राजपथ - जनपथ
सफाई के ठेके में मलाई...
नगरीय निकायों में सफाई का ठेका लेना कमाई का बढिय़ा जरिया है। ठेके के लिये बड़ी मारामारी होती है, सिफारिशें चलती हैं। सत्ता पक्ष के करीबियों को काम सौंपा जाता है। प्रदेश के कई निकायों में पार्षदों ने दूसरे नामों से ठेके ले रखे हैं। ठेके लेने के लिये ऐसी होड़ रहती है कि हाल ही में एक ठेकेदार ने टेंडर में भाग लेने से रोकने पर हाईकोर्ट में केस कर दिया। ठेके में अनुबंध होता है कि वे कितने कर्मचारी लगायेंगे और कितनी बार सफाई होगी। पर एक बार ठेका मिल जाने के बाद शर्तों का पालन हो रहा है या नहीं यह कोई नहीं देखता। अक्सर बीच-बीच में जब अधिकारी वार्डों का दौरा करते हैं तो गंदगी देखकर ठेकेदारों पर जुर्माना लगा देते हैं। ठेकेदार की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि कम संसाधनों से काम करते हुए वह काफी बचा चुका होता है।
इन दिनों राजधानी रायपुर में सेजबहार हाउसिंग बोर्ड के लोग गुस्से में हैं। टैक्स वसूलने के लिये न सिर्फ नोटिस भेजी गई है बल्कि कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। पानी का कनेक्शन काटने की चेतावनी भी दी गई है। पहले पंचायत के जिम्मे में सफाई थी तो व्यवस्था ठीक थी पर अब टैक्स भी भारी और सफाई की व्यवस्था भी खराब।
बाबा लायेंगे क्रांति?
वेब सीरिज ‘आश्रम’ में मुख्य किरदार निगेटिव करैक्टर का एक बाबा है। इस सीरिज में थीम सांग है-बाबा लायेंगे क्रांति...। इन दिनों सरगुजा में सोशल मीडिया पर मीम वायरल हो रहा है जिसमें पाश्र्व में यही गीत बज रहा है। बताया जाता है कि ये टीएस बाबा के ही किसी फालोअर ने बनाया है और उनके समर्थक इसे शेयर कर रहे हैं। सन् 2018 में सरगुजा से कांग्रेस को बम्पर वोट मिले तो इसकी एक वजह यह भी थी कि बहुत से लोग बाबा को भावी मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे थे। चुनाव के समय उन्होंने अपनी इस इच्छा को साफ-साफ जाहिर भी किया था। दूसरी तरफ, हाल ही में प्रदेश में ढाई साल वाले फॉर्मूले पर मुख्यमंत्री से सवाल भी पूछ लिया गया था और जिस पर उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। बहुत से लोग समझ रहे हैं कि उनका इशारा किस ओर था। इन दिनों सीएम सरगुजा संभाग के 5 दिनों के लम्बे प्रवास पर हैं। उनकी सभाओं के पहले दो दिन टीएस बाबा नहीं थे। वे चार्टर प्लेन से दिल्ली चले गये थे, पर रविवार को लौटकर शामिल हुए। सीएम के इस दौरे में लोगों ने देखा कि इन सभाओं में कभी बाबा के अलावा किसी को महत्व देने की जरूरत नहीं समझने वाले भी सीएम के आगे-पीछे हो रहे हैं। जो सीएम तक नहीं पहुंच पाये वे उनके मंत्रियों तक पहुंचने की कोशिश में लगे हैं। शायद इनका धैर्य जवाब दे चुका है और बदलाव की उम्मीद छोड़ चुके हैं। एक समर्थक का कहना है कि मंत्रीजी के करीब कुछ लोग हैं जिनकी वजह से वह छिटक रहे हैं। ऐसे में क्रांति आयेगी?
एबीवीपी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी
कवर्धा में एबीवीपी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का मुद्दा गरमाया हुआ है। उन्होंने प्रतिबंधित कलेक्टोरेट क्षेत्र में प्रदर्शन किया था। वे एक आदिवासी नाबालिग से गैंगरेप के मामले में पुलिस से कार्रवाई की मांग करने के लिये पहुंचे थे। उन पर गंभीर धारायें लगाई गई हैं जिन्हें छोडऩे की मांग को लेकर भाजपा ने भी प्रदर्शन किया। कवर्धा के अलावा राजनांदगांव में भी विरोध दर्ज कराया गया है। प्रशासन की कार्रवाई पहली नजर में कुछ सख्त लगती है। आम तौर धरना प्रदर्शनों में गिरफ्तारियां होती है और कुछ घंटे बाद छोड़ भी दिये जाते हैं। बेरिकेड्स तोडऩे और प्रतिबंधित परिसर तक पहुंचने की घटनायें भी होती रही हैं। फिर क्या जवानों के साथ धक्का मुक्की और कांग्रेस भवन में चूडिय़ां फेंकना एबीवीपी कार्यकर्ताओं पर भारी पड़ा?
अगली पीढ़ी की जगह बनाना है
खबर है कि भाजयुमो अध्यक्ष अमित साहू को अपनी कार्यकारिणी बनाने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। पहले तो पार्टी ने 35 वर्ष से कम आयु वालों को ही कार्यकारिणी में लेने की हिदायत दे रखी है। और अब पार्टी के कई बड़े नेता अपने बेटे-बेटियों को युवा मोर्चा के जरिए लॉन्च करना चाहते हैं, जिन्हें एडजस्ट करने में दिक्कत हो रही है।
प्रेमप्रकाश पाण्डेय के बेटे मनीष युवा मोर्चा पदाधिकारी बनने की होड़ में हैं। मनीष पिछले कई साल से सक्रिय हैं, और अमित का सबसे ज्यादा स्वागत भिलाई में हुआ था। इसी तरह नारायण चंदेल के बेटे, और रामविचार नेताम की बेटी का नाम भी युवा मोर्चा के पदाधिकारी के लिए चर्चा में हैं। इससे परिवारवाद का आरोप लगने का खतरा भी है, मगर रास्ता निकालने की कोशिश भी हो रही है।
साया भी साथ छोड़ जाता है...
भाजपा के एक पूर्व विधायक को साए की तरह साथ रहने वाले पीए ने गच्चा दे दिया है। प्रदेश में सरकार थी, तो विधायक महोदय काफी प्रभावशाली थे। सरकार ने उनकी वरिष्ठता को ध्यान में रखकर निगम का दायित्व भी दे रखा था। विधायक ने अपने पीए को खुली छूट दे रखी थी। हाल यह था कि पीए का कथन विधायक का कथन माना जाता था। पीए ने भी विधायक की छूट का खूब लाभ उठाया, और जमकर माल बनाया। सरकार बदली, तो सबकुछ बदल गया।
विधायकी अब नहीं रह गई, निगम-मंडल में अनियमितता की जांच शुरू हो गई। पूर्व हो चुके विधायक ने भी हमसाए की तरह साथ रहने वाले पीए का साथ निभाया, और जांच-पड़ताल से बचाने के लिए हर संभव कोशिश की। वे उसे मौलश्री विहार ले गए, और दिग्गज नेता से मिलवाया। अब जांच से घिरे पीए, कुछ दिन में ही दिग्गज नेता के करीबी हो गए।
बड़े नेता के संपर्क का पीए को पूरा लाभ मिल रहा है, और उन्हें जांच से कुछ हद तक राहत भी मिली हुई है। दिग्गज के करीबी रहे अफसरों से पीए का मेल जोल बढ़ा है। एक निलंबित पुलिस अफसर से तो पीए की अच्छी छन रही है। अब पूर्व विधायक का हाल यह है कि जब भी वे अपने पीए रहे अफसर को फोन लगाते हैं, तो कोई जवाब ही नहीं मिलता। कहावत है कि बुरे समय में साया भी साथ छोड़ जाता है, यह तो फिर भी...।
वैक्सीन और शराब वाला छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में कोरोना वैक्सीन लगाने की मुहिम पता नहीं सफल होगी या नहीं। जिस तरह से कोरोना रोग किस-किस तरह से फैल सकता है इस पर एक के बाद एक नई जानकारी और उसके हिसाब से गाइड लाइन आ रही थी, उसी तरह वैक्सीन को लेकर दिशा-निर्देश आ रहे हैं। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज जब वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद भी कोरोना संक्रमित हो गये तो डॉक्टरों ने सफाई दी कि वैक्सीन का असर दूसरा डोज लेने के बाद होता है। अब एक नई खबर आई है। भारत बायोटेक की दवा को-वैक्सीन लगवाने के बाद 14 दिन तक शराब से दूर रहना होगा। रूस में तैयार स्पूतनिक-वी का टीका लगवाने के बाद दो महीने शराब पीने की मनाही होगी। इसी तरह दूसरे टीकों के बारे में भी निर्देश है। अपने राज्य की बात करें तो यहां शराब की खपत बहुत ज्यादा है। जब कोरोना संक्रमण के चलते शराब दुकानों को मार्च-अप्रैल महीने में बंद रखा गया तो हाहाकार मच गया था। दो सफाई कर्मचारी सैनेटाइजर पीकर मर गये और इसी को आधार बनाकर दुकानें खोल दी गईं। यही नहीं होम डिलवरी भी शुरू कर दी गई। उस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी इस दुनिया में थे उन्होंने कहा कि यही मौका है जब सरकार शराबबंदी के अपने वादे पर अमल कर सकती है।
सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय मंत्रालय ने बीते साल एम्स की मदद से एक सर्वेक्षण कराया था, जिसमें बताया गया था कि देश में 15 फीसदी लोग शराब पीते हैं पर छत्तीसगढ़ में यह संख्या 35 फीसदी है। राज्य में सबसे ज्यादा बिक्री राजधानी रायपुर में होती है। 10 प्रतिशत कोरोना टैक्स लगने के बाद भी खपत कम नहीं हुई। यह पूरे देश में सबसे ज्यादा है। महाराष्ट्र और पंजाब भी इससे पीछे हैं। छत्तीसगढ़ में शराब से पिछले साल कमाई 4700 करोड़ रुपये दर्ज की गई थी। अब ऐसे राज्य में कोरोना की चेन तोडऩा चुनौती नहीं तो और क्या हो सकती है।
अहमियत लोक अदालतों की
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और राज्यभर की निचली अदालतों में शनिवार को लोक अदालतें लगीं। इनमें 5303 मामले निपटे। एक ही दिन में करीब 50 करोड़ रुपये के अवार्ड पारित किये गये। गंभीर किस्म के फौजदारी मामलों में जरूर सुलह की छूट नहीं है पर साधारण दीवानी, फौजदारी दोनों तरह के मामले इन अदालतों में सुलह के लिये लाये जा सकते हैं।
कोरोना काल के बाद रखी गई पहली नेशनल लोक अदालत में एक ही दिन पांच हजार से ज्यादा मामलों में सुलह होना बताता है कि लोग लम्बी कानूनी प्रक्रियाओं से बचना चाहते हैं। कोरोना महामारी के चलते वैसे भी महीनों तक अदालतों में कामकाज ठप पड़े हुए थे। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की बात करें तो यहां कुल 74 हजार 600 से ज्यादा लम्बित मामले हैं। 15 हजार से ज्यादा केस ऐसे हैं जो 5 साल से ज्यादा पुराने हैं। निचली अदालतों में संख्या इससे कई गुना अधिक हो सकती है। अभी तक केवल जजों और विधिक सहायता प्राधिकरणों की कोशिशों से ये लोक अदालतें लगाई जाती रही हैं। यदि सामाजिक कार्यकर्ता, पुलिस और प्रशासन के स्तर पर भी कोशिश हो तो परिणाम और अच्छे मिल सकते हैं
किसान बिल पर ठंडा पानी
‘तेल की धार’ देख लेने के बाद अब यह तय है कि केन्द्र सरकार तीनों में से कोई भी बिल वापस नहीं लेने जा रही है। किसानों के थकने की प्रतीक्षा हो रही है, शाहीन बाग की तरह। भाजपा में एक बात बड़ी खास है कि वह अपने फैसलों को सही बताने के लिये सारी ताकत झोंक देती है। जीएसटी और नोटबंदी के मामले में ताबड़तोड़ सभाओं के बाद अब दूसरे राज्यों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में भी महापंचायतों का सिलसिला शुरू होने जा रहा है।
14 दिसम्बर को हर जिले में प्रेस कांफ्रेंस होगी, 15 को किसान महापंचायत और 16 दिसम्बर से सोशल मीडिया पर कैम्पेन शुरू होगा। किसान आंदोलन किसी एक के नेतृत्व में नहीं चल रहा है। केन्द्र सरकार यह बता रही है कि यह पंजाब, हरियाणा के किसानों का मुद्दा है। टीवी चैनल खालिस्तान समर्थक और देशद्रोह के आरोपियों की आंदोलन में घुसपैठ होने की बात कर ही रहे हैं। छत्तीसगढ़ के किसान संगठन कानून के खिलाफ तो हैं पर यहां प्रतिरोध का स्वर धीमा ही है। कांग्रेस ने साथ न दिया होता तो शायद भारत बंद भी यहां सफल नहीं होता। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि किसान धान बेचने में व्यस्त है। आम तौर पर किसानों की निर्भरता धान पर है, सोसाइटियां सशक्त हैं और सरकारी खरीद के प्रति आश्वस्त, संतुष्ट भी हैं।
इस बात आकलन करने की जरूरत उन्होंने महसूस नहीं की है कि कानून का असर छत्तीसगढ़ में कैसा होने वाला है। राज्य सरकार ने कृषि कानूनों को निष्प्रभावी बनाने के लिये विधानसभा का विशेष सत्र बनाकर नया बिल पारित किया है पर वह राज्यपाल के पास रुका है। छत्तीसगढ़ सरकार भी इस बिल के रुके रहने पर बेचैनी महसूस नहीं कर रही है। कार्पोरेट ने अभी केन्द्र के बिल को लेकर छत्तीसगढ़ में धावा नहीं बोला है, इसलिये सब निश्चिन्त दिखाई दे रहे हैं।
गौरव-मनिंदर का बदलाव जारी
आईएएस द्विवेदी दंपत्ति के इस सरकार में भी तीसरी-चौथी बार उनके प्रभार बदले गए हैं। कुछ दिन पहले हुए इस प्रशासनिक फेरबदल में दोनों के प्रभार बदले गए, तो फिर कानाफुसी शुरू हो गई। प्रमुख सचिव गौरव द्विवेदी सीएम सचिवालय से हटे, तो भी उन्हें पंचायत जैसे वजनदार महकमे का प्रभार दिया गया। दूसरी बात यह थी कि उन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रतिद्वंद्वी टी एस सिंहदेव के मंत्रालय भेजा गया। सीएम सचिवालय की नाजुक पोस्ट के बाद सीधे दुसरे खेमे में ! कुछ लोगों ने उस वक्त इस बात के लिए मुख्यमंत्री को आगाह भी किया था। और अब कुछ महीने के भीतर उन्हें बदला गया, तो चर्चा होना स्वाभाविक है।
पंचायत में गौरव के कामकाज को संतोषजनक आंका जा रहा था। फिर प्रभार क्यों बदला गया? अंदर की खबर यह है कि सीएम की फ्लैगशिप वाली नरवा योजना में अपेक्षाकृत प्रगति नहीं हो रही थी। विशेषकर वन विभाग के समन्वय के साथ जो काम होना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा था। चर्चा है कि सीएम ने कुछ दिन पहले प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में देरी पर नाराजगी जताई थी। और बाद में उन्होंने फिर इसकी समीक्षा की, लेकिन स्थिति जस की तस रही। फिर क्या था, गौरव द्विवेदी पर ठीकरा फूट गया।
दूसरी तरफ, प्रमुख सचिव मनिंदर कौर द्विवेदी को पहले मंडी की जमीन ट्रांसफर में देरी पर पहले एपीसी से हटाया गया, और फिर अब जीएसटी के दायित्व से मुक्त कर दिया गया। इस बार मनिंदर के हटने के पीछे कमिश्नर रानू साहू से तालमेल न होना पाया गया। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया था कि जीएसटी का पूरा अमला परेशान था। एक एडिशनल कमिश्नर ने तो नौकरी से त्यागपत्र भी दे दिया है।
मनिंदर कौर द्विवेदी भी सिंहदेव के ही मातहत थीं। जीएसटी मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी दोनों महिला अफसरों के बीच बेहतर समन्वय के लिए पहल भी की थी, लेकिन स्थिति नहीं बदली। ऊपर यह फीडबैक गया कि मनिंदर ज्यादा जिम्मेदार हैं । सीएम ने फैसले में देरी नहीं लगाई, और फिर उन्हें बदल दिया गया। ये अलग बात है कि जीएसटी का प्रभार मनिंदर से हटाकर गौरव को दे दिया गया, और रानू साहू को पर्यटन एमडी का अतिरिक्त दायित्व देकर उनका महत्व बढ़ाया गया।
मरकाम नाराज हैं या नहीं?
निगम-मंडलों में नियुक्ति को लेकर दूसरे दौर की चर्चा के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम बैठक अधूरी छोडक़र निकले, तो बाहर चर्चा शुरू हो गई। फिर कांग्रेस मीडिया विभाग के लोगों ने सफाई दी, कि मरकाम को अपने विधानसभा क्षेत्र कोंडागांव में जरूरी काम से जाना था, इसलिए अपनी बात पूरी कर निकल गए। मरकाम ने भी चुप्पी साध ली।
चर्चा यह है कि सीएम हाउस में दूसरे दिन की चर्चा में मरकाम अपनी तरफ से दो-तीन नाम जुड़वाना चाह रहे थे। उन्होंने अपनी बात मजबूती से रखी भी, लेकिन उनकी बात को महत्व नहीं मिला। लिहाजा, वे बैठक छोडक़र निकल गए। प्रभारी सचिव चंदन यादव ने रायपुर आते ही नाराजगी पर मरकाम से घर जाकर बात की है। दावा तो यह भी है कि सबकुछ ठीक-ठाक हो गया है। मगर वाकई ऐसा है, यह देखना है।
कांग्रेस, भाजपा का अनुशासन
2018 में छत्तीसगढ़ का चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस से कम से कम मुख्यमंत्री पद के चार दावेदार थे। चुनाव अभियान के पहले भाजपा इस बात पर तंज कसती थी कि जिनकी पार्टी में सीएम पद के 6-6 दावेदार हों, वे सरकार कैसे चलायेंगे। बीता चुनाव भाजपा ने डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में लड़ा था और यदि परिणाम पक्ष में गये होते तो उन्हें बिना किसी असहमति के विधायक दल का नेता चुन लिया जाता। पूर्ववर्ती सरकार के दौरान आदिवासी नेतृत्व की जरूरत होने की बात भाजपा नेता नंदकुमार साय और ननकीराम कंवर ने कई बार रखी। इनके अलावा भी बीच-बीच में खबर उड़ती रहती थी कि डॉ. सिंह के खिलाफ असंतुष्ट विधायकों के बीच लॉबिंग हो रही है। लेकिन हुआ कुछ नहीं. रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में ही बृजमोहन अग्रवाल ने हथियार डाल दिए थे।
इधर कांग्रेस सरकार के दो साल पूरे होने वाले हैं और सवाल उछल गया कि क्या यहां ढाई-ढाई साल वाला फॉर्मूला अपनाया जायेगा? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस सवाल पर पहले हाईकमान को सर्वोपरि बताया, फिर सरगुजा में साफ किया कि उनको 5 साल के लिये ही चुना गया है। भाजपा को तुरंत मौका मिला और सवाल दागे और संदेह जताया। पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही दौर में एक बात समान है, वह है अनुशासन की। सामने आकर अनुशासन तोड़ा नहीं जाता, हां मीडिया तक इस उम्मीद से बात पहुंचा दी जाती है कि वह पूछकर देखे और टटोलें क्या प्रतिक्रिया आती है। भूपेश के मुकाबले तेवर दिखाते टी एस सिंहदेव मीडिया के हर सवाल के जवाब में सुरसुरी छोडऩे से नहीं कतराते।
निगरानी दल पर निगरानी हो
धान खरीदी को लेकर किसानों की समस्या दूर होने का नाम नहीं ले रही है। पूरे प्रदेश से कई तरह की गड़बडिय़ों की खबरें आ रही हैं। सबसे बड़ी समस्या रकबे में कटौती की है। जिलों में निर्देश दिया गया कि गिरदावरी रिपोर्ट में गड़बड़ी की गई हो तो उसे दुरुस्त किया जाये। अब किसान धान बेचने के लिये टोकन लेने की कतार में खड़े हों, या तहसील, पटवारी दफ्तर के चक्कर लगायें। दावा किया गया था कि धान की तौल सही की जायेगी, ज्यादा नहीं लिया जायेगा लेकिन कई खरीदी केन्द्रों से 40 किलो की एक बोरी के पीछे दो-दो किलो अतिरिक्त लिये जा रहे हैं। खरीदी केन्द्रों से धान का परिवहन तीन दिन के भीतर होने की बात कही गई लेकिन कई केन्द्रों में उठाव नहीं करने के कारण खरीदी की गति धीमी कर दी गई है। जब से डॉयल 112 की सुविधा दी गई है सैकड़ों किसान शिकायत दर्ज करा चुके हैं।
राजनांदगांव की घटना के बाद कमिश्नर, कलेक्टर्स ने धान खरीदी केन्द्रों का भ्रमण बढ़ाया है और कुछ कर्मचारियों को हटाने, शो कॉज नोटिस जारी करने का काम भी किया है। पर, दूसरी तरफ कांग्रेस, भाजपा ने भी बड़ी तत्परता दिखाई है। कोई ब्लॉक नहीं छूट रहा जहां वे निगरानी समितियां नहीं बना रहे हों। जब इतनी निगरानी हो रही है तो गड़बडिय़ां रुक क्यों नहीं रही, इस पर भी निगरानी के लिये कोई टीम बनाने की जरूरत है।
पांच दशक पुराने संयंत्रों का ढहना
ऊर्जा नगरी कोरबा में निजी कम्पनियों सहित एनटीपीसी के पावर प्लांट हैं। पर 50 साल से भी ज्यादा पुराने छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कम्पनी के प्लांट की अलग ही पहचान रही है। लम्बे समय तक बिजली उत्पादन के कारण उपकरण जवाब दे गये थे। रूस से आयातित तकनीक से अब काम नहीं लिया जाता। यहां की 50-50 मेगावाट की दो इकाईयों को बंद किया जा चुका है, जिसका कबाड़ खुली नीलामी में 75 करोड़ में बिक गया। कम्पनी के करीब 450 कर्मचारियों को दूसरे संयंत्रों में शिफ्ट करने का दावा किया गया है लेकिन इनसे ज्यादा संख्या ठेका कर्मचारियों की है। 120-120 मेगावाट के दो प्लांट और हैं जिन्हें जल्दी बंद कर उनके स्क्रैप की भी नीलामी होगी। इनमें भी बड़ी संख्या में ठेका कर्मचारी काम करते हैं। इनका भी भविष्य अंधेरे में है। इन प्लांटों का आधुनिकीकरण करने की मांग कर्मचारी संगठनों ने की थी, जो पूरी होती तो शायद ठेके पर काम करने वालों का रोजगार नहीं छिनता। कोरोना संक्रमण के दौर में इन्हें कोई नया काम मिलने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।
अदानी-अम्बानी के बहिष्कार पर असमंजस
आंदोलनरत किसानों की तरफ से अपील की गई है कि अडानी-अम्बानी के सामानों का बहिष्कार करें। लोग पेशोपेश में हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में लाखों की संख्या में जियो सिम हैं। इनमें से बहुत से तो पिछली सरकार के दौरान मुफ्त में बांटे गये थे। इन फोन्स की खासियत यह है कि इनमें कोई दूसरा सिम कार्ड काम नहीं करता। जिन्होंने सिर्फ सिम कार्ड लिये हैं उनके लिये भी अचानक पोर्टेबिलिटी कराना कम सिरदर्द काम नहीं है। अब वे लोग जिनके पास जियो का कोई भी सिम कार्ड नहीं है, कह सकते हैं- हम किसानों के हितैषी हैं। जियो केबल टीवी है पर जियो फाइबर अभी ठीक तरह से अपने प्रदेश में लांच नहीं हो पाया है।
रिलायंस के कुछ थोक और फलों के बाजार भी छत्तीसगढ़ में हैं, कुछ पेट्रोल पम्प भी हैं। लोगों को शुद्धता और मात्रा को लेकर सरकारी उपक्रमों से कहीं ज्यादा उन पर भरोसा रहा है। ज्यादातर खरीदी रोजमर्रा की खरीदी में नहीं है। तो बहिष्कार करने लायक अम्बानी के मामले में तो कुछ ज्यादा दिखाई नहीं देता। ऐसा ही कुछ अडाणी को लेकर भी है। सरगुजा व दूसरे जिलों में कुछ कोयला खदानों में उत्खनन का काम अडाणी के पास है उनके कोयले की खपत किस बिजलीघर में हो गई कुछ पता चलना है नहीं, इसलिये बिजली का बॉयकाट नहीं हो पायेगा।
कुछ प्रमुख राजमार्गों का निर्माण कार्य अडाणी की कम्पनी को मिला है। इन सडक़ों पर अडाणी का मालिकाना हक तो है नहीं। और इन दोनों कुबेरों के यहां काम करने वाले कर्मचारियों पर इस बहिष्कार का क्या असर पड़ेगा, यह भी सवाल है। किसानों के समर्थक होते हुए भी वे रोजगार के मौजूदा विपरीत हालात में उनकी नौकरी छोडऩे की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे। बहरहाल, किसान आंदोलन से सहानुभूति रखने वालों को बहिष्कार की बात में दम तो लगता है पर कोई रोडमैप नहीं होने के कारण भारी असमंजस की स्थिति है।
कर्ज की मंजूरी तो बरस रही है!
