राजपथ - जनपथ
कोरोना पर सुविधाजनक गाइडलाइन
महाराष्ट्र के साथ-साथ ओडिशा भी उन राज्यों में शामिल है जहां कोरोना के बढ़ते प्रकोप के चलते पाबंदियां कुछ कड़ी की गई है। दूसरे राज्यों से आने वाले यात्रियों के लिये सात दिन का होम क्वारंटीन यहां जरूरी है।
अब हो रही है रेलवे भर्ती बोर्ड परीक्षा। छत्तीसगढ़ से सैकड़ों परीक्षार्थी हैं जिनका परीक्षा केन्द्र भुवनेश्वर है। इनके सामने समस्या आ गई कि वे ओडिशा पहुंचने के बाद क्वारंटीन पर रहें या परीक्षा दें। रेलवे बोर्ड ने ओडिशा सरकार से इस समस्या पर बात की और अब यह तय है कि उन्हें क्वारांटीन पर नहीं रहना पड़ेगा। ढील चाहे किसी भी वजह से दी गई हो, यदि खतरा निश्चित है तो किसी को भी क्वारंटीन में छूट क्यों? यदि खतरा नहीं है तो बाकी लोगों पर पाबंदियां क्यों?
अपने छत्तीसगढ़ में ही देख रहे हैं कि दूसरे राज्यों खासकर महाराष्ट्र और ओडिशा से प्रदेश की सीमा पर प्रवेश करने वालों की चेकिंग करने का निर्देश जारी किया गया है, पर क्या यह हो रहा है? रेलवे ने ज्यादातर मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों को स्पेशल के ही नाम पर सही चालू कर दिया है। यहां तक कि कुछ पैसेंजर ट्रेनों की भी महाराष्ट्र (गोंदिया आदि) और ओडिशा (झारसुगुड़ा) आवाजाही हो रही है। इनमें आ जा रहे यात्रियों की चेकिंग के लिये तो रेलवे ने भी हाथ खड़े कर दिये हैं।
इसलिये, कोरोना से बचे हैं तो आपकी किस्मत।
गुलाबी पर भारी सफेद प्याज
प्याज के दाम आंसू निकालने लगे थे। छत्तीसगढ़ में लाल-गुलाबी प्याज का ही चलन रहा है, पर इस बार सफेद प्याज भी बाजार में आये हैं। सफेद प्याज इस्तेमाल करने वालों ने पहले इसकी गुणवत्ता और उपयोगिता की तहकीकात की। पता चला कि यह तो प्रचलन की लाल-गुलाबी प्याज से भी ज्यादा गुणकारी है। आयुर्वेद के पन्ने बताते हैं कि पथरी, एनीमिया, ह्रदयरोग, जोड़ों के दर्द, पुरुषत्व के लिये फायदेमंद है। सफेद प्याज की मांग रायपुर के बाजारों में इसलिये बढ़ी क्योंकि सामान्य प्याज की कीमत ज्यादा हो रही थी। दाम 55-60 रुपये तक पहुंच चुके थे। इधर सफेद प्याज आई और 30 से 40 रुपये में मिलने लगी। बाजार मांग और आपूर्ति के गणित पर टिका है। अलीबाग, सूरत, भावनगर, अलवर, भरतपुर आदि राजस्थान और गुजरात के जिलों में इसका विपुल उत्पादन है। वहां ये 5-10 रुपये किलो में भी मिल जाता है। परिवहन और मुनाफा जोडऩे के बाद भी प्रचलित प्याज से कम दाम पर यह बाजार में उतर रहा है। नागपुर के बाजारों में सफ़ेद प्याज खूब चलता है।
नया किसान कानून इजाजत देता है कि सफेद प्याज की भी डम्पिंग कर दें। फिर दाम क्या होगा?
एसपी की पाठशाला
अखिल भारतीय और राज्य सेवा में पहुंचने के लिये कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। सफलता के बाद का संतोष पूरे जीवन को आनंदित कर सकता है। हजारों युवाओं की आंखों में इसका सपना तैरता है पर अवसर नहीं मिलते। अवसर हों भी तो नामुमकिन मानकर कोशिश नहीं करते।
नये बने गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले के पुलिस अधीक्षक एसएस परिहार ने भी बड़ी कोशिशों के बाद अपना मुकाम हासिल किया। सोशल मीडिया पर उनके सैकड़ों वीडियो और हजारों दर्शक हैं, जिनमें शीर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं को आजमाने के टिप्स हैं। अनेक विशेषज्ञों के साथ उन्होंने बातचीत भी इनमें डाल रखी है। अब एक और पहल की। उन्होंने गौरेला में एक लाइब्रेरी खोल दी। इसमें प्रतियोगी परीक्षाओं के काम आने वाली किताबें, मैग्जीन और अख़बार हैं। एक सुविधाजनक स्टडी सेंटर है। पिछले पखवाड़े शुरू की गई लाइब्रेरी में 100 से ज्यादा लोगों ने सदस्यता ले ली है, जो बढ़ती जा रही है। संचालन आसान हो इसके लिये थोड़ा सा शुल्क है पर बीपीएल, नि:शक्त, एसटी एससी वर्ग के लिये यह सुविधा मुफ्त रखी गई है।
छत्तीसगढ़ में बीते दो-तीन साल के भीतर देखा गया है कि आदिवासी अंचल के युवाओं ने शीर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बड़ी कामयाबी हासिल की है, खासकर बस्तर से। जीपीएम एसपी ने यह करके बता रहे हैं कि प्रशासनिक सेवाओं में पहुंचना, हौवा नहीं है। यह परिश्रम करने वाले हर एक युवा को हासिल हो सकता है।
बस जब उनका तबादला हो तब भी ये लाइब्रेरी चलती रहे, इसकी व्यवस्था हो जाये।
बड़े काम का श्रेय किसी एक को नहीं...
बिलासपुर से हवाई सेवा शुरू होने के मौके पर रखे गये समारोह में मंच पर सभी दलों के नेता थे, लेकिन विपक्ष के नेता भारी पड़ रहे थे। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने अपनी बारी आई तो गिनाया कि छत्तीसगढ़ राज्य बना, हाईकोर्ट और रेलवे जोन बिलासपुर को मिला तब अटल बिहारी बाजपेयी ही प्रधानमंत्री थे। और आज जब यहां से हवाई सुविधा शुरू हुई है, तब भी केन्द्र में भाजपा की सरकार है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है। (वैसे कांग्रेस के कार्यकाल में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, एनटीपीसी और एसईसीएल मिला है, जो अपने वक्त की बड़ी मांगें थीं।)
बस, फिर क्या था- मंच के सामने एकजुट होकर बैठे भाजपाईयों ने मोदी, मोदी, मोदी, नारे लगाना शुरू कर दिया। जिले के प्रभारी मंत्री गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू की बारी आई तो उन्होंने धीमे से पलटवार किया। सब मोदी ही दे रहे हैं तो कौशिक जी बतायें कि पिछले कार्यकाल में जब डॉ. रमन सिंह सीएम थे और दिल्ली में मोदी की ही सरकार थी, तब हवाई सुविधा शुरू क्यों नहीं हुई? यह तो भूपेश बघेल जी हैं, जिन्होंने हवाईअड्डे के लिये 27 करोड़ रुपये मंजूर कर दिये, जिसके चलते हवाईपट्टी तैयार हो पाई और उड़ानें चालू हुईं। आगे बात समेटते हुए साहू ने कहा कि जब कोई बड़ा काम होता है तो सबका योगदान रहता है। किसी एक दल या किसी एक व्यक्ति को श्रेय नहीं जाता।
जिला प्रशासन ने 30 से ज्यादा विशिष्ट अतिथि बुलाकर कार्यक्रम को गैर राजनीतिक बनाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन तमाम नेता एक मंच पर बैठे हों तो राजनीति घुसनी ही थी।
पुलिस एक लिस्ट इनकी भी बनाये..
एक सप्ताह में दूसरी बार कांग्रेस नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं की हरकतों से शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है। किसी लडक़ी से अश्लील हरकत करते हुए वीडियो कॉल वायरल होने के बाद कोंडागांव के शहर कांग्रेस अध्यक्ष जितेन्द्र दुबे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब अम्बिकापुर से युवक कांग्रेस के प्रदेश सचिव दीपक मिश्रा के खिलाफ थाने में घुसकर एक सिपाही से मारपीट करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है। महकमे के जवान पर हुए हमले के बावजूद पुलिस दबाव में थी और घंटों बाद रिपोर्ट लिखी जा सकी। प्रदेश युवक कांग्रेस ने अपने पदाधिकारी को पार्टी के पद से हटाते हुए जांच कमेटी बनाई गई है और पुलिस से निष्पक्ष कार्रवाई करने के लिये कहा है। मालूम तो यह भी हुआ है मारपीट में शामिल अन्य लोगों में एक और व्यक्ति कांग्रेस में किसी पद पर नहीं है लेकिन एक मंत्री का करीबी है।
भाजपा ने सतर्क विपक्ष की तरह दोनों मुद्दों को हाथों-हाथ लिया, लेकिन एक दो मामले तो उनकी पार्टी में भी कुछ दिन पहले ही हुए। दिसम्बर माह में राजनांदगांव में एक भाजपा पार्षद गगन आईच पर सरेराह दो युवतियों से छेड़छाड़, गाली-गलौच और और मारपीट का आरोप लगा। पुलिस ने करीब आधा दर्जन धाराओं में उसके खिलाफ अपराध दर्ज किया। इसी जिले के खैरागढ़ में एक भाजपा नेता और पूर्व पार्षद शेष नारायण यादव के खिलाफ छेडख़ानी और मारपीट का अपराध दर्ज किया गया। यह घटना बीते 26 जनवरी की है। पीडि़ता गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होकर लौटी थी। डोंगरगांव में मानव तस्करी का मामले की जांच में पुलिस गहराई में उतरी तो पता चला कि यह तो एक संगठित गिरोह चलाने वालों का काम है। इसमें रायपुर से गिरफ्तार महिला गंगा पांडे भाजपा से जुडी थी और उसके पति को एक पूर्व मंत्री का करीबी होने की बात भी सामने आई।
छत्तीसगढ़ में अपराधों का ग्राफ ऊपर जा रहा है। भाजपा तो अभी-अभी इसे अपराधगढ़ कहा था। ऐसे मामले सामने आते जायेंगे तो पुलिस का काम बढ़ जायेगा। एक अलग कॉलम बनाकर रिकॉर्ड रखना होगा कि अपराधियों, आरोपियों में नेतागिरी करने वालों की तादात कितनी है।
कोरोना हुआ तो पालक जिम्मेदार!
नवमीं और 11वीं की परीक्षायें ऑफलाइन मोड में लेने की छूट मिलने के बाद केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल की वार्षिक परीक्षायें शुरू हो गईं। ऑफलाइन क्लासेस में बच्चों की उपस्थिति जहां 10-20 फीसदी ही चल रही थी, वहीं मामला परीक्षा का था, इसलिये अधिकांश स्कूलों में 100 प्रतिशत उपस्थिति देखी जा रही है। हालांकि पालक चिंतित भी हैं। राजधानी के एक बड़े स्कूल में तो पालक अड़ गये। ऑफलाइन परीक्षा के लिये बच्चों को भेजने से मना कर दिया। मजबूरन स्कूल को परीक्षायें रद्द करनी पड़ी। पालकों के विरोध की एक वजह है कि ऑनलाइन पैटर्न में पूरी क्लासेस चली, जिसमें सीखने-समझने का तरीका अलग था। अब केवल परीक्षा क्यों ऑफलाइन ली जा रही है। हैरानी यह है कि कई स्कूल प्रबंधक स्कूल आने वाले छात्र-छात्राओं के पालकों से एक फॉर्म पर दस्तखत भी करा रहे हैं। इसमें लिखा गया है कि यदि बच्चों को कोरोना होगा तो स्कूल प्रबंधन नहीं, पालक ही जिम्मेदार होंगे। यह फॉर्म किसके निर्देश पर भरवाया जा रहा है? शादी, ब्याह, त्यौहारों में भीड़ इक_ी होने पर सरकार ने साफ-साफ निर्देश जारी किया है कि इसके लिये आयोजक जिम्मेदार होंगे। फिर स्कूलों में ऐसा क्यों? स्कूलों में बच्चों को बुलाकर एक जगह इक_ा कर रहा है प्रबंधन, और कोई कोरोना से पीडि़त हो जाये तो जिम्मेदार अभिभावक?
प्रायोगिक परीक्षाओं के बाद सन्नाटा
कोर्स पूरा हो न हो प्रायोगिक परीक्षाओं की रिपोर्ट तो अच्छी है। माध्यमिक शिक्षा मंडल के पास पहुंचे आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी स्कूलों में ऑफलाइन मोड पर ली गई प्रायोगिक परीक्षायें पूरी हो गई है। कुछ ही स्कूल बच गये हैं। प्रायोगिक परीक्षायें कोरोना काल से पहले भी औपचारिक हुआ करती थीं। अब तो शिक्षकों ने और भी उदारता बरती। ये मार्कशीट में नंबर सुधारने के काम आयेंगे। स्कूलों को खोलने के निर्देश के बाद भी अधिकांश जगह छात्र सिर्फ प्रायोगिक परीक्षा देने पहुंचे। उसके बाद फिर से सन्नाटा पसरा हुआ है। छात्रों, पालकों की बस ये चिंता है कि ऑनलाइन पढ़ाई जो ठीक से हुई नहीं, उसके बावजूद उन्हें कक्षाओं में मौजूद रहकर ऑफलाइन परीक्षा दिलानी है। पता नहीं क्या रिजल्ट आये।
बड़ी के नाम पर बड़ा घोटाला?
स्कूल शिक्षा विभाग ने सोयाबीन बड़ी की खरीदी के नाम पर बड़ा घोटाला कर दिया। ऐसा आरोप विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने लगाया। आरोप लगाते हुए उन्होंने यह चूक कर दी कि इसे प्राइवेट कम्पनी से की गई खरीदी बता दी। स्कूल शिक्षा मंत्री ने साफ किया कि किसी निजी कम्पनी से नहीं बल्कि बीज विकास निगम के माध्यम से खरीदी की गई है। दो सवाल रह गये, एक बीज निगम ने खरीदी किससे की, क्या वह प्राइवेट पार्टी थी। दूसरा, जब बाजार में 55-60 रुपये में बड़ी मिल रही है तो 105 रुपये किलो में किस आधार पर खरीदी की गई? जबाब आना बाकी है।
ब्याज के ही 5 हजार करोड़
छत्तीसगढ़ राज्य जब बना था तो इसका पहला बजट सिर्फ 6500 करोड़ रुपये का था और इसी के आसपास लगातार कई वर्षों तक यह चलता रहा। पहले तीन सालों में पेश किये गये बजट में दूसरे राज्यों के मुकाबले स्थापना व्यय कम करीब 34 प्रतिशत, होने को उपलब्धि के तौर पर गिना जाता था। छत्तीसगढ़ को वन, खनिज सम्पदायुक्त राज्य होने के कारण काफी धनी राज्य भी माना गया। बजट का दायरा भी एक लाख करोड़ को पार कर चुका है। पर आज स्थिति यह है कि राज्य सरकार पर 70 हजार करोड़ रुपये के कर्ज का बोझ है। इनमें से 42 हजार करोड़ पिछली सरकार का है तो बाकी कांग्रेस की दुबारा बनी सरकार का। इस राशि के ब्याज में ही 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा जा रहे हैं जो दो तीन बड़े विभागों के कुल बजट के बराबर है। विपक्ष की यह चिंता जायज है कि ये कर्ज विकास के किसी काम नहीं लगाये गये, बल्कि लोगों को अनुदान, प्रोत्साहन, राहत बांटने में खर्च किये जा रहे हैं। क्या ग्रामीण अर्थव्यस्था में इस रकम से इतना सुधार हो पायेगा कि वे सरकार का राजस्व बढ़ाने और कर्ज चुकाने में मदद करे?
यह नाम भी घर की बच्ची का !
लोग अपनी गाडिय़ों पर कहीं धर्म का नाम लिखवा लेते हैं, तो कहीं जाति का। डॉक्टर और वकील, सीए और पत्रकार अपने पेशे के निशान गाडिय़ों पर चिपका लेते हैं ताकि उनका जितना असर होना है हो जाए। बहुत से लोग अपने बच्चों के नाम लिखवा लेते हैं जिससे बच्चों के प्रति उनके प्रेम के साथ-साथ उनका धर्म, और कभी-कभी उनकी जाति भी उजागर होती है। ऐसे में अभी एक गाड़ी छत्तीसगढ़ विधानसभा के पास सडक़ पर देखने मिली जो गैस सिलेंडर भरकर ले जा रही थी। गाड़ी का नंबर प्लेट राजस्थान का दिख रहा था, और पीछे तीन नाम लिखे हुए थे, भाटी, भेड़, और बबलु। अब इन नामों को देखकर हैरानी होती है कि क्या किसी बच्ची का नाम भेड़ है, या घर की भेड़ को भी बच्चों की तरह ऐसे पाला जा रहा है कि उसका नाम भी गाड़ी पर लिखवाया गया है!
अफसर और अतिथि
पिछले दिनों दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म अवॉर्ड फंक्शन में फिल्मी हस्तियों को अवॉर्ड बांटकर टूरिज्म बोर्ड की एमडी रानू साहू सुर्खियों में आ गईं। अवॉर्ड फंक्शन में रानू साहू बतौर अतिथि मौजूद थीं। उन्होंने अभिनेत्री सुष्मिता सेन और राधिका मदान को अवॉर्ड प्रदान किया। अब कार्यक्रम में शामिल होने के लिए विधिवत अनुमति ली है अथवा नहीं, इसको लेकर प्रशासनिक हल्कों में कानाफूसी शुरू हो गई है।
कार्यक्रम का वीडियो क्लिप वायरल होने के बाद यह भी पता लगाया जा रहा है कि बोर्ड की तरफ से कोई अनुदान तो नहीं दिया गया है। क्योंकि बोर्ड तकरीबन दिवालिया होने के कगार पर है। कुछ साल पहले इंडोर स्टेडियम में आयोजित केबीसी के कार्यक्रम में दो अफसरों ने अमिताभ बच्चन के साथ ठुमके क्या लगा दिए थे, उन्हें नोटिस थमा दिया गया था। रानू साहू के मामले में क्या होता है, यह देखना है।
जोगी पार्टी एनडीए की...
खबर है कि जोगी पार्टी एनडीए का हिस्सा बनना चाहती है। अमित जोगी इसके लिए कोशिश भी कर रहे हैं। अमित की इस सिलसिले में केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले से बात भी हुई है। वैसे तो एनडीए का हिस्सा न होने के बावजूद जोगी पार्टी और भाजपा के बीच बेहतर तालमेल है। विधानसभा में दोनों ही एक-दूसरे के साथ खड़े नजर आते हैं।
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में भी जोगी पार्टी ने कई जगह भाजपा को सपोर्ट किया था। जोगी परिवार जब कांग्रेस में था, तब भी उन पर भाजपा के साथ सांठ-गांठ कर कांग्रेस के लोगों को हराने का आरोप लगता था। अब जब भाजपा के साथ खुलकर दिख रहे हैं, ऐसे में देर सवेर एनडीए का हिस्सा बन जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
धान के बोनस पर ग्रहण तो नहीं लगेगा?
