राजपथ - जनपथ
अवस्थी के जाने से हैरानी नहीं
डीजीपी बदले गए तो जानकार लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ। सुनते हैं कि डीएम अवस्थी के तौर-तरीकों से गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू तो नाखुश थे ही। सीएम ने भी कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस से पहले अहम बैठकों में उन्हें बुलाना बंद कर दिया था। शिकायतें तो कई थीं, लेकिन एक शिकायत यह भी थी कि वो पीएचक्यू के बजाए पुलिस लाइन के सामने ट्रैंजि़ट हॉस्टल में ज्यादा समय गुजारते हैं। एक तरह से पुलिसिंग चौपट-सी हो गई थी।
चर्चा है कि अवस्थी के रेगुलर डीजी के ऑर्डर होने से पहले उन्हें उनकी खामियों को लेकर साफ-साफ बता दिया गया था। यह भी कहा गया था कि इन सबको नजरअंदाज कर रेगुलर डीजीपी बनाया जा रहा है। हल्ला तो यह भी है कि अवस्थी ने सब-कुछ ठीक करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन कुछ नहीं हुआ। अहम मसलों पर वो जांच को किसी किनारे पर नहीं पहुंचा रहे थे। कामकाज में नुक्ताचीनी के बाद भी वो करीब-करीब तीन साल डीजीपी रहे। यानी एएन उपाध्याय के बाद सबसे ज्यादा समय तक।
तमाम खामियों के बावजूद पुलिस वेलफेयर आदि को लेकर विभाग के छोटे अधिकारी-कर्मचारी उनसे खुश रहते थे। वैसे डीजीपी पद से हटने का ऑर्डर होने के बाद बिना देरी किए अवस्थी ने नया दायित्व संभाल भी लिया है। यदि सब कुछ ठीक रहता है, तो उन्हें और दायित्व मिल सकता है। क्योंकि रिटायरमेंट में अभी डेढ़ साल से अधिक समय बाकी है।
भाजपा में शह और मात
भाजपा के भले ही 14 विधायक रह गए हैं, लेकिन उनमें भी शह-मात का खेल चलते रहता है। इसका नमूना कवर्धा विवाद पर देखने को मिला। सुनते हैं कि भाजपा विधायकों ने गुपचुप रणनीति बनाई थी कि सभी विधायक बिना पूर्व सूचना के कवर्धा विवाद की न्यायिक जांच की मांग को लेकर सीएम हाउस के सामने धरने पर बैठेंगे।
बाद में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक मीडिया से मुखातिब हुए, और ऐलान कर गए कि यदि कवर्धा मामले की न्यायिक जांच नहीं हुई, तो विधायक धरने पर बैठेंगे। अब जब रणनीति का खुलासा हो गया है, तो सरकार, और पुलिस भाजपा विधायकों को सीएम हाउस के आसपास फटकने देगी, यह तो सोचना भी नहीं चाहिए।
बसों की टाइमिंग का बवाल
अल्टीमेटम के बाद भी राजधानी रायपुर के पंडरी बस स्टैंड से एक भी बस ऑपरेटर का दफ्तर हटाकर भाठागांव नये बस स्टैंड आईएसबीटी में नहीं ले जाया गया है। नई जगह पर यातायात थाना खोल दिया गया है। टर्मिनल का पूरा काम पहले ही हो चुका है। सोमवार से पंडरी में तोड़-फोड़ शुरू करने की बात भी हो रही है। बस ऑपरेटरों ने एक आम समस्या की तरफ ध्यान दिलाया है। नई जगह से बस छूटने और पहुंचने का समय दूरी के कारण बदल जायेगा। इसके चलते पहले से ही सवारियों के लिये स्पर्धा करने वाले संचालकों में आये दिन विवाद होने की आशंका है। सारे विभागों ने अपना काम तो कर लिया पर परिवहन विभाग ने टाइम टेबल सुधारने का काम नहीं किया। यह थोड़ा पेचीदा भी हो सकता है कि क्योंकि रायपुर ही नहीं दूसरे जिलों में मसलन बलौदाबाजार, दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव, जहां ये बसें पहुंचती और वहां से छूटती हैं, वहां भी टाइम टेबल में सुधार करना होगा।
मन हो न हो सुनें जरूर..
प्रदेश भाजपा ने एक प्रस्ताव पारित कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रेडियो वार्ता ‘मन की बात’ को सुनना अपने कार्यकर्ताओं के लिये अनिवार्य कर दिया है। इसके लिये प्रदेश में जगह-जगह बूथ भी बनाये जायेंगे। अनिवार्य करने का क्या मतलब निकाला जाना चाहिये? एक बार देखा गया था कि सोशल मीडिया पर जितने लोगों ने मन की बात सुनी उनमें लाइक से दुगनी संख्या डिसलाइक करने वालों की थी। क्या धीरे-धीरे इसके श्रोता घट रहे हैं? पार्टी कार्यकर्ता सुनें न सुनें, वे तो मोदी के प्रशंसक रहेंगे ही। पार्टी कोशिश कर सकती है कि आम लोगों में इसे सुनने की रुचि बढ़े। पर, मन की बात में बात उनके काम की भी होनी चाहिये।
सलमान खुर्शीद का नहीं आना
हाल ही में कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी ने अपना रायपुर दौरा स्थगित कर दिया। कुछ संगठनों ने उनके कार्यक्रम को रुकवा देने की धमकी दी थी। अब फिर एक खबर है कि सलमान खुर्शीद का दौरा भी रद्द हो गया। राजधानी में आज शुरू हुए राष्ट्रीय शिक्षा समागम में खुर्शीद को तब विशिष्ट अतिथि तय कर लिया गया था जब उनकी किताब सनराइज ओवर इंडिया की बातें सामने नहीं आई थीं। शिक्षा विभाग ने निमंत्रण पत्र में उनका नाम भी छाप दिया था। पर दो दिन पहले तय किया गया कि खुर्शीद नहीं आयेंगे। उनका आना क्यों टल गया, इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। मंत्री ने यह जरूर बताया है कि अब उनकी जगह विशिष्ट अतिथि अजय माकन होंगे। सलमान खुर्शीद एक सीनियर वकील होने के नाते बहुत बार छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में भी पैरवी करने के लिये भी आते रहे हैं।
अपना फोन टैप होने की मुनादी !
दुनिया में बहुत से जानकार लोगों का यह मानना है कि आज एक घुसपैठिया सॉफ्टवेयर पेगासस के पीछे तमाम लोग लग गए हैं, और लोगों को यह ध्यान भी नहीं रह गया है कि ऐसे दूसरे भी सॉफ्टवेयर हो सकते हैं। मिलिट्री दर्जे की हैकिंग करने के लिए पेगासस की कोई मोनोपोली तो है नहीं, बहुत से देशों में ऐसे हैकर बसे हुए हैं जो रेनसमवेयर बनाते हैं और लोगों के कंप्यूटर हैक करके उसकी जानकारी छोडऩे के लिए रकम वसूलते हैं। अभी यह खबर भी सामने आई थी कि अमेरिका ने ऐसे हैकरों को पकडऩे के लिए एक बहुत बड़ा इनाम रखा है। यह बात जाहिर है कि दुनिया के बहुत से देशों में कानूनी और गैरकानूनी दोनों तरह की हैकिंग होती है।
आज हिंदुस्तान में भी सरकार और राजनीति से जुड़े हुए बहुत से लोग इतनी सावधानी बरतते हैं कि मोबाइल के सिम कार्ड पर बात नहीं करते, और या तो व्हाट्सएप कॉल पर बात करते हैं, या आईफोन के फेसटाइम को और अधिक सुरक्षित मानते हैं। हिंदुस्तान में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की 10 एजेंसियों के पास टैपिंग के अधिकार हैं। ऐसे में जब छत्तीसगढ़ के एक सीनियर आईएएस ऑफिसर डॉ. आलोक शुक्ला अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर यह लिखते हैं कि उनका फोन टैप किया जा रहा है, और मैसेज भेजने वाले उन पर खतरे के लिए खुद ही जिम्मेदार रहेंगे, तो यह बात लोगों को हक्का-बक्का करने वाली है। शायद ही किसी इतने सीनियर अफसर ने इसके पहले कभी इस तरह खुलकर यह बात कही हो कि उसके फोन टैप किए जा रहे हैं। खैर उन्होंने किसी सरकार या किसी एजेंसी का नाम नहीं लिखा है, इसलिए लोग अपने अपने हिसाब से अंदाज लगा सकते हैं कि उनके फोन को कौन टैप कर रहा है।
रेलवे की आधी-अधूरी राहत
रेलवे ने सभी तरह की ट्रेनों में स्पेशल का टैग हटाकर रेगुलर करने का निर्णय लिया है। केन्द्र सरकार जब कोरोना के खिलाफ जंग को प्रभावी तरीके से लड़ऩे की बात कह रही हो और नये केस कम हो रहे हों तो रेलवे के लिये महामारी के नाम पर लंबे समय तक स्पेशल और इसके नाम पर बढ़ा हुआ किराया लेकर ट्रेन चलाने का कोई मतलब समझ नहीं आ रहा था। रेलवे की घोषणा से कई बातें साफ नहीं हुई है। मसलन, बुजुर्गों और अन्य कई श्रेणियों में रियायती टिकट शुरू होगी या नहीं? रोजाना सफर करने वालों को एमएसटी की सुविधा कब से दी जायेगी?
आदेश में यह साफ तो कर दिया गया है कि अब भी एसी क्लास में बिस्तर, कंबर, तकिया नहीं दिया जायेगा। रिजर्वेशन कंफर्म होने पर ही आरक्षित सीटों पर सफर किया जा सकेगा।
रेलवे के एक अधिकारी ने इसे पेट्रोल डीजल के दामों से टैक्स कम करने की अगली कड़ी बताया। लोग सचमुच बढ़ती हुई महंगाई से काफी बेचैनी महसूस कर रहे थे। इस बात की तरफ केन्द्र का ध्यान हाल ही में आये उप-चुनाव के नतीजों के बाद गया है। फिर आने वाले दिनों में यूपी सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। निर्णय लेते समय इसका ध्यान भी रखा गया।
भाजपा का काउंटर अभियान
एक तरफ कांग्रेस ने प्रदेश में नये सदस्य जोडऩे के लिये 10 लाख लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है तो भाजपा ने अभियान का पीछा करना शुरू कर दिया है। दावा है कि आरंग के दीपावली मिलन कार्यक्रम में प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी की मौजूदगी में 6000 लोगों ने पार्टी की सदस्यता ली। मंत्री डॉ. शिव डहरिया का कहना है कि कई लोगों को सदस्यता लेने के लिये डराया-धमकाया गया। पुरंदेश्वरी ने इस आरोप को आधारहीन बताया है। कांग्रेस ने पदयात्रा का कार्यक्रम भी बना लिया है। कांग्रेस के खेमे से बैठकों में लगातार खबर आ रही है कि कार्यकर्ता अधिकारियों से काम नहीं करा पाने के कारण नाराज चल रहे हैं। वहीं भाजपा कार्यकर्ता पिछले चुनाव में हुई भारी पराजय से अब तक उबर नहीं पाये हैं। शायद यही वजह है कि अभी से कार्यकर्ताओं को दोनों ही दल रिचार्ज करने में लग गये हैं।
कॉमेडियन के शो का स्थगित होना
कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी का कार्यक्रम 14 नवंबर को राजधानी में तय था। इस बीच कुछ संगठनों ने पुलिस अधिकारियों को ज्ञापन देकर शो को कैंसिल करने की मांग की। साथ ही चेतावनी दी कि यदि पुलिस ऐसा नहीं करेगी तो हम रद्द करा देंगे। फारूकी के खिलाफ इंदौर में एक एफआईआर इस आरोप के साथ दर्ज की गई थी हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ उन्होंने आपत्तिजनक टिप्पणी कर लोगों की धार्मिक भावना को भड़काया, जबकि ऐसी कोई रिकॉर्डिंग पेश नहीं हो पाई थी। कॉमेडियन को गिरफ्तार भी किया गया था। कॉमेडियन ने खुद ही शो रद्द करने की जानकारी देकर पुलिस प्रशासन को तो उलझन से बचा लिया लेकिन उससे भी बड़ा काम ये हो गया कि इस मामले में किसी को प्रदर्शन, विरोध करने का मौका नहीं मिला। ([email protected])
कहानी सवन्नी की...
प्रदेश में भले ही भाजपा सरकार नहीं है लेकिन सवन्नी बंधुओं का जलवा बरकरार है। बात भूपेन्द्र सिंह सवन्नी और उनके छोटे भाई महेन्द्र सिंह सवन्नी की हो रही है। भूपेन्द्र प्रदेश भाजपा के महामंत्री हैं, तो महेन्द्र सरकारी नौकर हैं। वो मंडी बोर्ड के एडिशनल एमडी हैं। दोनों ही मिलनसार हैं, और गुस्से से परहेज करते हैं। इन्हीं विशिष्ट गुणों की वजह से दोनों अपनी-अपनी संस्था में बेहद पॉवरफुल हैं।
दोनों भाइयों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले आए। जांच एजेंसियों तक शिकायत पहुंची लेकिन जांच किसी किनारे नहीं लग पाई। भाजपा मेें सौदान सिंह के छत्तीसगढ़ के प्रभार से मुक्त होने के बाद पवन साय सर्वेसर्वा हुए, तो सवन्नी उनके विश्वासपात्र हो गए। यह चर्चा आम है कि पार्टी संगठन के बड़े फैसलों में सवन्नी का सीधा दखल रहता है।
दूसरी तरफ, सरकार बदलने के बाद भी छोटे भाई महेन्द्र सिंह सवन्नी की सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ा है। महेन्द्र सिंह की अब भी मंडी बोर्ड में तूती बोलती है। दोनों भाइयों की हैसियत को देखकर लोग अब चुटकी लेने लगे हैं कि खाता न बही, सवन्नी जो कहे वह सही।
और सन्नी की...
राजीव भवन में मोहन मरकाम की मौजूदगी में महामंत्री अमरजीत चावला के साथ गाली-गलौज करना अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के चेयरमैन सन्नी अग्रवाल को भारी पड़ रहा है। वो पार्टी से निलंबित हैं। उन्हें भरोसा था कि पीएल पुनिया रायपुर आते ही उनका निलंबन खत्म करा देंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ।
होटल में सन्नी, पुनिया के आगे-पीछे होते रहे। वो दीवाली की बधाई देने के लिए एक कारोबारी को साथ लेकर पहुंचे थे। पुनिया ने कारोबारी की बधाई तो स्वीकारी, लेकिन सन्नी को उलटे पांव लौटा दिया। उन्हें पद से हटाने के लिए दबाव बन रहा है। चर्चा है कि सन्नी, अमरजीत से माफी मांगकर और संगठन में लिखित माफीनामा देकर बहाली की कोशिश में हैं। उनसे जुड़े लोग अमरजीत को गुस्सा थूकने के लिए कह रहे हैं, लेकिन अमरजीत अभी पसीजते नहीं दिख रहे हैं। देखना है कि पार्टी से निलंबन के बाद सन्नी को पद से हटाया जाता है, अथवा नहीं।
डीजीपी का बदला जाना..
