोल्ट का करंट लगेगा और वह वहीं चित हो जाएगा। दूसरा डिवाइस सेफ्टी पर्स है। पर्स में एक बटन होगा, जिससे सायरन की तरह आवाज निकलेगी और शोर सुनकर लोग बचाव के लिए पहुंच सकते हैं। यही नहीं इसमें फीड किए गए नंबर पर पीडि़त युवती का लोकेशन भी पहुंच जाएगा। दोनों डिवाइस पर करीब 750 रुपये खर्च आए हैं। इनका व्यावसायिक उत्पादन पैटेंट आदि की प्रक्रिया बाकी है। डिवाइस को तैयार करने में मच्छर मारने के रैकेट के किट का एक भाग, रिचार्जेबल बैटरी आदि का इस्तेमाल किया गया है। डिवाइस का प्रदर्शन दिल्ली आईआईटी में भी हो चुका है। अब जापान में इसे प्रदर्शित किया जाएगा। सिद्धि पांडेय गौशाला में काम करने वाले एक कर्मचारी नीरज पांडेय की बेटी है और खुद बी कॉम दूसरे वर्ष की छात्र है। प्राय: स्कूल कॉलेज के छात्र अपनी स्वाभाविक क्षमता से इस तरह के अनोखे और उपयोगी उपकरण बनाते हैं, पर उनके अविष्कार आगे चलकर कहां गायब होते हैं पता नहीं चलता। उम्मीद करनी चाहिए कि सिद्धि के मामले में ऐसा नहीं होगा।
कानून को नहीं दिखती तख्तियां?
हिन्दुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में सरकार राजनीति, धर्म, जाति या किसी भी और संगठन से जुड़े लोग उस ताकत का इश्तहार अपनी गाडिय़ों के नंबर प्लेट के साथ करते हैं ताकि सडक़ पर पुलिस और दूसरे लोग दहशत में रहें। अलग-अलग प्रदेशों में जब जिस धर्म या जाति की सत्ता रहती है, उसके नाम के स्टिकर गाडिय़ों के शीशों पर लग जाते हैं। छोटे-छोटे से कागजी संगठनों के पदाधिकारी बड़ी-बड़ी तख्तियां बनवाकर नंबर प्लेट के ऊपर लगाकर चलते हैं। इनमें मीडिया और मानवाधिकार के नाम पर बनाए गए बहुत से फर्जी संगठनों के लोग सबसे आगे रहते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश में विधायक और जिला पंचायत अध्यक्ष तो नंबर प्लेट की जगह अपने पदनाम की प्लेट लगाकर चलते हैं मानो उन्हें राज्यपाल की तरह कोई रियायत मिली हुई है।
यह पूरा सिलसिला बहुत ही पाखंडी है, गैरकानूनी तो है ही। लेकिन सरकार के अपने लोग जितनी बड़ी संख्या में कानून तोड़ते हैं, उन पर कार्रवाई करे तो कौन करे। ऐसे में कुछ लोग ऐसे दिखावटी लोगों की खिल्ली उड़ाने के लिए अपनी गाड़ी पर आम आदमी लिखवाकर चलते हैं, या जैसा कि इस कार में दिख रहा है किसी ने भूतपूर्व क्लास मॉनिटर लिखी तख्ती लगा रखी है। जन संगठनों को चाहिए कि वे ऐसी गाडिय़ों को सार्वजनिक जगहों पर घेर लें, और पुलिस को बुलाकर इन तख्तियों को उतरवाएं। देखना है कि पुलिस कानून को तोडऩे वाले ताकतवर लोगों को बचाने के लिए कौन-कौन से बहाने ढूंढेगी, क्योंकि ये तख्तियां खुद होकर तो पुलिस की नजरों में तो रोज सामने आती हैं, कार्रवाई तो किसी पर नहीं होती।
रायपुर को रावघाट के रास्ते से जगदलपुर तक रेल मार्ग से जोडऩे के लिए अंतागढ़ से निकली पदयात्रा को एक सप्ताह पूरे हो गए हैं। अब तक 125 किलोमीटर की दूरी इस भीषण गर्मी में तय की जा चुकी है। यह यात्रा 173 किलोमीटर यात्रा करेगी और जगदलपुर पहुंचेगी। हैरानी की बात यह है कि इन पदयात्रियों के समर्थन में न तो कांग्रेस कुछ कह रही है, न बीजेपी। कोई इनकी यात्रा में शामिल होने भी नहीं पहुंचा। जबकि यह आदिवासी समाज, परिवहन संघ, चेंबर ऑफ कॉमर्स आदि दर्जनों संगठनों का मिला-जुला अभियान है। दरअसल, तमाम बड़े नेता इन दिनों खैरागढ़ उप-चुनाव में लगे हुए हैं। दोनों ही दलों को इस वक्त इस चुनाव को जीतने से बड़ा कोई सवाल दिखाई नहीं दे रहा है। हो सकता है मतदान के बाद इन आंदोलनकारियों की कोई सुध ली जाए।
चिटफंड कंपनी का दफ्तर चालू
अंबिकापुर में एक पत्रकार जितेंद्र जायसवाल के खिलाफ एक चिटफंड कंपनी कैनविज ने एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस ने उन्हें थाने में लाकर बिठा लिया। पत्रकार की पत्नी, बच्चे थाने के बाहर गुहार लगाते रहे। बताते हैं कि कैनविज चिटफंड कंपनी ने पत्रकार के खिलाफ शिकायत की है कि उन्होंने ऑफिस में घुसकर दफ्तर के काउंटर से 52000 रुपये लूट लिए। शिकायत में कितना दम है यह तो सीसीटीवी वगैरह के फुटेज से भी सामने आ जाएगा। मगर दूसरा बड़ा सवाल यह है कि जब तमाम चिटफंड कंपनियों के लोग फरार हैं और सरकार उनकी गिरफ्तारी तथा संपत्ति की कुर्की की कार्रवाई कर रही है, तब यह चिटफंड कंपनी अंबिकापुर में किसके दम पर काम कर रही है?
हर मर्ज का इलाज...
बीते दिनों दुर्ग के निजी अस्पताल में काम करने वाला एक कर्मचारी अपने गांव मस्तूरी में बंगाली डॉक्टर से दर्द का इंजेक्शन लगवाने के बाद अपनी जान गंवा बैठा। लाइसेंसी और नर्सिंग होम एक्ट के तहत चल रहे दुर्ग के हॉस्पिटल के कर्मचारी को भी झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में जाना पड़ा इसका मतलब यह है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा की स्थिति अच्छी नहीं है। अपने प्रदेश में समय-समय पर अवैध क्लीनिक चलाने वालों के खिलाफ अभियान चलाया जाता है। हाल की कुछ तेज कार्रवाई के चलते कई स्वयंभू डाक्टरों ने अपने क्लीनिक के बोर्ड उतार दिए हैं, या किसी गली कूचे में काम करने लगे हैं। पर धंधा चल रहा है। निम्न मध्यम वर्ग और गरीब के लिए यह आसान ठिकाना है। थोड़े से रुपये में जांच भी हो जाती है, दवा भी मिल जाती है। इस मायने में गुजरात अपने छत्तीसगढ़ से आगे है। अहमदाबाद के डॉक्टर मुन्ना तिवारी साहब ने ऐलानिया बोर्ड लगा रखा है। उनके पास ऐसे ऐसे मर्ज का इलाज है जो देश के बड़े-बड़े अस्पतालों में भी नहीं मिलेगा। वे मरे हुए इंसान को जिंदा करने का भी दावा कर रहे हैं। हार्ट अटैक की बीमारी 5 दिन में ठीक कर देंगे। मतलब यह है झोलाछाप डॉक्टरों से इंजेक्शन लगवाने से यदि मौत भी हो जाती है तो दूसरे झोलाछाप उन्हें वापस जिंदा करने के लिए मौजूद हैं।
80 फीसदी कान्हा नक्सल कब्जे में
बाघ के लिए मशहूर कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान का 80 फीसदी हिस्से पर नक्सलियों का कब्जा होने की एक रिटायर्ड वन अफसरों की लिखी चि_ी मध्यप्रदेश में वायरल हो रही है। चि_ी के जरिये वन अधिकारियों ने सरकार से बस्तर के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में कान्हा-किसली के नक्सलियों के कब्जे में चले जाने की चिंता जाहिर की है। पिछले दिनों भोपाल पहुंचकर कान्हा और दीगर जिलों के वन विभाग से सेवानिवृत्त अफसरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने राज्य सरकार से राष्ट्रीय उद्यान में नक्सलियों की बढ़ती दखल पर नकेल कसने फौरन कदम उठाने की मांग की है।
गुजरे तीन साल के भीतर नक्सलियों का कान्हा नेशनल पार्क पर अघोषित कब्जा हो चुका है। नक्सलियों ने कान्हा रेंज में खौफ पैदा करने के लिए हत्याओं का सिलसिला शुरू कर दिया है। सैलानियों के लिए कान्हा बाघ का दीदार करने का एक अच्छा ठिकाना माना जाता है। देशी-विदेशी पर्यटकों की नेशनल पार्क में आवाजाही होने से सरकार को अच्छी कमाई भी होती है। लगातार नक्सलियों की की गईं क्रूर हत्याओं और आगजनी से कान्हा नेशनल पार्क अब दहलने लगा है। रिटायर्ड वन अफसरों ने सरकार को इस बात के लिए आगाह किया है कि जल्द ही सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाने पर कान्हा का हाल भी बस्तर के अभ्यारण्यों जैसा होगा। रिटायर्ड अफसरों का दावा है कि 80 फीसदी जंगल नक्सलियों के गिरफ्त में है। नेशनल पार्क में नक्सल ताकत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में कान्हा में वन अफसरों को भी अपनी जान खतरे में दिख रही है।
बच्चों के साथ बदसलूकी
स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के नामकरण को लेकर हो रहे जगह-जगह आंदोलनों की कड़ी में पिथौरा महासमुंद के छात्रों में भी चक्का जाम कर दिया। वे चाहते थे यहां वर्षों से स्थापित आदर्श रंजीत उच्चतर माध्यमिक शाला का नाम नहीं बदला जाए। हर बार की तरह प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने सफाई दी कि नाम नहीं बदला जाएगा। दरअसल सब गोलमाल है। कई जगहों से शिकायत आ रही है कि बोर्ड में स्कूल का पुराना नाम छोटे अक्षरों में और सरकार की इस नई योजना के तहत खोले गए नाम को बड़े अक्षरों में लिखा जा रहा है। सरकारी पत्राचार में तो स्कूल के पुराने नाम का जिक्र भी नहीं हो रहा है।
बात चक्का जाम की हो रही है। पुलिस ने बच्चों को समझाया कि रास्ता खाली कर दें। बच्चे ठोस आश्वासन के बगैर उठने के लिए राजी नहीं थे। तब तहसीलदार और दूसरे अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने बच्चों को घसीटना और अपनी गाड़ी में बिठाने का बर्ताव किया। बच्चे घबराने लगे, कुछ रोने भी लगे। लगा, अब तो जेल जाना पड़ेगा। बाकी लोग सडक़ से हट गए। जाम हटा तो बच्चों को भी छोड़ दिया गया। यह किसी पेशेवर राजनीतिक दल का आंदोलन नहीं था। पुलिस अपनी छवि सुधारने के लिए स्कूलों में भी सभाएं करती हैं। किंतु नाबालिग छात्रों के साथ किया गया यह व्यवहार दोस्ताना नहीं था। पुलिस के बारे में अच्छी राय बनाने में तो मदद बिल्कुल नहीं करने वाला है।
कमाल का लडक़ा गौतम
प्राय: घर में अगर कोई स्पेशल चैलेंज वाले बच्चे हों तो उसकी देखभाल में पूरा परिवार लगा रहता है, लेकिन गौतम देशमुख के साथ अलग बात है। भिलाई के गौतम न तो बेरोजगार हैं, न ही दैनिक कामकाज के लिए घर के लोगों पर आश्रित। वह अकेले सडक़ पर निकलता है। उसकी कमाई से घर की आर्थिक स्थिति सुधरी हुई है। बोलने और सुनने से वंचित गौतम की हिंदी और अंग्रेजी में एक बराबर पकड़ है। 12वीं की परीक्षा में उसने 74 प्रतिशत अंक हासिल किए। लॉकडाउन के दौरान उसने कार मैकेनिक का काम सीख लिया। अंग्रेजी का जानकार होने और 12वीं में अच्छे अंक लाने की वजह से इस तरह के मैकेनिक जैसे काम को लेकर वह अरुचि दिखा सकता था। पर अब वह अपने पैरों पर न केवल खड़ा है बल्कि घर के लिए भी सहारा बना हुआ है। नामुमकिन को भी उसने अपने हौसले से मुमकिन बना लिया है।
अबूझमाड़ की बालाएं
पुलिस और प्रशासन की ज्यादती के खिलाफ बस्तर में हो रहे कई आंदोलनों के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांकेर और नारायणपुर का दौरा किया। उन्होंने महकमे को अबूझमाड़ के सर्वेक्षण का चुनौतीपूर्ण काम भी सौंपा है। आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी यहां के गांवों की गिनती नहीं हो पाई है। सरकारी सेवाएं सुविधाएं नहीं मिल रही है। यह तस्वीर नारायणपुर के कार्यक्रम में पहुंचीं अबूझमाड़ की बालिकाओं की है।
ग्राम पंचायत वर्सेस नगर पंचायत
ग्राम पंचायतों को नगर पंचायतों का दर्जा देने का मामला अक्सर विवादों से घिर जाता है। आज से 6-7 साल पहले सरगुजा संभाग के प्रेमनगर को ग्राम पंचायत की जगह नगर पंचायत का दर्जा देने का भारी विरोध हुआ था। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी जब फैसला आया तो ग्राम पंचायत से नगर पंचायत बने प्रेम नगर को 5 साल हो चुका था। याचिका यह कहकर खारिज कर दी गई कि अब पीछे नहीं लौटा जा सकता। अभी रायपुर शहर से लगे दुर्ग जिले में आने वाले अमलेश्वर को नगर पंचायत का दर्जा देने की घोषणा की गई। जैसे ही यहां के लोगों को अंदाजा हुआ कि घोषणा होने वाली है, उन्होंने प्रॉपर्टी टैक्स जलकर सफाई कर का बकाया धड़ाधड़ पंचायत में जमा करना शुरू कर दिया। ग्राम पंचायत 31 मार्च तक अस्तित्व में था। वर्षों का बकाया वसूल कर वह मालामाल हो गई। बकाया राशि जमा करने की होड़ इसलिए थी क्योंकि लोगों को मालूम था टैक्स और पेनाल्टी दोनों ही नगर पंचायत का दर्जा मिलने के बाद कई गुना बढ़ जाएगा।
यह तो एक समस्या है। दूसरी बात ग्राम पंचायतों के लिए मिलने वाली अनेक सुविधाएं नगर पंचायतों में खत्म हो जाती है। जैसे महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना तो पूरी तरह बंद हो जाती है। शहरी रोजगार की दूसरी योजनाएं लागू होती हैं, पर काम और मजदूरी मिलने की कोई गारंटी नहीं होती। प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नगर पंचायतों में नहीं मिलता। ग्राम पंचायतों में स्वतंत्र मकान के लिए शासन से अनुदान मिलता है, पर नगर पंचायतों में अटल आवास के नाम पर छोटे-छोटे फ्लैट।
इन दोनों मुद्दों से भी बढक़र इस आदिवासी बाहुल्य प्रदेश में पंचायतों को पांचवी अनुसूची के तहत मिले अधिकारों के हनन का सवाल है। बीते बरस मरवाही ग्राम पंचायत को नगर पंचायत का दर्जा देने की घोषणा कर दी गई। जैसे ही इस आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत का दर्जा यहां खत्म हुआ, ग्राम सभा का भी अस्तित्व नहीं रहा। उस ग्राम सभा का, जिसे अपने गांव के बारे में फैसला लेने का सरकार से भी ऊपर का अधिकार मिला होता है। कवर्धा जिले के बोड़ला और कुकदुर का मामला भी कुछ ऐसा ही है। छत्तीसगढ़ में अब तक 113 नगर पंचायत में बन चुकी हैं, जिनमें अनेक आदिवासी बाहुल्य पंचायतें रहीं।
राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कल दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। उन्होंने मांग रखी कि जो नई नगर पंचायतें बन रही हैं, उनमें पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाला पेसा कानून लागू रखा जाए। राज्यपाल पहले भी मरवाही सहित 27 ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत बना देने को लेकर आपत्ति दर्ज करा चुकी है। उन्होंने सितंबर 2020 में नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर नगर पंचायतों में बदलने की कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए कहा था। पर राज्यपाल के पास सरकार के निर्णयों में हस्तक्षेप करने के अधिकार सीमित हैं।
अब जबकि अधिकांश नगरीय निकाय कर्ज में डूबे हुए हैं। बिजली-पानी का बिल पटाने और कर्मचारियों को वेतन देने के लायक भी उनका टैक्स कलेक्शन नहीं है। जब तक सरकार के सामने हाथ फैलाना पड़ता है। तब, इस बात पर जरूर विचार होना चाहिए क्या बिना अध्ययन किए किसी ग्राम पंचायत को नगर पंचायत का दर्जा दिया जाना चाहिए या नहीं।
सरकारी निवास के बाहर वाटर कूलर
तेज गर्मी में राहगीरों को पीने के लिए ठंडा पानी देना पुण्य का काम माना जाता है। कई लोग तो अपने घर के बाहर पशुओं के लिए और छत पर सकोरा रख पक्षियों की प्यास बुझाने का इंतजाम करते हैं। अब जब रायपुर, और बाकी के शहरों में तो पारा 40 डिग्री पार कर रहा है, तो ऐसे में गर्मी से निजात पाने के लिए ठंडा पानी जरूरी हो गया है। कई संगठनों ने भीड़भाड़ वाले इलाकों में प्याऊ घर खोलना शुरू कर दिया है। इन सबके बीच आईएएस अफसर अनुराग पांडेय ने भी अपने देवेंद्र नगर स्थित सरकारी निवास के बाहर वाटर कूलर लगवा दिया है, जिससे वहां से गुजरने वाले लोगों के अलावा बंगलों में तैनात सुरक्षाकर्मी और अन्य कर्मचारियों को सुविधा हो रही है।
शोर से परहेज नहीं...
