राजपथ - जनपथ
संगति का असर नहीं पड़ा
रायपुर में पले-बढ़े तमिलनाडु कैडर के 92 बैच के आईएएस राजेश लखानी तमिलनाडु विद्युत बोर्ड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बनाए गए हैं। राजेश ने गवर्नमेंट स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, और रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई की डिग्री हासिल की। पूर्व आईजी राजकुमार देवांगन भी राजेश के सहपाठी रहे हैं, और एक साथ ही यूपीएससी में चयनित हुए।
राजेश आईएएस, तो राजकुमार आईपीएस में आ गए। राजेश के पिता टेक्नीकल स्कूल में प्रिंसिपल रहे हैं। अपने प्रशासनिक कैरियर में राजेश के नाम कई उपलब्धियां हैं। उन्हें तमिलनाडु म्युनिसिपल कमिश्नर रहते बेहतर काम के लिए प्रधानमंत्री अवॉर्ड मिल चुका है। पहले उन्हें तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का प्रधान सचिव बनाए जाने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन उन्हें विद्युत बोर्ड का अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक की अहम जिम्मेदारी दी गई है। इससे परे राजकुमार देवांगन को पिछली सरकार मेें जबरिया रिटायर कर दिया गया था। संगति का असर दोनों का एक-दूसरे पर नहीं पड़ा !
कोरोना हँस रहा है
कोरोना केस तेजी से घटे हैं, लेकिन मरने वालों की संख्या कम नहीं हो रही है। केरल में मृत्युदर 0.25 फीसदी है, तो छत्तीसगढ़ में 8 गुना ज्यादा 2 फीसदी है। यानी 8 गुना ज्यादा। रायपुर में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोरोना से करीब 3 हजार लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन वास्तविक संख्या इससे बहुत ज्यादा है। पूरे देश के हर प्रदेश के बारे में यह कहा जा रहा है कि सरकारें आंकड़ों को पूरा नहीं बता रही हैं. कांटेक्ट ट्रेसिंग ही इस तरह की जा रही है कि जहां बहुत पॉजिटिव मिलने की उम्मीद है, वहां हाथ ही मत डालो. छत्तीसगढ़ से 6 गुना आबादी के उत्तर प्रदेश में आंकड़े देखकर कोरोना हँस रहा है. वही हाल बिहार का है।
रायपुर से सटे गांव धनेली में कोरोना से 9 लोगों की मृत्यु हुई है, लेकिन गांव में पिछले 3 महीने में 22 लोगों की जान जा चुकी है। धनेली में तो ग्रामवासियों ने स्वास्थ्य कर्मियों का रास्ता रोक दिया था। जनप्रतिनिधि बताते हैं कि धनेली और सिलतरा औद्योगिक क्षेत्र के आसपास सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। ज्यादातर लोगों ने अस्पतालों में इलाज के लिए जाना छोड़ दिया था, और झोलाछाप डॉक्टरों से दवाई लेकर इलाज करा रहे थे।
नया रायपुर के दो बड़े गांव पौंता, चेरिया में 15 लोगों की कोरोना से मृत्यु हुई है। गांव के पूर्व सरपंच बताते हैं कि सिर्फ दो लोगों की कोरोना से मौत का जिक्र है। लोगों ने अस्पतालों की भीड़ देखकर इलाज के लिए जाना छोड़ दिया था, और इस वजह से मृत्यु हुई। बलौदाबाजार, जांजगीर-चांपा, रायगढ़ और सूरजपुर में बड़ी संख्या में मौतें हुई है, जिनका भी सरकारी आंकड़ों में जिक्र नहीं है। सरकार कोरोना नियंत्रण के लिए तेजी से काम करती दिख रही है। खुद सीएम भूपेश बघेल रोज समीक्षा कर रहे हैं। डॉ. आलोक शुक्ला को स्वास्थ्य महकमा का प्रभार देने के पीछे एक प्रमुख वजह यही है। आलोक से काफी उम्मीदें भी हैं। देखते हैं वे इसमें कितना सफल हो पाते हैं।
कोरोना माता ने जन्म लिया....
जब भी किसी अदृश्य शक्ति से भय होता है तब प्रार्थना की जाती है। इन दिनों कोरोना महामारी ने देश दुनिया में जिस तरह से दहशत फैलाई है कोई आश्चर्य नहीं कि अध्यात्म, तंत्र-मंत्र, यज्ञ, हवन, पर पूजा-पाठ पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। पर यह यह प्रार्थना अंधविश्वास की घेरे में कब प्रवेश कर जाये यह राजनांदगांव की घटना से मालूम होता है। कुछ महिलाओं ने कोरोना माता का सृजन कर लिया और एक काली मंदिर में जाकर पूजा पाठ करने लगीं। अच्छी भीड़ जमा हो गई। सोशल डिस्टेंस का तो खैर ध्यान रखा ही नहीं गया, कई लोगों ने मास्क लगाना भी जरूरी नहीं समझा। बहुत से लोगों ने उपवास भी रखा और इस नई देवी से प्रार्थना की कि वे जल्द से जल्द हमें इस आपदा से उन्हें मुक्ति दिलायें।
एक ओर दुनिया भर में वैज्ञानिक कोरोना से मुक्त करने के लिये नई वैक्सीन, नई दवायें तैयार करने में दिन-रात एक किये हुए हैं, और लगातार सफलता मिल भी रही है, दूसरी ओर अवैज्ञानिक दृष्टि को बढ़ावा देने वाली घटनायें भी दिखाई दे रही हैं। शुक्र है, इस घटना पर किसी राजनैतिक दल का हाथ होने की बात अभी नहीं आई है। अब प्रशासन और समाजसेवियों के सामने एक चुनौती यह भी है कि ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देने वालों को भी अपनी कार्रवाई के दायरे में ले।
टेस्टिंग लैब का होना भी जरूरी
छत्तीसगढ़ में संक्रमण के मामलों में गिरावट को लेकर हर कोई राहत महसूस कर रहा है। बीते डेढ़ दो माह बड़ी मुश्किल में बीते हैं और आने वाले दिनों में भी यही ऊर्जा बनाये रखने की जरूरत है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, शोध कर्ता और अन्य जानकार लोग यह सुझाव दे रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की जाये। छत्तीसगढ़ में भी जो आंकड़े सामने आ रहे हैं टेस्टिंग में कमी नहीं है। पर यह भी सही है कि जितनी तेजी से ऑक्सीजन बेड, सामान्य बेड, आइसोलेशन सेंटर, कोविड केयर सेंटर बनाने पर प्रदेश में काम हुआ उतनी फुर्ती से टेस्टिंग लैब नहीं बनाये जा सके। आज भी ज्यादातर टेस्ट रिपोर्ट मेडिकल कॉलेजों में ही तैयार हो रहे हैं। छोटे जिलों में तो टेस्टिंग की सुविधा है ही नहीं। ऐसे में जांजगीर-चाम्पा जिले के सीएमएचओ ने आदेश दिया है कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति का टेस्ट रिपोर्ट पर्याप्त है। रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में उसे ही जांच के लिये भेजेंगे। सबका टेस्ट लिया जाना जरूरी नहीं है। सीएमएचओ का कहना है कि रायगढ़ लैब की ओर से उन्हें बताया गया है कि उनकी भी रिपोर्ट तैयार करने की एक क्षमता, सीमा है। इससे ज्यादा नहीं कर पायेंगे...। क्या जरूरी नहीं कि हर जिले में तेजी से टेस्टिंग लैब भी शुरू करने के लिये काम हो, क्योंकि टेस्टिंग की जरूरत तो आने वाले कई महीनों तक पड़ेगी।
दो डोज के बीच का अंतराल..
45 प्लस के जिन लोगों ने कोविड की दोनों खुराक ले ली है वे अपने आपको खुशकिस्मत मान रहे होंगे। पर जिन्होंने नहीं ली है वे दिक्कत मे पड़ गये हैं। जिन्हें पता नहीं, उन्हें टीकाकरण केन्द्रों से लौटना पड़ रहा है। जब पहली खुराक ली थी तो उन्हें डेढ़ दो माह बाद दूसरा डोज लेना था, पर अब नई गाइडलाइन के मुताबिक अब उन्हें 82 दिन बाद दूसरा डोज लेना है। इसी से झल्लाये एक शख्स ने सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास कुछ इस तरह निकाली है- जनवरी में कहा गया, दो डोज चार हफ्त में लेना है। फरवरी में बताया गया 4 से 6 हफ्ते में लेना है। मार्च में नई स्टडी आ गई 6 से आठ हफ्ते के बीच लेना है। अप्रैल में कोई नई स्टडी नहीं आई। मई में कहा गया कि दो डोज के बीच 12 से 16 हफ्तों का अंतराल होना चाहिये। क्या पता, अब जुलाई में कोई नया शोध हो कहा जाये, आपने जो एक डोज लिया है वह काफी है, दूसरा डोज लेने की जरूरत नहीं। और, सितम्बर में कहा जायेगा कि वैक्सीन का एक भी डोज अब तक नही लिया। वाह, आप तो अजेय हैं, आप अपना प्लाज्मा डोनेट करिये।
सरकारी मुलाजिम की बगावत...
मामूली से घोटाले के लिए अनशन पर बैठ जाना ठीक बात नहीं। सरकारी अफसर के लिए तो यह बिल्कुल शोभा नहीं देता। छवि घोटाले से और उसकी जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं होने से नहीं बिगड़ती, बिगड़ती तब है जब ऐसे मामलों का हवाला देकर कोई नीचे का अफसर अपने से बड़े को चुनौती दे जाये। इसीलिए अधिकारी की गिरफ्तारी के जायज कारण ढूंढ लिये गये हैं, जैसे लॉकडाउन में अनशन करना मना है। सर्विस रूल में तो और भी कंडिकायें इसके समर्थन में मिल जायेंगीं।
जिस मुद्दे को महासमुंद के जिला महिला बाल विकास अधिकारी उठा रहे हैं उसमें कोई नयापन है ही नहींशिष्टाचार के साथ सप्लाई का काम आखिर किस विभाग में नहीं चलता? पता नहीं इस अफसर की कितने दिनों की नौकरी है। पता नहीं कितनी बार उनको अपने आसपास ऐसे मामले पहले भी दिखे होंगे, खामोशी ओढ़ ली होगी। पर, शायद उन्हें लग रहा हो कि अब पानी सिर से ऊपर चला गया है। सिस्टम से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिये कि कोई जांच रिपोर्ट तैयार हो गई है तो उस पर कार्रवाई भी तुरंत हो जायेगी। ऐसी कितनी ही फाइलें धूल खाती पड़ी रहती हैं। प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है एक्शन लेने के लिये। दूसरी ओर, लॉकडाउन में अनशन की मनाही है तो है। इसका कोई उल्लंघन करे तो कार्रवाई के लिये किसी लम्बी चौड़ी प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ती है। गश्त करने वाले तो कई फैसले ऑन द स्पॉट भी कर रहे हैं। वैसे भी सिस्टम अभी कोरोना के बोझ में कराह रहा है। दूसरे विभागों में कुछ काला-पीला हो रहा भी हो इसे ध्यान देने की जरूरत क्या है?
ऐसे मौके पर यहीं के एक जज और जेलर का किस्सा याद आता है। एक को नौकरी ही गंवानी पड़ गई, दूसरे को अपनी वाजिब जगह हासिल करने के लिये लम्बी लड़ाई लडऩी पड़ रही है।
रामबाण नकली इंजेक्शन...
मध्यप्रदेश में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बेचने का बड़ा रैकेट सामने आया है। इनका नेटवर्क गुजरात से शुरू होकर भोपाल, इंदौर, जबलपुर आदि जगहों पर फैला था। सैकड़ों नकली इंजेक्शन इन्होंने अस्पतालों में खफा भी दिए। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं। किसी मरीज को पता नहीं होता कि वह नकली दवा, इंजेक्शन लगवा रहा है या असली। प्राण बचाने का सवाल हो तो सब भगवान और डॉक्टरों के भरोसे छोड़ दिया जाता है।
कोविड महामारी के दूसरे चरण में जिन लोगों ने लूट खसोट का रास्ता चुना है उनको कोई फर्क नहीं पड़ता कि मरीज की जान बचेगी या नहीं। पर, इस केस में उल्टा हो गया। भोपाल पुलिस ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि जिन लोगों को नकली रेमडेसिविर लगे उनमें से 90 फीसदी लोगों की जान बच गई। यह प्रतिशत असली इंजेक्शन लगवाने वालों से भी अधिक है। आरोपी बता रहे हैं कि उन्होंने तो ग्लूकोज और नमक का घोल बेचा, जान कैसे बच गई डॉक्टर ही बतायेंगे।
ऐसे में विशेषज्ञों और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के उस बयान की ओर सहज ही ध्यान चला गया है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना से बचने के लिये रामबाण दवा नहीं है। ऑक्सीजन लेवल एक खास स्तर से ऊपर हो तो यह कारगर भी नहीं है। पर चूंकि डॉक्टर और मरीज के परिजन जान बचाने के लिये कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते, वे रेमडेसिविर के पीछे भागते हैं। छत्तीसगढ़ के अस्पतालों में, खासकर निजी में भी रेमडेसिविर की अचानक बहुत मांग बढ़ी। यह तब थी जब इसकी आपूर्ति कम थी। जमकर कालाबाजारी हुई, कई लोग गिरफ्तार भी हुए। अब स्थिति लगभग सामान्य हो चुकी है। यहां भी हिसाब लगना चाहिये कि रेमडेसिविर इंजेक्शन लगने के बावजूद कितने लोगों की जान नहीं बच पाई। आंकड़ा बता देगा कि कहीं यहां भी तो नकली नहीं खपाये गये?
लोगों का ध्यान भटकाया जाना जरूरी
कोविड-19 से निपटने में केन्द्र सरकार की विफलता को लेकर रोज उठने वाले सवालों के जवाब में सकारात्मक होने की अपील, या कह लें नसीहत दी जा रही है। इन दिनों प्रदेश का एक बड़ा शैक्षणिक संस्थान कोविड महामारी से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, युवाओं के भविष्य जैसे गंभीर विषयों पर वर्चुअल सेमिनार कर रहा है। गहराई में जाने पर पता चला कि यह भी असल समस्या से ध्यान हटाकर सकारात्मकता लाने की मुहिम है। पर सोशल मीडिया में सक्रिय एक खास समूह सीधे-सीधे बताने पर आमादा है कि इस समय भी कोविड महामारी से निपटना जरूरी नहीं, कुछ दूसरे मुद्दों पर भी सोचना होगा। जैसे, अम्बिकापुर में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने का मुद्दा। ऐसे संदेश छत्तीसगढ़ के अनेक वाट्सएप ग्रुपों में वायरल हो रहे थे। लोगों की सहज जिज्ञासा बढ़ गई कि क्या यह हो रहा है? इस तरह के संदेश वायरल करने वाले जानते हैं कि लोगों का माइंड सेट बिगडऩे नहीं देना है। महामारी तो आज आई है कल गुजर जायेगी। पर लोगों की सोच बदली तो फिर से उनको रास्ते पर लाना मुश्किल होगा। बहरहाल, कांग्रेस की आईटी सेल ने छानबीन की है। दावा किया गया है कि यह खबर फेक है और इस बात को उसने ट्विटर तथा दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा भी कर दिया है।
संजय शुक्ल और हुडको
पीसीसीएफ स्तर के अफसर संजय शुक्ला केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। राज्य सरकार की सहमति के बाद उन्होंने हुडको चेयरमैन के लिए आवेदन दिया है। 87 बैच के आईएफएस अफसर संजय शुक्ला हाऊसिंग बोर्ड के 4 साल कमिश्नर रहे हैं। वे लंबे समय तक आवास-पर्यावरण विभाग के सचिव भी रहे। कुल मिलाकर संजय हुडको चेयरमैन के लिए सारी जरूरी योग्यता को पूरी करते हैं। हुडको चेयरमैन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आवेदन बुलाए गए थे।
अब संजय हुडको चेयरमैन बन पाएंगे अथवा नहीं, इस पर प्रशासनिक हल्कों में चर्चा हो रही है। दरअसल, कुछ साल पहले यूपीए सरकार में पी जॉय उम्मेन ने सीएस रहते हुडको चेयरमैन के लिए आवेदन किया था। वे एनआरडीए के चेयरमैन भी थे। सारे समीकरण उनके पक्ष में थे। उस वक्त यूपीए सरकार की ब्यूरोक्रेसी में केरल लाबी का दबदबा भी था। कहा जाता है कि तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने भी उम्मेन को हुडको चेयरमैन बनाने की सिफारिश भी की थी। उनका नाम पैनल में भी था।
बावजूद इसके वे हुडको चेयरमैन नहीं बन सके। पिछले सालों के अनुभवों को देखकर यह जरूर कहा जा सकता है कि संजय के लिए हुडको चेयरमैन की राह आसान नहीं है। मगर मुश्किल भी नहीं है। मोदी सरकार ने तो चीफ इलेक्शन कमिश्नर पद पर इतिहास में पहली बार आईआरएस अफसर सुशील चंद्रा की नियुक्ति की है। ऐसे में हुडको चेयरमैन पद पर आईएफएस अफसर की नियुक्ति हो जाती है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
भाजपा और भूपेश
कोरोना वैक्सीनेशन पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने सीएम से रू ब रू बातचीत के लिए समय मांगा, तो सीएम ने उन्हें वर्चुअल बैठक के लिए समय दिया। इसके लिए भाजपा नेता तैयार नहीं हुए, और उन्होंने सीएम के साथ वर्चुअल बैठक करने का प्रस्ताव अमान्य कर दिया। भाजपा के कुछ नेता साय से इस बात को लेकर खिन्न थे कि उन्होंने सीएम से चर्चा के लिए समय ही क्यों मांगा?
अंदर की खबर यह है कि साय ने पार्टी हाईकमान के कहने पर ही सीएम से मिलने का समय मांगा था। चर्चा है कि राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने प्रदेश के नेताओं के साथ कोरोना संक्रमण-वैक्सीनेशन पर चर्चा की थी, और उन्होंने कहा था कि पार्टी के प्रतिनिधि मंडल को सीएम से मिलना चाहिए, और वैक्सीनेशन बेहतर ढंग से हो सके, इसको लेकर पार्टी की तरफ से सुझाव देना चाहिए। अब रू ब रू बैठक नहीं हुई, तो पार्टी नेताओं ने मीडिया के माध्यम से खीझ निकालते हुए कुछ सुझाव दे दिए।
देबू की जमीन हमें भी लौटा दो....
देश में जब आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ, तब बहुत सी विदेशी कंपनियों ने यहां निवेश किया। कोरबा जिले के रिस्दी ग्राम में दक्षिण कोरियाई कंपनी देबू ने पॉवर प्लांट लगाने के लिए जमीन खरीदी। यह सन् 1998 की बात है। उसके बाद समय का चक्र कुछ ऐसा फिरा की देबू के मालिक किम वू चोंग दिवालिया हो गए। 18 महीने जेल में बिताये। एक वक्त अरबों के मालिक रहे चोंग को एक छोटे कमरे में सीलिंग फैन व एक पलंग के सहारे सजा काटते हुए तस्वीर भी उस वक्त खूब छपी थी। बाद में वहां के राष्ट्रपति ने उन्हें क्षमा याचना दी। फिर दो साल पहले उनकी मौत भी हो चुकी है। देबू की परियोजनाओं में देश की कई कंपनियों ने पैसे लगाये। बैंकों का कई हजार करोड़ कर्ज भी रह गया। देश के कई भागों में कम्पनी की जमीन नीलाम करने की प्रक्रिया भी या तो पूरी हो गई है या फिर चल रही है।
उपरोक्त परिस्थितियों के बीच बीते 23 साल में रिस्दी गांव में पॉवर प्लांट की एक ईंट भी नहीं रखी जा सकी। लोगों ने अपनी जमीन पर फिर काबिज होना, खेती करना मकान बनाना शुरू किया। अब वह जमीन के पुराने मालिकों से फिर आबाद हो गई है। पर, दो दिनों से यहां बड़ी हलचल हो रही है। राजस्व अधिकारियों ने अचानक यहां पहुंचकर जमीन की नाप-जोख शुरू कर दी है। ग्रामीण घबराये हुए हैं कहीं उन्हें बेदखल तो नहीं किया जा रहा है? राजस्व अधिकारी कह रहे हैं कि देबू की जमीन के अलावा कुछ सरकारी जमीन भी यहां है शिकायत मिली है कि देबू की आड़ में उस पर भी कब्जा कर लिया गया है। सच यही है या फिर किसी नीलामी की तैयारी हो रही है?
रिस्दी के ग्रामीणों का कहना है कि बस्तर में पांच साल तक प्लांट शुरू नहीं करने वालों की जमीन भूपेश सरकार ने वापस दिलाई है। यह चुनावी वादा भी था। फिर कोरबा जिले में सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती? वैसे भी कंपनी ने पक्की नौकरी, पक्का मकान और मुआवजा देने का अपना वादा पूरा नहीं किया।
कोरोना को भगाने अस्पताल में हवन
अपने धर्मपरायण देश में यज्ञ हवन से लाभ के वैज्ञानिक तर्क दिये जाते हैं। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय यज्ञ दिवस पर कई आध्यात्मिक, धार्मिक संगठनों ने यज्ञ कुंड बनाकर हवन का आयोजन किया। लॉकडाउन के दौरान, दावा है इससे कोरोना वायरस को भगाने में मदद मिलेगी। कुछ लोगों ने इसे यज्ञोपैथी नाम भी दिया है। यह नया नाम लग रहा है। हवन के धुएं से प्रकृति और वातावरण को किसी तरह का लाभ होता है या नहीं, इस पर तो शोध करने वाले लोग ही बता सकेंगे, लेकिन किसी डॉक्टर को तो अपनी उसी पद्धति पर विश्वास रखना चाहिये जिस पर उनकी पढ़ाई हुई है। पर कांकेर जिले के एक ग्राम पंचायत में सरकारी आयुर्वेदिक डॉक्टर की अगुवाई में अस्पताल के भीतर ही हवन का आयोजन किया गया। गांव के लोग इसमें कथित रूप से सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए शामिल हुए। बाद में डॉक्टर ने इसका ‘महत्व’ भी मीडिया को बताया। लोगों में कोरोना का भय व्याप्त है। किसी भी चिकित्सा पद्धति में अब तक इसका रामबाण इलाज नहीं आने के कारण लोगों का विश्वास वैसे भी डगमगा रहा है। ऐसी स्थिति में क्या यह यह डॉक्टर ठीक कर रहे हैं, कह रहे हैं?
