राजपथ - जनपथ
आम का खौफ और खास की बेफिक्री
आम लोग कोरोना के खौफ में जी रहे हैं। मगर विशेषकर सरकारी तंत्र से जुड़े कई प्रभावशाली लोग इससे बेपरवाह हैं, और वे अपने साथ-साथ दूसरों की जान भी जोखिम में डालने से पीछे नहीं हट रहे हैं। ऐसे ही एक कोरोना पॉजिटिव अफसर अपने दफ्तर जा धमके। अफसर दफ्तर के मुखिया भी हैं। उन्हें देखकर मातहत हैरान रह गए। वैसे अफसर के करीबी लोग यह तर्क देते रहे कि साहब की रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है। मगर कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी कम से कम पांच दिन क्वॉरंटीन रहना होता है, इस दिशा निर्देश पर पालन करना अफसर ने उचित नहीं समझा। कुछ दिन पहले इसी दफ्तर में डेढ़ दर्जन से अधिक कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। कोरोना से एक की मृत्यु हो चुकी है। पर अफसर बेखौफ हैं, इससे मातहत कर्मचारी काफी बेचैन हंै।
अवैध शराब, खुली छूट
प्रदेश के कई जिलों में लॉकडाउन है। रायपुर में भी इस बार कड़ा लॉकडाउन हो जा रहा है। लॉकडाउन में स्वाभाविक तौर पर शराब दूकानें बंद रहेंगी। ऐसे में शराब के शौकीन कुछ चिंतित हैं। ऐसे लोगों की चिंता एक वाट्सअप ग्रुप में दूर करने की कोशिश की गई। ग्रुप के एक सदस्य ने लिखा कि शराब अवैध रूप से डंप किया जा रहा है। राशि थोड़ी ज्यादा लगेगी लेकिन सम्माननीय लोगों को घर पहुंच सेवा उपलब्ध होगी। समय आने पर संबंधित होटल और रेस्टोरेंट की जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी। पिछले लॉकडाउन में भी चुनिंदा होटलों को अवैध शराब बेचने के लिए खुली छूट थी।
शक्ति, भक्ति और सख्ती
धर्मपरायण देश में कोरोना ने हमारी उत्सवधर्मिता पर बड़ा प्रहार कर दिया है। बीती नवरात्रि फीकी बीती, आने वाली नवरात्रि पर अधिक जमावड़ा होता है। जगह जगह दुर्गा प्रतिमायें विराजित की जाती हैं और तमाम सांस्कृतिक समारोह होते हैं। बड़ी प्रतीक्षा के बाद राज्य शासन की गाइडलाइन आ ही गई। प्रतिमा 6 फीट से ऊंची नहीं होगी, मास्क पहनकर ही दर्शन करना होगा। पांडाल में एक समय में 20 से ज्यादा लोग इक_े नहीं हो पायेंगे। सैनेटाइजर रखना होगा, सोशल डिस्टेंस का नियम मानना होगा। कम से कम तीन हजार वर्गफीट खुली जगह रखनी होगी। गणपति उत्सव के दौरान भी ऐसी ही पाबंदियां थीं। लोगों ने प्रतिमायें ही नहीं रखीं। दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक, सामाजिक मेल-मिलाप का माध्यम है बल्कि जनप्रतिनिधियों के लिये अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने का भी जरिया हुआ करता है। एक चुने गये प्रतिनिधि को हर पंडाल के पीछे 50 हजार से लेकर 2 लाख रुपये तक का चंदा देना पड़ता है। इस बार कोरोना ने उनको बचा लिया।
किनके लिये अवसर बनकर आई आपदा
रोज-कमाने खाने वालों पर लॉकडाउन कहर बनकर टूट पड़ता है। मगर बहुत से लोग मजे में हैं। पूरे प्रदेश में हर जगह से ख़बर आ रही है कि सब्जियों के दाम में जबरदस्त उछाल आई। किराना सामान एमआरपी से नीचे मिल जाया करते थे पर लॉकडाउन के बाद विशेषकर खाद्यान्न के दाम बढ़ गये। इस कोरोना ने ऑनलाइन डिलिवरी वालों को बड़ा फायदा पहुंचाया है। लोग दिन रात मोबाइल, लैपटॉप पर चिपके हैं तो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स का बिजनेस भी उछाल पर है। अफसर, कर्मचारी भी मजे में हैं। दफ्तरों में उनकी कुर्सियां पहले खाली रहती थी तो शिकायत होती थी, अब ऐसा है तो उसके पीछे कोरोना है। सडक़, पुल, पुलिया के काम जैसे भी हों चल रहे हैं, कोई निगरानी नहीं। इन सबसे ऊपर कोरोना के लिये जारी होने वाले बजट का मसला है। 750 करोड़ रुपये अब तक विभिन्न मदों में खर्च हो चुके हैं। कोई सवाल नहीं कि किस तरह खर्च किये गये। किन पर किये गये। जब कोरोना की आंधी गुजर जायेगी तब भी शायद ही कोई पूछताछ करे।
कमलनाथ के सहयोगी की ट्वीट
कांग्रेस पार्टी से जुड़़े हुए लोग जब कांग्रेस के मामलों पर कुछ कहते हैं तो वह न तो अनायास होता, और न ही मासूम होता। कांग्रेस पार्टी के हिन्दी विभाग के सचिव रहे, या शायद अभी भी हैं, पंकज शर्मा को मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपना मीडिया सलाहकार बनाया था। आज सुबह उन्होंने ट्विटर पर लिखा- ईश्वर करे कि त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव की ललक की लपटें इतनी न लपकें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ताताचट का अहसास हो। यही कामना मंै अशोक गहलोत के लिए करूंगा कि सचिन पायलट की सहनशीलता फिर जवाब न दे।
अब छत्तीसगढ़ और राजस्थान की राजनीति में मुख्यमंत्री पद को लेकर कमलनाथ के सहयोगी रहे पंकज शर्मा के इस बयान के पीछे की नीयत भी देखी जानी चाहिए क्योंकि वे आज भी कमलनाथ की तारीफ की ट्वीट कर ही रहे हैं। उन्होंने बीती आधी रात के बाद लिखा है- कमलनाथ ने अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापिसी का कमाल दिखा दिया तो वे इतिहास में कमाने-गंवाने-कमाने की कला का अमर प्रतीक बन जाएंगे।
कल ही कमलनाथ के इस मीडिया सलाहकार रहे कांग्रेस से जुड़े व्यक्ति ने पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री के बारे में लिखा है- कैप्टन अमरिंदर अपने आसपास की चहल-पहल पर जरा ठीक से निगाह नहीं रखेंगे तो उनका तो जो होगा सो होगा, कांग्रेस का बड़ा नुकसान हो जाएगा। अब इन तमाम ट्वीट का मतलब इन तीनों राज्यों के कांग्रेस के लोगों को निकालना चाहिए।
बीजापुर की अंजलि पंजाब पढऩे जायेगी?
फिल्मों में प्राय: खलनायक की भूमिका में नजर आने वाले सोनू सूद ने लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया। सैकड़ों लोगों के लिये वे मसीहा के रूप में सामने आये। उनकी टीम ने इसके अलावा भी लोगों की मदद पहुंचाई। इनमें बीजापुर की अंजलि भी है जिसका घर बाढ़, बारिश में ढह गया और उसकी सारी किताबें भींगकर खराब हो गई। सोशल मीडिया के जरिये सोनू सूद तक यह बात पहुंची। उन्होंने ट्वीट कर जवाब दिया, रो मत बहना तुम्हें नया घर भी मिलेगा और तुम्हारी पढ़ाई भी पूरी होगी। इस ट्वीट के बाद घर को दुबारा खड़ा करने के लिये प्रशासन भी मदद के लिये आगे आया। अब सोनू सूद की टीम ने अंजलि को पंजाब या हरियाणा की किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। जैसी ख़बरें आई है अंजलि को तो प्रस्ताव मंजूर है पर उसने फैसला अपने पिता पर छोड़ दिया है। हमें लगता है कि अवसर अच्छा है। अंजलि को बाहर पढऩे के लिये हामी भर देनी चाहिये। अब तो यहां से लड़कियां आईएएस भी बन रही हैं। झिझक टूटेगी तब वह भी आगे बढ़ेगी।
लोग मानें तब न टूटे कोरोना की चेन
एक बार फिर छत्तीसगढ़ के अधिकांश शहरों में लॉकडाउन की स्थिति है। बेमेतरा, मुंगेली, रायगढ़ में पहले से ही लॉकडाउन चल रहा है जबकि दुर्ग में कल से और रायपुर, बिलासपुर में 22 से एक सप्ताह के लिये लॉकडाउन लागू होने जा रहा है। रायपुर, बिलासपुर में वैसे तो लॉकडाउन की कई दिनों से मांग हो रही थी पर आधिकारिक आदेश शनिवार की शाम को जारी किया गया। जरूरी खरीदी के लिये ढाई दिन का पर्याप्त समय था, पर लॉकडाउन की घोषणा होते ही लोगों की ऐसी भीड़ उमड़ पड़ी मानो कुछ देर बाद ही सब कुछ बंद होने वाला है। सोशल डिस्टेंसिंग की जिस तरह से दुकानों में मजाक हुआ लोग खुद के साथ ही खिलवाड़ कर रहे थे। लॉकडाउन के मकसद को ही लोग भूल गये। ऐसी स्थिति से प्रशासन आखिर कैसे निपटे? इस बार लॉकडाउन के दौरान फल, सब्जी और किराना दुकानों को भी बंद रखा जा रहा है। सबसे ज्यादा नियम उल्लंघन इन्हीं जगहों पर हो रहा था। पिछले आंकड़े बताते हैं कि अब तक लॉकडाउन से कोरोना केस कम करने में खास मदद नहीं मिली। अब देखें कि ज्यादा सख्त लॉकडाउन लगने से कोई फर्क पड़ता है या नहीं।
चलती तो विधायक की भी है...
15 साल बाद कांग्रेस पर ऐसी कृपा बरसी कि संघर्ष करने वालों को समायोजित करना बड़ी समस्या बनकर सामने आई है। नगर-निगम चुनाव में जिन लोगों को टिकट नहीं मिली उनको भरोसा दिलाया गया कि आगे पद दिये जायेंगे। प्रदेशभर में निगम-मंडल में अनेक नियुक्तियां हुईं, जितने खुश हुए उससे ज्यादा लोग नाराज। बिलासपुर नगर-निगम में कल घोषित एल्डरमैन की सूची भी कुछ ऐसी ही है। जिन 11 लोगों को मौका मिला उनमें ज्यादातर वे थे जिनको कांग्रेस ने टिकट नहीं दी थी। कुछ एक नाम ऐसे भी थे जिनको बागी प्रत्याशी ने हरा दिया। यहां तक तो बात ठीक थी। पर संगठन का खेमा बड़ा नाराज़ चल रहा है। जिनके बारे में यह राय थी कि एक पत्ता भी उनके इशारे के बिना नहीं हिलता। एक बड़े पदाधिकारी ने यहां तक कह दिया कि जिन लोगों ने कांग्रेस की सरकार बनाने के लिये लाठियां खाईं उनको दरकिनार कर दिया गया। सबको पता ही है कि कांग्रेस भवन में पुलिस ने घुसकर लाठियां चलाई थी और कई कांग्रेस नेता, कार्यकर्ता घायल हो गये थे। यह घटना अब दो साल पुरानी हो चुकी है और किसी पर अब तक बस जांच ही चल रही है, किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। दिलचस्प यह है कि 11 नामों में से 7 नाम स्थानीय विधायक के हैं। अब तक हवा यह रही है कि उनकी बात ऊपर सुनी नहीं जाती। सूची घोषित होने के बाद उनके घर भीड़ बढऩे होने लगी है।
ऐसे किया गया मुंह बंद...
कोरबा सबसे मालामाल जिला है। जिला खनिज फाउन्डेशन के कोष में 100 करोड़ से भी ज्यादा हर साल मिल जाते हैं। भाजपा की सरकार जब थी यह रकम कलेक्टर की मर्जी से खर्च की जाती थी। अब इसके लिये समन्वय समिति बना दी गई है। इसके चलते बदलाव यह हुआ है कि सत्तारूढ़ दल की भी चल रही है। किसे किस काम का ठेका मिले यह तय करने के लिये विधायक, सांसद और मंत्री की सिफारिश होती है। हाल ही में एक कांग्रेस नेता को आसपास के इलाकों में किसी काम के लिये दो करोड़ का ठेका मिला। नियमों में ढील देते हुए। न्यास के फंड से पहले बहुत से काम कर चुके एक भाजपा नेता ने भी दावा किया था। उसने इधर उधर चि_ी लिखी, शिकायत की। मामला कैसे सुलझा? अब इस भाजपा नेता को भी एक दूसरा काम मिल गया है। खुद कांग्रेस पार्टी के ताकतवर नेताओं ने भाजपा के लोगों को काम दिलाया।
मुकाबला किताबों का...
छत्तीसगढ़ के कुछ आईएएस-आईपीएस अफसरों के बीच एक दिलचस्प बहस चल रही है जिसमें वे अपनी किताबों की आलमारियों की तस्वीरें डालकर अपना खजाना दिखा रहे हैं। अब जब एक ने आलमारियां दिखा दीं, तो देखा देखी में दूसरे अफसर ने भी किताबों को अपना खजाना पेश कर दिया। लेकिन साथ-साथ विनम्रता से यह भी लिख दिया कि वे किताबें रखने का मुकाबला तो कर सकते हैं, ज्ञान का मुकाबला नहीं कर सकते।
आज के वक्त में अफसरों के बीच ज्ञान दुर्लभ है, और उससे थोड़ा ही कम दुर्लभ है गंभीर और महत्वपूर्ण किताबें रखना। कई अफसर तो ऐसे हैं जिनसे मिलते हुए आपको दस-बीस बरस गुजर जाएं, लेकिन उनके मुंह से कभी किसी एक किताब का नाम न निकले, कभी उनकी मेज पर किताब नाम की धूल जमी हुई न दिखे। गिने-चुने ही ऐसे लोग रहते हैं जो पढऩे में भरोसा रखते हैं। पुलिस महकमे में पिछले बरसों में कम से कम दो ऐसे अफसर रहे जो कि देश भर के पुलिसवालों में सबसे अधिक पढऩे वाले थे। सुभाष अत्रे, और विश्वरंजन। दोनों ही खूब किताबें खरीदते थे, खूब पढ़ते थे, और किताबों के ज्ञान की खूब चर्चा भी करते थे। इनमें से विश्वरंजन काफी कुछ लिखते भी थे, लेकिन सुभाष अत्रे उस मेहनत से बचे रहते थे। अभी जिन दो अफसरों में ट्विटर पर किताबों का मुकाबला चल रहा है, वे अभी-अभी डीजी बने आर.के.विज, और रेवेन्यू बोर्ड के अध्यक्ष चित्तरंजन खेतान हैं। विज लगातार देश के अखबारों में लिखते भी रहते हैं, और खेतान कम से कम पढ़ते तो रहते ही हैं। सरकार में रहते हुए पढऩे वालों का नजरिया कुछ अलग रहता है, इस बात को उनसे मिलने-जुलने वाले लोग समझ सकते हैं, यह एक अलग बात है कि उससे सरकार में उनका सम्मान बढ़ता हो, या न बढ़ता हो।
सुभाष अत्रे जब तक छत्तीसगढ़ में रहे उनसे कोई पढऩे के शौकीन मिलें, तो वे तुरंत मेज के बगल से बक्सा उठाकर ताजा आई किताबें दिखाने लगते थे। उनका ज्ञान भी इनसाइक्लोपीडिया सरीखा था, और विश्वरंजन का भी। अब दोनों यहां नहीं रहे, और इसका बड़ा नुकसान उनके साथ चर्चा करने वाले लोगों का हुआ है।
पुनिया से जुड़ी खुशी
पीएल पुनिया के दोबारा प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी बनने से कई समीकरण बदल गए हैं। पहले उनके प्रभारी पद से हटने की चर्चा थी। यह भी हल्ला था कि पुनिया की मौजूदगी में निगम-मंडलों की जो सूची तैयार की गई थी, उसमें कुछ बदलाव होगा। दरअसल, पुनिया ने कुछ नाम जुड़वाए थे, जिस पर कई प्रमुख लोग सहमत नहीं थे। अब जब दोबारा प्रभारी बन गए हैं, तो निगम-मंडलों की सूची में बदलाव होना मुश्किल है। पुनिया के प्रभारी बनने एक युवा नेता काफी खुश हैं। पहले युवा नेता को निगम-मंडलों में पद देने पर सहमति बन गई थी। मगर पुनिया के हटने की चर्चा के साथ-साथ युवा नेता का नाम भी कटने के आसार जताए जा रहे थे। अब जब पुनिया प्रभारी बन गए हैं, तो नाम कटने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ऐसे में युवा नेता का खुश होना लाजमी है।
प्राइवेट अस्पतालों से सेवा-भाव की उम्मीद
निजी अस्पतालों में कोरोना जांच के नाम पर गंभीर बीमार मरीजों के इलाज में देर हो रही है। नतीजा यह है कि उनकी मौत भी हो रही है। निजी अस्पताल इलाज के नाम पर मनमाफिक वसूली कर रहे हैं। इतनी बड़ी रकम जो मरीज के परिवार की क्षमता से बाहर है। व्यापारिक गतिविधियों में अवरोध के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। इसके चलते कर्ज लेने व सम्पत्ति सम्बन्धी कठिनाई हो रही है। इससे न सिर्फ असमानता बढ़ रही है बल्कि कानून व्यवस्था की स्थिति भी पैदा हो रही है। इसे देखते हुए सुझाव है कि जिला व ब्लॉक स्तर पर देखें कि निजी अस्पताल सेवाभाव से न्यूनतम इलाज खर्च ले। जिन निजी अस्पतालों ने अब तक कोविड-19 मरीजों का उपचार किया उन्होंने क्या भुगतान प्राप्त किया उसकी सूची लें और प्रबंधन के दावे और परिवार से बात करके मिलान करें। अधिक राशि वसूल की गई हो तो वापस करें। 12-15 अधिकारियों की टीम बनायें, जो नियमित रूप से इसकी निगरानी रखें।
यह चि_ी है रायपुर के संभागीय कमिश्नर जीआर चुरेन्द्र की, जो उन्होंने अपने क्षेत्र के सभी पांच जिलों के कलेक्टर्स को लिखा है। आम तौर पर कलेक्टर या तो मंत्रालय की सुनते हैं या फिर अपनी खुद की। रायपुर कमिश्नर का यह पत्र उनकी अंतरात्मा से निकली हुई आवाज लगती है। तथ्यात्मक किन्तु भावुकता से भरी अपील है। कलेक्टर्स को अमल करनी चाहिये। निजी अस्पतालों में मरीजों और उनके परिजनों के साथ क्या हो रहा है रोज ख़बरें आ रही हैं। इस विपत्ति को कमाई के मौके में वे न बदल पायें इसके लिये कोई निगरानी कमेटी तो होनी ही चाहिए।
अब लॉकडाउन के लिये भी आंदोलन
कोरोना के बढ़ते मामलों को कैसा रोका जाये इसका कारगर तरीका पूरी दुनिया नहीं ढूंढ पा रही। छत्तीसगढ़ में भी ऐसा ही हो रहा है। अब जब गांव कस्बों में भी संक्रमण और मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है लॉकडाउन की मांग उठ रही है। बहुत से लोग मानते हैं कि लॉकडाउन बेअसर है। चार बार लॉकडाउन के बाद कोरोना तो थमा नहीं लेकिन रोजगार-धंधे चौपट हो गये जो अब तक दुबारा खड़े नहीं हो पाये हैं। रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, बिलासपुर जैसे शहरों में लॉकडाउन के दौरान भी लगातार कोरोना संक्रमण के मामले आते रहे। धमतरी में तो व्यापारी सडक़ पर प्रदर्शन ही करने लगे। यहां वे कलेक्टर से नाराज चल रहे हैं कि वादे के मुताबिक उन्होंने लॉकडाउन नहीं किया। मुंगेली में लोगों की लगातार मांग के बाद आज 17 सितम्बर से लॉकडाउन शुरू कर दिया है, जो लगातार 23 सितम्बर तक रहेगा। बिलासपुर में भी तीन दिन से बयान दे देकर जिला प्रशासन पर दबाव बनाया गया है कि वे लॉकडाउन का फैसला लें। व्यापारियों के साथ वहां आज बैठक हो रही है। लॉकडाउन सही है या गलत इस पर अलग-अलग राय हो सकती है पर, इसमें तो दो राय नहीं हो सकती कि अनलॉक हुए बाजार, दफ्तरों में सैनेटाइजर, मास्क, शारीरिक दूरी के नियम का हर जगह घोर उल्लंघन हो रहा है और इससे कोरोना के केस बढ़ रहे हैं।
मंत्रालय खतरे में
कोरोना से बचने के लिए अफसर अतिरिक्त सतर्कता बरत रहे हैं। कृषि सचिव एम गीता के पास फाइल भी अब सैनिटाइज होकर पहुंचती है। सबसे ज्यादा कृषि विभाग के अफसर-कर्मी ही कोरोना की चपेट में आए हैं।
पिछले दिनों मंत्रालय के ही एक विभाग में दो कर्मचारियों के पाजिटिव आने पर बाकी कर्मचारी अवकाश पर जाना चाहते थे, लेकिन विभागीय सचिव इसके लिए तैयार नहीं हुई, तब कर्मचारियों ने एक राय होकर सचिव तक खबर भिजवाई, कि सभी कोरोना पाजिटिव कर्मचारी के संपर्क में रहे हैं। ऐसे में उन्हें क्वॉरंटीन रहना होगा। इस तर्क का कोई काट नहीं था। लिहाजा, सचिव को अनुमति देनी पड़ी।
बाकी राज्यों को रास्ता दिखाया
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की दूरदर्शिता ही थी कि कोरोना संक्रमण काल में चार दिन का सत्र ठीक-ठाक निपट गया। विधानसभा की टीम ने सत्र शुरू होने से पहले कोरोना फैलाव रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम किए थे। इससे परे मध्यप्रदेश विधानसभा के एक दिन के सत्र में ही सरकार को पसीने छूट गए। 26 विधायक पॉजिटिव निकले, प्रश्नकाल नहीं हो सका। किसी तरह बजट प्रस्ताव को मंजूरी देकर सत्र का अवसान हो गया। छत्तीसगढ़ में भी एक विधायक पॉजिटिव पाया गया, लेकिन तब तक सत्र खत्म हो चुका था। संक्रमण भी नहीं फैला। छत्तीसगढ़ विधानसभा की तर्ज पर ही लोकसभा और राज्यसभा में सिटिंग अरेजमेंट बदला गया है और कांच की दीवार बनाई गई। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ विधानसभा ने कोरोना काल में सदन की कार्रवाई को लेकर बाकी राज्यों को रास्ता दिखाया।
कोरोना हराकर अफसर-नेता ऐसे मिले...
