राजपथ - जनपथ
पहले स्टेडियम और अब होली...
छत्तीसगढ़ में कोरोना जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, उसका कोई मुकाबला महाराष्ट्र से तो नहीं है, लेकिन अपने खुद के बीते हुए कल से जरूर है। बहुत से लोगों का यह मानना है कि सडक़ सुरक्षा के नारे वाला जो क्रिकेट टूर्नामेंट राजधानी रायपुर में हुआ, और जहां से लौटकर सचिन तेंदुलकर और यूसुफ पठान कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, उसी स्टेडियम ने कोरोना फैलाया है। दरअसल स्टेडियम में बैठे लोग जितना क्रिकेट देखना चाहते थे, उतना ही टेलीकास्ट के कैमरों को अपना चेहरा दिखाना भी चाहते थे, और बिना मास्क सेल्फी लेना चाहते थे। नतीजा यह निकला कि स्टेडियम में मास्क का कोई काम ही नहीं रह गया था। कुछ लोगों का अंदाज है कि इस मैच को देखने के लिए नागपुर से भी बड़ी संख्या में लोग आए थे जो कि कोरोना का एक सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बना हुआ है। ढेर सारे मंत्री दुर्ग जिले के हैं, खुद मुख्यमंत्री दुर्ग जिले के हैं, इसलिए क्रिकेट के पास वहां बहुत बंटे थे, और इसी वजह से आज दुर्ग प्रदेश में कोरोना का भयानक केन्द्र बना हुआ है, और इसी वजह से राजधानी रायपुर भी रोज पांच सौ से अधिक नए कोरोना पॉजिटिव पा रहा है।
छत्तीसगढ़ में यह नौबत पिछले एक बरस में दसियों हजार लोगों के कोरोना पॉजिटिव हो जाने के बाद है जिनमें से अधिकतर को यह दुबारा नहीं हो रहा है। इसके अलावा रोजाना लाख लोगों को कोरोना-वैक्सीन भी लग रहा है, फिर भी पॉजिटिव लोगों की गिनती छलांग लगाकर आगे बढ़ रही है। एक बार फिर अस्पतालों को तैयार किया जा रहा है कि कोरोना पॉजिटिव मरीज बड़ी संख्या में पहुंच सकते हैं।
छत्तीसगढ़ से कांग्रेस और भाजपा के हजारों चुनाव प्रचारक असम और बंगाल गए हुए हैं, और वहां वे भीड़ की धक्का-मुक्की के बीच काम कर रहे हैं, और वहां से लौटकर कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ आने लगेंगे। फिलहाल एक बात साफ दिखती है कि क्रिकेट मैच के बाद होली कोरोना को और फैलाने जा रही है, और मास्क न होने पर लगने वाला पांच सौ रूपए का जुर्माना भी किसी को नहीं डरा रहा, और न ही कोरोना किसी को डरा रहा।
कलेक्टोरेट में होली का रंग
कोरोना की वजह से सरकारी दफ्तरों में रंग-गुलाल खेलने पर रोक लगाई गई है। मगर रायपुर कलेक्टोरेट में आदेश की धज्जियां उड़ाई गई। होली के पहले वर्किंग डे में विशेषकर खाद्य शाखा में अफसर-कर्मियों ने खूब रंग-गुलाल उड़ाए। एक-दूसरे पर जमकर रंग लगाए। नाच-गाने में तो मास्क और सामाजिक दूरी रखने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। जिस दफ्तर पर जिलेभर में कोरोना के निर्देशों का सख्ती से पालन कराने की जिम्मेदारी होती है वहां ही त्योहार के पहले ही इसकी अवहेलना पर प्रशासनिक हल्कों में जमकर चर्चा है।
दारू पीने के साथ-साथ...
छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की रहे, सार्वजनिक जगहों पर बैठकर दारू पीने वाले लोगों पर कार्रवाई करने से पुलिस और आबकारी दोनों के लोग बचते हैं। इसकी एक वजह यह रहती है कि सरकार दारू के धंधे की कमाई कम नहीं होने देना चाहती, और अगर तालाब, बगीचे, फुटपाथ पर लोगों को गिरफ्तार होना पड़े, तो दारू की बिक्री तो घट ही जाएगी। इसलिए एक अघोषित दबाव बना रहता है कि शराबियों को न पकड़ा जाए, वरना नए साल और क्रिसमस-होली की पार्टियों से परे भी रोज अगर सडक़ों पर गाडिय़ां रोककर जांच की जाए तो रोज हजारों गिरफ्तारियां हो सकती हैं। यह तो हुई घोषित बात, और फिर थानों के स्तर पर यह अघोषित अनदेखी भी होती है कि लोगों को न पकड़ा जाए। नतीजा यह होता है कि तालाबों के किनारे, बगीचों और मैदानों में लोग न सिर्फ दारू पीते बैठे रहते हैं बल्कि वहां से उठने के पहले बोतलों को फोड़ भी देते हैं नतीजा यह होता है कि अगली सुबह घूमने वाले लोग और खेलने वाले बच्चे जब वहां पहुंचते हैं तो उनके जख्मी होने का खतरा रहता है। बोतल फोडऩे से अच्छा है उसे छोड़ देना ताकि कुछ गरीब बच्चे उसे बीनकर, बेचकर चार पैसे कमा सकें, और लोगों के पैर जख्मी न हों।
शहर के जिस आऊटडोर स्टेडियम के अहाते में आए दिन मंत्री-मुख्यमंत्री, मेयर पहुंचते हैं, वहां भी रोज शाम लोगों की महफिल जमती है जो बोतलों के टुकड़े छोड़ जाती है। स्टेडियम कैम्पस के मालिक म्युनिसिपल का स्मार्टसिटी ऑफिस भी इसी अहाते में है, और उसकी आंखों के सामने यह स्मार्टनेस चमकती रहती है।
टूर्नामेंट से कोरोना बढ़ा ?
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का स्पष्ट तौर पर मानना है कि रोड सेफ्टी क्रिकेट टूर्नामेंट की वजह से कोरोना संक्रमण बढ़ा है। सिंहदेव ने कोई गलत बात नहीं कही। रोड सेफ्टी क्रिकेट टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए ठीक बाद स्टार खिलाड़ी सचिन तेंदूलकर कोरोना पॉजिटिव हो गए। टूर्नामेंट के दौरान, तो वे पूरी तरह स्वस्थ थे, और उनकी अगुवाई में भारत ने टूर्नामेंट जीता।
कहा जा रहा है कि मैच खत्म होने के बाद सचिन किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए, और वे पॉजिटिव हो गए। इसी तरह पूर्व सीएम रमन सिंह के ओएसडी रहे विक्रम सिसोदिया भी रोड सेफ्टी क्रिकेट मैच के दोबारा पॉजिटिव हो गए। सिसोदिया खुद खिलाड़ी हैं, और वे ओलंपिक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं। सिसोदिया भी रोड सेफ्टी मैच देखने जाते थे, और वे वहां किसी संक्रमित के संपर्क में आने से पॉजिटिव हुए।
इसी तरह कांग्रेस पदाधिकारी विष्णु साहू भी रोड सेफ्टी टूर्नामेंट के दौरान पॉजिटिव हो गए, और शुक्रवार को उनका निधन हो गया। इस टूर्नामेंट से लोग सडक़ सुरक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं अथवा नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन कोरोना से सुरक्षा के प्रति जागरूक नहीं थे। कम से कम जिस रफ्तार से रायपुर और दुर्ग में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, उससे तो यही लगता है।
आखिरकार नेता प्रतिपक्ष
आखिरकार सवा साल बाद रायपुर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष के रूप में पार्षद मीनल चौबे के नाम पर मुहर लग गई। दरअसल, रायपुर जिले के बड़े भाजपा नेताओं ने नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को प्रतिष्ठा का सवाल बना रखा था। इस वजह से नियुक्ति लगातार टल रही थी। कुछ महीने पहले बृजमोहन अग्रवाल की सिफारिश पर सूर्यकांत राठौर का नाम तकरीबन तय कर लिया गया था। मगर विरोधियों के दबाव में घोषणा रोक दी गई।
कुछ दिन पहले पार्षदों ने प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं होने की शिकायत की, तब कहीं जाकर चयन के लिए पार्टी ने पर्यवेक्षक नियुक्त किए। तीन सीनियर नेता विक्रम उसेंडी, भूपेन्द्र सवन्नी, और खूबचंद पारख को पार्षदों से चर्चा कर नाम सुझाने के लिए कहा था। सुनते हैं कि 29 पार्षदों में से 10-10 पार्षदों ने सूर्यकांत और मीनल चौबे के पक्ष में राय दी। बाकी पार्षदों ने पार्टी नेतृत्व पर छोड़ दिया था।
सूर्यकांत और मीनल के पक्ष में बराबर समर्थन होने के कारण पर्यवेक्षकों ने प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी को रिपोर्ट भेजी। चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी ने प्रभारी सचिव नितिन नबीन को प्रमुख नेताओं से बात कर नाम तय करने के लिए कहा। नितिन नबीन ने पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से चर्चा की, और फिर रमन सिंह की अनुशंसा पर मीनल चौबे को पार्षद दल का मुखिया बनाया गया।
मनरेगा में टॉप छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ की अनेक ऐसी उपलब्धियां है जिन पर छत्तीसगढ़ सरकार की बीते दो सालों में तारीफ होती रही है। वित्तीय, जल प्रबंधन पर शीर्ष में रहा। गोबर संग्रह कर आजीविका माध्यम बनाने को सराहा गया। अब इस बात पर प्रशंसा हो रही है कि 17 करोड़ मानव दिवस को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत काम दिया गया। इसके चलते केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के लिये आबंटित की जाने वाली राशि भी बढ़ा दी है।
पहली जरूरत तो यही है कि कोई भूखा न रहे, कोई भी चाहे तो उसे काम मिले। दूसरा पहलू यह भी है कि जो लोग ग्रेजुएट, पीजी की डिग्री हासिल कर लेते हैं, क्या उनको भी मिट्टी खोदने, सडक़ बनाने के काम में लगा देना चाहिये? उच्च शिक्षा लेने के बाद भी जो लोग मजदूरी कर रहे हैं, उन पर भी बात होनी चाहिये।
बेलगाम सीमेंट की कीमत
सीमेंट की कीमत यदि परिवहन भाड़े की वजह से बढ़ाई जाती तो समझ में भी आता, पर यह तो फैक्ट्रियों से ही 30 प्रतिशत अधिक दाम पर निकल रहा है। कुछ ही दिन पहले जो सीमेंट 210 रुपये से लेकर 240 में मिल रहा था, आज 330 से 370 रुपये बिक रहा है। न तो कच्चे माल का दाम बढ़ा है न ही मजदूरी। डीजल का दाम भी इतना तो नहीं बढ़ा है कि हर बैग पर 100 रुपये की बढ़ोतरी कर दी जाये।
बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के लिये मौजूदा मौसम मुफीद है। केवल व्यक्तिगत घर बनाने वालों के लिये ही नहीं, बल्कि समय पर निर्माण पूरा करने के लिये रेरा का दबाव झेल रहे बिल्डर्स के लिये भी।
हैरानी यह है कि इतनी ज्यादा बढ़ोतरी सिर्फ छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रही है। सरकार की खामोशी संदेह पैदा कर रही है।
छत्तीसगढ़ के कन्धों पे चढक़र?
क्या छत्तीसगढिय़ों के बूते पर असम में कांग्रेस की सरकार बन पाएगी? यह सवाल राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय है। दरअसल, असम की 126 सीटों में से 47 सीटों पर छत्तीसगढ़ मूल के लोगों का अच्छा प्रभाव है, और कई सीटों पर तो निर्णायक भूमिका में हैं। छत्तीसगढ़ के लोगों को साधने के लिए कांग्रेस के करीब 6 सौ नेता-कार्यकर्ता वहां डेरा डाले हुए हैं।
कांग्रेस हाईकमान ने सीएम भूपेश बघेल को वहां प्रचार की जिम्मेदारी दी थी, और संसदीय सचिव विकास उपाध्याय को असम कांग्रेस का प्रभारी सचिव बनाया था, तब छत्तीसगढ़ी नेताओं के प्रभाव को लेकर ज्यादा कोई चर्चा नहीं हो रही थी। अब जब पहले चरण का मतदान 27 तारीख को होने वाला है, पार्टी यहां कांटे की टक्कर दे रही है।
असम में छत्तीसगढ़ के नेताओं को काफी महत्व मिल रहा है। कांग्रेस के उत्साही नेताओं का मानना है कि छत्तीसगढ़ के लोग खूब साथ निभा रहे हैं, और कोई ज्यादा उठा पटक नहीं हुआ, तो असम में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। कांग्रेस को ज्यादा डर अपने ही पुराने कांग्रेस नेता हेमंत बिस्वा शर्मा से है, जो कि असम सरकार में नंबर-2 की हैसियत रखते हैं। हेमंत पार्टी में अंदरूनी विवाद के चलते भाजपा में चले गए थे, और उन्होंने न सिर्फ विधायकों को तोड़ा बल्कि ब्लॉक स्तर तक के नेताओं को भाजपा में ले गए।
चुनाव के पहले तक मुकाबला भाजपा के पक्ष में एकतरफा दिख रहा था, लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेताओं की मेहनत से पार्टी खड़ी हो गई है, और हर सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि यदि पूर्ण बहुमत नहीं मिला, तो सरकार बनाने में दिक्कत हो सकती है। वजह यह है कि कांग्रेस के कई नेता अभी भी हेमंत बिस्वा शर्मा से याराना रखते हैं। कुछ भी हो, छत्तीसगढ़ी नेताओं ने दम तो दिखाया है। देखना है चुनाव नतीजे अनुकूल आते हैं, या नहीं।
मिलिये भूपेश बघेल के नये दोस्त से..
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने असम चुनाव प्रचार के दौरान एक नन्हें से बालक की तस्वीर सोशल मीडिया पर पेश की है, जिसकी पूरी वेशभूषा कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के प्रतीकों से भरी हुई है। उन्होंने लिखा है असम में आज एक नया दोस्त बना, उससे नोट्स लिये कि चुनाव अभियान के दौरान कैसे कपड़े पहनने चाहिये। इस बालक ने आश्वस्त किया कि देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। देश का भविष्य कांग्रेस है।
निजी स्कूलों की नाफरमानी
कोविड महामारी ने दुबारा आकर हालात इस तरह से बदले कि बच्चे स्कूलों में पढ़ाई, मौज-मस्ती और एक दूसरे के ज्ञान के आदान-प्रदान से वंचित रह गये और परीक्षायें शारीरिक मौजूदगी के साथ नहीं कर पाये। निजी स्कूलों की चिंता यह है कि फीस की वसूली कैसे हो। वे दावा कर रहे हैं कि शिक्षकों, स्टाफ को वेतन देने, स्कूलों की साफ-सफाई, बिजली, पानी, किराया देने के लिये उन्हें फीस वसूल करना जरूरी है। कहा कि जब तक फीस पूरी नहीं देंगे, उन्हें न तो पास किया जायेगा न ही ट्रांसफर सर्टिफिकेट दिया जायेगा।
पानी सिर से ऊपर जा चुका तब छत्तीसगढ़ सरकार जागी है। स्कूल शिक्षा मंत्री ने निजी स्कूलों को चेतावनी दे दी है कि जो स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट देने से मना करेंगे उन्हें सरकारी स्कूलों में इस दस्तावेज के बिना भी प्रवेश दे देंगे। और जहां तक उत्तीर्ण करने की बात है,इसका तो जनरल प्रमोशन होने के कारण कोई मतलब ही नहीं है।
निजी स्कूलों ने हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद कितने स्टाफ बाहर किये, जिन्हें अब तक रखा है उनकी तनख्वाह में कितनी कटौती की गई है उस पर भी सर्वे सरकार करा ले तो कलई और खुल जाने वाली है।
नया बंगला जरूरी
पूर्व मंत्री राजेश मूणत जल्द ही मौलश्री विहार से जल्द ही रूखसत हो जाएंगे, और वे चौबे कॉलोनी स्थित नए बंगले में शिफ्ट हो जाएंगे। चौबे कॉलोनी स्थित उनके नए बंगले का निर्माण कार्य चल रहा है, और दीवाली के आसपास उनकी वहां शिफ्टिंग की योजना है। दरअसल, मौजूदा निवास स्थान मौलश्री विहार के शहर से दूर होने के कारण मूणत अपने क्षेत्र के मतदाताओं और कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात नहीं कर पा रहे थे।
यही वजह है कि उन्होंने मौलश्री विहार के अपने बंगले को छोडक़र अपने विधानसभा क्षेत्र में ही रहने का फैसला लिया है। मौलश्री विहार का बंगला उन्होंने सरकारी योजना के तहत खरीदा था। उन्होंने अपने बंगले से सटे दिवंगत पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा के खाली प्लाट को खरीदकर भव्य रूप दिया था।
बंगले के ठीक सामने पूर्व सीएम रमन सिंह का भी मकान है, और आसपास पार्टी के कई प्रमुख नेता रहते हैं। बावजूद उन्होंने बंगला छोडक़र चौबे कॉलोनी में रहने का फैसला लिया है। चौबे कॉलोनी, रायपुर पश्चिम विधानसभा के केन्द्र में स्थित है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद वापसी के लिए क्षेत्र में सक्रिय रहकर कार्यकर्ता और आम लोगों से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे में पार्टी के लोगों को मूणत का बंगला बदलने का फैसला सही लग रहा है।
आसमान से गिरे, खजूर पर अटके
आंध्रप्रदेश से सटे जिले में पदस्थ रहे दूर संचार सेवा के अफसर का तबादला महाराष्ट्र की सीमा से सटे जिले में हो गया। तबादला होना कोई असामान्य बात नहीं है। अफसर पिछले कुछ समय से रायपुर में किसी अहम जगह पर पोस्टिंग के लिए प्रयासरत थे। वैसे भी उनकी सेवा से आए लोग छत्तीसगढ़ सरकार में मलाईदार पदों पर ही रहे हैं। कुछ इसी तरह की इच्छा, इनकी भी थी। मगर ऐसा नहीं हो पाया।
आंध्रप्रदेश से सटे जिस जिले में थे वहां भी धीरे-धीरे सेट हो गए थे, लेकिन स्थानीय विधायक ने अपनी पसंद के डिप्टी कलेक्टर को उनकी जगह लाने में सफल रहे। नया जिला अफसर को रास नहीं आ रहा है, और उनके साथ समस्या यह है कि ऊपर तक पहुंच होने के बावजूद उन्हें मनमाफिक पोस्टिंग नहीं मिल पा रही है। उनसे जुड़े लोग इसको गृहनक्षत्र से जोडक़र देख रहे हैं।
फिलहाल तो नहीं दिखते शांति के आसार
नारायणपुर में आईईडी विस्फोट कर डीआरजी जवानों की बस को उड़ाने की वारदात तब हुई है जब सप्ताह भर पहले ही नक्सलियों ने सरकार के साथ शांति वार्ता करने की पेशकश की थी। सरकार उस प्रस्ताव को ठोस नहीं मान रही थी लेकिन प्रतिक्रिया हर बार की सकारात्मक ही थी। कहा गया कि देश के संविधान पर आस्था व्यक्त करें और हिंसा का रास्ता छोड़ दें। सरकार के पास किसी व्यक्ति के माध्यम से कोई पत्र उन तक तो पहुंचाया नहीं गया था लेकिन मीडिया के जरिये नक्सल संगठनों के बीच यह प्रतिक्रिया जरूर पहुंची होगी। इन दिनों बस्तर में ही एक शांति यात्रा भी निकली हुई है, जिसे नक्सल संगठनों ने सरकारी फंडिंग से हो रही वार्ता कह दिया है, यानि इससे कुछ निकलने की संभावना नहीं है।
दूसरी ओर अधिकारियों ने यह चौंकाने वाली जानकारी दी है कि जिस जगह पर विस्फोट हुआ वहां सर्चिंग की गई थी। किसी तरह के भूमिगत विस्फोटक के दबाये जाने का सुराग खोजी दस्ते को नहीं मिला। शायद नक्सलियों ने आईईडी को प्लास्टिक के डिब्बे में पैक किया, फिर उसके ऊपर कार्बन पेपर लपेट दिया। मेटल डिडेक्टर इसी वजह से उसे सर्च नहीं कर पाया।
पुलिस ने यह भी बताया है कि पास के गांव में एक मेला लगा हुआ है इसलिये कुछ लोग जो ग्रामीणों के वेशभूषा में आसपास टहलते दिखे उन पर कोई संदेह नहीं हुआ।
शांति वार्ता की बातचीत के लिये रूचि दिखाने के बीच हुए हमले से तो लगता है कि नक्सल समस्या का समाधान निकालना इस सरकार के लिये भी उतना ही चुनौती भरा है, जितना पहले की सरकारों के लिये था। शांति वार्ता की संभावना फिर धूमिल हो गई।
कोरोना रोकने के लिये पहना, पर टीबी से भी बच गये
देशभर में कल विश्व क्षय रोग दिवस मनाया गया। छत्तीसगढ़ सहित देशभर के कई जगहों से खबरें हैं कि पिछले साल, बीते वर्षों के मुकाबले नये टीबी मरीजों की संख्या में कमी आई। स्वास्थ्य शोध एजेंसी लांसेट का भी यही निष्कर्ष है। कारण बताया गया है कि लोगों ने मास्क को अपनी आदत में शामिल किया। टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसमें खांसी, खरार आती हैं। बातचीत के दौरान ड्रापलेट (छोटे कण) तो हवा में तैरते ही हैं। इससे टीबी फैलता है। कोरोना वायरस से बचाव के लिये जब मास्क पहनना और शारीरिक दूरी बनाये रखना जरूरी किया गया तो इसके पीछे भी वजह यही है। मास्क पहनकर जब कोई निकलता है तो से यह सुनिश्चित करता है कि बीमारी को फैलाने में वह मदद नहीं कर रहा।
कुछ माह पहले जब कोरोना संक्रमण का असर कम होने लगा था लोगों ने मास्क त्याग दिया। अब भी बहुत से लोग इसे गले में लटकाकर चलते हैं और सही जगह पहनने के लिये टोके जाने का इंतजार करते हैं। जुर्माने का तो ज्यादा खौफ नहीं है।
देश के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण इतना अधिक है कि उसे दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिना जाता है। रायपुर शहर भी एक बार इनमें शीर्ष पर आ चुका है। मास्क पहनें तो यह प्रदूषित हवा भी सेहत को कम नुकसान पहुंचायेगी।
आनन-फानन एफआईआर का रद्द होना
अमूमन ऐसा कम होता है कि पुलिस कोई एफआईआर दर्ज करे और फिर तुरत-फुरत जांच करके उसे खारिज भी कर दे। मगर मंदिर हसौद में पुलिस को ऐसा करना पड़ा। राममंदिर की चंदा वसूली में गड़बड़ी को लेकर किसी ने शिकायत की थी। इसके बाद चंदा वसूली से जुड़े लोगों के बीच विवाद बढ़ा। एक ने आकर थाने में भाजपा के मंडल अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस ने नामजद अपराध दर्ज किया और कई धारायें लगा दीं। शिकायत करने वाले का आरोप था कि उसके साथ अध्यक्ष ने गाली गलौच, मारपीट की। अब विपक्ष में बैठी भाजपा कार्यकर्ताओं ने तेवर दिखाये। वे धरने पर थाने के सामने ही बैठ गये। कहा-शिकायत झूठी है, एफआईआर रद्द करो।
ऐसे मामलों में पुलिस कहती है- जांच होगी, तब देखेंगे, या फिर- कोर्ट में सुलझा लेना। पर हंगामे के बीच दबाव इतना बढ़ा कि पुलिस ने आनन-फानन जांच की और यह निष्कर्ष निकाला कि शिकायत झूठी थी और इसके बाद एफआईआर रद्द भी कर दी गई। भाजपा का संगठन एकजुट हुआ, मामला राममंदिर का भी था, तो वे अपनी बात मनवा सके। पर सवाल पुलिस की भूमिका पर भी है। यूं तो वह प्राय: मामूली मारपीट, गाली गलौच पर एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करती है और लिखित शिकायत लेकर लौटा देती है, पर इस मामले में उसने क्यों फुर्ती दिखाई और जब दिखाई तो उतनी ही तेजी से बैक फुट पर क्यों आ गई? कहीं उसे ऐसा तो नहीं लगा कि विपक्ष में बैठे लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखने से उन्हें ऊपर से पीठ थपथपाई जायेगी?
पुत्रमोह जारी है...