कौन बनेगा करोड़पति में अमिताभ बच्चन हर बार यह घोषणा करते हैं कि टेलीफोन पर बैंक-ठगी से बचकर रहें। लेकिन ठग इतनी नई तरकीबें निकालते हैं कि लोग झांसे में आ ही जाते हैं। कुछ दिन पहले ही इसी जगह जालसाजों के आने वाले संदेश का एक नमूना दिया गया था, आज उनके दो और नमूने पेश हैं।
फोन पर मैसेज आते हैं कि आपका कर्ज मंजूर हो गया है, और उसमें लाख-दो लाख रूपए की रकम भी लिखी रहती है। अब जिन लोगों ने किसी कर्ज के लिए अर्जी दे रखी है, वे तो हड़बड़ी में उसे खोल ही लेंगे, और वहां से जालसाजी शुरू हो जाएगी, ठग आपको आगे फंसाते जाएंगे। यह बात याद रखें कि कर्ज आसानी से मंजूर नहीं होता है, और छोटे लोगों का कर्ज तो आसानी से और भी मंजूर नहीं होता है। इसलिए गुमनाम-बेनाम संदेशों में आए हुए लिंक खोलकर न देखें। झारखंड का एक गांव ऐसी ही साइबर-ठगी के लिए दुनिया भर में बदनाम है और लोगों को इस पर अभी नेटक्लिक्स पर आई टीवी सीरिज देखनी चाहिए जिसका नाम है जामताड़ा:सबका नंबर आएगा। भारत के किसी आईआईएम को इस गांव पर रिसर्च भी करना चाहिए कि कैसे एक छोटे से गांव में हर अनपढ़ इंसान भी जालसाज बनने की इतनी संभावना रखते हैं।
जमीन के गोरखधंधे में कितने हाथ रंगे?
कोरोना काल के बाद मरवाही चुनाव का बोझ, अब राजस्व मंत्री को कुछ फुर्सत मिली और तुरंत एक तहसीलदार पर गाज गिरी। बिल्हा के तहसीलदार ने अरबों की 26 एकड़ जमीन 6 लोगों के हवाले कर दी। आधार बनाया, हाईकोर्ट के दुर्ग जिले के मामले में आये फैसले को। इस फैसले में मोटे तौर यह था मालगुजारी के दौरान खरीदी गई जमीन को सरकारी दस्तावेजों से दुरुस्त कर उनके वारिसों के नाम पर चढ़ाया जाये। कोर्ट का फैसला एक प्रकरण विशेष पर था, प्रदेशभर के लिये कोई सामान्य निर्देश नहीं था। तहसीलदार सफाई देने में नहीं चूका पर एक्शन तुरंत हो गया। अब स्थिति यह है कि जिनके नाम पर जमीन चढ़ाई गई, उन्होंने और कई लोगों को वह जमीन बेच दी। मतलब सरकारी रिकॉर्ड में चढ़ाने की प्रक्रिया अब भी लम्बी है।
कोरोना काल के बाद लम्बित राजस्व मामलों की समीक्षा भी नहीं हो पाई है। सैकड़ों शिकायतें पड़ी हुई हैं। क्या रायपुर, क्या बिलासपुर, क्या बड़े मामले और क्या छोटे । पूर्ववर्ती सरकार में भदौरा सहित कई मामले चर्चा में थे। क्या गौचर और क्या तालाब। सरकारी जमीन की बंदरबांट जारी है। तहसीलदार तो एक मामूली प्यादा है। अचरज की बात नहीं कि एन्टी करप्शन ब्यूरो ने हाल ही में जो वाट्सअप और ई मेल पर भ्रष्टाचार की शिकायतें लेनी शुरू की है उनमें सर्वाधिक केस राजस्व के ही हैं।
शिक्षा सत्र भेंट चढऩे के कगार पर
राज्य सरकार ने अब तक संकेत नहीं दिया है कि स्कूलों को कब खोला जायेगा। हालांकि केन्द्र की ओर से कोई पाबंदी नहीं है। सरकारी स्कूल के शिक्षक मना रहे हैं कि कोरोना के नाम दिन जैसे-तैसे निकल जाये और अगले सत्र में पढ़ाई शुरू हो। सत्र का समापन की ओर बढऩा देखकर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को जितना रास आ रहा है निजी स्कूल प्रबंधकों की उतनी ही चिंता बढ़ती जा रही है। स्कूल फीस मारी जा रही है। इनकी तरफ से हाईकोर्ट में केस दायर किया गया और कुछ नियमों के बंदिश में बांधते हुए स्कूल फीस लेने की इजाजत भी मिल गई पर पालकों की तरफ से कई आपत्तियां हैं। उनका कहना है कि ट्यूशन फीस के नाम पर कई तरह की फीस जोड़ दी गई जो ऑनलाइन क्लासेस में नहीं लेनी चाहिये।
अब मामला डबल बेंच में सुना जा रहा है। पर इस पर निर्णय अभी आया नहीं है। फीस वसूली ढीली ही चल रही है।
मध्यप्रदेश में निजी स्कूलों के संचालक कुछ हिम्मती हैं। उन्होंने वहां सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि स्कूल बंद होने से 30 लाख परिवारों के रोजगार पर संकट आया है। पांच दिन के भीतर स्कूल खोलने का निर्णय नहीं लिया गया, तो मुख्यमंत्री का बंगला घेरेंगे। मगर, सौ टके की बात ये है कि छत्तीसगढ़ हो या मध्यप्रदेश स्कूल खुलने के बाद भी पालक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये राजी होंगे क्या?
ज्यादातर पालक तो अब भी बस, आटो रिक्शा में सफर और स्कूलों में पढ़ाई, खेल के दौरान सोशल डिस्टेंस को लेकर चिंतित है। अभी तो लोग कॉलेज भी खोलने को तैयार नहीं हैं। शायद यह सत्र ऑनलाइन पढ़ाई में ही गुजरे और कुछ जरूरी परीक्षाओं को छोडक़र शेष में जनरल प्रमोशन देने की स्थिति बने।
ड्रग्स में नाम कमाती राजधानी
मुम्बई में बॉलीवुड कलाकारों के ड्रग रैकेट से रिश्ते की तो देशभर में चर्चा हो रही है पर लगता है कि अपने प्रदेश की राजधानी के भी मशहूर होने में देर नहीं है। जो ताजा मामला सामने आया है वह चौंकाने वाला है क्योंकि अभियुक्त ऐसे परिवार से जुड़ा है जिसे नशे के खिलाफ मुहिम चलाने के नाम पर जाना जाता है। रायपुर की देश के महानगरों से सीधी हवाई सेवा है, जिसके चलते तस्करी आसान हो गई है। युवाओं का एक वर्ग है जिनके पास उल्टे-सीधे खर्च के लिये ढेर सारे पैसे हैं।
सोचनीय स्थिति यह है कि ड्रग सेवन स्टेटस सिम्बॉल बनता जा रहा है। सोशल मीडिया पर ड्रग्स की तस्वीरें डालना इस बात का उदाहरण है। गांजा जैसा सस्ता नशा ही नहीं, कोकीन जैसी महंगी नशीली वस्तुओं का कारोबार हो रहा है। रायपुर पुलिस ने अब तक जिन 18 लोगों को गिरफ्तार किया है उनमें लड़कियां भी हैं। सामाजिक और राजनैतिक पकड़ रखने वाले भी। समझ में यह बात आती है कि केवल पुलिस की कार्रवाई से इस पर लगाम नहीं लगने वाली है, पर युवाओं में जागरूकता लाने के लिये कुछ मनोवैज्ञानिक तरीके भी अपनाने पड़ेंगे।
यात्री रेल कब अपनी रफ्तार पकड़ेगी?
अब जबकि सभी तरह की परिवहन सेवायें शुरू की जा चुकी हैं, रेलवे ने अब तक यात्री ट्रेनों के नियमित संचालन का कोई निर्णय नहीं लिया है। ट्रेनें चल रही हैं और केवल कन्फर्म टिकटों पर ही यात्रा की इजाजत है। टिकटों की कालाबाजारी इस हद तक हो रही है कि रायपुर में कल चीफ रिजर्वेशन सुपरवाइजर सहित सात लोगों को गिरफ्तार करना पड़ा है। कोरोना के नाम पर दी जाने वाली सभी तरह की रियायतें रेलवे ने बंद कर दी है। इधर, प्रीमियम राशि भी अधिकांश ट्रेनों में स्पेशल के नाम पर वसूल की जा रही है।
रेलवे अपनी टिकटों में लिखा करता है कि यात्री भाड़ा उसके लिये बोझ है, नुकसान उठाना पड़ता है। बकायदा टिकटों में यह प्रिंट होता है। दूसरी तरफ हर पखवाडे एक प्रेस रिलीज रेलवे की जारी हो रही है जिसमें यह बताया जा रहा है कि माल भाड़े में उसे पिछले साल के मुकाबले ज्यादा मुनाफा हो रहा है। बीते एक दिसम्बर को ही बताया गया कि एक अप्रैल 2020 से 30 नवंबर 2020 के बीच 22 हजार 610 टन पार्सल लोडिंग की गई जो एक रिकॉर्ड है। यात्री ट्रेनों के बंद होने केवल पैसेंजर ही नहीं, कुली, खोचमा, जूते चमकाने वाले, रिक्शा चलाने वाले, सबके पेट पर चोट पहुंची है। जो ट्रेनें रेलवे चला रही है उनमें दो गज दूरी का कोई नियम लागू नहीं है। सभी सीटें बुक हो रही हैं। लोग सटकर बैठ रहे हैं। इसका साफ मतलब है कि यात्री ट्रेनों को बंद रखना कोरोना की वजह से तो नहीं है। कहीं रेलवे धीरे-धीरे यात्री ट्रेनों के संचालन से हाथ तो नहीं खींच रहा?
बीजेपी का 1000 दिन का टारगेट
छत्तीसगढ़ न राजस्थान है और न ही मध्यप्रदेश। सत्ता परिवर्तन की कोई गुंजाइश यहां दिखाई नहीं दे रही है। न तो यहां सत्ता पक्ष की तरफ से किसी विधायक का असंतोष सुलग रहा है न ही वादाखिलाफी जैसे कारण सामने आ रहे हैं। भाजपा भी मानकर चल रही है कि हार-जीत का फासला बीते चुनाव में इतना बड़ा रहा कि कांग्रेस की सरकार पांच साल चलेगी। सन् 2023 में जब आम चुनाव होंगे, तभी सत्ता परिवर्तन की उम्मीद है।
इसके लिये अभी से भाजपा ने मेहनत शुरू कर दी है। हाल के उप-चुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रह सका। इधर भूपेश बघेल सरकार के दो साल पूरे होने जा रहे हैं। एक विपक्षी दल होने के नाते अब सरकार के खिलाफ मुद्दों को उठाना भाजपा के लिये जरूरी है। मगर नतीजा आ गया विपरीत। प्रदेश भाजपा की नव नियुक्त प्रभारी डी. पुरन्देश्वरी ने भी कहा है कि तीन साल बाद सरकार बनने से कम कुछ नहीं चाहिये। प्रभारी ने कह दिया है कि प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करें और यह कई जिलों में शुरू हो भी गया है। उनका दो दिन का रायपुर, बिलासपुर प्रवास कितना कामयाब रहा, यह आगे मालूम होगा।
भाजपा के हारे प्रत्याशी अब भी नाराज
भाजपा की नवनियुक्त प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने विधानसभा के पराजित प्रत्याशियों की बैठक बुलाई, तो उनमें खुशी की लहर दौड़ पड़ी। राजनांदगांव जिले के कुछ पराजित प्रत्याशियों ने तो बकायदा भितरघातियों की सूची भी तैयार कर ली थी, जो कि अभी भी पार्टी में प्रभावशाली हैं। लेकिन बाद में उन्हें यह बताया गया कि पराजित प्रत्याशियों के साथ ही विजयी प्रत्याशी अर्थात मौजूदा विधायक भी रहेंगे, तो वे थोड़े मायूस हो गए। थोड़ी देर बाद पार्टी दफ्तर से पराजित प्रत्याशियों के पास फोन आया कि भाई साब आए हुए हैं, आप लोग बैठक के बाद उनसे मिल सकते हैं। इसके बाद तो ज्यादातर हारे हुए प्रत्याशियों ने शिकवा-शिकायत का इरादा ही बदल दिया।
प्रत्याशियों की बैठक का नजारा एकदम अलग था। सुनते हैं कि हारे प्रत्याशियों को उम्मीद थी कि उनसे हार के कारणों की पूछताछ होगी। मगर ऐसा नहीं हुआ। उन्हें बैठक शुरू होते ही प्रोफार्मा दे दिया गया। जिसमें अपना नाम, विधानसभा क्षेत्र और जिले का नाम भरना था। और उन्हें प्रदेश सरकार के खिलाफ उनके इलाके में मुद्दों का भी ब्यौरा देना था। बैठक में मंच में अतिथियों ने अपनी बातें कही, और फिर बैठक खत्म होने से पहले प्रत्याशियों से प्रोफार्मा भरवाकर वापस ले लिए। चर्चा है कि पुरंदेश्वरी ने ताड़ लिया कि पराजित प्रत्याशियों में काफी नाराजगी है, लेकिन वे अपनी बात नहीं कह पा रहे हैं। उन्होंने यह कहकर उन्हें आश्वस्त किया कि जल्द ही वे जिले और मंडल तक का दौरा करेंगी, और उनकी बात सुनेंगी। पुरंदेश्वरी की बात सुनकर पराजित प्रत्याशी संतुष्ट होकर रवाना हुए।
कंवर का लेटर बम
भाजपा प्रभारी और सह प्रभारी के दौरे के बीच असंतुष्टों ने ननकीराम कंवर का लेटर बम फोड़ दिया। चर्चा है कि अगर असंतुष्ट नेताओं को खुलकर बोलने का दिया जाता, तो शायद अमित शाह को लिखा यह पत्र लीक नहीं होता। तीन साल पुराने इस पत्र में दिग्गज आदिवासी नेता ने रमन सरकार में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक आतंकवाद का खुलकर जिक्र किया था। उन्होंने यह भी लिखा था कि समय रहते इसको नियंत्रित नहीं किया गया, तो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। मीडिया के माध्यम से यह पत्र पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन तक पहुंचाकर असंतुष्ट नेताओं ने एक तरह से अपनी बातें रख दी है। अब जहां तक पत्र लिखने वाले ननकीराम कंवर का सवाल है, तो वे यह मान रहे हैं कि अमित शाह को पत्र लिखकर सारी जानकारी पहले ही दे दी थी। देखना है कि पत्र लीक होने के मामले में कंवर से पार्टी पूछताछ करती है अथवा नहीं।
जंगल में प्रमोशन का पेंच
वन विभाग में पीसीसीएफ के खाली पद पर पदोन्नति के पेंच को सुलझाने की कोशिश चल रही है। वर्तमान में पीसीसीएफ के 4 पद हैं। पिछली सरकार के प्रस्ताव पर केन्द्र ने दो अतिरिक्त पदों को सीमित अवधि के लिए मंजूरी दी थी। अतिरिक्त पदों पर पदोन्नति भी हो गई। और अब जब पीसीसीएफ के रिक्त पद पर पदोन्नति की फाइल चली, तो सीएम ने तो कह दिया कि सिर्फ प्रमोशन के लिए अतिरिक्त पद बढ़ाने की जरूरत नहीं है।
पीसीसीएफ के स्वीकृत 4 पदों में मुदित कुमार सिंह, राकेश चतुर्वेदी, अतुल शुक्ला, संजय शुक्ला पदस्थ थे। मुदित सिंह डीजी सीजी कास्ट बने, तो रिक्त पद पर नरसिम्हराव पीसीसीएफ हो गए। अतिरिक्त पद पर पीसी पाण्डेय और देवाशीष दास पदोन्नति पा गए। अब देवाशीष दास रिटायर हुए, तो सीनियर एपीसीएफ जेईसी राव की पदोन्नति पर चर्चा हुई, लेकिन सीएम का रूख देखकर फाइल आगे नहीं बढ़ पा रही थी।
सुनते हैं कि वन विभाग ने अब पदोन्नति से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए नया प्रस्ताव दिया है कि जिसमें कहा गया कि केन्द्र सरकार ने पीसीसीएफ के दो अतिरिक्त पदों को अक्टूबर-2021 तक के लिए मंजूरी दी थी। इसलिए देवाशीष दास की जगह जेईसी राव को पदोन्नत किया जा सकता है। वैसे भी राव जुलाई में रिटायर होने वाले हैं। अक्टूबर के बाद अतिरिक्त पदों पर पदोन्नति नहीं होगी, और ये पद स्वमेव खत्म हो जाएंगे। उम्मीद है कि वन विभाग के नए प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाएगी।
साय की अनदेखी?
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय भाजपा की मुख्य धारा में लौटना चाहते हैं। मगर उनके विरोधी ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं। कम से कम साय के करीबी समर्थक तो ऐसा ही मानते हैं। साय को जब प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली, तो इन चर्चाओं को बल मिला।
हालांकि संगठन के नेताओं का तर्क है कि सायजी प्रदेश के पदाधिकारी नहीं हैं, इसलिए उन्हें बैठक में नहीं बुलाया गया। मगर इसका कोई जवाब नहीं है कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी नंदकुमार साय की तरह कार्यसमिति के सदस्य हैं, लेकिन वे मंच पर बैठे थे। जबकि पार्टी के सबसे सीनियर नेता होने के नाते साय हर बैठक के लिए पात्रता रखते हैं। खुद साय नई प्रभारी की मौजूदगी में पार्टी की बैठकों को लेकर काफी उत्साहित थे।
वे सुबह से तैयार होकर नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंच गए थे। वहां पुरंदेश्वरी को अपना परिचय दिया। पुरंदेश्वरी ने भी उनकी वरिष्ठता जानकर साय का पूरे सम्मान के साथ अभिवादन किया। नंदकुमार साय अविभाजित मप्र भाजपा के दो बार अध्यक्ष रहे।
राज्य बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष बने। वे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भाजपा की कोर ग्रुप के सदस्य भी रहे, लेकिन अजजा आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद कोर ग्रुप से बाहर हो गए। अध्यक्ष पद से हटने के बाद उन्हें दोबारा कोर ग्रुप में नहीं लिया गया। बैठक में नहीं बुलाने से साय नाखुश बताए जा रहे हैं। जानकार मानते हैं कि दिग्गज आदिवासी नेता की उपेक्षा पार्टी को भारी पड़ सकती है। मगर एक बात साफ है कि सत्ता जाने के बाद भी पार्टी में गुटबाजी पर लगाम नहीं लग पाया है।
मैंने काफी बरसों पहले पढ़ा था
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय
अब पता लगा ये ढाई अक्षर क्या है-
ढाई अक्षर के ब्रह्मा और ढाई अक्षर की सृष्टि
ढाई अक्षर के विष्णु और ढाई अक्षर के लक्ष्मी
ढाई अक्षर के कृष्ण और ढाई अक्षर की कान्ता।
(राधा रानी का दूसरा नाम)
ढाई अक्षर की दुर्गा और ढाई अक्षर की शक्ति
ढाई अक्षर की श्रद्धा और ढाई अक्षर की भक्ति
ढाई अक्षर का त्याग और ढाई अक्षर का ध्यान
ढाई अक्षर की तुष्टि और ढाई अक्षर की इच्छा
ढाई अक्षर का धर्म और ढाई अक्षर का कर्म
ढाई अक्षर का भाग्य और ढाई अक्षर की व्यथा
ढाई अक्षर का ग्रन्थ और ढाई अक्षर का सन्त
ढाई अक्षर का शब्द और ढाई अक्षर का अर्थ
ढाई अक्षर का सत्य और ढाई अक्षर की मिथ्या
ढाई अक्षर की श्रुति और ढाई अक्षर की ध्वनि
ढाई अक्षर की अग्नि और ढाई अक्षर का कुण्ड
ढाई अक्षर का मंत्र और ढाई अक्षर का यंत्र
ढाई अक्षर की श्वांस और ढाई अक्षर के प्राण
ढाई अक्षर का जन्म ढाई अक्षर की मृत्यु
ढाई अक्षर की अस्थि और ढाई अक्षर की अर्थी
ढाई अक्षर का प्यार और ढाई अक्षर का युद्ध
ढाई अक्षर का मित्र और ढाई अक्षर का शत्रु
ढाई अक्षर का प्रेम और ढाई अक्षर की घृणा
जन्म से लेकर मृत्यु तक हम बंधे हैं ढाई अक्षर में।
हैं ढाई अक्षर ही वक्त में और ढाई अक्षर ही अंत में।
समझ न पाया कोई भी है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।
चंदा या सहयोग राशि
कोई भी रसीद लेकर निकलता है तो उसमें चंदे की रकम है, नहीं लिखा जाता, सहयोग राशि ही लिखा होता है। इसलिये पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ठीक कहते हैं कि राम मंदिर के लिये चंदा नहीं लिया जा रहा है, सहयोग राशि ली जा रही है। उन्होंने इसे सीधे सीधे राम पर आस्था से भी जोड़ दिया है। जिनको राम में आस्था है वह चंदा देगा। जिन्होंने चंदा नहीं दिया क्या उनके बारे में क्या समझा जायेगा कि वह राम में आस्था नहीं है?
