राजपथ - जनपथ
जब अफसरों के फूले हाथ-पांव
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पिछले दिनों बाइक सुपरक्रॉस चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। विदेश से आए बाइकर्स ने 80 फीट तक छलांग लगाकर हैरतअंगेज स्टंट किया। अरसे बाद बाइक प्रेमियों ने ऐसे आयोजन का आनंद उठाया। बताते हैं कि बाइक राइडिंग के शौकीन एक-दो आईएएस भी इससे हिस्सा लेना चाहते थे, लेकिन उन्हें समझाया कि बिना प्रैक्टिस के सीधे मैदान में बाइक चलाना रिस्की हो सकता है हालांकि मान भी गए। एक आईएएस ने प्रैक्टिस सेशन में बाइक जरूर दौड़ाई। इस चैंपियनशिप को ओपन फॉर ऑल रखा गया था। छोटे बच्चों से लेकर हर आयु के प्रतिभागियों के लिए कैटेगरी बनाई गई थी। आयोजकों के हाथ-पैर उस समय फूल गए, जब एक 60 साल के बुजुर्ग चैंपियनशिप में शामिल होने की जिद करने लगे। आयोजकों ने उन्हें समझाने की कोशिश, लेकिन वे नहीं माने तो उनसे फॉर्म भरवाया जा रहा था, तब पता चला वे पाटन विधानसभा के रहवासी है। अफसरों को इसकी भनक लगी, तो उन्होंने जैसे-तैसे मामले को संभाला। एक तो बुजुर्ग और हाईप्रोफाइल क्षेत्र के रहने वाले, अगर खुदा ना खास्ता कुछ हो जाता तो लेने का देना पडऩा तय था। उनको मनाने के बाद अफसरों और आयोजकों राहत की सांस ली।
बैक टू बैक दो बाधा
मुख्यमंत्री विधानसभा के बजट सत्र के बाद संभागवार दौरे पर निकलने वाले हैं। जहां वे रात गुजारने के साथ आम लोगों, पार्टी नेताओं और अधिकारियों से वन टू वन कर सकते हैं। पिछले साल भी सीएम ने ऐसा प्रोग्राम बनाया था। उनका प्रोग्राम बनने से जिलों के अधिकारियों में बेचैनी है, क्योंकि जिले में काम कमजोर दिखा तो गाज गिरना तय है। पहले के दौरे में कई अधिकारी निपटे थे और परफार्मेंस के आधार पर कलेक्टरों को शाबासी या नाराजगी मिली थी। स्वाभाविक है कि इस बार भी ऐसा ही होने वाला है। वैसे तो कलेक्टरों की बेचैनी दौरे के साथ-साथ बजट सत्र के बाद निकलने वाली ट्रांसफर सूची के कारण भी बढ़ी हुई है। चर्चा है कि कुछ बड़े जिले के कलेक्टरों को शिकायत और सियासी कारणों से हटाया भी जा सकता है। बैक टू बैक दो बाधा पार करने वाले अफसर की कुर्सी सलामत रह पाएगी।
होली का एक यह भी इतिहास
उन्नाव, रायबरेली, बाराबंकी और यूपी के कुछ अन्य जिलों को मिलाकर बने इलाके को बांसवाड़ा या बैसवारा भूमि कहा जाता है। बांसवाड़ा में अंग्रेजों के खूब छक्के छुड़ाए गए। यहां दखलंदाजी से अंग्रेज डरा करते थे। अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतारने के बाद बहुत से सेनानी देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर छिप गये। कुछ लोग छत्तीसगढ़ में भी आ गये। इनमें से हनुमान सिंह बैसवारा ने रायपुर में एक अंग्रेज सार्जेंट को मौत के घाट उतार कर तोपखाना लूट लिया था।
जिस तरह महाराष्ट्र में गणेश उत्सव अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए लोगों को जोडऩे का माध्यम बना था, उसी तरह से छत्तीसगढ़ के बैसवारा समाज के में शामिल विभिन्न जातियों के लोग होली के बहाने एकत्र हुआ करते थे। होली के 15 दिन पहले से ही फाग गाने के लिए लोग ढोल नगाड़ों के साथ इक_ा होते थे और अंग्रेजों को छकाने की रणनीति बनाते थे। बैसवाड़ा होली अब भी कायम है, जो यूपी से आये लोगों में मिलेगा, जो बरसों से यहां होने के कारण छत्तीसगढिय़ा हो चुके हैं। कभी आप उनके बीच जाकर होली के फाग का आनंद उठा सकते हैं।
बसवाड़ा होली रायपुर. बिलासपुर और आसपास के जिलों में अब तक देखी जा सकती है। बहुत कम लोगों को पता है कि इसके तार आजादी के आंदोलन से जुड़े हुए हैं।
को नृप होय हमें का हानि..
सप्लायर, अफसर और ठेकेदारों का सिंडिकेट सरकार बदलने पर टूटता नहीं। वह सदैव मजबूत रहता है। इसका एक नमूना बस्तर में स्कूलों के लिए की गई बायोमैट्रिक टेबलेट की खरीदी का मामला है। 2017 में इसका टेंडर हुआ। सिर्फ दो पार्टियों ने टेंडर में हिस्सा लिया। नियम तो कम से कम तीन प्रतिस्पर्धी होने चाहिये।
सप्लाई के कुछ समय बाद ही पता चल गया था कि टेबलेट घटिया है। पर करोड़ों रुपए की खरीदारी सन् 2022 में अभी तक होती रही। मसला यह भी है कि बेकार हो चुके ये सैकड़ों टेबलेट मरम्मत के बाद भी ठीक नहीं हो पाएंगे। यानि टेंडर भाजपा के शासनकाल में निकला। भाजपा शासन में 1 साल खरीदी हुई और चार साल तक कांग्रेस सरकार के दौर में चलती रही।
विपक्षी भाजपा ने नहीं, बस्तर से कांग्रेस के विधायक लखेश्वर बघेल ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया। स्पीकर डॉ. चरण दास महंत नाराज हुए। उन्होंने सप्लाई करने वाली कंपनी को ब्लैक लिस्टेड करने का आदेश दिया और खुद ही एक जांच समिति बनाने का निर्देश दे दिया। ऐसा कम होता है कि स्पीकर ऐसी दखल किसी घोटाले में दें। जाहिर है बघेल ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाने से पहले अपने स्तर पर स्कूल शिक्षा मंत्री और अफसरों से शिकायत की होगी। हैरानी यह है कि विधानसभा में मुद्दा उठने के बाद भी मंत्री की ओर से जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई के बारे में सिर्फ इतना कहा गया कि अटेंडर 2017 में हुआ था। जो अफसर जिम्मेदार है उन पर कार्रवाई के लिए क्या करेंगे, कुछ भी नहीं कहा। भ्रष्ट अधिकारियों के प्रति नरमी और उनको संरक्षण देने का मतलब एक ही होता है। आने वाले दिनों में मालूम हो सकेगा स्पीकर ने जो जांच समिति बनाने कहा है, उसका क्या नतीजा सामने आता है। हो सकता है, घोटाला भुला दिया जाएगा। लीपापोती की गुंजाइश बनी हुई है।
इंडियन बायसन के दो बछड़े
कभी-कभी सुनाई देता है कि किसी गाय ने दो बछड़ों को एक साथ जन्म दिया। चौपाया मादा प्राय: एक का ही प्रजनन करती हैं। पर, वन्य जीवों से दो पैदा हों, यह सामने आए और उसकी तस्वीर भी मिल जाए, यह वन्यजीव प्रेमियों के लिए यादगार हो जाता है। वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्डा ने अचानकमार में पाया कि एक मादा इंडियन बायसन अर्थात गौर के पीछे दो बछड़े साथ साथ चल रहे हैं। दोनों की आयु समान दिखाई दे रही है। यह तय करने में कोई दिक्कत नहीं हुई कि दोनों को मादा ने एक साथ जन्म दिया है। उन्होंने अचानकमार अभ्यारण के इस दुर्लभ क्षण की वीडियो बनाई, जिसकी क्लिपिंग इस तस्वीर में है।
उत्तेजना का राज
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर सदन में सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। सदन में उनकी आवाज सबसे ज्यादा गुंजती है। उनकी तेज आवाज से बगल सीट पर बैठने वाले नारायण चंदेल भी कभी कभार परेशान हो जाते हैं। पिछले दिनों अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने अजय चंद्राकर से पूछ लिया कि आप हमेशा उत्तेजित क्यों हो जाते हैं? इस पर सत्ता पक्ष के एक सदस्य ने चुटकी ली कि अजय चंद्राकर जी सुबह से उत्तेजना की दवा खाकर आ जाते हैं। उनके इलाज की जरूरत है। इस पर सदस्यों ने ठहाका लगाया।
अरण्य में बदलेगा अफसरों का काम
वन मुख्यालय अरण्य में पीसीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं। इसको लेकर चर्चा चल रही है। पिछले दिनों वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने इस पर मंत्रणा भी की है।
प्रमोशन के बाद सुधीर अग्रवाल, और एसएस बजाज की नए सिरे से पदस्थापना होनी है। वर्किंग प्लान का पद खाली है। चर्चा है कि शीर्ष स्तर पर भी फेरबदल होंगे। माना जा रहा है कि सीएम, वन मंत्री के साथ कोई फैसला लेंगे। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो संजय शुक्ला को पीसीसीएफ (प्रशासन) की जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है।
आप डाटेंगे तो नहीं ना..
हो सकता है अगले शुक्रवार को पिचकारी लिए बच्चे आपका पीछा करें और कोई सनसनाता हुआ रंगीन पानी की धार आप पर छोड़ दे। खुद को खुशकिस्मत समझे इन नादान हाथों में रंग है पिचकारी है गुलाल है। यह डोरेमोन वीडियो गेम और मोबाइल फोन पर तो नहीं उलझे बच्चे हैं ना। कल को क्या मालूम होली भी वर्चुअल हो जाए!
सिलगेर से कैका तक..
बीते छह-आठ महीनों के भीतर हुए नक्सली मुठभेड़ में बस्तर के ग्रामीणों की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ताजा मामला बीजापुर जिले के कैका का है। जिस रितेश पूनेम को 3 लाख रुपए का इनामी नक्सली बताकर पुलिस ने मार गिराया, उसके बारे में गांव के लोग दावा कर रहे हैं कि पिछले 18 महीनों से संगठन छोड़ कर गांव आ चुका था। मुठभेड़ जैसी कोई बात ही नहीं थी। वह खेती बाड़ी करने लगा था उसके पास कोई हथियार नहीं था। उसे गिरफ्तार किया जा सकता था। पुलिस से ही डर कर वह अपने मामा के गांव में रहता था। सवाल उठता है कि क्या पुलिस के सामने सरेंडर करने से ही किसी की घर वापसी मानी जाएगी? अपनी मर्जी से किसी ने नक्सलियों का साथ छोड़ दिया तो उसे सताया जाएगा?
इसके पहले बीते जनवरी महीने में 24 तारीख को नारायणपुर जिले के मानूराम मुरेठी की कथित मुठभेड़ में हुई मौत पर आखिरकार पुलिस को मानना पड़ा कि वह नक्सली नहीं था।
सिलगेर में भी अजूबा हुआ था। वहां सीआरपीएफ कैंप का ग्रामीणों ने विरोध किया। सुरक्षाबलों ने फायरिंग की और तीन लोगों की मौत हो गई। दावा किया गया कि जिनकी मौत हुई है वे सब नक्सली थे। भीड़ में की गई फायरिंग का निशाना ठीक कथित नक्सलियों पर ही कैसे लगा, यह सवाल खड़ा हो गया। इसके विरोध में महीनों आंदोलन चला। विरोध प्रदर्शन करने वालों की संख्या 10 हजार से अधिक पहुंच गई थी।
नारायणपुर को छोडक़र बाकी दोनों मामलों में पुलिस और सुरक्षा बल अपनी बात पर क्राइम हैं। वह यह कि जो आंदोलन और विरोध किया जा रहा है, नक्सलियों के बहकावे की वजह से है।
नक्सली नेतृत्व की बात छोड़ दें तो उनके नीचे काम करने वाले लड़ाकू आसानी से पहचाने भी नहीं जाते हैं। ग्रामीण और नक्सलियों के बीच फर्क दिखता नहीं। इसलिए सुरक्षा बलों की बातें कुछ हद तक सही भी हो सकती है।
नक्सल उन्मूलन का दावा पिछले 22 सालों में जितनी भी सरकारें बनी करती आ रही हैं। मगर एक ट्रेंड दिखाई दे रहा है कि सब कुछ अफसरों के भरोसे छोड़ दिया गया है। वे अफसर जिन पर आम आदिवासियों का भरोसा जीतने की जिम्मेदारी है।
रितेश पुनेम का अंतिम संस्कार पुलिस जल्दबाजी में करने जा रही थी। सैकड़ों ग्रामीणों के दबाव में रुकना पड़ा। बहुत तनातनी के बीच रविवार को अंत्येष्टि हो पाई।
पूरे बस्तर संभाग में सब के सब विधायक सत्तारूढ़ कांग्रेस से हैं। मान लेते हैं कि सत्ता में हिस्सेदारी होने के कारण भी कम बोल रहे हो पर, भाजपा ने, खास कर उनकी प्रभारी महासचिव ने बस्तर पर जबरदस्त फोकस किया हुआ है। एक विपक्ष की भूमिका निभाते हुए क्या उन्हें सिर्फ बैठकों और संगठन विस्तार की चर्चा करनी चाहिए? जिस तरह सत्तारूढ़ होने के दौर में भाजपा इन मसलों की हकीकत और गहराई तक पहुंचने के लिए तैयार नहीं थी आज विपक्ष में भी रहते हुए ऐसा ही कर रही है।
झूला घर जो हर जिले में हो
बिलासपुर में पुलिस ने एक अनूठा काम किया जिसके बारे में पहले कभी विचार नहीं किया गया। पुलिस लाइन में बिलासा गुड़ी सभागार के ऊपर की जगह खाली थी जहां एक झूला घर शुरू किया गया है। यहां नन्हे बच्चों की रुचि के तमाम सामान उपलब्ध करा दिए गए हैं। ऐसी महिला पुलिस और पुरुष भी जो अपने बच्चों को कहीं भी छोड़ नहीं पाते थे उनके लिए यह सुकून भरा तोहफा है। एसएसपी पारुल माथुर ने पाया कि महिला पुलिस कई बार बच्चों को लेकर ड्यूटी पर आती हैं। वे जेल तथा कोर्ट भी जाती हैं। ड्यूटी की तन्मयता और क्षमता पर क्या असर पड़ता है यह तो दूसरी बात है लेकिन बच्चों के कोमल मन पर जेल, थाना, कोर्ट देखने का असर क्या होता होगा, इस पर गौर किया गया।
यहां एक आया और चार पुलिसकर्मियों की 24 घंटे ड्यूटी रहेगी। बच्चों के लिए खाना वे घर से लाएंगे, जो आया और यहां तैनात पुलिसकर्मी उन्हें खिलाएंगे। खेल और लिखने पढऩे में भी मदद करेंगे। यह व्यवस्था सरकारी फंड के बिना ही की गई है। लोग कह रहे हैं क्योंकि जिले की कप्तान महिला है, इसलिए उनके मन में संवेदना से भरा हुआ यह विचार आया।
गूगल की लैंगिक नासमझी
गूगल जैसा अमरीका से उपजा हुआ ऑनलाईन कारोबार भी अमरीकी पैमानों को पूरा नहीं कर पा रहा है। उस देश में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना एक कानूनी बंदिश का मामला है। लेकिन गूगल में भाषा को सुधारने का जो औजार हैं, वे बताते हैं कि अगर किसी ने जनसंहार लिखा है, तो गूगल उसकी जगह नरसंहार सुझाता है। यानी गूगल यह भी मानने को तैयार नहीं है जंग में मारे गए नागरिकों में महिलाएं भी होती हैं, वह सिर्फ नरसंहार की बात करता है।
पांच राज्यों के बाद पहला उप-चुनाव
चुनाव आयोग ने छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की रिक्त विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव की तारीख तय कर दी है। प्रदेश में स्व. देवव्रत सिंह के निधन के बाद खैरागढ़ विधानसभा में चुनाव होना है। 17 मार्च यानी होलिका दहन के दिन से नामांकन दाखिले की प्रक्रिया शुरू होगी। 12 अप्रैल को वोटिंग और 16 को नतीजे आएंगे।
सन् 2018 के आम चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की टिकट पर देवव्रत सिंह ने कड़े मुकाबले में भाजपा के कोमल जंघेल को 870 वोटों से परास्त किया था। अगर देवव्रत यह चुनाव जीत पाए तो इसका कारण उनका निजी प्रभाव भी था। बाद में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि तकनीकी रूप से वे कांग्रेस में जा नहीं सकते हैं, पर वे कांग्रेस में ही हैं।
मौजूदा परिस्थिति बताती है कि सीधी टक्कर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होगी। 2018 के बाद अब तक के उप-चुनावों में कांग्रेस को जीत ही मिली है। भाजपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे की 2 सीटों पर अब कांग्रेस के विधायक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
वैसे भी आमतौर पर उप-चुनावों में सत्तारूढ़ दल भारी पड़ता है। पर हाल ही में उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में भाजपा की जीत ने पार्टी कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा दी है। वह मानकर चल रही है कि उनकी स्थिति बीते दो उप-चुनावों से बेहतर रहेगी। बकौल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, कांग्रेस ने अपने जन घोषणा पत्र के 90 फ़ीसदी से अधिक वादे पूरे किए हैं और सभी वर्गों का भरोसा बढ़ा है। विधानसभा उप-चुनाव, नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव की तरह खैरागढ़ में भी कांग्रेस को ही जितायेगी। इधर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय का कहना है कि छत्तीसगढ़ के किसान कांग्रेस की नीतियों से नाराज है। उसका हश्र वही होगा जो पांच राज्यों में हुआ। यानि हाल के नतीजों से भाजपा छत्तीसगढ़ में भी बदलाव के प्रति आशान्वित है।
बहरहाल जैसा कि प्राय: होता है कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की संख्या ज्यादा है। स्व. देवव्रत सिंह की पूर्व पत्नी पद्मा देवी ने खुले तौर पर दावेदारी कर ही दी है। वे विभा सिंह के खिलाफ खुलकर आ चुकी हैं। जबलपुर में रहने वाली देवव्रत की बहन स्मृति भार्गव ने बीते दिनों टीएस सिंहदेव से मुलाकात की और अपनी इच्छा जाहिर की। चुनाव हारने वाले पूर्व विधायक गिरवर जंघेल, प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष उत्तम ठाकुर, ब्लॉक अध्यक्ष यशोदा वर्मा, कांग्रेस के जिला महामंत्री रंजीत सिंह चंदेल और दशरथ जंघेल जैसे कई नाम कांग्रेस से सामने आ रहे हैं।
भाजपा में कोमल जंघेल अपनी दावेदारी इसलिए मजबूत मानते हैं क्योंकि हार जीत का अंतर बीते चुनाव में काफी कम था। हालांकि वे दो चुनाव हार चुके हैं। जिला पंचायत के उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह जो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के भांजे भी हैं का भी टिकट के लिए दावा है। छुई खदान इलाके के लोकेश्वरी जंघेल का नाम भी उभर कर सामने आ रहा है।
जो भी हो इस चुनाव का परिणाम यदि भाजपा के पक्ष में गया तो पार्टी में नई जान फूंकी जा सकेगी। पार्टी प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी के दौरों का भी परिणाम दिखेगा। कांग्रेस की जीत पर यह तय हो जाएगा कि पांच राज्यों के नतीजों से सरकार के प्रति लोगों का मोह भंग नहीं हुआ है।
देवगुड़ी की चिंता
बस्तर के उलनार में नया एयरपोर्ट बनाने की तैयारी चल रही है। इसमें निजी भूमि का भी अधिग्रहण किया जाना है। एयरपोर्ट बनने की खबर यहां रहने वाले आदिवासियों से पहले बिचौलियों को मिल गई। उन्होंने निकट भविष्य में मुआवजे की भारी रकम पाने का जुगाड़ कर लिया। पर ग्रामीणों की चिंता दूसरी है। पटवारी ने जो नाप जोख की है, उसमें उनके गांव की देवगुड़ी भी आ रही है। अब यह काम वाले वहां लगातार पहरा दे रहे हैं कि कहीं उनकी आस्था का स्थल ध्वस्त न हो जाए। प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई आश्वासन देने के लिए नहीं पहुंचा है, जबकि नियम तो यही है कि गांव वालों की सहमति बिना न तो नाप-जोख होनी चाहिये न ही अधिग्रहण।
नाबालिगों के हाथ पिस्टल चाकू...