भाजपा के राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश ने पिछले दिनों यहां प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पार्टी नेताओं को पुत्रमोह त्यागने की नसीहत दी। उनकी जानकारी में यह बात लाई गई थी कि पार्टी के दिग्गज नेता अपने बेटे-बेटियों को पदाधिकारी बनाने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।
सौदान सिंह की जगह छत्तीसगढ़ संगठन का काम देखने वाले शिवप्रकाश की सलाह को पार्टी के नेता कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि सूरजपुर जिला भाजयुमो अध्यक्ष के लिए पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के बेटे लवकेश पैकरा को बनाने की अनुशंसा की गई है।
और जब प्रदेश संगठन ने सूरजपुर जिला इकाई को दूसरा नाम प्रस्तावित करने के लिए कहा, तो जिला संगठन के मुखिया ने यह कह दिया कि लवकेश से बेहतर कोई और नाम नहीं है। सूरजपुर जिला भाजपा संगठन में रामसेवक पैकरा समर्थकों का दबदबा है। ऐसे में देखना है कि प्रदेश संगठन, शिवप्रकाश की सलाह पर कितना अमल कर पाता है।
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी..
बेटे के नाम पर पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की जमीन खरीदकर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत फंस गए हैं। हालांकि उन्होंने विवादों को शांत करने की नीयत से कहा कि जमीन खरीद प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है, और उन्हें चेक से भुगतान की गई राशि वापस कर दी जाती है, तो वे जमीन लौटा देंगे। मगर अमरजीत के सफाई देने के बाद भी मामला शांत होता नहीं दिख रहा है, और खबर यह भी है कि राज्यपाल ने मुख्य सचिव को प्रकरण की जांच के लिए चि_ी भी लिखी है।
अमरजीत भगत ने अपने खिलाफ आरोपों पर पलटवार करते हुए यह भी कह गए कि कई भाजपा नेताओं ने भी इसी तरह जमीन खरीदी है। पहली नजर में अमरजीत के आरोपों में दम भी नजर आ रहा है। इसकी वजह यह है कि विशेषकर सरगुजा संभाग के भाजपा के बड़े आदिवासी नेताओं ने इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध रखी है।
सुनते हैं कि अमरजीत के खिलाफ पहले पूर्व सीएम रमन सिंह के साथ विष्णुदेव साय प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने वाले थे। मगर पूर्व सीएम ने आने से मना कर दिया। पार्टी के दबाव की वजह से सायजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस तो ले ली, लेकिन बाद में वे पहाड़ी कोरवाओं के साथ राजभवन नहीं गए। उनकी जगह देवजी पटेल, पहाड़ी कोरवाओं को लेकर राज्यपाल से मिले।
इस पूरे मामले में पेंच यह है कि अदालत ही जमीन की रजिस्ट्री निरस्त कर सकता है, लेकिन अमरजीत पर और ज्यादा हमला हुआ, तो उनके समर्थक चुप नहीं बैठेंगे। कई और रजिस्ट्रियां सार्वजनिक होंगी, और इससे भाजपा के आदिवासी नेता घिर सकते हैं। देखना है आगे-आगे होता है क्या।
नंबरप्लेट से रोड सेफ्टी तक
लोगों का मिजाज ऐसा है कि जब तक कानून तोड़ न लें, उन्हें मजा ही नहीं आता। अब उत्तरप्रदेश की यह मोटरसाइकिल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शान से चल रही है, और नंबरप्लेट पर नंबर से अधिक बड़े आकार में वकील होने की नुमाइश कर रही है। नंबरप्लेट पर किसी भी तरह का कुछ और लिखना नियमों के खिलाफ है, और उस पर जुर्माना भी है, लेकिन ताकतवर लोगों को नियमों को तोडऩे में मजा आती है। राजनीतिक दलों के छोटे से ओहदे पर बैठे हुए लोग भी बड़े-बड़े अक्षरों में अपनी ताकत नंबरप्लेट और गाड़ी पर लिखवा लेते हैं, और उस ताकत की वजह से ट्रैफिक पुलिस उन्हें छूती नहीं है कि कौन अपना नक्सल इलाके में तबादला करवाए। दिलचस्प बात यह है कि सडक़ों पर सुरक्षा तोडऩे वाली बड़ी कारोबारी गाडिय़ों पर काबू करना जिस ट्रांसपोर्ट विभाग का जिम्मा है, उसे देश के अधिकतर प्रदेशों में संगठित वसूली और उगाही की एजेंसी बनाकर रख दिया गया है। छत्तीसगढ़ में भी इस विभाग के भयानक भ्रष्टाचार के सुबूत सडक़ों पर चारों तरफ दिखते हैं, और मजे की बात यह है कि इसी विभाग को रोड सेफ्टी क्रिकेट का इंतजामअली बनाया गया था। यह विभाग खत्म हो जाए, तो रोड खासी सेफ अपने आप हो जाएंगी।
जनरल प्रमोशन से किसकी भलाई?
कोरोना के दूसरे दौर का आगमन उसी वक्त हुआ है, जब स्कूल कॉलेजों में परीक्षायें लेने की तैयारी चल रही है। संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद अप्रैल-मई में शारीरिक उपस्थिति के साथ बोर्ड परीक्षाओं को लेने की तैयारी हो रही है, पर बाकी कक्षाओं को जनरल-प्रमोशन देने का फैसला लिया गया है। यानि सब धान एक पसेरी। जो पढऩे लिखने और एक-एक अंक के लिये सिर धुन रहे हैं उन छात्रों को कोई फायदा नहीं। और जो मौज कर रहे हैं उनकी तो मौजा ही मौजा है। ये सरकार के फैसले को सलाम कर रहे हैं।
श्रीलाल शुक्ल की बात छोडिय़े, जिन्होंने राग दरबारी में लिखा था- अपने देश में शिक्षा व्यवस्था वह कुतिया है, जिसको हर ऐरा-गैरा रास्ते में आते-जाते लतियाता रहता है। जनरल प्रमोशन की धारणा का ईजाद शायद पहली बार मध्यप्रदेश के तब के मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के दौर में, भोपाल गैस कांड और इंदिरा गांधी हत्याकांड बाद हुआ था। उसके बाद से तो जब भी कोई आपदा आती है जनरल प्रमोशन एक आसान रास्ता दिखाई देता है।
पर, तब से अलग हो चुकी हैं परिस्थितियां। भले ही किसी भी छात्र को अनुत्तीर्ण न करें लेकिन जब ऑनलाइन क्लासेस और दूरस्थ इलाकों में पढ़ई तुहंर द्वार जैसी योजना चल रही हो तो औपचारिक ही सही और ऑनलाइन ही क्यों न हो, परीक्षा क्यों नहीं ली जाती? कोरोना के दौर में जब रैलियों पर रोक नहीं, बाजार, सिनेमा हॉल खुले हों तो सिर्फ परीक्षा से छात्रों को वंचित कर दिया गया। जनरल प्रमोशन पर पालक और इग्ज़ाम से बच जाने वाले छात्र खुशी मनाने की जगह दूसरे कोण से भी मामले को समझ पायेंगे? नौकरशाह जानते हैं कि ऑनलाइन इगज़ाम लेने में उन्हें कितनी तकलीफ होने वाली है। दर्जन भर जिलों के हजारों छात्र-छात्राओं के पास न तो नेटवर्क है, न ही संसाधन। ये कमी छिपाये नहीं छिपती न समाधान निकाला गया। इसीलिये शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जनरल प्रमोशन का रास्ता चुना और तय किया- मुंह ढंक के सोईये, आराम बड़ी चीज है।
हिम्मत दुधमुंहे के मां की
कोई महिला अगर बहुत छोटे बच्चे, शिशु की मां हो तो उसे अपने कार्यस्थल पर ड्यूटी निभाना कितना मुश्किल है यह नये बने जिले गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही की घटना से पता चलता है। स्कूलों के बीच समन्वय के लिये संकुल बना हुआ है। इन संकुलों के समन्वयक किसी स्कूल के प्राचार्य होते हैं और वे समय-समय पर बैठकें लेकर पढ़ाई, दाखिले, परीक्षा की तैयारी जैसे मसलों पर चर्चा करते हैं। जिले के दोबहर स्कूल के प्राचार्य, संकुल समन्वयक भी हैं। उन्होंने बैठक रखी। उस बैठक में शिक्षिका अपने दुधमुंहे बच्चे को लेकर पहुंच गई । बच्चा उसकी गोद में। थोड़ी बहुत स्वाभाविक हलचल थी, पर बैठक में कोई बाधा नहीं हुई। पर बैठक के बाद प्राचार्य नाराज हो गये। उन्होंने कहा कि ये सब नहीं चलेगा। आगे जब भी बैठकों में आओ बच्चे को साथ मत लाना। शिक्षिका ने कहा, कहां छोड़ूं। यहां तो न झूलाघर है न फीडिंग की जगह। प्राचार्य ने कहा कि नहीं यह सब नहीं चलेगा, अपना इंतजाम कर लो, वरना निपटा दूंगा।
दुर्व्यवहार से व्यथित शिक्षिका ने जिला शिक्षा अधिकारी, पुलिस अधीक्षक के साथ-साथ महिला आयोग से भी इसकी शिकायत कर दी है। मालूम हुआ है कि शिक्षा विभाग तत्काल सम्बन्धित प्राचार्य से पद छीनकर उसे किसी दूसरी जगह पर भेजने वाला है, ताकि ऊपर से होने वाली किसी भी पूछताछ का संतोषजनक जवाब दिया जा सके।
अकेले रायपुर में चाकूबाज?
रायपुर में ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये चाकू मंगाने वालों की सूची पुलिस ने हासिल की और जब्त करने का सिलसिला शुरू किया। 30 फीट लम्बी मेज पर बीते एक सप्ताह में जब्त 350 चाकुओं की प्रदर्शनी लगाई गई। अब भी करीब दो सौ चाकू बरामद करना बाकी है। हैरानी यह है कि चाकू जब्ती की यह कवायद सिर्फ राजधानी में हो रही है। ऑनलाइन शॉपिंग साइट से चाकू मंगाने की छूट तो हर जिले में हर किसी को है। वहां होने वाले अपराधों को काबू में लाने के लिये बाकी जिलों में पुलिस की कोशिश क्यों नहीं हो रही है? बाकी जिले इतने पिछड़े भी नहीं हैं कि अब भी यूपी, बिहार से तस्करों के जरिये माल मंगायें, ऑनलाइन शॉपिंग की समझ बाकी जिलों के बदमाशों को भी है।
नेता प्रतिपक्ष को एक्सटेंशन!
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारने के बाद बीजेपी निराशा के माहौल से ऊबर नहीं पाई है, हालांकि विधानसभा के बाद लोकसभा में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा, लेकिन नगरीय निकाय और पंचायत में फिर से बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। स्थिति यह है कि संगठन में बैठकों के अलावा कोई हलचल दिखाई नहीं देती। ऐसे में विरोधियों को बीजेपी की मौजूदा स्थिति-परिस्थितियों पर टीका-टिप्पणी करने का मौका मिल जाता है।
अब प्रदेश के सबसे प्रमुख, राजधानी के नगर निगम को ही ले लीजिए। एक-डेढ़ साल का समय बीत चुका है, लेकिन बीजेपी अभी तक नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाई है। इस मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष की ओर से सवाल भी उठाए जाते रहे हैं। निगम के सभापति ने तो नेता प्रतिपक्ष तय करने के लिए बीजेपी की प्रभारी को भी पत्र लिखा था। उसके बाद भी बीजेपी संगठन में कोई सुगबुगाहट सुनाई नहीं पड़ रही है। निगम की सत्ता में काबिज कांग्रेसियों के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि उन्हें न तो विपक्ष के सवालों का जवाब देना पड़ रहा है और न ही उनके फैसलों के खिलाफ आवाज उठ रही है। फिर भी सत्ताधारी दल के लोग मजे लेने से नहीं चूक रहे हैं।
निगम में कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने सुझाव दिया कि क्यों न पिछली परिषद के नेता प्रतिपक्ष को ही बीजेपी पार्षद दल का नेता मान लिया जाए। उनका कहना था कि पुराने नेताजी को ही नए की नियुक्ति तक एक्सटेंशन दे दिया जाए। प्रस्ताव भले ही हंसी-मजाक में आया लेकिन लोगों को जंच भी रही थी, लेकिन इसमें एक दिक्कत यह भी है कि पूर्व नेता प्रतिपक्ष दुर्भाग्य से पार्षद का चुनाव हार गए हैं। ऐसे में उनको कैसे नेता प्रतिपक्ष माना जाए ? लेकिन लोगों की दलील थी कि सदन के अंदर न सही बाहर तो कम से वे सत्ताधारी दल को घेर सकते हैं। यह प्रस्ताव पूर्व नेता प्रतिपक्ष तक भी पहुंची तो वे भी इस पर सहमत बताए जा रहे हैं। अब देखना यह है कि सियासी हंसी-ठिठोली भरे इस प्रस्ताव पर बीजेपी के नेता कितनी गंभीरता दिखाते हैं ?
छत्तीसगढ़ी को नेशनल अवार्ड मिलना
अमूमन हर साल 40-50 छत्तीसगढ़ी फिल्में बनती हैं। मगर बहुत कम यादगार होती हैं। दो चार फिल्मों को छोड़ दें तो बाकी बॉलीवुड, भोजपुरी या दक्षिण भारतीय फिल्मों की नकल होती हैं। नकल भी ठीक तरह से नहीं की जाती। फिल्म खिचड़ी बनकर रह जाती है। दर्शकों का एक बड़ा वर्ग इन फिल्मों को पसंद भी करता है पर उन्हें समीक्षकों की सराहना और पुरस्कार नहीं मिलते। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन- द मेज’ को क्षेत्रीय श्रेणी का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। देश-विदेश के अनेक फिल्म फेस्टिवल्स में इस फिल्म ने पहले भी सम्मान और पुरस्कार हासिल किये हैं लेकिन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का मिलना सबसे अलग महत्व रखता है।
फिल्म में खूबी यह रही कि छत्तीसगढ़ के ही मंजे हुए कलाकार और तकनीशियनों को साथ लेकर इसका निर्माण, छत्तीसगढ़ (गरियाबंद) में किया गया। खैरागढ़ के कवि व कहानीकार संदीप बख्शी ने भूलन कांदा कहानी लिखी थी। एक लोक मान्यता है कि भूलन कांदा जिसके पैर में पड़ जाये उसकी स्मृति लुप्त हो जाती है। वह व्यक्ति यह भी नहीं बता पाता कि उसकी याददाश्त किस वजह से गई। यह पौधा वास्तव में हो या नहीं हो, पर कहानी दिलचस्प है, जिसमें गांव के लोगों का आपसी प्रेम भाव दिखाया गया है। एक व्यक्ति अपने पड़ोसी की लाचार स्थिति को देखकर उसके अपराध को अपने सिर पर ले लेता है और खुद जेल की सजा काटता है। निर्माता मनोज वर्मा ने जैसा बताया है कि यह फिल्म बहुत जल्द रिलीज होगी। यह पुरस्कार साबित करता है कि छत्तीसगढ़ की लोक कथाओं, परपम्पराओं, सामाजिक संरचना को यदि बखूबी उतारा जाये तो यहां की फिल्में नई ऊंचाईयां हासिल कर सकती हैं। उम्मीद है अब छत्तीसगढ़ी में भी लीक से हटकर कुछ काम करने की प्रेरणा दूसरे निर्माताओं को मिलेगी।
शार्टेज के बाद वैक्सीन के लिये कतार
कोई चीज मुफ्त मिल रही हो तो उसकी पूछ-परख नहीं होती, वहीं जब शार्टेज होता है तो लोगों में उसे पहले हासिल करने की हड़बड़ी हो जाती है। माह भर पहले कोरोना वैक्सीन लगवाने के नाम पर लोग हिचकिचाते, कतराते रहे। कोरोना वारियर्स भी टालने का बहाना ढूंढते रहे। धीरे-धीरे लोगों में झिझक दूर गई और वैक्सीनेशन का दर बढ़ता गया। अब स्थिति यह है कि प्रदेश के 1500 से ज्यादा सेंटर्स में हर दिन करीब 1 लाख डोज दिये जा रहे हैं। अब करीब 16 लाख कोविशील्ड और 80 हजार को वैक्सीन के जो डोज केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को भेजे थे खत्म हो रहे हैं। अब स्टाक में केवल दो लाख डोज बचे हुए हैं जो महज दो दिन और चल पायेगा। दरअसल, पहले तो लोगों ने सोचा, जब मर्जी होगी लगवा लेंगे, वैक्सीन तो खत्म होने वाली नहीं। पर इस बीच कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई और टीका लगवाने की रफ्तार भी उसी तेजी से बढ़ गई। शार्टेज के कारण अब ज्यादातर निजी अस्पतालों को वैक्सीन की आपूर्ति बंद कर दी गई है। केवल सरकारी केन्द्रों में लगाये जा रहे हैं। वैक्सीन की नई खेप नहीं आई है पर केन्द्र व राज्य को चाहिये कि वह लोगों को आश्वस्त करे कि कोई छूटेगा नहीं। आखिर हम विदेशों में भी भेज रहे हैं तो अपने देश के लिये तो पर्याप्त मात्रा में बन ही रही होगी।
आंगनबाड़ी पर निगरानी का ये तरीका
केन्द्र सरकार के डिजिटल इंडिया स्कीम के चलते हर विभाग कोशिश कर रहा है कि वे अनुदान, मानदेय का ऑनलाइन भुगतान करे। इस योजना में अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी जोड़ लिया गया है। पेमेन्ट ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाये तब भी दिक्कत नहीं लेकिन उन्हें बाध्य किया जा रहा है कि वे पोषण एप डाउनलोड करें। न सिर्फ डाउनलोड करें बल्कि पूरे माह का रिकार्ड भी अपलोड करें। मामूली वेतन पाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, जिन्हें अब तक सरकारी कर्मचारी भी नहीं माना जाता गांवों में बच्चों और माताओं के पोषण की प्राथमिक कड़ी हैं। मोबाइल फोन का उन्हें इस तरह से इस्तेमाल करने कहा जा रहा है मानो हर किसी के पास स्मार्ट फोन है और उसका इस्तेमाल करने में दक्ष हैं। पोषण एप में रिकॉर्ड अपलोड नहीं करने पर उन्हें मानदेय भी नहीं भेजा जायेगा। यह आदेश पांच माह से लागू है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रदेश के 11 जिले ऐसे हैं जहां मोबाइल नेटवर्क बहुत कमजोर है। उनके पास स्मार्ट फोन खरीदने के लिये पैसे भी नहीं है। पिछली सरकार ने जो स्मार्ट फोन बांटे थे वे बहुत कम लोगों को मिले और ज्यादातर खराब भी हो चुके हैं। क्या केन्द्र सरकार उनकी इस व्यवहारिक समस्या को समझ रही है या राज्य सरकार कोई रास्ता निकालने की सोच रही है?
90 करोड़ रूपए पक्के में !
माना एयरपोर्ट के नजदीक सहारा समूह की सवा सौ एकड़ का सौदा पक्का हो गया है। सुनते हैं कि अरोरा उपनाम के एक कारोबारी ने करीब डेढ़ सौ करोड़ में सहारा से जमीन खरीदी है। सरगुजा संभाग के एक बड़े राजनेता के करीबी माने जाने वाले अरोरा को करीब 90 करोड़ रूपए पक्के में देना है। जमीन कारोबारियों के बीच इस सौदे की जमकर चर्चा है। इस पूरे सौदे में पेंच सिर्फ इतना है कि सामान्य कारोबारी अरोरा इतनी बड़ी रकम नंबर एक में कैसे देगा।
हालांकि राजनेता के साथ उनके कारोबारी रिश्तों को देखकर इतनी बड़ी रकम अदा करने में कोई शक की गुंजाइश नहीं है। वैसे भी नेताजी रायपुर से लेकर सरगुजा संभाग में एक के बाद एक जमीन में अपने करीबियों के जरिए काफी निवेश कर रहे हैं। उनके भारी भरकम निवेश पर जांच एजेंसियों की नजर भी है। ऐसे में देर-सवेर वे अपने कारोबारी मित्रों समेत किसी मुसीबत में घिर जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
पारवानी ही व्यापारियों के सबसे बड़े नेता
चेम्बर चुनाव के नतीजे आने वाले राजनीतिक उठापटक की तरफ भी इशारा कर रहे हैं। चेम्बर में पिछले कई दशकों से चले आ रहे एकता पैनल के वर्चस्व को तोड़कर जय व्यापार पैनल ने अपना दबदबा कायम किया है। पैनल के मुखिया अमर पारवानी भारी वोटों से अध्यक्ष निर्वाचित हुए। पारवानी की जीत से श्रीचंद सुंदरानी को तगड़ा झटका लगा है।
श्रीचंद व्यापारियों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे, और उन्होंने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। वे प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी नहीं गए। वे योगेश अग्रवाल को साथ देकर प्रदेश भर घूमते रहे। मगर व्यापारियों ने योगेश के बजाए पारवानी पर भरोसा किया, और चुनाव परिणाम से यह साबित हो गया कि पारवानी ही व्यापारियों के सबसे बड़े नेता हैं।
भाजपा ने व्यापारी नेता होने के नाते श्रीचंद को रायपुर उत्तर प्रत्याशी बनाया था, और वे विधायक भी बने। लेकिन पारवानी की जीत के बाद फेसबुक-सोशल मीडिया पर कई लोग उन्हें अभी से रायपुर उत्तर से भाजपा प्रत्याशी बताने में लग गए हैं। क्या वाकई ऐसा होगा, यह कहना अभी मुश्किल है। मगर श्रीचंद चेम्बर के मोह में अपना काफी कुछ गंवा बैठे हैं।
शिवरतन भी योगेश को बढ़त नहीं दिला पाए
खबर है कि अमर पारवानी को कांग्रेस के बड़े व्यापारी नेताओं के साथ-साथ पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विरोधियों का भरपूर साथ मिला। बृजमोहन अपने छोटे भाई योगेश को जिताने के लिए काफी मेहनत भी कर रहे थे। वे तकरीबन सभी व्यापारी नेताओं के संपर्क में थे। बृजमोहन के करीबी विधायक शिवरतन शर्मा ने तो भाटापारा और बलौदाबाजार में रोड शो भी किया। मगर शिवरतन भाटापारा से भी योगेश को बढ़त नहीं दिला पाए।
अजय चंद्राकर ने भी धमतरी, बालोद में योगेश के पक्ष में काफी लॉबिंग की थी। इससे परे राजेश मूणत के समर्थक खुले तौर पर अमर पारवानी के साथ थे। पूर्व सीएम रमन सिंह और धरमलाल कौशिक के करीबी व्यापारी नेताओं ने पारवानी का साथ दिया। यही नहीं, कांग्रेस संगठन के ताकतवर अग्रवाल नेता ने तो गुपचुप तौर पर कांग्रेस के व्यापारी नेताओं को पारवानी का साथ देने के लिए कह दिया था। कांग्रेस के व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजेन्द्र जग्गी के खुलकर पारवानी के प्रचार में जुटने से साफ तौर पर संकेत चला गया था। इन सब वजहों से भी पारवानी को भारी वोटों से जीत हासिल हुई।
योगेश से हिसाब चुकता..
चेम्बर का चुनाव जातिगत समीकरणों अछूता नहीं रहा है। चेम्बर चुनाव अग्रवाल वर्सेस सिंधी हो गया था। सिंधी व्यापारियों ने एकतरफा अमर पारवानी के पक्ष में वोटिंग की। यही नहीं, जैन समाज के व्यापारियों ने भी पारवानी का साथ निभाया। इससे परे अग्रवाल बेल्ट माने जाने वाले सरगुजा, रायगढ़, कोरिया, कोरबा में योगेश को बढ़त तो मिली लेकिन यहां वोटर इतने कम हैं कि वे अपनी बढ़त को ज्यादा समय तक बरकरार नहीं रख पाए।
दूसरी तरफ, अजय भसीन को अपने पैनल से महामंत्री उम्मीदवार बनाए जाने का पारवानी को भरपूर फायदा मिला। भसीन की वजह से भी पारवानी को भिलाई-दुर्ग से अच्छी खासी बढ़त मिली। रायपुर में समता कॉलोनी में गरबा, और जमीन विवाद के चलते भी योगेश अग्रवाल विवादित रहे हैं। समता कॉलोनी में व्यापारियों की संख्या अच्छी खासी है, और इनमें से ज्यादातर योगेश के विरोधी हो गए थे। मतदान का मौका आया, तो उन्होंने योगेश के खिलाफ मतदान कर अपना हिसाब चुकता किया।
छत्तीसगढिय़ा दर्शकों का मनोरंजन
अपने यहां एक कवि हैं जो मंचों पर अक्सर जिक्र करते हैं कि हम छत्तीसगढिय़ा लोग गजब स्मार्ट होते हैं, कोई पार नहीं पा सकता। शहीद वीर नारायण सिंह क्रिकेट स्टेडियम नया रायपुर में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के दौरान मनोरंजन केवल मैदान पर नहीं, बल्कि गैलरी पर भी हो रहा है। अब इन्हें देखिये। एक दर्शक साउथ अफ्रीका के खिलाडिय़ों से अपील कर रहे हैं- छइहां भुइयां देखकर जाना। कोई और बता रहा है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट देखने का मौका पुरखों को नहीं मिला, उसे मिल गया। स्टेडियम में इस तरह के अनेक पोस्टर्स के दर्शन, मैच के दौरान हो रहे हैं और ध्यान खींच रहे हैं।
किसानी के दिन फिरेंगे?
कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना की चौथी किश्त कल जारी कर दी। इस तरह से किसानों से किये गये वादे का एक चरण पूरा हुआ। केन्द्र भी किसान सम्मान निधि योजना लेकर आई जब कांग्रेस ने किसानों, बीपीएल परिवारों के हाथ में कैश देने की बात उठाई थी। बाद में इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल किया। ऐसा लगता है कि किसानों, मजदूरों के हाथों में कैश देने की योजना अब कभी बंद नहीं होगी, बल्कि हर चुनाव में दी जाने वाली राशि बढ़ाने की होड़ रहेगी।
पश्चिम बंगाल में भाजपा ने कल ही संकल्प-पत्र जारी किया है जिसमें इस बात का जिक्र है कि बीते तीन साल से जो सम्मान निधि टीएमसी की सरकार किसानों को नहीं दे रही है, उसे सरकार बन जाने पर वह एकमुश्त देगी। इस घोषणा को लेकर यहां छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता विपक्ष में बैठी भाजपा से सवाल कर रहे हैं कि किसानों को धान बोनस के रूप में 300 रुपये हर साल देने का वादा था, वो तो दिया नहीं। सिर्फ दो बार दिया, घोषणा वाले साल और चुनाव वाले साल में। अब कम से कम केन्द्र से कहकर यहां के किसानों को भी वह रुकी हुई राशि दिला दें। भले ही वादा राज्य सरकार का था लेकिन केन्द्र पिछला पैसा बांटने जा रही है तो अपनी ही भाजपा सरकार के वादे को पूरा करने में हर्ज क्या है।
वैक्सीन मुफ्त है, याद रखना
अगले विधानसभा चुनाव में अभी दो साल से ज्यादा वक्त है पर भाजपा सक्रिय हो चुकी है, खोई हुई जमीन वापस हासिल करने के लिये। हाल ही में कई धरने आंदोलन हुए, सरकार को घेरते हुए। कहीं भीड़ जुटी, कहीं नहीं, पर हौसले में कमी नहीं है। लेकिन सब कुछ नकारात्मक ही किया जा रहा हो, ऐसा नहीं। युवा इकाई के हाथों में गुलाब हैं और वे लोगों का अभिवादन भी कर रहे हैं। जो लोग कोरोना का टीका लगवाने के लिये वैक्सीनेशन सेंटर जा रहे हैं उन्हें फूल थमा रहे हैं।
इंजेक्शन लगवाने वाले तो खूब फोटो खिंचवा रहे हैं। युवाओं की अभी बारी नहीं आई है पर वे भी फूल देने के बहाने तस्वीरें खिंचवा रहे हैं और शेयर कर रहे हैं। पार्टी ने यह काम उन्हें खूब सोच-समझकर दिया है। हजारों लोगों को टीका लगना है, इस बहाने उनका जनसम्पर्क हो रहा है। साथ ही भाजपा उपस्थिति होकर यह बता रही है कि टीका केन्द्र सरकार का है, मोदी ने इसे फ्री दिया है। राज्य सरकार तो सिर्फ इंजेक्शन लगाने का काम कर रही है।
थोड़ा केन्द्र के टैक्स की बात हो जाये....
केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी चौबे छत्तीसगढ़ के दौरे पर कल थे। पत्रकारों ने उनसे सवाल किया पेट्रोल-डीजल की भारी कीमत पर। चौबे ने कहा-राज्य सरकार टैक्स घटाये तो कम हो जायेंगे दाम। यह सही है कि राज्य सरकार वैट के रूप में काफी रकम वसूल कर रही है। पेट्रोल में यह बेस प्राइज का 25 प्रतिशत और दो रुपये है। डीजल में बेस प्राइज के 25 प्रतिशत के साथ 1 रुपया प्रति लीटर है। राज्य का टैक्स करीब 14-15 रुपये प्रति लीटर बनता है। दूसरी तरफ केन्द्र की बात करें तो सेंट्रल एक्साइज के रूप में करीब 33 रुपये और डीजल पर 29 रुपये है। राज्य और केन्द्र की सेस अलग से लगाई जाती है। फिर भी केन्द्र का टैक्स राज्य के टैक्स के मुकाबले बहुत अधिक है। इस समय करीब दोगुना है। केन्द्रीय मंत्री ने केवल राज्य सरकार से उम्मीद की कि वह टैक्स घटाये पर लोग तो केन्द्र से भी ऐसी पहल की उम्मीद रखते हैं, उन्होंने इस पर कुछ नहीं कहा। वैसे छत्तीसगढ़ का वैट टैक्स पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से कम ही है।
आंगनबाड़ी और मनरेगा का बहिष्कार
गांव वाले अपने बच्चों को पौष्टिक आहार और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा से महफूज रखने के लिये तैयार हैं लेकिन धर्म परिवर्तन करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पास भेजने के लिये नहीं। इस आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के परिवार के लोग मजदूरी करते हैं। फरमान यह भी है कि उनको मनरेगा में काम करने के लिये नहीं बुलाया जाये। बुलाया गया तो गांव के लोग नहीं जायेंगे। यानि खाली हाथ बैठे रहना भी मंजूर है। यह घटना राजनांदगांव जिले के एक गांव बागद्वार की है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने पहले स्थानीय जनप्रतिनिधियों और पुलिस से शिकायत की, मदद नहीं मिली तो वह राजधानी पहुंची और यहां महिला बाल विकास विभाग की सचिव से फरियाद की। यह जरूर हुआ है कि बहिष्कार करने वालों को चुनौती देने के लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का संगठन भी उनके साथ है। यदि कोई बिना प्रलोभन से, स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है तो यह कोई अपराध नहीं है। दूसरी ओर, सामाजिक बहिष्कार इस नाम से या किसी दूसरी वजह से किया जाना जरूर अपराध है। सचिव तक शिकायत हुई है तो कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है।
रोड सेफ्टी मैच में सेफ्टी से खिलवाड़
छत्तीसगढ़ जब देश के कोरोना संक्रमण से प्रभावित छह शीर्ष राज्यों में शामिल हो तब भी कोशिश की जा रही है कि लॉकडाउन न हो और सामान्य गतिविधियों को सावधानी बरतते हुए जारी रखा जा सके। इसीलिये नया रायपुर में चल रहे रोड सेफ्टी मैच के दौरान दर्शकों के लिये मास्क पहनना जरूरी किया गया है। पर लोगों की आदत छूट सी गई थी। गेट पर चेकिंग के दौरान तो लोगों ने मास्क लगाया पर भीतर घुसते ही लापरवाही बरती। किसी ने उम्मीद नही की थी कि मैच चलने के दौरान उन पर जुर्माना ठोक दिया जायेगा। चेकिंग शुरू होते ही कई ने जेब से निकालकर मास्क पहन लिये तो कई ने मन मसोसकर चालान जमा किया। अब आगे होने वाले मैच में जो दर्शक जा रहे हैं, उन्हें इसका ख्याल रखना होगा।
चेम्बर के वोटरों के लिए
चेम्बर चुनाव में वोटरों को रिझाने में एकता और जय व्यापार पैनल के लोगों ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। व्यापारियों के इस सबसे बड़े संगठन के प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव में राजनीतिक दलों की निगाहेें टिकी हुई है। रायपुर में सबसे आखिरी में शनिवार को मतदान हुआ। रायपुर में महासमुंद, भाटापारा, तिल्दा के व्यापारियों ने भी वोट डाले। रायपुर में सबसे ज्यादा करीब 9 हजार वोटर हैं।
जय व्यापार और एकता पैनल के समर्थकों ने व्यापारियों के लिए खाने-पीने के खास इंतजाम किए गए थे। पिछले 15 दिन से देवेन्द्र नगर के एक भवन में पापड़-पानी का दौर चल रहा था। मतदान से पहले शौकीन व्यापारियों के लिए ठंडी बियर की व्यवस्था की गई थी। कुल 17 हजार वोटरों पर प्रत्याशियों ने कुल मिलाकर एक करोड़ से अधिक खर्च किए हैं। इतना सबकुछ करने के बाद व्यापारी किसके साथ हैं, यह रविवार को पता चलेगा।
सुंदरानी, बृजमोहन साथ-साथ
चेम्बर चुनाव में पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी ने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दिया है। वे चुनाव प्रचार के दौरान खुले तौर पर यह बात कहते भी रहे हैं। वैसे तो एकता पैनल के अध्यक्ष प्रत्याशी योगेश अग्रवाल, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई हैं। खुद बृजमोहन और उनके समर्थक, योगेश के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। ऐसे में सुंदरानी को अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाना किसी को हजम नहीं हो रहा है।
सुंदरानी व्यापारियों के सबसे बड़े नेता रहे हैं, और इस वजह से भाजपा ने उन्हें टिकट दी, और विधायक भी बने। चेम्बर में सबसे ज्यादा सिंधी समाज के वोटर हैं, जो कि सुंदरानी के साथ रहे हैं, और यही उनकी ताकत भी रही है। मगर इस चुनाव में सुंदरानी की अपील के बावजूद सिंधी समाज के वोटर का झुकाव साफ तौर पर योगेश के प्रतिद्वंदी अमर पारवानी की तरफ देखने को मिला है। ऐसे में यह संदेश जा रहा है कि सुंदरानी की सिंधी समाज में पकड़ पहले जैसी नहीं रही। अब चुनाव नतीजों का बेसब्री से इंतजार है, जो कि कम से कम सुंदरानी का राजनीतिक भविष्य भी तय कर सकता है। फिलहाल तो लोग कयास ही लगा रहे हैं।
गणेश जी अपने हिस्से की फसल खा गये...
हाथी, जिसे हम गजराज, हतिन, हत्ती, गज, नाग आदि कई नामों से जानते हैं, का दुनियाभर में अलग-अलग धर्मों, विश्वासों के लोग पूजते, आदर करते हैं। अपने देश में वैदिक काल से ही हाथियों का विशेष स्थान है। गणेश जी को उनका ही स्वरूप माना जाता है, जिसे हम प्रथम पूज्य देव भी कहते हैं।
अपने छत्तीसगढ़ के दो चार जिलों को छोड़ दें तो कहीं कम, कहीं कुछ ज्यादा हाथियों की आवाजाही से आये दिन नुकसान होता है। फसलों, घरों को ही नहीं जान-माल को भी क्षति पहुंचती है। वन विभाग इन्हें मुआवजा भी देता है। पर, जांजगीर जिले में अनोखी घटना हुई। सारंगढ़, महासमुंद के रास्ते से दो हाथियों का एक छोटा दल मरघट्टी, देवगांव, बरपाली गांवों में दो दिन तक स्वच्छंद घूमता रहा। कई घरों की मिट्टी की दीवार गिरा दी। दर्जनों लोगों की फसल चौपट की और आगे बढ़ गये।
वन विभाग खबर मिलने पर मुआवजे का प्रकरण बनाने पहुंचा। ग्रामीणों ने नुकसान बताने से मना कर दिया। कहा- गणेश भगवान बड़े दिनों बाद दर्शन देने आये थे। अपनी जरूरत का प्रसाद ग्रहण किया और आगे बढ़ गये। इस बात का हम हर्जाना क्यों लें?, एक रुपया नहीं लेंगे।
मगर, वन विभाग के वहां पहुंचे अधिकारी कर्मचारी परेशान हुए, बाद में मुआवजा नहीं देने का आरोप उन पर लगेगा। तब सरपंच ने लिखकर दे दिया कि हम मुआवजा लेने से इंकार करते हैं। वन विभाग के अधिकारियों ने लिखित सहमति मिलने के बाद राहत की सांस ली।
एलिफेंट कॉरिडोर तो बन नहीं रहा, हाथियों के इलाके में खनिज दोहन रुक नहीं रहा। पानी के स्त्रोत सूख रहे हैं। उनके जंगल उजड़ रहे हैं। इसलिये निकट भविष्य में समस्या का समाधान तो दिखता है नहीं। इन सबको देखते हुए आशंका है कि कहीं वन विभाग प्रदेश के दूसरे इलाकों में हाथियों से प्रभावित लोगों को जांजगीर के ग्रामीणों की आस्था से प्रेरणा लेने की सलाह न देने लगें।
पीएससी मॉडल आंसर का विशेषज्ञ कौन?
भाजपा शासनकाल में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने जितनी परीक्षायें लीं, कोई बिना विवाद के नहीं थी। कुछ के प्रकरण अब भी कोर्ट में हैं। इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस शासन के दौर में भी यह ढर्रा चलने दिया जाये। कुछ ऐसा ही तय करके भारतीय जनता पार्टी की युवा इकाई ने गुरुवार से प्रदेशभर में पीएससी की हाल ही में हुई प्रारंभिक परीक्षा के मॉडल आंसर में गड़बड़ी को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया है। यह अभी मंडल, जिला स्तर पर है जो बाद में राजधानी और पीएससी दफ्तर का घेराव करने तक चलेगा। आंदोलनकारी भाजयुमो ने अनेक मांगें रखी हैं, जिनमें से एक यह भी है कि उस विशेषज्ञ का नाम उजागर किया जाये जिसने मॉडल आंसर में बताया है कि छत्तीसगढ़ में मॉनसून की वर्षा दक्षिण पूर्व की हवाओं से होती है। यह मांग जायज तो लगती है क्योंकि स्कूल के दिनों से ही छात्रों को पता है कि दक्षिण-पश्चिमी हवाओं से छत्तीसगढ़ में मॉनसून आता है, पूर्वी हवाओं से नहीं।
पीएससी प्रारंभिक में एक लाख से भी अधिक छात्र शामिल हुए थे। रिक्त पदों से 10 गुना अधिक लोगों को मुख्य परीक्षा में शामिल होने की अनुमति मिल रही है। जाहिर है, बहुत से ऐसे छात्र होंगे जो इस एक सवाल की वजह से मुख्य परीक्षा की दौड़ से बाहर हो गये हों।
इधर, सीजीपीएससी ने पिछले अनुभवों को देखते हुए हाईकोर्ट में केवियेट दायर कर रखा है। यानि कोई भी परिणामों को चुनौती देकर आगे की प्रक्रिया पर जल्दी रोक नहीं लगवा पायेगा। विशेषज का नाम फिलहाल तो पीएससी के अफसर उजागर कर नहीं रहे हैं, शायद कोर्ट में सुनवाई हो तो सामने आये।
गरीबों का धंधा फिर चौपट
रंग, गुलाल, पिचकारी, मुखौटे, बताशे, ठंडाई सब आम लोगों की पहुंच के भीतर होती है। शहर कस्बों में सडक़ किनारे सैकड़ों अस्थायी वेन्डर होली पर काफी कमाई कर लेते हैं। इसके अलावा नगाड़ा बजाने, फाग गाने वाले लोक कलाकार इस मौके पर कुछ जोड़ लेने की उम्मीद करते हैं। इस बार कोरोना ने तो उनकी होली रंगीन करने के बजाय, पानी फेर दिया। प्रशासन का निर्देश भी है लोग सतर्क भी। सार्वजनिक रूप से होली खेलने लोग कम निकलेंगे और बाजार में छोटी दुकानें सजाने वालों के सामान कम बिकेंगे। खबर तो यह है कि कुछ थोक व्यापारियों ने जनवरी फरवरी में ऑर्डर दिया था तब वे उम्मीद में थे कि कोरोना की परछाई होली पर नहीं पड़ेगी। उनके सामान का उठाव भी इस बार कम है।
पिछले साल जब कोरोना का लॉकडाउन शुरू हुआ तो डिजिटल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की कमाई कई गुना बढ़ी। इस बार भी कुछ ऐसा हो तो आश्चर्य नहीं। बहुत से लोग वाट्सएप ही होली खेलेंगे।
ट्रैफिक पुलिस का हमला भी छोटों पर...
कारों से एक चौथाई दाम वाली मोटरसाइकिलों की नंबरप्लेट को लेकर आए दिन सडक़ों पर चालान होते दिखते हैं। लेकिन ट्रकों और बसों जैसी बड़ी गाडिय़ों, रेत-गिट्टी ले जाने वाली बड़ी-बड़ी डम्परों की नंबरप्लेट या तो गायब रहती है, या उनके पीछे लोहे की जाली लगाकर उन्हें छुपा दिया जाता है, और उनका कोई चालान नहीं होता जबकि ये गाडिय़ां मोटरसाइकिलों के मुकाबले सौ गुना अधिक जानलेवा होती हैं, और सौ गुना अधिक सफर करती हैं।
अब लोगों को गाडिय़ों के आगे-पीछे गार्ड लगाने का ऐसा शौक रहता है कि कोई आकर टक्कर मारे तो भी गाड़ी का कोई नुकसान न हों। यह अलग बात है कि केन्द्र सरकार ने नियम लागू करके बड़ी गाडिय़ों के आगे-पीछे ऐसे गार्ड लगाने पर रोक लगा रखी है क्योंकि ये अगर टक्कर झेल लेते हैं तो गाड़ी के मुसाफिरों को बचाने के लिए लगाए गए एयरबैग नहीं खुलते हैं। एयरबैग तभी खुलते हैं जब गाड़ी को टक्कर लगे, और जब सीट बेल्ट लगे हुए हों। ऐसे में नंबरप्लेट को छुपाने वाले गार्ड चाहे आगे लगे हों, चाहे पीछे, वे कई तरह के नियम तोड़ते हैं। राजधानी रायपुर की यह गाड़ी एक मिसाल है कि ट्रैफिक पुलिस के चालान का हमला भी छोटे लोगों पर अधिक होता है, और कार वालों पर तकरीबन होता ही नहीं है।
रुपये कमाने की मशीन बने स्मार्ट कार्डधारी
स्वास्थ्य बीमा योजना की राशि हड़पने के लिये डॉक्टरों द्वारा फर्जी इलाज करने का मामला नया नहीं है। राजधानी के दो नामी दंत चिकित्सकों का पंजीयन एक साल के लिये सस्पेंड किया गया है। इन पर आरोप है कि स्मार्ट कार्ड की राशि हड़पने के लिये करीब 1400 बच्चों के दांत का गलत इलाज दिखाया। उनकी दांतों में तार लगाकर करीब 1.40 करोड़ रुपये स्मार्ट हेल्थ कार्ड से निकाल लिये गये।
इस घटना ने बरबस ही गर्भाशय कांड की याद दिला दी, जो छत्तीसगढ़ में एक नहीं दो-दो हुआ। पहली बार सन् 2012 में कैंसर का भय दिखाकर सैकड़ों महिलाओं की बच्चेदानी निकाल ली गई। दूसरी बार खुलासा हुआ कि सितम्बर 2018 से अप्रैल 2019 के बीच 3658 महिलाओं के गर्भाशय निकाल लिये गये। पहली बार स्मार्ट कार्ड की राशि तो दूसरी बार आयुष्मान योजना की राशि हासिल करने के लिये लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया गया।
ऐसे मामलों में डॉक्टरों का लाइसेंस 8-10 माह के लिये निरस्त करने के अलावा कोई बड़ी कार्रवाई नहीं होती है। स्मार्ट कार्ड और आयुष्मान कार्ड का इस तरह दुरुपयोग होता रहा तो बीमा कम्पनियां प्रीमियम की राशि ज्यादा लेंगीं, जो हमारे आपके टैक्स से भरा जायेगा। साथ ही लालच के चलते झूठा इलाज किया जायेगा तो मरीज की जान के साथ भी खिलवाड़ होगा। क्या सरकार ऐसे गोरखधंधे को गंभीरता से लेगी?
वाकई खराब है कानून व्यवस्था
मर्डर, ठगी, लूट की बढ़ती वारदातों को लेकर भाजपा ने जिस दिन प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया, उसी दिन शहर कांग्रेस बिलासपुर के अध्यक्ष के साथ दो पढ़े लिखे लोगों ने जमकर मारपीट कर दी। इस तरह से उन्होंने भाजपा के आंदोलन को सही ठहरा दिया। मामला शहर अध्यक्ष का होने के कारण पुलिस ने तत्परता दिखाई और आरोपियों को थाने पकडक़र ले आई, जेल भी चले गये।
पर, पुलिस तो वही है जो पहले की सरकार में थी। इसलिये कांग्रेस नेताओं को अपने संघर्ष के पुराने दिन याद आ गये। ज्ञापन लेकर वे अधिकारियों के पास पहुंचे और उन्होंने कानून व्यवस्था हाथ में लेने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। लोग भूले नहीं होंगे पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार की सरेआम शिकायत करते हुए गृह-मंत्री के सामने विधायक शैलेष पांडे थानों में रेट लिस्ट टांगने की मांग उठाई थी। वैसे भाजपा के समय तो कानून-व्यवस्था की स्थिति ज्यादा खराब रही, ऐसा मानकर चलना चाहिये, क्योंकि तब कांग्रेस भवन में घुसकर लाठियां बरसाई थी। अभी जो घटना हुई वह तो आकस्मिक और आपसी थी।
लखी, जूदेव के खालीपन को भरेगी युद्धवीर, ओपी की जोड़ी?
अपने पहले प्रवास पर पहुंचे भाजपा नेता ओपी चौधरी ने जशपुर को भाजपा के माथे का तिलक बताकर बड़ा सियासी दांव चला है। ओपी ने स्व. दिलीप सिंह जूदेव के मूंछों की दांव की याद दिलाते हुए बताया कि कैसे जोगी के शासन से मुक्ति दिलाकर जूदेव भाजपा को सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचाया। जूदेव खेमे को ओपी चौधरी के इस बयान ने नये सिरे से रिचार्ज कर दिया है। 1988 के उप-चुनाव में जूदेव व अर्जुन सिंह के बीच हुए मुकाबले को याद कर चौधरी ने कहा कि वे उस समय पहली कक्षा में पढ़ते थे। अर्जुन सिंह से हारने के बाद भी जूदेव को जुलूस में रक्त तिलक लगाये जाने की खबर से उन्हें रोमांच का बोध हुआ।
यह सभी जानते हैं कि प्रदेश में जूदेव समर्थकों की खासी बड़ी फौज है। उनके निधन के बाद उनके राजनैतिक उत्तराधिकारी युद्धवीर सिंह जूदेव चंद्रपुर के विधायक रहेद्य कलेक्टर की कुर्सी छोड़ राजनीति के मैदान में भाग्य आजमाने वाले ओपी ने भी उसी खरसिया से सियासत की पारी शुरू की जहां से स्व. जूदेव ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पाई थीद्य
इस समय ओपी पूरे प्रदेश के दौरे में हैं। यात्रा के दौरान वे कांग्रेस सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड रहे हैं। जशुपर का दौरा जूदेव समर्थकों में ओपी के प्रति अपनेपन का बीजारोपण कर गयाद्य
प्रदेश स्तर के किसी नेता ने दो दशक बाद नई पीढ़ी को जूदेव के मूंछों की दांव की याद दिलाई है। बिलासपुर संभाग में भाजपा की कमजोर स्थिति की एक वजह जूदेव खेमे की नाराजगी भी मानी जाती है। अब ओपी चौधरी ने जशपुर में जूदेव के योगदानों का स्मरण कराकर उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश की है। जूदेव समर्थक जशपुर जिले की तीन सीटों समेत रायगढ़ जांजगीर में परिणाम किस तरह से प्रभावित करने की माद्दा रखते है, शायद ओपी ने इस गहराई को समझा। उन्होंने संभवत: इसीलिये जूदेव खेमे की बढ़ती नाराजगी को दूर करने की शुरुआत की हैद्य
जूदेव समर्थकों का तो कहना है कि जिस तरह से स्व. लखीराम अग्रवाल व स्व. दिलीप सिंह जूदेव की जोड़ी ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की जड़ों को मजबूत किया, उनके निधन के बाद रिक्त हुई जगह को औपी चौधरी और युद्धवीर सिंह जूदेव की जोड़ी भर सकती है।
मेरा जूता है जापानी...