काढ़ा पीते हुए यह तस्वीर इसलिये खिंचवाई जा रही है ताकि लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक रहें और कोरोना वायरस का हमला हो तो मुकाबला कर सकें। काढ़ा पीने वाले जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों को देखिये और पीछे खड़ी स्व-सहायता समूह की सदस्यों को भी। सब महामारी से बचने को लेकर निश्चिंत दिखाई दे रहे हैं। इनमें बिलासपुर कलेक्टर हैं, विधायक हैं, नगर निगम के सभापति हैं कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। सब के सब कोरोना से संक्रमित होकर और स्वस्थ होने के बाद दुबारा जन सेवा के लिये मैदान में उतरे हैं। वे यह जता रहे हैं कि लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील तो वे करते रहेंगे पर उनके सिर पर जिम्मेदारियों का इतना ज्यादा बोझ है कि वे इस नियम को नहीं मान सकते। अब वे दलील दे सकते हैं कि कैमरे का फ्रेम इतना बड़ा होता नहीं कि दो गज की दूरी रखते हुए सबकी फोटो एक साथ ली जा सके। वैसे नियमानुसार 100-100 रुपये जुर्माना सब पर बनता है।
छपाई ठेके के चक्कर में जान जोखिम में...
छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े, और सबसे पुराने पं. रविशंकर विश्वविद्यालय ने कॉलेजों की परीक्षाओं के लिए टाइम टेबल और गाइड लाइन की घोषणा कर दी है, लेकिन ऑनलाइन परीक्षा के नाम पर ऐसा रायता फैला है कि अच्छे-अच्छे सर खुजलाने लग गए हैं। ऑनलाइन का मतलब तो सभी यही जानते हैं कि कम्प्यूटर या मोबाइल के जरिए परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। घर बैठे परीक्षार्थियों को परचा मिल जाएगा और निर्धारित समय में जवाब लिखकर बैठे-बैठे एक क्लिक के जरिए सेंटर या विवि में उत्तरपुस्तिका जमा हो जाएगी, लेकिन रविवि के कर्ता-धर्ताओं के लिए ऑनलाइन परीक्षा का मतलब ही अलग है। तभी तो उन्होंने अधिसूचना में कहा है कि उत्तरपुस्तिका लेने परीक्षार्थियों को पहले सेंटर जाना होगा फिर उसके बाद परीक्षा के प्रत्येक दिन उसे जमा करने सेंटर जाना होगा। पालक और बच्चे इसीलिए ही सर खुजा रहे हैं कि आखिर ये किस तरह का ऑनलाइन एग्जाम है, जिसमें रोजाना सेंटर जाना पड़ेगा। कोरोना संक्रमण के कारण घर बैठे-बैठे परीक्षा देने का नियम बनाया गया है, तो सशरीर जाने का कोई तुक समझ नहीं आता। परीक्षार्थी एक साथ सेंटर जाएंगे तो स्वाभाविक ही वहां भीड़ जुटेगी। इतना ही कई परीक्षार्थी तो गांव या दूर-दराज के इलाके में रहते हैं, तो उनको एक घंटे के भीतर सेंटर पहुंचना पड़ेगा। संभव है कि परीक्षार्थी का परिजन कोरोना संकमित हुआ हो, उसका निवास कंटेंटमेंट जोन में आता हो, तो कैसे उनको सेंटर बुलाकर खतरा मोल लिया जा सकता है।
कई कॉलेजों में परीक्षार्थियों की संख्या हजारों में है और कई कॉलेज के स्टाफ के लोग कोरोना संक्रमित हुए हैं। ऐसे में इस तरह के नियम समझ से परे हैं। जबकि राज्य के दूसरे विवि मसलन दुर्ग और बिलासपुर विवि में ऑनलाइन उत्तरपुस्तिका जमा करने व स्पीड पोस्ट से भेजने का नियम बनाया गया है। इस नियम से पालक और कॉलेज प्रबंधन सहमत हैं और किसी तरह संक्रमण की आशंका भी नहीं है।
बताया जा रहा है कि विवि प्रबंधन ने ओएमआर वाली ऑसरशीट पहले ही छपवा ली थी लिहाजा उनका उपयोग करने के लिए उत्तरपुस्तिका प्राप्त करने और जमा करने के नियम बनाए गए है ताकि वो बेकार न हो जाए। ये भी दलील दी जा रही है कि ओएमआर शीट से मूल्यांकन करने के लिए पूरा सिस्टम कम्प्यूटराइज्ड है। सर खुजाने वाले परीक्षार्थी और पालक अब सर खुजाना बंद करें क्योंकि मामला छपाई ठेके का है, जिसकी वजह से ऐसे नियम बनाए गए हैं। भले ही ऐसा करने से संक्रमण का खतरा हो। हालांकि इस पर राजभवन में आपत्ति दर्ज कराई गई। संभव है कि नियमों में कुछ बदलाव हो। अगर राहत मिलती है तो ठीक, लेकिन नहीं मिलती है तो परीक्षार्थी और पालक इस बात के लिए दिमाग दौड़ाएं कि उत्तरपुस्तिका जमा करने का सुरक्षित तरीका क्या हो सकता है।
साहब की सावधानी
कोरोना से बचाव के लिए मास्क और सेनेटाइजर के उपयोग के बारे में अधिकांश लोग वाकिफ हैं और बाहर आते-जाते समय इसका उपयोग भी करते हैं, लेकिन सूबे के एक आईएएस कोरोना को लेकर कुछ ज्यादा ही सतर्क नजर आ रहे हैं। वे मास्क, सेनेटाइजर के साथ फेस शील्ड और मेडिकल ग्लोब्स का भी उपयोग करते हैं। वो कहते हैं ना कि सावधानी घटी कि दुर्घटना घटी। शायद उन पर इस स्लोगन का कुछ ज्यादा ही प्रभाव पड़ा है, तभी तो सावधानी बरतने में साहब कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि ऐसा करने में कोई बुराई भी नहीं है। कोरोना काल में सावधानी को ही बचाव का सबसे बड़ा उपाय माना गया है, लेकिन ये साहब तो सीएम हाउस की बैठकों में भी मेडिकल ग्लब्स पहनकर ही आते-जाते हैं, जबकि वहां सोशल डिस्टेसिंग के साथ तमाम गाइड लाइन का पालन किया जाता है। ऐसे में मंत्रालय के मातहत कर्मचारियों-अधिकारियों का कहना है कि राजधानी रायपुर में जिस तरह से संक्रमण खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है, उसको देखकर लगता है कि साहब आने वाले दिनों में सीएम की बैठकों में भी पीपीई किट में नजर आएंगे।
प्रदेश की सेहत पर सवाल...
कोराना विशेषकर रायपुर में बेकाबू हो गया है। इससे निपटने के तौर-तरीकों से चिकित्सा जगत के लोग नाखुश हैं। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को शालीन और संवेदनशील राजनेता माना जाता है, मगर अब हाल के दिनों में उनका ग्राफ तेजी से गिरा है, और उनकी कार्यक्षमता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पहली बार मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे सिंहदेव के खिलाफ लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के जरिए सामने आ रहा है। शहर के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक ने सिंहदेव की समीक्षा बैठक को एक वाट्सएप ग्रुप में साझा करते हुए लिखा-तंत्र का आतंक इतना होता है कि कोई मंत्रीजी को ठीक से मास्क का उपयोग भी नहीं बताता, नो सोशल डिस्टेंन्सिग!
स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर बारीक नजर रखने वाले एक चिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर यहां तक कहा कि इस महामारी के रोकथाम के विभाग की तैयारी नहीं थी। कोरोना जैसी महामारी सौ साल में एक बार आती है। और विभाग का हाल यह था कि मार्च के महीने में सरकार के एक भी अस्पताल में उपचार की सुविधा नहीं थी। स्वास्थ्य विभाग सरकारी खर्च पर एक निजी अस्पताल में कोराना के इलाज के लिए सुविधाएं मुहैया कराने में जुटा था। बाद में सीएम की फटकार के बाद मेकाहारा को तैयार किया गया।
चिकित्सक मानते हैं कि यदि एम्स न होता तो प्रदेश की दुर्गति हो गई थी। बात यहीं खत्म नहीं होती। कोराना के भयावह दौर में डायरेक्टर महामारी का पद दो महीने खाली रहा। कुछ दिन पहले ही एक नेत्र चिकित्सक की इस पद नियुक्ति की गई। कभी भी न तो आईएमए और न ही नर्सिंग होम संचालकों से सुझाव लिए गए। और तो और पिछले डेढ़ साल से स्वास्थ्य मंत्री की विश्वासपात्र जिस महिला अफसर निहारिका बारिक सिंह की अगुवाई में कोरोना के खिलाफ अभियान चल रहा था वे इस नाजुक दौर में दो साल की छुट्टी पर चली गईं।
एक रिटायर्ड अफसर इस पर हैरानी जताते हुए कहते हैं कि आखिर ऐसे गंभीर हालत में स्वास्थ्य सचिव को क्यों जाने दिया गया? जबकि कुछ साल पहले पोस्टिंग के बाद भी प्रमुख सचिव स्तर की अफसर निधि छिब्बर को प्रदेश में अफसरों की कमी बताकर केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने से रोक दिया गया था। मगर यह स्वास्थ्य मंत्री की दरियादिली से संभव हो पाया। शुरुआती दौर में जब कोरोना के मामले नहीं थे तब सिंहदेव राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे थे और वे यह कहने से नहीं थकते थे कि राहुल गांधी के मार्गदर्शन के चलते छत्तीसगढ़ में कोरोना नियंत्रित है।
मौजूदा जमीनी हालात यह है कि स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले अंबिकापुर के सरकारी अस्पताल में आईसीसीयू की दुर्दशा है। रायपुर की बात करें तो एक प्रशासनिक अफसर यह कहते सुने गए कि वे पिछले चार दिनों में 167 शव गिन चुके हैं। जबकि स्वास्थ्य विभाग अब तक कोरोना से सिर्फ 154 मौतों की पुष्टि कर रहा है। मगर सरकार खामोश है।
अस्पताल बदनाम करने से पहले...
रायपुर के एक सबसे सुविधा-संपन्न निजी अस्पताल, रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल के खिलाफ गुमनाम वीडियो अभियान चल रहा है। अनजाने चेहरे, या किसी और प्रदेश के किसी अस्पताल की बदहाली का वीडियो इस अस्पताल का नाम लगाकर फैलाया जा रहा है। अब निजी या सरकारी, मुफ्त या महंगी फीस वाले, हर किस्म के अस्पताल में काम करने वाले लोगों का हाल बहुत खराब है। रामकृष्ण में डॉक्टर और कर्मचारी मरीजों के साथ रहते हुए खुद भी कोरोना पॉजिटिव हो रहे हैं, उन्हें ड्यूटी से अलग किया जा रहा है, उनका इलाज हो रहा है, और वे ठीक होकर फिर ड्यूटी पर आ रहे हैं। लेकिन ऐसे में उनके खिलाफ कोई सच्चा वीडियो होता, तो भी कोई बात होती, झूठा वीडियो लोगों के दिल को तोडऩे वाला रहता है। फीस तो हर अस्पताल अपनी सहूलियतों के हिसाब से लेता ही है, कोई कम सहूलियतों वाला रहता है, और फीस भी कम रहती है, कहीं पर सुविधाएं अधिक रहती हैं, और फीस भी। आज कोरोना के खतरे के बीच काम करने वाले सरकारी या निजी, किसी भी अस्पताल के नाम से फैलते हुए वीडियो की सच्चाई को पहले परख लेना चाहिए, तभी आगे बढ़ाना चाहिए। वरना खुद को उस अस्पताल में जाने की जरूरत पड़ी तो पता लगेगा कि वहां नाराज लोग तोडफ़ोड़ में अस्पताल बर्बाद कर गए हैं, या ऐसे मौके पर डॉक्टर-नर्स काम छोड़ गए हैं। जो लोग जिंदगी बचाने में लगे हैं उनको इतना तबाह भी नहीं करना चाहिए कि वे काम करने लायक न रह जाएं।
नंबर तो रॉंग है, पर मत मिटाएं!
लोगों के पास अब आसानी से फोन आ गए हैं। एक वक्त था जब पांच-पांच साल की कतार लगी रहती थी, और अधिक पहुंच वाले लोग केन्द्रीय संचार मंत्री के कोटे से टेलीफोन कनेक्शन पाते थे, जब घर पर फोन का बक्सा लगता था, तो दो दिन पहले कोई तार खींचने आते थे, फिर बक्सा लगाने, फिर लाईन शुरू करने, और आखिर में बख्शीश लेने। इसके बाद लोग उससे फोन लगाकर रिश्तेदारों को बताते थे कि फोन शुरू हो गया है। दूसरे शहर फोन लगाना रहता था, तो टेलीफोन एक्सचेंज से कॉलबुक करके दो-चार दिन तक इंतजार करना पड़ता था, तब कहीं बात हो पाती थी। अब सडक़ किनारे रंगीन छतरियां लगाकर छोकरे मोबाइल के सिमकार्ड बेचते हैं, और सडक़ पर खड़े-खड़े फोन कनेक्शन शुरू हो जाता है। लेकिन लोगों के पास फोन तो आ गए, फोन पर बात करने का सलीका नहीं आया।
कुछ लोग फोन लगाते हैं, और उठाने वाले से पूछते हैं कि वे कौन बोल रहे हैं। जिसने फोन लगाया है वे अपना नाम बताएं, यह सलीका होना चाहिए, लेकिन लोगों को जवाब मांगने की आदत पड़ी रहती है। अभी इस अखबारनवीस को कई बरस बाद एक परिचित महिला पत्रकार की एक अच्छी रिपोर्ट पढऩे मिली, तो उसे फोन लगा लिया। फोन किसी अनजानी आवाज ने उठाया, तो पता लगा कि यह नंबर कई बरस से किसी दूसरी महिला के पास आ गया है। माफी मांगते हुए फोन काटने की कोशिश की, तो उस महिला ने बड़ी उत्सुकता से और कई जानकारियां पूछीं, कौन हैं, क्या करते हैं, किस शहर में रहते हैं वगैरह-वगैरह। उन्हें कहा कि यह नंबर बदल जाने की खबर नहीं थी, अब फोनबुक से इस नंबर को हटा देते हैं। इस पर उस महिला ने हड़बड़ाकर कहा- नहीं-नहीं, ये नंबर रखे रहिए, आपके पास ये नंबर रहेगा, तो कभी मेरी कोई जरूरत रही, तो आप काम आ जाएंगे।
अब एक रॉंग नंबर लगने से, एक ही कॉल में बात बढ़ते-बढ़ते आगे मददगार बनने तक आ गई, ऐसे में वह नंबर मिटाया जाए या न मिटाया जाए?
अभी एक कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट्ट ने फेसबुक पर लिखा- महिला को विभाजी से बात करनी थी, मैंने कहा- ये विभाजी का नंबर नहीं है, तो मुझसे ही पूछ रही थी- तो ये क्या रॉंग नंबर है क्या सर? दुनिया में कैसे गजब के मासूम लोग होते हैं...
