राजपथ - जनपथ
करोड़ों गंवा चुके पूर्व चेयरमैन
भाजपा के दो ताकतवर लोगों के कारोबारी झगड़े को सुलझाने में पार्टी के दिग्गज नेताओं का पसीना छूट रहा है। संगठन के प्रभावशाली लोगों ने दोनों के साथ बैठक कर मामले को सुलझाने की कोशिश भी की, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया।
हुआ यूं कि एक निगम के पूर्व चेयरमैन ने काफी माल बनाया, और बिलासपुर संभाग के पार्टी के एक बड़े नेता के बेटे के कारोबार में लगा दिया। नेताजी के बेटे का करोड़ों का काम चलता है। चलते कारोबार में निवेश करना फायदेमंद रहता है। सब कुछ ठीक चल रहा था।
कुछ समय बाद नेताजी का देहांत हो गया। पार्टी की सरकार भी चली गई। इसके बाद आफत आनी शुरू हो गई। पहले पूर्व चेयरमैन को संगठन में भी कोई दायित्व नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने दिवंगत हो चुके नेता के कारोबारी बेटे से अपना हिसाब-किताब करने कहा, तो कारोबारी ने हाथ झटक दिए।
दो नंबर के पैसे की कोई लिखा पढ़ी तो होती नहीं है। यह सब कुछ भरोसे पर चलता है। कारोबारी बेटे के हाथ खड़े करने के बाद पूर्व चेयरमैन ने पार्टी के लोगों से मदद मांगी, लेकिन नतीजा सिफर रहा। करोड़ों गंवा चुके पूर्व चेयरमैन का हाल ऐसा है कि वो खुले तौर पर कुछ नहीं कह पा रहे हैं। बड़े नेताओं से भी वो दुखी हैं, और इस वजह से उन्होंने पार्टी के कार्यक्रमों में भी आना जाना तकरीबन बंद कर दिया है।
अब तो पितर लग चुका है
कांग्रेस के सिंधी नेता मायूस है। वजह यह है कि समाज के नेताओं को निगम-मंडल में जगह नहीं मिल पाई है। ऐसा नहीं है कि किसी को पद देने का विचार नहीं है। सिंधी अकादमी का गठन तो समाज के नेताओं को एडजेस्ट करने के लिए ही हुआ है।
निगम-मंडल के लिए एक-दो नाम फाइनल भी हो गए थे, लेकिन जिनका नाम तय हुआ था उन्हें पद न देने के लिए समाज के लोग दाऊजी से मिलने पहुंच गए। फिर क्या था गाड़ी अटक गई।
समाज के कई प्रबुद्ध लोग समय-समय पर दाऊजी से मिलकर समाज को प्रतिनिधित्व देने का आग्रह करते रहते हैं। एक बार तो दाऊजी हंसी मजाक में कह भी चुके हैं कि समाज के लोग जितने पार्टी में हैं, उतने ही वोट कांग्रेस को मिलते हैं। खैर, अब तो पितर लग चुका है। पखवाड़े भर तो कुछ होना नहीं है। शायद दशहरा-दीवाली के बाद यदि कांग्रेस में सब कुछ ठीक चलता रहा, तो समाज के एक-दो लोगों को पद मिल सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
कुछ कल की बात, कुछ आज की
मदन गोपाल पुरोहित जी से मिलिए। उम्र 78 साल है। सन 80 में रायपुर आए थे। जब आए तब से लेकर 6 साल तक मिस्टर (रायपुर) छत्तीसगढ़ रहे। 13 साल की उम्र से बॉडी बनाने के काम में लग गए थे, क्योंकि घर के बुजुर्गों ने कहा था बॉडी बना लो कम से कम चौकीदार बन जाओगे। इनसे मिलकर आज का दिन बन गया। अब वे केमिकल का कारोबार करते हैं. (अखबारनवीस रितेश मिश्रा ने ट्विटर पर पोस्ट किया)
ग्रामीणों के सवाल से सर्वे टीम अवाक
कोरबा वन मंडल के पसरखेत रेंज के कोलगा ग्राम के भूगर्भ में भारी मात्रा में कोयले का भंडार होने का अनुमान है। इस जगह पर सर्वे का काम एक निजी कंपनी को सौंपा गया है। पहले यह कंपनी ड्रिल पद्धति से कोयले का पता लगा चुकी है। करीब 1000 की आबादी वाले इस गांव के लोग यहां पर खदान नहीं चाहते। उनका रोजगार खेती किसानी और वनोपज संग्रह पर ही टिका हुआ है। वे अपने जंगल में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं चाहते। ड्रिल पद्धति से एक बार हुए सर्वे का भी ग्रामीणों ने विरोध किया और कलेक्टर, एसपी को ज्ञापन सौंपा था। हुआ कुछ नहीं बल्कि इस बार सर्वे टीम विस्फोट के जरिए कोयले का पता लगाने के लिए पहुंच गई। ग्रामीणों ने उन्हें बस्ती के भीतर घेर लिया। पुलिस और प्रशासन के कुछ लोग कंपनी की मदद के लिए पहुंच गए। शायद ग्रामीणों पर शासकीय कार्य में बाधा डालने के नाम पर कार्रवाई हो जाती पर गांव वाले भी समझदार निकले। सर्वे के लिए पहुंचे कंपनी के लोगों से और प्रशासन से उन्होंने सवाल किया यह घना जंगल है यहां पर विस्फोट करने से पहले आपने किस-किस की अनुमति प्राप्त की है, कागजात दिखाइए। उनके पास कोई कागज नहीं था। फिर गांव के लोगों ने वन विभाग कि वहां मौजूद अधिकारियों से सवाल किया कि क्या जंगल में विस्फोट करने के लिए आपने कोई अनुमति दी है। वन विभाग ने पहले तो टालना चाहा यह तो सिर्फ सर्वे है इसमें क्या अनुमति। गांव वालों ने कहा विस्फोट से जंगल की जो बर्बादी होगी, पेड़ पौधे झुलस सकते हैं। हमारे घरों में दरार पड़ सकती है, तो इसकी कौन भरपाई करेगा। वन विभाग ने कहा हमारी अनुमति तो नहीं ली गई है। गांव वालों ने फिर समझाया कि आप अनुमति दे भी नहीं सकते हैं। पहले हमारी ग्राम सभा बैठेगी और प्रस्ताव पारित होगा तब जाकर के कंपनी सर्वे के लिए जंगल में कदम रख सकती है। ग्रामीणों के सवाल तीथे थे समझदारी से भरे हुए, जिसकी उम्मीद वहां पहुंची सर्वे टीम, प्रशासन और वन विभाग के अधिकारियों को नहीं थी। सर्वे टीम उल्टे पांव लौट गई।
रेलवे की उदारता भारी पड़ रही
कोविड-19 संक्रमण के बाद रेलवे ने लंबी दूरी की ट्रेनों का अब तक नियमित परिचालन शुरू नहीं किया है, जबकि त्योहार का सीजन शुरू हो चुका है और ट्रेनों में भीड़ भी दिखाई दे रही है। प्रतिदिन चलने वाली ट्रेनों जैसे मुंबई-हावड़ा, पुणे-हावड़ा, उत्कल, गीतांजलि, साउथ बिहार स्पेशल ट्रेनों में रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ जैसे स्टेशनों से कंफर्म टिकट हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है। यात्री 20 से 25 दिन पहले रिजर्वेशन करा रहे हैं तब जाकर कंफर्म टिकट मिल पा रही है। कोरोना से बचाव के लिए रेलवे ने नियम बना रखा है कि यात्रा सिर्फ कंफर्म टिकटों पर की जा सकेगी।
पर कई यात्री टिकट कंफर्म नहीं होने पर भी ट्रेन पर सवार हो जाते हैं। ऐसे यात्रियों का क्या किया जाए, इस पर रेलवे ने कोई नया नियम नहीं बनाया है। पहले से तय नियम के अनुसार वह जुर्माना भरकर सफर तय कर सकता है। टीटीई ऐसा उदारता के साथ कर रहे हैं। इसमें ऊपरी कुछ कमाई की गुंजाइश भी रहती है, जिस पर कोरोना काल के बाद काफी मंदी आई है। पर टीटीई की इस उदारता के चलते कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां उड़ रही है। वैसे भी सभी बर्थ बुक किये जाने के बाद दो गज की दूरी का तो पालन हो ही नहीं रहा है। कोरोना गाइडलाइन का पालन एक औपचारिकता बनकर रह गई है। ऐसे में ट्रेनों का पहले जैसा नियमित नहीं करना, छोटे स्टेशनों पर स्टापेज नहीं देना यात्रियों पर भारी पड़ रहा है।
सबकी टिकट कटने वाली है?
गुजरात फार्मूले के बाद प्रदेश भाजपा में काफी बेचैनी है। शिव प्रकाश ने रायपुर में एक कार्यक्रम के बीच में यह कह गए कि गुजरात फार्मूला कहीं भी संभव है। यदि यह फार्मूला लागू हुआ, तो दिग्गजों की टिकट काटकर नए चेहरों को आगे लाया जा सकता है।
वैसे भी छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में सारी टिकट बदलकर नए चेहरों को टिकट देने का प्रयोग सफल रहा है, और अब पार्टी के कई नेता आपसी चर्चा में हारे हुए नेताओं को टिकट नहीं देने की वकालत कर रहे हैं। खैर, विधानसभा चुनाव अभी दूर है, लेकिन गुजरात फार्मूले का उदाहरण देकर कांग्रेस नेता, भाजपाइयों पर तंज कसने से नहीं चूक रहे हैं। सीएम भूपेश बघेल ने तो भविष्यवाणी कर दी है कि भाजपा में सबकी टिकट कटने वाली है।
पिछले दिनों रायपुर के एक होटल में मीडिया कर्मी के जन्मदिन पार्टी में बृजमोहन अग्रवाल पहुंचे, तो कांग्रेस के नेता उनसे गुजरात फार्मूले पर काफी देर गपियाते रहे। और जब वो (बृजमोहन) निकलने की तैयारी कर रहे थे तभी संजय श्रीवास्तव वहां पहुंचे। संजय श्रीवास्तव को देखकर शैलेष नितिन त्रिवेदी ने मजाकिया लहजे में बृजमोहन से कहा, आप जाइए। आपकी कुर्सी पर संजय श्रीवास्तव बैठेंगे।
बृजमोहन कुछ बोल पाते, इसके पहले ही विकास तिवारी, शैलेश की टिप्पणी का मतलब समझाने लगे और कहा कि आप रायपुर दक्षिण की सीट खाली कीजिए, उसमें संजयजी लड़ेंगे। इस पर बृजमोहन मुस्कुराकर निकल गए। संजय श्रीवास्तव के भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, और बृजमोहन के जाने के बाद विकास तिवारी को गले से लगा लिया।
थोड़ी तसल्ली मिली...
धर्मांतरण मसले पर भाजपा आक्रामक दिख रही है। प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय कुछ नेताओं के साथ सेंट्रल जेल पहुंचकर पुरानी बस्ती थाने में मारपीट करने वाले युवा मोर्चा से मिलने पहुंच गए। युवा मोर्चा के तीन कार्यकर्ता हफ्ते-दस दिन से जेल में बंद है। परेशान युवा मोर्चा कार्यकर्ताओं ने जेलर के कक्ष में विष्णुदेव साय से हाथ जोडक़र गुजारिश की कि बहुत दिन हो गए हैं, और जमानत करा दीजिए।
साय ने उन्हें सांत्वना दी कि आप लोग राष्ट्रहित में जेल में हैं। आपने कोई गलत काम नहीं किया है। इस मौके पर राजेश मूणत ने कार्यकर्ताओं को समझाइश दी, कि वो भी विरोध प्रदर्शन करते हुए कई बार जेल जा चुके हैं, लेकिन कोई मिलने नहीं आता था। अब खुद प्रदेश अध्यक्ष आपसे मिलने आए हैं। तब जाकर कार्यकर्ताओं को थोड़ी तसल्ली मिली।
कौवों पर पड़ी पर्यावरण की मार...
पूरी दुनिया में कौवों को लेकर तरह-तरह की धार्मिक मान्यताएं हैं। अपने देश में तो कागशास्त्र जैसे ग्रंथ लिखे गए, तुलसीदास ने काग भुसुंडी के चरित्र का अपने काव्य में विस्तार से वर्णन किया है। भले ही वैज्ञानिक कहते हैं कि कौवे चिंपाजी की तरह तेज दिमाग वाले होते हैं पर उसे आम दिनों में अशुभ पक्षी माना जाता है। उसकी पूछ परख होती है मकर संक्रांति और पितृपक्ष में।
कुछ साल पहले एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। वीडियो क्लिप शायद बंगाल की थी। इसमें कौवों के पैर बांध दिए गए थे और लोग पितरों के नाम का भोग लाकर उसके सामने रख रहे थे। कौवे जिसका भोग ग्रहण करते थे वे खुश हो जाते थे और जिनका भोग वह ग्रहण नहीं करता था, वे मायूस लौट रहे थे। पितृ पक्ष को मानने वालों की आस्था है कि कौवे ने भोजन या प्रसाद ग्रहण कर लिया तो वह उनके पूर्वजों को मिल जाता है।
इधर, कौवे अब कम दिखाई देते हैं। पहले छतों के ऊपर आसमान में झुंड के झुंड उडऩे वाले कौवे इक्के दुक्के किसी डाली, मुंडेर में मिलते हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी शहरीकरण का ऐसे प्रभाव पड़ा है कि कौवों का ठिकाना उजड़ गया। पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन के लिए कौवों की मौजूदगी को जरूरी माना जाता है। यह मांसाहारी है, कीड़े मकोड़ों के अलावा चूहे इनको प्रिय हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि फसलों को चूहे नष्ट करते हैं। चूहों को खत्म करने के लिये खेत और गोदामों में जहरीली दवा डाली जाती है। ऐसे ही शहरों में भी घरों से चूहे जहर देकर भगाए जाते हैं। कौवों को यह जहरीला भोजन नसीब होने लगा और वे विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गये। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो तो अपवाद है जिसमें कौवों को बांध कर रखा गया है। अब लोग पितरों और अपनी नसीब के सहारे छत या आंगन में भोजन छोड़ देते हैं। कोई पक्षी आए तो ठीक, ना आए तो भी ठीक। पर रायपुर जैसे शहरों में ऐसे भी लोग दिख जाएंगे जो कांक्रीट के जंगल से निकलकर शहर के आउटर हिस्से में पूर्वजों का प्रसाद लेकर निकल पड़ते हैं। कई बार उनकी तलाश पूरी भी हो जाती है।
नहीं चाहिए नया, पुराने में रहने दो..
नए जिलों के बनने से सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों तक पहुंचाना आसान हो जाता है। कानून व्यवस्था को भी चुस्त किया जा सकता है। पर कई दिक्कतें भी खड़ी तो जाती हैं। खासकर उन लोगों को जो विभाजन के बाद नए जिले के आखिरी छोर में आ जाते हैं। एक समझ बनी है सरिया और बरमकेला के लोगों की। वे नए जिले सारंगढ़ में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हैं। पंचायतों में बैठकें हो रही है। विरोध की रणनीति बनाई जा रही है। दोनों ब्लॉक के लोग कह रहे हैं कि उन्हें रायगढ़ में ही रहना है। रायगढ़ में उद्योग हैं इसलिए यहां रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा है। दूसरी ओर सारंगढ़ में ऐसा ढांचा विकसित होने में कितना समय लगता है कह नहीं सकते। पहले बने नये जिलों का हाल उन्हें मालूम है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए भी यह मसला गंभीर हो चुका है। जो लोग पुराने जिले में रहना चाहते हैं उनकी रायगढ़ और सरिया विधानसभा में निर्णायक भूमिका है। समझ नहीं पा रहे हैं कि विरोध में साथ दें या नहीं। ऐसा ही हुआ था जब पसान इलाके के 16 गावों के लोग नए जीपीएम जिले में रखे जाने पर नाराजगी जताई थी। वे कोरबा में ही रहना चाहते हैं। यह मुद्दा अभी सुलझाने के वादे पर शांत है।
भाजपा का अल्पसंख्यक प्रतिनिधि...
सन 2003 में जब डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तब दो चरणों में मंत्रिमंडल में 17 विधायक शामिल कर लिए गए थे। मुख्यमंत्री सहित केबिनेट 18 की हो गई थी। पर ठीक एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की वजह से मंत्रिमंडल नए सदस्यों की संख्या 15 प्रतिशत तक सीमित रखने की बाध्यता सामने आ गई। उस समय पांच मंत्रियों को हटाना पड़ा जिनमें महेश बघेल, सत्यानंद राठिया, विक्रम उसेंडी, पूनम चंद्राकर और राजेंद्र पाल सिंह भाटिया थे। हालांकि हटाए गए मंत्रियों में ओबीसी और एसटी एससी मंत्री भी शामिल थे मगर छोटा किए जाने के बावजूद इन वर्गों का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में बना हुआ था। भाटिया के हटने से अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में नहीं रहा। इसका काफी विरोध हुआ। सिख समाज के लिये यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। उसके बाद भाटिया को सीएसआईडीसी का चेयरमैन बनाकर नाराजगी दूर करने की कोशिश की गई। सन् 2013 में जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दी तो वे निर्दलीय मैदान में उतर गए। भाजपा इसके चलते चुनाव हार गई और भाटिया दूसरे स्थान पर रहे। खुज्जी विधानसभा से कांग्रेस को जीत मिल गई।
राजनांदगांव इलाके में ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के अल्पसंख्यक आधार को मजबूत करने में भाटिया की बड़ी भूमिका रही।
कल उनका 72 वर्ष की आयु में दुखद निधन हो गया। अब तक जो बात सामने आ रही है वह यह है कि वह अपनी सेहत को लेकर परेशान थे।
शाबासी देतीं भी तो कैसे?
प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी इस बात से हैरान हैं कि उनकी (थूक वाली) टिप्पणी पर कांग्रेस के लोग आक्रोशित हो गए थे, और इसको मुद्दा बनाकर प्रदेशभर में आंदोलन कर गए। पुरंदेश्वरी ने पार्टी के लोगों के साथ चर्चा में बताया कि दक्षिण के राज्यों में मामूली सी टिप्पणी को ज्यादा तूल नहीं दिया जाता है। यदि मुंह से कोई अप्रिय बात निकल जाती है, तो आपस में ही बातचीत कर मामले को सुलझा लिया जाता है।
पुरंदेश्वरी ने अजय चंद्राकर की तारीफ की, जो कि सबसे पहले थूक वाली टिप्पणी का जवाब देने के लिए आगे आए, और उन्होंने कांग्रेसजनों को मतलब समझाया कि पुरंदेश्वरी ने थूक नहीं, फूंक कहा था। हिन्दी अच्छी नहीं होने के कारण शब्दों का चयन गलत हो गया था। इतना ही नहीं, अजय ने कांग्रेसजनों की जमकर खिंचाई भी की थी। बाद में पुरंदेश्वरी ने उन्हें फोन कर इसके लिए शाबासी भी दी।
अजय को मिल रही तारीफ के बाद नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने पुरंदेश्वरी को यह बताने से नहीं चूके कि उन्होंने भी सीएम को फोन कर कांग्रेसजनों की प्रतिक्रिया पर आपत्ति जताई थी। कौशिकजी ने खुले तौर पर तो कुछ नहीं कहा था इसलिए उनके प्रयासों का किसी को पता नहीं चला। ऐसे में पुरंदेश्वरी उन्हें शाबासी देतीं भी तो कैसे?
मुखिया के तेवर
प्रदेश कांग्रेस के मुखिया सीधे-सरल माने जाते हैं। मगर कई बार अपने तेवर दिखा भी देते हैं। हुआ यूं कि डेढ़ माह पहले वो राहुल गांधी से मिले थे। पहला मौका था जब उनकी राहुल से वन-टू-वन मुलाकात हुई थी। चर्चा है कि राहुल से बातचीत में वे कह गए थे कि बस्तर के विधायक नाखुश हैं। फिर क्या था राहुल ने पीएल पुनिया से रिपोर्ट मांग ली।
पुनिया महीनाभर पहले रायपुर आए, तो बस्तर के विधायकों से साथ अलग से चर्चा की। मुखिया की मौजूदगी में सारी बातचीत हुई, लेकिन किसी ने भी सरकार से कोई नाराजगी की बात नहीं कही। उल्टे विधायकों ने सरकार की जमकर तारीफ की। पुनिया सवालिया अंदाज में मुखिया की तरफ देखते रहे। मगर मुखियाजी को कुछ बोलते नहीं बना, लेकिन मुखिया के तेवर की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है।
पाबंदी हटी पर मंदी नहीं...
लॉकडाउन के बाद बाजार खुल तो गये पर बहुत से व्यवसाय अपने पुरानी रौ पर नहीं लौट पाये हैं। लोगों ने लॉकडाउन के दौरान पाबंदियों की वजह से कई रास्ते चुने जो उस वक्त तो नहीं भा रहे थे पर अब लग रहा कि यही सही है। शादी ब्याह और दूसरे जलसों की ही बात करें तो अब मेहमानों को बुलाने, बैंड बाजे, पटाखों, धमाल की पूरी छूट दी जा चुकी है। पर देख रहे हैं कि भव्य आयोजनों से लोगों ने किनारा कर लिया है। बहुत बड़ा मंडप, बहुत से मेहमान, ढेर सारे बाराती की जगह 100-50 मेहमानों के बीच मंदिर या छोटे हॉल में फेरे की रस्म पूरी करना लोगों को भाने लगा है। टेंट, बैंड बाजा, केटरर, बग्घी वाले, टैक्सी वाले अपने पुराने दिन लौटने का इंतजार कर रहे हैं। आने वाले दिनों में लगातार त्यौहार हैं और उसके बाद शादियों की तारीख। शायद लोग हिम्मत जुटा पायें और जिनका रोजगार संकट में है उन्हें राहत मिले।
नया कल्चर सेल्फ स्टडी का...सीजीपीएससी टॉपर नरनिधि नंदेहा ने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी का अनुभव साझा करते हुए बताया है कि उन्होंने सेल्फ स्टडी के तरीके को चुना। इसका मतलब यह है कि खुद से पढ़ाई करना। यह काम घर पर ही रहकर की जा सकती है पर इस परीक्षा में सफल अनेक लोगों ने लाइब्रेरी की तरफ रुख किया। खुद नंदेहा ने भी एक लाइब्रेरी को चुना था। पढ़ाई घर पर नहीं करने की वजह यह है कि यहां तरह-तरह के व्यवधान हो सकते हैं। कभी कोई दरवाजा खटखटा कर पूछ ले कि चाय पीनी है क्या, तब भी मन भटक जाता है। लाइब्रेरी में सिर्फ पढ़ाई। लॉकडाउन उठाये जाने के बाद भी कई कोचिंग सेंटर्स में छात्र-युवा ज्वाइन करने के बजाय लाइब्रेरी जा रहे हैं। इनकी फीस कोचिंग इंस्टीट्यूट के मुकाबले नाम-मात्र की है। यह भी एक बदलाव है जो कोरोना काल के बाद देखने को मिल रहा है।
एक पुराना पम्फलेट...