डीजीपी की छुट्टी का संदेश क्या है? अपने छत्तीसगढ़ में यूपी और बिहार की तरह क्राइम नहीं है, पर तस्करी का धंधा जोरों से चल रहा है। गांजा और शराब दूसरे राज्यों से ट्रकों में भर के लाई जा रही है। चौराहों पर आए दिन चाकूबाजी और तलवार बाजी हो रही है। बहुत से लोग घायल हो रहे हैं तो कुछ की मौत भी हो रही है। यह बात लगातार दिखाई दे रही है कि जनता से पुलिस का संपर्क टूट चुका है। सीएम ने गृह विभाग को ठीक तो कर दिया, अब स्वास्थ्य विभाग बाकी है।
खुल गया, खुल गया... बंद है, बंद है
सस्ती दवाइयां मुहैया कराने के लिए बीते अक्टूबर महीने में छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के अधिकांश जिलों में धनवंतरी योजना के अंतर्गत दुकानों का उद्घाटन किया। लोग बड़े खुश हुए कि ब्रांडेड और जेनेरिक दवाइयां सस्ते में मिल सकती है। आदिवासी इलाकों के लिए तो यह योजना वरदान थी मगर बीजापुर से जो खबर आई है वह हैरान करती है। यहां की दवा दुकान है खुली पर दो-चार दिन बाद ही बंद हो गई। अब सरकार को चाहिए कि जितना जोर शोर से उसने खबर फैलाई की सस्ती दुकान खुल गई इसी तरह से शोर करके बताएं की दुकानें तो बंद हो गई हैं।
नीलामी से व्यापारियों को दुकानें खोलने की निविदा स्वीकृत की गई थी। उन्होंने प्रतियोगिता के बाद दुकानें तो हासिल कर ली लेकिन दवा भेजने में शायद दिक्कत हो रही हो। दवा लिखने वाले भी तो सहयोग करें। सरकार में तय किया गया था सरकारी डॉक्टर ब्रांडेड दवाइयां नहीं सिर्फ जेनेरिक लिखेंगे मगर ताबड़तोड़ आज ब्रांडेड ही लिखी जा रही हैं।
हुक्का बंद, शराबखोरी होने दो..
सीएम की हर बैठक के बाद पुलिस अधिकारी अपना रिकॉर्ड दुरुस्त करने में लग जाते हैं। उन्होंने प्रदेश में हुक्का बार चलने पर फटकार क्या लगाई अगले दिन रायपुर, बिलासपुर और दूसरे जिलों में ताबड़तोड़ कार्रवाई चालू हो गई। पहले हुक्का बार में ही छापामारी की जाती थी पर इस बार हुक्का का सामान, चिमनी और फ्लेवर बेचने वाले भी पकड़े गये। यदि यह नशे के खिलाफ जंग है तो सेल्यूट। बस काम कुछ आगे तक होना चाहिये था। शराबखोरी बढ़ रही है। देर रात होने वाले हंगामे, मारपीट, यहां तक की मर्डर में, कितने हुक्का बार से लौटने वाले हैं और कितने शराब दुकानों से- इसका भी ब्यौरा जुटाना चाहिये। कितने घर हुक्का के चलते तबाह हो रहे हैं और कितने शराब की वजह से इसका भी डेटा हो। यह वही सरकार है जिसे शराबबंदी के अपने चुनावी वादे को पूरा करना है।
काश यहां भी चुनाव होता..
कोरोना महामारी के चलते अदालतें लम्बे वक्त तक बंद रही। इसके चलते प्रोफेशनल्स आर्थिक संकट में जूझ रहे थे। वकील जो सबको न्याय दिलाने के लिये पैरवी करते हैं उनकी भी हालत बुरी हो गई। उन वकीलों की ज़्यादा जिन्होंने चार-पांच साल की वकालत में ज्यादा जमा नहीं कर रखा था। इन्हें आर्थिक सहायता देने के लिये सीएम, विधि मंत्री, बार कौंसिल आदि में आवेदन लगाये गये। हाईकोर्ट में भी केस लगाया गया। जरूरतमंदों की तादात ज्यादा थी, मदद कुछ को ही मिल पाई। यह संख्या कुल इस पेशे से जुड़े में से एक या दो फीसदी ही रही। अब जरा यूपी पर निगाह डालिये। वहां सीएम ने घोषणा की है कि इस पेशे से जुड़े लोगों को पांच लाख रुपये तक की एकमुश्त मदद की जायेगी। जो पात्रता रखते हैं उन्हें आवेदन जमा करने कहा गया है।
अपने राधेश्याम बारले
कर्नाटक में लोक वाद्य और पर्यावरण पर विशिष्ट योगदान करने वाले हजब्बा और तिम्मक्का पर खूब चर्चा हुई कि वे नंगे पांव राष्ट्रपति से पद्म पुरस्कार लेने के लिये पहुंचे। पर पंथी नृत्य को नई ऊंचाई देने वाले अपने छत्तीसगढ़ के राधेश्याम बारले ने भी तो नंगे पांव ही राष्ट्रपति से सम्मान ग्रहण किया। इसकी बात मीडिया पर कम हुई इसलिये तस्वीर साझा की जा रही है।
कुछ सवाल आपके मन में उठ सकते हैं मसलन, नंगे पांव क्यों गये राधेश्याम? वेशभूषा तो सलीके ही है। कोविंद जी के पास नंगे पांव दिखाकर छत्तीसगढ़ की हालत बतानी है क्या? कुल मिलाकर क्या नंगे पांव दिखाने के पीछे कोई राजनीति है?
राज्यपाल ने रिपोर्ट पढ़ ली तो?
झीरम घाटी आयोग की रिपोर्ट को लेकर राज्य सरकार पेशोपेश में है। न्यायिक जांच आयोग और राज्यपाल दोनों ही राजनीतिक व्यक्ति या संगठन नहीं इसलिये संभलकर बोलना पड़ रहा है। आयोग से नहीं पूछा जा सकता कि आपने हमें न देकर रिपोर्ट राज्यपाल को क्यों दी? राज्यपाल से भी नहीं कह सकते कि दी तो आपने क्यों रख ली?
मीडिया से आयोग और राज्यपाल को प्रतिक्रिया मिल रही होगी पर वे अपनी संस्थागत मर्यादाओं के चलते जवाब नहीं देंगे। अभी तो रिपोर्ट राज्यपाल को सिर्फ दी गई है। रिपोर्ट पढ़ी और उस पर उनकी कोई टीप आती है तो फिर उस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया होगी? राज्यपाल ने रिपोर्ट को देखने की बात तो कह ही दी है। मंडी बिल और यूनिवर्सिटीज़ का नाम बदलने के विधेयकों के रुकने के बावजूद दूसरे कुछ राज्यों की तरह, सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति प्रदेश में अब तक नहीं बनी। पर, झीरम सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिये बड़ा संवेदनशील मुद्दा है। जांच आयोग की रिपोर्ट से कहीं यह नौबत तो नहीं आने वाली है?
जिम्बाबवे तकनीक से शिफ्टिंग
कानन पेंडारी जू में चीतलों की संख्या फिर बढ़ी है। यहां चीतलों की उछल-कूद के लिये मैदान काफी बड़ा है पर प्रजनन भी उतनी ही तेजी से होता है। इनकी अच्छी देखभाल की जाती है और जब संख्या बढ़ जाती है तो किसी अभयारण्य में छोड़ दिया जाता है। इस बार भी अधिक चीतलों को अचानकमार, तैमोर पिंगला और गुरुघासीदास उद्यान में छोडऩे की तैयारी चल रही है। पहले देखा गया है कि चंचल प्रकृति के चीतलों को वाहनों में भरने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। पर इस बार इन्हें पकडऩे के लिये बोमा तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक फिसलन वाली रैंप तैयार की जा रही है, जिसकी प्रवेश करते समय तो चौड़ाई 40 मीटर है पर आगे चलकर संकरा होते हुए यह 1.5 मीटर ही रह जाता है। पूरे रैंप में चीतल के लिये आहार फैला दिये जाते हैं। जैसे ही डेढ़ मीटर का फासला खत्म होता है, उन्हें गाड़ी में भर लिया जाता है। इसे बोमा तकनीक कहते हैं जो जिम्बाबवे में अपनाई जाती है। छत्तीसगढ़ में पहली बार इसका प्रयोग किया जा रहा है।
वही घोड़ा, वही मैदान
कांग्रेस का सदस्यता अभियान चल रहा है। जिला पदाधिकारियों पर जिम्मेदारी है कि प्रदेश में तय किये गये लक्ष्य के अनुरूप 10 लाख सदस्य बनाने के लिये अपना जोर लगायें। इसके चलते कार्यकर्ताओं की एक बार फिर पूछ-परख बढ़ी है, बैठकें ले जा रही है। मरवाही उप-चुनाव में कांग्रेस को रिकॉर्ड तोड़ जीत के मुकाम तक पहुंचाने वाले कार्यकर्ता दुखी और नाराज हैं। यह नाराजगी वही है जो हर जगह कांग्रेस की बैठकों से निकलकर आ रही है। कार्यकर्ताओं से जब कहा गया कि ज्यादा से ज्यादा सदस्य बनाने के लिये जुट जायें तो साफ पूछा गया कि किस मुंह से जायें? अधिकारी निरंकुश हो गये हैं। कार्यकर्ताओं का काम करना तो दूर वे बात करना भी पसंद नहीं करते। अपना काम तो छोडिय़े किसी फरियादी, जरूरतमंद का भी काम नहीं करा पाते। चुनाव आने पर ही हमें पूछा जाता है और घोड़े की तरह मैदान में दौड़ा दिया जाता है। अब सदस्यता के लिये दौडऩे कहा जा रहा है। कृषि, बिजली, राजस्व, शिक्षा विभाग में समस्याओं, शिकायतों की अर्जियां धूल खा रही हैं। काम होंगे नहीं तो कैसे किसी से कहें कि सदस्य बनो। ([email protected])
108 फीट भगवा ध्वज लगाने की अर्जी
कवर्धा के लोहारा चौक पर क्या 108 फीट भगवा ध्वज आने वाले दिनों में लहराने लगेगा? एक संगठन श्री शंकराचार्य जनकल्याण न्यास ने इस चौक के पास 10 वर्गफीट जमीन की मांग प्रशासन ने की है। कलेक्टर का जैसा बयान आया है कि इसके लिये प्रक्रिया शुरू हो गई है। दावा आपत्ति ली जायेगी फिर शासन को रिपोर्ट भेज दी जायेगी। निर्णय शासन ही लेगा। दूसरी तरफ न्यास की ओर से एक चेतावनी भी है। यदि प्रशासन स्थान उपलब्ध नहीं कराता है तो भी 10 दिसंबर को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की अगुवाई में यहां ध्वजारोहण होगा। कवर्धा जिला प्रशासन को कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर अभी-अभी थोड़ी राहत मिली है। उम्मीद ही कर सकते हैं कि आगे भी माहौल अच्छा बना रहेगा।
नगर निगमों के चुनाव की आहट
काफी संभावना है कि प्रदेश के चार नगर-निगम बिरगांव, रिसाली, चरोदा और भिलाई के चुनाव दिसंबर-जनवरी में हों। कोविड के कारण ये चुनाव टल रहे थे पर अब सभी संबंधित जिलों में इसकी तैयारी हो रही है। कहा जा रहा है कि इन नगर निगमों के परिणामों से एक आकलन लगाया जा सकेगा कि सरकार के कामकाज को लेकर लोगों में क्या राय है। विधानसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले उप-चुनावों में भाजपा की स्थिति लगातार कमजोर होती गई। पिछले कुछ समय से विपक्ष के तौर पर उसकी सक्रियता बढ़ी दिखाई दे रही है। इन चुनावों में उसे अपना प्रदर्शन सुधारने का अवसर मिल सकता है। बिरगांव ऐसी सीट है जहां जनता कांग्रेस का भी ठीक-ठाक प्रभाव है।
अब प्रदेश में महापौर पार्षदों के जरिये चुने जा रहे हैं। इस पद्धति को अपनाने के चलते पिछले चुनाव में कांग्रेस को फायदा भी हुआ था। इन चारों नगर-निगमों क्या स्थिति बनती है, देखना रोचक होगा।
बस्तर के बांस की साइकिल
वैसे तो धातु की बनी साइकिल भी अपने आप में ईको फ्रैंडली है, पर बस्तर के युवा मो. आसिफ खान ने एक अनूठा प्रयोग करते हुए बांस की साइकिल तैयार की है। इस साइकिल में चेचिस, सीट, सीट कवर, हैंडल व मडगार्ड बांस से बने हैं। अनूठी बात यह है कि इसमें बस्तर की शिल्प कला भी उकेरी गई है। अब इसका व्यावसायिक रुप से उत्पादन भी शुरू किया गया है। देशभर में बिक्री के लिये फ्लिपकार्ट के साथ करार किया जा चुका है। अमेजॉन से भी बात चल रही है। यानि इस साइकिल के लिये ऑनलाइन ऑर्डर भी लिये जायेंगे। बेंगलूरु, मुंबई आदि शहरों से पहले भी बांस की साइकिल बनाने और इस्तेमाल करने की खबरें आई हैं। मुंबई के कैप्टन शशि पाठक ने तो आसिफ का मार्गदर्शन भी किया है। विदेशों में भी बांस की साइकिलों का चलन है पर बस्तर की साइकिल की डिजाइन ज्यादा आकर्षक है और फिर शिल्पकला तो शायद पहली बार साइकिल पर उकेरी गई है।
सोशल मीडिया पोस्ट के खतरे
छत्तीसगढ़ सरकार ने अब हर जिले में सोशल मीडिया निगरानी टीम बनाने के लिये कलेक्टर्स को निर्देश दिया है। कई जिलों में यह टीम बन चुकी है।लगता है सभी जिलों में कुछ समय के बाद बन जायेगी। यह टीम देखेगी कि कोई पोस्ट भडक़ाऊ तो नहीं, समाज में अशांति फैलने का उससे खतरा तो नहीं है? छत्तीसगढ़ में कुछ लोग पहले गिरफ्तार किये जा चुके हैं जो अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए कुछ नेताओं को को टारगेट करते हुए पोस्ट डाले। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग कमेटी संभवत: कवर्धा की घटना का दोहराव न हो, इसलिये बनाई गई है। पर, यदि सोशल मीडिया पोस्ट पर त्रिपुरा जैसी कार्रवाई हो जाये तो? वहां सीधे-सीधे यूएपीए के तहत 102 लोगों पर अपराध दर्ज किया गया है, जिसमें 7 साल की सजा है और आसानी से जमानत भी नहीं। इनमें त्रिपुरा इज बर्निंग नाम से ट्विटर पर पोस्ट डालने वाले श्याम मीरा सिंह, कई एक्टिविस्ट और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के मेम्बर्स हैं। केस 68 ट्विटर पोस्ट, 32 फेसबुक पोस्ट तथा दो यू ट्यूब पोस्ट के चलते दर्ज किये गये हैं। त्रिपुरा में पहले भी दो पत्रकारों पर ये धारायें लगाई जा चुकी है। यूपी में कोरोना काल के दौरान ऑक्सीजन की कमी पर पोस्ट डालने वालों पर ये एक्ट लग गया। संयोग यह है कि यूपीएपी कानून यूपीए सरकार के समय लाया गया था और ज्यादा इस्तेमाल भाजपा की सरकारें कर रही हैं। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग कमेटी भी छत्तीसगढ़ में मौजूदा कांग्रेस सरकार लेकर आई है। मॉनिटरिंग कमेटी कब कौन सी पोस्ट, कब यूएपीए लगाने के लायक समझ लेगी कह नहीं सकते। इसलिये, क्योंकि कमेटी एक बार बन गई है, आगे भी कायम रहेगी, सरकारें तो बदलती रहेंगीं।
धर्मान्तरण मुद्दा बनकर रहेगा?