डॉ. सिंह की यह प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के उस बयान पर आई है जिसमें उन्होंने कहा कि भाजपा चंदा लेने वाली पार्टी है। इसी मुद्दे पर स्वास्थ्य मंत्री डॉ. टीएस सिंहदेव का बयान भी गौर करने के लायक है। उन्होंने कहा कि अगर चंदा लेते हैं तो उसका हिसाब भी दिया जाये।
अब कौन सी समिति चंदा देने वालों को हिसाब देती है? राम मंदिर आंदोलन की शुरू हुआ तब भी लोगों से चंदा (सहयोग राशि) लिया गया था। कई बार लोगों ने आवाज उठाई कि उसका हिसाब तो दें। पर अब वह पुरानी बात हो गई। बहुत से लोग भूल चुके होंगे। डॉ. सिंह का कहना है कि सिंहदेव अपनी जेब संभालकर रखें, यह नहीं कहा कि पाई-पाई का हिसाब देंगे। आस्था का सवाल है, इसमें हिसाब मांगना क्या जायज है?
समर्थन मूल्य से कम पर बेचने की मजबूरी
धान की फसल के अलावा भी कई अन्य उपज हैं जिनका समर्थन मूल्य निर्धारित है, जैसे मक्का। इसकी सरकारी खरीद दर 1850 रुपये है। पर लोग इसे लोग सरकारी खरीदी केन्द्र में बेचने की जगह व्यापारियों के हाथों बेच रहे हैं। वजह बताई जा रही है पंजीयन में आने वाली दिक्कतें।
मक्के या दूसरी किसी फसल के लिये पंजीयन कराने के लिये भी धान की ही तरह कई दस्तावेज लगते हैं। जैसे ऋण पुस्तिका, आधार कार्ड, रकबे के सत्यापन के लिये भूमि के कागजों की प्रतिलिपि। बस्तर के कोंडागांव जिले में कृषि विभाग के आंकड़े के अनुसार करीब 31 हजार हेक्टेयर में मक्का बोया गया है पर इसके लिये सोसाइटियों में करीब 4 हजार हेक्टेयर का ही पंजीयन कराया गया।
व्यापारी समर्थन मूल्य से 5-6 सौ रुपये कम दाम दे रहे हैं पर तुरंत नगद भुगतान कर रहे हैं और वे कोई दस्तावेज भी किसानों से नहीं मांग रहे। इस परिस्थिति को किसान आंदोलन के संदर्भ में समझना जरूरी है। एमएसपी और सरकारी खरीद रहे, साथ ही सरकारी खरीदी आसान भी हो, भुगतान भी जल्दी हो। अभी तो किसानों के खाते में धान का पैसा आ रहा है पर एकमुश्त बड़ी रकम निकालने की छूट नहीं है।
कोरोना लैब में जब केक कटा
कोरोना महामारी से नियंत्रण में जुटे डॉक्टर, नर्सों और टेक्नीशियन की टीम पर काम का बड़ा दबाव है। सरकार की तरफ से उन्हें टेस्ट की संख्या बढ़ाने का निर्देश है जिसके लिये दिन-रात काम करना पड़ता है। बहुत से ऐसे डॉक्टर्स और स्टाफ की खबरें आई हैं कि उन्होंने कई महीनों से कोई छुट्टी नहीं ली। उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को कोरोना हुआ तब भी ड्यूटी करते रहे। यहां तक कि करीबियों की मौत के बाद भी।
ऐसे में ऊर्जा बनाकर, माहौल खुशनुमा बनाये रखने के लिये कुछ-कुछ करना पड़ता है। यही वजह है कि सिम्स बिलासपुर में जब आरटीपीसीआर टेस्ट ने 50 हजार की संख्या को छुआ तो उसे स्टाफ ने जश्न की तरह मनाया। केक काटा और डांस कर एक दूसरे को बधाई दी। अब उन्होंने एक लाख टेस्ट का आंकड़ा छूने का इरादा बनाया है। कोरोना का सबसे बुरा दौर शायद बीत चुका है पर इसे पूरी तरह खत्म करने के लिये चिकित्सा कर्मियों में जोश बनाये रखना जरूरी है।
मंडल का काम क्या?
एनआरडीए में भरा पूरा स्टॉफ है। मगर ज्यादातर के पास कोई काम नहीं है। बजट नहीं होने के कारण तकरीबन सभी काम बंद पड़े हैं। सीएम-मंत्रियों के बंगलों का निर्माण कार्य जरूर चल रहा है, लेकिन ये काम भी पीडब्ल्यूडी के मार्फत हो रहे हैं। एनआरडीए में चार डिप्टी कलेक्टर, दो नायब तहसीलदार, एक तहसीलदार सहित कई अफसर पदस्थ हैं। और अब आरपी मंडल की चेयरमैन और आईएएस कुलदीप शर्मा की एडिशनल सीईओ के पद पर पोस्टिंग हो गई है। मंडल ने चेयरमैन का काम संभाला, तो अफसरों से वन-टू-वन चर्चा की। उनसे कामकाज को लेकर पूछताछ की, तो पाया कि ज्यादातर लोग खाली बैठे रहते हैं।
मंडल ने सभी से कामकाज को लेकर प्लान मांगा है। सुनते हैं कि ज्यादातर अफसरों ने निजी कारणों से रायपुर में रहने की चाह में एनआरडीए में पोस्टिंग करा ली है। अब उन्हें अपने लायक काम ढूंढने के लिए माथापच्ची करनी पड़ रही है।
कुछ इसी तरह का हाल मानवाधिकार आयोग का भी रहा है। कोई अफसर फील्ड में जाना नहीं चाहते हैं, तो वे आयोग में पोस्टिंग करा लेते थे। मगर एनआरडीए की बात अलग है। मंडल अपने निर्माण कार्यों को अमलीजामा जाने जाते हैं। देखना है कि वे वहां कार्य संस्कृति में बदलाव ला पाते हैं, अथवा नहीं। और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि सरकार एक मुर्दा शहर को जिंदा करने के लिए वेंटीलेटर पर कितना खर्च करेगी? कहाँ से करेगी?
कुल मिलाकर नया रायपुर एक सफेद हाथी हो गया है, सरकार के पास न उसे खिलाने को पैसा है, न उसकी लीद उठाने को, और न उसे नहलाने को। हाँ, मंडल के जिम्मे नया रायपुर की जमीनें रियायती रेट पर बेचने का जिम्मा जरूर है।
युवा नेता का बड़बोलापन !
भाजपा के एक मोर्चा के मुखिया बनाए गए युवा नेता के बड़बोलेपन से पार्टी के बड़े नेता परेशान हो गए हैं। इस युवा नेता ने पदभार संभालने के बाद से पार्टी नेताओं के बीच अनौपचारिक चर्चा में बोलना शुरू कर दिया कि पार्टी को सत्ता में लाने की जिम्मेदारी मेरी है। युवा नेता ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि वे रायपुर ग्रामीण से चुनाव लड़ेंगे, और सरकार में मंत्री भी बनेंगे।
दरअसल, नया दायित्व संभालने के बाद युवा नेता का जगह-जगह स्वागत हो रहा है। भिलाई में तो इतना स्वागत हुआ कि शायद ही किसी जनप्रतिनिधि का वहां हुआ हो। इतना स्वागत देखकर किसी का भी बौराना स्वाभाविक है। वैसे तो यह युवा नेता कुछ समय पहले तक वार्ड स्तर का कार्यकर्ता रहा है, लेकिन जाति समीकरण को ध्यान में रखकर पार्टी ने एकाएक ऊंचे पद पर बिठा दिया। अब पद पाने के बाद युवा नेता अपनी हसरत जाहिर कर रहे हैं, तो पार्टी के लोग ही बेचैन हो रहे हैं।
पेयजल की बर्बादी रोकने संजीदा कौन
पिछले साल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए नेशलन ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) को यह सुनिश्चित करने कहा कि वह पेयजल की बर्बादी रोकने के लिये जरूरी कदम उठाये। इसमें पांच साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा भी तय की गई। इस दायरे में औद्योगिक, व्यापारिक, शासकीय निजी संस्थान ही नहीं, आम नागरिक भी शामिल हैं। प्राधिकरण ने इस साल 15 अक्टूबर को राज्यों को पत्र भेजा और अब हाल ही में राज्य सरकार की ओर से नगर निगमों, नगरपालिकाओं को पत्र भेजा गया है। कई उद्योगों को नोटिस जारी की गई है और उनसे जवाब मांगा गया है। नगरीय निकायों के अलावा जल संसाधन विभाग को भी इसकी जिम्मेदारी दी गई है।
पीने के पानी के दुरुपयोग में उद्योग और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के अलावा आम लोग भी गंभीर नहीं हैं। छोटी-बड़ी गाडिय़ों की धुलाई, गेट के सामने छिडक़ाव कई लोगों का नियमित काम है। कड़ाई बरती जायेगी तो जगह-जगह खुली कार-वॉश की दुकानें भी इस कानून के दायरे में आ जायेंगी। कुछ महानगरों में तो इस बर्बादी पर जुर्माने और सजा का प्रावधान पहले से ही किया जा चुका है।
अपने यहां पाइप लाइन में लीकेज के मामले अक्सर आते हैं। कई बार हफ्तों, महीनों सुधार नहीं होता। हर साल गर्मी में रायपुर सहित शहरों के अनेक मोहल्लों में पानी जबरदस्त किल्लत हो जाती है और टैंकरों से सप्लाई की जाती है। जैसे ही संकट दूर होता है लोग तकलीफ भूल जाते हैं और अपने ढर्रे पर वापस आ जाते हैं। जिन नगरीय निकायों को कानून का पालन करने की जिम्मेदारी दी गई है, उनके स्तर पर देखा गया है सार्वजनिक नलों की टोटियां टूटी पड़ी रहती हैं और टैंक के खाली होने तक पानी बहता रहता है। आदेश को दो महीने होने के आये अब तक तो कोई बड़ी कार्रवाई हुई नहीं, लगता नहीं कि नगरीय निकाय कड़ाई बरत पायेंगे। हां, लोगों में समझदारी बढ़े और अपनी आदत खुद बदलें तो ही बात बन सकती है।
सीएम की घोषणा से किसानों ने ली ठंडी सांस
मुख्यमंत्री ने कल दो घोषणायें की वे किसानों को बड़ी राहत पहुंचाने वाली हैं । जशपुर में उन्होंने धान खरीदी केन्द्रों का निरीक्षण करने के बाद घोषणा की कि इस साल के धान का भी 2500 रुपये क्विंटल की दर से भुगतान किया जायेगा। अभी केन्द्र द्वारा तय समर्थन मूल्य मिल रहा है पर बाद में शेष राशि राजीव किसान न्याय योजना के तहत दी जायेगी। उन्होंने यह भी बताया कि इसकी पहली किश्त मई 2021 में मिलेगी।
विपक्ष की ओर से इस बारे में बार-बार सवाल उठ रहे थे, किसानों के मन में भी संशय था। इसके अतिरिक्त उन्होंने कल ही कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि जहां भी गिरदावरी रिपोर्ट गलत बनी है, यानि किसान का वास्तविक रकबा कम्प्यूटर में नहीं दिख रहा है उनमें सुधार किया जाये ताकि किसान अपनी पूरा उपज बेच सकें। साफ है कि कोंडागांव में धान नहीं बेच पाने के चलते एक किसान ने आत्महत्या की थी जिसके चलते इस समस्या की ओर सरकार का ध्यान गया। भले ही पहले से ही प्रदेशभर से शिकायतें आ रही थीं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को निगरानी का काम तो सौंपा गया है ही, उम्मीद कर सकते हैं कि जमीनी स्तर पर इस आदेश का अमल ठीक तरह हो, वे यह देखेंगे।
पुलिस का बचाव और लगाव
गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू का अपने विभाग के अफसरों का बचाव करने के मामले में कोई जवाब नहीं, भले ही इसके लिये उन्हें अपने ही दल के विधायक की खिंचाई करनी पड़ जाये। मीडिया ने उनके बिलासपुर प्रवास के दौरान सवाल किया कि विधायक शैलेष पांडे ने पुलिस में भ्रष्टाचार होने का सार्वजनिक मंच से आरोप लगाया था और थानों में रेट लिस्ट टांगने का सुझाव दिया था। उस पर क्या हुआ? मंत्री जी ने कहा उन्होंने मुझसे लिखित शिकायत ही नहीं की, मौखिक भी कुछ नहीं कहा। आगे यह भी कह गये कि ऐसा (गंभीर) आरोप तो प्रदेश के भाजपा सहित प्रदेश के 90 विधायकों में से किसी ने नहीं लगाया। बाद में पांडे ने इसके जवाब में कहा कि मैं शहर का विधायक हूं। क्या मौखिक और क्या लिखित, मंच से सार्वजनिक रूप से आरोप लगा दिया है, क्या जांच के लिये यह काफी नहीं?
मंत्री से दूसरा सवाल लाठी चार्ज मामले की जांच अब तक पूरी नहीं होने पर था। कांग्रेस का आरोप था कि यह कार्रवाई डीएसपी (अब एडिशनल) के इशारे पर हुई। उन्हें बहाल भी किया गया और अच्छी पोस्टिंग भी मिल गई। क्यों इतना लगाव है उनसे? मंत्री जी ने कहा- लगाव तो प्रत्येक स्टाफ से है। जांच क्यों पूरी नहीं हुई, समीक्षा करेंगे। कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता मंत्री के इस रुख से हैरान हैं, खासकर लाठी खाने वाले।
अब मरवाही के कांग्रेसी भिड़े अफसरों से
सत्ता से जुड़े जिला और ब्लॉक स्तर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं की आये दिन नाराजगी खुलकर सामने आ रही है। ऩई घटना छत्तीसगढ़ की हॉट सीट मरवाही से जुड़ी है। पेन्ड्रा नगर पंचायत में तीन एल्डरमेन नियुक्त किये गये हैं। इनको शुक्रवार को एसडीएम शपथ दिलाने वाले थे। वे वहां पहुंचे तो पता चला तीनों एल्डरमेन समारोह का बहिष्कार कर बाहर निकल गये हैं।
पता चला, एल्डरमेन इस बात से नाराज थे कि मरवाही विधायक डॉ. के. के. ध्रुव और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मनोज गुप्ता को समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया। सीएमओ का तर्क था कि यह नगर पंचायत का कार्यक्रम है, सभी पार्षदों को तो बुलाया गया है। एल्डरमेन नहीं माने। उन्होंने शपथ लेने से मना कर दिया। उन्हें यह भी लगा कि एक खास गुट की बातों में आकर सीएमओ ने ऐसा किया।
अब तय हुआ है कि एल्डरमेन एक बड़े समारोह में शपथ लेंगे जिसमें विधायक, जिला कांग्रेस के अध्यक्ष और दूसरे पदाधिकारी भी शामिल होंगे। याद होगा कि दो दिन पहले ही बिल्हा में कांग्रेस के नेता एक कार्यक्रम के दौरान कृषि विभाग के अधिकारियों पर बरस पड़े थे। यहां मुख्य अतिथि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक थे। तीन घंटे तक कार्यक्रम रुका रहा। दुबारा तब शुरू हो सका जब सीएम का फोटो लगा नया पोस्टर बनकर आया।
प्रदेशभर में बड़ी भीड़ है, सत्ता से जुड़े कार्यकर्ताओं की। अधिकारी पेशोपेश में चल रहे हैं। किसे सुनें, किसकी न सुनें। इसलिये अपने मन की करते हैं और वहां भी फंस जाते हैं।
धान खरीदी निगरानी वाले कहां थे?
राजनीति करनी है तो धान खरीदी एक उत्सव की तरह है। कोई भी दल पीछे नहीं है खरीदी केन्द्रों में पहुंचकर अपनी तस्वीरें खिंचाने में। निगरानी समितियां बनाई गई है। जिलों के अधिकारी भी इस बड़े काम में व्यस्त होने का हवाला देते हुए दफ्तरों में कम दिखाई दे रहे हैं। लगभग छोटी-बड़ी सभी पार्टियों ने निगरानी समितियां बना डाली हैं जिनका दावा है कि वे बिक्री के दौरान किसानों को आने वाली दिक्कतों को दूर करेंगे।
चौतरफा सब के सब किसानों की मदद करने के लिये तैयार बैठे हैं, फिर कोंडागांव में किसान धनीराम ने आत्महत्या क्यों कर ली? वह कोई छोटा किसान नहीं था, 6.7 एकड़ जमीन पर उसने धान लिया। 100 क्विंटल बेचने की तैयारी की थी, पर सॉफ्टवेयर में ऐसी गड़बड़ी हुई कि उसे सिर्फ 11 क्विंटल धान बेचने की इजाजत मिली। प्रशासन ने खुदकुशी के तुरंत बाद तेजी से जांच कर निष्कर्ष निकाल लिया कि दो साल पहले किसान के बेटे ने आत्महत्या की थी, इसलिये वह परेशानी में नशा करने लगा था, पेड़ पर चढक़र फांसी लगा ली।
जब ऐसा ही सच है तो पटवारी को कल सस्पेंड क्यों कर दिया गया, जिस पर आरोप लगाया गया है कि उसने गलत गिरदावरी रिपोर्ट बनाई। जिस तहसीलदार को कारण बताओ नोटिस जारी की गई है उसने कम से कम यह तो बताया कि रिपोर्ट गलत बन गई थी। पर किसान ने शिकायत किसी से नहीं की, इसलिये उसे मदद नहीं दी जा सकी।
खेती के रकबे की गलत इंट्री होने की दर्जनों शिकायतें आ रही हैं। पीडि़त किसान और सरकार के बीच इतनी दूरी कि वह शिकायत करने की जगह मौत का रास्ता चुने? इस घटना के बाद तो पूरे कोंडागांव जिले के किसानों की शिकायत दूर करने के लिये तीन दिन का अभियान शुरू किया गया है, पर बाकी जिलों का क्या? हर जगह से शिकायतें हैं। इस बार भी रिकॉर्ड धान खरीदी होने जा रही है। वास्तविक किसान यदि इस तरह परेशान हैं तो आखिर यह रिकॉर्ड किनके बूते बनाया जा रहा है?
नेटवर्क में पीछे पर ऑनलाइन पढ़ाई में आगे
सरकारी स्कूलों के बंद होने के चलते गरियाबंद जिले में भी पढ़ाई तुम्हर द्वार योजना बाकी जिलों की तरह चल रही है। यदि विभाग के आंकड़ों पर भरोसा किया जाये तो ऑनलाइन पढ़ाई के लिये यहां से करीब 4100 शिक्षक और 72 हजार विद्यार्थियों ने पंजीयन कराया। जहां नेटवर्क की समस्या है वहां करीब एक हजार नियमित शिक्षक जाकर खुले में क्लास ले रहे हैं। 1400 जगहों पर मोहल्ला क्लासेस चल रही हैं। लाउडस्पीकर से करीब 90 जगह पढ़ाई हो रही है और ब्लू ट्रूथ से लोड होने वाली पाठ्यसामग्री की संख्या 70 हजार से ऊपर है। यह जिला कोरोनो काल में वैकल्पिक पढ़ाई के लिये की गई व्यवस्था में अव्वल है।
वैसे ऑनलाइन पढ़ाई में उन शहरों, जिलों को सफलता ज्यादा मिलनी चाहिये जहां नेटवर्क और रोड कनेक्टिविटी दोनों अच्छी है। पाठ्यक्रम अपलोड करने, ऑनलाइन क्लास लेने में की वहां ज्यादा सुविधा है। पर रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर जैसी जगहों से ज्यादा अच्छा काम वनों से आच्छादित गरियाबंद जिले का सामने आया है। मैदानी इलाके के अधिकारी कुछ सीख लेंगे?
संतोष तक पहुंचा असंतोष...
भाजपा संगठन मरवाही में हार की समीक्षा नहीं कर पा रहा है। मगर पार्टी के कुछ प्रभावशाली नेताओं ने हाईकमान से इस पर गौर करने का आग्रह किया है। चर्चा है कि एक तेजतर्रार सांसद ने पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष से मिलकर संगठन की कमजोरियों और खामियों की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया है। सांसद ने कह दिया है कि वक्त रहते इन खामियों को दूर नहीं किया गया, तो अगले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का कोई बेहतर प्रदर्शन नहीं रहेगा।
उन्होंने कहा कि संगठन के बड़े नेताओं की वजह से पार्टी में गुटबाजी हावी है, और गुट विशेष के लोगों को ही संगठन में पद बांटे जा रहे हैं। पार्टी में नए लोगों को जगह नहीं मिल पा रही है, और लगातार सत्ता सुख पाने वाले नेताओं को ही महत्व मिलने से कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं रह गया है। कुछ और सांसदों ने भी यही बातें घुमा फिराकर बीएल संतोष से कही है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन जल्द ही प्रदेश दौरे पर आ रहे हैं, इसके बाद अगले पखवाड़े में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का आगमन होगा। देखना है कि सांसदों की शिकायतों का असर होता है या नहीं।
थानों में सीसीटीवी लगने के बाद क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए देश के सभी पुलिस स्टेशनों और केन्द्रीय जांच एजेंसियों कार्यालयों, हवालातों, प्रवेश और निकास के रास्तों में, लगभग चारों तरफ सीसीटीवी कैमरा लगाने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता से कोर्ट सहमत थी कि इससे हिरासत में प्रताडऩा पर रोक लगेगी।
इंडियन एनुअल रिपोर्ट ऑन टार्चर के मुताबिक साल 2019 में हिरासत में कुल 1731 मौतें हुई हैं, जिनमें से 125 मौतें पुलिस की हिरासत में हुई। आंकड़ों में यह भी है कि ज्यादातर मौतें दलितों और अल्पसंख्यकों की हुई। दरअसल, प्रताडऩा केवल थानों के कैम्पस में ही नहीं होती। जांच और पूछताछ थानों, हवालातों और दफ्तर के बाहर भी की जाती है। अम्बिकापुर में पंकज बेक की मौत, जिस पर परिवार के लोग प्रताडऩा से हुई मौत का आरोप लगा रहे हैं कथित तौर पर एक हॉस्पिटल के बाहर रस्सी से लटकी मिली। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर में चोरी के एक आरोपी छोटू यादव की मां की याचिका पर विशेषज्ञों की रिपोर्ट मांगी है। उसकी मौत कथित तौर पर तब हो गई जब उसे पुलिस जीप से थाना लाया जा रहा था। मां का कहना है कि उसके बेटे की पुलिस ने पिटाई की। पुलिस का किस्सा है कि मौत कुएं में गिरने से हुई।
बीते जून का तमिलनाडु का एक मामला देशभर में चर्चा का विषय रहा जिसमें बाप-बेटे की पुलिस ने लॉकडाउन के दौरान इतनी बेरहमी से मारा कि दोनों की मौत हो गई। मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का जुर्म दर्ज करने का निर्देश दिया। छत्तीसगढ़ विशेषकर बस्तर में एनकाउन्टर में मारे गये लोगों के परिजनों ने भी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में केस लगा रखे हैं।
नये आदेश से प्रताडऩा रुके न रुके, पुलिस और जांच एजेंसियां ‘सच’ उगलवाने की जगह जरूर बदल लेंगी। कई बार रसूखदारों को भी पकडक़र लाना पड़ता है। उनका खूब ख्याल रखा जाता है। कुर्सियां दी जाती हैं, जल-पान कराया जाता है। हिरासत के बावजूद रात में हवालात की जगह घर भी भेज दिया जाता है। ये सब भी अब सीसीटीवी कैमरे में कैद होंगे। कस्टडी में एक नागरिक के क्या अधिकार हैं यह नोटिस बोर्ड में बड़े-बड़े अक्षरों मे लिखा होता है। थानों के बरामदों में ही ये बोर्ड लगे हुए दिखते हैं, पर क्या लोग इस अधिकार का इस्तेमाल कर पाते हैं?
