राजपथ - जनपथ
आखिर समुद्र आया लोटे में...
आखिरकार ईनामी भ्रष्टाचारी रिटायर्ड आबकारी अफसर समुद्र सिंह ईओडब्ल्यू-एसीबी के शिकंजे में आ ही गया। समुद्र सिंह पर 10 हजार का ईनाम था, उसे ढूंढने के लिए पुलिस मध्यप्रदेश और कई राज्यों में गई थी। मगर वह आश्चर्यजनक तरीके से बोरियाकला स्थित अपने निवास पर मिला।
समुद्र सिंह की पिछली सरकार में तूती बोलती थी। उसकी संविदा नियुक्ति के लिए सरकार ने नियम बदल डाले थे, और सबसे ज्यादा समय तक संविदा पर काम करने का रिकॉर्ड समुद्र सिंह के नाम है। आबकारी विभाग में तो समुद्र सिंह के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था। मंत्री बंगले में समुद्र सिंह की गाड़ी सीधे पोर्च में रूकती थी। कामकाज निपटने के बाद तो कई बार तत्कालीन आबकारी मंत्री उन्हें खुद बाहर कार तक छोडऩे जाते थे।
समुद्र सिंह वैसे तो एडिशनल कमिश्नर स्तर के अफसर थे, लेकिन विभागीय सचिव भी उनसे पूछकर कोई फैसला लेते थे। उन पर आय से अधिक संपत्ति के साथ-साथ शराब के कारोबार में धांधली कर सरकार को डेढ़ हजार करोड़ का चूना लगाने का आरोप है। पिछली सरकार को प्रभावशाली लोगों के राजदार रहे समुद्र सिंह की इतनी आसान गिरफ्तारी किसी के गले नहीं उतर रही है। मजे की बात यह है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी ने समुद्र सिंह ने गिरफ्तार कर सीधे अदालत में पेश कर दिया, पुलिस रिमांड नहीं मांगी गई है। ऐसे हाईप्रोफाइल अफसर की आसान गिरफ्तारी पर सवाल उठना लाजमी है।
लेकिन दारू डिपार्टमेंट में हैरानी की एक और बात बाकी है. पिछली सरकार के वक़्त से भारतीय टेलीकॉम सेवा के एक अफसर ए पी त्रिपाठी भी जमे हुए हैं, उस वक्त भी इस अफसर की साख समुद्र सिंह जैसी ही थी. लोग हैरान हैं कि सरकार बदल गयी, त्रिपाठी स्थापित बने हुए हैं ! किस्मत इसे कहते हैं. इन्कम टैक्स का छापा भी पड़ गया, लेकिन भारत सरकार को अपने इस अफसर को ले जाने की फि़क्र और परवाह नहीं है !
अफसर से शिकायतें...
नांदगांव में पंचायत का प्रमुख ओहदा संभाल रही एक महिला अफसर के कामकाज से खफा सत्तारूढ़ कांग्रेस नेताओं ने प्रभारी मंत्री के समक्ष शिकायतों की झड़ी लगा दी। कांग्रेस नेताओं ने जुबानी शिकायत में महिला अफसर पर भाजपा नेताओं की सिफारिश पर काम करने के कुछ प्रमाण भी दिए। महिला अफसर के खिलाफ शिकायत यह है कि वे चुने हुए कांग्रेसी जनप्रतिनिधियों की अनुशंसाओं को हल्के में लेकर चुनिंदा कामों पर ही गौर करती हैं। इसके उलट भाजपाईयों के हर सिफारिशों की फाइलों को त्वरित आगे बढ़ाती हैं। महिला अफसर को कांग्रेस के एक बड़े आदिवासी नेता की सिफारिश पर अपेक्षाकृत जूनियर होने के बाद भी नांदगांव जैसा अहम जिला मिला।
कांग्रेसी नेताओं का दर्द है कि कई बड़ी योजनाओं में महिला अफसर राय लेना जरूरी नहीं समझती हैं। कांग्रेसियों ने अब प्रभारी मंत्री को महिला अफसर की वजह से ग्रामीण इलाके में सरकार की छवि खराब होने के लिए सचेत किया है। शिकवा-शिकायत के बाद प्रभारी मंत्री ने महिला अफसर को रायपुर तलब किया था। बताते हैं कि प्रभारी मंत्री से महिला अफसर को उनके खिलाफ शिकायतों का ब्यौरा दिया, और साफ कर दिया कि अब शिकायत आने पर उन्हें बदलने के अलावा कोई और चारा नहीं रहेगा। बेहतर होगा कि अपनी कार्यशैली सुधार लें।
कैमरे की चर्चा ने बात बंद करा दी...
राज्य शासन के बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोगों की एक कॉलोनी में बाहरी लोगों की आवाजाही से फिक्र हुई तो बहुत से लोगों ने आपस में बात की। कॉलोनी में आना-जाना कैसे रोका जाए इस पर चर्चा हुई। वहीं के रहने वाले एक ऊंचे ओहदे वाले व्यक्ति ने राय दी कि कॉलोनी में सीसीटीवी कैमरे लगवा देना चाहिए ताकि आने-जाने वाले लोग रिकॉर्ड हो सकें।
सलाह अच्छी थी क्योंकि यहां बसे हुए ऊंचे ओहदों वाले लोग शहरों में, दफ्तरों में, अस्पतालों में, और भी जाने कहां-कहां सीसीटीवी कैमरे लगवाते हैं। लेकिन कॉलोनी में कैमरे लगने से यह रिकॉर्ड होने लगेगा कि किसके घर कौन-कौन आए-गए, शायद यह सोचते हुए सुरक्षा की फिक्र को किनारे धर दिया गया, और इस पर चर्चा बंद ही हो गई। कैमरे दूसरों की निजता खत्म करने की कीमत पर तो ठीक हैं, लेकिन जहां अपने घर तक आने वाले लोगों की रिकॉर्डिंग होने लगे, तो वे खराब हैं। बात आई-गई हो गई, और लोगों ने हिफाजत की फिक्र की चर्चा बंद कर दी कि कहीं कैमरे न लग जाएं।
बड़े पुलिस अफसरों की गिरेबान
भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री आलोक अग्रवाल के साथ-साथ एसीबी और ईओडब्ल्यू ने उनके परिवार वालों पर भी शिकंजा कसा था। आलोक अग्रवाल के ठेकेदार भाई पवन अग्रवाल ने शिकायत की थी कि उनके भाई पर आरोप लगने के बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू ने उनके घर पर भी छापा मारा और उनके अपने गहने, रुपयों की जब्ती बना ली। ये रुपये पैसे उनके खुद के व्यवसाय से अर्जित और पैतृक थे, जिनका आलोक अग्रवाल से कोई सम्बन्ध नहीं। शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने पर पवन अग्रवाल कोर्ट गये। कोर्ट के आदेश पर बिलासपुर के सिविल लाइन थाने में लूट, जबरन घर में घुसने, चोरी जैसे कई गंभीर अपराधों में ‘अज्ञात’ सरकारी जांच अधिकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज कर लिया गया। कोर्ट को एक निश्चित समय में जवाब देना है इसलिये जांच भी शुरू हो गई है। बिलासपुर पुलिस ने डीएसपी और नीचे के स्तर के करीब दर्जनभर अधिकारियों से बयान दर्ज कर लिया है पर पूरी कार्रवाई जिनके नेतृत्व में होने का आरोप है, उन्हें बुलाने की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है। इस मामले की जांच का जिम्मा सीएसपी स्तर के अधिकारी को मिला है। देखना है वे अपने से वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को बयान के लिये बुला पाते हैं या नहीं और बुलाने पर वे आते हैं या नहीं।
गायों की मौत का कांग्रेस नेता का फर्जी वीडियो
गायों की मौत की बीते दिनों हुई घटनाओं ने प्रशासन को सकते में डाल दिया था। कुछ लोगों पर कार्रवाई भी हुई। मुख्यमंत्री की फ्लैगशिप योजना में शामिल गौठान योजना में किन मानदंडों का पालन किया जाये इस पर कड़े निर्देश दिये गये थे। ऐसे में दो दिन पहले जांजगीर-चाम्पा जिले के सरहर गांव के गौठान में 20 गायों की मौत हो जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर चलने लगा। वीडियो और किसी ने नहीं बल्कि खुद जिले के कांग्रेस अध्यक्ष ने जारी किया था। प्रशासन में हडक़म्प मच गया। आनन-फानन जांच कराई गई और शाम तक रिपोर्ट भी तैयार कर ली गई। मालूम हुआ कि सरहर या आसपास के किसी गौठान में गायों की मौत नहीं हुई है। वीडियो जिले के बाहर किसी और जगह की है। मालूम हुआ कि सब कांग्रेस के भीतर चल रहे आपसी घमासान का नतीजा था। स्थानीय भाजपा नेता इस पर खूब चुटकियां ले रहे हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस नेता ठीक कर रहे हैं। वे अपनी पार्टी के लोगों को ठिकाने लगाने के चक्कर में हमारी जिम्मेदारी भी उठा रहे हैं।
परिक्रमा की परंपरा का फायदा...
हिन्दुस्तान में बहुत से लोगों को यहां की तमाम रीति-रिवाजों के पीछे वैज्ञानिक आधार देखना अच्छा लगता है, फिर चाहे वह सही हो, या न हो। पुराने लोग पुराने वक्त में जमीन पर बैठकर खाना खाते थे, और खाना शुरू करने के पहले थाली आते ही हाथ में पानी लेकर थाली के चारों तरफ एक घेरा सा बना लेते थे। कच्ची फर्श पर मानो एक लक्ष्मण रेखा खिंच जाती थी। इसका एक वैज्ञानिक आधार जो दिखता था, और जो सही भी लगता है वह यह था कि ऐसी गीली लकीर पार करके चींटियां थाली तक नहीं पहुंचती होंगी।
ऐसे ही भारत के हिन्दू धर्म में जगह-जगह परिक्रमा की परंपरा है। पूजा में परिक्रमा, शादी में परिक्रमा, मंदिर में परिक्रमा। और हिन्दू धर्म से परे दूसरे धर्मों में भी कहीं दरगाह में परिक्रमा, तो कहीं और है ही। इसका एक दिलचस्प इस्तेमाल अभी समझ में आया कि कार से किसी लंबे सफर पर रवाना होना हो तो कार की एक परिक्रमा करके चारों चक्कों की हवा एक नजर देख लेनी चाहिए। होता यह है कि लोग हड़बड़ी में बिना चक्के देखे रवाना हो जाते हैं, और अपने घर से सौ-दो सौ मीटर दूर जाकर अंदाज लगता है कि कोई चक्का पंक्चर है, तो वहां घर जितनी सहूलियत नहीं रहती।
इसलिए हिन्दुस्तानी परंपरा के मुताबिक पूजा में परिक्रमा करें या न करें, कार से कहीं रवाना होने से पहले उसकी परिक्रमा जरूर कर लेनी चाहिए ताकि बीच रास्ते कहीं चक्का बदलते खड़ा न होना पड़े। और लंबे सफर में तो जब ढेर सा सामान गाड़ी में लद जाता है, तो स्टेपनी का चक्का निकालना भी मुश्किल पड़ता है। इसलिए रवानगी के पहले परिक्रमा बेहतर।
अब कांग्रेस मरवाही के बाद कोटा में...
जिस तरह न्याय-यात्रा से मरवाही चुनाव के नतीजे बेअसर थे, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का अपने दो विधायकों देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा के खिलाफ शुरू किये जा रहे हस्ताक्षर अभियान का भी मकसद पूरा होना संदिग्ध है। यह अभियान एक नैतिक दबाव जरूर बना सकता है पर कानूनी दृष्टि से इसका कोई असर नहीं होने वाला है। दूसरी तरफ डॉ. रेणु जोगी के खिलाफ कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है। उसने ऐलान कर दिया है कि कोटा में गांव-गांव जाकर जन-जागरण अभियान चलायेंगे। डॉ. जोगी ने मरवाही में भाजपा को समर्थन देकर कोटा क्षेत्र के मतदाताओं से विश्वासघात किया। जिस भाजपा का विरोध कर वे कोटा में विधायक बनीं अब उन्हीं के साथ हो चुकी हैं। उन्हें अब इस्तीफा देकर भाजपा की टिकट पर चुनाव लडऩा चाहिये। मतलब यह कि अब मरवाही के बाद कांग्रेस कोटा में अगले चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर रही है।
छठ पूजा पर प्रशासन की असमंजस
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिये पाबंदी और ढील पर प्रशासन लॉकडाउन और अनलॉक के समय से असमंजस की स्थिति में रहा है। रायपुर के महादेव घाट और बिलासपुर के अरपा नदी स्थित घाट में छठ पूजा हर साल धूमधाम से होती है। मुख्यमंत्री जो भी रहे हों इनमें भाग लेने की कोशिश करते हैं। इसी बहाने नदी और घाटों की सफाई भी हो जाती है। इस बार छठ पूजा आयोजन समितियों से करीब एक माह पहले ही सहमति ले ली गई थी कि सार्वजनिक पूजा नहीं होगी। तर्क था भीड़ इतनी आयेगी कि संक्रमण को रोकना मुश्किल हो जायेगा। नवरात्रि और दशहरे पर भी पाबंदी लागू की गई थी लेकिन बाजारों को दीपावली के लिये खुला छोड़ दिया गया। बाजारों में स्थिति वही थी, जिसका अंदेशा था। भीड़ इतनी पहुंची कि लोगों से गाइडलाइन का पालन कराया नहीं जा सका। दरअसल, छठ पर्व सूर्य को अर्ध्य देने का पर्व है और इसे नदी, तालाबों में एकत्र होकर ही मनाने की परम्परा है। छठ पूजा का नहाय खाय शुरू होने के बाद अचानक कल शाम आदेश जारी हुआ कि बिना ध्वनि विस्तारक यंत्रों, सांस्कृतिक, मंचीय कार्यक्रमों के यह पूजा सार्वजनिक रूप से हो सकती है। छठ पूजा के सार्वजनिक आयोजन की तैयारी के लिये कम से कम सप्ताह भर का समय लगता है। अचानक कल शाम को अनुमति देने की वजह से घाटों पर कोई तैयारी हो ही नहीं पाई। हो सकता है आदेश निकालने में विलम्ब जान बूझकर किया गया हो ताकि सार्वजनिक पूजा की अनुमति भी देने की बात भी रह जाये और ज्यादा भीड़ भी इक_ी न हो।
छत्तीसगढ़ में बन पायेगा एथेनॉल?
दो माह पहले प्रदेश सरकार ने जानकारी दी थी कि चार कम्पनियों के साथ एमओयू हुआ है और वे धान से एथेनॉल का उत्पादन करेंगीं। एमओयू के तहत मुंगेली में दो तथा जांजगीर और महासमुंद में एक, एक संयंत्र लगाने की तैयारी है। ये कम्पनियां 500 करोड़ से ज्यादा निवेश करेंगी और इनकी उत्पादन क्षमता 17 हजार किलोलीटर से ज्यादा होगी। अब इस पर दूसरी खबर दिल्ली से है। एफसीआई ने भी गोदामों में बचे जरूरत से ज्यादा अनाज को बेचने का टेंडर निकाला और खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियों से टेंडर बुलाये। चावल का आधार मूल्य 22 हजार 500 रुपये रखा गया। एक भी कम्पनी ने इस टेंडर में भाग नहीं लिया। बात यह निकलकर आई कि एक लीटर एथेनॉल की कीमत पेट्रोल कम्पनियां 52.22 रुपये देने के लिये तैयार है जबकि निर्माण पर खर्च ही 57.22 रुपये होना है। ये आंकड़ा चावल का है, धान का नहीं। धान से सीधे एथेनॉल बनाने की तकनीक में उत्पादन लागत कम हो जायेगी? पता तब चलेगा जब एमओयू करने वाली कम्पनियां निवेश और उत्पादन शुरू करें। एमओयू तो पिछली सरकारों में अनेक होते रहे। रतनजोत से डीजल बनाने की योजना का क्या हुआ, इसका भी उदाहरण अतीत में मिल चुका है।
खुशहाल छत्तीसगढ़ में केन्द्री जैसी घटना क्यों?
हाल ही में एक ब्यौरा जारी हुआ था, जिसमें बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में केवल दो प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं। इसके अलावा महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा में सर्वाधिक लोगों को रोजगार देने का आंकड़ा भी सरकार की तरफ से जारी किया गया था। बार-बार कहा जाता है कि मंदी की मार यहां नहीं पड़ी। ऐसे आंकड़े तब फिजूल लगते हैं जब केन्द्री, अभनपुर में कोई कमलेश अपने परिवार के सभी सदस्यों की गला दबाकर हत्या कर देता है और खुद फांसी पर झूल जाता है। मृतक के भाईयों और पड़ोसियों से बात करने पर पुलिस को यही पता चला है कि उसने आर्थिक तंगी और बीमारी के खर्च को बर्दाश्त नहीं कर पाने के चलते यह खौफनाक कदम उठाया। अवसाद किसी भी वजह से हो सकता है पर खुद की जान लेने के साथ-साथ अपने आश्रितों को भी मौत के मुंह में धकेल देना गहरी निराशा की ओर इशारा करता है। कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए गंभीर संकट का इसे एक नतीजा माना जा सकता है। कमलेश जैसे लोग ऐसे तबके से हैं जो अपनी मानसिक स्थिति के बारे में शायद अपने दोस्तों, करीबियों से भी बात करने से कतराते हैं। काउन्सलिंग और मानसिक चिकित्सकों तक तो पहुंचना दूर की बात है। आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति और सेहत की न्यूनतम देखभाल की सरकारी योजनायें तो हैं पर उनकी मानसिक स्थिति को पढऩे का कोई तरीका विकसित नहीं किया गया है। प्रतिपक्ष का इस मुद्दे पर सरकार को घेरना काफी नहीं है।
सरकार की पाबंदी नहीं, डर खत्म होने का इंतजार
कोरोना संक्रमण की रफ्तार घटने और लम्बे लॉकडाउन के चलते काम-धंधे पर पर रहे असर के चलते सरकार ने धीरे-धीरे रियायतें बढ़ा दी है। बीते 15 अक्टूबर से ही केन्द्र सरकार ने प्राइमरी छोडक़र बाकी स्कूलों को खोलने की इजाजत दे दी है पर न तो स्कूल संचालक और न ही अभिभावक इसके लिये तैयार हैं। स्कूल शिक्षा मंत्री ने साफ किया है कि 30 नवंबर तक तो ये नहीं खुलने वाले। बसों को चलाने की अनुमति मिल चुकी है पर बस मालिक घाटे में चल रहे हैं क्योंकि सवारियां नहीं मिल रही है। पारिवारिक समारोहों के लिये पहले से 50 लोगों की अनुमति दी गई थी उसे बढ़ाकर 100 कर दी गई है पर मंगल भवन, टेंट, बिजली, बाजा वालों का धंधा ठप पड़ा हुआ है। दीपावली के दिनों में बाजार में खरीदारी के लिये खूब भीड़ उमड़ी, सोशल डिस्टेंस का पालन किये बगैर। इसके बावजूद डर बैठा हुआ तो है।
छोटे से गांव की खास दीपावली...