अंबिकापुर में कल एक पादरी और उनके एक सहयोगी पर प्रलोभन और झांसा देकर धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करने के आरोप में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एफआईआर दर्ज कराई। दुर्ग के रेलवे इलाके में पुलिस ने रविवार को ही ईसाई समुदाय की शिकायत पर 20-25 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। इनका आरोप है कि प्रार्थना कक्ष में घुसकर कुछ लोगों ने मारपीट की, दान पेटी लूट ली। रायपुर में थाने के भीतर पादरी की पिटाई की घटना तो हो ही चुकी है। कवर्धा का मामला भी सबके सामने है। मान लेना चाहिये कि छत्तीसगढ़ में एक नया चुनावी मुद्दा आकार ले रहा है, जो आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में काम आ सकता है।
राजनीतिक नुकसान की चिंता
खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने सरगुजा के चिरंगा गांव में दी गई एलुमिना प्लांट की अनुमति रद्द करने की मांग करते हुए सीएम को पत्र लिखा है। शायद इसलिये कि मतदाता जान लें। अपनी जिम्मेदारी उन्होंने पूरी कर दी है, बाकी फैसला ऊपर लिया जायेगा। इस पत्र से खास बात यह निकली है कि उन्हें अपने और कांग्रेस के वोटों तथा राजनीतिक नुकसान की चिंता है। दरअसल, ग्रामीणों ने पहले ही यह स्थिति पैदा कर दी है कि प्लांट का काम आगे बढ़ नहीं पा रहा है। फैक्ट्री के लिये कोई गाड़ी गांव में घुस नहीं पा रही है। लोग घेर लेते हैं, रतजगा कर रहे है। चिरंगा में चाहे जितने वोटर हों लेकिन उनके विरोध की खबर आसपास के गांवों में भी फैल रही है। पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने आंदोलन शुरू करने की चेतावनी भी दे डाली है। मंत्रीजी का समर्थन को लेकर चिंतित होना जायज है। उनको श्रेय जाता है कि वे सत्ता में रहकर भी सरकार को उसके किसी फैसले पर आगाह कर रहे हैं। वरना, हसदेव अरण्य मामले में तो कुछ बयानों को छोड़ दें तो आम तौर पर चुप्पी ही है। किसी को अपना वोट बिगडऩे की चिंता नहीं, चाहे वह जनप्रतिनिधि पक्ष का हो या विपक्ष का।
जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा
कौन से जनप्रतिनिधि किस सरकारी कार्यक्रम में बुलाये जायेंगे, कौन नहीं, इसका फैसला अधिकारी करते हैं। ऐसे आयोजनों में सम्मानजनक तरीके से बुलावे के लिये अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों से जाकर मिलना चाहिये। पर, स्थापित परंपरा और दिशानिर्देशों की परवाह नहीं की जा रही है। कोरबा में हुई राज्य स्तरीय शालेय क्रिकेट प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह के निमंत्रण पत्र से वहां की सांसद ज्योत्सना महंत का नाम गायब था। पता चला कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया। जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम को भी बुलाना जरूरी नहीं समझा गया। विशिष्ट अतिथि के तौर पर विधायक पुरुषोत्तम कंवर और मोहित राम केरकेट्टा का नाम तो कार्ड में लिखा गया लेकिन वे नहीं पहुंचे। कार्ड में नाम डालकर बुलाना भूल गये होंगे। जिले के शीर्ष अधिकारी भी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। आम तौर पर ऐसे मामलों से प्रभावित, उपेक्षित जनप्रतिनिधि जब सत्ता में होते हैं तो चुप रहना ही ठीक समझते हैं। उन्हें लगता है कि अपनी ही सरकार को परेशानी में क्यों डालना। पर बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडे ने कुछ दिन पहले सीएम को चि_ी लिखकर कलेक्टर पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने और हटाने की मांग कर चुके हैं। राज्योत्सव के आमंत्रण पत्र से शहर का विधायक होने के बावजूद उनका नाम गायब तो था ही, बुलाया भी नहीं गया। ऐसे मामलों में यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि अफसरशाही पहले के सरकार में ज्यादा हावी थी या अब है।
तोहफों का सैलाब धीमा
दीवाली के मौके पर गिफ्ट का चलन कोई नया नहीं है। मंत्रालय में तो अफसर-कर्मियों को गिफ्ट देने के लिए कंपनियों के प्रतिनिधि, ठेकेदार, और अन्य प्रभावशाली लोगों की भीड़ देखने को मिलती रही है। पिछले साल तो कोरोना की वजह से एक तरह से सूना रहा, लेकिन इस बार थोड़ी रौनक देखने को मिली।
त्योहार को लेकर किसी तरह की रोक-टोक न होने के बावजूद गिफ्ट देने वालों की अपेक्षाकृत भीड़ कम देखने को मिली। वजह यह है कि सीएस अमिताभ जैन ने तो हिदायत दे रखी थी कि दीवाली की बधाई देने न आएं। लिहाजा भीड़ छँट गई।
सचिव स्तर के एक अफसर ने बाहर से आए कंपनियों के प्रतिनिधियों से गिफ्ट लेने से तो परहेज नहीं किया, लेकिन उन्होंने सारे गिफ्ट अपने स्टाफ के लोगों के बीच बांट दिया। स्टाफ के लोगों के पास इतने गिफ्ट आ गए कि वो प्राइवेट गाड़ी में घर गए।
अमिताभ जैन की तरह पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार के तेवर रहे हैं। सुनिल कुमार का खौफ इतना था कि लोग उनसे दीवाली या नववर्ष के मौके पर मिलने गिफ्ट लेकर जाना, तो दूर गुलदस्ता लेकर जाने में भी कतराते थे।
मरकाम टीम से दो-दो हाथ
कांग्रेस से निलंबित निगम अध्यक्ष सन्नी अग्रवाल अब मोहन मरकाम, और उनकी टीम से दो-दो हाथ करते दिख रहे हैं। सदस्यता अभियान के शुरू होने के मौके पर पिछले दिनों सीएम भूपेश बघेल राजीव भवन पहुंचे, तो वहां सन्नी ने अपने साथियों के साथ भूपेश के समर्थन में जमकर नारेबाजी की।
शहरभर में पोस्टर लगवाए जिसमें मरकाम की तस्वीर गायब थी। पोस्टर में सिर्फ सीएम के अलावा गिरीश देवांगन, और रामगोपाल की तस्वीर थी। दीवाली के मौके पर अपने से जुड़े लोगों, और मीडिया कर्मियों को खूब गिफ्ट बांटे। मरकाम त्योहार मनाने कोंडागांव चले गए। उनकी टीम का हाल यह रहा कि वो दीवाली के बधाई संदेश तक कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुंचा पाए। ऐसे में सन्नी जैसे लोग भारी तो पड़ेंगे ही।
सेव फॉरेस्ट, स्टॉप अदानी
ग्लास्को में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कांफ्रेंस के बाहर करीब 1 लाख लोगों ने अपने-अपने तरीके से धरती को प्रदूषण से बचाने और पर्वावरण को सुरक्षित रखने के लिये शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। इसमें भारत के भी लोग थे और इन भारतीयों में कुछ ऐसे लोग जिनका संपर्क, संबंध छत्तीसगढ़ से है। इन लोगों ने हसदेव के जंगलों को बचाने के लिये पोस्टर और नारों के जरिये आवाज उठाई। एक वीडियो ट्विटर पर साझा हुआ है- फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया पेज पर। इसमें हसदेव अरण्य में अदानी को दी गई अनुमति रद्द करने की मांग की जा रही है। उनके हाथ में पोस्टर हैं जिन पर लिखा है, सेव फॉरेस्ट, स्टॉप अदानी। सरगुजा और कोरबा के जंगल से पैदल चलकर पहुंचे प्रभावित ग्रामीणों के बारे में राजधानी रायपुर के अधिकारियों को तो पता नहीं चला, पर यह यात्रा दुनिया के अलग-अलग कोनों में लोगों का ध्यान खींच रही है। याद होगा, इसी यात्रा के बाद स्वीडन की प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने भी हसदेव अरण्य को बचाने के लिये ट्वीट किया था।
रेल्वे और फिल्म शूटिंग
रेलवे ने छत्तीसगढ़ की खूबसूरती की फिल्म शूटिंग को पहले से ज्यादा आसान कर दिया है। रेलवे ट्रैक और स्टेशनों में शूटिंग के लिए रेलवे जोनल मुख्यालय में सिंगल विंडो सिस्टम शुरू कर दिया है। इसके पहले लोग बिना अनुमति के छोटी मोटी शूटिंग या यूट्यूब ब्लॉग बना लेते थे। अधिकारिक तौर पर फिल्म शूटिंग के लिए रेलवे बोर्ड से मंजूरी लेनी पड़ती थी। मुंबई हावड़ा रूट, कटनी रूट हो या विशाखापट्टनम और बस्तर की रेल लाइन, खूबसूरती छत्तीसगढ़ में सब तरफ बिखरी हुई है। छत्तीसगढ़ में फिल्में भी खूब बनती है। रेलवे के गलियारे में शूटिंग का मौका मिलने से उम्मीद कर सकते हैं कि छत्तीसगढ़ की विशेषताओं को ज्यादा अच्छी तरह से देश दुनिया में दिखाया जा सकेगा। बॉलिवुड और देश-दुनिया के फिल्म निर्माता भी छत्तीसगढ़ को शूट करने पहुंच सकते हैं।
सरकार योजना बना रही, लोग पैसे खाने में लगे
सरगुजा संभाग में संरक्षित पिछड़ी जनजातियों के साथ जो मजाक होता रहा है, उसका एक और उदाहरण सामने आया है। लुंड्रा ब्लॉक में पहाड़ी कोरवा युवाओं को ड्राइविंग ट्रेनिंग देने के लिए एक एनजीओ को एक लाख रुपये दिये गये। ट्रेनिंग के नाम पर उन्हें जीप की ड्राइविंग सीट पर बिठाया गया और फोटो खींच ली गई। चाय नाश्ता करा कर उन्हें वापस भेज दिया गया। हालत यह है कि जिन 30 युवकों को ड्राइविंग सिखाने का दावा किया गया है वे चार पहिया वाहनों में चाबी तक नहीं लगा पाते। मामले ने तूल पकड़ा जब पूर्व मंत्री गणेश राम भगत ने आदिवासी विकास विभाग के अधिकारियों से जवाब तलब किया। उन्होंने कहा कि आप तो स्वयं आदिवासी अधिकारी है इसके बावजूद युवकों को ठगा गया और आप अन्याय होते देख रहे थे। अधिकारी ने सफाई दी कि जिनको ट्रेनिंग दी गई है और युवाओं को सर्टिफिकेट भी बांटा गया है। भगत ने कहा कि ठीक है सर्टिफिकेट देने से कोई ट्रेंड हो जाता है तो मैं आपको पायलट का सर्टिफिकेट देता हूं, प्लेन उड़ा कर बताओ। बहरहाल, अब मामले की जांच शुरू हो गई है और जिस एनजीओ ग्रामीण साक्षरता सेवा संस्थान का नाम इस घोटाले में आ रहा है, मालूम हुआ है कि इसके संचालक अब उन युवाओं से संपर्क करके झूठा बयान देने के लिए 30-30 हजार रुपए का प्रलोभन दे रहे हैं। देखते हैं भगत का हडक़ाना काम आता है या एनजीओ का प्रलोभन।
फोन पर जमीन में निवेश का ऑफर
कोरोना की लहर कमजोर होने के बाद कारोबार के हर क्षेत्र में रफ्तार दिखाई दे रही है। इतनी हिम्मत आई है कि त्यौहारों के सीजन में लोग जमीन, मकान, फ्लैट आदि पर निवेश करने के लिये लोग आगे आ रहे हैं। जो रेरा से पंजीकृत हैं और तमाम शासकीय अनुमति ले चुके हैं वे तो अपने प्रोजेक्ट को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और हर तरह की मीडिया में बेझिझक कर रहे हैं लेकिन जिन लोगों के प्रोजेक्ट अधिकृत नहीं हैं वे ऐसा नहीं कर सकते। रेरा में शिकायत के बाद उन पर कार्रवाई हो सकती है। ऐसे लोगों ने मोबाइल फोन के जरिये ग्राहकों तक पहुंचने का रास्ता चुना है। वे वाट्सएप, मैसेज, फोन कॉल और यहां तक ई मेल के माध्यम से लोगों तक पहुंच रहे हैं। सस्ते और एक हद तक अविश्वसनीय दाम पर मिलने वाले फ्लैट, मकान, जमीन के ऑफर को लेकर लोगों में आकर्षण होता है पर वे धोखा खा सकते हैं।
इसे लेकर शिकायतें रेरा को भी मिल रही हैं। उसने अब एसएमएस पर भी निगरानी करनी शुरू की है। हाल के दिनों में सात ऐसे प्रोजेक्ट उनके ध्यान में आ चुके हैं जिनके पास वैध अनुज्ञा और रेरा से पंजीयन नहीं है। इन सबको नोटिस देकर खरीदी-बिक्री बंद करने की चेतावनी दी गई है और लोगों को भी आगाह किया गया है। अभी सिर्फ सात परियोजनाओं पर रेरा की निगाह पड़ी है, पर न केवल राजधानी बल्कि पूरे प्रदेश में प्राय: सभी विकसित हो रहे शहरों में ऐसी अवैध खरीदी बिक्री के ऑफर आ रहे हैं। ज्यादा समझदारी इसी में है कि एसएमएस और वाट्सएप पर दिये जाने वाले ऑफर पर भरोसा ही नहीं किया जाये वरना धोखा हो सकता है।
नाम में क्या रखा है?
हिंदुस्तान में जहां जात पात खत्म करने की बात होती है वहां भी देश के हर शहर-कस्बे में बहुत से इलाकों का नाम-जात पर रखा हुआ दिखता है। बहुत पहले राजधानी रायपुर में जेल रोड पर एक पंजाबी लाइन हुआ करती थी, बाद में शायद उसका नाम बदल गया। लेकिन सिंधियों की बहुत सी बस्तियों में सिंधी कॉलोनी या सिंधी बस्ती नाम चलन में आ जाता है, फिर चाहे वह औपचारिक रूप से रखा गया हो या नहीं। अभी रायपुर के एक बोर्ड की फोटो राजीव चक्रवर्ती ने फेसबुक पर पोस्ट की है जिसमें सिंधी चाल और बंगाली पारा, दो इलाकों के नाम दिख रहे हैं। इनसे परे बनियापारा, ब्राह्मणपारा, सतनामीपारा जैसे मोहल्ले छत्तीसगढ़ के बहुत से शहरों में हैं। एक वक्त था जब इस इलाके में मोहल्ले की किराना दुकान आमतौर पर सिंधी चलाते थे, और उन्हें किराना दुकान के बजाय सिंधी दुकान कहा जाता था। जब सरकार और म्युनिसिपल ही किसी इलाके के जाति के नाम को मान्यता देते हैं, तो फिर वह नाम जल्द टलने वाला भी नहीं रहता। खैर जो भी ही, रायपुर में मरने पर सबसे अधिक लोगों को मारवाड़ी श्मशान नसीब होता है।
सदस्यता अभियान के मायने
सदस्य संख्या से चुनाव में बहुत फायदा मिलता हो, ऐसा लगता नहीं। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव में 15 सीटों पर सिमट गई थी। तब दावा किया जा रहा था कि प्रदेश में पार्टी के 34 लाख सदस्य हैं। उस चुनाव में कांग्रेस सदस्यों की संख्या 6 लाख के आसपास थी। बीते साल भी 6 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य था। अब 1 नवंबर से कांग्रेस ने जो सदस्यता अभियान शुरू किया है वह मार्च तक चलेगा। इस दौरान 10 लाख नये सदस्य बनाने का लक्ष्य है। बूथ मैनेजमेंट, प्रचार और चुनाव प्रबंधन की दूसरी जरूरतों के लिये पार्टी को कार्यकर्ता तो चाहिये पर बिना रीति-नीति को जाने ही, सत्ता के प्रभाव में और दूसरे निहित उद्देश्यों के चलते सदस्यता लेने वाले यह काम शायद नहीं कर पायें। वैसे पिछले कई चुनावों में देखा गया है कि इस काम के लिये भी युवाओं को हायर किया जाता है। भाजपा सवाल कर रही है कि कांग्रेस में संगठन चुनाव होते ही नहीं तो सदस्यता अभियान चलाने की क्या मतलब रह जाता है। पर हो सकता है कांग्रेस अगले चुनाव से पहले भाजपा का रिकॉर्ड तोडऩा चाहती हो।
किसान घर का बेटा होना काम आया...
आईपीएस रतनलाल डांगी अपनी बॉडी फिटनेस और योग की वीडियो अक्सर सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। समय-समय पर वे प्रेरक विचार भी रखते हैं, जिसे खबर की तरह अख़बारों में इभी जगह मिलती है। इस बार उन्होंने एक ऐसी पोस्ट डाली है जो उनके किसान परिवार से होने को सार्थक करता है। उन्होंने अपने बंगले में एक गाय पाल रखी है। दीपावली की देर रात जब सारे सहायक अवकाश पर थे गाय को प्रसव पीड़ा हुई। लक्ष्मी जी की पूजा करके उठे डांगी खुद ही प्रसव कराने में जुट गये और उनकी गाय ने एक स्वस्थ बछिया को जन्म दिया। वीडियो में दिखाई दे रहा है कि गाय किस तरह पीड़ा में कराह रही है और जैसे ही बछिया को खींचकर उन्होंने बाहर निकाला गाय की आवाज से पता चला कि उसे राहत मिली। अगले दिन गोवर्धन पूजा थी। अपनी मान्यताओं के अनुरूप डांगी ने बछिया की पूजा की और कहा- परिवार में लक्ष्मी आई है।
एसपी को तो दूसरों को रोकना चाहिये...
