राजपथ - जनपथ
न मिलें ऐसी तस्वीरें देखने को
यह तस्वीर ट्विटर पर एक यूजर ने शेयर की है। यह कहते हुए कि सबसे ऊंची प्रतिमा बन गई, सबसे बड़ा स्टेडियम बन गया। इनका हम क्या करें। जब अस्पतालों में ही जगह न हो, इलाज न मिले। एक अन्य ने लिखा है मंदिर वहीं बन रहा है। अस्तालों में बेड मांगकर शर्मिंदा न करें।
फोन नंबर किसी काम के नहीं
कोरोना आपदा के चलते डॉक्टरों पर काम का जो बोझ आया है शायद वे ही इसे महसूस कर सकते हैं। कई घटनायें सामने आ रही हैं, जिनमें साथ पढ़े लिखे दोस्तों का भी फोन वे नहीं उठा रहे हैं। फोन उठ रहा भी है तो उनके स्टाफ की आवाज आ रही है।
प्रशासन ने सारे कोविड अस्पतालों के डॉक्टर्स के फोन नंबर जारी किये हैं। पर ज्यादातर डॉक्टरों ने अपना निजी फोन नंबर दिया ही नहीं है। उनके नंबर दिये गये हैं जो ओपीडी की सूची बनाते हैं। वे आपकी डॉक्टर से बात भी नहीं करायेंगे। कहा जायेगा, वे बहुत व्यस्त हैं। चाहे आप अपनी रिश्तेदारी का भी हवाला क्यों न दें।
इसके अलावा डिप्टी क्लेक्टर्स के नंबर भी प्रशासन ने जारी किये हैं। पर इन अधिकारियों के हाथ में भी ज्यादा कुछ नहीं है। फोन लगाने पर वे सिर्फ सलाह दे रहे हैं कि इस अस्पताल में तो जगह नहीं है, उस अस्पताल में पता कर लीजिये। आप कोई मदद करिये न सर? वे कह रहे हैं बिस्तर ही नहीं तो मैं क्या कर सकता हूं।
एक सुझाव यह भी आया है कि जब प्रदेश में अस्पतालों की संख्या 700 से ज्यादा है तो कोविड के लिये गिने-चुने अस्पताल ही क्यों तय किये गये? बाकी अस्पतालों में भी इलाज की सुविधा शुरू कर देनी चाहिये।
योग की तरफ बढ़ता रुझान
कोरोना के दूसरे स्ट्रेन में ज्यादातर मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ रही है। हर दूसरी मौत ऑक्सीजन लेवल कम हो जाने के चलते हो रही है। डॉक्टर्स बता रहे हैं कि यदि ऑक्सीजन लेवल 90 से कम है तो वह आपके लिये खतरे की घंटी है। ऑक्सीजन का स्तर ठीक रखने के लिये ऐलोपैथी में सिलेंडर लगाना ही उपाय है। पर अस्पतालों में बिस्तरों के लिये हो रही मारा-मारी के बीच इस सुझाव पर लोग अमल कर रहे हैं कि अनुलोम-विलोम और प्राणायाम करें। बहुत से लोगों से हो रही चर्चा में यह बात सामने आ रही है कि कोरोना के खतरे को महसूस करते हुए उन्होंने योगासन के उन अभ्यासों को अपनाना शुरू कर दिया है जो उनके ऑक्सीजन के स्तर को नियंत्रित कर रहा है।
परीक्षा नहीं दिला पाना भी एक बड़ी परीक्षा
सेंट्रल बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन ने 10वीं बोर्ड परीक्षा रद्द कर दी है और 12वीं की परीक्षा टाल दी है। बच्चे स्कूल से ज्यादा कठिन पाठ से इस वक्त गुजर रहे हैं। बचपन इस तरह से घर में दुबके हुए तो नहीं बिताया जा सकता, जिसमें दोस्तों से मुलाकात न हो, मेल-मिलाप और झगड़े न हो। टीचर्स से फटकार और प्यार न मिले। ध्यान सिर्फ बोर्ड परीक्षाओं पर है पर बाकी परीक्षाओं को तो पहले से ही बच्चे बिना दिलाये पास कर चुके हैं।
अपने अनुभवों से पालक इस आपदा का सामना करने के लिये तैयार हैं पर बच्चों के लिये तो यह बहुत बुरा दौर है। हाल के कुछ शोध बता रहे हें कि एक कमरे में कैद बच्चे इंटरनेट, लैपटॉप, ऑनलाइन पढ़ाई से भी ऊबने लगे हैं। वे घर के काम में हाथ बंटाने और किताबें पढऩे के लिये उत्सुक हैं।
सरकार और समाज का पूरा ध्यान स्वास्थ्य सेवा ठीक करने, लोगों को राशन पहुंचाने तक सीमित है। बच्चों के मन में क्या गुजर रहा है इसका आकलन करना और समाधान निकालना भी एक बड़ा काम है।
इतना आसान भी नहीं कोरोना से लडऩा
हमें कोरोना से लडऩा तो है, पर उसके पहले भी बहुत सी और लड़ाई लडऩी है। पहली लड़ाई कोरोना जांच की है। फिर समय पर उसकी रिपोर्ट मिल जाने के लिये लडऩा है। पॉजिटिव आ गये हैं तो अस्पताल में बिस्तर के लिये लडऩा है। बेड मिल भी गई तो ऑक्सीजन की लड़ाई लडऩी है, रेमडिसिविर इंजेक्शन के लिये लडऩा है। बच गये तो ठीक। नहीं बचे तो श्मशान में शव जलाने के लिये लड़ाई लडऩी है।
डुबकी लगाकर लौटे लोगों का हाल
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है, 3 दिन में हरिद्वार कुंभ पहुंचे 13 सौ लोगों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। जाहिर है भीड़ है और भीड़ के दौरान कई लोगों से मेल मुलाकात होती रही। न भी हुई हो तो सोशल डिस्टेंस का तो उल्लंघन हुआ ही। संतों ने किस तरह घाटों पर स्नान किया तस्वीरों में हमने देखा ही है। मेले में स्नान के दौरान कितने और लोगों को इन्होंने संक्रमित कर दिया, कोई हिसाब नहीं। सुनने में आया है कि छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में लोग कुंभ गये हैं। ट्रेन चल रही है इसलिये आने-जाने में खास दिक्कत नहीं है। पर ये जब अपने शहर लौटेंगे तो कितने लोग टेस्ट करायेंगे और क्वारांटीन पर रहेंगे? अपनी सेहत का ख्याल रखिये।
न्यूज चैनल न देखें, अख़बार तो पढ़ लें
कोरोना संक्रमण से जूझ रहे आईपीएस रतनलाल डांगी ने अपनी दिनचर्या शेयर की है। सुबह 5.30 बजे उठकर गरम पानी पीते हैं। बीबीसी न्यूज़ सुनते हैं, मोटिवेशनल वीडियो देखते हैं। हल्दी मिलाकर दूध पीते हैं। नींद न आये तब तक किताबें पढ़ते रहते हैं। पूरी दिनचर्या में न्यूज चैनल देखने का जिक्र नहीं हैं। यह तो ठीक है, न्यूज़ चैनल बड़ी नकारात्मकता फैला रहे हैं, पर पता नहीं, अखबार क्यों नहीं पढ़ रहे। अख़बारों की रिपोर्टिंग इतनी बुरी भी नहीं होती। बहुत से आलेख तो मोटिवेट भी करते हैं।
गवर्नर की बैठक में हाजिरी
विपक्ष का यह सवाल जायज है कि राज्यपाल की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव क्यों शामिल नहीं हुए। कोविड संक्रमण को रोकने और मरीजों के लिये बेहतर व्यवस्था करने की यह बैठक थी। स्वास्थ्य विभाग से ही जुड़ा मसला है। उनको तो होना ही चाहिये था। इसके जवाब में कांग्रेस ने सवाल उठा दिया है कि प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष क्यों नहीं आये?
वैसे बैठक में नेता प्रतिपक्ष सहित भाजपा के अनेक नेता थे। क्या लगता है, स्वास्थ्य मंत्री और विपक्ष के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी को एक तराजू पर तौला जा सकता है?
हौसले से जीत कोरोना पर...
चिकित्सक मानते हैं कि इच्छा शक्ति मजबूत हो, तो कोरोना पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। कई गंभीर मरीज अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बूते पर कोरोना के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब रहे। सीकॉस्ट के चेयरमैन और सीनियर पीसीसीएफ मुदित कुमार सिंह 35 दिनों तक एक निजी अस्पताल में कोरोना से जंग लड़ते रहे, और आखिरकार कोरोना को हराने में कामयाब रहे। मुदित कुमार सिंह तो 24 दिन तक आईसीसीयू में रहे। उनकी हालत चिंताजनक बनी रही, लेकिन धीरे-धीरे वे इससे उबर गए।
भरपाई संभव नहीं
कोरोना की दूसरी लहर के आगे प्रशासनिक तंत्र भी बेबस नजर आ रहा है। पहले जैसी मुस्तैदी गायब है। प्रभारी मंत्री तो कोरोना लहर से बचने के लिए अपने बंगलों के कपाट बंद कर रखे हैं। प्रभारी सचिव को अपने प्रभार वाले जिलों में जाकर प्रशासन का मार्गदर्शन करते नहीं सुना गया। सीएम भूपेश बघेल असम से लौटे, तो थोड़ी बहुत हलचल हुई। अब सीएम-स्वास्थ्य मंत्री जरूर काफी कुछ करते दिख रहे हैं, लेकिन हालात अभी भी काबू में नहीं है। अलबत्ता, कोरोना-मौतों में थोड़ी कमी जरूर आई है। उम्मीद की जा रही है कि अप्रैल के आखिरी तक स्थिति कुछ हद तक काबू में आ जाएगी। मगर अब तक जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई संभव नहीं है।
बयानबाजी तक ही सीमित
प्रदेश के ज्यादातर विधायक कोरोना की चपेट में आए हैं। दो-तीन विधायकों को छोड़ दें, तो तकरीबन पूरा विपक्ष कोरोना से प्रभावित रहा है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पूर्व सीएम रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, नारायण चंदेल, पुन्नूलाल मोहिले, अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा, डमरूधर पुजारी, सौरभ सिंह और ननकीराम कंवर भी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं।
इसी तरह डॉ. रेणु जोगी को छोड़ दें, तो जोगी पार्टी के प्रमुख धर्मजीत सिंह, प्रमोद शर्मा और देवव्रत सिंह भी कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं। हालांकि ये सभी कोरोना से उबर चुके हैं। बावजूद इसके विपक्ष ने कोरोना से सचेत करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। विपक्ष सिर्फ बयानबाजी तक ही सीमित रहा।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ विपक्ष ही कोरोना की चपेट में आया था, बल्कि सत्तापक्ष के भी कई मंत्री विधायक कोरोना पॉजिटिव रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत भी पॉजिटिव हो गए थे। इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, जयसिंह अग्रवाल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, मोहम्मद अकबर, हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष कुलदीप जुनेजा भी कोरोना संक्रमित रहे। बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि भी कोरोना संक्रमित हुए। भाजपा-कांग्रेस के कई संगठन के पदाधिकारियों की मृत्यु भी हुई है। कुल मिलाकर कोरोना का कहर हर किसी पर बरपा है।
सकारात्मक या नकारात्मक?
जब हवा में चारों तरफ महज बीमारी और मौत की चर्चा हो और लोग दहशत में जी रहे हो तो बहुत से लोग यह नसीहत देते हैं कि नकारात्मक बातें बंद कर देना चाहिए, केवल सकारात्मक बातें करनी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि आसपास जब हर कुछ घंटों में किसी परिचित की मौत की खबर आती हो और मीडिया या सोशल मीडिया में हर मिनट यह खबर रहती हो कि अस्पताल किस तरह बदहाल हो गए हैं और वहां अब लाशों के लिए भी जगह नहीं रह गई है तो सकारात्मक कैसे हुआ जाए? और एक सवाल यह भी उठता है कि ऐसे माहौल में सकारात्मक होने की बात कौन कर सकते हैं? क्या सरकारों की दिलचस्पी इसमें हो सकती है कि लोगों को ऐसे नकारात्मक हालात में भी सकारात्मक रहने की नसीहत दी जाए ताकि बदइंतजामी के खिलाफ उनके मन में कोई गुबार इक_ा ना हो सके? यह सवाल बहुत मुश्किल है क्योंकि अगर महज सकारात्मक हुआ जाए तो लोगों के मन में बद बदइंतजामी के खिलाफ गुस्सा इक_ा कैसे होगा ? और अगर गुस्सा इक_ा नहीं होगा तो हालात कैसे बदलेंगे? वक्त खराब तो चल रहा है, लेकिन अपने-आपको दिमागी रूप से खुश रखने के लिए ऐसे खराब वक्त को भी अनदेखा करना कितना जायज होगा यह पता नहीं। हो सकता है कि ऐसी हालत में एक मनोचिकित्सक और एक सामाजिक आंदोलनकारी की प्राथमिकताएं बिल्कुल अलग-अलग हों, मनोचिकित्सक को लगता हो कि नकारात्मक बातों को अनदेखा करना बेहतर है और सामाजिक आंदोलनकारी को लगता हो कि बदलाव का मौका ऐसी ही बदइंतजामी के बीच होता है।
तारीफ काम आती है
वक्त इतना खराब चल रहा है कि अखबारों के दफ्तरों में भी कई कोरोना पॉजिटिव निकल गए हैं या कई लोगों के घरों में दूसरे लोग पॉजिटिव आ गए हैं। नतीजा यह है कि काम करने के लिए लोग कम बचे हैं। और ऐसे में गलतियां भी तरह-तरह की हो रही हैं। एक अखबार के संपादक से जब एक पाठक ने शिकायत की कि अखबार में शीर्षकों भी गलतियां हो रही हैं, तो संपादक ने पाठक को खुश करते हुए कहा-हमें आपकी समझदारी पर पूरा भरोसा है कि आप ऐसी छोटी मोटी चूक के बीच भी सही बात को एकदम सही समझ जाते होंगे।
वक्त से पहले करें इंतजाम
एक जानकार तजुर्बेकार ने अपने आसपास के लोगों से कहा कि अगर तबीयत बिल्कुल ठीक हो तो घर में फल सब्जी इक_ी करके रखो, जाने कब लॉक डाउन कितना लंबा हो जाये, और अगर तबीयत जरा सी गड़बड़ लगे तो बाजार का सबसे महंगे वाला इंजेक्शन जुटा कर रखो। तबीयत थोड़ी सी और गड़बड़ लगे तो किसी पहचान के अस्पताल में बिस्तर जुटाकर रखो, और अगर अस्पताल दाखिल होना ही पड़ा तो समय रहते शव वाहन का इंतजाम कर लें शमशान में जगह और लकडिय़ों का भी। किस मरघट पर जगह मिलेगी यह भी देखें, यह पहचान भी निकाल कर रखें कि अस्पताल से शव जल्दी कैसे मिल जाएगा। अगर जान ना बच सके तो कम से कम शव का सम्मान तो बचाया जाए। समय रहते, वक्त आने के पहले किया गया इंतजाम ही आज काम आ रहा है।
लॉकडाउन का हिसाब दो..
नागपुर, महाराष्ट्र के व्यापारी लॉकडाउन के खिलाफ़ आंदोलन पर उतर आये। बर्डी बाजार, इतवारी बाजार जैसे दर्जन भर बड़े इलाकों के दुकानदारों का बड़ा जायज सवाल था। कहा- एक साल पहले भी हमने लॉकडाउन किया। तब कहा गया कि संक्रमण को फैलने से तो रोकेंगे ही, व्यवस्था भी दुरुस्त करेंगे। अब आप दुबारा लॉकडाउन कर रहे हैं तो, बताइये इतने 12 महीनों में आपने क्या किया? अस्पतालों में कितने बिस्तर बढ़ाये, कितने आइसोलेशन सेंटर बनाये, ऑक्सीजन सिलेंडर का उत्पादन कितना बढ़ा। सरकार तो जैसे ही कोरोना प्रकोप कम हुआ, फीता काटने में लग गई। मौका था, इंतजाम बढ़ाया क्यों नहीं?
नागपुर के सर्वाधिक प्रसारित साप्ताहिक ‘राष्ट्र पत्रिका’ के सम्पादक कृष्ण नागपाल बता रहे हैं कि यहां एक माह से ज्यादा लम्बे लॉकडाउन के चलते हजारों लोगों की रोजी-रोटी मारी गई है। जब पहले लॉकडाउन कराया, तब क्या व्यवस्था बढ़ाई। हम बिना डिग्री देखे एक-एक दुकान में दस-दस युवकों को नौकरी देते हैं। हमारी दुकान खुलती है तो उनका परिवार चलता है। दरअसल, वे हमारे परिवार का हिस्सा है। दुकान बंद कर देंगे तो हम कैसे उनको पालेंगे? हम तो दुकान के मालिक हैं, चलो दो चार महीने गाड़ी खींच लेंगे, पर कर्मचारियों के घर की क्या हालत होगी?
आपको क्या लगता है? ये सवाल सिर्फ नागपुर से है या छत्तीसगढ़ के व्यापारियों का भी है?
वादा राम मंदिर का था..
सोशल मीडिया पर हर किसी को छूट है कि संसदीय भाषा में कुछ भी राय जाहिर कर दे। एक यूजऱ ने यह तस्वीर यह बताते हुए पोस्ट की है कि- वादा राम मंदिर का था। अस्पताल और वेंटिलेटर मांग कर शर्मिंदा न करें।
छूट के बावजूद उद्योगों में ताले
प्रदेश के अधिकांश हिस्से इन दिनों लॉकडाउन के घेरे में हैं। बीते साल लॉकडाउन के समय पाया गया की अधिकांश उद्योग धंधे ठप पड़ जाने से मजदूरों, श्रमिकों के सामने भूखों मरने की स्थिति आ गई थी। इस बार सरकार चाहती नहीं थी लॉकडाउन लगे पर परिस्थिति भयावह हो चुकी है। उद्योगों को इस बार छूट दी गई है कि वे परिसर के भीतर श्रमिकों के रुकने की व्यवस्था कर सकते हैं तो फैक्ट्री चालू रख सकते हैं। इसके बावजूद रायपुर, कोरबा, बिलासपुर सब तरफ से खबर है कि 50 फीसदी से ज्यादा उद्योगों में काम बंद हो गया है। इसकी वजह सामने यह आ रही है कि अनेक उद्योगों के पास रुकने की जगह नहीं है, है भी तो वहां मजदूर रुकना नहीं चाहते। वे छुट्टी लेकर घर चले गये हैं। जिस तरह से अनेक जरूरी कार्य करने वालों को घरों से निकलने की छूट दी गई है, ऐसा श्रमिकों के लिये भी किया जा सकता था लेकिन शायद प्रशासन को लगा कि इस छूट का दुरुपयोग हो सकता है और बड़ी संख्या में लोग सडक़ों पर दिखेंगे। इससे लॉकडाउन का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। निर्माण कार्यों पर रोक लगा देने से श्रमिक खाली हाथ रह गये हैं। यात्री परिवहन सेवा में लगे कर्मचारी, सडक़ किनारे दुकान लगाने वाले, होटल, रेस्तरां में काम करने वाले लोग लॉकडाउन खत्म हुए बगैर रोजी-रोटी नहीं कमा पायेंगे। लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियों पर मार तो पड़ी है। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती, यह साफ हो गया।
इलाज की दर से किसका फायदा?