छत्तीसगढ़ में अभी भारत-जापान के संबंधों पर काम करने वाले एक संगठन का दाखिला हुआ। कुछ हफ्ते या महीने पहले इसके लोगों का सरकार के साथ बातचीत का सिलसिला चला, जो अब किसी किनारे तक पहुंचा है। अभी आर्थिक एवं सांख्यिकी मंत्री अमरजीत भगत ने मंत्रालय में एक बैठक लेकर कलेक्टरों को जिम्मेदारी दी है कि कौशल विकास योजना के तहत छत्तीसगढ़ के युवाओं को जापानी भाषा सिखाई जाए।
अब कौशल विकास के तहत जो कुछ सिखाया जाता है उसके साथ एक शर्त यह भी जुड़ गई है कि उसके एक बड़े हिस्से को रोजगार दिलवाना होगा, और उसके सुबूत दाखिल करने होंगे, तभी उसे कौशल सिखाना माना जाएगा। अब सवाल यह है कि जो छत्तीसगढ़ी लोग सौ-पचास घंटे के किसी पाठ्यक्रम से जापानी भाषा का कामचलाऊ इस्तेमाल सीख भी लेंगे, उन्हें रोजगार कहां मिलेगा? छत्तीसगढ़ में सरकार के लाखों कर्मचारियों-अधिकारियों के अमले में जापानी के जानकार के लिए तो एक भी पद नहीं है, और न ही छत्तीसगढ़ से जापान जाकर काम करने की कोई संभावना अभी तक दिखी है, न ही जापानी लोग छत्तीसगढ़ बड़ी संख्या में आते हैं। ऐसे में दिल्ली में बसे किसी एक संगठन की दिलचस्पी को अगर यह राज्य जिला कलेक्टरों के मार्फत कौशल विकास कार्यक्रम पर थोप रहा है, तो उससे हासिल क्या होगा? कलेक्टरों के अधिकार इतने रहते हैं कि राज्य शासन के कहे हुए वे कौशल विकास के तहत या उसके बिना भी मंगल ग्रह की भाषा भी अपने जिलों में सिखा सकते हैं, जापानी का क्या है! अब दिक्कत यह है कि कौशल विकास की बड़ी सीमित सीमाओं के तहत एक ऐसी भाषा सिखाने का फैसला लिया गया है जिसके अभ्यास का भी कोई मौका इन लोगों को नहीं मिलेगा, और जब जापानियों को हिन्दी में काम करना होगा, तो वे सौ-पचास घंटे सीखे हुए लोगों के बजाय पांच बरस पढ़ाई करने वाले अनुवादकों से काम लेंगे। सरकार का यह फैसला आपाधापी में लिया गया दिखता है, और सरकार के कुछ लोगों ने हो सकता है कि जापान जाने की गुंजाइश इस संगठन के रास्ते देख ली होगी।
अगर सचमुच ही कोई भाषा सिखाकर छत्तीसगढ़ के लोगों को भाषा के हुनर से काम दिलवाना है तो सबसे आसान अंग्रेजी भाषा है जिसकी संभावनाएं हिन्दुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में हैं, और दुनिया के सबसे अधिक देशों में भी हैं। इस अखबार में कई बरस से इस बात की वकालत की जा रही है कि गांव-कस्बों के सरकारी स्कूल-कॉलेज के ढांचों में खाली वक्त में दिलचस्पी रखने वाले तमाम लोगों को अंग्रेजी सिखानी चाहिए ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके।
हवाईअड्डे की स्क्रीन पर छत्तीसगढ़ी
जब हमारा अलग राज्य बना तो छत्तीसगढ़ी भाषा को भी आगे ले जाने के लिये कोशिश की गई। छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लम्बे समय से हो रही है। राज्य बनने के बाद इसके लिये आंदोलन भी हुए। इस सूची में 28 भाषायें शामिल हैं, जिनमें से अनेक छत्तीसगढ़ी से कम बोली जाती हैं। राज्य बनने के बाद भी सन् 2003 के आसपास बोडो, डोंगरी, मैथिली, संथाली आदि को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का प्रदेश में गठन किया गया। सरकारी दफ्तरों में हिन्दी या अंग्रेजी की जगह छत्तीसगढ़ी को प्रयोग में लाने के लिये शब्दकोश तैयार किया गया। छत्तीसगढ़ी में दिये गये आवेदन को स्वीकार करने का विधानसभा से पारित शासकीय आदेश है। पर व्यवहार में यह राज्य की अधिकारिक भाषा नहीं बन पाई है। हां, लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ी बोली, परम्पराओं से जुड़े सवाल आने लगे है। प्रारंभिक कक्षाओं में छत्तीसगढ़ी के कोर्स भी रखे गये हैं।
इस बीच मोबाइल फोन के संदेश, रेलवे स्टेशन की उद्घोषणा छत्तीसगढ़ी को शामिल हो चुकी है। अब स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर में छत्तीसगढ़ी को महत्व मिला है। फ्लाइट्स की आने, जाने की सूचना अब हिन्दी और अंग्रेजी के साथ छत्तीसगढ़ी में दी जा रही है। कसडोल की विधायक शकुन्तला साहू ने इसे पहली बार देखा, तो आज इसकी तस्वीर ट्विटर पर डाली। और लिखा- ‘हमर रायपुर एयरपोर्ट मं जहाज आये-जाये के जानकारी छत्तीसगढ़ी भाषा मा मिलत हे!’ जाहिर है प्राय: इस पोस्ट का स्वागत ही किया गया है। पर एक यूजर ने यह टिप्पणी भी की- ‘भाषा नहीं, मैडमजी भाखा।’
आपत्ति तो जायज है। छत्तीसगढ़ी के जानकार बताते हैं कि छत्तीसगढ़ी में श, ष जैसे अक्षर नहीं हैं। लगता यही है कि जो जन्म से छत्तीसगढ़ी बोल रहे हों, उनके लिये भी इसे लिखना, पढऩा सहज नहीं है।
मंत्री के सामने बेलगाम अफसर
स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह इस बार नहीं चूके। सरगुजा जिले के प्रतापपुर के आदिवासी बालक आश्रम केवरा का उद्घाटन उनको अंधेरे में रखकर करा लिया गया। 50 बिस्तरों वाले इस आश्रम के लिये 1.62 करोड़ रुपये मंजूर किये गये थे। बिल्डिंग का लोकार्पण करने पहुंचे तो उनका सामना एक वृद्धा रामबाई पंडो से हुआ, जिसने बताया कि आश्रम के लिये उनकी बाड़ी की जगह को ले लिया गया है। जमीन उसने इस शर्त पर दिया कि उसे तीन कमरों का एक पक्का मकान बनाकर पीडब्ल्यूडी वाले और ठेकेदार देंगे। लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया। वह बेघर हो गई है। उसे प्रधानमंत्री आवास भी नहीं मिला है। मंत्री ने अधिकारियों को वादाखिलाफी के लिये फटकारा और निर्देश किया कि जब तक उसके लिये मकान नहीं बना देंगे तब तक वह इसी आश्रम में रहेगी। इसके बाद मंत्री का ध्यान बिल्डिंग की ओर गया। उन्होंने पाया कि बिल्डिंग में तो अभी काफी काम बाकी है। उनके हाथों आधे-अधूरे भवन का ही उद्घाटन करा लिया गया है। नाराज मंत्री ने पानी नहीं पिया, स्वागत सत्कार के लिये भी नहीं रुके और वापस हो गये।
याद होगा, बीते 27 जनवरी को मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह बलरामपुर जिले में महिला बाल विकास विभाग ने सामूहिक विवाह कराया था। वहां वर-वधू को घटिया घरेलू जरूरत के सामान बांटे गये। खुद पंचायत प्रतिनिधियों ने इसकी शिकायत वहीं पर मंत्री से की, पर उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया था। लेकिन, इस बार तेवर कुछ कड़े दिखे। अब बाद में मालूम होगा कि पंडो आदिवासी वृद्धा के लिये पीडब्ल्यूडी ने मकान बनाना शुरू किया या नहीं और छात्रावास में उसे रहने दिया जा रहा है या नहीं।
‘भारत-दर्शन’ पर ग्रहण
बीते साल जब कोविड-19 का प्रकोप बढ़ा तो लोगों का पूरा ग्रीष्मकालीन अवकाश घरों के भीतर कैद में बीता। लॉकडाउन के चलते महीनों, ट्रेन, बसें नहीं चली। पर्यटन को तो लोग भूल ही गये। अक्टूबर माह में जब कोरोना संक्रमण की रफ्तार कुछ कम हुई तो रेलवे की सहयोगी आईआरसीटीसी ने ‘भारत दर्शन’ पर्यटन ट्रेन की घोषणा की। कोरोना का भय और आर्थिक संकट के बीच बहुत कम लोगों ने इस ट्रेन में सफर करने में रुचि दिखाई। तब आईआरसीटीसी ने तय किया कि 50 प्रतिशत सीटें भी भर जाती हैं तो वह यह यात्रा निकालेगी। जानकारी के मुताबिक 300 सीटों की बुकिंग हो भी गई थी। इनमें 150 से ज्यादा छत्तीसगढ़ से थे। कुछ ही सीटें और भरती तो आईआरसीटीसी का लक्ष्य हासिल हो जाता। पर, ऐन मौके पर संक्रमण फिर बढऩे लगा है। पता चला है कि वैष्णो देवी, अयोध्या आदि के लिये प्रस्तावित इस ट्रेन के 90 यात्रियों ने टिकट रद्द करा लिये हैं। इनमें से ज्यादातर नागपुर के हैं, जहां इस समय लॉकडाउन चल रहा है। ऐसे में 31 मार्च को निर्धारित सफर शुरू हो पायेगा या नहीं इस पर शंका है। आईआरसीटीसी ने मुख्यालय से पत्र व्यवहार शुरू किया है और पूछा है कि क्या करें? कम यात्रियों में तो ट्रेन चलाना घाटे का सौदा होगा। वैसे भी कोरोना के बाद हुए नुकसान के चलते यात्री ट्रेनों, प्लेटफॉर्म टिकटों के दाम में बेतहाशा वृद्धि की गई है, फिर घाटे की ट्रेन क्यों चलाई जाये? फैसला अभी नहीं हुआ है।
कलेक्टर से कोरोना खौफ खाती है?
प्रदेश में कल 850 से अधिक कोरोना पॉजिटिव केस आये, 12 लोगों की मौत भी 24 घंटे के भीतर हो गई। कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर केबिनेट की बैठक भी हुई है जिसमें नये सिरे से गाइडलाइन का पालन करने में सख्ती बरतने का फैसला हुआ है। सार्वजनिक स्थल पर मास्क नहीं पहनने और सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं करने पर एफआईआर की बात हुई है। कई मंत्री, अधिकारी जो कुछ दिन पहले तक मास्क के बगैर घूमने लगे थे, वे भी अब दुबारा ठीक तरह से मास्क पहन रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में मास्क के बगैर एंट्री भी नहीं हो रही है। मतलब, दुबारा कोरोना का प्रकोप फैलने में अपनी ओर से कोई गलती न हो इसकी कोशिश हर कोई कर रहा है।
पर एक कलेक्टर इन सबसे इत्तेफाक नहीं रखते। वे अक्सर बिना मास्क पहने हुए ही दफ्तर में बैठते हैं, दौरा करते और बैठकें लेते हैं। उन्होंने अपने जिले के करीब दो दर्जन अधिकारियों की कल बैठक ली तो सोशल डिस्टेंस उनके बीच खैर था नहीं, पर अधिकांश ने मास्क पहने थे। हमेशा की तरह कलेक्टर ने मास्क पहनने की जरूरत नहीं समझी। यह स्थिति तब है जब वे खुद एक बार कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। अभी एक और, जांजगीर-चाम्पा के कलेक्टर कोरोना के चलते होम आइसोलेशन में भी हैं। प्रदेश के कई आईएएस, आईपीएस अफसर भी कोरोना झेल चुके हैं। सरकार ने कलेक्टरों को ही जिम्मेदारी दी है कि वे जिले में कोरोना से बचाव के लिये तय की गई गाइडलाइन का पालन करायें, लेकिन जब वे खुद पहनने के लिये तैयार नहीं हैं तो उनकी अपील कौन सुनेगा?
गोबर के प्रोडक्ट कितना लाभ दिलायेंगे?
करीब सालभर पुरानी गोधन योजना के तहत प्रदेश में 324 ऐसे पशुपालक हैं जिन्हें गोबर बेचने पर एक लाख रुपये से अधिक की आमदनी हुई। इसी तरह 7 हजार से अधिक ऐसे हितग्राही हैं, जिन्हें 25 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक की आय हुई। खरीदी और भुगतान पारदर्शी हो इसके लिये गोबर बिक्री की रकम सीधे हितग्राहियों के बैंक एकाउन्ट में डाली जाती है। इस योजना की दूसरे राज्यों के बाद केन्द्र सरकार भी तारीफ कर चुकी है।
अब तक गोबर खरीदकर 80 करोड़ रुपये का भुगतान सरकार कर चुकी है। खाद, गो काष्ठ आदि बनाने वालों को भी सरकार की तरफ से ही मजदूरी भी दी जा रही है। इस भुगतान को सहायता के रूप में दिया जा रहा हो तो अलग बात है, पर देखना यह होगा कि स्व-सहाया समूह गो काष्ठ, दीये, वर्मी कम्पोस्ट, आदि बेचकर क्या इस स्थिति में आ पाते हैं कि गोबर की रकम का भुगतान सरकार को न करना पड़े। गोबर खरीदी सरकारी सहायता न होकर एक फायदेमंद कारोबार में बदल सके?
मास्क पहनकर होली कैसे?
बीते साल की होली के वक्त कोरोना का खौफ तो शुरू हो चुका था पर दूरी बनाकर रखने का नियम लागू नहीं हुआ था। इसलिये कुछ ने खौफ में तो कुछ ने बेफिक्री में होली मना ली थी। पर इस बार बड़ी अजीब स्थिति है। कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसा कोई चमत्कार हो नही सकता कि होली के पहले अचानक वह गायब हो जाये। बचने के लिये सबसे जरूरी बताया गया है मास्क लगाना और शारीरिक दूरी रखना। ठीक उल्टे, होली के लिये सबसे ज्यादा जरूरी है चेहरे पर गुलाल मलना और गले लगना। अब कोरोना से दो-दो हाथ करें या इस प्रेम, व्यवहार से बचें।
कल प्रदेशभर के प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक हुई। इसमें यह निर्देश तो दिया गया कि त्यौहार पर कोरोना से बचाव के उपायों को ढीला न होने दें। पर सीधे नहीं कहा गया कि होली न मनायें। ऐसा आदेश शायद लोगों को नाराज कर देगा। फिर भी, दूरे से रंग डालने, होलिका जलाने और फाग गाने का विकल्प तो बचा हुआ है ही।
सरकारी घोषणाओं का फैक्ट चेक
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी सूचनाओं की बाढ़ आई हुई है। किसी नेता या दल की छवि बिगाडऩे, ऊपर उठाने के लिये पोस्ट तो की ही जाती है, लोगों को नौकरी, ऋ ण, भत्ते आदि का प्रलोभन देकर ठगी करने का मकसद भी होता है। फर्जी पोस्ट, फेक न्यूज़ की बाढ़ आने के बाद अब अनेक न्यूज पोर्टल इसके लिये अलग सेक्शन बना रखे हैं। कुछ न्यूज पोर्टल तो फैक्ट चेक का ही काम कर रहे हैं। पर इस काम में अब केन्द्र सरकार की खबर देने वाली एजेंसी पीआईबी शामिल हो गई है। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर पीआईबी, फैक्टचैक या फैक ट्री के जरिये वह सरकार की छवि बिगाडऩे वाली झूठी सूचनाओं की असलियत बता रही है। इनमें कुछ ऐसे पोस्ट भी हैं, जिनमें सरकार की योजनाओं का हवाला देकर बेरोजगारों से पैसे मांगे जा रहे हैं। ऑनलाइन फास्टैग बनवाने की बात की जा रही है। कोरोना वैक्सिनेशन के लिये भ्रामक गाइडलाइन बताई जा रही है। आरटीआई से मिली सूचनाओं को तोड़-मरोडक़र डाला जा रहा है।
भले ही निजीकरण, बेरोजगारी, महंगाई, किसान आंदोलन, रेल किराया आदि के मुद्दे पर लोगों को सरकार के खिलाफ गुस्सा हो पर इसके बहाने झूठी खबरें तो लोगों को सरकार के खिलाफ और ज्यादा भडक़ायेगी। शायद, इसीलिये पीआईबी को अपने खुद का फैक्ट चैक करने के लिये कमर कसी है।
संचार की गांधीगिरी...
यह किस्सा रायपुर के मोवा-कांपा एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल का है। स्कूल प्रबंधन ने पहले 9वीं और 11वीं की ऑफलाइन परीक्षा कराने का निर्णय लिया था। मगर कोरोना के चलते विद्यार्थी इसके लिए तैयार नहीं हुए, वे ऑनलाइन परीक्षा लेने पर जोर दे रहे थे। विद्यार्थियों ने प्राचार्य से चर्चा करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया। इसके बाद सभी विद्यार्थियों ने एक राय होकर प्राचार्य को फोन करना शुरू किया।
प्राचार्य और स्कूल स्टॉफ ने विद्यार्थियों का फोन उठाना भी बंद कर दिया। इसके बाद विद्यार्थियों ने रोज मेल भेजना शुरू कर दिया। सैकड़ों की संख्या में मेल भेजा जाने लगा। विद्यार्थियों की जिद थी कि ऑनलाइन परीक्षा हो, और उन्होंने लिखा भी कि ऑफलाइन परीक्षा नहीं देंगे। आखिरकार विद्यार्थियों की जिद के आगे प्रबंधन को झुकना पड़ा, और परीक्षा शुरू होने के चार दिन पहले ऑनलाइन परीक्षा लेने पर सहमति दे दी।
बस नाम ही काफी है!
कई ऐसे मौके आते हैं जब लोगों का नाम उनके पते से बड़ा हो जाता है। रायपुर के एक प्रमुख नेत्ररोग चिकित्सक डॉ. दिनेश मिश्रा लगातार अंधश्रद्धा निवारण में लगे रहते हैं, और इसके लिए छत्तीसगढ़ के बाहर भी दूसरे राज्यों में जाकर वहां लोगों का अंधविश्वास मिटाने का काम करते हैं। जाहिर है कि उनके पास देश भर से चि_ियां आती हैं, फोन आते हैं, लोग अपने सामाजिक बहिष्कार का दर्द बताते हैं, या अंधविश्वास के तहत किसी और किस्म की प्रताडऩा का रोना रोते हैं। अब उनके नाम पर आने वाली चि_ियों का हाल यह हो गया है कि सिर्फ नाम और शहर का नाम लिखा रहे, तो भी डाकिये चि_ी उनके पते पर पहुंचा देते हैं। और कई चि_ियां तो ऐसी पहुंचती हैं जिनमें सिर्फ उनका नाम और संस्था का नाम लिखा है, शहर का नाम भी नहीं लिखा है, दूसरे राज्य से पोस्ट की गई है, तो भी बिना शहर के नाम, बिना पिनकोड के चि_ी डॉ. दिनेश मिश्रा को पहुंच जाती है।
15 दिन से एक भी दिन कम नहीं
कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी जब जांजगीर कलेक्टर कोरोना संक्रमित हो गये। डब्ल्यूएचओ व स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों ने सफाई दी कि कोरोना से बचाव की एंटीबॉडी डेवलप होने में कम से कम 15 दिन लगते हैं। अब एक नया केस इसी तरह से सामने आया है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि 15 दिन यानि 15 दिन। उससे एक दिन भी कम नहीं। दरअसल, कोटा ब्लॉक में कार्यरत स्वास्थ्य विभाग की एक वारियर्स ने कोरोना के दोनों डोज लिये। दूसरा डोज उन्होंने 25 फरवरी को लिया, पहला डोज जाहिर है इससे 28 दिन पहले लिया। 12 मार्च को उनकी कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। यानि दूसरा डोज लेने के 15 दिन बाद। आरटीपीसीआर से संदेह दूर नहीं हुआ तो एंटिजन टेस्ट भी किया गया। रिपोर्ट नहीं बदली।
अब सवाल उठने लगा कि क्या 15 दिन बीत जाने के बाद भी कोरोना से उनका बचाव नहीं हो सका। इससे उन स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी भय सताने लगा जिन्होंने दो डोज समय पर ले लिये। इस पर स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि दूसरे डोज के 12वें, 13वें दिन से ही इस केस में महसूस होने लगा था कि तबियत खराब चल रही है। यानि 15 दिन पूरे नहीं हुए थे। जांच रिपोर्ट की तारीख ही आगे की है। इसका मतलब यह है कि कोरोना की वैक्सीन काम करेगी पर 15 दिन बाद ही, उससे पहले बिल्कुल संभावना नहीं।
कोरोना से सफाई का कोई लेना-देना नहीं
रेल यात्री न केवल बढ़े हुए किराये पर बल्कि साफ-सफाई को लेकर बुरा अनुभव हासिल कर रहे हैं। स्टेशन में ट्रेनों के रुकते ही पहले शौचालय और प्रवेश द्वार पर तैनात सफाई कर्मचारी काम पर लग जाते थे। पर अब ऐसा दिखाई नहीं देगा। किसी बोगी में कचरा पड़ा है तो वह आपकी यात्रा पूरी होने तक आपके साथ ही चलेगा। कोचों की धुलाई कई-कई दिन नहीं हो रही।
मालूम हुआ कि कोरोना संक्रमण के दौर में निजी सफाई कर्मचारियों को जो हटाया गया तो फिर दुबारा वापस नहीं रखा गया। बहाना ट्रेनों की संख्या घटने का बनाया गया था। कम्पनी वैसे भी मामूली वेतन दिया करती हैं, समय पर भी नहीं देती, जिसके चलते कई बार आंदोलन हुए।
अब इन कर्मचारियों को आत्मनिर्भर बना दिया गया है यानि ज्यादातर की सेवायें छीन ली गई। यात्रियों को भी आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। अपनी बर्थ साफ रखें या फिर कचरा फैलाते हैं तो खुद ही सफाई भी करें। प्रधानमंत्री का जोर स्वच्छता पर है पर रेलवे का रोना यह है कि कोरोना के चलते आमदनी घट गई। बढ़े हुए किराये और रिकॉर्ड माल लदान से भी इसकी इतनी कमाई नहीं हो पा रही है कि सफाई व्यवस्था पहले की तरह फिर बहाल हो। कोरोना से बचाव के लिये स्वच्छता जरूरी है, पर वह प्लेटफॉर्म घुसने वालों का तापमान नापने तक ही सीमित है।
भागीरथी की जलेबी
छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख साहित्यकार ने रायपुर की एक पुरानी विख्यात जलेबी-दूकान की यादें ताजा करते हुए आज दोपहर फेसबुक पर लिखा है- भागीरथी की जलेबी रायपुर की एक पुरानी पहिचान-
रायपुर एक शहर है। अब दो हो गया। इसके भीतर एक और शहर आ गया -नवा रायपुर। पहले वाला पुराना हो गया।
‘भागीरथी की जलेबी’ पुराने शहर की एक पुरानी पहिचान है। इसके साथ मुझ जैसे पुराने किस्म के शौकी लोगों की जान-पहिचान है। ये जान-पहिचान अब कोई 40-50 बरस पुरानी तो होने ही आयी। तब यह पुरानी दुकान देखने में भी पुरानी दिखती थी, और इसकी गद्दी पर बैठा हुआ भागीरथी भी अपनी पुरानी दुकान की तरह पुराना दिखता था।
उन दिनों हम जैसे चटोर किस्म के लोग रायपुर के अपने कार्यक्रम में ‘भागीरथी’ की जलेबी और दही को जोडक़र यहां आते थे। लेकिन इस बार कोई 40-50 बरस बाद इस दुकान पर आने का मौका मिला।
पुरानी दुकान बिल्कुल नई हो चुकी है, और आज के दिनों के साथ चल रही है। अब तो इसकी जलेबी की ऑनलाइन बुकिंग होने लगी है।और होम डिलीवरी सेवा भी शुरू हो गयी है। यह सब उसके साइनबोर्ड पर लिखा हुआ है। पुरानी दुकान को साइन बोर्ड की जरूरत नहीं थी। लेकिन अब, साइनबोर्ड नहीं होता तो मुझ जैसा पुराना आदमी दुकान को पहिचान भी नहीं पाता।
दुकान जरूर नई हो गयी है।लेकिन जलेबी उन्हीं पुराने दिनों की है। पुराने दिनों वाले अपने उसी स्वाद को सहेजे हुए।
अब भगीरथी की तीसरी पीढ़ी ने इस पुरानी दुकान को सम्हाल लिया है। सुबोध और सुबोध के बेटे ने। दुकान के साथ दुकान के पुराने दिनों को भी। सुबोध ने उन पुराने दिनों के साथ पुरानी जान-पहिचान वाले अपने एक पुराने ग्राहक को भी पहिचान लिया।
उसने मुझे पहले कभी नहीं देखा होगा। लेकिन पुरानी दुकान का पता ढूंढते हुए पहुंचने वाले एक ग्राहक को पहिचान लेने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुयी।
उस समय गरम गरम और रसभरी जलेबियां निकल रही थीं। अपने, उन्हीं दिनों के स्वाद के साथ। मुझे भी भरोसा हो गया कि यह, वही पुरानी दुकान है।
बृजमोहन के घर रौनक..