हाथियों के साथ मनोरंजन का खेल गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही के एसपी त्रिलोक बंसल व उनकी पत्नी पर भारी पड़ गया। हाथियों की उन्मुक्त आवाजाही और मानव को उनसे बचाने के लिये जारी सामान्य निर्देशों का पालन कराना वन विभाग के अलावा प्रशासन और पुलिस का भी है। अमारू के जंगल में हाथियों का दल होने की खबर मिलने पर बंसल उनका दर्शन करने के लिये निकल पड़े। इतना ही नहीं, जैसी खबर है वे वीडियो भी बनाने लगे। उन्होंने कायदा तोड़ा, जिसका खामियाजा यह हुआ कि उनकी जान खतरे में पड़ गई थी। वीडियो, फोटो शूट के चक्कर में हाथियों के हमले के छत्तीसगढ़ में कई लोग पहले शिकार हो चुके हैं। ऐसे में हाथी प्रभावित जिले की कमान संभाल रहे कप्तान का सतर्क नहीं होना कतई समझदारी की बात नहीं। लोग वीडियो, फोटो शूट कर रोमांच तो अनुभव करते हैं लेकिन यह शांत स्वभाव के इस जानवर को सताये जाने और आक्रमण के लिये उकसाये जाने की प्रक्रिया है। यह तो अच्छा हुआ कि हाथियों ने सिर्फ दौड़ाया और एसपी को चोट हाथी के वार से नहीं, गिरने से लगी। अब वे स्वस्थ भी हो रहे हैं, हमारी कामना भी है कि वे जल्द चंगे होकर वापस ड्यूटी पर लौटें। पर इस घटना से उन सब लोगों को सबक मिल गया होगा जो करीब जाकर फोटो वीडियो खींचने का दुस्साहस करते हैं। हाथी न आम-आदमी को पहचानते, न एसपी को। उनको गुस्सा दिलाना ठीक नहीं।
राजनीति की एबीसीडी
ऐसे कई मौके आ चुके हैं जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का उनकी ही पार्टी में पूछ-परख नहीं किये जाने को लेकर चुटकियां ले चुके हैं। डॉ. सिंह के आरोपों पर पूछ चुके हैं कि वे आखिर हैं कौन? बघेल के इस रुख को लेकर सवाल किये जाने पर मुंगेली व बिलासपुर जिले के दौरे पर निकले डॉ. सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जब बघेल राजनीति की एबीसीडी सीख रहे थे तो वे केन्द्रीय मंत्री बन चुके थे। यानि आज उनको एक्स वाई जेड नहीं माना चाहिये। पूर्व मुख्यमंत्री यह भी कह सकते थे कि वे जिस स्कूल में पढ़े हैं, वहां के हम हेडमास्टर रहे हैं। मगर, यह ठीक नहीं होता क्योंकि दोनों की पाठशाला अलग-अलग है।
पुलिस भरोसा कैसे जीते?
सरगुजा जिले के चिरंगा, बतौली में एलुमिना फैक्ट्री लगाने का ग्रामीणों ने विरोध किया। ग्रामीणों का आरोप है कि जन सुनवाई में उन्होंने असहमति जताई थी पर इसे प्रशासन ने सहमत दर्शाकर मंजूरी दे दी। इससे लोग इतने नाराज हैं कि गांव के लोग पहरेदारी कर रहे हैं कि फैक्ट्री का काम शुरू न हो। कोई भी अनजान या सरकारी गाड़ी देखते ही उसे वे लौटा देते हैं। अब यहीं पर पास में एक गुड़ फैक्ट्री की मंजूरी भी दी गई है। इसी फैक्ट्री के लिये जमीन को समतल करने का काम शुरू हुआ तो ग्रामीणों ने यह समझकर कि यह एलुमिना फैक्ट्री के लिये किया जा रहा है, विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस और प्रशासन ने ग्रामीणों के साथ कोई संवाद नहीं किया। आरोप है कि पुलिस गांव में घुसी और जो लोग प्रदर्शन में शामिल नहीं थे, ऐसे तीन ग्रामीणों को दूसरी जगह से गिरफ्तार कर ले गई। उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जेल भेज दिये गये। विरोध और बढ़ गया और महिलाओं ने राष्ट्रीय राजमार्ग ही जाम कर दिया। कह रहे थे कि जो आंदोलन में थे ही नहीं उनको क्यों जेल भेजा, उन्हें हमारे पास वापस लेकर आओ तब रास्ता छोड़ेंगें। चार घंटे से ज्यादा चक्काजाम रहा। किसी तरह समझा-बुझाकर ग्रामीणों को हटाया जा सका।
यह एक उदाहरण है कि ग्रामीणों के साथ संवाद और सहमति की प्रक्रिया को न तो प्रशासन महत्व देता न पुलिस देती है। वे कानून में मिले अधिकार का इस्तेमाल करने पर विश्वास करते हैं, जिससे व्यवस्था बिगड़ती है।
विधायक चंद्राकर के खिलाफ प्रदर्शन..
आबकारी विभाग के लिपिक के साथ मारपीट का मामला जल्दी सुलझता दिखाई नहीं दे रहा है। जब से यह घटना हुई है विधायक विनोद चंद्राकर की ओर से यही बयान आ रहा है कि वे मारपीट में शामिल नहीं थे बल्कि बीच-बचाव करने गये थे, जबकि पीडि़त लिपिक ने अपनी शिकायत में मारपीट करने वालों में सबसे पहला नाम विधायक का ही लिखा है। अब तक भाजपा ने इस मामले में बयान ही दिये थे लेकिन महासमुंद में बीती रात वह सडक़ पर उतर गई। राज्योत्सव के कार्यक्रम में विधायक को मुख्य अतिथि बनाया गया तो वे उनके सामने प्रदर्शन करने के लिये आगे बढऩे लगे। राज्योत्सव में खलल न पड़े, इसलिये पुलिस ने घेराबंदी की और किसी तरह से भाजपा कार्यकर्ताओं को आगे बढऩे से रोका। मामला जल्दी शांत होते दिखाई नहीं दे रहा है। जब तक यह मुद्दा गरम है चंद्राकर की सार्वजनिक कार्यक्रमों में उपस्थिति पर पुलिस को अधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी।
रंगीनमिजाजी पर नरमी
बच्चियों और महिलाओं से जुड़े मामलों में गंभीरता बरतने और शीघ्रता से कार्रवाई करने का प्रशासन और समय-समय पर अदालतों का स्थायी निर्देश है। पर, रामानुजगंज के लरंगसाय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में ऐसा नहीं हो रहा है। वहां के और किसी नहीं, बल्कि प्राचार्य पर ही छात्राओं ने अश्लील कमेंट करने का आरोप लगाया है। जब इसकी पुनरावृत्ति बार-बार होने लगी तो छात्राओं के लिए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया। उच्च शिक्षा संस्थान के प्रमुख पर ही ऐसा गंभीर आरोप था इसलिये छात्राओं को इसकी शिकायत थाने में करनी पड़ी। इस पर भी कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने एसडीएम से शिकायत की, पर उनका रुख भी नरम है। उन्होंने प्रिंसिपल के उच्चाधिकारियों को विभागीय कार्रवाई के लिये लिखा है, जबकि पीडि़त छात्राओं का कहना है कि एफआईआर होनी चाहिये। कुछ समय पहले यही प्राचार्य एनएसएस के कैंप में डांस करते दिखे थे जिसका वीडियो भी सामने आया था। तब किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। इस बार शिकायत हो जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होने से नाराज छात्र-छात्राओं ने कॉलेज परिसर में ही धरना दिया, लरंग साय चौराहे पर प्रदर्शन किया, पुतला फूंका तब भी कोई एक्शन नहीं लिया गया है। अलबत्ता प्राचार्य के बचाव में एक पत्र जरूर थानेदार को दिया गया है जिसमें उनको बेकसूर बताया गया है। आवेदक के रूप में लिखा गया है समस्त छात्र-छात्रायें, पर उसमें हस्ताक्षर सिर्फ एक है, किसी संदीप का।
छत्तीसगढ़ के बारे में शंका-समाधान
आदिवासी नृत्य महोत्सव में आये हुए अतिथियों को क्या-क्या समझने का मौका मिला? एक तो यह कि यह छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा नहीं है। यह अलग प्रदेश है। दूसरा यह कि रायपुर शहर झारखंड में नहीं है। वहां की राजधानी तो रांची है। तीसरा छत्तीसगढ़ ऐसा इलाका नहीं है जो चारों तरफ जंगल और नक्सलियों से घिरा हुआ है। यहां स्टील और पावर के बड़े-बड़े प्लांट भी हैं। चौथा, राज्य का नाम छत्तीसगढ़ है, चतिसगढ़ या चंडीगढ़ नहीं।
सवाल जीते हुए विधायकों का...
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने सारे सांसदों के टिकट काट दिये थे। अभिषेक सिंह, रमेश बैस जैसे नेताओं की टिकट कटने पर तो काफी हैरानी भी लोगों को हुई, पर फॉर्मूला सफल रहा। अब अगले विधानसभा चुनाव के लिये नामों पर विचार शुरू हो चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा सिर्फ 15 पर सिमट गई थी। भीमा मंडावी के निधन के बाद खाली हुई दंतेवाड़ा सीट में वह उप चुनाव जीत नहीं पाई तो अब केवल 14 विधायक हैं। हारे हुए विधायकों को टिकट मिलेगी या नहीं, पिछली बार जिन नये चेहरों को विफलता हाथ लगी यह तो दूसरे नंबर का सवाल है, पहला सवाल यह है कि क्या कठिन चुनौती के बीच जिन 14 लोगों ने जीत हासिल की थी, उनकी टिकट भी काटी जा सकती है?
यह है एसी डिब्बों का हाल
दुर्ग से अजमेर रवाना हुई ट्रेन की एसी सेकण्ड और फर्स्ट क्लास की बोगियों में पूरे रास्ते सफाई के लिये आज कोई अटेण्टेंट ही नहीं पहुंचा। गंदगी पसरी हुई थी। जब भारी-भरकम किराये वाले डिब्बों का यह हाल है तो सेकंड स्लीपर क्लास और जनरल डिब्बों का क्या हाल होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। स्वच्छता के नाम पर सदैव सतर्क होने का दावा करने वाली रेलवे ने स्पेशल के नाम पर ट्रेनों का किराया तो मनमाना बढ़ा दिया, पर कोरोना के नाम पर अब तक यात्रियों की जरूरी सेवायें बंद रखी गई है। दुर्ग-अजमेर ट्रेन में सफर कर रहे एक यात्री ने आज डीआरएम कोटा को ट्वीट कर सफाई न होने के लिये जिम्मेदार स्टाफ पर कड़ी कार्रवाई की मांग की। डीआरएम ने जवाब दिया, व्यवस्था दुरुस्त की जा रही है। पता नहीं, हुई या नहीं।
पहले से विवादित का निलम्बन...
प्रदेश कांग्रेस के मुखिया के सामने ही महामंत्री अमरजीत चावला के साथ गाली-गलौच, और झूमाझटकी करने पर कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त सन्नी अग्रवाल को निलंबित कर दिया गया। सन्नी के व्यवहार से पार्टी के लोग पहले से ही तंग थे, और जब मरकाम की मौजूदगी में सब कुछ हुआ, तो उन्हें बिना देर किए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा गया।
सुनते हैं कि सन्नी करीब पांच साल पहले ही कांग्रेस में सक्रिय रूप से जुड़े थे। उन्हें गिरीश देवांगन ने पुनिया के सत्कार का जिम्मा दिया था। सन्नी ने इतना मन लगाकर काम किया कि सरकार बनने के बाद पुनिया उन्हें पद दिलाने के लिए अड़ गए। निगम मंडलों में नियुक्ति को लेकर चर्चा चल रही थी तब भी सीएम, और अन्य मंत्री सन्नी को चेयरमैन बनाने के पक्ष में नहीं थे। मगर पुनिया के दबाव के आगे झुकना पड़ा।
कुछ दिन पहले सोशल मीडिया में एक भाजपा नेता ने सन्नी अग्रवाल का जिक्र किए बिना एक महिला के संग फेसबुक पर वीडियो पोस्ट किया, तो सन्नी अपने खिलाफ चरित्र हनन की साजिश बताते हुए सिविल लाइन थाने पहुंच गए। अपनी बात को सही साबित करने के लिए वो अपनी बांह का टैटू दिखा रहे थे। जिसे वह वीडियो में दिख रहे शख्स के बांह के टैटू से छोटा बता रहे थे।
सन्नी सच बोल रहे हैं या नहीं, यह पता नहीं, लेकिन भाजपा नेता ने जवाबी कानूनी कार्रवाई की धमकी दी, तो सब कुछ शांत हो गया। पुलिस भी खामोश रह गई। ऐसे विवादित शख्स को मजदूरों के वेलफेयर के लिए बनाए गए बोर्ड का मुखिया बनाए जाने पर सवाल तो उठ रहे हैं। देखना है कि पार्टी उन्हें पद से इस्तीफा देने के लिए कहती है अथवा नहीं।
ये सफर तो सूट बूट वाले भी न कर पायें...
बिलासपुर से मार्च महीने में हवाई सेवा शुरू की गई तो उन लोगों को बड़ी खुशी हुई थी जो बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, रायगढ़, सरगुजा आदि से रायपुर हवाई अड्डे तक जाने-आने में काफी समय और रुपये खर्च करते थे। हाईकोर्ट के दबाव और नागरिकों के आंदोलन के बाद हवाई सेवा बस, शुरू कर दी गई है। पर यहां से सफर कितना खर्चीला है यह कल के दिल्ली के किराये को देखकर अनुमान लगा सकते हैं। दिल्ली से बिलासपुर की टिकट कल 13 हजार 523 रुपये में मिल रही थी। बिलासपुर से दिल्ली जाने का भी 9 हजार रुपये से अधिक था। इसके मुकाबले 120 किलोमीटर दूर रायपुर एयरपोर्ट से दिल्ली आने-जाने का किराया 4500-5000 रुपये के आसपास था। यानि बिलासपुर से यात्रा पर खर्च रायपुर के मुकाबले दो से तीन गुना है। दिल्ली-बिलासपुर के बीच सीधी फ्लाइट अब तक शुरू नहीं की गई है। इसे व्हाया प्रयागराज या जबलपुर ही ले जाया जाता है। उद्घाटन करते हुए केन्द्रीय मंत्री ने महानगरों के लिये सीधी उड़ान सेवा देने का आश्वासन दिया था, पर यहां नाइट लैंडिंग की सुविधा भी नहीं है। एक साथ एक से ज्यादा हवाई जहाज लैंड और टेक ऑफ कर सकें ऐसा एप्रॉन और रन-वे भी नहीं बन पाया है। कुल मिलाकर यहां की सेवा बड़े कार्पोरेट या सरकारी खर्च पर यात्रा करने वाले ही उठा सकते हैं। वरना हवाई चप्पल वाला आम आदमी तो क्या, सूट-बूट वालों को भी सफर करने से पहले सोचना पड़ेगा।
एक जिस्म, दो जान की मौत...