निजी अस्पतालों के खिलाफ आ रही लगातार शिकायतों के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने कोविड मरीजों के लिये शुल्क निर्धारित कर दिया। सरसरी तौर पर दिखता है कि यह मरीजों के हक में है पर कई शंकायें लोग खड़ी कर रहे हैं। एक दिन के बेड का न्यूनतम किराया 6800 रुपये रखा गया है जो आईसीयू, एसी तक जाने पर 17 हजार रुपये प्रतिदिन लिया जा सकता है। ऑक्सीजन सिलेंडर, एनेस्थेटिक, कंसल्टेन्ट, पीपीई किट जैसे कुछ खर्च इस दर में शामिल है। यह दर काफी ज्यादा है जो किसी स्टार लेवल के अस्पतालों का होता है। इसके अलावा भी कई सुराख छोड़ दिये गये हैं। वेंटिलेटर और सीटी स्कैन का खर्च इसमें नहीं जोड़ा गया है। अक्सर गंभीर होने पर ही मरीज को निजी अस्पतालों की जरूरत पड़ती है वरना तो वह सरकारी बेड नहीं मिलने पर होम आइसोलेशन पर रहना पसंद करता है। ऐसे मरीज को प्राय: वेंटिलेटर की जरूरत होती है। इस समय जो कोरोना मरीज आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर लोगों को निमोनिया और फेफड़े में संक्रमण की शिकायत है। ऐसे मरीजों का बार-बार सीटी स्कैन किया जा रहा है। कोरोना के स्तर की जांच का यह तरीका डॉक्टरों ने अपनी ओर से निकाला है। सीटी स्कैन का बिल भारी-भरकम होता है। एक मरीज को 10 से 12 दिन भर्ती करना पड़ता है। ऐसे में कुल खर्च कितना आयेगा, इसका हिसाब लगाया जा सकता है। मतलब यह है कि जो दरें घोषित की गई हैं, उससे ऐसा लगता है कि कोरोना पीडि़तों से ज्यादा अस्पताल संचालकों ने राहत महसूस की है।
राशन दुकान बंद रखने का औचित्य
लॉकडाउन में इस बार राशन दुकानों को बंद रखा गया था। पिछली बार मार्च माह में जब केन्द्र सरकार की ओर से अचानक लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तब सभी दुकानें बंद कर दी गई थीं और इसके बाद विशेषकर रोज कमाने खाने वाले बीपीएल परिवारों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ा था। उसके बाद जब राज्य सरकार के हिस्से में लॉकडाउन लगाने का अधिकार आया तो राशन दुकानें खोली ही नहीं गई बल्कि दो-दो माह का राशन एक साथ दिया गया। इस बार लॉकडाउन को देखते हुए पहले से कोई आबंटन नहीं है न ही ऐलान किया गया कि अपने हिस्से का पीडीएस चावल उठा लें। राज्य सरकार का तर्क है कि जिन्हें जरूरत होगी, वे उनके लिये हेल्पलाइन नंबर दिये गये हैं। उन्हें राशन घर पहुंचाकर दिया जायेगा। । गरीबों का राशन उठाने वाले बहुत से लोग नि:शक्त जन और अत्यंत वृद्ध भी हैं, जिन्हें पता ही नहीं कैसे राशन मंगाना है। किस नंबर पर कॉल करना है, कैसे उन तक राशन पहुंचेगा। पिछली बार जिस तरह से तीन चार माह तक बीपीएल परिवारों को मुफ्त राशन दिया गया, इस बार भी लोगों के हाथ में कम से आठ दिन के लिये कोई काम नहीं है। थोड़े दिनों का कोटा ही सही, मुफ्त राशन फिर देने की व्यवस्था की जा सकती थी। वैसे भी धान, चावल की सरकार के पास कोई कमी है नहीं।
एडवांस लेने-देने वालों में तनातनी
छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन भी ऐसे वक्त पर लगा है जब एक के बाद एक शादियों का मुहूर्त है। अकेले अप्रैल माह में 10 से अधिक शुभ मुहूर्त हैं। पर सब लॉकडाउन की भेंट चढ़ गये। साल भर से कोरोना महामारी के चलते मंगल भवन, बैंड बाजा, कैटरिंग, डीजे, फूल माला, टैक्सी, पार्लर का कारोबार ठप पड़ा हुआ था। इस बार फरवरी माह से ऐसा लगा था कि प्रकोप अब खत्म हो जायेगा। लोगों ने रिश्ते ठीक किये, विवाह भवन, बैंड बाजा, कैटरिंग की एडवांस बुकिंग करा ली। काफी पैसे इसमें निकल गये। कई ने कार्ड भी छपवा डाले। अब अचानक लॉकडाउन लग गया है। ये दौर अगले हफ्ते दस दिन में खत्म हो भी जाये तो भी ऐसे हालात हैं कि बड़ा आयोजन करने की इजाजत मिलने वाली नहीं है। प्रकोप का अचानक छू मंतर होना भी संभव नहीं है।
अब बुकिंग लेने वालों और अग्रिम राशि देने वालों के बीच विवाद हो रहा है। जिन लोगों ने एडवांस दिया, पैसे वापस मांग रहे हैं। लेने वाले कह रहे हैं बुकिंग तो आप कैंसिल कर रहे हैं, हम क्यों वापस करें। हमने भी तो मजदूरों को आपके भरोसे एडवांस दे दिया। एक इवेंट मैनेजर ने तो कह दिया कि हमने तो आपकी बरात के लिये बग्घी और घोड़े भी खरीद लिये हैं। इतनी रियायत दे सकते हैं कि आप तारीख आगे खिसका दीजिये हम बिल में से एडवांस ली गई रकम को कम कर देंगे। आफत है। ये महामारी बीमार ही नहीं, दुश्मन भी पैदा कर रही है।
वर्क फ्रॉम होम की नसीहत
लॉकडाउन को लेकर जिले के कलेक्टरों के कॉपी-पेस्ट आदेशों में एक खास बात यह है कि उन्होंने मीडिया के लोगों को ‘वर्क फ्रॉम होम’ की सलाह दी है। अच्छी सलाह है, मीडिया से जुड़े लोगों की सेहत की परवाह कर रहा है प्रशासन। पर, अफसोस सौ फीसदी ऐसा करना मुमकिन नहीं। घड़ी चौक पर मुस्तैद जवानों की तस्वीर तो घर बैठे मिल जायेगी, पर फाफाडीह में होने वाली पिटाई की रपट घर बैठकर नहीं बनाई जा सकती। सूचनायें मिलने से आम लोगों तक पहुंचाने के बीच किसी ख़बर को कई चरणों से गुजरना पड़ता है। जिस तरह से प्रशासन और पुलिस के कामकाज की पूरी समझ मीडिया को नहीं है, उसी तरह से उन्हें भी मीडिया के काम की एबीसीडी मालूम नहीं है।
यह सलाह मीडिया के काम को कमतर आंकने की है। बीते दो दिनों के भीतर दो पत्रकारों को कोरोना ने लील लिया है। बिलासपुर के प्रदीप आर्य और दुर्ग के जितेन्द्र साहू को। हर शहर में दर्जन, दो दर्जन पत्रकार कोरोना संक्रमित हैं। जाहिर है ये इन खतरों को अपनी जवाबदेही समझकर गले लगा रहे हैं, मनोरंजन के लिये नहीं। अस्पतालों में भर्ती और इस दौरान जरूरी दवाई हासिल करना उन नसीहत देने वाले लोगों की तरह आसान नहीं हैं जो शासन-प्रशासन के अंग हैं। कुछ राजनेताओं ने हाल ही में मीडियाकर्मियों को कोरोना वारियर्स का दर्जा देने की मांग उठाई है और कहा है कि इलाज और वैक्सीनेशन में उन्हें भी स्वास्थ्य, प्रशासन, पुलिस से जुड़े लोगों की तरह प्राथमिकता मिले। पर मीडिया कर्मी ऐसे हैं कि वे इन सुविधाओं को हासिल करने के लिये गिड़गिड़ा नहीं रहे हैं, खतरे मोल कर काम किये जा रहे हैं।
इतने त्यौहार और इतनी वीरानी
नववर्ष, नवरात्रि, चेट्रीचंड, उगादी, गुड़ी पड़वा, बैसाखी, नौरोज़ और कल से रमजान। देश के हर कोने में आज का दिन उत्सवों का है। पर स्वास्थ्य और सुरक्षा का सवाल है। बीते साल की तरह इस बार भी संक्रमण ने इस तरह घेर रखा है कि न तो नववर्ष की जुलूस सडक़ों पर है, न चेट्रीचंड की बाइक रैली दिखाई दे रही है। बैसाखी पर होने वाले भांगड़ा का उत्सव भी फीका पड़ा है। देवी मंदिरों में भक्तों की कतार नहीं लगी है। महामारी शायद सबक दे रही है कि आस्था का प्रदर्शन किये बिना भक्ति कैसे होती है, मन को जगाओ और महसूस करो।
उत्सव मनाने का दिल नहीं करता..
कोरोना की जबरदस्त मार से कराह रहे लोगों को इस बार ताली-थाली बजाने का बिल्कुल मन नहीं हो रहा है। फिर भी प्रधानमंत्री की ओर से अपील की गई है, टीका उत्सव मनाने की। इस समय हर किसी के जान-पहचान का या परिवार का कोई न कोई संक्रमित है। अचानक उनमें से किसी की मौत की ख़बर भी मिल रही है। यह पिछले कोरोना काल से बिल्कुल अलग है जिसमें लोगों को विपदा से निपट लेने का ज्यादा भरोसा था। लोग लॉकडाउन में फंसे लोगों को राशन पानी देने, घर पहुंचाने और दवायें पहुंचाने का काम कर रहे थे। इस बार अब तक बच गये लोगों को लग रहा है कि पता नहीं किस दिन खुद या परिवार मुसीबत से घिर जाये। बीमार होंगे तो बिस्तर मिलेगा या नहीं, बिस्तर मिलेगा तो ऑक्सीजन बेड मिलेगा नहीं, ये भी मिल गये तो इंजेक्शन मिलेगा या नहीं। जो लोग मोदी विरोधी हैं वे तो टीकाकरण को उत्सव का नाम देने की आलोचना कर ही रहे हैं, जैसे राहुल गांधी। पर उनके समर्थकों की तरफ से भी इस उत्सव को लेकर कोई उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है।
भाजपा नेताओं ने हाल ही में कहा है कि वे कोरोना महामारी से निपटने के लिये प्रशासन का हर प्रकार से सहयोग करने के लिये तैयार हैं, बताइये क्या करें? क्या करना है, यह मोदी जी ने टीका उत्सव की अपील करते हुए खुद ही बता दिया है। एक, जो लोग कम पढ़े लिखे हैं या बुजुर्ग हैं, जो खुद टीका नहीं लगवा सकते उनकी मदद करें। दो, जिन लोगों के पास साधन नहीं, जानकारी नहीं कोरोना के इलाज में उनकी मदद करें। तीन, स्वयं मास्क पहनकर खुद को सुरक्षित रखूं, दूसरों को भी रखूं-इस पर बल देना है। चार, जहां पर भी कोई कोरोना पॉजिटिव मिलता है वहां परिवार और समाज के लोग मिलकर माइक्रो कंटेनमेन्ट जोन बनायें।
हालांकि प्रधानमंत्री की अपील सभी के लिये है पर उम्मीद की जानी चाहिये भाजपा की ओर से इसकी पहल होगी। जब कोविड वैक्सीनेशन शुरू हुआ था तब भी उन्होंने टीकाकरण केन्द्रों में जाकर, गुलाब देकर, लोगों का अभिनंदन करने की पहल की थी और यह काम अब भी हो रहा है। बस इसी में प्रधानमंत्री के इन चार बिन्दुओं के उत्सव को और जोडऩा है। उनकी देखा-देखी में बाकी लोग भी आगे आयेंगे।
महिला सिपाही की वाहवाही
पुलिस विभाग में नीचे के कर्मचारियों के पास काम का इतना बोझ होता है कि अलग हटकर कुछ रचनात्मक करने का समय नहीं होता। यह काम तो आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के लिये आसान होता है जिनके पास अपनी समाज सेवा और रुचि को जमीन पर उतारने के लिये आसानी से टीम मिल जाती है। थोड़े प्रयासों पर बड़ी वाहवाही मिल जाती है। ऐसे में कबीरधाम (कवर्धा) जिले की महिला सिपाही अंकिता गुप्ता के हौसले का लोहा मानना ही चाहिये। उन्हें इस बात श्रेय है कि मामूली आरक्षक पद पर होते हुए भी करीब 200 लड़कियों को उन्होंने इस तरह प्रशिक्षित किया कि उन्हें पुलिस व केन्द्रीय बल में ज्वाइनिंग मिल गई। अंकिता एथलेटिक्स भी है और 9 बार राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में अपने महकमे का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वह आत्मरक्षा के लिये प्रशिक्षण कैम्प चलाती हैं और स्कूलों में गुड टच, बैड चट को लेकर जागरूकता लाने कार्यक्रम करती हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया अवार्ड वीरनी पुरस्कार इस साल से शुरू किया है। अंकिता गुप्ता उन सात महिलाओं में एक हैं, जिन्हें 14 अप्रैल को मुख्यमंत्री के हाथों वर्चुअली यह पुरस्कार दिया जायेगा।
दुकान जायें तो मास्क जरूर लगायें, कोई चुनावी रैली तो अपने यहां हो ही नहीं रही, जो छूट मिले।
रेमडेसिविर इतना जरूरी भी नहीं
कोरोना को लेकर बेड, दवाओं की मची मारामारी के बीच सोशल मीडिया में टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो फार्मेट में ढेर सारी सलाहें भरी पड़ी हैं। ऐसे में समझ नहीं आता कि किस पर भरोसा करें, किस पर नहीं। इतनी सलाहें जितनी बैगा-गुनिया और नीम हकीम भी नहीं देते। घबराहट में लोग हर नुस्खे आजमाये जा रहे हैं। दहशत इतनी है कि कोरोना संक्रमण होते ही लोग किसी भी कीमत पर अस्पताल में भर्ती होने के लिये उतावले हैं। डॉक्टर भी तौल लेते हैं कि मरीज की कितनी क्षमता है। कितने ही अस्पतालों में एक-एक दिन का बिल एक लाख रुपये से अधिक पहुंच रहा है। यह उस बीमारी या महामारी के इलाज में हो रहा खर्च है जिसकी कोई दवा अब तक निकली ही नहीं।
ऐसे में एक वीडियो वाट्सएप, ट्विटर और यू-ट्यूब पर तेजी से वायरल हो रहा है जो किसी अनजान इलाके के अविश्सनीय डॉक्टर का नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के ही रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल के चेस्ट फिजिशियन डॉ. गिरीश अग्रवाल का है। इसमें वे एक हद तक इलाज से जुड़ी अनेक घबराने वाली बातों, अफवाहों पर बड़ा स्पष्टीकरण दे रहे हैं। इनके वीडियो से यह निष्कर्ष निकलता है कि सेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत बहुत कम मरीजों को है, जिसकी आज मारामारी मची है। इस इंजेक्शन का अनावश्यक इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं। सिटी स्कैन भी जरूरी नहीं। ऑक्सीजन बेड भी हर मरीज को जरूरी नहीं है। डेक्सोना जैसे स्टारायड खाने की आवश्यकता नहीं है। लोग बहुत से टेस्ट करा रहे हैं, जिसकी कोई जरूरत नहीं है। इस समय निजी अस्पतालों में इन्हीं के नाम पर लूट मची हुई है। यह भ्रम भी न पालें कि आपका एम्यून सिस्टम अच्छा है तो कोरोना नहीं होगा। सारा खेल ऑक्सीजन लेवल का है। कोविड टेस्ट किसी मरीज के सम्पर्क में आने के चार पांच दिन बाद कराना सही होगा। ऐसी अनेक दवायें, इंजेक्शन मरीज ले रहे हैं जो डब्ल्यूएचओ की प्रोफाइल एक्स में है ही नहीं। जो दवायें वास्तव में जरूरी है वह तो बहुत सस्ती हैं।
आपके वाट्सएप ग्रुप में अब तक नहीं पहुंचा हो तो अब करीब आठ मिनट का यह वीडियो गिरीश अग्रवाल के चैनल पर यू ट्यूब पर जाकर देख सकते हैं। दो दिन के भीतर यह लाखों लोगों तक पहुंच चुका है। बहुत सी मौतें नासमझी और गलत इलाज के कारण हो रही हैं। कोरोना को मात देना मुमकिन है बस समझदारी रखें। इस वीडियो को देखने से कई शंकाओं का समाधान मिलेगा। कोरोना को लेकर घबराहट कम होगी।
लोकल ट्रेनों में यात्री कैसे मिलें?
एक ओर रेलवे ने हाईकोर्ट में दायर याचिका के दबाव में आकर छत्तीसगढ़ के सभी मार्गों के लिये लोकल व पैसेंजर ट्रेन शुरू कर दिये, दूसरी ओर एक के बाद राज्य के विभिन्न जिलों में लॉकडाउन लगता जा रहा है। इसके चलते लोकल ट्रेनों में सफर करने लोग निकले भी तो क्यों? काम धंधा बंद है तो किसी शहर में क्या करेंगे जाकर। इसके चलते कल से शुरू हुई लोकल ट्रेनों में यात्रियों का भारी संकट पैदा हो गया है। जब इन ट्रेनों की घोषणा की गई तो कोरोना संक्रमण इतनी तेजी से नहीं फैला हुआ था। याचिका दायर करने वालों को भी शायद पता नहीं था। स्थिति यह है कि टिटलागढ़, गोंदिया, झारसुगुड़ा आदि के लिये चलने वाली ट्रेनों में यात्री न के बराबर हैं और ट्रेन खाली डिब्बों के साथ दौड़ रही हैं। अधिकांश जिलों में अगले एक सप्ताह के लिये लॉकडाउन है। जहां नहीं है वह भी एक दो दिन में होने वाला है। अब रेलवे इन ट्रेनों को चलाती रहेगी या रद्द करेगी, यह देखा जाना है।
अति उत्साह ने मुश्किल में डाला, पोस्ट हटाया
कसडोल विधायक शकुन्तला साहू सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय हैं। हर दिन पांच दस अपडेट तो दिख ही सकते हैं। पर कल डाली गई एक पोस्ट ने उन्हें बैकफुट पर ला दिया। उन्होंने कोविड का टीका लगवाया और फोटो ट्विटर पर डाल दी। अपील की सबसे कि टीका लगवायें। विधायक शकुंतला 45 प्लस की तो हैं ही नहीं। अभी इस उम्र को हासिल करने में उन्हें 10 से 12 साल लगने वाले हैं, फिर उन्होंने टीका कैसे लगवा लिया? अभी तो कम उम्र वालों को टीका लगाने का चरण शुरू ही नहीं हुआ है।
भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया और एक के बाद कांग्रेस तथा विधायक पर वार होने लगे। कहा- ऐसे ही नियम विरुद्ध दबाव डालकर टीका लगवाने के कारण प्रदेश में वैक्सीन की कमी हो गई है। एफआईआर दर्ज करने की मांग भी करने लगे। शायद विधायक घबरा गईं और उन्होंने सोशल मीडिया से अपना पोस्ट हटा लिया। बात यह है कि अभी तो विधायक ने पहला ही डोज लगवाया, कोर्स पूरा करने के लिये दूसरा डोज भी लगवाना जरूरी है। वरना वैक्सीन का असर नहीं होगा। बस इतना ही करना है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने से बचना है।
रेल यात्रियों को क्वारंटीन से छूट?