धान खरीदी पर किसानों को 2500 रुपये का भुगतान करने का पेंच फंसता जा रहा है। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ मुख्यमंत्री की बातचीत उन्हीं के शब्दों में ‘निराशाजनक’ रही है। केन्द्र को समर्थन मूल्य से अधिक कीमत पर धान खरीदने पर आपत्ति है। इससे छत्तीसगढ़ से खरीदा गया धान और उससे बने चावल का एफसीआई में समायोजन नहीं हो पा रहा है। यदि केन्द्र का रुख नरम नहीं होता है तो छत्तीसगढ़ को भारी आर्थिक नुकसान होना तय है।
केन्द्र ने राज्य सरकार की इस दलील को मानने से इंकार कर दिया है कि राजीव गांधी किसान न्याय योजना, केन्द्र की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जैसी ही है। इसे धान पर ही समर्थन मूल्य के अतिरिक्त दी जाने वाली राशि के तौर पर देखा जा रहा है, जो सच भी है। राजीव न्याय योजना को जब तक धान से अलग नहीं किया जायेगा, धान के उठाव में केन्द्र के साथ तनातनी चलती रहेगी। सरकार को ऐसे रास्ते ढूंढने की जरूरत पड़ेगी जिसमें किसानों को अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि भी मिले पर वह केवल धान की बिक्री की वजह से न हो। वैसे भी राजीव न्याय योजना की राशि की अंतिम चौथी किस्त मार्च 2021 तक देने की घोषणा तो सरकार ने कर दी है, पर इस साल खरीदे गये धान की अतिरिक्त राशि कब दी जायेगी, इस पर कोई घोषणा नहीं की गई है।
कांग्रेस पदाधिकारियों की लम्बी सूची
हाल ही में भाजपा ने अनेक मोर्चा पदाधिकारियों, कार्यकारिणी की सूची जारी की। प्रदेश स्तर से जारी सूची में कई विवाद खड़े हुए। कुछ जिलों में अब तक नियुक्तियां आम सहमति नहीं बन पाने की वजह से ही नहीं हो पा रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस में इस तरह का कोई झंझट ही नहीं। सबको संतुष्ट करना हो तो एक पद पर दस, बीस, तीस लोगों को बिठा दो। जिले से नाम कट गया तो प्रदेश से जुड़वा लो। नये बने जिले गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही में ऐसा ही हुआ। जिला कांग्रेस कमेटी ने बीते दिनों जिले के कार्यकारिणी की एक सूची अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अनुमोदन व प्रदेश कांग्रेस की सहमति लेकर जारी कर दी। इसमें बहुत से लोग छूट गये। छूटे हुए लोग नाराज हो गये। वे सीधे प्रदेश कार्यालय पहुंच गये। वहां वे महामंत्री रवि घोष से मिले। महामंत्री ने कहा, कोई बात नहीं, बताइये किनका नाम जोडऩा है। उन्होंने नाम दिये और एक अतिरिक्त सूची फिर जारी कर दी गई। अब जिला इकाई हैरान है। उनकी जानकारी या अनुशंसा के बगैर प्रदेश से यह अतिरिक्त सूची कैसे जारी हो गई। वे इन नये नामों को मानने के लिये तैयार नहीं हैं। कहा है कि वे ही पदाधिकारी काम करेंगे जिनका नाम पहली सूची में है। अतिरिक्त नाम जुड़वाने वालों को शायद ऐतराज न हो, क्योंकि काम करने के लिये पद लेता ही कौन है? प्रदेश कांग्रेस से जारी लेटर पैड में उनका नाम है, उनका लेटर पैड, विजिटिंग कार्ड भी इसी के सहारे बन जायेगा।
स्वामी आत्मानंद स्कूलों के लिये सेल
निजी स्कूलों में बच्चों को दाखिला दिलाने का एक बड़ा कारण होता है, पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी होना। पर यदि कोई सर्वे किया जाये तो मालूम होगा कि कोर्स की तकनीकी अंग्रेजी के अलावा व्यावहारिक अंग्रेजी का ज्ञान उन्हें बहुत कम स्कूलों से मिल पाता है। हिंदी से उनका नाता तो टूट ही चुका रहता है, अंग्रेजी में भी निपुण नहीं होते।
अब छत्तीसगढ़ सरकार ने निजी स्कूलों की ही टक्कर में स्वामी आत्मानंद इंग्लिश स्कूल खोल दिये हैं। अब तक 50 से अधिक स्कूल खुल चुके हैं, जबकि कुल 118 खोले जाने हैं। प्रवेश के लिये बड़ी संख्या में आवेदन आये। वजह यह है कि एक तो इसका माध्यम अंग्रेजी है, दूसरा कम फीस पर यहां उपलब्ध कराई सुविधायें किसी अच्छे प्राइवेट स्कूल से कम नहीं। पर, इन स्कूलों की लोकप्रियता आगे तभी बनी रह सकती है जब शैक्षणिक स्तर भी ऊंचा बनाकर रखा जाये।
पहली बार स्कूलों में पढ़ाई के स्तर पर निगरानी के लिये अलग से सेल राज्य स्तर पर बना दिया गया है। इसमें संयुक्त संचालक स्तर के अधिकारी को प्रमुख बनाया गया है। ये स्वामी आत्मानंद स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर निगरानी रखेंगे और आवश्यकता अनुसार शोध कर उसमें सुधार लायेंगे। विशेषकर अंग्रेजी ज्ञान व्यवहारिक और आम जीवन में भी उपयोगी हो, इस पर बल दिया जायेगा। इन स्कूलों के परिणाम को लेकर शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों में बड़ी जिज्ञासा है। क्या दिल्ली की तरह छत्तीसगढ़ में ऐसा हो पायेगा कि सरकारी स्कूलों के परिणाम निजी से बेहतर आये।
पेट पर वार
विधानसभा में अकसर ऐसा मौका आता है, जब सरकार के मंत्री पिछली सरकार के भ्रष्टाचार, या फिर भाजपा नेताओं के कारोबार पर कटाक्ष कर देते हैं, और सदन का माहौल गरम हो जाता है। ऐसे ही धान की मिलिंग-परिवहन के सवाल पर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत घिरने लगे, तो वे सवाल करने वाले भाजपा सदस्य शिवरतन शर्मा से कह गए, कि आपको तो परिवहन की काफी जानकारी है।
फिर क्या था, शिवरतन शर्मा भडक़ गए, और उन्होंने मंत्री से कहा कि उन्हें न सिर्फ परिवहन बल्कि आपके पूरे विभाग की जानकारी है। दरअसल, शिवरतन शर्मा के परिवार के लोग नान के बड़े परिवहनकर्ता हैं। परिवहन संबंधी गड़बड़ी के एक मामले में शिवरतन के परिवार के एक सदस्य के खिलाफ डेढ़ साल पहले प्रकरण भी दर्ज हुआ था। और जब अमरजीत ने शिवरतन के पारिवारिक व्यवसाय पर कटाक्ष किया, तो उनका भडक़ना स्वाभाविक था।
ऐसी-ऐसी जानकारी मांगी
सरकार के एक मंत्री, अपने तिकड़मी पीए की वजह से बुरी तरह उलझते-उलझते रह गए। पीए, हमेशा कारोबारियों के संगत में रहते हैं, और उन्होंने मंत्रीजी के नाम से अपने विभाग के प्रमुख सचिव से ऐसी-ऐसी जानकारी मांगी, जिससे बाद में दिक्कतें पैदा हो सकती थी। सुनते हैं कि जिस अंदाज में पीए ने प्रमुख सचिव से जानकारी चाही, उससे शक पैदा हो गया। प्रमुख सचिव ने तुरंत मंत्रीजी से संपर्क साधा, और जानना चाहा कि वाकई उन्होंने इस तरह की जानकारी मांगी है? मंत्रीजी ने अनभिज्ञता जताई। पीए की इस हरकत पर मंत्रीजी, कोई कार्रवाई करते, उन्हें बचाने के लिए कई प्रभावशाली लोग आगे आ गए। फिर क्या था, पीए की कुर्सी बच गई।
क्या पैर उखड़ रहे हैं नक्सलियों के?
बस्तर में माओवादी कितने सक्रिय और ताकतवर हैं इसके लिये अगर मुठभेडों को पैमाना माना जाये तो लगातार सरकार की स्थिति सुधर रही है। सन् 2020 में कुल 84 मुठभेड़ हुईं, जो 2019 की 121 और 2018 की 166 मुठभेड़ के मुकाबले काफी कम हैं। पर ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में नई सरकार के बनने के बाद ही यह स्थिति बनी। मुठभेड़ों में कमी पिछले पांच सालों से दर्ज की जा रही है। 2016 में 211, 2017 में 198 मुठभेड़ हुईं थीं। यानि गिरावट का सिलसिला भाजपा की सरकार के रहने के दौरान ही शुरू हो चुका था।
यह कहा जाता है कि बस्तर के औद्योगिकीकरण के लिये असहमति, अधिसूचित क्षेत्रों के लिये बने कानूनों और ग्राम सभाओं की परवाह किये बिना पूर्ववर्ती सरकार के दौरान बड़ी-बड़ी परियोजनायें लाई गईं, जिसकी रफ्तार में अब कमी आई है। पर बीते एक साल से जो ख़बरें आ रही हैं, उससे भी आभास मिलता है कि नक्सली मूवमेंट कम क्यों हो रहे हैं। अक्टूबर 2019 में मारे गये एक नक्सली के पास से बरामद पत्र में खुलासा हुआ था कि सरकारी नीतियों के प्रति आदिवासियों का झुकाव बढऩे के कारण उन्हें अपना पैर जमाये रखने में दिक्कत हो रही है। बीते साल जनवरी में खबर आई थी कि नये लड़ाके नक्सली संगठनों में शामिल होने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। वे अपनी संख्या बढ़ाने के लिये हर परिवार से एक लडक़ा और 50 रुपया मांग रहे हैं। वैसे नक्सली यहां के व्यापारियों, कुछ चिन्हित विभागों और सरकारी निर्माण कार्य में लगे ठेकेदारों से आम तौर पर फंड जुटाते ही रहे हैं। पर उनके आर्थिक स्त्रोत घटे हैं।
इसके बावजूद क्या सचमुच नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं? नई सरकार बनने के बाद ही भाजपा के एक विधायक भीमा मंडावी की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। बस्तर पुलिस ने बीते साल खुलासा किया था कि कम संख्या में अधिक प्रभावी हमला करने के लिये नक्सली स्नाइपर ट्रेनिंग देने की योजना पर काम कर रहे हैं। हाल ही में पुलिस द्वारा चिपकाये गये एक पर्चे को भाजपा ने मुद्दा बनाया था, जिसमें ग्रामीणों को नक्सली खतरे के चलते गांव छोड़ देने की सलाह दी गई थी।
कोदो, कुटकी के लिये एमएसपी
दिल्ली में आंदोलनरत किसानों की मांगों में तीनों कृषि कानून वापस करने के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी जामा पहनाने की मांग भी शामिल है। केन्द्र सरकार का रुख अब तक तो इस पर साफ नहीं है, सिवाय इसके कि विचार करेंगे। पर छत्तीसगढ़ सरकार ने धान पर समर्थन मूल्य के साथ राजीन किसान बोनस और कई स्थानीय फसलों, वनोपज को समर्थन मूल्य पर देने का फैसला लिया। इसी पर आगे कदम बढ़ाया गया है कोदो, सवां, ज्वार, कुटकी, बाजरा आदि का समर्थन मूल्य तय करना। छोटे किसान और जंगल में तराई में खुली जमीन पर खेती करने वाले आदिवासी इसे बड़े पैमाने पर उगाते हैं। इसमें पानी और खाद की कम जरूरत पड़ती है, लागत कम आती है। आम तौर पर कोदो, कुटकी गरीबों की ही खेती है। कोदो कुटकी पौष्टिक होने के अलावा ब्लड प्रेशर, शुगर आदि रोगों के लिये कारगर है। औषधियों में भी इसका उपयोग होता है। अभी इसका कोई दाम नहीं। व्यापारी, आढ़तियों की मनमानी चलती है। एमएसपी तय होने से किसानों को मेहनत का वाजिब भुगतान होने की संभावना बनती है। पर यहां दिक्कत यह है कि कहीं किसान जब तक खरीदी केन्द्र में अपनी उपज लायें, उसके पहले व्यापारी ही उन तक पहुंच जाये और कम दाम देकर खरीद लें। खरीदी की व्यवस्था निचले स्तर पर हो तो ही इसका लाभ उत्पादक किसानों को मिलेगा वरना आढ़तिये ही उनकी उपज लेकर खरीदी केन्द्रों में खड़े दिखेंगे।
हर सवाल का एक जवाब...
विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिये कांग्रेस वही कर रही है जो दिल्ली में बैठी भाजपा सरकार कर रही है। यानि उनके कार्यकाल का अध्याय खोलकर रख देना। पूर्व स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप ने आरोप लगाया कि आरटीई के 74 लाख रुपये गबन कर लिये गये। गरीब बच्चों की फीस की बंदरबांट कर ली गई। आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। टेकाम ने जवाब देते हुए कहा कि 250 करोड़ रुपये आरटीई के अब भी केन्द्र के पास रुके हुए हैं, वह राशि दिलवायें। आगे यह भी कहा कि भाजपा के समय शिक्षा और परीक्षा का क्या हाल था, सब जानते हैं। परीक्षार्थी की जगह कोई दूसरा बैठकर परीक्षा देता था। जाहिर है, यह कश्यप पर सीधे प्रहार था, क्योंकि मामला सीधे-सीधे उनसे ही सम्बन्धित था। दूसरी तरफ केदार कश्यप द्वारा उठाया गया मामला गंभीर है। जनवरी में रायपुर से रिटायर्ड हुए जिला शिक्षा अधिकारी पर आरोप है कि उन्होंने आरटीई फीस के रूप में 74 लाख ऐसी स्कूलों को लौटाये जो बंद थे। रकम भी स्कूल के खाते में नहीं, निजी एकाउन्ट में डाले गये। अब इस बहस में घोटाले पर क्या कार्रवाई हुई या होगी, लोग नहीं जान सकें।
फोटोग्राफर सत्यप्रकाश पांडेय ने देखा और लिखा-
‘बिलासपुर के पक्षियों के गाँव ‘कोपरा’ में पिछले दिनों कुछ लोग पहुंचे, चिडिय़ों के लिए महोत्सव रखा गया था। सरकारी कोशिशों के बीच पक्षियों के संरक्षण को लेकर जागरूकता की अलख जगाने के दावे किए गए। पक्षी महोत्सव का नफा-नुकसान भविष्य की तारीखें तय करेंगी, फिलहाल वन अफसर के उन दावों का सच तस्वीरें बयान कर रहीं हैं जिसमें स्वच्छता का उल्लेख था। अरे साहब। मेला, महोत्सव के बाद भी कोपरा हो आये होते। पढ़े-लिखे और जागरूकता का संदेश देने पहुंचे लोगों द्वारा छोड़ी गई हकीकत आपको भी दिखाई पड़ जाती। ये खाने के पैकेट्स और पन्नियों का कचरा जगह-जगह किसी और ने नहीं बल्कि महोत्सव में उत्सव मना रहे कुछ लोगों ने छोड़ा है।’
बस नाम ही काफी है!
बाजार में मुकाबला इतना अधिक हो गया है कि लोगों को अटपटे नाम रखकर अपनी दुकान की तरफ ग्राहकों को खींचने का काम करना पड़ता है। राजधानी रायपुर से लगे हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चुनाव क्षेत्र अमलेश्वर में अगल-बगल के दो बिरयानी-सेंटरों के नाम देखें, ताबड़-तोड़ बिरयानी, धाकड़ बिरयानी। अब यहां सामने से निकलने वाले स्कूली बच्चे इन्हें देखते हुए निकलेंगे तो स्कूल में हिन्दी के पर्चे में ताबड़-तोड़ और धाकड़ के क्या मतलब लिखेंगे? यहीं अमलेश्वर के एक भोजनालय का बोर्ड देखें- आखरी ठिकाना भोजनालय! (यहां खाने के बाद कुछ और बाकी ही नहीं रहता है क्या?)
लेकिन देश के अलग-अलग प्रदेशों में कई नामी-गिरामी दुकानें भी अटपटे नाम रखती हैं। एक नाम कई शहरों में देखने मिलता है- ठग्गू के लड्डू! और इस दुकान का नारा रहता है- ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं...
कई शहरों में बेवफा चायवाले दिखते हैं। ये लोग पत्नी से प्रताडि़त लोगों के लिए मुफ्त में चाय देते हैं, प्यार में धोखा खाए हुए लोगों के लिए रियायती चाय, प्रेमी जोड़ों के लिए अलग दाम की चाय, अकेलेपन की चाय और अलग दाम की।
एक ‘बेकरार छोले’ वाले का बोर्ड देखें तो उस पर लिखा है- दिल्ली के दिलजले छोले, दिल को जलाएं।
मंत्री भगत के पुत्रों को क्लीन चिट
जशपुर में मंत्री अमरजीत सिंह भगत के बेटों पर कोरवा आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोप पर जांच हो गई और नतीजे भी आ गये। इसमें भगत के पुत्रों की कोई गलती नहीं पाई गई। कलेक्टर ने 7 कोरवा आदिवासियों की शिकायत के आधार पर जांच समिति बनाई। निष्कर्ष निकाला कि सौदे में कोई दबी-छुपी बात नहीं थी। जिनकी जमीन खरीदने का सौदा हुआ वे भूमिहीन नहीं बल्कि उनके संयुक्त खाते में 100 एकड़ से अधिक जमीन दर्ज है। दरअसल, जिस जमीन का सौदा हुआ वह संयुक्त नाम पर था और इस सौदे से कुछ सदस्य असहमत थे। आम सहमति नहीं बनने के बाद तय यह किया गया कि यह जमीन वापस कर दी जायेगी। ऐसी घोषणा मंत्री ने अपने बेटों की ओर से पहले ही कर दी थी। वैसे यह तय है कि किसी भी संयुक्त खाते की जमीन में सभी हिस्सेदारों की जब तक सहमति नहीं होगी, सौदे पर सभी के हस्ताक्षर नहीं होंगे, तब तक जमीन बिक ही नहीं सकती। इस मामले में इतनी आशंका जरूर हो सकती थी कि मंत्री पद के प्रभाव में असहमत लोग भी सहमत करा लिये जाते, पर, शायद बात बनी नहीं हो। विरोधियों ने संरक्षित जाति और भूमिहीनों का मामला कहकर इसे सनसनीखेज बना दिया था। कहीं इसकी वजह यही तो नहीं थी कि प्रशासन कम से कम इसी बहाने अलर्ट मोड में आये और जो लोग सौदे से सहमत नहीं हैं, उनकी मदद हो जाये?
पहचानो तो जानें!
करीब 32 बरस पुरानी यह तस्वीर राजीव गांधी के वक्त की है जिसमें सेवादल के एक ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनिंग कैम्प में शामिल एक नौजवान है। छत्तीसगढ़ के लोग भी इस वर्दीधारी सेवादल कार्यकर्ता को मुश्किल से ही पहचान पाएंगे।
मास्क नहीं पहनने पर फिर कड़ाई..
कोरोना संक्रमण का पहला केस छत्तीसगढ़ में 18 मार्च 2020 को आया था, जब लंदन से लौटी एक युवती की जांच हुई थी। उस वक्त वह जो हडक़म्प मचा तो कई इलाकों को सील कर दिया गया। छत्तीसगढ़ में कोरोना की रफ्तार सुस्त पड़ चुकी थी, जिससे लग रहा था कि साल पूरा होते-होते मास्क उतर जायेगा, सोशल डिस्टेंस रखने की बाध्यता खत्म हो जायेगी और इसका अंतिम संस्कार कर दिया जायेगा। लेकिन पड़ोसी राज्यों खासकर महाराष्ट्र में फिर से केस बढऩे लगे। अब देश के टॉप 10 प्रभावित राज्यों में छत्तीसगढ़ आ गया है, सरकार फिर से अलर्ट मोड पर आ गई है। कल से पुलिस ने फिर मास्क पहने बिना बाहर निकलने वालों पर सख्ती शुरू की । कई जिलों में 200 से लेकर 500 लोगों पर 100-100 रुपये का जुर्माना लगाया गया । यह कार्रवाई आज भी चल रही है।
वैसे कोरोना केस कम होने और वैक्सीन आ जाने के बाद भी मास्क पहनना जरूरी है, स्वास्थ्य विभाग और सरकार की दूसरी एजेंसियां लगातार बता रही थीं। इसके बावजूद लोग इसकी अवहेलना कर रहे थे। टीवी, न्यूज पेपर और टेलीफोन डायल टोन पर आने वाले संदेशों को सब उपेक्षित करने लगे थे। अब पुलिस ने फिर मोर्चा संभाला है। संभलने की जरूरत है। ताकि लॉकडाउन 4 की नौबत न आये। पुलिस के अच्छे-बुरे बर्ताव के वो दिन फिर न लौटें।
धान चावल बेचने का समय सही?
छत्तीसगढ़ केबिनेट ने किसानों से खरीदे गये अतिरिक्त धान की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है। 16 फरवरी से ट्रेडर्स और मिलर्स का पंजीयन भी शुरू हो गया है। केन्द्र और राज्य सरकार की चावल की जरूरत पूरी होने के बाद करीब 20.8 लाख मीट्रिक धान को बेचने का निर्णय लिया गया है। यदि तय बेस प्राइज 2057 रुपये पर भी धान बिक जाता है तो सरकार को करीब 450 रुपये घाटा तो सिर्फ उस राशि का है जो वह किसानों को समर्थन मूल्य और राजीव गांधी न्याय योजना के अंतर्गत देती है। लेकिन खरीदी के लिये प्रबंध करने, परिवहन में भी अच्छी खासी रकम खर्च होती है। भाजपा के आरोप को मानें तो पिछले साल करीब 1000 करोड़ रुपये का धान खुले गोदामों में पड़े रहने से खराब हो गया। धान बर्बाद हो, इससे बेहतर तो इसकी घाटे पर ही सही नीलामी कर देना समझ का फैसला लगता है। इधर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि धान, चावल बेचने के लिये यह सही समय नहीं है। बाजार में इसकी अभी मांग नहीं है और उपलब्धता काफी है। धान सुरक्षित रखा जाये और बाद में बेचा जाये।
वास्तव में, मुद्दा तो सुरक्षित रखे जाने का ही है। बीते 20 सालों में अतिरिक्त उपज को संभाल सकने का मैकेनिज्म छत्तीसगढ़ में बन नहीं सका। धान ही नहीं दूसरी फसलों के लिये भी। जरूरी है कि बड़ी संख्या में शेड, चबूतरे हों, कोल्ड स्टोरेज और गोदाम हों और मांग के समय बाजार में इन्हें निकालें। फिलहाल जो धान रखा रहेगा वह कुछ या ज्यादा खराब होना ही है।
असम में विकास, मोदी का नहीं, कांग्रेस का..
असम में विकास उपाध्याय का डंका बज रहा है। तीन महीने पहले ही उन्हें कांग्रेस हाईकमान ने असम प्रदेश कांग्रेस का सह प्रभारी बनाया था। इन तीन महीनों में विकास और उनकी टीम ने खूब मेहनत की है, और इसका प्रतिफल यह रहा कि सभी बूथ कमेटियां चार्ज हो गई, और तकरीबन हरेक विधानसभा में कार्यकर्ताओं का अच्छा खासा नेटवर्क तैयार हो गया है। सीएम भूपेश बघेल को चुनाव प्रभारी बनाया गया है, और उनके कार्यक्रम में अच्छी खासी भीड़ उमड़ी है।
कुल मिलाकर विकास और उनकी टीम के कार्यों की पार्टी बड़े नेता भी तारीफ कर रहे हैं। हाल यह है कि असम में पार्टी के कार्यक्रम में विकास हो या न हो, उनकी तस्वीर जरूर होती है। विकास कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव हैं, लेकिन यदि असम में चुनाव नतीजे अनुकूल आए, तो विकास का कद बढऩा निश्चित है। हालांकि यह आसान भी नहीं दिख रहा है। पार्टी के नेता मानते हैं कि पार्टी संगठन को छह महीना पहले ही सक्रिय होना चाहिए था। खैर, पार्टी को अभी भी असम में काफी उम्मीदें हैं।
अमितेश उत्तेजित क्यों
अमितेश शुक्ल विधानसभा के बजट सत्र में काफी सक्रिय दिख रहे हैं। वे मौके-बेमौके पर खड़े होकर भाजपा को खूब कोसते नजर आ रहे हैं। सत्ता और विपक्षी सदस्य उनके तेवर का खूब लुफ्त भी उठा रहे हैं। बुधवार को अमितेश खड़े हुए, और शराब बिक्री से जुड़े नारायण चंदेल के सवाल-जवाब के बीच कूद पड़े, और भाजपा पर हमला बोलने लगे। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अमितेश उत्तेजित क्यों है? उन्होंने उत्तेजना का कारण पूछ लिया? इस पर रविन्द्र चौबे ने कहा कि अमितेश उत्तेजित क्यों हैं, ये तो वे ही बता पाएंगे। इस पर अजय चंद्राकर ने कहा कि अमितेश जी आपको (रविन्द्र चौबे) को हटाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। इस पर सदन में जमकर ठहाका लगा।
22.5 करोड़ का एक इंजेक्शन!