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के सरकारी बंगले में काफी समय बाद रौनक देखने को मिली। रविवार को बृजमोहन के बेटे अभिषेक की पुत्री के नामकरण संस्कार के मौके पर आयोजित रात्रिभोज में भाजपा के तमाम बड़े नेता जुटे। इसमें प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के साथ ही सौदान सिंह की जगह लेने वाले शिवप्रकाश भी शामिल हुए।
रात्रि भोज में करीब डेढ़ सौ लोग ही थे, जिसमें पार्टी के सभी विधायक, सीनियर नेता नंदकुमार साय और प्रदेश के पदाधिकारी भी थे। सबसे पहले शिवप्रकाश पहुंचे, उन्हें कोलकाता जाना था इसलिए वे बृजमोहन के परिवारों के सदस्यों से मेल मुलाकात कर जल्द निकल गए। प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी काफी देर तक बंगले में रहीं, और इस दौरान वे धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, और नारायण चंदेल से बतियाती रहीं।
पूर्व सीएम रमन सिंह भी रात्रि भोज में पहुंचे थे, लेकिन उस समय तक ज्यादातर नेता जा चुके थे। पुरंदेश्वरी को बंगले का वातावरण खूब भाया, और उन्होंने इसकी तारीफ भी की। ये अलग बात है कि उनके बंगले पर पहले काफी किचकिच हो चुकी है, और पार्टी के भीतर बृजमोहन विरोधियों ने पार्टी हाईकमान के संज्ञान में भी लाया है। दबी जुबान में भूपेश सरकार से सांठ-गांठ के आरोप भी लगे।
भाजपा सरकार के जाते ही स्वाभाविक तौर पर सभी मंत्रियों को बंगला छोडऩा पड़ा था। सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल अपवाद रहे। न सिर्फ उन्हें बंगला रखने दिया गया, बल्कि उनके ज्यादातर स्टॉफ को भी साथ रहने दिया गया। रमन सिंह को तो देरी से बंगला खाली करने पर काफी उलाहना झेलनी पड़ी थी। अब जब प्रदेश प्रभारी खुद बंगले की तारीफ कर रही हैं , तो बाकी की आलोचनाओं का फर्क नहीं पड़ता है।
मेले में दो गज की दूरी...
लोगों को एक जगह एकत्र होने की गतिविधियों पर कोरोना संक्रमण के चलते बीते साल बड़ी रोक रही। आज जब देश में एक ही दिन में 26 हजार से ज्यादा मामले आये, 161 मौतें दर्ज हो हुईं, तब भी दुबारा पकड़ रही जिन्दगी की रफ्तार पर कोई ब्रेक नहीं लगाना चाहता। कोरोना संकट दूसरी बार गहराने जा रहा है पर, किसी की भी राय नहीं बन रही है कि लॉकडाउन दोबारा हो, क्योंकि वह भी बेहद कष्टदायक है। बाजार, सार्वजनिक परिवहन सेवायें, फैक्ट्रियां, सरकारी, गैर सरकारी दफ्तर, धर्मस्थल में गतिविधियों पर रोक लगाने की मन:स्थिति नहीं बन रही है। दूसरी लहर में सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी कहा है कि वे मजबूरी में लॉकडाउन करने का आदेश दे रहे हैं। लोग सावधानी रखें तो इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
छत्तीसगढ़ में हाल ही में राजिम मेला लगा, इसके अलावा भी अनेक गांवों, कस्बों में माघ मेले आयोजित किये गये। तब कोरोना के कम ही मामले थे। अब 18 मार्च से गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी में तीन दिन का मेला है। प्रशासन ने यह निर्देश तो निकाल दिया है कि कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होंगे, लोग दो गज शारीरिक दूरी, मास्क, सैनेटाइजर जैसे दूसरे नियमों का पालन करें। यह भी सलाह दी गई है कि लोग दर्शन करें, आशीर्वाद लें और लौट जाये। मेला स्थल पर रात्रि विश्राम न करें। कोई भी आयोजन जिसमें हजारों लोग शामिल हो रहे हों, प्रशासन के लिये इन नियमों का पालन कराना तो बेहद कठिन है। जरूरत लोगों को खुद ही सतर्क रहने और जिम्मेदारी समझने की है। उम्मीद कर सकते हैं कि जैसे बाकी धार्मिक, सामाजिक समारोहों में कोई सामूहिक कोरोना केस अब तक प्रदेश में नहीं आया, यह मेला भी बिना किसी चुनौती समाप्त होगा।
वहां स्टेडियम, यहां अस्पताल
अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर किया गया तो लोगों ने आपत्ति की और कहा कि यह तो सरदार पटेल का अपमान है। गुजरात सरकार की ओर से सफाई आई कि स्पोर्ट्स एनक्लेव का नाम तो अब भी सरदार के ही नाम पर है, उसके भीतर का मोंटेरा स्टेडियम, मोदी के नाम किया गया।
अब इसी तरह की बात जगदलपुर में भी हो गई है। यहां के मेडिकल कॉलेज का नाम स्व. बलिराम कश्यप के नाम पर भाजपा शासनकाल में रखा गया। पर अब यहां के हॉस्पिटल का नाम स्व. महेन्द्र कर्मा के नाम पर कर दिया गया है। भाजपा ने इस पर विरोध दर्ज कराया है। प्रशासन का कहना है कि मेडिकल कॉलेज का नाम तो बदला ही नहीं गया। वह तो स्व. कश्यप के नाम पर पहले की तरह ही है। स्व. कर्मा का नाम तो उसके भीतर बनाये गये अस्पताल का रखा गया है। छत्तीसगढ़ के पहले, रायपुर के मेडिकल कॉलेज का नाम नेहरू के नाम पर है, लेकिन उसके अस्पताल का नाम आंबेडकर के नाम पर है.
वैसे स्व. कर्मा के चाहने वाले भी नाराज हैं मगर वजह दूसरी है। बस्तर विश्वविद्यालय का नाम कई माह पहले स्व. महेन्द्र कर्मा के नाम पर करने की घोषणा की गई थी लेकिन अब तक सभी सरकारी पत्राचार बस्तर विश्वविद्यालय के नाम पर हो रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि जब तक अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित नहीं हो जाती, नाम नहीं बदला जा सकता। वैसे यह सहज सवाल उठता है कि जब केबिनेट की अगस्त 2020 में हुई बैठक में इस विषय पर प्रस्ताव पारित हो चुका है तो अब तक राजपत्र में प्रकाशन क्यों नहीं हुआ?
असम इतना करीब कभी नहीं लगा
छत्तीसगढ़ से असम पहले कभी इतना करीब महसूस नहीं हुआ। कांग्रेस नेताओं का जिस रफ्तार से आना जाना इन दिनों हो रहा है उससे लग रहा है कि गुवाहाटी कितना नजदीक है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले भी वहां का दौरा चुनाव अभियान के सिलसिले में कर चुके हैं और इस समय तीन दिन के लिये फिर वहां है और चुनावी सभायें ले रहे हैं। आज चार-पांच विधायक रवाना हो गये, कल भी इतने ही विधायक और निकलने वाले हैं। करीब आधा दर्जन मंत्रियों को भी असम के लिये लगेज तैयार रखने कहा गया है। मुख्यमंत्री के सभी सलाहकार दौरा करके आ चुके हैं। प्रदेश के अनेक युवा और अनुभवी नेताओं ने करीब-करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में बूथ मैनेजमेंट का वहां के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया। विधायकों के साथ भी अऩेक लोग जा रहे हैं। एक कांग्रेस नेता के मुताबिक वहां इस समय 500 से अधिक कार्यकर्ता चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ लोग बिना बुलाये भी पहुंच रहे हैं ताकि उनका नंबर भी लगे हाथ बढ़ जाये।
असम में लम्बे समय तक कांग्रेस की सरकार रही, पर इस समय भाजपा है। भाजपा को पश्चिम बंगाल की तरह वहां पर, दूसरे प्रदेश के नेताओं की खास जरूरत नहीं पड़ रही है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह वहां सभायें ले रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को इतने बड़े पैमाने पर केन्द्रीय नेतृत्व ने जिम्मेदारी दी है तो इसका मतलब है कि वह सन् 2018 के चुनाव और बाद हुए उप-चुनावों के परिणाम को लेकर काफी प्रभावित है. असम में भी वह छत्तीसगढ़ के नेताओं के भरोसे ऐसे ही किसी नतीजे की उम्मीद में है। यदि भाजपा के हाथों से सत्ता छिन जाती है तो यह तय है कि प्रदेश के कांग्रेस नेताओं का कद बढ़ेगा और आगे यह प्रयोग दूसरे राज्यों में भी अपनाया जायेगा।
सत्ता की बर्बादी के तरीके
सत्तारूढ़ कुछ विधायकों के तेवर से अफसर हलाकान हैं, और इनके कारनामों की शिकायत शीर्ष स्तर पर पहुंची है। ऐसे ही एक विधायक ने तो जब्त बेशकीमती लकड़ी को छुड़वाने के लिए अफसरों पर इतना दबाव बनाया कि मंत्रीजी को हस्तक्षेप करना पड़ा। मंत्रीजी ने विधायक को समझाया कि जब्त लकड़ी को वापस करने से गलत मैसेज जाएगा। तब कहीं जाकर विधायक महोदय शांत हुए।
विधायकों का अपने करीबियों को टेंडर दिलाने के लिए अफसरों पर दबाव बनाने की कई शिकायतें सामने आ रही हैं। जबकि सरकार ने शिक्षित बेरोजगारों को काम देने के लिए नीति बनाई है, जिसमें उन्हें सीमित प्रतिस्पर्धा से निर्माण कार्यों के ठेके दिए जा सकते हैं। ऐसे ही एक प्रकरण में रायपुर के एक बेरोजगार इंजीनियर को पड़ोस के जिले में काम मिल गया। इसके बाद पड़ोसी विधायक ने दबाव बनाया कि स्थानीय व्यक्ति को ही ठेका दिया जाए।
अफसरों ने उन्हें समझाया कि टेंडर प्रक्रिया ऑनलाइन होती है, और बिना कोई ठोस कारण के टेंडर निरस्त नहीं किया जा सकता। काफी समझाइश के बाद विधायक महोदय थोड़े नरम पड़े। अफसरों की समस्या यह है कि कोरोना काल में विभागीय बजट में 30 फीसदी तक की कटौती कर दी गई है। इससे निर्माण कार्य बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। और जो थोड़े बहुत टेंडर निकल रहे हैं, उसमें भी राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से कार्य में देरी हो रही है।
अब स्वास्थ्य मंत्री की बारी
को-वैक्सीन को लेकर केन्द्र के साथ हुई तनातनी अब खत्म हो सकती है। केन्द्र की ओर से इसे जब भेजा गया तो तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ था, साथ ही टीका लगवाने वालों को एक सहमति पत्र भी देना था कि यदि इसका कोई साइड इफेक्ट हुआ तो इसके लिये स्वास्थ्य विभाग जिम्मेदार नहीं होगा और मरीज किसी तरह के क्लेम का दावा नहीं कर सकेगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका इस्तेमाल करने से मना कर दिया। भाजपा ने इसे स्वदेशी का विरोध बताया, क्योंकि यह वैक्सीन पूरी तरह देश में ही तैयार हुई है। स्वास्थ्य मंत्री ने स्वास्थ्य मंत्री ने बाद में कहा कि वे अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप तीसरे चरण का ट्रायल होने के बाद पहले व्यक्ति होंगे जो को वैक्सीन लगवायेगा। अब जब भारत के औषधि नियंत्रक ने इसके तीसरे चरण के ट्रायल हो जाने तथा सहमति पत्र भरवाने की जरूरत नहीं होने की घोषणा की है, को-वैक्सीन की बंद बक्से खुलने के आसार हैं। और, जैसा स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था, सबसे पहला टीका भी शायद उनको ही लगे।
ताकि वैक्सीन को लेकर भ्रम न फैले..
कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी जांजगीर के कलेक्टर यशवंत कुमार की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। उऩ्होंने दोनों डोज लेने के बाद तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लोगों से भी वैक्सीन लगवाने की अपील की थी और वैक्सीन को सुरक्षित बताया । किसी आम मरीज की यदि इसी परिस्थिति में पॉजिटिव रिपोर्ट आती तो शायद खबर चारों तरफ नहीं फैलती। आईएएस को ही टीका लगने के बाद कोरोना पीडि़त लोगों को हैरान कर दिया और दवा के असर पर सवाल उठने लगे। पर शाम आते-आते विश्व स्वास्थ्य संगठन की छत्तीसगढ़ यूनिट के डॉक्टरों ने बता दिया कि वैक्सीन लगवाने के 15 दिन बाद शरीर में एंडिबॉडी विकसित होती है। वैक्सीन पर लोगों का भरोसा कायम रहे इसलिये जरूरी था कि कलेक्टर भी अपनी प्रतिक्रिया देते। उन्होंने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर यही बात दोहराई। यह इसलिये भी जरूरी था कि वैक्सीन लगवाने के लिये बुजुर्गों में काफी उत्सुकता दिखाई दे रही है। अपनी बारी के लिये उन्हें चार-चार, पांच दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। कोरोना वैक्सीन के प्रति लोगों का विश्वास दिख रहा है तब ऐसी खबर प्रशासन को बेचैन तो करने वाली ही थी।
बाघ की खाल के सफेदपोश सौदागर
जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के पास जब बाघ की खाल बेचने वालों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया तो उस समय अनुमान नहीं लगा होगा कि कितना बड़ा रैकेट काम कर रहा है। अब भी ऐसा लग रहा है कि यह ऐसे लोगों का बड़ा गिरोह है जिसमें वे लोग शामिल हैं जो पद और प्रभाव रखते हैं।
बाघ का शिकार और उसके खालों, अंगों की तस्करी का धंधा वे बेखौफ करते आ रहे हैं। गिरफ्तार लोगों में बीजापुर में तैनात पांच पुलिस वालों सहित आठ लोग शामिल हैं। शनिवार को 6 और लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस तरह से कुल गिरफ्तारी 14 हो गई है। सबको जेल भेज दिया गया है। दो एएसआई फरार भी बताये जा रहे हैं।
यह कम हैरान करने वाली बात नहीं है कि पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग में काम करने वाले, अधिकारी, कर्मचारी व संविदा नियुक्ति वालों का ऐसा संगठित गिरोह काम कर रहा था। ये गिरफ्तारियां राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अभिकरण (एनटीसीए) की एक महिला अधिकारी द्वारा खरीदार बनकर बिछाये गये जाल से मुमकिन हुआ । पुलिस के तो अपने लोग लिप्त थे मतलब बीजापुर, जगदलपुर में तैनात पुलिस वालों में से बहुतों को यह पता रहा होगा। ऊंगली तो थानेदार पर भी उठ रही है। एनटीसीए तक खबर पहुंची इसका मतलब यह है कि बाघ का यह पहला शिकार नहीं होगा। पहले से न केवल बाघ बल्कि दूसरे जंगली प्राणियों के शिकार होते आ रहे होंगे। इस गंभीर मामले पर अब तक वन विभाग के किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पर क्या वन विभाग के अधिकारियों का, जिन्हें भारी भरकम वेतन और सेटअप जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिये ही दिया जाता था, वे भी इस धंधे से बेखबर थे और उनका दामन पाक-साफ होगा?
अधिकारी-कर्मचारियों की अधूरी मांगें
इन दिनों सरकारी कर्मचारियों, अनियमित, अस्थायी कर्मचारियों. विद्या मितानिन, रोजगार सहायक, स्वास्थ्य संयोजक का आंदोलन चल रहा है। बजट में उनकी उम्मीदों के अनुरूप कुछ नहीं हुआ। तृतीय वर्ग कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग कर रहे हैं। हाल ही में उनका बड़ा प्रदर्शन रायपुर में हुआ। अनेक विभागों में कर्मचारी संविलियन पर रखे गये हैं, जिनको नियमित करना सरकार के वादे में शामिल था। अब सरकार ने बता दिया है कि संविलियन को लेकर कोई भी प्रस्ताव उसके समक्ष फिलहाल विचाराधीन नहीं है। मंत्री रविन्द्र चौबे ने कर्मचारी अधिकारियों को धीरज से काम लेने की सलाह दी है। कहा है कि कोरोना के चलते सरकार की राजस्व प्राप्ति घटी है।
वैसे तो अधिकारियों, कर्मचारियों की कुछ न कुछ मांगें हर सरकार में चलती रहती है, पर इस बार जिन मांगों को वे उठा रहे हैं उनमें से अधिकांश तो चुनावी घोषणा में शामिल थे। सरकार थोड़ा-थोड़ा देकर संतुष्ट करने की नीति पर काम कर रही है, जैसे हाल ही में शिक्षा विभाग व पुलिस में नई भर्तियों को मंजूरी देना। शासकीय सेवकों की मांग को नजरअंदाज करना वैसे किसी भी सरकार के लिये कठिन होता है, देर जितना होगा, असंतोष उतना बढ़ेगा। देखें उनकी कितनी मांगें, कब तक पूरी हो पायेंगीं।
चेंबर में भी राजनीतिक-गंदगी पहुंची
चेम्बर के चुनाव एक वक्त कारोबारी तबके के भीतर के होते थे, लेकिन अब राजनीतिक दल सुरंग खोद-खोदकर इस चुनाव में घुस चुके हैं, और उसी का नतीजा है कि चुनाव के तौर-तरीके भी पेशेवर राजनीतिक तौर-तरीकों जैसे हो गए हैं।
चेंबर चुनाव के एक पैनल के कारोबारी राजेश वासवानी ने अभी पुलिस रिपोर्ट की है कि भाटापारा के एक व्यापारी गिरधर गोविंद दानी से उनकी दो महीने पहले बात हुई थी। इस बातचीत को उसने रिकॉर्ड किया, और एडिट करके उसे राजेश वासवानी के खिलाफ चारों तरफ फैलाया। किसी की बातचीत को काट-छांटकर उसे किसी बुरी नीयत से फैलाना एक साइबर क्राईम है, और चेंबर चुनाव में साइबर क्राईम की दखल हो चुकी है, अब देखना है कि पुलिस की कार्रवाई पहले हो पाती है, या चुनाव पहले निपट जाता है।
अब यहां दो चीजें तमाम कारोबारियों के लिए सोचने की रह जाती हैं। राजेश वासवानी प्रदेश के एक सबसे बड़े मोबाइल फोन कारोबारी हैं। उन्हें मालूम है कि मोबाइल फोन पर बातचीत रिकॉर्ड करना बहुत आसान और आम बात है। किसी से बात करने के पहले यह मानकर चलना चाहिए कि लोग रिकॉर्ड कर रहे हैं, और रिकॉर्डिंग उनके खिलाफ इस्तेमाल हो सकती है। इस सामान्य समझबूझ का इस्तेमाल सभी लोगों को सभी तरह की बातचीत के लिए करना चाहिए। लेकिन इस मामले में एक नैतिक बात यह उठती है कि अगर कारोबारी आपस में पेशेवर बदमाश नेताओं की तरह एक-दूसरे की बात रिकॉर्ड करने लगे तो व्यापारी तबके का एक-दूसरे से भरोसा ही टूट जाएगा। व्यापारियों के बीच दो नंबर के कारोबार, टैक्स और जीएसटी की चोरी, नगदी रकम के हवाला जैसी बहुत सी बातें आम हैं। अब अगर इन्हें लोग रिकॉर्ड करने लगें तो इन्हें इंकम टैक्स, ईडी, और जीएसटी तो बहुत पसंद करेंगे, लेकिन कारोबार ठप्प हो जाएगा। दूसरी बात कानूनी है कि किसी की बातचीत को काट-छांटकर बदनीयत से इस्तेमाल करना जो कि पहली नजर में ही साइबर क्राईम है, अब देखना है कि यह मामला किस किनारे तक पहुंचता है। फिलहाल टुकड़ा-टुकड़ा बातों से भी चुनावी नुकसान तो हो ही सकता है।
अफसरों से बात न करने के वक्त..
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में सरकारी अफसरों के बीच किसी काम को न करने, न छूने, उसके बारे में अनुरोध भी न सुनने के दो आम बहाने हैं। एक है, हाऊस में बिजी हूं, और दूसरा है सेशन चल रहा है।
सरकार के बाहर के लोगों को इस भाषा का उतना अंदाज नहीं रहता इसलिए उनकी जानकारी में यह इजाफा करना जरूरी है कि यह हाऊस किसी अफसर का अपना नहीं रहता, बल्कि सीएम हाऊस रहता है। जो कोई इसे सीएम हाऊस कहकर बुलाएं वे जाहिर तौर पर इस हाऊस से अधिक वाकिफ नहीं रहते। जो वाकिफ रहते हैं वे इसे सिर्फ हाऊस कहते हैं। सरकार के भीतर अपने आपकी व्यस्तता साबित करने का सबसे बड़ा पैमाना हाऊस में बिजी रहना, हाऊस जाना, हाऊस में होना, हाऊस का कहा करने में बिजी रहना रहता है। इसके बाद कोई बाहरी व्यक्ति ही अफसर से समय की उम्मीद कर सकते हैं, और ऐसी उम्मीद को झिडक़ी मिलना तो जायज रहेगा ही। दूसरा मामला विधानसभा सत्र का रहता है जिसे सरकारी जुबान में सिर्फ सेशन कहा जाता है। जितने दिन सत्र चलता है, उतने दिन अफसर किसी को भी किसी भी अनुरोध के लिए झिडक़ने के मानो ‘संसदीय’ अधिकार से लैस हो जाते हैं, और सेशन के बीच किसी तरह की अपील का प्रावधान इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में अफसरों के सामने नहीं रहता। अफसरों से मिलने या काम के लिए वक्त की उम्मीद तभी करनी चाहिए जब वे हाऊस में बिजी न हों, और सेशन न चल रहा हो।
यह हमला रमन पर तो नहीं?
कांग्रेस पार्टी ने कल भाजपा के धमतरी जिले के कुरूद विधानसभा के आईटी सेल के सहसंयोजक डोमेन्द्र कुमार साहू के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई है। कांग्रेस द्वारा पुलिस को दिए गए स्क्रीनशॉट के मुताबिक इस भाजपा नेता ने नेहरू, अंबेडकर, मुस्लिम, बौद्ध, इन सबके खिलाफ गंदी बातें लिखीं, और धार्मिक उन्माद और साम्प्रदायिकता पैदा करने वाली बातें लिखीं।
लेकिन डोमेन्द्र कुमार साहू ने अपने ट्विटर पेज पर 2 मार्च की अपनी एक ट्वीट को सबसे ऊपर टैग करके रखा है, मतलब यह कि वह ट्वीट सबसे ऊपर ही दिखते रहेगी। इसमें उन्होंने लिखा है- चिंतनीय, 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह जी ने 17 घंटे पहले ट्वीट किया है, 16 री-ट्वीट, 260 लाईक! जबकि फॉलोअर्स 23 लाख से ऊपर हैं। छत्तीसगढ़ में सब भाजपा नेता और पदाधिकारी ढीले पड़ गए हैं, पुरंदेश्वरीजी कुछ कीजिए।
नेहरू और अंबेडकर के खिलाफ गंदी बातें लिखने से तो भाजपा में कोई कार्रवाई होने से रही, मुस्लिम और बौद्ध के खिलाफ भी लिखने में कोई खतरा नहीं है, लेकिन जब अजय चंद्राकर के कुरूद का कोई भाजपा पदाधिकारी डॉ. रमन सिंह के खिलाफ इस तरह से लिख रहा है तो यह कुछ हैरानी की बात हो सकती है। भाजपा आईटी सेल पदाधिकारी की इस ट्वीट से यह सवाल भी उठता है कि रमन सिंह के 23 लाख फॉलोअर हैं कौन? क्योंकि हिन्दुस्तान के बहुत से नेताओं के तीन चौथाई से अधिक फॉलोअर दुनिया के उन देशों में पाए जा रहे हैं जिनका हिन्दुस्तानी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, और जहां हिन्दी बोली भी नहीं जाती। अब क्या यह हमला रमन सिंह पर है, या भाजपा के बाकी लोगों पर है, पार्टी के आईटी सेल पर है, या किसी और पर?
फिलहाल हैरानी की बात यह भी है कि हर कुछ मिनटों में ट्वीट या री-ट्वीट करने का वक्त अगर किसी को है, तो उन्हें जिंदगी चलाने के लिए कोई और काम करने का वक्त कब मिलता है।
धान की बिक्री पर कितना नुकसान होगा?
धान के पहले लॉट की बिक्री में ही सरकार को भारी नुकसान हो रहा है। 54 हजार मीट्रिक टन धान को 1525 रुपये क्विंटल की दर पर बेचने की मंत्रिमंडलीय समिति ने मंजूरी दी है। यदि पिछले साल की ही तरह किसानों के लिये वायदा निभाते हुए सरकार 2500 रुपये दाम देती है तो घाटा 950 रुपये हर एक क्विंटल के पीछे होना है। कुल 20 लाख 50 हजार मीट्रिक टन धान बेचना है। यदि इसी दर पर सारा धान बिका तो जाहिर है कई सौ करोड़ रुपये के नुकसान में सरकार रहेगी। लेकिन धान खरीदी के लिये लिया गया कर्ज पूरा चुकाना होगा। जाहिर है, इसका असर प्रदेश के बाकी विकास कार्यों पर दिखाई देगा। सरकार ने इस बार बजट के आकार में कटौती भी की है भले ही इसका कारण महामारी को बताया गया हो।
खाद्य मंत्री अमरजीत भगत का कहना है कि केन्द्र सरकार ने 60 लाख मीट्रिक टन चावल लेने का वादा किया था पर उसने बाद में मना कर दिया। अब सिर्फ 24 लाख क्विंटल ही लेने की सहमति दी है। इसलिये धान मजबूरी में बेच रहे हैं।
यह तो सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में धान की बड़ी भूमिका है। जिस तरह से धान को प्रोत्साहित किया जा रहा है, उससे आने वाले दिनों में इसका उत्पादन कम होने, किसानों का आकर्षण घटने की उम्मीद नहीं है। केन्द्र व राज्य सरकार के बीच भी टकराव हर साल कमोबेश ऐसा ही चलता रहेगा। तो क्या हर साल इसी तरह का नुकसान भी सहा जायेगा? क्या भविष्य के लिये कोई ऐसी नीति नहीं बननी चाहिये कि किसानों का लाभ भी कम न हो और राजस्व की हानि भी न हो?