कसडोल इलाके के खेंदा गांव के शिवराम और शिवनाथ दूसरे जुड़वा भाईयों से इस मामले में अलग थे कि उनका शरीर भी एक ही था। दो सिर, दो हाथ दो पसलियों के अलावा सब एक ही। उनकी शारीरिक संरचना ऐसी थी कि ऑपरेशन कर उन्हें अलग भी नहीं किया जा सकता था, ऐसा करने से किसी एक की या फिर दोनों की जान जा सकती थी।
फरवरी 2020 में एक वीडियो वायरल हुआ था जब वे एक स्कूटी पर पेट्रोल पंप पहुंचे थे। उन्होंने स्कूटी को अपने हिसाब से मोडिफाई कर लिया था और दोनों उस पर बैठकर सैर करते थे। दोनों का एक दूसरे के साथ सामंजस्य बैठ गया था। उन्होंने साथ-साथ अपनी जिंदगी को 19 साल तक खींचा और इसे खुलकर जीने की कोशिश भी की। आज सुबह अचानक उनकी मौत की खबर ने लोगों को स्तब्ध कर दिया। मालूम किया जा रहा है कि असमय मौत कैसे हुई। पर, दोनों भाईयों की यह छोटी सी जीवन यात्रा यादगार बन गई। लोग बरसों तक उन्हें और उनके जीने की ललक को याद करेंगे।
बस्तर बाजार में कद्दू
वैसे तो छत्तीसगढ़ के बाजारों में इस समय कद्दू या कुम्हड़ा बिकते हुए मिल जायेंगे, पर बस्तर के कद्दू की बात ही अलग है। इनके आकार इतने बड़े होते हैं कि सिर्फ खाने के लिये ही नहीं बल्कि पानी भरने के बर्तन और वाद्य यंत्र बनाने के काम में भी लाया जाता है।
पापोचाकुकुचि... !
पापोचाकुकुचि का मतलब है, पातळ पोह्यांचा कुरकुरीत चिवडा, यानि पतले पोहे से बना कुरकुरा चिवड़ा !
शिकायत का असर देखने मिला
दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में बैठे नेता, छत्तीसगढ़ के पार्टी नेताओं से नाखुश बताए जाते हैं। वजह यह है कि विधानसभा में बुरी हार के बाद भी छत्तीसगढ़ के नेता एकजुट नहीं हो रहे हैं, और वो एक-दूसरे की शिकायत लेकर दिल्ली पहुंच जाते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने तो बस्तर के चिंतन शिविर में यहां तक कह दिया था कि यहां के नेता सिर्फ शिकायतें करते हैं। ये नहीं बताते कि 14 सीट पर सिमटकर कैसे रह गए।
मरकाम की राहुल से मुलाकात
पार्टी नेता राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश के पास भी शिकायतें लेकर जाते रहते हैं। शिवप्रकाश का पिछले दिनों जशपुर में थे। सुनते हैं कि शिवप्रकाश को रांची से जशपुर लाने की जिम्मेदारी जिस नेता को दी गई थी, उसने भी मौका पाकर शिवप्रकाश के कान में काफी कुछ फूंक दिया। सडक़ मार्ग से रांची से जशपुर तक आने में चार घंटे लगते हैं। इतने समय में संगठन की खामियों को गिनाने का भरपूर मौका मिल गया। फिर क्या था जशपुर में बैठक खत्म होने के बाद शिवप्रकाश, पवन साय को रांची साथ लेकर गए। यानी शिकायत का कुछ असर देखने को मिला।
दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में बैठे नेता, छत्तीसगढ़ के पार्टी नेताओं से नाखुश बताए जाते हैं। वजह यह है कि विधानसभा में बुरी हार के बाद भी छत्तीसगढ़ के नेता एकजुट नहीं हो रहे हैं, और वो एक-दूसरे की शिकायत लेकर दिल्ली पहुंच जाते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने तो बस्तर के चिंतन शिविर में यहां तक कह दिया था कि यहां के नेता सिर्फ शिकायतें करते हैं। ये नहीं बताते कि 14 सीट पर सिमटकर कैसे रह गए।
टीकाकरण की जमीनी हकीकत
देश में जब 100 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन लग गए तब मोदी सरकार ने इसका जश्न मनाया। अब नवंबर 2021 तक शत प्रतिशत आबादी को टीकाकरण कराने का लक्ष्य रखा गया है। छत्तीसगढ़ में करीब दो करोड़ लोगों को टीका (दोनों डोज) लगाने की जरूरत है। पर अब तक केवल 33 प्रतिशत लोगों को ही दूसरा डोज लग सका है। शत प्रतिशत टीकाकरण तभी माना जाएगा जब बाकी 67 प्रतिशत लोगों को भी दूसरा डोज लगाया जा सकेगा। इसके लिए करीब 60 दिन बचे हुए हैं। आने वाले दिनों में माहौल त्योहारों का रहेगा। गांव में भी धान की कटाई और मिंसाई को लेकर बड़ी व्यस्तता रहने वाली है। ऐसे में लक्ष्य कैसे हासिल किया जाए यह सोचना ज्यादा जरूरी है।
मेडिकल की 200 सीटें रह गईं खाली
एमसीआई ने सिर्फ कांकेर में प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज में दाखिले की अनुमति दी है। यह राज्य का 11 मेडिकल कॉलेज होगा। दूसरी तरफ कोरबा और महासमुंद मेडिकल कॉलेज को मंजूरी नहीं मिली। यानी इस वर्ष करोड़ों रुपयों के सेटअप से तैयार की गई 300 सीटों में से 200 सीटों पर दाखिला नहीं हो पाएगा। बताया जा रहा है कि कांकेर मेडिकल कॉलेज को भी इसलिए थोड़ी रियायत बरतते हुए मंजूरी दी गई क्योंकि यह आदिवासी बाहुल्य इलाके में खोला गया है। शर्त यह भी रखी गई है की एक सप्ताह के भीतर शेष कमियां दूर की जाएंगी और ऑनलाइन इंस्पेक्शन में इसका समाधान हो जाना चाहिये। महासमुंद मेडिकल कॉलेज को लेकर के तो यह बात सामने आ रही है कि यहां करीब ढाई करोड रुपए लैब और फर्नीचर के लिये मंजूर थे मगर खरीदी की प्रक्रिया उलझा दी गई। कोरबा में संविदा और आउटसोर्सिंग के जरिये भी स्टाफ के 50 फीसदी से ज्यादा खाली पद नहीं भरे जा सके। शायद, सब अफसरों के भरोसे छोडऩे की जगह जनप्रतिनिधि बाधाओं को दूर करने में प्रशासन और सरकार के स्तर पर समन्वय बनाते तो यह स्थिति पैदा नहीं होती।
हमारा नसीब बालाघाट से अच्छा..
यह बालाघाट के एक पेट्रोल पंप की तस्वीर है। दर्शाया गया है कि पेट्रोल का दाम बढक़र अब 120 रुपये 6 पैसे हो गया है। अपने रायपुर में यह 106.67 रुपये है। डीजल के दाम भी बालाघाट से कम ही हैं। क्या संतुष्ट रहने, खुशी-खुशी त्यौहार मनाने के लिये यह काफी नहीं है?
कौन आए, कौन नहीं?
राजनीतिक हलचल के बीच साइंस कॉलेज मैदान में आदिवासी महोत्सव का रंगारंग आगाज हुआ, तो लोगों का ध्यान स्वाभाविक रूप से देश -विदेश से आए कलाकारों पर था। निगाहें मंच पर बैठे अतिथियों पर भी थी। और इसमें स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की गैर मौजूदगी पर भी कानाफूसी होती रही।
सिंहदेव पिछले कई दिनों से दिल्ली में डटे थे। उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ बैठक में हिस्सा लिया। यह बैठक बड़ी थी, और इसमें सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्री भी थे। बैठक निपटने के बाद वो रायपुर आने के बजाए भोपाल निकल गए।
महोत्सव में अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में केसी वेणुगोपाल, पीएल पुनिया, अधीररंजन चौधरी, रणदीप सिंह सूरजेवाला, भक्त चरणदास को भी आमंत्रित किया गया है, लेकिन सिर्फ बीके हरिप्रसाद ही पहुंचे। खैर, कांग्रेस नेताओं के नहीं आने से महोत्सव की रौनक कम नहीं हुई । देश-विदेश से आए आदिवासी कलाकारों के नृत्य देखकर लोग झूम उठे।
जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट
सेंट्रल जेल में कैदियों से मेल मुलाकात के लिए नियम तय हैं। विचाराधीन वीआईपी कैदियों से जेलर के कक्ष में विशेष अनुमति से मुलाकात हो जाती है। लेकिन इस दौरान फोटो खींचने, और मोबाइल ले जाने पर मनाही रहती है। मगर कवर्धा कांड के आरोपी विजय शर्मा, और दुर्गेश देवांगन के वीआईपी मुलाकातियों के लिए जेल मैनुअल को भी दरकिनार कर दिया गया।
दोनों से मिलने प्रदेश भाजपा के बड़े नेता रोजाना सेंट्रल जेल पहुंच रहे हैं। नंदकुमार साय सेंट्रल जेल पहुंचे, तो विजय शर्मा ने साय के साथ बकायदा फोटो खिंचवाई, और फिर उनके समर्थकों ने फेसबुक पर अपलोड कर दिया। विजय शर्मा से मिलने बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, पवन साय, शिवरतन शर्मा सहित कई नेता जा चुके हैं। अजय तो उनके लिए मीठा-खारा भी लेकर गए थे। कुल मिलाकर विजय को जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है।
दबाया सबने, चुकाया एक ने
वैसे तो सरकारी दफ्तरों में करोड़ों रुपयों के गबन पर कोई कार्रवाई नहीं होती, पर मुंगेली नगरपालिका में सिर्फ 13 लाख की नाली नहीं बनने पर वहां के अध्यक्ष, सीएमओ, इंजीनियर और ठेकेदार लपेटे में आ गये। अध्यक्ष संतूलाल सोनकर को सुप्रीम कोर्ट से भी अग्रिम जमानत नहीं मिल पाई। शीर्ष कोर्ट ने सात दिन के भीतर निचली अदालत में आवेदन लगाने की छूट दी है। इस बीच सोनकर मंत्रालय में अपना पक्ष रखकर आ गये, कहा कि इंजीनियर, अधिकारियों की जांच के बाद ही उनके पास फाइल आती है और उनके मत के अनुसार ही सबसे आखिर में वे हस्ताक्षर करते हैं। इसके बावजूद जमानत का पेंच तो फंसा हुआ है। अब हुआ यह है कि जिस ठेकेदार पर बिना नाली बनाये भुगतान लेने का आरोप है, उनके पिता ने नगरपालिका के खाते में पूरी राशि वापस जमा करा दी है। कहा जा रहा है कि अब अध्यक्ष महोदय को अग्रिम जमानत मिलने में आसानी होगी। बाकी आरोपी भी अभी फरार ही हैं।
सबने तो मिल-बांटकर राशि की गड़बड़ी की होगी पर अकेले ठेकेदार के सिर पर भुगतान की जिम्मेदारी क्यों आई? जवाब मिला, क्योंकि बाकी ने तो लिफाफे या टेबल के नीचे से लिये होंगे, बिल तो ठेकेदार के नाम पर ही जारी हुए थे। यह भी सवाल बना हुआ है कि राशि वापस जमा करा देने से अब अभियोजन का पक्ष तो मजबूत हो सकता है। साबित हो गया कि नाली बनाये बगैर भुगतान कर दिया गया था। वरना क्या पड़ी थी 13 लाख रुपये जमा करते? बहरहाल, अध्यक्ष सहित आधा दर्जन लोगों को जेल जाना पड़ेगा या बेल मिल जायेगी, यह सवाल बना हुआ है।
काबुल रिटर्न सैनिक स्कूल की प्राचार्य
सैनिक स्कूल अंबिकापुर में पहली बार महिला प्राचार्य नियुक्त की गई हैं। कर्नल जितेंद्र डोगरा के तबादले के बाद यह जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता को दी गई है। पर खास बात केवल प्राचार्य का महिला होना नहीं हैं। इंटरनेट सर्फ करेंगे तो उनकी उपलब्धियों से भरी कई जानकारी हाथ लगेगी। सेना मेडल, वीरता पुरस्कार पाने वाली मिताली थल सेना की पहली और एकमात्र महिला अधिकारी हैं। वह ज्यादा चर्चा में तब आई थीं जब 26 फरवरी 2010 को काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले के दौरान एक बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने आतंकवादी हमले के दौरान 7 भारतीय समेत 19 राजनयिकों की जान बचाई। भारत ही नहीं देश के बाहर भी उनके साहस की सराहना हुई। अंबिकापुर सैनिक स्कूल में पद संभालने के बाद उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में यहां के बच्चे प्रवेश पा सकें और छत्तीसगढ़ का नाम ऊंचा कर सकें, यह उनका लक्ष्य होगा।
सरेंडर पर भाजपा में बिखराव
कवर्धा में दो समुदाय से उपजे दंगे के शांत होने के बाद पुलिस भाजपा नेताओं की धरपकड़ से पार्टी के भीतर बिखराव की हालत बन गई है। खास तौर पर सरेंडर के मामले में सामूहिक समर्पण के निर्णय पर ही नेताओं में फूट पड़ गई है। बताते है कि भाजपा नेता विजय शर्मा की वजह से पार्टी की सरेंडर नीति धरी की धरी रह गई। बताते है कि विजय शर्मा ने सरेंडर पर राज्यसभा सांसद सरोज पांडे से व्यक्तिगत राय ली थी। पांडे ने बिना किसी हिचक के फौरन शर्मा को अदालत में समर्पण की सलाह दे दी। दरअसल शर्मा को सियासी फायदे में यह लगा कि अकेले सरेंडर करने से उनकी राजनीतिक छवि सशक्त होगी। उनकी इस महत्वाकांक्षा से साझा सरेंडर की तैयारी में लगे दीगर नेताओं को झटका लगा। शर्मा को दो मामलों में जमानत मिल गई लेकिन एक्ट्रोसिटी प्रकरण में राहत नहीं मिली है। सुनते है कि कवर्धा में अब भाजपा नेताओं के राजनीतिक मंसूबों पर भी सवाल उठ रहे है। दीवाली सिर पर है ऐसे में कुछ आरोपी जेल में बंद हैं। घर-परिवार के लोग त्यौहार से पहले अपनों को जेल से बाहर भी देखना चाहते हैं। चर्चा है कि भाजपा के आला नेताओं के बाहर घूमने पर कवर्धा में कानाफूसी भी हो रही है।
चिट्ठी और सुकमा का नाता
सुकमा एसपी सुनील शर्मा के लिए विभागीय खामी से बाहर निकली एक गोपनीय चिट्ठी परेशानी का सबब बन गई है। 2017 बैच के आईपीएस शर्मा पहली बार एसपी बने और उनकी पोस्टिंग के चार माह के भीतर धर्मांतरण से जुड़े गंभीर मामले के पत्र के सार्वजनिक होने के बाद से विपक्षी भाजपा के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। सुनते हैं कि पत्र में लिखे शब्दों को भाजपा प्रचारित कर रही है कि सरकारी कागजात में धर्मांतरण को स्वीकार किया गया है। वैसे सुकमा का चिट्ठी के जरिए विवादों से पुराना नाता रहा है। जितेन्द्र शुक्ला को भी सरकार ने मंत्री को प्रोटोकॉल से परे पत्र लिखने के मामले में सुकमा से हटा दिया था। धर्मांतरण के मसले पर भाजपा, सरकार पर हमलावर है. ऐसे में शासकीय पत्र के लीक होने से शीर्ष अफसर और सरकार नाराज हो गए हैं। खबर है कि दीपावली के बाद राज्य सरकार नए जिलों में ओएसडी पदस्थ करने के साथ ही कुछ जिलों के एसपी को इधर-उधर कर सकती है। चिट्ठी के चलते सुकमा एसपी को बदलने की चर्चाएं प्रशासनिक हल्के में जोर पकड़ रही हैं।
कांग्रेसी नशे का समर्थन करें या विरोध?