देशभर में दीपावली पर्व मिल-जुलकर मनाया गाय। अनेक मुस्लिम परिवारों ने अपने घरों में दीये जलाये। वैसे ही जैसे ईद पर सेवईयां खाने हिन्दू परिवार के लोग पहुंचते हैं। अजमेर शरीफ की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब देखी गई जो दीपावली के दिन रोशनी से नहाया हुआ था। छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव बालोद जिले के गुरुर ब्लॉक के भैजा मैदानी में भी हर साल जिस तरह दीपावली मनाई जाती है वह राष्ट्रीय स्तर की खबर बननी चाहिये। यहां की दिवाली कार्तिक अमावस्या के अगले दिन होती है। एक आयोजन समिति है जिसके संरक्षक अशरफ अली हैं। यहां केवल दीप जलाने, पटाखे चलाने की रस्म नहीं होती बल्कि दिनभर खेलकूद और शाम के वक्त सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। परम्परा 90 सालों से चली आ रही है। बताते हैं सन् 1930 में मालगुजार रामभरोसा ने इस उत्सव को शुरू किया था। पूरा कार्यक्रम गैर-राजनीतिक होता है और ग्रामीण सारी तैयारी खुद करते हैं। राजनीतिक नफे के लिये इफ्तार पार्टियां देने वाले नेताओं को इनसे सीख मिल सकती है। यही गहरी जड़ें समाज को एक रखने के काम आती हैं।
अब गिले-शिकवे बयां करने की जगह नहीं
मरवाही विधानसभा चुनाव में इतने अधिक अंतर से कांग्रेस को जीत मिली, जितनी नेताओं, कार्यकर्ताओं ने उम्मीद नहीं की थी। आखिरी वक्त तक कहते रहे- मुकाबला कड़ा है पर अच्छे वोटों से जीतेंगे। उम्मीद से ज्यादा बेहतर परिणाम आया और कांग्रेस को 38 हजार से ज्यादा मतों की बढ़त मिल गई। मतगणना और चुनाव परिणाम के बीच का एक सप्ताह सभी के लिये तनाव में गुजरा। यह भी तय कर लिया गया कि विपरीत परिणाम आने पर क्या-क्या कारण गिनाये जायेंगे। हार-जीत का फर्क कम होगा तब भी सवाल उठेंगे और जवाब लिया जायेगा। कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं में रोष था कि बिलासपुर और कोरबा से आये नेता-कार्यकर्ता उन पर हावी हो रहे हैं और भरोसा नहीं कर रहे हैं। मतदाताओं की खातिरदारी का सारा जिम्मा भी बाहर के नेताओं को दे दिया गया है।
जिला कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे और भतीजे की महिलाओं से जुड़ी दो वारदातें चुनाव प्रचार के दौरान ही हो गई थी। इन महिलाओं के समाज के वोटों के फिसलने का डर बना हुआ था। इन सब पर आवाज उठाने के लिये कांग्रेस ने चुनाव परिणाम के बाद बैठक करने की योजना बना ली थी। पर नतीजा ऐसा आ गया कि किसी को कुछ कहने के लिये नहीं रह गया। अब सिर्फ जश्न जीत का मनाया जा रहा है। उल्टे भाजपा में जरूर विचार विमर्श हो रहा है कि इस बड़ी पराजय में किस-किस स्थानीय नेता की क्या भूमिका रही। एक महिला नेत्री जो टिकट की दावेदार भी थीं, उनका खामोश बैठ जाना, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से आखिरी दिनों में समझौता करना, जैसे मुद्दों पर पार्टी के भीतर विचार मंथन हो रहा है।
कोरोना वैक्सीन पर असमंजस
कोरोना वैक्सीन को लेकर बढ़ चढक़र दावे किए जा रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि नए साल की शुरूआत में वैक्सीन आम लोगों तक पहुंच सकता है। केन्द्र सरकार ने तो वैक्सीन के रखरखाव के लिए राज्यों को व्यवस्था बनाने के लिए कह दिया है। मगर छत्तीसगढ़ सरकार इसको लेकर असमंजस में है। वजह यह है कि कौन सी वैक्सीन आएगी, यह तय नहीं है।
अमरीकी कंपनी फाइजर की वैक्सीन से जुड़ी जानकारी आई है, उसके मुताबिक माइनस 70 डिग्री तापमान में वैक्सीन को रखना होगा। और 15 मिनट के भीतर इसको लगाना होगा, तभी कारगर रहेगा। ऐसी वैक्सीन के लिए व्यवस्था बना पाना किसी भी सरकार के लिए बेहद कठिन है। केन्द्र सरकार ने वैक्सीन के रखरखाव के लिए व्यवस्था बनाने के लिए तो कह दिया है, लेकिन यह कब तक उपलब्ध करा पाएगी इसके बारे में कुछ नहीं कहा है।
कुछ जानकारों का अंदाजा है कि सब कुछ ठीक ठाक रहा, तो छत्तीसगढ़ में वैक्सीन की पहली खेप आने में छह माह का समय लग सकता है। तब तक मास्क और सामाजिक दूरी का पालन करने से ही कोरोना का बचाव हो सकता है।
मेहमाननवाजी नहीं हो रही प्रवासी पक्षियों की
पक्षियों की कोई सरहद नहीं होती। छत्तीसगढ़ में हर साल हजारों की संख्या में, हजारों किलोमीटर दूर चीन, साइबेरिया, तिब्बत और मध्य एशिया के देशों से करीब 70 तरह की पक्षियां पहुंचती हैं। नया रायपुर अटल नगर के सेंध जलाशय और जंगल सफारी के अंदर बने जलाशय में ये प्रवासी पक्षी आ चुके हैं। इसके अलावा धमतरी, दुर्ग, बेमेतरा, बिलासपुर के विभिन्न बांधों, तालाबों और जलाशयों में पक्षियों ने डेरा डाल रखा है। उनका ठंड का पूरा मौसम यहीं बीतेगा और जनवरी माह के आखिरी हफ्ते में लौटेंगे जब तापमान बढऩा शुरू होगा। रायपुर के जंगल सफारी में जरूर बर्ड वाचिंग टूर कराया जाता है और चारों ओर से घिरा होने के कारण यहां पक्षियों की सुरक्षा भी हो जाती है पर, बाकी स्थानों पर पक्षियों के रहवास को सहेजने के लिये कोई प्रयास नहीं किया जाता। वन विभाग दो चार जगह चेतावनी के बोर्ड लगाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। कई जगहों से पत्थर मारकर, शोरगुल कर, तेज रफ्तार वाहन चलाकर इन पक्षियों को ठिकाना छोडऩे के लिये मजबूर कर दिया जाता है। प्रदेश में मेहमान पक्षियों की आवभगत और सुरक्षा के लिये कोई स्पष्ट नीति नहीं है।
यह तस्वीर ब्लू थ्रोट पक्षी की है जिसे नीलकंठी भी कहते हैं। दूसरे पक्षियों की आवाज की नकल करने में इसे महारत हासिल है। मात्र 15 सेंटीमीटर के इस पक्षी को हर साल बिलासपुर के नजदीक कोपरा जलाशय में देखने को मिल सकता है। यह तस्वीर छायाकार व वन्य जीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने ली है।
फरियादी कैसे कोरोना से बचें और बचायें?
दीपावली की व्यस्तता खत्म होने के बाद प्रदेशभर में आज से चहल-पहल बढ़ गई है। हाईकोर्ट सहित प्रदेशभर की अदालतें खुल गई हैं। मंत्रालय, संचालनालय छोडक़र, सरकारी दफ्तरों में सौ फीसदी उपस्थिति का आदेश दिया गया है। अब सभा सम्मेलनों, बैठकों और स्कूलों की बारी है, बशर्ते कोरोना की दूसरी लहर प्रदेश में न पहुंचे। सरकारी कर्मचारियों को हिदायत दी गई है कि वे निजी वाहनों से दफ्तर पहुंचने की कोशिश करें क्योंकि बसों में यात्रा करने से सोशल डिस्टेंस बन नहीं पायेगा। एक तरफ सरकार बसों को चालू करने की अनुमति दे रही है तो दूसरी तरफ कर्मचारियों को निजी गाडिय़ों का इस्तेमाल करने कह रही है। दूसरी बात, अधिकारी, कर्मचारी निजी वाहन लेकर दफ्तर तो आ जायेंगे पर जिला मुख्यालय पहुंचने वाले दूर-दराज के गांवों के फरियादी, जिनकी हैसियत नहीं- कैसे निजी वाहन का इस्तेमाल करेंगे। मुलाकात तो आकर इन्हीं सरकारी कर्मचारियों से उनको करनी है। क्या तब कोरोना फैलने से रोका जा सकेगा?
पुरंदेश्वरीभाजपा को नई प्रदेश प्रभारी
पूर्व केन्द्रीय मंत्री डी पुरंदेश्वरी को प्रदेश भाजपा का प्रभारी बनाया गया है। पहली बार सह प्रभारी की नियुक्ति की गई है। बिहार के भाजपा विधायक नितिन नवीन को यह जिम्मेदारी दी गई है। नवीन चौथी बार विधायक बने हैं, और वे बिहार भाजयुमो के अध्यक्ष रह चुके हैं। इससे पहले के प्रदेश प्रभारी डॉ. अनिल जैन कोई ज्यादा प्रभावी नहीं रहे। यहां सौदान सिंह की ही चलती रही है। नए प्रभारी बनने के बाद कोई बड़ा बदलाव आएगा, इसकी उम्मीद बेहद कम है। वजह यह है कि बिहार चुनाव में भाजपा की अच्छी सफलता से सौदान सिंह का कद बढ़ा है। सौदान सिंह के पास बिहार और तेलंगाना का प्रभार है। प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी तेलंगाना से आती हैं, और चर्चा यह भी है कि उन्हें प्रभारी बनाने में सौदान सिंह की भूमिका रही है। कुल मिलाकर प्रदेश संगठन में सौदान सिंह का दबदबा कायम रहेगा।
आईपीएस लिस्ट निकलेगी?
आईपीएस के वर्ष-2007 बैच के अफसर दीपक झा, जितेन्द्र सिंह मीणा, अभिषेक शांडिल्य, डीके गर्ग और बालाजी राव पदोन्नत होकर डीआईजी बनने वाले हैं। उनके बैचमेट मध्यप्रदेश में पदोन्नत भी हो गए हैं। यहां भी उन्हें पदोन्नति देने की तैयारी है। दीपक बस्तर, जितेन्द्र बालोद और बालाजी जशपुर एसपी हैं। डीपीसी के बाद इनमें से कुछ के प्रभार बदले भी जा सकते हैं। कुल मिलाकर आईपीएस अफसरों की एक लिस्ट जल्द निकल सकती है।
उत्सव, उदारता, प्रतिशोध और अवसाद
शायद ही कहीं से ख़बर आई हो कि पूरी दीपावली बाजारों में भीड़ के दौरान सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं करने की कोई कार्रवाई स्थानीय प्रशासन ने की। या फिर रात 8 बजे से 10 बजे तक पटाखे फोडऩे के नियम को तोडऩे पर कार्रवाई की गई। दीपावली के दौरान कोरोना जांच केन्द्रों में कम लोग पहुंचे और नये संक्रमित भी कम निकलकर आये। आर्थिक मंदी और बेरोजगारी की दिक्कत से जूझ रहे परिवारों ने दिल और बटुआ खोलकर मिठाईयां, पटाखे कपड़े, जेवर खरीदे। कितना संक्रमण और प्रदूषण फैला, हिसाब शायद बाद में हो। रंगोली, रोशनी और पटाखों की भीड़ में यह बात गुम हो गई कि अंधेरा कहां है। जरूरतमंद किसान इस दिन भी कुछ नगदी की उम्मीद लिये मंडियों में धान बेचते दिखे। रायपुर की कोतवाली और बिलासपुर के शनिचरी सहित हर शहर में मजदूर काम मिलने की उम्मीद में दीपावली की सुबह भी खड़े हुए थे। जिस तरह से राष्ट्रीय पर्वों पर, महिला दिवस पर मिलते हैं। दीपावली खुशी का पर्व, पर प्रतिशोध भारी पड़ा। हत्या की कम से कम पांच वारदातें सामने आईं। मुंगेली की जिला जज दीपावली की अगली सुबह फांसी पर लटकी हुई मिली। शायद बहुत ज्यादा रोशनी और पटाखों की गूंज ने उन्हें अवसाद में घेर लिया।
बघेल और बिहार चुनाव
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जिम्मेदारी दी गई कि उनकी मौजूदगी में बिहार विधायक दल का नेता चुन लिया जाये। बघेल और स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अविनाश पांडेय की मौजूदगी में भागलपुर के विधायक अजीत शर्मा को नेता चुन लिया गया। उप-नेता, सचेतक, कोषाध्यक्ष जैसे पद भी बांटे गये। हालांकि बैठक के पहले खूब हंगामा हुआ। खबर मारपीट की भी है। केवल 19 विधायक हैं इसके बावजूद छत्तीसगढ़ से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की वहां मौजूदगी कुछ खास कारणों की तरफ इशारा करती है। नीतिश कुमार की पार्टी जदयू के बुरी तरह परास्त होने के बावजूद उन्हें एनडीए गठबंधन का नेता चुना गया और आज वे मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके। कहा जा रहा है, इसे लेकर भाजपा में असंतोष है। दो-दो उप मुख्यमंत्री रखकर नीतिश कुमार को उलझाया जाना, सुशील मोदी को मौका नहीं मिलना जैसे कुछ कारणों से बताते हैं जदयू में भी नाराजगी चल रही है। चिराग पासवान तो नीतिश कुमार के पीछे पड़े ही हैं। लब्बोलुआब यह है कि बघेल की मौजूदगी सिर्फ 19 विधायकों को एकजुट रखने और सर्वसम्मति से नेता चुनने के लिये नहीं थी। महाराष्ट्र का उदाहरण सामने है। आगे बिहार की राजनीति कोई करवट लेती है तो उनकी भूमिका और बड़ी हो सकती है।
चिटफंडियों को बुलाने वाले कहां हैं?
चिटफंड कम्पनियों में हजारों निवेशकों ने करोड़ों रुपये डुबा दिये। सरकार के चुनावी वायदों में उनका रुपया लौटाना भी शामिल था। धनतेरस के दिन एक अच्छी बात हुई कि इनमें से एक कम्पनी याल्सको रियल स्टेट की सम्पत्ति कुर्क करने के बाद निवेशकों को कुछ रकम लौटाई गई। निवेशकों में अधिकांश छत्तीसगढ़ के हैं पर दूसरे राज्यों के भी हैं। जो राशि मिली वह उनके निवेश का केवल 30 प्रतिशत है। रकम दुगना-तिगुना होने की उम्मीद लेकर लोगों ने इन कम्पनियों में राशि लगाई थी। यह राशि थोड़ा सा मरहम तो लगाती है। सन् 2018 तक किसी का एक रुपया नहीं लौटाया गया, न ही कम्पनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। ये निवेश बीते 15 सालों में किये गये हैं। पर, वे लोग कहां हैं जिन्होंने इन कम्पनियों को छत्तीसगढ़ में घुसने और उन्हें पैठ बनाने का मौका दिया?
डॉ. ध्रुव को मरवाही में 20 साल किसने टिकाया?
मरवाही में कांग्रेस की जीत के बाद कई किस्से निकल कर आ रहे हैं। डॉ. के. के. धु्रव के लिये यह प्लस प्वाइंट था कि बीते यहां 20 साल तक चिकित्सा अधिकारी थे। पहले बीएमएचओ फिर सीएमएचओ। इतने सालों में मरवाही के एक-एक गांव में वे पहचाने जाने लगे। इतने अधिक की जन्म स्थान होने के बाद भी भाजपा उम्मीदवार डॉ. गंभीर सिंह पर वे भारी पड़ गये। कुछ ग्रामीण कहते मिले कि डॉ. ध्रुव हमारे लिये 'देवताÓ हैं।
इन सबके बीच सवाल यह उठता है कि आखिर 20 साल वे एक ही जगह पर टिके कैसे रहे? मालूम हुआ कि स्व. अजीत जोगी के वे चहेते डॉक्टर थे। मरवाही के लोगों को अच्छा इलाज मिले इसके लिये उन्होंने डॉ. धु्रव को मरवाही छोडऩे नहीं दिया। अगर कभी तबादला हो भी जाता था तो स्व. जोगी रुकवा दिया करते थे या वापस बुला लेते थे। संयोग देखिये, डॉ. ध्रुव ने डॉक्टरी छोड़कर उनकी सीट ही संभाल ली। थोड़ा दर्द भाजपा को भी हो रहा होगा कि उनकी सरकार के रहते हुए ही डॉ. ध्रुव ने वहां पैठ जमा ली। वैसे डॉ. ध्रुव के कंधे से कभी स्टेथोस्कोप हटता नहीं । चुनाव प्रचार के दौरान भी इसे वे लटकाये रहते थे। प्रचार के साथ-साथ मरीज मिलने पर उनकी जांच भी करते जा रहे। काउन्टिंग के दिन भी मतगणना स्थल के बाहर वे मरीजों की जांच करने लगे। डॉ. ध्रुव कहते हैं स्टेथेस्कोप उनकी पहचान है। जिस डॉक्टरी सेवा ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है उसे कभी छोड़ेंगे नहीं।
प्रवासियों के इलाके में कम कोरोना मौतें
कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों में जांजगीर-चाम्पा जिले की स्थिति प्रदेश में ज्यादा ठीक है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 100 से ज्यादा मौतों वाले जिले दुर्ग, रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर, राजनांदगांव और जांजगीर-चाम्पा है। जांजगीर चाम्पा में मौत का आंकड़ा केवल एक प्रतिशत है। यह वही जिला है जहां से सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं। जांजगीर-चाम्पा में स्वास्थ्य की सेवायें भी बहुत बेहतर नहीं है। जरा भी गंभीर केस होता है तो मरीज को सिम्स बिलासपुर अथवा एम्स रायपुर या फिर कोरबा कोविड अस्पताल रेफर किया जाता है। यहां 12 हजार 866 संक्रमितों में 130 की मौत हुई। यानि मौत का आंकड़ा करीब एक प्रतिशत रहा। दूसरी तरफ रायपुर, दुर्ग जहां प्रवासी मजदूर की संख्या कम रही और स्वास्थ्य सेवायें भी कुछ बेहतर है, मृत्यु का दर बढ़ा हुआ मिला। सर्वाधिक मृत्यु 2.8 प्रतिशत दुर्ग में हुई। यहां 17065 मरीजों के पीछे 486 की मौत हो गई। रायपुर में सर्वाधिक 42 हजार 757 मरीज मिले, जिनमें से 1.4 प्रतिशत, 625 की मौत हुई।
सटोरियों के बाद जुआरियों की मौज
आईपीएल में जगह-जगह सट्टेबाजी हुई। लोग बंगलों, होटलों में ही नहीं बल्कि कार पर, जंगल में और प्रदेश से बाहर गोवा, मुम्बई जैसी जगहों से भी सट्टा लगा रहे थे। जितना सट्टा खेला गया होगा उसका एक प्रतिशत भी शायद ही पुलिस के हाथ में आया हो। अब आईपीएल खत्म हुआ और बारी दीपावली की आ गई। जुएं के फड़ जगह-जगह लग रहे हैं। कुछ लोग इसे परम्परा में शामिल बताते हैं और घर पर परिवार के बीच भी खेलते हैं। गृह मंत्री और पुलिस विभाग के आला अफसर लगातार जुए सट्टे के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये अपने मातहतों को निर्देश भी देते हैं। पुलिस की ओर से पेश किये जाने वाले आंकड़े तो जबरदस्त हैं। रायपुर की देखें तो रोजाना दर्जनों कार्रवाई हो रही है। पर जब्ती बताती है कि ये जुआरी, सटोरिये अपने साथ ज्यादा रकम लेकर चलते नहीं, पुलिस को राजस्व बढ़ाने का ठीक से मौका नहीं मिलता, खासकर दीपावली के दिनों में।
ऑनलाइन लोन का झटका
मोबाइल एप कई सहूलियत देते हैं तो कई प्रलोभन भी। सावधानी नहीं बरतने पर समस्या खड़ी हो जाती है। ऑनलाइन ठगी के बाद अब ऑनलाइन लोन के नाम पर लोगों को लूटा जा रहा है। जशपुर पुलिस के पास ऐसी कई शिकायतें पहुंची हैं। लोग शर्तों को पढ़े जाने बिना ही ऑनलाइन आवेदन दे रहे हैं और किश्तें नहीं चुका पाने पर उन्हें धमकी मिल रही है। वसूली एजेंट घर पहुंच रहे हैं। कुछ एजेंट तो घर का सामान उठाकर ले जाने की बात करते हैं। कर्जदार की सहमति लेकर फ्रैंड लिस्ट में शामिल किसी भी व्यक्ति को उसका जमानतदार बना दिया जाता है और उसे भी धमकियां दी जा रही हैं। ये कम्पनियां 24 प्रतिशत से 48 प्रतिशत तक ब्याज ले रही हैं। किश्तों के दैनिक या साप्ताहिक भुगतान की सेवा दी जाती है। यदि एक भी किश्त देने में देर हुई तो पेनाल्टी का चक्र इतनी तेजी से घूमता है कि सूदखोरों को मात कर दे। जशपुर पुलिस ने ऐसे कुछ मामलों में कार्रवाई की है। जशपुर के अलावा प्रदेश के दूसरे स्थानों पर भी यह खेल चल ही रहा होगा। लोगों का सतर्क रहना जरूरी है।
मेड फॉर ईच-अदर
छत्तीसगढ़ की राजधानी बनाई जा रही बस्ती को नया रायपुर कहा जा रहा था, फिर उसका नाम रमन सरकार ने जाते-जाते अटल नगर कर दिया, और अब भूपेश सरकार ने इन दोनों को मिलाकर, उसमें कुछ छत्तीसगढ़ी छिडक़कर उसका नाम नवा रायपुर अटल नगर कर दिया। खैर, नाम बदलने से कुछ नहीं होता, यह पूरा नगर देश में सन्नाटे के सबसे बड़े और सबसे बड़ी लागत वाले टापू की तरह रह गया है जिस पर एक छत्तीसगढ़ी कहावत लागू होती है- मरे रोवइया न मिले।
मरने पर रोने वाला न मिले, एक्सीडेंट हो तो कोई हाथ लगाने न मिले, कोई छेड़ रहा हो तो बचाने वाले न मिले। सरकारें बदल गईं, लेकिन नया रायपुर के इस पूरे ढांचे का सबसे बड़ा इस्तेमाल प्रेमी-जोड़ों के लिए जारी है जिन्हें वहां तेज रफ्तार में निकलती गाडिय़ां देखती नहीं हैं, और पैदल चलने वाले हैं नहीं। इसलिए सुबह से रात तक कहीं दुपहियों पर और कहीं चौपहियों में प्रेमी-जोड़े डटे रहते हैं, और एक किस्म से यह हिन्दुस्तान में बिखरी हुई नफरत के बीच में प्रेम के टापू की तरह भी हो गया है। एक और तबका है जिसे सडक़ों का यह ढांचा पसंद आता है, वे हैं साइकिल चलाने वाले। उन्हें इतनी सुरक्षित दूसरी कोई जगह मिलती नहीं है, और किसी ने एक बड़ा सुंदर मजाकिया पोस्टर बनाकर अभी फेसबुक पर पोस्ट किया है।
पटाखे जलाने वाले मानेंगे?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आदेश पर इस बार केवल ग्रीन पटाखे फोडऩे कहा गया है। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के रिसर्च के बाद तय किये गये मसाले के अनुसार ग्रीन पटाखे बनाये जाते हैं। प्रचलित पटाखों के मुकाबले इसमें प्रदूषण 50 फीसदी कम होता है। सल्फर और नाइट्रोजन कम पैदा करने के चलते ये कम हानिकारक हैं। कुछ पटाखे तो पानी के कण भी पैदा करते हैं।
देश के कई शहरों में पटाखों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है, कई शहरों में रात 8 से 10 बजे तक छूट है। छत्तीसगढ़ के शहर भी इनमें शामिल हैं। पर, यह आदेश बहुत देर से आया। अधिकांश थोक दुकानदारों के पास पहले से ही प्रचलित पटाखे पहुंच चुके हैं और बिक भी रहे हैं। पुलिस के पास ग्रीन पटाखों की सूची भी नहीं है। रात 8 बजे से 10 बजे तक पटाखे जलाने की छूट, बम फोडक़र दीवाली मनाने के शौकीनों के लिये काफी है। पहले से ही सुप्रीम कोर्ट ने रात 10.30 बजे तक ही पटाखों की अनुमति दे रखी है, पर वर्षों पुराने इस आदेश का कहीं पालन नहीं होता। इस बार भी लगता है कि रस्म अदायगी के लिये सर्कुलर निकाला गया है। होगा वही जो हर दीपावली पर होता है।
हाथियों से धान बचाने की मशक्कत
धान खरीदी में देरी की वजह से किसान कई मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। फसल पकने के बाद खेतों में छोड़ा नहीं जा सकता, वरना मवेशी नुकसान करेंगे। काट कर घर लाकर रखना भी एक समस्या है क्योंकि सालों से उन्होंने अपने घरों में कोठियों की कोई जगह ही नहीं छोड़ी। कुछ एक बड़े घरों वाले किसानों के पास ही यह सहूलियत है। दीपावली पर जरूरत के लिये किसानों ने मिलर्स और आढ़तियों के पास कम दाम पर बेचा है पर बाकी सरकारी खरीद शुरू होने के इंतजार में बचा रखा है। इधर सिरपुर के हाथी प्रभावित गांवों में अलग तरह की समस्या का सामना है। हाथियों के खौफ से किसानों ने फसल काट तो ली पर अब घरों में रखने का ठिकाना नहीं है। धान की पहरेदारी के लिये उन्हें पूरी रात जागना पड़ रहा है। रात में हाथी धमकते हैं तो उन्हें समय पर उन्हें पता भी नहीं चल पाता। आने वाले 20 दिन तक तो उन्हें इससे जूझना पड़ेगा। धान खरीदी में देरी की वजह बारदानों की कमी बताई जा रही है। केन्द्र सरकार से सहयोग नहीं मिलने की बात कहकर समस्या को टाला नहीं जा सकता। कम से कम ऐसी तैयारी की जाये कि अगले साल किसान ऐसी मुसीबत से बच सकें और फसल कटने के बाद धान तुरंत बेच सकें।
सोनू सूद की छत्तीसगढ़ में मदद
सोनू सूद ने जब लॉकडाउन में फंसे लोगों को घर पहुंचाने में मदद शुरू की तो लोगों ने उनके काम को बहुत सराहा। कई बार संदेह हुआ कि वे इतने सक्रिय इसलिये हैं क्योंकि राजनीति में उतरना चाहते हैं। यह भी आरोप लगा कि बिहार के आम चुनाव के लिये उन्हें तैयार किया जा रहा है, लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि वे ऐसा कुछ नहीं करने जा रहे हैं। लॉकडाउन में उनके काम की इतनी चर्चा हुई कि अब देशभर से लोग अलग-अलग मुसीबतों में उन्हें याद करते हैं।
ऐसी ही एक मदद मिली बिलाईगढ़ के धोबनी गांव की एक 20 साल की युवती को। उसे टीबी की बीमारी है। उसने दवा लेने में कुछ लापरवाही बरती और रोग उसकी रीढ़ की हड्डी में पहुंच गया। खर्चीला इलाज था। उसने ट्वीट कर सोनू सूद से मदद मांगी। युवती के इलाज के लिये सोनू सूद ने व्यवस्था कर दी है। एक निजी अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है। ऑपरेशन का सारा खर्च सोनू सूद वहन करेंगे।
इसके पहले सोनू सूद रायपुर की ही एक कोरियोग्राफर के इलाज का खर्च उठा चुके हैं। सोनू सूद इलाज का खर्च भेजने के बाद मरीज को भूले भी नहीं, उनसे नियमित अपडेट लेते हैं कि स्वास्थ्य कैसा है, कोई दिक्कत तो नहीं। दुआ करें कि सोनू सूद के नेक काम का नतीजा अच्छा हो और युवती जल्द स्वस्थ हो।
3 करोड़ से अधिक ‘सबले बढिय़ा छत्तिसगढिय़ा’, और यहां के बीमारों के इलाज के लिए जरूरत पड़ रही है सोनू सूद की !