अब हो भी क्या सकता है, फोन को इस्तेमाल करने का तरीका तो दुकानदार सिखा देते हैं, सिम को इस्तेमाल करने का तरीका मोबाइल कंपनी के लोग या उसके सेल्समैन सडक़ किनारे सिखा देते हैं, लेकिन बात कैसी करें इसे तो कोई सिखाता नहीं।
झामसिंह के परिवार को न्याय मिलेगा?
मध्यप्रदेश पुलिस ने छत्तीसगढ़ की सीमा में घुसकर दो आदिवासियों पर गोली चला दी। झामसिंह धुर्वे और उसके चचेरे भाई नेमसिंह को नक्सलियों की टोह लेने के लिये गश्त लगा रही एमपी पुलिस ने ललकारा। दोनों घबरा गये और भागने लगे थे। गोली लगने से झामसिंह की मौत हो गई। घटना कवर्धा इलाके के बालसमुंद गांव की है जो वन एवं विधि विभाग के मंत्री मो. अकबर का क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ सरकार ने तथ्य जुटाए हैं कि इन दोनों का किसी नक्सली गतिविधियों में हाथ नहीं रहा। वे मछली मारने गये थे और पुलिस को देखकर डर गये थे। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से मध्यप्रदेश सरकार से कई बार इस दोषी पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई के लिये कहा जा चुका है। अब इस मामले में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसूईया उइके भी मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से बात करने वाली हैं। हो सकता है कि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में विरोधी दलों की सरकारें होने के कारण जांच और कार्रवाई प्रतिष्ठा का सवाल बन गया हो। सरकारें एक हों- फिर भी, यूपी की तरह तो मध्यप्रदेश में नहीं होना चाहिये। गलती हुई है तो मान ली जाये और दोषियों पर कार्रवाई हो।
मंत्री से बात करके भाजपा कमेटी !
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष की मंजूरी के बिना बलरामपुर जिला कार्यकारिणी घोषित होने के बाद राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम और पूर्व संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा के बीच तनातनी चल रही है। यहां का विवाद सुलझ नहीं पाया था कि रायपुर संभाग के बड़े मंडल में अलग ही तरह का विवाद शुरू हो गया है।
सुनते हैं कि मंडल अध्यक्ष ने स्थानीय कांग्रेस विधायक और सरकार के मंत्री से बातचीत कर कार्यकारिणी घोषित कर दी। मजे की बात यह है कि भाजपा मंडल की कार्यकारिणी में उन लोगों को जगह दी गई जिन्होंने विधानसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया था और मंत्रीजी को सहयोग किया था।
और तो और मंडल की सूची घोषित करने से पहले पार्टी के सांसद और स्थानीय पूर्व विधायकों से पूछा तक नहीं। इससे खफा स्थानीय भाजपा नेताओं ने प्रदेश संगठन से इसकी शिकायत की है। मगर मंडल अध्यक्ष बेपरवाह है। वैसे भी पार्टी सत्ता में नहीं है, लेकिन मंत्रीजी का वरदहस्त तो है ही।
बस्तर में छूट के साथ पुलिस भर्ती
पिछली सरकार के दौरान बस्तर में तब बड़ा विवाद हुआ था जब सैकड़ों की संख्या में एसपीओ बना दिये गये थे। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इन नियुक्तियों को खारिज कर दिया था। अब कांग्रेस सरकार में एक बार फिर बस्तर में विशेष पुलिस बल का गठन होने जा रहा है। भर्ती पूरी तरह स्थानीय यानी पंचायत स्तर के युवकों की होगी और आवेदकों को शारीरिक दक्षता में छूट भी मिलेगी। क्या इसे भी चुनौती दी जायेगी? इसके आसार कम दिखाई देते हैं, क्योंकि इन भर्तियों में सेवा शर्तें राज्य सरकार की बाकी भर्तियों की तरह होंगी। एसपीओ के चयन का कोई निश्चित मापदंड नहीं होता था। जिले के कप्तान चयन की निर्धारित प्रक्रियाओं को अपनाये बगैर नियुक्ति कर सकते थे। उनकी नियुक्तियां स्थायी भी नहीं थीं। वे शासकीय सेवक की श्रेणी में भी नहीं आते थे। उनसे मनमर्जी का काम लिया जा सकता था। लेकिन रमन सिंह सरकार में बस्तर में पुलिस का कामकाज पूरी दुनिया में बदनाम था. रमन सरकार की आधी से अधिक बदनामी बस्तर-पुलिस की वजह से ही थी।
पूरे बस्तर में केन्द्रीय बलों की बड़ी संख्या में तैनाती है। अक्सर स्थानीय लोगों के साथ उन्हें तालमेल बनाने में दिक्कत होती है। ये युवा उनके बीच सेतु का काम कर सकेंगे जिससे मुठभेड़ की घटनायें घटेंगी। सबसे बड़ी चुनौती तो हर सरकार के लिये यहां से हिंसा खत्म करने की रही है। हो सकता है उसके लिये यह एक सही कदम साबित हो।
कोरोना के बाद कैसी होगी स्वास्थ्य सेवा?
यह बात ठीक है कि कोरोना महामारी पर काबू पाने का कोई कारगर तरीका सामने नहीं आ सका है और यह लगातार फैलता ही जा रहा है। इसके बावजूद सब मानकर चल रहे हैं कि यह 6 माह, साल दो साल जितने दिन खिंचे, अंत में नियंत्रित तो हो ही जायेगा। पर इसे लेकर स्वास्थ्य सम्बन्धी जो स्थायी ढांचा खड़ा हो रहा है वह भविष्य में भी मददगार रहेगा। दूसरी सरकारों की तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने भी अपने ज्यादा से ज्यादा संसाधन कोरोना से रोकथाम के लिये जरूरी सामान जुटाने में लगा दिये हैं। नये अस्थायी अस्पताल खोले जा रहे हैं। बिस्तरों की संख्या इतनी बढ़ाई जा रही है, वेंटिलेटर्स, लैब की मशीनें जितनी सामान्य परिस्थितियों में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नई भर्तियां भी हो रही है। केन्द्र सरकार से भी मदद मिल रही है। बजट का एक अच्छा-खासा हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च हो रहा है। इसी बहाने पता चल रहा है कि अस्पतालों में कोरोना से पहले स्वास्थ्य सेवाएं किस तरह बदहाल थीं। राज्य सरकार ने अब जब प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन प्लांट लगाने का फैसला लिया है तो पता चल रहा है कि ये प्लांट जरूरी होते हुए भी अब तक नहीं लगाये गये थे। अभी तो कोरोना के नाम की बड़ी दहशत है। सरकारी क्या निजी अस्पतालों में भी जाने के नाम से लोग कांप रहे हैं। पर यकीन होता है कि कोरोना के बाद की दुनिया बड़ी खूबसूरत होगी जब महामारी खत्म हो जायेगी तब तक अस्पतालों में आधारभूत सुविधाओं का अभाव नहीं रहेगा। तब आम आदमी को निजी अस्पतालों की तरह सरकारी अस्पतालों में भी संतोषजनक उपचार मिल सकेगा।
कठिन सवाल और होशियार छात्र
बहुत साल पहले की बात है। रायपुर साइंस कॉलेज में कैमेस्ट्री के शिक्षक शुक्ला सर ने बीएससी अंतिम वर्ष विद्यार्थियों को क्लास में एक सवाल हल करने दिए। सवाल कठिन था, लेकिन एक छात्र सही उत्तर देने में सफल रहा। शुक्ला सर ने छात्र की पीठ थपथपाई और उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए खूब आशीर्वाद दिया। आगे चलकर यह छात्र रायपुर शहर का पहला आईएएस अफसर बना। नाम था विवेक ढांड, जो छत्तीसगढ़ के लंबे समय तक मुख्य सचिव रहे। और वर्तमान में रेरा के चेयरमैन हैं। बात यहीं खत्म नहीं हुई।
कई साल बात शुक्ला सर ने क्लास में उसी सवाल को विद्यार्थियों को फिर हल करने दिए। काफी कोशिश के बाद एक छात्र सही जवाब देने में सफल रहा। शुक्ला सर ने विद्यार्थी की पीठ थपथपाई और इससे पहले इस सवाल को जिस छात्र ने हल किया था वह आईएएस अफसर बन चुका है। इसी तरह मेहनत कर उच्च पद पर जाने की सीख दी। गुरु का आशीर्वाद रंग लाया और छात्र आईआरएस अफसर बना। नाम है अजय पांडेय, जो कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ के सेंट्रल एक्साईज जीएसटी कमिश्नर के पद पर हैं, और छत्तीसगढ़ सरकार में भी सेवाएं दे चुके हैं। उनकी साख अच्छी है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।
अस्पतालों के दिन फिरे..
कोरोना संक्रमण के चलते रायपुर के सारे अस्पताल भरे पड़े हैं। अस्पताल संचालकों की निकल पड़ी है। ऐसे ही एक अस्पताल में पिछली सरकार में तत्कालीन सीएम के करीबी रहे नेता ने निवेश किया। शुरुआत में कुछ ज्यादा कमाई नहीं होती थी। नेताजी का बेटा खुद कैश काउंटर पर बैठ जाता था। इससे अस्पताल के बाकी संचालक डॉक्टर परेशान थे।
काफी दिनों तक संचालकों में किचकिच चलती रही। आखिरकार नेताजी अपना हिस्सा लेकर प्रबंधन से अलग हो गए। थोड़े समय बाद अस्पताल चल निकला और मौजूदा हाल यह है कि अस्पताल में पिछले कई महीनों से मरीजों के लिए बेड नहीं है। यहां दाखिल होने के लिए भी काफी एप्रोच लगाना पड़ता है।
अस्पताल की कमाई देखकर नेता पिता-पुत्र पछता रहे हैं। ऐसे ही एक बिल्डर ने अपने कॉम्प्लेक्स को नर्सिंग होम के लिए किराए पर दे दिया। महादेव घाट रोड स्थित इस नर्सिंग होम के संचालक किराया नहीं दे पा रहे थे, तब बिल्डर ने पार्टनर बनने सहमति दे दी। कोरोना के मौसम में अब एकाएक खूब कमाई हो रही है। बिल्डिंग का धंधा अभी मंदा है, लेकिन नर्सिंग होम फल फूल रहा है।
सत्र के दौरान हम ज्यादा बेक्रिफ थे...
दिल्ली में आज से संसद का सत्र शुरू हो गया। कहा जा रहा है यह कोरोना महामारी के बीच पहली बार शुरू हुआ। हालांकि जब देश में केस आने शुरू हो गये थे तब भी सत्र कुछ दिन तक चलता रहा और उस वक्त सामाजिक दूरी, मास्क पहनने जैसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया था। सत्र का अचानक अवसान करना पड़ा था। अब जब कोरोना महामारी भयावह स्थिति की ओर आगे बढ़ रही है, देश चलाते रहने के लिये संसद को भी चलाना जरूरी समझा गया। इस बार सत्र में शनिवार- रविवार को अवकाश नहीं होगा और कामकाज सुबह 9 बजे से ही रोज शुरू हो जायेगा। बाकी कामकाज तो होंगे पर प्रश्नकाल को स्थगित रखने का निर्णय इस सत्र के लिये लिया गया है। विपक्ष इसकी आलोचना भी कर रहा है। जब संसद में सवाल नहीं होगा तो फिर सरकार की जवाबदेही कैसे तय होगी? बहरहाल, कोरोना से बचाव के लिये यह लोकसभा सचिवालय की ओर से एसओपी जारी किया गया है कि कोई भी व्यक्ति, अधिकारी यहां तक कि सांसद भी सदन में तब प्रवेश करेंगे जब वे कोविड-19 टेस्ट करा चुके हों और रिपोर्ट निगेटिव आई हो। चार सांसदों की रिपोर्ट पॉजिटिव भी आ गई। वे सत्र में अब भाग नहीं ले पायेंगे। याद होगा कि छत्तीसगढ़ विधानसभा सत्र शुरू करने के लिये पिछले माह इसी तरह का निर्णय लिया गया था, पर माननीयों ने इसका विरोध कर दिया। तब फिर तय हुआ कि सबकी सिर्फ थर्मल स्क्रीनिंग की जायेगी और जिनमें लक्षण दिखेगा उन्हें टेस्ट के लिये कहा जायेगा। संयोग से, विधानसभा सत्र के तुरंत बाद कई विधायक और उनके समर्थक कोरोना पॉजिटिव आ गये थे। सभा-सम्मेलन, जन्मदिन, उद्घाटन, शिलान्यास का मोह हमारे प्रतिनिधि छोड़ नहीं पा रहे हैं। जो नये केस आ रहे हैं उनमें कई जनप्रतिनिधि, विधायकों के नाम भी जुड़ते चले जा रहे हैं। कोरोना से बचना जरूरी है पर उसका सामना करने से बचना लोगों को खतरे में डाल रहा है। कोरोना किस रफ्तार से छत्तीसगढ़ में पैर पसार रहा है यह हम सब तो देख ही रहे हैं।
कोरोना तनाव और चिडिय़ाघर...
कोरोना के कारण उन्हें भी बड़ी मायूसी हो रही है जो वन-पर्यटन के लिये नहीं जा पा रहे हैं। हालांकि खुले घूमने वाले वन्य जीवों में तो कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं है पर जिन वाहनों से यात्रा की जायेगी, जिस रिसोर्ट में रुका जायेगा वहां बहुत सी कोरोना गाइडलाइन का पालन करना होगा। छत्तीसगढ़ में लगभग सभी रिसोर्ट अनलॉक के बाद खोल दिये गये हैं लेकिन उनमें भीड़ नहीं पहुंच रही है। रायपुर में नंदन वन और बिलासपुर में कानन पेंडारी लोगों का पसंदीदा चिडिय़ाघर है। रविवार को जब नंदन वन खोला गया तो बमुश्किल 100 पर्यटक पहुंचे। कानन पेंडारी की स्थिति कुछ अच्छी स्थिति रही जहां 500 लोगों ने पहले दिन लुत्फ उठाया। दूसरी तरफ, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका से जानवरों में कोरोना फैलने की जानकारी सामने आने के बाद हमारे यहां भी केन्द्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण ने देशभर के जू, मिनी जू के लिये एडवायजरी जारी की है। इसमें कहा गया है कि जानवरों के व्यवहार को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतें और सीसीटीवी पर उनकी सतत् निगरानी रखें। जब सिनेमाघर, शॉपिंग मॉल के एयरकंडीशन हाल में जाकर मूड बदलने से लोग बच रहे हों तो खुले चिडिय़ाघरों की सैर करना कोरोना घुटन के इस दौर में अच्छा विकल्प है, बशर्तें जानवरों को संक्रमण से बचाने के लिये जू प्रबंधक सतर्क रहे और पर्यटक भी सावधानी बरतें।
कितना? बता देना..
प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों कोरोना तेजी से फैल रहा है। कुछ जिलों में संक्रमण रोकथाम के लिए गंभीरता से काम हो रहे हैं, तो एक-दो जिलों में बड़े अफसर मलाई छानने में लग गए हैं। ऐसे ही एक जिले में रेत के अवैध परिवहन के नाम पर उगाही की चर्चा स्थानीय लोगों की जुबान पर है।
जिले के आला अफसर ने तो लेन-देन के लिए सारे पर्दे गिरा दिए। हुआ यूं कि जिला प्रशासन के निर्देश पर अवैध परिवहनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई और दस गाडिय़ों को जब्त कर लिया गया। परिवहन ठेकेदार भागे-भागे एक सीनियर विधायक के पास पहुंचे। विधायक महोदय ने आला अफसर को तत्काल फोन लगाकर प्रकरण को निपटाने के लिए कहा।
विधायक ने ठेकेदारों को अफसर से मिलने की सलाह देकर रवाना किया। दो ठेकेदार अफसर से मिलने पहुंच भी गए। मगर अफसर ने एक को ही अंदर बुलवाया। और बिना लाग-लपेट के गाड़ी छोडऩे के एवज में डिमांड कर दी। ठेकेदार ने थोड़ा संकोच करते हुए 50 हजार देने की पेशकश कर दी। इस पर अफसर ने परिवहन ठेकेदार को बुरी तरह फटकारा और यह तक कह दिया कि किसी पटवारी से बात नहीं कर रहे हो, सोच समझकर जवाब दो। बाद में अफसर ने अपना पर्सनल नंबर देकर कहा कि कितना दे सकते हो, बता देना। कोरोना महामारी के दौर में जिला प्रशासन के बड़े अफसर द्वारा जिस अंदाज में उगाही की जा रही है, इसकी काफी चर्चा है।
डेढ़ साल में किसान-गरीबों को 70 हजार करोड़ !