रायपुर, बिलासपुर के हवाईअड्डों में उतरने वाले यात्रियों को अब 72 घंटे पहले का आरटीपीसीआर कोविड टेस्ट रिपोर्ट दिखाना जरूरी कर दिया गया है। एक सामान्य धारणा यह बन रही है कि दूसरे राज्यों से पहुंचने वाले यात्रियों के कारण छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमितों की संख्या में एकदम से उछाल आया है। इसलिये ऐसा कदम प्रत्याशित था। हालांकि इसमें कुछ देर कर दी गई। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के बीच अंतर्राज्यीय बस सेवा तो पहले से ही बंद कर दी गई है। राज्य की सीमाओं पर चेकिंग की जा रही है। इधर लोग भी मुख्य मार्ग के बजाय गांवों के रास्ते एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा पार कर रहे हैं।
इस आदेश में कहा गया है कि जो लोग टेस्ट रिपोर्ट लेकर नहीं आयेंगे उनका हवाईअड्डे पर ही टेस्ट किया जायेगा। पॉजिटिव ही नहीं, निगेटिव होने पर भी उन्हें सात दिन स्वयं के व्यय पर क्वारंटीन पर रहना होगा। सडक़ मार्ग की यात्रा करने वालों को यह छूट तो दी गई है कि वे किसी जरूरी काम से किसी शहर में एक दो दिन के लिये दूसरे प्रदेश से आये हैं तो बिना क्वारंटीन हुए लौट सकते हैं पर हवाई यात्रा करने वालों के बारे में निर्देश में कुछ नहीं है।
बीते साल जब कोरोना का संक्रमण फैला तो हवाई सेवायें लम्बे समय तक बंद रहीं, ट्रेनें भी ठहर गईं। बाद में फंसे यात्रियों को मंजि़ल तक पहुंचाने के लिये ट्रेनें चलाई गई थीं। तब स्टेशन पर एक-एक यात्री का टेस्ट किया गया और क्वारंटीन अनिवार्य किया गया। पिछले अप्रैल माह के मुकाबले छत्तीसगढ़ में ही इस बार कई गुना अधिक केस हैं। पर दूसरे राज्यों से पहुंच रहे रेल यात्रियों के लिये हवाई या बस यात्रियों की तरह कोई बंदिश नहीं है। रेल यात्रियों के लिये अब तक कोई निर्देश जारी नहीं हुआ कि दूसरे राज्यों से आने वाले अपना अनिवार्य टेस्ट करायें और क्वारंटीन पर रहें, जबकि स्पेशल ट्रेनों की संख्या बढऩे के बाद अधिकतर लोग ट्रेन से एक से दूसरे राज्य आना-जाना कर रहे हैं। राजस्थान सरकार ने रेल यात्रियों के लिये कोविड निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य किया है तो तमिलनाडु ने ई पास को जरूरी किया है। जहां आदेशों और जुर्माने के बावजूद सोशल डिस्टेंस और मास्क के निर्देशों का पालन कराना मुश्किल काम हो, वहां रेल यात्रियों से भी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे सख्त आदेश और निगरानी के बिना ही अपनी जिम्मेदारी से कोविड टेस्ट कराएं और क्वारंटीन हो जायेंगे।
परीक्षा के लिये यह भी एक सुझाव..
माध्यमिक शिक्षा मंडल की 10वीं बोर्ड परीक्षा आखिर स्थगित कर दी गई है। बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर पालक एक तरफ जहां निश्चिन्त हुए वहीं दूसरी ओर बोर्ड परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण पड़ाव पर आये ठहराव ने उन्हें चिंता में भी डाल दिया। ज्यादातर बच्चों ने पूरा साल घर में बिताया, झुंझलाए पालकों ने फीस पूरी पटाई। बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना होगा, जो परीक्षा न होने, स्कूल कैम्पस से दूर रहते हुए अपने भविष्य को लेकर क्या सोचते हैं।
बीते साल कई परीक्षाएं घर से बैठकर दी गई। प्रश्न पत्र हाथ में तो उत्तर बताने वाले नोट्स भी। इसके चलते उत्तीर्ण छात्रों का प्रतिशत काफी बढ़ा। अब सुझाव आ रहा है कि जिस तरह से मोहल्ला क्लास और पढ़ाई तुंहर द्वार योजना चलाई गई उसी तरह से मोहल्ला परीक्षा और परीक्षा तुंहर द्वार जैसा कुछ करना चाहिये। है तो यह कुछ अजीब सुझाव, लेकिन विचार करते रहने से कोई अच्छा विकल्प तो सामने आ ही सकता है।
वैक्सीन आपूर्ति के दांव-पेंच
छत्तीसगढ़ देश के उन टॉप प्रदेशों में है जहां कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। जिस वैक्सीनेशन अभियान को गति देने में सरकार और प्रशासन को मुश्किल का सामना करना पड़ा, अब लोग उसके लिये बेचैन हैं। किसी भी जिले में मांग के अनुरूप वैक्सीन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है और वैक्सीनेशन लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रहा है। लोग सोच रहे होंगे कि वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियां तो मालामाल हो गई होंगी। इधर, कोविशील्ड बनाने वाली कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट ने कहा है कि उसे उत्पादन बढ़ाने के लिए तत्काल तीन हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता है। केन्द्र को कम्पनी ने पत्र लिखकर कंपनी ने कर्ज नहीं, अनुदान मांगा है। कंपनी का कहना है कि ऐसा नहीं है कि हम मुनाफा नहीं कमा रहे हैं पर सरकार के कहने पर हम वैक्सीन बहुत रियायती दर पर दे रहे हैं। ज्यादा उत्पादन के लिये ज्यादा मुनाफा कमाने की जरूरत है। इसलिये अनुदान मिले।
यानि छत्तीसगढ़ ही नहीं, दूसरे राज्य भी जहां कोरोना से जंग लड़ी है सीरम कम्पनी के मालिक उदार पूनावाला की उदारता के भरोसे हैं। वैसे बीच में केन्द्र सरकार है। वही लेन-देन की बात करती है। सवाल महामारी से निपटने का है, कम्पनी की डिमांड का तो कोई न कोई रास्ता वह निकालेगी। वैसे कम्पनी ने यह मांग तब उठाई है जब ब्रिटेन और स्वीडन से उसे आपूर्ति में कमी को लेकर कानूनी नोटिस दी गई है।
क्या आगे भी इनकी मदद ली जाएगी?
बीजापुर हमले के दौरान बंधक बनाए गए जवान राकेश्वर सिंह मन्हास को रिहा करने के लिए नक्सलियों ने जो तरीका अपनाया वह पहले से कुछ हटकर था। कोई शर्त मनवाए बगैर जल्दी ही उन्होंने जवान को छोड़ दिया। मध्यस्थों में धर्मपाल सैनी को छोडक़र बाकी का नाम बस्तर से बाहर पहले नहीं सुना गया होगा। सरकार के लिए एक उम्मीद बनती है कि वह शांति वार्ता के लिए इन्हें या इनके जैसे ही लोगों की आगे मदद ले और बस्तर में शांति की नई पहल हो।
कमाई की भी दूसरी लहर शुरू
कोरोना संक्रमण के फैलाव को यह लॉकडाउन रोक पाएगा या नहीं यह तो भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन सरकार और प्रशासन ने किसे बेहतर विकल्प माना है इसलिए विरोध जताने का कोई प्रश्न खड़ा नहीं होता। जिस तरह सोशल डिस्टेंस के नियम का उल्लंघन बीते दो-तीन दिनों की बाजार में पहुंची भीड़ से हो गया है, उसने शायद 10 दिनों की आपस में दूरी बनाए रखने के लिए की गई कोशिश पर पानी फेर दिया। बीते साल भी जब कोरोना के पहले दौर में कई शहरों में लॉकडाउन लगाया गया था तो उसके बाद नए संक्रमित की संख्या में बहुत कमी नहीं आई थी। शायद इसकी वजह बंद से पहले पैदा हुई इसी तरह की परिस्थितियां थी। इस बार भी किराना सामान और सब्जी अनाप-शनाप दामों पर बेचा गया और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। उसका सारा जोर किस समय संक्रमण से लोगों को बचाने अस्पतालों की व्यवस्था देखने, लाक डाउन को सही तरीके से लागू कराने में है और इसका फायदा कुछ कारोबारी उठा रहे हैं। प्रशासन ने शायद पिछली बार की तरह संवेदना भी नहीं दिखाई है कि जिन लोगों ने क्षमता थी 10 दिन की खरीददारी कर ली लेकिन जो लोग रोज कमाने खाने वाले हैं उनका क्या होगा?
कोरोना के पीछे क्या है?
छत्तीसगढ़ में कोरोना के विस्फोट पर लोगों की अलग-अलग अटकलें लग रही हैं। इन अटकलों का तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि अपनी सोच से लेना-देना है। जिसे जिस तबके पर निशाना लगाना है, वे उसी तबके को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा दे रहे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में हुए क्रिकेट मैच की वजह से कोरोना बुरी तरह फैला है और तीन दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी भी रायपुर से कोरोना लेकर लौटे। दूसरी तरफ बहुत से लोगों का यह मानना है कि लोगों ने सरकारी सलाह के खिलाफ जाकर जमकर होली खेली, और उसी का नतीजा है कि होली खेलने वालों में बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं।
अब क्रिकेट का कोई धर्म है नहीं, लेकिन जिस धर्म के व्यवहार के वक्त प्रदूषण न फैलाने की सलाह दी जाती है, उसे बुरी लग जाती है, जिसे जुलूस निकालने से मना किया जाता है, उसकी धार्मिक भावनाएं लहूलुहान हो जाती है। जब होली पर भीड़ न लगाने की सलाह दी गई थी, तब भी लोगों ने इसे हिन्दू धर्म को ही सलाह देने की बात कही थी। जो भी हो क्रिकेट के भगवान की भीड़ हो, या होली की धार्मिक भीड़ हो, कोरोना को भीड़ पसंद आ रही है। यह अलग बात है कि बंगाल के चुनाव में देश की सबसे बड़ी भीड़ लग रही है, और शायद वहां कोई भी पार्टी कोरोना की जांच नहीं चाहती है।
अस्पतालों की लूट पर नजर क्यों नहीं?
कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैल रहा है उसने लोगों के होशो-हवास उड़ा दिये हैं। अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन यूनिट व वेंटिलेटर के लिये मारामारी तब मची हुई है, जब कोई विशेषज्ञ यह नहीं कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा है कि यह संक्रमण का अधिकतम है। कितने हजार या लाख लोग चपेट में आयेंगे और कितनी जिंदगियां यह वायरस लीलने वाला है, यह कोई नहीं जानता। यह तय है कि कुछ दिन यही रफ्तार बनी रही तो संख्या इतनी बढ़ सकती है कि इलाज के निजी और सरकारी सभी प्रबंध फेल हो जायेंगे। इधर लगातार खबरें आ रही है कि मरीजों को सिफारिश के आधार पर अथवा उनकी आर्थिक क्षमता को तौलकर भर्ती और इलाज का फैसला निजी अस्पताल कर रहे हैं। एकाएक प्रतिदिन के बिस्तर और दवाओं का बिल 10-10 गुना बढ़ा दिया गया है। रेमडेसिवर इंजेक्शन, जिसकी सांसों का लेवल बढ़ाने में बड़ी भूमिका है की जमाखोरी और कालाबाजारी शुरू हो गई है। इसे भी पांच गुना अधिक दाम पर बेचा जा रहा है। इस बारे में सरकार की ओर से निजी अस्पतालों, दवा विक्रेताओं को कोई चेतावनी नहीं दी गई है, न ही उन पर निगरानी स्थानीय प्रशासन कर रहा है। हालात खराब तो हो ही चुके हैं इसे बदतर होने से बचाने के लिये एक एक्शन प्लान तो तुरंत बनना ही चाहिये।
रेलवे की तैयारियों पर पानी फिरा
अप्रैल माह में 10 अप्रैल से रेलवे करीब एक दर्जन पैसेंजर और आधा दर्जन एक्सप्रेस स्पेशल ट्रेन शुरू करने की घोषणा करीब 15 दिन पहले कर चुकी थी। यह घोषणा तब की गई थी जब कोरोना के इतने मामले बढऩे का अनुमान नहीं था। हजारों यात्रियों ने इन ट्रेनों के लिये टिकट कटा रखी है लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते अब वे अपनी यात्रा का प्लान कैंसिल कर रहे हैं। रेलवे ने भी ज्यादातर ट्रेनों में, खासकर जो एक राज्य से दूसरे राज्य जाती है में चलने वाले यात्रियों के लिये आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट को अनिवार्य कर दिया है। बहुत से यात्री इस झंझट से भी बचने के लिये यात्रा के प्रति उदासीन हुए हैं। कोरोना की रफ्तार नहीं थमी तो हो सकता है कि ट्रेनें खाली गुजरें और संचालन रोकना पड़े। वैसे भी घोषणा में लिखा गया है कि ये ट्रेनें अगले आदेश तक ही चलेंगीं। यानि कभी भी बंद की जा सकेंगीं।
मजदूर फिर घर वापस लौट रहे
कोरोना का प्रकोप कम होने के बाद दूसरे राज्यों में काम के लिये जाने वाले मजदूर बड़ी संख्या में एक बार फिर घर वापस लौटने के लिये अपना बोरिया-बिस्तर समेट रहे हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, एमपी, कर्नाटक जैसे राज्यों में कमाने-खाने के लिये गये प्रवासी मजदूरों ने पिछली बार लॉकडाउन के बाद जिस त्रासदी को भोगा था, उसे याद कर वे अब भी कांप रहे हैं। वे नहीं चाहते कि वैसी स्थिति दुबारा पैदा हो। हालांकि जिन ठेकेदारों ने उन्हें बुलाया है वे आश्वस्त कर रहे हैं कि इस बार हम उनकी हिफाजत की तैयारी रखकर चल रहे हैं, पर मजदूर जानते हैं कि फैक्ट्रियां और निर्माण कार्य लम्बे समय तक बंद होंगे तो उन्हें आखिर कितने दिन मदद मिल सकेगी। इन मजदूरों में छत्तीसगढ़ के भी हैं। रेलवे ने तो मजदूरों के लिये बिहार के लिये स्पेशल ट्रेन तक चलाने का निर्णय लिया है। हो सकता है कि लॉकडाउन की पहले से चेतावनी के चलते पिछली बार की तरह घर तक पहुंचने में मजदूरों को बीते साल की तरह परेशानी न हो लेकिन घर पहुंचने पर पेट पालने की समस्या से तो छुटकारा नहीं मिल पायेगा।
मास्क की अनिवार्यता पर शाह का संदेश
दिल्ली के एक वकील विराग गुप्ता ने एक माह पहले चुनाव आयोग को एक लीगल नोटिस जारी करके कहा था कि चुनाव प्रचार अभियान में आयोग के दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन हो रहा है। आयोग ने चुनावी सभाओं और रैलियों को लेकर निर्देश दिया है कि इसमें आयोजक तथा पहुंचने वाले सभी लोगों को मास्क पहनना तथा सोशल डिस्टेंस का पालन करना जरूरी है, लेकिन इसका कहीं भी पालन नहीं हो रहा है। पश्चिम बंगाल, असम सहित अन्य तीन राज्यों में हो रहे चुनावों में पहुंची भीड़ का हवाला देते हुए गुप्ता ने आयोग से अनुच्छेद 334 के अंतर्गत कार्रवाई की मांग की है।
छत्तीसगढ़ में भी कई वीआईपी नेताओं और आईएएस अधिकारियों की तस्वीरें लगातार सामने आ रही हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि भीड़ के बीच भी वीआईपी मास्क नहीं पहनते। बीजापुर नक्सली हमले के बाद छत्तीसगढ़ पहुंचे केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की विभिन्न स्थानों पर ली गई तस्वीरों से यह साफ दिखाई दे रहा है कि उन्हें भी कोरोना का खौफ नहीं है और वे मास्क पहनना पसंद नहीं करते। ऐसा तब है जब वे दो बार खुद भी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। जब वीआईपी ही मास्क पहनने को अपनी आदत में शामिल नहीं करेंगे तो फिर आम लोगों को कैसे इसके लिये तैयार किया जा सकता है?
12वीं बोर्ड की मार्कशीट का क्या होगा?
राजधानी में एक बार जो जम गया उसे बाहर जाने की इच्छा नहीं होती है, जब तक कोई बेहतरीन मौका न मिले। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही विभिन्न विभागों में यह बात देखी जा रही है। राजधानी होने के नाते रायपुर में रहन-सहन सहूलियत से भरी है। अधिकारियों की भरमार होने के कारण काम का बोझ भी कम होता है। बच्चों की शिक्षा और कैरियर से लेकर सेवानिवृत्ति तक के अवसर यहां जो उपलब्ध हैं वह दूसरी जगह नहीं मिल सकती। शायद यही वजह है कि नेहरू मेडिकल कॉलेज के कई डॉक्टरों ने अपना प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया है और डीन को आवेदन दिया है कि उनको रिलीव नहीं किया जाये। नियम कहता है कि यदि कोई प्रमोशन पर नहीं जाना चाहता तो उन्हें रिलीव न किया जाये, पर डीन ने आवेदन मिलने के पहले ही सबको रिलीव कर दिया है। हवाला शासन के आदेश का दिया गया है। अब देखना है कि तकनीकी दृष्टि से डीन का आदेश सही ठहराया जायेगा या रिलीव नहीं होने के इच्छुक डॉक्टरों का।
प्रमोशन वापस ले लो, यहां से नहीं हिलेंगे
राजधानी में एक बार जो जम गया उसे बाहर जाने की इच्छा नहीं होती है, जब तक कोई बेहतरीन मौका न मिले। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही विभिन्न विभागों में यह बात देखी जा रही है। राजधानी होने के नाते रायपुर में रहन-सहन सहूलियत से भरी है। अधिकारियों की भरमार होने के कारण काम का बोझ भी कम होता है। बच्चों की शिक्षा और कैरियर से लेकर सेवानिवृत्ति तक के अवसर यहां जो उपलब्ध हैं वह दूसरी जगह नहीं मिल सकती। शायद यही वजह है कि नेहरू मेडिकल कॉलेज के कई डॉक्टरों ने अपना प्रमोशन लेने से इंकार कर दिया है और डीन को आवेदन दिया है कि उनको रिलीव नहीं किया जाये। नियम कहता है कि यदि कोई प्रमोशन पर नहीं जाना चाहता तो उन्हें रिलीव न किया जाये, पर डीन ने आवेदन मिलने के पहले ही सबको रिलीव कर दिया है। हवाला शासन के आदेश का दिया गया है। अब देखना है कि तकनीकी दृष्टि से डीन का आदेश सही ठहराया जायेगा या रिलीव नहीं होने के इच्छुक डॉक्टरों का।
शाह ने नहीं दिया भाव...
अमित शाह रायपुर आए, तो यहां के दिग्गज भाजपा नेता भूपेश सरकार के खिलाफ शिकवा-शिकायतों के लिए तैयार बैठे थे। परंतु अमित शाह किसी से ज्यादा बातचीत के मूड में नहीं थे। उन्होंने माना एयरपोर्ट पर पार्टी नेताओं का अभिवादन स्वीकार किया, लेकिन कोई चर्चा नहीं की। इसी बीच रायपुर सांसद सुनील सोनी ने मौका पाकर अमित शाह से शिकायती लहजे में कह दिया कि भाई साब, प्रदेश में कोरोना तेजी से फैल रहा है...। इस पर अमित शाह ने यह कहा कि कोरोना तो पूरे देश में फैल रहा है। रोज का आंकड़ा एक लाख पहुंच गया है। इतना कहकर शाह आगे बढ़ गए।
गांव के गांव पॉजिटिव ?