गांवों में डॉक्टरों की कमी का हल
कोरोना संक्रमण के दौर में चिकित्सा सेवा के लिए मानव संसाधन की बड़ी कमी महसूस की जा रही है। इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर टीकाकरण की गति भी धीमी है। शिक्षक, पंचायत प्रतिनिधि, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, मितानिन के ऊपर नीम हकीम और झाड़-फूंक करने वाले भारी पड़ रहे हैं। सर्दी बुखार के मरीजों को वे अपने हिसाब से दवाएं दे रहे हैं। इससे ग्रामीणों की जान जोखिम में तो है ही, महामारी के सही सही आंकड़े भी सामने नहीं आ पा रहे हैं।
राज्य के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने ग्रामीण क्षेत्रों की आम बीमारियों को ध्यान में रखते हुए सहायक चिकित्सकों का एक तीन साल का पाठ्यक्रम शुरू किया था। इसका एक बैच निकला ही था कि डॉक्टरों का संगठन इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चला गया। इस पर रोक लग गई। तब छत्तीसगढ़ में इस पाठ्यक्रम के लिए खोले गए कॉलेज भी बंद हो गये। उसके बाद केंद्र सरकार ने एक नया मिलता-जुलता पाठ्यक्रम बैचलर ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन तैयार किया। इस डिग्री के धारक गांव में दवाएं देने, इंजेक्शन लगाने और थोड़ी बहुत चीर-फाड़ कर सकत हैं, भले ही उन्हें डॉक्टर नहीं कहा जायेगा।
यह कोर्स छत्तीसगढ़ में दुबारा न तो भाजपा के समय शुरू हो पाया न ही अब। एक वर्ग का मानना है कि गांवों की आम बीमारियों को ठीक करने में ये बैचलर डिग्री होल्डर बहुत काम आ सकते हैं। इससे गांवों में एमबीबीएस डॉक्टरों की कमी काफी हद तक दूर की जा सकेगी। जटिल बीमारियों में तो मरीज को शहर या सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र भेजा ही जायेगा। इसका लाभ यह भी होगा कि लोग झोलाछाप डॉक्टरों या दवा दुकानदारों के सुझाए हुए दवाओं से बचेंगे। भविष्य के टीकाकरण जैसे अभियानों में ग्रेजुएट की मदद मिलेगी। अब तक के एकमात्र बैच में निकले सहायक चिकित्सक अलग-अलग जिलों के गांवों में रहकर काम कर भी रहे हैं। यह विषय इसलिये फिर चर्चा में है कि महामारी के संदर्भ में विधायक डॉ. रेणु जोगी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को पत्र लिखकरर यह पाठ्यक्रम शुरू करने की मांग की है। हो सकता है कि इस पाठ्यक्रम में कुछ कमियां हों, जैसा कि एमबीबीएस डॉक्टर्स बताते हैं, पर मौजूदा परिस्थितियों ऐसी है कि इस विषय पर विचार तो करना ही चाहिये।
इतना आसान इस बार 10वीं पास होना..
पिछले साल खबर आई थी कि हैदराबाद के एक शख्स नूरूद्दीन ने 33 साल बाद दसवीं की परीक्षा पास कर ली, महामारी की मेहरबानी से। अपने यहां भी घरों से परीक्षा दिलाने की छूट मिलने की वजह से बहुत से लोग ग्रेजुएट पोस्ट ग्रेजुएट यहां तक कि इंजीनियरिंग की परीक्षाएं बीते साल से पास हो रहे हैं। सीबीएसई और कई दूसरे राज्यों ने दसवीं की परीक्षा रद्द कर दी है। सीबीएसई से बारहवीं की परीक्षा रद्द करने की मांग की जा रही है। जून पहले हफ्ते में इस पर फैसला लेने की बात सीबीएसई मैनेजमेंट की ओर से कही गई है। इधर छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने भी 10वीं बोर्ड की परीक्षा रद्द कर दी है। नियमित छात्रों को असाइनमेंट दिए गए थे, जो उन्हें घर से ही पूरा करना था। इसी के आधार पर उनका मार्कशीट तैयार होगा। लेकिन कोरोना में व्यवस्था ऐसी गड़बड़ाई कि माध्यमिक शिक्षा मंडल स्वाध्यायी छात्रों को असाइनमेंट देना ही भूल गया। अब जब असाइनमेंट ही नहीं दिया गया तो उनको किस आधार पर नंबर दिये जायें? इसे देखते हुए माशिमं ने सबको औसत नंबर देने का निर्णय लिया है। यानि सभी स्वाध्यायी छात्र इस बार भी पास हो जायेंगे। फर्क इतना है कि पिछली बार मूल्यांकन के लिये कुछ मापदंड उपलब्ध थे, इस बार वह नहीं है।
महामारी ने हर किसी को भयभीत कर रखा है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी घरों में घुसे होने, स्कूल की गतिविधियों में भाग नहीं ले पाने के कारण बुरा असर पड़ा है। ऐसे में अगर परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिये कोई जटिल प्रक्रिया अपनाई गई तो उनके लिये ही नहीं अभिभावकों के लिये भी परिस्थितियां कठिन हो जायेंगीं। देखने की बात यही होगी कि उच्च शिक्षा में प्रवेश और रोजगार में चयन के लिये इस दौर में उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को कैसा अवसर मिल पाता है।
अक्षय तृतीया की गिनी-चुनी शादियां
छत्तीसगढ़ से कई प्रदेशों में अक्षय तृतीया के दिन शादियों की परंपरा है। इसके आगे जाकर सच्चाई स्वीकार करें तो बड़ी संख्या में बाल विवाह हो जाते हैं। वैसे, बीते कुछ सालों से इसे लेकर जागरूकता आई है। खासकर गांवों में महिला स्व सहायता समूहों के बनने और पंचायतों की व्यवस्था में महिलाओं को 50 प्रतिशत भागीदारी दिये जाने के बाद। बीते साल भी कोरोना का कहर था पर थोड़ी छूट थी। 20-25 लोगों की मौजूदगी में सामाजिक भवनों, होटलों में शादी कराई जा रही थी। इस बार पाबंदी कड़ी है। घर पर ही शादी हो सकती है, 10 से ज्यादा लोगों की मौजूदगी नहीं होगी और सबका कोरोना टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव भी होनी चाहिये। अक्षय तृतीया के दिन इसीलिये महिला बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग की टीम के साथ-साथ पुलिस भी मुस्तैद थी। गांवों में ढूंढे गये कि कहीं नियम टूट तो नहीं रहे हैं। एक जगह पर पुलिस पहुंची तो शादी सोशल डिस्टेंस के साथ घर के आंगन में होती मिली। शादी करने वाले नाबालिग नहीं थे। पुलिस का कहना है कि तस्वीर में तो भीड़ नहीं दिख रही है पर बहुत लोग बुलाये गये थे। वे आकर चले गये। इसलिये महामारी एक्ट के उल्लंघन का केस तो बना ही दिया गया है।
कोरोना ड्यूटी में कृषि वैज्ञानिक
शिक्षक संगठनों का कहना है कि बिना वैक्सीनेशन, बिना किट उनकी ड्यूटी कोरोना में लगाई गई इसके चलते उनके करीब 400 साथियों की अब तक मौत हो चुकी है। इसकी सूची भी पदाधिकारियों ने जारी की है। शासन ने उनकी मांगों की सुनवाई नहीं की है। वे मुआवजा और अनुकम्पा नियुक्ति, अपने परिवार सहित सभी के वैक्सीनेशन की मांग कर रहे हैं। अब जशपुर में हुई एक मौत का विवाद तूल पकड़ रहा है। रायगढ़ के कृषि महाविद्यालय के एक वैज्ञानिक डॉ. सुशांत पैकरा की कोरोना से मौत हो गई। उनकी ड्यूटी जिला प्रशासन ने वायरोलॉजी लैब में लगा दी। प्राध्यापकों ने विरोध भी किया कि एग्रिकल्चर के डॉक्टर का वायरोलॉजी लैब में क्या काम? न तो वे पैथॉलॉजी के डॉक्टर हैं न ही लैब की मशीनों के तकनीकी जानकार। पर राज्य सरकार के आदेश का हवाला देते हुए उन्हें वहां से नहीं हटाया गया। वहीं वे संक्रमित हुए और इलाज के दौरान मौत हुई। डॉ. पैकरा जशपुर के आसपास के ही रहने वाले हैं। समाज के लोगों में गुस्सा है कि जिले के अधिकारियों की हठधर्मिता के कारण जान चली गई। अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदकुमार साय ने तो वैज्ञानिक की वायरोलॉजी लैब में ड्यूटी लगाने वाले अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग भी की है।
क्या ऐसा नहीं होना चाहिये कि जो लोग स्वास्थ्य विभाग के कामकाज के जानकार नहीं है उन्हें ऐसी ड्यूटी देने से बचा जाये। ड्यूटी भी दी जाये तो पहले थोड़ा प्रशिक्षित करें और कोरोना से उनकी सुरक्षा के जरूरी बंदोबस्त किये जायें।
कोरोना भगाने के लिये पूजा-पाठ
वाट्स अप पर मिले इस न्यौते में लोगों को काम पर निकलने से, खेतों में जाने से रोका जा रहा है। इसलिये नहीं कि एक जगह इक_ा होने से कोरोना फैलने का भय है। रोका जा रहा है ताकि गांव के लोग पूजा-पाठ में शामिल हो सकें। यह संदेश तब फैलाया जा रहा है, जब लॉकडाउन लगा हुआ है और किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन पर रोक लगी हुई है। थाने से यह गांव ज्यादा दूर नहीं है पर पुलिस का ही इंतजार क्यों किया जाये? क्या गांव में कुछ ऐसे समझदार लोग नहीं हैं जो इस तरह के आयोजन का विरोध करें। कोरोना महामारी का फैलाव इन दिनों गांवों में तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में पुलिस या प्रशासन का दबाव नहीं बल्कि लोगों की अपनी जागरूकता और संयम ही मायने रखता है। किसी भी बहाने से लोग इक_े हो रहे हैं तो उन्हें रोकने के लिये भी गांव के ही समझदार लोग आगे आयेंगे तब बात बनेगी।
नया रायपुर पर फिर ग्रहण
बीस साल हो गये राज्य को बने और इससे कुछ कम साल हुए नया रायपुर को तैयार करते हुए। हजारों करोड़ के निवेश के बावजूद अब तक यह प्रदेश की नई राजधानी का शक्ल नहीं ले सका है। अतीत में जमीनों के आबंटन में नियमों से परे जाकर आबंटन, पुराने रायपुर के बजट के हस्तांतरण के बावजूद अब भी आम लोगों की पहुंच से यह दूर ही है। नई सरकार बनने के बाद कुछ नये काम यहां शुरू हुए थे। सीएम हाउस, स्पीकर हाउस, नया विधानसभा भवन आदि कई परियोजनाओं पर या तो काम हो रहा है या फिर शुरू होने वाला है। पर, कोविड महामारी में संसाधन जुटाने के लिये एक हजार करोड़ की इन परियोजनाओं को रोकने का आदेश दे दिया गया है। यह फैसला हालांकि विपक्ष को यह जवाब देने के लिये काफी है जो सवाल कर रहा था कि जब विधानसभा का नया भवन बन रहा हो तो छत्तीसगढ़ के नेता सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का विरोध क्यों कर रहे हैं। चलिये कांग्रेस सरकार ने जवाब तो दे दिया, पर एक सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर नया रायपुर, अटल नगर आबाद कब होगा। क्या वर्तमान पीढ़ी उसे एक व्यस्त नई राजधानी के रूप में देख पायेगी?
कोरोनाकाल में अदालती रिपोर्टिंग
छत्तीसगढ सहित देश भर की अदालतों में रिपोर्टिंग के लिए या तो सुनवाई के दौरान पत्रकारों को खुद वहां मौजूद रहना पड़ता है या फिर केस से जुड़े वकीलों पर निर्भर। सूचनाएं पहले पहुंचाने की होड़ में कई बार आधी-अधूरी जानकारी लोगों तक पहुंचा दी जाती है, गलत रिपोर्टिंग भी हो जाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि सूचना देने वाले वकील की निजी रूचि की वजह से तथ्य बदल जाते हैं। चूंकि हाईकोर्ट के निर्देश और फैसले बहुत से आगे के मामलों के लिए नजीर बन सकते हैं इस वजह से मीडिया की कोशिश होती है कि खबर जल्दी तो पहुंचे पर तथ्यात्मक भी हो। फूलप्रुफ खबर तभी दी जा सकती है, जब ऑर्डर शीट हाथ में आ जाए। अब तकनीक के विस्तार के चलते कुछ घंटों में यह हासिल हो जाता है। पहले इसके मिलने में दो-तीन दिन लग जाते थे। तब गलत रिपोर्टिंग करने के चलते हाईकोर्ट में रिपोर्टरों को जजों ने कई बार बुलाकर अपने अंदाज में समझाया और आगाह भी किया है। कई बार यह समझ में नहीं आता कि ऐसा फैसला जज ने क्यों लिख दिया है? जब तक बहस में आई बातों का सार नहीं मिलेगा, पाठकों तक भी पूरी जानकारी नहीं पहुंच पाती।
लंबे समय से पत्रकार मांग करते आ रहे हैं कि महत्वपूर्ण फैसलों की प्रेस रिलीज अदालतों की ओर से जारी की जाये। इस बात को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में भी पूर्व में पत्रकारों ने उठाया था। मगर व्यवहार में यह संभव इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि जब नियमित हाईकोर्ट में हर दिन 500 या उससे अधिक फैसले हो जाते हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट से खबर आई है। प्रधान न्यायाधीश ने मीडिया कर्मियों के लिए वर्चुअल सुनवाई का लिंक देने की सुविधा शुरू की है अब मीडिया के लिए सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई को घर से देख सकेंगे। सीजेआई अदालतों की कार्रवाई का लाइव प्रसारण करने के पक्ष में भी हैं। उनका कहना है कि कोर्ट की कार्रवाई और आदेश देश के लोगों को बड़े हद तक प्रभावित करता है। मीडिया को सूचना हासिल करने के लिये वकील पर निर्भर भी नहीं होना चाहिये। खबरों में यह बात भी आई है कि सीजेआई कुछ समय तक पत्रकारिता कर चुके हैं। शायद इसीलिये यह शुरूआत हो सकी है। उम्मीद करनी चाहिए कि जो सिलसिला सुप्रीम कोर्ट ने शुरू किया है वह धीरे से नीचे की अदालतों तक भी पहुंचेगा।
अंत्येष्टि में जाने के लिये तैयार रहें..
विभिन्न जिलों में लॉकडाउन को लेकर जो सरकारी आदेश जारी होते हैं उसे वैसे पढऩे की जरूरत नहीं पड़ती है। मोटी-मोटी बातें तो पहले से ही फ्लैश हो जाती हैं। पर अगर आप फुर्सत में हैं और पूरा आदेश पढऩे लग जाएं तो सिर घूम सकता है और जिन बाबुओं ने आदेश बनाया उनको दाद दे सकते हैं। अब कोरबा जिले से जारी इसी आदेश को देखिए। इसमें लिखा है कि अंत्येष्टि के कार्यक्रम में 10 से अधिक लोगों की उपस्थिति प्रतिबंधित रहेगी। और, इसमें शामिल होने वाले व्यक्ति को दो दिन पहले का आरटीपीसीआर कोरोनावायरस टेस्ट निगेटिव सर्टिफिकेट प्राप्त करना होगा।
विवाह समारोह तो चलिए दो-चार दिन पहले मालूम हो सकता है, लेकिन किसकी अंत्येष्टि में जाना है इस आदेश के मुताबिक वह भी आपको 2 दिन पहले मालूम होना चाहिये। दूसरा रास्ता यह है कि अंत्येष्टि में आप जाने के लिए आमादा ही हैं, तो अंतिम यात्रा दो दिन बाद निकालनी होगी।
आपदा में एक ऐसा भी अवसर
शराब दुकान में होने वाली बिक्री की रकम जमा करने की जिम्मेदारी आबकारी विभाग ने प्राइवेट एजेंसियों को दे रखी है। एजेंसियां सुपरवाइजर के माध्यम से बैंकों में राशि जमा कराती हैं, शराब बिकती रहती है, पैसे आते रहते हैं, बैंकों में जमा होता रहता है। बीच-बीच में हिसाब हो जाता है। सब रूटीन में चलता रहता है। लेकिन, अभी लॉकडाउन में जब दुकानें बंद हो गई और ऑनलाइन बिक्री की तैयारी शुरू हुई तो खैरागढ़ की दुकान से घपला निकल गया। हिसाब लगाया गया तो पता चला कि बैंक में 32 लाख रूपये कम जमा हुए हैं। कंपनी के एक कर्मचारी ने रुपये तो दुकान से उठा लिए, पर उसे बैंक में जमा करने के बजाए ब्याज पर लोगों को दे दिया। अब वह रकम ब्याज में घूम रही है। रकम लौटाने के नाम पर उसने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। अलबत्ता ब्याज पर रकम चढ़ाने वाले कर्मचारी के खिलाफ खैरागढ़ की पुलिस ने एफ आई आर दर्ज कर ली है। आबकारी विभाग निश्चिन्त है क्योंकि उसे पैसा तो एजेंसी से लेना है। आपस में निपटें कर्मचारी और एजेंसी वाले।
लॉकडाउन की खरीदारी
किराना दुकानों को खोलने के लिए इजाजत लॉकडाउन में सिर्फ इतने के लिए है कि दुकानदार फोन से आर्डर लेकर होम डिलीवरी का सामान बाहर निकाल सकें। लेकिन यह व्यवहार में अमल में लाया जा सकता है या नहीं, इस सिपाही की तस्वीर को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। हो सकता है उसे घर के लिये जरूरी सामान लेकर जाना हो। राशन खत्म हो गया हो। हो सकता है कुछ तलब ही लग गई हो। इतनी छूट देने में हर्ज क्या है। आखिर, दुकान में भीड़ नहीं है, मास्क भी पहन रखा है। सब ऐसे अनुशासित खरीदी करें तो लॉकडाउन की जरूरत ही क्यों पड़े? (फोटो-सुनील शर्मा/फेसबुक)
खाद के बढ़े दाम की भरपाई के लिये
महामारी की तकलीफ भुलाने के लिये आरएसएस-भाजपा ने सकारात्मक कैम्पेन चलाने की योजना बनाई है। इसका एक तरीका यह भी है कि कोई दूसरी बड़ा बोझ आपके सिर पर आ जाये। पेट्रोल के दाम में जिस तरह एकाएक दुबारा तेजी आई है वह आपको कोरोना से हटकर सोचने पर मजबूर कर सकता है। कृषि पर निर्भर छत्तीसगढ़ में किसान खाद के दाम डेढ़ गुना बढ़ जाने से ज्यादा चिंतित हो गये हैं। इंडियन फार्मर फर्टिलाइजर कारपोरेशन इफ्को ने उर्वरक और खाद के दाम 58 फीसदी बढ़ा दिये। जो डीएपी 12 सौ में एक बैग मिल जाता था वह 19 सौ रुपये पहुंच गया। इसी तरह से कृभको, एनसीएफएल, जुआरी, प्रदीप फास्फेट्स, चंबल फर्टिलाइजर, आदि सभी पॉपुलर फर्टिलाइजर कंपनियों ने खाद के दाम बेतहाशा बढ़ा दिये हैं। लॉकडाउन में फंसे हैं इसलिये आप सडक़ पर उतर नहीं सकते, हालांकि पहले के अनुभवों से कहा जा सकता है कि उतरने से भी कुछ फर्क नहीं पडऩे वाला है। अब किसान मांग कर रहे हैं कि दिल्ली सरकार कम से कम किसान सम्मान निधि की रकम उनके खाते में डाल दे, खाद और डीजल की बढ़ी कीमत की थोड़ी भरपाई तो हो जायेगी। ऐसा नहीं होना चाहिये कि खाद, डीजल से वसूली आज हो, सम्मान निधि के नाम पर रकम कल लौटाई जाये।
संचार विभाग की सम्भावना
वैसे तो कोरोना संक्रमण की वजह से निगम-मंडलों में नियुक्तियों पर कोई बात नहीं कर रहा है। फिर भी कांग्रेस हल्कों में यह चर्चा है कि संचार विभाग से शायद ही अब किसी को लालबत्ती मिले। वर्तमान में संचार विभाग से शैलेष नितिन त्रिवेदी, राजेन्द्र तिवारी, किरणमयी नायक, सुरेन्द्र शर्मा, महेन्द्र छाबड़ा लालबत्तीधारी हैं।
संचार विभाग के सदस्य रमेश वल्र्यानी, सुशील आनंद शुक्ला, आर पी सिंह, और घनश्याम राजू तिवारी सहित कई और नेता निगम-मंडल में पद की आस में हैं। इन सभी को अगली सूची का इंतजार है। मगर इन सबकी इच्छा पूरी हो पाएगी, इसमें कुछ लोग संदेह जता रहे हैं। संदेह की वजह यह है कि पिछले दिनों सीएम भूपेश बघेल, संचार विभाग के सदस्यों के साथ वर्चुअल बैठक की, इसमें उन्होंने कोरोना को लेकर हमलावर हो रही भाजपा का पुख्ता जवाब देने की सलाह दी।
चर्चा के दौरान कांग्रेस प्रवक्ताओं ने कुछ दिक्कतें भी गिना दी, और यह भी कहा कि उन्हें सरकार से समय पर आंकड़े नहीं मिल पा रहे हैं। एक ने तो आगे बढक़र कोरोना प्रबंधन में सरकारी प्रयासों की सराहना की, और सीएम से क्षमायाचना कर विपक्ष का पुरजोर तरीके से जवाब देने का भरोसा दिलाया। सब कुछ बढिय़ा चल रहा था कि एक ने मौका पाकर प्रवक्ताओं के लिए लैपटॉप की मांग कर दी, ताकि कामकाज बेहतर ढंग से हो सके।
इस पर सीएम ने भी तुरंत हामी भर दी, और शैलेष को सभी प्रवक्ताओं को लैपटॉप उपलब्ध कराने के लिए कह दिया। अब लालबत्ती की लाइन में लगे प्रवक्ताओं को संदेह है कि लैपटॉप की मांग पूरी होने के बाद लालबत्ती शायद ही मिलेगी। बाकी लोग संचार विभाग के सदस्य को कोस रहे हैं, जिसने लैपटॉप की मांग की थी। नाराज सदस्यों का कहना था कि निगम-मंडल पद मिल जाता, तो दूसरे को लैपटॉप गिफ्ट कर सकते थे। अब लैपटॉप मांग पूरी हो गई है, तो पद की गुंजाइश कम हो जाती है।
वन ग्रामों तक पहुंचा कोरोना
कोरोना संक्रण अब वन ग्रामों तक पहुंच गया है। बारनवापारा अभ्यारण्य के कर्मचारी और ग्रामवासियों समेत कुल 70 लोगों के पॉजिटिव होने की खबर है। यही नहीं, सीतानदी अभ्यारण्य के गांव देवपुर, जहां 20-25 घर हैं। गांव में रहने वाला हरेक व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव है।
दंतेवाड़ा, और सुकमा के नक्सल प्रभावित इलाकों में बड़े पैमाने पर नक्सली भी पॉजिटिव हो गए हैं। इनमें से कई की मृत्यु भी हो चुकी है। कोरोना से नक्सल पस्त हो रहे हैं। सुरक्षाबलों के लिए राहत की खबर तो है, लेकिन गांव वाले भी संक्रमित हो रहे हैं। यह चिंता का विषय बना हुआ है।
एकदम से बदले सुर
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के संचार विभाग में आपसी खींचतान किसी से छिपी नहीं है। पार्टी के कई नेता एक व्यक्ति एक पद का राग अलाप रहे हैं। हालांकि वरिष्ठ नेताओं पर इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है, फिर कांग्रेस कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती को मूल मंत्र मानकर प्रयास कर रहे हैं। संचार विभाग के कुछ सदस्य अच्छे-बुरे दोनों वक्त में कोशिश करने से पीछे नहीं हटते। अब देखिए जब संचार विभाग के एक वरिष्ठ सदस्य और बड़े निगम के पदाधिकारी कोरोना से संक्रमित हुए तो दूसरे एक सदस्य ने उनकी तारीफों के पुल बांधना शुरु कर दिया। इतना ही नहीं लंबा-चौड़ा प्रेस नोट तक जारी कर दिया कि संक्रमित होने के बावजूद वे दो-दो लड़ाई एक साथ लड़ रहे हैं। कोरोना के साथ-साथ केन्द्र सरकार और राज्य के विपक्षी नेताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। जबकि यह बात जगजाहिर है कि इन दोनों नेताओं की आपस में पटती नहीं। दोनों एक-दूसरे की शिकायतें भी करते रहते हैं। ऐसे में इस जूनियर सदस्य ने मोर्चा खोलने का नया तरीका निकाल लिया है। जिसमें वे वरिष्ठ सदस्य की खूब तारीफ करते हैं और बकायदा मीडिया को बयान भी जारी करते हैं। ऐसा करने के पीछे उनकी रणनीति है कि कोई कह नहीं सकेगा कि वरिष्ठ सदस्य से मतभेद हैं। कांग्रेस के संचार विभाग में यह रणनीति कितनी काम आती है यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन कांग्रेसी आपस में ही काना-फूसी करते हैं कि जूनियर सदस्य के सुर एकदम से बदल गए हैं।
हम तो उसमें मगन जिसमें लगी है लगन
छत्तीसगढ़ में कोराना के बाद शराब दूसरा हॉट टॉपिक बना हुआ है। शराब की ऑनलाइन बिक्री शुरु होने के बाद विपक्ष को राज्य सरकार को घेरने का मौका मिल गया। शराब के मुद्दे पर विपक्षी दल इस कारण भी सरकार के खिलाफ मुखर रहते है, क्योंकि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में शराबबंदी का वादा किया था। ऐसे में लॉकडाउन में शराब बिक्री गाहे-बगाहे सरकार के खिलाफ आक्रमक हथियार के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा नहीं है कि शराब केवल छत्तीसगढ़ में ही बिक रही है। दूसरे राज्यों में भी बिक्री शुरु हो गई है। कई राज्यों ने बकायदा दुकानें खोल दी गई है, लेकिन वहां विपक्ष के लिए उतना बड़ा मुद्दा नहीं हो पाता, जितना बड़ा यहां है। जबकि हर बार यहां ऑनलाइन बिक्री से शराब की बिक्री होती है, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो। यहां तक दूसरे राज्यों में शराब दुकानों की भीड़ की तस्वीरें देखने को मिलती है, पर वहां पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं होने के आरोप लगते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं ने दूसरे और खासतौर पर बीजेपी शासित राज्यों की शराब दुकानों में लगने वाली भीड़ को विपक्ष को जवाब देने के लिए हथियार बनाने का फैसला लिया है। इसी कड़ी में राज्य कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश में शराब दुकानों में भीड़ को सोशल मीडिया पर साझा कर राज्य और केन्द्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कुल मिलाकर मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप के लिए दोनों पार्टियों के पास पर्याप्त दलीलें है। यह भी साफ दिखाई पड़ रहा है कि फिलहाल राज्य में शराबबंदी के कोई आसार नहीं है, क्योंकि शराब को लेकर सरकारों के मोह के बारे में किसी से कुछ छिपा नहीं है। राजनीति से जुड़े कुछ लोग तो वो दौर को भी याद करते हैं, जब पिछले विधानसभा चुनाव के समय रमन सरकार ने शराबबंदी की ओर कदम बढ़ाने की कोशिश की थी और चुनाव आते-आते शराबबंदी करने का बड़ा फैसला लेने की तैयारी में थी, लेकिन लॉबी-ब्यूरोक्रेसी के दबाव में यह फैसला टल गया। ऐसे में यह बात में समझ लेनी चाहिए कि चुनावी वायदे सरकार बनने और बनाने तक ज्यादा जोर-शोर से उठते हैं, उसके बाद उस पर फैसला इतना आसान नहीं होता। खैर, इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच उन मदिरा प्रेमियों को तो राहत मिल गई जो इसके इंतजार में बैठे थे। उन्हें सियासी दांव-पेंच से कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि उनकी चिंता उस समय बढ़ गई थी, जब साइट क्रैश होने की वजह से ऑर्डर नहीं कर पा रहे थे। इसलिए तो कहा जाता है कि कोई काहु में मगन, हम तो उसमें मगन जिसमें लगी है लगन।
आबकारी पोर्टल ने जवाब क्यों दे दिया?