कोरबा में एक ब्रिक फैक्ट्री है। मालिक ने चमकदार शीशे से बना एक बहुत साफ-सुथरा, खूबसूरत ऑफिस वहां तैयार किया है। ऑफिस की डोर पर एक पर्ची लगी हुई है। पर्ची में तस्वीर अमूमन हाथ जोड़े हुए महिला की होती है, यहां पर भी थी। नीचे लिखा था, बड़े अक्षरों में- कृपया जूते पहनकर प्रवेश करें। उतारने की जरूरत नहीं है।
ऐसा ही कुछ शाम के वक्त कॉलेज के छात्र-छात्राओं की भीड़ को हैंडल करने वाले बिलासपुर के इस रेस्टोरेंट्स में दिखा। लिखा है- कृपया शोर बनाए रखें।
लेबो नियमितीकरण
संविदा और दैनिक वेतन भोगी के तौर पर काम करने वाले लगभग सभी विभागों में कर्मचारियों को भरोसा है कि सरकार अपने चुनावी वादे को पूरा करेगी।? जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, बेचैनी बढ़ रही है। इनके संघ और संगठन आंदोलन में उतर रहे हैं। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत काम करने वाले रोजगार सहायक भी उम्मीद पाल कर रखे हुए हैं। प्रदेश भर में उनका आंदोलन चल रहा है। दिन भर पंडाल पर बैठी रोजगार सहायक महिलाओं को कुछ अलग सूझा। कांकेर जिले के नरहरपुर में आंदोलनरत महिलाओं ने अपने हाथों पर मेहंदी लगाई और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल की। मांग वही नियमितीकरण की है जो हाथों में भी झलक रही है।
सवाल सिर्फ आत्मानंद स्कूलों का?
स्वामी आत्मानंद स्कूलों के छात्रों को एक ही दुकान से मनमाने भाव में स्टेशनरी और दूसरी सामग्री खरीदने की बाध्यता नहीं है। इस बारे में खबर वायरल होने पर प्रमुख सचिव ने आदेश जारी कर दिया है। यह तो अच्छी बात हुई। पर प्रदेश के सभी निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्वामी आत्मानंद स्कूल में पढऩे वाले छात्र-छात्राओं की संख्या होगी कितनी? दो-चार प्रतिशत भी नहीं। आत्मानंद स्कूलों के बारे में तो सख्त निर्देश निकाला गया पर प्रदेश के प्रायमरी से लेकर 12वीं तक के सैकड़ों निजी स्कूलों का क्या? उनके लिए कोई सख्ती, कोई निर्देश जारी नहीं किए गए हैं।
ज्यादातर निजी स्कूलों की ऊपरी कमाई का यह पुराना धंधा है। जिन खास दुकानों से स्टेशनरी, जूते, यूनिफॉर्म खरीदे जाते हैं, उन पर 50-60 प्रतिशत तक का कमीशन स्कूलों को मिलता है। सिलेबस बदल दिये जाते हैं ताकि पुरानी किताबें काम न आ सके, नई खरीदें। यूनिफॉर्म बदल दी जाती है ताकि पिछले साल वाली न पहनें।
यह नए शिक्षा सत्र में भी हो रहा है। अभिभावक हैं कि दो साल बाद स्कूलों में पढ़ाई शुरू होने के कारण बच्चों को निराश नहीं करना चाहते। भले ही बढ़ती महंगाई के बीच यह भारी बोझ भी उन्हें उठाना पड़ रहा है। फीस के निर्धारण के लिए पालकों, शिक्षा अधिकारियों के साथ निजी स्कूलों की समितियां बनाई गई हैं। इस समिति की अनुशंसा के बिना फीस नहीं बढ़ाने का आदेश शासन ने पिछले सत्र से जारी कर रखा है। पर इसके बिना भी स्कूलों ने फीस बढ़ा दी है। ट्यूशन फीस पर रोक है तो दूसरे किसी मद में वसूली हो रही है। डीजल के दाम में वृद्धि के नाम पर कई जगह स्कूल बस का किराया भी ड्योढ़ा से अधिक कर दिया गया है। शिक्षा विभाग की ऐसी खामोशी संदेह पैदा करती है कि स्कूल प्रबंधकों की पहुंच बहुत ऊपर तक है।
खैरागढ़ में बहिष्कार के पोस्टर
कांग्रेस के कई नेता सोशल मीडिया पर एक तरह की खास तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र के किसी-किसी गांव में बैनर लगे हुए हैं, जिनमें कहा गया है कि जिला बनाने का विरोध करने वाले भाजपाईयों का गांव में प्रवेश मना है। वाकई जिला बनने का सपना तो खैरागढ़, गंडई के लोग कब से देख रहे हैं। इसका विरोध कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। अब कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस मांग को पूरा करने का निर्णय लिया है। एक तरह से इसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक कह सकते हैं, जिसका सीधे विरोध करते भाजपा को नहीं बन रहा है। पर, सवाल कांग्रेस की नीयत पर वह उठा रही है। प्रलोभन देने, वोटों का सौदा करने की बात कर रही है। पर, इस तरह के बैनर से ऐसा लगता है कि भाजपा को जिला बनने का विरोध है, जो शायद सही नहीं है। ध्यान से देखें तो इस बैनर में किसी गांव का नाम नहीं है। यानि यदि इसे थोक में तैयार कराए गए हों तो किसी भी गांव में लटकाया जा सकता है। ग्रामवासी यह काम न भी करें तो कांग्रेस के प्रचार में लगे पार्टी कार्यकर्ता ही ऐसा कर सकते हैं। इसे सीधे-सीधे चुनाव प्रचार सामग्री भी नहीं मान सकते, इसलिये आचार संहिता उल्लंघन का भी कोई संकट नहीं है। वैसे, मतदाता चाहे जिसे पसंद करे- पर भाजपा या किसी भी दल को कहीं भी प्रचार करने से रोका जाना ठीक नहीं है। यदि ऐसा कोई करता, कहता है तो भी चुनाव आयोग के ध्यान में बात होनी चाहिए। यह भी पता लगाना जरूरी है कि ये बैनर लगाने वाले वास्तव में ‘समस्त ग्रामवासी’ ही हैं या और कोई।
बस्तर में वाटर हाईवे!
दक्षिण बस्तर के कोंटा नगर से शबरी और सिलेरू नदी बहती है। 20 किलोमीटर दूर कुन्नावरम में दोनों जाकर गोदावरी नदी में मिल जाती हैं। यदि सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले दिनों में शबरी नदी की अलग पहचान बनेगी। दरअसल नदियों के जरिए परिवहन का क्षेत्र देश के 24 राज्यों में फैला हुआ है। यह 14000 किलोमीटर के वाटर हाईवे को जोड़ता है। इनमें छत्तीसगढ़ की कोई भी नदी शामिल नहीं है। कोंटा नगर और शबरी नदी आंध्र प्रदेश उड़ीसा और तेलंगाना से जुड़ा है, जहां वाटर हाईवे बनाने की घोषणा की गई है। इधर राष्ट्रीय जलमार्ग प्राधिकरण ने कुछ दिन पहले शबरी नदी की स्थिति का सुकमा तक पहुंच कर जायजा लिया। बताते हैं अफसरों ने भद्राचलम, राजमुंद्री सब वाटर हाईवे से शबरी नदी को जोडऩे की संभावनाएं तलाशी। एक व्यापक सर्वेक्षण अभी और होगा। रिपोर्ट सकारात्मक हुई तो आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ का बस्तर भी वाटर हाईवे के राष्ट्रीय नक्शे से जुड़ जाएगा।
वैसे आपको याद होगा, बीते साल सितंबर महीने में कोरबा जिले के हसदेव नदी में सी प्लेन उतारने की संभावनाओं को लेकर एक सर्वेक्षण हुआ था। केंद्र के विमानन विभाग ने जिला प्रशासन से तकनीकी जानकारी मांगी थी। प्रशासन ने यहां की वाटर बॉडी को सी प्लेन के लिए तय किए गए मापदंडों के लिए उपयुक्त पाया था। इस योजना के आकार लेने से पर्यटन के नक्शे में हसदेव नदी के सतरेंगा की अलग पहचान बन जाएगी। कोंटा की योजना ने मूर्त रूप लिया तो पर्यटन के साथ साथ व्यावसायिक परिवहन भी हो सकता है। दोनों ही योजनाएं अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं। इन्हें अमल में लाने के लिए राज्य के संबंधित विभागों को भी दिलचस्पी लेने की जरूरत है।
यह कैसा कैलेंडर
अब स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत नगर निगमों में एक अलग मद में इतना पैसा आ जाता है कि जिसे खर्च करना एक समस्या रहती है। यह एक अलग बात है कि स्मार्ट सिटी के फैसले लेने में निर्वाचित नगर निगम की कोई भूमिका नहीं रहती और पूरी तरह से अलोकतांत्रिक यह काम अभी तक छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में थम नहीं पाया है। अब खर्च का हाल यह है कि रायपुर नगर निगम की तरफ से जो कैलेंडर छपा है, उसका खर्च हो चाहे जिस माध्यम से दिखाया गया हो, उसमें अप्रैल के महीने में 19 तारीख ही गायब कर दी गई है। अब इसके साथ साथ दिन भी गड़बड़ हुए होंगे। इस तरह की गलती तो पहली बार ही देखने में आई है, कभी किसी कैलेंडर में नहीं दिखी थी। इसकी तरफ ध्यान खींचते हुए पिछले मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के ओएसडी रहे उज्जवल दीपक ने ट्विटर पर यह लिखा है कि अगर यह कैलेंडर सही है तो यह उनके खिलाफ साजिश है क्योंकि उनका जन्मदिन 19 अप्रैल को ही है।
आईपीएल में ऑनलाइन दांव की लत
यदि किसी से पूछा जाए कि इन दिनों कौन सा ऑनलाइन व्यापार सबसे ज्यादा फल-फूल रहा है तो बहुत लोगों की राय होगी-क्रिकेट सट्टा। जब से ऑनलाइन खेलने की सहूलियत मिलने के बाद सट्टे की लत उनको भी पड़ गई है, जिनको इसमें पहले कोई दिलचस्पी नहीं होती थी। प्रदेश के हर जिले में पुलिस आईपीएल सटोरियों के यहां छापा मार रही है। पर कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजधानी पुलिस ने महादेव ऐप पर सट्टा के कई बड़े मामले पकड़े हैं। इसका नशा राज्य भर में फैला हुआ है। प्रदेश के कई और जगहों पर छापामारी हुई है। अनुमान है कि अब तक इसमें 70 से 80 करोड़ रुपये के दांव लग चुके हैं। अब वह जमाना लद गया जब बस-स्टैंड पर खड़ा कोई सटोरिया, सट्टा-पट्टी के साथ नगदी का कलेक्शन करते मिले। ऐप से इसने जबरदस्त रफ्तार पकड़ ली है। एक महादेव ऐप ही नहीं। आप प्ले स्टोर पर जाएं- सट्टा किंग, ब्लैक सट्टा, सट्टा बाजार, कम सट्टा, गली दिसावर जैसे दर्जनों ऐप मिल जाएंगे।
अभी कल की ही खबर है कि सरकार ने पाकिस्तान के चार और भारत के 22 यू-ट्यूब चैनल देश विरोधी, आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने के कारण बैन कर दिए गए हैं। इन चैनलों के नाम और उसमें डाली गई सामग्री के बारे में लोगों को जानकारी नहीं है, पर सरकार ने किया है तो ठीक ही होगा। क्या ऑनलाइन सट्टा ऐप जिन्हें खुले आम गूगल प्ले स्टोर डाउनलोड करने की सुविधा दे रहा है, उन पर सरकार का ध्यान नहीं गया है? हद तो यह है कि अखबारों में भी इसके फुल पेज विज्ञापन छप रहे हैं। इन्हें सिलेब्रिटी प्रमोट भी कर रहे हैं। बेरोजगारी, मंदी और महंगाई के दौर में सट्टा की लत युवाओं को और उनके परिवारों को कितना नुकसान पहुंचा रही इसका अंदाजा शायद उन्हें न हो।
ध्रुवीकरण की कोई गली तो मिले...
