राजपथ - जनपथ
राजीव भवन तक !!
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रभारी महामंत्री अरुण सिसोदिया की उस चि_ी से पार्टी में खलबली मची हुई है, जिसमें उन्होंने कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल पर प्रदेश अध्यक्ष की अनुमति के बिना विनोद वर्मा के बेटे की कंपनी को 5 करोड़ 89 लाख भुगतान करने का आरोप लगाया है। उन्होंने इसे गबन करार दिया है।
सिसोदिया के आरोप से कांग्रेस के दिग्गज चिंतित भी हैं। वजह यह है कि विनोद वर्मा पर महादेव ऑनलाईन सट्टा केस में संलिप्तता के आरोप हैं, और उन्हें सटोरियों से कथित तौर पर 5 करोड़ मिलने की बात भी ईडी की जांच में आई है। पार्टी संगठन के नेता इस बात से सशंकित हैं कि विनोद वर्मा के बहाने कहीं ईडी राजीव भवन में दाखिल न हो जाए।
वजह यह है कि रामगोपाल अग्रवाल मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंसे हुए हैं, और वो फरार हैं। ईडी धमतरी स्थित उनके निवास पर दस्तक भी दे चुके हैं। विनोद वर्मा के बेटे की कंपनी से जुड़े करार भी सार्वजनिक हो चुके हैं। एक विज्ञापन एजेंसी पर भी ईडी का छापा पड़ चुका है, और कांग्रेस के विज्ञापन विनोद वर्मा से ही जुड़े हुए थे। ऐसे में अंदेशा जताया जा रहा है कि जांच एजेंसियां कुछ कांग्रेस नेताओं को पूछताछ के लिए बुला सकती है। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
भाजपा में भी भडक़े कार्यकर्ता
नांदगांव में मंच पर भूपेश को खरी खरी के ताप से कांग्रेस झुलसी हुई है। और भाजपा में भी पूर्व विधायक को भी सुननी पड़ी। नेताजी जनसंपर्क की कड़ी में हाल ही में मस्तूरी गए थे। वहां एक जनपद सदस्य ने सबके सामने भड़ास निकाली। सदस्य का कहना था कि चुनाव के दौरान प्रत्याशी मदद मांगने आते हैं। पार्टी के सिपाही हैं, इसलिए काम भी करते हैं। इसके बाद कोई झांकने भी नहीं आता। जनपद सदस्य का इशारा पूर्व सांसद की ओर था। दरअसल, बिलासपुर क्षेत्र के दावेदारों ने इस बार पूरी कोशिश की कि टिकट उन्हें मिले, लेकिन फिर से मुंगेली को ही महत्व दिया गया। इधर भाजपा ने चौथी बार मुंगेली क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रत्याशी तय किया है।
मदद करने वालों के सम्मान में..
सडक़ दुर्घटना में घायल लोगों को बचाने की हर किसी को कोशिश करनी चाहिए। इससे पीडि़तों की कीमती जान बचाई जा सकती है। मगर ज्यादातर लोग भीड़ का हिस्सा होते हैं, या अनदेखी कर आगे बढ़ जाते हैं। पहले मददगार सामने इसलिये नहीं आते थे क्योंकि उन्हें बयान और गवाही के लिए पुलिस चक्कर लगवाएगी। मगर, अब यह प्रावधान यह है कि कोई व्यक्ति किसी घायल को अस्पताल पहुंचाता है तो उसे कोई परेशान नहीं करेगा। पुलिस अब ऐसे लोगों को सम्मानित भी कर रही है। रायपुर पुलिस ने एक कदम आगे और बढ़ाते हुए नया प्रयोग किया है। बिलबोर्ड और होर्डिंग में इन मददगारों की फोटो लगाकर सम्मान दिया गया है ताकि दूसरे लोग प्रेरित हों।
त्यौहार के बाद प्रचार
पहले चरण में छत्तीसगढ़ की एकमात्र सीट बस्तर के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई है। पर पहले दिन किसी ने नामांकन पत्र नहीं खरीदा है। इस बीच होली आ रही है। इस बीच होली आ रही है। इसके पहले कुछ नामांकन पत्र जरूर खरीद लिए जाएं लेकिन दाखिला त्यौहार के बाद ही होने की उम्मीद है। पहले चरण में नामांकन 27 मार्च तक भरा जाना है और 30 मार्च तक नाम वापस लिए जा सकते हैं। मतदान 19 अप्रैल को होगा। इसलिये प्रचार के लिए काफी वक्त मिलेगा। बस्तर, कांकेर दोनों सीटों पर पिछली बार कांटे का मुकाबला था, जिसमें से एक कांग्रेस के पास और दूसरी भाजपा के पास आई थी। इसलिये दोनों ही दलों के स्टार प्रचारक यहीं से छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर सकते हैं। उम्मीद की जा रही है मतदान के कुछ पहले यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की ओर से और राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी कांग्रेस की ओर से प्रचार के लिए आ सकते हैं।
बहरहाल लोकसभा चुनाव का असर त्योहार पर दिखाई दे ही रहा है। बाजार में मोदी, राहुल गांधी, योगी आदित्यनाथ आदि के मुखौटे और तरह-तरह की पिचकारियां दिखने लगी हैं।
पहले प्रवेश, फिर इस्तीफा
चुनाव के बीच दलबदल का खेल भी चल रहा है। कांग्रेस के सरगुजा संभाग के वार रूम प्रभारी अमर गिदवानी, बृजमोहन अग्रवाल से किसी काम से मिलने गए, तो उन्हें गमछा पहनाकर भाजपा प्रवेश करा दिया। फिर गिदवानी ने भाजपा के चुनाव दफ्तर में बैठकर कांग्रेस से अपना इस्तीफा टाइप करवाया।
गिदवानी व्यापारी नेता हैं, और कैट के चेयरमैन भी हैं। यही वजह है कि उन्हें आसानी से भाजपा में प्रवेश मिल गया। मगर कई ऐसे नेता भी हैं जो भाजपा में आना चाहते हैं, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। इन्हीं में से झीरम घाटी नक्सल हमले में घायल एक नेता पिछले कुछ समय से भाजपा में आने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पा रहा है।
चर्चा है कि उक्त कांग्रेस नेता को भाजपा में शामिल करने के प्रस्ताव पर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने आपत्ति की है। खास बात यह है कि चंद्राकर को दूसरे दलों से आने के इच्छुक नेताओं की छानबीन के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन हैं। यानी अजय चंद्राकर समिति की अनुशंसा पर ही किसी को भाजपा में शामिल किया जा सकता है।
उक्त कांग्रेस नेता को लेकर अजय चंद्राकर की आपत्ति इस बात पर है कि वो कई बार दलबदल चुके हैं। ऐसे में उन्हें भाजपा में शामिल नहीं करना चाहिए। साफ है कि अब पार्टी के प्रति निष्ठा दिखने पर ही प्रवेश दिया जा सकता है।
बृहस्पति सिंह का क्या होगा
आखिरकार निलंबित पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल, और बिलासपुर मेयर रामशरण यादव की कांग्रेस में वापसी हो गई है, लेकिन बृहस्पति सिंह को पार्टी में प्रवेश देने का मामला पचड़े में पड़ गया है। बृहस्पति सिंह ने टीएस सिंहदेव, और सुश्री सैलजा पर गंभीर आरोप लगा दिए थे। वो सुलह सफाई के लिए तैयार हैं, और कांग्रेस वापसी चाहते हैं। मगर सिंहदेव इसके लिए तैयार नहीं है।
चर्चा है कि सिंहदेव ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि बृहस्पति सिंह की वापसी की दशा में वो अन्य विकल्प तलाश सकते हैं। सिंहदेव, बृहस्पति सिंह को माफ करने के लिए तैयार नहीं है। यही वजह है कि बृहस्पति सिंह की वापसी रूक गई है। हालांकि कई और प्रमुख नेता, बृहस्पति सिंह के लिए कोशिशें कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
अभी लंबा इंतजार
विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह था। बड़ी संख्या में ऐसे जुनूनी कार्यकर्ता थे, जो उम्मीद लगाए बैठे थे कि लोकसभा से पहले उन्हें कोई न कोई निगम मंडल मिल ही जाएगा।
लेकिन संगठन ने तो कुछ और ही सोच के रखा था। सब कार्यकर्ता-पदाधिकारियों को लोकसभा में लगा दिया। ठाकरे परिसर की एक बैठकी में कुछ नए कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा चल रही थी कि लोकसभा चुनाव के बाद निगम-मंडल का बंटवारा होगा। पास ही बैठे एक सियान नेता ने अपना अनुभव बताकर सबको मायूस कर दिया। नेता ने बताया कि लोकसभा के बाद नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव होंगे। इसके बाद ही कुछ हो सकता है। यानी अभी लंबा इंतजार करना होगा।
चुनाव के बाद फिर लौटेंगे
पुलिस अधिकारियों के तबादले में संशोधन को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही है। जिस पैमाने पर तबादले हुए हैं, उससे उन अधिकारियों की हिम्मत बंधी है, जो सुकमा, दंतेवाड़ा भेजे गए थे। इनमें कुछ के तबादले रद्द हो गए हैं, लेकिन कुछ के रद्द नहीं हुए हैं। तबादलों में संशोधन के बाद जो संदेश गया है, वह यह है कि चुनाव के बाद संशोधन की गुंजाइश बनी हुई है।
बघेल पर अपनों के हमले
लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव के प्रत्याशी बनाए गए भूपेश बघेल के खिलाफ पिछले दो दिनों के भीतर पार्टी के भीतर ही दो बड़े हमले हो गए। रायपुर में पूर्व प्रभारी महामंत्री अरुण सिसोदिया ने बघेल के सलाहकार विनोद वर्मा पर कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल के साथ मिलीभगत कर पार्टी फंड के करोड़ों रुपए की गड़बड़ी का आरोप लगाया। दूसरी तरफ राजनांदगांव में प्रचार के लिए पहुंचे बघेल के सामने ही मंच से जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेंद्र वैष्णव ने पिछली कांग्रेस सरकार और सीधे बघेल पर ही मंच से हमला बोल दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यकर्ताओं का सीएम से मिलना मुश्किल था। उनका छोटा मोटा काम भी नहीं होता था।
ये दोनों हमले बीजेपी और जांच एजेंसियों की ओर से खड़ी की जा रही मुसीबतों से अलग है। कहा नहीं जा सकता कि यदि बघेल लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं होते तो क्या परिस्थितियां अलग होती। उनके लिए राहत की बात यह ज़रूर है कि संगठन और नेतृत्व उनके साथ खड़ा दिख रहा है। पर जिन कार्यकर्ताओं की बदौलत चुनाव जीता जाता हैए उनकी मन:स्थिति को टटोलना मुश्किल है।
कोरबा महापौर पर संकट
प्रदेश में सत्ता बदलने के बाद कांग्रेस को नई.नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। ठीक लोकसभा चुनाव के पहले कोरबा के महापौर राजकिशोर प्रसाद का अन्य पिछड़ा वर्ग जाति प्रमाण पत्र जिला स्तरीय जाति छानबीन समिति ने निलंबित कर दिया है। उनके प्रमाण पत्र को लेकर शिकायत कांग्रेस के शासन काल में की गई थीए मगर जांच रुकी हुई थी। अभी भी प्रमाण पत्र निरस्त नहीं किया गया है बल्कि निलंबित है। ओबीसी कोटे से किसी तरह का लाभ लेने से उन्हें मना कर दिया गया है। अब भाजपा पार्षद उनके निर्वाचन निरस्त करने की मांग उठा रहे हैं। महापौर पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के करीबी माने जाते हैं।
हाल के दिनों में जिला और प्रदेश स्तर के कई कांग्रेस नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं। ठीक लोकसभा चुनाव के दिनों में जाति छानबीन समिति का यह आदेश बहुत कुछ इशारे करता है।
साफग़ोई और खरी-खरी की तारीफ़
राजनांदगांव में पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेन्द्र दास वैष्णव के बेबाकी की राजनीतिक हल्कों में खूब चर्चा हो रही है। सुरेन्द्र दास ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल की मौजूदगी में एक तरह से विधानसभा चुनावों में हार के कारणों को भी गिना दिया।
उन्होंने गिरीश देवांगन का नाम लिए बिना राजनांदगांव विधानसभा से बाहरी को टिकट देने के फैसले पर कटाक्ष करते हुए कह गए, कि पार्टी चाहे तो रायपुर और दुर्ग के नेताओं को पंचायत चुनाव लडऩे के लिए यहां (राजनांदगांव) भेज सकती है। हम इसका स्वागत करेंगे।
गिरीश देवांगन, पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह के खिलाफ बुरी तरह हारे थे। हार के कारणों का कोई स्पष्ट कारण नजर नहीं आ रहा था। जबकि भूपेश बघेल ने गिरीश के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, और सारे संसाधन लगा दिए थे। अब जाकर सुरेन्द्र दास की टिप्पणी से सब कुछ साफ हुआ है। यानी बाहर से आए नेताओं को प्रत्याशी बनाने को कार्यकर्ताओं ने स्वीकार नहीं किया, और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।
महासमुंद में बिरनपुर की गूंज
महासमुंद में कांग्रेस ने पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को सिर्फ इसलिए प्रत्याशी बनाया है कि वहां साहू समाज के मतदाता निर्णायक हैं। मगर ताम्रध्वज को समाज का पूरा-पूरा साथ मिलता नहीं दिख रहा है। वजह यह है कि बिरनपुर कांड की गूंज अब महासमुंद में भी सुनाई देने लगी है।
भाजपा ने महासमुंद में बिरनपुर के भुवनेश्वर साहू हत्याकांड के मसले पर कांग्रेस की घेराबंदी शुरू कर दी है। ताम्रध्वज को जवाब देना इसलिए भी मुश्किल हो रहा है कि वो गृहमंत्री रहते भुवनेश्वर साहू की हत्या के बाद कभी बिरनपुर गए ही नहीं। न ही उनके परिजनों से मुलाकात की थी। साहू समाज में इसको लेकर ताम्रध्वज के खिलाफ नाराजगी अभी तक बरकरार है। जबकि विधानसभा चुनाव में इसका नतीजा ताम्रध्वज भुगत चुके हैं। अब लोकसभा चुनाव में क्या होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
संसदीय सचिव बनाएंगे या नहीं?
करीब बीस वर्ष पहले भाजपा सरकार ने ही संसदीय सचिवों की नियुक्ति की शुरूआत की थी। इसके जरिए जातीय, क्षेत्रीय, दलीय संतुलन बनाया जाता रहा है। यह भी सच है कि इनमें से कई संसदीय सचिव अगला चुनाव हारते रहे या टिकट नहीं मिलती। संसदीय सचिवों की नियुक्ति को कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर ने चुनौती दी थी। हालांकि कांग्रेस सरकार में 13 संसदीय सचिव बनाए गए थे। बाद में विधानसभा में यह व्यवस्था भी आई कि संसदीय सचिव ना तो विधायक की तरह सवाल कर पाएंगे, ना ही मंत्री की तरह जवाब दे पाएंगे। भाजपा सरकार में जो संसदीय सचिव थे, उन्हें कभी-कभी जवाब देने का मौका मिलता था। बाद में हाई कोर्ट के आदेश पर यह छिन गया था। विधायकों के मन में एक बड़ा सवाल यह भी है कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति की जाएगी, या नहीं। यदि नियुक्ति की जाएगी तो 12 से अधिक फिर बनाए जाएंगे या सिर्फ 11 । इस हिसाब से विधायकों के मन में गाड़ी-बंगला मिलने की उम्मीद बंधी रहेगी।
सहानुभूति या नुकसान?
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित महादेव सट्टा ऐप मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ ईडी के प्रतिवेदन पर एसीबी, ईओडब्ल्यू ने एफआईआर दर्ज कर ली है। पूर्व सीएम के खिलाफ अनेक धाराओं में मामला दर्ज होने की एक कॉपी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है लेकिन अब तक आधिकारिक बयान नहीं आया है। एसीबी की ओर से कोई खंडन नहीं आया है, इसलिए इसे लोग असली मान कर चल रहे हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान ईडी ने ऐसा ही एक प्रेस नोट जारी किया जिसमें सिर्फ बघेल सरनेम का जिक्र था। सबने मान लिया कि बात भूपेश बघेल की हो रही है।
राजनांदगांव से उम्मीदवार बनने के बाद जाहिर हुई इस ताजा रिपोर्ट ने बघेल को और आक्रामक बना दिया है। इसे राजनीतिक साजिश बताते हुए उन्होंने ऐलान किया है कि वे अग्रिम जमानत की अर्जी नहीं लगाएंगे। दूसरी तरफ तमाम भाजपा नेताओं के सोशल मीडिया पेज बघेल पर हमलावर टिप्पणियों से भरे पड़े हैं।
विधानसभा चुनाव बघेल अपनी सीट से जीत गए थे लेकिन कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। सरकार दोबारा नहीं बन पाई। देखना दिलचस्प होगा की राजनांदगांव से उनकी लड़ाई इस खुलासे के बाद किस मुकाम पर पहुंचेगी। बघेल की छवि को नुकसान होगा या उन्हें सहानुभूति मिलेगी?
रुक गई ट्रांसफर लिस्ट
बीते एक महीने से स्कूल शिक्षा विभाग में यह जमकर चर्चा हो रही थी कि तबादले की जम्बो लिस्ट तैयार हो रही है। बताते हैं कि यह सूची धीरे-धीरे घटती बढ़ती रही। इसके चलते समय पर तैयार नहीं हो सकी। बंगले से रवाना हुई फाइल महानदी में अज्ञात कारणों से दो दिन तक रुकी रही। और इधर चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। अब सारा मामला कम से कम जून महीने तक लटक गया है। लोकसभा चुनाव के बाद यह विभाग किसके पास रहेगा, कुछ भरोसा नहीं।
एक खूबसूरत शाम
पानी पर ढलते सूरज की रोशनी और नौकायन। यकीन नहीं होगा मगर यह तस्वीर हाल ही में शिवरीनारायण में महानदी के तट से ली गई है।
इंसानों के रेवड़ का क्या करें?
हिन्दुस्तान के अधिकतर हिस्से में चाहे सुबह की सैर हो, चाहे शाम को किसी तालाब किनारे या फुटपाथ पर लोग गप्प मारने जुटे हों, जब तक वे भीड़ की अराजकता नहीं दिखा पाते, उन्हें चैन नहीं पड़ता। हिन्दुस्तान में जब तक कोई अकेले हैं, तभी तक उनमें थोड़ी इंसानियत रह सकती है। एक से दो -चार हुए तो वे गुंडों के गिरोह जैसे हो जाते हैं। सुबह घूमने भी निकलते हैं तो सडक़ की पूरी चौड़ाई को घेरकर चलते हैं, इतनी जोरों से चीखते हुए निकलते हैं कि आसपास के घरों में लोगों की नींद खुल जाए। किसी बगीचे में पहुंचते हैं तो कसरत की मशीनों पर बैठकर तम्बाकू-गुटखा खाना शुरू कर देते हैं, और उसे बाग-बगीचे की बेंच मानकर उन पर कब्जा करके बैठ जाते हैं, फिर कोई और उनका इस्तेमाल न कर ले। कुल मिलाकर हिन्दुस्तानी सोच सार्वजनिक सम्पत्ति को अधिक से अधिक अपना साबित करने की रहती है, और लोग इसका प्रदर्शन करके सुकून पाते हैं।
सडक़ों पर जब हिन्दुस्तानियों की टोलियां चलती है, तो आसपास के मवेशी अपने बच्चों को यह नजारा दिखाकर सिखाते हैं कि कभी भी इस तरह पूरी सडक़ घेरकर नहीं चलना चाहिए। और ऐसी हरकत करने के लिए किसी का कम उम्र नौजवान होना जरूरी नहीं है, बुजुर्ग होने पर भी लोगों की हरकतें ऐसी ही रहती हैं। दिक्कत यह है कि जानवरों को तो एक लाठी लेकर हांका जा सकता है, इंसानों के रेवड़ों को कैसे खदेड़ा जाए? जैसे-जैसे हिन्दुस्तानी संख्या में बढऩे लगते हैं, वैसे-वैसे वे भीड़ की मानसिकता में आ जाते हैं, जिसमें सिर बहुत होते हैं, दिमाग एक भी नहीं होता।
राशन कार्ड नहीं बदल पाए...
भाजपा ने प्रदेश में सरकार बनने से लेकर लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने के बीच काम करने के लिए मिले करीब तीन महीनों का इस्तेमाल मोदी की गारंटी को ज्यादा से ज्यादा पूरा करने की कोशिश की। पिछली भाजपा सरकार के दौरान रुका किसानों का बकाया बोनस देने से शुरूआत हुई जो महतारी वंदन योजना की पहली किश्त और किसानों को धान का बकाया भुगतान करने तक जाकर खत्म हुई। एक काम सरकार ने और तेजी से करना चाहा, जो गारंटी में शामिल नहीं था लेकिन उससे कम जरूरी भी नहीं था। वह था प्रदेश के करीब 77 लाख हितग्राहियों के बीच नया राशन कार्ड पहुंचाना। यह अभियान 25 जनवरी से शुरू कर दिया गया था। काम में तेजी लाने के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने की सुविधा भी दे दी गई थी। पहले इसकी मियाद फरवरी के आखिरी तक तय की गई थी फिर 15 मार्च तक बढ़ाई गई। अब ऑनलाइन अपडेट करने का काम तो चलता रहेगा लेकिन आचार संहिता लग जाने के कारण नया कार्ड वितरित करने का काम रोकना पड़ा है। वैसे खाद्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि पुराने कार्डधारकों को राशन मिलने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। बस होगा यह कि उनके पास जो कार्ड हैं उनमें अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व खाद्य मंत्री की तस्वीर है।
17 तरह के बैंगन
बैंगन बहुतों को नापसंद है, पर सबसे ज्यादा बिकने वाली सब्जियों में यह शुमार भी है। अब यह हर कहीं, हर मौसम में मिल जाता है। अब तो तरह-तरह के रंगों और आकार में भी। इंदौर की इस सब्जी विक्रेता महिला का कहना है कि वह 17 प्रकार के बैंगन बेच चुकी हैं। फिलहाल इस दुकान में 7 तरह के बैंगन तो दिख ही रहे हैं।
बस हटाने में एकजुटता दिखी...
