राजपथ - जनपथ
राजिम कुंभ के बाद...
सरकार बदलने के बाद राजिम कुंभ अब मेले में तब्दील हो गया है। पिछली सरकार में कुंभ के नाम पर पखवाड़ेभर रौकन रहती थी, और महाशिवरात्रि में अंतिम शाही स्नान के साथ कुंभ का समापन होता था। स्वाभाविक है कि मेले में पहले जैसी भव्यता नहीं रहती है। यद्यपि मेला ही मूलस्वरूप है।
राजिम कुंभ के आयोजन से पिछली सरकार को कोई फायदा हुआ हो या न हो, मगर बृजमोहन अग्रवाल को जरूर इसका फायदा हुआ। मेले को कुंभ का स्वरूप देने का श्रेय बृजमोहन को जाता है, और पिछले 15 साल में वे इस आयोजन के कर्ता-धर्ता रहे हैं। सरकारी खर्च में साधु संतों की खूब मेहमान नवाजी होती थी। उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों के कलाकार और साधु संत पहचानने लग गए थे।
एक दफा वे केदारनाथ गए, तो वहां उन्हें साधुओं ने पहचान लिया। और तो और उनके पीए मनोज शुक्ला गुजरात के जूनागढ़ गए, तो वहां साधु उनसे मिलने दौड़ पड़े कि देखो मंत्री का आदमी आया है। कुल मिलाकर राजिम कुंभ से बृजमोहन को पहचान मिली।
बैस का सर्वदलीय अभिनंदन
वैसे तो राज्यपाल की नियुक्तियां प्राय: राजनैतिक होती हैं, पर पद पर आसीन के बाद तटस्थ रहना जरूरी हो जाता है। प्रदेश की राजनीति में एक वक्त मुख्यमंत्री के दावेदार समझे जाने वाले रमेश बैस अब त्रिपुरा के राज्यपाल हैं। बैस 16 फरवरी को बलौदाबाजार पहुंच रहे हैं। यहां उनका नागरिक अभिनंदन किया जाना है। इसमें सभी राजनीतिक दलों के लोग शामिल होने वाले हैं। सर्वदलीय बैठक भी हो चुकी है। बैस की टिकट रणनीति के तहत बाकी सांसदों के साथ पिछले लोकसभा चुनाव में काट दी गई थी। तब उनके समर्थकों ने इसका खुलेआम विरोध भी किया था। हालांकि पूरे मसले पर बैस सहज सी प्रतिक्रिया देकर शांत ही रहे। बैस जब राजनीति में रहे तब भी विवाद में पडऩे से बचते रहे जो उनके प्रतिद्वन्दी नेताओं के लिये सुविधाजनक होता था। छत्तीसगढ़ के स्व. मोतीलाल वोरा सहित देश में अनेक राज्यपाल रहे हैं जो कार्यकाल खत्म होने के बाद फिर फ्रंटलाइन की राजनीति में आ गये। बैस का तो काफी समय बचा है पर सेवानिवृत्ति के बाद वे क्या ऐसा करेंगे, यह उनके विरोधी रहे लोगों को ज्यादा पता होगा।
मेडिकल कॉलेज का सरकारीकरण
सीएम भूपेश बघेल ने चंदूलाल चंद्राकर निजी मेडिकल कॉलेज को सरकारी करने की घोषणा से हर कोई भौचक्का रह गया। कॉलेज की माली हालत खराब है, और मान्यता भी खतरे में है। इससे विद्यार्थियों का भविष्य भी अधर में था। विद्यार्थियों और मेडिकल शिक्षा को लेकर तो यह ऐतिहासिक फैसला था, लेकिन इसके संचालकों के लिए फैसला शायद असहज हो।
सुनते हैं कि कॉलेज पर करीब सवा सौ करोड़ का कर्जा था। बैंक 90 करोड़ में सेटलमेंट के लिए तैयार है। चर्चा यह भी है कि भिलाई के ही एक और कॉलेज संचालक ने मेडिकल कॉलेज को खरीदने की तैयारी की थी, और कहा जाता है कि 30 करोड़ रूपए निवेश भी कर दिए थे। बाद में कॉलेज संचालक खुद दूसरे मामले में उलझ गए, और यह डील खटाई में पड़ गई। इसी तरह एक नर्सिंग होम संचालक ने भी कॉलेज खरीदने के लिए कुछ कोशिशें की थीं। उन्होंने भी कुछ खर्च किया था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। अब सरकारीकरण का फैसला हो गया है, तो इन निजी निवेशकों का क्या होगा, यह सवाल अभी बाकी है।
चश्मदीद बालक की मुसीबत
खुड़मुड़ा (अमलेश्वर) में दिसम्बर माह में हुई सामूहिक हत्या का अब तक सुराग नहीं लगना पुलिस के लिये बड़ी समस्या बनी हुई है। जिन चार लोगों की हत्या हुई, वे सोनकर समाज के थे। सोनकर समाज ने आरोपियों का जल्द पता लगाकर गिरफ्तारी करने की मांग पर पिछले माह कई जगहों पर कैंडल मार्च भी निकाला था। इन सबके बीच घटना के एकमात्र चश्मदीद गवाह जीवित बच गये 11 साल के दुर्गेश की सामान्य दिनचर्या छिन गई है। उसकी समस्या भी पुलिस से कम नहीं। अपराधियों को पकड़े जाने से लेकर सजा दिलाने तक दुर्गेश की खास भूमिका रहने वाली है। इसलिये उसे पुलिस ने अपने पहरे में रखा है। सादी वर्दी में पुलिस वाले उनके साथ साये की तरह लगे हुए हैं। उसे ज्यादा मेल-जोल करने की इजाजत भी नहीं है। पुलिस को लगता है कि कोई नजदीकी रिश्तेदार भी घटना में शामिल हो सकता है, इसलिये उसे रिश्तेदारों से भी मिलने के दौरान निगाह में रखा जा रहा है। घटना को डेढ़ माह से ज्यादा बीत चुके हैं। अपराधी पकड़े जायें तो दुर्गेश को भी कुछ राहत मिले।
क्या सुधर पायेगी पुलिस की छवि
पुलिस महानिदेशक ने एक समाधान सेल बनाया है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति थाने से राहत नहीं मिलने पर सीधे इस सेल में शिकायत कर सकता है। इसमें ऑनलाइन शिकायत और वाट्सअप मेसैज दोनों की सुविधा दी गई है। थानों में अक्सर लोगों की रिपोर्ट नहीं लिखे जाने की शिकायत आती है। रिपोर्ट लिखने के बाद हस्तक्षेप अयोग्य अपराध भी बता दिया जाता है। अब ऐसी शिकायतें समाधान सेल में आने पर सीधे सम्बन्धित जिलों के कप्तान के अलावा थाना प्रभारियों के पास भी भेजी जायेगी। जाहिर है, कोताही बरतने पर सर्विस रिकॉर्ड में भी यह दर्ज होगा। क्या यह मुमकिन है कि प्रदेशभर के थानों की सीधे मुख्यालय से निगरानी हो? शिकायतें आना और उन्हें वापस उसी जिले में फॉरवर्ड करने की प्रक्रिया कहीं खानापूर्ति बनकर ही न रह जाये।
अफसर है कि अंगद का पाँव !
रायपुर शहर के सटे तहसील में निर्माण विभाग के एक एसडीओ तीन दशक से अधिक समय से जमे हुए हैं। जब भी एसडीओ के ट्रांसफर की कोशिश हुई, धार्मिक संस्था से जुड़े प्रभावशाली लोग आड़े आ गए। कुछ समय पहले स्थानीय लोगों ने एसडीओ के खिलाफ ईएनसी को शिकायत भेजी।
शिकायत में एसडीओ कारगुजारियों का ब्यौरा था। यह भी बताया गया कि सरकारी जमीन पर कब्जा कर पहले मंदिर का निर्माण किया, और कॉम्पलेक्स भी बनवा लिया। इन शिकायतों पर अब तक कुछ नहीं हुआ। इतने साल से एक ही जगह पर हैं, तो कुछ बात तो होगी। सुनते हैं कि एसडीओ को हमेशा सत्ता और विपक्ष के जनप्रतिनिधि का साथ मिलता रहा है। यही वजह है कि उनका बाल बांका नहीं हो पाया।
जनप्रतिनिधियों के बीच एसडीओ की छवि उदार अफसर की है, जो कि यथा संभव सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। दशहरा, दीवाली हो या नया वर्ष। एसडीओ अपने शुभ चिंतकों को महंगे गिफ्ट, मेवे का डिब्बा भेजने से नहीं चूकते। इस बार एसडीओ थोड़ी दिक्कत में हैं। वजह यह है कि नाराज ग्रामीणों के साथ विभाग के कई लोग भी जुड़ गए हैं, जो कि एसडीओ की जगह लेने के लिए तैयार बैठे हैं। ऐसे लोगों ने भी ईएनसी तक काफी कुछ जानकारियां भिजवाई हैं। देखना है कि इतना कुछ करने के बाद एसडीओ हट पाते हैं, अथवा नहीं।
बजट की आसान समीक्षा
कांग्रेस के एक नेता से बजट पर प्रतिक्रिया पूछी गई, उन्होंने कहा- जिहाल-ए-मस्ती मकुन-ब-रन्जिश, बहाल -ए-हिज्र बेचारा दिल है। ये गाना आज तक आप गा रहे हैं ना। बावजूद इसके कि आपको इसका मतलब समझ नहीं आता। तो फिर निर्मला सीतारमण का बजट भाषण सुनने में आपको क्या तकलीफ है?
तो फिर दाऊ वन कौन हैं?
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव खुद ही बीच-बीच में कुछ चुटकियां, कुछ संकेत ऐसे दे देते हैं जिससे अफवाहों को हवा मिलती है, फिर बाद में सफाई आती है। बिलासपुर के एक कार्यक्रम में नगर निगम आयुक्त से किसी मुद्दे पर उनको बात करनी थी। आयुक्त देर से पहुंचे। सिंहदेव ने तंज कसा- आप इतनी देर से आये, दाऊ टू हो गये हैं क्या? आप अब अटकलें लगाते रहिये कि दाऊ वन कौन हैं?
रेंजर इतना बड़ा, तो फिर...
पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग की शिकायत मुंगेली जिले के एक रेंजर ने दर्ज कराई है। ऐसी ख़बरें तो आती रहती है पर वसूली करने वाले की हिम्मत और रंगदारी देने वाले रेंजर दोनों की हैसियत का अंदाजा लगायें तो सिर घूम सकता है। पुलिस के मुताबिक पूरे सवा करोड़ वसूलने का प्लान था। पुलिस आठ लाख रुपये कथित ब्लैकमेलर से बरामद भी कर चुकी है। अभी मामले का पूरा ब्योरा आना बाकी है पर बताया जा रहा है कि 95 लाख रुपये रेंजर ने उसे दे डाले। सोचिये, रेंजर से ऊपर के अफसरों की नस पकड़ ली जाती ब्लैकमेलिंग की रकम कितनी बड़ी हो सकती थी।
फिर यह भी समझने की जरूरत है कि जिस विभाग में एक रेंजर की इतनी औकात है, उस विभाग में बाकी के बड़े-बड़े अफसरों की ताकत कितनी होगी ! इसीलिए यहां की चर्चा रहती है कि अपने खिलाफ फाइल रोकवाने के लिए किसने कितने करोड़ रुपये किसको दिए !
सत्ता नहीं, तो संगठन के लिये ही उठापटक
जब सत्ता हाथ में हो तो संगठन में कौन बैठ रहा है इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता। पर जब सत्ता न हो तो संगठन की अहमियत बढ़ जाती है। भाजपा युवा मोर्चा और महिला मोर्चा में नियुक्तियों को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। ऐसे लोगों को युवा मोर्चा में नियुक्ति दी गई है जो 35 की उम्र पार कर चुके हैं। महिला मोर्चा के खिलाफ बयानबाजी करने वाले, संगठन में जमीनी स्तर पर कभी काम नहीं करने वाले तथा एनजीओ चलाने वालों को मोर्चा में नियुक्ति देने का आरोप लगा हुआ है। भाजपा खुद को पार्टी विथ डिफरेंस कहती है। वे कहते हैं कि साधारण से कार्यकर्ता को भी संसद, विधानसभा की टिकट दे दी जाती है। पर इस बार संगठन में उन लोगों को किनारे कर दिया गया जो लगातार परिश्रम करते रहे। उनको तवज्जो दी गई जो बड़े नेताओं के करीबी हैं या फिर रिश्तेदार। भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को सख्त मिजाज का माना जाता है। उनके रहते ऐसी नियुक्ति का जोखिम उठाया गया है तब तो देखना पड़ेगा इसकी प्रतिक्रिया में किसी पर गाज गिरती है या नहीं।
बुजुर्गों पर रेलवे की मेहरबानी
केन्द्रीय बजट से रेल बजट पहले अलग हुआ करता था। लोग इंतजार में रहते थे कि किस इलाके को कौन सी नई ट्रेन मिलने वाली है। अब तो लोग यह बात भूल भी गये हैं। बस लोगों को एक उम्मीद थी कोरोना संक्रमण के नाम पर यात्रियों से जो अधिक रकम लेना शुरू किया गया था और रियायतें बंद की गई थीं उसे फिर से शुरू कर दिया जायेगा। पर इस बारे में कोई स्पष्ट घोषणा नहीं हुई। बुजुर्गों को भी किराये में छूट नहीं मिल रही है। एक रेलवे अधिकारी का कहना है कि कोरोना में बुजुर्गों को ज्यादा जोखिम होता है। उनकी यात्रा को हतोत्साहित करने के लिये यह नियम बनाया गया। यानि 100 प्रतिशत किराया देकर बुजुर्ग यदि खतरा उठा रहे हैं तो रेलवे को कोई आपत्ति नहीं। उनको रियायत देने से कोरोना का खतरा बढ़ जायेगा !
आखिर में कौन बचेंगे?
छत्तीसगढ़ में एलीफेंट रिजर्व से लेकर टाइगर रिजर्व तक का मुद्दा भारी जटिल है। सरकार इन दोनों को बनाना भी चाहती है, लेकिन वह इन इलाकों को आदिवासियों की बेदखली को झेलने की हालत में भी नहीं है। फिर एलीफेंट रिजर्व का मुद्दा कोयला खदानों से भी जुड़ा हुआ है, जमीन के नीचे का कोयला निकालना असंभव हो जाएगा अगर ऊपर के पूरे इलाके को वन्य प्राणियों के लिए आरक्षित कर लिया गया। इसमें राज्य सरकार के हित कहीं केन्द्र सरकार के हितों से टकराते हैं, तो कहीं कारोबारियों के हित सरकारी नियमों से। फिर सरकार के आदेश कहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों से टकराते हैं, तो आदिवासियों की जिंदगी तो इनमें से तमाम तबकों से टकराती ही है। कुदरत ने भी अजीब इंतजाम किया है, जहां खनिज है, वहीं जंगल भी हैं, और जहां जंगल हैं, आदिवासी भी हैं। शहरी दखल के पहले तक तो आदिवासी जानवरों के साथ आराम से रह लेते थे, लेकिन अब जब सरकारों ने गिने-चुने जंगल छोड़े हैं, और इन गिने-चुने जंगलों में जानवरों और वहां बसे इंसानों में टकराव चल रहा है, तो पूरा मामला बड़ा जटिल हो गया है। पता नहीं आखिर में कौन बचेंगे, शायद खदान चलाने वाले कारोबारी!
एस के मिश्रा नाबाद
पूर्व सीएस एस के मिश्रा ऐसे अफसर हैं, जो कि रिटायर होने के 17 साल बाद भी अब तक रिटायर नहीं हुए। यानी सरकार उन्हें एक के बाद एक जिम्मेदारी सौंपती गई, और वे बखूबी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे। मिश्रा वर्ष-2004 में सीएस पद से रिटायर होने के बाद राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन बने। नियामक आयोग के चेयरमैन का कार्यकाल पूरा होने के बाद वे वित्त आयोग के चेयरमैन बनाए गए। बाद में उन्हें प्रशासनिक सुधार आयोग का अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया।
पिछली सरकार ने ब्लॉक-तहसील के पुनर्गठन के लिए आयोग का गठन किया था। जिसके चेयरमैन भी एसके मिश्रा बनाए गए। यही नहीं, सरकार ने इंड्रस्टियल डेवलपमेंट पर सुझाव देने के लिए कमेटी बनाई थी, जिसके चेयरमैन भी एसके मिश्रा रहे। वर्तमान में मिश्रा दीनदयाल अंत्योदय योजना के अंतर्गत राज्य स्तरीय आश्रय स्थल निगरानी समिति के चेयरमैन का दायित्व निभा रहे हैं। कुल मिलाकर वे सरकारी कामकाज से आज भी निवृत्त नहीं हुए हैं।
मिश्रा अपने प्रशासनिक कैरियर में बेदाग रहे। यद्यपि रमन सरकार के पहले कार्यकाल में तत्कालीन प्रमुख सचिव पीएस राघवन ने एक दफा उन पर खुले तौर पर गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन मिश्रा खामोश रहे। ये अलग बात है कि बाद में राघवन को लूपलाइन में जाना पड़ा। बिना प्रमोशन के रिटायर हो गए। मिश्रा अनुभवी होने के साथ-साथ बेहद सुलझे हुए अफसर माने जाते हैं, और लो प्रोफाइल में रहते हैं। यही वजह है कि सरकार चाहे कोई हो, वे हमेशा महत्वपूर्ण बने रहे।
रामबाई फेल हो गई, हमारी पोरा तो टॉप थी
सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय रहने वाले आईपीएस दीपांशु काबरा को दमोह पथरिया (मध्यप्रदेश) की विधायक राम बाई के दसवीं कक्षा में फेल हो जाने का अफसोस है। उन्होंने ट्विटर पर अपनी भावना साझा की है और उनके पूरक परीक्षा में सफल हो जाने की कामना की है। बहुत सी लड़कियां हैं जो बचपन में घरेलू और सामाजिक माहौल नहीं मिलने की वजह से स्कूल नहीं जा पातीं। पिछड़े और दलित समाज में तो स्थिति और भी बुरी होती है। शिक्षा की अहमियत जानकर रामबाई ने दसवीं पास करने का तो सोचा, पर शायद विधायक की जिम्मेदारी होने की वजह से तैयारी ठीक तरह से नहीं कर पाई। ओपन बोर्ड की परीक्षा को कुछ आसान समझा जाता है, ज्यादातर लोग इसमें पास हो जाते हैं। रामबाई को अगर पूरक रिजल्ट मिला तो समझा जा सकता है कि कितनी ईमानदारी से परीक्षा ली गई और कॉपियां जांची गई। अपने यहां पोराबाई का उदाहरण है जो शिक्षकों की मेहरबानी से 99 प्रतिशत नंबर हासिल कर पूरे प्रदेश में टॉप पर थी। रामबाई को दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने पॉवरफुल विधायक रहते हुए भी पोराबाई जैसा तरीका नहीं अपनाया।
नेताओं के बच्चों को जगह नहीं?
चर्चा है कि भाजयुमो की कार्यकारिणी में नेता पुत्रों को जगह नहीं दी जा रही है। भाजपा के एक प्रभावशाली नेता के पुत्र को तो कोषाध्यक्ष बनाने पर तकरीबन सहमति बन भी गई थी। पूर्व सीएम ने भी इसके लिए सिफारिश की थी। इसके अलावा पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के पुत्र लवकेश पैकरा, रामविचार नेताम की पुत्री, प्रेमप्रकाश पाण्डेय के पुत्र मनीष और नारायण चंदेल सहित कई और नेताओं के बेटे-बेटियों को कार्यकारिणी में जगह मिलने की चर्चा रही।
कुछ तो सक्रिय भी हैं, और अपने इलाके में पकड़ भी रखते हैं। मगर हाईकमान ने निर्देश दिए हैं कि 35 साल से अधिक उम्र वाले को किसी भी दशा में युवा मोर्चा का पदाधिकारी न बनाया जाए। इसके चलते कुछ नेता पुत्र स्वमेव बाहर हो गए। बाद में यह भी निर्देश आया कि किसी भी वरिष्ठ पदाधिकारी के बेटे-बेटियों को कार्यकारिणी में जगह न दी जाए। फिर क्या था, बचे-खुचे भी बाहर हो गए। हालांकि अभी भी एक-दो नाम को एडजस्ट करने के लिए कोशिशें चल रही हैं। देखना है आगे क्या होता है।
रिकॉर्ड धान खरीदी पर वाह-वाह, भुगतान पर?