यूपी विधानसभा के चुनाव नतीजों ने बता दिया है कि ध्रुवीकरण का नुस्खा तमाम विरोधों और नाराजगी पर भारी पड़ता है। छत्तीसगढ़ में भी बीते कुछ समय से इसके अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। चुनाव नजदीक आते तक इसका व्यापक असर देखने को मिले, तो ताज्जुब नहीं। इधर, खैरागढ़ विधानसभा उप-चुनाव के बीच भाजपा ने नवरात्रि पर्व पर लगाए गए भगवा झंडों को उतारने के मुद्दे पर सवाल खड़ा किया है। छुईखदान की भाजपा इकाई ने राज्य निर्वाचन आयोग से शिकायत की है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के मौके पर लगाए गए भगवा ध्वज कुछ लोगों ने उतार दिए। राज्य निर्वाचन आयोग की प्रतिक्रिया इस पर अभी नहीं आई, पर कांग्रेस की आई है। कांग्रेस ने कहा कि पूरी मशीनरी तो चुनाव आयोग के पास चली गई है। किसी तरह का झंडा लगाने की अनुमति दी गई हो, या उसे उतारा गया हो तो यह निर्वाचन आयोग के अधीन काम कर रहे कलेक्टर, एसडीएम बताएंगे। जहां तक पता चला है दिल्ली से आए प्रेक्षक ने ही झंडा उतरवाए। अब तक तक इस भगवा ध्वज के मामले ने तूल पकड़ा नहीं है, पर चुनाव अभियान चलाने के लिए समय अभी बचा हुआ है।
अमृत महोत्सव वर्ष में बिजली...
गरियाबंद के सुदूर जंगल में बसे कारीडोंगरी के निवासी आजादी के 75 साल तक लालटेन और चिमनी की रोशनी में अंधेरे से लड़ते थे। पर अब नवरात्रि के पहले दिन यह गांव बल्ब की रोशनी से नहा गया है। सिर्फ 250 की आबादी वाले इस गांव में पोल पर तार खींचने की बाधाओं के चलते अब तक बिजली लाइन नहीं आ पाई थी। अब यहां बच्चों की पढ़ाई के लिए मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई और पेयजल की भी अच्छी सुविधा मिल जाएगी। अभी सिर्फ 40 घरों में बिजली पहुंची है। बिजली विभाग एक और ट्रांसफार्मर लगाने जा रहा है जिसके बाद बाकी घरों में भी पहुंचाने का भरोसा दिलाया गया है। नवरात्रि की असली जगमगाहट तो इसी गांव में महसूस की जा रही है।
सुपेबेड़ा का हाल जस का तस..
गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में 47 साल के ग्रामीण पुरंदर की 2 दिन पहले किडनी की बीमारी से मौत हो गई। 10 दिन पहले ही उनके चाचा गंगाराम की भी इसी बीमारी के चलते ही मौत हुई थी। सुपेबेड़ा कि लोग पिछले 10 साल से जूझ रहे हैं। गांव वाले बताते हैं कि अब तक 105 लोगों की किडनी खराब होने से मौत हो चुकी है। सरकारी आंकड़ा 78 है। इन मौतों में बच्चे, युवा और महिलाएं भी शामिल हैं। स्थिति यह हो चुकी है कि लोग इस गांव में अब शादी-ब्याह करने से भी कतराते हैं। बदनामी की वजह से कई मौतों को गांव के लोग छिपा भी रहे हैं।
अक्टूबर 2019 में राज्यपाल अनुसुइया उइके ने इस गांव का दौरा किया था। स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव भी साथ गए थे। समस्या दूर करने के लिए पानी का परीक्षण कराया गया। मालूम हुआ कि पेयजल में भारी धातुओं का मिश्रण है, जो किडनी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। राज्यपाल के दौरे के बाद गांव में एक आर्सेनिक रिमूवल प्लांट लगाया गया था। पर वह बंद पड़ा हुआ है। नदी से पानी पहुंचाने का आश्वासन भी राज्यपाल और स्वास्थ्य मंत्री ने दिया था। योजना अब तक ठंडे बस्ते में है। गांव में इलाज की सुविधा भी नहीं है, अस्पताल भवन अधूरा पड़ा है। समस्या भाजपा शासन काल में जैसी थी, अभी भी वैसी ही बनी हुई है। सरकार बदल गई मगर अफसरों ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली, न नेताओं ने गंभीरता दिखाई। हालत जस के तस बनी हुई है।
सरकारी भुगतान क्यों डिजिटल नहीं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब कैशलैस ट्रांजैक्शन के लिए अभियान चलाया तब इसकी असल वजह नोटबंदी के बाद नए नोटों की बाजार में सप्लाई में हो रही परेशानी थी। पर अब सरकारी भीम यूपीआई के अलावा कई वॉलेट उपलब्ध हैं, जिनसे ऑनलाइन ट्रांजैक्शन बिना किसी अतिरिक्त चार्ज किया जा सकता है। छोटे-छोटे भुगतान के लिए चिल्लर की समस्या भी काफी हद तक डिजिटल लेनदेन में दूर कर दी है। अब बहुत कम ऐसे लोग मिलेंगे जिन्होंने लेन-देन वाले एप्लीकेशन अपने मोबाइल फोन पर ना रखा हो। इनसे व्यक्तिगत और व्यापारिक लेन-देन बड़े आराम से हो रहा है, पर सरकारी दफ्तर पिछड़ गए हैं। डिजिटल इंडिया अभियान के दौरान कलेक्टर्स को जिम्मेदारी दी गई थी कि प्रत्येक ब्लॉक में कम से कम एक पंचायत ऐसी हो जिसमें सारा भुगतान डिजिटल तरीके से हो। तब ऐसी पंचायतों में समारोह भी रखे गए थे। पर अब वे डिजिटल विलेज ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे।
आप चाहे तहसील दफ्तर चले जाएं, रजिस्ट्री ऑफिस, आरटीओ, बिजली विभाग, जिला अस्पताल नगर निगम कहीं भी। वॉलेट या यू पी आई के जरिए भुगतान करने की सुविधा कहीं पर नहीं है। डिजिटल लेनदेन की जिम्मेदारी आम नागरिकों के आपसी लेनदेन पर टिकी हुई है जबकि सरकार अपने ही विभागों में इसे लागू करने में पिछड़ गई है। दरअसल, दफ्तरों में नगद लेन-देन अधिकारियों कर्मचारियों के लिए सहूलियत भरा होता है। डिजिटल भुगतान करने से ऊपरी आमदनी की गुंजाइश कम हो जाएगी।
महुआ की पुकार...
महुआ से आदिवासी समाज का गहरा नाता है। शोधकर्ता कहते हैं कि जब अनाज नहीं था, तब आदिम मानव महुआ के फलों को खाकर अपना उदरपूर्ति करते थे। आदिवासी समाज के पारंपरिक सांस्कृतिक समारोहों में महुआ का विशेष महत्व है। लोकगीत, कथाएं महुआ के उल्लेख से भरी पूरी हैं। विशेष अवसरों पर आज भी महुआ के झाड़ की पूजा की जाती है। इस महत्व के चलते ही वन ग्रामों में अपनी जरूरत के लिए सीमित मात्रा में महुआ की शराब बनाने की छूट भी सरकार से मिली हुई है। पर अब इसका दुरुपयोग भी होने लगा है। वन ग्रामों के आसपास अंडे की दुकान, ढाबों में यह शराब शहरियों की फरमाइश पर उपलब्ध कराई जाती है। व्यावसायिकता की होड़ में अब महुआ के नाम पर चावल और यूरिया के मिश्रण से बनी शराब भी बेची जा रही है। ग्रामीण इलाकों में आबकारी और पुलिस की जानकारी के बीच कई ऐसे लोग भी महुआ की शराब बनाते हैं जिन्हें छूट नहीं मिली है, आदिवासी भी नहीं हैं।
महुआ से केवल शराब नहीं बनती बल्कि ये एक बहुउपयोगी औषधि भी है। वनों में सदियों से इसकी पहचान हो चुकी है। वैज्ञानिकों ने भी माना है कि इसमें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन और विटामिन सी भरपूर मात्रा में है। महुआ की छाल का उपयोग क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, डायबिटीज मेलिटस और ब्लीडिंग में किया जाता है। इसकी पत्तियां गठिया और बवासीर की दवा है। दांत दर्द में पीसा हुआ महुआ छाल मददगार है। इसकी जड़ें सूजन, दस्त और बुखार में असरदार है। सूख जाने के बाद भी कई सालों तक इसका प्रयोग हो सकता है।
कल ही इस कॉलम ने हमने एक यूट्यूब के बारे में लिखा था जिसने महुआ बीनने के लिए अपनी डोंगरगढ़ यात्रा को तीन दिन के लिए आगे बढ़ा दिया था। अब यह तस्वीर देखें। औद्योगिक नगरी भिलाई में काम करने वाला यह परिवार हर साल महुआ झरने के दिनों में भोरमदेव (कवर्धा) के पास अपने गांव लौट जाता है। महुआ बटोरने के बाद कुछ की बिक्री कर देते हैं, कुछ जरूरत के लिए रख लेते हैं। अपने प्रदेश में महुआ एक पेड़ ही नहीं है, जीवन जीने की पद्धति में शामिल है।
रेललाइन के लिए गांधीवादी रास्ता
दल्ली-राजहरा से रावघाट होते हुए जगदलपुर तक 235 किलोमीटर रेल लाइन बनाने का प्रस्ताव तीन दशक पुराना है, पर अब तक अधूरा है। यह रेल लाइन बनी तो जगदलपुर, दुर्ग के रास्ते से सीधे राजधानी रायपुर से जुड़ जाएगा। अभी रेल के रास्ते से राजधानी रायपुर पहुंचना हो तो ओडिशा के कोरापुट और रायगढ़ा होते हुए करीब 16 घंटे का 622 किलोमीटर सफर तय करना होगा। सडक़ मार्ग से यह दूरी लगभग 5 घंटे की और 300 किलोमीटर है। रेल मार्ग तैयार हुआ तो बालोद, कांकेर, जगदलपुर, दुर्ग, रायपुर, नारायणपुर, कोंडागांव- सात जिलों से सफर करने वालों को लाभ मिलेगा। साथ ही भिलाई स्टील प्लांट के लिए आयरन ओर का तीव्र गति से कम लागत में परिवहन हो सकेगा। बीएसपी अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर दो गुना करना चाहता है पर जब तक रावघाट परियोजना का निर्माण पूरा नहीं होता, यह संभव नहीं है। दल्ली राजहरा से लौह अयस्क लगभग समाप्त हो चुका है।
निर्माण की गति यह है कि पहले चरण में दल्ली से गुदुम, दूसरे चरण में गुदुम से भानुप्रतापपुर तथा तीसरे चरण में भानुप्रतापपुर से अंतागढ़ तक रेल लाइन बिछाई गई, जो कुल मिलाकर 42 किलोमीटर है। अभी रावघाट तक ही रेल लाइन पहुंचाने के लिए 18 किलोमीटर का काम बचा हुआ है। 235 किलोमीटर लाइन कब तैयार होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सन् 2021 के रेल बजट में इस परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किए जाने के बावजूद काम रूका हुआ है। रेल अधिकारी वन-पर्यावरण से जुड़ी कुछ दिक्कतों के बारे में भी बता रहे हैं।
परियोजना जल्द पूरा करने के लिए कई बार आंदोलन हो चुके हैं। पर इस बार एक लंबी पदयात्रा शुरू की गई है। इसके लिए बनाए गए सर्वदलीय मंच में चैंबर ऑफ कॉमर्स, बस्तर परिवहन संघ, सर्व आदिवासी समाज जैसे कांकेर, नारायणपुर, कोंडागांव व बस्तर जिले के 70 से अधिक संगठन इसमें शामिल हैं। इन्होंने रविवार से गांधीवादी रास्ता अपनाते हुए अंतागढ़ से लंबा पैदल मार्च शुरू कर दिया है। 173 किलोमीटर का सफर तय कर ये संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में प्रदर्शन करेंगे।
अब तो देख लीजिये...
द कश्मीर फाइल्स देखना देशभक्ति का कितना बड़ा प्रमाण है, यह इस पोस्टर से समझा जा सकता है। फिल्म देखिए, राष्ट्रभक्त की दुकान में टिकट दिखाइए और 44 रुपये का दूध 35 रुपये में खरीदिए। अब इस लुभावने ऑफर के बाद भी किसी को फिल्म देखना रास न आ रहा हो, तब तो इस देश का भला हो ही नहीं सकता।
दो साल बाद समाज का जलसा
चेटीचंड्र महोत्सव सिंधी समाज के लोगों ने जोर-शोर से मनाया। दो साल कोरोना की वजह से कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था, लेकिन इस बार शहर के अलग-अलग इलाकों में जोर-शोर से कार्यक्रम हुआ। सिंधी समाज के एक कार्यक्रम में सीएम भूपेश बघेल ने शिरकत की, तो दूसरे में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह पहुंचे थे।
उत्साही आयोजकों ने तो सीएम को खैरागढ़ में जीत के लिए अग्रिम बधाई भी दे दी। इससे परे एक अन्य कार्यक्रम में फिल्म अभिनेत्री महिमा चौधरी ने शिरकत की। सुनते हैं कि महिमा ने जयस्तंभ चौक के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए 5 लाख लिए थे। उनसे सेल्फी लेने के लिए हर आयु वर्ग के सिंधी समाज के लोग उमड़ पड़े। एक ने तो अपना बच्चा महिमा के गोद में बिठा दिया था। उनके आसपास इतना घेरा बन गया कि महिमा को घुटन होने लगी, और फिर आयोजकों से हाथ जोडकऱ होटल जाने की अनुमति मांगी। घंटे भर वहां किसी तरह वहां से रवाना हुई। तब तक सैकड़ों लोग उनके साथ सेल्फी ले चुके थे, और पैसा भी वसूल हो गया।
साइकिल वाले ब्लॉगर की डोंगरगढ़ यात्रा...