जिस जोर शोर से शराब की ऑनलाइन बुकिंग शुरू हुई और बड़े पैमाने पर आर्डर किए गए उससे स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन का पोर्टल ही बैठ गया। शराब के शौकीनों की बड़ी बदनामी हुई। इतने उतावले थे कि ऑर्डर पर ऑर्डर करते गये, सब्र नहीं था, थोड़ा रुक जाते। पर इस ट्रैफिक जाम में बेचारे पीने वालों की अकेले गलती नहीं थी। खबर आई है कि आबकारी के कर्मचारियों, सेल्स मैन, सुपरवाइजर आदि ने भी मोर्चा संभाल लिया था। उन्होंने मीडियम रेंज की पापुलर ब्रांड, जिसकी ज्यादा मांग होती है, फटाफट उसकी बुकिंग कर डाली। अलग-अलग नामों और दुकानों से। एक बार में पांच लीटर तक की सप्लाई हो सकती है इसलिये अच्छा खासा माल इक_ा हो गया। और जब दोपहर बाद पोर्टल में स्टाक खत्म बताया जाने लगा तब उनका अपना खेल शुरू हुआ। सीधे दुकान के आसपास ज्यादा कीमत पर हाथों-हाथ शराब बेची गई। बता रहे हैं कि कमाई का यह सिलसिला कम से कम एक हफ्ते तक तो बंद नहीं होने वाला है।
आप चाहें तो उन्हें लताड़ सकते हैं पर जब जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे लोगों के लिये रेमडेसिविर और ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी करने से लोग बाज नहीं आ रहे हों तो सोचिये, इन्होंने क्या उनसे ज्यादा बुरा किया?
कोरोना की चपेट में नक्सली
पालनार के जंगलों में बस्तर पुलिस को एक मुठभेड़ के दौरान मिली एक चि_ी से पता चलता है कि कुछ नक्सली कैंपों में कोरोना फैला हुआ है। कुछ की मौत हो गई और दर्जनों संक्रमित हैं। इसके चलते बहुत से लोग दस्ते को छोडक़र भी जा रहे हैं। पुलिस अधिकारियों ने ऑफर दिया है कि नक्सली हथियार डालकर सामने आयें। उन्हें डॉक्टर व चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जायेगी। मानवीय आधार पर पुलिस का प्रस्ताव तो ठीक है पर क्या नक्सली इसके लिये राजी होंगे? आमने-सामने मुठभेड़ के दौरान एक झटके में गोलियां खाकर ढेर होना एक बात है और महामारी की वेदना सहते हुए धीरे-धीरे मौत के मुंह में जाना अलग बात। पर सवाल यह है कि शहरों से, सीमाओं से परे सारे साधन, सुविधायें नक्सलियों तक पहुंच जाती हैं। क्या कोरोना से बचने की दवाईयां और मेडिकल उपकरण भी उन तक भी पहुंच पाएंगे? ऐसा लगता है कि पुलिस और सरकार से मदद लेने की बात तो वे जल्दी नहीं सोचेंगे।
झोलाछाप डॉक्टरों की अहमियत...
मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र से आने वाले विधायक विपिन वानखेड़े ने वहां के कलेक्टर को लिखी चि_ी में कहा है कि झोलाछाप डॉक्टरों को कोरोना बीमारी के इलाज के लिए प्रशिक्षण दिया जाए। तर्क दिया है कि गांवों में कोरोना के इलाज को लेकर काफी दहशत है। डर के कारण ग्रामीण जिला अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं। झोलाछाप डॉक्टरों ही ग्रामीओं को भरोसा है। इनको कोरोना के इलाज की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। इनके साथ पटवारी, पंचायत सचिव या दूसरे कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दें।
इधर अपने छत्तीसगढ़ में भी झोलाछाप डॉक्टरों की अहमियत मध्यप्रदेश से कम नहीं है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो लोग टीका लगवाने से मना कर रहे हैं वे कह रहे हैं कि कोरोना पकड़ेगा तो झोलाछाप डॉक्टर से दवा, इंजेक्शन ले लेंगे। टीका लगवाने के लिये ग्रामीणों को तैयार करना अफसरों के लिये मुश्किल होता जा रहा है। अफवाहें गांवों में फैलती जा रही है। कई गांवों में लोग न पुलिस की सुन रहे, न तहसीलदार, न ही कलेक्टर की। इस स्थिति से निपटने के लिये मालवा के विधायक के सुझाव में क्या अपने यहां भी कोई संभावना दिख रही है?
जाकी रही भावना जैसी !
सोशल मीडिया लोगों को किस तरह एक दूसरे के करीब लाता है इसको देखना हो तो भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच बने हुए बहुत से फेसबुक ग्रुप देखे जा सकते हैं। जिन लोगों की दिलचस्पी साझा विरासत में हैं, दोनों देशों के रिश्ते ठीक करने में हैं, कला और संस्कृति की बातों को लेने देने में हैं, ऐसे बहुत से लोग ऐसे ग्रुप के सदस्य हैं। अब कल ही ऐसे एक फेसबुक इंडिया-पाकिस्तान हेरीटेज क्लब में हिंदुस्तान के जगमोहन गुजराल ने अपने दादा का एक विजिटिंग कार्ड पोस्ट किया जिसमें उनके नाम के साथ तहसील और जिले का जिक्र था।
उन्होंने ग्रुप के लोगों से पूछा कि क्या कोई बता सकते हैं कि यह पता कहां है।
कुछ घंटों के भीतर ही पाकिस्तान के अशवाक अहमद ने लिखा- हां मैं इस पते को जानता हूं, यह मेरे पुरखों का गांव है और इस जगह को अब साहीवाल कहा जाता है। उसने आगे लिखा- आप यहां आने का प्लान बनाइए और सरदारजी, मैं आपका मेजबान रहूंगा।
अब कहां कोई हिंदुस्तानी अपने दादा के गांव का पता पूछ रहा है और कहां कुछ घंटों के भीतर ही उसे वहां एक मेजबान ही मिल जा रहा है, सोशल मीडिया आज पूरे हिंदुस्तान में कहीं किसी को ऑक्सीजन दिला रहा है, कहीं दवाइयां दिला रहा है, कहीं एंबुलेंस और कहीं अंतिम संस्कार में मदद। सोशल मीडिया का जो उसका बेहतर इस्तेमाल जानते हैं, उन्हें उसके बेहतर नतीजे भी मिलते हैं। जाकी रही भावना जैसी, फेसबुक दोस्ती मिलें वैसी !
कोरोना और शादियां
इस अखबार में दो ही दिन पहले कोरोना के ऐसे खतरे के बीच शादियां ना करने की नसीहत दी गई थी, और कुछ वैसी ही नसीहत शादी, और बच्चे पैदा करने के खिलाफ पिछले बरस भी दी गई थी। परसों वह संपादकीय छपा, और अगले ही दिन छत्तीसगढ़ के सबसे नए जिले जीपीएम से खबर आई कि एक शादी में शामिल 70 लोगों में से 69 लोग कोरोनाग्रस्त निकले और दुल्हन के बाप को गिरफ्तार कर लिया गया।
लेकिन शादियों को लेकर हिंदुस्तान में किस कदर पाखंड चलता है इसकी मिसालें लोग अभी फेसबुक पर लिख रहे हैं। एक महिला गीता यथार्थ ने लिखा कि कैसे-कैसे मां-बाप के अस्पताल में गुजर जाने पर भी बच्चों को बताए बिना उनकी शादी करवा दी जाती है. उन्होंने ऐसी कुछ एक मिसालें भी दीं। और इसके नीचे लोगों ने अपने जो तजुर्बे लिखे वह भी भयानक है। एक ने लिखा मैंने ऐसी कई शादियां देखी हैं जिनमें एक तरफ कमरे में लाश रखी है और दूसरी तरफ शादी हो रही है, बारात विदा करने या लौटने के बाद अंतिम संस्कार किया गया है। एक और ने लिखा कि उनके रिश्तेदारी में एक पिता ने कोरोना के डर से अपनी चार बेटियों की शादी एक साथ ही तय कर दी, लेकिन शादी के 8 घंटे पहले ही उस पिता की मौत हो गई। फेरों के वक्त जब बेटियों ने पिता के बारे में पूछा तो उन्हें कहा गया कि वह लॉकडाउन में फंस गए हैं और विदा करने को मौसा तो है ना. इसके बाद उन्हें विदा कर दिया गया और वे आखिरी बार अपने पिता का चेहरा भी नहीं देख पाईं। शादी का खर्च हो चुका था और कहीं रिश्ता ना टूट जाए इसलिए आनन-फानन शादी की गई और फिर विदाई के बाद अंतिम संस्कार।
लंगोटी संभालने की चिंता
छत्तीसगढ़ में कोरोना के कारण सरकारी कामकाज और लोगों की दिनचर्या तो अस्त-व्यस्त हुई है। सरकार में पद पाने के इच्छुक दावेदार भी घोर निराशा के दौर से जूझ रहे हैं। सरकार को ढाई साल का कार्यकाल पूरा हो गया है ऐसे में उन्हें तो साल-डेढ़ साल का कार्यकाल मिलने के लाले पड़े हुए हैं, क्योंकि आखिरी साल में तो चुनाव आचार संहिता के कारण सुख-सुविधा छीन जाएगी। तो लोगों को लगता है कि भागते भूत की लंगोटी से ही काम चला लेंगे, लेकिन इस संक्रमण काल में अब तो अधिकांश दावेदारों ने लंगोटी की भी उम्मीद छोड़ दी है। कुछ तो इस जुगत में हैं कि अब तो पद के बजाए आने वाले चुनाव में टिकट का फार्मूला सही होगा। साल डेढ़ साल के लिए सरकारी पद मिलने से कुछ खास फायदा तो होगा नहीं, उलटे समर्थकों की उम्मीद जरुर बढ़ जाएगी और वे खरे नहीं उतर पाए तो लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। सरकार की एंटी इनकम्बेंसी का नुकसान हो सकता है। ऐसे लोगों ने पार्टी नेताओं को बोलना शुरु कर दिया है कि उन्हें लाल बत्ती का मोह नहीं है, वे संगठन को मजबूत करने के लिए काम करेंगे। अब देखिए उनका यह फार्मूला काम आता की नहीं। नहीं तो लंगोटी तो संभालना ही पड़ेगा।
अपना टाइम आएगा
छत्तीसगढ़ में कोरोना के कारण लोग अस्पताल और दवा दुकानों के चक्कर से खासे परेशान हो गए हैं। मध्यवर्गीय लोगों की बड़ी चिंता ये हैं कि बीमारी के कारण थोड़ी बहुत जमा पूंजी भी खत्म हो गई है और ऊपर से कामकाज बंद है तो आमदनी नहीं हो रही है, लेकिन मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों के लिए मुफीद समय चल रहा है। खैर, समय एक जैसा नहीं होता,इसलिए वे भी हिन्दी फिल्म गली ब्यॉय का गाना अपना टाइम आएगा...गाकर अपनी अपने आप को तसल्ली दे रहे हैं। अब उनको कब तक गाने से तसल्ली मिलेगी, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन एक कवि ने इस पर टिप्पणी कि ऐसा सोचने वालों को वो दिन याद करना चाहिए, जब वे अच्छे दिन आएंगे के लालच फंस गए थे। हालांकि कहा जाता है कि ये पब्लिक है जो सब जानती है, लेकिन यह बात भी उतनी ही सही कि पब्लिक को नए और लुभावनी बातों के बल पर उलझाया भी जा सकता है।
दारू सेंट्रल विस्टा की तरह नशा...
आमतौर पर राज्य के मुद्दों पर केंद्र के मंत्रियों का बयान कम ही आता है। मगर छत्तीसगढ़ सरकार का शराब की होम डिलीवरी का फैसला शायद देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कुछ अखबारों के साथ ट्वीट किया है कि ऐसे समय में जब हम लोगों की जिंदगी बचाने के लिए युद्ध लड़ रहे हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर, मेडिकल उपकरण, बेड, दवाइयों को प्राथमिकता दे रहे हैं, छत्तीसगढ़ सरकार घरों में शराब पहुंचाने को प्राथमिकता दे रही है।
जवाब में ढेर सारी प्रतिक्रियाएं आई हैं जिनमें पुरी की बातों से सहमति है। लेकिन कुछ ने पलटवार भी कर दिया है। जैसे नितेश गोयल ट्विटर हैंडल से 26 अप्रैल की आईएएनएस की खबर चस्पा की है जिसमें बताया गया है कि भाजपा शासित कर्नाटक में भी शराब की होम डिलीवरी को अनुमति दी गई है।
अंश नाम के एक हैंडल से कहा गया है कि कोई आश्चर्य की इस दौर में कोई शासन नहीं है। हर कोई ट्विटर मंत्री बनने की कोशिश में बहुत व्यस्त है। एक अन्य ट्विटर हैंडल विक्रमादित्य ने कहा है कि राजनीति में कौन अच्छा है कौन बुरा, पता नहीं चलता। कल ही जिन्होंने कहा था कि सेंट्रल विस्टा परियोजना और टीकाकरण को एक साथ जोडक़र नहीं देखा जा सकता वही आज लॉकडाउन और शराब वितरण को एक दूसरे से जोड़ रहे हैं।
विवेक शर्मा कहते हैं कि जब सेंट्रल विस्टा परियोजना अत्यावश्यक सेवा हो सकती है तो दारू क्यों नहीं? दोनों में नशा है जी! सेंट्रल विस्टा एक आदमी का नशा और दारू बहुतों का। एक और हैंडल मिस विनी ने लिखा है- थोड़ी और मेहनत कीजिए, कोई बड़ी बुराई ढूंढने में। काम तो आप नूं वैसे ही नहीं होना है।
अवैध भट्ठी किसके सिर पर फोड़ें?
गांव में कच्ची, महुआ और देसी दारु का कारोबार बंद हो जाएगा ऐसा दावा भाजपा के समय से किया जा रहा था जब ठेके सरकार ने अपने हाथ ले लिये। मगर कोचियों को इस पृथ्वी लोक से बाहर नहीं जाना था, नहीं गये। पहले उनसे काम अपना-अपना इलाका बांटकर शराब ठेकेदार कराते थे, अब आबकारी और पुलिस वाले। पुलिस और आबकारी विभाग के बीच कहीं-कहीं ट्यूनिंग बैठी रहती है तो कहीं-कहीं टकराव भी होता रहता है।
अब इस चैटिंग पर ही नजर डालिये। एक बंदा कोविड 19 की सूचनाओं के लिए बनाए गए एक व्हाट्सएप ग्रुप में थानेदार से शिकायत कर रहा है कि उसके इलाके में अवैध शराब और गांजा बिक रहा है। निवेदन किया कि दिन में कम से कम एक बार 112 वाली गाड़ी को घुमा दिया करें। जवाब शायद थानेदार दे रहे हैं कि यह ग्रुप इस बात के लिए नहीं बनाया गया है। आप अपनी शिकायत आबकारी वालों को करिए। हर बात का ठेका, ठीकरा पुलिस पर फोडऩा बंद करें। अब यह चैटिंग चूंकि पब्लिकली हो रही थी, थानेदार को लगा होगा कि कुछ गड़बड़ हो सकती है। तुरंत लिखते हैं कि ठीक है, मेरे पर्सनल नंबर पर उनका नाम डालो, कार्रवाई करता हूं।
इसमें संदेह नहीं कि अवैध शराब पकडऩे में पुलिस आबकारी विभाग से कहीं आगे है। अब इस वाट्सएप ग्रुप में आबकारी वालों और कोचियों के शुभचिंतक नहीं जुड़े होंगे तब तो रेड सही-सही पड़ जाएगी, वरना जब तक पुलिस पहुंचेगी- माल गायब हो चुका होगा।
जांच अभी जारी रहेगी
मदनवाड़ा जांच आयोग का कार्यकाल तीन माह बढ़ा दिया है। आयोग के अध्यक्ष पूर्व प्रमुख लोकायुक्त जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव हैं। जस्टिस श्रीवास्तव ने ही प्रमुख लोकायुक्त रहते रमन सरकार में बेहद प्रभावशाली पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के प्रकरण पर कार्रवाई की अनुशंसा की थी। हालांकि मुकेश गुप्ता को कोर्ट से राहत मिली हुई है।
इलाहाबाद के रहवासी जस्टिस श्रीवास्तव मदनवाड़ा नक्सल हमले की जांच के लिए नहीं आ पा रहे हैं। कोरोना ने उनका रास्ता रोका हुआ है। इलाहाबाद में कोरोना संक्रमण काफी फैला हुआ है, और कहा जा रहा है कि जस्टिस श्रीवास्तव के पैतृक गांव में भी कोरोना से 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इन सब बाधाओं की वजह से जस्टिस श्रीवास्तव मदनवाड़ा नक्सल हमले की जांच पूरी नहीं कर पाए हैं। ऐसे में आयोग का कार्यकाल बढऩा ही था।
डॉ. आलोक शुक्ला बने रहेंगे?