फ्री पास चाहिये पर महंगा वाला
शहीद वीरनारायण स्टेडियम में चल रहे रोड सेफ्टी इंटरनेशनल क्रिकेट स्पर्धा में फ्री पास को लेकर बड़ी उदारता बरती गई है। अलग-अलग वर्गों को बारी-बारी फ्री पास दिये जा रहे हैं। सरकारी कर्मचारी, दिव्यांग, महिलाओं, स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों, उपक्रमों के कर्मचारी अधिकारी इसका फायदा ले रहे हैं। अब एक वर्ग ऐसा भी है जिसे फ्री पास मिलने की ज्यादा खुशी नहीं हो रही है। वे कह रहे हैं ये तो पांच-सौ रुपये टिकट वाली गैलरी के हैं। हमें तो उस बॉक्स का पास चाहिये जिसमें खाना पीना सब फ्री है, जिसका टिकट करीब 20 हजार रुपये में बिकता है। अंदाजा लगाइये यह कौन सा वर्ग है?
जागो व्यापारियों जागो...
चेम्बर चुनाव में प्रचार के दौरान पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, अमर पारवानी को बुरा-भला कहने में कोई मौका नहीं चूकते रहे हैं। पारवानी कभी सुंदरानी के सहयोगी थे, और बाद में दोनों के रास्ते अलग हो गए। पारवानी अब व्यापार जगत का बड़ा चेहरा बन गए हैं, और वे जय व्यापार पैनल के तले एकता पैनल को तगड़ी चुनौती दे रहे हैं, जिसके मुखिया श्रीचंद सुंदरानी हैं। वैसे तो पारवानी का सीधा मुकाबला योगेश अग्रवाल से है, लेकिन सुंदरानी ने चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ रखा है।
योगेश, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई हैं। स्वाभाविक है कि प्रदेशभर में बृजमोहन समर्थकों का उन्हें साथ मिल रहा है। व्यापारियों के इस सबसे बड़े संगठन के इस चुनाव को कुछ लोग अग्रवाल वर्सेस सिंधी भी बता रहे हैं। व्यापारियों के बीच चर्चा है कि अग्रवाल, योगेश के पक्ष में, तो सिंधी वोटर पारवानी के पक्ष में लामबंद हो रहे हैं। और जब श्रीचंद सुंदरानी पहले चरण के मतदान के बीच पारवानी के साथ कानाफूसी करते नजर आए, तो एकता पैनल में हडक़ंप मच गया। वॉटसएप पर व्यापारियों की कुछ इस तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली कि जागो व्यापारियों जागो...।
बृजमोहन अग्रवाल की पैनी नजर
चेम्बर चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता रूचि ले रहे हैं। गुरूवार को पहले चरण के मतदान के बाद कई समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आए। सुनते हैं कि योगेश अग्रवाल को भाजपा के जिस ताकतवर अग्रवाल नेता से भरपूर मदद की उम्मीद थी, उन्होंने अमर पारवानी का साथ दिया है। यही नहीं, दिग्गज अग्रवाल नेता के धमतरी रहवासी करीबी रिश्तेदारों ने भी पारवानी का साथ निभाया। चर्चा है कि बृजमोहन के भाजपा में विरोधी नेता, पारवानी के पक्ष में काम कर रहे हैं। इन सबके बाद भी पारवानी की राह आसान नहीं है, क्योंकि चुनाव पर बृजमोहन अग्रवाल की पैनी नजर है, जो कि भाजपा के सबसे सफल चुनाव संचालक माने जाते हैं। यही वजह है कि तमाम विपरीत खबरों के बाद भी योगेश अग्रवाल के समर्थक चुनाव नतीजे को लेकर आशान्वित है।
लॉकडाउन की आहट
महाराष्ट्र और देश के दूसरे राज्यों में एक बार फिर कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। मुम्बई, पुणे के बाद अमरावती, नागपुर क्षेत्र भी तेजी से कोरोना की चपेट में आ रहा है। अब वहां एक सप्ताह के लिये सम्पूर्ण लॉकडाउन 15 मार्च से लागू हो रहा है। पिछली बार भी महाराष्ट्र के बाद कोरोना का असर छत्तीसगढ़ में देखा गया था।
सख्ती कम होने के बाद रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव से नागपुर, मुम्बई लोगों का आना-जाना बढ़ा है। अब ट्रेनों, बसों में यातायात सामान्य दिखने लगा है। बाजारों, दफ्तरों, फैक्ट्रियों में भी भीड़ है। धार्मिक संस्थानों, स्कूलों, शादी ब्याह सबकी छूट दी जा चुकी है। जबकि गाइडलाइन का पालन सभी सार्वजनिक स्थानों पर करने की जरूरत है। रायपुर में जिला प्रशासन ने बिना मास्क पहने निकलने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने के साथ कोरोना की बीमारी छिपाने पर एफआईआर दर्ज कहा है।
यह तो दिख रहा है कि पूरे प्रदेश में मास्क पहनने के लिये फिर से कड़ाई बरती जा रही है। पर नये मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। अब सीमा में प्रवेश करने वालों की जांच निर्देश जारी किया गया है। इसी तरह रेलवे ने स्टेशनों पर नये सिरे से व्यवस्था की है। पर, यह सब उस गंभीरता से नहीं हो रहा है, जितना कोरोना के पहले चरण में दिखा। नये मामलों की रफ्तार यही रही तो नागपुर जैसी परिस्थितियां राजधानी रायपुर सहित दूसरे शहरों में बन सकती है।
जंगल में समृद्ध हिंदी की बयार..
आम तौर पर किसी को कोई बात समझ नहीं आती तो कहते हैं, झल्लाकर कहा जाता है हिंदी में समझाऊं क्या? लगता है बारनयापारा में किसी अधिकारी ने अपने वन कर्मचारियों को ऐसा ही कहा होगा फिर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा भी दिया। वैसे इसे अंग्रेजी पसंद लोग वायरलेस मॉनिटरिंग रूम भी कह देते हैं।
कर मुक्त नहीं तो, तस्कर मुक्त ही कर दें...
देवभोग इलाके में जब हीरों के अकूत भंडार का पता चला था तो पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ को देश का अकेला कर मुक्त राज्य बनाया जा सकता है। कुछ सर्वे तो यह दावा करते हैं कि यहां का हीरा पूरे देश के कर्ज को चुका सकता है। पर फिलहाल तो यह हीरा तस्करी का अड्डा बना हुआ है। इस साल जनवरी के बाद यह दूसरा मामला है जब लाखों रुपये के कीमती सैकड़ों हीरों के साथ तस्कर पकड़े गये। हर साल दो तीन तस्कर पकड़ में आ ही रहे हैं।
देवभोग का मामला इतना जटिल रहा कि लगता है कोई भी सरकार इसमें हाथ नहीं डालना चाहती। संयुक्त मध्यप्रदेश के दौर में सन् 1992 के आसपास डी बियर्स की कम्पनी को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ठेका दिलवाया तो स्व. अजीत जोगी ने उन पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया और कहा कि कम्पनी के खर्च पर वे दक्षिण अफ्रीका गये। इसके बाद 1998 में डि बियर्स, रियो टिंटो, एनएमडीसी और बी. विजय कुमार ने टेंडर भरा। बी. विजय कुमार को खनन का ठेका मिलने पर भाजपा नेता रमेश बैस ने अनुबंध को ही गलत बताया और कहा कि हीरे के अलावा दूसरे बहुमूल्य खनिज निकलेंगे, उसका क्या होगा? इसके बाद लगातार मामले टेंडर लेने वाली कम्पनियों के बीच अदालती लड़ाई चल रही है, जिसका किस्सा लम्बा है। वर्तमान में स्थिति यह है कि जो सुरक्षा के बाड़ टूटे हुए हैं। कोई भी वहां प्रवेश कर सकता है। यहां के निर्धन ग्रामीणों से बिचौलिये पत्थरों की खुदाई कराते हैं, कुछ सौ रुपये में हीरे के खंड खरीदते हैं फिर मध्यम श्रेणी के व्यापारी उसे आकर हजारों में खरीद रहे हैं और दूसरे राज्यों के हीरा व्यापारियों को लाखों रुपये में बेच रहे हैं।
मौजूदा सरकार देवभोग सहित बस्तर और रायगढ़ की संभावित हीरा खदानों को शुरू कराने, अदालतों में रुके मामलों को तेजी से निपटाने के बारे में कुछ सोच रही है या नहीं, यह पता नहीं चल रहा है। पर जब प्रदेश सरकार को अपने चुनावी वायदे पूरे करने के लिये एक के बाद एक नया कर्ज लेना पड़ रहा हो, आम लोग भी करों के बोझ से त्रस्त हों तो इस अकूत खनिज संपदा के दोहन से जुड़े मामले तेजी से निपटाना चाहिये।
यह अगर बाजार है तो...
सरकारी कामकाज की संस्कृति एक बार बिगड़ती है तो उसे कई बार निजीकरण भी नहीं सुधार पाता। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के म्युनिसिपल में स्मार्टसिटी के नाम पर आने वाले अंधाधुंध पैसों से किसी प्राइवेट एजेंसी को प्रचार-प्रसार में लगाया जाता है। करोड़ों के ऐसे प्रचार-प्रसार में खूब बर्बादी भी की जाती है। अब शहर की एक रिहायशी कॉलोनी के मैदान में पत्तों से खाद बनाने के इस प्रयोग को यह बैनर लगाकर बताया जा रहा है। अब है तो यह मैदान, और इसके आसपास भी एक पान ठेला तक नहीं है, लेकिन यहां बैनर लगा दिया गया है- जीरो वेस्ट बाजार!
मैदान और बगीचे के पत्तों से बन रही खाद जो कि बेची भी नहीं जाएगी, वहां पर किसी बाजार में लगने वाले बैनर की तर्ज पर बैनर लगा दिया गया है। खेलने आने वाले छोटे बच्चे यही नहीं समझ पाएंगे कि यह अगर बाजार है तो गोलबाजार और सदरबाजार क्या मैदान हैं?
दिल्ली में गाड़ी लगे तो बता दें...
केन्द्र सरकार ने कल आईपीएस अफसरों की एक लिस्ट निकाली जिसमें 1996 से 2001 तक के 22 अफसरों को केन्द्र सरकार के स्तर पर आईजी के रूप में इम्पैनल किया गया है। हाल के बरसों में आईपीएस लोगों का इम्पैनलमेंट कम हो गया है क्योंकि केन्द्र सरकार ने इसके लिए कड़े पैमाने तय किए हैं। प्रदेशों में तो अफसर बरसों पहले आईजी बन जाते हैं, लेकिन केन्द्र सरकार में आईजी का दर्जा मिलना मुश्किल होता है, और इसके लिए केन्द्र सरकार देश भर से कई तबकों से राय लेती है कि अफसर इस लायक है कि नहीं? यह भी पता लगाया जाता है कि अफसर पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप तो नहीं है? यह पूछताछ रिटायर हो चुके अफसरों से लेकर मीडिया तक के लोगों से की जाती है, और इसे केन्द्र सरकार की जुबान में 360 डिग्री कहा जाता है, 360 डिग्री का मतलब चारों तरफ से परख लेना।
कल की लिस्ट में छत्तीसगढ़ के एक आईजी, आनंद छाबड़ा का नाम शामिल है। वे 2001 बैच के आईपीएस हैं, और रायपुर के आईजी होने के साथ-साथ प्रदेश के आईजी इंटेलीजेंस भी हैं। अब केन्द्र के साथ कड़े टकराव वाले भूपेश बघेल के खुफिया चीफ के बारे में केन्द्र सरकार ने खासा ही पता लगाया होगा, तभी उन्हें इम्पैनल किया होगा। दिक्कत यह है कि केन्द्र सरकार में इम्पैनल होने को आम लोग यह मान बैठते हैं कि यह केन्द्र सरकार में पोस्टिंग है। आनंद छाबड़ा को आज सुबह से केन्द्र सरकार में जाने के लिए बधाईयां मिल रही हैं, और लोग शिष्टाचार में कह भी रहे हैं कि दिल्ली में गाड़ी की जरूरत हो, या मकान मिलने तक गेस्ट हाऊस की जरूरत हो तो बेझिझक याद कर लें। इसके पहले जब कुछ लोग केन्द्र में इम्पैनल हुए थे, तब उनके पास एक-दो ऐसे शुभचिंतक पहुंच गए थे जो कि रायपुर में छूटने वाले फर्नीचर को खरीदने का प्रस्ताव लेकर गए थे। आम लोगों की समझ के लिए यह बता देना जरूरी है कि केन्द्र में इम्पैनल होना वहां जाने की पात्रता भर देता है, उसके बाद राज्य सरकार की मंजूरी, केन्द्र सरकार की मंजूरी, और भी किलो भर औपचारिकताएं बाकी रहती हैं। राज्यों में कई ऐसे बड़े अफसर रहते हैं जो इम्पैनल हो जाने के बाद भी केन्द्र में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि उतने बड़े सागर में जाकर छोटी मछली बनने का हौसला सबका नहीें रहता।
राजनीतिक दल और वकील
भाजपा ने हाईकोर्ट में विधि विधायी इकाई गठित किया है। इसमें आरएसएस और भाजपा की विचारधारा से जुड़े वकीलों को रखा है। इसके संयोजक यशवंत सिंह ठाकुर हैं, जो कि पिछली सरकार में एडिशनल एडवोकेट जनरल थे। प्रकोष्ठ में आशुतोष सिंह कछवाहा, और शरद मिश्रा भी हैं। कछवाहा भी एडिशनल एडवोकेट जनरल थे, तो शरद पिछली सरकार में सरकारी वकील थे। प्रकोष्ठ में तेजी से उभर रहे विवेक शर्मा को भी रखा गया है। विवेक शर्मा, पूर्व सांसद अभिषेक सिंह से लेकर निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता की पैरवी कर चुके हैं।
वैसे तो वर्तमान में भी कई सरकारी वकील सक्रिय राजनीति में रहे हैं। एडवोकेट जनरल सतीशचंद्र वर्मा, छत्तीसगढ़ समाज पार्टी से जुड़े रहे हैं, और वे धरसींवा से विधानसभा का चुनाव भी लड़े थे। पूर्व एडवोकेट जनरल कनक तिवारी, तो अविभाजित मप्र कांग्रेस कमेटी के महामंत्री रहे हैं। वे दिग्विजय सिंह सरकार में एमपी हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। इसी तरह सरकारी वकील केके शुक्ला भी कांग्रेस के विधि प्रकोष्ठ के पदाधिकारी रहे हैं। कुल मिलाकर जमीनी स्तर पर पार्टी के खिलाफ लड़ाई से परे कानूूनी लड़ाई के लिए अच्छे वकीलों को साथ रखना जरूरी है, और भाजपा के हाईकोर्ट में विधि विधायी संगठन को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।
गोबर खरीदी योजना को मिलती तारीफें
लोकसभा की कृषि मामलों की स्थायी समिति ने छत्तीसगढ़ सरकार की गोबर खरीदी योजना की तारीफ करते हुए सुझाव दिया है कि पूरे देश में इस तरह की योजना लागू की जाये। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी, रोजगार मिलेगा और जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा।
केन्द्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है। उसकी ओर से की गई यह तारीफ पहली बार नहीं है। सितम्बर महीने में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी इस योजना की प्रशंसा करते हुए ‘वेस्ट टू वेल्थ’ का अच्छा उदाहरण बताया था। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल इस योजना की प्रशंसा कर चुके हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पटेल ने भी इस तरह की योजना लाने की बात कही है। छत्तीसगढ़ में गौ सेवा से जुड़े राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारी तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर इस योजना की तारीफ कर चुके हैं।
इन तारीफों का महत्व इसलिये है कि योजना शुरू होने के बाद भाजपा के कुछ नेताओं ने इसको लेकर लगातार चुटकियां ली, कुछ तंज भी कसे। पर आज यह फैसला केन्द्र व अन्य राज्यों में उनकी पार्टियों के नेता पसंद कर रहे हैं। वैसे जब यूपीए सरकार थी और केन्द्र के मंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ आते थे तो, कभी माओवादियों से निपटने की रणनीति तो कभी राशन दुकान व्यवस्था की तारीफ कर दिया करते थे और यह राज्य सरकार के विरोध में खड़ी कांग्रेस को असहज लगता था।
अब गोबर खरीदी योजना पर कुछ न भी बोलते बने तो क्रियान्वयन पर निगरानी रखने, खामियों, गड़बडिय़ों की ओर ध्यान दिलाने की जिम्मेदारी तो विपक्ष बनती की ही बनती है।
अहम् क्यों चेम्बर का चुनाव?
छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स के चुनाव में धुआंधार प्रचार अभियान के बीच पहले चरण के मतदान की प्रक्रिया आज शुरू हो गई। मैदान पर उतरे पैनल जिस तरह की जोर आजमाइश कर रहे हैं, कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज नेता अपने-अपने दावेदारों के समर्थन में मैदान में उतरे हैं, उसने खेल रोमांचक बना दिया है। दरअसल, 15 साल के शासनकाल में सत्तारूढ़ भाजपा की चेम्बर में अच्छी पकड़ रही और लगातार उनके समर्थक जीतते आये।
सशक्त सरकार वही है जिसकी केवल ब्यूरोक्रेट में ही अच्छी पकड़ नहीं, बल्कि उन सब संगठनों, संस्थाओं पर हो जो खेल, सामाजिक, व्यापारिक, राजनीतिक आदि सभी दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।
राज्य में चेम्बर ऑफ कामर्स व्यापारियों का सबसे बड़ा संगठन है। इसमें 16 हजार से ज्यादा सदस्य हैं। वोटों के लिहाज से भी और पूरे छत्तीसगढ़ में फैले होने के कारण क्षेत्रफल के हिसाब से भी। आम मतदाताओं के बीच भी व्यापारियों की पैठ होती ही है। ऐसे में यदि कांग्रेस भाजपा नेता चुनाव अभियान में खुलकर सामने आये हैं तो अचरज नहीं होना चाहिये। भाजपा को अपनी पकड़ बनाये रखने की चिंता है तो कांग्रेस सोच रही है कि जब सरकार हमारी है, तो चेम्बर में हमारे लोग क्यों न हों?
पांडे कवासी की मौत का राज खुलेगा?
बस्तर में नक्सलियों से लोहा लेने के लिये पुलिस और सुरक्षा बल सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों, खेल, शिक्षा आदि से जुडक़र उनका भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं। पर संदिग्ध मौतों से उठने सवालों के कारण आपसी विश्वास में जुड़ता ही नहीं।
दंतेवाड़ा के गुड़से गांव की युवती पांडे कवासी की पुलिस हिरासत में मौत ने एक बार फिर अप्रिय स्थिति पैदा कर रही है। पुलिस कहती है कि अपनी सहेली के साथ उनके कैम्प में आ गई थी, जिस पर पुलिस ने पांच लाख का इनाम रखा था। यहां से वह जाना नहीं जाहती थी क्योंकि मां-बाप उसकी जबरन शादी कराना चाहते थे। पुलिस यह भी मानती है कि उसके नक्सली गतिविधियों में शामिल होने का कोई प्रमाण नहीं था। उसने गांव जाने पर खतरा बताया इसलिये, पुलिस के मुताबिक उसे सुरक्षा की दृष्टि से कैम्प में रखा गया था। पर वह एक तौलिये को फंदा बनाकर फांसी पर लटक गई। गांव के लोग, वहां की सरपंच और दूसरे जनप्रतिनिधि पुलिस की कहानी को सिरे से नकारते हुए, अलग किस्सा बताते हैं- उसे पुलिस एक अन्य महिला के साथ जबरन पकडक़र ले गई थी। पुलिस ने यह भी कहा है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके फांसी लगने से मौत होने की पुष्टि हुई है। वैसे कलेक्टर ने इस मामले की दंडाधिकारी जांच का आदेश दिया है। अब जबकि यह मामला विधानसभा में भी उठा है, राष्ट्रीय मीडिया में भी लगातार आ रहा है।
पूरे मामले में कुछ तो ऐसा है जो छिपाया जा रहा है। अतीत में बस्तर पुलिस बेकसूरों को नक्सली बताकर सरेंडर कराती रही है, अनेक मौतों में पुष्टि नहीं हुई कि उसका नक्सली रिकॉर्ड रहा है। फिर वैसा ही खेल फिर शुरू हो तो नहीं गया?
विस्फोट की आशंका
विधानसभा का इस बार का सत्र छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से अब तक का सबसे छोटा बजट सत्र रहा है। भाजपा सदस्यों ने तो अनुदान मांगों पर चर्चा में हिस्सा तक नहीं लिया। सरकार के दो मंत्री टीएस सिंहदेव और जय सिंह अग्रवाल के अलावा दो विधायकों के कोरोना संक्रमित होने के बाद से सत्ता और विपक्ष के लोग भी चाहते थे कि सत्र जल्द से जल्द खत्म हो।
सत्र शुरू होने से पहले सभी विधायकों को कोरोना टेस्ट कराने की सलाह दी गई थी, लेकिन विधायक इसके लिए तैयार नहीं हुए। विधायक सशंकित थे। दोनों मंत्री टीएस सिंहदेव और जयसिंह अग्रवाल में कोरोना के कोई विशेष लक्षण नहीं थे, उन्होंने मामूली सर्दी-जुकाम पर टेस्ट करवाया, और पॉजिटिव पाए गए।
जयसिंह अग्रवाल तो अपने निवास पर विभागीय अफसरों के साथ अगले दिन सदन में पूछे जाने वाले सवालों का जवाब देने के लिए तैयारी कर रहे थे। अफसरों की ब्रीफिंग कर घर चले गए, तब अग्रवाल की कोरोना जांच रिपोर्ट आई, जिसमें वे पॉजिटिव पाए गए। मंत्रीजी से परे अफसर ज्यादा परेशान हैं, क्योंकि ब्रीफिंग के दौरान मास्क वगैरह नहीं पहने हुए थे।
सरकार के एक मंत्री ने तो अनौपचारिक चर्चा में माना कि यदि सभी विधायकों की कोरोना जांच होती, तो आधे विधायक संक्रमित निकलते। इसकी एक वजह यह भी थी कि चारों संक्रमित सदस्य, सदन के भीतर और बाहर पक्ष-विपक्ष के सदस्यों के संपर्क में थे। ऐसे में कोरोना विस्फोट की आशंका भी थी, जो कि जांच नहीं होने के कारण नहीं फट पाई।
सोनिया गांधी की शिलान्यास पट्टिका
कांग्रेस सरकार ने कितने चुनावी वायदे पूरे किये हैं ,इस पर बहस के बीच कांग्रेस सदस्य धनेन्द्र साहू ने भी एक वादा पूरा नहीं होने की बात विधानसभा में रखी। वह थी आईआईएम को नया रायपुर में आबंटित जमीन की हद में नई राजधानी के शिलान्यास के पत्थर का घेरे में होना। शिलान्यास कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया था। करीब 3 हजार वर्गफीट के गार्डन में इसे रखा गया है।
कांग्रेस की आपत्ति रही कि नया रायपुर करीब 7500 हेक्टेयर की योजना है। आईआईएम को ग्राम पौरा चेतिया की वही जगह क्यों दी गई, जहां शिलान्यास की चट्टान लगी हुई है। दो साल पहले केबिनेट की बैठक में कई बातें सामने रखी गई। खुलासा हुआ कि आईआईएम को तीन बार में 200 एकड़ जो जमीन दी गई है उसके साथ कोई लीज अनुबंध ही नहीं हुआ। एनआरडीए के तत्कालीन सीईओ एसएस बजाज को इस मामले में केबिनेट ने तब निलम्बित भी कर दिया था, जबकि उस वक़्त के विभागीय सचिव रहे जॉय ओम्मेन ने सार्वजनिक बयान जारी करके बजाज को पूरी तरह बेक़सूर और अपने-आपको जिम्मेदार बताया था। वैसे, जिज्ञासा इस बात पर भी हो सकती है कि आईआईएम का प्राधिकरण के साथ अनुबंध भी अब तक हो पाया या नहीं?