सरगुजा में कॉलेज के एक छात्र ने पहले छात्रा को गोली मारी और उसके बाद अपनी कनपटी पर कारतूस दाग ली। युवक की मौत हो गई और छात्रा की हालत गंभीर है। बीते 25 फरवरी को बिलासपुर में 10 नाबालिगों ने मिलकर दो नाबालिगों को चाकू से गोद डाला जिनमें एक की मौत हो गई, दूसरा घायल है।
हाल के दिनों में पूरे छत्तीसगढ़ में जिस तरह से चाकूबाजी और पिस्टल-कट्टा, लहराने, चलाने, रखने की घटनाएं हो रही हैं- वह चिंताजनक है। रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा और सरगुजा में बड़े पैमाने तस्करी से पिस्टल और चाकू लाए जा रहे हैं। राजधानी पुलिस ने बीते साल छानबीन में यह पाया था कि फ्लिपकार्ट और दूसरी ऑनलाइन शॉपिंग ऐप के जरिए बटनदार घातक चाकू मंगाए जा रहे हैं। कट्टा रिवाल्वर ज्यादातर बिहार से मंगाए जाते हैं। वहां के मुंगेर जिले को अवैध कट्टा-कारतूस बनाने का हब माना जाता है।
बड़ी बात यह है कि इन हथियारों से जुड़े आपराधिक मामलों में ज्यादातर नाबालिग हैं। राजधानी पुलिस ने एक साल में 290 चाकू बरामद किए हैं। कट्टा, रिवाल्वर, कारतूस, एयर गन के अलावा तलवार, गुप्ती, गंडासा भी भारी मात्रा में जप्त किए गए। जाहिर है जो पकड़ में आए केस उन पर ही बना, लेकिन वास्तविक खपत इससे कई गुना ज्यादा होगी।
अपराधिक वारदातों के हो जाने के बाद अपराधियों को गिरफ्तार तो पुलिस कर रही है। पर अपराधों का ग्राफ इससे बढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है, जिस पर भाजपा सरकार को सदन के बाहर-भीतर बार-बार घेर रही है। अपराध ही न हो इसके लिए जरूरी है कि तस्करी ही रोकी जाए, और ऑनलाइन पार्सल पर पर भी निगरानी बढ़ाई जाए।
दोनों के हाथों में लड्डू
2004-05 और उसके बाद भर्ती किये गये सरकारी कर्मचारी होली के पहले ही गुलाल उड़ा रहे हैं, दिल बाग-बाग है। राज्य के बजट में पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की यह खुशी है। दरअसल, इन अधिकारी-कर्मचारियों की नई स्कीम पेंशन जैसी थी भी नहीं। उनके वेतन से 14 फीसदी की कटौती का प्रावधान है। इतना ही अंशदान सरकार भी दे रही है। इसे जीपीएफ से भी नहीं जोड़ा गया। शेयर बाजार में इसका पैसा एक संस्था एनएसडीएल के जरिये लगाया जा रहा है। शेयर बाजार की उथल-पुथल के आधार पर जमा राशि घट-बढ़ सकती है। सेवानिवृत्ति पर राशि का एकमुश्त भुगतान किया जाएगा। यदि चाहे तो यही राशि मासिक किश्तों में पेंशन के रूप में ली जा सकती है। जाहिर है कि शेयर बाजार में लगाये गये पैसे निकालने पर टैक्स भी कटेगा।
जो सरकारी कर्मचारी 2004 से पहले से सेवा में हैं, उन्हें पुरानी स्कीम के तहत लाभ मिलता है। वेतन से सीधे कोई कटौती नहीं हो रही है। जीपीएफ का प्रावधान है। सेवानिवृत्ति के दिन जो तनख्वाह है, उसका 50 प्रतिशत मासिक मिलना शुरू हो जायेगा। मृत्यु होने पर भी नामिनी को आधी पेंशन मिलती रहेगी। जीपीएफ के ब्याज पर कोई टैक्स भी नहीं लगेगा।
इसी पुरानी योजना को लागू करने के लिये कर्मचारी संगठन लगातार आंदोलन कर रहे थे। सरकार को इस मांग को पूरा करने में इसलिये भी दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि योजना के तहत लाभ पाने वाले कर्मचारियों का रिटायरमेंट 2034 से पहले नहीं होगा। तब की तब देखेंगे। फिलहाल 14 प्रतिशत अंशदान तो सरकार नई स्कीम में दे ही रही है, उसे जीपीएफ फंड में डाल दिया जायेगा। यानि सरकार की वाहवाही भी हो गई और जेब से कुछ गया भी नहीं।
2024 से पहले 2023
मोदी तब भी असरदार थे, जब सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में भाजपा की करारी हार हुई। पर मोदी के होने का असर दिखा लोकसभा चुनावों में, जो कुछ महीने बाद ही हुए। कांग्रेस को अनपेक्षित नतीजे का सामना करना पड़ा। यूपी और दूसरे राज्यों में अभी मिली सफलता से प्रधानमंत्री खम ठोंक रहे हैं कि सन् 2024 में, यानि अगले लोकसभा चुनाव में परिणाम क्या होंगे, यह फैसला जनता ने कर दिया है।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव इसी साल हैं। दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। भाजपा सोचकर चल रही है कि वह दोनों में मजबूत पार्टी बनकर उभरेगी। गुजरात के बारे में तो वहां के भाजपा नेता उत्साह से इतने सराबोर हैं कि सभी सीटें जीत लेने का दावा कर रहे हैं। इधर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने साफ किया है कि वे गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ेंगे। छत्तीसगढ़ में भी यह संगठन अपने विस्तार में लगा हुआ है। पिछली बार वह कई सीटों पर थी, मुकाबले में नहीं थी, पर प्रभाव छोडऩे में सफल रही। इस बार उनके सामने पंजाब का नतीजा है।
इन संदर्भों में, माना जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति चाहे जितनी नाजुक हो पर सन् 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव का नतीजा सन् 2018 की तरह होने वाला नहीं है। मौजूदा कांग्रेस का प्रचंड बहुमत बरकरार रहेगा, यह भी दावा करना मुश्किल है। नई परिस्थितियों में सरकार रिपीट करने के लिये ज्यादा मेहनत की जरूरत पड़ेगी।
जब कांग्रेस चुनाव हार गई...
वे तो दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव थे, जिन्होंने जोगी सरकार के दुबारा लौटने पर मूंछें मुंडवा लेने का ऐलान कर दिया था। उनका आकलन तब सही निकला। पर मतदाताओं के मिजाज को तौल पाना हर किसी के वश में नहीं है। कांग्रेस को कम से कम उत्तराखंड और गोवा में तो सरकार बनने की उम्मीद थी। बड़े नेता भी सही अंदाजा नहीं लगा पाये कि नतीजा क्या आने वाला है। मध्यप्रदेश में चुनाव नहीं था, पर यहां के नरसिंहगढ़ के एक ब्लॉक अध्यक्ष बाबू मीणा ने दावा कर दिया। कहा कि पांच में चार राज्यों में कांग्रेस सरकार नहीं बनी तो सिर मुंडवा लेंगे। परिणाम आने के बाद पहले तो वे दायें-बायें करने लगे। पर लोगों ने दबाव बनाया, जब चैलेंज किया था तो उसे निभाओ। शर्त के मुताबिक चौराहे पर बैठकर उन्हें अपना सिर साफ कराना पड़ा।
डरा देने वाला विज्ञापन
फर्ज करें आप अपनी मोबाइल फोन का स्क्रीन अनलॉक करते हैं और दिखाई देता है कि मम्मी के आठ मिस्ड कॉल हैं। यदि किसी की मां हॉस्पिटल में भर्ती हो तो उसे तो अटैक भी आ सकता है। किसी की मां हाल में गुजर गई हो तो दुखी और परेशान हो सकता है। पर यह है एक विज्ञापन। जैसे ही मिस्ड कॉल पर आप प्रेस करेंगे, ओला कैब का विज्ञापन दिखेगा...। मॉम आपको बताना चाह रही है कि आप अगली सवारी में 40 प्रतिशत तक डिस्काउंट ले सकते हैं। मम्मी नहीं चाहती कि आप बाहर खाना खाएं, इसलिये ओला कैब की सवारी कर इस छूट का फायदा लें और जल्दी घर पहुंचें। सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन की जमकर आलोचना हो रही है। लोग वैसे ही दिन-रात अनचाहे मेसैजेस और कॉल से परेशान होते रहते हैं, उस पर मार्केटिंग का यह फंडा उन्हें बेहूदा लगा है। लिंक्डइन के सीईओ कार्तिक भट्ट ने लिखा है कि यह कैम्पेन बहुत खराब है। ऐसे प्रमोशन को देखने से वे लोग बुरी तरह घबरा जाएँगे जो अपनी मां से दूर रहते हैं।
जनता कैसा सहयोग करे?
छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, वन विभाग सबसे भ्रष्ट विभाग हमेशा ही बने रहा। यहां एक-एक ट्रांसफर-पोस्टिंग का सबसे ऊंचा रेट चलते रहा, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में क्षतिपूर्ति-वृक्षारोपण का जो कैम्पा मद इक_ा किया गया था उसमें भ्रष्टाचार भयानक पैमाने पर जारी रहा, लेकिन यह विभाग सत्ता के साथ-साथ विपक्ष को भी पालते आया, और साधते आया। इसीलिए इसके सबसे भ्रष्ट लोग हमेशा ही सबसे ताकतवर रहते आए, और उनके खिलाफ तमाम शिकायतें सत्ता और विपक्ष मिलकर दबाते रहे।
अब ऐसा विभाग जब राजधानी में दीवारों पर ऐसी तस्वीरें बनवाता है कि लोग राज्य के राजकीय पशु वनभैंसे के संरक्षण और संवर्धन में सहयोग करें, तो लोग हैरान होते हैं कि इस काम में जनता क्या कर सकती है? इस काम में तो नर और मादा वनभैंसों के अलावा किसी का अधिक किरदार है नहीं। और इन वनभैंसों के नामों पर भी लंबा-चौड़ा भ्रष्टाचार करने वाला वन विभाग जब सार्वजनिक जगहों पर दीवारों पर लोगों से सहयोग की ऐसी अपील करता है, तो वह हैरान करने वाली रहती है। लोगों को लगता है कि विभाग के डीएफओ की कुर्सी पर रेंजर को देखते हुए अगर लोग चुप हैं, तो इससे अधिक योगदान वे और क्या कर सकते हैं? जिस तरह पूरे देश में किसी भी राज्य में डीएफओ की कुर्सी पर गैरआईएफएस बैठाने का रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के नाम जाता है, उससे भी लगता है कि वनभैंसे का आत्मविश्वास खत्म हुआ होगा, और प्रजनन शक्ति भी। अब इसमें आम जनता कैसा सहयोग कर सकती है, यह बात वन विभाग को बतानी चाहिए।
कभी ऐसा कुछ खाया है?
सोशल मीडिया पर कई तरह के लतीफे चलते हैं, जिनमें से यह भी है कि चाइनीज व्यंजनों के नाम पर भारत में जिस तरह की चीजें बनाई और खिलाई जाती हैं, उनसे खफा होकर चीनियों ने हिन्दुस्तान पर कोरोना छोड़ा था। लेकिन खुद हिन्दुस्तान के भीतर एक-दूसरे इलाके के व्यंजन अपने स्थानीय तरीकों में ढालकर बनाए जाते हैं, वह भी देखने लायक रहता है। अभी राजस्थान में हुई एक कांफ्रेंस में छत्तीसगढ़ के लोगों को पहली बार रागी के बने हुए गुपचुप खाने मिले जिसमें आम खट्टे पानी की जगह अनार का रस भरकर पिलाया जा रहा था। इसी के साथ-साथ शिमला मिर्च का हलुवा भी था। अब भारत के विविधता वाले प्रदेशों में खान-पान की ऐसी विविधता देखने लायक रहती है। अब दूसरे देश के व्यंजनों से अगर हिन्दुस्तान नूडल-गुपचुप बनाता है, तो उसका मतलब कोरोना को न्यौता देना नहीं है।
ताकत देखिये, नतीजा नहीं
सन् 2018 के चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाने में अहम् भूमिका निभाने वाले छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी व राष्ट्रीय महासचिव पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया को तीसरी बार हार का सामना करना पड़ा। आईआईटी रूडक़ी से इंजीनियर तनुज ने विदेश में लाखों की नौकरी का पैकेज छोडक़र उन्होंने अपने पिता के पुराने कर्मक्षेत्र बाराबांकी जिले से पहला संसदीय चुनाव लड़ा। यहां से पुनिया सांसद रह चुके हैं। इसके बाद सन् 2019 के इसी इलाके के जैदपुर विधानसभा से उप-चुनाव लड़ा। इस बार फिर वे हार गये। टक्कर में भी नहीं थे। वहां सपा के प्रत्याशी ने मामूली अंतर से भाजपा को हराया।
वैसे, जो लोग छत्तीसगढ़ में पिछली बार प्रदेश कांग्रेस को ओवरटेक कर पुनिया के रास्ते टिकट लेकर आये थे, उन्हें यूपी का चुनाव परिणाम देखकर निष्ठा डिगाने की जरूरत नहीं। यदि वे पुनिया के विश्वासपात्र हैं तो बने रहना ही ठीक रहेगा। हाईकमान में उनकी पकड़ का पता चलता है। बहुत कम कांग्रेस नेता हैं जो बार-बार हारने के बाद भी पसंद की टिकट पक्की करा पाते हैं।
होली भी तो छत्तीसगढिय़ा हो..
