विशेष रिपोर्ट : रजिंदर खनूजा
पिथौरा, 27 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। पावरलूम के दौर में भी छत्तीसगढ़ का हैंडलूम बचे खुचे सांसों के साथ मुकाबला कर रहा है। अपनी पुरखों से मिली संबलपुरी साड़ी बुनने के शिल्प और हुनर को बनाये रखते हुए छत्तीसगढ़ के इस गाँव का एक परिवार, बिना शासकीय सहायता के आजादी के बाद से ही अपने पूर्वजों के इस व्यवसाय को थामे हुए है।
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के पिथौरा के समीप ग्राम चिखली का एक पूरा परिवार संबलपुरी हैंडलूम साड़ी निर्माण कर रहा है। आज के इस मशीनी युग मे पूरा परिवार दिन रात मेहनत कर एक हैंडलूम से दो दिनों में एक साड़ी तैयार करता है।
मिट्टी का घर टीन लगी छत, अंदर एक अल्प रोशनी वाले कमरे में साड़ी बुनती एक नाबालिग बालिका को देख कर पहले तो ऐसा लगा कि उक्त किशोर वय की बालिका सोशल मीडिया में अपना फोटो अपलोड करने इस तरह का काम दिखाने बैठी है, परन्तु कुछ ही देर देखने पर रंग-बिरंगे उलझे धागों को संवारती लडक़ी के बारे में समझ आया कि यह सोशल मीडिया पर अपना वीडियो अपलोड नहीं करना चाहती, बल्कि यह तो अपने पेट की उलझी लड़ाई को सुलझाने के लिए मेहनत कर रही है।
यह दास्तान कोई कहानी का हिस्सा नहीं, पिथौरा से महज 10 किलोमीटर दूर विकासखण्ड के ग्राम चिखली निवासी सफेद मेहेर के घर के एक कमरे में साड़ी बुन रही एक नाबालिग बालिका की है।
इस नाबालिग बालिका से चर्चा करने पर उसने अपना नाम गीता मेहेर बताया। 10वीं कक्षा में अध्ययनरत गीता पढ़ाई के साथ अपने पेट की लड़ाई भी लड़ती है। परिवार जनों के साथ उसे भी प्रतिदिन कुछ घण्टे साड़ी बुनाई कार्य में हाथ बंटाना पड़ता है।
4 परिवार - 14 हथकरघा
सफेद मेहेर के 4 परिवार के लोग ग्राम चिखली में रहते हैं। सभी परिवार में 2 से 4 मशीनें हैं। कुल मिलाकर सभी परिवारों में कुल 14 मशीनों हैं, जिसमें वे साड़ी बुनने का काम करते हैं। परिवार के मुखिया सुफ़ेद ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि उसके 2 पुत्र , 2 बहू एवं 4 नाती हैं। सभी साड़ी बुनाई सीख चुके हैं। अब सभी बारी-बारी से दिनभर साड़ी बुनने का काम करते हैं। दो दिन में पूरा परिवार एक हथकरघे में एक साड़ी बना लेता है।
मार्केटिंग बेहराबाजार बरगढ़
संबलपुरी साड़ी आम दुकानों में आमतौर पर 6 से 8 हजार रुपयों तक बेची जाती है, परन्तु चिखली के बुनकर परिवार साडिय़ों को बना कर इसे ओडिशा के बरगढ़ के समीप स्थित बेहरा बाजार में बेचने ले जाते हैं, जहां थोक में प्रति साड़ी 3000 रुपये में बेची जाती है, जबकि साड़ी की वास्तविक कीमत इन बुनकरों को मात्र 1000 रुपये मिलती है। इन बुनकरों को साड़ी बुनने के लिए 2000 रुपये के सूत और रंग भी दिए जाते हैं, या यूं कहें कि बरगढ़ के व्यवसायी उक्त बुनकरों को प्रति साड़ी एक हजार रुपयों की मजदूरी ही देते हैं।
सफेद सूत में रंग करने के बाद बुनाई