रिकॉर्ड धान खरीदी के चलते प्रदेश सरकार को बड़ी वाहवाही मिल रही है पर खरीदी की रकम हासिल करने के लिये किसानों के मुंह से आह निकल रही है। तकनीकी रूप से खाते में रकम आ गई है पर बैंक पूरी रकम निकालने नहीं दे रहे हैं, ऐसी कई जगहों से शिकायतें हैं। जशपुर जिले की घटना तो ज्यादा मार्मिक है। एक वृद्धा फरसाबहार के पास के गांव से 90 किलोमीटर चलकर जशपुरनगर पहुंची। घंटो बैठने के बाद भी उसे रकम नहीं मिली। उसने 9 दिसम्बर और 19 जनवरी को दो बार में 55 क्विंटल धान बेचा था, पर खाते में रकम आ जाने के बावजूद अपेक्स बैंक ने चार दिन बाद आने कहा। वृद्धा ने कहा एटीएम कार्ड ही दे दो, अपने आसपास से रकम चार दिन बाद निकाल लेगी। बैंक अधिकारियों ने बताया कि वह तो चार महीने बाद मिलेगा। खाते में पैसे होने के बावजूद भुगतान नहीं करने की वजह क्या हो सकती है? जब सारे निजी और राष्ट्रीयकृत बैंक बैंकों में भीड़ कम करने के लिये एटीएम कार्ड की व्यवस्था हो चुकी है, सहकारी और अपेक्स बैंक शाखायें पीछे हैं। चेन में कहां गड़बड़ी है ये राजधानी के अफसरों को देखना होगा।
ऑललाइन क्लास लेने में कोताही, नोटिस अब
बच्चों को पढ़ाने में कोताही बरतने को लेकर अक्सर शिक्षा कर्मियों को ही निशाने पर लिया जाता है। लेकिन कॉलेजों का हाल भी कुछ कम बुरा नहीं है। उच्च शिक्षा विभाग के सचिव ने हाल ही में रायपुर संभाग की समीक्षा बैठक ली तो पता चला कि अनेक प्राध्यापक ऑनलाइन क्लासेस नहीं ले रहे हैं। कोरोना के कारण बंद कक्षाओं की भरपाई के लिये उन्हें घर पर बैठकर ही ऑनलाइन पढ़ाई करानी थी, पर सहूलियत के साथ हो जाने वाले इस काम में भी उनकी दिलचस्पी नहीं दिखी। क्लासेस चलती रहें इस पर निगरानी प्राचार्यों को करनी है, जो उन्होंने नहीं की। इसके चलते करीब दर्जन भर प्राचार्यों को नोटिस दी गई है। नोटिस तब दी गई है जब सत्र का लगभग समापन हो चुका है। छात्रों को जो नुकसान होना है वह हो चुका है। वे अपने से पढक़र इस बार परीक्षा देंगे। अब तो नये सत्र से कॉलेजों को खोलने का फैसला भी लिया जा चुका है। कोरोना आराम करने का एक अवसर था, जो जाने वाला है।
ऑनलाइन चुनौती
ऑनलाइन क्लास लेने में कोताही बरतने पर दर्जनभर कॉलेज शिक्षकों को नोटिस थमा दिया गया है। कुछ जानकारों का कहना है कि कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास लेना भी चुनौतीपूर्ण है। कई जगहों पर तो विद्यार्थियों का आचरण ऐसा रहता है कि शिक्षक तंग आ जाते हैं। पिछले दिनों एक इंजीनियरिंग कॉलेज में ऑनलाइन क्लास के दौरान एक छात्र का सवाल था कि मैडम, आपके टूथपेस्ट में नमक है? ज्यादातर जगहों पर ऑनलाइन क्लास में इसी तरह हंसी-मजाक की खबरें आती हैं। ऑनलाइन क्लास में शरारती विद्यार्थियों को दण्ड भी नहीं दिया जा सकता है। इसका वे भरपूर फायदा उठाते हैं। कुल मिलाकर ऑनलाइन क्लासेस शिक्षकों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।
ऑनलाईन कक्षाओं का एक अभूतपूर्व बोझ उन कॉलेज प्राध्यापकों पर भी पड़ रहा है जिन्होंने कम्प्यूटर पर अधिक काम नहीं किया है, या जिन्हें ऑनलाईन काम का अधिक तजुर्बा नहीं है। उन्हें पहले तो कम्प्यूटर और ऑनलाईन का काम खुद सीखना पड़ रहा है, और फिर कॉलेज के छात्र-छात्राओं को सिखाना पड़ रहा है। जो गरीब बच्चे हैं उनके सामने स्मार्टफोन न होने की भी समस्या है। कई गरीब परिवारों में दो-चार लोगों के बीच एक स्मार्टफोन है, और अलग-अलग समय पर लोग जरूरत के मुताबिक उसका इस्तेमाल करते हैं, और जरूरी नहीं है कि छात्र-छात्राओं की ऑनलाईन क्लास के वक्त परिवार में फोन उनके पास हो।
कम्प्यूटर और ऑनलाईन के हिसाब से लेक्चर तैयार करने का जो नया बोझ कॉलेज प्राध्यापकों पर आया है उससे उनकी उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित हुई है। उनका खासा समय सीखने और पॉवर पाईंट प्रजेंटेशन जैसे कामों में जा रहा है। सरकार ने आमतौर पर यह काम 20 हजार रूपए महीने के कोई संविदा कम्प्यूटर कर्मचारी कर सकते थे, इस काम में दो लाख रूपए महीने तनख्वाह वाले प्राध्यापकों को झोंका गया है जिन्हें वक्त भी दस गुना लग रहा है। दरअसल राज्य सरकार ने काम को डिजिटल और ऑनलाईन, वर्क फ्रॉम होम, और कम्प्यूटरीकरण की तैयारी भी नहीं की, और प्राध्यापक तबका तो आरामतलब और बेजुबान रहता है।
राज्य सरकार को कम से कम एक कमेटी ऐसी बनानी चाहिए जो कि अगले किसी लॉकडाऊन के वक्त, या बिना लॉकडाऊन के भी काम को कम्प्यूटर और ऑनलाईन करने का ढांचा विकसित कर सके। ऐसा न होने पर सरकार की उत्पादकता बुरी तरह गिर गई है और किसी को इसकी खास परवाह भी नहीं है। और तो और कॉलेजों में तेज रफ्तार इंटरनेट तक नहीं लग पाए हैं, और प्राध्यापक अपने-अपने इंतजाम से काम चला रहे हैं।
बंद कमरे की बात का राज !
सीएम भूपेश बघेल ने अपने कांकेर प्रवास के दौरान जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे नरेश ठाकुर से बंद कमरे में करीब 1 घंटे चर्चा की। नरेश उन चुनींदा नेताओं में हैं, जिन्हें राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं। वे एआईसीसी के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में नरेश के साथ गुफ्तगू की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है।
सुनते हैं कि नरेश से सीएम ने कांकेर की राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा हुई है। कांकेर जिला कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां की चारों विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास है। इससे पहले भी कांकेर में अंतागढ़ को छोडक़र बाकी सीटें कांग्रेस के पास थीं। नगरीय निकाय और पंचायतों में भी कांग्रेस का कब्जा है। इन सबके बावजूद सरकार आने के बाद स्थानीय नेता आपस में टकरा रहे हैं।
एक खदान के ट्रांसपोटेशन के काम को लेकर भी स्थानीय प्रभावशाली नेताओं में काफी खींचतान हुई थी। बाद में शीर्ष स्तर पर हस्तक्षेप के बाद मामला निपट पाया। खैर, सीएम ने तमाम विषयों पर नरेश से चर्चा की है। इस मुलाकात के बाद नरेश ठाकुर को निगम-मंडल में जगह मिलने की चर्चा है।
कॉलेजों पर नैक की नकेल
ये अलग बात है कि दुनिया के 100 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में अपने देश का कहीं जिक्र नहीं है फिर भी यूजीसी कुछ कोशिशें करती रहती हैं। कॉलेजों की परफार्मेंस तय करने के लिये उसने नैक केलकुलेशन टीम बना रखी है। अनुदान इसी ग्रेडेशन से होना है।
कॉलेजों के लिये नई गाइडलाइन यह तय की गई है कि जिनका भी नंबर 2.5 से नीचे आयेगा उसकी मान्यता खत्म कर दी जायेगी। इस घेरे में केवल निजी महाविद्यालय नहीं बल्कि सरकारी भी आयेंगे। मापदंडों में कॉलेज और शिक्षकों के बीच का अनुपात, परीक्षा परिणाम, शोध और उनकी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली शाबाशी, सब शामिल हैं। एक और बात कि कॉलेजों में भूतपूर्व छात्रों का संगठन यानि एल्यूमिनाई का गठन भी करना है। आपने जिस कॉलेज में पढ़ा हो और एल्यूमनाई का सदस्य बनने के लिये फोन नहीं आया हो तो समझ लीजिये कि पढऩे लिखने के बाद आपने क्या तरक्की वह आपके कॉलेज में पता नहीं है।
पुलिस में तृतीय लिंग की भर्ती
कोई घृणा की वजह से तो कोई भयभीत होने के कारण इनके आसपास कोई फटकना नहीं चाहता। यह जानते हुए भी ये सब हमारी ही तरह प्रकृति की कृतियां हैं। मांगलिक कार्यक्रमों में तो इनकी मौजूदगी बहुत जरूरी लगती है। नवजातों के आशीर्वाद के लिये, दिवाली के उजाले के लिये इनकी तलाश होती है, पर समाज पीछे ही इन्हें रखता आया है। पर धीरे-धीरे मानसिकता कितनी बदल सकती है यह किन्नरों ने अपनी काबिलियत साबित करके बताया। खाकी वर्दी पहनने के लिये इन्होंने रायपुर की पुलिस भर्ती में कूद की, दौड़ लगाई। सुप्रीम कोर्ट तक इन्होंने लड़ाई लड़ी तब जाकर उन्हें सरकारी सेवाओं में, खासकर पुलिस भर्ती में प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिला। आने वाले दिनों में इनमें से कुछ पुलिस वर्दी में दिखेंगे। अपराधियों की हालत इन्हें ड्यूटी करते हुए देखकर पतली हो जायेगी, यह कहना जरूरी नहीं।
सरगुजा को तंत्र-मंत्र से पहचान दिलाते नेता
वैज्ञानिक सोच को बढ़ाना संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी है। पर सरगुजा में कुछ अनोखा ही काम हो रहा है। सार्वजनिक मंचों पर अवैज्ञानिक तर्कों को बढ़ावा देने वाली बातें कही जा रही है। रामानुजगंज के विधायक बृहस्पति सिंह ने तो अपने विरोधी दल के नेता राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम पर तो गंभीर आरोप लगा दिये हैं। उन्होंने अपने इलाके की एक सभा में आरोप लगाया कि नेताम ने उनकी सडक़ दुर्घटना में असमय मौत के लिये यज्ञ कराया है। यज्ञ में धूप, घी, जौ का हवन होता है पर नेताम ने मिर्च का हवन दिया और बकरों की बलि दी। सिंह ने अपने भाषण में आगे कहा कि इस बलि और हवन से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि क्षेत्र की जनता चाहती है कि वे उनके बीच सेवा करते रहें। हाल ही में बृहस्पति सिंह तब चर्चा में आये थे, जब उन्होंने कलेक्टर, एसडीएम को गायब बताते हुए उनकी सूचना देने वाले को 1100 रुपये इनाम देने की घोषणा कर दी थी। बहरहाल, नेताम तक जब यह बात पहुंची तो उन्होंने खंडन किया। कहा-हजारों लोगों ने पूर्णाहुति दी है, तंत्र किया कोई गोपनीय आयोजन नहीं था। भगवान विधायक को सद्बुद्धि दे।
कम्बल वाले बाबा एक समय भाजपा नेताओं के चहेते बने हुए थे। इन बाबा का एक ऑडियो भी वायरल हुआ जिसमें वे चिंतामणि महराज पर भाजपा में शामिल होने के लिये दबाव डालते हुए पाये गये थे। और, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का एक वीडियो तो पिछले दिसम्बर माह में ही वायरल हुआ जिसमें सूरजपुर इलाके के एक कार्यक्रम में ‘मन्नत’ पूरी होने पर 101 बकरों की बलि देने की बात करते हुए दिखे। सोचना होगा कि यहां के नेता सरगुजा को आगे ले जाने की कोशिश कर रहे हैं या पीछे।
पुलिस की मुस्तैदी को सलाम
जय स्तंभ चौक पर शनिवार को यह गाड़ी खड़ी हुई मिली। गाड़ी पुलिस की है पर शायद यातायात नियमों को यहां तोड़ा गया। इसलिये चक्के पर ट्रैफिक वालों ने ताला जड़ दिया गया। वैसे भी इस समय यातायात मास चल रहा है। रूल यानि रूल, कोई अपना-पराया थोड़े ही देखता है। पता नहीं चालान किसकी जेब से कटा।
(पत्रकार-अवधेश मिश्रा ट्विटर पेज से)
जीपीएम जिले का छोटा सा गांव बना खास
गौरेला, पेन्ड्रा और मरवाही को जिला बनाने के लिये नागरिकों ने कई वर्षों तक एक साथ और अलग-अलग भी आंदोलन किया लेकिन निजी पहचान को लेकर प्रत्येक इलाके, खासकर गौरेला और पेन्ड्रा के लोगों के बीच बड़ी सजगता है। इसके चलते उनके बीच विवाद भी होते रहे हैं। मरवाही इन स्थानों से दूर है लेकिन उसकी एक पहचान विधानसभा मुख्यालय की है। जिला मुख्यालय के बारे में तो उसे सोचा नहीं गया। पहचान का मुद्दा इतना बड़ा था कि जिले का एक शब्द वाला नाम भी कोई नहीं सुझा सका। लम्बा नाम लेने के बजाय अब इसे लोग जीपीएम कहने लगे हैं। यहां तक कि सरकारी दस्तावेजों, पत्राचारों में इसी नाम का इस्तेमाल होने लगा है।
जिला बनने के बाद तात्कालिक व्यवस्था के तहत गौरेला के गुरुकुल में कलेक्टोरेट शुरू कर दिया गया, लेकिन अब इसके परे एक पूरी तरह सुविधाजनक कम्पोजिट बिल्डिंग बनाने की तैयारी की जा रही है। अधिकारियों के पास गौरेला के बगल में एक खाली जगह थी लेकिन उसके लिये बड़ी संख्या में पेड़ों को काटने की जरूरत थी।
अब जो जगह बताई जा रही है वह रेलवे स्टेशन से करीब 20 किलोमीटर दूर कोदवाही ग्राम को सोचा गया है। यह न तो गौरेला में है न ही पेन्ड्रा में। यह मरवाही इलाके का गांव है। लोग हैरान है कि इस जगह में क्या खासियत है। खाली जगह स्टेशन से पांच सात किलोमीटर दूर भी तो मिल सकती है। पर कुछ मायनों में यह खास है। एक तो गौरेला और पेन्ड्रा के बीच किसे चुनें यह मुद्दा टल गया। फिर मरवाही इलाके में ही मौजूदा विधायक डॉ. के. के.ध्रुव को जबरदस्त बढ़त मिली और विधायक बनने से पहले भी वे इसी क्षेत्र में डॉक्टर के रूप में सक्रिय रहे। मौजूदा मुख्यालय पेन्ड्रारोड तो कोटा विधानसभा का क्षेत्र है। वैसे यह बताना ही काफी होगा कि नई जगह कोरबा संसदीय सीट का हिस्सा है।
सरकारी इरादा पूरा करता धंधा!
जब देश की सरकार पत्रकार की ट्वीट को लेकर उसे देश का गद्दार साबित करने में लगी है, तो जाहिर है कि उसकी जिम्मेदारी की कहीं न कहीं अनदेखी तो होगी ही। आज सोशल मीडिया ऐसी खुली पोस्ट से भरा हुआ है जिसका न्यौता लोगों को भेजा जा रहा है कि वे आकर सेक्स का धंधा शुरू कर सकते हैं। अभी इस अखबार के संपादक को फेसबुक पर एक दोस्ती का न्यौता मिला, और वह पूरा पेज ही सेक्स के रोजगार में लगने के लिए न्यौते का है। गरीब और मध्यम वर्ग की कल्पनाओं को पूरा करते हुए कॉलबॉय बनने वालों को उनके इलाके की बड़े घरों की महिलाओं के सेक्स का भी वादा किया जा रहा है। अब जब तक हिन्दुस्तान में सेक्स का रोजगार गैरकानूनी कारोबार है, तब तक तो सरकार झांसे के ऐसे सोशल मीडिया-ईश्तहारों पर रोक लगा ही सकती है। लेकिन इन लोगों को देशद्रोही करार देने से भी कोई फायदा तो है नहीं, उतनी देर में दो और पत्रकार अंदर किए जा सकते हैं। और फिर सेक्स का धंधा अगर सच में रोजगार दिला सकता है, तो इससे बेरोजगारी कम करने का सरकारी इरादा भी तो पूरा होता है!
आपकी हर जानकारी बाजार में!
अभी लोगों को वॉट्सऐप पर डेटा बेचे जा रहे हैं। जिस तरह कोई भी दूसरा सामान बेचा जाता है, ठीक उसी तरह लोगों की खरीद-बिक्री की जानकारी, उनके भुगतान की जानकारी, उनके सोशल मीडिया इस्तेमाल की जानकारी फोन नंबरों सहित बेची जा रही है। अभी बहुत से लोगों को जो ऑफर मिला है वह दो करोड़ हिन्दुस्तानियों की जानकारी का है। इसमें बुक माई शो वेबसाईट के 42 लाख ग्राहक, पेटीएम के 50 लाख ग्राहक, नेटफ्लिक्स के 18 लाख ग्राहक, जोमैटो के 12 लाख ग्राहक, यूट्यूब चैनल इस्तेमाल करने वाले 35 लाख लोग, इंस्टाग्राम इस्तेमाल करने वाले 45 लाख लोग और फोन-पे इस्तेमाल करने वाले 20 लाख लोगों का सारा डेटा ढाई हजार रूपए से कम पर बेचा जा रहा है। ऑनलाईन कुछ भी करने वाले लोग यह देख लें कि उनका तौलिया कभी भी पल भर में उतर सकता है।
मंदिर के लिए शहर से ज्यादा गांवों में
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर चंदा हो रहा है। भाजपा चंदा एकत्र करने के लिए अभियान चला रही है। चर्चा है कि पार्टी नेताओं में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल चंदा जुटाने में सबसे आगे रहे हैं। बृजमोहन ने पिछले दिनों चंदा एकत्र करने के लिए अपने निवास पर रात्रि भोज का आयोजन किया था।
बृजमोहन की पार्टी में विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय विशेष तौर पर मौजूद थे। पार्टी में उद्योगपति कमल सारडा, राजेश अग्रवाल, बड़े ज्वेलरी कारोबारी और सिंचाई-पीडब्ल्यूडी के बड़े ठेकेदार मौजूद थे। सुनते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए कारोबारियों ने उदारतापूर्वक सहयोग किया।
चर्चा है कि पार्टी में ही करीब एक करोड़ एकत्र कर लिए गए। वैसे केन्द्र सरकार ने मंदिर निर्माण के लिए दान पर 50 फीसदी आयकर छूट दे दी है। इस वजह से भी बड़े कारोबारी सहयोग में पीछे नहीं हट रहे हैं। एक मंदिर के कोषाध्यक्ष ने तो 51 लाख रूपए दान किए।
चेम्बर के एक पूर्व अध्यक्ष ने अपने साथियों के साथ मिलकर 11 लाख एकत्र कर दिए हैं। ये बात अलग है कि कुछ से ज्यादा सहयोग की अपेक्षा थी, लेकिन वे उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं। एक उद्योगपति से 51 लाख की उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने 21 लाख से ज्यादा सहयोग करने में असमर्थता जता दी है। उन्हें मनाने की कोशिशें चल रही हैं। चंदा जुटाने के अभियान में लगे नेताओं का मानना है कि शहर से ज्यादा गांवों में मंदिर निर्माण के लिए सहयोग मिल रहा है। गांव के लोग बिना मांगे सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं। भाजपा के लोगों को इस अभियान से बड़े राजनीतिक फायदे की भी उम्मीद नजर आ रही है।
आगे भी जारी रहेगा
विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के अभियान से 14 करोड़ परिवारों को जोडऩे की रणनीति बनाई है। करीब साढ़े 4 करोड़ परिवारों से 10 रूपए सहयोग राशि ली जाएगी। इसके बाद साढ़े 4 करोड़ लोगों से सौ रूपए से एक हजार तक राशि ली जाएगी। करीब 20 लाख लोग ऐसे होंगे, जो कि एक करोड़ तक सहयोग राशि देंगे।
छत्तीसगढ़ से ही 51 करोड़ रूपए जुटाने का लक्ष्य है। बृजमोहन की पार्टी में विहिप के उपाध्यक्ष चंपत राय की तारीफों के पुल बांधते हुए अजय चंद्राकर ने कहा कि चंपत रायजी पिछले 29 साल से राम मंदिर निर्माण के अभियान में लगे हैं। राम मंदिर का काम पूरा होने के बाद वे मथुरा-काशी के अभियान में जुट जाएंगे। यानी सहयोग राशि जुटाने का अभियान आगे भी जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ी बोलने पर सजा?
