धान या किसी अन्न की पैदावार की लागत पर मूल्य निर्धारण होता है तो क्या अनुष्का जैसी नन्ही परी के मेहनत को उसमें जोड़ा जा जाता है या नहीं, कैसे जोड़ सकते हैं! जोडऩे वालों ने यह कभी देखा न होगा, जैसी तीसरी क्लास में पढऩे वाली यह बच्ची अपने दादू के संग सिर पर खेत से कटे धान को मिसाई के लिए सिर पर भारी बोझ ले जाती मुझे मिली।
कल सुबह में कोपरा डैम से बिलासपुर अपने घर बाइक से आ रहा था तब दूर सडक़ पर यह अपने दादू के संग जाती दिखी। सोचा न था यह बालिका होगी। करीब देखा चेहरा तक लदे धान से ढंका था। मेरी जिज्ञासा थी... वैसे इतना अधिक बोझ सिर पर उठाना लडक़े के बूते बात कैसे हो सकती है ? पर हैरत तब हुई जब उसके दादू ने बताया- यह बच्ची है। सिर पर बालियों के भरा, कटे धान से बस आंखे दिख रही थीं। बालिका का वजन बामुश्किल बीस किलो होगा पर सिर पर बोझ 35 किलो से कम नहीं।
बात करते फोटो ली, तो उसने बताया तीसरी क्लास में पढ़ाई कर रही है, और आगे पढ़ेगी। शहर में बस और अपनी कार से स्कूल जाने वाले बच्चों की कमी नहीं।
मेरा भारत कितने फासले से जीता है। देश में कुछ कुबेर हैं और लाखों मेहनतकश खेतिहर जनों की ऐसी मासूम बेटियां। क्या यह फासला कभी कम होगा। (प्राण चड्ढा के फेसबुक पोस्ट से)