बुनकरों के अनुसार इन्हें बरगढ़ से सफेद रंग का सूत ही दिया जाता है, जिसे इनके परिवार के सदस्य ही रंगते हंै और डिजाइन के साथ इससे साड़ी बुनाई करते हैं। साडिय़ों में रंग और डिजाइन खरीदार दुकानदार के अनुसार रखा जाता है, और दुकानदार मांग के अनुसार साड़ी बनवाते हैं।
शासन की अनदेखी से कर्ज बढ़ रहा
बुनकर परिवार के सदस्यों ने शासन की किसी भी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिलने की बात कही है। इनका कहना है कि घर में आपात या मांगलिक कार्यो एवम अन्य जरूरी काम के लिए उन्हें कर्ज लेकर काम करना पड़ता है। किसी भी परिवार को प्रधानमंत्री आवास तक उपलब्ध नहीं मिल सका है, जिसके कारण आज भी ये परिवार अपने कच्चे मकानों में ही पारंपरिक बुनाई का कार्य कर अपनी जीविका चला रहे हैं। यह कार्य उनका पुरखोती कार्य है, इसमें अल्प आय होती है, परन्तु पीढ़ी दर पीढ़ी यह कार्य हम लोग कर रहे है और करते रहेंगे।
बचपन से ही यह हुनर सिखाते हैं
बुनकर परिवार के युवक खेमराज ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते हुए बताया कि वे जाति के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। घर में बच्चे पढ़ लिख रहे हैं, परन्तु सरकार द्वारा रोजगार नहीं देने के कारण वे अपना पुस्तैनी हैंडलूम संबलपुरी साड़ी का काम कर रहे हैं। इसके लिए बच्चे के होश संभालते ही उसे हथकरघा का हुनर सिखाया जाता है जिससे वे अपने हुनर से कम से कम अपनी जीविका तो कमा ही लें। ये परिवार चाहते हंै कि उनके पढ़े लिखे बच्चों को रोजगार दे एवं हाथ से साड़ी निर्माण की मशीन लगाने हेतु भवन एवम कच्चा समान सुत आदि खरीदने हेतु आर्थिक सहायता भी मुहैया कराएं।
फणीन्द्र दाहाल
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में नए संसद भवन का उद्घाटन किया है। इस नए भवन में लगा एक भित्तिचित्र विवाद का विषय बन गया है।
देखने में भित्तिचित्र लगभग सारे दक्षिण एशिया का एक भौगोलिक मानचित्र लगता है। इसमें वर्तमान पाकिस्तान के तक्षशिला और मानसेहरा जैसे इलाके भी हैं।
इसी तरह भित्तिचित्र में नेपाल के लुंबिनी और कपिलवस्तु को भी दिखाया गया है। इस बारे में नेपाल में काफी विरोध किया जा रहा है।
नेपाल के मुख्य विपक्षी दल के नेता ने कहा है कि प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड फिलहाल भारत के दौरे पर हैं और इस दौरान उन्हें भारत के इस कदम का विरोध करना चाहिए।
वहीं एक नेपाली इतिहासकार ने टिप्पणी की है कि अखंड भारत का कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक आधार नहीं है।
प्रचंड के दिल्ली आने से पहले ही नेपाल में सोशल मीडिया पर इस मुद्दे की खूब चर्चा हुई और उनकी पार्टी के एक नेता ने बीबीसी को जवाब दिया कि लुंबिनी और कपिलवस्तु पर कोई और देश दावा नहीं कर सकता।
इस मामले की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने वाले एक विपक्षी दल के युवा संगठन ने कहा है कि वो इस मामले को लेकर काठमांडू में भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन करेंगे।
क्या कहते हैं नेपाली इतिहासकार?