होली को अब पारंपरिक तरीके से मनाने वाले कम होते जा रहे हैं। जिन गांवों में कई दिन पहले से फाग शुरू हो जाता है वहां भी डीजे बजने लगे हैं। पर बहुत से लोग हैं जो अब भी नगाड़े के बिना होलिका दहन और रंगोत्सव को फीका समझते हैं। राजनांदगांव के डोंगरगढ़ अंचल में बहुत से लोग नगाड़ा बनाने के व्यवसाय से जुड़े हैं। कोरोना संक्रमण के चलते दो साल तक ठीक तरह से होली मनाई नहीं जा सकी। फाग टोलियों के एकत्र होने पर भी रोक लगी हुई थी। इस बार माहौल तो अनुकूल है, पर डीजल-पेट्रोल के कारण हर चीज महंगी हुई है। नगाड़े में इस्तेमाल किये जाने वाले चमड़े भी। नगाड़े के साथ पर्व मनाने वाली पीढ़ी भी अब बदल रही है। फिर भी पुश्तैनी काम है, छोड़ नहीं पा रहे हैं। कुछ कमाई होने की उम्मीद बनी रहती है। रायपुर, बिलासपुर और दूसरे शहरों के पुराने बाजारों में इनकी मौजूदगी आपको इन दिनों दिखाई दे सकती है। अब छत्तीसगढ़ सरकार तो राज्य के कई तीज-त्यौहारों और कला को संरक्षण देने में लगी हुई है, क्या ऐसा नहीं होना चाहिये कि इन छत्तीसगढ़ की होली को भी जगह-जगह डीजे की जगह नगाड़े के साथ मनाने की कोशिश की जाये।
अंत्येष्टि तभी, जब दाग मिटे
हाल ही में नारायणपुर जिले के बंडा गांव में डीआरजी बल के जवान रेनू राम नरेटी के भाई मानूराम की पुलिस की गोलियों से मौत हो गई। बार-बार पुलिस यह साबित करने की कोशिश कर रही थी कि वह नक्सली था और मुठभेड़ में मारा गया। पर ग्रामीण उसे बेकसूर बताते रहे और सबूत भी दिए कि वह तो बस्तर फाइटर्स (आरक्षक) में भर्ती की तैयारी कर रहा था। आखिरकार पुलिस ने माना मृतक मानु राम के नक्सली होने का कोई प्रमाण नहीं है। अब इस तथ्य के सामने आने के बाद मानूराम के भाई उसकी पत्नी और परिवार को इंसाफ मिलेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है।
पर यह अकेला एक मामला नहीं है। कितने ही मुठभेड़ों को बस्तर के आदिवासी फर्जी बताते और न्याय की गुहार लगाते रहे हैं।
किरंदुल के गामपुर में 19 मार्च 2020 की सुबह छत्तीसगढ़ पुलिस की एक गश्ती टीम ने 22 साल के बदरू मंडावी को नक्सली बताकर मार गिराया। औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसका शव परिवार को सौंप दिया गया। 23 माह बीत गये। बदरू के परिवार वालों अब तक उसके शव को संभाल कर रखा हुए हैं। एक गड्ढा खोदा गया है, और जड़ी-बूटी शरीर पर लेपकर कपड़े से बांध दिया गया है। बद्री की पत्नी पोदी और मां माधवी मार्को कहती हैं कि जब तक बेकसूर बेटे को मारने वाले पुलिस जवानों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, शव को नहीं दफनाया जाएगा। वे लगातार बुजुर्ग की हत्या की जांच की मांग प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों से कर चुके हैं। कोई सुनवाई नहीं हुई। इन्हें उम्मीद है कि किसी दिन तो उनकी बात सुनी जाएगी और जांच होगी। तब हो सकता है, जांच में इस शव की भी जरूरत पड़े। क्या सरकार में बैठे लोग उनकी फरियाद सुन पा रहे हैं?
पानी भरा रहा तो रेत कैसे निकलेगी?
नदियों से रेत निकालने के लिए जरूरी है कि वह सूखी रहे। पानी भरा रहा तो निकलेगी कैसे? गर्मी के दिनों में जल संकट न हो इसे देखते हुए बालोद जिले में शिवनाथ नदी के खरखरा जलाशय से बीते दिनों पानी छोड़ा गया। इससे कोटनी एनीकट में पानी भर गया। पर ठीक इसी के ऊपर एक रेत खदान का ठेका खनिज अधिकारियों ने दे रखा है। नियम के अनुसार ऐसा किया जाना गलत है। जहां गर्मी के दिनों में जल संकट पैदा होता हो और जलभराव बनाए रखना जरूरी हो वहां पर रेत खदान कैसे खुली?
बहरहाल रेत ठेकेदार यह बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है कि उनकी रेत की कमाई पर पानी फिर जाए। इधर एनीकट में पानी, दूसरे दिन उसका गेट टूट गया, या कह लीजिए किसी ने तोड़ दिया। अब ठीक हुआ। पानी बह चुका है। गर्मी में लोगों को पानी का संकट झेलना पड़े तो पड़े, पर रेत की निकासी में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
साइकिल पर स्पिक-मैके फाउंडर
स्पिक मैके को कौन नहीं जानता। बीते 44 वर्षों से भारत की वैभवशाली संस्कृति शास्त्रीय-संगीत, नृत्य, लोककला, चलचित्र, नाटक और योग के माध्यम से युवाओं को जोडऩे वाली इस संस्था के संस्थापक हैं पद्मश्री डॉ. किरण सेठ। छत्तीसगढ़ में इनके अनेक शिष्य हैं। वे कई बार रायपुर, भिलाई और बिलासपुर आए हैं। 73 वर्ष के इस आईआईटी के रिटायर्ड प्रोफेसर को कार या बाइक की जगह साइकिल पर चलना ज्यादा पसंद है। उनका कहना है कि ट्रैफिक, इंधन, स्वास्थ्य और पर्यावरण की बढ़ती समस्या इसका समाधान है। इससे आगे वे यह भी कहते हैं कि साइकिलिंग एक बढिय़ा मेडिटेशन है।
इस साल 2 अक्टूबर से वे कश्मीर से कन्याकुमारी तक की लंबी साइकिल यात्रा पर निकल रहे हैं। आज उन्होंने दिल्ली के राजघाट से जयपुर साइकिल से ही निकले।
साइकिल यात्रा के माध्यम से वे भारत की सांस्कृतिक विरासत को देश के दूर-दूर तक पहुंचाने का उद्देश्य रखते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी की उनकी यात्रा में छत्तीसगढ़ पड़ाव होगा या नहीं, अभी यह तय नहीं है। पर, छत्तीसगढ़ के बहुत से युवा और उनके प्रशंसक उनकी यात्रा में अपनी अपनी क्षमता के हिसाब से उनके साथ दूरी तय करना चाहते हैं।
अपने यहां पर्यावरण दिवस या ऐसे ही किसी खास मौके पर साइकिल रैली निकाली जाती है। कभी-कभी कुछ उत्साही युवा ट्रैकिंग पर भी निकलते हैं। वरना, स्कूली बच्चों के हाथ में भी अब बाइक और स्कूटर है।
रायपुर नगर निगम के महापौर ने बीते साल स्वच्छता का संदेश देने के लिए लगातार कुछ दिनों तक लगातार साइकिल चलाई थी। कुछ महीने पहले प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम ने साइकिल यात्रा कर केंद्र की महंगाई के खिलाफ आंदोलन किया था। यानी कि जब कोई रस्म हो तब साइकिल याद आती है। यह आदर्श परिवहन का प्रतीक है पर आदत में नहीं है।
वैसे डॉ. किरण सेठ की तरह किसी बड़े उद्देश्य के लिए नहीं, सब्जी बाजार जाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्कूल का नाम बदलने का फिर विरोध..
स्कूलों के नाम के साथ उसका इतिहास दर्ज होता है। साथ ही लोगों की भावनायें उससे जुड़ जाती हैं। रायगढ़, सरगुजा, जीपीएम सहित कुछ अन्य जिलों में स्कूलों का नाम बदलने को लेकर लोगों में असंतोष है। आंदोलन हुए हैं। अभ एक और मामला पिथौरा से आया है। यहां के सबसे पुराने राजा रणजीत सिंह कृषि उच्चतर माध्यमिक शाला का नाम माध्यमिक शिक्षा मंडल के पोर्टल से हटा दिया गया है और उसकी जगह स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम दर्ज कर दिया गया है।
स्कूल 63 साल पुरानी है। कौडिय़ा राज के आदिवासी राजा रणजीत सिंह ने इसके लिये जमीन दान की थी। उनको दानवीर, न्यायप्रिय और प्रजा के प्रति संवेदनशील राजा के तौर पर भी जाना जाता है। गोंड समाज के लोग नाम हटाने को लेकर उद्वेलित हैं। उन्होंने सीएम और स्कूल शिक्षा विभाग को सितंबर के बाद हुए हुए बदलाव के विरोध में पत्र लिखा और अपनी भावनाओं को जाहिर किया। पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका नतीजा यह निकला है कि महासमुंद जिले के इस एकमात्र कृषि हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र भी आंदोलन पर उतर आये हैं। उन्होंने मंगलवार को प्रदर्शन किया और आगे आंदोलन तेज करने की बात कर रहे हैं।
दरअसल, शासन उन स्कूलों को आत्मानंद स्कूलों के रूप में संचालित करने जा रहा है जो वर्षों से अच्छे सेटअप के साथ तैयार हैं। इससे वहां मापदंड के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्टर तैयार करने में उन्हें आसानी होती है। पर इन स्कूलों के नाम के साथ स्थानीय लोगों के जुड़ाव को नहीं समझा जा रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश में यह साफ लिखा है कि पहले से ही किसी दानदाता या क्षेत्र के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के नाम पर यदि कोई स्कूल है तो वह नाम विलोपित नहीं किया जायेगा, बल्कि उसके साथ यह लिखा जायेगा कि स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय के अंतर्गत संचालित है। इस आदेश का पालन न कर जगह-जगह विभिन्न जिलों में शिक्षा अधिकारी विवाद खड़ा कर रहे हैं।
आधी रात सडक़ पर लड़कियां..
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पूरे प्रदेश में अनेक अनूठे कार्यक्रम हुए, पर बिलासपुर के अरपा रिवर व्यू के किनारे लगी महिलाओं की जमघट का कोई मुकाबला नहीं था। यह कार्यक्रम ही रात 9 बजे के बाद शुरू हुआ। रात 12 बजे कार्यक्रम खत्म होने के बाद लड़कियों ने शहर की सडक़ों को पैदल भी नापा।
संदेश यह था कि हमेशा लड़कियों को कहा जाता है कि वे देर रात तक घर से बाहर क्यों रहती हैं। जब लडक़े बाहर रह सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? सवाल मानसिकता का है। अनोखे आयोजन में गीत-संगीत का कार्यक्रम देर रात तक चला और पुरुषों ने भी वहां अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला इस कार्यक्रम की संयोजक थीं।
गांजा तस्करी इसलिये नहीं रुकती..
प्रदेश में गांजे की तस्करी पर रोक नहीं लग पा रही है। लगातार धरपकड़ के बावजूद। पत्थलगांव में बीते अक्टूबर में दुर्गा विसर्जन के दौरान गांजे से भरी एक कार ने जुलूस को रौंद दिया। इसमें एक मौत हुई और दो दर्जन घायल हो गये। इसके बाद सरकार के निर्देश पर पीएचक्यू ने सख्ती शुरू की। चेक पोस्ट पर 24 घंटे पुलिस की तैनाती और सीसीटीवी कैमरे का निर्देश हुआ। पर हर दिन किसी न किसी जिले में गांजे की खेप पकड़ी जा रही है। इनमें अधिकांश गांजा ओडिशा से आता है। पहले मलकानगिरी की पहाड़ी पर ही इसकी खेती होती थी, पर अब आंध्रप्रदेश सहित ओडिशा के दूसरे कई जिलों कालाहांडी, भवानीपट्टनम, गंजाम, कंधमाल में भी हो रही है। छत्तीसगढ़ से गुजरने वाले गांजे की बहुत कम खपत यहां होती है। बाकी यूपी, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, दमन-दीव, यहां तक जम्मू-कश्मीर में भी भेजा जाता है।
कारोबार चूंकि गैर-कानूनी है इसलिये छत्तीसगढ़ पुलिस इसके परिवहन पर रोक लगाने के लिये ताकत लगाती है। पत्थलगांव की घटना के चलते उन पर दबाव भी बना। थानों में दुर्घटनाओं के अलावा जो चारपहिया गाडिय़ां कबाड़ में तब्दील हो रही हैं, वे गांजा की तस्करी करते हुए ही पकड़ी गई हैं।
सांसद शशि थरूर, मेनका गांधी और केटीएस तुलसी गांजे के उत्पादन और कारोबार को मान्यता देने की मांग करते आये हैं। तुलसी ने तो शीर्ष कोर्ट में एक याचिका भी लगा रखी है। थरूर ने इसके समर्थन में करीब तीन साल पहले एक लंबा लेख भी लिखा था। वे इसे अर्थव्यवस्था से भी जोड़ते हैं। पैरवी करने वालों का कहना है कि सन् 1985 में अमेरिकी दबाव में इसे गैरकानूनी बनाया गया, ताकि शराब के कारोबारियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फायदा मिले।
नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट (एनडीटीटी), एम्स दिल्ली की रिपोर्ट है कि शराब के बाद सर्वाधिक पसंदीदा नशा, गांजा और भांग है। भांग को तो कहीं-कहीं, विशेष अवसरों पर कानूनी मान्यता है। वजह इसके साथ जुड़ी धार्मिक गतिविधियां, जैसे महाशिवरात्रि और होली। पर दिलचस्प यह है कि दोनों एक ही पौधे से तैयार होता है। गांजा पौधे को सुखाकर, तो भांग पीसकर बनाया जाता है। एक ही पौधा एक प्रारूप में अवैध तो दूसरे में वैध है।
बात यही है कि छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा रहा गांजा कानून व्यवस्था से जुड़ा कम, अंतर्राज्जीय समस्या ज्यादा है। पता नहीं कितनी ही कारें, ट्रकें रोज गांजा लेकर गुजर जाती हैं। दो-चार को पुलिस पकड़ पाती है। पर, इसके चलते पुलिस, अदालतों और जेलों की अतिरिक्त ऊर्जा लग रही है।
महिलाओं के इशारे पर उड़ान
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर स्वामी विवेकानंद हवाईअड्डा पर हवाई यातायात नियंत्रण का पूरा काम महिलाओं को सौंपा गया। इसमें कंट्रोल टावर, अपैरल कंट्रोल और रूट कंट्रोल का काम शामिल था। रायपुर हवाईअड्डे का एयर ट्रैफिक कंट्रोल टॉवर प्रतिदिन 20 से अधिक उड़ानों को संभाल सकता है। जिंदाबाद.. नारी शक्ति!