अमित शाह के जगदलपुर से आने के पहले इंतजार में वीआईपी लाउंज में पूर्व सीएम रमन सिंह, अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, और सरकार के मंत्री ताम्रध्वज साहू व अन्य आपस में बतिया रहे थे। अजय चंद्राकर ने ताम्रध्वज से कहा कि गृहमंत्री होने के बाद भी आप बीजापुर क्यों नहीं गए? नक्सल घटना के बाद जयसिंह अग्रवाल वहां गए, वहां राजस्व मंत्री का क्या काम था? तामध्वज ने सफाई दी कि आंख का ऑपरेशन हुआ है, इसलिए बीजापुर नहीं जा सका।
आपसी चर्चा में कोरोना के बढ़ते मामलों पर भी चिंता जाहिर की गई। पूर्व सीएम रमन सिंह यह बता रहे थे कि राजनांदगांव में कोरोना की वजह से बुरा हाल है। अस्पतालों में बेड नहीं है। रोज अस्पताल में भर्ती कराने के लिए सिफारिशें आ रही हैं। लोग रायपुर पहुंच जाते हैं। ऐसी परिस्थिति हो गई है कि किसी को कुछ कहते नहीं बन रहा है। बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम और अजय चंद्राकर ने भी हामी भरी। अजय चंद्राकर ने कहा कि उनके क्षेत्र में तो गांव के गांव पॉजिटिव हो गए हैं। भाजपा नेता इस बात पर एक मत थे कि कम्युनिटी स्प्रेड हो गया है।
वीडियो जारी कर सफाई
रायपुर में कोरोना की वजह से तेलीबांधा के दो व्यापारी आपस में उलझ गए हैं, और सोशल मीडिया में वीडियो जारी कर एक-दूसरे पर कोरोना फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। मनीष कुकरेजा नाम के एक व्यापारी ने सबसे पहले वीडियो जारी कर बताया कि वे अपने परिचित मोहन नेभानी की दूकान में बैठे थे। मोहन और उनका बेटा कोरोना पॉजिटिव था। बावजूद उन्होंने किसी को इसकी जानकारी नहीं दी, और दूकान खोलकर बैठे रहे, और बिना मास्क के बातचीत करते रहे। जिसकी वजह से मुझे और मेरी पत्नी को कोरोना हो गया।
मनीष का वीडियो फैलते ही मोहन के बेटे यश नेभानी ने जवाब में वीडियो जारी कर सफाई दी, और कहा कि मनीष मथुरा से लौटे थे, और उन्हें रायपुर आने के बाद क्वॉरंटीन होना चाहिए था, लेकिन वे हमारे दूकान आए। और मेरे पिता से काफी देर तक चर्चा की। यश ने कहा कि मनीष की वजह से ही उन्हें और उनके पिता को कोरोना हुआ है। यश ने यह भी सफाई दी कि चार तारीख को उन्होंने कोरोना टेस्ट कराया, और पॉजिटिव आने के बाद से दूकान बंद है। कोरोना किसकी वजह से इसको करोना हुआ है, यह पता लगाना मुश्किल है। मगर दोनों वीडियो की काफी चर्चा हो रही है।
पीएमओ या मौलश्री विहार से फोन
धमतरी भाजपा संगठन के मुखिया इन दिनों काफी परेशान हैं। उन पर पार्टी के एक युवा नेता ने दबाव बनाया है कि उन्हें जिले के कोर ग्रुप में रखा जाए। युवा नेता को समझाने की काफी कोशिश की गई, कि कोर ग्रुप सदस्य के लिए जरूरी क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठ रहे हैं इसलिए उन्हें नहीं रखा गया। मगर युवा नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने संगठन मुखिया को साफ शब्दों में चेतावनी दे रखी है कि पीएमओ और मौलश्री विहार से उन्हें (संगठन मुखिया) फोन आएगा तब तो उन्हें रखना ही होगा। संगठन मुखिया, युवा नेता की हैसियत से वाकिफ भी हैं, और उन्होंने तय कर रखा है कि जब तक पीएमओ या मौलश्री विहार (रमन निवास) से फोन नहीं आएगा तब तक उनके नाम पर विचार भी नहीं किया जाएगा।
राजस्व विभाग में एक मौत की दहशत
तखतपुर में पटवारी को जिम्मेदार बताकर एक किसान ने फांसी क्या लगाई, पटवारियों के साथ-साथ तहसीलदार और दूसरे अधिकारियों की जान सांसत में पड़ी है। प्रदेश के दूसरे स्थानों पर इसका असर भले ही न दिखे लेकिन तखतपुर में तो है। इस इलाके के ग्राम केकती की सरपंच ने ग्रामीणों के साथ पहुंचकर एसडीएम से वहां की महिला पटवारी के खिलाफ शिकायत कर दी। आम तौर पर पहले ऐसी शिकायतें औपचारिक जांच के बाद फाइलों में कैद हो जाती हैं। समस्या निवारण शिविरों में की गई शिकायत पर भी लीपा-पोती कर दी जाती है। पर, यहां अभी किसान की मौत का मामला सुलग रहा है। शिकायत मिलते ही, एसडीएम और तहसीलदार गांव पहुंच गये। पैदल घूमते रहे, लोगों के दरवाजे पर दस्तक दी और पूछा- आपको पटवारी से कोई शिकायत तो नहीं? शिकायत कई लोगों ने की, कई ने कहा, अभी तो कुछ काम नहीं पड़ा। पर शिकायत की जांच के इस तरीके और अफसरों की मुस्तैदी ने लोगों को हैरान कर दिया। ऐसे किस्से पहले सुना करते थे कि राजा अपनी प्रजा का हालचाल पूछने पैदल ही निकल पड़ते थे और अपने मुलाजिम को मौके पर ही दंड देते थे। फिलहाल, पटवारी की शामत आयेगी या उन्हें बख्शा जायेगा? एसडीएम ने इसका फैसला मौके पर नहीं लिया, वे पटवारी से जवाब लेने के बाद कुछ करेंगे।
ये टीका हमका भी लगवा दे ठाकुर...
अभिनेता हों या खलनायक, फिल्मी चरित्रों के सहारे पहुंचाई गई बात लोगों के दिमाग बड़ी तेजी से असर डालता है। अमिताभ बच्चन, विद्या बालन, आमिर खान, अक्षय कुमार जैसे स्टार्स तो अनेक सरकारी योजनाओं के प्रचार में लगे हैं। क्रिकेट का भी क्रेज है, जैसे वन विभाग ने हाथी पर लोगों को जागरूक करने के लिये अनिल कुम्बले को ले रखा है। बहरहाल, ये पोस्टर कोविड से बचाने के लिये है। 45-46 साल पुरानी फिल्म शोले के डॉयलाग आज भी मशहूर हैं। कई लोगों को इसके कई हिस्से कंठस्थ भी हैं। कोरोना वैक्सीन के प्रति जागरूकता के लिये ऐसा भी एक पोस्टर बनाया गया है, जो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि रामगढ़ वाले कोरोना टीका लगवाने के बाद टेंशन फ्री हैं।
मोर बिजली ऐप की खासियत
आम तौर पर सरकारी उपक्रमों के ऐप और पोर्टल ज्यादा काम के नहीं होते। वे अपडेट भी नहीं किये जाते। महीनों पुरानी जानकारी भरी रहती है। उपयोगी सेवायें अवरुद्ध रहती हैं। फिर भी बहुत से ऐप अभी अच्छी तरह काम कर रहे हैं जैसे मोर बिजली ऐप।
आप बिजली बंद की शिकायत फोन से करना चाहेंगे तो या तो फ्यूज काल सेंटर का फोन उठेगा ही नहीं या फिर व्यस्त मिलेगा। ऐप से शिकायत न केवल तुरंत दर्ज होती है बल्कि रजिस्ट्रेशन नंबर भी आ जाता है। सुधार नहीं होने पर आप दुबारा पूछताछ कर सकते हैं। मैनुअल शिकायत का कोई रिकार्ड बिजली शिकायत केन्द्र में है या नहीं पता नहीं चलता। ऐप से की गई शिकायत पर प्राय: जल्दी कार्रवाई हो जाती है। यही नहीं मेंटेनेंस या किसी दूसरे कारण से बिजली बंद है तो शिकायत दर्ज करने से पहले स्क्रीन पर बताया जायेगा। यह भी पता चल जायेगा कि बिजली कब चालू होगी। बिजली बिल आप अपनी मनचाही तारीख में पाने के लिये ऑनलाइन रीडिंग कर सकते हैं और ऑनलाइन बिल भी इस आ जायेगा। भुगतान की सुविधा में स्टेप्स जरूर कुछ ज्यादा है। इसे मोबाइल पेमेंट के ऑप्शन से अभी नहीं जोड़ा गया है पर डेबिट कार्ड या नेट बैंकिंग से भुगतान किया जा सकता है। आपको अपनी साल भर की खपत का ट्रेंड दिखेगा, टैरिफ दिखेगा, हाफ बिजली योजना का आपने कितना लाभ लिया जैसी कई सुविधा इस एप में है। यह सब इसलिये भी बताना जरूरी है कि गूगल प्लेटफॉर्म पर इसे 4 प्लस रेटिंग हाल ही में मिली है। इसे 50 लाख लोग अब तक डाउनलोड भी कर चुके हैं।
मास्क पहनेंगे तो ब्यूटी पॉर्लर कैसे चलेगा?
आम लोगों को जब मास्क पहनने कहा जा रहा है तो सरकार के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से भी इसे व्यवहार में लाने की उम्मीद की जाती है। लोग उनसे सीख लेंगे। मगर ऐसा नहीं है। अपने ही प्रदेश के कुछ आईएएस हैं। वे कोविड के बचाव के लिये बैठक लेते हैं, कोरोना गाइडलाइन का पालन कैसे कराना है अफसरों को बताते हुए भी मास्क नहीं पहनते। कई मंत्री, विधायक भी सार्वजनिक कार्यक्रमों मास्क पहने हुए नहीं दिख रहे। कई लोग पहनते हैं तो उसे डुढ्ढी में लटकाये रहते हैं। मुंह और नाक खुली रह जाती है। करीब 15 दिन पहले एक सीतापुर के एक कार्यक्रम में बिना मास्क लगाये पहुंचे खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने जवाब दिया- डर तो मुझे भी लगता है, पर मास्क पहन नहीं पाता। आगे यह भी जोड़ा- कोरोना होगा तो मुझे ही होगा न? यानि आपको चिंता करने की जरूरत नहीं।
पर सबसे नायाब जवाब है असम के वित्त मंत्री हेमन्त बिस्वा का। एक न्यूज पोर्टल ने उनसे पूछा कि केन्द्र के निर्देश के बावजूद आप मास्क क्यों नहीं पहनते? उन्होंने कहा- केन्द्र का निर्देश है, पर हम नहीं पहनते। नहीं है तो नहीं है। सवाल दोहराये जाने पर उन्होंने रहस्य बताया- हमें अपने राज्य की इकॉनॉमी को भी रिवाइव करना है। मास्क पहन लेंगे तो ब्यूटी पार्लर कैसे चलेंगे?
मास्क पहनने का आपकी खूबसूरती, ब्यूटी पार्लर से सीधा रिश्ता है यह राज मंत्री जी ने जगजाहिर कर दिया।
खतरनाक होता है, शांति से मर जाना...
बीजापुर नक्सली हमले में 22 जवानों की शहादत ने पूरे छत्तीसगढ़ को झकझोर कर रख दिया है। सभी का साहस सराहा जा रहा है। इनमें जांजगीर जिले के सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज को भी लोग याद कर रहे हैं। नवोदय मल्हार से उन्होंने स्कूली शिक्षा ली उसके बाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ते रहे। इसी दौरान उन्होंने बहुत मित्र बनाये। वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे उसकी तैयारी भी कर रहे थे। इसी दौरान सब-इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा की वेकेंसी निकली और उसका फॉर्म उन्होंने भर दिया। फिटनेस और सेहत पर वह कितना ध्यान देते थे इसका अंदाजा उनकी तस्वीरों को देखकर लगाया जा सकता है। इन सब के अलावा वे साहित्य में भी रुचि रखते थे। उनके एक मित्र ने सोशल मीडिया पर अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की एक पसंदीदा कविता शेयर की है-
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती/ पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती/ गद्दारी और लोभ की मु_ी सबसे खतरनाक नहीं होती/ बैठे- बिठाये पकड़ा जाना बुरा/ सहमी सी में जकड़ा जाना बुरा तो/ सबसे खतरनाक नहीं होता/कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है/ मु_ियां भींचकर बस वक्त निकाल देना बुरा तो है/ सबसे खतरनाक नहीं होता/ सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से मर जाना।
सोशल मीडिया पर दीपक के दोस्तों के अलावा अनेक शिक्षकों व प्रशासनिक अधिकारियों के श्रद्धांजलि से पोस्ट भरे हुए हैं। कई कर्मचारी नेताओं ने उनसे जुड़े संस्मरण याद किये हैं। दीपक के पिता राधेलाल एक कर्मचारी नेता हैं।
केन्द्रीय मदद अचानक कम क्यों हुई
नक्सल प्रभावित राज्यों को केन्द्र से हर साल बड़ी राशि मोर्चे के लिये भेजी जाती है। छत्तीसगढ़ के अलावा आंध्रप्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलगांना ऐसे राज्यों में शामिल हैं। एक सरकारी आंकड़ा बताता है कि बीते वित्तीय वर्ष में केन्द्रीय सहायता एकदम से घटा दी गई। सन् 2019-20 और उसके पहले 2018-19 में इन राज्यों को करीब एक हजार करोड़ का आबंटन किया गया लेकिन सन् 2020-21 में राशि घटाकर, 393 करोड़ कर दी गई। छत्तीसगढ़ को भी मिलने वाली राशि एक चौथाई रह गई, जिसे नक्सल समस्या से सर्वाधिक प्रभावित राज्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ को पिछला आबंटन 71.25 करोड़ रुपये ही था जबकि 2019-20 में 266.54 करोड़ मिले थे।
क्या पिछले साल कोविड समस्या के कारण आर्थिक संकट के चलते आबंटन घटाना पड़ा? या फिर उसके पहले के दो साल में किये गये हजार-हजार करोड़ का कोई नतीजा नहीं मिलता, पाया गया? नक्सलियों से लोहा लेने में इस आबंटन की कमी का कोई असर है? इन सवालों पर शायद अब बात हो।
जिंदगी का बेपटरी हो जाना ज्यादा तकलीफदेह
स्कूल कॉलेजों में नये सत्र की शारीरिक उपस्थिति के साथ पढ़ाई की तैयारी बस चल ही रही थी कि कोरोना महामारी अधिक रौद्र और आक्रामक रूप से सामने आ गई। उत्सवधर्मी देश के लोग होली पर मिलने-जुलने और रंग खेलने से रह गये। नवरात्रि पर देवी मंदिरों के पट पाबंदियों के साथ खुलेंगे। पर्यटन स्थलों और अभयारण्य के सैर-सपाटों पर रोक लग गई। मंत्रालय में 50 प्रतिशत उपस्थिति का आदेश जारी हो चुका है। जिला मुख्यालयों से भी ऐसी ही मांग हो रही है।
दूसरी तरफ भयावहता की आशंका के बावजूद बाजार, उद्योगों और रोजगार देने वाले निजी प्रतिष्ठानों को बंद करो, कहने की हिम्मत सरकार नहीं जुटा पा रही, न ही लोग ऐसा चाहते हैं। परिवहन सेवायें जारी हैं, खाद्यान्न आपूर्ति एक हद तक सहज बनी हुई है। लोगों को नौकरी से दूसरी बार बाहर करने की कोई बड़ी खबर नहीं आ रही है। मजदूरों की देशव्यापी दारूण घरवापसी के विचलित करने वाले दृश्य दिखाई नहीं दे रहे हैं। कुछ व्यवसाय जिनका समूह से वास्ता है, फिर से जरूर खतरे में आ गया है। जैसे जगराता, शादी ब्याह में टेंट, बैंड बाजे की मांग एक बार फिर नहीं होना है। होटल व पर्यटन व्यवसाय पर भी फिर से ग्रहण लग रहा है।
इस वातावरण में लोग मन में छिपी चिंता व भय की अवहेलना कर हिम्मत के साथ नये तूफान का सामना कर रहे हैं। लॉकडाउन से जिस तरह जीवन बेपटरी हो गई थी, फिर से वह नौबत न आये, ताकत पूरी इसी बात पर लगाई जा रही है।
अधिकारी को हटाने के खिलाफ आंदोलन
अधिकारियों के रवैये से परेशान होकर लोग आंदोलन कर उन्हें हटाने की मांग करते हैं। पर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई अधिकारी अपने विभाग में या नागरिकों के बीच इतनी पैठ बनाते लेते हैं कि उनके तबादले का विरोध करने के लिये भी सडक़ पर उतर जाते हैं। कोरिया जिले में ऐसा ही कुछ हुआ है। खोंगापानी नगर पंचायत की सीएमओ ज्योत्सना टोप्पो का स्थानांतरण जिले के ही सूरजपुर में कर दिया गया। वहां के प्लेसमेंट और सफाई कर्मचारी इसके विरोध पर उतर आये। वे अपना रिक्शा लेकर सडक़ पर आ गये। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को हर माह नियम से तनख्वाह देने वाली इस अधिकारी का तबादला उचित नहीं है। नये के आने से दिक्कत हो जायेगी। वैसे उनका तबादला प्रदेशभर के 58 तबादलों के साथ नगरीय पंचायत विभाग ने किया है। कई बार ऐसा होता है कि अधिकारी खुद ही जगह नहीं छोडऩा चाहता और दबाव बनाने के लिये कर्मचारियों या स्थानीय लोगों से विरोध कराते हैं। कई बार ठेकेदारों, सप्लायरों का भी हित जुड़ा होता है। नये अधिकारी आयेंगे तो उनका रुका हुआ बिल कहीं लटक न जाये। इस मामले में ऐसा कुछ है या नहीं, साफ पता नहीं लग सका है।
संक्रमण फैलने से रोकने का कोई मानक बनेगा?
बाजार को सीमित समय के लिये खोलने, रात का कफ्र्यू लगाने, शाम होते ही बाजार बंद करने जैसे उपायों का अक्सर सोशल मीडिया पर मजाक बनाया जाता है। कहा जाता है कि शायद कोरोना वायरस रात में निकलता है, जब लोग कम होते हैं। दिन में नहीं निकलता, जब ज्यादा भीड़ होती है। पर इस पर छत्तीसगढ़ के इंडियन मेडिकल एसोसियेशन ने सरकार को कुछ गंभीर किस्म के सुझाव दिये हैं। सुझाव में यह भी है कि सीमित समय के लिये बाजार खोलने के चलते भीड़ इक_ी हो रही है। भीड़ की वजह से आपात सेवाओं में बाधा होती है और प्रशासन केवल कानून व्यवस्था को संभालने में लग जाता है।
आईएमए का यह भी कहना है कि घर से बाहर निकलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव पर जोर दिया जाये ताकि सोशल डिस्टेंस, मास्क उनके जीवन का हिस्सा बने। आईएमए सरकार की इस बात से सहमत है कि लॉकडाउन से रोजी-रोटी मारी जाती है। यहां तक कि वह शराब दुकानों को खोलने के खिलाफ भी नहीं है पर उनका कहना है कि सबसे ज्यादा अनियंत्रित भीड़ वहीं इक_ी होती है। इसे काबू में किया जाये। सरकार को आईएमए ने करीब दर्जन भर सुझाव दिये हैं। चूंकि यह उन डॉक्टरों का सुझाव है जो कोरोना की लड़ाई में नागरिकों की पहली पंक्ति पर रहकर मदद कर रहे हैं, संभव है, सरकार इन सुझावों को गंभीरता से ले।
रामनाम का भरोसा है..