यह राशि सुनने में बहुत बड़ी लगती है और है भी। इतनी रकम राहत, अनुदान, बोनस, प्रोत्साहन के रूप में प्रदेश के किसानों, युवाओं, आदिवासियों, महिलाओं के खातों में पिछले डेढ़ साल के भीतर पहुंचाई जा चुकी है। इस बात का खुलासा खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज रेडियो कार्यक्रम लोकवाणी में किया। 70 हजार करोड़ का मतलब है राज्य के एक साल के बजट के बराबर की रकम। ऐसा तब हुआ है जब छत्तीसगढ़ कोरोना के प्रकोप से लगातार जूझ रहा है। आर्थिक गतिविधियों को बनाये रखना और साथ-साथ बीमारी पर काबू पाना बड़ी चुनौती है। बीते लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में राहुल गांधी ने सरकार बनने पर प्रत्येक परिवार के खाते में न्याय योजना के अंतर्गत 72 हजार रुपये देने का वादा किया था। कर्ज माफ कर, किसानों को केन्द्र की मनाही के बावजूद धान की सर्वाधिक कीमत देकर और अब तो गोबर खरीदी के जरिये भी ग्रामीणों के खाते में पैसा पहुंचाया रहा है। कांग्रेस मानती है कि गरीबों के हाथ में पैसा रहेगा तब लोग खर्च कर सकेंगे और उससे बाजार में पैसा आयेगा, उत्पादन और व्यापार को मजबूती मिलेगी। लोकवाणी में राजनीतिक बातें नहीं की जाती पर कुछ ऐसे विषयों पर, जिनका इस कोरोना काल में आम लोगों पर बेहद असर पड़ा है, केन्द्र सरकार की मुख्यमंत्री ने आलोचना की। उन्होंने जीडीपी के 24 फीसदी तक गिरने, 10 फीसदी विकास दर के लक्ष्य की जगह 3 प्रतिशत से भी नीचे चले जाने का जिक्र किया। अमेरिका का उदाहरण भी दिया कि कोरोना का संकट वहां भी है पर विकास दर 10 फीसदी ही नीचे गया। उन्होंने समावेशी विकास का मतलब बताया-सबको साथ लेकर किया जाने वाला विकास। यह बात सही है कि जो 70 हजार करोड़ रुपये गरीबों के हाथ में पहुंचे हैं उसे किस तरह से खर्च करेंगे उनकी अपनी समझ है पर यह तो देखा जाना ही चाहिये कि ये राशि अनुत्पादक कार्यों में तो खर्च नहीं की जा रही, क्योंकि लक्ष्य उनकी आर्थिक मदद ही नहीं, सामाजिक स्थिति को भी ऊपर उठाने का है। यह राशि सिर्फ जरूरतमंदों को ही मिल रही है या सक्षम लोगों को भी मिलती जा रही है, यह भी सवाल भी करदाता आम करदाताओं के मन में है।
हिन्दी दिवस और सरकारी अंग्रेजी स्कूल
कल हिन्दी दिवस है। बहुत से निजी स्कूलों में अंग्रेजी-हिन्दी दोनों ही माध्यमों में शिक्षा दी जाती है। अंग्रेजी में प्रवेश के लिये ज्यादा मारामारी रहती है। प्रदेश के सरकारी स्कूल से अभिभावकों का मोहभंग होता जा रहा था इसकी एक वजह यह भी मानी जा रही थी कि इनमें अंग्रेजी माध्यम ने पढ़ाई नहीं होती। सरकार ने इस शिक्षण सत्र से प्रदेश में 40 उत्कृष्ट अंग्रेजी स्कूल खोलने का निर्णय लिया। ज्यादातर स्कूलों का सेटअप तैयार है और जैसे ही कोरोना प्रकोप घटेगा उनमें नियमित कक्षायें शुरू हो जायेंगीं। सेटअप इस अवधारणा के साथ किया गया है कि वह निजी स्कूलों को टक्कर दे सके। रायपुर में शुरूआती दिनों में ही जिन अंग्रेजी स्कूलों में प्रवेश के लिये आवेदन मंगाये गये 17-18 सौ आवेदन पहुंच गये। उपलब्ध सीटों से कई गुना ज्यादा। प्रदेश में कमोबेश हर स्कूल में यही स्थिति है। इसके चलते प्रवेश देने के लिये 2-3 किलोमीटर का दायरा तो कहीं पहले आओ-पहले पाओ तो कहीं-कहीं लॉटरी सिस्टम का भी फार्मूला रखा गया है। वैसे एक मापदंड और रखा जाना चाहिये कि प्रथम श्रेणी व प्रशासनिक सेवा के बच्चों को जरूर दाखिला मिले। इससे जिस उत्कृष्ट स्कूल की कल्पना की गई है उसे बचाये रखने के लिये ये अधिकारी ध्यान देंगे। इधर, निजी स्कूलों में, खासकर बड़े ब्रांड वाले अंग्रेजी स्कूलों में हिन्दी बोलने पर जो सलूक बच्चों के साथ किया जाता है वह बहुत विवादों में रहता है। परिसर में बोलचाल भी उन्हें अंग्रेजी में ही करनी होती है, कई जगह तो फाइन करने की शिकायत भी मिलती रहती है। छत्तीसगढ़ का माहौल देखें तो स्कूल से निकलने के बाद बच्चों को व्यवहार में जगह-जगह हिन्दी से ही वास्ता पड़ता है। वे हिन्दी अंकों, शब्दों को तो समझ पाते नहीं, अंग्रेजी भी ठीक तरह से नहीं बोल पाते। उम्मीद की जानी चाहिये कि सरकारी स्कूलों में हिन्दी बोलने वालों को ऐसी हीनता से बचाकर रखा जायेगा।
मीटिंग में सिगरेट फूंकता शिक्षक
सरकारी स्कूल जब खुलेंगे तब किस तरह कोर्स पूरा होगा पता नहीं, पर ऑनलाइन पढ़ाई किस तरह से हो रही होगी इसका अंदाजा रायगढ़ में हुई घटना से लगा सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई कैसे हो, यह तय करने के लिये शिक्षा अधिकारी ने यहां बैठक बुलाई, सभी संकुल प्रमुखों की। बैठक के दौरान ही एक शिक्षक सिगरेट सुलगाकर पीने लगे। शिक्षा अधिकारी ने भी इस बदतमीजी को बर्दाश्त नहीं किया और मीटिंग का स्क्रीन शॉट लेकर कलेक्टर को भेज दिया। कलेक्टर ने उस शिक्षक पर तत्काल कार्रवाई की और निलम्बित कर दिया। यह सब तो शिक्षक तब कर रहे हैं जब मीटिंग उनके अधिकारी ले रहे हैं। ऐसे बेखौफ शिक्षक जब अपने विद्यार्थियों को पढ़ाते होंगे तब कितने अनुशासनहीन होते होंगे और बच्चे कितना मन लगाकर पढ़ पाते होंगे अंदाजा लगाया जा सकता है। ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा-स्मार्ट फोन नहीं होने के कारण, नेटवर्क नहीं मिलने के कारण, ज्यादातर गरीब बच्चों तक वैसे भी पहुंच नहीं पा रही है। कोरोना काल में पढ़ाई को जो नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई कई वर्षों तक हो पाना बहुत मुश्किल है। दूसरी ओर जो थोड़े प्रयास हो रहे हैं उन पर भी ऐसे शिक्षक पानी फेरने पर तुले हुए हैं।
ऐसे लॉकडाउन का क्या मतलब?
वैसे तो केन्द्र सरकार ने नई गाइडलाइन जारी कर लॉकडाउन लगाने से पहले अनुमति लेना जरूरी कर दिया है पर कोरोना का फैलाव कम करने के लिये कुछ जिला दंडाधिकारी नई तरकीबों से रास्ता निकाल रहे हैं। जैसे राजनांदगांव में एक सप्ताह का लॉकडाउन किया गया। इसके लिये पूरे शहर को ही कंटेनमेन्ट जोन घोषित कर दिया गया। हैरानी की बात है कि इस दौरान कोरोना का प्रसार कम नहीं हुआ बल्कि 850 से ज्यादा नये मरीज सामने आये। कुछ सैम्पल हो सकता है लॉकडाउन शुरू होने के पहले के भी हों फिर भी ये संख्या कम नहीं है। छत्तीसगढ़ के कई जिलों से रिपोर्ट सामने आई है कि लॉकडाउन के बावजूद वहां कोरोना के केस बढ़े। ऐसा क्यों हुआ? सीधी सी बात है, छूट का दुरुपयोग। जरूरी खरीदारी के लिये चार-पांच घंटों की जो छूट दी जाती है उस दौरान सडक़ों, दुकान, बाजारों में इतनी भीड़ पहुंच जाती है कि कोरोना रोकने के उपाय ध्वस्त हो जाते हैं। छूट के समय पर लोग इस तरह घरों से निकल रहे हैं मानो जेल से छूटे हों। प्रशासन और पुलिस के हाथ में नहीं कि सब निकलने वालों पर निगरानी रखी जा सके, यह तो लोगों को ही समझना पड़ेगा। बहरहाल, राजनांदगांव नगर निगम एरिया एक बार फिर पूरे एक सप्ताह के लिये कंटेनमेन्ट जोन घोषित है, देखें इस बार लोग कितने सावधान हैं।
नेता, अफसर सब उड़ा रहे कोरोना का मखौल
प्रदेश में कोरोना का संक्रमण जिस तेजी से हो रहा है उससे कहीं अधिक रफ्तार इससे होने वाली मौतों की है। 55 हजार से कुछ ज्यादा संक्रमित मरीजों में से करीब 26 हजार ठीक हो चुके, पर मौतों का आंकड़ा 500 पहुंच गया। शुरूआती दिनों में लोगों में जिस तरह सावधानी बरती, वह अब धीरे-धीरे गायब होती जा रही है। नेता अपने जन्मदिन पर केक काट रहे हैं, उद्घाटन और भूमिपूजन कर रहे हैं। दूसरी ओर अधिकारी ग्रुप फोटो पोस्ट कर बता रहे हैं कि वे भी कोरोना से लडऩे के मामले में बिल्कुल संजीदा नहीं। इनमें पुलिस विभाग के भी अधिकारी भी हैं जिनकी जवाबदारी ही लोगों से कोरोना से बचाव की गाइडलाइन का पालन कराने की है। सोशल मीडिया पर इन दिनों राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष की समर्थकों के साथ फोटो दिखाई दे रही है जिसमें किस तरह भीड़ के बीच उन्होंने अपना जन्मदिन मनाया। एक थाने के टीआई ने भी अपने करीबियों के साथ ग्रुप फोटो डाली। ऐसी स्थिति में आखिर क्या हो सकता है? लॉकडाउन के चार चरणों के बाद यह निष्कर्ष निकाला जा चुका है कि पूर्णबंदी कोरोना के प्रसार को कुछ दिनों के लिये रोक तो सकता है पर स्थायी समाधान तो अनलॉक में रहते हुए अनुशासित रहने से ही निकलेगा। कम से कम उन लोगों से तो एसओपी का पालन करना ही चाहिये, जिनकी गतिविधि से आम लोग सबक लेते हैं।
टैक्स में छूट का दायरा और बढ़ेगा?
लॉकडाउन उठा लिये जाने के बाद भी कई व्यवसाय ऐसे हैं जहां गतिविधियां अब सामान्य नहीं हो सकी हैं। रेस्टारेंट और बार काफी दिनों बाद बड़ी सावधानियों के बाद खोले जा चुके हैं। खुलने के बाद भी इनमें लोग जाने से कतरा रहे हैं। बसों को शुरू किया गया है पर लम्बी दूरी की कुछ बसों को छोड़ दें तो बाकी में सवारी नहीं मिल रही हैं। ऐसे में सरकार ने उन्हें टैक्स में बड़ी रियायत दी। अब सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स ओनर्स भी मांग कर रहे हैं कि उन्हें प्रापर्टी टैक्स और बिजली बिल में छूट मिले। ये दोनों अब तक शुरू नहीं हो पाये हैं। शुरू करने की अनुमति मिल भी गई तो छह-छह फीट की दूरी बनाकर फिल्म देखना एक अलग अनुभव होगा। देखना होगा कि सरकार इनकी मांग पर क्या रुख अपनाती है। एक दिक्कत सामाजिक भी है. लोग अकेले बैठकर फिल्म देखने तो जाते नहीं, और साथ जाकर अकेले बैठना बड़ा अजीब होगा. क्या कमाऊ कारोबार से उम्मीद की जा सकेगी कि वह नियम लागू करने की कोशिश करे और ग्राहक खोये? और क्या प्रेमी जोड़े से उम्मीद की जा सकेगी कि वह अलग-अलग बैठे?
इधर विवाह भवन, मैरिज पैलेस, मैरिज गार्डन भी इंतजार में हैं कि सरकार अतिथियों की संख्या बढ़ाने की मांग माने। इसमें फोटोग्राफर, टेंट, बिजली डेकोरेटर, केटरिंग सर्विस वाले भी शामिल होते हैं उनका भी धंधा चौपट पड़ा हुआ है। अगले दो महीनों में विवाह के बहुत से मुहूर्त भी हैं जिसके लिये वे बुकिंग करना चाहते हैं। उन्हें भी सरकार के नये सर्कुलर का इंतजार है।
हेल्थ अफसरों के स्कैंडल
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग में पिछले कुछ दिनों से एक के एक बाद दैहिक शोषण की शिकायतें सामने आ रही हैं। विभाग के दो बड़े अधिकारियों के खिलाफ स्वास्थ्य कर्मी और स्टूडेंट्स ने शिकायत दर्ज कराई है। चर्चा है कि ऐसे आरोपों में दो-तीन बड़े अधिकारी और निपटेंगे। उनके खिलाफ भी पुलिस व महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराने की तैयारी चल रही है। जांच के बाद इन मामलों में सच्चाई सामने आ पाएगी, लेकिन ऐसे संगीन मामलों में भी कार्रवाई सुस्त रफ्तार से चल रही है। शिकायत सामने आने के कई दिन बाद अधिकारियों के खिलाफ निलंबन जैसी कार्रवाई हो रही है, जबकि तमाम मामलों में पीडि़ता की ओर से शिकायत के बाद बयान की कार्रवाई भी चुकी है। कार्रवाई में देरी के कारण आरोपी अधिकारी अंडरग्राउंड हो रहे हैं और देर सबेर उन्हें जमानत मिल जाती है। अब जब स्वास्थ्य विभाग के एक-दो और प्रभावशाली लोगों के खिलाफ शिकायत की चर्चा है, तो स्वाभाविक है कि उन्हें भी इसकी जानकारी लग गई होगी और अपने बचाव में कानूनी तैयारी कर रहे होंगे। ऐसा नहीं है कि शिकायत करने वालों को सहयोग नहीं मिल रहा है, उन्हें बकायदा कार्रवाई का भरोसा दिलाकर सामने लाया जा रहा है, उसके बाद भी शिकायत मिलते ही कार्रवाई नहीं होना संदेह को जन्म दे रहा है।
स्वास्थ्य विभाग में बाकी दवाएं भले नकली या घटिया खरीदी जा रही हों, कम से कम सेक्स-वर्धक दवाएं अच्छी क्वालिटी की दिख रही हैं।
सरकार पर लोगों का भरोसा कुछ कम
छत्तीसगढ़ में कोरोना का हाल यह है कि दस-दस दिन बाद भी जांच रिपोर्ट नहीं आ रही हैं। आमतौर पर संक्रमण के दो-चार दिन बाद लोग जांच कराते हैं, और अगर दस दिन रिपोर्ट नहीं आई तो रिपोर्ट आने तक वे वैसे भी ठीक हो सकते हैं। जांच के लिए एम्स भेजी गई रिपोर्ट लेट होने की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि वहां लैब में कुछ कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव निकल गए हैं, और काम धीमा हो गया है।
लेकिन सरकार के काम, और सरकार की नीयत पर लोगों को हमेशा ही शक रहता है, जो कि कई बार जायज भी साबित होता है। अब लोगों को यह लगने लगा है कि सरकार जांच धीमी कर रही है ताकि लोग खुद ही ठीक होने लगें। अधिक बीमार होंगे तब तो अस्पताल पहुंच ही जाएंगे, लेकिन जांच रिपोर्ट देर होने से भी लोग बिना अस्पताल गए ठीक हो सकते हैं।
इसमें खतरा यही है कि लोग रिपोर्ट आने में देर होने से धीरे-धीरे करके इतने लापरवाह हो जाते हैं कि मानो रिपोर्ट न आने का मतलब पॉजिटिव न होना है। यह एक बड़ा खतरा छत्तीसगढ़ पर मंडरा रहा है जिसमें शुरू के महीनों में तो रफ्तार कम रही, लेकिन अब रफ्तार बढ़ी है। जो लोग दूसरे प्रदेशों का हालचाल पूछते हैं, उन्हें छत्तीसगढ़ में कम मौतों की खबर जानकर बड़ी हैरानी भी होती है। नागपुर से एक अखबारनवीस ने बताया कि वहां एक शहर में कल एक दिन में 52 कोरोना मौतें हुई हैं। उस हिसाब से पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश में कल चौबीस घंटों में कुल 13 मौतें बहुत कम लग रही हैं। लेकिन लोगों को सरकार के आंकड़ों पर पूरा भरोसा हो नहीं रहा है।
छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख चार्टर्ड एकाउंटेंट ओपी सिंघानिया ने कल और आज सुबह फिर स्वास्थ्य मंत्री के नाम से ट्वीट किया है कि उनका सैम्पल स्वास्थ्य विभाग 29 तारीख को लेकर एम्स भेजा था, और दस दिन बाद भी कोई जवाब नहीं मिल रहा है।
इस माह स्कूल कॉलेजों में रौनक लौट पायेगी?
केन्द्र सरकार ने अनलॉक की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए अब 9वीं से ऊपर के स्कूलों को खोलने की अनुमति दी है। 21 सितम्बर से स्कूल खोले जा सकते हैं। बच्चों को तो इसका कब से इंतजार था पर अभिभावकों के मन से डर अभी भागा नहीं है। इस उम्र में बच्चों से अधिक अनुशासन या पाबंदी की उम्मीद नहीं की जा सकती। पूरा दारोमदार स्कूल प्रबंधन पर ही होगा, वे शर्तें पूरी करें और करायें। बच्चे 6 फीट की दूरी पर बैठेंगे, 50 प्रतिशत स्टाफ से काम लेना होगा। ऑक्सीमीटर होगा, साफ-सफाई पर काफी ध्यान देना होगा। पालकों को अपनी व्यवस्था से संतुष्ट करना होगा। यहां तक तो ठीक पर इसके बाद घर से स्कूल आने-जाने के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग खत्म हुई तो? एक भी छात्र कोरोना संक्रमित हुआ तो पूरा स्कूल बंद करना पड़ सकता है।
जोखिम तो है पर इतने दिनों में यह बात सभी की समझ में आ गई है कि ऑनलाइन पढ़ाई स्थायी समाधान नहीं है। पालक फिर भी चिंतित तो हैं। दूसरी तरफ कॉलेजों में प्रवेश के लिये छात्रों में कोई उत्साह नहीं है। रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर, अटल बिहारी बाजपेयी विवि बिलासपुर, सहित प्रदेश के किसी भी यूनिवर्सिटी में खाली सीटें भर नहीं पाई हैं। अब दूसरी-तीसरी बार फिर प्रवेश की अंतिम बढ़ाई जा रही है। निजी स्कूलों की तरह कॉलेज, यूनिवर्सिटी के प्रबंधक बच्चों को धमका भी नहीं सकते कि प्रवेश, ट्यूशन की फीस नहीं देंगे तो एडमिशन रोक देंगे। कुछ संकायों को छोडक़र बाकी में कॉलेज के छात्र सेल्फ स्टडी पर ही निर्भर रहते हैं। इधर राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी कल से प्रवेश शुरू होने वाला है। कोरोना के पहले भी देखा गया, इनकी सीटें खाली रहने का सिलसिला बीते सालों से चला आ रहा है। इस बार क्या होगा, देखें। फिलहाल तो कई कॉलेजों में दाखिले के कागज लेने वाले लोग ही कोरोना पॉजिटिव होते जा रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ ने गाने रोकने कहा...
डब्ल्यूएचओ ने भारत में कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण इन गीतों को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने की सिफारिश की है।
1) बाहों में चले आ...
2) लग जा गले...
3) आज गालो, मुस्कुरा लो, महफिलें सजा लो...
4) जुम्मा चुम्मा दे दे...
5) ओ साथी चल मुझे लेके साथ...
6) मेरे हाथ में तेरा हाथ हो...
7) अभी ना जाओ छोडक़र...
8) तुमसे मिलके ऐसा लगा...
9) छू लेने दो नाजुक होठों को...
10) होठों से छू लो तुम...
11) सांसों को, सांसों से, मिलने दो जरा...
12) पास वो आने लगे जरा-जरा...
13) तुम पास आये, यू मुस्कुराये...
इन गीतों की सिफारिश की है...
1) जिस गली में तेरा घर न हो..
2) तेरी गलियों में ना रक्खेंगे कदम..
3) तेरी दुनिया से दूर, चले होके मजबूर..
4) मिलने से डरता है दिल...
