राजपथ - जनपथ
नोटों वाले विधायक का विकल्प
जनता कांग्रेस की नेत्री गीतांजलि पटेल कांग्रेस का दामन थाम सकती है। गीतांजलि ने चंद्रपुर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था। वो जनता कांग्रेस, और बसपा गठबंधन की प्रत्याशी थीं। गीतांजलि कांग्रेस प्रत्याशी रामकुमार यादव से करीब 5 हजार मतों से हार गई। यहां भाजपा तीसरे स्थान पर थी।
गीतांजलि के जनाधार को देखकर कांग्रेस के कई नेता उन्हें अपनी पार्टी में लाना चाहते हैं। चर्चा है कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत भी इससे सहमत है। इधर, रामकुमार यादव के नोटो के बंडल के साथ कैमरे में कैद होने के बाद टिकट को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि गीतांजलि, रामकुमार यादव का विकल्प हो सकती हैं। अगले कुछ दिनों में कांग्रेस में दूसरे दलों के नेता आ सकते हैं। देखना है कि गीतांजलि जैसों का क्या होता है।
राजधानी में धार्मिक ध्रुवीकरण
विधानसभा चुनाव में भाजपा धार्मिक कार्ड भी खेल सकती है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने सभी जिलों को एक नारा प्रमुखता से प्रचारित करने के लिए तैयार किया है। नारा यह है-ढेबर, अकबर, और भूपेश की सरकार नहीं चलेगी।
ढेबर तो रायपुर के मेयर हैं। सरकार का हिस्सा नहीं है। मगर शराब केस में उनके यहां ईडी की छापेमारी के बाद वो भाजपा के निशाने पर है। यही नहीं, कवर्धा में सांप्रदायिक हिंसा के बाद सरकार के मंत्री मोहम्मद अकबर भाजपा के निशाने पर रहे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अकबर के कई भाजपा नेता, और आरएसएस के नेताओं से मधुर संबंध हैं। बावजूद भाजपा ने उन्हें प्रदेशभर में निशाने पर ले रही है। दिलचस्प बात यह है कि नारे में दो मुस्लिम नेताओं के बाद सीएम का नाम है। यानी भाजपा का एजेंडा साफ दिख रहा है। चुनाव में यह नारा लोगों को कितना प्रभावित करता है, यह देखना है।
लाठी खाने वाली महिलाएँ किनारे
प्रधानमंत्री मोदी का दौरा राजनीतिक रूप से विपक्ष और भाजपा के लिए भी सफल रहा। लेकिन अंदरखाने बवाल मचा हुआ है। यह बवाल वाट्सएप पर रात डेढ़ बजे से शुरू हुआ और अब तक जारी है। इसमें एक नेता चक्रव्यूह में फंसे हुए है। सारा विवाद महिलाओं में मोदी के स्वागतकर्ताओं को लेकर चल रहा है। पार्टी ने पीएमओ से एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए अधिकाधिक लोगों के लिए अनुमति ली। वहां से ओके होने के बाद 68 लोगों की सूची भेजकर एन ओ सी ली गई । इसमें 1 से 41 तक पार्टी के पुरुष नेता और उसके बाद जो 27 नाम थे, उन्हें देखकर महिला मोर्चा, भाजपा नेताओं की भृकुटी तन गई। ये सभी, सूची बनाने वाले नेताजी की कॉलोनी के आस-पड़ोस की भाभियां, बहनें आदि थीं। इन्हें भाजपा नेत्री बताकर स्वागत का मौका दिया गया। यह सूची भाजपा नेताओं के बीच पहुंची तो बवाल मच गया। महिला कार्यकर्ता वाट्सएप पर भड़ास निकल रही है। कहा जा रहा है कि धूप में धरना मोर्चा दे, लाठी खाए, दरी बिछाए, आरती उतारें महिला मोर्चा की महिलाएं और पीएम को बुके कॉलोनी की भाभियां दे। ये खेला नहीं चलेगा। सभी नये नये सरनेम देखकर हतप्रभ हैं। नेतृत्व को निकम्मा, टुकड़ा गैंग और पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कहा गया । कुछ ने तो इसे पीएम की सुरक्षा में चूक से जोडक़र एजेंसियों को शिकायत की बात कह रहे हैं। यह चक्रव्यूह यही टूटता है या नेताजी भंवर में फंसते हैं देखना होगा ।
कुछ अफसरों को सजा मिले तो...
बिलासपुर हाईकोर्ट ने सडक़ों पर होने वाले धार्मिक और दूसरे जुलूसों के शोर-शराबे पर जो कड़ा रूख दिखाया है, उसके बाद भी अगर राज्य सरकार के नेताओं और अफसरों को शर्म नहीं आती है, तो लोगों के सामने मतदान के दिन नोटा का विकल्प तो रहेगा ही। आज जब लाउडस्पीकरों से लोगों के मरने की नौबत आ रही है, हाईकोर्ट के जज माथा पकडक़र बैठे हैं, तब भी प्रदेश के अफसरों के कान पर जूं न रेेंगना हैरान करता है कि क्या यही हिन्दुस्तान की चर्चित नौकरशाही है? नेताओं को जिन वोटरों के जुर्म रोकने से डर लगता है, उन्हें छूने से भी अफसर डरते हैं, यह बात अदालत को भी समझ आ जानी चाहिए।
अदालत के ऐसे रूख के बीच एक आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल अग्रवाल ने फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया है कि हल्की-फुल्की सवारी ढोने के लिए बने ई-रिक्शा पर किस तरह बड़ा सा पानी का टैंक और लंबे पाईपों के मोटे ग_े लादकर ले जाए जा रहे हैं। उन्होंने इसके साथ में लिखा है कि डीजे पर तो बाद में कार्रवाई करना, पहले इस पर तो कार्रवाई कर लो।
छत्तीसगढ़ के शहरों में सबसे अधिक फेरे लगाने वाले ऑटोरिक्शा जिस तरह से ओवरलोड चलते हैं, और हर नियम को तोड़ते हैं, उससे यह जाहिर है कि वे पुलिस को रिश्वत देकर ही इतना हौसल दिखा सकते हैं। अब अदालत क्या-क्या सुधारे, वह चौराहों पर लाठी देकर तो जजों को खड़ा नहीं कर सकती। लेकिन इतना तो कर ही सकती है कि सोच-समझकर अदालतों की अनदेखी करने वाले अफसरों को अदालत उठने तक की सजा देकर वहां बिठाकर रखे। इससे कम में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बात भी कोई सुनते हुए नहीं दिखते।
घटिया चुनावी साड़ी
चुनाव आचार संहिता लगने से पहले कुछ ताकतवर नेताओं ने मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए गिफ्ट, और साड़ी बंटवाना शुरू भी कर दिया है। इसका वीडियो भी वायरल हो चुका है। अब इससे जुड़ी नई खबर यह है कि सरगुजा इलाके में एक-दो जगहों पर साड़ी और गिफ्ट की घटिया क्वालिटी पर नाराजगी भी सामने आ रही है।
एक पूर्व विधायक ने गिफ्ट बंटवाने वाले सत्ताधारी दल के नेता पर नाराजगी जताते हुए बयान जारी किया है कि वो अपने परिवार के सदस्यों को सौ-दो सौ रुपए की साड़ी पहनाएगें, तो कैसा लगेगा। उन्होंने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि खुलेआम साड़ी, अन्य सामान बंटवाए जा रहे हैं। मगर भाजपा के नेता खामोश हैं। चर्चा है कि आचार संहिता लगने के बाद सप्रमाण चुनाव आयोग से शिकायत की तैयारी है। देखना है कि आगे क्या होता है।
सिंहदेव को अदालती राहत
विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने से पहले सरगुजा राजघराने के मुखिया, और डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव को जमीन विवाद प्रकरण पर बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने अंबिकापुर में तालाब की करीब 21 एकड़ जमीन डायवर्सन कराने के खिलाफ दायर याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है।
जमीन विवाद के चलते सिंहदेव बैकफुट पर थे। सिंहदेव के खिलाफ याचिका अंबिकापुर की तरूनीर संस्था ने लगाई थी। इस संस्था के कर्ताधर्ता स्थानीय भाजपा नेता कैलाश मिश्रा हैं। मिश्रा के साथ-साथ पार्षद आलोक दुबे भी सिंहदेव के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। ये अलग बात है कि दोनों भाजपा नेताओं की मुहिम पार्टी का समर्थन नहीं था। पार्टी के स्थानीय नेता इससे दूरी बनाए हुए थे।
कहा जा रहा है कि एनजीटी में भी जमीन विवाद की शिकायत हुई थी। और जब हाईकोर्ट में मिश्रा ने याचिका दायर की तो चर्चा है कि उनके लिए काफी महंगा साबित हुआ। उन्हें अपनी संस्था का ऑडिट और अन्य कागजात दुरूस्त कराना पड़ा। इस पर लाखों खर्च हुए। पहले दो पेशी में महंगे वकीलों की सेवाएं ली, लेकिन बाद में वकीलों की भारी-भरकम फीस के चलते वो पस्त पड़ गए। हाईकोर्ट ने प्रकरण को आधारहीन और सही तथ्यों को छिपाकर प्रस्तुत करना बताते हुए निरस्त कर दिया। फिलहाल सिंहदेव को बड़ी जीत मिली है। भाजपा के दोनों नेता आगे लड़ाई जारी रखेंगे अथवा नहीं, इस पर लोगों की नजरें टिकी हुई हैं।
यह रायपुर एयरपोर्ट की तस्वीर है । पिछले दिनों किसी ने रात के वक्त ऐसा वीडियो बनाया है जिसमें ढेर सारे जानवर वहां घूम रहे हैं। एक बछड़े को छोटू और गाय को महतारी कहते हुए उनसे बातचीत का नाटक कर वायरल किया गया है । दरअसल यह वीडियो प्रशासन को आईना दिखाने के लिए शूटकर वायरल किया गया है। हाल में प्रशासन ने हाईकोर्ट के निर्देश पर इन आवारा मवेशियों को पकडऩे अभियान चलाया था।
वक्त कम बाकी है
आचार संहिता लगने में कुछ दिन बाकी रह गए हैं। लेकिन कुछ मंत्रियों की शिकायत कम होने का नाम नहीं ले रही है। एक मंत्री ने तो मल्लिकार्जुन खरगे के स्वागत के लिए माना एयरपोर्ट पर जुटे सीनियर नेताओं के बीच यह कहते सुने गए कि उनकी सिफारिशों का कोई महत्व नहीं रह गया है। उनके कहे तबादले नहीं हो रहे हैं। चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सैलजा ने उनकी शिकायतों को दूर करने का भरोसा दिलाया है लेकिन समय कम रह गया है । देखना है कि शिकायतें दूर होती है या नहीं।
बदले-बदले से मेरे खरगे नजर आए
मल्लिकार्जुन खरगे बलौदाबाजार की सभा को लेकर खुश नजर आए। पिछली तीन सभाओं में लोग उनके भाषण के बीच उठकर जाने लगे थे, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोगों ने खरगे के भाषण को पूरा सुना।
खरगे भी अपनी पूरी लय में थे। वो भूपेश सरकार की उपलब्धियां गिना रहे थे, इस दौरान सीएम और प्रदेश अध्यक्ष आपस में चर्चा कर रहे थे। खरगे ने मंच से ही दोनों को डपट दिया, और कहा कि बातचीत बाद में करना, पहले मेरी बातों की तरफ ध्यान दें।
खरगे ने हरित क्रांति के जनक डॉ.एम.एस. स्वामीनाथन के निधन पर शोक जताया और उनके कहने पर सभा में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि भी दी गई। खरगे ने डॉ.स्वामीनाथन को याद करते हुए बताया कि वो (खरगे) 26 साल के थे उस समय डॉ.स्वामीनाथन ने उन्हें कृषि विश्वविद्यालय की समिति का सदस्य बनाया था। कुल मिलाकर खरगे का अंदाज इस बार बदला हुआ था।
इन सांसदों का यहाँ से लेना-देना नहीं
प्रदेश से कांग्रेस के दो राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और के.टी.एस.तुलसी का तो यहां के विकास कार्यों से कोई लेना-देना नहीं है। कम से कम सांसद निधि के खर्चों देखकर को तो यही कहा जा सकता है। राजीव शुक्ला ने तो अब तक निधि से एक रुपए भी जारी नहीं किए हैं।
कुछ ऐसा ही हाल के.टी.एस. तुलसी का है। अलबत्ता, सरकार ने उन्हें रायपुर में एक बंगला आबंटित किया है। हालांकि इसका उपयोग पूर्व राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा करती हैं। इससे परे कांग्रेस की दो महिला राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम और रंजीत रंजन जरूर सांसद निधि के मद से होने वाले कामों को लेकर रुचि ले रही हैं।
सरकार सब समेट रही
मंत्रालय में सरकारी काम समेटने की कवायद शुरू हो गई है। आचार संहिता लगने से पहले इस कार्यकाल के सभी पेंडिंग फाइल, घोषणाओं पर आदेश जारी होने लगे हैं। और इन अंतिम दिनों में ही कई खबरें बाहर भी आएंगी। इस बार आचार संहिता 7 अक्टूबर के बाद किसी भी दिन लग सकती है । ऐसे में मंत्रिमंडल की एक और बैठक होने के संकेत हैं । चुनावों को देखते हुए सभी मंत्रियों ने अपने सचिवों से कह दिया है कि लंबित फाइलें पुशअप करें।
साथ ही चर्चा के लिए रोके गए प्रस्ताव, आदेश, डीई पर अंतिम अनुशंसा ले लें। इसे देखते हुए जांच से जूझ रहे अधिकारी, मंत्री, सचिव के इर्द गिर्द कदमताल करने लगे हैं। इस बार मंत्री, 2018 में भाजपा के मंत्रियों की तरह फाइल क्लीयरेंस में चुनावी नतीजों का इंतजार नहीं करना चाहते। पिछली सरकार में तो चुनाव निपटने के बाद एक मंत्री के बंगले से कई फाइलें जली हुई मिली थीं। इसको लेकर काफी बवाल भी हुआ था। बहरहाल मंत्रालय के कई विभागों में नोटशीट चल गई है कि आचार संहिता लगने तक किसी भी कर्मचारी, अधिकारी को छुट्टी नहीं मिलेगी। और शासकीय छुट्टी के दिन राजधानी न छोड़ें।
दो-ढाई करोड़ का तोहफा!
चुनावी टिकट का मौसम कई किस्म की रिश्वत और भ्रष्टाचार का भी होता है। अब दो दिनों से एक चर्चा बहुत तेज है कि एक महत्वाकांक्षी नौजवान नेता ने पार्टी में एक लीडर को दो-ढाई करोड़ की कार का तोहफा दिया है। अब इसके बाद टिकट की उम्मीद करना तो उसका हक बनता है। लेकिन अगर टिकट पाने का ऐसा रेट चल रहा है, तो फिर वोट पाने का कैसा रेट होगा? और अगर ऐसे अरबपति उम्मीदवारों से जनता नोट भी ले ले, और वोट अपनी मर्जी से दे, तो क्या उसे भी वोट बेचना कहेंगे? वोट बेचना तो तब होगा जब भुगतान के बाद उसके एवज में वोट दिया जाए। अगर कुछ दिया न जाए, और भ्रष्टाचार की कमाई में से जनता अपना हिस्सा ले ले, तो फिर उसमें जनता का भ्रष्टाचार कैसा? चुनाव आयोग के नियम कुछ अलग बात कह सकते हैं, लेकिन भ्रष्ट लोगों को नोचकर उनसे कुछ खरोंच लेना, और फिर अपनी मर्जी से वोट देना एक सामाजिक न्याय की बात हो सकती है।
ईडी संपत्ति ऐसे भी जब्त करती है...
ऐसे उम्मीदवार खारिज करें...
पांच राज्यों के चुनावों के बीच राजस्थान से खबर है कि वहां कई जनसंगठनों और राजनीतिक दलों ने मिलकर एक दलित घोषणापत्र जारी किया है। इसमें कहा गया है कि ऐसे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं दिया जाएगा जिसके खिलाफ दलित प्रताडऩा का कोई आरोप हो। यह तरीका ठीक है, ऐसे अलग-अलग घोषणापत्र बनने चाहिए, महिलाओं को भी दलीय निष्ठा से परे ऐसा घोषणापत्र लाना चाहिए कि जिसके खिलाफ महिला प्रताडऩा, महिला शोषण के आरोप लगे हुए हों, उसका बहिष्कार किया जाएगा। वरना उसके बिना हालत यह है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक छोटे से कांग्रेस नेता के गुजर जाने के बाद उसके नाम पर एक सडक़ का नाम रखा गया है, और उसकी अपनी बहू ने उस पर प्रताडऩा की रिपोर्ट लिखाई हुई थी। लोगों को उम्मीदवारों और उनकी पार्टियों के बहिष्कार के ऐसे कड़े फैसले लेने चाहिए।
समाज के कुछ जागरूक लोगों को यह तय करना चाहिए कि राजनीति में आने के बाद भ्रष्टाचार के लिए बदनाम लोगों को वे वोट नहीं देंगे, इसी तरह यह भी तय करना चाहिए कि वे कुनबापरस्ती को वोट नहीं देंगे, देश-प्रदेश में सारी कुनबापरस्ती को तो वे नहीं रोक सकते, लेकिन अपने विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में अगर वे एक ही परिवार के अगले उम्मीदवार को वोट न देना तय कर लें, इसके लिए जागरूकता अभियान चलाएं, तो हो सकता है कि पार्टियां ही उन्हें टिकट देने में बिदक जाएं। एक परिवार के दो लोगों को टिकट देने के खिलाफ साफ-साफ अभियान चलना चाहिए।
नागरिकों के अलग-अलग जागरूकता समूह अपना एजेंडा खुद तय कर सकते हैं, और आज के वॉट्सऐप-जमाने में वे बिना अधिक खर्च के भी अपनी बात फैला सकते हैं। हम किसी को वोट नहीं देने के लिए सुझाव नहीं दे रहे, बल्कि यह कह रहे हैं कि ऐसी खामियों से परे के कोई भी उम्मीदवार न हों, तो लोगों को नोटा को वोट देना चाहिए। इससे भी यह बात जाहिर होगी कि हर उम्मीदवार में कोई न कोई खामी थी, और वोटर ने इन सबको खारिज कर दिया।
छींका टूटेगा या नहीं?