सीएम भूपेश बघेल खुद कोरोना संक्रमण के रोकथाम के प्रयासों की रोज मॉनिटरिंग कर रहे हैं। दो-तीन जिलों में संक्रमण लगातार बढ़ रहा है। यहां कुछ जिला और स्वास्थ्य अमले की लापरवाही भी सामने आ रही है। इन सब वजहों से जल्द ही छोटा सा प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है।
मंत्रालय में एसीएस रेणु पिल्ले की जगह स्वास्थ्य विभाग की कमान संभालने वाले डॉ. आलोक शुक्ला ने थोड़े समय में कोरोना रोकथाम के लिए काफी कुछ काम किया है। डॉ. शुक्ला खुद सर्जन रह चुके हैं, और पहले भी दो बार स्वास्थ्य महकमा संभाल चुके हैं। ऐसे में इसी हफ्ते रेणु के लौटने के बाद भी डॉ. शुक्ला के पास स्वास्थ्य विभाग का प्रभार रह सकता है। रेणु को कोई और जिम्मेदारी दी जा सकती है।
कोरोना वारियर्स को ऐसे किया सेल्यूट
बिना थके, बिना रुके, हफ्तों-महीनों से बहुत से लोग कोरोना से इंसान और इंसानियत को बचाने के लिए जूझ रहे हैं। अब शोक और मायूसी का इतना ज्यादा फैलाव हो चुका है कि इनका आभार जताने के लिए ताली, थाली, शंख बजाना अटपटा लगेगा। इसलिये लोरमी के युवा उनके प्रति मौन रहकर तख्तियां लिये सडक़ पर कड़े होकर कृतज्ञता व्यक्त कर रहे हैं। ये युवा खुद भी कोरोना से मौत के बाद श्मशान गृह लाए जाने वाले शवों का अंतिम संस्कार करते हैं। जरूरतमंदों को ये युवा सूखा राशन पहुंचाने, मरीजों को अस्पताल ले जाने घरों में दवाइयां पहुंचाने और पुलिस के साथ लॉकडाउन तथा कंटेनमेंट जोन में नियमों का पालन कराने में भी लगे रहते हैं। वे अपने काम को बहुत बड़ा नहीं मानते, बल्कि उन सबकी सराहना करना चाहते हैं जो अपनी अपनी क्षमता से अपने क्षेत्र में सेवा कर रहे हैं। वे इन तख्तियों के जरिये अपेक्षा करते हैं कि लोग भी इन सबका सम्मान करिए, जो महामारी से लडऩे में किसी न किसी रूप में आपके बीच उपस्थित हैं। यह जरूर है कि इस तख्ती में कुछ वर्ग छूट गए हैं जिन्हें कल राज्य सरकार की जारी सूची में कोरोना वारियर्स का दर्जा दिया गया। तस्वीर इस घोषणा के पहले की है।
क्या लॉकडाउन ने कमाल किया?
बीते तीन चार हफ्तों से जो दृश्य दिखाई दे रहा था, वह कुछ बदल रहा है। प्रदेश में संक्रमण के नये मामले तेजी से घट रहे हैं। रविवार को सबसे ज्यादा केस 687 रायगढ़ से मिले। अभी अभी कम से कम आठ, दस जिले ऐसे थे जहां हजार से ऊपर मामले हर रोज आ रहे थे। पहली नजर में तो यही समझ में आता है कि लॉकडाउन को लंबा खींचने का सरकार का फैसला काम कर गया है और असर अब दिखाई देने लगा है। खासकर दूसरे राज्यों से पहुंचने वालों पर न केवल सडक़, बल्कि हवाई और रेल के मार्ग पर भी कड़ाई बरती गई।
मगर एक दूसरा संकेत भी मिल रहा है। ग्रामीण इलाकों में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। कई जगहों से शिकायत आ रही है कि उन्हें टेस्टिंग किट नहीं होने के कारण अपना सैंपल देने का मौका नहीं मिल रहा है। लोग टेस्टिंग मायूस लौट रहे हैं। पीएचसी और सीएचसी में मांग के मुताबिक किट नहीं भेजे जा रहे हैं। हालांकि राज्य स्तर पर टेस्टिंग की संख्या कम नहीं है पर अब टेस्टिंग क्षमता और बढ़ाने की जरूरत है। यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो आंकड़े कम तो नजर आएंगे मगर महामारी से निपटना और बड़ी समस्या हो जायेगी। वैसे भी गांव में जागरूकता की कमी की बात भी आती है।
शराब की घर पहुंच सेवा
वैसे तो आबकारी मंत्री की चिंता यह बताती है कि लोग शराब नहीं मिलने के कारण स्प्रिट और जहर पीकर मर रहे हैं इसलिए ऑनलाइन बिक्री शुरू की गई है, पर हर किसी को पता है कि यह निर्णय राजस्व से भी जुड़ा हुआ है। पोर्टल और ऐप के जरिए शराब मंगाने की मिली अनुमति के बाद अब उन लोगों को जो देसी कच्ची और सस्ती शराब पीते थे, स्मार्टफोन रखना होगा। नेट कनेक्टिविटी के साथ और ऐप को इस्तेमाल और ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करना भी सीखना होगा। वरना वे शराब मंगा कैसे पाएंगे? ऑनलाइन सेल में अद्धी पौवा नहीं मंगाया जा सकेगा। बोतल दो बोतल का ऑर्डर करना होगा। साथ ही सेवा शुल्क अलग से देना होगा। मजदूर और मिस्त्री सरकार की सेवा लेने के लिये इतनी व्यवस्था कर पायेंगे, इसमें संदेह हैं। अब इस ऑनलाइन बिक्री के बाद भी कोई सिरप या स्प्रिट पीकर मरेगा तो?
बीजेपी के एक नेता का कहना है कि कि जो लोग जहर पीकर मरे उन को तो फायदा मिले ना मिले जो खाते पीते लोग लॉकडाउन में मन मसोसकर घरों में बैठे महंगी शराब के बगैर तड़प रहे थे उनको जरूर सुविधा मिल गई। शराब दुकानें लगभग एक माह से बंद है। जहरीला नशा करने के चलते कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी यह पता किया जाये, फिर उसके एक माह पहले का आंकड़ा लिया जाये जब शराब पीने के कारण हुई वारदातों में लोगों की जान चली गई। स्थिति ज्यादा स्पष्ट हो जायेगी।
हो सकता है कि एक वक्त के एसटीडी पीसीओ की तरह मोहल्लों के लडक़ों को एक काम मिल जाये की वे अपने स्मार्टफोन पर दारू आर्डर कर दें, भुगतान कर दें, और सर्विस चार्ज ले लें !
आधे शटर में दुकानदारी
मोहल्ले के दुकानदारों से आम तौर पर ऐसा रिश्ता होता है कि आते-जाते सामान उठा लिये और लिख लेना, भी कह देते हैं। एक साथ महीने का सामान लेने वाले लोगों को पहले के लॉकडाउन में किराना सामानों की होम डिलिवरी शॉपिंग मॉल, सुपर मार्केट और ऐप से मिल जाती थी। पर इस बार आदेश निकालने के बाद उसे वापस ले लिया गया। इसके चलते मोहल्ले की दुकानें ही बची हैं जिनसे चिल्हर सामान लेने वालों को खासी परेशानी हो रही है।
खासकर वह तबका जो बहुत कम मात्रा में तेल, साबुन लेने की हैसियत रखता है। दुकानदारों को शटर उठाकर सामान देने की इजाजत नहीं है। वे फोन पर ऑर्डर लेकर सिर्फ होम डिलिवरी कर सकते हैं। पर मोहल्ले के दुकानदारों के साथ सहज संवाद ऐसा रहता है कि कभी फोन नंबर पूछा ही नहीं गया। और, फोन नंबर लेकर ऑर्डर दे भी दिया तो 25-50 रुपये का सामान छोडऩे के लिये दुकानदार कितने घरों में जायेंगे? इतने डिलिवरी बॉय उनके पास नहीं होते हैं। कई दुकानों में तो मालिक के अलावा कोई कर्मचारी भी नहीं होता है। ऐसे में पुलिस के खौफ के बीच दुकानदार नियम तोड़ रहे हैं और पुलिस की नजर से बचाकर सामान ङ्घह्म् बेच रहे हैं। पकड़े गये तो 15 दिन के लिये दुकान सील, डंडे अलग से पड़ेंगे। खरीदने वाला खर्च कर रहा है, बेचने वाला नगद पा रहा है पर दोनों को ऐसा लगता है, मानो चोरी कर रहे हैं। वैसे यह नौबत ग्राहकों और दुकानदारों ने ही लाई है। पहले के लॉकडाउन में जब उन्हें सोशल डिस्टेंस का पालन करने कहा गया तो दुकान के बाहर गोल घेरे बनाये गये, रस्सी बांधी गई। चार से ज्यादा लोगों को एक साथ दुकान में नहीं घुसने की हिदायत दी दई थी। पर कुछ ही दिनों में सभी दायरे टूटते गये। नतीजा सामने है।
कोरोना से बचने की ऐसी नसीहत...
इन दिनों आप साबुन बेच रहे हों या सरिया, हर एक विज्ञापन में सोशल डिस्टेंस, सैनेटाइजर, मास्क का संदेश जोडक़र सामाजिक सरोकार प्रदर्शित किया जा रहा है। मेडिकल सर्विस के विज्ञापनों का तो यह जरूरी हिस्सा है। कोरोना खत्म करने के लिये अब तक कोई दवा अब तक आ नहीं पाई है इसलिये हर एक पद्धति को लोग आजमा रहे हैं। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का काम भी इसके चलते बढ़ा है। ऐसे ही एक चिकित्सालय का पोस्टर अपनी ओर ध्यान खींच रहा है। कोरोना से बचाव के लिये कौन-कौन से उपाय जरूरी हैं, यह विज्ञापन में बताया गया है। तस्वीर खिंचाने वालों ने भी, जो शायद चिकित्सालय के स्टाफ हैं, मास्क तो पहना है पर सोशल डिस्टेंस का पालन करना भूल गये हैं। शायद न भी भूले हों, हो सकता है कि फोटोग्रॉफी के समय कोरोना का खतरा कम हो जाता हो?
अब ऑनलाइन पिंडदान
बढ़ते कोरोना संकट के चलते हर कोई दहशत में है। पूजा पाठ कराने वाले पुरोहित पंडित भी। इस महामारी में कारोबार बैठ जाने के बावजूद वे सावधान हैं। इसी का असर मृत्यु के बाद होने वाले कर्मकांडों पर भी दिखाई दे रहा है। शादी-विवाह पर तो रोक लग गई। तीज-त्यौहार भी सम्पन्न होते जा रहे हैं। पर अंतिम सत्य, मृत्यु के संस्कारों को पूरा करने के लिये क्या किया जाये?
कोरोना के बिना होने वाली सामान्य मौतों में भी श्मशान घाट चलने के लिये पंडितों की तलाश करनी पड़ रही है। मृतात्मा की शांति के लिये रिवाज बना हुआ है, पिंडदान और ब्राह्मण भोज की। इसके लिये भी महराज नहीं मिल रहे हैं। नई परिस्थितियों में कुछ प्रयोग इस समस्या के समाधान के लिये किये जा रहे हैं। वीडियो काल के जरिये पंडित अपने जजमानों से जुड़ रहे हैं और उन्हें पिंडदान विधि-विधान से करा रहे हैं। ब्राह्मण भोज और दक्षिणा पर खर्च होने वाली मुद्रा का हस्तांतरण भी ऑनलाइन कर दिया जा रहा है। अब शोक-पत्र भी डिजिटली ही भेजे जा रहे हैं। इसमें अनुरोध किया जा रहा है कि मृतात्मा की शांति के लिये अपने घरों से ही प्रार्थना करें।
शुक्र है कि इस महामारी के दौर में लोग प्रतीकात्मक और वैकल्पिक तरीके से ही सही अपने पूर्वजों के प्रति आदर भाव दिखा रहे हैं। वरना हाल ही में तो अपने प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आ गये हैं जिनमें बुजुर्ग की सामान्य मौत होने पर उन्हें कोई कांधा नहीं देने पहुंचा। यह भी हो चुका है कि बाप के मरने की खबर इंदौर में बैठे बेटे को दे दी तो उसने अपने मोबाइल फोन का स्विच ही बंद कर दिया।
भाजपा में मनमुटाव, और घरों में सुरक्षित
खबर है कि बीजेपी प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी पार्टी नेताओं की आपसी खींचतान से खफा हैं। राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष की शुक्रवार की वर्चुअल बैठक में तो उन्होंने अपनी नाराजगी का इजहार भी कर दिया। उन्होंने शिकायती लहजे में कहा कि यहां के नेताओं में काफी मनमुटाव है। चूंकि बैठक में प्रदेश के सभी बड़े नेता जुड़े हुए थे। लिहाजा, बीएल संतोष ने उन्हें टोकते हुए कहा कि अभी इस विषय पर बात करने का समय नहीं है। कोरोना की समस्या बड़ी है, और उस पर ध्यान देना होगा।
बैठक में संतोष प्रदेश के नेताओं को इशारों-इशारों में काफी कुछ कह गए। उन्होंने कहा कि सिर्फ सीएम या कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी से कुछ नहीं होगा। गांव-गांव में कोरोना से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए पहल करनी होगी। दरअसल, संतोष इस बात से नाराज हैं कि कोरोना संक्रमण बढ़ते ही प्रदेश के सभी नेताओं ने खुद को घर में कैद कर रखा है, और सिर्फ कोरी बयानबाजी कर रहे हैं। सुनील सोनी जैसे इक्का-दुक्का ही नेता हैं, जो कि कोरोना काल में अपने संसदीय क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं, और लोगों की समस्याएं सुनकर निराकरण की कोशिश कर रहे हैं।
अजय चंद्राकर अलग-थलग ?
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को प्रदेश भाजपा महामंत्री भूपेन्द्र सिंह सवन्नी से पंगा लेना भारी पड़ रहा है। सवन्नी रायपुर संभाग के प्रभारी हैं, और उनकी संगठन में गहरी पैठ है। वे धरमलाल कौशिक के अति प्रिय हैं, तो पूर्व सीएम रमन सिंह भी सवन्नी को काफी तवज्जो देते हैं। संगठन में पदाधिकारियों की नियुक्तियों में भी सवन्नी की काफी दखल रहती है।
पिछले दिनों मिशन-2023 के लिए विभिन्न विभागों के प्रमुखों और सदस्यों की सूची जारी की गई, उसमें चंद्राकर को पर्याप्त महत्व नहीं मिला। उन्हें राजनीतिक प्रतिपुष्टि और प्रतिक्रिया विभाग में शिवरतन शर्मा के साथ सदस्य के रूप में रखा गया है। इस विभाग के प्रभारी शिवरतन हैं। पार्टी ने बृजमोहन, प्रेमप्रकाश, नारायण चंदेल जैसे अन्य प्रमुख नेताओं को विभाग प्रभारी बनाया गया है। अजय पार्टी के मुख्य प्रवक्ता हैं, लेकिन किसी विभाग का प्रभार नहीं दिया गया है।
दो दिन पहले बंगाल में हिंसा के विरोध में पार्टी नेताओं ने अपने घर में धरना दिया। पूर्व सीएम रमन सिंह के निवास पर अगल-बगल में रहने वाले रामविचार नेताम, और राजेश मूणत को बुलाया गया था, और तीनों साथ धरने पर बैठे थे, लेकिन रमन निवास से कुछ दूरी पर रहने वाले अजय चंद्राकर को वहां नहीं बुलाया गया। अजय ने अकेले अपने घर में धरना दिया। जो लोग अजय को करीब से जानते हैं कि वे इन सब चीजों की परवाह नहीं करते हैं। वे विधायक दल के मुखिया नहीं है, लेकिन विधानसभा में अक्सर विपक्ष का नेतृत्व करते हुए नजर आते हैं। संगठन को भले ही उनकी जरूरत नहीं दिखती, लेकिन विपक्ष की आवाज बुलंद करने में वे सबसे आगे दिखते हैं।
सिर्फ सर्कुलर निकालने से बात बनेगी नहीं..
कोरोना पीडि़त मरीज के परिवार से गुरुग्राम से लुधियाना जाने के लिए एक लाख 20 हजार रुपये एंबुलेंस किराया लेने वाले को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। मगर छत्तीसगढ़ में ऐसी शिकायतों पर सिर्फ सरकारी सर्कुलर निकालकर खानापूर्ति की जा रही है। लगातार शिकायतें आ रही हैं कि 5-10 किलोमीटर की दूरी के लिए भी एंबुलेंस चालक चार-पांच हज़ार रुपये से नीचे बात नहीं कर रहे हैं। शहर के बाहर लाने ले जाने के लिए तो 20 से 25 हजार में सौदा कर रहे हैं। शिकायतों के बाद जिला प्रशासन और परिवहन विभाग ने एक ही काम किया कि किराया कितना लेना है इसके लिए एक सर्कुलर जारी कर दिया। ठीक उसी तरह से जैसा कि निजी अस्पतालों का खर्च तय कर दिया गया है। जब पीडि़त परिवार इसकी शिकायत संबंधित अधिकारियों से करते हैं तो जांच की बात कही जाती लेकिन जांच क्या हुई और कार्रवाई किस पर हुई एक दो मामलों को छोडक़र या अभी तक सामने नहीं आया है। अधिकारी शायद यह समझते हैं कि इस विषम परिस्थिति में डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों पर कार्रवाई करके उन्हें हतोत्साहित नहीं किया जाए। पर सच्चाई यह है कि अभी बहुत से निजी चिकित्सालय संचालक मरीजों की परिस्थितियों को समझते हुए ठीक बिल बना रहे हैं। इसी तरह से कई एंबुलेंस संचालक मानवता के नाते सही-सही किराया भी ले रहे हैं। मशीनरी की ढिलाई के चलते दूसरों को जब लूटते देखेंगे तो क्या पता इनकी भी नीयत बदल जाए। इसलिए जहां गड़बड़ी हो रही है वहां पर सख्ती तो बरती जानी ही चाहिए। महामारी के नाम पर कुछ भी करने की छूट क्यों दी जानी चाहिए? राजधानी के एक अस्पताल से हाल ही में शिकायत आई थी कि समाज सेवी संस्थाएं वहां फ्री में एंबुलेंस भेजने के लिए तैयार बैठे हैं। अस्पतालों को अपना फोन नंबर भी दे रखा है पर कर्मचारियों की मिलीभगत की वजह से पीडि़त परिवार फ्री एंबुलेंस सेवा तक का लाभ उठा ही नहीं पाते और वे उन्हें किराये का एम्बुलेंस लेने के लिये विवश करते हैं।
मेहमानों पर लगाम नहीं लगाने का नतीजा
15-17 मई तक लॉकडाउन को बढ़ाने का आदेश जिस दिन जारी किया गया उसमें विवाह समारोह पर पाबंदी लगाने का निर्णय ज्यादातर जिलों ने नहीं लिया था। पर अब शादी के लिए पूर्व में दी गई सभी अनुमतियों को निरस्त कर दिया गया है। इस बीच बहुत से शुभ मुहूर्त हैं पर प्रशासन ने कोई नरमी नहीं दिखाई। दरअसल देखने में आया कि 10-20 लोगों के लिए अनुमति ली जाती है लेकिन मेहमानों की संख्या पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है। अब इसी तस्वीर को देखिए। जैसे ही यहां छापा पड़ा प्रीति भोज का आनंद उठा रहे लोग पता नहीं कहां खिसक गए। आयोजक तर्क देते रह गए कि हम तो यहां पर चार-पांच लोग हैं। हमसे ज्यादा संख्या में तो आप लोग पहुंचे हैं। मगर राजस्व व पुलिस विभाग के अधिकारियों ने उन्हें बख्शा नहीं। उन्होंने कार्रवाई की और इसका आधार बना वहां सजाया गया डिनर का टेबल। वहां बड़े बड़े कटोरे रखे थे और कम से कम 200 लोगों का खाना तैयार था।
बाद में आयोजकों ने स्वीकार किया कि आप लोगों के पहुंचने की खबर गांव के बाहर से ही मिली और हमारे मेहमान तितर-बितर हो गए...। शादी ब्याह बड़ा संवेदनशील मामला है पर महामारी से नहीं बचेंगे तो शादी विवाह करके भी कुनबे कहां बचने वाले हैं।
अब आंध्रप्रदेश का खतरनाक वायरस
दूसरे चरण की शुरुआत में राज्य सरकार ने दावा किया कि महाराष्ट्र और उड़ीसा से आने-जाने वाले लोगों के कारण फैला। अब देश के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में मजदूर लौट रहे हैं कोई ट्रेन से तो कोई सडक़ के रास्ते से। इन्हें राज्य की सीमा पर, स्टेशन या बस स्टैंड पर ही अपना कोरोना टेस्ट कराना है। पर यह आदेश निकलने में देर हुई। तब तक हजारों मजदूर लौटकर गांव में अपने घर पहुंच चुके थे। इसी वजह से शहरी क्षेत्रों की बराबरी में ही ग्रामीण क्षेत्रों से भी कोरोना मामले रोजाना आ रहे हैं। अब एक नई सूचना ने छत्तीसगढ़ की चिंता बढ़ा दी है। वह है बस्तर के रास्ते से आंध्रप्रदेश के नये वेरियेंट का छत्तीसगढ़ में प्रवेश करना। बीते बुधवार को आंध्रप्रदेश के एक मजदूर की कोरोना से मौत हो गई। इतनी तेजी से उसकी तबियत बिगड़ी कि लोगों ने इसे आंध्रप्रदेश का वेरियेंट बताया। हालांकि कलेक्टर ने इसका खंडन किया। आंध्रप्रदेश के नये स्ट्रेन से लोग इसीलिये घबरा रहे हैं कि इसे मौजूदा वायरस से 15 गुना ज्यादा घातक बताया जा रहा है। इसे इसे एन 440 के नाम दिया गया है।
बस्तर के अधिकांश जिलों में छत्तीसगढ़ के बाकी हिस्सों की तरह लॉकडाउन लगा हुआ है लेकिन दूरदराज के ऐसे गांव जिन की सीमाएं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को छूती भी हैं वहां से बसों का भी संचालन नहीं रोका जा सका है। हाल ही में सवारियों को अवैध रूप से ढोते हुए बस्तर पुलिस ने एक बस को पकड़ा था। यहां सीमाएं दूर-दूर तक बिना किसी चौकसी के फैली हुई है। ऐसे में जिला प्रशासन के लिये आंध्र और तेलंगाना से आने वालों पर सख्त निगरानी रखना जरूरी हो गया है।
लॉकडाउन में पेट्रोलियम का भाव बढऩा
जैसा कि लोगों ने अनुमान लगाया था पेट्रोल डीजल के दाम बंगाल सहित पांच राज्यों के चुनाव खत्म होने के बाद फिर बढऩे लगेंगे, ठीक वैसा ही हो रहा है। 27 फरवरी के बाद मई में लगातार तीन दिन से दाम बढ़ रहे हैं। यह तब हो रहा है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल के दाम घटे हैं, जाहिर है चुनाव के दिनों में जो मुनाफा पेट्रोलियम कम्पनियां नहीं कमा सकीं, उसकी अब वे भरपाई कर रही हैं। वैसे पूरे प्रदेश में इस समय लॉकडाउन लगा हुआ है। लोग घरों से निकल नहीं हैं। गाडिय़ों में पेट्रोल भरवाने की जरूरत नहीं पड़ रही है, पर मालवाहक तो चल रहे हैं। डीजल के दाम जो बढ़े हैं उसके चलते महंगाई तो बढ़ेगी ही।
जैसा बाप, वैसी बेटी...