5) परदेसियों से ना अंखियां मिलाना...
6) चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें...
7) कुछ ना कहो कुछ भी ना कहो...
8) मैं चली मैं चली देखो...
9) ये गलियां ये चौबारा यहाँ आना ना दोबारा
10) तेरी दुनिया से दूर, होके चले मजबूर ..
11) भुला देंगे तुमको सनम धीरे-धीरे..
12) अकेले हम अकेले तुम..
13) अकेले हैं तो क्या गम है..
(सोशल मीडिया)
पाकिस्तान तक से ‘हमदर्दी’
इधर छत्तीसगढ़ में बिलासपुर आईजी लगातार साईबर ठगी के खिलाफ जागरूकता का अभियान चला रहे हैं, और दूसरी तरफ अब ठग हैं कि वे झारखंड और बिहार के साथ-साथ पाकिस्तान तक से फोन करके ठग रहे हैं।
इस अखबार के संपादक को आज पाकिस्तान से एक फोन आया, और वहां भी कई दोस्त होने की वजह से बिना नंबर परखे उठा लिया। वहां से कोई आदमी बड़ी फिक्र से पूछ रहा था कि सरकार की तरफ से कोरोना पर मिलने वाली 20 हजार रूपए की मदद बैंक खाते में आ गई है, या नहीं? अखबारनवीस होने के नाते होना तो यह चाहिए था कि कुछ और देर उसका मजा लिया जाता, लेकिन काम अधिक होने से चूक हो गई, और फोन तुरंत काट दिया। अब ठगों को एक नया मुद्दा और मिल गया है, कोरोना पर सरकार की तरफ से किसी मुआवजे का लालच। लोग सावधान रहें, सरकार तो छह बरस पहले के 15 लाख रूपए भी अभी तक खाते में नहीं डाल पाई है जो कि ब्याज मिलाकर 25-30 लाख रूपए हो जाने थे, 20 हजार रूपए की बात केवल झांसा है।
कोरोना मौतों में शवों को जलाने का संकट
जब कोरोना से कोई मौत होती है तो उनके परिवार को प्रियजन को खो देने के अलावा यह दर्द भी सालता है कि अंतिम संस्कार रीति-रिवाज के अनुसार नहीं कर पाये। इधर, मौतों का आंकड़ा बढऩे के साथ एक नई समस्या शवों के जलाने, दफनाने की आ रही है। रायपुर, बिलासपुर, अम्बिकापुर, कोरबा, जांजगीर, राजनांदगांव आदि में वहां के स्थानीय लोग अपने इलाके के श्मशान गृहों का इस्तेमाल करने से रोक रहे हैं। कई जगह आंदोलन हुए, चक्काजाम भी किया गया। किसी अंतिम यात्रा में इस तरह का दृश्य अपेक्षित नहीं होता, पर कोरोना का भय लोगों में समाया हुआ है। लोग पीडि़त मरीजों को मृत्यु के बाद भी अपने आसपास नहीं देखना चाहते। कुछ जिलों में स्थानीय प्रशासन ने लोगों के विरोध को देखते हुए आश्वस्त किया है कि अब मृतक जिस क्षेत्र का निवासी होगा, उसी क्षेत्र में उसका शव दाह होगा। इस तरह का विरोध केवल छत्तीसगढ़ में नहीं हो रहा है, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में भी घटनायें हुई हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और उसके बाद कई राज्यों ने दिशानिर्देश जारी कर साफ किया है कि शवों को जलाने से किसी तरह का संक्रमण फैलने का कोई सबूत नहीं है। जलने के दौरान शरीर का तापमान 800 से 1,000 डिग्री सेल्सियस तक होता है। इस तापमान में कोरोना वायरस का शवों से निकलकर फैलना तार्किक नहीं है। दिशानिर्देशों में कहा गया है कि यदि उपचार और मौत के बाद शवों को दाहगृह पहुंचाते तक मानकों का पालन किया जाता है तो स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, परिवार के सदस्यों और शवों को जलाने वाले लोगों को किसी तरह का संक्रमण नहीं होगा। जिन समुदायों में शवों को दफनाने की परम्परा है वहां के लिये अलग गाइडलाइन है। प्लास्टिक में लिपटे शवों से देर बाद संक्रमण फैल सकता है। इसलिये दफनाने के बाद उसके वायुकणों को फैलने के लिये पर्याप्त खुली जगह हो और लोगों को भी दूरी बनाकर रखनी चाहिये। मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंस रखने की सलाह के अलावा ऐसे मामलों में भी लोगों के बीच वैज्ञानिक जागरूकता लाने की जरूरत है।
फिलहाल यह भी है कि अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले बहुत करीबी लोग भी पॉजिटिव हुए जा रहे हैं. कड़वी हकीकत यह है कि उन्हीं के अंतिम संस्कार में जाना चाहिए, जिनके साथ ऊपर भी जाना पड़े तो दिल-दिमाग तैयार रहें।
कई धन्ना सेठ ऐसे निपटे
छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण अपने शबाब पर है। कोरोना ने वीआईपी और माननीयों को भी अपनी चपेट में ले लिया। जबकि तमाम वीआईपी और माननीयों ने एतिहात बरतने में कोई कमी नहीं की। कुछ लोग तो ऐसे भी थे, जो सिर्फ जरुरी काम के सिलसिले में बाहर निकल रहे थे। उसके बाद भी उन्हें कोरोना ने धर लिया। ऐसे में सवाल तो उठते हैं कि कहां से संक्रमण आ गया। ऐसे ही राजधानी के धन्ना सेठ माननीय के बारे में चर्चा चली तो उनकी सावधानी के कई किस्से सामने आए। जब संक्रमण के बारे में चर्चा हुई तो अधिकांश बगले झांकने लगते थे, क्योंकि मामला ही ऐसा था कि कोई कुछ बोलना भी नहीं चाहते थे। जैसे-जैसे समय बीतते गया संक्रमण की परत भी खुलने लगी। धन्ना सेठ टाइप माननीयों के बारे में कहा जाता है कि लॉकडाउन के समय से ताश की फड लगती थी, जोकि अनलॉक तक जारी रही। इसी दौरान कई बड़े लोग इसके चपेट में आ गए, क्योंकि इस दौरान सोशल डिस्टेसिंग का तो पालन किया जा सकता है, लेकिन एक ही ताश को सभी खिलाड़ी बारी बारी से बांटते भी है और खेलते समय हाथ में लेते भी है। ऐसी चर्चा है कि ताश के शौकीनों को उनके शौक ने अस्पताल पहुंचा दिया।
मंत्री जी का फंडा
कोरोना काल में कई मंत्रियों ने अपने आपको आइसोलेट कर लिया था। स्वाभाविक है क्योंकि राजधानी में संक्रमण तेजी से फैल रहा है, लिहाजा सतर्कता तो बरतनी ही पड़ती है। इस दौरान सभी घर में गरम पानी, भाप, हल्दी दूध का सेवन कर अपने आप को बचाने में लगे थे। खास बात यह भी संक्रमण के कारण अस्पतालों में भी जगह नहीं थी, सभी जगह हाउसफुल की स्थिति थी। वे अपने समर्थकों और परिचितों को अस्पताल में जगह नहीं दिलवा पा रहे थे। ऐसे में एक मंत्री ने आइसोलेट होना ही बेहतर समझा, ताकि वे भी सुरक्षित रहें और लोग भी। फोन भी बात करते थे तो सबसे पहले यही बात करते थे कि अस्पताल में जगह नहीं है, इसलिए हल्दी दूध पीएं और च्यवनप्राश खाकर घर पर रहें। उनके इतना कहते ही कई लोग समस्या बताए बिना ही फोन रख देते थे।
खेतान के ट्वीट का राज क्या है?
राज्य के सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी चित्तरंजन खेतान मुख्य सचिव नहीं बन पाए, और अपने ही बैचमेट, लेकिन अपने से जूनियर आर.पी.मंडल के मातहत मंत्रालय में काम करने के बजाय उन्होंने राजस्व मंडल में काम करना शायद बेहतर समझा और वहां चले गए। लेकिन वे उन अफसरों में से हैं जो सोशल मीडिया पर सक्रिय भी रहते हैं, और महज अपनी तस्वीर पोस्ट करने तक सीमित नहीं रहते। उन्होंने अभी ट्विटर पर लिखा- कलेक्टर/डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट पर ही सारी जिम्मेदारी, और उसी से सबकी नाराजगी। वो बहुत अच्छा भी, और बहुत खराब भी। नेताओं के काम वो बनाए, और नेताओं की डांच वो खाए। क्या करें, क्या न करें बोल मेरे भाई?
आईएएस अफसर कहीं भी चले जाएं, उनकी कलेक्टरी की यादें उनके दिल के सबसे करीब रहती हैं। इन यादों से वे कभी नहीं उबर पाते। अभी वे छत्तीसगढ़ आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, और इस नाते अपने साथी आईएएस अफसरों के मुखिया भी हैं।
जो उन्होंने लिखा है कुछ उस किस्म की उनकी याद उनके रायपुर कलेक्टर रहते हुए रही होगी। उस वक्त जोगी मंत्रिमंडल में सत्यनारायण शर्मा मंत्री थे, और कलेक्टर के चेम्बर में खेतान से उनकी बड़ी गर्मागर्मी हुई थी। अफसरों का कहना है कि सत्यनारायण शर्मा ने बड़ी गालियां दी थीं। और इसी के चलते मुख्यमंत्री अजीत जोगी के सचिव सुनील कुमार ने मंत्रिमंडल की बैठकों में जाना छोड़ दिया था। उन्होंने जोगी से कहा था कि जिस कमरे में आप कलेक्टर बनकर बैठे थे, जिस कमरे में मैं कलेक्टर बनकर बैठा था, उस कमरे में आज के कलेक्टर से अगर कोई मंत्री गालियां देकर बात करे, तो वह व्यक्ति के साथ बदसलूकी नहीं है, वह कलेक्टर नाम की संस्था के साथ बदसलूकी है। उन्होंने कहा कि जब तक उनके विभाग से संबंधित कोई मामला मंत्रिमंडल में नहीं रहेगा, वे मुख्यमंत्री के सचिव के नाते मंत्रिमंडल में नहीं जाएंगे। और वे महीनों तक नहीं गए।
अब खेतान के ट्वीट पर ढेर सारे लोग प्रतिक्रिया कर रहे हैं, और एक टीवी चैनल ने भी उनसे इस पर प्रतिक्रिया मांगी। खेतान का इस बारे में कहना है कि उन्होंने नेताओं के काम की बात किसी निजी काम के लिए नहीं लिखी है, बल्कि सार्वजनिक कामों के संदर्भ में लिखी है।
हालांकि चित्तरंजन खेतान की बात में कहीं छत्तीसगढ़ का भी जिक्र नहीं है, और न ही राज्य में हाल फिलहाल किसी कलेक्टर के साथ कोई अप्रिय घटना हुई है, इसलिए यह बात किसी फलसफे की तरह अधिक लग रही है।
बिहार, झारखंड के ठगों से बचायेंगे साइबर मितान
कोरोना के कारण ऑनलाइन ट्रांजेक्शन बढ़ा है। लोग तरह-तरह के ऐप डाउनलोड कर पर्स की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी बीच ऑनलाइन ठगी के मामले भी बेतहाशा बढ़े हैं। अकेले बिलासपुर जिले में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद सवा करोड़ रुपये से अधिक लोगों के खाते से पार हो गये। ठगी तरीका बीते कुछ सालों से पारम्परिक है। अनजान नंबर से आया फोन आपको बतायेगा कि आपका एटीएम कार्ड ब्लॉक हो गया है। रिएक्टिवेट करने के लिये ओटीपी आयेगा, पासवर्ड मांग लिया जायेगा। लाखों रुपये का ईनाम जीतने का लालच दिया जायेगा और सेक्यूरिटी मनी जमा करने कहा जायेगा। अब तो आप यदि अनजान नंबर से आये एसएमएस का लिंक क्लिक कर दें तब भी रुपये साफ हो सकते हैं। कुछ शातिर ठग महंगी कूरियर सेवा के जरिये उम्दा लिफाफे में अंग्रेजी में चि_ी भेजकर ईनाम जीतने का झांसा दे रहे हैं।
गृहणियां और ग्रामीण तो झांसे में आ ही रहे हैं, अचरज की बात है कि पढ़े लिखे लोग, पुलिस अधिकारी, प्रशासनिक सेवा, प्रोफेसर, साइंटिस्ट जैसे पदों से रिटायर्ड लोग भी इनके शिकंजे में आ रहे हैं। ठगों का यह गिरोह बिहार और झारखंड में ज्यादा सक्रिय है। हाल में पकड़े गये बिहार के दो आरोपियों ने बताया कि वे अपने इलाके के थानेदार को 50 हजार रुपये महीना देते हैं ताकि दूसरे राज्य की पुलिस जांच में आये तो उन्हें सतर्क कर दे। यह सब देखते हुए बिलासपुर जिले में ऑनलाइन ठगी से बचाने के लिये मुहिम छेड़ी गई। थानेदारों को जिम्मा दिया कि वे 10 हजार साइबर मितान तैयार करें। ये मितान लोगों के बीच पहुंचकर बतायेंगे कि कैसे ठगी होती है और कैसे बचा जा सकता है।
अब प्रदेश के हर एक जिले में साइबर मितान बनाने की मुहिम शुरू होगी। बिलासपुर में एक से 8 सितम्बर तक यह अभियान चला। आज आखिरी दिन 10 लाख लोगों से संकल्प पत्र भरवाया जा रहा है जिसमें खास-खास बातें ये हैं- ओटीपी किसी से शेयर नहीं करेंगे, कार्ड, पिन की जानकारी फोन पर किसी को नहीं देंगे, ईनाम, लॉटरी, पेंशन, पीएफ, नौकरी के झांसे में आकर खाते की जानकारी किसी को नहीं देंगे, अनजान व्यक्ति से सोशल मीडिया पर सम्पर्क नहीं करेंगे, ऑनलाइन शॉपिंग में सावधानी बरतेंगे, गूगल सर्च से मिले कस्टमर केयर नंबर की जगह कंपनी की अधिकृत साइट पर जायेंगे। नौकरी या किसी दूसरे लालच में अनजान खाते में पैसे जमा नहीं करेंगे।
कोरोना के चलते ही इंडिया कैशलेस की तरफ बढ़ रहा है। यह काम नोटबंदी के बाद तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं हो पाया था। घर बैठे ऐसे लोग जिनकी नियमित आमदनी बनी हुई है इस समय जबरदस्त ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं। लोगों की गाढ़ी कमाई ऑनलाइन लेन-देन में लापरवाही के चलते पूरी की पूरी साफ हो जा रही है। ऐसे मामलों में अपराधी भी जल्दी पकड़ में नहीं आ रहे हैं, तब ठगी से पहले सतर्क हो जाना ही सही उपाय है। देखना होगा, जमीन पर पुलिस की यह कोशिश कितनी कारगर रहेगी, आने वाले दिनों में ऑनलाइन फ्रॉड कम होते हैं या नहीं।
फाइलों पर धूल की और परतें
अब तो सीएम ने भी कह दिया है कि अनावश्यक बैठकें न रखें। सरकारी दफ्तरों में तेजी से कोरोना फैल रहा है। अब ज्यादा से ज्यादा लोग आपस में ऑनलाइन सम्पर्क में रहेंगे। इससे उन अधिकारियों को बड़ी सहूलियत हुई हैं जो अक्सर मंत्रियों, नगर-निगम, जिला पंचायत की बैठकों से नदारत रहते थे। वीडियो कांफ्रेंस के दौरान ज्यादा जांच नहीं हो पाती कि कौन आया, कौन नहीं। रायपुर, बिलासपुर, अम्बिकापुर, रायगढ़ से ख़बरें आ रही हैं, सारे प्रमुख कार्यालयों में कोरोना के केस बढ़ रहे हैं। अब सारे दफ्तर बंद तो किये नहीं जा सकते। दफ्तर तो खुल रहे हैं पर अधिकारी, कर्मचारी कुर्सियों पर नहीं दिख रहे हैं। वे भी नहीं दिख रहे जो कोरोना संक्रमित स्टाफ के सम्पर्क में बिल्कुल नहीं आये। आम लोगों को इससे खासी दिक्कत हो रही है। जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, राजस्व विभाग के नामांतरण, फौती, मुआवजा के काम रुक से गये हैं। उम्मीद ही की जा सकती है कि सरकारी दफ्तरों में कोरोना का असर जल्द ही कुछ कम होगा और लोगों के जरूरी काम हो सकेंगे। अभी तो पहले से दबी फाइलों पर और मोटी धूल की परतें चढ़ती जा रही हैं।
कोरोना पर सरकारी क्षमता चुक गयी..