पंजाब में कांग्रेस के एक विधायक को आम आदमी पार्टी की सरकार ने नशे के एक पुराने मामले में गिरफ्तार किया, तो दोनों पार्टियां सींग टकराकर लड़ रही हैं। और इस लड़ाई को देखकर छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीद की एक लहर दौड़ रही है कि इंडिया-गठबंधन के ये दो दल अगर टकराएंगे, और छत्तीसगढ़ में भी आमने-सामने खड़े हो जाएंगे, तो यह कांग्रेस के लिए नुकसान का रहेगा, और भाजपा के लिए फायदे का रहेगा। अब दिल्ली की हसरत से छींका टूटता है या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन छत्तीसगढ़ में बिखरे हुए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता यह चाह नहीं रहे हैं कि सत्तारूढ़ कांग्रेस से कोई समझौता हो। वे तकरीबन पांच बरस से कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते आए हैं, और राज्य सरकार पर हमले से परे तो उनके हाथ कोई बड़े मुद्दे बचेंगे नहीं। एक जानकार का यह भी कहना है कि कांग्रेस से आप के किसी भी चुनावी तालमेल से आप टूट जाएगी। देखें आगे क्या होता है।
यात्रा में राजधानी में कहीं खुशी कहीं गम
रायपुर में परिवर्तन यात्रा भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए काफी परेशानी की वजह रही। अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुटी, सो अलग। इसकी बड़ी वजह यह रही कि यात्रा 6 घंटे विलंब से पहुंची। रायपुर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में तो यात्रा का बुरा हाल रहा। कई जगहों पर तो पंडाल में दो-चार कार्यकर्ता ही नजर आए।
यात्रा के स्वागत के लिए कई जगहों पर जोरदार इंतजाम किए गए थे। एक जगह पर तो 11 पंडित शंख लेकर खड़े थे। गणेश उत्सव चल रहा है। पंडितों को और जगहों पर पूजा के लिए जाना था। चूंकि यात्रा के पहुंचने में देरी थी इसलिए सारे पंडित इंतजार किए बिना दक्षिणा लेकर निकल गए।
यही नहीं, एक जगह तो भारी भरकम माला पहनाने के लिए क्रेन का इंतजाम किया था। क्रेन का घंटे के हिसाब से किराया तय था मगर देरी को देखते हुए क्रेन को भुगतान कर लौटाना पड़ा। रायपुर पश्चिम में दावेदारों के बीच पोस्टर वार के बावजूद कई जगहों पर यात्रा का अच्छा स्वागत हुआ। रायपुर दक्षिण में भी ठीक ठाक भीड़ जुट गई। फिर भी राजधानी के हिसाब से जैसा माहौल बनना था वैसा नहीं बन पाया।
सरगुजा अब भी शांत नहीं
कांग्रेस में सरगुजा की कुछ सीटों पर प्रत्याशियों के नाम पर विवाद की स्थिति बन गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में सरगुजा की 14 सीटों के लिए टीएस सिंहदेव को फ्री हैंड दिया गया था। सिंहदेव ने डॉ. चरणदास महंत की सहमति लेकर सभी सीटों पर प्रत्याशी तय किए थे। इस बार परिस्थिति काफी बदल गई है। चर्चा है कि वो तीन सीटों पर मौजूदा विधायक की जगह नए चेहरे को टिकट दिलाना चाहते हैं, लेकिन वैसी परिस्थिति नहीं बन पा रही है। मौजूदा विधायकों को दूसरे खेमे का समर्थन प्राप्त है। देखना है कि केंद्रीय चुनाव समिति इस तरह के विवादों का निपटारा कैसे करती है।
विश्वविद्यालय तोडऩा भारी पड़ा
वो तो समय रहते सरकार ने अपनी गलती सुधार ली,वर्ना खैरागढ़ में मुश्किल हो जाती। एशिया के एक मात्र संगीत विश्वविद्यालय का राजधानी में अध्ययन केंद्र खोलकर 4 दिनों में फिर बंद कर दिया। शनिवार को उद्घाटित केंद्र को लेकर राजनीति तो इतवार से शुरू हो गई थी। विरोध स्वरूप खैरागढ़ बंद शतप्रतिशत सफल रहा। पान ठेले से लेकर शो रूम तक बंद रहे। क्योंकि बात खैरागढ़ की पहचान से जुड़ी थी।
आरोप लगे कि राजधानी में रहने वाली कुलपति अपनी सुविधा के लिए 2014 के पारित प्रस्ताव को अमल में लाने खैरागढ़ से मंत्रालय, दौड़भाग करके एक कर दिया था। आदेश हुआ, केंद्र का उद्घाटन भी हुआ। लेकिन वोटों की राजनीति भारी पड़ गई। सीएम का संभवत: यह पहला फैसला होगा जिसे वापस लिया हो। यही नहीं, किसी पद्मश्री कलाकार के हाथों उद्घाटित कला केंद्र चार दिन बाद ही बंद हो गया। अब समस्या केंद्र के लिए भवन के किराए की होगी।
हर माह का अनुबंध होगा तो ठीक है और यदि साल दो साल की एकमुश्त पेशगी दे दी गई होगी तो वह एक अलग विवाद होगा। इन सारी बातों के बीच सबसे अहम यह भी है कि शैलेन्द्र नगर का यह नार्थ फेसिंग भवन ही ‘विवादहीन’ नहीं है। पहले पापुनि था जो विवादों में रहा। फिर एक निजी कंपनी ने लिया, वह भी निकल गई।
सोनवानी से परे भी जिम्मेदार हंै
छत्तीसगढ़ पीएससी के भयानक घोटाले के किस्से थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। इसकी पहली खबर इसी कॉलम में छपी थी और उसके बाद से भाजपा के गौरीशंकर श्रीवास ने लगातार इसे उठाया। उन्होंने ट्विटर पर इस कॉलम की एक कतरन से यह लड़ाई शुरू की थी, जो कि अब हाईकोर्ट के एक हुक्म तक पहुंच चुकी है।
इस पूरे मामले में पीएससी के चेयरमैन रहे टामन सिंह सोनवानी का किया हुआ भयानक घोटाला तो उजागर होते ही चल रहा है, और हाईकोर्ट में सुनवाई के जीवंत प्रसारण में यह देखने मिला कि किस तरह पीएससी घोटाले पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपने साथी जज के साथ हैरान हो रहे थे। लेकिन इस पूरे मामले में एक दूसरे नाम की चर्चा अभी पीछे रह गई है। पीएससी का कोई भी घोटाला परीक्षा नियंत्रक के बिना नहीं हो सकता था। चेयरमैन तो हाथ झाड़ भी सकते हैं, लेकिन जिसके हाथ रंगे हुए हैं, उस परीक्षा नियंत्रक आरती वासनिक की चर्चा अब तक कम है। इनके खिलाफ भी बहुत सी जानकारी लेकर पीएससी के निराश लोग इस स्तंभकार तक पहुंचे हैं।
ट्रेनें रद्द, एयरपोर्ट पर गुंडागर्दी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एयरपोर्ट पर भूतपूर्व पार्किंग ठेकेदार से लेकर टैक्सी सर्विस की महिला कर्मचारियों तक की जो गुंडागर्दी आए दिन सामने आती है वह भयानक है। इनके बीच अलग-अलग चल रही हिंसा के वीडियो तैरते रहते हैं, और मानो सरकारी और संपन्न तबकों, ताकतवर नेताओं और अफसरों के इस्तेमाल वाले एयरपोर्ट के गुंडे भी ताकतवर रहते हैं, इसलिए वहां पर कोई कार्रवाई होते नहीं दिखती है। कल ही की खबर थी कि एयरपोर्ट पर पिछले ठेकेदार प्रवेश दुबे, सुभाष मिश्रा, और विनय दुबे ठेका खत्म होने के ढाई महीने बाद भी वहां वसूली करते हैं, और टैक्सी सर्विस वालों से उनके हिंसक झगड़े चलते रहते हैं। जिस एयरपोर्ट पर पहले विमान के घंटे भर पहले से आखिरी विमान के आधे घंटे बाद तक मंत्री-मुख्यमंत्री, सांसद-विधायक, आईएएस-आईपीएस बने ही रहते हैं, वहां पर गुंडागर्दी के ऐसे धंधे बताते हैं कि स्थानीय पुलिस-प्रशासन की इसमें भागीदारी है। अगर ऐसा नहीं होता तो इनमें से हर कोई हर दिन गिरफ्तार होते, और यह गुंडागर्दी खत्म होती। दूसरी तरफ यह राजधानी रायपुर जिस भाजपा सांसद सुनील सोनी के संसदीय क्षेत्र में है, उनको भी इस बात से कोई परवाह नहीं दिखती है कि उनकी सरकार के मातहत चलने वाले इस एयरपोर्ट पर लगातार किस तरह की गुंडागर्दी चल रही है, और मुसाफिरों को कितने लोग लूट रहे हैं। ऐसा लगता है कि सांसद खुद सुरक्षित रहते हैं, और बाकी लोगों से उनका कोई लेना-देना नहीं रहता। ऐसा तो हो नहीं सकता कि इस राजधानी में दो बार महापौर रहे हुए वर्तमान सांसद को यहां के अखबारों में तकरीबन रोजाना ही छपने वाली एयरपोर्ट-गुंडागर्दी की खबरें न दिखती हों। यह भी लगता है कि एयरपोर्ट डायरेक्टर जैसे ओहदे पर बैठाए गए अफसर को भी उनके इलाके में ऐसी संगठित गुंडागर्दी और वसूली-उगाही से कोई परहेज नहीं है। और जब किसी अफसर को ऐसा परहेज नहीं होता है, तो यह जाहिर होता है कि वह क्यों नहीं होता है।
दूसरे देश-प्रदेश से यहां पहुंचने वाले लोगों को, चाहे वे पर्यटक हों, या संभावित पूंजीनिवेशक, उनको पहला नजारा गुंडागर्दी का देखने मिलता है, और राज्य सरकार को भी इस बात की परवाह नहीं लगती है कि इस नौबत को सुधारा जाए। इसी राजधानी में प्रदेश के सबसे बड़े पुलिस अफसर रोजाना ही ऐसी खबरें देखते हैं, ऐसे वीडियो देखते हैं, और रोज यह गुंडागर्दी जारी है। दरअसल एयरपोर्ट पर सत्ता की ताकत से लैस लोगों की गाडिय़ों के लिए एक अलग इंतजाम रहता है, और इसलिए वे आम जनता पर हो रहे जुल्म और उनके खिलाफ हो रहे जुर्म से बेखबर और बेअसर भी रहते हैं।
ट्रेनों के मुसाफिर हजारों मुसाफिर रेलगाडिय़ों के रद्द होने की तकलीफ झेल रहे हैं, और एयरपोर्ट के मुसाफिर एक अलग किस्म की गुंडागर्दी झेल रहे हैं। आने वाले चुनाव में देखते हैं कि ट्रेन और प्लेन पर काबू करने वाली भाजपा की केन्द्र सरकार के साथ वोटर कैसा सुलूक करते हैं।
टिकट के लिए संत की सिफारिश
टिकट के लिए कई नेता साधु-संतों की शरण चले जाते हैं। कांग्रेस हो या भाजपा, प्रभावशाली साधु-संतों की सिफारिश को तवज्जो भी देती है। सुनते हैं कि भाजपा में टिकट के दो दावेदार के लिए देश के एक नामी संत की सिफारिश आई है।
संतजी विश्वविद्यालय भी संचालित करते हैं, और चर्चा है कि पीएम भी उन्हें काफी मानते हैं। बताते हैं कि दावेदारों में से एक तो पूर्व में विधायक भी रह चुके हैं। इससे परे एक अन्य दावेदार ने कार्यक्रमों में काफी कुछ खर्च किया था, और पार्टी के रणनीतिकारों ने उन्हें प्रॉमिस भी किया था। मगर पिछले दिनों एक प्रभावशाली नेता के पार्टी में प्रवेश के बाद उन्हें अपनी दावेदारी कमजोर लगने लगी है। इसके बाद वो भी संतजी के शरण में चले गए।
कहा जा रहा है कि संतजी का फोन आया, तो यहां रणनीतिकार हड़बड़ा गए हैं। उनकी सिफारिश को नजरअंदाज करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। देखना है कि पार्टी क्या रास्ता निकलता है।
नोट को खोट माने या नहीं?
नोटों के बंडल के साथ कैमरे में कैद होने के बाद चंद्रपुर के कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव की टिकट को लेकर उलझन पैदा हो गई है। पार्टी का प्रभावशाली खेमा उन्हें फिर टिकट देने के लिए दबाव बनाए हुए है। रामकुमार ने अपने खिलाफ षडय़ंत्र का आरोप लगाकर थाने में रिपोर्ट भी लिखाई है। बावजूद इसके पार्टी संगठन के प्रमुख नेता उनसे सहमत नहीं हो पा रहे हैं।
चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सुश्री सैलजा ने नोट प्रकरण की पूरी जानकारी ली है। कुछ नेताओं का मानना है कि रामकुमार को टिकट देने से खराब मैसेज जाएगा। जीत की संभावना कमजोर हो सकती है। चाहे कुछ भी हो, रामकुमार की टिकट को लेकर पार्टी के दो खेमा आमने-सामने आ गया है। देखना है आगे क्या होता है।
रमन सिंह वायदा करते भी तो कैसे?
सिंधी समाज के कई नेता, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से नाखुश हैं। ये नेता मंगलवार को पूर्व सीएम से मिलने गए थे। शंकर नगर सिंधी पंचायत के ये सदस्य पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी को टिकट देने की वकालत कर रहे हैं। मगर पूर्व सीएम की तरफ से कोई आश्वासन नहीं मिला। इस पर सिंधी पंचायत के एक सदस्य ने फेसबुक पर अपना दुख बयां किया। उसने लिखा कि समाज के अग्रणी मुखीगण, और महिलाओं के साथ 70 लोग पूर्व सीएम के बंगले पहुंचे थे।
पूर्व सीएम से मिलने के लिए करीब 1 घंटा इंतजार करना पड़ा। किसी ने पानी तक नहीं पूछा। फिर भी डॉ. रमन सिंह का फूल माला पहनाकर स्वागत किया गया। मगर पूर्व सीएम ने विचार का भी आश्वासन नहीं दिया। इससे समाज के लोग अपमानित महसूस कर रहे हैं। हालांकि पार्टी के कई नेता मानते हैं कि पार्टी में कोई भी नेता टिकट को लेकर ठोस आश्वासन देने की स्थिति में नहीं है। हाईकमान सर्वे रिपोर्ट, और अन्य समीकरण को देखकर टिकट तय कर रही है। ऐसे में किसी एक नेता को टारगेट करना उचित नहीं है।
भाजपा का चर्च पर्यटन
भाजपा इस चुनाव में सर्व समाज के लिए सर्वस्पर्शी होना चाह रही है। मोदी मित्र जहां मुस्लिम जमात में सक्रिय कर दिए गए हैं तो मसीही समाज को भी बेहतर तरीके से साधने की ओर कदम बढ़ा लिया है। पहले सरगुजा में मसीही समाज के अपने बड़े चेहरे प्रबोध मिंज को पिछले कार्यकाल में महापौर बनाया तो इस बार उन्हें लुंड्रा से बी- फार्म दिया जा रहा है। भाजपा को लगता है कि सरगुजा का मसीही समाज सध गया। अब बात राजधानी और आसपास की करें तो ईसाई समुदाय के एक प्रमुख नेता नितिन लारेंस को भी ऑफर दिया गया है । चर्चा है कि नितिन जल्द ही भाजपा प्रवेश कर सकते हैं। नितिन को दिल्ली बुलावा भी आया है।
नितिन अभी मसीही समाज की प्रदेश स्तरीय धार्मिक सामाजिक संगठन रायपुर डायसिस के सचिव हैं। युवा हैं, समाज में अच्छी छवि है। हालांकि कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है। लेकिन नितिन का संघ के बड़े भाईसाहबों से संपर्क है। जबलपुर के मॉडरेटर पीसी सिंह और पुत्र की गड़बडिय़ों को उजागर करने में उनकी अहम भूमिका रही। भाजपा में आते हैं तो पार्टी की क्रिश्चियन विरोधी छवि सुधरकर आकर्षण बढ़ेगा। अब बात सरकार बनने पर नितिन के ओहदे पर करें तो युवा आयोग, अल्पसंख्यक आयोग आदि आदि तो हैं ही। वैसे भाजपा पहले भी डॉ. दीपक क्लाडियस को पहले सदस्य और फिर कार्यवाहक अध्यक्ष बना चुकी है। नितिन को लेकर समाज में भी चर्चाएं चल रही है। कोई पक्ष में तो कोई विपक्ष में कह सुन रहा है।
मेहमान चले गए, कचरा रह गया
सफाई के लिए आम लोगों से यूजर चार्ज, समय समय पर अर्थदंड वसूलने वाले निगम से भला कौन वसूले। इस कचरे को साफ करने में ढिलाई के लिए। जी-20 सम्मेलन के मेहमानों को सहभागिता दिखाने ऐसे होर्डिंग शहर में जगह जगह लगाए गए । इसमें निगम, स्मार्ट सिटी कंपनी ने बड़ी रकम खर्च की। ये अलग बात है कि सम्मेलन के प्रतिनिधि इन्हें देखने आए ही नहीं। उन्हें किसी यह बताया भी नहीं होगा कि आपके स्वागत में शहर सजाया गया है। वे सभी आलीशान रिजॉर्ट से ही वापस लौट गए। और 10 दिन बाद भी ये होर्डिंग तालाब से मरीन ड्राइव के नामधारी तेलीबांधा तालाब के किनारे पड़े हुए हैं। यह हाल निगम की उस मशीनरी का है जहां से रोजाना सैकड़ों सफाई वैन मोर रायपुर, स्वच्छ रायपुर का गाना बजाते निकलते हैं।
बैठे-ठाले की गप्पबाजी
छत्तीसगढ़ चुनावी दौर से गुजर रहा है। आम लोग ऑटोरिक्शा में बैठते ही चुनाव सर्वे के काम में लग जाते हैं, और ड्राइवर से चुनावी हाल पूछने लगते हैं कि कौन सी पार्टी जीतेगी। कुछ किलोमीटर बाद जब वे उतरते हैं, तब तक वे अपने को राजनीतिक विश्लेषक भी मान लेते हैं। जाहिर है कि ऐसे माहौल में सरकारी अमले से लोग जानना चाहते हैं कि कौन सी पार्टी अगली सरकार बनाएगी।
सरकारी अमले के कुछ पुराने और जानकार लोगों का कहना है कि जब चुनाव दूर रहता है, तब तो उनके पास यह कहने की गुंजाइश रहती है कि अभी तो चुनाव दूर है, अभी तो उम्मीदवारों के नाम भी नहीं आए हैं। लेकिन बाद में उन्हें कुछ न कुछ अंदाज लोगों को बताना पड़ता है, और जैसे-जैसे चुनाव करीब आता है, पहले तो वे सत्तारूढ़ पार्टी को जिताते रहते हैं, फिर और करीब आता है तो वे टक्कर की बात कहने लगते हैं, और मतदान के बाद मतगणना के पहले तक वे विपक्ष की सरकार बनने का आसार बताने लगते हैं।
बाहर से आने वाले, और प्रदेश के भीतर के पत्रकार भी अनायास मिले लोगों से पूछकर चुनावी भविष्यवाणी के विशेषज्ञ बन जाते हैं, और कुछ गिने-चुने लोगों की कही हुई बातों से वे बड़े-बड़े नतीजे निकाल लेते हैं। इन सबमें सर्वे की बुनियादी तकनीक का ख्याल रखना तो मुमकिन होता नहीं है जिसके मुताबिक किस तरह के कितने लोगों से किस तरह के सवाल करने पर मिलने वाले जवाबों से कोई नतीजा निकाला जा सकता है।
इसलिए खाली बैठे हुए गप्प मारने के लिए तो इस तरह की बातें ठीक हैं, लेकिन इन बातों से कोई नतीजा नहीं निकालना चाहिए।
राहुल का सफर
राहुल गांधी यहां आए, तो उनकी चिंता भाजपा की रणनीति को लेकर भी थी। उन्होंने पार्टी के चुनिंदा नेताओं के साथ अनौपचारिक चर्चा में पूछ लिया कि क्या भाजपा छत्तीसगढ़ में कोई सांप्रदायिक कार्ड तो नहीं खेल रही है? उन्होंने पार्टी नेताओं को कहा बताते हैं कि भाजपा की इस तरह के हर कोशिश का उचित जवाब देना होगा।
वैसे तो राहुल गांधी सरकारी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे, लेकिन कार्यक्रम में सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिला। इसमें प्रदेश प्रभारी सुश्री सैलजा की अहम भूमिका रही है। बताते हैं कि राहुल तखतपुर जाने के लिए सीएम की सरकारी गाड़ी के बजाय पीसीसी की इनोवा में सवार हुए, तो उनके निज सचिव अलंकार ड्राइविंग सीट पर बैठ गए।
राहुल के ठीक पीछे सीट पर सीएम भूपेश बघेल, और सुश्री सैलजा बैठीं। इसके बाद पीछे की सीट पर टीएस सिंहदेव, और दीपक बैज बैठे। सिंहदेव की ऊंचाई अधिक है, और उन्हें कोई असुविधा न हो, यह सोचकर सैलजा ने अपनी सीट आगे कर ली। जब सिंहदेव पूरी तरह सहज हो गए, तो फिर गाड़ी आगे बढ़ी। यही नहीं, सुबह राहुल गांधी ने नाश्ता नहीं किया था, और फिर उन्होंने गाड़ी पर ही अन्य नेताओं के साथ सैंडविच खाया।
घरेलू जंग व्हाट्सएप पर
रायपुर पश्चिम की टिकट को लेकर भाजपा के दावेदारों में बड़ी जोर आजमाइश चल रही है। जिस गुरु की उंगली पकडक़र चेला आगे बढ़ा वही अब पहुंचा पकडऩे की कोशिश कर रहा है। यहां लड़ाई विद्युत पोल से पोस्टर हटाने, दीवार से वाल पेंटिंग मिटाने से शुरू होकर वाट्सएप पर जयचंद और विभीषण तक जा पहुंची है। हजार डेढ़ हजार नंबर वाले इस ग्रुप मे हाल के वार पलटवार पर बात यहां तक पहुंच गई कि शहर अध्यक्ष से अपने उपाध्यक्ष पर कार्रवाई की मांग तक कर दी गई है । कहा गया कि जिनकी छत्रछाया में ये उपाध्यक्ष आगे बढ़े उनके ही खिलाफ षडय़ंत्र कर रहे। वाट्सएप में यह भी लिखा गया कि विकास उपाध्याय के साथ हाथ मिला लिया गया है । स्पष्ट है कि भाजपा को अपनों से ही खतरा है। वैसे पूरी चर्चा और भी मजेदार है। स्थानाभाव की वजह से बस इतना ही ।
राशन के बदले दारू की हकीकत ?
छत्तीसगढ़ में सरकार एपीएल, बीपीएल वर्ग के लोगों को मुफ्त और रियायती दर पर चावल, दाल, चना गुड हर महीने देती है। कुछ के लिए तो हर माह यह अधिक ही हो जाता है। ऐसे लोग पास पड़ोसियों को बेच देते है और कुछ लोग अपना कार्ड दूसरों को दे देते हैं । इसके बदले में वे कुछ रुपए भी लेते हैं। यह हुई सामान्य सी अनापत्तिजनक बात। अब आते हैं, राशन के दुरुपयोग, अनैतिक कृत्य पर। जो यह वायरल वीडियो बता रहा है।
कुछ लोग, टैक्स से दिए जा रहे राशन को नशे में उड़ा रहे हैं। यह अविभाजित रायपुर जिले के सुहेला गांव की है। तीन युवक ,यलो कार्ड पर चावल लेकर किराना दुकान में बेचकर उन रूपयों से शराब खरीद लाए । चूंकि यह वीडियो है इसलिए इसे शूट किया गया होगा। यदि ऐसा है तो स्पष्ट है कि ऐसा हो रहा होगा। इसलिए इन लोगों ने प्रशासन की आंख खोलने बनाया होगा। और इनकी हरकत को देख किसी अन्य ने शूट किया है तो यह कृत्य अनैतिक है। प्रशासन को इनकी पहचान कर कार्ड ही रद्द करना चाहिए।
आसानी से भुला दिया
किसी ने सही कहा है लोग उगते सूर्य को ही अर्घ्य देते हैं। कल का दिन भाजपा के नजरिए से कुछ ऐसा ही रहा। सोमवार को पितृ पुरुष स्व. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती थी। सबको मालूम था। यहां तक पार्टी ने 17 सितंबर से एक पखवाड़े तक कई सेवा कार्यों की फेहरिस्त जारी की थी। इसमें कल का आयोजन भी शामिल था।
मगर राजधानी में पार्टी के दोनों ही कार्यालयों में दो मिनट के लिए याद करने का समय नहीं था। निगम ने तेलीबांधा प्रतिमा स्थल पर भी आयोजन रखा था। वहां भी कोई नामचीन नेता नहीं गया। हम यह उस आधार पर कह रहे हैं कि ऐसे किसी आयोजन को लेकर मीडिया में कोई बयान, फोटो जारी नहीं हुई।
पार्टी ने पीएम मोदी का बर्थडे तो रक्तदान, फल वितरण जैसे आडंबर से मनाया लेकिन उपाध्याय भूला दिए गए। अब भला पंडितजी थोड़ी न पूछेंगे, या नोटिस जारी करेंगे।
महिलाओं का बोलबाला
प्रदेश में इस बार आधी आबादी यानी महिला मतदाता सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाएंगी। दरअसल, राज्य गठन के बाद पहली बार महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा पहुंच गई है। राज्य निर्वाचन आयोग से प्राप्त आंकड़ों की मानें तो प्रदेश के कुल 33 जिलों में से 18 में महिलाएं, पुरुष वोटर से अधिक हो गई है।इनमें बालोद, बस्तर, दंतेवाड़ा, दुर्ग, गरियाबंद, धमतरी, बीजापुर, मरवाही, कोंडागांव, जशपुर, कांकेर, सरगुजा, सुकमा, राजनांदगांव, रायगढ़, नारायणपुर, महासमुंद, कोंडागांव और मरवाही जिला शामिल हैं। वर्तमान में प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या दो करोड़ तीन लाख 70 हजार पहुंच चुकी है। इनमें महिला मतदाता एक करोड़ दो लाख और पुरुष मतदाता एक करोड़ एक लाख 70 हजार हैं।
महिला आरक्षण कानून पारित होने के बाद तो पूरे देश में महिलाओं और पिछड़े को लेकर जो माहौल है और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया दिख रही है। उससे तय की छत्तीसगढ़ के चुनाव में इस बार महिला और ओबीसी का बोल बोला रहेगा।महिला अगर ओबीसी है तो उनकी टिकट तो पक्की ही समझो। कांग्रेस तो हर लोकसभा सीट से दो विस में महिलाओं को उतारने पर मंथन शुरू कर चुकी है ।
सादगी पसंद राहुल
राहुल गांधी सादगी पसंद हैं। रायपुर आए, तो उनके लिए नवा रायपुर के मे-फेयर रिसॉर्ट में सुईट बुक किया गया था, लेकिन उनके सहयोगियों ने पार्टी के पदाधिकारियों को बता दिया कि वो सामान्य कमरे में रूकेंगे। इसके बाद राहुल आए, और सुईट के बजाए सामान्य कमरे में रूके। कुछ देर आराम करने के बाद सडक़ मार्ग से तखतपुर के लिए निकल गए। उनके साथ एक ही गाड़ी में सीएम भूपेश बघेल, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, प्रदेश प्रभारी सैलजा, और दीपक बैज भी रवाना हुए।