कोरबा जिले के छुरी नगर पंचायत की कांग्रेस अध्यक्ष नीलम देवांगन को बीते महीने अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद पद गंवाना पड़ गया। वैसे तो कांग्रेस समर्थित पार्षदों की संख्या यहां 10 है, पर सरकार बदलने के बाद कई नगरीय निकायों में बहुमत के बावजूद कांग्रेस को सीट गंवानी पड़ी है। देवांगन को कुर्सी बचाए रखने के लिए केवल 6 वोट की जरूरत थी लेकिन उन्हें 5 ही मिल पाए। कांग्रेस और भाजपा के ज्यादातर पार्षद उन्हें हटाने के नाम पर एकजुट हो गए थे। दो साल से यह कोशिश हो रही थी पर वे सफल सरकार बदलने के बाद हुए। यहां तक तो सब निपट गया लेकिन जब नया अध्यक्ष चुनने की बारी आई तो एक राय नहीं बन सकी। पार्षद किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो सके। इसी खींचतान के बीच अब आचार संहिता लग गई है। नया चुनाव कम से कम जून महीने तक के लिए टल गया है। काम प्रशासक संभालेंगे।
अंग्रेजी का शब्द यहीं से निकला है!
रायपुर के जगन्नाथ मंदिर में इन दिनों एक गाड़ी पर लदा हुआ एक पहिया लोगों की दिलचस्पी का केन्द्र बना हुआ है। टाईम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार रश्मि ड्रोलिया ने अपने फेसबुक पेज पर इसकी तस्वीर के साथ लिखा है कि यह ओडिशा के जगन्नाथपुरी के रथ का एक पहिया है जो कि कुछ समय भक्तों के दर्शन के लिए रायपुर के जगन्नाथ मंदिर को दिया गया है, और यह पुरी वापिस चला जाएगा। उन्होंने लिखा है कि यह पुरी के रथ के 16 चक्कों में से एक है, और इसे बनाने में सिर्फ लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है, किसी भी तरह लोहे की कोई कीलें इसमें नहीं लगाई गई हैं। उनके मुताबिक इस पहिए के लकड़ी के हिस्से एक-दूसरे में इस तरह फंसाए गए हैं कि वे आपस में मजबूती से जुड़ जाते हैं, जिस तरह कि किसी पहेली के हिस्से। यह चक्का जगन्नाथपुरी लौटकर वहां इसकी लकड़ी मंदिर में प्रसाद पकाने के चूल्हे में काम आएगी। वहां हर बरस एक नया रथ बनता है, और पुराने रथ के हिस्से इसी तरह इस्तेमाल कर लिए जाते हैं।
रश्मि ने एक दिलचस्प जानकारी लिखी है कि अंग्रेजी भाषा में बहुत बड़ी-बड़ी गाडिय़ों या वाहनों के लिए जगरनॉट शब्द का इस्तेमाल होता है। अंग्रेजी के इस शब्द की बुनियाद जगन्नाथ के रथ से है, जो कि दुनिया में किसी भी धर्म का सबसे बड़ा रथ रहता है। इसके विशालकाय आकार के मुताबिक विशाल वाहनों के लिए जगरनॉट शब्द प्रचलन में बहुत समय से आ चुका है।
बृहस्पत ने क्या बिगाड़ा था...
विधानसभा चुनाव के तीन माह बाद लोकसभा चुनाव आ जाने के चलते कांग्रेस के कई निलंबित पदाधिकारियों का निलंबन ज्यादा टिका नहीं। पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल, बिलासपुर महापौर रामशरण यादव और प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष प्रेमचंद जायसी को पार्टी में वापस ले लिया गया है। यादव और जायसी निलंबित थे, जायसवाल निष्कासित। मगर एक और पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का निष्कासन समाप्त नहीं किया गया है।डॉ. जायसवाल ने पार्टी के प्रदेश प्रभारी सचिव चंदन यादव पर सात लाख रुपये टिकट के लिए लेने का आरोप लगाया था। महापौर यादव का एक ऑडियो जारी हुआ था, जिसमें वे कथित रूप से पूर्व विधायक अरुण तिवारी को फोन पर बता रहे हैं कि उनकी टिकट इसलिये कट गई क्योंकि वे करोड़ों रुपये प्रदेश प्रभारी कु. सैलजा को नहीं दे सके। जिन्होंने दी उनको मिल गई। जायसी मस्तूरी सीट से टिकट चाहते थे। वहां से कांग्रेस ने पूर्व विधायक दिलीप लहरिया को फिर से मैदान में उतारा। सन् 2018 में वे हार गए थे, इस बार फिर जीत गए। आरोप है कि जायसी ने कांग्रेस के खिलाफ काम किया था। इन तीनों की बहाली के बीच एक महत्वपूर्ण नाम पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का रह गया। टिकट कटने की खबर मिलने पर उन्होंने टीएस सिंहदेव और कुमारी सैलजा के खिलाफ बयान दिए थे। प्रदेश में हार के लिए दोनों को जिम्मेदार बताया था। सिंहदेव के खिलाफ उनका पहले भी कई विवादित बयान थे। शायद संगठन को लगा होगा कि बृहस्पत सिंह का मामला ज्यादा गंभीर है। अब यह देखना है कि चुनाव प्रचार के दौरान उन पर कोई नरमी बरती जाती है या नहीं। यदि इस दौरान वापसी नहीं हुई तो उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।
भारी पड़ गई सिफारिश
पिछली सरकार को हमेशा हमेशा के लिए स्थाई मानकर तत्समय के विपक्ष के बड़े बड़े नेताओं को परेशान करने वाले पुलिस अफसर तीन महीनों से परेशान हैं। एक ने तत्समय के पूर्व विधायक को तो हिरासत में लेकर पूरी शाम पेट्रोलिंग वैन में गश्त कराया था। सरकार आने के बाद ऐसे अफसरों को नक्सल मोर्चे पर भेजा गया । पर एक एएसपी का ऐसा उदयन हुआ कि साहब आचार संहिता के फेर में आनन फानन में तर गए। कैसे नहीं तरते, सिफारिश भी कमल विहार से आई थी। इस बात की भनक जब विधायक जी को लगी तो उन्होंने पड़ताल की। तो यह सच्चाई सामने आए। सबसे दुखद यह हो गया कि सिफारिश कर्ता ही मध्य क्षेत्र खेत दिए गए ।
दीवाली भी गई अब होली भी
इसलिए मांग और प्रक्रिया चल रही है एक देश एक चुनाव की। हर छमाह में आचार संहिता लगने पर त्यौहारी बेनिफिट का नुकसान उठाना पड़ रहा है। अब अपने यहां ही देख ले विधानसभा चुनाव की आचार संहिता में धनतेरस,दीवाली गई। और अब आम चुनाव के चलते होली पर खरमास लग गया। साथ ही साथ ईदी भी जाती रही। उसी दौरान अपने यहां चुनाव चरम पर होगा। इफ्तारी की दावत के सार्वजनिक आयोजन भी आचार संहिता में फंस जाएंगे।सारे त्यौहार तो चल जाते हैं लेकिन होली पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। अध्दी पौव्वा बोतल देने और लेने वाले अभी से सोचने लगे हैं। कैसे होगा। 19-19 एजेंसियां फ्रीबीज़ पर गिध्द नजर बिठा चुकीं हैं।डिस्टलरीज़ से लेकर दुकान तक सीसीटीवी, जीपीएस के साथ साथ,हर गाड़ी के पीछे एक गुप्तचर अलग दौड़ रहा है।इसे देखते हुए कहने लगे हैं कि यदि शौकीनों के बीच जनमत संग्रह या वोटिंग करा ले तो वन नेश न वन इलेक्शन बहुमत से जीत जाएगा।
बिना उम्मीदवार प्रचार
दस दिन पहले लोकसभा के 6 प्रत्याशियों की घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ की बची 5 सीटों पर कांग्रेस नामों का ऐलान नहीं कर पाई है। कुछ राज्यों की दूसरी सूची भी जारी हुई, मगर उसमें छत्तीसगढ़ के नाम नहीं थे। अब कहा जा रहा है कि बाकी ऐलान 18-19 मार्च को होगा। भाजपा कटाक्ष कर रही है कि उसे उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। यह स्थिति भाजपा के साथ होती तो अलग बात थी। वहां तो मोदी के चेहरे और गारंटी पर लड़ा जाना है, पर कांग्रेस में उम्मीदवार का नाम भी तय करेगा कि जीत-हार का फासला कितना होगा। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बची हुई सीटों पर भी चुनाव प्रचार शुरू करने का निर्देश दिया है। पदाधिकारी-कार्यकर्ता बाहर निकल रहे हैं तो लोग एक ही सवाल कर रहे हैं, किसे खड़ा किया है? कार्यकर्ता कह रहे हैं, यह जल्दी बता देंगे।
साहबों की खातिरदारी
बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के भेलवाडीह में स्वच्छ भारत मिशन के अधिकारी शौचालयों के निरीक्षण दौरे पर पहुंचे। पंचायत ने उनकी खूब खातिरदारी की। बिल बना 34 हजार 500 रुपये का। यह भी साफ-साफ लिखा कि बकरा और मुर्गा खिलाया गया। पंचायत की रकम कैसे फूंकी जाती है, यह उसका एक नमूना है। बिल कुछ पुराना है, पर कलेक्टर से शिकायत हाल ही में की गई है।
अफ़सरों का रतजगा
भूपेश सरकार की कई परंपराओं को साय सरकार नहीं बदल सकी है। अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को ही लीजिए, भूपेश सरकार ने सबसे पहले आधी रात डीजीपी ए.एन.उपाध्याय को बदलकर डी.एम.अवस्थी को प्रभारी डीजीपी बना दिया था। फिर रातों-रात सीएस अजय सिंह की कुर्सी सुनील कुजूर को सौंप दी थी।
भूपेश सरकार ने एक साथ 50 से अधिक आईएएस अफसरों के तबादले किए थे। तबादले की सूची आधी रात जारी की गई थी। इसके बाद से देर रात आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के तबादले का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह अब तक जारी है।
साय सरकार ने सबसे पहले 83 आईएएस अफसरों के तबादलों की सूची जारी की थी जो कि अब तक की सबसे बड़ी सूची है। यद्यपि इसमें सिर्फ डेढ़ दर्जन कलेक्टर ही बदले गए थे। जबकि भूपेश सरकार ने एक साथ 22 कलेक्टरों को बदल दिया था जबकि उस समय जिलों की संख्या कम थी। और कोरोना का भी माहौल था।
हाल यह है कि अब अफसरों को तबादले के इंतजार में देर रात तक जागना पड़ रहा है। आधी रात सूची निकालने की परंपरा क्यों शुरू की गई, इसकी कोई ठोस वजह नहीं है। ये बात अलग है कि इससे जीएडी के स्टॉफ परेशान जरूर हो जाते हैं।
एक पंडाल, तीन बिल
छह दिन पहले हमने इसी कॉलम में एक पंडाल तीन सम्मेलन के आयोजन का उल्लेख कर सरकार की मितव्ययिता की तारीफ की थी। और यह भी आशंका जताई थी कि इस एक पंडाल का बिल, क्या एक ही बनेगा या अफसर अपने अपने विभाग के लिए अलग अलग बनाएंगे। साइंस कॉलेज मैदान में सजाए गए इस पंडाल में पिछले सप्ताह लगातार तीन दिन महिला, किसान और पंचायत सम्मेलन हुए।
हर रोज केवल विभाग के होर्डिंग,फ्लैक्स और ड्रापआउट (मंच के पीछे की दीवार पर लगने वाला विशाल पोस्टर) बदल कर सफल आयोजन हुआ। तीनों के समापन के बाद किराया भंडार वालों अफसरों के साथ सेटिंग कर तीन पंडाल लगाना बताकर बिल पेश किया। मंत्री जी के पास पहुंचे तो करीबियों ने तीन का बिल नामंजूर करने जोर दिया । मंत्री ने किया भी ऐसा। ना नुकुर के बाद अंतत: इस बात पर सहमति बनी कि तीनों ही विभाग वन-थर्ड, वन-थर्ड के अनुपात में बिल पे करेंगे।
दिन में रौशन सडक़
दुर्ग का जेल तिराहा। स्ट्रीट लाइट दिन में भी जल रही है। छत्तीसगढ़ के कई शहरों का यही हाल है। अधिकांश नगर-निगमों की बकाया बिल भुगतान के लिए बिजली विभाग से ठनी रहती है। छत्तीसगढ़ बिजली उत्पादन में सरप्लस रहता है, इसका मतलब यह नहीं कि यह मुफ्त मिलती है।
युवा हाथों में प्रशासन
छत्तीसगढ़ में आईएएस लॉबी में समय के साथ परिवर्तन होता रहा है। पहले ओडिशा लॉबी पॉवरफुल थी। इसके बाद साउथ के अफसर शासन चलाते थे। फिर छत्तीसगढिय़ा अफसरों की बारी आई। अब यंग अफसरों की बारी है। 2005 और 2006 बैच के अफसर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में हैं। आईएएस ही नहीं, आईपीएस लॉबी में भी यही बैच पॉवरफुल है।
पारदर्शी कलेक्ट्रेट
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्रवाई का सीधा प्रसारण शुरू हो जाने से लोगों को अदालती कार्रवाई समझने में मदद मिल रही है। अब छत्तीसगढ़ के एक जिले में कलेक्ट्रेट की कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है। सरगुजा कलेक्टर विलास भोस्कर जिला दंडाधिकारी के रूप में गुरुवार के दिन जब अपनी कोर्ट में बैठते हैं, तो उसका यू ट्यूब पर लाइव प्रसारण किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में यह पहला प्रयोग है। राजस्व के बहुत से मामलों में पक्षकारों को हाजिर होने की जरूरत नहीं पड़ती, उनके वकील ही बहस करते हैं। अब वे घर बैठे कार्रवाई देख सकते हैं। ([email protected])
गाड़ी-मालिक नाम से हडक़म्प
अवैध रेत खुदाई की खबरें बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं। अभी छत्तीसगढ़ के एक सत्तारूढ़ विधायक, और बड़े चर्चित परिवार के अगले चिराग की ओर से जिला प्रशासन को अवैध रेत खुदाई की शिकायत की गई, और कहा गया कि उनके विधानसभा क्षेत्र में लगातार नियम-कानून तोड़े जा रहे हैं। विधायक ताकतवर हैं, इसलिए अफसरों ने आनन-फानन जांच की, और एक बड़ा सा डम्पर भी जब्त किया। इसके बाद अफसरों पर दबाव आना शुरू हुआ कि इस गाड़ी को छोड़ दिया जाए। लेकिन गाड़ी तो जब्त हो चुकी थी। जब उसके नंबर की जांच की गई, तो दिलचस्प जानकारी मिली कि विधायक ही इस डम्पर के मालिक हैं। उनकी तरफ से शिकायत इसलिए की जा रही थी कि कोई दूसरे लोग अवैध खुदाई कर रहे हैं वह बंद हो जाए, और अकेले विधायक का एकाधिकार चले। अब सत्तारूढ़ विधायक की जब्त गाड़ी अफसरों के गले की हड्डी बन गई है कि उसे उजागर करते ही सत्ता की ही बदनामी हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि एक सत्तारूढ़ विधायक धरमजीत सिंह ने विधानसभा में कहा था कि छत्तीसगढ़ की अलग-अलग नदियों में दो सौ अवैध पोकलैंड मशीनें रेत खुदाई कर रही हैं, और अगर मशीनें इससे कम निकलीं, तो वे विधानसभा से इस्तीफा दे देंगे। अब जब सत्तारूढ़ विधायक ही इसमें लगे हुए हैं, तो यह धंधा रूकेगा कैसे?
रामगोपाल को ढूँढना मुश्किल ही नहीं...
हल्ला है कि मनी लॉंड्रिंग केस में फंसे प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल सरेंडर कर सकते हैं। कोल केस में रामगोपाल पर 52 करोड़ की मनी लॉंड्रिंग का आरोप है।
ईडी ने रामगोपाल के खिलाफ वारंट जारी करने के लिए विशेष अदालत में आवेदन लगाया था लेकिन अदालत ने यह कहा कि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अलग से वारंट जारी करने की जरूरत नहीं है। इसके बाद से ईडी रामगोपाल की तलाश कर रही है।
रामगोपाल अग्रवाल करीब साल भर से गायब हैं, और विधानसभा चुनाव के दौरान भी गिरफ्तारी के डर से नदारद रहे। उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन भी लगाया था लेकिन हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। चर्चा यह है कि रामगोपाल खुद होकर सरेंडर कर सकते हैं। क्या वाकई ऐसा होगा यह तो कुछ दिनों बाद पता चलेगा।
खऱाब प्रभारी मंत्री अब प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेसजन पस्त पड़े हुए हैं। लोकसभा चुनाव के लिए कुछ जगहों पर तो सक्रियता बिल्कुल भी नहीं दिख रही है। महासमुंद सीट से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू चुनाव मैदान में हैं।
ताम्रध्वज पर बाहरी का आरोप तो लग ही रहा है लेकिन मंत्री रहते उनकी खुद की कार्यप्रणाली को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी ज्यादा है। ताम्रध्वज के खिलाफ शिकायत यह है कि वो प्रभारी मंत्री रहते कार्यकर्ताओं की पूछ-परख नहीं की, और उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज किया।
बताते हैं कि ताम्रध्वज के बेटे जितेन्द्र साहू, जो कि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं, उन्हें भी काफी कुछ सुनना पड़ रहा है। मगर ताम्रध्वज विनम्र हैं इसलिए उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। आगे क्या होगा यह देखना है।
चिटफंड जैसी ही ठगी
छत्तीसगढ़ में चिटफंड कंपनियों ने मोटे रिटर्न का झांसा देकर हजारों करोड़ रुपये की ठगी की। अधिकांश गिरोह अंतर्राज्यीय थे। वसूली के लिए स्थानीय बेरोजगार युवकों को एजेंट बनाते थे। अनेक कंपनियों के डायरेक्टर गिरफ्तार भी हुए। उनकी प्रॉपर्टी नीलाम कर थोड़ी-बहुत राशि लौटाने की कोशिश भी की गई। हजारों लोगों की जिंदगी भर की कमाई डूब गई। जिलों में प्रशासन और पुलिस की प्राथमिकता में भी आगे कार्रवाई करने की नहीं दिखती। उनकी उम्मीद टूट चुकी है।
इधर, सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की सरसीवां पुलिस ने हाल ही में ऐसे गिरोह के कुछ लोगों ने पकड़ा है जिन्होंने पहले तो प्राइवेट बैंकों से सरकारी कर्मचारी, प्रॉपर्टी डीलर्स या किसानों को बैंकों से लाखों रुपये के लोन दिलाए, फिर उस रकम को बड़े मुनाफे का लालच देकर निवेश करने कहा। शुरुआत में उन्होंने भरोसा बढ़ाने के लिए बैक की किश्त भी चुकाई। दूसरे लोग भी ऐसा होते देख झांसे में आ गए। कुछ महीने बाद उन्होंने किस्त पटाना बंद कर दिया, दोगुना-तीन गुना राशि भी डूब गई।
पूर्व में चिटफंड कंपनियों के संचालकों ने राजनीति और प्रशासन से जुड़े लोगों से योजनाबद्ध तरीके से संपर्क बना लिया था, अपने आयोजनों में उन्हें बुलाते थे। इसके चलते पुलिस इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से कतराती रही। पिछली सरकार के दौरान इन पर शिकंजा कसा गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार बदलने के बाद निवेश के नाम पर ठगी करने वाले भी अपने लिए नया अवसर देखने लगे हैं? पुलिस और प्रशासन को सतर्क होने की जरूरत है।
मतदान का कोई विकल्प है?
सन् 1985 में कानून बनने के बाद त्रिस्तरीय पंचायत में नियमित चुनाव होने लगे। ग्रामीण जनप्रतिनिधियों की अब बड़ी भूमिका है। गांवों के शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास आदि सभी मामलों में। इसी के जरिये कई नेतृत्व उभरे जो विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खुद गांव के पंच से राजनीति की शुरुआत की थी। इधर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा जिनके पास पंचायत मंत्रालय भी है, ने एक गंभीर विषय की तरफ ध्यान दिलाया है। उन्होंने कहा है कि प्रत्यक्ष मतदान के कारण गांवों में लोगों के बीच कटुता बढ़ी है। आपसी विवाद और तनाव की स्थिति रहती है। इसका कोई विकल्प ढूंढेंगे। निर्वाचन की कोई ऐसी प्रणाली हो कि ऐसी अप्रिय स्थिति निर्मित न हो। उन्होंने इसके लिए लोगों से सुझाव लेने की बात कही है। पंचायती राज देश की संसद से पारित कानून है, इसलिये निर्वाचन के तरीके को बदला नहीं जा सकता। इसीलिये उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सुझावों को विचार के लिए केंद्र सरकार के पास भेजेगी।
बीते 15-20 साल से पंचायतों को आवंटित किया जाने वाला फंड कई गुना बढ़ा है। उनका वित्तीय अधिकार भी बढ़ा। सरपंच जैसा पद हथियाने के लिए अब इतनी बड़ी रकम फूंक दी जाती है, जितने में कोई विधानसभा चुनाव लड़ ले। इस खर्च की भरपाई पंचायतों को मिलने वाले राजस्व या अनुदान से ही की जाती है। पंचायत चुनावों में आई विकृति, विधानसभा और लोकसभा के खर्चीले चुनाव से भी प्रेरित है। लोकतंत्र में गुप्त मतदान का तो विकल्प कुछ नजर नहीं आता। मतदान साफ सुथरा हो, यह जरूरी है। पर, शुरुआत कहां से हो?
एसपी की जी हुजूरी का नतीजा...