कोरोना पीडि़त ऐसे मरीज जो घर पर ही रहकर इलाज कराना चाहते हैं उनके लिये स्वास्थ्य विभाग ने एक नई विस्तृत गाइडलाइन जारी कर दी है। अब तीन बीएचके मकान होने की बाध्यता हटा दी गई है। उनके लिये अलग शौचालय होना है, घर के लोगों के भी सम्पर्क में नहीं आना है। घर के लोगों को भी बाहर किसी से सम्पर्क नहीं करना है। ड्राइवर, माली, गार्ड, नौकर नहीं आ सकेंगे। ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर रखकर नियमित जांच करनी होगी और हर दिन की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को देनी होगी।
अस्पतालों में जिस तरह से मरीजों की भीड़ उमड़ी है और इलाज के लिये टीम की कमी दिखाई देती है, उसे देखकर लोग घरों में ही इलाज को ठीक समझ रहे हैं। वे अपने सिरे पर गाइडलाइन की शर्तों का पालन कर भी लें पर दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी भी बहुत सी है। यानि जिनके पास अलग कमरा नहीं होगा, ऑक्सीजन लेवल खतरनाक स्थिति में पहुंचेगा तो उन्हें तुरंत कोविड सेंटर में भर्ती कराया जायेगा। डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी मरीजों के लगातार सम्पर्क में रहेंगे उन्हें दवा और सलाह देंगे। यह सुनने में बात अच्छी भले ही लग रही हो पर कोविड अस्पतालों में ही इतनी आपा-धापी मची है कि घरों में आइसोलेट मरीजों की सेहत के बारे में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जानने का वक्त नहीं मिल रहा है। कई मरीज बताते हैं वे आठ दस दिन आइसोलेट रहकर ठीक भी हो गये। अपने ही किसी परिचित डॉक्टर की सलाह पर दवा लेते रहे। इस बीच स्वास्थ्य विभाग से किसी ने उनसे सम्पर्क नहीं किया। देखना चाहिये कि क्या ऐसे मरीजों का संक्रमित होना और ठीक होना स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में चढ़ा है या नहीं।
ईज ऑफ डुइंग, टॉप टेन में छत्तीसगढ़
कोरोना महामारी के विषम दौर में भी छत्तीसगढ़ ने अपनी ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रैंकिंग में अपनी छठवीं रैकिंग को बचा लिया है। यह रैंकिंग केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने 12 बिन्दुओं के आधार पर जारी किया है जिससे यह निर्धारित होता है कि किस प्रदेश में निवेश करने के कितने अवसर हैं। नई सरकार के आने के बाद उद्योगपतियों, व्यवसायियों से मशविरा कर नई उद्योग नीति बनाई गई थी। यह एक बड़ी वजह रही कि देशभर में आर्थिक मंदी और कोरोना संकट के दौर में छत्तीसगढ़ अपनी पिछली रैंकिंग को बरकरार रख सका। हाल ही में जीडीपी की भयंकर गिरावट के आंकड़े सामने आये थे तो कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा, जिसका ग्राफ ऊपर बना रहा। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान विशेषकर धान के विपुल उत्पादन वाला राज्य है। कृषि क्षेत्र पर निवेश और उद्योगों की स्थापना पर तेजी से काम कर झारखंड, तेलंगाना जैसे राज्यों से अधिक बेहतर रैंकिग हासिल की जा सकती है, जो इस बार की रैंकिंग में टॉप 5 पर हैं।
निजी स्कूलों की फीस का पेंच
कोरोना महामारी ने शिक्षा व्यवस्था को दूरगामी नुकसान पहुंचाया है। प्रदेशभर के निजी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के लिये ट्यूशन फीस की वसूली एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। निजी स्कूलों को हाईकोर्ट ने केवल ट्यूशन फीस वसूलने की छूट दी है। साथ ही कुछ शर्तें भी जोड़ी हैं, जैसे कोई भी बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित नहीं किये जायेंगे। यदि माता-पिता फीस देने में सक्षम नहीं हैं तो वाजिब कारण बताकर राहत की मांग कर सकते हैं। स्कूलों को उन्हें छूट देनी होगी। इसके अलावा फीस में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। प्रबंधकों के लिये यह भी जरूरी है कि किसी स्टाफ को नौकरी से नहीं निकालेंगे, उनका वेतन नहीं घटायेंगे और नियमित भुगतान करेंगे।
अभिभावकों में एक तो हाईकोर्ट के आदेश से असंतोष है कि 100 फीसदी ट्यूशन फीस देने के लिये उन्हें बाध्य क्यों किया जा रहा है जबकि ऑनलाइन पढ़ाई और स्कूल जाकर की जाने वाली पढ़ाई में काफी अंतर है। ऑनलाइन पढ़ाई में टीचर्स के अलावा किसी संसाधन की जरूरत नहीं पड़ती। मसलन, स्कूलों में बिजली, पानी, साफ-सफाई पर खर्च, लैब, प्ले ग्राउन्ड की सुविधा भी वे नहीं ले रहे। दूसरी बात निजी स्कूलों को सिर्फ अनुमोदित फीस लेनी है। कई स्कूलों ने तो चार-पांच साल से फीस का अनुमोदन नहीं कराया है। स्कूल में पांच-छह घंटे की पढ़ाई होती है और ऑनलाइन सिर्फ डेढ़ से दो घंटे। पालकों को खुद ही मोबाइल फोन और डेटा पर खर्च करना पड़ रहा है। सुनाई तो यह भी दे रहा है कि स्कूल संचालक स्टाफ को नियमित वेतन देने के वादे से भी मुकर रहे हैं। कई टीचर्स की पूरी, तो कई की आधी सैलरी रोकी जा रही है। पहले से ही रजिस्टर में दर्ज राशि से कम वेतन उनके हाथ में आता रहा है। वे इस डर से कुछ नहीं कह पा रहे हैं कि जब स्कूल खुलेंगे तो उन्हें बाहर का रास्ता न दिखा दिया जाये। दूसरी तरफ निजी स्कूल संचालकों के संगठन ने बकायदा विज्ञापन जारी कर पालकों से अदालती आदेश के पालन में फीस जमा करने के लिये कहा है। पालक कह रहे हैं कि उन्हें चेतावनी मिल रही है कि यदि वे जमा नहीं करते तो ऑनलाइन क्लास का आईडी पासवर्ड बच्चों को नहीं दिया जायेगा। यदि सचमुच ऐसा किया गया तो बच्चों के लिये दुखद स्थिति होगी।
राघवन ने लिखी किताब, ...गैंग ऑफ फोर...
छत्तीसगढ़ के शुरुआती बरसों में जो अफसर शुरू से विवादों में रहे उनमें एक आईएएस डॉ. पी.राघवन भी थे। उन पर कई तरह के आरोप लगे, और जांच में उन्हें दोषी भी पाया गया, लेकिन फिर जाने कोई कार्रवाई हुई या नहीं हुई। उन्होंने 2004 से 2018 तक की छत्तीसगढ़ की नौकरशाही पर एक किताब लिखी है जिसमें दूसरे आईएएस अफसरों के बारे में बड़ी दिलचस्प बातें हैं।
कुछ बरस पहले छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने अपनी चुनाव घोषणा पत्र कमेटी बनाई थी तब रिटायर्ड पी.राघवन को उस कमेटी का सदस्य भी बनाया था। अब कांग्रेस की सरकार आ गई है, और राघवन की यह किताब भी आ गई है। इस किताब को सरसरी नजर से देखने पर ही लगता है कि साथी अफसरों के बारे में राघवन के बहुत ऊंचे विचार नहीं थे। और जिस तरह चीन के राजनीतिक इतिहास में वहां सत्तारूढ़ गैंग ऑफ फोर गिना जाता है, राघवन ने छत्तीसगढ़ की नौकरशाही के चार लोगों को गैंग ऑफ फोर लिखा है। और भी बहुत से अफसरों के बारे में इतना कुछ लिखा है कि लोगों की दिलचस्पी को इसे पढऩे में रहेगी ही। छत्तीसगढ़ के अफसरों को कम से कम कुछ घंटे टीवी पर रिया देखने, सुशांत के बारे में सुनने से बेहतर कुछ काम मिलेगा, अगर उनके पास इस किताब की कॉपी आ जाएगी।
कुंडली देखकर टिकट?
कोरोना की तेज रफ्तार के बाद भी मरवाही का चुनावी माहौल धीरे-धीरे गरमा रहा है। वैसे तो जोगी पार्टी ने अमित जोगी को प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर दी है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि अमित का चुनाव लडऩा खटाई में पड़ सकता है। कलेक्टर ने उनकी जाति प्रमाण पत्र की जांच के लिए कमेटी बना दी है, जिसकी सुनवाई चल रही है। ये अलग बात है कि अमित नोटिस के बावजूद अपना पक्ष रखने के लिए कमेटी के सामने हाजिर नहीं हुए हैं। उन्होंने कमेटी के गठन की प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े किए हैं।
अमित जहां फर्जी जाति प्रमाण पत्र प्रकरण में उलझे हुए हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस और भाजपा चुनाव को लेकर व्यूह रचना तैयार करने में जुटी हुई हैं। भाजपा के नेता फिलहाल ज्यादा सक्रिय नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस ने चुनाव तैयारियों के मामले में जोगी पार्टी और भाजपा को काफी पीछे छोड़ दिया है। सरकार के आधा दर्जन से अधिक मंत्री मरवाही हो आए हैं। टिकट के दावेदार अपने समर्थकों के साथ बायोडाटा लेकर राजीव भवन पहुंच रहे हैं।
मरवाही में चुनाव की कमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के करीबी जयसिंह अग्रवाल संभाल रहे हैं। मोटे तौर पर यह माना जा रहा है कि मरवाही में महंत की पसंद पर ही मुहर लगेगी। मरवाही विधानसभा वैसे भी श्रीमती ज्योत्स्ना महंत की संसदीय सीट का हिस्सा है, और इस लोकसभा सीट से चरणदास महंत खुद भी सांसद रह चुके हैं. सुनते हैं कि कांग्रेस में टिकट के दावेदारों के न सिर्फ जनसमर्थन का आंकलन किया जा रहा है बल्कि ज्योतिषी से कुछ की कुंडलियां भी दिखवाई गई हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि सारे पैमाने पर खरा उतरने वाले को ही टिकट मिलेगी।
आपदा को अवसर बनाने पर लगी रोक
छत्तीसगढ़ में जिस तेजी से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का उस तेजी से विस्तार नहीं हो पा रहा है। अप्रैल माह में यहां केस बढऩे शुरू हुए और उसके बाद अब तो हर दिन हज़ारों नये मरीज जुड़ रहे हैं। सरकारी अस्पतालों के अलावा सामुदायिक भवनों, छात्रावासों में भी अस्थायी अस्पताल शुरू किये गये हैं, स्टेडियम में भी। पर, अब निजी अस्पतालों की भी जरूरत आ पड़ी है। निजी अस्पताल पहले तो कोरोना की सेवायें देने के लिये राजी नहीं हो रहे थे, पर शासन की ओर से कड़ाई बरती गई तो धीरे-धीरे उनमें भी उपचार की सुविधा शुरू हो रही है। आनाकानी करने वाले कुछ अस्पतालों को तो लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी भी देनी पड़ी। कुछ प्राइवेट अस्पताल इस मुश्किल घड़ी को भी अवसर में बदलने से नहीं चूके। उन्होंने कोरोना मरीजों को उपचार देना पहले से ही शुरू कर दिया था। मगर ठीक होने के बाद जो बिल मरीज को मिलता था उससे हाथ-पैर फूलने लगे। कई मरीजों से पांच से सात लाख रूपये वसूल किये गये। जनप्रतिनिधियों से इसकी शिकायत हुई और मुख्यमंत्री तक भी बात पहुंची। कई गंभीर बीमारियों में इलाज की अधिकतम दर पहले से निर्धारित है। अब कोरोना के लिये भी ऐसा कर दिया गया है। निजी अस्पताल श्रेणी के अनुसार एक दिन का अधिकतम बिल 17-18 हजार रुपये का ही दे सकेंगे। बीते एक माह से कुछ निजी अस्पताल जो कोरोना के इलाज के नाम पर जबरन अनाप-शनाप बिल दे रहे थे, एक हद तक इसमें लगाम लगेगी। हालांकि आम लोगों के लिये यह खर्च भी उठाना आसान नहीं है। उन्हें 8-10 दिन भर्ती रहना पड़ सकता है। दूसरी बात, यह महामारी है, परिवार में एक को हुआ तो दूसरे, तीसरे तक भी फैल सकता है। फिर भी, अब निजी अस्पतालों का रुख करने से पहले मरीज मानसिक रूप से संभावित खर्च को लेकर सचेत तो रहेगा ही। हालांकि बहुत से डॉक्टरों की यह सलाह भी गौर करने लायक है कि यदि ऑक्सीजन लेवल ठीक है तो सबसे अच्छा होगा, होम आइसोलेशन पर रहकर कोरोना से छुटकारा पायें। कितने ही तथाकथित वीआईपी ऐसा करके ठीक हो चुके हैं।
अस्पताल-होटल भाई-भाई
लेकिन रायपुर में बड़े तो बड़े, छोटे अस्पतालों के भी मजे हो गए हैं। उन्होंने होटलों के साथ सौदा कर लिया है। तो मरीज बिना लक्षणों के हैं, उन्हें होटल में भर्ती कर लेते हैं। वहां डॉक्टर-नर्स ड्यूटी पर हैं। किसी की तबीयत बिगड़ी तो एम्बुलेंस से अस्पताल ले जाते हैं. होटल भी कुछ काम पाकर खुश हैं, लेकिन कर्मचारी भगवन भरोसे हैं, उनकी सेहत की फिक्र अस्पताल-दर्जे की तो हो नहीं रही।
मैसेंजर पर सम्हलकर ही लिखें...
सोशल मीडिया और वॉट्सऐप जैसे मैसेंजर की वजह से एक बार फिर हाथ से निकल गया तो निकल गया। उसे सुधारने की कोशिश करते रहें, तो भी कोई न कोई स्क्रीनशॉट सम्हालकर रख ही लेते हैं।
अब एक जिले में कलेक्टर किसी वॉट्सऐप ग्रुप में से, और किसी वजह से ग्रुप को छोड़ भी दिया था। उसके बाद लोगों ने उन्हें फिर जोड़ा। लेकिन किसी ने एक समाचार का लिंक इस ग्रुप में डाला जिसमें लिखा था कि कोरोना काल में ठोस निर्णय लेने में नाकामयाब जिला प्रशासन। इससे नाराज होकर कलेक्टर ने फिर से ग्रुप छोड़ दिया, लेकिन छोडऩे के पहले उन्होंने जो लिखा वह तो दूसरे लोगों ने स्क्रीन-सेव करके रख भी लिया था। अब यह जुबान सोशल मीडिया में बहस का सामान बनी हुई है। सोशल मीडिया दुधारी तलवार है, उससे लोग अपना काम भी कर सकते हैं, और बिगाड़ भी कर सकते हैं।
पुनिया की दिलचस्पी यूपी?
खबर है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया को बदला जा सकता है। मध्यप्रदेश और राजस्थान के प्रभारी पहले ही बदल चुके हैं। हालांकि दोनों राज्यों की स्थिति अलग रही हैं। मध्यप्रदेश के प्रभारी दीपक बावरिया और राजस्थान के प्रभारी अविनाश पाण्डेय को इसलिए हटाया गया कि वे वहां अंदरूनी खींचतान को निपटाने में विफल रहे। मध्यप्रदेश में तो सरकार ही चली गई, और राजस्थान में किसी तरह सरकार बच पाई।
छत्तीसगढ़ की स्थिति अलग है। यहां पुनिया सभी के साथ तालमेल बिठाकर चल रहे हैं। किसी को ज्यादा कुछ शिकायत भी नहीं है। मगर उनके हटने की चर्चा चल रही है, तो कुछ बात होगी। यह बात छनकर आ रही है कि पुनिया यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते हैं। यूपी में दो साल बाद विधानसभा के चुनाव हैं।
ये बात अलग है कि पुनिया के बेटे को लोकसभा और फिर विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन दोनों में कांग्रेस अपनी जमानत नहीं बचा पाई। अब ऐसे में पुनिया की अगुवाई में कांग्रेस विधानसभा का चुनाव लड़ेगी, इसकी संभावना कम दिख रही है लेकिन उन्हें वहां कोई अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। इन सब वजहों से पुनिया को छत्तीसगढ़ से बदले जाने की चर्चा जोर पकड़ रही है।
दुस्साहसी अफसर से खतरे
कोरोना संक्रमण के दौर में बचाव के तौर-तरीकों को नजर अंदाज करना एक सरकारी विभाग के अफसर-कर्मचारियों को भारी पड़ गया। हाल यह है कि विभाग के कुछ लोग कोरोना के चपेट में आ गए हैं। हुआ यूं कि विभाग के नौजवान आईएएस अपने मातहतों को कोरोना से नहीं डरने की सीख देते थे। वे खुद भी मास्क नहीं लगाते थे, और आम लोगों से मेल मुलाकात में सामाजिक दूरी का पालन नहीं करते थे। इसका प्रतिफल यह रहा कि अफसर अब कोरोना के चपेट में आ गए हैं।
न सिर्फ वे खुद बल्कि उनके विभाग के कुछ और कर्मचारी भी पॉजिटिव पाए गए हैं। लापरवाही का नुकसान तो होता ही है। कुछ ऐसा ही हाल सीएसआईडीसी दफ्तर का भी है। यहां एक-दो कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। मगर दफ्तर एक भी दिन बंद नहीं रहा। एक दुखद खबर आई है कि सीएसआईडीसी के एक इंजीनियर की कोरोना से मौत हो गई। मगर सीएसआईडीसी दफ्तर का हाल देखिए, न तो एक भी दिन दफ्तर बंद हुआ और दफ्तर को सेनेटाइज तक नहीं किया गया। ऐसे जोखिम उठाकर काम करने में कोरोना का फैलना स्वाभाविक है।
ऐसी ही बददिमागी पुलिस विभाग के कई दफ्तरों में देखने में आयी, लोग कोरोनाग्रस्त होते गए, और बड़े अफसर उनको काम पर भी बुलाते गए. छोटे कर्मचारी एक सीमा से अधिक तो विरोध कर भी नहीं पाते।
छत्तीसगढ़ की टीचर की उपलब्धि
छत्तीसगढ़ की लेक्चरर सपना सोनी ने कमाल किया। वे दुर्ग जिले के जेवरा सिरसा हायर सेकेन्डरी स्कूल में टीचर हैं। उन्हें आज शिक्षक दिवस के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। देशभर में शिक्षा में नवाचार का प्रयोग करने, लड़कियों और स्पेशल बच्चों की पढ़ाई के लिये अलग हटकर काम करने वाले देशभर के 47 शिक्षक-शिक्षिकाओं को आज पुरस्कृत किया गया। इनमें मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल से दो-दो उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों से तीन तथा कई अन्य छोटे राज्यों से भी एक से अधिक शिक्षकों का चयन किया गया है, पर छत्तीसगढ़ से अकेली इस व्याख्याता का चयन किया गया। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां गरीबों और आदिवासियों की एक बड़ी संख्या है शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की बहुत जरूरत है, संभावनाएं हैं। दूरस्थ अंचलों में ऐसे काम हो भी रहे हैं। उन्हें अगर राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार न भी मिल पाया हो तो कम से कम राज्य स्तर पर ही पुरस्कृत किया जाना चाहिये। कोरोना की वजह से वैसे भी ग्रामीण व दूरस्थ अंचलों में शिक्षा पहुंचाना बेहद चुनौतियों से भरा है। बहुत से लोग अच्छा काम कर रहे हैं। उन्हें इस दिन याद किया जाना चाहिये।
पुलिस विभाग का व्हाट्सएप ग्रुप
पुलिस महानिदेशक ने प्रदेश के सभी थाना प्रभारियों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाने की बात कही है। इससे वे स्वयं भी जुड़े रहेंगे। प्रदेश भर में 450 से अधिक थाने हैं। इसका मकसद किसी मामले में जांच या कार्रवाई ढीली हो तो पीएचक्यू से सीधी कार्रवाई होगी और जो लोग अच्छा काम करेंगे उनकी प्रशंसा भी इसी ग्रुप में होगी। वैसे हर जिले में पुलिस कप्तान अपने थानेदारों के कामकाज पर नजर रखते हैं। अमूमन उनका वाट्सअप ग्रुप भी बना हुआ है। पुलिस मुख्यालय के इस नये वाट्सअप गु्रप को लेकर थानेदारों से ज्यादा उनके ऊपर बैठे जिला स्तर के अफसरों को है क्योंकि यदि कोई गड़बड़ी और ढिलाई दिखाई देती है तो सीधे जिले के कप्तान को ही एक्शन मोड में आने के लिये कहा जायेगा। पुलिस के साथ जनता का समन्वय अच्छा हो, बर्ताव मानवीय संवेदना से भरा हो, अपराधों की जांच में तेजी आये, पीडि़तों की एफआईआर लिखी जाये ऐसे कुछ आदर्श तौर तरीकों को बेहतर बनाने के लिये समय-समय पर ऐसी कोशिशें होती रही है। नये व्हाट्सएप गु्रप को भी इसी कड़ी में एक कोशिश कही जा सकती है। इसका आम लोगों के बीच पुलिस की छवि कितनी सुधरेगी यह भविष्य में पता चलेगा।
नान घोटाले में कितनी समानता
मध्यप्रदेश में नान घोटाला सामने आया है, बिल्कुल छत्तीसगढ़ की तरह। वहां मंडला और बालाघाट जिलों में नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों से मिलीभगत कर राइस मिलर्स ने मिलिंग के लिये मिला अच्छा चावल गायब कर दिया और जानवरों को खिलाया जाने वाला चावल जमा कर दिया। करीब 17 लाख टन चावल राशन दुकानों में गरीबों को बांटने के लिये भेज दिया गया। अभी मध्यप्रदेश में उप-चुनाव होने हैं। सरकार को ईमानदार तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त दिखना ऐसे मौके पर बहुत जरूरी है। राइस मिल सील कर दिये गये हैं, मालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। नान प्रबंधक और क्वालिटी कंट्रोल अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। एकबारगी सुनने में लगता है कि सब निपट जायेंगे। जो ऐसा सोचते हैं उन्हें छत्तीसगढ़ में हुए इसी नान के 36 हजार करोड़ के घोटाले को जरूर याद करना चाहिये। शुरुआती दौर में ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई थी, लगा था अब तो कई नप जायेंगे। कितनी टीमें बनीं, बोरियों दस्तावेज, डायरियां जब्त हुईं। एक दहशत सी थी कि जांच एजेंसी किसी भी लपेटे में ले सकती है। फरवरी 2015 का मामला है। पांच साल होने जा रहे हैं। मामला कानूनी दांव-पेच और अदालतों के बीच झूल रहा है। लोगों ने अब पूछना बंद कर दिया कि दोषी कोई है? किसी को सजा होगी भी या नहीं? मध्यप्रदेश में जिन अधिकारियों पर शिकंजा कसा है क्या पता कल वे पाक-साफ दिखाई देने लगें। क्या पता छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार की तरह विधानसभा में ही तरह दावा किया जायेगा कि दरअसल, कोई घोटाला तो हुआ ही नहीं था। वक्त बतायेगा।
इस बार रावण को ही कहा जायेगा...!