कोरबा के एक एसईसीएल कर्मचारी सतीश कुमार की 14 माह की शिशु सृष्टि की जान बचाने के लिये भरसक कोशिश हो रही है। सृष्टि स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी टाइप-1 बीमारी से पीडि़त है। उसका पूरा शरीर लगभग पैरालाइज है और वह कृत्रिम सांसों के सहारे जी रही है। इसका इंजेक्शन ‘जोलजेन्समा’ भारत में नहीं मिलता। इसे स्विट्जरलैंड नोवार्टिस कम्पनी से मंगाना होगा और इसे भारत लाने की टैक्स सहित कीमत होगी 22.5 करोड़ रुपये। महाराष्ट्र की पांच माह की तीरा को भी यही बीमारी है। वहां पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस की कोशिश के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से 6.5 करोड़ आयात शुक्ल माफ करने की घोषणा की गई है, जिसके चलते अब 16 करोड़ रुपये में यह दवा मिल जायेगी। सृष्टि के लिये भी यदि आयात शुल्क माफ कर दिया जाता है तब भी 16 करोड़ की व्यवस्था कैसे हो? यह इतनी बड़ी रकम है कि किसी आम आदमी के पास होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अमीरों को भी हाथ फैलाने के लिये मजबूर कर सकती है। कोयला कर्मचारियों के एक यूनियन ने कहा है कि यदि एक दिन का वेतन सभी कर्मचारी मिलकर दे दें तो इतनी बड़ी रकम इक_ी हो सकती है। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने भी प्रधानमंत्री मोदी तथा कोयला मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि कोल इंडिया सृष्टि के इलाज का खर्च उठायें।
यह जिज्ञासा लोगों में है कि इस इंजेक्शन में ऐसा क्या है कि कीमत 16 करोड़ रुपये है? एक अख़बार में नोवार्टिस के भारत में प्रतिनिधि सीईओ नरसिम्हन का बयान है कि यह दवा मेडिकल थैरिपी की एक बड़ी खोज है। यह अत्यन्त दुर्लभ बीमारी है, साथ ही जैनेटिक भी है। यानि किसी एक को हुआ है तो उसकी बाद वाली पीढ़ी को भी हो सकती है। यह इंजेक्शन न केवल मरीज को ठीक करता है बल्कि आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिये जीन को रिप्लेस कर देता है। रिसर्च पर होने वाले खर्च और दवाओं की मांग के आधार पर कीमत तय होती है। तीसरे चरण के ट्रायल के बाद कम्पनी ने इसकी लागत के आधार पर कीमत 16 करोड़ रुपये तय की है। दवा की कीमत मांग बढऩे पर कम होगी। शुक्र है, कोरबा की सृष्टि और महाराष्ट्र की तीरा की उम्र दो साल से कम है। इसलिये उन्हें सिर्फ एक डोज देना होगा। यदि दो साल से ज्यादा उम्र की होती तो उन्हें चार टीके लगाने पड़ सकते थे।
बहरहाल, जब तक सांस, तब तक आस की स्थिति चल रही है और हर किसी को लग रहा है कि किसी तरह सृष्टि को नया जीवन मिल जायेगा। सृष्टि के पिता, उनके दोस्त, परिवार के लोगों ने हिम्मत नहीं हारी है। उम्मीद है कि वे किसी तरह सृष्टि को नया जीवन दे पायेंगे।
अब रेलवे किराया घटाने वाली नहीं
कोरोना संक्रमण के बाद लॉकडाउन लगाने के बाद बिलासपुर रेलवे जोन से चलने वाली अधिकांश एक्सप्रेस ट्रेनों को अधिक किराये पर स्पेशल ट्रेनों के नाम से चलाया जा रहा था। इसके बाद दबाव बढ़ा तो लोकल पैसेंजर ट्रेनों को भी शुरू किया गया। पर किराया स्पेशल के नाम पर अधिक ही रखा गया। अब चूंकि यातायात के बाकी साधनों का सामान्य परिचालन शुरू हो चुका है, रेलवे के सामने भी सवाल है कि आखिर सामान्य टाइम टेबल, पुरानी रूट और स्टापेज रखते हुए आखिर कितने दिनों तक किसी ट्रेन को स्पेशल के नाम पर चलायें? धीरे-धीरे स्पेशल ट्रेनों को सामान्य करना ही होगा। पर, सवाल यह है कि स्पेशल ट्रेनों के नाम पर जो अतिरिक्त किराया मिल रहा है उसका क्या होगा। इसके चलते अब रेलवे ने घोषणा कर दी है कि लोकल ट्रेनों में न्यूनतम किराया 30 रुपये तय कर दिया गया है। रेलवे की ओर से लगभग साफ कर दिया गया है कि ट्रेनों को जब स्पेशल की जगह सामान्य ट्रेनों की तरह चलाया जायेगा तब भी इस किराये में कोई कमी नहीं की जायेगी। रेलवे ने इसकी वजह पहले ही की तरह भीड़ को कम बनाये रखने की बताई है। दरअसल, लम्बी दूरी के यात्रियों का किराया इस अनुपात में नहीं बढ़ाने की वजह है कि इसके विकल्प के रूप में लोग शेयर टैक्सी या हवाई जहाज का इस्तेमाल कर सकते हैं, पर कम दूरी की यात्रा अकेले करनी हो तो ट्रेन ही उनके लिये आसान साधन रहा है। हजारों नौकरीपेशा और छोटे मोटे रोजगार धंधा करने वालों के लिये अब अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा रेलवे टिकटों पर खर्च करना होगा। जो लोग रोजाना सफर करते हैं उनके लिये यह परेशानी भरा है क्योंकि अब तक मासिक सीजन टिकटों का बनना शुरू नहीं हुआ है। हो सकता है बाद में मासिक टिकटें शुरू की जायें पर कोरोना काल के पहले की तरह रियायत मिलेगी, इसकी उम्मीद कम ही है।
करोड़पति हुए कोटवार
मालगुजारी के जमाने से कोटवारों को सेवायें देने के लिये खेती की जमीन बांट दी जाती थी, जिसे वे बेच नहीं सकते पर पीढिय़ों तक हस्तांतरित होती रहती है। इक्के-दुक्के ऐसे मामले आते रहते हैं जिसमें कोटवारी जमीन को अवैध तरीके से पटवारी और राजस्व अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर मालिकाना हक वाली बता दी गई। बाद में इसे बेच दिया गया। पर गरियाबंद जिले में तो एक साथ इतने मामले पकड़ में आये हैं कि प्रशासन भी हैरान है। अकेले देवभोग तहसील में 50 कोटवारों ने 219 लोगों को अपनी सेवा भूमि बेच दी। यह खेल 2016 से हो रहा है। बस्तियों के विस्तार के साथ-साथ नई सडक़ें बनीं, राज्य मार्ग और राष्ट्रीय राजमार्ग बने, जिसके बाद कोटवारी जमीन खेती की जगह कमर्शियल इस्तेमाल के लायक हो गई। कोटवारों को गुजर-बसर के लिये 5 एकड़ से लेकर 30 एकड़ तक जमीन आबंटित की जाती है। अब इस जमीन के मालिक वे नहीं, कई बड़े-बड़े कारोबारी हैं। देवभोग के अलावा जिले के दूसरे हिस्सों से भी ऐसे ही मामले सामने आये हैं। अब इन भूखंडों पर बड़ी-बड़ी इमारत भी खड़ी हो चुकी है। प्रशासन का कहना है कि पहले वे यह खरीद-बिक्री अवैध घोषित करेंगे फिर बेदखल। लेकिन जमीन जिसने खरीद ली, कब्जा कर लिया उसे हटाना, बेदखल करना कितना मुश्किल है यह किसी भी तहसील या एसडीएम ऑफिस में लम्बित मुकदमों का आंकड़ा निकालकर समझा जा सकता है।
को-वैक्सीन को ना, कोरोलिन को हां ?
एक बार फिर बाबा रामदेव ने कोरोलिन दवा को कोरोना के उपचार के लिये कारगर बताते हुए लांच कर दिया। इस बार पुख्ता तैयारी थी कि उनके दावे पर कोई सवाल न उठे। उनकी प्रेस कांफ्रेंस में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तो थे ही, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन भी मौजूद थे। बाबा रामदेव ने दावा किया कि इस दवा को भारत सरकार ही नहीं, डब्ल्यूएचओ ने भी सर्टिफाई किया है।
कोशिश यही थी कि पतंजलि के इस उत्पाद को इस बार कोरोना की दवा साबित करने में कोई कसर बाकी न रहे। मगर, लोग तो बाबा के पीछे ही पड़ गये। जैसे, न्यूज लांड्री और इंडियन मेडिकल एसोसियेशन। न्यूज लॉड्री ने अगले ही दिन सबूतों के साथ दावे को गलत बता दिया। आईएमए ने भी बाबा रामदेव के बयान पर सवाल उठाये। दक्षिण पूर्व एशिया डब्ल्यूएचओ की तरफ से कोरोलिन का नाम लिये बिना तुरंत खंडन आ गया कि उन्होंने कोई सर्टिफिकेट किसी पारम्परिक औषधि को नहीं दिया। इसके बाद सोशल मीडिया पर आचार्य बालकृष्ण का ट्वीट आया। उन्होंने कहा कि वे इस भ्रम का निवारण करना चाहते हैं। डब्ल्यूएचओ किसी भी दवा का अनुमोदन नहीं करता है। उन्होंने सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन का हवाला दिया है। आईएमए ने इस पर भी सवाल किया है कि किसी भी डॉक्टर को किसी खास दवा को प्रमोट करने का अधिकार नहीं है फिर डॉ. हर्षवर्धन ने ऐसा क्यों किया, जबकि वे डब्ल्यूएचओ की गवर्निंग बॉडी में भी सदस्य हैं।
बीते जून 2020 में निम्स जयपुर के निदेशक डॉ. बीएस तोमर की मौजूदगी में कोरोलिन को बाबा रामदेव ने पहली बार लांच किया था। इसमें बताया गया था कि 200 लोगों पर टेस्ट किये गये, 70 प्रतिशत लोग 3 दिन में तो 100 प्रतिशत लोग एक सप्ताह में ठीक हो गये। पर आयुष मंत्रालय ने इसे मान्यता देने से इंकार कर दिया और कहा कि यह कोरोना की दवा नहीं है। इसके प्रचार-प्रसार, विज्ञापन पर भी पाबंदी लगा दी। बाबा और आचार्य उस वक्त पलट गये कि उन्होंने इसे कोरोना की दवा बताई थी।
अब आते हैं, छत्तीसगढ़ को कोरोना से मुक्त करने के उपायों पर। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और भाजपा की प्रतिक्रियाओं की परवाह किये बगैर राज्य सरकार इस बात पर टिकी हुई है कि वह को-वैक्सीन का टीकाकरण के लिये इस्तेमाल नहीं करेगी। इसका कारण है कि को-वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल नहीं होना। मगर इसी राज्य में कोरोलिन दवा कोरोना के नाम पर धड़ल्ले से बिक रही है। न केवल पतंजलि स्टोर्स, मेडिकल स्टोर्स में बल्कि किराना दुकानों में भी। महाराष्ट्र सरकार ने आईएएम और डब्ल्यूएचओ की प्रतिक्रिया के बाद कोरोलिन की बिक्री पर पाबंदी लगी दी है। पर छत्तीसगढ़ सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। कोरोलिन का हो सकता है को-वैक्सीन की तरह साइड इफेक्ट की आशंका नहीं हो। पर छत्तीसगढ़ सरकार यह सुनिश्चित तो करे कि क्या यह कोरोना का नाम लेकर बेचा जा सकता है। जो लोग खरीद रहे हैं, वे तो पतंजलि के दावे पर विश्वास कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार का स्वास्थ्य विभाग क्या उनके दावे की पुष्टि करता है?
सरकारी सम्पत्ति आपकी अपनी!
चूंकि हिन्दुस्तान में सरकार ने ही यह नारा गढ़ा है कि सरकारी सम्पत्ति आपकी अपनी है, इसलिए लोग उसका तरह-तरह से इस्तेमाल करते हैं। अभी एक पत्रकार को एक महंगे रेस्त्रां में चाय-कॉफी के साथ यह शक्कर परोसी गई जो कि भारतीय रेल के लिए पैक की गई है। जाहिर है कि यह रेलवे से ही चोरी होकर आई होगी। आमतौर पर चोरी के माल को लोग पर्दे के पीछे, यानी घर के भीतर इस्तेमाल कर लेते हैं, यह रेस्त्रां भी अगर अपने किचन में शक्कर का इस्तेमाल कर लेता तो दिक्कत नहीं होती, बात नहीं पकड़ाती, लेकिन उसने तो धड़ल्ले से टेबल पर इसे परोस दिया।
वैसे शासकीय सम्पत्ति आपकी अपनी है यह बात लोगों को समझाने का नतीजा यह निकला था कि जब रेलगाडिय़ों में पहली बार बर्थ पर गद्दे लगे तो लोग उसके ऊपर का फोम लैदर ब्लेड से काटकर ले जाते थे, और उससे थैले बना लेते थे। फोम लैदर और फोम का नुकसान रेलवे को सैकड़ों झोलों से अधिक महंगा पड़ता था। धीरे-धीरे वह चोरी अब कम हुई क्योंकि लोगों को चोरी करने के लिए अधिक आसान और अधिक फायदेमंद दूसरे सरकारी सामान मिलने लगे हैं।
शिष्टाचार के हिसाब से बात गलत होगी, लेकिन शायद सरकारी नारा बदलकर, सरकारी सम्पत्ति आपके बाप की नहीं है, करने से हो सकता है कि कुछ असर हो।
लेकिन यह लिखने के बाद एक बात और भी है। जहां कहीं, प्लेन में या ट्रेन में, या किसी फास्टफूड रेस्त्रां में टेबिल पर खाने के साथ शक्कर, नमक, या टमाटर-सॉस के सैशे (पैकेट या पाऊच) दिए जाते हैं जो कि जूठन के साथ फेंक दिए जाएंगे, तो उन्हें उठाकर ले आना चाहिए, और बाद में इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन रेस्त्रां में सर्व किए गए ऐसे सैशे तो कहीं से बचाकर लाए हुए नहीं हो सकते, चोरी किए हुए ही हो सकते हैं।
महिला की जगह, पुरुष नहीं तो बैठक नहीं...
पंचायती राज कानून के तहत महिलाओं को तीन स्तरीय संरचना में पहले 33 फीसदी, फिर 50 फीसदी आरक्षण दिया गया। गांवों में महिला स्व सहायता समूह के जरिये आर्थिक स्थिति, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में इनके पर्याप्त प्रतिनिधित्व की वजह से बदलाव भी दिखा है। दूसरी तरफ यह भी सच है कि अनेक महिला प्रतिनिधि आज भी अपने पति, पिता या बेटे के नाम पर चुनी जाती हैं। वे खुद फैसले नहीं ले पाती और उनके पुरुष रिश्तेदार ही उनके अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं। गांवों में एसपी का मतलब सरपंच पति मान लिया गया है। यदि कोई पुरुष जनपद, जिला पंचायत प्रतिनिधि कहा जा रहा है तो पता चल जाता है कि वह निर्वाचित नहीं हो सका, उसने रिजर्वेशन की मजबूरी के चलते अपने घर की किसी महिला को चुनाव जितवाया है। चुनाव महिला ने जीता पर पद को उनका पुरुष प्रतिनिधि जी रहा होता है। यहां तक कि सरकारी विभागों में, राजनीतिक सभाओं में निर्वाचित महिलायें या तो नदारत होती हैं या पीछे बैठी होती हैं। सरकारी बैठकों में भी उनकी जगह पर बैठ जाते हैं। समय-समय पर राज्य सरकार ने अधिकारियों को चेतावनी दी है कि ऐसा न होने दें। पर सामान्यत: ऐसा होता नहीं है।
जनपद पंचायत बेमेतरा की पिछले गुरुवार की बैठक में सीईओ ने महिला प्रतिनिधियों की जगह पर उनके पति या बेटे के साथ बैठक लेने से इन्कार कर दिया। सीईओ को समझाने पुरुष प्रतिनिधि उनके चेम्बर में डटे रहे। सीईओ नहीं माने, बोले बैठक में तो जो निर्वाचित सदस्य हैं वे ही बैठेंगे, बाकी लोग बाहर होंगे। पुरुष सदस्यों की नहीं चली तो उन्होंने बैठक का बहिष्कार ही करा दिया। महिला प्रतिनिधियों ने बैठक में शामिल होने से मना कर दिया। बैठक नहीं हो पाई।
हैरानी है कि जिला प्रशासन या महिला आरक्षण के हिमायत करने वाले राजनैतिक दलों में इस गंभीर घटना की कोई प्रतिक्रिया ही नहीं है। यह सीधे-सीधे प्रशासनिक कामकाज को अनाधिकृत व्यक्तियों द्वारा अपने प्रभाव से रोकने का महिला विरोधी दु:स्साहस है। यह उन महिला नेत्रियों के लिये भी सोचने का विषय है जो अपने वर्ग की बराबरी के लिये सडक़ से लेकर संसद तक लडऩे का दावा करती हैं। जो महिला प्रतिनिधि बैठक के बहिष्कार के लिये राजी हो गईं, वे अपने घर के पुरुषों के दबाव में किस तरह काम कर रही हैं?
आध्यात्मिक आचार्य..
अटल बिहारी बाजपेयी यूनिवर्सिटी बिलासपुर के नव नियुक्त कुलपति प्रो. अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। जब वे पहली बार कल बिलासपुर पहुंचे तो थ्री पीस सफेद सूट में लाल टाई पहना था। उनकी ही तरह बहुत से विद्वानों को हमने दाढ़ी रखते, टोपी पहनते व माथे पर तिलक लगाये हुए देखा है। यह सब उनके गहरे आध्यात्मिक झुकाव का परिचय तो देता ही है, पर प्रभार ग्रहण करते समय उन्होंने जो प्रक्रिया अपनाई उससे तय हो गया कि वे अपने धार्मिक मान्यताओं को भी खासा महत्व देते हैं। निजी जीवन में ही नहीं, बल्कि अपने दफ्तर में भी। विश्वविद्यालय के अपने कक्ष में प्रभार ग्रहण करने के लिये वे पहुंचे तो द्वार पर ओढ़ी हुई शॉल बिछा दी और हवन करने बैठे। पूजा-पाठ के बाद उन्होंने कक्ष में प्रवेश किया और कार्यभार संभाला। विश्वविद्यालय के स्टाफ ने नये कुलपति के आते ही वातावरण बदला-बदला सा महसूस किया है। अब छात्रों की इनसे मिलने की बारी है, जिनके पास समस्याओं और परेशानियों का अम्बार है।
कुछ हजार करोड़ का लोकतंत्र!
दक्षिण भारत के राज्य पुदुचेरी में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद अब दक्षिण भारत से कांग्रेस का सफाया हो गया है। लेकिन वैसे तो तकरीबन पूरे भारत में कांग्रेस हाशिए पर आ गई है और गिने-चुने राज्य ही उसके कब्जे में हैं। आज देश में कांग्रेस का सबसे मजबूत राज्य छत्तीसगढ़ बच गया है जहां पर पार्टी विधायकों का बहुमत इतना बड़ा है कि उसे आसानी से तोडऩा, खरीदना, उससे इस्तीफे दिलवाकर सरकार गिरवाना नामुमकिन माना जा रहा है। फिर भी आज भारत की राजनीति में कई ऐसी चीजें हो रही हैं जो बीते कल तक नामुमकिन लगती थीं।
एक के बाद एक राज्य में कांग्रेसी या दूसरे गैरभाजपाई विधायकों के दलबदल या इस्तीफे से जो माहौल बना है उसके हिसाब से देश में विधायकों की कुल संख्या गिन लेना भी ठीक नहीं होगा। करीब ढाई दर्जन राज्यों की विधानसभाओं को देखें तो कुल 4036 विधायक हैं। इनमें से आधे विधायक अलग-अलग विधानसभाओं में हों तो सरकार बनना वैसे भी तय रहता है। इसलिए 2018 विधायकों को या तो जिताकर लाना है, या खरीदकर। यह आंकड़ा भी अंकगणित का है। सच तो यह है कि किसी भी विधानसभा में आधे विधायकों की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि कुछ न कुछ अलग पार्टियां रहती हैं या निर्दलीय विधायक रहते हैं।
अब चंडूखाने की गप्पों की बात करें तो एक विधायक के अधिक से अधिक दाम 35 करोड़ रूपए सुनाई पड़े हैं। यह भी सुनाई पड़ा है कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने अपने आपको बचाने के लिए सचिन पायलट के साथ चले गए कांग्रेस विधायकों को खुद ही वापिस खरीदा था। जो भी हो राजनीतिक आत्माएं अब आसानी से बिकने के लिए बाजार में हैं।
2018 विधायकों में से किसी बड़ी पार्टी के पास खुद होकर भी तीन चौथाई तो विधायक खुद के छाप वाले रहते ही हैं। अब एक चौथाई में से कई को मंत्री बनाकर, और कुछ को अगर खरीदकर जुटाना हो, और 35 करोड़ का रेट हो, तो भी मामला कुछ हजार करोड़ रूपए का ही बनता है। इसलिए आंकड़ों के हिसाब से एक बड़ी पार्टी कुछ हजार करोड़ रूपए में देश की लगभग हर विधानसभा में अपनी सरकार बना सकती है।
संसद में लोगों को सवाल पूछने के लिए जिस तरह आत्मा बेचते देखा है, उसे देखते हुए कुछ हजार करोड़ रूपए में संसद में भी तस्वीर बदल सकती है। आगे-आगे देखें होता है क्या।
पेट्रोलियम के दाम की कड़वी घूंट धीरे-धीरे पीयें
डीजल-पेट्रोल का दाम बढऩे का असर अब बाकी चीजों पर भी दिखाई दे रहा है। ट्रांसपोर्ट का धंधा इससे सीधा प्रभावित है। डीजल के दाम में जिस तरह रोजाना थोड़ी-थोड़ी बढ़ोतरी हो रही है, ट्रांसपोर्ट व्यवसायी उस हिसाब से भाड़ा नहीं बदल पाते। इसलिये इनके राष्ट्रीय संगठन ने हर तीन माह में एक बाद दाम की समीक्षा और वृद्धि करने का प्रस्ताव दिया है। पेट्रोलियम कम्पनियों ने यूपीए सरकार के समय से ही ऐसा करना बंद कर दिया है। पहले हर पखवाड़े रेट की समीक्षा की जाने लगी फिर इसे हर दिन तक लाया गया। सरकार को इसका लाभ यह हुआ कि 25-50 पैसे की घटत बढ़त को लोगों ने नजरअंदाज करना शुरू कर दिया । पेट्रोल, डीजल के दाम भी धीरे-धीरे तीन माह से बढ़ रहे हैं लेकिन लोगों के कान तब खड़े हुए जब यह 85-90 रुपये पहुंचने लगे। लोगों ने हिसाब लगाना शुरू किया कि वास्तविक कीमत कितनी है और केन्द्र तथा राज्य सरकार इस पर टैक्स कितना वसूल रही हैं। ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसियेशन ने 26 फरवरी को पूरे देश में एक दिन का आंदोलन करने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ के बस ओनर्स भी 40 से 50 फीसदी भाड़े में बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं। सीमेन्ट का भाड़ा 200 रुपये प्रति टन बढ़ाने की मांग उठी है। सरकारी ठेका लेने वाले बिल्डर्स भी कच्चे माल की लगातार कीमत के कारण परेशान हैं। सब्जियों, खासकर बाहर से आने वाले प्याज की कीमत फिर से बढऩे लगी है। मतलब यह है कि पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस खरीदते वक्त ही लोग महंगाई के तेवर को महसूस नहीं कर रहे हैं। वह भी तब जब लोगों की आमदनी इस बीच बढ़ी नहीं है। आने वाले दिनों में इसका असर और ज्यादा दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं।
दंतेवाड़ा के कैदी की जांच रायपुर में?