छत्तीसगढ़ी माटीपुत्र रामेश्वर तेली
केन्द्रीय उद्योग राज्यमंत्री रामेश्वर तेली यहां आए, तो कांग्रेस और भूपेश सरकार पर हमलावर रहे। रामेश्वर तेली वैसे तो असम के डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट से आते हैं। मगर वो मूलत: छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। रामेश्वर तेली का जन्म भी डिब्रूगढ़ के दुलियाजान कस्बे में हुआ था। रामेश्वर तेली के दादा कामकाज के सिलसिले में असम गए थे, और वहीं के होकर रह गए।
रामेश्वर तेली को भाजपा यहां चुनाव प्रचार में उतार रही है। उन पर प्रदेश की सबसे ज्यादा आबादी वाले पिछड़ा वर्ग साहू (तेली) समाज को साधने की जिम्मा है। वे परिवर्तन यात्रा में शिरकत करने यहां आए हुए थे, और करीब आधा दर्जन से अधिक सभाओं में संबोधित किया। उन्होंने साहू समाज के बड़े नेता, और गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू की उपेक्षा का आरोप भी लगा दिया। वे यह कहने से नहीं चूके कि ताम्रध्वज को सीएम प्रोजेक्ट किया था, लेकिन कांग्रेस ने उनके साथ धोखा किया।
न सिर्फ रामेश्वर तेली बल्कि झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास को भी भाजपा ने परिवर्तन यात्रा में सभा लेने के लिए बुलाया है। रघुवर दास मूलत: राजनांदगांव जिले के रहने वाले हैं, और वो भी साहू समाज से आते हैं। रघुवर दास भी रामेश्वर तेली की तरह साहू वोटरों को भाजपा की तरफ मोडऩे की मुहिम में जुटे हुए हैं। दोनों को इसमें कितनी सफलता मिलती है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
समाज और जाति, उपजाति
भाजपा के संकल्प पत्र में इस बार समाजों की मांगों ,सुझावों को बड़ा महत्व मिलने जा रहा है । इन पर होम वर्क तेजी से जारी है। और यह काम अमित भाई शाह की निगरानी में अरुण जामवाल और पवन साय कर रहे हैं । पार्टी ने इसके लिए छत्तीसगढ़ में बसे समाजों की लंबी फेहरिस्त बनाकर उनके साथ मॉर्निंग-इवनिंग टी, लंच-डिनर पर बैठक तय की है। पार्टी के रणनीतिकारों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में आबादी के अनुसार कुल 48 समाज हैं। इनमें और जोड़-घटाना करते हुए और उपजातियों की लिस्ट बनाई गई तो लिस्ट बढक़र 162 तक हुई । अब इन सबके प्रमुखों वरिष्ठ जनों के साथ बैठक में उनकी समस्याएं, सुझाव सुनकर उनकी मांगे नोट की जा रहीं हैं। दावा है कि ये मांगे संकल्प पत्र का प्रमुख हिस्सा बनेंगी।
पदाधिकारियों को हिदायत
भाजपा ने रायपुर में परिवर्तन यात्रा के जोरदार स्वागत की रणनीति बनाई है। चारों विधानसभा क्षेत्र के कुल 50 जगहों पर यात्रा के स्वागत की तैयारी चल रही है। इसमें कई दिक्कत भी आ रही है। वो यह कि गणेशोत्सव की वजह से सडक़ों पर भीड़ ज्यादा है। पंडाल आदि भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों ने जिले के पदाधिकारियों को साफ तौर पर हिदायत दे रखी है कि रायपुर से ही माहौल पूरे प्रदेश में बनेगा। ऐसे में स्वागत में किसी तरह की कमी नहीं हो। चूंकि पहले यहां एक-दो कार्यक्रम फ्लाप हो चुके हैं। इन सबके चलते जिले के पदाधिकारी परेशान हैं।
प्रचारक और समर्थक सीमारेखा
चुनाव प्रचार के लिए भाजपा और कांग्रेस के स्टार प्रचारकों का आना शुरू हो गया है। कांग्रेस में प्रचारकों के सत्कार आदि व्यवस्था पर चर्चा के लिए पार्टी की प्रोटोकाल समिति की बैठक भी हो चुकी है। बैठक में कई ऐसी हिदायत दी गई जो समिति के सदस्यों को नागवार गुजर रही है।
मसलन, समिति के सदस्यों से कहा गया कि वो होटल आदि में प्रचारकों के टॉयलेट आदि का इस्तेमाल न करें। बिना अनुमति के प्रचारकों के कमरे में न जाएं। यह भी कहा गया कि वो हेलीपैड या एयरपोर्ट तक साथ जाएं लेकिन उनके साथ हेलीकॉप्टर में जाने और फोटो खिंचवाने की जिद न करें। यह भी कहा गया कि प्रचारकों की सुविधाओं में किसी तरह की कमी न हो, यह सुनिश्चित करें। चर्चा है कि इस तरह की हिदायत से कुछ सदस्य नाखुश हैं।
अब सबको मौका
सह प्रभारी नितिन नवीन ने क्या घुट्टी पिलाई कि भाजपा की सभी चुनावी समितियां न केवल सक्रिय हो गई बल्कि इनके पदाधिकारियों में खुशी की लहर है । दरअसल डेढ़ दो माह पहले भाजपा ने दर्जन भर समितियों का गठन कर छोटे बड़े नेता कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी । मगर इन सभी का काम दो ही नेता सम्हाले हुए थे। जो भाईसाहबों के नाम पर अपने कुछ निर्देश पर भी काम करवा लेते थे। इससे इन समितियों के लोग खिन्न चल रहे थे। यहां तक कि वे सभी ठाकरे परिसर से भी दूरी बनाए हुए थे। इसकी भनक लगते ही नवीन जी ने परसों सभी समितियों की बैठक लेकर नई जान फूंक दी। उन्होंने क्या किया हम नहीं बताएंगे। वे सभी जानते हैं। लेकिन शनिवार को आठ केंद्रीय मंत्री आए सबका भीड़ भरा स्वागत हुआ और हर बार चेहरे बदलते रहे। यानी सभी को अवसर मिल रहा है।
भाजपा मेहनत तो कर रही है
भाजपा के 21 प्रत्याशियों की घोषणा को महीने भर से अधिक हो चुके हैं। इन सीटों पर पार्टी को पिछले चुनावों में जीत नहीं मिली थी। मगर इस बार कुछ प्रत्याशियों की स्थिति कुछ बेहतर दिख रही है। इसकी एक बड़ी वजह बूथ प्रबंधन है।
चर्चा है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री, और सहचुनाव प्रभारी डॉ.मनसुख मंडाविया खुद प्रत्याशियों की स्थिति की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। रायगढ़, सरगुजा की सीटों के प्रत्याशियों का बूथ प्रबंधन संभालने के लिए उत्तराखंड, और झारखंड के विधायकों को भेजा गया है। प्रचार के लिए यूपी की गाडिय़ां पहुंच गई हैं। बागियों पर नजर रखी जा रही है, और उनका मान-मनौव्वल कर प्रचार में लगाने के काम में कई नेता जुटे हुए हैं।
इसका नतीजा यह हुआ कि कई सीटें जहां भाजपा पिछले चुनावों में कमजोर रही है, वहां अब स्थिति बेहतर दिख रही है। रायगढ़, और जशपुर जैसे जगहों में प्रदेश के चुनाव प्रभारी ओम माथुर आधा दर्जन बार चक्कर काट चुके हैं। खुद मंडाविया लगातार दौरा कर रहे हैं। हालांकि अभी कांग्रेस प्रत्याशियों की घोषणा नहीं हुई है लेकिन भाजपा की तैयारियों से साफ दिख रहा है कि इस बार उन्हें कांटे की टक्कर मिल सकती है।
गौ माता की कहानियाँ
पिछले दिनों हम सब ने एक गौ प्रेम की एक खबर पढ़ी और वीडियो भी देखा था कि एक गौ माता चंद्र मणि पंडरी कपड़ा मार्केट की एक दुकान में रोजाना आकर सेठजी की गद्दी में बैठकर फल खाकर चली जाती है। यह सिलसिला छह सात साल से चल रहा है। कुछ ऐसा ही दुर्ग के सदर बाजार के सियाराम मंदिर में भी एक गौमाता की आवाजाही होती है । मंदिर में कोरोना के बाद से ही नित्य, रामचरितमानस का पारायण होता है।
एक गौ माता पिछले कुछ समय से बिना नागा मानस पारायण का जो समय निश्चित होता है आती है और जितने भी पारायण करने वाले भक्त स्त्री-पुरुष बैठे होते हैं। सब के पास बारी बारी से जाकर सेवा का अवसर देती है। लोग उसके गले सिर माथे को सहलाते जाते हैं। और तो और किसी के एक के न आने पर वह उस रिक्त स्थान पर बैठ जाती है। जितनी देर मानस पारायण होता है वह उतनी देर ही रहती है, फिर वापस चली जाती है। अब लोग रायपुर और दुर्ग की इन दोनों गौ माता का पूर्व जन्म का रिश्तेदार बताने से नहीं चूक रहे। हालांकि दूसरे लोग इसे अंधश्रध्दा कहने से नहीं चूक रहे।
जंगल में ऐसा मंगल कभी देखा न था
वन महकमे में ऐसा कुछ हुआ है जो पहले कभी नहीं हुआ। हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स के लिए गुपचुप डीपीसी हुई, और सबसे जूनियर अफसर वी.श्रीनिवास राव को हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स बना दिया गया।
श्रीनिवासराव से सीनियर आधा दर्जन पीसीसीएफ हैं। मगर चर्चा है कि उन्हें इस डीपीसी की भनक तक नहीं लगी। पहले भी पीसीसीएफ (प्रशासन) को हटाया जा चुका है। मसलन, आर.के.मिश्रा, आर.के.शर्मा, अरविंद अनिल बोवाज और मुदित कुमार सिंह पीसीसीएफ (प्रशासन) के साथ-साथ हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स रहे हैं।
इन अफसरों को पीसीसीएफ (प्रशासन) के पद से भले ही उन्हें हटा दिया गया था लेकिन उनकी वरिष्ठता को प्रभावित नहीं किया गया, और रिटायर होने तक ये अफसर हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स रहे हैं। इस प्रमोशन से वन महकमे में हडक़म्प मचा हुआ है। निचले स्तर तक के अफसर इस प्रमोशन को गैरजरूरी और नियम विरुद्ध करार दे रहे हैं।
बाकी राज्यों के सीनियर वन अफसर भी इसको लेकर पूछताछ कर रहे हैं। चुनाव का समय है, यह गुपचुप तरीके से पदोन्नति तो हो गई लेकिन चुनाव आचार संहिता प्रभावशील होते ही मामला तूल पकड़ सकता है। वन महकमे में सक्रिय कई आरटीआई एक्टिविस्ट इसकी सूचना केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग को भेजी है। देखना है आगे क्या होता है।
रेवड़ी लगी बंटने
सरकार के एक ताकतवर मंत्री के समर्थकों का वीडियो वायरल हुआ है। वायरल वीडियो में मंत्री समर्थक, ग्रामवासियों को साड़ी बांटते नजर आ रहे हैं। साथ ही उन्हें हिदायत दे रहे हैं कि विरोधी दल के लोग भी यहां प्रचार के लिए आएंगे लेकिन उनके प्रलोभन में नहीं आना है।
मंत्री समर्थक ग्रामीणों से मंत्री के समर्थन में नारेबाजी भी कराते नजर आ रहे हैं। उनसे अपील भी कर रहे हैं कि मंत्रीजी को फिर चुनाव में जिताना है, और प्रदेश में दोबारा पार्टी की सरकार बनाना है। हरेक परिवार को एक साड़ी दी जा रही है, और इसकी लिस्टिंग भी की गई है। वीडियो में साड़ी नहीं मिलने से कई लोग नाराज भी दिख रहे हैं। ऐसे लोगों से आग्रह किया जा रहा है कि उनका नाम अगले लिस्ट में आ जाएगा। यानी साड़ी बांटने का क्रम जारी रहेगा।
जानकार लोग बताते हैं कि इस बार मंत्रीजी कड़े मुकाबले में फंस सकते हैं। इसके चलते अभी से मतदाताओं को रिझाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। अभी आचार संहिता प्रभावशील नहीं है, इसका फायदा उठाकर मतदाताओं को गिफ्ट बांटना शुरू कर दिया है। बाद में चुनाव आयोग की सख्ती के चलते ऐसा संभव न हो पाए। वायरल वीडियो की खूब चर्चा हो रही है।
अच्छे दिन आ गए
चुनाव आते ही दोनों ही दल श्रमजीवी प्रबुद्ध जनों को खुश करने में जुट गए है। कुछ को तो पांच वर्ष से कंटीन्यू है। और इनमें से कुछ के नाम तो ईडी, आईटी को मिली डायरी में भी है। विपक्ष की ओर गांधीजी की यह खुशी जून से ही शुरू हुई है। सुनते हैं कि विपक्ष के नंदन के पास से वितरक तो पूरी पोटली ले रहे लेकिन वितरण कुछ को ही हो रहा। ऐसा 15 वर्षों में भी होता रहा है। परंपरा का पालन वे ही कर रहे जिन्होंने इसे शुरू किया था। वो जानते हैं कि बड़े नेता श्रमजीवी से पूछेंगे नहीं कि तुम्हें मिला कि नही । बस इसी पर्देदारी का पूरा फायदा उठाया जा रहा है । मगर श्रमजीवी अवश्य एक दूसरे को टटोल रहे हैं।
हकीम लुकमान के पास भी इलाज नहीं
शक बहुत बुरी चीज है। किसी के मन में स्थाई रूप से घर कर गई तो वह नुकसान दे जाती है । और राजनेताओं और वकीलों में तो यह एक गुण की तरह रचा बसा होता है । क्योंकि उन्हें हर रोज इसी के बल पर राजनीति करनी होती है। ठाकरे परिसर के वकील साहब इन दिनों कुछ ऐसे ही दौर से गुजर रहे हैं। उन्हें हर कोई षडयंत्र करता नजर आ रहा है। दो हमउम्र या बड़े नेता कहीं खड़े होकर बाते करते दिख जाएं। पीछे एक अपने गुप्तचर को वहां भेज देते हैं,टोह लेने। दरअसल उन्हें इंद्र की तरह अपना आसन डोलने का डर सता है। और यह डर भी उनके ही दो करीबियों ने ही बिठाया। ये दोनों दिन भर ठाकरे परिसर में बैठे बैठे ऐसा ही उधेडबुन करते रहे है। ([email protected])
इही हे सबले बढिय़ा?
ईडी ने महादेव एप के संचालक सौरभ चंद्राकर की शादी पर करीब 2 सौ करोड़ के खर्चों का हिसाब किताब निकाला है। जानकार लोग बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के किसी व्यक्ति की अब तक की सबसे महंगी शादी है। कुछ लोग छत्तीसगढ़ के बड़े घरानों के यहां की शादियों के खर्चों की तुलना सौरभ की शादी से कर रहे हैं, लेकिन बड़े घरानों के यहां का खर्च, सौरभ के खर्चों के आसपास नहीं टिक पा रहा है।
जानकार लोग बताते हैं कि सिलतरा के एक बड़े स्टील कारोबारी की बहन की शादी तुर्की में हुई थी। कुछ महीने पहले हुए इस शादी में शिरकत करने प्रदेश के बड़े उद्योगपति, और कारोबारी तुर्की गए थे इस शादी में कारोबारी ने दिल खोलकर खर्च किए, लेकिन यह भी सौरभ की शादी की तुलना में फीकी रही है। इसी तरह दो साल पहले बिलासपुर के कारोबारी विक्की जैन की शादी एक्ट्रेस अर्चना लोखण्डे से हुई थी। यह शादी भी काफी भव्य थी, लेकिन यहां का खर्च भी सौरभ की शादी की तुलना में 10वां हिस्सा भी नहीं था।
इसके अलावा कुछ महीना पहले सिलतरा के बड़े उद्योगपति के यहां शादी देश के सबसे महंगे होटलों में से एक उदयपुर के जयविलास पैलेस में हुई थी। इस शादी में भी उद्योगपति, व्यापारियों, बड़े अफसरों के अलावा प्रमुख राजनेताओं ने शिरकत की थी। इस शादी में भी काफी खर्च हुए थे। इसी तरह प्रदेश के एक अन्य उद्योगपति ने तो शादी में खासतौर पर देश के सबसे महंगे कैटरर्स मुन्ना महाराज को बुक किया था। मुन्ना महाराज, दुनिया के बड़े उद्योगपतियों में से एक लक्ष्मीनिवास मित्तल के यहां की शादी का काम कर चुके हैं। मगर सट्टेबाज सौरभ चंद्राकर ने शादी में खर्च के मामले में सबको पछाड़ दिया।
अपनी पार्टी के एमएलए को निपटाने
कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। इन सबके बीच एक दावेदार ने अपनी स्थिति को मजबूत दिखाने के लिए जो तरीका अपनाया है, उसकी चर्चा पार्टी के अंदर खाने में काफी हो रही है।
दरअसल, नेताजी जिस सीट से दावेदारी कर रहे हैं, वहां पार्टी के एमएलए हैं। एमएलए की टिकट कटेगी, तभी नेताजी के लिए संभावना बन सकती है। ऐसे में चर्चा है कि नेताजी ने एक सर्वे कंपनी की सेवाएं ली है। सर्वे कंपनी के लोग विधानसभा के अलग-अलग हिस्सों में जाकर एमएलए को कमजोर बता रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों से एमएलए के खिलाफ माहौल बनता दिख रहा है। मगर इस प्रायोजित सर्वे की खबर पार्टी के रणनीतिकारों को हो गई है। इसके पीछे की गणित भी सामने आ गई है। इसका असर यह हुआ कि एमएलए को टिकट मिले या न मिले, नेताजी टिकट की दौड़ से बाहर हो गए हैं। प्रत्याशी की अधिकृत घोषणा के बाद कुछ बातें सार्वजनिक भी हो सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है।
कौन मंज़ूर, कौन नहीं
भाजपा से राजधानी की दो सीटों को लेकर घमासान चल रहा है। गुरुवार को दो पूर्व विधायक एक साथ ठाकरे परिसर में बैठे थे। दोनों , सह प्रभारी के बुलावे पर गए थे। बुलावा का परपस अलग था। लेकिन जब मिल बैठे दो यार तो बातें तो होंगी। इस बार तो बात ही दूसरी थी। पहली बार के एक विधायक ने पार्टी के दो नेताओं को खूब कोसा। इनमें एक सांसद और एक कई बार के विधायक थे।
उनका कहना था कि पार्टी से किसी को भी टिकट दे दे,कोई दिक्कत नहीं। चाहे वह मेरा विरोधी क्यों न हो? यह तो तसल्ली होगी कि भीतर से ही दिया गया। लेकिन बाहर से गुरु पुत्र या कारोबारी नेता को दिया तो काम नहीं करूंगा। दरअसल सांसद के कहने पर विधायक,इन दोनों की दावेदारी टटोल चुके थे।
पूर्व विधायक का कहना है कि जब बाहरी लोगों को इच्छा नहीं है तो बार बार पहल क्यों हो रही। नेताजी की लैंग्वेज और बॉडी लैंग्वेज देखने वाले बहुत से वहां मौजूद रहे। अब देखना होगा कि इसका किस पर कितना असर होता है ।
देश भर में जगह-जगह नफरत के चलते कई लोग किसी धर्म के व्यक्ति से खाने की डिलीवरी नहीं लेते। अब रायपुर के जयस्तंभ चौक पर एक फू ड डिलीवरी करने वाले की मोटरसाइकिल हो सकता है कि ऐसी सावधानी बरत रही हो।
कसौटी से बचने की कोशिश
भाजपा की परिवर्तन यात्रा 26 तारीख को रायपुर के चारों विधानसभा क्षेत्रों में गुजरेगी। परिवर्तन रथ पर पार्टी के तमाम प्रमुख नेता, और विधानसभा टिकट के दावेदार सवार रहेंगे। पहले एक बड़ी सभा की तैयारी भी थी, लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों ने सोच विचार कर सभा को टालने का फैसला लिया।
पार्टी के रणनीतिकारों का सोचना था कि सभा के बजाय रोड शो ज्यादा फायदेमंद होगा। सभा में अपेक्षित भीड़ नहीं आने से पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। कुछ दिन पहले आरोप पत्र की लॉन्चिंग के मौके पर अमित शाह के कार्यक्रम में भीड़ नहीं जुटी थी। इससे काफी किरकिरी हुई थी। ऐसी स्थिति से बचने के लिए सभा को टालने का फैसला लिया गया। परिवर्तन यात्रा गली-मोहल्लों से गुजरेगी, तो भीड़ जुट ही जाएगी।
बाबा ने ऐसा क्या बोल दिया ?
उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने कांग्रेस कार्यसमिति में हुई बातचीत का ब्यौरा लीक होने पर तो हैरानी जताई लेकिन इस बात पर कुछ नहीं कहा कि उन्हें कोई समझाईश या चेतावनी दी गई। मामला रायगढ़ में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा का है। यहां किसी कारणवश मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पीएम के स्वागत के लिए नहीं पहुंचे। उनके स्वागत और समारोह में मौजूद रहने की जिम्मेदारी सिंहदेव की थी। प्रधानमंत्री के बगल में बैठकर वे भावविह्लल हो गए। इतने हो गए कि जब भाषण देने का मौका आया, यह कहा कि केंद्र ने छत्तीसगढ़ से कभी भेदभाव नहीं किया, जब जितना मांगा मिला है।
कैबिनट के वरिष्ठ सदस्य होने के नाते सिंहदेव को भली-भांति मालूम है कि केंद्र सरकार से तरह-तरह का बकाया भुगतान लेने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार चिट्ठियां लिखते हैं। रायगढ़ सभा से 15 दिन पहले बघेल ने केंद्र को चिट्ठी लिखी थी कि भारतीय खाद्य निगम ने चावल आपूर्ति के 6 हजार करोड़ रुपये का भुगतान लंबे समय से नहीं किया है। साथ ही उन्होंने शौचालय निर्माण की राशि बढ़ाकर 30 हजार रुपये करने की मांग की थी। कहा था कि 12 हजार रुपये में शौचालय नहीं बन पाता। एक नेशनल टीवी चैनल से पिछले साल बात करते हुए सीएम ने कहा था कि सेंट्रल एक्साइज और कोयला पेनल्टी का 20 से 22 हजार करोड़ रुपये हमें केंद्र सरकार से लेना है। चिट्ठी पर चिट्ठी वित्त मंत्री को लिखे जा रहे हैं। हमारे साथ भेदभाव इसलिए हो रहा है क्योंकि यहां कांग्रेस सरकार है। प्रधानमंत्री आवास योजना, जिसके लिए सिंहदेव ने मंत्रालय छोड़ दिया, उस पर राज्य सरकार का रुख यह था कि जब हम 40 प्रतिशत राशि दे रहे हैं तो हमें योजना का नाम अपने हिसाब से रखने की छूट क्यों नहीं है? मालूम हो कि कुछ राज्यों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत केंद्र सरकार 90 प्रतिशत राशि देती है, राज्य का हिस्सा केवल 10 प्रतिशत होता है। बिलासपुर में एयरपोर्ट के विकास के लिए केंद्र की मदद नहीं मिलने की वजह से हाईकोर्ट में खिंच रहा है। कई सालों की कोशिश के बाद भी रक्षा मंत्रालय ने एयरपोर्ट विस्तार के लिए अधिग्रहित जमीन राज्य सरकार को नहीं लौटाई है। पूरे छत्तीसगढ़ में लोग आए दिन ट्रेनों के रद्द होने से गुस्से में हैं। हाल ही आंदोलन हुआ, फिर भी नतीजा सिफर रहा। वहीं, राहुल गांधी की सारी लड़ाई मोदी सरकार पर ही फोकस है।
कई राज्यों के मुख्यमंत्री शिकायत करते हैं कि मोदी से हमें मिलने का मौका नहीं मिलता, अपनी बात नहीं रख पाते। सिंहदेव इस अवसर का लाभ उठाकर उनका ध्यान खींच सकते थे।
यह माना जा सकता है कि अपनी शालीनता के चलते मोदी से सिंहदेव ने तारीफ कर दी हो, लेकिन इससे भूपेश समर्थक खुश हैं कि केंद्र को क्लीन चिट देकर मुख्यमंत्री पद के दावेदार सिंहदेव ने शीर्ष नेतृत्व के सामने अपनी विश्वसनीयता घटा ली।
रोहिंग्या कितना बड़ा मुद्दा?
हेमंत बिस्वा सरमा पहले मुख्यमंत्री हैं, जो भाजपा की तरफ से 2023 चुनाव में प्रचार के लिए छत्तीसगढ़ पहुंचे। वे हिंदुत्व से लथ-पथ आक्रामक, उग्र बयानों के लिए जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ में भी उनका यही तेवर रहा। इंडिया गठबंधन पर आरोप लगाया कि वह सनातन संस्कृति को खत्म करने और हिंदू विरोधी माहौल बनाने की साजिश रच रहा है। साथ में कहा कि छत्तीसगढ़ में रोहिंग्या को शरण देना एक बड़ा मुद्दा बन गया है।
रोहिंग्या मुसलमानों का छ्त्तीसगढ़ में बसेरा होने की एक शिकायत अंबिकापुर से आई थी। तीन साल पहले कुछ भाजपा पार्षदों ने आरोप लगाया था कि यहां की महामाया पहाड़ी पर छद्म पहचान से रोहिंग्या रह रहे हैं। उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव का इलाका है यह। उन्होंने कलेक्टर को जांच करने का आदेश दिया। कलेक्टर ने नगर निगम आयुक्त को इसकी जिम्मेदारी दी। जिन 20 मुसलमान परिवारों को लेकर आशंका थी कि वे रोहिंग्या हैं, उनके दस्तावेजों की जांच की गई। सभी इसी देश के निवासी पाए गए। आयुक्त ने बयान दिया कि रोहिंग्या लोगों के बसने की बात महज अफवाह है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा या और किसी ने किसी और जगह पर रोहिंग्या बसने की बात नहीं उठाई है। फिर भी असम के मुख्यमंत्री ने इसे राज्य का बड़ा मुद्दा बता दिया। मकसद क्या है, समझा जा सकता है।
20 साल पहले क्या हुआ था?