एक नवंबर से कांग्रेस का सदस्यता अभियान शुरू हो रहा है, जो मार्च तक चलेगा। सदस्यता फॉर्म के साथ एक शपथ पत्र भी होगा जिसमें बताना है कि मैं नियमित रूप से खादी धारण करता हूं, शराब और मादक पदार्थों से दूर रहता हूं। सामाजिक भेदभाव और असमानता को खत्म करने में विश्वास रखता हूं।
एक पुराने कांग्रेसी की टिप्पणी थी, शुक्र है ये सब शर्तें नई सदस्यता लेने वाले पर लागू होनी है। वरना हमें ये शपथ लेनी पड़ती तो शायद सदस्य बन ही नहीं पाते। अब देखिये कांग्रेस सदस्यता के लिये नशे से दूरी जरूरी है, दूसरी तरफ हमारे छत्तीसगढ़ से ही प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद केटीएस तुलसी साहब ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल ही दायर कर दी है कि ड्रग्स की छूट दी जानी चाहिये क्योंकि यह दर्द और तनाव कम करता है। हो सकता है तुलसी जी की बातें ठीक हों, पर अनेक लोग मानते हैं कि मानसिक तनाव कम करने के लिये नशे की जगह अध्यात्म, प्रेरक विचार, संकल्प, इच्छाशक्ति ज्यादा काम की चीज है। इस याचिका को आधार बनाकर कहीं सदस्यता के नियम को ही चुनौती न दे दी जाये।
अमरकंटक की तराई पर फिर विवाद
मध्यप्रदेश का बंटवारा हुआ तो अमरकंटक ही नहीं बल्कि पूरे शहडोल जिले के लोग छत्तीसगढ़ में शामिल होना चाहते थे। अमरकंटक का मुख्य मंदिर मध्यप्रदेश के हिस्से में है जबकि अन्य कई दर्शनीय स्थल माई की बगिया, राजमेरगढ़, जलेश्वर धाम आदि छत्तीसगढ़ में आते हैं। पर सीमा को लेकर आये दिन विवाद होता है। जलेश्वर मंदिर पर अमरकंटक की नगर पंचायत द्वारा मकान नंबर की सील टांक देने से यह विवाद फिर खड़ा हो गया है। हालांकि राजस्व रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के पक्ष में दुरुस्त है फिर भी जिस तरह से यह मुद्दा बार-बार उठ जाता है कोई स्थायी हल निकालना दोनों राज्यों के लिये जरूरी है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजमेरगढ़ की यात्रा की थी। मैकल पर्वत श्रृंखला की यह सबसे ऊंची जगह है, जहां पहुंचा जा सकता है। उन्होंने इसे इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के अनुरूप संवारने की घोषणा की थी। भाजपा शासनकाल में, तत्कालीन धर्मस्व व संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी इस जगह के विकास के लिये पहल की थी। पर उनके सब काम अधूरे रह गये, खंडहरनुमा अवशेष दिखाई देते हैं। अमरकंटक के ठीक नीचे छत्तीसगढ़ के अनेक दर्शनीय स्थल आज उपेक्षा के शिकार हैं जबकि गौरेला ही नहीं पूरे राज्य के लोगों का अमरकंटक से खासा लगाव है। जीपीएम और बिलासपुर जिले के लोग इस क्षेत्र को उसके वैभव के अनुरूप संवारने के लिये बार-बार गुहार लगाते रहे हैं, पर सरकार बदल गई, कुछ नहीं हो रहा है।
मैनपाट के बाद कारीपाट के टीचर की बात..
प्रदेश में वैसे को कोरोना काल के दौरान छोटे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बनाये रखने के लिये बहुत से कदम उठाये गये थे, जैसे मोहल्ला क्लास, बुल्टू, पढ़ाई तुहंर द्वार। ये काम निर्देश पर शिक्षकों ने किये। पर अपने स्तर पर रुचि लेकर बच्चों को स्कूल की ओर खींचने का काम कोई जुनूनी शिक्षक ही कर सकता है। पिछले महीने 30 सितंबर को इस कॉलम में मैनपाट के जामझरिया स्कूल के शिक्षक अरविंद गुप्ता का जिक्र हुआ था। कोरोना के बाद स्कूल आने की दुबारा आदत डालने के लिये उन्होंने अपने खर्च से दीवारों में रंग बिरंगी तस्वीरें उकेरीं, महीने में पूरे दिन स्कूल आने वाले बच्चों को जूते कपड़े आदि गिफ्ट देना शुरू किया। असर यह हुआ कि वहां उपस्थिति 100 फीसदी हो गई है।
कुछ इसी तरह का काम बलौदाबाजार जिले के बिलाईगढ़ ब्लॉक के कारीपाट स्कूल के शिक्षक विनोद डडसेना कर रहे हैं। उन्होंने स्कूल की दीवारों पर बच्चों को लुभाने वाली आकर्षक कलाकृतियां उकेरी हैं। पहाड़े और सूक्तियां लिख डाले हैं। यहां ऐसा करना ज्यादा जरूरी इसलिये भी था, क्योंकि कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों को बंद करने का फरमान निकालने में सरकार देरी नहीं करती। शिक्षक विनोद की कोशिश से यहां की दर्ज संख्या 3 से बढक़र 20 हो चुकी है। इनकी कोशिश को देखते हुए विभाग ने एक और शिक्षक की नियुक्ति यहां कर दी है। पहले वे अकेले ही पहली से पांचवी तक के बच्चों को पढ़ा रहे थे। निजी स्कूलों से प्रतिस्पर्धा के लिये इस समय प्रदेश में अनेक स्वामी आत्मानंद स्कूल खोले गये हैं, पर बिना किसी सरकारी मदद के भी निजी स्कूल, पब्लिक स्कूल के बच्चों को सरकारी स्कूलों की ओर आकर्षित किया जा सकता है, यह इसका उदाहरण है। शासन के स्तर पर ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
आगे-आगे होता है क्या
शहर के बाहरी इलाके में एक पुराने राजनीतिक परिवार द्वारा स्थापित कन्या आश्रम, और उससे लगे मंदिर की करोड़ों की जमीन की सौदेबाजी का हल्ला है। मंदिर के ज्यादातर ट्रस्टी परिवार के सदस्य ही हैं। सुनते हैं कि मंदिर के पास ही करीब 10 एकड़ से अधिक जमीन है। इसकी देखरेख मंदिर ट्रस्ट ही करता है। ट्रस्ट के ज्यादातर सदस्य प्रदेश से बाहर रहते हैं। और अब जमीन के सौदे की चर्चा शुरू हुई, तो ट्रस्टियों के बीच मनमुटाव की खबरें आने लगी हैं। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
सावधानी नहीं तो तीसरी लहर
आदिवासी नृत्य महोत्सव कल से शुरू हो रहा है। कोरोना संक्रमण के बीच 8 देशों, और देश के 27 राज्यों के कलाकार महोत्सव में शिरकत कर रहे हैं। कोरोना की वजह से पिछले साल नृत्य महोत्सव नहीं हो सका। मगर इस बार भी खतरा कम नहीं है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि चीन, और दूसरे कई देश में लॉकडाउन की ओर जा रहे हैं। भारत में सौ करोड़ वैक्सीन लगने के बाद कुछ हद तक कोरोना नियंत्रण में है, लेकिन अभी भी खतरा टला नहीं है। इंदौर में तो नए वेरिएंट का पता चला है। छत्तीसगढ़ में भी रोजाना दो दर्जन से अधिक मामले आ रहे हैं। ऐसे में नृत्य महोत्सव जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में खतरा बरकरार है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि वैक्सीनेशन के बाद भी सावधानी नहीं बरती तो तीसरी लहर आ सकती है।
तीनों बार चुनाव में हारे हैं....
भाजपा में कई ऐसे नेता हैं जिन्हें सत्ता, और संगठन में लगातार महत्व मिला है। चुनावी राजनीति में सफल न होने के बाद भी ऐसे नेताओं को पद देने की शिकायत भी हुई है। सुनते हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश भी इससे हैरान हैं। शिवप्रकाश बीते सोमवार को जशपुर पहुंचे, और उन्होंने संभाग की बैठक लेकर स्थानीय नेताओं का परिचय लिया।
प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंहदेव ने अपना परिचय कुछ अलग अंदाज में दिया कि वो अंबिकापुर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े हैं। शिवप्रकाश ने पूछा कि क्या वो विधायक हैं? अनुराग ने कहा-नहीं। विधानसभा का चुनाव हार गए थे। फिर शिवप्रकाश ने पूछा कि कितनी बार चुनाव लड़े हैं? अनुराग ने कहा कि वो तीन बार चुनाव लड़े थे। इस पर शिवप्रकाश ने लगभग झल्लाते हुए कहा कि आप पूरा परिचय दें कि तीन बार चुनाव लड़े थे, और तीनों बार चुनाव में हारे हैं।
चुनाव में हार के बाद अनुराग भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके बाद प्रदेश मंत्री बने, और अभी प्रदेश प्रवक्ता हैं। कुछ इसी तरह कृष्णा राय सत्ता, और संगठन में हमेशा महत्वपूर्ण बने रहे हैं। रमन सरकार के तीनों कार्यकाल में निगम-मंडल के चेयरमैन रहे। प्रदेश के महामंत्री रहे, और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हैं। शिवप्रकाश को आश्चर्य हुआ कि चुनाव लड़े बिना कई नेताओं को लगातार सत्ता, और संगठन में महत्व मिलते रहा है।
प्रिंटर को इस साल निराशा
पिछले दो दशक से विशेषकर भाजपा नेताओं का दीवाली-नववर्ष का बधाई संदेश छापने वाले एक प्रिंटर को इस साल निराशा हाथ लगी है। वजह यह है कि ज्यादातर नेताओं ने दीवाली की बधाई का संदेश कार्ड छपवाने से मना कर दिया है। नेताओं ने उन्हें यह कहकर लौटा दिया है कि इस बार कार्ड भेजने के बजाए वाट्सएप मैसेज से बधाई देंगे। प्रिंटर को सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल का ऑर्डर मिला है। भाजपा के भीतर बृजमोहन को उदार नेता माना जाता है। वो तीज-त्योहार के मौके पर अपने शुभचिंतकों, और कार्यकर्ताओं का पूरा ख्याल रखते हैं। उन्हें कम से कम शुभकामना संदेश जरूर भेजते हैं।
आदिवासियों की कष्टदायक पदयात्रा
हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला उत्खनन से बचाने के लिए 11 दिन की 330 किलोमीटर लंबी यात्रा कर सरगुजा और कोरबा जिले के आदिवासी राजधानी पहुंचे थे। जितने धक्के धूल खाए, पसीने बहाए, राजधानी पहुंचने पर वैसा उनका स्वागत नहीं हुआ। जिनके पास अपनी बात रखने में आए थे उनसे मिलने में भी काफी मुश्किलें आई और नतीजा भी नहीं निकला। जैसे ही यात्रा खत्म हुई, कोल ब्लॉक के नए आवंटन की अधिसूचना जारी कर दी गई। दूसरी ओर अंतागढ़ से यात्रा निकली थी कि उन्हें नगर पंचायत नहीं चाहिए, ग्राम पंचायत की व्यवस्था में ही रहने दिया जाए। उनकी भी बात सुनी तो गई, पर आश्वासन ठोस नहीं मिला। अब 4 दिन पहले एक और यात्रा कांकेर जिले से निकली है, जो 13 ग्राम पंचायतों को नारायणपुर जिले में शामिल कराना चाहते हैं। इन्होंने जिला स्तर पर प्रदर्शन किए, ज्ञापन दिए। बात नहीं बनी तो पैदल राजभवन के लिए निकल चुके हैं। इसमें करीब डेढ़ हजार महिलाएं और पुरुष शामिल हैं। संख्या के लिहाज से ज्यादा बड़ी यात्रा। जब धमतरी से ये गुजर रहे थे, तब वहां के कलेक्टर की संवेदनशीलता दिखी। उन्होंने आग्रह किया कि राजधानी दूर है, पैदल चलने की जरूरत नहीं है। उनकी बात में सरकार तक पहुंचाएंगे। पर यात्रियों ने इससे मना कर दिया। उन्हें फिर ठगे जाने का डर लग रहा होगा। यह अच्छा रहा कि प्रशासन ने उनके ठहरने और भोजन की व्यवस्था की। इसके पहले की यात्राओं में तो पूरे रास्ते उनकी कोई सुध नहीं ली गई यहां तक की राजधानी पहुंचने के बाद भी।
एक महीने से भी कम समय में यह आदिवासियों की तीसरी लंबी कष्टदायक पदयात्रा है। देखें इन्हें अपनी मांगों को मनवाने का मौका मिलता है या नहीं। संयोग है कि इसी दौरान अंतरराष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की राजधानी में देखने को मिलेगा, लेकिन पैरों में छाले होने के कारण शायद यह उनका साथ नहीं दे पाएंगे।
स्कूल का राशन ढोकर लाते शिक्षक
कुपोषण से मुक्ति के लिए सरकार बलरामपुर जैसे सर्वाधिक प्रभावित जिले में कुछ कर रही होगी तो इसकी खबर तो कम मिलती है। मगर एक दृश्य जरूर ध्यान खींच सकती है। यह प्रशासनिक तंत्र की विफलता का भी नमूना है। इस तस्वीर में बलरामपुर जिले के 2 शिक्षक कंधे पर राशन ढोकर 8 किलोमीटर दूर स्कूल जा रहे हैं। यह शिक्षक खडिय़ा डामर ग्राम पंचायत में पढ़ाते हैं। जब-जब राशन की जरूरत पड़ती है, वे इसी तरह से बोरियों को कंधे पर लादकर ले जाते हैं क्योंकि सडक़ इतनी खराब है कि वहां कोई भी गाड़ी नहीं चल सकती। इन शिक्षकों के इस प्रयास को सैल्यूट तो करना ही चाहिए। जितना जरूरी बच्चों का दाखिला है उतना ही जरूरी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें स्कूल में भोजन देना भी जरूरी है।
मंत्री ऐसे कैसे ले लें कलेक्टरों की बैठक?
मुख्यमंत्री इन दिनों लगातार अनेक विभागों की समीक्षा बैठक ले रहे हैं। कलेक्टर से लेकर मंत्रालय तक के अधिकारियों के साथ समीक्षा हो रही है। कोई बंदिश नहीं, वे सभी विभागों की समीक्षा कर सकते हैं। हाल के दिनों में उन्होंने पंचायत, स्वास्थ्य, शिक्षा, गृह आदि विभागों की समीक्षा की है।
राजस्व मंत्री को भी लगा होगा कि अपने विभाग की बड़ी शिकायतें हैं। पेंडिंग मामले बढ़ रहे हैं। जमीन की अफरा-तफरी की बड़ी शिकायतें आ रही हैं, सो इसका हल अफसरों ने बताया होगा कि वे भी कलेक्टर्स कांफ्रेंस बुला लें। एक साथ सभी कलेक्टर्स को वीडियो कांफ्रेंस से जोड़ें और चुस्त करने के लिये कुछ डांट फटकार दें। तारीख तय हो गई, सभी कलेक्टरों को सूचना भेज दी गई। पर इधर आईएएस अधिकारियों में हलचल मच गई। उन्होंने कहा कि कलेक्टर तो सीधे मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। मामला तूल पकड़ता इसके पहले ही मामला संभाल लिया गया और एक पत्र फिर जारी कर बताया गया कि मंत्री जी के साथ कलेक्टर्स की होने वाली 28 और 30 अक्टूबर की बैठक निरस्त की जाती है।
सौ करोड़ की उपलब्धि में ये कैसी गड़बड़ी
देशभर में मोदी सरकार या कहिये मोदी के मजबूत नेतृत्व की सराहना की जा रही है कि कोविड के 100 करोड़ वैक्सीन लोगों को लगाये जा चुके हैं। दुनिया के किसी और देश में ऐसा नहीं हो पाया ऐसा भी दावा किया जा रहा है। पर चीन ने शायद इससे ज्यादा टीके लगाये हैं। यह भी आंकड़ा सामने आया है कि अपने देश में सिर्फ 22 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लग पाये हैं। पर कुछ मेसैज इस तरह से भी मोबाइल फोन पर आ रहे हैं जो कुछ सवाल पैदा करते हैं। गोपाल दास चावला के पास 26 जून को कोविन एप से बधाई संदेश आया जिसमें बताया गया कि आपने सेकंड डोज सफलता पूर्वक 26 जून 2021 को लगवा लिया और दिये गये लिंक से अपना वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट डाउनलोड कर सकते हैं। गोपाल दास निश्चिंत हो गये। पर इसके बाद एक संदेश कुछ महीने के बाद फिर आ गया। इसमें कहा गया कि बधाई हो, आपने दूसरा डोज सफलतापूर्वक 19 अक्टूबर को लगवा लिया है। आप लिंक से अपना सर्टिफिकेट डाउनलोड कर लें। चावला जी हैरान हैं कि उन्होंने तो जून में दोनो डोज लगवा लिये थे पर ये तीसरे डोज की सूचना कैसे मिल रही है। एक अन्य मोबाइल धारक ने बताया कि उन्होंने इन नंबर का कोविड टीका लगवाने क लिये रजिस्टर्ड कराया ही नहीं है लेकिन उनको मैसेज आ गया, बधाई हो सोनू जी आपने दूसरा डोज सफलता से लगवा लिया है। मोबाइल धारक का नाम सोनू भी नहीं है, वह किसी और नाम से रजिस्टर्ड है। ये 100 करोड़ का आंकड़ा कहीं इसी तरह से तो नहीं हासिल किया गया?