ऑनलाइन जुए का दुष्परिणाम
बहुत सी पाबंदियां बेअसर हो रही हैं, मोबाइल फोन पर ऑनलाइन गेम, गैम्बलिंग और इन्वेस्टमेंट के चलते। हाल ही में संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि बिटक्वाइन जैसी वर्चुअल करंसी को मान्यता नहीं दी गई है पर उसे रेगुलेट करने की कोशिश की जायेगी। अब ऐसे अनेक ऐप आ गये हैं जो आपको मामूली रकम निवेश करने के लिये उकसाते हैं, पर इनका हश्र क्या होगा, इसका पता नहीं होता। यही हाल ऑनलाइन जुआ का है। यह ताश पत्ती, वर्चुअल क्रिकेट या दूसरे खेलों के रूप में होता है। टीवी, अख़बारों में बड़े-बड़े सितारे इसका विज्ञापन करते हुए भी दिखते हैं। एक छोटा सा डिस्कलेमर बताया जाता है कि- सावधान आपको इसकी लत लग सकती है, अपनी जोखिम पर खेलें। अंबिकापुर में संदीप मिश्रा की बच्चों को जहर देने के बाद की गई खुदकुशी में पुलिस जांच से यह बात भी सामने आ रही है कि मृतक हाल के दिनों में दो लाख रुपये ऐसे ही एक ऑनलाइन गेम तीन पत्ती गोल्ड में हार गया था। जबकि, उस पर स्थानीय कर्ज का दबाव अलग से था। इस गेम के संचालकों को अब पुलिस नोटिस देकर जानकारी मांगने वाली है। यह हैरानी और चिंता की बात हो सकती कि कैसिनो खोलने, लॉटरी बेचने पर तो रोक है, पर इंटरनेट के जरिये ऐसे सब कारोबार वैध होते जा रहे हैं।
पात-पात पर ऑनलाइन ठग
दूसरे के कंप्यूटर या मोबाइल फोन को दुनिया के किसी भी छोर में बैठकर ऑपरेट किया जा सकता है। कंप्यूटर में पहले से था, जिसका आम तौर पर सिस्टम के ऑनलाइन मेंटनेंस, रिपेयरिंग के लिये इस्तेमाल किया जाता था। टीमविवर इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहा है। इसके अलावा एनि विवर, अल्ट्रावेयर, स्पेस डेस्क आदि भी हैं। पर, अब मोबाइल फोन पर अनेक ऐप हैं, जिनका ऑनलाइन ठगी में जबरदस्त इस्तेमाल किया जा रहा है। वृद्ध या कम पढ़े-लोग ही नहीं बल्कि अच्छे खासी डिग्री वाले, सरकारी या निजी कंपनियों में नौकरी कर रहे लोग, किसान, व्यापारी सभी इसके शिकार लोगों में शामिल हैं।
गूगल सर्च से किसी कंपनी या बैंक का फोन नंबर निकालकर डॉयल करने से समस्या शुरू होती है। ठगी का जाल बिछाये लोगों ने सर्च इंजन में अपने मोबाइल नंबर डाल रखे हैं। जबकि कस्टमर केयर नंबर या तो टोल फ्री होता है, या फिर लैंडलाइन का नंबर। मोबाइल नंबर जालसाजों के पास चला जाता है। इसके बाद वे एनी डेस्क जैसे ऐप मोबाइल फोन पर डाउनलोड कराते हैं। यहां गौर करने की बात है कि एनीडेस्क या कोई अन्य ऐप दूर बैठे किसी दूसरे को आपका फोन ऑपरेट करने की अनुमति तभी देता है, जब आप दूसरे को कोड नंबर बतायेंगे, जो ऐप के चालू करने पर मिलता है। ठग फोन को ऑपरेट करके ऑनलाइन पैसे अपने एकाउंट में जमा करा लेते हैं। गूगल की पता नहीं कोई जवाबदारी है या नहीं ऐसे फर्जी फोन नंबर्स को ब्लॉक करने की पर साइबर जागरूकता के लिये पुलिस ने बीते साल पूरे प्रदेश में अभियान चलाया था। अब भी हाट-मेलों में और सोशल मीडिया के जरिये कोशिशें ही रही हैं, पर लोग ठगी के शिकार हो ही रहे हैं। रोजाना केस दर्ज हो रहे हैं, वर्षों की जमा-पूंजी लुट रही है पर पुलिस बहुत कम लोगों की गर्दन दबोच पा रही है।
क्राइम ब्रांच की फिर से तैयारी
भाजपा विधानसभा में प्रदेश की कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाती रही है। इस बार सरकार के पास एक जवाब यह हो सकता है कि अपराधों पर अंकुश लगाने के लिये वह पुलिस क्राइम ब्रांच का फिर से गठन करने जा रही है। हाल ही गृह विभाग ने एक निर्देश दिया है कि राज्य के तीन बड़े जिले रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में क्राइम ब्रांच गठित की जाये। क्राइम ब्रांच टीम भाजपा सरकार के समय प्रदेश के लगभग सभी जिलों में काम करती थी। गंभीर किस्म के अपराध, साइबर अपराधों का पता लगाने और अपराध होने पर तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने के लिए यह टीम तुरंत काम पर लग जाती थी। पर, कई जिलों से दबंगई और वसूली की शिकायत आने लगी। क्राइम ब्रांच ऐसी शाखा बन गई जो किसी भी इलाके में कार्रवाई करती थी पर थानेदार और उच्चाधिकारियों को भी बाद में इसका पता चलता था। जो जम गये थे वे घूम-फिर कर यहीं लौट आते थे। लगातार शिकायतों के बाद सभी टीमों को एक साथ भंग कर दिया गया था। अब यह टीम फिर से बनाने का जोखिम उठाया जा रहा है। देखना होगा कि पुलिस की छवि इससे सुधरेगी या फिर साख बिगड़ेगी।
घोटपाल मड़ई का आकर्षण
दक्षिण बस्तर का सबसे लोकप्रिय घोटपाल मड़ई इन दिनों चल रहा है। दूर दराज से ग्रामीण यहां पहुंच रहे हैं। उनके साथ आराध्य पुजारी, सिरहा, गुनिया, गायता भी होते हैं। इस मड़ई में पारंपरिक वेशभूषा और श्रृंगार के साथ पहुंचे एक स्थानीय आदिवासी।
गलत ब्रीफिंग, जायसवाल की रवानगी
नारायणपुर में एक आदिवासी युवक की पुलिस गोली से हुई मौत से उपजे विवाद पर राज्य की खुफिया एजेंसी को गलत ब्रीफिंग करना एसपी गिरिजाशंकर जायसवाल को हटाए जाने का कारण बन गया। 2010 बैच के आईपीएस जायसवाल को नारायणपुर में महज चार महीने पूर्व पदस्थ किया गया था।
पिछले दिनों नारायणपुर-अंतागढ़ मार्ग में मानू नरोटी नामक युवक के पुलिस की गोली से मौत होने के मामले में एसपी ने नक्सली ठहरा दिया। एसपी के इस बयान ने बस्तर संभाग के आदिवासी समुदाय को भडक़ा दिया। मानू नरोटी की मौत की घटना को समाज ने सिलेगर गोलीकांड से जोडऩे की कोशिश से सरकार ने मामले के पीछे की असल वजह का ब्यौरा जुटाना शुरू किया।
बताते है कि एसपी ने मामले की संवेदनशीलता को समझने में चूक कर दी। वे मारे गए युवक की पारिवारिक पृष्ठभूमि से पूरी तरह वाकिफ थे। चूंकि पुलिस की क्रॉस फायरिंग में आदिवासी युवक की जान चली गई, उस घटना को उचित ठहराने की जिद से मामला बिगड़ गया। बताते हैं कि एसपी जायसवाल ने मीडिया के साथ आला अफसरों से युवक को नक्सली बताने में हड़बड़ी कर दी। एसपी के इस दावे के उलट जब युवक के बस्तर फाईटर्स में प्रशिक्षण लेने और भाई के आरक्षक होने की जानकारी सामने आई, मानो नारायणपुर पुलिस महकमे की बुनियाद हिल गई। और तो और जब एसपी के सामने यह बात सामने आई कि मृत आदिवासी युवक को उन्हीं के हाथों प्रशिक्षण में प्रमाण-पत्र दिया गया था, तो हालत के हाथ से फिसलने का अहसास हुआ। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस जगह मुठभेड़ में युवक मारा गया वहां करीब दो साल से नक्सलियों का मूवमेंट नहीं रहा था।
सुनते हैं कि एसपी पिछले कई दिनों से मामले की निपटारे की कोशिश में थे। उन्होंने सत्तारूढ़ दल के विधायक से लेकर सांसद तक अपना पक्ष रखा। मामला आदिवासी समाज से था इसलिए सीएम पर ही मामला टिक गया था। चर्चा है कि घटना पर सही जानकारी देने से स्थिति को संभाला जा सकता था। एसपी की गलत बयानबाजी के बाद बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने पुलिस चूक को स्वीकार किया। अफसरों के बीच यह भी कानाफूसी हो रही है कि एसपी ने नवपदस्थ कलेक्टर ऋतुराज रघुवंशी को भी गलत जानकारी दी। राजधानी के अफसरों ने जब कलेक्टर को वारदात की सच्चाई से अवगत कराया तो वे भी असहज हो गए। नारायणपुर एसपी रहते जायसवाल ने बिना सोचे युवक को नक्सली बताने की भूल की, उसी दिन से उन्हें हटाए जाने की अटकलें तेज हो गई थीं।
डीएमएफ पर नियंत्रण किसका हो..?
जिला खनिज न्यास फंड जबसे मिल रहा है, छत्तीसगढ़ में विवाद होता रहा है। एक बड़ी रकम इस कोष में आती है। पिछले साल का आंकड़ा करीब 1100 करोड़ रुपये था। सन् 2015 में जब यह नीति बनी कि खनिज प्रभावित क्षेत्रों के पर्यावरण, पेयजल, स्कूल, सडक़ के लिये खनिज संचालकों को अपनी रॉयल्टी का एक भाग देना पड़ेगा तब किसी को नहीं अंदाजा नहीं था कि छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संसाधनों से भरपूर राज्य में कितना पैसा आ सकता है। उस वक्त विधायक और सांसद तो सदस्य बनाये गये पर खर्च करने के लिये बनाई गई समिति के अध्यक्ष कलेक्टर हुए। खूब मनमानी हुई, अनाप-शनाप खर्च किये गये। शहरों पौधारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये फूंके गये। एयरपोर्ट की बाउंड्रीवाल बना दी गई। लोगों को पहले-पहल समझ ही नहीं आया कि राशि किस तरह से खर्च हो। विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इस गड़बड़ी को देखा। सरकार बनने के बाद उसने कलेक्टरों को हटाकर जिलों के प्रभारी मंत्री को जिला खनिज न्यास का अध्यक्ष बना दिया। कुछ अशासकीय प्रतिनिधि भी नियुक्त किये गये। पर इस व्यवस्था को लेकर सांसदों ने दिल्ली में शिकायत कर दी। आईएएस लॉबी भी नाराज थी। पिछले साल यह फंड केंद्र के निर्देश पर फिर कलेक्टर्स के हाथ आ गया।
इस फंड को लेकर कोरबा जिले की बात ही अलग है। प्रदेश के सारे डीएमएफ का फंड अकेले इस जिले के बराबर नहीं है। यहां करीब 600 करोड़ रुपये जमा होते हैं।
जांजगीर-चांपा जिले के अकलतरा के विधायक सौरभ सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर फंड में भारी गड़बड़ी का आरोप लगाया। 24 घंटे के भीतर ही सोशल मीडिया पर एक दूसरी चि_ी प्रधानमंत्री को ही लिखी गई वायरल हुई। इसमें रामपुर विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने सौरभ सिंह के आरोपों का खंडन था। इसमें खनिज न्यास मद से होने वाले खर्चों को सही बताया गया था। कहा गया कि सौरभ सिंह कोरबा जिले के ही नहीं तो वे यहां दखल क्यों दे रहे हैं? कंवर ने तुरंत खंडन किया और कहा कि यह पत्र फर्जी है। वे कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। वे अपनी ही पार्टी के विधायक के खिलाफ क्यों लिखेंगे और वायरल करेंगे।
भाजपा के सौरभ सिंह ने कलेक्टर को निशाने पर लिया, मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने भी लिया। दोनों का आरोप है कि भ्रष्टाचार हो रहा है। फंड का सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं यह निगरानी केंद्र का खनिज मंत्रालय करता है। देखें उनके पत्र पर कोई जांच शुरू होती है या नहीं। मंत्री जयसिंह के लिये भी चुनौती है कि उनकी शिकायत को ऊपर कितनी तरजीह मिलेगी। कलेक्टर और जि़ले के मंत्री का ऐसा टकराव इनमें से किसे सही साबित करेगा?
युद्ध की रसोई पर मार...
यूं तो होली, दीपावली की तरह खर्चीला त्यौहार नहीं, पर इस बार रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते रसोईघर में भी असर दिखेगा। खाद्य तेलों की कीमतों में अभी से ही वृद्धि होने लगी है। छत्तीसगढ़ के बाजारों में सनफ्लावर तेल की कीमत में हाल के दिनों में 25 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। यह 165-175 रुपये तक पहुंच गया है। भारत जितना सनफ्लावर तेल या उसके कच्चे माल का आयात करता है, रिपोर्ट के मुताबिक उसका 75 फीसदी रूस से ही आता है। यूक्रेन से भी आयात होता है। पर बाकी खाद्य तेलों या उनके कच्चे माल का आयात रूस या यूक्रेन से नहीं होता। इसके बावजूद अन्य खाद्य तेलों सोयाबीन, राइस ब्रान तेल और पाम आयल के भी दाम बढऩे लगे हैं। मतलब यही है कि इस बार होली में आम गृहणियों को हाथ खींचकर पकवान बनाने पड़ सकते हैं।
ट्रैफिक का अनुशासन
ज्यादातर सडक़ दुर्घटनायें यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण ही होती है। ओवरटेक करना तो हमारा पसंदीदा शगल है, मानों किसी जगह 5-10 मिनट पहले पहुंचकर हम देश बदल लेंगे। कहीं जाम लग गया हो दायें-बायें देखे बिना रोड को तब तक नापते हैं, जब तक खुद आगे जाकर फंस ना जाएं। पीली-सफेद पट्टियां हमें नजर नहीं आती। ऐसा करने वालों को सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इम्फाल, मणिपुर की यह तस्वीर कुछ सीख देती है।
मेडिकल कॉलेज के रास्ते में रोड़ा
सुनने में यह अजीब लगता है पर कोरबा जिले में डॉक्टरों की एक ऐसी लॉबी काम कर रही ह जो यहां मेडिकल कॉलेज खोलने के रास्ते में अड़ंगा डाल रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि यदि मेडिकल कॉलेज के चलते यहां सरकारी और सस्ते इलाज की सुविधा शुरू की गई तो निजी अस्पतालों की प्रैक्टिस मारी जायेगी।
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने ऐसे जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने की मंजूरी दी थी, जहां पहले से सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं है। सन् 2020 में कोरबा के लिये भी घोषणा की गई थी। इस बीच जिला अस्पताल की सुविधायें मेडिकल की पढ़ाई के हिसाब से तो कुछ बढ़ा दी गई हैं, पर विशेषज्ञ चिकित्सकों और स्टाफ की भर्ती रुकी है। भवन का निर्माण नहीं हुआ है। कद्दावर नेताओं के कोरबा जिले में एक बड़ी चिकित्सा सुविधा से आम लोग वंचित हैं।
आदिवासियों पर दर्ज मुकदमे
हाल ही में कांग्रेस नेताओं के साधारण मामलों के मुकदमे वापस लेने की घोषणा की गई। इसकी प्रक्रिया चल रही है। कलेक्टर, एसपी और जिला अभियोजन अधिकारी की जिलों में समितियां बनी हैं, जो ऐसे प्रकरणों की सिफारिश करेगी, जिन्हें वापस लिए जा सकें। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि बस्तर की जेलों में बंद आदिवासियों के मुकदमे वापस लिये जाएंगे। सरकार ने इसके लिये सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आनंद पटनायक की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई थी। पर आदिवासियों की रिहाई का सिलसिला बहुत धीमी गति से चल रहा है। सरकारी आंकड़ा है कि अब तक 900 से कुछ अधिक आदिवासी ही रिहा किये जा सके हैं। जिन के खिलाफ अपराध दर्ज हैं उन आदिवासियों की संख्या 23 हजार है। इनमें जिनको रिहा किया जा सकता है, या मुकदमे वापस लिये जा सकते हैं, उनकी संख्या 16 हजार के पास है। ज्यादातर मामले गंभीर भी नहीं हैं। कई मामलों में वर्षों से ट्रायल नहीं हो पाया है। आदिवासी बिना सुनवाई के ही लंबे समय से जेल में बंद है। भाजपा तो सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा ही रही है, पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जैसे नेता भी पूछ रहे हैं कि आखिर इनकी रिहाई और मुकदमे वापस लेने में कौन सी अड़चन आ रही है।
ऑटो का नाटो से रिश्ता
नाटो का ऑटो रिक्शा से क्या रिश्ता हो सकता है, पर कल्पना की उड़ान कहीं भी भरी जा सकती है। रूसी हमले में यूक्रेन को नाटो देशों से उम्मीद के अनुरूप मदद नहीं मिलने का यहां मजाक बनाया गया है। मुसीबत में नाटो नहीं ऑटो काम आता है। सोशल मीडिया पर इस पर टिप्पणी में एक ने लिख मारा- भाटो (जीजा) भी काम आता है।
कोदो कुटकी की महत्ता
कोदो और कुटकी छत्तीसगढ़ की जलवायु के अनुरूप फसलें हैं, मगर दोनों बड़े उपेक्षित अनाज हैं। लोग इनका सेवन पसंद नहीं करते। ज्यादातर लोगों को इसके बाजार का भी पता नहीं। पहले के शोध में यह निष्कर्ष निकाला जा चुका है कि कोदो मधुमेह नियंत्रण, गुर्दों और मूत्राशय के लिए फायदेमंद है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त होता है। यानि बिना रासायनिक खाद के उगाया जाता है। अब वैज्ञानिकों ने कुटकी के गुणों का भी पता लगा लिया है। लखनऊ के अखिल भारतीय अनुसंधान परिषद ने इसके पौधे के वर्क से पिक्रोलिव नाम की एक नई दवा विकसित की है जिससे फैटी लीवर का उपचार किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार कोदो कुटकी को प्रोत्साहित भी कर रही है। आने वाले दिनों में इसकी मांग बढ़ सकती है।
नया रायपुर से विस्थापित लोगों की मांगें
नया रायपुर के निर्माण से प्रभावित किसानों का आंदोलन सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है।
बीते दिनों मंत्री रविंद्र चौबे ने घोषणा की कि किसानों की 8 में से 6 मांगे मान ली गई हैं। बाकी 2 मांगों के लिए कानूनी मशविरा हो रहा है। इसके बाद भी किसानों का आंदोलन जारी है और वे नया रायपुर विकास प्राधिकरण भवन के सामने पहले की तरह आंदोलन पर बैठे हुए हैं। किसानों का कहना है कि सरकार ने जिन मांगों को मान लेने की बात कही, उन पर पहले से ही सहमति बन चुकी थी। दरअसल आंदोलनकारी किसान सभी 27 गांवों के सभी वयस्कों के लिए 12 सो वर्ग फीट विकसित भूखंड और बसाहट का पट्टा मांग रहे हैं। प्राधिकरण के लिए इतनी बड़ी मांग का रास्ता निकालना मुश्किल हो रहा है। बीती सरकारों ने जब आनन-फानन में राजधानी के लिए जगह तय की तब किसानों के साथ कोई समझौता नहीं किया, बैठक नहीं की। आज यह मौजूदा सरकार के सिर पर यह समस्या सवार है।
मंत्री बड़ा या कलेक्टर
कोरबा जिले के लोगों को अगर कलेक्टर से कोई काम कराना है तो मंत्री जी से ना मिलें। कलेक्टर भडक़ सकती है। मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने जिस तरह मीडिया के सामने कलेक्टर रानू साहू पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया है वह उनके बीच बढ़ी हुई दूरी को बताने के लिए काफी है। याद होगा कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, तब मंत्री अग्रवाल ने वहां के कलेक्टर पी दयानंद को भ्रष्ट बताते हुए सरकार आने पर निपटा देने की बात कही थी। पर अब तो उनकी अपनी सरकार है। दयानंद के खिलाफ एक जांच नहीं कार्रवाई नहीं हो पाई है। मंत्री के इस गुस्से को देखकर लोग सवाल कर रहे हैं कि कलेक्टर ज्यादा ताकतवर होता है या मंत्री। आप भी जवाब ढूंढिए।
खोखला स्वास्थ्य....