कहानी नन्हीं सी, कामयाबी बड़ी सी
बचपन में सुनी कहानियां सपनों में खोने के लिये नहीं बल्कि कामयाबी अपने नाम करने के लिये भी लाई जा सकती है। यह साबित किया दुर्ग की पांच साल 11 माह की नायरा ने। एक संस्था इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने इस साल के लिये उसे सबसे कम उम्र की स्टोरी टेलर के रूप में उसका नाम दर्ज किया है। उसे मंच पर आकर कहानी सुनाने के लिये यह सम्मान मिला। नायरा ने बताया है कि वह अपनी मां से रोज रात एक कहानी सुना करती है। इसीलिये ऐसा कर पाई। यह दौर ऐसा है जिसमें बच्चे भी में देर रात तक जागकर मोबाइल में डूबे रहते हैं। नाना-नानी, मां-पापा से कहानी सुनने, सुनाने का कल्चर बहुत कम परिवारों में बचा है। ऐसे में छोटे उम्र की नायरा की उपलब्धि छोटी नहीं है।
कोई भी बाल मनोवैज्ञानिक बताएँगे कि बच्चे जब सुनते हैं, और सुनी हुई बातों की तस्वीर अपनी कल्पना से बनाते हैं, तो उनका मानसिक विकास होता है. जब वे सिर्फ वीडियो देखते हैं, तो उनका कोई विकास नहीं होता।
कोरोना से बचाने टॉवर से निगरानी
प्रदेश में एकाएक कोरोना के मामले फिर बढऩे लगे हैं। त्यौहारों के कारण खरीदी के लिए लोग बड़ी संख्या में निकल रहे हैं और बाजारों में कोविड के लिए तय मापदंडों का न तो ग्राहक पालन कर रहे हैं और न ही दुकानदार। इधर प्रशासन की सख्ती भी धीरे-धीरे कम हो रही है। मामले बढऩे की यह एक बड़ी वजह हो सकती है। प्रशासन की समझ में भी यह बात आ रही है। अब रायपुर में एक बार फिर लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर कोविड नियमों का पालन करने के लिये जागरूक किया जा रहा है। बाजारों में स्वयंसेवी तैनात रहकर लोगों को समझायेंगे और माइक से उद्घोषणा की जायेगी। यह तो पहले भी किया गया, पर अब बाजारों में वाच टॉवर भी लगाये जा रहे हैं। इन पर चढक़र निगाह रखी जायेगी कि कहां पर भीड़ इक_ी हो रही है। सोशल डिस्टेंस नहीं रखने और मास्क नहीं पहनने पर अमूमन 100 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है, जिसका ज्यादातर लोगों को खौफ नहीं है। ये सब उपाय अपनी जगह है पर सच यह है कि जब तक लोग खुद अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, नियम टूटते रहेंगे।
एक आईपीएस जोड़ा आया
मध्यप्रदेश कैडर की आईपीएस खन्ना दंपत्ति तीन साल की प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ आ गई है। उन्होंने यहां पीएचक्यू में जॉइनिंग भी दे दी है। डीआईजी विनीत खन्ना को भर्ती और उनकी पत्नी डीआईजी हिमानी खन्ना को सीआईडी का प्रभार दिया गया है। खन्ना दंपत्ति राज्य पुलिस सेवा के वर्ष-1990 बैच के अफसर हैं, जिन्हें मध्यप्रदेश में आईपीएस अवार्ड होने के बाद वर्ष-2006 बैच आबंटित किया गया। जबकि छत्तीसगढ़ में उन्हीं के राज्य पुलिस सेवा के बैचमेट संजीव शुक्ला, हेतराम मनहर और बीएस ध्रुव को आईपीएस अवार्ड होने के बाद वर्ष-2004 बैच आबंटित किया गया था। चूंकि खन्ना दंपत्ति यहां अपने ही बैच के अफसरों से आईपीएस अवार्ड में पीछे रह गए।
डीआईजी हिमानी खन्ना मध्यप्रदेश भाजपा के बड़े नेता और हरियाणा के गर्वनर कप्तान सिंह सोलंकी की बेटी हैं। जबकि विनीत खन्ना राजनांदगांव के रहवासी हैं। वे दिग्विजय कॉलेज में पढ़े हैं, और छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे हैं। दोनों पति-पत्नी की साख अच्छी है। दोनों रायपुर में सीएसपी के पद पर काम कर चुके हैं। यही वजह है कि उन्होंने प्रतिनियुक्ति पर आने की इच्छा जताई, तो सरकार ने फौरन हामी भर दी। आम तौर पर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित होने के कारण विशेषकर पुलिस अफसर यहां आने से कतराते हैं। वैसे भी पोस्टिंग के मामले में मध्यप्रदेश को काफी अच्छा माना जाता है। सिर्फ टीजे लांगकुमेर और बाबूराव ही ऐसे पुलिस अफसर थे जो कि प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ में रहे। बाद में लांगकुमेर नागालैंड के डीजीपी बने। छत्तीसगढ़ में काम करने के बेहतर अवसर हैं, और अच्छी साख वाले अफसरों के आने से यह साबित भी होता है।
दुआ लेने जाने की चर्चा
राजनांदगांव के रूआंतला में एक धार्मिक व्यक्ति रहते हैं। उन्हें सिद्ध पुरूष माना जाता है, और अपने अनुयायियों के बीच वे दाऊजी के नाम से जाने जाते हैं। दाऊजी का आशीर्वाद लेने आम लोगों के अलावा राजनेता और अफसर जाते हैं। पिछले दिनों पुलिस के एक बड़े साब सपत्नीक दाऊजी के दरबार में पहुंचे, तो यह खबर उड़ गई कि साब की कुर्सी खतरे में पड़ गई है, इसलिए वे दाऊजी का आशीर्वाद लेने आए हैं। वैसे साब कुर्सी खतरे में पड़ गई है, यह प्रचारित उनके मातहत ही करते हैं। जब से उनसे ठीक नीचे के अफसर प्रमोट हुए हैं, तब से यह चर्चा जोरों पर है। मगर सिविल लाइन के दाऊजी उनके कामकाज से संतुष्ट बताए जाते हैं, और रूआंतला वाले दाऊजी का आशीर्वाद तो है ही। ऐसे में साब का निश्चिंत होना स्वाभाविक है।
पर्ची वाले सट्टेबाज तो कैद, पर ऑनलाईन जारी
देश भर में आईपीएल क्रिकेट टूर्नामेंट पर लगने वाले सट्टे में हजारों लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं, और जिन लोगों के पास लाख-दो लाख भी जब्त होते हैं उनके पास आधा-एक करोड़ रूपए का हिसाब निकलता है। एक तरफ तो पुलिस हर प्रदेश में सट्टेबाजों को गिरफ्तार कर रही है, दूसरी तरफ इंटरनेट पर कुछ वेबसाईटें आईपीएल पर सट्टा लगवा रही है। और यह काम दबे-छुपे नहीं हो रहा, डंके की चोट पर हो रहा है। किसी कम्प्यूटर पर आईपीएल को चार बार सर्च कर लिया जाए, तो स्क्रीन पर एक कोने में एक नोटिफिकेशन तैरने लगता है जो लोगों को क्रिकेट के किसी पेज पर ले जाने की बात कहता है। अगर आपने क्लिक कर दिया, तो आईपीएल पर सट्टा लगाने का पेज खुल जाता है। यह पेज बहुत दिनों से जिंदा है, काम कर रहा है, और सरकार ने इसके खिलाफ कोई कार्रवाई की हो ऐसा लग नहीं रहा है। और तो और सट्टेबाजी का यह पेज दावा करता है कि उसके डेढ़ करोड़ रजिस्टर्ड ग्राहक हैं। बेटविनरडॉटकॉम नाम की यह वेबसाईट साफ-साफ लिखती है कि वह स्पोर्ट और केसिनो है, और आखिरी में यह भी लिखती है कि 18 बरस से अधिक उम्र के लोग ही इस पर दांव लगाएं। यह भी लिखती है कि जुआं खेलना आदत बन सकता है, इसलिए सावधानी से जुआं खेलें। अब गली के कोने में कागज की पर्ची पर सट्टा लिखने वाले लोग तो गिरफ्तार हो रहे हैं, लेकिन डंके की चोट पर ऑनलाईन गैम्बलिंग चल रही है, और सरकारों का इस पर कोई काबू नहीं है, न केन्द्र सरकार का, न किसी राज्य सरकार का!
पीएससी का फिर नये विवाद में फंसना...
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की कोई एक परीक्षा अब तक बिना विवादों के नहीं निपटी। सन् 2003 से लेकर अब तक जितनी भी परीक्षायें ली गईं, हाईकोर्ट में चली गई। बार-बार गलती पकड़ी गई और इसे पीएससी ने हाईकोर्ट में स्वीकार भी किया। अभी राज्य सेवा के बहुत से अधिकारी ऐसे हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट से स्थगन के कारण अपने पदों पर बचाये रहने का मौका मिला हुआ है, तो बहुत से काबिल उम्मीदवार गड़बडिय़ों के कारण वंचित रह गये हैं।
हाल ही में हाईकोर्ट ने पाया कि सन् 2019 में ली गई प्रारंभिक परीक्षा में जो मॉडल आंसर दिये गये उनमें से तीन के जवाब गलत थे। अब इन प्रश्नों के सही जवाब के आधार पर नये सिरे से सभी कॉपियों की जांच होगी, फिर मुख्य परीक्षा के लिये मेरिट लिस्ट निकलेगी। कोर्ट के फैसले को अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता है कि अभ्यर्थियों की एक और शिकायत पीएससी के पास दायर हो गई है।
वर्षों की प्रतीक्षा के बाद उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत 1354 पदों पर भर्ती के लिये परीक्षा ली गई जिसमें होम साइंस के परीक्षार्थियों को सिर्फ अंग्रेजी में बांटा गया, जबकि सिलेबस हिन्दी में भी था। कई ऐसे परीक्षार्थी थे जिन्होंने हिन्दी में ही पूरी तैयारी की, पर पर्चा सिर्फ अंग्रेजी में देखकर हैरान रह गये। गृह विज्ञान यानि होम साइंस विषय भी ऐसा है कि अधिकांश छात्र इसकी पढ़ाई हिन्दी में करते हैं। हिन्दी में नहीं होने के कारण उन्हें प्रश्न पत्र हल करने में खासी दिक्कत हो गई।
अब इन परीक्षार्थियों ने पीएससी को शिकायत भेजी है और तय किया है कि यदि उनकी परेशानी का निराकरण नहीं किया गया तो वे भी हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। सरकार का इसके कामकाज पर सीधे कोई हस्तक्षेप नहीं होने के बावजूद ऐसी स्थिति क्यों है? क्या वहां काबिल लोगों की कमी है या फिर किसी वजह से जानबूझकर ऐसी नौबत लाई जाती है?
मंत्रीजी के लिये रूल इज रूल
बिलासपुर के दो थाना भवनों का वीडियो कॉन्फ्रेंस से उद्घाटन कर रहे मंत्री ताम्रध्वज साहू सहित पुलिस के आला अधिकारियों को उस समय असहज स्थिति का सामना करना पड़ा जब विधायक ने मंच से पुलिस पर व्यापारियों और आम नागरिकों से दबावपूर्वक अवैध वसूली का आरोप लगाया और थानों में रेट लिस्ट टांगने का मश्विरा दे दिया। पांडेय का गुस्सा बता रहा था कि वे आगे और बोलने वाले हैं पर मंत्री ने रोक दिया।
मंत्री मौजूद, सारे अफसर सामने बैठे हैं और विधायक जैसे जिम्मेदार प्रतिनिधि की शिकायत! मंत्री जी तत्काल अधिकारियों को वहीं बैठे-बैठे निर्देश दे सकते थे कि विधायक से बात करके शिकायत को कलमबद्ध करें और 24 घंटे के भीतर जांच और कार्रवाई करें। लेकिन नहीं, उन्होंने कहा कि विधायक अपनी शिकायत लिखित में दें, जांच कराई जायेगी।
अपने विभाग की इतनी फजीहत अपनी ही पार्टी के विधायक ने कर दी, पर मंत्री जी कायदे से काम करेंगे। सब उसूल से चलना चाहिये। इस घटना के एक दिन पहले ही तखतपुर विधायक रश्मि सिंह ने यातायात पुलिस के खिलाफ शिकायत की थी, मगर उन्होंने मंत्री जी को फोन किया था। यह पता नहीं चला कि उन्होंने लिखित शिकायत भेजी या नहीं। जांच या कार्रवाई की उम्मीद तो तभी रखी जा सकती है।
फर्नीचर सप्लाई की बड़ी जांच !
खबर है कि जीएसटी डिपार्टमेंट फर्नीचर सप्लाई की पड़ताल कर रहा है। इस काम में विशेष तौर पर एडिशनल कमिश्नर एसएल अग्रवाल को लगाया गया है। अग्रवाल की पिछली सरकार में तूती बोलती थी। वे अमर अग्रवाल के बेहद करीबी रहे हैं। सरकार बदली, तो उन्हें हटाकर रायगढ़ भेज दिया गया। मगर इस काम के लिए उन्हें रायगढ़ से बुलाकर कुछ दिन के लिए यहां अटैच किया गया। जिस अंदाज में फर्नीचर सप्लाई की जांच हो रही है, उससे सप्लायर हलाकान हैं। सप्लायर भी सरगुजा संभाग के हैं, और वे मानते हैं कि जांच के बहाने उन्हें परेशान करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने टीएस सिंहदेव तक अपनी बात पहुंचाई है। सिंहदेव इस मामले में हस्तक्षेप करते हैं या नहीं, देखना है।
देखना है खुफिया आंकलन...