कोरोना के खौफ के बीच कांग्रेस के कई नेता पंचायत चुनाव प्रचार के लिए यूपी गए हैं। पार्टी हाईकमान ने अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को मजबूत करने की नीयत से इन नेताओं को यूपी भेजा है। देशभर में कोरोना डरा रहा है, तो कांग्रेस नेताओं को यूपी में अलग तरह का माहौल देखने को मिला।
कांग्रेस नेता संजय सिंह ठाकुर और उधोराम वर्मा, जब यूपी के जौनपुर पहुंचे, तो उन्हें लोग हैरत भरी निगाहों से देखने लगे। दरअसल, दोनों नेता मास्क लगाए हुए थे, और वहां कोई भी मास्क पहने हुए नहीं थे। लोग उन्हें बीमार समझने लगे। इससे दोनों कांग्रेसी असहज महसूस करने लगे, और आखिरकार उन्होंने मास्क उतार दिया।
संजय और उधोराम, जौनपुर जिला कांग्रेस के पर्यवेक्षक बनाए गए हैं। दोनों जिला कांग्रेस की बैठक लेने पहुंचे, तो वहां भी किसी ने मास्क नहीं पहना था। सामाजिक दूरी का पालन करना तो दूर की बात रही। कुल मिलाकर वहां के लोग कोरोना से बेखौफ नजर आए।
ऐसा नहीं है कि यूपी में कोरोना के प्रकरण नहीं मिल रहे हैं। यूपी की आबादी छत्तीसगढ़ से 10 गुना अधिक है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बराबर कोरोना की जांच नहीं हो रही है। छत्तीसगढ़ के हालात से घबराए नेताओं ने वहां कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर जानकारी लेने की कोशिश की, तो पता चला लोग वैक्सीन लगाने में रूचि नहीं ले रहे हैं। लोग मानते हैं-होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
ट्रक वालों को चाय पिलाते जवान
आईएएस, आईपीएस जब जिलों की कमान संभालते हैं तो कुछ नया प्रयोग करते हैं, जिससे उनका कार्यकाल वहां उनकी छाप छोड़ दे। यातायात सुधार, पौधारोपण, कोचिंग क्लास जैसे अनेक आइडियाज़ उनके दिमाग में होते हैं। कई अफसर राह चलते रुककर जरूरतमंदों की मदद कर या उत्पातियों को थप्पड़ मारकर भी पहचान बनाते हैं। यह अलग बात है कि उनके जाने के बाद इन प्रयोगों का शटर गिर जाता है।
सरगुजा जिले में भी इन दिनों इसी तरह का एक प्रयोग हो रहा है। हाईवे पर ओवरनाइट भारी वाहन के चालकों के लिये पुलिस जवानों से गरमागरम चाय पिलाने की व्यवस्था की है। उन्हें तीन-चार तरफ की अंतर्राज्जीय मार्गों की चौकियों, थानों पर रोका जा रहा है। पुलिस जवान गरम चाय पिलाते हैं, उनसे कुछ बातें करते हैं। मंगलमय यात्रा की शुभकामना देकर रवाना करते हैं।
सुनने में अटपटा लग सकता है। पर ऐसा वहां के पुलिस कप्तान के निर्देश पर एक खास मकसद से किया जा रहा है। वे यह मान रहे हैं कि रात में दुर्घटनायें अक्सर झपकी आने से होती है। चाय पीने से तरावट आयेगी तो चालक चैतन्य हो ड्राइव करेंगे, नींद नहीं आयेगी। इससे हाईवे पर देर रात होने वाली दुर्घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।
ऐसा है कि आधी रात को जब पुलिस हाथ देकर ट्रक रोकती होगी तो ड्राइवर की नींद अगर आने वाली भी हो तो वह उड़ जाती होगी। पर वे अचरज में पड़ जाते होंगे कि चाय-पानी की व्यवस्था करने के नाम पर कुछ वसूली नहीं हो रही। गंगा उल्टी बह रही है।
किसी भी नये प्रयोग से अगर सुधार दिखे तो उसकी तारीफ होनी चाहिये। हो सकता है कि एसपी की इस पहल के नतीजे भी मिले, देर रात होने वाली दुर्घटनायें घटें। आगे की चौकियों में इस बात का ध्यान भी रखा जाये कि पुलिस की खातिरदारी से गद्गद ड्राइवर तेज डेक बजाते हुए आगे बढ़ें और एक्सिलेटर इतना दबा दे कि कोई अनहोनी हो जाये।
विधायक का सोशल मीडिया चैलेंज
कोरोना के दूसरे आक्रमण पर सोशल मीडिया पर वक्त ज्यादा बिताने के लिये तैयार रहिये, जैसा पिछली बार हुआ था। इसका आगाज़ भी हो चुका है। कल से ही देखा जा रहा है कि कांग्रेस, भाजपा के बड़े नेताओं सहित अनेक जागरूक और दलीय पक्षधरता रखने वाले लोगों के लगातार कमेन्ट आ रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण क्या रोड सेफ्टी इंटरनेशनल क्रिकेट से बढ़ा। इस जंग में डॉ. रमन सिंह और टीएस सिंहदेव भी शामिल हो गये थे।
पर ये तो गंभीर मुद्दे हैं, लोग तो हल्की फुल्की बातें ज्यादा पसंद करते हैं। जैसे कि विधायक शकुंतला साहू ने ट्विटर पर कहा कि आज जो मुझे फॉलो करेगा, मैं भी उसे फॉलो बैक करूंगी। पोलिटिकल सिलेब्रिटी हैं, लोगों ने गंभीरता से लिया। ट्विटर पर एक ही दिन में उन्हें फॉलो करने वालों की संख्या एक हजार से ज्यादा बढ़ गई। किसे अच्छा नहीं लगेगा कि कोई विधायक उन्हें फॉलो करने पर बैक फॉलो का भरोसा दे। लगभग सबको भाई सम्बोधित कर रही हैं, लोग उन्हें दीदी कह रहे हैं।
कई ने कहा आप झूठ बोल रही हैं। मोदी की तरह जुमला दे रही हैं। मगर, पोस्ट्स देखने से पता चलता है कि सचमुच वह बहुत से लोगों को फॉलो करती जा रही हैं। कब तक, पता नहीं क्योंकि लोग उनसे तरह-तरह की समस्याओं पर जो सरकार से जुड़ी भी हैं और उनकी व्यक्तिगत भी है, उस पर जवाब मांग रहे हैं।
चेक करिये विधायक ने आपको बैक फॉलो किया या नहीं।
कोटवार रोकेगा कोरोना का हमला
कोरोना के फिर बड़े आक्रामक तेवर के साथ लौटने की चिंता भरी खबरों के बीच कई लतीफे मूड हल्के करने वाले तैयार हैं। अब छत्तीसगढ़ के संदर्भ में वाट्सएप पर चल रहे इस जोक को ही ले लीजिये-
स्वास्थ्य मंत्री ने फोन करके पूछा- ‘कोरोना बढ़ रहा है, क्या करें’
सीएम ने मंत्री से कहा- ‘उचित निर्णय लीजिये, आप ही लीजिये।’
मंत्री जी से सीएस को फोन किया- ‘उचित निर्णय लीजिये, आप ही लीजिये।’
सीएस ने कलेक्टर्स की वीसी ली और कहा- ‘निर्णय लीजिये, आप लीजिये।’
कलेक्टर्स ने एसडीएम को, एसडीएम ने तहसीलदारों को और तहसीलदारों ने अब कोटवारों से कह दिया है- ‘उचित निर्णय लीजिये, आप ही लीजिये।’
कोटवार ने भी गांव में मुनादी कर दी - ‘तुमन ल का बताना, कोरोना हे, घर ले झन निकलौ।’
खुदकुशी से दिखा पटवारी-भ्रष्टाचार
बिलासपुर जिले में एक आत्महत्या के साथ जब यह पर्ची मिली कि किसान से पटवारी ने पांच हजार रूपए रिश्वत लेने के बाद भी ऋण पुस्तिका बनाकर नहीं दी, तो अब लाश और पर्ची को देखते हुए पुलिस पटवारी को गिरफ्तार करने पहुंची है।
लेकिन हैरानी इस बात की है कि पटवारी नाम की संस्था के संगठित भ्रष्टाचार का कोई मामला जब किसी आत्महत्या तक पहुंच रहा है, तब सरकार को वह दिख रहा है, उसके पहले नहीं! सच तो यह है कि किसी सरकार का डूबना तहसील और पटवारी के दफ्तर से ही शुरू होता है जहां आत्महत्या की हद तक थके हुए लोग रोजाना ही चक्कर काटते हैं, लेकिन आत्महत्या करने से किसी तरह बच जाते हैं। किसी भी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को यह मानकर चलना चाहिए कि उसके कार्यकाल के पांच बरस में पटवारी और तहसीलदार से जिन वोटरों का वास्ता पड़ता है, वे वोट सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ ही जाते हैं। क्योंकि बड़े-बड़े लोगों के काम पटवारी उनके घर जाकर करते हैं, इसलिए पटवारियों का भ्रष्टाचार दबे रह जाता है, उसे अनदेखा कर दिया जाता है। राजधानी रायपुर में कुछ पटवारी हल्के तो ऐसे हैं जहां से पटवारी करोड़पति बनकर ही हटते हैं। और जाहिर है कि इन जगहों पर पहुंचने के लिए भी सरकार के अलग-अलग स्तरों पर लाखों का लेन-देन होता है। बदनाम होने के लिए आरटीओ को सबसे भ्रष्ट विभाग माना जाता है जिसकी सरहदी चौकियों पर वसूली के लिए निजी लठैतों की फौज रखी जाती है। लेकिन किसी भी पटवारी के दफ्तर जाकर देखें, तो वह किराए के मकान में दफ्तर चलाते हैं, और कई निजी कर्मचारियों को नौकरी पर रखते हैं। सरकारी काम के लिए ऐसा निजी खर्च आरटीओ और पटवारी के अलावा और कौन कर सकते हैं?
टीका लगवाने की इतनी हड़बड़ी?
45 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका लगाने की मंजूरी मिलने के बाद कई वैक्सीनेशन सेंटर्स में उमड़ी भीड़ कोरोना फैलने के नये खतरे को- आ, देख लेंगे, कह रही है। लोगों को याद होगा कि बीते साल अनेक बड़े अस्पतालों में कोरोना जांच के दौरान दूरी रखने के लिये सफेद गोल घेरे बनाये गये थे। कोरोना के संदिग्ध और दूसरे सामान्य मरीजों के कई जगह पर अस्पताल, तो कई जगह काउन्टर, कमरे भी अलग थे। इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं। इस भीड़ में पहले से कोरोना संक्रमण के लक्षण वाले भी हो सकते हैं। वे कोरोना से बचने की उम्मीद में टीका लगवाने तो आ रहे होंगे पर संक्रमण फैलाकर लौट सकते हैं। पर ऐसी कोई पूछताछ टीकाकरण केन्द्रों में नहीं हो रही है। यह सही है कि न तो स्वास्थ्य विभाग, न वालेंटियर्स और न पुलिस की कोशिश से यह भीड़ संभलेगी। लोग यदि यह समझ लें कि यह वैक्सीनेशन अभी-अभी तो शुरू हुआ है। लगातार चलेगा और खासकर, छुट्टियों के दिन भी।
गांव का मौसम गुलाबी होने लगा?
वित्तीय वर्ष समाप्त होने के बाद जगह-जगह से जो आंकड़े आये, वे अगले साल के लिये क्या अच्छे दिन के संकेत हैं? मसलन, बीते मार्च में मारुति ने बिक्री 2020 के साल से करीब दो गुना की। टोयोटा ने तो आठ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। किसी भी कार कम्पनी की बिक्री इन दिनों में गिरी नहीं बल्कि रिकॉर्ड बने। जिस जीएसटी वसूली कम होने के चलते केन्द्र को राज्य सरकारों का पैसा रोकने के कारण झेंपने की नौबत आ रही है, अब तक सबसे ज्यादा सवा लाख करोड़ से भी अधिक कलेक्शन हो गया। बिजली की खपत भी करीब 25 प्रतिशत बढऩे का देशव्यापी आंकड़ा है। पावर फाइनेंस कम्पनी ने सरकार को तय से 11 सौ करोड़ अतिरिक्त लाभांश दिया। शेयर सेंसेक्स ने 50 हजार से ऊपर का आंकड़ा छू लिया। सोने के दाम बढ़ फिर बढऩे लगे हैं।
छत्तीसगढ़ की प्रमुख कम्पनियों, उपक्रमों ने भी ऐसे ही आंकड़े जारी किये हैं। जैसे एसईसीएल और एसईसीआर ने रिकॉर्ड लदान और परिवहन किया। एनएमडीसी को भी बढ़त ही मिली है। प्रदेश सरकार की रिपोर्ट भी जबरदस्त है। रजिस्ट्री शुल्क में छूट चल रहे होने के बावजूद रिकॉर्ड कलेक्शन हुआ। शराब कोरोना काल में भी इतनी बिकी कि अनुमान से अधिक मुनाफा हुआ।
ये आंकड़ों की कलाबाजी भी हो सकती है। मसलन, मारुति कार इंडस्ट्री को 2019 और 2020 में बीते कई सालों के मुकाबले शुद्ध मुनाफे में घाटा हुआ था। इस बार इसीलिये उछाल दिख रहा है। सार्वजनिक, सरकारी उपक्रमों में यह आंकड़ेबाजी और जबरदस्त होती है। वे अपनी देनदारी दिखाने से बचते हैं। ऐसी बातें ख़बरों में नहीं आती, प्राय:।
दूसरी बात क्या कार, सोना, शेयर, शराब में पैसा लगाने वाले लोग वे ही हैं, जिनकी कोरोना काल में नौकरी छूट गई थी और नये की उम्मीद टूटी, रोजगार संकट में पड़ा। होम लोन किश्त चुकाने की हैसियत नहीं रही? या वर्षों पहले लिखी, अदम गोंडवी की बात ही सही है कि- ‘फिर लगी है होड़ सी देखो, अमीरी औ गरीबी में..?’
संविधान पर छोटी किताब आ रही
संविधान के हिफाजत की लड़ाई लडऩे वालों ने कई बार छोटे-बड़े समारोहों में इसके प्रमुख बिन्दुओं की बुकलेट बांटी है। दूसरी ओर, हक़ीकत यह है कि देश के अधिकतर लोगों ने संविधान को पढऩे की कोशिश नहीं की। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि किसी भी लोकतांत्रिक, संप्रभु देश का यह सबसे लम्बा लिखित संविधान है। इसमें करीब डेढ़ लाख शब्द हैं। 25 भागों में है। 448 अनुच्छेद और 104 संशोधन हैं।
इसके बावजूद जरूरी है कि खास-खास बातें आम लोगों को पता हो। खासकर नई पीढ़ी को, जिन पर आगे देश की जिम्मेदारी है। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने इसकी मूल विशेषताओं को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला लिया है। पहली से आठवीं तक के बच्चे इसे समझेंगे। अपने घर में चर्चा करेंगे। उम्मीद है कि प्रकाशित किताब में केवल महत्वपूर्ण बिन्दुओं को आसान भाषा में, संक्षेप में शामिल किया जा रहा हो। सरकारी स्कूलों में तो यह अनिवार्य होगा पर निजी स्कूलों में भी इसे जरूरी किया जा सकता है। पाठ्यपुस्तक निगम अपने मुनाफे से इसे छपवा रहा है। यह एक ऐसा फैसला है जिसका विरोध वे भी नहीं कर सकेंगे, जिन्होंने संविधान की अपनी सुविधा से व्याख्या कर, तोड़-मरोडक़र, लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की आजादी को, धर्मनिरपेक्षता को, समानता के उद्देश्य को खतरे में डालने का काम किया है, कर रहे हैं।
19वीं शताब्दी का शाला रजिस्टर
यह गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के एक पुराने स्कूल का दाखिल-खारिज रजिस्टर है। इस रजिस्टर के पन्ने पर नजर डालने से अनेक रोचक जानकारी मिलती है। यह कि पेन्ड्रा, जो घने जंगलों से घिरा था, में 1884 में स्कूल था, संचालन जनपद पंचायत करता था। बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ते थे, क्योंकि सूची लम्बी है। यह पन्ने के पहले कॉलम में दिखाई दे रहा है। रजिस्टर में एक-एक बच्चे के पिता का व्यवसाय, स्कूल में दाखिले की तारीख, उसके दाखिले की तारीख, यदि उसने स्कूल आना बंद कर दिया है तो क्यों? दूसरे गांव पढऩे चला गया, बीमारी के कारण नहीं आ रहा। अन्यत्र पढऩे लग गया, मरवाही, कटनी जैसे कारण दर्ज किये गये हैं। यकीन है कि स्कूल चलें हम जैसे किसी अभियान के बगैर भी उस वक्त के शिक्षक हर बच्चे का दाखिला हो, न आ रहे हों तो कारण मालूम हो, इसकी कोशिश करते थे। छात्रों की चरित्रावली भी दर्ज है, उन्हें उत्तम अथवा मध्यम बनाया गया है। और सबसे बड़ी खूबी जिस अध्यापक ने यह विवरण दर्ज किया है लिखावट के सामने आज के कम्प्यूटर की लिपियां फेल दिखती हैं। इस दस्तावेज को ट्वीटर पर शेयर किया है बिलासपुर कमिश्नर डॉ. संजय अलंग ने।
ताकि लॉकडाउन लगने पर न तरसें
बीते साल कोरोना का सितम्बर, अक्टूबर में कहर टूटा था। कमोबेश फिर से वही हालात बन गये हैं। तब देश के अलग-अलग हिस्सों में लॉकडाउन और परिवहन सेवाओं पर प्रतिबंध के कारण अत्यावश्यक चीजों की सप्लाई में बाधा आई थी और प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद आलू, शक्कर जैसी चीजों के दाम बढ़ते जा रहे थे। इस बार सरकार ने लॉकडाउन नहीं लगाने, कुछ घंटे छोडक़र सामान्य तरीके से बाजार खुला रखने का आदेश दिया है। फिर भी बाजार के कुछ व्यापारियों को लगता है कि संक्रमण की रफ्तार देखकर आगे लॉकडाउन का आदेश भी निकल सकता है। इसका पहला असर पड़ा है गुटखा, तम्बाकू, सिगरेट और गुड़ाखू पर। धीरे-धीरे इसके दाम बढ़ाये जा रहे हैं। जो इसका शौक रखते हैं वे भी एहतियात बरतते हुए स्टाक जमा कर रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि अभी चिल्हर बिक्री पर अतिरिक्त कीमत कम जगह ही वसूली जा रही है पर थोक दाम बढऩे लगे हैं। इसकी वजह वे दूसरे राज्यों में खासकर महाराष्ट्र के शहरों में लगाये गये लॉकडाउन के चलते परिवहन बाधित होना बता रहे हैं। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना प्रकोप नहीं थमने के बावजूद नागपुर से आज से लॉकडाउन हटा दिया है।
अप्रैल फूल के दिन पड़ी मार
एक अप्रैल से कई नये नियम शुरू हो गये हैं। कोविड वैक्सीन 45 साल से ऊपर सभी लोगों को लगाया जाना सुनिश्चित किया गया है। चेकबुक, पेंशन, टैक्स पर भी नये नियम लागू हो गये हैं। ज्यादातर फैसले जो लागू हो रहे हैं उससे आम लोगों पर महंगाई की मार और बढऩे लगी है। बस वित्त मंत्री के इस बयान ने थोड़ी राहत दी कि स्माल सेविंग्स से ब्याज दर कम करने का फैसला वापस लिया गया है।
राजधानी के एयरपोर्ट से यात्रा करने वालों को भी आज से सीधे-सीधे पांच-सात सौ की अतिरिक्त राशि देनी पड़ेगी। यह सवाल तो है कि हवाई सेवा की लैंडिग चार्ज किस नाम पर लिया जाता है? उसकी वसूली भी यात्रियों से ही होती है। इसका भी शुल्क 45 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है, जो यात्रियों के ही जेब से जायेगा। यह दावा किया जा रहा था कि हवाई चप्पल वाले भी हवा में उड़ेंगे। पर महानगरों के नियमित विमानों में यह आने वाले दिनों में तो मुमकिन होता नहीं दिख रहा है। स्पेशल के नाम ट्रेन टिकटों में भी भारी वृद्धि की पहले से की जा चुकी है। यहां तक कि पैसेंजर ट्रेनों को भी स्पेशल के नाम पर चलाया जा रहा है। इस वृद्धि को लेकर एक याचिका भी हाईकोर्ट में लगाई गई है। लगता है कोरोना में घर बैठे रहने की सलाह का इसी तरह पालन कराया जायेगा।
टमाटर के बुरे दिन
स्पेन और दुनिया के कई देशों में टमाटर फेस्टिवल मनाया जाता है। उन जगहों पर टमाटर की इतनी पैदावार होती है कि होली की तरह उत्सव रखा जाता है। लगता है कि छत्तीसगढ़ में भी ऐसी कोई परम्परा शुरू करनी होगी। बीते दो माह से टमाटर के भाव इतने गिर गये हैं कि पैदा और ट्रांसपोर्ट करने की तो दूर, तोडऩे की लागत भी नहीं निकल रही है। यह बात अलग है कि बिचौलिये जिसे किसानों से एक रुपये में खरीद रहे हैं चिल्हर विक्रेता उसे दस रुपये में बेच रहे हैं। बरसों से राज्य में फूड प्रोसेंसिंग की यूनिट्स खड़ा करने की बात हो रही है पर न तो पिछली सरकार ने, न ही इस सरकार ने इस पर गंभीरता से काम किया है।
उपजाऊ जमीन मिल गयी थी..