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने, प्रायमरी स्कूल में पढ़ाई का माध्यम बनाने जैसी मांगे भाषा को लेकर आंदोलन करने वालों ने कई बार मांग उठाई। विधानसभा में कभी-कभी छत्तीसगढ़ी में चर्चा, वक्तव्य देकर हमारे जनप्रतिनिधि भी चर्चा में आते रहते हैं। सरकारी दफ्तरों में आवेदन छत्तीसगढ़ी में स्वीकार करने का आदेश हो चुका है, अधिकारियों को छत्तीसगढ़ी सीखने के लिये सर्कुलर भी निकलता आया है। पर अब तक छत्तीसगढ़ी जहां थी, राज्य बनने के बाद उससे बहुत आगे बढ़ी नहीं।
नेताओं की पब्लिक मीटिंग को छोड़ दें तो, अब भी छत्तीसगढ़ी जानने वाले बहुत से लोग इसे बोलना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं और जो समझते हैं वे भी नहीं समझ पाने का अभिनय करते हैं। शायद ऐसा ही कुछ कांकेर के एक नर्सिंग कॉलेज में हो रहा है। जैसी खबर है, प्राचार्य छात्र-छात्राओं के लिये सजा तय कर देते हैं यदि वे उन्हें छत्तीसगढ़ी में बात करते हुए मिल जाती हैं। छात्र-छात्राओं ने आठ किलोमीटर पैदल चलकर बकायदा कांकेर आकर कलेक्टर से इसकी शिकायत की है। प्रताडि़त करने के कुछ और भी आरोप उन्होंने प्राचार्य पर लगाये हैं और उन्हें हटाने की मांग की है। देखें, शिकायतों की जांच और कार्रवाई क्या होती है।
और कितना जटिल होगा जीएसटी?
गुड्स एंड सर्विस टैक्स, जीएसटी को जितना आसान बताया गया था व्यापारियों और टैक्स सलाहकारों को इसमें उतनी ही ज्यादा जटिलता महसूस हो रही है। जीएसटी कैसे काम करेगा, इसकी फाइल कैसे दाखिल करनी है, इस पर सम्बन्धित विभागों के अधिकारी हर दो चार महीने में कार्यशाला रखते हैं पर उसके बाद फिर नियम बदल जाते हैं। इससे परेशान टैक्स सलाहकार अब आंदोलन पर उतर आये हैं। आल इंडिया एसोसिएशन के आह्वान पर छत्तीसगढ़ में भी ये सडक़ों पर निकले। सांसदों, विधायकों को भी ज्ञापन-आवेदन दिये। आंदोलन में व्यापारी भी साथ थे।
इनका कहना है कि ऐसे कानून का क्या फायदा? न तो सरकार को ज्यादा कलेक्शन बढ़ रहा है, न ही टैक्स चोरियां और फर्जी कंपनियों से कारोबार रुक रहा है। जीएसटी सर्वर भी धीमे काम करता है। इससे ज्यादा जल्दी तो कागज पेन से काम हो जाता था। व्यापारी और टैक्स सलाहकार क्या, खुद अधिकारी भी इसके नियम कायदे समझ नहीं पा रहे हैं, फिर भी चल रहा है। उन्होंने आंदोलन के लिये यह वक्त इसलिये चुना है ताकि बजट में वित्त मंत्री कुछ लचीला रुख अपनायें और इस बाबत कोई घोषणा करें। पर उन्हें डर भी है। हर बदलाव पहले भी टैक्स और रिटर्न क्लेम आसान करने के नाम पर किया गया लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
कानूनी पेचीदगी और नये अफसर
राज्य प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा के अधिकारियों को प्रोबेशन के समय निचले स्तर से लेकर ऊपर तक के विभागीय कामकाज के तरीके बताये जाते हैं। कुछ दिनों तक वे नीचे के दफ्तरों का प्रभार संभालते हैं, पर ऐसा लगता है कि यह काफी नहीं है। शिक्षण प्रशिक्षण युवा अधिकारियों को कुछ ज्यादा मिलना चाहिये।
हाल ही में दो महिला पुलिस अधिकारियों ने गलतियां की। एक मामले में तो हाईकोर्ट में पेश होना पड़ा। दूसरे मामले ने तूल नहीं पकड़ा, बच गईं। धोखाधड़ी के एक मामले में हाईकोर्ट ने शासन को निर्देश दिया था कि पीडि़त व्यक्ति का बयान लिया जाये और कोर्ट के सामने पेश किया जाये। हाईकोर्ट में शासन का प्रतिनिधि सीधे सरकार का पक्ष या दस्तावेज पेश नहीं करता। उसे महाधिवक्ता कार्यालय के रास्ते से जाना होता है, पर जांजगीर पुलिस ने इस मामले में पीडि़त का बयान, हलफनामा के साथ सीधे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास भेज दिया। हाईकोर्ट ने एसपी को हाजिर होने का फरमान जारी कर दिया। एसपी ने हाईकोर्ट पहुंचकर गलती मानी और बताया कि यह एडिशनल एसपी की वजह से हुई।
दूसरा मामला उज्ज्वला होम बिलासपुर का है। सीएसपी ने पीडि़त युवतियों का खुद ही बयान ले लिया और वीडियो रिकॉर्डिंग कर संतुष्ट हो गईं। पुलिस की फजीहत तब हुई जब दूसरे दिन युवतियों ने मीडिया के सामने आकर उज्ज्वला के संचालकों पर दुष्कर्म, यौन दुर्व्यवहार और नशीली दवा देने का आरोप लगाया। अगले दिन जब यह खबर प्रमुखता से अखबारों में आई तो आनन-फानन में पुलिस को इन युवतियों का मजिस्टीरिअल बयान दर्ज कराना पड़ा। वहां भी युवतियों ने मीडिया में कही गई बातें दुहराईं । कुछ ही घंटों के भीतर पुलिस को उज्ज्वला होम के संचालक को तथा अगले दिन वहां की तीन महिला कर्मचारियों को गिरफ्तार करना पड़ा। पुलिस पर आरोप भी लगे वह उज्ज्वला होम के संचालकों को बचा रही है। शायद पहले ही बयान दर्ज करने में मजिस्ट्रेट की मदद ले ली जाती तो यह नौबत नहीं आती।
लाखों पौधे कहां लगे, जवाब नहीं
राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार के उपक्रम। हरियाली के नाम पर फर्जीवाड़ा आम बात है। कुछ साल पहले एक अध्ययन में दावा किया गया था कि यदि छत्तीसगढ़ में जितने पौधे सरकारी अभियानों के तहत लगाने का दावा अब तक किया गया है उनमें से 20 फीसदी भी पेड़ बच जाते तो आज छत्तीसगढ़ में कोई खाली जमीन बचती ही नहीं। पिछली सरकार में एक जिले के कलेक्टर ने 50 लाख पौधे लगाने का अभियान चलाया। डीएमएफ फंड का इसके लिये खूब इस्तेमाल किया गया। उससे और पीछे जायें तो उदाहरण एक करोड़ से ऊपर पौधों का भी मिल जायेगा। खनन क्षेत्रों में पौधे उजाडऩे के बाद उससे दस गुना अधिक पौधे लगाने की बात की जाती है, पर वे सिर्फ कम्पनियों के दफ्तर के आसपास और उनके कैम्पस, कॉलोनियों में दिखाई पड़ते हैं। धुआं उगलने वाले संयंत्रों को भी बाध्यता है कि वे पौधे लगाने के आंकड़ों को दुरुस्त रखें। इसीलिये एनटीपीसी सीपत के अधिकारियों ने एक पत्रकार वार्ता ली पर्यावरण संरक्षण के लिये 10 लाख पौधे लगाने का दावा किया और अपनी उपलब्धि की तरह पेश किया। पत्रकारों ने सवाल किया कि वे 10 लाख पौधे कहां लगे हैं, हम देखना चाहेंगे। हड़बड़ाये अधिकारियों ने कहा कि हमने सिर्फ तीन लाख लगाये, बाकी सात लाख लगाने के लिये रकम राज्य सरकार को दी। अब दूसरा सवाल उठा कि चलिये आपने जो तीन लाख लगाये वे कहां हैं बता दीजिये, जाहिर है, जवाब कुछ नहीं मिला।
विद्या भैया की चर्चा...
सीएम भूपेश बघेल ने पिछले दिनों दिवंगत विद्याचरण शुक्ल चौक का लोकार्पण किया। इस मौके पर वक्ताओं ने इस दिग्गज राजनेता को याद किया। कार्यक्रम में शुक्ल के भतीजे अमितेश शुक्ल को भी सम्मानित किया गया। अमितेश, दिवंगत शुक्ल बंधुओं के इकलौते राजनीतिक वारिस हैं। ऐसे में उन्हें सम्मानित करना गलत भी नहीं था। ये अलग बात है कि निजी चर्चाओं में अमितेश अपने चाचा को भला-बुरा कहने से नहीं चूकते थे। ये बात कांग्रेस के नेता भली-भांति जानते हैं।
खैर, अमितेश के बोलने की बारी आई, तो उन्होंने बताया कि कैसे चाचा के सानिध्य में अपने राजनीति कैरियर की शुरूआत की, और आगे बढ़े। इसके बाद तो सत्यनारायण शर्मा ने अमितेश को यह कहकर खुश कर दिया कि अमितेश, विद्या भईया के कान में जो कुछ भी कह देते थे, वे तुरंत मान लेते थे। और जब नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया की बारी आई, तो अपने उद्बोधन में सामने बैठे राजेंद्र तिवारी और सुभाष धुप्पड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अमितेश नहीं, ये सामने बैठे लोग भईया के कान फूंकते थे। इस पर जमकर ठहाके लगे।देखना है आगे होता है क्या
देखना है आगे होता है क्या
प्रदेश में कांग्रेस सरकार सत्तारूढ़ हुई, तो मंत्रालय में एक अफसर के कमरे में आईएएस अफसरों का जमावड़ा रहता था। अफसर के दाऊजी से अच्छे संबंध रहे हैं। दाऊजी एक बार जेल में थे, तो अफसर चुपके से उनसे मिल आए थे। वैसे अफसर के पिछली सरकार के प्रभावशाली नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं। स्वाभाविक है कि यह सब जानने वाले लोग काफी दिनों तक अफसर के पावरफुल होने की प्रत्याशा में आगे-पीछे होते रहे। मगर अफसर के दिन नहीं फिरे। और जब अफसर ने मंत्रालय से बाहर बेहतर पोस्टिंग के लिए जुगाड़ लगाया, तो बस्तर संभाग में पोस्टिंग हो गई। यानी आसमान से गिरे, खजूर में अटके वाली कहावत चरितार्थ हो गई। अब कुछ सामाजिक और राजनीतिक लोगों ने अफसर के लिए पैरवी की है। देखना है आगे होता है क्या।
हरकत औलाद की, गाली माँ को!
हिंदुस्तान की सार्वजनिक जगहों पर लोगों का जो अश्लील प्रदर्शन देखने मिलता है उसका नतीजा है कि देश भर की दीवारों पर इस किस्म की चेतावनी लिखी दिखती है। सडक़ों पर गाडिय़ां चलाने वाले लोग जिस तरह दरवाजे खोल कर पान या तंबाकू की पीक उगलते हैं वह देखना भी भयानक नजारा है. किसी और देश के पर्यटक अगर इसे देखें तो उन्हें लगेगा कि कोई खून की उल्टी कर रहा है और वह एंबुलेंस बुलाने की कोशिश करेंगे। लोग सार्वजनिक जगहों पर कोशिश करके भी पेशाब निकालने में लगे रहते हैं, और अगर उन्हें मुंह में पीक ना भी बने तो भी उन्हें हीन भावना होने लगती है कि सार्वजनिक जगह पर इतनी देर से थूका नहीं है पता नहीं इस जगह पर उनका कब्जा अभी कायम है या नहीं। बिलासपुर के फोटोग्राफर सत्यप्रकाश पांडे ने ये तस्वीरें खींची हैं ।
हिसाब तो मिलना ही चाहिये...
राममंदिर के लिये चंदे की बात अलग है। लोगों में होड़ लगी हुई है। तस्वीरें खिंचाकर लोग बता रहे हैं कितना चंदा दिया। इससे प्रभावित दूसरे लोग भी बढ़-चढक़र रसीद कटवा रहे हैं। कीर्तन, भजन के साथ चंदे की टोली निकल रही है। जिस बड़े पैमाने पर चंदे के लिये टीमें निकली हुई हैं, कांग्रेस ने कई सवाल किये हैं। वह विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा बरसों पहले इसी नाम से लिये गये करोड़ों रुपये के चंदे का हिसाब जानना चाह रही है। साथ ही यह भी पूछा है कि किस-किस को चंदा लेने के लिये अधिकृत किया गया है।
बिलासपुर में हू-ब-हू रसीद छपवाकर एक महिला नेत्री द्वारा चंदा मांगने की शिकायत तो थाने में भी हो चुकी है और निचली अदालत से उसकी जमानत याचिका भी खारिज हो चुकी। एक मामला तो पकड़ में आ गया लेकिन क्या पता गांव-गांव में चंदे के लिये निकलने वाली टोलियों में और भी कुछ मामले सामने आ जायें। कांग्रेस का सवाल शायद इसी वजह से है कि बहुत से लोग धोखे का शिकार हो सकते हैं। इसीलिये कांग्रेस सरकार ने अब सीधे ट्रस्ट को पत्र भेजकर जानकारी मांगी है कि चंदा लेने के लिये अधिकृत आखिर कौन है? अपने छत्तीसगढ़ के विधायक अमितेश शुक्ल और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सही तरीका निकाला, सीधे राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को ऑनलाइन रकम भेजी।
गरीब बेटियों को ऐसे शादी कराई मंत्री ने
दूरस्थ बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में हुए सामूहिक विवाह में मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह टेकाम आशीर्वाद तो देकर आ गये पर इन नव दम्पतियों के साथ जो बर्ताव किया गया उसे गंभीरता से नहीं लिया। पेन्डारी गांव में गरीब परिवारों के 85 जोड़ों का विवाह हुआ। विवाह की रस्म पूरी हुई उसके बाद इन जोड़ों के लिये उपहार दिया गया। टूटी अलमारी, पेटियां उनके हिस्से में आईं। अतिथियों व नव दम्पतियों के लिये बैठने की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई। भोजन इधर-उधर जगह बनाकर करना पड़ा। लोग पानी के लिये भी तरसे। महिला बाल विकास विभाग के इस आयोजन में बजट की कमी पड़ गई या कोई और बात थी, यह तो पता नहीं पर जब पंचायत प्रतिनिधियों ने इस बात की शिकायत मंत्रीजी से की तो उन्होंने भी कह दिया- जो है, सब आपके सामने है। अब ऐसा कहकर उन्होंने जिम्मेदारी किसके ऊपर डाली, उन्हें ही पता होगा।
अभी तो दिल्ली दूर ही है...
बिलासा एयरपोर्ट, बिलासपुर को थ्री-सी हवाई सेवा की मंजूरी मिलने के बाद श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है। वहीं अनेक लोग सोशल मीडिया पर ध्यान दिला रहे हैं कि नागरिक आंदोलन व हाईकोर्ट के दबाव के चलते थ्री-सी लाइसेंस मिला तो है पर ज्यादा उड़ानों की संभावना नहीं है। उड्डयन मंत्रालय ने बिलासपुर-भोपाल के बीच उड़ान की घोषणा की है पर उसकी तारीख अब तक तय नहीं हुई है। बिलासपुर से भोपाल का अब आर्थिक, राजनीतिक सम्बन्ध बहुत ज्यादा रह नहीं गया है। लोग दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, मुम्बई आदि की उड़ान चाहते हैं। इसके लिये दूसरे छोटे, पूर्वोत्तर राज्यों की तरह सब्सिडी की जरूरत है। इसकी भी घोषणा नहीं हुई है। बिलासपुर के लोग महंगी हवाई यात्रा कर पायेंगे या विमानन कम्पनियां नुकसान में रहकर सेवायें देंगीं?
बिलासपुर को 4सी कैटेगरी हवाईअड्डा का दर्जा देने की मांग की गई है, जिसकी संभावना बहुत जल्दी नहीं दिखाई दे रही है। इसके होने पर ही महानगरों के लिये आसान उड़ानें शुरू हो पायेंगीं। बिलासपुर से छोटे कई शहरों में नियमित हवाई सेवायें शुरू हो चुकी हैं। राज्य बनने के बाद एक ठोस घोषणा तो हुई है जिसका जश्न भी मनाया जा रहा है पर मौजूदा परिस्थितियां यही कह रही है दिल्ली अभी दूर है..।
ऑडिट का मौसम
वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर सरकारी विभागों में ऑडिट का काम तेज हो गया है। वैसे तो ज्यादातर दफ्तरों में मासिक ऑडिट होती है, पर मार्च के पहले बजट के सारे हिसाब-किताब दुरुस्त कर बिल वाउचर जमा करने होते हैं। साथ ही इनका परीक्षण करने ऑडिट टीम भी आती है। ऑडिट टीम की चोरी-छिपे खातिरदारी कर गड़बड़ी पर लीपा-पोती भी आम बात है पर यदि यह सेवा खुलेआम होने लगे तो? मुंगेली के सिंचाई विभाग में ऑडिट टीम पहुंची पर पूरा दफ्तर खाली था। टीम नदारत है, बाबू और अफसर भी। मालूम हुआ कि पूरा दफ्तर ऑडिट टीम को साथ लेकर खुडिय़ा बांध घूमने चला गया है। पिकनिक के बीच किस तरह की ऑडिट रिपोर्ट तैयार हुई होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी तरह बिलासपुर में लोक निर्माण विभाग में बिना टेंडर के 20 करोड़ रुपये खर्च करने का मामला सामने आया है। मुख्यालय की नियमित ऑडिट जांच से यह गड़बड़ी पकड़ी गई। रायपुर से आये जांच के आदेश को बिलासपुर के अधिकारी फिलहाल दबाये बैठे हैं। बताया जा रहा है कि जांच की जवाबदारी उन लोगों को ही दे दी गई है जिन पर गड़बड़ी का आरोप है।
ऑफलाइन परीक्षाओं का बोझ
कई वर्षों से अलग-अलग सेमेस्टर में रुक जाने वाले ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट कक्षाओं के छात्रों को कोरोना का बड़ा फायदा मिला। उन्हें घर से ही ऑनलाइन परीक्षा देने की सुविधा मिली और वे डिग्री हासिल करने में कामयाब भी हो गये। यह सिलसिला अब तक चला आ रहा था, लेकिन बस थोड़े दिनों की बात है। नियमित स्कूल, कॉलेज खुलते ही जा रहे हैं। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अलावा माध्यमिक शिक्षा मंडल ने भी ऑफलाइन परीक्षा लेने की घोषणा कर दी है। बोर्ड परीक्षाओं का सिलेबस अधिकांश स्कूलों में 30 से 40 प्रतिशत ही पूरा हो पाया। अब छात्रों को अपनी ही क्षमता, नोट्स और सेल्फ स्टडी के आधार पर नतीजे लाकर दिखाना है।
पिछली बार ओपन स्कूल बोर्ड परीक्षाओं के छात्रों ने भी इसका फायदा उठाया और घरों में नोट्स, किताबों को देख देखकर सवाल हल किये। इस बार भी ओपन बोर्ड परीक्षाओं असाइनमेंट मिलने की उम्मीद थी, इसके चलते 10वीं, 12वीं बोर्ड में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने परीक्षा फॉर्म भरा। कई साल से जो छात्र फेल हो रहे थे, वे भी खुश हो रहे थे कि चलो कोरोना के चलते दाग धुल जायेगा। पर इधर कोरोना के केस कम होने लगे। अब ओपन बोर्ड परीक्षा भी निर्धारित केन्द्रों में जाकर दिलाने की घोषणा कर दी गई है। ऐसे में रिजल्ट को लेकर वे चिंतित हो उठे हैं।
बच गये निजी स्कूल निरीक्षण से
कोरोना के चलते निजी स्कूल इस बार मान्यता के लिये निरीक्षण के झंझट से बच गये। इस बार शिक्षा विभाग इनकी मान्यता का सीधे नवीनीकरण करने जा रहा है। इसके लिये आवेदन लिये जायेंगे और निर्धारित फीस भी ली जायेगी। वैसे भी निरीक्षण होता भी है तो वह ज्यादातर औपचारिक ही होता है। लैब, फर्नीचर, खेल मैदान, टीचिंग और नान टीचिंग स्टाफ जैसे कई मापदंड पूरे होते नहीं हैं पर निरीक्षण दल की मेहरबानी से ओके रिपोर्ट मिल जाया करती है। इस बार इन दलों की खातिरदारी का खर्च निजी स्कूलों ने बचा लिया।
फीस निर्धारण समितियों का सच
शिक्षा विभाग ने स्कूलों में फीस निर्धारण समिति के गठन को लेकर इस बार तेवर ढीले नहीं किये। फीस निर्धारण समिति नहीं बनाने के कारण शिक्षा विभाग ने अकेले रायपुर जिले में करीब 250 स्कूलों को अगले सत्र की मान्यता रोक ली थी। इसका असर हुआ कि निजी स्कूल, समितियों का ब्यौरा शिक्षा विभाग को सौंपते जा रहे हैं और उनकी मान्यता देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा रही है। निजी स्कूल कॉलेजों के लिये जनवरी-फरवरी माह बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि नये सत्र के लिये प्रवेश की प्रक्रिया शुरू होती है। कई स्कूलों में शिक्षकों को भी लक्ष्य दिया जाता है कि वे विद्यार्थी लेकर आयें। दूसरी ओर फीस निर्धारण समिति के गठन को हाईकोर्ट में चुनौती भी दी गई है। स्कूल प्रबंधकों की उम्मीद फैसले पर टिकी हुई है। दूसरी तरफ रायपुर में ही पालकों ने जिला शिक्षा अधिकारी से शिकायत की है कि कई स्कूलों में पालकों की सहमति के बगैर ही नोडल अधिकारियों की मिलीभगत से समितियों का गठन कर दिया गया । यानि सिर्फ मान्यता हासिल करने के लिये जैसे-तैसे समितियां भी बनाई जा रही हैं।
बोधघाट बिजली नहीं सिंचाई के लिये
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर दौरे के दौरान अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को आड़े हाथों लिया। मुद्दा बोधघाट परियोजना का था। पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री अरविन्द नेताम इस योजना का विरोध करते आये हैं। उन्हें लेकर सीएम ने कहा कि हम चाहते हैं कि सबकी आर्थिक स्थिति नेताम की तरह हो जाये। उनके पेट्रोल पम्प हैं, बढिय़ा खेती है, घर में सब नौकरी-चाकरी कर रहे हैं। उन्होंने सम्पन्नता को लेकर सांसद दीपक बैज का भी उदाहरण रखा। कहा, बोधघाट से खेतों में पानी पहुंचेगा और आदिवासी उनकी तरह खुशहाल हों वे यह चाहते हैं।
बस्तर का विकास किस तरह से हो कि आदिवासी परम्परायें और जीवन शैली सुरक्षित रहे यह सवाल हमेशा हर सरकार के लिये महत्वपूर्ण रहा है। अतीत में कुछ बड़े फैसले हुए, विस्थापन हुए जिससे भय का माहौल बना। और हिंसा पर तो अब तक रोक नहीं लग पाई है। ऐसी स्थिति में चिंता व्यक्त करना भी सही है और उसका समाधान निकालना भी जरूरी।
रुक तो नहीं पाई टैक्स चोरी
नोटबंदी और जीएसटी के दौरान करों की चोरी रोकने और कालेधन पर लगाम कसने का जो अनुमान लगाया गया था वह धरातल पर नहीं उतरा। बीते साल सिर्फ एक बार ऐसा हुआ कि जीएसटी कलेक्शन एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंचा। फर्जी फर्मों, कम्पनियों और के जरिये टैक्स चोरी इसकी एक बड़ी वजह मानी जाती है। इसके चलते राज्यों को नुकसान की भरपाई भी नहीं हो पा रही है।
जीएसटी लागू किया गया तब माना गया कि यह फुल प्रूफ तरीका है। टैक्स चोरी पूरी तरह रुक जायेगी। सन् 2017 से लेकर 2019 के बीच करीब 6.80 लाख शेल कम्पनियों को बंद भी किया गया, जिसे लेकर केन्द्र सरकार ने खूब वाहवाही भी बटोरी। लेकिन यह खेल रुका नहीं है। देश के अलग-अलग हिस्सों में जीएसटी चोरी के मामले सामने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी में तो 258 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया जिसमें 2 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। छत्तीसगढ़ में यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। दोनों आरोपी न्यायिक रिमांड पर जेल भी भेज दिये गये हैं। टैक्स कलेक्शन सिस्टम को ऑनलाइन करने के बाद इस तरह के खतरे और बढ़े हैं। धोखाधड़ी करने वाले साइबर एक्सपर्ट्स भी हैं। जीएसटी विभाग के अधिकारियों के हाथ में ऐसे गिने-चुने मामले पकड़ में आ जाते हैं पर वास्तव में चोरी कितनी हो रही है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
छत्तीसगढ़ी गाना बजाने पर अर्थदंड
छत्तीसगढ़ी में जिस रफ्तार से गाने व फिल्में रिलीज हो रही हैं उसके मुकाबले उनकी प्रशंसा नहीं होती। किसी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में नामांकन भी नहीं हो पाता । कई बार यह बॉलीवुड फिल्मों की खराब नकल के रूप में सामने आती हैं। कुछ अच्छे विषयों पर काम होता भी है तो उन्हें निर्देशन, पटकथा, फिल्मांकन की कमियों के कारण दर्शकों की रिस्पांस नहीं मिलता।
इन दिनों एक गीत यू ट्यूब पर चल रहा है जिसे 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। इस गीत को बहुत से लोग अश्लील मान रहे हैं। इस गीत के खिलाफ बीते दिनों धरसीवां इलाके कांदुल ग्राम में बकायदा फरमान जारी किया गया। सरपंच, सचिव ने एक आम सूचना निकालकर चेतावनी दी है कि गांव के मड़ई मेले में यह गीत नहीं बजेगा। जो बजायेगा उसे 5551 रुपये अर्थदंड चुकाना होगा। चाहे वह गांव का व्यक्ति हो या बाहरी। अर्थदंड लेना वाजिब है या नहीं, या नहीं इस पर सवाल उठ सकते हैं पर किसी गाने के विरोध में ऐसा फरमान निकालना शायद पहली बार हुआ। गाने में उन्हें इतनी खामी दिखी कि मेले का माहौल बिगड़ सकता है। कई लोगों ने यू ट्यूब पर इस गाने की तारीफ की है पर एक यूजर ने यह भी लिखा है कि भोजपुरी गाने की तरह अश्लीलता मत परोसें।
मोदी के मुकाबले ताम्रध्वज !