यह किसी दुर्घटनाग्रस्त जहाज के भीतर की तस्वीर नहीं है। यह हमारी राजधानी में ही खोखली हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं की है। शहर के खोखो पारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इमरजेंसी सेवा के लिए खरीदे गए एंबुलेंस इसकी कहानी बता रहे हैं। इन्हीं में से एक एंबुलेंस के एक-एक पुर्जे को निकालकर अज्ञात लोगों ने बेच दिया है। अस्पताल के लोगों का यह भी कहना है कि पुर्जे बेचें नहीं, अन्य एंबुलेंस में लगाए गए हैं।
उत्सुकता भोजराम के बैच की
कोरबा एसपी भोजराम पटेल लो-प्रोफाईल में रहकर काम करने वाले अफसरों में गिने जाते है। लेकिन दूसरे सर्विस के अधिकारी उनके बैच को जानने के लिए काफी उत्सुक रहते है। दरअसल भोजराम पटेल छत्तीसगढ़ के ही बांशिदे है। वह 2013 बैच के आईपीएस अफसर है। उनके बैच के कुछ अफसरो को सूबे में नाम और काम से आसानी से पहचाना जाता है। भोजराम के बैच के जितेन्द्र शुक्ला, मोहित गर्ग और अभिषेक पल्लव के नाम का जिक्र होते ही बैच भी याद आ जाता है। दरअसल राज्य पुलिस में आमद देने से पहले भोजराम को अपना ट्रेनिंग दो बार छोडऩा पड़ा था। हैदराबाद में प्रशिक्षण के बीच पिता की सेहत बिगडऩेऔर निधन के चलते भोजराम अपने बैच के साथियों को छोडऩे विवश हो गए थे। उन्हें बाद में दूसरे बैच के अफसरों के साथ प्रशिक्षण पूरा करना पड़ा। वैसे भोजराम को 2013 बैच का अफसर माना जाता है, पर देर से ज्वाईनिंग देने से बैच से उनका नाम छूट जाता है। भोजराम पटेल उस समय आईपीएस बिरादरी में चर्चा में आए वह एडीशनल एसपी नियुक्ति हुए सीधे कांकेर एसपी पदस्थ हो गए। बताते है कि तत्कालीन गर्वनर श्रीमती आंनदीबेन पटेल की सिफारिश पर सरकार ने उन्हें कांकेर जैसे बड़े जिले की कप्तानी सौंप दी। सुनते है कि भोजराम के धार्मिक भाव और रामायण की गहरी समझ रखने से पूर्व राज्यपाल काफी प्रभावित हुई थी। ओएसडी नियुक्ति से पूर्व महामहिम ने भोजराम का धार्मिक विषयों पर पकड़ जानने के लिए औपचारिक साक्षात्कार लिया था।
छत्तीसगढ़ में पृथ्वी का केंद्र
क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी का केंद्र कहां है? बैगा आदिवासियों की मान्यता के अनुसार यह छत्तीसगढ़ के सरोदा दादर में है। यह वही जगह है जिसे यहां के रहवासी पृथ्वी का केंद्र मानते हैं। लेकिन, पृथ्वी का भौगोलिक केंद्र तुर्की के इस्किलिप में ४०ए५२'हृ-३४ए३४'श्व पर है, जैसा कि वैज्ञानिक इसेनबर्ग ने गणना की है।
कोविद के खाली बिस्तर
कोविड-19 महामारी का प्रकोप तीसरी लहर में दूसरी लहर की अपेक्षा कम था। पर अधिकांश जिलों में व्यवस्था ऐसी की गई थी कि यदि बड़ी संख्या में मरीज आएं तब भी उनको इलाज मिल सके। रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा और दूसरे जिलों में कोविड-19 के जो सेट अप तैयार किए गए थे, वे अब खाली पड़े हैं। दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों में दूसरी बीमारियों के मरीज भटक रहे हैं। केंद्र सरकार की भी गाइडलाइन आ चुकी है कि तीसरी लहर समाप्ति की ओर है और सारी सेवाएं पहले की तरह शुरू की जाएं, तब इन कोविड-19 अस्पतालों का क्या किया जाए? भिलाई में इसकी पहल शुरू की गई है। यहां पर 114 बिस्तरों का कोविड-19 केयर सेंटर बनाया गया था, जिसे जिला प्रशासन ने अधिगृहित करने का निर्णय लिया है। यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि सेक्टर-9 अस्पताल में मरीजों को भर्ती करने की जगह नहीं मिल पा रही है। कमोबेश दूसरे जिलों का भी यही हाल है और क्यों नहीं वहां भी इसी तरह के कदम उठाए जाएं।
मनोबल बढ़ाने वाला पेपर
ऑफलाइन के खिलाफ अब ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन का कोई मतलब रहने गया है क्योंकि परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। कल पहले दिन सीजी बोर्ड ने बारहवीं की परीक्षा ली और आज दसवीं का पर्चा हुुआ।
बीते दो सत्रों में कोरोना के कारण ऑफलाइन परीक्षा में बाधा पहुंची थी, पर इस बार ऑनलाइन पढ़ाई होने के बावजूद ऑफलाइन ली जा रही है। इससे परीक्षार्थियों में थोड़ा डर बना हुआ है। पर पहले दिन जो बच्चे परचे देकर निकले उनके चेहरे खिले हुए दिखे। दरअसल पर्चा हिंदी का था। फिर भी सरल होना उन्हें मुस्कुराने का मौका दे रहा था। आगे के प्रश्न पत्रों से पता चलेगा कि पर्चा सेट करने वालों ने बच्चों के साथ कितनी नरमी बरती है।
नये जिलों की मुश्किलें
सारंगढ़ और बिलाईगढ़ के नागरिकों ने एक बार फिर आंदोलन शुरू कर दिया है। घोषणा के समय से ही रायगढ़ से काटकर अलग जिला बनाने का यहां विरोध हो रहा है। इस बार क्षेत्र के लोग पंडाल लगाकर बेमियादी आंदोलन करने के लिये तैयार हैं। एक मार्च को इन्होंने चक्काजाम भी किया था। यहां के नागरिक रायगढ़ जिले में ही रहना चाहते हैं क्योंकि रायगढ़ में आवागमन, शिक्षा व व्यवसाय की सुविधा सारंगढ़ के मुकाबले कहीं बेहतर है। आंदोलनकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था कि वे जिस जिले में रहना चाहते हैं, वहीं रहेंगे। पर प्रशासन के लिये यह फैसला लेना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि बीच के कुछ गांव नये जिले को अधिक सुविधाजनक मान रहे हैं। ऐसी ही परिस्थितियां गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में भी पैदा हुई है, जहां पसान इलाके के लोग कोरबा से अलग नहीं होना चाहते।
झील का वैभव
जगदलपुर का दलपत सागर संभवत: छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मानव निर्मित झील है। यह बस्तर की ऐतिहासिक धरोहर भी है। राजा दलपत साय ने इसे बनवाया। इस बार महाशिवरात्रि के मौके पर शिव का दर्शन करने वालों के लिये यहां पहुंचने की विशेष व्यवस्था की गई। सुबह नाव में बारी-बारी श्रद्धालुओं को छोडऩे का सिलसिला चला, फिर शाम को उन्हें वापस लाया गया। कोई हादसा न हो इसलिये गोताखोर भी तैनात किये गये थे।
यूक्रेन की पढ़ाई पर विराम?
नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसियेशन (नाचा) ने एक सूची राज्यपाल को भेजी है, जिसमें 110 छात्रों के नाम हैं। राज्यपाल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से यह विवरण साझा किया है। इसके अलावा कुछ नाम और हो सकते हैं, जो ‘नाचा’ के पास न हों। राज्य सरकार के नोडल अधिकारी यह दावा तो कर रहे हैं कि अब तक छत्तीसगढ़ के 26 विद्यार्थी देश आ चुके हैं, पर उनका नाम अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। दूसरी तरफ, मेडिकल की पढ़ाई के लिये यूक्रेन जाने का चलन बीते कुछ सालों में बढ़ा है। छत्तीसगढ़ में ही कई एजेसियां विद्यार्थियों को भेजने का काम कर रही हैं। मुमकिन है, अब वह सिलसिला थम जायेगा। एक सवाल ऐसे मौके पर खड़ा हो रहा है कि क्या मेडिकल सीटों की संख्या देश में बढ़ेगी? क्या भारी-भरकम फीस की जगह लोगों की आर्थिक क्षमता के दायरे में यह शिक्षा मिल पायेगी? या डॉक्टर बनने के इच्छुक छात्र किसी और देश की ओर रुख करेंगे?
पढ़-लिखकर लूट के धंधे में...
रायपुर पुलिस ने इन चार लोगों को पकड़ा। एक ग्रेजुएट है, एक मैट्रिक पास। बाकी दो आठवीं, दसवीं। लूटपाट के धंधे में लग गये। ऑटोरिक्शा में बैठकर साथ के सवारियों की जेबें साफ करते हुए दबोचे गये। कतई इनकी आपराधिक गतिविधि का समर्थन नहीं किया जा सकता, पर पढऩे-लिखने के बावजूद इस धंधे में क्यों उतरे हैं, समाजशास्त्री बतायेंगे, सरकार बतायेगी। और हम सबको तो सोचना ही चाहिये।
बढ़ेगी पूछपरख
पड़ोसी राज्य झारखंड के 84 बैच के आईएएस राजीव कुमार अगले मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे। वर्तमान में वो चुनाव आयुक्त का दायित्व संभाल रहे हैं। यह भी तय है कि अगला लोकसभा चुनाव राजीव कुमार ही कराएंगे। आप सोच रहे होंगे कि राजीव कुमार का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, राजीव कुमार का छत्तीसगढ़ से भी कनेक्शन हैं। उनके दामाद यहां एक जिले के कलेक्टर हैं। अब राजीव कुमार चुनाव कराएंगे, तो दामाद बाबू की पूछपरख तो बढ़ेगी ही।
सरकार को ही सामने आना होगा
रायगढ़ में राजस्व कर्मियों की रिपोर्ट पर चार वकीलों के खिलाफ अपराध दर्ज करने, और गिरफ्तारी के बाद से विवाद लगातार बढ़ रहा है। पहले राजस्व कर्मियों ने काम बंद कर दिया था, और अब वकीलों ने मोर्चा खोल दिया है। पूरे प्रदेशभर में वकील, राजस्व अमले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
कई लोग तो रायगढ़ विवाद के लिए जिला प्रशासन के शीर्ष अफसर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सुनते हैं कि तहसीलदार, और वकीलों के बीच मारपीट की घटना को पहले हल्के में लिया गया। शीर्ष अफसर जिले में ही नहीं थे। बाद में राजस्व कर्मी हड़ताल पर चले गए, तो उन्हें शांत करने वकीलों को गिरफ्तार कर लिया गया। कुल मिलाकर दोनों के बीच सुलह के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई। इसके बाद विवाद बढ़ गया।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि राजस्व विभाग में रिश्वतखोरी आम है। रायगढ़ जिला तो इसके लिए कुख्यात है। ऐसे में तो एक न एक दिन लड़ाई सड़क़ पर आनी ही थी। देखना है कि सरकार वकीलों को शांत करने के लिए क्या कुछ करती है।
हीरासिंह की प्रतिमा से सलूक..
कोरबा, तानाखार, बांगो इलाके में स्व. हीरासिंह मरकाम की अलग प्रतिष्ठा है। कभी वे चुनाव हारे, कभी जीते, पर आदिवासी समुदाय उन्हें अपना पथ-प्रदर्शक मानता है। बांगो इलाके के उनके प्रशंसकों ने गुरसिया बाजार में उनकी एक प्रतिमा लगाई, इसी महीने। यह बाजार भी स्व. हीरासिंह ने शुरू कराया था, ताकि उनके भाई-बंधु अपनी उपज लाकर यहां बेच लें। प्रतिमा लगाने के एक ही सप्ताह बाद किसी ने उसे खंडित कर दिया। लोग उद्वेलित हो गये। बाजार बंद करा दिया। पुलिस का दावा है कि यह जिनकी हरकत है, उनको गिरफ्तार किया जा चुका है। मरकाम के अनुयायियों का कहना है कि ऐसा नहीं है। जिस दुकानदार ने उकसाया उसे बचाया जा रहा है। भडक़े आदिवासियों ने कुछ दुकानों में तोडफ़ोड़ की है, वाहनों में आग लगाई है। समर्थकों ने 48 घंटे का वक्त पुलिस और प्रशासन को दिया है, निष्पक्ष कार्रवाई के लिये। बेहतर हो कि इस संवेदनशील मामले को केवल पुलिस और प्रशासन के भरोसे न छोड़ा जाये बल्कि जन-प्रतिनिधि भी अपनी भूमिका का निर्वाह करें।
महुये की महंगी कुकीज..
आम धारणा यही है कि महुये से शराब बनती है। इसके अलावा किसी काम का नहीं। पर सरगुजा में एक नया प्रयोग हो रहा है। सरगुजा जिले में नेशनल लाइवलीहुड मिशन के तहत महुये की कुकीज़ बनाने का काम शुरू किया है। अभी यह बेकरी की एक फैक्ट्री में बनाई जा रही है, बाद में गौठानों में इसका सेटअप तैयार करने की योजना है। थोड़ा सा मैदा, थोड़ा महुआ, कुल मिलाकर जो खर्च कुकीज़ बनाने में आता है वह 100 रुपये से भी कम है, पर यह 400 रुपये किलो में बिक रहा है। बस्तर में भी कुछ प्रयोग हुए हैं। महुआ से यहां मसाला गुड़, काजू मसाला, काढ़ा और इमली मिलाकर सॉस भी बनाने का काम हो रहा है। जिन्हें महुआ पसंद है वे इस फार्मेट में भी खा-पी सकते हैं। किसी को ऐतराज नहीं होगा।
बांस की सडक़
महाशिवरात्रि पर लोगों की आस्था के को ध्यान में रखते हुए की गई एक कोशिश। तीर्थयात्रियों के लिए ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर कांगेर घाटी नेशनल पार्क के पहले कोलाब नदी पर चट्टानों के ऊपर बनी बांस की चटाई से बनी एक वन सडक़। महाशिवरात्रि पर ओडिशा में लगने वाले मेले के लिये जाना अब आसान हो गया। सोशल मीडिया पर आईएफएस विजया रात्रे ने यह तस्वीर साझा की है।
भाजपा का पीछा करती कांग्रेस
कांग्रेस भाजपा की तरह कैडर बेस पार्टी नहीं है। जो मन से कांग्रेसी है जरूरी नहीं कि वह सदस्य बनने के लिए भी रूचि दिखाए। पर छत्तीसगढ़ में लक्ष्य पूरा करने को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया गया है। टारगेट 10 लाख सदस्य बनाने का है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की मानें तो अब तक आठ लाख सदस्य बनाए जा चुके हैं और 31 मार्च तक इसे 10 लाख तक पहुंचाना है। मरकाम ने पहले बीजेपी के डिजिटल सदस्यता अभियान का मजाक उड़ाया। पर अब लक्ष्य पूरा करने के लिए कांग्रेस ने भी यह तरीका अपना लिया है। सुनने में आ रहा है बहुत से ऐसे पुराने कांग्रेसी छूट गए हैं और अभियान चला रहे नेता-कार्यकर्ता उन तक पहुंचे ही नहीं है। बीजेपी ने तंज कसा है पार्टी के लोग ही सदस्यता नहीं लेना चाह रहे हैं। जनता ने बहुमत तो दिया, पर अब निराश है। अच्छा होगा कि कांग्रेसी अपने ही पुराने उसूलों पर चले और बीजेपी की तरह सदस्य बनाने की होड़-दौड़ से बाहर रहे। आखिर सदस्यता के लिहाज से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा बीते विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर ही तो सिमट गई थी।
इतना कीमती टमाटर!