अनजान से थाने का नाम गूंजना
सूरजपुर जिले का झिलमिली थाना अचानक चर्चा में आ गया है। देशभर के 16 हजार से अधिक थानों के कामकाज का सर्वे कराने के बाद गृह मंत्रालय ने 10 सर्वश्रेष्ठ थानों का चयन किया है जिसमें इसे चौथे नंबर पर रखा गया है। दिलचस्प यह है कि मंत्रालय की टीम ने रैंकिंग तय करने के लिये अपने मापदंडों पर तो परखा ही, जनता की राय भी ली। पुलिस स्टेशनों में गरीबों और कमजोर वर्गों की सुनवाई कैसी होती है, महिलाओं के प्रति अपराध में कितनी गंभीरता दिखाई जाती है। शिकायतों का निवारण, लापता व्यक्तियों को ढूंढना, भटकते पाये गये लोगों को सही जगह पहुंचाना जैसे कई मापदंड तय किये गये थे। पहले चरण में हर राज्य से तीन थाने चुने गये, फिर शार्ट लिस्टिंग की गई। मणिपुर का थाउबल थाना सबसे ऊपर है।
ऐसी किसी भी उपलब्धि पर पुलिस की पीठ थपथपाई जा सकती है पर ऐसा नहीं लगता थानों के बीच प्रदेश में इस तरह की कोई प्रतिस्पर्धा रखी जाती है। पुलिस महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी थानों का वार्षिक, अर्ध-वार्षिक निरीक्षण करते हैं। स्वच्छता, सजावट, पेंडिंग के निपटारे जैसे मापदंडों पर थाना और उनके प्रभारियों को पुरस्कृत किया जाता है पर थानों के बीच प्रतिस्पर्धा के लिये कोई योजना नहीं। अलग-अलग जिलों में पुलिस अफसर अपनी रूचि के अनुसार पेंडिंग मामलों को खत्म करने, वारंटियों को पकडऩे, साइबर क्राइम के मामले पकडऩे, लापता बच्चियों को ढूंढने, यातायात दुरुस्त करने का अभियान हाथ में लेते हैं। पुलिस अधिकारी कर्मचारियों को व्यक्तिगत रूप से पुरस्कृत किया जाता है। राष्ट्रीय पर्वों पर सम्मानित भी किया जाता है, फिर थानों के बीच स्पर्धा क्यों नहीं? कभी राजनीतिक कारणों से, कभी अफसरों की नाखुशी से तो कई बार जनता के दबाव में भी थानेदार एक झटके में लाइन हाजिर कर दिये जाते हैं। थानों को दुरुस्त करने का मोह तो तब जागेगा, जब एक निश्चित समय तक उन्हें टिके रहने की उम्मीद हो।
नाचें मगर, नचाना भी सीखें
भरतपुर-सोनहत के विधायक गुलाब कमरो की छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम में नाचते गाते हुए तस्वीर वायरल हुई है। कमरो कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में नाचते रहे हैं। वे ऐसे पहले विधायक नहीं है। एक से अधिक बार गुंडरदेही के विधायक कुंवर सिंह निषाद को सार्वजनिक मंचों पर नृत्य करते पाया गया है। मरवाही में चुनाव प्रचार के दौरान उनका ही नहीं मंत्री कवासी लखमा का मांदर की थाप पर नृत्य लोगों ने देखा। कांग्रेस की सरकार बनी तो विधायक लालजीत राठिया ने विधायक निवास पर लुंगी में डांस किया था। मरवाही में हाल ही में जब जीत मिली को क्या मंत्री, क्या विधायक जितने खुश थे सब एक साथ नाचे।
यहां की लोक संस्कृति में नृत्य शामिल है। लोक कलाकारों के साथ शांत भाव से नाचते हैं। यूपी बिहार की तरह तमंचा लेकर तो स्टेज पर नहीं चढ़ते, न ही फायरिंग करते हैं। बस दिक्कत यह है कि भारी बहुमत के बाद भी विधायकों, जनप्रतिनिधियों को अपनी बात मनवाने के लिये अधिकारियों के सामने पसीना बहाना पड़ता है, वे सुनते ही नहीं। 15 साल बाद आई सरकार की खुशी को इस तरह जताना कोई बुरी बात नहीं पर जनता की उम्मीदें हैं कि आप न केवल नाचें बल्कि जहां जरूरी हो वहां लोगों को नाचना भी सिखायें।
क्या चार हजार एटीएम बूथ बंद होंगे?
डिजिटल ट्रांजेक्शन धीरे-धीरे लोगों के व्यवहार में शामिल हो चुका है। छत्तीसगढ़ में हर माह 40 से 50 ठगी के बड़े मामले होते हैं जिनमें ठग अपरिचित होता है और आपके खाते से रुपये साफ हो जाते हैं। इधर जिस तरह जगदलपुर में लगभग सवा करोड़ रुपये का चूना स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को लगाया गया है वह हैरान करने वाला है।
जिन एटीएम मशीनों का बैंक इस्तेमाल करती है उनमें ज्यादातर एनसीआर कंपनी की है। पढ़े लिखे, फ्लाइट से यात्रा करने वाले शातिर जालसाजों को जौनपुर यूपी से पकडक़र लाना सचमुच पुलिस की बड़ी कामयाबी है और इसका श्रेय भी उसे लेना चाहिये। दूसरी तरफ मीडिया में ठगी के तरीके का राज अति उत्साह में जिस तरह से पुलिस ने विस्तार से उगल दिया है उससे खतरा है कि आगे कोई दूसरा जालसाज इसे आजमाना शुरू न कर दे।
बताया गया कि एसबीआई की चार हजार से ज्यादा मशीनें एनसीआर कम्पनी की हैं। मशीनों में ही कुछ खामियां हैं। इन खामियों को जब तक दूर नहीं किया जायेगा, ठगी की गुंजाइश बनी रहेगी। इन एटीएम मशीनों से आहरण तो हो जायेगा पर ट्रांजेक्शन असफल बतायेगा। यानि जालसाज खाताधारक के खाते में राशि बनी रहेगी और मशीन पैसा भी उगल देगी। एसबीआई ने इन मशीनों को बदलने या फिर गड़बड़ी दूर करने का फैसला लिया है।
अब एसबीआई इन चार हजार मशीनों को रातों-रात बदलने वाली तो है नहीं। जब तक ये मशीनें हैं कोई दूसरा भी मौके का लाभ ले सकता है। एक रास्ता यही बचता है कि जहां एनसीआर के एटीएम इस्तेमाल किये जा रहे हैं, वे बूथ बंद कर दिये जायें। चार हजार मशीनों को बंद करने का मतलब, भारी अव्यवस्था फैलना। एसबीआई नंबर वन।
क्लास रूम बंद, मैदान में पढ़ाई
कोरोना महामारी ने बच्चों की पढ़ाई पर खासा बुरा असर पड़ा है। आदिवासी इलाकों के बच्चे जिनके पास मोबाइल फोन, इंटरनेट वगैरह कुछ नहीं है उनके लिये तो पढ़ई तुहर दुआर, बुलटू जैसी वैकल्पिक व्यवस्था भी काम नहीं आ रही है। बच्चों का मध्यान्ह भोजन चलता रहे इसके लिये उन्हें घर पहुंचाकर सूखा राशन दिया जा रहा है। मगर, पढ़ाई की भूख कैसे मिटे?
यह तस्वीर नवगठित गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के धूमानार गांव की है। शासन ने निर्देश दे रखा है कि स्कूलों को नहीं खोला जाना है। ऐसे में स्कूल के बाहर मैदान में दरी बिछाकर पढ़ाई कराई जा रही है। आम तौर पर प्रायमरी स्कूल के ग्रामीण शिक्षकों के बारे में शिकायत रहती है कि वे स्कूल नहीं पहुंचते, लेकिन यहां उल्टा हो रहा है। जिले के कई स्कूलों के बाहर साफ-सुथरी जगह बनाकर दरियां, टाट-पट्टी बिछाई जा रही है और सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए पढ़ाई शुरू कर दी गई है। कई बच्चों ने तो मास्क भी पहने हुए हैं। हालांकि इसे सभी को पहनना चाहिये।
गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही प्रदेश के उन जिलों में शामिल है जहां कोरोना का संक्रमण अधिक नहीं फैला। यहां के शिक्षा अधिकारी का कहते हैं कि हाल ही में किताबें और स्कूल ड्रेस बांटी गई है। वे इनका इस्तेमाल करने के लिये उतावले हैं। बच्चों में पढऩे को लेकर भारी ललक है और शिक्षक भी उनको गांवों में इधर-उधर घूमते देख रहे हैं तो अच्छा नहीं लग रहा है। इसलिये कहीं-कहीं कोरोना गाइडलाइन को अपनाते हुए सीमित संख्या में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। इनमें बच्चों को आने की बाध्यता नहीं है, जिनके अभिभावक चाहते हैं और क्लास की व्यवस्था को देखकर संतुष्ट हैं वे ही पहुंच रहे हैं।
कोरोना खत्म हो न हो, कल्याण तो हो गया
केन्द्र सरकार ने इस साल 26 मार्च को गरीब कल्याण अन्न योजना की घोषणा की थी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो हर माह के हिसाब से चावल देने का निर्णय लिया गया था। यह स्कीम तीन माह के लिये थी। इसके लिये राशन कार्ड की भी जरूरत नहीं थी केवल आधार कार्ड जैसा पहचान पत्र पर्याप्त था। सितम्बर में ही ये योजना बंद होने वाली थी, पर कई राज्यों की मांग थी कि स्थिति अभी नहीं संभली, मुफ्त अनाज देना जारी रखा जाये।
छत्तीसगढ़ से भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह मांग केन्द्र के सामने रखी थी। यह स्कीम खिंच गई। नवंबर तक कोटा आया। अब दिसम्बर से यह योजना बंद हो गई है। केन्द्र की ओर से आबंटन की कोई सूचना नहीं है। तीन माह के लिये ही 5-5 सौ रुपये दिये गये थे यह स्कीम कम से कम आठ महीने चली।
छत्तीसगढ़ में 51.50 लाख यूनिवर्सल पीडीएस के तहत लाभान्वित होते हैं इसके अलावा 14.1 लाख लोगों को राज्य सरकार की ओर से भी सहायता पहुंचाई जाती है। इन्हें कोरोना के चलते मिलने वाली अतिरिक्त सहायता अब बंद कर दी गई है। हालांकि पीडीएस की राज्य की स्कीम के तहत एपीएल, बीपीएल परिवारों को अनाज मिलता रहेगा।
केन्द्र का शायद यह मानना है कि काम धंधे ने रफ्तार पकड़ लिया है और अब मजदूरों, गरीबों को ज्यादा मदद की जरूरत नहीं रह गई है। क्या सचमुच गरीब संभल गये हैं। सबका रोजगार धंधा कोरोना आने के पहले की तरह चल निकला है?
तीनों मुखिया साथ के !
आईएएस के 89 बैच के अफसर अमिताभ जैन राज्य के प्रशासनिक मुखिया बनाए गए हैं। यह भी संयोग है कि अमिताभ के साथ-साथ हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी और डीजीपी डीएम अवस्थी रायपुर में पदस्थ रहे हैं। अमिताभ रायपुर कलेक्टर थे, तब राकेश चतुर्वेदी डीएफओ रायपुर थे। दोनों एक साथ काम कर चुके हैं। बाद में डीएम अवस्थी भी रायपुर एसएसपी रहे। खास बात यह है कि तीनों ही इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के हैं।
अजीत जोगी जब सीएम थे तब उन्होंने वीआईपी रोड में उद्यान बनाने के लिए कहा था। अमिताभ जैन और राकेश चतुर्वेदी ने 14 एकड़ बंजर जमीन पर कुछ महीनों के भीतर बेहतरीन उद्यान विकसित कर दिया, जिसे राजीव स्मृति वन के रूप में जाना जाता है। शहर के बाहरी इलाके में पर्यटन का अच्छा केन्द्र बन चुका है। लो-प्रोफाइल में रहने वाले शांत स्वभाव के अमिताभ जैन पर कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों सरकारों का भरोसा रहा है। यही वजह है कि वे हमेशा अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण विभागों में पदस्थ रहे।
अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के सीएम रहते उनके गृह जिले राजगढ़ के भी कलेक्टर रहे। दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा सरकार के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे उस वक्त राजगढ़ के प्रभारी मंत्री थे। जोगी सरकार में एक मौका आया, जब भाजपा नेताओं पर लाठी चार्ज के लिए विधानसभा की कमेटी ने तत्कालीन कलेक्टर अमिताभ जैन और एसपी मुकेश गुप्ता को दोषी माना था, और कार्रवाई की सिफारिश भी कर दी थी, लेकिन विधानसभा ने कमेटी का फैसला पलट दिया।
अमिताभ की काबिलियत ऐसी रही कि भाजपा सरकार सत्ता में आने के बाद उन्हें एक के बाद एक अहम दायित्व सौंपती रही। अमिताभ के पूर्ववर्ती आरपी मंडल को प्रशासनिक-निर्माण कार्यों के लिए जाना जाता है, लेकिन कई मौकों पर वे पेपरवर्क में कमजोर दिखे। मगर अमिताभ उन चुनिंदा अफसरों में हैं, जिनकी हर क्षेत्र में पकड़ रही है। लेकिन उनके साथ एक दिक्कत यह है कि उन्हें खुद पहल करके काम करने वाला नहीं माना जाता, लोग कहते हैं कि वे दखल देने से बचते हैं. मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था में अनुभवी अफसरों की बेहद कमी है। ऐसे में अमिताभ की जिम्मेदारी काफी चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है।
मुख्य सचिवों की कहानी...
अमिताभ जैन के मुख्य सचिव बनने के साथ ही चित्तरंजन खेतान के मुख्य सचिव बनने की संभावनाएं खत्म हो गईं। पहले आर.पी. मंडल ने खेतान का मौका पा लिया, और अब अमिताभ ने। खेतान के बारे में साख यह है कि वे एक सीमा से अधिक लचीले होकर सत्ता की मर्जी पूरी नहीं कर पाते। दूसरी तरफ मंडल की साख बेहद लचीलेपन की थी, इसलिए वे मौका पा गए। अब जब नौकरी के आखिरी आठ महीनों के लिए खेतान का मुख्य सचिव बनना हो सकता था, तो सत्ता को अमिताभ अधिक लचीले लगे। यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि वे कितने लचीले साबित होते हैं, या किसी बात पर अड़ भी जाते हैं। वे चुप रहकर काम करने के आदी हैं, लेकिन उनका कार्यकाल इतना लंबा बाकी है कि वे मौजूदा सरकार के कार्यकाल पूरे होने के बाद भी नौकरी में रहेंगे, और शायद इसलिए वे सत्ता की मर्जी के साथ-साथ अपनी बकाया नौकरी की फिक्र भी करेंगे।
वे लगातार दूसरे ऐसे मुख्य सचिव हैं जिनके पिता ने दुर्ग जिले में काम किया हुआ है, और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता भी दुर्ग जिले से ही राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनकारी रहे हैं, और खुद भूपेश दुर्ग जिले से ही विधायक हैं। अमिताभ जैन के पिता ने बीएसपी में काम किया था, मंडल के पिता ने रेलवे में, और भूपेश का घर भी इन दोनों जगहों से कुछ किलोमीटर ही दूर रहा।
विवेक ढांड के बाद से छत्तीसगढ़ के सीएस बनने का सिलसिला चल रहा है। उनके बाद अजय सिंह सीएस बने जिनके पिता, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के पिता के वकालत के दौर में ही वकालत करते थे। इसके बाद मंडल, और अब अमिताभ, ये सभी स्थानीय लोग ही रहे।
पीडीएस को पारदर्शी बनाने में रोड़ा
राशन दुकानों में उपभोक्ताओं से ज्यादा कीमत वसूलने, स्टाक की मात्रा पर गड़बड़ी रोकने के लिये खाद्य विभाग ने सीसीटीवी कैमरा लगाने और जीपीएस से जोडऩे की घोषणा की थी। उपभोक्ता अपने मोबाइल पर घर बैठे देख सकते हैं कि किस राशन दुकान में कितनी मात्रा में चावल, शक्कर उपलब्ध है और सरकार ने उसकी कीमत क्या तय की है।
पर खाद्य विभाग इस योजना को लागू करने के लिये गंभीर नहीं दिखती। अब पारदर्शिता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। राज्य में 12 हजार 306 राशन दुकानें चल रही हैं पर आपको ढूंढना मुश्किल होगा कि आखिर ये व्यवस्था किस दुकान में मौजूद है। एक वक्त था जब छत्तीसगढ़ के पीडीएस सिस्टम को सराहा गया और दूसरे राज्यों के प्रतिनिधियों ने भी इसका अध्ययन करने के लिये दौरा किया। ढिलाई क्यों बरती जा रही है? शायद खाद्य विभाग के अधिकारियों को चिंता सता रही है कि इतनी खुली पारदर्शी व्यवस्था कहीं उनकी ही पोल न खोल दें।
धान खरीदी की खुशी के बीच चिंता
धान खरीदी शुरू होने के बाद किसानों की लम्बी प्रतीक्षा खत्म हुई। पहले ही दिन करीब 10 लाख क्विंटल धान खरीदी की गई। मंत्रियों, विधायकों सहित कांग्रेस पदाधिकारियों ने खरीदी केन्द्रों में जाकर तराजू, बांट की पूजा की और किसानों को तिलक लगाया।
खरीदी शुरू होने के बाद भी अब तक सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि उन्हें किस दर से भुगतान किया जायेगा। चुनावी वायदे पर अमल किया जाये तो हर साल 2500 रुपये क्विंटल की दर से भुगतान किया जाना है। पहले समर्थन मूल्य का भुगतान उसके बाद राजीव किसान न्याय योजना के तहत बाकी किश्तें। हालांकि पिछले साल की एक किश्त अभी भी बाकी है। इसका भुगतान इसी वित्तीय वर्ष में करने का आश्वासन कृषि मंत्री ने दिया है पर यह इंतजार लम्बा हो रहा है।
खरीदी शुरू होते ही कई खरीदी केन्द्रों में ताला लगे होने की खबर आई। कई नये खरीदी केन्द्रों को खोलने और पुराने केन्द्रों को बंद करने का विरोध भी होने लगा। कम से दो जगह चक्काजाम तो किसानों ने पहले ही दिन कर दिया। 72 घंटे के भीतर धान के परिवहन का समय तय किया गया है पर बीते सालों का अनुभव कहता है कि समय पर उठाव नहीं होने के कारण खरीदी रोकनी पड़ी।
छोटे किसानों को पहले टोकन देने की बात की गई है लेकिन इसका पालन सोसाइटियों में कई जगह नहीं हो रहा। धान पकने के बाद हुई बारिश ने किसानों चिंता में डाला, पर नमी को लेकर कोई रियायत नहीं दी गई है। हालांकि यह कहा गया है कि सूखत के नाम पर अतिरिक्त धान नहीं लिया जायेगा पर व्यवहार में अधिक धान ले ही लिया जाता है। बारदाने के संकट को एक हद तक दूर कर लेने का दावा किया गया है। उम्मीद करनी चाहिये कि जिस उत्साह से मंडियों, सोसाइटियों में पहले दिन राजनैतिक कार्यकर्ता पहुंचे हैं वह आने वाले दिनों में वहां दिखाई देंगे।
कलाकारों पर कोरोना का कहर
रायगढ़ की एक छत्तीसगढ़ी कलाकार ने आग लगाकर खुद की जान लेने की कोशिश की। नजदीकी बताते हैं कि कोरोना के बाद पैदा हुई आर्थिक तंगी के चलते उसने यह कदम उठाया।
इन दिनों आत्महत्या की कई घटनायें सामने आ रही हैं। कुछ आंकड़े आये हैं जिनमें बताया गया है कि खुदकुशी और खुदकुशी की कोशिश करने की घटनायें इस साल बढ़ी है। राज्य मानसिक चिकित्सालय में रिकॉर्ड 500 से ज्यादा लोगों ने काउन्सलिंग के जरिये अपने मानसिक तनाव से उबरने की कोशिश की है। अनलॉक के बाद भी जो क्षेत्र अब तक संभल नहीं पाये हैं उनमें कला जगत भी है। अनेक लोगों की आजीविका का यह एकमात्र जरिया रहा है।
शादी-ब्याह में दी गई थोड़ी छूट से कुछ राहत तो मिली लेकिन इनमें सांस्कृतिक कार्यक्रम करने पर रोक लगी हुई है। प्रदेशभर की अदालतें जब बंद थीं तो वकीलों ने आर्थिक सहायता की मांग की थी। थोड़ी बहुत सहायता उन्हें मिली भी लेकिन उनके एसोसियेशन और कौंसिल की ओर से।
न केवल कलाकार या प्रोफेशनल बल्कि मजदूर वर्ग के लोगों में भी यह प्रवृति बढ़ी है। कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिये सरकार ने कई कदम उठाये। मजदूरों और किसानों की मामूली ही सही, आर्थिक मदद भी की गई लेकिन कलाकारों की आजीविका कैसे चले इस पर गंभीर कदम नहीं उठाये गये। यह वर्ग स्वाभिमानी भी होता है, मदद के लिये गुहार लगाने से भी हिचकता है। ऐसे में कोई रास्ता निकाला जाना जरूरी है।
श्रीचंद और दिग्विजय
दो चुनाव अधिकारियों के कोरोना से मौत की वजह से चेम्बर चुनाव स्थगित हो गया है, लेकिन एक दिन पहले तक जोर शोर से प्रचार चल रहा था। खुद श्रीचंद सुंदरानी एकता पैनल के प्रचार की कमान संभाले हुए थे। सुंदरानी प्रदेशभर का दौरा कर रहे थे। दुर्ग में उन्होंने एक बार फिर दिग्विजय सिंह की तारीफ की, और कहा-व्यापारियों के लिए सबसे अच्छे सीएम थे। वैसे तो पहले भी यह बात कह चुके हैं। हालांकि उन्होंने रमन सिंह की भी तारीफ की, और कहा कि जब भी उनके ( रमन सिंह) पास चेम्बर की तरफ से कोई मांग आई, उसे फौरन मंजूर किया।
दिग्विजय की तारीफ करने के पीछे ठोस वजह भी है। सुनते हैं कि मध्यप्रदेश सरकार में सेल्स टैक्स खत्म कर वैट लागू करने की योजना बनाई गई थी, तो दिग्विजय सिंह ने चेम्बर और अन्य व्यापारी संगठनों से सुझाव लेकर इसका क्रियान्वयन किया गया। जब भी वे रायपुर आते थे, तो उस समय के चेम्बर अध्यक्ष पूरनलाल अग्रवाल और महामंत्री श्रीचंद सुंदरानी को पूरा महत्व देते थे। यही वजह है कि श्रीचंद, दिग्विजय की तारीफ करते नहीं थकते हैं।
गौरीशंकर के खिलाफ मोर्चा
बलौदाबाजार में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है। गौरीशंकर के खिलाफ रोज शिकायतें लेकर बलौदाबाजार के कार्यकर्ता रायपुर आते हैं, और रमन सिंह, पवन साय व अन्य प्रमुख नेताओं से मिलकर गौरीशंकर को जिले की राजनीति से दूर रखने का आग्रह करते हैं। सुनते हैं कि गौरीशंकर से नाराज कार्यकर्ताओं को शिवरतन शर्मा और अन्य विरोधी नेताओं का साथ मिल रहा है।
गौरीशंकर के खिलाफ नाराजगी की वजह यह है कि बलौदाबाजार जिले के एक मंडल अध्यक्ष की पिछले दिनों मृत्यु हो गई। मंडल अध्यक्ष के खाली पद के लिए यह तय हुआ कि जिले की कोर कमेटी की बैठक में नाम फाइनल किया जाएगा। मगर कोर कमेटी की बैठक से पहले ही जिला अध्यक्ष डॉ. सनम जांगड़े ने गौरीशंकर अग्रवाल की सिफारिश पर नियुक्ति कर दी, जिसे जिले के दूसरे बड़े नेता पचा नहीं पा रहे हैं। रोज नाराज कार्यकर्ताओं का जत्था रायपुर पहुंचता है, और शिकायतें कर लौट जाता है। पिछले कुछ दिनों से यह सिलसिला चल रहा है। अब बड़े नेता नाखुश रहेंगे, तो कार्यकर्ताओं का गुस्सा शांत होने का सवाल ही नहीं है।
एक व्यक्ति ही अपने संस्थान की पहचान
सीएस आरपी मंडल रिटायर हो गए। मंडल के साथ-साथ मंत्रालय से दूर संस्कृति संचानालय में पदस्थ संयुक्त संचालक राहुल सिंह भी आज रिटायर हो गए। मंडल के रिटायरमेंट की चर्चा मीडिया में सुर्खियां बनी हैं, और कुछ निर्माण कार्यों का जिक्र कर उनके योगदान को गिनाया जा रहा है। मगर राहुल सिंह के योगदान का जिक्र सिर्फ आपसी चर्चा तक ही सीमित है। जबकि राज्य की संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनका अहम योगदान रहा है। उनके साथ काम कर चुके मुख्यमंत्री के संयुक्त सचिव तारण प्रकाश सिन्हा ने फेसबुक पर राहुल सिंह के काम को लेकर अपने विचार साझा किए हैं।
उन्होंने लिखा है-राहुल सिंहजी आज सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसा बहुत कम होता है कि कोई व्यक्ति अपने अनुभव, ज्ञान, कार्यकुशलता और मिलनसारिता के बूते अपने संस्थान की ही पहचान बन जाए, और यदि ऐसा हो जाए तो ऐसे व्यक्ति की सेवानिवृत्ति भी संस्थागत रिक्तता-सी प्रतीत हुआ करती है। और फिर संस्कृति विभाग के संयुक्त-संचालक राहुलजी की सेवानिवृत्ति से होने वाली रिक्तता तो इससे भी कहीं ज्यादा है।
राहुलजी मूल रूप से अकलतरा के हैं, अकलतरा पूर्व में अविभाजित बिलासपुर जिले का भाग था, राहुलजी से पारिवारिक संबंधों के साथ शासकीय संबंध भी रहे। मुझे संस्कृति विभाग के संचालक के रूप में साथ काम करने का अवसर मिला, और इस तरह उन्हें करीब से जानने-समझने का भी। प्रदेश की संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व को लेकर न केवल उनकी गहरी समझ है, बल्कि मौलिक दृष्टि भी है। अपनी माटी को लेकर उनका दृष्टिकोण एक ठेठ-छत्तीसगढिय़ा का दृष्टिकोण है, जिसमें अपने सांस्कृतिक गौरव को पुनर्स्थापित करने की छटपटाहट है।
ददरिया से लेकर बांस-गीत तक, प्रतिमाओं से लेकर मुद्राओं तक, भाषा से लेकर भंगिमाओं तक, मालगुजारों से लेकर राजे-महाराजाओं तक, चिडिय़ों से लेकर तितलियों तक, ऐसे ढेरों विषय हैं, जिनमें आप उनसे घंटों बात कर सकते हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर विषय उनके काम से ही जुड़े हुए हैं, लेकिन उससे कहीं ज्यादा उनकी जीवनचर्या से भी। राज्य की संस्कृति और पुरातत्व के संरक्षण-संवर्धन के लिए उन्होंने अपने दायित्वों से कहीं आगे जाकर काम किया। उन्होंने न केवल राज्य के कलाकारों को, संस्कृतिकर्मियों को, पूरा-प्रेमियों को अपने साथ जोड़े रखा, बल्कि युवाओं को भी हमेशा साथ लेकर चलते रहे।
राहुलजी एक बढिय़ा लेखक भी हैं। उनकी एक पुस्तक ‘एक थे फूफा’ पठनीय है, उनका एक लोकप्रिय ब्लॉग है-सिंहावलोकन। इस ब्लॉग का मैं भी नियमित पाठक हूं। वे एक लेखक और शोधार्थी के रूप में भी इस ब्लाग के जरिये प्रदेश के सांस्कृतिक वैभव को समृद्ध करते रहे हैं। संतोष की बात यह है कि उनका यह ब्लाग अब मार्गदर्शी किताब के रूप में भी हमारे लिए उपलब्ध है।
शायद यह राहुल सिंहजी की उपस्थिति के कारण ही था कि संस्कृति विभाग के बाद अब जनसंपर्क विभाग में काम करते हुए मुझे विभागीय दूरी कभी महसूस ही नहीं हुई। जब भी आवश्यकता हुई, राहुलजी ने उतनी ही तत्परता से मेरी मदद की। राहुलजी की सेवानिवृत्ति हालांकि एक विभागीय प्रक्रिया है, लेकिन इस अनिवार्य घटना का सुखद पहलु यह है कि एक विशेषज्ञ, शोधार्थी और लेखक के रूप में हम सबके बीच अपनी कहीं ज्यादा व्यापकता के साथ उपस्थित रहेंगे। उनकी रचनात्मकता के जरिये उनके अनुभवों का लाभ हमें मिलता रहेगा।
ठग-जालसाज ओवरटाईम कर रहे...