बलौदाबाजार में साइबर सेल के प्रभारी रहे इंस्पेक्टर परिवेश तिवारी और दो सिपाहियों के खिलाफ हाईकोर्ट ने एफआईआर का आदेश दिया है। आरोप है कि एक व्यवसायी को वे घर से जबरन थाना उठाकर ले गए। उसके साथ मारपीट की गई। उसके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी बल्कि ऐसा करने का मकसद यह था कि वह पुलिस अधीक्षक के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई अवमानना याचिका को वापस ले ले। यह पुलिस का दुस्साहस ही है। उसने यह नहीं सोचा कि जो व्यक्ति हाईकोर्ट जाकर एसपी के खिलाफ अवमानना केस लगाने की हिम्मत जुटा सकता है, वह जबरिया मारपीट को कैसे बर्दाश्त करेगा। यह यकीन करना मुश्किल है कि जिस आईपीएस के खिलाफ याचिका लगाई गई है, उसकी सहमति के बगैर पुलिस निरीक्षक ने मारपीट की होगी। कुछ अधिकारी, अपने उच्चाधिकारी और स्थानीय सत्तारूढ़ दल के नेताओं का विश्वासपात्र बनने के लिए कानून-कायदों की सारी सीमाएं तोडऩे के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि बड़े अफसर और नेता तो बच जाएंगे, सजा उनको भुगतनी पड़ेगी। लगे हाथ याद दिला दें कि कोविड काल में बिलासपुर में पदस्थ रहने के दौरान तत्कालीन विधायक शैलेष पांडेय के खिलाफ भी इसी अधिकारी ने एफआईआर दर्ज की थी। कांग्रेस के ही ताकतवर गुट को खुश करने के लिए। अभी जो बड़े-बड़े अफसर जेल में बंद हैं, वे अच्छे उदाहरण हैं कि सत्तारूढ़ नेताओं की भक्ति में पद को दांव पर लगाने का क्या नतीजा होता है। कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने रायगढ़ में एक पुलिस प्रताडि़त दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदेश के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने और उन्हें चौबीसों घंटे चालू रखने का निर्देश दिया था। बलौदाबाजार में पीडि़त व्यवसायी ने न्याय पाने के लिए थाने में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे को ही सबूत के रूप में पेश किया था। इससे पता चलता है कि हाईकोर्ट का आदेश कितना जरूरी था। पर हाईकोर्ट को आदेश देने की जरूरत क्यों पडऩी चाहिए। यह काम तो सरकार का है कि वह पुलिस की छवि को बेहतर बनाए।
इंस्पेक्टर का पंडवानी प्रेम
पुलिस की नौकरी के बीच अपनी कला को बचाये रखना थोड़ा मुश्किल काम है। बचपन से पंडवानी गायन में रुचि रखने वाली तरुणा साहू आरपीएफ में इंस्पेक्टर हैं। पिछले साल मार्च महीने में ही उनकी चर्चा तब हुई थी, जब उन्होंने राजनांदगांव से फरार हत्या के आरोपी व्यवसायी प्रकाश गोलछा को पकडऩे में अपने पति एमन साहू की मदद की थी, जो कोतवाली में टीआई के पद पर थे। इस समय तरुणा साहू की चर्चा इसलिये हो रही है क्योंकि वह अयोध्या जा रही हैं। वहां हो रहे महोत्सव में 16 मार्च को वह पंडवानी की प्रस्तुति देंगीं। ([email protected])
शिक्षकों का नैतिक पतन
तिल्दा-नेवरा के केसदा गांव में एक शिक्षक पैन सिंह चंदेल को पुलिस ने गिरफ्तार किया जिसे कोर्ट ने जेल भेज दिया है। नारायणपुर में तीन शिक्षकों धर्मेंद्र देवांगन, नारायण देवांगन और नरेंद्र ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इसके बाद तीनों शिक्षक फरार हैं। बिल्हा में एक शिक्षक कमलेश साहू को गिरफ्तार किया गया है। मल्हार मस्तूरी में भी एक शिक्षक संजय साहू को गिरफ्तार कर लिया गया है। कुनकुरी में हाईस्कूल के व्याख्याता संजय साहू को गिरफ्तार किया गया। छत्तीसगढ़ के अलग-अलग कोने के इन सभी शिक्षकों पर अपने स्कूल में पढऩे वाली छात्राओं के साथ छेडख़ानी, अश्लील मेसैज भेजने जैसे आरोप हैं। हर एक मामले में क्षोभ की बात यह रही है कि शाला के प्राचार्य, प्रधान पाठकों ने बच्चियों की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। कहीं पर छात्रों और ग्रामीणों को स्कूल प्रबंधन का घेराव करना पड़ा तो कहीं पीडि़त परिवार को खुद जाकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ी, तब जाकर कार्रवाई हुई। कानून सख्त होने के कारण पुलिस ऐसी शिकायतों को टाल नहीं पाती, अगर शिकायतकर्ता जागरूकता दिखाए। मगर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने शिक्षकों के निलंबन आदि की कार्रवाई भी तब की जब रिपोर्ट दर्ज हो गई, या फिर गिरफ्तारी हो गई।
ये सब घटनाएं बीते 15-20 दिन के भीतर हुई हैं। इस बीच हमने महिला अंतरराष्ट्रीय दिवस भी मना लिया। पीडि़त छात्राओं की सराहना करनी होगी कि उन्होंने फेल करने, निष्कासित करने की धमकी मिलने के बावजूद शिकायत लेकर सामने आईं। मगर, प्रदेश के दूसरे स्कूलों में और भी पीडि़त छात्राएं हो सकती हैं, वे सकता हैं वे सहमी हों, सहन कर रही हों।
छत्तीसगढ़ में स्कूलों का शैक्षणिक स्तर पूरे देश में 27वें नंबर पर है, यानि बेहद बुरी स्थिति में। अब ऐसे शिक्षक अपनी करतूतों से साबित करने में लगे हैं, कि वे स्कूलों का शैक्षणिक स्तर ही नहीं गिराएंगे बल्कि गुरुजनों की नैतिकता नापने का कोई पैमाना हो तो उसमें भी वे सबसे नीचे तक ले आएंगे। ऐसे शिक्षक जो अपने अधिकारियों के संरक्षण में शिकायत को दबाने और गिरफ्तारी तथा निलंबन की कार्रवाई को रोकने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे थे। पॉक्सो एक्ट में कड़ी सजा का प्रावधान होने के बावजूद वे जमानत पाने और अदालत से बरी होने के लिए भी अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर सकते हैं। पर बच्चियों के लिए इससे बुरा कुछ नहीं होगा कि ये शिक्षक दोबारा स्कूल में पढ़ाने के लिए आ जाएं।
चार कॉलेजों के एक प्राचार्य
जशपुर जिले के कांसाबेल स्थित सरकारी कॉलेज से बागबहार की दूरी 17 किलोमीटर, बगीचा की दूरी 46 किलोमीटर और सन्ना की दूरी 75 किलोमीटर है। इन तीनों स्थानों में भी सरकारी कॉलेज हैं। खास बात यह है कि इन चारों कॉलेजों में किसी में भी स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति नहीं की गई है। कांसाबेल में इतिहास विषय की पढ़ाई कराने वाले सहायक प्राध्यापक को प्रभारी प्राचार्य बनाकर रखा गया है। पर उनको इसी एक कॉलेज की जिम्मेदारी नहीं उठानी है, बल्कि जिन बाकी तीन कॉलेजों की बात की जा रही है, वहां का प्रभार भी उनको ही दे दिया गया है। यानि एक साथ, एक छोर से दूसरे छोर वाले चार कॉलेजों के प्रभारी। उच्च शिक्षा विभाग कॉलेजों की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए कितना गंभीर है, इससे समझा जा सकता है।
आत्मनिर्भर किसान
मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस बार 2019 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया था। एक किसान से 10 क्विंटल अधिकतम खरीदी करना था और यह खरीदी 28 फरवरी तक ही की जानी थी। धमतरी जिले में करीब 500 हेक्टेयर में इस बार मक्के की खेती की गई। एक अनुमान के अनुसार करीब 26 हजार क्विंटल उत्पादन हुआ। पर किसी भी किसान ने सोसायटी में जाकर मक्का नहीं बेचा। वजह, बाजार में उन्हें समर्थन मूल्य से कहीं ज्यादा कीमत मिली।
छत्तीसगढ़ में धान की खूब पैदावार ली जाती है। धान के सरकारी प्रोत्साहन में हजारों करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। धान में बहुत पानी भी लगता है। मक्के में जरूरत कम पड़ती है। सरकार मिलेट्स को बढ़ावा देने की बात करती है। तब उसे ऐसे आत्मनिर्भर किसानों की सुध जरूर लेनी चाहिए।
नेता बच्चों के ट्यूटर
स्कूल शिक्षा विभाग में जिला शिक्षाधिकारियों की तबादला सूची को लेकर काफी हलचल रही। सूची में जयनारायण पांडेय स्कूल के प्राचार्य मोहन सावंत और दानी स्कूल के प्राचार्य विजय खंडेलवाल का भी नाम है। दोनों को प्रभारी जिला शिक्षाधिकारी बनाकर क्रमश: महासमुंद और रायपुर में पदस्थ किया गया है।
बताते हैं कि दोनों ही अफसर पिछले डेढ़ दशक से एक ही स्कूल में पदस्थ थे। उन्हें हटाने की खूब कोशिश भी हुई लेकिन दोनों अपने अपार संपर्कों की वजह से पद पर बने रहे। दोनों ही अच्छे शिक्षक भी माने जाते हैं, और स्थानीय बड़े नेताओं के बच्चों के ट्यूटर भी रहे हैं।
यही वजह है कि जब-जब तबादला सूची में उनका नाम जोड़ा जाता था, बड़े नेता नाम हटवा देते थे। अब जब दोनों को मनचाही पोस्टिंग मिली है, तो उनकी जगह लेने के लिए शिक्षकों में होड़ मच गई है। देखना है आगे क्या होता है।
पीडि़तों की मुख्य धारा
कांग्रेस शासनकाल में पीडि़त रहे अधिकारी कर्मचारियों ने बड़ी अच्छी उक्ति लगाई है। इनके तबादले पोस्टिंग के लिए एक टैग लाइन, पंच लाइन चल पड़ी है। पीडि़तों को मुख्य धारा में लाना है। भाईसाहबों के हाथ लिखी ये लाइन देखते ही पीडि़त मुख्य धारा में लौटने लगे हैं। दो दिन पहले ही रानु कुनबे के ऐसे ही दागी दो खनिज अधिकारी, माइनिंग डिस्ट्रिक्ट कहे जाने वाले फील्ड में पदस्थ कर दिए गए। जबकि इनके यहां ईडी विजिट कर चुकी थी। वैसे विभाग में चर्चा है कि इन दोनों ने काफी कुछ इनपुट दिया था। सो इनाम मिलना ही था। इसी तरह से स्कूल शिक्षा विभाग ने निलंबित व्याख्याता को न केवल बहाल किया बल्कि प्रभारी डीईओ बना दिया। यह कहकर की नक्सल जिलों में कोई जाना नहीं चाहता। इन्हें पिछले ही माह सदन में निलंबित किया गया था। ये पीडि़त भी मुख्य धारा में लौट आए।
बस्तर के बर्तन...
बस्तर संभाग के, बस्तर जिले के, बस्तर ब्लॉक के, बस्तर पंचायत के, बस्तर गांव का सोमवार बाजार। गर्मी में मांग बढ़ जाती है, पर बहुत से स्थानीय आदिवासी परिवार हैं जो हर मौसम में मिट्टी के घड़ों से ही काम चलाते हैं। वैसे मौसम विभाग का आंकड़ा बताता रहता है कि घने जंगलों वाले बस्तर और घनी बिल्डिंग वाली राजधानी रायपुर के तापमान में अब ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। आज की ही बात करें तो बस्तर में अधिकतम तापमान 35 डिग्री है, जबकि रायपुर में 36 डिग्री सेल्सियस।
कडक़ कलेक्टर
अंबिकापुर कलेक्टर विलास भोसकर संदीपन इन दिनों चर्चा में हैं। संदीपन ने करोड़ों की सरकारी जमीन बिक्री प्रकरण पर सख्त कार्रवाई का हौसला दिखाया, और घोटाले में संलिप्त डिप्टी कलेक्टर समेत 4 अफसर-कर्मियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी करा दी।
पिछले कुछ सालों में अंबिकापुर में जमीन के अफरा-तफरी के सबसे ज्यादा मामले आए थे। पिछली सरकार में तो एक तत्कालीन मंत्री के निज सहायक के खिलाफ भी अपराधिक प्रकरण दर्ज हुआ था। मगर ताजातरीन घोटाला प्रकरण में लीपापोती की भी कोशिश हुई।
शिकायतकर्ता तो भाजपा के नेता हैं लेकिन जिन पर घोटाले में संलिप्तता का आरोप लग रहा है वो एक जनप्रतिनिधि के नजदीकी रिश्तेदार हैं। ऐसे में कलेक्टर ने किसी के प्रभाव में आए बिना कार्रवाई की।
थोक में चूक, अब कोर्ट
सरकार में तहसीलदार, नायब तहसीलदार, भू-अभिलेख अफसर और जनपद सीईओ के थोक में तबादले हुए तो कई गंभीर चूक सामने आई है। चर्चा है कि सीएम के अनुमोदन के बिना ही विभागीय सचिव ने तबादला आदेश जारी कर दिए थे।
सचिव तो बदल दिए गए लेकिन तबादले के बाद जो विवाद खड़ा हुआ उससे बचने के लिए सरकार अब पूरे तबादलों को ही निरस्त करने जा रही है। बताते हैं कि निरस्तीकरण के लिए 33 याचिकाएं हाईकोर्ट में लगी है।
चर्चा है कि करीब आधा दर्जन से अधिक ऐसे नायब तहसीलदारों का तबादला कर दिया गया था जिनकी नियुक्ति को ही छह माह हुए थे, और परिवीक्षा अवधि में हैं।
सरकार ने भी हाईकोर्ट में कहा है कि तबादलों को निरस्त किया जा रहा है। कुल मिलाकर गलतियों को दुरस्त करने का फैसला लेकर सरकार ने विवाद को बढऩे से रोक दिया है।
दो बंगलों में भीड़ बढ़ रही
मंत्रिमंडल में अभी एक जगह खाली है। मई के बाद एक और जगह खाली होगी। इस प्रत्याशा में कुछ माननीयों की चाल-ढाल बदल गई है। कार्यकर्ता भी भैया के मंत्री बनने की प्रत्याशा में फिर सक्रिय हो गए हैं। दो पूर्व मंत्री को जब कैबिनेट में जगह नहीं मिली तो वे थोड़े निराश नजर आ रहे थे। उनके समर्थक भी दूसरे बंगले की ओर रुख करने लगे थे। जैसे ही बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा का प्रत्याशी घोषित किया गया। दो पूर्व मंत्रियों के बंगले में फिर चहल-पहल बढ़ गई है। नेताजी जानकार हैं। सामाजिक समीकरण में संभव है कि उन्हें मौका मिल जाए, इसलिए कार्यकर्ता भी कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते। और नगरीय प्रशासन, पीडब्लूडी, आवास पर्यावरण, वित्त विभाग के अफसर भी इनकी सुनने लगे हैं।
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस
सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही है। सौ दिनों के कार्यकाल के दौरान सीएम और ठाकरे परिसर ने ऐसे अफसर, कर्मचारियों पर नजर रखा। इनमें मंत्री, विधायकों के निजी स्टाफ भी शामिल है। क्योंकि पिछली भाजपा सरकार की बदनामी की बड़ी वजह ये ही लोग रहे हैं। इन सबके बीच एक बड़े विभाग के मंत्री के पीए को नियुक्ति के दूसरे महीने ही हटा दिया गया। जानकारी मिली थी कि पीए ने हाथ साफ करने की कोशिश की थी। इसके बाद तो सभी सकते में हैं,
मंत्री और पीए भी। एक जानकारी यह भी है कि पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री स्टाफ रहे लोग विधायकों के यहां सेट हो रहे हैं। ऐसे लोगों की भी सूची तैयार कर ली गई है।
समय मिलते ही शायद इन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
बेरोजगारी पर सीएम हाउस घेराव
रोजगार देने में छत्तीसगढ़ अव्वल है। प्रदेश में बेरोजगारी दर महज 0.1 प्रतिशत है, जबकि देश में 8.2 फीसदी। राज्य की नीतियों की वजह से यह बड़ी उपलब्धि हासिल हुई....। कांग्रेस शासनकाल के दौरान यह बात बड़े बड़े बिलबोर्ड, होर्डिंग, पोस्टर में प्रदर्शित की जा रही थी। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तक। यह दावा सीएमआईई के आंकड़ों के आधार पर किया जाता था, जिसके आकलन के तरीके पर अनेक बार अर्थशास्त्री सवाल उठा चुके हैं। खुद सरकार ने इन आंकड़ों के समर्थन में गांवों में गोधन न्याय योजना का जिक्र किया, जिसमें गोबर से होने वाली को शामिल किया गया था। कांग्रेस सरकार ने युवाओं का बेरोजगारी भत्ता शुरू किया, तब कतारें लगीं। लाखों युवा रोजगार कार्यालयों में पंजीयन नहीं कराते। पर पंजीयन कराने वाले युवाओं को ही आधार मानें तो उनकी संख्या 17 लाख से अधिक है। मगर शर्तों की वजह से इनमें से कई लाख युवाओं को भत्ते का पात्र नहीं माना गया। अक्टूबर 2023 में उच्च शिक्षा विभाग ने भृत्य, चौकीदार और स्वीपर के 880 पदों के लिए विज्ञापन निकाला था। इसमें शैक्षणिक योग्यता 5वीं से लेकर 12वीं तक रखी गई। मगर आवेदन करने वालों में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट भी शामिल थे। आवेदन करने वालों की संख्या 7 लाख से अधिक है। पांच माह हो गए, भर्ती की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। जिम्मेदारी व्यापमं को दी गई है जिसे शायद समझ नहीं आ रहा है कि इतने सारे लोगों की एक साथ परीक्षा कैसे ली जाए। सीएमआईई के दावों के विपरीत केंद्र सरकार की नेशनल सेंपल सर्वे की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी का प्रतिशत 26.4 है। इस सर्वे के अनुसार बेरोजगारी में अपना राज्य देश में पांचवे स्थान पर है। मगर, सरकार ने अपनी सुविधा के लिए सीएमआईई के आंकड़ों को प्रचारित किया।
राजधानी में युवक कांग्रेस ने सोमवार सीएम हाउस का घेराव किया। महंगाई के अलावा बेरोजगारी के मुद्दे पर यह आंदोलन था। भाजपा ने छत्तीसगढ़ सरकार का यह कहते हुए बचाव किया कि अभी अभी तो सरकार बनी है। केंद्र के आंकड़ों को सामने रखा जिसमें रोजगार सृजन की योजनाओं से करोड़ों युवाओं के लाभान्वित होने का दावा है। भाजपा विपक्ष में रहते हुए बेरोजगारी को गंभीर मसला मानती थी। प्रवक्ताओं ने कांग्रेस सरकार के दावों को सफेद झूठ और युवाओं से मजाक बताया। युवक कांग्रेस को भी भाजपा की सरकार के बनने के बाद ही बेरोजगारी की हकीकत दिखी। वरना अपनी सरकार के 0.1 प्रतिशत बेरोजगारी के दावे पर वह खुश थी।
नैतिकता का नुकसान
राजनीति दांव पेंच का खेल है। इसमें नैतिकता और अंतरात्मा के आधार पर फैसले लिए जाएं तो नुकसान उठाना पड़ जाता है। विधानसभा चुनाव के बाद कवर्धा शहर में कांग्रेस की हार हुई। नगर पालिका अध्यक्ष ऋषि शर्मा ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बीते 3 माह से कांग्रेस के पार्षद इंतजार कर रहे थे कि नया अध्यक्ष चुनने के लिए जिला प्रशासन आमसभा बुलाए। मगर, ऐसा नहीं हुआ। राज्य सरकार ने कल यहां भाजपा के पार्षद मनहरण कौशिक को अध्यक्ष मनोनित कर दिया। जाहिर है प्रदेश में जब भाजपा सत्तारूढ़ है तो वह अपनी ही पार्टी से किसी को अध्यक्ष बनाना चाहेगी। अब दो तिहाई बहुमत के बावजूद नगरपालिका कांग्रेस के हाथ में नहीं है। दिलचस्प यह है कि यह नियुक्ति ठीक ऐसे मौके पर की गई है, जब लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने वाली है। मतलब, मनोनित अध्यक्ष को अपना बहुमत साबित करने की फिलहाल चिंता नहीं है। न कोई सम्मेलन होगा, न कोई चुनाव। मई में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही कुछ हो सकता है। ([email protected])
अफसर सुनते नहीं
तीन महीने ही हुए हैं और भाजपा के कार्यकर्ता कांग्रेस शासन को याद करने लगे हैं। आईएएस और आईपीएस से लेकर निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी अजीब से दबाव में थे। सत्ता बदली तो अफसर रिलैक्स हो गए। इतने रिलैक्स हो गए कि भाजपा कार्यकर्ताओं की ही नहीं सुन रहे। बिलासपुर क्षेत्र में तो एक टीआई ने भाजपा की बैठक के दौरान कार्यकर्ताओं की गाडिय़ों पर कार्रवाई शुरू कर दी और विधायक को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद एसपी ने टीआई को लाइन अटैच कर दिया। मीडिया में जब यह खबर आई तो विधायक को पर्सनली एप्रोच करना पड़ा कि ऐसी खबरें छापने से उनकी छवि खराब होगी।
हाई रेटिंग वाले नेता
मंत्रिमंडल की दो सीटों पर किसे मौका मिल सकता है... यह सवाल तो सबके मन में है, लेकिन संभावित दावेदारों में हाई रेटिंग वाले नेता कौन हैं, यह जानना है तो नेताओं की सक्रियता और उनके आसपास की भी? से अंदाजा लगा सकते हैं। ठाकरे परिसर के एक कमरे में कुछ पदाधिकारियों के बीच ऐसी चर्चा चल रही थी। दरअसल, दो सीटों के दावेदार दर्जनभर हैं। यह भी कयास लगाए जाने लगे हैं कि देर-सबेर परफॉर्मेंस के आधार पर वर्तमान टीम से एक-दो को हटाकर कुछ नए चेहरों को भी लाया जा सकता है।
भोजन-पानी की तलाश में...