गुजरात की 6 महानगर पालिकाओं में 21 फरवरी को मतदान है। यहां से गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू को कांग्रेस ने सीनियर पर्यवेक्षक बनाया है। बात सामने आई कि गुजरात के मोदी और छत्तीसगढ़ के साहू एक ही जाति हैं। प्रह्लाद मोदी जब छत्तीसगढ़ प्रवास पर आये थे तो उन्होंने कहा था- हम पिछड़ी जाति के हैं तो हैं, अपनी जात क्यों छिपायेंगे? यहां के साहू वोटरों को प्रभावित करने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी पिछले लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान भाटापारा में भी कहा था कि हम साहू हैं। वहां के मोदी वोटरों पर गृह मंत्री साहू का कितना तालमेल बैठ पाता है यह चुनाव परिणाम आने पर मालूम होगा।
अभी तो कोविशील्ड ही खत्म नहीं हुई
केन्द्र सरकार ने जिस उत्साह के कोविड के टीकों को लांच किया, लोगों की तरफ से उसका प्रतिसाद नहीं मिला। प्रदेश में भी टीके लगवाने की रफ्तार धीमी है। स्थिति ऐसी है कि कोविशील्ड के टीकों के दूसरे खेप की राज्य में सप्लाई हो जाने के बाद भी जिला मुख्यालय में इसकी जरूरत ही नहीं पड़ रही है क्योंकि पहली खेप ही अभी खत्म नहीं हुई है। इसी बीच राज्य सरकार के बिना मांगे ही को-वैक्सीन की एक खेप केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भेज दी। अब राज्य सरकार इन टीकों का क्या करे? यह भी बात सामने आ गई है कि इस दवा के तीसरे चरण का ट्रायल ही नहीं हुआ है। अभी तक कोविशील्ड से किसी को गंभीर रियेक्शन नहीं हुआ है पर को-वैक्सीन को लेकर यह दावा नहीं किया जा सकता। जिस कोविशील्ड का सुरक्षित होना प्रमाणित हो चुका है, उसे भी लगवाने में लोग कम रूचि दिखा रहे हैं तो फिर को-वैक्सीन के लिये लोगों का सामने आना और भी मुश्किल हो जायेगा। इसलिये को वैक्सीन अभी स्टोर रूम में ही बंद है।
किस अफसर की क्या पढ़ाई है-2
देश में सबसे ताकतवर समझी जाने वाली सिविल सर्विस, आईएएस में आने वाले लोग कौन सी पढ़ाई करने के बाद इस मुकाबले में उतरते हैं, इसे एक नजर में देखें। कल इसी कॉलम में आईएएस लोगों में शुरू के 27 लोगों की पढ़ाई-लिखाई का जिक्र किया गया था, आज उसके बाद के लोग।
ए.कुलभूषण टोप्पो और अनिल कुमार टुटेजा दोनों ग्रेजुएट। निरंजन दास एम.एस.सी. (जियोलॉजी)। ईमिल लकड़ा एम.ए. इतिहास। गोविंद राम चुरेन्द्र ग्रेजुएट। संगीता पी. मनोविज्ञान में एम.एस.सी.। प्रसन्ना आर. बीटेक (सिविल)। अमित कटारिया बीटेक। अंबलगन पी. बीएससी (माइक्रोबायोलॉजी) एमएससी (एप्लाईड माइक्रोबायोलॉजी)। अलरमेलमंगई डी. एम.कॉम। उमेश कुमार अग्रवाल एम.कॉम., एल.एल.बी.। धनंजय देवांगन बीई सिविल। संजय कुमार अलंग एम.ए. (इतिहास), पीएचडी। कुमारी जिनेविवा किंडो एम.ए.। मुकेश कुमार बी.कॉम., एमबीए। आर.शंगीता बीएससी, एमबीए, एलएलबी। रजक कुमार बीए। राजेश सुकुमार टोप्पो बीए (इतिहास)। एस.प्रकाश बीटेक। टोपेश्वर वर्मा एमएससी। नीलम नामदेव एक्का बीए। अंकित आनंद बीटेक (कम्प्यूटर साईंस एवं इंजीनियरिंग)। श्रुति सिंह एमए (राजनीति विज्ञान)। पी.दयानंद एमए (इतिहास)। डॉ. सी.आर. प्रसन्ना पोस्ट ग्रेजुएट (डेयरी साईंस)। एलेक्स पॉल मेनन (बीई इलेक्ट्रॉनिक, कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, एमए (पब्लिक पॉलिसी)। भुवनेश यादव बीए, एमबीए, एमए (पब्लिक पॉलिसी)। सोलई भारती दासन एमएससी (एग्रीकल्चर) पीएचडी (एग्रीकल्चर)। बाकी अगले अंक में।
जलवायु की सुध...
मौसम में बदलाव अब धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण कर रहा है। इससे न सिर्फ कृषि बल्कि जनजीवन पर भी असर पडऩे लगा है। कई राज्यों में इस दिशा में अच्छा काम हो रहा है, और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से वित्तीय मदद भी मिली है। मगर छत्तीसगढ़ में पिछले वर्षों में इस पर कोई काम नहीं हुआ। हाल यह रहा कि जलवायु परिवर्तन विषय पर राज्य के वन अफसर विदेश यात्रा करते रहे, लेकिन एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तक तैयार नहीं की गई। जबकि जलवायु परिवर्तन, एसएफआईआरटी के अधीन रहा है, और यहां पीसीसीएफ स्तर के अफसर पदस्थ रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन पर अब जाकर सरकार ने सुध ली है, और वन विभाग का नाम बदलकर वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग कर दिया गया है। इसमें सीएम भूपेश बघेल खुद रूचि ले रहे हैं, और उनके सलाहकार प्रदीप शर्मा की मौजूदगी में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी के साथ एक बैठक भी हो चुकी है। जलवायु परिवर्तन पर कार्ययोजना तैयार की जा रही है, और इसके लिए सीनियर एपीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल को नोडल अफसर बनाया गया है।
सुधीर बेहद काबिल अफसर माने जाते हैं, और अगले दो-तीन महीने के भीतर कार्ययोजना तैयार कर केन्द्र सरकार को भेज दी जाएगी। उम्मीद है कि जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च और विपरीत प्रभाव को रोकने के लिए केन्द्र सरकार 5 सौ करोड़ तक राशि आबंटित कर सकती है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी वित्तीय मदद की भी संभावना है। कुल मिलाकर इस दिशा में काफी काम की गुंजाइश है। खैर, देर से ही सही इस गंभीर समस्या पर काम तो शुरू हुआ।
विपक्ष में होने से महत्व
भाजयुमो अध्यक्ष अमित साहू की पार्टी के भीतर काफी पूछपरख बढ़ गई है। चूंकि अभी तक कार्यकारिणी का गठन नहीं हुआ है। इसलिए पार्टी के नेता अपने समर्थकों को भाजयुमो में एडजेस्ट करने के लिए अमित के आगे-पीछे हो रहे हैं। अमित का हाल यह है कि तीनों मोबाइल लगातार घनघनाते रहते हैं। जिलों के दौरे में अमित की खूब खातिरदारी होती है। सीनियर नेता भी उनसे मिलने आते हैं। चूंकि पार्टी सरकार में नहीं है, इसलिए उन्हें इतना महत्व मिल जा रहा है, जितना पहले किसी भाजयुमो अध्यक्ष को नहीं मिला।
जानें किस अफसर की क्या पढ़ाई है!
देश में सबसे ताकतवर समझी जाने वाली सिविल सर्विस, आईएएस में आने वाले लोग कौन सी पढ़ाई करने के बाद इस मुकाबले में उतरते हैं, इसे एक नजर में देखें। आज राज्य में सबसे सीनियर आईएएस चित्तरंजन कुमार खेतान हिन्दी में एम.ए. हैं, उन्हीं के बैचमेट बी.वी.आर.सुब्रमण्यम मैकेनिकल इंजीनियर हैं। तीसरे नंबर के अमिताभ जैन भी मैकेनिकल इंजीनियर हैं, और उन्होंने एम.टेक भी किया हुआ है। उनके बाद की रेणु पिल्लै समाजशास्त्र में एम.ए. हैं। अगला नंबर सुब्रत साहू का है जो कि राजनीति विज्ञान में एम.ए. हैं। इन दिनों भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए हुए अमित अग्रवाल इलेक्ट्रीकल इंजीनियर हैं। ऋचा शर्मा एम.ए. हैं, और लोकनीति में डिप्लोमा प्राप्त हैं। निधि छिब्बर ने इतिहास में एम.ए. किया, एलएलबी किया, और बौद्धिक संपदा में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाया। उनके पति और लिस्ट में अगले, विकासशील इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं, और इसी में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं। मनोज कुमार पिंगुआ बॉटनी में बीएससी हैं, और एन्थ्रोपोलॉजी में एमएससी हैं। डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी एमबीबीएस हैं, और उनके पति गौरव द्विवेदी जूलॉजी में ग्रेजुएट हैं। भारत सरकार गए हुए सुबोध कुमार सिंह भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने बीई के बाद एमई भी किया हुआ है। डॉ.एम.गीता एन्थ्रोपोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, और पीएचडी भी की हुई है। निहारिका बारिक ने समाजशास्त्र में एम.ए. किया हुआ है। सोनमणि बोरा विख्यात जेएनयू से राजनीति विज्ञान में एम.ए. हैं, और अमरीका से लोकप्रशासन में पोस्ट ग्रेजुएट किया है। डी.डी.सिंह बीए हैं। शहला निगार राजनीति विज्ञान में एम.ए., एम.फिल हैं। भारत सरकार गए हुए डॉ. रोहित यादव एमबीबीएस हैं, और उन्हीं के बैचमेट डॉ. कमलप्रीत सिंह भी एमबीबीएस हैं। अमृत कुमार खलको भूगोल में पीजी हैं, और विजय कुमार धुर्वे इकानॉमिक में एमए हैं। रीता शांडिल्य बीएससी और फिजिक्स में एमएससी हैं। परदेशी सिद्धार्थ कोमल इलेक्ट्रॉनिक्स में बीई किए हुए हैं। रीना बाबासाहब कंगाले एलएलबी हैं। ऋतु सैन राजनीति में एमए हैं, और जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय मामलों में एम.फिल हैं। रायपुर में रहते हुए उन्होंने रविशंकर विश्वविद्यालय से एलएलबी भी किया है। अविनाश चम्पावत राजनीति विज्ञान और भूगोल में एमए हैं। (आगे के लोगों के बारे में कल)
अफवाह, निगरानी, और चौकन्नापन
कहीं पर कांग्रेस पार्टी की सरकार, या कोई दूसरी सत्तारूढ़ पार्टी खुद की हरकतों से कमजोर होती है, तो कहीं पर कोई दूसरी ताकतवर पार्टी सच और झूठ दोनों जरियों से सरकारों को कमजोर करने की कोशिश करती है। बंगाल में रोज सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से किसी के जाने की खबरें उड़ती हैं, कोई-कोई जाते भी हैं, और कोई ऐसी खबरों को अफवाह साबित करते हुए पार्टी में बने भी रहते हैं।
छत्तीसगढ़ में भी पर्दे के पीछे से कोई राजनीतिक दल, और जाहिर तौर पर सामने से वॉट्सऐप पर अभियान चलाने वाले लोग प्रदेश की कांग्रेस सरकार के भीतर बेचैनी को साबित करने के लिए तरह-तरह की बातें पोस्ट करने में लगे हुए हैं।
अभी सुबह एक सनसनीखेज ब्रेकिंग न्यूज के अंदाज में वॉट्सऐप संदेश लोगों तक पहुंचा कि छत्तीसगढ़ सरकार के एक वरिष्ठ और बहुचर्चित कैबिनेट मंत्री भाजपा के केन्द्रीय नेताओं से मेल-मुलाकात में लगे हैं। यह भी लिखा गया कि इस कैबिनेट मंत्री ने हाल ही में केेन्द्रीय गृहमंत्री से लंबी बैठक की है। यह भी लिखा गया कि वे लंबे समय से सरकार से असंतुष्ट चल रहे हैं, और भाजपा नेताओं से मेल-मुलाकात करके नई राजनीतिक उठापटक कर रहे हैं। सबसे ताजा सनसनीखेज बात इसमें यह जोड़ी गई है कि बीती रात ही इस असंतुष्ट मंत्री ने एक नए नंबर से भाजपा के एक ताकतवर केन्द्रीय मंत्री से 50 मिनट तक बात की है।
इस बारे में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव से पूछा गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि उन्हें भी यह संदेश मिल चुका है, और यह फूहड़ और बचकाना समाचार बनाकर झूठ फैलाने का काम किया जा रहा है।
फिलहाल राज्य में जो लोग अपने फोन टैप होने की आशंका में डूबे हुए हैं वे पहले तो वॉट्सऐप कॉल पर बात करना सुरक्षित समझते थे, अब कई महीनों से ये लोग आईफोन के फेसटाईम के अलावा किसी और कॉल पर बात नहीं करते क्योंकि अमरीका में एक आतंकी के गिरफ्तार होने पर भी वहां की सबसे बड़ी एजेंसी एफबीआई आईफोन की बातचीत तक नहीं पहुंच पाई थी। अब छत्तीसगढ़ के छोटे-छोटे लोगों में अमरीका की एफबीआई से अधिक तो किसी और बड़ी एजेंसी की दिलचस्पी होनी नहीं चाहिए, फिलहाल लोग अपने आपको महत्वपूर्ण मानते हुए फेसटाईम से और अधिक सुरक्षित कोई जरिया ढूंढ सकते हैं।
हवालात के बिना गिरफ्तारियां
हजारों की संख्या में कल गिरफ्तारियां हो गई और किसी के माथे पर कोई शिकन नहीं। न तो पुलिस को और न ही भाजपा के कार्यकर्ताओं को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। सरकार तो बेफिक्र है ही। यह सब एक रस्म अदायगी थी जो हर सरकार में विपक्षी पार्टियां निभाती आई हैं।
हर जिले में कलेक्ट्रेट गतिविधियों का मुख्य केन्द्र होता है। कलेक्टर ऑफिस के अलावा कचहरी, रजिस्ट्री, एसपी ऑफिस वगैरह भी आसपास होते हैं। पुलिस ने रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, रायगढ़ आदि में कलेक्टोरेट के घेराव के ऐलान को देखते हुए चारों और बेरिकेड्स लगा रखे थे और रास्तों को डायवर्ट कर रखा था। परेशान हुई तो सिर्फ आम जनता। उन्हें जगह-जगह पुलिस बता रही थी कि यहां से मत गुजरो, उस रास्ते को पकड़ो। गिरफ्तारियां ऐसी रहीं कि स्टेडियम, मैदान में सब एक जगह इक_े हुए भाजपा नेताओं ने पुलिस को एक सूची थमा दी गई, सबकी गिरफ्तारी मान ली गई, सुर्खियां बन गई। सरकार पर इसका कोई असर हुआ हो या न हो, भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करने का मौका मिला और प्रभारी यही तो चाहती थीं।
धान खरीदी के आंकड़े छिप गये
धान खरीदी में इस बार फिर छत्तीसगढ़ का रिकार्ड टूटने जा रहा है। अभी तक 80 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान खरीदा जा चुका है और इसके आखिरी तारीख 31 जनवरी तक तय लक्ष्य 90 लाख या उससे ऊपर पहुंच जाने की संभावना है। इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद धान खरीदी के डेटा ऑनलाइन दिखाई नहीं दे रहे हैं। हर बार सहकारी बैंक, खाद्य विभाग और मार्कफेड के पास पूरा रिकॉर्ड रोजाना अपडेट होता था कि आज कितना धान खरीदा गया और अभी तक कुल खरीदी कितनी हुई। पोर्टल में इसका अपडेट भी मिल जाया करता था। धान खरीदी की शुरूआत तक यह व्यवस्था इस बार भी मौजूद थी पर मार्कफेड ने अचानक इसे अपडेट करना बंद कर दिया है। सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों? धान खरीदी के आंकड़े तो शानदार है और यह विपक्ष को जवाब देने के लिये भी अनुकूल है। अब जानकारी मिल रही है कि पोर्टल में खरीदी के अलावा धान के परिवहन, उठाव और मिलिंग के आंकड़े भी दर्ज किये जाते हैं। खरीदी के आंकड़े तो अच्छे हैं पर बाकी आंकड़ों के सार्वजनिक होने से विफलता उजागर हो जायेगी।
गुमनाम शिकायतें अब रद्दी की टोकरी में
पुलिस महकमे ने तय किया है कि अब वह गुमनाम शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी। पुलिस मुख्यालय से सभी जिलों में पुलिस अधिकारियों को भेजे गये पत्र में कहा गया है ऐसी शिकायतों को अब रद्दी की टोकरी में डाला जाये। होता यह है कि गुमनाम शिकायतें कई बार दुर्भावनावश कर दी जाती है और आवक-जावक रजिस्टर में दर्ज होने के कारण जांच की औपचारिकता भी पूरी करनी पड़ती है। जांच के लिये शिकायतकर्ता से कुछ साक्ष्य जुटाने की जरूरत पड़ती है तो उनका भी पता नहीं चलता है। ज्यादातर ऐसे मामले कोर्ट तक पहुंच नहीं पाते क्योंकि डायरी पेश करने के लिये आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो पाते।
पुलिस ने यह तो ठीक ही किया लेकिन दूसरी तरफ लोग लिखित शिकायत भी लेकर आते हैं फिर भी दिनों, महीनों उनकी जांच नहीं की जाती। पुलिस विभाग का एक स्थायी आदेश है कि कोई व्यक्ति यदि एफआईआर दर्ज कराने के लिये आता है तो वह जरूर दर्ज किया जाये, पर कई बार होता है कि फरियादी की संतुष्टि के लिये लिखित शिकायत लेकर उसे पावती दे दी जाती है। पीएचक्यू से एक आदेश यह भी निकलना चाहिये कि गुमनाम शिकायतों कार्रवाई न करना हो तो नहीं करें, लेकिन जो नाम, पता, दस्तखत के साथ शिकायत दे गया हो, उसकी जांच तय समय पर जरूर करे।
माशिमं परीक्षा तारीख कब ?