जगदलपुर से 20 किलोमीटर दूर पुस्पाल के रहने वाले महज 18 साल के अस्तु नाग को विविधताओं से भरे-पूरे छत्तीसगढ़ को घूमने की ललक है। साधन नहीं होने के बावजूद रास्ता निकल आया। एक मोबाइल फोन और जरूरत का सामान लेकर अस्तु पहले चरण में पुस्पाल से डोंगरगढ़ की 340 किलोमीटर की यात्रा पर साइकिल से निकल गया है। अस्तु को निकलना तो एक सप्ताह पहले ही था लेकिन आई ने रोक लिया। आई, का बस्तर की भतरी बोली में मतलब होता है- मां। आई बोली- अभी महुआ बहुत गिर रहा है, दो चार दिन साथ दे दो, फिर निकलना। तीन दिन साथ महुआ बटोरा, फिर निकला। रास्ते में साइकिल पंचर भी हो रही है, चैन भी टूट रहा है। कल तो अस्तु को 5 किलोमीटर पैदल साइकिल को घसीटते चलना पड़ा। वे पूरी गतिविधि हर रोज यू-ट्यूब पर अपलोड कर रहे हैं। प्रकृति, नदी, नाले, सडक़ों की तस्वीरें साइकिल पर चलने की वजह से ज्यादा नजदीक से कैद हो पा रही है। इस रास्ते में कई ‘न्यूज वाले भैया’ उनको मिल रहे हैं। जो खाने, आराम करने, चाय पिलाने के लिए खुद ही आगे आ रहे हैं। उन्होंने अस्तु को एक दूसरे शहर के वाट्सअप ग्रुप से भी जोड़ लिया है ताकि रास्ते में कहीं भी कोई दिक्कत हो तो ग्रुप से जुड़े लोग मदद के लिए मौके पर पहुंच सकें। तेज धूप में मीलों का सफर साइकिल पर कर रहे 18 वर्ष के अस्तु को आत्मविश्वास और प्रसन्नता से भरा देखकर आपको भी अच्छा लग सकता है।
चुनाव से पहले और कितने जिले?
विधानसभा उप-चुनाव में यदि कांग्रेस को जीत मिली तो एक नया जिला खैरागढ़ भी आकार ले लेगा। यह 33वां और भूपेश सरकार के कार्यकाल का छठवां जिला होगा। पर इसके बाद छत्तीसगढ़ में नये जिलों की मांग और तेज होगी या कम यह सवाल खड़ा होने वाला है। कटघोरा को अलग जिला बनाने की मांग को लेकर एक दशक से ज्यादा समय से आंदोलन चल रहा है। अधिववक्ताओं के नेतृत्व में वहां के अधिवक्ता अब भी धरना दे रहे हैं। भाटापारा को अलग जिला बनाने की मांग पर तो विधानसभा में एक अशासकीय संकल्प भी लाया जा चुका है, हालांकि उसे पारित नहीं किया जा सका। प्रतापपुर-वाड्रफनगर, पत्थलगांव, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर से भी लगातार मांग उठ रही हैं। छोटे बड़े प्रदर्शन आंदोलन या तो हो चुके हैं या जारी हैं, वहां पर।
खैरागढ़ उप-चुनाव ने रास्ता बताया है कि विधानसभा चुनाव के पहले ऐसी मांगें पूरी कराई जा सकती है। जैसे ही खैरागढ़ का चुनाव निपटेगा, नये जिलों के लिए आंदोलन ज्यादा जोर पकड़ सकता है।
अब अप्रैल से भी उम्मीद नहीं
रामपुर में बालको-कोरबा मुख्य मार्ग की देशी शराब दुकान हटाने के लिए महिलाएं पिछले 10-12 दिन से आंदोलन कर रही हैं। दो दिन पहले उन्होंने शराब दुकान में ताला जडक़र चक्काजाम कर दिया था। शराब बिक्री के घोर विरोधी विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर भी कुर्सी लगाकर उनके साथ धरने पर बैठे। आबकारी विभाग ने पहले उनको आश्वासन दिया था कि 31 मार्च के बाद दुकान नई जगह शिफ्ट कर दी जाएगी। पर, नहीं किया गया तो कंवर खुद आंदोलन में उतर गए। जब शराब दुकानों को ठेके पर दिया जाता था तो 1 अप्रैल से नई दुकानें उनके इलाके में न खुलें, इसके लिए नागरिक पहले से मोर्चाबंदी कर लेते थे। पर जब से ठेका बंद और बिक्री सरकारी हुई है, 31 मार्च या 1 अप्रैल का कोई मतलब नहीं रह गया। जाहिर है, 31 मार्च तक हटा देने के बारे में आबकारी अफसरों ने बला टालने के लिए कंवर को भ्रामक आश्वासन दिया था। वैसे कोरबा में कई शराब दुकानों पर विवाद है। सिख समाज ने प्रियदर्शिनी स्टेडियम के रास्ते पर गुरुद्वारा के पास की शराब दुकान को बंद करने के लिए दो दिन का अल्टीमेटम देते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है। गुरुद्वारा समिति के लोग प्रशासन को इस बारे में कई बार ज्ञापन दे चुके हैं। दर्री में तो एक सर्वदलीय मंच बना लिया गया है, जो यहां की देशी-विदेशी शराब दुकान को बंद करने के लिए आंदोलन पर उतरा हुआ है। शराबबंदी के लिए संकल्पित सरकार, शराब दुकानों के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को लेकर पूरी तरह खामोश है। कुछ अटपटा तो नहीं लग रहा?
आदिवासी रीति-रिवाज, विवाद
आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग अपने आपको हिंदुओं से अलग समझता है। इनका मानना है कि वे अलग रीति-रिवाज का पालन करते हैं, जो हिंदू देवी देवताओं से जुड़े नहीं है। इसी मान्यता के चलते सुकमा जिले में एक विवाद खड़ा हो गया।
पूरे राज्य में छत्तीसगढ़ सरकार रामायण पाठ प्रतियोगिता करा रही है। रामायण मंडलियों के बीच पंचायतों के बीच होने वाली इन स्पर्धाओं में भाग लेने वाली टीमों को पुरस्कृत भी किया जाना है। राज्य सरकार का सर्कुलर सभी जिलों के लिए एक समान था। सुकमा जिले में भी जनपद पंचायतों की तरफ से रामायण प्रतियोगिताओं के लिए परिपत्र निकाल दिया गया। छिंदगढ़ ब्लॉक में 29 और 30 मार्च से यह शुरू होने वाली थी, सर्व आदिवासी समाज के विरोध के कारण स्थगित करनी पड़ गई। समाज के लोगों ने सीधे राज्यपाल से शिकायत की थी। उनका कहना है कि संविधान की धारा 244 (1) के तहत पांचवी अनुसूची में आदिवासी रीति-रिवाजों के उल्लंघन को रोकने और मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने का हवाला दिया गया है। ऐसे में यदि क्षेत्र में कोई धार्मिक कार्यक्रम रखा जाता है तो वह यहां की सामाजिक मान्यताओं के अनुसार होनी चाहिए।
फिलहाल छिंदगढ़ में तो प्रतियोगिता स्थगित कर दी गई है। पर एक सवाल उठता है कि सीधे-सीधे ऐसी प्रतियोगिताओं के आयोजन में सरकारी महकमे को व्यस्त करने की जगह ज्यादा अच्छा यह ना होगा कि धार्मिक सांस्कृतिक समितियां आयोजन करें। भले ही सरकार उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप आर्थिक या दूसरी सहायता पहुंचाए।
175 किलोमीटर की साइकिल यात्रा
केशकाल के 12 छात्र राज्यपाल से मिलने के लिए राजधानी रायपुर की 175 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करने निकले तो रास्ते में उन्हें कई जगह पुलिस और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने रोका। कांकेर में धूप और गर्मी का हवाला देकर छात्रों को लौट जाने और उनकी मांग सरकार तक पहुंचाने का आश्वासन दिया गया। मगर छात्र नहीं माने और आखिरकार रायपुर पहुंच ही गए। राज्यपाल से मिलने का वक्त उन्होंने पहले लिया नहीं था। शायद उन्हें प्रक्रिया मालूम नहीं थी। राज्यपाल को पता चला तो उन्होंने भीतर बुला लिया और आश्वासन दिया।
इन छात्रों की मांग है केशकाल में 1962 से संचालित बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को बंद नहीं किया जाए। अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूल से उन्हें कोई आपत्ति नहीं पर उसके लिए कोई दूसरी जगह तय की जाए।
उत्कृष्ट शिक्षा के एक अभिनव प्रयोग स्वामी आत्मानंद स्कूल योजना को लेकर प्रदेश के कई जिलों से इस तरह के विरोध की खबरें आ रही है। बच्चों को आश्वस्त नहीं किया जा रहा है कि वे जिस माध्यम से और जिस स्कूल में पढ़ते आ रहे हैं उसमें कोई व्यवधान डाला नहीं जाएगा। सरकार यह दावा कर रही है पर छात्रों को भरोसा हो इसके लिए जरूरी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
जशपुर की नई पहचान
जशपुर की जलवायु छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों से कुछ अलग है। कई दशकों से टाऊ, आलू और टमाटर के लिए यह प्रसिद्ध है। पर 10-12 सालों में काजू की खेती ने भी लोगों को आकर्षित किया है। वन विभाग ने 90 के दशक में प्रयोग के तौर पर काजू की खेती शुरू की थी। बाद में उद्यानिकी विभाग ने भी किसानों को प्रोत्साहित करना शुरू किया। झिझकते हुए किसानों ने फसल लेनी शुरू की। और अभी स्थिति यह है कि करीब 8000 परिवार काजू की खेती करने लगे हैं। पहले 30 से 40 रुपये किलो में काजू के फल किसान बेचा करते थे लेकिन अब कई प्रोसेसिंग प्लांट लग गए हैं। प्रोसेस किए हुए काजू 80 से 120 रुपए किलो हाथों हाथ बिक रहे हैं। इस आमदनी में सरकारी एजेंसियों की भूमिका उन्हें खेती के लिए मार्गदर्शन करने की है। मेहनत का बीड़ा और जोखिम किसानों ने ही उठा रखा है।
कोंडागांव में डिजिटल शिकायतें...
बस्तर के कोंडागांव जिले की साक्षरता 64 प्रतिशत है। यह देश के 59.5 प्रतिशत औसत से अधिक तो है ही, छत्तीसगढ़ के भी 63.6 से कुछ अधिक ही है। पर केवल अक्षर ज्ञान वाली साक्षरता नहीं, डिजिटल साक्षरता में यह जिला आगे दिखाई दे रहा है। यहां प्रशासन ने लोगों की समस्याओं, शिकायतों को सुनने के लिए एक मोबाइल ऐप- ‘कोंडानार’ लांच किया है। इस ऐप में बीते कुछ समय के भीतर ही लगभग 14 हजार 374 आवेदन आ चुके हैं। इसका मतलब यही हुआ कि दूर-दूर बसे गांवों के लोग जिन्हें कलेक्टर, एसडीएम के दफ्तर पहुंचने में खासी परेशानी महसूस करते हैं। खर्च के साथ-साथ पूरा दिन लग जाता है और अधिकारी कई बार दफ्तर में मिलते नहीं। अब यहां के ग्रामीण मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सीधे ऐप पर शिकायतें दर्ज करा रहे हैं। 14 हजार से अधिक शिकायतों का आना प्रशासन की उम्मीदों से बहुत ज्यादा है। इसीलिये अब तक 650 आवेदनों का निराकरण हो पाया है। यह जरूर है कि ज्यादातर आवेदनों में मांगे हैं, जैसे राशन कार्ड, हेंडपंप, पेयजल, शिक्षक आदि। वैसे डिजिटली साक्षर होना एक बात है, डिजिटली जागरूक होना दूसरी बात। क्यों नहीं, इस तरह के ऐप हर जिले के लिये तैयार किए जाने चाहिए। वैसे भी सफर बहुत महंगा होता जा रहा है। दफ्तरों में हर सप्ताह कम से कम दो दिन छुट्टी भी तो अब तय कर दी गई है।
नीति आयोग की छत्तीसगढ़ बैठक...
नीति आयोग केंद्र की संस्था है। कुछ मामलों में राजनैतिक दबाव इसके सदस्यों पर आता होगा, पर हमेशा नहीं। इसमें अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, जिनकी स्वतंत्र राय किसी राजनीति से प्रेरित नहीं होती। राज्य में हुई कल आयोग की बैठक में सदस्यों ने छत्तीसगढ़ सरकार की प्रशंसा की, योजनाओं को लागू करने में सफलता के लिये दाद दी, नये प्रयोगों को सराहा। इनमें गोधन न्याय योजना तो है ही, इज ऑफ डुईंग बिजनेस तथा दलहन तिलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी का विशेष तौर पर उल्लेख हुआ। वरिष्ठ कृषि सलाहकार नीलम पटेल ने तो कहा कि कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ में जो काम हो रहे हैं उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी और छत्तीसगढ़ में भाजपा की, तब भी कई बार केंद्रीय दलों और केंद्र के मंत्री छत्तीसगढ़ सरकार की तारीफ करके लौट जाते थे। कांग्रेस के लिये असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती थी। जिन मुद्दों पर वे सरकार को घेरने के फिराक में होते थे, उन पर शांत बैठना पड़ता था। अभी भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आई है कि नीति आयोग की तारीफ को लेकर वह क्या सोच रही है।
प्रशासन को दिखाया आईना..
सरगुजा के अनेक गांव दूर-दराज पहाडिय़ों के बीच बसे हैं। बरसात में तो कई रास्ते बंद हो जाते हैं, दूसरे मौसम में भी सिर्फ पगडंडियों के सहारे रास्ता नापना होता है। मैनपाट इलाके के अंतर्गत आने वाले परपटिया ग्राम पंचायत के ग्रामीणों ने दर्जनों पर जन समस्या निवारण शिविरों में ज्ञापन आवेदन दिए। कलेक्टोरेट जाकर भी गुहार लगाई, लेकिन मुख्य मार्ग तक पहुंचने के लिये सडक़ बनाने की मांग पूरी नहीं की गई। जनप्रतिनिधि और अधिकारी दोनों कहते थे कि घुमावदार पहाड़ी है, सडक़ नहीं बन पाएगी। ग्रामीणों ने वर्षों इंतजार के बाद इस छह किलोमीटर रास्ते को तैयार करने के लिये खुद श्रमदान शुरू किया है। इस सडक को बनाकर वे यह भी बता रहे हैं कि पहाड़ी काटना इतना मुश्किल भी नहीं था। सडक़ बन जाएगी तो ग्रामीणों को पगडंडी पर चलकर मुख्य मार्ग पहुंचने की मजबूरी नहीं रह जाएगी।
बिग बाजार में आप तो नहीं फंसे?