यूपी के जगदीशपुर में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के बारे में ऐसी जानकारी दी, जो यही के लोगों को पता नहीं है। उन्होंने बताया हर जिले में फूड प्रोसेसिंग पार्क खुल गए हैं और कंपनियां उनके उत्पाद हाथों-हाथ खरीद रही है। टमाटर उगाया नहीं कि यह फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के लोग आकर खेतों से उठा लेते हैं। अब राहुल गांधी जी को कौन बताए कि टमाटर की कीमत तो बीच-बीच में इतनी खराब हो जाती है कि लोग उसे तोडऩे का भी खर्च नहीं उठा पाते हैं और कई बार सडक़ों में फेंक देते हैं।
यह तो अन्याय है
बिलासपुर में विकास कार्यों के लोकार्पण कार्यक्रम में पहले सीएम भूपेश बघेल के साथ मंच साझा करने, और फिर बाद में ट्वीटर पर इसकी आलोचना कर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ट्रोल हो गए। सोशल मीडिया में भाजपा के कार्यकर्ता ही कौशिक की खूब खिंचाई कर रहे हैं।
शनिवार को लोकार्पण कार्यक्रम में कौशिक, सीएम से गपियाते देखे जा रहे थे। सीएम के साथ उनकी हंसती मुस्कुराती तस्वीर सोशल मीडिया में छाई रही। कार्यक्रम निपटने के बाद कौशिक के तेवर बदल गए। उन्होंने ट्वीट किया कि भाजपा के कार्यकाल में शुरू हुए विकास कार्यों का भूपेश बघेल सिर्फ फीता काटना, और उद्घाटन का ही कार्य कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार की इन तीन वर्षों में विकास कार्यों की कोई उपलब्धि नहीं है। बिलासपुर को कोई सौगात नहीं है, और न ही विकास कार्यों की कोई घोषणा है। बिलासपुर के साथ अन्याय क्यों ?
इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने ट्वीटर पर ही उनकी खिंचाई कर दी। एक कार्यकर्ता देवेंद्र गुप्ता ने ट्वीट किया कि गजब करते हो कौशिक जी ! भूपेश बघेल जी के कथित विकास कार्यों के गवाह आप खुद उनके साथ कार्यक्रमों में मौजूद होकर बन रहे हैं। आपको लगता है वो अन्याय कर रहे हैं, तो आपको मंच साझा नहीं करना था, बल्कि वहीं धरने पर बैठ जाना चाहिए था। तब संदेश जाता कि आप वाकई दमदार नेता प्रतिपक्ष हैं। पर आपने ऐसा नहीं किया। क्योंकि आपका मामला सब सेट है। सरकार में आपकी भी हिस्सेदारी है।
जनाब, ये दिखावे का ट्वीट कर जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं के आंखों में धूल झोंकना बंद करें। सबको पता है कि आप नेता प्रतिपक्ष नहीं, बल्कि भूपेश सरकार में 14वें मंत्री जैसी भूमिका में है। इस सरकार के निर्बाध तीन साल में आपके निकम्मेपन की भूमिका भी अहम रही है। कई और भाजपा कार्यकर्ताओं ने कौशिक को खूब भला बूरा कहा है। बात यही खत्म नहीं हो रही है। कई नेताओं ने कार्यक्रम का वीडियो क्लीप पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को भेजा है, और यह कह दिया कि कौशिक के रहते प्रदेश में भाजपा की राह कठिन है।
सद्भावना, और मुसीबत
सरकार पूर्व सीएस की पत्नी को संविदा नियुक्ति देने, और फिर उसका संविलियन कर घिर सकती है। सुनते हैं कि भाजपा के कई नेताओं ने नियुक्ति संबंधी सारे दस्तावेज निकाल लिए हैं। चर्चा यह है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने उदारता दिखाते हुए नियमों को ताक पर रखकर पूर्व सीएस की चिकित्सक पत्नी को नियुक्ति की अनुशंसा कर दी थी। अब उनके कामकाज को लेकर कई तरह की शिकायतें आ रही है, इसलिए मामला बढ़ गया है। रोजगार के मुद्दे पर भाजपा ने विधानसभा सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी कर रखी है। ऐसे में यह मुद्दा भी सदन में गरमा सकता है। टीएस सद्भावना दिखाकर मुश्किल में घिर सकते हैं।
विकास का एक उदास चेहरा...
प्रदेश में अनेक जिले बने, कई विकासखंड मुख्यालय बने पर असंतुलन बना हुआ है। सरगुजा संभाग का कंदनई ऐसा गांव है जो चारों ओर घाट-पहाड़ और नदियों से घिरा है। इसका विकासखंड मुख्यालय मैनपाट 70 किलोमीटर दूर है। वे नदी पार कर पैदल बतौली पहुंचते हैं फिर बस चढक़र मैनपाट जाते हैं। आने-जाने में ही 2 दिन लग जाते हैं।
गांव के युवकों ने 2 साल पहले बतौली पैदल चलने के लिए श्रमदान कर कठिन मेहनत के साथ सडक़ बनाई लेकिन गिट्टी-पत्थर के अभाव में बारिश आते ही खराब हो गई। यहां के लिए बहुत दिनों से नई सडक़ मांगी जा रही थी। मंत्री अमरजीत भगत ने इसकी मंजूरी दी लेकिन ठेकेदार सडक़ के लिए पहाड़ी और घाट को पार करने के लिए तैयार नहीं है। डिजाइन के विपरीत यह सडक़ दूसरी ओर मोड़ दी गई। पिछले एक सप्ताह से कंदनई के ग्रामीण धरना दे रहे हैं, पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। उन्हें किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं मिल रहा है। क्या जरूरी है जिले और ब्लॉक के लिए नेताओं के दबाव में ही ऐसे फैसले लिए जाने चाहिए?
इतनी साफगोई भी ठीक नहीं
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कह दिया कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में तीसरे और चौथे नंबर के लिए लड़ रही है। मुकाबला कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच है। हर कोई जानता, मानता है की सत्ता की दौड़ में कांग्रेस पीछे है, पर वह ताकत से लड़ रही है। इस बार प्रियंका गांधी की वजह से पार्टी में अलग तरह का जोश है।
तीसरे-चौथे पोजिशन की बात सही भी हो तो यह बात बोलने के लिए दूसरों पर छोड़ देना चाहिए। अपनी ही पार्टी के लिए सिंहदेव का यह आकलन छत्तीसगढ़ के उन कार्यकर्ताओं-नेताओं को मायूस कर सकता है जो दौड़-दौड़ कर उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार वहां सभाएं ले रहे हैं। सिंहदेव को उत्तराखंड की कमान सौंपी गई है। यह नहीं बताया कि वहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है या नहीं। इसके पहले वे असम के चुनाव में प्रभारी बनाए गए थे। असम में कांग्रेस को बुरी पराजय मिली। मगर मेहनत करना तो उन्होंने वहां छोड़ा नहीं था। जिन लोगों को लग रहा है कि यूपी चुनाव के बाद राज्य के नेतृत्व में कोई बदलाव होने वाला है, इस बयान ने उनको और पीछे कर दिया।
पत्थर पर उगाए फूल
जब हम दरभा घाटी का नाम लेते हैं तो 25 मई 2013 की नरसंहार के तरफ ही ध्यान जाता है। पर यहां महिलाओं ने अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया है। इन्होंने एक सहायता समूह बनाया और पपीते की हाईटेक खेती शुरू की। केवल 7 महीने में इन्होंने 10 एकड़ जमीन पर 30 लाख रुपए का पपीता उगाया। खास यह कि उन्होंने चट्टानी जमीन पर यह काम किया, जबकि पपीते के लिये भरपूर पानी चाहिये। इनके कौशल और परिश्रम की दिल्ली में हाल ही में रखे गए फ्रेश इंडिया शो में भी सराहा गया। कौन कहता है कि खेती लाभकारी व्यवसाय नहीं है, बस जोखिम भरे प्रयोग की जरूरत है।
राजधानी से कटा बस्तर
रायपुर जगदलपुर के बीच हर 15 मिनट में एक बस चलती है। दूसरी गाडिय़ों की संख्या भी सैकड़ों में है। पर इन सबके लिए केशकाल घाटी से गुजरना दुरूह कार्य हो गया है। कई सालों से यह मुसीबत बनी हुई है। ट्रक बस के चालकों को 8-8, 10-10 घंटे तक जाम में फंसना पड़ रहा है। वर्षों से चल रहा निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। काम में तेजी लाने के नाम पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 10 दिन से घाट को भारी वाहनों के लिए बंद कर रखा है। इसके चलते कोंडागांव से कांकेर का रास्ता करीब 70 किलोमीटर लंबा हो चुका है। पर यह सडक़ भी मुफीद नहीं है। नारायणपुर मोड़ पर सैकड़ों ट्रक कई दिनों से खड़े हैं।
केशकाल घाटी की सडक़ भारी वाहनों से ही खराब हुई है लेकिन इन वाहनों के लिए एक वैकल्पिक रास्ता पिछले 2 साल से बन रहा है। यह सडक़ अब तक पूरी नहीं हुई है।
समस्या का स्थायी समाधान हो इस पर नेताओं और जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं है।
बेजुबानों के ऊपर एसिड अटैक
घटना हैरान करने वाली है और इसके पीछे की वजह भी साफ नहीं। सक्ती में इन दिनों गायों पर एसिड अटैक हो रहा है। हाल के दिनों में कम से कम 5 गायों पर एसिड उड़ेला जा चुका है। इनमें से कुछ गर्भवती भी हैं। ऐसा करने वालों का मकसद क्या है और ऐसा करने वाले कौन हैं, इसका पता नहीं चला है।
करीब 3 साल पहले दुर्ग जिले के चिखली गांव में भी 2 गायों के ऊपर एसिड अटैक का मामला सामने आया था। पहले भी वहां इस तरह की घटनाएं हो चुकी थी।
घटना की एक वजह यह हो सकती है कि आवारा पशु बाड़ी खेतों में घुसकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। देश के दूसरे भागों में पकड़े गए आरोपियों ने यही बयान दिया है। छत्तीसगढ़ जहां पशुओं को गौठानों में रखने और खुले में नहीं घूमने देने के लिए तमाम व्यवस्था करने का दावा किया जाता है वहां ऐसी घटना क्यों हो रही है? ([email protected])
पंचायतों, निकायों में कांग्रेस का संकट
भाटापारा जनपद पंचायत के 25 सदस्यों में भाजपा के सिर्फ 6 हैं और शेष कांग्रेस से। इसके बावजूद कांग्रेस की जनपद अध्यक्ष संगीता साहू के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पार्टी में हडक़ंप मचा है। अविश्वास प्रस्ताव की मांग तो भाजपा के तीन सदस्यों की है, पर जैसे ही कलेक्टर ने इसके लिये सभा की तारीख तय की, कांग्रेस के 19 में से 16 सदस्य भूमिगत हो गए। जाहिर है भाजपा अपने 6 सदस्यों के भरोसे तो अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती थी। 16 पार्षदों का एक साथ गायब हो जाना बताता है कि वे बगावत करने जा रहे हैं। अब संगठन के स्थानीय पदाधिकारी उन कांग्रेस सदस्यों से अपील कर रहे हैं कि भाजपा के साथ न जायें। शिकायतों को मिल-बैठकर दूर कर लिया जायेगा।
हाल ही में खरौद नगर पंचायत में अध्यक्ष किसी तरह अपनी कुर्सी बचा ले गये। वहां भी कई कांग्रेस पार्षदों का अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन था, पर यह हटाने के लिये जरूरी दो तिहाई समर्थन न मिल पाये, इस पर जोर लगा लिया गया। कुछ पार्षद वापस लौट गये। पर 9 में से 6 विरोध में थे। यानि बहुमत तो नहीं रहा। इधर रायगढ़ में कांग्रेस के 27 पार्षदों में से 16 ने इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया था। घोषणा होते ही भाजपा अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में लग गई। वह तो बात बन गई कि ऐन मौके पर महिला कांग्रेस अध्यक्ष बरखा सिंह ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे पर 16 पार्षद इसीलिये अड़े थे क्योंकि उनकी शिकायत 40-50 दिन से पड़ी हुई थी। अध्यक्ष पर पार्टी की ही एक महिला पार्षद से गाली-गलौच और मारपीट का आरोप था, पर प्रदेश के नेता कोई कार्रवाई नहीं कर रहे थे।
भाटापारा, खरौद व रायगढ़ के मामलों को देखकर लगता है कि कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों में सत्ता में भागीदारी के लिये बेचैनी बढ़ी हुई है। प्रदेश के बड़े नेता उनकी बात सुन नहीं रहे हैं। मामला जब ज्यादा तूल पकड़ता है तब डैमेज रोकने के लिये कदम उठाये जा रहे हैं।
नेतागिरी काम नहीं आई...
