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बिलासपुर-कटनी के बीच यहां के घड़े खरीदने तैयार रहते हैं लोग...
26-May-2020
बिलासपुर-कटनी के बीच यहां के घड़े खरीदने तैयार रहते हैं लोग...

आज जब मिट्टी से बनी वस्तुएं अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं, ऐसे में चंदिया की सुराही एवं मटके उतने ही प्रसिद्ध हैं। बिलासपुर से कटनी मार्ग की रेल यात्रा के दौरान एक छोटा-सा स्टेशन चंदिया पड़ता है। चंदिया स्टेशन के आते ही चारों तरफ चंदिया की सुराही एवं मटकों को बेचने वाले लोगों की भीड़ लग जाती है, इस साल वो भीड़ कोरोना वायरस की मार झेल रही है। यहां के मिट्टी के मटकों की प्रसिद्धि इतनी अधिक है कि चंदिया पहुंचते ही यात्री प्लेटफार्म की ओर झांकने लगते हैं। चंदिया की सुराही एवं मटकों को ग्रीष्मकालीन फ्रीज के नाम से जाना जाता है। रेलयात्रा के दौरान कई देशी, विदेशी यात्री इन सुराहियों को साथ लेकर चलते भी देखे गए हैं। इतना ही नहीं बस और लम्बी दूरी के ट्रक ड्रायवर भी उन मटकों में पानी भरकर सफर में चलते हैं। करीब डेढ़ दशक हो गए, चंदिया की सुराहियों एवं मटकों की खनक मध्यप्रदेश के जबलपुर, कटनी, शहडोल, अनूपपुर समेत पड़ोसी राज्यों तक सुनाई देती है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, रायपुर के अलावा देश के अन्य बड़े-छोटे शहरों में भी चंदिया के मटके पहुंचते हंै। कहते हैं कि चंदिया की सुराही-मटके का नाम लेते ही ग्राहक किसी भी दाम पर खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस सफलता के पीछे उन हजारों श्रमिकों की मेहनत और वहां की माटी का कमाल है जो इस साल त्रासदी की मार झेल रहे हैं।

उबाल मारती देश की सियासत और महँगाई से तपते बाजार में आम-ओ-खास को राहत देने देसी फ्रिज यानी मिट्टी के चिकने घड़ों की आमद वैसे तो बाजार में दो महीने पहले ही हो चुकी थी लेकिन कोरोना वायरस के चलते मुल्कबंदी की मार ने इनके व्यवसाय से जुड़े लोगों की कमर तोड़कर रख दी। बिलासपुर में चंदिया के मटके-सुराहियों को लेकर आने वाले परिवार की सदस्य सुमित्रा प्रजापति और रामकली ने बताया कि वे एक दशक से घड़े लेकर बिलासपुर आ रहे हैं। मटके सड़क और रेल मार्ग से लेकर आते हैं। उन्होंने बताया कि चंदिया में बनने वाले घड़ों में चिकनी मिट्टी का इस्तेमाल होता है। चूँकि और मटकों की तुलना में मिट्टी अलग होती है इस कारण पानी ठंडा भी ज्यादा होता है ।

उन्होंने बताया की लॉकडाउन के पहले आए थे लेकिन पिछले 60 दिन में उनकी बिक्री पिछले बरसों की तुलना में नहीं के बराबर रही, हालांकि इन देसी फ्रीज के आदि हो चुके लोगों को चंदिया के सुराही - मटकों का हर साल इंतजार रहता हैं।  
(तस्वीर और जानकारी बिलासपुर के फोटोग्राफर सत्य प्रकाश पाण्डेय द्वारा)

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