कोरोना का संक्रमण एकाएक तेजी से बढ़ रहा है। पिछले तीन-चार महीने से संक्रमण में कमी क्या आई, लोगों ने मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग करना बंद कर दिया था। मंत्रालय में तो सैनिटाइजर टनल खराब हो गए थे। अब जब कई कर्मचारी कोरोना की चपेट में आए हैं, तो फिर एक बार आनन-फानन में सैनिटाइजर खरीदी के लिए टेंडर बुलाए गए हैं। कुछ कर्मचारियों ने सैनिटाइजर लेकर आना शुरू कर दिया है, और काम शुरू करने से पहले अपने कक्ष को सैनिटाइज करना शुरू कर दिया है। देर से ही सही लोगों को बात समझ में आ रही है कि सुरक्षा ही बचाव है। लेकिन इस समझ आने तक कोरोना को उपजाऊ जमीन मिल गई !
नाराजगी रंग लाएगी?
नारायणपुर नक्सल विस्फोट की घटना के पीछे चूक सामने आ रही है। इस घटना में डीआरजी के पांच जवान शहीद हो गए, घायलों का अभी भी इलाज चल रहा है। सीएम ने रायपुर आने के बाद गृहमंत्री और कुछ अफसरों के साथ मंत्रणा की। इस बैठक में डीजीपी को नहीं बुलाया गया था। सुनते हैं कि सीएम, डीजीपी से नाखुश चल रहे हैं। गृहमंत्री ने उनकी कार्यशैली पर अप्रसन्नता जताते हुए सीएम से पहले ही शिकायत कर दी थी। संकेत साफ है कि सीएम अलग-अलग स्तरों पर डीजीपी के खिलाफ आ रही शिकायतों को ज्यादा समय तक नजरअंदाज नहीं करेंगे।
नए सीएस ने चि_ी लिखी, तो...
आखिरकार डेढ़ साल बाद रीना बाबा साहेब कंगाले को चुनाव आयोग की अनुमति के बाद मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के साथ महिला बाल विकास, और समाज कल्याण सचिव का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया। दरअसल, रीना को अतिरिक्त प्रभार देने की अनुमति के लिए तत्कालीन सीएस आरपी मंडल ने आयोग को चि_ी लिखी थी। पत्र की भाषा कुछ ऐसी थी कि केन्द्रीय निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा खफा हो गए, और उन्हें अनुमति नहीं मिली। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पास चुनाव के समय को छोडक़र कोई ज्यादा काम नहीं रहता है। ऐसे में आयोग अतिरिक्त विभाग संभालने की अनुमति दे देता है। अनुमति नहीं मिली, तो रीना को काफी इंतजार करना पड़ा। नए सीएस अमिताभ जैन ने चि_ी लिखी, तो आयोग नेे विरोध नहीं किया।
मतदान और चुनावी रैली
बढ़ते कोरोना मामलों के चलते छत्तीसगढ़ के ज्यादातर जिले नाइट कफ्र्यू के घेरे में ला दिये गये हैं। पर हैरानी यह है कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां कोरोना नियंत्रण में हैं। 28 मार्च को पश्चिम बंगाल में पहले चरण की वोटिंग हुई। कुछ तस्वीरें भारी भीड़ की भी है, पर अधिकांश मतदान केन्द्रों में चुनाव आयोग की गाइडलाइन का पालन करते हुए गोल घेरे में दूरी बनाकर वोट डालने वालों की कतार लगाई गई। पर इसके दो दिन पहले की तस्वीर भी देखें। दो दिन पहले ही क्यों, एक माह लगातार जितनी रैलियां हुईं उनमें इतनी भीड़ रही कि लोगों ने कोरोना के खतरे को ठेंगा दिखा दिया और पुलिस, चुनाव आयोग और कोरोना गाइडलाइन का पालन कराने वाले किसी संस्थान ने लगाम नहीं लगाई।
तो इतनी सूखी निकली होली
कोरोना ने होली के कई बड़े समारोहों पर ताला जड़ दिया। इस बार होली पर सडक़ें उसी तरह सूनी थी, जैसी उसके अगले दिन होती हैं। पर इस बार हुआ ये कि एक साथ तीन त्यौहार आये। होली, शब-ए-बारात और खजूर रविवार यानि ईस्टर।
होली पर पुलिस को कानून-व्यवस्था संभालने के लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि हुड़दंगी कम निकले।
रंग गुलाल की बिक्री थोक बाजार वाले बता रहे हैं कि 25 फीसदी ही हुई। नगाड़ों की बिक्री भी बहुत कम हुई।
बच्चों को होली में खूब आनंद आता है पर उन पर भी पहरा लगा रहा। त्यौहार, मेल-जोल का, उमंग का जरिया है। बस लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कोरोना वायरस का प्रकोप घटे तो आने वाले त्यौहारों को पारम्परिक तरीके से मना पायें।
पहले स्टेडियम और अब होली...
छत्तीसगढ़ में कोरोना जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, उसका कोई मुकाबला महाराष्ट्र से तो नहीं है, लेकिन अपने खुद के बीते हुए कल से जरूर है। बहुत से लोगों का यह मानना है कि सडक़ सुरक्षा के नारे वाला जो क्रिकेट टूर्नामेंट राजधानी रायपुर में हुआ, और जहां से लौटकर सचिन तेंदुलकर और यूसुफ पठान कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, उसी स्टेडियम ने कोरोना फैलाया है। दरअसल स्टेडियम में बैठे लोग जितना क्रिकेट देखना चाहते थे, उतना ही टेलीकास्ट के कैमरों को अपना चेहरा दिखाना भी चाहते थे, और बिना मास्क सेल्फी लेना चाहते थे। नतीजा यह निकला कि स्टेडियम में मास्क का कोई काम ही नहीं रह गया था। कुछ लोगों का अंदाज है कि इस मैच को देखने के लिए नागपुर से भी बड़ी संख्या में लोग आए थे जो कि कोरोना का एक सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बना हुआ है। ढेर सारे मंत्री दुर्ग जिले के हैं, खुद मुख्यमंत्री दुर्ग जिले के हैं, इसलिए क्रिकेट के पास वहां बहुत बंटे थे, और इसी वजह से आज दुर्ग प्रदेश में कोरोना का भयानक केन्द्र बना हुआ है, और इसी वजह से राजधानी रायपुर भी रोज पांच सौ से अधिक नए कोरोना पॉजिटिव पा रहा है।
छत्तीसगढ़ में यह नौबत पिछले एक बरस में दसियों हजार लोगों के कोरोना पॉजिटिव हो जाने के बाद है जिनमें से अधिकतर को यह दुबारा नहीं हो रहा है। इसके अलावा रोजाना लाख लोगों को कोरोना-वैक्सीन भी लग रहा है, फिर भी पॉजिटिव लोगों की गिनती छलांग लगाकर आगे बढ़ रही है। एक बार फिर अस्पतालों को तैयार किया जा रहा है कि कोरोना पॉजिटिव मरीज बड़ी संख्या में पहुंच सकते हैं।
छत्तीसगढ़ से कांग्रेस और भाजपा के हजारों चुनाव प्रचारक असम और बंगाल गए हुए हैं, और वहां वे भीड़ की धक्का-मुक्की के बीच काम कर रहे हैं, और वहां से लौटकर कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ आने लगेंगे। फिलहाल एक बात साफ दिखती है कि क्रिकेट मैच के बाद होली कोरोना को और फैलाने जा रही है, और मास्क न होने पर लगने वाला पांच सौ रूपए का जुर्माना भी किसी को नहीं डरा रहा, और न ही कोरोना किसी को डरा रहा।
कलेक्टोरेट में होली का रंग
कोरोना की वजह से सरकारी दफ्तरों में रंग-गुलाल खेलने पर रोक लगाई गई है। मगर रायपुर कलेक्टोरेट में आदेश की धज्जियां उड़ाई गई। होली के पहले वर्किंग डे में विशेषकर खाद्य शाखा में अफसर-कर्मियों ने खूब रंग-गुलाल उड़ाए। एक-दूसरे पर जमकर रंग लगाए। नाच-गाने में तो मास्क और सामाजिक दूरी रखने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। जिस दफ्तर पर जिलेभर में कोरोना के निर्देशों का सख्ती से पालन कराने की जिम्मेदारी होती है वहां ही त्योहार के पहले ही इसकी अवहेलना पर प्रशासनिक हल्कों में जमकर चर्चा है।
दारू पीने के साथ-साथ...
छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की रहे, सार्वजनिक जगहों पर बैठकर दारू पीने वाले लोगों पर कार्रवाई करने से पुलिस और आबकारी दोनों के लोग बचते हैं। इसकी एक वजह यह रहती है कि सरकार दारू के धंधे की कमाई कम नहीं होने देना चाहती, और अगर तालाब, बगीचे, फुटपाथ पर लोगों को गिरफ्तार होना पड़े, तो दारू की बिक्री तो घट ही जाएगी। इसलिए एक अघोषित दबाव बना रहता है कि शराबियों को न पकड़ा जाए, वरना नए साल और क्रिसमस-होली की पार्टियों से परे भी रोज अगर सडक़ों पर गाडिय़ां रोककर जांच की जाए तो रोज हजारों गिरफ्तारियां हो सकती हैं। यह तो हुई घोषित बात, और फिर थानों के स्तर पर यह अघोषित अनदेखी भी होती है कि लोगों को न पकड़ा जाए। नतीजा यह होता है कि तालाबों के किनारे, बगीचों और मैदानों में लोग न सिर्फ दारू पीते बैठे रहते हैं बल्कि वहां से उठने के पहले बोतलों को फोड़ भी देते हैं नतीजा यह होता है कि अगली सुबह घूमने वाले लोग और खेलने वाले बच्चे जब वहां पहुंचते हैं तो उनके जख्मी होने का खतरा रहता है। बोतल फोडऩे से अच्छा है उसे छोड़ देना ताकि कुछ गरीब बच्चे उसे बीनकर, बेचकर चार पैसे कमा सकें, और लोगों के पैर जख्मी न हों।
शहर के जिस आऊटडोर स्टेडियम के अहाते में आए दिन मंत्री-मुख्यमंत्री, मेयर पहुंचते हैं, वहां भी रोज शाम लोगों की महफिल जमती है जो बोतलों के टुकड़े छोड़ जाती है। स्टेडियम कैम्पस के मालिक म्युनिसिपल का स्मार्टसिटी ऑफिस भी इसी अहाते में है, और उसकी आंखों के सामने यह स्मार्टनेस चमकती रहती है।
टूर्नामेंट से कोरोना बढ़ा ?
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का स्पष्ट तौर पर मानना है कि रोड सेफ्टी क्रिकेट टूर्नामेंट की वजह से कोरोना संक्रमण बढ़ा है। सिंहदेव ने कोई गलत बात नहीं कही। रोड सेफ्टी क्रिकेट टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए ठीक बाद स्टार खिलाड़ी सचिन तेंदूलकर कोरोना पॉजिटिव हो गए। टूर्नामेंट के दौरान, तो वे पूरी तरह स्वस्थ थे, और उनकी अगुवाई में भारत ने टूर्नामेंट जीता।
कहा जा रहा है कि मैच खत्म होने के बाद सचिन किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए, और वे पॉजिटिव हो गए। इसी तरह पूर्व सीएम रमन सिंह के ओएसडी रहे विक्रम सिसोदिया भी रोड सेफ्टी क्रिकेट मैच के दोबारा पॉजिटिव हो गए। सिसोदिया खुद खिलाड़ी हैं, और वे ओलंपिक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं। सिसोदिया भी रोड सेफ्टी मैच देखने जाते थे, और वे वहां किसी संक्रमित के संपर्क में आने से पॉजिटिव हुए।
इसी तरह कांग्रेस पदाधिकारी विष्णु साहू भी रोड सेफ्टी टूर्नामेंट के दौरान पॉजिटिव हो गए, और शुक्रवार को उनका निधन हो गया। इस टूर्नामेंट से लोग सडक़ सुरक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं अथवा नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन कोरोना से सुरक्षा के प्रति जागरूक नहीं थे। कम से कम जिस रफ्तार से रायपुर और दुर्ग में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, उससे तो यही लगता है।
आखिरकार नेता प्रतिपक्ष
आखिरकार सवा साल बाद रायपुर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष के रूप में पार्षद मीनल चौबे के नाम पर मुहर लग गई। दरअसल, रायपुर जिले के बड़े भाजपा नेताओं ने नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को प्रतिष्ठा का सवाल बना रखा था। इस वजह से नियुक्ति लगातार टल रही थी। कुछ महीने पहले बृजमोहन अग्रवाल की सिफारिश पर सूर्यकांत राठौर का नाम तकरीबन तय कर लिया गया था। मगर विरोधियों के दबाव में घोषणा रोक दी गई।
कुछ दिन पहले पार्षदों ने प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं होने की शिकायत की, तब कहीं जाकर चयन के लिए पार्टी ने पर्यवेक्षक नियुक्त किए। तीन सीनियर नेता विक्रम उसेंडी, भूपेन्द्र सवन्नी, और खूबचंद पारख को पार्षदों से चर्चा कर नाम सुझाने के लिए कहा था। सुनते हैं कि 29 पार्षदों में से 10-10 पार्षदों ने सूर्यकांत और मीनल चौबे के पक्ष में राय दी। बाकी पार्षदों ने पार्टी नेतृत्व पर छोड़ दिया था।
सूर्यकांत और मीनल के पक्ष में बराबर समर्थन होने के कारण पर्यवेक्षकों ने प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी को रिपोर्ट भेजी। चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी ने प्रभारी सचिव नितिन नबीन को प्रमुख नेताओं से बात कर नाम तय करने के लिए कहा। नितिन नबीन ने पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से चर्चा की, और फिर रमन सिंह की अनुशंसा पर मीनल चौबे को पार्षद दल का मुखिया बनाया गया।
मनरेगा में टॉप छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ की अनेक ऐसी उपलब्धियां है जिन पर छत्तीसगढ़ सरकार की बीते दो सालों में तारीफ होती रही है। वित्तीय, जल प्रबंधन पर शीर्ष में रहा। गोबर संग्रह कर आजीविका माध्यम बनाने को सराहा गया। अब इस बात पर प्रशंसा हो रही है कि 17 करोड़ मानव दिवस को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत काम दिया गया। इसके चलते केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के लिये आबंटित की जाने वाली राशि भी बढ़ा दी है।
पहली जरूरत तो यही है कि कोई भूखा न रहे, कोई भी चाहे तो उसे काम मिले। दूसरा पहलू यह भी है कि जो लोग ग्रेजुएट, पीजी की डिग्री हासिल कर लेते हैं, क्या उनको भी मिट्टी खोदने, सडक़ बनाने के काम में लगा देना चाहिये? उच्च शिक्षा लेने के बाद भी जो लोग मजदूरी कर रहे हैं, उन पर भी बात होनी चाहिये।
बेलगाम सीमेंट की कीमत
सीमेंट की कीमत यदि परिवहन भाड़े की वजह से बढ़ाई जाती तो समझ में भी आता, पर यह तो फैक्ट्रियों से ही 30 प्रतिशत अधिक दाम पर निकल रहा है। कुछ ही दिन पहले जो सीमेंट 210 रुपये से लेकर 240 में मिल रहा था, आज 330 से 370 रुपये बिक रहा है। न तो कच्चे माल का दाम बढ़ा है न ही मजदूरी। डीजल का दाम भी इतना तो नहीं बढ़ा है कि हर बैग पर 100 रुपये की बढ़ोतरी कर दी जाये।
बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के लिये मौजूदा मौसम मुफीद है। केवल व्यक्तिगत घर बनाने वालों के लिये ही नहीं, बल्कि समय पर निर्माण पूरा करने के लिये रेरा का दबाव झेल रहे बिल्डर्स के लिये भी।
हैरानी यह है कि इतनी ज्यादा बढ़ोतरी सिर्फ छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रही है। सरकार की खामोशी संदेह पैदा कर रही है।
छत्तीसगढ़ के कन्धों पे चढक़र?
क्या छत्तीसगढिय़ों के बूते पर असम में कांग्रेस की सरकार बन पाएगी? यह सवाल राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय है। दरअसल, असम की 126 सीटों में से 47 सीटों पर छत्तीसगढ़ मूल के लोगों का अच्छा प्रभाव है, और कई सीटों पर तो निर्णायक भूमिका में हैं। छत्तीसगढ़ के लोगों को साधने के लिए कांग्रेस के करीब 6 सौ नेता-कार्यकर्ता वहां डेरा डाले हुए हैं।
कांग्रेस हाईकमान ने सीएम भूपेश बघेल को वहां प्रचार की जिम्मेदारी दी थी, और संसदीय सचिव विकास उपाध्याय को असम कांग्रेस का प्रभारी सचिव बनाया था, तब छत्तीसगढ़ी नेताओं के प्रभाव को लेकर ज्यादा कोई चर्चा नहीं हो रही थी। अब जब पहले चरण का मतदान 27 तारीख को होने वाला है, पार्टी यहां कांटे की टक्कर दे रही है।
असम में छत्तीसगढ़ के नेताओं को काफी महत्व मिल रहा है। कांग्रेस के उत्साही नेताओं का मानना है कि छत्तीसगढ़ के लोग खूब साथ निभा रहे हैं, और कोई ज्यादा उठा पटक नहीं हुआ, तो असम में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। कांग्रेस को ज्यादा डर अपने ही पुराने कांग्रेस नेता हेमंत बिस्वा शर्मा से है, जो कि असम सरकार में नंबर-2 की हैसियत रखते हैं। हेमंत पार्टी में अंदरूनी विवाद के चलते भाजपा में चले गए थे, और उन्होंने न सिर्फ विधायकों को तोड़ा बल्कि ब्लॉक स्तर तक के नेताओं को भाजपा में ले गए।
चुनाव के पहले तक मुकाबला भाजपा के पक्ष में एकतरफा दिख रहा था, लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेताओं की मेहनत से पार्टी खड़ी हो गई है, और हर सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि यदि पूर्ण बहुमत नहीं मिला, तो सरकार बनाने में दिक्कत हो सकती है। वजह यह है कि कांग्रेस के कई नेता अभी भी हेमंत बिस्वा शर्मा से याराना रखते हैं। कुछ भी हो, छत्तीसगढ़ी नेताओं ने दम तो दिखाया है। देखना है चुनाव नतीजे अनुकूल आते हैं, या नहीं।
मिलिये भूपेश बघेल के नये दोस्त से..