अभी ठीक तरह से गर्मी आई नहीं है। पूरा अप्रैल, मई और जून बचा है। पर वन्यजीवों को जंगलों में भोजन-पानी की कमी महसूस होने लगी है। यह तस्वीर डोंगरगढ़ के पास पलादूर ग्राम की है। गांव में विचरण करते भालू को देख ग्रामीण दहशत में आ गए। पर भालू ने कुछ घंटे बिताए, पानी पिया, कुछ भोजन किया, लौट गया।
बैज की टिकट पर लखमा की नजर
सांसद दीपक बैज ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पिछले साल जुलाई माह में तब संभाली थी, जब कांग्रेस की सत्ता में दोबारा वापसी की भरपूर संभावना दिखाई दे रही थी। इसी अनुमान के चलते चित्रकोट के तत्कालीन विधायक राजमन बेंजाम की टिकट काटी गई और बैज ने खुद वहां से चुनाव लड़ा। मगर, यह सीट कांग्रेस बचा नहीं पाई। यदि प्रदेश में कांग्रेस की जीत होती तो बैज अपने लिए संभावना देख रहे थे। आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने नाम पर जोर डाल सकते थे। पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं होने के चलते यह हो नहीं सका। इधर भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री को शपथ दिला दी। कहते हैं कि इसी वजह से कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश और बस्तर में खराब प्रदर्शन के बावजूद बैज को प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाने का निर्णय लिया।
विधानसभा में हार के बाद अब तुरंत लोकसभा चुनाव सामने आ गया है। प्रदेश अध्यक्ष बनने तक बस्तर से बाहर बैज की कार्यकर्ताओं से कोई मेल मुलाकात नहीं थी। उस समय उन्होंने प्रदेश के सभी जिलों का दौरा कर कार्यकर्ताओं से मिलने की योजना बनाई थी, पर ऐसा नहीं हो पाया। शायद चुनावी तैयारियों में जुटने की वजह से ऐसा हुआ। पर यह काम अब भी नहीं हो पाया है। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले दो साल तक पूरे प्रदेश का धुआंधार दौरा कर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ने जिस तरह कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क बनाया था, वह बैज अभी नहीं बना पाए हैं। एक के बाद एक कांग्रेस नेता, जिनमें कई पूर्व विधायक, प्रदेश-जिला कांग्रेस, जिला पंचायत और स्थानीय निकायों के पदाधिकारी हैं- भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों ने बैज पर उपेक्षा का आरोप भी लगाया।
बेंजाम की जब टिकट काटी गई तो उनके समर्थकों की भारी भीड़ जुट गई थी, जो उनको निर्दलीय लड़ाने पर आमादा था। उनकी नाराजगी बैज को ही लेकर थी। हालांकि चित्रकोट से सन् 2018 में बैज ही विधायक बने थे, पर 2019 में सांसद बन जाने के बाद बेंजाम को उप चुनाव में मौका मिला था। प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद बैज के सामने चुनौती संगठन को फिर से मजबूत कर लौकसभा चुनाव की तैयारी करना और उपयुक्त उम्मीदवारों का नाम सुझाना था। पर अब उनकी खुद की टिकट पर खतरा है। कोंटा विधायक कवासी लखमा ने कुछ पूर्व विधायकों व बस्तर के अन्य नेताओं के साथ बस्तर से हरीश लखमा के लिए टिकट मांगी है। बस्तर में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन होने और विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद भी बैज अपनी टिकट बचा लें तो बड़ी बात होगी। कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि उम्मीदवार तय करते समय यह भी देखा जा रहा है कि वह चुनाव का कितना खर्च खुद उठा सकता है। इस पैमाने पर तो हरीश लखमा शायद बैज पर भारी पड़ें। वैसे अमरजीत भगत के साथ कवासी लखमा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य बना दिया गया है। ऐसा करके बस्तर में लखमा की ताकत पर हाईकमान ने मुहर लगाई है। क्या यह ताकत टिकट मांगने के काम आएगी? या फिर एआईसीसी में लेकर उन्हें टिकट नहीं मांगने के लिए मनाया गया है? आज कल में तस्वीर साफ होगी।
बिना लीडर की कांग्रेस
कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के बाद से पार्टी में भगदड़ मची है। कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, और कई छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं। खास बात यह है कि बड़े नेता असंतुष्टों की मान-मनौव्वल के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।
बताते हैं कि पार्टी छोडऩे वालों को रोकने की कोशिश तक नहीं हुई। और जो जाने की तैयारी कर रहे हैं उनसे भी कोई बात नहीं हो रही है। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट अपने गृहराज्य राजस्थान में ही व्यस्त हैं। प्रभारी सचिव चंदन यादव ने विधानसभा टिकट के लिए रिश्वतखोरी के आरोप के बाद से छत्तीसगढ़ आना ही बंद कर दिया है। एक अन्य प्रभारी सचिव सप्तगिरी उल्का खुद चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं, लिहाजा वो अपने क्षेत्र में व्यस्त हैं।
रही बात प्रदेश के नेताओं की, तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल अपना सारा ध्यान राजनांदगांव में केन्द्रित कर रखा है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज खुद की टिकट के लिए मेहनत कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत भी अपनी ऊर्जा कोरबा और जांजगीर-चाम्पा में लगाते दिख रहे हैं। ऐसे में असंतुष्टों की सुध लेने वाला कोई नहीं रह गया है। स्वाभाविक है कि पार्टी में भगदड़ तो मचेगी ही।
बनी-बनाई बिगाडऩे की तैयारी
कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि कांकेर लोकसभा सीट पर पार्टी की जीत की संभावना सबसे ज्यादा है। मगर यहां टिकट को लेकर जिस तरह किचकिच चल रही है, उससे दिनोंदिन सीट मुश्किल में दिख रही है।
कांकेर में वीरेश ठाकुर की स्वाभाविक दावेदारी है। वो पिछले लोकसभा चुनाव में मात्र 6 हजार से कम वोटों से हारे थे। बावजूद इसके वो काफी सक्रिय रहे हैं। लेकिन कई नेताओं ने अनिला भेंडिय़ा को आगे कर दिया है।
कुछ नेताओं ने पूर्व संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी और पूर्व विधायक डॉ. लक्ष्मी ध्रुव को दावेदारी करने की सलाह दे दी है। रही-सही कसर छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रभारी, जो कि कर्नाटक के रहने वाले हैं उन्होंने नरेश ठाकुर को दावेदारी करने के लिए कह दिया है। अब हाल यह है कि जिन्हें टिकट नहीं मिलेगी वो अब बागी तेवर दिखा सकते हैं। ऐसे में कांकेर की भी लड़ाई कठिन हो गई है।
मैनेजमेंट कौन करेगा
कांग्रेस ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, ज्योत्सना महंत, शिव डहरिया जैसे नेताओं को लोकसभा में उतार दिया है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी बस्तर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। टीएस सिंहदेव पारिवारिक कारणों से अभी सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठ रहा है कि चुनाव का मैनेजमेंट कौन संभालेगा। झीरम घाटी कांड के बाद जो शून्यता आई थी, उसमें बघेल ने जोश भरा था। 2018 के चुनाव में भूपेश-टीएस की जोड़ी ने ऐतिहासिक 68 सीटों पर जीत दिलाई। इस बार चुनाव में भले ही कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई, लेकिन पार्टी में स्वीकार्यता इन नेताओं की है। ये ही चुनाव में व्यस्त रहेंगे तो बाकी मैनेजमेंट में दिक्कत हो सकती है। वैसे लोग कहने लगे हैं कि दाऊजी ने चुनाव लडऩे का फैसला कर दो सीटें कांग्रेस के लिए फंसा दी हैं ।
कहीं आप तो नहीं जा रहे
कांग्रेस में अजीब दुविधा है। चुनाव में हारने के बाद ज्यादातर नेता निष्क्रिय हो गए हैं। पार्टी की बैठकों-कार्यक्रमों से दूर रहने लगे हैं। इस बीच पूर्व विधायकों और विधानसभा प्रत्याशियों के भाजपा प्रवेश की खबरों के बाद ऐसे नेताओं की परेशानी और बढ़ गई है। कार्यक्रम में जाना नहीं चाहते और गैर मौजूदगी में तरह-तरह की बातें होने लगती है। एक नेताजी से मीडिया ने सवाल कर दिया... आजकल दिखते नहीं, आप तो भाजपा में नहीं जा रहे। यह सुनकर नेताजी को सफाई देनी पड़ गई।
वन विभाग नहीं मानता आयोग के निर्देश
एक पद पर तीन वर्ष या अधिक समय से पदस्थ अफसरों के चुनाव पूर्व तबादलों के आयोग का निर्देश शायद वन विभाग में लागू नहीं होता। यही वजह है कि तीन ही नहीं वर्ष से पदस्थ भावसे,रावसे के अधिकारी न विधानसभा चुनाव के वक्त न लोकसभा से पहले टस से मस हुए हैं। प्रदेश मे 33 वन मंडल और 300 से अधिक रेंज कार्यालय है और यहां के 50 डीएफओ 70 एसडीओ 100 से ऊपर रेंजर हैं जो रायपुर से लेकर बीजापुर, सूरजपुर तक विगत 4 से 5 वर्षो से एक वन मंडल में जमे हैं । इनमें से कई पंजा छाप अफसर हैं। कुछ तो सरकार बदलने के बाद भी बदले। इन्हें विधानसभा चुनाव में आयोग के डंडे से बचाया गया। अब लोकसभा चुनाव की आचार संहिता बस लगने ही वाली है, और हर अधिकारी फिर से अपने को बचाने जंगल में मंगल करने की जुगत मे लग गया है। कोई मंत्री को अपना भैया बता रहा है तो कोई विधायकों ,पीसीसीफ और भाई साहबों को सेट करने मे लगा है। हालांकि बिग बॉस भी कैट में उलझे हुए हैं। उनका ही भविष्य तय नहीं है। अब देखना है कि अपनी कुर्सी बचाते हैं या मातहतों को ।
‘आप’ के इरादे क्या हैं?
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के एक डेढ़ साल पहले आम आदमी पार्टी ने अपने संगठन का बड़ी तेजी से विस्तार किया। दावा किया गया कि प्रदेश के सभी विधानसभा के सभी बूथों में उन्होंने कार्यकर्ताओं की टीम बना ली है। पर, चुनाव आते-आते उसने इरादा बदल लिया और करीब आधे सीटों पर ही चुनाव लड़ी। अब जब लोकसभा चुनाव को लेकर छत्तीसगढ़ में बाकी दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रहे हैं, आम आदमी पार्टी के भीतर कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही है। आप ने दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, चंडीगढ़ और गोवा में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है, पर यूपी में उसने कोई सीट नहीं मांगी। छत्तीसगढ़ में भी किसी लोकसभा सीट पर लडऩे के लिए उसने विशेष तैयारी नहीं की। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने उसे शराब घोटाले और ईडी की नोटिस, गिरफ्तारियों में इतना उलझा दिया है कि वे नये राज्यों में पैर फैलाने से बच रही है। छत्तीसगढ़ प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कोमल हुपेंडी को इस्तीफा दिए हुए दो माह हो चुके हैं, लेकिन उनकी जगह अब तक कोई नया अध्यक्ष भी नियुक्त नहीं किया गया है। आप को खड़ा करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए हजारों कार्यकर्ताओं ने मेहनत की। यदि लोकसभा चुनाव के लिए इन्हें कोई टास्क नहीं दिया गया तो छत्तीसगढ़ में पार्टी का जो कुछ बचा है, उसके बिखर जाने का खतरा है। ([email protected])
आवारा कुत्तों के हमले
जशपुर जिले में महाशिवरात्रि पर्व के दौरान एकत्र लोगों पर एक आवारा कुत्ते ने हमला कर दिया, जिससे छह बच्चों सहित 11 लोग घायल हो गए। उनके आंख मुंह में चोटें आईं। राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती इलाके में पिछले 2 महीने के भीतर एक दर्जन से ज्यादा लोग कुत्तों के हमले से घायल हो चुके हैं। फरवरी के अंतिम सप्ताह में कोरबा जिले की गेवरा कॉलोनी में 24 घंटे के भीतर ही एक दर्जन लोगों को कुत्तों ने काटा। कोरबा नगर निगम इलाके में रोजाना 30 से 35 लोग रेबीज का टीका लगवाने विभिन्न अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। बस्तर के महारानी और दूसरे सरकारी अस्पतालों को मिलाकर रोजाना 20 से 25 लोग कुत्तों के हमले से घायल होकर पहुंच रहे हैं। यहां एंटी रैबीज इंजेक्शन के अतिरिक्त स्टाक की मांग की गई है। भिलाई, दुर्ग और दूसरे शहरों से भी रोजाना इसी तरह की खबरें आ रही हैं।
कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले की एक दहला देने वाली घटना सामने आई थी, जिसमें 2 साल के बच्चे को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार डाला था। हैदराबाद में एक 4 साल के मासूम के साथ भी कुछ दिन पहले ऐसा ही हुआ। रायपुर के गुलमोहर पार्क में करीब 4 महीने पहले एक ढाई साल की बच्ची को कुत्तों ने घसीटते हुए नोच डाला था, 15 जगह जख्म के निशान मिले। यह बच्ची सही सलामत है।
जशपुर की घटना में उत्तेजित भीड़ ने कुत्ते को घेर कर मार डाला। अक्टूबर 2019 में बिलासपुर के रामा वैली में आवारा कुत्तों को तार से बांधकर बेरहमी से लाठियों से पीट-पीटकर ट्रैक्टर में लादा गया और दूर ले जाकर छोड़ा गया। कई कुत्तों की मौत भी हो गई। इस घटना की व्यापक प्रतिक्रिया हुई। थाने में शिकायत हुई थी, लोगों ने कैंडल मार्च निकाला।
संविधान का अनुच्छेद 51 ए (जी) सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने का निर्देश देता है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के फैसलों के मुताबिक कुत्तों को उनकी गली से हटाया नहीं जा सकता। उनका टीकाकरण और नसबंदी ही बचाव का उपाय है। इस पर एक्ट 1960 से है। 2001 में भी अधिनियम संशोधित हुआ। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालतों के फैसलों के सिलसिले में अप्रैल 2023 में एक अधिसूचना जारी कर कुत्तों के टीकाकरण और नसबंदी की पूरी जिम्मेदारी नगरीय निकायों और पंचायत पर डाली है। सन् 2022 की एक गणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में आवारा कुत्तों की संख्या 40 हजार थी, अब और बढ़ चुकी होगी। बीते वर्षों में रायपुर, कोरबा, भिलाई बिलासपुर जैसे शहरों में पंजीकृत संगठनों के माध्यम से कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के कुछ दिन तक कार्यक्रम अलग-अलग चलाए गए। मुंबई जैसे महानगर में यह काम सफलतापूर्वक किया जा चुका है। वहां आवारा कुत्तों की संख्या बेहद कम है। इसी तरह से देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में भी काफी काम हुआ है। पर छत्तीसगढ़ में लगातार जिस तरह से मामले आ रहे हैं उससे स्पष्ट है कि ज्यादातर शहरों में स्थानीय प्रशासन गंभीर नहीं है।
यहां गाय-बैलों से क्रूरता
कांकेर जिले के मुसुरपट्टा गांव में छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पशु बाजार लगता है। यहां छत्तीसगढ़ के धमतरी, कोंडागांव, बस्तर जिलों के अलावा ओडिशा से भी गाय बैल बिक्री के लिए लाए जाते हैं। पंचायत की अकेले इस बाजार की नीलामी से होने वाली आमदनी 45 लाख रुपये के आसपास है। मगर, यहां पशुओं के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार की शिकायत है। बाजार हर बुधवार को लगता है। पशु दो दिन पहले से आने लगते हैं। इन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता है। कई पशुओं की बाजार में ही या फिर लाने ले जाने के दौरान मौत हो जाती है। यह सिलसिला कई सालों से चल रहा है। मीडिया ने लगातार इसे कवर किया है, मगर पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारी और पंचायत के प्रतिनिधि इस कृत्य को रोकने की कोशिश नहीं करते।
कितने हैं सरकार के खिलाफ कोर्ट...
छत्तीसगढ़ पुलिस में 23 वर्षों में जो नहीं हुआ वो इस बार हुआ। एक साथ 76 एएसपी बदल दिए गए। जो सरकार की आंखों में किरकिरी बने हुए थे उन्हें दो सौ से चार सौ किमी दूर भेजा गया। उसके बाद से ट्रांसफऱ ऑर्डर को लेकर डर देखा जा रहा । दरअसल इस बार बिना पेटी, खोखे के तबादले हुए हैं, इसलिए। और अब तो पीएचक्यू ने सूची पर अदालत में कैवियेट लगाया है। स्टे लेने जाने वालों की आशंका के चलते कैवियेट दायर किया गया है।
अब इस पर चर्चा भी होने लगी है कि जिले को सम्हालने वाले एएसपी होते हैं उन्हें जिले की बजाय एक कैम्प का इंचार्ज बनाया गया तो क्यों नहीं जाएँगे कोर्ट ? इतना ही नहीं यह सुझाव भी दे रहे हैं कि एडीजी नक्सल आपरेशन का हेड क्वार्टर भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सुकमा या दंतेवाड़ा में हो वो ज़्यादा मुफ़ीद होगा बज़ाय एएसएपी को कैम्प इंचार्ज बनाने के। क्या पहले वालों ने ऐसा नही किया था किस गाइड लाइन के खिलाफ हुआ ये बताने का कष्ट करें। अब देखना यह है कि 76 में कितने 56 इंच वाले हैं जो सरकार को चुनौती दे, और कोर्ट कचहरी में लाखों खर्च करे।
एक पंडाल तीन सम्मेलन
वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपने बजट संबोधन में कहा था कि राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने फिजूलखर्ची रोकने के उपाए करेंगे । इसकी शुरूआत कर दी गई है। जैसा कहावत है कि एक टिकिट में दो सिनेमा। ऐसा ही कुछ राज्य शासन के तीन विभाग इन दिनों कर दिखाया है। साइंस कॉलेज मैदान में एक ही पंडाल में तीन सम्मेलन आयोजित कर बड़े खर्च से विभागीय मद को बचाया गया है। पहले शनिवार को किसान सम्मेलन, फिर आज महतारी वंदन और कल सोमवार को पंचायत सम्मेलन । साइंस कॉलेज मैदान में पूरा सेटअप वही केवल विभाग और सम्मेलन के फ्लेक्स, झंडें ही बदले गए और जाएंगे । यानी कुछ लाख रूपए में काम हो जाना चाहिए। अपने मंत्रियों के इस बेहतर तालमेल से वित्त मंत्री अवश्य खुश होंगे, कि साथी मंत्रियों की सोच भी मितव्ययिता की होने लगी है। लेकिन क्या विभाग के अधिकारी ऐसा सोच और कर रहे हैं। यह तो आरटीआई में पता चलेगा। कि तीन मैं से किस सम्मेलन में कम खर्च हुआ।
चर्चा 2005 की
रमन सरकार में पावरफुल रहे 2005 बैच फिर चर्चा है। उस सरकार में भी इस बैच के अधिकारी रमन सरकार के करीबी माने जाते थे, अब नई सरकार में भी। इस बैच के एक आईपीएस के लिए सरकार ने पूरी ट्रांसफर लिस्ट रोक दी थी। उनके आते ही आदेश जारी कर दिया। अभी इस अधिकारी की एसीबी ईओडब्ल्यू चीफ बनने की चर्चा है। वहां जाने के पहले ही अपने करीबियों को भेजकर अपनी टीम बना ली है। इसी तरह दिल्ली से लौट रहे अन्य अधिकारियों के लिए भी पावरफुल पद छोडक़र रखा गया है। उनके आते ही ताजपोशी हो रही है। सरकार में यह बैच धीरे धीरे मजबूत हो रहा है। इनसे जुड़े लोग भी पिछली सरकार में पावरफुल होने के बाद भी इस सरकार में अच्छी पोस्टिंग पर है।
बसपा की अलग राह का असर
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में जांजगीर सीट पर बहुजन समाज पार्टी तीसरे स्थान पर थी। प्रत्याशी दाऊराम रत्नाकर ने एक लाख 31 हजार वोट हासिल किए। यहां कांग्रेस प्रत्याशी रवि भारद्वाज को भाजपा के गुहाराम अजगले ने 83 हजार मतों से हराया। बसपा ने तब सभी 11 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस भाजपा के बीच सीधा मुकाबला था, लेकिन यदि बसपा और कांग्रेस के बीच समझौता होता तो कुछ सीटों पर परिणाम अलग होते। पिछले कुछ दिनों से चर्चा चल रही थी कि इंडिया गठबंधन में मायावती को शामिल करने के लिए सोनिया गांधी प्रयास कर रही हैं। इसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री पद का ऑफर भी दिया जा सकता है। मगर, अब मायावती ने स्पष्ट कर दिया है कि वे लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगीं। इसका मतलब यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद से ही लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन कर रही कांग्रेस के लिए लड़ाई पहले की तरह इस बार भी कठिन है।
नक्सल ऑपरेशन का नया क्षेत्र
कांग्रेस शासन काल में अच्छी जगह पर पदस्थ रहे कई पुलिस अफसरों को नक्सली इलाकों में भेजा गया है। इनमें पंकज शुक्ला, संजय ध्रुव, अभिषेक माहेश्वरी, संजय कुमार महादेवा आदि शामिल हैं। इनकी जहां पोस्टिंग हुई है वे पहले से ही नक्सल प्रभावित इलाकों के रूप में जाने जाते रहे हैं। जैसे मोहला मानपुर अंबागढ़ चौकी, सुकमा, नारायणपुर, राजनांदगांव आदि। मगर यह पहला मौका है जब मुंगेली जिले में विवेक शुक्ला की नक्सल ऑपरेशन पोस्टिंग दी गई है। जिले के लोरमी इलाके में बीते एक दशक से नक्सल मूवमेंट की खबरें आती रही हैं। पिछली भाजपा सरकार के समय सन 2015 में एक खुफिया रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि माओवादी संगठन राजनांदगांव, कबीरधाम होते हुए मुंगेली के वन क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाना चाहते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय से मिले पत्र के आधार पर पीएचक्यू ने जुलाई 2021 में एक आदेश जारी कर मुंगेली को नक्सल प्रभावित जिलों में शामिल कर लिया था। नक्सल प्रभावित जिलों में सुरक्षा संबंधी व्यय का अलग से प्रावधान होता है। अब 3 साल बाद यहां पर पुलिस अधिकारी की अलग से पोस्टिंग दी गई है।
बस्तर के नक्सल प्रभावित जिलों में लगातार सुरक्षा बलों के नए कैंप खोले जा रहे हैं। ऐसे में नक्सली के नए ठिकानों में सक्रिय होने की कोशिश कर सकते हैं। पहली बार तीन साल बाद मुंगेली में की गई अलग पोस्टिंग इसी का संकेत माना जा रहा है।
जंगल से मिली एक सब्जी
छत्तीसगढ़ के जंगल भांति भांति के फलों सब्जियों से आबाद है। सोनहत के साप्ताहिक बाजार में यह जो सब्जी बिकने के लिए आई है, वह आमतौर पर दिखाई नहीं देता। इसका नाम पखरी है। पीपल जैसा पेड़ होता है और उसे पर यह फली लगती है। उबालकर इसकी सब्जी बनाई जाती है।
टिकट कटने की नाराजगी
सन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांकेर सीट से भाजपा प्रत्याशी मोहन मंडावी ने कांग्रेस के बीरेश ठाकुर को 6914 मतों से हराया था। लोकसभा के लिहाज से यह बहुत अधिक अंतर नहीं है। इस बार मंडावी की टिकट कट गई। टिकट कटने से हुई नाराजगी वे छिपा नहीं रहे हैं। बल्कि उन्होंने बयान दिया कि इसके पीछे कोई गड़बड़ी हुई है, इसकी जांच होनी चाहिए। गोंड समाज से आने वाले मंडावी ने इस बात का भी ध्यान दिलाया है कि उनके समाज से पार्टी ने किसी को प्रदेश में टिकट नहीं दी। भोजराज नाग के बारे में भी उन्होंने राय दी है कि वह कैसे प्रत्याशी हैं, यह परीक्षण कर लोग बताएंगे। मंडावी का यह भी कहना है कि उन्होंने लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन किया, सवाल भी अच्छे किए। हालांकि यह भी कहना है कि वे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता है और प्रचार करेंगे। मगर यह तय है कि उन्होंने पार्टी के निर्णय को उतनी सहजता से स्वीकार नहीं किया है जितना महासमुंद से टिकट कटने के बाद चुन्नीलाल साहू ने कर लिया। भाजपा प्रदेश की 11 में से पूरे 11 सीट जीतने के लिए काम कर रही है। सन 2019 की मोदी लहर में कांटे की टक्कर थी। नतीजा आने पर पता चलेगा कि इस बार की लहर तेज है या कम।
अब कहां के कद्दावर रह गए...