पड़ोस के किराना दुकान से सामान खरीदने की लोगों की आदत छूटती जा रही है। लोग मॉल में जाकर सबसे सस्ता चैलेंज वाले दाल, आटा, नमक खरीद लाते हैं। छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों में खोले गए बिग बाजार ऐसे ही सुपर मार्केट में से हैं। लोगों को बीते कई सालों से इसकी आदत पड़ी हुई है। पर अधिकांश जगहों के बिग-बाजार सेंटर्स में शटर अब गिर चुके हैं। शायद रिलायंस ने सौदा किया है। वह इसे नई जगह पर खोलेगा, पर कब इसका पता नहीं। कोई दुकान खोले या बंद करे, किसी का क्या जाता है, पर बिग बाजार के साथ ऐसा नहीं है। उसने अपने ग्राहकों के लिए कई ऐसी स्कीम चला रखी है जिसमें पैसे आप पहले से जमा कर दें। साल भर खरीदते रहें तो अंत में हजार- दो हजार रुपये का और मुनाफा मिलेगा। ऐसा नहीं कि आपको आपकी जमा रकम जो 10-20 हजार रुपये हो सकती है, का पूरा सामान एक साथ खरीदने की छूट है। थोड़ा-थोड़ा खरीद सकते हैं। बिग बाजार को बंद करने की योजना होने के बावजूद स्कीम रोकी नहीं गई। ग्राहकों को तो पता था ही नहीं, कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें भी मालूम नहीं था। वरना इस स्कीम में पैसे डालने नहीं कहते। बहरहाल, यदि आपने किसी ऐसी स्कीम में रकम लगाई है तो जाग जाइये। छत्तीसगढ़ में आपके शहर का बिग बाजार बंद हो चुका हो तो रायपुर के सिटी सेंटर आ जाएं। यहां चालू है, बचा खुचा सामान बेचा जा रहा है। कब बंद हो जाए कह नहीं सकते। पर, आपको अपनी जमा रकम वापस चाहिए तो 15 दिन से महीने भर की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। इसके लिए आपका कैंसिल्ड चेक और आधार कार्ड की कॉपी मांगी जायेगी। पैसा मिलने में दिक्कत जाये तो कंज्यूमर फोरम तो है ही।
माता का वीवीआईपी दर्शन..
दो अप्रैल से चैत्र नवरात्रि पर्व शुरू हो रहा है। इस बार प्रदेशभर के मंदिरों में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में पहुंचने की संभावना है। कोविड महामारी के बाद पूरी छूट के साथ पहली बार आम लोगों को दर्शन की सुविधा जो मिलने जा रही है। यही नवरात्रि का मौका होता है जब नेता, मंत्री और दूसरे वीआईपी भी दर्शन के लिये मंदिरों में पहुंचते हैं। मां का दर्शन लाभ तो होता है लोगों के बीच चेहरा दिखने से लोकप्रियता भी बनी रहती है। पर जब इनकी वजह से मंदिर की व्यवस्था बिगड़ती भी है। लोग दर्शन के लिए लंबी कतार में लगे हैं, दूसरी ओर रसूखदारों को बगल के रास्ते से सीधे मंदिर के चौखट तक पहुंचा दिया जाता है। प्रबंधकों के सामने मुसीबत हो जाती है किसे मना करें, किसे न करें। पर, इसका तोड़ दक्षिण बस्तर के दंतेश्वरी मंदिर में इस बार निकालने की कोशिश की जा रही है। यहां वीआईपी दर्शन के लिये अलग काउन्टर बनाया गया है। जिन्हें जल्दी या कतार में बिना लगे दर्शन करना हो उन्हें एक हजार रुपये शुल्क देना होगा। मंदिर प्रबंधकों को लगता है कि इससे अनावश्यक सिफारिशों से बचा जा सकेगा। प्रयोग सफल रहा तो इसे जारी रखा जायेगा। हो सकता है भीड़ वाले दूसरे मंदिरों में भी यही व्यवस्था आगे शुरू हो जाए। बस, यह देखना होगा कि जो वीआईपी है वे एक हजार रुपये की रसीद कटवाने से मना तो नहीं करेंगे?
भीषण गर्मी के बीच स्कूल..
अप्रैल आने से पहले ही छत्तीसगढ़ में पारा 41 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा है। इसके बावजूद स्कूलों को खोलना जरूरी इसलिये समझा गया है ताकि कोरोना के चलते हुई पढ़ाई की हानि को कुछ कम किया जा सके। इस वजह से ग्रीष्मकालीन अवकाश में कटौती कर दी गई है। ऐसा पहला मौका है जब गर्मी के दिनों में बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सतर्क कैसे रहा जाए, इसे लेकर विस्तार से एडवाइजरी जारी की गई है। इसे मुख्यमंत्री शाला सुरक्षा कार्यक्रम नाम भी दिया गया है। शिक्षा विभाग की बच्चों की पढ़ाई के बीच स्वास्थ्य को लेकर की गई चिंता तो जायज है इसमें कोई दो राय नहीं। पर, तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है, कोई आश्चर्य नहीं कि स्कूलों को खोले रखने के बारे में पुनर्विचार करने की स्थिति बन जाए। अक्सर अप्रैल मई में मां-पिता बच्चों को दोपहर के वक्त घर से निकलने नहीं देते। लू और डिहाइड्रेशन की चिंता के चलते। पर अब स्कूलों में भेजना उनकी जिम्मेदारी बन गई है। आने वाले दिनों में देखना है कि स्कूलों में गाइडलाइन का कितना पालन होता है। कितने अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे, दिखेगा। एक अभिभावक का कहना है कि स्कूल के स्तर पर बरती जा रही सावधानी तो ठीक है पर लू लगने का खतरा तो स्कूल जाने और लौटने के दौरान भी बना रहेगा।
बस्तर नहीं, पसान सही..
कोरबा कलेक्टर रानू साहू ने टाइम लिमिट की बैठक के दौरान कोरबा के तहसीलदार सुरेश साहू को पसान तबादला करने का आदेश निकाल दिया। समीक्षा के दौरान उन्होंने पाया कि तहसीलदार ने एक भी राजस्व मामले का निपटारा नहीं किया है। उसे कहा कि तुम कोरबा में रहने लायक नहीं हो, इसी वक्त पसान तबादला किया जाता है।
पसान कोरबा जिले के आखिरी छोर में बसा है। यह गौरेला-पेंड्रा-मरवाही से लगे जंगलों के बीच का तहसील है। सवाल यह है कि जब कोरबा में उनके इर्द-गिर्द रहते हुए तहसीलदार काम में कोताही बरत रहे थे तो फिर उससे पसान जैसे रिमोट एरिया में काम कैसे लिया जा सकेगा? हो सकता है कि कोरबा के राजस्व कोर्ट से पीडि़त लोगों को कुछ राहत मिल जाए, पर पसान के लोगों को तो कलेक्टर तक शिकायत करने के लिये पहुंचने की सुविधा भी नहीं। एक टोल फ्री नंबर हर जिले में आजकल जारी किया जा रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि राजस्व मामले निपटाने के लिये यदि कोई रिश्वत की मांग कर रहा हो तो इस पर शिकायत करें, लेकिन जिनका केस फंसा हो, बिना मुंह खोले ही केस लटका कर रखा गया हो तो वह कौन सा जिगर लेकर शिकायत करेगा?
गर्मी में न सूखने वाले कुएं
मार्च में ही छत्तीसगढ़ में तापमान मई महीने की तरह ऊपर चढ़ता जा रहा है। मुंगेली में प्रदेश का सर्वाधिक तापमान 41.8 डिग्री सेल्सियस रहा। शहरों, कस्बों में जो जल स्त्रोत सूख रहे हैं, वे तो अपनी जगह है हीं। गांवों और जंगलों में भी पेयजल और निस्तार की समस्या शुरू हो चुकी है। ऐसे में यदि कोई कुआं पानी से भरा दिखाई दे तो मानकर चलना चाहिये कि उस जगह का पर्यावरण संतुलन और भू जल का स्तर अच्छा है। मुंगेली जिले के ही अचानकमार टाइगर रिजर्व के एक गांव की यह तस्वीर है।
यह तस्वीर बहुत खास इसलिए भी है..
संसद के सेंट्रल हॉल में दो चर्चित और मशहूर चेहरों के पीछे बैठे छत्तीसगढ़ के रायपुर के सांसद सुनील सोनी। सनी देओल और हेमा मालिनी की साथ बैठी हुई यह तस्वीर इस मायने में भी दिलचस्प है कि दोनों भाजपा के सांसद भी हैं, और सौतेले मां-बेटे भी हैं। सुनील सोनी की इस तस्वीर को देखकर यह याद पड़ता है कि किस तरह बरसों तक लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज के पीछे बैठे हुए रायपुर के ही सांसद रमेश बैस का चेहरा दिखता था, और लोग टीवी पर मोटे तौर पर रमेश बैस को उसी तरह देख पाते थे। अब सुनील सोनी का यह पहला ही कार्यकाल है इसलिए लोकसभा में तो उन्हें सामने बैठने की जगह नहीं मिलती कि वे भाजपा के सबसे वरिष्ठ लोगों के ठीक पीछे दिखते रहें, लेकिन सेंट्रल हॉल से यह एक बहुत ही खास तस्वीर सामने आई जिसमें देश के दो सबसे चर्चित सौतेले मां-बेटे भी दिख रहे हैं।
साम्प्रदायिकों के मुंह से पुलिस की तारीफ!
छत्तीसगढ़ में तथाकथित धर्मांतरण को भाजपा ने एक बड़ा मुद्दा बना रखा है। ऐसे में गांव-गांव में अल्पसंख्यक तबकों की होने वाली घरेलू प्रार्थना सभा पर उग्रवादी हिन्दू संगठनों के हमले हो रहे हैं। और फिर प्रदेश की कांग्रेस सरकार की मातहत पुलिस भी हिन्दू संगठन की तरह काम करते दिखती है। अभी सरगुजा के जशपुर जिले में थाना कांसाबेल के तहत ग्राम रजौरी भालूटोली में एक ईसाई परिवार में घर पर प्रार्थना सभा की जा रही थी। इस पर कांसाबेल के थाना प्रभारी ने इस परिवार को एक नोटिस भेजा है, और कहा है कि आपके घर में ईसाई समुदाय के द्वारा गांव के लोग से मिलकर प्रार्थना का संचालन किया जा रहा है। इस घर में प्रार्थना संचालन करने के संबंध में आपके पास कोई वैध लाइसेंस/दस्तावेज उपलब्ध हैं तो तत्काल प्रस्तुत करें। थाने ने लिखा है कि क्या आपके द्वारा प्रार्थना सभा किए जाने के संबंध में प्रशासन या सक्षम अधिकारी को सूचित किया गया था, बताने का कष्ट करें।
अब प्रदेश की कांग्रेस सरकार की पुलिस से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या दूसरे धर्मों की प्रार्थना किसी घर में होती है, तो उसके लिए हिन्दू या जैन या सिक्ख या बौद्ध कोई लाइसेंस लेते हैं? इन सभी धर्मों में कई घरों पर धार्मिक आयोजन होते हैं, हिन्दू परिवारों में तो कई-कई दिन चलने वाली अखंड रामायण भी चलती है, भागवत का आयोजन होता है, रात-रात भर कीर्तन चलता है, इन सबके लिए किस तरह का लाइसेंस लिया जाता है?
आक्रामक धार्मिक, धर्मान्ध, और साम्प्रदायिक संगठनों के दबाव में छत्तीसगढ़ पुलिस जगह-जगह ऐसी कार्रवाई कर रही है कि साम्प्रदायिक संगठन उसकी सार्वजनिक रूप से तारीफ भी कर रहे हैं। क्या सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के भीतर कोई पुलिस के ऐसे धार्मिक होने के खतरे समझ रहे हैं?
रिश्तों में खटास
शहर जिला भाजपा अध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी, और पूर्व मंत्री राजेश मूणत के बीच सब-कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। चर्चा तो यह भी है कि मूणत के करीबी लोग श्रीचंद की जगह किसी और को जिला संगठन की कमान सौंपने के पक्षधर हैं।
सुनते हैं कि श्रीचंद की नाराजगी के चलते ही मूणत पिछले दिनों जिला कार्यकारिणी की बैठक से दूर रहे। दोनों के बीच दूरियां उस वक्त बढ़ गईं, जब केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रवास के दौरान मूणत का कांग्रेस के लोगों से विवाद हुआ था। इस पूरे एपिसोड में श्रीचंद ज्यादा सक्रिय नहीं थे। चर्चा है कि वो बड़े प्रदर्शन के पक्ष में नहीं थे। बात मूणत तक पहुंच गई। फिर क्या था दोनों के रिश्तों में खटास आ गई है। संगठन में मूणत का दबदबा जगजाहिर है। ऐसे में श्रीचंद के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी।
इस बार क्या होता है...
खैरागढ़ में भाजपा ने कांग्रेस को तगड़ी टक्कर देने के लिए व्यूह रचना तैयार की है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल खैरागढ़ शहर में अपना पूरा समय देंगे। उन्होंने एक कार्यकर्ता का मकान भी किराए से ले लिया है। फंड में कमी न हो इसके इंतजाम में खुद पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और गौरीशंकर अग्रवाल लगे हैं।
सुनते हैं कि प्रदेश के सभी पदाधिकारियों को खैरागढ़ भेजा जा रहा है, और ढाई सौ से अधिक बूथों में प्रदेश के एक-एक नेता की ड्यूटी लगाई जा रही है। पार्टी ने छुईखदान ब्लॉक पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है। यहां मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, और पार्टी के लिए अच्छी बात यह है कि खुद भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल इसी ब्लॉक के रहने वाले हैं। कुल मिलाकर भाजपा अपना सब कुछ दांव पर लगा रही है। पिछले चुनाव में भाजपा मात्र 8 सौ मतों से पीछे रह गई थी। इस बार क्या होता है, यह देखने वाली बात होगी।
बस, महिलाओं का पीना बुरी बात है?
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवी रिपोर्ट आने के बाद से छत्तीसगढ़ में फिर एक बार सियासत तेज हो रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश की पांच प्रतिशत महिलाएं शराब पीती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह यह कहकर घेर रहे हैं कि भूपेश सरकार घर-घर शराब पहुंचाने की नीति बनाकर महिलाओं को भी नशे के दलदल में ढकेल रही है। कांग्रेस ने सर्वे रिपोर्ट को खारिज किया है।
इस बात का कोई सर्वे नहीं है कि घर मंगाने की हैसियत रखने वाली महिलाओं की वजह से प्रतिशत पांच तक जा पहुंचा। ये घरेलू महिला, अकेली महिला, सीमेंट की बोरियां उठाने वाली, पत्थर तोडऩे वाली, नाली साफ करने वाली, कोई भी हो सकती है। जब 38 प्रतिशत पुरुषों पर सवाल नहीं तो महिलाओं पर क्यों? दूसरी बात यह यदि अनैतिक है तो परिवार का मुखिया ही संस्कारवान हो जाये तो सब ठीक हो, महिला ही क्यों ठेका ले?