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने असम चुनाव प्रचार के दौरान एक नन्हें से बालक की तस्वीर सोशल मीडिया पर पेश की है, जिसकी पूरी वेशभूषा कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के प्रतीकों से भरी हुई है। उन्होंने लिखा है असम में आज एक नया दोस्त बना, उससे नोट्स लिये कि चुनाव अभियान के दौरान कैसे कपड़े पहनने चाहिये। इस बालक ने आश्वस्त किया कि देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। देश का भविष्य कांग्रेस है।
निजी स्कूलों की नाफरमानी
कोविड महामारी ने दुबारा आकर हालात इस तरह से बदले कि बच्चे स्कूलों में पढ़ाई, मौज-मस्ती और एक दूसरे के ज्ञान के आदान-प्रदान से वंचित रह गये और परीक्षायें शारीरिक मौजूदगी के साथ नहीं कर पाये। निजी स्कूलों की चिंता यह है कि फीस की वसूली कैसे हो। वे दावा कर रहे हैं कि शिक्षकों, स्टाफ को वेतन देने, स्कूलों की साफ-सफाई, बिजली, पानी, किराया देने के लिये उन्हें फीस वसूल करना जरूरी है। कहा कि जब तक फीस पूरी नहीं देंगे, उन्हें न तो पास किया जायेगा न ही ट्रांसफर सर्टिफिकेट दिया जायेगा।
पानी सिर से ऊपर जा चुका तब छत्तीसगढ़ सरकार जागी है। स्कूल शिक्षा मंत्री ने निजी स्कूलों को चेतावनी दे दी है कि जो स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट देने से मना करेंगे उन्हें सरकारी स्कूलों में इस दस्तावेज के बिना भी प्रवेश दे देंगे। और जहां तक उत्तीर्ण करने की बात है,इसका तो जनरल प्रमोशन होने के कारण कोई मतलब ही नहीं है।
निजी स्कूलों ने हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद कितने स्टाफ बाहर किये, जिन्हें अब तक रखा है उनकी तनख्वाह में कितनी कटौती की गई है उस पर भी सर्वे सरकार करा ले तो कलई और खुल जाने वाली है।
नया बंगला जरूरी
पूर्व मंत्री राजेश मूणत जल्द ही मौलश्री विहार से जल्द ही रूखसत हो जाएंगे, और वे चौबे कॉलोनी स्थित नए बंगले में शिफ्ट हो जाएंगे। चौबे कॉलोनी स्थित उनके नए बंगले का निर्माण कार्य चल रहा है, और दीवाली के आसपास उनकी वहां शिफ्टिंग की योजना है। दरअसल, मौजूदा निवास स्थान मौलश्री विहार के शहर से दूर होने के कारण मूणत अपने क्षेत्र के मतदाताओं और कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात नहीं कर पा रहे थे।
यही वजह है कि उन्होंने मौलश्री विहार के अपने बंगले को छोडक़र अपने विधानसभा क्षेत्र में ही रहने का फैसला लिया है। मौलश्री विहार का बंगला उन्होंने सरकारी योजना के तहत खरीदा था। उन्होंने अपने बंगले से सटे दिवंगत पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा के खाली प्लाट को खरीदकर भव्य रूप दिया था।
बंगले के ठीक सामने पूर्व सीएम रमन सिंह का भी मकान है, और आसपास पार्टी के कई प्रमुख नेता रहते हैं। बावजूद उन्होंने बंगला छोडक़र चौबे कॉलोनी में रहने का फैसला लिया है। चौबे कॉलोनी, रायपुर पश्चिम विधानसभा के केन्द्र में स्थित है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद वापसी के लिए क्षेत्र में सक्रिय रहकर कार्यकर्ता और आम लोगों से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे में पार्टी के लोगों को मूणत का बंगला बदलने का फैसला सही लग रहा है।
आसमान से गिरे, खजूर पर अटके
आंध्रप्रदेश से सटे जिले में पदस्थ रहे दूर संचार सेवा के अफसर का तबादला महाराष्ट्र की सीमा से सटे जिले में हो गया। तबादला होना कोई असामान्य बात नहीं है। अफसर पिछले कुछ समय से रायपुर में किसी अहम जगह पर पोस्टिंग के लिए प्रयासरत थे। वैसे भी उनकी सेवा से आए लोग छत्तीसगढ़ सरकार में मलाईदार पदों पर ही रहे हैं। कुछ इसी तरह की इच्छा, इनकी भी थी। मगर ऐसा नहीं हो पाया।
आंध्रप्रदेश से सटे जिस जिले में थे वहां भी धीरे-धीरे सेट हो गए थे, लेकिन स्थानीय विधायक ने अपनी पसंद के डिप्टी कलेक्टर को उनकी जगह लाने में सफल रहे। नया जिला अफसर को रास नहीं आ रहा है, और उनके साथ समस्या यह है कि ऊपर तक पहुंच होने के बावजूद उन्हें मनमाफिक पोस्टिंग नहीं मिल पा रही है। उनसे जुड़े लोग इसको गृहनक्षत्र से जोडक़र देख रहे हैं।
फिलहाल तो नहीं दिखते शांति के आसार
नारायणपुर में आईईडी विस्फोट कर डीआरजी जवानों की बस को उड़ाने की वारदात तब हुई है जब सप्ताह भर पहले ही नक्सलियों ने सरकार के साथ शांति वार्ता करने की पेशकश की थी। सरकार उस प्रस्ताव को ठोस नहीं मान रही थी लेकिन प्रतिक्रिया हर बार की सकारात्मक ही थी। कहा गया कि देश के संविधान पर आस्था व्यक्त करें और हिंसा का रास्ता छोड़ दें। सरकार के पास किसी व्यक्ति के माध्यम से कोई पत्र उन तक तो पहुंचाया नहीं गया था लेकिन मीडिया के जरिये नक्सल संगठनों के बीच यह प्रतिक्रिया जरूर पहुंची होगी। इन दिनों बस्तर में ही एक शांति यात्रा भी निकली हुई है, जिसे नक्सल संगठनों ने सरकारी फंडिंग से हो रही वार्ता कह दिया है, यानि इससे कुछ निकलने की संभावना नहीं है।
दूसरी ओर अधिकारियों ने यह चौंकाने वाली जानकारी दी है कि जिस जगह पर विस्फोट हुआ वहां सर्चिंग की गई थी। किसी तरह के भूमिगत विस्फोटक के दबाये जाने का सुराग खोजी दस्ते को नहीं मिला। शायद नक्सलियों ने आईईडी को प्लास्टिक के डिब्बे में पैक किया, फिर उसके ऊपर कार्बन पेपर लपेट दिया। मेटल डिडेक्टर इसी वजह से उसे सर्च नहीं कर पाया।
पुलिस ने यह भी बताया है कि पास के गांव में एक मेला लगा हुआ है इसलिये कुछ लोग जो ग्रामीणों के वेशभूषा में आसपास टहलते दिखे उन पर कोई संदेह नहीं हुआ।
शांति वार्ता की बातचीत के लिये रूचि दिखाने के बीच हुए हमले से तो लगता है कि नक्सल समस्या का समाधान निकालना इस सरकार के लिये भी उतना ही चुनौती भरा है, जितना पहले की सरकारों के लिये था। शांति वार्ता की संभावना फिर धूमिल हो गई।
कोरोना रोकने के लिये पहना, पर टीबी से भी बच गये
देशभर में कल विश्व क्षय रोग दिवस मनाया गया। छत्तीसगढ़ सहित देशभर के कई जगहों से खबरें हैं कि पिछले साल, बीते वर्षों के मुकाबले नये टीबी मरीजों की संख्या में कमी आई। स्वास्थ्य शोध एजेंसी लांसेट का भी यही निष्कर्ष है। कारण बताया गया है कि लोगों ने मास्क को अपनी आदत में शामिल किया। टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसमें खांसी, खरार आती हैं। बातचीत के दौरान ड्रापलेट (छोटे कण) तो हवा में तैरते ही हैं। इससे टीबी फैलता है। कोरोना वायरस से बचाव के लिये जब मास्क पहनना और शारीरिक दूरी बनाये रखना जरूरी किया गया तो इसके पीछे भी वजह यही है। मास्क पहनकर जब कोई निकलता है तो से यह सुनिश्चित करता है कि बीमारी को फैलाने में वह मदद नहीं कर रहा।
कुछ माह पहले जब कोरोना संक्रमण का असर कम होने लगा था लोगों ने मास्क त्याग दिया। अब भी बहुत से लोग इसे गले में लटकाकर चलते हैं और सही जगह पहनने के लिये टोके जाने का इंतजार करते हैं। जुर्माने का तो ज्यादा खौफ नहीं है।
देश के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण इतना अधिक है कि उसे दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिना जाता है। रायपुर शहर भी एक बार इनमें शीर्ष पर आ चुका है। मास्क पहनें तो यह प्रदूषित हवा भी सेहत को कम नुकसान पहुंचायेगी।
आनन-फानन एफआईआर का रद्द होना
अमूमन ऐसा कम होता है कि पुलिस कोई एफआईआर दर्ज करे और फिर तुरत-फुरत जांच करके उसे खारिज भी कर दे। मगर मंदिर हसौद में पुलिस को ऐसा करना पड़ा। राममंदिर की चंदा वसूली में गड़बड़ी को लेकर किसी ने शिकायत की थी। इसके बाद चंदा वसूली से जुड़े लोगों के बीच विवाद बढ़ा। एक ने आकर थाने में भाजपा के मंडल अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस ने नामजद अपराध दर्ज किया और कई धारायें लगा दीं। शिकायत करने वाले का आरोप था कि उसके साथ अध्यक्ष ने गाली गलौच, मारपीट की। अब विपक्ष में बैठी भाजपा कार्यकर्ताओं ने तेवर दिखाये। वे धरने पर थाने के सामने ही बैठ गये। कहा-शिकायत झूठी है, एफआईआर रद्द करो।
ऐसे मामलों में पुलिस कहती है- जांच होगी, तब देखेंगे, या फिर- कोर्ट में सुलझा लेना। पर हंगामे के बीच दबाव इतना बढ़ा कि पुलिस ने आनन-फानन जांच की और यह निष्कर्ष निकाला कि शिकायत झूठी थी और इसके बाद एफआईआर रद्द भी कर दी गई। भाजपा का संगठन एकजुट हुआ, मामला राममंदिर का भी था, तो वे अपनी बात मनवा सके। पर सवाल पुलिस की भूमिका पर भी है। यूं तो वह प्राय: मामूली मारपीट, गाली गलौच पर एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करती है और लिखित शिकायत लेकर लौटा देती है, पर इस मामले में उसने क्यों फुर्ती दिखाई और जब दिखाई तो उतनी ही तेजी से बैक फुट पर क्यों आ गई? कहीं उसे ऐसा तो नहीं लगा कि विपक्ष में बैठे लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखने से उन्हें ऊपर से पीठ थपथपाई जायेगी?
पुत्रमोह जारी है...
भाजपा के राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश ने पिछले दिनों यहां प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पार्टी नेताओं को पुत्रमोह त्यागने की नसीहत दी। उनकी जानकारी में यह बात लाई गई थी कि पार्टी के दिग्गज नेता अपने बेटे-बेटियों को पदाधिकारी बनाने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।
सौदान सिंह की जगह छत्तीसगढ़ संगठन का काम देखने वाले शिवप्रकाश की सलाह को पार्टी के नेता कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि सूरजपुर जिला भाजयुमो अध्यक्ष के लिए पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के बेटे लवकेश पैकरा को बनाने की अनुशंसा की गई है।
और जब प्रदेश संगठन ने सूरजपुर जिला इकाई को दूसरा नाम प्रस्तावित करने के लिए कहा, तो जिला संगठन के मुखिया ने यह कह दिया कि लवकेश से बेहतर कोई और नाम नहीं है। सूरजपुर जिला भाजपा संगठन में रामसेवक पैकरा समर्थकों का दबदबा है। ऐसे में देखना है कि प्रदेश संगठन, शिवप्रकाश की सलाह पर कितना अमल कर पाता है।
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी..
बेटे के नाम पर पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की जमीन खरीदकर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत फंस गए हैं। हालांकि उन्होंने विवादों को शांत करने की नीयत से कहा कि जमीन खरीद प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है, और उन्हें चेक से भुगतान की गई राशि वापस कर दी जाती है, तो वे जमीन लौटा देंगे। मगर अमरजीत के सफाई देने के बाद भी मामला शांत होता नहीं दिख रहा है, और खबर यह भी है कि राज्यपाल ने मुख्य सचिव को प्रकरण की जांच के लिए चि_ी भी लिखी है।
अमरजीत भगत ने अपने खिलाफ आरोपों पर पलटवार करते हुए यह भी कह गए कि कई भाजपा नेताओं ने भी इसी तरह जमीन खरीदी है। पहली नजर में अमरजीत के आरोपों में दम भी नजर आ रहा है। इसकी वजह यह है कि विशेषकर सरगुजा संभाग के भाजपा के बड़े आदिवासी नेताओं ने इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध रखी है।
सुनते हैं कि अमरजीत के खिलाफ पहले पूर्व सीएम रमन सिंह के साथ विष्णुदेव साय प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने वाले थे। मगर पूर्व सीएम ने आने से मना कर दिया। पार्टी के दबाव की वजह से सायजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस तो ले ली, लेकिन बाद में वे पहाड़ी कोरवाओं के साथ राजभवन नहीं गए। उनकी जगह देवजी पटेल, पहाड़ी कोरवाओं को लेकर राज्यपाल से मिले।
इस पूरे मामले में पेंच यह है कि अदालत ही जमीन की रजिस्ट्री निरस्त कर सकता है, लेकिन अमरजीत पर और ज्यादा हमला हुआ, तो उनके समर्थक चुप नहीं बैठेंगे। कई और रजिस्ट्रियां सार्वजनिक होंगी, और इससे भाजपा के आदिवासी नेता घिर सकते हैं। देखना है आगे-आगे होता है क्या।
नंबरप्लेट से रोड सेफ्टी तक
लोगों का मिजाज ऐसा है कि जब तक कानून तोड़ न लें, उन्हें मजा ही नहीं आता। अब उत्तरप्रदेश की यह मोटरसाइकिल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शान से चल रही है, और नंबरप्लेट पर नंबर से अधिक बड़े आकार में वकील होने की नुमाइश कर रही है। नंबरप्लेट पर किसी भी तरह का कुछ और लिखना नियमों के खिलाफ है, और उस पर जुर्माना भी है, लेकिन ताकतवर लोगों को नियमों को तोडऩे में मजा आती है। राजनीतिक दलों के छोटे से ओहदे पर बैठे हुए लोग भी बड़े-बड़े अक्षरों में अपनी ताकत नंबरप्लेट और गाड़ी पर लिखवा लेते हैं, और उस ताकत की वजह से ट्रैफिक पुलिस उन्हें छूती नहीं है कि कौन अपना नक्सल इलाके में तबादला करवाए। दिलचस्प बात यह है कि सडक़ों पर सुरक्षा तोडऩे वाली बड़ी कारोबारी गाडिय़ों पर काबू करना जिस ट्रांसपोर्ट विभाग का जिम्मा है, उसे देश के अधिकतर प्रदेशों में संगठित वसूली और उगाही की एजेंसी बनाकर रख दिया गया है। छत्तीसगढ़ में भी इस विभाग के भयानक भ्रष्टाचार के सुबूत सडक़ों पर चारों तरफ दिखते हैं, और मजे की बात यह है कि इसी विभाग को रोड सेफ्टी क्रिकेट का इंतजामअली बनाया गया था। यह विभाग खत्म हो जाए, तो रोड खासी सेफ अपने आप हो जाएंगी।
जनरल प्रमोशन से किसकी भलाई?
कोरोना के दूसरे दौर का आगमन उसी वक्त हुआ है, जब स्कूल कॉलेजों में परीक्षायें लेने की तैयारी चल रही है। संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद अप्रैल-मई में शारीरिक उपस्थिति के साथ बोर्ड परीक्षाओं को लेने की तैयारी हो रही है, पर बाकी कक्षाओं को जनरल-प्रमोशन देने का फैसला लिया गया है। यानि सब धान एक पसेरी। जो पढऩे लिखने और एक-एक अंक के लिये सिर धुन रहे हैं उन छात्रों को कोई फायदा नहीं। और जो मौज कर रहे हैं उनकी तो मौजा ही मौजा है। ये सरकार के फैसले को सलाम कर रहे हैं।
श्रीलाल शुक्ल की बात छोडिय़े, जिन्होंने राग दरबारी में लिखा था- अपने देश में शिक्षा व्यवस्था वह कुतिया है, जिसको हर ऐरा-गैरा रास्ते में आते-जाते लतियाता रहता है। जनरल प्रमोशन की धारणा का ईजाद शायद पहली बार मध्यप्रदेश के तब के मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के दौर में, भोपाल गैस कांड और इंदिरा गांधी हत्याकांड बाद हुआ था। उसके बाद से तो जब भी कोई आपदा आती है जनरल प्रमोशन एक आसान रास्ता दिखाई देता है।
पर, तब से अलग हो चुकी हैं परिस्थितियां। भले ही किसी भी छात्र को अनुत्तीर्ण न करें लेकिन जब ऑनलाइन क्लासेस और दूरस्थ इलाकों में पढ़ई तुहंर द्वार जैसी योजना चल रही हो तो औपचारिक ही सही और ऑनलाइन ही क्यों न हो, परीक्षा क्यों नहीं ली जाती? कोरोना के दौर में जब रैलियों पर रोक नहीं, बाजार, सिनेमा हॉल खुले हों तो सिर्फ परीक्षा से छात्रों को वंचित कर दिया गया। जनरल प्रमोशन पर पालक और इग्ज़ाम से बच जाने वाले छात्र खुशी मनाने की जगह दूसरे कोण से भी मामले को समझ पायेंगे? नौकरशाह जानते हैं कि ऑनलाइन इगज़ाम लेने में उन्हें कितनी तकलीफ होने वाली है। दर्जन भर जिलों के हजारों छात्र-छात्राओं के पास न तो नेटवर्क है, न ही संसाधन। ये कमी छिपाये नहीं छिपती न समाधान निकाला गया। इसीलिये शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जनरल प्रमोशन का रास्ता चुना और तय किया- मुंह ढंक के सोईये, आराम बड़ी चीज है।
हिम्मत दुधमुंहे के मां की
कोई महिला अगर बहुत छोटे बच्चे, शिशु की मां हो तो उसे अपने कार्यस्थल पर ड्यूटी निभाना कितना मुश्किल है यह नये बने जिले गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही की घटना से पता चलता है। स्कूलों के बीच समन्वय के लिये संकुल बना हुआ है। इन संकुलों के समन्वयक किसी स्कूल के प्राचार्य होते हैं और वे समय-समय पर बैठकें लेकर पढ़ाई, दाखिले, परीक्षा की तैयारी जैसे मसलों पर चर्चा करते हैं। जिले के दोबहर स्कूल के प्राचार्य, संकुल समन्वयक भी हैं। उन्होंने बैठक रखी। उस बैठक में शिक्षिका अपने दुधमुंहे बच्चे को लेकर पहुंच गई । बच्चा उसकी गोद में। थोड़ी बहुत स्वाभाविक हलचल थी, पर बैठक में कोई बाधा नहीं हुई। पर बैठक के बाद प्राचार्य नाराज हो गये। उन्होंने कहा कि ये सब नहीं चलेगा। आगे जब भी बैठकों में आओ बच्चे को साथ मत लाना। शिक्षिका ने कहा, कहां छोड़ूं। यहां तो न झूलाघर है न फीडिंग की जगह। प्राचार्य ने कहा कि नहीं यह सब नहीं चलेगा, अपना इंतजाम कर लो, वरना निपटा दूंगा।
दुर्व्यवहार से व्यथित शिक्षिका ने जिला शिक्षा अधिकारी, पुलिस अधीक्षक के साथ-साथ महिला आयोग से भी इसकी शिकायत कर दी है। मालूम हुआ है कि शिक्षा विभाग तत्काल सम्बन्धित प्राचार्य से पद छीनकर उसे किसी दूसरी जगह पर भेजने वाला है, ताकि ऊपर से होने वाली किसी भी पूछताछ का संतोषजनक जवाब दिया जा सके।
अकेले रायपुर में चाकूबाज?