चुनाव पांच राज्यों में, सुकून सबको
हालांकि कल कई शहरों में रसोई गैस का दाम बढक़र 900 रुपये पार कर गया है। पेट्रोल-डीजल की कीमत अभूतपूर्व रूप से महंगा होने के बाद अब बीते 10-12 दिनों से स्थिर हैं। यह तब है जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दो तीन दिन से कच्चे तेल के दाम में तेजी आ रही है। हालांकि लोगों को 90 रुपये से ज्यादा में पेट्रोल और 89 रुपये में डीजल खरीदना अब भी भारी पड़ रहा है ,पर दाम सौ पार करने की चिंता कम हुई है। जब भी दाम को लेकर सरकार से पूछा जाता है, वह हाथ खड़े कर देती है कि यह तो आयल कम्पनियां अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कीमत के आधार पर तय करती हैं। कम्पनियों से पूछा जाये तो वह सरकार पर डाल देती है। कहती है कि टैक्स कम किये बिना दाम नहीं घटेंगे। खबर है कि अभी आयल कम्पनियों को दाम नहीं बढ़ाने के लिये कहा गया है। यह फैसला पांच राज्यों में हो रहे चुनाव से जोडक़र देखा जा रहा है। सरकार, लोगों के प्रति उदार बनी रहे लगता है इसके लिये चुनाव कहीं न कहीं होते रहना चाहिये।
बढ़ते संक्रमण के बीच स्कूलों की चहल-पहल
बीते साल लगभग इन्हीं दिनों में कोरोना संक्रमण के मामले बढऩे लगे थे और लॉकडाउन करना पड़ा था। अनेक वैज्ञानिक अब यह मानने लगे हैं कि जिस तरह से देश के कई राज्यों, खासकर महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में कोरोना तेजी से फैल रहा है यह मौसम खतरे की घंटी है। राज्यों में अब फिर से ज्यादा सतर्कता बरती जा रही है। छत्तीसगढ़ में इस समय 60 साल से ऊपर और गंभीर बीमारी से पीडि़त 45 वर्ष से ऊपर लोगों को कोरोना टीका लगाया जा रहा है। कोरोना संक्रमण का दुबारा बढऩे की आशंका ही है कि लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं और टीका लगवाने के लिये खुद ही रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं। बीते 24 घंटे में छत्तीसगढ़ में 390 मामले आये। एक ही दिन में पांच लोगों की मौत भी हुई । दो दिन के भीतर 700 से ज्यादा नये मामले सामने आ चुके। अब सक्रिय मामले फिर बढक़र 3 हजार पार कर चुके हैं।
इधर परीक्षाओं के दिन भी शुरू हो गये हैं। स्कूल, कॉलेजों में ऑफलाइन प्रायोगिक और मुख्य परीक्षाओं का छात्र और पालक विरोध कर रहे हैं। स्कूल ही नहीं कई कॉलेजों में भी अनेक छात्र और प्राध्यापकों में संक्रमण मिल रहा है। जिन स्कूल, कॉलेजों में मामले आये, उन्हें तो बंद करने कहा जा रहा है पर बाकी के लिये सरकार ने फैसला नहीं बदला है। केस तेजी से बढ़ सकते हैं, पालकों, छात्रों सहित आम लोगों की यह चिंता स्वाभाविक है। यही वजह है कि जिन लोगों की मास्क पहनकर निकलने की आदत छूट रही थी वे गाइडलाइन का पालन करने को लेकर ज्यादा सतर्क हैं।
दवा कम्पनी पर मेहरबानी के लिये जान से खिलवाड़?
सरकारी अस्पतालों में दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कई बार सवाल उठते हैं पर मामले दब जाते हैं। खुलते हैं तो भी कार्रवाई में इतनी देर कर दी जाती है कि वे कम्पनी का कोई नुकसान नहीं होता, भले ही मरीजों की जान पर खतरा क्यों न हो। पेट दर्द और एसिडिटी की दवा एल्यूमिनियम हाईड्रोक्साइड सिरप मुंगेली, गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही और बिलासपुर जिले में अमरवती की कम्पनी ग्लेशियर ने अगस्त 2019 में करनी शुरू की थी। सरकारी निगम सीजीएमएससी के जरिये ही इस तरह की खरीदी होती है। डॉक्टरों और मरीजों की ओर से शिकायत आने लगी कि दवा किसी काम के नहीं, बल्कि इसके साइड इफेक्ट भी हो रहे हैं। शिकायत के बावजूद पहला पत्राचार जुलाई 2020 में किया गया। कम्पनी से जवाब नहीं आया और इधर दवाईयां भी मरीजों को पिलाई जाती रही। अब जब ज्यादातर दवाईयां खप चुकी हैं, कम्पनी को ब्लैक लिस्टेड किया गया है और दवाओं को वापस मांगा जा रहा है। ऐसी दवायें जाहिर है सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने वालों में बांटी जाती है, जिनमें से ज्यादातर लोग गरीब वर्ग के होते हैं। इन दवाओं के चलते किसी की मौत होने की कोई ख़बर नहीं है इसलिये इस मामले ने तूल नहीं पकड़ा, वरना अपने प्रदेश का नसबंदी कांड भी लोगों को याद है जिसमें 16 महिलाओं की मौत हुई थी।
आत्महत्या भी हो तो गंभीरता कम नहीं
यह स्वाभाविक है कि विधानसभा में पाटन इलाके के बठेना में हुई पांच मौतों का मामला गूंजा। फंदे पर एक साथ लटकती दो लाशें, तीन महिलाओं के अधजले, जले शव और सुसाइडल नोट। विवेचना अधिकारियों को मामले की तह तक पहुंचने की जिम्मेदारी है। इसी इलाके के खुड़मुड़ा गांव में चार लोगों की हत्या का मामला अब तक सुलझ नहीं पाया है। दोनों को लेकर पुलिस को आलोचना तो झेलनी पड़ रही है। गृह मंत्री को भी कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार का बचाव करना पड़ रहा है। गृह मंत्री इसे आत्महत्या बता रहे हैं तो विपक्ष ने एक साथ लटके दो शवों के आधार पर इसे हत्या का मामला कहा है। कुछ खबरों में कहा गया कि जुए, सट्टे की वजह से काफी खेती मृतक परिवार के मुखिया को बेचनी पड़ी और कर्जदारों का उस पर भारी दबाव था। अपराध होने के बाद सारी जिम्मेदारी पुलिस पर आती है और सवाल कानून व्यवस्था पर उठते हैं। पर ऐसी घटनाओं के लिये समाज का बिगड़ता माहौल कितना जिम्मेदार है, इस पर निगरानी रखने की जवाबदेही किस पर है, इसके लिये कोई ठोस तंत्र नहीं है। राज्य में बढ़ते अपराध, जुए सट्टा, सूदखोरी, शराबखोरी के चलते हो रहे अपराधों को रोकने के लिये कौन कदम उठाये, वे कदम क्या हों, इस पर भी इन गंभीर मामलों को देखते हुए अब बात होनी चाहिये।
कोरोना वारियर्स से वैक्सीन की कीमत?
वैक्सीनेशन के दूसरे चरण में 60 वर्ष से अधिक और गंभीर बीमारियों से पीडि़त 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाने का अभियान चल रहा है। सरकारी केन्द्रों में यह मुफ्त है, पर अब निजी अस्पतालों में इसके लिये 250 रुपये देने हैं। दो बार टीका लगना है अत: 500 रुपये कुल खर्च है। दूसरा चरण शुरू होने के बावजूद बड़ी संख्या में वे लोग बचे रहे हैं जिन्हें पहले चरण में टीका लग जाना था। इनमें स्वास्थ्य कर्मी, कोरोना वारियर्स, डॉक्टर आदि शामिल हैं। अब तक इन्हें प्राइवेट अस्पतालों में मुफ्त टीका लग रहा था लेकिन अब इनसे भी वही राशि वसूल की जायेगी जो अन्य से ली जा रही है। यह फैसला कुछ अटपटा लग रहा है क्योंकि हाल ही में कोविड-19 के मामले फिर से बढऩे के बाद वैक्सीनेशन की रफ्तार भी बढ़ गई है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ बढ़ रही है। लम्बा वक्त लग रहा है। सर्वर डाउन भी हो रहा है। ऑन द स्पॉट रजिस्ट्रेशन सुविधा शुरू होने के कारण भी वक्त लग रहा है। ऐसे में कोरोना के खिलाफ जंग लडऩे वालों से किसी भी अस्पताल में टीका लगवाने का शुल्क क्यों लगना चाहिये?
बंद होते जन औषधि केन्द्रों में जश्न
ब्रांडेड दवाओं की भारी कीमतों से आम लोगों को बचाने के लिये पांच साल पहले 21 फरवरी 2016 को जन औषधि केन्द्रों की शुरूआत की गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ से ही इसकी शुरुआत की थी। देशभर में एक साथ 100 केन्द्रों का भी उन्होंने ऑनलाइन उद्घाटन किया। सरकारी डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवायें लिखने का निर्देश मिला। ब्रांडेड दवायें लिखने पर 104 नंबर पर शिकायत करने का प्रावधान भी किया गया।
कल 7 मार्च को जब मोदी टीवी पर आये तब लोगों को ध्यान गया कि अब भी सस्ती दवायें मिल रही हैं। पर असलियत यह है कि प्रदेश में खोले गये 180 केन्द्रों में से अधिकांश बंद हो चुके हैं। वजह है दवाओं की समय पर सप्लाई नहीं होना। 732 प्रकार की जेनेरिक दवायें इन केन्द्रों के लिये सूचीबद्ध है पर इनमें से एक तिहाई भी नहीं मिलतीं। पैरासिटामॉल जैसी मामूली दवायें भी कई जगह पर उपलब्ध नहीं। अब तो डॉक्टरों की आदत भी जेनेरिक लिखने की छूट चुकी है और लोग 104 में इसकी शिकायत भी नहीं करते। पता चला है कि पहले जेनेरिक दवायें रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय खुद तैयार करता था लेकिन बाद में यह जिम्मेदारी निजी कम्पनियों को दे दी गई। इनके हाथ में ब्रांडेड दवायें बनाने का काम भी है। जेनेरिक में मुनाफा कम है, इसलिये वे समय पर आपूर्ति करने में रुचि नहीं लेते। छत्तीसगढ़ में जन औषधि केन्द्रों में दवा आपूर्ति गड़बड़ाई हुई है तो जाहिर है दूसरे राज्यों में भी इससे मिलता-जुलता हाल ही होगा। पर, जैसी खबर है, शिलांग में प्रधानमंत्री ने 7500वें केन्द्र का उद्घाटन किया है। क्या अफसरों ने योजना सफल बताने के लिये बंद हो चुके केन्द्रों को भी गिनती कर ली?
अवैध प्लॉटिंग का मकडज़ाल
प्रदेश में कांग्रेस सन् 2018 में चुनाव मैदान पर उतरी थी तो अनेक लुभावने वायदों में से एक यह भी था कि छोटे प्लॉट की रजिस्ट्री शुरू की जायेगी। ऐसा हो गया। भाजपा सरकार ने पांच डिसमिल से छोटी जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लगाई थी। इसके चलते जमीन खरीदी बिक्री के धंधे से छोटे निवेशक बाहर हो गये। आम लोगों को भी कम लागत पर अपना मकान बनाने का मौका नहीं मिल रहा था। फायदा बड़े कारोबारियों, अधिकारियों और नेताओं को मिला। अब छोटे प्लॉट की रजिस्ट्री की बाढ़ आई हुई है। पंजीयन विभाग आय बढऩे पर खुश है। उसने साफ कर दिया है कि वह रजिस्ट्री के वक्त यह नहीं देखती कि रेरा रजिट्रेशन, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की मंजूरी है या नहीं। गलत बिक्री है तो राजस्व विभाग का काम है कि वह नामांतरण रोक दे।
रायपुर के बाहरी हिस्से में ऐसे छोटे प्लाट 300 रुपये फ़ीट के आसपास मिल रहे हैं। वहीं अप्रूव्ड प्रोजेक्ट में उसी इलाके में 1000 रुपये से जमीन की शुरूआत होती है। कम दाम वाले प्लॉट दो-चार साल बाद बेचने पर मुनाफे का सौदा होता है। महंगे प्लाट के दाम तेजी से नहीं बढ़ते। रायपुर, बिलासपुर सहित कई बड़े शहरों में तेजी से यह धंधा चल रहा है। इस उम्मीद में भी कई लोग प्लॉट खरीद रहे हैं कि आगे चलकर मकान बना लेंगे। देर-सबेर कॉलोनी को नगर निगम अपने हाथ ले ही लेगी। राजस्व विभाग के पास हर जगह ऐसी शिकायतों का अम्बार है। तालाब, गोचर व सरकारी जमीन को दबाने की भी शिकायत है। इसके बावजूद कार्रवाई एक दो पर ही दिखावे के लिये हो रही है। शायद सरकार ने नरमी बरतने कहा हो। चुनावी वायदे का सवाल है।
भीड़ नहीं जुटा पाने पर कार्रवाई
मुंगेली की महिला कांग्रेस जिला अध्यक्ष ललिता सोनी को प्रदेश अध्यक्ष ने पद से हटा दिया और उनकी जगह पर नया अध्यक्ष जागेश्वरी वर्मा को नियुक्त कर दिया। दरअसल, कुछ दिन पहले महिला कांग्रेस ने सभी जिला मुख्यालयों में केन्द्र सरकार के खिलाफ महंगाई को लेकर प्रदर्शन करने का निर्देश दिया था। इस प्रदर्शन में कुल जमा 8 महिलायें इक_ी हुईं। स्वयं जिला अध्यक्ष पारिवारिक व्यस्तता का हवाला देते हुए नहीं पहुंचीं।
कुछ दिन पहले प्रदेशभर के जिला मुख्यालयों में जीएसटी के खिलाफ व्यापारियों के विरोध में भी कांग्रेस ने समर्थन दिया था और प्रमुख चौक-चौराहों पर पहुंचकर नारेबाजी की। ज्यादातर जगहों पर इसमें भी भीड़ नहीं जुटी। कई जिलों में तो प्रदर्शन ही नहीं हुआ।
दूसरी तरफ भाजपा ने हाल ही में राज्य सरकार के खिलाफ कुछ प्रदर्शन किये, जिसमें ठीक-ठाक भीड़ पहुंच गई। ऐसा लगता है कि सत्ता में आने के बाद कांग्रेस संघर्ष करना भूल रही है। प्रदेश के बाकी नेताओं को इसकी चिंता है या नहीं यह तो पता नहीं पर महिला अध्यक्ष फूलो देवी नेताम ने बता दिया कि उनको इसका ध्यान है।
रेस्त्रां जाकर भी फोन से...
महीनों की बेरोजगारी और फटेहाली के बाद जब रेस्त्रां शुरू हुए, तो कुछ सावधान और जिम्मेदार रेस्त्रां ने अधिक सतर्कता बरतना शुरू किया है। रायपुर के कोर्टयार्ड-मैरियट होटल के रेस्त्रां को देखें तो वहां टेबिलों पर ऐसे कागज सजे हैं जिन्हें अपने स्मार्टफोन से स्कैन करके फोन से ही सीधे खाना ऑर्डर कर सकते हैं। खाना तो इंसान ही लाकर रखेंगे, लेकिन खाने के बाद एक दूसरे निशान को स्कैन करके भुगतान कर सकेंगे। इस तरह कर्मचारियों से मिलना-जुलना, उनका मेन्यूकार्ड लाना, आखिर में बिल लाना, भुगतान के बाद बाकी चिल्हर लाना यह सब स्कैन करने से खत्म हो जाता है, और आप अपने फोन से ही इतने काम कर लेते हैं। अब इसके लिए अपने स्मार्टफोन जितना स्मार्ट भी लोगों को होना पड़ेगा, और फोन से भुगतान की सुविधा भी जरूरी होगी। लेकिन कुल मिलाकर लोग कम मिलने, कम छूने के रास्ते निकाल रहे हैं, यह रेस्त्रां उस दिशा में दो कदम आगे बढ़ा है।
अफसरों के फेरबदल का वक्त
विधानसभा सत्र निपटने के बाद प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है। दो-तीन कलेक्टरों के साथ-साथ कुछ विभागों के सचिवों को इधर से उधर किया जा सकता है। आदिम जाति कल्याण सचिव डीडी सिंह जून में रिटायर हो रहे हैं। राजनांदगांव कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा और पीएचई के विशेष सचिव एस प्रकाश सचिव हो गए हैं। प्रकाश से ऊपर पहले से ही सिद्धार्थ कोमल परदेशी हैं। ऐसे में प्रकाश का वहां से हटना तय है। इन सब वजहों से फेरबदल तय है।
दूसरी तरफ, रीना बाबा साहेब कंगाले वर्तमान में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पद पर हैं। चर्चा है कि सरकार ने उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी देने के लिए आयोग से अनुमति मांगी है। हालांकि इस तरह का पत्र पहले भी लिखा जा चुका है। उस समय तत्कालीन सीएस के पत्र की भाषा से मुख्य निर्वाचन आयुक्त इतने खफा हो गए थे कि अनुमति नहीं मिल पाई। देखना है कि आयोग अब अनुमति देता है, अथवा नहीं।
वैसे तो संसदीय सचिव सोनमणि बोरा के पास भी कोई काम नहीं है। मगर उनके दिल्ली जाने को लेकर इतना हल्ला मच चुका है कि उन्हें अतिरिक्त कोई जिम्मेदारी दी जाएगी, इसकी संभावना कम दिख रही है। टोपेश्वर वर्मा को कमिश्नर बनाया जा सकता है, तो बिलासपुर कमिश्नर डॉ. संजय अलंग की सचिव के रूप में महानदी भवन में वापिसी हो सकती है। कलेक्टरी के लिए वर्ष-2008 बैच के अफसर अनुराग पाण्डेय भी हैं जिनकी तरफ अब तक सरकार की नजर नहीं पड़ी है। जबकि उनसे जूनियर कई कलेक्टर बन चुके हैं।
रायपुर कलेक्टर एस भारतीदासन और कोरबा कलेक्टर किरण कौशल को भी बदले जाने की चर्चा है। कुछ लोग किरण को रायपुर कलेक्टर बनने का अंदाजा लगा रहे हैं। मगर एक बात तय है कि दोनों की कार्यक्षमता को देखते हुए महत्व किसी भी दशा में कम नहीं होने वाला है।
अभी भी रमन सिंह...
विधानसभा में बुरी हार के बाद भाजपा हाईकमान ने ढाई साल बाद पूर्व सीएम रमन सिंह की सुध ली है, और उन्हें उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार के खिलाफ असंतोष को दूर करने की जिम्मेदारी दी गई है। कुछ दिन पहले ही सीएम भूपेश बघेल ने रमन सिंह पर कटाक्ष किया था कि रमन सिंह की स्थिति पॉलिटिकल आइसोलेशन में जाने की है। पार्टी के लोग उन्हें पूछ नहीं रहे हैं। उन्हें आइसोलेशन में रख दिया है।
मगर अब जब उन्हें उत्तराखंड का पर्यवेक्षक बनाया गया, तो यह साफ हो गया कि रमन सिंह को महत्व मिल रहा है। उनकी स्थिति समकक्ष, पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे से तो बेहतर है, जिन्हें पार्टी ने पूरी तरह किनारे कर रखा है। छत्तीसगढ़ भाजपा में तो अभी भी रमन सिंह की राय के बिना कोई बड़े फैसले नहीं हो रहे हैं। यह भी संभव है कि चुनाव के आते-आते तक परिस्थिति थोड़ी बदल जाए, लेकिन अभी उनकी स्थिति पॉलिटिकल आइसोलेशन में जाने जैसी तो बिल्कुल नहीं दिख रही है।
मेडागास्कर और छत्तीसगढ़
मेडागास्कर दक्षिण अफ्रीका का 120 द्वीप समूहों वाला गणराज्य है। इन दिनों वह इसलिये चर्चा में है कि वहां भयंकर सूखा पड़ा है और दुनिया के अनेक देश उसकी मदद करने के लिये आगे आ रहे हैं जिनमें भारत भी है। मेडागास्कर की दो तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। रोचक, मिनटों में फुर्ती लाने वाला रग्बी यहां राष्ट्रीय खेल है। जिस देश की दो तिहाई आबादी पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय मानक में गरीब हो, वहां सूखे का क्या असर हुआ होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। आर्थिक स्थिति के अलावा शिक्षा व पोषण की स्थिति भी वहां चिंताजनक है।
छत्तीसगढ़ से इसकी क्या तुलना हो सकती है? बस एक-‘अमीर धरती के गरीब लोग।’ इस देश का भी इसी नाम से जिक्र किया जाता है। मेडागास्कर में विपुल वन, वन्य जीव व खनिज सम्पदा है।
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ को भी ‘अमीर धरती के गरीब लोग’ परिभाषित किया था। फिर इस पर, एक पर्यावरण पर काम करने वाले संगठन, सीएसई ने इसी शीर्षक के साथ एक मोटी किताब छापी।
छत्तीसगढ़ अलग राज्य कुछ महीनों के बाद 21 साल हो जायेगा। प्रति व्यक्ति आमदनी बढऩे, कई-कई गुना बढ़े बजट के आकार के बावजूद यहां कुपोषण-सुपोषण, शिक्षा, आर्थिक उन्नति के आंकड़े बताते हैं कि लम्बी लड़ाई जारी रखनी होगी। देश के अनेक छोटे राज्यों से भी मुकाबला करने की जरूरत है, जहां स्थिति हमारे प्रदेश से अच्छी है।
कुछ समय पहले उपभोग की क्षमता के आधार पर रिजर्व बैंक ने एक हैंडबुक तैयार किया था। इसमें बताया गया कि छत्तीसगढ़ में 39.93 प्रतिशत, यानि करीब 40 प्रतिशत लोग गरीब हैं। गोवा, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली जैसे अनेक छोटे राज्यों के मुकाबले यह बहुत खराब स्थिति है। राज्य में 56 लाख परिवार हैं, जिनमें से 33 लाख परिवारों को बीपीएल कार्ड मिले हैं। यह अलग बात है कि इनमें जांच हो तो कई सरकारी सेवक, आयकर दाता भी निकल आयें। पूर्ववर्ती सरकार ने तो करीब 8 लाख ऐसे बीपीएल कार्ड बना दिये, जिन्हें चुनाव के बाद रद्द करना पड़ा।
बहरहाल, कुछ साल पहले केन्द्र व राज्य सरकार की टीम ने एक सर्वे किया था, जिसमें पाया गया कि 73 प्रतिशत से ज्यादा सरकारी प्रायमरी स्कूलों के बच्चे अपनी किताब में लिखी जानकारी तो देना दूर, उसे पढ़ भी नहीं पाते। बड़ी संख्या में- करीब 52 फीसदी पद शिक्षकों के खाली हैं। पहली से पांचवी तक पढ़ाने का बोझ भी एक साथ है। कई स्कूलों में एक ही शिक्षक है। इन्हें ही प्रभारी प्रधान-पाठक भी बनाया गया है।
मेडागास्कर की गरीबी की वजह रिपोर्ट्स में बताई गई है- वनों में रहवास का व्यापक विनाश, पेड़ों की गैर कानूनी कटाई, झूम खेती के चलते जंगल की कटाई, खनन, जानवरों का शिकार।
बतायें, 43 प्रतिशत से ज्यादा वनों से घिरे छत्तीसगढ़ में कौन-कौन से कारण समान हैं?
अदालती फैसले किस भाषा में हों?