ग्वालियर स्टेट के जमाने तक स्टेशन पर रेल के देरी से आने की सूचना पर्चे छपवाकर जनता को देने का काम म्युनिसिपल कमेटी के जि़म्मे था। और अब? आज़ादी के बाद से हमारी ट्रेनें वक्त से चलने लगी हैं, इसलिये ये सिलसिला बंद कर दिया गया है। (सोशल मीडिया से)
इंदिरा बैंक का जिन्न बाहर
इंदिरा बैंक सहकारी घोटाले की फाइल खुल गई है। चर्चा है कि खातेदारों के दबाव में एजी से राय लेकर पुलिस ने घोटाले की फिर से पड़ताल शुरू कर दी है। करीब 53 करोड़ के इस घोटाले में तत्कालीन सीएम रमन सिंह, उनके कैबिनेट के सदस्यों, और पुलिस के आला अफसरों पर संलिप्तता के आरोप लगे थे। मगर इस केस में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।
जबकि खुद भूपेश बघेल ने आठ साल पहले कांग्रेस भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर घोटाले को उजागर किया था। तब घोटाले मुख्य सूत्रधार बैंक मैनेजर उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट की वीडियो क्लिपिंग दिखाई थी। इसमें उमेश सिन्हा ने रमन सिंह, और उनके कैबिनेट के सहयोगियों के नाम लिए थे। उस समय नार्को टेस्ट के वीडियो क्लिपिंग की सत्यता पर भी सवाल उठे थे।
मगर एक दशक बीत जाने के बाद भी इस केस में कुछ निकलकर नहीं आ पाया। सैकड़ों खातेदार ऐसे हैं जिन्हें अब तक उनकी जमा राशि नहीं मिल पाई है। ऐसे में सरकार ने प्रकरण पर कार्रवाई में रुचि दिखाई है। अब इस घोटाले के चलते प्रदेश की राजनीति में उबाल आने के आसार दिख रहे हैं।
पितर पक्ष में काया होगा !
पितृ पक्ष परसों से शुरू हो रहा है। हिन्दू मान्यताओं में पितृपक्ष के दौरान पखवाड़े भर शुभ कार्य वर्जित है। सरकार तो दूर, अमूमन राजनीतिक दल भी पितृ पक्ष में कोई बड़ा राजनीतिक फैसला लेने से बचती हैं। यही वजह है कि वो लोग निराश हैं, जो कि कांग्रेस विधायकों के एक साथ दिल्ली जाने के बाद राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की उम्मीद पाले हुए थे।
पूर्व सीएम रमन सिंह ने तो मीडिया में कह भी दिया कि पिछले डेढ़ महीने से छत्तीसगढ़ में कोई मुख्यमंत्री नहीं है। हमने तो 6 महीने में 5 मुख्यमंत्री बदल दिए। पूरा कैबिनेट बदल डाला और ये एक पर ही अटके हुए हैं। कुछ लोग बताते हैं कि जगदलपुर चिंतन शिविर से पहले रमन सिंह की शिव प्रकाश, और अन्य नेताओं से अनौपचारिक चर्चा हुई थी।
भाजपा नेताओं को उम्मीद थी कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन जल्द होगा, और उस हिसाब से पार्टी को आगे की रणनीति बनानी होगी। मगर अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ, और नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं से बेपरवाह सीएम भूपेश बघेल भी एक के बाद एक फैसले ले रहे हैं। जो कांग्रेस की राजनीति को बेहतर समझते हैं वो मानते हैं कि पितृ पक्ष तक कुछ नहीं होने वाला है।
स्कूल खुले पर गेम की लत लग गई...
छत्तीसगढ़ उन राज्यों में शामिल है, जहां कोरोना के नये मामलों में कमी देखे जाने के बाद स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई शुरू करा दी गई है। कैंपस में चहल-पहल तो शुरू हो गई है पर कई पाबंदियां हैं, जैसे खेलकूद नहीं होंगे, केवल 50 प्रतिशत मौजूदगी होगी। शिक्षण संस्थानों में पुराने दिन लौटने में वक्त लगेगा और छात्रों को पुरानी आदतों के अनुरूप फिर से ढ़लने में भी। इधर लम्बे समय तक ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को मोबाइल नाम के औजार का आदी बना दिया। इसके नुकसान को जानते हुए भी मम्मी-पापा की मजबूरी ही थी कि वे बच्चों को इंटरनेट के साथ स्मार्ट मोबाइल फोन उपलब्ध करा दें। मुमकिन नहीं कि हर वक्त वे निगरानी रख पायें कि किस वक्त बच्चे इस फोन का इस्तेमाल पढ़ाई करने में और किस वक्त गेम खेलने में बिता रहे हैं।
आरंग में इससे जुड़ा मामला सामने आया है। घर के पैसे गायब होने लगे। पहले तो घर में लोगों ने ध्यान नहीं दिया, सोचा नौकरों का हाथ होगा, या फिर निकले होंगे, हिसाब नहीं मिल रहा है। पर जब गायब रकम 85 हजार रुपये पहुंच गई तो सीसीटीवी खंगाला गया। पता चला कि चोरी बाहर से आकर किसी ने नहीं की, बल्कि घर के 16 साल के बच्चे की करतूत है। उसे मोबाइल फोन पकड़े-पकड़े ऑनलाइन गेम खेलने की लत लग गई। वह घर से नगद निकालता फिर दोस्तों के जरिये ऑनलाइन ट्रांजेक्शन कर गेम खेलता था। कुछ समय पहले खरोरा में भी ऐसा मामला आया था। दुकान से रुपये गायब होने लगे। रकम तीन लाख तक पहुंच गई। पता चला कि गेम की लत में दुकानदार का बेटा रोजाना गल्ले से 3-4 हजार रुपये पार कर देता था।
ऑनलाइन पढ़ाई ने वैसे भी लगभग जनरल प्रमोशन दे दिया। परीक्षाओं की औपचारिकता पूरी की गई और सभी पास कर दिये गये। पढ़ाई न हुई न सही, अब हो जायेगी। पर गेम की लत तो चिपक गई, वह कब छूटेगी?
सत्ता मिली तो कांग्रेसियों के जख्म भर गये?
भाजपा शासन में बिलासपुर के कांग्रेस भवन में घुसकर पुलिस ने कई नेताओं को लाठियों से खूब पीटा, दौड़ाया। कई लोग घायल हो गये, कुछ अपोलो में भर्ती हुए, कुछ सिम्स में। राहुल गांधी, सोनिया गांधी ने निंदा की। प्रदेश के सभी बड़े नेता और पीएल पुनिया आधी रात को बिलासपुर गये, कार्यकर्ताओं का हाल जाना। पूरे प्रदेश में यह ज्यादती चुनाव प्रचार का मुद्दा बनी। कांग्रेस की जीत पर इसका असर भी देखा गया। बिलासपुर से अमर अग्रवाल की सीट 20 साल बाद छिन गई। कांग्रेस ने न्यायिक जांच की मांग की, दंडाधिकारी जांच की उसी दिन तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह ने घोषणा कर दी। तीन माह का वक्त दिया गया, कलेक्टर को रिपोर्ट सौंपने का। आज उस घटना को तीन साल पूरे हो गये हैं। लगता है कि अब न तो लाठी चलाने का आदेश देने वाले अफसरों को जांच का डर है न कांग्रेसियों को हिसाब लेने में रुचि। जांच रिपोर्ट नहीं आ पाने का कोई अफसोस कांग्रेस नेताओं में दिखाई नहीं देता। एएसपी नीरज चंद्राकर सहित कई पुलिस अधिकारी जिन्हें कांग्रेसियों ने जिम्मेदार बताया था, दंडाधिकारी की नोटिस की परवाह नहीं करते और आज तक बयान देने नहीं गये। मार खाने वाले कई कांग्रेस नेता भी बार-बार नोटिस देने के बावजूद दंडाधिकारी के पास बयान देने नहीं पहुंचे। हो सकता है कि सत्ता मिलने पर कांग्रेस नेता अपना जख्म भरा हुआ महसूस कर रहे हों, पर लोग तो यह सवाल करेंगे कि खुद के मामले में जब न्याय की चिंता नहीं हो तो पुलिस ज्यादती की दूसरी शिकायतों का क्या होगा?
और नये जिलों की उम्मीद में आंदोलन
बीते 15 अगस्त को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढक़र 32 हो गई है। इन नये जिलों की घोषणा के बाद जिला मुख्यालय कहां पर बने, इस पर आंदोलन होने लगे। जिलों के नामकरण में सभी जगहों को शामिल कर इस असंतोष की भरपाई करने की कोशिश की गई है। इस बीच कहा जा रहा है कि चुनाव से पहले चार और जिले बनाये जा सकते हैं। यानि छत्तीसगढ़ राज्य में नाम के अनुरूप 36 जिले होंगे। देर नहीं करते हुए, इसके लिये भी दावेदारी शुरू हो गई है। बस्तर में अंतागढ़ और भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की मांग उठने लगी है। पखांजूर पहले से ही मैदान में है। बस्तर में कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में एकतरफा जीत मिली थी। इस नक्सल प्रभावित इलाकों में नारायणपुर, सुकमा जैसे जिले बने फिर भी कई गांव जिला मुख्यालय से 100-150 किलोमीटर तक दूर हैं। कोयलीबेड़ा के ग्रामीणों ने पिछले दिनों इसी मुद्दे को लेकर प्रदर्शन भी किया। सैकड़ों ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर मांग की कि उन्हें नारायणपुर जिले में शामिल किया जाये, जो 60 किलोमीटर दूर है, जबकि अभी कांकेर 150 किलोमीटर है।
नये जिले कब बनेंगे, कितने बनेंगे इस पर सरकार की ओर से अधिकारिक रूप से कोई संकेत अभी नहीं है लेकिन नये चार जिलों के बनने से बस्तर के लोगों में एक नई उम्मीद तो जाग गई है।
भीड़ के बगैर भी कोई सभा होगी?
छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की सक्रियता इन दिनों चर्चा में है। अध्यक्ष किरणमयी नायक ने सरगुजा के एक अधिकारी की खबर ली थी जब उन्होंने कह दिया था मैं महिला आयोग को नहीं मानता। एक बार अध्यक्ष ने यह कहकर बहस छेड़ दी थी कि कई महिलाओं की शिकायत पुरुषों को परेशान करने के लिये होती हैं। पहले सहमति रहती है बाद में बात बिगड़ती है तो आयोग को शिकायत कर देती हैं। हाल ही में रायपुर के दफ्तर में उनके पीए ने कथित रूप से एक डॉक्टर की पिटाई कर दी थी। डॉक्टर अब न्याय की मांग कर रहे हैं। ऐसी घटनायें होती हैं, भुला दी जाती हैं। पर एक आयोग की जन सुनवाई का तरीका जरूर मिसाल बनने वाला है। हाल ही में जीपीएम और बिलासपुर जिले में आयोग ने अलग-अलग सुनवाई की। देखा गया कि आयोग के साथ भीड़ भी सुनवाई में पहुंच जाती है। उनके समर्थकों की और जिन-जिन विभागों को खबर की गई है उनके अधिकारी कर्मचारियों की। और फिर मीडिया में तो सब बातें आनी चाहिये तो उनको भी इजाजत होती है।
आयोग में ज्यादातर वे महिलायें शिकायत लेकर पहुंचती हैं जो अपनी निजता, प्रताडऩा, व्यावसायिक दिक्कतों और निजी जीवन से जुड़ी अन्य बातों को सिविल कोर्ट या परिवार न्यायालय ले जाने की लंबी प्रक्रिया में नहीं उलझाना चाहतीं। अपनी ऐसी शिकायत को वे सिर्फ आयोग और उनके सदस्यों को अकेले में बताना चाहती हैं। समाधान भी अपना नाम सामने आये बिना कराना चाहती हैं। महिला को आयोग की तरफ से कभी समझाइश दी जाती है, कभी सहानुभूति जताई जाती है और कई बार चेतावनी भी दे दी जाती है। पर, सुनवाई के दौरान आयोग द्वारा बुलाई गई भीड़ रस ले-लेकर को पीडि़त महिला की दुखभरी पूरी कहानी सुन लेती है। आयोग की सुनवाई खत्म होने के बाद उस महिला की पूरी खबर शहर में तैर जाती है।
अन्य मंडल, आयोग की तरह महिला आयोग में भी नियुक्तियां राजनैतिक होती हैं। इसलिये क्या पता भीड़ को ही कैंप की कामयाबी का पैमाना माना जा रहा हो। इतना ही है कि जो महिलायें आयोग में शिकायत करनी चाहती हैं उन्हें इस बात का साहस जुटाकर सुनवाई में जाना होता है कि वह भीड़ का सामना कर पायेंगीं। उसकी फरियाद एक कान से दूसरे कान होते हुए फैल जायेगी तब भी उसे बर्दाश्त कर लेगी।
किसान महापंचायत का स्वागत होगा...
छत्तीसगढ़ के किसान संगठनों ने केन्द्र के कृषि सुधार कानून के विरोध में हड़ताल, धरना, चक्काजाम और प्रदेशव्यापी बंद का आयोजन किया। किसानों का मौन समर्थन उनके आंदोलनों का जरूर रहा हो पर इस सालभर में इस मुद्दे पर सडक़ पर इतनी भीड़ नहीं उमड़ी की कानून-व्यवस्था का संकट खड़ा हो। कांग्रेस भी ट्रैक्टर, बैलगाड़ी में बैठकर प्रदर्शन कर चुकी है। अब 28 सितंबर को रायपुर में होने वाली महापंचायत को कांग्रेस सरकार ने साथ देने की घोषणा की है। इसमें देश के चर्चित किसान नेता, कृषि विशेषज्ञ राकेश टिकैत, योगेन्द्र यादव, सरदार दर्शन पाल सिंह आदि शामिल होने जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में ज्यादातर किसान छोटे और सीमांत हैं। पंजाब हरियाणा की तरह उनकी तकनीक विविध और उन्नत नहीं हैं। उन्हें सबसे बढिय़ा आता है धान उगाना, जिसकी अच्छी कीमत उन्हें मिल ही रही है। इसलिये उन्हें कार्पोरेट का डर अभी महसूस नहीं हो रहा है। पर देर-सबेर इस कानून का असर यहां भी पड़ सकता है, इसलिये इसकी बारीकियों को अभी से समझना यहां के भी किसानों के लिये जरूरी है। देखना है कि किसान बिल को लेकर इस महापंचायत के बाद छत्तीसगढ़ में फिजां बदलेगी या नहीं।
नेटवर्क टूटे तो लगाम लगे
सीएम के निर्देश के बाद एक बार पुलिस मुख्यालय से निर्देश जारी हो गया है कि शराब, गांजा, अफीम आदि मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक लगाने के लिये प्रभावी कदम उठाये जायें। इस बार खास यह है कि अंतर्राज्जीय चेक पोस्ट सीसीटीवी कैमरे और सशस्त्र बल से लैस किये जायेंगे।
छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश से लगातार शराब की तस्करी हो रही है। ओडिशा, झारखंड, यूपी, मध्यप्रदेश के बीच शराब, गांजा की तस्करी के लिये तो छत्तीसगढ़ पास होने का रास्ता भी बना हुआ है। ट्रक, जीप, ट्रैक्टर से लेकर बाइक आदि भी इसके लिये इस्तेमाल में लाये जाते हैं।
हो सकता है कि चेक पोस्ट पर निगरानी सख्त होने के कारण मुख्य मार्ग से बड़ी गाडिय़ों के जरिये होने वाली तस्करी पर कुछ नियंत्रण हो जाये, पर राज्य की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि एक राज्य से दूसरे राज्य आने के लिये वैकल्पिक रास्ते तो खुले ही हैं। एक गांव मध्यप्रदेश में है तो उससे सटा दूसरा छत्तीसगढ़ में। रास्ता वहां से मिल जायेगा।
शराब और गांजा के केस आये दिन पकड़े जाते हैं, पर पुलिस सिर्फ उस तस्कर के खिलाफ मामला बना पाती है जो परिवहन करते हुए पाया गया। दूसरे राज्य के उस व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश नहीं करती, जिसने मादक पदार्थ की सप्लाई की। जब तक दोनों राज्यों की पुलिस मिलकर समन्वय बनाकर नेटवर्क तोडऩे का काम नहीं करेगी, अभियान के असर की उम्मीद कम ही है।
देखे परखे खरे
आखिरकार लंबी प्रतीक्षा के बाद 47 टीआई प्रमोट होकर डीएसपी हो गए। अब इनकी नए सिरे से पोस्टिंग की प्रक्रिया चल रही है। सरकार, और पीएचक्यू इस बात पर एकमत दिख रहे हैं कि रायपुर में टीआई के रूप में बेहतर काम कर चुके पुलिस अफसरों को बतौर डीएसपी यहीं पोस्टिंग दे दी जाए। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पिछले कुछ समय से राजधानी की कानून-व्यवस्था बिगड़ रही है। राज्य बनने के बाद पहली बार कुछ दिन पहले ही शहर के मध्य में स्थित पुरानी बस्ती थाने के भीतर मारपीट की घटना हुई थी।
थाने के भीतर मारपीट की घटना से सीएम बेहद खफा हैं, और इसी वजह से एसएसपी अजय यादव को हटना पड़ा। इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो, और कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर हो, इसके लिए अनुभवी पुलिस अफसरों की रायपुर में पोस्टिंग देने पर विचार चल रहा है। इनमें नवनीत पाटिल, वीरेन्द्र चतुर्वेदी, राजेश चौधरी, हेमप्रकाश नायक शामिल हैं। ये सभी रायपुर में लंबे समय तक अलग-अलग थानों में पदस्थ रहे हैं, और इन सभी की साख ठीक-ठाक है। ऐसे में इन सभी की पोस्टिंग रायपुर में होती है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हालांकि कई और प्रभावशाली डीएसपी रायपुर आने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। देखना है कि किसे रायपुर आने का मौका मिलता है।
लम्बी लिस्ट का राज
पिछले दिनों राज्य प्रशासनिक सेवा के 96 अफसरों की एकमुश्त तबादला सूची जारी हुई, तो हडक़ंप मच गया। इतनी लंबी सूची राज्य बनने के बाद पहली बार निकली थी। अब अंदर खाने से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक तबादले के लिए फार्मूला तय किया गया था। इसमें यह था कि एक ही जिले में तीन साल से अधिक समय तक रहने वालों की दूसरे जिले में पोस्टिंग की जाए। इस क्राइटेरिया में 40 से अधिक अफसर आ गए।
इससे परे कुछ के खिलाफ शिकायतें भी थी, और प्रफुल्ल रजक जैसे एक-दो अफसर थे जो कि स्थानीय नेताओं के साथ विवाद के बाद जिला छोडऩा चाहते थे। भारी भरकम सूची जारी होने के बाद कई अफसर ऐसे हैं जिन्होंने तबादले के लिए काफी कुछ किया था, लेकिन उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया गया। ऐसे अफसरों ने तबादले की आस नहीं छोड़ी है, और वो अभी भी जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं। इन सबके चलते एक और सूची जारी हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
सडक़ के रास्ते से कोरोना की नई लहर?
महाराष्ट्र उन राज्यों में है जहां कोरोना की स्थिति छत्तीसगढ़ से कहीं ज्यादा चिंताजनक है। 1 से 14 सितंबर के बीच वहां 39 हजार 271 नये मरीज मिले। यहां डेल्टा प्लस वेरिएंट मरीजों की पुष्टि भी हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में पिछले 15 दिनों के दौरान नये मरीजों का प्रतिदिन औसत सिर्फ 33 रहा।
इधर, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र से जुड़े शहरों-कस्बों में लोगों की आपस में काफी नाते-रिश्तेदारी है। कोरोना वायरस का प्रकोप थोड़ा थमने के बाद दोनों राज्यों के बीच लोगों की सडक़ मार्ग से आवाजाही बढ़ी है। इन दिनों छुईखदान, डोंगरगढ़, कवर्धा, खैरागढ़ आदि के लोग तीज-त्यौहार मना कर भी लौट रहे हैं। कोरोना संक्रमण के बाद सारी बसें शुरू हो नहीं सकी हैं, इसलिये जितनी बसें चल रही है उनमें खचाखच भीड़ है।
रेलवे स्टेशनों में तो कम से कम पूछा जा रहा है कि वे छत्तीसगढ़ के बाहर से तो नहीं आ रहे हैं? यदि ऐसा है तो जांच करा लें। पर अंतरराज्यीय बसों में बेफिक्री से सफर हो रहा है। न तो सोशल डिस्टेंस का पालन हो रहा है और न ही ज्यादातर लोग मास्क की जरूरत समझ रहे हैं।
अभी त्योहारों का सीजन बाकी है, बल्कि लगातार कई पर्व आ रहे हैं। सडक़ मार्ग से लोगों का आना-जाना इसी तरह आने वाले कई दिनों तक बना रहेगा, इसके पूरे आसार है। ऐसे में अपने राज्य को कोरोना की किसी नई लहर से बचाए रखना एक बड़ा चैलेंज है।
बारिश भरपूर पर सब तरफ नहीं...