कोविड-19 महामारी ने सभी तीज-त्यौहारों पर भी ग्रहण लगा दिया है। गणेश चतुर्थी फीकी बीती। अप्रैल की नवरात्रि फीकी रही। गणेश चतुर्थी पर भी प्रतिमा स्थापित करने के लिये शर्तें इतनी थीं कि ज्यादातर मोहल्ला समितियों ने इससे तौबा कर रखी थी। लेकिन दुर्गा पूजा भी अब आने वाली है। हावड़ा रूट पर पडऩे वाले सभी शहरों में यह त्यौहार हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। आयोजन समितियों के पदाधिकारी जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से पूछ रहे हैं कि उत्सव मनाने की अनुमति मिलेगी या नहीं? हालांकि पर्व आने में अभी एक माह से ज्यादा वक्त है पर जिस रफ्तार से कोरोना महामारी पूरे प्रदेश में पैर पसार रही है, उससे नहीं लगता कि अक्टूबर माह में स्थिति बहुत संभल जायेगी। दुर्गोत्सव और गणेश चतुर्थी की भव्यता में बड़ा फर्क होता है। इसमें बड़े-बड़े सहयोग मिलते हैं, बड़े पंडाल तैयार किये जाते हैं। बहुत दिन पहले से ही घूमना शुरू करना पड़ता है। इस मौके को लेकर आयोजकों की चिंता इसीलिये जायज है। फिर, इसके तुरंत बाद दशहरा भी है। ऑनलाइन रावण-दहन का कोई तरीका तो हो नहीं सकता। दोनों ही मौकों पर जुटने वाली भीड़ प्रशासन की चिंता बढ़ा सकती है। निर्णय तो समझदारी के साथ ही लेना होगा। वाट्सएप्प वायरल पर कोई क्यों जाये, वहां तो यह भी कहा जा रहा है कि दशहरे में इस बार नेताओं को नहीं बुलाया जाये, रावण को खुदकुशी के लिये कहा जाये।
पितरों से लेकर मरवाही तक की रोक...
निगम-मंडलों की दूसरी सूची अटक गई है। चूंकि पितृपक्ष शुरू हो गया है, ऐसे मौके पर कोई शुभ कार्य या नई नियुक्ति नहीं करने की पुरानी परम्परा है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इस बार भी पुरानी परम्पराओं का निर्वाह किया जाएगा और पितृपक्ष खत्म होने तक, अगले 15 दिन कोई सूची जारी नहीं होगी।
कहा जा रहा है कि सूची के नामों को लेकर पहले ही सहमति बन गई थी और विधानसभा का सत्र निपटने के बाद जारी करने की उम्मीद थी। मगर सीएम और कुछ मंत्रियों के क्वॉरंटीन होने के कारण सूची अटल गई है। हल्ला यह भी है कि सूची मरवाही चुनाव के बाद ही जारी होगी। वजह यह है कि कुछ नामों को लेकर पार्टी के अंदरखाने में विवाद है, और सीएम भी इससे सहमत नहीं हैं। मरवाही के नतीजे आने के बाद ही सूची जारी होगी। स्वाभाविक है तब तक दावेदारों में बेचैनी रहेगी।
पबजी के बगैर ऑनलाइन पढ़ाई
स्कूल-कॉलेजों में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने के कारण माता-पिता बच्चों को मोबाइल फोन से दूर नहीं रख पा रहे हैं। समस्या यह थी कि ऑनलाइन क्लास कब खत्म हो गई और बच्चे कब पबजी खेलने लग गये पता नहीं चलता था। अब जब पबजी पर बैन लग गया तो बच्चों के पास क्या रह गया? पबजी को बंद किया जाना कितना बड़ा मुद्दा है यह अखबारों की हेडलाइन को देखकर समझा जा सकता है। पबजी की लत के चलते देशभर में अनेक आत्मघाती और हिंसक घटनायें होती रही हैं। इसे चीन के साथ सीमा पर तनाव से जोड़े बगैर भी बंद किया जा सकता था। सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंता, बच्चों के अवसादग्रस्त और आक्रामक होने की बातें पहले से आ रही थीं। वैसे भी यह कोरिया का ऐप है हालांकि इसमें चीनी निवेश है। कई लोग जिन्हें स्ट्राइक शब्द पसंद है वे इसे चीन के खिलाफ ‘डिजिटल स्ट्राइक’ बताने लग गये हैं। बच्चे इसी बहाने चीन की करतूत से परिचित हो गये हैं और पालक खुश कि बच्चों में इसकी लत छूटेगी। बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई को ज्यादा संजीदगी से लेंगे और मोबाइल फोन से मनोरंजन और ज्ञान के नये रास्ते निकालेंगे। लेकिन यह समझना बाकी है कि चीनी एप्प काम करना तुरंत बंद कर देंगे, या अपडेट होना बंद हो जायेगा, मौजूदा एप्प का करते रहेंगे? कई चीनी एप्प जो पहले से फ़ोन पर थे वे अब भी काम कर रहे हैं।
जेईई एग्जाम में अच्छी हाजिरी के मायने
रायपुर में जेईई एग्जाम के दूसरे दिन 84 प्रतिशत परीक्षार्थी शामिल हुए। पहले दिन 55-60 प्रतिशत प्रतियोगी शामिल हुए थे। कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए अनेक लोगों ने यह एग्जाम कम से कम एक माह और आगे बढ़ाने की मांग की थी पर सुप्रीम कोर्ट के बाद केन्द्र सरकार के हाथ में ही इसे टालना संभव था। खतरों के बीच परीक्षा देने विद्यार्थियों का पहुंचना बताता है कि उन्हें भविष्य और अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने की कितनी फिक्र है। परीक्षा केन्द्रों में तो तमाम ऐहतियात बरते भी जा रहे हैं पर प्रतिभागी ट्रेन, बसों का लॉकडाउन जारी रहने के कारण घर से परीक्षा केन्द्र तक कैसे पहुंचेंगे और कैसे वापस लौटेंगे यह बड़ी समस्या थी। राज्य सरकार ने यह समय व्यवस्था कर दी। इसके चलते बस्तर और बलरामपुर जैसे सुदूर क्षेत्रों से परीक्षार्थी एग्ज़ाम देने केन्द्रों तक पहुंच सके। इनकी मांग पर आवास और भोजन की सुविधा दी जा रही है। छत्तीसगढ़ सरकार के इस फैसले के बाद बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश आदि राज्यों से भी इसी तरह की सुविधा देने की खबर आई है। जेईई और नीट में तो हर बार कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है, पर इस बार कोरोना ने इसे थोड़ा आसान कर दिया। इसलिये नहीं कि सरल प्रश्न पूछे जा रहे हैं बल्कि इसलिये कि पिछली बार के 2.40 लाख के मुकाबले इस बार 2 लाख ही परीक्षा दे रहे हैं। इस बार बहुत से परीक्षार्थी अनुपस्थित भी हैं।
बहुत बड़े अफसर दिक्कत में...
खबर है कि राज्य के एक बहुत बड़े अफसर जल्द ही इनकम टैक्स के घेरे में आ सकते हैं। अफसर की संपत्ति का ब्यौरा लिया जा रहा है। चर्चा है कि अफसर के एक रिश्तेदार को नोटिस भी थमाया गया है। आम तौर पर अफसर जिस विभाग के हैं, वहां कभी इनकम टैक्स की नजर नहीं पड़ी। क्योंकि इनकम टैक्स और संबंधित विभाग का चोली-दामन का साथ रहता है। विपरीत हालात में इनकम टैक्स विभाग को अफसर के विभाग की जरूरत पड़ती ही है। मगर अब हालात बदल गए हैं। हल्ला है कि अगले तीन-चार महीनों में इनकम टैक्स कुछ बड़ा कर सकता है।
इस अफसर की बेनामी जायदाद की जानकारी जुटती चली जा रही है, और राज्य सरकार के कई लोग भी जानकारी में इजाफा करते जा रहे हैं. देखना है कि इनकम टैक्स विभाग कोई कार्रवाई करता है, अथवा जवाब से संतुष्ट हो जायेगा।
मरवाही में सभा-सम्मेलन और कोरोना
कोरोना का जिन जिलों में कम प्रसार हुआ है उनमें नया बना जिला गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही शामिल है। बीच-बीच में यहां एक्टिव केस की संख्या शून्य भी हो जाती है। इसके बावजूद कि लगातार सभी राजनैतिक दल मरवाही चुनाव को लेकर क्षेत्र में लगातार दौरे कर रहे हैं और सभा-सम्मेलन कर रहे हैं। खासकर जोगी के निधन के बाद होने जा रहे इस पहले चुनाव को लेकर कांग्रेस बड़ी मेहनत कर रही है। तमाम मंत्री, सांसद, संगठन प्रमुख, राज्य और जिला स्तर के पदाधिकारी यहां दौरे पर होते हैं। चाय चौपाल, पंचायती सम्मेलन जैसे आयोजन हो रहे हैं। हितग्राहियों को राशि और सामान बांटे जा रहे हैं। इन जमावड़ों के बावजूद यदि कोरोना यहां किसी हद तक नियंत्रण में है तो यह प्रशासन के लिये राहत की ही बात है, पर यदि यहां कोरोना के मामले बढ़े तो खासी दिक्कत हो जायेगी। यह सुदूर आदिवासी इलाका है। स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है। आवागमन की भी दिक्कतें हैं। गंभीर मरीजों को अब भी 150 किलोमीटर सिम्स चिकित्सालय बिलासपुर लाना पड़ता है। अच्छा हो कि स्थिति बिगड़े इसके लिये प्रशासन सजग रहे। पर खुद मंत्री और सत्तारूढ़ दल के लोग भीड़ जमा कर रहे हों तो अधिकारी भी क्या करें, हाथ बंधे हुए हैं।
अचानकमार के शिकारी
‘भोले-भाले’ ग्रामीणों के साथ बुरा बर्ताव करने की शिकायत आने पर अचानकमार टाइगर रिजर्व के एक रेंजर को निलम्बित करने की घोषणा विधानसभा में की गई। वन विभाग का कहना था कि कैमरे में सुरही के ग्रामीण ट्रैप हुए थे, जो तीर धनुष लेकर जंगल जा रहे थे। ग्रामीणों का कहना था कि वे तो हमेशा तीर धनुष लेकर चलते हैं। रेंजर संदीप सिंह के खिलाफ शिकायत थी कि उन्होंने ग्रामीणों से मारपीट की, जबकि वन विभाग के कर्मचारी कहते हैं कि ग्रामीणों ने रेंजर से उठक बैठक लगवाई और उन पर हमला किया, जिसके कारण अस्पताल में उन्हें भर्ती भी होना पड़ा। सरकार ने जन प्रतिनिधि की बात मानी। रेंजर के निलम्बन के बाद वन विभाग के कर्मचारी, अधिकारी दुखी तो हैं, क्योंकि यहां जब भी अवैध शिकार, अवैध कटाई की वे कार्रवाई करते हैं कोई न कोई बखेड़ा खड़ा हो जाता है। राजनैतिक समर्थन तो उन्हें बिल्कुल नहीं मिलता। रेंजर के निलम्बन के बाद उनका हौसला टूट सकता था पर ऐसा हुआ नहीं। दो दिन बाद ही उन्होंने उसी सुरही रेंज में अवैध शिकार का मामला पकड़ लिया। हथियार और मांस के साथ कुछ शिकारी गिरफ्तार कर लिये गये। अब भी कुछ लोग फरार हैं। जंगल और वन्य प्राणियों को बचाने के लिये दबाव के बीच अगर कुछ लोग ईमानदारी से काम कर रहे हैं तो उन्हें साथ दिया जाना चाहिये।
लता की अधिकारिक जीवनी का अनुवाद किया राज्य के पत्रकार ने
विख्यात गायिका लता मंगेशकर की जिंदगी पर लिखी गई अंग्रेजी की पहली किताब जिसे उनकी खुद की मंजूरी थी, उसके हिन्दी अनुवाद का काम छत्तीसगढ़ के पत्रकार डी.श्यामकुमार ने किया है। भारतरत्न लता मंगेशकर पर यह किताब ब्रिटेन में बसीं एक जानीमानी पत्रकार और डाक्यूमेंट्री मेकर नसरीन मुन्नी कबीर ने लता मंगेशकर की सहमति से लिखी थी- लता इन हर ओन वॉइस। यह किताब नसरीन के दो बरस के दौर में कई बार लता मंगेशकर से की गई सीधी बातचीत पर आधारित है।
अब डी.श्यामकुमार ने इस किताब का हिन्दी अनुवाद-लता मंगेशकर अपने खुद के शब्दों में, किया है। उनका कहना है कि जब इस काम के लिए उन्हें चुना गया तो उन्हें एकबारगी भरोसा नहीं हुआ, और उन्हें कुछ संदेह भी था कि क्या वे ऐसी महत्वपूर्ण किताब का हिन्दी रूपांतरण अच्छे से कर पाएंगे। अब यह किताब प्रकाशित होकर आ चुकी है, और छत्तीसगढ़ की एक पत्रकार-अनुवादक के लिए सचमुच ही यह बड़ी कामयाबी की बात है। किताब में दी गई जानकारी के मुताबिक डी.श्यामकुमार पिछले 23 बरस से पत्रकारिता और लेखन में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में सक्रिय हैं। इन्हें राज्य शासन का पत्रकारिता अलंकरण भी मिल चुका है, और दूसरे राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
रेप के फरार आरोपी पर सरकार मेहरबान
महिला स्वास्थ्य कर्मी से रेप के आरोपी डॉ. एसएल आदिले पर स्वास्थ्य महकमा मेहरबान है। रेप का प्रकरण दर्ज होने के बाद जिस अंदाज में डॉ. आदिले के खिलाफ कार्रवाई का हल्ला मचा था, उसकी असलियत अब सामने आ रही है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने तो जोर-शोर से डॉ. आदिले को पद से हटाने का ऐलान किया। वे यही नहीं रूके, उन्होंने मीडिया से यहां तक कहा कि डॉ. आदिले के खिलाफ कई गंभीर मामले हैं, जिसकी जांच चल रही है।
दिलचस्प बात यह है कि डॉ. आदिले को हटाने का आदेश ही नहींं निकला है। विभाग ने सतर्कता बरतते हुए यह आदेश निकाला कि डीएमई की अनुपस्थिति में अतिरिक्त प्रभार रायपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. विष्णुदत्त को सौंपा गया है। रेप के आरोपी पर विभागीय स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय ने सरकार के जिम्मेदार लोगों से पूछताछ की।
सुनते हैं कि उन्होंने सीएस को फोन लगा कार्रवाई को लेकर जानकारी चाही, तो सीएस ने उन्हें टका सा जवाब दे दिया कि कार्रवाई की अनुशंसा कर फाइल भेज दी गई है। स्वास्थ्य विभाग की एसीएस रेणु पिल्ले का जवाब था कि कार्रवाई प्रक्रियाधीन है, इससे ज्यादा वे कुछ नहीं कह सकती हैं। रेणु पिल्ले की साख बहुत अच्छी है और उन्हें बेहद कर्मठ और ईमानदार अफसर माना जाता है। डॉ. आदिले की संविदा अवधि 30 सितंबर को खत्म हो रही है। और चर्चा है कि संविदा अवधि पूरी होने से पहले प्रभावशाली लोग उन्हें हटाने देना नहीं चाहते हैं। यही वजह है कि डॉ. आदिले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
शैलेश पांडेय से कौन-कौन मिले?
छत्तीसगढ़ में राजधानी के बाद कोरोना पीडि़तों की संख्या सबसे ज्यादा बिलासपुर में हैं। एक जज के अलावा महापौर, नगर निगम सभापति, कलेक्टर, नगर निगम आयुक्त के बाद अब तो शहर विधायक शैलेश पांडेय भी इसकी चपेट में आ गये। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि खतरा उनको ज्यादा है जो अपनी ड्यूटी के कारण भीड़ में होते हैं। बाकी सब नेता तो शहर में ही रहे और कोरोना संक्रमित हो गए। विधायक का कहना है कि उनको ये वायरस विधानसभा में चिपका होगा। उन्होंने ये भी कहा है कि जो लोग उनके सम्पर्क में आये हैं वे टेस्ट करा लें। क्या मंत्री, विधायक जिनसे वे रायपुर में चार दिन रहकर मिले उनकी बात सुन रहे हैं?