छत्तीसगढ़ पीएससी में रसूखदारों के बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। ऊपरी अदालत में इस स्थगन के खिलाफ जाने का दरवाजा प्रभावित लोगों के लिए खुला हुआ है।
लोग 2003 के नतीजों को याद कर रहे हैं। एक अभ्यर्थी वर्षा डोंगरे ने परिणामों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। वकील के जरिये नहीं, खुद खड़े होकर हिंदी में बहस करते हुए वह केस लड़ी। लंबी लड़ाई के बाद सन् 2016 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता की एकल पीठ ने रि-स्केलिंग कर फिर से परिणाम जारी करने का आदेश दिया था। जस्टिस गुप्ता ने हैरानी जताई थी कि इतने महत्वपूर्ण मामले में तारीख पर तारीख क्यों दी गई, समय पर सुनवाई क्यों नहीं हुई। यदि वह आदेश लागू हो जाता तो आज कई जिलों में कलेक्टर बने अफसर आपको बेरोजगार दिखाई देते। खुद डोंगरे डिप्टी कलेक्टर होकर आज कलेक्टर होतीं, जो सहायक जेल अधीक्षक की नौकरी कर रही हैं। पीएससी के अफसरों ने उनको बकायदा कोर्ट में ऑफर दिया था कि आपको डिप्टी कलेक्टर बना देते हैं, केस वापस ले लें। मगर वह हिली नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन दे दिया, जो अब तक जारी है। अपील करने वालों के तर्क मजबूत रहे होंगे। खिलाफ लडऩे वाले लोगों का कहना है कि वहां के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं।
जैसा कि हल्ला है कि डिप्टी कलेक्टर पद की बोली 75-80 लाख लगती है। ऐसे में कोई हाईकोर्ट के स्थगन के बाद चुपचाप कैसे बैठ सकता है? हर कोशिश करके अपनी नियुक्ति को बचाएगा।
अब भाजपा के नेता भी नाराज
ट्रेनों को रद्द करने का सिलसिला बदस्तु जारी है। अब तक जनता की इस परेशानी पर कांग्रेस के नेता नारे बुलंद करते रहे हैं। लेकिन अब भाजपा के नेता भी नाराज होने लगे हैं। भाजपा के इस नेता ने तो रद्द ट्रेनों को लिस्टिंग कर वाट्सएप पर अपना स्टेटस ही बना लिया है। ([email protected])
पीएससी की कथाएं अनंत
पीएससी में गड़बडिय़ों की फेहरिस्त लंबी हो रही है। न सिर्फ राज्य सेवा बल्कि अन्य परीक्षाओं में गड़बडिय़ों की शिकायतें आई है। कई प्रकरण तो अदालत की चौखट तक पहुंच गए हैं। पीएससी से जुड़े कई किस्से लोग चटकारे लेकर सुना रहे हैं।
बताते हैं कि दुर्ग की एक पूर्व विधायक की बेटी ने चिकित्सा परीक्षा में शीर्ष स्थान अर्जित किया था। कुछ लोग इसको संदिग्ध बता रहे हैं। यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे पहले वो चयन परीक्षा में सफल नहीं रही थी, और लंबे समय तक संविदा पर थी। ऐसे ही ताकतवर लोगों के बेटे-बेटियां, और पत्नी तक भर्ती परीक्षा में सिलेक्ट होने की चर्चा सुनी जा रही है। अगर योग्य हैं, तो कोई बात नहीं है। मगर ऐसे कई संयोग लोगों को चौंका रहे हैं।
संस्कृति विभाग में तो दैनिक वेतनभोगी संविदा कर्मचारी सीधे द्वितीय श्रेणी के पद पर चयनित हो गए, और इसको लेकर हाईकोर्ट में आधा दर्जन याचिकाएं लग चुकी हैं। विभागीय सचिव को इन गड़बडिय़ों के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। वजह यह है कि उन्हें गड़बड़ी की जानकारी पूर्व में दी जा चुकी थी। मगर उन्होंने जांच-पड़ताल के बजाए प्रक्रिया को जारी रखा। राजभवन ने भर्ती में गड़बडिय़ों को संज्ञान में लिया है। इस तरह की गड़बडिय़ां अन्य प्रतिभागियों को परेशान कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने राज्यसेवा भर्ती परीक्षा में गड़बडिय़ों को संज्ञान में लिया है। मगर जानकार लोग मानते हैं कि अदालत से राहत मिलना आसान नहीं है। वर्ष-2005 की राज्य सेवा भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी के खिलाफ हाईकोर्ट ने ऑर्डर पास किए थे। मगर चयनित लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए। इनमें से कई को आईएएस अवॉर्ड भी हो चुका है। पीएससी में दागदार अफसरों की पोस्टिंग से गड़बड़ी के आरोपों को हवा मिलता रहा है। दिक्कत यह है कि सरकार की इस तरह के गड़बडिय़ों को ठीक करने की दिशा में अब तक कोई रूचि नहीं दिख रही है।
प्रतिभावान बेरोजगारों की व्यथा
कभी छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक जज ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि हम सब देखते हैं, अखबारों को पढ़ते हैं। मगर हर मामले में स्वयं संज्ञान नहीं ले सकते। आप लोगों को आना चाहिए आगे। हमारे सामने कई मामले आने चाहिए जिन पर हम सुनवाई करें, लेकिन हिम्मत कोई-कोई ही जुटा पाता है। मामला जैसे ही सामने आता है, हम अपनी जिम्मेदारी उठाते हैं।
इन दिनों छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के कुछ बेंच की कार्यवाईयों की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है। लोगों ने देखा कि जैसे ही सीजीपीएससी में भ्रष्टाचार की याचिका भाजपा नेता ननकी राम कंवर की ओर से आई, ऐसा लग रहा था कि कोर्ट को इस याचिका की प्रतीक्षा थी। बहुत सारी बातें चीफ जस्टिस के ऑर्डर में नहीं आई लेकिन वक्तव्य से उनकी भावनाएं जाहिर हो गई। उन्होंने कहा कि एक दो अफसर नेताओं के बेटे-बेटी प्रतिभावान हो सकते हैं मगर टॉप पर 18-18 दिख रहे हैं। यह तो बहुत गलत बात है।
पीएससी अध्यक्ष ने चाहे जितना पैसा कमाया हो, और सरकार चाहे जितनी तरफदारी करे, चीफ जस्टिस की यह एक टिप्पणी ऐसी है कि उसे अपने आप को आईने पर अपना चेहरा झांकना चाहिए। सोचना होगा कि कितने प्रतिभावानों के अवसरों को रौंदकर उन्होंने अपने बेटी बेटे-बहू और दामाद के लिए रास्ता बनाया।
दलदल से निकलने का रास्ता
हाई कोर्ट के पीएससी मामले में के बाद सोशल मीडिया पर भी भारी बवाल मचा हुआ है। एक प्रतिभागी के सुझाव पर गौर करिए, जो पीएससी की नियुक्तियों पर पारदर्शिता के तरीके बता रहे हैं। इन सुझावों पर गौर करें-
सबसे पहले वर्तमान में कार्यरत सभी अधिकारी-कर्मचारियों हटा दें। दूसरा उनका प्रमोशन भी रोक दें और किसी भी ऐसे काम में ना लगाएं जिसमें लोगों का भला करने का मौका हो। इन सभी कर्मचारी-अधिकारियों की संपत्ति की जांच हो। बीते तीन सालों में जो भी सदस्य और अध्यक्ष रहे हैं उनकी भी संपत्ति जांची जाए। टोमन सिंह सोनवानी, जो पीएससी के चेयरमैन थे उनके खिलाफ जिन-जिन जिलों में रहते शिकायतें हुई उसकी जांच की जाए। इस दौरान वह किस-किस रेस्ट हाउस या होटल में रुके और उनसे मिलने कौन-कौन पहुंचे, इसका भी पता किया जाए। टॉप सूची में शामिल सभी प्रतिभागियों के परिवारों की संपत्ति की जांच की जाए। अफसोस, यह सब पता नहीं चलेगा। फरियाद किसी मासूम की है।
खेड़ा को जानने हजारों किमी यात्रा
प्रभुदत्त खेड़ा के बारे में अगर आप नहीं जानते हैं, तो जानना चाहिए। दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे खेड़ा बरसों पहले लोरमी जिले के अचानकमार अभ्यारण में घूमने के लिए आए। प्रकृति का सौंदर्य देखकर वे जितना मंत्र मुग्ध हुए उतनी ही उनको तकलीफ हुई यहां के आदिवासियों की दशा को देखकर। वे यहीं रुक गए। नौकरी छोड़ दी। अपनी पेंशन से आदिवासी बच्चों के लिए खिलौने और टाफियां बांटते रहे। थैला लटकाकर आदिवासी परिवारों को दवाइयां घूम-घूम कर देते रहे। एक मिट्टी की छोटी सी झोपड़ी में रहने लगे। एक स्कूल उन्होंने खोला और पढ़ाई की व्यवस्था की। अपने बेहद करीबी लोगों के लिए भी वे अजूबा थे। अपने परिवार के बारे में कभी बात नहीं करते थे। मगर सम्मोहन ऐसा था कि उनसे मिलने के लिए जिले का हर कलेक्टर जंगल पहुंचता था। सामाजिक कार्य करने वाले युवाओं से उनका लगाव था। वे कुछ साल पहले गुजर चुके हैं। उनकी एक भतीजी 30 साल पहले अमेरिका में सेटल हो चुकी अनीता खेड़ा बरसों से अपने चाचा की तलाश कर रही थी। उसने चाचा को गूगल पर फिर छत्तीसगढ़ के पत्रकारों से जाना। उनके एक करीबी संदीप चोपड़े से संपर्क साध सकी। वे अमेरिका से अचानकमार पहुंची। यहां पर 3 दिन बिताया। उनका आश्रम देखा। खेड़ा के काम से आए बदलाव को महसूस किया।
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रभु दत्त खेड़ा के शुरू किए गए स्कूल को अंगीकार कर लिया है। यहां काम कर रहे आठ शिक्षकों और पढ़ रहे बच्चों का भविष्य सुधर रहा है।
नोटों के पीछे का राज क्या है?
क्या कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव पार्टी की अंदरूनी खींचतान के शिकार हुए हैं? इस पर पार्टी के अंदरखाने में चर्चा चल रही है। कुछ लोग बताते हैं कि विधायक का नोटों के बंडल के साथ वीडियो लीक होने के पीछे स्थानीय कांग्रेस नेताओं की भूमिका रही है।
कहा जा रहा है कि वीडियो सक्ती रेस्टहाऊस का है, और तीन माह पुराना है। हल्ला है कि विधायक महोदय, दो अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ रेत के कारोबार का हिसाब किताब करने बैठे थे। दोनों कांग्रेस नेता रेत के कारोबार से जुड़े रहे हैं। वो पलंग पर नोटों का बंडल रखकर विधायक के साथ चर्चा में मशगुल थे, तभी एक अन्य शख्स ने वीडियो बना दिया।
जिस शख्स ने वीडियो बनाया है वो खुद कैमरे में नजर नहीं आ रहा है, लेकिन उसकी पहचान पलंग पर बैठे कांग्रेस नेता के भाई के रूप में की गई है। चर्चा है कि विधायक से जुड़े कांग्रेस नेताओं ने ही वीडियो बनवाया है। कांग्रेस में प्रत्याशी चयन का दौर चल रहा है, ऐसे में सोच समझकर वीडियो को लीक कराया गया। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं है। मगर सीएम भूपेश बघेल ने खुलकर विधायक का बचाव किया है। बावजूद इसके विवाद थम नहीं रहा है। चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी सैलजा ने पूरे प्रकरण की जानकारी ली है, और दावा किया जा रहा है कि विधायक की टिकट भी खतरे में पड़ सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है।
रामगोपाल का विकल्प
प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल निजी कारणों से सक्रिय राजनीति से दूर हैं। मगर पार्टी उनकी जगह किसी और को कोष का दायित्व संभालने की जिम्मेदारी नहीं दे रही है। पार्टी के अंदरखाने में रामगोपाल के विकल्प के तौर पर चार कारोबारी, और अनुभवी नेताओं के नाम पर चर्चा हुई थी। एक नाम फाइनल भी हो गए थे, लेकिन जिस कारोबारी नेता के नाम पर सहमति बनी थी उनका कुछ समय पहले ही ऑपरेशन हुआ है। लिहाजा, उन्होंने जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया।
चुनाव में कोषाध्यक्ष की भूमिका काफी अहम होती है। प्रत्याशियों के खर्च से लेकर रोजमर्रा के संगठन की गतिविधियों के संचालन के लिए फंड की व्यवस्था की जिम्मेदारी उन पर होती है। पार्टी नेताओं का मानना है कि रामगोपाल अब तक यह काम बेहतर ढंग से निभाते रहे हैं। अब वो खुद ईडी की रडार पर हैं, तो उनका विकल्प ढूंढना कठिन है। एक फार्मूला यह भी है कि अलग-अलग संभागों में फंड से जुड़े काम स्थानीय प्रमुख नेताओं को सौंप दिए जाए। देखना है कि पार्टी फंड मैनेजमेंट किस तरह करती है।
न नौ मन तेल होगा...
इन दिनों जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) की जोगी शपथ रथ यात्रा प्रदेश में चल रही है, जिसमें 30 दिन के भीतर 60 विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है। जेसीसी ने पिछले चुनाव की तरह ही अपने चुनावी वादों का शपथ-पत्र तैयार किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व विधायक अमित जोगी ने 10 वायदे किए हैं। कहा है कि वायदे पूरे नहीं कर सका, तो सूली पर चढ़ा देना।
इन 10 घोषणाओं में वह सब है जो छत्तीसगढ़ को सपनों का प्रदेश बनता है। जैसे गरीब परिवारों को पांच लाख रुपए की आर्थिक मदद, 2 बीएचके मकान, बेरोजगारों को तीन हजार रुपए भत्ता, 4000 रुपए क्विंटल धान, सरकारी और निजी संस्थानों में 95 प्रतिशत रिजर्वेशन, सभी का मुफ्त इलाज, देश विदेश में उच्च शिक्षा के लिए 100 प्रतिशत अनुदान। और भी ऐसे ही कुछ।
एक आम छत्तीसगढिय़ा वोटर को इससे ज्यादा और क्या चाहिए? मगर परेशानी यह है कि जेसीसी की सरकार बनने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। यदि कांग्रेस और भाजपा में से कोई भी दल ऐसा करने की घोषणा करें तो जरूर उसकी जीत पक्की हो सकती है। वैसे भी दोनों दलों में घोषणाओं की होड़ तो लगी हुई है ही।
नोट की तरफ नहीं देखने का अर्थ
किसी घर के सामने यदि रोजाना मारुति कार खड़ी हुई देखेंगे तो आपका ध्यान उधर नहीं जाएगा। लेकिन वहीं अगर मर्सिडीज़ खड़ी हो गई तो चौंक जाएंगे, उसे निहारते रह जाएंगे। पता करेंगे कि किसकी है, कैसे आई। जिज्ञासा का मनोविज्ञान कहता है कि कोई भी अनोखा दृश्य हमें आकर्षित करता है और उसके बारे में ज्यादा जानने के लिए उत्सुक होते हैं। 15 सेकंड का एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ है जिसमें दिखाई दे रहा है कि नोटों के गड्डियों के बगल में कुर्सी पर कांग्रेस विधायक रामकुमार यादव बैठे हुए हैं। उनका जवाब यह है कि इन नोटों की तरफ वे देख नहीं रहे हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि इतने नोट वे अक्सर देखा करते हैं, उनके लिए यह कौतूहल की बात नहीं है?
पुराने अन्दाज के संगठन महामंत्री
भाजपा में संगठन महामंत्री का बड़ा अहम पद और प्रतिष्ठा होती है । एक तरह से प्रदेश के हाईकमान वही होते हैं। इस पद पर संघ के ही पूर्ण कालिक व्यक्ति को बिठाया जाता है। लेकिन भाजपा में आने के बाद उनकी कद,काठी रहन सहन एटीट्यूट सब बदल जाता है । कोई स्व.गोविंद सारंग की तरह तो कोई सौदान सिंह की तरह चर्चित हो जाते है।
वर्तमान के पवन साय को लेकर पार्टी के ही लोगों ने कई तरह से कान भरे। इसके प्रभाव में ओम माथुर, नितिन नवीन, अरुण जामवाल तक आए लेकिन बाद में सभी का मन और दृष्टिकोण बदलना पड़ा। अब तो सब कहते हैं पवन जी के पास जाइए। ये तो हुई संगठन के कामकाज की बात। व्यक्तिगत रूप में भी उतने ही लो प्रोफाइल वाले।
पिछले दिनों एक नेता जशपुर के पास इनके घर गए। भाजपा के सत्ता में रहते संगठन महामंत्री बने साय का घर लगता ही नहीं। वरना लोग पुराने भाई साहब की विदिशा में कोठी की भी चर्चा करते हैं। कवेलू का मकान।घर में वाहन के नाम पर एक साइकल। कांसे ,जर्मन और पीतल के बर्तन, लकड़ी का पलंग आदि आदि। रात में घर में कुंडी नहीं लगती। पवन साय दरवाजे खोलकर सोते हैं। वही आदत ठाकरे परिसर में भी । दिन में सामान्य भोजन और रात को सिर्फ दाल का पानी, मीनू होता है । संघ में इनसे अच्छा लाठीचार्ज करने वाला ( लट्ठमार, दंड प्रदर्शक) नहीं है। रोज की प्रैक्टिस करते हैं।
हाथियों से मौतें, हाथियों की मौत
कोरबा जिले के कटघोरा वन मंडल में इस समय 45 से अधिक हाथियों का दल विचरण कर रहा है। ये हाथी केंदई, पसान, कोरबी आदि इलाकों में दिखाई दे रहे हैं। यहां पिछले सप्ताह हाथियों के हमले की तीन घटनाएं हुईं। इनमें तीन महिलाओं सहित चार लोगों की मौत हो गई। इसी से लगे मरवाही वन मंडल में अगस्त महीने से पांच हाथियों का दल विचरण कर रहा है। दोनों ही जगह पकती हुई फसल को रौंदकर हाथियों ने बहुत से किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया। इधर धरमजयगढ़ वन मंडल में 55 हाथियों का दल घूम रहा है। रविवार की खबर है कि हाथियों ने 25 किसानों की दर्जनों एकड़ फसल बर्बाद कर दी। कोरबा वन मंडल में भी 22 हाथियों का दल अगस्त से मौजूद है।
ऐसा नहीं है कि हाथी ही ग्रामीणों की जान ले रहे हैं। बीते 10 सितंबर को धरमजयगढ़ वन मंडल में एक हाथी की फिर करंट लगने से मौत हो गई। यहां ज्यादातर हाथियों की मौत बाढ़ में करंट प्रवाहित करने से ही हो रही है स्वाभाविक मौत कम हैं। याद होगा कि कोरबा जिले के पसान इलाके में एक हाथी के शावक को गांव वालों ने पिछले साल मार डाला और उसके शव को जमीन में गाड़ दिया था। इसमें एक जनपद सदस्य सहित 12 लोग गिरफ्तार किए गए थे।
जाहिर है कि हाथियों और आदिवासियों के बीच द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। हाथी लगातार आक्रामक हो रहे हैं और अपनी फसल तथा अपनी सुरक्षा की चिंता ग्रामीण भी हमलावर हो रहे हैं। मरवाही वन मंडल के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो यह सारा टकराव संचालित और प्रस्तावित कोयला खदान क्षेत्रों में हो रहा है। हाल के दिनों की खबरों को देखें।
एसईसीएल ने घोषणा की है कि एशिया के इस सबसे बड़े कोरबा जिले की गेवरा कोयला खदान को वह दुनिया का सबसे बड़ा खदान बनाने जा रही है। उत्पादन बढ़ाकर डेढ़ गुना किया जाएगा। यहां से परिवहन के लिए पेंड्रारोड तक रेल कॉरिडोर का काम तेजी से चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी परियोजना के पहले चरण का कुछ दिन पहले अपने रायगढ़ प्रवास के दौरान उद्घाटन किया। इसी से लगे पेलमा कोलियारी पर खनन शुरू करने के लिए पिछले महीने एसईसीएल ने अडानी की एक कंपनी के साथ एमडीओ किया है।
देश का 19.8 प्रतिशत कोयला छत्तीसगढ़ में है। संयोग से हाथियों का प्राकृतिक आवास भी इसी क्षेत्र में है। झारखंड और उड़ीसा से खदानों के कारण विस्थापित हाथी भी छत्तीसगढ़ में घूम रहे हैं। खदानों का विस्तार तो छत्तीसगढ़ में बड़ी तेजी से हो रहा है लेकिन हाथियों के लिए सुरक्षित गलियारा बनाने की योजनाएं कागजों में ही है। आंशिक रूप से बादलखोल अभयारण्य का एक हिस्सा एलिफेंट कॉरिडोर के रूप में मौजूद है। पर, लेमरू रिजर्व पर अभी सिर्फ फाइल चल रही है। ([email protected])
आदिवासी कला के नाम पर...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आज से जी-20 की एक बैठक शुरू हो रही है, और सरकार की तरफ से बताया गया है कि इसमें आने वाले विदेशी मेहमानों को राज्य की तरफ से बस्तर के ढोकरा आर्ट की आदिवासी कलाकृति भी भेंट की जाएगी। इसके अलावा उन्हें जंगलों से आया शहद और मिलेट (मोटे अनाज) से बने बिस्किट भी भेंट किए जाएंगे। इसके साथ सरकार ने आदिवासी कलाकृति के नाम पर जो तस्वीर भेजी है उसमें लकड़ी की एक आधुनिक, पॉलिश की हुई फ्रेम के बीच लगी हुई एक ढोकरा आर्ट से बनी कलाकृति है। लेकिन इसका एक हिस्सा ही आदिवासी कला है, जिसे कि बड़े-बड़े शहरी कारोबारी इन दिनों बनाकर सरकार को सप्लाई करते हैं। जहां तक बस्तर की आदिवासी कला की बात है तो उसमें ऐसी फ्रेम की कोई जगह नहीं है। आज भी खुद राज्य सरकार की दुकानों पर बस्तर की खालिस आदिवासी कलाकृतियां थोक में उपलब्ध हैं, और विदेशी मेहमानों को उन्हें ही देना बेहतर होता। ऐसी पॉलिश वाली फ्रेम में उनका कोई आदिवासी-चरित्र नहीं रह जाता है, लेकिन सरकारी कामकाज में खालिस और मौलिक की कोई जगह रह नहीं जाती है। नतीजा यह है कि 20 देशों से आए हुए मेहमानों को आदिवासी कला के नाम पर शहरी कारोबारी फ्रेम दी जाने वाली है।
अफसर के मुकाबले अफसर
भाजपा आईएएस अफसर नीलकंठ टेकाम के बाद बीजापुर सीट से हेल्थ अफसर को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है। यहां से पूर्व मंत्री महेश गागड़ा की जगह हेल्थ अफसर डॉ. पीआर पुजारी को प्रत्याशी बनाने की सोच रही है।
डॉ. पुजारी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, और उनके इस्तीफे की स्वीकृति की प्रक्रिया चल रही है। डॉ. पुजारी बीजापुर के रहने वाले हैं, और वो सीएमएचओ रहे हैं। उनकी साख अच्छी है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि डॉ. पुजारी के चुनाव जीतने की संभावना सबसे ज्यादा है।
पार्टी ने पूर्व आईएएस नीलकंठ टेकाम की केशकाल से टिकट पक्की कर दी है। इसी तरह पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो को सीतापुर सीट से खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के खिलाफ चुनाव लड़ाने जा रही है। विधानसभा प्रत्याशियों की अगली लिस्ट में डॉ. पुजारी, और रामकुमार टोप्पो का नाम हो सकता है। यह लिस्ट 22 तारीख के बाद जारी हो सकती है।
पुराने चेहरे रहेंगे
कांग्रेस में रायपुर की चारों सीटों के लिए सहमति बनाने की कोशिश चल रही है। पार्टी के रणनीतिकारों का दावा है कि रायपुर दक्षिण को छोडक़र बाकी तीन सीटों पर सहमति बन गई है। मसलन, विकास उपाध्याय रायपुर पश्चिम से ही चुनाव लड़ेंगे।
रायपुर ग्रामीण से पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा की जगह उनके बेटे पंकज प्रत्याशी होंगे। जबकि रायपुर उत्तर से मौजूदा विधायक कुलदीप जुनेजा को ही प्रत्याशी बनाने पर सहमति बनती दिख रही है यद्यपि कुलदीप के खिलाफ कुछ पार्षदों ने मोर्चा खोल दिया है, और नए चेहरे पर विचार हुआ था। मगर कोई बदलाव होगा, इसकी संभावना कम दिख रही है।
रायपुर दक्षिण से मेयर, और सभापति की दावेदारी है। पिछले चुनाव में सभापति प्रमोद दुबे ने आखिरी वक्त में चुनाव लडऩे से मना कर दिया था। इस बार वो चुनाव लडऩा चाहते हैं, लेकिन इसके लिए छानबीन समिति के सदस्य रजामंद नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में किसी नए को मौका मिल सकता है।
इनकम टैक्स घुसेगा?