बीते तीन दिनों की बारिश से छत्तीसगढ़ के नदी नाले उफन गये और जलाशयों में पानी इतना भरा कि गेट खोलने पड़े। मकान ढह गये, कुछ लोग बह गये, कई परिवारों को रेस्क्यू कर बचाया गया। रायपुर, गरियाबंद, धमतरी, मुंगेली, गौरेला, बिलासपुर जैसे शहरों में तो घरों में कई-कई फीट पानी घुसा। पर यह पूरे छत्तीसगढ़ की स्थिति नहीं है। राज्य में अब भी बारिश औसत से कम है। इस वर्षा के बाद भी यह आंकड़ा 95.8 प्रतिशत तक पहुंच पाया है। प्रदेश की 75 तहसीलों में 76 से 100 प्रतिशत बारिश तो दर्ज हो चुकी है, पर 28 जिलों में 50 से 75 फीसदी ही पानी गिरा है। इनमें सूखा पडऩे की आशंका है। राजस्व विभाग ने सितंबर के पहले हफ्ते तक सूखे के कारण फसलों को होने वाले नुकसान की रिपोर्ट कलेक्टर्स से मांगी थी, अब एक पत्र फिर निकला है जिसमें भारी बारिश के कारण हुई जनहानि, मकान, फसल, पशुओं को हुई क्षति की जानकारी मांगी गई है।
मंत्री, कलेक्टर गांव में रुके रात
कोरोना संक्रमण के बाद जनता की जनप्रतिनिधियों और अफसरों से जो दूरी बढ़ी है वह अब तक खत्म नहीं हो पाई है। गांवों में समस्या निवारण शिविरों का लगना बंद है, जिलों में जन-दर्शन शुरू नहीं हो रहा है। इस तरह के आयोजन अधिकारियों तक पहुंचकर आम लोगों को सीधे अपनी समस्या बताने का मौका देते हैं।
पर इससे आगे बढक़र थोड़ी शुरुआत हुई है। स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह और सूरजपुर कलेक्टर गौरव कुमार सिंह ने प्रतापपुर इलाके के एक गांव जजावल के सरकारी छात्रावास में रात बिताई। जब वे रुके तो जिले के दूसरे अधिकारी भी पहुंच गये थे। यह गांव कभी नक्सली गतिविधियों के लिये जाना जाता था। रात में चौपाल लगाकर कलेक्टर और मंत्री ने ग्रामीणों से इत्मीनान से समस्याओं को सुना और सुबह एक शिविर भी लगाया। आसपास के गावों से सैकड़ों लोगों ने पहुंचकर अपनी समस्या गिनाईं, जिनके लिए जिला मुख्यालय पहुंचना मुश्किल होता है। हाथों-हाथ कई मांगों को पूरा भी किया गया। पूर्व की सरकारों में, अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान भी देखा गया है कि मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल के साथियों को और चीफ सेक्रेटरी कलेक्टर को गांवों में रात रुकने का फरमान जारी करते थे। यह अलग बात है कि इसमें अधिकारी और मंत्री रुचि नहीं दिखाते थे, जबकि अंतिम छोर तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने की मंशा रखने वाली हर सरकार को इस तरह का काम करते रहना चाहिये।
अटकलों पर अब धीरे-धीरे विराम
प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर अब धीरे-धीरे विराम लग रहा है। सीएम ने जिलों का दौरा शुरू कर दिया है, और बाबा भी विभागीय कामकाज में रूचि ले रहे हैं। पिछले 20 दिनों से नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा तेजी से चल रही थी, और शासन-प्रशासन में कामकाज थम सा गया था। यह भी हल्ला उड़ा कि दिग्विजय सिंह पर्यवेक्षक बनकर छत्तीसगढ़ आ रहे हैं।
बताते हैं कि खुद दिग्विजय सिंह ने दिल्ली में कुछ लोगों से अनौपचारिक चर्चा में इससे इंकार किया है। उन्होंने कहा बताते हैं कि वो छत्तीसगढ़ नहीं जा रहे हैं, और नेतृत्व परिवर्तन जैसा कुछ भी नहीं है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान सारी तस्वीर साफ हो जाएगी। हालांकि राहुल का आना अभी तय नहीं है। प्रदेश में बारिश को देखते हुए अगले पखवाड़े भर में उनका आना मुश्किल दिख रहा है। ऐसे में अफवाहों का बाजार तो गरम रहेगा ही।
सी-प्लेन की शुरुआत सतरेंगा से होगी?
सन् 2017 में गुजरात चुनावों के ठीक पहले प्रधानमंत्री ने केवडिय़ा से साबरमती तक सी प्लेन की शुरूआत की थी तब लोगों के ध्यान में इसे लेकर कौतूहल पैदा हुआ था। केन्द्र ने उसी वक्त घोषणा की थी कि देश में कम से 100 सी प्लेन टर्मिनल बनाये जायेंगे। इन पर काम स्मार्ट सिटी की तरह ही धीमी गति से हो रहा है। पर अब अपने छत्तीसगढ़ का नंबर लग सकता है। कोरबा से 30 किलोमीटर दूर हसदेव बांगो नदी के तट पर खूबसूरत पहाडिय़ों के बीच सतरेंगा पिकनिक स्पॉट है, जो पहले से ही काफी आकर्षक है, वहां सी प्लेन की सेवा शुरू करने की बात चल रही है। केन्द्र ने जिला प्रशासन से इसके बारे में डिटेल्स मांगी है। राज्य सरकार के माध्यम से इसे भेजा जायेगा। जो जरूरत बताई गई है करीब सभी यहां उपलब्ध हैं। मसलन एक हजार मीटर लंबी और 300 मीटर चौड़ी किंतु गहरी वाटर बॉडी और टर्मिनल निर्माण के लिये पर्याप्त जगह।
बीते साल फरवरी में इसी जगह पर राज्य मंत्रिमंडल की बैठक होनी थी। दो बार तारीख तय हुई पर अलग-अलग वजह से टल गई। मतलब, प्रशासन के अधिकारी सी प्लेन में रुचि तो दिखा रहे हैं, इसे कोरबा जिले और प्रदेश के नेता भी इस योजना को मूर्त रूप देना चाहेंगे। यह छत्तीसगढ़ का पहली सी प्लेन योजना होगी, जाहिर है प्रदेश के पर्यटन के विकास में यह एक उपलब्धि होगी।
सी प्लेन पानी और जमीन दोनों जगह लैंड कर सकती है। फिलहाल भारत में उपलब्ध सी प्लेन में सिर्फ 20 लोग एक साथ सफर कर सकते हैं। पर्यटकों को लुभाने के लिये इसका किफायती होना जरूरी होगा।
राजस्व में तबादलों का दर्द दर्ज हुआ..
प्रदेश के कई स्थानों पर एसडीएम और तहसीलदार स्तर के तबादले हुए। इनमें से कई के ऊपर जमीन माफियाओं की मदद करने का आरोप लगता रहा। करोड़ों की जमीन इधर-उधर कर ली गई। राजस्व रिकॉर्ड में फेरबदल किये गये। मांग थी इन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की मगर ऐसा मौका आया नहीं। अब नई जगह पर नई फाइलें, नई जमीनें। पुरानी जगह पर उनके ऊपर जो आरोप लगे वे ठंडे बस्ते में। ऐसे में सत्तारूढ़ दल के एक नेता का दर्द सोशल मीडिया पर छलक ही गया। बिलासपुर एसडीएम के तबादले पर उन्होंने पोस्ट डाली- ऐसे कर्मठ और लोकप्रिय अधिकारी को इस तरह नहीं हटाना चाहिये। जिनकी पोस्ट है वे खुद इतनी पकड़ राजधानी में रखते हैं कि तबादला रुकवा देते, पर लगता है कि उनकी बात नहीं सुनी गई। बस इतना ही हुआ कि बीजापुर की जगह उनकी रायपुर में पोस्टिंग दे दी गई। राजधानी तो राजधानी है, यहां ज्यादा प्रीमियम जमीन और मौके हैं।
पुलिस एक नजर से देखती है...
बलौदाबाजार के विधायक प्रमोद शर्मा तकनीकी रूप से तो जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के विधायक हैं पर वे अपनी पसंद बता चुके हैं कि वे कांग्रेस के साथ हैं। दूसरी ओर सनम जांगड़े पूर्व विधायक भाजपा नेता हैं। उनके धरना प्रदर्शन के बाद थानेदारों पर तो कार्रवाई की गई पर दोनों नेताओं के खिलाफ भी पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया। धरना-प्रदर्शन करने पर आम तौर पर एफआईआर दर्ज नहीं की जाती। नेता जिद भी पकड़े तो थाने से ही मुचलके पर छोड़ दिया जाता है। पर यहां मामला कुछ गंभीर है। पुलिस ने अपनी ही ओर से जो एफआईआर दर्ज की है उसमें सरकारी काम में बाधा डालना, गाली गलौच करना और बलवा शामिल है। एफआईआर को मजबूत बनाने के लिये पुलिस वीडियो फुटेज और फोटोग्रॉफ्स भी इक_ा कर रही है। बात यह है कि जनप्रतिनिधियों और पुलिस के बीच ऐसा टकराव होने की नौबत बार-बार क्यों आ रही है। लोगों के काम नहीं होने के कारण जनप्रतिनिधि गुस्से में चल रहे हैं या ब्यूरोक्रेट्स के हाथ इतने खुल गये हैं कि वह किसी की सुन नहीं रहे? दोनों ही अप्रिय स्थिति है।
आसमान से गिरे, खजूर पर अटके
आमतौर पर बड़े अफसरों का तबादला होता है, तो कई बार उनके मातहत भी प्रभावित हो जाते हैं। ऐसे ही एक अफसर ने विभागीय सचिव से परेशान होकर अपना तबादला पीएचई में करा लिया था। अफसर पहले उच्च शिक्षा में थे, और फ्री स्टाइल बैटिंग के आदी रहे हैं। इससे परे विभागीय सचिव एकदम नियम-पसंद थे, जो कि उन्हें नहीं भा रहा था।
अफसर को नियम-कानून के दायरे में रहकर काम करना पड़ता है, और गलती करने पर सचिव की फटकार भी सुननी पड़ती थी। अफसर ने हिसाब-किताब जमाकर पीएचई में पोस्टिंग पा ली। पीएचई को जल जीवन मिशन की वजह से काफी मलाईदार माना जाता है। कुछ दिन हुए थे। सब कुछ बढिय़ा चल रहा था कि सचिव स्तर के अफसरों का भी तबादला हो गया। पीएचई में वो आ गए, जिनसे अफसर काफी परेशान रहे हैं। यानी अफसर की हालत आसमान से गिरे, खजूर पर अटके वाली हो गई है।
नए से परेशान पुराने
भाजपा में नए-नए आए लोगों के साथ कार्यकर्ता सहज नहीं हो पा रहे हैं। कुछ का तो विरोध शुरू हो गया है। कांग्रेस छोडक़र हाल ही में आए वेदराम मनहरे का तो कई बड़े नेता दबे स्वर में विरोध कर रहे हैं। यही हाल, रिटायर्ड आईएएस गणेश शंकर मिश्रा का भी है। मिश्राजी दिल्ली में तामझाम के साथ भाजपा में शामिल हुए थे। मगर पार्टी के नेता उनसे दूर ही रहना पसंद करते हैं।
पिछले दिनों रायपुर ग्रामीण जिले के पदाधिकारियों की बैठक थी। बैठक की उन्हें सूचना नहीं दी गई थी। फिर भी मिश्राजी बैठक में पहुंच गए, और मंच पर बैठे। बैठक में पूर्व विधायक देवजी पटेल भी पहुंचे। मिश्राजी को देखकर असहज हो गए, और थोड़ी देर बैठक में रहने के बाद चले गए।
बैठक में मौजूद कई नेता एक-दूसरे से पूछते रहे कि क्या मिश्राजी को पार्टी में कोई पद मिला है? इससे परे कुछ लोग उन्हें धरसींवा से पार्टी टिकट का मजबूत दावेदार मान रहे हैं। हालांकि मिश्राजी ने अभी तक खुले तौर पर चुनाव लडऩे की इच्छा नहीं जताई है। मगर धरसींवा से टिकट के बाकी दावेदार परेशान हो रहे हैं।
सोशल मीडिया के खतरे...
टिक टॉक पर बैन लगाया गया तो उससे मिलते-जुलते दर्जनों एप भारतीय वर्जन में आ गये। गांव-गांव में लोगों के हाथ में मोबाइल फोन हैं और इनमें वे बड़ी आसानी से वीडियो डाउनलोड कर शेयर कर रहे हैं। पर यह जुनून कितना खतरनाक हो सकता है यह बेमेतरा के एक गांव की दो स्कूली लड़कियों को अब महूसस हो रहा है। इन्होंने एक साफ-सुथरा वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में डाला, लेकिन कुछ शरारती तत्वों ने इसके साथ छेड़छाड़ की। उन्होंने वीडियो डाउनलोड कर लिया। उसका ऑडियो बदल दिया और दोनों के बीच फर्जी अश्लील वार्तालाप डाल दिये। इसके बाद उन्होंने इस वीडियो को इलाके में वायरल कर दिया। घबराई हुई पीडि़त युवतियों ने थाने और आईटी सेल में इसकी शिकायत की है लेकिन दो हफ्ते से ज्यादा वक्त बीत जाने के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वीडियो इतने लोगों तक पहुंच चुका है कि अब उसे हर एक के मोबाइल फोन को ढूंढकर मिटाया नहीं जा सकता। यह घटना एक सबक उनके लिये है जो अति उत्साह में बिना नतीजे की परवाह किये सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं।
खाद की किल्लत बस आखिरी बार...
मंत्री और अधिकारी भले ही इस बात से इंकार करें कि किसानों को खाद की कमी नहीं है पर पूरे सीजन इसकी मारामारी रही है। खासकर यूरिया ब्लैक में बिक रहा है और सोसाइटियों में किसानों को चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। पर, सब कुछ ठीक रहा तो शायद ऐसी किल्लत अगले साल से नहीं होगी। सरकार की सहयोगी उपक्रम इफको ने यूरिया की जगह तरल खाद ईजाद कर लिया है। इसे नैनो नाम दिया गया है। एक बोरी यूरिया का काम सिर्फ 500 मिलीलीटर के लिक्विड से हो जायेगा। दावा है कि यह जमीन की उर्वरा शक्ति को नुकसान नहीं पहुंचायेगा, जो रासायनिक खादों से पहुंचता है। परिवहन का झंझट भी खत्म, इसे जेब में डाल सकते हैं। वैसे तो जून माह में ही इसका उत्पादन शुरू हो चुका है पर किसानों की मांग के अनुरूप अभी उपलब्धता नहीं है। अगले वर्ष से यह सब किसानों के लिये सुलभ हो सकता है।
बलरामपुर में फिर एक पंडो की मौत
पंडो आदिवासियों की बलरामपुर जिले में दुर्दशा की फिर एक खबर आई है। रामचंद्रपुर ब्लॉक में बीते एक माह के भीतर 6 लोगों की कुपोषण व खून की कमी की वजह से मौत हो चुकी है। अब त्रिशूली पंचायत के भनिया पंडो की मौत भी अंबिकापुर के मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में हो गई है। डॉक्टरों का कहना है कि उसे समय पर हॉस्पिटल नहीं पहुंचाया गया। पहले उन्होंने झाड़-फूंक का सहारा लिया, फिर किसी झोला छाप डॉक्टर से इलाज कराया। जब तबियत ज्यादा बिगड़ी तो तब अंबिकापुर लेकर आये। यह हैरानी की बात है कि हाल ही में डॉक्टरों ने उस गांवों में कैंप लगाया था जहां पहले मौतें हो चुकी हैं। तब पाया गया था कि अधिकांश महिलायें कुपोषित हैं और उनमें खून की कमी है। इसके बाद फिर एक केस आ गया है। यह सब उस इलाके में हो रहा है जहां से प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री आते हैं।
इतिहास की सबसे बड़ी लिस्ट
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की अब तक की सबसे बड़ी तबादला सूची जारी की गई है। राप्रसे के करीब साढ़े 3 सौ अफसरों में से एक साथ 96 अफसर बदल दिए गए। हर जिले से चार-पांच अफसरों का तबादला हुआ है। कुछ जगहों पर तो स्वीकृत पदों से अधिक की पोस्टिंग हो गई।
रायपुर में एडिशनल कलेक्टर के दो पद स्वीकृत हैं, लेकिन यहां पांच अफसर पदस्थ हो गए। रायपुर में पद्मिनी भोई साहू, गोपाल वर्मा, बीसी साहू, एनआर साहू, पहले से ही हैं, और अब वीरेन्द्र बहादुर पंचभाई की भी एडिशनल कलेक्टर के पद पर पोस्टिंग हो गई। कई के तबादले गंभीर शिकायतों के बाद हुए हैं।
रायपुर समेत कुछ जिलों में अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों में लेनदेन की शिकायत हुई थी। कर्मचारी नेताओं ने ऐसे अफसरों के नाम सीएम तक पहुंचाया था। इसी तरह विधायकों की भी अपनी पसंद थी। फिर क्या था, सूची में नाम जुड़ते गए, और रिकॉर्ड कायम हो गया।
अफसरों के दिन फिरे
आईएएस अफसरों के तबादले अपेक्षित थे। क्योंकि डॉ. एम गीता स्वास्थ्यगत कारणों से दिल्ली पोस्टिंग चाहती थीं। उमेश अग्रवाल की जगह गृह सचिव के पद पर पोस्टिंग होनी थी। सूरजपुर कलेक्टर पद से हटाए जाने के बाद रणवीर शर्मा को कुछ न कुछ काम देना था। इन सब वजहों से सूची लंबी हो गई, और 20 अफसरों के प्रभार बदले गए।
पिछले कुछ साल से लूप लाइन में चल रहे विशेष सचिव स्तर के अफसर भुवनेश यादव को अच्छा खासा काम मिल गया है। उन्हें उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, और रोजगार जनशक्ति नियोजन का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। इन विभागों के अलावा उन्हें बीज निगम का एमडी भी बनाया गया है। जबकि प्रसन्ना आर से संचालक पंचायत का प्रभार वापस लिया गया है।
सुनते हैं कि पंचायत विभाग में कुछ ऐसे फैसले हो गए थे जिनकी शिकायत ऊपर तक हो गई थी। यही नहीं, पंचायत शिक्षकों की अनुकंपा नियुक्ति को लेकर फाइलें भी सालभर से विभाग में पड़ी थी। जिस पर सीएम ने तत्काल कार्रवाई करने कहा था। ऐसे में उनसे संचालक का प्रभार लेकर अविनाश चंपावत को कमिश्नर बनाया गया है। हालांकि प्रसन्ना के पास सचिव का प्रभार यथावत रहेगा। वैसे भी विभाग में रेणु पिल्ले तो एसीएस हैं ही।
तकरीबन रातों-रात
थाने में पादरी के साथ मारपीट की घटना के बाद से एसएसपी अजय यादव को हटा दिया गया था, लेकिन उन्हें जल्द ही सरगुजा रेंज के आईजी का प्रभार दिया गया। अजय भले ही कडक़ मिजाज के नहीं हैं, लेकिन उनकी साख अच्छी है। वे किसी को नाराज भी नहीं करते। यही वजह है कि उन्हें अहम जिम्मेदारी दी गई।
राहुल के दौरे का आगे टल जाना..
कांग्रेस सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरे को लेकर सारी तैयारी पूरी हो चुकी है। बस उनके आने का इंतजार हो रहा है। वैसे तो दिल्ली गये नेताओं के साथ चर्चा में उनके एक सप्ताह बाद ही आने की बात थी पर इसे अब एक पखवाड़ा बीतने जा रहा है। तारीख अब भी तय नहीं हुई है। छत्तीसगढ़ से उनका तीन दिन का दौरा कार्यक्रम बनाकर भेज दिया गया है। दो तीन में इसके फाइनल होने की उम्मीद है। यानि सितंबर के तीसरे-चौथे सप्ताह में उनका प्रवास हो सकता है। इस बीच सरगुजा और बस्तर में मंत्री दौरा करके माहौल बना चुके हैं। सोचें यदि विधायकों के दिल्ली कूच के तुरंत बाद राहुल गांधी आते तब क्या होता और अब क्या हो सकता है। तत्काल बाद आते तो शायद एक बार फिर शक्ति प्रदर्शन होता और विकास कार्यों के बजाय ढाई साल के सीएम फॉर्मूले पर लोगों का फोकस अधिक होता। अब पानी में ठहराव आ चुका है। कांग्रेस के दिल्ली में बैठे रणनीतिकार राहुल के दौरे को आगे टालने का निर्णय शायद माहौल को शांत होते देखना चाहते थे।
क्या आदमखोर थे ये मासूम तेंदुए?
कांकेर इलाके में तेंदुए के कथित आदमखोर होने की खबरों के बाद अब पिंजरे में दो तेंदुओं को पिंजरे में बंद कर जंगल सफारी रायपुर लाया गया है। कहा जाता है कि इन दोनों ने एक महिला और एक बच्चे को अपना शिकार बनाया। इनका वीडियो भी देखने को मिला। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि अभी ये अल्पव्यस्क हैं और मां के साथ प्रशिक्षण ले रहे होंगे। यानि ये शिकार करना अभी नहीं जानते होंगे।
यह भी आशंका है कि किसी दूसरे तेंदुए की करतूतों की सजा इन शावकों को मिलने वाली है। ऐसा देखा गया है मां जब अपने शावकों के साथ होती है तब अपने शावकों की सुरक्षा के लिए आक्रामक हो जाती है> ऐसी दशा में वह आदमखोर नहीं होती। वैसे भी एक आदमी को उठा कर ताडोबा में ले जाने वाले टाइगर मटकासुर को ना पकड़ा जा सका न ही शूट किया गया है।
रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने इस मामले में चिंता जताई है। उनका कहना है कि इन दोनों तेंदुओं की उम्र का सही पता कर ही कोई इल्जाम लगाना होगा। जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं किया जाए। इनका जंगल में पुर्नवास यदि किया जाता है तो विवेक सम्मत कार्य होगा। जिस इलाके से ये पकड़े गए उधर के गांवों में लोग सुरक्षित रहें इसकी मुनादी भी जरूरी है।
मेढक-मेढकी की शादी
आप इसे अंधविश्वास मान सकते हैं या पीढिय़ों से चली आ रही धारणा का निर्वाह करना। रायगढ़ जिले के लैलूंगा में बारिश की कमी के चलते फसल सूखने के कगार पर है। ग्रामीणों में भय के चलते भक्तिभाव पैदा हुआ और उन्होंने मेंढक-मेढकी की शादी रचाने का निर्णय लिया। शनिवार को सोनाजोरी गांव से मेंढक की बारात पहुंची और मेढक़ी के साथ उसका विवाह मंडप, मंत्रोच्चार के साथ बेस्कीमुड़ा गांव में कराया गया। इंद्रदेव को प्रसन्न कर बारिश की कामना की गई। देव कितने प्रसन्न हुए यह पता नहीं लेकिन बारात में शामिल लोगों को बड़ा आनंद आया। खबर है कि करीब 3 हजार लोग शामिल हुए। बैंड-बाजे के साथ बाराती-घराती सब नाचे। भोज की भी शानदार व्यवस्था की गई थी। बकायदा निमंत्रण-पत्र छापकर लोगों को न्यौता दिया गया था।
हर आईपीएस की मुराद
राजधानी रायपुर का पुलिस कप्तान बनने की मुराद हर आईपीएस की दिली ख्वाहिश होती है। छत्तीसगढ़ की राजधानी की कप्तानी पारी खेलने को प्रशासनिक नजरिए से बेहद जरूरी मानते हैं। पिछले दिनों हुए फेरबदल में 2008 बैच के प्रशांत अग्रवाल की मानो लॉटरी निकल गई। प्रशांत अगले साल जनवरी में डीआईजी पदोन्नत हो जाएंगे। सुनते हैं कि प्रशांत की दुर्ग पोस्टिंग के दौरान भी सरकार ने रायपुर में उनकी तैनाती को लेकर विचार किया था। रायपुर के एसएसपी अजय यादव को उसी दौरान पीएचक्यू भेजे जाने पर सरकार ने विचार किया था। दुर्ग में करीब सवा माह के कार्यकाल के बीच ही प्रशांत को रायपुर पदस्थ कर दिया। सर्विस में प्रशांत ने बीजापुर जैसे घोर नक्सल क्षेत्र में कार्य करने से पहले कोंडागांव से एसपी की शुरुआत की थी। यह संयोग ही है प्रशांत कोंडागांव में दो माह ही पदस्थ रहे। राजधानी रायपुर की तैनाती को प्रशांत के शांत व्यवहार के अनुकूल माना जा रहा है। विवादों से दूर रहते हुए प्रशांत ने बिलासपुर में आराम से दो साल गुजारे अब वे राजधानी में दिग्गज राजनेताओं से लेकर आला अफसरों के बीच काम कर रहे हैं।
रूपानी जैसे नेता नहीं यहां...