अम्बेडकर अस्पताल में सीनियर डॉक्टर से दुर्व्यवहार व एक अन्य डॉक्टर को तमाचा जडऩे वाले जेल प्रहरी पर पुलिस ने कार्रवाई कर और डॉक्टरों की सुरक्षा बढ़ाकर किसी तरह मामला शांत किया है। पर कुछ प्रश्न खड़े होते हैं। इस तरह की अप्रिय स्थितियां रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा के मेडिकल कॉलेजों में अक्सर पैदा होती हैं। प्राय: सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र व कई बार जिला अस्पतालों से भी मरीज को सीधे मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। जबकि उनक़े उपचार और जांच की व्यवस्था वहीं हो सकती है। कल जो घटना रायपुर में हुई उसमें कैदी को दंतेवाड़ा से लेकर जेल प्रहरी आया था। ऐसी कौन सी नौबत थी कि जिसके चलते 350 किलोमीटर का सफर करके कैदी को जांच के लिये रायपुर लाना पड़ा। इस बात की कोई सफाई नहीं ली जाती कि निचले स्तर के स्वास्थ्य केन्द्रों में ही इलाज व जांच क्यों नहीं हो जाती। कैदी को लेकर आने की तो जेल प्रबंधन की बाध्यता थी लेकिन सोचने की बात है कि यदि बस्तर के लोगों को एमआरआई के लिये रायपुर आना पड़ा, तो स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर हम खड़े हैं।
नोटिस का कोई नतीजा निकलेगा?
सरगुजा आयुक्त ने संभाग के सभी आरईएस कार्यपालन यंत्रियों को एक सिरे से नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। वजह है निर्माण कार्यों के पूरे होने मे देरी। बीते तीन सालों में सरगुजा के आदिवासी विकास प्राधिकरण में 96 करोड़ रुपये से भी अधिक के 17 सौ से अधिक निर्माण कार्य मंजूर किये गये लेकिन इसमें से केवल 4 सौ पूरे हो पाये हैं। यानि 13 सौ बाकी है। इनसे पूछा गया है कि ऐसी नौबत क्यों आई। संभागायुक्त और जिला कलेक्टर लगभग हर सप्ताह समीक्षा बैठकें करते हैं। ऐसी चेतावनी हर बार दी जाती है। अधिकारी इसे रुटीन की फटकार मानकर खौफ नहीं खाते हैं। दबाव भी तब ज्यादा बनता है जब वित्तीय वर्ष समाप्त होने वाला हो। बहरहाल, सरगुजा में कद्दावर मंत्रियों के रहते हुए विकास प्राधिकरण के कार्यों का क्या हाल है इस नोटिस से पता चल रहा है।
गांवों का नये जिले में जाने से इन्कार
गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही, जीपीएम जिले के गठन के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोरबा जिले के उन 19 गावों को नये जिले में शामिल करने की घोषणा की थी जिनके लिये गौरेला मुख्यालय आना सुविधाजनक है। इनमें ज्यादातर गांव पोड़ी-उपरोड़ा अनुभाग के पसान क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। गौरेला की दूरी इन गांवों से एक घंटे में पूरी हो सकती है जबकि कोरबा के लिये उन्हें दो घंटे या उससे ज्यादा का सफर करना पड़ता है। पर यह घोषणा अभी पूरी नहीं हो पाई है। दरअसल, गांवों को नये जिले में शामिल करने के लिये ग्राम सभाओं की सहमति मांगी गई। इनमें से केवल 8 गांवों ने नये जिले में शामिल होने की इच्छा जताई बाकी 11 लोगों ने मना कर दिया। मना करने वाले गांव गौरेला की दिशा में भी हैं। गौरेला से ज्यादा नजदीक गांवों ने नये जिले में आने से मना कर दिया है, कुछ दूर वाले गांव के लोग आना चाहते हैं। मना करने वालों का कहना है कि जिले में आखिर उनका काम ही कितना पड़ता है? एसडीएम, तहसीलदार तो कटघोरा और पोड़ी-उपरोड़ा में भी मिल जाते हैं। बाजार भी कटघोरा का पास है और गौरेला के बाजार से कहीं बड़ा। छत्तीसगढ़ में बहुत से जिलों का नक्शा इसीलिये भूल-भुलैया जैसा है। रायपुर से बिलासपुर की ओर चलें तो एक छोर पर बेमेतरा, दूसरी तरफ दुर्ग, एक तरफ मुंगेली तो दूसरी ओर बलौदाबाजार जिले के हिस्से मिलते हैं। बहुत पहले नदियों और बड़े नालों से सीमा तय कर दी जाती है, पर अब सडक़ों के जरिये भी इसका निर्धारण किया जा रहा है। इस मामले में केवल 8 गांवों की सहमति मिलने के कारण मुख्यमंत्री की घोषणा पर अमल नहीं करने का निर्णय राजस्व विभाग ने लिया है।
नये राज्य में पहली बार नियमित शिक्षक
कोरोना संकटकाल के चलते सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को हुए नुकसान की भरपाई अब स्कूलों को खोलकर पहले की तरह पढ़ाई शुरू करने की कोशिश की जा रही है। राज्य शासन ने बिना किसी शोर-शराबे के छत्तीसगढ़ के लोक शिक्षण संचालनालय को मेरिट के आधार पर नियमित शिक्षक के करीब 14 हजार पदों पर नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है। नियुक्तियों की प्रक्रिया करीब दो साल पहले शुरू हुई थी पर कोरोना और शिक्षा कर्मियों के संविलियन जैसे दूसरे कारणों से आगे की प्रक्रिया टलती जा रही थी। खास बात यह है कि अब से करीब 25 साल पहले जब पंचायतों और नगरीय निकायों को शिक्षाकर्मियों की नियुक्तियों का अधिकार दिया गया था, शिक्षा विभाग ने सीधी नियुक्ति बंद कर दी थी। राज्य बनने के बाद पहली बार नियुक्ति हो रही है। बस, दिक्कत यह है कि ये नियुक्तियां एक साथ नहीं होंगी बल्कि ज्यों-ज्यों स्कूल खुलेंगे और कक्षाओं का लगना शुरू होगा, नियुक्ति पत्र थमाने की पक्रिया चलेगी। यानि चयनित शिक्षकों को शिक्षा विभाग के बार-बार चक्कर लगाकर अपने स्टेटस का पता लगाना पड़ेगा। ऐसे में हाथ में नियुक्ति आदेश पाने के लिये कितना खर्च करना पड़ सकता है, थोड़ा अनुमान आप भी लगा सकते हैं।
कोरोना काल में बबल जोन कहां था?
कोरोना महामारी के दौरान ज्ञान में आये कई नये शब्दों से लोगों में दहशत थी, जैसे लॉकडाउन, क्वारांटीन और कंटेनमेन्ट जोन। शहीद वीर नारायण सिंह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में शुरू होने वाले रोड सेफ्टी वर्ल्ड क्रिकेट सीरिज के खिलाडिय़ों को एक सप्ताह पहले बुलाया जा रहा है। वे नया रायपुर के रिसोर्ट में रुकेंगे। वे इस रिसोर्ट से प्रैक्टिस के लिये स्टेडियम तो निकलेंगे पर और उनका कहीं आना-जाना प्रतिबंधित रहेगा। यहां देखभाल के लिये तैनात स्टाफ और सुरक्षा में तैनात जवानों के लिये भी यही गाइडलाइन है। वे किसी से मिल नहीं सकेंगे, अपने परिवार से भी नहीं। इस व्यवस्था को बबल जोन नाम दिया गया है। बबल जोन उस इलाके को कहा जाता है जहां भीड़ इक_ी न हो, संघर्ष और कानून व्यवस्था की कम से कम परेशानी खड़ी हो। केवल बबल का हिन्दी में मतलब तो बुलबुला होता है जो आम लोगों को समझ में आता है। कोरोना काल में कंटेनमेन्ट की दहशत को कम करने के लिये बबल जोन भी नाम दिया जा सकता है, पर जाने दीजिये अब तो वह दौर गुजर चुका है।
आदित्यों का उदय...
सरगुजा की राजनीति में विशेषकर कांग्रेस दूसरी पीढ़ी के नेताओं का दबदबा बढ़ रहा है। इन दिनों दो ‘आदित्य’ की जमकर चर्चा है। टीएस सिंहदेव के भतीजे आदित्येश्वर शरण सिंहदेव, जो कि जिला पंचायत के सदस्य भी हैं, वे काफी सक्रिय हैं। एक तरह से टीएस का राजनीतिक प्रबंधन आदित्येश्वर ही संभालते हैं। इससे परे सरगुजा के एक और प्रभावशाली नेता और सरकार के मंत्री अमरजीत भगत के बेटे आदित्य भगत की भी ग्रैंड लॉचिंग हो चुकी है।
आदित्य को एनएसयूआई में राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी दी गई है, उन्हें सोशल मीडिया विभाग का चेयरमैन बनाया गया है। आदित्य की नजर अगले लोकसभा चुनाव पर है, जिसके लिए वे अभी से मेहनत कर रहे हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि आदित्येश्वर भी विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। कुल मिलाकर दोनों ‘आदित्य’ की कार्यशैली पर लोगों की निगाहें टिकी हैं।
पेपर की बात छोडि़ए
डी पुरंदेश्वरी के प्रदेश भाजपा का प्रभार संभालने के बाद से पार्टी के नेता अचानक सक्रिय हो गए हैं। खुद पुरंदेश्वरी मोर्चा-प्रकोष्ठों की गतिविधियों की मॉनिटरिंग कर रही हैं। इस वजह से बेहतर कार्यक्रम करने के लिए पदाधिकारियों पर काफी दबाव भी है। कार्यक्रम हो रहे हैं, तो खर्च भी हो रहा है। ऐसे में पदाधिकारी फंड के इंतजाम के लिए बड़े नेताओं के आगे-पीछे हो रहे हैं।
पिछले दिनों अंबिकापुर में पार्टी की संभागीय बैठक में केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह अपने विभाग के कामकाज का बखान कर रहीं थी कि उनके विभाग का पूरा काम पेपरलेस हो गया है, तो एक सीनियर पदाधिकारी ने उन्हें टोक दिया, और कहा कि पेपर की बात छोडि़ए, फंड के बारे में सोचिए। इस पर वहां जमकर ठहाका लगा।
बड़े दिल के लोग
आज जब चारों तरफ मकान मालिक आर किराएदार एक-दूसरे के खिलाफ अदालत में खड़ नजर आते हैं, तब भी इस कलयुग में ऐसे बड़े दिल के लोग रहते हंै जिन्होंने अपनी 50 साल की किराये की दुकान (3000 फीट) बिना किसी दबाव के, बिना किसी पैसे के खाली कर दी और चाबी जगह के मालिक ट्रस्ट को दे दी। ऐसे ही एक वाकया आज ही हुआ है। श्री ऋषभदेव मंदिर व दादाबाड़ी ट्रस्ट एमजी रोड रायपुर में बहुत से किरायेदार हैं, जिनमें से एक किरायेदार हैं श्री स्टील, जिनके मालिक हैं अनिल, अनुराग एवं आकाश श्रीवास्तव। करीब पचास बरस से ये श्री ऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के किरायेदार थे। दादाबाड़ी की इस विशाल भूमि पर एक भव्य मंदिर एवं दादाबाड़ी का निर्माण कार्य जोरशोर से चल रहा है, इसके लिए ट्रस्ट को अपनी जमीन किरायेदारों से वापस चाहिए। ट्रस्ट ने श्री स्टील के मालिकों से केवल एक बार बात की, श्री स्टील के मालिकों ने बिना कुछ बताए, बिना कुछ लिए अपना ऑफिस खाली कर ट्रस्ट को चाबी उस समय भेज दी जब ट्रस्ट के सभी ट्रस्टी मंदिर के लिए मार्बल खरीदने मकराना गए हुए थे। आज दादाबाड़ी के एक धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन में ट्रस्ट बोर्ड ने अनिल श्रीवास्तव को बहुमान हेतु आमंत्रित किया, जिसमें उन्होंने बड़ी उदारता एवं सरलता से बड़े भाव से ये कहा कि ये तो मंदिर की जमीन थी और हम तो किरायेदार थे और भगवान की इस जमीन से हमने कमाया और ये तो हमारा फर्ज था कि आपकी जमीन आपको वापस दें। उन्होंने इतनी बड़ी बात इतनी सहजता से कह दी जो कि बहुत बड़े दिलवाले ही कर सकते हैं। ट्रस्ट मंडल ने कहा कि आज ऐसे व्यक्ति का सम्मान करने का मौका मिला। ट्रस्ट मंडल भगवान से प्रार्थना करता है कि वे और उनका परिवार उतरोत्तर तरक्की करे।
भाजपा को पेशोपेश में डाला डॉ. जोगी ने
छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की विधायक डॉ. रेणु जोगी ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को पत्र लिखकर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिये समर्थन मांगा है। जकांछ ने मरवाही उप-चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त देने के लिये भाजपा को समर्थन दे दिया था। हालांकि इसके बावजूद नतीजे को पलटा नहीं जा सका। कांग्रेस बार-बार जकांछ पर आरोप लगाती रही है कि यह भाजपा की ‘बी’ टीम है। अब यदि भाजपा और जकांछ साझा अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस सरकार के खिलाफ विधानसभा में लाती है तो कांग्रेस सरकार अपने बचाव में इसी बात को फिर दोहरायेगी।
भाजपा इस बार भले ही बहुत कम सीटों पर सिमट गई है लेकिन इतनी भी कमजोर नहीं है कि अकेले अविश्वास प्रस्ताव ला सके। सदन के 10 प्रतिशत विधायकों की ही मांग जरूरी है। इस लिहाज से उसके पास पर्याप्त विधायक तो हैं ही। अविश्वास प्रस्ताव गिरने की आशंका होने के बावजूद विपक्ष की ओर से प्राय: इसलिये लाया जा सकता है कि वह सरकार की विफलताओं पर सदन में बोलें और उसे पूरा प्रदेश सुने।
भाजपा और उनके मोर्चा संगठन इन दिनों प्रदेश भर में अलग-अलग मुद्दों को लेकर सरकार को सडक़ पर घेरने में लगी हुई है, पर इनकी पार्टी के रणनीतिकारों के ध्यान में यह बात नहीं आई कि सरकार के दो साल होने के बाद उन्हें अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार मिल गया है। यह मुद्दा उठाने का श्रेय जकांछ को मिल गया जिसके कुल जमा चार विधायक हैं। डॉ. रेणु जोगी की चि_ी का भाजपा की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। शायद वे सोच रहे हैं कि वे कहें अविश्वास प्रस्ताव तो हम लायेंगे, समर्थन आप दीजिये।
दूसरी वैक्सीन के लिये भी मान-मनुहार
कोविड टीका कोविशील्ड लगाने का लक्ष्य पूरा हो इसके लिये पहले चरण में विभिन्न जिलों के स्वास्थ्य अधिकारी और प्रशासन ने बहुत कोशिश की तब यह लक्ष्य 70 प्रतिशत के आसपास पहुंचा। पहला टीका लगवाने वालों को यह बात अच्छी तरह बताई गई थी कि कोरोना से बचाव तभी होगा जब 28 दिन के भीतर दूसरा डोज भी ले लिया जाये। अब जब दूसरे चरण का वैक्सीनेशन शुरू हुआ है तो और भी मुश्किल खड़ी हो रही है। कहीं-कहीं तो 10 प्रतिशत लोग भी दुबारा टीका लगवाने नहीं आ रहे। कोई कह रहा है सर्दी, खांसी है, कोई तो बिना संकोच बता रहा है कि शराब पीना शुरू कर दिया था, पहला डोज बेकार हो गया, दूसरे से क्या फायदा? क्या इसका मतलब यह निकाला जाये कि पहले चरण में टीका जिन लोगों ने लगवाया वे कोरोना को लेकर चिंतित नहीं थे बल्कि हेल्थ वर्कर्स और अधिकारियों की बात रखने के लिये टीकाकरण सेंटर तक पहुंच पाये? वैक्सीनेशन पर भरोसा जगाने के लिये अब किसी नये उपाय की तलाश करनी पड़ेगी।
दो जिलों के बॉर्डर पर जुआ
सट्टा और जुए के खेल में किस तरह पुलिस से बचने के लिये नये-नये तरीके निकाले जाते हैं वह बलौदाबाजार और बिलासपुर सीमा पर शिवनाथ नदी के किनारे लगे जुआरियों के मेले में पुलिस के हाथ लगी नाकामी से पता चलता है। वैसे तो इस छापेमारी में पुलिस ने करीब 50 हजार रुपये जब्त किये और 15 जुआरियों को पकड़ा। पर जितना बड़ा फड़ था, यह कुछ नहीं है। पुलिस ने मौके से करीब 70 दुपहिया वाहन और तीन कारें जब्त की हैं। यानि खेलने वालों की संख्या डेढ़ सौ के आसपास थी। उनके पास की रकम कुछ हजार में तो होगी नहीं, कई लाख हो सकती है।
दरअसल, बलौदाबाजार जिले के जुआरियों ने जिस जगह को चुना वह शिवनाथ नदी के दूसरी तरफ है। यह बिलासपुर जिले का हिस्सा है। जैसे ही पुलिस की दबिश हुई जुआरियों ने नदी पार की और जिले की सीमा से बाहर निकलकर अपने जिले में आ गये। पुलिस हाथ मलती रह गई। दोनों जिलों की पुलिस यदि तालमेल से काम करती तो शायद दोनों तरफ से घेराबंदी होती और ज्यादा जुआरी धर लिये जाते।
एक और छत्तीसगढ़ भवन
दिल्ली के द्वारका में करोड़ों की लागत से एक और छत्तीसगढ़ भवन का निर्माण हो रहा है। निर्माण एजेंसियां नए कार्यों में विशेष रूचि लेती हंै। तभी तो प्राइम लोकेशन में स्थित पुरानी प्रापर्टी को खरीदने के बजाए नए भवन के निर्माण का फैसला लिया गया।
दिल्ली में विशिष्ट लोगों के ठहरने के लिए छत्तीसगढ़ भवन और छत्तीसगढ़ सदन पहले से ही मौजूद है। इनमें से छत्तीसगढ़ भवन राज्य बंटवारे में मिला था। यह भवन सरदार पटेल मार्ग पर स्थित है, जहां कई और राज्यों के भवन हैं। सरकार ने लोगों की बढ़ती आवाजाही को देखते हुए उनके ठहरने के लिए एक और भवन बनाने का फैसला लिया।
कुछ लोगों का सुझाव था कि नए निर्माण के बजाए छत्तीसगढ़ भवन से कुछ कदम की दूरी पर स्थित विजय माल्या की प्रापर्टी को खरीद लिया जाए। शराब कारोबारी विजय माल्या की प्रापर्टी को बैंक नीलाम कर रही थी। विजय माल्या का यह बंगला आलीशान है, और छत्तीसगढ़ भवन के नजदीक होने के कारण सुविधाजनक भी था। बंगले की कीमत भी नव निर्मित बंगले के बराबर ही बैठ रही थी।
मगर सरकारी स्तर पर नीलामी में हिस्सा लेने का कोई फैसला हो पाता, इससे पहले ही यस बैंक के लोगों ने ही नई कंपनी बनाकर बंगले को खरीद लिया। कुल मिलाकर प्राइम लोकेशन की एक बेहतर प्रापर्टी हाथ से निकल गई। वैसे भी नए निर्माण का अलग ही मजा होता है।
नंदकुमार साय और जैविक खेती
किसान आंदोलन के बीच छत्तीसगढ़ के दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय जैविक खेती को बढ़ावा देने पर जोर दे रहे हैं। वे इसके लिए मुहिम भी चला रहे हैं, और चाहते हैं कि केन्द्र सरकार इसके लिए ठोस कदम उठाए। वे खुद खेती में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते, और जशपुर जिले के किसानों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं।
पिछले दिनों साय इस सिलसिले में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से भी मिले। किसान आंदोलन की टेंशन के बावजूद तोमर ने साय से गर्मजोशी से मुलाकात की। नंदकुमार साय अविभाजित मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे, तब तोमर संगठन में प्रदेश मंत्री के पद पर थे। तोमर ने साय के सुझाव को काफी महत्व दिया है। देखना है कि सरकारी स्तर पर इस पर कितना अमल किया जाता है।
शिकारियों की ढूंढ निकालने में माहिर सिम्बा, नैरो
इन दिनों वन विभाग के पास मौजूद दो प्रशिक्षित डॉग कमाल कर रहे हैं। ये मुंगेली जिले के अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) में तैनात डॉग नैरो और सिंबा हैं। जब इन्हें लाया गया तो यही मंशा थी कि यहीं के जंगल में होने वाले शिकार और लकडिय़ों की कटाई करने वाले अपराधियों की खोज में मदद मिले, पर इनकी प्रदेशभर में मांग हो रही है। कवर्धा वनमंडल के सहसपुर लोहारा परिक्षेत्र में करंट लगाकर बीते 16 फरवरी को एक तेंदुए को शिकारियों ने मार डाला था। वन विभाग की टीम ने अपनी तरफ से अपराधियों का पता लगाने की कोशिश की लेकिन जब कोई सुराग नहीं मिला तो एटीआर से एक डॉग सिम्बा को वहां बुलाया गया। सिम्बा ने दो शिकारियों को पहचान लिया और वन विभाग ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। आरोपियों ने अपना जुर्म भी कबूल किया है।
वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि 6 साल की उम्र वाले इन कुत्तों के खाते में पिछले चार साल के दौरान दो दर्जन से ज्यादा कामयाबी हाथ लग चुकी है। चीतल, तेंदुआ, सांभर, बाघ, हाथी के शिकारियों की गर्दन इन्होंने नापी है। कई बार तो नाखून के हिस्से को भी सूंघकर शिकारियों तक पहुंच चुके हैं। ये बस्तर से लेकर सरगुजा तक छत्तीसगढ़ के हर कोने में जा चुके हैं।
