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विशेष रिपोर्ट

जब धाकड़ नेता शिवेन्द्र की हार के लिए पत्नी गीतादेवी ने बाल खुला रखने की रखी थी मन्नत

 1996 के लोस चुनाव में गीतादेवी की कसम से शिवेन्द्र को मिली थी हार 

विशेष रिपोर्ट : प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 20 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कांग्रेस की सियासत में राजनांदगांव लोकसभा के सांसद रहे स्व. शिवेन्द्र बहादुर की गिनती 80-90 के दशक में धाकड़ नेताओं में की जाती थी। राजनीतिक रूप से शिवेन्द्र को जिद्दी और ताकतवर माना जाता था। अपनी बात मनवाने के लिए शिवेन्द्र राष्ट्रीय नेताओं से भी भिडऩे से गुरेज नहीं करते थे। शिवेन्द्र के राजनीतिक जीवन में 1996 का चुनाव  उनकी पतन की वजह बना। इसके पीछे उनकी धर्मपत्नी स्व. गीतादेवी सिंह की वह कसम सुर्खियों में रही, जब उन्होंने शिवेन्द्र की हार के लिए मां बम्लेश्वरी से बाल खुले रखने की मन्नत रखी। 

शिवेन्द्र की हार के बाद ही उन्होंने बाल को सहेजा। यह चुनाव शिवेन्द्र बहादुर के लिए राजनीतिक तौर पर काफी नुकसानदायी साबित हुआ। शिवेन्द्र का इस चुनाव के दौरान कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं से छत्तीस का आंकड़ा था। राजनांदगांव के कई प्रमुख नेता शिवेन्द्र के खिलाफ हो गए थे, लेकिन तीन बार सांसद रहे शिवेन्द्र ने अपनी जिद के सामने किसी की नहीं सुनी। नतीजतन भाजपा के अशोक शर्मा ने शिवेन्द्र जैसे कद्दावर नेता को पटखनी दी। इस चुनाव के बाद शिवेन्द्र की राजनीतिक पकड़ कमजोर हो गई। समूचे लोकसभा में न सिर्फ जनता, बल्कि उनके परिवार से भी विद्रोह की आग भडक़ गई। 

1996 में हार के बाद 1998 में कांग्रेस ने शिवेन्द्र का पत्ता काट दिया। उनकी जगह मोतीलाल वोरा को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में शिवेन्द्र  ने जनता दल उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाया, लेकिन वह बुरी तरह से हार गए। शिवेन्द्र के कार्यकाल की आज भी सियासी जगत में चर्चा होती है। शिवेन्द्र  के सांसद रहते हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने  जहां मानपुर जैसे पिछड़े इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वहीं शिवेन्द्र बहादुर के आग्रह पर राजीव गांधी प्रधानमंत्री की हैसियत से भोरमदेव में एक बड़ी सभा में शिरकत की थी। 

राजनीतिक वर्चस्व के लिए खैरागढ़ रियासत के शिवेन्द्र और उनकी पत्नी गीतादेवी के बीच जंग जैसी स्थिति रही। काफी समय तक गीतादेवी डोंगरगढ़ के एक सरकारी गेस्ट हाउस में रही। गीतादेवी के साथ घरेलू विवाद राजनीति की आबो हवा में घुल गया। 1996 में गीतादेवी ने खुलकर शिवेन्द्र की हार के लिए बाल खुले रखने की कसम खाई। चुनावी नतीजे शिवेन्द्र के खिलाफ चले गए। इसके बाद उन्होंने खुले बाल जुड़े में बदला। 

गीतादेवी के खुले बगावत से शिवेन्द्र की राजनीतिक जमीन में दरार पड़ गई। बताया जाता है कि शिवेन्द्र और गीतादेवी ताउम्र आपसी रूप से एक-दूसरे के खिलाफ रहे। डोंगरगढ़ के लाल निवास में शिवेन्द्र की हिदायत के चलते गीतादेवी को महल में दाखिला नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने विरोध के लिए सीधे मोर्चा खोल दिया।  राजनंादगांव लोकसभा का यह चुनाव काफी चर्चित रहा। शिवेन्द्र के खिलाफ जाने से गीतादेवी को लोगों की सहानुभूति मिली। कांग्रेसी नेताओं ने भी इस मुद्दे को हवा दिया। परिणाम में शिवेन्द्र की बुरी हार हुई।
 

विचार/लेख

कोचिंग और स्कूल के बीच रास्ता क्या है?