दरअसल, शराबबंदी का वादा छत्तीसगढ़ सरकार के गले की फांस तो बन चुकी है। चुनाव नजदीक आते-आते कोई फैसला ले लेने का दबाव बढ़ता जा रहा है। पब्लिक की ओर से आवाज उठे न उठे, भाजपा तो पीछे पड़ ही चुकी है। यह बात अलग है कि उसकी अपनी नीति भी शराब बिक्री की ही है। इधर मंत्री कवासी लखमा शराब बिक्री की तरफदारी करते हुए कहते हैं कि इसकी आमदनी से राज्य का विकास होता है। पर रोजाना शराब की वजह से होने वाले जघन्य अपराधों में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग पर कितना अतिरिक्त खर्च हो रहा है, इसकी बात भी करनी चाहिये। एक शराबी ने अपने पांच साल के बच्चे को दो दिन पहले पटक-पटक कर मार डाला। विकास के अलावा समाज में और क्या हो रहा है?
कानून से परे करारनामा
स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश में एम्बुलेंस सेवा उपलब्ध कराने के लिये जिन कंपनियों के साथ अनुबंध किया है उसमें यह शर्त भी जोड़ी गई है कि दोनों के बीच जो एमओयू हुआ है उसकी जानकारी किसी तीसरे पक्ष को नहीं दी जाए। यह बात तब बताई गई जब कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सरकार के साथ एंबुलेंस कंपनियों के करार की जानकारी मांगी। सरकारी धन का इस्तेमाल करने के लिये कोई अनुबंध हो और उसे आरटीआई से बाहर रखने का समझौता कर लिया जाये, यह कैसे हो सकता है? आरटीआई के दायरे से कौन सी जानकारी बाहर है यह तो अधिनियम में साफ लिखा गया है। उसमें एम्बुलेंस सेवा का जिक्र ही नहीं है। कल को बिल्डिंग सडक़ बनाने वाले भी कहेंगे कि कितना सीमेंट, छड़ इस्तेमाल कर रहे हैं तीसरे को नहीं बताना। ठेकेदार और अफसर आपस में समझ लेंगे। बहरहाल, एंबुलेंस मामले की शिकायत मुख्य सूचना आयुक्त से की गई है।
यह सरकारी धोखाधड़ी वाला मैसेज है..
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार का भेजा गया राशन का एक मैसेज छत्तीसगढ़ के एक अखबारनवीस के फोन पर आया है जिसमें दुकान के नंबर सहित यह लिखा हुआ है कि प्रधानमंत्री की राशन योजना के तहत मार्च का 8 किलो गेहूं, और 2 किलो चावल उसे दिया गया है। इसके साथ ही दुकान का नंबर भी दिया गया है। अब चूंकि छत्तीसगढ़ के एक पत्रकार के नंबर पर यह संदेश आ रहा है, इसलिए इस बात का खतरा दिखता है कि यह राशन कहीं इधर-उधर किया गया हो। जिस तरह आजकल मोबाइल पर कई दूसरे किस्म की जालसाजी के मैसेज आते रहते हैं, यह भी एक सरकारी जालसाजी या लापरवाही का मैसेज है।
छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति भवन
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सन् 1952 में सरगुजा के दौरे पर आये तो यहां के पंडो आदिवासियों के बीच जिस भवन पर रुके थे, उसे राष्ट्रपति भवन का नाम दिया गया है। प्रथम राष्ट्रपति ने पंडो आदिवासियों को अपना दत्तक पुत्र माना था। तब से इस भवन को यहां के निवासियों ने सजा-संवारकर रखा है। हाल ही में जब राज्यपाल अनुसुईया उइके यहां पहुंचीं तो उन्हें यह जानकर ताज्जुब हुआ कि इन 70 सालों के भीतर राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली वह पहली राज्यपाल हैं। उन्होंने अपने भाषण में बिना झिझके स्वीकार किया कि सरकारों ने पंडो और दूसरे आदिवासी समुदायों को ऊपर उठाने के लिये करोड़ों रुपये दिये पर आज भी उनका जीवन स्तर नहीं बदला, जरूरी स्वास्थ्य शिक्षा की सुविधा नहीं मिलीं।
डुप्लीकेट का कार्यक्रम स्थगित
पिछले कुछ समय से अलग-अलग फोरम में स्थानीय, और बाहरी के मुद्दे पर चर्चा होते रहती है। इस पर सोशल मीडिया में कई लोग आग भी उगलते रहते हैं। कुछ दिन पहले शहर के मुख्य मार्केट में छापा पड़ा। इसमें कुछ दुकानदारों के यहां ब्रांडेड कंपनी के नकली सामान भी जब्त हुए। फिर क्या था, छत्तीसगढिय़ा का झंडा थामे एक-दो लोगों ने अनर्गल प्रलाप शुरू कर दिया। सोशल मीडिया में यह लिखा गया कि बाहर से आए लोग छत्तीसगढ़ में नकली सामान बेचकर माल बना रहे हैं। इसके बाद व्यापारी संगठनों के लोगों के बीच आपस में काफी बहस भी हुई। इसका प्रतिफल यह हुआ कि कुछ दिनों बाद होने वाले कार्यक्रम में डुप्लीकेट अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, ऋ षि कपूर को बुलाना तय हुआ था, लेकिन विघ्न संतोषी लोगों को मौका न मिल जाए, इसलिए डुप्लीकेट अभिनेताओं का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया।
नतीजे पक्ष में नहीं आए तो...
खैरागढ़ उपचुनाव पर भाजपा हाईकमान की नजर है। प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी नितिन नबीन दो दिन पहले रायपुर पहुंचे, और उन्होंने कुछ नेताओं से खैरागढ़ में पार्टी का हाल जाना। नेताओं ने उन्हें बताया कि चूंकि कांग्रेस की सरकार है, इसलिए खूब मेहनत करनी पड़ेगी। नितिन नबीन ने नेताओं को साफ-साफ कहा कि चुनाव हर हाल में जीतना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो काफी गड़बड़ हो जाएगी। संकेत साफ है कि यदि नतीजे पक्ष में नहीं आए, तो हाईकमान बड़े पदों पर बैठे नेताओं को बदल सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
शादी पूरी तरह सरकारी
मंडप सरकार की, खर्चे सरकारी, परिधान, आर्नामेंट, उपहार, नगद प्रोत्साहन सब सरकारी मद से। और तो और जिस जोड़े की शादी हो गई वह भी सरकारी। मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना तो दरअसल निर्धन कन्याओं के विवाह में मदद करने के लिये है, पर सरकारी कर्मचारी मिल-जुलकर इसमें भी अपना हिस्सा बंटवारा कर लेते हैं। महिला बाल विकास ने दंतेवाड़ा में रविवार को 351 जोड़ों का सामूहिक विवाह किया। इनमें कृष्णा कुंजाम और संजना भी दिखे। उन्हें कुछ लोगों ने पहचान लिया, क्योंकि ये दोनों सरकारी कर्मचारी हैं। कृष्णा वन विभाग में तो संजना स्वास्थ्य विभाग में काम करती है। लोगों ने कहा कि ये तो पहले से ही विवाह कर चुके हैं। फिर यहां दोबारा कैसे रचा रहे हैं। दूसरी बात यह योजना तो निर्धन कन्याओं के लिये है। सरकारी कर्मचारियों के लिये तो है नहीं इस एक मामले में पोल तो खुल गई पर कोई दावा नहीं कि यही एक ऐसी शादी हुई हो। कई और जोड़े हो सकते हैं, जिनकी पहले शादियां हो चुकी होती हैं, पर महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी कर्मचारी सरकारी योजना का फायदा उठाने के लिये उन्हें मंडप पर बिठा देते हैं। बहरहाल, इस एक मामले के पकड़ में आने के बाद कलेक्टर ने जांच तो बिठा दी है।
एक टोली का बाहुबल हो तो फिर...
जहां आम नागरिक अपने अधिकारों को लेकर लापरवाह रहते हैं वहां पर सार्वजनिक जगहों पर कोई भी कब्जा कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ऐतिहासिक सप्रे स्कूल मैदान को म्युनिसिपल ने काट-काटकर उसका बेजा इस्तेमाल किया, और इस शहर के लोग खामोश रहे। नतीजा यह है कि जहां खेल होता था, वहां आज आसपास के करोड़पतियों की कारें खड़े रहने की पार्किंग बन गई है।
शहर के अनुपम उद्यान में सुबह जाएं तो वहां लोगों का एक समूह बड़े-बड़े स्पीकर लगाकर माईक हाथ में लिए हुए फटी आवाज में तरह-तरह के गाने गाते दिखता है, और जब गाने वाले ही थक जाएं तो मोबाइल फोन से उसे जोडक़र मनचाहा गाना बजाया जाता है। चूंकि बगीचे में घूमने वाले लोग किसी भी समूह से उलझने से बचते हैं, इसलिए ये लोग वहां लाउडस्पीकर लगाकर मनचाही बातें बोल सकते हैं। म्युनिसिपल के लोगों को कंस्ट्रक्शन पर खर्च करने से अधिक किसी बात पर दिलचस्पी नहीं रहती, इसलिए उसके बगीचों का लोग मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस जगह कुछ लोग शांति से बैठकर योग-ध्यान करते दिखते हैं, वहां यह एक समूह लाउडस्पीकर लगाकर कर्कश आवाज में गाता बजाता रहता है। कोई पार्षद, महापौर, या अफसर जाकर कुछ देर इन्हें बर्दाश्त करके देखे।
अब हाथी हमारे और आसपास मिलेंगे
पर्यावरण, जैव विविधता, आदिवासियों के विस्थापन जैसी अनेक चिंताओं के बावजूद आखिरकार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हसदेव अरण्य में नई कोयला खदानों की अनुमति छत्तीसगढ़ सरकार से हासिल करने में सफल रहे। उन्होंने पिछले कई महीनों से केंद्र के अलावा कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के जरिये दबाव बना रखा था। राज्य सरकार के अनुमति पत्र में जिला कलेक्टर और वन मंडलाधिकारी को नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिये जरूर कहा गया है, पर माना जाये कि यह पत्र की औपचारिक भाषा ही है।
सरकार के इस फैसले का प्रभावित आदिवासी गांवों की ओर से प्रतिक्रिया आना बाकी है, पर लेमरू एलिफेंट रिजर्व की बातें होने के बावजूद इसके नहीं बनने पर हाथियों की प्रतिक्रियाएं तो लगातार दिखाई दे रही हैं। सरगुजा, धरमजयगढ़, कोरबा, कटघोरा, मरवाही, पसान से लेकर अब तो ये हाथी अब अचानकमार टाइगर रिजर्व तक आकर भटक रहे हैं। अब पैदा हुई नई परिस्थिति में लेमरू एलिफेंट रिजर्व की संभावना बेहद धूमिल हो चुकी है। देखना होगा कि हाथियों के लिये कोई नई जगह तलाशी जायेगी या फिर लेमरू में ही हाथी रिजर्व एरिया तैयार करने कोई अध्ययन होगा। वैसे भी लेमरू एलिफेंट रिजर्व की बातें 12-15 साल से हो रही हैं, लेकिन आकार नहीं ले पाया। कोई नई प्लानिंग यदि बनाई गई तो वह कितने दिनों, वर्षों में धरातल पर दिखेगा..., आज कोई कहने की स्थिति में नहीं है। आने वाले दिनों में हाथियों के भटकने का क्षेत्र और उनकी संख्या दोनों ही बढ़ी हुई दिखे तो कोई ताज्जुब नहीं।
कमीशन के लिये ही फंड निकाला?
छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या के हिसाब से 10 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक की राशि शाला विकास के नाम पर जारी की गई हैं। सरगुजा और जशपुर जिले के स्कूलों में भी आठ दस दिन के भीतर रकम पहुंची है। अकेले सरगुजा जिले के लगभग 2 हजार स्कूलों के लिये तीन करोड़ रुपये से अधिक राशि जारी की गई है।
इस राशि का इंतजार स्कूल के प्राचार्यों को सत्र के आरंभ से रहता है, ताकि वे स्कूल, स्कूल फर्नीचर की मरम्मत करा सकें, दीवारों पर रंग रोगन करा सकें, खेल सामग्री खरीद लें। लेकिन यह रकम पहुंची है अब, जब वित्तीय वर्ष के साथ-साथ पढ़ाई का सत्र भी खत्म हो चुका है और परीक्षायें शुरू हो चुकी हैं। यह राशि अगले सत्र के लिये बचाकर भी नहीं रखी जा सकती, क्योंकि 31 मार्च तक जो राशि बची रहेगी, वह लैप्स हो जायेगी।
कुछ स्कूलों में तो नियम से खर्च कर किसी तरह से थोड़े काम हो भी जा रहे हैं, पर अधिकांश में कमीशन दो बिल जमा कर लो, यही हो रहा है।
इसी महीने वित्त विभाग ने 5 मार्च के आसपास सभी विभागों को निर्देश दिया था कि बची हुई राशि को बेकार खर्च नहीं करना है, वापस लौटा दें। जिला कोषालयों को इस बारे में निर्देश दिये गये थे। पर स्कूलों में हफ्ते दस दिन के भीतर खर्च करने के लिये करोड़ों रुपये जारी करने का मकसद क्या हो सकता है, यह समग्र शिक्षा का काम देख रहे राजधानी के अफसर बता सकते हैं। पहली नजर में तो यह भ्रष्टाचार और कमीशन के लिए अनुकूल रास्ता देना ही नजर आ रहा है।
नन्हा किंतु जहरीला सांप
आमतौर पर सांपों के बारे में जानकारी नहीं होने के कारण लोग उसे भगाने की जगह मारने की कोशिश करते हैं खासकर बड़े आकार के सांपों को। इनमें किंग कोबरा, इंडियन क्रेट, इंडियन कोबरा, रसैल वाईपर आदि भारत में मिलने वाले जहरीले सांप है। पर विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकांश सांप जहरीले नहीं होते। वे यह भी कहते हैं कि सांप को मारे नहीं, न ही खुद पकडऩे की कोशिश करें, रेस्क्यू के लिये वन विभाग या एनजीओ को सूचना दें, कोई न हो तो पुलिस को ही बता दें। कटघोरा के छुरी नगर पंचायत के एक पार्षद के घर में सांप निकला। आकार में बेहद छोटा होने के कारण उन्हें नहीं लगा कि यह जहरीला हो सकता है। फिर भी उन्होंने रेस्क्यू के लिये कॉल किया। वन विभाग ने पिछले 20 सालों से सांपों का रेस्क्यू कर रहे अविनाश यादव की मदद ली और उसे सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया।
दावा यह किया जा रहा है कि यह अफई या फुरसा सांप है, जो छत्तीसगढ़ में कभी देखा नहीं गया। यादव का कहना है कि सालों से इस फील्ड में काम करते हुए कभी उन्होंने इसे नहीं देखा। जैव विविधता के लिये यह अच्छा है कि किसी नई प्रजाति का सांप कोरबा इलाके में पाया गया। इस सांप की अधिकतम लंबाई करीब 0.55 मीटर होती है। पर, बेहद जहरीला है। कुछ घंटों में ही मौत की नींद सुला सकती है।
मध्य एशिया के कई भागों में या मिलता है ।भारत के महाराष्ट्र के कोकण और रत्नागिरी इलाके में तथा इराक में भी पाया जाता है। राजस्थान के रेगिस्तान में रात के समय इसे चलते देखा गया है।
विविध प्रजातियों के सांप के लिये जशपुर जिले का फरसाबहार बहुत सालों से चर्चा में है। कुछ साल पहले कोरबा के पसान इलाके में तो 12 फीट का उडऩे वाला सांप देखने का दावा कुछ लोगों ने किया, पर इसकी पुष्टि कभी नहीं हुई।
भोले बाबा सब देख रहे हैं...