चर्चा है कि चंद्रपुर के विधायक रामकुमार यादव आईटी के घेरे में आ सकते हैं। यादव का नोटो के बंडल के साथ वीडियो वायरल हुआ था। वो नोटो को लेकर अनभिज्ञ हैं। मगर जांच एजेंसियां इसको लेकर गंभीर दिख रही है।
कहा जा रहा है कि रामकुमार यादव के खिलाफ एक शिकायती पत्र इनकम टैक्स विभाग को भेजा गया है। चुनाव के चलते काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के चुनाव आयोग के सख्त निर्देश भी हैं।
आयोग इस सिलसिले में आईटी और ईडी के अफसरों के साथ बैठक भी कर चुकी है। ऐसे में माना जा रहा है कि शिकायतों के आधार पर यादव के खिलाफ जांच शुरू हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
और हमारे पर्व पर ट्रेन कैंसिल..
ट्रेनों को रद्द करने के खिलाफ कांग्रेस के आंदोलन का उल्टा असर दिखा है। झांसी रेलवे स्टेशन में वॉशेबल एप्रॉन का काम चलने का हवाला देते हुए 16 सितंबर से दिल्ली की ओर जाने वाली लगभग सभी ट्रेनों को रद्द कर दिया गया। जानकार बताते हैं कि एक साथ छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस, गोंडवाना, उत्कल, संपर्क क्रांति, दुर्ग-उधमपुर एक्सप्रेस जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनों को रद्द किया जाना जरूरी नहीं था। इसके दो विकल्प हो सकते थे। एक तो झांसी स्टेशन पर काम चल रहा है तो ट्रेनों को वहां नहीं रोक बिना आगे बढ़ा दिया जाता। उस पटरी से जहां से मालगाडिय़ों को पास किया जा रहा है। दूसरा विकल्प था कि ट्रेनों को बीना की ओर से डायवर्ट कर देते। अक्सर रेलवे ऐसा करती ही है। इससे यात्रियों की यह धारणा मजबूत हुई है की रेलवे यात्री ट्रेनों को रद्द करने का बहाना तलाश करती है। कसर इतने में भी पूरी नहीं हुई। छत्तीसगढ़ में तीजा महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार है। बस, टैक्सी, ऑटो रिक्शा, बाल-बच्चों सहित मायके जाने वाली तीजहारिनों से ठसाठस भरे चल रहे हैं। इस त्यौहार के ठीक पहले 17 से 26 सितंबर तक गोंदिया से रायपुर और शहडोल, बालाघाट की ओर चलने वाली अधिकांश पैसेंजर ट्रेनों को रेलवे ने रद्द कर दिया। रेलवे पहले हमेशा इस बात का ध्यान रखती थी की क्षेत्रीय पर्व त्योहार पर ट्रेन सुविधा बढ़ा दी जाए। दूसरे रेलवे जोन इसका ख्याल भी रख रहे हैं। महाराष्ट्र में गणेश उत्सव पूरे 9 दिन धूमधाम से मनाया जाता है। पश्चिम और मध्य रेलवे ने इस मौके पर 312 विशेष ट्रेनों की घोषणा की है। इधर अपना छत्तीसगढ़ है, जहां नियमित चलने वाली पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेनों को एकमुश्त रद्द किया गया है। ([email protected])
टिकट इधर से, आशीर्वाद उधर से
कांग्रेस से टिकट के दावेदार कई नेता दिल्ली में सक्रिय हैं। इनमें से एक-दो नेता तो पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से मिलने भी पहुंच गए। कांग्रेस नेताओं ने आडवाणी से अपनी टिकट, और जीत के लिए आशीर्वाद भी मांग लिया।
सिंधी अकादमी के डायरेक्टर अर्जुन वासवानी रायपुर उत्तर से कांग्रेस की टिकट मांग रहे हैं। अर्जुन, अकादमी के चेयरमैन राम गिडलानी, और मीनाक्षी वर्मा के साथ आडवानी से मिलने पहुंचे थे।
इन नेताओं ने आडवाणी को छत्तीसगढ़ में सिंधी समाज के राजनीतिक प्रभाव के बारे में बताया, और कहा कि सिंधी समाज के मतदाता पहले भाजपा के परम्परागत वोटर माने जाते रहे हैं। मगर जब से आप (आडवाणी जी) जैसे बुजुर्ग नेताओं को उपेक्षित किया गया है। समाज के लोगों का रूझान अब कांग्रेस की तरफ बढ़ रहा है। बताते हैं कि आडवाणी जी चुपचाप कांग्रेस नेताओं को सुनते रहे, और फिर मुस्कुराते हुए आशीर्वाद भी दिया।
महीने भर में पोस्टिंग नहीं
आईएएस के वर्ष-2006 बैच की अफसर श्रुति सिंह महीनेभर हो चुके हैं, लेकिन उनकी पोस्टिंग नहीं हुई है। सचिव स्तर की अफसर श्रुति सिंह अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर थीं।
श्रुति सिंह की पोस्टिंग की फाइल सीएम ऑफिस को भेजी गई है। उन्हें नीलकंठ टेकाम की जगह कमिश्नर ट्रेजरी का प्रभार देने का प्रस्ताव है। श्रुति सिंह, बेमेतरा, और गरियाबंद कलेक्टर रह चुकी हंै। इसके अलावा संचालक उद्योग के पद पर भी कुछ समय काम चुकी हैं। देखना है कि उन्हें क्या कुछ मिलता है।
भाजपा के चार बड़े दावेदार
जब से आज तक के सर्वे और माथुर साहब ने अपनी रिपोर्ट दिल्ली को सौंपा है प्रदेश भाजपा में सब कुछ तेज चल रहा है। प्रदेश के चार नेता ठाकरे परिसर अगली संभावना को लेकर कदमताल कर रहे हैं। ये चारों नेता विधानसभा चुनाव लडऩे मैदान में उतर रहे हैं। इनमें से एक की टिकट तो घोषित हो गई है। विजय बघेल पाटन से अपने कका को ही चुनौती दे रहे।
प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, पूर्व सीएम रमन सिंह, और महामंत्री ओपी चौधरी की घोषणा शेष है। साव लोरमी या तखतपुर से, डॉ.सिंह राजनांदगांव में प्रचार शुरू कर चुके हैं। चौधरी का नाम अब रायगढ़ से सुना जा रहा। चारों जीत गए तो शुरू होगा खेला। विजय बघेल न केवल घोषणा पत्र बना रहे बल्कि दिग्गज के खिलाफ लडऩे का फायदा मिलेगा।
साव का मोदी के साथ रथ शेयर करना बड़ा संदेश दे रहा। डॉ. सिंह हैं ही पूर्व सीएम के रूप में दावेदार। चौधरी साब , अमित शाह के आशीर्वाद की उम्मीद से दावेदार हैं। कुल मिलाकर भाजपा में भावी सीएम के ये चार ही दावेदार उभर आए हैं। सबके के एटिट्यूट और बॉडी लैंग्वेज में भी बड़ा अंतर देखा जा रहा है।
चुनाव आया, वीडियो लाया
जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, नेताओं के खिलाफ तरह-तरह की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर फैल रही हैं। इसके लिए कुछ तो असली स्टिंग ऑपरेशन का इस्तेमाल दिख रहा है, और कुछ बहुत बुरी तरह घटिया क्वालिटी की गढ़ी हुई वीडियो क्लिप दिख रही है। कांग्रेस के एक मौजूदा विधायक, चन्द्रपुर के रामकुमार यादव के चेहरे सहित दिखता एक ऐसा वीडियो तैर रहा है जिसमें उनके सामने गद्दे पर नोटों के बंडलों के गट्ठे पड़े हुए हैं। अब इन्हें कौन किससे ले रहे हैं, कौन किसको दे रहे हैं, यह तो साफ नहीं है, लेकिन लोग इसका मजा जरूर ले रहे हैं। इस वीडियो के साथ भाजपा के नए नेता ओ.पी.चौधरी ने भी लिखा है कि क्या कांग्रेस इसे जांच के लिए सीबीआई को देने का साहस दिखाएगी? या फिर कोयले वाले वीडियो की तरह मेरे ऊपर एफआईआर दर्ज करवाएगी? उन्होंने विधायक और उनके क्षेत्र का नाम लिखते हुए कहा है कि ये अपने आपको गरीब और बेचारे के रूप में पेश करते हैं। ये विधायक बनने के पहले प्रधानमंत्री आवास योजना के मकान में रहते थे, खुद दावा करते हैं कि बाप-दादा और वे खुद बैल चराते थे, लेकिन सोशल मीडिया में वायरल हो रहे इस वीडियो को देखिए, इसमें सामने रखे नोटों की गड्डी...
गढ़ी हुई सेक्स-वीडियो क्लिप पर किसी महिला का चेहरा लगाकर बहुत ही घटिया क्वालिटी का काम किया गया है, जो कि जुर्म तो ऊंचे दर्जे का है, लेकिन वीडियो क्वालिटी घटिया है। इसके खिलाफ भी तुरंत ही मामला दर्ज होना चाहिए, फिर चाहे कोई कार्रवाई हो या न हो।
वीडियो वायरल होते ही रामकुमार यादव ने भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने वीडियो संदेश में कहा कि इसका उद्देश्य क्या है ये वीडियो डालने वाले ही बता सकते हैं न पैसा देख रहा हूं, न ही मेरा ध्यान उस तरफ है। इसे मेरे कहीं बैठक की जगह जोडक़र बनाया गया है। ये सामंतवादी बड़े लोगों की सोच है कि गाय भैंस चराने वाले मजदूरी दिहाड़ी करने वाला विधायक चुनकर विधानसभा क्यों जाए। इसलिए यह किया गया लगता है।
धान के लिए किसकी वाहवाही हो?
भ्रष्टाचार, सनातन विरोधी और धर्मांतरण पर कांग्रेस को घेर रही भाजपा को इस बात की चिंता जरूर होगी कि धान की समर्थन मूल्य पर खरीदी और उस पर दी जा रही प्रोत्साहन राशि का इस कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले राज्य के मतदाताओं पर बड़ा असर है। शायद इसीलिए केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने अभी एक पत्रकार वार्ता लेकर कहा कि जितना चावल भूपेश सरकार ने देने की बात कही, उतना 13 सितंबर की तारीख तक भी नहीं दे पाई है।
इधर, भाजपा ने कांग्रेस सरकार के इस दावे को बार-बार गलत बताया है कि राज्य सरकार अपने पैसों से यह खरीदी करती है। दोनों ही दलों के अलग-अलग दावों से किसान भ्रम में हैं। अपना पक्ष और साफ तरीके से रखने के लिए सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफॉर्म पर भाजपा वीडियो पोस्ट डाल रही है। इसमें कहा गया है कि धान खरीदी के लिए पिछले साल केंद्र ने 2040 रुपये प्रति क्विंटल राज्य सरकार को दिया। इसमें 600 रुपये प्रोत्साहन राशि राज्य सरकार दे रही है। अपितु यह जरूर बताया गया है कि समर्थन मूल्य के अतिरिक्त 600 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को कर रही है। जाहिर है कि यह जो अतिरिक्त राशि अपनी ओर से दे रही है, उसके एवज में राज्य सरकार को कुछ नहीं मिल रहा है। सफाई में यह कहने से बचा गया है कि राशि के एवज में केंद्र को वापस धान या चावल मिल जाता है। भाजपा की सोशल मीडिया सेल ने यह वीडियो अपनी पार्टी का पक्ष रखने के उद्देश्य से बनाया और पोस्ट किया, पर इसमें किसानों को कांग्रेस की ओर से की जा रही 600 रुपये की अतिरिक्त मदद का प्रचार हो रहा है। वीडियो देखने पर किसानों को यही समझ में आएगा कि केंद्र की ओर से उन्हें धान की पर्याप्त कीमत नहीं दिया जा रहा है।
आज बेरोजगारों का दिन
आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस चैट जीपीटी आपको वे ही जानकारी व्यवस्थित करके देता है, जो इंटरनेट पर बिखरे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज जन्मदिन है। किसी ने पूछ लिया कि भारत किस दिन को राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस के रूप में मनाना है। चैट जीपीटी ने बताया कि 17 सितंबर। फिर पूछा गया कि यह किसके जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है? जवाब मिला, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर। बेरोजगारी के मुद्दे पर ध्यान खींचने के लिए युवा ऐसा करते हैं।
यह संयोग है कि आज ट्विटर पर टॉप ट्रेंड में प्रधानमंत्री का जन्मदिन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस टॉप ट्रेंड कर रहा है।
ईमानदार पुलिस और उसका हिसाब
पुलिस को ईमानदार बताने और यह कहते सुनने वाले बहुत कम ही होंगे। क्या करें उनकी बेगारियां इतनी अधिक होती हैं कि न चाह भी ईमान के आगे बे जोडऩा पड़ता ही है। लेकिन कभी कभी अच्छा सुनने के मिल जाता है । 2 से 4 दिन पहले की बात है। नवा रायपुर में चलने वाली सीएसपी के अंडर की क्यूआरटी में तीन सिपाहियों ने शराब पीते तीन लडक़ों से 3 हजार ऑनलाइन रिश्वत तक ले ली। उन्होंने जब एक व्यक्ति को बताया तो वे भी मौके पर पहुंचे। तब तक सिपाही 4 -5 कार वालों से ऑनलाइन पेमेंट ले चुके थे। जब तीन थानों के टीआई साहेबान लोगो को बताया तो तीनो मौके पर पहुंचे और मान मनौव्वल करते हुए सबके पेमेंट ऑनलाइन ही वापस करवाए। अब हिसाब लगाए 3 हजार प्रति गाड़ी। रोजाना रात भर में 10 गाडिय़ां मिली तो करीब 30 हजार एक रात में। महीने के 9 लाख। और कार में लडक़ी के साथ मिलने वाले से ज्यादा वसूली।
93 साल का नया वोटर
उत्तर-बस्तर, कांकेर जिले के शेर सिंह हिडक़ो की उम्र 93 साल है, मगर आज तक उन्होंने वोट नहीं डाला। वजह, मतदाता सूची में उनका नाम ही नहीं था। पूछने पर जवाब मिला कि किसी ने वोटर आईडी बनाया ही नहीं। वह तो पढ़ा-लिखा है नहीं, बनवा नहीं सका और किसी ने वोट डालने के लिए भी नहीं कहा। अब शेरसिंह का नाम उसके गांव भैंसाकन्हार की मतदाता सूची में जोड़ दिया गया है और मतदाता परिचय पत्र भी दे दिया गया है। सन् 1952 से लेकर अब तक कितने ही चुनाव हो चुके, पर किसी राजनीतिक दल ने भी मतदाता सूची में इनका नाम नहीं होने की तरफ ध्यान नहीं दिया। मतदान के लिए लोग कितने जागरूक हैं, यह इस बात से समझा जा सकता है कि शेरसिंह के बेटे का वर्षों से मतदाता सूची में नाम है और वह वोट डालने के लिए जाता है लेकिन उसने कभी अपने पिता का नाम वोटर के रूप में दर्ज कराने की जरूरत नहीं समझी। शेर सिंह का कहना है कि उसे पहली बार मौका मिला है तो वोट जरूर डालेगा। वैसे, घर-घर सर्वे में लगे उस शिक्षक को सम्मानित जरूर करना चाहिए जिसने शेरसिंह को ढूंढ निकाला और उसे उम्र के आखिरी पड़ाव में मतदाता होने का गौरव दिलाया।
हथेली में मेहंदी स्वामी की?
इन दिनों चल रहे तीज त्यौहार को मतदाता जागरूकता अभियान, स्वीप से जोडऩे की पहल प्रशासन कर रहा है। इस काम में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, शिक्षक-शिक्षिकाओं और जमीनी स्तर पर काम कर रहे सरकारी कर्मचारियों, महिला स्व सहायता समूहों आदि की मदद ली जा रही है। पर इस उत्साह के बीच जारी एक सरकारी पत्र विवाद में घिर गया। जिला पंचायत बिलासपुर की ओर से इस पत्र में कहा गया कि मेहंदी प्रतियोगिता में शामिल हों। एक हाथ में मेंहदी स्वामी के लिए, दूसरे में स्वीप (मतदाता जागरूकता) के लिए हो। तैयार होने के बाद जब यह पत्र कुछ जागरूक महिलाओं के हाथ लगा तो उन्होंने आपत्ति की। पूछा, जिला पंचायत के अधिकारी किस आदमी को महिलाओं का स्वामी बता रहे हैं...। वे दिन लद गए, पति स्वामी नहीं होता। यह रूढि़वादी पुरुष मानसिकता है। पत्र की भाषा गलत है।
गनीमत है कि पत्र ज्यादातर पंचायतों, संस्थानों तक भेजा नहीं गया था। तुरंत दूसरा पत्र तैयार किया गया। इसमें से स्वामी से संबंधित पूरा वाक्य हटा दिया गया। कहा गया कि बायें हाथ में मेंहदी स्वीप की लगाएं, दाहिने हाथ में अपनी पसंद की।
जी-20 बैठक की अग्रिम बधाई..
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद लगा होगा कि विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी में 9 और 10 सितंबर को दिल्ली में हुआ समारोह जी-20 का आखिरी कार्यक्रम था। इसलिये वे रायगढ़ के अपने भाषण में छत्तीसगढ़ के लोगों को यह कहते हुए बधाई दे गए कि नया रायपुर में शानदार कार्यक्रम हुआ, आप लोगों ने मेहमानों को छत्तीसगढ़ के खान-पान और संस्कृति के बारे में बताया, पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हुई। दरअसल, दिल्ली का कार्यक्रम खत्म होने के बाद कई अखबार, न्यूज चैनल और डिजिटल मीडिया ने भी इसी तरह की खबरें चलाई मानों दिल्ली का कार्यक्रम ही आखिरी था। अमूमन सबसे बड़े समारोह को समापन में ही रखा जाता है, इसलिये ऐसा अंदाजा लगाया जाना स्वाभाविक था। जी-20, जो अब अफ्रीकी यूनियन के शामिल होने के बाद जी-21 हो चुका है, के अगले मेजबान ब्राजील को इस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने प्रतीक दर्शाने वाला हथौड़ा भी सौंप दिया। पर देश के पास इसकी अध्यक्षता 30 नवंबर 2023 तक है। 60 शहरों में कार्यक्रम तय किए गए थे। रायपुर में भी एक कार्य समूह का आयोजन 18 और 19 सितंबर को होने वाला है। इसमें करीब 50 डेलीगेट्स शामिल होने वाले हैं। रायगढ़ की आमसभा में जब मोदी ने रायपुर के सफल कार्यक्रम के लिए लोगों को बधाई दी तो सवाल यह खड़ा हो गया है कि यह अनुमान उन्होंने खुद से लगाया या किसी अफसर या पार्टी के नेता ने उन्हें यह गलत जानकारी दी? चलिये, इसे अग्रिम बधाई मान लेते हैं।
सर्व आदिवासी समाज को झटका
सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष सोहन पोटाई का बीते मार्च माह में निधन हो गया था। वे भाजपा की टिकट पर चार बार सांसद रहे। सन् 2014 में टिकट कटने के बाद वे सर्व आदिवासी समाज की गतिविधियों से जुड़ गए। सोहन पोटाई के बेटे अंकित ने परिवर्तन यात्रा के दौरान कांकेर में भाजपा प्रवेश कर लिया। वे पहले भी भाजपा में रहे हैं लेकिन पिता के पार्टी छोडऩे के बाद उनके साथ चले गए थे। वे भाजपा में नि:शर्त ही आए होंगे, क्योंकि कांकेर से भाजपा का प्रत्याशी तय हो चुका है। आसपास की सीटों से लड़ाने की योजना हो तो अलग बात है। इधर सर्व आदिवासी समाज इस बार प्रदेश की 50 सीटों पर चुनाव लडऩे की योजना पर काम कर रहा है। इस बीच सोहाई के बेटे को अपने साथ ले लेने से भाजपा को एक बड़ी सफलता मिल गई।
परिवर्तन यात्रा से प्रत्याशी टले ?