रायपुर में ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये चाकू मंगाने वालों की सूची पुलिस ने हासिल की और जब्त करने का सिलसिला शुरू किया। 30 फीट लम्बी मेज पर बीते एक सप्ताह में जब्त 350 चाकुओं की प्रदर्शनी लगाई गई। अब भी करीब दो सौ चाकू बरामद करना बाकी है। हैरानी यह है कि चाकू जब्ती की यह कवायद सिर्फ राजधानी में हो रही है। ऑनलाइन शॉपिंग साइट से चाकू मंगाने की छूट तो हर जिले में हर किसी को है। वहां होने वाले अपराधों को काबू में लाने के लिये बाकी जिलों में पुलिस की कोशिश क्यों नहीं हो रही है? बाकी जिले इतने पिछड़े भी नहीं हैं कि अब भी यूपी, बिहार से तस्करों के जरिये माल मंगायें, ऑनलाइन शॉपिंग की समझ बाकी जिलों के बदमाशों को भी है।
नेता प्रतिपक्ष को एक्सटेंशन!
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारने के बाद बीजेपी निराशा के माहौल से ऊबर नहीं पाई है, हालांकि विधानसभा के बाद लोकसभा में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा, लेकिन नगरीय निकाय और पंचायत में फिर से बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। स्थिति यह है कि संगठन में बैठकों के अलावा कोई हलचल दिखाई नहीं देती। ऐसे में विरोधियों को बीजेपी की मौजूदा स्थिति-परिस्थितियों पर टीका-टिप्पणी करने का मौका मिल जाता है।
अब प्रदेश के सबसे प्रमुख, राजधानी के नगर निगम को ही ले लीजिए। एक-डेढ़ साल का समय बीत चुका है, लेकिन बीजेपी अभी तक नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाई है। इस मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष की ओर से सवाल भी उठाए जाते रहे हैं। निगम के सभापति ने तो नेता प्रतिपक्ष तय करने के लिए बीजेपी की प्रभारी को भी पत्र लिखा था। उसके बाद भी बीजेपी संगठन में कोई सुगबुगाहट सुनाई नहीं पड़ रही है। निगम की सत्ता में काबिज कांग्रेसियों के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि उन्हें न तो विपक्ष के सवालों का जवाब देना पड़ रहा है और न ही उनके फैसलों के खिलाफ आवाज उठ रही है। फिर भी सत्ताधारी दल के लोग मजे लेने से नहीं चूक रहे हैं।
निगम में कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने सुझाव दिया कि क्यों न पिछली परिषद के नेता प्रतिपक्ष को ही बीजेपी पार्षद दल का नेता मान लिया जाए। उनका कहना था कि पुराने नेताजी को ही नए की नियुक्ति तक एक्सटेंशन दे दिया जाए। प्रस्ताव भले ही हंसी-मजाक में आया लेकिन लोगों को जंच भी रही थी, लेकिन इसमें एक दिक्कत यह भी है कि पूर्व नेता प्रतिपक्ष दुर्भाग्य से पार्षद का चुनाव हार गए हैं। ऐसे में उनको कैसे नेता प्रतिपक्ष माना जाए ? लेकिन लोगों की दलील थी कि सदन के अंदर न सही बाहर तो कम से वे सत्ताधारी दल को घेर सकते हैं। यह प्रस्ताव पूर्व नेता प्रतिपक्ष तक भी पहुंची तो वे भी इस पर सहमत बताए जा रहे हैं। अब देखना यह है कि सियासी हंसी-ठिठोली भरे इस प्रस्ताव पर बीजेपी के नेता कितनी गंभीरता दिखाते हैं ?
छत्तीसगढ़ी को नेशनल अवार्ड मिलना
अमूमन हर साल 40-50 छत्तीसगढ़ी फिल्में बनती हैं। मगर बहुत कम यादगार होती हैं। दो चार फिल्मों को छोड़ दें तो बाकी बॉलीवुड, भोजपुरी या दक्षिण भारतीय फिल्मों की नकल होती हैं। नकल भी ठीक तरह से नहीं की जाती। फिल्म खिचड़ी बनकर रह जाती है। दर्शकों का एक बड़ा वर्ग इन फिल्मों को पसंद भी करता है पर उन्हें समीक्षकों की सराहना और पुरस्कार नहीं मिलते। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन- द मेज’ को क्षेत्रीय श्रेणी का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। देश-विदेश के अनेक फिल्म फेस्टिवल्स में इस फिल्म ने पहले भी सम्मान और पुरस्कार हासिल किये हैं लेकिन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का मिलना सबसे अलग महत्व रखता है।
फिल्म में खूबी यह रही कि छत्तीसगढ़ के ही मंजे हुए कलाकार और तकनीशियनों को साथ लेकर इसका निर्माण, छत्तीसगढ़ (गरियाबंद) में किया गया। खैरागढ़ के कवि व कहानीकार संदीप बख्शी ने भूलन कांदा कहानी लिखी थी। एक लोक मान्यता है कि भूलन कांदा जिसके पैर में पड़ जाये उसकी स्मृति लुप्त हो जाती है। वह व्यक्ति यह भी नहीं बता पाता कि उसकी याददाश्त किस वजह से गई। यह पौधा वास्तव में हो या नहीं हो, पर कहानी दिलचस्प है, जिसमें गांव के लोगों का आपसी प्रेम भाव दिखाया गया है। एक व्यक्ति अपने पड़ोसी की लाचार स्थिति को देखकर उसके अपराध को अपने सिर पर ले लेता है और खुद जेल की सजा काटता है। निर्माता मनोज वर्मा ने जैसा बताया है कि यह फिल्म बहुत जल्द रिलीज होगी। यह पुरस्कार साबित करता है कि छत्तीसगढ़ की लोक कथाओं, परपम्पराओं, सामाजिक संरचना को यदि बखूबी उतारा जाये तो यहां की फिल्में नई ऊंचाईयां हासिल कर सकती हैं। उम्मीद है अब छत्तीसगढ़ी में भी लीक से हटकर कुछ काम करने की प्रेरणा दूसरे निर्माताओं को मिलेगी।
शार्टेज के बाद वैक्सीन के लिये कतार
कोई चीज मुफ्त मिल रही हो तो उसकी पूछ-परख नहीं होती, वहीं जब शार्टेज होता है तो लोगों में उसे पहले हासिल करने की हड़बड़ी हो जाती है। माह भर पहले कोरोना वैक्सीन लगवाने के नाम पर लोग हिचकिचाते, कतराते रहे। कोरोना वारियर्स भी टालने का बहाना ढूंढते रहे। धीरे-धीरे लोगों में झिझक दूर गई और वैक्सीनेशन का दर बढ़ता गया। अब स्थिति यह है कि प्रदेश के 1500 से ज्यादा सेंटर्स में हर दिन करीब 1 लाख डोज दिये जा रहे हैं। अब करीब 16 लाख कोविशील्ड और 80 हजार को वैक्सीन के जो डोज केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को भेजे थे खत्म हो रहे हैं। अब स्टाक में केवल दो लाख डोज बचे हुए हैं जो महज दो दिन और चल पायेगा। दरअसल, पहले तो लोगों ने सोचा, जब मर्जी होगी लगवा लेंगे, वैक्सीन तो खत्म होने वाली नहीं। पर इस बीच कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई और टीका लगवाने की रफ्तार भी उसी तेजी से बढ़ गई। शार्टेज के कारण अब ज्यादातर निजी अस्पतालों को वैक्सीन की आपूर्ति बंद कर दी गई है। केवल सरकारी केन्द्रों में लगाये जा रहे हैं। वैक्सीन की नई खेप नहीं आई है पर केन्द्र व राज्य को चाहिये कि वह लोगों को आश्वस्त करे कि कोई छूटेगा नहीं। आखिर हम विदेशों में भी भेज रहे हैं तो अपने देश के लिये तो पर्याप्त मात्रा में बन ही रही होगी।
आंगनबाड़ी पर निगरानी का ये तरीका
केन्द्र सरकार के डिजिटल इंडिया स्कीम के चलते हर विभाग कोशिश कर रहा है कि वे अनुदान, मानदेय का ऑनलाइन भुगतान करे। इस योजना में अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी जोड़ लिया गया है। पेमेन्ट ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाये तब भी दिक्कत नहीं लेकिन उन्हें बाध्य किया जा रहा है कि वे पोषण एप डाउनलोड करें। न सिर्फ डाउनलोड करें बल्कि पूरे माह का रिकार्ड भी अपलोड करें। मामूली वेतन पाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, जिन्हें अब तक सरकारी कर्मचारी भी नहीं माना जाता गांवों में बच्चों और माताओं के पोषण की प्राथमिक कड़ी हैं। मोबाइल फोन का उन्हें इस तरह से इस्तेमाल करने कहा जा रहा है मानो हर किसी के पास स्मार्ट फोन है और उसका इस्तेमाल करने में दक्ष हैं। पोषण एप में रिकॉर्ड अपलोड नहीं करने पर उन्हें मानदेय भी नहीं भेजा जायेगा। यह आदेश पांच माह से लागू है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रदेश के 11 जिले ऐसे हैं जहां मोबाइल नेटवर्क बहुत कमजोर है। उनके पास स्मार्ट फोन खरीदने के लिये पैसे भी नहीं है। पिछली सरकार ने जो स्मार्ट फोन बांटे थे वे बहुत कम लोगों को मिले और ज्यादातर खराब भी हो चुके हैं। क्या केन्द्र सरकार उनकी इस व्यवहारिक समस्या को समझ रही है या राज्य सरकार कोई रास्ता निकालने की सोच रही है?
90 करोड़ रूपए पक्के में !
माना एयरपोर्ट के नजदीक सहारा समूह की सवा सौ एकड़ का सौदा पक्का हो गया है। सुनते हैं कि अरोरा उपनाम के एक कारोबारी ने करीब डेढ़ सौ करोड़ में सहारा से जमीन खरीदी है। सरगुजा संभाग के एक बड़े राजनेता के करीबी माने जाने वाले अरोरा को करीब 90 करोड़ रूपए पक्के में देना है। जमीन कारोबारियों के बीच इस सौदे की जमकर चर्चा है। इस पूरे सौदे में पेंच सिर्फ इतना है कि सामान्य कारोबारी अरोरा इतनी बड़ी रकम नंबर एक में कैसे देगा।
हालांकि राजनेता के साथ उनके कारोबारी रिश्तों को देखकर इतनी बड़ी रकम अदा करने में कोई शक की गुंजाइश नहीं है। वैसे भी नेताजी रायपुर से लेकर सरगुजा संभाग में एक के बाद एक जमीन में अपने करीबियों के जरिए काफी निवेश कर रहे हैं। उनके भारी भरकम निवेश पर जांच एजेंसियों की नजर भी है। ऐसे में देर-सवेर वे अपने कारोबारी मित्रों समेत किसी मुसीबत में घिर जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
पारवानी ही व्यापारियों के सबसे बड़े नेता
चेम्बर चुनाव के नतीजे आने वाले राजनीतिक उठापटक की तरफ भी इशारा कर रहे हैं। चेम्बर में पिछले कई दशकों से चले आ रहे एकता पैनल के वर्चस्व को तोड़कर जय व्यापार पैनल ने अपना दबदबा कायम किया है। पैनल के मुखिया अमर पारवानी भारी वोटों से अध्यक्ष निर्वाचित हुए। पारवानी की जीत से श्रीचंद सुंदरानी को तगड़ा झटका लगा है।
श्रीचंद व्यापारियों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे, और उन्होंने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। वे प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी नहीं गए। वे योगेश अग्रवाल को साथ देकर प्रदेश भर घूमते रहे। मगर व्यापारियों ने योगेश के बजाए पारवानी पर भरोसा किया, और चुनाव परिणाम से यह साबित हो गया कि पारवानी ही व्यापारियों के सबसे बड़े नेता हैं।
भाजपा ने व्यापारी नेता होने के नाते श्रीचंद को रायपुर उत्तर प्रत्याशी बनाया था, और वे विधायक भी बने। लेकिन पारवानी की जीत के बाद फेसबुक-सोशल मीडिया पर कई लोग उन्हें अभी से रायपुर उत्तर से भाजपा प्रत्याशी बताने में लग गए हैं। क्या वाकई ऐसा होगा, यह कहना अभी मुश्किल है। मगर श्रीचंद चेम्बर के मोह में अपना काफी कुछ गंवा बैठे हैं।
शिवरतन भी योगेश को बढ़त नहीं दिला पाए
खबर है कि अमर पारवानी को कांग्रेस के बड़े व्यापारी नेताओं के साथ-साथ पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विरोधियों का भरपूर साथ मिला। बृजमोहन अपने छोटे भाई योगेश को जिताने के लिए काफी मेहनत भी कर रहे थे। वे तकरीबन सभी व्यापारी नेताओं के संपर्क में थे। बृजमोहन के करीबी विधायक शिवरतन शर्मा ने तो भाटापारा और बलौदाबाजार में रोड शो भी किया। मगर शिवरतन भाटापारा से भी योगेश को बढ़त नहीं दिला पाए।
अजय चंद्राकर ने भी धमतरी, बालोद में योगेश के पक्ष में काफी लॉबिंग की थी। इससे परे राजेश मूणत के समर्थक खुले तौर पर अमर पारवानी के साथ थे। पूर्व सीएम रमन सिंह और धरमलाल कौशिक के करीबी व्यापारी नेताओं ने पारवानी का साथ दिया। यही नहीं, कांग्रेस संगठन के ताकतवर अग्रवाल नेता ने तो गुपचुप तौर पर कांग्रेस के व्यापारी नेताओं को पारवानी का साथ देने के लिए कह दिया था। कांग्रेस के व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजेन्द्र जग्गी के खुलकर पारवानी के प्रचार में जुटने से साफ तौर पर संकेत चला गया था। इन सब वजहों से भी पारवानी को भारी वोटों से जीत हासिल हुई।
योगेश से हिसाब चुकता..
चेम्बर का चुनाव जातिगत समीकरणों अछूता नहीं रहा है। चेम्बर चुनाव अग्रवाल वर्सेस सिंधी हो गया था। सिंधी व्यापारियों ने एकतरफा अमर पारवानी के पक्ष में वोटिंग की। यही नहीं, जैन समाज के व्यापारियों ने भी पारवानी का साथ निभाया। इससे परे अग्रवाल बेल्ट माने जाने वाले सरगुजा, रायगढ़, कोरिया, कोरबा में योगेश को बढ़त तो मिली लेकिन यहां वोटर इतने कम हैं कि वे अपनी बढ़त को ज्यादा समय तक बरकरार नहीं रख पाए।
दूसरी तरफ, अजय भसीन को अपने पैनल से महामंत्री उम्मीदवार बनाए जाने का पारवानी को भरपूर फायदा मिला। भसीन की वजह से भी पारवानी को भिलाई-दुर्ग से अच्छी खासी बढ़त मिली। रायपुर में समता कॉलोनी में गरबा, और जमीन विवाद के चलते भी योगेश अग्रवाल विवादित रहे हैं। समता कॉलोनी में व्यापारियों की संख्या अच्छी खासी है, और इनमें से ज्यादातर योगेश के विरोधी हो गए थे। मतदान का मौका आया, तो उन्होंने योगेश के खिलाफ मतदान कर अपना हिसाब चुकता किया।
छत्तीसगढिय़ा दर्शकों का मनोरंजन
अपने यहां एक कवि हैं जो मंचों पर अक्सर जिक्र करते हैं कि हम छत्तीसगढिय़ा लोग गजब स्मार्ट होते हैं, कोई पार नहीं पा सकता। शहीद वीर नारायण सिंह क्रिकेट स्टेडियम नया रायपुर में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के दौरान मनोरंजन केवल मैदान पर नहीं, बल्कि गैलरी पर भी हो रहा है। अब इन्हें देखिये। एक दर्शक साउथ अफ्रीका के खिलाडिय़ों से अपील कर रहे हैं- छइहां भुइयां देखकर जाना। कोई और बता रहा है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट देखने का मौका पुरखों को नहीं मिला, उसे मिल गया। स्टेडियम में इस तरह के अनेक पोस्टर्स के दर्शन, मैच के दौरान हो रहे हैं और ध्यान खींच रहे हैं।
किसानी के दिन फिरेंगे?
कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना की चौथी किश्त कल जारी कर दी। इस तरह से किसानों से किये गये वादे का एक चरण पूरा हुआ। केन्द्र भी किसान सम्मान निधि योजना लेकर आई जब कांग्रेस ने किसानों, बीपीएल परिवारों के हाथ में कैश देने की बात उठाई थी। बाद में इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल किया। ऐसा लगता है कि किसानों, मजदूरों के हाथों में कैश देने की योजना अब कभी बंद नहीं होगी, बल्कि हर चुनाव में दी जाने वाली राशि बढ़ाने की होड़ रहेगी।
पश्चिम बंगाल में भाजपा ने कल ही संकल्प-पत्र जारी किया है जिसमें इस बात का जिक्र है कि बीते तीन साल से जो सम्मान निधि टीएमसी की सरकार किसानों को नहीं दे रही है, उसे सरकार बन जाने पर वह एकमुश्त देगी। इस घोषणा को लेकर यहां छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता विपक्ष में बैठी भाजपा से सवाल कर रहे हैं कि किसानों को धान बोनस के रूप में 300 रुपये हर साल देने का वादा था, वो तो दिया नहीं। सिर्फ दो बार दिया, घोषणा वाले साल और चुनाव वाले साल में। अब कम से कम केन्द्र से कहकर यहां के किसानों को भी वह रुकी हुई राशि दिला दें। भले ही वादा राज्य सरकार का था लेकिन केन्द्र पिछला पैसा बांटने जा रही है तो अपनी ही भाजपा सरकार के वादे को पूरा करने में हर्ज क्या है।
वैक्सीन मुफ्त है, याद रखना
अगले विधानसभा चुनाव में अभी दो साल से ज्यादा वक्त है पर भाजपा सक्रिय हो चुकी है, खोई हुई जमीन वापस हासिल करने के लिये। हाल ही में कई धरने आंदोलन हुए, सरकार को घेरते हुए। कहीं भीड़ जुटी, कहीं नहीं, पर हौसले में कमी नहीं है। लेकिन सब कुछ नकारात्मक ही किया जा रहा हो, ऐसा नहीं। युवा इकाई के हाथों में गुलाब हैं और वे लोगों का अभिवादन भी कर रहे हैं। जो लोग कोरोना का टीका लगवाने के लिये वैक्सीनेशन सेंटर जा रहे हैं उन्हें फूल थमा रहे हैं।
इंजेक्शन लगवाने वाले तो खूब फोटो खिंचवा रहे हैं। युवाओं की अभी बारी नहीं आई है पर वे भी फूल देने के बहाने तस्वीरें खिंचवा रहे हैं और शेयर कर रहे हैं। पार्टी ने यह काम उन्हें खूब सोच-समझकर दिया है। हजारों लोगों को टीका लगना है, इस बहाने उनका जनसम्पर्क हो रहा है। साथ ही भाजपा उपस्थिति होकर यह बता रही है कि टीका केन्द्र सरकार का है, मोदी ने इसे फ्री दिया है। राज्य सरकार तो सिर्फ इंजेक्शन लगाने का काम कर रही है।