10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षाओं के लिये माध्यमिक शिक्षा मंडल ने आवेदन तो जमा करा लिये हैं पर परीक्षाओं की तारीख अब तक तय नहीं हुई है। लिखित परीक्षा तो दूर, आम तौर पर दिसम्बर जनवरी में हो जाने वाली प्रायोगिक परीक्षाओं की तारीख घोषित नहीं की गई। अभिभावकों के अलावा बच्चों की चिंता बढ़ती जा रही है। इस बार कोरोना संकट देखते हुए परीक्षा केन्द्रों में व्यापक स्तर पर तैयारी करनी है। सभी स्कूलों को सेंटर बनाने की घोषणा पहले से की जा चुकी है ताकि डिस्टेंस के साथ बच्चों को बिठाया जा सके। शिक्षा अधिकारियों का कहना है कि 8-10 माह से स्कूलों के बंद रहने के कारण विभाग के लोगों में खुमारी सी आ गई है। उन्हें रिचार्ज करने में समय लग रहा है। अनेक शिक्षकों ने जहां वैकल्पिक पढ़ाई के लिये जोर-शोर से भागीदारी निभाई तो कई अभी भी स्कूल और ऑफिस आने से बच रहे हैं।
मुन्ना भाईयों को रोकने की कवायद...
एक तरफ छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षा की तैयारी धीमी है तो दूसरी तरफ सीबीएसई ने न केवल तारीख घोषित कर दी बल्कि कुछ नये प्रयोग करने जा रही है। 10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षा 4 मई से शुरू होकर 10 जून तक चलेगी। नतीजे भी 10 जुलाई के पहले घोषित करने का निर्णय लिया जा चुका है। मार्च में प्रैक्टिकल परीक्षायें हो जायेंगीं। यह फिजिकल उपस्थिति के साथ होगी। इन सबसे आगे बढक़र तय किया गया कि परीक्षा हाल में बायोमैट्रिक उपस्थिति दर्ज की जायेगी। हर साल ऐसे बहुत मामले सामने आते थे जिनमें वास्तविक परीक्षार्थी की जगह दूसरे लोग परीक्षा देने चले आते थे। एडमिशन कार्ड की फोटो ही पहचान का जरिया रहा है। इसकी जरूरत तो छत्तीसगढ़ की बोर्ड परीक्षाओं में भी है, क्योंकि यहां तो शिक्षक अपने चहेते विद्यार्थियों की पूरी उत्तर पुस्तिका तैयार कर टॉपर तक बना चुके हैं।
शराब दुकान में महाराष्ट्र की बीयर!
छत्तीसगढ़ में शराबबंदी का वादा पूरा करना राज्य सरकार के लिये गले की फांस बन गया है। दूसरे राज्यों का अध्ययन करके टीम आ गई, पर उसने क्या रिपोर्ट दी, कैसे अमल करना है कुछ तय नहीं हो सका। सरकार को आये दिन इस मुद्दे पर विपक्ष घेरता है। आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने एक बार इशारा किया था कि चुनाव के चार-छह महीने पहले रोक लगा देंगे। बिहार में सुशासन लाने के लिये नीतिश कुमार सरकार ने वादा निभाया, पर चुनावों में उन्हें लाभ तो हुआ नहीं। इस बार तो वोट देते समय लोगों ने भुला ही दिया कि कभी उन्होंने शराब बंद करने का कड़ा फैसला लिया था। अपने छत्तीसगढ़ में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पंजाब से कहीं अधिक महंगी शराब मिलती है और मनपसंद ब्रांड भी नहीं मिलते। इसके चलते तस्करी बढ़ गई। दूसरे राज्यों में शराब बिक्री ठेकेदारों के हवाले है, जिन पर ज्यादा शराब खपाने का दबाव है। इसके चलते छत्तीसगढ़ लाकर माल खपाया जा रहा है। बीते दिनों सीआरपीएफ के एक जवान को स्विट्जरलैंड और पंजाब की शराब के साथ पकड़ा गया। पर राजधानी में तो हद ही हो गई। रेलवे स्टेशन की शराब दुकान में ‘सेल फॉर महाराष्ट्रा स्टेट’ बीयर बेची जा रही थी। आबकारी अधिकारियों को जवाब नहीं सूझ रहा है, कह रहे हैं गलती से आ गई होगी। जब राजधानी में यह हाल है तो दूसरे जिलों और दूर दराज की शराब दुकानों का क्या हाल होगा?
चिडिय़ा चुग गई खेत
छत्तीसगढ़ में धान खरीदी अंतिम चरण पर है। एक नवंबर से खरीदी शुरू हुई थी जो 31 जनवरी तक चलेगी। इस दौरान किसान बोरियों, टोकन और रकबा घटने की समस्या से जूझते रहे पर बिक्री की रफ्तार घटी नहीं। कांग्रेस ने केन्द्र पर असहयोग का आरोप लगाया और विपक्ष ने राज्य सरकार को अव्यवस्था के लिये जिम्मेदार बताया। अब जब खरीदी के सिर्फ 6 कार्यदिवस बचे हैं, भाजपा इस मुद्दे पर जिला मुख्यालयों में धरना-प्रदर्शन और कलेक्टोरेट का घेराव करने जा रही है।
भाजपा के कार्यकर्ता तो अनुशासित हैं, आदेश मिला और तैनात हो जाया करते हैं। पर इस बार संगठन के पदाधिकारियों को उन्हें तैयार करने में काफी मुश्किल हो रही है। 13 जनवरी को भी जब प्रत्येक विधानसभा मुख्यालय में धरना दिया गया तो कई जगहों पर कुर्सियां खाली रहीं। अब 22 जनवरी के आंदोलन में इसकी पुनरावृत्ति न हो इसके लिये व्यक्तिगत सम्पर्क और सोशल मीडिया की मदद ली जा रही है। भीड़ ज्यादा से ज्यादा जुटे इसकी कोशिश हो रही है। भाजपा कार्यालय के बाहर कुछ कार्यकर्ता कहते हुए मिले कि अब जब धान खरीदी बंद होने के करीब आ गई है तो आंदोलन क्यों हो रहा है, पहले करना चाहिये था। दूसरे ने समझाया कि सरकार पर असर पड़े न पड़े, संगठन पर निगरानी रखने वालों पर तो पड़ेगा।
खिलाडिय़ों को कोरोना से नुकसान
हाईस्कूल व हायर सेकेन्डरी बोर्ड के नतीजों में खिलाडिय़ों को बड़ा लाभ होता है। उपलब्धियों के आधार पर उन्हें बोनस अंक दिये जाते हैं। ये बोनस अंक केवल श्रेणी सुधार में मददगार नहीं होते बल्कि आगे चलकर नौकरियों में भी लाभ दिलाते हैं। पर इस बार कोविड-19 महामारी के कारण कक्षायें ऑनलाइन चलीं और खेल स्पर्धायें तो कुछ हुई ही नहीं। ऐसे में आने वाले बोर्ड एग्जाम में खिलाडिय़ों को कोई फायदा नहीं मिलने वाला है। हाल ही में कुछ खिलाडिय़ों ने स्कूल शिक्षा मंत्री को इस बारे में आवेदन भेजा है और मांग की है कि जिस तरह से कई कक्षाओं में जनरल प्रमोशन दिये गये, अनेक विषयों में औसत अंक देकर पिछले सत्र में लोगों को उत्तीर्ण किया गया, उसी तरह से बीते वर्षों के खेल प्रदर्शन के आधार पर उन्हें भी बोनस अंक दिया जाये। देखें, मंत्री क्या फैसला करते हैं।
यातायात माह की रस्म
यह सही है कि अधिकतर दुर्घटनायें लापरवाही के कारण होती है। बाइक पर तीन सवारी बिठाना उस पर तेज वाहन चलाना, हेलमेट नहीं पहनना, शराब पीकर गाड़ी चलाना ज्यादातर दुर्घटनाओं के पीछे हैं। मरवाही के विधायक डॉ. के. के. धु्रव ने अपने डॉक्टरी पेशे का अनुभव बताते हुए कहा कि उनके पास बाइक सवारों के 70-75 फीसदी ऐसे केस होते हैं जिन्हें हेलमेट नहीं पहनने के कारण गंभीर चोटें आईं। हेलमेट पहनकर चले होते तो दुर्घटना कम खतरनाक होती। कई बार इसी के चलते जान भी चली जाती है।
केन्द्र सरकार के सडक़ परिवहन मंत्रालय की ओर से बीते 28 सालों से यातायात सप्ताह मनाया जाता रहा है। इस बार सप्ताह की जगह महीने भर का कार्यक्रम रखा गया है। ज्यादातर कार्यक्रम निबंध, कविता, कहानी, पोस्टर और रैलियों के आयोजन तय किये गये हैं। पूरा अभियान ऐसा लग रहा है मानों यातायत सुरक्षा सिर्फ पुलिस का काम है। जबकि अन्य विभागों के साथ तालमेल के बिना दुर्घटनाओं को रोकने में मदद नहीं मिल सकती। नगर निगम को शहर सीमा की सडक़ें तो पीडब्ल्यूडी को बाहर की सडक़ें ठीक करनी है। गड्ढों का न होना, संकेतकों का न होना, पुल पुलिया में रेलिंग नहीं होना या फिर टूटा-फूटा होना दुर्घटनाएं लेकर आती है।
रायपुर बिलासपुर नेशनल हाइवे में तो सडक़ मार्ग संकेतक 100 की गति से गाड़ी चलाने की छूट देता है पर नई नई बनी इस सडक़ में कई जगह गड्ढे हैं जो 100 की गति पर चलाने में गंभीर हादसे की वजह बन सकती है। परिवहन विभाग बसों, स्कूल बसों और दूसरे भारी वाहनों की फिटनेस टेस्ट करने में पीछे है। कुल मिलाकर जो रस्म अदायगी पहले एक सप्ताह के लिये हुआ करती थी, इस बार एक महीने तक होती रहेगी।
झूठ का असर सच से अधिक
गुजरात में सूरत की पुलिस ने रिलायंस जियो का ट्रेडमार्क लगाकर बनाए गए आटे के पैकेट बेचते लोगों को गिरफ्तार किया है। राधाकृष्ण ट्रेडिंग कंपनी के खिलाफ रिलायंस ने एफआईआर दर्ज कराई थी कि वह रिलायंस जियो के ट्रेडमार्क से आटे की बोरियां बेच रही है। इस खबर को पढक़र याद पड़ता है कि सोशल मीडिया पर पिछले कुछ हफ्तों से किसान आंदोलन पर आने वाली कई पोस्ट में जियो ब्रांड का आटा दिखता था, और रिलायंस के दावे को झूठा बताया जाता था कि वह किसी किसानी कारोबार में नहीं है। अब पता लगा कि बाजार के लोग ब्रांड की जालसाजी करके रिलायंस के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे थे, कंपनी किसी एग्रो-प्रोडक्ट के कारोबार में नहीं है, और बार-बार दावा भी कर रही थी, लेकिन रिलायंस जियो की बोरियां दावे का मुंह चिढ़ा रही थीं। बाजार का हाल ऐसा है कि झूठ का सिक्का सच के नोट को भी खदेडक़र बाहर कर देता है। दस-बारह दिन पहले एक टीवी चैनल पर खबर आई थी- जियो डाटा के बाद जियो का आटा। इसके बाद रिलायंस हरकत में आई और अपने ब्रांड के आटे के धंधे को ढूंढ निकाला। इस बीच पंजाब में जगह-जगह रिलायंस के मोबाइल टॉवरों पर हमले चल ही रहे हैं। झूठ का असर सच से अधिक होता है।
प्रदर्शन कामयाब कैसे हो ?
धान खरीद में अव्यवस्था का आरोप लगाकर भाजपा 22 तारीख को जोरदार प्रदर्शन की तैयारी कर रही है। चूंकि प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी भी प्रदर्शन में शामिल होंगी, ऐसे में कहीं कोई कसर बाकी न रह जाए, इसके लिए पार्टी के प्रमुख नेता व्यक्तिगत रूचि ले रहे हैं। जिला और मोर्चा की बैठक चल रही है, जिसमें ज्यादा से ज्यादा भीड़ लाने पर जोर दिया गया है। सुनते हैं कि युवा मोर्चा की बैठक में तो बड़े नेताओं ने यहां तक कहा कि प्रदर्शन को तभी सफल माना जाएगा, जब बैरीकेट्स टूटे। यानी संकेत साफ है कि प्रदर्शन उग्र होगा। देखना है कि पुलिस संभावित उग्र प्रदर्शन पर कैसे काबू पाती है।
किस-किसने कितना धान बेचा ?
धान खरीद में अव्यवस्था पर किचकिच चल रही है। भाजपा ने अव्यवस्था के चलते धान खरीद बंद का आरोप लगाया, तो कांग्रेस ने उन भाजपा नेताओं की सूची जारी कर दी, जिन्होंने हाल में अपने इलाके के सरकारी केन्द्रों में धान बेचा है। जिसमें रमन सिंह, अभिषेक सिंह, धरमलाल कौशिक, विष्णुदेव साय, संतोष पाण्डेय, रामप्रताप सिंह समेत दर्जनभर से अधिक नेताओं के नाम हैं।
सूची में यह भी बताया गया कि किस-किस नेता को कितना भुगतान हुआ है। मसलन, रमन सिंह को पौने 4 लाख, अभिषेक सिंह को ढाई लाख, धरमलाल कौशिक को सवा दो लाख भुगतान किया गया। राजीव न्याय योजना के तहत भी इन सभी के खाते में राशि गई हैं। इसमें कोई गलत भी नहीं है। लेकिन सूची जारी होने से भाजपा नेता खफा हैं, मगर इस तरह की सूची पहली बार जारी नहीं हुई थी।
पिछली सरकार ने भी एक बार सरकारी धान खरीद को अपनी उपलब्धियों के तौर पर प्रचारित कर विधानसभा में यह बताया गया था कि किस-किस कांग्रेस नेता ने कितनी मात्रा में धान बेचा है, और उन्हें कितनी राशि मिली है। इसमें रविन्द्र चौबे और अन्य नेताओं के नाम थे। अब सरकार बदल गई है, तो कांग्रेस नेता भी धान खरीद को अपने सरकार की उपलब्धियों के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं। और अब जब खरीदी बंद होने का आरोप लग रहा है, तो प्रमाण के तौर पर धान बेचने वाले भाजपा नेताओं की सूची जारी कर दी गई। स्वाभाविक है कि खरीदी बंद न होने का इससे बड़ा प्रमाण और नहीं हो सकता था।
वैक्सीन से बचने के दस बहाने..
कई स्वास्थ्य कर्मचारी, कोरोना वारियर्स टीका लगवाने से भाग रहे हैं। वैक्सीनेशन सेंटर से फोन जाने पर फोन ही नहीं उठाते, जो उठा रहे हैं उनके पास तरह-तरह के बहाने हैं। एक ने कहा- मेरी इम्युनिटी कमजोर है तो दूसरे ने बताया उसे बुखार है। कई तो व्यस्त होने का बहाना कर रहे हैं। एक ने कहा वह खेत में गेहूं की फसल को पानी देने पहुंचा है, जो टीका लगवाने से ज्यादा जरूरी है। एक और स्वास्थ्य कर्मी का जवाब था- जब दस माह की कोरोना वार्ड में ड्यूटी करने के बावजूद संक्रमण से बचा रह गया तो अब क्या करूंगा लगवाकर?
वैक्सीनेशन और कोरोना थमने का सिलसिला साथ-साथ चल रहा है। लोगों में कोरोना से घबराहट पहले की तरह रह नहीं गई। छत्तीसगढ़ में वैक्सीनेशन की दर 55 से 60 प्रतिशत तक ही पहुंच पा रही है। यह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, हेल्थ वर्कर, मितानिन आदि का है जिन पर गांव-कस्बों में लोगों को स्वास्थ्य के लिये सचेत करने की जिम्मेदारी है। जब वे खुद से डर, बच रहे हों तब वे अगले चरण में और लोगों को कैसे टीकाकरण के लिये तैयार कर सकेंगे?
बिलासपुर को मिला पहला केबिनेट मंत्री !
यह पहली मर्तबा हुआ कि सरकार बनने पर छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल में बिलासपुर से कोई भी शामिल नहीं था। जाहिर तौर पर तो यही कहा गया कि पहली बार चुने गये विधायक मंत्री नहीं बनाये जायेंगे लेकिन लोगों ने इस फैसले के पीछे जिले में कांग्रेसियों के बीच चलने वाली उठापठक को भी महसूस किया। जिले से केवल दो ही विधायक कांग्रेस से हैं, उनमें से एक रश्मि सिंह को बीते वर्ष संसदीय सचिव का दर्जा दिया गया। सरकार ने हाईकोर्ट में कबूल किया है, इसलिये किसी संसदीय सचिव को मंत्रियों के समकक्ष कोई सुविधा भी नहीं दी जा रही है।
2013 से 2018 के बीच कांग्रेस के जिन नेताओं ने धरना, प्रदर्शन कर गिरफ्तारियां दीं, टिकट से वंचित रह गये, वे अब तक सत्ता में हिस्सेदारी मांग रहे हैं। पर 70 वर्षीय कांग्रेस नेता बैजनाथ चंद्राकर जिले में सबसे आगे हो चुके हैं। उन्हें बीते साल जुलाई में राज्य सहकारी बैंक (अपेक्स) का अध्यक्ष बनाया गया। नवंबर में उन्हें ठाकुर प्यारेलाल सहकारिता सम्मान मिला और अब सामान्य प्रशासन विभाग ने उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया है। कुछ लोग कह रहे हैं, देर से सही केबिनेट मंत्री के समकक्ष बिलासपुर को एक पद तो मिला। दूसरी तरफ शेष नियुक्ति में अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे नेता चिंतित हैं कि असंतुलन के बहाने अब उनका पत्ता साफ तो नहीं जायेगा?
ऐसी शरारत तो मत करिये..
प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना की हालत बहुत अच्छी नहीं है। इस योजना में केन्द्र सरकार को 60 फीसदी देना होता है और 40 प्रतिशत रकम राज्य सरकार को। कोरोना, किसानों के भुगतान और कुछ दूसरे कारण होंगे राज्य सरकार ने पीएम आवास में अपनी हिस्से की राशि इस वित्तीय वर्ष में कम कर दी। केन्द्र की तरफ से तो 6 लाख लोगों के लिये आवास की मंजूरी दी गई थी पर राज्य सरकार ने इसे घटाकर 1.20 लाख कर दिया। केन्द्र व राज्य सरकार का फंड मिलाकर हितग्राहियों के खाते में, जैसे-जैसे निर्माण होता है, राशि जमा की जाती है। इस बार बहुत से आवास समय पर फंड नहीं मिलने के कारण अधूरे रह गये। कुछ ने कर्ज लेकर काम आगे बढ़ा लिया, पर अगली किश्त का अब तक इंतजार ही कर रहे हैं।
इधर बालोद जिले के डौंडीलोहारा नगर पंचायत में तो गजब ही हो गया। यहां दिल्ली से ग्रामीण विकास मंत्रालय से कुछ लोगों के पास बधाई की चिट्ठी पहुंच गई। बधाई इस बात कि उनका प्रधानमंत्री आवास बन गया। पत्र लिखने वाले अधिकारी ने कुशल मंगल भी पूछ लिया है। मगर हकीकत यह है कि आवास का बनना तो दूर इनके आवास का आवेदन भी मंजूर नहीं हुआ है। इनमें से कुछ लोगों को आवास स्वीकृत होने की जानकारी दी जा रही है, पर किश्त नहीं आई है। अब यह गड़बड़ी कैसे हो गई? मकान कोई बधाई की चिट्ठी लिखने जैसा आसान काम तो है नहीं, पर जो काम आसान है अधिकारियों ने कर दिया, जो कठिन है वह रुका हुआ है।
रेणुका सिंह का प्रमोशन या...