बहुत से माता-पिता ऐसे रहते हैं जिनके कामों से उनके बच्चों का सम्मान बढ़ता है। बहुत से बच्चे ऐसे रहते हैं जिनके कामों से उनके मां-बाप का सम्मान बढ़ता है। लेकिन एक तीसरी दुर्लभ किस्म और रहती है जिसमें बच्चों का सम्मान बढ़ाने वाले मां बाप को बच्चों की वजह से भी सम्मान मिलता है । दोनों के काम ऐसे रहते हैं कि दोनों पीढिय़ों के सम्मान में बढ़ोतरी होती रहती है। कोरोना से गुजरे प्रोफेसर दर्शन सिंह बल एक उसी किस्म के इंजीनियरिंग प्राध्यापक थे जिनका खूब सम्मान था। उन्होंने खूब काम किया था बहुत अच्छा काम किया था और नाम भी खूब कमाया था। अब उनके बच्चे अलग नाम कमा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी बेटी मनजीत कौर बल लगातार सामाजिक क्षेत्र में काम करते हुए परिवार का नाम भी रोशन कर रही है। इन दोनों ही पीढिय़ों की वजह से एक दूसरे के सम्मान में बढ़ोतरी हुई है। यह परिवार एक ऐसा दुर्लभ परिवार है जिसमें बेटी अगर सडक़ की लड़ाई से लेकर अदालत की लड़ाई तक लड़ रही है, तो भाई और माता-पिता कमर कसकर उसके साथ खड़े रहे कि वह इंसाफ की लड़ाई लड़ रही है, अपने स्वार्थ के लिए नहीं, दूसरों के लिए लड़ रही है। इंसाफ के लिए लडऩे वाले ऐसे परिवार बहुत कम देखने मिलेंगे जिनमें दोनों पीढ़ी सार्वजनिक मुद्दों को लेकर एक दूसरे के साथ इस हद तक खड़ी दिखती है। दर्शन सिंह बल और उनकी बेटी मनजीत कौर बल इसी किस्म के रहे। दर्शन सिंह बल के पढ़ाए हुए हजारों इंजीनियर छत्तीसगढ़ और देश भर में काम कर रहे हैं और उनके मन में बल सर के लिए जो इज्जत दिखती है वह बिल्कुल ही अनोखी है। मनजीत उन्हीं के सम्मान को आगे बढ़ा रही हैं।
बड़ी शादियां बड़ी सादगी से
कोरोनाकाल में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की बेटी की तरह हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी की बेटी की शादी भी बेहद सादगी से हुई। इसमें कोरोना नियमों का पूरी तरह पालन किया गया। चतुर्वेदी की पुत्री सौम्या, प्रतिष्ठित वकील हैं, और विवेकानंद फाउंडेशन से जुड़ी हैं। जबकि दामाद जयराज पंड्या पार्लियामेंट में रिसर्च स्कॉलर हैं, और गुजरात के कांग्रेस नेता के परिवार से हैं। जयराज के दादा माधव सिंह सोलंकी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। कोरोना के खतरे को देखते हुए दोनों परिवार से सिर्फ 11-11 लोग शामिल हुए। शादी से पहले परिवार के सभी सदस्यों का कोरोना टेस्ट हुआ, और सभी की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद धार्मिक व सामाजिक रीति रिवाजों के मुताबिक शादी हुई। कोरोना काल में प्रभावशाली लोगों के यहां सादगी के साथ विवाह से संदेश भी गया है।
शादी में शामिल ज्यादातर कोरोना की चपेट में
कोरोना के फैलाव के चलते शादी-विवाह में अतिरिक्त सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है। शादी-ब्याह में इसको नजर अंदाज करना भारी भी पड़ रहा है। ऐसे ही कोंडागांव से सटे एक गांव में पिछले दिनों एक शादी समारोह में सामाजिक दूरी का पालन न करना, और बिना मास्क के घूमना लोगों के लिए मुसीबत बन गया। और शादी में शामिल होने वाले गांव के ज्यादातर लोग कोरोना की चपेट में आ गए हैं। आदिवासी इलाकों में वैसे भी चिकित्सा सुविधा की बेहद कमी है। ऐसे में अब कोरोना संक्रमण के चलते आदिवासी इलाकों में बड़ी संख्या में मौतें भी हो रही हैं।
महासमुंद का राज क्या है?
वैसे तो छत्तीसगढ़ अड़ोस-पड़ोस के आधा दर्जन दूसरे राज्यों से घिरा हुआ है, और इनमें से हर राज्य से छत्तीसगढ़ की सडक़ें जुड़ी हुई है. ओडीशा जैसे राज्य ऐसे भी हैं जहां से छत्तीसगढ़ के कई-कई जिलों में आना जाना होता है। लेकिन ऐसे में महासमुंद जिला अकेला ऐसा है जहां पर पिछले साल-दो साल से औसतन हर हफ्ते एक या अधिक बार गांजे से भरी हुई गाडिय़ां पकड़ आती हैं, और नगदी नोटों से भरी हुई गाडिय़ां भी। इतनी बड़ी-बड़ी नगद रकम से लदी हुई गाडिय़ां सिर्फ इसी एक जिले में कैसे पकड़ आती हैं यह हैरानी की बात है, या फिर इस बात पर हैरानी की जाए कि बाकी जिलों में ऐसी गाडिय़ां पकड़ में क्यों नहीं आती हैं? क्योंकि महासमुंद जिला ओडिशा से जुड़ा हुआ तो है लेकिन छत्तीसगढ़ के एक दर्जन से ज्यादा जिले दूसरे प्रदेशों के जिलों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में सिर्फ महासमुंद में इतना गांजा पकड़ाना और इतनी नगद पकड़ाना, वहां की पुलिस के सक्रिय होने का एक सबूत तो है। अब जांच का मुद्दा यह हो सकता है कि क्या बाकी जिलों में पड़ोस के राज्यों से तस्करी नहीं होती है, कम होती है, या उन जिलों के सरहद पार के जिलों से तस्करी का कोई धंधा चलता नहीं है?
कारखाने में टीकाकरण का फायदा
हाईकोर्ट के आदेश के बाद 18 प्लस के लोगों को वैक्सीन लगने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि वैक्सीन को लेकर ग्रामीण इलाकों में काफी हिचक भी है। मगर कोरोना से बचने के लिए यही उपाय है। कई निजी उद्योगों ने अपने कर्मचारियों को स्वयं के खर्च पर वैक्सीन लगाना शुरू कर दिया है। एक बड़े उद्योग में वैक्सीनेशन से काफी फायदा भी हुआ है।
सिलतरा के एक बड़े स्टील उद्योग में पिछले कुछ महीनों में कोरोना से कई कर्मचारियों की मौत हो गई थी। इसके बाद उद्योग समूह ने सभी कर्मचारियों के लिए वैक्सीन अनिवार्य कर दिया। करीब ढाई हजार कर्मचारियों का वैक्सीनेशन हो चुका है। वैक्सीनेशन के बाद यह बात सामने आई है कि जिन डेढ़ हजार कर्मचारियों को पहला डोज लगा है, उनमें से कुछ संक्रमित जरूर हुए, लेकिन जान का जोखिम नहीं था। जिन एक हजार कर्मचारियों को दूसरा डोज लग चुका है, उनमें से कोई भी संक्रमित नहीं है। कुल मिलाकर वैक्सीनेशन ही कोरोना से बचाव का उपाय है।
को वैक्सीन लगी या कोविशील्ड
कोई भी ऐसी बात जो वैक्सीनेशन के प्रति लोगों में झिझक पैदा करे उजागर करना ठीक नहीं लगता। सोशल मीडिया पर वैसे भी बहुत सी नकारात्मक बातें लगातार आ रही हैं। पर कुछ तथ्य सामने हों तो कैसे रुका जा सकता है। इस समय राज्य में दो तरह की वैक्सीन उपलब्ध है। को वैक्सीन और कोविशील्ड। विशेषज्ञों का कहना है कि पहला डोज और दूसरा डोज समान वैक्सीन ली जाये। पर जगदलपुर के एक स्कूल में टीका लगवाकर लौटे लोग तब चिंता में पड़ गये जब उन्होंने अपने मोबाइल पर मैसेज देखा कि कोविशील्ड का डोज आपने सफलतापूर्वक लगवा लिया। दरअसल, इस सेंटर में कोवैक्सीन लगाई जा रही थी। कुछ समझदार लोगों ने तो देख लिया कि उन्हें को-वैक्सीन लगाई जा रही है। टीकाकरण अधिकारी से उन्होंने सवाल-जवाब भी किया कि ऐसा क्यों हो रहा है? अधिकारी ने कहा कि ऐप में तकनीकी दिक्कत के कारण हो गया आप दूसरी डोज भी को वैक्सीन की ले सकते हैं। पर चिंता में वे लोग हैं जिन्होंने यह नहीं देखा कि कौन सी वैक्सीन लगाई गई है।
कोरोना से लड़ें, आपस में नहीं
कोरोना महामारी के लम्बी आपदा में डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, कर्मचारी लगातार बिना थके, रुके काम कर रहे हैं। कम उपकरण व मानव संसाधन के बीच अधिक से अधिक मरीजों को देखें, बेहतर इलाज हो, ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट हो जाये उनकी कोशिश चल रही है। कई डॉक्टर बता रहे हैं उन्होंने महीनों से छुट्टी नहीं ली। एक दिन में 12 घंटे, 14 घंटे काम करना पड़ रहा है। पीपीई किट में लदे होने के बावजूद कई लोग संक्रमित होते जा रहे हैं, कुछ की मौत भी हो रही है।
कुछ ऐसी ही निरंतर ड्यूटी प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारी और उनके अधीनस्थ कर रहे हैं। काम का दबाव, तनाव इतना है कि काम तो सभी कर रहे हैं पर एक दूसरे से उलझ भी जाते हैं और स्थिति अप्रिय हो जाती है। रायपुर में हाल ही में ऐसी घटनायें हो चुकी हैं। मुंगेली में एक एसडीएम ने स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को थप्पड़ मारने की धमकी तक दे डाली। वैक्सीनेशन के लिये नहीं निकलने पर धमकाते हुए पुलिस का वीडियो बीते माह तो सामने आ ही चुका है।
मध्यप्रदेश के इंदौर में तो डॉक्टरों ने वहां के कलेक्टर के खिलाफ काम बंद आंदोलन ही शुरू कर दिया है। वे कलेक्टर पर दुर्व्यवहार का आरोप लगा रहे हैं और उनको हटाने की मांग पर अड़े हैं। दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट का भी ध्यान इस ओर गया कि लगातार कोविड महामारी से बचाव से जुड़े लोगों की मानसिक दशा क्या हो रही है। कोर्ट ने कहा कि वे थक भी सकते हैं। कहा- उनकी जगह पर दूसरे खाली बैठे डॉक्टरों और नर्सों को तैयार क्यों नहीं रखा जाता? सरकार का पूरा जोर अभी वैक्सीनेशन पर और ऑक्सीजन बेड बढ़ाने पर ही है। जो स्टाफ लगातार ड्यूटी कर रहे हैं, उनकी सेहत कैसे ठीक रहे। उन पर किस सीमा तक बोझ डाला जाये इस पर भी गंभीरता से विचार करना जरूरी दिखाई दे रहा है। प्राय: हर बड़े सरकारी अस्पताल के अधीक्षक, डीन बता रहे हैं कि उनके यहां स्टाफ की कमी है। नई पदस्थापना और नियुक्तियां तेजी से नहीं की जा रही है। आसार तो यही दिखाई दे रहे हैं कि कोरोना पीडि़तों से अस्पताल जल्दी खाली नहीं होने वाले हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि अब एमबीबीएस के अंतिम वर्ष के छात्रों को कोविड ड्यूटी में लगाया जायेगा। महामारी से निपटने के अभियान में लगे लोगों को थोड़ा विश्राम, थोड़ी राहत बीच-बीच में मिलती रहे तो नतीजे ज्यादा बेहतर मिल सकते हैं।
नेतागिरी के लिए बेलने पड़ रहे पापड़
कोरोना लॉकडाउन के कारण तमाम गतिविधियां बंद हैं। लिहाजा राजनीतिक गतिविधियां भी बयानबाजी तक सीमित हो गई है। विशेष मौकों पर राजनीतिक दल के लोग घर से विरोध- प्रदर्शन कर रहे हैं। घर से धरना-प्रदर्शन करना कई मामलों में आसान है तो कई मामलों में चुनौतीपूर्ण भी है। क्योंकि तख्ती, बैनर-पोस्टर और झंडों का जुगाड़ करना पड़ता है। इसके अलावा तखत, गद्दा-तकिया और कुर्सी टेबल का इंतजाम करना होता है। पिछले तकरीबन एक साल से ऐसी स्थिति तो है तो बड़े नेताओं ने तो ये व्यवस्था कर ली है, लेकिन समस्या उस वक्त आती है, जब धरना-प्रदर्शन के लिए पोस्टर लिखना होता है। चूंकि दुकानें बंद है, तो फ्लैक्स या पोस्टर तैयार नहीं हो पाते। संसाधन और धन-बल से परिपूर्ण बड़े नेताओं ने तमाम साजो-सामान की परमानेंट व्यवस्था कर ली है, दिक्कत उनके लिए ज्यादा है, जिन्होंने नेतागिरी में नया-नया कैरियर शुरु किया है। ऐसे लोगों के पास बजट की भी कमी रहती है, लिहाजा वे बड़े नेताओं की परमानेंट व्यवस्था भी नहीं कर सकते। नेतागिरी में चमकना है तो धरना-प्रदर्शन भी जरूरी है। ऐसे लोग सीमित संसाधनों में काम चलाते हैं। कोई बैनर-पोस्टर की जगह खुद की लिखी तख्तियों से काम चलाते हैं, तो कोई घर के स्कूली बच्चों के ब्लैक बोर्ड या स्लेट पर नारे लिखकर धरना-प्रदर्शन करते हैं। ऐसे कार्यक्रमों की तस्वीर आती है तो पता चलता है कि नए-नवेले और कम संसाधन वाले कार्यकर्ता नेता बनने के लिए कितने पापड़ बेल रहे हैं। इतना ही नहीं, तस्वीरें और भी कई बातों को उजागर कर देती हैं। मसलन कोई बरमुड़ा पहन के धरना दे रहे हैं, तो कोई घर के छत पर प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं। कुल मिलाकर कोविड के इस दौर ने चुनौतियों के साथ उससे निपटने के तरीके भी सिखा दिए हैं। इसलिए तो कहा जाता है कि संघर्ष के दिन पाठशाला होती है।
पत्रकारों की नाउम्मीदी
छत्तीसगढ़ में कोरोना टीके को लेकर विवाद बना हुआ है। राज्य सरकार के 18 प्लस के टीकाकरण के लिए अति गरीबों को प्राथमिकता देने के नियम को कोर्ट से झटका लगा है। हालांकि विपक्ष ने इस नियम के कारण सरकार को घेरने की कोशिश की थी। कहा जा सकता है कि कोर्ट के आदेश के बाद सरकार विरोधियों को एक तरह से सफलता मिली है। कुल मिलाकर ऐसे में राज्य में टीकाकरण अभियान का प्रभावित होना तय है। इसका असर यह होगा कि राज्य में कोरोना को रोकने की कोशिशों को भी झटका लग सकता है। खैर, सियासी और कोर्ट से परे टीकाकरण को लेकर छत्तीसगढ़ के मीडियाकर्मी भी नाराज है। सोशल मीडिया पर मीडियाकर्मियों की नाराजगी साफ देखी जा सकती है। दरअसल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और पंजाब जैसे कई राज्यों ने मीडियाकर्मियों को फ्रंटलाइन वर्कर मानते हुए टीका में प्राथमिकता देने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में यहां के पत्रकारों को भी उम्मीद थी कि छत्तीसगढ़ सरकार भी ऐसा कुछ फैसला ले सकती है, क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार में पत्रकार बिरादरी को अच्छा-खासा प्रतिनिधित्व मिला है। इसके बावजूद पत्रकार हित में ऐसा कोई फैसला अब नहीं लिया जा सका है। लिहाजा पत्रकारों की उम्मीद को भी झटका लगा है। जबकि इसके लिए पत्रकार संघ की तरफ से पहल की गई और मुख्यमंत्री से पत्राचार किया गया। पत्रकारों को टीका में प्राथमिकता मिलने की संभावना उस वक्त और क्षीण होती दिखाई दे गई, जब कुछ उत्साही पत्रकारों ने इसके लिए विपक्ष से समर्थन की मांग कर डाली और पूर्व सीएम से सरकार को पत्र लिखवा दिया कि पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर का दर्जा दिया जाए। अब तो वे पत्रकार भी निराश हो गए हैं, जो सरकार से बातचीत कर रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि विपक्ष की बात को सरकार मानेगी, इसकी संभावना कम ही दिखाई पड़ती है।
गलतफहमी झोलाछाप डॉक्टर करें दूर?
प्रदेश एक तरफ तो टीकाकरण अभियान में वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मितानिनों को जोखिम उठाना पड़ रहा है। कुछ दिन पहले गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में एक मितानिन पर लाठियों से हमला कर दिया गया था। कुछ गांवों में वैक्सीनेशन करने गई टीम को गांव वालों ने भीड़ इक_ी कर भगा दिया। अंबिकापुर से भी सोमवार को खबर आई कि टीके के लिए प्रेरित करने गए हेल्थ वर्कर्स के साथ मारपीट की गई और उनसे किट छीन लिया गया। बिलासपुर जिले के गनियारी से भी कल खबर आई है कि वहां वैक्सीनेशन टीम को महिलाओं ने गाली गलौज करके भगा दिया।
ऐसी ही घटनाएं कुछ अन्य जिलों में भी हो रही हैं। ज्यादातर स्थानों से ग्रामीणों के विरोध की वजह भी सामने आ रही है। उन्हें गलतफहमी या डर है कि टीका लगवाने से वे बीमार पड़ सकते हैं और जान भी जा सकती है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम यह बात नहीं छुपा रही है कि टीका लगवाने के बाद बुखार आता है पर वे साथ ही यह भी बता रहे हैं कि इसका 24 घंटे तक ही असर रहता है। दरअसल वे स्वास्थ्य के लिए काम करने वाले सरकारी महकमे पर भरोसा ही नहीं कर रहे हैं। गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों और झाड़-फूंक करने वालों की पैठ बनी हुई है। क्या अब ग्रामीणों को समझाने के लिये इन्हीं लोगों को लगा दिया जाये?
रिपोर्ट में देरी, इलाज में देरी, और फिर मौत
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कोविड महामारी से संबंधित स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई शुरू की तो बहुत सी हस्तक्षेप याचिकाएं भी दायर हो गईं। इस वक्त चर्चा सिर्फ तीसरे चरण के वैक्सीनेशन को लेकर है जिसमें 18 साल से 44 साल के लोगों को टीका लगाया जाना है। इस पर क्या दिशा निर्देश मिलता है यह अगली सुनवाई के बाद ही पता चलेगा। इधर कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कुछ और जरूरी निर्देश सरकार को दिए थे। एक महत्वपूर्ण आदेश यह भी था की आरटी पीसीआर जांच की रिपोर्ट तत्काल टेस्ट कराने वाले को दी जाए ताकि समय पर उपचार मिल सके। अभी स्थिति यह है कि एंटीजन जांच रिपोर्ट तो तुरंत मिल जाती है लेकिन आरटीपीसीआर के लिए कहा जाता है कि मोबाइल फोन पर मैसेज आएगा। अमूमन 4 से 5 दिन तो इस रिपोर्ट में लग ही रहे हैं। कई संदिग्धों को दस-दस दिन तक रिपोर्ट नहीं मिलती। ऐसे केस भी आए हैं जिनमें मरीज संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो चुका पर उसके बाद रिपोर्ट मिली। पीडि़त बताते हैं कि कई मौतें जांच रिपोर्ट की देरी के चलते भी हो रही हैं क्योंकि इलाज भी देर से शुरू किया गया। उनका कहना है कि जिस तरह से अस्पतालों में बेड और कोविड केयर सेंटर बनाने के लिए कवायद की जा रही है, उसी तरह से ज्यादा से ज्यादा आरटीपीसीआर जांच के लिए लैब और स्टाफ बढ़ाना चाहिए। अभी एक बड़े जिले पर कई छोटे जिलों का बोझ है।
शराब दुकान खुलने से ही मानेंगे?