कौन किस मकसद से फोटो खिंचवा रहा है, किसकी क्या पृष्ठभूमि है अमूमन अधिकारी-नेता जानने की कोशिश नहीं करते। स्वागत के सिलसिले में पड़ताल करने का वक्त होता भी नहीं है। हाल में जब बिलासपुर में नई एसएसपी पारुल माथुर ने पद संभाला तो बहुत से लोगों ने उन्हें बुके भेंटकर बधाई दी और तस्वीरें भी खिंचा ली। इनमें एक नाम था मस्तूरी से कांग्रेस नेता अंकित साहू का। साहू ने तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल की और बताया कि जिले की कानून-व्यवस्था पर उसकी एसएसपी महोदया से चर्चा हुई। इसके अगले हफ्ते पुलिस ने अंकित साहू को धर दबोचा। दरअसल, वह पिस्टल और 6 जिंदा कारतूस के साथ घूमते हुए पकड़ा गया। उसने इन हथियारों की तस्वीर मोबाइल पर खींच रखी थी और उन्हें बेचने के लिये ग्राहक की तलाश कर रहा था। सिविल लाइन पुलिस को खबर मिली और उसे रायपुर रोड में पकड़ लिया गया। पुलिस ने तो एसएसपी के साथ फोटो दिखाने के बावजूद उस पर कोई नरमी नहीं बरती और आर्म्स एक्ट के तहत बुक कर दिया, पर कांग्रेस ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है कि वह कांग्रेस में किसी पद पर है या नहीं, यदि है तो हटाया गया या नहीं।
रेलवे कोच में दफ्तर
कोविड -19 की भयानक लहर आई तो रेलवे जोन के रायपुर और बिलासपुर स्टेशनों में 100 से ज्यादा कोच आइसोलेशन वार्ड में बदल दिये गये थे। देशभर के कई स्टेशनों में ऐसी व्यवस्था की गई। हाल ही में जबलपुर रेलवे स्टेशन की तस्वीर सामने आई थी, जहां कोच के भीतर एक आकर्षक रेस्टोरेंट बनाया गया है। अब एक तस्वीर बिलासपुर रेलवे स्टेशन की और आई है, जिसमें यहां के खाली कोच में रेलवे ने अपना एक ऑफिस खोल लिया है। किनारे के प्लेटफॉर्म पर खड़ी इस ट्रेन को देखने से बिल्कुल अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि भीतर कोई दफ्तर चल रहा है। हालांकि यह व्यवस्था अस्थायी बताई जा रही है, क्योंकि पुराने बिल्डिंग में सुधार के काम चल रहे हैं। पर यह एक नया प्रयोग तो है ही, जिसे आगे रुपये बचाने के लिये अमल में लाया जा सकता है।
आवास और आवासीय आयुक्त
दिल्ली में आवासीय आयुक्त डॉ. एम गीता की केन्द्र सरकार में पोस्टिंग हो गई है। उन्हें जल्द रिलीव भी किया जा सकता है। नए आवासीय आयुक्त को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। जन प्रतिनिधियों, और विभाग प्रमुखों की मांग रही है कि दिल्ली में आवासीय आयुक्त के पद पर सीनियर आईएएस अफसर की पोस्टिंग होनी चाहिए। यह भी सुझाव दिया गया है कि आयुक्त के पास कोई अतिरिक्त प्रभार न हो। केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों से तालमेल के लिए दिल्ली में सीनियर अफसर का होना जरूरी है।
सुनते हैं कि गीता स्वास्थ्यगत कारणों से दिल्ली में रहना चाहती थीं। यही वजह है कि उन्हें कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं दी गई। उनके पास कोई और प्रभार न होने के कारण आवासीय आयुक्त का काम बेहतर ढंग से कर रही थीं, लेकिन अब उनकी नई पोस्टिंग के बाद से फिर समस्या पैदा हो गई है। ताजा समस्या यूक्रेन संकट को लेकर है।
यूक्रेन में दो दर्जन से अधिक छत्तीसगढ़ी विद्यार्थी, और अन्य लोग फंसे हुए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने केन्द्र सरकार, और विदेशी दूतावास व फंसे लोगों से संपर्क के लिए जिस लाइजन अफसर को जिम्मेदारी दी है वो कभी बिजली बोर्ड का गेस्टहाउस संभालते थे। अब रिटायर हो चुके हैं, और सरकार ने उन्हें संविदा पर रखा है। ऐसे कठिन मौके पर वो कितना कुछ कर पाएंगे, इसका अंदाजा लगाना कठिन है।
दूसरी तरफ, रमन सरकार में ताकतवर अफसरों ने दिल्ली में बंगला आदि रखने के लिए भी आवासीय आयुक्त के पद को अपने पास रखा था। रमन सरकार में ऐसे मौके भी आए हैं जब सीएस, और एसीएस रैंक के अफसरों ने दिल्ली में एक और पद निर्मित कराकर आवासीय आयुक्त के पद को सिर्फ इसलिए ही अपने पास रखा था ताकि वहां बंगला और अन्य सुख सुविधाएं मिलती रहे। तब अफसरों की कमी नहीं थी, इसलिए काम चल गया। इससे परे दूसरे राज्यों में सीनियर, और काबिल अफसरों को आवासीय आयुक्त के रूप में पदस्थ किया जाता है। उत्तरप्रदेश के आवासीय आयुक्त रहे अजीत कुमार सेठ बाद में कैबिनेट सचिव बने। इसी तरह गुजरात के आवासीय आयुक्त रहे भरतलाल वर्तमान में केन्द्र सरकार में सचिव के पद पर हैं।
छत्तीसगढ़ के कुछ आवासीय आयुक्तों ने बेहतर काम किया है। आईएफएस अफसर बी वी उमा देवी के आवासीय आयुक्त के रूप में काम को सराहा गया था। उन्होंने उत्तराखंड आपदा के दौरान छत्तीसगढ़ के फंसे लोगों को निकलवाने में अहम भूमिका निभाई थी। मगर मौजूदा समय में अफसरों की कमी के चलते आवासीय आयुक्त पद पर बिना अतिरिक्त प्रभार के सीनियर अफसरों की पोस्टिंग हो पाएगी, यह फिलहाल मुश्किल दिख रहा है।
ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने की पहल
राज्य में परिवहन विभाग ने जून 2020 में एक आदेश निकाला था कि वाहन का इस्तेमाल कर किसी ने महिला संबंधी अपराध किया और उसे कोर्ट ने दोषी पाया तो उसका ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त कर दिया जायेगा। बलौदाबाजार में कोर्ट ने एक व्यक्ति को नाबालिग से छेड़छाड़ और अपहरण का दोषी पाया। एसएसपी ने उसका ड्राइविंग लाइसेंस 5 साल के लिये निरस्त करने परिवहन विभाग को पत्र लिखा। ज्यादातर अपराधों में बाइक, कार आदि इस्तेमाल तो किये ही जाते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त होने से कम से कम बाकी लोगों को सबक मिलेगा। कहा जा रहा है कि राज्य में इस प्रावधान के तहत यह पहली कार्रवाई है।
अच्छी बात है, पर दूसरी तरफ इसकी पड़ताल होती ही कितनी है कि कोई वाहन चालक लाइसेंसधारक है या नहीं। इस तरह की जांच तो कभी-कभी अभियान चलाकर ही की जाती है। लोग क्लीनर के हाथ में ट्रक तक थमा देते हैं, जो बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं को अंजाम देते हैं। उपरोक्त मामले में 5 साल के लिये लाइसेंस को निरस्त किया जा रहा है, लगभग इतनी या इससे ज्यादा अवधि तक आरोपी तो जेल ही काटेगा। यानि बाहर निकलने के बाद वह फिर नया लाइसेंस बनवाने का पात्र हो जायेगा? नियम कुछ व्यवहारिक हो तो खौफ हो। पांच साल तक लाइसेंस निरस्त रखने की अवधि सजा काटने के बाद की रखी जा सकती है। लाइसेंस निरस्त किया गया है इसकी सूचना भी सार्वजनिक हो, ट्रैफिक पुलिस के पास भी सूची हो। चेकिंग हो तो वास्तविक हो, नजराना लेकर छोड़ देने का खेल न हो।
सैकड़ों छात्रों को फेल करने का फरमान
सरगुजा के बतौली में 10वीं, 12वीं बोर्ड की प्रायोगिक परीक्षा से गायब रहने के कारण करीब 370 छात्र-छात्राओं को फेल कर दिया गया है। अब इनके लिये मुख्य परीक्षा का कोई मतलब नहीं रह गया है। प्रायोगिक में पास हुए बिना उनकी मार्कशीट में उत्तीर्ण नहीं लिखा जायेगा। दरअसल, यहां के छात्र-छात्रा बीते कई दिनों से पुराने हिंदी स्कूल में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल खोलने का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने नेशनल हाइवे पर चक्काजाम कर दिया। स्थानीय नागरिकों और भाजपा नेताओं का भी उन्हें साथ मिला। भीड़ एक हजार से ऊपर पहुंच गई। जोश में 10वीं, 12वीं के वे छात्र भी आंदोलन में साथ हो गये, जिनकी प्रायोगिक परीक्षा हो रही थी। किसी ने उन्हें बहका दिया होगा कि सब के सब गायब रहेंगे तो परीक्षा स्थगित कर दी जायेगी, लेकिन स्कूल के प्राचार्य ने इसे कठोर अनुशासनहीनता के रूप में लिया। परीक्षा आगे नहीं खिसकाई और सबको गैरहाजिर बता दिया। यानि उन्हें शून्य नंबर मिले।
रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा अधिकारी दुबारा परीक्षा लेने के लिये तैयार नहीं हैं, वे कह रहे हैं कि अब इन्हें मौका अगले साल ही मिलेगा।
कोरोना संक्रमण काल के बाद पहली बार ऑफलाइन परीक्षायें हो रही हैं। प्रायोगिक परीक्षाओं की तिथियां स्थानीय स्तर पर ही तय की जाती हैं। यदि किसी नासमझी के कारण बच्चों ने एक राय होकर परीक्षा का बहिष्कार किया तो इसमें लचीला रवैया रखा जा सकता था। आखिर उनका आंदोलन भी अपने स्कूल के मूल स्वरूप को बचाये रखने के लिये ही हो रहा था। यानि उनको अपनी पढ़ाई की चिंता तो है। बहरहाल, इस कड़े रुख पर जिला पंचायत सरगुजा की बैठक में भी ऐतराज जताया गया है, साथ ही उन लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है जिन्होंने परीक्षा को छोडक़र बच्चों को सडक़ पर उतरने के लिये उकसाया।
मतदान में एक योगदान..
पड़ोसी राज्य ओडिशा में इन दिनों पंचायत चुनाव हो रहे हैं। कल चौथे चरण का मतदान पूरा हुआ। इस दौरान सोशल मीडिया पर आई इस तस्वीर ने लोगों का ध्यान खींचा। पोलिंग बूथ में तैनात एक महिला कांस्टेबल ने वोट देने आई 90 साल की वृद्धा को अपनी गोदी में उठाकर भीतर पहुंचाया।
पहली महिला डीएफओ का महत्व
वन महकमे में हुए पहली प्रशासनिक सर्जरी में राजनांदगांव के लिए डीएफओ के तौर पर सलमा फारूखी की नियुक्ति कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहली दफा डीएफओ के पद पर राजनांदगांव में महिला अफसर को पदस्थ किया गया है। 2008 बैच की राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएफएस बनी सलमा को राजनांदगांव में काम करने का पुराना प्रशासनिक अनुभव भी है। 2012-13 के दौरान वह एसडीओ भी रही है। सलमा कटघोरा वन मंडलाधिकारी शमा फारूखी की बहन हैं । पिछले दिनों शमा कोरबा कलेक्टर रानू साहू के साथ प्रशासनिक मतभेद के चलते सुर्खियों में रहीं। उनकी वन मुख्यालय में वापसी करने के साथ सरकार ने सलमा को राजनांदगांव जैसे बड़े जिले में डीएफओ की जिम्मेदारी सौंपी है। वैसे पिछले कुछ सालों से राजनांदगांव में डीएफओ औसतन सालभर ही पदस्थ रहे हैं। पंकज राजपूत, प्रणय मिश्रा जैसे अफसरों को जल्द ही अरण्य भवन बुला लिया गया। 2011 बैच के गुरूनाथन एन. भी राजनंादगांव में बमुश्किल सालभर ही टिक पाए। महिला डीएफओ की तैनाती से वन महकमे के आला अफसर उनके कार्यशैली की जानकारी ले रहे हैं। सलमा फारूखी की पोस्टिंग के पीछे राजनीतिक कारण भी गिनाए जा रहे हैं। यहां यह भी गौर करने लायक बात यह है कि दुर्ग सीसीएफ के पद पर एक महिला अफसर जिम्मा सम्हाल रही है।
एक उलट भूमिका वाली तस्वीर
बात अपने छत्तीसगढ़ की हो या देश के किसी दूसरे राज्य की। यदि किसी महिला प्रत्याशी को मजबूरी में चुनाव लड़ाना है तो साथ में उसके पति, पिता या किसी संबंधी की तस्वीर भी प्रचार सामग्री में मिलती है। पंचायत चुनाव में आम है, लोकसभा, विधानसभा चुनावों में भी कई बार यह दिखाई देता है। मतदाता सूची में नाम के साथ बीच में पति का नाम भी डाला जाता है। जीत जाने के बाद पति या पिता का ही दबदबा बना रहता है। उन्हें भ्रम होता है कि महिला अपने दम पर नेतागिरी नहीं कर सकती। चुनाव जीतना और फिर जीते हुए पद को संभालना, भोगना पति या पिता का ही काम है।
पर पंजाब विधानसभा चुनाव के फिरोजपुर (ग्रामीण) का यह पोस्टर सबसे हटकर है। यहां सीपीआई (लिबरेशन) के प्रत्याशी सुरेश कुमार हैं। पोस्टर में उन्होंने बराबर आकार में अपनी पत्नी परमजीत कौर को जगह दे रखी है। दोनों ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता हैं। सुरेश कुमार ईमानदारी से मानते हैं कि इलाके में उनकी पत्नी ज्यादा लोकप्रिय हैं। वे दस साल से भी ज्यादा समय से दलितों, पिछड़ों के लिये काम कर रही हैं। मैं तो निजी बस में कंडक्टर था। दो साल ही हुए हैं, राजनीति में आए।
उम्मीद करनी चाहिये कि इस शुरुआत की बयार दूसरे शहरों और राज्यों में भी पहुंचेगी। अपने यहां छत्तीसगढ़ में भी, जहां पर कि निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि के सरकारी दफ़्तर में उनके पति बैठकर जुआ खेलते पकड़ाते हैं।
पुरंदेश्वरी के तीखे तेवर...
संगठनात्मक ढांचे में कांग्रेस से कई कदम आगे रहने वाली भाजपा की गतिविधियां मंद पड़ी है। भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी बस्तर के दौरे पर थीं। उन्होंने रायपुर शहर जिला इकाई की वहीं से वर्चुअल बैठक ली। पता चला कि बूथ कमेटियां सिर्फ 50 फीसदी ही बन सकी हैं। राजधानी में ही यह हाल है। बाकी जिलों का आंकड़ा अभी सामने आना बाकी है। वैसे तीन दिन के बस्तर दौरे के दौरान भी उन्होंने पाया कि यहां भी जिलों में बूथ कमेटियां बनाने की रफ्तार धीमी ही है। पुरंदेश्वरी के तेवर तीखे रहे। उन्होंने जिला अध्यक्ष और पदाधिकारियों की क्लास ली। कमेटियां जल्द बनाने कहा। याद होगा, इसके पहले भाजपा की युवा मोर्चा, महिला कांग्रेस और दूसरी इकाईयों का गठन भी तय समय के काफी बाद तक नहीं हो पाया था। बार-बार प्रदेश प्रभारी ने नाराजगी जताई तब जाकर यह पूरा हो सका। कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरंदेश्वरी के तेवर से प्रदेश के बड़े भाजपा नेता असहज महसूस कर रहे हैं और उन्हें सहयोग नहीं करना चाहते? या फिर लगता है कि जो तरीका उनका है वह छत्तीसगढ़ भाजपा में फिट नहीं बैठता?
वर्चुअल मीटिंग में रिश्ता तय करना..
सुकमा के किसी लडक़ी के लिये जशपुर के लडक़े का विवाह प्रस्ताव आया। शादी-ब्याह का मामला था, सो एक दो लोग जाकर देख आयें यह ठीक नहीं था। घर कैसा है, परिवार के लोग कैसे हैं। यह सब देखने समझने के लिये पांच-छह लोगों को तो जाना चाहिए। गये और रिश्ता नहीं जमा तो क्या होगा? डीजल-पेट्रोल और टैक्सी भाड़ा में 15-20 हजार फूंक देना व्यर्थ। तब, दोनों पक्षों ने एक तरीका आजमाया। इंटरनेट के जरिये वर्चुअल मुलाकात रखी गई। दोनों पक्षों से 10-12 लोग शामिल हो गए। सबने एक दूसरे से बात कर ली। व्यवहार समझ लिया। कैमरे से ही पूरा घर, एक दूसरे का रहन-सहन देख लिया। लडक़ी को कई बार असहज लगता है कि भावी दूल्हे के साथ उसे अलग बिठाया जाये। शर्माते हुए चाय-नाश्ता लेकर आये। फिर बात नहीं जमी तो और भी बुरा। इस मामले में वर्चुअल मीटिंग के बाद वार्तालाप का सेशन लडक़ी, लडक़े के बीच अलग से रख लिया गया। कोरोना काल ने वर्चुअल बैठक, सभा, सेमिनार की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ाया। पर लगता है धीरे-धीरे यह चलन में आ जायेगा।
लगे हाथ, इस माह की शुरुआत में एक खबर आई थी कि अभिजीत और संस्कृति नाम के एक भारतीय जोड़े ने थ्री डी वर्चुअल शादी की, जिसमें 500 मेहमान भी शामिल हुई। यह भारत में ऐसी पहली शादी थी। जोड़े ने ही नहीं मेहमानों ने भी डिजिटल अवतार लिया। यह तरीका मेटावर्स कहा जाता है। फेसबुक आगे चलकर यही होने वाला है। हालांकि इस विवाह का फिजिकल इवेंट भोपाल में बाद में हुआ। मतलब, तकनीक की एक सीमा ही है, फीलिंग तो आमने-सामने मिलने से ही आती है।
दिल है छोटा सा...छोटी सी आशा
पीलीभीत की चुनावी सभा में अमित शाह ने पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के कंधे पर हाथ रखा, तो यहां उनके समर्थकों की बांछें खिल गईं। अमित शाह ने बृजमोहन से पीलीभीत जिले में पार्टी प्रत्याशियों का हाल जाना। पार्टी ने बृजमोहन को पीलीभीत के दो विधानसभा के चुनाव प्रचार की कमान सौंपी है।
पीलीभीत पूर्व केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी का क्षेत्र है। वो इन दिनों पार्टी से खफा चल रही हैं। ऐसे में पीलीभीत में कमल खिलाना पार्टी के लिए चुनौती बन गई है। चूंकि बृजमोहन को चुनाव प्रबंधन में महारत हासिल है, पार्टी ने उन्हें कठिन माने जाने वाले क्षेत्र में लगाया है। सोमवार को चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले बृजमोहन ने डोर टू डोर संपर्क किया, और फिर वोटिंग से पहले की सारी तैयारियों की समीक्षा कर दिल्ली निकल गए।
चुनावी सभा में बृजमोहन को अमित शाह ने जिस तरह महत्व दिया है, उससे प्रदेश भाजपा में नए समीकरण बनने की अटकलें लगाई जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि युवा मोर्चा के दिनों के साथी रहे राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, बृजमोहन के बजाए रमन सिंह के बेहद करीबी हो गए हैं। हाल यह है कि प्रदेश भाजपा संगठन में अब तक सारे फैसले रमन सिंह के मनमाफिक होते रहे हैं।
दूसरी तरफ, पार्टी संगठन की कार्यप्रणाली से प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी, और सह प्रभारी नितिन नबीन नाराजगी जता चुके हैं। ऐसे में प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव की उम्मीद जताई जा रही है। इसमें बृजमोहन, और उनके खेमे को कितना महत्व मिलता है, यह देखना है। फिलहाल तो अमित शाह ने बृजमोहन के कंधे पर हाथ रखकर समर्थकों को खुश कर दिया है।
शह और मात
कोरबा कलेक्टर रानू साहू, और कटघोरा डीएफओ शमा फारूकी के बीच जंग का नतीजा निकल गया। शमा फारूकी को हटाकर अरण्य भवन में पदस्थ कर दिया गया। शमा को पुरानी शिकायतों के आधार पर हटाया गया है। कांग्रेस विधायक मोहित केरकेट्टा ने कुछ महीने पहले उनके खिलाफ लंबी चौड़ी शिकायतें वन मंत्री को भेजी थी।
जहां तक कलेक्टर से जिस बिन्दु को लेकर बहस हुई थी उसमें शमा का पक्ष मजबूत था। चूंकि माहौल शमा के खिलाफ था इसलिए उन्हें हटना ही था। इन सबके बावजूद वो हार गई हैं, ऐसा कहना भी गलत है। तबादला सूची में शमा के साथ उनकी सगी बहन सलमा फारूकी का भी नाम है, जो डीएफओ के पद पर प्रमोट होने के बाद पहली बार फील्ड में जा रही हैं, और उन्हें राजनांदगांव वन मंडल की प्राइम पोस्टिंग मिली है। खास बात यह भी है कि शमा, और सलमा एक साथ राजनांदगांव वन मंडल में एसडीओ के पद पर काम कर चुकी हैं।
नशे के खिलाफ एक गांव..