खासकर सेशन कोर्ट से बड़ी अदालत, जिनमें ट्रिब्यून्लस, लेबर कोर्ट्स भी शामिल हैं आदेश प्राय: अंग्रेजी में होते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे अनेक राज्य हैं जहां अदालती अंग्रेजी आम लोगों के सिर के ऊपर से गुजर जाती है। चलन में ही नहीं। न केवल अशिक्षित बल्कि पढ़े लिखे लोगों में भी। वे सब वकीलों के ही भरोसे होते हैं। ऐसे में शासन व्यवस्था की तीनों पालिकाओं के प्रमुख, राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द का कल आया यह सुझाव महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ज्यादा से ज्यादा फैसले स्थानीय भाषा में हों। फैसले अंग्रेजी में भी हों तो उसे साथ-साथ हिंदी और जरूरत के मुताबिक दूसरे स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध हों। सुप्रीम कोर्ट में मांग पर स्थानीय, जिनमें हिंदी सहित 8 और भाषायें शामिल हैं, उपलब्ध कराई जाती है। पर मूल आदेश अग्रेजी के होते हैं। निर्णय हिन्दी या भारत की अधिसूचित भाषाओं में कम ही दिये जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में हमें मई 2001 से सितम्बर 2006 तक पदस्थ जस्टिस स्वर्गीय फखरुद्दीन याद आते हैं, जिन्होंने एक महिला की अर्जी पर छत्तीसगढ़ी में फैसला दिया। यह किसी दूसरे जज ने शायद अब तक नहीं दोहराया। छत्तीसगढ़ी पृष्ठभूमि के अनेक जज हाईकोर्ट में हैं पर ऐसा नहीं करना उनका अपना विवेक है।
जस्टिस यतीन्द्र सिंह हुए। छत्तीसगढ़ में वे सन् 2012 में चीफ जस्टिस बने। करीब दो साल वे इस पद पर रहे। उन्होंने अधिकांश फैसले हिंदी में दिये और उसके बाद अनुवादक उसे अंग्रेजी में तैयार करते थे। उनका मूल फैसला हिंदी में होता था।
सन् 2016 में तब के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने एक सख्त फैसला दिया था। पीएससी 2003 के घोटाले को उन्होंने पकड़ा और सारी सूची निरस्त कर फिर से बनाने का आदेश दिया। अनेक एसडीएम, एडीएम की नौकरी जा रही थी। अभी सुप्रीम कोर्ट से स्थगन मिला हुआ है। हाल ही में इन अधिकारियों का प्रमोशन भी हो गया। इस मामले में याचिकाकर्ता थीं डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे, जिनको दलीलों के मुताबिक डिप्टी कलेक्टर पद मिलना था। जस्टिस गुप्ता ने वर्षा डोंगरे को अनुमति दी। वह खुद ही अपना वकील बनीं, हिंदी में पूरी दलील दीं। न केवल डोंगरे बल्कि जज और प्रतिवादी वकीलों ने हिंदी में ही बहस की। हर सुनवाई के दौरान कोर्ट की दर्शक दीर्घा भरी होती थी, क्योंकि सुनवाई सब समझ पा रहे थे।
अदालती फैसले अंग्रेजी में देने के पीछे तर्क यह रहा है कि इनमें उल्लेख किये गये वाक्य, शब्द डिक्शनरी में मान्य हैं। स्थानीय भाषा में उन्हीं वाक्यों, शब्दों के कई अर्थ निकल सकते हैं, जिससे अलग बहस खड़ी हो सकती है। हिंदी के साथ तो समस्या है कि वह केवल राजभाषा है, राष्ट्रभाषा नहीं।
भारतेन्दु कह गये थे- निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल।
देखें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में राष्ट्रपति की अपील का क्या असर होगा। क्या जस्टिस फखरुद्दीन और यतीन्द्र सिंह जी दोहराये जायेंगे?
खून-खून होते रिश्ते
दुर्ग जिले के पाटन में पांच लोगों की मौत। घटना ह्दय विदारक है। सुसाइडल नोट मिला है, जांच जारी है। शुरुआती जानकारी है कि मृतक घर का मालिक लगातार अपनी जायजाद बेच रहा था। बेचते-बेचते कुछ रह नहीं गया। उसे जुए, सट्टे की लत थी। उस पर 20 लाख रुपये का कर्ज था।
इधर रायपुर के उरला में एक ने अपनी बहू और उसकी मां की हत्या कर दी। बिलासपुर के नजदीक कोनी की ख़बर है। पत्नी मायके से ससुराल जाने के लिये राजी नहीं हुई तो बाप ने 13 दिन की नवजात बिटिया को जहर पिला दिया। नवजात का इलाज चल रहा है।
ये सब दहलाने वाली एक ही दिन की ख़बरें हैं। सारी घटनायें रिश्तेदारों के बीच की है। अपनों के बीच इतना तनाव, ऐसा प्रतिशोध संघर्ष क्यों हो रहा है? क्या पंचायत, पारिवारिक बैठक, समाज में संवाद और सुलह कर विवाद, तनाव घटाने की प्रक्रिया खत्म हो रही है? क्या इन घटनाओं को उनका व्यक्तिगत मामला या अपवाद मान लें? या फिर इसमें शासन-प्रशासन के विभागों जैसे समाज कल्याण विभाग, महिला बाल विकास विभाग की भी कोई भूमिका हो?
बहिष्कार पर बंटा विधायक दल
विभागवार बजट पर चर्चा के लिए अतिरिक्त समय न मिलने पर भाजपा विधायक सदन की कार्रवाई का बहिष्कार कर रहे हैं। वे पिछले दो दिनों से अनुदान मांगों पर चर्चा में भाग नहीं ले रहे हैं। मगर बजट चर्चा में हिस्सा न लेकर भाजपा सदस्यों ने सरकार को घेरने का बड़ा मौका खो दिया है। गृह जैसे दर्जनभर विभागों के बजट बिना किसी असुविधा के पारित हो गए। चर्चा है कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक खुद बहिष्कार करने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन बृजमोहन खेमे के दबाव के चलते बाहर जाना पड़ा।
सुनते हैं कि पूर्व सीएम रमन सिंह भी बजट चर्चा के बहिष्कार के फैसले से इतने नाखुश थे कि वे अगले दिन दिल्ली चले गए, और सदन की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लिया। हाल यह है कि भाजपा विधायक दल इस फैसले पर दो धड़ों में बंट गया है। भाजपा के कुछ लोग भी मानते हैं कि आसंदी का अतिरिक्त समय नहीं देने का फैसला गलत नहीं है। कौशिक खुद विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। कौशिक और कम से कम अन्य सीनियर विधायक भली भांति जानते हैं कि सदन में दल संख्या के आधार पर चर्चा के लिए समय तय किए जाते हैं। भले आसंदी चाहे तो इसमें छूट दे दे। ऐसे में अतिरिक्त समय के लिए दबाव बनाना कतई उचित नहीं था।
चर्चा है कि संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे, भाजपा विधायकों को मनाने के लिए गए थे, लेकिन विधायकों के एक खेमे का तर्क था कि विधानसभा अध्यक्ष खुद इसके लिए पहल करे। जबकि कौशिक और उनसे जुड़े विधायक मामले को ज्यादा तूल देने के पक्ष में नहीं थे। विधानसभा अध्यक्ष, इन विधायकों के तौर तरीकों से इतने खफा हैं कि वे चर्चा के लिए तैयार नहीं हैं।
अंदर की खबर यह भी है कि पार्टी हाईकमान ने भी अनुदान मांगों पर चर्चा में हिस्सा नहीं लेने के फैसले को संज्ञान में लिया है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने संगठन के प्रमुख नेताओं से बात की है। ऐसे में बहिष्कार के फैसले से हड़बड़ाए विधायक अब सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेना चाहते हैं। उनकी कोशिश है कि सत्ता पक्ष की तरफ से कोई पहल हो जाए। देखना है कि सोमवार को कोई रास्ता निकल पाता है, अथवा नहीं।
समय से पहले विधानसभा खत्म ?
विधानसभा का बजट सत्र निर्धारित समय से पहले खत्म हो सकता है। वैसे तो सत्र 26 तारीख तक चलना है, लेकिन मौजूदा हाल यह है कि 15 तारीख के आसपास खत्म हो सकता है। इसकी प्रमुख वजह दो विधायक अरूण वोरा और देवव्रत सिंह का कोरोना संक्रमित पाया जाना भी है।
दोनों विधायक सदन की कार्रवाई में हिस्सा ले रहे हैं, और अन्य विधायकों के संपर्क में भी थे। ऐसे में कुछ विधायकों ने अपना कोरोना टेस्ट भी कराया है। अब कोरोना संक्रमण के और मामले आए, तो विधानसभा का तय समय तक चल पाना मुश्किल है। अरूण और देवव्रत के संपर्क में रहने वाले विधायक डरे हुए हैं। ऐसे में समय से पहले विधानसभा खत्म हो जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अभी यह कोशिश भी हो रही है कि विधानसभा में ही तमाम विधायकों और विधानसभा स्टाफ का कोरोना टीकाकरण हो जाये।
मुजरिम को भी इंसाफ चाहिये
जांजगीर जिले का एक मामला पिछले एक पखवाड़े से चर्चा में है। एक युवक ने फरवरी माह में पुलिस महानिरीक्षक के दफ्तर के बाहर आत्महत्या की कोशिश की। उसकी अब जाकर हालत सुधरी है और पुलिस में वह बयान दर्ज कराने के लिये राजी है। घटना के तुरंत बाद पुलिस ने जो सफाई दी उसमें यह बात उसने प्रमुखता के साथ बताई कि वह आदतन अपराधी है, उसके खिलाफ आठ मामले दर्ज हैं। जब वह हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया तो हालत इतनी खराब थी कि कई दिन तक होश में भी नहीं आया। उसे उसी हाल में हथकड़ी पहना दी गई। जब पुलिस से पूछा गया कि जो होश में ही नहीं उसके साथ ऐसा क्यों? पुलिस का कहना था कि उसके भागने का खतरा था। मामले ने तूल पकड़ा तो हथकड़ी निकाली गई। अब होश में आने के बाद वह जहर पीने की वजह बता रहा है कि उसकी पत्नी के साथ गांव के एक रसूखदार ने घर के भीतर घुसकर छेड़छाड़ की। जब वह थानेदार के पास शिकायत के लिये पहुंचा तो उसे भगा दिया गया, उल्टे उसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की धमकी दी। आईजी साहब तो थे नहीं, जो मौजूद थे उन्होंने न्याय का कोई आश्वासन नहीं दिया।
पुलिस अपनी छबि सुधारने के लिये बहुत से कार्यक्रम करती है। चौपाल लगाती है। आम लोगों से मित्रता के लिये अभियान चलाती है, पर जब ऐसे मामले सामने आते हैं तो समझ में आता है कि जनता और पुलिस के बीच आखिर दूरी क्यों है? जिन पहले के अपराधों में खुदकुशी की कोशिश करने वाला जिम्मेदार है, उस पर तो कानून, अदालत काम करेगी, पर उसके साथ कोई नाइंसाफी हो रही हो तो क्या उसे आवाज़ उठाने का हक नहीं?
क्या शराबबंदी इसलिये नहीं?
शराब पर लगाये गये अतिरिक्त कर, सेस का इस्तेमाल स्वास्थ्य विभाग की अधोसंरचना में विकास के लिये लगाया गया कर उस काम के लिये खर्च किया ही नहीं गया। पहले देसी पर 10 रुपये, अंग्रेजी पर 10 प्रतिशत फिर बाद में 5 रुपये और सेस लगाया गया। खर्च कहां किया गया, विधानसभा में विपक्ष को संतोषजनक जवाब मिला ही नहीं। वे महालेखाकार से शिकायत करने पहुंचे थे। यह अलग बात है कि उनकी सरकार के दौरान इससे कई गुना गड़बड़ी होती रही। सन् 2017 में महालेखाकार ने 3000 करोड़ की गड़बड़ी अपनी रिपोर्ट में सार्वजनिक की थी। समाज विज्ञान के विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं ने कई बार बताया है कि शराब के चलते न केवल स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च कई गुना बढ़ जाता है बल्कि सडक़ दुर्घटनाओं और अपराधों में वृद्धि होती है। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने अब ढाई साल निकाल दिये हैं। शराबबंदी उन वादों में शामिल है जिन्हें पूरा करने को लेकर वह हिचकिचा रही है। शराब पर मिलने वाला टैक्स तो अपनी जगह है ही, कहीं कल को उनकी समिति यह रिपोर्ट नहीं दे दे, कि जरूरी कामों के लिये सेस सिर्फ शराब पर लगाया जा सकता है इसलिये फिलहाल शराबबंदी नामुमकिन है।
लिविंग इन्डेक्स पर खुश हो जायें
रायपुर और बिलासपुर दोनों को लिविंग इन्डेक्स में केन्द्र सरकार की सर्वे एजेंसियों ने टॉप टेन में जगह दी है। ये आंकड़े किस तरह इक_े किये जाते हैं, इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती है पर जब रिपोर्ट आती है तो वह पहले पन्ने की ख़बर बनती है। रायपुर और बिलासपुर दोनों ही बड़े शहर हैं। कोरबा भी एक बड़ा शहर है। शायद वह औद्योगिक प्रदूषण के कारण पीछे रह गया होगा। लेकिन इन तीनों शहरों में एक समान बात है कि सिटी बस सेवायें चरमरा चुकी हैं। कोरोना के बाद हालत और बुरी हुई है। जहां नागरिकों को आसान, सस्ती, सुलभ परिवहन सेवा न हो उन्हें रहने के लिये बेहतर शहर के रूप में गिना कैसे जा सकता है। शायद सर्वे में उन आम लोगों को शामिल होने का मौका नहीं मिला, जो इस तकलीफ को भोग रहे हैं।
पुलिस महकमे में ट्रांसजेंडर
इस समुदाय के लिये यह भर्ती इतिहास में दर्ज हो गई। रायपुर जिले से आठ, राजनांदगांव से दो तथा बिलासपुर, कोरबा और सरगुजा से एक-एक ट्रांसजेंडर को पुलिस में नौकरी मिली है। समाज में ज्यादातर लोग इन्हें गंभीरता से नहीं लेते। वे कटे से अलग रहते हैं। पर इस भर्ती ने उन्हें सहज, सम्मानजनक जीवन बिताने का रास्ता दिखाया है।
रायपुर में विद्या राजपूत जैसी अनेक ट्रांसजेंडर अपने वर्ग को आगे बढ़ाने के लिये काम कर रही हैं और बिना किसी संकोच अधिकारियों, संस्थाओं से मिलकर न केवल अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहीं, बल्कि आम लोगों की सोच बदलने की कोशिश कर रही हैं।
समय-समय पर किन्नरों ने अपनी काबिलियत मौका मिलने पर साबित भी किया। रायगढ़ में मधु किन्नर महापौर बनीं तो अनेक लोगों ने राजनीति में किस्मत आजमाई। इन्हें शहडोल की विधायक रहीं शबनम मौसी से भी प्रेरणा मिली ही होगी। आज से छह सात साल पहले खबर आ ही चुकी है कि कोयम्बटूर में लोटस टीवी ने पहली बार एक ट्रांसजेंडर पद्मिनी प्रकाश को न्यूज एंकर बनाया था। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की महिला कॉलेज में मानबी बेनर्जी प्राचार्य नियुक्त हुईं। टीवी कार्यक्रमों में अपने सुलझे हुए विचारों के चलते लोकप्रिय हुईं लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने तो बाद में किन्नर अखाड़ा बनाया। इन्हें संत समाज ने महामंडलेश्वर का दर्जा भी दे दिया है। उन्होंने परम्परा से हटकर किन्नर अखाड़ा महिला, पुरुष सबके लिये खोल रखा है।
छत्तीसगढ़ पुलिस में शामिल ट्रांसजेंडर्स ने बताया कि किस तरह तरह अपमान सहते हुए वे आगे बढऩे का साहस बनाकर रखा, खुद को मजबूत रखा, हौसला टूटने नहीं दिया। स्कूल के शौचालय में बाहर से दरवाजा बंद कर दिया जाता था। ट्रकों में क्लीनर, हेल्पर और बर्तन मांजने, झाड़ू-पोछा लगाने तक का काम किया।
केन्द्र की सामाजिक अधिकारिता न्याय मंत्रालय ने इन्हें समान अधिकार दिलाने के लिये सन् 2019 में एक अधिनियम बनाया था, जिसे बीते 10 जनवरी से लागू किया जा चुका है। उम्मीद करनी चाहिये कि समाज के साथ-साथ प्रशासन की सोच भी उनके लिये बदलेगी।
टीसी नहीं मिलने पर खुदकुशी ?
पुलिस ने सिमगा जिले के एक प्राइवेट स्कूल संचालक को बीते 3 मार्च को गिरफ्तार किया है। बेमेतरा के किरीतपुर गांव के एक 52 साल के व्यक्ति ने दिसम्बर महीने में जहर खा लिया। अस्पताल में उसकी मौत हो गई। पुलिस की जांच चलती रही। पुलिस ने परिवार वालों, स्कूल स्टाफ और बच्चों से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि स्कूल संचालक बच्चों की टीसी देने से मना कर रहा था। वह पैसे मांग रहा था। हो सकता है यह बकाया फीस के नाम पर मांगा जा रहा हो।
कोरोना लॉकडाउन के दौरान लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हुई तो इसका असर सबसे ज्यादा बच्चों पर पड़ा। वे स्कूल तो नहीं जा पाये, पर ज्यादातर निजी स्कूलों में स्कूल फीस के लिये कोई नरमी नहीं दिखाई। फीस वसूली के लिये ऑनलाइन पढ़ाई में उन्हें आईडी पासवर्ड नहीं दिये जाते थे। इसका विवाद अब तक चल रहा है। स्कूलों को समितियां बनाने का निर्देश दिया गया है, जिनमें पालक भी शामिल होंगे। फीस बढ़ाने की वजह बतानी होगी और अनुमोदन के बाद ही वृद्धि की जा सकेगी। लेकिन अधिकांश स्कूलों में समितियां नहीं बनी है और पहले की तरह फीस वसूली जा रही है। फीस को लेकर हाईकोर्ट में भी याचिकायें लगाई गई हैं।
प्राय: देखा गया है कि नियमों को लागू कराने प्रशासन और स्कूल शिक्षा विभाग कड़ाई नहीं बरतता। निजी स्कूलों के साथ उनकी साठगांठ होने की बात भी आती है। जिस अभिभावक ने खुदकुशी कर ली वह शिक्षा अधिकारियों से शिकायत भी कर सकता था, पर शायद उसे अधिकारियों पर भरोसा नहीं था। या फिर इस रास्ते के बारे में पता नहीं रहा होगा। पर, टीसी पाने के में विफल होने के बाद उठाये गये उसके आत्मघाती कदम ने बच्चों के भविष्य को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है, जिनकी उसे फिक्र थी।
वैक्सीन लगवाने के बाद मौत
कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिये बुजुर्गों में बड़ा उत्साह दिखाई है। इतना तो स्वास्थ्य विभाग के कार्यकर्ताओं की बारी चल रही थी तब नहीं देखा गया। पर इसी बीच एक अप्रिय सूचना यह आई कि जांजगीर की एक वृद्धा की कोरोना टीका लगवाने के 18 घंटे बाद मौत हो गई। यह महिला एक दिन पहले ही अस्पताल से लौटी थी और बताया गया कि उसे शुगर व सांस की तकलीफ थी। परिजनों ने पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि परिजनों ने इसे स्वाभाविक मौत माना और इसकी जरूरत नहीं समझी।
वैक्सीनेशन की मुहिम शुरू की गई तो यह बात कही गई थी कि जिन्हें बीमारी के लक्षण हों, सर्दी, खांसी, बुखार हो उन्हें इंजेक्शन नहीं लगाया जायेगा।
स्वास्थ्य विभाग की ओर से फील्ड में काम करने वालों को साफ बताना चाहिये कि किन बीमारियों में टीका नहीं लगेगा और किनमें लगेगा। यदि कोई मरीज सिर्फ यह बता देता है कि वह स्वस्थ है तो क्या उसका कहना काफी है, या फिर उसके दावे को क्रॉस चेक करने के लिये स्वास्थ्य विभाग ने कोई सिस्टम बनाया है?
पूर्व विधायक का फेसबुक पेज हैक?
जैसे-जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ रहा है, और लोग घर-दफ्तर के कम्प्यूटर से परे भी दूसरों के कम्प्यूटरों से अपने सोशल मीडिया पेज खोलने लगे हैं, उनके पेज में घुसपैठ बढऩे लगी है। आज दोपहर राजिम के पूर्व विधायक संतोष उपाध्याय ने पुलिस में शिकायत की है कि उनके फेसबुक के वेरीफाईड पेज पर वे खुद भी आज नहीं पहुंच पा रहे हैं, उनका लॉगइन बंद हो गया है। उन्होंने शक जाहिर किया है कि उनके पेज को हैक कर लिया गया है।
फेसबुक पर हर दिन ही कुछ लोगों का लिखा हुआ पढऩे मिलता है कि उनके नाम से कोई नकली पेज तैयार कर लिया गया है जिसमें उनकी असली फोटो लगाई गई है, और उस अकाऊंट से उनके दोस्तों को संदेश भेजकर कोई जालसाज कर्ज मांग रहा है। लोग ऐसी सावधानी के साथ यह अपील भी जारी करते हैं कि कोई ऐसे धोखेबाजों को पैसा न दे।
ऐसी दर्जनों किस्म की जालसाजी और धोखाधड़ी के खतरे से बचने का एक तरीका यह भी है कि लोग हर महीने-दो महीने में अपना पासवर्ड बदल दें। यही काम एटीएम के पिन नंबर के साथ भी होना चाहिए, ईमेल का पासवर्ड भी हर कुछ महीनों में बदल लेना चाहिए। इंटरनेट पर सर्च करें तो यह दिख जाता है कि सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले पासवर्ड कौन से रहते हैं, वैसे पासवर्ड बनाने से बचना चाहिए।
आठ करोड़ रुपये के जाली नोट
वैसे प्रधानमंत्री कभी भुलाये नहीं जाते हैं क्योंकि जैसे ही कोई न्यूज़ चैनल खोलें, उनकी ख़बर या तस्वीर आ जाती है। पर, आज उनका वह बयान याद आ रहा है जिसमें नोटबंदी करते वक्त उन्होंने कहा था कि अब नकली नोट बाजार में लाने वालों का खेल खत्म। कुछ नहीं, केवल 8 करोड़ रुपये के नकली नोट हमारी सजग पुलिस ने आंध्रप्रदेश, ओडिशा की सीमा पर जांच के दौरान एक कार से जब्त कर लिये। आज, एक न्यूज़ चैनल की एंकर भी याद आ रही हैं जिन्होंने रहस्योद्घाटन किया था कि असली नोटों में चिप लगी होती हैं।
हैरानी यह है कि जांजगीर-चाम्पा से रायपुर आकर के जिन लोगों ने नकली नोट छापे, वे बेरोजगार नहीं हैं बल्कि उनमें एक फैक्ट्री का इंजीनियर भी है।
आपको क्या लगता है कि क्या ये लोग पहली बार में ही धरे गये। इससे पहले इन्होंने दूसरे राज्यों में या अपने प्रदेश में नकली नोट नहीं खपाये होंगे? असली-नकली नोट पता नहीं किन-किन राज्यों से गुजर कर आपके हाथ में भी वापस आ गये होंगे। ज्यादा तनाव लेने की जरूरत नहीं है। यदि आप एक साथ तीन नकली नोट किसी को थमाते हैं, तभी आप पर केस बन सकता है। अनजाने में एक या दो नकली नोट आपके व्यवहार में आ गया होगा, तो आपका दोष नहीं। बस आशंका हो तो शिकायत कर दें।
मान गये सिंहदेव
को-वैक्सीन के 72 हजार से ज्यादा टीके स्वास्थ्य विभाग के गोदाम में पड़े हुए हैं। इसे इस्तेमाल नहीं करने की घोषणा स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कर दी थी। राज्य टीकाकरण अधिकारी समेत स्वास्थ्य विभाग के दूसरे अफसरों ने भी मंत्री की हां में हां मिलाई। इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके बाद केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से सपत्नीक को-वैक्सीन टीका ही लगवाया। एक तरह से यह भी तो तीसरे चरण का ट्रायल था। जब शीर्ष नेता बेखौफ हैं तो बाकी की क्या बिसात कि विरोध करें। उनके टीका लगवाने पर कोई प्रतिक्रिया दी जाती, इसके पहले ही तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे भी आ गये। इसी की तो दरकार थी। जैसी जानकारी निकली है, 80 फीसदी से ज्यादा सफलता तीसरे चरण के ट्रायल में मिली है। इस आंकड़े के बाद सिंहदेव का बयान आया है कि वे न केवल को-वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाजत देंगे बल्कि पहला टीका भी वे ही लगवायेंगे।
अच्छा है इस मामले में राजनीति खत्म हो गई।
मीडिया के लिये बड़ा संकट
वैसे भी अधिकारी पत्रकारों से कन्नी काटते हैं। राजनीति से जुड़े लोग पत्रकारों की तब खिदमत करते हैं जब उन्हें भरोसा होता है कि इनके लिखने, छापने से उनका वजन बढ़ेगा। पर अब आम लोगों का भरोसा टूटने के दौर में हैं हम। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दौर में कुछ सीमायें थीं पर वेब पोर्टल आने के बाद हर शहर, गांव में हर दूसरे चौथे घर में एक पत्रकार पैदा हो चुका है। इनमें बहुत से लोग गंभीर हैं और अपने दायित्व को समझते हैं। पर कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने इसकी आड़ में न केवल अफसरों, जनप्रतिनिधियों और आम नागरिकों की नाक में दम कर रखा है बल्कि मुख्य धारा मे रहकर पत्रकारिता करने वालों को शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बीते माह मुंगेली के एक फारेस्ट रेंजर से एक करोड़ 40 लाख रुपये वसूल करने के आरोप में एक युवती सहित दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया। दोनों को जेल भेजा गया। अब जांजगीर-चाम्पा में कांग्रेस नेता को मारने के लिये दो कथित पत्रकारों ने 10 लाख रुपये की सुपारी ली। जिसे मारने के लिये सुपारी ली गई, उनसे भी वसूली की गई। दोनों व्यक्ति गिरफ्तार कर लिये गये हैं। जो लोग पत्रकारिता से जुड़े हैं उन्हें भी समझना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति इस पेशे में आ रहा है उसकी नीयत, नजरिया क्या है फिर आम लोग इसे कैसे समझेंगे? छत्तीसगढ़ सरकार इस पेशे से जुड़े लोगों को बड़ी उदारता से मान्यता देने की नीति पर काम कर रही है। आने वाले दिन इसके क्या खतरे हैं इन घटनाओं से समझ सकते हैं।