वैसे प्रशिक्षित कुत्तों के जरिये अपराधियों तक पहुंचने का काम तो काफी पहले से लिया जा रहा है। पुलिस अपराधियों के ठिकाने तक पहुंचने के लिये तो आरपीएफ संदिग्ध सामानों की तलाशी में इसका इस्तेमाल करती ही है। बस्तर में तो विस्फोटक ढूंढने के लिये एक बार आवारा कुत्तों को भी प्रशिक्षित करने की योजना बनी। नेरो और सिम्बा के हाथ जो कामयाबी लग रही है उसे देखते हुए आने वाले दिनों में पुलिस भी इनकी सेवायें लेने पर विचार करे तो कोई आश्चर्य नहीं।
लाइट मेट्रो क्या है?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लाइट मेट्रो परियोजना के लिये बजट में 11 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान कर रखा है। छत्तीसगढ़ के नगरीय प्रशासन मंत्री ने दिल्ली में केन्द्रीय आवास व शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी से मिलकर लाइट मेट्रो की मांग रख दी है। याद होगा कि भाजपा शासनकाल के दौरान रायपुर से प्रमुख शहरों के लिये मेट्रो रेल चलाने का प्रस्ताव दिया गया था। उस समय मेट्रो मैन ई. श्रीधरन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को बताया था कि यात्रियों की संख्या तथा निर्माण व संचालन में आने वाले खर्च की तुलना करें तो अभी इसकी आवश्यकता नहीं है।
लाइट मेट्रो नई यातायात सेवा है। दिल्ली में ड्राइवरलेस मेट्रो ट्रेन पिछले साल शुरू हो ही चुकी है। इस साल वहां से लाइट मेट्रो शुरू हो सकती है। उत्तरप्रदेश सरकार ने भी गोरखपुर, प्रयागराज और मेरठ में लाइट मेट्रो चलाने की योजना बनाई है। लाइट मेट्रो सडक़ के समानान्तर चलने वाली एक मिनी ट्रेन की तरह होगी, जिसकी सवारी क्षमता 300 होती है।। स्टेशन बस स्टैंड की तरह होंगे। कोलकाता में मेट्रो ट्रेन को चलते हुए हमने देखा ही है, पर लाइट मेट्रो सडक़ों से नहीं बल्कि उसके किनारे से गुजरेगी और आवश्यकतानुसार इसके लिये पुल पुलियों की चौड़ाई बढ़ाई जायेगी। परियोजना की निर्माण लागत भी कम होती है और संचालन का भी खर्च कम होता है।
छत्तीसगढ़ में मंजूरी मिली तो नया रायपुर, रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव जैसे शहरों को इससे जोड़ा जा सकता है। रायपुर में अस्त-व्यस्त होती यातायात व्यवस्था को ठीक करने में मदद मिलेगी। छत्तीसगढ़ की राजधानी से प्रमुख शहरों के बीच आवागमन के साधन सीमित हैं। बसों और लोकल ट्रेनों की संख्या कम तो है ही रोज आना-जाना करने वालों के लिये यह खर्चीला भी है। ऐसे में लाइट मेट्रो मंजूर होती है तो छत्तीसगढ़ के लिये एक उपलब्धि ही होगी।
वैसे, नगरीय प्रशासन विभाग को सिटी बसों के भी पूर्ववत सुचारू संचालन के बारे में भी सोचना चाहिये। खासकर राजधानी रायपुर व बिलासपुर में कोरोना के बाद बंद बसों के चलते रोजाना हजारों लोग एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।
रंग-बिरंगी गोभी
कुछ वर्ष पहले जब छत्तीसगढ़ के मॉल में सब्जियों की बिक्री शुरू हुई तो फ्रीजर में रखी कुछ साफ-सुथरी रंगीन सब्जियां ध्यान खींचती थी और ग्राहक उसकी कोई भी कीमत देकर खरीदना चाहते थे। इनमें से एक थी ब्रोकली। यह गोभी का ही एक प्रकार है जिसका छत्तीसगढ़ में उत्पादन नहीं लिया जाता था, क्योंकि इसके बीज के बारे में पता नहीं था। अब ब्रोकली का उत्पादन छोटे रकबे के किसान भी करने लगे हैं। बाजार में यह मॉल के मुकाबले चौथाई कीमत पर उपलब्ध है। इसी तरह फूलगोभी की जानी पहचानी वैरायटी सफेद रंग की या फिर हल्का पीलापन लिये होता है। पर अब गांवों में चार पांच रंगों की गोभियां उगाई जाती हैं। इनमें लाल, चटक पीला, हरा और बैंगनी रंग शामिल है। मस्तूरी, मल्हार के एक किसान ने इसी तरह की अलग-अलग रंगों की गोभी अपने खेत में बोई है। वे बताते हैं कि इसकी कीमत आम गोभी से ज्यादा मिल जाती है और इसकी खेती काफी फायदेमंद है।
बोरा का इंतजार जारी
भाप्रसे के अफसर सोनमणि बोरा को राज्य सरकार ने केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने की हरी झंडी दे दी है, लेकिन अब तक उनकी वहां पोस्टिंग नहीं हुई है। चूंकि उन्होंने खुद होकर केन्द्र सरकार में काम करने की इच्छा जताई थी, लिहाजा, यहां उन्हें कोई अहम दायित्व नहीं सौंपा गया है। उनके पास अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण संसदीय कार्य विभाग का प्रभार दे दिया गया है, जहां रोज-रोज फाइल भी नहीं आती है। विधानसभा सत्र के दौरान थोड़ा बहुत काम रहता है।
98 बैच के अफसर बोरा केन्द्र में संयुक्त सचिव के पद पर इम्पैनल हुए हैं। मगर फिलहाल उनकी पोस्टिंग की संभावना कम दिखाई दे रही है। वजह यह है कि केन्द्र सरकार में पोस्टिंग के लिए समिति की बैठक काफी समय से नहीं हुई है। कोरोना की वजह से बैठक टल रही है, और अगले कुछ हफ्ते बैठक होने की संभावना भी नहीं दिख रही है। यानी बोरा को केन्द्र में प्रतिनियुक्ति के लिए अगले दो-तीन महीने और इंतजार करना होगा।
ऊंची छलांग
छत्तीसगढ़ के कई मीडिया संस्थानों में काम कर चुके डॉ. संजय द्विवेदी ने ऊंची छलांग लगाई है। डॉ. द्विवेदी आईआईएमसी के डीजी के पद पर हैं। यह पद केन्द्र सरकार में अतिरिक्त सचिव के समकक्ष है। आईआईएमसी में ऑल इंडिया इनफार्मेशन सर्विस के अफसर ट्रेनिंग लेते हैं, और यह देश के सबसे पुराने प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है।
आमतौर पर यहां अतिरिक्त सचिव स्तर के आईएएस अफसर ही डीजी के पद पर रहे, लेकिन पहली बार सीनियर जर्नलिस्ट को मौका मिला है। संघ परिवार के करीबी माने जाने वाले डॉ. संजय द्विवेदी, भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी विवि में कुलसचिव के पद पर थे।
डॉ. द्विवेदी से परे गत वर्ष आईआईएस में चयनित शालिनी अवस्थी ट्रेनिंग पूरा कर सूचना एवं प्रसारण विभाग के डीएवीपी में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर पदस्थ हुई हैं। शालिनी मूलत: छत्तीसगढिय़ा हैं, और वे छत्तीसगढ़ की अकेली अफसर हैं, जो आईआईएस में चयनित हुई। शालिनी भी मीडिया संस्थान में काम कर चुकी हैं, और आईआईएस में आने से पहले वे दिल्ली म्युनिसिपल में अफसर थीं।
रहस्यमय तरीके...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक सबसे व्यस्त चौक, शारदा चौक पर ट्रैफिक पुलिस जब झपटकर किसी दुपहिए-चौपहिए को रोकती है, तो शुरूआती बातचीत के बाद एक ट्रैफिक सिपाही ड्राइवर को लेकर बगल के मंदिर में जाता है। हो सकता है कि वहां ड्राइवर को ईश्वर के सामने यह कसम दिलाई जाती होगी कि वे दुबारा ट्रैफिक नियम नहीं तोड़ेंगे, लेकिन हर बात में बुराई देखने वाले कुछ लोगों का यह मानना है कि ट्रैफिक पुलिस जब ट्रैफिक की नजरों से परे किसी को ओट में ले जाती है, तो वह कोई धार्मिक कसम दिलाने के लिए नहीं ले जाती।
बात यहां तक रहती तो भी ठीक था। शंकर नगर और केनाल रोड के जंक्शन पर जब ट्रैफिक पुलिस इसी तरह किसी को झपट्टा मारकर पकड़ती है, तो ड्राइवर को लेकर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडेय के बंगले के गेट पर बनी छोटी सी कोठरी में ले जाती है। पांडेयजी के बंगले में चहल-पहल कम रहती है, और गेट पर गार्ड का कमरा खाली रहता है। अब पुलिस ड्राइवरों को यहां लाकर पता नहीं कौन सी कसम दिलवाती है!
श्रीराम की एक भूमि कोरबा में भी...
प्रदेशभर से सरकारी और निजी जमीन की आ रही अफरा-तफरी की खबरों के बीच राजस्व मंत्री के जिले कोरबा से एक अनूठी खबर आई है। ऑनलाइन रिकॉर्ड में एक जमीन भगवान राम, पिता दशरथ, निवास अयोध्या चढ़ी हुई मिली। पटवारी, तहसीलदार से शिकायत हुई तो पहले यह कहा गया कि यह नामांतरण ऑनलाइन एंट्री के दौरान ट्रायल के लिये किया गया होगा, जिसे बाद में सुधारा नहीं गया। यहां तक तो ठीक है अब इसके बाद रिकॉर्ड सुधरा तो यह जमीन सीएसईबी के नाम पर चढ़ गई।
सीबीएसई के अधिकारियों ने साफ किया कि उनका इस जगह पर कोई भूखंड नहीं है। अब तहसीलदार कह रहे हैं आईडी किसी ने हैक कर ली और जान-बूझकर शरारत की गई है। बहरहाल, गड़बड़ी करने वालों का अब तक पता नहीं चला है। इधर, इस जमीन के दो दावेदार सामने आये हैं और दोनों ही दावा कर रहे हैं कि जमीन का रिकॉर्ड उनके पास है। असली भू-स्वामी कौन है यह तय होना अभी बाकी है। जमीन का मामला संवेदनशील है।
पटवारी बस्ते में बंद दस्तावेजों में भी छेड़छाड़ होती रही है पर रिकॉर्ड का ऑनलाइन किया जाना तो जीरो ईरर होना चाहिये। इस तरह से जमीन का मालिकाना हक बदलना आसान रहा तो गड़बडिय़ां इतने बड़े पैमाने पर शुरू हो सकती है, जिन्हें पकडऩा मुश्किल हो जायेगा। धान बिक्री के रकबे की एंट्री के दौरान भी ऐसी गड़बडिय़ां सामने आ चुकी हैं।
नेताओं को फुरसत नहीं नाम कटाने की
गवाही, चालान की प्रक्रिया को यदि पूरी गंभीरता और तेजी से निपटाया जाये तो राजनीतिक आंदोलन ही बंद हो जायेंगे। न धरना-प्रदर्शन होगा, न चक्काजाम। इन आंदोलनों में शामिल होने वालों की उम्मीद बनी रहती है कि यदि कोर्ट में केस भी चला तो गवाह नहीं टिकेंगे। सरकार बन गई तो केस खत्म करने की प्रक्रिया भी शुरू हो जायेगी। कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए भाजपा सरकार के खिलाफ खूब धरना, प्रदर्शन किया, गिरफ्तारियां दी। अब इन राजनीतिक मुकदमों के खात्मे की प्रक्रिया शुरू हुई है। गृह मंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रियों की एक उप-समिति भी बनी है, जिसकी एक बैठक भी हो चुकी।
अब यह हो रहा है कि किस तरह के मामलों का खात्मा करने का प्रस्ताव बनाया जाये यह थानेदारों को समझ नहीं आ रहा है। बहुत से गंभीर आपराधिक प्रकरण हैं जिन पर ये नियम लागू नहीं हो सकता, हालांकि वे राजनैतिक लोगों से ही जुड़े हुए हैं। इसके अलावा जिन नेताओं के विरुद्ध मामले दर्ज हैं वे खुद आवेदन लेकर नहीं आ रहे हैं, जो एक अनिवार्य प्रक्रिया है। यह बात खुद गृह मंत्री ने बैठक में उठाई है। इधर, प्रदेश में ‘बिगड़ती कानून-व्यवस्था’ को लेकर 20 फरवरी को भाजपा महिला मोर्चा प्रदर्शन करने जा रही है। वे आंकड़े बता रही हैं कि किस-किस तरह के अपराध कितने बढ़े। अगर ये राजनीतिक मामले भी शून्य हो जायें तो फेहरिस्त थोड़ी छोटी ना हो जाती?
स्कूल में फैले संक्रमण से सबक लेंगे?
महाराष्ट्र सरकार ने सार्वजनिक स्थानों, खासकर ट्रेनों में यात्रा के दौरान कोरोना गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित करने के लिये बड़ी संख्या में वालिंटियर्स तैनात करने का निर्णय लिया है। हाल ही में संक्रमण के मामलों ने वहां फिर रफ्तार पकड़ी, जिसके चलते यह निर्णय लिया गया। अपने यहां भी स्कूल, कॉलेज, मल्टीप्लेक्स, बस, ट्रेन में गतिविधियां सामान्य हो रही है। इधर राजनांदगांव के एक स्कूल में 9 शिक्षकों और दो छात्रों में कोरोना का संक्रमण पाया गया। संभवत: आगे इनकी संख्या और बढ़ सकती थी।
कोरोना गाइडलाइन का पालन करना जरूरी है यह अब सिर्फ रेडियो, टीवी के विज्ञापनों में सुनाई दे रहा है। सार्वजनिक स्थलों पर लोग जागरूक रहें, इसकी कोई कोशिश नहीं हो रही। कोरोना के दौरान जब लोगों की सहूलियत के लिये कुछ घंटे, दिन के लिये अनलॉक किये गये तो हाट-बाजार में वालेंटियर्स तैनात किये जाते थे। अब जिस तरह से इस ओर बेफिक्री दिखाई दे रही है, वह किसी भी दिन चिंता बढ़ा सकती है। महाराष्ट्र का प्रयोग छत्तीसगढ़ में भी किया जाये तो कुछ गलत नहीं।
खाली दौड़ रहीं पैसेंजर ट्रेनें
लम्बे समय से बंद लोकल ट्रेनों को रेलवे ने आखिरकार शुरू किया. पर इनमें भीड़ नहीं है। बोगियां खाली दौड़ रही हैं। 13 फरवरी को जब ट्रेनें शुरू की गई तो रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर के बीच केवल 25-30 सवारी मिलीं। रेलवे ने एक दर्जन पैसेंजर और मेमू ट्रेनों को फिर से शुरू कर दिया है। इन्हें स्पेशल ट्रेनों के नाम पर चलाया जा रहा है। रायपुर-बिलासपुर के बीच चलने वाली ट्रेनों में सीटें कुल 3000 है लेकिन यात्रियों की संख्या अधिकतम 250 तक ही पहुंच पाई है। यानि 10 फीसदी सीटें भी नहीं भर पा रही है।
लोग इसके कई कारण बता रहे हैं। एक वजह तो ये है कि कई छोटे स्टेशनों पर ट्रेनें नहीं रोकी जा रही हैं, दूसरे किराया, स्पेशल के नाम पर अधिक लिया जा रहा है। मासिक सीजन टिकट भी बंद है। रिश्तेदारी, शादी-ब्याह में लोगों ने ज्यादा आना-जाना बंद कर रखा है। इसके अलावा 11 महीने ट्रेन नहीं चलने के कारण लोगों ने वैकल्पिक साधनों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। इन सबके बीच बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि लोकल ट्रेनों में छोटे काम धंधे वाले ज्यादा चलते थे। इनमें बहुत से श्रमिक वर्ग के भी होते हैं जिनके रोजगार पर कोरोना की मार पड़ी है।
पूजा स्पेशल ट्रेनों को जब शुरू किया गया तो रेलवे ने कोरबा से रायपुर, हसदेव एक्सप्रेस को स्पेशल ट्रेन बनाकर चलाया था लेकिन सवारियां नहीं मिलने के कारण उसे बंद करना पड़ा। अब यही आशंका लोकल ट्रेनों को लेकर भी देखी जा रही है।
भाजयुमो का उलझता विवाद
भारतीय जनता युवा मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी में बने रहने के लिये अब पदाधिकारियों तथा कार्यकारिणी के सदस्यों को अपनी मार्कशीट दिखानी पड़ेगी। मोर्चा की नियुक्तियों को लेकर राजधानी रायपुर ही नहीं दूसरे जिलों के कई वरिष्ठ नेता नाराज हो गये हैं। उनकी सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया गया। शायद संतुलन बनाकर पदाधिकारी नियुक्त किये जाते तो यह विवाद खड़ा ही नहीं होता।
पहले भी तय उम्र सीमा को उपेक्षित करके नियुक्तियां होती आई हैं। बताया तो यह जा रहा है कि यदि कड़ाई से उम्र सीमा के नियम का पालन किया गया तो 50 फीसदी पदाधिकारियों को बाहर करना पड़ेगा। इसके बाद असंतोष बढ़ेगा या थमेगा, अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन अनुशासन को लेकर पहचाने जाने वाली भाजपा में ऐसा देखने को कम ही मिला है।
बस्तर में ग्रामीणों की नाराजगी
बस्तर के सुदूर नारायणपुर इलाके के बडग़ांव में करीब दो दर्जन गांवों के सैकड़ों ग्रामीण पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ धरने पर बैठ गये हैं। इनका आरोप है कि पुलिस ने जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया वे माओवादी नहीं हैं। ग्रामीण पुलिस पर मारपीट का आरोप भी लगा रहे हैं। गिरफ्तारी 9 फरवरी को हुई थी।
बस्तर में तैनात सुरक्षा बलों पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं वे निर्दोष ग्रामीणों को माओवादी बताकर पकड़ लेती है या फिर एनकाउन्टर कर दिया जाता है। पिछली सरकार के कार्यकाल में ऐसी घटनाएं हुई हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इनके खिलाफ आवाज भी उठाई । इस मामले में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। ग्रामीण भी सही हो सकते हैं और पुलिस भी।
ग्रामीणों के बीच नक्सलियों को पहचान पाना एक बारीक सा काम है। कई बार वे नक्सली गतिविधियों में अपनी मर्जी से नहीं बल्कि दबाव में जुड़ते हैं। इसका तोड़ यही है कि सुरक्षा बल और ग्रामीणों में एक दूसरे के प्रति ज्यादा से ज्यादा भरोसा जगे। हाल ही में वैलेन्टाइन डे के दिन नक्सली जोड़ों का विवाह कराया गया। उसके पहले भूमकाल दिवस पर ग्रामीणों के साथ पुलिस ने समारोह आयोजित किया। कुछ जगहों में पुलिस शिक्षा और स्वास्थ्य के लिये भी काम कर रही है। सुरक्षा बलों को शायद और प्रयास करते रहने की जरूरत है।
सरस्वती पूजा का पहला अक्षर...
हिन्दुस्तान में धर्म और संस्कृति इतने मिले-जुले हैं कि सरस्वती पूजा के दिन घरों में छोटे बच्चों से स्लेट-पट्टी पर पहली बार कुछ लिखवाकर उनकी पढ़ाई-लिखाई का सिलसिला शुरू किया जाता है। अभी एक सज्जन सरस्वती पूजा के पहले की शाम को बाजार में स्लेट-पट्टी ढूंढते रहे। कुछ देर हो गई थी इसलिए दुकानें बंद होने लगी थीं। अपने बचपन को याद करके वे लकड़ी की फ्रेम और काले पत्थर वाली स्लेट ढूंढते रहे, तो पता लगा कि अब उसका चलन बंद हो गया है, और अब प्लास्टिक की फ्रेम में टीन की चादर पर स्लेट-पट्टी आने लगी है। एक दुकानदार ने जब स्लेट-पट्टी और उसकी पेंसिल की मांग सुनी, तो पूछा- कल सरस्वती पूजा है क्या?
शहरों में जिन हिस्सों में बच्चों के कार्यक्रमों के लिए कपड़े किराए पर मिलते हैं वहां जन्माष्टमी जैसे त्यौहारों पर ट्रैफिक जाम हो जाता है क्योंकि मां-बाप बच्चों को राधा-कृष्ण बनाने के लिए इन दुकानों पर भीड़ लगा लेते हैं। सरस्वती पूजा पर वैसी भीड़ तो नहीं लगती, लेकिन स्कूल-कॉलेज में यह पूजा फिर भी हो ही जाती है, यह अलग बात है कि इस बरस स्कूल-कॉलेज ठंडे पड़े हुए हैं।
देवियों की भूमि पर देव!
अभी भाजपा का पूरे देश में राम मंदिर चंदा अभियान चल रहा है। मुहल्लों में लाउडस्पीकर लेकर रोज सुबह लोग निकलते थे और एक रूपये से लेकर एक करोड़ रूपये तक दान देने की अपील करते थे। इसी बीच बंगाल के चुनाव को लेकर वहां भाजपा अतिसक्रिय हुई तो राजनीति के कुछ विश्लेषकों ने लिखा कि बंगाल राम की पूजा करने वाला प्रदेश नहीं है, वह देवी की पूजा करने वाला है। और याद भी करें तो बंगाल में जन्माष्टमी, रामनवमीं, या गणेशोत्सव सुनाई नहीं पड़ता है। दूसरी तरफ सरस्वती पूजा, लक्ष्मी और काली पूजा, दुर्गा पूजा की खबरों से बंगाल का मीडिया भरे रहता है, और ये प्रतीक वहां के इश्तहारों में भी रहते हैं। अब बंगाल इतना देवीपूजक क्यों है इसे जानने-समझने के लिए वहां की संस्कृति पर कुछ गंभीर लेख पढऩे पड़ेंगे, लेकिन वहां महिलाओं का इतना सम्मान तो है कि बाग-बगीचे में किसी पुरूष साथी के साथ बैठने पर भी उसका कोई अपमान बंगाल में नहीं होता। सोचकर देखें कि वहां देवियों की ही पूजा क्यों है?