वाणिज्य, उद्योग व श्रम मंत्री, कोरबा विधायक लखन लाल देवांगन से सवाल करते हुए किसी मीडियाकर्मी ने पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के नाम के सामने कद्दावर शब्द जोड़ दिया। देवांगन ने पलटकर कहा-अब कहां के कद्दावर नेता हैं। कोरबा में अब उनको कोई नहीं जानता। पैसे के बल पर तीन बार से चुनाव जीत रहे थे। इस बार प्रत्याशी मिल गया तो 12 के भाव चल दिए....। यानि मंत्रीजी का यह मानना है कि इस बार जयसिंह को हराने के लिए तगड़ा प्रत्याशी मिल गया। इसके पहले के प्रत्याशी उनकी पार्टी ने कमजोर दिए। लोकसभा चुनाव पास है, इसलिए ऐसे तीखे बयान कांग्रेस-भाजपा दोनों तरफ से आ सकते हैं। सत्ता में हों तो तेवर और भी तल्ख हो जाते हैं। याद करिये, पिछली सरकार के मंत्रियों के जुबान से भी भाजपा नेताओं के बारे में क्या क्या फूटते थे।
प्रशासन पर दबाव
भाजपा के एक-दो नए नवेले विधायकों की स्थानीय प्रशासन से पटरी नहीं बैठ पा रही है। विधायक कोई गैर जरूरी काम लेकर जाते हैं, तो आला प्रशासनिक अफसर तवज्जो नहीं दे रहे हैं। सरगुजा संभाग के एक जिले में तो विधायक के करीबियों ने अपने विधानसभा क्षेत्र के 40 पंचायत सचिवों की लिस्ट देकर कलेक्टर पर तबादले के लिए दबाव बनाया।
कलेक्टर ने लिस्ट देखी, और फिर साफ तौर पर कह दिया कि तीन-चार से अधिक तबादले नहीं हो सकते हैं। ऐसे ही जमीन से जुड़े विवाद पर कार्रवाई न हो, इसके लिए कलेक्टर पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। मगर कलेक्टर ने कार्रवाई रोकने से मना कर दिया। कुछ इसी तरह की शिकायतें भी अलग-अलग जगहों पर आई है। कुछ विधायकों की शिकायत पार्टी संगठन तक पहुंची है। संकेत है कि आने वाले दिनों में अतिसक्रिय जनप्रतिनिधियों पर लगाम लगाने के लिए हिदायत दी जा सकती है।
हाईकोर्ट की फटकार
बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान डिप्टी कलेक्टरों की आरटीओ के पद पर पोस्टिंग नाराजगी जताई। कोर्ट ने सरकार से पूछ लिया कि आरटीओ के पद पर डिप्टी कलेक्टरों की पोस्टिंग क्यों की जा रही है? परिवहन विभाग के लोग क्या करेंगे? उन्होंने इस मामले में एजी को तलब किया है।
जस्टिस एनके व्यास की एकल पीठ ने पूछ लिया कि हर जगह डिप्टी कलेक्टर, या आईएएस की पोस्टिंग क्यों की जाती है। मूल कैडर के अफसर क्या करेंगे? कोर्ट की तलखी के बाद सरकार ने आनन-फानन में परिवहन में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ आधा दर्जन से अधिक डिप्टी कलेक्टरों को मुक्त कर उनकी सेवाएं सामान्य प्रशासन विभाग को लौटा दी गई है।
हालांकि ये सारी पोस्टिंग पिछली सरकार में हुई थी, और प्रशासनिक अफसरों की मलाईदार परिवहन विभाग में पोस्टिंग की परम्परा लंबे समय से चली आ रही है। मगर अब कोर्ट के संज्ञान में प्रकरण आने के बाद अब शायद ही विशेषकर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की पोस्टिंग परिवहन में हो पाए।
नक्सल मोर्चे पर तैनाती
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. को बस्तर इलाके में सेवाएं देते 8 साल से अधिक हो चुके हैं। धुर नक्सल प्रभावित इलाके में सबसे ज्यादा समय तक काम करने वाले दूसरे अफसर हैं। इससे पहले एडीजी टीजे लॉगकुमेर भी करीब 5 साल से अधिक समय बस्तर में पदस्थ रहे।
बाद में लॉगकुमेर अपने गृह राज्य नागालैंड चले गए, और वहां डीजीपी भी बने। इससे परे सुंदरराज नारायणपुर एसपी रहे। इसके बाद दंतेवाड़ा डीआईजी बने, और फिर बस्तर के प्रभारी आईजी और प्रमोशन के बाद पूर्णकालिक आईजी के पद पर काम कर रहे हैं।
आईपीएस के 2003 बैच के अफसर सुंदरराज की साख अच्छी है। और यही वजह है कि चुनाव आयोग ने भी नियमों को शिथिल कर बस्तर में बने रहने दिया। सुंदरराज के रहते नक्सल गतिविधियों में काफी हद तक कमी आई है। सुंदरराज बस्तर में सबसे ज्यादा समय तक पदस्थ रहने वाले अफसर बन गए हैं। फिलहाल तो सरकार का उन्हें हटाने का इरादा भी नहीं दिख रहा है।
साइकिल गुम गई तो भूल जाइये...
बीते साल प्रकाश झा की एक फिल्म ओटीटी पर आई थी, मट्टो की साइकिल। इसमें प्रकाश झा खुद गांव के एक दिहाड़ी मजदूर के किरदार में हैं। काम पर शहर जाने के लिए उसके पास दो दशक पुरानी टूटी-फूटी साइकिल है। बार-बार नई खरीद लेने की सोचता है पर दो छोटी बेटियों और बीमार पत्नी के कारण बचत ही नहीं हो पाती और कर्ज में डूबा रहता है। साइकिल दुकान वाला भी बार-बार रिपेयरिंग करवाने का मजाक उड़ाकर नई साइकिल खरीदने की सलाह देता रहता है। एक दिन उस टूटी-फूटी साइकिल पर एक ट्रैक्टर चढ़ गया। साइकिल पूरी तरह बर्बाद। कई दिन तक पैदल शहर जाकर काम ढूंढता है, पर ऐसा करना बहुत थका देता है। आखिरकार वह ऊंचे ब्याज पर एक और कर्ज लेकर नई साइकिल खरीद लेता है। अब वह नई साइकिल लेकर फर्राटे से काम पर आना जाना करने लगा। मगर, दो चार दिन बाद शाम के वक्त लौटते समय कुछ लुटेरे उसकी साइकिल छीनकर भाग जाते हैं। मजदूर की पीड़ा का कोई ठिकाना नहीं। वह थाने और ग्राम प्रधान के चक्कर लगाता है। कोई उसकी साइकिल ढूंढने में मदद नहीं करता, न एफआईआर दर्ज की जाती। उसकी कीमत 3500 रुपये की थी। शायद प्रकाश झा जुलाई में लागू हो रहे कानून के बाद इस फिल्म को बनाते तो उन्हें स्टोरी को कोई दूसरा मोड़ देना पड़ता।
इस कहानी का जिक्र इसलिए क्योंकि, रिटायर्ड आईपीएस आर के विज ने सोशल मीडिया पर साइकिल के साथ एक पोस्ट डालकर बताया है कि एक जुलाई से देश में जो नया कानून लागू होने वाला है, उसमें 5 हजार से कम की चोरी असंज्ञेय अपराध है। इससे पुलिस को यह फायदा है कि छोटी चोरियों के लिए अपराध तो वह पंजीबद्ध कर लेगी लेकिन विवेचना की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी। नुकसान यह है कि जिस गरीब की एफआईआर नहीं लिखी जाती, उसके पास वकील को देने के लिए पैसे नहीं होंगे और उसे न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा। दूसरा नुकसान यह भी है कि इस कीमत तक की संपत्ति चुराने वाला पुलिस की निगाह में अपराधी ही नहीं माना जाएगा।
शादी के लिए अतिथि का इंतजार
विवाह का मुहूर्त एक बार तय होने के बाद जोड़े और उनके परिवार के लोगों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। मगर ऐन वक्त पर यह निरस्त हो जाए तो? मगर, मामला निर्धन परिवारों का हो और आयोजन सरकारी हो, तो सब मुमकिन है। कोरबा में महिला बाल विकास विभाग की ओर से महिला दिवस के मौके पर आज सामूहिक विवाह का कार्यक्रम रखा गया था। इसमें करीब 250 जोड़े विवाह सूत्र में बंधने वाले थे। मगर एक दिन पहले कल बताया गया कि समारोह स्थगित कर दिया गया है। अगली तारीख जल्दी बताएंगे। दूसरी बार यह कार्यक्रम टाला गया। इसके पहले फरवरी महीने में भी विवाह की एक तिथि घोषित की गई थी। उसे भी एक दिन पहले ही स्थगित कर दिया गया। एक माह बाद की तारीख तय हुई, वह भी रद्द। यह जरूर है कि समारोह की ज्यादातर तैयारियां सरकारी महकमा ही करता है लेकिन जिन जोड़ों की शादी हो रही हों और जिनके परिवार में हो रही हैं, उनके घर में भी रौनक छाई रहती है। घर को सजाते-संवारते हैं, रिश्तेदारों तक न्यौता भेज चुके होते हैं।
बताया जा रहा है कि विभाग को एक अदद मुख्य अतिथि तय करना है, जिनसे समय नहीं मिल पा रहा है।
ईडी की ईमानदारी पर भी सोचें...
सरगुजा लोकसभा सीट के लिए बतौर भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज का नाम विधानसभा चुनाव के समय से तय हो गया था। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में उनकी टिकट काट दी थी। तब वे इसी आश्वासन पर भाजपा में वापस लौटे थे कि उन्हें लोकसभा लड़ाया जाएगा। भाजपा को चिंतामणि का साथ ऐसा रहा कि सरगुजा में नतीजा 180 डिग्री घूम गया। कांग्रेस एक भी सीट निकाल नहीं पाई। भाजपा ने उन्हें टिकट देकर अपना वादा निभा दिया है।
इधर पिछले 3 साल से कोयला लेवी घोटाले की जांच कर रही प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने पाया कि कई राजनीतिक लोगों को इसकी रकम मिली। बीते जनवरी में ऐसे 35 लोगों की सूची एसीबी को उसने भेजी। नाम के साथ यह भी बताया गया कि किसे कितने रुपये मिले। चिंतामणि महाराज के नाम के आगे 5 लाख रुपये लिखा था। सूची मिलने पर एसीबी ने सभी के खिलाफ धारा 420, 120बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर लिया, बस इनमें से एक चिंतामणि महाराज का नाम छोड़ दिया। अब कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना लिया है। कह रहे हैं भाजपा की वाशिंग मशीन में चिंतामणि महाराज धुल गए। वे जरूर एसीबी के इस कदम का इस्तेमाल चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी करेंगे।
गौर करें तो ईडी ने सूची तब भेजी, जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बन चुकी थी। फिर भी उसने इस बात की परवाह नहीं की कि चिंतामणि महाराज का नाम नहीं होना चाहिए। भले ही तब उनकी लोकसभा टिकट फाइनल नहीं हुई थी लेकिन भाजपा में तो शामिल हो ही चुके थे। लगा होगा एसीबी को, कि टिकट मिलने के बाद चिंतामणि महाराज का नाम लिस्ट में नहीं होना चाहिए। उसने विशेष टीम बनाकर 10-12 दिन में जांच भी कर ली होगी और चिंतामणि बेकसूर मिले होंगे। अब जब अदालत में मामला पहुंचेगा तब देखा जाएगा कि यह तरीका कानूनी तौर टिकेगा या नहीं। बाकी कांग्रेसी एसीबी के तौर तरीके पर सवाल करते हैं तो करते रहें। चुनाव निपटने के बाद किसी का क्या बिगड़ेगा। आखिर ईडी ने जिस ईमानदारी से एसीबी को सूची भेजी, वह भी तो गौर करने लायक है ! यह अलग बात है कि कुछ लोग इसे ईडी की चूक कह
सकते हैं।
दसवें भाजपा नेता की हत्या
बस्तर में भाजपा नेताओं की नक्सल हत्या का सिलसिला विधानसभा चुनाव के करीब एक साल पहले से चल रहा है। बीजापुर के कैलाश नाग, जो वन विभाग के लिए काम भी करते थे, उनकी अपहरण के बाद गोली मार कर हत्या कर दी गई। इसके सिर्फ 6 दिन पहले बीजापुर में ही भाजपा के जनपद सदस्य तिरुपति कटला की धारदार हथियार से हत्या कर दी, जब वे एक शादी समारोह से अपने परिवार के साथ लौट रहे थे। दिसंबर के दूसरे सप्ताह में नारायणपुर जिले में बीजेपी नेता कोमल मांझी की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी। इन तीनों के अलावा नीलकंठ ककेम, सागर साहू, रामधर अलामी, रामजी डोडी, अर्जुन काका, बिरझू तारम और रतन दुबे। ये सब फरवरी 2023 से लेकर अब तक मारे गए भाजपा नेता हैं।
एक के बाद 10 नेताओं की साल भर के भीतर हुई अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या को यदि भाजपा टारगेट किलिंग कह रही है तो इसमें कुछ गलत नहीं। नक्सलियों के निशाने पर सुरक्षा बल और बेकसूर ग्रामीण तो हैं हीं। झीरम घाटी हमले में कांग्रेस ने अपनी एक पूरी पीढ़ी खो दी थी।
कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाया है कि बड़ी संख्या में नए कैंप शुरू करने के फैसले के खिलाफ नक्सली आक्रामक हुए हैं। लेकिन हत्याओं का सिलसिला नई तैनाती के पहले से चल रहा है। राज्य की नई सरकार ने वर्चुअल बातचीत का प्रस्ताव रखा जिसमें नक्सलियों को हथियार डालने की जरूरत नहीं। इसके जवाब में नक्सलियों ने 6 माह तक कैंप बंद करने, पुलिस बल को थाने तक सीमित रहने जैसी शर्तें रखीं। ये शर्तें इतनी कठिन है कि बातचीत की दिशा में आगे कदम बढेंगे इसकी उम्मीद कम है। ये शर्ते बातचीत से पहले ही एकतरफा मांगें मानने के लिए बाध्य करने जैसा है। हर हमले के बाद सरकार की ओर से बयान आ रहा है कि वे नक्सलियों से सख्ती से निपटेंगे। पर इसका उन पर कोई असर न पहले दिखता था, न आगे दिखने की उम्मीद कर सकते हैं। सरकार को शायद फिर मध्यस्थों की जरूरत पड़े। पूर्व में ब्रह्मदेव शर्मा, स्वामी अग्निवेश, अरविंद नेताम, मनीष कुंजाम जैसे सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता इसके लिए सामने आ चुके हैं। इनमें ब्रह्मदेव शर्मा और स्वामी अग्निवेश अब हमारे बीच नहीं हैं।
बधाइयाँ शुरू
लोकसभा प्रत्याशी चयन के लिए दिल्ली में कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक चल रही है। इन सबके बीच प्रदेश में संभावित प्रत्याशियों को लेकर कांग्रेसजनों के बीच चर्चा चल रही है। खुज्जी की पूर्व विधायक छन्नी साहू ने तो एक कदम आगे जाकर पूर्व सीएम भूपेश बघेल को राजनांदगांव सीट से प्रत्याशी बनने की अग्रिम बधाई दे दी। उनके बधाई संदेश कांग्रेस नेताओं के वॉट्सऐप ग्रुप में तैर रहे हैं। कुछ दिन पहले तक बड़े नेता चुनाव लडऩे से मना कर रहे थे लेकिन अब धीरे-धीरे चुनाव लडऩे के लिए तैयार हो रहे हैं। पूर्व मंत्री कवासी लखमा तो दिल्ली में बस्तर के प्रमुख कांग्रेस नेताओं के साथ डेरा डाले हुए हैं। वो बस्तर से बेटे हरीश लखमा को प्रत्याशी बनाना चाहते हैं। न सिर्फ बस्तर बल्कि कई और जगहों से टिकट के दावेदार दिल्ली में जमे हुए हैं। कांग्रेस टिकटों की घोषणा आज-कल में हो सकती है।
सबसे प्रिय होने का राज
प्रदेश भाजपा में वैसे तो तीन महामंत्री हैं लेकिन सबसे ज्यादा पूछ-परख धमतरी के रामू रोहरा की हो रही है। रामू पार्टी दफ्तर में सबसे ज्यादा समय देते हैं, और इस वजह से उन्हें रायपुर संभाग का प्रभारी भी बनाया गया है। खुद सीएम विष्णु देव साय ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में रामू की तारीफ करते हुए यहां तक कह दिया कि वो मंत्रियों से भी बड़े हैं, यानी महामंत्री हैं। कुछ नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव के वक्त सिंधी समाज के वोटरों को भाजपा के पक्ष में करने के लिए काफी मेहनत की थी। दरअसल, समाज से एक भी प्रत्याशी नहीं होने पर काफी नाराजगी थी। जिसे रामू ने शांत करने में अहम भूमिका निभाई थी। यही वजह है कि वो पार्टी के बड़े नेताओं के प्रियपात्र हो गए हैं।
नई और पुरानी संसद
प्रदेश के चार भाजपा सांसद सुनील सोनी, मोहन मंडावी, गुहा राम अजगल्ले, और चुन्नीलाल साहू की भले ही टिकट कट गई, लेकिन वो कई मामलों में भाग्यशाली भी रहे। मसलन, न सिर्फ चारों सांसद बल्कि प्रदेश के बाकी सांसद भी नए और पुराने, दोनों ही संसद भवन में बैठकर सदन की कार्रवाई में हिस्सा लिया। पुराना संसद भवन अब म्यूजियम और संसद सचिवालय के रूप में उपयोग में आ रहा है। यह भवन ऐतिहासिक पलों का साक्षी रहा है, जहां पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर जैसी नामी गिरामी हस्तियां यहां कार्रवाई में हिस्सा ले चुके हैं। यह भवन अब सदन की कार्रवाई के लिए हमेशा के बंद हो चुका है।
सदन के नए भवन में शुरू हो चुकी है। लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई नए भवन में संचालित हुई। सुनील सोनी समेत बाकी सांसदों की टिकट कट गई, लेकिन उन्हें नए भवन में सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने का अवसर मिला। नए भवन में प्रवेश के लिए कुछ नियम भी बदले गए हैं। पूर्व सांसदों का स्थाई पास बना होता था, जिससे वो सेंट्रल हॉल तक जाकर मंत्रियों, सांसदों से मिल सकते थे। प्रदीप गांधी जैसे पूर्व सांसद अक्सर सेंट्रल हॉल में देखे जा सकते थे। लेकिन नए भवन में प्रवेश के लिए पूर्व सांसदों को आम लोगों की तरह पास बनाना पड़ रहा है, जो कि सिर्फ एक दिन के लिए रहता है। इससे प्रदीप गांधी जैसे कई पुराने सांसद खिन्न नजर आए।
कांग्रेस में एक और लिस्ट
कांग्रेस की लोकसभा प्रत्याशियों की सूची जल्द जारी हो सकती है। चर्चा है कि कई नामों पर सहमति तो बन गई है, लेकिन पार्टी के एक प्रमुख नेता ने अलग से सूची हाईकमान को दी है। वो प्रदेश के बाकी नेताओं के साथ स्क्रीनिंग कमेटी में अपना सुझाव नहीं देना चाहते थे, क्योंकि इससे उन्हें विवाद का अंदेशा था। देखना है कि पार्टी नई सूची पर गौर करती है अथवा नहीं।
भाजपा में जिम्मेदारी
भाजपा में चुनाव प्रबंध समिति ने एक बैठक कर सदस्यों को अलग-अलग जिम्मेदारी दी है। मसलन, फिल्म कलाकार और विधायक अनुज शर्मा को प्रदेशभर में चुनाव के दौरान प्रचार के लिए कलाकारों को तैयार करने, और उनका कार्यक्रम कराने की जिम्मेदारी दी गई है। अब तक प्रदेश कार्यालय का काम नरेश गुप्ता और रजनीश शुक्ला ही संभालते थे। लेकिन अब उनके साथ अवधेश जैन को भी लगाया गया है। एयरपोर्ट पर वीआईपी विजिट के दौरान स्वागत की जिम्मेदारी प्रितेश गांधी, और आकाश विग को दी गई है। प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य संजू नारायण सिंह को प्रचार रथ के देखरेख की जिम्मेदारी दी गई है। नए प्रभारी किस तरह काम करते हैं, यह देखना है।
मोदी की गारंटी, आयोग पर भरोसा
हाल के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में मोदी की गारंटी के कुछ बड़े बिंदुओं पर भाजपा सरकारों को तेजी से काम करना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ के मतदाताओं का दो बड़ी घोषणाओं पर इंतजार खत्म होता दिखाई दे रहा है। 7 मार्च को महतारी वंदन योजना के तहत करीब 71 लाख महिलाओं के खाते में रकम पहुंचने वाली है। प्रधानमंत्री इस कार्यक्रम में वर्चुअली शामिल होंगे। दूसरा, किसानों से 3100 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदने का वादा पूरा हो रहा है। किसानों के खाते में 12 मार्च को अंतर की रकम करीब 13 हजार करोड़ रुपये डाली जाएगी।
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जब बीते साल 17 नवंबर को विधानसभा के लिए मतदान होने वाले थे, उसके ठीक दो दिन पहले 15 नवंबर को प्रधानमंत्री ने किसान सम्मान निधि की रकम जारी की। कांग्रेस के जयराम रमेश ने तब सवाल उठाया था कि मतदान के दो दिन पहले क्या जानबूझकर ऐसा किया गया? यह रकम तो अक्टूबर में ही मिल जानी थी। निश्चित ही मतदान के ठीक पहले लाखों मतदाता जब वोट डालने निकले तो उन्हें एहसास रहा होगा कि उनके खाते में केंद्र सरकार ने पैसे डाले हैं।
अभी 28 फरवरी को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यवतमाल से किसान सम्मान निधि की 16वीं किश्त जारी की है। इस बार कांग्रेस ने विरोध नहीं किया। कांग्रेस या किसी भी विपक्ष के लिए ऐसे भुगतान के विरोध में बहुत आगे बढऩा मुश्किल है क्योंकि इससे वोटर नाराज होकर बोल सकते हैं- हमें फायदा मिल रहा है, इससे आपको तकलीफ हो रही है।
बीते लोकसभा चुनाव का हाल जानें तो 10 मार्च 2019 को चुनाव आयोग ने लोकसभा के लिए कार्यक्रम घोषित किया था। इसी दिन से आचार संहिता भी लग गई थी। जरूरी नहीं कि इस बार भी 10 मार्च को ही चुनाव कार्यक्रम आए, वह एक दो दिन आगे भी हो सकता है, पर, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