मरवाही की जीत को लेकर अपने-अपने दावे हैं। भाजपा ने एक तरह से अमित जोगी के कंधे पर बैठकर चुनाव लड़ा था, और अमित भाजपा प्रत्याशी की जीत का दावा कर रहे हैं, तो भाजपा नेता उम्मीद से हैं। कांग्रेस नेताओं के आंकड़े अलग-अलग हैं। सीएम भूपेश बघेल 25 हजार, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम 20 हजार से जीत का दावा कर रहे हैं। ऐसे में राज्य खुफिया पुलिस की राय को भी लोग टटोलने की कोशिश कर रहे हैं।
खुफिया तंत्र की राय है कि 10 हजार से अधिक वोटों से कांग्रेस उम्मीदवार की जीत होगी। कुछ लोग याद करते हैं कि भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में कोटा उपचुनाव के वक्त भी खुफिया तंत्र ने इससे मिलती-जुलती राय दी थी। तब उस समय मौजूदा डीजीपी डीएम अवस्थी, आईजी (गुप्तचर) के पद पर थे। उन्होंने भाजपा के पक्ष में तकरीबन इतने ही अंतर से जीत की संभावना जताई थी। मगर रिजल्ट ठीक उल्टा आया, और भाजपा दोगुने से अधिक वोट से हार गई। अब सरकार बदल गई है। देखना है खुफिया आंकलन सही निकलता है, या नहीं।
कोरोना काल में नंबर 1 रेल जोन की मार्केटिंग
कोरोना काल में अपनी साख और आमदनी को बनाये रखने के लिये रेलवे ने माल ढुलाई पर ज्यादा धान देना शुरू किया। देश में नंबर वन रेलवे जोन बिलासपुर ने रिकॉर्ड ढुलाई की, उसने कुछ नये प्रयोग किये। सीमेंट, कोयला की निश्चित ग्राहकी के अलावा उसने मध्यम वर्ग के व्यापारी जो सडक़ के रास्ते से अमूमन सामान भेजते हैं उन्हें रेलवे से परिवहन करने की सलाह दी। इसके बाद एक किसान रेल भी चलाई गई, जिसके लिये छोटे-छोटे स्टेशनों में भी जाकर उत्पादकों को रेलवे से माल भेजने का आग्रह किया गया। इसके लिये किसानों के घर भी रेलवे अधिकारियों ने दस्तक दी।
कोरोना ने ही रेलवे अधिकारियों को इतना लचीला व्यवहार करने पर विवश किया वरना पहले तो अपनी रफ्तार से सब चल रहा था। कोरोना के बहाने से ही रेलवे ने ज्यादातर रियायतों को वापस लेकर लगभग सभी तरह की टिकटों का पूरा दाम लेना शुरू कर दिया है। तर्क यह है कि वे वृद्धों, बीमारों को वे कोरोना के दौर में यात्रा करने के लिये हतोत्साहित करना चाहते हैं। यात्रियों के हाथ में रेलवे टिकट आती थी तो एक संदेश लिखा हुआ मिलता था, कि आपकी इस यात्रा पर आने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा रेलवे वहन कर रहा है। यानि यात्रियों को ढोने में उन्हें घाटा है यह एहसास कराया जाता था। हालांकि इस बात पर विवाद है कि ऐसा लिखा जाना चाहिये या नहीं।
दूसरा पहलू यह है कि जब रेल यात्री घट गये हैं तो रेलवे का नुकसान भी कम हो जाना चाहिये। ताजा खबर यह है कि रेलवे ने एनएमडीसी से पूछा है कि नगरनार स्टील प्लांट कब शुरू होगा, ताकि वह अपनी तैयारी पूरी करे। बस्तर के इस प्लांट की कमीशनिंग अपने तय समय से पांच साल पीछे चल रही है। रेलवे ने घाटा कम करने के नाम पर कई मार्गों और स्टेशनों का निजीकरण भी कर दिया है। पर छत्तीसगढ़ को बरसों बरस मुनाफा देता रहेगा। नगरनार प्लांट और खास तौर पर कोयले की ढुलाई के लिये तैयार किये जा रहे रेल कॉरिडोर मुनाफा बढ़ाते रहेंगे।
कोरोना से बचने का ध्वस्त होता कायदा
जब भी ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि कोरोना के दिन अब गिनती के रह गये हैं, कोई नया आंकडा आकर डरा जाता है। जैसे कल ही छत्तीसगढ़ में कुल संक्रमितों का आंकड़ा दो लाख पार कर गया।13 से ज्यादा नये मरीज भी मिले। एक्टिव केस भी 23 हजार के करीब हैं। दीपावली की खरीददारी के लिये जिस तरह भीड़ बाजारों में दिखाई दे रही है उसने सोशल डिस्टेंसिंग के सभी कायदों को ध्वस्त कर दिया है। प्रशासन और पुलिस ने भी जैसे हार मान ली है।
दिल्ली का उदाहरण सामने हैं जहां शनिवार को एक ही दिन में 7000 से ज्यादा केस सामने आये। एक साथ इतने केस तो पीक के दिनों में भी नहीं आये। छत्तीसगढ़ के कई जिलों से आंकड़े घटे हैं। मरीजों की संख्या 100 से कम रहती है तो सुकून सा लगता है, पर अप्रैल मई में किसी जगह से दो चार केस मिल जाने पर ही हडक़म्प मच जाता था। जानकार कहते हैं कि जब तक नये केस आ रहे हैं संक्रमण फैलने से रुकेगा, इसकी संभावना कम ही है।
मौसम में बदलाव को लेकर भी स्वास्थ्य मंत्रालय और एमसीआईआर ने दूसरी लहर की चेतावनी दे रखी है। छत्तीसगढ़ कोरोना आंकड़ों के मामले में बहुत नीचे भी नहीं है। देश में 14वें स्थान पर है। ऐसी दशा में निश्चिन्त हो जाना बुद्धिमानी तो कतई नहीं है।
बच गये या बचा लिये गये?
दुर्ग के मातरोडीह में फसल खराब होने के कारण एक किसान डुगेश निषाद ने आत्महत्या कर ली थी। किसान के परिजनों ने बताया कि फसल पर किसान ने जो कीटनाशक डाली थी उससे पैदावार में बढ़ोतरी तो हुई नहीं, उल्टे झुलस गई। मौत से मचे हडक़म्प के बाद कृषि अधिकारी सक्रिय हुए, कई दवा दुकानों में छापा मारा और दो दर्जन कीटनाशक दवाओं का सैम्पल लेकर राजनांदगांव की प्रयोगशाला में भेजा। अब तक 15 सैम्पल की रिपोर्ट आ चुकी है और सभी का स्तर मानक पाया गया है। अब नौ ही रिपोर्ट्स और बची हैं।
जिस तरह से एक सिरे से 15 रिपोर्ट्स में से कोई भी अमानक श्रेणी की दवा नहीं मिली, आगे 9 की रिपोर्ट में क्या हो सकता है अंदाजा लगाया जा सकता है। यानि फसल झुलसने और आत्महत्या में, कीटनाशक बेचने वाले तथा निगरानी रखने वाले अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। किसान अलग-अलग कारणों से अब भी खुदकुशी या खुदकुशी की कोशिश कर रहे हैं।
अभनपुर का मामला बीते सप्ताह सामने आया। उसे मानसिक रोगी बताया जा रहा है। बलरामपुर जिले में दरोगा के घर के सामने किसान ने इसलिये जहर पी लिया क्योंकि उसकी जब्त ट्रैक्टर को छुड़ाने के लिये कथित रूप से पैसे की मांग करने की शिकायत आई है। वन विभाग के अधिकारी तुरंत सामने आ गये और अधिनियमों का हवाला देते हुए बताया कि ट्रैक्टर की जब्ती गलत नहीं थी। हाल ही में सरगुजा में नगर निगम के बुलडोजर से एक किसान की खड़ी फसल रौंदने की घटना हुई थी जिसका बिलखता हुआ वीडियो वायरल हुआ था। किसी भी मामले में कोई जिम्मेदार नहीं। पहले भी बचते आये थे, आगे भी बचते रहेंगे।
चैम्बर का चुनाव या जात का?
चेम्बर चुनाव जातिगत रंग ले रहा है। एकता पैनल से योगेश अग्रवाल का नाम अध्यक्ष के लिए तय होने के बाद लड़ाई मारवाड़ी वर्सेस सिंधी बन सकती है। योगेश का सीधा मुकाबला पूर्व चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी से होने के आसार हैं। चेम्बर में कुछ साल पहले तक मारवाड़ी व्यापारियों का दबदबा रहा है। पहले महावीर प्रसाद अग्रवाल और फिर पूरनलाल अग्रवाल की चेम्बर में तूती बोलती थी, दोनों चेम्बर अध्यक्ष रहे। चेम्बर की राजनीति इन दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है। बाद में श्रीचंद सुंदरानी ने मारवाडिय़ों के दबदबे को खत्म किया, और पूरनलाल को हराकर अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
बाद में श्रीचंद व्यापारियों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे। इसी बूते पर विधायक भी बने। अमर पारवानी को चेम्बर अध्यक्ष बनवाने में श्रीचंद की भूमिका रही है। उन्होंने यूएन अग्रवाल को हराया था। तब मारवाड़ी समाज के ज्यादातर व्यापारी यूएन के समर्थन में थे। मगर अमर को नहीं रोक पाए। इस बार श्रीचंद ने योगेश अग्रवाल पर दांव लगाया है। ऐसे में निगाहें सिंधी समाज के वोटरों पर हैं, जो कि सबसे ज्यादा संख्या में हैं। अमर की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है।
उन्होंने दीगर समाज के वोटरों को अपने पाले में करने की भरसक कोशिश की है। इस बार जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर प्रत्याशी तय किए जा रहे हैं। एकता पैनल ने योगेश को अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाया है, तो महामंत्री उम्मीदवार सिंधी समाज से हो सकते हैं। कुछ इसी तरह की रणनीति अमर की भी है, वे जैन अथवा अग्रवाल को अपने पैनल से उतारने की कोशिश में हैं। दोनों ही पैनल बड़े समाज के व्यापारियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। कुल मिलाकर व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन का चुनाव में भी जात-पात देखा जाने लगा है। मगर मतदाता क्या सोचते हैं, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा।
हाथियों को दूसरी तरफ धकेलना...
हाथियों से होने वाले नुकसान से बचाव के कई तरीके अब तक आजमाये गए हैं, पर अब एक नया प्रयास हो रहा है। एक खास तरह का केमिकल उन्हें पसंद नहीं है। ये केमिकल खेतों में छिडक़ा जाए तो वे उससे दूर भागते है। ये नीम, करेला और पांच गव्य का मिश्रण है। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ में इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया गया है। रायगढ़ जिला हाथियों से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है। प्रदेश के अलग-अलग स्थानों से आये दिन हाथियों की मौत की खबर आती रहती है। वे कई बार बिजली की बिछाई गई नंगी तारों की चपेट में आकर जान गवां चुके हैं। यदि इस तरीके का प्रयोग छत्तीसगढ़ के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
अब सवाल यह भी उठता है कि यह जो कोई भी मिश्रण है, यह कुछ दाम पर ही आएगा, और जो अपने खेत या गांव में इसे छिडक़ सकेंगे, वे हाथियों को दूसरी तरफ धकेल सकेंगे। लेकिन सवाल यह है कि हाथी जाएंगे कहां? जिस तरह खेतों से फसल के कीड़ों को भगाने के लिए दवा का छिडक़ाव होता है, और जब चारों तरफ के अधिक संपन्न या बेहतर-सक्षम किसान अपने खेतों पर छिडक़ाव कर देते हैं, तो कीड़े उन खेतों पर धावा बोल देते हैं जहां दवा छिडक़ी नहीं गई है। क्या हाथी को दवा से भगा-भगाकर उन्हें दूसरे गांवों पर थोपा जाएगा? हाथी इतनी बड़ी हकीकत हैं कि उन्हें अनदेखा करना ठीक नहीं। इसलिए बिजली के तार हों, या ऐसी दवा का छिडक़ाव हो, इनसे हाथियों को एक जगह ही टाला जा सकता है, वे किसी दूसरी जगह पहुंचकर वहां खतरा बन जाएंगे।
सरकारी सप्लाई में पिछले ही काबिज !
सत्ता में आने के बाद भी कांग्रेस के लोगों के काम नहीं हो रहे हैं। यह शिकायत हर स्तर पर हो रही है। सरकारी विभागों में सप्लाई हो या फिर टेंडर, पिछली सरकार के करीबी लोगों का दबदबा कायम है। इसका नमूना फर्नीचर सप्लाई के काम में भी देखने मिला। सप्लाई ऑर्डर पाने से वंचित लोगों ने विभागीय मंत्री को अपना दुखड़ा सुनाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हुआ यूं कि स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूलों में विद्यार्थियों के बैठने के लिए फर्नीचर की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए थे। इसके लिए नए सप्लायर उम्मीद से थे, लेकिन तीन-चौथाई से अधिक काम सूरजपुर के एक बड़े सप्लायर ने हथिया लिए।
चर्चा है कि करीब 20 करोड़ का फर्नीचर सप्लाई होना है, इसमें से 18 करोड़ के ऑर्डर सूरजपुर के अग्रवाल उपनाम के इस सप्लायर और उससे जुड़े लोगों को मिल गए। ये सभी बरसों से यही काम करते रहे हैं, और पिछली सरकार के मंत्रियों से तो उनका घरोबा था। सरकार बदलने के बाद इन सप्लायरों की हैसियत नहीं घटी है। विभाग से जुड़े लोग इन सप्लायरों पर इतनी मेहरबानी दिखाई कि सारे ऑर्डर 31 अक्टूबर के पहले जारी कर दिए गए, क्योंकि इन सप्लायरों का रेट कॉन्ट्रेक्ट उक्त अवधि को खत्म होने वाला था। चर्चा तो यह भी है कि एक औद्योगिक जिले में प्रशासनिक मुखिया अपने करीबी सप्लायरों को भी ऑर्डर नहीं दिलवा पाए, क्योंकि जिला शिक्षा अधिकारी ने उन्हें बता दिया कि ऑर्डर जारी किया जा चुका है।
एक अफसर ने बताया कि कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों को काम इसलिए भी देने से सत्तारूढ़ लोग कतरा रहे हैं कि उनसे कमीशन उतनी आसानी से नहीं माँगा जा सकेगा।
गौठान पर ऐसे फूंका जा रहा बजट
कोई भी सरकारी योजना लागू होती है तो अफसरों की निगाह उसके बजट पर सबसे पहले होती है। ठेकेदारों को कैसे मुनाफा पहुंचाया जाए और उनका अपना कमीशन कैसे बने, इस पर निगाह हो रही है। गौठान योजना में यही बात सामने आ रही है। सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में एक करोड़ रुपये खर्च कर 10 पंचायतों में गोबर गैस प्लांट लगाए गए। ठेका कम्पनी ने मशीन लगा दी, घरों में कनेक्शन जोड़ दिया। पर अब ये प्लांट बंद पड़े हैं। प्लांट लगाने से पहले आकलन ही नहीं किया गया कि कितना गोबर निकलेगा और कितने घरों तक गोबर गैस पहुंचाई जा सकेगी।
प्लांट के रख-रखाव के लिए भी कर्मचारियों की नियमित रूप से जरूरत है जो कि नहीं हैं । सूरजपुर की सुंदरपुर पंचायत में प्लांट लगा तो उद्घाटन के लिए खाद्य मंत्री और शिक्षा मंत्री भी वहां पहुंचे थे। उन्होंने गोबर गैस से बनाई गई चाय पी। पर उसके बाद प्लांट किस दशा में है न मंत्रियों ने देखना जरूरी समझा न अधिकारियों ने। हालत यह है कि एक करोड़ रुपये खर्च करने के बाद बमुश्किल दस घरों में गोबर गैस पहुंच रही है। प्रदेश में कई गौठान ठीक चल रहे हैं जिनमें वर्मी कम्पोस्ट बनाया जा रहा है, साग सब्जियां उगाई जा रही है पर अधिकांश की हालत खराब है। यही रवैया रहा तो सरकार की करोड़ों रुपये खर्च कर तैयार की गई महत्वाकांक्षी योजना का विफल होना तया है।
ऐसे बदल रहा युवाओं का रुझान
राज्य में 38 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिनमें से ज्यादातर प्राइवेट कॉलेज हैं। सीट नहीं भरने के कारण 5 निजी इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो चुके हैं। इसके चलते सीटों की संख्या 15 हजार 626 से घटकर 12 हजार 21 रह गई है। इनमें भी 7 हजार यानि आधे से अधिक खाली चल रहे हैं। इन सीटों के लिये तीसरी बार कोशिश की गई तो सिर्फ 789 छात्रों ने आवेदन भरे। अब आवेदन करने वाले सभी को प्रवेश दिया जाता है तब भी 6 हजार से अधिक सीटें खाली रह जायेंगी। प्रवेश इस माह के अंत तक लिया जा सकता है। हो सकता है चौथी बार भी आवेदन मंगाये जायें लेकिन यह साफ है कि युवाओं की रुचि लगातार इंजीनियरिंग की पढ़ाई में घट रही है। दूसरी तरफ रायपुर के दुग्ध प्रौद्योगिकी महाविद्यालय का आंकड़ा है। यहां पहली ही बार के आवेदन में बी टेक की सारी सीटें भर गई हैं। एम टेक की कुछ सीटें जरूर खाली हैं पर उनके भी अगले चरण में भर जाने के आसार हैं। एक समय था जब इंजीनियरिंग का क्रेज एमबीबीएस की पढ़ाई के बराबर हुआ करता था पर अब रोजगार के अवसर वहां नहीं रह गये हैं। कुछ समय पहले एक आंकड़ा आया था कि 75 फीसदी युवा इंजीनियरिंग डिग्री लेकर भी रोजगार हासिल नहीं कर पाये। डेयरी, पशु, कृषि आदि की पढ़ाई को पहले कमतर आंका जाता था, पर अब युवाओं को रोजगार की संभावना इन्हीं विषयों में ज्यादा दिख रही है।
मेडिकल छात्र के परिवार को न्याय मिलेगा?
मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग ने नेताजी सुभाषचंद्र मेडिकल कॉलेज जबलपुर के छात्र भागवत देवांगन की आत्महत्या के मामले में मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, डीन, अधीक्षक आदि को नोटिस जारी कर दिया गया है। मूलत: राहौद जिला जांजगीर-चाम्पा के छात्र भागवत ने 1 अक्टूबर को हॉस्टल के अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। रैगिंग के नाम पर उसे लगातार प्रताडि़त किया जाता रहा। इसके पीछे पांच सीनियर छात्रों का हाथ होने की बात सामने आई। तंग आकर भागवत अपने घर राहौद लौट गया था, पर एक माह बाद 25 सितम्बर को वापस जबलपुर लौटा था। राहौद में भी उसके घर पर होने के दौरान उसे अपमानित करने वाले मेसैज मोबाइल पर भेजे जा रहे थे। लौटने के बाद फिर उसे प्रताडि़त किया जाने लगा। मौत के बाद बिलासपुर और जांजगीर-चाम्पा में दोषियों पर कार्रवाई की मांग उठी। अब आयोग ने अपनी नोटिस में जिम्मेदार अधिकारियों से पूछा है कि क्या मृतक छात्र के परिवार को कोई आर्थिक सहायता मुहैया कराई गई? क्या दोषियों के खिलाफ आत्महत्या के लिये उकसाने का अपराध दर्ज किया गया? वैसे आयोग की नोटिस को प्रशासनिक अधिकारी प्राय: अधिक गंभीरता से लेते नहीं हैं फिर भी जिस मामले में अब तक कुछ नहीं हो रहा था, पीडि़त परिवार को न्याय मिलने की दिशा में कुछ तो होगा।
पिछली सरकार से अब तक...