एक बात भाजपा में बढिय़ा है। छह महीने के भीतर चार सीएम कुर्सी से उतार दिये गये। न तो विधायकों की सलाह ली गई न ही परेड कराई। कांग्रेस की बात अलग है। पंजाब में कितनी हलचल हो रही है, राजस्थान में किस तरह सचिन पायलट जन्मदिन मना रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो सरकार ही गिर गई पर कमलनाथ नहीं हटाये गये। अब अपने छत्तीसगढ़ की बात करें तो स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव उस वादे को पूरा होते देखना चाहते हैं जो उनके मुताबिक हाईकमान ने सन् 2018 में भूपेश बघेल की ताजपोशी के समय कर रखा था। रुपानी के साथ कितने विधायक थे यह कोई नहीं गिनेगा। मगर छत्तीसगढ़ के मामले में कांग्रेस विधायकों की परेड कर डाली गई। क्या रूपानी ने ऐसा दबाव हाईकमान के सामने डालने का साहस जुटाया? अब कह सकते हैं कि कांग्रेस में ज्यादा आजादी है।
धान की जगह बांस का प्रयोग
छत्तीसगढ़ में पैदावार की इतनी सारी विविधता है कि किसानों की आमदनी बढ़ सकती है। सरकार ने इसी साल उन किसानों को अनुदान देने का फैसला किया है जो धान की जगह दूसरी फसल लगायेंगे। इसकी वजह से करीब 3 हजार हेक्टेयर में धान का रकबा कम हो पाया है। सरकार अपने वादे को निभाने के लिये सारा धान ऊंचे दाम पर खरीद तो लेती है पर वह उपार्जन केंद्रों में सड़ जाते हैं। इसे हाथियों को खिलाया जा रहा है, बहुत कम दामों पर करोड़ों रुपये के नुकसान पर नीलाम किया जा रहा है। ऐसे में सरगुजा में एक ठीक काम हो रहा है। वहां कलेक्टर ने जिले के सभी 184 गौठानों में बांस रोपने का काम दे दिया है। लोग अपने खेतों में भी उगा सकते हैं। खर्च कुछ भी नहीं क्योंकि पौधे वन विभाग से मिल रहे हैं। बस पौधों की देखभाल करने की जिम्मेदारी उन सदस्यों की होगी जो इसे लगा रहे हैं। वक्त आ गया है कि धान से बाहर निकलकर खेती की जाये। कलेक्टर की यह पहल कारगर होगी या नहीं आने वाले दिनों में मालूम होगा।
हमारी समस्या में हाथी शामिल है?
हाथियों की आवाजाही को लेकर राज्य सरकार सतर्क नहीं है, ऐसा लगता है। घरों को उजाडऩे, फसलों को नुकसान पुहंचाने के अलावा वे बेकसूर ग्रामीणों भी बे मौत मारे जाने के लिये भी जिम्मेदार हैं। महासमुंद, गरियाबंद, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, धरमजयगढ़ हर तरफ लोग इनके डर से भागे-भागे फिर रहे हैं। तपकरा रेंज में 31 हाथियों का दल एक साथ घूम रहा है। एक साथ इतने हाथी? मालूम यह हुआ है कि दो दल एक साथ मिल गये हैं। एक दल में 22 दूसरे में नौ। कभी नहीं सुना गया कि राजधानी में बैठे वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने इस समस्या पर कोई बयान दिया और उस क्षेत्र का दौरा किया। हाथियों के लिये जशपुर के बादलखोल और कोरबा के लेमरू में रिजर्व एरिया बनाने की बातें कब से रुकी पड़ी है, धरातल पर नहीं आई।
बाप-बेटे के रिश्ते
ब्राम्हणों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर सुर्खियों में आए सीएम भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल को जिला अदालत से जमानत मिल गई, और शुक्रवार की देर शाम रिहा भी हो गए। नंदकुमार बघेल की बेबाक टिप्पणियों से कई बार भूपेश बघेल के लिए असुविधाजनक स्थिति पैदा होती रही है। बहुत से लोग यह जानते भी हैं कि एक बार तो भूपेश बघेल को चुनाव में हराने के लिए पिता नंदकुमार बघेल ने गांव-गांव प्रचार भी किया था, और अपने बेटे के खिलाफ वोट देते फोटो भी खिंचवाई थी।
यह वह दौर था जब भूपेश बघेल पहली बार वर्ष-93 में पहली बार पाटन विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। उस वक्त जनता दल ने दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री पुरूषोत्तमलाल कौशिक के बेटे दिलीप कौशिक को प्रत्याशी बनाया था। उस वक्त भी भूपेश बघेल को अपने घर में विरोध का सामना करना पड़ा था, और पिता नंदकुमार बघेल खुले आम दिलीप कौशिक के पक्ष में प्रचार के लिए निकल गए।
उस वक्त जार्ज फर्नांडीज जैसे प्रतिष्ठित समाजवादी नेता दिलीप कौशिक के प्रचार के लिए आए थे। और नंदकुमार बघेल ने उनके साथ मंच साझा किया था। पहली बार चुनाव लड़ रहे भूपेश को तो उस वक्त पिता के विरोध का जवाब देना मुश्किल हो रहा था। मगर उस कठिन दौर में भी भूपेश चुनाव जीतने में सफल रहे। ये अलग बात है कि भूपेश विरोधी नेता, उनके पिता की टिप्पणियों का समय-समय पर उनके खिलाफ इस्तेमाल भी करने से नहीं चूकते हैं। और उन्हें सफाई देनी पड़ती है।
हम नहीं सुधरेंगे
कुछ लोगों में सुधरने की कोई संभावना नहीं होती है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविशंकर विश्वविद्यालय के लंबे-चौड़े अहाते को देखें तो वहां मौजूद पोस्ट ऑफिस रोज अपना कचरा बाहर जलाता है। उस कैंपस में घूमने वाले लोगों ने जाकर पोस्ट ऑफिस के कर्मचारी से इसकी शिकायत भी की, और वहां मौजूद सफाई कर्मी महिला ने गलती मान भी ली कि अबसे कचरा नहीं जलाएंगे। लेकिन कई बार ऐसी शिकायत करने के बाद भी कचरा जलाना जारी है। यह हाल केंद्र सरकार के एक संस्थान का है जिसे नियम कायदा मानने वाला होना चाहिए था। फिर मानो इसी का संक्रमण दूसरे सफाई कर्मचारियों तक पहुंचा और विश्व विद्यालय भवन के पीछे खेल मैदान के किनारे ढेर-ढेर कचरा हर दो-तीन दिन में जलाया जाता है जिस से दूर-दूर तक हवा में धुआं फैल जाता है। पास में ही सैकड़ों छात्र-छात्राएं खेलते भी रहते हैं. विश्वविद्यालय के एक भवन के बगल में इतनी जूठन फेंकी जाती है कि आस-पास से घूमने निकलने वाले लोग बदबू से नाक बंद करने लगते हैं। लेकिन इस शिकायत का भी कोई असर देखने नहीं मिलता। जो हाल केंद्र सरकार के पोस्ट ऑफिस का है वही हाल राज्य शासन के विश्वविद्यालय का है।
स्वामिभक्ति यहां नहीं चलती
उत्तर भारत के किसानों ने हरियाणा के मिनी सचिवालय को बीते 4 दिनों से घेर रखा है। कृषि बिल के विरोध में करनाल में किये गये प्रदर्शन के दौरान वहां के एसडीएम ने कह दिया कि किसान यदि यातायात में बाधा डालते हैं तो उनका सिर फोड़ दो। इसके बाद पुलिस के हाथ खुल गये, दनादन लाठी चला दी। जो फसाद हुआ उसमें दर्जन भर लोग घायल हुए और एक किसान की मौत हो गई। एसडीएम के बयान की भाजपा सांसद वरुण गांधी ने भी निंदा की, सीएम खट्टर ने भी आलोचना की और असहमति जताई और उसका तबादला कर दिया। पर इससे क्या होता है? किसान जमा हैं उस एसडीएम को निलंबित करने के लिये। हरियाणा सरकार मामले को खत्म कर सकती है इस मांग को मानकर। अपने यहां छत्तीसगढ में लॉकडाउन का उल्लंघन करने पर एक कलेक्टर ने बच्चे को थप्पड़ जड़ दिया, उसका मोबाइल फोन तोड़ दिया। हंगामा मचा, कलेक्टरी छिन गई। जनता की बात ऐसे मानी जाती है...। बस, वो सिलगेर के मामले में कार्रवाई होना बचा है। करनाल जैसा ही आंदोलन है पर वह हाईवे का नहीं, दूर पहुंचविहीन जगह की है।
मंत्रियों का पत्ता कटेगा?
ये बात अंदर की होगी पर रामानुजगंज के चर्चित विधायक बृहस्पत सिंह ने बाहर निकाल दी है। पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा है कि छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल में जल्द ही फेरबदल होने वाला है, तीन-चार बदलने जा रहे हैं। बड़ी ईमानदारी के साथ उन्होंने कहा है कि मुझे मंत्री बनने का दबाव मंजूर नहीं होगा। विधायक रहते सेवा ठीक तरह से कर लेता हूं। बताइये, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के इतने सारे सीनियर विधायक हैं जिनको चाहकर भी मंत्रिमंडल में नहीं लिया जा सका। जब चार हटाये जायेंगे तो समायोजन की भी बात तो होगी। बृहस्पत से विधायक फोन कर पूछ रहे होंगे, क्या भाई, आप तो साहब के चहेते हो.. हमारा नंबर नई सूची में लगेगा क्या?
क्या सचमुच कुछ ऐसा होने वाला है, जैसा विधायक कह रहे हैं?
आईजी प्रमोशन से पूर्व एसपी !
गुजरे दिनों राजधानी रायपुर में एक पादरी को थाना में घुसकर पीटने की घटना से पुलिस महकमे में हुए फेरबदल में 2004 बैच के आईपीएस बद्रीनारायण मीणा सबसे ज्यादा फायदे में दिख रहे हैं। डीआईजी स्तर के मीणा करीब सवा माह पहले केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे हैं। प्रदेश पुलिस में आमद देते ही मीणा को पादरी के साथ हुए हाथापाई के बाद सूबे के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह जिले दुर्ग का एसपी बना दिया गया। मीणा की पोस्टिंग इसलिए प्रशासनिक हल्के में चर्चा में है, अगले साल जनवरी में वह प्रमोशन से आईजी बन जाएंगे। वैसे मीणा का प्रदेश में एसपी के तौर पर लंबा कार्यकाल रहा है। रायगढ़ एसपी का कार्यकाल पूरा होते ही वह डीआईजी पदोन्नत होने के फौरन बाद केंद्र में चले गए। दुर्ग की पोस्टिंग को एसएसपी स्तर का माना जाता है। सुनते हैं कि आईजी प्रमोशन तक करीब चार माह तक मीणा एसपी बने रह सकते हैं। यानी जनवरी में दुर्ग में नए एसपी की तैनाती तय है। मीणा ने अपने लंबे प्रशासनिक करियर में किसी से सीधा टकराव का रवैया नहीं रखा। भाजपा सरकार में उनके कांग्रेस नेताओं से भी अच्छे ताल्लुकात रहे। राज्य पुलिस के इतिहास में सम्भवत: यह पहला अवसर रहेगा जब आईजी प्रमोशन से पहले किसी अफसर को एसपी की कमान मिली है।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों की यात्रा...
छत्तीसगढ़ में हर साल तकरीबन 100 फिल्में रिलीज होती हैं लेकिन सामाजिक योगदान और कलात्मकता की दृष्टि से खरी कितनी होती हैं इस पर सवाल समीक्षक उठाते रहते हैं। शुक्रमनाना चाहिए छत्तीसगढ़ी में भोजपुरी फिल्मों की तरह अश्लीलता अभी नहीं आ पाई है लेकिन ये फिल्में छत्तीसगढ़ के मिजाज को भी प्रतिबिंबित नहीं करती हैं। समीक्षक कहते हैं कि वे मुंबईया फिल्मों की नकल होती हैं। अब, जब छत्तीसगढ़ सरकार ने बरसों की मांग को ध्यान में रखते हुए फिल्म पॉलिसी हरी झंडी दी है और तरह-तरह की केटेगरी में अनुदान देने पर सहमति जताई है, दिन कुछ बदलने के आसार हैं।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों की लोक यात्रा 1948 से ही शुरू हो चुकी थी जब किशोर साहू ने हिंदी में ‘नदिया के पार’ फिल्म बनाई थी। फिर मनु नायक की फिल्म 1965 में आई थी-‘कहि देबे संदेश’। उसके बाद आई निरंजन तिवारी, जमाल सेन और हरि ठाकुर की, सन् 1971 में घर-द्वार। रफी, सुमन कल्याणपुर के सुमधुर गीत- झन मारो गुलेल, सुन-सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे.., अब भी घरों में गूंजा करते हैं।
सन 2000 में राज्य बनने के बाद आई सतीश जैन की फिल्म ‘मोर छैया भुइयां’ ने सफलता के पिछले सारे रिकॉर्ड्स तोड़ डाले। आनंद टॉकीज में टिकट के लिए इतनी भीड़ कि पुलिस तैनात करनी पड़ी। लोगों में नया राज्य मिलने के जुनून ने भी इस फिल्म को कई शहरों में सिल्वर जुबली हिट बना दिया। इसी सफलता से प्रभावित होकर छत्तीसगढ़ी फिल्मों का जो सिलसिला निर्माताओं ने शुरू किया वह अब तक जारी है।
कैबिनेट की बैठक में छत्तीसगढ़ी फिल्मों और टीवी इंडस्ट्री के विकास के लिए नीति बनाने और एक फिल्म सिटी नया रायपुर में तैयार करने का निर्णय लिया गया है। संस्कृति मंत्री ने कहा है कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली फिल्मों को पुरस्कृत किया जाएगा। इसमें पहला पुरस्कार ‘भूलन द मेज’ को देने की भी घोषणा कर दी गई है। संजीव बख्शी के उपन्यास ‘भूलन कांदा’ पर आधारित रायपुर के मनोज वर्मा की इस फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में तो पुरस्कृत किया गया किंतु 65 साल में पहली बार किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने का श्रेय भी है।
उम्मीद की जानी चाहिए संस्कृति विभाग बिना किसी राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप के उन फिल्मों के प्रोत्साहित करेगी जिससे छत्तीसगढ़ की पहचान ऊंचाइयों को छुए और यहां की कला, प्रथा, परंपरा और रीति-रिवाज को देश दुनिया को बताया जा सके।
रायपुर की एक और तस्वीर..
बीते साल एक सर्वेक्षण में केंद्र सरकार ने यह बताया था कि रायपुर सुकून से रहने वाले टॉप शहरों में एक है। इसे 13वां स्थान दिया गया था। ऐसा लगता है कि इस आकलन में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का आंकड़ा सामने नहीं था। एनजीटी के आदेश का राजधानी में पालन ही नहीं हो रहा है। उसकी ओर से हाल ही में रायपुर सहित प्रदेश के कई नगरीय निकायों को आगाह किया गया है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और अपशिष्ट प्लास्टिक प्रबंधन के निपटारे में राजधानी फेल है। एनजीटी ने समीक्षा की तो पाया प्रदेश के अधिकांश शहरों में इसके लिए कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है। कचरा बटोरने की जो नियमित व्यवस्था है वह कारगर नहीं है। इसके लिए अलग से टेंडर जारी करने का निर्देश है, पर यह हुआ नहीं। अफसोस, मामला जटिल और गंभीर है पर प्रशासन और जनप्रतिनिधि ऐसे आदेशों, सलाहों को भी अपशिष्ट की कैटेगरी में रखा करते हैं।
नजर घुमाये तो नंबर कटा...
छत्तीसगढ़ की एकमात्र सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिलासपुर में गुरु घासीदास के नाम पर स्थापित है। कोरोना महामारी की दिक्कतों की वजह से इस बार यहां की प्रवेश परीक्षा ऑफलाइन नहीं हो रही है। यह ऐसी यूनिवर्सिटी है जहां देश-विदेश के छात्र प्रवेश लेते हैं। देश के कई बड़े शहरों में प्रवेश परीक्षा के लिए सेंटर बनाए जाते हैं। पर इस बार यहां ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा होने वाली है। ऑनलाइन परीक्षा के लिए कुछ शर्तें तय की गई हैं। छात्रों को मोबाइल फोन के जरिए भी 2 घंटे के भीतर 100 सवालों का जवाब देने की छूट रहेगी लेकिन सलाह यह है कि वह कंप्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल करें। किसी ऐसे कमरे में बैठें जहां शोरगुल न हो। उस कमरे में इस 2 घंटे के भीतर किसी का भी आना-जाना नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपनी सीट से उठेंगे, नजर घुमाएंगे, यहां तक कि आंख भी घुमा कर इधर-उधर देखेंगे तो गिन लिया जायेगा। ऐसा 10 बार किया गया तो आपको परीक्षा से बाहर कर दिया जाएगा।
यह जानकारी खास तौर पर उन विद्यार्थियों के लिए काम की है जिन्हें 90 फीसदी अंक आराम से दिलाई गई बारहवीं बोर्ड परीक्षा में मिले, और जिनकी पीठ पैरेंट्स और टीचर्स ने थपथपाई थी।
मनचलों के प्रति हमदर्दी...
गलियों में मनचले बाइक से फर्राटे भरते हुए मंडराते हैं तो कई बार उठने वाला विवाद, बलवा तक पहुंच जाता है, चाकू चल जाते हैं, सिर फूट जाते हैं। बिल्हा विकासखंड के एक गांव में ऐसी नौबत कई बार आ गई है। अब गांव के किसी भले नागरिक ने उस खतरनाक गली के पहले मकान पर ही दीवार लेखन के जरिये एक सूचना ऐसे तत्वों को सतर्क करने के लिये दीवार पर लिखवा दी है- यह आम रास्ता नहीं है। आने-जाने वाले कृपया ध्यान रखें। कभी भी मार पड़ सकती है।
एमएसटी की शुरुआत तो हुई...
छत्तीसगढ़ से चलने वाली ट्रेनों में अब तक मासिक सीजन टिकट बंद हैं। नौकरी और रोजगार के सिलसिले में रेल मार्ग से रोजाना एक जगह से दूसरी जगह जाने वाले हजारों लोगों को इसका बोझ ढोना पड़ रहा है। अब भारतीय रेल के कम से कम एक जोन ने तो नरमी दिखाई है। खबर है कि उत्तर रेलवे ने बीते दिनों एमएसटी टिकटों की इजाजत दे दी है। हालांकि इस जोन से चलने वाली सभी ट्रेनों के लिये नहीं लेकिन कुछ खास ट्रेनों में सुविधा शुरू की गई है। रेलवे एमएसटी कम आमदनी में रोजगार व नौकरी कर घर चलाने वालों की एक बड़ी जरूरत है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में तो इसे लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई भी हो रही है। उम्मीद कर सकते हैं कि उत्तर रेलवे की तरह छत्तीसगढ़ में स्थापित दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे मुख्यालय की ओर से भी जल्दी ही कोई उदार फैसला लिया जायेगा।
फिल्मकार इसे भी भुना ले गये...
सन् 2016 में की गई नोटबंदी की पीड़ा से तो लोग उबरने की कोशिश कर रहे हैं पर उसे कुरेदने का काम भी हो रहा है। नहीं बदले जा जा सके एक पुराने नोट में नोट में लिखा हुआ मिला था- सोनम गुप्ता बेवफा है। उस नोट की तस्वीर सोशल मीडिया के जरिये देश-दुनिया में फैल गई। यह बेकार हो चुका नोट, नोटबंदी की पीड़ा झेल रहे लोगों को थोड़ा मुस्कुराने का मौका दे रहा था। अब इसे भुनाने के लिये एक फिल्म भी बन गई है जो 10 सितंबर को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ होने जा रही है। नाम है- क्या मेरी सोनम गुप्ता बेवफा है? फिल्म की तस्वीरों और ट्रेलर से तो लगता है कि यह हल्की-फुल्की कॉमेडी हो सकती है पर सोनम गुप्ता नाम का इस तरह से सार्वजनिक इस्तेमाल करना आपत्तिजनक लगा है बिहार के संपूर्ण वैश्य समाज को। उन्होंने इस फिल्म को बिहार में प्रतिबंधित करने और फिल्म के निर्देशक पर कार्रवाई करने की मांग की है। उनका कहना है कि सोनम नाम की हजारों लड़कियां, बेटियां, बहनें, जब घरों से निकलेंगी तो उन्हें छेड़छाड़ और कमेंट का शिकार होना पड़ेगा। इसे वे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
कांग्रेस का विवाद फायदेमंद?