बीते साल भी लॉकडाउन में रायपुर में शराब की जगह जहर पी लेने के कारण 3 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले दिनों फिर स्प्रिट पी लेने की वजह से दो की मौत हो गई और एक गंभीर हालत में पहुंच गया। अब बिलासपुर जिले से इनसे भी बड़ी घटना सामने आई है। यहां महुआ शराब में अल्कोहलयुक्त होम्योपैथी सिरप मिलाकर पीने से चार लोग अपनी जान गवां बैठे। दो लोग गंभीर बीमार है, जिनका इलाज चल रहा है। पिछले लॉकडाउन में कुछ रियायत थी। सरकार ने इस बार कम से कम यह मान तो लिया है कि शराब दुकानों में भीड़ की वजह से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ता है। लेकिन इन मौतों की आड़ में मदिरा प्रेमी सरकार पर दबाव भी बढ़ा सकते हैं। अवैध शराब का जुगाड़ करने में काफी खर्च भी हो रहा है और जान का खतरा भी बना हुआ है। लॉकडाउन उनकी उम्मीद से ज्यादा लंबा खिंचता जा रहा है, इसलिए थोड़ा रहम करें।
कुत्तों की तरह गाडिय़ों को भी टहलाने का काम
कोरोना लॉकडाउन के चलते हुए कई अलग किस्म की दिक्कतें सामने आ रही हैं। लोग खुद को सुरक्षित रखने घरों में कैद हैं, तो उनकी गाडिय़ां भी घर में धूल खा रही है। जिसके कारण गाडिय़ों की बैटरी डाउन हो रही है और बैटरी चार्ज करने वाली दुकानें भी बंद है। ऐसे में लोगों के सामने खुद को और गाडिय़ों को भी सुरक्षित रखने की चुनौती है। कुछ लोग समझदारी दिखाते हैं, जो रोज सुबह कुत्ता टहलाने के अंदाज में गाडिय़ों को टहलाने निकलते हैं। 2-4 किलोमीटर का एक चक्कर लगा रहे हैं। ऐसा करने से जैसे कुत्ते की सेहत ठीक रहती है वैसे ही गाडिय़ां भी दुरूस्त रहती है। ऐसा करने वालों अपनी गाडिय़ों को दूसरे संभावित खतरे से बचा रहे हैं, क्योंकि लॉकडाउन के कारण चाय ठेले और छोटे होटल भी पूरी तरह से बंद हैं, जिसके कारण वहां की जूठन से पलने वाले चूहों की बड़ी फौज रिहायशी इलाकों में खाने की तलाश में भटक रहे हैं। कई जगहों पर चूहों ने कार और दूसरी गाडिय़ों को अपना ठिकाना बना लिया है और वे गाडिय़ों के तार और सीटों को कुतर रहे हैं। इसलिए उनकी गाडिय़ों की सेहत तो ठीक है जो रोज टहलाने निकल रहे हैं या फिर गाडिय़ों को हिला-डुला रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं करने वाले जब गाड़ी का उपयोग शुरु करेंगे तो जरूर उनके सामने कई तरह की चुनौती होगी।
दवाइयों की महंगी कीमत से गरीब की आह
करोना महामारी के चलते अस्पतालों या बड़े डॉक्टरों के खिलाफ बहुत से लोगों की नाराजगी देखने को मिल रही है। दरअसल, वे कई ऐसी दवाइयां लिख रहे हैं, जो केवल उन्ही के अस्पताल के मेडिकल स्टोर में मिल रहे हैं। जबकि दूसरे ब्रांड की वही दवाइयां बाजार में सस्ते दामों में उपलब्ध है, लेकिन मरीज की मजबूरी होती है कि वे वही कंपनियों के दवाइ ले जो डॉक्टर ने लिखी है। इसी तरह महामारी के इस दौर में ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर के दाम भी आसमान छू रहे हैं, क्योंकि उनकी भारी डिमांड है। मेडिकल स्टोर वाले भी ऐसे सामानों को रखने में अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं, जिनकी कीमत ज्यादा हो, ताकि वो ज्यादा मुनाफा कमा सकें। लेकिन आज जब बाजार चारों तरफ बंद है और सामान कम बिक रहे हैं, उस हालत में भी दवाइयों की बिक्री पहले से कई गुना बढ़ चुकी है और अधिकतम बिक्री मूल्य किसी भी तरह से कम नहीं हुआ है। इसलिए गरीबों के लिए दवाइयां पहुंच से बाहर हो रही हैं और उनके दिल से बड़े अस्पतालों में बड़े डॉक्टरों या महंगी दवाइयों के खिलाफ आह निकल रही है।
मुफ्त राशन और वैक्सीनेशन
हाईकोर्ट ने 18 प्लस वालों को वैक्सीनेशन के मामले में राज्य सरकार को नई पॉलिसी बनाने के लिए कह दिया है। वरना कोरबा जिले के कई सोसायटियों से अंत्योदय राशन कार्ड धारकों को राशन ही नहीं मिल पाता। हुआ यह कि बालको नगर इलाके के लालपाट में अंत्योदय टीकाकरण केंद्र का उद्घाटन था। मगर इस ऑनलाइन कार्यक्रम में कोई पहुंचा ही नहीं। नाराज फूड विभाग ने राशन दुकानदारों के लिए फरमान जारी कर दिया कि जो वैक्सीन लगवाएगा, उसी को राशन मिलेगा। मई और जून महीने का पीडीएस राशन बीपीएल परिवारों को मुफ्त दिया जाना है। पर उन्हें पहले वैक्सीन लगवाने कहा गया। कोरबा शहर और कुछ ग्रामीण इलाकों से ऐसी शिकायत आ रही थी।
इसी जिले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने एक अजीबोगरीब फरमान जारी कर दिया। उन्होंने आदेश दिया कि कोरोना के इलाज के लिए दूसरे जिले से आने वाले मरीजों को बिना कलेक्टर के आदेश के किसी अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाएगा। नजदीकी जांजगीर-चांपा जिले में कोरबा के मुकाबले स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत कम है। सीएमएचओ के इस फरमान से इस जिले के मरीजों को बड़ी परेशानी होने लगी। विधायक सौरभ सिंह इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट चले आए। अब हाईकोर्ट ने भी इस फरमान को गलत बताया और सीएमएचओ को फटकार लगाई। अब वहां अन्त्योदय कार्डधारकों के मुफ्त राशन का संकट भी नहीं और न ही दूसरे जिले के मरीजों को भर्ती होने से रोका जा सकेगा।
यह सही है कि टीकाकरण और कोविड मरीजों के इलाज को लेकर प्रशासन और विशेषकर स्वास्थ विभाग काफी दबाव में है। इसके बावजूद आदेश तो कानून के दायरे में रहकर ही निकालना होगा?
लॉकडाउन का शपथ समारोह
यह अलग तरह का समारोह था, जिसमें कोई टेंट-पंडाल, स्वल्पाहारा नहीं था। न अतिथि थे, न भीड़ थी। छत्तीसगढ़ शासन ने पेंड्रा नगर पंचायत में ओमप्रकाश बंका को एल्डरमैन बनाया है। कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के चलते किसी तरह का समारोह वर्जित है लेकिन उनका शपथ लेना भी जरूरी था। शपथ दिलाने वाले अधिकारी हर वक्त टीकाकरण और मरीजों के इलाज से जुड़े काम में व्यस्त हैं। तब गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के एसडीएम ने बंका को ड्यूटी के दौरान ही रास्ते में रुक कर शपथ दिला दी। नगर पंचायत अध्यक्ष सहित चार लोगों की सोशल डिस्टेंस के साथ उपस्थिति में। खास बात यह भी रही कि बंका ने पद और गोपनीयता के अलावा कोविड टीकाकरण के लिए लोगों के बीच जागरूकता लाने का भी प्रण लिया है।
एक ही दिन में 7 हजार केस!
कोरोना संक्रमित मरीजों का आंकड़ा वैसे तो लगातार अपडेट किया जाना है पर ज्यादातर जिलों में ऐसा हो नहीं रहा है। सुविधानुसार आगे-पीछे की तारीखों में जोड़ लिये जाते हैं। संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित जिलों में एक दुर्ग में ऐसी ही एक घटना सामने आई है । 2 मई को जहां सक्रिय मरीजों की संख्या करीब 4 हजार थी तो एक ही दिन बाद 3 मई को यह बढक़र 11 हजार से अधिक हो गई। एक ही दिन में अचानक 7 हजार नये मामले आने की पड़ताल की गई तो पता चला कि निजी अस्पतालों का डेटा कई-कई दिन तक अपलोड नहीं किया जा रहा था, खास करके आरटी पीसीआर टेस्ट का डेटा। मालूम तो यह भी हुआ है कि जब एक दिन में दुर्ग में संक्रमण के मामले दो हजार के आसपास जाने लगे तो निजी लैब और अस्पतालों से मिलने वाले आंकड़ों को दर्ज करना बंद कर दिया गया था। कोशिश ये थी कि आने वाले दिनों में जब मरीज कम होंगे, तब यह समायोजित कर दिया जाएगा। पर ऐसा हो नहीं रहा। और आखिरकार रुकी हुई नामों को भी सूची में दिखाना पड़ा।
दूध बहाया, लौकी फेंकी किसानों ने...
अप्रैल महीने के मध्य से प्रदेश के ज्यादातर जिलों में लॉकडाउन का निर्णय लिया गया तो इस बात का ध्यान रखा गया कि किसानों और दुग्ध व्यवसाय करने वालों को परेशानी न हो। इन दोनों की हर घर में जरूरत होती है और इनके पास न तो कोल्ड स्टोरेज है न रेफ्रिजरेटर जो अपना उत्पाद लॉकडाउन खुलने तक सुरक्षित रख सकें। इधर जांजगीर-चांपा जिले में कुछ ज्यादा ही कड़ाई बरती गई है। बाकी जिलों की तरह यहां डेयरी शॉप को सुबह और शाम सीमित अवधि के लिए भी खोलने की इजाजत नहीं दी गई है। इन्हें सिर्फ घर-घर जाकर दूध बेचने की अनुमति दी गई है। दूसरे जिलों में दूध विक्रेता अपने ग्राहकों को देने के अलावा दुग्ध पार्लर में दूध दे देते हैं जो सुबह और शाम प्रशासन की इजाजत से खोलकर बिक्री करते हैं। जांजगीर-चाम्पा जिला मुख्यालय में करीब 5 हजार लीटर दूध रोजाना आता है। दूध विक्रेताओं ने प्रशासन से गुहार लगाई कि दुग्ध पार्लर को खोलने और उन्हें वहां दूध खपाने की अनुमति दी जाए लेकिन बात नहीं बनी। प्रशासन से नाराज दूध विक्रेताओं ने हजारों लीटर दूध बीते रविवार को सडक़ों पर बहा दिया।
कुछ इसी तरह का निर्देश स्थानीय सब्जी उत्पादकों के लिए है। यह जांजगीर के अलावा अन्य जिलों में भी दिखाई दे रहा है। इन्हें साइकिल, ठेले या रिक्शे पर घूम-घूम कर सब्जियां बेचने की इजाजत तो है पर थोक मंडी में नहीं बेच सकते। दूसरी ओर बाहर से आने वाले किराना और जनरल सामानों की थोक बाजार में लोडिंग अनलोडिंग हो रही है। रतनपुर के पास सेंदरी ग्राम में किसानों ने अपने खेतों से लौकी उखाडक़र सडक़ पर फेंक दी क्योंकि पैदावार बहुत है मगर खरीददार नहीं।
ज्यादातर जिलों से खबर आ रही है कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई जाएगी। व्यवसावी वर्ग ने लंबे लॉकडाउन के खिलाफ में आवाज उठाई है। उनकी चिंता इसी तरह का छोटा व्यापार करने वालों की रोजी से जुड़ी है। अभी प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती संक्रमण की चेन को तोडऩा है। देखना होगा कि क्या कोई बीच का रास्ता निकलेगा?
कोरोना से बचाने की नई दुकान नहीं चली...
कोरोना महामारी से बचाव के लिए विज्ञान सम्मत बातों के बीच अंधविश्वास भी अपनी जगह बनाने लग गया है। बेमेतरा जिले के मोहलाई गांव में एक युवक ने अफवाह फैला दी कि फलां हेंडपम्प का पानी अमृत है, जिसे पी लेने से कोरोना वायरस पास नहीं फटकेगा। गांव वालों ने उसकी बात का यकीन भी कर लिया और लोग बड़ी संख्या में वहां पहुंचकर पानी पीने लगे। बात सिटी कोतवाली पुलिस के पास पहुंची। पुलिस ने सूचना एसडीएम और तमाम आला अधिकारियों को दी। सारे अधिकारी रहस्य जानने गांव पहुंच गए। मालूम हुआ कि गांव का ही एक युवक लोगों को एक संत का आशीर्वाद बताकर झांसा दे रहा था। मौके पर ही उसे महामारी के दौरान भीड़ इक_ी करने और अफवाह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
मनगढ़ंत दावों को सत्य के रूप में स्थापित करना आसान काम नहीं है यह शायद उस युवक को मालूम नहीं था। ऐसा करने के लिए बड़ा बाबा होना, बड़ा चैनल और बड़े पहुंच की जरूरत पड़ती है।
300 शादियों पर रोक लगाई लॉकडाउन ने
कुछ दिन पहले रामनवमी पर बहुत शादियां हुईं। कोरोना गाइडलाइन की सख्ती के साथ। पर अब अक्षय तृतीया पर कई जिलों में यह भी मुमकिन नहीं है। यह दोनों तिथियां ऐसी हैं जिनमें शादियों का मुहूर्त अलग से नहीं ढूंढा जाता, विवाह कर लिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में वर्षों से इसकी परम्परा है। अक्षय तृतीया पर तो गैरकानूनी बाल विवाह भी होते हैं।
राज्य में जिस तरह से संक्रमण के मामलों में खास सुधार नहीं है लॉक डाउन का आगे ज्यादातर जिलों में विस्तार होने की जानकारी मिल रही है। केंद्र ने भी राज्यों को सलाह दी है कि 10-12 दिन का सख्त लॉकडाउन लगाया जाए। कोरबा जिले में तो 17 मई तक लॉकडाउन लगने के पूरे आसार हैं क्योंकि प्रशासन ने इस तारीख तक शादियों के लिए दी गई सारी अनुमति रद्द कर दी है। पहले 50 फिर उसके बाद 10 लोगों की मौजूदगी में विवाह समारोह घरों पर रखने की इजाजत दी गई थी, मगर करीब 300 शादियों की अनुमति रद्द कर दी गई है। कोरोना वायरस कितना निर्मम है। मौतें घरों को तो उजाड़ ही रही हैं, लोग घर बसाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं।
रिटायर्ड अधिकारी पर अत्याचार!
बाकी सार्वजनिक उपक्रमों की तरह कोल इंडिया की कम्पनी एसईसीएल में भी सबसे ताकतवर पद होता है कार्मिक निदेशक का। व्यवहार में उन्हें कम्पनी के अध्यक्ष अथवा प्रबंध निदेशक से भी अधिक अधिकार मिले होते हैं। सांसद, विधायक यहां तक कि मंत्रियों को भी इनसे काम पड़ता है। हाल ही में जो अधिकारी इस पद से रिटायर हुए, वे अब तक सबसे ज्यादा लम्बे समय तक टिके रहे। रिटायरमेंट की तारीख पहले से तय थी। पर उन्होंने नई जगह तलाश नहीं की और अपने पुराने बंगले में ही रह गये। भवन खाली कराने की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों ने कुछ दिन देखा, बात नहीं बनी तो माली, केयर-टेकर हटा दिये। फिर कैम्पस की बिजली भी काट दी। अधिकारी परेशान हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि कल तक जो उनके नीचे एक इशारे पर काम पर लग जाते थे, आज इतनी धृष्टता कैसे दिखा रहे हैं? कितने लोगों का पद पर रहते भला किया, याद नहीं। कोई इतना भी एहसान फरामोश कैसे हो सकता है?
दो ही वजह हो सकती हैं। एक तो यह कि जिन लोगों को रिटायर अफसर ने पद में रहते हुए परेशान किया, वे इसे हिसाब बराबर करने का सही मौका मानकर चल रहे होंगे। या फिर रिटायर्ड अफसर की खाली कुर्सी पर जो नये अधिकारी आकर विराजमान हुए हैं उनका सब्र जवाब दे रहा होगा। वे जल्दी से जल्दी उसी बंगले में शिफ्ट होना चाहते होंगे। इस वक्त तो लॉकडाउन की वजह बताकर अर्जी डाली गई है, देखें पुराने अफसर को कब तक रियायत मिलती है।
कांग्रेस का खुद को दिलासा देना...
असम विधानसभा चुनाव के दौरान वहां जाकर बड़ी मेहनत करने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं को चुनाव परिणामों से धक्का लगा है। सत्ता में कांग्रेस की दुबारा वापसी की बड़ी जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ के नेताओं पर थी। मुख्यमंत्री सहित अनेक मंत्रियों, विधायकों और प्रदेश पदाधिकारियों ने दौरा किया। एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने नतीजे का आसान सा निष्कर्ष निकाला। चुनाव तो स्थानीय लोगों की मेहनत और चेहरे से ही जीता जाता है। बाहरी तो बाहरी ही होते हैं।
अब पश्चिम बंगाल को ही देखिये। वहां प्रधानमंत्री सहित पूरी भाजपा ने ताकत झोंक दी। सारे संसाधन जुटाने के बाद सीधे मुकाबले की स्थिति जरूर बन गई पर जीत तो तृणमूल की ही हुई न। छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ताओं ने मेहनत की इसलिये इतनी सीटें असम में आ पाईं, वरना नतीजे तो इससे भी ज्यादा कमजोर होते। जो भी है, अपने विपक्ष के नेताओं को कहने का मौका तो मिल ही गया कि कांग्रेस का छत्तीसगढ़ मॉडल वहां काम नहीं आया। असम इन पाँच में से दो ऐसे राज्यों में है जहां कांग्रेस की सीटें बढ़ी हैं, अगर छत्तीसगढ़-कांग्रेस की इतनी मेहनत न हुई होती तो वहां भी पुदुचेरी या बंगाल जैसा हाल हो सकता था।
इनके पास ट्विटर नहीं है...
छत्तीसगढ़ की महिलाओं के पास काम की दोहरी जवाबदेही होना आम बात है। घर भी संभालती हैं और व्यवसाय भी। दफ्तरों में काम करने वालों से ज्यादा कठिन उनकी ड्यूटी होती है जिन्हें गांव-गांव धूप में पैदल चलना पड़ता है। वे अपना फर्ज किस तरह निभा रही हैं यह बताने के लिये उनके पास सोशल मीडिया जरूर नहीं होता है। यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के ऐसे ही एक गांव की है जहां बिटिया अपनी मां की गोद से उतरकर उसे कौतूहल के साथ ड्यूटी करते हुए देख रही है। मां एक ‘डिजि-सखी’ है, जिसे मनरेगा की रकम का भुगतान घर-घर जाकर करना होता है।
अति गरीबों के मोबाइल नंबर
कोरोना वैक्सीन लगाने के तीसरे चरण की शुरुआत शुरुआत अंत्योदय राशन कार्डधारक अति गरीब परिवारों से की गई है। अभियान शुरू करने से पहले मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा था कि जिस श्रेणी के लोगों के लिए यह टीका अभियान शुरू किया जा रहा है उनके पास मोबाइल फोन हो यह जरूरी नहीं है। इसलिए उनसे पीला कार्ड अंत्योदय वाला मांगें और उसी में वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड दर्ज कर लें। जब पूरे प्रदेश में सभी का वैक्सीनेशन शुरू होगा तब इन सबका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी कर लिया जाए। इसके बावजूद समन्वय की कमी देखने को मिली। विभिन्न जिलो में जारी की गई सूचना में राशन कार्ड लाने तो कहा ही गया, साथ ही मोबाइल फोन नंबर भी देने कहा जा रहा है। पता नहीं किस स्तर पर गड़बड़ी हुई कि सीएम के ध्यान दिलाने के बावजूद अधिकारियों ने मान लिया कि प्रत्येक अंत्योदय कार्डधारक के पास मोबाइल फोन हो सकता है। इनका कहना था कि डेटा एंट्री के लिए मोबाइल फोन नंबर का होना जरूरी है। कल शाम आते-आते स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला ने सभी कलेक्टरों कोएक नया संशोधित पत्र जारी किया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि अभी कोविन पोर्टल पर इस टीकाकरण का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा इसलिए डाटा रजिस्टर में दर्ज किया जाए। इतनी बात तो आदेश में साफ कर दी गई लेकिन जो अति गरीब मोबाइल फोन नहीं रखते उनका क्या होगा, इस आदेश में भी स्पष्ट नहीं है।
विद्युत शवदाह गृह में गबन
इन दिनों लोग जितनी जरूरत अस्पतालों और उ में सुविधाओं की जरूरत महसूस कर रहे हैं उतनी ही शवदाह के ठिकाने की भी। कोरोना महामारी से हर रोज हो रही दर्जनों मौतों के कारण शमशान घरों में भी लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। इन परिस्थितियों में अधिकारियों की तो बन आई है। बिना औपचारिकताएं पूरी किए हुए उन्हें कोरोना से संबंधित आपात सुविधाएं शुरू करने और फंड खर्च करने का मौका हाथ लगा है। सारा ध्यान जनप्रतिनिधियों का भी इस समय और लोगों को मौत के मुंह से बचाने में लगा हुआ है इसलिए किस तरह से खर्च किए जा रहे हैं, इस पर ज्यादा गौर नहीं किया जा रहा है।
इसी दौरान चिरमिरी नगर पालिका की मेयर का एक दर्द सामने आया है। यहां पर नगर निगम के अधिकारियों ने मंजूर की गई पूरी राशि का भुगतान ठेकेदारों को कर दिया लेकिन अब तक विद्युत शवदाह गृह शुरू नहीं हो पाया। इसकी शिकायत उन्हें कलेक्टर से करनी पड़ी है। नगर निगम की मुखिया होते हुए भी वह कार्रवाई नहीं कर पा रही हैं। जनप्रतिनिधियों पर अधिकारी किस तरह से हावी रहते हैं यह इसकी बानगी है। महामारी से निपटने के लिए हर जिले के लिये डीएमएफ, सीएसआर, विधायक निधि, सीएम रिलीफ फंड आदि से अच्छी खासी रकम जारी हो रही है। जो बजट बनाया जा रहा है बिना किसी क्रास चेक के मंजूर किया जा रहा है। जब कभी महामारी का प्रकोप कम होगा तब यदि हिसाब लगाया जाए की किस तरह से रकम खर्च की गई तब गड़बडिय़ों के कई पिटारे खुलेंगे और ठीक तरह से जांच हुई तो बहुत से लोग नपेंगे।
पैंसेजर ट्रेनों के थमने की शुरूआत
रेलवे ने खाली ट्रेनों को दौड़ाने की जगह पर उन्हें बंद करने की शुरुआत कर दी है। पहला झटका लगा है डोंगरगढ़ से बिलासपुर पैसेंजर को स्थगित करने से। यह ठीक है कि लॉकडाउन के कारण यात्रियों की संख्या घट गई है जिसके चलते ट्रेनों को चलाते रहने के बारे में रेलवे विचार करे। पर यह एकमात्र वजह नहीं है। काफी ना नुकर करने के बाद रेलवे ने पैसेंजर और लोकल ट्रेनों को चलाने की शुरुआत फरवरी माह से की थी। उस समय कोरोना महामारी का प्रकोप इस गति से पैर पसारेगा इसका अंदाजा न रेलवे को था ना यात्रियों को। गौर करने की बात यह भी है कि कोरोना महामारी के बाद नुकसान की भरपाई के लिए रेलवे ने अव्यवाहारिक तरीके से किरायों में वृद्धि की और रियायतें बंद की। बीते साल मार्च से ही मासिक सीजन टिकट, सीनियर सिटीजन टिकट सहित कई श्रेणियों में दी जाने वाली छूट खत्म कर दी गई। जब सितम्बर-अक्टूबर में दोबारा फेरे शुरू किये गये तो त्योहारों के नाम से स्पेशल ट्रेन का दर्जा देते हुए किराया लगभग सभी ट्रेनों का बढ़ा दिया गया। त्योहारों का सीजन निकलता गया लेकिन स्पेशल ट्रेनों का बढ़ा हुआ किराया अब तक लागू है। जो पैसेंजर ट्रेनें चालू की गईं उनमें भी स्पेशल के नाम पर एक्सप्रेस का ही किराया लिया जा रहा है। खर्च घटाने के नाम पर ट्रेनों में साफ-सफाई की व्यवस्था भी नहीं की जा रही है। कई ट्रेन जो पहले पैंट्री कार के साथ चलती थी, उनमें अब खाना नहीं मिलता है। स्टेशनों में कई फूड स्टॉल वालों ने अपने गिरे हुए शटर नहीं उठाए हैं क्योंकि रेलवे ने उनकी लाइसेंस फीस के बारे में कोई फैसला नहीं लिया है। इन सब उपायों पर रेलवे ने बार-बार यह सफाई दी है कि वह लोगों को अनावश्यक सफर से बचाना चाहती है ताकि कोरोना का संक्रमण ना फैले और लोग बीमार ना हो। रेलवे की मंशा पूरी हो रही है। यात्री इस बात पर अमल कर रहे हैं।
आस्था को चोट न पहुंचे
कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आंकड़ों पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है। अनेक रिपोर्टरों ने अलग-अलग शहरों में तस्वीरों के साथ बता दिया कि स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में जितनी मौतों का जिक्र है, उससे कहीं ज्यादा लाशें तो उन्होंने एक ही श्मशान गृह में जलते हुए देखा है। यूपी के अधिकारी इस तरह की रिपोर्ट को लेकर सचेत हैं। बात वहां के मुख्यमंत्री के इलाके की हो तब तो यह सतर्कता और बढ़ जाती है। इसीलिये गोरखपुर में नगर निगम ने श्मशान गृहों में फोटोग्रॉफी बैन कर दी है। हवाला हिन्दू रीति रिवाजों का दिया गया है। इसे दंडनीय अपराध भी बताया है पर किस एक्ट में कितनी सजा मिलेगी इसका जिक्र नहीं है।
लॉकडाउन से राहत मिले तो कैसे?