कांकेर जिले के एक विधायक पीडब्ल्यूडी विभाग की कार्यप्रणाली से खफा हैं। विधायक के इलाके में पिछली सरकार ने 12 करोड़ खर्च कर एक सडक़ बनवाई थी। विधायक का कहना है कि सडक़ बनी ही नहीं, और अफसर-ठेकेदार और प्रभावशाली लोगों ने राशि हजम कर ली। विधायक महोदय पूरे दस्तावेज लेकर यहां-वहां घूम रहे हैं, लेकिन इसकी जांच नहीं हो पा रही है।
वे खुलकर इस विषय पर कुछ नहीं कह पा रहे हैं क्योंकि सरकार अपनी है। विधायक एक-दो बार इस सरकार के विभागीय मंत्री से बात भी कर चुके हैं, मगर कुछ नहीं हुआ। उन्होंने विधानसभा में सवाल भी लगाया था, लेकिन तकनीकी कारणों से नहीं लग पाया। वे सीएम को भी इससे अवगत करा चुके हैं, परन्तु जांच शुरू नहीं हो पाई। चर्चा है कि अज्ञात शक्तियां विधायक की मंशा पूरी नहीं होने दे रही है। विधायक ने भी हार नहीं मानी है, वे इस पर विधानसभा में दस्तावेज समेत भ्रष्टाचार को उजागर करने की योजना बना रहे हैं। देखते हैं कि विधायक महोदय की मंशा पूरी होती है, अथवा नहीं।
बर्दाश्त घटा, भाषण में किफायत
सरकार जाने के बाद अब भाजपा के कई नेता अपने ही नेताओं के लंबे-चौड़े भाषण से परहेज करने लगे हैं। वजह भी साफ है कि पार्टी नेताओं के भाषणों को अर्से से सुनते रहे हैं, और इससे कोफ्त होना स्वाभाविक है। कुछ ऐसा ही नजारा अजा मोर्चे के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नवीन मारकण्डेय के पदभार ग्रहण कार्यक्रम के दौरान देखने को मिला। मारकण्डेय लंबा-चौड़ा भाषण देने के मूड में आए थे, लेकिन उन्हें जल्दी भाषण खत्म करने कहा गया।
कुछ इसी तरह डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी को भी अपनी बात संक्षिप्त में रखने के लिए कहा गया। पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू लंबे समय से मंच से वंचित रहे हैं। उनकी भी इच्छा काफी कुछ कहने की थी, लेकिन बृजमोहन अग्रवाल ने उन्हें टोक दिया, और जल्दी भाषण खत्म करने के लिए कह दिया। इसके बाद गौरीशंकर अग्रवाल को भाषण देने बुलाया जा रहा था कि बृजमोहन अग्रवाल ने फिर हस्तक्षेप किया और कहा कि सीधे प्रदेश अध्यक्ष को ही बुलाया जाए। गौरीशंकर भाषण नहीं दे सके, और फिर विष्णुदेव साय के भाषण के बाद कार्यक्रम खत्म कर दिया गया।
मरवाही में स्थानीय कांग्रेसियों की बेइज्जती
कांग्रेस ने मरवाही चुनाव प्रचार के लिये बाहर के कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में तैनात किया था। इनमें से कुछ लोगों का बर्ताव स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ बेहद खराब रहा। पेन्ड्रा में कांग्रेस की समीक्षा बैठक में यह बात सामने आई। एक महिला कार्यकर्ता तो बैठक में ही फफक-फफक कर रो पड़ी। उन्होंने कहा कि एक प्रदेश पदाधिकारी हमें ईमानदारी और निष्ठा का पाठ पढ़ाने लगे। हम पर आरोप लगाने लगे कि हम लापरवाही से काम कर रहे हैं। बैठक में उक्त महिला कार्यकर्ता ने जब बात रखी तो बाकी लोगों की भड़ास भी निकल पड़ी। जिला अध्यक्ष मनोज गुप्ता ने जैसे तैसे सबको शांत किया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तीन दिन तक मरवाही में तूफानी प्रचार किया था। उनकी जनसभा जोगीसार में भी हुई। इसे जोगी परिवार का गांव कहा जाता है और कई लोग उन्हें अपना रिश्तेदार भी बताते हैं। सभा में अच्छी भीड़ उमड़ी लेकिन वहां के सरपंच को ही मंच पर नहीं बुलाया गया। इसके अलावा जनपद के कई पदाधिकारी, महिला कांग्रेस की स्थानीय कार्यकर्ता स्वागत करने के लिये तरस गये। सभा खत्म होने के बाद वे इसका दर्द लोगों से साझा करते हुए दिखे। कांग्रेस के बाहर से आये नेताओं ने मरवाही में अपने बर्ताव से कितने वोट जुटाये, कितने बिगड़े, यह नतीजा आने पर ही मालूम होगा।
विधायक प्रतिनिधि होने का दर्द
प्रदेश भाजपा के बड़े नेता लीलाराम भोजवानी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के विधायक प्रतिनिधि क्या नियुक्त हुए, उनकी सियासी ताकत बढऩे के बजाए कम हो गई। ऐसा उनके करीबी लोग महसूस कर रहे हैं। खुद भोजवानी भी नई जिम्मेदारी से नाखुश बताए जा रहे हैं।
वे निजी चर्चाओं में इसका इजहार भी कर रहे हैं। भोजवानी को पहले तो विष्णुदेव साय की टीम में जगह नहीं मिली, उसके बाद मंडलों की कार्यकारिणी में उन्हें स्थाई आमंत्रित सदस्य के लायक नहीं समझा गया। इससे खफा भोजवानी ने भाजपा के प्रदेश स्तरीय प्रशिक्षण में भी यह कहकर जाने से इंकार कर दिया कि प्रदेश संगठन में किसी ओहदे पर नहीं होने से वह प्रशिक्षण के लिए पात्र नहीं हंै।
उनका दर्द यह भी है कि नांदगांव भाजपा में उनके बराबर के नेता खूबचंद पारख प्रदेश में उपाध्यक्ष बन गए और उनसे सालों जूनियर नीलू शर्मा प्रवक्ता नियुक्त हो गए। उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि यदि भोजवानी विधायक प्रतिनिधि नहीं होते, तो उन्हें अहम जिम्मेदारी दी जा सकती थी। अब रमन सिंह सीएम तो है नहीं, ऐसे में उनका प्रतिनिधि होना उनके जैसे सीनियर नेता के लिए कोई सम्मान की बात नहीं है। फिलहाल तो नांदगांव में रमन विरोधी नेता, भोजवानी की नाराजगी पर चुटकी ले रहे हैं।
इस बार धान की कीमत क्या मिलेगी?
एक दिसम्बर से होने वाली धान खरीदी को लेकर जारी आदेश साफ नहीं होने की वजह से किसानों की सांस अटक गई है। राज्य में केन्द्र की ओर से निर्धारित किये गये समर्थन मूल्य पर धान खरीदने की घोषणा तो की गई है पर हर साल 2500 रुपये प्रति क्विंटल खरीदने के वादे को पूरा कैसे किया जायेगा, स्पष्ट नहीं किया गया है। पिछली बार भी केन्द्र के सख्त रुख के चलते 2500 रुपये में खरीदी का फैसला टालना पड़ा था पर समर्थन मूल्य के बाद की अतिरिक्त राशि का भुगतान राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत बांटने का निर्णय लिया गया। इसकी तीन किश्तें मिल चुकी हैं। तीसरी किश्त 1 नवंबर को मिली। एक किश्त बाकी है, जो कब दी जायेगी इस पर भी अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। बीते साल कर्ज माफी पर सरकार को करीब 11 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करना पड़ा था लेकिन इस बार ऐसी समस्या नहीं है। किसान बेसब्री से बची हुई चौथी किश्त और धान की कीमत पर स्थिति साफ होने की प्रतीक्षा में हैं।
कृषि विधेयक का क्या होगा?
छत्तीसगढ़ विधानसभा के 27 अक्टूबर के विशेष सत्र में कृषि उपज मंडी संशोधन विधेयक पारित कर दिया है। विधेयक के प्रावधान केन्द्र द्वारा लागू किये गये तीन कृषि बिलों को एक हद तक बेअसर कर देंगे। इस पर अब राज्यपाल का हस्ताक्षर होना है। दूसरी ओर पंजाब का मामला हमारे सामने है। वहां राज्यपाल ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। संकट पैदा हो गया है। मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने इस मामले में राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा, नहीं मिला। पंजाब में किसानों का रुख ज्यादा आक्रामक है। रेल पटरियों पर बैठकर आंदोलन किया जा रहा है। इसके चलते यात्री ट्रेनें तो प्रभावित हैं, माल परिवहन भी बाधित है। बाद में किसानों ने मालगाडिय़ों को नहीं रोकने की घोषणा भी कर दी पर रेलवे ने सभी तरह की ट्रेनों को आंदोलन से प्रभावित क्षेत्रों में रोक रखा है। इसके चलते वहां के बिजलीघरों में कोयले की आपूर्ति नहीं हो पा रही है अब बिजली उत्पादन पर असर पडऩे की आशंका है। छत्तीसगढ़ में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव की बात बीच-बीच में आई हैं और दोनों तरफ से इसका खंडन भी किया गया। पंजाब के परिप्रेक्ष्य में यह देखना होगा कि छत्तीसगढ़ में विधेयक का आने वाले दिनों में क्या हश्र होने वाला है।
टाइगर के बिना टाइगर रिजर्व
उंदती सीतानदी इलाके में लोगों ने इसके टाइगर रिजर्व एरिया के दर्जे को खत्म करने की मांग पर आंदोलन शुरू किया है। इनका कहना है कि बीते कई सालों से यहां किसी ने टाइगर नहीं देखा। जंगल में 200 ट्रैप कैमरे लगाये गये हैं। उनमें भी अब तक कोई बाघ कैद नहीं हुआ। फिर भी हर साल 30-40 करोड़ रुपये खर्च कर दिये जाते हैं। इस इलाके में निर्माण कार्य और सुविधाओं पर रोक लगी हुई है। 40 गांवों में रहने वाले करीब 30 हजार लोग सडक़, पुल-पुलिया, स्कूल भवन से वंचित हो गये हैं। इन्हें विस्थापित किये जाने का खतरा भी बना हुआ है। लगभग यही स्थिति अचानकमार टाइगर रिजर्व की है। यहां कभी 19 बाघ तो कभी 40 बाघ होने का दावा किया जाता है पर ये न तो पर्यटकों को दिखाई देता न ही भीतर के गांवों में बसे लोगों को। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत यहां 600 मकान स्वीकृत किये गये थे लेकिन उस पर रोक लगा दी गई। बिलासपुर से पेन्ड्रारोड और अमरकंटक को जोडऩे वाली सडक़ की मरम्मत वर्षों से नहीं हुई है। पहले यहां से गुजरना भी रोक दिया गया था पर अब विरोध के कारण दिन में आने-जाने की छूट दी गई है। एक निश्चित समय में जंगल को पार करना भी जरूरी है। यह बात जरूर है कि दूसरे जंगली जानवर इस क्षेत्र में है पर टाइगर होने न होने पर हमेशा संदेह जताया जाता रहा है। टाइगर रिजर्व न बतायें तो वन विभाग को बजट किस बात पर मिलेगा? वन विभाग की सहूलियत आम लोगों की परेशानी का सबब है।
कौन बनेगा आईएएस ?
अन्य सेवा संवर्ग से आईएएस अवार्ड को लेकर प्रशासनिक हल्कों में उत्सुकता है। सीएस की कमेटी ने आठ अफसरों के इंटरव्यू लिए। इनमें से एक-दो दिन में पांच नाम छांटकर डीओपीटी को भेजा जाएगा। जिन अफसरों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, उनमें से तो कुछ नाम तो चौंकाने वाले थे। मसलन राजेश सिंघी, जो कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के विशेष सहायक हैं। इससे पहले वे पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत के विशेष सहायक थे। मंत्री स्थापना में पदस्थ अफसरों पर किसी सीनियर अफसर की नजर, तो रहती नहीं है। उनके काम का मूल्यांकन मंत्री ही करते हैं। ऐसे अफसर को इंटरव्यू में बुलाने पर कानाफूसी हो रही है। वैसे यह सब औपचारिकता है। आम तौर पर यह माना जाता है कि सीएम जिसे चाहते हैं, उनके नाम पर मुहर लग जाती है।
पिछली सरकार में एक रिक्त पद के लिए जिन पांच अफसरों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, उन सभी का परफार्मेंस बेहतर था। उस समय भरी मीटिंग में यूपीएससी चेयरमैन दीपक गुप्ता ने राज्य सरकार के अफसरों से कहा था कि आपके पांचों अफसर आईएएस अवॉर्ड के लायक हैं। जिन अफसरों का इंटरव्यू हुआ था उनमें अनुराग पाण्डेय, राजीव जायसवाल, उमेश मिश्रा, अनुराग दीवान और डॉ. अनिल चौधरी थे। चयन समिति ने अनुराग पाण्डेय के नाम पर मुहर लगार्ई। दरअसल, उस समय उत्तर भारत के एक राज्य में सीएम और सीएस के दबाव में ऐसे अफसर को आईएएस अवॉर्ड के लिए अनुशंसा करनी पड़ी थी, जिसके परफार्मेंस से यूपीएससी और डीओपीटी के अफसर बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थे। इस बार उमेश मिश्रा दोबारा इंटरव्यू हुआ है। संभव है कि पांच नामों में उनका भी नाम शामिल होगा, मगर जीएसटी के एडिशनल कमिश्नर गोपाल वर्मा को आईएएस अवार्ड के लिए सबसे मजबूत माना जा रहा है। गोपाल के पक्ष में सारे राजनीतिक और सामाजिक समीकरण दिख रहे हैं। देखना है कि आगे होता है क्या।
और आईएएस बनने का एक किस्सा!
अभी जब छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टरों से परे अन्य सेवाओं के लोगों में से किसी को आईएएस बनाने की मशक्कत चल रही है, तो एक दिलचस्प वाकया याद पड़ता है जो कि अजीत जोगी ने इस अखबारनवीस को खुलासे से सुनाया था।
जोगी रायपुर में कलेक्टर थे और यहां औद्योगिक विकास केन्द्र में एम.ए.खान जनरल मैनेजर थे। अविभाजित मध्यप्रदेश में जब अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे तब ऐसी ही मशक्कत चल रही थी, और राज्य प्रशासनिक सेवा से परे के किसी अफसर के आईएएस बनने की बारी थी। जोगी की तगड़ी सिफारिश पर अर्जुन सिंह ने खान का नाम लिस्ट में रखवा दिया था।
इसके बाद जब दिल्ली से कमेटी भोपाल पहुंची, और एक-एक करके सभी उम्मीदवारों का इंटरव्यू करने लगी तो एम.ए. खान की जुबान को मानो लकवा मार गया। उनका मुंह ही नहीं खुल पाया। वे एक भी बात का जवाब नहीं दे पाए, और कमेटी दिल्ली लौट गई। इसके बाद जोगी फिर अर्जुन सिंह के पीछे लगे कि किसी तरह से खान का नाम जुड़वाया जाए। उस वक्त दिल्ली और भोपाल दोनों में कांग्रेस की सरकार थी, और अर्जुन सिंह का वजन बहुत था। उन्होंने किसी तरह कमेटी की एक और बैठक रखवाई। इस बार खान को तैयार किया गया कि कमेटी के पूछे हुए कम से कम एक सवाल का तो जवाब दे ही दें। किसी तरह खींचतान कर अजीत जोगी ने एम.ए. खान को आईएएस बनवा दिया।
इसके बाद का किस्सा और दिलचस्प है, और उसी वजह से जोगीजी यह किस्सा सुनाते भी थे।
जब अविभाजित मध्यप्रदेश में सुंदरलाल पटवा की सरकार बनी, तो भोपाल में अवैध कब्जे-अवैध निर्माण की झोपडिय़ों को तोडऩे के लिए कार्रवाई हो रही थी, एम.ए.खान उस वक्त भोपाल के कलेक्टर थे, और जाहिर है कि वे पटवाजी के करीबी भी थे। अर्जुन सिंह विपक्ष के होने के नाते इस अभियान का विरोध करने मौके पर पहुंचे थे, और उनके साथ राज्यसभा सदस्य अजीत जोगी भी थे। इस वक्त झोपडिय़ों पर चलते हुए बुलडोजर पर बैनर लगा हुआ था कि मेरे आंख-कान नहीं हैं मुझे दिखता नहीं है, और जो मेरे सामने रहेगा वह कुचला जाएगा। अर्जुन सिंह और जोगी मौके पर तोडफ़ोड़ रोकने की कोशिश कर रहे थे तो लाउडस्पीकर पर एम.ए. खान ने उनसे वहां से हट जाने की घोषणा की। इस पर अर्जुन सिंह ने तिरछी नजरों जोगी को देखते हुए, अपने कुछ तिरछे होठों से धीरे से कहा- ये वही खान हैं जिन्हें आपने आईएएस बनवाया था?
अब जोगीजी क्या कहते! लेकिन वे यह किस्सा बहुत मजा लेकर सुनाते थे।
कमिश्नरी फिजूल की हो गयी?
अमृत खलको के राज्यपाल का सचिव बनने के बाद से बस्तर कमिश्नर का पद खाली है। खलको डिप्टी कमिश्नर को चार्ज देकर यहां आ गए थे, तब से नई पदस्थापना नहीं हो पाई है। अविभाजित मध्यप्रदेश में बस्तर कमिश्नर का पद काफी अहम माना जाता रहा है, और काबिल अफसरों की यहां पोस्टिंग होती रही है। सुदीप बैनर्जी, एलके जोशी, विवेक ढांड जैसे अफसर बस्तर कमिश्नर रहे हैं। बस्तर कमिश्नर को वित्तीय अधिकार भी रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहले कमिश्नरी खत्म कर दिया गया, बाद में रमन सरकार में दोबारा कमिश्नरी व्यवस्था बहाल हुई, तो सचिव अथवा विशेष सचिव स्तर के जूनियर अफसरों को भेजा जाने लगा। अब जब कलेक्टर सीधे सीएम हाउस को रिपोर्ट करते हैं, कमिश्नरी की रौनक अब पहले जैसी नहीं रह गई। फिर भी बस्तर में समस्याएं काफी हैं, और यहां कमिश्नर की जरूरत महसूस की जाती रही है। भूपेश सरकार ने बोधघाट जैसी परियोजना को प्राथमिकता देने का फैसला लिया है। ऐसे में बस्तर कमिश्नर की पदस्थापना न होना समझ से परे है।
मरवाही में कड़ी टक्कर बरसों बाद...
मरवाही में मतदान हो चुका, अब दावों-प्रतिदावों, कयासों का सिलसिला चल रहा है जो 10 नवंबर को नतीजा आने के बाद ही थमेगा। कोरोना संकट और फसल कटने की व्यस्तता के बीच हुए इस उप-चुनाव में अनुमानों के विपरीत मतदाता बड़ी तादात में वोट देने निकले। शुरुआती आकलन के मुताबिक 77.25 फीसदी वोट डाले गये। सभी बूथों की ईवीएम मशीनों के पहुंचने के बाद आंकड़ा कुछ घट-बढ़ सकता है। मुख्य मुकाबले में रही कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के नेता और समर्थक इस भारी मतदान को अपनी सहूलियत के अनुसार परिभाषित कर रहे हैं। कांग्रेस के लिये वोटर जिले के गठन और सरकार के विकास कार्यों पर मुहर लगाने के लिये निकले तो भाजपा की निगाह में भीड़ सरकार को सबक सिखाने के लिये बूथों में पहुंची थी। समान बात यह है कि जीत के उस आंकड़े की बात कोई नहीं कर रहा है जिसे जोगी हासिल कर लिया करते थे। दावा, बस अच्छे बहुमत से जीत का किया जा रहा है। मतलब साफ है कि मुकाबला तगड़ा हुआ है। मरवाही के मन में क्या है इस पर नतीजा आने तक चर्चा और लगे हाथ सट्टेबाजी का दौर भी चलता रहेगा।
मरवाही के कुछ दिलचस्प आंकड़े
कोरोना, फसल कटाई और उप-चुनाव के बीच मतदान का जो बढ़ा प्रतिशत लोगों को चौका गया, वह विधानसभा चुनावों की तालिका पर तुलनात्मक नजर डालने से बहुत बड़ा भी दिखाई नहीं देता। तथ्य यह है कि विधानसभा चुनावों में हर बार मरवाही में अच्छी वोटिंग होती रही। 2008 में 75.21 प्रतिशत, 2013 में 84.06 तथा सन् 2018 में जब स्व. अजीत जोगी कांग्रेस से अलग होकर मैदान में थे 80.88 प्रतिशत मतदान हुआ। यानि इस उप-चुनाव का मतदान पिछले चुनाव से करीब 3.6 प्रतिशत कम है। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भी 75.11 प्रतिशत तथा 2019 के चुनाव में 74.19 प्रतिशत वोट डाले गये, जो बाकी विधानसभा क्षेत्रों से अधिक थे। हालांकि सन् 2009 के चुनाव में मतदान का प्रतिशत सिर्फ 60.19 प्रतिशत रहा।
मरवाही सीट से जुड़ी एक खास बात और है कि यहां महिला मतदाता पुरुषों से अधिक हैं और वे मतदान में भी आगे रही। पुरुषों का मतदान प्रतिशत 77.13 रहा तो महिलाओं का 77.36 तक पहुंचा। मरवाही में 93 हजार 735 पुरुष तथा 97 हजार 265 महिलायें हैं। थोड़ी सी हैरानी इस बात पर भी हो सकती है कि जोगीसार, जिसे जोगी का गांव समझा जाता है वहां 72.89 प्रतिशत वोट पड़े जो औसत से कम है। इसे मरवाही क्षेत्र में सबसे कम मतदान वाले बूथों में जगह मिली है।
मार्शल के लिये चि_ी रवाना होने से पहले रुकी
संसद में कई बार इतनी अप्रिय स्थिति बन जाती है कि कार्यवाही में व्यवधान रोकने के लिये आंसदी को मार्शल का प्रयोग करना पड़ता है। लोकसभा-विधानसभा में ऐसी व्यवस्था आम है पर अब नगर निगम की सामान्य सभाओं में भी वाद-विवाद बढऩे लगे हैं। कई बार लगता है कि हंगामे को रोकने लिये बल का इस्तेमाल जरूरी है। दुर्ग नगर निगम की सामान्य सभा 9 नवंबर को रखी गई है। आयुक्त ने एक चि_ी तैयार की, पुलिस अधीक्षक को भेजने के लिये। इसमें पुलिस जवान मांगे गये ताकि विवाद न संभले तो उनका इस्तेमाल कर निपटा जा सके। चि_ी की जानकारी महापौर, सभापति को हुई। उन्होंने आयुक्त से मिलकर उनको आश्वस्त किया कि सभा में कोई बाधा नहीं डालेगा, सब अपने ही लोग हैं। पुलिस को चि_ी लिखने या बुलाने की जरूरत नहीं है। खबर है, आयुक्त मान गये हैं अब वह चि_ी नहीं जायेगी। उम्मीद कर सकते हैं कि सामान्य सभा की साख बनी रहेगी।
नतीजे भाजपा के खिलाफ आते हैं तो?