लोग नाहक ही छत्तीसगढ़ कांग्रेस में नेतृत्व के सवाल पर उठे तूफान को लेकर चिंता कर रहे हैं। पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत के नजरिये से बातों का निष्कर्ष निकालना चाहिये। उन्होंने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा- कुछ लोग मानते हैं, हमारी पार्टी के नेता लड़ रहे हैं। वीरों की भूमि पंजाब में लोग अपनी राय दृढ़ता से रखते हैं। ऐसा लगता है कि वे लड़ेंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। वे अपनी समस्या का समाधान खुद ढूंढ लेते हैं। पंजाब कांग्रेस अपने मुद्दों का स्वयं समाधान कर रही है। हम कुछ नहीं कर रहे हैं। अगर दोनों नेताओं (अमरिंदर सिंह व नवजोत सिद्धू) के बीच कोई विवाद होगा तो यह कांग्रेस के लिये फायदेमंद ही होगा। क्या रावत का कथन छत्तीसगढ़ पर भी ठीक बैठेगा?
पेश है टाइगर गिनती का नया नुस्खा..
हर बार टाइगर गणना में नया कुछ बदलाव आता है, फिर भी टाइगर की गिनती सर्वमान्य नहीं बन पाती। दरअसल तरीका जो भी हो सब अच्छा है, मगर नीयत अच्छी होनी चाहिए।
अचानकमार टाइगर रिजर्व में एक एप के जरिये इस बार गिनती होगी। यह ऑफ लाइन काम करेगा, जिसमें टाइगर के मल या पंजे का निशान एकत्र किया जायेगा। इसे टाइगर गणना के लिये वर्तमान में किये जा रहे फोटो ट्रेप सिस्टम के साथ जोड़ दिया जायेगा।
मौजूदा फोटो ट्रेप सिस्टम में कम्प्यूटर से टाइगर की धारियों का मिलान होता है। जैसे हमारे अंगूठे का प्रिंट अलग होते हैं। वैसे ही टाइगर के तन पर काली धारियां अलग होती हैं। अब एप और फोटोट्रेप का मिलान करने से टाइगर की गिनती अधिक विश्वसनीय हो सकती है।
वाइल्डलाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्राण चड्डा का कहना है सबसे सटीक तरीका यही है कि जंगल के सभी टाइगर को रेडियो कॉलर पहनाया जाए,जिससे उनके प्रवास स्थलों का भी पता लगेगा। छतीसगढ़ जैसे राज्य जहां- जहां टाइगर कम हैं, वहां से इसकी शुरुआत की जाए और फिर विस्तार देश के अन्य भागों में किया जाए। यह असंभव नहीं, पर इसके लिए नीयत, मेहनत की दरकार होगी।
जेसीसी विधायकों की दुविधा...
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ( जे) की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रेणु जोगी ने कह दिया है कि कांग्रेस में उनकी पार्टी के विलय की बात नहीं हो रही है, उनके काम हो रहे हैं इसलिये जहां हैं वहीं रहेंगीं। यह कुछ दिन पहले दिल्ली से लौटकर दिये गये उनके बयान के विपरीत है जिसमें उऩ्होंने कहा था कि सोनिया गांधी जब चाहेंगी वे कांग्रेस में लौट जायेंगीं। सब जानते हैं कि डॉ. जोगी सोनिया गांधी की प्रशंसक हैं, उनके लिये बड़ा आदर है। उन्होंने ऐसा कहा तो कुछ भी हटकर नहीं था। उनकी पार्टी के दो विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा पहले ही कांग्रेस को समर्थन देने लगे हैं। इस तरह से तीन विधायक कांग्रेस में एक साथ जाते हैं तो सभी की विधायक सीट बची रहेगी पर इससे कम में नहीं। फिर तीनों एक साथ चले जाने की घोषणा क्यों नहीं कर देते? जानकार कह रहे हैं कि इसका संबंध सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ कांग्रेस की राजनीति से है। बाकी दो विधायक मुख्यमंत्री के खेमे से प्रवेश चाहते हैं। यदि डॉ. जोगी कांग्रेस में लौटती हैं तो यह श्रेय सिंहदेव को जायेगा। डॉ. जोगी की अगुवाई में बाकी दोनों विधायक भी आ जायें ऐसा फिलहाल दिखता नहीं। इसलिये डॉ. जोगी की यही बात सही है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले विलय का सवाल नहीं उठता।
धर्मांतरण और संघ-भाजपा
धर्मांतरण के खिलाफ भाजपा जिस तरह आक्रामक रुख अपना रही है। उससे आरएसएस सहमत नहीं है। सुनते हैं कि आरएसएस के शीर्ष पदाधिकारियों ने भाजपा के प्रमुख नेताओं से बात की है, और उन्हें धार्मिक मसलों के बजाए सामाजिक, और राजनीतिक विषयों पर ध्यान केन्द्रित करने की सलाह दी है।
आरएसएस के पदाधिकारियों ने कहा बताते हैं कि आरएसएस, बजरंग दल, और वनवासी कल्याण आश्रम मिलकर धर्मांतरण के खिलाफ लड़ाई लड़ेगा। बताते हैं कि पिछले दिनों पुरानी बस्ती थाने में मारपीट हुई थी उसमें आरएसएस, और बजरंग दल के लोग नहीं थे, बल्कि भाजयुमो के पदाधिकारी थे।
भाजयुमो के जिला महामंत्री की अगुवाई में थाने में प्रदर्शन, और मारपीट की घटना को अंजाम दिया गया। ये अलग बात है कि भाजपा के बड़े नेताओं ने महामंत्री को आरोपी बनने से बचा लिया। जबकि वायरल वीडियो में वो मारपीट करते साफ-साफ नजर आ रहे हैं।
यही नहीं, फाफाडीह रहवासी एक सीनियर भाजपा नेता के बेटे को पुलिस ने आरोपी बनाया है। भाजपा नेता सफाई दे रहे हैं कि बेटे को युवा मोर्चा के पदाधिकारी ने बुलाया था। और फिर मारपीट की घटना में नाम जुड़ गया। कुल मिलाकर थाने में मारपीट की घटना ने आरएसएस, और भाजपा के नेताओं को हलाकान कर रखा है।
जेल से छूटे तो ऐसा स्वागत !
शदाणी दरबार के प्रमुख युधिष्ठिर लाल के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में फंसे भाजपा नेता शिवजलम दुबे मंगलवार को जेल से छूटे, तो पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया। उनका स्वागत कुछ इस तरह हुआ मानो वो कोई चुनाव जीतकर आए हैं। उत्साही भाजपा कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान के दलालों को, जूता मारो सालों को, के नारे लगाए।
दरअसल, युधिष्ठिर लाल का पाकिस्तान यात्रा का पुराना वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो वहां के राष्ट्रगान के दौरान खड़े थे। फेसबुक पर यह प्रचारित किया गया कि पाकिस्तान का राष्ट्रगान यहां बज रहा था। शिवजलम, और अन्य भाजपा नेताओं ने युधिष्ठिर लाल के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी, और सिंधी समाज के दबाव में उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी।
शिवजलम, और अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कराने में शहर जिला भाजपा अध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी की भी भूमिका रही है। सुंदरानी, समाज के साथ थे। खैर, शिवजलम के लिए जिस तरह पार्टी के पदाधिकारी एकजुट दिखे हैं उससे श्रीचंद के लिए मुश्किलें बढ़ गई है। क्योंकि जिलाध्यक्ष को सबको साथ लेकर चलना होता है। और शिवजलम के स्वागत के बहाने पार्टी के भीतर श्रीचंद के खिलाफ एक तरह से मोर्चा खोल दिया है। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में पार्टी में जंग तेज होने के आसार दिख रहे हंै।
ऐसे में कैसे न चले खाली ट्रेन
रेलवे को लगातार आलोचना झेलनी पड़ रही है कि कोरोना के बाद ट्रेनों का नियमित संचालन नहीं करके सिर्फ स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है और इनका किराया इसी स्पेशल के नाम से बढ़ाकर रखा गया है। आज एक यात्री (श्रीयम मिश्रा, बिलासपुर ) ने गोंडवाना एक्सप्रेस की सेकंड एसी की पूरी खाली बोगी की तस्वीर भेजी। आईआरसीटीसी की साइट से पता चलता है कि कल के लिये अभी हाथों-हाथ कन्फर्म टिकट मिल जायेगी, पर किराया 2465 रुपये देना होगा, जीएसटी अलग से। आने वाले कई दिनों तक सीट भरपूर उपलब्ध हैं। यह ट्रेन लोगों की प्रिय ट्रेन रही है क्योंकि हजरत निजामुद्दीन स्टेशन यह करीब 23 घंटे में पहुंचा देती है। पर शायद इसलिए खाली जा रही है क्योंकि एक तो यह ट्रेन पूरे दिन चलती है और जब दिल्ली शाम को पहुंचेंगे तो उस दिन आपका कोई काम नहीं हो पायेगा, यानि रात रुकने का खर्च अलग है। वैसे यदि आप एक हजार रुपये अधिक खर्च कर सकते हैं तो फ्लाइट पकड़ सकते हैं जो करीब 3.30 घंटे में दिल्ली पहुंचा देगी।
बस्तर में भाजपा की हिलती नींव
बस्तर के जरिए सत्ता में वापसी की संभावना तलाश रही भाजपा की सांगठनिक जड़े अंदरूनी इलाकों में हिली हुई हैं। चिंतन शिविर में जुटे आला नेताओं के सामने यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि भाजपा समेत मोर्चा स्तर में नियुक्तियां नहीं हुई हैं। सुनते हैं कि पार्टी के अजा मोर्चा की हालत बेहद ही खस्ता है। मोर्चा अध्यक्षों ने कार्यकारिणी को लेकर रूचि नहीं दिखाई है। बताते हैं कि भाजपा जिलाध्यक्षों ने अपनी पंसद के लोगों को मोर्चा की कमान दी है। इसके पीछे जिलाध्यक्षों की सियासी हित भी है। चर्चा है कि चुनाव पूर्व विधानसभा उम्मीदवार बनने की नियत लेकर अध्यक्षों ने मोर्चा में अपनी नजदीकियों को ओहदा दिलाया है ताकि संगठन के समक्ष जिलाध्यक्षों को बेहतर प्रत्याशी बताया जा सके। बस्तर में भाजपा और दूसरी राजनीतिक कलह से भी जूझ रहे हैं। कार्यकर्ताओं को कुंजी मानने वाली भाजपा की सियासी धार तेज होने के बजाए कुंद हो रही है। बिखरी हालत में भाजपा सत्ताधारी कांगे्रस को आसानी से पटखनी देने का दावा कर रही है। जमीनी राजनीति में बस्तर में भाजपा तेजी से बिखराव की ओर जा रही है।
तीज त्यौहार के बीच पंडो महिलाओं की खबर..
बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर ब्लॉक में पंडो आदिवासियों की खून की कमी से मौत होने की बात सामने आ चुकी है। अब यहां की महिलाओं की सेहत कैसी है यह बात भी जान लीजिये। स्वास्थ विभाग ने इस ब्लॉक के उसी बरवाही पंचायत में एक कैंप लगाया जहां तीन पंडो आदिवासियों की खून की कमी से मौत हुई है। यहां 27 महिलाओं में हीमोग्लोबिन की मात्रा की जांच की गई। केवल एक ऐसी महिला मिली, जिनका हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम था, जिसे न्यूनतम के करीब कहा सकता है। शेष सभी महिलाओं के शरीर में हीमोग्लोबिन बेहद कम।
जब हम शहरों में जोर शोर से महिलाओं पर केन्द्रित तीज त्यौहार मना रहे हों तो ऐसी खबरों को जगह कहां मिले। दूरस्थ वनांचलों में कुपोषण है, विटामिन नहीं, पौष्टिक भोजन नहीं। गर्भवतियों को आंगनबाड़ी में गर्म भोजन मिल रहा है या नहीं इसे पता करने की फुर्सत किसे है? फिलहाल स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें विटामिन की कुछ गोलियां बांटी हैं और हरी सब्जियां खाने की सलाह देकर टीम वापस आ गई है।
पदोन्नति के लिये दौड़ लगाने से तौबा
पुलिस मुख्यालय के आदेश पर इन दिनों कई जिलों में प्रधान आरक्षकों को एएसआई पद पर पदोन्नत करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। प्रमोशन पाना हर किसी का सपना होता है। फिर पुलिस विभाग में तो किसी सिपाही को दो तीन प्रमोशन मिल जाए तो वह उसे बड़ी बात समझता है। पर यहां बात अटपटी लग सकती है कि बहुत से प्रधान आरक्षकों ने अपने विभाग में लिखकर दे दिया कि उन्हें प्रमोशन नहीं चाहिए। अफसरों ने इसकी वजह तलाश की तो पता चला कि ज्यादातर कर्मचारी उम्रदराज हो चुके हैं और रिटायर होने में साल 2 साल का वक्त ही बचा है। ऐसे में उनकी क्षमता इतनी नहीं है कि वे 800 मीटर की दौड़ लगा सकें, गोला फेंक सकें। इस उम्र में फिटनेस टेस्ट के लिये बाध्य करना उन्हें ठीक नहीं लग रहा। हालांकि इस बार दौडऩे के अवधि में थोड़ी छूट दी गई है। 800 मीटर की दौड़ 30 साल से कम उम्र वालों को 6 मिनट में, 45 साल से कम उम्र वालों को 7 मिनट में और 45 वर्ष से अधिक उम्र वालों को 8 मिनट में पूरा करना है, पर यह भी उनको रास नहीं आ रहा है। अभी इस दौड़ से छूट केवल उन पुलिस वालों को है जिन्होंने नक्सली इलाके में काम किया या घायल हुए हैं। कुछ साल पहले एक कमेटी पीएचक्यू में बनी थी जिसमें कुछ अन्य श्रेणियों को भी दौड़ और गोला फेंक से छूट देने पर विचार किया जाना था लेकिन पता चला है कि उस कमेटी ने अब तक कोई रिपोर्ट ही नहीं दी है।
कार्यकर्ताओं की खरी-खरी बात
राहुल गांधी के दौरे की तैयारी का जायजा लेने कल अम्बिकापुर पहुंचे जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया को कार्यकर्ताओं की भारी नाराजगी का सामना करना पड़ा। कार्यकर्ताओं ने खुलकर कहा कि अधिकारी उनका काम नहीं करते हैं। किसी एक की सिफारिश लेकर जाते हैं तो वे बहाना बनाते हैं कि दूसरे ने मना कर रखा है। मंत्री अमरजीत भगत ने भी माना कि हमारे बीच मतभेद का फायदा अधिकारी उठाते हैं और काम नहीं करने का बहाना ढूंढते हैं। कार्यकर्ता इस बात पर खासे नाराज थे कि 14-15 साल सरकार नहीं थी तब तो हमारे काम हुए नहीं, हमने किसी को काम के लिये कहा भी नहीं। मगर अब तो होना चाहिये। ट्रांसफर, पोस्टिंग के दो चार काम भी नहीं होते हैं। हम किसी को कोई काम दिलाना चाहते हैं तो वह भी नहीं हो पा रहा। डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा कि आधा से ज्यादा वक्त तो महामारी में निकल गया। अब थोड़ा संभले हैं। अब होगा काम, धीरज बनाये रखें। भगत ने भी अफसोस जताया कि राशन दुकानों को वे पूरी तरह नहीं बदल पाये क्योंकि वे सरकार बनने के 6 माह बाद मंत्री बनाये गये, तब तक सब सेट हो चुका था।
सच है कार्यकर्ताओं को सत्ता का लाभ ठीक उसी तरह नहीं मिल पा रहा है जिस तरह 2018 के चुनाव के पहले भाजपा के कार्यकर्ताओं को नहीं मिल पा रहा था। अब जब कांग्रेस सरकार का आधे से ज्यादा कार्यकाल बीत चुका है, बेचैनी तो स्वाभाविक है। कार्यकर्ताओं ने भी बिना घुमाये फिराये, ट्रांसफर, पोस्टिंग, ठेका, राशन दुकान की साफ-साफ बात करके बता दिया कि उनकी पीड़ा क्या है?
खून की कमी से पंडो की मौत
यह शर्मनाक घटना छत्तीसगढ़ के उस छोर की है जहां पहुंचने के बारे में आपको 10 बार सोचना पड़ेगा। घटना उनके साथ हुई है जिन्हें कभी राष्ट्रपति रहते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपना दत्तक पुत्र बताया था।
जिला बलरामपुर, ब्लॉक रामचंद्रपुर, ग्राम पंचायत बरवाही और उसका आश्रित गांव भुसरिया पारा। यहां के 35 साल के रामप्रसाद पंडो की तबीयत बिगडऩे पर रामचंद्रपुर के पीएचसी में लाया गया।
डॉक्टर ने बताया कि खून की कमी है। परिजनों ने एक यूनिट ब्लड व्यवस्था की। डॉक्टर ने खून चढ़ाया और कहा कि इसे बलरामपुर के किसी बड़े अस्पताल में ले जाओ। रामप्रसाद को परिजन घर लेकर लौट गए क्योंकि उनके पास बलरामपुर जाने के लिए पैसे नहीं थे। रामप्रसाद में उसी दिन दम तोड़ दिया। उसकी अकेले की नहीं इस गांव में तीन और लोगों की मौत बीते कुछ दिनों के भीतर खून की कमी से हो चुकी है। बीमारों को अस्पताल ले जाने के लिये एंबुलेंस की व्यवस्था क्या वहां नहीं थी? गरीबों को पांच लाख रुपये तक मुफ्त में इलाज देने की योजना चल रही है, क्या डॉक्टरों ने इन मृतकों को इस सुविधा के बारे में नहीं बताया?
दरअसल, छोटे-छोटे जिले बना देने और कलेक्टर और दूसरे अफसरों के दफ्तर खोलने से कुछ नहीं होता। जब तक स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा इन जिलों में मजबूत न की जाये।
रहस गुरु अनुरागी आपको याद हैं?
अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर से कांग्रेस के सांसद रहे गोदिल प्रसाद अनुरागी गंभीर रूप से बीमार हैं। चिकित्सकों की सलाह पर उनकी देखभाल रतनपुर के पास स्थित उनके गांव में ही हो रही है। अब वे काफी वृद्ध हो चुके हैं। इस दौर के बहुत से कांग्रेसजन उनके बारे में नहीं जानते। अनुरागी का समाज को एक बड़ा योगदान यह भी है कि उन्होंने विलुप्त होती रहस कला को जीवित रखने के लिये जतन किये। उनकी स्कूली शिक्षा नहीं के बराबर पर कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी छात्र उन पर रिसर्च कर चुके हैं। वर्षों हो गये रहस को देखे। जब अनुरागी स्वस्थ थे तो यह खर्चीला कार्यक्रम वे साल में कम से कम एक बार करा ही लेते थे। सांसद रहते हुए भी उन्होंने कोई संकोच नहीं किया और कई बार कार्यक्रम रखे।
वरिष्ठ साहित्यकार सतीश जायसवाल उनके मित्र हैं। वे कई बार अनुरागी से मिलने उनके गांव जा चुके हैं। कांग्रेस नेता शिवा मिश्रा ने जब अनुरागी से मुलाकात वाली तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली तो जायसवाल ने भी अनुरागी के बारे में लिखा है।
वे बताते हैं कि उनके जीवन रक्षा के कोई कारगर उपाय नहीं हो रहे हैं। ईश्वर से प्रार्थना ही की जा रही है। अनुरागी संभवतया रहस के अंतिम कला-गुरु हैं। उनके साथ छत्तीसगढ़ की यह लोक-परम्परा भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। रहस को छत्तीसगढ़ की लोक-कला परम्पराओं की आत्मा भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ का संस्कृति विभाग अनुरागी के महत्व और उनके अवदान से जरूर परिचित होगा। छत्तीसगढ़ के पास अपना एक कला विश्वविद्यालय भी है। खैरागढ़ में, इन्दिरा संगीत कला विश्वविद्यालय। इस विश्वविद्यालय में लोक-कलाओं का भी अध्ययन-अध्यापन होता है। शायद रहस और अनुरागी का अवदान भी यहां के अध्ययन-अध्यापन में शामिल होगा।
कुछ वर्ष पहले आकाशवाणी दिल्ली ने अपने यहां के साठ-पार के ऐसे विख्यात कला गुरुओं और उनके अवदान पर केंद्रित लम्बे साक्षात्कारों की योजना बनाई थी। इन साक्षात्कारों को आकाशवाणी दिल्ली के केंद्रीय आर्काइव में सुरक्षित किया गया। उस समय हिन्दी के एक जाने-माने कवि लीलाधर मंडलोई आकाशवाणी के महानिदेशक थे। साहित्य, कला और लोक कलाओं के प्रति उनका संवेदनात्मक लगाव था। इसीलिए वह महत्वपूर्ण काम हो सका। आज अनुरागी और उनके अवदान से सम्बंधित वह एक अधिकृत दस्तावेज़ हमारे लिए उपलब्ध है।
बोल बम समिति के राजनैतिक इरादे
समाज सेवा का काम कर रही भिलाई की बोल बम समिति ने चुनाव में उतरने का प्लान बना लिया है। भिलाई के बाद दुर्ग में समिति का गठन किया गया है और देवव्रत सिंह को जिला अध्यक्ष बनाया गया है। समिति के प्रदेश अध्यक्ष दया सिंह की युवाओं में खासी पकड़ बन चुकी है। दया सिंह ने पिछले दिनों साफ किया कि हम भिलाई के साथ-साथ दुर्ग में भी मेहनत करेगें और जनहित के मुद्दों को उठायेंगे। संगठन की इकाई विधानसभावार भी बनाई जा रही है। इन दोनों बातों का मतलब है कि सन् 2023 के चुनाव में एक या अधिक सीटों से यह संगठन चुनाव लड़ेगा। वे किसी दल से जुड़ेंगे या निर्दलीय लड़ेंगे, यह अभी साफ नहीं है पर उनकी सक्रियता ने कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों के दावेदारों को चिंता में डाल दिया है। अभी जिले में इन दोनों दलों का ही वर्चस्व है।
लेह की चोटी पर छत्तीसगढ़ पुलिस
बर्फीले पठारी लेह की चोटी पर चौकस रहते शहीद हुए पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों को नमन करने आयोजित हॉट-स्प्रिंग में छत्तीसगढ़ पुलिस की ओर से माल्यार्पण आईपीएस जितेन्द्र शुक्ल ने किया। 3 सितंबर को भारत-चीन की सरहद में भारतीय सेना के गौरव माने जाने वाले सपूतों की याद में केंद्रीय बल और राज्यों के पुलिस अधिकारियों ने साझा सलामी दी। हॉट-स्प्रिंग के लिए केंद्र सरकार की एक विशेष टीम की निगरानी में देश भर से जोशीले और काबिल अफसरों को हर साल चुना जाता है। राज्य पुलिस के लिए शुक्ल पहले आईपीएस के तौर सलामी देने चोटी पर पहुंचे। सुनते हैं कि आयोजन का मकसद यह है कि दुश्मन देशों को मुकाबले में मात देने सुरक्षा दस्तों में जोश भी बनाए रखना है। चीन की फौजी कार्रवाई का जवाब देने के लिए जोश खरोश से भरे सिपाहियों को सीमा पर तैनात रहने के लिए आयोजन से संदेश भी मिलता है। वैसे हॉट-स्प्रिंग का अर्थ गरम चश्मा होता है, जिसमें भूताप से गरम हुआ भूजल धरती से बाहर निकलता है। बर्फ से लदे पठारों में यह पाया जाता है।
अफसरों में इधर-उधर
मंत्रालय में कुछ सचिव स्तर के अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। उमेश अग्रवाल के राजस्व मंडल में पोस्टिंग के बाद गृह सचिव का पद खाली है। इसी तरह कृषि सचिव डॉ. एम गीता को दिल्ली में आवासीय आयुक्त बनाया जा सकता है। डॉ. गीता ने स्वास्थ्यगत कारणों से केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन दिया था। चूंकि वहां पोस्टिंग में समय लग सकता है। इसलिए उन्हें कृषि विभाग के प्रभार से मुक्त कर दिल्ली में आवासीय आयुक्त का प्रभार दिया जा सकता है।
वर्तमान में प्रमुख सचिव (उद्योग) मनोज पिंगुआ, आवासीय आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे हैं। चर्चा है कि रजत कुमार की पोस्टिंग मंत्रालय में हो सकती है। हालांकि वो अभी जनगणना निदेशक के प्रभार से मुक्त नहीं हुए हैं। कहा जा रहा है कि जल्द ही उन्हें जिम्मेदारी दी जा सकती है। जिलों में फिलहाल ठीक चल रहा है। इस वजह से कलेक्टरों को बदले जाने की संभावना नहीं है। इन सबके बावजूद प्रमुख सचिव, सचिव, और विशेष सचिव स्तर के आधा दर्जन अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं।
खरीदी में एफआईआर के निर्देश
अंबेडकर में कैंसर की जांच के लिए पैट मशीन की खरीदी में भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट में कहा गया कि वित्त विभाग की मंजूरी के बिना ही 18 करोड़ की मशीन खरीद ली गई। प्रमुख सचिव ने डीएमई को पैट मशीन खरीदी मामले में एफआईआर कराने के निर्देश दिए हैं।
अंदर की खबर यह है कि रमन सरकार में मशीन खरीदी का फैसला ‘ऊपर’ से हुआ था। मगर फाइल पर विभाग के मुखिया के दस्तखत नहीं हैं। चर्चा यह है कि मुश्किल में फंसने का अंदेशा पहले से था। लिहाजा छोटे अधिकारी-चिकित्सकों का दस्तखत लेकर फाइल तैयार की गई, और खरीदी हो गई। ये अलग बात है कि खरीदी के एवज में ज्यादा माल ‘ऊपर’ ही पहुंचा था। अब जब एफआईआर की बात हो रही है, तो छोटे अधिकारी-चिकित्सक परेशान हैं।
नसीहत मीडिया में लीक हो गई
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने जगदलपुर के चिंतन शिविर में इस बात पर नाराजगी जताई थी कि बैठक की महत्वपूर्ण जानकारियां लीक हो जाती है। यह छत्तीसगढ़ के भाजपा में रोग हैं। उन्होंने नसीहत दी कि बातें बाहर नहीं जानी चाहिए। कुछ सीनियर नेताओं को इसलिए भी नहीं बुलाया गया था कि उनके कांग्रेस के प्रभावशाली लोगों से नजदीकी रिश्ते हैं। मगर संतोष की पार्टी नेताओं को दी गई नसीहत मीडिया में लीक हो गई।
कम्प्यूटर पर देख-समझकर
अंग्रेजी हो या हिंदी हो जब कम्प्यूटर के हवाले हिज्जे सुधारने का काम कर दिया जाए तो कम्प्यूटर बड़ी बर्बादी भी कर सकता है. अब आज ही सुबह एक व्यंग्य में ‘दुष्टों’ शब्द को कम्प्यूटर ‘दोस्तों’ टाइप करने पर आमादा हो गया था। और जब इस हादसे को मोबाइल फोन पर बोलकर हिंदी में टाइप किया जा रहा है तो तीन बार ‘दुष्टों’ बोलने पर भी वह तीनों बार ‘दोस्तों’ टाइप कर रहा है. अब इससे पता नहीं कैसे-कैसे संबंध खराब हो सकते हैं।
अभी कुछ ही दिन पहले की बात है, एक दूसरे लिखे हुए को ईमेल करते हुए जब जीमेल के सुझाए हुए करेक्शन करने की कोशिश की गई तो उसने ‘राजनैतिक’ को ‘राजनीतिक’ सुधार दिया, जाहिर है कि राजनीति में नैतिकता तो कोई बची नहीं है, इसलिए कम्प्यूटर किसी भी पार्टी के बारे में ‘राजनैतिक’ शब्द को ‘राजनीतिक’ शब्द कर देता है। लेकिन अगर ऑटो करेक्ट को ध्यान से ना देखा जाए तो वह कई शब्दों को गालियां भी बना देता है।
कुदरत ने क्या पेड़ों को बदशक्ल बनाया है?
शहरों में तो म्युनिसिपल और अब उससे भी ऊपर स्मार्ट सिटी के नाम पर होने वाले अंधाधुंध खर्च का रास्ता निकालने के लिए अब अफसर पेड़ों के तनों को रंगवाने लगे हैं मानो कुदरत ने उनके तनों को बदशक्ल बनाया है और उन्हें खूबसूरत बनाने की जिम्मेदारी म्युनिसिपल की है। नतीजा यह है कि रंग-पेंट का रसायन पेड़ों के तनों से भीतर जा रहा है और कहीं कहीं पर पेड़ मर भी रहे हैं। कुछ दिन पहले रायपुर के पर्यावरणप्रेमी नितिन सिंघवी ने मुख्य सचिव को एक चि_ी लिखकर मरने वाले पेड़ों की तस्वीरों सहित आपत्ति दर्ज कराई थी कि पेड़ों के जीवन के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने यह भी लिखा था कि राजधानी के गांधी उद्यान में अशोक के दो पेड़ ऐसे पेंट लगाकर सौंदर्यीकरण करने के बाद मर गए। उन्होंने शिकायत में यह भी लिखा था कि ऐसी खबरें छपी हैं कि भिलाई में पेड़ों पर पेंट करने में 38 लाख रुपए खर्च किए गए। अब मानो शहरों में पेड़ों की बर्बादी काफी न हो, इसलिए शहरों के बाहर भी ऐसा काम किया जा रहा है।
फेसबुक पर एक बैंक अधिकारी स्मिता ने तस्वीरें पोस्ट की हैं कि किस तरह रायपुर से सिरपुर के रास्ते पर हरे भरे पेड़ों के तनों पर बुद्ध बना दिए जा रहे हैं। इतिहास में सिरपुर एक बड़ा बौद्ध केंद्र था. लेकिन वहां के रास्ते में पेड़ों पर ऐसा रसायन पता नहीं उनका क्या नुकसान करेगा। यह काम पर्यटन विभाग ने किया है या किसी और विभाग ने, लेकिन तस्वीरों को देखने वाले लोग तस्वीरों की तारीफ कर रहे हैं. यह समझ लोगों में अभी आई नहीं है कि पेड़ों की अपनी खूबसूरती होती है, उन्हें रंग-रोगन की जरूरत नहीं होती है। और प्रदूषण निवारण मंडल तो सरकार के फैसलों पर कह भी क्या सकता है।
क्या आप बंदरों से परेशान हैं?
छत्तीसगढ़ के वनों में हाथियों की मौजूदगी की तरह ही शहरों में रहने वाले लोग बंदरों से परेशान होते हैं। इनका ठिकाना भी जंगल ही होता है, पर जब आहार की दिक्कत खड़ी होती है तो वे रिहायशी इलाकों का रुख करते हैं। दिल्ली के सचिवालय में तो बकायदा वन विभाग की टीम स्थायी रूप से बंदरों पर नियंत्रण के लिए तैनात है। अपने यहां जब बंदर छतों और आंगन में पहुंचते हैं तब उनसे निपटने का तरीका बंदर और मनुष्य दोनों के लिये खतरनाक होता है। ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि बंदरों पर काबू पाने के लिए वे वन विभाग की मदद ले सकते हैं। इस बात की याद दिलाने के लिए वन विभाग ने एक आम सूचना निकाली है। यदि बंदरों के उत्पात से कोई परेशान है तो वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों को खबर कर सकते हैं। पर, इसके लिए एक निर्धारित प्रारूप में आवेदन देना होगा। अपना नाम-पता तो इसमें लिखना ही होगा, पर यह भी बताना है कि बंदर दिन में कितनी बार आते हैं, वे काले मुंह के है या लाल मुंह के। आने वाले बंदरों की संख्या कितनी रहती है। कब से वह आपके इलाके में मंडरा रहे हैं। क्या बीते कुछ सालों के भीतर उनकी प्रकृति में कोई परिवर्तन आया है, क्या यह बंदर आक्रामक हैं? क्या बंदर ने किसी को काटा है यदि हां तो कौन-कौन सी घटनाएं हुई हैं? काटने की कम से कम एक घटना का विस्तार से ब्यौरा भी देना है।
अब इतनी सारी जानकारी अगर आप हासिल कर सकें तो यह तय मानिए कि आपकी बंदरों से दोस्ती हो जायेगी और वन विभाग से शिकायत करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।
90 विधायकों से मिलने निकल पड़े...
खैरागढ़ ब्लॉक के भीम पुरी निवासी चंद्रशेखर राजपूत का मामला उदाहरण है कि गांव में दबंगों की सरकार चलती है और स्थानीय प्रशासन भी उनके आगे नतमस्तक होता है। चंद्रशेखर को गांव से इसलिए बहिष्कृत कर दिया गया क्योंकि उसने 150 रुपये चंदा देने से मना कर दिया। हुक्का-पानी बंद होने के बाद उसने थाने, तहसील और एसडीएम दफ्तर में शिकायत की, मगर कोई नतीजा नहीं निकला। तब उसने तय कर लिया कि वह साइकिल यात्रा करके प्रदेश के सभी विधायकों के पास पहुंचेंगे और फरियाद करेंगे। अभी करीब 15 दिन ही उसे गांव से निकले हुए हैं। वह बस्तर से लेकर सरगुजा तक साइकिल से पहुंचना चाहते हैं। अब तक वे पूर्व विधायक डॉ रमन सिंह, विधायक देवव्रत सिंह, मंत्री रविंद्र चौबे सहित 8 लोगों से मुलाकात कर चुके हैं और सबको अपनी तकलीफ बता चुके हैं। चंद्रशेखर को लगता है कि जो अधिकारी उन्हें न्याय दिलाने में रुचि नहीं ले रहे हैं वे इन विधायकों की सिफारिश पर काम जरूर करेंगे और उसे वापस गांव वाले मिल-जुल कर रहने की मंजूरी देंगे। अच्छा होगा कोई जनप्रतिनिधि संवेदना के साथ उसकी बात सुने और काम कर दे, जिससे चंद्रशेखर बीच रास्ते से लौट जाये। एक छोर से दूसरे छोर तक विधायकों तक पहुंचने का कष्ट न उठाना पड़े।
भीड़ में भी वैक्सीन जरूरी नहीं
गणेश उत्सव के लिए जारी गाइडलाइन पिछले साल की कॉपी पेस्ट है। तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए पिछली बार की तरह मूर्ति की ऊंचाई, चौड़ाई, पंडाल का आकार, सबका नाम पता मोबाइल नंबर लिखना, 20 से अधिक लोगों का इक_ा ना होना, जैसे कई नियम जो पिछली बार भी लागू किए गए थे, इस बार भी प्रभावी रहेंगे। फर्क यह है कि तब पहली लहर में वैक्सीन नहीं आये थे। और अब बड़ी संख्या में लोगों ने कोविड-19 से बचाव के टीके लगवा लिए हैं। यह बात कुछ हैरान कर सकती है कि विभिन्न जिलों से जो गाइडलाइन जारी हुए हैं उनमें इस बात का कोई जिक्र नहीं है। गाइडलाइन में यह जोड़ा जा सकता था कि इन सार्वजनिक कार्यक्रमों में पहुंचने और आयोजन की इजाजत उनको ही रहेगी, जो टीके लगवा चुके हैं। स्कूल खुलने के चलते आखिर शिक्षकों को टीके लगवाने कहा ही गया है। ऐसे वक्त में जब कोरोना के केस कम हो जाने के कारण बहुत से लोग वैक्सीन लगवाने में रुचि नहीं ले रहे हैं, इस उत्सव का प्रशासन वैक्सीनेशन बढ़ाने में इस्तेमाल क्यों नहीं कर लेता?
जहां मौका मिलता है दुकान सजा लेते हैं !
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पार्टी प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी और उसे फेसबुक पर लाइव दिखाया जा रहा था। अब लोग भी होशियार हो गए हैं जब उन्हें सरकार कहीं दिखती है तो वे सरकार से तरह-तरह की मांग करने लगते हैं। मुख्यमंत्री और उनके मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे और नीचे लोग सरकार से तरह-तरह की मांग कर रहे थे। इस बीच किसी ज्योतिषी/तांत्रिक को भी अपना कारोबार चलाने का रास्ता दिखा, तो उसने भी वहां पर वशीकरण मंत्र जैसी कई बातों को लिखना शुरु कर दिया अपना फोन नंबर डालना शुरू कर दिया और हर तरह की दिक्कत दूर करने का झांसा देने लगा। और तो और एक किसी लडक़ी या महिला ने उसके साथ लाइव वीडियो कॉल का मजा लेने के लिए एक व्हाट्सएप नंबर भी पोस्ट कर दिया गया। लोग भी खूब रहते हैं, जहां मौका मिलता है दुकान सजा लेते हैं !
भाजपा के भीतर भारत-पाक जैसा झगड़ा
शदाणी दरबार के प्रमुख युधिष्ठिर लाल के खिलाफ फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी करना भाजपा के तीन नेताओं को महंगा पड़ गया। सिंधी समाज के दबाव में पुलिस ने शिवजलम दुबे, और राजीव चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। प्रकरण के एक अन्य आरोपी विजय जयसिंघानी फरार हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस पूरे प्रकरण को लेकर भाजपा दो गुटों में बंट गई है।
गिरफ्तारी से खफा भाजपा नेता दबी जुबान में यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि शहर जिला भाजपा अध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी के दबाव की वजह से इन तीनों के खिलाफ प्रकरण दर्ज हुआ है। ये तीनों नेता पूर्व अध्यक्ष राजीव अग्रवाल के करीबी माने जाते हैं। हुआ यूं कि युधिष्ठिर लाल का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रगान के दौरान वो बाकियों के साथ खड़े दिख रहे हैं।
युधिष्ठिर लाल का पाकिस्तान आते-जाते हैं। शदाणी दरबार के अनुयायी पाकिस्तान में भी हैं, और वहां दरबार भी है। मगर उत्साही भाजपा नेताओं ने वीडियो परखे बिना यह टिप्पणी कर दी कि भारत में पाकिस्तान का राष्ट्रगान गाया जा रहा है। इसके बाद युधिष्ठिर लाल को काफी भला बुरा कहा गया। ये सही है कि पाकिस्तान के राष्ट्रगान के दौरान युधिष्ठिर लाल खड़े थे, लेकिन वो उस समय पाकिस्तान के एक कार्यक्रम में थे जहां राष्ट्रगान चल रहा था। ऐसे में वहां के राष्ट्रगान का सम्मान करना उनका, और हर किसी का दायित्व बनता है। मगर पाकिस्तान के विरोध में हमेशा आग उगलने वाले ये भाजपा नेता यहां गलती कर गए।
गिरफ्तार भाजपा नेताओं से जुड़े लोगों का तर्क है कि इस प्रकरण को आपस में बातचीत कर निपटाया जा सकता था। शिवजलम पार्षद चुनाव लड़ चुके हैं, और वे श्रम प्रकोष्ठ के प्रदेश पदाधिकारी भी रहे हैं। राजीव चक्रवर्ती पार्टी के पदाधिकारी हैं। तीनों ने माफी भी मांग ली थी। मगर श्रीचंद, और उनसे जुड़े लोगों के दबाव की वजह से गिरफ्तारी हुई है। यानी इस पूरे मामले को पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी से जोडक़र देखा जा रहा है। चाहे कुछ भी हो, इन नेताओं की गिरफ्तारी से पार्टी के भीतर झगड़ा बढऩे के आसार हैं।
सांत्वना पुरस्कार
जगदलपुर के एक होटल में भाजपा का दो दिन का चिंतन शिविर खत्म हो गया। कई नेता शिविर में जगह पाने के लिए काफी बेचैन थे। इनमें से बालोद के एक नेता तो जगदलपुर भी पहुंच गए। स्वाभाविक है कि आमंत्रण नहीं था, तो शिविर में अंदर जा नहीं सकते थे। वो होटल के लॉन में बैठे रहे। और जब शिविर खत्म हुआ, तो कुछ प्रमुख नेताओं से मुलाकात कर शिविर में नहीं बुलाए जाने का अपना दर्द बयां किया।
एक पूर्व मंत्री ने नेताजी की मायूसी को दूर करने के लिए तरकीब निकाली, उन्होंने अपना ब्रोशर नेताजी को थमा दिया। और फिर प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के साथ नेताजी की फोटो खिंचवाई। यह फोटो सोशल मीडिया में वायरल किया गया। कौन-कौन शिविर में थे, इसका नाम सार्वजनिक तो हुआ नहीं है। लेकिन ब्रोशर हाथ में लिए पुरंदेश्वरी के साथ तस्वीर वायरल होने से नेताजी की बालोद में पूछपरख बढ़ गई है।
अमरकंटक से छत्तीसगढ़ का रिश्ता
सन 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तब केवल अमरकंटक की नहीं बल्कि पूरे शहडोल जिले को छत्तीसगढ़ में शामिल करने की मांग उठी थी। इसके लिए वहां एक संघर्ष समिति बनाकर आंदोलन भी किया गया था। पर एक बार अधिसूचना जारी होने के बाद उसमें बदलाव नहीं हो सका। शहडोल अब संभाग बन चुका है और अमरकंटक के दोनों छोर पर अनूपपुर और डिंडोरी जिले बन चुके हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अमरकंटक प्रवास के दौरान पत्रकारों ने उनसे सवाल किया क्या आप अमरकंटक के विकास से संतुष्ट हैं मुख्यमंत्री ने कहा कि वे आध्यात्मिक यात्रा पर है और राजनीतिक बातें नहीं करेंगे लेकिन इतना जरूर कहना चाहेंगे कि यदि अमरकंटक छत्तीसगढ़ में होता तो हम नर्मदा मैया की ज्यादा अच्छी तरह से सेवा कर पाते। एक तरह से सीएम की यह बात छत्तीसगढ़ के लोगों की ही भावना है।
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी का शहडोल, खासकर अमरकंटक से विशेष लगाव रहा। वे यहां कलेक्टर भी रहे और बाद में लोकसभा चुनाव भी लड़ा। बाबा कल्याण दास आश्रम के लिए जगह का आवंटन के कलेक्टर रहने के दौरान ही हुआ था। शहडोल चुनाव अजीत जोगी हार गए थे और उसी के बाद छत्तीसगढ़ राज्य का गठन भी हुआ। कई लोग मानते हैं यदि वे शहडोल का चुनाव जीत गए होते तो शायद छत्तीसगढ़ की राजनीति में नहीं आते, न ही मुख्यमंत्री बन पाते। उन्होंने अमरकंटक को छत्तीसगढ़ में शामिल कराने के लिये बहुत प्रयास किये।
अमरकंटक की तराई में सीमा को लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच कई बार विवाद भी उठता रहा है। भाजपा शासनकाल के दौरान तब के पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने घोषणा की थी कि हम छत्तीसगढ़ के हिस्से को अमरकंटक की तरह ही आकर्षक पर्यटन स्थल का रूप देंगे। हालांकि अब भी क्षेत्र विकास की राह देख रहा है। अमरकंटक पहुंचने की दोनों सडक़ें जर्जर हो चुकी हैं। बृजमोहन के कार्यकाल में करोड़ों रुपये खर्च किये गये पर अधिकांश काम अधूरे पड़े हैं। मुख्यमंत्री ने राजमेरगढ़ का दौरा करके इसे विकसित करने की अभी घोषणा की है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के निर्देश पर अमरकंटक विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण गठन सन् 2016 में किया गया था। इसमें छत्तीसगढ़ के भी कई गांव शामिल किये गये हैं। फिलहाल इसी प्राधिकरण को सक्रिय करके अमरकंटक की तराई के छत्तीसगढ़ वाले हिस्से को संवारा जा सकता है।
टेंडर के लिये फर्जी अखबार...