भारत सरकार तरह-तरह से लोगों को चौकन्ना कर रही है कि वे टेलीफोन और इंटरनेट पर ठगी का शिकार न हों। कौन बनेगा करोड़पति में अमिताभ बच्चन आरबीआई की तरफ से बार-बार यह घोषणा करते हैं कि टेलीफोन पर बैंक धोखाधड़ी के शिकार न हों। लेकिन सरकारी नियंत्रण वाली देश की टेलीफोन और इंटरनेट सेवाओं के तहत रात-दिन धोखाधड़ी के संदेश जाते हैं। जिन्होंने किसी कंपनी की कोई बीमा पॉलिसी नहीं ली है उन्हें बार-बार संदेश आता है कि उनका बीमे का वक्त पूरा हो रहा है, और पॉलिसी आगे बढ़ाने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें। जिन्होंने बैंक से कर्ज नहीं मांगा है, उन्हें संदेश जा रहे हैं कि उनका लोन मंजूर हो गया है, और वे आज ही वह लोन उठा सकते हैं, इसके लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें। लोगों को लगातार ऐसे संदेश मिल रहे हैं, और एक बार क्लिक करते ही उनका फोन हैक हो जाने, उसके पासवर्ड चोरी हो जाने, उससे भुगतान हो जाने का खतरा खड़ा हो जाता है। यह एक रहस्य है कि जो सरकार अपने विरोधियों के फोन और संदेश पर तो निगरानी रख सकती है, लेकिन ऐसे जालसाजों और धोखेबाजों के संदेश क्यों नहीं पकड़ सकती?
देश में रोजाना हजारों लोग साइबर ठगी के शिकार हो रहे हैं, और सरकार है कि वह आधार कार्ड अनिवार्य करने से लेकर डिजिटल भुगतान तक को बढ़ावा देने, उसे अनिवार्य करने पर आमादा है। हिफाजत का ठिकाना नहीं, लेकिन इस्तेमाल करवाने की जिद।
यह मामला कुछ छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की सरकारी गौशाला जैसा हो गया जहां कुत्तों के झुंड ने भीतर घुसकर बीमार गाय को मार डाला। गायों को सरकारी गौशाला या गोठान में रखने की भी जिद, और हिफाजत का भी इंतजाम नहीं।
मानव तस्करी की महामारी
धान पकने के बाद रोजगार के लिये दूसरे राज्यों में जाना और बोनी के दिनों में वापस लौट जाना छत्तीसगढ़ के हर इलाके में होता रहा है। श्रम विभाग ने अनुमान लगाया था कि 7 लाख श्रमिक कोरोना काल में छत्तीसगढ़ वापस लौटेंगे। इनकी स्किल मैपिंग की बात हुई थी ताकि उनके हुनर का राज्य के उद्योग धंधों में इस्तेमाल हो सके, उद्योगपतियों ने भी आश्वस्त किया था। पर, जैसे ही समय बीता इसे जवाबदार लोग श्मशान वैराग्य की तरह भूल गये।
पिछली सरकार ने दावा किया था कि हम रोजगार के ऐसे मौके देंगे कि पलायन पूरी तरह खत्म हो जायेगा। मगर प्रवास बसों, रेलों, प्राइवेट गाडिय़ों या तक कि बाइक के जरिये प्रवास जारी है। लॉकडाउन लगने के बाद जो भारी तकलीफ मजदूरों ने उठाई थी, इसकी परवाह किये बगैर।
अब जो मामले पकड़े जा रहे हैं, वे ज्यादा चिंताजनक है। बच्चों और महिलाओं की सरेआम तस्करी हो रही है। रायपुर, कोरबा, बिलासपुर, रायगढ़ आदि जिलों में लगातार मामले पकड़े जा रहे हैं। बस्तर का आदिवासी जमीन छोडऩा पसंद नहीं करता लेकिन ख़बरें वहां से भी हैं।
चिंताजनक है कि तस्करी में लिप्त लोगों को राजनैतिक संरक्षण भी है। रायपुर में भाजपा नेत्री का पकड़ा जाना बताता है कि सप्लाई का नेटवर्क तगड़ा है और छत्तीसगढ़ में यह एक फलता-फूलता कारोबार हो चुका है। महिलाओं के अलावा नाबालिग बच्चियों को भी बहला-फुसलाकर देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजा जा रहा है।
पुलिस जांच में ही पता चला है कि अकेले डोंगरगढ़ से 35 महिलायें गायब हैं। कुछ साल पहले राज्य महिला आयोग ने बताया था कि प्रदेश की 19 हजार महिलायें और बच्चियां गायब हैं जिनमें ज्यादातर जशपुर इलाके की हैं। उसके बाद का कोई आंकड़ा प्रकाश में नहीं है। इनको बेहतर सुविधा और सम्मानजनक कार्य के नाम पर ले जाया गया पर उन्हें यौन शोषण के दलदल में धकेला गया, कई लोग वेश्यालयों में मिले, अनेक की लाशें मिलीं। कोरोना महामारी के बाद पैदा आर्थिक संकट की एक काली तस्वीर यह भी है जिसकी तरफ सरकार अभी गंभीर नहीं दिखती।
कार्यकर्ता अब क्या नेताओं की हाय-हाय करें?
आम कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिये कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक उत्साहजनक नहीं रही। निगम-मंडलों में नियुक्ति का मसला एक बार फिर टाल दिया गया है। तय यह हुआ है कि पहले संगठन में खाली पड़े पदों को भरा जाये उसके बाद जो बचेंगे उनके नाम निगम, मंडल, आयोग, परिषद् आदि में तय होंगे।
सत्ता से जुडऩे की लालसा लिये कार्यकर्ताओं के लिये इस बैठक में दोहरी मार हुई, एक तो नियुक्तियों का कोई समय-सीमा तय नहीं की गई दूसरी उन पर जवाबदारी दे दी गई वे सरकार की नरवा-गरुवा, किसान न्याय आदि योजनाओं के फायदे लोगों को बतायें। यानि जब विपक्ष में थे तो सडक़ों पर लाठी खायें और अब जब सरकार बन गई तो बचे हुए चुनाव जितायें, सरकार की उपलब्धियों को बताने घिसें। हर हाल में सडक़ पर।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भवन के सामने अपने ही नेताओं के खिलाफ प्रदर्शन करना, उनका विरोध जताना पहले भी हो चुका है, नियुक्तियों को टालने वाले नेताओं को यह पता होगा ही।
ठगी अमर से नहीं हो सकती
सोशल मीडिया के जरिये तरह-तरह की ठगी के तरीकों में फेसबुक पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर पैसे मांगना भी शामिल है। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल दिल्ली में हैं और उनके समर्थकों ने थाने में शिकायत दर्ज करा दी है। किसी ने फेसबुक पर उनकी फर्जी प्रोफाइल बना ली और लोगों से 10-10 हजार रुपये की मांग की जा रही है। इसके पहले एक आईएएस अफसर और एक पुलिस अधिकारी के मामले भी आ चुके हैं।
जिसने भी ठगी की उसने गलत जगह दांव लगाया। फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया पर अमर अग्रवाल का अपना आईटी सेल है। बहुत से महापुरुषों की जयंती के बारे में तो उनकी टीम ही वाट्सअप, ट्विटर और फेसबुक पर याद दिलाती है। जन्मदिन की रिकॉर्डेड बधाई, पर्व-त्यौहारों की शुभकामनायें देती हैं। कोविड-19 का प्रकोप शुरू हुआ तो कलेक्ट्रेट में अमर के समर्थकों ने एक कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम दे दिया, टोल फ्री नंबर पर लोग मिस कॉल कर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अमर समर्थकों ने पुलिस से की गई शिकायत में एक मोबाइल नंबर दिया है जिसके एकाउन्ट में पैसे मांगे गये हैं। यह तय है कि यदि पुलिस पता नहीं लगा पाई तो अमर की टीम पता लगा लेगी कि कौन इस फोन नंबर का इस्तेमाल कर रहा है।
बाबूलाल तो लाल हुए थे बीजेपी शासन में
ईडी छत्तीसगढ़ के कई अफसरों-कारोबारियों के खिलाफ शिकायतों की पड़ताल कर रहा है। बाबूलाल अग्रवाल तो ईडी के शिकंजे में आ चुके हैं। कुछ और जांच के घेरे में हंै। मगर स्वास्थ्य विभाग के पुराने घपलों को लेकर ईडी ने कुछ लोगों से पूछताछ शुरू की, तो जवाब सुनकर ईडी के अफसरों को ज्यादा कुछ कहते नहीं बना।
हुआ यूं कि पिछली सरकार के पहले कार्यकाल में बाबूलाल अग्रवाल के स्वास्थ्य सचिव रहते विभाग में कई घोटाले हुए थे। मलेरिया उन्मूलन के नाम पर पैसों की अफरा-तफरी हुई थी, और सीबीआई ने भी इस पर कार्रवाई की थी। कुछ और जानकारी के लिए ईडी ने धमतरी और भाटापारा के दो बड़े सप्लायरों को तलब किया। वैसे तो ईडी का नाम सुनते ही घपले-घोटालेबाजों के हाथ-पांव फूल जाते हैं। मगर इन दोनों सप्लायरों का आत्मविश्वास देखने लायक था।
ईडी ने मलेरिया घोटाले को लेकर जैसे ही पूछताछ शुरू की। सप्लायरों ने उनसे कहा कि साब, हमसे क्या पूछते हैं? अफसरों ने जो सप्लाई ऑर्डर दिया था, हमने सप्लाई कर दिया। ईडी अफसरों ने पूछा कि किस अफसर ने आप लोगों को ऑर्डर दिया था? सप्लायरों ने कहा कि उस वक्त के मलेरिया उन्मूलन प्रभारी थे डॉ. ओम कटारिया थे, उन्होंने ही ऑर्डर दिया था।
ईडी का अगला सवाल था कि ओम कटारिया कहां हैं? सप्लायरों ने कहा कि वे कुछ साल पहले ही दिवंगत हो चुके हैं। प्रकरण को लेकर और जानकारी पटेल बाबू दे सकते हैं, लेकिन वे भी अब इस दुनिया में नहीं रहे। और ज्यादा कुछ जानकारी चाहिए, तो दो पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ही इस पर प्रकाश डाल सकते हैं। इसके बाद ईडी अफसरों ने ज्यादा कुछ नहीं पूछा, और रवाना किया।
खर्च करने की चर्चा
खबर है कि पीएचई के जल मिशन के ठेके में अनियमितता की पड़ताल के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। वजह यह है कि राशि का आहरण नहीं हुआ है, तो घोटाला कैसे? टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता की बात आई है। मगर अंदर की खबर यह है कि टेंडर नियमों पर कैबिनेट ने मुहर लगाई थी। विभाग के प्रस्ताव पर सीएस ने विधि विभाग से भी राय ली थी। सबकी सहमति के बाद टेंडर हुए थे, और ऐसे में नियम में गड़बड़ी के लिए किसी अकेले को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है। हां, टेंडर मिलने की प्रत्याशा में कुछ ठेकेदारों और कंपनियों के एडवांस में अफसरों पर कुछ खर्च करने की चर्चा जरूर रही है। मगर इसके कोई सबूत नहीं है। ऐसे में प्रकरण पर सिवाय हल्ला-गुल्ला के ज्यादा कुछ नहीं हो पाया।
नया रायपुर अब क्या आबाद हो पायेगा?
मंत्रिपरिषद् की बैठक में जो बड़े फैसले लिये गये उनमें एक यह भी है कि नया रायपुर में रोजगार, निवेश और बसाहट बढ़ाने औद्योगिक भूखंडों की कीमत 50 प्रतिशत घटाई जायेगी। नया रायपुर बस जाये इसके लिये क्या-क्या नहीं किया गया। अपने पुराने रायपुर के लिये मंजूर की गई रकम भी वहां लगा दी गई। चौड़ी-चौड़ी सडक़ें, जगमगाती रौशनी, मार्किंग, बड़े-बड़े गार्डन, सफारी। नया रायपुर को स्मार्ट सिटी परियोजना में भी ले लिया गया। मंत्रालय और संचालनालय भी वहां भेजा गया।
अऩुमान है कि यहां अब तक करीब 8 हजार करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। पर कोई भी गांव या शहर, लोगों से ही बसता है जो कि यहां दिखाई नहीं देता। अफसर ड्यूटी पर जाते हैं शाम को लौट आते हैं। हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनियां खाली पड़ी हुई है। एनआरडीए ने तकरीबन तीन साल पहले सोसाइटियों को दो प्रतिशत मार्जिन मनी देकर भूखंड देने की योजना बनाई थी। इलाके को डेवलप करने में जो लागत आई, वह प्लाट, फ्लैट की कीमत में मुनाफे के साथ जोड़ दी गई। कीमत नहीं घटने के चलते नई कॉलोनियों के लिये लोगों का हिम्मत जुटाना मुश्किल हो गया।
रायपुर के हर छोर पर, जिले से बाहर जाकर भी नई-नई कॉलोनियां विकसित करने में रुचि दिखाई गई, लेकिन 24 किलोमीटर दूर नया रायपुर की तरफ हिम्मत जुटाने वाले कम ही मिल रहे हैं। मौजूदा सरकार ने इससे पहले वहां विधानसभा, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के निवास के लिये भूमिपूजन किया है अब भूखंडों में छूट दी गई है। छूट पहले भी सन् 2016 में दी गई थी, कुछ उद्योगपतियों ने इसका फायदा भी उठाया। एक साल बाद यह रियायत वापस ले ली गई थी। अब फिर से यह स्कीम लाई जा रही है।
बात यह भी है कि इन पांच सालों में रेट बढ़ाया भी नहीं गया है। अभी सिर्फ औद्योगिक भूखंडों की बात हुई है। एनआरडीए और हाऊसिंग बोर्ड का भी रुख लचीला हो जाये तो नया रायपुर को आबाद होने की ओर बढ़ सकता है।
जुर्माना लगाकर तो देखें लोग पटायेंगे..
विवाह की सूचना थाने में देनी होगी, मास्क, सैनेटाइजर पर्याप्त रखने होंगे, अनुमति केवल निर्धारित जगह और समय के लिये होगी, एसडीएम जांचेंगे कि जो खाना परोसा गया है उसकी गुणवत्ता सही है। बैंडबाजा, धुमाल पार्टी का इस्तेमाल धीमी आवाज में होगा, रात सिर्फ 10 बजे तक। कोई संक्रमित पाया गया तो जवाबदारी आयोजक की होगी।
कोविड से बचने के लिये जारी शासन के सर्कुलर में ये सब बंदिशें बताई गई हैं। इनका पालन नहीं करने पर? प्रावधान सिर्फ यह है कि अनुमति निरस्त कर दी जायेगी। थोड़ा बहुत उल्लंघन हो जाये तो कोई फिक्र नहीं। इसी के चलते जुर्माने का कोई ऐसा केस यहां नहीं बना है, जैसा उदयपुर (राजस्थान) में बन गया। वहां आयोजक और रिसोर्ट मालिक पर तहसीलदार ने 30 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। अपने यहां अधिकारी घबराते हैं, हिम्मत दिखायें। शादी ब्याह में अक्सर खुले हाथ से खर्च किया जाता है, जुर्माने की परवाह किसे है?