शानाओ मा गुजरातीनो अभ्यास करियो
एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना के तहत स्कूलों में श्रेष्ठ भारत क्लब बनाया जायेगा। इसके तहत छत्तीसगढ़ के बच्चों को साझा राज्य गुजरात की वर्णमाला, गीत, कहावत ही नहीं उनकी कला और संस्कृति से संबंधित निबंध भी सीखना होगा। गुजरात की संस्कृति, इतिहास, परंपरा जाननी होगी, नाटकों का मंचन भी करना होगा। आदेश तो आ गया है, संस्कृतियों को साझा करने से किसी को ऐतराज नहीं हो सकता है पर छत्तीसगढ़ को लेकर अलग ही बात है। छत्तीसगढ़ी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने, प्राथमिक शिक्षा में पूरी तरह इसे शामिल करने और आठवीं अनुसूची में जगह दिलाने के लिये दो दशक से भी ज्यादा काम करने वाले अनेक आंदोलनकारियों को यह फरमान हास्यास्पद लग रहा है। जिस राज्य में अपने ही बच्चों, युवाओं, अफसरों को अपनी ही छत्तीसगढ़ी भाषा की आदत नहीं डाली जा सकी, क्या वे गुजराती के लिये आये दिशा-निर्दशों को लागू कर पायेंगे? स्कूलों में भी पहले तो शिक्षकों को ही गुजराती भाषा, कला, कला-संस्कृति सीखनी होगी जिनके लिये अब भी छत्तीसगढ़ी में अध्ययन कराना आसान नहीं हो पाया है। वैसे यह पता नहीं चला है कि क्या गुजरात में भी इस आदान-प्रदान योजना के तहत प्राथमिक स्कूलों में छत्तीसगढ़ी पर यही काम होने वाला है?
कहीं पे तीर कहीं पे निशाना
राजनांदगांव के पूर्व कलेक्टर गणेशशंकर मिश्रा भाजपा में शामिल होने के बाद से सिलसिलेवार नांदगांव के दौरे पर बने हुए हैं। भाजपा में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत बनाने के सियासी इरादे के पीछे जीएस का पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से नजदीकियां बढ़ाना है। वह यह मानकर चल रहे हैं कि दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में रमन की टिकट वितरण में सीधी दखल होगी। वैसे भाजपा में जीएस जिस तामझाम से शामिल हुए थे, उसकी तुलना में पार्टी के भीतर उनकी खास पकड़ नहीं बन पाई है। राजनांदगांव में कल शिवनाथ नदी की गंगा आरती आयोजन के पीछे जीएस ने ही जिम्मा सम्हाला था। नदी की आरती के कार्यक्रम में रमन शामिल हुए। धरसींवा से विधानसभा टिकट की उम्मीद लगाए जीएस मिश्रा आईएएस होने के मापदंड पर अपनी उम्मीदवारी को लेकर आशावान है। यहां यह भी बता दें कि डायरेक्ट आईएएस रहते ओपी चौधरी ने भाजपा की सदस्यता ली, पर खरसिया से पिछले चुनाव में मिली हार के बाद से उनकी सियासी स्थिति काफी कमजोर हुई। जीएस मिश्रा प्रमोटी आईएएस रहते रिटायर हुए हैं। राजनांदगांव के कार्यक्रम के सूत्रधार जीएस मिश्रा कहीं पे तीर कहीं पर निशाना लगाते हुए अपनी टिकट के लिए सियासी उठापटक कर रहे हैं।
मल्टीनेशनल कंपनी के बीज का हश्र
नये कृषि कानून लागू होने के बाद खेती में रुचि लेने वाली मल्टीनेशनल कंपनियों से किसानों को किस तरह से झटका लग सकता है इसका नमूना दुर्ग, पाटन और धमधा में देखने को मिल सकता है। यहां 269 किसानों ने हैदराबाद की एक मल्टीनेशनल कंपनी की सलाह और निगरानी में नर-नारी बीज बोये। मालामाल हो जाने का भरोसा दिया गया था। पर, धान का उत्पादन केवल 10 फीसदी हो पाया। किसानों को करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये का नुकसान हो गया। यह सब कृषि विभाग की सलाह और आश्वासन पर हुआ इसलिये जब फसल बर्बाद हो गई तो किसानों ने अधिकारियों पर दबाव बनाया। ये जागरूक किसान थे, ज्यादातर ने वैकल्पिक प्रचलित बोनी भी की थी, इसलिये लड़ रहे हैं। अब जाकर उनको आश्वासन मिला है कि मुआवजा मिलेगा और उनके खाते में आयेगा। सब सही हो जाये तो ठीक- पर अगर मुआवजा देने से कंपनी ने इंकार कर दिया तो? क्या फैसला अदालत से होगा, या फिर नये कानून के अनुसार एसडीएम सर्वेसर्वा होंगे?
सिंहदेव पर सरगुजा के तेवर
यह पहला मौका नहीं, जब कांग्रेस संगठन और सरकार को सरगुजा जिले में कार्यकर्ताओं की नाराजगी का शिकार होना पड़ा है। खासकर सिंहदेव समर्थकों की।
पिछले महीने जब पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दौरा लगभग तय था, मंत्रियों को कार्यकर्ताओं का ख्याल आया था। तब उन्होंने साफ कहा था कि अधिकारी उनको प्रताडि़त कर रहे हैं, मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। इससे पूर्व भाजपा की सरकार में वे इतने परेशान नहीं हुए थे। तब किसी तरह मंत्री शिव डहरिया और प्रेम साय ने स्थिति संभाल कर उनको मनाया था। पर तालमेल अब तक नहीं बैठ पाया।
राजीव भवन में प्रभारी सचिव सप्तगिरी उल्का के सामने कल उनका आक्रोश फिर फूट गया। इस बार कार्यकर्ताओं ने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री वाले प्रश्न भी किए। कहा, वरिष्ठता के लिहाज से सिंहदेव के दूसरे नंबर की मंत्रिमंडल में होने सदस्य के बाद भी उनकी उपेक्षा हो रही है।
ज्यादा रोष यूथ कांग्रेस और छात्र संगठन में दिखा। वे कह रहे थे स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं से उनके पोस्टर से सिंहदेव की तस्वीर गायब हैं। कुछ जोशीले लोगों तो ये भी चेतावनी दे दी है कि अगले चुनाव में अच्छे नतीजों की उम्मीद न रखें।
यानि सरगुजा से लेकर दिल्ली तक जो बवाल हो रहा है उसने बीजेपी की आंखों में चमक तो ला ही दी है।
मनेंद्रगढ़ के साथ नाम का विवाद
वैसे तो 15 अगस्त को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिन 4 जिलों की घोषणा की थी, मुख्यालय और कार्यालय के मामले में स्थानीय उपेक्षा को लेकर लगभग चारों जगहों से विरोध प्रदर्शन किया गया था। पर लगता है मनेंद्रगढ़ चिरमिरी जिले का विवाद सुलझाने में सरकार और प्रशासन को कुछ ज्यादा ही कठिनाई हो रही है।
मानपुर मोहला, सक्ती और सारंगढ़ जिले मुख्यमंत्री द्वारा 15 अगस्त को की गई घोषणा के लगभग साढ़े पांच माह बाद अस्तित्व में आ जाएंगे, किंतु मनेंद्रगढ़, चिरमिरी का मामला लटक गया है। अफसरों का कहना है कि इस जिले का नाम क्या हो, कौन-कौन सी तहसील शामिल की जाए और मुख्यालय किसे बनाया जाए। इस पर विवाद सुलझाने में फिलहाल दिक्कत हो रही है। सवाल कोरिया जिले से कुछ तहसीलों को काटने का भी खड़ा हुआ है। देखना है इस इलाके के लोगों को समझौते की राह कब मिलेगी।
जिले का सबसे बड़ा नेता कलेक्टर...
कलेक्टर कॉन्फ्रेंस में सरकारी योजनाओं पर चर्चा के बीच सीएम भूपेश बघेल कह गए कि कलेक्टर जिले का सबसे बड़ा नेता होता है। सीएम की टिप्पणी पर कलेक्टर मुस्कुराए बिना नहीं रह सके। सीएम ने आगे कहा कि कलेक्टर को हर चीज की जानकारी होनी चाहिए। कवर्धा जैसी घटनाओं का जिक्र कर सीएम ने कलेक्टरों को एसपी के साथ तालमेल बिठाकर नसीहत दी, और कहा कि आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए। बताते हैं कि कुछ जिलों में कलेक्टर और एसपी के बीच खींचतान चल रही है, और इसका असर जिले की कानून व्यवस्था पर पड़ता दिख रहा है। सीएम ने कॉन्फ्रेंस में इस पर अपनी चिंता जताई है।
योजनाओं के क्रियान्वयन में मुंगेली फिसड्डी
कॉन्फ्रेंस में जिलों में चल रही योजनाओं के क्रियान्वयन की भी समीक्षा की गई। समीक्षा में यह पाया गया कि मुंगेली जिला तकरीबन सभी योजनाओं के क्रियान्वयन में फिसड्डी साबित हुआ है। इसी तरह बेमेतरा, और कवर्धा का परफॉर्मेंस भी अच्छा नहीं रहा। सीएम ने इस पर नाराजगी जताई है, और तेज रफ्तार से काम करने के निर्देश दिए। मुंगेली जिले में तो कई योजनाओं की धीमी रफ्तार की शिकायत को लेकर स्थानीय लोग पिछले दिनों प्रभारी मंत्री रूद्र कुमार गुरू से मिलने राजीव भवन पहुंचे थे। यहां के कलेक्टर अजीत बसंत का पहला जिला रहा, और इससे पहले वो जीपीएम में एडिशनल कलेक्टर थे। बसंत ने जीपीएम में बेहतर काम किया था, और अमित जोगी और रिचा जोगी के जाति प्रमाण पत्र की जांच की थी। ऐसे मेें कामकाज अपेक्षाकृत बेहतर न होने के बाद भी पुराने रिकॉर्ड के आधार पर उन्हें बदले जाने की संभावना कम है।
आंदोलन गृहणियों पर भारी पड़ा
प्रदेश कांग्रेस के फरमान का पालन करते हुए कांग्रेस ने हर जिले में टमाटर और दूसरी सब्जियां खरीदी। महंगाई के चलते को बिक्री घट रही थी सब्जी मंडी वाले मना रहे थे कि ऐसा आंदोलन रोज हो। पर गलियों में वेंडर गुमटी वालों ने इस दिन सब्जी के रेट बढ़ा दिए। 60 की टमाटर 80 में बिकी। बाकी तरकारियों का भी हाल यही रहा। पूछने पर बताया आज माल का शॉर्टेज है। सब कांग्रेस के आंदोलन में खप जा रहा है। गड़बड़ हुई जिन लोगो के बारे में सोचकर आंदोलन किया गया उन्हें ही यह भारी पड़ा।
नए एसपी के समक्ष चुनौतियां
खबर है कि नक्सलियों का मूवमेंट दीवाली के बाद बढ़ सकता है। इस बार सुकमा-बीजापुर, और दंतेवाड़ा के बजाए नए इलाकों में नक्सली वारदात को अंजाम दे सकते हैं। आशंका है कि नारायणपुर जिले में सक्रियता बढ़ा सकते हैं। बताते हैं कि अबूझमाड़ इलाके का बड़ा हिस्सा नारायणपुर जिले में आता है। इस इलाके से बड़े पैमाने पर नक्सलियों ने युवाओं की भर्ती की है।
नारायणपुर जिले के एसपी को कुछ दिन पहले ही बदला गया है। विवादित आईपीएस उदय किरण की जगह गिरजाशंकर जायसवाल को एसपी बनाया गया है। गिरजाशंकर नक्सल क्षेत्र में काम करने का कोई खास अनुभव नहीं है। वो जशपुर, और सूरजपुर एसपी रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि नक्सल सक्रियता के चलते आने वाले दिनों में उनके रणनीतिक कौशल की परीक्षा हो सकती है।
मंत्रीजी से मिलिए...
मंत्रीजी से मिलिए कार्यक्रम, क्या शुरू हुआ राजीव भवन में कार्यक्रम का प्रभार पाने के लिए पदाधिकारियों में होड़ मच गई। मरकाम की सहमति से सबसे पहले महामंत्री अमरजीत चावला को कार्यक्रम का समन्वयक बनाया गया। और डॉ. कमल नयन पटेल को सहसमन्वयक का दायित्व सौंपा गया।
फिर अगले दिन संशोधित आदेश निकला। इसमें कारोबारी नेता राजेश चौबे एक और सहसमन्वयक बनाया गया। चर्चा है कि राजेश को सहसमन्वयक बनवाने में सभापति प्रमोद दुबे की अहम भूमिका रही है। इसके बाद पीसीसी ने एक और आदेश निकालकर कार्यक्रम के मीडिया समन्वयक की जिम्मेदारी प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर को दी। स्वाभाविक है कि मंत्रीजी के कार्यक्रम को मीडिया तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी किसी प्रवक्ता को देनी थी।
प्रदेश में पार्टी की सरकार है। कुछ पदाधिकारियों को तो निगम मंडल में जगह पा गए। कईयों के पास पद है लेकिन संगठन का कोई काम नहीं है। ऐसे में मंत्रीजी से मिलवाने के बहाने कार्यकर्ताओं और आम लोगों से मुलाकात हो जा रही है, और इससे मंत्रीजी से संबंध भी बेहतर हो रहे हैं। जो कि ज्यादा जरूरी है।
कौन किस पर भारी पड़ेगा...
प्रदेश के एक छोटे जिले के एसपी के खिलाफ वहां के थानेदार लामबंद हो गए हैं। चर्चा है कि थानेदारों ने कुछ बिन्दुओं पर एसपी के खिलाफ अपनी बात एक ताकतवर मंत्री तक पहुंचाई है। बताते हैं कि एसपी को भी थानेदारों की मुहिम की जानकारी हो गई है। उन्होंने भी अपनी तरफ से कानून व्यवस्था को बेहतर करने के लिए थानेदारों को बदलने का सुझाव ‘ऊपर’ भेजा है। देखना है कि कौन, किस पर भारी पड़ता है।
जागरूक नागरिक चाहिए
हिंदुस्तान के बहुत से शहरों में ऐसा नजारा देखने मिलता है जहां फुटपाथ पर चलने वाले लोग एकदम से धरती में समा सकते हैं। ऐसी नौबत के लिए म्युनिसिपल या राज्य सरकार पर किसी मौत के पहले भी मुकदमा दायर किया जा सकता है। इसके लिए जागरूक नागरिकों की जरूरत होती है, कानून तो बहुत से हैं।
हिंदुस्तानियों का असर...
वैसे तो गूगल अमरीकी कंपनी है जिसके देश में औरतों से भेदभाव कम है, लेकिन उसके बनाये हिज्जे सुधारने वाले एप्लिकेशन में भी बच्चियों की जगह बच्चा सुझाया जा रहा है। गूगल के मुखिया सुंदर पिचाई के अलावा भी लगता है कि बहुत हिन्दुतानी वहां हो गए हैं, और स्पेल चेक उनसे प्रभावित हो गया है।
मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त
कवर्धा में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे के आरोप में जेल में बंद आरोपियों में से 18 को जमानत मिल गई। सीजेएम कोर्ट ने उन्हें जमानत पर रिहाई के आदेश दिए हैं। पहले शासन-प्रशासन का रुख आरोपियों के खिलाफ काफी सख्त था, और किसी भी दशा में जमानत न हो पाए इसके लिए कानूनी सलाह ली जा रही थी। मगर कोर्ट में शासन-पुलिस का रुख ठंडा रहा। फिर क्या था आरोपियों को संदेह का लाभ मिल गया, और जमानत मिल गर्ई।
शासन-प्रशासन के नरम रुख पर काफी चर्चा हो रही है। बताते हैं कि कवर्धा की घटना राजनीतिक रंग ले चुकी थी, और धीरे-धीरे आरोपियों की रिहाई के लिए आंदोलन की शक्ल में भाजपा इसका विस्तार करने की तैयारी में जुटी थी। इससे फिर तनाव बढऩे का खतरा पैदा हो गया था। अब मामला न बढ़े, इसलिए आरोपियों की रिहाई में कहीं कोई रोड़ा नहीं आने दिया गया।
मुख्य आरोपी की सुरक्षा...