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने उपचुनाव को लेकर भविष्यवाणी की, कि मरवाही की जनता ने दिवंगत अजीत जोगी के अपमान का बदला लेने का निर्णय ले लिया है। अब चुनाव नतीजे भाजपा के खिलाफ आते हैं, तो माना जाएगा कि जनता ने अपमान का बदला नहीं लिया। बृजमोहन मरवाही में आखिरी के तीन दिनों में पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार के लिए गए थे। वे अजय चंद्राकर के साथ मरवाही से करीब 30 किलोमीटर दूर एक रिसोर्ट में ठहरे थे। दोपहर प्रचार के लिए निकल जाते थे, दो-तीन सभा लेने के बाद वापस रिसोर्ट आ जाते थे। वहां कुछ कांग्रेस के लोग भी ठहरे थे, जिनसे खुशनुमा माहौल में अच्छी चर्चा भी हो जाती थी। कोरोना संक्रमण के कारण बृजमोहन और अन्य नेता घर से बाहर नहीं निकल पाए थे, लेकिन उपचुनाव में प्रचार के बहाने अच्छीखासी आउटिंग भी हो गई।
बड़ा घोटाला रुका
पीएचई के जल मिशन के टेंडर निरस्त होने से एक बड़ा घोटाला रूक गया। सुनते हैं कि प्रभावशाली लोगों ने अफसरों के जरिए अपनी पसंदीदा कंपनियों को करोड़ों का काम दिला दिया था। कांग्रेस संगठन के एक बड़े नेता ने तो अपने मुंहबोले नाती को भी 10 करोड़ का काम दिलाया था। ठेका निरस्त हो गया तो मुंहबोले नाती की भारी भरकम कमाई करने की इच्छा धरी की धरी रह गई। चर्चा है कि कुछ लोगों ने एडवांस भी अफसरों को दे दिया था, जिसे लौटाने के लिए अफसरों पर काफी दबाव है।
उम्मीद जीएसटी बकाया मिलने की
जीएसटी कलेक्शन का नवीनतम आंकड़ा आया है जिसमें छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश पहले नम्बर पर हैं। अक्टूबर माह में पिछले साल के इसी माह के मुकाबले 26 प्रतिशत अधिक कलेक्शन हुआ है। सितम्बर माह में भी अच्छी स्थिति रही तब कलेक्शन 31 प्रतिशत अधिक रहा। केन्द्र के लिये आंकड़ा इसलिये महत्वपूर्ण है कि पहली बार किसी महीने में जीएसटी संग्रहण एक लाख करोड़ रुपये से अधिक (1.05155 लाख) पहुंच गया। छत्तीसगढ़ सहित अनेक राज्यों का केन्द्र पर बकाया चढ़ा हुआ है। जीएसटी कानून के मुताबिक राज्यों के कर संग्रह में कमी आने पर केन्द्र को आने वाले कई वर्षों तक भरपाई करनी है। अगस्त माह में यह बकाया 2800 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। अब और बढ़ गया होगा। बीते 5 अक्टूबर को जीएसटी कौंसिल की बैठक में यह मुद्दा उठाया गया तो केन्द्रीय वित्त मंत्री ने राज्यों को कर्ज लेने की सलाह दी थी। यह भी कहा था कि कम ब्याज दर पर कर्ज लेने में केन्द्र सरकार मदद करेगी। छत्तीससगढ़ सहित अनेक राज्यों ने ऐसा करने से मना कर दिया। छत्तीसगढ़ सरकार तो अनेक लोक लुभावन वायदों को पूरा करने के लिये बार-बार कर्ज ले तो रही है लेकिन इस मामले में हड़बड़ी नहीं दिखाकर ठीक ही किया। कोरोना का भय जितना कम होता जा रहा है, व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ती जा रही है। इसलिये उम्मीद की जा सकती है कि कलेक्शन की रफ्तार बनी रहेगी। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य उम्मीद भी कर सकते हैं कि उन्हें केन्द्र से बकाया राशि जल्द मिल सकेगी।
अब तो शुरू करें सरकारी कॉलेज
कोरोना के चलते निजी और सरकारी सभी तरह के कॉलेजों में पढ़ाई लम्बे समय तक बंद रही। पर, निजी विश्वविद्यालयों ने मौके की नजाकत देखकर ऑनलाइन कक्षायें शुरू कर दीं। करीब-करीब सभी निजी विश्वविद्यालय अगस्त महीने से ही ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं। इसके पहले स्टाफ को क्लास लेने के लिये ऑनलाइन प्रशिक्षण भी दिया गया। वे यह उम्मीद भी कर रहे हैं कि फरवरी मार्च आते-आते कोरोना संक्रमण की स्थिति सुधर जाये कि प्रायोगिक परीक्षाएं भी फिजिकल उपस्थिति के साथ शुरू हो। दूसरी ओर सरकारी कॉलेजों की चाल बिल्कुल सरकारी है। एक माह पहले से ही तय हो चुका है कि ऑनलाइन कक्षाओं के लिये तैयारी की जायेगी जो नहीं हुआ। उच्च शिक्षा विभाग अब तक नया सिलेबस जारी नहीं कर पाया है। कोरोना काल में कक्षाओं को हुए नुकसान को देखते हुए पाठ्यक्रम में कुछ कटौती करनी थी लेकिन यह भी नहीं हो पाया। सत्र का आधे से ज्यादा हिस्सा बिना अध्यापन के ही गुजर चुका है। कोरोना के चलते महाविद्यालयों में प्रवेश की स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिये बार-बार एडमिशन की आखिरी तारीख बढ़ाई जाती रही। निजी विश्वविद्यालयों में एडमिशन को लेकर काफी उदारता बरती जाती है। बीच सत्र में भी प्रवेश मिल सकता है। पर इसके कारण उन्होंने ऑनलाइन क्लासेस रोककर नहीं रखा। सरकारी कॉलेजों में इसी बहाने से क्लासेस रोककर रखे गये। अब बचे हुए दो तीन माह में कैसे सालभर की पढ़ाई पूरी की जायेगी, रिजल्ट कैसा होगा, क्या यह साल बेकार चला जायेगा? सवाल बना हुआ है। हालांकि सोमवार से कुछ कॉलेजों ने उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशों का इंतजार किये बिना पढ़ाई शुरू कर दी है, पर अधिकांश तो अब तक क्लास नहीं ले रहे हैं।
बगावत के बाद भी निष्कासन नहीं...
जिन दो विधायकों देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा ने कांग्रेस को खुला समर्थन दिया है छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने उन्हें इस्तीफा देकर फिर चुनाव लडऩे की सलाह दी है। जवाब में इन विधायकों ने कहा है कि अमित ने भी कांग्रेस से निकाले जाने के बाद इस्तीफा नहीं दिया और पूरे कार्यकाल तक पार्टी में बने रहे। अब जब पार्टी के फैसले के खिलाफ जाकर दोनों विधायकों ने खुली बगावत कर दी है तो निष्कासन जैसी कार्रवाई तो बनती है। पर, इससे तो उनकी विधायकी बची रह जायेगी, उल्टे पार्टी को मिले कुछ वोटों का प्रतिशत गिर जायेगा। जानकार बताते हैं कि इससे पार्टी को मिले क्षेत्रीय पार्टी के दर्जे पर भी असर भी पड़ेगा। बहरहाल, चुनाव परिणाम के बाद तो कई उलटफेर देखने को मिलेंगे। आज मरवाही में मतदान है, फैसला भी 10 को आ जायेगा, प्रतीक्षा करनी होगी।
खुदकुशी से बचने के बाद की लड़ाई
फिंगेश्वर के पास तरीघाट के एक किसान ने कुछ माह पहले आत्महत्या की कोशिश की, पर समय रहते उसे बचा लिया गया। इसके बावजूद उसकी वह समस्या हल नहीं हुई, जिसकी वजह से उसने जान देने की कोशिश की थी। दरअसल गांव में गौठान बनाने लिये पंचायत ने तहसीलदार की मौजूदगी में उसकी खड़ी फसल मवेशियों के हवाले कर दी। जान खतरे में डालने के बाद भी न तो अधिकारियों ने उसकी सुनी न प्रशासन ने। दूसरी बार पीडि़त किसान घासीराम नागर्ची ने आत्महत्या का रास्ता नहीं चुना, बल्कि साहस जुटाकर अपनी लड़ाई हाईकोर्ट ले गया। अब ख़बर है कि हाईकोर्ट ने उसके हक में फैसला दिया है। गौठान कहीं और बनेगा और किसान जमीन पर काबिज रहकर खेती-बाड़ी करता रहेगा। यह घटना इस मायने में खास है कि जब भी किसी महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने का दबाव नीचे के अधिकारियों पर पड़ता है वे नियम कायदों को ताक में धर देते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि आम लोगों की सहूलियत बनी रहे। शासन का आदेश है, कहकर कई गलतियां करते हैं, पसीजते नहीं। हो सकता है कोर्ट के इस आदेश का उन पर कुछ असर पड़े। दूसरा, सिस्टम प्रताडि़त करे, शासन की सुविधायें न मिलें, भूखों मरने की नौबत भी आये, तब भी इंसाफ के और दरवाजे तो खुले रहते ही हैं। हर किसी को हाईकोर्ट जाना ही पड़े यह भी जरूरी नहीं। किसान घासीराम अब महसूस कर रहा होगा कि आत्महत्या की कोशिश गलत थी।
कोरोना टीका लगवाने के लिये...
कोरोना की वैक्सीन फरवरी 2021 तक आने की उम्मीद है। इसके लिये प्रदेशभर में कोल्ड स्टोरेज भी तैयार किये जा रहे हैं। केन्द्र सरकार का निर्देश है कि पहले डॉक्टरों, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और निजी अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों और स्टाफ को यह टीका लगाया जाये। जाहिर है टीके का सभी को बेसब्री से इंतजार है। हर कोई चाहता है कि वैक्सीन आते ही लगवा लें और कोरोना के खतरे से निश्चिन्त हो जायें। ऐसी स्थिति में फर्जीवाड़े की आशंका तो बनी हुई है। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों, कार्यकर्ताओं की तो पूरी सूची अपडेट है पर निजी अस्पतालों की सूची देखकर स्वास्थ्य विभाग का माथा ठनका है। अकेले बिलासपुर जिले में निजी अस्पतालों की ओर से 22 हजार कर्मचारियों की सूची स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गई है। यह एक बड़ी संख्या है, जिस पर अधिकारियों को यकीन नहीं हो रहा। ऐसा लगता है कि कई अस्पतालों ने कर्मचारियों की संख्या बढ़ाकर बता दी है, ताकि इन्हें ज्यादा मात्रा में वैक्सीन मिल सके। स्वास्थ्य विभाग सूची की क्रास चेंकिंग करने जा रहा है। वैसे, वैक्सीन जिन्हें दी जायेगी उन पर निगरानी भी रखी जानी है। उनका नाम, पता परिचय पत्र सब दर्ज किया जायेगा। ऐसी स्थिति में गड़बड़ी किस रास्ते से होगी, देखना पड़ेगा।
साफगोई के शिकार सिंहदेव
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव एक बार फिर क्वॉरंटीन हैं। यह चौथी-पांचवीं बार है जब कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में आने के कारण एहतियातन सिंहदेव को क्वॉरंटीन होना पड़ा। उन्हें राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम में शिरकत करने सीएम हाऊस जाना था, लेकिन वे नहीं जा पाए। वैसे तो वे कार्यक्रम में वर्चुअल शरीक हो सकते थे, लेकिन वे इससे दूर रहे। जबकि राहुल गांधी दिल्ली से, और तो और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक मरवाही से कार्यक्रम में वर्चुअल मौजूद थे। ऐसे में सिंहदेव की गैरमौजूदगी में चर्चा में रही।
हालांकि राहुल गांधी ने अपने उद्बोधन में सीएम भूपेश बघेल के बाद, गैर मौजूदगी के बावजूद टीएस सिंहदेव का ही नाम लिया। इससे यह संदेश गया कि सिंहदेव की दिल्ली दरबार में हैसियत कम नहीं हुई है। कई बार सरल स्वभाव के टीएस सिंहदेव के बयानों से पार्टी और सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती है। मरवाही चुनाव में कांग्रेस के छोटे बड़े नेता जीत के बढ़ चढक़र दावे कर रहे थे, तो सिंहदेव का बयान आया कि जोगी पार्टी के वोट जिधर पड़ेंगे, जीत उसी को मिलेगी।
ये अलग बात है कि सिंहदेव ने मरवाही में भरपूर प्रचार किया है। मगर सिंहदेव की साफगोई से पार्टी-सरकार को थोड़ी दिक्कतें हो रही है। मरवाही के चुनाव नतीजे पार्टी के खिलाफ गए, तो सिंहदेव और मुखर हो सकते हैं। सिंहदेव के तेवर देखकर लग रहा है कि ‘सच’ बोलना जारी रखेंगे। भले ही इससे सरकार को परेशानी उठानी पड़े।
अगला सीएस कौन ?
राजस्थान के सीएस राजीव स्वरूप शनिवार को रिटायर हो गए। उन्हें एक्सटेंशन मिलने की काफी चर्चा थी, और जब केन्द्र से कोई पत्र नहीं आया तो ढाई बजे रात 89 बैच के एसीएस निरंजन आर्य को सीएस बनाया गया। आप सोच रहे होंगे कि राजस्थान के सीएस का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है? छत्तीसगढ़ की परिस्थिति भी राजस्थान की तरह बन गई है। यहां सीएस आरपी मंडल 30 नवम्बर को रिटायर होने वाले हैं। सीएम भूपेश बघेल ने उन्हें एक्सटेंशन देने के लिए पत्र लिखा है। मगर आज तारीख तक डीओपीटी में उन्हें एक्सटेंशन देने के लिए किसी तरह की फाइल नहीं चल रही है।
वैसे तो एक महीने का समय काफी होता है, और अंतिम दिन तक ऑर्डर निकलता है। गुजरात और आंध्रप्रदेश के सीएस को कुछ महीने पहले ही छह माह का एक्सटेंशन मिला है। इससे मंडल को भी एक्सटेंशन मिलने की संभावना जताई जा रही थी। मगर राजस्थान के घटनाक्रम के बाद एक्सटेंशन मिलने की संभावना कम हो गई है। जानकार बताते हैं कि गुजरात में भाजपा सरकार है, और आंध्रप्रदेश की वायएसआर सरकार केन्द्र में एनडीए को समर्थन दे रही है। ऐसे में दोनों जगह राज्य सरकार की बात मान ली गई थी। खैर, अगला सीएस कौन होगा, इसको लेकर चर्चा चल रही है।
सुनते हैं कि मंडल के ही बैचमेट और जम्मू-कश्मीर के सीएस बीवीआर सुब्रमण्यम का नाम भी चर्चा में है। सुब्रमण्यम तीन महीने पहले छत्तीसगढ़ आए भी थे। उनकी सीएम से अकेले में चर्चा भी हुई थी। मगर वे छत्तीसगढ़ आएंगे, इसकी संभावना कम दिख रही है। वजह यह है कि जम्मू कश्मीर की प्रशासनिक व्यवस्था उन्होंने बेहतर की है, और केन्द्र सरकार को भी उन पर भरोसा है। अब बच जाते हैं-सीके खेतान और अमिताभ जैन। खेतान भी मंडल के बैचमेट हैं, और वरिष्ठताक्रम में सबसे आगे हैं। खेतान का भारत सरकार का लम्बा तजुर्बा उन्हें इस पद का दावेदार बनाता है, लेकिन मंडल के बाद खेतान को भी अधिक वक्त नहीं मिल पायेगा। मंडल को पहले बनाने के पीछे सामाजिक समीकरण ने भी काम किया था। भूपेश और मंडल एक ही जिले के, आमने-सामने के कॉलेज में पढ़े हुए भी थे।
ऐसी स्थिति में अभी अमिताभ जैन के लिए मैदान तकरीबन खाली दिख रखा है। ये भी संयोग है कि राजस्थान में उन्हीं के बैचमेट और वित्त विभाग के प्रमुख निरंजन आर्य सीएस बन गए हैं। वैसे भी राजस्थान की परिस्थिति छत्तीसगढ़ के अनुकूल ही है।
बैंक खाता खुला नहीं, ठगी शुरू
जिस रफ्तार से लोगों के पास फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट बढ़ रहे हैं इससे अधिक रफ्तार से साइबर ठगी और जालसाजी बढ़ रही है। अभी हफ्ते भर पहले एक नंबर से कुछ बहुत आकर्षक मोबाइल नंबरों की बिक्री का मैसेज आया। उसमें से एक नंबर खरीदने के लिए छत्तीसगढ़ से एक व्यक्ति ने फोन लगाया तो बेचने वाले ने तुरंत ही अपना बैंक खाता नंबर दे दिया कि इसमें 18 हजार रूपए जमा करा दें। उससे पूछा गया कि वह किस शहर में है, तो उसने जयपुर बतलाया। जब कहा गया कि जयपुर में ही किसी को नगद रकम देकर भेज देते हैं जो सिम ले लेगा, तो उसने अनमने ढंग से एक अधूरा पता दिया। उसके नंबर पर जब जयपुर से किसी ने फोन किया कि पता समझा दो, नगद रकम लेकर आ रहे हैं, सिम लेने के लिए, तो उसकी दिलचस्पी बिक्री में खत्म हो गई। दिक्कत यह है कि देश के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में खाता खोलकर ऐसी जालसाजी आसानी से की जा रही है, और बैंकों के ग्राहक शिनाख्ती के सारे इंतजाम मानो शरीफों को परेशान करने के लिए हैं, और जालसाजों को लिए दोस्ताना हैं।
रायपुर में आज सुबह इस अखबारनवीस ने एक बैंक में खाता खोला। अभी टेलीफोन पर उसकी एक औपचारिकता होना बाकी थी। खाता खोलते वक्त एक फिंगरप्रिंट डिवाइस पर अंगूठे का निशान लिया गया था, उसका ईमेल आधार कार्ड की तरफ से आ भी गया। अभी बैंक से फोन नहीं आया, लेकिन एक किसी का भेजा एसएमएस जरूर आ गया कि खाते में 92 हजार रूपए जमा है। अब 15 हजार रूपए देकर जो खाता खोला गया है, अभी तो वह रकम भी दूसरे बैंक से निकली नहीं है, नए बैंक पहुंची नहीं है, और जालसाज को खबर लग गई, उसने 92 हजार रूपए उपलब्ध होने का मैसेज भी भेज दिया। इसके नीचे कोई एक लिंक है जिसे क्लिक करने के लिए कहा गया है। अब कितने लोग होंगे जो ऐसे लिंक को क्लिक करने से अपने को रोक पाएंगे? और क्लिक करते ही जालसाजी का सिलसिला आगे बढ़ निकलेगा।
इस तरह की साइबर जालसाजी और ठगी बढ़ते ही चल रही है। और सरकार है कि लोगों के सुलभ शौचालय जाने पर भी आधार कार्ड अनिवार्य करने पर आमादा है। अंगूठे का निशान देते ही आधार का ईमेल आया, और कुछ मिनटों के भीतर जालसाज का एसएमएस भी आया। इन दोनों का कोई रिश्ता हो तो भी हैरानी नहीं होगी क्योंकि सरकार के अधिकतर कम्प्यूटरों तक हैकरों की घुसपैठ आम बात है।
इनसे दाल-सब्जी में संशोधन करवाएं...
रात-दिन सरकार के समाचार भेजने वाले लोग भी जब आए दिन अपनी भेजी खबरों में संशोधन भेजते हैं, तो उन लोगों को भारी परेशानी होती है जिन्होंने उनकी पहले की खबर पर मेहनत करके उसे सुधारकर तैयार किया है। अब यह संशोधन कायदे से तो सिर्फ इतना आना चाहिए कि कौन सा हिस्सा बदला जा रहा है। लेकिन उसे फिल्मी सस्पेंस की तरह रखकर पूरे का पूरा प्रेस नोट दुबारा भेज दिया जाता है, जिसका मतलब यह होता है कि पूरे प्रेस नोट को दुबारा सुधारा जाए।
ऐसे लोगों को घर पर दो-दो बार नमक पड़ी हुई दाल और सब्जी मिलनी चाहिए, और पहला कौर खाते वक्त जुबानी संशोधन बताया जाए कि नमक दो बार पड़ गया है, संशोधित करके एक बार का नमक हटा दें। जब ऐसे लोग इस तरह से नमक हटाने की मेहनत करेंगे, तब उन्हें समझ आएगा कि सुधारकर, संपादन करके तैयार किए गए प्रेस नोट में संशोधन कितना आसान होता है!
भाजपा में बदलाव की बयार
विधानसभा चुनाव में अभी तीन साल बाकी हैं, और भाजपा हाईकमान ने आरएसएस के साथ मिलकर नए लोगों को आगे करने की रणनीति बना रही है। चर्चा है कि सांसदों को अहम जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय को भारतीय खाद्य निगम की छत्तीसगढ़ इकाई के परामर्श दात्री समिति का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। जशपुर के नेता संकेत साय को सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया है।
आरएसएस से जुड़े एक नेता का कहना है कि पिछले 15 साल में नई पीढ़ी उभरकर सामने नहीं आ पाई है। बस्तर और सरगुजा में तो सत्ता हो या संगठन, चुनिंदा लोगों को ही महत्व मिलता रहा है। इसका प्रतिफल यह रहा कि दोनों आदिवासी संभाग में भाजपा की दुर्गति हो गई। आरएसएस का आंकलन है कि सिर्फ तीन ही विधायक अपने दम पर जीते हैं। बाकियों की नैय्या जोगी पार्टी अथवा निर्दलियों के सहारे ही पार हुई है।
कई विधानसभा ऐसे हैं जहां बड़े नेताओं ने दूसरी पंक्ति के नेताओं को उभरने नहीं दिया। मगर अब हर विधानसभा सीट में नए और साफ छवि के लोगों को आगे लाने की कोशिश की जाएगी। बस्तर में तो धर्मांतरण के खिलाफ मुहिम के बहाने युवाओं की नई पौध तैयार करने की कोशिश भी हो रही है। संकेत है कि नवम्बर के महीने से प्रदेश भाजपा में थोड़ा बहुत बदलाव देखने को मिल भी सकता है। यह बदलाव कब और किस तरह होगा, यह देखना है।
इन बच्चों के लिए क्या करें?