भित्तिचित्र का उद्घाटन भारतीय पीएम मोदी ने रविवार को नए संसद भवन में किया था।
इसमें भारत के राष्ट्रीय प्रतीक, कुछ क्षेत्रों की सीमाएं और मूर्ति जैसी आकृतियां भी शामिल हैं। इसके अलावा नेपाल के कुछ ऐतिहासिक स्थानों के नाम भी इसमें शामिल हैं, जिनमें लुंबिनी और कपिलवस्तु शामिल हैं।
भित्तिचित्र को भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘अखंड भारत’ के दृष्टिकोण से भी जोडक़र देखा जा रहा है।
चित्र में तक्षशिला सहित विभिन्न राज्य और शहर शामिल हैं, (जो मौजूदा दौर में पाकिस्तान में हैं) जो प्राचीन भारत का हिस्सा थे।
लेकिन नेपाली इतिहासकारों का कहना है कि लुंबिनी और कपिलवस्तु को भित्तिचित्र में ‘अखंड भारत’ में शामिल करने का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।
नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में करीब 40 साल तक इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर त्रिरत्न मानंधर का कहना है कि यह कदम गलत है और इससे नेपाल और भारत के रिश्तों के बीच संदेह पैदा होगा।
वो कहते हैं, ‘अगर भारत खुद को अखंड कहता है तो हम भी ‘अखंड नेपाल’ का दावा कर सकते हैं। यदि हम प्राचीन काल की बात भी करें तो समुद्रगुप्त के धर्मशास्त्र के एक अभिलेख में कहा गया है कि नेपाल नामक देश कामरूप और कार्तिपुर के बीच स्थित है। कामरूप असम बन गया और कार्तिपुर कुमाऊँ गढ़वाल बन गया। इसका मतलब ये है कि आज नेपाल जितना बड़ा दिखता है, उसकी तुलना में पहले ये बहुत बड़ा था।’
‘अगर हम और आधुनिक काल की बात करें तो भीमसेन थापा के समय में हम कुमाऊं गढ़वाल से भी आगे तक पहुंचे थे और बारह और अठारह ठाकुराई नामक राज्यों को जीतकर सतलुज नदी तक पहुंच गए थे। कांगड़ा ही एकमात्र ऐसा इलाका था जिसे हम नहीं जीत पाए। वहीं ये पूर्व में तीस्ता तक पहुंच गया था, यानी दार्जिलिंग भी नेपाल के हिस्से में आता था। अगर विवाद पर ही उतरने की नीयत हो तो कोई कुछ भी बोल सकता है।’
अखंड भारत का कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में ‘भारतवर्ष’ की चर्चा है।
प्रोफेसर त्रिरत्न मानंधर ने कहा, ‘जब हम यहां पूजा या कर्मकांड करते हैं तो हम ‘जम्बूद्वीपे भारतखंडे नेपाल देश' कहते हैं। लेकिन पुजारी जो कहते हैं वह धार्मिक विश्वास है। सिद्ध बात नहीं। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के आधार पर ‘अखंड भारत’ का कोई सवाल ही नहीं है।’
उनका कहना है कि कई लोग ब्रिटिश उपनिवेश से आजादी के बाद ही भारत को ‘अखंड भारत’ मानते हैं।
वो कहते हैं, ‘प्राचीन काल में भारत जैसी कोई चीज नहीं थी। मध्य युग में यह अलग था। ब्रिटिश काल में भी यह अलग था। भारत विशेष रूप से 1947 में स्वतंत्रता के बाद ही अस्तित्व में आया।’
प्रोफेसर मानंधर मध्यकाल में नेपाल और चीन के शासकों के बीच की एक प्रथा को याद करते हैं और सुझाव देते हैं कि इस तरह के पारंपरिक आधार को दिखाकर संदेह पैदा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘प्राचीन और मध्यकाल में चीनी सम्राट कहा करते थे कि वे स्वर्ग से धरती पर राज करने आए हैं। उसके बाद कहा जाता है कि नेपाल भी हर पांच साल में गणमान्य व्यक्तियों को चीन भेजता था।’
‘वह हमें चीन में शामिल राज्य नहीं मानते थे लेकिन उनका मत था कि नेपाल भले ही एक स्वतंत्र राज्य था, यह चीन के सम्राट को अपना सर्वोच्च नेता मानता था। अब उस धारणा को लेकर चीन उस तरह का व्यवहार न तो दोहरा सकता है और न ही अपनाने के बारे में सोच सकता है।’
क्या कहते हैं पार्टी के नेता?