गृह मंत्री के इलाके में अपराधों का सिलसिला
हाल ही में गृह मंत्री विजय शर्मा के इलाके में जो वारदातें हुई हैं, उस पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। सडक़ पर उतरकर दो-तीन प्रदर्शन कर चुके हैं। कल उनका पुतला भी फूंका गया। विधानसभा में भी सरकार को घेरा गया। कुछ दिन पहले शिक्षक कॉलोनी में घर के अंदर मां बेटी की तीन चार दिन पुरानी लाश मिली थी। उसके कातिल का पुलिस ने पता लगा लिया। कुकुदर में तीन बैगाओं की हत्या कर दी गई। पुलिस पहले उसे दुर्घटना बताती रही, बाद में 14 लोगों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया। कवर्धा शहर से लगे लालपुर कला में चरवाहे साधराम यादव की हत्या की गूंज तो पूरे प्रदेश में हुई है। अब उसकी जांच एनआईए से कराने की घोषणा की गई है। कांग्रेस ने पीडि़त के परिजनों को एक करोड़ रुपये मुआवजा देने की मांग की है।
याद करें, करीब चार साल पहले पाटन इलाके में पांच लोगों के एक साथ शव मिले थे। अमलेश्वर में एक युवा ज्वेलर्स की लूट के लिए हत्या हुई थी। अंडा थाना इलाके में एक 11 साल के बालक की भी हत्या कर लाश बोरे में बंद कर फेंक दी गई थी। अमलेश्वर थाने के ही एक सोनकर परिवार के चार लोगों की हत्या कर दी गई थी। ये सभी मामले तब एक साथ दो चार माह के भीतर हुए थे। तत्कालीन गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के खिलाफ सदन से सडक़ तक भाजपा ने मोर्चा खोला था।
गृह मंत्री पर पूरे प्रदेश की कानून व्यवस्था को नियंत्रण में रखने और आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। पर उनके जिले के लोग अपने यहां शांति व्यवस्था की ज्यादा उम्मीद रखते हैं। नहीं भी रखते होंगे तो विपक्ष इसकी याद जरूर दिलाता है। तब भाजपा आंदोलन कर रही थी, आज कांग्रेस कर रही है।
सतर्कता संदेश छत्तीसगढ़ी में
शासन की अधिकतर योजनाओं की राशि अब डिजिटली ट्रांसफर हो रही है। गांवों से किसान, महिलाएं अपनी रकम निकालने बैंकों में आ रही हैं। कई लोग उठाईगिरी या ठगी के शिकार भी हो रहे हैं। कोरबा पुलिस ने ग्राहकों को सतर्क करने के लिए उनकी अपनी छत्तीसगढ़ी बोली में प्रचार सामग्री तैयार कराई है। इसे बैंकों और सार्वजनिक स्थानों पर बांटा, चिपकाया जा रहा है।
चुनावी टिकिट, जितने मुँह उतनी बातें
कांग्रेस में लोकसभा प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। इन सबके बीच रायपुर लोकसभा सीट से बृजमोहन अग्रवाल को भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद सोशल मीडिया में कई सुझाव आए हैं। यह भी सुझाव दिया गया है कि रायपुर की सीट इंडिया गठबंधन को दे देनी चाहिए और बदले में कांग्रेस के नेता, आम आदमी पार्टी से पंजाब या फिर हरियाणा से अथवा वामपंथी गठबंधन से केरल में एक सीट छोडऩे के लिए कहा जाना चाहिए।
इसी तरह कुछ कांग्रेस नेताओं ने फेसबुक पर राजनांदगांव सीट से गिरीश देवांगन को टिकट देने की वकालत की है। यह भी नारा दिया है-राजनांदगांव की जनता कहे पुकार जीडी (गिरीश देवांगन) भईया अब की बार...। एक कांग्रेस नेता ने सहमति जताते हुए फेसबुक पर लिखा कि उन्होंने इतनी मेहनत की है, वो निकाल सकते हैं। कांग्रेस नेता हरदीप सिंह बेनीपाल ने जीडी की उम्मीदवारी का समर्थन करते हुए लिखा कि उनका इतना प्रभाव है कि राजनांदगांव लोकसभा से लगी हुई मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, और आंध्र की सीटें भी जीत लेंगे।
महंगे होटल में नई शिक्षा नीति
केंद्र सरकार ने तार वर्ष पहले ही एक पूरी मुकम्मल उच्च शिक्षा नीति बनाकर राज्यों को दे दी है। यह नीति छत्तीसगढ़ के भी आठ आटोनामस कालेजों में लागू हो गयी है। इसकी अच्छाई और खामियां भी दूर की जा रही हैं। इतना ही नहीं दो शिक्षा सत्रों सी परीक्षा छात्र पार कर चुके है। इसे अब सभी कॉलेजों में लागू कर वृहद रूप दिया जाना शेष है। इसके बाद भी उच्च शिक्षा विभाग और संचालनालय अभी टास्क फोर्स गठित करने, नीति के अध्ययन, सुझाव और निष्कर्षों का प्रतिवेदन देने जैसी महंगी औपचारिकताएं कर रहा है।
महंगी इसलिए कह रहे हैं कि उच्च शिक्षा संचालनालय कल बुधवार को राजधानी के फाइव स्टार होटल में ऐसे ही एक टास्क फोर्स की बैठक बैठक कर रहा है । इसमें चार दर्जन प्रोफेसर,और अन्य अधिकारी बुलाए गए है। सुबह 8 बजे से दिनभर चलने वाले इस वर्कशाप पर ब्रेक फास्ट, लंच,शाम की हाई टी ,और किराए पर करीब डेढ़ दो लाख रूपए खर्च किए जा रहे हैं। इसका निष्कर्ष तो भविष्य पर निर्भर है लेकिन इतने बड़े खर्च को लेकर उंगली उठाई जा रही है।
केवल हॉल या सभागृह के नाम पर इतना बड़ा खर्च। जबकि राजधानी के हर बड़े कॉलेज में एक एसी सभागृह उपलब्ध है। सरकारी से अधिक निजी विवि,या एनआईटी, आईआईएम, एचएनएलयू, ट्रिपल आईटी में तो और भी सुविधाजनक हॉल है। ये दूर हैं तो शहर के बीच न्यू सर्किट हाउस है। वैसे पूर्ववर्ती रमन सरकार के कार्यकाल में जीएडी का आदेश भी है कि शासकीय बैठकें महंगे होटलों के बजाए न्यू सर्किट हाउस के सभा गृह में की जाए।
400 पार के लिए दौड़
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले प्रियंका गांधी ने महिला मैराथन का आयोजन- लडक़ी हूं लड़ सकती हूं, स्लोगन के साथ किया था। पर कांग्रेस के पक्ष में परिणाम नहीं आए। उसके बाद के चुनावों में इस तरह का कोई प्रयोग कांग्रेस ने नहीं किया। पर भाजपा ने अलग तरह का कार्यक्रम बनाया है। मोदी की प्रमुख गारंटी में से एक नारी वंदन योजना से जोड़ते हुए हर जिले में महिला कार्यकर्ताओं की दौड़ कराई जा रही है। यह जशपुर की तस्वीर है, जहां दौड़ के बहाने महिला मोर्चा अपने कार्यकर्ताओं को लोकसभा चुनाव में प्रचार-प्रसार के लिए रिचार्ज कर रही हैं। देशभर में ऐसे कार्यक्रम रखे जा रहे हैं।
केंद्र से राशि अब मिलती रहेगी?
हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रीय करों के राज्यांश का करीब 4900 करोड़ रुपया जारी कर दिया। कांग्रेस को पूरे पांच साल के कार्यकाल में केंद्र से शिकायत रही कि उनके हक की राशि रोक ली जाती है। पर राज्यांश राशि बिना किसी शोरगुल के राज्य के पास आ गया। कांग्रेस सरकार तब कोल रायल्टी पेनाल्टी की रुकी हुई करीब 4400 करोड़ रुपये और केंद्रीय बलों की तैनाती पर आये खर्च के करीब 12 हजार करोड़ रुपये की मांग भी करती रही, उसके रहते नहीं मिली। अब जब दोनों जगह सरकार एक ही पार्टी की है, हो सकता है कि ये बड़ी राशि भी जल्दी मिल जाएं।
भवन भी बचा, कुर्सी भी
छत्तीसगढ़ में भाजपा संगठन केंद्रीय नेतृत्व से मिले इस टास्क को भली-भांति पूरी कर रही है जिसमें कहा गया है कि दूसरे दलों के नेताओं के दरवाजे उदारता से खोल दिए जाएं। कल भी प्रदेश कार्यालय में यह सिलसिला चला जिसमें कांग्रेस व जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कई नेताओं का भाजपा में स्वागत किया गया।
बिलासपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान की निष्ठा तब भी नहीं डगमगाई थी, जब डॉ. रेणु जोगी ने जेसीसी की टिकट पर 2018 का चुनाव लड़ा। जोगी के करीबी होने के बावजूद वे साथ नहीं गए। पिछले दो चुनावों में वे टिकट की मांग करते रहे। पर, जिला पंचायत का अध्यक्ष बनाकर उन्हें संतुष्ट किया गया। इस बार विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस को साथ दिया। निकट भविष्य में न कोई चुनाव होने वाला है और न ही उनके वर्तमान पद को तत्काल खतरा है, फिर उन्होंने भाजपा में जाने का फैसला क्यों लिया? दरअसल वे नहीं जाते तो दो अन्य जिला पंचायत सदस्य तो तैयार बैठे ही थे, जो साथ में शामिल हुए हैं। आने वाले दिनों में कुछ और लोग कांग्रेस छोड़ देते तो उनके बहुमत पर खतरा मंडराता और अविश्वास प्रस्ताव आ जाता। अब कम से कम उनकी कुर्सी इस सरकार में भी बची रहेगी। लेकिन उन्हें जानने वालों के बीच एक दूसरे कारण की अधिक चर्चा रही। इन दिनों कई जिलों में अवैध निर्माण पर तोडफ़ोड़ की कार्रवाई चल रही है। चर्चा के मुताबिक कुछ साल पहले चौहान ने बिलासपुर में एक व्यावसायिक भवन बनवाया। नगर-निगम में कांग्रेस की सरकार के रहते ही उसके कुछ हिस्से को लेकर आपत्ति आ गई थी, जिससे वे नाराज चल रहे थे। अब वह परेशानी भी खत्म हो जाएगी।
सुनील सोनी विधायक बनेंगे
मध्यप्रदेश के दिग्गज भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल रविवार को रायपुर आए, तो सीधे बृजमोहन अग्रवाल के मौलश्री विहार स्थित निवास पहुंचे। ये तीनों नेता बृजमोहन की माता के गुजरने पर शोक प्रकट करने आए थे। इस दौरान बृजमोहन के निवास पर सांसद सुनील सोनी भी थे।
चर्चा के बीच कैलाश विजयवर्गीय की नजर सुनील सोनी पर पड़ गई। उन्होंने पूछ लिया कि तुम्हारी टिकट का क्या हो गया? सुनील सोनी ने अपनी टिकट कटने को सहज रूप में लिया, और कहा कि जब उनकी जगह बृजमोहन जी के नाम की घोषणा हुई, तो मैं यहीं (बृजमोहन निवास) था। यानी सुनील सोनी यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि बृजमोहन जी के प्रत्याशी बनने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा है।
बाद में मीडिया से चर्चा में सुनील सोनी का दर्द छलक ही पड़ा। और कह गए कि कई अधूरा काम पूरा नहीं हो पाया, इसका उन्हें अफसोस है। हालांकि उनसे जुड़े लोग उम्मीद से हैं कि बृजमोहन के चुनाव जीतने के बाद रायपुर दक्षिण सीट से सुनील सोनी प्रत्याशी बनाए जा सकते हैं। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
साहब का लोकेशन ढूंढते मंत्री
उद्योग विभाग के इन साहब से न केवल मातहत बल्कि नई सरकार के मंत्री भी हलाकान हैं। उनका आधा दिन तो साहब की पतासाजी में निकल जाता है। मंत्री जी का एक स्टाफ तो इसी काम के लिए तैनात है। उसका एक ही काम है साहब की लोकेशन से अपडेट रहना। क्योंकि साहब तीन पदों के जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। एक दफ्तर में पता लगाते हैं तो साहब दूसरे तीसरे दफ्तर में होना बताए जाते हैं। तीनों जगह न मिलने पर घर या दिल्ली टूर पर होते हैं। किसी एक दफ्तर में दो घंटे बैठ जाएं तो रिकार्ड बन जाता है उस दिन। अगस्त से संचालक हैं लेकिन ज्वाइनिंग के दिन के बाद से वहां गए ही नहीं। प्रतिनियुक्ति पर आए साहब ने एक निगम में पांच वर्ष ऐसे ही गुजार लिए। कांग्रेस सरकार में बिठाए गए ये साहब, काम भी पूर्व मंत्री के पारिवारिक ठेकों के पेंडिंग बिल निपटा रहे हैं।
सिस्टम चालू आहे
सरकार बदलने के बाद कुछ दिनों तक ऐसा लग रहा था कि शराब, जुआ-सट्टा और कबाड़ का जो सिस्टम कांग्रेस सरकार में चल रहा था, वह बंद हो जाएगा। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। कुछ दिनों तक तो थानेदार चुपचाप बैठे रहे और अपने क्षेत्र के अवैध शराब बेचने वाले, बार चलाने वालों, कबाडिय़ों को धंधा बंद रखने कहा था। कुछ दिनों बाद ही यह पूरा सिस्टम एक्टिवेट कर दिया गया है। खबर है कि शराब दुकानों में ओवररेट जारी है। कबाडिय़ों ने फिर अपना धंधा शुरू कर लिया है। मजेदार बात यह है कि ज्यादातर जिलों के नए कप्तान साहब नहीं जान पा रहे कि टीआई क्या-क्या खेल कर रहे हैं।
सात दावेदार में तीन सफल
लोकसभा चुनाव में दावेदारों की जिस तरह से चर्चा चली उससे यह लग रहा था कि भाजपा आधी सीटों पर महिलाएं उतार देगी। सरोज पांडेय से लेकर लक्ष्मी वर्मा, कमला पाटले, कमलेश जांगड़े, रंजना साहू, रूपकुमारी चौधरी, चंपा देवी पावले, लता उसेंडी जैसे दावेदार उभर रहे थे। रायपुर से लक्ष्मी वर्मा, सरोज पांडेय कोरबा से, चंपा देवी पावले कोरबा और सरगुजा से, कमला पाटले और कमलेश जांगड़े जांजगीर से तो महासमुंद से रंजना साहू और रूपकुमारी चौधरी का नाम लिया जा रहा था। इसी तरह कांकेर से लता उसेंडी का नाम चर्चा में था। बिलासपुर से जिला पंचायत सदस्य शीलू साहू को प्रमुख दावेदारों में गिना जा रहा था। लेकिन बी फार्म सरोज, कमलेश और रूपकुमारी के हाथ आया।
जल मिशन डूबा, नलों में सूखा
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में जल जीवन मिशन बुरी तरह विफल दिख रहा है। गर्मी करीब आते ही लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर लक्ष्य और कितना दूर है। जहां काम हुए हैं, वहां से भ्रष्टाचार की खबरें एक के बाद एक आ रही हैं। सरगुजा जिले में करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद लोगों को इस गर्मी में पानी के लिए तरसना पड़ेगा। भैयाथान से खबर है कि यहां टंकी का निर्माण पूरा नहीं हुआ। जब टंकी ही नहीं बनी तो बिछाई गई पाइप लाइन से पानी की सप्लाई का भी सवाल नहीं है। हालत यह है कि मिशन के इन्हीं अधूरे कामों का नाम लेकर बिगड़े हेंडपंपों को सुधारा नहीं जा रहा है। ग्रामीणों को 2-3 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ रहा है। इधर डभरा में मिरौनी बैराज से कई गांवों में पानी देना था। मगर काम स्तरहीन हुआ। कुछ समय पहले ही बिछाई गई पाइपें टूट गई हैं, जिसके कारण पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है। मगर ये छोटे-छोटे उदाहरण हैं। केंद्र की मदद से चल रही इस योजना के तहत घर-घर नल के जरिये साफ पानी पहुंचाने का लक्ष्य था। इसे पहले 2023 में पूरा किया जाना था, बाद में 2024 की डेडलाइन दी गई, मगर काम इतनी धीमी गति से चल रहा है कि अब मियाद दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है। कांग्रेस शासनकाल के दौरान नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी सहित अन्य भाजपा विधायकों ने कई बार सरकार को घेरा। सदन में ही मंत्री गुरु रुद्र कुमार को कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड करने की घोषणा करनी पड़ी। 1000 से अधिक ठेकेदारों को नोटिस दी गई, सौ से ज्यादा अनुबंध निरस्त किए गए, जिनकी लागत 2000 करोड़ के आसपास थी। कई जगह पाइपलाइन उखाडक़र नए बनाने का निर्देश दिया गया। सौ से अधिक पानी टंकियों को गिराने का आदेश दिया गया। कई जगह टंकियों तक तैयार हैं पर बराज, बांध और नदियों से पानी लाने का काम अधूरा है।
जनवरी में केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जल जीवन मिशन के कार्यों की समीक्षा दी थी, उन्होंने भी भ्रष्टाचार के मामलों पर कड़ी कार्रवाई की बात कही थी। मगर उनके विभाग ने कांग्रेस शासन के दौरान राज्य सरकार को पत्र लिखकर 50 प्रतिशत कार्य पूरा होने पर सराहना भी की थी। इधर भाजपा विधायक गोमती साय के सवाल पर पिछले विधानसभा सत्र में विभाग के मंत्री अरुण साव ने बताया था कि जिले के 754 गांवों में सिर्फ 17 गांवों में 100 फीसदी काम हुआ है, बाकी जगह ‘कार्य प्रगति पर’ है।
थोड़े दिन में ही सारी सरकारी मशीनरी लोकसभा चुनाव में व्यस्त हो जाने वाली है। यह व्यस्तता मई महीने तक रहेगी। तब पेयजल संकट से प्रभावित गांवों में इस भ्रष्टाचार का असर महसूस किया जाएगा।
आईपीएस के गांव में फोर्स अकादमी
आईपीएस डॉ. लाल उमेद सिंह की पोस्टिंग जीपीएम जिले से करीब 300 किलोमीटर दूर बलरामपुर में है। मगर यहां के मझगवां में उनका घर है,जहां पले-बढ़े। यहां उन्होंने ग्रामीण बच्चों की शारीरिक और बौद्धिक गतिविधियों के लिए फोर्स अकादमी नाम से एक संस्था शुरू की है। एकेडमी के भवन का उद्घाटन पिछले सप्ताह हुआ। भवन के लिए गांव के लोगों ने जमीन उपलब्ध कराई। जिले की यह पहली फोर्स अकादमी है, जहां न केवल जीपीएम बल्कि दूसरे जिलों के बच्चे भी प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस समय इनकी संख्या 250 है। खेल सामग्री और कोचिंग के लिए पाठ्य सामग्री भी यहां उपलब्ध है। प्रशिक्षकों की भी व्यवस्था की गई है। मेहनत और संघर्ष से कामयाबी हासिल करने वाले कई अफसर न केवल अपनी मिट्टी से जुड़े रहने और नई पीढ़ी का भविष्य संवारने की कोशिश करते हैं।
तेंदुए कम हुए शिकार के चलते
छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या घटने के बाद अब यह पता चला है कि तेंदुओं की संख्या भी कम हो रही है। सन् 2018 में प्रदेश में 852 तेंदुआ होने का पता चला था। पर 2022 की हाल में जारी की गई गणना रिपोर्ट के मुताबिक इनकी संख्या 722 रह गई है। बाघ और तेंदुआ दोनों की ही गणना नेशनल टाइगर रिजर्व अथॉरिटी कराता है। इसकी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तेंदुए की वंश वृद्धि दर के अनुसार 2022 में प्राकृतिक मौतों को कम कर देने के बावजूद संख्या बढक़र 1000 हो जानी थी। ये जो 278 तेंदुए कम दिखाई दे रहे हैं उनमें से कुछ की असामयिक मौत किसी दुर्घटना की वजह से जरूर हो गई होगी लेकिन एनटीसीए का ही आकलन है कि संख्या घटने की बड़ी वजह शिकार किया जाना है। वनों को सुरक्षित रखने में बाघों की तरह तेंदुए का भी बड़ा योगदान होता है। पर इनकी संख्या घटने पर लोगों का ध्यान अधिक नहीं जाता, जितना बाघ पर जाता है। अभयारण्यों से साल में दो चार तेंदुए के शिकार के मामले पकड़े जाते हैं, पर आंकड़ों के मुताबिक हर साल 90 से अधिक तेंदुआ शिकारियों के हाथों जान गवां रहे हैं। ([email protected])
कांग्रेस में ब्लाइंड चाल
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा में दावेदारों की भीड़ लंबी-चौड़ी है। इसके विपरीत कांग्रेस में चुनाव लडऩे वाले दबे-छिपे बैठे हैं। कांग्रेस के एक पूर्व लोकसभा प्रत्याशी का कहना था कि जब 68 सीटें जीते थे, तब तो बड़ी मुश्किल से दो सीटें जीत सके। इस बाद स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का माहौल है। महतारी वंदन और राम मंदिर के कारण सभी वर्गों में भाजपा का प्रभाव है। ऐसे में चुनाव लडऩे का मतलब ब्लाइंड चाल जैसा है। आप पैसे खर्च करेंगे लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि पत्ता किसका खुलेगा।
गृह विभाग के ग्रह किस ओर
आईएएस या राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों धड़ाधड़ तबादला आदेश आ रहे हैं। ऐसे समय में नई पोस्टिंग के इंतजार में बैठे राज्य पुलिस सेवा के अफसर ग्रह नक्षत्रों की चाल पता लगवा रहे हैं। आईपीएस की बड़ी सूची के बाद एडिशनल एसपी और डीएसपी की सूची आनी थी। कुछ जिलों के एडिशनल एसपी का तबादला कर दिया गया है, लेकिन नई पोस्टिंग अभी तक नहीं की गई है। जो पहले से पदस्थ थे, वे बने हुए हैं। राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की लिस्ट देखकर पुलिसवाले उम्मीद करते हैं, लेकिन शाम तक निराश हो जाते हैं।
ये भी खुश हैं..