टेस्ट के आंकड़े बढ़ाने के लिये एंटिजन किट ही सही
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कार्पोरेशन ने स्वास्थ्य विभाग की उस शिकायत को सिरे से खारिज कर दिया है जिसमें कोविड की जांच के लिये भेजे गये एंटिजन किट की गुणवत्ता पर संदेह जताया गया था। रायपुर में कई ऐसे मामले आये हैं, जब एंटिजन किट से किये गये टेस्ट के नतीजे दो चार घंटे के भीतर भी अलग-अलग मिले। करीब 20 हजार एंटिजन किट स्वास्थ्य विभाग ने वापस भी कर दिये। पर सीजीएमएससी ने किट को सही बताया, टैक्नीशियन पर सवाल उठा दिया। कहा है कि आपके टैक्निशियन जांच के लिये स्वाब के साथ सही मात्रा में वीटीएम केमिकल नहीं मिलाते होंगे।
सप्लाई करने वाली कम्पनी से सीजीएमएससी ने कोई सवाल-जवाब किया हो ऐसी खबर नहीं है। चूंकि सप्लाई का जिम्मा कॉर्पोरेशन का है इसलिये स्वास्थ्य विभाग को जांच उसी किट से करनी होगी जिसे लेकर संदेह हैं। वैसे यह देश के अनेक राज्यों ने माना है कि एंटिजन टेस्ट 60 प्रतिशत तक ही सही रिपोर्ट दे पाती है, फिर इसे प्रामाणिक टेस्ट क्यों माना जाता है इस पर भी सवाल है। आरटी-पीसीआर में ज्यादा समय, ज्यादा संसाधनों की जरूरत पड़ती है पर उसे ही सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। एंटिजन टेस्ट में आधा घंटा भी नहीं लगता है। शायद टेस्ट का आंकड़ा बढ़ाने के दबाव ने एंटिजन किट पर निर्भरता बढ़ाई है।
20 साल के युवा पर दम्पत्ति का दावा
जशपुरनगर से एक अलग तरह का मामला सामने आया है। एक दम्पत्ति ने 20 साल के एक युवक को अपना बच्चा बताया है। कहना है, होलीक्रास हॉस्पिटल में 20 साल पहले महिला ने डिलवरी कराई तो उसे बता दिया गया कि शिशु की मौत हो गई। इस दौरान उसी अस्पताल के ड्राइवर की पत्नी भी प्रसव के लिये भर्ती थी। उसे लडक़ा होना बताया गया।
दम्पत्ति का कहना है कि यह उनका लडक़ा है जिसे चुरा कर ड्राइवर को दे दिया। दम्पत्ति ने कद-काठी को देखकर कहा है कि ड्राइवर का बेटा दरअसल 20 साल पहले चुराया गया उसका बेटा है।
महिला आयोग में आम तौर पर इतने पुराने मामले नहीं लिये जाते लेकिन अलग तरह की शिकायत आई, इसलिये जांच में लिया गया है। अब डीएनए टेस्ट से ही पता चल सकेगा कि कथित चोरी का बच्चा जो अब युवक हो चुका है उसके असली मां-बाप कौन हैं। प्रश्न यह भी है कि वह अब 20 साल का युवा हो चुका है, उसके मन में इन बातों का क्या असर हो रहा होगा? एक वयस्क बेटे को अपने हिसाब से जीने का अधिकार तो मिल जायेगा, पर कानून ही तय करेगा उसके माता-पिता कौन हैं।
मरवाही का श्रेय कोई अकेले क्यों लूटे?
कांग्रेसियों ने आपसी मतभेद भुलाकर मरवाही में खूब डटकर मेहनत की क्योंकि मुखिया ऐसा चाहते थे। नतीजा भी अच्छा आया। अब लगी है होड़ श्रेय लेने की।
मरवाही के कार्यकर्ता अपने परिश्रम को कम नहीं मानते, कोरबा से तो प्रभारी मंत्री को ही प्रभार था, बिलासपुर के कार्यकर्ताओं ने नये जिले में जाकर जोगी के लोगों को कांग्रेस में वापस लाने का अभियान चलाया। रणनीति प्रदेश स्तर पर बनी और मंत्री, सांसद, विधायकों की बड़ी टीम यहां काम करती रही। ऐसे में कोई एक अपना लोहा मनवाने के लिये पर आ जाये तो बाकी नेता-कार्यकर्ता इसे बर्दाश्त कैसे करें?
मरवाही में बिलासपुर जिला कांग्रेस की भूमिका पर आभार जताने के लिये एक सम्मेलन रखने की अध्यक्ष ने घोषणा कर दी। ऊपर से कोई आदेश आये बिना। स्थानीय टीम से टीम से सलाह भी नहीं ली गई। भीतर ही भीतर सम्मेलन का विरोध होने लगा। सम्मेलन में साथ नहीं देने की बात कही गई। विरोध के चलते अध्यक्ष कोई बहाना तलाश करते रहे इसी बीच कांग्रेसी राष्ट्रीय नेता अहमद पटेल के निधन पर शोक संतप्त हो गये। यही मौका था और सम्मेलन इसी नाम से स्थगित कर दिया गया।
वैसे जिले में 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान संगठन का प्रदर्शन कमजोर रहा और लोकसभा में तो बहुत ही खराब। दूसरे नेता कह रहे हैं कि अध्यक्ष को तब सजा नहीं मिली तो अब श्रेय क्यों मिले?
किसान आंदोलन और प्रदेश के सांसद
किसान आंदोलन की धमक से दिल्ली जरा हिली हुई सी लग रही है। आंदोलन तेज होने के बाद पंजाब, यूपी के किसानों को दिल्ली सीमा पार करने का मौका दिया गया पर बातचीत के लिये तारीख लम्बी दे दी है- 3 दिसम्बर। शायद सरकार देखना चाहती है कि एक हफ्ते के भीतर कहीं किसानों का हौसला टूट तो नहीं जायेगा।
जगह-जगह से किसानों के गैर-राजनीतिक आंदोलन को समर्थन मिल रहा है। दूसरी तरफ केन्द्र सरकार यह समझाने में लगी हुई है कि किसान बिल फायदे का है। इसके लिये देशभर में सांसदों को जिम्मेदारी भी दी गई थी। छत्तीसगढ़ में भी भाजपा सांसदों ने कई सभायें लीं। किसानों के अलावा वकीलों, कारोबारियों और दूसरे वर्गों की। पर जीएसटी और नोटबंदी की तरह इसे भी लोग नहीं समझ पा रहे।
पंजाब के किसानों के समर्थन में छत्तीसगढ़ में किसान संगठनों ने किसान संसद रखा और उम्मीद कर रहे थे कि उसमें सांसद पहुंचें और नये कानून पर बहस करें। सांसदों को दिल्ली से निर्देश था कि केन्द्र की बात रखें वह उन्होंने रख दी। उन्हें किसानों की बात सुनने के लिये तो कहा नहीं गया है जो वहां जाते।
यह जिला गुटबाजी वाला ही है !
बड़े नेताओं में आपसी संबंध मधुर न हो, तो छोटे कार्यकर्ताओं में इसका असर देखने को मिलता है। इसके चलते कई बार कार्यकर्ता आपस में उलझ जाते हैं। कुछ ऐसा ही नजारा भाजयुमो अध्यक्ष अमित साहू के गुरूवार को दुर्ग जिले के प्रवास के दौरान देखने को मिला।
दुर्ग भाजपा के दो बड़े नेता सरोज पाण्डेय और प्रेमप्रकाश पाण्डेय के बीच आपसी प्रतिद्वंदिता जगजाहिर है। दोनों के बीच बोलचाल तक बंद है। दोनों के समर्थक कई बार टकरा चुके हैं। और जब अमित साहू भिलाई पहुंचे, तो प्रेमप्रकाश पाण्डेय के समर्थकों ने जोरदार स्वागत किया।
अमित, प्रेमप्रकाश समर्थकों के साथ कई सेक्टरों में भी गए। और जब दुर्ग पहुंचे, तो तीन घंटे से इंतजार कर रहे सरोज पाण्डेय के समर्थक भडक़ गए। उन्होंने अमित साहू वापस जाओ के नारे लगाना शुरू कर दिया। पहले तो अमित और उनके साथ आए लोगों ने कार्यकर्ताओं को समझाने की कोशिश की, लेकिन सरोज समर्थकों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। आखिरकार शोरगुल के बीच कार्यकर्ताओं को संबोधित कर अमित रायपुर आ गए।
भाजपा ही नहीं, कांग्रेस के लिए भी यह जिला सबसे अधिक गुटबाजी वाला हमेशा ही रहा है।
जब जिंदगी का ठिकाना नहीं, तो जिम ही क्यों?
कोरोना के खतरे के बीच कारोबारियों को भी जिंदा रहना है, इसलिए वे कोरोना का अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के जिम के मालिक ने लोगों को वॉट्सऐप संदेश भेजा कि इस महामारी के दौरान जब भविष्य निश्चित नहीं है, तो दीर्घकालीन फीस क्यों पटाई जाए? उसने लोगों को कहा कि एक महीने की फीस देकर जिम के मेम्बर बनें।
पहली नजर में तो बात समझदारी की है कि जब जिंदा रहने का ठिकाना नहीं है, तो अधिक वक्त की फीस क्यों पटाई जाए क्योंंकि यह जिम तो मेम्बर के लंबे समय तक बीमार पडऩे पर भी उतने वक्त की छूट नहीं देता। लेकिन सवाल यह है कि अगर लोगों की जिंदगी पर इतना ही खतरा है, तो जिम जाकर, मेहनत करके, पसीना बहाकर कसरत क्यों की जाए? जब जिंदगी का ही ठिकाना नहीं है तो फिर सोफा पर बैठकर चिप्स खाते हुए टीवी क्यों नहीं देखा जाए?
इसलिए भविष्य का ठिकाना न होने का तर्क कम से कम कसरत के लिए मासिक फीस पटाने का सही प्रोत्साहन नहीं लगता।
आलू की ट्रकों में धान की तस्करी
हर साल धान का रकबा और खरीदी का लक्ष्य बढ़ा रही सरकार इस बार भी परेशान है कि दूसरे राज्यों से चोरी-छिपे लाये जा रहे धान पर रोक कैसे लगाई जाये। रायपुर, रायगढ़ जिले में ओडिशा से, बस्तर में आंध्र प्रदेश से, गौरेला इलाके में मध्यप्रदेश से और सरगुजा के बार्डर में यूपी तथा बिहार से धान को लाकर खपाने के नये-नये तरीके अपनाये जा रहे हैं।
सरगुजा जिले में प्रशासन के ध्यान में यह बात लाई गई है कि पिकअप, ट्रैक्टर और बैलगाडिय़ों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा बल्कि 16 चक्कों वाले बड़े ट्रकों का तस्करी में इस्तेमाल किया जा रहा है। बस थोड़ी दिक्कत बार्डर पर होती है। जहां बड़े अधिकारियों की तैनाती नहीं है वहां सफाई से ट्रकें निकाल ली जाती हैं। ट्रकों के बाहरी हिस्से में सौ-पचास बोरियां आलू की रखी होती हैं, भीतर धान लदा होता है। धान खरीदी तो अब शुरू होने वाली है, पर सुनाई यह दे रहा है इन राज्यों से लाकर हजारों बोरियां डम्प की जा चुकी हैं।
चार साल पहले सबको हैरानी हुई थी जब 70 से ज्यादा विकासखंडों में सूखा पड़ा था, फिर भी धान की बम्पर खरीदी की गई थी। धान खरीदने की अभी शुरूआत भी नहीं हुई है और दूसरे राज्यों के बिचौलिये सक्रिय हो गये हैं। यह गोरखधंधा तब से हो रहा है जब से यहां धान की अच्छी कीमत दी जाने लगी है। दरअसल, ज्यादा निगरानी की जरूरत राज्य के बाहर से आने वाले धान पर रखने की जरूरत है।
जब यूपीए सरकार में छत्तीसगढ़ से चरणदास महंत मंत्री थे, तब भी छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार को धान के रिकॉर्ड उत्पादन का पुरस्कार मिला था. और दोनों सरकारों में सब यह जानते थे कि इन आंकड़ों में छत्तीसगढ़ के पडोसी राज्यों का अघोषित धान भी शामिल था।
शादी की चमक-दमक फीकी, पर लेन-देन घटा?
शादी ब्याह की भव्यता हैसियत का पैमाना माना जाता है। इन समारोहों में फिजूलखर्जी, भोजन तथा संसाधनों की बर्बादी पर भी लोग सवाल उठाते रहे हैं। इसे एक सामाजिक बुराई के रूप में भी देखा जाता है क्योंकि दिखावे के फेर में लोग कर्ज में भी डूबते चले जाते हैं।
कोरोना ने एक रास्ता निकाला है ऐसे दिखावे से बचने के लिये। मेहमानों की संख्या को कम किया जाना, कम बारातियों को ले जाना, रस्मों को कटौती कर एक या दो दिन तक ही सीमित रखना, रिसेप्शन कम लोगों का रखना, जैसी कई पाबंदियां प्रशासन की ओर से ही लगा दी गई हैं। नाते रिश्तेदारों को सूचना भेजी जा रही है और आग्रह भी किया जा रहा है कि आप फेसबुक, यू ट्यूब पर लाइव प्रसारण देखें और वर-वधू को अपने घर से ही आशीर्वाद दें। मिठाई का पैकेट और नेग का सामान आपके घर पहुंचाया जायेगा। होटल, टेंट, शहनाई, कैटरर, डेकोरेटर को भी थोड़ा कम ही सही पर काम अब मिल रहा है।
इन सबके बीच सवाल यह है कि क्या लेने-देने में भी लोग ऐसी मितव्ययता दिखा रहे हैं? सुनाई यही दे रहा है कि इनमें कोई कमी नहीं है, दूल्हे का रेट उनकी हैसियत के अनुसार ही है। जेवरात और नगदी का लेन देन कितना हो कैसे हो इस पर कोई गाइडलाइन है भी नहीं, यह पहले की ही तरह लागू है, मंदी, बेरोजगारी, महंगाई पर इसका असर नहीं है।
आरटीआई एक्टिविस्ट का बहिष्कार
आरटीआई करोड़ों अरबों के राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के घोटालों को सामने लाने में ही नहीं बल्कि काफी अधिकार-सम्पन्न तथा बजट के हकदार हो चुके ग्राम पंचायतों, गांवों के लिये भी कारगर है। ये वही इकाई है जिसके बारे में कभी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से पहुंचने वाला एक रुपया यहां तक आते-आते 15 पैसे रह जाता है।
गांव के स्तर पर आरटीआई का इस्तेमाल करना ज्यादा कठिन है क्योंकि यहां हडक़ाने, धमकाने के लिये जनप्रतिनिधि, ब्लॉक स्तर के प्रशासनिक अधिकारी, थानेदार एक साथ हो जाते हैं। डोंगरगढ़ ब्लॉक के करवारी गांव के एक जागरूक ग्रामीण भूषण सिन्हा को सरपंच के आदेश पर गांव से बहिष्कृत कर देने की खबर आई है। उससे 10 हजार रुपये जुर्माना मांगा जा रहा है। पुलिस और एसडीएम के स्तर तक उसने शिकायत की लेकिन किसी ने मदद नहीं की। बल्कि उसे सलाह दी जा रही है कि खामोशी के साथ जुर्माना पटा दे और पंचायत के खिलाफ आवाज न उठाये।
जैसी ख़बरें हैं, भूषण ने आरटीआई के तहत पूछा था कि गांव में कितनी आबादी जमीन, और कितनी घास जमीन है। हाईकोर्ट ने अलग-अलग मामलों को सुनते हुए छत्तीसगढ़ के जिला अधिकारियों को अतिक्रमण हटाकर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश कई बार दिया है। गांवों में जिस तरह अतिक्रमण बढ़े हैं और आम जरूरतों की सार्वजनिक भूमि रसूख वालों ने दबा रखी है उसे देखते हुए ऐसी जानकारी मांगना जरूरी है। पर भूषण के साथ जो हो रहा है उसे देखकर प्रश्न उठता है कि व्हिसिल ब्लोअर की सुरक्षा के लिये बने कानून क्या गांवों पर लागू नहीं होते? आयोग को ध्यान देना चाहिये।
वक्त के पहले चल बसेंगे
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जिस वार्ड में सफाई पर जोर सबसे अधिक रहता है, वहां भी सार्वजनिक मैदान और उद्यान में हालत यह है कि चारों तरफ खाने-पीने की पैकिंग बिखरी रहती है। इस कचरे को देखकर ही समझ पड़ता है कि किसी जन्मदिन का केक काटकर वहां पार्टी की गई थी, और सारी बोतलें, पैकेट, पॉलीबैग वहीं फेंककर लोग निकल गए थे। जानकार लोगों का कहना है कि जन्मदिन मनाने के नाम पर ऐसी गंदगी फैलाने वालों की जिंदगी एक बरस कम हो जाती है क्योंकि अगले कई दिनों तक वहां से गुजरने वाले लोग ऐसे जन्मदिन वाले को जमकर कोसते हैं, खासी गंदी और मोटी-मोटी गालियां देते हैं, और आह तो लगती ही है। जो लोग अपनी खुशी की दावत करके दूसरों के लिए गंदगी छोड़ जाते हैं, वे सावधान हो जाएं क्योंकि जिंदगी की ऐसी आखिरी कई दावतें कर भी नहीं पाएंगे, और वक्त के पहले चल बसेंगे।
बात-बात में गड़ा मुर्दा निकल गया...
शासन-प्रशासन में कभी कभार ऐसा होता है कि आपसी चर्चा में पुरानी गड़बडिय़ों की तरफ ध्यान जाता है, और कार्रवाई शुरू हो जाती है। कुछ इसी तरह बालोद की एक बैठक में भी हुआ। यहां सेंट्रल स्कूल के लिए सरकारी जमीन की तलाश हो रही थी, और फिर चर्चा के दौरान एक हाईप्रोफाइल जमीन घोटाले की तरफ अचानक जनप्रतिनिधियों और प्रशासन का ध्यान चला गया। हुआ यूं कि स्थानीय सांसद ने सेंट्रल स्कूल के लिए जमीन चिन्हित करने जिला प्रशासन को निर्देश दिए थे कि प्रशासन की तरफ से जवाब आ गया कि सरकारी जमीन उपलब्ध नहीं है। फिर किसी ने बताया कि शहर के मध्य 24 एकड़ सरकारी जमीन उपलब्ध है, लेकिन इस पर कुछ लोग दावा कर रहे हैं।
चर्चा के बीच जमीन से जुड़ा किस्सा भी निकल गया। हुआ यूं कि यह जमीन कभी स्थानीय निकाय को आबंटित की गई थी। पिछली सरकार में निकाय को आबंटित जमीन पर गरीबों के लिए मकान बनाना था, लेकिन निकाय के पदाधिकारी जमीन बेचकर निकल गए। तत्कालीन कलेक्टर ने मामले की जांच कराई, और जमीन बिक्री के लिए जिम्मेदार निकाय के पदाधिकारियों और अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की अनुशंसा कर दी। इस पर कार्रवाई इसलिए रूकी रही कि सरकार के लोग नहीं चाहते थे कि अपनी पार्टी के पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो। पदाधिकारियों को कोर्ट जाने का मौका मिल गया, और उन्हें हाईकोर्ट से स्टे मिल गया।
प्रकरण को सात साल हो चुके हैं। मगर किसी ने स्टे वैकेट करने के लिए पहल नहीं की। अब जब सरकार बदल गई है, तो फिर इस पुराने घोटाले की चर्चा होने लगी है। सांसद की बैठक में जमीन को लेकर कोई फैसला तो नहीं हो पाया, लेकिन अब घोटाले पर कार्रवाई के लिए दबाव बन गया है। निकाय के उस समय के पदाधिकारी अब प्रदेश भाजपा में जगह पा गए हैं। स्थानीय भाजपा नेताओं की कोशिश है कि स्कूल कहीं और बन जाए, ताकि घोटाला दबा रहे। मगर कांग्रेस के लोग इस पूरे घोटाले पर कार्रवाई के लिए दबाव बना रहे हैं। देखना है कि घोटाले पर कार्रवाई होती है, या नहीं।
बच्चों को फिट रखने की चुनौती
कोरोना महामारी के चलते स्कूल बंद होने के कारण बच्चों की पढ़ाई का ही नहीं बल्कि खेलकूद का खासा नुकसान हो गया। साइकिल से भागना, पैदल मार्च करना या दौड़ कर बस पकडऩा, बस्ता उठाये क्लास रूम तक जाना। प्रार्थना के लिये खड़े रहना और फिर पांच छह घंटे बाद स्कूल से घर लौटना। खेलकूद नियमित रूप से न हों तब भी आम दिनों में स्कूलों में इतनी भाग-दौड़ हो जाती है कि शारीरिक सक्रियता बनी रहे।
लॉकडाउन के दौरान तो वे घरों में कैद रह गये। शिक्षा विभाग का ध्यान अब ऑनलाइन पढ़ाई के अलावा उनके फिटनेस की ओर भी गया है। राज्य भर के स्कूलों में प्राचार्यों को शिक्षा विभाग की ओर से चि_ी भेजी गई है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक दिसम्बर से 31 दिसम्बर तक फिटनेस को बढ़ावा देने का कार्यक्रम रखा जाये। यही नहीं उनके बीच क्विज प्रतियोगिता भी रखी जायेगी।
केन्द्रीय खेल व युवा मंत्रालय की ओर से यह निर्देश जारी किया गया है जिस पर राज्यों में भी काम हो रहा है। वैसे यह योजना देर से लाई गई है। अनलॉक होने के बाद खेलने-कूदने का मौका आसपास के मैदानों में बच्चों को मिलने लगा है। इस दौरान एक दूसरी समस्या से भी अभिभावक जूझ रहे हैं वह है ऑनलाइन गेम्स की तरफ बच्चों का झुकाव बढऩा। लॉकडाउन के दौरान दोस्तों और स्कूल से अलग रहने और लगातार घरों में पड़े रहने के कारण मनोदशा भी तो बिगड़ी है। अच्छा हो फिटनेस का यह कार्यक्रम सिर्फ शारीरिक चुस्ती के न होकर मानसिक मजबूती बढ़ाने के लिए भी हो।
कोरोना से छुटकारे के बाद...
बच्चों में ही नहीं, बड़ों में भी कोरोना का असर लम्बे वक्त तक रहने वाला है। कोरोना संक्रमण से गुजरकर स्वस्थ हो चुके लोग राज्य मानसिक चिकित्सालय में बड़ी संख्या मे पहुंच रहे हैं। बहुत से लोग संक्रमण के शिकार नहीं हुए पर कोरोना के डर ने उनको घेर लिया।
हाल ही के दिनों में ऐसे लगभग 500 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। इनमें ज्यादातर के मन में डर बैठा था कि कोरोना हो गया तो उससे वे कैसे निपटेंगे। कोरोना से स्वस्थ होने के बाद सब कुछ ठीक हो गया, ऐसा भी नहीं है। इन मरीजों में थकान, सांस लेने में परेशानी, चक्कर आने, बुखार व बेहोशी की शिकायत है। कई केस तो ऐसे आ चुके जिनमें कोरोना से स्वस्थ हुए मरीज की माह, दो माह बाद तबियत बिगड़ी और मौत भी हो गई। इसके लिये अब पोस्ट कोविड ट्रीटमेंट की सुविधा रायपुर और बिलासपुर के मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों में शुरू हुई है।
कोरोना से स्वस्थ होने की दर यदि अब 90 फीसदी से ऊपर बताई जा रही हो तो यह सिर्फ अस्पतालों और होम आइसोलेशन की एंट्री और डिस्चार्ज के आंकड़े हैं। पोस्ट कोविड इफेक्ट्स पर अलग से अध्ययन होगा। फिर आंकड़े कुछ अलग होंगे, जो शायद इस महामारी की गंभीरता को ठीक तरह से परिभाषित करे।
जेई की मौत, पुलिस जिम्मेदार या नहीं?