धान की खुली नीलामी
राज्य सरकार द्वारा खरीदे गये धान का समायोजन एक गंभीर समस्या बन गई है। केन्द्र सरकार ने पुरानी बोरियों से धान खरीदी बंद कर दी है और 60 लाख मीट्रिक टन चावल लेने के राज्य सरकार के आग्रह पर भी कोई नरमी नहीं है। अब सरकार ने बचे हुए धान की नीलामी करने का फैसला लिया है। जाहिर है कि यह घाटे में ही बिकेगा। सरकार शायद यह सोच रही है कि कुछ तो भरपाई हो। एफसीआई में अभी जो चावल जमा हो रहा है वह पिछले साल का है। यह करीब 20 लाख मीट्रिक टन है।
धान की खेती का छत्तीसगढ़ की इकॉनामी से सीधा रिश्ता है। चुनावी वादे के मुताबिक 2500 रुपये प्रति क्विंटल, राजीव गांधी किसान न्याय योजना की राशि मिलाकर खरीदा गया है। इसके चलते दूसरी खेती की जगह किसानों ने ज्यादा से ज्यादा उगाना शुरू किया है। पड़ोसी राज्यों से लाकर भी खपाया जा रहा है। पर इसकी खपत कहां हो यह यक्ष प्रश्न बन गया है। धान पर किये जाने वाले खर्च की वजह से स्वाभाविक तौर पर विकास के बाकी कामकाज भी प्रभावित हो रहे हैं। मालूम हुआ है कि राज्य के बजट में कटौती भी करने की मंशा सरकार की है। सरकार ने तो धान का दाम 2500 रुपये तय कर दिया है। दिक्कतों के बावजूद वह अपने वादे को निभाने की कोशिश कर रही है क्योंकि किसानों को नाराज करने की स्थिति में वह नहीं है। यह पूरे पांच साल के लिये लिया गया फैसला है। क्या ऐसा नहीं किया जाना चाहिये कि इस बड़ी रकम का इस्तेमाल बाकी फसलों को प्रोत्साहित करने के लिये भी किया जाये, जिनकी प्रदेश और दूसरे राज्यों में मांग हो और राज्य बड़े घाटे से बच सके।
शराब की संस्कृति
मैनपाट महोत्सव में शराब का अवैध काउन्टर खोला गया। लोगों को गोवा, थाइलैंड वाली फीलिंग हुई। लोग वहां सत्यनारायण की कथा सुनने नहीं, मनोरंजन के लिये गये थे। शराब का बिकना कोई बड़ी बात नहीं। यह विचार है संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत का। मैनपाट में शराब की गैरकानूनी बिक्री को जायज बताने से अब प्रदेशभर में होने वाले दूसरे महोत्सवों के लिये रास्ता साफ हो गया है। क्या आने वाले दिनों में विकास की प्रदर्शनी दिखाये जाने वाले सरकारी काउन्टर के साथ-साथ आबकारी विभाग के काउन्टर में शराब की बिक्री भी होगी? वैसे इस संस्कृति का विस्तार जन समस्या निवारण शिविरों में भी किया जा सकता है।
मास्क जारी रखने की जरूरत
छत्तीसगढ़ देश के उन प्रदेशों में है जहां टीबी और कुष्ठ रोग के बहुत मरीज हैं। सरकार की इलाज-रणनीति के मुताबिक अब टीबी सेनेटोरियम बंद कर दिए गए हैं, लेकिन गरीब आबादी के छोटे घरों में जिन परिवारों में टीबी के मरीज रहते हैं, वहां दूसरे लोगों को भी संक्रमण का खतरा कुछ समय तक तो रहता है, बाद में मरीज के इलाज के चलते हुए यह खतरा घट जाता है।
अभी कोरोना की वजह से जिन लोगों में मास्क लगाना शुरू हुआ है, उसका एक फायदा यह भी हुआ कि टीबी या कोई और संक्रामक रोग बढऩा भी थमा है। अब जैसे-जैसे कोरोना का खतरा लोगों को कम लग रहा है, लोग मास्क हटाकर चल रहे हैं, और ऐसे में टीबी बढऩे का खतरा एक बार फिर खड़ा हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर दूसरे संगठनों ने भी कोरोना के मोर्चे पर लापरवाही के खिलाफ लोगों को सचेत किया है, कोरोना से सावधानी बरतते हुए लोग टीबी जैसे संक्रामक रोग से भी बच रहे थे, लोगों को आगे भी जहां तक हो सके मास्क का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए।
बजट के बाद का पेट्रोल
डीजल, पेट्रोल की कीमत 90-100 रुपये पहुंचने की चिंता जिन्हें खाये जा रही है, उन्हें फिलहाल ठंडी सांस लेनी चाहिये, क्योंकि आने वाले दिनों में इसकी कीमत और बढ़ रही है। एक अप्रैल से केन्द्रीय बजट में प्रस्तावित नये टैक्स लागू हो जायेंगे। इसमें पेट्रोलियम उत्पादों पर एग्री सेस लगाने का प्रावधान है। यह राशि ‘किसानों के हित’ में लगाया जा रहा है। पेट्रोल पर यह अतिरिक्त कर 2.5 रुपये तो डीजल पर 4 रुपये लगेगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश की माली हालत का हवाला देते हुए वैट टैक्स घटाने से मना कर ही दिया है। केन्द्र सरकार जब टैक्स और बढ़ाने में लगी हो तो कम करने का कोई संभावना है ही नहीं। हिम्मत बनाये रखें, अपने करीबियों की ढांढस भी बढ़ाते रहिये।
स्कूल चलें हम..।
यूं तो बस, ट्रेन, मंदिर, मस्जिद और बाजार कोरोना महामारी से जूझते हुए धीरे-धीरे खुलते गये पर पटरी पर जि़दगी लौट रही है इसका एहसास तब हुआ जब स्कूलों में चहल-पहल शुरू हुई। पहले दिन स्कूलों में जैसी जबरदस्त मौजूदगी बच्चों की दिखाई दी, उसने बता दिया कि हम हर बीमारी, हर एक महामारी से दो-दो हाथ करने के लिये तैयार है पर अपने भविष्य के साथ समझौता करने के लिये नहीं। पहले दिन पढ़ाई न के बराबर हुई। बच्चों में पढऩे से ज्यादा उत्साह इस बात को लेकर था कि महीनों बाद वे अपने पुराने दोस्तों और टीचर से मिल पाये। अब दोस्तों के साथ वे खेल सकेंगे, झगड़ा कर सकेंगे। टीचर्स के साथ बार-बार सवाल कर डाउट्स क्लियर कर पायेंगे। यह सब ऑनलाइन क्लास में कहां हो पाता था?
अब इसका दूसरा पहलू यह है कि स्कूल ऐसे वक्त में खोले गये हैं जब परीक्षायें पास हैं। यानि कुछ दिनों में तैयारी के लिये छुट्टी दे दी जायेगी। निजी स्कूल संचालकों के लिये यह फायदेमंद है। इस बहाने वे पूरे साल की फीस पालकों से वसूल कर सकेंगे। पालकों के एक संगठन ने हाईकोर्ट का दरवाजा भी इसी मुद्दे पर खटखटा दिया है।
सीजीपीएससी ने फिर की गलती
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग का एक मामले में कीर्तिमान रहा है। वह यह कि कोई भी परीक्षा विवाद के बिना नहीं निपटी। प्राय: हर बार प्रतियोगी हाईकोर्ट चले गये। यहां तक कि सन् 2003 के मामले भी अब तक आखिरी फैसले के लिये अटके हुए हैं। कुछ ऐसा इस बार भी हो तो आश्चर्य नहीं। सीजीपीएससी ने जब नोटिफिकेशन जारी किया तो बताया गया था कि गलत जवाब देने पर 0.33 अंक माइनस मार्किंग की जायेगी। ऐसा हर बार किया जाता है। पर इस बार की प्रारंभिक परीक्षा में जब प्रश्न-पत्र प्रतियोगियों के हाथ में आया तो उसमें इस बात कोई जिक्र नहीं था। उल्टे यह लिखा था कि सभी प्रश्नों को हल करना अनिवार्य है। मतलब, जिसका जवाब पता नहीं, उसका भी जवाब दें। असमंजस में विद्यार्थियों ने सारे सवाल हल कर दिये। गलत उत्तर के नंबर कटेंगे या नहीं, यह उन्हें पता नहीं। देखें, बिना कोर्ट जाये मामला सुलझेगा या नहीं।
भू माफियाओं की मौज
राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद छोटे भूखंडों की बिक्री की छूट दी गई। यानि 2400 वर्गफीट से कम जमीन भी प्लाटिंग करके बेची जा सकती है। इसी आड़ में धड़ल्ले से अवैध प्लाटिंग की जा रही है। प्रदेशभर से ऐसी शिकायतें हैं। राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल वैसे तो अपने दबंग होने का एहसास कराते हैं पर इस मुद्दे पर कुछ नरम हैं। मीडिया से बात करते हुए कल उन्होंने कहा कि अवैध प्लाटिग दूसरी बात है, बेजा कब्जा अलग। उन्होंने कहा कि पूरे देश में अवैध कब्जा है। सबसे ज्यादा तो मेरे विधानसभा क्षेत्र (कोरबा) में है। सालों से ये रहते आये हैं इन्हें तो हम बिजली पानी तक दे रहे हैं। इसके दो ही मायने हो सकते हैं। एक तो यह कि बेजा कब्जा करने वाले इतने ताकतवर हैं कि सरकार और प्रशासन उन्हें खाली कराने में असमर्थ है। और, यदि गरीब वर्ग के लोगों ने कब्जा कर रखा है तो उन्हें सरकारी आवास योजना का लाभ सरकार नहीं दे पा रही है।
इधर सरकारी जमीन पर बेजा कब्जा कर अवैध प्लाटिंग करने का खेल ऐसा है जिसमें करोड़ों का वारा-न्यारा हो रहा है। राजस्व अमला इन्हें नोटिस पर नोटिस भेजकर खानापूर्ति कर रहा है। मंत्री दावा करते हैं कि कार्रवाई हो रही है। बेदखली के आंकड़े तो सामने आ नहीं रहे हैं।
गैस, पेट्रोल खरीदने की ताकत
इंटरनेट पर ‘गिव इट अप’ का मतलब हिन्दी में जानना चाहेंगे तो जवाब मिलेगा- हार मान लेना। ऐसा नहीं होना चाहिये। रायपुर में आज पेट्रोल प्रतिलीटर केवल 87.53 रुपये है। आज ही घरेलू सिलेन्डर के दाम में 50 रुपये की बढ़ोतरी भी हो गई। सोच सकारात्मक रखिये। प्रधानसेवक भी यही कहते हैं। कई शहरों में पेट्रोल 100 रुपये के ज्यादा दाम पर है। हम वहां के लोगों से 12 रुपये कम में खरीद रहे हैं।
गैस सिलेन्डर के दाम बढऩे पर भी खुशी होनी चाहिये। मोदी सरकार ने ‘गिव इट अप’ अभियान चलाया था। यानि हार मान लें। सबसिडी लेने से आप मना कर दें। कई मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, व्यापारियों ने इसमें भाग लिया और उन्होंने अपने इस अमूल्य योगदान को प्रचारित भी किया। आज हम आप भी उनकी ही तरह श्रेष्ठ हैं। घरेलू गैस की कीमत इतनी बढ़ चुकी है कि कुछ दान करने की जरूरत ही नहीं रह गई। वह टैक्स के तौर पर अपने आप ही सरकार के खाते में जा रही है। आम आदमी की ताकत को कम नहीं आंकना चाहिये।
एलआईसी सोच-समझकर कर रही है?
एक तरफ मोदी सरकार देश के बहुत से दूसरे सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी में भी हिस्सेदारी बेचने जा रही है, दूसरी तरफ खुद एलआईसी दूसरे सरकारी उपक्रमों की तरह लापरवाही से काम कर रही है। लोगों को एलआईसी से जो प्रिंट की हुई चि_ियां, सूचना, नोटिस, रसीदें मिलती हैं, उनमें अक्सर स्याही इतनी हल्की रहती है कि पढ़ते ही न बने। यह भी हो सकता है कि दुनिया भर में बदनाम बीमा कंपनियों की तरह एलआईसी भी अब इस रास्ते पर चल रही हो कि ग्राहकों को समय पर सूचना न दी जाए, ताकि बाद में उनसे जुर्माना लिया जा सके, या पॉलिसी पूरी हो जाने पर भी अपठनीय सूचना भेजी जाए ताकि लोग रकम समय पर न निकाल सकें, और एलआईसी मुफ्त में उसका इस्तेमाल कर सके।
फिलहाल यह एक नमूना है कि एलआईसी किस तरह न पढऩे लायक सूचना भेजती है। और यह प्रिंट ही तो कम्प्यूटर-प्रिंटर निकालता है, उसे मोडक़र लिफाफे में डालकर भेजने का काम तो अभी भी इंसान करते हैं जिन्हें आसानी से यह दिखता है कि ये प्रिंट कोई पढ़ नहीं सकेंगे। महज एक कानूनी औपचारिकता पूरी करने के लिए एलआईसी ऐसे कागज भेजना दिखा रही है जिसे न भेजें तो सिर्फ कानूनी औपचारिकता की कमी रहेगी।
कॉलेज में भी पढ़ाएं, ऑनलाईन भी!
छत्तीसगढ़ में कॉलेज खुलने का हुक्म जारी हुआ, तो एक बात पर कॉलेज के शिक्षक हैरान हैं। अब कॉलेज जाकर क्लास लेनी है, और जो छात्र-छात्राएं वहां नहीं पहुंचेंगे, उन्हें ऑनलाईन भी पढ़ाना है। हर शिक्षक-शिक्षिका को इतना काम करना है, तो आगे चलकर जब सब सामान्य होगा, तो इनसे आधे लोगों से भी काम चल जाएगा क्योंकि अभी 10-12 घंटे रोज काम करने की आदत हो गई है।
वैसे हालात ठीक होने पर सरकार को एक मुहिम चलाकर अपने हर कर्मचारी-अधिकारी को ऑनलाईन काम करने की ट्रेनिंग देनी चाहिए, और कम्प्यूटर-इंटरनेट का हर जगह इंतजाम भी करना चाहिए क्योंकि कुंभ के मेले में खोया हुआ कोरोना का भाई साल-छह महीने में पता नहीं कब लौटकर आ जाए, और एक बार फिर लॉकडाऊन-वर्कफ्रॉमहोम की नौबत आ जाए। इस बार तो लोग और दफ्तर तकनीकी रूप से तैयार नहीं थे, लेकिन अगली बार की सोचकर यह इंतजाम कर लेना चाहिए।
शेयर से विरक्त आम आदमी
बढ़ती महंगाई और सोने के गिरते भाव के बीच शेयर सेंसेक्स का ऊंचा होते जाना वाजिब है। शुक्रवार को जब बाजार बंद हुआ तो 50 हजार का आंकड़ा था। आज बाजार खुलते ही 52 हजार पर पहुंच गया। कोरोना काल में जब लोग दूसरे काम धंधे नहीं कर पाते थे तो ऑनलाइन ट्रेडिंग ही करते थे। कुछ जोखिम उठाने वालों ने घर बैठे-बैठे 15-20 लाख रुपये कमा लिये।
शेयर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचना बताता है कि आम आदमी की माली हालत से इसका कोई रिश्ता नहीं है। एक आंकड़ा है कि केवल 0.6 प्रतिशत लोग शेयर मार्केट में पैसा लगाते हैं और इनमें से भी करीब 0.1 प्रतिशत लोग नियमित ट्रेडिंग करते हैं। आम लोगों को तो इसी बात से मतलब है कि रोजमर्रा की चीजें महंगी हुईं या सस्ती। इन दिनों सोनी लिव पर एक वेब सीरिज बहुत पॉपुलर हुई है- ‘स्कैम 1992’। स्टॉक मार्केट का खेल कैसा है, इस वेब सीरिज को देखकर बड़ी गहराई से समझा जा सकता है। मीडिया से जुड़े लोगों के लिये इसमें महत्वपूर्ण जानकारी है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्टर सुचेता दलाल ने हर्षद मेहता के फ्रॉड को सामने लाया था। बाद में उन्हें इस रिपोर्टिंग के लिये ‘पद्मश्री’ से भी सुशोभित किया गया।
खनन माफियाओं पर नरमी
मुंगेली जिले में सरपंच के पति और उनके साथियों ने पूर्व सरपंच और उनके समर्थकों पर तब रॉड, लाठी-डंडों से हमला कर दिया जब वे अवैध मुरूम खनन को रोकने के लिये गये। बलवा हो गया, अस्पताल में घायलों का इलाज हो रहा है। पूरे राज्य में नदियों से रेत और सरकारी जमीन से मुरूम के अवैध उत्खनन का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। प्रतिपक्ष भाजपा इसके विरोध में ज्ञापन प्रदर्शन करती रही है। जगदलपुर में कल ही भाजपा नेताओं ने अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। पर बाकी जगहों पर वे खामोश हैं। शायद उनके भी लोग इस धंधे में हैं।
शांत छत्तीसगढ़ में उत्खनन को लेकर हिंसक वारदातें हो नहीं रही है। होनी भी नहीं चाहिये। पर इसकी एक वजह यह भी है कि खनिज विभाग के अधिकारी आंख मूंद लेते हैं। शायद सोचते हों कि रेड क्यों करें, झंझट लेने से क्या फायदा। ज्यादातर लोग तो सरकार से जुड़े लोग ही हैं। मध्यप्रदेश की स्थिति तो बड़ी खराब है जहां डीएसपी, एसडीएम, पत्रकार या तो मारे गये या बुरी तरह घायल हुए। क्या हम छत्तीसगढ़ में भी ऐसी नौबत आने का इंतजार करें?
सरगुजा के कलाकारों की नाराजगी
मैनपाट महोत्सव में खेसारीलाल यादव को लगभग 20 लाख रुपये देकर बुलाया गया। कैलाश खेर को, मालूम हुआ है, 25 लाख रुपये दिये जायेंगे। टीवी, यूट्यूब पर अक्सर दिख जाने वाले इन कलाकारों के पीछे महोत्सव के बजट का इतना बड़ा हिस्सा खर्च किये जाने पर स्थानीय कलाकारों ने अपना विरोध जताया है। लोककला और थियेटर से जुड़े कलाकार कहते हैं कि जब उन्हें बुलाया जाता है तो हाथ खींचकर बहुत कम पैसा दिया जाता है। भुगतान के लिये भी महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। पर ये कलाकार पूरी रकम हाथ में आये बिना मंच पर चढ़ते नहीं। विरोध में कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि कैलाश खेर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के घोर समर्थक हैं। उन्होंने किसान आंदोलन के विरोध में हाल ही में कई पोस्ट डाले हैं। कांग्रेस नेता अगर किसान आंदोलन के समर्थन में हैं तो उन्हें ऐसे मौके पर क्यों बुलाया गया?
इस बारे में जब खाद्य मंत्री अमरजीत भगत कहते हैं कि किस कलाकार को बुलाना है यह अफसर तय करते हैं। कैलाश खेर के किसान आंदोलन के खिलाफ पोस्ट्स पर कहा कि किसी की राजनीतिक विचारधारा क्या है, इससे क्या फर्क पड़ता है। कलाकार तो कलाकार है।
बेशक, पर कांग्रेस इसे फिजूलखर्ची मानती रही है, जब राज्योत्सव में भाजपा की सरकार इसी तरह से बड़ी रकम देकर बॉलीवुड कलाकारों को बुलाया करती थी। उसके विरोध में बयानबाजी की जाती थी। अब वही रास्ता इन्हें क्यों रास आ रहा है?
महोत्सव में अफरा-तफरी
भोजपुरी कलाकार खेसारी लाल यादव के कार्यक्रम में मैनपाट महोत्सव के दौरान लाठियां चल गई। जो बातें सामने आई हैं उसके अनुसार बैठक व्यवस्था ही ठीक नहीं थी। सामने जमा लोगों के कारण पीछे के लोगों को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, कुर्सियां पर्याप्त नहीं थी। साउन्ड सिस्टम भी खराब था। नाराज लोग कलाकार को करीब से देखने सुनने के लिये इधर-उधर चढऩे लगे और कई लोग जख्मी भी हो गये। पुलिस को सीधा उपाय समझ में आया लाठियां घुमाओ। इस घटना से महिलायें और बच्चे ज्यादा डर गये। अब पुलिस सफाई दे रही है कि लाठियां चलाई नहीं, सिर्फ लहराई। बारीक सा अंतर है। लाठी चार्ज करना एक दांडिक कार्रवाई है, इसलिये इस शब्द का तकनीकी तौर इस्तेमाल करने से प्रशासन परहेज करता है।
मैनपाट की छत्तीसगढ़ में अलग छाप है। यहां तिब्बतियों का रहवास और बौद्ध मंदिर हैं। 3400 फीट की ऊंचाई पर मौजूद अद्भुत प्राकृतिक छटा की वजह से इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहते हैं। महोत्सव का आयोजन इस पहचान को ही व्यापकता देने के लिये है, पर प्रशासनिक तैयारियों में कमी के चलते विवादित हो गया है। आज वहां कैलाश खेर और अनुज शर्मा के कार्यक्रम हैं। देखना होगा, व्यवस्था को लेकर दर्शक, खासकर महिलायें और बच्चे निश्चिंत हैं या नहीं।
केवल किराये के लिये कोरोना
कोरोना महामारी के बहाने से बंद की गई लोकल, पैसेंजर ट्रेनों को आखिरकार रेलवे ने शुरू कर दिया है। आखिरी वक्त तक रेलवे इस बात को छिपाती रही कि इन ट्रेनों में पहले की तरह किराया रहेगा या नहीं। काउन्टर खुले तब लोगों को मालूम हुआ कि कई छोटे स्टेशनों पर ये रुकेंगी भी नहीं और किराया एक्सप्रेस का है। । मसलन, रायपुर से बिलासपुर तक सफर के लिये 30 रुपये की जगह 55 रुपये लिये जा रहे हैं। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि कोरोना का प्रसार न हो, यात्री ज्यादा सफर करने से बचें इसलिये किराया ज्यादा लिया जा रहा है। मासिक टिकटें और रियायती टिकट भी इसी नाम से बंद हैं। हकीकत यह है कि कोरोना के डर से गेट पर केवल टिकट चेक किया जा रहा है। मास्क और सैनेटाइजर भी जरूरी नहीं है। एक बर्थ पर चार-चार यात्रियों को टिकट दी जा रही है, यानि सोशल डिस्टेंस की भी परवाह नहीं । ऐसे में केवल किराया बढ़ा देने से कोरोना कैसे रुकेगा, यह रेलवे ही बता सकती है।
शुभ टोटका है यह राज्य..!