प्रदेश के अधिकांश शहरों में बीते 20-25 दिन से लॉकडाउन है। बीते साल के लॉकडाउन में कुछ रोमांच भी था, पर इस बार नीरस लग रहा है। व्यापार-व्यवसाय बंद होने के एक झटके से जैसे-तैसे संभल ही रहे थे कि फिर दूसरे लॉकडाउन से वे टूटा सा महसूस कर रहे हैं। कई छोटी नौकरी, व्यवसाय करने वालों की मार्मिक कहानियां सामने आ रही हैं। उन्हें घर खर्च चलाने के लिये पत्नी के गहने गिरवी रखने या बेचने, बच्चों की एफडी तुड़वाने की स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। किसी से कर्ज भी नहीं मिल रहा है। उद्योगपतियों ने तो मुख्यमंत्री से हुई चर्चा में उन्हें सलाह दी है कि अब मई के पहले सप्ताह में समाप्त होने वाले लॉकडाउन को आगे नहीं बढ़ाया जाये। दूसरी ओर संक्रमण के मामले में मध्यप्रदेश से ज्यादा और महाराष्ट्र से कुछ कम ही खराब छत्तीसगढ़ की हालत है। रोजाना मौतों और नये केस का आंकड़ा जिस तेजी से बढ़ रहा है क्या बाजार, दफ्तर खोल देने जैसा जोखिम उठाया जा सकेगा?
यह लोग मान रहे हैं कि पहले दौर के कोरोना के बाद गाइडलाइन का उल्लंघन न केवल आम लोगों ने बल्कि सरकार के नुमाइंदों ने भी किया था, जिसके चलते दूसरी लहर का प्रहार कुछ ज्यादा तेज है। जैसे ही लॉकडाउन उठाया जाता है लोग सोचते हैं कि जब सब निकल रहे हैं तो हम क्यों रुके। जब सब भीड़ में जा रहे हैं तो हम क्यों न जायें?
ऐसा तरीका तो निकाला जाना चाहिये कि लोग अपनी आजीविका के लिये घरों से तो निकलें पर पूरे समय कोरोना प्रोटोकॉल पर कड़ाई से अमल करें। जो पालन न करे, उन्हें रोकने-टोकने का काम भी पब्लिक ही संभाले। मगर क्या ऐसा मुमकिन है?
छुट्टी पर जाने की अनुमति
अपर मुख्य सचिव रेणु पिल्लै मेहनती अफसर मानी जाती हैं. ऐसे समय में जब उनके पति, डीजी संजय पिल्ले कोरोना संक्रमण से जूझ रहे थे, अंबेडकर अस्पताल में ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। रेणु पिल्लै छुट्टी लिए बिना स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख होने के नाते पूरे प्रदेश में कोरोना को नियंत्रित करने में जुटी रहीं।
रेणु पिल्लै ने कठिन समय में अपना धैर्य नहीं खोया। ऐसेे विपरीत समय में भी वे रोजाना 12 घंटे से अधिक काम करती रहीं। अब जब संजय पिल्ले ने पखवाड़े भर अस्पताल में भर्ती रहने के बाद कोरोना की जंग जीत ली है, और विशेषकर रायपुर-दुर्ग में कोरोना कुछ हद तक नियंत्रित होता दिख रहा है। तब जाकर रेणु ने 15 दिन अवकाश पर जाने की अर्जी दी। सरकार ने भी उदारता दिखाते हुए उन्हें छुट्टी पर जाने की अनुमति दे दी है। स्वास्थ्य विभाग का प्रभार प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला को दिया गया है, जो कि विभाग की हर गतिविधियों से परिचित हैं, खुद मेडिकल डॉक्टर भी हैं, और रायपुर के मेडिकल कालेज में ही पढ़े हुए भी हैं।
ऐसे दुस्साहसी लोगों की वजह से
देश में कोरोना संक्रमण का कहर बरपा है। छत्तीसगढ़ में रोजाना दो सौ के करीब मौतें हो रही हैं। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए दर्जनभर शहरों में लॉकडाउन है। मगर ऐसे भी लोग है, जो कि कोरोना खतरे से बेपरवाह हैं। ऐसे ही रायपुर के एक मोहल्लेे के करीब सौ से अधिक लोग पंचायत चुनाव में वोट डालने उत्तरप्रदेश चले गए। उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव के पहले चरण की वोटिंग 26 तारीख को थी और दूसरा चरण 29 को। यह जानते हुए भी कि उत्तरप्रदेश में कोरोना संक्रमण छत्तीसगढ़ से ज्यादा है। बावजूद इसके इन लोगों ने वोटिंग में हिस्सा लिया, और वोट डालने के बाद ही लौटे हैं। अब ऐसे दुस्साहसी लोगों की वजह से मोहल्ले में कोरोना संक्रमण बढऩे के आसार दिख रहे हैं।
टावर नहीं तो पेड़ पर मोबाइल फोन
मई 2018 में जब तत्कालीन भाजपा सरकार ने स्काई योजना शुरू की थी तो कई तथ्य सामने आये थे। जैसे, सामाजिक आर्थिक जनगणना 2011 के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत वनों से आच्छादित इस प्रदेश के सिर्फ 29 प्रतिशत परिवारों के पास फोन है, जबकि देश का औसत 72 प्रतिशत है। 10 जिलों में 50 प्रतिशत से कम नेटवर्क कवरेज है और चार जिलों में यह 15 प्रतिशत है। इसी आधार पर 55 लाख हितग्राहियों की पहचान की गई और उन्हें 1230 करोड़ की स्मार्ट फोन बांटने की स्कीम लांच हुई। भरसक प्रयास के बाद भी चुनाव आचार संहिता लागू होने के तक फोन बांटे नहीं जा सके और जब प्रदेश में सरकार बदली तो स्कीम को बंद कर दिया गया। इसी स्काई स्कीम में एक हजार से अधिक आबादी वाले गांवों को नेटवर्क कनेक्टिविटी देने के लिये मोबाइल टावर देने की योजना बनाई गई। स्मार्ट फोन तो जितने बंटने थे बंटे, पर मोबाइल टावर नहीं लग पाये। इनमें बस्तर के इलाके सर्वाधिक प्रभावित हैं। निजी कम्पनियां वहां के दूरदराज इलाकों में टावर लगाना नहीं चाहती। हालांकि केन्द्र की अन्य योजनाओं के तहत यहां बीएसएनएल ने बहुत से टावर लगाये हैं और ज्यादातर सौर ऊर्जा से चलने वाले हैं। पर जिस तरह से बस्तर की भौगौलिक स्थिति है कई-कई किलोमीटर तक नेटवर्क अभी भी नहीं सुधरा है। ऐसे में जो जवान अकेले दुर्गम जंगलों में ड्यूटी करते हैं उन्हें परिवार से सम्पर्क करना बड़ा मुश्किल होता है।
लेकिन कई जवान इस मुश्किल को अपने तरीके से हल भी कर रहे हैं। वे अपने परिवार वालों से बातचीत के लिये मोबाइल फोन को रस्सी से बांधकर पेड़ की ऊंचाई पर ले जाते हैं फिर नीचे ब्लू ट्रूथ से बातें करते हैं। और इस तरह बिना नेटवर्क वाले इलाकों में भी वे अपने दोस्तों और परिवार से सम्पर्क कर लेते हैं। (फोटो ट्विटर-रितेश मिश्रा)
युवाओं के टीकाकरण का श्रीगणेश
केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप तीसरे चरण में आज एक मई से युवाओं को टीका लगाने की शुरूआत करने वाले ज्यादातर राज्य भाजपा शासित हैं। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने आखिरी वक्त में कल इस बारे में फैसला लिया। राजधानी रायपुर में कुल 13 सेंटर तो बिलासपुर में 10 सेंटर ही बनाये गये हैं जिनमें 18 से 45 आयु वर्ग के अति गरीब परिवारों के लोगों को टीका लगाया जायेगा। बस्तर जैसे कुछ दूरस्थ जिलों में यह अभियान 2 मई से शुरू किया जा रहा है। यानि यह शुभ मुहूर्त का टीका होगा, जिसके दो चार दिन में बंद हो जाने की संभावना है। राज्य सरकारों को वैक्सीन निर्माता कम्पनियों ने कह दिया है कि मई आखिरी या जून के पहले सप्ताह में ही टीके की आपूर्ति हो पायेगी। यह देखने की बात है कि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में भी इसी तरह से टोकन के तौर पर ही सही, अभियान शुरू हो सकता था। पर, वहां 5 मई तिथि तय की गई है। कुछ दूसरे राज्यों ने भी देर से टीका शुरू करने का निर्णय लिया है। क्या देर से टीकाकरण करने वाले राज्यों को आवश्यकता के अनुसार नियमित आपूर्ति हो पायेगी? क्या छत्तीसगढ़ की तरह उनको एक माह इंतजार नहीं करना पड़ेगा? उन सरकारों से दवा निर्माता कम्पनियों के साथ उन राज्यों की बातचीत सामने नहीं आई है। पर यह तो तय है कि आपूर्ति के संकट का समाधान दो चार दिन अभियान को आगे खिसका देने से नहीं होने वाला है। हां, छत्तीसगढ़ को लेकर यह जरूर कहा जा सकता है कि मई तक जो खाली समय बच रहा है, उसमें 45 प्लस का टीकाकरण दूसरे डोज के साथ पूरा कर लिया जाये इसके व्यवस्था बनाये रखने में भी मदद मिलेगी।
कोरोना सेंटर में कम्पीटिशन की तैयारी
कोविड वैक्सीनेशन कराते हुए फोटो खिंचवाना फिर उसे सोशल मीडिया पार डालना, आम बात हो गई है। अब इस पर वाहवाही नहीं मिलती। लोगों का ध्यान खींचने के लिये अलग करना पड़ रहा है। जैसे कोई मातृत्व अवकाश लेने के बजाय सडक़ पर ड्यूटी लगे, जैसे गोद में नवजात को लिये दफ्तर आ जायें। यानि, तस्वीरें इस तरह से भी ली जानी चाहिये मानो आप तस्वीर लेने और वायरल किये जाने से अनजान हैं। ऐसी तस्वीरों की कुछ लोगों की आलोचना झेलनी पड़ती है पर ज्यादातर तारीफ तो हजारों लोग करते हैं। कोविड सेंटर में एक प्रतियोगी युवा किताबें लेकर पहुंच गया है। वह पढ़ाई का मौका नहीं गंवाना चाह रहा है। इस तस्वीर की तारीफ में तो बहुत से टिप्पणियां हैं पर कई लोगों को यह ‘नाटक’ भी लग रहा है। वे कहते हैं पढ़ाकू हैं तो अच्छी बात है पर जहां कोरोना के लिये एक-एक बिस्तर के अभाव में लोगों की जान जा रही है, बेड को ऐसे घेरकर रखना नहीं चाहिये। हालत ठीक है तो घर पर जाकर सेहत सुधार लें। एक ने कहा कि पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिये। वैसे तस्वीर छत्तीसगढ़ की नहीं। झारखंड की हो सकती है क्योंकि वहीं के एक राज्य प्रशासनिक अधिकारी के पेज पर यह मिली है।
वेंटिलेटर बेड पर आंकड़े और हकीकत
हाईकोर्ट के कर्मचारियों और उनके परिवारों को ऑक्सीजन और वेंटिलेटर हासिल करने में बड़ी दिक्कत जा रही है। इसके चलते हाईकोर्ट प्रशासन ने एक नोडल अधिकारी के साथ टीम बना दी है जो बेड मिलने में विलम्ब के कारण इलाज में हो रही दिक्कत की समस्या प्रशासन के साथ तालमेल बिठाकर दूर करेगी।
जिसने भी सरकार का वह दावा सुना, भौचक्का रह गया था। वे कौन काबिल अधिकारी थे जिन्होंने अदालत में जवाब भेजा था कि राज्य में कोविड मरीजों के लिये वेंटिलेटर, ऑक्सीजन बेड और नर्सिंग बेड की कोई कमी नहीं है। कल ही कोरोना से जूझ रहे एक आईएएस के परिवार की महिला सदस्य की मौत हो गई और उनके पति अभी भी कोरोना से अस्पताल में कोरोना से संघर्ष कर रहे हैं। घंटों इधर-उधर फोन घनघनाने के बाद भी उन्हें वेंटिलेटर बेड नहीं मिल पा रहे थे। बेड मिली तब तक काफी देर हो चुकी थी। कई नेता, अधिकारी और वकीलों से बात करें तो पता चलता है कि उनका कोई न कोई करीबी इस समय वेंटिलेटर की कमी का शिकार हो चुका है। फाइलों में महामारी के मौसम को तो गुलाबी बताया जा रहा है। मगर वेंटिलेटर के अभाव में हो रही मौतों को देखकर कह सकते हैं कि ये आंकड़े झूठे और दावे किताबी हैं।
न्यूज चैनल आज शाम से नहीं डरायेंगे..
आज शाम 6 बजे से कोरोना से आपको राहत मिलने लगेगी। जी, ठीक ही फरमा रहे हैं। कोरोना को लेकर जितनी दहशत हो रही है वह न्यूज चैनल और सोशल मीडिया की वजह से ही तो है। और आज शाम 6 बजे से विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल के अलावा उनमें कुछ दिखाई नहीं देगा। यह अलग बात है कि परिजन वैसे ही रेमडेसिविर के लिये कतार में होंगे, मरीज ऑक्सीजन के बगैर दम तोड़ रहे होंगे और श्मशान घाटों पर लाशों को जलाने के लिये टोकन बंट रहे होंगे। पर चुनाव नतीजों से बढक़र तो नहीं। न्यूज चैनल कभी हमें दुख के सागर में गोते लगवाते हैं, कभी भक्तिभाव से ओत-प्रोत कर देते हैं, कभी एक को दूसरे के खिलाफ भडक़ाकर खून खौला देते हैं। पांच राज्यों खासकर पश्चिम बंगाल में क्या होता है इस जिज्ञासा में दर्शक आज शाम से ऐसे उलझेंगे कि दो तीन दिन तो भूल ही जाने वाले हैं कि महामारी क्या है कोरोना किस बला का नाम है।
वैक्सीन का सौदा कितने में होगा?
अपने देश में मोल-भाव के बिना कोई सौदा पक्का होता है क्या? दुकानदार कीमत ऊंची करके इसीलिये बताता है क्योंकि उसे अंदाजा होता है कि मोलभाव होगा। उसको तो तुम एक शीशी 150 रुपये में दे रहे हो, हमें 400 में क्यों? इतनी मुनाफाखोरी? जरूरत आ पड़ी है तो कुछ भी रेट लगाओगे?
केन्द्र की ओर से तो कोई जवाब नहीं आ रहा है। उसे तो 150 में मिल गया। वैक्सीन का उत्पादन करने के लिये केन्द्र से आर्थिक सहायता मिली है तो उसे तो सस्ते में लेने का हक है। पर केन्द्र ने सिर्फ अपने स्टोर के लिये मांगी। राज्यों को कह दिया, खुद ही पक्का कर लो। अब छत्तीसगढ़ जैसे राज्य की स्थिति यह है कि कि ऑर्डर देने के बाद सीरम से जवाब भी नहीं आ रहा है कि कब से वैक्सीन की आपूर्ति शुरू होगी। जैसा कि होता आया है फैसले केन्द्र लेती है अमल करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर होती है। पहले लॉकडाउन के समय से ही यही दिखाई दे रहा है। एक मई से वैक्सीन लगाने का निर्णय भी कुछ ऐसा ही है। इधर वैक्सीन की अलग-अलग दाम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछ लिया है। बिना बातचीत शुरू हुए ही 100 रुपये कीमत घटा दी गई है। पर एक राष्ट्र, एक दाम की मांग हो रही है। इस पर केन्द्र से जवाब आना चाहिये जो छत्तीसगढ़ को नहीं मिल रहा है। ऐसे राज्य में जहां कोरोना एक बड़ी चुनौती हो, वैक्सीन न्यूनतम कीमत पर तो मिलनी ही चाहिये।
एम्बुलेंस के भाड़े पर लगाम
जिसके हिस्से जो बन पड़ रहा है कोरोना पीडि़तों की मदद करने में लगा हुआ है। पर इस दौरान जिनका व्यवसाय चमक उठा है उनमें टैक्सी वाले भी हैं। बीमार को अस्पताल ले जाना हो, वहां से डायग्नोस्टिस सेंटर ले जाना हो, तबियत ठीक होने पर घर लाना हो या मौत हो जाने पर श्मशान गृह ले जाना हो, हर किसी को एम्बुलेंस की जरूरत पड़ रही है। मजबूरी को देखते हुए कई टैक्सी चालकों ने अनाप-शनाप किराया वसूल करना शुरू कर दिया है। शिकायतें ज्यादा आने लगी तो रायपुर कलेक्टर ने टैक्सी का भाड़ा तय कर दिया। यह निर्धारण सामान्य दिनों में प्रचलित भाड़े से ज्यादा ही है, पर बहुत अधिक नहीं। आदेश रायपुर कलेक्टर की ओर से जारी हुआ जो सिर्फ रायपुर के लिये है। अस्पतालों के बिल की तरह यह भी जरूरी खर्च है जो हर मरीज या उसके परिजन के सिर पर आता है। हो सकता है आदेश के बाद टैक्सी भाड़े पर रायपुर में थोड़ी लगाम लग जाये पर बाकी जिलों का क्या? अब तो लगभग हर जिले में कोविड केयर सेंटर हैं। परिवहन विभाग से पूरे राज्य के लिये आदेश जारी हो तो बात बने।
वैक्सीनेशन को लेकर हिचक भारी न पड़े
छत्तीसगढ़ की उपलब्धि है कि टीकाकरण की स्थिति यहां कई विकसित कहे जाने वाले राज्यों से बेहतर है। देश के बड़े राज्यों में अपने प्रदेश का स्थान दूसरा है। पर अगली बार जब फिर से डेटा तैयार किया जायेगा तो यही तस्वीर बनी रहेगी इसकी संभावना कम दिखाई दे रही है। इसकी वजह यह है कि हर दिन टीकाकरण की रफ्तार घटती जा रही है। ज्यादातर जिलों में 20-30 प्रतिशत ही रोजाना का लक्ष्य हासिल हो पा रहा है। दरअसल, सरकारी स्तर पर वैक्सीन की कमी तो दूर कर ली गई है और अस्थायी वैक्सीनेशन सेंटर भी जगह-जगह बनाये जा रहे हैं पर एक कमी यह दिखाई दे रही है कि वहां पहुंचने वालों से कोरोना गाइडलाइन का पालन कराने वाला कोई नहीं। सब मास्क लगाकर जरूर पहुंचते हैं पर ज्यादातर केन्द्रों में सैनेटाइजर नहीं है। कुछ समझदार लोग अपने साथ सैनेटाइजर ले आते हैं। दूसरी बात, दो गज की दूरी के नियम का पालन नहीं हो रहा है। वैक्सीनेशन तब तक शुरू नहीं किया जाता जब तक कम से कम 10 लोग रजिस्टर्ड नहीं हो जाते। इसके पहले वैक्सीन लगवा चुके लोगों को भी आधे घंटे तक वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट तो नहीं हो रहा है यह देखने के लिये बिठाकर रखते हैं। वैक्सीनेशन की टीम को जोड़ दें तो एक समय पर एक कमरे में 25, 30 लोगों का मौजूद होना सामान्य है। इन सबको दो गज की दूरी पर बिठाना, वैक्सीनेशन के लिये बुलाये जाने पर पर्याप्त दूरी रखते हुए अपनी बारी का इंतजार करना जरूरी है, पर इसका पालन नहीं हो रहा है। इसे देखने के लिये वालेंटियर्स की कमी भी वैक्सीनेशन सेंटर्स में महसूस हो रही है। ज्यादातर केन्द्रों में ये होते नहीं। इन दिनों छत्तीसगढ़ में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ा है वैक्सीनेशन कराने के इच्छुक लोग भी थोड़ा इंतजार करना चाहते हैं, लेकिन आगे तो भीड़ इससे ज्यादा होने की उम्मीद है। क्योंकि 18 वर्ष से ऊपर के आयु वालों का रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है। मई में उन्हें भी टीके लगेंगे। लॉकडाउन खत्म हो गये तो घरों से ज्यादा लोग वैक्सीनेशन के लिये निकलेंगे।
मौका मिला गंगा नहा लिये
18 प्लस वालों का वैक्सीनेशन के लिये पंजीयन आज से शुरू हो गया है। एक मई से युवाओं को वैक्सीनेशन शुरू करने की केन्द्र सरकार की घोषणा के बीच छत्तीसगढ़ में संशय की स्थिति है। वैक्सीन का ऑर्डर तो कर दिया है पर दवा कम्पनियों ने यह नहीं बताया है कि कब आपूर्ति होगी। स्वास्थ्य मंत्री को तो लगता है कि जिस मात्रा में वैक्सीन की जरूरत है जून माह से ही युवाओं को वैक्सीन लगाने का मौका मिलेगा। इधर कल कोरबा जिले के कटघोरा अनुविभाग के दर्जनों टीकाकरण केन्द्रों में युवक कांग्रेस और सेवादल के कार्यकर्ताओं ने टीका लगवा लिया। यह तब हुआ है जब टीकाकरण तो दूर पंजीयन की प्रक्रिया भी शुरू नहीं हुई थी। इस बारे में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर की नरमी भी ध्यान देने लायक है। कहा है- गलतफहमी में कुछ केन्द्रों में ऐसा हो गया। जानबूझकर कोई गलती नहीं की गई इसलिये किसी पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। इनका पंजीयन भी एक मई के बाद करा लिया जायेगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा तो था कि हम 18 प्लस के लिये पूरी तरह तैयार हैं पर इतनी दुरुस्त है कि समय से पहले टीका लगना शुरू हो जाये, अंदाजा नहीं था।
घबराहट से बचे रहने के दो उपाय
इन दिनों अनेक लोगों ने सोशल मीडिया, खासकर वाट्सअप खोलना बंद कर दिया है। न्यूज चैनल भी नहीं देख रहे हैं। दिल की बीमारी से पीडि़त एक 60 प्लस बुजुर्ग ने अपना नुस्खा बताया। वे कोरोना की स्थिति भयावह होने से पहले तक टीवी और वाट्सअप में पूरा दिन बिता लेते थे, समय कब कट जाता था पता नहीं चलता था। पर, उन्होंने पहला काम किया, सभी न्यूज चैनल लॉक। कोई सा भी नहीं देखना है। वाट्सएप एकाउन्ट ही मोबाइल से डिलीट। अख़बार में खबर को छोडक़र लेख, मनोरंजन की चीजें हो तो वे पढ़ते हैं। और सबसे बड़ा काम वो ये करते हैं कि डब की हुई साउथ की फिल्में टीवी औ देखते रहते हैं। वजह? उनमें हीरो का जबरदस्त एक्शन होता है। बीस बीस गुंडों को धराशायी करता है.. कांफिडेंस बढ़ता है। बॉलीवुड की फिल्मों में वो बात नहीं है।
ऑटो चलाते पीएचडी हासिल की थी
कोरोना से जंग लड़ते हुए छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग के सहायक संचालक डॉ. छेदीलाल तिवारी भी अब हमारे बीच नहीं रहे। छेदी लाल जी को जो लोग जानते हैं उनके लिए यह बहुत दुखद खबर है। उन्होंने काफी संघर्ष के बाद विभाग में एक मुकाम हासिल किया था। शुरू में वे उसी विभाग में एक चतुर्थ वर्ग कर्मचारी थे। विभाग में वे एक ड्रायवर बनकर कभी जीप, तो कभी आटो चलाते थे। दिनभर काम करने के बाद वे रोज शाम को आटो चलाकर अख़बारों को प्रेस नोट भी बांटा करते थे। उन दिनों आज की तरह इंटरनेट नहीं था। शाम होते ही सभी प्रेस वाले छेदीलाल का इंतजार करते थे। छेदीलाल खुद आटो चलाकर सभी प्रेस जाते और प्रेस नोट बांटा करते थे। प्रेस नोट देकर सभी का वे मुस्कुराकर अभिवादन भी करते थे। इतने विनम्र कि देरी होने पर कुछ प्रेसवाले उन्हें डांट भी दिया करते थे, लेकिन वे किसी को कोई जवाब नहीं देते और मुस्कुराकर आगे बढ़ जाते थे। छेदीलाल देर रात तक विभाग में काम करते और घर आकर पढ़ाई भी करते थे। छेदीलाल ने अभाव को कभी मुश्किल नहीं माना। एक दिन अचानक लोगों को पता चला कि छेदीलाल ने पीएचडी कर ली है। तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने डॉ. छेदीलाल जी को भोपाल बुलाकर उनका सार्वजनिक रूप से सम्मान किया। विभाग में उन्हें चतुर्थ वर्ग कर्मचारी से अधिकारी बना दिया। अपने अच्छे और मिलनसार व्यवहार के कारण वे सबके प्रिय थे। बीती रात कोरोना उन्हें ले गया। (गोकुल सोनी की फेसबुक पोस्ट)
घर पर मास्क लगाने की सलाह
नीति आयोग ने यह कहकर एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है कि घरों में मास्क पहनना शुरू किया जाये। कोरोना संक्रमण से बचने के लिये लोगों को बाहर निकलने से मना करते हुए लोगों को दार्शनिक तरीके से अब तक समझाया जाता रहा है कि घरों में रहिये, परिवार के साथ समय बितायें। जिन लोगों से बात करने का, साथ बैठकर टीवी देखने, खाना-खाने, हाल-चाल जानने, बताने का मौका नहीं मिल रहा था, अब घर में रहकर वह सब कीजिये। आंकड़े हैं कि इस बार पूरे परिवार को कोरोना संक्रमण का सिलसिला चल पड़ा है। युवा और बच्चे भी नहीं बच पा रहे हैं। कई परिवारों में एक से अधिक सदस्यों की मौत भी हो गई। ऐसा इसलिये भी हुआ कि कोई एक सदस्य किसी काम से घर से बाहर निकला और अपने साथ वायरस चिपका लाया। वायरस घर के दूसरे सदस्यों पर भी वार कर गया। इसलिये, घर पर मास्क पहनने की बात अटपटी जरूर लग रही हो, पर ऐसी स्थिति में जब कोरोना मरीजों को बेहतर इलाज मिल पाना युद्ध जीतने की तरह हो, सुझाव पर विचार तो करना ही पड़ेगा।
एमपी पर सवाल तो बनता है..