बिजली विभाग के जूनियर इंजीनियर पूनम कतलम की कथित रूप से पुलिस पिटाई के चलते मौत हो गई। सूरजपुर जिले के लटोरी थाना इलाके की इस घटना में एसपी ने दावा किया है कि पूनम को हिरासत में नहीं लिया गया था। बिजली विभाग के उप-केन्द्र में ही उससे पूछताछ हो रही थी, इसी दौरान उसे चक्कर आया। उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया गया, जहां उसकी मौत हो गई। इधर जूनियर इंजीनियर के भाई दीपक का आरोप है कि पुलिस ने उससे मारपीट की और उसके भाई के शरीर पर चोटों के निशान हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ह्रदयाघात को मृत्यु का कारण बताया गया है। जेई सहित चार पांच और लोगों को पुलिस ने तब पकड़ा था जब उसे यह जानकारी मिली कि इन लोगों ने शराबखोरी के दौरान एक अपने एक साथी हरीशचंद्र राजवाड़े को पीट-पीट कर मार डाला।
पुलिस हिरासत में मौत के मामले सरगुजा में कम नहीं हैं। इसी सूरजपुर जिले में पिछले साल चंदोरा थाने के लॉकअप में एक ग्रामीण कृष्णा की मौत हुई थी। इसे आत्महत्या बताया गया। अम्बिकापुर में पिछले साल जुलाई में चोरी के एक आरोपी पंकज बेक ने कथित रूप से पुलिस की हिरासत से भागकर एक निजी अस्पताल की छत से लटकी रस्सी के सहारे आत्महत्या कर ली। परिजन अब तक यह मानने के लिये तैयार नहीं कि उसने खुदकुशी की थी। वे इसे पुलिस की पिटाई से हुई मौत बताते हैं।
जेई की मौत के मामले में भी पुलिस खुद को पाक-साफ बता रही है। एसपी राजेश कुकरेजा ने अपनी ओर से ही उच्चाधिकारियों को लिख दिया है कि घटना की उच्चस्तरीय जांच कराई जाये। चौकी प्रभारी सहित सभी 10 स्टाफ निलम्बित कर दिये गये हैं। पंकज बेक और कृष्णा के मामले जिस तरह से अब तक अनसुलझे हैं उसे देखते हुए उम्मीद कम ही है कि जेई पूनम कतलम के मामले में कोई ठोस नतीजा निकलेगा।
सवाल तो पहले भी उठ रहे थे...
यूपी एसटीएफ ने इनामी बदमाश प्रशांत सिंह को गिरफ्तार किया, तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता मुश्किल में घिर गए। प्रशांत सिंह की पत्नी कल्पना सिंह को कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने समाज कल्याण बोर्ड में सदस्य नियुक्त किया है। दंतेवाड़ा में उन्हें बंगला भी आबंटित किया गया है। कल्पना सिंह रायबरेली की रहने वाली है, और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी नहीं है। इसके बाद भी उन्हें नियुक्ति कैसे दे दी गई, इसका कांग्रेस नेताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है।
सुनते हैं कि कल्पना के पति प्रशांत सिंह सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली के कांग्रेस कार्यकर्ता हैं, और वहां कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट देखते रहे हैं। प्रशांत ने प्रियंका गांधी से भी नजदीकियां बढ़ा ली थी। दंतेवाड़ा के नकुलनार में प्रशांत सिंह के भाई का ससुराल है। दर्जनभर संगीन मामलों के आरोपी प्रशांत सिंह भी फरारी काटने दंतेवाड़ा आते- जाते रहता था।
कल्पना सिंह को बोर्ड में सदस्य बनाने की सिफारिश भी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने की थी। उनकी नियुक्ति पर छत्तीसगढ़ क्रांति सेना ने आपत्ति की थी, तब किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब जब प्रशांत सिंह पुलिस के हत्थे चढ़ा है, तो कांग्रेस के भीतर दबे स्वर में कल्पना को बाहरी बताकर पद से बेदखल करने की मांग हो रही है। मगर यह सबकुछ आसान नहीं है।
कांग्रेस में पद लेने की आखिरी लड़ाई
विधानसभा चुनाव के बाद लगातार अन्य चुनाव होने, उसके ठीक बाद कोरोना महामारी फैलने और फिर मरवाही का चुनाव आ जाने का कारण सुनते-सुनते कांग्रेस कार्यकर्ताओं का धैर्य जवाब दे रहा है। अब तो सरकार को दो साल पूरा होने को आये। इस बार सामने कोई वजह भी नहीं दिखाई दे रही कि 2018 के चुनाव में पसीना बहाने वाले कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने में देरी की जाये।
पहले ही कांग्रेस नेतृत्व के पास बड़ी संख्या में सीटें आने के कारण सभी छोरों के कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करना मुश्किल था और अब मरवाही जीतकर 70 विधायक हो चुके। मरवाही में काम करने के लिये प्रदेशभर से लोगों को बुलाया गया, उनका भी दबाव है। अब भी कई निगम, मंडल, आयोग, बोर्ड में नियुक्ति बची हुई है। जिला स्तर पर भी कई समितियों का गठन होना है। सहकारी बैंकों, समितियों में भी चुनाव होने वाले हैं जहां ज्यादातर सरकार के लोगों को ही जगह मिलती है।
28 नवंबर को होने वाली कांग्रेस की बैठक में इन नियुक्तियों पर विचार किये जाने की बात सामने आई है। यह बैठक बहुत खास होने वाली है क्योंकि अब कोई अधूरी या अंतरिम सूची नहीं निकाली जा सकती। माना जायेगा कि अब जो छूटे, मतलब छोड़ ही दिया गया। कार्यकर्ताओं ने भी अपने नेताओं पर इसी वजह से दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। देखें, कितनों को नेतृत्व संतुष्ट कर पाता है।
धान खरीदी के पहले टोकन
पिछले साल धान खरीदी के लिये टोकन की व्यवस्था तब की गई थी जब खरीदी की आखिरी तारीख खत्म होने के बावजूद किसानों का धान बिक नहीं पाया था। पर इस बार धान खरीदी शुरू होने से पहले ही टोकन की व्यवस्था कर दी गई है। इसका लाभ यह बताया गया है कि किसानों को खरीदी केन्द्र में आकर अपनी बारी का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। उन्हें पहले ही पता चल सकेगा कि उनका धान कब तौला जायेगा। जिस बड़े पैमाने पर प्रदेशभर में धान की खरीदी होने वाली है यह एक ठीक तरीका लग रहा है लेकिन किसानों की दिक्कतें बढ़ भी सकती है।
तय है 27 नवंबर से किसानों में टोकन हासिल करने के लिये मारामारी होगी। तय नियम नहीं कि किसे पहले टोकन दिया जाये। ऐसा हो कि रसूखदार किसान पहले टोकन हासिल कर लें और ज्यादा जरूरतमंद होने के बावजूद छोटे किसान पीछे रह जायें और उन्हें लम्बा इंतजार करना पड़े। टोकन की तारीख इस आधार पर दी जायेगी कि खरीदी केन्द्रों में धान रखने की जगह बने। यह तब होगा जब परिवहन भी समय पर हो जाये। चेन टूटा तो किसानों का धान टोकन के बावजूद तय समय पर नहीं तौला जायेगा।
पिछले साल किसानों ने उतने ही धान को बेचने का टोकन लिया था, जितनी मिंजाई हो चुकी थी। जब दुबारा बचे धान के लिये टोकन लेने गये तो कई सोसाइटियों से उन्हें वापस लौटा दिया गया। कहीं फिर ऐसा न हो। बहरहाल, धान खरीदी-बिक्री सरकार और किसान दोनों की परीक्षा ले रही है।
कोरोना रोकने के लिये नाइट कफ्र्यू
कोरोना से निपटने के लिये सोशल डिस्टेंस और मास्क पहनने के साधारण उपायों की लोग भले ही अवहेलना करते हों लेकिन प्रशासन के सख्त आदेशों की उन्हें सदैव प्रतीक्षा रहती है। प्रशासन भी लोगों के बीच कोरोना को लेकर फैली चिंता, कौतूहल, जिज्ञासा के मजे लेता रहा है। जैसे एक बार प्रदेश के सारे निजी अस्पतालों को कोरोना के इलाज के लिये हैंडओवर करने का आदेश जारी कर दिया था।
कल भी कुछ ऐसा ही हुआ। दिल्ली, गुजराज, मध्यप्रदेश में नाइट कफ्र्यू की खबर ने क्या चौंकाया, रायगढ़ में भी नाइट कफ्र्यू का आदेश जारी कर दिया गया। रायगढ़ क्या रायपुर में भी महानगरों की तरह देर रात तक वैसी चहल-पहल नहीं रहती कि सोशल डिस्टेंस बनाये रखने के लिये रात का कफ्र्यू लगाना पड़े। आदेश जारी होने के बाद हडक़म्प मचा और फिर सवाल उठे। कुछ ही घंटों में आदेश वापस भी हो गया।
अभी दो दिन पहले ही आदेश जारी कर दिया गया था कि रायपुर की हर एक सीमा पर कोविड जांच टीम तैनात की जायेगी और कोई भी कोरोना जांच के बिना शहर में प्रवेश नहीं कर सकेगा। अभी यह आदेश लागू भी नहीं हुआ था कि देखा-देखी बिलासपुर सहित कई जिलों ने भी ऐसा ही आदेश निकाल दिया। तुरंत बाद समझ में आया कि रोजाना लाखों लोगों को आउटर पर टेस्ट के लिये रोकना अव्यावहारिक है।
अभी कल ही मुख्यमंत्री का बयान आया है और इस बात को सब जानते भी हैं कि बाहरी यात्रियों के कारण प्रदेश में कोरोना मामले बढ़े। यह तो अभी भी हो रहा है। हर दिन अकेले रायपुर बिलासपुर स्टेशन से 7-8 हजार यात्री उतर रहे हैं। शुरू में जब दहशत फैली थी तो एक-एक यात्री को कड़े परीक्षण के बाद स्टेशन से बाहर निकाला गया। अब तो मजे से लोग स्टेशन का गेट पार कर शहर में घूमने लग जाते हैं। रेलवे को तो परवाह है ही नहीं, स्वास्थ्य विभाग ने भी प्रदेश के बाहर से आने वालों को सूचना देने का जो नियम बना रखा है, उसका भी कुछ अता-पता नहीं है।
गंगा-यमुना-सरस्वती
दिल्ली में नए नवेले सांसदों के रहने की व्यवस्था हो गई है। केन्द्र सरकार ने तीन टॉवर बनाए हैं, जिनमें सांसदों के लिए कुल 76 फ्लैट बनाए गए हैं। तीनों टॉवर का नाम गंगा-यमुना-सरस्वती रखा गया है। इसके उद्घाटन के बाद नए सांसदों को फ्लैट आबंटित करने की प्रक्रिया चल रही है। सुनते हैं कि छत्तीसगढ़ के दो सांसद सुनील सोनी और डॉ. ज्योत्सना महंत को भी फ्लैट आबंटित किया गया है।
सुनील सोनी, गेस्ट हाउस में रहते हैं। हालांकि प्रदेश के अन्य भाजपा सांसदों को पहले ही फ्लैट मिल चुका है। सोनी को गंगा टॉवर में फ्लैट आबंटित होने की सूचना आई है। डॉ. ज्योत्सना महंत को भी नए टॉवर में फ्लैट आबंटन की प्रक्रिया चल रही है। नए फ्लैट में न सिर्फ सांसद बल्कि उनके अतिथियों के लिए रहने की व्यवस्था है। दिल्ली में आवास के लिए भारी मारामारी रहती है। अब रहने-ठहरने की व्यवस्था होने के बाद सांसद बेहतर ढंग से अपना कामकाज निपटा सकेंगे।
प्रभावशाली लोगों का अवैध काम
वीआईपी रोड के आसपास में बड़े पैमाने पर अवैध प्लाटिंग हुई है। रोड-नाली का अता-पता नहीं होने के बाद लोगों ने ऊंचे दाम पर प्लॉट खरीदे हैं। सुनते हैं कि भाजपा के एक दिग्गज नेता के पुत्र ने प्लॉटिंग की है, चूंकि नेता पुत्र की कांग्रेस में भी रिश्तेदारी है। नोटबंदी के दौरान भी नेता पुत्र ने डुमरतराई में प्लाटिंग कर काफी माल बनाया था। वहां भी काफी अनियमितता हुई थी, जो कि फाइलों में कैद होकर रह गया। यहां भी अवैध प्लाटिंग के बाद भी, लोगों ने यह सोचकर प्लॉट खरीदा कि देर सवेर सबकुछ ठीक हो जाएगा। लोगों का सोचना गलत भी नहीं है। वैसे भी प्रभावशाली लोगों का अवैध काम भी जल्द वैध हो जाता है।
महिला की जगह नाम में भी नहीं!
हिंदुस्तान की सोच में पुरूष की अपरंपार महिला इतने गहरे पैठी हुई है कि किसी भी जगह पुरूष शब्द में महिला को शामिल मान लिया जाता है। कुछ बरस पहले छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के वक्त राजधानी रायपुर के बड़े बाग-बगीचों में बापू की कुटिया बनाई गई थी, जहां बुजुर्ग लोग जाकर बैठ सकते थे, वक्त गुजार सकते थे, टीवी देख सकते थे। इनके भीतर टीवी लगाए गए थे, और कुर्सियां रखी गई थीं। लेकिन जैसा कि इनके नाम से ही साफ था, ये बापू के लिए बनाई गई कुटिया थीं, बा के लिए नहीं। जब नाम में ही बापू लिखा गया था, तो महिलाएं वहां जाती भी कैसे? रायपुर की चौबे कॉलोनी में बनाई गई ऐसे कुटिया के साथ मेघा सेवा समिति (मातृ शक्ति वाहिनी) लिखा हुआ है। नाम में तो महिला ही महिला है, लेकिन कुटिया के नाम में बा का नाम नहीं है, महज बापू का नाम है। और वहां घूमने वाले लोगों को यह अटपटा भी नहीं लगता है कि महिला को नाम में भी जगह नहीं मिली है।
चिटफंड कम्पनियों की जमीन औने-पौने?
चिटफंड घोटाले के भीतर कहीं एक और घोटाला तो नहीं होने जा रहा? यह सवाल निवेशकों और एजेंटों की तरफ से आया है। राजनांदगांव में एक चिटफंड कम्पनी की राजसात की गई 202 एकड़ जमीन को आठ करोड़ रुपये में बेचा गया और कई निवेशकों के फंसे पैसों की आंशिक भरपाई की गई। निवेशक कह रहे हैं कि कम्पनियों की जमीन किस रेट में बेचे जा रहे हैं इस पर कोई निगरानी ही नहीं है। राजनांदगांव की जमीन की वास्तविक कीमत कई गुना ज्यादा हो सकती है। एजेंटों की मानें तो करीब आठ, दस बड़ी चिटफंड कम्पनियों ने ही 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम डुबा दी है। राजनांदगांव की बिक्री से जो राशि मिली वह उस कम्पनी में लगाई गई रकम की सिर्फ 30 फीसदी राशि है। यदि इतनी ही कम राशि कम्पनियों की सम्पत्ति से इक_ी होती रही तो निवेशकों को आधी रकम भी नहीं चुकाई जा सकेगी, मूलधन और ब्याज मिलना तो दूर की बात है। अब वे इस बात को लेकर आशंकित हैं कि कहीं प्रॉपर्टी मामूली कीमत पर बेचने का कोई खेल तो नहीं किया जा रहा। निवेशकों के वकील का कहना है कि वे हाईकोर्ट से दरख्वास्त करेंगे कि कोर्ट की निगरानी में सम्पत्ति बेची जाये और इसमें पारदर्शिता बरती जाये, ताकि अच्छी कीमत मिले और निवेशकों का ज्यादा से ज्यादा पैसा निकाला जा सके।
शादियों की बुकिंग बचाने की चिंता
देश के कई राज्यों में कोरोना ने फिर रफ्तार पकड़ ली है। दिल्ली, गुजरात, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अचानक मामले बढ़े हैं। इससे बचाव के लिये इन राज्यों में कई जरूरी कदम उठाये गये हैं। मास्क नहीं पहनने पर जुर्माना कई गुना बढ़ा दिया गया, बड़े शहरों में रात्रिकालीन कर्फ्यू लगा दी गई, सार्वजनिक समारोहों, शादी ब्याह पर फिर से सीमा लगा दी। त्यौहार के बाद छत्तीसगढ़ में भी कोरोना के केस बढ़े हैं पर अगस्त, सितम्बर की तरह पीक पर नहीं है। कुछ ही दिन हुए शादियों के लिये मेहमानों की संख्या बढ़ाई गई। लॉकडाउन नहीं करने का निर्णय लिया गया और फिलहाल मास्क पर बहुत ज्यादा सख्ती भी नहीं बरती जा रही है। पर आने वाले कुछ दिनों में क्या होगा कहा नहीं जा सकता। शादी के बहुत से मुहूर्त आने वाले दिनों में है। लोगों ने दो-ढाई सौ मेहमानों को निमंत्रण दे रखा है। महीनों से खाली बैठे टेंट, डेकोरेटर, वाद्य यंत्रों, कैटरिंग से जुड़े लोगों के हाथ ऑर्डर आये हैं। उन्हें केवल यह डर सता रहा है कि कहीं अचानक कोरोना के केस न बढऩे लगें। इसके चलते नई पाबंदी लग जायेगी और बुकिंग हाथ से निकल जायेगी।
मास्क पहनकर राउत करेंगे नृत्य
कोरोना महामारी फैलने के डर से सामाजिक, धार्मिक समागम पर रोक लगी हुई है। ईद की नमाज, नवरात्रि का जसगीत, गरबा, पडाल और देवी दर्शन, रावण दहन और दीपावली मिलन पर ग्रहण लगा रहा। अब धीरे-धीरे कई गतिविधियों में छूट दी जा रही है जिसमें लोग बड़ी संख्या में एक साथ एकत्र हो सकते हैं। बिलासपुर में राउत नाच महोत्सव हर साल मनाया जाता है जिसमें प्रदेशभर से टोलियां आती हैं और विशाल लाल बहादुर शास्त्री मैदान में हजारों लोग एकत्र होते हैं। एकादशी के बाद वाले शनिवार को यह मड़ई लगती है। कोरोना के चलते इस बार इसकी संभावना धूमिल थी, पर अब कोरोना गाइडलाइन का पालन करने का आश्वासन मिलने के बाद एक सप्ताह तारीख बढ़ाकर मंजूरी दे दी गई है। दरअसल अभी तक कई आयोजनों को इसलिये अनुमति नहीं दी गई थी कि भीड़ इतनी अधिक होगी कि कोरोना गाइडलाइन का पालन नहीं कराया जा सकेगा। राउत नाच महोत्सव आयोजन समिति चिंतित थी कि कहीं 43 साल पुरानी परम्परा टूट न जाये, इसलिये उसने प्रशासन को आश्वस्त किया है कि वहां पहुंचने वाले सभी दर्शक मास्क और दूरी का ख्याल तो रखेंगे जो टोलियां नृत्य के लिये मंच पर आयेंगी उनको भी मास्क पहनना जरूरी होगा। तो हमें तैयार रहना है देखने के लिये कि मास्क पहनकर टोलियां नृत्य कैसे करेंगीं, और दोहे कैसे गाये जायेंगे?
एनसीबी यदि छत्तीसगढ़ आये तो...
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो इन दिनों मुम्बई में खासकर बॉलीवुड में नशे के खिलाफ स्वच्छता अभियान चला रहा है। ताजा गिरफ्तारी कामेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष की है। कोर्ट ने उन्हें 15 दिन की न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया। जो खबर आई उसके मुताबिक दंपती से बरामद नशे का सामान 68 ग्राम गांजा था। दोनों गांजा पीते हैं यह उन्होंने पूछताछ के दौरान मान लिया है, ऐसा जांच अधिकारी बता रहे हैं। इस आंकड़े पर जायें तो मुम्बई तो छत्तीसगढ़ के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती। यहां तो किलो, क्विटंल और बोरियों में गांजे की तस्करी होती है। एक शहर से दूसरे शहर, एक राज्य से दूसरे राज्य। और यह धर-पकड़ तब हो रही है जब छत्तीसगढ़ की राज्य पुलिस को घूमते-फिरते सुराग मिल जाते हैं। एनसीबी यदि छत्तीसगढ़ आ जाये तो मुम्बई की तरह मामूली मामलों में हाथ नहीं डालना पड़ेगा। उन्हें और बड़े तस्कर और खरीदार मिल सकते हैं। हां,यह पता नहीं कि एनसीबी यहां पहुंचेगी तो उनके साथ साथ न्यूज चैनल वाले पहुंचेंगे या नहीं।
हर धंधे की अपनी-अपनी जुमलेबाजी
हर धंधे की अपनी एक जुबान होती है जिसमें कुछ शब्दों का बार-बार इस्तेमाल होता है जिनका कोई काम ही नहीं होता। अखबारों और टीवी चैनलों की जुबान देखें तो कोई डाका नहीं डालते, डकैती को अंजाम देते हैं, लूटते नहीं, लूट को अंजाम देते हैं। कोई भी जुर्म किया नहीं जाता, हर जुर्म को अंजाम दिया जाता है। अखबारों के जुमले अलग होते हैं, और टीवी के जुमले अलग। अगर कोई होशियार और जिद्दी सबएडिटर इनकी खबरों को लेकर बैठे तो काटकर आधा कर दे। खबर आधे से भी कम होती है, और बाकी घिसे-पिटे निरर्थक जुमले होते हैं, 15 लाख हर खाते में आने की तरह, या अच्छे दिन आने की तरह।
आज जब अखबार का कागज इतना महंगा रहता है, और टीवी चैनल हर कुछ सेकंड के इश्तहार के लिए दसियों हजार रूपए लेते हैं, तब शब्दों और बातों की इस तरह की बर्बादी खासी महंगी रहती है। लेकिन इन दोनों किस्म के मीडिया में काम करने वाले लोगों की लफ्फाजी की आदत इतनी खराब रहती है कि इनकी लिखी और कही गई बातों से जुमलों को हटाकर फिर से लिखने या कहने के लिए कहा जाए, तो लिखने वालों की कलम झटके खाने लगेगी, और माइक्रोफोन पर गैरजरूरी बातों की सुनामी फैलाने वाले लोग बोलते हुए लडख़ड़ाने लगेंगे। गैरजरूरी बातों से वह कमी पूरी हो जाती है जो कि जरूरी तथ्यों से पूरी होनी चाहिए। हर धंधे में अपनी एक परंपरागत जुबान रहती है जिसमें जुमलों से तथ्यों की कमी पूरी की जाती है, और धंधे के बाहर के लोगों को दहशत में भी लाया जाता है। इस जुमलेबाजी को उस पेशे के लोग एक विशेषज्ञता की तरह प्रदर्शित करते हैं, और बाहरी लोग प्रभावित भी हो जाते हैं। फिलहाल हर धंधे के लोगों को जुमलों में कटौती और किफायत की कोशिश करनी चाहिए। जिस तरह पहले किसी टेलीग्राम के हर शब्द के लिए 50 पैसे तक लगते थे, लोगों को यह सोचना चाहिए कि इस रेट से भुगतान करना पड़े तो वे काम की बात को कितने शब्दों में निपटा सकेंगे?
मेडिकल छात्र ने दान कर दी अपनी सीट...
मेडिकल में दाखिले के लिये कई छात्रों द्वारा फर्जी निवास प्रमाण पत्र जमा करने की शिकायत आई है। कुछ मामले ही उजागर हुए हैं जबकि बहुत से प्रकरण और ऐसे हो सकते हैं। दरअसल जब से मेडिकल में प्रवेश नीट के जरिये होने लगा है, आवेदन मेडिकल कॉलेज प्रबंधकों या राज्य के किसी जांच एजेंसी के सामने दस्तावेज नहीं आते, वे सीधे नीट में जमा होते हैं। कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों के दो-दो तीन-तीन निवास प्रमाण पत्र बनवा लिये ताकि जहां से सरकारी कॉलेज या सरकारी कोटे की सीट मिलने की संभावना हो वहां काउन्सलिंग के लिये पहुंच जायें और वहां उसी राज्य का निवास प्रमाण पत्र दिखा दें। राज्य सरकार ने अब ऐसी धोखाधड़ी के मामले में अपराध दर्ज करने की बात कही है। शायद यही वजह है कि शनिवार को काउन्सलिंग में भाग लेने के बाद सरगुजा मेडिकल कॉलेज में अजीब वाकया हुआ। छात्र को प्रवेश मिल चुका था पर जब सत्यापित दस्तावेज मांगे तो उसने दाखिला लेने से ही मना कर दिया। उसने लिखकर दे दिया कि वह यहां नहीं पढऩा चाहता, उसकी सीट किसी दूसरे छात्र को दे दी जाये। काउन्सलिंग में बैठे अध्यापकों को एकबारगी समझ में नहीं आया कि छात्र ने अपनी सीट का त्याग करने का निर्णय क्यों लिया?