चर्चा है कि भाजपा प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट स्थानीय प्रमुख नेताओं के आग्रह पर रोकी गई है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के निवास पर बुधवार की रात प्र्रत्याशी चयन के लिए बैठक हुई थी। इससे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी थे। बैठक में छत्तीसगढ़ की 20 प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगाई गई।
कहा जा रहा है कि पार्टी ने मध्य प्रदेश की 40, और छत्तीसगढ़ की 20 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने की तैयारी भी कर ली थी। लेकिन छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख नेताओं ने प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और सह प्रभारी नितिन नबीन से संपर्क कर लिस्ट जारी नहीं करने का आग्रह किया। ये नेता परिवर्तन यात्रा में जुटे हुए, और वो इस बात को लेकर सशंकित थे कि प्रत्याशी घोषित होने से यात्रा प्रभावित हो सकती है।
केन्द्रीय नेतृत्व ने भी आग्रह मान लिया है, और प्रत्याशियों की लिस्ट फिलहाल रोकने का फैसला लिया है। प्रत्याशियों की अगली लिस्ट में बस्तर की सीटें ज्यादा होंगी। क्योंकि यहां पहले फेस की यात्रा का समापन 20 तारीख को होगा।
प्रत्याशियों को खर्च मिलना शुरू
भाजपा ने आर्थिक रूप से कमजोर प्रत्याशियों को चुनाव खर्च देना शुरू कर दिया है। चर्चा है कि सभी प्रत्याशियों को 15-15 लाख दिए जा रहे हैं इसके अलावा प्रचार सामग्री भी उपलब्ध कराई जा रही है। पार्टी हर विधानसभा में एक कार्यालय भी खोलेगी जिसका खर्च पार्टी खुद वहन करेगी। कुल मिलाकर आर्थिक रूप से कमजोर प्रत्याशियों पर पार्टी विशेष ध्यान दे रही है।
आईपीएस लिस्ट
भारतीय पुलिस सेवा के अफसरों की एक और लिस्ट जल्द जारी हो सकती है। सूची में कुछ एसएसपी स्तर के अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। कुछ अफसर फील्ड से हटने के लिए गुजारिश भी कर चुके हैं। अक्टूबर के पहले हफ्ते में विधानसभा चुनाव आचार संहिता संभावित है। ऐसे में पुलिस के प्रस्तावित फेरबदल को अंतिम माना जा रहा है।
चुनिंदा का हाल
छत्तीसगढ़ पीएससी की चयन प्रक्रिया और सफल अफसरों के आईक्यू को लेकर खबरें छन छन के बाहर आ रहीं है। ऐसे ही एक कलेक्टर के पुत्र की चर्चा होने लगी है। अफसर पिता ने बेटे को प्रतियोगी परीक्षा के लिए अच्छे से अच्छे कोचिंग सेंटर में प्रशिक्षण दिलवाया था। लेकिन मॉक इंटरव्यू में बेटा घबरा गया। इसका मतलब यह नहीं की रियल इंटरव्यू में असफल हो गया । वहां तो सेलेक्ट हो गया। लेकिन बेटे का आईक्यू देख, सुन पिता को सलेक्शन के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी होगी। हुआ यूं कि मॉक इंटरव्यू में डमी बोर्ड मेंबरों ने पूछा - इसरो का फुल फॉर्म क्या है? बेटा बहुत देर तक चुप रहा। यह देख बोर्ड मेंबर ने ही बता दिया। इस पर बोर्ड मेंबर महिला ने कहा कि अभी चंद्रयान भेजा था न इसरो। जी पता है, बेटे ने कहा । मैडम बोली -पता है तो बताया क्यों नहीं? उसने कहा- पैनिक (घबरा)हो गया था। मैडम बोली- बोलना चाहिए था न ,पैनिक क्यों होना ,ये रियल इंटरव्यू तो नहीं है न। अब रिजल्ट यह है कि बेटा 14वीं रैंक में डिप्टी कलेक्टर चुन लिया गया।
नई रेलवे लाइन खनिजों के लिए
छत्तीसगढ़ रेल सुविधाओं के नाम पर बहुत पिछड़ा राज्य है। कुछ शहर को छोड़ दें तो यहां रेलवे लाइनों का विस्तार ही नहीं हो सका है। फिर भी राजस्व देने के मामले में छत्तीसगढ़ प्रमुख राज्यों में शुमार है।
अभी रेलवे के जो हालात हैं वह भी उससे रेल यात्रियों का भरोसा खत्म हो गया है। ऐसे में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को दो बड़ी चीजें दी है, पहला छह हजार करोड़ से चार नई रेल कारीडोर का निर्माण और प्रमुख स्टेशनों के कायाकल्प के लिये भारी भरकम बजट।
सवाल यह है कि क्या इन दोनों योजना से क्या रेलवे कनेक्टिविटी प्रदेश में बढ़ जाएगी? क्या सभी राज्यों में जल्दी पहुंचने के लिये यात्री ट्रेनों की संख्या बढ़ेगी? क्या यात्रा के लिये लंबी वेटिंग लिस्ट छोटी हो पाएगी? या फिर ये रेलवे कॉरिडोर बनाने की योजनाएं केवल यहां के कोयले को देशभर के पावर प्लांटों में पहुंचाने बस के लिये है। आजादी के पहले रेल लाइनें भी इसी उद्देश्य से बिछाई जाती थी कि खनिजों के परिवहन के लिये सुविधा हो सके। ऐसे वक्त शाहरुख खान की फिल्म जवान की वह बात याद आती है कि सरकार को अरबपति बनाते हैं अपनी सुविधा के लिये।
कॉरिडोर और हसदेव
रेलवे कॉरिडोर बनने पर वे सब खूब तालियां बजा रहे हैं जो हसदेव अरण्य के उजडऩे की योजना के खिलाफ मुखर थे। आज वो भी सरकार का गुणगान कर रहे हैं, जो पेड़ों को बचाने के लिये जन आंदोलन में भाग लेते थे। वे युवा भी जय जयकारा लगा रहे हैं जो कुछ महीनों पहले सोशल मीडिया में हसदेव बचाने क्रांति की मशाल लेकर चल रहे थे।
जो रेलवे कारीडोर बनाने की योजना पर तालियां बजा रहे हैं वे याद रखें कि भविष्य में प्रदेश के हर हसदेव के लिये उन्हें अब मुखर होना पड़ेगा।
पार्टी के कई फूफा
अगले पूरे दो ढाई महीने तक पूरे अभियान को ऑपरेट करने भाजपा ने 17 अलग अलग समितियों का गठन किया हुआ है। इनकी जिम्मेदारी पूर्व मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ नेताओं को दी है। मगर संगठन के दो नेताओं ने पूरा काम सम्हाला हुआ है। इससे चुनाव प्रभारी भी गदगद हैं। कुछ फूफा लोग अवश्य नाराज, असंतुष्ट हो रहे हैं। कल इन फूफाओं ने वर्चुअल बैठक कर अपनी नाराजगी से सभी भाई साहबों को अवगत कराने का फैसला कर स्क्रीन ऑफ किया। उनका कहना था कि कुंवर साहब ने कहा है कहकर सभी को आर्डर देने लगे हैं। इनका कहना है कि प्रोटोकॉल समिति को राष्ट्रीय नेताओं के दौरे की सूचना देनी है, संयोजक को पता नहीं चलता जारी हो जाता है।
आवास समिति सुरेंद्र पाटनी को पता व्यवस्था हो रही। वाहन समिति रोहित द्विवेदी को पता नहीं कौन किस गाड़ी में आ,जा रहे। राजेश मूणत को पता नहीं और 4 करोड़ की प्रचार सामग्री खरीद ली गई, अब वे बीएल को क्या सफाई दे। सांस्कृतिक दल समिति श्रीचंद सुंदरानी को पता नहीं रथयात्रा में कार्यक्रम होने लगे। दीगर राज्यों के नेताओं के दौरे होने लगे हैं और अशोक बजाज को पता नहीं ।वित्त समिति अमर अग्रवाल, नंदन जैन, मद्दी को ओवरटेक कर दिया गया ।कंटेट क्रिएटर समिति ने अब तक क्या किया पता नहीं। उल्लेखनीय कंटेंट तो अब तक सुनने पढऩे में नहीं आया। केंद्रीय नेता प्रवास समिति लोकेश कावडिय़ा ने अब तक एक नेता को अटेंड नहीं किया। यह सारा काम दो ही नेता बखूबी कर रहे हैं। अब भला कोई बुलाकर काम थोड़ी देता है, जिम्मेदारी दे दी गई है तो निभाने के लिए इन्वाल्व होना पड़ता है। ।
नगदी की परेशानी
विधानसभा चुनाव के चलते सीमावर्ती इलाकों में वाहनों की सघन जांच-पड़ताल चल रही है। यह सब चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुरूप हो रहा है। इन सबके बीच पिछले दिनों मनेन्द्रगढ़ चेकपोस्ट पर पुलिस ने कार से करीब 40 लाख रूपए बरामद किए।
पुलिस से पूछताछ में कार सवार युवक पैसे को लेकर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। इसके बाद पुलिस ने प्रकरण आयकर विभाग को सौंप दिया गया है। बताते हैं कि यह रकम प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता की थी, जो कि पार्टी का कोष भी संभाल चुके हैं। नेताजी बड़े कारोबारी भी हैं। ऐसे में उनके पास नगदी का फ्लो भी काफी रहता है।
इलाके के कई प्रत्याशियों के चुनाव खर्च की जिम्मेदारी भी नेताजी संभालते आए हैं। ऐसे में रकम की बरामदगी पार्टी के लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। पार्टी के रणनीतिकार इस बात से भी चितिंत है कि आगे भी इसी तरह की कार्रवाई होती रही, तो चुनाव संचालन में दिक्कत आ सकती है।
कांग्रेस टिकट और बयान
कांग्रेस में टिकट पर दिग्गज नेताओं के विरोधाभासी बयान से दावेदार असमंजस में हैं। सरकार के मंत्री रविन्द्र चौबे बयान दे चुके हैं कि 35 सीटों पर नाम तय कर दिए हैं। बाकी सीटों पर मंथन चल रही है। चौबे यहां तक कह चुके हैं कि पार्टी 40 सीटों पर नए चेहरे उतार सकती है। इन सबके बीच डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव का बयान आया कि चार सीटों पर ही नाम तय हुए हैं। बाकी 86 सीटों पर विचार मंथन चल रहा है।
सिंहदेव का बयान चौबे की तुलना में ज्यादा वजनदार माना जा रहा है। वजह यह है कि सिंहदेव छानबीन समिति के सदस्य हैं। और वो प्रदेश से केन्द्रीय चुनाव समिति के अकेले सदस्य नियुक्त किए गए हैं। ऐसे में टिकट को लेकर जो कुछ भी होगा उसमें सिंहदेव की भूमिका अहम रहेगी। मगर इससे कई विधायक और दावेदार ज्यादा परेशान हैं। वो अब तक समझ नहीं पा रहे हैं कि टिकट को लेकर आखिर क्या चल रहा है।
भाजपा की भगदड़
दंतेवाड़ा से भाजपा की परिवर्तन यात्रा तो तामझाम से शुरू हुई, लेकिन तुरंत ही यात्रा के अगुवा अरूण साव, और रमन सिंह सहित अन्य नेताओं को प्रत्याशी चयन के लिए दिल्ली निकलना पड़ा। ऐसे में यात्रा की बागडोर रेणुका सिंह, और बृजमोहन अग्रवाल को सौंप दी गई। यात्रा कठिन मार्गों से होते हुए कोंडागांव और फिर कांकेर पहुंचेगी तब दिग्गज नेता फिर रथ पर सवार हो जाएंगे।
इस बीच में पीएम का रायगढ़ में कार्यक्रम चल रहा है। बृजमोहन और अन्य नेताओं के पहले रायगढ़ जाने का कार्यक्रम था, लेकिन अन्य प्रमुख नेताओं के मौजूद नहीं होने के कारण उन्हें यात्रा स्थगित करनी पड़ी। यात्रा को लेकर भी पार्टी के अंदरखाने में किचकिच चल रही है।
अब किसानों की नाराजगी उभर रही...
यात्री ट्रेनों से संबंधित समस्या कोविड-19 के बाद से ही बनी हुई है पर कांग्रेस ने अब बड़ा आंदोलन किया। यह केंद्र सरकार के उपक्रमों के खिलाफ उसका दूसरा प्रदर्शन था। इसके पहले रायगढ़ की पेलमा खदान का एमडीओ अडानी की कंपनी को सौंपने के खिलाफ एसईसीएल मुख्यालय के सामने प्रदर्शन किया जा चुका है।
रेल रोको आंदोलन के दौरान कुछ घंटों तक ट्रेनों का आवागमन थमा जरूर था लेकिन बड़े पैमाने पर गाडिय़ों की आवाजाही पर असर नहीं पड़ा। यह जरूर हुआ कि कांग्रेस के नेता कार्यकर्ता प्रदर्शन में बड़ी संख्या में शामिल हुए और केंद्र सरकार के खिलाफ मतदाताओं का ध्यान खींचने में सफल रहे।
अब एक और मुद्दा उभर रहा है। धान खरीदी की तैयारी सरकार कर रही है और इसमें किसानों की बायोमैट्रिक पहचान अनिवार्य कर दी गई है। केंद्र का कहना है कि ऐसा इसलिये किया गया है ताकि वास्तविक किसानों का ही धान समर्थन मूल्य पर खरीदा जाए। देखा जाए तो फर्जी खरीदी को रोकने के लिए बीते 3 वर्षों में दो तीन पुख्ता इंतजाम किये जा चुके हैं। इसमें किसानों का भू अधिकार पत्र आधार कार्ड से जोड़ दिया गया है, दूसरा भुईयां पोर्टल में उनके रकबे का पटवारी ने सत्यापन भी किया है। बायोमैट्रिक पहचान के लिए किसानों को अपनी ऊंगलियों का निशान मैच कराने में दिक्कत खड़ी हो सकती है। इसके लिए आधार कार्ड का अपडेट होना भी जरूरी है। कांग्रेस इस व्यवस्था के खिलाफ है। इसमें रियायत देने की मांग भी मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से की है। इसकी असल दिक्कत तब सामने आएगी, जब चुनाव आचार संहिता लागू हो चुकी रहेगी और चुनाव प्रचार अभियान भी शुरू हो चुका रहेगा। यदि बायोमैट्रिक पहचान का मिलान नहीं होने के कारण किसान धान बेचने के लिए भटकेंगे तो यह सरकार के खिलाफ जाएगा। जरूरी नहीं कि यह केंद्र सरकार के खिलाफ ही जाए, क्योंकि किसानों में आम धारणा है कि खरीदी राज्य सरकार कर रही है। हो सकता है इस बाधा के लिए भी उसे ही जिम्मेदार माना जाए। किसान कह रहे हैं कि मसला अभी के अभी सुलझ जाना चाहिए, वरना चुनाव में यह मुद्दा किसके खिलाफ जाएगा, वे कह नहीं सकते।
रद्द ट्रेन अचानक रवाना हो गई..
कांग्रेस का रेल रोको आंदोलन कितनी गाडिय़ों की आवाजाही पर असर डालेगा, इसका रेलवे अनुमान नहीं लगा पाई थी। आंदोलन का असर ही था कि कई इस सप्ताह रद्द की गई कई ट्रेनों को फिर से वापस पटरी पर लाने की घोषणा की गई। पर एक बार रद्द करने की घोषणा हो जाने के बाद यात्री अपना कार्यक्रम बदल लेते हैं। ऐसा ही वाकया कल जगदलपुर में हुआ। रेलवे ने यहां से राऊरकेला के लिए छूटने वाली ट्रेन को रद्द कर दिया। जो यात्री सफर करने के लिए स्टेशन पहुंचे वे क्या करते, वापस लौट गए। पर इधर कुछ समय बाद आंदोलनकारी पटरियों से हट गए। इसके बाद रेलवे ने घोषणा कर दी कि यह ट्रेन दौड़ाई जाएगी। राऊरकेला के लिए इस ट्रेन को दोपहर 2 बजकर 10 मिनट पर छोड़ा जाता है। पर केवल 20 मिनट पहले यह बताया गया कि रद्द ट्रेन रद्द नहीं है, अब यह ट्रेन राऊरकेला रवाना होगी। अधिकांश यात्री तो वापस जा चुके थे। ट्रेन खाली रवाना हुई, पर रेलवे अधिकारियों ने अपने खाते में दर्ज करा लिया कि ट्रेन कैंसिल नहीं की गई।
अनपढ़ चाय वाला
पता नहीं चाय की दुकान चलाने से पढ़ा लिखा होने नहीं होने का क्या संबंध है। अच्छी चाय बनाने का हुनर जिसमें भी है, वह चाहे तो चाय पिला सकता है। इस ठेले वाले ने अपनी दुकान का नाम ही अनपढ़ चाय वाला रख लिया है। हो सकता है, लोगों ने परेशान कर रखा हो कि कितना पढ़े हो बताओ, पढ़ रखा है तो डिग्री दिखाओ। चाय वाला इन तमाम सवालों से मुक्त है। ([email protected])
एक अनार कई बीमार
रायपुर उत्तर विधानसभा सीट ऐसी है जहां कांग्रेस और भाजपा के नेतृत्व को प्रत्याशी के नाम पर आम सहमति बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। कांग्रेस में दो बार के विधायक कुलदीप जुनेजा की स्वाभाविक दावेदारी है। मगर आर्थिक रूप से सक्षम एक-दो नेताओं ने उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। चर्चा तो यह भी है कि पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष भी यहां की टिकट को लेकर दिलचस्पी ले रहे हैं।
छानबीन समिति के सदस्य भी दावेदारों की जंग से परेशान हैं, और कहा जा रहा है कि कुलदीप की टिकट कटी, तो आम राय बनाने की कोशिशों के तहत किसी चिकित्सक को आगे लाया जा सकता है। यही हाल, भाजपा में भी है। पार्टी के सह प्रभारी नितिन नबीन, संजय श्रीवास्तव को प्रत्याशी बनाना चाहते हैं। मगर पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, केदार गुप्ता सहित कई और की अपनी दावेदारी भी है। इन सबसे परे चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी, और कई और प्रमुख नेताओं ने शदाणी दरबार के प्रमुख युधिष्ठिर लाल के बेटे उदय को टिकट देने की वकालत की है। उदय के लिए संघ परिवार के नेताओं ने भी पैरवी की है। अब आगे क्या होता है, यह देखना है।
आखिरकार बिदा
आखिरकार विवादों के बीच पीएससी चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी का कार्यकाल खत्म हो गया। उनकी जगह नई नियुक्ति के लिए उपयुक्त नाम तलाशे जा रहे हैं। इन सबके बीच राज्य सेवा परीक्षा के कुछ दिन पहले के नतीजों को लेकर भी काफी कुछ कहा जा रहा है।
बताते हैं कि इस बार एक दर्जन से अधिक ऐसे अभ्यार्थी थे जो कि पूर्व की परीक्षा में सफल थे, और वो नायब तहसीलदार व अन्य श्रेणी के पदों पर कार्यरत हैं। वर्तमान में ट्रेनिंग ले रहे हैं। इन सबको और बेहतर पद पर जाने की उम्मीद थी, मगर इस बार तकरीबन सभी को इंटरव्यू में 60 से 65 के बीच ही अंक मिल पाए, और ऊंचे पद पर जाने की उम्मीद रह गई।
कुछ लोग बताते हैं कि एक अभ्यार्थी से इंटरव्यू में कामकाज के बारे में पूछा गया, तो उसने बताया कि वो कोचिंग में पढ़ाते हैं। बस, बोर्ड के एक सदस्य इससे खफा हो गए, और कहा कि कोचिंग सेंटर वाले ही पीएससी परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर झूठा प्रचार करते हैं। अब इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं, लेकिन पीएससी परीक्षाओं के किस्से रोज छन-छनकर सोशल मीडिया, और अन्य प्लेटफार्म के जरिए बाहर निकल रहे हैं।
छतरी काली नहीं सफेद होनी चाहिए...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल 14 सितंबर को रायगढ़ पहुंच रहे हैं। कार्यक्रम के मुताबिक वे दोपहर 2.55 बजे जिंदल हवाईपट्टी पर उतरेंगे। यहां वे 30 मिनट तक उद्घाटन कार्यक्रम में होंगे फिर 3.45 बजे से 4.30 बजे तक आमसभा को संबोधित करेंगे। इसके 15 मिनट बाद वे वापस दिल्ली रवाना हो जाएंगे। उनके स्वागत की तैयारी अंतिम चरण पर है। चार वाटरप्रूफ डोम बनाए गए हैं। जिस जगह आमसभा हो रही है वह भी इनमें से एक है, जहां 30 हजार लोग एक साथ बैठ सकेंगे। बारिश का मौसम है, डोम का वाटरप्रूफ होना जरूरी है। पर प्रधानमंत्री को विमान से उतरते समय, कार से उतरकर मंच पर चढ़ते समय छतरी की जरूरत पड़ सकती है। प्रोटोकॉल में बताया गया है कि यह छतरी सफेद होनी चाहिए, काली छतरी का इस्तेमाल नहीं होगा। व्यवस्था में लगे अफसरों ने दुकानों में तलाश करवाई। रायगढ़ और आसपास के किसी दुकान में सफेद छतरियां नहीं मिलीं। अफसर परेशान थे। आखिरकार एक आदमी रायपुर से सफेद छतरियां लेकर पहुंच गया है। अधिकारियों ने राहत की सांस ली है।
ऐसी धरपकड़ सालभर हो तो?
प्रदेश में पुलिस चेकिंग के दौरान जिस तरह गाडिय़ों से कैश, कंबल, साडिय़ां और सोने-चांदी के आभूषण मिल रहे हैं, वह हैरान करता है। आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर पुलिस को दो तरह के काम अभी से सौंप दिये गए हैं। एक तो गुंडे बदमाशों की खबर रखना, दूसरा गाडिय़ों की तलाशी करना। सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में आचार संहिता 6 अक्टूबर को लागू हुई थी। यदि और कोई अड़चन नहीं आती है तो इसी के आसपास चुनाव की तारीख फिर घोषित हो जाएगी। पिछली बार आचार संहिता लागू होते ही गाडिय़ों की तलाशी का अभियान भी शुरू हुआ। इस बार यह काम महीना भर पहले से शुरू हो गया है। चेंकिंग के दौरान भारी मात्रा में कपड़े, खासकर साडिय़ां, होजियरी सामान मिल रहे हैं, कैश और जेवर मिल रहे हैं। शराब अभी कम पकड़ी जा रही है। विभिन्न जिलों की पुलिस अब तक दो करोड़ रुपये से अधिक के कैश और कपड़े जब्त कर चुकी है। कपड़ों के कई मामलों में तो दावेदार भी नहीं आए हैं। बोरियों में भरी साडिय़ों को लावारिस हालत में पाया गया है। कैश के अलावा मंगलवार को चांपा से 1.80 करोड़ के आभूषण और बिलासपुर से 44 लाख रुपये की चांदी जब्त की गई। इसी तरह के कई और मामले सामने आते जा रहे हैं।
सवाल यह उठ रहा है कि क्या सब सामान विधानसभा चुनाव के लिए अभी से डंप किए जा रहे हैं? अभी तो अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार भी तय नहीं हुए हैं, फिर यह किसकी तैयारी है? एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि हमें तो अभी निर्देश मिला है, चेकिंग करने का। सालभर चेकिंग करने की छूट दी जाए तो ऐसे मामले रोजाना पकड़े जाएंगे। बिना बिलिंग के कपड़े और आभूषणों का परिवहन बारहों महीनों होता है। इनमें जीएसटी की चोरी होती है। दो नंबर का माल शहरों से गांवों में खपाया जाता है। सोना और चांदी महानगरों से लाकर छोटे शहरों, कस्बों में खपाई जाती है। पुलिस जो जब्ती बना रही है, हो सकता है उनमें कुछ सामान चुनाव में बांटने के लिए हो, लेकिन ज्यादातर मामले टैक्स चोरी के हैं। उस जीएसटी का टैक्स वसूल करने का सटीक जरिया बताया गया है। जो लाखों रुपये नगद मिल रहे हैं, वे भी ऐसी आमदनी है, जिन्हें खाते से निकालने के बाद किसी और खर्च में दिखाया गया और टैक्स बचा लिया गया।
गौठान शराब पीने का अड्डा !
कांकेर के भाजपा प्रत्याशी आशाराम नेताम का तैयार कराया गया एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें दो युवक- मामा-भांजा, शराब खरीदते हैं। पीने की जगह ढूंढते हैं और गौठान में यह कहते हुए आकर बैठते हैं कि भूपेश सरकार ने गांव-गांव में शराब पीने की अच्छी व्यवस्था कर दी है। बढिय़ा खाली-खाली गौठान है, गाय गरुवा तो हैं नहीं। इसी का फायदा तो हमको उठाना है। संवाद है- ये कांग्रेस सरकार है मामा, बोलती कुछ है करती कुछ..., सिस्टम बदलना है भांजा।
गौर करने की बात है कि इसमें दारू दुकान और गौठान असली दिखाए गए हैं।
वीडियो वायरल होने के बाद कांग्रेस और भाजपा में विवाद छिड़ गया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जो गौठान गाय माता रखने की जगह है, वहां भाजपा प्रत्याशी के लोग बैठकर दारू पी रहे हैं। एनएसयूआई ने एक शिकायत भी पुलिस को सौंप दी है, जिसमें एफआईआर दर्ज करने की मांग है। भाजपा प्रत्याशी आशाराम ने सफाई दी कि गौ माता का अपमान करना हमारा मकसद नहीं था, यह बताना था कि गौठान में गाय नहीं रहती और वह दारू पीने का अड्डा बना हुआ है। पुलिस में शिकायत तो हुई है, थानेदार कह रहे हैं कि इसमें कानून का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं, वे देख रहे हैं।
इस घटना ने आठ-दस माह पुरानी कांकेर की एक दूसरी घटना याद दिला दी। कांग्रेस के एक सम्मेलन के पहले यहां से एक ऑडियो वायरल हुआ था। भाजपा ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर दावा किया था कि यह ऑडियो एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष सुमित राय का है। इसमें एक शराब दुकान के मैनेजर से उनकी बहस हो रही है। मैनेजर 3 हजार रुपये चंदा देने के लिए तैयार है, जबकि डिमांड 5 हजार रुपये की हो रही है। कांग्रेस ने बचाव में कहा था कि इसमें एनएसयूआई नेता की आवाज नहीं है।
वक्त के पहले मुनादी का सिरदर्द
प्रत्याशियों के नाम समय से पहले घोषित करने के नकारात्मक प्रचार जोर पकडऩे लगे हैं। इससे पार्टी हाईकमान पर मंथन का दबाव बढ़ता जा रहा है। कुछ प्रचार तो असफल दावेदार ही कर रहे हैं या करवा रहे हैं। भाजपा के सरगुजा इलाके के एक प्रत्याशी ऐसे ही एक षड्यंत्र में फंस गए है। उनका एक वीडियो खासा वायरल हो गया है। और पार्टी के भीतर हडक़ंप अलग मचा है कि इससे कैसे निपटें। कुछ अति उत्साही भाजपा नेता, कार्यकर्ताओं को लेकर एसपी के पास पहुंचे। उनके न मिलने पर कलेक्टर से मिलकर प्रत्याशी का वीडियो और अधिक वायरल होने से रोकने का आग्रह किया। कलेक्टर भला ये क्यों करने लगे? और कलेक्टर के पास ऐसा कोई अधिकार भी नहीं। सो संगठन के लिए यह एक सिरदर्द हो गया है । यह समस्या दूसरे दलों में भी उठ रही है। आप पार्टी के एक बस्तरिया प्रत्याशी, सागौन लकड़ी के चिरान जब्त होने से परेशान है।
10 हजार आवेदन!!