बृजमोहन अग्रवाल के लोकसभा प्रत्याशी घोषित होने से जितने खुश भाजपा-कांग्रेस के नेता हैं उससे कहीं अधिक पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर खुश हैं। कल एक बड़े सीई. स्तर के साहब ने सार्वजनिक तो नहीं परिवार का मुंह मीठा कराया। यह इसलिए नहीं कि बृजमोहन अग्रवाल से उनकी कोई अदावत है, बल्कि इसलिए कि एक बड़ा काम हाथ से निकलने से बच गया। यही काम और बिलो, एबव परसेंटेज ही पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर्स की कुर्सी तय करने का सबब रहता है। जी हां, शिक्षा मंत्री रहे अग्रवाल ने अपने विभागों की अनुदान मांगों पर चर्चा में घोषणा की थी कि स्कूल-कॉलेज भवनों का निर्माण तेजी ले हो, इसके लिए शिक्षा विभाग में ही कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग विंग स्थापित किया जाएगा ।यानी अब पीडब्लूडी नहीं बनाएगा।
अफसर से लेकर मंत्री तक, इस घोषणा से सकते में आ गए।सही भी है, पीडब्ल्यूडी के लिए शिक्षा विभाग ही बड़ी शेयर होल्डर माना जाता है। स्कूल-कॉलेज कंस्ट्रक्शन कॉस्ट करीब पांच हजार करोड़ से अधिक का है। और परसेंटेंज का गुणा भाग कर लें तो, सर कढ़ाई में। बस फिर क्या सब मनौती मनाने लगे । ये लोग ऐसी चाल चलेंगे पता नहीं था।
किस्मत किसकी खुलेगी
भाजपा के केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक में छत्तीसगढ़ की सीटों पर गुरूवार को करीब 20 मिनट की चर्चा हो पाई। यद्यपि पीएम नरेन्द्र मोदी, और अमित शाह व राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा समिति के सदस्यों के साथ देश के अलग-अलग राज्यों की लोकसभा सीटों पर चर्चा के लिए रात्रि 3 बजे तक मौजूद रहे।
छत्तीसगढ़ की बाकी सीटों के लिए तो ज्यादा कुछ बात नहीं हुई लेकिन रायपुर की सीट से सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का नाम एकाएक सामने आ गया। बृजमोहन प्रदेश के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं, और पार्टी का एक खेमा उन्हें केन्द्र की राजनीति में भेजने के लिए तत्पर दिख रहा है। मगर बृजमोहन को ही तय करना है कि वो लोकसभा सदस्य बनना चाहते हैं, अथवा सरकार में मंत्री बने रहना चाहते हैं।
पार्टी के कुछ लोगों का मानना है कि बृजमोहन लोकसभा लड़ते हैं तो जीत उनकी सुनिश्चित है। ऐसे में उनकी जगह मंत्री पद के लिए राजेश मूणत की स्वाभाविक दावेदारी बन जाती है जो कि इन दिनों काफी मुखर हैं। मूणत संगठन के पसंदीदा भी हैं। लेकिन बृजमोहन के समर्थक नहीं चाहते कि वो केन्द्र में सक्रिय हो, और मौजूदा सांसद सुनील सोनी भी उन्हीं के करीबी हैं। यह तकरीबन तय माना जा रहा है कि बृजमोहन लोकसभा चुनाव लडऩे से मना कर देंगे, और ऐसे में संभव है कि सुनील सोनी की हमेशा की तरह आखिरी वक्त में लॉटरी खुल जाए।
भाजपा की टिकट और एनएसए
400 पार के लिए भाजपा एक एक प्रत्याशी चयन में मानो समुद्र मंथन जैसी कवायद कर रही है। नमो एप, राज्य और केंद्र की गुप्तचर एजेंसी, सर्वे एजेंसियां इस दिशा में काम कर रही है। इसमें एक नया एजेंसी भी अंतिम मुहर लगाने लगाने में अहम भूमिका निभा रही है । वो है विवेकानन्द फाउंडेशन।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री के पूर्व प्रमुख सचिव नृपेन्द्र मिश्रा भी इसी फाउंडेशन से जुड़े रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय से मुक्त होने के बाद नृपेन्द्र मिश्रा अभी भी फाउंडेशन के लिए काम कर रहे हैं। चर्चा है कि राज्यों की राजनीति स्थिति की रिपोर्ट फाउंडेशन तक पहुंचती है और यहां की टीम दावेदारों की कुंडली तैयार कर मोटा भाई तक भेज रहे हैं। फाउंडेशन की मुहर लगने पर ही नाम तय होने की चर्चा है। क्या वाकई ऐसा हो रहा है, यह तो प्रत्याशियों की लिस्ट जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
शनिवार को ऑफिस जाना पड़ सकता है
चर्चा है कि राज्य में शनिवार का सरकारी अवकाश बंद हो सकता है। भूपेश सरकार ने केन्द्र की तर्ज पर राज्य सरकार के दफ्तरों में अवकाश का फैसला लिया था।
केन्द्र सरकार में वैसे तो बाकी अवकाश काफी कम होता है। ऐसे में शनिवार का अवकाश जरूरी हो जाता है। मगर राज्य के तीज-त्यौहारों के मौके पर ऐच्छिक अवकाश की भरमार हो गई है। ऐसे में अब फिर से शनिवार का अवकाश बंद करने पर मंथन चल रहा है। जल्द ही सरकार इस पर कोई फैसला ले सकती है।
मेयर न सही, सभापति ही हटाओ
प्रदेश में सरकार बनने के बाद भाजपा को अनेक नगर पंचायतों और नगरपालिकाओं में तख्ता पलटने में कामयाबी मिल चुकी है लेकिन नगर-निगम अब भी बचे हुए हैं। जगदलपुर नगर-निगम की महापौर सफीरा साहू के खिलाफ कांग्रेस सरकार के दौरान 6 माह पहले अविश्वास प्रस्ताव जरूर लाया गया था लेकिन तब फ्लोर टेस्ट की नौबत नहीं आई। कांग्रेस के अधिकांश पार्षद एक दिन पहले राजधानी पहुंच गए थे और कोरम पूरा नहीं हो पाया। नियम ऐसा है कि अब अगला प्रस्ताव एक साल की अवधि पूरी होने के बाद ही आ पाएगा। इस तरह से कम से कम अगले 6 महीने तक उनकी कुर्सी सुरक्षित रहेगी। मगर, अब भाजपा पार्षदों ने सभापति कविता साहू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। नगर-निगम के रोजमर्रा के कामकाज में सभापति की ज्यादा दखल नहीं होती मगर, आम सभा के दौरान सभापति की भूमिका खास बन जाती है। कांग्रेस के बहुमत वाले इस नगर-निगम में यदि सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया तो यह भाजपा के लिए छोटी सफलता नहीं होगी। यह तभी संभव होगा जब कांग्रेस पार्षद पाला बदलेंगे। लोकसभा चुनाव के पहले लाए गए इस प्रस्ताव का असर आगे के चुनाव में भी दिखेगा। कांग्रेस के सामने भी अपने पार्षदों को एकजुट रखने की चुनौती है। परिणाम 11 मार्च को पता चलेगा, जिस दिन आमसभा बुलाई गई है।
मानसून से पहले की तैयारी
बस्तर के एक गांव की है यह तस्वीर। आदिवासी परिवार मानसून से पहले जंगल की सूखी लकड़ी और खेत की मिट्टी से अपना आशियाना दुरुस्त कर रहा है। प्रकृति और मौसम के अनुसार खुद को डालकर जीवन जीने की कला उनकी विशेषता है। शायद पिछली सरकार में प्रधानमंत्री आवास योजना की सहायता इस परिवार तक नहीं पहुंची। अब अगली बारिश के बाद पहुंच सकती है।
ईडी की ताजा छापेमारी
कोरबा में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने ठेकेदार जेपी अग्रवाल के यहां छापामारी की है। वे पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के रिश्तेदार बताये जाते हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहने के दौरान जयसिंह अग्रवाल ने डीएमएफ फंड में भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से उठाया था। उनकी तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लिखी गई एक लंबी चि_ी भी सार्वजनिक हो गई थी। ईडी ने अधिकारिक रूप से छापेमारी की वजह व बरामदगी के बारे में अभी कुछ नहीं बताया है, पर चर्चा है कि छापेमारी डीएमएफ में कराए गए कार्यों को लेकर ही की गई है। यह दिलचस्प है कि करीबियों को काम मिलने के बावजूद पूर्व मंत्री ने परवाह नहीं की और डीएमएफ में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया।
बस्तर सीट का गणित
कांग्रेस के दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लडऩे से मना कर रहे हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा प्रत्याशियों की सूची देखकर एक-दो बड़े नेता चुनाव मैदान में उतर भी सकते हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने भी अभी पत्ते नहीं खोले हैं। वो बस्तर के सांसद भी हैं ऐसे में उन पर चुनाव मैदान में उतरने के लिए दबाव भी है। चर्चा है कि यदि बस्तर से भाजपा पूर्व सांसद दिनेश कश्यप को टिकट देती है, तो संभव है कि दीपक बैज चुनाव न लड़े। ऐसे में वो पूर्व मंत्री कवासी लखमा के बेटे हरीश को प्रत्याशी बनाने का समर्थन कर सकते हैं। लेकिन दिनेश की जगह भाजपा कोई नया चेहरा आगे लाती है, तो दीपक पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
कुछ इसी तरह की स्थिति पूर्व सीएम भूपेश बघेल की भी है। उनके करीबियों ने राजनांदगांव, और महासमुंद से बूथ वार आंकड़े निकलवा लिए हैं। चर्चा है कि हाईकमान से दबाव पड़ा, तो दोनों में से किसी एक सीट से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
सरोज के विरोध का वजन नहीं
कोरबा से सरोज पांडेय की टिकट पक्की होने की खबर से भाजपा में हलचल है। मगर कई स्थानीय नेता सरोज की खिलाफत भी कर रहे हैं।
बताते हैं कि कोरबा के एक पूर्व मेयर, और पूर्व विधानसभा प्रत्याशी एक राय होकर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे, और सरोज पांडेय की दावेदारी का विरोध किया।
दोनों नेता किसी स्थानीय को ही टिकट देने पर जोर देते रहे। मगर संगठन नेताओं ने उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सरोज की धमक ऐसी है कि पार्टी संगठन उनकी बातों को नजरअंदाज नहीं करता है।
दोनों पार्टी टेंशन में
अंबिकापुर में ईडी ने बड़े ठेकेदार अशोक अग्रवाल के यहां दबिश दी, तो राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई। अशोक अग्रवाल पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के करीबी माने जाते हैं, और भगत से जुड़े लिंक की वजह से ही ईडी उनके ठिकानों पर पहुंची है।
अशोक ने कांग्रेस सरकार के बदलते ही भाजपा नेताओं के करीबी बन गए, और दो माह के भीतर ही कई विधायकों के क्षेत्र में काम भी कर रहे हैं। अब जब ईडी अशोक अग्रवाल के घर पहुंची है तो भाजपा के नेता भी टेंशन में आ गए हैं। अब आगे क्या कुछ निकलता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
सभी के इम्तिहान !
आज से विद्यार्थियों की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। इसमें सफलता असफलता उनके भविष्य का लक्ष्य तय करेगी। इस बार संयोग है कि बच्चों के साथ साथ नेताओं की भी परीक्षा होनी है। भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने कल रात बैठक कर परीक्षार्थी तय कर दिए हैं। इस पहले पर्चे में कौन सफल हुआ कौन असफल, यह लिस्ट आने पर ही पता चलेगा। लेकिन बच्चों और नेताओं के इस संयोग पर एक सांसद के निज सहायक ने अपने वाट्सएप स्टेटस में शब्दों को बेहतर तरीके से संजोया है। ये शब्द सांसद जी के लिए है या बच्चों के लिए,यह तो वे ही बता सकते हैं लेकिन शब्द दोनों के लिए प्रेरणादायी हैं । वैसे हम आपको बता दे कि सांसद पहली परीक्षा में ही संघर्ष कर रहे हैं। नमो एप से लेकर सर्वे तक में कुछ पिछड़ रहे हैं। इतना अवश्य है कि बी फार्म मिला तो जीतेंगे ये ही । बहरहाल निज सहायक के शुभकामना शब्द पढ़े।
हसदेव पर युवा जिज्ञासा
विद्यार्थियों में नेतृत्व क्षमता के विकास और उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न संभागीय मुख्यालयों में युवा संसद आयोजित किए गए। करीब एक घंटे के इस कार्यक्रम में प्रश्न कल भी होता है। अंबिकापुर में संभाग स्तर की युवा संसद आयोजित की गई, जिसमें सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर और मनेंद्रगढ़ के विद्यार्थी शामिल हुए। इसमें विद्यार्थियों ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में हो रही पेड़ों की कटाई और कोयला खनन की अनुमति पर बहस की। इसके पहले बिलासपुर संभाग में भी रखी गई युवा संसद में यह मुद्दा विद्यार्थियों ने जोरों से उठाया था।
यह दर्शाता है कि नव युवाओं के मन में जल जंगल जमीन और पर्यावरण पर कितनी चिंता है। आखिरकार भविष्य में होने वाले नुकसान का खामियाजा उनको ही तो भुगतना होगा।
पानी बचाने की नुस्खे
कपड़े धोने के लिए यदि वाशिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाए तो हाथ से धोने के मुकाबले बहुत अधिक पानी खर्च होता है। और यह पानी हम बर्बाद कर देते हैं। यह तस्वीर बता रही है कि कुछ लोग पानी के महत्व को समझते हैं। वाशिंग मशीन से निकलने वाले पानी को सहेजा जा रहा है ताकि उससे आंगन और बाथरूम को साफ किया जा सके।
छात्र का आत्मघाती कदम
सरगुजा के नजदीक दरिमा स्थित प्री मैट्रिक अनुसूचित जनजाति छात्रावास के आठवीं के एक छात्र मुकेश तिर्की ने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। खबर यह बताई गई है कि वह छात्र पथरी की बीमारी से और दर्द सहन नहीं कर पाने के कारण उसने जान दे दी।
वजह हैरान करने वाली है और बहुत कुछ सोचने की जरूरत है। पथरी का रोग लाइलाज नहीं है। संभागीय मुख्यालय अंबिकापुर और मेडिकल कॉलेज दरिमा से काफी नजदीक है। सरकार की तमाम योजनाएं है जिसके तहत इस आदिवासी वर्ग के छात्र का इलाज मुफ्त में भी हो सकता था। क्या जिस हॉस्टल में रहता था, उसके अधीक्षक और स्कूल के प्रिंसिपल का बच्चों के साथ इतना संवाद नहीं है कि वे उनसे हालचाल पूछें, बीमारी की जानकारी लें। क्या छात्र के अभिभावक को यह जानकारी नहीं थी कि उसे सरकारी योजना का लाभ मिल सकता है और बच्चे का इलाज उस पर बिना किसी आर्थिक बोझ के हो सकता है? इन दिनों प्रशासन की गाडिय़ां गांव-गांव घूम रही है जो बता रही है कि सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे लें। मगर, इस परिवार के घर और स्कूल तक शायद वह नहीं पहुंची।
सरोज पांडेय की सांसद निधि
पूर्व राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय ने लोकसभा चुनाव लडऩे पर खुले तौर पर कुछ नहीं कहा है। उन्होंने सब कुछ पार्टी हाईकमान पर छोड़ दिया है। फिर भी कई लोग अंदाज लगा रहे हैं कि सरोज कोरबा सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। इसकी वजह भी है। सरोज ने सालभर में सांसद निधि का काफी हिस्सा कोरबा संसदीय क्षेत्र में खर्च किया है।
सरोज दुर्ग से सांसद रही हैं। वैशाली नगर सीट से विधायक रही हैं, और दो बार दुर्ग की मेयर भी रहीं। दुर्ग में उनके समर्थकों की अच्छी खासी संख्या है। मगर विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें कोरबा संसदीय क्षेत्र का प्रभारी बनाया था। कोरबा में भाजपा को अच्छी सफलता भी मिली। ऐसे में सरोज का नाम कोरबा सीट से तय हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
नेताजी के भाईजी
अंबिकापुर के भाजपा विधायक राजेश अग्रवाल विवादों के घेरे में आ गए हैं। विवाद की वजह यह है कि राजेश के भाई विजय अग्रवाल ने दो दिन पहले लखनपुर थाने में हंगामा किया था, और वहां के डीएसपी शुभम तिवारी को धमकी दी। विजय, कोयला चोरों पर पुलिसिया कार्रवाई से खफा थे। हंगामे के कुछ घंटे बाद डीएसपी को हटा दिया गया।
मीडिया कर्मियों ने इस पर पुलिस के आला अफसरों से सवाल किया, तो यह कहा गया कि डीएसपी शुभम तिवारी के प्रशिक्षण की अवधि खत्म हो गई है। इसलिए उन्हें बदला गया है। शुभम की साख अच्छी है, और यही वजह है कि अंबिकापुर के कई स्थानीय नेताओं ने विधायक राजेश अग्रवाल और उनके भाई की शिकायत प्रदेश संगठन में भी की है। शिकायत में यह कहा गया कि विधायक और उनके परिवार के सदस्यों के पुलिस-प्रशासन में गैर जरूरी हस्तक्षेप से सरकार की छवि खराब हो रही है। अब पार्टी संगठन क्या कुछ करती है, यह देखना है।
लौटे अफसर क्या करेंगे ?
दिल्ली डेपुटेशन से अफसर लौटने लगे हैं। डीओपीटी ने चार अफसरों को वापसी के लिए रिलीव कर दिया है। दो ने कल जॉइनिंग दे दी है । वापसी से ये लोग तो खुश हैं लेकिन दिल्ली छोड़ आने के सबब से यहां रहे लोग अधिक चिंतित हैं। और कहने भी लगे हैं, आखिर ये लोग लौट क्यों रहे हैं? बड़े साहब ने पोस्टिंग की नोट शीट तो सरकार के भेज दी है। बताया जा रहा है कि इन्हें, कुछ अतिरिक्त प्रभार वाले अफसरों को हल्का कर एडजस्ट किया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत है कि साहब, अतिरिक्त प्रभार छोडऩा नहीं चाहते। ऐसे में वापसी कर रहे लोगों को मंत्रियों से ही उम्मीद है कि दो महीने में सूट न करने वाले वर्तमानों को बदलना लें।
टूट रहे हैं तो टूटने दो..
कोरबा जिले के छुरी नगर पंचायत की कुर्सी भी कांग्रेस के हाथ से चली गई। यहां कांग्रेस के 9 पार्षद हैं। अपनी कुर्सी बचाकर रखने के लिए अध्यक्ष नीलम देवांगन को केवल 6 वोट की जरूरत थी। मगर, उनको केवल 5 वोट मिले।
सरकार बदलने के बाद प्रदेश की नगरीय निकायों में एक दर्जन से ज्यादा ऐसे अविश्वास प्रस्ताव पारित हो चुके हैं, जिनमें बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस अपनी कुर्सी खो चुकी है। अविश्वास प्रस्ताव अचानक नहीं आता। इसके लिए कलेक्टर के पास आवेदन देना होता है और सभा के लिए कम से कम एक सप्ताह का समय दिया जाता है।
प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष सहित पदाधिकारियों की भारी-भरकम टीम है। नगर पंचायत और नगरपालिकाओं के पार्षद जमीनी कार्यकर्ता होते हैं, जो हर चुनाव में काम आते हैं। वे उनको संभाल नहीं पा रहे हैं। क्यों? सीधा जवाब हो सकता है कि जब बड़े नेता सांसद, विधायकों को टूटने से नहीं बचा पा रहे हैं तो आप हमसे उम्मीद क्यों करते हैं?
नए मंत्रियों की तारीफ
निर्धारित समय से पहले समाप्त हो जाने के बावजूद छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र लंबा चला। बहुत सवाल-जवाब हुए। वरिष्ठों के अलावा नए आए मंत्रियों अरुण साव, विजय शर्मा, टंकराम वर्मा, लक्ष्मी राजवाड़े आदि ने सवालों का सामना किया। वहीं पहली बार विधायक बनी चातुरी नंद ने पुलिस जवानों की समस्या को जितनी गंभीरता से उठाया, उसने पूरे सदन का ध्यान खींचा। आखिरी दिन तो कमाल ही हो गया। इस दिन की सबसे चर्चित चर्चा वन्यजीवों की असामयिक मौत पर थी। विधायक शेषराज हरवंश ने यह सवाल उठाया। उनका मुद्दा स्पीकर डॉ. रमन सिंह को भी प्रासंगिक लगा और उन्होंने विभाग के मंत्री केदार कश्यप को कार्रवाई का निर्देश दिया।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जवाब देने वाले नए मंत्रियों की तारीफ करते हुए कहा कि ऐसा लगा ही नहीं कि वे पहली बार विधानसभा आए हैं। उन्होंने बहुत अच्छी तरह तैयारी की और जवाब दिए। मगर लोकतंत्र में विपक्ष की ओर से की गई तारीफ का ज्यादा महत्व है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत की प्रतिक्रिया भी साय से मिलती-जुलती रही। उन्होंने कहा कि नए मंत्री होने के बावजूद सभी ने सवालों का अच्छे ढंग से जवाब दिया। पूरे सत्र में कटुता का कोई अवसर नहीं आया।
ऐसे वक्त में जब विधायकों के पाला बदलने से सरकारें बदल रही हैं, लोकसभा-राज्यसभा से थोक में सांसद निष्कासित कर विधेयक पारित कर दिए जाते हों, छत्तीसगढ़ ने विधायिका के महत्व का अच्छा उदाहरण पेश किया।
रात दस बजे के बाद..