रायगढ़ तहसील ऑफिस से भगवान शिव को नोटिस जारी होने की चर्चा बीते कई दिनों से है। तहसील के अधिकारियों का कहना था कि चूंकि हाईकोर्ट के आदेश पर अवैध कब्जा हटाने के लिये सीमांकन कराया गया, तो 10 लोगों का नाम सामने आया। इनमें एक शिव मंदिर भी है। चूंकि मंदिर के रखवाले या पुजारी के नाम पर कोई सामने नहीं आया, इसलिये सीधे भगवान को नोटिस जारी कर दिया गया। पेशी में हाजिर नहीं होने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी। घबराये भक्तों ने शुक्रवार को शिवलिंग को ही उखाड़ लिया और उनको ठेले में बिठाकर तहसील दफ्तर पहुंच गये। राजस्व अधिकारी कठघरे में बुलाकर पूछें शिवलिंग से, क्या पूछना है।
मगर, बात यहां खत्म नहीं हुई। तहसीलदार साहब, चैंबर पर नहीं थे, बाहर नोटिस लगी थी कि दूसरे विभागीय काम में गये हैं, अगली पेशी अब 10 अप्रैल को। भक्त निराश हुए, प्रतिमा लेकर लौट गये।
कल ही प्रदेशभर के वकीलों ने राजधानी रायपुर में प्रदेशभर के वकीलों ने प्रदर्शन किया। खास तौर पर यह रायगढ़ के ही तहसीलदारों व राजस्व अधिकारियों के खिलाफ था, जिन पर वे भ्रष्टाचार और सुनवाई लटकाने का आरोप वे लगा रहे हैं। भोले बाबा सब देख रहे हैं। राजस्व के अफसरों को भी वकीलों को भी। न्याय सबको मिलेगा।
रेडी टू ईट पॉलिसी के खिलाफ
बस्तर में एक और आंदोलन शुरू हो गया है। पहले यह राज्य के अलग-अलग जिलों में हो चुका है। फिर हाईकोर्ट में याचिका भी लगाई गई है, जिस पर फैसला आना बाकी है। रेडी-टू-ईट बनाने का काम महिला स्व-सहायता समूहों से छीनकर राज्य बीज विकास निगम को दे दिया गया है। बीज निगम इसमें सिर्फ 25 फीसदी निवेश करेगा, बाकी 75 फीसदी एक प्राइवेट फर्म का होगा। फरवरी माह के बाद नई योजना लागू की जानी थी, तो अब धीरे-धीरे हो रही है। कांकेर जिले में करीब एक हजार महिलाएं 72 स्व-सहायता समूहों को चला रही हैं। इनके साथ सरकार का तीन साल का करार था। पर एक साल बाद ही काम से हटा दिया गया। आहार बनाने के लिये उन्होंने मशीन और कच्चे माल के लिये कर्ज भी ले रखा है। अब उन्हें डिफाल्टर हो जाने का डर है। हाईकोर्ट ने अब तक की सुनवाई में सरकार के कदम पर कोई रोक नहीं लगाई है। कांकेर में महिलाओं ने कल प्रदर्शन किया। फिलहाल तो उन्हें हाईकोर्ट के फैसले का ही इंतजार करना होगा। इन सबके बीच, यह गौर करने की बात है कि इन समूहों में से ज्यादातर का गठन भाजपा के शासनकाल में हुआ। कई समूह 2008-09 से काम कर रही हैं। तब सरकार की सभाओं में भीड़ पहुंचे, इसकी जिम्मेदारी भी उनको सौंप दी जाती थी। कांग्रेस शायद भीड़ के लिये उन पर निर्भर नहीं हो।
हाथी वापस, लौटी एटीआर की रौनक
अचानकमार टाइगर रिजर्व में बीते एक माह से डेरा जमाये जंगली हाथियों का झुंड वापस लौट गया। टाइगर रिजर्व का इस मौसम में भ्रमण करने वाले बड़ी संख्या में आते हैं, पर हाथियों किस ओर से कब यहां पर्यटकों को नुकसान पहुंचा दे, कोई अनहोनी न हो जाये, इस आशंका से जंगल सफारी का काम रोक दिया गया था। अब यह शुक्रवार से फिर शुरू हो गया। इससे जंगल सफारी जिप्सी में काम करने वाले गार्ड, ड्राइवर आदि के चेहरे पर मुस्कान लौटी है। छोटे-छोटे चाय-पानी की दुकानों में भी चहल-पहल दिखने लगी है। करीब डेढ़ दर्जन हाथी अचानकमार में विचरण कर रहे थे। इसके चलते हर कोई जंगल के भीतर घुसने से घबरा रहा था। यहां पहले से पालतू बनाकर रखे गये हाथियों पर भी आक्रमण का खतरा था। हाथियों के जाने के बाद वनभैंसा भी सडक़ों के आसपास दिखने लगे हैं। पर हमेशा की तरह इस टाइगर रिजर्व में किसी को टाइगर नहीं दिख रहा है।
हिंदी के साथ की दिक्कतें
कंप्यूटर पर हिंदी के फॉन्ट कई तरह की दिक्कतें खड़ी करते हैं। अंग्रेजी में काम करने वालों को जब थोड़ा बहुत काम हिंदी की देवनागरी लिपि में करना पड़ता है तो उसका नजारा कुछ इस तरह का भी बन सकता है। यह दुनिया की एक सबसे बड़ी समाचार एजेंसी रायटर्स के एक कोर्स की बात है। इसके पोस्टर को देखें, इसमें हिंदी के शब्द किस तरह से बन रहे हैं !
यह आंदोलन असरदार होगा?
आंदोलनों के बहुत सारे तरीके होते हैं। कुछ तरीके असरदार होते हैं, और कुछ तरीके बेअसर भी रहते हैं। मध्यप्रदेश में नर्मदा सरोवर के आंदोलन में कई महिलाओं ने पानी में डूबकर कई दिनों तक लगातार प्रदर्शन किया, और पानी से उनके पैरों पर पड़ी झुर्रियों की तस्वीरें दुनिया भर में लोगों का दिल दहलाने वाली थीं. जल सत्याग्रह कई जगहों पर असरदार प्रदर्शन साबित हुआ है। अभी छत्तीसगढ़ में वन कर्मचारियों का आंदोलन चल रहा है। ऐसी खबरें भी गांव-गांव से आ रही हैं कि गर्मी के इस मौसम में जंगलों में आग लगने का खतरा रहता है और ऐसे में वन कर्मचारियों के आंदोलन से यह खतरा बढ़ जाता है। कोरबा की एक खबर है कि वहां आंदोलन पर बैठी हुई महिला वन कर्मचारियों ने हाथों में मेहंदी लगा कर प्रदर्शन किया।
सरकार के नजरिए से देखें तो यह प्रदर्शन सबसे अधिक सहूलियत का है क्योंकि जब तक हाथों में मेहंदी लगी हुई है तब तक तो न वे हाथ पत्थर चला सकते, न ही पुलिस का कोई बैरियर तोड़ सकते, और न ही पुलिस की लाठियों को थाम कर पीछे धकेल सकते। स्थानीय पुलिस से पूछा जाए तो वह तो हर आंदोलनकारी के हाथों के लायक मेहंदी का जुगाड़ करके उसे भिजवाने भी तैयार हो जाएगी, और हो सकता है कि किसी मेहंदी लगाने वाले को भी भेज दे अब कर्मचारियों को यह सोचना चाहिए कि प्रदर्शन के इस तरीके से क्या सचमुच ही सरकार पर कोई दबाव पड़ सकता है?
फिल्म अच्छी न लगी हो तो चुप, वरना...
अलवर, राजस्थान के एक बैंक मैनेजर ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म देखने के बाद चुप्पी के बजाय सोशल मीडिया पर अपनी राय रख दी। सवाल उठाया कि दलितों पर इतने अत्याचार होते हैं, उन पर फिल्में क्यों नहीं बनती। ’जय भीम’, दलितों को न्याय दिलाने की एक सच्ची घटना पर बनी है, उस फिल्म को टैक्स फ्री क्यों नहीं किया गया था? फिल्म के समर्थकों ने इस आलोचना के जवाब में कुछ लिख दिया। दलित बैंक मैनेजर खुद पर काबू नहीं रख पाया। जवाब में देवी-देवताओं के बारे में भी लिख मारा। आस्था को पहुंची चोट, प्रतिक्रिया तेज हो गई। बात बिगड़ते देख मैनेजर ने माफी मांग ली। पर लोग माने नहीं। उनको तो मैनेजर की औकात दिखानी थी। मंदिर में बुलाकर उससे चौखट पर नाक रगड़वाई गई और वीडियो बनाकर उसे वायरल भी किया गया।
छत्तीसगढ़ में तो सीएम ने फिल्म खुद ही पहले देख ली, विपक्षी नेता आमंत्रित करने के बावजूद नहीं पहुंचे। टैक्स फ्री करने के सवाल पर भी उन्होंने फिल्म पर केंद्र की जीएसटी हटाने की सलाह दे दी।
दरअसल, कोशिश यह हो रही है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ से पहली बार कश्मीरी पंडितों की 32 साल से दबी हुई सच्चाई सामने आई, ऐसी आम धारणा बन जाये। इस फिल्म में क्या छिप गया, उसके बारे में लोग खामोश रहें। देश के प्रधानमंत्री जिस फिल्म की तारीफ कर रहे हों और भाजपा की सरकारों ने जहां लोगों के लिये यह फिल्म देखने का आह्वान और खास इंतजाम किया हो, उस फिल्म के बारे में कोई टिप्पणी क्यों किसी को करनी चाहिये? मगर नहीं, लोग मान नहीं रहे, उनको नाक रगड़वाकर मनवा लेने का तरीका ढूंढ लिया गया है।
बंद मु_ी लाख की, खुल गई तो?
पंजाब के नतीजों के बाद छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता बेहद जोश में आ गए हैं। पर, पार्टी ने इस गर्माहट को खैरागढ़ विधानसभा उप-चुनाव में नापने से हाथ खींच लिया है। किसी भी नये राज्य में पैर जमाने के लिये जब अवसर मिले, चुनाव लडक़र अपनी ताकत का अंदाजा लेना लगाना चाहिये। आम आदमी पार्टी को यदि लगता है कि पंजाब की प्रचंड जीत से पूरे देश में एक बड़ा संदेश गया है तो इस नई-नई जीत को भुनाया क्यों नहीं जाता?
वजह यह बताई जा रही है कि सन् 2023 की तैयारी पर उन्होंने फोकस कर रखा है। पर, अनेक राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि खैरागढ़ में मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होना है। त्रिकोणीय स्थिति बनाने की कोशिश एक सीमा तक जेसीसी (जे) जरूर कर सकती है। आम आदमी पार्टी को सम्मानजनक वोट हासिल करने के भी लाले पड़ सकते हैं। इसलिये पंजाब नतीजे का असर, जिसके सहारे वे संगठन का विस्तार कर रहे हैं, उसमें खैरागढ़ के परिणाम के बाद पानी फिर सकता है। लोग पंजाब भूल जायेंगे, खैरागढ़ याद करने लगेंगे।
खतरे में जंगल, जीव व ग्रामीण
प्रदेशभर में जंगल विभाग के मैदानी कर्मचारी हड़ताल पर हैं। जब से आंदोलन चल रहा है जंगल और वहां रहने वाले ग्रामीण, दोनों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। हाथियों की आमद का पता नहीं चल रहा है और महुआ बीनने गये लोगों पर उनका हमला हो रहा है। कई मौतें हो चुकी हैं, अनेक घायल हैं।
अफसर जंगल में रहते नहीं। वे शहर के एसी दफ्तरों से राज चलाते हैं। जिनको वे अपना हाथ-पैर मानते हैं, उन्हीं ने काम बंद कर दिया है। गर्मी के दिनों में शिकार की घटनायें बढ़ जाती है। पानी की तलाश में जानवर दूर-दूर भटकते हैं। कई बार आबादी के नजदीक आ जाते हैं। इसी मौसम में जंगलों में जगह-जगह आग लग रही है। रायगढ़, मरवाही, सरगुजा सब तरफ से खबरें हैं। मरवाही वन मंडल के खोडरी परिक्षेत्र में आग लगने की खबर मिलने पर मीडिया के कुछ लोग कैमरा पकडक़र दौड़े। वहां आग की लपटें हरे पेड़ों को भी जला रही थी। उन्होंने डीएफओ सहित जंगल के कई अधिकारियों को फोन लगाया। किसी न नहीं उठाया। तब वे खुद आग बुझाने की कोशिश करने लगे। कुछ हद तक इसमें सफलता मिली। काफी देर बाद स्थानीय ग्रामीणों की मदद से आग बुझाई जा सकी।
धर्म की लाँड्री की सहूलियत
धर्म की बातें बड़ी दिलचस्प रहती हैं। कल ही किसी एक जानकार से सुनने मिला कि इराक में जब गृहयुद्ध चल रहा था, तो वहां कुर्द लड़ाकों में महिलाएं भी शामिल थीं। और उनके खिलाफ खड़े हुए आतंकी संगठनों के लोग इस मोर्चे से बचना चाहते थे क्योंकि उनकी धार्मिक सोच यह कहती थी कि किसी महिला के हाथों मारे जाने पर जन्नत नहीं मिलेगी। दूसरी तरफ तमाम किस्म के जुर्म करके ऊपर जाने वाले लोगों को जन्नत में 72 हूरों की उम्मीद रहती है, और शायद उनके कुंवारी होने की मान्यता भी है।
ईसाई धर्म में चर्च में कन्फेशन चेंबर का इंतजाम रहता है जिसमें चेहरा दिखाए बिना एक हिस्से में बैठे लोग, दूसरे हिस्से में बैठे पादरी से अपने पाप गिना सकते हैं, और यह माना जाता है कि ऐसे प्रायश्चित के बाद वे पापमुक्त हो जाते हैं। कुल मिलाकर धर्म लोगों की आत्मा को गंदगी के दाग छुड़वाने के लिए एक लॉंड्री मुहैया कराता है, जिससे लोग नए उत्साह से अगले पाप करने में जुट जाएं।
दूसरी तरफ आज हिन्दुस्तान में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है, और उसे मनाया जा रहा है। इस एकादशी के बारे में हिन्दू धर्मालुओं में यह मान्यता है कि इसका व्रत रखने पर लोग सारे पापों से, ब्रम्हहत्या जैसे पाप से भी मुक्त हो जाते हैं। इसलिए साल में एक दिन आज व्रत रखकर बाकी पूरे साल पाप करने की आजादी मिल जाती है क्योंकि एक बरस बाद फिर ऐसी सहूलियत वाली एकादशी आएगी ही आएगी। हिन्दू धर्म कहता है कि हर वर्ष 24 एकादशी होती हैं, और जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढक़र 26 हो जाती है। धार्मिक मान्यता कहती है कि ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है, अगर पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाए। इस व्रत के तहत साल भर के पाप से मुक्त होने के लिए कुल इतना करना है कि एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें, इसके बाद विष्णु की पूजा करें, फिर भगवान की कथा पढ़ें या सुनें, अगले दिन विष्णु की पूजा करें, और ब्राम्हणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित बिदा करें।
अब इस व्रत में ईश्वर को जो हासिल होता है वह तो पता नहीं, व्रत करने वाले को पापों से मुक्ति मिलने की गारंटी बताई गई है, और जिसे इस व्रत से कुछ ठोस हासिल होता है, वह भोजन और दक्षिणा पाने वाले ब्राम्हण हैं। आगे आप खुद समझदार हैं...