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जल्द ही फेरबदल हो सकता है। प्रेक्षकों का अंदाजा है कि 26 जनवरी के बाद मंत्रिमंडल में नए चेहरों को जगह मिल सकती है। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि छत्तीसगढ़ से रेणुका सिंह की जगह किसी दूसरे सांसद को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। कुछ के तर्क हैं कि रेणुका का परफार्मेंस ठीक नहीं रहा है। इसके चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। मगर रेणुका सिंह के समर्थक निश्चिंत हैं। उनका मानना है कि रेणुका सिंह को मंत्रिमंडल से बाहर निकालना तो दूर, उनका कद बढ़ाया जा सकता है।
रेणुका सिंह के समर्थकों के आत्मविश्वास की वजह प्रधानमंत्री का शुभकामना संदेश है, जो कि रेणुका सिंह के जन्मदिन पर 4 जनवरी को भेजा गया था । शुभकामना संदेश में प्रधानमंत्री ने लिखा है कि मंत्रिमंडल के मेरी अहम सहयोगी के रूप में आप अपने अथक परिश्रम, असीमित ऊर्जा और अटल संकल्पशक्ति से न्यू इंडिया के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आगे उन्होंने यह भी लिखा है कि मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि देश की समृद्धि के लिए आप जिस समर्पित भाव से अपनी सेवाएं दे रही हैं, वह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है।
स्वाभाविक है कि इस तरह की भाषाशैली किसी हटाए जाने की संभावना वाले मंत्री के लिए नहीं लिखी जाती। प्रधानमंत्री के शुभकामना संदेश की भाषा शैली से रेणुका समर्थकों का आत्मविश्वास बढ़ा है। मगर विरोधी इससे सहमत नहीं है। उन्होंने पत्र की बारीकियों की तरफ इशारा किया, जिसमें एक-दो मात्रा संबंधी त्रुटियां थी। चाहे कुछ भी हो, प्रधानमंत्री के शुभकामना संदेश से रेणुका समर्थकों में खुशी की लहर है।
पार्षद दल नेता नहीं चुन पा रही
भाजपा रायपुर नगर निगम पार्षद दल का नेता नहीं चुन पा रही है। पहले सूर्यकांत राठौर का नाम फाइनल कर दिया गया था, लेकिन बाद में कुछ ने पेंच अड़ा दिया। इसके बाद घोषणा अटक गई। यह तर्क दिया जा रहा है कि मीनल चौबे के पक्ष में ज्यादा पार्षद हैं। ऐसे में उन्हें ही नेता प्रतिपक्ष बनाया जाना चाहिए। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत खेमे के बीच चल रही खींचतान के चलते भाजपा सालभर बाद भी पार्षद दल का नेता तय नहीं कर पाई है।
पिछले दिनों मीनल चौबे की अगुवाई में महिला पार्षदों और कुछ नेताओं ने प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से मुलाकात की थी, और उन्हें अब तक पार्षद दल का नेता नहीं तय होने की जानकारी दी थी। नेता ही तय नहीं है, तो निगम में भाजपा विपक्ष की भूमिका ठीक से निभा नहीं पा रही है। पुरंदेश्वरी ने पार्षदों को भरोसा दिलाया है। संकेत है कि अगले कुछ दिनों में पार्षदों से रायशुमारी कर नेता प्रतिपक्ष का चयन किया जाएगा।
पुलिस को उसी के मंच पर...
नेताओं या जनप्रतिनिधियों को अपने कार्यक्रमों में बुलाने से पुलिस को तौबा कर लेनी चाहिए। अब बालोद का मामला देखिए। यातायात सुरक्षा मास के शुभारंभ अवसर पर पहुंचे पूर्व विधायक भैयाराम सिन्हा ने मंच से आरोप लगाया कि यातायात पुलिस से आम लोग बड़े पैमाने पर परेशान हैं। ये अवैध वसूली में लगे हुए हैं। सिन्हाजी अपने समय में बड़े तेज विधायक थे। उनके खिलाफ पुलिस अधिकारी का कॉलर पकडऩे का केस भी चल चुका है। पुलिस को उगाही के नाम पर उनके ही मंच से सुना देने का ये काम दूसरी बार हुआ है। बिलासपुर में एक थाना भवन के उद्घाटन के समय विधायक शैलेष पांडे ने भी पुलिस पर ऐसा ही आरोप लगाया था। उन्होंने तो थानों में रेट लिस्ट लगाने का सुझाव भी दिया। कांग्रेस विधायक रश्मि सिंह ने भी पुलिस पर उगाही के आरोप लगाए थे। गृहमंत्री ने क्या कार्रवाई की यह किसी की जानकारी में नहीं है। मौजूदा विधायक जब कार्रवाई के इंतजार में हों तो सिन्हा को तो कोई उम्मीद पालने की जरूरत नहीं होगी। पुलिस को भले ही किसी एक्शन की चिंता न हो पर मंच से ऐसी बातें की जाए तो बेचैनी महसूस करते होंगे। बिलासपुर में पुलिस ने ज्यादा समझ दिखाई। किसी नेता को बुलाने की गलती नहीं की। उम्मीद है बाकी जिलों की पुलिस तक भी ये खबर पहुंच जाएगी।
धान खरीदी लक्ष्य पार करेगी?
धान खरीदी को लेकर आ रहे लगातार विपरीत समाचारों के बीच एक जानकारी ये भी है कि इस बार भी लक्ष्य के मुताबिक धान किसानों से ले लिया जाएगा, इसकी पूरी संभावना है। सरकार ने पहले 85 लाख मीट्रिक टन लक्ष्य रखा था, पर बाद में रकबा की रिपोर्ट मिलने पर इसे बढ़ाकर 90 लाख मीट्रिक टन किया गया। अब जब खरीदी अपने आखिरी दौर में आ चुकी है अब तक लगभग 72 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा जा चुका है। बस वे किसान बचे दिनों में अपनी बारी के लिए आपाधापी में फंस सकते हैं। अंतिम दिनों में दूसरे राज्यों का धान खपाने की कोशिश बढ़ जाती है, साथ ही आढ़तिए भी सोसाइटी में सेटिंग कर बहती गंगा में हाथ धोना चाहते हैं।
एक रिटायर्ड आला अफसर, और खानदानी किसान का कहना है कि इस बार माहो की मार बहुत रही, और फसल बहुत कम हुई है। लेकिन सरकारी आंकड़ों में फसल इसलिए ज्यादा दिखाई जाती है कि चारों तरफ के राज्यों से यहां धान लाया जाता है, और इस तस्करी से सबको कुछ न कुछ मिल जाता है। इसलिए सरकार कम फसल की बात मंजूर नहीं करती है, और असली फसल से अधिक की खरीदी हो जाती है। कई बरस पहले जब छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार को दिल्ली में धान उत्पादन में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी का केन्द्र सरकार का पुरस्कार मिला था, और दिल्ली के मंच पर उस वक्त के केन्द्रीय राज्यमंत्री चरणदास महंत भी थे, तब भी यह बात दबी जुबान में हो रही थी कि पड़ोसी राज्यों के धान की तस्करी की मेहरबानी से छत्तीसगढ़ को यह पुरस्कार मिल रहा है।
कुछ करने की हिम्मत क्यों नहीं?
बिलासपुर विधायक शैलेष पाण्डेय से बदतमीजी का मामला पीसीसी के लिए गले की फांस बन गया है। पीसीसी ने जांच के लिए कमेटी बिठाई थी। कमेटी ने विधायक के साथ बदतमीजी की पुष्टि की है, और इसके लिए ब्लॉक अध्यक्ष तैय्यब हुसैन को जिम्मेदार ठहराया है। कार्रवाई का आधार घटना के बाद ब्लॉक अध्यक्ष द्वारा मीडिया पर दिए गए बयान को बनाया गया। जिनमें से एक वाक्य को खास तौर पर आपत्तिजनक माना गया जिसमें उन्होंने कहा कि- हमारे विधायक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से ज्यादा ड्रामेबाज हैं। रिपोर्ट तो पीसीसी चीफ मोहन मरकाम को दे दी गई है, लेकिन रिपोर्ट पर कार्रवाई अपेक्षित है। कहा जा रहा था कि वर्धा से लौटने के बाद पीसीसी चीफ कार्रवाई करेंगे, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।
पीसीसी चीफ ने सिर्फ इतना ही कहा है कि रिपोर्ट का अध्ययन किया जा रहा है। बहरहाल, रिपोर्ट की भनक मिलते ही विधायक विरोधी खेमा भी सक्रिय हो गया है और कोशिश कर रहा है कि ब्लॉक अध्यक्ष को कार्रवाई से बचा लिया जाये। विरोधी खेमे की तरफ से यह आरोप भी लगाया गया कि विवाद को विधायक कम्यूनल कलर देने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ यह भी हुआ है कि ब्लॉक अध्यक्ष के समाज के कुछ लोगों ने एक बैठक कर उन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने की मांग की है। विरोधियों के दबाव के चलते ब्लॉक अध्यक्ष पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। मगर रिपोर्ट तो आ गई है, और इस पर कुछ न कुछ कार्रवाई होना जरूरी है।
ऐसे में अब बीच का रास्ता निकाला जा रहा है, कि रिपोर्ट पर कार्रवाई टालने के लिए हाईकमान से मार्गदर्शन लेने का फैसला लिया जा सकता है। ये अलग बात है कि अंतागढ़ कांड उजागर होने के बाद पीसीसी ने उस समय मरवाही के विधायक अमित जोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, और पूर्व सीएम अजीत जोगी के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई कर दी थी। तब हाईकमान से पूछा तक नहीं गया था। अब विधायक के साथ बदतमीजी के मामले को कार्रवाई में आनाकानी पर सवाल तो खड़े हो रहे हैं।
समन्वयक उम्मीद से
विधानसभा चुनाव से पहले सभी विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने समन्वयक बनाए थे, और उन्हें चुनाव प्रचार खत्म होने तक इलाके में डटे रहने के लिए निर्देशित किया गया था। यह भी भरोसा दिलाया गया था कि पार्टी की सरकार बनने पर सबको कुछ न कुछ दिया जाएगा। विधानसभा समन्वयकों ने प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रचार में पूरा योगदान दिया। अब सरकार बन गई है, तो वे उम्मीद से हैं।
निगम-मंडलों की एक सूची जारी हो गई है, लेकिन दो-तीन को ही पद मिल पाया है। दूसरी सूची का इंतजार किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि दूसरी सूची के संभावित नामों पर चर्चा हो चुकी है। हल्ला है कि दूसरी सूची में भी ज्यादातर के नाम नहीं हैं। ये अलग बात है कि सूची का ही कोई अता-पता नहीं दिख रहा है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि शायद 26 जनवरी के बाद सूची को लेकर हलचल हो। यदि ऐसा नहीं होता है, तो फिर बजट सत्र तक के लिए मामला ठंडे बस्ते में जा सकता है।
चाय के कप में बीयर कभी पी है?
जो लोग बीयर पीते हैं वे जानते हैं कि इसके लिए सामान्य से बड़े ग्लास इस्तेमाल होते हैं, और एक बड़ी बोतल अधिक से अधिक दो गिलासों में खाली हो जाती है। लेकिन किसी ने चीनी मिट्टी के चाय पीने के लिए बनाए गए कप में बीयर नहीं देखी होगी। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वीआईपी कही जाने वाली एयरपोर्ट रोड पर बिना दारू-लाइसेंस के एक रेस्त्रां में खुलकर बीयर पिलाई जा रही है, और उससे भरा हुआ गिलास आंखों को न खटके इसलिए वेटर बोतल के साथ चाय वाले कप लेकर आता है, और टेबिल पर कप में बीयर भरकर सर्व कर जाता है। अब इस गैरकानूनी ठिकाने के आसपास जो लोग बार की मोटी लाइसेंस फीस देकर कारोबार कर रहे हैं, वे परेशान हैं, और इस अवैध बीयर बार की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर भेजकर लोगों से मदद की अपील भी कर रहे हैं।
ऑनलाइन ठगी का ऐसा मकडज़ाल
ऑनलाइन ठगी का अपराध रोजाना दर्ज हो रहा है। गूगल सर्च में भी फर्जी कस्टमर केयर और हेल्पलाइन नंबर डाल दिये गये हैं। पुलिस के अलावा बैंकों की तरफ से भी एसएमएस भेजकर सचेत किया जाता है कि फोन पर किसी को अपना कार्ड नंबर न बतायें, पासवर्ड, ओटीपी न बतायें, कोई ऐप डाउनलोड करने के लिये लिंक भेजें तो न खोलें। अधिकारिक वेबसाइट से ही हेल्पलाइन नंबर लें। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया उन अग्रणी बैंकों में है, जो इस तरह की चेतावनी अक्सर अपने ग्राहकों को देता रहता है। पर ठगों ने राजधानी रायपुर के इसी बैंक के एक रिटायर्ड अधिकारी को अपना शिकार बनाया। उन्होंने प्रोविडेंट फंड का बकाया 13 लाख रुपये का भुगतान करने के नाम पर करीब 2.60 लाख रुपये अपने खातों में जमा करा लिया। यह हो नहीं सकता कि मुख्य प्रबंधक पद से सेवानिवृत होने वाले बैंक अधिकारी ने बातचीत और रुपये ट्रांसफर करते समय सावधानी नहीं रखी होगी, इसके बावजू ऐसा मामला सामने आने से पता चलता है कि ठग अच्छे-खासे समझदार लोगों पर भी अपना विश्वास जमाने में सिर्फ फोन के जरिये सफल हो रहे हैं। फिलहाल तो, अकेले पुलिस द्वारा साइबर क्राइम के खिलाफ चलाई जा रही जागरूकता काफी नहीं लगती।
इसी को कहते हैं सरकारी ढर्रा
मुद्रलेखन एवं शीघ्र लेखन बोर्ड हर साल दो बार टाइपिस्ट की परीक्षायें आयोजित कराता है। इसे पास करने के बाद बेरोजगार युवा के पास एक और योग्यता प्रमाण-पत्र हो जाता है। उम्मीद बढ़ जाती है कि जब नौकरी का आवेदन भरा जायेगा तो यह काम आयेगा। सहायक ग्रेड-2 और समकक्ष लिपिक की भर्ती के विज्ञापनों में अक्सर लिखा होता है टाइपिंग जानना अनिवार्य। यदि कोई नहीं जानता तो उसे नौकरी लगने के सालभर के भीतर इसे पास करना भी होता है। हाल में यह परीक्षा प्रदेश के कई जिलों में हुईं। हालत यह थी कि टाइपराइटरों की कमी पड़ गई। परीक्षार्थियों को खुद टाइपराइटर का इंतजाम करना पड़ा, जिसके लिये उन्हें 500 रुपये तक खर्च करने पड़े। बेरोजगारों के सामने दोहरी मुसीबत है, टाइपराइटर पर टाइपिंग सीखना इसलिये जरूरी है क्योंकि नौकरी के लिये आवेदन करते समय अनिवार्य है। कम्प्यूटर पर भी टाइपिंग सीख लेना इसलिये जरूरी है क्योंकि दफ्तरों में इनसे ही काम हो रहा है। जब अफसर यह मानने लगेंगे कि टाइपराइटर का जमाना लद गया और कम्प्यूटर पर ही परीक्षा ली जायेगी, तब शायद यह स्थिति बदले
मंदिर के लिए बैठे एक साथ
भाजपा के छोटे-बड़े नेता राम मंदिर के लिए चंदा एकत्र करने में जुट गए हैं। सुनते हैं कि पूर्व सीएम रमन सिंह ने तो दो दिन पहले अपने घर पर बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल और राजेश मूणत के साथ बैठक भी की थी। चर्चा है कि बैठक में बड़े कारोबारियों की सूची तैयार की गई, और उनसे संपर्क कर राम मंदिर के लिए सहयोग राशि लेने का फैसला लिया गया। प्रदेश के बड़े कारोबारी पिछले 15 सालों में इन्हीं चारों के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में रहे हैं, और ये नेता संकट के समय में उनका सहयोग करते रहे हैं। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इन दिग्गजों के आगे आने पर कारोबारी राम मंदिर के लिए सहयोग करने में पीछे नहीं रहेंगे।
आरएसएस भी चंदा जुटाने के लिए अभियान चला रही है। पिछले दिनों जागृति मंडल में व्यापारी संगठनों को आमंत्रित किया गया था। इसमें आरएसएस पदाधिकारियों ने व्यापारियों से राम मंदिर के लिए सहयोग राशि देने की अपील की। एक व्यापारी ने पूछ लिया कि अगर 21 लाख रूपए चंदा देते हैं, तो मंदिर प्रागण में उनका नाम लिखा जाएगा? या फिर राम मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं, तो उनके ठहरने का मुफ्त में इंतजाम होगा? इस पर आरएसएस पदाधिकारी ने जवाब दिया कि ऐसी कोई भी उम्मीद पालना गलत होगा। अभी सिर्फ मंदिर निर्माण के लिए चंदा एकत्र करना है। दानदाताओं को वहां कोई विशेष सुविधाएं मिलेंगी या नहीं, यह अभी साफ नहीं है।
नेता के हाऊसिंग प्रोजेक्ट की तरफ
रायपुर पश्चिम के इलाके की एक हाउसिंग प्रोजेक्ट की जमकर चर्चा है। यह प्रोजेक्ट कांग्रेस के एक नेता की है, और इसमें धनाढ्य लोग काफी रूचि ले रहे हैं। हल्ला तो यह भी है कि नेता के प्रोजेक्ट ने भाजपा के पूर्व मंत्री की अप्रत्यक्ष भागीदारी वाली विधानसभा मार्ग स्थित हाउसिंग कॉलोनी को पीछे छोड़ दिया है, जिसे मध्य भारत की सबसे लक्जरी कॉलोनी बताया जा रहा था।
सुनते हैं कि नेता के प्रोजेक्ट में समता कॉलोनी और अन्य क्षेत्रों के लोगों ने काफी निवेश किया है। समता कॉलोनी में पेयजल और अन्य कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही है। इसके चलते वहां के धनाढ्य लोग कांग्रेस नेता के हाऊसिंग प्रोजेक्ट की तरफ रूख कर रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि इस हाऊसिंग प्रोजेक्ट की कुछ जमीन को लेकर समस्याएं भी हैं। मगर निवेशकर्ता निश्चिंत हैं। वजह यह है कि नेता लालबत्ती धारी भी हैं। ऐसे में थोड़ी बहुत कुछ समस्याएं होंगी भी, तो उसे निपटाने में नेता सक्षम हैं। स्वाभाविक है कि पार्टी की सरकार में हो, तो कारोबारी अड़चनें आसानी दूर हो जाती हैं ।
पहली बार हो रहा है कि
भाजपा में गुटबाजी रोकने के लिए पहल हो रही है। इस काम में खुद महामंत्री (संगठन) पवन साय लगे हैं। पवन साय बेहद शालीन और लो-प्रोफाइल में रहने वाले नेता हैं। पिछले दिनों दुर्ग के तीनों जिलाध्यक्ष अपनी कार्यकारिणी की मंजूरी के लिए कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे, तो पवन साय ने यह कहकर रोक दिया, कि जिले के सभी प्रमुख नेताओं से चर्चा करने के बाद कार्यकारिणी की घोषणा करना ठीक रहेगा।
यह बात किसी से छिपी नहीं है, कि दुर्ग भाजपा में काफी विवाद है, और तीनों जिलाध्यक्ष सरोज पाण्डेय के खेमे के माने जाते हैं। विवाद के कारण तो कुछ मंडलों के भी चुनाव नहीं हो पाए थे। सुनते हैं कि पवन साय खुद सांसद विजय बघेल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय और विद्यारतन भसीन व अन्य प्रमुख नेताओं के साथ कार्यकारिणी को लेकर बैठक करेंगे। ये नेता सरोज पाण्डेय के विरोधी माने जाते हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि विशेषकर दुर्ग में अब असंतुष्टों की भी बात सुनी जाएगी। इससे पहले तक तो सरोज की राय पर ही मुहर लगती रही है।
मुफ्त की जगह वैक्सीन की कीमत ली जाती तो?