-राजीव 

हाल ही में देश के सबसे बड़े एवं प्रतिष्ठित परीक्षा बोर्ड सीबीएसई ,नई दिल्ली ने देश के बीस स्कूलों को फर्जी उपस्थिथि मामले में  कार्रवाई की और उनकी मान्यता रद्द कर दी . इस तरह की संभवत यह स्कूली शिक्षा के इतिहास में पहली और सबसे बड़ी कार्रवाई है . यह कार्रवाई इसलिए हुई क्योंकि कक्षा ग्यारवीं और बारवीं में अध्यनरत व्यवसायिक पाठ्यक्रम जैसे नीट ( मेडिकल प्रवेश) एवं जी.ई.ई. (इंजीनियरिंग/आई.आई.टी.) पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने स्कूल में उपस्थिथि न देकर उसी समय प्रवेश परीक्षा की कोचिंग ले रहे थे और स्कूल उनकी गैरमौजूदगी में भी उपस्थिथि दर्शा रहे थे .

देश के तमाम शैक्षणिक संस्थाओं में नियमित विद्यार्थियों के लिए एक तय प्रतिशत हाजिरी जरूरी है. सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों में यह  पचहतर प्रतिशत  है. स्कूल में ना जाकर कोचिंग में पढ़ना यह समस्या पिछले कुछ सालों में बहुत बढ़ गई है. यह इतनी बढ़ गई है कि पूरे देश खासकर महानगरों के अच्छे शैक्षणिक रिकॉर्ड वाले स्कूलों में ग्यारवीं और बारवीं के विद्यार्थियों की संख्या लगभग नगण्य हो गई हैं. अच्छे अकादमी रिकॉर्ड वाले स्कूल ऐसी फर्जी हाजरी के चलन से अपने आप को बाहर रखे हुए हैं क्योंकि यह नैतिक रूप से गलत है .देश में बहुत से स्कूल अपनी हायर सेकण्ड्री कक्षाएं ( ग्यारवीं और बारहवीं ) बंद करने की भी सोच रहे हैं. उनका मानना है कि अभी सिर्फआर्ट्स एवं  कॉमर्स के विद्यार्थी ही हायर सेकण्ड्री कक्षाएं  में अपनी हाजिरी दे रहे हैं . साइंस विषय  के लगभग सारे विद्यार्थी ऐसे डमी स्कूलों की तरफ रुख  कर रहे हैं जिनका कोचिंग संस्थानों से साठ-गांठ है. 

आर्ट एवं कॉमर्स के बच्चों की भी आगे उपस्थिथि को लेकर अनिश्चय की स्थिति है. पूरे देश में विश्विद्यालयों में  प्रवेश के लिए एक परीक्षा की तैयारी शुरू हो गई है  और बहुत से विश्विद्यालय अब इसी प्रवेश परीक्षा के मेरिट से प्रवेश ले रहें है.  यह विद्यार्थी भी एंट्रेंस के लिए कोई ना कोई जुगाड़ बैठाएंगे , कोचिंगों में जाएंगे और इनकी भी हाजिरी लगातार कम होने की संभावना है . फर्जी उपस्थिथि वाले पूरे मामले में एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि पैसे वाले पैसों से अपने बच्चों के लिए उपस्थित खरीद रहे हैं .

ऐसा भी नहीं है सीबीएसई बोर्ड की हालिया  कार्यवाही  से विद्यार्थी स्कूलों  जाने लग जाएंगे. यह कोचिंग और फर्जी उपस्थिथि  का सिलसिला नहीं रुकेगा . देश या किसी भी प्रदेश में इस  व्यवस्था में परिवर्तन करने के विषय में कोई सोच भी नहीं रहा  जबकि स्कूली शिक्षा को बचाने और बच्चों को मानसिक दबाव से मुक्त करने  के लिए इसका उपाय खोजना बहुत जरूरी हो गया है.