हमने कुछ दिन पहले ही बताया था कि विधानसभा की 90 सीटों से भाजपा के 10 हजार दावेदारों के आवेदन जमा हुए हैं। जो एक तरह से रिकॉर्ड है। यह लंबी फेहरिस्त संगठन महामंत्री, मंत्रियों की वजह से भी हो गई है। ठाकरे परिसर के सूत्र बताते हैं कि इन महामंत्रियों ने प्रत्याशी चयन की कवायद जनवरी से ही शुरू कर दी थी । जिला, विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर हर हैसियत पर की खातिरदारी, आतिथ्य स्वीकार कर कह आते तुम तैयारी करो। बस फिर क्या सभी जुट गए । इन छ-आठ महीनों में इन लोगों ने लाखों फूंक दिए, तैयारी में। कुछ का बजट तो सीआर (ष्ह्म्) भी पार कर गया है। पहली सूची को देखने के बाद से इनमें ज्वाला धधक रही है ?।
सब कुछ दिल्ली से मुहैया
लगता है न खाउंगा, न खाने दूंगा की उक्ति पार्टी संगठन में भी चल रही है। यह प्रचार सामग्री और संसाधनों की उपलब्धता को देखकर समझा जा सकता है । अशोक रोड मुख्यालय ने सब कुछ सेंट्रलाइज्ड कर रखा है। पार्टी ने बड़े नेताओं के दौरे, बैठकों के लिए एक हेलीकॉप्टर भेज दिया है, दूसरा भी पखवाड़े भर में लैंड कर जाएगा। इसी तरह से घोषित 21 और दूसरी सूची के संभावितों के लिए साधन सुविधाएं मुहैया कराने दिल खोल दिया है। पार्टी हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यालय खोलेगी जो सीधे दिल्ली से कनेक्ट होगा। साधन सुविधा के लिए ठाकरे परिसर की जरूरत नहीं होगी।
नेताजी की चिरपरिचित तैयारी
छत्तीसगढ़ के एक कद्दावर नेता अपने क्षेत्र में अभी से कैलेंडर बंटवा रहे हैं। जिसमें शंकराचार्य की तस्वीर के साथ गणेश, दुर्गा और लक्ष्मी जी की आरती छपी है। नेताजी की बड़ी सी तस्वीर भी उसमें लगी है।
नेताजी जानते हैं कि आने वाले समय में चुनाव के दौरान इन तीनों देवियों के सानिध्य में लोग जाएंगे ही। अभी से इसलिये बांट रहे हैं ताकि चुनाव आयोग इसे चुनाव प्रचार के खर्च में न जोड़ दे।
वैसे प्रदेश के इस कद्दावर नेता का पुराना पैंतरा है जिसे अपनाकर वे सात बार जीत दर्ज कर चुके हैं। जोगी शासन में तो उन्होंने शंकराचार्यों का समागम ही करा दिया था। दरअसल उनके विधानसभा में लोधी अधिक संख्या में हैं जो महादेव शंकर के अनन्य भक्त रहते हैं, उनके प्रभाव का प्रसाद नेताजी को मिलते रहा है। लेकिन एक बार जब नेताजी विधानसभा के नेता बने थे, तब कैलेंडर बांटने से चूक गए थे। लगातार जीतने का रिकॉर्ड टूट गया था। लिहाजा इस बार ज्यादा सतर्क हैं, बरसों पुराना जांचा परखा फार्मूला अपना रहे हैं।
ईडी प्रमुख के चार दिन शेष..
प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर तक है। उनका कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद भी नया निदेशक नियुक्त नहीं करने का मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया था। उनको बार-बार एक्सटेंशन मिलने पर शीर्ष अदालत ने नाराजगी जताई थी। केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल ने उनके पद में रहने को उचित ठहराते हुए बताया था कि नवंबर महीने में एफएटीएफ ( फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स) की टीम भारत आने वाली है। इस टीम को मिश्रा की आवश्यकता पड़ेगी। यह सुनकर जज ने कहा था कि कल अगर मैं न रहूं तो क्या सुप्रीम कोर्ट ढह जाएगा। बहरहाल, सरकार की अपील पर मिश्रा को नवंबर तक तो नहीं, 15 सितंबर तक बने रहने की अनुमति कोर्ट ने दी।
मिश्रा के प्रमुख रहते हुए गैर-भाजपा दल शासित राज्यों में ताबड़तोड़ छापेमारी हुई है, ब्यूरोक्रेट्स और राजनीतिक चेहरे ईडी के गिरफ्त में आए हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के लोग भी शामिल हैं। कांग्रेस ने कहा है कि यह कार्रवाई डराने के लिए हो रही है, चुनाव ईडी लड़ रही है, भाजपा नहीं। ईडी ने मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर उनके निजी सलाहकार को भी जांच के घेरे में लिया है, कई गिरफ्तारियां हो चुकी है। अब जब मिश्रा के कार्यकाल में चार दिन शेष बचे हैं, क्या कोई बड़ी कार्रवाई ईडी करने वाली है, या फिर आगे का टास्क नए अफसर को दिया जाएगा, लोग नजर गड़ाए हुए हैं।
तब कांग्रेस की, अब भाजपा की
भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश सरकार के खिलाफ आज से एक बड़ा चुनाव प्रचार यात्रा बस्तर से शुरू हो गई है। दूसरे छोर से 15 सितंबर को जशपुर से भी एक यात्रा निकलने जा रही है। इस दौरान सडक़ मार्ग से 31 जिलों के 60 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है। इसको नाम दिया गया है- परिवर्तन यात्रा। पिछले कुछ चुनावों को जिन्होंने देख रखा है उन्हें पता है कि परिवर्तन यात्रा नाम से कांग्रेस का बड़ा गहरा रिश्ता है। इसी बस्तर से 2013 के चुनाव के समय कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ अभियान शुरू किया था, जिसे परिवर्तन यात्रा नाम दिया गया था। उस दौरान 25 मई को हुए भीषण नक्सली हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इसमें प्रदेश कांग्रेस की पहली पंक्ति के लगभग सारे नेता खत्म कर दिए गए। भाजपा सरकार पर भी छीटें पड़ीं, लेकिन चुनाव परिणाम उसके पक्ष में गया।
इधर बस्तर से यात्रा निकलने के पहले कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने एक बयान भी दिया और भाजपा नेताओं से गुजारिश की कि वे झीरम घाटी जाकर शहीदों का नमन कर यात्रा शुरू करें। मान लेते हैं, यह राजनीतिक बयान है, पर बात यह उठ रही है कि क्या परिवर्तन यात्रा की जगह भाजपा को कोई दूसरा नाम नहीं सूझा? चुनाव अभियान में अभियान के नाम और नारों का जबरदस्त असर होता है। बैज न भी कहें तब भी परिवर्तन यात्रा नाम लोगों को झीरम घाटी की याद तो दिलाता ही है। और यह भयावह वारदात भाजपा कार्यकाल की है, लोग यह भी नहीं भूल पाए हैं। पर भाजपा को लगा होगा यही नाम यात्रा का सबसे सटीक है।
अब कुछ नारों की तरफ देखें- अऊ नहीं सहिबो बदल के रहिबो। भाजपा के इस नारे से मिलता जुलता सन् 2018 में कांग्रेस ने- वक्त है बदलाव का नारा दिया था। इस बार आम आदमी पार्टी ने भी कुछ ऐसा ही नारा बदलाव के लिए दिया है।
नारों और प्रचार अभियान के नामकरण का बड़ा असर दिखाई देता है। जब भाजपा ने चुनाव घोषणा पत्र को संकल्प पत्र कहना शुरू किया तो कांग्रेस सहित बाकी दलों ने भी घोषणा-पत्र की जगह दूसरा असरदार नाम ढूंढा। गंगा जल की शपथ ली जाने लगी, घोषणाओं का ऐलान शपथ-पत्र पर किया जाने लगा।
एक नारा, या स्लोगन हमेशा काम नहीं आता। हर बार कुछ नया करने की जरूरत होती है। जैसे कांग्रेस अब वक्त है बदलाव का- नहीं कहेगी, या 2013 जैसी परिवर्तन यात्रा नहीं निकालेगी। क्योंकि उनके हिसाब से 2018 में तो बदलाव और परिवर्तन हो चुका है। कांग्रेस का रमन का उल्टा चश्मा कैंपेन तब चर्चित हुआ था। भाजपा ने अब की बार, 65 पार दिया था। उसे भी इस बार कुछ अलग सोचना होगा। 65 पार वाला नारा दोहराने से गड़बड़ हो जाएगी।
केंद्र में भी 2014 में अच्छे दिन आएंगे का नारा, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हटा दिया। पिछली बार था- एक बार फिर मोदी सरकार। कभी इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ नारा दिया था। आज तक वह लोगों के दिमाग में है। देश का नेता कैसा हो, अटल बिहारी जैसा हो, इस नारे ने भाजपा को सता की सीढिय़ों तक पहली बार पहुंचाया। दिमाग के भीतर सीधे असर डालने वाला नारा इस बार अभी तक किसी दल ने नहीं दिया है।
वक्त के पहले का नुकसान
पहली सूची जारी होने के बाद भाजपा नेतृत्व की स्थिति हवन करते हाथ जले जैसी हो गई है। पार्टी ने अधिसूचना के दो माह पहले 21 प्रत्याशी घोषित कर कांग्रेस को पटखनी देने का प्रयास किया था। मेसेज भी अच्छा गया। कांग्रेस भी सक्रिय हुई, अब-तब में पहली सूची आ सकती है । लेकिन भाजपा कुछ सीटों पर बूमरेंग झेलने की स्थिति में खड़ी हो गई है।
पार्टी ने सोचा था कि पहले घोषित कर उस नाम पर होने वाला विरोध सम्हाल लेगी। लेकिन सभी जगह विरोध बना हुआ है। समझाइश के लिए भेजे जा रहे अरुण जामवाल, पवन साय, धरमलाल कौशिक जैसे नेताओं को बैरंग लौटना पड़ रहा। हार चुके दावेदार मान रहे हैं कि अभी एक माह है विरोध जारी रहा तो बी- फार्म बदल जाएगा। इसे देखते हुए पार्टी ने आगे के 69 टिकट पुराने पैटर्न पर बांटने पर विचार मंथन कर रही। यानि नामांकन के अंतिम दिन से एक या दो दिन। ऐसे में कुछ चूके चौहान विरोध घर बैठ जाएंगे बस। और कार्यकर्ता को बरगला नहीं पाएंगे ।
जो सत्ता से बाहर वे अब क्या बांटेंगे?
जिन पांच राज्यों में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सत्ता के लिए कांग्रेस-भाजपा के बीच अमूमन सीधा मुकाबला है। चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के पहले तीनों ही राज्यों की मौजूदा सरकारों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा रखी है। मध्यप्रदेश में तो घोषणाओं का सैलाब दिख रहा है। सन् 2018 में यहां जनादेश कांग्रेस को मिला और उसकी सरकार बनी, लेकिन माधवराव सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के टूट जाने के बाद शिवराज सिंह सरकार दोबारा सत्ता में लौट गई। यहां पिछले आठ-दस माह से हवा बनने लगी थी कि भाजपा दोबारा नहीं लौटेगी। बीच में यह भी चर्चा हुई कि मुख्यमंत्री बदल दिया जाएगा। इसके बाद से ही शिवराज सरकार रोज एक के बाद एक ऐसी घोषणाएं कर रहे हैं जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शब्दावली में रेवड़ी कहते हैं। उज्ज्वला गैस सिलेंडर 450 रुपये में, 60 प्रतिशत से अधिक नंबर पाने वाले 12वीं के छात्रों को भी लैपटॉप देने, टॉपर तीन को स्कूटी देने की अभी-अभी घोषणा की है। बाकी वे सब घोषणाएं हैं जिनमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाना, महिलाओं को नगद राशि देना दूसरे राज्यों की तरह शामिल ही हैं। किसानों की कर्ज माफी, मुफ्त बिजली और कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम में लाने की घोषणा भी उन्होंने कर दी है। इस तरह की मुफ्त योजनाओं का भी भाजपा विरोध करती आ रही है। इधर छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ऐसी ही तमाम घोषणाएं की हैं। दोनों कांग्रेस की सरकारों ने इन पर अमल भी शुरू कर दिया है। यदि सरकार किसकी है यह भूल जाएं तो तीनों ही राज्यों में आम लोगों को रियायत देने के फैसले एक जैसे ही हैं। छत्तीसगढ़ में अभी रियायती गैस सिलेंडर पर फैसला नहीं हुआ है, सीएम भूपेश बघेल ने इस बारे में संकेत दे दिया है कि इसे भी घोषणा पत्र में शामिल किया जाएगा।
अब एमपी में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की अगुवाई में फिर से सरकार बनाने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए संकट खड़ा हो गया है कि चुनावी घोषणा पत्र को आखिर और कितना लुभावना बनाया जाए, रेवड़ी और कितनी बांटी जाए। ठीक यही स्थिति सत्ता से बाहर छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा की है।
क्या फायरिंग हर बार जरूरी है?
बस्तर में होने वाली मुठभेड़ों के बाद प्राय: उठने वाले सवाल बीते कई वर्षों से कायम है। प्रदेश में कांग्रेस का और केंद्र में भाजपा का एक और कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि नक्सल हिंसा नाम-मात्र हो रही है, उधर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यहां से घोषणा करके गए हैं कि सन् 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नक्सलियों का सफाया हो जाएगा।
पुलिस का दावा है कि 5 सितंबर को दो नक्सलियों को उसने मार गिराया, जिन पर एक-एक लाख रुपये का इनाम था। कोंटा के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने आरोप लगाया है कि दोनों बेकसूर थे। इनमें से एक किसान था, दूसरा गांव में ही किराने की दुकान चलाता था। सोढ़ी कोवा और रवा देवा, ये दोनों तिम्मापुरम गांव में अपने रिश्तेदारों से मिलकर बाइक से लौट रहे थे। पुलिस फोर्स ने रोक लिया और उन्हें गोलियों से भून दिया। घटना के बाद उनकी बाइक भी गायब कर दी गई। आईजी पी. सुंदरराज ने इसके जवाब में कहा कि दोनों नक्सली थे, एक शिक्षा दूत, एक उप सरपंच और एक अन्य ग्रामीण की हत्या में ये शामिल थे।
वे नक्सली थे या नहीं इसका जवाब ठीक-ठीक, जल्दी नहीं मिलने वाला है। पर कुंजाम का और ग्रामीणों का सवाल जायज है कि यदि उन्हें फोर्स ने नक्सली ही मान लिया तो क्या गोलियां चलाना ही एकमात्र विकल्प था। मुठभेड़ होते तो ग्रामीणों ने कहीं देखा नहीं। क्या उन्हें गिरफ्तार कर पूछताछ नहीं की जा सकती थी? दो साल पहले मई महीने में बीजापुर के सिलगेर में पुलिस कैंप खोलने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों पर गोलियां चलाने से तीन ग्रामीणों की मौत हो गई थी, बाद में एक ने और दम तोड़ दिया था। जब पुलिस ने मारे गए लोगों को नक्सली बताया तो यह सवाल उठा कि भीड़ में फायरिंग करनी पुलिस को कैसे पता चल सकता है कि गोली नक्सलियों को ही लगेगी। पिछले साल जनवरी में मानूराम नुरेटी को नारायणपुर पुलिस ने नक्सली बताकर मार डाला था। जांच-पड़ताल से पता चल गया कि उसे हमनाम होने के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी, मारे गए युवक ने खुद जिला पुलिस बल में शामिल होने के लिए आवेदन किया था। क्या फोर्स बिना सावधानी और जिम्मेदारी के किसी भी संदिग्ध पर गोली चलाने में भरोसा कर रही है?
जमीन, राजनीतिक, और असली
चुनाव लडऩे के लिए आजकल हाथ जोडऩे के साथ हाथ का मैल कहलाने वाले पैसे की बड़ी जरूरत पड़ती है। इसके लिए दावेदार साल दो साल पहले से ही इंतजाम में जुट जाते हैं। जेवरात, म्यूचुअल फंड में निवेश, शेयर बाजार आदि आदि। इनके अलावा हाल के वर्षों में जमीन सबसे बड़ा रिटर्न वाला निवेश हो गया है।
2018 में शहर के एक प्रत्याशी ने राजधानी से लगी पैतृक जमीन बेचकर पैसा लगाया और विधायक बने। इस बार उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं लग रही। लेकिन उन्ही के इलाके के भाजपा के एक दावेदार ने खारून पार बड़ा निवेश किया है। कभी मंत्री, विधायक रहे पार्टी के एक महामंत्री के साथ मिलकर यह निवेश हुआ है। यह दावेदार,इन्हीं के जरिए टिकट हासिल करने में जुटे हुए हैं। देखना होगा कि यह निवेश दोनों के काम आता है या केवल एक के।
नाम देखें, और चेहरे भी...
कुछ संस्थाओं के नाम बड़े दिलचस्प होते हैं। अभी छत्तीसगढ़ के राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन से मिलने कोटवार संघ के लोग पहुंचे। इन्होंने कोटवारों की मांगों के बारे में राज्यपाल को ज्ञापन दिया। प्रतिनिधि मंडल में तुकाराम देवदास, अदालत दास मानिकपुरी, मेहतर दास मानिकपुरी शामिल थे। अब कोटवारों के कपड़ों में इन लोगों को देखा जा सकता है कि इनकी उम्र क्या होगी। चार में से तीन लोग 60 साल पहुंचे या पार कर चुके दिख रहे हैं। और संगठन का नाम है युवा कोटवार कल्याण संघ, है न मजेदार?
नफरत अब नवसामान्य
विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए अभी अलग-अलग उम्मीदवारों और पार्टियों ने वॉट्सऐप पर बहुत से ग्रुप बनाए हुए हैं। ऐसा ही एक ग्रुप अपने परिचय की जगह अपने को खुश, हॅंसता हुआ, और मोहब्बत फैलाता हुआ बतला रहा है। लेकिन नीचे उसकी एक पोस्ट यह झूठ और नफरत फैला रही है कि मुम्बई में मुस्लिम नाईयों को मस्जिदों में ऐसी टे्रनिंग दी जा रही है कि हिन्दुओं की सेविंग या कटिंग के दौरान एड्स के ब्लेड से हल्का सा कट लगा दिया जाए ताकि हिन्दुओं को एड्स का मरीज बनाकर मारा जा सके। इस नफरत के साथ यह बात भी लिखी गई है कि सभी हिन्दू आदमी और औरत किसी नाई या ब्यूटीशियन के पास जाने के पहले उसका धर्म परख लें। अब एक कांग्रेस विधायक के चुनाव क्षेत्र के वॉट्सऐप ग्रुप में इस तरह की नफरत फैलाई जा रही है, लेकिन लगता है कि अब किसी बड़ी पार्टी के नेता को नफरत के एजेंडा से परहेज नहीं रह गया है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के बार-बार के आदेश के मुताबिक छत्तीसगढ़ की पुलिस को तुरंत इस पर जुर्म दर्ज करना चाहिए, लेकिन चुनाव तक पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को प्रदेश की सरहद के बाहर कर दिया है।
रेलवे के एक प्रतिशत को ऐसे समझें
यात्री ट्रेनों को विकास और सुधार कार्यों के नाम पर आये दिन रद्द करने और ट्रेनों को घंटों विलंब से चलने के खिलाफ कांग्रेस ने 13 सितंबर को छत्तीसगढ़ में रेल रोको आंदोलन का आह्वान किया है। इसके पहले प्रदर्शन, पोस्टर, नारेबाजी, घेराव का कार्यक्रम भी है। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर पहले भी आंदोलन किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, सांसद ज्योत्सना महंत और पार्टी के अन्य नेताओं ने केंद्रीय रेल मंत्री को लगातार पत्र भी लिखे हैं, लेकिन इस बार आंदोलन इसलिए खास हो गया है क्योंकि विधानसभा चुनाव सामने है। इस मुद्दे पर रेल यात्रियों में जो रोष पनप रहा है, उसे सामने लाकर कांग्रेस ने भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। इसलिए एक प्रेस नोट जारी कर रेलवे ने सफाई दी है कि केवल एक प्रतिशत ट्रेन प्रभावित हुए हैं, बाकी ट्रेनों का परिचालन सही हो रहा है। एक बिलासपुर स्टेशन से ही प्रतिदिन आने-जाने वाले यात्रियों की संख्या 4 लाख 50 हजार है। इसे ही आधार मान लें तो साल में 16 करोड़ 42 लाख 50 हजार यात्री जोन से सफर करते हैं। इनका एक प्रतिशत होता है, 16 लाख 42 हजार 500 यात्री। रेलवे ने अपने बचाव में यह कहा है कि यात्री ट्रेनों के समयबद्ध परिचालन का प्रयास किया जाता है। कुछ साल पहले तक रेलवे यात्री ट्रेनों की समयबद्धता पर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करता था, बल्कि कई बार मासिक रिपोर्ट भी दी जाती थी, ताकि इसे उपलब्धि के रूप में गिना जा सके। पर अब यह बंद कर दिया गया। अपने हाथ में सिर्फ ताजा रिपोर्ट कैग की है, जिसमें यह बताया गया है कि भारतीय रेल ने यात्री ट्रेनों की गति बढ़ाने के लिए सन् 2016-17 में मिशन रफ्तार योजना लाई गई थी जिसमें बुनियादी ढांचे निर्माण पर 2.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किया है लेकिन इसमें विफलता हाथ लगी। सन् 2022 में भी यात्री ट्रेनों की रफ्तार 50 किलोमीटर प्रति घंटे रही, जिसे बढक़र 75 किलोमीटर औसत हो जाना चाहिए था।
गौमाता किसका चारा खाएगी?