धमतरी का रत्नाबांधा चौक। रात 10 बजे। एक के बाद एक महानदी से निकाली गई रेत लेकर निकलती गाडिय़ां। दो चार दस गाडिय़ों पर कार्रवाई के बाद कलेक्टर्स और खनिज अफसरों की अपनी ही पीठ थपथपाती जारी हो रही खबरों के बीच। रेत का अवैध खनन रुका नहीं है, बस सावधानी ज्यादा बरती जा रही है।
यह कैसा छापा
जब पता है जांच एजेंसी आने वाली है तो उसे छापा कैसे कहें? आबकारी में बड़ी गड़बड़ी मामले में राज्य की एक जांच एजेंसी ने ताबड़तोड़ छापेमारी की। फिर खाली हाथ लौट गई।
जब्ती के नाम पर कुछ जगह से पांच तो कुछ जगह से 15 कागज जब्त किए हैं। इसके अलावा कुछ भी जब्त नहीं कर पाए। क्योंकि जिनके यहां पडऩा था, उन्हें 3 दिन से पता था कि जांच टीम आने वाली है। अपने विभाग के ग्रुप में भी चर्चा कर रहे थे।
छापे के एक दिन पहले फिर गायब हो गए। चर्चा है कि छापे की सूचना लीक कर दी गई थी। क्योंकि जिनको जांच का जिम्मा है, वे लोग पिछली सरकार के बैठाए हुए भरोसेमंद लोग हैं। जो पांच साल से वहा जमे रहे है। ये लोग, इसीलिए महादेव सट्टा पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में सब ठीक-ठाक?
बीते दो दिनों के भीतर विरोधी दलों को कई राज्यों में झटके लगे। झारखंड की एकमात्र कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा भाजपा में शामिल हो गईं। यूपी में समाजवादी पार्टी को झटका लगा। उसके विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी जिसके चलते राज्यसभा के उसके तीन में से दो ही उम्मीदवार चुनाव जीत पाए। हिमाचल प्रदेश में तो 9 कांग्रेस विधायकों ने पाला बदल लिया। अब वहां कांग्रेस को अपनी सरकार बचा लेने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। इसके कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के भाजपा में जाने की चर्चा जोर पकड़ चुकी थी, पर बाद में उन्होंने इसका खंडन कर दिया।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने इस बार सभी 11 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है। पिछले दिनों यहां कांग्रेस के सदस्य, दो पूर्व विधायक विधान मिश्रा और प्रमोद शर्मा भाजपा में शामिल हो गए। शर्मा तो विधानसभा चुनाव के पहले ही कांग्रेस में लौटे थे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में आरोप लगाया कि भाजपा उनके विधायकों को तोडऩे की कोशिश में है। उनसे वादा कर रही है कि केंद्र में सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाया जाएगा।
हर बार लोकसभा- विधानसभा चुनाव के पहले एक पार्टी से दूसरी पार्टी में सेंध लगाने का काम देखा जाता है, मगर इस बार यह धारा एक ही दिशा में बहती दिखाई दे रही है। बघेल के आरोप का भाजपा ने खंडन करते हुए कहा था कि यहां हमें ऐसा करने की जरूरत नहीं है। पर कौन दावा कर सकता है कि चुनाव के और करीब आते-आते उथल-पुथल नहीं होगी। क्या अकेले छत्तीसगढ़ बचा रहेगा?
बिना बात के आयोग का क्या होगा?
भूपेश सरकार ने नवाचार आयोग का गठन किया था लेकिन सरकार बदलने के बाद आयोग काम करेगा अथवा नहीं, इसको लेकर संशय है।
आयोग के चेयरमैन विवेक ढांड, भूपेश सरकार के जाने के बाद भी बहुत समय तक डटे रहे, लेकिन बर्खास्तगी की खबर शुरू होने की बाद पद से इस्तीफा दे चुके हैं। वर्तमान में आयोग ने एकमात्र सदस्य रिटायर्ड पीसीसीएफ डॉ.आर.के.सिंह हैं जो कि पद पर बने हुए हैं। आयोग में सचिव ऋतु वर्मा का भी तबादला हो गया है, उनकी पोस्टिंग मंत्रालय में की गई है।
ऋतु की जगह सचिव पद पर नई पोस्टिंग नहीं हुई है। सरकार के ज्यादातर लोगों का कहना है कि आयोग की जरूरत नहीं है। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने तो आयोग के गठन से लेकर कामकाज को लेकर विधानसभा में सवाल लगाए थे। मगर इस पर चर्चा नहीं हो पाई। अब आयोग में एकाउंट ऑफिसर और दो-तीन कर्मचारी ही रह गए हैं, जो कि प्लेसमेंट एजेंसी के हैं। ऐसे में नवाचार आयोग का क्या कुछ होगा, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
कांग्रेस में कोई एक्शन?
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद कांग्रेस संगठन में बदलाव की तैयारी चल रही है। कई बड़े नेताओं के खिलाफ भीतरघात की शिकायत हुई थी लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई। अलबत्ता, कुछ जिलाध्यक्षों को बदलने पर विचार चल रहा है।
खबर है कि चुनाव के दौरान कुछ जिलाध्यक्षों की कार्यशैली को लेकर शिकायत भी हुई थी। ऐसे में संभावना है कि लोकसभा टिकट तय होने से पहले कुछ जिलाध्यक्षों को बदला जा सकता है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
कांगेर में बर्ड सर्वे
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी मैना को संरक्षित किया गया है। यह दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, कोंडागांव, जगदलपुर, आदि के वन क्षेत्र में भी पाया जाता है। कांगेर वैली में इन दिनों बर्ड सर्वे चल रहा है, जिसमें नौ राज्यों से 100 से अधिक प्रतिभागी पहुंचे हैं।
इनमें कोलकाता, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के गिधवा परसदा वेटलैंड से भी हैं। अभ्यारण्य के अधिकरियों का दावा है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार पक्षियों की अधिक प्रजातियां दिखाई देंगी, क्योंकि इस बीच उनके संरक्षण के लिए काफी काम किए गए हैं।
कलेक्टरी के रिकॉर्ड
विधानसभा सत्र के बीच सरकार ने एक छोटा सा फेरबदल किया है। इसमें बिलाईगढ़-सारंगढ़, बलौदाबाजार-भाटापारा, और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के कलेक्टर बदले गए। चर्चा है कि बलौदाबाजार-भाटापारा कलेक्टर चंदन कुमार को स्थानीय विधायक, और सरकार के मंत्री टंकराम वर्मा की सिफारिश पर बदला गया है।
विधानसभा चुनाव के वक्त ही चंदन कुमार और स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच विवाद चल रहा था। इसको लेकर शिकवा शिकायतें भी हुई थी। चंदन कुमार को स्वास्थ्य विभाग का विशेष सचिव बनाया गया है। उनकी जगह बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर कुमार लाल चौहान की पदस्थापना की गई है। चौहान करीब डेढ़ महीने पहले ही बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर बने थे।
बिलाईगढ़-सारंगढ़ में सबसे कम समय कलेक्टरी का रिकॉर्ड राहुल वेंकट के नाम पर दर्ज है। वो एक महीना ही कलेक्टर रहे थे। मगर तत्कालीन कांग्रेस विधायक से अनबन के बाद उन्हें हटा दिया गया। इससे परे आदिवासी बाहुल्य जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में लीना कमलेश मंडावी को कलेक्टर बनाया गया है।
ओम माथुर के जिम्मे बहुत कुछ
प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में शायद ही समय दे पाएंगे। उनकी जगह सह प्रभारी नितिन नबीन ही सारा काम देखेंगे, और संगठन से जुड़े फैसले लेंगे। चर्चा है कि माथुर अपने गृह राज्य राजस्थान के अलावा अन्य राज्य भी देख रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि माथुर को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इस पर जल्द फैसला हो सकता है।
कहा जा रहा है कि चुनाव की वजह से पार्टी के शीर्ष स्तर पर होने वाले संभावित फेरबदल के चलते माथुर बस्तर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में हुई क्लस्टर की बैठक में शामिल नहीं हुए। हालांकि छत्तीसगढ़ की लोकसभा प्रत्याशी चयन में ओम माथुर की दखल रह सकती है। उन्होंने अपने सुझाव हाईकमान को दे भी दिए हैं। हाईकमान संभवत: 29 तारीख को टिकटों पर फैसला ले सकती है।
मगर दाखिला क्यों घट रहा?
बोर्ड एग्जाम में विद्यार्थियों का मानसिक दबाव कम करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। अब 10वीं, 12वीं बोर्ड परीक्षा साल में दो बार होगी। फेल विषयों पर दोबारा बैठने का मौका तो मिलेगा ही, छात्र श्रेणी सुधार भी कर सकेंगे। अच्छी बात यह भी है कि दोनों बार की परीक्षाओं में जो रिजल्ट सबसे अच्छा होगा, उसे ही सर्टिफिकेट के रूप में मान्यता भी दे दी जाएगी।
मगर, इस बीच एक दिलचस्प आंकड़ा भी सामने आता है, जो यह बताता है कि सीजी बोर्ड की ओर विद्यार्थियों का आकर्षण घटा है। कोविड महामारी के चलते साल 2022 में जब किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं किया गया था, तब रिकॉर्ड 4 लाख 61 हजार छात्र-छात्रा सीजी बोर्ड एग्जाम में शामिल हुए थे। मगर अगले साल सिर्फ 3 लाख 30 हजार सम्मिलित हुए। यह संख्या 5 साल पहले लिए गए इम्तिहान में शामिल विद्यार्थियों से भी कम है, क्योंकि तब 3 लाख 86 हजार लोगों ने परीक्षा दी थी। साल 2016 के 4 लाख 21 हजार शामिल विद्यार्थियों से तुलना करें तो यह और भी कम है। प्रदेश के कुछ प्राइवेट, पब्लिक स्कूल सीजी पैटर्न से पढ़ाई कराते हैं, मगर आम तौर पर इनमें सीबीएसई लागू है। सीजी बोर्ड सरकारी स्कूलों में ही चलता है। यह आंकड़ा भी आया है कि इस साल 2024 की परीक्षा में 10वीं और 12वीं बोर्ड मिलाकर परीक्षा में 50 हजार विद्यार्थी पिछले साल के मुकाबले कम बैठेंगे।
इन आंकड़ों से दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है। या तो बोर्ड तक पहुंचने वाले बच्चों की संख्या ही घट रही है, या फिर वे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
परीक्षा पर चर्चा जैसी कोई सभा छत्तीसगढ़ में भी हो तो वजह साफ हो।
कोयला खदान में हुई मौतें
बीते दिनों जब झारखंड में न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी की चोरी से कोयला निकालने वालों के साथ तस्वीर आई थी। तब देश में चर्चा हुई कोयला खदानों के आसपास के गांवों में व्याप्त गरीबी और मजबूरी की। अनेक लोगों ने आलोचना भी की कि कांग्रेस सरकार के दौरान ही तो सबसे बड़ा कोयला घोटाला हुआ, अब राहुल सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। मगर, कोयला चोरी एक स्याह सच है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार के दौरान एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ था, जो कुसमुंडा का बताया जा रहा था, पर बाद में जांच के बाद दावा किया गया कि वह यहां का नहीं है, झारखंड का ही है। मगर छत्तीसगढ़ की खदानों में चोरी और मौतों पर प्राय: अफसोस नहीं जताया जाता। पिछले दिनों दीपका में कोयला निकालते पांच मजदूर मिट्टी धंसने से दब गए। उनमें से तीन की मृत्यु हो गई। उन पर चोरी का दाग था, शायद इसलिए किसी ने सहानुभूति नहीं दिखाई। इसी तरह जयनगर कॉलरी में एक युवक दब गया, जिसके शव का अब तक पता नहीं चला है। ये खदान मजदूर होते तो मुआवजा मिलता। जो लोग कोयला अपनी जान जोखिम में डालकर निकाल रहे हैं, उनके हिस्से में थोड़ी सी मजदूरी ही आती है, असली कमाई अवैध कारोबारियों के हाथ में होती है। कोयला कंपनी करोड़ों रुपए खदानों की सुरक्षा पर खर्च कर रही है। केंद्रीय सुरक्षा बल भी लगे हैं, पर न तो चोरियां रुकी, और न ही दुर्घटनाएं। यह घटनाएं यह भी बताती है कि जिन कोयला खदानों से रिकॉर्ड कमाई कंपनियों की हो रही है, उसके आसपास के गांव में रहने वालों की माली हालत कैसी है।
पुरुष को भी चाहिए मदद
पूरे छत्तीसगढ़ में इन दिनों महतारी वंदन योजना की चर्चा है। यह योजना सिर्फ निर्धारित कैटेगरी की महिलाओं के लिए है लेकिन गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में एक अजीब मामला आया। एक पुरुष कमल सिंह ने इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन लगाया। कर्मचारियों ने उसका आवेदन स्वीकार भी कर लिया। वह तो कंप्यूटर था, जिसने पकड़ लिया। डाटा फीड होते ही फॉर्म रिजेक्ट हो गया। अब इस पुरुष की दलील है कि उसके घर में तो कोई महिला ही नहीं है। इसलिए उसने खुद आवेदन कर दिया।
फिलहाल तो लगता नहीं कि सरकार उसकी दलील पर कुछ करने जा रही है। पुरुषों के लिए कोई योजना शुरू होगी, तब उसे मौका जरूर मिल पाएगा।
चुनाव के पहले पुलिस में तबादले
बस्तर में कुछ सरकारी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी नक्सलियों के सीधे निशाने में नहीं होते। बहुत से काम कागजों में ही हो जाते हैं। ऐसे अफसर वहीं ठिकाना बना लेते हैं, लौटना नहीं चाहते। पर पुलिस महकमे के साथ यह बात नहीं है। यहां पदस्थ जवान और अफसर अपनी मियाद पूरी कर मैदानी इलाकों में वापस आना चाहते हैं। पर बरसों गुजारिश के बाद भी उन्हें मौका नहीं मिलता। सरकार ने एक नीति भी बनाई कि 55 साल से अधिक उम्र होने पर उन्हें बस्तर रेंज के जिलों में नहीं रखा जाएगा। कई केस हाईकोर्ट भी पहुंचते रहते हैं जिनमें बस्तर से हटाने की फरियाद होती है। चुनाव एक मौसम होता है, जिसमें बाहर आने के इच्छुक पुलिसकर्मियों को मौका मिल जाता है। बीते 21 दिसंबर को चुनाव आयोग ने एक परिपत्र जारी कर प्रदेश में 3 साल से अधिक एक ही स्थान पर अथवा गृह जिले में पदस्थ पुलिस कर्मचारी, अधिकारियों के स्थानांतरण का आदेश दिया। आदेश का पालन तो हुआ लेकिन 100 से अधिक थानेदार, उप-निरीक्षक और दूसरे अधिकारी कर्मचारी ऐसे थे, जिन्हें बस्तर रेंज के ही एक स्थान से हटाकर दूसरे जिलों में भेज दिया गया। इनमें अधिकांश ने 3 साल की मियाद पूरी कर ली है। इनका कहना था कि हमें बस्तर से बाहर भेजो। मैदानी इलाके के अधिकारी-कर्मचारियों को भी यहां सेवा करने का मौका दो। अब निर्वाचन आयोग ने पीएचक्यू को फिर लिखा है कि तबादले का मतलब एक थाने से दूसरे थाने में कर देना नहीं है, बल्कि उन्हें रेंज से ही निकालिए। इसका एक मतलब यह भी है कि कोरबा, रायपुर, बिलासपुर जैसी सहूलियत वाली जगहों पर पदस्थ अधिकारियों को बस्तर भेजना होगा। स्थिति यह है कि सिफारिशों और पहुंच के चलते इन स्थानों के कई अधिकारी एक बार भी नक्सल इलाकों में नहीं गए। लोकसभा, विधानसभा चुनाव के दौरान भी वे मैदानी जिलों में घूमते रहे हैं। अब देखना यह है कि आयोग के निर्देश के बाद बस्तर पुलिस में कितना बदलाव आता है।
तालमेल से बना बजट
विष्णुदेव साय सरकार के पहले आम बजट को खूब सराहा जा रहा है। विपक्ष ने भी विरोध में ज्यादा कुछ नहीं कहा। बजट के लिए वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने वित्त सचिव अंकित आनंद के साथ आधी रात तक बैठकें करते थे। दोनों के बीच इतना बढिय़ा तालमेल रहा कि बजट बहुत अच्छे से तैयार हो पाया।
कानपुर आईआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक अंकित अपने मातहतों पर निर्भर नहीं रहते थे, और वो मंत्री से चर्चा कर बजट प्रस्तावों का ज्यादातर हिस्सा खुद ही अपने लैपटॉप में टाइप कर लेते थे। बजट को विशेष रूप से लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर तैयार किया गया, और कड़े फैसले लेने से परहेज किया गया।
दूसरी तरफ, भूपेश सरकार के समय से राज्य पर कर्ज का बोझ काफी बढ़ा है। ऐसे में सरकार को वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है। वित्त मंत्री ओपी चौधरी को विजनरी माना जाता है, और कलेक्टर रहते उनके द्वारा किए गए काम इसका उदाहरण भी है। अब अंकित के साथ रहने से कुछ अलग हटकर काम की उम्मीदें भी हैं। देखना है आगे क्या कुछ करते हैं।
चुनाव से पहले खर्च का मीटर
भाजपा सभी 11 सीटों को अपने कब्जे में करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। पार्टी ने अभी टिकट घोषित नहीं किए हैं, लेकिन सभी लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव कार्यालय खुल गए हैं। सभी जगह प्रभारी नियुक्त कर दिए गए हैं, और कार्यालयों में कार्यकर्ताओं की भीड़ देखी जा सकती है।
सबसे बेहतर कार्यालय महासमुंद का है, जो कि पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के देखरेख में तैयार हुआ है। हालांकि कई जगहों पर खर्चे को लेकर किचकिच हो रही है। कुछ जगहों पर स्थानीय सांसद को खर्चा उठाने के लिए कहा गया है। ये अलग बात है कि उनकी टिकट अभी पक्की नहीं हुई है।
एक लोकसभा क्षेत्र में तो दो-तीन संपन्न पदाधिकारियों को कार्यालय का जिम्मा दिया गया। सांसद महोदय भी संपन्न पदाधिकारियों को देखकर खर्च को लेकर आश्वस्त भी थे। पिछले दिनों सांसद महोदय, कार्यालय पहुंचे तो पदाधिकारियों ने उनका खूब आवभगत किया। भोज भी कराया। ऐसा इंतजाम देखकर सांसद महोदय खुश भी हुए। पदाधिकारियों के काम की उन्होंने सराहना भी की। बाद में उनकी खुशी उस वक्त काफूर हो गई, जब तमाम खर्चों का बिल पहुंचा। टिकट से पहले ही खर्चों का मीटर घूमना शुरू हो गया।
दुर्ग से कौन से साहू को टिकट?
चर्चा है कि पूर्व सांसद ताम्रध्वज साहू दुर्ग सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। मगर पूर्व सीएम भूपेश बघेल की राय अलग है। वो दुर्ग से केंद्रीय जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष राजेन्द्र साहू को टिकट देने के पक्ष में हैं।
कहा जा रहा है कि ताम्रध्वज दुर्ग सीट से टिकट नहीं मिलने पर राजनांदगांव सीट का विकल्प रखा है। इसके लिए वहां के दो विधायक भोलाराम साहू, और दलेश्वर साहू के संपर्क में भी है। हालांकि पार्टी के स्थानीय नेता किसी बाहरी को टिकट देने के खिलाफ हैं। विधानसभा चुनाव में राजनांदगांव शहर की सीट पर गिरीश देवांगन को उतारने का खामियाजा पार्टी भुगत चुकी है। भूपेश बघेल के पूरी ताकत झोंकने के बावजूद गिरीश रिकॉर्ड वोटों से चुनाव हारे। देखना है कि ताम्रध्वज के मामले में पार्टी क्या कुछ फैसला लेती है।
उलझता जा रहा रेत का मामला
नई सरकार बनने के बाद गौण खनिज पर नई नीति बनाने की घोषणा की गई है। इसके चलते रेत घाटों की नीलामी नहीं हुई है। रेत खनन और परिवहन की क्या प्रक्रिया होगी, यह नीति आने के बाद मालूम होगा। पंचायतों को फिर से अधिकार देने की बात हो रही है। दूसरी ओर विधानसभा में सवाल उठने के बाद रेत गाडिय़ों की चेकिंग बढ़ गई है। जब खदानों की नीलामी ही नहीं हुई है तो रेत कहां से निकाले जा रहे हैं, यह कोई रहस्य की बात नहीं है। खनन अवैध रूप से हो रहा है। इस समय भवन निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। बारिश के बाद यह काम रुक जाएगा और घाट भी बंद हो जाएंगे। इसके अलावा मार्च के पहले सप्ताह में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता भी लग सकती है। मौजूदा स्थिति में रेत के कारोबार से जुड़े और भवन बना रहे लोग, दोनों ही चिंता में हैं।
खतरनाक मगर शर्मीला कबरबिज्जू...
कबरबिज्जू एक ऐसा जीव है जो प्राय: कब्रगाह में पाया जाता है। जमीन के भीतर रहता है, यह मुर्दों को खाता है। आवाज ऐसी होती है कि अक्सर लोग जब कब्रिस्तान के पास से गुजर रहे होते हैं तब प्रतीत होता है कि कोई इंसान शोर कर रहा है। इसके नाखून और दांत बेहद मजबूत होते हैं, जिसके चलते कठोर मिट्टी और शवों की भी चीरफाड़ कर लेता है। मगर, यह शर्मीला भी होता है। भिलाई के पास उतई में जब एक मादा और दो बच्चे दिखे तो लोगों ने वन विभाग को सूचना दी। टीम पहुंची तो मां वहां से बच निकली। वन अमले को यकीन था कि वह अपने बच्चों से मिलने फिर पहुंचेगी। और ऐसा ही हुआ। दोनों बच्चों को मां के साथ पकड़ लिया। इनको लेकर अंधविश्वास और टोने-टोटके की कथाएं चलती हैं। खुले घूमने के दौरान इन पर आफत आ सकती थी। फिलहाल मैत्री बाग में ये सुरक्षित हैं।