स्कूलें बंद हैं, और स्कूली-उम्र के बहुत से बच्चे सुबह से कॉलोनियों की नालियों में झांकते घूमते रहते हैं, नाली के पानी-कीचड़ में जहां उन्हें मछली मिलने की उम्मीद दिखती है, सडक़ पर लेटकर वे नाली में हाथ डाल देते हैं। ऐसी टोलियों में कोई भी मास्क लगाए नहीं दिखते, और जो नाली से जरा-जरा सी मछलियां पकडऩे उसमें हाथ घुसाए हुए हैं, उनसे सेनेटाइजर की भी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। अब सवाल यह उठता है कि इन बच्चों की कोई मदद कैसे की जाए? क्या कॉलोनियों के संपन्न लोग इन्हें कोई फुटबॉल दे सकते हैं कि वे उससे खेलकर अपना वक्त गुजारें? या कार साफ करने, घर के बाहर की घास छीलने जैसा कोई काम दे सकते हैं? समाज के भीतर इस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि इन्हें गंदगी और बीमारी के खतरे से कैसे बचाएं, और इनके समय का बेहतर इस्तेमाल कैसे करवाएं?
अफसर की बैटिंग, चौके-छक्के
रिटायरमेंट के ठीक पहले पड़ोस के जिले के प्रशासनिक मुखिया जिस अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं, उससे जानकार लोग हतप्रभ हैं। कुछ इसी तरह बैटिंग पूर्व एसीएस टी राधाकृष्णन भी करते थे। इसका नतीजा यह रहा कि उन्हें अब तक पूरी पेंशन नहीं मिल पा रही है। उनके खिलाफ अभी भी एक-दो जांच चल ही रही है। मगर पड़ोसी प्रशासनिक मुखिया इतनी जल्दबाजी में हैं, कि उन्होंने सारी सीमाएं लांघ रखी हैं । सुनते हैं कि रिश्वत की रकम लेने से कुछ दिन पहले तो मुख्यालय छोडक़र रायपुर तक आ गए। जिस ठेकेदार से उन्हें रकम लेनी थी वह तेलीबांधा मरीन ड्राइव में उनका इंतजार कर रहा था।
अफसरने कुछ दूर अपनी गाड़ी रूकवाई और फिर स्कूटर से मरीन ड्राइव पहुुंचे। वैसे तो सैर-सपाटे के लिए मरीन ड्राइव को सबसे उपयुक्त जगह माना जाता है, लेकिन बड़े लोग यहां काम की बात करने भी आते हैं। खैर अफसर पहुंचे, तो काम के एवज में लेनदेन की चर्चा भी हुई। ठेकेदार ने उन्हें रकम तो दी, लेकिन अफसर इससे ज्यादा की उम्मीद कर रहे थे। चूंकि अफसर ने रकम ले ली, तो ठेकेदार काम को लेकर निश्चिन्त थे। मगर बाद में अफसर ने ठेकेदार की गाडिय़ां भी पकड़वा दीं। हाल यह है कि अफसर की कारगुजारियों की चर्चा न सिर्फ मंत्रालय तक पहुंची है बल्कि सेंट्रल एजेंसियों तक इसकी जानकारी भेजी गई है। देखना है कि अफसर जांच के घेरे में आ पाते हैं या नहीं।
इलाज की सहूलियत, लेकिन अनुदान
छत्तीसगढ़ सरकार में एक अफसर अपनी कड़ाई के लिए मशहूर थे। किसी का सौ रूपए का भी गलत बिल अगर सामने चले जाए तो जुबानी उसकी खाल खींच लेते थे। गालियां देने में दूसरे के परिवार के कई लोगों से रिश्ता बना लेते थे। साख ऐसी थी कि न गलत करते हैं, न गलत होने देते हैं। ठीक वैसी ही जैसी कि देश के बड़े नेता के बारे में बनी थी, न खाऊंगा, न खाने दूंगा। खाऊंगा तो पता नहीं लेकिन देश के लोगों का खाना तो बंद हो ही गया है।
अब जिस अफसर की चर्चा हो रही है उनको रिटायर होने के बाद भी अपने और परिवार के इलाज के लिए खूब सारा सरकारी इंतजाम हासिल है। इसके बावजूद पिछली सरकार के रहते उन्होंने मुख्यमंत्री से इलाज के लिए 5 लाख रूपए मंजूर करवा लिए थे। यह जानकारी सुनने वाले लोग हैरान हैं, लेकिन जानने वाले लोग सरकारी फाइलों की फोटोकॉपी लेकर चल रहे हैं।
फाईल सम्हालकर रखी है...
इलाज की बात निकली तो पिछली सरकार में एक अफसर ने अपने इलाज के लिए इतनी बड़ी रकम मंजूर करवा ली थी कि वह सरकारी नियमों से दुगुनी या उससे भी ज्यादा थी। बाद में कुछ लोगों ने समझाकर रकम आधे से कम करवाई, लेकिन जिन्होंने अपनी कलम बचाने के लिए यह रकम कम करवाई, उन्होंने बीमार अफसर को फंसाने के लिए उसकी लगाई हुई अर्जी की कॉपी भी सम्हालकर रख ली। सरकारी नौकरी और राजनीति के हिसाब चुकता करने के लिए रिटायर होने के बाद भी खासा समय बचता है। प्रदेश के एक भूतपूर्व प्रिंसिपल सेक्रेटरी पी.एस. राघवन ने अभी हाल में ही एक बुकलेटनुमा किताब लिखी है जिसमें उन्होंने कई लोगों से हिसाब चुकता किया है। अब तो सोशल मीडिया और ब्लॉग पर भी हिसाब चुकता करने और भड़ास निकालने की गुंजाइश असीमित है। देखना है कि इलाज के कागजों का कब इस्तेमाल होता है।
चप्पल वालों के पसीने छूट रहे हवाई यात्रा से...
रायपुर से जगदलपुर के बीच हवाई सेवा शुरू हुए अभी मुश्किल से एक माह ही हुए हैं कि किराया बढ़ गया है। 21 सितम्बर को जब एलायंस एयर की सुविधा शुरू हुई तो रायपुर-जगदलपुर के बीच किराया करीब 1400 रुपये था। अब इसे बढ़ाकर 2000 रुपये कर दिया गया है। जगदलपुर से आगे हैदराबाद तक इसी फ्लाइट पर जाना हो तो अब 2700 रुपये अतिरिक्त देने होंगे, जबकि हवाई सेवा शुरू हुई तो किराया 1900 रुपये था। जगदलपुर राजधानी से काफी दूर है। कई राज्यों की सीमायें इसके मुकाबले पास है। बस और ट्रेन का सफर पूरा दिन या पूरी रात ले लेता है। कोरोना के चलते इन दिनों ट्रेन बस यातायात सामान्य भी नहीं हुआ है। इसके चलते फ्लाइट्स में पैसेंजर ठीक-ठाक संख्या में मिल रहे हैं। किराये में एकाएक बढ़ोतरी के बावजूद मजबूरी है कि जो खर्च कर सकते हैं, वे हवाई सुविधा का ही इस्तेमाल करें। मगर किराया इसी तरह, इतनी जल्दी आगे भी बढ़ता रहा तो? उड्डयन मंत्रालय ने उड़ान सेवा ‘उड़े देश का आम नागरिक’ स्लोगन को लेकर ही तय किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह स्कीम हवाई चप्पल पहनने वाले लोग भी हवाई सफर करायेगी, पर महंगा होता किराया तो सिर्फ सूट-बूट वाले ही बर्दाश्त कर पायेंगे।
महानगर दर्जे के अपराध..
पता नहीं क्यों, अब छत्तीसगढ़ से जिस तरह से ख़बरें आ रही हैं उनके चलते महानगरों वाली फीलिंग होने लगी है। राजधानी के एक क्लब में लॉकडाउन के दौरान मयखाना खुलना, धनी लोगों का जमावड़ा और फिर गोलियों का चलना। इसके बाद लगातार एक के बाद ड्रग्स, चरस, कोकीन, अफीम के रैकेट में राजधानी के अमीर लडक़ों और कुछ युवतियों का भी नाम आना और मुम्बई, दिल्ली से उनका तार जुड़ा होना। इस समय आईपीएल क्रिकेट का मौसम है। हर रोज दो चार केस हाईटेक सट्टे का पकड़ लिया जा रहा है। दस बीस हजार का खेल नहीं इनमें लाखों रुपयों के दांव लग रहे हैं। खाईवाल, कारों में, होटलों में और देश के अलग-अलग हिस्सों में बैठकर गेम खेल रहे हैं, खिला रहे हैं। इनके भी तार देश के बड़े शहरों से जुड़े हुए हैं।
अब रोड रेज़ का मामला रह गया था। गरियाबंद में कांग्रेस नेता के बेटे ने जिस तरह ग्रामीणों को एसयूवी से रौंदा और उसमें चार साल के बालक की मौत हुई, कई लोग घायल हुए- उससे यह कसर भी पूरी हो गई। देश-विदेश में रहने वालों को शिकायत है कि लोगों को जब बताते हैं वे छत्तीसगढ़ में रहते हैं, तो पूछा जाता है ये जगह कहां है? मुमकिन है आगे ऐसे सवालों का पूछा जाना बंद हो जायेगा।
मजदूरों के बचाव के विधेयक में देर
विशेष सत्र में केंद्र सरकार के नए कृषि और श्रम कानून के प्रभाव को सीमित करने के लिए सरकार 4 संशोधन विधेयक लाने वाली थी, लेकिन लंबी चर्चा के बाद सिर्फ एक मंडी संशोधन विधेयक को लाने पर सहमति बनी। सीएम भूपेश बघेल ने कहा था कि श्रम कानून में संशोधन के चलते सरकार श्रमिकों-कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए अपना कानून बनाएगी। केंद्र के नए कानून के मुताबिक सौ कर्मचारी संख्या वाले कारखानेदार छंटनी कर सकेंगे। पहले तीन सौ कर्मचारी वाले कारखानों में ही छंटनी की अनुमति थी। सरकार ने कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखकर संशोधन विधेयक लाने की तैयारी भी कर ली थी, लेकिन बाद में पता चला कि नए श्रम कानून का अभी नोटिफिकेशन भी नहीं हुआ है। इसके बाद अब बाकी विधेयकों को लाने का विचार त्याग दिया गया। बाकी तीन विधेयक अब शीतकालीन सत्र में पेश किए जाएंगे।
सरोज पांडेय की बारी आएगी?
चर्चा है कि बिहार चुनाव के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल हो सकता है। इसमें छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय का नंबर लग सकता है। वैसे अभी छत्तीसगढ़ से रेणुका सिंह अकेली मंत्री हैं । वे भी यहां कोई प्रभाव छोडऩे में सफल नहीं रही हैं। ऐसे में सरोज को भी मंत्रिमंडल में जगह मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सरोज, अमित शाह की टीम में राष्ट्रीय महामंत्री के पद पर थीं। मगर टीम नड्डा में उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य तक नहीं बनाया गया।
ऐसे में पार्टी के भीतर रमन सिंह की ताकत बढऩे और सरोज की हैसियत कम होने के भी कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि सरोज को करीब से जानने वाले लोग इससे इंकार कर रहे हैं। हल्ला है कि पिछले दिनों सरोज के लिए तगड़ी लॉबिंग भी हुई है। इसके बाद से उन्हें मंत्री बनाने की अटकलें लगाई जा रही है। वैसे भी कुछ लोगों का कहना है कि पार्टी हाईकमान रमन सिंह को अकेले फ्री हैंड देने के पक्ष में नहीं है। इसलिए सरोज को अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
भाजपा बूथ प्रबंधन अमित देख रहे हैं ?
जोगी परिवार मरवाही के चुनाव मैदान से भले ही बाहर है, लेकिन अमित जोगी, परिवार का दबदबा बरकरार रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। रेणु जोगी और अमित मरवाही में ही डटे हैं। रेणु जोगी न्याय यात्रा निकालने की अनुमति मांगी थी, मगर आयोग ने अनुमति देने से मना कर दिया। अमित जोगी खुले तौर पर कांग्रेस का विरोध कर रहे हैं, इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलने की उम्मीद है।
कांग्रेस के खेमे से खबर छनकर आई है, उसके मुताबिक अमित जोगी भाजपा प्रत्याशी का चुनाव संचालन कर रहे हैं। भाजपा का बूथ प्रबंधन खुद अमित देख रहे हैं। चुनाव प्रबंधन और खर्च भी कुछ हद तक अमित की राय के अनुसार हो रहा है। अमित के चुनाव प्रबंधन की कुशलता किसी से छिपी नहीं है। पिछले चुनाव में अजीत जोगी को 70 हजार वोट मिले थे।
अगर अमित अपनी पार्टी के आधे वोटों को भी भाजपा के पक्ष में मोडऩे में कामयाब होते हैं, तो चुनाव नतीजे बदल सकते हैं। हालांकि कांग्रेस के लोगों का मानना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि लोगों ने अजीत जोगी को देखकर ही वोट दिया था। अमित के कहने पर वोट ट्रांसफर नहीं होंगे। मगर अमित की सक्रियता ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है।
आपदा में अवसर...
कोरोना के खतरे के चलते आपदा में एक अवसर भी है। छोटे बच्चों को अभी से सावधानी सिखाने का एक बड़ा मौका आया है। उन्हें लेकर कहीं बाहर जाना हो, तो उन्हें मास्क पहनाकर ले जाएं, घर पर बार-बार हाथ धोना हो तो उनके सामने हाथ धोएं, और उसकी चर्चा भी करें। खुद ऑक्सीमीटर से अपनी जांच कर रहे हों तो बच्चों को भी सिखाएं क्योंकि इसमें कोई खतरा नहीं है। ऐसे ही एक बच्चे ने बाहर जाते हुए जब उसे मास्क पहनाया गया, तो उसने अपने खिलौने के भालू को भी मास्क पहना दिया।
आज की जवान, अधेड़, और बूढ़ी पीढ़ी को अगर अपने-अपने बचपन से ऐसी सावधानियां सिखाई गई होतीं, तो आज भारत में संक्रमण इतना नहीं फैला होता। हिन्दुस्तानी मिजाज से लापरवाह हैं, गंदगीपसंद हैं, और इस वजह से कोरोना अधिक फैला, यह एक अलग बात है कि लोग कोरोना से जल्दी उबर भी गए क्योंकि हिन्दुस्तानियों को बीसीजी जैसे टीके लगते आए हैं, और यहां के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है।
मोहल्लों में गूंजतीं नई-नई आवाजें!
लॉकडाऊन के बाद कारोबार बंद हुआ, तो सबसे छोटे लोग सबसे बुरी तरह बेरोजगार हुए। उनका काम तो वैसे भी रोज की मजदूरी या रोज की कमाई का रहता था, और वे बड़े दुकानदारों की तरह कुछ महीने जिंदा रहने की ताकत नहीं रखते थे। नतीजा यह हुआ कि फल-सब्जी से लेकर झाड़ू और वाइपर जैसे सामान लेकर लोग कॉलोनियों में सुबह 7 बजे के भी पहले से निकल पड़ते हैं। उनमें से अधिकतर ऐसे हैं जिनकी आवाज पहले कभी इन सडक़ों पर गूंजी नहीं थी। लेकिन पापी पेट का सवाल है तो हर मुंह जोर-जोर से आवाज लगाने लगा है। बहुत से ऐसे छोकरे ठेलों पर सामान लिए घूमते हैं जिस उम्र के लडक़े पहले कभी काम करते नहीं दिखते थे। कुछ छोटे बच्चे भी हैं जो अपने मां-बाप के साथ, या किसी और के साथ ठेले या ऑटोरिक्शा पर सामान लिए चलते हैं, और जाहिर है कि घूम-घूमकर बेचने के काम में कुछ पैसा उनको भी बचता होगा, या उनके घर के काम में कुछ मदद मिलती होगी।
कुछ बहुत बुजुर्ग आदमी-औरत भी सामानों की फेरी लिए भटकते हैं, और सोशल मीडिया पर कई लोग यह लिखने लगे हैं कि बड़े सब्जीवालों के मुकाबले इन लोगों से खरीदना चाहिए, और मोलभाव भी नहीं करना चाहिए।
कॉलेज तो खुलेंगे, आयेंगे बच्चे ?
कोरोना के नये मामलों में आई गिरावट स्थायी है या नहीं, यह साफ तौर पर कोई नहीं बता पा रहा। स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि इसकी दूसरी लहर ठंड के मौसम में आ सकती है। दूसरी तरफ धीरे-धीरे स्थिति सामान्य करने की कोशिश भी चल रही है। शिक्षा को कोरोना महामारी के कारण बड़ा नुकसान हुआ। अब हाईस्कूल से लेकर कॉलेजों में भी कक्षायें शुरू करने की कोशिश की जा रही है। एक नवंबर से स्कूल कॉलेज खोलने का आदेश सरकार की तरफ से जारी किया गया है लेकिन पालकों, छात्र-छात्राओं की ओर से उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है। कॉलेजों में तो प्रवेश की अंतिम तिथि तीसरी, चौथी बार बढ़ाई गई लेकिन सीटें पूरी नहीं भर पा रही हैं। प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे निजी कॉलेज भी हैं जिन्हें यूजीसी से किसी तरह का अनुदान नहीं मिलता और वे विद्यार्थियों की फीस पर ही निर्भर हैं। कोरबा, अम्बिकापुर, बिलासपुर में कई निजी कॉलेज हैं जिनमें एडमिशन 25 फीसदी भी नहीं हो पाई। खर्च नहीं निकल पाने के कारण वहां काम करने वाले स्टाफ को वेतन का संकट बना हुआ है। कक्षायें शुरू होने की घोषणा के बाद भी एडमिशन लेने की कोई हड़बड़ी छात्रों ने नहीं दिखाई। इसके चलते कई में तालाबंदी की स्थिति भी बन रही है। सामान्य दिनों में जनवरी माह तक कोर्स पूरा होने के बाद परीक्षा की तैयारियों का अवकाश शुरू हो जाता है। मौजूदा परिस्थिति यही बताती है कि छात्र-छात्राओं का एक साल यानि दो सेमेस्टर कोरोना की भेंट चढ़ रहा है।
मेरा साया साथ होगा
मरवाही में जोगी परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ पाया। जोगी की चुनाव में प्रासंगिकता बनाये रखने के लिये छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस द्वारा न्याय यात्रा निकाली जा रही थी। कोटा विधायक ने जन समस्या निवारण और कोरोना पर जागरूकता लाने के नाम पर जीपीएम प्रशासन व रिटर्निंग ऑफिसर से अनुमति मांगी थी जो नहीं मिली। अब अमित जोगी और डॉ. रेणु जोगी की मरवाही में सभायें नहीं हो सकेगी। इसके बावजूद चुनाव में जोगी की अप्रत्यक्ष मौजूदगी कायम है। चुनावी सभाओं में जोगी का प्रसंग उठाना न तो भाजपा के नेता भूल रहे न ही कांग्रेस के। भाजपा के कई बड़े आदिवासी नेता अमित जोगी के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त करने का स्वागत कर चुके हैं, पर भाजपा के प्रचार में जुटे अनेक भाजपा नेता जोगी कांग्रेस और उनके समर्थकों के प्रति हमदर्दी दिखा रहे हैं। वे भाषणों में कह रहे हैं, अमित के साथ अन्याय हुआ ऐसा नहीं होना चाहिये था। यह अलग बात है कि जब तक अजीत जोगी थे उन पर सवाल उठाकर ही लगातार कई चुनावों में भाजपा ने बढ़त हासिल की। इधर कांग्रेस नेता अपने भाषणों में जोगी को नकली बता रहे हैं। इसे लेकर डॉ. रेणु जोगी ने आपत्ति की और चुनाव आयोग के पास शिकायत भी दर्ज कराई है। मतलब, अमित, डॉ. रेणु जोगी को न्याय यात्रा निकालने, जन सम्पर्क करने का मौका मिले न मिले जोगी मरवाही चुनाव के केन्द्र में बने हुए हैं।
सत्ता के दिन गए तो...