अब प्रबंधन ने तय किया है कि प्रवेश नहीं लेने के बावजूद उसके दस्तावेजों की जांच कराई जायेगी, इसके लिये सम्बन्धित विभाग को लिखा जायेगा। चार साल पहले जब राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा लेने का निर्णय लिया गया तो नीट और राज्य सरकारों के बीच कोई तालमेल नहीं बना कि फर्जी दस्तावेजों से दूसरे राज्यों के छात्रों का प्रवेश कैसे रोका जाये। इस बार मामले बड़े पैमाने पर उजागर हो रहे हैं। उम्मीद है कोई सिस्टम बनेगा और यह फर्जीवाड़ा आगे जाकर रुकेगा।
बार-बार क्यों कांग्रेसी भडक़ रहे?
महिला एल्डरमेन का बिलासपुर में सफाई कर्मचारी के साथ हुआ विवाद अभी ठंडा ही नहीं पड़ा है। गृह मंत्री से लेकर थाने तक शिकायत की गई पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब यहीं के जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय केशरवानी के साथ भी एक हादसा हो गया। मंत्री गुरु रुद्र कुमार एक कार्यक्रम में भाग लेने रविवार को दोपहर यहां पहुंचे । छत्तीसगढ़ भवन में उनके कमरे में जब केशरवानी ने घुसने की कोशिश की तो बंद दरवाजे पर पीएसओ ने रोक दिया। पीएसओ पर तब भी असर नहीं हुआ जब उन्होंने बताया-मैं कौन हूं। जबरदस्ती घुसने की कोशिश की तो पीएसओ ने वायरलेस का रिसीवर पेट में दबाते हुए पीछे खिसका दिया। इसके बाद तो अपने चिर-परिचित अंदाज में केशरवानी हंगामा करने लगे। पीएसओ का कहना था कि मंत्री जी अभी भोजन कर रहे हैं और इस बीच उन्होंने किसी भी भीतर नहीं आने देने के लिये कहा है। किसी तरह से शहर अध्यक्ष और दूसरे नेता जो वहां मौजूद थे उन्होंने माहौल ठंडा किया। मंत्री जी से पीएसओ की शिकायत भी की गई। पर जैसा अब तक होता आया है, शिकायत सुन तो ली गई पर कार्रवाई कुछ नहीं हुई।
जूनियर थानेदार की डिमांड
बाल दिवस पर यूनिसेफ और इससे जुड़े एनजीओ एमसीसीआर की पहल के चलते कई दफ्तरों में बच्चों को एक घंटे के लिये प्रतीकात्मक अफसर बनने का मौका मिला। उद्देश्य था, सामाजिक जीवन की गतिविधियों को समझाकर बच्चों के व्यक्तित्व को उभारना। सबसे ज्यादा रुचि बच्चों ने पुलिस का इंचार्ज बनने में दिखाई। कुछ बच्चों ने तहसीलदार और दूसरे अधिकारियों का पद भी संभाला। प्राय: सभी बच्चों ने अपने सपनों की बातें की। जैसा कि होता है आम तौर पर सबने कहा कि वे देश की और गरीबों की सेवा करना चाहते हैं इसलिये आईएएस, आईपीएस बनना चाहते हैं। दो दिन से चर्चा उस बच्चे की सबसे ज्यादा है कि जिसने पाली के थानेदार की कुर्सी संभाली। उसने कुर्सी पर बैठने के बाद घंटी बजाई और हवलदार को समोसा लेकर आने का फरमान सुनाया। थानेदार का रसूख क्या होता है उसे पता चल गया होगा, तभी पहला आदेश पसंदीदा समोसा लाने का दिया। हवलदार ने अपने जेब से पैसे खर्च कर समोसा खिलाया, या जुगाड़ से इस बारे में बच्चे को पता नहीं चलना चाहिये वरना उसकी पुलिस के बारे मे समझ और बढ़ जायेगी। अच्छा हुआ, एक ही घंटे ही सोहबत की मोहलत मिली।
थाने तो खुलेंगे, साइबर एक्सपर्ट कहां हैं?
अलग-अलग प्रकृति व नये-नये तरीकों से ऑनलाइन ठगी बढ़ती जा रही है। तमाम जागरूकता अभियान के बावजूद ऐसे मामले रुक नहीं रहे हैं। अब हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन है और ऑनलाइन लेन-देन एप के जरिये बड़ा आसान हो गया है। पर सब इसके इस्तेमाल के लिये जरूरी सावधानी से अनभिज्ञ नहीं होते। अपराधी इसी का फायदा उठा रहे हैं। पिछली कुछ गिरफ्तारियों में यह बात सामने आ चुकी है कि इस धंधे में इंजीनियरिंग व सॉफ्टवेयर कोर्स कर चुके युवा और छात्र भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। इनका जाल देश में ही नहीं विदेशों में फैला हुआ है। हालांकि बीते कुछ समय से पुलिस भी हाई टेक हुई है और अनेक अपराधी पकड़े गये हैं पर एक्सपर्ट्स की कमी के कारण अधिकांश मामलों का सुराग नहीं मिलता। इस समय रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, जगदलपुर व अम्बिकापुर में साइबर सेल हैं। अब इन जगहों पर अलग थाने खोलने की मंजूरी मिल गई है। बात यह है कि इनमें एक्सपर्ट्स की कमी कैसे दूर की जायेगी? साइबर कैडर के कुल तीन सब इंस्पेक्टर ही प्रदेश में भर्ती किये गये थे वे भी 10 साल पहले। बाकी पुलिस जवान यदि साइबर क्राइम को समझ रहे हैं तो अपनी रुचि से और अलग से हासिल की गई डिग्री की बदौलत। थानों को खोलना तो तभी कारगर होगा जब विशेषज्ञ पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों की भर्ती हो और मौजूदा टीम को अनुभवी हाथों से प्रशिक्षण मिले।
कोविड अस्पतालों के बिस्तर खाली पर भरोसा निजी पर
प्रदेश के कोविड अस्पतालों में जगह होने के बावजूद मरीज निजी अस्पतालों में इलाज के लिये जा रहे हैं। शिकायत लगातार आ रही है कि इनसे बड़ी रकम वसूल की जाती है। छत्तीसगढ़ में इन शिकायतों की जांच हुई और प्राइवेट अस्पतालों द्वारा मरीजों से वसूली गई राशि की जानकारी मांगी गई थी। पर कार्रवाई का कोई रास्ता स्वास्थ्य विभाग नहीं निकाल सका। कारण बेड, वेंटिलेटर, आईसीयू का चार्ज तो वे तय श्रेणी और दर के अनुसार ही ले रहे थे। अतिरिक्त खर्च जैसे एम्बुलेंस, दवा, पर्सनल केयर जैसी चीजों में बिल बढ़ाया गया था। अब तो संसद की समिति ने भी एक रिपोर्ट सभापति को सौंप दी है जिसमें बताया गया है कि इलाज महंगा नहीं होने के बावजूद उपचार के लिये देशभर के निजी अस्पतालों में बड़ी रकम वसूल की जा रही है। दिल्ली, अहमदाबाद जैसे शहरों में कोरोना की दूसरी लहर आई है। मान लें कि बिस्तरों की कमी का फायदा निजी अस्पताल वहां उठा रहे हों। पर छत्तीसगढ़ के कोरोना अस्पतालों में बिस्तर होने के बावजूद मरीज खर्चीले निजी अस्पतालों में जाना क्यों पसंद कर रहे हैं, इस पर स्वास्थ्य विभाग को जरूर विचार करना चाहिये।
एल्डरमैन पर भारी, सफाई कर्मचारी
किस नेता की सरकार में चलती है किसकी नहीं, यह कलेक्टर, एसपी और उनके नीचे के अधिकारियों को पता होता है। पर बिलासपुर में इसका अंदाजा थानेदारों को और यहां तक कि सफाई कर्मचारियों को भी है। जिनकी नहीं चलती उन्हें कई जगह सीधे उलझना पड़ता है पर नतीजा कुछ निकलता नहीं। बिलासपुर की नई-नई एल्डरमैन अजरा खान के साथ कुछ ऐसा हुआ। विधायक शैलेष पांडेय के खाते से उनका मनोनयन हुआ। बीते दिनों बृहस्पतिबाजार में धूल उड़ाने की बात को लेकर एक सफाई कर्मचारी से उनका विवाद हो गया। सफाई कर्मचारी ने भी कह दिया जो करना है कर लो, परवाह नहीं करता। विधायक समर्थक वहां सहानुभूति और विरोध जताने के लिये पहुंचे। लेकिन किसके खिलाफ धरना प्रदर्शन करते, सरकार तो अपनी ही है। महापौर भी अपने ही बैठे हुए हैं। तब एल्डरमैन ने उसकी कथित ‘बदतमीजी’ की थाने में शिकायत की। दावा है कि गृह मंत्री तक भी बात पहुंचाई गई है। पर अब तक न तो एल्डरमैन की लिखित शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज की गई है और न ही नगर निगम ने सफाई कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई की।
स्मार्ट सिटी के खर्चों पर सब मौन!
रायपुर स्मार्ट सिटी के निर्माण कार्यों पर अंधाधुंध खर्च हो रहे हैं, इसमें अनियमितता की कई शिकायतें आई हैं। स्मार्ट सिटी के मद से बूढ़ातालाब सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है। चर्चा है कि गेट बनाने में ही 90 लाख रूपए खर्च किए गए। म्यूजिकल फव्वारे के टेंडर में अनियमितता की शिकायत तो अदालत की दहलीज तक चली गई है। सामान्य सभा का हाल यह रहा कि सबकुछ जानते हुए भी भाजपा पार्षदों ने मुंह तक नहीं खोला। जबकि स्मार्ट सिटी के चेयरमैन सांसद सुनील सोनी हैं।
स्मार्ट सिटी के कार्यों पर भाजपा नेताओं की चुप्पी के पीछे कुछ लोग वजह गिना रहे हैं। सुनते हैं कि भाजपा के पूर्व मंत्री के करीबी ठेकेदार को काम मिला हुआ है। बड़े अफसर का दखल है ही, ऐसे में सबने चुप्पी साध ली है। यहां संविदा पर काम कर रहे अफसरों को महंगी गाड़ी मिली हुई है। एक अफसर तो भाईदूज मनाने स्मार्ट सिटी की गाड़ी से महाराष्ट्र तक हो आए। स्मार्ट सिटी का कामकाज ‘सबका साथ सबका विकास’ के अंदाज में हो रहा है। अब स्थानीय नेता-अफसर चुप रहेंगे, तो अनियमितताओं की जांच नहीं होगी? ऐसा सोचना भी गलत है। स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए केन्द्र सरकार से अंशदान मिलता है। कई लोगों ने यहां की अनियमितता की शिकायत केन्द्र सरकार में भी की है। शिकायतकर्ता भी प्रभावशाली है। ऐसे में देर सवेर परियोजना के कार्यों की जांच पड़ताल शुरू हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
केन्द्र के कृषि कानून का असर दिखने लगा...
धान की सरकारी खरीद शुरू होने में अभी 10 दिन बाकी है। सोसाइटियों में एक दिसम्बर के बाद मचने वाली आपा-धापी का किसानों को अंदाजा है। वे यह भी मानकर चल रहे हैं कि न तो पहले दिन ही उनका धान बिक पायेगा और न ही तत्काल नगदी उनके हाथ में आयेगी। इधर प्रदेश की मंडियों में 19 नवंबर से धान की खरीदी शुरू की गई। जो रेट खुला उसने किसानों को निराश कर दिया। उन्हें वेरायटी के हिसाब से 1350 से 1500 रुपये के बीच ही कीमत मिल पा रही है। यह रकम पिछले साल से करीब 400 रुपये कम है। धान तो वही है, मांग भी कम नहीं हुई। फिर इसकी क्या वजह हो सकती है? एक अनुमान यह है कि सरकार ने अब तक रुख साफ नहीं किया है कि केन्द्र सरकार की सहमति- मंजूरी मिलने की प्रक्रिया की प्रतीक्षा किये बगैर वह इस बार भी 2500 रुपये में धान खरीदने जा रही है। बीते साल की ही बकाया रकम की एक किश्त नहीं मिल पाई है। राज्य सरकार का वह बिल अब तक राज्यपाल के पास रुका हुआ है जिसमें केन्द्र के कृषि कानून को निष्प्रभावी करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदना जरूरी किया गया है। फिलहाल मंडियों में खरीदी तो केन्द्र के घोषित समर्थन मूल्य के आसपास है पर राज्य सरकार के अतिरिक्त प्रोत्साहन से यह काफी पीछे है।
धान बोनस का सबसे ज्यादा फायदा किसे?
छत्तीसगढ़ में आटोमोबाइल सेक्टर की दीपावली खूब अच्छी रही। कारों और दोपहिया वाहनों की बिक्री के आंकड़े आये हैं। त्यौहारों में 35 हजार से ज्यादा बाइक और 4 हजार से अधिक कारों की बिक्री हुई। यह संख्या बीते साल के मुकाबले करीब दुगुनी है। इस सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि इनमें से 70 फीसदी खरीदी ग्रामीण क्षेत्रों से हुई। कोरोना के चलते आई मंदी का असर शहर के नौकरीपेशा लोगों पर पड़ा तो दूसरी ओर किसानों को धान का बोनस, गोबर बिक्री की राशि, केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की ओर से दूसरी नगद राशि मिली। इसके अलावा बड़ी संख्या में कोरोना दौर में प्रवासी मजदूर भी लौटे और उन्होंने भी अपनी अच्छी-खासी बचत यहीं छत्तीसगढ़ में खर्च की। एक तरफ वे किसान हैं जिनके पास छोटी खेती है, वे धान से कुछ नगद आ सके इंतजार कर रहे हैं। दूसरी तरफ गांवों में फर्राटे मारती कारें और बाइक्स भी दिखेंगी।
आखिर समुद्र आया लोटे में...
आखिरकार ईनामी भ्रष्टाचारी रिटायर्ड आबकारी अफसर समुद्र सिंह ईओडब्ल्यू-एसीबी के शिकंजे में आ ही गया। समुद्र सिंह पर 10 हजार का ईनाम था, उसे ढूंढने के लिए पुलिस मध्यप्रदेश और कई राज्यों में गई थी। मगर वह आश्चर्यजनक तरीके से बोरियाकला स्थित अपने निवास पर मिला।
समुद्र सिंह की पिछली सरकार में तूती बोलती थी। उसकी संविदा नियुक्ति के लिए सरकार ने नियम बदल डाले थे, और सबसे ज्यादा समय तक संविदा पर काम करने का रिकॉर्ड समुद्र सिंह के नाम है। आबकारी विभाग में तो समुद्र सिंह के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था। मंत्री बंगले में समुद्र सिंह की गाड़ी सीधे पोर्च में रूकती थी। कामकाज निपटने के बाद तो कई बार तत्कालीन आबकारी मंत्री उन्हें खुद बाहर कार तक छोडऩे जाते थे।
समुद्र सिंह वैसे तो एडिशनल कमिश्नर स्तर के अफसर थे, लेकिन विभागीय सचिव भी उनसे पूछकर कोई फैसला लेते थे। उन पर आय से अधिक संपत्ति के साथ-साथ शराब के कारोबार में धांधली कर सरकार को डेढ़ हजार करोड़ का चूना लगाने का आरोप है। पिछली सरकार को प्रभावशाली लोगों के राजदार रहे समुद्र सिंह की इतनी आसान गिरफ्तारी किसी के गले नहीं उतर रही है। मजे की बात यह है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी ने समुद्र सिंह ने गिरफ्तार कर सीधे अदालत में पेश कर दिया, पुलिस रिमांड नहीं मांगी गई है। ऐसे हाईप्रोफाइल अफसर की आसान गिरफ्तारी पर सवाल उठना लाजमी है।
लेकिन दारू डिपार्टमेंट में हैरानी की एक और बात बाकी है. पिछली सरकार के वक़्त से भारतीय टेलीकॉम सेवा के एक अफसर ए पी त्रिपाठी भी जमे हुए हैं, उस वक्त भी इस अफसर की साख समुद्र सिंह जैसी ही थी. लोग हैरान हैं कि सरकार बदल गयी, त्रिपाठी स्थापित बने हुए हैं ! किस्मत इसे कहते हैं. इन्कम टैक्स का छापा भी पड़ गया, लेकिन भारत सरकार को अपने इस अफसर को ले जाने की फि़क्र और परवाह नहीं है !
अफसर से शिकायतें...
नांदगांव में पंचायत का प्रमुख ओहदा संभाल रही एक महिला अफसर के कामकाज से खफा सत्तारूढ़ कांग्रेस नेताओं ने प्रभारी मंत्री के समक्ष शिकायतों की झड़ी लगा दी। कांग्रेस नेताओं ने जुबानी शिकायत में महिला अफसर पर भाजपा नेताओं की सिफारिश पर काम करने के कुछ प्रमाण भी दिए। महिला अफसर के खिलाफ शिकायत यह है कि वे चुने हुए कांग्रेसी जनप्रतिनिधियों की अनुशंसाओं को हल्के में लेकर चुनिंदा कामों पर ही गौर करती हैं। इसके उलट भाजपाईयों के हर सिफारिशों की फाइलों को त्वरित आगे बढ़ाती हैं। महिला अफसर को कांग्रेस के एक बड़े आदिवासी नेता की सिफारिश पर अपेक्षाकृत जूनियर होने के बाद भी नांदगांव जैसा अहम जिला मिला।
कांग्रेसी नेताओं का दर्द है कि कई बड़ी योजनाओं में महिला अफसर राय लेना जरूरी नहीं समझती हैं। कांग्रेसियों ने अब प्रभारी मंत्री को महिला अफसर की वजह से ग्रामीण इलाके में सरकार की छवि खराब होने के लिए सचेत किया है। शिकवा-शिकायत के बाद प्रभारी मंत्री ने महिला अफसर को रायपुर तलब किया था। बताते हैं कि प्रभारी मंत्री से महिला अफसर को उनके खिलाफ शिकायतों का ब्यौरा दिया, और साफ कर दिया कि अब शिकायत आने पर उन्हें बदलने के अलावा कोई और चारा नहीं रहेगा। बेहतर होगा कि अपनी कार्यशैली सुधार लें।
कैमरे की चर्चा ने बात बंद करा दी...
राज्य शासन के बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोगों की एक कॉलोनी में बाहरी लोगों की आवाजाही से फिक्र हुई तो बहुत से लोगों ने आपस में बात की। कॉलोनी में आना-जाना कैसे रोका जाए इस पर चर्चा हुई। वहीं के रहने वाले एक ऊंचे ओहदे वाले व्यक्ति ने राय दी कि कॉलोनी में सीसीटीवी कैमरे लगवा देना चाहिए ताकि आने-जाने वाले लोग रिकॉर्ड हो सकें।
सलाह अच्छी थी क्योंकि यहां बसे हुए ऊंचे ओहदों वाले लोग शहरों में, दफ्तरों में, अस्पतालों में, और भी जाने कहां-कहां सीसीटीवी कैमरे लगवाते हैं। लेकिन कॉलोनी में कैमरे लगने से यह रिकॉर्ड होने लगेगा कि किसके घर कौन-कौन आए-गए, शायद यह सोचते हुए सुरक्षा की फिक्र को किनारे धर दिया गया, और इस पर चर्चा बंद ही हो गई। कैमरे दूसरों की निजता खत्म करने की कीमत पर तो ठीक हैं, लेकिन जहां अपने घर तक आने वाले लोगों की रिकॉर्डिंग होने लगे, तो वे खराब हैं। बात आई-गई हो गई, और लोगों ने हिफाजत की फिक्र की चर्चा बंद कर दी कि कहीं कैमरे न लग जाएं।
बड़े पुलिस अफसरों की गिरेबान
भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री आलोक अग्रवाल के साथ-साथ एसीबी और ईओडब्ल्यू ने उनके परिवार वालों पर भी शिकंजा कसा था। आलोक अग्रवाल के ठेकेदार भाई पवन अग्रवाल ने शिकायत की थी कि उनके भाई पर आरोप लगने के बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू ने उनके घर पर भी छापा मारा और उनके अपने गहने, रुपयों की जब्ती बना ली। ये रुपये पैसे उनके खुद के व्यवसाय से अर्जित और पैतृक थे, जिनका आलोक अग्रवाल से कोई सम्बन्ध नहीं। शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने पर पवन अग्रवाल कोर्ट गये। कोर्ट के आदेश पर बिलासपुर के सिविल लाइन थाने में लूट, जबरन घर में घुसने, चोरी जैसे कई गंभीर अपराधों में ‘अज्ञात’ सरकारी जांच अधिकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज कर लिया गया। कोर्ट को एक निश्चित समय में जवाब देना है इसलिये जांच भी शुरू हो गई है। बिलासपुर पुलिस ने डीएसपी और नीचे के स्तर के करीब दर्जनभर अधिकारियों से बयान दर्ज कर लिया है पर पूरी कार्रवाई जिनके नेतृत्व में होने का आरोप है, उन्हें बुलाने की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है। इस मामले की जांच का जिम्मा सीएसपी स्तर के अधिकारी को मिला है। देखना है वे अपने से वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को बयान के लिये बुला पाते हैं या नहीं और बुलाने पर वे आते हैं या नहीं।
गायों की मौत का कांग्रेस नेता का फर्जी वीडियो
गायों की मौत की बीते दिनों हुई घटनाओं ने प्रशासन को सकते में डाल दिया था। कुछ लोगों पर कार्रवाई भी हुई। मुख्यमंत्री की फ्लैगशिप योजना में शामिल गौठान योजना में किन मानदंडों का पालन किया जाये इस पर कड़े निर्देश दिये गये थे। ऐसे में दो दिन पहले जांजगीर-चाम्पा जिले के सरहर गांव के गौठान में 20 गायों की मौत हो जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर चलने लगा। वीडियो और किसी ने नहीं बल्कि खुद जिले के कांग्रेस अध्यक्ष ने जारी किया था। प्रशासन में हडक़म्प मच गया। आनन-फानन जांच कराई गई और शाम तक रिपोर्ट भी तैयार कर ली गई। मालूम हुआ कि सरहर या आसपास के किसी गौठान में गायों की मौत नहीं हुई है। वीडियो जिले के बाहर किसी और जगह की है। मालूम हुआ कि सब कांग्रेस के भीतर चल रहे आपसी घमासान का नतीजा था। स्थानीय भाजपा नेता इस पर खूब चुटकियां ले रहे हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस नेता ठीक कर रहे हैं। वे अपनी पार्टी के लोगों को ठिकाने लगाने के चक्कर में हमारी जिम्मेदारी भी उठा रहे हैं।