कवर्धा घटना के बाद सुर्खियों में आए मुख्य आरोपी दुर्गेश देवांगन की गिरफ्तारी पर काफी चर्चा हो रही है। दुर्गेश को संघ परिवार ने हाथों हाथ लिया है। चर्चा है कि दुर्गेश की सुरक्षा की जिम्मेदारी तेलीबांधा इलाके के पूर्व पार्षद ने संभाली थी। आरोपी की गिरफ्तारी के लिए कवर्धा पुलिस दो दिन तक यहां डटी रही, और फिर माना के समीप एक मैरिज गार्डन के पास से उसे गिरफ्तार किया गया। जिस मैरिज गार्डन के पास आरोपी की गिरफ्तारी बताई गई है, वह मैरिज गार्डन भी पूर्व पार्षद का है। दुर्गेश को कवर्धा ले जाया गया, तो उसके साथ किसी तरह कड़ाई न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सांसद संतोष पाण्डेय थाने पहुंच गए थे।
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी...
धार्मिक उन्माद, और फिर झगड़े के बाद कवर्धा में धीरे-धीरे शांति लौट रही है। सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो गया है। पुलिस ने दो प्रमुख आरोपियों को रायपुर से गिरफ्तार कर लिया है। इन सबके बावजूद कुछ सूत्रों का दावा है कि कवर्धा फिर गरम हो सकता है।
बताते हैं कि भाजपा संगठन के एक प्रमुख नेता ने शहर से सटे गांव पालगुड़ी में गुपचुप बैठक की है। इस बैठक में जिला संगठन के कुछ प्रमुख नेता शामिल हुए। चर्चा है कि 24 तारीख के आसपास बड़ा विरोध प्रदर्शन हो सकता है। भाजपा नेता, गिरफ्तार लोगों की निशर्त रिहाई चाहते हैं। रिहाई होने तक कवर्धा में गरमा-गरमी रह सकती है।
दूसरी तरफ, एक प्रमुख आरोपी ने पुलिस को अपने शुभचिंतकों के बारे में काफी कुछ जानकारी दी है। ये सब देर सवेर कोर्ट, और फिर आम लोगों के सामने होगा। आशंका है कि शासन-प्रशासन ने थोड़ी भी ढिलाई बरती, तो स्थिति बिगडऩे में देर नहीं लगेगी।
माई की डोली को ईदी...
दंतेश्वरी माता के क्षत्र की आंसुओं के साथ विदाई दी गई। इसी के साथ बस्तर दशहरा का समापन हुआ। राजा कमलचंद भंजदेव ने माई की डोली को कांधा दिया। महिला सिपाहियों ने हर्ष फायर कर सलामी दी। यह बात ईद के दिन की है। मुस्लिम समाज के लोग भी डोली की विदाई के लिये निकले। फूल बरसाते रहे।
जगदलपुर की सडक़ पर मंगलवार को यह जो नजारा देखने को मिला, वही छत्तीसगढ़ की खासियत है। वहां से संदेश निकला कि हाल ही में हुई अप्रिय घटनाओं से राज्य की पहचान नहीं बनने वाली, न इसके भरोसे राजनीति की जा सकती। प्रेम और भाईचारे की डोर अपने प्रदेश में बहुत मजबूत है।
सिंहदेव फिर दिल्ली में
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव तो वैसे शनिवार को ही दिल्ली निकल चुके थे, पर नवजातों की मौत की वजह से उन्हें आनन-फानन सरगुजा लौटना पड़ा। अब फिर दिल्ली में हैं। बताया जा रहा है कि वे राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल, जो छत्तीसगढ़ के मामलों को देखते हैं, उनसे मुलाकात करने के लिये रुके हैं। सीएम के समर्थक भी टोह ले रहे हैं कि वहां हो क्या रहा है। लोगों में भी बड़ी उत्सुकता है कि हाईकमान क्या फैसला करने वाला है। कुछ स्पष्ट हो तो यहां संशय और अस्थिरता की स्थिति समाप्त हो।
बस पर गांवों का सफर कर रहे कलेक्टर
सूरजपुर जिले में इन दिनों ‘प्रशासन तुहंर दुआर’ अभियान चल रहा है। इसके लिये एक ‘जन संवाद वाहन’ तैयार किया गया है। हर शनिवार अधिकारी इस बस में सवार होकर ग्रामीणों से मिलने के लिये निकलते हैं और मौके पर ही उनकी समस्या सुलझाने की कोशिश करते हैं। खास बात है कि कलेक्टर गौरव कुमार सिंह अपनी एयरकूल्ड सरकारी गाड़ी में नहीं जाते, बस में वे भी साथ ही सवार रहते हैं।
आम तौर पर कलेक्टर्स ऐसे शिविरों में अपनी कार से तब पहुंचते हैं जब उसका समापन होता रहता है। भाषण दिया और लौट गये। पर ये कलेक्टर पूरे समय शिविर में मौजूद रहते हैं। जिस जगह जा रहे हैं वहां पंचायत भवन या सार्वजनिक जगह पर अधिकारियों का फोन नंबर भी लिखा जा रहा है, ताकि सीधे वे शिकायत कर सकें। 2013 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. सिंह ने आईएएस परीक्षा हिंदी में दी थी। वे हिंदी साहित्य पीजी में टॉपर भी रहे। उनके जुझारूपन और आम लोगों के साथ सहज बर्ताव ने इसके पहले वाले आईएएस से मिले दर्द को भुला दिया है, जिन्होंने एक बालक को सरे राह थप्पड़ मार उसका मोबाइल फोन तोड़ दिया था।
खाई और चौड़ी हो गई...
खबर है कि सरगुजा के दो भाजपाई दिग्गज रेणुका सिंह, और रामविचार नेताम के बीच जंग छिड़ गई है। बताते हैं कि सीतापुर ब्लॉक में एल्युमिनियम प्लांट लग रहा है। प्लांट के मालिक सुनील अग्रवाल, रामविचार के करीबी माने जाते हैं। प्लांट की स्थापना का अमरजीत भगत भी समर्थन कर रहे हैं। मगर स्थानीय लोग विरोध में उतरे, तो उन्हें रेणुका सिंह का साथ मिल गया।
और जब केन्द्रीय मंत्री विरोध पर आ जाए, तो स्वाभाविक है कि शासन-प्रशासन पर दबाव बन जाता है। चर्चा है कि रेणुका सिंह ने प्लांट विरोधियों से न सिर्फ मुलाकात की है बल्कि उन्हें अपना समर्थन दे दिया है। रेणुका के तेवर से रामविचार समर्थक हड़बड़ाए हुए हैं। वैसे तो रामविचार, और रेणुका के बीच पहले से ही खटपट चल रही है। लेकिन अब प्लांट स्थापना के विवाद में रेणुका के सीधे कूद जाने से खाई और चौड़ी हो गई है।
ऐसी सामाजिक समरसता !
राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ क्षेत्र में अभी जंगल में टैंट लगाकर जुआ खेलते हुए एक दर्जन लोग पकड़ाए। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार इन नामों में आधा दर्जन मुस्लिम थे, और आधा दर्जन हिंदू। हिंदुओं के नाम भी देखें तो उसमें कम से कम एक आदिवासी, एक अनुसूचित जाति, एक ओबीसी और एक ब्राह्मण नाम दिख रहा है। मतलब यह कि जुर्म के मामले में हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई तो हैं ही, हिंदुओं के भीतर भी सभी जातियों के लोग लोगों का प्रतिनिधित्व है। मुस्तफा, पांडे, खान, मंडावी, खान, निषाद, शेख, सेन, खान, शैलेन्द्र, हमीर, और यादव को जुआ खेलते गिरफ्तार किया है। ऐसी सामाजिक समरसता किसी नेक काम में कभी नहीं दिखेगी !
प्रमोशन की सूची गड़बड़ाई..
प्रमुख अभियंता के एक आदेश से लोक निर्माण विभाग में इन दिनों बवाल मचा हुआ है। उन्होंने दैनिक वेतनभोगी के रूप में सेवा में आने वालों को भी पहले ही दिन से वरिष्ठता देने का फरमान जारी किया है। इसके चलते करीब 25-27 साल से विभाग में नियमित काम कर चुके सब इंजीनियर्स की सीनियर्टी खतरे में पड़ गई है। अभी प्रदेशभर के पीडब्ल्यूडी सब-इंजीनियर्स को प्रमोशन मिलना है- ईएनसी के आदेश से सब गड्ड-मड्ड हो चुका है। कहा जा रहा है अब फैसला मंत्री ताम्रध्वज साहू करेंगे।
करम बर्दाश्त क्यों किये जा रहे?
जमकर पढ़ाई करो, आईएएस या आईपीएस बन जाओ। न देश दुनिया की समझ, न अपने आसपास के लोगों के साथ संवेदना के साथ बर्ताव। महासमुंद के विधायक रहे विमल चोपड़ा को चोटें इतनी मारक लगी कि वे सुप्रीम कोर्ट से उनके खिलाफ एफआईआर का आदेश ले आये। ऐसे अफसर भी देवदूत की तरह एक जिले के पुलिस प्रधान बनकर बैठे थे। रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर में इन्होंने किस तमीज के साथ वृद्धों, पत्रकारों, समाजसेवियों से बर्ताव किया है- यह एक सर्च करिये गूगल पर मिल जायेगा। अब नारायणपुर जिला, जहां वे कल तक एसपी थे वहां, जैसा कहा गया है उन्होंने अपने ड्राइवर को ही पीट दिया, गाड़ी की ठीक धुलाई नहीं की थी। अच्छा हुआ कि राज्य सरकार ने तुरंत एक्शन लिया और उनको हटाकर पुलिस मुख्यालय भेज दिया। अब इतनी ही अपेक्षा हो सकती है कि उदय किरण आगे सबक लें, ऐसी ख़बरें न आयें, कुछ अच्छे कामों के लिये जाने जायें।
किस बात की स्पेशल
रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि 22 मार्च 2020 से 1 मई 2020 तक करीब 40 दिन ट्रेनों का परिचालन बंद रहा। 1 मई को चालू की गई तो रेल मंत्रालय ने पैसा मांगा, चारों तरफ निंदा होने के बाद उन्होंने मजदूरों को मुफ्त घर पहुंचाने की घोषणा की। राज्यों का दावा है कि किराया रेलवे ने नहीं, हमने भरा। उसकी वसूली अब तक हो रही है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे से गुजरने वाली ट्रेनों की संख्या 109 हैं। कोरोना काल के बाद अब तक 101 ट्रेनों को चालू किया जा चुका है। यानि कुछ को छोडक़र लगभग सभी। पर सब स्पेशल के नाम पर चल रही है। स्पेशल नाम से ऐसा बिल्कुल नहीं है कि यात्रियों का खास ख्याल रखा जाता है। पूजा की अवधि निकल जाती है पर रेलवे की पूजा स्पेशल चलती रहती है। स्पेशल के नाम पर किस तरह यात्री ठगे जा रहे हैं इसका अंदाजा सिर्फ रायपुर से रायगढ़ का किराया जान लीजिये, पहले यह जनरल डिब्बे में 65 रुपये था अब 195 रुपये है। छत्तीसगढ़ के 11 में 9 सांसद भाजपा के हैं, सब चुप हैं। लोग भी आवाज नहीं उठा रहे हैं। शायद सबको खुशी है कि राम मंदिर बन रहा है, देश को मोदी नहीं बचायेंगे तो और कौन बचायेगा।
बस यही तो होना था...
रेत तस्करों का हौसला कुछ इस तरह बढ़ता जा रहा है, जैसा मध्यप्रदेश में दिखाई देता है। वहां एक पुलिस अधिकारी को हाईवा में रौंदा भी जा चुका है। कई बार अधिकारियों के सिर, हाथ-पैर फोड़े, तोड़े जा चुके हैं।
बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के सनावल इलाके में रेत की तस्करी रोकने पांगन नदी के तट पर गये नायब तहसीलदार विनीत सिंह पर हमला किया गया। जेसीबी से रेत खुदाई पर पर्यावरण विभाग ने रोक लगा रखी है, नायब तहसीलदार ने जब्त कर ली। इसी बीच 20-25 लोगों ने उनकी सरकारी गाड़ी में तोड़-फोड़ की।
इस कॉलम में पिछले महीने, 28 सितंबर को इसी बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में अवैध रेत उत्खनन के कारण हुए आंदोलन का जिक्र हुआ था। चक्काजाम की खबर मिलने पर कलेक्टर ने माइनिंग इंस्पेक्टर को भेजा पर हाईवा के कागजात देखकर उन्होंने सब कुछ ओके बता दिया और कोई कार्रवाई नहीं की। उस दिन रेत उत्खनन करने वालों ने भीड़ में पहुंचपर गोली चलाने की धमकी भी दी। ग्रामीणों के दबाव में पुलिस को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। यानि पानी अब सिर से ऊपर जा चुका है। हाल ही में यहां कलेक्टर को पंडो आदिवासियों की मौत की वजह से बदल दिया गया है, नये कलेक्टर से उम्मीद थी कि कोई सख्ती बरतते, पर लगता है तस्करी करने वाले लोग काफी ऊपर तक पकड़ रखते हैं।
साथ ही जिक्र हो जाये कि जुलाई माह की 10 तारीख को इस कॉलम में कसडोल पर लिखा गया था, जहां एसडीएम मिथिलेश डोंडे पर दबाव बनाने के लिये महानदी से रेत निकालने वालों ने अपनी गाडिय़ां उनके दफ्तर के सामने लाइन से लगा दी थी।
संविधान के लिये सजगता
कुरुद में आदिवासी समाज ने रविवार को एक कार्यक्रम रखा। इसे चेतना शिविर का नाम दिया गया। उद्देश्य था अपने लोगों को संविधान में लिखी गई बातों की जानकारी देना। वक्ताओं ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया, उसके प्रमुख बिंदु और उद्देश्यों पर रोशनी डाली। हाल ही में बस्तर से एक पैदल यात्रा निकली थी जिसमें राजधानी पहुंचकर संविधान का हवाला देते हुए ही अंतागढ़ को नगर पंचायत घोषित करने का विरोध किया गया। वे इसे ग्राम पंचायत ही बने रहने देना चाहते हैं। उन्होंने अपने हाथों में संविधान की पुस्तिका रखी थी। इसी दिन सरगुजा से भी पैदल यात्रा राजधानी पहुंची, जो हसदेव अरण्य इलाके में कोल ब्लॉक के आवंटन को असंवैधानिक बता रहे थे। बौद्ध समाज द्वारा संचालित अनेक स्कूलों में अनिवार्य रूप से संविधान की शपथ दिलाई जाती है और मौलिक अधिकारों का वाचन कराया जाता है। दूसरे स्कूलों में इस पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता। बहुत से जोड़े अब सात फेरे लेने के दौरान संविधान की शपथ लेते हैं, बजाय मंत्रोच्चार के। लगता है यह क्रिया की ही प्रतिक्रिया है। संविधान के दायरे में रहकर ही संविधान के खिलाफ लिये जाने वाले सरकार के फैसलों को लेकर लोगों की चिंता बढ़ रही है।
विधायक की दरियादिली
मनेंद्रगढ़ के विधायक डॉ. विनय जायसवाल ने सरकारी पैसे पत्रकारों को बांट दिये। अपने जेब से कुछ गया नहीं और वाहवाही भी हो गई। करीब 60 पत्रकारों को उन्होंने 5-5 हजार रुपये दिये हैं, जो स्वेच्छानुदान मद से है। विधायक ने सबको दशहरा मिलन में बुलाया और चेक सौंपे। जिन पत्रकारों ने ये पैसे लिये हैं, उनका कर्तव्य बनता है कि वे अपने पाठक नहीं, बल्कि विधायक के प्रति निष्ठावान बने रहें।