प्रदेश भाजपा की प्रभारी डी पुरंदेश्वरी, सहप्रभारी नितिन नबीन के साथ शनिवार को रायपुर पहुंची, तो कई नेताओं ने नबीन को बधाई दी। नबीन कुछ दिन पहले ही बिहार सरकार में मंत्री बने हैं। एक नेता ने उनसे कहा कि छत्तीसगढ़ आप लोगों के लिए शुभ है, जो भी यहां प्रभारी रहा, उसकी राजनीतिक उन्नति हुई है। इस पर दोनों नेता मुस्करा दिए। सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद नरेन्द्र मोदी प्रभारी रहे। वे तो प्रदेश भाजपा कार्यालय में आगजनी के साक्षी भी रहे हैं। बाद में वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने, और अब प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं। कुछ समय बाद वेंकैया नायडू यहां के प्रभारी बनाए गए। बाद में वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, और केन्द्र सरकार में मंत्री रहे। अभी उपराष्ट्रपति के पद पर हैं।
छत्तीसगढ़ में पहली बार विधानसभा आम चुनाव के पहले राजनाथ सिंह को प्रभारी बनाया गया था। उस समय राजनाथ सिंह के उत्तरप्रदेश में सीएम रहते पार्टी को बुरी हार गई थी। मगर छत्तीसगढ़ प्रभारी बनते ही उनकी भी किस्मत चमक गई। वे केन्द्र सरकार में मंत्री बने। बाद में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, और वर्तमान में रक्षा मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं। राजनाथ सिंह के बाद धर्मेन्द्र प्रधान को यहां का प्रभारी बनाया गया। बाद में उनकी भी राष्ट्रीय राजनीति में पैठ बनी, और पिछले 6 साल से केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।
धर्मेन्द्र प्रधान के बाद जगतप्रकाश नड्डा यहां के प्रभारी रहे। बाद में वे पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री बने, फिर केन्द्र सरकार में मंत्री रहे, और वर्तमान में राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व संभाल रहे हैं। कुछ समय के लिए रामशंकर कठेरिया प्रभारी रहे, लेकिन वे यहां नहीं आए। फिर भी उनकी राजनीतिक उन्नति हुई। वे केन्द्र सरकार में मंत्री रहे, और वर्तमान में अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
कठेरिया के बाद डॉ. अनिल जैन प्रभारी रहे। उनके कार्यकाल में यहां पार्टी की दुर्गति हो गई। फिर भी उन्हें केन्द्र सरकार में मंत्री बनाए जाने की चर्चा चल रही है। वर्तमान सह प्रभारी नितिन नबीन तो कुछ दिनों के भीतर ही बिहार में मंत्री पद पा गए। प्रभारी डी पुरंदेश्वरी की भी उज्जवल भविष्य की संभावनाएं जताई जा रही है। पहली तो यह कि वे आंध्रप्रदेश में भाजपा का चेहरा हो सकती हैं। पुरंदेश्वरी, आंध्रप्रदेश के सीएम रहे एनटी रामाराव की बेटी हैं। वे केन्द्र सरकार में मंत्री रही हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन का प्रभार संभालने के बाद वे भी बाकियों की तरह राजनीतिक परिदृश्य में छा जाएं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी यहां पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए तो कम से कम यह कहा ही जा सकता है।
अजय चंद्राकर तैयारी से हैं..
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और महामंत्री भूपेन्द्र सवन्नी के बीच विवाद अब तक खत्म नहीं हुआ है। इस विवाद पर प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने महामंत्री (संगठन) पवन साय से बात की थी। सुनते हैं कि अजय ने बकायदा एक लिस्ट तैयार की, जिससे यह साफ हो जाएगा कि उन्हें कब-कब बैठक में नहीं बुलाया गया। जबकि बैठक व्यवस्था और सूचना देने की जिम्मेदारी सवन्नी की थी। अजय इस बार पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। देखना है कि पुरंदेश्वरी इस विवाद का निपटारा कैसे करती हैं।
जान को खतरा या कुर्सी की लड़ाई?
को-वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं करने को लेकर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बयान और चि_ियों पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और सनसनी नहीं फैलाने की नसीहत दी । हालांकि उन्होंने माना है कि इसे क्लीनिकल ट्रायल के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाना है। यह स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञ और परीक्षण के सिद्धांतों को जानने वाले बता पायेंगे कि क्या बड़े पैमाने पर आम लोगों को क्लीनिकल ट्रायल के तौर पर क्या कोई वैक्सीन दी जा सकती है? क्या लोगों का यह अधिकार नहीं है कि वे ट्रायल के लिये तैयार होने से मना कर दें। सरकार इस मामले में लोगों पर दबाव डाले? केन्द्र का कहना है कि देशभर में इस तरह के ट्रायल हो रहे हैं। इसमें कोई खराबी नहीं है। लक्ष्य के अनुरूप वैक्सीनेशन नहीं कर पाने के कारण छत्तीसगढ़ सरकार लोगों का ध्यान भटका रही है।
इधर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इसे सीधे प्रदेश कांग्रेस में सत्ता की राजनीति से जोड़ दिया और कहा कि यह मंत्रिमंडल का सामूहिक फैसला नहीं है। कुर्सी की लड़ाई में कोविड मरीजों की जान को जोखिम में डाला जा रहा है। केन्द्रीय मंत्री की जवाबी चि_ी और प्रदेश के भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया के बाद क्या को-वैक्सीन इस्तेमाल करने का निर्णय पलट दिया जायेगा, या फिर टीके रखी रह जायेंगी, यह आने वाले दिनों में मालूम होगा।
हवाई चप्पल वाले कैसे उड़ेंगे ?
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से हवाई सेवा शुरू करने की मांग राज्य बनने के बाद से ही होती रही है लेकिन इस मांग ने धार पकड़ी जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रुचि ली। इसी दौरान शहर के नागरिकों ने संघर्ष समिति बना ली और वे बीते एक साल से भी ज्यादा समय से वे अखंड धरना दे रहे हैं। हाईकोर्ट में लगी याचिकाओं ने भी हवाई सेवा शुरू करने के लिये केन्द्र और राज्य सरकार दोनों पर दबाव बनाया है। अब मार्च से यहां से उड़ानें शुरू हो जाने की घोषणा की गई है। उड़ान स्कीम के अंतर्गत। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उड़ान- उड़े देश का आम नागरिक (यूडीएएन) योजना शुरू करते हुए घोषणा की थी कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई सफर कर सकेंगे। बिलासपुर से अधिकांश महानगरों की दूरी 600 किलोमीटर से अधिक है, जिसके चलते उड़ान स्कीम में टिकटों पर रियायत नहीं मिलने वाली। ऊपर से अब यात्रा टिकट 30 प्रतिशत तक महंगी भी कर दी गई है। न्यूनतम किराया भी 2200 रुपये हो गया है। बिलासपुर हवाई अड्डे को तैयार करने के रास्ते में अनेक बाधायें तो दूर कर ली गईं, पर उड़ानें शुरू होने के बाद देखना होगा कि चप्पल पहनने वाले कितने लोग इनमें यात्रा का सुख ले पायेंगे।
सूपेबेड़ा से इच्छा मृत्यु की मांग
राज्यपाल अनुसूईया उइके सुपेबेड़ा, गरियाबंद के दौरे पर 22 अक्टूबर 2019 को गई थीं। इस दौरान सरकार और राज्यपाल के बीच थोड़ा टकराव भी हुआ। हेलिकॉप्टर देने या नहीं देने के नाम पर। आखिरकार राज्यपाल वहां गईं, साथ में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी थे। राज्यपाल ने किडनी पीडि़तों और उनके परिवार के लोगों की तकलीफें सुनीं। सरकार को कई निर्देश दिये। स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वस्त किया कि यहां के किडनी मरीजों का न केवल इलाज मुफ्त होगा बल्कि अस्पताल में रहने खाने का खर्च भी उठाया जायेगा। अन्य विभागों ने भी शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। लेकिन अब वहां क्या स्थिति है। जिस तेल नदी से शुद्ध पेयजल पहुंचाने का वादा किया था वह फाइलों में उलझ गई है। किडनी से मौतों का सिलसिला अब भी जारी है और यहां लोगों को राहत नहीं मिली। यही वजह है कि गरियाबंद में कल कलेक्टर से मिलकर सुपेबेड़ा और आसपास के 10 गावों के लोगों ने इच्छा मृत्यु मांगी है और अपनी बात राज्यपाल तक पहुंचाने का निवेदन किया है। ग्रामीण बता रहे हैं कि हाल के दिनों में मौतों का आंकड़ा 90 से ऊपर जा चुका है।
सुपेबेड़ा व आसपास के गांवों की यह समस्या करीब 10 साल से है। अब तक वहां किडनी से मौतें हो रही हैं। राज्यपाल, स्वास्थ्य मंत्री और अन्य नेताओं की पहल के बावजूद। क्या यह पीड़ादायक नहीं है?
कोरोना के बाद कोचिंग सेंटर्स का हाल
स्कूल-कॉलेजों की पढ़ाई के भरोसे प्रतिस्पर्धा में आना मुश्किल माना जाता है। कोचिंग सेंटर्स युवाओं की उपलब्धि के अनिवार्य संस्थान के रूप में विकसित हो चुके हैं। इस स्थिति को बहुत से लोग अच्छा भी नहीं मानते। कोचिंग संस्थानों की फीस इतनी ज्यादा होती है कि सक्षम परिवारों के मुकाबले गरीब परिवारों के बच्चे पिछड़ जाते हैं। कोचिंग सेंटर्स की अहमियत देखकर कुछ सरकारी योजनायें भी प्रतिभावान गरीब बच्चों के लिये चल रही हैं। हालांकि इन पर किये जाने वाले खर्च के मुकाबले नतीजे उत्साहजनक नहीं मिलते। कोचिंग सेंटर्स का व्यवसाय कुछ सालों से छत्तीसगढ़ में खूब फलता-फूलता दिख रहा है। भिलाई, रायपुर, बिलासपुर जैसे शहरों में इनकी भरमार है।
अब स्थानीय कोचिंग संस्थायें दूसरे नंबर पर आती हैं। कोटा, दिल्ली, कोलकाता, नागपुर जैसे शहरों की पापुलर ब्रांड की ब्रांच की तरफ युवाओं का रुझान ज्यादा दिखाई देता है। धंधे में कुछ संचालकों ने तो इतनी कमाई कर ली कि टिकट की दौड़ में भी लग गये। दूसरी ओर इन कोचिंग संस्थानों के भरोसे, नौकरी से वंचित कई प्रतिभावान युवाओं को रोजगार भी मिल जाता है। आमदनी का बहुत थोड़ा हिस्सा उनके पास आता है फिर भी इससे खर्च चलाने में उन्हें मदद तो मिल जाती है।
पर, कोविड महामारी ने सब गड्ड-मड्ड कर दिया। अनेक कोचिंग संस्थानों की इतने दिनों में हालत खराब हो गई है। स्टाफ और टीचर्स का वेतन, फ्रेंचाइजी फीस, भवन किराया, बिजली बिल पटाने के दबाव में जो टूटे कि दुबारा ताला खोलने की स्थिति नहीं रह गई है।
लॉकडाउन का दूसरा असर यह हुआ कि ऑनलाइन कोचिंग का व्यापार खूब पनपा। विद्यार्थी जो सचमुच कैरियर को लेकर गंभीर है वे इसे ज्यादा सुविधाजनक पा रहे हैं और वे अब कोचिंग सेंटर्स की तरफ दुबारा रुख करने से बच रहे हैं। छत्तीसगढ़ पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा 14 फरवरी को होने जा रही है। इसमें शामिल होने वाले ज्यादातर विद्यार्थियों ने ऑनलाइन तैयारी की है। ऑनलाइन क्लासेस का असर, फिजिकल क्लासेस की तरह नहीं है पर फीस काफी कम है।
कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को 50 प्रतिशत उपस्थिति और कोरोना गाइडलाइन के पालन के साथ खोलने की अनुमति दी गई है पर अनेक संस्थानों का बोर्ड अब उतर चुका है। कुछ फिर खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं। देखना होगा कि इन ठिकानों पर पहले की तरह चहल-पहल में कितना वक्त लगता है या फिर जो बदलाव अभी दिख रहा है वह एक नया स्थायी ट्रेंड बन जायेगा।
आईपीएस का फिटनेस वीडियो
बहुत से आईपीएस अधिकारी हैं जो नियमित रूप से वर्कआउट कर अपनी फिटनेस बनाये रखते हैं। वे जब सोशल मीडिया पर इसकी फोटो, वीडियो पोस्ट करते हैं तो जाहिर है इसका प्रभाव उनके मातहतों पर भी पड़ता है और उन्हें भी फिट दिखने की इच्छा होती है। आईपीएस रतनलाल डांगी के अनेक फिटनेस वीडियो फेस बुक, ट्विटर पर पोस्ट होते रहते हैं। 7 फरवरी की उनकी दौड़ के वीडियो को 41 लाख लोगों ने देखा है। अन्य वीडियोज भी हजारों बार देखे जा चुके हैं। सब वीडियो, फोटो मिला दें तो उन्हें देखने वालों की संख्या करीब एक करोड़ है और शेयर करने वाले भी कई हजार। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को सुविधा रहती है कि वे आम दिनों में काम और व्यायाम के घंटे खुद तय कर सकें।
आईजी दीपांशु काबरा, डीजी आर के विज, अपनी कसरत की तस्वीरें पोस्ट करते रहते हैं. दीपांशु और उनकी पत्नी साईकिल पर 25 -50 किलोमीटर चले जाते हैं।
फील्ड पर काम करने वाले टीआई, हवलदार, सिपाही इतना वक्त इन गतिविधियों को दे सकें तो और भी बेहतर। इन्हें काम का बोझ इतना होता है कि वे अपना शरीर नहीं संभाल पाते, बीमारियां घेर लेती हैं और, कई बार तो मानसिक तनाव के चलते बहुत अप्रिय घटनायें भी सुनने को मिलती रहती है।
अब होली का इंतजार
बीते साल कोरोना महामारी से बचाव के लिये लॉकडाउन होली त्यौहार के ठीक कुछ दिनों बाद लगा था। कुछ लोग घबरा रहे थे कि होली मनाने के दौरान वे वायरस के सम्पर्क में तो नहीं आ गये। पर अनेक लोगों को राहत भी थी कि चलो कम से कम त्यौहार तो मना लिया। बीच में अनेक तीज-त्यौहार गुजरे। सबमें सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी थी। धार्मिक स्थलों पर ताला लगा रहा। एक जगह एकत्रित होने पर मनाही थी। पर अब तो हर तरफ ढील दी जा रही है। लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि होली तक क्या इतनी बेहतर स्थिति हो पायेगी कि लोगों को गुलाल लगाने, गले लगने, रंग डालने की मंजूरी मिल जाये। मिल भी जाये तो क्या लोग बेफिक्री से हर बार की तरह अगली होली मना पायेंगे। वैसे इस साल की होली मार्च के अंत में 29 तारीख को है। यानि, तय करने में अभी लगभग डेढ़ माह का वक्त है।
कुछ खुश, कुछ नाखुश
काफी उहापोह के बाद भाजयुमो की कार्यकारिणी तो घोषित हो गई, लेकिन कई ऐसे नाम हैं, जो कि तय मापदण्ड में खरे नहीं उतरते हैं। उन्हें भी जगह मिल गई। पार्टी ने 35 वर्ष से अधिक उम्र वालों को कार्यकारिणी में जगह नहीं देने का फैसला लिया था। बावजूद इसके कई ऐसे लोग जगह पा गए, जिनकी उम्र 40 के आसपास है।
ये अलग बात है कि पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष के सख्त निर्देश के बाद नेता पुत्रों को कार्यकारिणी में जगह नहीं मिल पाई। जबकि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल, रामसेवक पैकरा के बेटे लवकेश पैकरा, रामविचार नेताम की बेटी सहित कई अन्य कतार में थे।
सुनते हैं कि अध्यक्ष अमित साहू अपने करीबी 15 लोगों को कार्यकारिणी में जगह दिलाने में कामयाब रहे। पूर्व सांसद अभिषेक सिंह की भी खूब चली है। कई ऐसे युवा नेता हैं, जिन्हें कार्यकारिणी में जगह नहीं मिल पाई है, वे सभी अभिषेक को कोस रहे हैं। नाराज युवा नेता दबे स्वर में कह रहे हैं कि अभिषेक की दखलंदाजी की वजह से उन्हें जगह नहीं मिल पाई है। भले ही यह सच न हो, लेकिन युवा मोर्चा की कार्यकारिणी को लेकर विवाद बरकरार है।
पूरा प्रशासनिक अमला परेशान
कांकेर बस स्टैण्ड में अवैध कब्जा हटाना स्थानीय प्रशासन को भारी पड़ रहा है। कुछ ऐसे निर्माण को भी हटा दिया गया, जिन्हें पट्टा मिला हुआ था। विधानसभा में सवाल लगा, तो जवाब सही नहीं आया। प्रश्नकर्ता विधायक ननकीराम कंवर ने विधानसभा की प्रश्न संदर्भ समिति में गलत जवाब देने की शिकायत की। समिति ने जांच शुरू की, तो हडक़ंप मच गया। कलेक्टर ने नजूल अफसर और तहसीलदार से स्पष्टीकरण मांगा है। बात यही खत्म नहीं हो रही है। विधानसभा के बजट सत्र में इस मामले को लेकर अलग-अलग आधा दर्जन सवाल लगे हैं। हाल यह है कि पूरा प्रशासनिक अमला परेशान है।
ट्रायल के लिये को-वैक्सीन, हरगिज नहीं
कोविड महामारी ने फार्मा कम्पनियों को भारी मुनाफा दिया । पीपीई किट, बेड, इक्विपमेंट्स, वेंटिलेटर, सैनेटाइजर, क्लोरोक्वीन दवा, आदि की अचानक मांग बढ़ी और पूरे देश में इसकी आपूर्ति की होड़ लगी। लाखों पैकेट दवायें निर्यात भी हुईं। कुछ की गुणवत्ता और कीमत पर सवाल भी उठते रहे लेकिन महामारी के खौफ ने इस पर ज्यादा बहस के लिये जगह नहीं दी। वैक्सीन के ईजाद और इसके उत्पादन को लेकर यही बात है। पहले दूसरे देशों से वैक्सीन मांगने की बात थी पर बाद में देसी उत्पाद ही बाजार में पहले आ गये। बाबा रामदेव ने कोरोलिन का दावा सबसे पहले किया पर उसे आईसीएमआर ने मानने से मना कर दिया। इसके बाद मान्यता प्राप्त वैक्सीन का उत्पादन तो बढ़ा पर कोरोना का डर भागने लगा।
जो परिस्थितियां बन रही हैं उससे लगता है कि वैक्सीन निर्माताओं की उम्मीद के अनुरूप मांग आ नहीं रही है। छत्तीसगढ़ में फ्रंटलाइन वारियर्स, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का पंजीयन किया गया पर ऐसा नहीं हुआ कि वे वैक्सीन लगवाने के लिये टूट पड़े, बल्कि इससे बचते भी रहे। आज प्रदेश में कोविशील्ड का पहला चरण पूरा करने का आखिरी दिन है, पर अब भी लाखों की संख्या में वैक्सीन बच गये हैं। पखवाड़े भर पहले एक दूसरी दवा, को-वैक्सीन की खेप केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भेज दी। को-वैक्सीन लगाने के लिये जो तैयार होंगे एक फार्म भी उन्हें भरना होगा, जिसमें सहमत होना है कि वे इसे ट्रायल बेस पर ही लगवा रहे हैं। ऐसा करने में खतरा तो है। ट्रायल के लिये आम लोगों को जबरदस्ती तैयार करना तो ठीक नहीं। फिलहाल, छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे इस्तेमाल में लाने से मना कर दिया है। को-वैक्सीन स्टेट लेवल के स्टोर रूम में ही रखे हुए हैं। सरकारी खरीदी और घोषणा के चलते ये मुफ्त में लगने हैं। आने वाले दिनों में वैक्सीन की कीमत तय करने की योजना थी, पर जब मुफ्त की वैक्सीन ही नहीं खप पा रही हो तो..?
राम के नाम पर ऑनलाइन दे बाबा...
भगवान के नाम पर भीख, चंदा, चढ़ावा, दक्षिणा मांगना सबसे आसान काम है। ट्रेन, बस-स्टाप और घर के दरवाजे तक भी पारम्परिक भिक्षावृत्ति करने वालों के मुंह से जब निकलता है, राम के नाम पर दे दे बाबा.. तो सुनकर लोग पिघल जाते हैं। कोई तरस खाकर, कोई श्रद्धा-विश्वास की वजह से तो कोई-कोई पीछा छुड़ाने के लिये इन पर मेहरबानी करता आया है।
राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिये जो ‘निधि’ देशभर से एकत्र हो रही है वह इन दिनों चर्चा में है। शायद ही कोई सहयोग देने से मना कर रहा हो। इसे ऑनलाइन जमा करने की सुविधा भी है। इसके लिये अधिकारिक पोर्टल और एप भी तैयार किये गये हैं। ऑनलाइन ठगी के इन दिनों के कितने कारनामे हो रहे हैं, हम सब वाकिफ हैं ही। अब राजधानी की साइबर सेल की जानकारी में यह बात आई है कि लोगों के फोन व सोशल मीडिया पेज पर, फर्जी लिंक भेजे जा रहे हैं। लोग इसके जरिये पैसा जमा कर भी रहे हैं। लोगों को पता नहीं है कि उन्होंने फर्जी लिंक में पैसे दे डाले। इसलिये कितनी ठगी इस तरह हो चुकी है, यह पता नहीं चला है। फर्जी लिंक में पैसा जमा करने वालों को पता नहीं, पुण्य मिलेगा या नहीं, पर ठगों के एकाउन्ट में तो लक्ष्मी आती जा रही है। ऐसी ठगी के सामने बिलासपुर की एक महिला द्वारा चंदे के लिये रसीद छपवाना तो मामूली सा अपराध लगता है।
एक साल में नक्सल का खात्मा!