नामकरण में पति-पत्नी में एका नहीं
बिलासपुर से हवाई सेवा शुरू होने में अभी देर है। बस नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी के एक ट्वीट के बाद सबमें श्रेय लेने की होड़ लग गई है। अभी एयरपोर्ट का काम ना केवल अधूरा है बल्कि फंड नहीं आने के कारण रुका हुआ भी है। यदि सचमुच प्लान के मुताबिक हवाई सेवा दो माह बाद शुरू हो गई तो इसका श्रेय आम लोगों को ही जाएगा जो हाईकोर्ट से लेकर सडक तक लडाई लड़ते आ रहे हैं।
बिलासपुर में अब कुछ दिनों से एक नई बहस शुरू हो गई है कि एअरपोर्ट किसके नाम से हो। प्रसिद्ध रतनपुर महामाया मंदिर की ट्रस्ट कमेटी ने महामाया का नाम सुझाते हुए सीएम को पत्र लिखा है। इधर जिले के दोनों कांग्रेस विधायक विधानसभा में अशासकीय संकल्प पेश कर चुके हैं कि इसे बिलासा का नाम दिया जाये। दोनों ही नाम बिलासपुर की पहचान हैं, ऐसे में इनमें से कोई एक नाम तय करना मुश्किल है। दिलचस्प यह भी है कि महमाया ट्रस्ट कमेटी के चेयरमैन विधायक रश्मि सिंह के पति हैं। दौनों का प्रस्ताव अलग-अलग है। वैसे आम लोग इस बात से हैरान हैं कि बिलासपुर से आखिर भोपाल के लिए फ्लाइट क्यों शुरूकी जा रही है, जबकि मांग तो दूसरे बड़े शहरों के लिए थी।
अस्पताल में उम्मीद से...
प्रदेश के कई अफसर-नेता कोरोना संक्रमित हो गए हैं। सभी का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है। एम्स में तो न सिर्फ रायपुर बल्कि दूसरे जिले के कई नेता एडमिट हैं। इन सभी की हालत भी ठीक है। कांग्रेस के नेताओं में दौलत रोहरा, शारिक रईस खान, शांतनु और एनएसयूआई अध्यक्ष आकाश शर्मा सहित कई अन्य का इलाज चल रहा है। कांग्रेस के नेता आपस में एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं और मोबाइल से घंटों एक-दूसरे से बतियाते हैं। अब निगम-मंडलों की दूसरी सूची जारी होनी है। ऐसे में सूची के नामों को लेकर ही ज्यादा चर्चा होती है। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी नेता निगम-मंडल के दावेदार भी हैं। खुद सीएम और अन्य बड़े नेता भी उनका कुशलक्षेम पूछ चुके हैं। अस्पताल से तो देर सवेर छुट्टी हो जाएगी, ऐसे में आगे को लेकर सोचना गलत भी नहीं है।
महिला अफसर हटाने में लगे विधायक...
विपक्ष के एक प्रमुख विधायक अपने इलाके की महिला डीएफओ को हटाने के अभियान में जुटे हैं। डीएफओ की छवि साफ-सुथरी और तेजतर्रार अफसर की है। वे छत्तीसगढिय़ा भी हैं। वे बिना किसी दबाव के अपने इलाके में अवैध गतिविधियों के खिलाफ सख्त अभियान चला भी रहीं हैं। मगर यह सब विधायक को रास नहीं आ रहा है। दरअसल, विधायक महोदय चाहते हैं कि उनके इलाके में किसी तरह के अभियान शुरू करने से पहले उन्हें विश्वास में लिया जाए।
इससे पहले के डीएफओ इस तरह की परम्परा निर्वाह करते थे, लेकिन महिला डीएफओ बिना किसी भेदभाव के वन कानून तोडऩे वालों के खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं। इलाके में सालभर से अधिक हो गया है, लेकिन उन्होंने विधायक को पूछा तक नहीं। इससे विधायक खफा हैं। कई बार अच्छे काम पर भी शिकवा-शिकायतें होती रहती हैं। कुछ ऐसा ही महिला डीएफओ के साथ हो रहा है। ये अलग बात है कि सरकार ने अभी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया है। क्योंकि अच्छे काम के बावजूद अचानक तबादले से अफसरों-कर्मियों के मनोबल पर असर पड़ता है।
भूतपूर्व पुलिस की बददिमागी!
लोगों को कानून तोडऩे की कीमत पर भी अटपटा काम करना सुहाता है। और खासकर तब जब पुलिस इन पर तगड़ा जुर्माना न करती हो, तब तो यह अटपटापन स्थायी हो जाता है। आज सुबह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में दिखी यह गाड़ी नंबर प्लेट से कुछ ऐसा बता रही है कि यह भूतपूर्व छत्तीसगढ़ पुलिस की गाड़ी है। नंबर प्लेट पर तो वर्तमान को भी लिखने की छूट नहीं है, लेकिन यह भूतपूर्व होने के साथ-साथ नियमों के खिलाफ नंबर प्लेट पर लिखा गया दावा है। सब कुछ हिन्दी में, अक्षर भी, और अंक भी। अब यह सुबूत पुलिस के सामने है, देखें कि वह अपने इस भूतपूर्व साथी का क्या करती है।
फेसबुक पर दर्द छलका...
श्रीचंद सुंदरानी के शहर जिला की कमान संभालते ही भाजपा में जंग शुरू हो गई है। सुंदरानी के पूर्ववर्ती राजीव अग्रवाल ने शंकर नगर मंडल की कार्यकारिणी को मंजूरी क्या दी, सुंदरानी समर्थक खफा हैं। सुंदरानी ने खुले तौर पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन मीडिया के जरिए छोटी सी बात को लेकर विवाद खड़ा करने से राजीव अग्रवाल खफा हैं। उन्होंने फेसबुक के जरिए अपना दर्द और गुस्सा जाहिर किया। भाजपा की गुटीय राजनीति में वैसे भी श्रीचंद और राजीव अग्रवाल एक-दूसरे के विरोधी माने जाते हैं।
राजीव ने किसी का नाम तो नहीं लिखा, लेकिन इसको श्रीचंद के खिलाफ माना जा रहा है। राजीव अग्रवाल ने लिखा है-अगर कोई व्यक्ति आपको नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो वह इस बात को अवश्य जानता है कि वह आप से कमजोर है। इसलिए अपनी कमियों को छुपाने के लिए वह हमें नीचा दिखाना चाहता है, ताकि वह कुछ देर के लिए अपने आपको संतुष्ट कर सके। ऐसे लोग हमारे समाज में भरे पड़े हैं जिनका काम सिर्फ दूसरों की बुराई करना एवं उन्हें नीचा दिखाना होता है। इससे उनके मन को शांति मिलती है। भगवान उन्हें बुद्धि प्रदान करें। संकेत है कि आने वाले दिनों में विवाद और बढ़ सकता है।
कोरोना की नौबत गंभीर, लोग नहीं...
अब छत्तीसगढ़ में कोरोना देश में शायद सबसे अधिक रफ्तार से बढ़ते जा रहा है। अब तक जांच कम हो रही थीं, तो लोग नावाकिफ रहते हुए दूसरों को प्रसाद बांट रहे थे, और खुद ठीक हो जा रहे थे। जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी, कोरोना उनके सिर पर चढक़र बोलता था, और जांच में वे पॉजिटिव निकलते थे। लेकिन बहुत से मामलों में जिससे उन्हें कोरोना मिला, वे बिना पकड़े रह जाते थे।
अब जब कोरोना छलांग लगा-लगाकर बढ़ रहा है, जिस तरह से चीन से आई हुईं रबर की रंगीन गेंदें जो कि कोरोना जैसी दिखती हैं, उछल-उछलकर दूर तक टप्पे खाती हैं, उसी तरह कोरोना फैल रहा है। अब लोग अस्पताल की सोच रहे हैं, खर्च की सोच रहे हैं, बिस्तर खत्म हो रहे हैं, और लोगों के खत्म होने की गिनती भी बढ़ती चल रही है। शहर के एक नामी-गिरामी और महंगे अस्पताल, जो कि शहर से थोड़ा परे कमल विहार के पास है, उसमें कोरोना मरीज से किस तरह पांच लाख रूपए ले लिए गए, और डॉक्टर देखने तक नहीं आए, इसका एक ऑडियो तैर रहा है। वॉट्सऐप पर मिले इस ऑडियो में बहुत सी बातचीत छापने लायक भी नहीं है, लेकिन कोरोना मरीज रहते हुए किसी ने अगर अस्पताल को, डॉक्टरों को मां-बहन की गालियां दी हैं, तो उस पर सभी को सोचना चाहिए।
आज ही उत्तरप्रदेश का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वहां की एक सरकारीकर्मी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बरामदे में बैठी है, और वहीं पर उसे ऑक्सीजन दिया जा रहा है क्योंकि अस्पताल में कोई बिस्तर खाली नहीं है, और वहीं पर उसके मर जाने की बात भी वीडियो में कही गई है। छत्तीसगढ़ में लोगों को अगर अब तक यह समझ नहीं आ रहा है कि उनकी जिंदगी पर सचमुच का एक खतरा मंडरा रहा है, तो कम से कम उन्हें कॉल कनेक्ट होने के पहले की सरकारी घोषणा सुन लेना चाहिए कि उसी हालत में बाहर निकलें जब निकलना बहुत जरूरी हो। आज छत्तीसगढ़ में बड़े लोगों की मिसालों का इस्तेमाल करके आम लोग धड़ल्ले से भीड़ बना रहे हैं, मजे से बिना मास्क घूम रहे हैं। इन लोगों को यह भी समझना चाहिए कि अब एक-एक घर से पांच-दस लोग भी पॉजिटिव निकल रहे हैं, और अधिक वक्त नहीं है कि यहां भी बरामदे में फर्श पर बिठाकर ऑक्सीजन दिया जाएगा।
कांग्रेस के विकल्पहीन लोग...
प्रदेश कांग्रेस संगठन में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है। खुद प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम कह चुके हैं कि संगठन में अहम पदों पर काबिज कुछ नेताओं को निगम-मंडलों में दायित्व सौंपा गया है। ऐसे नेताओं को संगठन के दायित्व से मुक्त कर किसी दूसरे को जिम्मेदारी दी जाएगी। वैसे तो मरकाम ने किसी का नाम नहीं लिया है, लेकिन पार्टी हल्कों में चर्चा है कि गिरीश देवांगन, रामगोपाल अग्रवाल और शैलेष नितिन त्रिवेदी का विकल्प ढूंढा जा रहा है। मगर वस्तुस्थिति इससे अलग है।
गिरीश खनिज निगम के चेयरमैन का दायित्व संभाल रहे हैं, साथ ही उन पर जिलों में पार्टी दफ्तर बनवाने की जिम्मेदारी भी है। उन्हें राजीव भवन बनवाने का अनुभव है। ऐसे में उनकी जगह किसी और को जिम्मेदारी दी जाएगी, इसकी संभावना कम है। कुछ इसी तरह की स्थिति रामगोपाल अग्रवाल की भी है। रामगोपाल पार्टी का कोष संभालते हैं और सबसे ज्यादा टर्नओवर वाले नागरिक आपूर्ति निगम के चेयरमैन भी हैं।
रामगोपाल की खासियत यह है कि विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी को संसाधनों की कमी नहीं होने दी। सुनते हैं कि एक बार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राहुल गांधी के दौरे के समय डेढ़ करोड़ की जरूरत पड़ गई थी। उन्होंने एक दूसरे राजनीतिक दल के दफ्तर से राशि मंगवाकर जरूरतों को पूरा किया। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि रामगोपाल का विकल्प सिर्फ रामगोपाल ही हैं। कुछ इसी तरह की शख्सियत शैलेष नितिन त्रिवेदी की है। वे पाठ्य पुस्तक निगम चेयरमैन के साथ-साथ संचार विभाग का दायित्व बखूबी संभाल रहे हैं। ये अलग बात है कि कई और नेता उनकी जगह लेने को उत्सुक हैं, और इसके लिए भरपूर मेहनत भी कर रहे हैं। शैलेश ने कांग्रेस की विचारधारा को जितने अच्छे से समझा है, और जितने अच्छे से वे मीडिया के सामने बोल सकते हैं, वैसे लोग कम ही हैं।
दो दिन पहले संचार विभाग के ताला लगा हुआ दफ्तर का फोटो मोहन मरकाम को भेज दिया गया। उन्हें बताया गया कि मीडिया वाले बाइट लेने आने वाले हैं, लेकिन संचार विभाग के दफ्तर में ताला लगा हुआ है। मरकाम उस समय विधानसभा में थे। उन्होंने तुरंत शैलेष से बात की, शैलेष उस समय पापुनि दफ्तर में थे। शैलेष मीडियावालों के पहुंचने के पहले ही बाइट देने के लिए हाजिर हो गए। ऐसी तत्परता का विकल्प ढूंढना कठिन है।
डिमांड के पहले सप्लाई के खतरे...
सरकार के एक विभाग ने अपने यहां संचालित योजनाओं में पारदर्शिता के बढ़-चढ़कर दावे किए। अफसरों का सुझाव था, कि पारदर्शिता के लिए संस्थान के अधीन सरकारी दूकानों में कैमरे लगवाए जाने चाहिए। फिर क्या था, सप्लायर दौड़ पड़े। एक को काम मिल गया और उन्होंने सभी जगह कैमरे लगवा दिए और बिल पास होने की प्रत्याशा में साढ़े सात फीसदी राशि ऊपर छोड़ आए। बिल विभाग में पहुंचा, तो पता चला कि वर्क ऑर्डर ही नहीं किया गया है। फाइल ज्यों की त्यों पड़ी है, क्योंकि जिन्हें हिस्सा मिलना था वे अब इसमें रूचि नहीं ले रहे हैं। अब हाल यह है कि सप्लायर महीनेभर से इधर-उधर भटक रहा है, लेकिन अभी तक हाथ कुछ नहीं आया है।
जो जीता वही सिकंदर
आखिरकार पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी को शहर जिले की कमान सौंप दी गई। पूर्व सीएम रमन सिंह की पसंद पर श्रीचंद के नाम पर मुहर लगी। श्रीचंद का नाम तय कराने में पूर्व मंत्री राजेश मूणत की अहम भूमिका रही है। जबकि पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और सांसद सुनील सोनी, पार्षद रमेश सिंह ठाकुर अथवा जयंती पटेल को अध्यक्ष बनाने की कोशिश में थे। रमन सिंह और सौदान सिंह की जोड़ी ने सच्चिदानंद उपासने जैसे संगठन के बड़े नेताओं को भी झटका दिया है, जो पिछले कई दिनों से पार्टी नेताओं की कार्यप्रणाली को लेकर आग उगल रहे थे।
उपासने और श्रीचंद के बीच तो खुले तौर पर वाकयुद्ध चल रहा था। श्रीचंद के नाम की घोषणा के बाद पार्टी में अंदरूनी खींचतान बढ़ गई है। सुनते हैं कि प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता ने सीधे केन्द्रीय नेतृत्व को फोन कर श्रीचंद की नियुक्ति से पहले किसी तरह की रायशुमारी नहीं करने की शिकायत की। कुल मिलाकर रमन और सौदान की जोड़ी एक बार फिर असंतुष्टों के निशाने पर आ गई है। अब देखना है आगे-आगे होता है क्या? फिलहाल तो जो जीता वही सिकंदर।
अपर हाउस का दबदबा
प्रदेश भाजपा में लोकसभा सदस्यों के बजाए राज्यसभा सदस्यों को ज्यादा तवज्जो मिल रही है। कम से कम जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से तो यही लगता है। इससे परे राज्यसभा सदस्य सुश्री सरोज पाण्डेय और रामविचार नेताम अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे हैं।
रामविचार अपने करीबी गोपाल मिश्रा को बलरामपुर का जिलाध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे। जबकि आरएसएस और स्थानीय बड़े नेताओं ने ओमप्रकाश जायसवाल का नाम सुझाया था। जायसवाल को जिला महामंत्री बनाकर संतुष्ट किया गया। सरोज के समर्थक तो पूरे मंडलों में छा गए हैं। यह करीब-करीब तय माना जा रहा है कि दुर्ग और भिलाई के जिलाध्यक्षों के चयन में भी उनकी राय को महत्व मिलेगा।
भाजपा के नौ लोकसभा सदस्यों का हाल देखिए, केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह तो अपने गृह जिले सूरजपुर में भी पसंद का अध्यक्ष नहीं बनवा पाईं। यही हाल मोहन मंडावी का रहा। मोहन की जगह विक्रम उसेंडी की पसंद पर कांकेर जिलाध्यक्ष का नाम तय किया गया। इसी तरह बिलासपुर में पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल की पसंद पर अध्यक्ष और बाकी पदाधिकारियों की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की चली है।
रायगढ़ और जशपुर में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय की चलनी ही थी। रायपुर के जुझारू सांसद सुनील सोनी और आरएसएस के पसंदीदा माने जाने वाले संतोष पाण्डेय भी अपने संसदीय क्षेत्र के जिलों के अध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया में कहीं नजर नहीं आए। कुल मिलाकर निर्वाचित भाजपा सांसद मायूस बताए जा रहे हैं।
ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में राज्य सभा को उच्च सदन कहा जाता है, यहां वह उच्च साबित हो भी रहा है।
सरकार की जांच क्षमता, और ठगी
जैसे-जैसे फोन स्मार्टफोन होते जा रहे हैं, टीवी स्मार्टटीवी होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे तरह-तरह की जालसाजी भी बढ़ रही है, और यह साबित हो रहा है कि इंसानों के ये औजार ही स्मार्ट हो रहे हैं, इंसान खुद स्मार्ट नहीं हो रहे हैं।
अब जालसाज आए दिन लोगों के नंबर जुटाकर उन्हें तरह-तरह के झांसे के मैसेज भेजते हैं। जिन्होंने किसी कर्ज की अर्जी नहीं दी है, उन्हें भी कर्ज मंजूर होने का संदेश आता है और साथ में एक लिंक भी आता है जो कि जाल में फंसने का एक न्यौता रहता है।
अब सवाल यह है कि झारखंड के गांव जामताड़ा जैसी जगहें देश भर में साइबर-ठगी के लिए इतनी कुख्यात हो गई हैं कि वहां मानो पूरा गांव ही ठगी में लगा है। ऐसे में सरकार अपनी सारी जांच की क्षमता के चलते हुए भी संगठित अपराध पर काबू नहीं पा रही है। एक-एक टेलीफोन नंबर से रोज सैकड़ों लोगों को फोन करके कोई ईनाम मिलने की खबर देकर ठगते हैं, तो कोई बैंक एटीएम का नंबर या पासवर्ड पूछकर ठगते हैं, और सरकारी एजेंसियां कुछ नहीं कर पातीं। सरकार की तकनीकी क्षमता के बावजूद रात-दिन ऐसी ठगी चलना हैरान करता है क्योंकि टेलीफोन और सिमकार्ड से लोगों की लोकेशन भी आसानी से पता लग जाती है, फिर ऐसे जुर्म करने वाले जालसाजों की ही क्यों खबर नहीं होती?
आज सुबह ही इस अखबार के संपादक को जालसाजी का ऐसा न्यौता मिला। अब यह संदेश तो बताता है कि यह बल्क एसएमएस तकनीक से भेजा गया है, सरकार की जांच सीमा के भीतर ऐसी जालसाजी थोक में हो रही है।