चेंबर चुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन इसकी हलचल शुरू हो गई है। बड़े व्यापारी नेता अपने एसोसिएशन में पकड़ बनाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, ताकि चुनाव में अहम भूमिका निभा सके। ऐसे ही राईस मिल एसोसिएशन में अपना दबदबा कायम रखने की कोशिश पर योगेश अग्रवाल को काफी कुछ सुनना पड़ गया।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भाजपा सर्कार रहते हुए योगेश की राईस मिल एसोसिएशन में तूती बोलती थी। भाई के मंत्री पद का रूतबा भी था। मगर जैसे ही भाजपा सरकार बदली, राईस मिल एसोसिएशन में रामगोपाल अग्रवाल समर्थक हावी हो गए। इस पर योगेश ने राईस मिल एसोसिएशन के समानांतर अरवा चावल मिल एसोसिएशन का गठन कर दिया और वे खुद अध्यक्ष बन बैठे।
राइस मिल का कारोबार एफसीआई और नागरिक आपूर्ति निगम से जुड़ा हुआ है। रामगोपाल अग्रवाल, निगम के चेयरमैन हैं। ऐसे में अलग एसोसिएशन भले बना लें, लेकिन कारोबार की अच्छी सेहत के लिए रामगोपाल का आशीर्वाद जरूरी है। सुनते हैं कि पिछले दिनों योगेश उनका आशीर्वाद लेने भी गए, लेकिन रामगोपाल ने आशीर्वाद देना तो दूर, योगेश को बुरी तरह फटकार लगा दी। रामगोपाल ने योगेश को इतनी जोर से डांटा कि इसकी गूंज बाहर तक सुनाई दी, और बात धीरे-धीरे एसोसिएशन के बाकी सदस्यों तक पहुंच गई। रामगोपाल नाराज हैं, तो एसोसिएशन के सदस्य योगेश के साथ जुड़े रहेंगे, यह सोचना भी गलत हैं। कुल मिलाकर राईस मिल एसोसिएशन में वर्चस्व बनाने की कोशिश करना योगेश के लिए भारी पड़ गया। इसीलिये बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि अपने अच्छे दिनों में ताकत का इस्तेमाल सम्हलकर करना चाहिए, लेकिन पंद्रह बरसों की लगातार सत्ता अच्छे-अच्छे लोगों को बददिमाग कर देती है।
हाथियों से अलर्ट करते वाट्सएप ग्रुप
गजराज मीडिया, हाथी मित्र दल, वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट, हाथी मेरे साथी, हाथी विचरण। ये कुछ वाट्सअप ग्रुप हैं जो सरगुजा संभाग के सूरजपुर, बलरामपुर जिलों में चल रहे हैं। इन वाट्सअप समूहों को युवाओं ने खुद की प्रेरणा से बनाया है। इनसे सैकड़ों लोग आपस में जुड़ गये हैं। वे ग्रुप में सूचना डालते रहते हैं कि हाथी उनके इलाके में कहां भ्रमण कर रहा है, किस ओर से आया और किस तरफ आगे बढ़ गया है। अब लोगों को किसी रास्ते पर निकलने से पहले पता चल जाता है कि उनका हाथी से सामना तो नहीं होने वाला।
ये ग्रुप वन विभाग के लिये भी काफी मददगार साबित हो रहे हैं। फील्ड पर काम कर रहे अनेक गार्ड्स, अधिकारी, कर्मचारी आदि इससे जुड़ गये हैं जिन्हें हाथियों की मूवमेंट पर वाट्सएप ग्रुपों से मिली सूचना से मदद लेकर ग्रामीणों और फसल की समय पर सुरक्षा करने में मदद मिल रही है। अब तक कुछ हाथियों में रेडियो कॉलर लगाकर, रेडियो के जरिये सूचना देकर लोगों को सतर्क करने का तरीका अपनाया जाता है पर यह नया प्रयोग ज्यादा कारगर साबित हो रहा है।
कुछ दिन पहले कोरबा से खबर आई थी कि युवाओं ने वाट्सएप ग्रुप बना रखे हैं जिससे वे कोरोना के कारण स्कूल नहीं जा पाने वाले, अपने आसपास रहने वालों बच्चों को पढ़ा रहे हैं। ऐसे प्रयोग और भी हो रहे होंगे, छत्तीसगढ़ ही नहीं दूसरे राज्यों में भी हो रहे होंगे। स्मार्टफोन का ऐसा स्मार्ट इस्तेमाल कई समस्याओं को सुलझाने में मदद कर सकता है।
दशहरे में नीलकंठ दिखा क्या?
वाट्स अप का सबसे ज्यादा इस्तेमाल गुड मार्निंग, गुडनाइट और पर्वों पर शुभकामना संदेश भेजने में होता है। नवरात्रि के पहले दिन से चला आ रहा यह दौर आज दशहरे पर खत्म हुआ है, कुछ दिन रुककर फिर शुरू हो जायेगा क्योंकि दीपावली भी आगे है। दशहरे के कई शुभकामना संदेशों में खूबसूरत नीलकंठ की तस्वीरें भी हैं।
हम जिन पक्षियों को तेजी से विलुप्त होते देख रहे हैं उनमें गिद्ध और कौवों की तरह नीलकंठ को भी शामिल कर लेना चाहिये। कुछ वर्षों तक रावण दहन देखने के लिये निकलने से पहले नीलकंठ के दर्शन हो जाते थे। इसके बिना दशहरा अधूरा भी माना जाता था। हम इसे स्थानीय बोली में टेहर्रा चिरई कहते हैं। छत्तीसगढ़ धान की फसल लेने वाला इलाका है पर यहां भी नीलकंठ के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। धान की बालियां चुगना और फसलों में मौजूद कीड़ों को खाना नीलकंठ को प्रिय है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नीलकंठ का यही प्रिय आहार उनके विलुप्त होने की वजह बनता जा रहा है। वे भोजन के साथ फसलों में डाले गये कीटनाशक और उससे मरने वाले कीड़ों को निगल रहे हैं जिससे उनकी संख्या घट रही है। 40 फीसदी वनों से आच्छादित होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणियों, पक्षियों को विलुप्त होने से बचाना हमारी प्राथमिकता में नहीं है। बेमेतरा के गिधवा बांध में पक्षी विहार बनाने की योजना आज से सात-आठ साल पहले बनाई गई थी, पर आज उसे सब भूल चुके हैं।
छत्तीसगढ़ में स्थानीय पक्षी तो हैं पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं कि लगभग 140 तरह के प्रवासी पक्षी भी आते हैं। इसके कई पहचाने हुए डेरे हैं पर वहां पर्यटकों से ज्यादा शिकारी पहुंचते हैं। शिकारियों के डर से कई ठिकानों पर प्रवासी पक्षियों ने डेरा डालना बंद भी कर दिया है। राम गमन मार्ग पर तेजी से काम कर रही सरकार को उस काल के प्रिय पात्र नीलकंठ और विलप्त होते दूसरे पक्षियों को बचाने के लिये कुछ करना चाहिये।
मरवाही में माहौल भक्तिभाव का...
चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्याशी और प्रचार में जुटे नेता कार्यकर्ता विनम्र हो जाते हैं। स्वर में कोमलता आ जाती है, हाथ जुड़े हुए रहते हैं। बुजुर्गों का चरण स्पर्श करते हैं। सब माताएं, बहनें और चाचा, काका, मामा दिखाई देते हैं। अद्भुत दृश्य होता है। मतदाताओं में ईश्वर दिखाई पड़ता है। आम वोटर सोचता है कि काश ऐसा पूरे पांच साल होता। लोकतंत्र में दरअसल नेता सेवक होता है और जनता उसकी मालिक। पर चुनाव खत्म होते ही ऊंट करवट बदल लेता है। इन दिनों मरवाही में चल रहे उप-चुनाव के दौरान मतदाताओं के प्रति तो भक्तिभाव दिख ही रहा है मंदिरों और धार्मिक समारोहों में नेताओं की उपस्थिति दर्ज हो रही है। प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने दुर्गोत्सव के दौरान दुर्गा पूजा पंडाल में ही माइक संभाल ली और कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांगे।
मरवाही इलाके के कुछ इलाकों में दो बार गणेश उत्सव मनाया जाता है। इस समय भी कुछ स्थानों पर गणेश प्रतिमायें स्थापित की गई हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय वहां पहुंच गये। गणेश जी के पंडाल पर उन्होंने चुनावी सभा ले ली। गुंडरदेही के विधायक कुंवर सिंह निषाद ने एक जवारा यात्रा के दौरान खप्पर लेकर नृत्य किया। वैसे निषाद नृत्य करना पसंद करते हैं। उनकी पहले भी इस पर वीडियो वायरल हो चुकी है।
आम तौर पर मतदाता धार्मिक स्वभाव का होता है। नेता जब उनके आराध्य की पूजा करते हैं तो एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ जाते हैं। इससे उनके वोट हासिल करने में मदद मिलती है। यह बात अलग है कि चुनाव अभियान के दौरान प्रचार के लिये धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल करना विधि के विरुद्ध है पर शिकायत कौन करे, सब इस गंगा में नहा रहे हैं।
नेक काम की शुरुआत पुलिस खुद से करे..
इन दिनों पुलिस महकमा ही नहीं विभिन्न जिलों के कलेक्टर, विधि विभाग, सब मिलकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं। यौन प्रताडऩा, शारीरिक हिंसा, एसिड अटैक आदि की शिकार महिलाओं को मुआवजा देने की दो साल से रुकी फाइलें आगे बढ़ रही हैं। अब हर जिले में सूची बन रही है, कुछ जिलों में तैयार भी हो गई है और जल्द मुआवजा बांटने का सिलसिला भी शुरू हो जायेगा। चीफ सेक्रेटरी ने बीते दिनों कलेक्टरों की बैठक लेकर ऐसे मामलों में फुर्ती लाने कहा था, अब डीजीपी ने भी जिले के कप्तानों को सचेत किया है।
शुक्रवार को हुई इस बैठक में पहली बार दंड और ईनाम के नियम बनाये गये हैं। अब गूगल स्प्रेड शीट पर हर दिन जानकारी अपडेट करनी होगी। पुलिस मुख्यालय में मॉनिटरिंग के लिये महिला सेल का गठन होगा। एफआईआर दर्ज होने के 15 दिन में गिरफ्तारी नहीं हुई तो जिले को यलो अलर्ट में, गिरफ्तारी के 15 दिन में चालान पेश नहीं होगा तो रेड अलर्ट में, गिरफ्तारी के 60 दिन में चालान पेश नहीं होने पर उस जिले की पुलिस को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जायेगा।
जाहिर है, ब्लैक लिस्ट में आने पर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। दूसरी तरफ तेजी से परिणाम देने वाले अधिकारियों को पुरस्कृत भी किया जायेगा।
छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताडऩा और घरेलू हिंसा के बहुत मामले आते हैं, पेंडिंग की सूची बड़ी लम्बी है। एक पर राज्य ने, दूसरे पर केन्द्र ने कानून बना रखा है, जो प्रदेश में लागू है। एक महिला हेल्प डेस्क हर थाने में बनाने और वहां महिलाओं को प्रभार देने की बात निर्भया कांड के बाद हुई थी। अधिकांश डेस्क काम नहीं कर रहे। हेल्पलाइन नंबर वैसे तो 1091 और 1090 पूरे देश के लिये है, 181 में भी फोन किया जा सकता है पर ज्यादातर महिलाओं, विशेषकर घरेलू महिलाओं को इसके बारे में पता नहीं होता।
प्रदेश के कई जिलों में पुलिस विभाग के ही कई अधिकारी, कर्मचारियों पर ही महिलाओं के विरुद्ध अपराध के अनेक मामलों की जांच और कार्रवाई रुकी हुई है। क्या ही अच्छा हो कि पुलिस विभाग लगे हाथों ऐसे मामलों की भी समीक्षा कर ले। किसी भी नेक काम की शुरूआत खुद से करना ठीक रहेगा, पुलिस पर भरोसा बढ़ेगा।
बोधघाट के विरोध पर नक्सल दृष्टि
राज्य सरकार के बड़े फैसलों में 40 साल से रुकी बोधघाट परियोजना को मंजूरी देना भी एक है। अरविन्द नेताम सहित बस्तर के अनेक नेता इस परियोजना के विरोध में हैं। परियोजना का विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे बस्तर को लाभ नहीं, परिवार जरूर उजड़ जायेंगे। जब परियोजना की कल्पना की गई तो बिजली उत्पादन ही उद्देश्य था, जिसकी अब जरूरत नहीं रह गई हैं। अभी भी चित्रकोट, बीजापुर, बारसूर में अनेक स्थानीय नेता इस परियोजना के विरोध में एकजुट हो रहे हैं। बताया जाता है कि इसमें कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों के लोग शामिल हैं।
पिछले दिनों मारडूम थाना में भाजपा नेता व पूर्व विधायक लच्छूराम कश्यप और राजाराम तोड़ेम के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। इन पर आरोप है कि उन्होंने कोविड-19 महामारी पर लगाई गई पाबंदी के खिलाफ जाते हुए बैठक रखी। यहां तक तो ठीक है पर कुछ ऐसी रिपोर्ट्स भी आ रही हैं कि ग्रामीणों में इस परियोजना के लेकर मौजूद शक को भुनाने के लिये नक्सली भी उनके करीब आ रहे हैं और ग्रामीणों के बीच अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। यह मौका उन्हें क्यों मिल रहा है? किसी योजना का गुण-दोष के आधार पर समर्थन या विरोध तो किया जा सकता है।
अभी दो ही दिन हुए हैं जब मुख्यमंत्री ने बस्तर के पंचायत प्रतिनिधियों की मांग पर नई औद्योगिक परियोजनाओं को मंजूरी देने की घोषणा की है। हर परियोजना के साथ समर्थन और विरोध की आवाजें लाजिमी है, उठेंगीं। ऐसी स्थिति में यह जरूरी प्रतीत होता है कि बस्तर के सरकारी नुमाइंदे, स्थानीय प्रशासन, जल संसाधन विभाग और सम्बन्धित विभागों के अधिकारी इन योजनाओं से जुड़ी शंकाओं का वे ग्रामीणों के बीच खुद जाकर निराकरण करें। सरकारी मशीनरी के कामकाम में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहे। विरोध को नजरअंदाज करना, प्रशासन की दांडिक शक्ति पर भरोसा रखना गलत नजरिया हो सकता है। इससे बस्तर में शांति स्थापित करने की कोशिशों को धक्का लगता रहेगा।
कोरोना की दहशत का दोहन
कोरोना महामारी के प्रकोप से जो बचे हुए हैं उनके मन में दहशत बनी हुई है कि कभी उन पर भी वायरस का हमला हो गया तो क्या होगा? कोरोना आने के साथ-साथ बाजार में इस डर को भुनाने का खेल शुरू हो गया था। विशेषज्ञों ने बताया कि नियमित व्यायाम के साथ शरीर का इम्यून सिस्टम दुरुस्त होना चाहिये, कुछ ही दिनों के भीतर इम्युनिटी बढ़ाने का दावा करने वाली दर्जनों दवाईयां बाजार में आ गई। अख़बारों, टीवी चैनलों पर इनके विज्ञापन पटे रहते हैं। जब बाबा रामदेव के इस दावे को आईसीएमआर से खारिज किया कि कोरोनिल दवा कोरोना को ठीक करती है तब बाकी कम्पनियां सावधान हो गईं और वे कोरोना ठीक करने का दावा सीधे-सीधे नहीं करते पर लेना जरूरी बताती हैं। कोरोनिल का कोरोना की दवा के रूप में बेचना मना है, मालूम है लोगों को कि यह कोरोना की दवा नहीं है पर डर ऐसा कि बाजार में इसकी जबरदस्त मांग है। ये सब मार्केटिंग रणनीति है जिसे अब चुनाव में भी अपनाया जा रहा है। वैसे भी पिछले कुछ चुनावों में मार्केटिंग गुरुओं की भूमिका बढ़ी है। बिहार में कोरोना की वैक्सीन मुफ्त देने का वादा चुनावी घोषणा पत्र में हुआ। उसके बाद मध्यप्रदेश में भी हुआ। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने भी मुफ्त वैक्सीन की घोषणा कर दी। अब तक होता यही रहा है कि महामारी व संक्रामक बीमारियों पर नियंत्रण के लिये दवायें या तो मुफ्त मिलती रही हैं या मामूली शुल्क पर। ऐसे में कोरोना वैक्सीन का मुफ्त देना किसी भी सरकार के लिये बोझ नहीं हो सकता। इसे चुनाव घोषणा पत्र में शामिल कर एक डर से बचाने का सौदा किया जा रहा है। अब आयें मरवाही पर, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की दशा बेहद दयनीय है। गंभीर मरीजों को बिलासपुर रेफर करना पड़ता है। कई बिलासपुर नहीं ला पाते। जो रवाना होते हैं वे सब के सब जिंदा नहीं पहुंचते। पर इस बार वहां दो सफल डॉक्टरों के बीच मुकाबला है। कोरोना वैक्सीन न सही, क्षेत्र के मतदाताओं को दोनों डॉक्टरों से इतना आश्वासन जरूर ले लेना चाहिये कि उन्हें मरवाही और अपने जिले में एक बेहतरीन अस्पताल, विशेषज्ञों की टीम के साथ मिलेगा। जीते कोई भी, इस आदिवासी बाहुल्य इलाके का भला हो।
ट्रंप के भक्त
राष्ट्रपति का चुनाव अमरीका में हो रहा है, लेकिन बहुत से हिन्दुस्तानी ट्रंप समर्थक दिखाई पड़ रहे हैं। लोगों को याद होगा कि पिछले बरसों में कई हिन्दूवादी संगठनों ने ट्रंप की फोटो लगाकर हवन और यज्ञ किए थे। ट्रंप के कल्याण के लिए पूजा की थी। अभी पिछले पखवाड़े ही एक खबर आई कि ट्रंप के एक प्रशंसक ने भारत में उनका एक मंदिर बना रखा था, जहां वह रोज पूजा करता था। उसकी तस्वीर भी आई थी जिसमें वह ट्रंप की प्रतिमा का गाल चूम रहा है। ट्रंप को जब कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती किया गया तो इस आदमी ने ट्रंप के ठीक होने की मनौती मानकर उपवास शुरू कर दिया। और उपवास में वह मर गया।
ट्रंप के कुछ समर्थक तो इस किस्म के हैं, और कुछ दूसरे समर्थक वे हैं जो मास्क से ट्रंप के परहेज को धार्मिक भावना के मानते हैं। चूंकि ट्रंप भगवान मास्क नहीं लगाते, इसलिए हिन्दुस्तान में भी करोड़ों लोग बिना मास्क घूमते हैं। लोगों ने कोरोना से डरना छोड़ दिया है। हिन्दुस्तान में मरीजों की गिनती थोड़ी सी घटी है, तो लोग बेफिक्र हो गए हैं। यह बेफिक्री उन्हें ट्रंप का मंदिर बनवाने वाले के पास ले जा सकती है। फिलहाल उनकी जिंदगी में इस खतरे के अलावा एक नुकसान यह भी है कि ट्रंप का भक्त होने के बावजूद उनके पास ट्रंप को वोट देने का अधिकार नहीं है।
चुनाव और प्याज के भाव
लोगों ने एक लोकसभा चुनाव वह भी देखा है जब अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ‘शाइनिंग इंडिया’ के नाम पर अनेक उपलब्धियां गिनाती रह गई और प्याज की कीमतों ने उनकी सरकार दुबारा नहीं बनने दी। इस समय चुनाव भी हो रहे हैं और प्याज की कीमतें भी हर दिन बढ़ती जा रही हैं। पर है ये विधानसभा का चुनाव जबकि कीमतों का बढऩा, रोकना केन्द्र सरकार के बूते की बात है। नये कृषि कानून ने स्टॉक लिमिट पर रोक हटा दी है। अब व्यापारी जितना चाहे माल रोककर रख लें। माल जितना जाम रख पायेंगे कीमत उतनी ही वसूल सकेंगे। छत्तीसगढ़ में इस समय प्याज 70 रुपये किलो बिक रहा है। बाजार के जानकार कहते हैं कि महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश के कारण प्याज की फसल बर्बाद हुई है जिसके चलते इसके दाम 100 रुपये तक पहुंच सकते हैं। आलू भी कमजोर नहीं, 50 रुपये किलो बिक रहा है। बताया जा रहा है त्यौहारों के कारण आलू की खपत ज्यादा है, आवक कम है। वैसे हर बार महंगाई बढऩे पर इसी तरह की ख़बरें आती हैं कि फसल कमजोर है, सप्लाई कम हो रही है। छत्तीसगढ़ में कलेक्टरों को निर्देश तो है कि मांग और खपत पर निगरानी रखें। व्यापारियों को अपना स्टाक प्रदर्शित करने के लिये भी कहा गया है लेकिन अब नये कानून के कारण वह जब्ती-सख्ती नहीं रह गई। महंगे आलू और प्याज को आने वाले कई-कई दिनों तक बर्दाश्त करने के लिये तैयार रहिये। कोई लोकसभा चुनाव निकट भविष्य में नहीं है।