कुछ लोगों को हैरानी हो सकती है की अखबार भी फर्जी छापे जाते हैं। ऐसा टेंडर के फर्जी प्रकाशन के लिए होता है। दरअसल, किसी भी विभाग को टेंडर कम से कम 2 अखबारों में प्रकाशित कराने की बाध्यता है। अधिकारी चोरी छिपे ठेका न दें, देखते हुए राज्य शासन के जनसंपर्क विभाग को इसका दायित्व दिया गया है। टेंडर निकालने के लिये संबंधित अधिकारी इसी विभाग को पत्र लिखेंगे। प्रकाशन का उद्देश्य यह है कि काम चाहने वाले हरेक व्यक्ति को सूचना मिले और वह स्पर्धा में भाग ले सके। पर ऐसा करने से अधिकारियों को अपनी जेब भरने का मौका नहीं मिलता। वे अपने चहेते ठेकेदारों को काम नहीं दिला पाते। इसके चलते किसी प्रिंटिंग प्रेस को पकडक़र नकली अखबार और उसके भीतर टेंडर के फर्जी विज्ञापन छपवा लिये जाते हैं। ये फर्जी अखबार बांटे नहीं जाते, सिर्फ फाइल में नस्ती करने के काम आता है।
अफसरों के किस्से अपरंपार
जब अफसरों के किस्से निकलते हैं तो बड़ी दिलचस्प और चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य तक काम करने वाले एक आला अफसर का हाल यह था कि रायपुर से भोपाल जाने-आने के लिए जब टिकट करवानी रहती थी, तो वे कई अलग-अलग मातहत अफसरों को टिकट करवाने के लिए कह देते थे, और सरकारी खर्च पर तो टिकट बनती ही थी। इसके बाद वह एक टिकट छोडक़र बाकी टिकट कैंसिल करवा लेते थे और उसमें पैसा बच जाता था। रायपुर से भोपाल आते-जाते रास्ते में जितने स्टेशन मध्य प्रदेश के पड़ते थे, वहां पर विभाग के अफसरों से खाने-पीने का ऐसा सूखा सामान बुलवा लेते थे जो कि भोपाल पहुंचकर वापस रायपुर आने तक भी खराब ना हो और फिर हफ्ता भर उसमें काम चल जाए। तो हर स्टेशन पर ऐसा सूखा सामान पहुंचते रहता था।
ऐसे कई तरह के किस्से बहुत से अफसरों के बारे में रहते हैं। जो अक्सर छोटी-छोटी भी रिश्वत ले लेते हैं, उन्हें सरकारी जुबान में कहीं अधिक हिकारत से बुलाया जाता है और चिंदी चोर कहा जाता है कि वह तो पांच-पांच हजार भी ले लेता है. मानो सस्ते में काम निपटाने वाला बुरा इंसान हो गया, और लोगों को निचोडक़र अधिक पैसा वसूलने वाले अफसर बेहतर इंसान हो गए। सरकारी जुबान में जब किसी की भी चर्चा होती है, तो कम पैसे लेने वालों को बहुत ही गंदी नजरों से देखा जाता है, उसकी एक वजह शायद यह भी रहती है कि ऐसे लोग सरकारी काम का रेट बिगाड़ जाते हैं।
प्रदेश को मिला बाघों का नया ठिकाना
10 साल से भी अधिक लंबी प्रक्रिया के बाद आखिरकार कोरिया जिले के सोनहत ब्लाक में स्थित गुरु घासीदास नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व का दर्जा दे दिया गया है। सन् 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने सबसे पहले इस नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था जिस पर तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश ने सहमति भी जताई थी। अब जाकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एनटीसीए की तकनीकी समिति ने इसकी मंजूरी दी है। छत्तीसगढ़ में अब 4 टाइगर रिजर्व हो गये हैं। यहां पहले से इंद्रावती, सीतानदी-उदंती और अचानकमार टाइगर रिजर्व हैं।
टाइगर रिजर्व के बनने के बाद बाघों के मूवमेंट के लिए एक कॉरिडोर तैयार हो जाएगा जो अचानकमार से कोरिया और बांधवगढ़ होते हुए पलामू तक जाएगा। इससे बाघों की वंश वृद्धि में मदद मिलेगी, जिसका वनों के संरक्षण में खास भूमिका है। मध्यप्रदेश जिसे टाइगर स्टेट कहा जाता है उसके साथ जुडऩे के अब दो रास्ते छत्तीसगढ़ को मिल गए हैं। अचानकमार टाइगर रिजर्व का एक सिरा पहले से ही कान्हा नेशनल पार्क से जुड़ा हुआ है।
यह भी खास है कि मध्यप्रदेश में इस समय अफ्रीका से चीतों को लाने की तैयारी हो रही है। चीते इस देश से विलुप्त हो चुके हैं। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो पालपुर नेशनल पार्क में अफ्रीका से चीते लाकर नवंबर में छोड़ जाएंगे। ऐसे में यदि छत्तीसगढ़ में चीते की आमद भी हो सकती है।
किसानों के गोबर की बंदरबांट
छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी नरवा-गरुवा घुरवा-बाड़ी योजना जनपद और पंचायतों के अधिकारियों कर्मचारियों के लिए इस तरह से अवैध कमाई का जरिया बन चुकी है इसकी बानगी नवागढ़ ब्लाक के खोखरा गौठान से निकल कर आ रही है।
गौ पालक किसानों की शिकायत है कि खोखरा गौठान में जब वे गोबर लेकर जाते हैं तो रजिस्टर में उसकी मात्रा 30 किलो घटाकर दर्ज की जाती है। जब गौठान समिति से पूछा गया तो उन्होंने पंचायत सचिव का नाम लिया। पंचायत सचिव ने बताया कि जनपद के सीईओ के कहने पर ऐसा किया जा रहा है। सीओ का कहना है कि उसने तो ऐसा कोई आदेश नहीं दिया। यदि यह बात सही है तो सीईओ को तुरंत गोबर हड़पने वालों के खिलाफ एक्शन लेना चाहिये था। मगर, सोशल मीडिया और वेब पोर्टल पर जब स्थानीय पत्रकारों ने यह खबर चला दी तो उल्टे सीईओ ने खबर छापने वाले पत्रकार को ही एफआईआर की धमकी दे डाली। यह सब तब हो रहा है जब गौठान समितियों में और जनपद पंचायत में कांग्रेस का ही कब्जा है।
कम से कम मदिराप्रेमियों की सुन लो...
शराब दुकानों को हटाने को लेकर तीन चार साल पहले आंदोलन होते थे तो प्रशासन अपनी बात सही ठहराने के लिये यह तर्क देता था कि ग्रामीणों की भीड़ तो ठेकेदारों की आपसी प्रतिद्वंदिता की वजह से इक_े कराई गई है। पर अब तो सब ठेके सरकारी हैं, फिर भी प्रशासन शराब दुकानों को हटाने के सवाल को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेता है। धमतरी जिले में आबकारी विभाग ने अधारी नवागांव की शराब दुकान सोरिद भाट में शिफ्ट करते हुए एक किसान की खेत में खोल दी गई है। यहां खेतों में काम करने के लिए महिलाएं गुजरती हैं। पास में ही एक मंदिर भी है। लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया है कि इसे हटाया जाए। हद तो यह है कि पास में ही हाई स्कूल भी है। इस डर से कि बच्चों के साथ कोई अनहोनी ना हो स्कूल को भी बंद कर दिया गया है। सैकड़ों लोग जाकर प्रदर्शन कर चुके हैं कलेक्ट्रेट में बरसते पानी के बीच। इनमें महिलाएं बड़ी संख्या में थीं। पर प्रशासन नहीं सुन रहा है।
अब थक हार कर लोगों ने शराबियों को ही समझाने की कोशिश शुरू की है। कल से एक नए तरीके से आंदोलन शुरू कर दिया गया है। शराब खरीदने के लिए दुकान पहुंचने वाले लोगों को चंदन, बंदन तिलक लगाया जा रहा है और उनसे भी समर्थन मांगा जा रहा है। शराब खरीदने वालों कहना है, भैया दुकान कहीं भी खोलें क्या फर्क पड़ता है। जहां बिकेगी वहीं से खरीद लेंगे। हम आपके साथ हैं। प्रशासन आंदोलन कर रहे लोगों की भले न सुन रहा हो, राजस्व देने वाले मदिरा प्रेमियों की बात पर तो गौर करना चाहिये।
बस्तर में राहुल की तैयारी
राहुल गांधी कब आएंगे, ये अभी तय नहीं है। मगर उनके प्रस्तावित बस्तर दौरे की तैयारी शुरू हो गई है। इस सिलसिले में सीएम भूपेश बघेल ने सरकार के मंत्रियों, और बस्तर के विधायकों के साथ बैठक भी की है। केन्द्र सरकार ने एसपीजी सुरक्षा हटा दी है। इसलिए राहुल की सुरक्षा की अतिरिक्त व्यवस्था सरकार को ही करनी होगी। नक्सल प्रभावित बस्तर उनके प्रवास को लेकर टेंशन भी है। सरकार के रणनीतिकार राहुल के प्रवास को सरकार के कामकाज को दिखाने के मौके के रूप में देख रहे हैं।
बैठक में यह बात उभरकर आई है कि धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में 6 सौ स्कूल बंद हो गए थे, लेकिन भूपेश सरकार के आने के बाद आधे से अधिक स्कूल खुल गए हैं। यही नहीं, आंध्रप्रदेश की सीमा से सटे गांव क्रिस्टाराम में स्कूल के साथ-साथ आंगनबाड़ी केन्द्र भी अच्छी तरह से चल रहे हैं। बीजापुर जिले में तो किसानों ने दो साल में 4 सौ ट्रेक्टर खरीदे हैं। यानी तेंदूपत्ता की खरीदी दर में बढ़ोतरी, लघु वनोपज की सरकारी खरीद सहित अन्य योजनाओं का आदिवासियों को भारी लाभ हुआ है। कुल मिलाकर बस्तर में राहुल को इंप्रेस करने के लिए बहुत कुछ है।
गोबर हिट हो गया !
गोबर खरीदी योजना को लेकर भाजपा भूपेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं चूकती है। मगर भाजपा शासित राज्यों में भी गोबर खरीदी योजना शुरू हो रही है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तो छत्तीसगढ़ की देखा-देखी दो रुपए किलो की दर से गोबर खरीदी का फैसला लिया है। मध्यप्रदेश सरकार भी इस दिशा में कदम उठाने जा रही है। और तो और पिछले दिनों गुजरात के विधायकों के एक प्रतिनिधि मंडल विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ आए थे। उन्होंने गौठान योजना के क्रियान्वयन की जानकारी ली, और सीएम-कृषि मंत्री से मिलकर इसकी तारीफ की। ऐसे में सरकार के लोगों का खुश होना लाजिमी है।
क्या नहीं मिल पायेंगी सस्ती दवा?
नगर निगम रायपुर ने सभी दस जोन में सस्ती जेनेरिक दवा दुकान खोलने की योजना बनाई है। हर साल इन दुकानों से करोड़ों रुपयों का टर्न ओवर हो सकता है पर किसी भी कम्पनी ने टेंडर में भाग नहीं लिया। अब दुबारा फिर टेंडर निकालने की योजना बन रही है। पहले टेंडर में तय कर दिया गया था कि जेनेरिक दवा बनाने वाली कौन-कौन सी कंपनियां हैं, जिनसे खरीदी की जानी है। ऐसा करने की जरूरत भी थी, क्योंकि जेनेरिक के नाम पर गुणवत्ताविहीन दवायें न बेची जाये। अब देखना है कि दूसरे टेंडर में शर्तों में किस तरह बदलाव किया जायेगा ताकि लोग रुचि दिखायें।
नगर निगम की योजना शहर में डायग्नोसिस सेंटर्स खोलने की है। जब पहली बार मशीनों के मॉडल को लेकर आपत्ति आई तो दूसरी बार के टेंडर में बदलाव भी किया गया। इसके बाद कुछ कम्पनियों ने रुचि तो दिखाई पर टेंडर में उन्होंने भी भाग नहीं लिया। अब इसका भी टेंडर तीसरी बार निकालने की तैयारी चल रही है। बिलासपुर नगर निगम ने एक ऐसा डायग्नोसिस सेंटर चालू कर लिया है। यहां भी कम से कम चार सस्ती जेनेरिक दवाओं की दुकान खोलने की योजना है पर अभी धरातल पर नहीं आ सकी है।
नगर निकायों की जिम्मेदारियों में शहर के लोगों की सेहत का ख्याल भी रखना शामिल है। ऐसे में सस्ती दवा, सस्ते जांच की सुविधा देने के लिये की जा रही कोशिश अच्छी है। हो सकता है कि मेडिकल बिजनेस से जुड़े लोग इसमें अडंगा डाल रहे हों पर कुछ शर्तों को अव्यावहारिक भी बताया जा रहा है, जैसे 50 करोड़ रुपये के टर्न ओवर का होना जरूरी और वापस नहीं होने वाली 10 लाख रुपये प्री बिड की रकम। इसके चलते बड़ी कम्पनियां या मल्टीनेशनल कम्पनियां ही टेंडर में भाग ले सकेंगी। शहर के कई निजी डायग्नोस्टिक सेंटर्स हैं, जिनके पास डॉक्टर, स्टाफ, एम्बुलेंस आदि की सुविधा उपलब्ध है, उन्हें भारी-भरकम शर्तों की वजह से टेंडर में शामिल होने का मौका नहीं मिल पा रहा है।
राहुल गांधी नगरनार में रुकेंगे?
अगले कुछ दिनों में राहुल गांधी का दौरा कार्यक्रम आ जायेगा। वे कहां-कहां जायेंगे और रुकेंगे इसके बाद ही मालूम हो सकेगा। पर, यह निश्चित है कि वे बस्तर और सरगुजा पर फोकस करेंगे। बस्तर में वे रात भी रुक सकते हैं। जिला प्रशासन की तैयारी चल रही है कि उनकी यदि यहां आमसभा हो तो वह माड़पाल में रखी जाये। यह वही जगह है जहां नगरनार स्टील प्लांट स्थापित है और केन्द्र सरकार ने जिसे बेचने की तैयारी कर ली है। छत्तीसगढ़ सरकार ने विधानसभा में घोषणा कर दी है कि यदि इसे बेचा गया, तो वह उसे खरीदेगी। बस्तर में टाटा एस्सार द्वारा ली गई किसानों की जमीन का वायदा भी राज्य सरकार ने निभाया है। इसके अलावा वनोपज के समर्थन मूल्य को कई गुना बढ़ाने, नये उत्पादों को जोडऩे का काम भी सरकार कर रही है। बस्तर की सभी 12 विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास है और लोकसभा की भी दो में से एक सीट है। यहीं पर इन दिनों भाजपा का चिंतन शिविर इसी खास मकसद से चल रहा है कि आदिवासियों के बीच पकड़ मजबूत की जाये। ऐसे में राहुल गांधी का बस्तर दौरा खास बन जाता है।
दूसरी तरफ यहीं पर सिलगेर का मामला भी सुलग रहा है। ग्रामीण तीन आदिवासियों की पुलिस गोली से मौत के लिये जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। पुलिस मृतकों को नक्सली बता रही है। इसके अलावा पांचवी अनुसूची था पेसा कानून लागू करने की मांग पर छत्तीसगढ़ में कई जगह कल आर्थिक नाकाबंदी की गई। आंदोलन का अगला चरण भी शुरू होना है। सरगुजा, कोरबा के जंगल में नये कोल ब्लॉक के लिये सहमति देने को लेकर भी सरकार को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।
कुल मिलाकर राहुल गांधी का बस्तर और सरगुजा का कार्यक्रम तय होता है तो लोग बहुत से सवालों का उनसे जवाब भी चाहेंगे।
सिर्फ 13 प्रतिशत युवाओं को दूसरा डोज...
अगस्त महीने तक प्रदेश में कोरोना से बचाव के लिये कितने लोगों ने वैक्सीन लगवाई उसका आंकड़ा श्रेणीवार जारी हुआ है। प्रदेश में 32 लाख 69 हजार 320 लोगों ने ही दूसरा डोज लगवाया है, जो पहला डोज लगवाने वाले 1 करोड़ 12 लाख 10 हजार 523 का 30 प्रतिशत भी नहीं है। हो सकता है कि इनमें से काफी लोगों को पहला डोज लगने के बाद दूसरे डोज की बारी नहीं आयेगी फिर भी यह अंतर ध्यान तो खींचता है।
फ्रंट लाइन वर्कर्स की 100 प्रतिशत से ज्यादा संख्या रही, जिन्होंने पहला डोज लगवाया। दूसरा डोज अब तक 75 प्रतिशत लोगों को ही लग पाया है। इसी तरह से हेल्थ केयर वर्कर्स जिन्हें टीका लगाना सबसे पहले शुरू किया गया था, 91 प्रतिशत लोग पहला डोज ले चुके हैं, जबकि दूसरा डोज 81 प्रतिशत लोगों को लग पाया है।
45 साल से अधिक उम्र के 92 प्रतिशत लोगों ने पहला डोज लिया जबकि इसका दूसरा डोज लेने वालों की संख्या केवल 32 प्रतिशत है। यह अंतर बहुत ज्यादा है। ऐसा लगता है कि बड़ी संख्या में सीनियर सिटीजन्स ने दूसरा डोज लगवाने में रुचि नहीं ली।
18 साल से 44 वर्ष वर्ग की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। इस वर्ग में अब तक केवल 39 प्रतिशत लोगों को पहला डोज लग सका है और दूसरा डोज तो सिर्फ 13 प्रतिशत लोगों को लगा है। टीकाकरण की शुरूआत से लेकर 30 अगस्त 2021 की स्थिति में कुल 1 करोड़ 44 लाख 79 हजार 843 टीके लगे हैं।
अगस्त माह में कोरोना के नये मामलों में काफी सुधार रहा। पूरे माह में 37 लोगों की मौत हुई। अगस्त में पूरे प्रदेश में 2443 पॉजिटिव केस ही सामने आये और 31 लोगों की मौत हुई। इसके पहले जुलाई में आने वाले संक्रमण के मामले 7528 थे और 85 की मौत हुई थी। जून में तो 391 लोगों की प्रदेशभर में मौत हो गई थी और 23017 संक्रमण के नये मामले मिले थे।
अब वैक्सीन की कमी पहले जैसी नहीं रह गई है। मई-जून में वैक्सीन की कमी के कारण जहां कई टीकाकरण केन्द्रों को बंद करना पड़ा था वहीं अब इन केन्द्रों में टीके उपलब्ध हैं पर भीड़ नहीं उमड़ रही है। वैक्सीनेशन का लक्ष्य पूरा हुए बिना यह उदासीनता नये केस में कमी के कारण हो सकती है पर केरल, महाराष्ट्र में जिस तरह केस बढ़ रहे हैं क्या छत्तीसगढ़ आने वाले दिनों में भी इतना सुरक्षित रह पायेगा? यह सवाल इसलिये जरूरी है क्योंकि 32.69 लाख लोगों को ही दोनों डोज लग पाये हैं।
पार्टी विथ डिफरेंस...
भाजपा के चिंतन शिविर से उन नेताओं को दूर रखा गया जो कि संगठन की धुरी समझे जाते थे। कई दिग्गज नेता शिविर के आमंत्रितों की क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठ पाए, और उन्हें नहीं बुलाया गया। इनमें कोषाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत, और सुभाष राव शामिल हैं। ये नेता बरसों से संगठन के कर्ताधर्ता रहे हैं, लेकिन उन्हें बुलावा नहीं भेजा गया। सुनते हैं कि इन दिग्गजों ने शिविर में न्यौते के लिए भरसक कोशिश भी की थी।
गौरीशंकर अग्रवाल ने दो दिन पहले पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से खुद को शिविर में आमंत्रित नहीं करने की शिकायत भी की थी। मगर पूर्व सीएम ने हाथ खड़े कर दिए। चर्चा तो यह भी है कि गौरीशंकर के खिलाफ पार्टी हाईकमान को कई तरह की शिकायतें हुई है। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर तो एक-दो दफा पार्टी की बैठकों में उन्हें मंचस्थ करने पर आपत्ति कर चुके हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि इन्हीं सब वजहों से गौरीशंकर को शिविर से अलग रखा गया है। इससे परे सुभाष राव प्रदेश के अकेले नेता हैं, जो कि प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से तेलगू में बात करते हैं। यही नहीं, सुभाष राव और राजेश मूणत, दोनों ही शिविर की तिथि तय होने के बाद स्थल चयन के लिए जगदलपुर गए थे। उन्होंने ही चिंतन शिविर के लिए पूरी व्यवस्था की थी। लेकिन उन्हें भी नहीं बुलाया गया।
रमन सरकार के पहले कार्यकाल में अमर अग्रवाल द्वारा मंत्री पद छोडऩे, और फिर पार्टी के बड़े नेता लखीराम अग्रवाल के गुजरने के बाद पार्टी संगठन में कोई बहुत ज्यादा हैसियत नहीं रह गई है। उनकी नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से पटरी नहीं बैठती है। ऐसे में अमर को आमंत्रित नहीं करने से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।
शिविर में प्रदेश उपाध्यक्ष, और महामंत्री के साथ ही सांसद, विधायकों को बुलाया गया है। बस्तर के कुछ प्रमुख नेताओं को अहम पद पर नहीं होने के बाद भी आमंत्रित किया गया है। कांग्रेस में यदि ऐसा कुछ हुआ होता तो खुलकर बयानबाजी होने लगती और लोग लड़-भिडक़र शिविर के भीतर घुस जाते, किन्तु भाजपा तो अलग ही तरह की पार्टी है।
राष्ट्रीय महामंत्री डी. पुरंदेश्वरी कह चुकी हैं कि अगला चुनाव किसी एक चेहरे पर नहीं बल्कि पार्टी के नाम पर लड़ा जायेगा। यह संकेत पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके समर्थकों के लिए चिंताजनक है। शायद इस चिंतन शिविर में तय हो कि कौन सा नाम सामने लाया जाये, इसलिये सूची सावधानी से और सुविधाजनक तरीके से बनाई गई हो? कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव का रोड मैप तैयार करने के लिए हो रहे शिविर से दिग्गजों को दूर रखने की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है।
एक और आईएएस दिल्ली की ओर
आईएएस की 97 बैच की अफसर डॉ. एम गीता भी केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रही हैं। गीता कृषि विभाग की सचिव हैं। और कहा जा रहा है कि स्वास्थ्यगत कारणों की वजह से वो दिल्ली में रहना चाहती हैं। राज्य सरकार ने भी उन्हें अनुमति दे दी हैं। केन्द्र सरकार में पोस्टिंग होते ही उन्हें रिलीव किया जा सकता है। डॉ. गीता के जाने के बाद मंत्रालय में आधा दर्जन अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। वैसे भी अगले एक-दो महीने में विशेष सचिव स्तर के अफसर, सचिव के पद पर पदोन्नत हो जाएंगे। इनमें से अंकित आनंद तो अहम दायित्व संभाल रहे हैं। बाकी को भी महत्वपूर्ण दायित्व दिया जा सकता है। कुल मिलाकर सीनियर अफसरों की गैर मौजूदगी में युवा अफसरों पर प्रशासन की बागडोर रहेगी।
बिजली बंद कर बचायेंगे हाथियों की जान
हाथियों से प्रभावित पत्थलगांव इलाके में हाल ही में एक हाथी की बिजली का करंट लगने से मौत हो गई। शुरुआती जांच में मालूम हुआ कि एक किसान ने अपनी फसल की हिफाजत करने के लिये बाड़ी की फेंसिंग को बिजली तार से जोड़ दिया था, जिसकी चपेट में हाथी आ गया। इस वर्ष की यह ऐसी दूसरी मौत है। अब बिजली विभाग के अधिकारियों ने वन विभाग से कहा है कि वे हमें हाथियों के मूवमेंट के बारे में जानकारी दें तो हम उस इलाके में बिजली बंद कर देंगे। अरसे से करंट से होने वाली मौतों का ठीकरा दोनों विभाग एक दूसरे के सिर पर फोड़ते रहे हैं। यह मसला भी अनसुलझा है कि हाथियों के विचरण क्षेत्र से गुजरने वाली बिजली लाइनों की ऊंचाई बढ़ाई जाये। इस पर करोड़ों रुपये खर्च होने हैं। दोनों ही इसे वहन करने के लिये तैयार नहीं है। ऐसे में मूवमेंट की सूचना देने की जिम्मेदारी वन विभाग पर बिजली विभाग ने डाल दी है। ऐसा किया गया तो विचरण वाले क्षेत्रों में कई-कई दिनों, हफ्तों तक बिजली बंद रह सकती है। इस से घरेलू उपभोक्ताओं को ही नहीं किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। हाथी तो हो सकता है बचा लिये जायें लेकिन बिजली के बगैर खेती-किसानी, व्यापार और बच्चों की पढ़ाई पर खासा असर पड़ सकता है।
तिरपाल पर यूनिवर्सिटी बिल्डिंग
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा में गहिरा गुरु के नाम पर खोले गये विश्वविद्यालय से सरगुजा, जशपुर व कोरिया जिले के 75 से अधिक निजी व शासकीय महाविद्यालय संचालित होते हैं। अब इस यूनिवर्सिटी को बने 12 साल हो गये पर अब तक अपना बिल्डिंग नहीं मिल सका है। अंग्रेजों के जमाने में बने एक जर्जर भवन में इसे संचालित करना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि सीमेंट से बनी शीट के छत से पानी टपकता है। इससे बचने के लिये छत पर तिरपाल बिछा दी गई है, ताकि महत्वपूर्ण दस्तावेजों, कुलपति और कुलसचिव के चेम्बर को पानी टपकने से बचाया जा सके। अपना काम लेकर रोजाना पहुंचने वाले छात्रों और पालकों के लिये भी बैठने या आराम करने की ठीक जगह यहां नहीं है। पता चला है कि 10 साल बाद सन् 2019 में इसके नये भवन के लिए राशि मंजूर की गई और निर्माण की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग को सौंपी गई, पर अब तक कोई भी हिस्सा तैयार नहीं हो सका है जहां जाकर स्टाफ काम शुरू कर सके।
जोगी की आत्मकथा जल्द अंग्रेजी में
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के जीवनकाल से जुड़ी हिन्दी में पूर्व में प्रकाशित हो चुकी आत्मकथा का जल्द ही अंग्रेजी में प्रकाशन होगा। चर्चा है कि स्व. जोगी के राजनीतिक और प्रशासनिक संघर्षों से जुड़ी कहानियां आत्मकथा में शामिल की गई हैं। उनके बेटे अमित जोगी और कुछ सहयोगी अंग्रेजी में अनुवाद कर पुस्तक लगभग तैयार कर चुके हैं। चूंकि जोगी से जुड़ा विषय है, तो राजनीतिक कयास भी लगने ही हैं. पिछले दिनों दिल्ली में प्रदेश कांग्रेस सरकार के नेतृत्व परिवर्तन के अटकलों के बीच छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस पार्टी के विलय की भी चर्चाएं जोरों पर थी। बताते हैं कि जोगी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती रेणु जोगी की दिली ख्वाहिश है कि आत्मकथा के अंग्रेजी अनुवाद का विमोचन कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों हो। पार्टी के विलय की चर्चा की असली वजह यह रही कि विमोचन के लिए श्रीमती जोगी ने दस जनपथ से समय लिया। वैसे भी रेणु जोगी के साथ श्रीमती गांधी के रिश्ते व्यक्तिगत रूप से आज भी मजबूत हैं। जोगी की आत्मकथा के अंग्रेजी में अनुवाद होने के बाद प्रकाशित होने से एक बड़े वर्ग को उनके सत्ता संघर्ष से लेकर प्रशासनिक अफसर के तौर पर किए गए कामों को समझने का मौका मिलेगा। सुनते हैं कि अंग्रेजी की पुस्तक लगभग तैयार हो चुकी है। जोगी ने अपने जीवनकाल में और भी पुस्तकें लिखी है, पर उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी बातें आत्मकथा में खुलकर लिखीं हैं ।
भीड़भाड़ में नहीं मिलेंगे...