यह माना जाता है कि शराब जैसी बुराई रोकने के लिये कानून से ज्यादा सामाजिक दबाव काम आता है। गरियाबंद जिले के छुरा विकासखंड के ग्राम सरकड़ा में भी यह कोशिश की गई है, पर नियम-कायदे कुछ मायनों में सख्त तो कुछ लुभावने भी हैं। मसलन, शराब पर ही पाबंदी नहीं है बल्कि गांजा-भांग पर भी रोक लगाई गई है। गांव में पीने, बेचने, खरीदने पर बंदिश तो है ही बाहर से भी नशा करके घुस नहीं सकते। निगरानी के लिये महिलाओं की कमांडो टीम भी बनाई गई है। पालियों में दिन-रात निगरानी की जा रही है। आकर्षक यह है कि नियम तोडऩे पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है, जिसमें से 50 फीसदी रकम मुखबिर को बतौर इनाम मिलेगी। अब तक एक को गांजा बेचते और चार को नशे में हुड़दंग करते पकड़ा जा चुका है। हुआ यह है कि अब थानों में भी मामले नहीं जा रहे हैं क्योंकि अधिकांश लड़ाई-झगड़ों की जड़ नशा ही है। जुर्माना लगाने का अधिकार गांव के पंचों को है या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, पर इस व्यवस्था से गांव में जो शांति कायम हुई है, उसे गांव के लोग राम-राज कह रहे हैं।
ऑफलाइन परीक्षा के दबाव..
पता नहीं कैसे प्रश्न आयेंगे, जो प्रश्न याद किये हैं वे नहीं आये तो क्या होगा। कहीं अकेले ही न फेल हो जाऊं...। ऑनलाइन पढ़ाई के बाद हो रही ऑफलाइन परीक्षा को लेकर कुछ ऐसे सवाल बच्चों के दिमाग में तैर रहे हैं। कहीं पांच दिन की क्लास लगी है, कहीं एक सप्ताह की। दो मार्च से छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षायें शुरू हो रही हैं। पिछली बार 12वीं बोर्ड में 97 प्रतिशत रिजल्ट था और 10वीं बोर्ड का तो लगभग 100 प्रतिशत। उत्तर पुस्तिका घर पर बैठकर जो तैयार की गई थीं। इस बार करीब दो साल के अंतराल ऑफलाइन परीक्षा होगी। कोर्स तो ऑफलाइन मोड में पूरा किया नहीं जा सका, सो उन्हें टिप्स दिये जा रहे हैं। राजधानी रायपुर से सीजी बोर्ड परीक्षाओं में शामिल हो रहे सरकारी और निजी स्कूलों के करीब 30 हजार बच्चों को टिप्स दिये गये कि प्रश्न कैसे हल करने हैं। कोर्स की बातें तो हो गईं, पर इसमें बच्चों का आत्मविश्वास बनाये रखने, बढ़ाने के लिये भी टिप्स देने का सत्र रखा जाना चाहिये था, जो नहीं हुआ। दरअसल, काउंसलिंग तो सिर्फ बच्चों को नहीं, बल्कि पालकों को भी देने की जरूरत है कि कम से कम इस बार अव्वल आने, ज्यादा से ज्यादा अंक लाने के लिये दबाव न डालें। सवाल, यह भी है कि क्या क्या बोर्ड उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में इस बार उदारता बरतेगा?
मितानिन अब और स्मार्ट..
छत्तीसगढ़ देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां मितानिन (आशा वर्कर) की प्रोत्साहन राशि का भुगतान ऑनलाइन किया जा रहा है। एक पायलट प्रोजेक्ट रायपुर जिले के अभनपुर में नवंबर 2020 में शुरू किया गया था, जिसे अब पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया है। प्रदेश में 69 हजार मितानिन हैं जो ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के मुख्य आधार हैं। अब उन्हें अपनी सेवाओं के एवज में राशि प्राप्त करने के लिये किसी बैरियर से नहीं गुजरना पड़ेगा। उनके अकाउंट में सीधे राशि आ रही है।
हिंदी की जगह पर अंग्रेजी स्कूलों का विरोध
स्वामी आत्मानंद स्कूलों के नामकरण और इनमें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई के फैसले को लेकर कई जगह विवाद खड़ा हो रहा है। बीते दिसंबर महीने में रायगढ़ के सबसे पुराने व बड़े कूल सेठ किरोड़ीमल नटवर हायर सेकेंडरी स्कूल के बाहर स्वामी आत्मानंद स्कूल का बोर्ड देखकर नागरिकों में रोष फैल गया। एक सर्वदलीय समिति बन गई। प्रशासन ने आखिरकार नागरिकों के दबाव में तय किया कि स्कूल का नाम वही पुराना रहेगा। बदला गया बोर्ड हटाया गया और स्कूल के पुराने नाम के नीचे लिखा गया, स्वामी आत्मानंद योजना के तहत संचालित स्कूल। इधर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में भी इसी बात को लेकर विरोध शुरू हुआ है। पेंड्रा में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दुबे के नाम पर हायर सेकेंडरी स्कूल है। इस स्कूल के सैकड़ों बच्चे 5 किलोमीटर पैदल मार्च कर छुट्टी के दिन प्रदर्शन करने कलेक्टोरेट पहुंच गये। इन्हें एक तो स्कूल का नाम बदलने पर ऐतराज था, फिर आशंका थी कि स्कूल में हो रही साज-सज्जा, लैब, फर्नीचर के बाद उनकी फीस बढ़ जायेगी जो गरीब पालक भर नहीं पायेंगे। इस मामले में भी कलेक्टर और डीईओ को सफाई देनी पड़ी कि न तो नाम बदलेगा, न ही फीस बढ़ेगी, बल्कि गणवेश, किताबें मुफ्त ही मिलेगी।
प्रदेश के कई शहरों में अंग्रेजी स्कूलों को खोलने के लिये पहले से संचालित हिंदी माध्यम स्कूल बंद किये जा रहे हैं, जिसको लेकर प्रदर्शन भी हो रहे हैं। सरगुजा के बतौली, मैनपाट इलाके में स्वामी आत्मानंद योजना के लिये चयनित स्कूलों के विरोध में तो हाईकोर्ट में ही याचिका लगा दी गई है। इसमें कहा गया है कि उत्कृष्ट विद्यालय बनने से इस आदिवासी अंचल के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को पढऩे के लिये स्कूल नहीं मिलेगा। ज्यादातर लोग विशेष सरंक्षित पडों, पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग हैं। याचिका में कहा गया है कि पहली, छठवीं और नवमीं में प्रवेश लेने से उन्हें रोका जा रहा है। घरघोड़ा, सरायपाली, जशपुर से भी हिंदी माध्यम स्कूलों को बचाने के लिये अलग-अलग याचिकायें हाईकोर्ट में लगी हुई हैं।
ज्यादातर विरोध कई शंकाओं का समाधान नहीं होने की वजह से हो रहा है। रायगढ़ और जीपीएम जिले में जो परिस्थितियां पैदा हुईं, उससे निपटने के लिये अधिकारी तब सामने आये जब नागरिक और छात्र सडक़ पर उतरे। कोर्ट में जो मामले गये हैं, शायद उनमें भी कोई कोशिश नहीं हुई। योजना नई है, इसलिये लोगों की चिंता जायज है।
सवाल विलोपित अधिनियम का..
रविवार को व्वायवसायिक परीक्षा मंडल ने फूड इंस्पेक्टर पदों के लिये परीक्षा ली थी। 200 अंकों का एक ही प्रश्न-पत्र था। कुछ ऐसे अभ्यर्थी थे जिन्होंने इसके एक सप्ताह पहले सीजीपीएससी परीक्षा भी दी थी। उसके मुकाबले यह प्रश्न-पत्र कुछ सरल था। पर, शिकायत इसमें भी थी। संयुक्त मध्यप्रदेश के समय खाद्य अधिनियम में सन् 1992 में संशोधन किया जा चुका है। खाद्य विभाग इन्हीं अधिनियमों के तहत कार्रवाई करता है लेकिन प्रश्न विलोपित किये जा चुके 1986 के खाद्य अधिनियम से संबंधित पूछे गये, जिसकी तैयारी छात्रों ने की ही नहीं थी। उन्हें लगा पुराने अधिनियमों की जानकारी रखकर वे क्या करेंगे, जो लागू है उसी को रटें। अब इस पर परीक्षार्थी अपनी आपत्ति मंडल के सामने दर्ज कराने वाले हैं।
बलांगीर के कद्दू
वैसे तो छत्तीसगढ़ में भी कद्दू की भरपूर पैदावार होती है, पर इसकी खपत भी खूब है। इस समय बलांगीर ओडिशा से खेप के खेप कद्दू राजधानी रायपुर पहुंच रहे हैं। ये जो कद्दू आये हैं उसका उत्पादन और विपणन का काम महिलाओं का समूह- महाशक्ति कर रहा है, जिसे नाबार्ड से भी मदद मिली है।
कोरबा के विस्थापितों को नौकरी नहीं..
हाल ही में एक मामला हाईकोर्ट में आया था, जिसमें प्रस्तावित प्रोजेक्ट से मिट्टी निकालने का 250 करोड़ रुपये का ठेका तो एसईसीएल ने निकाल दिया लेकिन मौके पर पूरा गांव बसा हुआ था। फैसला ठेकेदार के पक्ष में हुआ, उनको ब्लैक लिस्ट से हटाना पड़ा। कोरबा जिले के कुंसमुंडा, दीपका और गेवरा में नई परियोजनाओं को शुरू करने में एसईसीएल को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। नये प्रोजेक्ट के लिये जमीन आबंटित होने के बावजूद लोग उसे खाली नहीं कर रहे हैं। जिन लोगों ने पुरानी परियोजनाओं में जमीन दी, वे भी आये दिन आंदोलन कर रहे हैं। हालत यह है कि सन् 1990 में जमीन देने वालों को भी नौकरी नहीं मिली। इनमें से कई लोगों की मौत हो चुकी। अब उनके वारिस लड़ाई लड़ रहे हैं। एसईसीएल का कहना है कि ऐसा प्रावधान नहीं है। प्राय: जिन मुद्दों पर कोई रास्ता नहीं निकालते बनता कंपनी उसे कोल इंडिया का नीतिगत मामला कहकर टालती है। अब एसईसीएल प्रबंधन ने प्रशासन के दबाव में कोल इंडिया को इस नीति में बदलाव का प्रस्ताव भेजने के लिये सहमत हुआ है। पर, यह नहीं लगता कि कोल इंडिया से बहुत जल्दी कोई जवाब आयेगा। इसी के चलते आंदोलन चल रहा है। नई परियोजना शुरू नहीं कर पाने के कारण एसईसीएल के उत्पादन कमी आई है, जिसके चलते छोटे उद्योगों को आपूर्ति घटाई गई है। हाल ही में इसके विरोध में एसईसीएल मुख्यालय के सामने प्रदर्शन भी हुआ था।
छत्तीसगढ़ के एक जिले की दो प्रभावशाली महिला अफसरों के बीच विवाद ने पिछले दिनों खूब सुर्खियां बटोरीं। हालांकि महिला आईएएस अफसर के लिए यह कोई नई बात नहीं है। कर्मचारी-अधिकारी उनके बर्ताव के कारण प्रताडि़त महसूस कर रहे हैं। आईएफएस वन अफसर से तू-तू, मैं-मैं के अलावा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ दुव्र्यवहार के कारण काफी कोहराम मचा था। वकीलों ने मैडम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। खेद प्रकट के बाद वकील शांत हुए। पटवारियों की नाराजगी जाहिर है। एक पटवारी के खिलाफ एक पक्षीय कार्रवाई से पूरे जिले के पटवारी भडक़े हुए हैं।
दरअसल मैडम पूरे जिले में तानाशाही अंदाज में राज चलाना चाहती हैं। ऐसे में किसी ने नियम-कानून की बात की तो समझिए उसकी खैर नहीं। इस जिले की कुर्सी पहले से काफी रौबदार वाली मानी जाती है। खनिज संपदा और उद्योग से भरा-पूरा जिला है। कोयले की खदानें हैं, जिस पर चौतरफा नजरें है। कुल मिलाकर रौबदार के साथ-साथ काजल की कोठरी का ताज भी है। जहां के कुछ दाग ऐसे भी होते हैं, जो आसानी से छूटते नहीं। ऐसे ही पावर प्लांट के विस्तार के दाग पर राजधानी में बैठे प्रमुख लोगों की नजर पड़ गई है। चर्चा है कि इस बारे में मैडम से जानकारी भी ली गई। फिलहाल इस खेल में अम्पायर के निर्णय का इंतजार किया जा रहा है।
बकाया किस्सों में राष्ट्रीय दिवस पर फेसबुक पर पोस्ट की गईं शराबखोरी की तस्वीरें भी हैं। और पिछले जिले में रेत से तेल निकालने की कहानियां भी।
घटना लिंगानुपात का
छत्तीसगढ़ में लिंगानुपात बीते 10 सालों में गिरा है। पहले यह 1000 पुरुषों में 960 था पर अब यह घटकर 938 पर आ गया है। इसकी एक बड़ी वजह भ्रूण हत्या भी हो सकती है। प्रदेश में करीब 800 अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं, जो इस नाम पर स्थापित की जाती हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु और गर्भवती की सेहत की जांच की जा सके, लेकिन इसी जांच के साथ यह भी पता लगाया जा सकता है कि भ्रूण मेल है या फीमेल।
नियम कहता है कि हर तीन माह में इन जांच केंद्रों की जांच स्वास्थ्य विभाग को करनी चाहिये, लेकिन आम तौर पर साल में एकाध बार ही जांच हो पाती है। कई सेंटर तो जांच से छूट भी जाते हैं। ज्यादातर केंद्र जांच के रिकॉर्ड तो रखते हैं, जो नियम के अनुसार दो साल तक संभालना जरूरी होता है, पर इस जांच में लडक़ा या लडक़ी होने का कुछ भी सबूत नहीं होता। इन दिनों स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेशभर में जांच के लिये अभियान चला रखा है, पर अब तक जांच का आंकड़ा 500 भी पार नहीं कर पाया है। संतान की चाह रखने वालों के लिये भी बाजार फल-फूल रहा है। प्रदेश में इन विट्रो फर्जिलाइजेशन ट्रीटमेंट (आईवीएफ) के 32 केंद्र हैं। इनकी भी जांच स्वास्थ्य विभाग को नियमित रूप से करनी है, पर नहीं हो रही। पीसीपीएनडीटी के अधिकारी कहते हैं कि हर जांच केंद्र में कोई न कोई गड़बड़ी तो मिल ही जाती है। हालांकि कार्रवाई सिर्फ 4 पर हुई है। लिंगानुपात का अंतर बढऩा एक खतरे का संकेत है, जिसकी ओर सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है।
बस्तर की बालायें..
सिलगेर में अपनी मांगों को लेकर आदिवासी समुदाय पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहा है। यहीं उन्होंने पहले आदिवासी विद्रोह की पहचान भूमकाल दिवस भी मनाया। इस मौके पर दूर-दूर से आदिवासी पहुंचे। उन्होंने आंदोलन स्थल पर पारंपरिक नृत्य गीत भी गाये। इसी मौके पर किसी गांव से पहुंचीं इन दो बालिकाओं ने भी प्रस्तुति दी।