बस्तर से नक्सलवाद खत्म करने के लिये हर सरकारें संकल्प लेती रही हैं। महीनों कोई वारदात नहीं होती तो कहा जाता है कि अब वे बिखर गये हैं। जन प्रतिनिधि श्रेय भी लेते हैं। पर अचानक फिर कोई बड़ा हमला कर नक्सली अपनी मौजूदगी का एहसास करा देते हैं। दंतेवाड़ा नक्सल प्रभावित संवेदनशील इलाका है। यहां से एक साल के भीतर नक्सल खत्म करने का दावा किया गया है। दावा किसी नेता ने नहीं पुलिस कप्तान ने किया है। वीर गुंडाधूर और बस्तर के पहले आंदोलन की याद में यहां कल भूमकाल दिवस मनाया गया। इसी में यह दावा किया गया। एक बात एसपी ने और कही- पुलिस और नक्सलियों में से जो जनता का विश्वास जीतेगा, जीत उसी की होगी। वास्तव में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि नक्सली आदिवासियों का विश्वास जीतने में क्यों सफल होते रहे हैं। यह भी जुड़ा हुआ प्रश्न ही है कि भरोसा सहज सहमति की वजह से है या भय के कारण। यही सवाल जनता और पुलिस के बीच के विश्वास जीतने के मामले में उठाया जा सकता है। चूंकि यह पुलिस का बयान है, राजनीतिक नहीं। इसलिये एक साल बाद क्या कोई बदलाव आता है, देखना जरूरी हो जायेगा।
पीडि़त रेंजर का सस्पेंड होना
कथित मीडियाकर्मी और उसकी गर्लफ्रेंड की ब्लैकमेलिंग के पीछे 1.40 करोड़ लुटा चुके मुंगेली के रेंजर सीआर नेताम ने पैसे की व्यवस्था करने के लिये ऐसा फर्जीवाड़ा कर दिया कि अभी तो उसे निलम्बित कर दिया गया है, अब एफआईआर की तैयारी भी की जा रही है। दरअसल, नेताम ने 25 लाख रुपये रतनपुर के मजदूरों के निकाल लिया। वह भी तब जब 6 माह पहले यहां से उनका तबादला हो चुका था। दरअसल नये अधिकारी के आने पर सम्बन्धित बैंकों में उनका अधिकृत हस्ताक्षर भी भेजा जाता है। बैंक के पास जो भेजा ही नहीं गया और रतनपुर से हटने के बाद भी वे यह रकम निकाल ले गये। अब रतनपुर के मजदूर अपनी मजदूरी के लिये परेशान हैं तो दूसरी तरफ संस्पेंड हो चुके नेताम के खिलाफ धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज कराये जाने की तैयारी हो रही है।
कामयाब होगा सोशल मीडिया कैम्पेन?
कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में सोशल मीडिया कैम्पेन के लिये फिलहाल 11 हजार स्वयंसेवकों को जोडऩे का अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपने विरोधी दल भाजपा से काफी पीछे है। न केवल प्रदेश स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी। भाजपा के असल नाम से कुछ सैकड़ा ही प्रोफाइल होंगे पर फेसबुक, वॉट्सअप और दूसरे प्लेटफॉर्म पर हजारों की संख्या उन लोगों की है जो पहचान में ही नहीं आते। ऐसे अनजान लोग अपनी पोस्ट को जो कई बार भ्रामक, तथ्यहीन और उकसाने वाले भी होते हैं वे एक से दूसरे तक वायरल होते हुए लाखों लोगों तक पहुंच चुके होते हैं। कांग्रेस किस तरह से इनका मुकाबला कर पायेगी?
छनकर क्या निकलेगा भाजपा में?
भाजपा इन दिनों अपने सांगठनिक उठापटक को लेकर ज्यादा चर्चित है। भाजयुमो में 35 साल से ऊपर के लोगों को नहीं लिये जाने को लेकर काफी विवाद की स्थिति बनी रही, आखिरकार इसमें शिथिलता बरती गई और कई नाम इससे ऊपर वाले भी दिखाई दे रहे हैं। राजनांदगांव की भाजपा कार्यकारिणी की सूची में मृत कार्यकर्ताओं को जगह देने से बात सामने आई है। भाजपा महामंत्री भूपेन्द्र सवन्नी और विधायक डॉ. अजय चंद्राकर के बीच का विवाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। शिकायत केन्द्रीय नेतृत्व तक पहुंच गई है। कांग्रेस इन बातों पर कटाक्ष कर रही है। नई प्रदेश प्रभारी सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रति धारदार विरोध की रणनीति बनाने के लिये परिश्रम करती दिख रही हैं पर शायद उन्हें घर सुधारने में ही काफी समय लग जायेगा।
जरूरी जिन्दगी का इम्तेहान
मोहब्बत से ज्यादा जरूरी जिन्दगी का इम्तेहान में कामयाब होना जरूरी है। लगता है छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने यही सबक सिखाने के लिये प्रारंभिक परीक्षा की तारीख तय कर दी है। इस बार 14 फरवरी को न तो मातृ-पितृ पूजन दिवस और न ही वैलेन्टाइन डे। हजारों युवा परीक्षा हॉल में दिखाई देंगे। कोविड के कारण वैसे भी त्यौहारों का हाल फीका है। होटल-गार्डन, स्कूल कॉलेज सब बंद रहे इसलिये प्यार की कोंपलें भी फूट नहीं पाईं। इन सबके चलते ऐसा लग रहा है कि इस बार रोज डे पर गुलाबों की बिक्री भी कमजोर रहेगी। वैलेंन्टाइन डे पर हंगामा करने वालों के पास भी कुछ कम काम रहेगा। वैसे भी पीएससी के इम्तेहान में जो कामयाब हो जायेगा, उसे तो मनमाफिक हमसफर वैसे भी मिल जाना है।
कोरोना का बहाना बनाये रखने के लिये
छत्तीसगढ़ से पैसेंजर और लोकल ट्रेनों को चलाने के लिये रेलवे ने राज्य सरकार से अनुमति मांगी है। हाईकोर्ट में लगाई गई एक जनहित याचिका के बाद रेलवे ने यह कदम उठाया है, जिसमें राज्य सरकार से पूछा गया है कि कोविड गाइडलाइन के मद्देनजर इन ट्रेनों को चलाने की अनुमति देने पर विचार करें। हैरानी यह है कि एक्सप्रेस और स्पेशल ट्रेनों को चलाने के लिये तो रेलवे ने कोई मंजूरी नहीं ली। दूसरे राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल और मुम्बई में तो उसने पहले ही राज्य सरकार की बिना मंजूरी लिये ही चालू कर दी। फिर छत्तीसगढ़ में ऐसा क्यों। स्वास्थ्य सचिव ने भी रेलवे से लगभग यही सब बातें पूछ लीं। दरअसल, रेल मंत्रालय के सर्कुलर में भी सिर्फ इतना कहा गया है कि राज्य सरकार को सूचना देनी है। अनुमति जैसी कोई बंदिश नहीं लगाई गई है। खुशखबरी यही है कि ग्रामीण और कम आय वालों को इस माह से ट्रेनों में सफर का में मौका मिल जायेगा।
टमाटर होने लगे लाल
टमाटर की भरपूर पैदाइश छत्तीसगढ़ की पहचान भी रही और इसकी सही कीमत नहीं मिलना भी किसानों को तकलीफदायक देता है। दिसम्बर, जनवरी में जब टमाटर खेतों से खूब निकले तो उत्पादकों को एक दो रुपये ही मिल पाते हैं। पर समस्या सिर्फ प्रबंधन का लगता है। रायगढ़ और जशपुर जिले में जिन दिनों टमाटर का थोक भाव 5 रुपये किलो था, उन्हीं दिनों में बेमेतरा, दुर्ग आदि जिलों में इसकी कीमत उत्पादन लागत से भी कम थी। रायगढ़, जशपुर के टमाटर की मांग झारखंड के रास्ते में कई राज्यों को भेजा जा रहा है। अब कुछ नई उम्मीद स मैदानी इलाके के टमाटर उत्पादकों के लिये भी दिखाई दे रही है। इन दिनों मध्यप्रदेश और कर्नाटक के थोक सब्जी व्यापारी टमाटर पर रुचि दिखा रहे हैं। इसकी कीमत वे क्वालिटी के हिसाब से 7 से 12 रुपये किलो तक दे रहे हैं। उम्मीद करनी चाहिये कि सरकारी भी इस मांग को समझकर नये उभर रहे बाजार को प्रोत्साहित करेगी।
दुनिया का सबसे पुराना?
लोग अपने इतिहास को लेकर बड़े दिलचस्प दावे करते हैं। रायपुर के महानदी प्रकाशन ने अपने बोर्ड में अपने को विश्व का प्रथम पुस्तक प्रकाशक लिखा है। आगे आप खुद समझदार हैं और आपका इतिहास का ज्ञान जिम्मेदार है। तस्वीर/‘छत्तीसगढ़’
शिकायत भारी पड़ी
सरकार के एक बोर्ड के कर्मचारी के खिलाफ शिकायत करना कांग्रेस के एक पदाधिकारी को भारी पड़ गया। कर्मचारी के खिलाफ गड़बड़ी की कई तरह की शिकायतें रही हैं, और जब इन शिकायतों पर कार्रवाई के लिए पदाधिकारी मंत्रीजी के पास गए, तो उल्टा उन्हें ही सरकारी कामकाज में ज्यादा दखल नहीं देने की नसीहत दे दी। बात यहीं खत्म नहीं हुई। मंत्रीजी ने पदाधिकारी पर अपने लेटरहेड का दुरूपयोग करने का आरोप मढ़ दिया, और प्रदेश कांग्रेस के मुखिया से इसकी शिकायत कर दी। अब पदाधिकारी को ही अपने द्वारा की गई शिकायतों के संबंध में सफाई देनी पड़ रही है।
बड़े नेताओं के झगड़े
प्रदेश भाजपा प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने पांच तारीख तक जिलों की कार्यकारिणी और मोर्चा पदाधिकारियों की सूची जारी करने की सख्त हिदायत दी थी। पुरंदेश्वरी के आदेश का कुछ हद तक पालन भी हुआ, और भाजयुमो के साथ-साथ दुर्ग-भिलाई की कार्यकारिणी को छोडक़र बाकी सभी जारी हो गई।
भाजयुमो की कार्यकारिणी को लेकर बड़े नेताओं का इतना दबाव है कि अमित साहू अब तक सूची जारी नहीं कर पाए हैं। वे बड़े नेताओं को सूची दिखा चुके हैं। मगर नुक्ताचीनी इतनी ज्यादा हो रही है, कि महामंत्री (संगठन) पवन साय सूची पर मुहर नहीं लगा सक रहे हैं। दुर्ग-भिलाई में बड़े नेताओं के झगड़े के कारण सूची अटक गई है। कुछ लोगों का मानना है कि पुरंदेश्वरी को ही हस्तक्षेप करना पड़ेगा, तब जाकर सूची हो सकती है।
लोहे, लकडिय़ों से टकराती महिलायें
धीरे-धीरे उन कामों की सूची छोटी होती जा रही है, जिन्हें महिलाओं के वश का नहीं माना जाता है। सेन्ट्रिंग प्लेट और लोहे से बनने वाले फेंसिंग तार भी अब महिलाओं के हिस्से में आ चुके हैं। सरायपाली के किसड़ी ग्राम की महिलाओं ने खुद से सेन्ट्रिंग प्लेट बनाया है और वह इन्हें अब किराये पर दे रही हैं। बागबाहरा ब्लॉक के ग्राम कोमाखान में भी इसी तरह फेंसिंग वायर बनाने का काम हाथ में लिया गया है। सरकारी संस्थायें उनके तार को खरीदने में रुचि तो दिखा ही रही हैं, निजी जरूरतों के लिये भी उनके तार की खरीदी हो रही है। वैसे तो सरकारी योजनाओं का प्रचार करने के लिये प्रशासन के पास अपनी टीम है पर कुछ हटकर काम हो तो उसकी अलग से भी चर्चा भी हो जानी चाहिये।
रसोई गैस के उतरते-चढ़ते दाम
घरेलू रसोई गैस के दाम महीने के पहले पखवाड़े में एक बार फिर बढ़ गये। पिछले महीने एक साथ 190 रुपये दाम बढ़ाये गये थे इस बार फरवरी में अभी सिर्फ 25 रुपये बढ़ाये गये। हालांकि गैस कम्पनियां महीने में दो बार कीमत की समीक्षा करती है इसलिये अगले पखवाड़े में कीमत क्या होगी यह अभी नहीं बताया जा सकता। स्थिति यह है कि ऑनलाइन बुकिंग कम दर पर कराई गई हो तो डिलिवरी के समय अंतर की राशि का नगद भुगतान भी करना होगा। इनके दाम इतनी बार बदल जाते हैं कि लोगों ने इसके महंगे या सस्ते होने के बारे में सोचना ही बंद कर दिया है। ठीक पेट्रोल-डीजल की तरह। गनीमत है कि अभी गैस सिलेन्डर पर रोजाना बदलाव का फार्मूला लागू नहीं किया गया है।
थोड़ी चूक हो गई...
बीते कुछ सालों से राजनेताओं का जन्मदिन भव्य तरीके से मनाने का चलन बढ़ा है। इसी बहाने कार्यकर्ताओं को अपनी निष्ठा दिखाने और नेताओं को अपनी लोकप्रियता नापने का मौका मिल जाता है। सत्तारूढ़ दल से किसी जन्मदिन हो तो अधिकारियों को आगे-पीछे होना ही पड़ता है। गुलदस्ते, उपहार, मिठाईयां देने वालों की आधी रात से ही भीड़ जमने लगती है। सत्ता से उतरने के बाद स्थिति अलग हो जाती है। अधिकारी तो पास फटकने की गलती करता ही नहीं, कार्यकर्ताओं की भी छंटनी हो चुकी रहती है। कोई नहीं पूछता कि सरकार रहने, नहीं रहने के बीच इतना बड़ा फर्क कैसे आ जाता है।
संसदीय सचिव शकुंतला साहू का जन्मदिन सरकारी तौर पर मनाने की चि_ी निकालकर वहां के जनपद पंचायत सीईओ चर्चा में आ गये। एसडीओ से लेकर बाबू, भृत्य तक को जिम्मेदारी दे दी। यही काम बिना लिखा-पढ़ी के भी किया जा सकता था। आखिर अब तक तो करते आए ही होंगे। सार्वजनिक जीवन में लोगों को सहजबुद्धि से बैर नहीं रखना चाहिए। इसीलिए कहा जाता है कि कॉमन सेंस बहुत कॉमन नहीं है।
कौन देशद्रोही कहलाएगा?
अभी प्रधानमंत्री कार्यालय की एक चि_ी के जवाब में उत्तरप्रदेश सरकार ने लिखा है कि गाडिय़ों पर किसी भी धर्म या जाति का नाम या निशान लिखा होने पर उसका चालान किया जाएगा। पुलिस विभाग ने इसका आदेश भी निकाल दिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ ऐसी किसी भी फिक्र से आजाद है। यहां गाडिय़ों पर जो चाहे लिखाकर घूमा जा सकता है, और पुलिस-आरटीओ की कमाऊ कुर्सियों पर बने रहने के लिए वहां के अधिकारी-कर्मचारी किसी से पंगा लेना नहीं चाहते। गाडिय़ों पर, नंबर प्लेट पर जात लिखाओ, धर्म लिखाओ, धमकी लिखाओ, जो भी लिखाओ, पुलिस-आरटीओ किसी को नहीं देखते। और आज तो देश का जैसा माहौल है, हिन्दुत्व पर कार्रवाई करके किसी को देश का गद्दार कहलाना है क्या? तस्वीर/‘छत्तीसगढ़’
पैसेंजर ट्रेनों में भी स्पेशल किराया?
लोगों का आवागमन सडक़ और रेल दोनों ही रास्तों से कठिन होता जा रहा है। पेट्रोल 86 रुपये से अधिक और डीजल 83 से ज्यादा में मिल रहा है। इधर लोकल ट्रेनें भी नहीं चल रही हैं। बसों में ड्योढ़ा किराया हो चुका है तो रेलवे ने भी यात्रियों की जेब ढीली करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। उन लोगों से भी कमाई हो रही है जो बर्थ कन्फर्म होने की उम्मीद रखते हुए टिकट कटा लेते हैं। रेलवे ने प्लेटफॉर्म पर स्टाफ की तैनाती कर रखी है। टिकट कन्फर्म नहीं होने पर आप भीतर नहीं घुस पायेंगे, लेकिन टिकट ले ली है तो ऐसे कठिन नियम बनाये गये हैं कि वापसी के लिये पसीना बहाना पड़ेगा। इसके लिये 50 से 80 फीसदी तक रकम काटी जा रही है। इस रवैये के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है। रेलवे ने अपने जवाब में कई बातों को साफ नहीं किया। हालांकि उस पर दबाव बढ़ा है और इसी महीने से लोकल ट्रेनों को चलाने की बात कही जा रही है। देखना यह होगा कि लोकल ट्रेनों का किराया पहले जैसा होगा या फिर स्पेशल ट्रेनों की तरह उनमें भी सरचार्ज के नाम पर ज्यादा वसूली की जायेगी। इससे बड़ी बात क्या इनमें भी सिर्फ कन्फर्म टिकट पर ही सफर करने की इजाजत होगी?
सरकार से खफा संगठन !
सरकार के मंत्रियों ने राजीव भवन में पार्टी पदाधिकारियों के सामने अपने विभागों के कामकाज का ब्यौरा दिया, तो उन्हें अंदाजा नहीं था कि पदाधिकारी इतना ज्यादा मीन मेख निकालेंगे। दो-तीन बार तो पीएल पुनिया को मंत्रियों के बचाव में आगे आना पड़ा। सबसे पहले मोहम्मद अकबर ने अपने विभाग की गतिविधियों से अवगत कराया। अकबर ने पॉवर पाइंट प्रेजेंटेशन दिया। जिलाध्यक्षों ने कुछ खामियां गिनाई, और शिकायतें की, तो तुरंत अकबर ने संबंधित विषयों को दिखवाने की बात कर किसी तरह उन्हें संतुष्ट किया।
गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू की बारी आई, तो उन्होंने पुलिस और पीडब्ल्यूडी की उपलब्धियों का बखान किया। इस पर एक ने तो यहां तक कह दिया कि आईजी और एसपी, जिलाध्यक्ष और प्रभारियों के फोन तक नहीं उठाते। खुलेआम जुआ-सट्टा चल रहा है। शिकायतों को अनदेखा किया जा रहा है। कुछ और लोगों ने भी इसी तरह की बातें की, तब पुनिया ने हस्तक्षेप कर पदाधिकारियों को समझाइश दी कि अभी इसी तरह की बातें करना ठीक नहीं होगा।
रविन्द्र चौबे और प्रेमसाय सिंह, पदाधिकारियों की शिकायतों से असहज हो गए। स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह को जिले के एक पदाधिकारी ने यह कहकर घेरा कि जिन अफसरों के खिलाफ विधानसभा चुनाव के ठीक पहले निर्वाचन अधिकारी से शिकायत की गई थी, उन्हें ही डीईओ और अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गई। रविन्द्र चौबे भी बचाव की मुद्रा में दिखे, और यह कहते रहे कि उनकी शिकायतों को दूर किया जाएगा। बाद में पुनिया ने सभी मंत्रियों को नसीहत दी कि जिलों का दौरे से पहले संबंधित जिले के अध्यक्ष और प्रभारियों को इसकी सूचना जरूर दें। उनके ज्ञापन-प्रस्तावों को अनदेखा न करें।
बैठक से काफी खुश
कांग्रेस के पदाधिकारी मंत्रियों के साथ बैठक से काफी खुश नजर आए। उन्हें प्रदेश प्रभारी की मौजूदगी में एक-एक कर मंत्रियों के समक्ष अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया। एक जिले के प्रभारी ने तो बैठक के बाद प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम से मिलकर उन्हें धन्यवाद दिया। मरकाम ने कहा कि आप लोगों ने विधानसभा जैसा माहौल बना दिया। उन्होंने आश्वस्त किया कि भविष्य में भी इस तरह की बैठकें होती रहेंगी।
जिसका इंतजार है वह नहीं मिल रहा
प्रदेश से जिन कांग्रेस नेताओं को बूथ मैनेजमेन्ट का प्रशिक्षण देने असम भेजा गया है उनमें से कुछ मुख्यमंत्री के तो, कुछ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सर्वाधिक विश्वस्त हैं। इन्हीं में कुछ को सत्ता में भी जिम्मेदारी मिल चुकी है पर कई लोग अब भी अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जैसे प्रदेश उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव। मरवाही उप-चुनाव, बिलासपुर नगर निगम में महापौर व जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में उन पर बड़ी जिम्मेदारी थी। मुख्यमंत्री ने मरवाही नतीजे के बाद उनकी तारीफ भी सोशल मीडिया पर लिखी। अब फिर संगठन के एक बड़े काम के लिये बनी टीम में उन्हें शामिल कर लिया गया है। उनके समर्थक इस जवाबदारी को लेकर खुशी तो जता रहे हैं, पर मायूसी भी है। एक कार्यकर्ता ने कहा कि जब विपक्ष में थे तब भी संगठन के लिये काम कर रहे थे, अब सरकार बन गई है तब भी वही काम। सरकार का आधा कार्यकाल खत्म होने वाला है, सत्ता में भागीदारी कब मिलेगी?
भारत दर्शन में रुचि घटी
पिछले कई सालों से आईआरसीटी देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों के लिये भारत दर्शन ट्रेनें चलाती है। हर साल इन ट्रेनों में सफर के लिये लोगों में बड़ा उत्साह देखा गया है क्योंकि एक तो सीट कन्फर्म होती है और ट्रैवल्स एजेंसियों के अनाप-शनाप रहने, घूमने के खर्च से बच जाते हैं। पर इस बार इस बार लोग भारत दर्शन में रुचि नहीं दिखा रहे। मार्च महीने से शुरू होने जा रही ट्रेनों की सीटें भर नहीं पा रही है। आईआरसीटीसी तो 50 फीसदी सीटें भरने पर भी ट्रेनों को चलाने तैयार है। और सवारियों का इंतजार हो रहा है। लोगों में कोरोना का भय तो अब खत्म सा है, कम से कम सफर के मामले में तो ऐसा कहा जा सकता है। दूसरी वजह शायद ज्यादा ठीक है कि इन दिनों लोग हाथ खींचकर खर्च कर रहे हैं।