वैक्सीन की कीमत राज्यों से अधिक लिये जाने के विरोध में कांग्रेस नेताओं ने कल भाजपा के सांसदों, विधायकों को गुलाब फूल दिया और केन्द्र सरकार से दाम कम कराने की सिफारिश की। इस तरह के फ्लावर पॉलिटिक्स से कोई फ्लेवर निकलेगा इसकी उम्मीद तो कम है पर पक्ष-विपक्ष की लड़ाई में कई बातों की तरफ आम लोगों का ध्यान जरूर खिंच जाता है। गुलाब सौंपने पर भाजपा की तरफ से आई प्रतिक्रियाओं में एक यह भी है कि राज्यसभा सदस्य केटीएस तुलसी जी क्या कर रहे हैं, उनका पता बतायें। वे छत्तीसगढ़ से चुनकर गये हैं। वे गुलाब लेकर प्रधानमंत्री के पास जाते और वैक्सीन तथा अन्य संसाधन उपलब्ध कराने के लिये धन्यवाद देते।
वैसे आज की बात नहीं, पहले भी देखा गया है कि ऐसे राज्यसभा सदस्य जो संख्या बल के आधार पर दिल्ली में शीर्ष नेताओं के बीच पकड़ रखने के कारण चुने जाते हैं उनका चुने गये राज्य की समस्याओं, जरूरतों, मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं रहता। कम से कम वे 6 साल उस राज्य के साथ अपने को जोड़ सकते हैं। पर, शायद वे सोचते हैं कि ऐसा करने की जरूरत क्या है, कौन सा आगे चलकर यहां से चुनाव लडऩा है, आलोचना या शिकायत हो तो होती रहे।
दिल्ली को मिला छत्तीसगढ़ से ऑक्सीजन
दिल्ली की टूटती सांसों को थामने में छत्तीसगढ़ ने भी अपनी जिम्मेदारी निभाई। आज सुबह 64.55 टन ऑक्सीजन रेलवे के रास्ते से दिल्ली पहुंच गया। इसे कल सुबह रायगढ़ से रवाना किया गया था। दिल्ली देश की राजधानी है। कोरोना पीडि़तों की हाहाकार सब न्यूज चैनल, सोशल मीडिया और अखबारों में है। हालांकि छत्तीसगढ़ की स्थिति भी अच्छी नहीं है। ऑक्सीजन की कमी नहीं होते हुए भी यहां मरीजों की मौतें थम नहीं रही हैं। इसके दूसरे कई कारण है। कवर्धा का ही लें, यह केबिनेट मंत्री मोहम्मद अकबर और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का क्षेत्र है। यहां सात वेंटिलेटर हैं, पर एक भी काम नहीं कर रहा। राजधानी और एक दो बड़े शहरों को छोड़ दें तो अन्य जिलों, कस्बों में भी यही हाल है। कई जगह वेंटिलेटर बिगड़े हैं तो कई अस्पतालों में इन्हें ऑपरेट करने के लिये दक्ष लोगों की कमी है। ऑक्सीजन तो हैं, पर ऑक्सीजन बेड तैयार नहीं हैं। ऑक्सीजन की फिलिंग के लिये सिलेंडर्स की कमी से भी कई शहर जूझ रहे हैं।
70 हजार शादियां पर सब फीकीं
ठीक शादियों के वक्त कोरोना महामारी ने इस तरह पैर पसारा है कि लगभग पूरा प्रदेश लॉकडाउन के दायरे में आ चुका है। लॉकडाउन का पहला चरण यदि 20-22 अप्रैल तक समाप्त हो जाता तो बहुत से विवाह समारोह हो जाते। 22 अप्रैल से लेकर देवशयनी एकादशी 15 जुलाई तक विवाह के 37 मुहूर्त हैं। पर ज्यादातर शहरों में लॉकडाउन दूसरी और तीसरी बार बढ़ा दिया गया है। यह मई के पहले सप्ताह तक चलने वाला है। जिस तेजी से महामारी फैल रही है उसके चलते यह संभावना भी नहीं दिख रही है कि हालात सामान्य हो जाये और अगले माह लोगों को भीड़ जमा करने की छूट मिल जाये। यदि 15 जुलाई तक हालात नहीं सुधरे तो शादियों का ये सीजन तो गया। उसके बाद फिर देवउठनी एकादशी के बाद ही 15 नवंबर से मुहूर्त है। तब दिसम्बर तक 13 शादियां की जा सकेंगीं।
ज्यादातर लोगों को कोरोना के प्रकोप से जल्दी छुटकारा मिलने की उम्मीद नहीं है। इसीलिये एक तरफ से सिर्फ 10 लोगों को शामिल करने की अनुमति होने के बावजूद प्रदेशभर में करीब 73 हजार आवेदन शादियों के लिये किये गये हैं। इनमें से कई लोगों ने कड़ी पाबंदी को देखते हुए अर्जी वापस ले ली है, जबकि कुछ निरस्त भी किये गये हैं। जाहिर ये शादियां सादगी और सीमित मेहमानों के बीच होगी। कोई भव्यता नहीं होगी। इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें हुआ है जिनके साल भर की आमदनी इन्हीं शादियों पर टिकी है, जैसे केटरिंग, बैंड बाजे, होटल, टेंट, पुरोहित, फोटोग्रॉफर आदि। अब इसे विडम्बना भी कहेंगे कि पिछले साल भी कोरोना के चलते लॉकडाउन इसी सीजन में लगाया गया था। तब इन व्यवसायों से जुड़े लोगों को उम्मीद थी कि 2020 के गुजर जाने के बाद सब अच्छा हो जायेगा, पर 2021 उससे कहीं ज्यादा बुरे दिन दिखा रहा है।
कब इस्तेमाल करेंगे इन पैसों का?
कोरोना मरीजों के लिये जीवनरक्षक रेमडेसिविर इंजेक्शन की प्रदेश में आपूर्ति पर्याप्त शुरू हो जाने के दावे के बावजूद इसकी कालाबाजारी थमने का नाम नहीं ले रही है। कई डॉक्टर, वार्ड ब्वाय और नर्स और मेडिकल स्टोर संचालक इस भयंकर आपदा में मुनाफा देख रहे हैं। कल एक ही दिन में सरगुजा, बिलासपुर और रायपुर में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया। स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े बहुत से लोगों का विद्रूप चेहरा दिखाई दे रहा है। महामारी में जहां से मिले लूट-खसोट कर रहे हैं। निजी अस्पतालों में सरकार की तय दर से कई गुना ज्यादा फीस जमा कराई जा रही है। अनाप-शनाप अनावश्यक टेस्ट कराये जा रहे हैं ताकि बिल बढ़े। इलाज क्या हुआ, परिजनों को पता नहीं चलता, सीधे लाश सौंप दी जाती है। एम्बुलेंस तक का किराया पांच-दस गुना बढ़ा दिया गया है। जो लोग मरीजों और उनके परिजनों को पीड़ा को समझे बगैर अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं, उनके साथ ए सोच पॉजिटिव है। वो ये कि इस भयंकर आपदा के बाद भी सामान्य दिन आ जायेंगे, तब वह अपनी अनाप-शनाप कमाई हुई रकम का उपभोग कर पायेंगे।
कोरोना मृतकों को सहायता
कोरोना महामारी राष्ट्रीय आपदा ही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि देश में मेडिकल इमरजेंसी के हालात है। ऐसे में कोरोना के चलते मारे गये लोगों के लिये यदि परिजनों की मांग है कि उन्हें मुआवजा मिलना चाहिये तो इसमें गलत क्या है? राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 में प्रावधान तो है कि आकस्मिक मृत्यु में मृतकों के आश्रितों को आर्थिक सहायता दी जाये। पर प्रदेश में मरने वालों की संख्या अब 7 हजार से ऊपर पहुंचने जा रही है। सब मामलों में 4-4 लाख रुपये दिये गये तो एक बड़ा हिस्सा इन पर खर्च करना पड़ेगा, जबकि अभी स्वास्थ्य सेवाओं पर आई आपदा को दुरुस्त करने में ही बड़ी राशि की जरूरत पड़ रही है।
इधर प्रदेश भर में लोगों ने इसी आधार पर राजस्व विभाग को आवेदन करना शुरू कर दिया है। कोविड मरीजों की सहायता के लिये बनाये गये कंट्रोल रूम में भी लगातार फोन कर पूछा जा रहा है कि कहां आवेदन करें? इसके जवाब में शासन ने दिसम्बर 2020 का एक पुराना पत्र फिर से निकालकर बताया है कि कोविड-19 से होने वाली मौतों में मुआवजे या अनुदान का प्रावधान नहीं रखा गया है। वैसे लोग समझ रहे हैं कि मौजूदा परिस्थिति में कम से कम इस तरह की सहायता तो नहीं की जा सकती है, पर मांग उठ रही है। सोशल मीडिया पर भी अभियान चल ही रहा है।
टीकाकरण की रफ्तार इतनी घटी क्यों?
राज्य में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ता जा रहा है, उसी रफ्तार से वैक्सीनेशन धीमा पड़ता जा रहा है। अप्रैल की शुरुआत में जहां दो लाख से ज्यादा लोगों को टीके लगाये जा रहे थे, अब वह 50-50 हजार के बीच सिमटकर चुका है। टीकाकरण में लगे डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना के नये स्ट्रेन के बारे में लोगों के मन में यह बात घर कर रही है कि बाहर निकलने पर उन्हें संक्रमण घेर लेगा। महामारी का असर कुछ कम हो तो टीका लगवाने निकलें। आंकड़ों के साथ सरकार द्वारा दिये गये स्पष्टीकरण के बावजूद बहुत से यह भी सोच रहे हैं कि टीके लगवाने के बाद नहीं होने हो तब भी कोरोना न हो जाये। अप्रैल के पहले हफ्ते में लोगों ने यह भी देखा कि हर दिन नये संक्रमित लोगों और मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है। अब एक मई से 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाने का अभियान शुरू हो रहा है। इसके लिये बड़ी संख्या में नये वैक्सीनेशन सेंटर तो खोलने ही पड़ेंगे। वरना मौजूदा केन्द्रों में फिर बड़ी भीड़ जमा होगी और फिर टीका लगवाने से लोग कतरायेंगे।
उद्योगों में ताले लगने का असर?
यह बात साफ है कि छत्तीसगढ़ में अस्पतालों को सप्लाई करने के लिये ऑक्सीजन की कमी नहीं है। दिक्कत ऑक्सीजन बेड और सिलेंडर की है। छत्तीसगढ़ के सरप्लस ऑक्सीजन की महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में आपूर्ति भी की जाती है। पर केन्द्र ने निर्देश दिया है कि उद्योगों को दिया जाने वाला ऑक्सीजन तुरंत बंद कर दिया जाये। ऑक्सीजन की सबसे ज्यादा औद्योगिक खपत स्टील इंडस्ट्री में होती है। छत्तीसगढ़ इसका हब है। राजस्व का बड़ा हिस्सा इन्हीं उद्योगों से मिलता है। बड़ी संख्या में, अनुमानित करीब 4 लाख लोगों को इससे रोजगार भी मिला हुआ है। इससे किसी को इन्कार नहीं है कि अस्पतालों को सबसे पहले ऑक्सीजन मिलनी चाहिये, लेकिन यदि ऐसा उद्योगों को पूरी तरह बंद किये बिना क्यों नही किया जा सकता? सीएम ने प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में ऐसा कहा भी था कि एक सिरे से सारे ऑक्सीजन निर्भर उद्योगों को बंद न किया जाये। आगे क्या रास्ता निकलता है देखना होगा।
100 शिक्षकों की मौत!
शिक्षकों का सेटअप किसी भी राज्य में सबसे बड़ा होता है। इसलिये जब भी व्यापक स्तर पर मैदानी अमले की जरूरत होती है तो सबसे पहले उनको ही ड्यूटी लगाई जाती है। जनगणना, आर्थिक सर्वेक्षण, मतदान जैसे कार्यों में तो उनकी ड्यूटी हर बार लगती ही है। इस बार अभूतपूर्व कोरोना संकट में भी उन पर बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी डाली गई है। अस्पतालों में आने वाले मरीजों के रजिस्ट्रेशन से लेकर श्मशान घाट में जलाये जाने वाले शवों की गिनती तक कई काम उन्हें सौंपे जा रहे हैं। इधर, शिक्षक संगठनों का दावा है कि उनसे जोखिम भरा काम लिया जा रहा है पर सुरक्षा के कोई साधन नहीं दिये गये हैं। इसके चलते अब तक प्रदेश के 100 से ज्यादा शिक्षकों की मौत हो चुकी है। अब शिक्षकों के लिये 50 लाख रुपये का बीमा और आश्रितों के लिये नौकरी की मांग की जा रही है। यदि मौतों का आंकड़ा सही है तो बेहद चिंताजनक है। ड्यूटी करने के दौरान इतनी सुविधा तो मिलनी ही चाहिये कि उन्हें मौत के मुंह में न जाना पड़े।
बारातियों का कोविड टेस्ट
बस्तर के बोरपदर गांव में चैनसिंह ठाकुर के घर से एक बारात निकाली। मेजबान चैन सिंह ठाकुर ने रास्ते में सबको रुकने के लिये कहा। सामने कोविड टेस्ट सेंटर था। मेजबान ने कहा सब अपना-अपना एंटिजन टेस्ट करा लें। कुछ हैरान हुए, कुछ ने ना नुकर की लेकिन आखिर सब तैयार हो गये। दो घंटे में सबकी टेस्ट रिपोर्ट भी आ गई। संयोग से सभी की रिपोर्ट निगेटिव मिली। इसके बाद बारात आगे बढ़ी और सब शादी के लिये कुमाकोलेंग गांव रवाना हुए।
कल ही एक ख़बर आई थी जिसमें तखतपुर के एक परिवार ने विवाह में मास्क और सैनेटाइजर जरूरी कर दिया था। वर, वधू ने भी मास्क पहनकर शादी की सारी रस्म पूरी की। पर, बस्तर का उदाहरण तो अमल में लाने योग्य है। लॉकडाउन के दौरान पहले 40-50 लोगों को शादी में शामिल होने की अनुमति थी, इस बार ज्यादा प्रकोप फैला है इसलिये 20 की मंजूरी दी गई। मगर, कोरोना फैलने के लिये 20 का होना भी तो काफी है। क्यों न प्रशासन यह आदेश निकाले कि 20 की जगह भले ही 40 लोग शामिल हो जायें, लेकिन जितने लोग भी समारोह में जाना चाहते हैं वे पहले कोविड टेस्ट करायें और शामिल तभी हों जब रिपोर्ट निगेटिव हो।
कोरोना भगाने का एक और तरीका
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरुण दिवाकर बाजपेयी को तो देखने से ही समझ आता है कि वे आध्यात्मिक विचारों के व्यक्ति हैं। भारतीय परम्पराओं और इतिहास का उदाहरण अपनी गतिविधियों में सामने रखते हैं। उन्होंने अपना कार्यभार ग्रहण करते समय कार्यालय में हवन भी किया था। अब कोरोना को लेकर भी उनकी दृष्टि सामने आई है। उन्होंने अपने दफ्तर के दरवाजे पर नीम की पत्तियां लटका रखी हैं। जो प्रवेश करेगा इन्हें मुंह में लेकर चबायेगा, तब भीतर प्रवेश करेगा। मानना यह है कि आगंतुक के मुंह से कोई वायरस निकलेगा तो नीम पत्तियां उसे नष्ट कर देगी। अब उन्होंने एक चिकित्सकीय सलाह अपने स्टाफ और आम लोगों को दी है। उन्होंने कहा है कि नीम की पत्ती, तुलसी, हल्दी और प्याज का इस्तेमाल करें। इससे कोरोना वायरस आप पर आक्रमण करता है तब भी आपको कुछ नहीं बिगड़ेगा, वायरस नष्ट हो जायेगा।
वैसे प्रो. बाजपेयी की सोच एकतरफा नहीं है। शिक्षाविद् हैं, वैज्ञानिक सोच रखते हैं। अपने दावे के बावजूद, उन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज जो लगवा ली है। हल्दी, नीम, प्याज वगैरह के फायदे से तो किसी को इंकार नहीं, पर यह दावा करना कि इसके इस्तेमाल से कोरोना का वायरस नष्ट हो जायेगा, कुछ अधिक बड़ी बात लगती है। ठीक यही बात बाबा रामदेव करते हैं। वैसे, प्रो. बाजपेयी भी इससे पहले अपनी सेवायें उत्तराखंड में दे रहे थे।
घरों में जाम ऑक्सीजन सिलेंडर
कोरोना से संक्रमित बहुत से मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ रही है। बहुत से ऐसे मरीज हैं जिनका घरों मे इलाज चल रहा है पर उन्हें ऑक्सीजन जरूरी है। अस्पताल में बेड नहीं मिलने और वहां के खर्च देखकर लोग घरों में ही इलाज करा रहे हैं।
कई समाजसेवी संस्थाओं ने इस समस्या को देखते हुए कुछ जमानत राशि लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर देने की सेवा शुरू की है। जब मरीज या उनके परिजन ऑक्सीजन सिलेंडर लौटायेंगे तो यह अमानत राशि वापस भी कर दी जायेगी। यानि किराया कुछ नहीं लगेगा। इस पुण्य का नुकसान यह हो रहा है कि बहुत लोगों ने सिलेंडर घर लाकर रख लिया है, चाहे उन्हें इसकी जरूरत न हो। जो ठीक हो गये हैं उन्हें भी डर सता रहा है कि क्या पता कब इसकी दुबारा जरूरत पड़ जाये। इसका परिणाम यह निकल रहा है कि सरकारी स्तर पर ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी तो है ही, समाजसेवियों के ऑक्सीजन सिलेंडर बड़ी संख्या में घरों में जाम हो गये हैं। जिन्हें अब सिलेंडर की जरूरत नहीं रह गई है अगर वे इसे लौटा दें तो दूसरे गंभीर, जरूरतमंद मरीजों की जान बच जायेगी। संस्थाओं ने भी अब पता लगाना शुरू किया है कि जिन्हें सिलेंडर दी गई है वे उनके घर खाली तो नहीं रखे हैं। कई ऐसे सिलेंडर घरों से वापस भी लाये जा रहे हैं।