कोविड टीकाकरण अभियान के लिये पूरे प्रदेश में शनिवार की सुबह उत्साह का वातावरण था। पर शाम होते-होते जब आंकड़े आये तो बहुत भरोसा जगाने वाला नहीं रहा। प्रदेश में केवल 61 प्रतिशत रजिस्टर्ड लोगों ने टीका लगवाया। बहुत से लोगों ने सेंटर पहुंचने के बाद बीमारी की बात बताई, जिसके चलते उनका इलाज शुरू किया गया, ग्लूकोज़ बोतलें भी चढ़ानी पड़ी। ये सब टीके से बच गये। पर कई लोग तो पहुंचे ही नहीं। बिना कोई कारण बताये। डॉक्टर्स हैरान हैं कि आंकड़ा इतना कम क्यों रहा। यह तो फ्रंटलाइन पर कोरोना मरीजों के बीच जोखिम भरी ड्यूटी निभाने वालों की सूची थी, जिन्हें कोरोना से बचाव के लिये ज्यादा उत्साहित होकर सामने आना था।
एक वैक्सीनेशन सेंटर में डॉक्टर बात कर रहे थे। उनका निष्कर्ष यह था कि एक तो पहले ही सरकार ने इसे लोगों की मर्जी पर छोड़ दिया है। लोग लापरवाह हो गये। सरकार और विशेषज्ञों के तमाम रिपोर्ट्स के बावजूद वे संतुष्ट होना चाहते हैं कि टीके का कोई रियेक्शन तो नहीं होता। दूसरी बात वैक्सीन मुफ्त लगाई जा रही है। मुफ्त की जगह टोकन के तौर पर ही इसकी कोई कीमत तय कर दी जाती तो शायद पहले टीका लगवाने की होड़ मच जाती।
40 फीसदी बचे वैक्सीन का सही इस्तेमाल
कोविड टीकाकरण अभियान के पहले दिन फ्रंटलाइन वर्कर्स को पहले चुना गया तो लोग सवाल कर रहे थे कि देश प्रदेश के प्रमुख लोगों को, अफसरों और नेताओं को पहले टीका लगवाकर क्यों उदाहरण पेश नहीं करना चाहिये। यह टीके के प्रति लोगों में भरोसा बढ़ायेगा। सरकार ने कहा कि नहीं- पहले कोविड अस्पतालों में काम करने वालों को टीका लगवायें। अगर नेताओं ने दिलचस्पी दिखाई तो कार्यकर्ता भी लाइन लगा लेंगे और जिन्हें ज्यादा जरूरी है वे वंचित रह जायेंगे। तर्क मान लिया गया और ऐसा ही किया गया। हालांकि रायपुर, बिलासपुर में कई जाने-माने डॉक्टरों ने आगे आकर खुद टीका स्वास्थ्य कर्मचारियों का हौसला बढ़ाने के लिये लगवाया। इसके बावजूद रिपोर्ट आई है कि छत्तीसगढ़ ही नहीं देश में भी आंकड़े 60 प्रतिशत के आसपास ही रहे और 40 प्रतिशत वैक्सीन बच गये। यानि वैक्सीन की कमी होने की चिंता फिलहाल नहीं है। इसलिये अब जरूर कुछ नेताओं, बड़े अफसरों को बचा हुआ टीका लगवा लेना चाहिये। सोमवार से अभियान फिर शुरू हो रहा है। ऐसा करेंगे तो टीकाकरण की रफ्तार बढ़ेगी।
चालू करते ही रिपब्लिक दर्शन
एक्टिविस्ट व सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण द्वारा रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी और बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के बीच कथित चैट को सोशल मीडिया पर जारी करने के बाद से ही सनसनी फैली हुई है। इस चैट को भरोसेमंद मानने वाले हैरान है कि पीएमओ और मंत्रिपरिषद् में अर्णब की कितनी पकड़ है, देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों पर भी वे कहां तक घुसे हुए हैं। सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और इंडिया टीवी के रजत शर्मा के बारे में क्या राय है।
छत्तीसगढ़ में भी अर्णब गोस्वामी के खिलाफ कांग्रेस नेताओं ने सोनिया, राहुल, नेहरू पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी। फिलहाल आगे की कार्रवाई पर अदालती रोक लगी हुई है।
जो लोग रिपब्लिक टीवी को नापसंद करते हैं उनमें से कई घरों में एक केबल नेटवर्क ऐसा भी लगा हुआ है जिसमें टीवी ऑन करते ही सबसे पहले रिपब्लिक ही दिखाई देता है। आप चैनल बदलना है तो बदलते रहिये, पसंद न हो तब भी सबसे पहले कुछ देर तक रिपब्लिक का दर्शन करना ही होगा। ऐसा भी नहीं है कि इसलिये यह चैनल दिखाई देता है क्योंकि वह क्रम में पहले है। एक उपभोक्ता ने इसकी शिकायत अपने केबल ऑपरेटर से की, तो बताया कि पूरे छत्तीसगढ़ में हमारे नेटवर्क में ऐसी सेटिंग है। वह नहीं बदल सकता। यह भी बताया यह जा रहा है कि यह नेटवर्क फ्रैंचाइजी जिन लोगों के हाथ में है वे प्रदेश के कांग्रेस नेताओं के ही बड़े समर्थक माने जाते हैं।
राजभवन घेराव-एक
कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस के राजभवन घेराव-प्रदर्शन ने प्रेक्षकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। प्रदर्शन के लिए समय कम था। क्योंकि एक दिन पहले ही पीसीसी वर्धा से लौटी थी। मगर भीड़ के मामले में यह प्रदर्शन कांग्रेस के अब तक के सभी प्रदर्शनों से बेहतर और व्यवस्थित नजर आया। वह भी तब जब सीएम और समूचा मंत्रिमंडल गैर हाजिर था।
मोहन मरकाम की अगुवाई में हुए इस प्रदर्शन में उनके दोनों महामंत्री चंद्रशेखर शुक्ला और रवि घोष का प्रबंधन था। पहले भी किसान आंदोलन-प्रदर्शन हुए हैं, लेकिन राजधानी की सडक़ों में ट्रैक्टरों के साथ किसान-कार्यकर्ताओं की भीड़ पहली बार दिखी। मरकाम खुद राजीव भवन से ट्रैक्टर चलाते हुए राजभवन के लिए निकले।
वे काफी तनाव और गुस्से में थे। वजह यह थी कि टै्रक्टर के सामने भीड़ जमा हो जा रही थी, और एक्सीडेंट का खतरा भी था। मगर पीछे से किसी चतुर नेता ने उन्हें समझाइश दी कि वे टीवी कैमरों की तरफ फोकस करें, और भीड़ को अनदेखा कर एक्सीलेटर दबा दें। फिर क्या था, मरकाम ने टीवी कैमरों की तरफ देखते हुए हाथ हिलाते गाड़ी तेजी से आगे बढ़ा दी। भीड़ खुद-ब-खुद सामने से हट गई। इसके बाद मरकाम का काफिला बिना किसी बाधा के राजभवन के समीप पहुंच गया।
गाड़ी में उतरते समय पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा का पैर फिसल गया, और उन्हें काफी खरोंच आई। मगर वे चोट की परवाह किए बिना प्रदर्शन में शामिल हुए। राजभवन घेराव-कार्यक्रम में दो दर्जन से अधिक विधायक और पदाधिकारियों ने शिरकत की।
राजभवन घेराव-दो
राजभवन घेराव-प्रदर्शन में रायपुर के छोटे-बड़े नेताओं ने अपनी उपस्थिति दिखाई। रायपुर की प्रभारी प्रतिमा चंद्राकर काफी नाराज रहीं। चर्चा है कि शहर अध्यक्ष गिरीश दुबे खुद तो राजभवन के अंदर चले गए, लेकिन प्रतिमा का नाम नहीं लिखवाया था। प्रतिमा बाहर ही रह गई थी, बाद में मरकाम को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने प्रतिमा और कुछ प्रमुख नेता, जो बाहर रह गए थे उन्हें अंदर बुलवाया। प्रतिमा ने गिरीश को देखते ही जमकर फटकार भी लगाई। एजाज ढेबर और प्रमोद दुबे भी अपने साथियों के साथ प्रदर्शन में शामिल हुए, लेकिन नए नवेले ब्लॉक अध्यक्षों ने घेराव-प्रदर्शन को बेहतर बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया। उन्हें अपनी योग्यता साबित करनी थी, और उन्हें मौका भी मिल गया।
मंत्री क्यों नहीं पहुंचे बेरिकेड्स तोडऩे
केन्द्र के कृषि कानून, डीजल-पेट्रोल दाम और दूसरी चीजों की महंगाई के विरोध में राजभवन का घेराव हुआ। दूरदराज से पहुंचे कुछ कांग्रेस कार्यकर्ता निराश हो गये। वे तो इस उम्मीद से आये कि घेराव के कार्यक्रम में सीएम और सारे मंत्री भी शामिल होने वाले हैं लेकिन ऐन मौके पर वे पहुंचे ही नहीं। उनके सामने वे अपनी निष्ठा, भक्ति, भीड़ दिखा पाते। राजीव भवन के कार्यक्रम में तो खूब माहौल बना। राजभवन के पहले पुलिस से झूमा-झटकी कर पुलिस घेरा भी तोड़ डाला। कार्यकर्ता जब इतने जोश में थे तो उन्हें साथ देने के लिये मंत्रियों को आना तो चाहिये था?
प्रदर्शन में शामिल कुछ दूसरे समझदार कार्यकर्ताओं ने उन्हें समझाया। देखो, सत्ता से बाहर रहने के दौरान प्रदर्शन, आंदोलन करना आसान होता। सरकार में रहते हुए ला एंड आर्डर बनाये रखने की जिम्मेदारी भी मंत्रिमंडल की है। क्या मंत्रियों की मौजूदगी में हम लोग इतना शोर-शराबा कर पाते। उन पर लॉ एंड आर्डर हाथ में लेने का आरोप लगता। पुलिस किस पर लाठी चलाती, उन पर जिनकी सुरक्षा में वह तैनात है? विपक्ष को सरकार को घेरने का एक मौका और मिल जाता।
केबीसी में छत्तीसगढ़ की धमक
अमिताभ बच्चन के टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की सबसे हटकर लोकप्रियता है। मनोरंजन के साथ-साथ इसमें सामान्य ज्ञान की परख होती है। साधारण सी पृष्ठभूमि के लोग भी अपनी तैयारी की बदौलत यहां पहुंच जाते हैं। इस बार इस प्रतियोगिता में छत्तीसगढ़ की प्रतिभाओं को उभरने का खूब मौका मिल रहा है। अक्टूबर माह में पद्मश्री फूलबासन देवी को कर्मवीर एपिसोड में बुलाया गया था जिसमें उनकी सहयोगी अभिनेत्री रेणुका शहाणे थीं। फूलबासन ने अपने जवाब से अमिताभ को काफी प्रभावित किया। रेणुका ने फूलबासन की टीम से जुडऩे की इच्छा जताई। फूलबासन 50 लाख जीतकर आईं। इसके बाद अगले माह नवंबर के आखिरी हफ्ते में जगदलपुर की एक हाईस्कूल की व्याख्याता अनूपा दास को मौका मिला। उन्होंने तो एक करोड़ रुपये जीत लिये। जगदलपुर में उनका जबरदस्त स्वागत हुआ, जगह-जगह पोस्टर भी लगे। फिर दिसम्बर महीने में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक तदर्थ भृत्य मंतोष कश्यप को मौका मिला। उसने भी तीन लाख 20 हजार रुपये जीत लिये। अब जनवरी माह में भी इस सिलसिले को आगे बढ़ाया है बिलासपुर की ही अफसीन नाज़ ने। उन्होंने 50 लाख रुपये के जवाब पर हॉट सीट छोड़ा, 25 लाख रुपये जीतकर आईं। सिलसिला जारी रहे...।
एक क्यों, दो माह का राशन ले जाओ..
इस बार कंट्रोल का चावल उठाने वालों को सरकार की तरफ से एक ऑफर दिया गया है। न तो त्यौहार है न लॉकडाउन का संकट लेकिन उपभोक्ता चाहें तो जनवरी के साथ-साथ फरवरी का भी चावल उठा लें। शासन के सर्कुलर में इस बात की जानकारी नहीं दी गई कि आखिर यह मेहरबानी क्यों की जा रही है। ज्यादा जोर लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ी, जब खबरों को जोडक़र देखा गया। धान खरीदी में बारदानों का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। कई जगह किसान ब्लैक में इंतजाम कर रहे हैं। मार्कफेड और फूड वालों पर बड़ा दबाव है कि वे समितियों को बोरियां उपलब्ध करायें। राशन दुकान संचालकों से गिन-गिनकर बोरियां वापस मांगी जा रही है। संचालकों ने पहले तो बोरियां संभाली नहीं थीं लेकिन हिसाब पूरा करने के लिये वे भी बाजार से खरीदकर लौटा रहे हैं। खाद्य विभाग की मेहरबानी इसी से जुड़ी हुई है। यदि उपभोक्ता एक साथ दो माह का राशन ले जायें तो दुकानों में दुगनी बोरियां खाली हो जायेंगी। ये बोरियां समितियों में भेज दी जायेंगी। धान खरीदी 31 जनवरी तक होनी है। अभी बड़ी संख्या में बोरियों का इंतजाम करना है। हालत यह है कि राशन लेने आ रहे लोगों से दुकानदार गुजारिश कर रहे हैं, भाई, दो माह का राशन उठा लो।
पंडे होते तो ऐसी नौबत आती क्या?
भाजपा शासनकाल में शराब दुकानों की नीलामी बंद कर सरकारी शराब दुकानें खोल दी गई। आबकारी विभाग को जो कमाई ठेकेदारों के रास्ते से मिला करती थी अब उन्हें खुद खोजना पड़ रहा है। इसीलिये धीरे-धीरे सभी अंग्रेजी शराब दुकानों के सामने चखना दुकानें पहले की तरह खुल गई हैं। पर इनमें तो छोटा हिसाब-किताब होता है। कोचिये भी इन्हें संभालने पड़ रहे हैं। थोड़े अधिक दाम पर कई ठेलों और झोपडिय़ों में यह उपलब्ध हो जाता है। अवैध शराब को खरीदो और निकलो, वरना पुलिस को भी हिस्सा देना पड़ेगा।
एक समस्या और आ गई है। शराब बिक्री की रकम आबकारी अफसरों के पास रोजाना जमा हो जाना है। दुकानों में एडहॉक पर लाये गये सुपरवाइजर और सैल्समैन के हाथों में लाखों रुपयों का हिसाब होता है, जबकि इनकी तनख्वाह मामूली होती है। इसीलिये अब तक अनेक मामले आ चुके हैं, जिनमें वे बड़ी रकम लेकर फरार हो जाते हैं। रायपुर के राजेन्द्र नगर इलाके की शराब दुकान का सुपरवाइजर भी लापता है। उसके पास करीब 20 लाख रुपये हैं। सुपरवाइजर नहीं मिला तो अधिकारी ने वहां के दो सैल्समैन की ही धुनाई कर दी। इन अस्थायी कर्मचारियों ने हिम्मत जुटाकर अफसर के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी। अपनी नौकरी को ही दांव पर लगा दिया। मामला बिगड़ते देख अफसर ने दोनों को समझाया और शिकायत वापस कराई। पर, गायब सुपरवाइजर कहां है, इसकी खबर अब भी नहीं है। आबकारी और सीएसएमसीएल वालों को शराब बिक्री के लिये ढेर सारे इंतजाम करके दिये गये हैं पर पंडे नहीं दिये गये। अफसरों को खुद ही निपटना पड़ रहा है। अब इनकी व्यवस्था भी हो जाये तो शराब बिक्री की रकम डूबने से बच सकती है।
बर्ड फ्लू, एके नम्बर सब्बो बर...
पड़ोसी राज्यों में बर्ड फ्लू के मामले आने के बावजूद छत्तीसगढ़ की अब तक निगेटिव रिपोर्ट आने के चलते लोग राहत की सांस ले रहे थे लेकिन बालोद में अब इसकी पुष्टि हो गई है। यहां करीब 200 मुर्गियां एक साथ मरी पाई गईं, जिनमें से 10 का सैम्पल जांच के लिये भेजा गया, पांच में एच-5, एन-8 का संक्रमण मिला। गिधाली गांव जहां के एक पोल्ट्री फॉर्म में मुर्गियों की मौत हुई अब वहां के एक किलोमीटर के दायरे के सभी मुर्गियों को मारने का आदेश दिया गया है साथ ही जिले में पोल्ट्री पोडक्ट के आयात, निर्यात पर भी रोक लग गई है। सोशल मीडिया और टीवी अख़बारों का कमाल है कि देश के अनेक से बर्ड फ्लू की चिंताजनक ख़बरें बीते कई दिनों से आ रही थी। दिक्कत है ज्यादातर जागरूक लोगों के पास पशु चिकित्सा या वन विभाग के अधिकारियों के फोन नंबर नहीं हैं। इनसे ज्यादा पाला पड़ता नहीं है, पर डायल 112 की गाडिय़ां जरूर घूमती दिखती हैं। इन वाहनों में लिखा भी होता है, एके नंबर, सब्बो बर। मतलब सभी काम के लिये उपलब्ध। अब लोगों ने पक्षियों की संदिग्ध मौतों को देखकर इसी 112 नंबर पर डायल करना शुरू कर दिया है। अब ये पेट्रोलिंग वाहन वन और पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों के नंबर जुटा रहे हैं और खबर पहुंचाने की जिम्मेदारी उठा रहे हैं।
ज्योतिषी निकल लिए...
राज्यपाल आम लोगों से मेल मुलाकात से परहेज नहीं करती हैं। धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोग अक्सर उनसे मिलने जाते हैं। ऐसे ही एक ज्योतिषी का पिछले दिनों राजभवन जाना हुआ। वहां उन्होंने अफसरों से भी मुलाकात की। अफसर भी फुर्सत में थे। उन्होंने जिज्ञासावश अपना भविष्यफल पूछ लिया। एक महिला अफसर को ज्योतिषी ने बताया कि उनका जल्द प्रमोशन होने वाला है। वे आईएएस बन जाएंगी। चूंकि महिला अफसर 2003 बैच की थीं। लिहाजा, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
एक अन्य अफसर को लेकर भी ज्योतिषी ने काफी अच्छी बातें कही। ज्योतिषी ने अफसर से कहा कि उनका भी जल्द प्रमोशन होगा। विभाग में उन्हें काफी महत्व मिलेगा। अफसर ने हाथ जोडक़र कहा-महाराजजी, चार महीने बाद मेरा रिटायरमेंट है। पदोन्नति अब नहीं होगी। जहां तक विभाग में महत्व का सवाल है, यदि ऐसा होता, तो राजभवन के बजाए विभाग में ही रहता। ज्योतिषी को समझ में आ गया कि उनकी भविष्यवाणी गलत साबित हो रही है, तो उन्होंने किसी तरह बात बनाकर वहां से निकल लिए।
बीजेपी में परफॉर्मेंस का दबाव
भाजपा में जिन नेताओं ने जोड़-तोडक़र पद हासिल कर लिए हैं, उन पर अब बेहतर परफार्मेंस के लिए दबाव है। भाजपा की नई प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने साफ-साफ कह दिया है कि पद में हैं, तो उन्हें परफार्मेंस दिखाना होगा। उन्होंने सरकार के खिलाफ धान-बोनस को लेकर विधानसभा सीट स्तरीय प्रदर्शन को लेकर टारगेट दिया था, और प्रदर्शन के बाद रिकॉर्डिंग कर उन्हें भेजना था। हालांकि ज्यादातर जिलों में अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुट पाई। 22 तारीख को फिर जिला मुख्यालयों में प्रदर्शन हैं, जिसमें प्रदेश प्रभारी खुद भी शामिल होंगी।
पदाधिकारियों की दिक्कत यह है कि धरना-प्रदर्शन के लिए भीड़ जुटाने से लेकर सारी व्यवस्था खुद करनी है। सत्ता में थे, तो सारी व्यवस्थाओं में पर्दे के पीछे सरकारी तंत्र जुट जाता था, और सारा काम आसानी से हो जाता था। अब विपक्ष में हैं, तो स्वाभाविक है कि सारा इंतजाम खुद करना है। जिन्हें पद नहीं मिला, और जो नाराज हैं उनका सहयोग नहीं मिल रहा है। ऐसे में बेहतर परफार्मेंस चुनौती बन गई है। अब 22 तारीख को धरना-प्रदर्शन है, जिसकी समीक्षा प्रदेश प्रभारी करेंगी। देखना है आगे-आगे होता है क्या।
आपकी अर्जी फरियाद, हमारी कागज का टुकड़ा?
कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद जिला मुख्यालयों में जनदर्शन का जो सिलसिला बंद हुआ वह अब तक दुबारा शुरू नहीं हो पाया है। इसका मतलब यह नहीं कि समस्यायें घट गई हैं। आये दिन लोग दूर-दराज के गांवों से राशन, पेंशन, आवास, पानी, फसल आदि की समस्याएं लेकर पहुंचते हैं। लगभग हर जिले में किसी अपर कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर को इन आम लोगों की शिकायतों को लेने और आश्वस्त कर लौटाने की जिम्मेदारी दे दी गई है। लोग भले ही इस उम्मीद से पहुंचें कि सीधे कलेक्टर बात सुनें। इन्हें लगता है कि कलेक्टर ही जिले का मालिक है और यदि उन्होंने भरोसा दिला दिया तो सब ठीक हो जायेगा। पर सबको ऐसा मौका नहीं मिलता। लोग एक ही समस्या को लेकर बार-बार अपनी दिनभर की रोजी का नुकसान कर और यात्रा खर्च ढोकर पहुंचते हैं।
पर इन दिनों जिला दफ्तरों में एक खास मौका देखने मिला। अपर कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, सीईओ, एसडीएम, तहसीलदार और जिले के बड़े-बड़े अधिकारी ज्ञापन लेकर कलेक्टर के सामने एक साथ खड़े हैं। इस समय कोविड गाइडलाइन के चलते जनदर्शन बंद है। बहरहाल, छत्तीसगढ़ राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारी संघ के बैनर पर इन्होंने कलेक्टर्स को ज्ञापन सौंपा है। इस उम्मीद के साथ कि वे इसे मुख्य सचिव तक आवश्यक कार्रवाई के लिये भिजवायें। वे बैकुंठपुर में हुई रिटायर्ड अपर कलेक्टर एडमंड लकड़ा की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं, जिन्हें एक कीमती जमीन के गलत आबंटन के आरोप में पुलिस ने जेल भेज दिया।
अधिकारी बता रहे हैं कि किसी मजिस्ट्रेट पर या राजस्व न्यायालय के पीठासीन अधिकारी पर पुलिस ऐसी कार्रवाई नहीं कर सकती। उन्हें संरक्षण मिला हुआ है। काश, इनमें से कोई हर्षमंदर या ब्रह्मदेव जैसा कलेक्टर हो जो इतने अधिकारियों को अपनी तकलीफ पर एक साथ तैनात देखकर बोले- आओ, काफिला लेकर सब गांव की ओर निकल चलें।
भाजपा नेताओं पर एट्रोसिटी एक्ट
आरटीओ उन दफ्तरों में से है, जहां सरकार चाहे किसी की हो, रौनक बनी रहती है। बल्कि सभाओं में भीड़ जुटाने में इसकी बड़ी जरूरत पड़ती है। सत्ता पक्ष का ख्याल तो रखा ही जाता है, ज्यादा समय तक टिके रहने के लिये विपक्ष के नेताओं का भी ख्याल समय-समय पर कर लिया जाता है। यही वजह है कि कई जिलों में ऐसे बहुत से अधिकारी हैं जो पिछली सरकार में भी ठीक-ठाक वजन रखते थे और अब भी उनका रुतबा है। यह एक सामान्य धारणा ही है। हर जगह ऐसा ही होता हो जरूरी नहीं। बहुत अधिकारी भ्रष्ट विभागों की जिम्मेदारी संभालने के बावजूद बेदाग माने जाते हैं।
पर जगदलपुर क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय दूसरी वजह से चर्चा में है। भाजपा ने बीते दिनों लोकल ट्रांसपोर्टरों से हो रही कथित अवैध वसूली पर रोक लगाने की मांग की। पर उन्हें संभवत: दिक्कत छह-सात पहले लगाये गये शिलालेख से छेड़छाड़ को लेकर थी। इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों और भाजपा नेताओं के नाम थे। प्रदर्शन के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने अति उत्साह में आरटीओ की नाम पट्टिका पर स्याही पोत दी। शायद उन्हें अंदाजा नहीं था कि ऐसा करना उनके लिये नई परेशानी खड़ी कर देगा।
अधिकारी ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करा दी है। आंदोलन का तरीका कुछ हटकर हो तो चर्चा दूर तक हो ही जाती है। नाम पट्टिका पर स्याही पोतने से तो भाजपा कार्यकर्ता चर्चा में आ ही गये पर इस विरोध से निपटने के लिये आरटीओ ने जो तेवर दिखाया उसकी भी कम चर्चा नहीं है। अब अवैध वसूली, शिलालेख की शिकायत को किनारे रख दीजिये। कौतूहल इस बात को लेकर ज्यादा है कि पुलिस इस एफआईआर पर एक्शन क्या लेती है।
किसान आंदोलन में ट्रैक्टर का क्रेज
दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में ट्रैक्टर का बड़ा आकर्षण है। ज्यादातर आंदोलनकारी ट्रैक्टर से ही पंजाब, हरियाणा और आसपास के दूसरे राज्यों से पहुंचे हैं। वे ट्रॉली पर बैठकर ही नारेबाजी और जोशपूर्ण गीत गा रहे हैं। खाना, पीना, सोना सब ट्रैक्टरों पर हो रहा है। खास बात यह है कि ट्रैक्टर किसानी का उपकरण होने के कारण इसे किसी इलाके में आने-जाने के लिये दूसरे मालवाहकों की तरह अलग परमिट लेने की जरूरत नहीं पड़ती। इसीलिये एक राज्य से दूसरे राज्य किसान इसे आसानी से लेकर जा रहे हैं।
बीती 7 जनवरी को हजारों ट्रैक्टरों की परेड दिल्ली में निकली थी जो 26 जनवरी को आंदोलनकारियों द्वारा किये जाने वाले प्रदर्शन का रिहर्सल थी। लोग नजर जमाये बैठे हैं कि जब रिहर्सल में इतनी लम्बी कतारें थीं तो 26 जनवरी का माहौल कैसा रहेगा? इधर छत्तीसगढ़ के अलग-अलग शहरों में भी ट्रैक्टर रैलियां किसानों के समर्थन में निकली। ट्रैक्टर ने ऐसा असर डाला है कि अब सभी दल डीजल के दाम क्या हैं, भूलकर अपने आंदोलनों में इस्तेमाल करना चाह रहे हैं। अम्बिकापुर में किसानों के समर्थन में कांग्रेसियों ने ट्रैक्टर रैली निकाली। कल भाजपा ने भी जगह-जगह प्रदर्शन किया था, पर राज्य सरकार के खिलाफ। जगदलपुर सहित कई जगह ट्रैक्टरों पर भाजपा नेता, कार्यकर्ता निकले। मगर, फिलहाल भाजपा को ट्रैक्टरों से परहेज करना चाहिये। कहीं लोग यह न समझ लें कि वे दिल्ली बार्डर पर बैठे किसानों का साथ देने निकल पड़े हैं।
बर्ड फ्लू और प्रवासी पक्षी
कोरोना के चलते घबराहट ऐसी है कि लोगों में बर्ड फ्लू (एवियन एंफ्लुएंजा) को लेकर दहशत फैलने लगी है। मगर यह उसके मुकाबले कहीं है नहीं। अपने देश में बीते 15 सालों से इसका प्रकोप देखा जा रहा है। अब तक किसी की मौत नहीं हुई । हां, जब यह फ्लू मनुष्यों में फैला तो गले में खराश, सांस लेने में तकलीफ और बुखार जैसी दिक्कतें जरूर आ चुकी हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि चिकन को 100 डिग्री तापमान और अंडे को 70 डिग्री पर पकाने के बाद सेवन करने पर कोई खतरा नहीं है। यह अलग बात है कि ऐहतियातन मांसाहार के बहुत से शौकीनों ने चिकन खाना बंद कर दिया है। मध्यप्रदेश सहित कुछ दूसरे राज्यों के कई शहरों में तो बिक्री पर ही रोक लगा दी गई है। बर्ड फ्लू के 16 स्ट्रैन होते हैं, जिनमें से सिर्फ एच5 एन1 ही मनुष्यों पर हमला कर सकता है। बाकी 15 स्ट्रैन का असर केवल पक्षियों पर होता है।
लेकिन चिंता की बात एक दूसरी है। केन्द्रीय पशुपालन सचिव अतुल चतुर्वेदी का बयान है कि यह मौसम देश में प्रवासी पक्षियों के आने का है। इनके कारण सन् 2006 के बाद से ही बर्ड फ्लू का खतरा बनता आ रहा है। ठंड के जाने के बाद इसका प्रकोप भी खत्म हो जाता है। छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। नया रायपुर के सेंध जलाशय में बर्ड वाचिंग का कार्यक्रम भी रखा जाता है। महासमुंद, दुर्ग, बेमेतरा, मुंगेली और बिलासपुर में अनेक तालाब और जलाशय हैं जहां साइबेरिया, चीन, तिब्बत और मध्य एशिया से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर प्रवासी पक्षी पहुंचते हैं। अभी अम्बिकापुर, रतनपुर, बिलासपुर, बालोद और पंडरी (रायपुर) में कबूतर, कौवों और पोल्ट्री फार्म की मुर्गियों की मौतों की घटनायें मिली हैं। बाकी किसी घटना में बर्ड फ्लू की पुष्टि अभी नहीं हुई है। सुकून की बात यही है कि झारखंड, मध्यप्रदेश जैसे पड़ोसी राज्य में बर्ड फ्लू के कई मामले सामने आने के बावजूद छत्तीसगढ़ अब तक इससे बचा हुआ है। अभी तक प्रवासी पक्षी भी सुरक्षित कलरव कर रहे हैं। राज्य में बनाई गई रैपिड रिस्पांस टीमें ठीक काम करें तो मेहमान पक्षी भी हिफाजत से रह सकेंगे।
स्वास्थ्य कर्मी भी टीका न लगवायें तो?
जब से कोरोना वैक्सीनेशन का देशव्यापी अभियान शुरू किया गया है, सोशल मीडिया के जरिये कई लोगों ने कहा कि पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी टीका लगवायें और बाकी मंत्री भी लगवायें। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी अब कह दिया है कि पहले केन्द्रीय मंत्रियों को टीका लगवाना चाहिये ताकि लोगों को टीके पर भरोसा हो सके। हालांकि प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्रियों की ओर से कोई बयान नहीं आ रहे हैं। हां, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का टीके के लिये न कहना और हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के पहले डोज के बाद भी कोरोना संक्रमित हो जाने की खबर सामने आ चुकी है। अब छत्तीसगढ़ में जिन स्वास्थ्य कर्मियों या फ्रंट लाइन वर्करों का टीका लगवाने के लिये पंजीयन किया गया है उनमें से भी कई लोगों ने इसके प्रति अनिच्छा जाहिर की है। राज्य में बाद में 50 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों को टीका लगाया जाना है। पर पहले चरण के लिये 2.67 लाख स्वास्थ्य कर्मियों, मितानिनों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को टीका लगाने के लिये चुना गया है। आज वैक्सीन पहुंच रही है, 16 को 1300 से ज्यादा बूथों में टीका लगने का अभियान चलेगा। डॉक्टरों का कहना है कि हर एक वैक्सीन का रियेक्शन तो होता है पर यह भविष्य में बीमारी को रोकने में मदद करता है। देखना होगा राज्य में यह लक्ष्य हासिल हो पायेगा यह नहीं। राहत यही है कि जो स्वास्थ्य कर्मी टीका लगवाने से मना करेंगे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने जा रही है।
पुत्रमोह में पार्टी पीछे
भाजपा प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने 10 जनवरी तक मोर्चा-प्रकोष्ठों की कार्यकारिणी की घोषणा करने की हिदायत दी थी, लेकिन अभी तक भाजयुमो, महिला मोर्चा और किसान मोर्चा की कार्यकारिणी घोषित नहीं हो पाई है। भाजयुमो की कार्यकारिणी तो बड़े नेताओं की वजह से अटकी पड़ी है। कई बड़े नेताओं ने अपने बेटों को कार्यकारिणी में जगह दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है।
सुनते हैं कि प्रदेश के एक बड़े पदाधिकारी ने तो अपने बेटे को कार्यकारिणी में जगह दिलाने के लिए पूर्व सीएम के जरिए दबाव बनाया है। वे बेटे के लिए कोषाध्यक्ष का पद चाह रहे हैं। कुछ नेताओं के बेटे तो वाकई लायक हैं, और वे सक्रिय भी हैं। मगर उन्हें कार्यकारिणी में जगह मिल पाएगी अथवा नहीं, यह तय नहीं है। चर्चा है कि पार्टी के रणनीतिकारों ने हाईकमान से मार्गदर्शन मांगा है। यही वजह है कि कार्यकारिणी की घोषणा में विलंब हो रहा है।
सीखकर आयें और लोगों को भी समझायें
इन दिनों प्रदेश कांग्रेस के अनेक नेता सेवाग्राम, वर्धा पहुंचे हुए हैं। वे वहां कुछ दिन रहकर गांधीजी के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण को समझेंगे। जयंती और पुण्यतिथि पर गांधी जब याद किये जाते हैं तो लगता है कि बस एक रस्म निभाई जा रही है। पर अनुशासित सेवाग्राम में तीन-चार दिन संयम के साथ बिताना भी अपने-आपमें एक तपस्या होगी।
जब कोई नेता विपक्ष में हो तो थोड़ी सादगी के साथ रहना पड़ता है, संघर्ष के दिन होते हैं आंदोलन वगैरह करना पड़ता है। मान सकते हैं कि गांधीजी की प्रेरणा से ऐसा किया जा रहा है। पर, जब सत्ता हाथ में हो तब गांधीजी को आचरण में उतारने की कोशिश तो बेहद कठिन है। कांग्रेस नेता यदि ऐसा कर रहे हैं तो उनकी तारीफ होनी चाहिये। बस इतना करें कि जितना हो सकें खुद गांधी को समझें और लौटकर आयें तो यहां रायपुर, बिलासपुर में जो कांग्रेस पार्षद, ब्लॉक नेता आये दिन मारपीट, धमकी देने की हरकत कर रहे हैं, उनको रोकने की कोशिश करें।
कोरोना टीका पहले, पोलियो का देखेंगे
केन्द्र सरकार का सारा जोर इस समय कोरोना वैक्सीनेशन पर है। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के पालन में हर राज्य साथ दे रहा है। पश्चिम बंगाल सरकार ने वृहद पैमाने पर एक साथ वैक्सीनेशन पर जोर देने को लेकर आपत्ति जताई थी पर प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में साफ कर दिया कि वह अभियान उनके यहां भी दूसरे राज्यों की तरह चलेगा। छत्तीसगढ़ में भी स्वास्थ्य मंत्री एक साथ बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन के पक्ष में नहीं है। ये सभी मानते हैं कि तीसरे चरण के परीक्षण के नतीजे आने तक रुका जाये ताकि साइड इफेक्ट को लेकर निश्चिन्त हुआ जा सके।
इधर, केन्द्र सरकार ने एक नया आदेश जारी कर इस माह की 17 से 19 तारीख के बीच होने वाले पोलियो टीकाकरण को रोकने कहा है। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में भी इस निर्देश का पालन किया जा रहा है। हालांकि पोलियो टीककरण की तैयारी माहभर से चल रही थी। स्वास्थ्य अधिकारियों का यह भी कहना है कि पोलियो टीकाकरण की उनकी तैयारी पूरी थी। कोरोना वैक्सीनेशन की टीम अलग है। पोलियो टीकाकरण की नई तारीख अभी तय नहीं की गई है। कोरोना काल में वैसे भी नसबंदी, मोतियाबिंद ऑपरेशन, एड्स, कुष्ठ और टीबी के रोगियों की ठीक देखभाल नहीं हो सकी। जैसे अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रमों में लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। सरकारी अस्पतालों में ऑपरेशन पर रोक भी लग गई थी। अब पोलियो टीकाकरण पर भी इसका असर हुआ है।
काश कोरोना हो जाये!
कोरोना जांच की रिपोर्ट पॉजिटिव बताकर छुट्टियों का आनंद उठाने की कई ख़बरें सामने आ चुकी हैं। बीते सितम्बर माह में नोएडा की एक महिला ने अपने पति, जो एक बड़ा अधिकारी है को गर्लफ्रेंड के साथ मुरादाबाद के एक फ्लैट में रंगे हाथ पकड़ लिया था जो कई दिनों से खुद को कोरोना संक्रमित होना बताकर घर नहीं आ रहा था। इधर, अब छत्तीसगढ़ में पैरोल और जमानत पर छूटे कैदियों के अच्छे दिन खत्म होने वाले हैं। हाईकोर्ट ने जेल में कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिये कुछ श्रेणियों के कैदियों को मई माह से जमानत और पैरोल पर छोड़ा। बाद में कोरोना नहीं थमने के कारण उन्हें कई चरणों में 31 दिसम्बर तक राहत दी। सुप्रीम कोर्ट में अपील के बाद उन्हें 15 जनवरी 2021 तक आत्मसमर्पण करने की मोहलत मिल गई, पर इसके बाद विस्तार नहीं हो सका है। हाईकोर्ट ने इन सबको वापस जेल भेजने कहा है। ऐसे कैदियों की संख्या प्रदेशभर में करीब 7700 है। यह भी कहा गया है कि एंटिजन टेस्ट नहीं कराया जाये, कई बार इसकी रिपोर्ट सही नहीं होती। इन सभी का आरटीपीसीआर टेस्ट होगा। कुछ कैदी इस स्थिति में प्रार्थना कर रहे हैं कि काश उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाये ताकि थोड़े दिन और खुली हवा में रह सकें।
बेवजह क्यों बढ़ गये सीमेन्ट, स्टील के दाम?
कोरोना के भयावह दौर के गुजरने के बाद उद्योग धंधों में तेजी आई है। खेती और आटोमोबाइल्स सेक्टर को छोडक़र बाकी सब व्यवसायों में बीते साल गिरावट थी। खासकर पहले से रेरा, टैक्स और रजिस्ट्री के नियमों के चलते रियल एस्टेट सेक्टर में बड़ी मंदी देखने को मिली। अब लोग थोड़ी राहत की सांस ले रहे हैं और इसमें निवेश की सोच रहे हैं। लोगों ने अपने रुके हुए घर, दफ्तर बनाने के काम को भी दुबारा शुरू किया है पर स्टील और सीमेन्ट के दाम बढऩे लगे हैं। लागत बढऩे की प्रमुख वजह यही है। बिल्डरों का कहना है कि न तो इस समय मजदूरी बढ़ी, न कच्चे माल का दाम बढ़ा न ही बिजली दर में कोई बढ़ोतरी हुई है फिर भी यह स्थिति बन गई है। ऐसा केवल छत्तीसगढ़ में नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी हो रहा है। एक रियल एस्टेट कारोबारी का कहना है कि जिस तरह सिंडिकेट पहले सीमेन्ट में था, अब स्टील में भी बन चुका है। बिजली की तरह एक नियामक प्राधिकरण इनकी कीमत पर नियंत्रण के लिये बनना चाहिये। भारत माला और दूसरी सडक़, ब्रिज परियोजनाओं की लागत बढऩे के कारण चिंतित केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस बात के संकेत भी दिये हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार पर बोलें, दिल्ली भूल जायें
छत्तीसगढ़ में धान खरीदी को लेकर चल रहा संकट किसी से छिपा नहीं रह गया है। भारतीय जनता पार्टी ने इसे लेकर आंदोलन शुरू करने की बात कही है। पहले 13 जनवरी को सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में धरना-प्रदर्शन की तैयारी की गई है उसके बाद 22 जनवरी को सभी जिला मुख्यालयों में रैली और प्रदर्शन किया जाना है। भले ही भाजपा के पास छत्तीसगढ़ में सीटें बहुत कम है पर कैडर तो पहले जैसा ही है। इसलिये पूरी संभावना है कि इन धरना प्रदर्शनों में ठीक-ठाक भीड़ इक_ी हो जायेगी। दूसरी तरफ इस वक्त हर किसी के दिमाग में दिल्ली में चल रहे किसानों का आंदोलन भी घूम रहा है। भले ही वहां छत्तीसगढ़ के लोग ज्यादा नहीं पहुंचे पर यहां भी कई जगहों पर धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। अम्बिकापुर में तो दिल्ली के किसानों की तरह एक छोटी ट्रैक्टर रैली भी निकाली गई। छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार को धान खरीदी पर घेरने के लिये भाजपा नेता सतर्क दिखाई दे रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि वे अपने मंच से दिल्ली के किसान आंदोलन पर संभल कर बात करें। किसान कानून के फायदे गिनाने की कोशिश भी न करें। लोगों का ध्यान भटकेगा।
पोल्ट्री बिजनेस का बुरा हाल
छत्तीसगढ़ में अब तक बर्ड फ्लू का कोई केस नहीं मिल पाया है लेकिन लोग दहशत में हैं। रतनपुर में दो दिन पहले तीन कौवे एक साथ मरे पाये गये। अलग-अलग स्थानों से भी एक से अधिक संख्या में पक्षियों, मुर्गियों की मौत की खबर आई है। इनका सैम्पल शासकीय पोल्ट्री फॉर्म भेजकर जांच कराई गई है। कहीं से भी पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं आई है। इसके बावजूद लोग चिकन और अंडे खाने से परहेज कर रहे हैं। रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, सरगुजा सभी जगहों से खबरें हैं कि चिकन के दाम 50 फीसदी तक घट गये हैं। नानवेज के शौकीन रविवार को अधिक खरीदारी करते हैं पर कल मांग कम रही। अंडों की बिक्री में भी गिरावट आई है। पोल्ट्री फॉर्म चलाने वालों को उम्मीद है कि अगर हफ्ते, दस दिन बाद भी कोई केस नहीं आयेगा तो लोगों का डर थोड़ा कम होगा और बाजार सुधर सकेगा।