जो बड़ा नुकसान सामने से नहीं दिखता वह इन कोचिंग में जाने के बाद इन बच्चों का बौद्धिक, शारीरिक  विकास का रुक जाना  है. समझ लीजिए हम खुले बगीचे से बच्चों को गैस के ऊपर रखे प्रेशर कुकर के समान बैठा देते हैं. यह अत्यंत ही चिंतनीय  है. लेकिन अगर कोई समस्या सामने आन खड़ी है तो उसका  इलाज भी ढूंढना होगा. आखिर इस समस्या से कैसे निपटा जाए ?

आज जो स्थिति है उसमें तीन पक्ष है. पहले विद्यार्थी खुद ,दूसरे उसके पालक, तीसरा पक्ष कोचिंग और स्कूल है जो लगभग एक दूसरे के आमने-सामने है. आज के समय में कोई भी पालक अपने बच्चों को दौड़ में पीछे नहीं रखना चाहता ,  कोई मां-बाप अपने बच्चों को यह नहीं कहता की परीक्षा में  दूसरा या तीसरा आना . हर मां-बाप अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ देखना चाहते हैं.

मौजूदा परिस्थिथि का एक बड़ा कारण भारत में व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में प्रवेश का सिंगल विंडो सिस्टम है इस एंट्रेंस एग्जाम के पाए हुए नंबर से तय हो रही मेरिट से महाविद्यालयों में प्रवेश  मिल रहा है . यह इसलिए करना पड़ा क्योंकि पूरे देश में अलग-अलग सिलेबस और परीक्षा बोर्ड है. बोर्ड / सिलेबस अलग-अलग होने से आंकलन  का पैमाना तय नहीं किया जा सकता. अब समय आ गया है की कम से कम सिलेबस में एकरूपता लाई जाए एकरूपता लाने से कई फायदे होंगे .पहला और सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि बारहवीं के प्राप्तांक को प्रवेश परीक्षा के अंकों के साथ जोड़कर महाविद्यालय प्रवेश की मेरिट तय की जा सकती है . इसका एक अन्य रूप जी.ई.ई.  में है जिसमें के आई आई टी  के प्रवेश में बारहवीं में पचहतर प्रतिशत अंक लाने जरूरी है .इससे न केवल बारवीं कक्षा की परीक्षा को महत्व मिलेगा बल्कि स्कूलों में आमद बढ़ेगी. 

एक बहुत जरूरी सुधार जो सभी परीक्षा बोर्ड को करना चाहिए वह यह की व्यावसायिक  प्रवेश परीक्षा खासकर नीट एवं जी.ई.ई.  दे रहे विद्यार्थियों में भाषा के पाठ्यक्रम को हायरसेकण्ड्री के सिलेबस में काम कर दे या हटा दे . इससे ग्यारवीं और बारवीं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर समग्र रूप से पढाई का बोझ कम होगा तथा स्कूल में उपस्थिथि  का समय कम हो जायेगा .स्कूल में उपस्थित का समय अन्य कक्षाओं की अपेक्षा इन दोनों कक्षाओं में कम किया जाना भी एक कारगर उपायों में से हो सकता है . दिन का  बचा हुआ समय विद्यार्थी अपनी प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में लगा सकता है. विद्यार्थियों को स्वयं से पढाई  या किसी विशेषज्ञ टीचर से पढ़ने का अतिरिक्त समय मिल जाएगा.

इस वर्ष नीट (मेडिकल प्रवेश) में पच्चीस लाख विद्यार्थियों ने परीक्षा आवेदन फॉर्म भरा है और उपलब्ध सीट संख्या एक लाख के आसपास हैं उसमे से भी आधी ही शासकीय मेडिकल  कॉलेज की है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ नीट या आईआईटी की परीक्षा में दबाव है. हर श्रेणी के विद्यार्थी पर बहुत अच्छा करने का दबाव है .

परीक्षा के इस दबाव को कम करने के लिए शिक्षा से जुड़ी संस्थाओं और इन विद्यार्थियों का भला चाहने वाले लोगों को मिल बैठकर काम  करना होगा . 

 

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