नारायणपुर के दुर्गम इलाकों में बढ़ रही पढ़ाई
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- नारायणपुर से लौटकर प्रदीप मेश्राम
रायपुर 10 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के नारायणपुर जिले में पढ़ाई बढ़ाने की प्रशासन की मुहिम को पुलिस की मदद से रफ्तार मिलने के बाद अपनी काबिलियत से अबूझमाड़ के एक छात्र ने विदेशी जमीं पर कदम रखा। पोटा केबिन से पढ़ाई शुरू करने वाले इस छात्र को विदेश भेजने में पुलिस और प्रशासन साझेदार रहे।
नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के रहने वाले छात्र शबीर वड्डे का गांव टिकोनार नक्सलगढ़ के रूप में जाना जाता है। नक्सल डर के साए में रहने वाले इस गांव में महज 5 परिवार ही रहते हैं। तीस लोगों की आबादी वाले इस गांव से निकलकर शबीर ने नारायणपुर के पोटा केबिन में दाखिला लिया। विज्ञान में रूचि रखने की वजह से शबीर ने जापान के नोकोया विश्वविद्यालय में एक विज्ञान प्रदर्शनी में शामिल होने का मौका हासिल किया।
इस साल 16 जून से 22 जून को हुए विज्ञान प्रदर्शनी में शामिल होने वाले शबीर बस्तर रेंज से एकमात्र छात्र थे। शबीर के लिए यह चयन कई मायने में महत्वपूर्ण रहा। शबीर ने पहली बार हवाई सफर का अनुभव हासिल किया। वहीं पहली विदेश यात्रा की खुशी जापान के बुलेट ट्रेन की सवारी से दुगनी हो गई। वर्तमान में 12वीं में अध्ययनरत शबीर को जापान की सफल यात्रा के लिए पुलिस और प्रशासन ने आवश्यक दस्तावेज को तैयार करने में मदद की।
खास बात यह है कि शबीर का गांव पूर्ण रूप से निरक्षर है। नक्सल आतंक के चलते प्रशासनिक मशीनरी का गांव में दखल शून्य है। ऐसे में इस होनहार छात्र ने विदेशी जमीन पर अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लेकर अबूझमाड़ में एक नए उत्साह का माहौल बनाया है।
इधर नारायणपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में अध्ययनरत अबूझमाड़ के कई छात्र-छात्राएं तालीम को लेकर काफी गंभीर है। धौड़ाई और ओरछा क्षेत्र के विद्यार्थी तकनीकी शिक्षा के साथ व्यावहारिक ज्ञान को विद्यार्थियों ने चुना है। अबूझमाड़ के विद्यार्थी खेल, संगीत, चिकित्सा, इंजीनियर और अन्य क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। हालांकि नक्सलियों के आतंक के चलते विद्यार्थी अपना नाम छुपाने पर जोर देते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर कुतुल, अतलानार, सोनपुर, ओरछा क्षेत्र के कई विद्यार्थी बताते हैं कि शिक्षा से ही वह तरक्की की ओर जा सकते हैं। तालीम लेने के बाद उनके जीवन में कई बदलाव आए हैं।
माना जाता है कि इन विद्यार्थियों ने परोक्ष या परोक्ष रूप से नक्सल दंश को झेला है। छात्राएं भी शिक्षा के रास्ते अपना सुनहरा भविष्य गढऩे के लिए पूरी शिद्दत के साथ पढ़ रही हैं। बताया जाता है कि अबूझमाड़ से निकले इन छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए सभी तरह की सहूलियत भी दी जा रही है। बहरहाल अबूझमाड़ के गांवों में शिक्षा से बदलाव की बयार चलने लगी है।
शिक्षा से ही बदलाव संभव - आईजी
बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. ने नारायणपुर के भीतरी इलाकों में शिक्षा के बदौलत हो रहे परिवर्तन को लेकर कहा कि शिक्षा से ही बदलाव संभव है। उन्होंने कहा कि प्रशासन के साथ पुलिस संयुक्त रूप से शिक्षा को लेकर अभियान चला रही है। जिसके अपेक्षित नतीजे सामने आ रहे हैं। विद्यार्थियों की समझ और बौद्धिक क्षमता में बढ़ोत्तरी इस बात का द्योतक है कि भविष्य अबूझमाड़ के होनहार छात्रों का है।
-पुष्य मित्र
एक तारीख सूर्योदय से शुरू होती है और अगले सूर्योदय को खत्म हो जाती है। एक तारीख रात बारह बजे शुरू होती है और 24 घंटे बाद फिर रात बारह बजे खत्म हो जाती है।
इसके बाद आती है हमारे पंडितों की तारीख, जो कहती है आज दोपहर बारह बजकर 35 मिनट पर अष्टमी शुरू होगी जो अगले दिन सुबह ग्यारह बजे खत्म होगी, मगर अष्टमी आज नहीं कल होगी और कल ही दोपहर बाद नवमी भी होगी।
हमारे ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड विद्वानों द्वारा तैयार इस स्पेशल कैलेंडर को जिसे हम पंचांग कहते हैं, नासा में काम करने वाला भारतीय वैज्ञानिक भी आंख मूंद कर मान लेता है।
कोई नहीं कहता, पंडित जी जरा अपना कैलेंडर सुधार लीजिए। ऐसा क्या कैलेंडर बना लिए हैं, जिसे आप ही समझ पाते हैं, आप ही उसकी व्याख्या कर पाते हैं।
महाराज आप ही कहते हैं कि दिन सूर्योदय के हिसाब से होता है, फिर आपकी तिथि क्यों गड़बड़ा रही है। सिर्फ इसलिए कि आपके साल के हिसाब किताब में ही लोचा है। इसलिए आपको बारह साल बाद एक मलमास जोडऩा पड़ता है। ये न जोड़ें तो हम हिंदू भी मुसलमानों की तरह हर मौसम में होली और दुर्गापूजा मनाएं, जैसे वे हर मौसम में ईद और बकरीद मनाया करते हैं।
जब विज्ञान उन्नत नहीं था तो हम चांद की कलाओं को देखकर तारीख तय करते थे। मगर जब हमने सूर्य की स्थितियों को समझना शुरू किया तो सौर कैलेंडर बने। भारत में भी बने। मगर ज्यादातर हिंदू और मुसलमान आज भी चंद्र कैलेंडर से चिपके हैं। क्योंकि उनका धर्म उन्हें अपनी पौराणिक मूर्खताओं को छोडऩे की इजाजत नहीं देता।
कई दफा मुझे लगता है कि अपने पूर्वजों की मूर्खताओं और पूर्वाग्रहों या संयमित शब्द में कहें तो उनके ज्ञान की सीमाओं से चिपके रहने का ही नाम धर्म है। हम भी चिपके हैं। इसलिए बीच दोपहर में 12 बजकर 40 मिनट पर हमारा नया दिन शुरू होता है और हम कोई बहस नहीं करते। चुपचाप मान लेते हैं।
ये भी नहीं पूछते कि पंडित जी घंटा मिनट तो आपके पास नहीं था, ये तो पश्चिम ने दिया है। ये आप कैसे घुसा लेते हैं अपने पंचांग में।
मगर नहीं, धर्म के मामले में जो पंडित जी कह दें वही सही। इसलिए आज अष्टमी भी है और नवमी भी। अष्टमी कल भी थी। कल सप्तमी भी थी। पंडित जी जानते हैं, यह कन्फ्यूजन है तभी उनकी पूछ है। इसलिए भारतीय कैलेंडर का कंफ्यूजन बना रहे।