कांग्रेस के दिग्गज दिवंगत शुक्ल बंधुओं के इकलौते राजनीतिक वारिस पूर्व मंत्री अमितेश शुक्ल को भूपेश बघेल कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद थी। लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। अमितेश को निगम-मंडल की पेशकश की गई थी, इसके लिए वो तैयार नहीं हुए। शुक्ल बंधुओं की विरासत वजह से अमितेश की दस जनपथ में पहुंच है।
कई बार वे सोनिया, और राहुल से अकेले में मिल चुके हैं। और जब पिछले दिनों राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं के बीच एक प्रमुख नेता ने भी साथ दिल्ली चलने के लिए अप्रोच किया, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वो सीएम के साथ हैं, लेकिन वे राष्ट्रीय नेताओं से भीड़भाड़ में नहीं मिलेंगे। उनके लिए अलग से टाइम लिया जाए, तभी वो दिल्ली आएंगे। स्वाभाविक है कि अमितेश मंत्री भले ही नहीं है, लेकिन रूतबा कम नहीं है।
उम्मीद थी कि...
कांग्रेस में चल रही उठापटक पर भाजपा की पैनी निगाह है। नेतृत्व परिवर्तन का हल्ला उड़ा, तो राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम पुराने प्रकरण को लेकर अपने धुर विरोधी बृहस्पत सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंच गए।
रामविचार से जुड़े लोगों को उम्मीद थी कि नेतृत्व में बदलाव होता है तो बृहस्पत सिंह के खिलाफ कार्रवाई तुरंत होगी। इसकी एक वजह यह है कि बृहस्पत सिंह, टीएस सिंहदेव के खिलाफ आग उगलते रहे हैं। मगर परिवर्तन जैसा कुछ नहीं हुआ। अब बृहस्पत सिंह को रामविचार पर हमला बोलने का मौका मिल गया, और वे यहां-वहां रामविचार के खिलाफ काफी कुछ बोल रहे हैं।
सूखे की फसल पर नजर रखने की जरूरत..
चार साल पहले राजनांदगांव जिले को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था तो वहां भाजपा नेताओं ने पटाखे फोडक़र खुशियां मनाई थीं। कोई इलाका सूखाग्रस्त घोषित होता है तो वहां के राजनेता और अधिकारी-कर्मचारी खुश क्यों हो जाते हैं यह वरिष्ठ पत्रकार पी. साईंनाथ की किताब तीसरी फसल पढक़र समझा जा सकता है। सूखाग्रस्त इलाकों में राहत पहुंचाने के लिये करोड़ों रुपये रिलीज़ किये जाते हैं और जाहिर है जो लोग इस फंड का इस्तेमाल करते हैं उन्हें अपनी फसल काटने का मौका मिलता है।
छत्तीसगढ़ में इस बार फिर सूखे के आसार दिखाई दे रहे हैं। अब तक 30 तहसील इसकी चपेट में आ चुके हैं और आगे बारिश नहीं हुई तो प्रभावित क्षेत्रों की संख्या बढ़ सकती है। पहले देखा जा चुका है कि बीमा कंपनियों ने फसल बीमा के नाम पर तो खूब मुनाफा कमाया पर सूखा पीडि़त किसान छले गये। कुछ को तो 10-20 रुपये का चेक थमा दिया गया।
इस बार छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घोषणा की है कि अकाल प्रभावित किसानों को प्रति एकड़ 9 हजार रुपये की मदद दी जायेगी। अभी साफ पता नहीं है कि यह राशि नगद के रूप में खाते में जायेगी या फिर किसी योजना में सहायता के रूप में दी जायेगी। जनप्रतिनिधियों को अब सक्रिय हो जाना चाहिये। प्रशासन के भरोसे रहे तो उनके इलाके के सूखा पीडि़त किसान आसमान की ओर ताकते रह जायेंगे। सवाल फंड का ही नहीं, वोटों का भी है।
फिर ताबड़तोड़ नसबंदी..
कोरोना संकट के बाद एक स्थिति सुधरी कि अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रमों के तहत होने वाले रुके ऑपरेशन फिर शुरू किये गये हैं। नसबंदी का तो खैर अपने छत्तीसगढ़ में मामला ही अलग है। 8 नवंबर 2014 को तखतपुर के एक बंद पड़े अस्पताल में शिविर लगाकर बड़ी संख्या में महिलाओं की लापरवाही के साथ नसबंदी कर दी गई। इसके बाद 13 महिलाओं की मौत हो गई। इस मामले में दवा सप्लायरों, डॉक्टरों व स्टाफ के विरुद्ध कार्रवाई हुई पर वह नाकाफी थी। कई लोगों को बचा लिया गया। पर इसके बाद एक सबक लिया गया कि लोगों को प्रोत्साहन राशि के लालच में जबरदस्ती पकडक़र नहीं लाया जायेगा, ना ही नसबंदी का कोई लक्ष्य दिया जायेगा। एक डॉक्टर अधिकतम कितने लोगों की नसबंदी एक शिविर में करेंगे यह भी तय कर दिया गया। पर सरगुजा जिले के मैनपाट में हाल ही में जो हुआ उससे लग रहा है कि सब कुछ फिर पुराने ढर्रे पर लौट रहा है। यहां शिविर में 30 महिलाओं का ऑपरेशन निर्धारित किया गया था लेकिन 100 से ज्यादा कर दिये गये। पता चला कि मितानिन और स्वास्थ्य कार्यकर्ता बड़ी संख्या में महिलाओं को नसबंदी के लिये लेकर आ गये। शायद मिलने वाली प्रोत्साहन राशि इसकी वजह थी। पर डॉक्टर ने भी तय से ज्यादा ऑपरेशन करने से मना नहीं किया। अब इस मामले की जांच शुरू हो गई है, डॉक्टर को भी शो-काज नोटिस थमा दिया गया है।
एक कोना पक्षियों के नाम...
सरकारी तौर पर बर्ड फेस्टिवल मनाये जाते हैं, पक्षी विहार बनाने के लिये बजट जारी होता है पर उसके नतीजे दिखाई नहीं देते। पर यही काम यदि समाज के जागरूक लोग करें तो खर्च भी कम होता है और असर भी ज्यादा होता है। महासमुंद जिले के तुमगांव के युवाओं ने विलुप्त हो रही गौरेया और अन्य पक्षियों के लिये बसेरा बनाने का बीड़ा उठाया है। शुरुआत 30 बसेरे बनाकर की गई है। इस युवा शक्ति टीम का नेतृत्व पार्षद धर्मेन्द्र यादव कर रहे हैं। उनका कहना है कि भटकते पक्षियों को इस मुहिम के माध्यम से आशियाना देने की कोशिश की जा रही है। पक्षियों के ये मजबूत घोंसले नगर की कुलदेवी कही जाने वाली शीतला माता के मंदिर परिसर में तैयार करके रखा जा रहा है। बाद में घरों में ये बनाकर दिये जायेंगे। युवाओं का कहना है कि इन दिनों चिडिय़ों की चहक कम सुनाई दे रही है। हो सकता है उनकी कोशिश से यह कमी दूर हो। ([email protected])
इसे कहते हैं गई भैंस पानी में
प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी ने वन भैंसा को छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु घोषित किया था। तब से लेकर अब तक उसके संरक्षण के लिए फूंके गए करोड़ों रुपयों के बजट की परिणीति यह हुई है कि आखिरी संदिग्ध वन भैंसे की भी मौत हो गई।
वन भैंसा को बचाने के नाम पर बम्हनी झूला गांव के चेतन से जनवरी सन 2007 में आशा नाम की एक मादा भैंस को जप्त कर लिया। चेतन ने वन विभाग के अधिकारियों के साथ खूब झगड़ा किया। कहा कि यह मेरी पालतू भैंस है, वन भैंसा नहीं है। मगर वन विभाग ने दावा किया कि यह माता, मादा वन भैंस ही है। कुछ वन्यजीव प्रेमियों ने मांग कि कि इसका डीएनए टेस्ट कराया जाए। इधर वन विभाग ने वन भैंसा प्रजनन केंद्र उदंती में रखकर इस मादा भैंस की ब्रीडिंग कराई, जिससे 5 नर और एक मादा भैंस पैदा हुई।
डीएनए टेस्ट प्रजनन के बाद हुआ। इन छह में से सिर्फ एक के बारे में दावा किया गया कि यह मादा वन भैंस है।
वन्य प्राणी विशेषज्ञ इस बात पर भी संतुष्ट थे कि राजकीय पशु वन भैंस का अस्तित्व बना रहेगा। वन विभाग के अधिकारियों ने इसका नाम भी खुशी रख दिया था। मगर दुर्भाग्य की खुशी नाम ने वन विभाग के अधिकारियों की पोल खोल कर वन्यजीव प्रेमियों को दुखी कर दिया। मालूम यह हुआ है कि वह मुर्रा भैंस है। आमतौर पर पालतू।
जंगल में अधिकारी किस तरह से करोड़ों रुपए के परियोजना को किस तरह से बिना जाने समझे बहा रहे हैं और न केवल जंगल का विनाश बल्कि वन्य जीवों को खत्म कर रहे हैं, यह मामला इसका बड़ा उदाहरण है।
ऑनलाइन पढ़ाई की लत लग चुकी ...
केरल से जरूर कोरोना महामारी के भयावह आंकड़े हैं पर दक्षिण छोडक़र बाकी राज्यों में गतिविधियों को सामान्य करने की कोशिश की जा रही है। इसीलिये छत्तीसगढ़ में भी 50-50 फीसदी उपस्थिति के साथ स्कूल खोले जा चुके हैं। एक शिक्षक से पूछा गया कि क्या हाल है स्कूलों का? वह बता रहे हैं कि बच्चे 15-20 प्रतिशत ही पहुंच रहे हैं। जब बच्चों और उनके अभिभावकों से पूछा जाता है कि अनुपस्थिति क्यों? कहते हैं कोरोना फैलने का डर है। बच्चों को गाइडलाइन ठीक तरह से पता नहीं। वे एक साथ बैठेंगे। दो गज की दूरी नहीं रहेगी। मास्क निकालकर टिफिन बांटकर खायेंगे। खेल-कूद के बिना रह नहीं पायेंगे फिर एक दूसरे को मरोड़ेंगे। न- ना, स्कूल नहीं भेजेंगे।
शिक्षक कहते हैं कि यह चिंता बेकार की है। 50 फीसदी उपस्थिति पहले ही तय की जा चुकी है। खेलकूद बंद है। जो कोरोना के डर से स्कूल नहीं भेज रहे हैं वही अपने पूरे परिवार के साथ मॉल में फिल्म देखते हुए मिल गये। बच्चों को लेकर वे बाजार जा रहे और त्यौहार मना रहे हैं।
फिर वजह क्या है? दरअसल बच्चों को बीते दो साल में ऑनलाइन पढ़ाई का चस्का लग चुका है। स्कूल जाने के नाम पर कतरा रहे हैं। उन्हें मोबाइल फोन की ऑनलाइन पढ़ाई भा रही है। पालक भी स्कूल ड्रेस, टिफिन, ऑटो रिक्शा के झंझट से बचने के लिये दबाव नहीं डाल रहे हैं।
शिक्षकों ने चेतावनी दी है कि स्कूल नहीं आ रहे हो, पर सोच लो। इस बार इग्ज़ाम ऑनलाइन नहीं, ऑफलाइऩ ही होगा और आनाकानी करने पर नतीजे के लिये तैयार रहें।
स्काई वाक और मल्टी लेवल पार्किंग..
भाठागांव नया बस स्टैंड और शहर के मुख्य मार्ग को तहस-नहस कर बनाये गये स्काई वाक के बाद अब इस कहीं मल्टीलेवल पार्किंग के अनुपयोगी की बारी तो नहीं? यहां 700 कारों को पार्क करने की जगह है। क्या इतनी कारों को यहां पार्क करने की जरूरत पडऩे वाली है? पार्क करने से बेहतर क्या यह ठीक नहीं लगेगा कि कार वे घर पर ही छोडक़र निकलें और टैक्सी से कलेक्टोरेट और बाजार पहुंच जायें?
शिक्षक रहना ही ठीक था
सूबे के प्रशासनिक तंत्र के साथ तालमेल बिठाने में नाकाम अफसरों की गिनती में इजाफा हो रहा है। पुलिस महकमे में हालत कुछ ऐसी है कि सिस्टम के साथ नहीं जुडऩे के चलते कई पुलिस अधिकारी बटालियन और पीएचक्यू में समय काट रहे हैं। ऐसे अफसरों में 1997 बैच के राज्य पुलिस सेवा के दर्शन सिंह मरावी अपने बैच के इकलौते अफसर हैं जो प्रमोशन नहीं होने का दर्द सहते 21 वीं बटालियन में कमाडेंट के तौर पर समय काट रहे हैं। गाहे-बगाहे वह यह भी कह जाते हैं कि शिक्षक रहने में ज्यादा भलाई थी। अविभाजित राजनांदगांव के रेंगाखार से सटे रोल गांव (अब कवर्धा )से शिक्षक रहते डीएसपी चुने गए मरावी अच्छी पोस्टिंग के लिए तरस रहे हैं। सुकमा एसपी के लिए उन्हें दो माह के लिए भेजा गया। उसके बाद से वह जंगल वारफेयर कॉलेज कांकेर में दो बार और बटालियन में तैनाती का दंश झेल रहे हैं। बताते हैं कि इस आदिवासी अफसर का सिस्टम से मेल नहीं हो पाया। एक मामले में विभागीय जांच आईपीएस अवार्ड में उनकी अड़चनें दूर नहीं हुई हैं। मरावी के बैच के दीगर अफसरों को आईपीएस अवार्ड मिले काफी समय हो गया है। मरावी दर्द में खुलकर कहते हैं कि डीएसपी की नौकरी से शिक्षक रहने में ही भलाई थी।
आरटीई में दाखिले के लिये इतनी कम अर्जी क्यों?
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों के नये प्रवेश में 25 प्रतिशत सीट गरीब वर्ग के लिये आरक्षित होती है। हर बार पालकों की शिकायत रहती है कि उनके बच्चों को आवेदन के बाद भी दाखिला नहीं मिल रहा है। पर इस बार स्थिति उलटी है। राज्य के 6533 निजी स्कूलों में आरटीई के तहत उपलब्ध सीटों की संख्या 82 हजार 220 है। पर इनमें दाखिले के लिये आये कुल आवेदन 71 हजार 882 ही हैं। हालांकि यह स्थिति जांच के बाद आवेदन निरस्त होने के बाद की है। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा और जांजगीर ही ऐसे जिले हैं जहां सीटों से अधिक आवेदन हैं। पर बाकी जिलों में स्थिति यह है कि जो भी आवेदन हैं, दाखिला मिल जायेगा। इनमें दंतेवाड़ा, कांकेर, बस्तर, सुकमा, बालोद, बलरामपुर, गरियाबंद और नारायणपुर जिले हैं।
इस आंकड़े का थोड़ा विश्लेषण करें तो यह समझ में आता है कि मैदानी इलाके जहां आवागमन, संचार की सुविधा है, कुछ विकसित कहे जा सकते हैं उनमें आये आवेदन सीटों से ज्यादा हैं जैसे रायपुर, बिलासपुर या कोरबा। पर जहां से कम आवेदन आये हैं वे आदिवासी बाहुल्य जिले हैं। ये आधारभूत सुविधाओं के मामले में कुछ पीछे हैं। यह स्थिति शायद इसलिये भी हो कि आरटीई के बारे में लोग जागरूक नहीं हुए हों। आरटीई की भर्ती के बाद सरकार ट्यूशन फीस, यूनिफॉर्म और किताबों का खर्च तो उठाती है पर स्कूल से घर तक आने-जाने का नहीं। हो सकता है गरीब परिवारों को वहां यह खर्च भी भारी पड़ रहा हो। जो भी हो, निर्धन परिवारों के लिये मुफ्त शिक्षा की एक अच्छी योजना के प्रति रूचि में कमी चिंताजनक है। सरकार और समाज दोनों के लिये।
सोशल मीडिया पर समर्थकों की बेताबी
वाट्सअप, फेसबुक और ट्विटर नहीं होता तो पता नहीं चलता कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मन में क्या चल रहा है। शीर्ष नेता लगातार यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि सब ठीक चल रहा है पर सीएम भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के समर्थन और विरोध में दनादन पोस्ट किये जा रहे थे। कोई कह रहा था हमें राजा नहीं चाहिये, किसानों के राज में किसान नेता ही चलेंगे। कोई कह रहा था, बाबा आप अभी जिम्मेदारी मत संभालिये वरना जब पांच साल पूरा होगा तो पूरा ठीकरा आपके सिर फूटेगा। फेहरिस्त लम्बी है आप इसके लिये कांग्रेस भाजपा नेताओं के पेज पर जाकर उनके समर्थकों, विरोधियों की प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स और उनकी पर्सनल पोस्ट में पढ़ सकते हैं।
जो जागत है सो पावत है..
चाणक्य कह गये हैं स्वयं की सफलता से बड़ा कोई भी लक्ष्य नहीं होता है। स्व. अजीत जोगी ने एक किस्सा एक वरिष्ठ पत्रकार को सुनाया था। संयुक्त मध्यप्रदेश के जमाने में पर्यवेक्षक गुलाम नबी आजाद की मौजूदगी में कांग्रेस सीएम के लिये नाम तय नहीं कर पा रही थी। बुंदेलखंड, मालवा, विंध्य..., अलग-अलग क्षेत्र से मांग उठ रही थी। प्रक्रिया में इतनी देर होने लगी कि बैठक में मौजूद एक दावेदार स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल कहीं विश्राम करने चले गये। इस बीच तय हुआ कि मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ का हो। स्व. शुक्ल के नाम पर सहमति बन गई। उस वक्त मोबाइल फोन तो था नहीं कि जहां हैं वहीं से उठाकर बुला लिया जाये। खोजबीन कराने पर वे नहीं मिले। फिर छत्तीसगढ़ से दूसरा नाम? वहां स्व. मोतीलाल वोरा मौजूद थे। विधायकों से सहमति ली गई और वोरा जी का नाम फाइनल हो गया, मिठाईयां बंट गई। अब बैठक में पहुंचे स्व. शुक्ल। उन्होंने कहा कि मैं तो आ गया हूं, जब पहले मेरा नाम तय हुआ तो मुझे ही मौका मिलना चाहिये। पर उन्हें बताया गया कि अब तो सब घोषणा हो गई है, कुछ नहीं हो सकता। स्व. शुक्ल ने एक बड़ा मौका गंवा दिया। आज के संदर्भ में इस किस्से का कौन सा सिरा मायने रखता है?