भारत के नए संसद भवन में लगे भित्तिचित्र पर नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री से लेकर लेखक, टिप्पणीकार और कई आम लोग प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष केपी शर्मा ओली ने कहा है कि भारत जैसे ‘पुराने और मॉडल लोकतंत्र’ के लिए नेपाली जमीन को अपने नक्शे में लगाना और संसद भवन में तस्वीरें टांगना उचित नहीं माना जा सकता।
इसे तुरंत ठीक करने की मांग करते हुए उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री को उस नक्शे को हटाने के लिए और इस ग़लती को सुधारने के लिए भारत सरकार से बात करनी चाहिए। जब आप इतनी बात नहीं कर सकते तो भारत के दौरे पर क्यों जाएं?’
ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने भारत के कालापानी को अपना हिस्सा बताने के बाद नेपाल के अपने नक्शे को अपडेट किया और कहा ‘हम अपनी एक इंच जमीन भी किसी के कब्जे में नहीं रहने देंगे।’ नेपाल कालापानी पर अपना दावा करता है।
बुधवार को नई दिल्ली पहुंचे प्रचंड पहले ही सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि सीमा मुद्दों सहित अन्य मुद्दों पर वह भारतीय पक्ष से बात करेंगे।
बीते मंगलवार को उनकी पार्टी की एक बैठक में ऐसी ख़बरें आईं कि कुछ नेताओं ने सुझाव दिया था कि अपनी यात्रा के दौरान प्रचंड को भारतीय संसद में भित्तिचित्र का मुद्दा उठाना चाहिए।
माओवादी सेंटर पार्टी के मुख्य सचेतक हितराज पांडेय ने कहा कि चूंकि प्रधानमंत्री भारत दौरे पर जा रहे हैं, इसलिए उन्हें इसकी मामले की हक़ीक़त समझनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘बुद्ध का जन्म नेपाल में हुआ था और लुंबिनी और कपिलवस्तु बुद्ध से जुड़ी जगहें हैं। मुझे नहीं लगता कि इस बात को लेकर किसी तरह का भ्रम होना चाहिए कि बुद्ध का जन्म नेपाल में हुआ था और बौद्ध धर्म नेपाल से ही फैलना शुरू हुआ था। यह मामला क्या है, मैं यह समझे बिना क्या कह सकता हूं कि यह कैसे हुआ?’
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने इस सप्ताह ट्विटर पर चेतावनी दी थी कि ‘अखंड भारत’ के विवादास्पद भित्तिचित्र के कारण नेपाल सहित पड़ोसियों के साथ भारत के अनावश्यक और घातक राजनयिक विवाद होंगे।
उन्होंने कहा कि यह घटना दोनों पड़ोसियों के बीच भरोसे का संकट बढ़ा सकती है और भारत के नेतृत्व को समय रहते अपनी वास्तविक मंशा स्पष्ट करनी चाहिए।
एक विपक्षी दल के युवा संगठन ने कहा था कि मामले की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए वो इस सप्ताह काठमांडू में भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन करेंगे।
नेपाल में राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र को बनाए रखने की मांग कर रहे राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के युवा संगठन ने बुधवार को भित्तिचित्र और सीमा समस्या की तरफ सरकार का ध्यान खींचा।
पार्टी के करीबी राष्ट्रीय जनतांत्रिक युवा संगठन के समन्वयक सुजीत केसी कहते हैं, ‘हमने प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान इस भित्तिचित्र को ठीक करने की मांग करते हुए उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा है। प्रधानमंत्री अभी दौरे पर हैं। हम चाहते हैं कि जिस भूमि का भारत ने अतिक्रमण कर लिया है उसे भारत से वापस लिया जाना चाहिए। सीमा से जुड़े अन्य मुद्दों पर दोनों देशों को मिलकर हल करना चाहिए।’
उसी बैठक में गृह मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ ने कहा कि सीमा समस्या को कूटनीतिक तरीके से हल करने के लिए चर्चा हो रही है और सरकार का ध्यान भी इस मुद्दे की तरफ खींचा गया है।
उन्होंने कहा, ‘हम ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों के आधार पर इन मुद्दों को कूटनीतिक तरीके से हल करने की कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान मुद्दे पर सभी नेपालियों का नजरिया समान है।’
सोशल मीडिया पर हलचल
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर अपने भारतीय मित्रों को संबोधित करते हुए पत्रकार अमित ढकाल ने प्रश्न किया, ‘नेपाल भी नया संसद भवन बना रहा है। वहां कांगड़ा और तीस्ता को समेट कर ‘अखंड नेपाल’की तस्वीर रखना कितना उचित होगा?’