कांग्रेस सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में गाय से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं। गौठानों का निर्माण, गोबर और मूत्र की खरीदी, उससे बने उत्पादों की बिक्री से ग्रामीणों खासकर महिलाओं की आय बढ़ाना, इसमें शामिल है। कांग्रेस को लगता ही होगा कि इस योजना का चुनाव में लाभ मिलेगा। दूसरी ओर भाजपा है, पहले उसने कई चुनावों में गौमाता से मदद मिली। इस बार उसे लगा कि गौमाता हमसे छीन ली गई है। फिर बाद में महसूस हुआ हो कि बात बिगड़ी नहीं है। उसने योजना की विफलता को मुद्दा बनाया। कई गौठानों का दौरा कर वीडियोग्राफी की। जर्जर शेड, चबूतरे, खाली टब, एक भी गाय नहीं, हकीकत सामने लाई। पिछले दिनों रायपुर में 20-22 गायों की मौत को भाजपा ने जोर-शोर से उठाया। अब इन दिनों गायों और गौवंश का सडक़ों पर विचरण एक बड़ी समस्या बन गई है। इन दिनों तो वह खड़ी फसल भी बर्बाद कर रही है। जांजगीर की इस तस्वीर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने खूंटे से गायों को बांध दिया है, कहीं छूट न जाए, फसल बर्बाद कर रहीं हैं-खेतों में घुसकर। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल की अगुवाई में एक आंदोलन शुक्रवार को वहां हुआ। सडक़ों और खेतों में छुट्टा घूम रहे मवेशियों को पकड़ा और साथ घुमाकर प्रदर्शन किया, प्रशासन को चेतावनी दी। धरना स्थल पर भी गायों को बांधकर रखा गया, बाद में एसडीएम के ऑफिस में ले जाकर बांध दिया।
राजिम भाजपा प्रत्याशी का विरोध
राजिम विधानसभा सीट के भाजपा प्रत्याशी रोहित साहू को लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं का विरोध शांत नहीं रहा है। पिछले दिनों छुरा विश्राम गृह में विधायक व पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के सामने कार्यकर्ताओं ने जमकर अपनी नाराजगी जताई थी। कहा कि पिछले चुनाव में रोहित साहू जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से चुनाव लड़े थे। उन्होंने 23 हजार 700 वोट लेकर भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की थी। कार्यकर्ताओं को कौशिक ने उम्मीद बंधाई थी कि ऊपर आपकी भावनाओं से अवगत कराया जाएगा, पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दो दिन बाद ही भाजपा के चुनाव कार्यालय का उद्घाटन करने आ गए। प्रत्याशी की मौजूदगी में यह उद्घाटन हुआ तो कई पुराने भाजपा कार्यकर्ता पदाधिकारी गायब दिखे। साव ने कहा कि उनको मना लिया जाएगा। यानि टिकट नहीं कटेगी। यह आश्वासन रायपुर में भी सभी घोषित प्रत्याशियों की बैठक के दौरान संगठन प्रभारी ओम माथुर ने दिया था।
वैसे पिछली बार भाजपा के प्रत्याशी संतोष उपाध्याय भारी अंतर, करीब 49 हजार वोटों से हारे थे। रोहित साहू के पूरे वोट उनको मिले होते तब भी जीत नहीं हो सकती थी।
खरगे की सभाएँ
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस के बुजुर्ग नेता मल्लिकार्जुन खरगे पिछले छह महीने में छत्तीसगढ़ में तीन सभाएं ले चुके हैं। दिलचस्प बात ये है कि जब भी वो सभा को संबोधित करने पहुंचते हैं, उनके संबोधन से पहले ही भीड़ का निकलना शुरू हो जाता है।
दो दिन पहले राजनांदगांव में भरोसे के सम्मेलन में कुछ ऐसा ही हुआ। तब सीएम भूपेश बघेल को माईक थामकर लोगों से खरगे के संबोधन तक रूकने का आग्रह किया। खरगे ने तंज भी कसा और कहा कि सीएम साहब पहले सब कुछ बांट जाते हैं। यदि वो सभा के आखिरी में घोषणाएं करते तो भीड़ कुछ मिलने के इंतजार में रूकती।
खरगे की पहली सभा जोरा में हुई थी, जब वो संबोधन के लिए आए तब तक तीन चौथाई भीड़ छंट चुकी थी। पिछले दिनों जांजगीर-चांपा के कार्यक्रम में भी कुछ ऐसा ही हुआ। चर्चा है कि उस समय प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने कमजोर मैनेजमेंट के लिए जांजगीर-चांपा के प्रभारी अर्जुन तिवारी को फटकार भी लगाई थी।
अर्जुन तिवारी ने उस वक्त कह दिया था कि चूंकि सरकारी कार्यक्रम है इसलिए संगठन की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। तब सीएम ने हस्तक्षेप कर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो, इसका ध्यान रखने के लिए कहा था। मगर राजनांदगांव में फिर वही स्थिति बन गई। ये अलग बात है कि सीएम के आग्रह पर भीड़ कुछ देर रूक गई। कांग्रेस के शीर्ष नेता की सभा को लेकर लोगों में अरूचि से पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है। और चुनाव के दौरान खरगे की जगह राहुल-सोनिया और प्रियंका गांधी की सभाएं ज्यादा करने पर जोर दिया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
विधायक ईडी से बेफिक्र
कोल घोटाले में ईडी ने कांग्रेस के दो विधायक देवेन्द्र यादव और चन्द्रदेव राय को भी आरोपी बनाया है। खास बात यह है कि दोनों ने अब तक जमानत नहीं ली है, और वो सरकारी-निजी कार्यक्रमों में धड़ल्ले से शिरकत कर रहे हैं। ईडी ने भी दोनों को गिरफ्तार करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। इसकी भी राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा हो रही है।
कहा जा रहा है कि विधायकों की गिरफ्तारी से भाजपा के खिलाफ माहौल बन सकता है। यही वजह है कि दोनों की गिरफ्तारी नहीं हो रही है। अब वाकई ऐसा है या ईडी की कोई रणनीति है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
जी-20 से बाहर ढोकरा आर्ट पर जीएसटी
नई दिल्ली में हो रहे जी-20 सम्मेलन में विदेशी मेहमानों के सामने भारत मंडपम् में बस्तर की प्रसिद्ध शिल्प ढोकरा की कलाकृतियां प्रस्तुत की गई हैं। देश-विदेश में इन कलाकृतियों की काफी मांग रही है। देश के कई महानगरों और पर्यटन स्थलों में इनकी बिक्री होती है। ऑनलाइन भी मिल रहे हैं। बीते साल नवंबर महीने में दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में भी ढोकरा शिल्प की मूर्तियां छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने पंडाल पर प्रदर्शित की थी।
बस्तर अपनी विरासत, प्राकृतिक वैभव और कौतूहल से भरी जीवन शैली के कारण पहले से ही देश-विदेशों में जाना जाता है। भारत मंडपम में आकर वे दुनिया के 20 बड़े देशों के राष्ट्र प्रमुखों व अन्य मेहमानों तक पहुंच गए। मोहन जोदड़ो की खुदाई के दौरान भी ढोकरा शैली की मूर्तियां मिली थीं। मगर हजारों साल पुरानी इस कला का दूसरा पहलू भी है। कोंडागांव में करीब 500 परिवार इस कला से जुड़े हैं। ढोकरा कारीगर बीते कुछ सालों से सबसे अधिक जिस समस्या से जूझ रहे हैं, वह है जीएसटी। मूर्तियों पर 12 प्रतिशत जीएसटी से इन्हें कोई रियायत नहीं है जबकि यह छत्तीसगढ़, झारखंड आदि राज्यों में सिर्फ आदिवासी इस कला से जुड़े हैं। इसका कच्चा माल महंगा होने के कारण पहले से ही मार्जिन कम हो चुका है। मधुमक्खियों से प्राप्त मोम इसकी एक जरूरी सामग्री है, जिसे खरीद पाना आसान नहीं हैं। अब इसका उपयोग वे कम कर रहे हैं। इसके अलावा तांबा, जस्ता, रांगा (टीन) का इस्तेमाल होता है, वह भी महंगा हो चला है। सरकारी पैवेलियन, मंडप में जरूर ये कलाकृतियां दिखें, पर स्थिति यह है कि घोड़े, हाथी, ऊंट, नर्तक, देवी-देवता पहले इस कला के पहचान होते थे, उसे महंगा होने के कारण कारीगरों ने बनाना कम कर दिया है। उसकी जगह पेपरवेट, पेन होल्डर, मोमबत्ती होल्डर जैसी चीजों ने ले ली है।
बस्तर में आप के प्रत्याशी
दंतेवाड़ा सीट पर 2018 के चुनाव में बल्लू राम भवानी को 4903 वोट मिले थे। सन् 2019 में हुए उपचुनाव में भी वे खड़े हुए और पिछली बार से एक तिहाई से भी कम 1533 वोट हासिल कर पाए। यह उपचुनाव भाजपा विधायक भीमा मंडावी के नक्सली हमले में मारे जाने के बाद हुआ था, जिसमें कांग्रेस की देवती कर्मा को जीत मिली। 2023 में आम आदमी पार्टी ने इन्हीं बल्लू राम भवानी पर फिर भरोसा जताया है। नारायणपुर में नरेंद्र कुमार नाग आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी होंगे, जिन्हें सन 2018 में 2576 वोट मिले थे। आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेन्डी को 2018 के चुनाव में 9634 वोट हासिल हुए थे। पिछले साल विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव भी हुआ। इसमें आप ने अपना कोई उम्मीदवार यह कहते हुaए खड़ा नहीं किया था कि वे आम चुनाव के लिए संगठन को मजबूत कर रहे हैं।
प्रदेश की 10 सहित बस्तर की इन तीन सीटों पर आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशी कल घोषित कर दिए हैं। इन तीनों सीटों पर क्या आम आदमी पार्टी ने क्या इतनी तैयारी की है कि मुकाबले में टक्कर दे सके? सर्व आदिवासी समाज का प्रयास था कि बस्तर में छोटे-छोटे दलों के साथ समझौता कर पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस भाजपा के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दी जाए। उनका पहला लक्ष्य बस्तर ही है। ऐसे में एक तरफा आप पार्टी ने जिस तरह से उम्मीदवार घोषित कर दिए, वोटों का विभाजन निश्चित दिखाई दे रहा है। यह भविष्य ही बताएगा कि इसका फायदा कांग्रेस को मिलता है या बीजेपी को।
फौजी पर दांव
खबर है कि सीतापुर में खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के खिलाफ भाजपा पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो को चुनाव लडऩे के लिए तैयार करने में जुटी है। टोप्पो ने भारतीय थल सेना से कुछ दिन पहले ही वीआरएस लिया था, और चुनाव लडऩे की घोषणा की है। इसके बाद भाजपा के प्रदेश महामंत्री (संगठन) पवन साय उनसे मिले, और चर्चा है कि टोप्पो को भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है।
टोप्पो जब भी छुट्टियों में आते थे, तो स्कूल-कॉलेज में जाकर युवाओं को देशप्रेम, और भारतीय सेना के लिए भावनाएं जगाने का काम करते थे। उनकी सीतापुर इलाके के युवाओं में अच्छी खासी पैठ भी है।
पिछले दिनों सीतापुर में रामकुमार टोप्पो के समर्थन में रैली भी निकली थी। जिसमें सैकड़ों युवाओं ने शिरकत की थी। टोप्पो ने तो निर्दलीय चुनाव लडऩे की घोषणा की है। मगर भाजपा के नेता चाहते हैं कि उनके प्रत्याशी बने। जिसके लिए टोप्पो फिलहाल तैयार नहीं दिख रहे हैं।
चर्चा है कि भाजपा के कई शीर्ष नेता टोप्पो को तैयार करने में जुटे हुए हैं। पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि टोप्पो पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ते हैं, तो सीतापुर में पार्टी की संभावना काफी मजबूत हो जाएगी। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद से सीतापुर सीट अब तक भाजपा नहीं जीत पाई है। देखना है कि सीतापुर के लिए पार्टी आगे क्या कुछ रणनीति बनाती है।
छापा किसलिए?
रायपुर के नामी चिकित्सक डॉ. एआर दल्ला के यहां पिछले दिनों ईडी ने रेड की। ईडी ने डॉ. दल्ला के अलावा उनके पुत्र रियाज से भी घंटों पूछताछ की। पहले खबर उड़ी कि डॉ. दल्ला के यहां महादेव एप से जुड़ी कडिय़ों की वजह से रेड हुई है।
चर्चा यह भी है कि ईडी ने डॉ. दल्ला के यहां से करीब 3 करोड़ की राशि बरामद की है। यह रकम किसी जमीन के सौदे की बताई जा रही है। ईडी की टीम घर से डायरी, और उनके मोबाइल भी लेकर गए हैं। अब डायरी, और मोबाइल से क्या कुछ मिला है, यह जानकारी ईडी ने अब तक सार्वजनिक नहीं की है। कई बार ऐसा होता है कि जब ईडी रेड तो करती है, लेकिन कार्रवाई को सार्वजनिक नहीं करती है। इससे अफवाहों का बाजार गर्म हो जाता है। अब चुनाव के महीने में कार्रवाई और अफवाह दोनों के तेज होने के आशंका जताई जा रही है।
इतनी बुरी भी नहीं अंग्रेजी
देश में इन दिनों चल रहे ‘इंडिया’ बनाम ‘भारत’ विवाद के बीच किसी ने ध्यान नहीं दिया कि अब बिजली उपभोक्ताओं को उनका बिल हिंदी में मिलने लग गया है। कांग्रेस और उनकी सरकारों को हिंदी नामों और भाषा से लगाव है, यह साबित करने की जरूरत हो तो छत्तीसगढ़ के बिजली विभाग के इस फैसले को भी सामने रखा जा सकता है। पर उपभोक्ताओं के लिए यह हिंदी बिल मुसीबत लेकर आई है। बिल साफ प्रिंट में नहीं मिल रहा है। अक्षर समझ नहीं आते हैं। जब उपभोक्ताओं ने इसकी शिकायत मीटर रीडर से की तो उन्होंने यह नई जानकारी दी कि विभाग ने हिंदी सॉफ्टवेयर तो मशीनों पर लोड कर दिया है, पर इस छोटी सी मशीन के भीतर जो प्रिंटर लगा है, वह अंग्रेजी के लिए फ्रैंडली है, हिंदी अक्षरों को ठीक तरह वह प्रिंट कर ही नहीं पा रहा है। ठेकेदार के नीचे काम करने वाले मीटर रीडर से जब अंग्रेजी में ही बिल देने कहा गया तो उसने दिक्कत बताई, कहा कि हमारी मजदूरी का भुगतान हिंदी में बिल देने पर ही होगा।
पता नहीं हिंदी में बिल देने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या बिजली विभाग को किसी ने सुझाव दिया था? आम उपभोक्ता तो बिल की राशि और आखिरी तारीख ही देखता है। तरह-तरह के अधिभार को तो वे न अंग्रेजी में बताने पर समझ पाते, न हिंदी में।
उपहार की कीमत नहीं पूछी जाती
इन दिनों जब जी-20 देशों का सम्मेलन भारत में हो रहा है और विदेशी मेहमानों के भव्य स्वागत की तैयारी हुई है, आप इस सवाल में मत उलझिये कि इस तरह के ताम-झाम पर हमारे-आपके टैक्स के पैसे किस तरह से खर्च किए जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने अमेरिका प्रवास के दौरान वहां के राष्ट्रपति की पत्नी को हरे रंग का हीरा उपहार में दिया था। रायपुर के आरटीआई कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने विदेश मंत्रालय से जानकारी मांगी कि इसकी कीमत कितनी थी, बिल की कॉपी देकर बताइये? मंत्रालय ने यह कहते हुए जानकारी देने से मना कर दिया कि इससे भारत-अमेरिका के आपसी संबंध प्रभावित होंगे।
इधर जी-20 सम्मेलन देश के अलग-अलग राज्यों में हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने इसके लिए घोषित रूप से 990 करोड़ रुपये का बजट रखा है। उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में बताया था कि उसने 100 करोड़ रुपये का बजट रखा है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी 18 और 19 सितंबर को एक कार्यसमूह की बैठक होने जा रही है। जून महीने से इसकी तैयारी चल रही है। विदेशी मेहमानों के स्वागत के लिए साज-सज्जा, होटल व्यवस्था, अधोसंरचना, यातायात, प्रचार प्रसार,सांस्कृतिक कार्यक्रम, पर्यटन, नागरिक भागीदारी और उपहार की व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है। पुरखौती मुक्तांगन, सिरपुर, चंपारण, कौशल्या माता मंदिर जैसे दर्शनीय स्थलों को भी नए सिरे से सजाया संवारा जा रहा है।
सबसे बड़ा आयोजन दिल्ली में 8 और 9 सितंबर को होने जा रहा है। दिल्ली सरकार ने इसके लिए 1000 करोड़ का बजट रखा है। एक खबर तीन दिन पहले ही आई थी कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए बुक होटल के कमरे 8-8 लाख रुपये प्रतिदिन के किराए वाले हैं।
ठीक है, विदेशी मेहमानों का अच्छी तरह सत्कार होना चाहिए, पर यदि आप संबंधित विभागों से खर्चों का अलग-अलग हिसाब बिल सहित मागेंगे तो उन्हें कैसे मना करना है, यह विदेश मंत्रालय के जवाब ने बता दिया है- रिश्ते बिगड़ेंगे।
दिग्गजों के भी पाँव उखड़ गए
भाजपा में पिछले चुनावों में टिकट बंटवारे में कुछ नेताओं की खूब चलती थी। इन नेताओं की पसंद पर आसपास की टिकटें तय होती थीं। मगर इस बार ऐसे नेताओं की खुद की टिकट खतरे में पड़ गई है।
एक दिग्गज नेता ने तो टिकट कटने की आशंका के चलते अपने समर्थकों को कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में भेजकर शक्ति प्रदर्शन तक कराया। एक अन्य नेता को पता चला कि उनका नाम पैनल में नहीं है, तो उन्होंने बड़े नेताओं को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश की कोर कमेटी के सदस्य भी किसी को आश्वस्त करने की स्थिति में नहीं है।
भाजपा प्रत्याशियों के चयन में इस दफा पार्टी हाईकमान सीधी दखल दिखा रही है। कम से कम पहली सूची से तो यही अंदाजा लगाया जा रहा है। पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि अभी तक तो ज्यादा कुछ हुुआ नहीं है, लेकिन मैदानी इलाकों की सीटों के प्रत्याशी घोषित होने के बाद कई प्रमुख नेता सार्वजनिक तौर पर अपना गुबार निकाल सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
सोनवानी का तूफानी कार्यकाल
पीएससी के चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी का कार्यकाल 9 तारीख को खत्म हो रहा है। सोनवानी के रहते पीएससी की साख पर जो असर पड़ा है, उसकी भरपाई करना सरकार के लिए आसान नहीं है। सोनवानी के चेयरमैनशिप के आखिरी दिनों में जिस तरह हड़बड़ी में राज्य सेवा परीक्षा के नतीजे घोषित हुए, और इंटरव्यू के तत्काल बाद रिजल्ट घोषित हुए, उसकी देश में दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है।
आम तौर पर मेन्स की परीक्षा के नतीजे घोषित होने के पखवाड़े भर बाद इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू होती है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ, और हफ्तेभर के भीतर ही इंटरव्यू शुरू हो गए, और चेयरमैन के रिटायरमेंट के पहले ही नतीजे भी घोषित हो गए। सोशल मीडिया पर पीएससी की कार्यप्रणाली को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है।
सोनवानी के रहते पीएससी पर आरोप लगे हैं, उसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि संवैधानिक पद पर आने से पहले मनरेगा घोटाले में उनके खिलाफ आरोप सिद्ध पाए गए थे। अब जब पीएससी परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, तो आरोपों को खारिज करना आसान नहीं हो जाता है।
नोटा बना बसपा का वोट बैंक
छत्तीसगढ़ सहित जिन राज्यों में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग की तैयारी भी तेज हो गई है। मतदाता जागरूकता अभियान भी वह चला रहा है। स्कूल-कॉलेजों में कार्यक्रम हो रहे हैं, लोगों से वोट देने और मतदाता सूची में नाम जुड़वाने की अपील की जा रही है। इस अभियान में बिना भय या प्रलोभन के, अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देने का आग्रह होता है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग वोट देने नहीं जाते। इसकी एक वजह होती है कि चुनाव में खड़ा होने वाला कोई भी प्रत्याशी उसे पसंद नहीं होता। ऐसी स्थिति को देखते हुए नोटा ( इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुनाव आयोग ने शुरू किया। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश था, जिसका पालन किया गया। देश में पहली बार छत्तीसगढ़ के ही स्थानीय चुनावों में सन् 2009 में नोटा का विकल्प दिया गया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने सन् 2014 के राज्यसभा चुनाव से इसकी शुरूआत की। अब लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा- विधान परिषद् और स्थानीय चुनाव, सभी में नोटा विकल्प मिलता है।
चुनाव आयोग का प्रयास सिर्फ इतना होता है कि ज्यादा से ज्यादा पात्र लोग मतदाता सूची में नाम जुड़वा लें और सब मतदान केंद्र पहुंचें। कोई नोटा में भी वोट डाल रहा तो तब भी वह मतदान प्रणाली की सफलता है। मगर, उत्तरप्रदेश के घोसी विधानसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल एक अलग मकसद से किया गया। पांच सितंबर को यहां वोट डाले गए। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दिया था। यहां मुकाबला सीधे भाजपा और सपा के बीच रह गया। यह ऐसी सीट है जहां से बहुजन समाज पार्टी दो बार चुनाव जीत चुकी है, पर इस बार उसने अपना उम्मीदवार किसी कारण से खड़ा नहीं किया। इस स्थिति में बसपा सुप्रीमो ने अपने समर्थक मतदाताओं से अपील की कि वे नोटा में वोट डालें।
नतीजा आने पर पता चलेगा कि उनके मतदाताओं ने ऐसा किया या नहीं, पर यह अपील उन्होंने अपने वोटों को समाजवादी पार्टी या भाजपा में शिफ्ट होने से बचाने के लिए की। भविष्य में जब उनकी पार्टी मैदान में उतरे तो उनके वोट उनके ही पास नोटा के बैंक में जमा रहे।
इसी साल अप्रैल में चुनाव आयोग ने तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीन लिया था। बसपा का अभी बरकरार है। राजनीतिक दल कई सीटों पर उम्मीदवार इसीलिए उतारते हैं ताकि उन्हें मिला राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दर्जा बरकरार रहे। बसपा ने एक नया प्रयोग किया, जिसमें वह मैदान में न होने पर अपने वोटों को नोटा के जरिये सुरक्षित रखने की कोशिश की। अभी तक नोटा किसी मतदाता की निजी पसंद का मामला रहा है।
तंदरुस्त रेलवे में बदहाल यात्री
इस साल अप्रैल में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, जिसका मुख्यालय बिलासपुर है, ने एक प्रेस नोट जारी कर बताया था कि उसने रेलवे बोर्ड की ओर से दिए गए 202.24 मिलियन टन लदान के लक्ष्य से आगे जाकर 202.64 मिलियन टन लदान किया। यह अब तक का सर्वाधिक लदान है। इससे रेलवे ने 18 हजार 225.47 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया, जो 2021-22 यानि एक साल पहले के 16 हजार 350.56 करोड़ से 11.46 प्रतिशत अधिक है। पूरे भारतीय रेल का आंकड़ा भी कुछ ऐसा ही है। माल ढुलाई से 2022-23 में उसे 2.44 लाख करोड़ की आमदनी हुई है। यह 2021-22 के मुकाबले 27.75 प्रतिशत अधिक है जब 1.91 लाख करोड़ कमाई दर्ज की गई थी।
इतना फलते फूलते रेलवे ने यात्री ट्रेनों की दुर्दशा बना रखी है। ट्रेनों के अचानक रद्द होने से लोग हलकान हैं। चाहे त्यौहार हो या छुट्टियों का मौसम इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कोविड महामारी के बाद से स्थिति चरमराई हुई है। पैसेंजर, लोकल ट्रेन ही नहीं, एक्सप्रेस ट्रेनों का भी कोई भरोसा नहीं। लोग रिजर्वेशन कराते समय सशंकित रहते हैं कि कहीं अचानक ट्रेन कैंसिल न हो जाए। एक जानकारी आई है कि एसईसीआर से शुरू होने या गुजरने वाली 3800 ट्रेनों के फेरे एक साल में कैंसिल किए हैं। करीब 40 लाख यात्रियों को अपनी यात्रा कैंसिल करनी पड़ी। रेलवे को कैंसिल टिकट के 59 करोड़ रुपये लौटाने पड़े। यात्री टिकटों को तो रेलवे आमदनी में गिनती ही नहीं, वह तो बार-बार बताती है कि यात्री परिवहन में उसे 49 प्रतिशत का नुकसान होता है। इसलिये एक साल में 40 लाख यात्रियों का बोझ उठाने से वह बच गई।
अंग्रेजों के जमाने में जब देश में रेल पांत बिछाये गए तो उसका मुख्य उद्देश्य यही था कि बंदरगाहों तक भारत के उत्पादों का परिवहन हो और विदेश भेजा जा सके। पर, यात्री सुविधा का भी तब से ही ख्याल रखा जा रहा है। यात्रियों को ढोने से रेलवे को भले ही नुकसान होता हो, पर इस आवाजाही से देश की अर्थव्यवस्था में, रोजगार, उद्योग में सहायक ही है। सबसे ज्यादा कमाई वाले बिलासपुर जोन में तो रेलवे को टिकटों की बिक्री से होने वाली मुनाफे या नुकसान के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। छत्तीसगढ़ के सांसदों को इसकी फिक्र ही नहीं है। वे तो उन स्टेशनों पर हरी झंडी दिखाकर खुश हैं, जहां कोविड काल के बाद से बंद स्टापेज फिर शुरू किए जा रहे हैं।
आंगनवाड़ी में बस का आनंद
आंगनवाड़ी, मिनी आंगनवाड़ी केंद्र ग्रामीण व शहर के पिछड़े इलाकों के छोटे बच्चों के शारीरिक, बौद्धिक विकास में बहुत महत्व रखते हैं। छत्तीसगढ़ में भी 43 हजार से अधिक आंगनवाड़ी केंद्र और 6500 मिनी आँगनवाड़ी केंद्र हैं। बच्चे यहां प्रारंभिक शिक्षा लेने पौष्टिक आहार लेने पहुंचे, इसके लिए जरूरी है कि यहां का माहौल उन्हें आकर्षक लगे। यह तेलगांना राज्य का एक मिनी आंगनबाड़ी केंद्र है, जिसकी दीवार को इस खूबसूरती के साथ रंगा गया है कि यह केंद्र एक यात्री बस की तरह दिखाई दे रहा है।