जनता कांग्रेस की खैरागढ़ में तैयारी
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) से विधायक प्रमोद शर्मा और स्व. देवव्रत सिंह ने मरवाही विधानसभा उप-चुनाव में पार्टी लाइन के बाहर जाकर काम किया था। वे जेसीसी (जे) के उस फैसले के खिलाफ थे, जिसमें कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा को समर्थन दिया गया था। दोनों ने कह दिया कि हम परंपरागत कांग्रेसी हैं, भाजपा के साथ कभी नहीं जा सकते। दोनों विधायकों की कांग्रेस में आने की लगभग तैयारी थी किंतु कुछ तकनीकी अड़चन आ रही थी। अब वह अध्याय लगता है बंद हो गया। शर्मा के मामले में यह भी हुआ कि बीते साल सितंबर महीने में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई थी। इधर कांग्रेस का आरोप था कि स्थानीय चुनावों में शर्मा का साथ नहीं मिला। फिलहाल, विधायक प्रमोद शर्मा लंबे समय के बाद अपनी पार्टी की बैठक में शामिल हुए और उन्होंने खैरागढ़ चुनाव में जेसीसी (जे) की तैयारी के बारे में पत्रकारों को बताया। कांग्रेस में लौटने की संभावना हो सकता है आगे बनी रहे पर खैरागढ़ उप-चुनाव के लिये तो उन्होंने ऐलान कर दिया है कि वे जेसीसी (जे) को जिताने के लिये पूरी ताकत लगा देंगे।
बदलाव, फिर चुनावी नारा...
सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस का नारा ‘वक्त है बदलाव का’ एक बड़ी वजह थी कि भाजपा सरकार को लोगों ने बदलने की ठान ली। इस नारे का असर छत्तीसगढ़ में पैर जमाने की कोशिश कर रही, आम आदमी पार्टी पर देखने को मिला, जब उसने ‘बदलबो छत्तीसगढ़’ नारा दिया। यह उनके रायपुर दफ्तर और बाकी कार्यालयों के पोस्टरों में दिखने लगा है। प्रभारी गोपाल राय के मुताबिक पंजाब विधानसभा के नतीजों के बाद सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में लोग ‘आप’ से जुडऩे की इच्छा जता रहे हैं। छत्तीसगढ़ में ‘जब वक्त है बदलाव का’ नारा चला तब भाजपा को सत्ता में आए 15 साल हो चुके थे। 2018 चुनाव में ‘आप’ ने 5 को छोडक़र सारी सीटों पर चुनाव लड़ा, तब दिल्ली में सरकार थी। उस वक्त छत्तीसगढ़ में उसे नोटा से भी कम वोट मिल पाये थे। अब देखना होगा कि पंजाब के नतीजों के संदर्भ में क्या केवल एक कार्यकाल वाली कांग्रेस को उसी के मिलते-जुलते नारे से हटाया जा सकेगा।
तेंदूपत्ता की घटती मांग, नई समस्या
तेंदूपत्ता पर समर्थन मूल्य बढ़ाकर 2500 रुपये से 4000 रुपये करने का फैसला आदिवासियों के हाथ में नगदी पहुंचाने के लिहाज से तो अच्छा है पर देशभर में इसकी मांग में गिरावट आ रही है, और सरकार के खाते पर एक बोझ और पडऩे जा रहा है।
उदाहरण के लिये यूपी में लॉकडाउन के दौरान जब रोजगार की कमी हो गई तो पर्वतीय वन क्षेत्रों में तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य ने काफी राहत दी थी। हालांकि सरकार ने घाटे पर व्यापारियों को बेचना न पड़े, इसलिये दर काफी कम रखी। राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में कई पर्वतीय गांव हैं, जहां तेंदूपत्ता की तोड़ाई की जाती है। फसल ठीक नहीं होने के कारण वहां पेड़ों पर सूख रहे हैं। ठेकेदार इसकी खरीदी में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। मध्यप्रदेश में लगभग 9 लाख आदिवासी श्रमिक तेंदूपत्ता संग्रहित करते हैं। पर साल दर साल आ रही बिक्री में गिरावट के कारण उनकी भी आमदनी घट रही है। पिछले सालों का लाखों मानक बोरा तेंदूपत्ता अब तक नहीं निकला है। इसे बेचने लिए कई बार लघु वनोपज संघ ने निविदा भी निकाली। यहां तो अब लघु वनोपज संघ यह सर्वे करा रहा है कि तेंदूपत्ता के साथ इस्तेमाल किए जाने वाले तंबाकू को भी क्या उत्पादन से जोड़ देना ठीक रहेगा? व्यापारी तेंदूपत्ता के साथ-साथ तंबाकू भी खरीदने के लिए आगे आएंगे। केवल बीड़ी और सिगरेट में नहीं बल्कि गुटखा में भी खपत हो जायेगी।
इधर, छत्तीसगढ़ में दूसरी व्यवस्था है। बिक्री घटने का छत्तीसगढ़ में संग्राहक आदिवासियों को कोई नुकसान नहीं है। बल्कि समर्थन मूल्य बढ़ाने का फायदा ही है। यहां वनोपज संघ से उन्हें गड्डियों, मानक बोरा की कीमत मिल जाती है, जिसे 4000 रुपये तक कर दिया गया है। फिर संघ के जिम्मे है कि वह इसकी बिक्री कहां किस तरह से करती है। बस्तर की बात करें तो यहां आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव व रायपुर से व्यापारी आकर खरीदारी करते हैं। इन व्यापारियों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों से बीड़ी पीने वालों की संख्या घट रही है, जिसे तैयार करने में तेंदूपत्ता काम आता है। नई पीढ़ी सिगरेट और गुटखा की तरफ जा रही है। बस्तर सर्किल की बात करें तो बीजापुर के तेंदूपत्ता की तो अग्रिम बुकिंग हो चुकी, पर बाकी डिवीजन और रेंज में आधा उठाने के लिये भी करार नहीं हुआ है। सत्र बीतने के बाद पता चलेगा कि कितना तेंदूपत्ता नहीं बिक पाया और गोदामों में रह गया। कहीं धान की तरह तेंदूपत्ता की स्थिति भी न हो जाये।
महंत के तीखे तेवर
छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत के तीखे तेवरों ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया। कई ऐसे मौके आए, जब उनकी टिप्पणियां से सरकार के माथे पर बल पड़ते दिखे। पलायन के मुद्दे पर उन्होंने यहां तक कह दिया कि यह छत्तीसगढ़ के लिए कलंक है। भ्रष्टाचार के मामले में अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर विभागीय मंत्री के असमर्थता व्यक्त करने पर उन्होंने आसंदी से व्यवस्था दे दी और सदन से ही थोक में अफसरों के निलंबन की घोषणा हो गई। एक अन्य मामले में उनके दबाब के चलते ही सदन की समिति से जांच की घोषणा की गई। कुल मिलाकर अध्यक्ष ने इस सत्र में तीखे तेवर दिखाए, जिसकी जमकर चर्चा रही।
तीन साल से अधिक के अध्यक्षीय कार्यकाल में डॉ महंत इतने कडक़ शायद ही कभी दिखे। सत्तापक्ष के सदस्य तो यहां तक कहने लग गए थे कि अध्यक्ष के तेवर को देखकर लगता है मानों उन्हें विपक्ष ने चुना हो। खैर, विधानसभा का बजट सत्र तीन दिन पहले निपटने से सत्तापक्ष ने जरूर राहत की सांस ली होगी। संभव था कि अध्यक्ष सरकार के लिए और कोई समस्या खड़ी कर देते। वैसे भी डॉ महंत का राज्य की राजनीति से मोह भंग हो चुका है। वे राज्यसभा के जरिए केन्द्रीय राजनीति में लौटना चाहते हैं। ऐसे में वे जाते-जाते विधानसभा में छाप छोडऩा चाहते हों, हालांकि अभी उनका राज्यसभा में जाना तय नहीं है। संभव है कि यह उसी की रणनीति का हिस्सा हो।
फिलहाल तो सब कुछ अटकलों में है, लेकिन सियासत में कुछ भी हो सकता है। बहरहाल, समय आने पर स्थिति साफ हो ही जाएगी, लेकिन उनके तेवर और राज्यसभा जाने की इच्छा दोनों को एक-दूसरे से जोडक़र देखा जा रहा है। दूसरी तरफ अगर वे राज्यसभा में चले जाते हैं तो राज्य मंत्रिमंडल में भी फेरबदल की स्थिति बन सकती है।
बॉडी बिल्डर कलेक्टर मुश्किल में
छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र समाप्त होने के बाद प्रशासनिक फेरबदल की सुगबुगाहट तेज हो गई है। संभावना है कि कई जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। सत्र की समाप्ति के दिन सुकुमा कलेक्टर के खिलाफ आदिवासियों के आक्रोश के बाद उनकी रवानगी तय मानी जा रही है। उन्हें सुकमा में कलेक्टरी करते हुए करीब दो साल का समय भी हो चुका है। वे बस्तर संभाग के ही रहने वाले हैं। साल 2013 बैच के इस बॉडी बिल्डर अधिकारी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आदिवासी हितों और नक्सल मोर्चा पर अच्छा काम किया है, लेकिन कल की घटना ने उनके सब किए धरे में पानी फेरने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है।
इसी तरह कोरबा कलेक्टर और मंत्री के बीच तनातनी के कारण नई पोस्टिंग की अटकलें लगाई जा रही है। कुछ और अफ़सर भी राजधानी में बैठे हुए इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी तरह दो साल से ज्यादा समय तक एक ही जिले में जमे अफसरों को भी बदला जा सकता है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए लगभग डेढ़ साल का समय बचा है। ऐसे में सरकार परफार्मेंस देने वाले अफसरों की नए सिरे से नियुक्ति कर सकती है। इसमें राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बने अफसरों को ज्यादा मौका मिलने की संभावना जताई जा रही है।
इसमें पैर फंसेगा तो?
राजधानी रायपुर के बगीचों में कसरत करने के लिए मशीनें तो लगा दी गई हैं, लेकिन कुछ हफ्तों में ही उनमें टूट-फूट शुरू हो जाती है, और कुछ महीनों में उनमें से कुछ काम करना बंद कर देती हैं, लेकिन रख-रखाव करवाने में किसी को कोई पैसा बचता नहीं, इसलिए एक बार लगवाने तक तो ठीक है, उसके बाद किसी को फिक्र नहीं रहती। अब म्युनिसिपल के एक बड़े बगीचे में जहां रोज सैकड़ों बच्चे खेलते हैं वहां की फिसलनी का यह हाल है कि फिसले हुए किसी बच्चे का पैर इसमें फंस जाए, तो वह कटकर अलग हो सकता है। अनुपम उद्यान इलाके के पार्षद कौन हैं?
कलेक्टर के खिलाफ आक्रोश
कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने अपने-अपने समय में दूरस्थ इलाकों में छोटे-छोटे जिले यह सोचकर ही बनाये कि आम लोगों की जिले के अधिकारी तक सहज पहुंच सके। पर, यदि दूर के जिलों में तैनात अफसर यदि यह सोचने लगें कि राजधानी तक लोग कहां शिकायत करने जाएंगे, जिनको वे सुनना चाहते हैं, सिर्फ उनको सुनेंगे, तब पीडि़त अपनी समस्या किसे बताएंगे।
सुकमा में कलेक्ट्रेट का गेट तोडक़र आदिवासी समाज के सैकड़ों लोगों का भीतर घुसना बताता है कि लोग जिला प्रशासन के तौर-तरीके से किस तरह से नाराज हैं। जिले के विभिन्न स्थानों से पहुंचे आदिवासी कलेक्टर से मुलाकात करना चाहते थे लेकिन घंटों इंतजार करने के बाद भी उनको मिलने के लिए नहीं बुलाया गया।
यह जरूर है कि उनकी कई मांगें, जैसे बेरोजगारी भत्ता देना, कुछ नगर पंचायतों को फिर से ग्राम पंचायत का दर्जा देना, तेंदूपत्ता पॉलिसी बदलना, नक्सल आरोप में जेल में बंद लोगों को रिहा करना, राज्य शासन के स्तर पर सुलझने वाली मांगें हो सकती हैं, पर इस वजह से ग्रामीणों की बात को सुनने से ही मना करना कहां जायज है? अब आदिवासी समाज के लोग कलेक्टर को हटाने की मांग भी कर रहे हैं।
बस्तर पर एक खास वीडियो
वैसे बस्तर की नैसर्गिंक सुंदरता, जल प्रपात, त्यौहारों आदि के बारे में देश ही नहीं दुनिया भर में लोग जानते हैं। बस्तर की संस्कृति को सामने लाने वाले कई वीडियो अब सोशल मीडिया पर मिल जाते हैं। हाल ही में यू ट्यूब पर रिलीज हुई बस्तर चो गीत इस मायने में खास है कि पहले दिन में ही इसे एक लाख से अधिक लोग देख चुके थे और सैकड़ों लोग शेयर कर चुके। आज सुबह तक विवर्स की संख्या दोगुनी पहुंच चुकी है।
दरअसल, गीत-संगीत के साथ ही इसके फिल्मांकन में भी काफी मेहनत की गई है। देश के किसी हिस्से की युवतियां आपस में चैट करती हैं कि इस बार छुट्टियों में कहां जाएं। किसी का सुझाव गोवा, तो किसी का और दूसरी जगह के लिए। पर बस्तर के नाम पर सब उत्साहित हो जाते हैं। इस बहाने बस्तर के अनेक स्थानों को फिल्माया गया है। बस्तर, जिसके बारे में देश के कई भागों में नक्सल समस्या को लेकर ही अकेले पहचान है। इस तरह के वीडियो से लोगों को इसके दूसरे आकर्षक पहलू का भी पता चलेगा। वीडियो जिला प्रशासन और एनएमडीसी के सहयोग से बनाया गया है।