पीएम मोदी ने 2022 में लुंबिनी का दौरा किया था और वहां की जानीमानी मायादेवी मंदिर के दर्शन किए थे। उस समय उन्होंने कहा था कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें बुद्ध के पवित्र जन्मस्थान पर आने का मौक़ा मिला।
बुद्ध के जन्मस्थान के बारे में अपनी टिप्पणियों के लिए भारतीय अधिकारियों और मीडिया को कभी-कभी नेपाल में विरोध का सामना भी करना पड़ा है।
2020 में, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि महात्मा गांधी और भगवान बुद्ध जैसे दो भारतीय महापुरुषों को दुनिया हमेशा याद रखेगी।
उनके बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक तथ्य यह साबित करते हैं कि बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था। बाद में, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त बौद्ध विरासत पर चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था, इसके अकाट्य ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण हैं।
विभिन्न दस्तावेजों के अनुसार, बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था और उन्हें भारत के बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ। भारत के सारनाथ में ही उन्होंने पहली दीक्षा दी।
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में उन्होंने निर्वाण हासिल किया था। इस जगह को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
मोदी के दौरे के बाद माना गया था कि नेपाल और भारत के बीच बुद्ध की जन्मस्थली को लेकर विवाद हमेशा के लिए सुलझ गया है, लेकिन ताज़ा भित्तिचित्र ने एक बार फिर विवाद खड़ा कर दिया है।
भारत में भित्तिचित्र पर क्या प्रतिक्रिया रही है?
भारतीय जनता पार्टी और पार्टी के राज्य निकायों के कई नेताओं ने 970 करोड़ रुपये की लागत से बने नए संसद भवन और वहां बनाए गए अखंड भारत के भित्तिचित्र को सोशल मीडिया पर साझा किया है।
भारत के संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्विटर पर लिखा, ‘संकल्प स्पष्ट है- अखंड भारत।’
बीजेपी की कर्नाटक शाखा ने ट्विटर पर लिखा कि ये भित्तिचित्र ‘हमारी गौरवशाली महान सभ्यता की ताक़त का प्रतीक’ है।
भारत के राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के महानिदेशक अद्वैत गडनायक नए संसद भवन में रखी जाने वाली कला सामग्री के चयन में शामिल थे।
द हिंदू अखबार ने, उनके हवाले से लिखा है, ‘प्राचीन काल में भारत के प्रभाव को दिखाने के लिए कला सामग्री का चयन किया गया था।’
वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुताबिक, ‘अखंड भारत’ भारत के विभाजन से पहले के प्राचीन काल के भारत के भूगोल को कवर करता है और यह आज के अफगानिस्तान से थाईलैंड तक फैला हुआ था।
अब वह तर्क दे रहे हैं कि इसे सांस्कृतिक रूप से देखा जाना चाहिए न कि राजनीतिक रंग दिया जाना चाहिए। लेकिन नेपाल से संबंधित विश्व विरासत सूची में शामिल लुंबिनी सहित अन्य स्थानों के भित्तिचित्रों ने ‘अखंड भारत’ को कूटनीतिक और भौगोलिक विवाद का विषय बना दिया है। (bbc.com/hindi/)